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दादा भगवान कथित

कर्म का सिद्ाांत
मल
ू गज
ु राती संकलन : डॉ. नीरूबहन अमीन
अनुवाद : महात्मागण

www.dadabhagwan.org

Table of Contents
त्रिमंि

दादा भगवान कौन ?

ननवेदन

संपादकीय

(प. १)

कमम का ससद्ांत

ररस्पोन्ससबल कौन?

(प. २)

कममब्
ं , कतमव्य से या कतामभाव से?

(प. ३)

(प. ४)
कमम, कममफल का साइसस!

(प. ५)

(प. ६)

(प. ७)

(प. ८)

(प. ९)

(प. १०)

(प. ११)

(प. १२)

(प. १३)

(प. १४)

(प. १५)

कतामपद या आथितपद?

(प. १६)

ननष्काम कमम से कममब्


ं ?

(प. १७)

(प. १८)

कमम, कमम चेतना, कममफल चेतना!

(प. १९)

(प. २०)
(प. २१)

(प. २२)

(प. २३)

जीवन में मरन्जयात क्या?

(प. २४)

(प. २५)

प्रारब््-परु
ु षािम का डडमाकेशन!

(प. २६)

(प. २७)

(प. २८)

(प. २९)

प्रत्येक इफेक्ट में कॉजेज ककसका?

(प. ३०)

(प. ३१)

‘सक्ष्
ू म शरीर’ क्या है?

(प. ३२)

(प. ३३)

इसडेसट ककया ककसने? जाना ककसने?

(प. ३४)

(प. ३५)
(प. ३६)

नौ कलमें
त्रिमंि

नर्ो अरिहांताणां

नर्ो सिद्ाणां

नर्ो आयरियाणां

नर्ो उवज्झायाणां

नर्ो लोए िव्विाहूणां

एिो पांच नर्क्


ु कािो,

िव्व पावप्पणािणो

र्ांगलाणां च िव्वेसिां,

पढ़र्ां हवइ र्ांगलर् ्॥ १ ॥

ॐ नर्ो भगवते वािद


ु े वाय ॥ २ ॥

ॐ नर्: सिवाय ॥ ३ ॥

जय िच्चचदानांद

दादा भगवान कौन ?

जून १९५८ की एक संध्या का करीब छ: बजे का समय, भीड़ से भरा सरू त


शहर का रे ल्वे स्टे शन, प्लेटफामम नं. ३ की बेंच पर बैठे िी अंबालाल मल
ू जीभाई
पटे ल रूपी दे हमंददर में कुदरती रूप से, अक्रम रूप में, कई जसमों से व्यक्त होने
के सलए आतुर ‘दादा भगवान’ पूणम रूप से प्रकट हुए। और कुदरत ने सन्जमत
ककया अध्यात्म का अदभुत आश्चयम। एक घंटे में उसहें ववश्वदशमन हुआ। ‘मैं
कौन? भगवान कौन? जगत ् कौन चलाता है? कमम क्या? मुन्क्त क्या?’ इत्यादद
जगत ् के सारे आध्यान्त्मक प्रश्नों के संपण
ू म रहस्य प्रकट हुए। इस तरह कुदरत
ने ववश्व के सम्मुख एक अदववतीय पूणम दशमन प्रस्तत ु ककया और उसके माध्यम
बने िी अंबालाल मल
ू जीभाई पटे ल, गुजरात के चरोतर क्षेि के भादरण गााँव के
पाटीदार, कासरे क्ट का व्यवसाय करनेवाले, कफर भी पूणत
म या वीतराग पुरुष!

‘व्यापार में ्मम होना चादहए, ्मम में व्यापार नहीं’, इस ससद्ांत से उसहोंने
परू ा जीवन त्रबताया। जीवन में कभी भी उसहोंने ककसीके पास से पैसा नहीं सलया
बन्ल्क अपनी कमाई से भक्तों को यािा करवाते िे।

उसहें प्रान्प्त हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घंटों में असय मम


ु ुक्षु जनों को भी
वे आत्मज्ञान की प्रान्प्त करवाते िे, उनके अदभुत ससद् हुए ज्ञानप्रयोग से। उसे
अक्रम मागम कहा। अक्रम, अिामत ् त्रबना क्रम के, और क्रम अिामत ् सीढी दर सीढी,
क्रमानस
ु ार ऊपर चढऩा। अक्रम अिामत ् सलफ्ट मागम, शॉटम कट!

वे स्वयं प्रत्येक को ‘दादा भगवान कौन?’ का रहस्य बताते हुए कहते िे कक


‘‘यह जो आपको ददखते है वे दादा भगवान नहीं है , वे तो ‘ए.एम.पटे ल’ है। हम
ज्ञानी परु
ु ष हैं और भीतर प्रकट हुए हैं, वे ‘दादा भगवान’ हैं। दादा भगवान तो
चौदह लोक के नाि हैं। वे आप में भी हैं, सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में
रहे हुए हैं और ‘यहााँ’ हमारे भीतर संपूणम रूप से व्यक्त हुए हैं। दादा भगवान को
मैं भी नमस्कार करता हूाँ।’’

ननवेदन

आप्तवाणी मख्
ु य ग्रंि है , जो दादा भगवान की िीमुख वाणी से, ओररन्जनल
वाणी से बना है , वो ही ग्रंि के सात ववभाजन ककए गए है , ताकी वाचक को पढऩे
में सुवव्ा हो।

ज्ञानी परू
ु ष की पहचान
जगत ् कताम कौन ?

कमम का ससद्ांत

अंत:करण का स्वरूप

यिािम ्मम

सवम द:ु खों से मन्ु क्त

आत्मा जाना उसने सवम जाना

परम पज्
ू य दादािी दहसदी में बहुत कम बोलते िे, कभी दहसदी भाषी लोग
आ जाते िे, जो गुजराती नहीं समझ पाते िे, उनके सलए पज्
ू यिी दहसदी बोल
लेते िे, वो वाणी जो केसेटो में से रासस्क्राईब करके यह आप्तवाणी ग्रंि बना है !
वो ही आप्तवाणी ग्रंि को कफर से संकसलत करके यह सात छोटे ग्रंि बनाए है !
उनकी दहसदी ‘प्योर’ दहसदी नहीं है , कफर भी सन
ु नेवाले को उनका अंतर आशय
‘एक्जेक्ट’ समझ में आ जाता है । उनकी वाणी हृदयस्पशी, हृदयभेदी होने के
कारण जैसी ननकली, वैसी ही संकसलत करके प्रस्तत
ु की गई है ताकक सज्ञ
ु वाचक
को उनके ‘डडरे क्ट’ शब्द पहुाँचे। उनकी दहसदी यानी गुजराती, अंग्रेजी और दहसदी
का समिण। कफर भी सन
ु ने में, पढऩे में बहुत मीठी लगती है , नैचरु ल लगती है,
जीवंत लगती है । जो शब्द है , वह भाषाकीय द्रन्ष्ट से सी्े-सादे है ककसतु ‘ज्ञानी
पुरुष’ का दशमन ननरावरण है , अत: उनका प्रत्येक वचन आशयपूण,म मासममक,
मौसलक और सामनेवाले के व्यू पोइसट को एक्जेक्ट समझकर होने के कारण वह
िोता के दशमन को सुस्पष्ट खोल दे ता है और उसे ऊंचाई पर ले जाता है ।

- डॉ. नीरूबहन अर्ीन


संपादकीय

जीवन में ऐसे ककतने ही अवसर आते हैं, जब अपने मन को समा्ान नहीं
समलता कक ऐसा क्यों हुआ? भक
ू ं प में ककतने सारे लोग मर गए, बद्री-केदार की
यािा करनेवाले बफममें दब गए, ननदोष बच्चा जसम लेते ही अपंग हो गया, ककसी
की एन्क्सडेसट में मत्ृ यु हो गई... तो यह ककस वजह से? कफर ये कमम का फल
है , ए सा समा्ान कर लेते हैं। लेककन कमम क्या है ? कमम का फल कैसे भुगतना
पड़ता है ? इसका रहस्य समझ में नहीं आता।

वे लोग कमम ककसे कहते हैं ? नौकरी-्ं्ा, सत्कायम, ्मम, पूजा-पाठ वगैरह
परू े ददन जो भी करता हैं, उसे कमम कहते हैं। लेककन ज्ञाननयों की दृन्ष्ट से यह
कमम नहीं है , बन्ल्क कममफल है । जो पााँच इन्सद्रयों से अनभ
ु व में आते हैं, वे सब
कममफल हैं। और कमम का बीज तो बहुत सूक्ष्म है । वह, अज्ञानता से ‘मैंने ककया’,
ऐसे कतामभाव से कमम चान्जिंग होता हैं।

कोई व्यन्क्त क्रो् करता है लेककन भीतर में पश्चाताप करता है , और कोई
व्यन्क्त क्रो् करके भीतर में खुश होता है कक मैंने क्रो् ककया वह ठीक ही
ककया, तभी यह स्
ु रे गा। ज्ञानी की दृन्ष्ट में क्रो् करना तो पूवम कमम का फल
है , लेककन आज पुन: नये कममबीज भीतर में डाल दे ता है । भीतर में खुशी होती
है तो बरु ा बीज डाल ददया और पश्चाताप हो तो नया बीज अच्छा डाल रहा है
और जो क्रो् करता है , वह सूक्ष्म कमम है , उसके फलस्वरूप कोई उसे मारे गा-
पीटे गा। उस कममफल का पररणाम यहीं पर समल जाता है । आज जो क्रो् हुआ,
वह पव
ू क
म मम का फल आया है ।

कमम का ‘चान्जिंग’ कैसे होता है ? कतामभाव से कमम ‘चाजम’ होते हैं। कतामभाव
ककसे कहते हैं? कर रहा है असय कोई और ‘मैंने ककया’ ऐसा मान लेते हैं, वही
कतामभाव है ।
कतामभाव क्यों हो जाता है ? अहं कार से। अहंकार ककसे कहते हैं? जो ‘खुद’
नहीं है कफर भी वहााँ ‘मैं हूाँ’ ऐसा मान लेता है , ‘खद
ु ’ करता नहीं, कफर भी ‘मैंने
ककया’, ऐसा मान लेता है , वही अहं कार है । ‘खुद’ दे ह स्वरूप नहीं है, वाणी स्वरूप
नहीं है, मन स्वरूप नहीं है , नाम स्वरूप नहीं है , कफर भी यह सब ‘मैं ही हूाँ’ खुद
ऐसा मान लेता है , वही अहं कार है । यानी अज्ञानता से अहं कार खड़ा हो गया है ।
और उसी से कममबं्न ननरं तर होता ही रहता है ।

ज्ञानी परु
ु ष समल जाएाँ तो अज्ञानता ‘फ्रैक्चर’ कर दे ते हैं और ‘खद
ु कौन है ’,
उसका ज्ञान दे ते हैं और ‘यह सब कौन कर रहा है ’, वह ज्ञान भी दे ते हैं। उसके
बाद अहं कार चला जाता है । नया कमम चाजम होना बंद हो जाता है , कफर डडस्चाजम
कमम ही बाकी रहते हैं। उनका समभाव से ननकाल करने के बाद मन्ु क्त हो जाती
है ।

परम पूज्य दादाजी के पास दो ही घंटों में ज्ञानप्रान्प्त हो जाती िी।

कमम के बीज जीव पव


ू ज
म सम में डालता है और आज इस जसम में कमम फल
भुगतने पड़ते हैं। तो यहााँ कमम का फल दे नेवाला कौन? इस रहस्य को पूज्य
दादाजी ने समझाया कक ‘ओसली साइन्सटकफक सरकमस्टे न्सशयल एववडेससेस’ से
यह फल आता हैं। फल भग
ु तते समय अज्ञानता से राग-दवेष करता है , ‘मैंने
ककया’ ऐसा मानता है , न्जससे नया कमम चाजम होता है । ज्ञानी परु
ु ष नया कमम
चाजम नहीं हो, ऐसा ववज्ञान दे दे ते हैं, न्जससे वपछले जसमों के फल परू े हो जाते
हैं और नया कमम चाजम नहीं होगा तो कफर मन्ु क्त हो जाती है ।

इस पन्ु स्तका में, परम पूज्य दादा भगवान ने अपने ज्ञान में अवलोकन करके
दनु नया को जो कमम का ससद्ांत ददया वह प्रस्तुत ककया गया हैं। वह दादाजी
की वाणी में संकसलत हुआ है । वह बहुत संक्षक्षप्त में है , कफर भी वाचक को कमम
का ससद्ांत समझ में आ जाएगा और जीवन के प्रत्येक प्रसंग में समा्ान
प्राप्त होगा।
- डॉ. नीरूबहन अर्ीन के जय िच्चचदानांद

(प. १)

कर्म का सिद्ाांत
ररस्पोन्ससबल कौन?

प्रश्नकताम : जब दस
ू री शन्क्त हमसे करवाती है तो ये कमम जो हम गलत
करते हैं, उस कमम के बं्न मुझे क्यों होते हैं? मुझसे तो करवाया गया िा?

