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जय सूयय देवाय नमः जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय नमः

नमः नमः



सू




जय सूयय देवाय नमः



सू




जय सूयय देवाय नमः



सू





जय सूयय देवाय नमः


सू



जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय नमः


नमः नमः
जय सूयय देवाय नमः जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय
नमः नमः नमः

|| आददथ हृदय स्तोत्र || य
सू

वववनयोग य
ॐ अस्य आददथ हृदयसत् ोत्रस्यागसऋषषरनुषु पछनः, द

आददथेहृदयभतू ो भगवान ब्रहा देवता ननरसत् ाशेषनवघ्नतया ब्रहनवद्याससधौ
जय सूयय देवाय नमः

सववत्र जयससधौ च नवननयोगः।

ऋष्याददऩास
ॐ अगसऋषये नमः, सशरसस। अनुषु पछनसे नमः, मख
ु े। आददथहृदयभतू ब्रहदेवतायै नमः हृदद। ज

ॐ बीजाय नमः, गु ऺो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ तत्सनवतरु रथाददगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ। सू

करऩास य
ॐ रश्मिमते अंगस
ु ाभ्यां नमः। ॐ समद्य
ु ते तजवनीभ्यां नमः। द

ॐदेवासरु नमस्कृ ताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ नववरवते अनानमकाभ्यां नमः।
जय सूयय देवाय नमः

ॐ भास्कराय कननषसकाभ्यां नमः। ॐ भवु नेश्वराय करतलकरपृसाभ्यां नमः।

हृदयादद अंगऩास ज
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समद्य
ु ते सशरसे स्वाहा। ॐ देवासरु नमस्कृ ताय सशखायै य
वषट् । ॐ नववस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ
सू

भुवनेश्वराय अहाय फट् । य

इस प्रकार न्यास करके ननम्नाषं कत मत्रं से भगवान सयू व का ध्यान एवं नमस्कार करना चादहए- े
ॐ भभू वु वः स्वः तत्सनवतवु वरेण्यं भगो देवस्य धीमदह धधयो यो नः प्रचोदयात।्
जय सूयय देवाय नमः

् पररश्रानं समरे चिनया स्थितम् । रावणं िाग्रतो दृष्ट्वा युदध


ततो युदध ् ाय समुपस्थितम् ॥
1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टु मभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगसो भगवांस्तदा
॥2॥ राम राम महाबाहो श्रृणु गु हं सनातनम् । येन सवानरीन् वत्स समरे ववजययष्यसे ज
॥3॥ आददथहृदयं पु ण्यं सवयशत्रुववनाशनम् । जयावहं जपं वनथमक्षयं परमं शशवम् ॥ य
4॥ सू
सवयमंगलमागल्यं सवयपापप्रणाशनम् । चिनाशोकप्रशमनमायु वयधनमु त्तमम् ॥5॥



जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय जय सूयय देवाय े
नमः नमः नमः
जय सूयय देवाय नमः

रश्मिमनं समुननं देवासुरनमस्कृ तम् । पु जयस्व वववस्वनं भास्करं भुवने श्वरम् ॥6॥

सवयदेवातको ऺेष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पावत गभश्मस्तभभ: ॥7॥

एष ब्रहा ि ववष्णु श्च शशव: स्क : प्रजापवत: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ऺापां पवतः सू
॥8॥ पपतरो वसव: साध्या अशश्वनौ मरुतो मनु : । वायु वयदहन: प्रजा प्राण ऋतु कता प्रभाकर: ॥ य
9॥ य
आददथ: सववता खग: पूषा गभश्मस्तमान् । सुवणयसदृशो भानुदहयरण्यरेता ददवाकर: ॥10॥ द
सूय:य े

हररदश्व: सप्तसप्तप्तमयरीचिमान् । वतवमरोनथन: शम्भु ऺष्टा मातयण्डकोंऽशुमान् ॥11॥


जय सूयय देवाय नमः

सहहाचि:य

दहरण्यगभय: शशशशरस्तपनोऽहस्करो रवव: । अयिगभोऽददते : पु तर् ः शंखः शशशशरनाशन: ॥12॥


व्योमनाथस्तमोभे दी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृ पष्टरपां वमत्रो ववन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥ ज
आतपी मण्डली मृ थु: पपगंल: सवयतापन:। कववववश्वो महातेजा: रक् त:सवयभवोद् भव: ॥ य
14॥ नक्षत्रग्रहताराणामभधपो ववश्वभावन: । तेजसामपप तेजस्वी ऩादशातन् नमोऽस्तु ते ॥15॥ सू

