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8 बगलामुखी महाविद्या स्तोत्र एवं कवचम् Mvf
8 बगलामुखी महाविद्या स्तोत्र एवं कवचम् Mvf
॥ ८ - बगलामि
ु ी महाववद्या स्तोत्र एवं कवचम् ॥
अनुक्रमावणका
1. देवी बगलामि ु ी 02 11. बगलामिु ी पञ्जर न्र्ास स्तोत्रम् 23
2. बगलामुिी माता मंत्र 04 12. बगलामुिी कवचम् - १ 23
3. माता ध्र्ान 07 13. बगलामुिी कवचम् - २ 24
4. बगलामि ु ी दशनाम स्तोत्रम् 08 14. बगलामि ु ी कवचम् - ३ 26
5. बगलामुिी स्तोत्रम् 09 15. बगलामुिी शत्रु ववनाशकं कवचम् - ४ 27
6. बगलामुिी हृदर् स्तोत्रम् - १ 11 16. बगलामुिी सुक्तम् 28
7. बगलामुिी हृदर् स्तोत्रम् - २ 13 17. ववपरीत प्रत्र्ंवगरा स्तोत्रम् 30
8. बगलामुिी स्तोत्रम् 16 18. महा ववपरीत प्रत्र्ंवगरा स्तोत्रम् 32
9. बगलामि ु ी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् 18 19. बगलामि ु ी चालीसा 39
10. बगलामुिी पञ्जर स्तोत्रम् 20 20.
॥ मााँ बगलामुिी ॥
देवी कमला दसमहाववद्या में आठवीं महाववद्या हैं । व्यविरूप में शत्रुओ ं को नि करने की इच्छा
रखनेवाली तथा समविरूप में परमात्मा की संहार शवि ही वगला है । देवी बगलामुखी स्तभं व शवि की
अविष्ठात्री हैं । यह अपने भिों के भय को दरू करके शत्रुओ ं और उनकी बुरी शवियों का नाश करती हैं । मााँ
बगलामख ु ी का एक नाम पीताम्बरा भी है । ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभषू र् तथा पीले पष्ु पों की ही माला
िारर् करती हैं । इनके एक हाथ में शत्रु की विह्वा और दसू रे हाथमें मुद्गर है ।
स्वतन्त्त्रतन्त्त्र के अनुसार भगवती वगलामुखी के प्रादभु ाणव की कथा इस प्रकार है- सत्ययुग में सम्पूर्ण
िगत्को नि करनेवाला भयंकर तूफान आया । प्रावर्यों के िीवन पर आये संकट को देखकर भगवान् महाववष्र्ु
विवन्त्तत हो गये । वे सौराि देश में हररद्रा सरोवर के समीप िाकर भगवती को प्रसन्त्न करने के वलये तप करने
लगे । श्री ववद्या ने उस सरोवर से वगलामख ु ी रूप में प्रकट होकर उन्त्हें दशणन वदया तथा ववध्वसं कारी तफ ू ान का
तरु न्त्त स्तम्भन कर वदया । वगलामख ु ी महाववद्या भगवान् ववष्र्ु के तेि से यि ु होने के कारर् वैष्र्वी है ।
मंगलवार युि ितुदणशी की अिणरावत्र में इनका प्रादभु ाणव हुआ था ।
भगवान् श्रीकृ ष्र् ने भी गीता में 'ववष्टभ्र्ाहवमदं कृत्स्नमेकांशेन वस्ितो जगत्' कहकर उसी शवि
का समथणन वकया है । तन्त्त्र में वही स्तम्भन शवि वगलामुखी के नामसे िानी िाती है ।
श्री वगलामुखी को 'ब्रह्मास्त्र' के नाम से भी िाना िाता है । ऐवहक या पारलौवकक देश अथवा समाि
में दुःु खद् अररिों के दमन और शत्रओ ु ं के शमन में वगलामख ु ी के समान कोई मन्त्त्र नहीं है । इनके बडवामख ु ी,
िातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमख ु ी पााँि मन्त्त्रभेद हैं ।
श्रीकुल की सभी महाववद्याओ ं की उपासना गुरु के सावन्त्नध्य में रहकर सतकण ता पूवणक सफलता की
प्रावि होने तक करते रहना िावहये । इसमें ब्रह्मियण का पालन और बाहर-भीतर की पववत्रता अवनवायण है ।
सवणप्रथम ब्रह्मािी ने वगला महाववद्या की उपासना की थी । ब्रह्मािी ने इस ववद्या का उपदेश
सनकावदक मवु नयों को वकया । सनत्कुमार ने देववषण नारद को और नारद ने साख्ं यायन नामक परमहसं को इसका
उपदेश वकया । साख्ं यायन ने छत्तीस पटलों में उपवनबद्ध वगलातन्त्त्र की रिना की । वगलामुखी के दसू रे उपासक
भगवान् ववष्र्ु और तीसरे उपासक परशुराम हुए तथा परशुराम ने यह ववद्या आिायण द्रोर्को बतायी ।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शवि का समावेश हैं माता बगलामख ु ी शत्रुनाश, वाकवसवद्ध, युद्ध, कोटण-किहरी
एवं वाद वववाद में वविय, हर प्रकार की प्रवतयोवगता परीक्षा में सफलता के वलए, सरकारी नौकरी के वलए
दैवी प्रकोप की शावन्त्त, िन-िान्त्य के वलये पौविक कमण एवं आवभिाररक कमण के वलये भी इनकी उपासना की
िाती है । इस ववद्या को ब्रह्मास्त्र भी कहा िाता है । इनकी उपासना में हररद्रा माला, पीत-पष्ु प एवं पीतवस्त्र का
वविान है ।
कृ ष्र् और अिुणन ने महाभातर के युद्ध के पूवण माता बगलामुखी की पूिा अिणना की थी । विसकी
सािना सिऋवषयों ने वैवदक काल में समय समय पर की है ।
॥ बगलामि
ु ी माता का मंत्र: ॥
▪ हल्दी या पीले कांि की माला से ८, १६, २१ माला मत्रं का िाप कर सकते हैं ।
▪ इस मंत्र का िाप रावत्र में १० से ४ के बीि में करें ।
▪ सािना के दौरान पीले वस्त्र िारर् करें सािना के वदनों में बाल ना कटवाएं, ब्रह्मियण का पालन करें और
के वल एक समय ही भोिन करें । सावत्वक भोिन करें तो और भी अच्छा है ।
▪ इस ववद्या का उपयोग के वल तभी वकया िाना िावहए िब कोई रास्ता ना बिा हो ।
▪ नोट : बगलामुखी महाववद्या सािना वववि आप वबना गुरु बनाये ना करें गुरु बनाकर व
अपने गुरु से सलाह लेकर इस सािना को करना िावहए । क्युकी वबना गुरु के की
हुई सािना आपके िीवन में हावन ला सकती है ।
▪ बीि मंत्र ह्लीं । दवक्षर्ाम्राय का है, विसे वस्थर माया भी कहा िाता है ।
▪ अवनन बीि सवहत मंत्र हल्रीं ।
▪ वववनयोग एकाक्षरी बगला मंत्रस्र् ब्रह्मा ऋवि: गार्त्री छंदः बगलामुिी देवता, लं बीजं,
ह्रीं (हं) शवक्त:, कीलकम्, मम सवायिय वसद्धर्िे जपे वववनर्ोगः ।
▪ षडङ्गन्त्यास ॐ ह्लां हृदर्ार् नम: । ॐ ह्लीं वशरसे स्वाहा । ॐ ह्लूाँ वशिार्ै विर्् ।
ॐ ह्लैं कवचार् हं । ॐ ह्लौं नेत्रत्रर्ार् वौिर्् । ॐ ह्लः अस्त्रार् फर्् ।
