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॥श्री हरि:॥

मीिा पदावली -१

1.
छैल बििाणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधाितां हे, भला न कहसी कोइ।

वि हीणों आपणों भलो हे, कोढी कु बि कोइ।

जाके संग सीधाितां है, भला कहै सि लोइ।

अबिनासी सं िालवां हे, बजपसं सांची प्रीत।

मीिा कं प्रभु बमल्या हे, ऐबह भगबत की िीत॥

2.
डि गयोिी मन मोहनपास। डि गयोिी मन मोहनपास॥१॥
िीिहा दुिािा मैं तो िन िन दौिी। प्राण त्यजुगी किवत लेवगी
काशी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। हरिचिणकी दासी॥३॥

3.
तुम कीं किो या हं ज्यानी। तुम०॥ध्रु०॥
ब्रिंद्राजी िनके कुं जगलीनमों। गोधनकी चिै या हं ज्यानी॥१॥
मोि मुगुट पीतांिि सोभे। मुिलीकी िजैया हं ज्यानी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। दान ददन ले ति लै हं ज्यानी॥३॥
4.
म्हािे घि आओ प्रीतम प्यािा।।
तन मन धन सि भेंट धरंगी भजन करंगी तुम्हािा।
म्हािे घि आओ प्रीतम प्यािा।।
तुम गुणवंत सुसाबहि कबहये मोमें औगुण सािा।।
म्हािे घि आओ प्रीतम प्यािा।।
मैं बनगुणी कछु गुण नब्रह जानं तुम सा िगसणहािा।।
म्हािे घि आओ प्रीतम प्यािा।।
मीिा कहै प्रभु कि िे बमलोगे तुम बिन नैण दुखािा।।
म्हािे घि आओ प्रीतम प्यािा।।

5.
तुम बिन मेिी कौन खिि ले। गोवधधन बगरिधािीिे ॥ध्रु०॥
मोि मुगुट पीतांिि सोभे। कुं डलकी छिी न्यािीिे ॥ तुम०॥१॥
भिी सभामों द्रौपदी ठािी। िाखो लाज हमािी िे ॥ तुम०॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल िलहािीिे ॥ तुम०॥३॥

6.
दि नगिी, िडी दि नगिी-नगिी
कै से मैं तेिी गोकु ल नगिी
दि नगिी िडी दि नगिी
िात को कान्हा डि माही लागे,
ददन को तो देखे सािी नगिी। दि नगिी...
सखी संग कान्हा शमध मोहे लागे,
अके ली तो भल जाऊँ तेिी डगिी। दि नगिी...
धीिे -धीिे चलँ तो कमि मोिी लचके
झटपट चलँ तो छलकाए गगिी। दि नगिी...
मीिा कहे प्रभु बगिधि नागि,
तुमिे दिस बिन मैं तो हो गई िाविी। दि नगिी...

7.
तुम लाल नंद सदाके कपटी॥ध्रु०॥
सिकी नैया पाि उति गयी। हमािी नैया भवि बिच अटकी॥१॥
नैया भीति कित मस्किी। दे सययां अिदन पि पटकी॥२॥
ब्रिंदािनके कुं जगलनमों सीिकी। घगिीया जतनसे पटकी॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। िाधे तं या िन िन भटकी॥४॥

8.
तुम सुणौ दयाल म्हािी अिजी॥
भवसागि में िही जात हौं, काढो तो थािी मिजी।

इण संसाि सगो नब्रह कोई, सांचा सगा िघुििजी॥


मात बपता औ कु टु म किीलो सि मतलि के गिजी।
मीिा की प्रभु अिजी सुण लो चिण लगाओ थािी मिजी॥

9.
तुम्हिे कािण सि छोड्या, अि मोबह कयं तिसावौ हौ।

बििह-बिथा लागी उि अंति, सो तुम आय िुझावौ हो॥

अि छोडत नब्रह िडै प्रभुजी, हंसकि तुित िुलावौ हौ।

मीिा दासी जनम जनम की, अंग से अंग लगावौ हौ॥

10.
तेिे साविे मुख पि वािी। वािी वािी िबलहािी॥ध्रु०॥
मोि मुगुट बपतांिि शोभे। कुं डलकी छबि न्यािी न्यािी॥१॥
ब्रिंदामन मों धेनु चिावे। मुिली िजावत प्यािी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिण कमल बचत्त वािी॥३॥

11.
मेिी गेंद चुिाई। ग्वालनािे ॥ध्रु०॥
आिबह आणपेिे तोिे आंगणा। आंगया िीच छु पाई॥१॥
ग्वाल िाल सि बमलकि जाये। जगिथ झोंका आई॥२॥
साच कन्हैया झठ मत िोले। घट िही चतुिाई॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िलजाई॥४॥

12.
तोती मैना िाधे कृ ष्ण िोल। तोती मैना िाधे कृ ष्ण िोल॥ध्रु०॥
येकही तोती धुंडत आई। लकट दकया अनी मोल॥तोती मै०॥१॥
दाना खावे तोती पानी पीवे। ब्रपजिमें कित कल्लोळ॥ तो०॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। हरिके चिण बचत डोल॥ तो०॥३॥

13.
तोिी साविी सुित नंदलालाजी॥ध्रु०॥
जमुनाके नीि तीि धेनु चिावत। कािी कामली वालाजी॥१॥
मोि मुगुट बपतांिि शोभे। कुं डल झळकत लालाजी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। भक्तनके प्रबतपालाजी॥३॥

14.
तोसों लाग्यो नेह िे प्यािे , नागि नंद कु माि।

मुिली तेिी मन हयो, बिसयो घि-व्यौहाि॥

जि तें सवनबन धुबन परि, घि आँगण न सुहाइ।

पािबध ज्यँ चकै नहीं, मृगी िेधी दइ आइ॥


पानी पीि न जानई ज्यों मीन तडदि मरि जाइ।
िबसक मधुप के मिम को नब्रह समुझत कमल सुभाइ॥
दीपक को जो दया नब्रह, उबड-उबड मित पतंग।

'मीिा' प्रभु बगरिधि बमले, जैसे पाणी बमबल गयो िं ग॥

15.
थािो बवरुद्ध घेटे कै सी भाईिे ॥ध्रु०॥
सैना नायको साची मीठी। आप भये हि नाईिे ॥१॥
नामा ब्रशपी देवल िे िो। मृतीकी गाय बजवाईिे ॥२॥
िाणाने भेजा बिखको प्यालो। पीिे बमिािाईिे ॥३॥

16.
तो पलक उघाडो दीनानाथ,मैं हाबजि-नाबजि कद की खडी॥

साजबणयां दुसमण होय िैठ्या, सिने लगं कडी।

तुम बिन साजन कोई नब्रह है, बडगी नाव मेिी समंद अडी॥

ददन नब्रह चैन िै ण नहीं बनदिा, सखं खडी खडी।

िाण बििह का लग्या बहये में, भलुं न एक घडी॥


पत्थि की तो अबहल्या तािी िन के िीच पडी।
कहा िोझ मीिा में करिये सौ पि एक धडी॥

17.
दिद जाने कोय हेली। मैं दिद ददवानी॥ध्रु०॥
घायलकी गत घायल ज्याने। लागी बहये॥१॥
सुली उपि सेजहमािी। दकसिीद िहीये सोय॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। वदे सामलीया होय॥३॥

18.
दिस बिनु दखण लागे नैन।
जिसे तुम बिछु डे प्रभु मोिे , किहं न पायो चैन॥
सिद सुणत मेिी छबतयां कांपे, मीठे लागे िैन।

बििह कथा कांसं कहं सजनी, िह गई किवत ऐन॥

कल न पित पल हरि मग जोवत, भई छमासी िै न।

मीिा के प्रभ कि ि बमलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥

19.
दीजो हो चुिरिया हमािी। दकसनजी मैं कन्या कुं वािी॥ध्रु०॥
गौलन सि बमल पाबनया भिन जाती। वहंको कित िलजोिी॥१॥
पिनािीका पल्लव पकडे। कया किे मनवा बिचािी॥२॥
ब्रिंद्रावनके कुं जिनमों। मािे िं गकी बपचकािी॥३॥
जाके कहती यशवदा मैया। होगी िजीती तुम्हािी॥४॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। भक्तनके है लहिी॥५॥

20.
दिस बिन दखण लागे नैन।
जिसे तुम बिछु डे प्रभु मोिे , किहं न पायो चैन।

सिद सुणत मेिी छबतयां, कांपै मीठे लागै िैन।

बििह व्यथा कांस कहं सजनी, िह गई किवत ऐन।

कल न पित पल हरि मग जोवत, भई छमासी िै न।

मीिा के प्रभु कि िे बमलोगे, दुख मेटण सुख देन।


21.
मेिे तो बगिधि गोपाल दसिो न कोई।।
जाके बसि मोि मुकुट मेिो पबत सोई।
तात मात भ्रात िंधु आपनो न कोई।।
छांबड दई कु लकी काबन कहा करिहै कोई।
संतन दढग िैरठ िैरठ लोकलाज खोई।।
चुनिी के दकये टक ओढ लीन्ही लोई।
मोती मंगे उताि िनमाला पोई।।
अंसुवन जल सीबच सीबच प्रेम िेबल िोई।
अि तो िेल िै ल गई आंणद िल होई।।
दध की मथबनयाँ िडे प्रेम से बिलोई।
माखन जि कादढ बलयो छाछ बपये कोई।।
भगबत देबख िाजी हई जगत देबख िोई।
दासी मीिा लाल बगिधि तािो अि मोही।।

22.
देखत िाम हंसे सुदामाकं देखत िाम हंसे॥

िाटी तो िलबडयां पांव उभाणे चिण घसे।


िालपणेका ब्रमत सुदामां अि कयं दि िसे॥

कहा भावजने भेंट पठाई तांदल


ु तीन पसे।
दकत गई प्रभु मोिी टटी टपरिया हीिा मोती लाल कसे॥
दकत गई प्रभु मोिी गउअन िबछया द्वािा बिच हसती िसे।
मीिाके प्रभु हरि अबिनासी सिणे तोिे िसे॥

