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Karma Ka Siddhanta
Karma Ka Siddhanta
कर्म का सिद्ाांत
मल
ू गज
ु राती संकलन : डॉ. नीरूबहन अमीन
अनुवाद : महात्मागण
www.dadabhagwan.org
Table of Contents
त्रिमंि
ननवेदन
संपादकीय
(प. १)
कमम का ससद्ांत
ररस्पोन्ससबल कौन?
(प. २)
कममब्
ं , कतमव्य से या कतामभाव से?
(प. ३)
(प. ४)
कमम, कममफल का साइसस!
(प. ५)
(प. ६)
(प. ७)
(प. ८)
(प. ९)
(प. १०)
(प. ११)
(प. १२)
(प. १३)
(प. १४)
(प. १५)
कतामपद या आथितपद?
(प. १६)
(प. १७)
(प. १८)
(प. १९)
(प. २०)
(प. २१)
(प. २२)
(प. २३)
(प. २४)
(प. २५)
प्रारब््-परु
ु षािम का डडमाकेशन!
(प. २६)
(प. २७)
(प. २८)
(प. २९)
(प. ३०)
(प. ३१)
‘सक्ष्
ू म शरीर’ क्या है?
(प. ३२)
(प. ३३)
(प. ३४)
(प. ३५)
(प. ३६)
नौ कलमें
त्रिमंि
नर्ो अरिहांताणां
नर्ो सिद्ाणां
नर्ो आयरियाणां
नर्ो उवज्झायाणां
िव्व पावप्पणािणो
र्ांगलाणां च िव्वेसिां,
ॐ नर्: सिवाय ॥ ३ ॥
जय िच्चचदानांद
‘व्यापार में ्मम होना चादहए, ्मम में व्यापार नहीं’, इस ससद्ांत से उसहोंने
परू ा जीवन त्रबताया। जीवन में कभी भी उसहोंने ककसीके पास से पैसा नहीं सलया
बन्ल्क अपनी कमाई से भक्तों को यािा करवाते िे।
ननवेदन
आप्तवाणी मख्
ु य ग्रंि है , जो दादा भगवान की िीमुख वाणी से, ओररन्जनल
वाणी से बना है , वो ही ग्रंि के सात ववभाजन ककए गए है , ताकी वाचक को पढऩे
में सुवव्ा हो।
ज्ञानी परू
ु ष की पहचान
जगत ् कताम कौन ?
कमम का ससद्ांत
अंत:करण का स्वरूप
यिािम ्मम
परम पज्
ू य दादािी दहसदी में बहुत कम बोलते िे, कभी दहसदी भाषी लोग
आ जाते िे, जो गुजराती नहीं समझ पाते िे, उनके सलए पज्
ू यिी दहसदी बोल
लेते िे, वो वाणी जो केसेटो में से रासस्क्राईब करके यह आप्तवाणी ग्रंि बना है !
वो ही आप्तवाणी ग्रंि को कफर से संकसलत करके यह सात छोटे ग्रंि बनाए है !
उनकी दहसदी ‘प्योर’ दहसदी नहीं है , कफर भी सन
ु नेवाले को उनका अंतर आशय
‘एक्जेक्ट’ समझ में आ जाता है । उनकी वाणी हृदयस्पशी, हृदयभेदी होने के
कारण जैसी ननकली, वैसी ही संकसलत करके प्रस्तत
ु की गई है ताकक सज्ञ
ु वाचक
को उनके ‘डडरे क्ट’ शब्द पहुाँचे। उनकी दहसदी यानी गुजराती, अंग्रेजी और दहसदी
का समिण। कफर भी सन
ु ने में, पढऩे में बहुत मीठी लगती है , नैचरु ल लगती है,
जीवंत लगती है । जो शब्द है , वह भाषाकीय द्रन्ष्ट से सी्े-सादे है ककसतु ‘ज्ञानी
पुरुष’ का दशमन ननरावरण है , अत: उनका प्रत्येक वचन आशयपूण,म मासममक,
मौसलक और सामनेवाले के व्यू पोइसट को एक्जेक्ट समझकर होने के कारण वह
िोता के दशमन को सुस्पष्ट खोल दे ता है और उसे ऊंचाई पर ले जाता है ।
जीवन में ऐसे ककतने ही अवसर आते हैं, जब अपने मन को समा्ान नहीं
समलता कक ऐसा क्यों हुआ? भक
ू ं प में ककतने सारे लोग मर गए, बद्री-केदार की
यािा करनेवाले बफममें दब गए, ननदोष बच्चा जसम लेते ही अपंग हो गया, ककसी