▪ ऋष्यावद न्त्यास श्री ब्रह्मा ऋिर्े नमः वशरवस । गार्त्री छन्दसे नमः मि ु े । श्री बगलामि ु ी देवतार्ै
नमः हृवद । लं बीजार् नमः गुह्ये । ह्रीं शक्तर्े (हं शक्तर्े) नमः पादर्ोः । ई ंकीलकार्
नमः सवायङ्गे । श्री बगलामि ु ी देवताम्बा प्रीत्र्िे जपे वववनर्ोगार् नमः अङ्जलौ ।
▪ करन्त्यास ॐ ह्लां अंगुष्ठाभ्र्ा नमः । ॐ ह्लीं तजयनीभ्र्ां स्वाहा । ॐ ह्लूं मध्र्माभ्र्ां विर्् ।
ॐ ह्लैं अनावमकाभ्र्ां हं । ॐ ह्लौं कवनवष्ठकाभ्र्ां वौिर्् । ॐ ह्लः करतलकरपृष्टाभ्र्ां फर्् ।
▪ िप सख् ं या १ लाि - जप, दशांश - पीत पुष्पों से होम, तद्दशांश - गडु ोदक से तपयण ।
▪ त्र्यक्षर मत्रं ॐ ह्लीं ॐ ।
▪ ितुरक्षरी मत्रं ॐ आं ह्लीं क्रों ।
▪ पंिाक्षरी मंत्र ॐ ह्रीं स्त्रीं हं फर्् ।
▪ सिाक्षर मंत्र ह्रीं बगलार्ै स्वाहा ।
▪ अिाक्षर मंत्र ॐ आं ह्लीं क्रों हं फर्् स्वाहा । साख्ं यायन तंत्र
▪ ॐ ह्रीं श्रीं आं क्रों बगला । बगला कल्पतरु
▪ एकोनववंशाक्षर मंत्र श्री ह्रीं ऐ ं भगववत बगले में वश्रर्ं देवह दवह स्वाहा । वाच्छाकल्पद्रुम
ॐ ह्रीं ऐ ं भगवती बगले में वश्रर्ं देवह दवह स्वाहा ।
▪ समस्त ऐश्वयो एवं सम्पवत्तयों की प्रावि हेतु । बदं व्यापार, डूबा िन
▪ परीक्षा में सफलता का मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुिी देव्र्ै ह्लीं साफल्र्ं देवह देवह स्वाहा: ।
▪ बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर िढाएं ।
▪ देवी की प्रवतमा या वित्र के सम्मुख एक अखंड दीपक िला कर रखें ।
▪ रुद्राक्ष की माला से 8 माला का मत्र ं िप करें ।
▪ मंत्र िाप के समय पूवण की और मुख रखें ।
॥ बगलामि
ु ी हृदर् स्तोत्रम् - २ ॥
▪ वववनयोग : ॐ अस्य श्री बगलामुखी हृदयमालामन्त्त्रस्य नारदुः ऋवष:, अनुिुप् छन्त्दुः श्री
बगलामुखी देवता ह्रीं बीिं क्लीं शविुः ऐ ं कीलकं श्रीबगलामुखी-वर-प्रसाद-वसद्धयथे
िपे वववनयोग:।
▪ ऋष्यावद-न्त्यास ॐ नारद ऋषये नमुः वशरवस। ॐ अनिु ुप् छन्त्दसे नमो मख ु े । ॐ श्री बगलामख्ु यै
देवतायै नमुः हृदये । ॐ ह्रीं बीिाय नमो गह्य
ु े । ॐ क्लीं शिये नमुः पादयोुः । ॐ ऐ ं
कीलकाय नमुः सवाांगे ।
▪ करांग-न्त्यास : ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभयां नमुः । ॐ क्लीं तिणनीभयां नमुः । ॐ ऐ ं मध्यमाभयां नमुः । ॐ ह्रीं
अनावमकाभयां नमुः । ॐ क्लीं कवनवष्ठकाभयां नमुः । ॐ ऐ ं करतलकरपृष्ठाभयां नमुः ।
▪ हृदयावद न्त्यास : ॐ ह्रीं हृदयाय नमुः । ॐ क्लीं वशरसे स्वाहा । ॐ ऐ ं वशखायै वषट् । ॐ ह्रीं कविाय
हुं । ॐ क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ऐ ं अस्त्राय फट् । ॐ ह्रीं क्लीं ऐ ं इवत वदनबंि: ।
▪ वन्देऽहं देवीं पीतभिू णभवू िताम् ।
तेजोरुपमर्ीं देवीं पीततेजः स्वरुवपणीम् ॥ ॥१॥
