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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020

॥ ४ - भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम् ॥


अनुक्रमावणका

1. देवी भुवनेश्वरी 02
2. भुवनेश्वरी माता मत्रं 04
3. भवु नेश्वरी माता स्तवु त 05
4. माता ध्र्ान 05
5. भुवनेश्वरी स्तोत्रम् - १ 06
6. भुवनेश्वरी स्तोत्रम् - २ 07
7. भुवनेश्वरी कवचम् 11
8. भवु नेश्वरी त्रैलोक्र् मोहन कवचम् 12
9. भुवनेश्वरी अष्टकम् 15

मााँ भुवनेश्वरी भुवनेश्वरी र्न्त्र

मानव ववकास फाउन्डेशन - मुम्बई आचार्य अविलेश विवेदी - 9820611270


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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ देवी भवु नेश्वरी ॥


देवी भुवनेश्वरी दसमहाववद्या में चौथी महाववद्या हैं । देवीभागवत के अनुसार सृविक्रम में महालक्ष्मी
स्वरूपा-आवदशवि भगवती भुवनेश्वरी भगवान् वशव के समस्त लीला-ववलास की सहचरी हैं । माता भुवनेश्वरी
सृष्टि के ऐश्वयर की स्वाष्टमनी हैं । चेतनात्मक अनुभूष्टत का आनंद इन्हीं में हैं । गायत्री उपासना में भुवनेश्वरी जी
का भाव ष्टनष्टहत है ।
अंकुश और पाश इनके मुख्य आयुध हैं । अंकुश वनयन्त्रण का प्रतीक है और पाश राग अथवा
आसवि का प्रतीक है । इस प्रकार सववरूपा मूल प्रकृ वत ही भुवनेश्वरी हैं, जो ववश्व को वमन करने के कारण
वामा, वशवमयी होने से ज्येष्ठा तथा कमव-वनयन्त्रण, फलदान और जीवों को दवडित करने के कारण रौद्री कही
जाती हैं । भगवान् वशव का वाम भाग ही भुवनेश्वरी कहलाता है । भुवनेश्वरी के संग से ही भुवनेश्वर सदावशव
को सवेश होने की योग्यता प्राप्त होती है ।
भवु नेश्वरी माता के एक मख ु , चार हाथ हैं चार हाथों में गदा-शष्टि का एवं दडं -व्यवस्था का प्रतीक है
। इनका वर्ण श्याम तथा गौर वर्ण हैं । इनके नख में ब्रह्माण्ड का दशणन होता है । माता भुवनेश्वरी सूयण के समान
लाल वर्ण युि ष्टदव्य प्रकाश से युि हैं । उनके मस्तक पर चन्त्द्रमा का मुकुट है । तीन नेरों से युि देवी के मुख
पर मुस्कान की छटा छायी रहती है । उनके हाथों में पाश, अङ्कुश, वरद एवं अभय मुद्रा शोभा पाते हैं ।
महावनवावण तन्त्र के अनुसार सम्पूणव महाववद्याएँ भगवती भुवनेश्वरी की सेवा में सदा सल ं ग्न रहती हैं ।
सात करोड़ महामन्त्र इनकी सदा आराधना करते हैं । इनके बीज मत्रं को समस्त देवी देवताओ ं की आराधना
में ष्टवशेष शष्टि दायक माना जाता हैं इनके मूल मंत्र और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से समस्त सुखों एवं
ष्टसष्टियों की प्राष्टि होती है ।
देवी भागवत के अनुसार दगु मव नामक दैत्य के अत्याचार से संतप्त होकर देवताओ ं और ब्राह्मणों ने
वहमालय पर सववकारणस्वरूपा भगवती भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी । उनकी आराधना से प्रसन्त्न होकर
भगवती भवु नेश्वरी तत्काल प्रकट हो गयीं । वे अपने हाथों में बाण, कमल-पष्ु प तथा शाक-मल ू वलये हुए थीं ।
उन्त्होंने अपने नेरों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएँ प्रकट की । इस जल से भूमडिल के सभी प्राणी तृप्त हो गये ।
समुद्रों तथा सररताओ ं में अगाध जल भर गया और समस्त औषवधयाँ वसंच गयीं । अपने हाथ में वलये गये
शाकों और फल-मूल से प्रावणयों का पोषण करने के कारण भगवती भुवनेश्वरी ही 'शताक्षी' तथा 'शाकम्भरी'
नामसे ववख्यात हुई ं।
इन्त्हों ने ही दगु वमासरु को यद्ध
ु में मारकर उसके द्वारा अपहृत वेदों को देवताओ ं को पनु ः सौपा था ।
उसके बाद भगवती भवु नेश्वरी का एक नाम दुर्ाय प्रवसद्ध हुआ ।
पुर प्राप्ती के वलए लोग इनकी आराधना करते हैं । भिों को अभय एवं वसवद्धयां प्रदान करना इनका
स्वभाववक गुण है । इस महाववद्या की आराधना से सयू व के समान तेज और ऊजाव प्रकट होने लगती है । ऐसा
व्यवि अच्छे राजनीवतक पद पर आसीन हो सकता है । माता का आशीवावद वमलने से धनप्राप्त होता है और
ससं ार के सभी शवि स्वरूप महाबली उसका चरणस्पशव करते हैं । रुद्रयामल में इनका कवच, नीलसरस्वतीतन्त्र
में इनका हृदय तथा महातन्त्राणवव में इनका सहस्रनाम सक ं वलत है ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ मुख्य नाम भुवनेश्वरी ।