दादाश्री : क्योंकक आप न्जम्मेदारी स्वीकारते हैं कक ‘ये मैंने ककया।’ और हम


ये जोखखमदारी नहीं लेते हैं, तो हमको कोई गुनहगारी नहीं है । आप तो कताम हैं।
‘मैंने ये ककया, वो ककया, खाना खाया, पानी पीया, ये सबका मैं कताम हूाँ,’ ऐसा
बोलता है न आप? इससे कमम बं्ते हैं। कताम के आ्ार से कमम बं्ता है । कताम
‘खद
ु ’ नहीं है । कोई आदमी कोई चीज में कताम नहीं है । वो तो खाली इगोइजम
करता है कक ‘मैंने ककया’। दनु नया ऐसे ही चल रही है । ‘हमने ये ककया, हमने
लड़के की शादी की’ ऐसी बात करने में हरकत नहीं। बात तो करना चादहए,
लेककन ये तो इगोइजम करता है ।

‘आप चंदभ
ू ाई है ’, वो गलत बात नहीं है। वो सच बात है। लेककन ररलेदटव
सच है , नोट ररयल। और आप ररयल हैं। ररलेदटव सापेक्ष हैं और ररयल ननरपेक्ष
है । आप ‘खुद’ ननरपेक्ष हैं और बोलते हो, कक ‘मैं चंदभ
ू ाई हूाँ’। कफर आप ‘ररलेदटव’
हो गए। ऑल ददज ररलेदटव आर टे म्परे री एडजस्टमेस्स। कोई चोरी करता है ,
दान दे ता है , वो सब भी परसत्ता करवाती है और वो खुद ऐसा मानता है कक ‘मैंने
ककया’ तो कफर इसकी गन
ु हगारी लगती है । पूरी न्जंदगी में आप जो भी कुछ
करते हो, उसका न्जम्मेदार कोई नहीं है । जसम से लेकर ‘लास्ट स्टे शन’ तक जो
कुछ ककया, उसकी न्जम्मेदारी तम्
ु हारी है ही नहीं। लेककन तुम खुद ही न्जम्मेदारी
लेते

(प. २)

हो कक, ‘ये मैंने ककया, ये मैंने ककया, मैंने खराब ककया, मैंने अच्छा ककया।’
ऐसे खद
ु ही जोखखमदारी लेता है।

प्रश्नकताम : कोई िीमंत होता है , कोई गरीब होता है, कोई अनपढ होता है ,
ऐसा उसका होना, उसका कारण क्या है ?

दादाश्री : नोबडी इज ररस्पोन्ससबल।

वो कमम का ककतना जोखखमदार है? वो ‘मैंने ककया’ ऐसा बोलता है , इतना ही


जोखखमदार है , दस
ू रा कुछ नहीं। ‘मैंने ककया’ ऐसा इगोइजम करता है , इतना
जोखखमदार है । ये जो जानवर हैं, वो जोखखमदार है ही नहीं, क्योंकक वो इगोइजम
ही नहीं करते।

ये बाघ है न, वो इतने सारे जानवर मार डालता है , खा जाता है लेककन


उसको जोखखमदारी नहीं है । त्रबल्कुल, नो ररस्पोन्ससत्रबसलदट। ये आदमी तो, ‘मैंने
ये ककया, मैंने वो ककया’ कहता है , ‘मैंने बरु ा ककया, मैंने अच्छा ककया’ ऐसा
इगोइजम करता है और सब न्जम्मेदारी ससरपर लेता है । त्रबल्ली इतने चूहे खा
जाती है , लेककन उसको जोखखमदारी नहीं। नोबडी इज ररस्पोन्ससबल एक्सेप्ट
मेनकाइसड। दे वलोक भी ररस्पोन्ससबल नहीं है ।

इ्र आपको संपूणम सत्य जानने समलेगा। ये थगल्ट(Gilted) सत्य नहीं है ,


कम्प्लीट सत्य है । हम ‘जैसा है वैसा’ ही बोलते हैं।

दनु नया ऐसे ही चल रही है । वो इगोइजम करता है , इससलए कमम बााँ्ता है ।


कममबं्, कतमव्य से या कतामभाव से?

प्रश्नकताम : लेककन ऐसे कहा है न कक कमम और कतमव्य से ही मोक्ष है न?

दादाश्री : आप जो कमम करते हैं, वो कमम आप खद


ु नहीं करते लेककन आपको
ऐसा लगता है कक, ‘मैं करता हूाँ।’ इसका कताम कौन है? ‘चंदभ
ू ाई’ है । ‘आप’ अगर
‘चंदभ
ू ाई’ हैं, तो ‘आप’ कमम के कताम है और

(प. ३)

‘आप’ अगर ‘आत्मा’ हो गए, तो कफर ‘आप’ कमम के कताम नहीं है । कफर
आपको कमम लगता ही नहीं। आप ‘मैं चंदभू ाई हूाँ’ बोलकर करते हैं। हकीकत में
आप चंदभ
ू ाई है ही नहीं, इससलए कमम लगता है ।

प्रश्नकताम : चंदभ
ू ाई तो लोगों के सलए है लेककन आत्मा जो होती है , वो कमम
करवाती है न?

दादाश्री : नहीं। आत्मा कुछ नहीं करवाता, वो तो इसमें हाि ही नहीं डालती।
ओसली साइन्सटकफक सरकमस्टे न्सशयल एववडेसस सब करता है । आत्मा, वही
भगवान है । आप आत्मा को वपछानो (पहचानो) तो कफर आप भगवान हो गए,
लेककन आपको आत्मा की पहचान हुई नहीं है न! इसके सलए आत्मा का ज्ञान
होना चादहए।

प्रश्नकताम : उसके सलए, आत्मा की पहचान होने के सलए टाइम लगता है ,


स्टडी करनी पड़ती है न?

दादाश्री : नहीं, वो लाखों जसम स्टडी करने से भी नहीं होता है। ‘ज्ञानी परु
ु ष’
समले तो आपको आत्मा की पहचान हो जाएगी।
‘मैंने ककया’ बोला कक कममब्
ं हो जाता है । ‘ये मैंने ककया’, इसमें ‘इगोइजम’
है और ‘इगोइजम’ से कमम बं्ता है । जहााँ इगोइजम ही नहीं, ‘मैंने ककया’ ऐसा
नहीं है , वहााँ कमम नहीं होता। खाना भी चंदभ
ू ाई खाता है , आप खद
ु नहीं खाते।
सब बोलते हैं कक, ‘मैंने खाया’, वो सब गलत बात है ।

प्रश्नकताम : वो चंदभ
ू ाई सब करता है?

दादाश्री : हााँ, चंदभ


ू ाई सब खाता है और चंदभ
ू ाई ही पद
ु गल है , वो आत्मा
नहीं है । बात समझ में आती है न? आपका सब कौन चलाता है ? ्ं्ा कौन
करता है?

प्रश्नकताम : हम ही चलाते हैं।

दादाश्री : अरे , तम
ु कौन है चलानेवाला ? आपको संडास जाने की शन्क्त है ?
ककसी डॉक्टर को होगी?

(प. ४)

प्रश्नकताम : ककसी को नहीं है ।

दादाश्री : हमने बड़ौदा में फॉररन ररटनम सब डॉक्टसम को बल


ु ाया और बोला
कक, ‘तम्
ु हारे ककसी में संडास जाने की शन्क्त है ?’ तब वो कहने लगे, ‘अरे , हम
तो बहुत पेशसट को करा दे ते हैं।’ कफर हमने बताया कक भई, जब तम्
ु हारा संडास
बंद हो जाएगा, तब तम
ु को मालूम हो जाएगा कक वो हमारी शन्क्त नहीं िी, तब
दस
ू रे डॉक्टर की जरूर पड़ेगी। खद
ु को संडास जाने की भी स्वतंि शन्क्त नहीं है
और ये लोग कहते हैं कक ‘हम आया, हम गया, हम सो गया, हमने ये ककया, वो
ककया, हमने शादी की।’ शादी करनेवाला तू चक्कर कौन है ?! शादी तो हो गई
िी। पव
ू म योजना हो गई िी, उसका आज रूपक में आया। वो भी तम
ु ने नहीं
ककया, वो कुदरत ने ककया है । सब लोग ‘इगोइजम’ करता हैं कक ‘मैंने ये ककया,
मैंने वो ककया।’ लेककन तम
ु ने क्या ककया? संडास जाने की तो शन्क्त नहीं है । ये
सब कुदरत की शन्क्त है । बाकी भ्ांनत है । दस
ू री शन्क्त आपके पास करवाती है
और आप खद
ु मानते हैं कक ‘मैंने ये ककया।’

कमम, कममफल का साइसस!

दादाश्री : आपका सबकुछ कौन चलाता है ?

प्रश्नकताम : सब कमामनस
ु ार चल रहा है । हर आदमी कमम में बं्ा हुआ है ।

दादाश्री : वो कमम कौन करवाता है ?

प्रश्नकताम : आपका यह सवाल बहुत कदठन है। कई जसमों से कमम का चक्कर


चल रहा है । कमम की थ्योरी समझाइए।

दादाश्री : रात को ग्यारह बजे आपके घर कोई गेस्ट आए, चार-पााँच आदमी,
तो आप क्या बोलते हैं कक, ‘आइए, आइए, इ्र बैदठए’ और अंदर क्या चलता
है , ‘ये अभी कहााँ से आ गए, इतनी रात को’, ऐसा नहीं होता? आपको पसंद नहीं
हो तो भी आप खश
ु होते हो न?

प्रश्नकताम : नहीं, मन में उस पर गस्


ु सा आता है ।

दादाश्री : और बाहर से अच्छा रखते हो?! हााँ, तो वो ही कमम

(प. ५)

है । बाहर जो रखते हो, वो कमम नहीं है । अंदर जो होता है , वो ही कमम है ।


वो कॉज है , उसकी इफेक्ट आएगी। कभी ऐसा होता है कक तम्
ु हारी सास पर
गुस्सा आता है?

प्रश्नकताम : मन में तो ऐसा बहुत होता है ।


दादाश्री : वो ही कमम है । वो अंदर जो होता है न, वो ही कमम है । कमम को
दस
ू रा कोई नहीं दे ख सकता है । और जो दस
ू रा दे ख सकता है , तो वो कममफल
है । लेककन दनु नया के लोग तो, जो आाँख से ददखता है कक तम
ु ने गुस्सा ककया,
उसको ही कमम बोलते हैं। तम
ु ने गस्
ु सा ककया, इससलए तम
ु को सास ने मार ददया,
उसको ये लोग कमम का फल आया ऐसा बोलते हैं न।

प्रश्नकताम : इस जसम में जो भी राग-दवेष होते हैं, उसका फल इस जसम में


ही भुगतना पड़ता है या अगले जसम में भग
ु तना पड़ता है? जो भी हम अच्छे
कमम करते हैं, बुरे कमम करते हैं, उसका इस जसम में ही फल समलता है या अगले
जसम में फल समलता है ?

दादाश्री : ऐसा है , अच्छा ककया, बरु ा ककया, वो (स्िल


ू ) कमम है। उसका फल
तो इस जसम में ही भग
ु तना पड़ता है । सब लोग दे खते हैं कक इसने ये बरु ा कमम
ककया, ये चोरी ककया, इसने लुच्चाई ककया, इसने दगा ककया, वो सब (स्िल
ू ) कमम
है । न्जसको लोग दे ख सकते हैं, वो कमम का फल इ्र ही भग
ु तना पड़ता है । और
वो कमम करने के टाइम जो राग-दवेष उत्पसन होता है , वो अगले भव में भग
ु तना
पड़ता है । राग-दवेष है , वो सक्ष्
ू म बात है , वो ही योजना है । कफर योजना रूपक
में आ जाएगी, जो कागज पर है , नक्शा है, वो रूपक में आ जाएगी और रूपक
में जो आया वो (स्िल
ू ) कमम है । जो दस
ू रा आदमी दे ख सकता है कक इसने गाली
दी, इसने मारा, इसने पैसा नहीं ददया, वो सभी इ्र का इ्र ही भुगतने का।
दे खो, मैं तम
ु को बात बताऊाँ कक ये ककस तरह से चलता है !

एक तेरह साल का लड़का है । उसका फादर बोले कक, ‘तम


ु होटल में खाने
को क्यों जाता है ? तम्
ु हारी तत्रबयत खराब हो जाएगी। तम
ु को कुसंग समला है ,
तुमको ये करना अच्छा नहीं।’ ऐसा बाप बेटे को बहुत डााँटता
(प. ६)

है । लड़के को भी अंदर बहुत पश्चाताप हो जाता है और ननश्चय करता है


कक अभी होटल में नहीं जाऊाँगा। लेककन वो कुसंगवाला आदमी समलता है , तब
सब भूल जाता है या तो होटल दे खी कक होटल में घस
ू जाता है । वो उसकी मरजी
से नहीं करता। वो उसके कमम का उदय है । अपने लोग क्या बोलते हैं कक खराब
खाता है । अरे , ये क्या करे गा त्रबचारा! उसके कमम के उदय से ये त्रबचारे को होता
है । आप उसे बोलने का छोड़ मत दे ना। ड्रामेदटक बोलने का कक ‘बाबा, ऐसा मत
करो, तुम्हारी तत्रबयत खराब हो जाएगी।’ लेककन वहााँ तो सच्चा बोलता है कक
‘नालायक है, बदमाश है ’ और मारता है । ऐसा मत करना। इससे तो यू आर
अनकफट टू बी ए फादर। कफट तो होना चादहए न? वो असक्वासलफाइड फादर
एसड मदर क्या चलते हैं? क्वासलफाइड नहीं होना चादहए?

ये बच्चा जो खाता है , उसको अपने लोग बोलते हैं, कक ‘उसने कमम बााँ्ा।’
अपने लोगों को आगे की बात समझ में नहीं आती। सच में तो, बच्चे से उसकी
इच्छा के ववरुदघ हो जाता है । लेककन ये लोग उसको कमम बोलते हैं। उसका जो
फल आता है , उसको पेथचश, डडससटरर होता है , तो बोलते हैं कक ‘तुमने ये कमम
खराब ककया िा, कक होटल में खाना खाता िा, इससलए ऐसा हुआ।’ वो कमम का
पररणाम है । ये जसम में जो काम ककया, उसका पररणाम इ्र ही भग
ु तना पड़ता
है ।

प्रश्नकताम : इस जसम में हम नया कमम कैसे बााँ्ग


े े? जब कक हम वपछले
जसम का कमम भग
ु त रहे है , जो वपछे का दहसाब भग
ु त रहे है , वह कैसे नया आगे
बनाएगा?