▪ गदाभ्रमणवभन्नाभ्रां भ्रकुर्ीभीिणाननाम् ।
भीिर्न्तीं भीमशत्रनू ् भजे भव्र्स्र् भवक्तदाम् ॥ ॥२॥
▪ पूणय-चन्द्रसमानास्र्ां पीतगन्िानुलेपनाम् ।
पीताम्बरपरीिानां पववत्रामाश्रर्ाम्र्हम् ॥ ॥३॥
▪ पालर्न्तीमनपु लं प्रसमीक्ष्र्ाऽवनीतले ।
पीताचाररतां भक्तां स्ताम्भवानीं भजाम्र्हम् ॥ ॥४॥
▪ पीतपद्मपदिन्िां चम्पकारण्र् रुवपणीम् ।
पीतावतंसां परमां वन्दे पद्मजववन्दताम् ॥ ॥५॥
▪ लसञ्चारुवसञ्जत्सुमञ्जीरपादां चलत्स्वणयकणायवतं सावञ्चतां स्र्ाम् ।
वलत्पीतचन्द्राननां चन्द्रवन्द्यां भजे पद्मजादीऽर्सत्पादपद्माम् ॥ ६ ॥
▪ सुपीताभर्ामालर्ा पूतमन्त्रं परं ते जपन्तो जर्ं सल
ं भन्ते ।
रणे रागरोिाप्लुतानां ररपूणां वववादे बलािैकयृ ता-घातमातः ॥ ॥ ७ ॥
▪ भरत्पीतभास्वत्प्रभाहस्कराभां गदागवञ्जतावमत्र गवां गररष्ठाम् ।
गरीर्ो गुणागारगात्रां गुणाढ्र्ां गणेशावदगम्र्ां श्रर्े वनगयण
ु ाढ्र्ाम् ॥ ॥ ८ ॥
॥ श्री वसद्धेश्वर तंत्रे उत्तर-खण्डे बगला-पटले श्री बगला हृदय स्तोत्रम् सम्पुर्मण ् ।।
▪ श्री वशव उवाि ताः सवायः बगला देवी, रक्षेन्मे च मनोहरा ॥ ॥१३॥
▪ इत्र्ेतद् वरदं गोप्र्ं कलाववप ववशेितः
पञ्जरं बगला देव्र्ाः घोर दाररद्र्र् नाशनम् ।
पञ्जरं र्ः पठे त् भक्त्र्ा स ववघ्नैनायवभभतू र्े ॥ ॥१४॥
▪ अव्र्ाहत गवतिास्र् ब्रह्मववष्णवावद सत्पुरे ।
स्वगे मत्र्े च पाताले नाऽरर्स्तं कदाचन ॥ ॥१५॥
▪ न बािन्ते नरव्र्ार पञ्जरस्िं कदाचन ।
अतो भक्तैः कौवलकै ि स्वरक्षािं सदैव वह ॥ ॥१६॥
▪ पठनीर्ं प्रर्त्नेन सवायनिय ववनाशनम् ।
महा दाररद्र्र् शमनं सवयमांगल्र्वियनम् ॥ ॥१७॥
▪ ववद्या ववनर् सत्सौख्र्ं महावसवद्धकरं परम् ।
इदं ब्रह्मास्त्रववद्यार्ाः पञ्जरं सािु गोवपतम् ॥ ॥१८॥
▪ पठे त् स्मरेत् ध्र्ानसंस्िः स जर्ेन्मरणं नरः ।
र्ः पञ्जरं प्रववश्र्ैव मन्त्रं जपवत वै भवु व ॥ ॥१९॥
▪ कौवलकोऽकौवलको वावप व्र्ासवद् ववचरेद् भुवव।
चन्द्रसूर्य समोभूत्वा वसेत् कल्पार्ुतं वदवव ॥ ॥२०॥
▪ श्री सूत उवाि इवत कवितमशेिं श्रेर्सामावदबीजम् ।
भवशत दुररतघ्नं ध्वस्तमोहान्िकारकम् ।
स्मरणमवतशर्ेन प्राविरेवात्र मत्र्यः ।
र्वद ववशवत सदा वै पञ्जरं पवण्डतः स्र्ात् ॥ ॥२१॥
▪ संकल्प ॐ तत्सद्य .......... प्रसाद वसद्धी िारा मम यिमानस्य (नाम दें) सवाणभीष्ठ वसवद्धथे पर प्रयोग,
पर मंत्र-तंत्र-यंत्र ववनाशाथे, सवण दिु ग्रहे बािा वनवार्ाथे, सवण उपद्रव शमनाथे श्री भगवती
पीताम्बरायाुः बगला सि ू स्ये नयारह सहस्त्र पाठे अहम् कुवे । (िल पृथ्वी पर डाले दें)
▪ वववनयोगुः ॐ अस्य श्री बगलामख ु ी मत्रं स्य नारद ररवषुः, तररि् ुप छंद, बगलामख
ु ी देवता,
ह्लींम् बीिम्, स्वाहा शविुः, ममावभि वसध्यथे िपे वववनयोगुः ।
▪ सवोपचारसम्पन्न वस्त्र-रत्न-कलावदवभ: ।