नम: पूवाय यगरये पशश्चमायाद्रये नम: । ज्योवतगयणानां पतये ददनाभधपतये नम: ॥16॥ य
जयाय जयभद्राय हययश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहहांशो आददथाय नमो नम: ॥17॥ द
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पधप्रबोधाय प्रिण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

जय सूयय देवाय नमः

ब्रहेशानाच्यु तेशाय सुरायाददथवियसे । भास्वते सवयभक्षाय रौद्राय वपु षे नम: ॥19॥


तमोघ्नाय दहमघ्नाय शत्रुघ्नायावमतातने । कृ तघ्नघ्नाय देवाय ज्योवतषां पतये नम: ॥
20॥

तप्तिामीकराभाय हरये ववश्वकमयणे । नमस्तमोऽभभवनघ्नाय रुिये लोकसाशक्षणे ॥21॥ य
नाशयथे ष वै भूतं तमे ष सृजवत प्रभु : । पायथे ष तपथे ष वषयथे ष गभश्मस्तभभ: ॥22॥ सू
एष सुपत
् ेषु जागवतय भूतेषु पररवनपित: । एष िैवायिहोत्रं ि फलं


िैवायिहोपत्रणाम् ॥23॥ देवाश्च क् रतवश्चैव क् रतु नां फलमे व ि । यावन कृ थावन

लोके षु सवे षु परमं प्रभु: ॥24॥ एनमापत्सु कृ च्छ्र ेषु कानारेषु भयेषु ि ।

कीतययन् पु रुष: कशश्चन्नावसीदवत राघव ॥25॥
जय सूयय देवाय नमः

पूजयस्वैनमे काग्रो देवदेवं जगप्तवतम् । एतपरत्रगु णणतं जप्त्वा युदध् ेषु ववजययष्यशस ॥26॥
अश्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं वं जदहष्यशस । एवमु क्ता ततोऽगसो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्ु वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सु पर् ीतो राघव प्रयतातवान् ॥28॥

आददथं प्रेक्ष्य जप्त्वे दं परं हषयमवाप्तवान् । पत्ररािम्य शूचिभूयवा धनुरादाय वीययवान् ॥29॥ सू
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टाता जयाथऱ समुपागतम् । सवययत्नेन महता वृ तस्तस्य वधे ऽभवत् ॥30॥ य
अथ रववरवदयन्नरीक्ष्य रामं मु ददतमना: परमं प्रहृष्यमाण: । वनशशिरपवतसंक्षयं ववददवा सुरगणमध्यगतो विऺरेवत य
॥31॥ द

जय सूयय देवाय नमः


|| आददथ हृदय स्तोत्र दहपी अनुवाद || य
सू

ततो यदु ्धपररश्रानं समरे चिनया स्थितम।् य
रावणं िाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय
समुपस्थितम॥् 01


उधर श्रीरामचन्द्रजी यु ध से थककर चचता करते हुए रणभूनम में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी
जय सूयय देवाय नमः

यु ध के सलए उनके सामने उपस्थित हो गया।

दैवतै श्च समागम्य


द्रष्टुमभ्यागतो रणम्। ज
उपागम्याब्रवीद्राममगसो भगवान्
ऋपषः॥ 02 य
सू
यह देख भगवान् अगस मु नन, जो देवताओं के साथ यु ध देखने के सलए आये थे , श्रीराम के पास जाकर बोले ।य

राम राम महाबाहो शृ णु गु ऺं
सनातनम्। ये न सवानरीन् वत्स

समरे ववजययष्यशस॥ 03 े
सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सु नो! वत्स! इसके जप से तु म
यु ध में अपने समस्त शत्रुओं पर नवजय पा जाओगे ।

आददथहृदयं पु ण्यं
सवयशत्रुववनाशनम्। जयावहं
जय सूयय देवाय नमः

जपेयन्नथम् अक्षय्यं परमं शशवम्॥


04

इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आददथहृदय’ । यह परम पनवत्र और सं पूणव शत्रुओ ं का नाश करने
वाला है। इसके जप से सदा नवजय षक प्राप्ति होती है। यह ननथ अक्ष और परम कळाणमय स्तोत्र है। ज