दादाश्री : ये ‘सरदारजी’ है , वो वपछला कमम भग


ु त रहा है , उस वक्तअंदर नया
कमम बााँ् रहा है । आप खाना खाते हो, तो क्या बोलते हैं कक ‘बहुत अच्छा हुआ
है ’ और कफर अंदर पत्िर आया तो कफर आपको क्या होगा?
प्रश्नकताम : ददमाग कफर जाता है ।

दादाश्री : जो समठाई खाता है , वो वपछले जसम का है और अभी वो अच्छी


लगती है, खुश होकर खाता है , घरवालों पर खुश हो जाता

(प. ७)

है , इससे उसको राग होता है । और कफर खाते समय पत्िर ननकला तो


नाखुश हो जाता है । खुश और नाखुश होता है, उससे नये जसम का कमम बं्
गया। नहीं तो खाना खाने में कोई हरकत नहीं। हलवा खाओ, कुछ भी खाओ
लेककन खुश, नाखुश नहीं होना चादहए। जो हो वो खा सलया।

प्रश्नकताम : वो तो ठीक है , लेककन वो जो वपछला बुरा कमम भुगत रहा है ,


कफर नया जसम अच्छा कैसे होगा?

दादाश्री : दे खो, अभी कोई आदमी ने तम्


ु हारा अपमान ककया, तो वो वपछले
जसम का फल आया। उस अपमान को सहन कर ले, त्रबल्कुल शांत रहे और उस
वक्त ज्ञान हान्जर हो जाए कक ‘गाली दे ता है , वो तो ननसमत्त है और हमारा जो
कमम है , उसका ही फल दे ता है , उसमें उसका क्या गन
ु ाह है ।’ तो कफर आगे का
अच्छा कमम बााँ्ता है और दस
ू रा आदमी है, उसका अपमान हो गया तो वो दस
ू रे
को कुछ न कुछ अपमान कर दे ता है , इससे बरु ा कमम बााँ्ता है ।

प्रश्नकताम : आप तो लोगों को ज्ञान दे ते हैं, तो आप अच्छा कमम बााँ्ते हैं?

दादाश्री : हमको कभी कमम बं्ता ही नहीं है और हमने न्जसको ज्ञान ददया
है , वो भी कमम बााँ्ता नहीं है । लेककन जहााँ तक ज्ञान नहीं समला, वहााँ तक हमने
बताया, वैसा करना चादहए, इससे अच्छा फल समलता है। न्ज्र पाप बं्ता िा,
उ्र ही पुण्य बााँ्ता है और वो ्मम बोला जाता है ।
प्रश्नकताम : हम दान-पण्
ु य करते हैं, तो उसका फल अगले जसम में समले
इससलए करते हैं? ये सत्य है क्या?

दादाश्री : हााँ, सत्य है , अच्छा करोगे तो अच्छा फल समलेगा, बुरा करोगे तो


बुरा फल समलेगा। इसमें दस
ू रा ककसी का एब्स्रक्शन नहीं है । दस
ू रा कोई भगवान
या दस
ू रा कोई जीव तम्
ु हारे में एब्स्रक्ट नहीं कर सकता। आपका ही एब्स्रक्शन
है । आपका ही कमम का पररणाम है । आपने जो ककया है , ऐसा ही आपको समल
गया है । अच्छा-बरु ा इसका परू ा अिम ऐसा होता है , दे खो, आपने पााँच हजार रुपये
भगवान के मंददर के सलए ददए और ये भाई ने भी पााँच हजार रुपये मंददर के
सलए ददए। तो इसका

(प. ८)

फल अलग-अलग ही समलता है। आपके मन में बहुत इच्छा िी कक, ‘मैं


भगवान के मंददर में कुछ दाँ ,ू अपने पास पैसा है , तो सच्चे रस्ते में चले जाए,’
ऐसा करने का ववचार िा। और ये तम्
ु हारे समि ने पैसा ददया, बाद में वो क्या
बोलने लगा कक, ‘ये तो मेयर ने जबरदस्ती ककया, इसके सलए दे ना पडा, नहीं तो
मैं दे नव
े ाला ऐसा आदमी ही नहीं।’ तो इसका फल अच्छा नहीं समलता। जैसा
भाव बताता है , ऐसा ही फल समलता है । और आपको पूरेपूरा फल समलेगा।

प्रश्नकताम : नाम की लालच नहीं करनी चादहए।

दादाश्री : नाम वो तो फल है । आपने पााँच हजार रुपये अपनी कीनतम के सलए


ददए तो न्जतनी कीनतम समल गई, इतना फल कम हो गया। कीनतम नहीं समले तो
परू ा फल समल जाएगा। वहााँ तो चेक वीद इसटरे स्ट, बोनस परू ा समल जाएगा।
नहीं तो, आ्ा फल तो कीनतम में ही चले गया, कफर बोनस आ्ा हो जाएगा।
कीनतम तो आपको इ्र ही समल जाती है । सब लोग बोलते हैं कक, ‘ये सेठने पााँच
हजार ददया, पााँच हजार ददया’ और आप खश
ु हो जाते हैं। इससलए दान गुप्त
रखना चादहए। दे खादे खी में दान करे , स्प्ाम में आकर दान करे तो उसका पूरा
फल नहीं समलता। भगवान के यहााँ एक भी रुपया गुप्त रूप से ददया, और दस
ू रे
सब ने २० हजार दे कर तख्ती लगवाया, तो उसका उसको इ्र ही फल समल
गया। इ्र ही उसको यश, कीनतम, वाह वाह समल गई। उसका पेमसट तख्ती से
हो गया। कफर पेमसट बाकी नहीं रहा। नहीं तो एक रुपया दो, लेककन कोई जाने
नहीं, ऐसे दे ना। तख्ती नहीं लगाए, तो बहुत ऊाँचा फल समलता है। तख्ती तो
मंददरो में सारी ददवारों पर तख्ती ही लगी हुई है । इसका कोई मीननंग है ? उसको
कौन पढे गा? कोई बाप भी नहीं पढे गा।

दान याने दस
ू रे कोई भी जीव को सख
ु दे ना। मनष्ु य हो या दस
ू रा कोई भी
जानवर हो, वो सबको सख
ु दे ना, उसका नाम दान है । दस
ू रों को सुख ददया तो
उसके ररएक्शन में अपने को सुख समलता है और द:ु ख ददया तो कफर द:ु ख
आएगा। इस तरह आपको सुख-द:ु ख घर बैठे आएगा। कुछ न दे सके तो उसको
खाना दो, पुराने कपड़े दे ना। उससे उसको शांनत समलेगी। ककसी के मन को सुख
ददया तो अपने मन को सुख प्राप्त

(प. ९)

होगा, ये सब व्यवहार है । क्योंकक जीवमाि के अंदर भगवान है , इससलए


उसके बाहर के काम को हमें नहीं दे खना चादहए, उसको हेल्प करना चादहए।
उसको हेल्प की तो वो हे ल्प का पररणाम अपने यहााँ सुख आएगा और द:ु ख
ददया तो द:ु ख का पररणाम अपने यहााँ द:ु ख आएगा। इससलए रोज सुबह में
नक्की करना चादहए कक ‘मेरे मन-वचन-काया से कोई भी जीव को ककंथचत ् माि
द:ु ख न हो, न हो, न हो।’, और कोई अपने को द:ु ख दे जाए तो उसको अपने
बही खाता में जमा कर दे ना। नंदलालने दो गाली आपको ददया तो उसको नंदलाल
के खाते में जमा कर दे ना, क्योंकक वपछले अवतार में आपने उ्ार ददया िा।
आपने दो गाली ददया िा तो दो वापस आ गया। आज पााँच गाली कफर से दो
तो वो कफर से पााँच दे गा। अगर आपको ऐसा व्यापार करना पसंद नहीं है , तो
उ्ार दे ना बं् कर दो।
कोई नुकसान करता है, जेब काटता है, तो वो सब तुम्हारा ही पररणाम है ।
वो न्जतना ददया िा, उतना ही आता है। वो कायदे सर ही है सब, कायदे की बाहर
दनु नया में कुछ नहीं है । न्जम्मेदारी खुद की है । यू आर होल एसड सोल
ररस्पोन्ससबल फॉर यॉर लाइफ! वो एक लाइफ के सलए नहीं, अनंत अवतार की
लाइफ के सलए। इससलए लाइफ में बहुत न्जम्मेदारीपव
ू क
म रहना चादहए। फादर के
साि, मदर के साि, वाइफ के साि, बच्चों के साि, सबके साि न्जम्मेदारी है
आपकी। और ये सबके साि तुम्हारा क्या संबं् है ? घराक का व्यापारी के साि
संब्
ं रहता है , वैसा ही संब्
ं है ।

प्रश्नकताम : अभी मैं कोई कायम करूाँ तो उसका फल मुझे इसी जसम में
समलेगा या आगे के जसम में समलेगा?

दादाश्री : दे खो, न्जतना कमम आाँख से ददखता है , इसका फल तो इ्र ही ये


जसम में समलेगा और जो आाँख से ददखता नहीं, अंदर हो जाता है , वो कमम का
फल आगे के जसम में समलेगा।

एक आदमी मुन्स्लम है, उसको पााँच लड़के हैं और दो लड़की हैं। उसके पास
पैसा भी नहीं है । उसकी औरत ककसीददन बोलती है कक अपने बच्चों को गोस
खखलाओ। तो वो बोलता है कक ‘मेरे पास पैसा नहीं,

(प. १०)

कहााँ से लाऊाँ।’ तो कफर उसने ववचार ककया कक जंगल में दहरण होता है तो
एक दहरण को मारकर लाएगा और बच्चें को खखलाएगा। कफर उसने ऐसा एक
दहरण मारकर लाया और बच्चें को खखलाया। एक सशकारी आदमी िा। वो सशकार
का शौकवाला िा। वो जंगल में गया और उसने भी दहरण को मार ददया। कफर
खुश होने लगा कक दे खो, एक ही दफे में हमने इसको मार ददया।

वो मुन्स्लम को, बच्चों को खाने को नहीं िा, तो दहरण को मार ददया लेककन
उसको अंदर ये ठीक नहीं लगता है , तो उसका गन
ु ाह २०' है । १०० ' नॉममल है,
तो मुन्स्लम को २०' गन
ु ाह लगा और वो सशकारी शौक करता है , उसको १५० '
गन
ु ाह हो गया। कक्रया एक ही प्रकार की है , लेककन उसका गन
ु ाह अलग अलग
है ।

प्रश्नकताम : ककसी को द:ु ख दे करजो प्रससन होता है , वो १५० ' गन


ु ाह करता
है ?

दादाश्री : वो सशकारी खुश हुआ, इससे ५० ' ज़्यादा हो गया। खुश नहीं होता
तो १०० ' गन
ु ाह िा और ये उसने पश्चाताप ककया तो ८० ' कम हो गया। जो
कताम नहीं है , उसको गन
ु ाह लगता ही नहीं। जो कताम है , उसको ही गुनाह लगता
है ।

प्रश्नकताम : तो अनजाने में पाप हो गया हो तो वो पाप नहीं है ?

दादाश्री : नहीं, अनजाने में भी पाप तो इतना ही है । दे खो, वो अन्ग्न है,


उसमें एक बच्चे का हाि ऐसे गलती से पड़ा, तो कुछ फल दे ता है?

प्रश्नकताम : हााँ, जल जाता है ।

दादाश्री : फल तो सरीखा ही है। अनजाने करो या जानकर करो, फल तो


सरीखा ही है । लेककन उसके भग
ु तने का टाइम दहसाब अलग होता है । जब भुगतने
का टाइम आया तो न्जसने जान-बझ
ू कर ककया है , उसको जान-बझ
ू कर भुगतना
पडता है और न्जसने अनजाने ककया, उसको अनजाने भग
ु तना पडता है । तीन
साल का बच्चा है , उसकी मदर मर गई

(प. ११)

और बाईस साल का लड़का है , उसकी मदर मर गई तो मदर तो दोनों की


मर गई लेककन बच्चे को अनजानपव
ू क
म का फल समला और वो लड़के को
जानपव
ू क
म का फल समला।
प्रश्नकताम : आदमी इस जीवन में जो भी काम करता है , कुछ गलत भी
करता है तो उसका फल उसको कैसे समलता है?

दादाश्री : कोई आदमी चोरी करता है , इस पर भगवान को कोई हरकत नहीं


है । लेककन चोरी करने के टाइम उसको ऐसा लगे कक ‘इतना बुरा काम मेरे दहस्से
कहााँ से आया। मझ
ु े ऐसा काम नहीं चादहए, लेककन ये काम करना पडता है । मेरे
को ये काम करने का ववचार नहीं है , लेककन करना पडता है ।’ और अंदर के
भगवान के पास ऐसी प्रािमना करे तो उसको चोरी का फल नहीं समलता। जो
गुनाह ददखता है , वो गुनाह करने के टाइम अंदर क्या कर रहा है , वो दे खने की
जरूर है । वो टाइम ऐसी प्रािमना करता है , तो वो गन
ु ाह, गुनाह नहीं रहता है, वो
छूट जाता है । यू आर होल एसड सोल ररस्पोन्ससबल फॉर यॉर डीड्स! अभी जैसा
करे गा, वैसा ही फल आगे आ जाएगा। वो तम्
ु हारा ही कमम का फल है ।

प्रश्नकताम : अभी अच्छा ककया तो अगले जसम में अच्छा ही समलेगा या इस


जसम में अच्छा समलता है ?

दादाश्री : हा, इस जसम में भी अच्छा समलता है । आपको अभी उसका राइल
लेना है ? उसका राइल लेना हो तो एक आदमी को दो- चार िप्पड मारकर, दो-
चार गाली दे करघर जाना तो क्या होगा?

प्रश्नकताम : कुछ न कुछ तो ररजल्ट ननकलेगा।

दादाश्री : नहीं, कफर तो नींद भी नहीं आती है । न्जसको गाली ददया, िप्पड
मारा उसको तो नींद नहीं आती है , लेककन अपने को भी नींद नहीं आती है ।
अगर आप उसको कुछ न कुछ आनंद करवाकर घर गए तो आपको भी आनंद
होता है। दो प्रकार के फल समलते हैं। अच्छा ककया तो मीठा फल समलता है और
ककसी को बरु ा बोला तो उसका कड़वा फल समलता है । ककसी का बरु ा मत बोलो,
क्योंकक जीवमाि में भगवान ही है ।
(प. १२)

प्रश्नकताम : लेककन अच्छा ककया उसका फल इस जसम में तो नहीं समलता?