▪ अन्त्य नाम सवेश्वरी र्ा सवेशी, सवयरुपा, ववश्वरुपा, जर्त-धावत्र, शताक्षी, शाकम्भरी ।
▪ भैरव त्र्र्म्बक ।
▪ ववष्णु के अवतारों से सम्बद्ध भर्वान वराह ।
▪ कुल काली कुल ।
▪ वदशा पविम ।
▪ स्वभाव सौम्र्, राजसी र्ुण सम्पन्न ।
▪ तीथव स्थान या मवं दर नैनावतवु (मनीपल्लवं) शविपीठ है (श्रीलक ं ा के उत्तरी भाग में), गजु रात के गोंिल
एवं गजुं ा, उड़ीसा में समलेश्वरी तथा कटक चिं ी मवं दर, कामाख्या मवं दर के अदं र
भुवनेश्वरी, वहमाचल प्रदेश के कुल्ल,ू
▪ कायव सम्पूणय जर्त का वनमायण तथा संचालन ।
▪ शारीररक वणव सहस्त्रों उवदत सूर्य के प्रकाश के समान कावन्तमर्ी ।
▪ ववशेषता वसद्धववद्या, भोर्दात्री

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ भुवनेश्वरी माता मंत्र ॥


▪ भुवनेश्वरी माता का मंर स्फवटक की माला से ग्यारह माला प्रवतवदन जाप कर सकते हैं ।
▪ नोट : भुवनेश्वरी महाववद्या साधना वववध आप वबना गुरु बनाये ना करें गुरु बनाकर व
अपने गुरु से सलाह लेकर इस साधना को करना चावहए । क्युकी वबना गुरु के की
हुई साधना आपके जीवन में हावन ला सकती है ।
▪ म ंर ह्रीं ।
▪ म ंर ऐ ह्रीं ।
▪ म ंर ऐ ं ह्रीं ऐ ं ।
▪ बीज मंर ऐ ं ह्रीं ॐ और ह्रीम ।
▪ मूल मंर ॐ ऐ ं ह्रीं श्रीं नमः ।
▪ एक बीजाक्षर मंर ह्रीं भुवनेश्वर्ै नमः । मंगलवार को दवक्षणावभमुख होकर जप शुरु करें ।
▪ द्वय बीजाक्षर मरं श्रीं ह्रीं भवु नेश्वर्ै नमः । मगं लवार को दवक्षणावभमख
ु होकर जप शरुु करें ।
▪ रय बीजाक्षर मंर ॐ श्रीं क्लीं भुवनेश्वयै नमः । मंगलवार को दवक्षणावभमुख होकर जप शुरु करें ।
▪ रयक्षरी मंर हं ॐ क्रीं ।
▪ चतुरक्षर बीज मंर ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भुवनश्वर्े नम: । और ह्नीं भुवनेश्वरीर्ै ह्नीं नम: ।
▪ चतुथी वतवथ बुधवार को नैऋत्यवभमुख होकर जप करें ।
▪ पचं ाक्षरी मरं ॐ श्रीं ऐ ं क्लीं ह्रीं भवु नेश्वर्ै नमः । और ऐ ं हं श्रीं ऐ ं हं ।
▪ पंचमी वतवथ गुरुवार को पविमावभमुख होकर जप करें ।
▪ षिाक्षर बीज मंर ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐ ं सौः भुवनेश्वर्ै नमः ।
▪ षष्ठी वतवथ शुक्रवार को वायव्यावभमुख होकर जप करें ।
▪ सप्ताक्षर बीज मंर ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐ ं सौः क्लीं ह्रीं भुवनेश्वर्ै नमः ।
▪ अिमी वतवथ रवववार को ईशान वदशा में महुं करके जप करें ।
▪ महा मंर ॐ श्रीं ॐ श्रीं ह्रीं ऐ ं ह्रीं ऐ ं क्लीं सौः क्लीं सौः क्रीं क्रीं ह्रीं भुवनेश्वर्ै नमः ।
▪ दाररद्रय नाशय मंर ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी इहागच्छ इहवतष्ठ इहस्थापय मम सकल दररद्रय नाशय नाशय ह्रीं ॐ।
▪ हं हं ह्रीं ह्रीं दाररद्रर् नावशनी भुवनेश्वरी ह्रीं ह्रीं हं हं फट ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ भुवनेश्वरी ध्र्ान एवं स्तुवत ॥


