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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020

॥ ८ - बगलामि
ु ी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम् ॥
अनुक्रमावणका
1. देवी बगलामि ु ी 02 11. बगलामिु ी पञ्जर न्र्ास स्तोत्रम् 23
2. बगलामुिी माता मंत्र 04 12. बगलामुिी कवचम् - १ 23
3. माता ध्र्ान 07 13. बगलामुिी कवचम् - २ 24
4. बगलामि ु ी दशनाम स्तोत्रम् 08 14. बगलामि ु ी कवचम् - ३ 26
5. बगलामुिी स्तोत्रम् 09 15. बगलामुिी शत्रु ववनाशकं कवचम् - ४ 27
6. बगलामुिी हृदर् स्तोत्रम् - १ 11 16. बगलामुिी सुक्तम् 28
7. बगलामुिी हृदर् स्तोत्रम् - २ 13 17. ववपरीत प्रत्र्ंवगरा स्तोत्रम् 30
8. बगलामुिी स्तोत्रम् 16 18. महा ववपरीत प्रत्र्ंवगरा स्तोत्रम् 32
9. बगलामि ु ी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् 18 19. बगलामि ु ी चालीसा 39
10. बगलामुिी पञ्जर स्तोत्रम् 20 20.

मााँ बगलामुिी मााँ बगलामुिी र्न्त्र

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी ॥
देवी कमला दसमहाववद्या में आठवीं महाववद्या हैं । व्यविरूप में शत्रुओ ं को नि करने की इच्छा
रखनेवाली तथा समविरूप में परमात्मा की संहार शवि ही वगला है । देवी बगलामुखी स्तभं व शवि की
अविष्ठात्री हैं । यह अपने भिों के भय को दरू करके शत्रुओ ं और उनकी बुरी शवियों का नाश करती हैं । मााँ
बगलामख ु ी का एक नाम पीताम्बरा भी है । ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभषू र् तथा पीले पष्ु पों की ही माला
िारर् करती हैं । इनके एक हाथ में शत्रु की विह्वा और दसू रे हाथमें मुद्गर है ।
स्वतन्त्त्रतन्त्त्र के अनुसार भगवती वगलामुखी के प्रादभु ाणव की कथा इस प्रकार है- सत्ययुग में सम्पूर्ण
िगत्को नि करनेवाला भयंकर तूफान आया । प्रावर्यों के िीवन पर आये संकट को देखकर भगवान् महाववष्र्ु
विवन्त्तत हो गये । वे सौराि देश में हररद्रा सरोवर के समीप िाकर भगवती को प्रसन्त्न करने के वलये तप करने
लगे । श्री ववद्या ने उस सरोवर से वगलामख ु ी रूप में प्रकट होकर उन्त्हें दशणन वदया तथा ववध्वसं कारी तफ ू ान का
तरु न्त्त स्तम्भन कर वदया । वगलामख ु ी महाववद्या भगवान् ववष्र्ु के तेि से यि ु होने के कारर् वैष्र्वी है ।
मंगलवार युि ितुदणशी की अिणरावत्र में इनका प्रादभु ाणव हुआ था ।
भगवान् श्रीकृ ष्र् ने भी गीता में 'ववष्टभ्र्ाहवमदं कृत्स्नमेकांशेन वस्ितो जगत्' कहकर उसी शवि
का समथणन वकया है । तन्त्त्र में वही स्तम्भन शवि वगलामुखी के नामसे िानी िाती है ।
श्री वगलामुखी को 'ब्रह्मास्त्र' के नाम से भी िाना िाता है । ऐवहक या पारलौवकक देश अथवा समाि
में दुःु खद् अररिों के दमन और शत्रओ ु ं के शमन में वगलामख ु ी के समान कोई मन्त्त्र नहीं है । इनके बडवामख ु ी,
िातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमख ु ी पााँि मन्त्त्रभेद हैं ।
श्रीकुल की सभी महाववद्याओ ं की उपासना गुरु के सावन्त्नध्य में रहकर सतकण ता पूवणक सफलता की
प्रावि होने तक करते रहना िावहये । इसमें ब्रह्मियण का पालन और बाहर-भीतर की पववत्रता अवनवायण है ।
सवणप्रथम ब्रह्मािी ने वगला महाववद्या की उपासना की थी । ब्रह्मािी ने इस ववद्या का उपदेश
सनकावदक मवु नयों को वकया । सनत्कुमार ने देववषण नारद को और नारद ने साख्ं यायन नामक परमहसं को इसका
उपदेश वकया । साख्ं यायन ने छत्तीस पटलों में उपवनबद्ध वगलातन्त्त्र की रिना की । वगलामुखी के दसू रे उपासक
भगवान् ववष्र्ु और तीसरे उपासक परशुराम हुए तथा परशुराम ने यह ववद्या आिायण द्रोर्को बतायी ।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शवि का समावेश हैं माता बगलामख ु ी शत्रुनाश, वाकवसवद्ध, युद्ध, कोटण-किहरी
एवं वाद वववाद में वविय, हर प्रकार की प्रवतयोवगता परीक्षा में सफलता के वलए, सरकारी नौकरी के वलए
दैवी प्रकोप की शावन्त्त, िन-िान्त्य के वलये पौविक कमण एवं आवभिाररक कमण के वलये भी इनकी उपासना की
िाती है । इस ववद्या को ब्रह्मास्त्र भी कहा िाता है । इनकी उपासना में हररद्रा माला, पीत-पष्ु प एवं पीतवस्त्र का
वविान है ।
कृ ष्र् और अिुणन ने महाभातर के युद्ध के पूवण माता बगलामुखी की पूिा अिणना की थी । विसकी
सािना सिऋवषयों ने वैवदक काल में समय समय पर की है ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ मुख्य नाम : बगलामुिी ।


▪ अन्त्य नाम : पीताम्बरा (सवायविक जनमानस में प्रचवलत नाम), श्री वगला ।
▪ भैरव : मृत्र्ज
ुं र् ।
▪ भगवान के २४ अवतारों से सम्बद्ध : कूमय अवतार ।
▪ वतवथ : वैशाि शुक्ल अष्टमी ।
▪ कुल : श्रीकुल ।
▪ वदशा : पविम ।
▪ स्वभाव : सौम्र्-उग्र ।
▪ तीथण स्थान या मवं दर भारत में तीन प्रमि
ु ऐवतहावसक मवं दर माने गए हैं दवतर्ा (मध्र्प्रदेश),
कांगडा (वहमाचल) तिा नलिेडा वजला शाजापुर (मध्र्प्रदेश) में हैं ।
▪ कायण : सवय प्रकार स्तम्भन शवक्त प्रावि हेतु, शत्र-ु ववपवत्त-वनियनता नाश तिा
कचहरी (कोर्य) में ववजर् हेतु ।
▪ शारीररक वर्ण : पीला ।
▪ ववशेषता : ब्रह्मास्त्र एवं त्रैलोक्र् स्तम्भनी ववद्या ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ बगलामि
ु ी माता का मंत्र: ॥
▪ हल्दी या पीले कांि की माला से ८, १६, २१ माला मत्रं का िाप कर सकते हैं ।
▪ इस मंत्र का िाप रावत्र में १० से ४ के बीि में करें ।
▪ सािना के दौरान पीले वस्त्र िारर् करें सािना के वदनों में बाल ना कटवाएं, ब्रह्मियण का पालन करें और
के वल एक समय ही भोिन करें । सावत्वक भोिन करें तो और भी अच्छा है ।
▪ इस ववद्या का उपयोग के वल तभी वकया िाना िावहए िब कोई रास्ता ना बिा हो ।
▪ नोट : बगलामुखी महाववद्या सािना वववि आप वबना गुरु बनाये ना करें गुरु बनाकर व
अपने गुरु से सलाह लेकर इस सािना को करना िावहए । क्युकी वबना गुरु के की
हुई सािना आपके िीवन में हावन ला सकती है ।
▪ बीि मंत्र ह्लीं । दवक्षर्ाम्राय का है, विसे वस्थर माया भी कहा िाता है ।
▪ अवनन बीि सवहत मंत्र हल्रीं ।
▪ वववनयोग एकाक्षरी बगला मंत्रस्र् ब्रह्मा ऋवि: गार्त्री छंदः बगलामुिी देवता, लं बीजं,
ह्रीं (हं) शवक्त:, कीलकम्, मम सवायिय वसद्धर्िे जपे वववनर्ोगः ।
▪ षडङ्गन्त्यास ॐ ह्लां हृदर्ार् नम: । ॐ ह्लीं वशरसे स्वाहा । ॐ ह्लूाँ वशिार्ै विर्् ।
ॐ ह्लैं कवचार् हं । ॐ ह्लौं नेत्रत्रर्ार् वौिर्् । ॐ ह्लः अस्त्रार् फर्् ।
▪ ऋष्यावद न्त्यास श्री ब्रह्मा ऋिर्े नमः वशरवस । गार्त्री छन्दसे नमः मि ु े । श्री बगलामि ु ी देवतार्ै
नमः हृवद । लं बीजार् नमः गुह्ये । ह्रीं शक्तर्े (हं शक्तर्े) नमः पादर्ोः । ई ंकीलकार्
नमः सवायङ्गे । श्री बगलामि ु ी देवताम्बा प्रीत्र्िे जपे वववनर्ोगार् नमः अङ्जलौ ।
▪ करन्त्यास ॐ ह्लां अंगुष्ठाभ्र्ा नमः । ॐ ह्लीं तजयनीभ्र्ां स्वाहा । ॐ ह्लूं मध्र्माभ्र्ां विर्् ।
ॐ ह्लैं अनावमकाभ्र्ां हं । ॐ ह्लौं कवनवष्ठकाभ्र्ां वौिर्् । ॐ ह्लः करतलकरपृष्टाभ्र्ां फर्् ।
▪ िप सख् ं या १ लाि - जप, दशांश - पीत पुष्पों से होम, तद्दशांश - गडु ोदक से तपयण ।
▪ त्र्यक्षर मत्रं ॐ ह्लीं ॐ ।
▪ ितुरक्षरी मत्रं ॐ आं ह्लीं क्रों ।
▪ पंिाक्षरी मंत्र ॐ ह्रीं स्त्रीं हं फर्् ।
▪ सिाक्षर मंत्र ह्रीं बगलार्ै स्वाहा ।
▪ अिाक्षर मंत्र ॐ आं ह्लीं क्रों हं फर्् स्वाहा । साख्ं यायन तंत्र
▪ ॐ ह्रीं श्रीं आं क्रों बगला । बगला कल्पतरु
▪ एकोनववंशाक्षर मंत्र श्री ह्रीं ऐ ं भगववत बगले में वश्रर्ं देवह दवह स्वाहा । वाच्छाकल्पद्रुम
ॐ ह्रीं ऐ ं भगवती बगले में वश्रर्ं देवह दवह स्वाहा ।
▪ समस्त ऐश्वयो एवं सम्पवत्तयों की प्रावि हेतु । बदं व्यापार, डूबा िन

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ त्रयववंशाक्षर मंत्र ॐ ह्लीं क्लीं ऐ ं बगलामुख्र्ै गदािाररण्र्ै प्रेतासनाध्र्ावसन्र्ै स्वाहा ।


▪ बगला गायत्री ॐ ब्रह्मास्त्रार् ववद्महे स्तम्भन बाणार् िीमवह तन्नः बगलाप्रचोदर्ात ।
▪ मंत्र ॐ ह्लीं बगलामि
ु ी देव्र्ै ह्लीं ॐ नम: ।
▪ भयनाशक मंत्र ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सवय भर्ं हर: ।
▪ पीले रंग के वस्त्र और हल्दी की गाठं ें देवी को अवपणत करें ।
▪ पुष्प,अक्षत,िूप दीप से पूिन करें ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र िप करें ।
▪ दवक्षर् वदशा की और मुख रखें ।
▪ शत्रु नाशक मंत्र ॐ बगलामुिी देव्र्ै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु ।
▪ नाररयल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अवपणत करें ।
▪ मूती या वित्र के सम्मुख गुगल
ु की िूनी िलाये ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मत्रं िप करे ।
▪ मत्रं िाप के समय पविम वक ओर मख ु रखें ।
▪ निर, िाद-ू टोना नाशक मत्रं ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तत्रं बािां नाशर् नाशर् ।
▪ आटे के तीन वदये बनाये व देसी घी डाल कर िलाएं ।
▪ कपूर से देवी की आरती करें ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र िप करें ।
▪ मंत्र िाप के समय दवक्षर् की और मुख रखें ।

▪ परीक्षा में सफलता का मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुिी देव्र्ै ह्लीं साफल्र्ं देवह देवह स्वाहा: ।
▪ बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर िढाएं ।
▪ देवी की प्रवतमा या वित्र के सम्मुख एक अखंड दीपक िला कर रखें ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 8 माला का मत्र ं िप करें ।
▪ मंत्र िाप के समय पूवण की और मुख रखें ।

▪ सतं ान की रक्षा का मत्रं ॐ हं ह्लीं बगलामि


ु ी देव्र्ै कुमारं रक्ष रक्ष ।
▪ देवी मााँ को मीठी रोटी का भोग लगायें ।
▪ दो नाररयल देवी मााँ को अवपणत करें ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र िप करें ।
▪ मंत्र िाप के समय पविम की ओर मुख रखें ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ लम्बी आयु का मंत्र ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं ब्रह्मववद्या स्वरूवपणी स्वाहा: ।