सवयमङ्गलमाङ्गल्यं सू
सवयपापप्रणाशनम्। य
चिनाशोकप्रशमनम्
आयु वयधनमु त्तमम्॥ 05



जय सूयय देवाय नमः

सम्पूणव मं गलों का भी मं गल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चचता और शोक को नमटाने
तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।

रश्मिमंतं समुननं
देवासुरनमस्कृ तम्। पूजयस्व ज
वववस्वनं भास्करं य
भु वने श्वरम्॥ 06
सू
भगवान् सूयव अपनी अनं त षकरणों से सु शोधभत हैं । ये ननथ उदय होने वाले , देवता और असु रों से नमस्कृ य


त, नववस्वान नाम से प्रससद, प्र का नवस्तार करने वाले और सं सार के स्वामी हैं । तु म इनका
रश्मिमं ते नमः, समु द्यन्ते नमः, देवासु रनमस्कृ ताये नमः, नववस्वते नमः, भास्कराय नमः, भु वने श्वराये नमः
इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।

सवयदेवातको ऺेष ते जस्वी रश्मिभावनः।


एष देवासुरगणाँल्लोकान् पावत गभश्मस्तभभः॥ 07

सं पूणव देवता इन्ही के स्वरप हैं । ये ते ज़ की रासश तथा अपनी षकरणों से जगत को सत्ता एवं स्फू
नतव प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असु रों सदहत समस्त लोकों
का पालन करने वाले हैं ।
जय सूयय देवाय नमः

एष ब्रहा ि ववष्णु श्च शशवः स्कपः ज


प्रजापवतः। महेन्द्रो धनदः कालो य
यमः सोमो ऺपां पवतः॥ 08
सू
भगवान सूयव, ब्रहा, नवहु, सशव, स्क , प्रजापनत, महेंद्र, कु बे र, काल, यम, सोम एवं वरण आदद में भी प्रचसलत हैं। य

पपतरो वसवः साध्या ऺशश्वनौ द
मरुतो मनु ः। वायु वयवनः े
प्रजाप्राण ऋतु कता प्रभाकरः॥
09

ये ही ब्रहा, नवहु सशव, स्क , प्रजापनत, इंद्र, कु बे र, काल, यम, चन्द्रमा, वरण, षपतर , वसु , साध्य,
असश्वनीकु मार, मरदगण, मनु , वायु , अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के
जय सूयय देवाय नमः

पु ं ज हैं ।

आददथः सववता सूययः खगः पूषा


गभश्मस्तमान्। सु वणयसदृशो ज
भानुदहयरण्यरेता ददवाकरः॥ 10 य
सू
इनके नाम हैं आददथ(अददनतपु तर् ), सनवता(जगत को उत्पप करने वाले ), सूयव(सववव्यापक), खग, पूषा(पोषण
करने वाल)े , गभश्मस्तमान (प्रकाशमान), सु वणवसदृश्य, भानु (प्रकाशक), दहरण्यरेता(ब्रहांड षक उत्पधत्त के बीज),

ददवाकर(राषत्र का य
अऩकार करके ददन का प्रकाश फै लाने वाले ), द
दरू े
हररदश्वः सहस्राचिय: सप्तसप्तप्त-
मरीचिमान। वतवमरोनऩन:
शम्भु ऺष्टा माताण्ड अंशुमान॥ 11

हररदश्व, सहस्राचचव (हज़ारों षकरणों से सुशोधभत), सिसप्ति(सात घोड़ों वाले ), मरीचचमान(षकरणों से


सु शोधभत), नतनमरोमंथन(अऩकार का नाश करने वाले ), शयू, त्वषा, मातवण्डक(ब्रहाण्ड को जीवन प्रदान करने वाले ),
जय सूयय देवाय नमः

अं शुमान,

दहरण्यगभयः शशशशरस्तपनो भास्करो


रववः। अयिगभोsददते : पु तर् ः शंखः ज
शशशशरनाशान:॥ 12 य
दहरण्यगभव (ब्रहा), सशसशर(स्वभाव से ही सु ख प्रदान करने वाले ), तपन(गमी पै दा करने वाले ), अहस्कर, सू
रनव, अग्निगभव(अग्नि को गभव में धारण करने वाले ), अददनतपु तर् , शं ख, सशसशरनाशन(शीत का नाश करने वाले ), य