दादाश्री : वो अच्छा ककया न, उसका फल तो अभी ही समलता है। लेककन


अच्छा ककया, वो भी फल है । आप तो भ्ांनत से बोलते हैं कक ‘मैंने अच्छा ककया।’
वपछले जसम में अच्छा करने का ववचार ककया िा, उसके फल स्वरूप अभी अच्छा
करता है । जसम से पूरी न्जंदगी तक वो फल ही समलता है । आपको ५३ इयर हो
गया, अभी तक जो सववमस समला वो भी फल िा। बॉडी को ककतना सख
ु है ,
ककतना द:ु ख है , वो भी फल है । लड़की समली, औरत समली, सबकुछ समला, फादर-
मदर समले, मकान समला, वो सब फल ही समलता है ।

प्रश्नकताम : कमम का ही फल अगर समलता है , तो उनमें कुछ भी सस


ु ंगत तो
होना चादहए न?

दादाश्री : हााँ, सुसग


ं त ही। ददस वल्र्ड इज एवर रे ग्यल
ू र!

प्रश्नकताम : कमम यहााँ पर ही भग


ु तने पडते हैं न?

दादाश्री : हााँ, जो स्िल


ू कमम है , आाँखो से दे ख सके ऐसे कमम है , वो सब यहााँ
ही भुगतने पडते हैं और आाँखो से नहीं ददखे, वैसे सूक्ष्म कमम वो अगले जसम के
सलए है ।

प्रश्नकताम : कमम का उदय आता है तो उसमें तसमयाकार होने से भग


ु तना
पडता है या नहीं तसमयाकार होने से?

दादाश्री : उदय में जो तसमयाकार नहीं होता, वो ज्ञानी है । अज्ञानी उदय में
तसमयाकार हुए बगैर नहीं रह सकता, क्योंकक अज्ञानी का इतना बल नहीं है कक
उदय में तसमयाकार नहीं हो। हााँ, अज्ञानी कौन सी जगह पर तसमयाकार नहीं
होता है ? जो चीज खद
ु को पसंद नहीं, वहााँ तसमयाकार नहीं होता और ज़्यादा
पसंद है , वहााँ तसमयाकार हो जाता है । जो पसंद है , उसमें तसमयाकार नहीं हुआ
तो वो परु
ु षािम है । लेककन ये अज्ञानी को नहीं हो सकता।

ये सब लोग जो बोलते हैं कक, कमम बं्ते हैं। तो कमम बं्ते हैं,

(प. १३)

वो क्या है कक कमम चाजम होते हैं। चाजम में कताम होता है और डडस्चाजम में
भोक्ता होता है । हम ज्ञान दें गे कफर कताम नहीं रहे गा, खाली भोक्ता ही रहे गा।
कताम नहीं रहा तो सब चाजम बं् हो जाएगा। खाली डडस्चाजम ही रहेगा। ये साइसस
है । हमारे पास ये पूरे वल्र्ड का साइसस है । आप कौन है ? मैं कौन हूाँ? ये ककस
तरह चलता है? कौन चलाता है? वो सब साइसस है ।

प्रश्नकताम : आदमी मर जाता है , तब आत्मा और दे ह अलग हो जाता है , तो


कफर आत्मा दस
ू रे शरीर में जाती है या परमेश्वर में ववलीन हो जाती है ? अगर
दस
ू रे शरीर में जाती है तो क्या वह कमम की वजह से जाती है ?

दादाश्री : हााँ, दस
ू रा कोई नहीं, कमम ही ले जानेवाला है । वो कमम से पुदगल
भाव होता है । पद
ु गल भाव याने प्राकृत भाव, वो हल्का हो तो दे वगनत में,
ऊध्र्वगनत में ले जाता है , वो भारी हो तो अ्ोगनत में ले जाता है , नॉममल हो तो
इ्र ही रहता है , सज्जन में , मनष्ु य में रहता है । प्राकृत भाव परू ा हो गया तो
मोक्ष में चला जाता है।

प्रश्नकताम : कोई आदमी मर गया तो उसकी कोई ख्वादहश बाकी रह गई हो


तो वह ख्वादहश पूरी करने के सलए वह क्या कोसशश करता है?

दादाश्री : अपना ये ‘ज्ञान’ समल गया और उसको इच्छा बाकी रहती है तो


उसके सलए आगे का जसम एज फार एज पॉससबल तो दे वगनत का ही रहता है ।
नहीं तो कभी कोई आदमी बहुत सज्जन आदमी का, योगभ्ष्ट आदमी का अवतार
आता है , लेककन उसकी इच्छा परू ी होती है । इच्छा का सब सरकमस्टे न्सशयल
एववडेसस परू ा हो जाता है । मोक्ष में जाने के पहले जैसी इच्छा है , वैसे एक-दो
अवतार में सब चीज समल जाती है और सब इच्छा परू ी होने के बाद मोक्ष में
चले जाता है । जब सब इच्छा परू ी हो गई कक कफर मनष्ु य में आकर मोक्ष में
चला जाता है लेककन मनुष्य जसम इ्र ये क्षेि में नहीं आएगा, दस
ू रे क्षेि में
आएगा। इस क्षेि में कोई तीििंकर भगवान नहीं है । तीििंकर भगवान, पूणम
केवलज्ञानी होने चादहए तो वहााँ जसम होगा और उनके दशमन से ही मोक्ष समलेगा,
माि

(प. १४)

दशमन से ही! सन
ु ने का बाकी नहीं रहा कुछ, खुद को सब समझ में आ गया,
और सबकुछ तैयारी है तो माि दशमन, संपूणम वीतराग दशमन हो गए कक मोक्ष हो
जाएगा।

प्रश्नकताम : मनुष्यों की इच्छा दो तरह की हो सकती है , एक आध्यान्त्मक


और दस
ू री आथ्भौनतक। आध्यान्त्मक प्राप्त होने के बाद अगर आथ्भौनतक
वासनाएाँ कुछ रह गई हो तो उसे इसी जसम में पूरी कर दे तो अगले जसम का
सवाल ही नहीं रहता न?

दादाश्री : नहीं, वो परू ी हुई तो हुई, नहीं तो अगले जसम में परू ी होती है ।

प्रश्नकताम : इसी जसम में परू ी कर ले तो क्या बरु ा है ?

दादाश्री : वो परू ी हो सके ऐसा है ही नहीं, ऐसे एववडेसस समले ऐसा नहीं है ।
उसके सलए फुली एववडेसस चादहए, हन्सड्रड परसेसट एववडेसस चादहए।

प्रश्नकताम : अभी आध्यान्त्मक तो कर रहे है , लेककन उसी के साि साि


संसार की वासनाएाँ भी सब परू ी कर ले तो क्या बरु ा है?
दादाश्री : लेककन वो परू ी नहीं हो सकती न! वो पूरी नहीं होती है क्योंकक
इ्र ऐसा वो टाइम भी नहीं है , हन्सड्रड परसेसट एववडेसस समलता ही नहीं।
इससलए इ्र वासना पूरी नहीं होती और एक-दो अवतार तो बाकी रह जाता है ।
वो सब वासना, फुली सेदटस्फेक्शन से परू ी होती है और उसमें कफर वो वासना
से ऊब जाता है, तो कफर वो केवल शद
ु घात्मा में ही रहता है । वासना तो पूरी
होनी चादहए। वासना पूरी हुए त्रबना तो कोई एसरसस ही नहीं समलता। इ्र से
डडरे क्ट मोक्ष नहीं है । एक-दो अवतार है । बहुत अच्छा अवतार है , तब सब वासनाएाँ
परू ी हो जाती है । इ्र सब वासनाएाँ परू ी हो जाए ऐसा टाइमींग भी नहीं है और
क्षेि भी नहीं है । इ्र सच्चा प्रेमवाला, कम्प्लीट त्रबल्कुल प्रेमवाला आदमी नहीं
समलता है , तो कफर अपनी वासना कैसे परू ी हो जाएगी। इसके सलए एक-दो
अवतार बाकी रहते हैं और शुदघात्मा का लक्ष्य हो गया, बाद में ऐसी पुण्य बं्ती
है कक वासना परू ी हो जाए, ऐसी १०० ' की पुण्य बन जाती है ।

(प. १५)

कतामपद या आथितपद?

कमम तो मनष्ु य एक ही करता है , दस


ू रा कोई कमम करता ही नहीं। मनुष्यलोग
ननराथित है इससलए वो कमम करता है । दस
ू रे सब गाय, भैंस, पेड़, दे वलोग, नकमवाले
सब आथित है । वो कोई कमम करते ही नहीं। क्योंकक वो भगवान के आथित है
और ये मनुष्यलोग ननराथित है । भगवान मनुष्य की न्जम्मेदारी लेता ही नहीं।
दस
ू रे सब जीवों के सलए भगवान ने न्जम्मेदारी ली हुई है ।

प्रश्नकताम : मनुष्य खद
ु को पहचान जाए, कफर ननराथित नहीं है ।

दादाश्री : कफर तो भगवान ही हो गया। खुद की पहचान करने के सलए तैयारी


ककया वहााँ से ही भगवान होने की शरू
ु आत हो गई। वहााँ से अंश भगवान होता
है । दो अंश, तीन अंश, ऐसा कफर सवािंश भी हो जाता है । वो कफर ननराथित नहीं।
वो खद
ु ही भगवान है । लेककन सब मनुष्य लोग ननराथित है । वो खाने के सलए,
पैसे के सलए, मौज करने के सलए भगवान को भजते हैं। वो सब ननराथित है ।

मनुष्य ननराथित कैसे है , वह एक बात बताऊाँ? एक गााँव का बड़ा सेठ, एक


सा्ु महाराज और सेठ का कुत्ता, तीनो बहारगााँव जाते हैं। रास्ते में चार डाकू
समले। तो सेठ के मन में गभराट हो गया कक ‘मेरे पास दस हजार रुपये है , वह
ये लोग ले लेंगे और हमको मारें गे-पीटें ग,े तो मेरा क्या होगा?’ सेठ तो ननराथित
हो गया। सा्ु महाराज के पास कुछ नहीं िा, खाने का बतमन ही िा। लेककन
इसहें ववचार आ गया कक ये बतमन लट
ू जाएगा तो कोई हरकत नहीं, लेककन मझ
ु े
मारे गा तो मेरा पााँव टूट जाएगा, तो कफर मैं क्या करूाँगा? मेरा क्या होगा? और
जो कुत्ता िा, वो तो भौंकने लगा। वो डाकू ने एक दफे लकड़ी से मार ददया तो
थचल्लाते-थचल्लाते भाग गया, कफर वापस आ गया और भौंकने लगा। उसको मन
में ववचार नहीं आता है कक ‘मेरा क्या होगा?’ क्योंकक वो आथित है । वो दोनों,
सेठ और सा्ु महाराज के मन में ऐसा होता है कक ‘मेरा क्या होगा?’ मनष्ु य
लोग ही कताम है और वो ही कमम बााँ्ता है । दस
ू रा कोई जीव कताम नहीं है । वो
सब तो कमम में से छूटता है । और मनष्ु य लोग तो कमम बााँ्ता भी है और कमम
से छूटता भी है । चाजम और डडस्चाजम दोनों होता

(प. १६)

है । डडस्चाजम में कोई वरीज करने की जरूर नहीं है । चाजम में वरीज करने की
जरूरत है ।

ये फॉररनवाले सब सहज हैं, वो ननराथित नहीं है । वो आथित है । वो लोग


‘हम कताम है ’ ऐसा नहीं बोलता और दहसदस्
ु तान के लोग तो ‘कताम’ हो गए है ।
ननष्काम कमम से कममबं्?

गीता में िी कृष्ण भगवान ने सब रास्ते बताए है । ्मम का ही सब सलखा


है । लेककन मोक्ष में जाने का एक वाक्य ही सलखा है , ज़्यादा सलखा नहीं। ्मम
क्या करने का? ननष्काम कमम करने का, इसको ्मम बोला जाता है। लेककन कताम
है न? ननष्काम है , लेककन कताम तो है न?

प्रश्नकताम : तो कमम ही प्र्ान है न?

दादाश्री : लेककन पहले सकाम कमम करता है , अभी ननष्काम कमम करता है
और इसके फायदे में ्मम समलेगा, मन्ु क्त नहीं समलेगी। सकाम कमम करो या
ननष्काम कमम करो, लेककन मुन्क्त नहीं होगी। कमम करने से मुन्क्त नहीं होती।
मुन्क्त तो जहााँ भगवान प्रकट हो गए है , वहााँ कृपा हो जाए तो मुन्क्त होती है।

प्रश्नकताम : लेककन बगैर काम ककए भगवान की कृपा हो जाती है ?