की एन्क्सडेसट में मत्ृ यु हो गई... तो यह ककस वजह से? कफर ये कमम का फल
है , ए सा समा्ान कर लेते हैं। लेककन कमम क्या है ? कमम का फल कैसे भुगतना
पड़ता है ? इसका रहस्य समझ में नहीं आता।
वे लोग कमम ककसे कहते हैं ? नौकरी-्ं्ा, सत्कायम, ्मम, पूजा-पाठ वगैरह
परू े ददन जो भी करता हैं, उसे कमम कहते हैं। लेककन ज्ञाननयों की दृन्ष्ट से यह
कमम नहीं है , बन्ल्क कममफल है । जो पााँच इन्सद्रयों से अनभ
ु व में आते हैं, वे सब
कममफल हैं। और कमम का बीज तो बहुत सूक्ष्म है । वह, अज्ञानता से ‘मैंने ककया’,
ऐसे कतामभाव से कमम चान्जिंग होता हैं।
कोई व्यन्क्त क्रो् करता है लेककन भीतर में पश्चाताप करता है , और कोई
व्यन्क्त क्रो् करके भीतर में खुश होता है कक मैंने क्रो् ककया वह ठीक ही
ककया, तभी यह स्
ु रे गा। ज्ञानी की दृन्ष्ट में क्रो् करना तो पूवम कमम का फल
है , लेककन आज पुन: नये कममबीज भीतर में डाल दे ता है । भीतर में खुशी होती
है तो बरु ा बीज डाल ददया और पश्चाताप हो तो नया बीज अच्छा डाल रहा है
और जो क्रो् करता है , वह सूक्ष्म कमम है , उसके फलस्वरूप कोई उसे मारे गा-
पीटे गा। उस कममफल का पररणाम यहीं पर समल जाता है । आज जो क्रो् हुआ,
वह पव
ू क
म मम का फल आया है ।
कमम का ‘चान्जिंग’ कैसे होता है ? कतामभाव से कमम ‘चाजम’ होते हैं। कतामभाव
ककसे कहते हैं? कर रहा है असय कोई और ‘मैंने ककया’ ऐसा मान लेते हैं, वही
कतामभाव है ।
कतामभाव क्यों हो जाता है ? अहं कार से। अहंकार ककसे कहते हैं? जो ‘खुद’
नहीं है कफर भी वहााँ ‘मैं हूाँ’ ऐसा मान लेता है , ‘खद
ु ’ करता नहीं, कफर भी ‘मैंने
ककया’, ऐसा मान लेता है , वही अहं कार है । ‘खुद’ दे ह स्वरूप नहीं है, वाणी स्वरूप
नहीं है, मन स्वरूप नहीं है , नाम स्वरूप नहीं है , कफर भी यह सब ‘मैं ही हूाँ’ खुद
ऐसा मान लेता है , वही अहं कार है । यानी अज्ञानता से अहं कार खड़ा हो गया है ।
और उसी से कममबं्न ननरं तर होता ही रहता है ।
ज्ञानी परु
ु ष समल जाएाँ तो अज्ञानता ‘फ्रैक्चर’ कर दे ते हैं और ‘खद
ु कौन है ’,
उसका ज्ञान दे ते हैं और ‘यह सब कौन कर रहा है ’, वह ज्ञान भी दे ते हैं। उसके
बाद अहं कार चला जाता है । नया कमम चाजम होना बंद हो जाता है , कफर डडस्चाजम
कमम ही बाकी रहते हैं। उनका समभाव से ननकाल करने के बाद मन्ु क्त हो जाती
है ।
इस पन्ु स्तका में, परम पूज्य दादा भगवान ने अपने ज्ञान में अवलोकन करके
दनु नया को जो कमम का ससद्ांत ददया वह प्रस्तुत ककया गया हैं। वह दादाजी
की वाणी में संकसलत हुआ है । वह बहुत संक्षक्षप्त में है , कफर भी वाचक को कमम
का ससद्ांत समझ में आ जाएगा और जीवन के प्रत्येक प्रसंग में समा्ान
प्राप्त होगा।
- डॉ. नीरूबहन अर्ीन के जय िच्चचदानांद
(प. १)
कर्म का सिद्ाांत
ररस्पोन्ससबल कौन?
प्रश्नकताम : जब दस
ू री शन्क्त हमसे करवाती है तो ये कमम जो हम गलत
करते हैं, उस कमम के बं्न मुझे क्यों होते हैं? मुझसे तो करवाया गया िा?