व्योम नाथस्तमोभे दी ऋग्य द
जु स्सामपारगः। धनवृ पष्टरपाम े
वमत्रो ववध्यवीभथप्लवंगम:॥ 13

व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमभे दी, ऋग, यजु और सामवे द के पारगामी, धनवृ षष, अपाम नमत्र (जल
को उत्पप करने वाले ), नवध्यवीधथप्लवं गम (आकाश में तीव्र वे ग से चलने वाले ),
जय सूयय देवाय नमः
आतपी मंडली मृ थुः पपगलः
सवयतापनः। कववववश्वो
महातेजाः रक्तः सवयभवोदव:॥ 14 ज

आतपी, मं डली, मृ थु, षपगल(भूरे रंग वाले ), सववतापन(सबको ताप देने वाले ), कनव, नवश्व, सू
महाते जस्वी, रक् त, सववभवोद्भव (सबकी उत्पधत्त के कारण), य



जय सूयय देवाय नमः

नक्षत्रग्रहताराणा-मभधपो ज
ववश्वभावनः। तेजसामपप तेजस्वी य
ऩादशातन्नमोस्तु ते॥ 15
सू
नक्षत्र, ग्र और तारों के स्वामी, नवश्वभावन(जगत षक रक्षा करने वाले ), ते जश्मस्वयों में भी अनत ते जस्वी और द्वादशाता य
हैं। इन सभी नामो से प्रससद सूयवदेव ! आपको नमस्कार है। य

नमः पूवाय यगरये पशश्चमायाद्रए े
नमः। ज्योवतगयणानां पतये
ददनाभधपतये नमः॥ 16
जय सूयय देवाय नमः

पूववग्नगरी उदयाचल तथा पसिमग्नगरी अस्ताचल के ऱप में आपको नमस्कार है । ज्योनतगवणों (ग्रहों और
तारों) के स्वामी तथा ददन के अधधपनत आपको प्रणाम है।

जयाय जयभद्राय हययश्वाए ज


नमो नमः। नमो नमः सहस्रांशो य
आददथाय नमो नमः॥ 17 सू
आप जयस्वऱप तथा नवजय और कळाण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जु ते रहते

हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों षकरणों से सु शोधभत भगवान् सूयव! आपको बारमार प्रणाम य
है। आप अददनत के पु तर् होने के कारण आददथ नाम से भी प्रससद हैं, आपको नमस्कार है। द

नम उग्राय वीराय सारंगाय
नमो नमः। नमः पधप्रबोधाय
मातयण्डाय नमो नमः॥ 18
जय सूयय देवाय नमः

उग्र, वीर, और सारंग सूयवदेव को नमस्कार है । कमलों को नवकससत करने वाले प्रचं ड ते जधारी मातवण्ड को प्रणाम है।

ब्रहेशानाच्यु तेषाय
सूयायाददथवियसे । भास्वते ज
सवयभक्षाय रौद्राय वपु षे नमः॥ य
19
सू
आप ब्रहा, सशव और नवहु के भी स्वामी है । सूर आपकी सं ज्ञा है, यह सूयवमं डल आपका ही य
ते ज है, आप प्रकाश से पररपूणव हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरप है, आप य
रौद्रऱप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। द

तमोघ्नाय दहमघ्नाय शत्रुघ्नायावमतातने ।
कृ तघ्नघ्नाय देवाय ज्योवतषाम् पतये नमः॥ 20
जय सूयय देवाय नमः

आप अज्ञान और अऩकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के ननवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं
। आपका स्वरप अप्रमे य है । आप कृ तघ्नों का नाश करने वाले , सं पूणव ज्योनतयों के स्वामी और
देवस्वऱप हैं, आपको नमस्कार है।

तप्तिावमकराभाय वनये य
ववश्वकमयणे । सू
नमस्तमोsभभवनघ्नाये रुिये य


लोकसाशक्षणे ॥ 21

आपकी प्र तपाये हु ए सु वणव के समान है, आप हरी और नवश्वकमा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वऱप
और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।
जय सूयय देवाय नमः

