Somnath (Hindi) by Chatursen Acharya

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सोमनाथ

सोमनाथ

आचाय चतुरसेन
ISBN : 9788170281573
सं करण : 2014 © कमल कशोरी चतुरसेन
SOMNATH (Novel) by Acharya Chatursen

राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट- द ली-110006
फोन: 011-23869812, 23865483, फै स: 011-23867791
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e-mail : sales@rajpalpublishing.com
अंतव तु
िनमा य
उदया त
समपण
ि पुरसु दरी
कु स वाद
भैरवी–च
मौनी बाबा
िविध भंग
अघोर–वन
अगम पथ पर
अघोर स पदा
महाकाल–मोचन
कृ ण वामी
पीरो–मु शद
अली िबन उ मान अलहज़वीसी
िबना ार का दुग
गज़नी
ईदुल– फतर
ईद का दरबार
क ठन अिभयान
महानद के तट पर
अजयपाल का धम–संकट
मुलतान के ार पर
घोघाबापा
महो सग
के स रया बाना
नि दद का पु षाथ
अनिह ल–प न
गुजरािधपित
ष ं
दामो महता
कू टम
भ मांकदेव
दामोदर क कू टनीित
िवमलदेव शाह
राज–कलह
धम क तलवार
धमगजदेव
चौहान क रणस ा
पु कर का यु
कपट–सि ध
शाह मदार
िव ासघात
अजमेर क तबाही
पुर कार
दुलभराय का अिभयान
िस पुर म
िवफल यास
पाटन म हड़क प
जूनागढ़ का राव
परम–परमे र
वीर के दल-बादल
ा ण क कू टनीित
श ु िनमं ण
गुजरात क राजधानी म
कमा यमतः परम्
अंितम नृ य
धमसू
भास दुगािध ान
िव ल ध
अिभसार
पित ता रमा
अलब नी
सह ाि -सि धान
दै य आया
श ु–िम
जय शंकर
दामो महता क चौक
दूसरा दन
फतह मुह मद
रात के अंधेरे म
द ा चौलु य
संकटे र क बावड़ी
राज-ब दी
दो घड़ी क ाण–िभ ा
सम पत तलवार
िवनाश का अ दूत
िनणायक ण
महता क दृि
दो तलवार
छ –भंग
धमानुशासन
आ म–य
मग़ रब क नमाज़
न भात
गंदावा दुग
अ ासी तलवार
र –ग ध
ख भात
िवयोग–संयोग
महाम
गनगौर
आसकरण सेठ का देसावर
व पात
तेल देखो, तेल क धार देखो!
मृ युंजय महमूद
कोमल कृ पाण
शोभना का स य
शरणाप
ाण का मू य
अितरथ का सा मु य
ि यतम के पास
पाटन क ओर
साम त चौहान
नगर–सेठ क समािध
कै दय का काफला
दरबारगढ़ म
बि दय का स साहस
लाल नज़र
वे छा ब दी
नगर– ढंढोरा
मािनक चौक म
चौलारानी
पाटन से थान
कं थ कोट क ओर
भायात क ट र
मु ा म
ताहर क गढ़ी म
क छ का महारन
सुर–सागर पर
छु म छननन–नननन
उपसंहार
आधार
सौरा के नैॠ य कोण म समु के तट पर वेरावल नाम का एक छोटा-सा
ब दरगाह और आखात है। वहां क भूिम अ य त उपजाऊ और गुंजान है। वहाँ का
ाकृ ितक सौ दय भी अपूव है। मील तक िव तीण सुनहरी रे त पर ड़ा करती र ाकर
क उ वल फे नरािश हर पू णमा को वार पर अकथ शोभा- िव तार करती है। आखात
के दि णी भाग क भूिम कु छ दूर तक समु म धँस गई है, उसी पर भास प न क
अित ाचीन नगरी बसी है। यहाँ एक िवशाल दुग है, िजसके भीतर लगभग दो मील
िव तार का मैदान है। दुग का िनमाण सि ध-रिहत भीमकाय िशलाख ड से आ है।
दुग के चार ओर लगभग 25 फु ट चौड़ी और इतनी ही गहरी खाई है, िजसे चाहे जब
समु के जल से लबालब भरा जा सकता है। दुग म बड़े-बड़े िवशाल फाटक और
अनिगनत बुज़ ह। दुग के बाहर मील तक ाचीन नगर के वंसावशेष िबखरे पड़े ह।
टू टे-फू टे ाचीन ासाद के खंडहर, अनिगनत टू टी-फू टी मू तयाँ, उस भूिम पर कसी
अस अघट घटना के घटने क मौन सूचना-सी दे रही ह। दुग का जो परकोटा समु क
ओर पड़ता है, उससे छू ता आ और नगर के नैॠ य कोण के समु म घुसे ए उँ चे शृंग
पर महाकाले र के िव ुत मि दर के वंस दीख पड़ते ह। मि दर के वंसावशेष और दूर
तक खड़े ए टू टे-फू टे त भ, मि दर क अ ितम थाप य कला और महानता क ओर
संकेत करते ह।
अब से लगभग हजार वष पहले इसी थान पर सोमनाथ का क तवान
महालय था, िजसका अलौ कक वैभव बद रका म से सेतुब ध रामे र तक, और
क याकु मारी से बंगाल के छोर तक, िव यात था। भारत के कोने-कोने से ालु या ी
ठठ-के -ठठ बारह महीना इस महातीथ म आते और सोमनाथ के भ दशन करते थे।
अनेक राजा-रानी, राजवंशी, धनी कु बेर, ीम त सा कार, यहाँ महीन पड़े रहते थे
और अनिगनत धन, र , गाँव, धरती सोमनाथ के चरण पर चढ़ा जाते थे। इससे
सोमनाथ का वैभव अवणनीय एवं अतुलनीय हो गया था।
उन दन भारत म वै णव धम क अपे ा शैव धम का अिधक ाब य था।
सोमनाथ महालय-िनमाण म उ र और दि ण दोन ही कार क भरतख ड क
थाप य-कला क पराका ा कर दी गई थी। यह महालय ब त िव तार म फै ला था, दूर
से उसक धवल दृ याविल चाँदी के चमचमाते पवत-शृंग के समान दीख पड़ती थी।
स पूण महालय उ को ट के ेत ममर का बना था। महालय के मंडप के भारी-भारी
ख भ पर हीरा, मािनक, नीलम आ द र क ऐसी प ीकारी क गई थी क उसक
शोभा देखने से ने थकते नह थे। जगह-जगह सोने-चाँदी के प , त भ पर चढ़े थे।
ऐसे छह सौ ख भ पर महालय का रं ग-मंडप खड़ा था। इस मंडप म दस हज़ार से भी
अिधक दशक एक साथ सोमनाथ के पु य दशन कर सकते थे। इस मंडप म ि जमा ही
जा सकते थे। मंडप के सामने ग भीर गभगृह म सोमनाथ का अलौ कक योित लग था।
गभगृह क छत और दीवार पर र ी-र ी र और जवाहर जड़े थे। इस कारण साधारण
घृत का दीया जलने पर भी वहाँ ऐसी झलमलाहट हो जाती थी क आँख च िधया जाती
थ । इस भूगभ म दन म भी सूय क करण िव नह हो सकती थ । वहाँ रात- दन
सोने के बड़े-बड़े दीपक म घृत जलाया जाता था तथा च दन-के सर-क तूरी क धूप
रात- दन जलती रहती थी, िजसक सुगंध से महालय के आस-पास दो-दो योजन तक
पृ वी सुगि धत रहती थी। रं ग-मंडप के िचकने व छ फश पर देश-देश क असूयप या
मिहलाएँ र ाभूषण से सुसि त, प-यौवन से प रपूण, गुणग रमा से लदी-फदी,
जगह-जगह बैठी ा और भि से नतम तक कोमल वर से भगवान सोमनाथ का
तवन घ ट करती रहती थ । िनयिमत पूजन और िन यिविध के समय पाँच सौ
वेदपाठी ा ण स वर वेद-पाठ करते, और तीन सौ गुणी गायक देवता का िविवध
वा के साथ तवन करते, तथा इतनी ही क री और अ सरा-सी देवदासी नत कयां
नृ य-कला से देवता और उनके भ को रझाती थ । िन य िवशाल चाँदी के सौ घड़े
गंगाजल से योित लग का ान होता था, जो िनर तर हरकार क डाक लगाकर एक
हजार मील से अिधक दूर ह र ार से मंगवाया जाता था। ान के बाद ब मू य इ से
तथा सुगि धत जल से लंग का अिभषेक होता था, इसके बाद शृंगार होता था।
सोमनाथ का यह योित लग आठ हाथ ऊँचा था, अतः इसका ान, अिभषेक-शृंगार
आ द एक छोटी-सी सोने क सीढ़ी पर चढ़ कर कया जाता था। सब स प हो जाने पर
आरती होती थी, िजसम शंखनाद, चौघिड़या घ ट आ द का महाघोष होता था। यह
आरती चार योजन िव तार म सुनी जाती थी। मंडप म दो सौ मन सोने क ठोस शृंखला
से लटका आ एक महाघ ट था, िजसका व गजना के समान घोर रव मील तक सुना
जाता था। सोमनाथ महालय के चार ार पर एक-एक पहर के अ तर से नौबत बजती
थी। इस कार ऐ य और वैभव से इस महातीथ क मिहमा दग्- दग त तक फै ल गई
थी। इन सब काम म अप रिमत खच होता था, क तु उससे महालय के अ य
कोष म कु छ भी कमी नह होती थी। दस हज़ार से ऊपर गाँव महालय को राजा-
महाराजा के ारा अपण कए ए थे। महालय के गगनचु बी िशखर पर समु क
ओर जो भगवे रं ग क वजा फहराती थी, वह दूर देश के याि य का मन बराबर
अपनी ओर ख च लेती थी। महालय के िशखर के वण-कलश सूय क धूप म अनिगनत
सूय क भाँित चमकते थे।
महालय के चार ओर असं य छोटे-बड़े मि दर, घर, महल और सावजिनक
थान थे जो मील तक फै ले थे तथा िजनसे महालय क शोभा ब त बढ़ गई थी। इस
च ड महालय के संर ण के िलए चार ओर काले प थर का अ य त सुदढ़ृ परकोटा
बँधा आ था िजसम थान- थान पर अठपहलू बुज़ बने ए थे। बाहरी मैदान म
चालीस हज़ार सैिनक एक साथ खड़े रह सक, इतना थान था। जब महालय क खाई म
समु का जल भर दया जाता था, तब उसका दृ य समु के बीच एक ीप का दृ य बन
जाता था। परकोटे के भीतर नगर-बाज़ार तथा स गृह थ के मकान आ द थे, जहाँ देश-
देश के अनिगनत ापारी, िश पी और राजकाजी जन तथा महालय-कमचारी अपना-
अपना काय करते तथा िनवास करते थे। उनके आराम के िलए अनेक कु एँ-बावड़ी-
तालाब-सर-सरोवर-उपवन आ द थे।
देश के िभ -िभ राजा क ओर से बारी-बारी महालय पर चाकरी-चौकसी
होती थी। इसके अित र महालय क ओर से भी एक सह िसपाही िनयत थे, जो
सावधानी से महालय क करोड़ क स पि क तथा वहाँ के बसने वाले करोड़ािधपित
ापा रय क सावधानी से र ा- व था करते थे।
ितवष ावण क पू णमा और िशवराि के दन तथा सूय और च हण के
दन महालय म भारी मेला लगता था, िजसम िहमालय के उस पार से लेकर लंका तक
के या ी वहाँ आते थे। इन मेल म पांच से सात लाख तक या ी एक हो जाते थे। इन
महो सव म प न के सात सौ ह ाम एक ण को भी िव ाम नह पाते थे। दूर-दूर के
राजा-महाराजा अपने-अपने लाव-ल कर लेकर ल बी-ल बी मंिजल काटते ए, तथा
माग के क ठन प र म को सहन करते ए, भास प न म आकर जब महालय क
छाया म प चँ ते, तो अपने जीवन को ध य मानते थे। भरतख ड भर म यह िव ास था
क भगवान सोमनाथ के दशन िबना कए मनु य-ज म ही िनरथक है। अनेक मुकुटधारी
राजा और ीम त अपनी-अपनी मानता पूरी करने को सैकड़ मील पांव- यादे चलकर
आते थे। इन सब कारण से उन दन प न नगर भारत भर म ापार का मुख के
बन गया था। मालव, िहमाचल, अबुद, अंग, बंग, क लंग के अित र अरब, ईरान और
अफगािन तान तक के ापारी तथा बंजारे क मती माल लेकर इन मेल के अवसर पर
आकर अ छी कमाई कर के जाते थे। प न के बाजार उन-उन देश क ह क -भारी
क मत वाली िज स और सामि य से पटे रहते थे।
िनमा य
सूय अ त हो चुका था। सं या का अंधकार चार ओर फै ल गया था। के वल
पि म दशा म एकाध बादल ण- ण म ीण होती अपनी लाल आभा झलका रहा
था, िजसका वण ितिब ब सोमनाथ महालय के वण-िशखर पर अपनी ीयमान
झलक दखा रहा था। इसी समय एक अ ारोही भास प न के कोट- ार पर आकर
खड़ा हो गया। कोट- ार अभी ब द नह आ था। ह रय के मुख ने आगे बढ़कर
पूछा, ‘‘तुम कौन हो, और कहाँ से आ रहे हो ?’’
अ ारोही कोई बीस-बाईस वष का एक बिल और सु दर त ण था। उसक
मुख-चे ा तथा अ के रं ग-ढंग देखने से कट होता था क वह दूर से आ रहा है, तथा
सवार और अ दोन ही िबलकु ल थक गए ह। फर अ ारोही ने थ कत भाव से क तु
उ वर से एक हाथ उँ चा करके तथा दूसरे से अपने ग र को स हालते ए पुकारा,
‘‘जय सोमनाथ !’’
‘‘ क तु तु हारा प रचय-प ?’’ हरी ने उसके िनकट जा ककश वर म पूछा।
‘‘यह लो !’’ अ ारोही ने एक चाँदी क नली, रे शम क थैली से िनकाल कर
उसे दी। हरी ने नली को खोलकर उसम से एक प -लेख िनकाला। उलट-पुलट कर उसे
पढ़ा। फर कु छ भुनभुनाते ए कहा, ‘‘तो तुम भ क छ से आ रहे हो ?’