▪ पीले कपडे व भोिन सामग्री आंटा दाल िावल आवद का दान करें ।
▪ मिदरू ों, सािुओ,ं ब्राह्मर्ों व गरीबों को भोिन वखलायें ।
▪ प्रसाद परू े पररवार में बााँटे ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र िप करें ।
▪ मंत्र िाप के समय पूवण की ओर मुख रखें ।
▪ बल प्रदाता मंत्र ॐ हं हां ह्लीं देव्र्ै शौर्ं प्रर्च्छ ।
▪ पवक्षयों को व मीन अथाणत मछवलयों को भोिन देने से देवी प्रसन्त्न होती है
▪ पष्ु प सगु िं ी हल्दी के सर िन्त्दन वमला पीला िल देवी को को अवपणत करना िावहए
▪ पीले कम्बल के आसन पर इस मंत्र को िपें.
▪ रुद्राक्ष की माला से 7 माला मंत्र िप करें
▪ मंत्र िाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें
▪ सुरक्षा कवि का मंत्र ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचार् हम ।
▪ देवी मााँ को पान वमठाई फल सवहत पञ्ि मेवा अवपणत करें ।
▪ छोटी छोटी कन्त्याओ ं को प्रसाद व दवक्षर्ा दे ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 1 माला का मंत्र िप करें ।
▪ मंत्र िाप के समय पूवण की ओर मुख रखें ।
▪ मंत्र ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्रार् ववद्महे स्तम्भन-बाणार् िीमवह तन्नो बगला प्रचोदर्ात् ।
▪ ितवु स्त्रश
ं दक्षर मत्रं ॐ ह्लीं बगलामिु ी सवय-दुष्टानाम् वाचं मि ु ं पदं स्तम्भर् ।
वजव्हां कीलर् बवु द्धं ववनाशर् ह्रीं ॐ स्वाहा ॥
▪ षट् वत्रंशदक्षर मंत्र ॐ ह्लीं बगलामुिी सवय-दुष्टानाम् वाचं मुिं पदं स्तम्भर् ।
वजव्हां कीलर् कीलर् बुवद्धं ववनाशर् ह्लीं ॐ स्वाहा ॥
▪ इस मंत्र का पुरिरर् 1 लाख िप है । िपोपरांत िपं ा के पुष्प से दशांश होम करना
िावहए । इस सािना में पीत वर्ण की महत्ता है । इद्रं वारुर्ी की िड को सात बार
अवभमवं त्रत करके पानी में डालने से वषाण का स्तभं न होता है । सभी मनोरथों की पवू तण
के वलए एकांत में 1 लाख बार मंत्र का िप करें । शहद व शकण रायुत वतलों से होम
करने पर वशीकरर्, तेलयुत नीम के पत्तों से होम करने पर हरताल, शहद, घृत व
शकण रायुत लवर् से होम करने पर आकषणर् होता है ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी ध्र्ान ॥


▪ विभुिी बगला ध्यानम् मध्र्े सुिावधि मवण मंडप रत्न-वेद्यां,
वसंहासनो पररगतां पररपीत वणायम् ।
पीताम्बरा भरणमाल्र् ववभूवितांगीम,्
देवीन् नमावम ितृ मद्गु र वैररवजह्वाम ॥ ॥१॥
वजह्वाग्रमादार् करेण देवीम,् वामेन शत्रून् परर-पीजर्न्तीम् ।
गदाऽवभघातेन च दवक्षणेन, पीताम्बराढ्र्ां वि-भुजां नमावम ॥ २ ॥
▪ ध्यानम् चतभ ु यज
ु ां वत्रनर्नां कमलासन सवं स्ितां ।
वत्रशूलं पान पात्रं च गदा वजह्वां च ववभ्रतीम् ॥
वबम्बोष्ठी कंबुकण्ठीं च सम पीन पर्ोिरां ।
पीताम्बरां मदाघूणां ध्र्ार्ेद् ब्रह्मास्व देवताम् ॥
▪ ितुभुणिी बगला ध्यानम् सौवणायसन-संवस्ितां वत्र-नर्नां पीतांशक ु ोल्लवसनीम,्
हेमाभांग-रूवचं शशांक मुकुर्ां सच्चम्पक स्रग्र्ुताम् ।
हस्तैमयद्गु र पाश-वज्र-रसना सवम्ब भ्रवत भूिणै,
व्र्ािागं ी बगलामि ु ी वत्र-जगतां सस्तवम्भनौ वचन्तर्ेत् ॥
▪ ितुभुणिी बगला ध्यानम् वन्दे स्वणायभ-वणाय मवण-गण-ववलसद्धेम- वसंहासनस्िाम् ।
पीतं वासो वसानां वसु - पद - मुकुर्ोत्तंस- हाराङ्गदाढ्र्ाम् ।।
पावणभ्र्ां वैरर-वजह्वामि उपरर-गरदां ववभ्रतीं तत्पराभ्र्ाम् ।
हस्ताभ्र्ां पाशमुच्चैरि उवदत-वरां वेद-बाहं भवानीम् ॥
▪ ध्यानम् वादी मक ू वत रक
ं वत वक्षवतपवतवेश्वानरः शीतवत ।
क्रोिी शान्तवत दुजयनः सुजनवत वक्षप्रानुगः िंजवत ॥
गवी िववतय सवय ववच्च जडवत त्वद् र्न्त्राणा र्ंवत्रतः।
श्रीवनत्र्े बगलामुविः प्रवतवदनं कल्र्ावण! तभ्ु र्ं नमः ॥
▪ ध्यानम् ॐ पीतशंि गदाहस्ते पीतचन्दन चवचयते ।
बगले मे वरं देवह शत्रु सघं ववदाररणी ॥
▪ ध्यानम् ॐ सुवणाय भरणां देवव पीतमाल्र्ाम्बरावृताम् ।
ब्रह्मास्त्रववद्यां बगलां वैररणां स्तवम्भनीं भजे ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी दशनाम स्तोत्रम् ॥


▪ मााँ पीताम्बरा रािरािेश्वरी भगवती बगलामख ु ी के अत्यन्त्त गोपनीय दस नामो वाल यह वदव्य दल
ु णभ स्तोत्र
हैं । इस स्तोत्र की फलश्रुवत के अनुसार िो सािक शत्रुमुख स्तम्भनकरी बगलामुखी मााँ के इस स्तोत्र का
पाठ करता है वह देवी पुत्र होता हैं, मन्त्त्र वसद्ध होता हैं ।

▪ बगला वसद्धववद्या च दुष्टवनग्रहकाररणी ।


स्तवम्भन्र्ाकवियणी चैव तिोच्चार्र्नकाररणी ॥
भैरवी भीमनर्ना महेशगवृ हणी शभ ु ा॥ ॥१॥
▪ दशनामात्मकं स्तोत्रं पठे िा पाठर्ेद्यवद ।
स भवेत् मन्त्रवसद्धि देवीपुत्र इव वक्षतौ ॥ ॥२॥
▪ अज्ञात्वा कवचं देवव र्ो भजेद बगलामुिीम ।
शस्त्राघातामवाप्नोवत सत्र्ं सत्र्ं न सश
ं र्ः ॥ ॥३॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी स्तोत्रम् ॥


▪ चलत्कनककुण्डलोल्लवसतचारुगण्डस्िलीं
लसत्कनकचम्पकद्युवतमवदन्दुवबम्बाननाम् ।
गदाहतववपक्षकां कवलतलोलवजह्वांचलां स्मरावम
बगलामिु ीं ववमि
ु वाङ्मनस्स्तवम्भनीम् ॥ ॥ १॥
▪ पीर्ूिोदविमध्र्चारुववलद्रक्तोत्पले मण्डपे
सवत्सहं ासनमौवलपावततररपुं प्रेतासनाध्र्ावसनीम् ।
स्वणायभां करपीवडतारररसनां भ्राम्र्द्गदां ववभ्रतीवमत्िं
ध्र्ार्वत र्ावन्त तस्र् सहसा सद्योऽि सवायपदः ॥ ॥ २॥
▪ देवव त्वच्चरणाम्बज ु ाचयनकृते र्ः पीतपष्ु पाञ्जलीन्भक्त्र्ा
वामकरे वनिार् च मनुं मन्त्री मनोज्ञाक्षरम् ।
पीठध्र्ानपरोऽि कुम्भकवशाद्बीजं स्मरेत्पावियवं
तस्र्ावमत्रमुिस्र् वावच हृदर्े जाड्र्ं भवेत्तत्क्षणात् ॥ ॥ ३॥
▪ वादी मूकवत रङ्कवत वक्षवतपवतवैश्वानरः शीतवत
क्रोिी शाम्र्वत दुजयनः सुजनवत वक्षप्रानुगः िञ्जवत ।
गवी िवयवत सवयववच्च जडवत त्वन्मवन्त्रणा र्वन्त्रतः
श्रीवनयत्र्े बगलामवु ि प्रवतवदनं कल्र्ावण तभ्ु र्ं नमः ॥ ॥ ४॥
▪ मन्त्रस्तावदलं ववपक्षदलने स्तोत्रं पववत्रं च ते र्न्त्रं
वावदवनर्न्त्रणं वत्रजगतां जैत्रं च वचत्रं च ते ।
मातः श्रीबगलेवत नाम लवलतं र्स्र्ावस्त जन्तोमयि ु े
त्वन्नामग्रहणेन संसवद मुिे स्तम्भो भवेिावदनाम् ॥ ॥ ५॥
▪ दुष्टस्तम्भनमग्रु ववघ्नशमनं दाररद्र्र्ववद्रावणं
भूभृत्सन्दमनं चलन्मृगदृशां चेतःसमाकियणम् ।
सौभाग्र्ैकवनके तनं समदृशः कारुण्र्पण ू ेक्षणम्
मृत्र्ोमायरणमाववरस्तु पुरतो मातस्त्वदीर्ं वपुः ॥ ॥ ६॥
▪ मातभयञ्जर् मविपक्षवदनं वजह्वां च सङ्कीलर्
ब्राह्मीं मुद्रर् दैत्र्देववििणामुग्रां गवतं स्तंभर् ।
शत्रिूं णू यर् देवव तीक्ष्णगदर्ा गौराङ्वग पीताम्बरे
ववघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारुण्र्पण ू ेक्षणे ॥ ॥ ७॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ मातभैरवव भद्रकावल ववजर्े वारावह ववश्वाश्रर्े


श्रीववद्ये समर्े महेवश बगले कामेवश वामे रमे ।
मातङ्वग वत्रपुरे परात्परतरे स्वगायपवगयप्रदे दासोऽहं
शरणागतः करुणर्ा ववश्वेश्वरर त्रावह माम् ॥ ॥ ८॥
▪ संरम्भे चौरसङ्घे प्रहरणसमर्े बन्िने व्र्ाविमध्र्े
ववद्यावादे वववादे प्रकुवपतनपृ तौ वदव्र्काले वनशार्ाम् ।
वश्र्े वा स्तम्भने वा ररपुविसमर्े वनजयने वा वने वा
गच्छंवस्तष्ठंवस्त्रकालं र्वद पठवत वशवं प्राप्नुर्ादाशु िीरः ॥ ॥ ९॥
▪ त्वं ववद्या परमा वत्रलोकजननी ववघ्नौघसछ ं े वदनी
र्ोवित्कियणकाररणी जनमनःसम्मोहसन्दावर्नी ।
स्तम्भोत्सारणकाररणी पशुमनःसम्मोहसन्दावर्नी
वजह्वाकीलनभैरवी ववजर्ते ब्रह्मावदमन्त्रो र्िा ॥ ॥ १०॥
▪ ववद्या लक्ष्मीवनयत्र्सौभाग्र्मार्ुः पुत्रैः पौत्रैः सवयसाम्राज्र्वसवद्धः ।
मानो भोगो वश्र्मारोग्र्सौख्र्ं प्रािं तत्तद्भूतलेऽवस्मन्नरेण ॥ ११॥
▪ त्वत्कृते जपसन्नाहं गवदतं परमेश्वरर ।
दुष्टानां वनग्रहािायर् तद्गहृ ाण नमोऽस्तु ते ॥ ॥ १२॥

▪ पीताम्बरां च विभज ु ां वत्रनेत्रां गात्रकोमलाम् ।


वशलामुद्गरहस्तां च स्मरे तां बगलामुिीम् ॥ ॥ १३॥
▪ ब्रह्मास्त्रवमवत ववख्र्ातं वत्रिु लोके िु ववश्रतु म् ।
गुरुभक्तार् दातव्र्ं न देर्ं र्स्र् कस्र्वचत् ॥ ॥ १४॥
▪ वनत्र्ं स्तोत्रवमदं पववत्रवमह र्ो देव्र्ाः पठत्र्ादराद्धृत्वा
र्न्त्रवमदं तिैव समरे बाहौ करे वा गले ।
राजानोऽप्र्रर्ो मदान्िकररणः सपाय मृगेन्द्रावदकास्ते वै
र्ावन्त ववमोवहता ररपुगणा लक्ष्मीः वस्िरा वसद्धर्ः ॥ ॥ १५॥

॥ इवत श्री रुद्रयामले तन्त्त्रे श्री बगलामख


ु ी स्तोत्रम् सम्पर्ू णम ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ श्री बगलामुिी हृदर् स्तोत्रम् - १ ॥


▪ श्री देव्यवु ाि इदानीं िलु मे देव ! बगला-हृदर्ं प्रभो !
किर्स्व महा-देव ! र्द्यहं तव वल्लभा ॥ ॥१॥
▪ श्रीईश्वरो वाि सािु सािु महा-प्राज्ञे ! सवय-तन्त्रािय-साविके !
ब्रह्मास्त्र-देवतार्ाि, हृदर्ं ववच्म तत्त्वतः ॥ ॥२॥
▪ हृदय-स्तोत्रम् गम्भीरां च मदोन्मत्तां, स्वणय-कावन्त-सम-प्रभाम् ।
चतभु यज
ु ां वत्र-नर्ना,ं कमलासन-सवं स्िताम् ॥ ॥१॥
▪ ऊध्वय-के श-जर्ा-जूर्ां, कराल-वदनाम्बुजाम् ।
मुद्गरं दवक्षणे हस्ते, पाशं वामेन िाररणीम् ॥ ॥२॥
▪ ररपोवजयह्वां वत्रशूलं च, पीत-गन्िानुलेपनाम् ।
पीताम्बर-िरां सान्द्र-दृढ़-पीन-पर्ोिराम् ॥ ॥३॥
▪ हेम-कुण्डल-भिू ां च, पीत-चन्द्रािय-शेिराम् ।
पीत-भिू ण-भिू ाढ्र्ां, स्वणय-वसहं ासने वस्िताम् ॥ ॥४॥
▪ स्वानन्दानु-मर्ी देवी, ररपु-स्तम्भन-काररणी ।
मदनस्र् रतेिावप, प्रीवत-स्तम्भन-काररणी ॥ ॥५॥
▪ महा-ववद्या महा-मार्ा, महा-मेिा महा-वशवा ।
महा-मोहा महा-सक्ष्ू मा, सािकस्र् वर-प्रदा ॥ ॥६॥
▪ राजसी सावत्त्वकी सत्र्ा, तामसी तैजसी स्मृता ।
तस्र्ाः स्मरण-मात्रेण, त्रैलोक्र्ं स्तम्भर्ेत् क्षणात् ॥ ॥७॥
▪ गणेशो वर्ुकिैव, र्ोवगन्र्ः क्षेत्र-पालकः ।
गुरवि गुणावस्तस्त्रो, बगला स्तवम्भनी तिा ॥ ॥८॥
▪ जवृ म्भणी मोवदनी चाम्बा, बावलका भि
ू रा तिा ।
कलिु ा करुणा िात्री, काल-कवियवणका परा ॥ ॥९॥
▪ भ्रामरी मन्द-गमना, भगस्िा चैव भावसका ।
ब्राह्मी माहेश्वरी चैव, कौमारी वैष्णवी रमा ॥ ॥१०॥
▪ वाराही च तिेन्द्राणी, चामुण्डा भैरवाष्टकम् ।
सभ
ु गा प्रिमा प्रोक्ता, वितीर्ा भग-मावलनी ॥ ॥११॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ भग-वाहा तृतीर्ा तु, भग-वसद्धाऽवधि-मध्र्गा ।