दादाश्री : काम करे तो भी भगवान की कृपा नहीं होती और काम नहीं करे
तो भी भगवान की कृपा नहीं होती। कृपा तो जो भगवान को समला, उस पर
भगवान की कृपा उतर ही जाती है । काम करते हैं, वो अपने फायदे के सलए करने
का। ननष्काम कमम ककससलए करने का? कक इससे अपने को कोई तकलीफ नहीं
हो, आगे आग-े ्मम करने को समले, खाने-पीने का समले, सबकुछ समले और
भगवान की भन्क्त करने में कोई तकलीफ नहीं हो। ये ननष्काम कमम में फायदा
है लेककन यह सब कमम ही है और कमम है , वहााँ तक बं्न है ।

कृष्ण भगवानने बोला है कक न्स्ितप्रज्ञ हो गया कफर छूटता है और दस


ू रा
भी बोला है , वीतराग और ननभमय हो गया, कफर काम हो गया।

(प. १७)
ननष्काम कमम करो लेककन कमम का कताम तो आप ही है न? तो कताम है , वहााँ
तक मुन्क्त नहीं होती। मुन्क्त तो ‘मैं कताम हूाँ’ वो बात ही छूट जानी चादहए और
कौन कताम है , वो मालम
ू होना चादहए। हम सब बता दे ता है कक ‘करनेवाला कौन
है , तम
ु कौन है , ये सब कौन है ।’ सब लोग मानते हैं कक ‘हम ननष्काम कमम
करता है और हमको भगवान समल जाएगा।’ अरे , तम
ु कताम हो, वहााँ तक कैसे
भगवान समलेगा? अकताम हो जाओगे, तब भगवान समल जाएाँगे।

प्रश्नकताम : कृष्ण भगवान ने भी यद


ु घ ककया िा, कृष्ण भी तो अजन
ुम के
सारिी बने िे।

दादाश्री : हााँ, अजुन


म के सारिी बने िे लेककन क्यों सारिी बने िे? भगवान,
अजन
ुम को बताते िे कक, ‘दे ख भाई, तम
ु तो पााँच घोड़े की लगाम पकडते हो,
लेककन रि चलाना तम
ु नहीं जानते और लगाम को खींच खींच करते हो। कब
खींचता है ? जब चढान होती है , तब खींचता है और उतार पर ढीला छोड़ दे ता
है । लगाम खींच खींच करने से घोड़े के मह
ुाँ से खन
ू ननकलता है । इससलए तम

रि में बैठ जाओ, मैं तुम्हारा रि चलाऊाँगा।’

और तम्
ु हारा कौन चलाता है ? आप खुद चलाते हैं?

प्रश्नकताम : हम क्या चलाएाँग?


े चलानेवाला एक ही है ।

दादाश्री : कौन?

प्रश्नकताम : न्जसको परमवपता परमेश्वर हम मानते हैं।

दादाश्री : िीखंड-पड़
ू ी तम
ु खाते हैं और चलाता है वो?!!!

जहााँ तक आदमी कममयोग में है , वहााँ तक भगवान को स्वीकार करना पडेगा


कक हे भगवान, आपकी शन्क्त से मैं करता हूाँ। नहीं तो ‘मैं कताम हूाँ’ वो कहााँ तक
बोलता है ? जब कमाता है तो बोलता है , ‘मैंने कमाया’ लेककन घाटा होता है , तो
‘भगवानने घाटा कर ददया’ बोलेगा। ‘मेरे पाटमनर ने ककया’, नहीं तो ‘मेरे ग्रह ऐसे
है , भगवान रूठा है ,’ ऐसा सब गलत बोलता है । भगवान के सलए, ऐसा नहीं
बोलना चादहए। वो

(प. १८)

सब भगवान करता है । ऐसा समझकरननसमत्त रूप में काम करना चादहए।

कममयोग क्या है ? भगवान कताम है , मैं उसका ननसमत्त हूाँ। वो जैसा बताता है
ऐसा करने का। उसका अहं कार नहीं करने का। इसका नाम कममयोग। कममयोग
में तो, सब काम अंदर से बताता है , ऐसा ही आपको करने का। बाहर से कोई
डर नहीं रहना चादहए कक लोग क्या बोलेगें और क्या नहीं। सबकुछ भगवान के
नाम से ही करने का। हमें कुछ नहीं करने का। हमें तो ननसमत्त रूप से करने
का। हम तो भगवान के हथियार है , ऐसे काम करने का।

कमम, कमम चेतना, कममफल चेतना!

प्रश्नकताम : अपना कमम कौन सलखता है ?

दादाश्री : अपने कमम को सलखनेवाला कोई नहीं है । ये बड़े-बड़े कम्प्यूटर होते


हैं, वो जैसा ररजल्ट दे ता है , उसी तरह ऐसे ही तम
ु को कमम का फल समलता है ।

कमम तो क्या चीज है ? जमीन में बीज डालता है , उसको कमम बोला जाता है
और उसका जो फल आता है , वो कममफल है। कममफल दे ने का सब काम कम्प्यट
ू र
की माकफक मशीनरी करती है । कम्प्यट
ू र में जो भी कुछ डालता है , उसका जवाब
समल जाता है , वो कममफल है । इसमें भगवान कुछ नहीं करता।

प्रश्नकताम : वपछले जसमों के कमम से ऐसा सब होता है ?


दादाश्री : हााँ, तो दस
ू रा क्या है ? वपछले जसम का जो कमम है , उसका ये जसम
में फल समलता है । तम
ु को नहीं चादहए तो भी फल समलता है । उसका फल दो
प्रकार का रहता है । एक कड़वा रहता है और एक मीठा रहता है । िोड़े ददन कड़वा
फल समलता है तो वो आपको पसंद नहीं आता और मीठा फल आपको पसंद आ
जाता है । इससे दस
ू रा नया कमम बााँ्ता है , नये बीज डालता है और वपछला फल
खाता है ।

प्रश्नकताम : इस जसम में हम जो कमम करते हैं, वो अगले जसम में कफर से
आएाँग?

(प. १९)

दादाश्री : अभी जो फल खाता है , वो वपछले जसम का है और न्जसका बीज


डालते हैं, उसका फल अगले जसम में समल जाएगा। जब ककसी के साि क्रो् हो
जाता है , तब उसका बीज खराब पडता है । इसका जब फल आता है , तब अपने
को बहुत द:ु ख होता है।

प्रश्नकताम : वपछला जसम है या नहीं, वह ककस तरह मालम


ू होता है ?

दादाश्री : स्कूल में तम


ु पढते हैं, उसमें सभी लड़कों का पहला नंबर आता है
या ककसी एक का पहला नंबर आता है ?

प्रश्नकताम : ककसी एक का ही आता है ।

दादाश्री : कोई दस
ू रे भी नंबर आते हैं?

प्रश्नकताम : हााँ।

दादाश्री : ये चेसज क्यों है ? सब एक सरीखा क्यों आता नहीं?


प्रश्नकताम : जो न्जतना पढता है , उतने ही उसको माक्र्स समलते हैं।

दादाश्री : नहीं, कई लोग तो ज़्यादा पढते भी नहीं, तो भी फस्र्ट आता है


और कई लोग ज़्यादा पढते हैं तो भी फेल होते हैं।

प्रश्नकताम : उन लोगों का ददमाग अच्छा होगा।

दादाश्री : इन लोगों का ददमाग अलग अलग क्यों है ? वो वपछले जसम के


कमम के फल के मत
ु ात्रबक ददमाग है सब का।

प्रश्नकताम : जो वपछे का होता है, उसका ये जसम में कहने से क्या फायदा?
करनी-भरनी तो इसी जसम में ही होनी चादहए। ताकक हमको पता चले कक हमने
यह पाप ककया तो उसका यह फल भुगत रहे है ।

दादाश्री : हााँ, हााँ, वो भी है । लेककन ये कैसे है कक जो कॉजेज ककया है , उसका


फल क्या समलता है ? ये छोटा बच्चा होता है , वो ककसी को पत्िर मारता है , वो
उसकी न्जम्मेदारी है । लेककन उसको मालम
ू नहीं है कक इसकी क्या न्जम्मेदारी
है । वो पत्िर मारता है, वो वपछले कमम से

(प. २०)

ये करता है । कफर न्जसको पत्िर लग गया, वो आदमी ये बच्चे को मारे गा


तो ये पत्िर मार ददया, उसका फल समलता है ।

कोई आदमी ककसी के साि गस्


ु सा हो गया, कफर वो आदमी बोलता है कक,
‘भाई, मेरे को गुस्सा होने का ववचार नहीं िा, लेककन गस्
ु सा ऐसे ही हो गया।’
तो कफर ये गस्
ु सा ककसने ककया? वो आगे के कमम का पररणाम है । वो क्रो्
करता है , वह आगे के कॉजेज की इफेक्ट है। ये भ्ांनतवाले लोग क्या बोलते हैं ?
ये गस्
ु सा ककया, उसको कमम बोलते हैं और मार खाया, वो उसके कमम का फल
है , ऐसा बोलते हैं। कफर लोग क्या बोलते हैं कक ‘क्रो् मत करो।’ अरे , लेककन
गुस्सा करना अपने हाि में नहीं है न? वो आपको नहीं करने का ववचार है , तो
भी हो जाता है , उसका क्या इलाज? ये तो वपछले जसम के कमम का फल है ।

कौन चलाता है , वो समझ में आ गया न? पास होने का कक नहीं होने का,
वो आपके हाि में नहीं है । तो वो ‘चंदभ
ू ाई के हाि में है ?’ हााँ, िोडा ‘चंदभ
ू ाई’ के
हाि में है , ओसली २ ' और ९८ ' दस
ू रे के हाि में है । तुम्हारे ऊपर दस
ू रे की सत्ता
है , ऐसा मालम
ू नहीं होता है? ऐसा एक्सवपररयसस नहीं हुआ है ? तम्
ु हारा ववचार
है , आज जल्दी नींद लेना है , तो कफर नींद नहीं आती ऐसा नहीं होता?

प्रश्नकताम : होता है ।

दादाश्री : तम्
ु हारी तो मरजी है , लेककन तम
ु को कौन अंतराय करता है ? कोई
दस
ू री शन्क्त है , ऐसा लगता है न? कभी गस्
ु सा आ जाता है या नहीं, तुम्हारी
इच्छा गुस्सा नहीं करने का हो तो भी?

प्रश्नकताम : कफर भी हो जाता है ।

दादाश्री : वो गस्
ु सा के कक्रएटर कौन?

प्रश्नकताम : उसको हम आत्मा कहता है ।

दादाश्री : नहीं, आत्मा ऐसा नहीं करती। आत्मा तो भगवान है । वो क्रो् तो


तुम्हारी वीकनेस है। कमम दे खा है , आपने? ये आदमी कमम कर रहे है , ऐसा दे खा
है ? कोई आदमी कमम करता है , वो आपने दे खा है ?

(प. २१)

प्रश्नकताम : उसके एक्शन से अपने को मालम


ू पडता है ।

दादाश्री : कोई आदमी ककसी को मारता है तो आप क्या दे खता है ?


प्रश्नकताम : वह पाप करता है , वह कमम करता है ।

दादाश्री : ये वल्र्ड में कोई आदमी कमम दे ख सकता ही नहीं। कमम सूक्ष्म है।
वो जो दे खता है , वह कममचेतना दे खता है । कममचेतना ननश्चेतन चेतन है , वो
सच्चा चेतन नहीं है । कममचेतना आपकी समझ में आया?

प्रश्नकताम : कमम की डेकफननशन बताइए।

दादाश्री : जो आरोवपत भाव है , वो ही कमम है।

आपका नाम क्या है ?

प्रश्नकताम : चंदभ
ू ाई।

दादाश्री : आप, ‘मैं चंदभ


ू ाई हूाँ’ ऐसा मानते हैं, इससे आप परू ा ददन कमम ही
बााँ्ते हैं। रात को भी कमम बााँ्ते हैं। क्योंकक आप जो है , वो आप जानते नहीं
है और जो नहीं वो ही मानते हैं। चंदभ
ू ाई तो आपका नाम है माि और मानते
हैं कक, ‘मैं चंदभ
ू ाई हूाँ’। ये रोंग त्रबलीफ, ये स्िी का हसबसड हूाँ, ये दस
ू री रोंग
त्रबलीफ है । ये लड़के का फादर हूाँ, ये तीसरी रोंग त्रबलीफ है । ऐसी ककतनी सारी
रोंग त्रबलीफ है ? लेककन आप आत्मा हो गए, इसका ररयलाइज हो गया, कफर
आपको कमम नहीं होता है । ‘मैं चंदभ
ू ाई हूाँ’, ये आरोवपत भाव से कमम होता है ।
ऐसा कमम ककया, उसका फल दस
ू रे जसम में आता है, वो कममचेतना है । कममचेतना
अपने हाि में नहीं है , परसत्ता में है । कफर इ्र कममचेतना का फल आता है , वो
कममफल चेतना है । आप शेरबाजार में जाते हैं, वो कममचेतना का फल है । ्ं्े में
घाटा होता है , मन
ु ाफा होता है , वो भी कममचत
े ना का फल है । उसको बोलता है ,
‘मैंने ककया, मैंने कमाया’, तो कफर अंदर क्या कमम चाजम होता है । ‘मैं चंदभ
ू ाई हूाँ’
और ‘मैंने ये ककया’ उससे ही नया कमम होता है ।
(प. २२)

प्रश्नकताम : कमम में भी अच्छा-बुरा है ?

दादाश्री : अभी यहााँ सत्संग में आपको पण्


ु य का कमम होता है । आपको २४
घंटे कमम ही होता है और ये हमारे ‘महात्मा’, वो एक समनट भी नया कमम नहीं
बााँ्ते और आप तो बहुत पण्
ु यशाली (!) आदमी है कक नींद में भी कमम बााँ्ते
हैं।

प्रश्नकताम : ऐसा क्यों होता है ?