▪ भवु नेश्वरी स्तवु त उद्यद्हद्ययुवतवमन्दु वकरीटां तर्ुं कुचां नर्नत्रर्र्क्त
ु ाम् ।
स्मेरमुिीं वरदाङ्कुश पाश भीवतकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

▪ भुवनेश्वरी ध्र्ानम् बालर ववद्युवत वमन्दु वकरीटां तुंर्कुचां नर्नत्रर् र्क्त


ु ाम् ।
स्मेरमुिीं वरदाङ्कुश पाशभीवतकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ भुवनेश्वरी स्तोत्रम - १ ॥
▪ अष्टवसवद्धरालक्ष्मी अरुणाबहरुु वपवण ।
वत्रशूल भुक्कुरादेवी पाशाकुशववदाररणी ॥ ॥१॥
▪ िड्र्िेटधरादेवी घण्टवन चक्रधाररणी ।
षोडशी वत्रपुरादेवी वत्ररेिा परमेश्वरी ॥ ॥२॥
▪ कौमारी वपर्ं लाचैव वारीनी जर्ामोवहनी ।
दुर्यदेवी वत्रर्ध
ं ाच नमस्ते वशवनार्क ॥ ॥३॥
▪ एवचं ाष्टशतनामच ं श्लाके वत्रनर्भाववतं
भक्तर्े पठे वन्नत्र्ं दाररद्रर्ं नावस्त वनवितं ॥ ॥४॥
▪ एकः काले पठे वन्नत्र्ं धनधान्र् समाकुलं
विकालेर्ः पठेवन्नत्र्ं सवय शत्रवु वनाशानं ॥ ॥५॥
▪ वत्रकालेर्ः पठे वन्नत्र्ं सवय रोर् हरम परं
चतःु काले पठे वन्नत्र्ं प्रसन्नं भवु नेश्वरी ॥ ॥६॥

