पौराणिक काल विभाजन

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दनु िया के अलग-अलग मािव सभ्यताओं को जाििे-समझिे का जो साक्ष्य उपलब्ध है वह उि सभ्यताओं के

पौराणिक धमम ग्रंथ और पुरातात्ववक खुदाई में ममले साक्ष्य हैं। भारत में उपलब्ध पौराणिक ग्रंथ वेद, पुर ाि, रामायि
और महाभारत इवयादद दक्षिि एमिया के उपमहाद्वीप को पूरी तरह प्रनतनिधधवव िहीं करता है । जबकक उपरोक्त
धमम ग्रंथों की ववमिष्टता यह है कक दक्षिि एमियाई उपमहाद्वीपीय सभ्यता के विम व्यवस्था वाले वगम समाज का
प्रनतनिधधवव जरूर करता है। इससे यह जादहर होता है कक प्राचीि काल में विम व्यवस्था वाले वगम समाज के अत्स्तवव
में आिे से पहले एक दस
ू रे से जुदा अिेक जिजानतयां स्वतंत्र रूप से इस उपमहाद्वीप में ववकमसत हो रही थीं।
जिजानतयों की भाषा, पूजा-पाठ, टोिे-टोटके (प्राकृनतक ित्क्तयों के मिािे के तौर तरीके) और ईश्वर की
पररकल्पिा भी एक दस
ू रे से मभन्ि रही होगी। भारत के प्राचीि काल के इनतहास को समझिे में हमारी परे िािी यह है
कक हम दक्षिि एमियाई उपमहाद्वीपीय सभ्यता के ववकास को वेद और पौराणिक महाकाव्य रामायि और
महाभारत के आईिे में ही दे खते हैं त्जससे वेदों और उपरोक्त महाकाव्य में दजम संस्कृनत के णखलाफ खडे अन्य
दस्तावेज और पौराणिक कथाएं को िाममल कर प्राचीि इनतहास को समझिे में बहुत बडी बाधा खडी होती है।
ऋग्वेद, यजुवेद और सामवेद को स्वतंत्र रूप से ववकमसत हो रही आयम जिजानत के संस्कृत का दस्तावेज माि लें तो
अथवमवेद का कालखंड आयों का अिायम जिजानतयों से मभडंत का दौर है त्जसमें पहली बार विम और िूद्र िब्द का
इस्तेमाल हुआ है। दस
ू री परे िािी यह है कक उपरोक्त धमम ग्रंथों का कोई कालक्रम ही िहीं पता चलता है ।

मािव सभ्यता और प्राचीि काल को समझिे के मलए समाज वैज्ञानिकों िे उि सभ्यताओं की सामात्जक
संरचिा, संस्कृनत, पौराणिक कथाओं और उवपादि के औजारों के आधार पर कुछ वैज्ञानिक अवधारिा सनु ित्श्चत
ककया है। यदद वेदों और महाकाव्यों में दजम संस्कृनत की उि अवधारिाओं को वैज्ञानिक काल खंडों में कफट ककया जा
सके तो संभव है कक वेद और महाकाव्यों के कालखंडों का मोटा अिम
ु ाि लगा सकते हैं और दक्षिि एमियाई
उपमहाद्वीप के मािव सभ्यता के ववकास की निरं तरता में धचत्र कर सकते हैं और उसकी निरं तरता में बाद में बिे
समाज का चेहरा उसमें दे ख सकता है। मािव अपिे जन्म काल से ही प्रकृनत के साथ जूझते और अपिे पररवेि के
वातावरि को कुछ फेरबदल करके अपिे जीवि को सुरक्षित करते हुए ववकमसत हुआ है। मािव प्रकृनत में उपलब्ध
वस्तुओं को अपिे आवश्यकता अिुसार बदलते और उसका उपयोग करते हुए नित िए चीजों को सीखा है