‘आप चंदभ
ू ाई है ’, वो गलत बात नहीं है। वो सच बात है। लेककन ररलेदटव
सच है , नोट ररयल। और आप ररयल हैं। ररलेदटव सापेक्ष हैं और ररयल ननरपेक्ष
है । आप ‘खुद’ ननरपेक्ष हैं और बोलते हो, कक ‘मैं चंदभ
ू ाई हूाँ’। कफर आप ‘ररलेदटव’
हो गए। ऑल ददज ररलेदटव आर टे म्परे री एडजस्टमेस्स। कोई चोरी करता है ,
दान दे ता है , वो सब भी परसत्ता करवाती है और वो खुद ऐसा मानता है कक ‘मैंने
ककया’ तो कफर इसकी गन
ु हगारी लगती है । पूरी न्जंदगी में आप जो भी कुछ
करते हो, उसका न्जम्मेदार कोई नहीं है । जसम से लेकर ‘लास्ट स्टे शन’ तक जो
कुछ ककया, उसकी न्जम्मेदारी तम्
ु हारी है ही नहीं। लेककन तुम खुद ही न्जम्मेदारी
लेते
(प. २)
हो कक, ‘ये मैंने ककया, ये मैंने ककया, मैंने खराब ककया, मैंने अच्छा ककया।’
ऐसे खद
ु ही जोखखमदारी लेता है।
प्रश्नकताम : कोई िीमंत होता है , कोई गरीब होता है, कोई अनपढ होता है ,
ऐसा उसका होना, उसका कारण क्या है ?
(प. ३)
‘आप’ अगर ‘आत्मा’ हो गए, तो कफर ‘आप’ कमम के कताम नहीं है । कफर
आपको कमम लगता ही नहीं। आप ‘मैं चंदभू ाई हूाँ’ बोलकर करते हैं। हकीकत में
आप चंदभ
ू ाई है ही नहीं, इससलए कमम लगता है ।
प्रश्नकताम : चंदभ
ू ाई तो लोगों के सलए है लेककन आत्मा जो होती है , वो कमम
करवाती है न?
दादाश्री : नहीं। आत्मा कुछ नहीं करवाता, वो तो इसमें हाि ही नहीं डालती।
ओसली साइन्सटकफक सरकमस्टे न्सशयल एववडेसस सब करता है । आत्मा, वही
भगवान है । आप आत्मा को वपछानो (पहचानो) तो कफर आप भगवान हो गए,
लेककन आपको आत्मा की पहचान हुई नहीं है न! इसके सलए आत्मा का ज्ञान
होना चादहए।
दादाश्री : नहीं, वो लाखों जसम स्टडी करने से भी नहीं होता है। ‘ज्ञानी परु
ु ष’
समले तो आपको आत्मा की पहचान हो जाएगी।
‘मैंने ककया’ बोला कक कममब्
ं हो जाता है । ‘ये मैंने ककया’, इसमें ‘इगोइजम’
है और ‘इगोइजम’ से कमम बं्ता है । जहााँ इगोइजम ही नहीं, ‘मैंने ककया’ ऐसा
नहीं है , वहााँ कमम नहीं होता। खाना भी चंदभ
ू ाई खाता है , आप खद
ु नहीं खाते।
सब बोलते हैं कक, ‘मैंने खाया’, वो सब गलत बात है ।
प्रश्नकताम : वो चंदभ
ू ाई सब करता है?
दादाश्री : अरे , तम
ु कौन है चलानेवाला ? आपको संडास जाने की शन्क्त है ?
ककसी डॉक्टर को होगी?
(प. ४)
प्रश्नकताम : सब कमामनस
ु ार चल रहा है । हर आदमी कमम में बं्ा हुआ है ।
दादाश्री : रात को ग्यारह बजे आपके घर कोई गेस्ट आए, चार-पााँच आदमी,
तो आप क्या बोलते हैं कक, ‘आइए, आइए, इ्र बैदठए’ और अंदर क्या चलता
है , ‘ये अभी कहााँ से आ गए, इतनी रात को’, ऐसा नहीं होता? आपको पसंद नहीं
हो तो भी आप खश
ु होते हो न?