‘‘जी हां, द ा चालु य ने ि पुरसु दरी के िलए जो िनमा य भेजा है, उसी को
लेकर।’’ हरी ने एक बार अ क पीठ पर लदे भारी ग र पर दृि क , और ‘जय
सोमनाथ’ कहकर पीछे हट गया। अ ारोही ने कोट के भीतर वेश कया।
कोट के भीतर बड़ी भीड़ थी। देश-देश के या ी वहाँ भरे थे। उन दन भास
प न सम त भरतख ड भर म पाशुपात आ ाय का मुख के िव यात था। भारत के
कोने-कोने से ालु भ -गण िशवराि महापव पर सोमनाथ महालय म सोमनाथ के
याित लग के दशन करने को एक ए थे। इस वष गज़नी के अ ितरथ िवजेता अमीर
सुलतान महमूद के सोमनाथ पर अिभयान करने क बड़ी गम चचा थी। इसी कारण
दूर-दूर से ि य धारी महीपगण इस देव के िलए र -दान देने और अनेक ालु
‘‘कल न जाने या हो’’ इस िवचार से एक बार भगवान सोमनाथ का दशन करने जल-
थल दोन ही माग से ठठ-के -ठठ भास म इक े हो गए थे। राजा-महाराजा के रथ,
अ , गज, वाहन, सैिनक-सेवक, मोदी- ापारी-या ी –सब िमलाकर इस समय भास
प न म इतनी भीड़ हो गई थी क िजतनी इधर कई वष से देखी नह गई थी। प न क
सब धमशालाएं और अितिथगृह भर गए थे। ब त लोग माग म, वृ के नीचे तथा घर
क छाया म िव ाम कर रहे थे।
या ी धीरे -धीरे आगे बढ़ता आ धमशाला म आ य खोजने लगा, पर
धमशालाएँ सब भरी ई थ । एक भी कोठरी खाली न थी। धमशाला के बाहर क
कोठ रय म गरीब या ी, िभखारी और चौक दार हरीगण रहते थे, वह एक छोटी-
सी कोठरी खाली देखकर अ ारोही अ से उतर पड़ा। फर उसने सावधानी से अपना
ग र उतारा। अ को एक वृ के नीचे बाँधकर वह कोठरी म गया। उसे साफ कर उसने
य से भार का ग र खोला। इसके बाद चकमक जलाकर कोठरी म काश कया, उस
धीमे और पीले काश म, एक पसी बाला क झलक ु कोठरी के आसपास ठहरे ए
याि य को दीख पड़ी। पर ण भर ही म युवक ने कोठरी का ार ब द कर उसम बाहर
से ताला जड़ दया। इसके बाद वह अ का चारजामा िबछाकर कोठरी के ार पर ही
लेट गया। कमर क तलवार यान से बाहर कर उसने अपने पा व म रख ली।
बराबर क कोठरी के बाहर दो साधु बैठे धीरे -धीरे बातचीत कर रहे थे। उ ह ने
उस पसी बाला क झलक देख ली। पहले आँख -ही-आँख म उ ह ने म णा क , फर
उनम से एक ने आगे बढ़कर पूछा–
‘‘कहाँ से आ रहे हो जवान ?’’
‘‘तु ह या !’’ युवक इतना कह, मुंह फे रकर पड़ रहा। पर तु साधु ने फर
कहा–
‘‘पर इस ग र म इस सु दरी को कहां से चुरा लाए हो ?’’
‘‘तु ह या...?’’ युवक ने ोधपूवक वही जवाब दया।
दोन साधु ने पर पर दृि -िविनमय कया, इसके बाद एक साधु ने वण-
द भ से भरी थैली युवक पर फककर कहा–
‘‘बेच दो वह माल यार ?’’
युवक ु होकर बैठ गया। उसने तलवार क मूठ पर हाथ धर कर कहा–
‘‘ या ाण देना चाहते हो ?’’
साधु हंस पड़ा। उसने कहा, ‘‘ओह, यह बात है !’’
उसने धीरे से अपने व से तलवार िनकालकर कहा, ‘‘यह िखलौना तो हमारे
पास भी है, पर तु तकरार क ज़ रत नह , हम िम ता कया चाहते ह, वह थैली यथे
नह तो यह और लो।’’ उसने व म से बड़े-बड़े मोितय क एक माला िनकालकर
युवक पर फक दी।
युवक अ य त ु होकर बोला, ‘‘तुम अव य कोई छ वेशी द यु हो, ाण
यारे ह तो कहो, कौन हो ?’’
‘‘इससे तु ह या! यह कहो, वह सु दरी तुम ाण देकर दोगे या वण लेकर ?’’
‘‘म अभी तु हारे ाण लूंगा।’’ युवक पतरा बदल कर उठ खड़ा आ। साधु ने
भी तलवार उठा ली। च मा के उस ीण काश म दोन क तलवार खनखना उठ ।
युवक अ पवय क था, पर कु छ ही ण म मालूम हो गया क वह तलवार का धनी है।
उसने कोठरी के ार से पीठ सटा कर श ु पर वार करना ार भ कर दया। पर तु साधु
भी साधारण न था। य ही उसे युवक क द ता का पता चला, वह अित कौशल से
तलवार चलाने लगा। दूसरा साधु चुपचाप देखता रहा। थोड़ी देर म वहाँ ब त-से या ी
एक हो गए और शोर मचाने लगे। कु छ दोन वीर का ह त कौशल देख वाह-वाह
करने लगे। पर तु इस अक मात और असमय के यु का कारण या है यह कोई नह
जान सका। अक मात् युवक का एक करारा आघात खाकर साधु ची कार करके िगर
पड़ा। यह देख संह क भाँित उछाल मार कर दूसरा साधु तलवार सूंतकर युवक पर टू ट
पड़ा। पर तु युवक थक गया था, वह एक-आध घाव भी खा गया था, उसके घाव से र
बह रहा था। इससे वह सु त होने लगा। इतने म पीछे से एक ललकार सुनकर दोन
यो ा ठठक कर रह गए। एक बिल और तेज वी यो ा भीड़ को चीर कर आगे आ
रहा था–उसके साथ ब त-से सेवक मशाल िलए थे। मशाल के काश म उसका
यामल मुख त ता क भाँित दमक रहा था। बड़ी-बड़ी काली आँख लाल चोट हो
रही थ । उसके मुख पर, शरीर पर तथा स पूण ि व पर एक अभय तेज िवराज
रहा था। उसके क धे पर धनुष और तरकस, फट म कटार और हाथ म ल बी तलवार
थी। उसके िसर पर के सरी पाग म दैदी यमान हीरे का एक तुरा ब धा था। उसने अपने
हाथ क तलवार उँ ची करके कहा, ‘‘मूख , देव थान म लड़ते हो ?’’ युवक ने आग तुक
को देखकर तलवार नीची कर ली। पर तु साधु ने लाल-लाल आँख करके िनभय वर म
कहा, ‘दो आदिमय के झगड़े म िबना बुलाए बीच म पड़कर उ ह मूख कहने वाला ही
मूख है।’’
आग तुक यो ा ने जलद-ग भीर वर से पूछा–
‘‘तुम कौन हो ?’’
‘‘यही म तुमसे पूछता ,ँ ’’ साधु ने उ डता से कहा।
‘‘इस झगड़े का कारण ?’’
‘‘तु हारे पंचायत म पड़ने का कारण ?’’
‘‘तब देख कारण !’’ आग तुक यो ा ने तलवार का भरपूर हाथ साधु पर फका।
साधु भी असावधान न था। ण-भर म ही दोन यो ा असाधारण द ता से यु करने
लगे।
तभी लोग ने एक विन सुनी–‘शा तं पापं! शा तं पापं !’ पहले ीण, फर
प । तब सहसा एक भ मू त सामने आती दखाई पड़ी। उपि थत भीड़ सहम कर
पीछे हट गई। दोन यो ा ने भी हाथ रोक िलए। आग तुक उँ चे कद का, गौरवण एक
तेज वी महापु ष था, उसके उ व रे खां कत म तक पर ि पु , सीस पर जटा-जूट,
कमर म ा -चम, अंग म गे क, मुख पर िहम-धवल नािभ तक ल बी दाढ़ी, पैरा म
च दन क खड़ाउं , दृि िनमल और भयहीन एवं म तक म ि काल- ान क रे खा।
उपि थत जनता ‘जय व प! जय सव !’ कहकर पृ वी म झुक गई। युवक ने
पृ वी पर लोटकर सा ांग द डवत् क । आग तुक यो ा ने भी चरण-रज ली, पर तु
साधु तलवार हाथ म िलए खड़ा वृ को घूरता रहा।
वृ महापु ष ने यो ा के म तक पर हाथ रखकर कहा, ‘‘युवराज भीमदेव,
तु हारी जय हो। पर तु देव थान म र पात नह होना चािहए। तलवार को यान म
करो।’’
भीमदेव ने चुपचाप तलवार यान म कर ली।
फर उसने मु कराकर साधु क ओर देखा, और कहा, ‘‘ तापी सुलतान
महमूद! िचरं जीव रहो ! व स, साधुवेश तुमने धारण कया, पर उसे िनबाह न सके ।
देव थान म भी लड़ पड़े। अब तुम भी तलवार को यान म करो।’’
साधु का प रचय सुनकर सब उपि थत जन भीत-च कत हो, आंख फाड़-फाड़
कर साधु को देखने लगे। ब त से लोग उ ेिजत भी ए। पर तु वृ ने हाथ उँ चा करके
सतेज वर म कहा, ‘‘शा तं पापं, शा तं पापं! देव थान म काम- ोध-लोभ सभी दोष
का िनराकरण होना चािहए।’’
सुलतान ने तलवार यान म रख ली। अब उस सौ य मू त ने युवक क ओर
घूमकर कहा, ‘‘तुम भ क छ से देव-िनमा य लाए हो?
‘‘जय सव !’’ युवक ने ांजिल हो िवनीत वर म कहा।
‘‘िनमा य अपण करो, ार खोलो।’’ युवक ने भूिम म तक से पश करके कहा,
‘‘जय सव , जय व प! पर तु िनमा य ि पुरसु दरी क सेवा म है। द ा चौलु य क
आ ा है क वह आचायपाद भ को अपण कया जाए।’’
‘‘व स ! चौलु य और भ दोन ही मेरे आ ानुवत ह– ार खोलो !’’
युवक ने और आपि नह क । कोठरी का ार खोल दया। वृ महापु ष ने
वा स य-भरे वर म पुकार कर कहा, ‘‘बाहर आओ चौला।’’
षोडशी बाला लाज, प और यौवन म डू बती-उतराती धीरे -धीरे बाहर आ
वृ के चरण म िगर गई।
वह प, वह माधुय, वह वण-देहयि देखकर सब कोई आ य- िवमूढ़ रह
गए। युवराज भीमदेव म -मु ध से उसे देखते रहे। गंग सव ने उसे उठाकर कहा,
‘‘अभय ! आओ मेरे पीछे। युवराज तुम भी, और सुलतान तुम भी। अपने साथी क
िच ता न करो। उसका अभी-औषिध उपचार हो जाएगा।’’ यह कह कर वृ महापु ष
ने दोन हाथ उँ चे कर, समुपि थत सैकड़ िवनयावनत भावुक भ को मौन आशीवाद
दया और धीरे -धीरे अ तरायण क ओर चल दए। उनके पीछे चौला, पीछे युवराज
भीमदेव और वह त ण और उसके पीछे सुलतान चुपचाप चले।
च कु ड के समीप आकर वृ पु ष के । उ ह ने इधर-उधर देखकर ताली
बजाई। एक अ तरं ग सेवक ने आकर अिभवादन कया। सव ने चौला क ओर संकेत
करके कहा, ‘‘इसे गंगा के आवास म ले जा और उससे कह क अभी इसके आहार और
िव ाम क व था कर दे और कल ा -मु त म गंगाजल से ान करा गभगृह म ले
आए, तब म इसे देवापण क ं गा।’’
सेवक ‘जो आ ा’ कह चौला को लेकर चला। अब उ ह ने ि मत हा य करके
कहा, ‘‘व स भीमदेव, म तु ह आशीवाद देता ँ क तु हारी मनोकामना पूण हो। अब
जाओ, तुम िव ाम करो।’’
भीमदेव णाम करके चले गए। महापु ष कु छ देर ि थर-ग भीर-मौन खड़े रहे,
फर सुलतान से बोले, ‘‘सुलतान, म तु हारा या ि य क ं ?’’ महमूद ने कहा,
‘‘आप ही या गंग सव ह ?’’
‘‘सब ऐसा ही समझते ह सुलतान।’’
‘‘आप स ाईस वष से इस मि दर के पुजारी ह ?’’
‘‘पुजारी ही नह –पाशुपत आ ाय का एकिन सेवक।’’
‘‘आप गज़नी के सुलतान से कु छ माँगते है ?’’
‘‘सुलतान ! म तो भगवान् सोमनाथ से भी कभी कु छ नह माँगता। िन काम
सेवा मेरा एक मा धम है।’’
सुलतान कु छ देर तक चुपचाप सोचता रहा। गंग सव ने कहा, ‘‘ या सोच रहे
हो सुलतान ?’’
‘‘आप सव ह, आप ही किहए।’’
सव हँस दए। फर उ ह ने कहा, ‘‘सुलतान ! म तु ह आशीवाद दे चुका ,ँ
वह या यथे नह है ?’’
‘‘पर तु मेरे मन क बात ?’’
‘‘ थ है।’’
‘‘इस तलवार के रहते ?’’