त्जसमें पवथर िुरुआती समय से ही उसके उपयोगी हजारों में रहा है। मािव द्वारा औजारों के ववकास के आधार पर
समाज वैज्ञानिकों िे प्राचीि काल को पुरापाषाि काल, पाषाि काल/ िवपाषाि काल, कांस्य युग/ताम्र युग और लौह
युग में बांटा है और इसके बाद औद्योधगक युग/ आधुनिक युग तथा अब इलेक्रॉनिक युग/कम्प्यूटर युग का दौर है।
उपरोक्त सारे कालखंड औजारों के ववकास और उसके उपयोग के मामले में एक दस
ू रे से गुिावमक रूप से मभन्ि हैं।
मािव सभ्यता के ववकास के काल खंडों को वेदों में सतयुग, त्रेतायुग द्वापरयुग और कलयुग में ववभात्जत ककया गया
है इि काल खंडों को वैज्ञानिक अवधारिा के अिुसार समझिे की कोमिि करें गे।

सतयुग- इस यग
ु में िा कोई गरीब था और िा ही अमीर। आपसी द्वेष भी िहीं था। विम व्यवस्था का तो
िामोनििाि भी िहीं था यािी सभी बराबर थे। उपरोक्त पररकल्पिा आददम साम्पयवाद की है और यह कालखंड
पुरापाषाि काल का होगा। पुरापाषाि काल में मािव पवथरों का जस का तस इस्तेमाल करिा सीख रहा था। उसके
खाद्य पदाथम जंगली फल-मूल, मछमलयां और छोटे -मोटे जािवरों का मिकार करिा रहा होगा। मािव सभ्यता के
ववकास का यह कालखंड सबसे लंबा था। यही कालखंड मािव मत्स्तष्क के गुिावमक रूप से ववकास का दौर रहा
होगा। इस दौर में सामूदहक रूप से मिकार करिे की चेतिा अभी ववकमसत िहीं हुआ होगा। मािव जिजानत जािवरों
की तरह सामूदहक रूप से भटक तो रही होगी लेककि अपिे दश्ु मिों से सामूदहक प्रनतरोध का गुि ववकमसत िहीं कर
पाई थी। लेककि धीरे -धीरे मािव मत्स्तष्क ववकमसत होिे के साथ ही प्रकृनत और जािवरों से प्रनतरोध की सामूदहक
चेतिा ववकमसत होता रहा और एक दौर ऐसा आया जब मािव सभ्यता िे एक गुिावमक छलांग लगाई और सामूदहक
चेतिा पूरी तरह ववकमसत हुई। यह कालखंड मातृसत्तावमक समाज का था।