(प. ५)
ये बच्चा जो खाता है , उसको अपने लोग बोलते हैं, कक ‘उसने कमम बााँ्ा।’
अपने लोगों को आगे की बात समझ में नहीं आती। सच में तो, बच्चे से उसकी
इच्छा के ववरुदघ हो जाता है । लेककन ये लोग उसको कमम बोलते हैं। उसका जो
फल आता है , उसको पेथचश, डडससटरर होता है , तो बोलते हैं कक ‘तुमने ये कमम
खराब ककया िा, कक होटल में खाना खाता िा, इससलए ऐसा हुआ।’ वो कमम का
पररणाम है । ये जसम में जो काम ककया, उसका पररणाम इ्र ही भग
ु तना पड़ता
है ।
(प. ७)
दादाश्री : हमको कभी कमम बं्ता ही नहीं है और हमने न्जसको ज्ञान ददया
है , वो भी कमम बााँ्ता नहीं है । लेककन जहााँ तक ज्ञान नहीं समला, वहााँ तक हमने
बताया, वैसा करना चादहए, इससे अच्छा फल समलता है। न्ज्र पाप बं्ता िा,
उ्र ही पुण्य बााँ्ता है और वो ्मम बोला जाता है ।
प्रश्नकताम : हम दान-पण्
ु य करते हैं, तो उसका फल अगले जसम में समले
इससलए करते हैं? ये सत्य है क्या?
(प. ८)
दान याने दस
ू रे कोई भी जीव को सख
ु दे ना। मनष्ु य हो या दस
ू रा कोई भी
जानवर हो, वो सबको सख
ु दे ना, उसका नाम दान है । दस
ू रों को सुख ददया तो
उसके ररएक्शन में अपने को सुख समलता है और द:ु ख ददया तो कफर द:ु ख
आएगा। इस तरह आपको सुख-द:ु ख घर बैठे आएगा। कुछ न दे सके तो उसको
खाना दो, पुराने कपड़े दे ना। उससे उसको शांनत समलेगी। ककसी के मन को सुख
ददया तो अपने मन को सुख प्राप्त
(प. ९)
प्रश्नकताम : अभी मैं कोई कायम करूाँ तो उसका फल मुझे इसी जसम में
समलेगा या आगे के जसम में समलेगा?
एक आदमी मुन्स्लम है, उसको पााँच लड़के हैं और दो लड़की हैं। उसके पास
पैसा भी नहीं है । उसकी औरत ककसीददन बोलती है कक अपने बच्चों को गोस
खखलाओ। तो वो बोलता है कक ‘मेरे पास पैसा नहीं,
(प. १०)
कहााँ से लाऊाँ।’ तो कफर उसने ववचार ककया कक जंगल में दहरण होता है तो
एक दहरण को मारकर लाएगा और बच्चें को खखलाएगा। कफर उसने ऐसा एक
दहरण मारकर लाया और बच्चें को खखलाया। एक सशकारी आदमी िा। वो सशकार
का शौकवाला िा। वो जंगल में गया और उसने भी दहरण को मार ददया। कफर
खुश होने लगा कक दे खो, एक ही दफे में हमने इसको मार ददया।
वो मुन्स्लम को, बच्चों को खाने को नहीं िा, तो दहरण को मार ददया लेककन
उसको अंदर ये ठीक नहीं लगता है , तो उसका गन
ु ाह २०' है । १०० ' नॉममल है,
तो मुन्स्लम को २०' गन
ु ाह लगा और वो सशकारी शौक करता है , उसको १५० '
गन
ु ाह हो गया। कक्रया एक ही प्रकार की है , लेककन उसका गन
ु ाह अलग अलग
है ।
दादाश्री : वो सशकारी खुश हुआ, इससे ५० ' ज़्यादा हो गया। खुश नहीं होता
तो १०० ' गन
ु ाह िा और ये उसने पश्चाताप ककया तो ८० ' कम हो गया। जो
कताम नहीं है , उसको गन
ु ाह लगता ही नहीं। जो कताम है , उसको ही गुनाह लगता
है ।
(प. ११)
दादाश्री : हा, इस जसम में भी अच्छा समलता है । आपको अभी उसका राइल
लेना है ? उसका राइल लेना हो तो एक आदमी को दो- चार िप्पड मारकर, दो-
चार गाली दे करघर जाना तो क्या होगा?
