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प्रश्न 1. जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए?

उस
फिल्म में फकतने चेहरे थे? स्पष्ट कीजजए।
उत्तर :
जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर छापा गया था ‘वे सभी सजीव हैं,
सााँस ले रहे हैं, शत-प्रततशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मद
ु ाि इंसान जजंदा हो गए, उनको बोलते, बातें
करते दे खो।’ उस फिल्म में अठहत्तर चेहरे थे। अथाित ् उस फिल्म (आलम आरा) में अठहत्तर
कलाकार काम कर रहे थे।
प्रश्न 2. पहला बोलता र्सनेमा बनाने के र्लए फिल्मकार अदे र्शर एम. ईरानी को प्रेरणा कहााँ से
र्मली? उन्होंने आलमआरा फिल्म के र्लए आधार कहााँ से र्लया? ववचार व्यक्त कीजजए।
उत्तर :
पहला बोलता र्सनेमा बनाने के र्लए फिल्मकार अदे र्शर एम.ईरानी को प्रेरणा हॉलीवड
ु की एक
बोलती फिल्म दे खकर र्मली। इस फिल्म का नाम ‘शोबोट’ था। सवाक् फिल्म आलम आरा बनाने
के र्लए पारसी रं गमंच के नाटक को आधार बनाकर पटकथा तैयार की गई। उसके गीतों को भी
इस फिल्म में ज्यों-का त्यों रखा गया।
प्रश्न 3. ववट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप हुआ लेफकन उन्हें हटाया क्यों
गया? ववट्ठल ने पुनः नायक होने के र्लए क्या फकया? ववचार प्रकट कीजजए।
उत्तर :
जजस समय ‘आलम आरा’ फिल्म बनने वाली भी उस समय ववट्ठल प्रर्सद्ध अर्भनेता के रूप में
जाने जाते थे। उनका चयन फिल्म के नायक के र्लए कर र्लया गया पर उन्हें उदि द बोलने में
परे शानी होती थी, इसर्लए उन्हें हटाया गया। ववठ्ठल ने पुनः नायक बनने के र्लए मुकदमा कर
ददया। तत्कालीन सुप्रर्सद्ध वकील मोहम्मद अली जजन्ना ने उनका मुकदमा लडा। इस मुकदमें
में ववठ्ठल जीत गए और वे फिल्म के नायक पुनः बने।
प्रश्न 4. पहली सवाक् फिल्म के तनमािता-तनदे शक अदे र्शर को जब सम्मातनत फकया गया तब
सम्मानकतािओं ने उनके र्लए क्या कहा था? अदे र्शर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने
क्या दटप्पणी की है ? र्लखखए।
उत्तर :
पहली सवाक् फिल्म के तनमािता-तनदे शक अदे र्शर को जब सम्मातनत फकया गया तब
सम्मानकतािओं ने उन्हें ‘ भारतीय सवाक् फिल्मों का वपता’ कहकर उनका सम्मान फकया। इस
अवसर पर तनदे शक ने कहा-“मुझे इतना बडा सम्मान दे ने की आवश्यकता नहीं है । मैंने तो दे श
के र्लए अपने दहस्से का जरूरी योगदान ददया है ।” इस प्रसंग में लेखक ने दटप्पणी करते हुए
कहा है फक वे अत्यंत ववनम्र व्यजक्त थे। वे उस सवाक् र्सनेमा के जनक थे, जजनकी उपलजधध
को भारतीय र्सनेमा के जनक िाल्के को भी अपनाना पडा, क्योंफक वहााँ से र्सनेमा का एक नया
युग शुरू हो गया था।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. मदक र्सनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दै दहक अर्भनय की प्रधानता होती है । पर, जब
र्सनेमा बोलने लगा उनमें अनेक पररवितन हुए। उन पररवतिनों को अर्भनेता, दशिक और कुछ
तकनीकी दृजष्ट से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें ।
उत्तर :
मक
द र्सनेमा अथाित ऐसा र्सनेमा जजसमें हम कलाकारों को अर्भनय करते हुए दे खते हैं, पर
उनकी आवाज नहीं सन ु पाते हैं। उसमें शारीररक अर्भनय की प्रधानता होती है । यही र्सनेमा जब