भगस्र् पावतनी पिात्, भग-मावलनी िवष्ठका ॥ ॥१२॥
▪ उड्डीर्ान-पीठ-वनलर्ा, जालन्िर-पीठ-सवं स्िता ।
काम-रुपं तिा सस्ं िा, देवी-वत्रतर्मेव च ॥ ॥१३॥
▪ वसद्धौघा मानवौघाि, वदव्र्ौघा गुरवः क्रमात् ।
क्रोविनी जृवम्भणी चैव, देव्र्ािोभर् पाश्वयर्ोः ॥ ॥१४॥
▪ पूज्र्ावस्त्रपुर-नािि, र्ोवन-मध्र्ेऽवम्बका-र्ुतः ।
स्तवम्भनी र्ा मह-ववद्या, सत्र्ं सत्र्ं वरानने ॥ ॥१५॥
▪ फल-श्रुवत एिा सा वैष्णवी मार्ा, ववद्यां र्त्नेन गोपर्ेत् ।
ब्रह्मास्त्र-देवतार्ाि, हृदर्ं परर-कीवतयतम् ॥ ॥१॥
ब्रह्मास्त्रं वत्रिु लोके ि,ु दुष्प्राप्र्ं वत्रदशैरवप ।
गोपनीर्ं प्रत्र्नेन, न देर्ं र्स्र् कस्र्वचत् ॥ ॥२॥
गरुु -भक्तार् दातव्र्ं, वत्सरं दुःवितार् वै ।
मातु-वपत-ृ रतो र्स्तु, सवय-ज्ञान-परार्णः ॥ ॥३॥
तस्मै देर्वमदं देवव ! बगला-हृदर्ं परम् ।
सवायिय-सािकं वदव्र्ं, पठनाद् भोग-मोक्षदम् ॥ ॥४॥

॥ श्री रुद्रयामले उत्तरखण्डे श्री ब्रह्मास्त्र महाववद्या श्री बगलामुखी स्तोत्रम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ बगलामि
ु ी हृदर् स्तोत्रम् - २ ॥
▪ वववनयोग : ॐ अस्य श्री बगलामुखी हृदयमालामन्त्त्रस्य नारदुः ऋवष:, अनुिुप् छन्त्दुः श्री
बगलामुखी देवता ह्रीं बीिं क्लीं शविुः ऐ ं कीलकं श्रीबगलामुखी-वर-प्रसाद-वसद्धयथे
िपे वववनयोग:।
▪ ऋष्यावद-न्त्यास ॐ नारद ऋषये नमुः वशरवस। ॐ अनिु ुप् छन्त्दसे नमो मख ु े । ॐ श्री बगलामख्ु यै
देवतायै नमुः हृदये । ॐ ह्रीं बीिाय नमो गह्य
ु े । ॐ क्लीं शिये नमुः पादयोुः । ॐ ऐ ं
कीलकाय नमुः सवाांगे ।
▪ करांग-न्त्यास : ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभयां नमुः । ॐ क्लीं तिणनीभयां नमुः । ॐ ऐ ं मध्यमाभयां नमुः । ॐ ह्रीं
अनावमकाभयां नमुः । ॐ क्लीं कवनवष्ठकाभयां नमुः । ॐ ऐ ं करतलकरपृष्ठाभयां नमुः ।
▪ हृदयावद न्त्यास : ॐ ह्रीं हृदयाय नमुः । ॐ क्लीं वशरसे स्वाहा । ॐ ऐ ं वशखायै वषट् । ॐ ह्रीं कविाय
हुं । ॐ क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ऐ ं अस्त्राय फट् । ॐ ह्रीं क्लीं ऐ ं इवत वदनबंि: ।
▪ वन्देऽहं देवीं पीतभिू णभवू िताम् ।
तेजोरुपमर्ीं देवीं पीततेजः स्वरुवपणीम् ॥ ॥१॥
▪ गदाभ्रमणवभन्नाभ्रां भ्रकुर्ीभीिणाननाम् ।
भीिर्न्तीं भीमशत्रनू ् भजे भव्र्स्र् भवक्तदाम् ॥ ॥२॥
▪ पूणय-चन्द्रसमानास्र्ां पीतगन्िानुलेपनाम् ।
पीताम्बरपरीिानां पववत्रामाश्रर्ाम्र्हम् ॥ ॥३॥
▪ पालर्न्तीमनपु लं प्रसमीक्ष्र्ाऽवनीतले ।
पीताचाररतां भक्तां स्ताम्भवानीं भजाम्र्हम् ॥ ॥४॥
▪ पीतपद्मपदिन्िां चम्पकारण्र् रुवपणीम् ।
पीतावतंसां परमां वन्दे पद्मजववन्दताम् ॥ ॥५॥
▪ लसञ्चारुवसञ्जत्सुमञ्जीरपादां चलत्स्वणयकणायवतं सावञ्चतां स्र्ाम् ।
वलत्पीतचन्द्राननां चन्द्रवन्द्यां भजे पद्मजादीऽर्सत्पादपद्माम् ॥ ६ ॥
▪ सुपीताभर्ामालर्ा पूतमन्त्रं परं ते जपन्तो जर्ं सल
ं भन्ते ।
रणे रागरोिाप्लुतानां ररपूणां वववादे बलािैकयृ ता-घातमातः ॥ ॥ ७ ॥
▪ भरत्पीतभास्वत्प्रभाहस्कराभां गदागवञ्जतावमत्र गवां गररष्ठाम् ।
गरीर्ो गुणागारगात्रां गुणाढ्र्ां गणेशावदगम्र्ां श्रर्े वनगयण
ु ाढ्र्ाम् ॥ ॥ ८ ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ जना र्े जपन्त्र्ुग्रबीजं जगत्सु परं प्रत्र्हं ते स्मरन्तः स्वरुपम् ।


भवेद् वावदनां वाङ्मिस्तम्भ आद्ये जर्ो जार्ते जल्पतामाशु तेिाम् ॥ ॥ ९ ॥
▪ तव ध्र्ान-वनष्ठा-प्रवतष्ठात्म-प्रज्ञावतां पादपद्माचयने प्रेमर्ुक्ताः ।
प्रसन्ना नपृ ाः प्राकृताः पवण्डता वा परु ाणावदगा दासतल्ु र्ा भववन्त ॥ ॥१०॥
▪ नमामस्ते मातः कनक-कमनीर्ाङ्रीजलजम् ।
बलविद्युिणं घन-वमवतर-ववध्वंस-करणम् ।।
भवाधिौ मग्नात्मोत्तरण करणं सवयशरणम् ।
प्रपन्नानां मातजयगवत बगले दुःिदमनम् ॥ ॥११॥
▪ ज्वलज्ज्र्ोत्स्ना रत्ना करमवणववभवु िक्ताक ं भवनम् ।
स्मरामस्ते िाम स्मरहर हरीन्द्रेन्दुप्रमुिैः ।।
अहोरात्रं प्रातः प्रणर्नवनीर्ं सुववशदम् ।
परं पीताकारं पररवचत मवण िीपवसनम् ॥ ॥१२॥
▪ वदामस्ते मातः श्रुवतसुिकरं नाम लवलतम् ।
लसन्मात्रावणं जगवत बगलेवत प्रचररतम् ।
चलन्तवस्तष्ठन्तो वर्मुपववशन्तोऽवप शर्ने ।
भजामो र्च्रे र्ो वदवव दूरवलभ्र्ं वदवविदाम् ॥ ॥१३॥
▪ पदाचायर्ां प्रीवतः प्रवतवदनमपूवाय प्रभवतु ।
र्िा ते प्रासन्न्र्ं प्रवतपलमपरक्ष्र्ं प्रणमताम् ।।
अनल्पं तन्मातभयववत भृतभक्तर्ा भवतु नो ।
वदशातः सद्-भवक्तं भवु व भगवतां भरू र भवदाम् ॥ ॥१४॥
▪ मम सकलररपूणां वाङ्मिे स्तम्भर्ाशु ।
भगववत ररपुवजह्वां कीलर् प्रस्ितुल्र्ाम् ।।
व्र्ववसत िलबुवद्धं नाशर्ाऽऽशु प्रगल्भाम् ।
मम कुरु बहकार्ं सत्कृपेऽम्ब प्रसीद ॥ ॥१५॥
▪ व्रजतु मम ररपण
ु ां सद्मवन प्रेतसस्ं िा ।
करिृतगदर्ा तान् घातवर्त्वाऽशु रोिात् ।।
सघनवसनिान्र्ं सद्म तेिां प्रदह्य ।
पुनरवप बगला स्वस्िानमार्ातु शीरम् ॥ ॥१६॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ करितृ ररपुवजह्वा पीडनं व्र्ग्रहस्ताम् ।


पुनरवप गदर्ा तांस्ताडर्न्तीं सुतन्त्राम् ।।
प्रणतसुरगणानां पावलकां पीतवस्त्रां ।
बहबलबगलान्तां पीतवस्त्रां नमामः ॥ ॥१७॥
▪ हृदर्वचनकार्ैः कुवयतां भवक्तपुञ्जं ।
प्रकर्वत करुणाद्राय प्रीणती जल्पतीवत ।।
िनमि बहिान्र्ं पुत्रपौत्रावदवृवद्धः ।
सकलमवप वकमेभ्र्ो देर्मेवं त्ववश्र्म् ॥ ॥१८॥
▪ तव चरणसरोजं सवयदा सेव्र्मानं ।
द्रुवहणहररहराद्यैदेववृन्दैः शरण्र्म् ।।
मृदुलमवप शरं ते शम्मयदं सूररसेव्र्ं ।
वर्वमह करवामो मातरेतद् वविेर्म् ॥ ॥१९॥

▪ फल-श्रवु त बगला हृदर् स्तोत्रवमदं भवक्त-समवन्वतः ।


पठे द् र्ो बगला तस्र् प्रसन्ना पाठतो भवेत् ॥ ॥२०॥
▪ पीता ध्र्ान परो भक्तो र्ः श्रृणोत्र्ववकल्पत ।
वनष्कल्मिो भवेन् मत्र्ो मृतो मोक्षमवाप्नुर्ात् ॥ ॥२१॥
▪ आवश्वनस्र् वसते पक्षे महाष्टम्र्ां वदवावनशम् ।
र्वस्तवदं पठते प्रेम्णा बगलाप्रीवतमेवत सः ॥ ॥२२॥
▪ देव्र्ालर्े पठन् मत्र्ो बगलां ध्र्ार्तीश्वरीम् ।
पीतवस्त्रावृतो र्स्तु तस्र् नश्र्वन्त शत्रवः ॥ ॥२३॥
▪ पीताचाररतो वनत्र्ं पीतभूिां वववचन्तर्न् ।
बगलां र्ः पठे न् वनत्र्ं हृदर् स्तोत्र मुत्तमम् ॥ ॥२४॥
▪ न वकवञ्चद् दुलयभं तस्र्दृश्र्ते जगतीतले ।
शत्रवो ग्लावनमायर्ावन्त तस्र् दशयनमात्रतः ॥ ॥२५॥

॥ श्री वसद्धेश्वर तंत्रे उत्तर-खण्डे बगला-पटले श्री बगला हृदय स्तोत्रम् सम्पुर्मण ् ।।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी स्तोत्रम् ॥


▪ वववनयोग : अस्य श्री बगलामख
ु ी स्तोत्रस्य नारद ऋवषुः वत्रिुप छन्त्दुः। श्री बगलामख
ु ी देवता,
बीिं स्वाहा शविुः कीलकं मम श्री बगलामुखी प्रीत्यथे िपे वववनयोगुः ।

▪ ध्यानम् सौवणायसनसंवस्ितां वत्रनर्नां पीतांिुकोल्लावसनीं,


हेमाभांगरुवचं शिंकमुकुर्ां स्रक चम्पकस्त्रग्र्ुताम,्
हस्तैमुद्गर, पािबद्धरसनां सवं वभृतीं भूिणैव्र्विागं ी
बगलामि ु ी वत्रजगतां सस्ं तवम्भनीं वचन्तर्े ।
▪ ॐ मध्र्े सि
ु ावधिमवणमण्डपरत्नवेदीं, वसहं ासनोपररगतां पररपीतवणायम् ।
पीताम्बराभरणमाल्र्ववभवू ितागं ी देवीं भजावम ितृ मदु ग्रवैररवजव्हाम् ॥ ॥ १ ॥
▪ वजह्वाग्रमादार् करेण देवी, वामेन शत्रनू पररपीडर्न्तीम् ।
गदावभघातेन च दवक्षणेन, पीताम्बराढर्ां विभुजां भजावम ॥ ॥२॥
▪ चलत्कनककुण्डलोल्लवसत चारु गण्डस्िलां,
लसत्कनकचम्पकद्युवतमवदन्दुवबम्बाननाम् ॥
गदाहतववपक्षकांकवलतलोलवजह्वाचंलाम् ।
स्मरावम बगलामि
ु ीं ववमुिवांगमनस्स्तंवभनीम् ॥ ॥३॥
▪ पीर्ूिोदविमध्र्चारुववलसद्रक्तोत्पले मण्डपे, सवत्सहासनमौवलपावततररपुं प्रेतासनाि् र्ावसनीम् ।
स्वणायभांकरपीवडतारररसनां भ्राम्र्दां ववभ्रमावमत्िं ध्र्ार्वत र्ावन्त तस्र् ववलर्ं सद्योऽि सवायपदः॥४॥
▪ देवव त्वच्चरणाम्बुजाचयनकृते र्ः पीतपुष्पान्जलीन् ।
भक्तर्ा वामकरे वनिार् च मनुम्मन्त्री मनोज्ञाक्षरम् ।
पीठध्र्ानपरोऽि कुम्भकविािीजं स्मरेत् पावियवः ।
तस्र्ावमत्रमि
ु स्र् वावच हृदर्े जाडर्ं भवेत् तत्क्षणात् ॥ ॥५॥
▪ वादी मक ू वत रक
ं वत वक्षवतपवतवैष्वानरः शीतवत ।
क्रोिी शाम्र्वत दुज्र्जनः सजु नवत वक्षप्रानगु ः िज
ं वत ॥
गवी िवयवत सवयववच्च जडवत त्वद्यन्त्रणार्ंवत्रतः ।
श्रीवनत्र्े बगलामिु ी प्रवतवदनं कल्र्ावण तुभ्र्ं नमः ॥ ॥६॥
▪ मन्त्रस्तावदलं ववपक्षदलनं स्तोत्रं पववत्रं च ते,
र्न्त्रं वावदवनर्न्त्रणं वत्रजगतां जैत्रं च वचत्रं च ते ।
मातः श्रीबगलेवतनामलवलतं र्स्र्ावस्त जन्तोमयि ु े,
त्वन्नामग्रहणेन संसवद मुिस्तम्भे भवेिावदनाम् ॥ ॥७॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ दष्ट स्तम्भ्नमगु ववघ्निमन दाररद्रर्ववद्रावणम,