दादाश्री : नहीं, कफर तो नींद भी नहीं आती है । न्जसको गाली ददया, िप्पड
मारा उसको तो नींद नहीं आती है , लेककन अपने को भी नींद नहीं आती है ।
अगर आप उसको कुछ न कुछ आनंद करवाकर घर गए तो आपको भी आनंद
होता है। दो प्रकार के फल समलते हैं। अच्छा ककया तो मीठा फल समलता है और
ककसी को बरु ा बोला तो उसका कड़वा फल समलता है । ककसी का बरु ा मत बोलो,
क्योंकक जीवमाि में भगवान ही है ।
(प. १२)
दादाश्री : उदय में जो तसमयाकार नहीं होता, वो ज्ञानी है । अज्ञानी उदय में
तसमयाकार हुए बगैर नहीं रह सकता, क्योंकक अज्ञानी का इतना बल नहीं है कक
उदय में तसमयाकार नहीं हो। हााँ, अज्ञानी कौन सी जगह पर तसमयाकार नहीं
होता है ? जो चीज खद
ु को पसंद नहीं, वहााँ तसमयाकार नहीं होता और ज़्यादा
पसंद है , वहााँ तसमयाकार हो जाता है । जो पसंद है , उसमें तसमयाकार नहीं हुआ
तो वो परु
ु षािम है । लेककन ये अज्ञानी को नहीं हो सकता।
ये सब लोग जो बोलते हैं कक, कमम बं्ते हैं। तो कमम बं्ते हैं,
(प. १३)
वो क्या है कक कमम चाजम होते हैं। चाजम में कताम होता है और डडस्चाजम में
भोक्ता होता है । हम ज्ञान दें गे कफर कताम नहीं रहे गा, खाली भोक्ता ही रहे गा।
कताम नहीं रहा तो सब चाजम बं् हो जाएगा। खाली डडस्चाजम ही रहेगा। ये साइसस
है । हमारे पास ये पूरे वल्र्ड का साइसस है । आप कौन है ? मैं कौन हूाँ? ये ककस
तरह चलता है? कौन चलाता है? वो सब साइसस है ।
दादाश्री : हााँ, दस
ू रा कोई नहीं, कमम ही ले जानेवाला है । वो कमम से पुदगल
भाव होता है । पद
ु गल भाव याने प्राकृत भाव, वो हल्का हो तो दे वगनत में,
ऊध्र्वगनत में ले जाता है , वो भारी हो तो अ्ोगनत में ले जाता है , नॉममल हो तो
इ्र ही रहता है , सज्जन में , मनष्ु य में रहता है । प्राकृत भाव परू ा हो गया तो
मोक्ष में चला जाता है।
(प. १४)
दशमन से ही! सन
ु ने का बाकी नहीं रहा कुछ, खुद को सब समझ में आ गया,
और सबकुछ तैयारी है तो माि दशमन, संपूणम वीतराग दशमन हो गए कक मोक्ष हो
जाएगा।
दादाश्री : नहीं, वो परू ी हुई तो हुई, नहीं तो अगले जसम में परू ी होती है ।
दादाश्री : वो परू ी हो सके ऐसा है ही नहीं, ऐसे एववडेसस समले ऐसा नहीं है ।
उसके सलए फुली एववडेसस चादहए, हन्सड्रड परसेसट एववडेसस चादहए।
(प. १५)
कतामपद या आथितपद?
प्रश्नकताम : मनुष्य खद
ु को पहचान जाए, कफर ननराथित नहीं है ।
(प. १६)
है । डडस्चाजम में कोई वरीज करने की जरूर नहीं है । चाजम में वरीज करने की
जरूरत है ।
दादाश्री : लेककन पहले सकाम कमम करता है , अभी ननष्काम कमम करता है
और इसके फायदे में ्मम समलेगा, मन्ु क्त नहीं समलेगी। सकाम कमम करो या
ननष्काम कमम करो, लेककन मुन्क्त नहीं होगी। कमम करने से मुन्क्त नहीं होती।
मुन्क्त तो जहााँ भगवान प्रकट हो गए है , वहााँ कृपा हो जाए तो मुन्क्त होती है।
दादाश्री : काम करे तो भी भगवान की कृपा नहीं होती और काम नहीं करे
तो भी भगवान की कृपा नहीं होती। कृपा तो जो भगवान को समला, उस पर
भगवान की कृपा उतर ही जाती है । काम करते हैं, वो अपने फायदे के सलए करने
का। ननष्काम कमम ककससलए करने का? कक इससे अपने को कोई तकलीफ नहीं
हो, आगे आग-े ्मम करने को समले, खाने-पीने का समले, सबकुछ समले और
भगवान की भन्क्त करने में कोई तकलीफ नहीं हो। ये ननष्काम कमम में फायदा
है लेककन यह सब कमम ही है और कमम है , वहााँ तक बं्न है ।
(प. १७)
ननष्काम कमम करो लेककन कमम का कताम तो आप ही है न? तो कताम है , वहााँ
तक मुन्क्त नहीं होती। मुन्क्त तो ‘मैं कताम हूाँ’ वो बात ही छूट जानी चादहए और
कौन कताम है , वो मालम
ू होना चादहए। हम सब बता दे ता है कक ‘करनेवाला कौन
है , तम
ु कौन है , ये सब कौन है ।’ सब लोग मानते हैं कक ‘हम ननष्काम कमम
करता है और हमको भगवान समल जाएगा।’ अरे , तम
ु कताम हो, वहााँ तक कैसे
भगवान समलेगा? अकताम हो जाओगे, तब भगवान समल जाएाँगे।
और तम्
ु हारा कौन चलाता है ? आप खुद चलाते हैं?