॥ इवत श्री रुद्रयावले ईश्वरपावववत संवादे श्री भुवनेश्वरी स्तोर सम्पूणमव ् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ भुवनेश्वरी स्तोत्रम् - २ ॥
भुवनेश्वरी को आवदशवि और मूल प्रकृ वत भी कहा गया है । भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम
से प्रवसद्ध हुई । पुर प्राप्ती के वलए लोग इनकी आराधना करते हैं । भिों को अभय एवं वसवद्धयां प्रदान करना
इनका स्वभाववक गुण है । इस महाववद्या की आराधना से सयू व के समान तेज और ऊजाव प्रकट होने लगती है ।
ऐसा व्यवि अच्छे राजनीवतक पद पर आसीन हो सकता है।
▪ अथानन्दमर्ीं साक्षाच्छब्दब्रह्मस्वरूवपणीम् ।
ईडे सकलसम्पत्त्र्ै जर्त्कारणमवम्बकाम् ॥
▪ ववद्यामशेषजननीमरववन्दर्ोने-
ववयष्णोः वशवस्र् च वपुः प्रवतपादवर्त्रीम् ।
सृवष्टवस्थवतक्षर्करीं जर्तां त्रर्ाणां
स्तुत्वा वर्रं ववमलर्ाम्र्हमवम्बके त्वाम् ॥ ॥१॥
▪ पथ्वृ ्र्ा जलेन वशविना मरुताम्बरेण
होत्रेन्दुना वदनकरेण च मूवतयभाजः ।
देवस्र् मन्मथररपोरवप शवक्तमत्ता
हेतुस्त्वमेव िलु पवयतराजपुवत्र ॥ ॥२॥
▪ वत्रस्रोतसः सकलदेवसमवच्चयतार्ाः
वैवशष्ट्र्कारणमवैवम तदेव मातः ।
त्वत्पादपङ्कजपरार्पवववत्रतासु
शम्भोजयटासु सततं पररवतयनं र्त् ॥ ॥३॥
▪ आनन्दर्ेत्कुमवु दनीमवधपः कलाना-
न्नान्र्ावमनः कमवलनीमथ नेतरां वा ।
एकस्र् मोदनववधौ परमेकमीष्टे
त्वं तु प्रपञ्चमवभनन्दर्वस स्वदृष्ट्र्ा ॥ ॥४॥
▪ आद्याप्र्शेषजर्तान्नवर्ौवनावस
शैलावधराजतनर्ाप्र्वतकोमलावस ।
त्रयर्ाः प्रसरू वप तर्ा न समीवक्षतावस
ध्र्ेर्ावस र्ौरर मनसो न पवथ वस्थतावस ॥ ॥५॥
▪ आसाद्य जन्म मनुजेषु वचराद्दुरापं
तत्रावप पाटवमवाप्र् वनजेवन्द्रर्ाणाम् ।
नाभ्र्चयर्वन्त जर्तां जनवर्वत्र र्े त्वां
वनःश्रेवणकाग्रमवधरुह्य पनु ः पतवन्त ॥ ॥६॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ कपयरू चूणयवहमवाररववलोवडतेन
र्े चन्दनेन कुसुमैि सुजातर्न्धैः ।
आराधर्वन्त वह भवावन समुत्सक ु ास्त्वां
ते िल्विण्डभवु नावधभवु ः प्रथन्ते ॥ ॥७॥
▪ आववश्र् मध्र्पदवीं प्रथमे सरोजे
सुप्ता वह राजसदृशी ववरचयर् ववश्वम् ।
ववद्युल्लतावलर्ववभ्रममुिहन्ती
पद्मावन पञ्च ववदलयर् समश्नुवाना ॥ ॥८॥
▪ तवन्नर्यतामृतरसैरवभवषच्र् र्ात्रं
मार्ेण तेन ववलर्ं पनु रप्र्वाप्ता ।
र्ेषां हवद स्फुरवस जातु न ते भवेर्ु-
मायतमयहेश्वरकुटुवम्बवन र्भयभाजः ॥ ॥९॥
▪ आलवम्बकुण्डलभरामवभरामवक्त्रा-
मापीवरस्तनतटीं तनुवृत्तमध्र्ाम् ।
वचन्ताक्षसूत्रकलशावलविताढ्र्हस्ता-
मावतयर्ावम मनसा तव र्ौरर मूवतयम् ॥ ॥१०॥
▪ आस्थार् र्ोर्मवववजत्र् च वैररषट्क-
माबध्र् चेवन्द्रर्र्णं मनवस प्रसन्ने ।
पाशाङ्कुशाभर्वराढ्र्करांशुवक्त्रा-
मालोकर्वन्त भुवनेश्वरर र्ोवर्नस्त्वाम् ॥ ॥११॥
▪ उत्तप्तहाटकवनभां कररवभितुवभय-
राववतयतामृतघटैरवभवषच्र्माना ।
हस्तिर्ेन नवलने रुवचरे वहन्ती
पद्मावप साभर्करा भववस त्वमेव ॥ ॥१२॥
▪ अष्टावभरुग्रववववधार्ुधवावहनीवभ-
द्दोवयल्लरीवभरवधरुह्य मृर्ावधवासम् ।
दूवायदलद्युवतरमत्र्यववपक्षपक्षा-
न्न्र्क्कुवयती त्वमवस देवव भवावन दुर्े ॥ ॥१३॥
▪ आवववन्नयदाघजलशीकरशोवभवक्त्रां
र्ञ्ु जाफलेन पररकवल्पतहारर्वष्टम् ।
रत्नांशुकामवसतकावन्तमलङ्कृतां त्वा-
माद्यां पुवलन्दतरुणीमसकृन्नमावम ॥ ॥१४॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ हसं ैर्यवतः क्ववणतनूपुरदूरदृष्टे


