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ऋणमोचक मंगल ो

मंगलो भू िमपु ऋणहता धन दः । थरासनो महाकाये सवकमावरोधकः ॥

लोिहतो लोिहता सामगानां कृपाकरः । धरा जः कुजो भौमो भू ितदो भूिमनंदनः ॥

अ ारको यम ैव सवरोगापहारकः । वृ े: कताSपहता सवकामफल दः ॥

एतािन कुजनामािन िन ं यः दया: प ेत् । ऋणं न जायते त धनं शी मवा ुयात् ॥

धरणीगभस ुतम् िवद् यु ा संभ म् | कुमारम् श ह म् तम् म लम् ा म् ||

ो म ारक ैतत् पठनीयं सदा नृिभ :| न ते षां भौमजा पीडा ािप भवित िचत् ||

अ ारक महाभाग भगवन् भ व ल् | ां नमािम ममाशेषमृणमाशु िवनाशय् ||

ऋणरोगािददा र ं ये चा े पमृ वः | भय ेशंन ापा न ंतु मम सवदा ||

अितव दु रारा भोगमु िजता नः | तु ो ददािस सा ा ं ो हरिस त णात् ||

िवरि श िव ुनां मनु ाणां तु का कथा | ते न ं सव सवस ेन् हराजो महाबलः ||

पु ान् दे िह धनं दे िह ाम शरणं गतः | ऋणदा र दु ः खेण श ूणां च भयातत: ||

एिभ ादशिभः ौकैय: ौित च धरासुतम् | मः ितं ि यमा ोित परो धनदौ यु वा ||

|| इित ी पु राणे भा ो ं ऋणमोचक मंगल ो म् संपूणम् ||

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