भूभिमनं चलन्मृगदृिान्चेतः समाकियणम्।
सौभाग्र्ैकवनके तनं समदृिां कारुण्र्पण ू ायऽमतृ म्,
मत्ृ र्ोमायरणमाववरस्तु परु तो मातस्त्वदीर्ं वपःु ॥ ॥८॥
▪ मातभयन्जर् मे ववपक्षवदनं वजव्हां च सक ं ीलर्,
ब्राह्मीं मुद्रर् नािर्ािुवििणामुग्रांगवतं स्तम्भर्।
शत्रूंश्रूचणयर् देवव तीक्ष्णगदर्ा गौरावगं पीताम्बरे,
ववघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्र्पूणेक्षणे ॥ ॥९॥
▪ मातभैरवव भद्रकावल ववजर्े वारावह ववष्वाश्रर्े ।
श्रीववद्ये समर्े महेवि बगले कामेवि रामे रमे ।।
मातंवग वत्रपुरे परात्परतरे स्वगायपवगप्रदे ।
दासोऽहं शरणागतः करुणर्ा ववष्वेष्वरर त्रावहमाम् ॥ ॥१०॥
▪ सरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमर्े बन्िने वाररमि् र्े,
ववद्यावादे वववादे प्रकुवपतनपृ तौ वदव्र्काले वनिार्ाम् ।
वष्र्े वा स्तम्भने वा ररपबु िसमर्े वनजयने वा वने वा,
गच्छवस्तष्ठवं स्त्रकालं र्वद पठवत विवं प्राप्नर्ु ादािि
ु ीरः ॥ ॥११॥
▪ त्वं ववद्या परमा वत्रलोकजननी ववघ्नौघवसच्ं छे वदनी,
र्ोिाकियणकाररणी वत्रजगतामानन्द सम्वध्र्नी ।
दुष्टोच्चार्नकाररणीजनमनस्संमोहसंदावर्नी,
वजव्हाकीलनभैरवव! ववजर्ते ब्रह्मावदमन्त्रो र्िा ॥ ॥१२॥
▪ ववद्याः लक्ष्मीः सवयसौभाग्र्मार्ुः पुत्रैः पौत्रैः सवय साम्राज्र्वसवद्धः।
मानं भोगो वष्र्मारोग्र् सौख्र्,ं प्रािं तत्तद्भूतलेऽवस्मन्नरेण ॥ ॥१३॥
▪ र्त्कृतं जपसन्नाहं गवदतं परमेष्वरर । दुष्टानां वनग्रहािायर् तद्गृहाण नमोऽस्तुते ॥ ॥१४॥
▪ ब्रह्मास्त्रवमवत ववख्र्ातं वत्रिु लोके िु ववश्रुतम् । गुरुभक्तार् दातव्र्ं न दे्र्ं र्स्र् कस्र्वचत् ॥ ॥१५॥
▪ पीतांबरा च वि-भुजां, वत्र-नेत्रां गात्र कोमलाम् । विला-मुद्गर हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुिीम् ॥ ॥१६॥
▪ वनत्र्ं स्तोत्रवमदं पववत्रमवह र्ो देव्र्ाः पठत्र्ादराद्- िृत्वा र्न्त्रवमदं तिैव समरे बाहौ करे वा गले।
राजानोऽप्र्रर्ो मदान्िकररणः सपायः मगृ ेन्द्रावदका- स्तेवैर्ावन्त ववमोवहता ररपगु णाः लक्ष्मीः
वस्िरावसद्धर्ः ॥ ॥१७॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मां बगलामुिी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् ॥


▪ ॐ ब्रह्मास्त्र-रुवपणी देवी, माता श्रीबगलामि ु ी।
वचवच्छवक्तज्ञायन-रुपा च, ब्रह्मानन्द-प्रदावर्नी ॥ ॥ १ ॥
▪ महा-ववद्या महा-लक्ष्मी श्रीमत् -वत्रपुर-सुन्दरी।
भुवनेशी जगन्माता, पावयती सवय-मंगला ॥ ॥२॥
▪ लवलता भैरवी शान्ता, अन्नपूणाय कुलेश्वरी।
वाराही वछन्नमस्ता च, तारा काली सरस्वती ॥ ॥३॥
▪ जगत् -पूज्र्ा महा-मार्ा, कामेशी भग-मावलनी।
दक्ष-पुत्री वशवांकस्िा, वशवरुपा वशववप्रर्ा ॥ ॥४॥
▪ सवय-सम्पत-् करी देवी, सवय-लोक वशंकरी।
वेद-ववद्या महा-पूज्र्ा, भक्तािेिी भर्ंकरी ॥ ॥५॥
▪ स्तम्भ-रुपा स्तवम्भनी च, दुष्ट-स्तम्भन-काररणी।
भक्त-वप्रर्ा महा-भोगा, श्रीववद्या लवलतावम्बका ॥ ॥ ६ ॥
▪ मेना-पुत्री वशवानन्दा, मातंगी भुवनेश्वरी।
नारवसंही नरेन्द्रा च, नृपाराध्र्ा नरोत्तमा ॥ ॥७॥
▪ नावगनी नाग-पुत्री च, नगराज-सुता उमा।
पीताम्बरा पीत-पष्ु पा च, पीत-वस्त्र-वप्रर्ा शभ
ु ा॥ ॥८॥
▪ पीत-गन्ि-वप्रर्ा रामा, पीत-रत्नावचयता वशवा।
अद्धय-चन्द्र-िरी देवी, गदा-मुद्-गर-िाररणी ॥ ॥९॥
▪ साववत्री वत्र-पदा शुद्धा, सद्यो राग-ववववद्धयनी।
ववष्णु-रुपा जगन्मोहा, ब्रह्म-रुपा हरर-वप्रर्ा ॥ ॥१०॥
▪ रुद्र-रुपा रुद्र-शवक्तवद्दन्मर्ी भक्त-वत्सला।
लोक-माता वशवा सन्ध्र्ा, वशव-पज ू न-तत्परा ॥ ॥११॥
▪ िनाध्र्क्षा िनेशी च, िमयदा िनदा िना।
चण्ड-दपय-हरी देवी, शुम्भासुर-वनववहयणी ॥ ॥१२॥
▪ राज-राजेश्वरी देवी, मवहिासुर-मवदयनी।
मि-ु कै र्भ-हन्त्री च, रक्त-बीज-ववनावशनी ॥ ॥१३॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ िम्रू ाक्ष-दैत्र्-हन्त्री च, भण्डासुर-ववनावशनी।


रेणु-पुत्री महा-मार्ा, भ्रामरी भ्रमरावम्बका ॥ ॥१४॥
▪ ज्वालामुिी भद्रकाली, बगला शत्र-ुनावशनी।
इन्द्राणी इन्द्र-पज्ू र्ा च, गहु -माता गण
ु ेश्वरी ॥ ॥१५॥
▪ वज्र-पाश-िरा देवी, वजह्वा-मुद्-गर-िाररणी।
भक्तानन्दकरी देवी, बगला परमेश्वरी ॥ ॥१६॥

▪ फल- श्रुवत अष्टोत्तरशतं नाम्ना,ं बगलार्ास्तु र्ः पठे त्।


ररप-ुबािा-वववनमयक्तु ः, लक्ष्मीस्िैर्यमवाप्नर्ु ात् ॥ ॥ १ ॥
▪ भतू -प्रेत-वपशाचाि, ग्रह-पीडा-वनवारणम।्
राजानो वशमार्ावत, सवैश्वर्ं च ववन्दवत ॥ ॥२॥
▪ नाना-ववद्यां च लभते, राज्र्ं प्राप्नोवत वनवितम।्
भुवक्त-मुवक्तमवाप्नोवत, साक्षात् वशव-समो भवेत् ॥ ३ ॥

॥ श्रीरूद्रयामले सवण-वसवद्ध-प्रद श्री बगलािोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी पञ्जर स्तोत्रम् ॥


यह अवत गोपनीय व रहस्यपूर्ण पञ्िर स्तोत्र अवत दल ु णभ तथा परीवक्षत है । इस पञ्िर का िप अथवा
पाठ करने वाला सािक प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाता है । घोर दाररद्रय व ववघ्नों के नाशक इस स्तोत्र का पाठ
करने वाले सािक की मााँ बगला स्वयं रक्षा करती हैं । शत्रु दल सािक को मूक होकर देखते रह िाते हैं ।
▪ वववनयोगुः ॐ अस्य श्रीमद् बगलामख ु ी पीताम्बरा पञ्िररूप स्तोत्र मन्त्त्रस्य भगवान नारद
ॠवषुः, अनिु ुप छन्त्दुः, िगिश्यकरी श्री पीताम्बरा बगलामख ु ी देवता, ह्ल्रीं बीि,ं
स्वाहा शविुः, क्लीं कीलकं मम परसैन्त्य मन्त्त्र-तन्त्त्र-यन्त्त्रवद कृ त्य क्षयाथां श्री
पीताम्बरा बगलामुखी देवता प्रीत्यथे ि िपे वववनयोगुः ।
▪ ॠष्यावद-न्त्यास भगवान नारद ॠषये नमुः वशरवस । अनुिुप छन्त्दसे नमुः मुखे । िगिश्यकरी
श्री पीताम्बरा बगलामख
ु ी देवतायै नमुः हृदये । ह्ल्रीं बीिाय नमुः दवक्षर्स्तने ।
स्वाहा शविये नमुः वामस्तने । क्लीं कीलकाय नमुः नाभौ ।
▪ करन्त्यास ह्ल्रां अंगुष्ठाभयां नमुः । ह्ल्रीं तिणनीभयां स्वाहा । ह्ल्रूं मध्यमाभयां वषट् ।
ह्ल्रैं अनावमकाभयां हुं । ह्ल्रौं कवनवष्ठकाभयां वौषट् । ह्ल्रुःं करतलकरपृष्ठाभयां फट् ।
▪ अंगन्त्यास ह्ल्रां हृदयाय नमुः । ह्ल्रीं वशरसे स्वाहा । ह्ल्रूं वशखायै वषट् । ह्ल्रैं कविाय हुं ।
हरौं नेत्र-त्रयाय वौषट् । ह्ल्रुःं अस्त्रय फट् ।
▪ व्यापक न्त्यास ॐ ह्ल्रीं अंगष्ठु ाभयां नमुः । ॐ बगलामुवख तिणनीभयां स्वाहा । ॐ सवण दिु ानां
मध्यमाभयां वषट् । ॐ वािं मुखं पदं स्तम्भय अनावमकाभयां हुं । ॐ विह्ां कीलय
कवनवष्ठकाभयां वौषट् । ॐ बुवद्धं ववनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा करतल कर पृष्ठाभयां फट् ।
▪ अंगन्त्यास ॐ ह्ल्रीं हृदयाय नमुः । ॐ बगलामुवख वशरसे स्वाहा । ॐ सवणदिु ानां वशखायै
वषट् । ॐ वािं मुखं पदं स्तम्भय कविाय हुं । ॐ विह्ां कीलय नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ॐ बवु द्धं ववनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा, अस्त्रय फट् ।
▪ ध्यान मध्र्े सुिावधि-मवण-मण्डप-रत्नवेद्यां,
वसहं ासनों पररगतां पररपीतवणायम् ।
पीताम्बराभरण-माल्र्-ववभूवितांगी,
देवीं स्मरावम िृत-मुद्गर-वैरर-वजह्ां ॥
▪ मानस पूिा श्री पीताम्बरायै नमुः लं पृवथव्यात्मकं गन्त्िं पररकल्पयावम ।
श्री पीताम्बरायै नमुः हं आकाशात्मकं पुष्पं पररकल्पयावम ।
श्री पीताम्बरायै नमुः यं वायव्यात्मकं िपू ं पररकल्पयावम ।
श्री पीताम्बरायै नमुः रं अवननआत्मकं वदपं पररकल्पयावम ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