‘‘सुलतान, यह तुम भी जानते हो क इस हाड़-माँस के शरीर म जो कु छ है, वह
नग य है। जो सव ा है वही सब-कु छ है। पर तु अब तुम जाओ, रात अँधेरी है और
राह बीहड़। ऋतु भी अनुकूल नह है। तु हारा अ और साथी संह ार पर ती ा कर
रहे ह। महालय के चर, तु ह सकु शल महालय क सीमा के उस पार प च ँ ा दगे।’’
सुलतान ने णभर गंग सव को और फर आकाश म िसर ऊँचा कए महालय
के िशखर क ओर देखा। एक बार उस पसी बाला का, देव-िनमा य का, मरण कया
और फर िसर नीचा करके िबना ही ग ग को णाम कए सी ढ़याँ उतरने लगा।
गंग ने दोन हाथ उठाकर उसे मौन आशीवाद दया।
उदया त
सोमनाथ महालय के कोट क दि ण दशा म चतुथ तोरण था। उसे पार करने
पर देवदािसय का आवास था, जो दृढ़ परकोटे से िघरा था। इस समय इस आवास म
सात सौ सु द रयाँ रहती थ । कु छ गुजराितन थ , िजनका याम वण, म यम कद और
मृद ु भाषण अनायास ही दशक को अपनी ओर आक षत करता था। कु छ उ रापथ क
िनवािसनी थ , िजनक उ त नाक और श त म तक, गौर वण तथा उ वर उनके
ि व को कट करता था। कु छ सुदरू िहमाचल शृ ग के परे क िनवािसनी थ ,
िजनक चपटी नाक, ठगना कद, और पीत वण अलग छटा दखाता था। कु छ
दि णापथ क यामल वामाएँ थ , जो अपने उ वल वेश और चंचल ने से ण-भर
ही म याि य का दय जीत लेती थ । कोई मृदल ु खरज के वर से, कोई कु शल ग भ
आलाप से, कोई भावपूण नृ य-िवलास से, देव और देवभ जन को रझाती थ । सब
देवा पत थ और नृ य-गीत-िवलास से देव सोमनाथ और उनके भ गण क आराधना
करती थ । ये सु द रयाँ नख-िशख से िवलास, शृ गार और भाव क ितमू तयाँ-सी
बनी रहती थ । इनके मोह और भाव म फँ से राजा म -मु ध बने सोमनाथ महालय म
महीन -वष पड़े उनक नूपूर- विन का यान करते और उनके ेमामृत को चख कर
महावर-रं िजत पाद-पंकज का, मृदलु -सुखद-कोमल आघात पश कर जीवन ध य करते
थे।
इस आवास म सबसे पृथक् एक ओर छोटा-सा क तु सु दर घर, सब से िनराला
था। इस घर के ार पर एक िब व वृ था। यही गंगा दासी का घर था। गंगा का यौवन
अब स पूण हो चुका था। उ फु ल ने के चार ओर याही क रे खा दौड़ गई थी।
गुलाबी गाल क कोर पर एक-आध लक र दीख पड़ती थी। भ रे से काले और
घूंघरवाले के श-गु छ के बीच एक-आध ेत बाल चाँदी के तार के समान चमकता दीख
पड़ता था। उसके सु दर दाँत अभी भी वैसे ही आभा िबखेरते थे। पर ह ठ का रस एक
र ी कम पड़ चुका था। अिभ ाय यह, क गंगा अब चालीस के िनकट प च ँ रही थी,
फर भी उसक वाणी म, चाल म और खड़ी होने के ढंग म एक उ मादक आकषण था,
वह महान् कलाकार थी। उस युग म, दि णांचल म उसके समान गाियका और नतक
दूसरी न थी। वह बीस वष तक सोमनाथ महालय म नतक का अिध ा ी-पद भोग
चुक थी, और अब भी वह उसी पद पर आसीन थी।
गंग सव जब महालय म पीठा ढ़ ए, उसके दो ही वष बाद गंगा भी न जाने
कहाँ से एक दन अचानक अपना छकड़ा-भरा प और िबखरता आ यौवन का मद
लाकर महालय के ांगण म नृ य करने लगी। उस समय वह प ह वष क एक छोकरी
थी। छरहरा शरीर, उ वल याम वण, गहरी-काली आँख, म यम कद और सप क सी
चपलता। उसके थम नृ य ने ही उसे महालय क सभी नत कय क अिध ा ी बना
दया। गंग सव तब भी एक त ण चारी थे। त ता -सा रं ग, महामेधा, संह के
समान व और क ट। उनके तप और तेज क ब त बात गुजरात म फै ली थ । वे
दशा ग िव ा के ाता, ि कालदश एवं ऊ वरे ता चारी थे। यह भी कहते थे क
काशी और िमिथला के महा वागी र से उ ह ने शा ाथ म दि वजय ा क थी।
उनके गु कौन थे–यह अब तक कोई नह जान सका और वे अनायास ही सोमनाथ
महालय के पीठािधप होकर भरत ख ड भर म िस पाशुपत आ ाय के तीक िस
हो गए। फर भी गंग सव और गंगा, इन दोन क पूवापर कथाएँ जैसे वेगवती
बरसाती नदी क भाँित, भाँित-भाँित का प धारण कर बह चल । लोग भाँित-भाँित
क बात करने लगे। गंगा जब महालय के गभ ार के स मुख अपना अलस यौवन और
उ ी प लेकर नृ य-कला का िव तार करती, तो उसके अ ग यास, पदाघात, नूपुर
विन, वर-लहरी सब एक साथ वर-ताल-मू छना और वा विन से कि पत
वातावरण से सह -सह मनु य को आपे से बाहर कर देते थे। महा गंग सव
बाघ बर म िन ल प ासन म बैठकर एकटक िन नमेष दृि से उस नतक का अ भुत
कौशल िनहारते थे। घ ट तक न उनका शरीर िहलता, न पलक िगरते। भगवान्
सोमनाथ म और उनक मु ा म अ तर िसफ इतना था क सोमनाथ का योित ल ग
उस नृ य के बाद भी जड़ ही रहता था, पर तु गंग सव चैत य लाभ कर वहाँ से उठ
देवता को णाम कर, अपनी कु टी म जा भीतर से ार ब द कर िजस साधना म लीन
हो जाते थे, उसे आज तक कोई नह जान सका। इसी भाँित ये प ीस वष तीत हो
गए। जैसे आग जलकर बुझ जाती है, उसी भाँित गंग सव और गंगा के स ब ध क
छोटी-बड़ी कट और गु बात भी आप ही समा हो ग । गंगा और गंग सव , दोन
ही अब ौढ़ हो गए। सूय म या म खरता िबखेरकर ढल गया था, उ ाम करण अब
पीली पड़ गई थ ।
गंगा के उन सु दर ने म एक मनोरम गा भीय अवत रत आ था। उ ह ने
का बाला के ऊपर िन ेप करके गंगा ने कहा–
‘‘नृ य कर सकती हो?’’
“कु छ-कु छ।”
‘‘ कससे सीखा?’’
‘‘महाराज उदया द य से।’’
‘‘उ ह कहाँ पाया?’’
‘‘िपताजी ने यु म उ ह ब दी कया था।’’
‘‘सो तुम चालु य राजनि दनी हो !’’
‘‘म देव-िनमा य ।ँ ’’ बािलका के ने सजल हो गए। वाणी भी कि पत ई।
‘‘ या प ा ाप होता है ?’’
‘‘नह , मनु य-भो या होने क अपे ा देव-िनमा य होना उ म है।’’
‘‘ फर आँख म आँसू य ?’’
‘‘य ही...’’ उसने आँसू प छ िलए।
‘‘देखूं तु हारा नृ य !’’
‘‘देवता के स मुख ही देख लेना।’’
‘‘ऐसा ही सही, तब व -िव यास भी तुम वयं यथा िच करो।’’
‘‘ उसक आव यकता नह , ऐसे ही ठीक है।’’
‘‘ऐसे नह , महालय क मयादा भी है।’’
‘‘तब ठीक है, आपक जैसी इ छा हो।’’
‘‘िवशु शैव नृ य होगा।’’
‘‘ऐसा ही होगा।’’
‘‘तब आओ, म वेशिव यास कर दू।ं ा -मु त म अब िवल ब नह है। ार
पी ठका बजने लगी है और सव गभगृह म प च ँ गए ह।’’
चौला ने आपि नह क । ग गा ने अपने हाथ से चौला का अ गिव यास
कया। कुं िचत के श क अनेक मिडयाँ गूँथ कर उनम मोती क झालर गास द ।
र खिचत चोली कस दी और चा दानेरी महीन ओढ़नी उसके क ध पर डाल दी।
का मीरी शाल क ट म लपेट, लाल रं ग का अधोव पहना दया। व ः थल म
मािण य और भुजा म नीलम मिण के आभरण पहनाए। सबके बाद म तक पर हीर
का एक मुकुट रख दया। यह सब शृंगार करके गंगा मु करा दी। पर साथ ही उसक
आँख से दो बूँद गम आँसू टपक पड़े। चौला ने पूछा, ‘‘आँसू य ?’’
‘‘य ही, अब चलो।’’
‘‘नह , कहो।’’
‘‘एक बात मरण करके ।’’
‘‘ या गोपनीय है ?’’
‘‘नह , आज से प ीस वष पहले ठीक इसी समय, इसी वेश म, इसी आयु म,
एक और बािलका ने इसी पथ पर होकर महालय के गभ ार म इसी अिभ ाय से वेश
कया था, और इस समय जो महापु ष तु हारी ती ा कर रहे ह, वही उसक ती ा
कर रहे थे।’’
बािलका ने ण-भर सोचकर कहा–
“ महापु ष कौन, सव ?’’
‘‘हां।’’
‘‘और वह बािलका आप थ ?’’
‘‘थी तो।’’
चौला बोली नह । चुपचाप खड़ी रही। गंगा ने उसे अंक म भर कर चूम िलया।
चौला भी िलपट गई। दोन भावमूढ़ हो गई थ ।
गंगा ने आँसू प छकर कहा–
‘‘चलो।’’
‘‘चलो।’’
दोन चल द ।
न पूव दशा म धप-धप चमक रहा था।
समपण
सोमनाथ प न को शताि दय क ा और भि ने एक देवभूिम बना दया
था। ल ाविध लोग वहाँ कु छ काल वास करके ऐसा समझते थे क भव के सम त पाप-
ताप से हम मु हो गए। महालय का अ तक ट कोई बीस हाथ ऊँचा और छह हाथ
चौड़ा था। चार सैिनक आसानी से उस पर बराबर खड़े हो सकते थे।अ तकोट के
संह ार के ठीक सामने गणपित का भ मि दर था। उसीपर न ारखाना था, िजसम
पहर-पहर पर चौघिड़याँ बजती थ । इस ार के दोन पा म दो िवशाल दीप त भ
थे, िजन पर संगतराशी का अ य त शोभनीय काम हो रहा था। येक त भ पर
ित दन सह दीप जलते थे, िजनका काश दूर से समु -पथगामी जहाज़ को
सोमनाथ महालय के योित ल ग क दशा का भान कराता था। इन िवशाल और ऊँचे
दीप त भ के िशखर पर दो िवशालकाय गण थािपत थे, जो ेत ममर के थे। दि ण
दीप त भ के स मुख च कु ड था, िजसके िवषय म िस था क उसम ान करने से
सवरोग-मुि होती है तथा मनोकामना िस होती है।
इ ह दीप त भ के बीच बीच सभाम डप म आने क िव तृत सी ढ़याँ थ ।
सभाम डप म होकर गभगृह का ार था। इसी गभगृह म वह ि भुवन-िव यात वल त
योित ल ग था। गभगृह के ऊपर एक िवशालकाय िशखर था, िजसके येक त भ
पर देश-देश के िश प-िवशारद ने िविवध भाविभ गय से प रपूण िच खोदे ए थे।
ये िच इतने उ कृ थे क इनक मूक-मौन भाव-भ गी देखकर सचराचर जीव मूक-
मौन होकर मु ध रह जाते थे। यह िशखर वण-िन मत था। ऊपर- वण-ज टत था,
भीतर र -जिड़त। सूय क सतेज करण क चमक म वह ि तीय सूय क भाँित
चमकता था। और भीतर के र ,गभगृह के सह दीप के काश म मुख रत हो अ भुत
शोभा-िव तार करते थे। सभाम डप म वेश करते ही दोन तरफ दो िवशालकाय
ऐरावत कसौटी के बने थे, िजनपर भगवान् इ समूची फ टक मिण के खोद कर
बनाए गए थे। देवराज इ क भावभंगी ऐसी थी–मानो वे सोमनाथ योित ल ग क
पूजा करने अभी अमरपुरी को याग कर महालय म आए ह। सभाम डप अड़तालीस
ख भ पर था, और वह इतना िवशाल था क उसम पाँच सह आदमी खड़े होकर
योित ल ग के दशन कर सकते थे। ख भ पर रं ग-िबरं गे र क प ीकारी क गई
थी, िजनके क मती प थर क खुदाई देखते ही बनती थी।
म डप के सामने पूव दशा म मुँह कए िवशालकाय न दी था, जो ठोस चाँदी
का बना था। वह एक सह -भार वज़नी था। सह ाविध ालु या ी, मा उसक पूँछ
का पश करके ही अपने को भव बाधा पार समझते थे। योित ल ग पर दन-रात
अख ड ी होती थी और स मुख सभाम डप म सूय दय से म य राि तक िनर तर
नृ य होता था।
अभी सूय दय नह आ था, गंग सव बाघ-चम पर बैठे अचन-िविध स प
करा रहे थे। गभगृह के बाहर सभाम डप म सह भावुक भ दशन क अिभलाषा से
खड़े थे। सह ािभषेक और शृंगार हो चुकने पर सव ने गंगा क ओर संकेत कया। गंगा
चौला का हाथ पकड़ कर सव के स मुख गई। चौला आशंका से प रपूण थी, गंग सव
ने उसके िसर पर हाथ रखकर कहा, ‘‘क याणी! यह आज का तक एकादशी का महापव
है। महालय क नृ यशाला के िनयमानुसार जो अठारह कार का नृ य, बारह कार के
अिभनय और सात कार के संगीतशा म िन णात हो, वही आज आरती के समय
पहली बार देवता के आगे नृ य कर सकती है। बाले! वह अिधकार गंगा क सा ी से
आज म तुझे देता ।ँ आज के इस ध य ण म तू अपनी देहयि का बालपु प देवता को
अपण कर! तन-मन सब कु छ देवापण कर, िजससे देवािधदेव सोमनाथ तुझ पर स
ह ! आज तेरी ज म-ज म क तप या सफल होगी। तू अपनी इि य का और मनोवृि
का घोर दमन कर। आहार, िन ा और वासना का संयम रख। और भगवान् सोमनाथ म
जीवन को लय कर।’’ यह कहकर सव ने चौला के म तक पर हाथ र खा और चौला
अ मू छत-सी उसी थान पर पृ वी पर िगरकर भगवान सोमनाथ के चरण म जैसे
लीन हो गई।
आरती का समय हो गया, ाची दशा म ऊषा क लाली झलकने लगी।
दीप त भ पर सह -सह दीप जल रहे थे। परकोट पर दीपाविल झलक रही थी।
सभाम डप म लोग के ठठ जमे थे, सभाम डप म वण के दीप- तंभ पर घृत के
सुगि धत दीप जल रहे थे। म डप के बीच बीच जंज़ीर म लटके ए सोने के अ सी मन
वज़नी महाघ ट का अक मात् घोर रव होने लगा, जो मेघ-गजन के जैसा लगता था।
घ टरव बार-बार होने लगा। सह -सह हाथ ने उसे पश कया। उसके साथ ही
सह -सह क ठ से ‘सोमनाथ क जय! योित ल ग क जय! महे र क जय! के
िननाद से दशाएँ कि पत होने लग । सबक उ सुक दृि गभगृह क ओर थी, जहाँ र -
ज टत वण-दीपाधार म अग और च दन के तेल के दीये जल रहे थे। गभगृह के
बीच बीच छाती के बराबर ऊँचा सोमनाथ का योित ल ग पु प और िव वप के
ढेर म दीख रहा था। उसके ऊपर प े का छ था, और वणजलधारी से गंगो री का
जल बूँद-बूँद टपक रहा था। सौ वेद ा ण सामगान-यु वर से पु षसू का पाठ
कर रहे थे।
न ारखाने म न ारे पर चोट पड़ी। शहनाई बज उठी। लोग धकापेल करते ए
आगे बढ़े। अलम त बाबा ने दुप के चाबुक मार-मार कर गभ ार के सामने का
थान र कराया। एक ने िवशाल शंख फूं का, िजसका च ड रव दशा म ा हो
गया। इसके बाद लोग म स ाटा छा गया और सब कोई गभगृह क सी ढ़य क ओर
देखने लगे।
सव थम गंग सव शांत मु ा से बाहर आए। उनके ह ठ िहल रहे थे और
शैवसू क म द विन उनसे फु टत हो रही थी। लोग सहम कर त ध रह गए। यही
वह पु ष है जो पाशुपत-धम का एकमा अिध ाता कहा जाता है; जो भूत, भिव य
और वतमान का ाता है।का मीर से क याकु मारी तक और िव य से िहमालय के उस
पार तक िजसक अख ड िश य-पर परा है। देश-देश के नृपित अपने र -ज टत मुकुट
से जगमगाते अपने म तक िजसके चरण म झुकाते ह, िजसक आ ा को लोग भगवान
सोमनाथ क आ ा करके मानते ह।
लोग ा से झुक गए। सह क ठ से िनकला–‘जय व प! जय सव !’