दादाश्री : सेल्फ का ररयलाइज करना चादहए। सेल्फ का ररयलाइज हो गया,


कफर कमम नहीं होता।

खुद को पहचानने का है । खुद को पहचान सलया, तो सब काम पूरा हो गया।


चौबीस तीििंकरों ने खद
ु को पहचान सलया िा। ये खद
ु नहीं है , जो ददखता है , जो
सन
ु ता है , वो सब खद
ु नहीं है । वो सब परसत्ता है । आपको परसत्ता लगती है ?
थचंता, उपा्ी कुछ नहीं लगता? वो सब परसत्ता है , अपनी खुद की स्वसत्ता नहीं
है । स्वसत्ता में ननरूपाथ् है । ननरं तर परमानंद है !! वो ही मोक्ष है !!! खद
ु का
आत्मा का अनभ
ु व हुआ, वो ही मोक्ष है । मोक्ष दस
ू री कोई चीज नहीं है ।

ये सब पुदगल की बाजी है । नरम-गरम, शाता-अशाता, जो कुछ होता है , वो


पद
ु गल को होता है । आत्मा को कुछ नहीं होता। आत्मा तो ऐसे ही रहता है । जो
अववनाशी है , वह खद
ु अपना आत्मा है । वो ववनाशी तत्वों को छोड दे ने का।
ववनाशी तत्वों का मासलक नहीं होने का, उसका अहं कार नहीं होना चादहए। ये
‘चंदभ
ू ाई’ जो कुछ करता है, उस पर आपको खाली दे खना है कक, ‘वह क्या कर
रहा है ।’ बस, ये ही अपना ्मम है , ‘ज्ञाता-दृष्टा’, और ‘चंदभ
ू ाई’ सब करनेवाला है ।
वो सामानयक करता है , प्रनतक्रमण करता है , स्वाध्याय करता है, सबकुछ करता
है , उस पर आप दे खनेवाला है । ननरं तर यही रहना चादहए बस। दस
ू रा कुछ नहीं।
वो ‘सामानयक’ ही है । अपना आत्मा शद
ु घ है । कभी अशद
ु घ होता ही नहीं है।
संसार में भी अशुदघ हुआ नहीं है और ये नाम, रूप सब भ्ांनत है ।

‘चंदभ
ू ाई’ क्या कर रहा है । उसकी तत्रबयत कैसी है , वो सब ‘आपको’ दे खना
है । अशाता हो जाए तो कफर हमें बोलने का कक,

(प. २३)

‘चंदभ
ू ाई, ‘हम’ तम्
ु हारे साि है, शांनत रखो, शांनत रखो’, ऐसा बोलने का।
दस
ू रा कोई काम करने का ही नहीं।

आप ‘खुद’ ही शद
ु घात्मा है और ये ‘चंदभ
ू ाई’ वो कमम का फल है , कममचेतना
है । इसमें से कफर फल समलता है , वो कममफल चेतना है । शुदघात्मा हो गए कफर
कुछ करने की जरूरत नहीं है । शद
ु घात्मा तो अकक्रय है । ‘हम कक्रया करता है , ये
मैंने ककया’ वो भ्ांनत है । ‘आप’ तो ज्ञाता-दृष्टा, परमानंदी है और चंदभ
ू ाई ‘ज्ञेय’
है और चलानेवाला ‘व्यवन्स्ित शन्क्त’ चलाती है । भगवान नहीं चलाते, आप खद

भी नहीं चलाते हैं। हमें चलाने की लगाम छोड दे ने की और कैसे चल रहा है ,
‘चंदभ
ू ाई’ क्या कर रहा है , वो ही ‘दे खने’ का है । ये ‘चंदभ
ू ाई’ है , वो अपना गत
अवतार (पूवज म सम) का कममफल है । वो हमें फल दे खने का है कक कमम क्या हुआ
है , कमम ककतने है और कममफल क्या है ? वो कममचत े ना भी ‘तम्
ु हारी’ नहीं और
कममफल चेतना भी तुम्हारी नहीं है । आप तो दे खनेवाला-जाननेवाला है ।

जीवन में मरन्जयात क्या?

प्रश्नकताम : आप्तवाणी में फरन्जयात (कम्पल्सरर) और मरन्जयात (वॉलसटरर)


की बात पढी। फरन्जयात तो समझ में आया लेककन मरन्जयात कौन सी चीज
है , वह समझ में नहीं आया।
दादाश्री : मरन्जयात कुछ है ही नहीं। मरन्जयात तो जब ‘पुरुष’ होता है , तब
मरन्जयात होता है । जहााँ तक परु
ु ष हुआ नहीं, वहााँ तक मरन्जयात ही नहीं है ।
आप पुरुष हुए है ?

प्रश्नकताम : यह आपका प्रश्न समझ में नहीं आया।

दादाश्री : आपको कौन चलाता है ? आपकी प्रकृनत आपको चलाती है । इससलए


आप पुरुष नहीं हुए है। प्रकृनत और परु
ु ष, दोनों जद
ु ा हो जाए, कफर ये प्रकृनत
अपनी फरन्जयात है और परु
ु ष मरन्जयात है । जब तम
ु परु
ु ष हो गए, तो मरन्जयात
में आ गए, लेककन प्रकृनत का भाग फरन्जयात रहे गा। भूख लगेगी, प्यास लगेगी,
ठं डी भी लगेगी, लेककन आप खद
ु मरन्जयात रहे गा।

(प. २४)

प्रश्नकताम : यहााँ सत्संग में है , वह फरन्जयात है या मरन्जयात?

दादाश्री : वो है तो फरन्जयात, लेककन ये मरन्जयातवाला फरन्जयात है । जो


पुरुष नहीं हुआ है , वो तो मरन्जयातवाला फरन्जयात से नहीं आया है । उसको तो
फरन्जयात ही है ।

ये वल्र्ड तो क्या है ? फरन्जयात है । आपका जसम हुआ वो भी फरन्जयात है ।


आपने परू ी न्जंदगी जो कुछ ककया है , वो भी सब फरन्जयात ककया है । आपने
शादी ककया, वो भी फरन्जयात ककया।

फरन्जयात को दनु नया क्या बोलती है? मरन्जयात बोलती है । मरन्जयात होता
तो तो कोई मरनेवाला है ही नहीं। लेककन मरना तो पडता है। जो अच्छा होता
है , वो भी फरन्जयात है और बुरा होता है वो भी फरन्जयात है । लेककन उसके
पीछे अपना भाव क्या है , वो ही तुम्हारा मरन्जयात है । आपने क्या हे तु से कर
ददया, वो ही तुम्हारा मरन्जयात है । भगवान तो वो ही दे खता है कक तुम्हारा हे तु
क्या िा। समझ गया न?

सब लोग ननयनत बोलता है कक जो होनेवाला है वो होगा, नहीं होनेवाला है


वो नहीं होगा। लेककन अकेली ननयनत कुछ नहीं कर सकती है । वो हर एक चीज
इक्ठा हो गई, साइन्सटकफक सरकमस्टे न्सशयल एववडेसस इक्ठे हो गए तो सब
होता है , पासलमयामेसटरी पदघनत से होता है ।

आप इ्र आए तो आपके मन में ऐसा होता है कक इ्र आए वह बहुत


अच्छा हुआ और दस
ू रे एक के मन में ऐसा होता है कक इ्र नहीं आया होता
तो अच्छा िा। वो दोनों पुरुषािम अलग है । तुम्हारे अंदर जो हे तु है , जो भाव है ,
वो ही परु
ु षािम है । इ्र आए वो सब फरन्जयात है , प्रारब्् है और प्रारब्् तो
दस
ू रे के हाि में है, तम्
ु हारे हाि में नहीं है।

आप जो कर सकते हैं, आपको जो भी करने की शन्क्त है लेककन आपको


ख्याल नहीं है और न्ज्र नहीं करने का है , जो परसत्ता में है , उ्र आप हाि
डालते हो। सजमन शन्क्त आपके हाि में है और ववसजमन शन्क्त आपके हाि में
नहीं है । जो सजमन आपने ककया है , इसका ववसजमन आपके हाि में नहीं है । ये
पूरी लाइफ ववसजमन ही हो रहा है माि। उसमें सजमन भी हो रहा है , वो आाँख से
नहीं ददखे ऐसा है ।

(प. २५)

प्रारब््-पुरुषािम का डडमाकेशन!

भगवान कुछ दे ते नहीं है । तम


ु जो करते हो, उसका फल तम
ु को समलता है ।
तम
ु अच्छा काम करे गा तो अच्छा फल समलेगा और बरु ा काम करे गा तो बरु ा
फल समलेगा। तम
ु ये भाई को गाली दोगे तो वो भी तम
ु को गाली दे गा और तम

गाली नहीं दोगे तो तम
ु को कोई गाली नहीं दे गा।
प्रश्नकताम : हम ककसी को गाली दे ता नहीं, कफर भी मुझे गाली दे ता है , ऐसा
क्यों?

दादाश्री : ये जसम के चोपडे का दहसाब नहीं ददखता है , तो वपछले जसम के


चोपडे का दहसाब रहता है । लेककन आपको ही गाली क्यों ददया?

प्रश्नकताम : वह ऐसी पररन्स्िनत है , ऐसे समझना है ?

दादाश्री : हााँ, पररन्स्िनत! हम उसको साइन्सटकफक सरकमस्टे न्सशयल एववडेसस


बोलते हैं। पररन्स्िनत ही ऐसी आ गई तो उसमें कोई खराबी मानने की जरूर
नहीं है । सच बात क्या है ? कोई आदमी ककसी को गाली दे ता ही नहीं। पररन्स्िनत
ही गाली दे ती है । ओसली साइन्सटकफक सरकमस्टे न्सशयल एववडेसस ही गाली दे ता
है । जेब कोई काटता ही नहीं, पररन्स्िनत ही जेब काटती है । लेककन आदमी को
पररन्स्िनत का ख्याल नहीं रहेगा। मैं दस
ू री बात बता दाँ ?

कोई आदमी ने तुम्हारी जेब काट ली और दो सौ रुपया ले गया। तो तुमको,


दनु नयावाले को ऐसा लगेगा कक ये बरु े आदमी ने मेरी जेब काट ली, वह गन
ु हगार
ही है । लेककन वो सच बात नहीं है । सच बात ये है कक तम्
ु हारा दो सौ रुपया
जाने के सलए तैयार हुआ, क्योंकक वह पैसा खोटा िा। तो इसके सलए वो आदमी
ननसमत्त माि हो गया। वो ननसमत्त है , तो आप उसे आशीवामद दे ना कक तम
ु ने हमें
ये कमम से छुडाया। कोई गाली दे तो भी वो ननसमत्त है। तम
ु को कमम से छुडवाता
है । आपको उसे आशीवामद दे ना चादहए। कोई पचास गाली दे लेककन वो इक्यावन
नहीं हो जाएगी। पचास हो गई कफर आप बोलोगे कक भाई, हमें ओर गाली दो,
तो वो नहीं दे गा। ये मेरी बात समझ में आई? ये वन सेसटे सस में सभी पजल
सोल्व हो जाते हैं। कोई गाली दे , पत्िर मारे तो भी वो ननसमत्त
(प. २६)

है और न्जम्मेदारी तम्
ु हारी है । क्योंकक तम
ु ने पहले ककया है , इसका आज
फल समला।

जो वपछे भावना की िी, आज ये उसका फल है । तो फल में आप क्या कर


सकते हो? ररजल्ट में आप कुछ कर सकते हो? आपने शादी की तो वो टाइम
टे सडर ननकाला िा कक औरत चादहए? नहीं, वो तो पहले भावना कर दी िी। सब
तैयार हो रहा है , कफर ररजल्ट आएगा। तो औरत समले, वो ररजल्ट है । बाद में
तुम बोलोगे कक हमको ये औरत पसंद नहीं। अरे भाई, ये तो तम्
ु हारा ही ररजल्ट
है । कफर तम
ु को पसंद नहीं, ऐसा कैसा बोलते हो? परीक्षा के ररजल्ट में नापास
हो गए, कफर इसमें पसंद-नापसंद करने की क्या जरूरत है ?

प्रश्नकताम : तो कफर परु


ु षािम जो है , वो क्या है ?

दादाश्री : सच्चा परु


ु षािम तो पुरुष हुआ उसके बाद होता है । प्रकृनत ररलेदटव
है , परु
ु ष ररयल है । पुरुष और प्रकृनत का डडमाकेशन लाइन हो गया कक ये प्रकृनत
है और ये परु
ु ष है , कफर सच्चा परु
ु षािम होता है । वहााँ तक परु
ु षािम नहीं है । वहााँ
तक भ्ााँत परु
ु षािम है । वो कैसे होता है कक आपने हजार रुपये दान ददया और
आप इगोइजम करें गे कक ‘हमने हजार रुपये दान में दे ददया’, कफर ये ही परु
ु षािम
है । ‘मैंने ददया’ बोलता है , उसको भ्ााँत पुरुषािम बोला जाता है । आपने ककसी को
गाली दी और आप पश्चात्ताप करो कक ‘ऐसा नहीं होना चादहए’, तो वो भी भ्ााँत
पुरुषािम हो गया। आपको ठीक लगता है , ऐसा शभ
ु है तो उसमें बोलो कक, ‘मैंने
ककया’ तो भ्ााँत परु
ु षािम होता है और जब अशुभ होता है , उसमें मौन रहो और
पश्चात्ताप करो तो भी पुरुषािम होता है । ‘मैंने ककया’ ऐसा सहज रूप से बोले तो
इगोइजम नहीं करता है , वो तो आगे के सलए पुरुषािम करता है । लेककन इगोइजम
नॉमेसलटी में रखना चादहए। अबव नॉममल इगोइजम इज पॉइजन एसड बीलो
नॉममल इगोइजम इज पॉइजन, वो परु
ु षािम नहीं हो सकता है ।
हमको बड़े-बड़े सादहत्यकार लोग पूछते हैं कक, ‘दादा भगवान के असीम जय
जयकार हो’ बोलते हैं, तो आपको कुछ नहीं होता है ? तो मैंने क्या बोला कक मेरे
को क्या जरूरत है ? हमारे अंदर इतना सख
ु है तो इसकी क्या जरूरत है ? ये तो
तुम्हारे फायदे के सलए बोलने का है ।

(प. २७)

हम तो सारे जगत ् के सशष्य है और लघत्त


ु म है । बाय ररलेदटव व्यू पोइसट,
मैं लघत्त
ु म हाँूू और बाय ररयल व्यू पोइसट, मैं गरु
ु त्तम हाँूू! ये बाहर सब लोग
है , वो ररलेदटव में गुरुतम होने गए। लेककन ररलेदटव में गुरुत्तम नहीं होना है ।
ररलेदटव में लघत्त
ु म होने का है , तो ररयल में ऑटोमैदटक गरु
ु तम पद समल
जाएगा।

भगवान की भन्क्त करते हैं, वो भी प्रारब्् है । हर एक चीज प्रारब्् ही है


और त्रबना परु
ु षािम प्रारब्् हो नहीं सकता। परु
ु षािम बीज स्वरूप है और उसका
जो पेड़ होता है , वो सब प्रारब्् है । पैसा समलता है , वो भी प्रारब्् है लेककन पैसा
दान में दे ने की भावना है , वो परु
ु षािम है । आप भगवान की भन्क्त करने के सलए
बैठे है और बाहर कोई आदमी आपको बुलाने आया। तो आपके मन में भन्क्त
जल्दी परू ा कर दे ने का ववचार हो गया। तो जल्दी परू ा करने का ववचार, वो
पुरुषािम है और भन्क्त ककया वो सब प्रारब्् है । अपने अंदर जो भाव है , वो ही
परु
ु षािम है । ये मन, बद
ु नघ, शरीर सब साि होकर जो होता है , वो सब प्रारब्् है ।
ये लाइन ऑफ डडमाकेशन प्रारब्् और पुरुषािम के बीच है , वो आप समझ गया
न?!