श्री पीताम्बरायै नमुः वं अमृतात्मकं नैवेद्यं पररकल्पयावम ।


श्री पीताम्बरायै नमुः सं सवाणत्मकं तम्बुलवड पररकल्पयावम ।

▪ पञ्िर स्तोत्र पञ्जरं तत् प्रवक्ष्र्ावम देव्र्ाः पापप्रणाशनम् ।


र्ं प्रववश्र् न बािन्ते बाणैरवप नराः क्ववचत ॥ ॥१॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं श्रीमत् पीताम्बरा देवी, बगला बुवद्ध-ववद्धयनी ।
पातु मामवनशं साक्षात,् सहस्राकय -समद्युवत ॥ ॥२॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं वशिावद-पाद-पर्यन्तं, वज्र-पञ्जर-िाररणी ।
ब्रह्मास्त्र-सज्ञं ा र्ा देवी, पीताम्बरा-ववभवू िता ॥ ॥ ३ ॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं श्री बगला ह्यवत्वत्र, चोिवय-भागं महेश्वरी ।
कामांकुशाकला पात,ु बगला शास्त्र बोविनी ॥ ॥ ४ ॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं पीताम्बरा सहस्राक्षा ललार्ं कावमताियदा ।
पातु मां बगला वनत्र्ं, पीताम्बर सुिाररणी ॥ ॥५॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं कणयर्ोिैव र्गु -पदवत-रत्न प्रपवू जता ।
पातु मां बगला देवी, नावसकां मे गुणाकर ॥ ॥६॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं पीत-पुष्पैः पीत-वस्त्रैः, पवू जता वेददावर्नी ।
पातु मां बगला वनत्र्ं, ब्रह्म-ववष्णवावद-सेववता ॥ ॥ ७ ॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं पीताम्बरा प्रसन्नास्र्ा, नेत्रर्ोर्यगु -पद्-भ्रुवौ ।
पातु मां बगला वनत्र्ं, बलदा पीत-वस्त्र-िक ृ ् ॥ ॥८॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं अिरोष्ठौ तिा दन्तान,् वजह्ां च मुिगां मम ।
पातु मां बगला देवी, पीताम्बर सुिाररणी ॥ ॥९॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं गले हस्ते तिा वाह्वोः, र्ुग-पद्-बुवद्धदा-सताम् ।
पातु मां बगला देवी, वदव्र्-स्रगनुलेपना ॥ ॥१०॥
▪ ॐ ऐ ं ह्लीं श्रीं हृदर्े च स्तनौ नाभौ, कराववप कृशोदरी ।
पातु मां बगला वनत्र्ं, पीत-वस्त्र घनावृता ॥ ॥११॥
▪ जघ्घार्ां च तिा चोवोः गुल्फर्ोिावत-वेवगनी ।
अनुक्तमवप र्त् स्िान,ं त्वक्-के श-नि-लोमकम् ॥ ॥१२॥
▪ असृङ् मांस तिाऽस्िीनी, सन्िर्िावप मे परा ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ श्री वशव उवाि ताः सवायः बगला देवी, रक्षेन्मे च मनोहरा ॥ ॥१३॥
▪ इत्र्ेतद् वरदं गोप्र्ं कलाववप ववशेितः
पञ्जरं बगला देव्र्ाः घोर दाररद्र्र् नाशनम् ।
पञ्जरं र्ः पठे त् भक्त्र्ा स ववघ्नैनायवभभतू र्े ॥ ॥१४॥
▪ अव्र्ाहत गवतिास्र् ब्रह्मववष्णवावद सत्पुरे ।
स्वगे मत्र्े च पाताले नाऽरर्स्तं कदाचन ॥ ॥१५॥
▪ न बािन्ते नरव्र्ार पञ्जरस्िं कदाचन ।
अतो भक्तैः कौवलकै ि स्वरक्षािं सदैव वह ॥ ॥१६॥
▪ पठनीर्ं प्रर्त्नेन सवायनिय ववनाशनम् ।
महा दाररद्र्र् शमनं सवयमांगल्र्वियनम् ॥ ॥१७॥
▪ ववद्या ववनर् सत्सौख्र्ं महावसवद्धकरं परम् ।
इदं ब्रह्मास्त्रववद्यार्ाः पञ्जरं सािु गोवपतम् ॥ ॥१८॥
▪ पठे त् स्मरेत् ध्र्ानसंस्िः स जर्ेन्मरणं नरः ।
र्ः पञ्जरं प्रववश्र्ैव मन्त्रं जपवत वै भवु व ॥ ॥१९॥
▪ कौवलकोऽकौवलको वावप व्र्ासवद् ववचरेद् भुवव।
चन्द्रसूर्य समोभूत्वा वसेत् कल्पार्ुतं वदवव ॥ ॥२०॥
▪ श्री सूत उवाि इवत कवितमशेिं श्रेर्सामावदबीजम् ।
भवशत दुररतघ्नं ध्वस्तमोहान्िकारकम् ।
स्मरणमवतशर्ेन प्राविरेवात्र मत्र्यः ।
र्वद ववशवत सदा वै पञ्जरं पवण्डतः स्र्ात् ॥ ॥२१॥

॥ इवत परम रहस्यावत रहस्ये पीताम्बरा पञ्िर-स्तोत्रम् समािम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ अि पञ्जर न्र्ास स्तोत्रम् ॥


इस पञ्िर न्त्यास-स्तोत्र का पाठ िपावद से पूवण करना िावहए । इस स्तोत्र का पाठ करने पर सािक के
िारों ओर साक्षात् मााँ भगवती पीताम्बरा का अभेद्य कवि बन िाता है । उसके स्मरर् मात्र से ही शत्रुओ ं की
गवत, मवत, वािा और बुवद्ध) स्तवम्भत हो िाते हैं ।

▪ बगला पूवयतो रक्षेद् आग्नेयर्ां च गदािरी ।


पीताम्बरा दवक्षणे च स्तवम्भनी चैव नैऋयते ॥ ॥१॥
▪ वजह्वाकीवलन्र्तो रक्षेत् पविमे सवयदा वह माम् ।
वार्व्र्े च मदोन्मत्ता कौबेर्ां च वत्रशूवलनी ॥ ॥२॥
▪ ब्रह्मास्त्र देवता पातु ऐशान्र्ां सततं मम ।
सरं क्षेन् मां तु सततं पाताले स्तधिमातक ृ ा॥ ॥३॥
▪ ऊध्वं रक्षेन् महादेवी वजह्वा-स्तम्भन-काररणी ।
एवं दश वदशो रक्षेद् बगला सवय-वसवद्धदा ॥ ॥४॥
▪ एवं न्र्ासववविं कृत्वा र्त् वकवञ्चज् जपमाचरेत् ।
तस्र्ाः सस्ं मरणादेव शत्रूणां स्तम्भनं भवेत् ॥ ॥५॥

॥ इवत पञ्िर न्त्यास स्तोत्रं सम्पूर्मण ् ॥

॥ मााँ बगलामुिी कवचम् - १ ॥


▪ ॐ ह्रीं मे हृदर्ं पातु पादौ श्रीबगलामुिी ।
ललार्े सततं पातु दुष्टवनग्रहकाररणी ॥ ॥१॥
▪ रसनां पातु कौमारी भैरवी चक्षिु ोमयम ।
कर्ौ पष्ठृ े महेशावन कणौ शंकरभावमनी ॥ ॥२॥
▪ ववजयतावन तु स्िानावन र्ावन च कवचेन वह ।
तावन सवायवण मे देवव सततं पातु स्मवम्भनी ॥ ॥३॥
▪ अज्ञात्वा कवचं देवव र्ो भजेद् बगलामुिीम् ।
शस्त्राघातमवाप्नोवत सत्र्ं सत्र्ं न सश
ं र्ः ॥ ॥४॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगला मुिी कवचम् - २ ॥


यह कवि ववश्वसारोद्धार तन्त्त्र से वलया गया है । पावणती िी के िारा भगवान वशव से पूछे िाने पर
भगवती बगला के कवि के ववषय में प्रभु वर्णन करते हैं वक देवी बगला शत्रुओ ं के कुल के वलये िगं ल में
लगी अवनन के समान हैं । वे साम्रज्य देने वाली और मुवि प्रदान करने वाली हैं । इस कवि के पाठ से अपुत्र
को िीर, वीर और शतायषु पत्रु की प्रावि होवत है और वनिणन को िन प्राि होता है । महावनशा में इस कवि
का पाठ करने से सात वदन में ही असाध्य कायण भी वसद्ध हो िाते हैं । तीन रातों को पाठ करने से ही वशीकरर्
वसद्ध हो िाता है । मक्खन को इस कवि से अवभमवन्त्त्रत करके यवद बन्त्िया स्त्री को वखलाया िाये, तो वह
पुत्रवती हो िाती है । इसके पाठ व वनत्य पूिन से मनुष्य बृहस्पवत के समान हो िाता है, नारी समहू में सािक
कामदेव के समान व शत्रओ ं के वलये यम के समान हो िाता है । मां बगला के प्रसाद से उसकी वार्ी गद्य-
पद्यमयी हो िाती है । उसके गले से कववता लहरी का प्रवाह होने लगता है ।
इस कवि का परु िरर् एक सौ नयारह पाठ करने से होता है, वबना परु िरर् के इसका उतना फल
प्राि नहीं होता । इस कवि को भोिपत्र पर अिगंि से वलखकर पुरुष को दावहने हाथ में व स्त्री को बायें हाथ
में िारर् करना िावहये
▪ वशरो में पातु ॐ ह्रीं ऐ ं श्रीं क्लीं पातुललार्कम ।
सम्बोिनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ॥ ॥१॥
▪ श्रुतौ मम ररपुं पातु नावसकां नाशर्िर्म् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्ायण्र्न्तं तु मस्तकम् ॥ ॥२॥
▪ देवहिन्िं सदा वजह्वां पातु शीरं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वावञ्छतं बाहमूलकम् ॥ ॥३॥
▪ कार्ं सािर्िन्िं तु करौ पातु सदा मम ।
मार्ार्ुक्ता तिा स्वाहा, हृदर्ं पातु सवयदा ॥ ॥४॥
▪ अष्टाविक चत्वाररश ं दण्डाढर्ा बगलामुिी ।
रक्षां करोतु सवयत्र गहृ ेरण्र्े सदा मम ॥ ॥५॥
▪ ब्रह्मास्त्राख्र्ो मनुः पातु सवांगे सवयसवन्ििु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सवयदा ॥ ॥६॥
▪ ॐ ह्रीं पातु नावभदेशं कवर्ं मे बगलावतु ।
मुविवणयिर्ं पातु वलंग मे मुष्क-र्ुग्मकम् ॥ ॥७॥
▪ जाननु ी सवयदुष्टानां पातु मे वणयपञ्चकम् ।
वाचं मुिं तिा पादं िड्वणायः परमेश्वरी ॥ ॥८॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ जघं ार्ुग्मे सदा पातु बगला ररपुमोवहनी ।


स्तम्भर्ेवत पदं पृष्ठं पातु वणयत्रर्ं मम ॥ ॥९॥
▪ वजह्वावणयिर्ं पातु गुल्फौ मे कीलर्ेवत च ।
पादोध्वय सवयदा पातु बवु द्धं पादतले मम ॥ ॥१०॥
▪ ववनाशर्पदं पातु पादांगुल्र्ोनयिावन मे ।
ह्रीं बीजं सवयदा पातु बुवद्धवन्द्रर्वचांवस मे ॥ ॥११॥
▪ सवांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमावण मेवतु ।
ब्राह्मी पूवयदले पातु चाग्नेयर्ां ववष्णुवल्लभा ॥ ॥१२॥
▪ माहेशी दवक्षणे पातु चामण्ु डा राक्षसेवतु ।
कौमारी पविमे पातु वार्व्र्े चापरावजता ॥ ॥१३॥
▪ वाराही चोत्तरे पातु नारवसंही वशवेवतु ।
ऊध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदावतु ॥ ॥१४॥
▪ इत्र्ष्टौ शक्तर्ः पान्तु सार्ुिाि सवाहनाः ।
राजिारे महादुगे पातु मां गणनार्कः ॥ ॥१५॥
▪ श्मशाने जलमध्र्े च भैरवि सदाऽवतु ।
विभुजा रक्तवसनाः सवायभरणभूविताः ॥ ॥१६॥
▪ र्ोवगन्र्ः सवयदा पान्तु महारण्र्े सदा मम ।
इवत ते कवितं देवव कवचं परमाद्भुतम् ॥ ॥१७॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी कवचम् - ३ ॥


▪ श्री भैरवी उवाि श्रुत्वा च बगला पूजां स्तोत्रं चावप महेश्वर ।
इदानी श्रोतुवमच्छावम कवचं वद मे प्रभो ॥ ॥१॥
▪ वैररनाशकरं वदव्र्ं सवायऽशुभववनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्र्ं त्रावह मां दु:िनाशनम् ॥ ॥२॥
▪ श्रीभैरव उवाि कवचं शृणु वक्ष्र्ावम भैरवी-प्राण-वल्लभम् ।
पवठत्वा िारवर्त्वा तु त्रैलोक्र्े ववजर्ी भवेत् ॥ ॥ ३ ॥
▪ वववनयोग ॐ अस्य श्री बगलामुखीकविस्य नारद ऋवष: । अनुिप्छन्त्द: । बगलामुखी देवता ।
लं बीिम् । ई ंशविं । ऐ ं कीलकम् पुरुषाथणितुिये िपे वववनयोग: ।
▪ ॐ वशरो मे बगला पातु हृदर्ैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललार्े च बगला वैररनावशनी ॥ ॥ ४ ॥
▪ गदाहस्ता सदा पातु मुिं मे मोक्षदावर्नी ।
वैररवजह्वािरा पातु कण्ठं मे बगलामि ु ी॥ ॥५॥
▪ उदरं नावभदेशं च पातु वनत्र् परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥ ॥६॥
▪ हस्तौ चैव तिा पादौ पावयती पररपातु मे ।
वववादे वविमे घोरे सग्रं ामे ररपस ु ङ्कर्े ॥ ॥७॥
▪ पीताम्बरिरा पातु सवायङ्गी वशवनतयकी ।
श्रीववद्या समर् पातु मातङ्गी पूररता वशवा ॥ ॥८॥
▪ पातु पुत्रं सुताि
ं ैव कलत्रं कावलका मम ।
पातु वनत्र् भ्रातरं में वपतरं शवू लनी सदा ॥ ॥९॥
▪ रंध्र वह बगलादेव्र्ा: कवचं मन्मुिोवदतम् ।
न वै देर्ममुख्र्ार् सवयवसवद्धप्रदार्कम् ॥ ॥१०॥
▪ पाठनाद्धारणादस्र् पज ू नािाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा र्ो जपेद् बगलामि ु ीम् ॥ ॥११॥
▪ वपववन्त शोवणतं तस्र् र्ोवगन्र्: प्राप्र् सादरा: ।
वश्र्े चाकियणो चैव मारणे मोहने तिा ॥ ॥१२॥
▪ महाभर्े ववपत्तौ च पठे िा पाठर्ेत्तु र्: ।
तस्र् सवायियवसवद्ध: स्र्ाद् भवक्तर्ुक्तस्र् पावयवत ॥ ॥१३॥
॥ इवत श्री रुद्रयामले बगलामख
ु ी कविम् सम्पर्ू णम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ श्री बगलामुिी शत्रु ववनाशक कवचम् - ४ ॥


▪ श्री देव्यवु ाि नमस्ते शम्भवे तभ्ु र्ं नमस्ते शवशशेिर ।
त्वत्प्रसात्र्ुतं सवयमिुना कवचं वद्र ॥ ॥१॥
▪ श्री वशव उवाि शृणु देवव प्रवक्ष्र्ावम कवचं परमाद्भुतम् ।
र्स्र् स्मरणमात्रेण ररपोः स्तम्भो भवेत् क्षणात् ॥ ॥ २ ॥
▪ कवचस्र् च देवेवश महामार्ा प्रभावतः ।
पङ्वक्तः छन्दः समवु द्दष्टं देवता बगलामि
ु ी॥ ॥३॥
▪ िमायियकाममोक्षेिु वववनर्ोगः प्रकीवतयतः ।
ॐकारो मे वशरः पातु ह्लींकारो वदनेऽवतु ॥ ॥४॥
▪ बगलामुवि दोर्यग्ु मं कण्ठे सवय-सदाऽवतु ।
दुष्टानां पातु हृदर्ं वाचं मुिं ततः पदम् ॥ ॥५॥
▪ उदरे सवयदा पातु स्तम्भर्ेवत सदा मम ।
वजह्वां कीलर् मे मातबयगला सवयदाऽवतु ॥ ॥६॥
▪ बवु द्ध ववनाशर् पादौ तु ह्लीं ॐ मे वदवग्ववदक्षु च ।
स्वाहा मे सवयदा पातु सवयत्र सवयसवन्ििु ॥ ॥७॥
▪ इवत ते कवितं देवव कवचं परमाद्भुतम् ।
र्स्र् स्मरण मात्रेण सवयस्तम्भो भवेद् क्षणात् ॥ ॥८॥
▪ र्द् िृत्वा वववविा दैत्र्ा वासवेन हताः पुरा ।
र्स्र् प्रसादात् वसद्धोऽहं हररः सत्त्वगुणावन्वतः ॥ ॥ ९ ॥
▪ वेिा सृवष्टं ववतनुते कामः सवयजगज्जर्ी ।
वलवित्वा िारर्ेद् र्स्तु कण्ठे वा दवक्षणे भुजे ॥ ॥१०॥
▪ िर््कमयवसवद्धस्तस्र्ाशु मम तल्ु र्ो भवेद् ध्रुवम् ।
अज्ञात्वा कवचं देवव तस्र् मन्त्रो न वसध्र्वत ॥ ॥११॥

