Shri Dhanada Stotra

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|| श्री धनदा लक्ष्मी स्तोत्र ||

संकल्प – मैं मााँ भगवती धनदा की कृपा प्राप्तत के ललए तथा आर्थिक उन्नतत के ललए श्री धनदा स्तोत्र
का पाठ कर रहा हाँ !

धमिदे धनदे दे वव दानशीले दयाकरे ।


त्वं प्रसीद महे शातन! यदथं प्राथियाम्यहम ् ॥ ८॥
धरामरवप्रये पण्
ु ये धन्ये धनदपप्िते ।
सध
ु नं धालमिकं दे हह यिनाय सस
ु त्वरम ् ॥ ९॥
रम्ये रुद्रवप्रये रूपे रामरूपे रततवप्रये ।
शलशप्रभा मनोमते प्रसीद प्रणते मतय ॥ १०॥
आरक्त-चरणाम्भोिे लसवि-सवािथद
ि ातयके ।
हदव्याम्बरधरे हदव्ये हदव्यमाल्योपशोलभते ॥ ११॥
समस्तगुणसम्पन्ने सविलक्षणलक्षक्षते ।
शरच्चन्द्रमख
ु े नीले नील-नीरि-लोचने ॥ १२॥
चञ्चरीकचम-चारु-श्रीहार-कुहिलालके ।
मत्ते भगवतत मातः कलकण्ठ मख
ु ामत
ृ े ॥ १३॥
हासावलोकनैहदि व्यैभक्त
ि र्चन्तापहाररके ।
रूप-लावण्य-तारूण्य-कारूण्य-गुणभािने ॥ १४॥
क्वणत्कङ्कणमञ्िीरे लसल्लीलाकराम्बि
ु े।
रुद्रप्रकालशते तत्त्वे धमािधारे धरालये ॥ १५॥
प्रयच्छ यिमानाय धनं धमैकसाधनम ् ।
मातस्त्वं मेऽववलम्बेन हदशस्व िगदप्म्बके ॥ १६॥
कृपया करुणागारे प्रार्थितं कुरु मे शभ
ु े।
वसुधे वसुधारूपे वस-ु वासव-वप्न्दते ॥ १७॥
धनदे यिनायैव वरदे वरदा भव ।
ब्रह्मण्यैब्रािह्मणैः पज्ये पावितीलशवशङ्करे ॥ १८॥

स्तोत्रं दररद्रताव्यार्धशमनं सुधनप्रदम ् ।


श्रीकरे शङ्करे श्रीदे प्रसीद मतय ककङ्करे ॥ १९॥
पावितीशप्रसादे न सरु े श-ककङ्करे ररतम ् ।
श्रिया ये पहठष्यप्न्त पाठतयष्यप्न्त भक्तक्ततः ॥ २०॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम ् ।

सम्पि
ु श्लोक : ( मल पाठ के पवि इस श्लोक का 11 – 11 बार पाठ करे ...)

धनदायै नमस्तुभ्यं तनर्धपद्मार्धपायै च ।


भवन्तु त्वत ् प्रसादात ् मे धन-धान्याहदसम्पदः ॥ २१॥

॥ इतत श्रीधनदालक्ष्मीस्तोत्रं सम्पणिम ् ॥


( लाल रं ग में ललखखत स्तोत्र ही मल पाठ है अथाित इसी का बारम्बार पाठ करना है ! )

- स्वामी रुपेश्वरानंद

अर्धक िानकारी के ललए चैनल पर इसकी ववर्ध सुनें :

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