दे र से उठा, वो प्रारब्् है लेककन भगवान की भन्क्त करने का भाव ककया


िा, वो परु
ु षािम है । कोई जल्दी उठता है , वो भी प्रारब्् है । ककसी ने आपके ऊपर
उपकार ककया लेककन उसको तकलीफ आया तो तुम हेल्प करते हो वो प्रारब््
है , लेककन तम
ु ने ववचार ककया कक ‘उसको हेल्प करने की जरूरत नहीं है ’, तो वो
तुमने पुरुषािम गलत कर ददया। भाव को मत त्रबगाड़ो। भाव वो तो पुरुषािम है ।
ककसी ने आपको पैसा ददया है , तो पैसा दे नेवाले का भी प्रारब्् है , आपका भी
प्रारब्् है । लेककन आपने ववचार ककया कक ‘पैसा नहीं दें गे तो क्या करनेवाला है ’,
तो वो उल्टा परु
ु षािम हो गया। अगर तो उसको पैसा वापस दे ने का भाव है , तो
वो भी पुरुषािम है , सी्ा पुरुषािम है।

चोरी ककया वो भी प्रारब्् है , लेककन पश्चात्ताप हो गया, तो वो परु


ु षािम है ।
चोरी ककया कफर उसको आनंद हो गया तो वो भी प्रारब्् है , लेककन भाव है कक
‘ऐसा कभी नहीं करना चादहए’ तो वो पुरुषािम

(प. २८)

है । चोरी करता है लेककन हर दफे बोलता है कक ‘मर जाए तो भी ऐसे चोरी


नहीं करना चादहए’, तो वो परु
ु षािम है ।

प्रश्नकताम : गरीबों की घर जाकरसेवा की है , मफ्


ु त दवाईयााँ दी है । खुद
आध्यान्त्मक ववचार के है , कफर भी उसहें एक ऐसा शारररीक ददम हुआ है , उससे
उसहें बहुत तकलीफ होती है । वो क्यों? ये समझ में नहीं आता।

दादाश्री : आपने जो दे खा, उसने बहुत अच्छे अच्छे काम ककए, उसका फल
आगे के जसम में समलेगा। ये जसम में वपछले जसम का फल समला है ।

प्रश्नकताम : आगे की बात नहीं है ? आगे क्यों समलेगा? वाय नोट नाव
इटसेल्फ? अभी भूख लगती है , तो अभी खाता है । अभी खाया तो उसको संतोष
होता है ।

दादाश्री : ये द:ु ख आता है , वो वपछले जसम के बरु े कमम का फल है। अच्छा


काम करता है , वो भी वपछले जसम के अच्छे कमम का फल है । लेककन इसमें से
अगले जसम के सलए नया कमम बााँ्ता है । कमम का अिम क्या है कक एक लड़का
होटल में ही खाता है । आपने बोला कक होटल में मत खाव, वो लड़का भी समझता
है कक ये गलत हो रहा है , कफर भी रोज जाकरखाता है । क्यों? वो पीछे का कमम
का फल आया है और अभी खाता है , इसका फल उसको अभी समल जाएगा। वो
शरीर की खराबी हो जाएगी और इ्र ही फल समल जाएगा। लेककन आंतररक
कमम है , भावकमम कक ‘ये नहीं खाना चादहए’, तो उसका फल आगे समल जाएगा।
ऐसे दो प्रकार के कमम है। स्िल
ू कमम है , उसका फल इ्र ही समलता है । सक्ष्
ू म
कमम है , उसका फल अगले जसम में समलता है ।

प्रश्नकताम : आइ कासट त्रबलीव ददस!

दादाश्री : हााँ, आप नहीं मानो तो भी कायदे में तो रहना ही पडेगा न? मानेगा


तो भी कायदे में ही रहना पडेगा। इसमें आपका कुछ नहीं चलेगा! ककसी का कुछ
नहीं चलेगा। द वल्र्ड इज एवर रे ग्यल
ू र! यह वल्र्ड

(प. २९)

कोई ददन भलू चूकवाला हुआ नहीं है । यह वल्र्ड एवर रे ग्यल


ू र ही है और वो
आपके ही कमम का फल दे ता है । उसको रे ग्यल
ू ाररटी में कोई हरकत नहीं। वो
हमेशा सयायी ही रहता है । कुदरत सयायी ही है । वो कुदरत सयाय के बाहर कभी
जाती ही नहीं।

प्रत्येक इफेक्ट में कॉजेज ककसका?

दादाश्री : इस शरीर में ककतने साल रहना है ?

प्रश्नकताम : जब तक अपने एक्सपेक्टे शन है , फुलकफलमेसट है, वो पूरे नहीं


होते, वहााँ तक तो रहें गे न?

दादाश्री : वो दहसाब है , वो तो परू ा हो जाता है । लेककन नया क्या होता है


उसमें से?
प्रश्नकताम : एक के बाद एक नई वस्तु तो आती ही है ।

दादाश्री : नई वस्तु अच्छी आनी चादहए या बुरी?

प्रश्नकताम : अच्छी ही आनी चादहए।

दादाश्री : तम
ु को पसंद नहीं आए ऐसा खराब एक्सपेक्टे शन ककया है , वपछले
जसम में?

प्रश्नकताम : मालम
ू नहीं।

दादाश्री : तम
ु को पसंद नहीं आए ऐसा कभी आता है ?

प्रश्कताम : आता है ।

दादाश्री : जो तम
ु को पसंद नहीं आए वो क्यों आता है ? ककसी ने जबरदस्ती
ककया?

प्रश्नकताम : नहीं।

दादाश्री : तो कफर ककसके है ? तुम्हारे खद


ु के है या दस
ू रे के?

प्रश्नकताम : एक्सपेक्टे शन जो है , वो तो अपने खुद के ही रहते है ।

दादाश्री : हााँ, लेककन वह बुरे पसंद नहीं आते न? जो कुछ होता

(प. ३०)

है , वो अपना एक्सपेक्टे शन है , तो बरु े क्यों पसंद नहीं आते हैं?

प्रश्नकताम : अपने जो एक्सपेक्टे शन है , वो तो हम चाहते हैं कक अच्छे ही


रहने चादहए, लेककन ऐसे नहीं होता न?
दादाश्री : क्यों? उसमें तुम ‘खुद’ नहीं हो?

प्रश्नकताम : है ।

दादाश्री : तो कफर बदलाव क्यों नहीं करता? न्ज्र ससग्नेचर करता है , वो


सब समझकरआता है । तो जो ससग्नेचर ककया है , उसका दहसाब से एक्सपेक्टे शन
आता है । कफर अभी क्यों गलती ननकालता है ? अभी गलती क्यों लगती है ?

प्रश्नकताम : नहीं, गलती नहीं लगती। कुछ एक्सपेक्टे शन ऐसे होते हैं कक
अपनी तरफ से पूरा नहीं कर सकते हैं।

दादाश्री : तम्
ु हारा तो एक्सपेक्टे शन है , वो परू ा नहीं होता?

प्रश्नकताम : हााँ।

दादाश्री : एक्सपेक्टे शन दो प्रकार के है । वपछले जो एक्सपेक्टे शन है , वो पूरे


हो जाएाँगे और नया एक्सपेक्टे शन है , वो अभी परू ा नहीं हो जाएगा। जो नया है ,
वो परू ा नहीं होनेवाला। वो अगले जसम में आएगा। जो पुराना है, वो इ्र परू ा
होता है । पुराना एक्सपेक्टे शन है , वो इफेक्ट के रूप में है , न्जसका कॉजेज वपछले
जसम में ककया िा। ये जसम में उसकी इफेक्ट आ गई है , इफेक्ट में कुछ बदल
नहीं सकता है । अभी अंदर कॉजेज हो रहा है , उसकी अगले जसम में इफेक्ट
आएगी। तो कॉजेज अच्छा करना।

फ्रेसड का उसकी औरत के साि झगड़ा आपने दे खा तो आप सोचते हैं कक,


‘शादी करनी ही नहीं चादहए।’ तो अगले जसम में आपकी शादी नहीं होगी। ऐसे
कॉजेज नहीं करने का। जैसा दे खा है , ऐसा कॉजेज नहीं करने का। जो अच्छा है ,
उसका कॉजेज करो।

अच्छा कॉजेज कैसा होना चादहए, उसकी तलाश करो। मेरे को


(प. ३१)

ये भौनतक सुख चादहए, तो क्या कॉजेज करने का? उसके सलए हम कॉजेज
बताएाँगे कक ऐसे कॉजेज करना कक मन-वचन-काया से ककसी भी जीव को मारना
नहीं, द:ु ख नहीं दे ना। कफर आपको सुख ही समलेगा। ऐसे कॉजेज चादहए।

तुम्हारी बिम से डेि तक सब इफेक्ट ही है । इसमें से कॉजेज हो रहे है अभी।

प्रश्नकताम : यह रीबिम का कोई एसड (अंत) रहता है क्या?

दादाश्री : वो एसड तो होता है । कॉजेज बं् हो जाता है , कफर एसड हो जाता


है । जहााँ तक कॉजेज चालु है, वहााँ तक एसड नहीं होता है ।

प्रश्नकताम : कॉजेज बं् हो जाना चादहए ऐसे कहा तो अच्छे कॉजेज और बुरे
कॉजेज, दोनो बं् होने चादहए क्या?

दादाश्री : दोनो बं् करने का। कॉजेज होता है , इगोइजम से और इफेक्टस


से संसार चलता है । इगोइजम चला गया तो कॉजेज बं् हो जाएाँगे, तो संसार
भी बं् हो जाएगा। कफर परमानेसट, सनातन सुख समल जाता है । अभी जो सुख
समलता है , वो कन्ल्पत सुख है , आरोवपत सख
ु है और द:ु ख भी आरोवपत है ।
सच्चा द:ु ख भी नहीं है, सच्चा सुख भी नहीं है ।

‘सूक्ष्म शरीर’ क्या है ?

प्रश्नकताम : यह पन
ु जमसम सक्ष्
ू म शरीर लेता है क्या? स्िल
ू शरीर तो यहीं रह
जाता है न?

दादाश्री : हााँ, जो कफन्जकल बॉडी है , वह इ्र रह जाती है और सूक्ष्म शरीर


साि में जाता है । जहााँ तक वीकनेस नहीं गई, राग-दवेष नहीं गए, वहााँ तक
पुनजमसम है ।
प्रश्नकताम : ये मन, बुदनघ, थचत, अहं कार को ही सूक्ष्म शरीर बोलते हैं क्या?

दादाश्री : नहीं, वो सक्ष्


ू म शरीर नहीं है । सूक्ष्म शरीर तो इलेन्क्रकल

(प. ३२)

बॉडी को बोलते हैं। मन, बद


ु नघ, थचत, अहंकार - वो तो अंत:करण है ।
इलेन्क्रकल बॉडी हर एक दे ह में होती है , पेड़ में, पशु में, सब में होती है । जो
खाना खाता है, उसका पाचन होता है , वे इलेन्क्रकल बॉडी से ही होता है । मरते
समय आत्मा के साि कॉजल बॉडी और इलेन्क्रकल बॉडी जाती है। दस
ू रे जसम
में कॉजल बॉडी वो ही इफेन्क्टव बॉडी हो जाती है ।

प्रश्नकताम : कॉजल बॉडी का कारण आत्मा ही है न?

दादाश्री : नहीं, कॉजल बॉडी का कारण अज्ञानता है ।

प्रश्नकताम : ये इलेन्क्रकल बॉडी क्या है , वह कफर से जरा समझाइए।

दादाश्री : ये खाना खाता है , वो इलेन्क्रकल बॉडी से पचता है , उसका ब्लड


होता है , युररन हो जाता है , ये सेपरे शन उससे होता है , ये बाल होता है , नाखन

होते हैं, ये सब इलेन्क्रकल बॉडी से होता है । इसमें भगवान कुछ नहीं करता।

ये इलेन्क्रकल बॉडी जो पीछे मेरुदं ड है , उसमें तीन नाडडयााँ ननकलती है ।


इडा, पींगला और सष
ु म
ु णा। इसमें से इलेन्क्रससटी परू े बॉडी में जाती है । ये गस्
ु सा
भी उससेहोता है। ये इलेन्क्रकल बॉडी जीवमाि में कॉमन है । इलेन्क्रकल बॉडी
कहााँ तक रहती है? जहााँ तक मोक्ष नहीं होता है , वहााँ तक रहती है। इलेन्क्रकल
बॉडी से ये आाँख से ददख सकता है । बॉडी की मैग्नेदटक इफेक्ट है , वो भी
इलेन्क्रकल बॉडी से है। आपका ववचार नहीं हो, कफर भी आकषमण हो जाता है
न? ऐसा एक्सवपररयसस आपको न्जंदगी में कभी हुआ है या नहीं? एक दफे या
दो दफे हुआ है? ये मैग्नेदटक इफेक्ट है और आरोप करता है कक ‘मेरे को ऐसा
होता है ।’ ‘अरे भाई, तेरे ववचार में तो नहीं िा, कफर क्यों ससरपर ले लेता है ।’

शरीर का जो नूर, जो तेज होता है, वो चार प्रकार से प्राप्त होता है , १) कोई
बहुत लक्ष्मीवान हो और सुख-चैन में पडा रहे तो तेज आता है , वो लक्ष्मी का
नूर। २)जो कोई ्मम करे तो उसके आत्मा का प्रभाव पड़ता है , वो ्मम का नूर।
३) कोई बहुत पढता है, ररलेदटव ववदया प्राप्त

(प. ३३)

करता है , उसका तेज आता है , वो पांडडत्य का नूर। ४) ब्रह्मचयम का तेज


आता है , वो ब्रह्मचयम का नरू । ये चारों ही नरू सक्ष्
ू म शरीर से आते है ।

प्रश्नकताम : ये इलेन्क्रकल बॉडी का संचालन ‘व्यवन्स्ित शन्क्त’ करती है


क्या?