गंग सव के पीछे गंगा, चौला का हाथ पकड़े ई आई। चौला का नवल गात,
नविवकिसत यौवन, ल ावनत कमल–मुख, मधुर कौमाय और नवीन के ले क सी
काि त देखकर जनता मूढ़-मु ध रह गई। अक मात् हषाितरे क से लोग िच ला उठे , ‘जय
देव, जय जय देव !’
पर तु तुर त ही गभगृह से और एक ि बाहर आया। उ ह देखते ही भीड़ म
भूचाल-सा आ गया, लोग हष लास से िच ला उठे –‘जय गुजरे श! जय चौलु यराज
भीमदेव !’
युवराज भीमदेव एक हाथ तलवार क मूठ पर रखे, धीर-ग भीर गित से चार
ओर देखते अपने साथी से धीरे -धीरे बात करते आ रहे थे।
पहले सव ने हाथ उठाकर सबको आशीवाद दया। सब कोई चुपचाप गभगृह
के ार पर देवता के स मुख खड़े हो गए। सव ने एक बार भूिम पर िणपात कर
देवता को नमन कया, फर एक िश य ने आरती उनके हाथ म दी और वे आरती करने
लगे। इसी कार गंग सव आज स ाईस वष से, अख ड प से िबना एक दन नागा
कए, ित दन दोन समय आरती करते आ रहे ह। हज़ार घ टा का वर, महाघ ट
का रव और दु दुभी क मेघ-गजना सब िमल कर ऐसा तीत होता था जैसे देवािधदेव
अभी तांडव नृ य कर रहे ह और पृ वी पर भूचाल आ गया हो।
आरती स पूण होने पर ‘जय देव, जग जय देव, जय सोमनाथ, जय
योित ल ग’ का सव ने उ ारण कया, िजसका सब लोग ने अनुकरण कया। वह
जयघोष उ ु ग वायु क लहर पर चढ़कर कोट, परकोट, समु -तट, नगर और
नगरकोट तक ित विनत और प रव त होकर भास प न के वातावरण म गूँज
उठा।
याि य ने आरती क आस ली।
सव ने कहा, ‘‘अब नृ य हो !’’
सव बाघ बर पर बैठे। अ य अितिथ भी उिचत आसन पर बैठे।
सब लोग यथा थान बैठे। मृद ग और वा बजने लगे।
वातावरण मे वर-ताल क तरं ग उठ चल ।
गंगा ने तवन ार भ कया, और उसके साथ छह नत कय ने नृ य ार भ
कया। णभर ही म गंगा क कला मू तमती हो उठी। माधुय क नदी उसके क ठ से बह
चली। उसम भि भाव और िवलास तैरने लगा। उसक दृि गंग सव के ग भीर मुख
पर थी, और सव क दृि पृ वी पर। वे िन ल, अिडग, जड़वत् बैठे थे। संगीत के वे
परम पारदश थे।
संगीत का, और गंग सव ने एक बार आँख उठाकर गंगा क यासी िचतवन
को देखा। फर उनक दृि चौला क ओर गई। उ ह ने मृद ु वर से पुकारा, ‘‘चौला!’’
चौला का दय धड़कने लगा। उसने सव क ओर देखा। सव ने उँ गली से
संकेत करके देवता को दखाया। चौला ने उठकर थम देवता को सा ांग द डवत् और
फर गंग सव को िणपात कया और वह नृ य करने को खड़ी ई। वातावरण नीरव
हो गया। सह दृि उसी पर थ , के वल गंग सव पृ वी पर आँख जमाए थे।
गंगा ने उसका ऊपर का आवरण हटाया। म डप के उन र -दीप के काश म
वह शतदल ेत कमल-सी कशोरी, जब अपना सम त अनावृत सौरभ लेकर लोग क
दृि म चढ़ी, तो जनसमूह म उ माद क आँधी आ गई। जनसमूह मु ध-मौन-अवाक् रह
गया।
तभी मृदग ं पर थाप पड़ी और कोमल पद क ह क ठोकर से सुनहरी घुंघ
बज उठे – छ !मृदग ं ने दौड़ भरकर फर थाप मारी,और धुंघ बजे – छ -छ -छ !
फर तो नूपुर-शोिभत लाल कमल-से वे चरण ेत तर के उस सभा-भवन के िव तार
को छू -छू कर ऊधम मचाने लगे। घुंघ क झंकार जैसे लोग के दय म वार-भाटा
उ प करने लगी। अब सुनहरी ज़री से कसी चोली, कारचोबी काम का लहंगा और
हीर से दमकता व , नीलम से िलपटी छोटी-सी कमर, पैर क येक गित पर जो
हलचल मचाने लगे, और उनके साथ ही संहल के मु ा से स हारे ए कु तल के श
वायु म लहरा कर जैसे उस नृ य का अनुकरण करने लगे, फर मृदल ु मृणाल-भुजाएँ
िवषधर नाग क भाँित िहलोर मारने लग , यह सब देखकर दशक सुधबुध खो बैठे। इस
सु भात-सी सुकुमार नवल कशोरी का वह अ भुत परम शु शैव-नृ य देखकर बड़े-
बड़े कलाकार आ यच कत रह गए। ऐसा तीत होता था जैसे शु शोभना शरद ऋतु
मू तमती होकर ऊषा के उस मनोरम काल म सोमनाथ महालय म उतर आई हो।
धीरे -धीरे उसका बा ान लु होने लगा। उसके सामने सह नर-मु ड
एकटक उसी को देख रहे ह, इसक उसे सुध न रही। वह एक बार गंग सव और फर
देवता के योित लग को देख अधीर भाव से नृ य करने लगी। उ ु ग पवत-शृ ग से
िगरते ए झरने के वेग के समान उसका वेग हो गया। मृदग ं वादक हाँफने लगे। त तु-
वा के वल क पन विनत करने लगे। चौला के चरण ने जो गित ली, वह मानो
गितहीन हो गई। अ ततः उसक गित म द पड़ने लगी। वह पु प-भार से निमत वृ त क
भाँित धीरे -धीरे नीचे को झुकती गई। ताल का ठे का धीमा आ, और चौला वह
देवसाि य म सह जनता के सम पृ वी पर बेसुध होकर िगर पड़ी। जन-जन क
नस म येक र िब दु नृ य कर रही थी। दशक िन नमेष, िन प द बैठे रह गए। गंग
सव ने अ ुपू रत ने से गंगा क ओर देखकर कु छ संकेत कया। गंगा ने य से चौला
को अंक म भरा, और उसे क के बाहर ले गई। गंग सव वि ल-से चुपचाप उठकर
अपने आवास म गए। सबके दय म एक ही क पना, एक ही छलना, एक ही मू त
जा त हो रही थी। वह मू त चौला क थी। शु न क भाँित दैदी यमान और शु
चांदनी क भाँित ापक, शीतल और व मिण क भांित ब मू य और दु ा य,
शारदीय सुषमा क भाँित शतधौत शु ।
ि पुरसु दरी
देवता का िनमा य लेकर जो त ण भ क छ से आया था, वह देवाचन क
समाि पर महालय क सी ढ़य के पास एक ख भे के सहांरे बैठा ऊँघ रहा था। इस
समय महालय जनशू य था। सभाम डप के सब दीप बुझा दए गए थे। बाहरी
दीपाधार पर जो दो-चार दीपक जल रहे थे, उ ह का ीण काश वहाँ पड़ रहा था।
अ राि तीत हो चुक थी। तभी अपनी पीठ पर कसी के हाथ का कोमल पश
पाकर वह च क उठा। उसने मुँह फे र कर देखा, एक ग भ पसी बाला खड़ी मु करा
रही थी। उसका यौवन जैसे दहकता आ अंगारा था। युवक ने कमर से लटकती तलवार
क मूठ पर हाथ धर कर कहा, ‘‘कौन हो तुम ?’’ बाला िखलिखलाकर हँस पड़ी, हँसते-
हँसते युवक पर कु टल ूपात करके कहा–
‘‘मूख, ी से डरता है ?’’
‘‘म कसी से नह डरता।’’
‘‘ फर तलवार पर हाथ य ?’’
युवक ने ि थर होकर कहा, ‘‘कौन हो तुम ?’’
युवती उससे सटकर बैठ गई, हँसकर उसने कहा, ‘‘कहो, कै सी ?ँ ’’
प के उस दहकते ए अंगारे के पश से त ण का ता य जाग उठा, उसने
कहा, ‘‘कहो, कौन हो ?’’
‘‘म सोमा ।ँ ’’
‘‘सोमा कौन ?’’
“ ि पुरसु दरी क भूिमका।’’
‘‘तो मुझसे तु हारा या काम है ?’’
‘‘तुम यहाँ अके ले बैठे या कर रहे हो, बु ?”
युवती युवक के और पास िखसक गई, उसके अनावृत यौवन का सुरिभत,
सुकोमल, सुख पश पाकर युवक चल-चंचल हो गया। सु दरी ने अपने क धे से धके लते
ए और बं कम कटा से देखते ए कहा–
‘‘चलोगे मेरे साथ ?’’
‘‘कहाँ ?’’
ि पुरसु दरी के दरबार म।’’
युवक भीत ने से युवती को देखने लगा। ि पुरसु दरी क रह यपूण वाम
पूजन क िविध क ब त बात उसने सुनी थ । युवती ने अपना उ म यौवन युवक के
शरीर से सटा दया। युवक के शरीर क नस का र , गम होकर िपघले ए सीसे क
भाँित दौड़ने लगा।
उसने हकलाकर कहा, ‘‘ या सच कहती हो ?’’
‘‘तु हारा बड़ा भा य है। महामाया के चरणो म तु हारी पुकार ई है।’’ बाला
ने एक कार से युवक को अंक म भर कर उठा िलया। युवक क सोचने क शि कु ि ठत
हो गई। वह िवमूढ़ क भाँित त णी के पीछे चल दया।
महालय के वाम पा व म जो िव तृत उ ान था, उसके उस ओर एक िवशाल
ार था। ार के उस पार ि पुरसु दरी का मि दर था। यह मि दर चार ओर से ऊँची-
ऊँची दीवार से िघरा था। मि दर के आसपास चार ओर कु मारी, काली, कपाली,
चामु डा आ द नव-शि य के नौ मि दर थे।
ि पुरसु दरी के स ब ध म िविवध कं वदि तयाँ थ । अनेक रस-रह य क बात
लोग करते थे। वहाँ येक गोख और त भ पर िशवशि क िमथुन-मू तयाँ खुदी थ ।
मू तयाँ न और अ ील और िभ -िभ कार के काम-स ब धी आसन क थ । उनम
कु छ अ यिधक न , अ ील, काम-िवकार और अ ाकृ ितक संयोग को द शत करती
थ।
मि दर के ार पर िवशाल भैरवी च बना आ था। आि न क नवराि म
इस मि दर क चहल-पहल ब त बढ़ जाती थी। दूर-दूर के कौल वामप थी उस उ सव
म सि मिलत होते थे। ‘महाशि ि पुरसु दरी’ का तवन, क तन और पूजन, उ र
कौल- या से कौिलक स दाय के शा करते थे। इन दन यहाँ िन य म , मांस और
म य मधु का नैवे चढ़ता, भैरवी च क रचना होती, और भ गण भोगिवलास को
मो का परम साधन मानकर, वण-जाित का िवचार छोड़कर, महाशि महामाया
ि पुरसु दरी क आराधना करते थे। मि दर के एक गोपनीय भाग म शंकर क
अ ाि गनी महाशि क आराधना होती थी। और उसक पूजा-अचना पर परा से
चली आती ई–दीि त ी-पु ष के सम , अव य िविध से होती थी। िबना दीि त
ए ि का वहाँ प च ँ कर जीिवत लौटना स भव न था।
सु दरी क नूपुर- विन नवयुवक के र म म दरा का मद उं ड़ेल रही थी।
उसक िवलासलीला, अनावृत सुग ठत देह, वीणा-िविनि दत वर, उसके सु यौवन
को ठोकर मार-मारकर जा त कर रहे थे। युवती के वणगा क मादक गंध से
आवेिशत हो युवक म ब सप क भाँित उसके साथ-साथ चला जा रहा था।एकाएक
उसने साहस करके कहा–
‘‘कहाँ ले जा रही हो–उस अगम े म मुझे ?’’
‘‘भय मत कर !’’ युवती ने उसके कान म मुँह लगाकर कहा। उसके कान और
ग ड थल से युवती का गम ओ छू गया। उसे रोमा च हो आया। फर युवती ने अपने
नम-गम हाथ म उसक कलाई पकड़ ली और उसे एक तंग अँधेरी राह म ख च ले चली।
बड़ी देर तक वह उस अँधकारपूण टेढ़े-मेढ़े माग म चलती रही। एकाएक ठहर कर उसने
एक गु ार पर प च ँ कर संकेत कया। कसी ने झरोखे से झांक कर पूछा, ‘‘कौन है ?’’
‘‘म सोमा ।ँ ’’
उ र म एक पु ष हाथ म दीपक िलए बाहर आया। सोमा को देखकर उसने
पूछा–
‘‘ ा आ ?’’
‘‘यह है।’’
िजस पु ष ने आकर ार खोला था, वह काला-मु ट ड और दग बर था।
उसक आँख लाल हो रही थ और वह म के नशे म झूम रहा था। उसने िसर से पैर
तक युवक को देखा, हा य से उसके काले-काले मोटे ह ठ फै ल गए और बड़े-बड़े पीले
दाँत बाहर िनकल आए। उसने कहा, ‘‘तब आओ भीतर’’, सोमा ने युवक को भीतर
धके ल िलया। मु ट ड ने ार ब द कर िलया। दीपक के पीले ीण काश म उस
भयानक पु ष को देखकर युवक सहम गया। पु ष आव यकता से अिधक ल बा और
बेडौल था। उस दीपक के पीले काश म उसे देखकर युवक काँपने लगा। वे अनेक अँधेरे
अिल द और क को पार करके एक श त ा गण म प च ँ ।े हाथ का दीपक एक
आधार पर रखकर पु ष ने कहा, ‘‘श मुझे दे’’ और उसने अनायास ही युवक क
तलवार ह तगत कर ली।
युवक आतंक से जड़ हो गया। सोमा ने बं कम कटा से उसे घूर कर धीरे से
कहा, “चल-चल! देव थान म श क या आव यकता है! यहाँ भगवती महामाया क
जा त योित है।’’ वह उसे धके लती ई एक भीतरी अिल द म ले गई।
वहाँ दै य के समान, सवथा न एक भीमकाय कृ णवण पु ष, ा चम पर
बैठा कु छ जप कर रहा था। एक लाल व -ख ड उसके नािभ-देश म अ त- त पड़ा
था।
एक बड़ा-सा म -पा उसके स मुख धरा था िजसम से वह बार-बार म पी
रहा था। उसक घनी काली भ ह के नीचे बड़े-बड़े पलक झुके ए थे और िखचड़ी घनी
दाढ़ी म िछपे मोटे-मोटे काले ह ठ तेज़ी से िहल रहे थे।
सोमा ने युवक को उस पु ष के आगे धके लकर कहा, ‘‘साहस कर रे , महामाया
के िचर कं कर भूतनाथ भैरवावतार भ को िणपात कर।’’
युवक काँपता-काँपता भूिम पर लोट गया।
भ ने उसक ओर अपने ति ल ने उठाकर उँ गली से संकेत करते ए उस
ी से कहा–
‘‘यही है वह ?’’