23.
देखोिे देखो जसवदा मैयया तेिा लालना। तेिा लालना मैययां झुले
पालना
॥ध्रु०॥
िाहाि देखे तो िािािे ििसकु । बभति देखे मैययां झुले पालना॥१॥
जमुना जल िाधा भिनेक बनकली। पिकि जोिन मैययां तेिा
लालना॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। हरिका भजन नीत किना॥ मैययां०॥३॥

24.
नब्रह एसो जनम िािं िाि॥

का जानं कछु पुन्य प्रगटे मानुसा-अवताि।


िढत बछन-बछन घटत पल-पल जात न लागे िाि॥

बििछ के ज्यं पात टटे, लगें नहीं पुबन डाि।


भौसागि अबत जोि कबहये अनंत ऊंडी धाि॥

िामनाम का िांध िेडा उति पिले पाि।


ज्ञान चोसि मंडा चोहटे सुित पासा साि॥

साधु संत महंत ग्यानी कित चलत पुकाि।


दाबस मीिा लाल बगिधि जीवणा ददन च्याि॥

25.
नब्रह भावै थांिो देसडलो जी िं गरडो॥

थांिा देसा में िाणा साध नहीं छै , लोग िसे सि कडो।


गहणा गांठी िाणा हम सि त्यागा, त्याग्यो कििो चडो॥

काजल टीकी हम सि त्याग्या, त्याग्यो है िांधन जडो।


मीिा के प्रभु बगिधि नागि िि पायो छै रडो॥

26.
नही जाऊंिे जमुना पाणीडा। मागधमां नंदलाल मळे ॥ध्रु०॥
नंदजीनो िालो आन न माने। कामण गािो जोई बचतडं चळे ॥१॥
अमे आबहउडां सघळीं सुवाळां। कठण कठण कानुडो मळ्यो॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। गोपीने कानुडो लाग्यो नळ्यो॥३॥

27.
नही तोिी िलजोिी िाधे॥ध्रु०॥
जमुनाके नीि तीि धेनु चिावे। छीन लीई िांसिी॥१॥
सि गोपन हस खेलत िैठे। तुम कहत किी चोिी॥२॥
हम नही अि तुमािे घिनक। तुम िहत लिािीिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िबलहािीिे ॥४॥

28.
नातो नामको जी म्हांसं तनक न तोड्यो जाय॥
पानां ज्यं पीली पडी िे , लोग कहैं ब्रपड िोग।
छाने लांघण म्हैं दकया िे , िाम बमलण के जोग॥

िािल िैद िुलाइया िे , पकड ददखाई म्हांिी िांह।


मिख िैद मिम नब्रह जाणे, कसक कलेजे मांह॥

जा िैदां, घि आपणे िे , म्हांिो नांव न लेय।


मैं तो दाझी बििहकी िे , त काहेकं दार देय॥

मांस गल गल छीबजया िे , किक िह्या गल आबह।


आंगबलया िी मदडी (म्हािे ) आवण लागी िांबह॥

िह िह पापी पपीहडा िे ,बपवको नाम न लेय।


जै कोई बििहण साम्हले तो, बपव कािण बजव देय॥

बखण मंददि बखण आंगणे िे , बखण बखण ठाडी होय।


घायल ज्यं घमं खडी, म्हािी बिथा न िझै कोय॥

काढ कलेजो मैं धर िे , कागा त ले जाय।


ज्यां देसां म्हािो बपव िसै िे , वे देखै त खाय॥
म्हांिे नातो नांवको िे , औि न नातो कोय।
मीिा ब्याकु ल बििहणी िे , (हरि) दिसण दीजो मोय॥

29.
नाथ तुम जानतहो सि घटकी। मीिा भबक्त किे प्रगटकी॥ध्रु०॥
ध्यान धिी प्रभु मीिा संभािे पजा किे अट पटकी।
शाबलग्रामकं चंदन चढत है भाल बतलक बिच ब्रिदकी॥१॥
िाम मंददिमें नाचे ताल िजावे चपटी।
पाऊमें नेपुि रुमझुम िाजे। लाज संभाि गुंगटकी॥२॥
झेि कटोिा िाणाबजये भेज्या संत संगत मीिा अटकी।
ले चिणामृत बमिाये बपधुं होगइे अमृत िटकी॥३॥
सुित डोिी पि मीिा नाचे बशिपें घडा उपि मटकी।
मीिा के प्रभु बगरिधि नागि सुिबत लगी जै श्रीनटकी॥४॥

30.
नामोकी िलहािी गजगबणका तािी॥ध्रु०॥
गबणका तािी अजामेळ उद्धिी। तािी गौतमकी नािी॥१॥

झुटे िेि बभल्लणीके खावे। कु िजा नाि उद्धािी॥२॥


मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िबलहािी॥३॥

मीिा पदावली – २

1.
पग घँघर िाँध मीिा नाची िे ।
मैं तो मेिे नािायण की आपबह हो गई दासी िे ।
लोग कहै मीिा भई िाविी न्यात कहै कु लनासी िे ॥
बवष का प्याला िाणाजी भेज्या पीवत मीिा हाँसी िे ।
'मीिा' के प्रभु बगरिधि नागि सहज बमले अबवनासी िे ॥

2.
पतीया मैं कै शी लीखं, लीखये न जातिे॥ध्रु०॥
कलम धित मेिा कि कांपत। नयनमों िड छायो॥१॥
हमािी िीपत उद्धव देखी जात है। हिीसो कहं वो जानत है॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िहो छाये॥३॥

3.
पपइया िे , बपव की वाबण न िोल।
सुबण पावेली बििहणी िे , थािी िालेली पांख मिोड॥
चोंच कटाऊं पपइया िे , ऊपि कालोि लण।
बपव मेिा मैं पीव की िे , त बपव कहै स कण॥
थािा सिद सुहावणा िे , जो बपव मेंला आज।
चोंच मंढाऊं थािी सोवनी िे , त मेिे बसिताज॥
प्रीतम कं पबतयां बलखं िे , कागा त ले जाय।
जाइ प्रीतम जासं यं कहै िे , थांरि बििहस धान न खाय॥
मीिा दासी व्याकु ल िे , बपव बपव कित बिहाय।
िेबग बमलो प्रभु अंतिजामी, तुम बवन िह्यौ न जाय॥

4.
पानी में मीन प्यासी। मोहे सुन सुन आवत हांसी॥ध्रु०॥
आत्मज्ञान बिन नि भटकत है। कहां मथुिा काशी॥१॥
भवसागि सि हाि भिा है। धुंडत दिित उदासी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। सहज बमळे अबवनाशी॥३॥

5.
पायो जी म्हें तो िाम ितन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हािे सतगुर, दकिपा कि अपनायो॥
जनम-जनम की पँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खिच न खटै चोि न लटै, ददन-ददन िढत सवायो॥
सत की नाँव खेवरटया सतगुर, भवसागि ति आयो।
'मीिा' के प्रभु बगरिधि नागि, हिख-हिख जस पायो॥

6.
िाग दििािी कान्हिा
बपय बिन सनो छै जी म्हािो देस॥

ऐसो है कोई बपवकं बमलावै, तन मन करं सि पेस।


तेिे कािण िन िन डोलं, कि जोगण को भेस॥

अवबध िदीती अजहं न आए, पंडि हो गया के स।


िा के प्रभु कि ि बमलोगे, तज ददयो नगि निे स॥

7.
पपइया िे , बपव की वाबण न िोल।
सुबण पावेली बििहणी िे , थािी िालेली पांख मिोड॥
चोंच कटाऊं पपइया िे , ऊपि कालोि लण।
बपव मेिा मैं पीव की िे , त बपव कहै स कण॥
थािा सिद सुहावणा िे , जो बपव मेंला आज।
चोंच मंढाऊं थािी सोवनी िे , त मेिे बसिताज॥
प्रीतम कं पबतयां बलखं िे , कागा त ले जाय।
जाइ प्रीतम जासं यं कहै िे , थांरि बििहस धान न खाय॥
मीिा दासी व्याकु ल िे , बपव बपव कित बिहाय।
िेबग बमलो प्रभु अंतिजामी, तुम बवन िह्यौ न जाय॥

8.
बपया मोबह दिसण दीजै हो।
िेि िेि मैं टेिहं, या दकिपा कीजै हो॥
जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो।
मोि असाढा कु िलहे घन चात्रा सोई हो॥
सावण में झड लाबगयो, सबख तीजां खेलै हो।
भादिवै नददयां वहै दिी बजन मेलै हो॥
सीप स्वाबत ही झलती आसोजां सोई हो।
देव काती में पजहे मेिे तुम होई हो॥
मंगसि ठं ड िहोती पडै मोबह िेबग सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणा,अिही तुम न्हालो हो॥
महा महीं िसंत पंचमी िागां सि गावै हो।
िागुण िागां खेलहैं िणिाय जिावै हो।
चैत बचत्त में ऊपजी दिसण तुम दीजै हो।
िैसाख िणिाइ िलवै कोमल कु िलीजै हो॥
काग उडावत ददन गया िझं पंबडत जोसी हो।
मीिा बििहण व्याकु ली दिसण कद होसी हो॥

9.
बपह की िोबल न िोल पपैयया॥ध्रु०॥
तै खोलना मेिा जी डित है। तनमन डावा डोल॥ पपैयया०॥१॥
तोिे बिना मोकं पीि आवत है। जाविा करुं गी मैं मोल॥ पपैयया०॥२॥
मीिा के प्रभु बगरिधि नागि। कामनी कित कीलोल॥ पपैयया०॥३॥