पुष्पैि कृष्णवणैि सािर्ेत् कावलकां वराम् ॥ ॥६॥
▪ विायदूध्वयमजम् मेिं मदृ ं वाऽि र्िावववि ।
दद्यात् पूवं महेशावन तति जपमाचरेत् ॥ ॥७॥
▪ एकाहात् वसवद्धदा काली सत्र्ं सत्र्ं न संशर्: ।
मूलमन्त्रेण रात्रौ च होमं कुर्ायत् समावहत: ॥ ॥८॥
▪ मरीच-लाजा-लवणैः साियपैमायरणं भवेत ।
महाजनपदे चैव न भर्ं ववद्यते क्ववचत् ॥ ॥९॥
▪ प्रेतवपण्डं समादार् गोलकं कारर्ेत् तत: ।
मध्र्े नामांवकतं कृत्वा शत्ररू ु पांि पुत्तलीम् ॥ ॥१०॥
▪ जीवं तत्र वविार्ैव वचताग्नौ जहु र्ात्तत:।
तत्रार्ुत जपं कुर्ायत् वत्ररात्रं मारणं ररपो: ॥ ॥११॥
▪ महाज्वाला भवेत्तस्र् तित्ताभ्रशलाकर्ा ।
गुदिारे प्रदद्याच्च सिाहान् मारणं ररपो: ॥ ॥१२॥
▪ प्रत्र्ंवगरा मर्ा प्रोक्ता पवठता पावठता नरै: ।
वलवित्वा च करे कण्ठे बाहौ वशरवस िारर्ेत् ।
मुच्र्ते सवयपापेभ्र्ो नाल्पमृत्र्ु: किंचन ॥ ॥१३॥
▪ ग्रहा: ऋक्षास्तिा वसहं ा भतू ा र्क्षाि राक्षसा: ।
तस्र्ा पीडां न कुवयवन्त वदवव भव्ु र्न्तररक्षगा: ॥ ॥१४॥
▪ चतुष्पदेिु दुगेिु वनेिू पवनेिू च ।
श्मशाने दुगयमे घोरे संग्रामे शत्रुसंकर्े ॥ ॥१५॥
▪ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कुं कुं कुं मां सां िां चां लां क्षां ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं वां िां मां सां रक्षां कुरू ।
ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ स: हं ॐ क्षौं वां लां िां मां सां रक्षां कुरू । ॐ ॐ हं प्लुं रक्षां करू ।
▪ ॐ नमो ववपरीतप्रत्र्ंवगरार्ै ववद्यारावज्ञ त्रैलोक्र्वशंकरर तुवष्ट-पुवष्ट-करर सवय-पीडा-पहाररवण
सवायपन्नावशवन सवयमगं लमागं ल्र्े वशवे सवायियसाविवन मोवदवन सवायशास्त्राणां भेवदवन क्षोवभवण
तिा परमंत्र-तंत्र-र्ंत्र वविचूणय सवय प्रर्ोगादीनन्र्ेिां वनवयतयवर्त्वा र्त्कृतं तन्मेऽस्तु कवलपावतवन
सवयवहंसा मा कारर्वत अनुमोदर्वत मनसा वाचा कमयणा र्े देवासुर
राक्षसावस्तर्यग्र्ोवनसवयवहंसका ववरूपकं कुवयवन्त मम मंत्र-तंत्र-र्ंत्र-ववि-चूणय-सवय
प्रर्ोगादीनात्महस्तेन र्: करोवत कररष्र्वत काररष्र्वत तान् सवायनन्र्ेिां वनवयतयवर्त्वा पातर्
कारर् मस्तके स्वाहा ।
॥ इवत भैरवी तन्त्त्रे भैरवी संवादे ववपरीत प्रत्यंवगरा स्तोत्रम् समािम् ॥
▪ माला मंत्र
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमो ववपरीतप्रत्र्ंवगरार्ै सहस्रानेक कार्य लोचनार्ै कोवर्
ववद्युज-् वजह्वार्ै महाव्र्ावपन्र्ै संहाररूपार्ै जन्मशांवत काररण्र्ै मम सपररवारकस्र् भावव भूत
भवच्छत्रु दाराप्रत्र्ान् संहारर्-संहारर् महाप्रभावं दशयर्-दशयर् वहवल-वहवल वकवल-वकवल वमवल-
वमवल वचवल-वचवल भरू र-भरू र ववद्युज-् वजह्वे ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ध्वस ं र्-ध्वसं र् प्रध्वस
ं र्-