त्रेतायग
ु - यह यग
ु परु ािे काल खंड से बबल्कुल अलग था। यह पाषाि काल का समय रहा होगा। इस कालखंड में मािव
पवथरों को तोडकर िक
ु ीला बिाकर हधथयार के रूप में इस्तेमाल करिा सीख मलया था। इसी कालखंड में मािव िे आग
जलािा सीखा। अब मािव जिजानत सामदू हक रूप से मिकार करते थे। प्रकृनत प्रदत चीजों में कुछ फेरबदल के साथ
अपिे पररवेि को सरु क्षित करिा सीख मलया था। सामदू हक रूप से इकट्ठा ककए गए खाद्य पदाथों के इस्तेमाल के बाद
बचे िेष को सरु क्षित रखिे की त्स्कल भी ववकमसत हुई होगी ताकक प्राकृनतक आपदाओं के दौराि खद
ु को सरु क्षित रखा
जा सके। अब जिजानतयों में स्वाभाववक रूप से ववकमसत योग्यता के अिस
ु ार कामों का बंटवारा भी होिे लगा।
प्राकृनतक ित्क्तयों से तालमेल बैठािे के मलए कुछ लोग परु ोदहत का काम करिे लगे, कुछ सदस्य िारीररक रूप से
बमलष्ठ रहे होंगे जो अन्य कबीलाई समह
ू ों के साथ संघषम में अगव
ु ाई करते रहे होंगे बाकी आम लोग रहे होंगे जो खाद्य
पदाथों की दे खरे ख और कंदमल
ू इकट्ठा करते रहे होंगे। इस दौर में भी मदहलाएं सारी कारमवाईयों में बराबर की भागीदार
रही होंगी। सामात्जक संरचिा मातृ प्रधाि से परु
ु ष प्रधाि समाज में संक्रमि कर रही होगी। जंगली जािवरों जैसे कुत्ते,
गाय, भैंस और अन्य जािवरों के पालि का दौर इसी कालखंड में िरू
ु हुआ होगा। कुल,वंि और निजी संपवत्त का िुरुआत
इसी दौर में िुरू हुआ होगा। ववमिष्ट भौगोमलक िेत्रों में बसिे वाली जिजानतयों को एक सूत्र में बांधे रखिे के मलए
ईश्वर और धमम की पररकल्पिा का आगाज इसी दौर में हुआ। अब जिजानत समूह को एक ही संस्कृनत के वजह से धमम
एक सूत्र में बांधे तो रख सकता था ककं तु श्रम ववभाजि अनिवायम हो गया त्जससे वगम अंतववमरोध स्वाभाववक रूप से काम
करिे लगे। त्रेतायुग युग आयम धमामवलंबबयों के जिजानतयों में श्रम ववभाजि के तीि सामात्जक समूहों पुरोदहत,सैनिक
और ववस ् (आम जिता) का प्रतीक है। इस तरह त्रेतायुग में आयम धमम उपरोक्त तीि सामात्जक समूहों यािी तीि पैरों
पर खडा था। इस कालखंड में अभी आयम जिजानतयां अिायम जिजानतयों से िहीं टकराई थीं। यह कालखंड पुरापाषाि
काल के इतिा लंबा तो िहीं रहा होगा ककं तु बाद के कालखंडों की तुलिा में काफी लंबा रहा होगा। एक बार कफर मािव
सभ्यता िे गुिावमक छलांग लगाई और द्वापरयुग यािी कांस्य/ताम्र युग में प्रवेि कर गई।