10.
प्यािे दिसन दीज्यो आय, तुम बिन िह्यो न जाय॥
जल बिन कमल, चंद बिन िजनी। ऐसे तुम देखयां बिन सजनी॥
आकु ल व्याकु ल दिरं िै न ददन, बििह कलेजो खाय॥
ददवस न भख, नींद नब्रह िै ना, मुख सं कथत न आवै िैना॥
कहा कहं कछु कहत न आवै, बमलकि तपत िुझाय॥
कयं तिसावो अंतिजामी, आय बमलो दकिपाकि स्वामी॥
मीिां दासी जनम जनम की, पडी तुम्हािे पाय॥

11.
प्रगट भयो भगवान॥ध्रु०॥
नंदाजीके घि नौिद िाजे। टाळ मृदंग औि तान॥१॥
सिही िाजे बमलन आवे। छांड ददये अबभमान॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। बनबशददनीं धरिजे ध्यान॥३॥
12.
प्रभु जी तुम दशधन बिन मोय घडी चैन नहीं आवडे।।टेक।।
अन्न नहीं भावे नींद न आवे बविह सतावे मोय।
घायल ज्यं घमं खडी िे म्हािो ददध न जाने कोय।।१।।
ददन तो खाय गमायो िी, िै न गमाई सोय।
प्राण गंवाया झिता िे , नैन गंवाया दोनु िोय।।२।।
जो मैं ऐसा जानती िे , प्रीत दकयाँ दुख होय।
नगि ढु ंढेिौ पीटती िे , प्रीत न करियो कोय।।३।।
पन्थ बनहारँ डगि भुवारँ, ऊभी मािग जोय।
मीिा के प्रभु कि िे बमलोगे, तुम बमलयां सुख होय।।४।।

13.
स्वामी सि संसाि के हो सांचे श्रीभगवान।।
स्थावि जंगम पावक पाणी धिती िीज समान।
सिमें मबहमा थांिी देखी कु दित के कु ििान।।
बिप्र सुदामा को दालद खोयो िाले की पहचान।
दो मुट्ठी तंदल
ु की चािी दीन्हयों द्रव्य महान।
भाित में अजुधन के आगे आप भया िथवान।
अजुधन कु लका लोग बनहाियां छु ट गया तीि कमान।
ना कोई मािे ना कोइ मितो, तेिो यो अग्यान।
चेतन जीव तो अजि अमि है, यो गीतािों ग्यान।।
मेिे पि प्रभु दकिपा कीजौ, िांदी अपणी जान।
मीिा के प्रभु बगिधि नागि चिण कं वल में ध्यान।।
14.
ििसै िदरिया सावन की
सावन की मनभावन की।
सावन में उमग्यो मेिो मनवा
भनक सुनी हरि आवन की।
उमड घुमड चहँ ददबस से आयो
दामण दमके झि लावन की।
नान्हीं नान्हीं िंदन मेहा ििसै
सीतल पवन सोहावन की।
मीिाके प्रभु बगिधि नागि
आनंद मंगल गावन की।

15.
प्रभुजी थे कहां गया नेहडो लगाय।
छोड गया बिस्वास संगाती प्रेमकी िाती िलाय॥

बििह समंद में छोड गया छो, नेहकी नाव चलाय।


मीिा के प्रभु कि ि बमलोगे, तुम बिन िह्यो न जाय॥

16.
प्रभु तुम कै से दीनदयाळ॥ध्रु०॥
मथुिा नगिीमों िाज कित है िैठे। नंदके लाल॥१॥
भक्तनके दुुःख जानत नहीं। खेले गोपी गवाल॥२॥
मीिा कहे प्रभ बगरिधि नागि। भक्तनके प्रबतपाल॥३॥
17.
प्रभुजी थे कहाँ गया, नेहडो लगाय।
छोड गया बिस्वास संगाती प्रेम की िाती िलाय।।
बििह समंद में छोड गया छो हकी नाव चलाय।
मीिा के प्रभु कि िे बमलोगे तुम बिन िह्यो न जाय।।

18.
ििका ििका जो िाई हिी की मुिलीया। सुनोिे सखी मािा मन
हिलीया॥ध्रु०॥
गोकु ल िाजी ब्रिंदािन िाजी। औि िाजी जाहा मथुिा नगिीया॥१॥
तुम तो िेटो नंदिावांके। हम िृषभान पुिाके गुजिीया॥२॥
यहां मधुिनके कटा डारं िांस। उपजे न िांस मुिलीया॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमलकी लेऊंगी िलयया॥४॥

19.
हरि मेिे जीवन प्राण अधाि।
औि आसिो नांही तुम बिन, तीन लोक मंझाि।।
हरि मेिे जीवन प्राण अधाि
आपबिना मोबह कछु न सुहावै बनिखयौ सि संसाि।
हरि मेिे जीवन प्राण अधाि
मीिा कहै मैं दाबस िाविी, दीज्यो मती बिसाि।।
हरि मेिे जीवन प्राण अधाि

20.
िागुन के ददन चाि होली खेल मना िे ॥
बिन किताल पखावज िाजै अणहदकी झणकाि िे ।
बिन सुि िाग छतीसं गावै िोम िोम िणकाि िे ॥

सील संतोखकी के सि घोली प्रेम प्रीत बपचकाि िे ।


उडत गुलाल लाल भयो अंिि, ििसत िं ग अपाि िे ॥

घटके सि पट खोल ददये हैं लोकलाज सि डाि िे ।


मीिाके प्रभु बगिधि नागि चिणकं वल िबलहाि िे ॥

21.
दिि िाजे ििनै हिीकी मुिलीया सुनोिे । सखी मेिो मन हिलीनो॥१॥
गोकु ल िाजी ब्रिंदािन िाजी। ज्याय िजी वो तो मथुिा नगिीया॥२॥
तं तो िेटो नंद िािाको। मैं िृषभानकी पुिानी गुजरियां॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। हरिके चिनकी मैं तो िलैया॥४॥

22.
िसो मोिे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मिबत सांवरि सिबत, नैणा िने बिसाल।
अधि सुधािस मुिली िाजत, उि िैजंती-माल।।
छु द्र घंरटका करट तट सोबभत, नपुि सिद िसाल।
मीिा प्रभु संतन सुखदाई, भगत िछल गोपाल।।

23.
िल मंगाऊं हाि िनाऊ। मालीन िनकि जाऊं॥१॥
कै गुन ले समजाऊं। िाजधन कै गुन ले समाजाऊं॥२॥
गला सैली हात सुमिनी। जपत जपत घि जाऊं॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। िैठत हरिगुन गाऊं॥४॥

24.
िडे घि ताली लागी िे , म्हािां मन िी उणािथ भागी िे ॥
छालरिये म्हािो बचत नहीं िे , डािरिये कु ण जाव।
गंगा जमना सं काम नहीं िे , मैंतो जाय बमलं दरियाव॥
हाल्यां मोल्यांसं काम नहीं िे , सीख नहीं बसिदाि।
कामदािासं काम नहीं िे , मैं तो जाि करं दििाि॥
काच कथीिसं काम नहीं िे , लोहा चढे बसि भाि।
सोना रपासं काम नहीं िे , म्हािे हीिांिो िौपाि॥
भाग हमािो जाबगयो िे , भयो समंद सं सीि।
अबित प्याला छांबडके , कु ण पीवे कडवो नीि॥
पीपाकं प्रभु पिचो ददयो िे , दीन्हा खजाना पि।
मीिा के प्रभु बगिघि नागि, धणी बमल्या छै हजि॥

25.
िन जाऊं चिणकी दासी िे । दासी मैं भई उदासी॥ध्रु०॥
औि देव कोई न जाणं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावं गंगा नहीं न्हावं जमुना। नहीं न्हावं प्रयाग कासी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमलकी प्यासी॥३॥

26.
िन्सी तं कवन गुमान भिी॥ध्रु०॥
आपने तनपि छेदपिं ये िालाते बिछिी॥१॥
जात पात हं तोिी मय जानं तं िनकी लकिी॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि िाधासे झगिी िन्सी॥३॥

27.
ििजी मैं काहकी नाब्रह िहं।
सुणो िी सखी तुम चेतन होयकै मनकी िात कहं॥
साध संगबत कि हरि सुख लेऊं जगसं दि िहं।
तन धन मेिो सिही जावो भल मेिो सीस लहं॥
मन मेिो लागो सुमिण सेती सिका मैं िोल सहं।
मीिा के प्रभु हरि अबवनासी सतगुि सिण गहं॥

28.
िागनमों नंदलाल चलोिी॥ अहाबलिी॥ध्रु॥
चंपा चमेली दवना मिवा। झक आई टमडाल॥च०॥१॥
िागमों जाये दिसन पाये। बिच ठाडे मदन गोपाल॥च०॥२॥
मीिाके प्रभ बगरिधि नागि। वांके नयन बवसाल॥च०॥३॥

29.
भजु मन चिन कँ वल अबवनासी।
जेताइ दीसे धिण-गगन-बिच, तेताई सि उरठ जासी।
कहा भयो तीिथ व्रत कीन्हे, कहा बलये किवत कासी।
इस देही का गिि न किना, माटी मैं बमल जासी।
यो संसाि चहि की िाजी, साँझ पडयाँ उठ जासी।
कहा भयो है भगवा पहियाँ, घि तज भए सन्यासी।
जोगी होय जुगबत नब्रह जाणी, उलरट जनम दिि जासी।
अिज करँ अिला कि जोिें , स्याम तुम्हािी दासी।
मीिा के प्रभु बगरिधि नागि, काटो जम की िाँसी।

30.
माई मैनें गोब्रवद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥
कोई कहे हलका कोई कहे भािी। बलयो है तिाज तोल॥ मा०॥१॥
कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥
ब्रिंदािनके जो कुं जगलीनमों। लायों है िजाकै ढोल॥ मा०॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। पुिि जनमके िोल॥ मा०॥४॥