मूतेररवाप्तवचनैरनुर्म्र्मानौ ।
पद्मावववोद्यध्वमुिरूढसुजातनालौ
श्रीकण्ठपवत्न वशरसैव दधे तवाङ्री ॥ ॥१५॥
▪ िाभ्र्ां समीवक्षतमु तवृ प्तमतेव दृग्भभ्र्ा-
मुत्पाद्यता वत्रनर्नं वृषके तनेन ।
सान्द्रानुरार्भवनेन वनरीक्ष्र्माणे
जङ्घे उभे अवप भवावन तवानतोऽवस्म ॥ ॥१६॥
▪ ऊरू स्मरावम वजतहवस्तकरावलेपौ
स्थौल्र्ेन माद्दयवतर्ा पररभूतरम्भौ ।
श्रोणीभरस्र् सहनौ पररकल्प्र् दत्तौ
स्तम्भावववाङ्र्वर्सा तव मध्र्मेन ॥ ॥१७॥
▪ श्रोण्र्ौ स्तनौ च र्ुर्पत्प्रथवर्ष्र्तोच्चै-
बायल्र्ात्परेण वर्सा पररकृष्णसारः ।
रोमावलीववलवसतेन ववभा्र्मूवतय-
मयध्र्ं तव स्फुरतु मे हदर्स्र् मध्र्े ॥ ॥१८॥
▪ सख्र्ास्स्मरस्र् हरनेत्रहतु ाशभीरो-
ल्लायवण्र्वाररभररतं नवर्ौवनेन ।
आपाद्य दत्तवमव पल्लवमप्रववष्टं
नावभं कदावप तव देवव न ववस्मरेर्म् ॥ ॥१९॥
▪ ईशोऽवप र्ेहवपशनु ं भवसतं दधाने
काश्मीरकद्दयममनु स्तनपङ्कजे ते ।
स्नानोवत्थतस्र् कररणः क्षणलक्षफेनौ
वसन्दूररतौ स्मरर्तः समदस्र् कुम्भौ ॥ ॥२०॥
▪ कण्ठावतररक्तर्लदुज्जज्जवलकावन्तधारा
शोभौ भुजौ वनजररपोमयकरध्वजेन ।
कण्ठग्रहार् रवचतौ वकल दीघयपाशौ
मातमयम स्मृवतपथं न ववलज्जजर्ेताम् ॥ ॥२१॥
▪ नात्र्ार्तं रुवचरकम्बुववलासचौर्ं
भषू ाभरेण ववववधेन ववराजमानम् ।
कण्ठं मनोहरर्ुणं वर्ररराजकन्र्े
सवञ्चन्त्र् तृवप्तमुपर्ावम कदावप नाहम् ॥ ॥२२॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ अत्र्ार्ताक्षमवभजातललाटपट्टं
मन्दवस्मतेन दरफुल्लकपोलरेिम् ।
वबम्बाधरं िलु समुन्नतदीघयनासं
र्त्ते स्मरत्र्सकृदम्ब स एव जातः ॥ ॥२३॥
▪ आववस्त्वर्ारकरलेिमनल्पर्न्ध-
पुष्पोपरर भ्रमदवलव्रजवनववयशेषम् ।
र्िेतसा कलर्ते तव के शपाशं
तस्र् स्वर्ं र्लवत देवव पुराणपाशः ॥ ॥२४॥
▪ श्रुवतसुरवचतपाकं धीमतां स्तोत्रमेतत्
पठवत र् इह मत्र्ो वनत्र्मादद्र्य ान्तरात्मा ।
स भववत पदमुच्चैस्सम्पदां पादनम्र-
वक्षवतपमुकुटलक्ष्मील्लयक्षणानां वचरार् ॥ ॥२५॥
॥ इवत श्री भुवनेश्वरी स्तोरम् समाप्तम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ भुवनेश्वरी कवचम् ॥
▪ वशव उवाच पातकं दहनं नाम कवचं स्वयकामकम् ।
श्रृणु पा्वयवत वक्ष्र्ावम तव स्नेहात्प्रकावशतम् ॥ ॥१॥
▪ श्री वशव जी बोले हे पाववती पातक दहन नामक भुवनेश्वरी का कवच कहता हू । सनु ो ।
इसके द्वारा सब कामना पणू व होती है । तम्ु हारे स्नेह के कारण इसको व्यि करता हं ।

