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G - 8 Sanskrit Samaas
G - 8 Sanskrit Samaas
समास शब्द संस्कृत की ‘अस’ धातु से बना है , जिसका अर्थ है – होना | इसमें ‘सम’ उपसर्ग लगाकर
समास शब्द बना है |
सम (उपसर्ग) + अस ( धातु )
संयोग + होना
‘समास’ शब्द का अर्थ है – संक्षिप्त करने की प्रक्रिया या संक्षेपीकरण अर्थात जब दो या दो से अधिक शब्दों
को पास-पास लाकर एक नया सार्थक शब्द बनाया जाता है तो शब्दों को इस तरह संक्षेप करने की प्रक्रिया
को समास कहते हैं | समास के मख्
ु य रूप से भेद होते हैं |
1. अव्ययीभाव समासः
2. तत्परु
ु ष समास: (नञ समास, 6 उपभेद )
3. कर्मधारय समास:
4. द्विगु समासः
5. बहुव्रीहि समासः
6. द्वन्द्व समास:
समास के भेद परिभाषा उदाहरण
(ii) तत्परु
ु ष तत्परु
ु ष समास में उतर पद प्रधान होता है तथा ★द्वितीया तत्
परू
ु ष: - गह
ृ ं गत: - गह
ृ गत:
समास
दोनो पदों के बीच लगी विभक्ति या चिह्नों का
★तत
ृ ीया तत्
परू
ु ष: - नखै: भिन्
न: - नखभिन्
न:
लोप होता है , उसे तत्परु
ु ष समास कहते हैं |
★चतर्थी
ु तत्
परू
ु ष: - गवे हितम ् - गोहितम ्
विभक्तियों के आधार पर तत्परु
ु ष समास के
द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक छह ★पंचमी तत्
परू
ु ष: - चोरात ् भयम ् - चोरभयम ्
उपभेद हैं-|
ठी तत्
★षष् परू
ु ष: - वक्ष
ृ स्य मल
ू म ् - वक्ष
ृ मलू म्
★सप्तमी तत्
परू
ु ष: - कार्ये कुशल:
=कार्यकुशल:
(iv) कर्मधारय कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण होता है नीलम ् कमलम ् - नीलकमलम ्
समास तो दस
ू रा पद विशेष्य होता है वहाँ कर्मधारय महान च असौ परु
ु षः इति - महापरु
ु षः
समास होता है |
चतरु ः च असौ बाल: इति - चतरु बालाः
(v) बहुव्रीहि जहाँ दोनों ही पद प्रधान न होकर दोनों पदों के लम्बोदरः - लम्बम ् उदरं यस्य: सः (गणेश:),
समास
अर्थ से कोई तीसरा या अन्य अर्थ की प्रधानता
वीणापाणी - वीणा पाणौ यस्या सा
होती है बहुव्रीहि समास कहलाता है |
(सरस्वती),