31.
मेिो मन िाम-बह-िाम िटै।
िाम-नाम जप लीजै प्राणी! कोरटक पाप कटै।
जनम-जनम के खत जु पुिाने, नामबह लेत िटै।
कनक-कटोिै इमित भरियो, नामबह लेत नटै।
मीिा के प्रभु हरि अबवनासी तन-मन ताबह पटै।

32.
गली तो चािों िंद हई हैं, मैं हरिसे बमलँ कै से जाय।।
ऊंची-नीची िाह िपटली, पांव नहीं ठहिाय।
सोच सोच पग धरँ जतन से, िाि-िाि बडग जाय।।
ऊंचा नीचां महल बपया का म्हांसँ चढ्यो न जाय।
बपया दि पथ म्हािो झीणो, सुित झकोला खाय।।
कोस कोस पि पहिा िैठया, पैग पैग िटमाि।
हे बिधना कै सी िच दीनी दि िसायो लाय।।
मीिा के प्रभु बगिधि नागि सतगुरु दई िताय।
जुगन-जुगन से बिछडी मीिा घि में लीनी लाय।।

33.
मेिे तो बगिधि गोपाल दसिो न कोई॥
जाके बसि मोिमुगट मेिो पबत सोई।
तात मात भ्रात िंधु आपनो न कोई॥
छांबड दई कु लकी काबन कहा करिहै कोई॥
संतन दढग िैरठ िैरठ लोकलाज खोई॥
चुनिीके दकये टक ओढ लीन्हीं लोई।
मोती मंगे उताि िनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींबच-सींबच प्रेम-िेबल िोई।
अि तो िेल िै ल गई आणंद िल होई॥
दधकी मथबनयां िडे प्रेमसे बिलोई।
माखन जि कादढ बलयो छाछ बपये कोई॥
भगबत देबख िाजी हई जगत देबख िोई।
दासी मीिा लाल बगिधि तािो अि मोही॥

34.
मोिी लागी लटक गुरु चिणकी॥ध्रु०॥
चिन बिना मुज कछु नही भावे। झंठ माया सि सपनकी॥१॥
भवसागि सि सुख गयी है। दिकीि नही मुज तरुणोनकी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। उलट भयी मोिे नयननकी॥३॥

35.
िाणाजी, म्हे तो गोबवन्द का गुण गास्यां।
चिणामृत को नेम हमािे , बनत उठ दिसण जास्यां॥

हरि मंदि में बनित किास्यां, घंघरियां धमकास्यां।


िाम नाम का झाझ चलास्यां भवसागि ति जास्यां॥

यह संसाि िाड का कांटा ज्या संगत नहीं जास्यां।


मीिा कहै प्रभु बगिधि नागि बनिख पिख गुण गास्यां॥

36.
पायो जी म्हे तो िाम ितन धन पायो।। टेक।।
वस्तु अमोलक दी मेिे सतगुरु, दकिपा कि अपनायो।।

जनम जनम की पंजी पाई, जग में सभी खोवायो।।


खायो न खिच चोि न लेव,े ददन-ददन िढत सवायो।।

सत की नाव खेवरटया सतगुरु, भवसागि ति आयो।।


"मीिा" के प्रभु बगिधि नागि, हिस हिस जश गायो।।

37.
नैना बनपट िंकट छबि अटके ।
देखत रप मदनमोहन को, बपयत बपयख न मटके ।
िारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अबत सुगंध िस अटके ॥
टेढी करट, टेढी कि मुिली, टेढी पाग लट लटके ।
'मीिा प्रभु के रप लुभानी, बगरिधि नागि नट के ॥

मीिा पदावली- ३

1.
स्याम! मने चाकि िाखो जी
बगिधािी लाला! चाकि िाखो जी।
चाकि िहसं िाग लगासं बनत उठ दिसण पासं।
ब्रिंदािन की कुं जगबलन में तेिी लीला गासं।।
चाकिी में दिसण पाऊँ सुबमिण पाऊँ खिची।
भाव भगबत जागीिी पाऊँ, तीनं िाता सिसी।।
मोि मुकुट पीताम्िि सोहै, गल िैजंती माला।
ब्रिंदािन में धेनु चिावे मोहन मुिलीवाला।।
हिे हिे बनत िाग लगाऊँ, बिच बिच िाखं कयािी।
सांवरिया के दिसण पाऊँ, पहि कु सुम्मी सािी।
जोगी आया जोग किणकं , तप किणे संन्यासी।
हिी भजनकं साध आया ब्रिंदािन के िासी।।
मीिा के प्रभु गबहि गंभीिा सदा िहो जी धीिा।
आधी िात प्रभु दिसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीिा।।

2.
चालने सखी दही िेचवा जइं य।े ज्या सुद ं ि वि िमतोिे ॥ध्रु०॥
प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये िबसकवि जमतोिे ॥१॥
मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोिे ॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। िणछोड कु िजाने गमतोिे ॥३॥

3.
चालो अगमके देस कास देखत डिै ।
वहां भिा प्रेम का हौज हंस के ल्यां किै ॥

ओढण लज्जा चीि धीिज कों घांघिो।


बछमता कांकण हाथ सुमत को मंदिो॥

ददल दुलडी दरियाव सांचको दोवडो।


उिटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥

कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो।


िेसि हरिको नाम चडो बचत ऊजणो॥

पंची है बिसवास काजल है धिमकी।


दातां इित िे ख दयाको िोलणो॥

जौहि सील संतोष बनितको घंघिो।


ब्रिदली गज औि हाि बतलक हरि-प्रेम िो॥

सज सोला बसणगाि पहरि सोने िाखडीं।


सांवबलयांसं प्रीबत औिासं आखडी॥

पबतििता की सेज प्रभुजी पधारिया।


गावै दाबस कि िाबखया॥

4.
चालो ढाकोिमा जइज वबसये। मनेले हे लगाडी िं ग िबसये॥ध्रु०॥
प्रभातना पोहोिमा नौित िाजे। अने दशधन किवा जईये॥१॥
अटपटी पाघ के शिीयो वाघो। काने कुं डल सोईये॥२॥
बपवळा बपतांिि जि कशी जामो। मोतन माळाभी मोबहये॥३॥
चंद्रिदन आबणयाळी आंखो। मुखडु ं सुंदि सोईये॥४॥
रमझुम रमझुम नेपुि िाजे। मन मोह्यु मारं मुिबलये॥५॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। अंगो अंग जई मळीयेिे॥६॥

5.
चालो मन गंगा जमुना तीि।

गंगा जमुना बनिमल पाणी सीतल होत सिीि।


िंसी िजावत गावत कान्हो, संग बलयो िलिीि॥

मोि मुगट पीताम्िि सोहे कु ण्डल झलकत हीि।


मीिाके प्रभु बगिधि नागि चिण कं वल पि सीि॥

6.
चालो सखी मािो देखाडं। िृंदावनमां िितोिे ॥ध्रु०॥
नखशीखसुधी हीिानें मोती। नव नव शृंगाि धितोिे ॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोिे । बशिपि मुगुट धितोिे ॥२॥
धेनु चिावे ने वेण िजावे। मन मािाने हितोिे ॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव िाग छोडमां गमतोिे ॥४॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। सामबळयो कु ब्जाने वितोिे ॥५॥

7.
तनक हरि बचतवौ जी मोिी ओि।
हम बचतवत तुम बचतवत नाहीं
मन के िडे कठोि।
मेिे आसा बचतबन तुम्हिी
औि न दजी ठौि।
तुमसे हमकँ एक हो जी
हम-सी लाख किोि।।
कि की ठाडी अिज कित हँ
अिज कित भै भोि।
मीिा के प्रभु हरि अबिनासी
देस्यँ प्राण अकोि।।

8.
छोड मत जाज्यो जी महािाज॥
मैं अिला िल नायं गुसाईं, तुमही मेिे बसिताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समिथ महािाज॥

थांिी होयके दकणिे जाऊं, तुमही बहिडा िो साज।


मीिा के प्रभु औि न कोई िाखो अिके लाज॥

9.
आवो सहेल्या िली किां हे, पि घि गावण बनवारि।
झठा माबणक मोबतया िी, झठी जगमग जोबत।
झठा सि आभषण िी, सांबच बपयाजी िी पोबत।
झठा पाट पटंििािे , झठा ददखणी चीि।
सांची बपयाजी िी गदडी, जामे बनिमल िहे सिीि।

10.
जोसीडा ने लाख िधाई िे अि घि आये स्याम॥
आज आनंद उमंबग भयो है जीव लहै सुखधाम।
पांच सखी बमबल पीव पिबसकैं आनंद ठामं ठाम॥
बिसरि गयो दुख बनिबख बपयाकं , सुिल मनोिथ काम।
मीिाके सुखसागि स्वामी भवन गवन दकयो िाम॥

11.
झुलत िाधा संग। बगरिधि झलत िाधा संग॥ध्रु०॥
अबिि गुलालकी धम मचाई। भि बपचकािी िं ग॥ बगरि०॥१॥
लाल भई ब्रिद्रावन जमुना। के शि चवत िं ग॥ बगरि०॥२॥
नाचत ताल आधाि सुिभि। बधमी बधमी िाजे मृदंग॥ बगरि०॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमलक दंग॥ बगरि०॥४॥

12.
छोडो चुनिया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यािो॥धृ०॥
नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चित चपल।
िीन िाजे िसाल। िंद छोडो॥१॥
काना मागत है दान। गोपी भये िानोिान।
सुनो उनका ग्यान। घििगया उनका प्रान।
बचि छोडो॥२॥
मीिा कहे मुिािी। लाज िखो मेिी।
पग लागो तोिी। अि तुम बिहािी।
बचि छोडो॥३॥