▪ पातकं दहनस्र्ास्र् सदावशव ऋवषः स्मृतः ।


छन्दोअनुष्टुप देवता च भुवनेश्वरी प्रकीवत्तयता ।
धमायथय-काम-मोक्षेषु वववनर्ोर्ः प्रकीवत्तयतः ॥ ॥२॥
▪ इस कवच के ऋवष सदावशव, छन्त्द अनिु ुप, देवता भवु नेश्वरी और धमावथव, काम एवं मोक्ष
के वनवमत्त इसका वववनयोग है ।

▪ ऐ ं बीजं मे वशरः पातु ह्रीं बीजं वदनं मम् ।


श्रीं बीजं कवटदेशन्तु सवांर् भुवनेश्वरी ।
वदक्षु चैव वववदक्ष्वीर्ं भुवनेश्वरी सदावतु ॥ ॥३॥
▪ ऐ ं मेरे मस्तक की, ह्रीं मेरे मख
ु की, श्रीं मेरे कमर की और भवु नेश्वरी मेरे सवाांग की रक्षा
करें । क्या वदशा, क्या वववदशा सववर भुवनेश्वरी ही मेरी रक्षा करें ।

▪ अस्र्ावप पठनात्सद्यः कुबेराअवप धनेश्वरः ।


तस्मात्सदा प्रर्त्नेन पठे र्ुम्मायनवा भुवव ॥ ॥४॥
▪ इस कवच को पढ़ने के प्रसाद से कुबेर जी धनावधपवत हैं। अतएव साधकों को इसका सदा
पाठ करना चावहए।

॥ इवत श्री भुवनेश्वरी कवचम् सम्पूणवम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ श्री भुवनेश्वरी त्रैलोक्र् मोहन कवचम् ॥


▪ दे्र्ुवाच भर्वन,् परमेशान, सवायर्मववशारद ।
कवचं भुवनेश्वर्ायः कथर्स्व महेश्वर! ॥
▪ भैरव उवाच शृणु देवव, महेशावन! कवचं सवयकामदं ।
त्रैलोक्र्मोहनं नाम सवेवप्सतफलप्रदम् ॥
▪ वववनर्ोर् ॐ अस्य श्रीरैलोक्यमोहनकवचस्य श्रीसदावशव ऋवषः । ववराट् छन्त्दः ।
श्री भवु नेश्वरी देवता । चतवु गव ववसद्् यथां कवचपाठे वववनयोगः ।
▪ ऋष्र्ावदन्र्ास श्री सदा वशव ऋषये नमः वशरवस । ववराट्छन्त्दसे नमः मख
ु े । श्री भुवनेश्वरी देवतायै
नमः हृवद । चतवु वगववसद्् यथां कवचपाठे वववनयोगाय नमः सवावङ्गे ।

करन्र्ास हदर्ावद न्र्ास


▪ षडंर् न्र्ासः ॐ ह्रां अंर्ुष्ठाभ्र्ां नमः। हदर्ार् नमः ।
ॐ ह्रीं तजयनीभ्र्ां नमः । वशरसे स्वाहा ।
ॐ ह्रूं मध्र्माभ्र्ां नमः। वशिार्ै वषट् ।
ॐ ह्रैं अनावमकाभ्र्ां नमः। कवचार् हुम् ।
ॐ ह्रौं कवनवष्ठकाभ्र्ां नमः। नेत्रत्रर्ार् वौषट् ।
ॐ ह्र: करतलकरपृष्ठाभ्र्ां नमः। अस्त्रार् फट् ।