द्वापरयुग- यहां कालखंड उपरोक्त दोिों काल खंडों से कई मायिों में मभन्ि था। इस कालखंड में कांसे और तांबे
की खोज हुई। पदहए का आववष्कार भी इसी कालखंड में हुआ। त्रेतायुग से द्वापरयुग का संक्रमि काल यािी पाषाि
काल से कांस्य युग में संक्रमि के कालखंड का रामायि की कथा भी है। इसी संक्रमि कालखंड में आयम जिजानतयों
का अिायम जिजानतयों से मभडंत हुई है । रामायि में दजम राम कथा का दौर पाषाि काल से ताम्र युग में संक्रमि का
दौर रहा होगा। इस दौर में आयम और अिायम जिजानतयां एक दस
ू रे के संपकम में आए और उिके बीच भीषि जंग नछड
गया। यह पररघटिा अभी भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर और पत्श्चम में घदटत हुई। रामायि में दजम रािस और
असुर अिायम जिजानतयां हैं जो आयम जिजानत के संस्कृनत टकराए और त्जससे संस्कृनत मुत्श्कल में पड गई। अभी
आयम और अिायम जिजानतयां आपस में ममधश्रत िहीं हुई हैं। दोिों जिजानतयां अपिी संस्कृनत को अिुण्ि रखिे की
जद्दोजहद में है । रामायि में राम अिायम संस्कृनत से आयम संस्कृनत को अिुण्ि रखिे की असम्पभव कोमिि करता
है। इस कालखंड के अंनतम दौर में आयम और अिायम जिजानतयों के समिाथी वगों पुरोदहत, सैनिक और ववस (आम
जिता) का आपसी सत्म्पमश्रि हुआ है। अथवमवेद इसी कालखंड का है क्योंकक अथवमवेद में ही पहली बार विम और िूद्र
िब्द का इस्तेमाल हुआ है । िूद्र िब्द िुरू में अपमािजिक िहीं रहा होगा। संभव है कक िूद्र अिायम जिजानत रही हो
जो उस दौर में काफी प्रभाविाली जिजानत हो। बाद में िूद्र आयों से इतर समस्त अिायम जिजानतयों के मलए
इस्तेमाल होिे लगा। त्रेतायुग से द्वापरयुग का संक्रमि का दौर/पाषाि युग से ताम्रयुग का संक्रमि के दौर में विम
व्यवस्था अत्स्तवव में आई है। इस कालखंड में आयम-अिायम जिजानतयों के ममश्रि से अत्स्तवव में आई सामात्जक
व्यवस्था में अपिे संस्कृनत को अिुण्ि रखिे के मलए वेदों, पुरािों, रामायि और महाभारत के रचनयता श्रम
ववभाजि से बिे सामात्जक वगों पुरोदहत,सैनिक और ववस ् (आम जिता) को तीि विम ब्राह्मि, िबत्रय और वैश्य के
रूप में दजम ककया है और सभी अिायम जिजानतयों को िूद्र विम में । आयम जिजानतयां अिायम जिजानतयों से टकरािे से
पहले पुरोदहत, सैनिक और ववस ् के रूप में पहचाि थी। दोिों संस्कृनतयों के टकराव में दोिों तरफ के उवपादि की
करवाई में लगी ववस ्(आम जिता) ज्यादातर ममधश्रत हो गई ककन्तु सांस्कृनतक रूप से एक दस
ू रे से अलग बिी रही।
आयम जिजानत की उवपादक आबादी उवपादि कारमवाई में लगे रहिे के बावजूद वैश्य विम के रूप में अपिी पहचाि
बिाई रहीं और सांस्कृनतक रूप से आयम जिजानतयों के साथ खडी रहीं। ककन्तु आयों का वैश्य विम उवपादक कारमवाई
में लगे रहिे के कारि अिायम विम िुद्र से सांस्कृनतक रूप से उतिी दरू ी िहीं बिाए रख सकती थीं कक अपिे संस्कृनत
को पूरी तरह से अिुण्ि रख सकें। लेककि ऊपर के दो विम ब्राह्मि और िबत्रय अभी भी आयम संस्कृनत के आदिम
मािदं डों का पालि कर सकते थे क्योंकक वह उवपादि की कारमवाई में लगे आम जिता से कटे हुए थे और मेहित करिे
वाले लोगों की तुलिा में काफी कम थे। अब दो ही विम बचे रह गए जो आयम संस्कृनत/धमम को एक हद तक िुद्धता में
पालि कर सकते थे। इस तरह आयम अिायम जिजानतयों की ममश्रि िे आयम संस्कृनत/धमम को दो पैरों पर खडा होिे को
मजबूर कर ददया। द्वापरयुग आयम संस्कृनत/धमम का आयों के दो सामात्जक समूहों पुरोदहत/ब्राह्मि और
सैनिक/िबत्रय पर निभमरता का प्रतीक है। यहां पररघटिा अभी दक्षिि एमियाई भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर और
पत्श्चम के इलाके में ही घदटत हुआ है । और इस तरह एक बार कफर दक्षिि एमियाई उपमहाद्वीप के मािव सभ्यता
िे गुिावमक छलांग लगाई और लोहे के आववष्कार के साथ लौह युग में प्रवेि कर गए।