13.
जमुनाजीको तीि दधी िेचन जावं॥ध्रु०॥
येक तो घागि बसिपि भािी दुजा सागि दि॥१॥
कै सी दधी िेचन जावं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोि॥
कै सा०॥२॥
येक तो ननंद हटेली दुजा ससिा नादान॥३॥
है मीिा दिसनकुं प्यासी। दिसन ददजोिे महािाज॥४॥

14.
जमुनामों कै शी जाऊं मोिे सैया। िीच खडा तोिो लाल कन्हैया॥ध्रु०॥
बिंदािनके मथुिा नगिी पाणी भिणा। कै शी जाऊं मोिे सैंया॥१॥
हातमों मोिे चडा भिा है। कं गण लेहिे ा देत मोिे सैया॥२॥
दधी मेिा खाया मटकी िोिी। अि कै शी िुिी िात िोलु मोिे सैया॥३॥
बशिपि घडा घडेपि झािी। पतली कमि लचकया सैया॥४॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िलजाऊ मोिे सैया॥५॥

15.
जल कै शी भरुं जमुना भयेिी॥ध्रु०॥
खडी भरुं तो कृ ष्ण ददखत है। िैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
मोि मुगुटअ पीतांिि शोभे। छु म छु म िाजत मुिली॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चणिकमलकी मैं जेिी॥३॥

16.
जल भिन कै शी जाऊंिे । जशोदा जल भिन॥ध्रु०॥
वाटेने घाटे पाणी मागे मािग मैं कै शी पाऊं॥ज० १॥
आलीकोि गंगा पलीकोि जमुना। बिचमें सिस्वतीमें नहावं॥ज० २॥
ब्रिंदावनमें िास िच्चा है। नृत्य कित मन भावं॥ज० ३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। हेते हरिगुण गाऊं॥ज० ४॥

17.
जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥ध्रु०॥
प्रात समये गौिनके पांछे। मधुिन मोहे पठायो॥१॥
सािे ददन िन्सी िन भटके । तोिे आगे आयो॥२॥
ले ले अपनी लकु टी कमबलया। िहतही नाच नचायो॥३॥
तुम तो धोठा पावनको छोटा। ये िीज कै सो पायो॥४॥
ग्वाल िाल सि द्वािे ठाडे है। माखन मुख लपटायो॥५॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। जशोमती कं ठ लगायो॥६॥

18.
जसवदा मैययां बनत सतावे कनैययां। वाकु भुिकि कया कहं मैययां॥ध्रु०॥
िैल लावे भीति िांधे। छोि देवता सि गैययां॥ जसवदा मैया०॥१॥
सोते िालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैययां॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। हरि लागुं तोिे पैययां॥ जसवदा०॥३॥

19.
जाके मथुिा कान्हांनें घागि िोिी। घागरिया िोिी दुलिी मोिी
तोिी॥ध्रु०॥
ऐसी िीत तुज कौन बसकावे। दकलन कित िलजोिी॥१॥
सास हठे ली नंद चुगेली। दीि देवत मुजे गािी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल बचतहािी॥३॥

20.
जागो िंसी वािे जागो मोिे ललन।
िजनी िीती भोि भयो है घि घि खुले दकवािे ।
गोपी दही मथत सुबनयत है कं गना के झनकािे ।
उठो लालजी भोि भयो है सुि नि ठाढे द्वािे ।
ग्वाल िाल सि कित कोलाहल जय जय सिद उचािे ।
मीिा के प्रभु बगिधि नागि शिण आया कं तािे ॥

21.
जागो म्हांिा जगपबतिायक हंस िोलो कयं नहीं॥
हरि छो जी बहिदा माब्रह पट खोलो कयं नहीं॥

तन मन सुिबत संजोइ सीस चिणां धरं।


जहां जहां देखं म्हािो िाम तहां सेवा करं॥
सदकै करं जी सिीि जुगै जुग वािणैं।
छोडी छोडी बलखं बसलाम िहोत करि जानज्यौ।
िंदी हं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥

हां हो म्हािा नाथ सुनाथ बिलम नब्रह कीबजये।


मीिा चिणां की दाबस दिस दिि दीबजये॥

22.
जोगी मेिो सांवळा कांहीं गवोिी॥ध्रु०॥
न जानु हाि गवो न जानु पाि गवो। न जानुं जमुनामें डु ि गवोिी॥१॥
ईत गोकु ल उत मथुिानगिी। िीच जमुनामो िही गवोिी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल बचत्त हाि गवोिी॥३॥

24.
जो तुम तोडो बपयो मैं नही तोड। तोिी प्रीत तोडी कृ ष्ण कोन संग जोड
॥ध्रु०॥
तुम भये तरुवि मैं भई पबखया। तुम भये सिोवि मैं तोिी मबछया॥
जो०॥१॥
तुम भये बगरिवि मैं भई चािा। तुम भये चंद्रा हम भये चकोिा॥
जो०॥२॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा। तुम भये सोना हम भये स्वागा॥
जो०॥३॥
िाई मीिा कहे प्रभु िंज के िासी। तुम मेिे ठाकोि मैं तेिी दासी॥
जो०॥४॥
25.
ज्यानो मैं िाजको िेहव
े ाि उधवजी। मैं जान्योही िाजको िेहव
े ाि।
आंि काटावो ब्रलि लागावो। िािलकी किो िाड॥जा०॥१॥
चोि िसावो सावकाि दंडावो। नीती धिमिस िाि॥ जा०॥२॥
मेिो कह्यो सत नही जाणयो। कु िजाके दकिताि॥ जा०॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। अद्वंद दििाि॥ जा०॥४॥

26
ज्या संग मेिा न्याहा लगाया। वाक मैं धुंडने जाऊंगी॥ध्रु०॥
जोगन होके िनिन धुंडु। आंग िभत िमायोिे ॥१॥
गोकु ल धुंडु मथुिा धुंडु। धुंडु िीरं कुं ज गलीयािे ॥२॥
मीिा दासी शिण जो आई। शाम मीले ताहां जाऊंिे ॥३॥

मीिा पदावली – ४

1.
कालोकी िे न बिहािी। महािाज कोण बिलमायो॥ध्रु०॥
काल गया ज्यां जाहो बिहािी। अही तोही कौन िुलायो॥१॥
कोनकी दासी काजल सायो। कोन तने िं ग िमायो॥२॥
कं सकी दासी काजल सायो। उन मोबह िं ग िमायो॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। कपटी कपट चलायो॥४॥

2.
दकन्ने देखा कन्हया प्यािा की मुिलीवाला॥ध्रु०॥
जमुनाके नीि गंवा चिावे। खांदे कं िरिया काला॥१॥
मोि मुकुट बपतांिि शोभे। कुं डल झळकत हीिा॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। चिन कमल िलहािा॥३॥

3.
िादल देख डिी हो, स्याम! मैं िादल देख डिी।
श्याम मैं िादल देख डिी।
काली-पीली घटा ऊमडी ििस्यो एक घिी।
श्याम मैं िादल देख डिी।
बजत जाऊँ बतत पाणी पाणी हई भोम हिी।।
जाका बपय पिदेस िसत है भीजं िाहि खिी।
श्याम मैं िादल देख डिी।
मीिा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खिी।
श्याम मैं िादल देख डिी।

4.
कीत गयो जादु किके नो पीया॥ध्रु०॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल किके ॥१॥
मोि मुगुट बपतांिि शोभे। किु ना मीले आंग भिके ॥२॥
मीिा दासी शिण जो आई। चिणकमल बचत्त धिके ॥३॥

5.
कीसनजी नहीं कं सन घि जावो। िाणाजी मािो नही॥ध्रु०॥
तुम नािी अहल्या तािी। कुं टण कीि उद्धािो॥१॥
कु िेिके द्वाि िालद लायो। निब्रसगको काज सुदािो॥२॥
तुम आये पबत मािो दहीको। बतनोपाि तनमन वािो॥३॥
जि मीिा शिण बगिधिकी। जीवन प्राण हमािो॥४॥

6.
कुं जिनमों गोपाल िाधे॥ध्रु०॥
मोि मुकुट पीतांिि शोभे। नीिखत शाम तमाल॥१॥
ग्वालिाल रुबचत चारु मंडला। वाजत िनसी िसाळ॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनपि मन बचिकाल॥३॥

7.
कु ण िांचे पाती, बिना प्रभु कु ण िांचे पाती।

कागद ले ऊधोजी आयो, कहां िह्या साथी।


आवत जावत पांव बघस्या िे (वाला) अंबखया भई िाती॥

कागद ले िाधा वांचण िैठी, (वाला) भि आई छाती।


नैण नीिज में अम्ि िहे िे (िाला) गंगा िबह जाती॥

पाना ज्यं पीली पडी िे (वाला) धान नहीं खाती।


हरि बिन बजवणो यं जलै िे (वाला) ज्यं दीपक संग िाती॥
मने भिोसो िामको िे (वाला) डि बतियो हाथी।
दाबस मीिा लाल बगिधि, सांकडािो साथी॥

8.
कु िजानें जादु डािा। मोहे लीयो शाम हमािािे ॥ कु िजा०॥ध्रु०॥
ददन नहीं चैन िै न नहीं बनद्रा। तलपतिे जीव हमिािे ॥ कु ि०॥१॥
बनिमल नीि जमुनाजीको छांड्यो। जाय बपवे जल खािािे ॥ कु ०॥२॥
इत गोकु ल उत मथुिा नगिी। छोड्यायो बपह प्यािा॥ कु ०॥३॥
मोि मुगुट बपतांिि शोभे। जीवन प्रान हमािा॥ कु ०॥४॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। बििह समुदि सािा॥ कु िजानें जाद डािािे
कु ि०॥५॥

9.
कृ ष्ण किो जजमान॥ प्रभु तुम॥ध्रु०॥
जाकी दकित िेद िखानत। सांखी देत पुिान॥ प्रभु०२॥
मोि मुकुट पीतांिि सोभत। कुं डल झळकत कान॥ प्रभु०३॥
मीिाके प्रभ बगरिधि नागि। दे दिशनको दान॥ प्रभु०४॥