▪ कवचस्तोत्रम् ॐ ह्रीं क्लीं मे वशरः पातु श्रीं फट् पातु ललाटकम् ।


वसद्धपञ्चाक्षरी पार्ान्नेत्रे मे भुवनेश्वरी ॥ ॥१॥
▪ श्रीं क्लीं ह्रीं मे श्रतु ीः पातु नमः पातु च नावसकाम् ।
देवी षडक्षरी पातु वदनं मुण्डभूषणा ॥ ॥२॥
▪ ॐ ह्रीं श्रीं ऐ ं र्लं पातु वजह्ां पार्ान्महेश्वरी ।
ऐ ं स्कन्धौ पातु मे देवी महावत्रभवु नेश्वरी ॥ ॥३॥
▪ ह्रूं घण्टां मे सदा पातु दे्र्ेकाक्षररूवपणी ।
ऐ ं ह्रीं श्रीं हं तु फट् पार्ादीश्वरी मे भज
ु िर्म् ॥ ॥४॥
▪ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐ ं फट् पार्ाद् भुवनेशी स्तनिर्म् ।
ह्रां ह्रीं ऐ ं फट् महामार्ा देवी च हदर्ं मम ॥ ॥५॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ ऐ ं ह्रीं श्रीं हं तु फट् पार्ात् पाश्वौ कामस्वरूवपणी ।


ॐ ह्रीं क्लीं ऐ ं नमः पार्ात् कुवक्षं महाषडक्षरी ॥ ॥६॥
▪ ऐ ं सौः ऐ ं ऐ ं क्लीं फट् स्वाहा कवटदेशे सदाऽवतु ।
अष्टाक्षरी महाववद्या देवेशी भुवनेश्वरी ॥ ॥७॥
▪ ॐ ह्रीं ह्रौं ऐ ं श्रीं ह्रीं फट् पार्ान्मे र्ुह्यस्थलं सदा ।
षडक्षरी महाववद्या साक्षाद् ब्रह्मस्वरूवपणी ॥ ॥८॥
▪ ऐ ं ह्रां ह्रौं ह्रूं नमो दे्र्ै देवव! सवं पदं ततः,
दुस्तरं पदं तारर् तारर् प्रणविर्म् ।
स्वाहा इवत महाववद्या जानुवन मे सदाऽवतु ॥ ॥९॥
▪ ऐ ं सौः ॐ ऐ ं क्लीं फट् स्वाहा जङ्घेऽ्र्ाद् भुवनेश्वरी ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐ ं फट् पार्ात् पादौ मे भुवनेश्वरी ॥ ॥१०॥
▪ ॐ ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं क्लीं क्लीं ऐ ं ऐ ं सौः सौः वद वद ।
वाग्भवावदनीवत च देवव ववद्या र्ा ववश्व्र्ावपनी ॥ ॥११॥
▪ सौःसौःसौः ऐऐं ऐं ं क्लीङ्क्लीङ्क्लीं श्रींश्रींश्रीं ह्रींह्रींह्रीं ॐ ।
ॐ ॐ चतुदयशावत्मका ववद्या पार्ात् बाह तु मे ॥ ॥१२॥
▪ सकलं सवयभीवतभ्र्ः शरीरं भुवनेश्वरी ।
ॐ ह्रीं श्रीं इन्द्रवदग्भभार्े पार्ान्मे चापरावजता ॥ ॥१३॥
▪ स्त्रीं ऐ ं ह्रीं ववजर्ा पार्ावदन्दुमदवग्भनवदक्स्थले ।
ॐ श्रीं सौः क्लीं जर्ा पातु र्ाम्र्ां मां कवचावन्वतम् ॥ ॥१४॥
▪ ह्रीं ह्रीं ऐ ं सौः हसौः पार्ान्नैऋवतमां तु परावत्मका ।
ॐ श्रीं श्रीं ह्रीं सदा पार्ात् पविमे ब्रह्मरूवपणी ॥ ॥१५॥
▪ ॐ ह्रां सौः मां भर्ाद् रक्षेद् वार््र्ां मन्त्ररूवपणी ।
ऐ ं क्लीं श्रीं सौः सदाऽ्र्ान्मां कौवेर्ां नर्नवन्दनी ॥ ॥१६॥
▪ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महादेवी ऐशान्र्ां पातु वनत्र्शः ।
ॐ ह्रीं मन्त्रमर्ी ववद्या पार्ादूध्वं सुरेश्वरी ॥ ॥१७॥
▪ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐ ं मां पार्ादधस्था भुवनेश्वरी ।
एवं दशवदशो रक्षेत् सवयमन्त्रमर्ो वशवा ॥ ॥१८॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ प्रभाते पातु चामुण्डा श्रीं क्लीं ऐ ं सौः स्वरूवपणी ।