‘‘यही है।’’
‘‘तूने ि पुरसु दरी का िनमा य सव को दया है ?’’
‘‘सव ने वयं ही हण कर िलया भु !’’ युवक ने करब हो कहा।
‘‘अरे अधम, तुझे आदेश या था? या तुझे महामाया के कोप का भय नह ?’’
युवक ने सामने महामाया क िवकराल मू त हाथ म ि शूल िलए देखी। भ
ने कोप कर कहा, ‘‘अधम, महामाया के कोप म िगर कर भ म होगा तू।’’ फर पा म
मुँह लगाकर गटागट ब त-सी म पीकर जलती ई दृि से युवक क ओर देखा। युवक
ने िणपात करके कहा, ‘‘ भु, अपराध मा हो, सव क आ ा उ लंघन करने क
शि मुझ म नह थी।’’
इसी समय भीतर से दो मु ट ड मू तयाँ िनकल आ । वे भी दग बर और म
से उ म थ । एक ने कहा, ‘‘बाबा, इसे आज महाकाल क बिल दीिजए।’’
‘‘देवापण होगा रे तू ?’’ भ ने लाल-लाल आँख उठाकर पूछा।
‘‘नह , नह बाबा, मुझे जाने दीिजए।’’
पर तु आगत मु ट ड म से एक ने अपने बिल पंजे म उसक कलाई पकड़ ली।
उसने कहा, ‘‘पापी, महामाया के मि दर को करके भाग जाना चाहता है।’’
दूसरे ने कहा,“ मि दर को करके कोई नर जीिवत यहाँ से नह जा सकता।“
भ ने फर म पी और मेघगजना के वर म पुकारा, ‘‘ ा द त’’ एक
िवकराल दग बर महाकाय ि न जाने कहाँ से िनकल आया। उसके सवाग म संदरू
लगा था और हाथ म एक िवशाल ि शूल था। उसने अनायास ही युवक को धरती पर
पटक दया, और ि शूल उसके क ठ पर रख दया। फर िच लाकर कहा, ‘‘जय माया
!’’
सोमा भय से ची कार कर दौड़ी। उसने ि शूल को दोन हाथ म थाम कर
कहा, ‘‘नह -नह , यह महाकाल का नैवे है। यहाँ इसका र नह िगरे गा।’’
पु ष ने ि शूल हटा िलया। वह भ क ओर देखने लगा। सोमा ने भ के
कान म मुँह लगाकर कहा, ‘‘यह महाकाल का नैवे है, इसे भात म महाकाल को
बिल देना होगा। अभी इसे मेरे सुपुद क िजए भु।’’
‘‘समझा, तू इस पर आस है। पािपनी! दूर हो।’ वह खड़-खड़ करके हँस पड़ा,
और पा म मुँह लगाकर म पीने लगा।
सोमा ने फर उसके कान म मुँह लगाकर कु छ कहा। इस पर भ ने सोमा को
पीछे धके लते ए खड़े होकर कहा, ‘‘झूठ-झूठ, दूर हो तू चुड़ल
ै ’’ फर उसने व गजना
करके कहा, ‘‘ इस पािप को ख भे से बा धो।’’
युवक को ख भे से कसकर बा ध दया गया। सोमा भ से घषणा खाकर भी
उठी और उसने म से भरा पा युवक के मुँह से लगाकर कहा, ‘‘पी जा अधम !
महामाया का साद है, इससे साहस बढ़ेगा।’’
युवक िबना िवचार कए गटागट म पी गया। पा म जो बचा, उसे सोमा ने
पीकर पा धरती पर फक दया। फर वह चार ओर घूम-घूम कर अपलाप-सा करने
लगी।
भ ने व -गजना करके कहा, ‘‘लाओ िनमा य।’’
कु स वाद
गंग सव व थ होकर आसन पर बैठे। उनके सामने दूसरे आसन पर भीमदेव
बैठे।
युवराज ने कहा, ‘‘भगवन्, यह तो ठीक नह आ।’’ सव ने पूछा, ‘‘ या?’’
‘‘आपने ले छ को अभय दया, िचरं जीव रहने का आशीवाद दया...और
सकु शल चला जाने दया।’’
सव हँस दए। उ ह ने कहा, ‘‘अ छा य नह आ कु मार ?’’
‘‘हाथ म आए श ु को छोड़ना अ छा है ?’’
‘‘पर श ु कौन है ?’’
‘‘ भो ! म यह सब वेदा त िवचार नह कर सकता, पर गज़नी का यह दै य
य द सोमप न को आ ा त करे तो ?’’
‘‘तो ?’’
‘‘तो महाराज, गुजरात का गौरव भंग होगा।’’
‘‘ य ?’’
गंग सव के का उ र युवराज भीमदेव नह दे सके ।
वे सव का ग रमापूण मुख देखते रह गए।
गंग सव ने हँस कर कहा, ‘‘ कु मार, य द गज़नी का सुलतान सोमप न पर
अिभयान करे तो गुजरात का गौरव भंग होगा, यह तुम थम ही से कै से कहने लगे?
य द वह अिभयान करे तो गुजरात का गौरव बढ़े य नह ?’’
भीमदेव लि त ए। उ ह ने कहा, ‘‘गु देव, सोलह बार इस दै य ने तीस बरस
से भारत को अपने घोड़ क टापा से र दा है। हर बार इसने भारत को तलवार और
आग क भट कया है।’’
‘‘तो इसम या इसी अमीर का दोष है कु मार, तु हारा, देशवािसय का कु छ
भी दोष नह है? कै से एक आततायी इतनी दूर से दुगम राह पार करके , धन-जन से
प रपूण, शूरवीर राजा और ि य से स प भारत को सफलतापूवक आ ा त
करता है, धम थल को लूट ले जाता है, देश के लाख मनु य को गुलाम बनाकर बेचता
है, पर तु देश के लाख -करोड़ मनु य कु छ भी तीकार नह कर पाते। तुम कहते हो,
तीस बरस से यह सफल आ मण कर रहा है। उसके सोलह आ मण सफल ए ह। फर
स हवाँ भी य न सफल होगा, यही तो तु हारा कहना है? तु ह भय है क इस बार
वह सोमप न को आ ा त करे गा। फर यह भी भय है क य द वह ऐसा करे गा तो
गुजरात का गौरव भंग होगा। तु हारे इस भय का कारण या है? या अमीर का शौय?
नह , तु हारे भय का कारण तु हारे ही मन का चोर है। तु ह अपने शौय और साहस पर
िव ास नह । कहो तो, इसका गज़नी यहाँ से कतनी दूर है? राह म कतने नद, वन,
पवत और दुगम थल ह? सूखे म थल ह, जहाँ ाणी एक-एक बूँद जल के िबना ाण
यागता है। ऐसे िवकट वन भी ह, जहाँ मनु य को राह नह िमलती। फर उस देश से
यहाँ तक कतने रा य ह? मुलतान है, म थल के राजा ह। सपादल के , ना दोल के
चौहान, झालौर के परमार, अव ती के भोज, अबुद के ढु ि ढराज ह। फर प न के
सोलंक ह। इनके साथ ल -ल , को ट-को ट जा है, जन-बल है, अथाह स पदा है,
इनका अपना घर है, अपना देश है। फर भी यह आततायी िवदेशी, इन सबके िसर पर
लात मार कर, सबको आका त करके , देश के दुगम थान को चीरता आ, रा य को
िव वंस करता आ, इस अित सुरि त समु -तट पर सोम-तीथ को आ ा त करने म
सफल हो–तो कु मार, यह उसका दोष नह , उसका िव म है–उसका शौय है। दोष य द
कह है तो तुमम है।’’
कु छ देर तक गंग सव चुप रहे। फर बोले, ‘‘देव तो भावना के देव ह।
साधारण प थर म जब को ट-को ट जीिवत जन ा, भि और चैत य स ा आवेिशत
करते ह तो वह जा त देव बनता है। वह एक को ट-को ट जन क जीवनी-स ा का
के है। को ट-को ट जन क शि का पुंज है। को ट-को ट जन क समि है। इसी से,
को ट-को ट जन उससे रि त ह। पर तु कु मार, देव को समथ करने के िलए उसम ाण-
ित ा करनी पड़ती है। वह कोरे म ारा नह , यथाथ म। य द देव के ित सब जन,
अपनी स ा, साम य और शि सम पत कर, तो स ा, शि और साम य का वह
संग ठत प देव म िवराट पु ष के प का उदय करता है। फर ऐसे-ऐसे एक नह , सौ
गज़नी के सुलतान आव तो या? जैसे पवत क सुदढ़ृ च ान से टकरा कर समु क
लहर लौट जाती ह, उसी कार उस शि -पुंज से टकराकर खि डत शि याँ चूर-चूर
हो जाती ह...
‘‘थाने र, मथुरा और नगरकोट का पतन कै से आ, इस पर तो िवचार करो।
महमूद तुम पर आ मण नह करता, रा य का उसे लोभ नह है। वह तो देव-भंजन
करता है। को ट-को ट जन के उस अिव ास और पाख ड को खि डत करता है। को ट-
को ट जन के उस अिव ास और पाख ड को खि डत करता है, िजसे वे ा और
भि कहकर द शत करते ह। वह भारत क दुबलता को समझ गया है। यहाँ धम
मनु य-जीवन म ओत- ोत नह है। वह तो उसके कायर, पितत और वाथमय जीवन म
ऊपर का मुल मा है। नह तो देखो, कै से वह एक कु रान के नाम पर ितवष लाख
यो ा को बराबर जुटा लेता है। कु रान के ित उनक ा, उसम और उसके येक
साधारण िसपाही म मुल मे क ा नह है, िन ा क ा है..
‘‘इसी से कु मार, मेरी दृि म वह उस आशीवाद ही का पा है, जो मने उसे
दया...और ािण-मा को अभयदान तो भगवान सोमनाथ के इस आवास का आचार
है, म उस आचार का अिध ाता ,ँ यह भी तो देखो!’’
‘‘पर तु गु देव, श ु-दलन क शि या देवता म नह है ?’’
‘‘कु मार ! य द राजा के म ी, सेना तथा जा अनुशािसत न ह , सहयोग न द,
तो राजा क शि कहाँ रही? राजा क शि उसके शरीर म नह है। शरीर से तो वह
एक साधारण मनु य-मा है। उस राजा के शरीर को नह , उसके राज व क भावना को
अंगीकार करके जब सेना और म ी दोन का बल उससे संयु होता है, तब वह
मह कृ य करता है।ै इसी भाँित पु , देवता अपने-आप म तो एक प थर का टु कड़ा ही है,
उसक सारी साम य तो उसके पूजक म है। वे य द वा तव म अपनी साम य समि प
म देवापण करते ह, तो वे देव व का उ कष होता है। वा तव म भ क साम य का
समि - प ही देव का साम य है।’’
ब त देर तक कु मार भीमदेव गंग सव क इस ान-ग रमा को समझते रहे।
फर बोले, ‘‘तो देव, गज़नी का सुलतान य द सोमप न को आ ा त करे तो हमारा या
क है ?’’
‘‘िजस अमोघ साम य क भावना से तुम देवता से अपनी र ा चाहते हो, उसी
अमोघ साम य से देव-र ण करना।’’
‘‘पर तु वह अमोघ साम य या मनु य म है ?’’
‘‘और नह तो कहाँ है? बेटे! मनु य का जो ि व है वह तो िबखरा आ है,
उसम साम य का एक ण है। अब, जब मनु य का समाज एक भूत होकर अपनी
साम य को संग ठत कर लेता है, और वह उसका उपयोग वाथ म नह , युत कत -
पालन म लगाता है, तो यह साम य-समि मनु य क साम य होने पर भी देवता क
साम य हो जाती है। उसी से देव-र ण होगा।’’
‘‘पर तु य द लोग उपे ा कर, अपने-अपने वाथ म रत रह ?’’
‘‘तो देवता क साम य भंग होगी, तब थम देवता अ तधान होगा, फर देव-
अरि त को ट-को ट जन दु:ख-ताप से पीिड़त हो दुःख भोगगे। जनपद- वंस होगा।’’
‘‘तब भु, मुझ अ ानी को आप यह आदेश दीिजए क म या क ं । आज म
आपके चरण म ित ा करता ँ क य द यह दुदा त भारत-िवजेता भगवान सोमनाथ
को आ ा त करे गा तो म इसी तलवार से उसके दो टु कड़े कर दूग
ँ ा।’’
‘‘पु ! इस ‘म’ श द को िनकाल दो। इससे ही ‘अहं-त व’ उ प होता है।
क पना करो, क तु हारी भाँित ही दूसरे भी इस ‘म’ का योग करगे, तो ित पधा
और िभ ता का बीज उदय होगा। साम य का समि - प नह बनेगा।’’
‘‘तो भगवन्! हम कै से कह–?’’
‘‘ऐसे कहो पु , क य द कोई आततायी देव क अव ा करे गा तो भारत उसे
कभी सहन न करे गा।’’
‘‘तो भु, यही सही।’’
भीमदेव आगे और भी कु छ कहना चाह रहे थे क इसी समय गंगा घबराई ई
आई, उसने कहा, ‘‘ भु, चौला आवास म नह है...’’
‘‘आवास म नह है तो कहाँ है ?’’ सव ने िज ासा कट क ।
‘‘यह म नह जानती, पर तु मुझे स देह है...।
गंग सव अि थर हो गए। उ ह ने हो उठते ए कहा, ‘‘कु मार, तुम मेरे
साथ आओ।’’ और एक गु गभमाग ारा ि पुरसु दरी के मि दर क ओर लपके और
उनके पीछे नंगी तलवार हाथ म िलए कु मार भीमदेव भी।
भैरवी–च
भ पैर पटक-पटक कर इधर-उधर घूमने लगा। म क झ क म उसके पैर
सीधे नह पड़ रहे थे। आँख अधिमची हो रही थ । वह रह-रह कर कोई अघोर म
बड़बड़ा रहा था। इसी समय दै य के समान दो अशुभदश ि य ने व म िलपटी
ई व तु उसके चरण म लुढ़का दी। भ ने भारी क ठ से कहा–
‘‘िनमा य िमला ?’’