प्रध्वंसर् ग्रासर्-ग्रासर् वपब-वपब नाशर्-नाशर् त्रासर्-त्रासर् ववत्रासर्-ववत्रासर् मारर्-मारर्
ववमारर्-ववमारर् भ्रामर्-भ्रामर् ववभ्रामर्-ववभ्रामर् द्रावर्-द्रावर् ववद्रावर्-ववद्रावर् हं हं फर््
स्वाहा ।
हं हं हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ववपरीत
प्रत्र्वं गरे हं लं ह्रीं लं क्लीं लं ॐ लं फर् फर् स्वाहा ।
हं लं ह्रीं क्लीं ॐ ववपरीत प्रत्र्वं गरे मम सवपरवारकस्र् र्ावच्छत्रनू ् देवता-वपतृ-वपशाच-
नाग-गरुड-वकन्नर-ववद्यािर-गंिवय-र्क्ष-राक्षस-लोकपालान् ग्रह-भूत-नर-लोकान् समन्त्रान्
सौििान् सार्ुिान् स-सहार्ान् पाणौ वछवन्ि-वछवन्ि वभवन्ि-वभवन्ि वनकृन्तर्-वनकृन्तर् छे दर्-
छे दर् उच्चार्र्-उच्चार्र् मारर्-मारर् तेिां साहंकारावद िमायन् कीलर्-कीलर् घातर्-घातर्
नाशर्-नाशर् ववपरीत प्रत्र्वं गरे स्रें स्रे त् काररणी ॐ ॐ जाँ ॐ ॐ जाँ ॐ ॐ जाँ ॐ ॐ जाँ
ॐ ॐ जाँ ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: ॐ ठ: मम सपररवारकस्र् शत्रण ू ां सवाय: ववद्या: स्तभ
ं र्-
स्तंभर् नाशर्-नाशर् हस्तौ, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् मुिं, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर्
नेत्रावण, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् दन्तान,् स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् वजह्वा,ं स्तंभर्-स्तंभर्
नाशर्-नाशर् पादौ, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् गुह्यं, स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् सकुर्ुम्बानां,
स्तंभर्-स्तंभर् नाशर्-नाशर् स्िानं, स्तंभर्-स्तभ ं र् नाशर्-नाशर् सं प्राणान् कीलर्-कीलर्
नाशर्-नाशर् हं हं हं हं हं हं हं ह्रीं ह्री ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऐ ं
ऐ ं ऐ ं ऐ ं ऐ ं ऐ ं ऐ ं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् फर्् स्वाहा ।
मम सपररवारकस्र् सवयतो रक्षां कुरु कुरु फर्् फर्् स्वाहा । ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ऐ ं ह्रूं ह्रीं क्लीं
हं सों ववपरीत प्रत्र्ंवगरे! मम सपररवारकस्र् भूत-भववष्र्-च्छत्रूणामुच्चार्नं कुरु कुरु हं हं फर््
स्वाहा ।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं वं वं वं वं वं लं लं लं लं लं रं रं रं रं रं र्ं र्ं र्ं र्ं र्ं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
नमो भगववत ववपरीत प्रत्र्ंवगरे दुष्ट-चांडावलनी-वत्रशूल-वज्रांकुश-शवक्त-शूल-िनु:-शर-
पाशिाररणी शत्रुरुविर चमय मेदो मास ं ाावस्ि मज्जा-शुक्र-मेहन-वसा-वाक् प्राण मस्तक
हेत्वावदभवक्षणी परब्रह्मवशवे ज्वालादावर्नी मावलनी शत्रूच्चार्न-मारण-क्षोभन-स्तंभन-मोहन-