दादाश्री : कौन?
दादाश्री : िीखंड-पड़
ू ी तम
ु खाते हैं और चलाता है वो?!!!
(प. १८)
कममयोग क्या है ? भगवान कताम है , मैं उसका ननसमत्त हूाँ। वो जैसा बताता है
ऐसा करने का। उसका अहं कार नहीं करने का। इसका नाम कममयोग। कममयोग
में तो, सब काम अंदर से बताता है , ऐसा ही आपको करने का। बाहर से कोई
डर नहीं रहना चादहए कक लोग क्या बोलेगें और क्या नहीं। सबकुछ भगवान के
नाम से ही करने का। हमें कुछ नहीं करने का। हमें तो ननसमत्त रूप से करने
का। हम तो भगवान के हथियार है , ऐसे काम करने का।
कमम तो क्या चीज है ? जमीन में बीज डालता है , उसको कमम बोला जाता है
और उसका जो फल आता है , वो कममफल है। कममफल दे ने का सब काम कम्प्यट
ू र
की माकफक मशीनरी करती है । कम्प्यट
ू र में जो भी कुछ डालता है , उसका जवाब
समल जाता है , वो कममफल है । इसमें भगवान कुछ नहीं करता।
प्रश्नकताम : इस जसम में हम जो कमम करते हैं, वो अगले जसम में कफर से
आएाँग?
े
(प. १९)
दादाश्री : कोई दस
ू रे भी नंबर आते हैं?
प्रश्नकताम : हााँ।
प्रश्नकताम : जो वपछे का होता है, उसका ये जसम में कहने से क्या फायदा?
करनी-भरनी तो इसी जसम में ही होनी चादहए। ताकक हमको पता चले कक हमने
यह पाप ककया तो उसका यह फल भुगत रहे है ।
(प. २०)
कौन चलाता है , वो समझ में आ गया न? पास होने का कक नहीं होने का,
वो आपके हाि में नहीं है । तो वो ‘चंदभ
ू ाई के हाि में है ?’ हााँ, िोडा ‘चंदभ
ू ाई’ के
हाि में है , ओसली २ ' और ९८ ' दस
ू रे के हाि में है । तुम्हारे ऊपर दस
ू रे की सत्ता
है , ऐसा मालम
ू नहीं होता है? ऐसा एक्सवपररयसस नहीं हुआ है ? तम्
ु हारा ववचार
है , आज जल्दी नींद लेना है , तो कफर नींद नहीं आती ऐसा नहीं होता?
प्रश्नकताम : होता है ।
दादाश्री : तम्
ु हारी तो मरजी है , लेककन तम
ु को कौन अंतराय करता है ? कोई
दस
ू री शन्क्त है , ऐसा लगता है न? कभी गस्
ु सा आ जाता है या नहीं, तुम्हारी
इच्छा गुस्सा नहीं करने का हो तो भी?
दादाश्री : वो गस्
ु सा के कक्रएटर कौन?
(प. २१)
दादाश्री : ये वल्र्ड में कोई आदमी कमम दे ख सकता ही नहीं। कमम सूक्ष्म है।
वो जो दे खता है , वह कममचेतना दे खता है । कममचेतना ननश्चेतन चेतन है , वो
सच्चा चेतन नहीं है । कममचेतना आपकी समझ में आया?