‘‘िमला।’’
उसने आवे न हटाया, मू छत चौला क देह-यि उसम से िनकल पड़ी। उसके
शरीर पर वही नृ य क पोशाक थी। कड़ी मू छा के कारण उसका मुख पीला हो रहा
था, पर इस समय भी वह वही पा रजात–पु पगु छ क ी धारण कर रही थी। भ
के म -घू णत ने के भारी-भारी पलक तृिषत हो उठे ।
उसने कहा, ‘‘जृि भक, उसे अमृत दे।’’ जृि मक ने म का पा मू छत चौला
के मुख से लगा दया। ास के साथ ही म उसके क ठ म उतरने लगा। भ ने वह
भैरवी च रचा। भैरवी च पर चौला क बेसुध देह रखी गई। फर उसने उसके िनकट
ही आसीन होकर आ ा दी, “पूजन-िविध स प करो अब।’’
चौला को न कर दया गया। उसके िविवध अंग का पूजन-माजन होने लगा।
बीच-बीच म म भी उसके मुख म डाली जाने लगी। भ त - या स प करने
लगा। संकेत होने पर कपाट खोल दए गए। सब साधक-सािधकाएँ क म घुस आ ।
सब दग बर न थे, सबके हाथ म म -पा थे। एक-एक ी और एक-एक पु ष
िमथुन मु ा से िवशेष प ित पर म -पाठ करता आ चौला क न मू छत देह को
चार ओर से घेरकर नृ य करने और म पीने लगा। ब त लोग पीते-पीते वमन करने
लगे, ब त िनल -अ ील चे ाएँ करने लगे, ब त बदहवास होकर भूिम पर ही लोट
गए। उसी समय चौला क मू छा टू टी। अपने स मुख अकि पत-अत कत यह भयानक
दृ य देखकर उसके मुख से चीख िनकल गई, मू छा और म के भाव से उसक चेतना
िवकृ त हो रही थी। फर भी उसने अपने न शरीर को देख ल ा से अंग समेट िलए।
प र ाण पाने के िलए वह इधर-उधर देखने लगी। चार ओर िनल न ी-पु ष
िमथुन-योग से उसके चार ओर घूम-घूमकर कवच-पाठ कर रहे थे। भ मु ा-योग म
स मुख आसीन था। इन सब िनल और वीभ स ी-पु ष तथा दै य के समान
भीमकाय भ को स मुख न बैठा देख, चौला ने भय से दोन हाथ से आँख ब द कर
ल।
ख भे म ब धा आ युवक य िप गहरे नशे म था, पर तु अपने लाए िनमा य
क िवपि देख उसने छू टने को ब त हाथ-पैर मारे , पर तु वह ब धन नह तोड़ सका।
सोमा बार-बार म पीकर िखलिखलाकर हँसने और म पा उसके मुँह के पास ले
जाने लगी, पर तु उसने फर म नह पी। आवेग से उसके मि त क और क ठ क नस
तनने लग ।
हठात् युवक िच ला उठा, ‘‘जय व प! जय सव ! जय देव! जय गु देव !’’
उ म जन से देखा, गंग सव तेजी से बढ़े ए भीतर आ रहे ह, उनके पीछे नंगी
तलवार हाथ म िलए भीमदेव ह।
जो जहाँ था, त ध रह गया। कु मार भीमदेव एक ही छलांग म भ को
धके ल चौला के िनकट जा प च ँ े। उ ह ने झटपट अपना उ रीय उसपर डाल दया।
चौला लपककर भीमदेव के पीछे लड़खड़ाती आ खड़ी ई। भ ने पास रखा भारी
ि शूल उठाकर कु मार भीमदेव पर हार कया। गंग सव युवक क पुकार सुन उसे
बंधन-मु करने म उलझ गए थे। अब उ ह ने कड़ककर कहा, ‘‘खबरदार भ !’’ और
दूसरे ही ण युवक ने उछल कर उसका गला धर दबाया। भ म असीम बल था, वह
ाण ण से युवक से िभड़ गया। कभी युवक और कभी भ नीचे-ऊपर होने लगे। इस
बीच म सब उपासक भाग गए। भीमदेव ने युवक को भ से उलझता छोड़ चौला के
व क व था क । अ त म भ को लात–घूस से अ छी तरह र द कर, युवक ने
उसे सी ढ़य से नीचे धके ल दया। मार और नशे से अचेत होकर भ टू टे ख भे के
समान भूिम पर पड़ा रहा। गंग ने मि दर के पट ब द कर दए और ‘सब कोई मि दर
याग कर बाहर चले जाओ’ यह आदेश दया। मू छत भ के शरीर को पा वग उठा
ले गए। आगे गु देव, बीच म चौला, पीछे भीमदेव, उनके पीछे वह युवक, सब उसी गु
माग क राह महालय म लौट आए।
मौनी बाबा
सर वती के उ र तट पर दिध थली ाम था। उस ाम से कोई डेढ़ कोस के
अ तर पर बटे र नाम का एक ाचीन िशवालय था। िशवालय जीणाव था म होने पर
भी अित भ था, उसके आसपास चार ओर अनेक छोटे-बड़े मि दर और थे। इनम भी
िशव लंग क थापना थी। थान अित रमणीक था। उसक तीन दशा म ब त-से
बड़े-बड़े छायादार वृ थे। चौथी दशा म महानदी सर वती िशवालय के चरण
पखारती कलकल िननाद करती बह रही थी। िशवालय से कोई तीन कोस के अ तर पर
ी थल तथा आठ-नौ कोस के अ तर पर अनहल प न था। बीच के मैदान म मनु य क
ब ती न थी। िशवालय एका त, िनजन था। िशवालय का िशखर ब त ऊँचा था। वहाँ से
चार ओर का दृ य अित भ दीखता था।
कु छ दन से इस िशवालय म एक सं यासी आकर टके थे। सं यासी परदेशी थे
और ब त वृ थे। उनका शरीर अ य त कृ श और ल बा था। उसपर ेत ल बी दाढ़ी
अितभ दीख पड़ती थी। सं यासी मौनी थे, मुँह से बोलते नह थे, न आसपास के ाम
म िभ ा करने जाते थे। ामीण भ जन और जंगल के चरवाहे जो आकर भि -भाव से
कु छ खाने-पीने क व तु रख जाते थे, उनसे वे के वल संकेत से ब त कम बात करते थे।
आसपास के ाम म वे मौनी बाबा के नाम से िस हो गए थे। दन म एक-दो ामीण
उनके पास बने रहते थे, पर तु राि को बाबा अके ले ही उस िनजन म रहते थे। उनक
िन पृह वृि और ग भीर आकृ ित से लािवत हो ामीण उनपर ा करते थे।
अ राि तीत हो गई थी। रात अंधेरी थी और जंगल सुनसान था। ऐसे
समय म दो अ ारोिहय ने िशवालय के ांगण म वेश कया। दोन अ ारोिहय म
एक छ वेशी सुलतान महमूद और दूसरा उनका साथी था। दोन साधु-वेष म ही थे।
घोड़ का पदचाप सुनते ही मौनी बाबा बाहर िनकल आए और अ क व था कर
तीन िशवालय के अिल द म जा बैठे। बैठते ही तीन ने वातालाप ार भ कर दया।
वाता शु अरबी भाषा म ई, उसका अिभ ाय इस कार था–
‘‘हज़रत! अ बास ज़ मी हो गया।’’
‘‘यहाँ तक नौबत य आने दी, सुलतान ?’’
‘‘नौबत आगे तक आती, पर तु गुसाई बीच म आ गया।’’
‘‘गंग को आपने देखा ?’’
‘‘देखा।’’
‘‘और कु छ’’
‘‘दो चीज़ और देख ।’’
‘‘वह या ?’’
‘‘गुजरात का राजा।’’
‘‘चामु डराय ?’’
‘‘नह , भीमदेव।’’
‘‘देख िलया ?’’
‘‘अ छी तरह। अफसोस यही रहा, दो-दो हाथ और न हो पाए।’’
‘‘अ बास को उसी ने ज़ मी कया ?’’
‘‘नह , एक दूसरे नौजवान ने।’’
‘‘मगर तकरार ई कस बात पर ?’’
‘‘ फर क ग ँ ा, अभी यह फमाइए क लाहौर से कोई आया है ?’’
‘‘अलीिबन उ मान अ हज बीसी का कािसद आया है। उ ह ने कहलाया है क
तमाम फौज दरा पार कर चुक है, और जलालाबाद म उसे लेकर मसऊद सुलतान के
म क इ तज़ारी कर रहा है।’’
‘‘और मु तान क या खबर है ?’’
‘‘शेख इ माइल बुखारी ने कहलाया है क य द सुलतान क सवारी िस ध क
राह गुजरात जाना चाहती है तो उसे कड़ी से कड़ी मुिहम का मुकाबला करने को तैयार
रहना चािहए।’’
‘‘इसका मतलब ?’’
‘‘मतलब यही, क राह म जो राजा ह वे गुमराह ह।’’
‘‘उ ह या राह पर नह लाया जा सकता ?’’
‘‘शेख ने कोिशश क थी, मगर कु छ बना नह ।’’
‘‘शेख को किहए क वे फर कोिशश कर और गुमराह को राह पर लाएँ, चाहे
िजस क मत पर।’’
‘‘ब त खूब। लाहौर को या म भेजा जाए ?’’
“मसऊद गज़नी लौट जाए।’’
‘‘ , यह कै सी बात ?’’
‘‘यह सुलतान का म है। शेख और आप अभी यह मुक म रह। अ बास के
ज़ म भर जाएं तो वह गज़नी को रवाना हो जाए।’’
‘‘और कु छ म है ?’’
‘‘नज़र रखनी होगी।’’
‘‘गुजरात के राजा पर ?’’
‘‘नह ।’’
‘‘गुसा गंग पर ?’’
‘‘नह ।’’
‘‘और कौन ?’’
‘‘वह नाज़नीन।’’
‘‘कौन है वह ?’’
‘‘सोमनाथ क सबसे बड़ी दौलत।’’
‘‘ले कन...’’
‘‘शेख ! वह आपक आँख से एक लमहे को भी ओझल ई, तो गदन पर िसर
नह रहेगा।’’
‘‘उसका नाम ?’’
‘‘चौला।’’
‘‘चौला !’’
सुलतान उठ खड़ा आ। उसने कहा, ‘‘म अभी गज़नी जाऊँगा। राह म िबखरी
ई फौज और जासूस सब उसी तरह काम करते रह।’’
‘‘जो म।’’
‘‘हज़रत अलब नी या अभी अनहलप न से नह लौटे ?’’
‘‘रात ही लौटे ह, वे अ छी खबर लाए ह।’’
‘‘ठीक है, इस व वे कहाँ है ?’’
‘नदी के उस पार, उसी झ पड़ी म।’’
‘‘ठीक है। उनके पास घोड़ा है ?’’
‘‘शायद नह ।’’
‘‘तो म अ बास का घोड़ा भी ले जा रहा ,ँ अ बास दूसरा खरीद लेगा।’’
सुलतान उछलकर अपने असील घोड़े पर सवार आ और दूसरे क रास काठी
म बांध नदी क ओर चल दया, उसी सूनी-अँधेरी रात म।
िविध भंग
‘‘िविध भंग हो गई, अब या होगा ?’’
‘‘िवनाश होगा !’’
‘‘रो कए बाबा, स होइए !’’
‘‘जब देव-पर परा भंग ई, तो गु -पर परा भी भंग होगी।’’
‘‘अनथ हो जाएगा।’’
‘‘ लय भी हो सकता है।’’
भात हो गया था। ि पुरसु दरी के मि दर के पट सव ने ब द करा दए ह,
यह बात आग क भाँित प न म फै ल गई थी। भ ने ायि त- व प उपवास करके
पंचाि तप ार भ कर दया था। मि दर के तोरण के बाहर िनकट ही एक िवशाल वट-
वृ था, उसी के नीचे पाँच बड़ी-बड़ी धूिनयाँ धधक रही थ । उनके बीच भ का
भीमकाय शरीर एक कु शासन पर िवराजमान था। उसक बड़ी-बड़ी पलक झुक ई
थ । मोटे-मोटे काले ह ठ िनर तर िहल रहे थे। वह उ ाटन-म का पाठ कर रहा था,
उसके संपूण अंग म भ म लगी ई थी। अंग पर मा कौपीन था। सैकड़ भ दशक
वहाँ उपि थत थे। और भी आते-जाते थे। लोग भाँित-भाँित क बात करते थे। दो-चार
ड़दंग बाबा उसे घेरे बैठे थे। दो-चार धूनी म ल ड़ डाल रहे थे। संदरू का भैरवी च
बना था। उस पर लाल संदरू से रं गा, रं ग-िबरं गे धाग से लपेटा एक मानव-पुतला उड़द
के आटे का पड़ा आ था। लोग भयभीत और च कत मु ा से उसे देख रहे थे। भ
बीच-बीच म कु छ अ फु ट उ ारण कर पुतले पर उड़द फक रहा था।
एक ड़दंग बाबा करब हो आगे चला। उसने भीित-भरे नयना से देखकर
कहा, ‘‘रो कए भु, रो कए !’’
‘‘नह ,’’ सं ेप म कहकर भ ज दी-ज दी कोई म पढ़ने और उड़द फकने
लगा। उपि थत जन म घबराहट फै ल गई।
भ य िप गंग सव का अंतेवासी और िश य था। पर था वह वाम-माग ।
वह ि पुरसु दरी देवी का अन य उपासक था। वह त -शा का का ड पंिडत और
अिभचार-योग का िस ाता समझा जाता था। मारण, मोहन, उ ाटन आ द
अिभचार-काय वह ायः करता रहता था। यह िस था क कालभैरव उसका वशवत
और दास है, तथा उसक आ ा से यह देवता सब स भव-अस भव कृ य-कु कृ य कर
सकता है। भ िजस पर कु िपत आ, उसके जीवन क खैर न थी और शी या
िवल ब से कालभैरव उसे खा जाता था। कालभैरव के ांगण म उस हतायु के र क
कु छ बूँद टपक ई िमलती थ , या आधी खाई ई कलेजी या खोपड़ी का कु छ शेषांश
पड़ा दीखता था। ऐसी घटना होने पर हतायु के सगे-स ब धी ु होने क अपे ा
नानािवध भोग देवता को स करने को अपण करते थे, िजससे वह अ स होकर
आगे उस वंश का समूल नाश न कर दे। ब त-सी सेवा करके तथा सुवण-दान से संतु
करके , भ को भी देवता को संतु करने के िलए राज़ी कया जाता था। भ का
शरीर जैसा बेडौल और भयावह था, चे ाएँ भी वैसी ही थ । वह वातावरण ही ऐसा था
क मूख और िव ान, धनी और गरीब, सब कोई इस पाख ड पर िव ास करते थे।
ि पुरसु दरी का पट ब द होना तथा वाम पूजनिविध भंग होना, बड़ी भारी
और भयानक घटना समझी गई। मि दर म आचार के नाम पर अनाचार करने वाले
मु टंड का तो सारा मौज-शौक ही समा हो गया। म -माँस का साद, सु द रय का
आलाप, सहवास और देवी क आड़ म होने वाले सब पाख ड-कृ य क गए।
एक मु टंड अवधूत ने कहा, ‘‘बाबा ! ऐसा तो पचास वष म एक दन भी नह
आ।’’
बाबा ने एक क ं ृ ित क । कहा कु छ नह । उसके ह ठ िहलते रहे।
एक भयानक वेशधारी अघोड़ी ने खड़े होकर महालय क ओर हाथ उठाकर
उ वर से कहा, ‘‘सव ने पाप कया है, सव का पतन हो गया है !’’