दादाश्री : इसका संचालन और व्यवन्स्ित शन्क्त का कोई लेना- दे ना नहीं


है । इलेन्क्रकल बॉडी उसके स्वभाव में ही है । त्रबल्कुल स्वतंि है । ककसी के भी
ताबे में नहीं है ।

इसडेसट ककया ककसने? जाना ककसने?

दादाश्री : ये खाना खाता है उसका इसडेसट कौन दे ता है ? ये इसडेसट कौन


भरता है? ये इसडेसट ककसका है ? तुम खद
ु है इसमें?

प्रश्नकताम : वो तो नहीं मालम


ू ।

दादाश्री : वो इसडेसट बॉडी करती है । ये बॉडी के परमाणु है , वो इसडेसट करते


हैं। इसमें मन की कोई जरूरत नहीं। मन की कभी जरूरत पड़ती है ? मन का
एववडेसस कब होता है , कक जब टे स्ट के सलए ख्टा-मीठ्ठा चादहए, तब वो मन
के सलए चादहए और आउट ऑफ टे स्ट है , तब बॉडी को चादहए। जो टे स्टवाला है,
वो मन का इसडेसट है और जो detasted है , वो बॉडी का इसडेसट है । इसमें आत्मा
का इसडेसट नहीं है ।

ये पानी पीता है , वो ककसको चादहए? वो भी बॉडी का इसडेसट है । और जो


दस
ू रा कुछ पीता है , कोल्ड डड्रंक, वो ककसका इसडेसट है? उसमें मन का और बॉडी
का - दोनों का इसडेसट है ।

तो इसडेसट ककसका है , वो सब मालम


ू हो जाए तो कफर उन सबका ऊपरी
कौन है , वो मालम
ू हो जाता है । इन सबको जाननेवाला है , वो खद
ु ही भगवान
है । सब लोग बोलते हैं, ‘हमने खाया’। वो गलत बात है ।

नींद लेता है वो ककसका इसडेसट है ?

प्रश्नकताम : शरीर का।

(प. ३४)

दादाश्री : हााँ, शरीर का है। लेककन इतना सब, पूरा इसडेसट शरीर का नहीं है ।
न्जतना टाइम पूरी नींद आती है , सच्ची नींद - गाढ ननद्रा आती है , इतना ही
इसडेसट बॉडी का है । दस
ू रा नींद है न, वो सब माइसड का है । न्जसको ऐशोआरामी
बोलते हैं। बॉडी को प्योर नींद चादहए, ऐशोआराम नहीं चादहए। ऐशोआराम मन
को चादहए।

ये सन
ु ता कौन है? माइसड सुनता है? ये ककसका इसडेसट है?

प्रश्नकताम : वैसे तो कहते हैं, कान सन


ु ते हैं।

दादाश्री : नहीं, लेककन इसडेसट ककसका है ? सन


ु ने की इच्छा ककसकी है?
प्रश्नकताम : मन की।

दादाश्री : वो इगोइजम की इच्छा है । न्जतने फोन आए वो सब इगोइजम ले


लेता है । मन को पकडने नहीं दे ता। वो सेठ ऐसा है कक दस
ू रे ककसी को हाि
नहीं लगाने दे ता। ‘चप
ू , तुम बैठ जाओ, हम पकड़ेगा’, ऐसा ही करता है ।

प्रश्नकताम : तो आाँख का इसडेसट कौन करता है ?

दादाश्री : आाँख का इसडेसट में मन का, अहंकार का और आाँख का अलग


अलग टाइम पर अलग अलग इसडेसट रहता है । लेककन कान का इसडेसट खास
करके अहं कार की आदत है ।

ये अंदर सब साइसस चल रहा है , इसमें सब दे खने का है , जानने का है । ये


अंदर की लैबोरे टरी में जो प्रयोग होता है , इतना सब प्रयोग को परू ा जान सलया,
वो खद
ु भगवान हो गया। पूरे वल्र्ड का प्रयोग नहीं, इतने प्रयोग में वल्र्ड का सब
प्रयोग आ जाता है और इसमें जैसा प्रयोग है , ऐसा सब जीव के अंदर प्रयोग है ।
एक अपना खद
ु का जान सलया कक सबका जान सलया और सबको जो जानता
है वो ही भगवान है ।

भगवान खाना भी कभी खाता नहीं, नींद भी नहीं लेता है । ये सब ववषय है


न, वो कोई ववषय का भोक्ता भगवान नहीं है। ववषय का भोक्ता

(प. ३५)

भगवान हो जाए तो भगवान को मरना पडेगा। ये मरण कौन लाता है ?


ववषय ही लाता है । ववषय नहीं होता, तो मरना ही नहीं होता।

ये बॉडी में सब साइसस ही है। लोग बॉडी में तलाश नहीं करता और बाहर
ऊपर चााँद पर दे खने को जाता है ? वहााँ रहें गे और सोसायटी कर लेंगे और वहााँ
शादी भी कर लेंगे। ऐसे लोग है !
ररयली स्पीकींग आदमी खाता ही नहीं। तुम्हारे डडनर में खाना कहााँ से आता
है ? होटल में से आता है ? ये खाना कहााँ से आया, उसकी तलाश तो करना चादहए
न?! तब आप कहते हैं, बीबीने ददया। लेककन बीबी कहााँ से लाई? बीबी कहे गी,
‘मैं तो व्यापारी के पास से लाई।’ व्यापारी बोलेगा, ‘हम तो ककसान के पास से
लाया।’ ककसान को पछ
ू े गें , ‘तम
ु कहााँ से लाया?’ तो वो कहेगा, ‘खेत में बीज
डालने से पैदा हुआ।’ इसका अंत ही समले ऐसा नहीं है । इसडेसटवाला इसडेसट
करता है , सप्लायर सप्लाय करता है । सप्लायर आप नहीं हो। आप तो दे खनेवाले
है कक, क्या खाया और क्या नहीं खाया, वो जाननेवाले तम
ु हो। तम
ु बोलते हो
कक, ‘मैंने खाया।’ अरे , तुम ये सब कहााँ से लाया? ये चावल कहााँ से लाया? ये
सब सब्जी कहााँ से लाया? तुमने बनाया? तम्
ु हारा बगीचा तो है नहीं, खेती तो है
नहीं, कफर कहााँ से लाया?! तो कहे, ‘खरीदकर लाया।’ तम
ु को पटे टो (आलु) खाने
का ववचार नहीं िा, लेककन आज क्यों खाना पडा? आज तुमको दस
ू रा सब्जीमाँगता
िा लेककन आलु की सब्जी आई, ऐसा नहीं होता है ? तम्
ु हारी इच्छा के मत
ु ात्रबक
सब खाने का आता है ? नहीं! अंदर न्जतना चादहए इतना ही अंदर जाता है , दस
ू रा
ज़्यादा जाता नहीं। अंदर न्जतना चादहए, न्जतना इसडेसट है , उससे एक परमाणु
भी ज़्यादा अंदर जाता नहीं है । वो ज़्यादा खा जाता है , बाद में बोलता है कक,
‘आज तो मैं बहुत खाया।’ वो भी वो खाता नहीं है । ये तो अंदर माँगता है , उतना
ही खाता है । खाना खाने की शन्क्त खद
ु की हो जाए तो कफर मरने का रहे गा ही
नहीं ने?! लेककन वो तो मर जाता है न?!

अंदर के परमाणु इसडेसट करते हैं और बाहर सब समल जाता है । ये बेबी को


तो आपको द्
ू दे ने का और खाना दे ने का। बाकी सब नैचरली समल जाता है ।
वैसे ही तम्
ु हारा सब चलता है , लेककन तम
ु इगोइजम

(प. ३६)

करते हो कक ‘मैंने ककया।’ तम


ु को आम खाने की इच्छा हुई तो बाहर से आम
समल जाएगा। न्जस गााँव का होगा वो ही गााँव का आकर समलेगा।
लोग क्या करते हैं कक अंदर की इच्छाओं को बंद करते हैं, तो सब त्रबगड़
जाता है । इससलए ये अंदर जो साइसस चल रहा है , उसको दे खा करो। इसमें कोई
कताम नहीं है। ये साइन्सटकफक है , ससदघांत है। ससदघांत, ससदघांत ही रहता है ।

आपको मेरी बात समझ में आती है न? ऐसा है कक हमारा दहसदी लैंन्ग्वज
पर काबू नहीं है , खाली समझने के सलए बोलता है । वो ५' दहसदी है और ९५'
दस
ू रा सब समक्सचर है। लेककन टी जब बनेगी, तब टी अच्छी बनेगी!

- जय िच्चचदानांद

नौ कलमें

ु े, ककिी भी दे ह्ािी जीवात्र्ा का ककांचचत्र्ात्र भी


१. हे दादा भगवान ! र्झ
अहर् ् न दभ
ु े (ठे ि न पहुुँचे), न दभ
ु ाया जाए या दभ
ु ाने के प्रतत अनर्
ु ोदना न
की जाए, ऐिी पिर् िच्क्त दीच्जए।

र्ुझे, ककिी दे ह्ािी जीवात्र्ा का ककांचचत्र्ात्र भी अहर् ् न दभ


ु े, ऐिी स्यादवाद
वाणी, स्यादवाद वतमन औि स्यादवाद र्नन किने की पिर् िच्क्त दीच्जए।

ु े, ककिी भी ्र्म का ककांचचत्र्ात्र भी प्रर्ाण न दभ


२. हे दादा भगवान ! र्झ ु े,
न दभ
ु ाया जाए या दभ
ु ाने के प्रतत अनर्
ु ोदना न की जाए, ऐिी पिर् िच्क्त
दीच्जए।

ु े, ककिी भी ्र्म का ककांचचत्र्ात्र भी प्रर्ाण न दभ


र्झ ु ाया जाए ऐिी स्यादवाद
वाणी, स्यादवाद वतमन औि स्यादवाद र्नन किने की पिर् िच्क्त दीच्जए।

३. हे दादा भगवान ! र्ुझे, ककिी भी दे ह्ािी उपदे िक िा्ु, िाध्वी या


आचायम का अवणमवाद, अपिा्, अववनय न किने की पिर् िच्क्त दीच्जए।
४. हे दादा भगवान ! र्ुझे, ककिी भी दे ह्ािी जीवात्र्ा के प्रतत ककांचचत्र्ात्र
भी अभाव, ततिस्काि कभी भी न ककया जाए, न किवाया जाए या कताम के प्रतत
अनर्
ु ोदना न की जाए, ऐिी पिर् िच्क्त दीच्जए।

५. हे दादा भगवान ! र्ुझे, ककिी भी दे ह्ािी जीवात्र्ा के िाथ कभी भी


कठोि भाषा, तांतीली भाषा न बोली जाए, न बल
ु वाई जाए या बोलने के प्रतत
अनर्
ु ोदना न की जाए, ऐिी पिर् िच्क्त दीच्जए।

कोई कठोि भाषा, तांतीली भाषा बोले तो र्झ


ु े, र्द
ृ -ु ऋजु भाषा बोलने की
िच्क्त दीच्जए।

६. हे दादा भगवान ! र्ुझे, ककिी भी दे ह्ािी जीवात्र्ा के प्रतत स्त्री, परु


ु ष
या नपि ां र्ें ककांचचत्र्ात्र भी ववषय-
ांु क, कोई भी सलांग्ािी हो, तो उिके िांब्
ववकाि िांबां्ी दोष, इचछाएुँ, चेष्टाएुँ या ववचाि िांब्
ां ी दोष न ककए जाएुँ, न किवाए
जाएुँ या कताम के प्रतत अनर्
ु ोदना न की जाए, ऐिी पिर् िच्क्त दीच्जए।

र्ुझे, तनिां ति तनववमकाि िहने की पिर् िच्क्त दीच्जए।

७. हे दादा भगवान ! र्झ


ु े, ककिी भी िि र्ें लब्ु ्ता न हो ऐिी िच्क्त
दीच्जए।

िर्ििी आहाि लेने की पिर् िच्क्त दीच्जए।

८. हे दादा भगवान ! र्ुझे, ककिी भी दे ह्ािी जीवात्र्ा का प्रत्यक्ष अथवा

ृ , ककिी का ककांचचत्र्ात्र भी अवणमवाद, अपिा्, अववनय


पिोक्ष, जीववत अथवा र्त
न ककया जाए, न किवाया जाए या कताम के प्रतत अनर्
ु ोदना न की जाएुँ, ऐिी
पिर् िच्क्त दीच्जए।
९. हे दादा भगवान ! र्ुझे, जगत कल्याण किने का तनसर्त्त बनने की पिर्
िच्क्त दीच्जए, िच्क्त दीच्जए, िच्क्त दीच्जए।

(इतना आप दादा भगवान िे र्ाुँगते िहें । यह प्रततददन यांत्रवत ् पढऩे की


चीज़ नहीां है , हृदय र्ें िखने की चीज़ है । यह प्रततददन उपयोगपव
ू क
म भावना किने
की चीज़ है । इतने पाठ र्ें तर्ार् िास्त्रों का िाि आ जाता है ।)

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