॥ इवत श्री बगलामुखी शत्रु ववनाशकं कविम् समािम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ मााँ बगलामुिी सूक्तम् ॥


▪ दिु तांवत्रक वविान को नि करने हेतु । शत्रु िारा अवभिार करके कहीं गाडा हो, दक
ु ान, व्यापार, अवननशाला,
पाक-शाला, वाहन, मशीनरी, सेना, समूह, वमत्र मंडली, ग्राहकों का, गायन ववद्या का, भूवम व शरीर का
स्तंभन, बंिन वकया हो, कोई रोग हो, मुक़द्दमा हो, वशीकरर् करना हो या तोडना हो, पररवस्थवतयााँ ववपरीत
हों तो इस स्तोत्र के पाठ से दरू होते हैं ।
▪ पशु व मनुष्य की अवस्थ, िमण, नख, के श, सि िान्त्य, अनुष्ठान यज्ञ िारा तैयार की हुई कृ त्या अथवा कुछ
तांवत्रक अवभिार िारा वखलाई गई कृ त्या का शमन होता है ।
▪ दगु ाण शिशवत के हर अध्याय के बाद पाठ करना भी अवत शुभ माना िाता है ।
▪ उत्तर की ओर मुख करके मां बगलामुखी का ध्यान करके अपनी कामना मन में बोलते हुए इस स्तोत्र का
पाठ करें । उत्तम पररर्ाम के वलये ११ पाठ एक बार में अवश्य करें ।
▪ उत्तम होगा वक आप पिं ोपिार करें । विन भिों को वववि न पता हो वह मां का भोग लगाकर कामना करते
हुए भी शुरू कर सकते हैं ।
▪ यवद गुरु िारर् वकया हो तो अवत उत्तम अन्त्यथा गुरु िारर् करके उनके मागणदशणन में िप करें ।
▪ इसका ग़लत प्रयोग कदावप न करें अन्त्यथा आपके िीवन में बहुत कुछ अनथण हो सकता है । िप काल में
मासं , वकसी भी प्रकार का नशा, सभं ोग वविणत है ।

▪ संकल्प ॐ तत्सद्य .......... प्रसाद वसद्धी िारा मम यिमानस्य (नाम दें) सवाणभीष्ठ वसवद्धथे पर प्रयोग,
पर मंत्र-तंत्र-यंत्र ववनाशाथे, सवण दिु ग्रहे बािा वनवार्ाथे, सवण उपद्रव शमनाथे श्री भगवती
पीताम्बरायाुः बगला सि ू स्ये नयारह सहस्त्र पाठे अहम् कुवे । (िल पृथ्वी पर डाले दें)

▪ वववनयोगुः ॐ अस्य श्री बगलामख ु ी मत्रं स्य नारद ररवषुः, तररि् ुप छंद, बगलामख
ु ी देवता,
ह्लींम् बीिम्, स्वाहा शविुः, ममावभि वसध्यथे िपे वववनयोगुः ।

▪ ध्यानम् मध्र्े सुिावधि मवण मंडप रत्न वेघां,


वसंघासनो पररगतां पररपीत वणांम,्
पीताम्बरा भरण माल्र् ववभवु िताड्गं ी,
देवीं भजावम ितृ मग्ु दर वैररवजव्र्ाम्
वजव्र्ाग्र मादार् करेण देवीं,
वामेन शत्रनू पररपीडर्ंतीम,
गदावभघातेन च दवक्शनेन,
पीताबं राढ्र्ां विभ
् ुजां नमवम ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ स्तोत्रम् र्ां ते चक्रु: रामे पात्रे र्ां चक्रुवमयश्र िान्र्े ।


आमे मांसे कृत्र्ां र्ां चक्रु: पुनः प्रवतहरवम तां ॥ ॥ १ ॥
▪ र्ां ते चक्रु: वृक वाका वजे वा र्ां कुरीररणी |
अव्र्ां ते कृत्र्ां र्ां चक्रु: पनु ः प्रवतहरवम तां ॥ ॥२॥
▪ र्ां ते चक्रु: एक शफे पशुनामभ्ु र्दवत |
गदयभे कृत्र्ां र्ां चक्रु: पनु ः प्रवतहरवम तां ॥ ॥३॥
▪ र्ां ते चक्रुरमूलार्ां वलग्म वा नराच्र्ाम |
क्षेत्रे ते कृत्र्ां र्ां चक्रु: पनु ः प्रवतहरवम तां ॥ ॥४॥
▪ र्ां ते चक्रु: गाह्पत्र्े पवू ायग्नावतु दुवितः |
शालार्ां कृत्र्ां र्ां चक्रु: पनु ः प्रवतहरवम तां ॥ ॥५॥
▪ र्ां ते चक्रु: सभार्ां र्ां चक्रुरवि देवते |
अक्षेिु कृत्र्ां र्ां चक्रु: पुनः प्रवतहरवम तां ॥ ॥६॥
▪ र्ां ते चक्रु: सेनार्ां र्ां चक्रुररिवार्ुिे |
दुन्दुभौ कृत्र्ां र्ां चक्रु: पनु ः प्रवतहरवम तां ॥ ॥७॥
▪ र्ां ते कृत्र्ां कूपे वदिु: शमशाने वा वनच्िनु: ।
सद्वयन कृत्र्ां र्ां चक्रु: पुनः प्रवतहरवम तां ॥ ॥८॥
▪ र्ां ते चक्रु: पुरुिस्र्ास्िे सदभवग अग्नौसंकसक
ु े च र्ां ।
मोकं वनदवहं क्रव्र्ादम पुनः प्रवतहरवम तां ॥ ॥९॥
▪ अपिैनाज भारैणाम तां पिेत: प्रवहण्मासी ।
अिीरो मर्ाय िीरेभ्र्: संजभारावचत्र्ा ॥ ॥१०॥
▪ र्िकार न शशाक कतुम शश्रे पादमन्गुररम ।
चकार भद्रमस्मभ्र्मभगो भगवद्भ्र्: ॥ ॥११॥
▪ कृत्र्ाकृतम वलवगनं मूवलनं शपिेऽप्र्र्म ।
इन्द्रस्तम हन्तमु हता विेनावग्नववयध्र्त्वस्त्र्ा ॥ ॥१२॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ ववपरीत प्रत्र्ंवगरा स्तोत्रम् - १ ॥


ववपरीत प्रत्यंवगरा मंत्र व स्तोत्र शत्रु की प्रबलतम वियाओ ं को वनष्फल करने के साथ ही ग्रह, नक्षत्र, देवता,
यक्ष, गिं वण एवं राक्षसी वृवत्त से भी मक ु ाबले के वलए ववपरीत प्रत्यवं गरा और महाववपरीत प्रत्यवं गरा अत्यतं
सफल और कारगर होता है । इसका प्रयोग वनष्फल नहीं िाता । इसकी सािना करने वालों को दवु नया में
वकसी का डर नहीं रह िाता है । बेहतर होगा वक योनय गरुु की देखरे ख में ही इस सािना को पूरा वकया िाए।
▪ वववनयोग ॐ अस्य श्री ववपरीत प्रत्यवं गरा स्तोत्र मत्रं स्य । भैरव ऋवष: । अनिु ुप-छंद: ।
श्री ववपरीत प्रत्यंवगरा देवता । हं बीिं । ह्रीं शवि: । क्लीं क्लीकं ।
ममाभीिवसदध्् यथे िपे पाठे ि वववनयोग: ।
▪ करंगन्त्यास ॐ ऐ ं अगं ुष्ठाभयां नम: । ॐ ह्रीं तिणनीभयां नम: । ॐ श्रीं मध्यमाभयां नम: ।
ॐ प्रत्यवं गरे अनावमकाभयां नम: । ॐ मां रक्ष रक्ष कवनवष्ठकाभयां नम: ।
ॐ मम शत्रून् भंिय भंिय करतलकर पृष्ठाभयां नम: ।
▪ हृदयावदन्त्यास: ॐ ऐ ं हृदयाय नम: । ॐ ह्रीं वशरसे स्वाहा । ॐ श्रीं वशखायै वषट् ।
ॐ प्रत्यंवगरे कविाय हुम् । ॐ मां रक्ष रक्ष नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ मम शत्रनू भिं य भिं य अस्त्राय फट् ।
▪ वदनबंि: ॐ भूभुणव: स्व:। इवत वदनबंि:। (सभी वदशाओ ं में िुटकी बिाएं।)
▪ लघु मंत्र ॐ ऐ ं ह्रीं श्रीं प्रत्र्ंवगरे मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भंजर् भंजर् फे हं फर् स्वाहा ।
108 बार प्रवतवदन िप करें । यवद शत्रु प्रबल हो तो एक बार में 16 हिार मंत्र के
िप का सक ं ल्प लेकर दसवें वहस्से का हवन करें । हवन में कालीवमिण, लावा,
सरसो, नमक और घी की समान मात्रा हो ।
▪ अष्टोत्तरशतं चास्र् जपं चैव प्रकीवतयतम् ।
ऋविस्तु भैरवो नाम छन्दोह्यनुष्टप प्रकीवतयतम् ॥ ॥ १ ॥
▪ देवता दैवशका रक्ता नाम प्रत्र्वं गरेवत च ।
पूवयबीजै: िडंगावन कल्पर्ेत् सािकोत्तम: ।
सवयदृष्टोपचारैि ध्र्ार्ेत् प्रत्र्ंवगरां शुभाम् ॥ ॥२॥
▪ ध्यानम् र्ंकं कपालं डमरुं वत्रशूलं संवबभ्रती चन्द्रकलावतस ं ा।
वपगं ोध्वयकेशााऽवसत भीमदष्ं रा, भर्ू ाद् ववभत्ू र्ै मम भद्रकाली ॥ ॥ ३ ॥
▪ एवं ध्र्ात्वा जपेन्मंत्रमेकववंशवतवासरान् ।
शत्रूणां नाशने ह्येतत् प्रकाशोऽर्ं सुवनिर्: ॥ ॥४॥
▪ अष्टम्र्ामियरात्रे तु शरदकाले महावनवश ।
आिाररता चेच्रीकाली तत्क्षणात् वसवद्धदा नण ृ ाम् ॥ ५ ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ सवोपचारसम्पन्न वस्त्र-रत्न-कलावदवभ: ।
पुष्पैि कृष्णवणैि सािर्ेत् कावलकां वराम् ॥ ॥६॥
▪ विायदूध्वयमजम् मेिं मदृ ं वाऽि र्िावववि ।
दद्यात् पूवं महेशावन तति जपमाचरेत् ॥ ॥७॥
▪ एकाहात् वसवद्धदा काली सत्र्ं सत्र्ं न संशर्: ।
मूलमन्त्रेण रात्रौ च होमं कुर्ायत् समावहत: ॥ ॥८॥
▪ मरीच-लाजा-लवणैः साियपैमायरणं भवेत ।
महाजनपदे चैव न भर्ं ववद्यते क्ववचत् ॥ ॥९॥
▪ प्रेतवपण्डं समादार् गोलकं कारर्ेत् तत: ।
मध्र्े नामांवकतं कृत्वा शत्ररू ु पांि पुत्तलीम् ॥ ॥१०॥
▪ जीवं तत्र वविार्ैव वचताग्नौ जहु र्ात्तत:।
तत्रार्ुत जपं कुर्ायत् वत्ररात्रं मारणं ररपो: ॥ ॥११॥
▪ महाज्वाला भवेत्तस्र् तित्ताभ्रशलाकर्ा ।
गुदिारे प्रदद्याच्च सिाहान् मारणं ररपो: ॥ ॥१२॥
▪ प्रत्र्ंवगरा मर्ा प्रोक्ता पवठता पावठता नरै: ।
वलवित्वा च करे कण्ठे बाहौ वशरवस िारर्ेत् ।
मुच्र्ते सवयपापेभ्र्ो नाल्पमृत्र्ु: किंचन ॥ ॥१३॥
▪ ग्रहा: ऋक्षास्तिा वसहं ा भतू ा र्क्षाि राक्षसा: ।
तस्र्ा पीडां न कुवयवन्त वदवव भव्ु र्न्तररक्षगा: ॥ ॥१४॥
▪ चतुष्पदेिु दुगेिु वनेिू पवनेिू च ।
श्मशाने दुगयमे घोरे संग्रामे शत्रुसंकर्े ॥ ॥१५॥
▪ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कुं कुं कुं मां सां िां चां लां क्षां ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं वां िां मां सां रक्षां कुरू ।
ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ स: हं ॐ क्षौं वां लां िां मां सां रक्षां कुरू । ॐ ॐ हं प्लुं रक्षां करू ।
▪ ॐ नमो ववपरीतप्रत्र्ंवगरार्ै ववद्यारावज्ञ त्रैलोक्र्वशंकरर तुवष्ट-पुवष्ट-करर सवय-पीडा-पहाररवण
सवायपन्नावशवन सवयमगं लमागं ल्र्े वशवे सवायियसाविवन मोवदवन सवायशास्त्राणां भेवदवन क्षोवभवण
तिा परमंत्र-तंत्र-र्ंत्र वविचूणय सवय प्रर्ोगादीनन्र्ेिां वनवयतयवर्त्वा र्त्कृतं तन्मेऽस्तु कवलपावतवन
सवयवहंसा मा कारर्वत अनुमोदर्वत मनसा वाचा कमयणा र्े देवासुर
राक्षसावस्तर्यग्र्ोवनसवयवहंसका ववरूपकं कुवयवन्त मम मंत्र-तंत्र-र्ंत्र-ववि-चूणय-सवय
प्रर्ोगादीनात्महस्तेन र्: करोवत कररष्र्वत काररष्र्वत तान् सवायनन्र्ेिां वनवयतयवर्त्वा पातर्
कारर् मस्तके स्वाहा ।
॥ इवत भैरवी तन्त्त्रे भैरवी संवादे ववपरीत प्रत्यंवगरा स्तोत्रम् समािम् ॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ महा ववपरीत प्रत्र्ंवगरा स्तोत्रम् - २ ॥