प्रश्नकताम : चंदभ
ू ाई।
‘चंदभ
ू ाई’ क्या कर रहा है । उसकी तत्रबयत कैसी है , वो सब ‘आपको’ दे खना
है । अशाता हो जाए तो कफर हमें बोलने का कक,
(प. २३)
‘चंदभ
ू ाई, ‘हम’ तम्
ु हारे साि है, शांनत रखो, शांनत रखो’, ऐसा बोलने का।
दस
ू रा कोई काम करने का ही नहीं।
आप ‘खुद’ ही शद
ु घात्मा है और ये ‘चंदभ
ू ाई’ वो कमम का फल है , कममचेतना
है । इसमें से कफर फल समलता है , वो कममफल चेतना है । शुदघात्मा हो गए कफर
कुछ करने की जरूरत नहीं है । शद
ु घात्मा तो अकक्रय है । ‘हम कक्रया करता है , ये
मैंने ककया’ वो भ्ांनत है । ‘आप’ तो ज्ञाता-दृष्टा, परमानंदी है और चंदभ
ू ाई ‘ज्ञेय’
है और चलानेवाला ‘व्यवन्स्ित शन्क्त’ चलाती है । भगवान नहीं चलाते, आप खद
ु
भी नहीं चलाते हैं। हमें चलाने की लगाम छोड दे ने की और कैसे चल रहा है ,
‘चंदभ
ू ाई’ क्या कर रहा है , वो ही ‘दे खने’ का है । ये ‘चंदभ
ू ाई’ है , वो अपना गत
अवतार (पूवज म सम) का कममफल है । वो हमें फल दे खने का है कक कमम क्या हुआ
है , कमम ककतने है और कममफल क्या है ? वो कममचत े ना भी ‘तम्
ु हारी’ नहीं और
कममफल चेतना भी तुम्हारी नहीं है । आप तो दे खनेवाला-जाननेवाला है ।
(प. २४)
फरन्जयात को दनु नया क्या बोलती है? मरन्जयात बोलती है । मरन्जयात होता
तो तो कोई मरनेवाला है ही नहीं। लेककन मरना तो पडता है। जो अच्छा होता
है , वो भी फरन्जयात है और बुरा होता है वो भी फरन्जयात है । लेककन उसके
पीछे अपना भाव क्या है , वो ही तुम्हारा मरन्जयात है । आपने क्या हे तु से कर
ददया, वो ही तुम्हारा मरन्जयात है । भगवान तो वो ही दे खता है कक तुम्हारा हे तु
क्या िा। समझ गया न?
(प. २५)
प्रारब््-पुरुषािम का डडमाकेशन!
है और न्जम्मेदारी तम्
ु हारी है । क्योंकक तम
ु ने पहले ककया है , इसका आज
फल समला।
(प. २७)
(प. २८)
दादाश्री : आपने जो दे खा, उसने बहुत अच्छे अच्छे काम ककए, उसका फल
आगे के जसम में समलेगा। ये जसम में वपछले जसम का फल समला है ।
प्रश्नकताम : आगे की बात नहीं है ? आगे क्यों समलेगा? वाय नोट नाव
इटसेल्फ? अभी भूख लगती है , तो अभी खाता है । अभी खाया तो उसको संतोष
होता है ।
(प. २९)
दादाश्री : तम
ु को पसंद नहीं आए ऐसा खराब एक्सपेक्टे शन ककया है , वपछले
जसम में?
प्रश्नकताम : मालम
ू नहीं।
दादाश्री : तम
ु को पसंद नहीं आए ऐसा कभी आता है ?
प्रश्कताम : आता है ।
दादाश्री : जो तम
ु को पसंद नहीं आए वो क्यों आता है ? ककसी ने जबरदस्ती
ककया?
प्रश्नकताम : नहीं।
(प. ३०)
प्रश्नकताम : है ।
प्रश्नकताम : नहीं, गलती नहीं लगती। कुछ एक्सपेक्टे शन ऐसे होते हैं कक
अपनी तरफ से पूरा नहीं कर सकते हैं।
दादाश्री : तम्
ु हारा तो एक्सपेक्टे शन है , वो परू ा नहीं होता?
प्रश्नकताम : हााँ।
ये भौनतक सुख चादहए, तो क्या कॉजेज करने का? उसके सलए हम कॉजेज
बताएाँगे कक ऐसे कॉजेज करना कक मन-वचन-काया से ककसी भी जीव को मारना
नहीं, द:ु ख नहीं दे ना। कफर आपको सुख ही समलेगा। ऐसे कॉजेज चादहए।
प्रश्नकताम : कॉजेज बं् हो जाना चादहए ऐसे कहा तो अच्छे कॉजेज और बुरे
कॉजेज, दोनो बं् होने चादहए क्या?
