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Aditya Hridaya Stotra
Aditya Hridaya Stotra
नमः नमः
ज
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जय सूयय देवाय नमः
ज
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जय सूयय देवाय नमः
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ज
जय सूयय देवाय नमः
य
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ऋष्याददऩास
ॐ अगसऋषये नमः, सशरसस। अनुषु पछनसे नमः, मख
ु े। आददथहृदयभतू ब्रहदेवतायै नमः हृदद। ज
य
ॐ बीजाय नमः, गु ऺो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ तत्सनवतरु रथाददगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ। सू
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करऩास य
ॐ रश्मिमते अंगस
ु ाभ्यां नमः। ॐ समद्य
ु ते तजवनीभ्यां नमः। द
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ॐदेवासरु नमस्कृ ताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ नववरवते अनानमकाभ्यां नमः।
जय सूयय देवाय नमः
हृदयादद अंगऩास ज
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समद्य
ु ते सशरसे स्वाहा। ॐ देवासरु नमस्कृ ताय सशखायै य
वषट् । ॐ नववस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ
सू
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भुवनेश्वराय अहाय फट् । य
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इस प्रकार न्यास करके ननम्नाषं कत मत्रं से भगवान सयू व का ध्यान एवं नमस्कार करना चादहए- े
ॐ भभू वु वः स्वः तत्सनवतवु वरेण्यं भगो देवस्य धीमदह धधयो यो नः प्रचोदयात।्
जय सूयय देवाय नमः
रश्मिमनं समुननं देवासुरनमस्कृ तम् । पु जयस्व वववस्वनं भास्करं भुवने श्वरम् ॥6॥
ज
सवयदेवातको ऺेष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पावत गभश्मस्तभभ: ॥7॥
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एष ब्रहा ि ववष्णु श्च शशव: स्क : प्रजापवत: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ऺापां पवतः सू
॥8॥ पपतरो वसव: साध्या अशश्वनौ मरुतो मनु : । वायु वयदहन: प्रजा प्राण ऋतु कता प्रभाकर: ॥ य
9॥ य
आददथ: सववता खग: पूषा गभश्मस्तमान् । सुवणयसदृशो भानुदहयरण्यरेता ददवाकर: ॥10॥ द
सूय:य े
सहहाचि:य
पूजयस्वैनमे काग्रो देवदेवं जगप्तवतम् । एतपरत्रगु णणतं जप्त्वा युदध् ेषु ववजययष्यशस ॥26॥
अश्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं वं जदहष्यशस । एवमु क्ता ततोऽगसो जगाम स यथागतम् ॥27॥
ज
एतच्छ्ु वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सु पर् ीतो राघव प्रयतातवान् ॥28॥
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आददथं प्रेक्ष्य जप्त्वे दं परं हषयमवाप्तवान् । पत्ररािम्य शूचिभूयवा धनुरादाय वीययवान् ॥29॥ सू
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टाता जयाथऱ समुपागतम् । सवययत्नेन महता वृ तस्तस्य वधे ऽभवत् ॥30॥ य
अथ रववरवदयन्नरीक्ष्य रामं मु ददतमना: परमं प्रहृष्यमाण: । वनशशिरपवतसंक्षयं ववददवा सुरगणमध्यगतो विऺरेवत य
॥31॥ द
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जय सूयय देवाय नमः
ज
|| आददथ हृदय स्तोत्र दहपी अनुवाद || य
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ततो यदु ्धपररश्रानं समरे चिनया स्थितम।् य
रावणं िाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय
समुपस्थितम॥् 01
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उधर श्रीरामचन्द्रजी यु ध से थककर चचता करते हुए रणभूनम में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी
जय सूयय देवाय नमः
आददथहृदयं पु ण्यं
सवयशत्रुववनाशनम्। जयावहं
जय सूयय देवाय नमः
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आददथहृदय’ । यह परम पनवत्र और सं पूणव शत्रुओ ं का नाश करने
वाला है। इसके जप से सदा नवजय षक प्राप्ति होती है। यह ननथ अक्ष और परम कळाणमय स्तोत्र है। ज
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सवयमङ्गलमाङ्गल्यं सू
सवयपापप्रणाशनम्। य
चिनाशोकप्रशमनम्
आयु वयधनमु त्तमम्॥ 05
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जय सूयय देवाय नमः
सम्पूणव मं गलों का भी मं गल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चचता और शोक को नमटाने
तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।
रश्मिमंतं समुननं
देवासुरनमस्कृ तम्। पूजयस्व ज
वववस्वनं भास्करं य
भु वने श्वरम्॥ 06
सू