▪ महेश्वर उवाि श्रृणु देवव, महा-ववद्यां, सवय-वसवद्ध-प्रदावर्कां ।
र्स्र्ाः ववज्ञान-मात्रेण, शत्रु-वगायः लर्ं गताः ॥ ॥१॥
▪ ववपरीता महा-काली, सवय-भूत-भर्ंकरी ।
र्स्र्ाः प्रसगं -मात्रेण, कम्पते च जगत्-त्रर्म् ॥ ॥२॥
▪ न च शावन्त-प्रदः कोऽवप, परमेशो न चैव वह ।
देवताः प्रलर्ं र्ावन्त, वकं पुनमायनवादर्ः ॥ ॥३॥
▪ पठनाद् िारणाद् देवव, सृवष्ट-संहारको भवेत् ।
अवभचारावदकाः सवाय र्ा र्ा साध्र्-तमाः वक्रर्ाः ।
स्मरेणन महा-काल्र्ाः, नाशं जग्मःु सरु ेश्वरर ॥ ॥४॥
▪ वसवद्ध-ववद्या महा काली, र्त्रेवेह च मोदते ।
सि-लक्ष-महा-ववद्याः, गोवपताः परमेश्वरर ॥ ॥५॥
▪ महा-काली महा-देवी, शक ं रश्रेष्ठ-देवता ।
र्स्र्ाः प्रसाद-मात्रेण, पर-ब्रह्म महेश्वरः ॥ ॥६॥
▪ कृवत्रमावद-वविघ्नी सा, प्रलर्ावग्न-वनववतयका ॥ ॥७॥
▪ त्वदं-वरदशयनादेव, कम्पमानो महेश्वरः ।
र्स्र् वनग्रह-मात्रेण, पृविवी प्रलर्ं गता ॥ ॥८॥
▪ दश-ववद्याः र्दा ज्ञाता, दश-िार-समावश्रताः ।
प्राची-िारे भुवनेशी, दवक्षणे कावलका तिा ॥ ॥९॥
▪ नाक्षत्री पविमे िारे, उत्तरे भैरवी तिा ।
ऐशान्र्ां सततं देवव, प्रचण्ड-चवण्डका तिा ॥ ॥१०॥
▪ आग्नेयर्ां बगला-देवी, रक्षः-कोणे मतंवगनी ।
िूमावती च वार्व्वे, अि-ऊध्वे च सुन्दरी ॥ ॥११॥
▪ सम्मुिे िोडशी देवी, जाग्रत्-स्वप्न-स्वरुवपणी ।
वाम-भागे च देवेवश, महा-वत्रपरु -सन्ु दरी ॥ ॥१२॥
▪ अश
ं -रुपेण देवेवश, सवायः देव्र्ः प्रवतवष्ठताः ।
महा-प्रत्र्ंवगरा चैव, प्रत्र्ंवगरा तिोवदता ॥ ॥१३॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ महा-ववष्णुर्यदा ज्ञाता, भुवनानां महेश्वरर ।


कताय पाता च संहताय, सत्र्ं सत्र्ं वदावम ते ॥ ॥१४॥
▪ भवु क्त-मुवक्त-प्रदा देवी, महा-काली सुवनवितम् ।
वेद-शास्त्र-प्रगिु ा सा, नन्दस्र्ा देवतैरवप ॥ ॥१५॥
▪ अनन्त-कोवर्-सूर्ायभा, सवय-जन्तु-भर्ंकरी ।
ध्र्ान-ज्ञान-ववहीना सा, वेदान्तामृत-ववियणी ॥ ॥१६॥
▪ सवय-मन्त्र-मर्ी काली, वनगमागम-काररणी ।
वनगमागम-कारी सा, महा-प्रलर्-काररणी ॥ ॥१७॥
▪ र्स्र्ा अगं -िमय-लवा च, सा गगं ा परमोवदता ।
महा-काली नगेऽनुस्िा, ववपरीता महोदर्ाः॥ ॥१८॥
▪ ववपरीता प्रत्र्ंवगरा, तत्र काली प्रवतवष्ठता ।
सािक स्मरण-मात्रेण, शत्रूणां वनगमागमाः ॥ ॥१९॥
▪ नाशं जग्मुः नाशीं जगमुः सत्र्ं सत्र्ं वदावम ते ।
पर-ब्रह्म महा-देवव, पज
ू नैरीश्वरो भवेत् ॥ ॥२०॥
▪ वशव-कोवर्-समो र्ोगी, ववष्णु-कोवर्-समः वस्िरः ।
सवैराराविता सा वै, भुवक्त-मुवक्त-प्रदावर्नी ॥ ॥२१॥
▪ गुरु-मन्त्र-शतं जप्त्वा, श्वेत-सियप मानर्ेत् ॥ ॥२२॥
▪ आत्मरक्षां शत्रनु ाशं सा करोवत च तत्क्षणात् ।
ऋविन्र्ासावदकं कृत्वा सियपैमायरणं चरेत् ॥ ॥२३॥
▪ गुरु मंत्र ॐ हं स्फारर् स्फारर् मारर् मारर् शत्रुवगायन् नाशर् नाशर् स्वाहा ।
सौ बार िप करें । मारर् के वलए सफे द सरसों का प्रयोग करें ।
▪ वववनयोग ॐ अस्य श्री महाववपरीत प्रत्यंवगरा स्तोत्र मंत्रस्य महाकाल भैरव ऋवष: ।
वस्त्रिुप् छन्त्द: । श्री महाववपरीत प्रत्यंवगरा देवता । हं बीिं । ह्रीं शवि: ।
क्लीं कीलकं । मम सवाणथण वसदध्् यथे िपे वववनयोग: ।
▪ ऋष्यावद-न्त्यासुः वशरवस श्रीमहा-काल-भैरव ऋषये नमुः। मुखे वत्रिुप् छन्त्दसे नमुः। हृवद श्रीमहा-
ववपरीत-प्रत्यंवगरा देवतायै नमुः। गह्य
ु े हं बीिाय नमुः। पादयोुः ह्रीं शिये नमुः।
नाभौ क्लीं कीलकाय नमुः। सवाांगे मम श्रीमहा-ववपरीत-प्रत्यंवगरा-प्रसादात् सवणत्र

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

सवणदा सवण-ववि-रक्षा-पूवणक सवण-शत्रूर्ां नाशाथे यथोि-फल-प्राप्त्यथे वा पाठे


वववनयोगाय नमुः।
▪ कर-न्त्यासुः हं ह्रीं क्लीं ॐ अगं ुष्ठाभयां नमुः । हं ह्रीं क्लीं ॐ तिणनीभयां नमुः।
हं ह्रीं क्लीं ॐ मध्यमाभयां नमुः । हं ह्रीं क्लीं ॐ अनावमकाभयां नमुः।
हं ह्रीं क्लीं ॐ कवनवष्ठकाभयां नमुः । हं ह्रीं क्लीं ॐ कर-तल-ियोनणमुः।
▪ हृदयावद-न्त्यासुः हं ह्रीं क्लीं ॐ हृदयाय नमुः । हं ह्रीं क्लीं ॐ वशरसे स्वाहा ।
हं ह्रीं क्लीं ॐ वशखायै वषट् । हं ह्रीं क्लीं ॐ कविाय हुम् ।
हं ह्रीं क्लीं ॐ नेत्र-त्रयाय वौषट् । हं ह्रीं क्लीं ॐ अस्त्राय फट् ।

▪ माला मंत्र
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमो ववपरीतप्रत्र्ंवगरार्ै सहस्रानेक कार्य लोचनार्ै कोवर्
ववद्युज-् वजह्वार्ै महाव्र्ावपन्र्ै संहाररूपार्ै जन्मशांवत काररण्र्ै मम सपररवारकस्र् भावव भूत
भवच्छत्रु दाराप्रत्र्ान् संहारर्-संहारर् महाप्रभावं दशयर्-दशयर् वहवल-वहवल वकवल-वकवल वमवल-
वमवल वचवल-वचवल भरू र-भरू र ववद्युज-् वजह्वे ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ध्वस ं र्-ध्वसं र् प्रध्वस
ं र्-
प्रध्वंसर् ग्रासर्-ग्रासर् वपब-वपब नाशर्-नाशर् त्रासर्-त्रासर् ववत्रासर्-ववत्रासर् मारर्-मारर्
ववमारर्-ववमारर् भ्रामर्-भ्रामर् ववभ्रामर्-ववभ्रामर् द्रावर्-द्रावर् ववद्रावर्-ववद्रावर् हं हं फर््
स्वाहा ।
हं हं हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ववपरीत
प्रत्र्वं गरे हं लं ह्रीं लं क्लीं लं ॐ लं फर् फर् स्वाहा ।
हं लं ह्रीं क्लीं ॐ ववपरीत प्रत्र्वं गरे मम सवपरवारकस्र् र्ावच्छत्रनू ् देवता-वपतृ-वपशाच-
नाग-गरुड-वकन्नर-ववद्यािर-गंिवय-र्क्ष-राक्षस-लोकपालान् ग्रह-भूत-नर-लोकान् समन्त्रान्
सौििान् सार्ुिान् स-सहार्ान् पाणौ वछवन्ि-वछवन्ि वभवन्ि-वभवन्ि वनकृन्तर्-वनकृन्तर् छे दर्-
छे दर् उच्चार्र्-उच्चार्र् मारर्-मारर् तेिां साहंकारावद िमायन् कीलर्-कीलर् घातर्-घातर्
नाशर्-नाशर् ववपरीत प्रत्र्वं गरे स्रें स्रे त् काररणी ॐ ॐ जाँ ॐ ॐ जाँ ॐ ॐ जाँ ॐ ॐ जाँ
ॐ ॐ जाँ ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: मम सपररवारकस्र् शत्रण ू ां सवाय: ववद्या: स्तभ
ं र्-
स्तंभर् नाशर्-नाशर् हस्तौ, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् मुिं, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर्
नेत्रावण, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् दन्तान,् स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् वजह्वा,ं स्तंभर्-स्तंभर्
नाशर्-नाशर् पादौ, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् गुह्यं, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् सकुर्ुम्बानां,
स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् स्िानं, स्तंभर्-स्तभ ं र् नाशर्-नाशर् सं प्राणान् कीलर्-कीलर्
नाशर्-नाशर् हं हं हं हं हं हं हं ह्रीं ह्री ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऐ ं
ऐ ं ऐ ं ऐ ं ऐ ं ऐ ं ऐ ं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् फर्् स्वाहा ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

मम सपररवारकस्र् सवयतो रक्षां कुरु कुरु फर्् फर्् स्वाहा । ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ऐ ं ह्रूं ह्रीं क्लीं
हं सों ववपरीत प्रत्र्ंवगरे! मम सपररवारकस्र् भूत-भववष्र्-च्छत्रूणामुच्चार्नं कुरु कुरु हं हं फर््
स्वाहा ।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं वं वं वं वं वं लं लं लं लं लं रं रं रं रं रं र्ं र्ं र्ं र्ं र्ं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
नमो भगववत ववपरीत प्रत्र्ंवगरे दुष्ट-चांडावलनी-वत्रशूल-वज्रांकुश-शवक्त-शूल-िनु:-शर-
पाशिाररणी शत्रुरुविर चमय मेदो मास ं ाावस्ि मज्जा-शुक्र-मेहन-वसा-वाक् प्राण मस्तक
हेत्वावदभवक्षणी परब्रह्मवशवे ज्वालादावर्नी मावलनी शत्रूच्चार्न-मारण-क्षोभन-स्तंभन-मोहन-
द्रावण-जृम्भण-भ्रामण-रौद्रण-सन्तापन-र्ंत्र-मंत्र-तंत्रान्तर्ायग पुरिरण भूतशुवद्ध पूजाफल
परमवनवायण हारण काररवण कपालिर््वागं परशि ु ाररवण मम सपररवारकस्र् भतू भववष्र्च्छत्रनू ्
स-सहार्ान् सवाहनान् हन-हन रण-रण दह-दह दम-दम िम-िम पच-पच मि-मि लंघर्-लंघर्
िादर्-िादर् चवयर्-चवयर् व्र्िर्-व्र्िर् ज्वरर्-ज्वरर् मूकान् कुरु-कुरु ज्ञानं हर-हर हं हं फर्् फर््
स्वाहा ।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हं हं हं हं हं हं हं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ववपरीत प्रत्र्वं गरे ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हं हं हं हं हं हं हं क्लीं क्लीं क्लीं
क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् स्वाहा ।
मम सवपरवारकस्र् कृत मंत्र-र्ंत्र-तंत्र हवन कृतौिि वविचूणय शस्त्राद्यवभचार
सवोपद्रवावदकं र्ेन कृतं काररतं कुरुते कररष्र्वत वा तान् सवायन् हन-हन स्फारर्-स्फारर् सवयतो
रक्षां कुरु-कुरु हं हं फर्् फर्् स्वाहा ।
हं हं हं हं हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ओ ं ओ ं
ओ ं ओ ं ओ ं ओ ं ओ ं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् फर्् स्वाहा ।
ॐ हं ह्रीं क्लीं ॐ अं ववपरीत प्रत्र्वं गरे मम सपररवारकस्र् शत्रव: कुवयवन्त कररष्र्वन्त
शत्रुि कारर्ामास कारर्वन्त कारवर्ष्र्वन्त र्ाऽन्र्ार्ं कृत्र्ान्तै: सािं तांस्तां ववपरीतां कुरु-कुरु
नाशर्-नाशर् मारर्-मारर् श्मशानस्िानं कुरु-कुरु कृत्र्ावदकां वक्रर्ां भावव भूत भवच्छत्रूणां
र्ावत्-कृत्र्ावदकां वक्रर्ां ववपरीतां कुरु-कुरु तान् डावकनीमि ु े हारर्-हारर् भीिर्-भीिर् त्रासर्-
त्रासर् परम शमन रूपेण हन-हन िमायववच्छन्न वनवायणं हर-हर तेिाम् इष्टदेवानां शासर्-शासर्
क्षोभर्-क्षोभर् प्राणावद मनोबुद्ध्र् हक ं ार क्षुत्तृष्णा कियण लर्न आवागमन मरणावदकं नाशर्-
नाशर् हं हं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ फर्् फर्् स्वाहा ।
क्षं लं हं सं िं शं वं लं रं र्ं मं भं बं फं पं नं िं दं िं तं णं ढं डं ठं र्ं ञं झं
जं छं चं ङं घं गं िं कं अ: अं औ ं ओ ं ऐ ं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ई ं इं आं अं हं हं हं हं हं
हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

