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दें गे तो इसके समर्थकों में हमारे विरुद्ध विद्रोह की एक आशा जागेगी। कृष्ण ने कुिलयापीड के विरुद्ध प्रयोग

ककया गया भाला उठा ललया। बलराम ने टोकते हुए कहा, "तुम इसके सार् क्या करना चाहते हो? मुझे लगता है
हम इसे सहजता से बंदी बना सकते हैं। उसके सभी सैननक भाग चुके हैं।" ककन्तु कृष्ण ने असहमत होते हुए
कहा, "दाऊ, हमें इस विषय में भािुक नहीं होना चाहहए। मेरा मत स्पष्ट है । हमारा स्िधमथ, राष्रधमथ के आगे/मागथ
में नहीं आने चाहहयें। इसने हमें युद्ध के ललए ललकारा र्ा। यहद आप इसे जीवित छोड़ दें गे तो इसके समर्थकों
में हमारे विरुद्ध विद्रोह की एक आशा जागेगी। इसके पाप का घड़ा भर चूका है । इसका आचरण तो दे खिये।
इसकी मनत भ्रष्ट हो गयी है । यह यर्ार्थ में एक दष्ु ट है । इसके स्र्ान पर स्ियं को रि कर दे खिए, क्या ये आपको
जीवित छोड़ेगा अगर आप इसको एक अिसर दें गे। क्या यद ु साम्राज्य कंस के कारागह
ृ में होने पर सुरक्षित होगा
अर्िा कंस के मर जाने पर ?" बलराम शांत हो गया। कृष्ण के तकथ का उसके पास कोई उत्तर नहीं र्ा।

इस ही बीच कंस अपनी िड़ग हिा में घुमा रहा र्ा और प्रतीत हो रहा र्ा जैसे िह भूतों से बात कर रहा हो। कृष्ण
कुछ पग पीछे हटे , और स्तम्भ लेकर उस मंच की ओर दौड़े जहााँ कंस िायु में अपनी िड्ग चला रहा र्ा। मंच के
ननकट ही उसने आिाड़े में स्तम्भ रिा और ऊपर उछलते हुए उसका एक लसरा कंस के शरीर में घोंप हदया।
कृष्ण की कंस को कुचलने की गनत भयानक र्ी। जैसे ही कंस अपने लसंहासन से गगरा राजमुकुट गगर जाने क
कारण उसके केश बबिर गए। उसने एक बार पुनः िड़े होने का यत्न ककया।

कृष्ण ने उसके िष
ृ ण पर तीव्र प्रहार ककया। पीड़ा के कारण कंस की भयानक चीि ननकल पड़ी। सम्पूणथ
आिाड़ा/समरांगण ऐसे कांप उठा जैसे मर्ुरा में कोई भूकंप आ गया हो। कृष्ण ने एक बार पुनः उसकी गदथ न पर
प्रहार ककया। प्रहार इतना घातक र्ा की कंस बुरी तरह लड़िड़ाने लगा। कृष्ण ने उसके केश पकड़ क्र उसे मंच से
घसीटा। "इस नीच ने मेरी मााँ को ऐसे ही केश पकड़ कर घसीटा र्ा न.. अब मैं इसे पाठ पढ़ाऊंगा।" िहााँ उपस्स्र्त
भीड़ ने सारी मयाथदाएं तोड़ कर िहााँ कोलाहल मचा हदया और कंस की ओर से जो भी सामने आया उस पर टूट
पड़े। जब कृष्ण कंस के केश पकड़ कर मंच पर घसीट रहे र्े, उसी िण भीड़ ने कंस के आठ भ्राताओं (कंक,
न्याग्रोध, सुनम, शंकु, सुहु, राष्रपल, सस्ृ ष्ट एिं तुस्ष्टमान) का बध कर हदया।

कृष्ण अचेत कंस को केशों से घसीटकर आिाड़े में ले आया। उसने उसके ििस्र्ल पर पैर रिकर जनता से
पूछा, "क्या हमें इसे बंदी बनाना चाहहए?"

"नहीं....."कदावप नहीं, इस नहीं शब्द की ध्िनन से समरांगण ही नहीं, अवपतु सम्पूणथ मर्ुरा नगरी हहलने लगी।
इतना विलिण दृश्य र्ा की कंस की सुधमाथ सभा का प्रत्येक सदस्य नहीं नहीं.... गचल्ला रहा र्ा। िहााँ िड़ी
स्स्ियां रो रही र्ी और कृष्ण से विनती कर रहीं र्ीं। कन्है या, कन्है या, कान्हा, गोविंदा, केशि... कृपा कररये!
आपकी माता अभी भी बंदीगह
ृ में हैं। उनके सम्मान में , इस पापी को मत छोडो। इसे मारो.. मार डालो.. मारो..
मारो।

कृष्ण ने हर हदशा में िड़े लोगो का अलभिादन ककया तत्पश्चात कंस की गदथ न पर पुरे बल के सार् प्रहार ककया।
इससे कंस की मत्ृ यु हो गयी। प्रबल अन्तःपुर की ओर भागा। जरासंध के अनतररक्त तीनो स्स्ियााँ (अस्स्त,
प्रास्तत और सौदालमनी) विलाप करने लगी। आचायथ ने महाराज एिं महारानी को पूणाथहूनत अवपथत करने के ललए

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