प्रश्नकताम : यह पन
ु जमसम सक्ष्
ू म शरीर लेता है क्या? स्िल
ू शरीर तो यहीं रह
जाता है न?
(प. ३२)
शरीर का जो नूर, जो तेज होता है, वो चार प्रकार से प्राप्त होता है , १) कोई
बहुत लक्ष्मीवान हो और सुख-चैन में पडा रहे तो तेज आता है , वो लक्ष्मी का
नूर। २)जो कोई ्मम करे तो उसके आत्मा का प्रभाव पड़ता है , वो ्मम का नूर।
३) कोई बहुत पढता है, ररलेदटव ववदया प्राप्त
(प. ३३)
(प. ३४)
दादाश्री : हााँ, शरीर का है। लेककन इतना सब, पूरा इसडेसट शरीर का नहीं है ।
न्जतना टाइम पूरी नींद आती है , सच्ची नींद - गाढ ननद्रा आती है , इतना ही
इसडेसट बॉडी का है । दस
ू रा नींद है न, वो सब माइसड का है । न्जसको ऐशोआरामी
बोलते हैं। बॉडी को प्योर नींद चादहए, ऐशोआराम नहीं चादहए। ऐशोआराम मन
को चादहए।
ये सन
ु ता कौन है? माइसड सुनता है? ये ककसका इसडेसट है?
(प. ३५)
ये बॉडी में सब साइसस ही है। लोग बॉडी में तलाश नहीं करता और बाहर
ऊपर चााँद पर दे खने को जाता है ? वहााँ रहें गे और सोसायटी कर लेंगे और वहााँ
शादी भी कर लेंगे। ऐसे लोग है !
ररयली स्पीकींग आदमी खाता ही नहीं। तुम्हारे डडनर में खाना कहााँ से आता
है ? होटल में से आता है ? ये खाना कहााँ से आया, उसकी तलाश तो करना चादहए
न?! तब आप कहते हैं, बीबीने ददया। लेककन बीबी कहााँ से लाई? बीबी कहे गी,
‘मैं तो व्यापारी के पास से लाई।’ व्यापारी बोलेगा, ‘हम तो ककसान के पास से
लाया।’ ककसान को पछ
ू े गें , ‘तम
ु कहााँ से लाया?’ तो वो कहेगा, ‘खेत में बीज
डालने से पैदा हुआ।’ इसका अंत ही समले ऐसा नहीं है । इसडेसटवाला इसडेसट
करता है , सप्लायर सप्लाय करता है । सप्लायर आप नहीं हो। आप तो दे खनेवाले
है कक, क्या खाया और क्या नहीं खाया, वो जाननेवाले तम
ु हो। तम
ु बोलते हो
कक, ‘मैंने खाया।’ अरे , तुम ये सब कहााँ से लाया? ये चावल कहााँ से लाया? ये
सब सब्जी कहााँ से लाया? तुमने बनाया? तम्
ु हारा बगीचा तो है नहीं, खेती तो है
नहीं, कफर कहााँ से लाया?! तो कहे, ‘खरीदकर लाया।’ तम
ु को पटे टो (आलु) खाने
का ववचार नहीं िा, लेककन आज क्यों खाना पडा? आज तुमको दस
ू रा सब्जीमाँगता
िा लेककन आलु की सब्जी आई, ऐसा नहीं होता है ? तम्
ु हारी इच्छा के मत
ु ात्रबक
सब खाने का आता है ? नहीं! अंदर न्जतना चादहए इतना ही अंदर जाता है , दस
ू रा
ज़्यादा जाता नहीं। अंदर न्जतना चादहए, न्जतना इसडेसट है , उससे एक परमाणु
भी ज़्यादा अंदर जाता नहीं है । वो ज़्यादा खा जाता है , बाद में बोलता है कक,
‘आज तो मैं बहुत खाया।’ वो भी वो खाता नहीं है । ये तो अंदर माँगता है , उतना
ही खाता है । खाना खाने की शन्क्त खद
ु की हो जाए तो कफर मरने का रहे गा ही
नहीं ने?! लेककन वो तो मर जाता है न?!
(प. ३६)
आपको मेरी बात समझ में आती है न? ऐसा है कक हमारा दहसदी लैंन्ग्वज
पर काबू नहीं है , खाली समझने के सलए बोलता है । वो ५' दहसदी है और ९५'
दस
ू रा सब समक्सचर है। लेककन टी जब बनेगी, तब टी अच्छी बनेगी!
- जय िच्चचदानांद
नौ कलमें