नाशयथे ष वै भूतम तदेव ज


सृजवत प्रभु ः। पायथे ष य
तपथे ष वषयथे ष गभश्मस्तभभः॥
22
सू

रघु ननन! ये भगवान् सूयव ही सं पूणव भूतों का सं हार, सृ षष और पालन करते हैं । ये अपनी षकरणों से य
गमी पहुंचाते और वषा करते हैं। द

एष सुप्तेषु जागवतय भूतेषु पररवनपितः।
एष एवायिहोत्रम् ि फलं िैवायिहोपत्रणाम॥ 23
जय सूयय देवाय नमः

ये सब भूतों में अन्तयामी ऱप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही
अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पु रषों को नमलने वाले फल हैं।

वे दाश्च क् रतवश्चैव क् रतुनाम ज


फलमे व ि। यावन कृ थावन य
लोके षु सवय एष रववः प्रभुः॥ सू
24 य
वे दों, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सं पूणव लोकों में सजतनी षियाएँ होती हैं उन सबका फल य
देने में ये ही पूणव समथव हैं। द

॥फलश्रुवत॥
(फलश्रुवत का भी पाठ करना होता है।)

एन मापत्सु कृ च्छ्र ेषु कानारेषु


भयेषु ि। कीतययन परुु ष:
कशश्चन्नावसीदवत राघव॥ 25

कष द वम मागव में तथा और षकसी भय के अवसर पर जो कोई पु रष इन सूयवदेव का कीतवन


राघव! नवपधत्त
जय सूयय देवाय नमः जय सूयय देवाय नमः

म,ें म,ें ग करता है,



उसे दःुख नहीं भोगना पड़ता।

पूज्यस्वै न-मे काग्रे देवदेवम जगत्पवतम। य
एतत पत्रगुणणतम् जप्त्वा यदु ्धेषु ववजययष्यशस॥ 26
सू
इससलए तुम एकाग्रचचत होकर इन देवाधधदेव जगदीश्वर षक पूजा करो । इस आददथहृदय का तीन बार य
जप करने से तुम यु ध में नवजय पाओगे । य

अश्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं े
वभधष्यशस। एवमु क्त्वा तदाs गसो
जगाम ि यथागतम्॥ 27

महाबाहो ! तु म इसी क्ष रावण का वध कर सकोगे । यह कहकर अगसजी जै से आये थे वै से ही चले गए। य
सू
एतच्छ्ु वा महाते जा
नष्टशोकोs भवत्तदा। धारयामास



सु पप्रतो राघवः प्रयतातवान ॥
28

उनका उपदेश सु नकर महाते जस्वी श्रीरामचन्द्रजी का हो गया। उन्होंने प्रसप होकर शु धचचत्त से आददथहृदय को
शोक दरू धारण षकया।
जय सूयय देवाय नमः

आददथं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परम ज


हषयमवाप्तवान्। पत्ररािम्य य
शु चिभूयवा धनुरादाय वीययवान॥
29
सू

और तीन बार आचमन करके शु ध हो भगवान् सूयव की और देखते हु ए इसका तीन बार जप य
षकया । इससे उन्हें बड़ा हषव हुआ । षफर परम परािमी रघु नाथ जी ने धनु ष उठाकर द

् ाय
रावणम प्रेक्ष्य हृष्टाता यु दध
समुपागमत। सवययत्नेन महता
वधे तस्य धृ तोs भवत्॥ 30
जय सूयय देवाय नमः

रावण की और देखा और उत्साहपूववक नवजय पाने के सलए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण
के वध का ननिय षकया।

अथ रवव-रवद-यन्नररक्ष्य रामम। मु ददतमनाः परमम् ज


प्रहृष्यमाण:। वनशशिरपवत-संक्षयम् ववददवा य
सुरगण-मध्यगतो विऺरेवत॥ 31 सू
उस समय देवताओ ं के मध्य में खड़े हु ए भगवान् सूयव ने प्रसप होकर श्रीरामचन्द्रजी की और

देखा और ननशाचरराज रावण के नवनाश का समय ननकट जानकर हषवपूववक कहा – ‘रघु ननन! अब य
जल्दी करो’ । इस प्रकार भगवान् सूयव षक प्रशं सा में द

जय सूयय देवाय नमः

कहा गया और वालीषक रामायण के यु ध काण्ड में यह आददथ हृदयम मं तर् सं पप होता है।
वर्णतव



सू




जय सूयय देवाय नमः



सू




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