Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 1

कहा। अनुष्ठान पूर्ण होने के पश्चात महाराज और महारानी ने आचार्ण चण्डकौशिक को भोजन करार्ा। सौदाशमनी

उच्च स्वर में बोल ,ीं "मेरा मत है कक मगध को कृष्र् की ित्रत


ु ा मोल नह ीं लेनी चाहहए " जरासींध ने प्रततिोध का
सींकल्प शलर्ा। अस्स्त और प्रास्तत ने दरू बनार्े रखी। प्रबल लस्जजत प्रतीत हो रहा था। उसे समझ नह ीं आ रहा
था की राजकुमाररर्ों की रक्षा करने के शलए उसे पुरुस्कृत ककर्ा जार्ेगा अथवा कींस को अकेला छोड़ने के शलए
उसे दस्ण्डत ककर्ा जार्ेगा। प्रास्तत ने उसके स्कींध पर हाथ रखते हुए उसे सााँत्वना दे ते हुए कहा, "कमण, प्रबल तात
! कमण.. महाराज को उनके बुरे कमो ने मारा है । आपकी किर्ाउचचत नह ीं थी परन्तु आपका सवणथा कमण उचचत
था।"

"कमण.."आचार्ण र्े कह कर मुस्कुरार्े। तुम ठीक कह रह हो प्रास्तत ! किर्ा, कमण नह ीं होता है । कींस के प्रकरर् में
र्े दोनों ह गलत थे।

उसकी किर्ा इतनी दष्ु टता पर्


ू ण थी स्जससे उसके कमण भी बरु े हो गए। र्हद रातनर्ााँ अकमण के ववकार में न उलझी
होती तो वह कुमागण/अधमण के मागण पर न चला होता। आचार्ण ने प्रस्थान करने से पव
ू ण घोषर्ा की कक मैं र्हााँ से
गगाणचार्ण के आश्रम जाऊींगा। मैं उन महात्मा के दिणन एवीं सत्सींग कराँगा। अगर तम
ु आिमर् करने आओगे तो
मैं मथरु ा में होऊींगा। और मैं धमण के पक्ष में रहे की सलाह दे ता हूाँ। र्हद आप आिमर् करने आते हो, तो मैं माथरु ा
में रहूींगा," उन्हें ठहराव शलर्ा और कहा,"मैं उस पक्ष को परामिण दीं ग
ू ा जो धमण के पक्ष में होगा।"

You might also like