10.
कृ ष्णमंददिमों नाचे तो ताल मृदंग िं ग चटकी।
पावमों घुंगर झुमझुम वाजे। तो ताल िाखो घुंगटकी॥१॥
नाथ तुम जान है सि घटका मीिा भबक्त किे पि घटकी॥ध्रु०॥
ध्यान धिे मीिा िे ि सिनकुं सेवा किे झटपटको।
सालीग्रामकं तीलक िनायो भाल बतलक िीज टिकी॥२॥
िीख कटोिा िाजाजीने भेजो तो संटसंग मीिा हटकी।
ले चिणामृत पी गईं मीिा जैसी शीशी अमृतकी॥३॥
घिमेंसे एक दािा चली शीिपि घागि औि मटकी।
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। जैसी डेिी तटविकी॥४॥

11.
कै सी जाद डािी। अि तने कै शी जादु॥ध्रु०॥
मोि मुगुट बपतांिि शोभे। कुं डलकी छबि न्यािी॥१॥
वृंदािन कुं जगलीनमों। लुटी गवालन सािी॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िलहािी॥३॥

12.
कोई कबहयौ िे प्रभु आवन की,
आवनकी मनभावन की।
आप न आवै बलख नब्रह भेजै ,
िाण पडी ललचावन की।
ए दोउ नैण कह्यो नब्रह मानै,
नददयां िहै जैसे सावन की।
कहा करं कछु नब्रह िस मेिो,
पांख नहीं उड जावनकी।
मीिा कहै प्रभु कि िे बमलोगे,
चेिी भै हँ तेिे दांवन की।

13.
कोईकी भोिी वोलो मइं डो मेिो लंटे॥ध्रु०॥
छोड कनैया ओढणी हमािी। माट मबहकी काना मेिी िु टे॥ को०॥१॥
छोड कनैया मैयां हमािी। लड मानकी काना मेिी तटे॥ को०॥२॥
छोडदे कनैया चीि हमािो। कोि जिीकी काना मेिी छु टे॥ को०॥३॥
मीिा कहे प्रभ बगरिधि नागि। लागी लगन काना मेिी नव छटे॥
को०॥४॥

14.

कोई देखोिे मैया। शामसुंदि मुिलीवाला॥ध्रु०॥


जमुनाके तीि धेनु चिावत। दधी घट चोि चुिैया॥१॥
ब्रिंदाजीिनके कुं जगलीनमों। हमक देत झुकैया॥२॥
ईत गोकु ल उत मथुिा नगिी। पकित मोिी भयया॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिणकमल िजैया॥४॥

16.
कौन भिे जल जमुना। सखीको०॥ध्रु०॥
िन्सी िजावे मोहे लीनी। हिीसंग चली मन मोहना॥१॥
शाम हटेले िडे कवटाले। हि लाई सि ग्वालना॥२॥
कहे मीिा तुम रप बनहािो। तीन लोक प्रबतपालना॥३॥
17.
करं मैं िनमें गई घि होती। तो शामक मनाई लेती॥ध्रु०॥
गोिी गोिी िईमया हिी हिी चुबडयां। झाला देके िुलालेती॥१॥
अपने शाम संग चौपट िमती। पासा डालके जीता लेती॥२॥
िडी िडी अबखया झीणा झीणा सुिमा। जोतसे जोत बमला लेती॥३॥
कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल लपटा लेती॥४॥

18.
खिि मोिी लेजािे िंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यं जाई कहीयो। एकिाि दिसन दे जािे ॥१॥
आप बिहािे दिसन बतहािे । कृ पादृबि किी जािे ॥२॥
नंदवन छांड ब्रसधु ति वसीयो। एक हाम पैन सहजीिे ।
जो ददन ते सखी मधुिन छांडो। ले गयो काळ कलेजािे ॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। सिही िोल सजािे ॥४॥

19.
खिि मोिी लेजािे िंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यं जाई कहीयो। एकिाि दिसन दे जािे ॥१॥
आप बिहािे दिसन बतहािे । कृ पादृबि किी जािे ॥२॥
नंदवन छांड ब्रसधु ति वसीयो। एक हाम पैन सहजीिे ।
जो ददन ते सखी मधुिन छांडो। ले गयो काळ कलेजािे ॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। सिही िोल सजािे ॥४॥

20..
गली तो चािों िंद हई, मैं हरिसे बमलं कै से जाय।
ऊंची नीची िाह लपटीली, पांव नहीं ठहिाय।
सोच सोच पग धरं जतनसे, िाि िाि बडग जाय॥

ऊंचा नीचा महल बपयाका म्हांसं चढयो न जाय।


बपया दि पंथ म्हािो झीणो, सुित झकोला खाय॥

कोस कोस पि पहिा िैठ्या, पैंड पैंड िटमाि।


है बिधना, कै सी िच दीनी दि िसायो म्हांिो गांव॥

मीिा के प्रभु बगिधि नागि सतगुरु दई िताय।


जुगन जुगन से बिछडी मीिा घि में लीनी लाय॥

21.
गांजा पीनेवाला जन्मको लहिीिे ॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भषणें भयंकि। पागट जटा शीिीिे ॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांििधािीिे ॥२॥
बत्रबतय नेत्रीं अबि दुधधि। बवष हें प्राशन किीिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभ ध्यानी बनिं ति। चिण कमलकी प्यािीिे ॥४॥

22.
गांजा पीनेवाला जन्मको लहिीिे ॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भषणें भयंकि। पागट जटा शीिीिे ॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांििधािीिे ॥२॥
बत्रबतय नेत्रीं अबि दुधधि। बवष हें प्राशन किीिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभ ध्यानी बनिं ति। चिण कमलकी प्यािीिे ॥४॥

23.
गोपाल िाधे कृ ष्ण गोब्रवद॥ गोब्रवद॥ध्रु०॥
िाजत झांजिी औि मृंदग। औि िाजे किताल॥१॥
मोि मुकुट पीतांिि शोभे। गलां िैजयंती माल॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। भक्तनके प्रबतपाल॥३॥

24.
गोबिन्द किहं बमलै बपया मेिा॥

चिण कं वल को हंस हंस देखं, िाखं नैणां नेिा।


बनिखणकं मोबह चाव घणेिो, कि देखं मुख तेिा॥

व्याकु ल प्राण धित नब्रह धीिज, बमल तं मीत सिेिा।


मीिा के प्रभु बगिधि नागि ताप तपन िहतेिा॥

25.
घि आंगण न सुहावै, बपया बिन मोबह न भावै॥
दीपक जोय कहा करं सजनी, बपय पिदेस िहावै।
सनी सेज जहि ज्यं लागे, बससक-बससक बजय जावै॥
नैण ब्रनदिा नहीं आवै॥
कदकी उभी मैं मग जोऊं, बनस-ददन बििह सतावै।
कहा कहं कछु कहत न आवै, बहवडो अबत उकलावै॥
हरि कि दिस ददखावै॥
ऐसो है कोई पिम सनेही, तुित सनेसो लावै।
वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कं ठ लगावै॥
मीिा बमबल होिी गावै॥

26.
घि आवो जी सजन बमठ िोला।
तेिे खाति सि कु छ छोड्या, काजि, तेल तमोला॥
जो नब्रह आवै िै न बिहावै, बछन माशा बछन तोला।
'मीिा' के प्रभु बगरिधि नागि, कि धि िही कपोला॥

27.
चिन िज मबहमा मैं जानी। याबह चिनसे गंगा प्रगटी।
भबगिथ कु ल तािी॥ चिण०॥१॥
याबह चिनसे बिप्र सुदामा। हरि कं चन धाम ददन्ही॥ च०॥२॥
याबह चिनसे अबहल्या उधािी। गौतम घिकी पट्टिानी॥ च०॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल से लटपटानी॥ चिण०॥४॥

मीिा पदावली – ५
1.
आतुि थई छु ं सुख जोवांने घेि आवो नंद लालािे ॥ध्रु०॥
गौतणां मीस किी गयाछो गोकु ळ आवो मािा िालािे ॥१॥
मासीिे मािीने गुणका तािी टेव तमािी ऐसी छोगळािे ॥२॥
कं स मािी मातबपता उगायाध घणा कपटी नथी भोळािे ॥३॥
मीिा कहे प्रभ बगरिधि नागि गुण घणाज लागे प्यािािे ॥४॥

2.
िाम बमलण के काज सखी, मेिे आिबत उि में जागी िी।
तडपत-तडपत कल न पित है, बििहिाण उि लागी िी।

बनसददन पंथ बनहारँ बपवको, पलक न पल भि लागी िी।

पीव-पीव मैं िटँ िात-ददन, दजी सुध-िुध भागी िी।

बििह भुजंग मेिो डस्यो कलेजो, लहि हलाहल जागी िी।

मेिी आिबत मेरट गोसाईं, आय बमलौ मोबह सागी िी।

मीिा ब्याकु ल अबत उकलाणी, बपया की उमंग अबत लागी िी।

3.
आयी देखत मनमोहनक। मोिे मनमों छिी छाय िही॥ध्रु०॥
मुख पिका आचला दि दकयो। ति ज्योतमों ज्योत समाय िही॥२॥
सोच किे अि होत कं हा है। प्रेमके िुं दमों आय िही॥३॥
मीिा के प्रभु बगरिधि नागि। िुंदमों िुंद समाय िही॥४॥
4.
आली िे मेिे नैणा िाण पडी।
बचत्त चढो मेिे माधुिी मित उि बिच आन अडी।
कि की ठाढी पंथ बनहारँ अपने भवन खडी।।
कै से प्राण बपया बिन िाखँ जीवन मल जडी।
मीिा बगिधि हाथ बिकानी लोग कहै बिगडी।।