कमलयुग- यह युग उवपादि के औजारों के ववकास के मलहाज से पूवम के तीिों कालखंडों की तुलिा में
क्रांनतकारी रूप से बहुत ही बेजोड था। लोहे के आववष्कार के बाद उसका उपयोग असल में इसी कालखंड में िुरू हुआ।
इस यग
ु में लोहे के औजार बिाए जािे लगे त्जिके सहारे जंगलों को काटकर खेती योग्य जमीि बिािा आसाि हो
गया। यह कालखंड लौह युग का है। द्वापरयुग से कमलयुग में संक्रमि का दौर या ताम्रयुग से लौह युग में संक्रमि के
दौर की गाथा ही महाभारत का महाकाव्य है। इस दौर में उवपादि पद्धनत और उवपादि संबंध बदल रहे थे। इन्हीं
अंतववमरोधों की अमभव्यत्क्त महाभारत की संघषम गाथा है । महाभारत की लडाई ही जमीि के मलए हुई है । महाभारत में
एक जगह त्जक्र है कक दय
ु ोधि िे पांडवों से कहा, "सुई की िोक के बराबर भी जमीि िहीं दं ग
ू ा।" लोहे के अववष्कार से
कृवष उवपादि का मुख्य आधार बि गई। यही वह दौर था जब उत्तर और पत्श्चम में अत्स्तवव में आई विम व्यवस्था की
सामात्जक आधथमक संरचिा उत्तरपूवम को भी अपिे आगोि में ले ली। ऐसा लगता है कक विम व्यवस्था वाली आधथमक-
सामात्जक संरचिा महाभारत के काल तक जैि और बौद्ध धमम वाली जिजानतयों से अभी संपकम में िहीं आयी थी।
आगे चलकर पूवम के गंगा घाटी के मैदािों में बसी जिजानतयों से जब एक बार कफर विम व्यवस्था की सामात्जक
संरचिा वाली आयम-अिायम जिजानतयां उिके अपिे सामात्जक संरचिा से मुक्त अन्य अिायम जिजानतयां से
टकराई तो आयम धमम एक बार कफर लडखडािे और बबखराव की त्स्थनत में आ गया। उत्तर पत्श्चम के विम व्यवस्था में
ब्राह्मि और िबत्रय विम की िुद्धता पर एक बार और जोरदार प्रहार हुआ और श्रम ववभाजि से बिे पुरोदहत सैनिक
और ववस के समािाथी वगों में सत्म्पमश्रि हुआ। इस बार आयों की ब्राह्मि और िबत्रय विम अिायों उसे अछूता िहीं
रह सका और अिायम जिजानतयों के पुरोदहत और सैनिक वगम आयम विम के श्रम ववभाजि से बिे दो सामात्जक वगों
ब्राह्मि और िबत्रय में िाममल हो गया। ककं तु अिायम जिजानतयों के पुरोदहत और सैनिक सामात्जक वगम भले ही
आयों के ब्राह्मि और िबत्रय विम में घुसपैठ कर गए हों लेककि वे आयम संस्कृत के मािदं डों से िूद्र ही थे। आयम विम में
श्रम ववभाजि से बिे तीि सामात्जक वगम पुरोदहत, सैनिक और ववस ् के वगों में अिायम जिजानतयों की समवती वगो
का ममश्रि ही जानतयों को जन्म ददया है । हम यह कह सकते हैं कक इसी कालखंड में जानत व्यवस्था अत्स्तवव में आई
है और विम व्यवस्था िे जानत व्यवस्था के जन्म की महागाथा रची है। यह प्रश्ि उठ सकता है कक यदद विम व्यवस्था
और जानत व्यवस्था गैर बराबरी वाली सामात्जक संरचिा थी तो इस सामात्जक संरचिा से बाद में टकरािे वाली
जिजानतयों िे इसे क्यों अपिाया? इसका जवाब गूढ़ रहस्य िहीं है। उत्तर पत्श्चम में विम व्यवस्था का वगम समाज
जब अत्स्तवव में आया तो वह त्जतिा भी मािवद्रोही रहा हो लेककि वह आयम-अिायम संस्कृनतयों के सत्म्पमश्रि से बिे
समाज का प्रनतनिधधवव कर रहा था। इसमलए वक्त के साथ इस सामात्जक ढांचे से त्जतिी भी जिजानतयां टकराई
वह सब इस में ववलीि होती गईं। यहां तक कक गौतम बुद्ध भी इससे अछूता िहीं रहे और पूरा दक्षिि एमियाई
भारतीय उपमहाद्वीप पर विम- जानत व्यवस्था का घटाटोप छा गया। इस तरह आयम संस्कृनत अपिे आदिम रूप को
पूरी तरह खो ददया और आर धमम के मािदं ड पूरी तरह बबखर गए। इसी कालखंड को आयम संस्कृनत के पुरोधाओं िे
कमलयुग का िाम ददया है जो आज भी जारी है ।

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