भगवान् सूयव अपनी अनं त षकरणों से सु शोधभत हैं । ये ननथ उदय होने वाले , देवता और असु रों से नमस्कृ य
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त, नववस्वान नाम से प्रससद, प्र का नवस्तार करने वाले और सं सार के स्वामी हैं । तु म इनका
रश्मिमं ते नमः, समु द्यन्ते नमः, देवासु रनमस्कृ ताये नमः, नववस्वते नमः, भास्कराय नमः, भु वने श्वराये नमः
इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।
सं पूणव देवता इन्ही के स्वरप हैं । ये ते ज़ की रासश तथा अपनी षकरणों से जगत को सत्ता एवं स्फू
नतव प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असु रों सदहत समस्त लोकों
का पालन करने वाले हैं ।
जय सूयय देवाय नमः
ये ही ब्रहा, नवहु सशव, स्क , प्रजापनत, इंद्र, कु बे र, काल, यम, चन्द्रमा, वरण, षपतर , वसु , साध्य,
असश्वनीकु मार, मरदगण, मनु , वायु , अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के
जय सूयय देवाय नमः
पु ं ज हैं ।
अं शुमान,
व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमभे दी, ऋग, यजु और सामवे द के पारगामी, धनवृ षष, अपाम नमत्र (जल
को उत्पप करने वाले ), नवध्यवीधथप्लवं गम (आकाश में तीव्र वे ग से चलने वाले ),
जय सूयय देवाय नमः
आतपी मंडली मृ थुः पपगलः
सवयतापनः। कववववश्वो
महातेजाः रक्तः सवयभवोदव:॥ 14 ज
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आतपी, मं डली, मृ थु, षपगल(भूरे रंग वाले ), सववतापन(सबको ताप देने वाले ), कनव, नवश्व, सू
महाते जस्वी, रक् त, सववभवोद्भव (सबकी उत्पधत्त के कारण), य
य
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जय सूयय देवाय नमः
नक्षत्रग्रहताराणा-मभधपो ज
ववश्वभावनः। तेजसामपप तेजस्वी य
ऩादशातन्नमोस्तु ते॥ 15
सू
नक्षत्र, ग्र और तारों के स्वामी, नवश्वभावन(जगत षक रक्षा करने वाले ), ते जश्मस्वयों में भी अनत ते जस्वी और द्वादशाता य
हैं। इन सभी नामो से प्रससद सूयवदेव ! आपको नमस्कार है। य
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नमः पूवाय यगरये पशश्चमायाद्रए े
नमः। ज्योवतगयणानां पतये
ददनाभधपतये नमः॥ 16
जय सूयय देवाय नमः
पूववग्नगरी उदयाचल तथा पसिमग्नगरी अस्ताचल के ऱप में आपको नमस्कार है । ज्योनतगवणों (ग्रहों और
तारों) के स्वामी तथा ददन के अधधपनत आपको प्रणाम है।
उग्र, वीर, और सारंग सूयवदेव को नमस्कार है । कमलों को नवकससत करने वाले प्रचं ड ते जधारी मातवण्ड को प्रणाम है।
ब्रहेशानाच्यु तेषाय
सूयायाददथवियसे । भास्वते ज
सवयभक्षाय रौद्राय वपु षे नमः॥ य
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आप ब्रहा, सशव और नवहु के भी स्वामी है । सूर आपकी सं ज्ञा है, यह सूयवमं डल आपका ही य
ते ज है, आप प्रकाश से पररपूणव हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरप है, आप य
रौद्रऱप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। द
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तमोघ्नाय दहमघ्नाय शत्रुघ्नायावमतातने ।
कृ तघ्नघ्नाय देवाय ज्योवतषाम् पतये नमः॥ 20
जय सूयय देवाय नमः
आप अज्ञान और अऩकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के ननवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं
। आपका स्वरप अप्रमे य है । आप कृ तघ्नों का नाश करने वाले , सं पूणव ज्योनतयों के स्वामी और
देवस्वऱप हैं, आपको नमस्कार है।
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तप्तिावमकराभाय वनये य
ववश्वकमयणे । सू
नमस्तमोsभभवनघ्नाये रुिये य
य
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लोकसाशक्षणे ॥ 21
आपकी प्र तपाये हु ए सु वणव के समान है, आप हरी और नवश्वकमा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वऱप
और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।
जय सूयय देवाय नमः
ये सब भूतों में अन्तयामी ऱप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही
अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पु रषों को नमलने वाले फल हैं।
उनका उपदेश सु नकर महाते जस्वी श्रीरामचन्द्रजी का हो गया। उन्होंने प्रसप होकर शु धचचत्त से आददथहृदय को
शोक दरू धारण षकया।
जय सूयय देवाय नमः
रावण की और देखा और उत्साहपूववक नवजय पाने के सलए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण
के वध का ननिय षकया।
कहा गया और वालीषक रामायण के यु ध काण्ड में यह आददथ हृदयम मं तर् सं पप होता है।
वर्णतव
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जय सूयय देवाय नमः
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