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भारत वंदना कविता का केन्द्रीय भाव
भारत वंदना कविता का केन्द्रीय भाव
भारत वंदना की व्याख्या करें तो सुनो भारत वंदना कववता का केंरीय भाव ननराला जी ने इस
कववता के माध्यम से हर भारतवासी को अपनी मातभ
ृ मू म के प्रनत कततव्य ननभाने के मलए प्रेररत
ककया है कभी कहते हैं कक अपनी मातभ
ृ ूमम को स्वतंत्र करना रर ससके सामान के मलए अपना
सवतस्व अस्त्र अपन कर दे ना ही हर दे शवासी का कततव्य है ।
महाकवव ‘सूयक
त ांत त्रत्रपाठी ननराला जी’ द्वारा रचित ‘मात ृ वंदना’ कववता दे शभक्तत की भावना से
ओतप्रोत कववता है। सन्द्होंने अपनी कववता ‘मात ृ वंदना’ के माध्यम से मातभ
ृ मू म भारत के प्रनत
अपनी श्रद्धा रर भक्तत भाव प्रदमशतत ककया है । अपने जीवन में स्वार्त भाव तर्ा जीवन भर के
पररश्रम से प्राप्त फल को ननराला जी ने मााँ भारती के िरणों में अवपतत करते हैं।