मध्र्ाह्नेऽ्र्ान्मामम्बा श्रीं ह्रीं क्लीं ऐ ं सौः स्वरूवपणी ॥ ॥१९॥
▪ सार्ं पार्ादुमादेवी ऐ ं ह्रीं क्लीं सौः स्वरूवपणी ।
वनशादौ पातु रुद्राणी ॐ क्लीं क्रीं सौः स्वरूवपणी ॥ ॥२०॥
▪ वनशीथे पातु ब्रह्माणी क्रीं ह्रूं ह्रीं ह्रीं स्वरूवपणी ।
वनशान्ते वैष्णवी पार्ादोमै ह्रीं क्लीं स्वरूवपणी ॥ ॥२१॥
▪ सवयकाले च मां पार्ादो ह्रीं श्रीं भुवनेश्वरी ।
एषा ववद्या मर्ा र्ुप्ता तन्त्रेभ्र्िावप साम्प्रतम् ॥ ॥२२॥

▪ फलश्रवु त देवेवश! कवथतां तभ्ु र्ं कवचेच्छा त्ववर् वप्रर्े ।


इवत ते कवथतं देवव! र्ह्य ु न्तर परं ।
त्रैलोक्र्मोहनं नाम कवचं मन्त्रववग्रहम् ।
ब्रह्मववद्यामर्ं चैव के वलं ब्रह्मरूवपणम् ॥ ॥१॥
▪ मन्त्रववद्यामर्ं चैव कवचं बन्मुिोवदतम् ।
र्ुरुमभ्र्च्र्य वववधवत् कवचं धारर्ेद्यवद ।
साधको वै र्थाध्र्ानं तत्क्षणाद् भैरवो भवेत् ।
सवयपापवववनमयक्त ु ः कुलकोवट समुद्धरेत् ॥ ॥२॥
▪ र्रुु ः स्र्ात् सवयववद्यासु ह्यवधकारो जपावदषु ।
शतमष्टोत्तरं चास्र् पुरिर्ायवववधः स्मृता ।
शतमष्टोत्तरं जप्त्वा तावद्धोमावदकं तथा ।
त्रैलोक्र्े ववचरेिीरो र्णनाथो र्था स्वर्म् ॥ ॥३॥
▪ र्द्यपद्यमर्ी वाणी भवेद् र्ङ्र्ाप्रवाहवत् ।
पुष्पाञ्जल्र्ष्टकं दत्वा मूलेनैव पठे त् सकृत् ॥ ॥४॥

॥ इवत श्री भुवनेश्वरी रैलोक्य मोहन कवचं सम्पूणमव ् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 भुवनेश्वरी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ श्री भुवनेश्वरी अष्टकम ॥


▪ भवु नेश्वरीं नमस्र्ामो भक्तकल्पद्रुमां सदा ।
वरदां कामदां शान्तां कृष्णातीरवनवावसनीम् ॥ ॥१॥

▪ सवयवसवद्धप्रदे देवव भुवक्तमुवक्तप्रदे शुभे ।


भुवनेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी ॥ ॥२॥

▪ सवायभर्प्रदे देवव सवयदुष्टववनावशवन ।


भुवनेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी॥ ॥३॥

▪ सवय क्लेशहरे देवव (श्री)महाववष्णुस्वरूवपणी ।


भुवनेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी ॥ ॥४॥

▪ अन्तर्ायवमस्वरूपेण वस्थते सवयत्र सवयर्े ।


भुवनेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी ॥ ॥५॥

▪ भवनाश करे देवव भवभेषजदावर्नी ।


भवु नेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी ॥ ॥६॥

▪ अववद्यापटलध्ववं स महानन्देऽभर्प्रदे ।
भुवनेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी ॥ ॥७॥

▪ सस
ं ारतरणोपार्े वनजयरैरूपसेववते ।
भवु नेश्वरी महाकावल मनोभीष्ट प्रदावर्नी ॥ ॥८॥

▪ जर् जर् अवम्बके वसद्धप्रदे । अवभष्टदावर्नी मुवक्तप्रदे ।


अभर्प्रदे भक्तकामदे । महानन्दे भवानी ।
सवय्र्ापके ववष्णुरूवपणी । महाकाली दुःिहाररणी ।
अज्ञानपटलध्वस ं काररणी । देवी मडृ ानी सवयर्े ॥

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