बोलने लगा तो उसमें अनेक पररवतिन हुए। अर्भनेता, दशिक और तकनीकी दृजष्ट से जो महत्त्वपण
द ि
पररवतिन हुए वे तनम्नर्लखखत हैं
अभिनेता – मक
द फिल्मों में काम करने वाले नायकों में पहलवान जैसा शरीर होना, स्टं ट तथा
ु ा जाता था। फकंतु सवाक् र्सनेमा में इन्हीं
उछल-कदद करने की क्षमता पर ध्यान दे कर चन
अर्भनेताओं को संवादकला में तनपुण होना आवश्यक हो गया । इसके अलावा गायन की योग्यता
रखने वाले अर्भनेताओं की कद्र बढ़ गई।
दर्शक – यदाँ तो उस समय मदक र्सनेमा भी अपनी लोकवप्रयता के र्शखर पर था और दशिक उन्हें
पसंद भी कर रहे थे, फकंतु सवाकु फिल्मों में लोगों की रुचच क्रमशः बढ़ती गई। इसमें उमडती
भीड को तनयंत्रित करना पुर्लस के र्लए। कदठन होता था। सवाक् र्सनेमा दशिकों के र्लए नया
अनुभव था।।
तकनीकी दृष्टि – र्सनेमा के सवाक् होने से उसके तकनीकी स्वरूप में भी पयािप्त पररवतिन आ
गया। पहले शददटंग जहााँ ददन में ही पदरी कर ली जाती थी, वहीं अब रात में भी शददटंग होने लगी।
र्सनेमा में आवाज का होना अलग प्रभाव छोडता था। दहंदी-उदि द के मेल वाली ‘दहंदस्
ु तानी भाषा’
की लोकवप्रयता बढ़ी। वाद्ययंिों और गीत-संगीत का प्रयोग भी बढ़ गया।
प्रश्न 2. डब फिल्में फकसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अर्भनेता के मुंह खोलने और
आवाज में अंतर आ जाता है । इसका कारण क्या हो सकता है ?
उत्तर :
कभी-कभी सवाक् र्सनेमा में अर्भनय करने वाले अर्भनेता और अर्भनेत्रियााँ संवाद बोलते तो हैं
पर उनकी अपनी आवाज नहीं होती है । अथाित वे फकसी और के बोले संवाद पर अर्भनय करते
हैं। ऐसी फिल्में डब फिल्में कहलाती हैं। कभी-कभी फिल्मों में अर्भनेता के माँह
ु खोलने और
आवाज में अंतर आ जाता है । इसका कारण यह है फक अर्भनय और संवाद संयोजन में कमी,
संयोजनकताि का परद ी तरह दक्ष न होना, डब आवाज तथा अर्भनय करने वाले के माँह
ु खोलने-बंद
करने की असमान गतत तथा अर्भनेता की तालमेल त्रबठाने की असिलता के कारण ऐसा हो
जाता है ।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. फकसी मदक र्सनेमा में त्रबना आवाज के ठहाकेदार हाँ सी कैसी ददखेगी? अर्भनय करके
अनुभव कीजजए।
उत्तर :
छाि स्वयं अर्भनय करके अनभ
ु व करें ।
प्रश्न 2. मक
द फिल्म दे खने का एक उपाय यह है फक आप टे लीववजन की आवाज बंद करके फिल्म
दे खें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनम
ु ान लगाएाँ फक फिल्म में संवाद और
दृश्य की दहस्सेदारी फकतनी है ?
उत्तर :
टे लीववजन की आवाजे बंद करके हम जब फिल्म दे खते हैं और कहानी का अनम
ु ान लगाते हैं तो
पाते हैं फक संवाद और दृश्य एक-दस
द रे के त्रबना-अधरद े से लगते हैं। संवाद के अभाव में फिल्म की
कहानी समझ पाना फकतना कदठन लगता है । वास्तव में संवाद और दृश्य एक-दस
द रे के पदरक
बनकर दृश्य या फिल्म को मनोरं जक बनाते हैं। इससे दशिकों की एकता भी फिल्म में बनी रहती
है । दृश्यों में संवाद की आवश्यकता के कारण ही मदक र्सनेमा की लोकवप्रयता के युग में भी
सवाक् फिल्में इतनी लोकवप्रय हुईं फक दशिकों की भीड को साँभालना मुजश्कल हो गया।

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