द्रावण-जृम्भण-भ्रामण-रौद्रण-सन्तापन-र्ंत्र-मंत्र-तंत्रान्तर्ायग पुरिरण भूतशुवद्ध पूजाफल
परमवनवायण हारण काररवण कपालिर््वागं परशि ु ाररवण मम सपररवारकस्र् भतू भववष्र्च्छत्रनू ्
स-सहार्ान् सवाहनान् हन-हन रण-रण दह-दह दम-दम िम-िम पच-पच मि-मि लंघर्-लंघर्
िादर्-िादर् चवयर्-चवयर् व्र्िर्-व्र्िर् ज्वरर्-ज्वरर् मूकान् कुरु-कुरु ज्ञानं हर-हर हं हं फर्् फर््
स्वाहा ।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हं हं हं हं हं हं हं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ववपरीत प्रत्र्वं गरे ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हं हं हं हं हं हं हं क्लीं क्लीं क्लीं
क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् स्वाहा ।
मम सवपरवारकस्र् कृत मंत्र-र्ंत्र-तंत्र हवन कृतौिि वविचूणय शस्त्राद्यवभचार
सवोपद्रवावदकं र्ेन कृतं काररतं कुरुते कररष्र्वत वा तान् सवायन् हन-हन स्फारर्-स्फारर् सवयतो
रक्षां कुरु-कुरु हं हं फर्् फर्् स्वाहा ।
हं हं हं हं हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ओ ं ओ ं
ओ ं ओ ं ओ ं ओ ं ओ ं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् फर्् स्वाहा ।
ॐ हं ह्रीं क्लीं ॐ अं ववपरीत प्रत्र्वं गरे मम सपररवारकस्र् शत्रव: कुवयवन्त कररष्र्वन्त
शत्रुि कारर्ामास कारर्वन्त कारवर्ष्र्वन्त र्ाऽन्र्ार्ं कृत्र्ान्तै: सािं तांस्तां ववपरीतां कुरु-कुरु
नाशर्-नाशर् मारर्-मारर् श्मशानस्िानं कुरु-कुरु कृत्र्ावदकां वक्रर्ां भावव भूत भवच्छत्रूणां
र्ावत्-कृत्र्ावदकां वक्रर्ां ववपरीतां कुरु-कुरु तान् डावकनीमि ु े हारर्-हारर् भीिर्-भीिर् त्रासर्-
त्रासर् परम शमन रूपेण हन-हन िमायववच्छन्न वनवायणं हर-हर तेिाम् इष्टदेवानां शासर्-शासर्
क्षोभर्-क्षोभर् प्राणावद मनोबुद्ध्र् हक ं ार क्षुत्तृष्णा कियण लर्न आवागमन मरणावदकं नाशर्-
नाशर् हं हं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ फर्् फर्् स्वाहा ।
क्षं लं हं सं िं शं वं लं रं र्ं मं भं बं फं पं नं िं दं िं तं णं ढं डं ठं र्ं ञं झं
जं छं चं ङं घं गं िं कं अ: अं औ ं ओ ं ऐ ं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ई ं इं आं अं हं हं हं हं हं
हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ववपरीत प्रत्र्ंवगरे हं हं हं हं हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ फर्् स्वाहा ।
क्षं लं हं सं िं शं वं लं रं र्ं मं भं बं फं पं नं िं दं िं तं णं ढं डं ठं र्ं ञं झं
जं छं चं ङं घं गं िं कं अ: अं औ ं ओ ं ऐ ं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ई ं इं आं अं हं हं हं हं