दो-एक अवधूत ने िचमटे उठाकर कहा, ‘‘बाबा, आ ा क िजए। हम सव के
पास जाएँ, पट खुलवाएँ, भोग-अचना िविध स प कर, नह तो सव का िसर फोड़
डाल।’’
‘‘नह रे नह , महामाया अब मि दर म नह ह।’’ भ ने व -गजना क
भाँित कहा। फर कु छ अ फु ट म ज़ोर-ज़ोर से उ ारण कर फट् -फट् कहा।
अवधूत ने काँपते-काँपते कहा, ‘महामाया कहाँ है बाबा ?’’
‘‘िवनाश को िनमि त करने गई ह। उधर, उधर देखो !’’ उसने उ म क
भाँित सुदरू म थली क ओर हाथ उठाए, और उ म क भाँित हँसने लगा। फर वह
जड़वत् समािध-म हो गया। उपि थत जन म भीित क भावना फै ल गई। ब त लोग
उस रात नह सोए। ब त ने उपवास कया। कापािलक और अघोरी सैकड़ -पचास क
सं या म आ-आकर, पंचाि तपते ए भ के चार ओर नरमु ड ले-ले नाचने और
नर-कपाल म भर-भरकर म पीने लगे। उ ह देख भयभीत हो नगरवासी भाग गए।
पर तु भात होने पर लोग ने देखा क भ अपने आसन पर नह है। आसन
सूना है, पंचाि जल रही है, पर तप वी नह है। यह देखते ही एक दूसरा कोलाहल उठ
खड़ा आ। कसी ने कहा, ‘‘ भ बाबा आकाश-माग से महामाया के साथ ‘िवनाश’
को आमि त करने गए ह।’’ कसी ने कहा, ‘‘बाबा, अ तधान हो गए।’’ कसी ने कहा,
‘‘हमने उ ह उस तारे के िनकट उड़ते देखा है।’’ ब त मुँह, ब त बात। सम त देवप न
इन सब घटना से िहल गया। अचल रहे के वल गंग सव । उनके पास आकर ब त
जन से ब त भाँित अनुनय कया, ोध कया, भय दखाया, पर तु सव ने कोई उ र
नह दया। उनके इस गूढ़ मौन से भी लोग िचि तत हो गए।
स पूण देवप न म एक अशुभ वातावरण ा हो गया।
अघोर–वन
सोमनाथ महालय के बाहर, परकोट के बाहर, खाई के उस ओर दि ण पि म
कोण म िवकट मशान था। वह मशान ब त ाचीन और भयंकर था। परकोटे से सटे
ए दि ण भाग म महाकाल भैरव का मि दर था, जो अघो रय के अधीन था। इस
मि दर म तं साधक, मारण-मोहन-उ ाटन के िविवध योग करते थे। अनेक अघोरी
कापािलक िविवध वाम-िविधय क िसि इस िवकट मशान म एकांत रात म करते
थे। यह िस था क जब ये साधक मुद क छाती पर वीरासन से बैठकर िपशाच-
साधन करते ह, तब िपशाच स व उस मुद के शरीर म वेश करता है, और वह मुदा
जीिवत पु ष क भाँित उठ खड़ा होकर साधक क असा य इ छाएँ पूरी करता है। इन
अघो रय , कापािलक और िस से गृह थ थर-थर काँपा करते थे। ब धा ये लोग सारे
अंग म िचता-भ म लपेटे जगह-जगह काजल और िस दूर से मुख और अंग को लेप कए,
नंगधड़ंग या बाघचम कमर म लपेटे, कं ठ और भुजा म मनु य क खोपड़ी लटकाए,
हाथ म कसी पशु का बड़ा-सा हाड़ या नरखोपड़ी िलए, शराब म म लाल-लाल आँख
कए नगर म आते और िजसका जो कु छ चाहते उठा ले जाते थे। कसी का साहस न था
क उनक मनमानी पर तिनक भी िवरोध करे । इनके तिनक होने पर ही जीवन क
खैर न थी, यह साधारणतया सभी का िव ास था। कसी भी कापािलक और अघोरी
को आते देख ि याँ अपने ब को घर म भीतर ब द कर देती थ । अक मात् कसी का
मर जाना या कसी बालक का रोगी हो जाना िन य ही कसी तांि क अघोरी के कोप
का कारण ही समझा जाता था और उ ह संतु करने के िलए सब करने न करने के काम
कए जाते थे।
मशान को छू ती ई िहर या नदी िनकट ही समु म िगरती थी। भास के
िनकट उसका मुख खूब िव तार पा गया था। िहर या नदी के उस ओर अघोर वन था,
िजसक दो काली-काली नंगी पवत चो टयाँ दूर ही से दखाई देती थ । कोई भी पु ष
अघोर वन म नह जा सकता था। जाकर जीता नह लौटता था। हाथ म पशु के आंत
क बनी यम-फाँस िलए, एक करोड़ िपशाच उस वन क र ा करते ह ऐसा सबका
िव ास था। येक कृ णप क चतुदशी को िपशाच का अिधपित, अघोर वन से
िहर या नदी पार करके उस मशान म आकर अघोर च रच महाकाल भैरव को बिल
देता है, ऐसा सभी का िव ास था।
येक अमाव या को ब त-से नगर िनवासी मशान म जाते। वे कु और
गीदड़ से िघरे ए बैठे अघो रय और कापािलक को नानािवध भट-बिल अपण करते
तथा अपने-अपने रोग, शोक एवं आव यकता को उ ह सुनाते थे। ये सब पाख डी,
िभचारी और कु माग थे, वे भोले-भाले लोग को कस कार ठगते, लूटते और डराते
थे, उसक उन दन कसी ने क पना भी न क थी। सब लोग समझते थे क वे लोग देव
स व-जु शि मान् िस पु ष ह। उनके उिचत-अनुिचत कसी भी काम का िवरोध
करना देश पर िवपि बुलाना समझा जाता था।
िपशाच के अिधपित का नाम श बरपा था। उसे कसी ने कभी नह देखा था।
पर तु िस था क उसक आयु सैकड़ वष क है। वह अजर-अमर है और वह संसार
के सब भूत- ेत-वैताल का वामी है। उसके नाम क पूजा होती थी। उसी के नाम पर ये
सैकड़ -हज़ार कापािलक और अघोरी, जनता को डराते-धमकाते रहते थे। उसके िवषय
म िस था क वह आकाश म उड़ सकता है, चाहे िजस योिन म वेश कर सकता है।
उसके िलए कु छ भी अकरणीय नह है। ब त लोग ग प लड़ाया करते थे। कहते थे,
‘‘अरे , हमने एक दन श बरपा को आकाश म उड़ते ए देखा अथवा बाघ का प
धरकर मनु य को खाते और मनु य-वाणी से बोलते ए देखा है।’’ इसी कार क झूठी-
स ी िविच बात इन अघो रय और कापािलक के स ब ध म िव यात थ ।
अगम पथ पर
अघोर वन के अगम-पथ पर दो अ ारोही तेज़ी से बढ़े चले जा रहे थे। दोन
सश यो ा थे, उ ह ने अपना अंग एक-एक काले लबादे म िछपा र खा था। दोन क
दाढ़ी हवा म िहल रही थी और चमकदार आँख सावधानी से इधर-उधर देख रही थ ।
अ ारोिहय म एक त ण, बिल और तेज वी पु ष था। पाठक उसे जानते ह। यह
छ वेशी सुलतान महमूद था। दूसरा पु ष एक ौढ़, ग भीर और ल बा-पतला ि
था। वह ब त कम बात करता था। अमीर इस ि से आदरपूवक वहार कर रहा
था। यह अरब का िस िव ान् अलब नी था। दोन धीरे -धीरे बात कर रहे थे। बात
अरबी भाषा म हो रही थी। अमीर ने कहा, ‘‘ या ये भूत- ेत, िपशाच और देवता,
िजनपर िह दू इस कदर िव ास करते ह, स े ह ?’’
‘‘नह , यह सब कु है।’’
‘‘ फर या कारण है क ये लाख -करोड़ आदमी इन वािहयात झूठी बात पर
यक न करते ह ?’’
‘‘उ ह बचपन से ही यह तालीम िमलती है।’’
‘‘तो हम िजस आदमी से िमलने जा रहे ह, वह या हक कत म कोई गैबी
ताकत रखता है ?’’
‘‘यह तो हम देखगे।’’
‘‘म इसीिलए आपको साथ लाया ।ँ लोग कहते ह, वह हवा म उड़ता है, गायब
हो जाता है, और आज तक कसी ने उसे देखा नह है।’’
‘‘ले कन यह ज़मीन भी तो ऐसी है जहाँ इ सान के कदम शायद पचास बरस
से नह पड़े। सामने ही लाख आदमी रहते ह, पर डर से यहाँ नह आते। अब हम देखगे
क हम पर या मुसीबत आती है।’’
‘‘और, जैसा क कहा जाता है क वह करामाती और जोरावर िजन है, य द
वैसा ही आ तो हम मदद भी तो दे सकता है।’’
‘‘ले कन म ऐसी कसी करामात या गैबी ताकत का कायल नही ।ँ ’’
‘‘हज़रत ! यह तो अभी हमको देखना ही है।’’
‘‘मगर छोटे गुसा ने कहा है, दशन ह गे। उस गैबी ताकत ने हम बुलाया है।
वह हमसे बात करे गा।’’
‘‘तब देखा जाएगा।’’
इसी समय इन अ ारोिहय को ऐसा तीत आ क कोई उनका पीछा कर
रहा है। उ ह ने तलवार नंगी कर ली, अपने चार ओर देखा, पर कु छ भी न दीख पड़ा।
सुलतान ने कहा, ‘‘ या कोई िछपकर हमारा पीछा कर रहा है ?’’
‘‘हो सकता है, हम होिशयार रहना चािहए।’’
‘‘होिशयार रहने से या, होगा, अगर कोई है तो िजन होगा! इ सान यहाँ कहाँ
?’’
इसी समय कोई व तु सनसनाती उनके कान के पास से िनकल गई। उ ह ने
चौक ा होकर एक-दूसरे को देखा।
‘‘ या तीर था ?’’
‘‘कहाँ ? दीख तो नह पड़ा।’’
वा तव म तीर न था। सुलतान के दय म आशंका और भय ने थान कया।
उसने कहा, ‘‘ या लौट चल ?’’
‘‘कहाँ, गज़नी ?’’
सुलतान लि त आ। उसने कहा, ‘‘अव य कोई शै हमारा पीछा कर रही है
जो दीख नह रही।’’ इतना कहते ही कोई िखलिखलाकर हँस पड़ा।
दोन ने घोड़े घुमाए, चार ओर देखा, पर कोई ि नज़र न पड़ा। दोन एक-
दूसरे को देखने लगे। चार ओर दूर-दूर तक सूने पहाड़ खड़े थे। दूर समु गरज रहा था।
आकाश म म या न का सूय तप रहा था। दोन सवार दृढ़ता से तलवार हाथ म िलए
आगे बढ़ते जा रहे थे। वे कु छ ही कदम आगे बढ़े थे, क एक उ म के समान भीमकाय
दग बर पु ष हाथ म एक भारी ि शूल िलए, जटाजूटधारी, भारी-भारी कदम रखता
आ, कह से िनकल आया और फर उनके आगे-आगे चलने लगा। उसने उँ गली के संकेत
से उ ह अपने पीछे-पीछे आने को कहा। दोन म पर पर दृि -िविनमय आ और
चुपचाप उसके पीछे चल दए। सुलतान ने एक बार साहस करके पूछा, ‘तू कौन है ?’’
पर उसने जवाब नह दया।
कु छ चलने के बाद, उसने उ ह संकेत से घोड़ से उतरने को कहा, और घोड़ को
ल बी बागडोर म बांधने को संकेत कया। फर वह पहाड़ी पर चढ़ने लगा। दोन
आग तुक पीछे-पीछे पहाड़ी पर चढ़ने लगे। वह तेज़ी से पहाड़ी पर चढ़ रहा था।
दो घड़ी क चढ़ाई म तीन टेकरी पर प च ँ े। यहाँ एक गुफा थी। बाहर से वह
साधारण दीख रही थी, पर भीतर ब त बड़ी थी। अमीर और उसके साथी ने उसके
पीछे-पीछे गुफा म पैर र खा। भीतर जाकर जो देखा, देखकर दंग रह गए। भीतर
ब मू य कोमल उपाधान उपि थत थे। क मती कालीन िबछे थे। आराम और िवलास
क येक व तु उपि थत थी।
उसने दोन को बैठने का इशारा कया और भीतर घुस गया। जब फर बाहर
आया तो उसके हाथ म एक बड़ा-सा चाँदी का थाल था। वह उसने अग तुक के सामने
रख दया। उ ह ने देखा, उसम कई कार के भुने ए मांस और राजशाही पकवान थे।
सब गम और ताज़े थे। यह देखकर दोन या ी आ य से एक-दूसरे का मुँह देखते रह
गए। वह ि फर भीतर गया और ठ डे पानी से भरी एक चाँदी क सुराही और वैसा
ही सुवािसत म से भरा एक पा लाकर उसने अितिथय के सामने रख दया। फर
आशीवाद के ढंग पर दोन के िसर पर हाथ ऊँचा करके कहा, ‘‘खा सुलतान और आराम
कर। तब म बात क ँ गा।’’
इतना कहकर और िबना उ र क ती ा कए वह गायब हो गया।
अघोर स पदा
उस दुगम जनव जत अघोर े म ऐसा अद्भुत-अकि पत आित य पाने क
अमीर ने व म भी क पना नह क थी। उस िनजन गुफा म राज-दुलभ सुख-साधन
और गरमागरम राजभोग देखकर तथा उस िविच माया-पु ष िपशाच-राज का समझ
म न आने वाला ि व देखकर, दोन असाधारण अितिथ घपले म पड़ गए। भोजन-
िव ाम से िनवृ हो उ ह ने गुफा म एकि त ब मू य व तु को देखा जो अरि त
रखी थ । अमीर ने कहा, ‘‘यह तो बड़ी अद्भुत बात है हज़रत! न यहाँ आदमी है न
आदमज़ाद, फर ऐसा लज़ीज़ खाना गरमागरम और यह माल-ताल, िजसक िहफाजत
करने वाला भी यहाँ कोई नह है। या यह सचमुच कोई िजन है या कोई बला ?’’
‘‘ले कन वह है कहाँ? गुफा तो भीतर और यादा बड़ी नह दीख पड़ती, फर
वह भीतर जाकर कहाँ गायब हो जाता है ?’’
‘‘यही तो बात है हज़रत! अब भी आप कह सकते ह क यह सब करामात नह
है ?’’