5.
आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।
घि घि तुलसी ठाकु ि पजा दिसण गोबवन्दजी को॥
बनिमल नीि िहत जमुना में, भोजन दध दही को।

ितन ब्रसघासन आप बििाजैं, मुगट धियो तुलसी को॥

कुं जन कुं जन दििबत िाबधका, सिद सुनन मुिली को।

मीिा के प्रभु बगिधि नागि, िजन बिना नि िीको॥

6.
आली , सांविे की दृबि मानो, प्रेम की कटािी है॥
लागत िेहाल भई, तनकी सुध िुध गई ,

तन मन सि व्यापो प्रेम, मानो मतवािी है॥

सबखयां बमल दोय चािी, िाविी सी भई न्यािी,

हौं तो वाको नीके जानौं, कुं जको बिहािी॥

चंदको चकोि चाहे, दीपक पतंग दाहै,

जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यािी है॥

बिनती करं हे स्याम, लागं मैं तुम्हािे पांव,

मीिा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हािी है॥

7.
कठण थयां िे माधव मथुिां जाई। कागळ न लखयो कटकोिे ॥ध्रु०॥
अबहयाथकी हिी हवडां पधायाध। औद्धव साचे अटकयािे ॥१॥
अंगें सोििणीया िावा पेयाध। शीि बपतांिि पटकोिे ॥२॥
गोकु ळमां एक िास िच्यो छे। कहां न कु िड्या संग अतकयोिे ॥३॥
कालीसी कु िजा ने आंगें छे कु िडी। ये शं किी जाणे लटकोिे ॥४॥
ये छे काळी ने ते छे। कु िडी िं गे िं ग िाच्यो चटकोिे ॥५॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। खोळामां घुंघट खटकोिे ॥६॥
8.
करुणा सुणो स्याम मेिी, मैं तो होय िही चेिी तेिी॥

दिसण कािण भई िाविी बििह-बिथा तन घेिी।


तेिे कािण जोगण हंगी, दंगी नग्र बिच िे िी॥
कुं ज िन हेिी-हेिी॥

अंग भभत गले मृगछाला, यो तप भसम करं िी।


अजहं न बमल्या िाम अबिनासी िन-िन िीच दिरं िी॥
िोऊं बनत टेिी-टेिी॥

जन मीिा कं बगिधि बमबलया दुख मेटण सुख भेिी।


रम रम साता भइ उि में, बमट गई िे िा-िे िी॥
िहं चिनबन ति चेिी॥

9.
सखी मेिी नींद नसानी हो।
बपवको पंथ बनहाित बसगिी, िै ण बिहानी हो।

सबखयन बमलकि सीख दई मन, एक न मानी हो।

बिन देखयां कल नाब्रह पडत बजय, ऐसी ठानी हो।

अंग-अंग ब्याकु ल भई मुख, बपय बपय िानी हो।


अंति िेदन बििहकी कोई, पीि न जानी हो।

ज्यं चातक घनकं िटै, मछली बजबम पानी हो।

मीिा ब्याकु ल बििहणी, सुध िुध बिसिानी हो।

10.
कहां गयोिे पेलो मुिलीवाळो। अमने िास िमाडीिे ॥ध्रु०॥
िास िमाडवानें वनमां तेड्या मोहन मुिली सुनावीिे ॥१॥
माता जसोदा शाख पुिावे के शव छांट्या धोळीिे ॥२॥
हमणां वेण समािी सुती प्रेहिी कसुंिळ चोळीिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि चिणकमल बचत्त चोिीिे ॥४॥

11.
कागळ कोण लेई जायिे मथुिामां वसे िे वासी मेिा प्राण बपयाजी॥ध्रु०॥
ए कागळमां झांझु शं लबखये। थोडे थोडे हेत जणायिे ॥१॥
बमत्र तमािा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय िे ॥२॥
सेजलडी तो मुने सुनी िे लागे। िडतां तो िजनी न जायिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल तारं त्यां जायिे ॥४॥

12.
काना चालो मािा घेि कामछे। सुंदि तारं नामछे॥ध्रु०॥
मािा आंगनमों तुलसीनु झाड छे। िाधा गौळण मारं नामछे॥१॥
आगला मंददिमा ससिा सुवेलाछे। पाछला मंददि सामसुमछे॥२॥
मोि मुगुट बपतांिि सोभे। गला मोतनकी मालछे॥३॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। चिन कमल बचत जायछे॥४॥

13.
काना तोिी घोंगिीया पहिी होिी खेले दकसन बगिधािी॥१॥
जमुनाके नीि तीि धेनु चिावत खेलत िाधा प्यािी॥२॥
आली कोिे जमुना िीचमों िाधा प्यािी॥३॥
मोि मुगुट पीतांिि शोभे कुं डलकी छिी न्यािी॥४॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि चिनकमल िलहािी॥५॥

14.
कान्हा कानिीया पेहिीिे ॥ध्रु०॥
जमुनाके नीि तीि धेनु चिावे। खेल खेलकी गत न्यािीिे ॥१॥
खेल खेलते अके ले िहता। भक्तनकी भीड भािीिे ॥२॥
िीखको प्यालो पीयो हमने। तुह्मािो िीख लहिीिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिण कमल िबलहािीिे ॥४॥

15.
कान्हा िनसिी िजाय बगिधािी। तोरि िनसिी लागी मोकों
प्यािीं॥ध्रु०॥
दहीं दुध िेचने जाती जमुना। कानानें घागिी िोिी॥ काना०॥१॥
बसिपि घट घटपि झािी। उसकं उताि मुिािी॥ काना०॥२॥
सास िुिीिे ननंद हटेली। देवि देवे मोको गािी॥ काना०॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। चिनकमल िलहािी॥ काना०॥४॥

16.
कान्हो काहेकं मािो मोकं कांकिी। कांकिी कांकिी कांकिीिे ॥ध्रु०॥
गायो भेसो तेिे अबव होई है। आगे िही घि िाकिीिे ॥ कानो॥१॥
पाट बपतांिि काना अिही पेहित है। आगे न िही कािी घाििीिे ॥
का०॥२॥
मेडी मेहल
े ात तेिे अिी होई है। आगे न िही वि छापिीिे ॥ का०॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। शिणे िाखो तो करं चाकिीिे ॥
कान०॥४॥

17.
कायकं देह धिी भजन बिन कोयकु देह गभधवासकी त्रास देखाई धिी
वाकी पीठ िुिी॥ भ०॥१॥
कोल िचन किी िाहेि आयो अि तम भुल परि॥ भ०॥२॥
नोित नगािा िाजे। िघत िघाई कुं टंि सि देख ठिी॥ भ०॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। जननी भाि मिी॥ भ०॥४॥
18.
कािे कािे सिसे िुिे ओधव प्यािे ॥ध्रु०॥
कािे को बवश्वास न कीजे अबतसे भल पिे ॥१॥
काली जात कु जात कहीजे। ताके संग उजिे ॥२॥
श्याम रप दकयो भ्रमिो। िु लकी िास भिे ॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। कािे संग िगिे ॥४॥

मीिा पदावली – ६

1. शििी प्रसंग
अच्छे मीठे िल चाख चाख, िेि लाई भीलणी।
ऎसी कहा अचािवती, रप नहीं एक िती।
नीचे कु ल ओछी जात, अबत ही कु चीलणी।
जठे िल लीन्हे िाम, प्रेम की प्रतीत त्राण।
उँ च नीच जाने नहीं, िस की िसीलणी।
ऎसी कहा वेद पढी, बछन में बवमाण चढी।
हरि ज स िाँध्यो हेत, िैकुण्ठ में झलणी।
दास मीिां तिै सोई, ऎसी प्रीबत किै जोइ।
पबतत पावन प्रभु, गोकु ल अहीिणी।

2.
अजि सलुनी प्यािी मृगया नैनों। तें मोहन वश कीधो िे ॥ध्रु०॥
गोकु ळ मां सौ िात किे िे िाला कां न कु िजे वश लीधो िे ॥१॥
मनको सो किी ते लाल अंिाडी अंकुशे वश कीधो िे ॥२॥
लवींग सोपािी ने पानना िीदला िाधांसु िारुयो कीनो िे ॥३॥
मीिां कहे प्रभु बगरिधि नागि चिणकमल बचत्त दीनो िे ॥४॥

3.
अपनी गिज हो बमटी साविे हम देखी तुमिी प्रीत॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवािका छाय ऐसे िेहद भये हो नब्रचत॥ ठोि०॥१॥
ठाि सलेव करित हो कु लभवि कीबस िीत॥२॥
िीन दिसन कलना पित हे आपनी कीबस प्रीत।
मीिां के प्रभु बगरिधि नागि प्रभुचिन न पिबचत॥३॥

4.
अि तो बनभायाँ सिे गी, िांह गहेकी लाज।
समिथ सिण तुम्हािी सइयां, सिि सुधािण काज॥

भवसागि संसाि अपििल, जामें तुम हो झयाज।


बनिधािां आधाि जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥

जुग जुग भीि हिी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज।


मीिां सिण गही चिणन की, लाज िखो महािाज॥

5.
अि तो मेिा िाम नाम दसिा न कोई॥
माता छोडी बपता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग िैठ िैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख िोई।
प्रेम आंसु डाि डाि, अमि िेल िोई॥
मािग में तािग बमले, संत िाम दोई।
संत सदा शीश िाखं, िाम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे िही सोई।
िाणे भेज्या बवष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अि तो िात िै ल गई, जानै सि कोई।
दास मीिां लाल बगिधि, होनी हो सो होई॥