हं हं हं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ फर्् स्वाहा ।
अ: अं औ ं ओ ं ऐ ं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ई ं इं आं अं ङं घं गं िं कं ञं झं जं
छं चं णं ढं डं ठं र्ं नं िं दं िं तं मं भं बं फं पं क्षं लं हं सं िं शं वं लं रं र्ं ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ मम सपररवारकस्र् स्िाने शत्रूणां कृत्र्ान् सवायन् ववपरीतान् कुरु-कुरु तेिां
तंत्र-मंत्र तंत्राचयन श्मशानरोहण भूवमस्िापन भस्म प्रक्षेपण पुरिरण होमावभिेकावदकान् कृत्र्ान्
दूरी कुरु-कुरु हं ववपरीत प्रत्र्ंवगरे मां सपररवारकं सवयत: सवेभ्र्ो रक्ष-रक्ष हं ह्रीं फर्् स्वाहा ।
अं आं इं ई ं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐ ं ओ ं औ ं अं अ: कं िं गं घं ङं चं छं जं
झं ञं र्ं ठं डं ढं णं तं िं दं िं नं पं फं बं भं मं र्ं रं लं वं शं िं सं हं लं क्षं ॐ क्लीं
ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ हं ह्रीं क्लीं ॐ
ववपरीत प्रत्र्वं गरे हं ह्रीं क्लीं ॐ फर्् स्वाहा ।
ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं अं
आं इं ई ं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐ ं ओ ं औ ं अं अ: कं िं गं घं ङं चं छं जं झं ञं र्ं ठं
डं ढं णं तं िं दं िं नं पं फं बं भं मं र्ं रं लं वं शं िं सं हं लं क्षं ववपरीत प्रत्र्ंवगरे मम
सपररवारकस्र् शत्रण ू ां ववपरीत वक्रर्ां नाशर्-नाशर् त्रवु र्ं कुरु-कुरु तेिावमष्ट देवतावद ववनाशं कुरु-
कुरु वसद्धम् अपनर्-अपनर् ववपरीत प्रत्र्वं गरे शत्रमु वदयवन भर्क ं रर नाना कृत्र्ामवदयवन ज्वावलवन
महाघोरतरे वत्रभुवन भर्क ं रर शत्रुभ्र्: मम सपररवारकस्र् चक्षु: श्रोत्रावण पादौ सवयत: सवेभ्र्:
सवयदा रक्षां कुरु-कुरु स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ वसुंिरे मम सपररवार-कस्र् स्िानं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ महालवक्ष्म मम सपररवार-कस्र् पादौ रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ चवं डके मम सपररवार-कस्र् जघं े रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ चामुंडे मम सपररवार-कस्र् गुह्यं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ इंद्राणी मम सपररवार-कस्र् नावभं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ नारवसंवह मम सपररवार-कस्र् बाहं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ वारावह मम सपररवारकस्र् हृद्यं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ वैष्णवव मम सपररवार-कस्र् कंठं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐ ं ॐ कौमारर मम सपररवार-कस्र् वक्त्रं रक्ष-रक्ष हं फर्् स्वाहा ।