ववपरीत प्रत्र्ंवगरे हं हं हं हं हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् स्वाहा ।
क्षं लं हं सं िं शं वं लं रं र्ं मं भं बं फं पं नं िं दं िं तं णं ढं डं ठं र्ं ञं झं
जं छं चं ङं घं गं िं कं अ: अं औ ं ओ ं ऐ ं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ई ं इं आं अं हं हं हं हं
हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ फर्् स्वाहा ।
अ: अं औ ं ओ ं ऐ ं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ई ं इं आं अं ङं घं गं िं कं ञं झं जं
छं चं णं ढं डं ठं र्ं नं िं दं िं तं मं भं बं फं पं क्षं लं हं सं िं शं वं लं रं र्ं ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ मम सपररवारकस्र् स्िाने शत्रूणां कृत्र्ान् सवायन् ववपरीतान् कुरु-कुरु तेिां
तंत्र-मंत्र तंत्राचयन श्मशानरोहण भूवमस्िापन भस्म प्रक्षेपण पुरिरण होमावभिेकावदकान् कृत्र्ान्
दूरी कुरु-कुरु हं ववपरीत प्रत्र्ंवगरे मां सपररवारकं सवयत: सवेभ्र्ो रक्ष-रक्ष हं ह्रीं फर्् स्वाहा ।
अं आं इं ई ं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐ ं ओ ं औ ं अं अ: कं िं गं घं ङं चं छं जं
झं ञं र्ं ठं डं ढं णं तं िं दं िं नं पं फं बं भं मं र्ं रं लं वं शं िं सं हं लं क्षं ॐ क्लीं
ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ हं ह्रीं क्लीं ॐ
ववपरीत प्रत्र्वं गरे हं ह्रीं क्लीं ॐ फर्् स्वाहा ।
ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं अं
आं इं ई ं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐ ं ओ ं औ ं अं अ: कं िं गं घं ङं चं छं जं झं ञं र्ं ठं
डं ढं णं तं िं दं िं नं पं फं बं भं मं र्ं रं लं वं शं िं सं हं लं क्षं ववपरीत प्रत्र्ंवगरे मम
सपररवारकस्र् शत्रण ू ां ववपरीत वक्रर्ां नाशर्-नाशर् त्रवु र्ं कुरु-कुरु तेिावमष्ट देवतावद ववनाशं कुरु-
कुरु वसद्धम् अपनर्-अपनर् ववपरीत प्रत्र्वं गरे शत्रमु वदयवन भर्क ं रर नाना कृत्र्ामवदयवन ज्वावलवन
महाघोरतरे वत्रभुवन भर्क ं रर शत्रुभ्र्: मम सपररवारकस्र् चक्षु: श्रोत्रावण पादौ सवयत: सवेभ्र्:
सवयदा रक्षां कुरु-कुरु स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ वसुंिरे मम सपररवार-कस्र् स्िानं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ महालवक्ष्म मम सपररवार-कस्र् पादौ रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ चवं डके मम सपररवार-कस्र् जघं े रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ चामुंडे मम सपररवार-कस्र् गुह्यं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ इंद्राणी मम सपररवार-कस्र् नावभं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ नारवसंवह मम सपररवार-कस्र् बाहं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ वारावह मम सपररवारकस्र् हृद्यं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ वैष्णवव मम सपररवार-कस्र् कंठं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ कौमारर मम सपररवार-कस्र् वक्त्रं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ माहेश्वरर मम सपररवार-कस्र् नेत्रे रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।


श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ ब्रह्मावण मम सपररवार-कस्र् वशरो रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
हं ह्रीं क्लीं ॐ ववपरीतप्रत्र्ंवगरे मम सपररवार-कस्र् वछद्रं सवयगात्रावण रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
▪ सन्तावपनी संहाररणी, रौद्री च भ्रावमणी तिा ।
जृवम्भणी द्राववणी चैव, क्षोवभवण मोवहनी ततः ॥ ॥२४॥
▪ स्तवम्भनी चांऽशरुपास्ताः, शत्रु-पक्षे वनर्ोवजताः ।
प्रेररता सािके न्द्रेण, दुष्ट-शत्र-ु प्रमवदयकाः ॥ ॥२५॥
ॐ संतावपवन स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रनू ् सतं ापर्-संतापर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ संहाररवण स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रून् सहं ारर्-संहारर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ रौवद्र स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रनू ् रौद्रर्-रौद्रर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ भ्रावमवण स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रून् भ्रामर्-भ्रामर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ जवृ म्भवण स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रनू ् जम्ृ भर्-जम्ृ भर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ द्रावववण स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रून् द्रावर्-द्रावर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ क्षोवभवण स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रून् क्षोभर्-क्षोभर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ मोवहवन स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रून् मोहर्-मोहर् हं फर्् स्वाहा ।
ॐ स्तंवभवन स्रें स्रें मम सपररवारकस्र् शत्रून् स्तभ ं र्-स्तंभर् हं फर्् स्वाहा ।
▪ फल-श्रवु त श्रृणोवत र् इमां ववद्यां, श्रृणोवत च सदाऽवप ताम् ।
र्ावत् कृत्र्ावद-शत्रूणा,ं तत्क्षणादेव नश्र्वत ॥ ॥ १ ॥
▪ मारणं शत्रु-वगायणां, रक्षणार् चात्म-परम् ।
आर्ुवयवृ द्धर्यशो-वृवद्धस्तेजो-वृवद्ध स्तिैव च ॥ ॥२॥
▪ कुबेर इव ववत्ताढ्र्ः, सवय-सौख्र्मवाप्नुर्ात् ।
वायवादीनामपु शमं, वविम-ज्वर-नाशनम् ॥ ॥३॥
▪ पर-ववत्त-हरा सा वै, पर-प्राण-हरा तिा ।
पर-क्षोभावदक-करा, तिा सम्पत्-करा शुभा ॥ ॥४॥
▪ स्मृवत-मात्रेण देवेवश । शत्रु-वगायः लर्ं गताः ।
इदं सत्र्वमदं सत्र्ं, दुलयभा देवतैरवप ॥ ॥५॥
▪ शठार् पर-वशष्र्ार्, न प्रकाश्र्ा कदाचन ।
पत्रु ार् भवक्त-र्क्त
ु ार्, स्व-वशष्र्ार् तपवस्वने ।
प्रदातव्र्ा महा-ववद्या, चात्म-वगय-प्रदार्तः ॥ ॥६॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ ववना ध्र्ानैववयना जापैवयना पूजा-वविानतः ।


ववना िोढा ववना ज्ञानैमोक्ष-वसवद्धः प्रजार्ते ॥ ॥७॥
▪ पर-नारी-हरा ववद्या, पर-रुप-हरा तिा ।
वार्ु-चन्द्र-स्तम्भ-करा, मैिनु ानन्द-सर्ं तु ा ॥ ॥८॥
▪ वत्र-सन्ध्र्मेक-सन्ध्र्ं वा, र्ः पठे द्भवक्ततः सदा ।
सत्र्ं वदावम देवेवश मम कोवर्-समो भवेत् ॥ ॥९॥
▪ क्रोिादेव-गणाः सवे, लर्ं र्ास्र्वन्त वनवितम् ।
वकं पुनमायनवा देवव भूत-प्रेतादर्ो मृताः ॥ ॥१०॥
▪ ववपरीत-समा ववद्या, न भतू ा न भववष्र्वत ।
पठनान्ते पर-ब्रह्म-ववद्यां स-भास्करां तिा ।
मातृकां पुवर्तं देवव, दशिा प्रजपेत् सुिीः ॥ ॥११॥
▪ वेदावद-पुवर्का देवव, मातक ृ ाऽनन्त-रुवपणी ।
तर्ा वह पवु र्तां ववद्यां, प्रजपेत् सािकोत्तमः ॥ ॥१२॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अं आं इं ई ं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐ ं ओ ं औ ं अं अ: कं िं
गं घं ङं चं छं जं झं ञं र्ं ठं डं ढं णं तं िं दं िं नं पं फं बं भं मं र्ं रं लं वं शं िं सं हं लं क्षं ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ववपरीत परब्रह्म महाप्रत्र्ंवगरे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अं आं इं ई ं उं ऊं
ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐ ं ओ ं औ ं अं अ: कं िं गं घं ङं चं छं जं झं ञं र्ं ठं डं ढं णं तं िं दं िं नं पं फं
बं भं मं र्ं रं लं वं शं िं सं हं लं क्षं मम सपररवारकस्र् सवेभ्र्: सवयत: सवयदा रक्षां कुरु-कुरु मरण
भर्ापन पापनर् वत्रजगतां पररूपववत्तार्मु े सपररवारकार् देवह-देवह दापर् सािकत्वं प्रभत्ु वं च
सततं देवह-देवह ववश्वरूपे िनं पत्रु ान् देवह-देवह मां सपररवारकस्र् मां पश्र्ेत्तु देवहन: सवे वहंसका:
प्रलर्ं र्ान्तु मम सपररवारकस्र् शत्रूणां बलबुवद्धहावनं कुरु-कुरु तान् स-सहार्ान स्वेष्ट-देवतान्
संहारर्-संहारर् स्वाचारमपनर्ाऽपनर् ब्रह्मास्त्रादीवन व्र्िीकुरु हं हं स्रें स्रें ठ: ठ: फर्् फर्् ॐ

▪ मनो वजत्वा जपेल्लोकं, भोग रोगं तिा र्जेत् ।


दीनतां हीनतां वजत्वा, कावमनी वनवायण-पद्धवतम् ॥ ॥१३॥

।। इवत श्री महा-ववपरीत-प्रत्यंवगरा-स्तोत्रम् ।।

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

॥ श्री बगलामुिी चालीसा ॥


▪ नमो महावविा बरदा , बगलामुिी दर्ाल ।
स्तम्भन क्षण में करे , सुमररत अररकुल काल ॥
▪ नमो नमो पीताम्बरा भवानी, ▪ दुष्टोच्चार्न कारक माता,
बगलामुिी नमो कल्र्ानी ॥ ॥१॥ अरर वजव्हा कीलक सघाता ॥ ॥१३॥
▪ भक्त वत्सला शत्रु नशानी, ▪ सािक के ववपवत की त्राता,
नमो महावविा वरदानी ॥ ॥२॥ नमो महामार्ा प्रख्र्ाता ॥ ॥१४॥
▪ अमतृ सागर बीच तम्ु हारा, ▪ मद्गु र वशला वलर्े अवत भारी,
रत्न जवडत मवण मवं डत प्र्ारा ॥ ॥ ३ ॥ प्रेतासन पर वकर्े सवारी ॥ ॥१५॥
▪ स्वणय वसंहासन पर आसीना, ▪ तीन लोक दस वदशा भवानी,
पीताम्बर अवत वदव्र् नवीना ॥ ॥४॥ वबचरह तुम वहत कल्र्ानी ॥ ॥१६॥
▪ स्वणयभिू ण सन्ु दर िारे, ▪ अरर अररष्ट सोचे जो जन को,
वसर पर चन्द्र मुकुर् श्रृंगारे ॥ ॥५॥ बुवध्द नाशकर कीलक तन को ॥ ॥१७॥
▪ तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, ▪ हाि पांव बााँिह तुम ताके ,
िारे मुद्गर पाश कराला ॥ ॥६॥ हनह जीभ वबच मुद्गर बाके ॥ ॥१८॥
▪ भैरव करे सदा सेवकाई, ▪ चोरो का जब सक ं र् आवे,
वसद्ध काम सब ववघ्न नसाई ॥ ॥७॥ रण में ररपओ
ु ं से वघर जावे ॥ ॥१९॥
▪ तमु हताश का वनपर् सहारा, ▪ अनल अवनल वबप्लव घहरावे,
करे अवकंचन अररकल िारा ॥ ॥ ८ ॥ वाद वववाद न वनणयर् पावे ॥ ॥२०॥
▪ तमु काली तारा भुवनेशी, ▪ मूठ आवद अवभचारण सक ं र्,
वत्रपुर सुन्दरी भैरवी वेशी ॥ ॥९॥ राजभीवत आपवत्त सवन्नकर् ॥ ॥२१॥
▪ वछन्नभाल िमू ा मातगं ी, ▪ ध्र्ान करत सब कष्ट नसावे,
गार्त्री तमु बगला रगं ी ॥ ॥१०॥ भतू प्रेत न बािा आवे ॥ ॥२२॥
▪ सकल शवक्तर्ााँ तुम में साजें, ▪ सुमररत राजव्दार बंि जावे,
ह्लीं बीज के बीज वबराजे ॥ ॥११॥ सभा बीच स्तम्भवन छावे ॥ ॥२३॥
▪ दुष्ट स्तम्भन अररकुल कीलन, ▪ नाग सपय ब्रवचयश्रकावद भर्ंकर,
मारण वशीकरण सम्मोहन ॥ ॥१२॥ िल ववहगं भागवहं सब सत्वर ॥ ॥२४॥

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श्रावण कृ ष्ण पंचमी - 10.1.2020 बगलामुिा महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम्

▪ सवय रोग की नाशन हारी, ▪ पूजा वववि नवहं जानत तुम्हरी,


अररकुल मूलच्चार्न कारी ॥ ॥२५॥ अिय न आिर करहाँ वनहोरी ॥ ॥३३॥
▪ स्त्री पुरुि राज सम्मोहक, ▪ मैं कुपुत्र अवत वनवल उपार्ा,
नमो नमो पीताम्बर सोहक ॥ ॥२६॥ हाि जोड शरणागत आर्ा ॥ ॥३४॥
▪ तमु को सदा कुबेर मनावे, ▪ जग में के वल तुम्हीं सहारा,
श्री समृवद्ध सुर्श वनत गावें ॥ ॥२७॥ सारे संकर् करहाँ वनवारा ॥ ॥३५॥
▪ शवक्त शौर्य की तम्ु हीं वविाता, ▪ नमो महादेवी हे माता,
दुःि दाररद्र ववनाशक माता ॥ ॥२८॥ पीताम्बरा नमो सुिदाता ॥ ॥३६॥
▪ र्श ऐश्वर्य वसवद्ध की दाता, ▪ सोम्र् रूप िर बनती माता,
शत्रु नावशनी ववजर् प्रदाता ॥ ॥२९॥ सुि सम्पवत्त सुर्श की दाता ॥ ॥३७॥
▪ पीताम्बरा नमो कल्र्ानी, ▪ रोद्र रूप िर शत्रु संहारो,
नमो माता बगला महारानी ॥ ॥३०॥ अरर वजव्हा में मुद्गर मारो ॥ ॥३८॥
▪ जो तुमको सुमरै वचतलाई, ▪ नमो महावविा आगारा,
र्ोग क्षेम से करो सहाई ॥ ॥३१॥ आवद शवक्त सन्ु दरी आपारा ॥ ॥३९॥
▪ आपवत्त जन की तुरत वनवारो, ▪ अरर भंजक ववपवत्त की त्राता,
आवि व्र्ावि संकर् सब र्ारो ॥ ॥३२॥ दर्ा करो पीताम्बरी माता ॥ ॥४०॥

▪ ररवद्ध वसवद्ध दाता तुम्हीं, अरर समूल कुल काल ।


मेरी सब बािा हरो, मााँ बगले तत्काल ॥

॥ इवत श्री बगलामुखी िालीसा पाठ सम्पुर्णम् ॥

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