6.
अि तौ हिी नाम लौ लागी।
सि जगको यह माखनचोिा, नाम धियो िैिागीं॥
दकत छोडी वह मोहन मुिली, दकत छोडी सि गोपी।
मड मुडाइ डोरि करट िांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमबत माखन-कािन, िांधे जाके पांव।
स्यामदकसोि भयो नव गौिा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांिि को भाव ददखावै, करट कोपीन कसै।
गौि कृ ष्ण की दासी मीिां, िसना कृ ष्ण िसै॥

7.
िंसीवािा आज्यो म्हािे देस। सांविी सुित वािी िेस।।
ॐ-ॐ कि गया जी, कि गया कौल अनेक।
बगणता-बगणता घस गई म्हािी आंगबलया िी िे ख।।
मैं िैिाबगण आददकी जी थांिे म्हािे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन सािुण जी, होय गई धोय सिे द।।
जोगण होय जंगल सि हेरं छोडा ना कु छ सैस।
तेिी सुित के कािणे जी म्हे धि बलया भगवां भेस।।
मोि-मुकुट पीताम्िि सोहै घंघिवाला के स।
मीिा के प्रभु बगिधि बमबलयां दनो िढै सनेस।।

8.
अिज किे छे मीिा िोकडी। उभी उभी अिज॥ध्रु०॥
माबणगि स्वामी मािे मंददि पाधािो सेवा करं ददनिातडी॥१॥
िलनािे तुिा ने िलनािे गजिे िलना ते हाि िल पांखडी॥२॥
िलनी ते गादी िे िलना तकीया िलनी ते पाथिी पीछोडी॥३॥
पय पक्कानु मीठाई न मेवा सेवैया न सुंदि दहीडी॥४॥
लवींग सोपािी ने ऐलची तजवाला काथा चुनानी पानिीडी॥५॥
सेज बिछावं ने पासा मंगावं िमवा आवो तो जाय िातडी॥६॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि तमने जोतमां ठिे आखडी॥७॥

9.
आई ती ते बभस्ती जनी जगत देखके िोई।
माताबपता भाईिंद सात नही कोई।
मेिो मन िामनाम दुजा नही कोई॥ध्रु०॥
साधु संग िैठे लोक लाज खोई। अि तो िात िै ल गई।
जानत है सि कोई॥१॥
आवचन जल छीक छीक प्रेम िोल भई। अि तो मै िल भई।
आमरत िल भई॥२॥
शंख चक्र गदा पद्म गला। िैजयंती माल सोई।
मीिा कहे नीि लागो होबनयोसी हो भई॥३॥

10.
आओ मनमोहना जी जोऊं थांिी िाट।
खान पान मोबह नैक न भावै नैणन लगे कपाट॥

तुम आयां बिन सुख नब्रह मेिे ददल में िहोत उचाट।
मीिा कहै मैं िई िाविी, छांडो नाब्रह बनिाट॥

आओ सहेल्हां िली किां है पि घि गवण बनवारि॥

झठा माबणक मोबतया िी झठी जगमग जोबत।


झठा आभषण िी, सांची बपयाजी िी प्रीबत॥

झठा पाट पटंििा िे , झठा ददखडणी चीि।


सांची बपयाजी िी गदडी, जामें बनिमल िहे सिीि॥

छपन भोग िुहाय देहे इण भोगन में दाग।


लण अलणो ही भलो है अपणे बपयाजीिो साग॥

देबख बििाणे बनवांणकं है कयं उपजावे खीज।


कालि अपणो ही भलो है, जामें बनपजै चीज॥

छैल बििाणो लाखको है अपणे काज न होय।


ताके संग सीधाितां है भला न कहसी कोय॥

िि हीणो अपणो भलो है कोढी कु िी कोय।


जाके संग सीधाितां है भला कहै सि लोय॥

अबिनासीसं िालिा हे बजनसं सांची प्रीत।


मीिा कं प्रभुजी बमल्या है ए ही भगबतकी िीत॥

11.
आज मािे साधुजननो संगिे िाणा। मािा भाग्ये मळ्यो॥ध्रु०॥
साधुजननो संग जो किीये बपयाजी चडे चोगणो िं ग िे ॥१॥
सीकु टीजननो संग न किीये बपयाजी पाडे भजनमां भंगिे ॥२॥
अडसट तीथध संतोनें चिणें बपयाजी कोटी काशी ने कोटी गंगिे ॥३॥
ब्रनदा किसे ते तो नकध कुं डमां जासे बपयाजी थशे आंधळा अपंगिे ॥४॥
मीिा कहे बगरिधिना गुन गावे बपयाजी संतोनी िजमां शीि संगिे ॥५॥

12.
आज मेिेओ भाग जागो साधु आये पावना॥ध्रु०॥
अंग अंग िल गये तनकी तपत गये।
सदगुरु लागे िामा शब्द सोहामणा॥ आ०॥१॥
बनत्य प्रत्यय नेणा बनिखु आज अबत मनमें हिख।
िाजत है ताल मृदंग मधुिसे गावणा॥ आ०॥२॥
मोि मुगुट पीतांिि शोभे छिी देखी मन मोहे।
हिख बनिख आनंद िधामणा॥ आ०॥३॥

13.
होिी खेलनक आई िाधा प्यािी हाथ बलये बपचकिी॥ध्रु०॥
दकतना ििसे कुं वि कन्हैया दकतना ििस िाधे प्यािी॥ हाथ०॥१॥
सात ििसके कुं वि कन्हैया िािा ििसकी िाधे प्यािी॥ हाथ०॥२॥
अंगली पकड मेिो पोचो पकड्यो िैयां पकड झक झािी॥ हाथ०॥३॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि तुम जीते हम हािी॥ हाथ०॥४॥

14.
मेिो मनमोहना, आयो नहीं सखी िी॥
कैं कहं काज दकया संतन का, कै कहं गैल भुलावना॥
कहा करं दकत जाऊं मेिी सजनी, लाग्यो है बििह सतावना॥
मीिा दासी दिसण प्यासी, हरिचिणां बचत लावना॥

15.
हरिनाम बिना नि ऐसा है। दीपकिीन मंददि जैसा है॥ध्रु०॥
जैसे बिना पुरुखकी नािी है। जैसे पुत्रबिना मातािी है।
जलबिन सिोिि जैसा है। हरिनामबिना नि ऐसा है॥१॥
जैसे सशीबवन िजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी िसोई है।
घिधनी बिन घि जैसा है। हरिनामबिना नि ऐसा है॥२॥
ठु ठि बिन वृक्ष िनाया है। जैसा सुम संचिी नाया है।
बगनका घि पतेि जैसा है। हरिनम बिना नि ऐसा है॥३॥
कहे हरिसे बमलना। जहां जन्ममिणकी नही कलना।
बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना नि ऐसा है॥४॥

16.
हरि तुम हिो जन की भीि।
द्रोपदी की लाज िाखी, तुम िढायो चीि॥

भक्त कािण रप निहरि, धियो आप शिीि।

बहिणकश्यपु माि दीन्हों, धियो नाब्रहन धीि॥

िडते गजिाज िाखे, दकयो िाहि नीि।

दाबस 'मीिा लाल बगरिधि, दु:ख जहाँ तहँ पीि॥

17.
हरि गुन गावत नाचंगी॥ध्रु०॥
आपने मंददिमों िैठ िैठकि। गीता भागवत िाचंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठिी िांधकि। हिीहि संग मैं लागंगी॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। सदा प्रेमिस चाखुंगी॥३॥

18.
तो सांविे के िं ग िाची।
साबज ब्रसगाि िांबध पग घुंघर, लोक-लाज तबज नाची।।
गई कु मबत, लई साधुकी संगबत, भगत, रप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण बनस ददन, कालब्यालसँ िांची।।
उण बिन सि जग खािो लागत, औि िात सि कांची।
मीिा श्रीबगिधिन लालसँ, भगबत िसीली जांची।।

19.
शिणागतकी लाज। तुमक शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
नाना पातक चीि मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
प्रबतज्ञा छांडी भीष्मके । आगे चक्रधि जदुिाज॥२॥
मीिाके प्रभु बगरिधि नागि। दीनिंधु महािाज॥३॥

20.
सांविा म्हािी प्रीत बनभाज्यो जी॥

थे छो म्हािा गुण िा सागि, औगण म्हारं मबत जाज्यो जी।


लोकन धीजै (म्हािो) मन न पतीजै, मुखडािा सिद सुणाज्यो जी॥

मैं तो दासी जनम जनम की, म्हािे आंगणा िमता आज्यो जी।
मीिा के प्रभु बगिधि नागि, िेडो पाि लगाज्यो जी॥

21.
नाव दकनािे लगाव प्रभुजी नाव दकना०॥ध्रु०॥
नदीया घहेिी नाव पुिानी। डु ित जहाज तिाव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड िांधी। दविे दविे आव॥२॥
मीिा कहे प्रभु बगरिधि नागि। पकिो उनके पाव॥३॥

22.
होिी खेलत हैं बगिधािी।
मुिली चंग िजत डि न्यािो।
संग जुिती िंजनािी।।
चंदन के सि बछडकत मोहन
अपने हाथ बिहािी।
भरि भरि मठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण बपयािी।
गावत चाि धमाि िाग तहं
दै दै कल कितािी।।
िाग जु खेलत िबसक सांविो
िाढ्यौ िस िंज भािी।
मीिा कं प्रभु बगिधि बमबलया
मोहनलाल बिहािी।।

23.
सखी, मेिी नींद नसानी हो।
बपवको पंथ बनहाित बसगिी िै ण बिहानी हो॥

सबखअन बमलकि सीख दई मन, एक न मानी हो।


बिन देखयां कल नाब्रह पडत बजय ऐसी ठानी हो॥

अंग अंग व्याकु ल भई मुख बपय बपय िानी हो।


अंतििेदन बििह की कोई पीि न जानी हो॥
ज्यं चातक घनकं िटै, मछली बजबम पानी हो।
मीिा व्याकु ल बििहणी सुद िुध बिसिानी हो॥

समाप्त

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