‘‘म िबना देख-े सुने या कह सकता !ँ वह अगर िजन है तो अके ला नह
होगा।’’
‘‘ या आपने प न म नह सुना था क एक करोड़ िज ात उसक िखदमत
करते ह। सो रं ग-ढंग तो कु छ ऐसे ही नज़र आते ह।’’
‘‘ले कन आप तो कहते ह क छोटे गुसा ने आपको यहाँ आने को कहलाया था,
आने से फायदा होगा, यह भी कहा था।’’
‘‘सो या फायदा होता है, यही देखना है। अब तो दन िछप रहा है, वापस तो
जा हम ही नह सकते ह।’’
‘‘वापस जाने क बात तो बाद म है; अभी तो उसने कहा है क वह बात करे गा,
अब यह देखना है क वह या बात करता है।’’
अमीर और उसका साथी गुफा से बाहर चले आए। बाहर आकर देखा, सामने
एक िशला-ख ड पर वह दै याकार िपशाचराज समािध थ बैठा है। उसके ने ब द ह
और शरीर िन ल है।
अमीर लपककर उसके िनकट आने लगा। पर दूसरे आदमी ने उसे रोक कर
कहा, ‘‘नह , नह , वहाँ जाना ठीक नह , वह यान-मु ा म है, ऐसी हालत म उसे
छेड़ना नह चािहए। फर उसने िजस तरीके पर हमारी तवाज़ा क है, उससे उसे
नाराज़ करना तो कसी भी हालत म ठीक नह है।’’
कु छ देर दोन एकटक उस समािध थ िपशाच को देखते रहे। धीरे -धीरे सूय
अ त हो गया। चार दशाएँ अँधकार से भर ग । पर तु वह िपशाच वह उसी कार
िन ल बैठा रहा। कु छ देर म दोन ि उठकर गुफा म गए तो यह देखकर उनके
आ य का पारावार न रहा क गुफा म वण-दीप जल रहे ह और जलते ए सुगि धत
तेल क महक से सारी गुफा सुरिभत है। साथ ही उ कृ गरमागरम ताज़ा भोजन का
थाल भरा रखा है, िजसम अनेक कार के बने ए मांस, िम ा और पकवान भरे ह,
मसालेदार शराब से भरे ए म -पा तथा शयन के िलए श या भी तैयार है।
अमीर ने आ य से कहा, ‘‘ले कन इसका या मतलब है, या हम इसके शाही
कै दी ह, क व पर खाना-िब तर िमलेगा, मगर वह बात न करे गा ?’’
साथी ने कहा, ‘‘नह , इसका मतलब यह है क हम झटपट खाना खाकर कु छ
िव ाम करना चािहए। फर वह बात करे गा।
इस पर दोन ि खाने म जुट गए। भोजन समा कर कोमल श या पर
आराम करने लगे। दोन अपने-अपने िवचार म खोए थे। थकावट के कारण उस सुख-
श या पर उ ह झपक आने लगी। अभी झपक आई ही थी क उस दै य क आकृ ित
गुफा के भीतर से आती ई नज़र आई। दोन ि य ने दृि -िविनमय कया। इसका
यह अिभ ाय था क हम िजस पु ष को गुफा के बाहर देख आए ह, वह भीतर से कै से
िनकला आ रहा है।
पर तु बात करने का अवकाश नह िमला। उस पु ष ने व - विन से कहा,
‘‘आ सुलतान।’’
इसपर दोन पु ष तलवार हाथ म िलए उसके पीछे गुफा के भीतरी भाग म
घुस गए। भीतर गुफा ब त टेढ़ी-मेढ़ी होकर दूर तक चली गई थी। िपशाच-राज के हाथ
म एक दीपक था। उसके म द काश म के वल आगे का माग ही दीखता था, गुफा म और
कहां या है यह कु छ नह । कु छ दूर तक चलकर वह क गया, आगे नीचे उतरने क
सी ढ़याँ थ । उनपर दीपक का काश डाल उसने सुलतान से नीचे उतरने का संकेत
कया। सुलतान ने साथी क ओर देखा। इसपर िपशाच ने कहा, ‘‘डरपोक, डरता है।’’
सुलतान ने तलवार ऊँची क और सी ढ़याँ उतर गया। उसके बाद उसका साथी
भी। उ ह ने देखा, दीपक हाथ म िलए िपशाच भी आ रहा है। सी ढ़याँ उतरकर वे एक
श त दलान म प च ँ ,े जो ब मू य प थर से बड़ी कारीगरी के काम का बनाया गया
था। वहाँ खूब रोशनी हो रही थी। दीपाधार पर अनेक दीप सुगि धत तेल के जल रहे
थे। िचकने फश पर ऐसी सफाई थी क पैर रपटते थे। सामने महामाया क िवशाल मू त
थी। इस मू त के व ालंकार र ज टत थे। मुख अितभ था। अ य-पा -नैवे सब
वण-पा म धरा था।
दोन ि आ य से च कत हो यह दृ य देखने लगे। फर उ ह उस िपशाच
का यान आया। उ ह ने पीछे घूमकर देखा तो वह कह नह था। साथ ही साथ िजस
ार से अमीर वहाँ आया था, उस ार का भी कह नामोिनशान न था। वहाँ से बाहर
जाने का दूसरा कोई ार भी न था। उसने कहा, ‘‘यह तो हम चूहद े ानी म ब द हो गए।’’
‘‘मगर चूहदे ानी आरामदेह है, आगे या होता है यह देखना चािहए। यहाँ हम
िसफ वह ब द करने को लाया होता तो यह रोशनी और ठाठ-बाट न होते। अव य ही
यहाँ हम कोई अनहोनी चीज़ देखने को िमलेगी।’’
वह यह कह ही रहा था क अक मात् ब त-से वा बज उठे । और स पूण
वातावरण मोहक-संगीत क तान से आपूण हो गया। अभी इनके आ य क समाि भी
नह ई थी क आ य म आ य यह आ क मानो पृ वी को फोड़कर मू त के चरण से
एक के बाद एक सु दरी षोडशी बालाएँ िनकल आ । कु ल नौ थ । वे नख से िशख तक
र ाभरण से लदी थ । वे प-लाव य म भी अि तीय थ । उनके उ त उरोज पर
मोितय क कं चुक कसी थी। मकड़ी के जाले के समान महीन उ रीय से छनकर उनक
पछटा देखने वाले को उ म कर रही थी। उनके पैर म वण क पायल थ , वे ताल-
वर पर चरणाघात करके मोहक नृ य करने और को कल क ठ से संगीत सुधा बरसाने
लग । उनका प, वैभव, शृंगार और उ म कर देने वाला नृ य देखकर अमीर आपा खो
बैठा। उसने साथी से कहा, “हज़रत ! अब किहए, यह सब या िज ाई करामात नह है
?’’
साथी ने िसर िहलाकर धीरे से कहा, ‘‘हो सकता है।’’
दोन चुपचाप दृ य देखते रहे। बालाएं घेरा बनाकर देवी के आगे गरबा नृ य
करने और गाने लग । उन सबके हाथ म एक-एक वणथाल था। थाल म विलत
आरती थ । अमीर, गज़नी के सा ा य और अपनी सोलह िवजय या ा को भूलकर
इस अलौ कक प और यौवन के ढेर को देख म त हो गया।
इसी समय उसके कान म व -गजन जैसा घोर श द सुनाई दया। संगीत-नृ य
तुर त ब द हो गया। नृ य करने वाली बालाएँ देवी के चरण म िगर ग ।
ऐसा तीत आ जैसे देवी ने कया, और िपशाच ने उ र दया।
‘‘यह कौन ?’’
‘‘िवनाश का अ दूत, गज़नी का महमूद।’’
‘‘इस अगम- े म य ?’’
‘‘महाकाल क ेरणा से।’’
‘‘कै सी ेरणा ?’’
‘‘िविध भंग ई, देवप न िवन हो।’’
‘‘सो हो।’’
‘‘और गु पद ?’’
‘‘गु पद का या ?’’
‘‘ स मयी महामाया, गंग सव का गु पद आ। अब गु पद का या हो
?’’
‘‘ भ हण करे ।’’
‘‘जय अ बे !’’
नेप य म दु दुभी गड़गड़ाने लगी, जैसे लय-मेघ गरज रहे ह ।
युवितयाँ उठकर देवी के सम नतमुख खड़ी हो ग । अमीर ने सुना, जैसे
िपशाच उसके िसर पर बोल रहा है।
‘‘सुना ?’’
‘‘सुना।’’
‘‘समझा ?’’
‘‘समझा।’’
‘‘करे गा ?’’
‘‘क ँ गा।’’
‘‘तो ला िवनाश’’ िपशाच ने गरजकर कहा।
एक सु दरी आगे बढ़ी, उसने नैवे से एक वणघट उठा िलया, उसे लेकर वह
अमीर के िनकट आई। िपशाच का वर फर सुनाई दया, ‘‘ साद ले।’’
युवती ने सोने के याले म म भरकर एक-एक दोन को दया। दोन उसे पी
गए।
मोहिन ा टू टने पर दोन ने देखा, न वह गुफा है, न वह थान। वे िहर या नदी
के उस पार रे ती म पड़े ह उनके अ पास ही चर रहे ह। दोन उठकर आँख मलने लगे।
नदी के उस पार, अघोर वन क काली च ान भात के सूय म चमक रही थ । उनक
तलवार उनके िनकट पड़ी थ ।
अमीर ने कहा, ‘‘ या यह वाब था ?’’
‘‘ वाब कै सा, कल इसी व या हमने नदी नह पार क थी ?’’
‘‘क थी।’’
‘‘और इ ह घोड़ पर उस पहाड़ी तक नह गए थे ?’’
‘‘गए थे।’’
‘‘तो अब ?’’
‘‘बात हो गई, चिलए अब।’’ दोन ने अपने-अपने अ बटे र क राह पर
छोड़े। चलने से थम अमीर ने एक कु टल दृि खाई के उस पार सोमनाथ महालय के
गगनचु बी िशखर के ऊपर फहराते भगवा वज पर फक । मि दर म नगाड़े बज रहे थे।
महाकाल–मोचन
का तक क महा अमाव या थी। आज कालभैरव क मू त को समु - ान के
िलए अंधगुहा से िनकाला गया था। यह साधारण घटना न थी। इससे आसपास के ाम
तक म खलबली मच गई थी। ितवष ही ऐसा होता है। का तक क अमाव या
महाकाल-राि मानी जाती है। उसे त -साधक यमदं ा-ग वर कहते ह। इसी दन वष
म एक बार अ राि को कालभैरव समु ान करते ह। और इसी समय वष म एक
बार सवसाधारण को कालभैरव के दशन का सौभा य ा होता है। इसी से उसके दशन
को ब त-ब त लोग उ सुक रहते ह, पर तु भयभीत भी कम नह रहते। लोग का
िव ास है क इस दन कालभैरव िजसपर स हो जाएँगे उसके सब संकट त काल
कट जाएँगे। पर इसके िलए उसे भ से म लेना पड़ता है, और वह म उसे उस
समय तक िनर तर मौन होकर जपना पड़ता है जब तक कालभैरव को ान कराकर
अंधगुहा म ब द न कर दया जाए। एक ण को भी ह ठ ब द ए क मृ यु आ सकती है।
यह कोरी क पना न थी। हज़ार लोग के देखते-देखते इस अवसर पर अनेक जन, पट से
मर गए थे। इसी से लोग भय, औ सु य और आशंका के झूले म झूलते ए कालभैरव के
दशन को आते थे। लोग के सब काम-काज ब द थे। सांझ से ही पु वितय ने अपने घर
के ार ब द कर िलए थे। और अपने-अपने ब को घर के भीतर ताले म ब द कर रखा
था। अिधक साहसी जन ही भ से म लेकर महाकाल भैरव के दशन को आते थे।
फर भी काफ भीड़-भाड़ थी। हज़ार ताि क भाँित-भाँित के कवच धारण कर म -
पाठ कर रहे थे। उनके के वल ह ठ िहल रहे थे, श द नह होता था, न कोई एक-दूसरे क
ओर देख रहा था।
ठीक अ राि के समय महाकालभैरव क मू त अंधगुहा से बाहर िनकाली
गई। मू त बड़ी िवशाल काले प थर क थी। उसक आकृ ित बड़ी िवकराल थी। मू त का
पेट ब त भारी था। वह बैठी मु ा म थी। मू त क आँख के बड़े-बड़े पलक नीचे झुके ए
थे, जो बड़े डरावने लग रहे थे। मोटे-मोटे ह ठ म दो नुक ले दाँत बाहर चमक रहे थे।
मू त जंज़ीर से जकड़ी ई थी, िज ह एक हज़ार मनु य पकड़े ए थे। लोग का िव ास
था, य द ऐसा न कया गया तो मू त दास व से मु होकर भाग जाएगी और सब लोग
का िव वंस कर डालेगी। मू त के चार ओर अ तेवासी ताि कगण नंगी तलवार िलए
चल रहे थे। सबके ह ठ िहल रहे थे, और वे सब कवच का पाठ कर रहे थे। बालक और
ी का तो वहाँ िच न भी न था। एक ण को भी कसी के ह ठ क नह रहे थे। अनेक
ताि क दूर देश से या ा करके आए थे। इन साधक के हाथ म एक पतली-सी लकड़ी
थी, उसपर रं ग-िबरं गे धागे िलपटे ए थे। येक धागे म एक-एक गाँठ लगी थी। उन
गाँठ म भूत- ेत बंधे थे। इन भूत- ेत को उ ह ने वष-भर म म -बल से आवेिशत
लोग पर से उतार-उतार कर बाँधा था। ये दु कृ ित के भूत- ेत ब धा लोग पर,
िवशेषकर ि य और ब पर, आ मण करते ह। सु दरी युवितय पर वे मोिहत हो
जाते ह। वे ि याँ जब आवेिशत होती ह तब हँसती, रोत , बकत , िच लात और
उ म क भाँित चे करके बेहोश हो जाती ह। आज भी ि याँ ऐसी अव था को ा
होती ह। कभी-कभी वे काम करती-करती एकदम मू छत हो िगर पड़ती ह। आजकल
इसे िह टी रया रोग माना जाता है, पर तु तब इसे ह-बाधा या ेतावेश समझा जाता
था। और िच क सक के थान पर ओझा ताि क बुलाए जाते थे। ये म -बल से ेत को
इन धाग से बाँध लाते थे तथा कालभैरव के स मुख इ ह जलाते थे। इसके िलए उ ह
भारी-भारी दि णा िमलती थी तथा यह इलाज आजकल के इलाज से अिधक खच ला
था। इस समय सैकड़ ताि क हाथ क लकिड़य म अनिगन भूत- ेत-बैताल को बाँधे,
म पाठ से उ ह जलाकर वशीभूत कए लाए थे, और उ ह जलाकर आवेिशत जन का
पातक सदैव को काटते जा रहे थे। पर तु ये भूत- ेत बड़े छिलया, बड़े मायावी होते ह।
तिनक एक साँस का अवसर पाते ही छू टकर भाग िनकलते ह और सीधे आवेिशत ी-
पु ष के शरीर म िछप बैठते ह। उनके िलए इन ओझा जन को फर से य करना
पड़ता है; फर उ ह इन धाग म और भी कसकर बाँधना पड़ता है।
इतनी सावधानी से यह तापी देवता और उसके गण भूत- ेत आ द बाँध कर
ले जाए जा रहे थे। फर भी यह भय बना आ था क उनम से कोई छू टकर भाग न
िनकले।
इतने दन अदृ रहने के बाद आज एकाएक भ कट ए थे। वे शरीर पर
भ म लपेटे, ि पु लगाए, जटा िबखेरे, भारी शूल हाथ म िलए, ने ब द कए, देवता
के आगे-आगे एक खुली पालक म चल रहे थे। उनका अंग, जड़ के समान िन प द था।
के वल ह ठ िहल रहे थे। उ ह देख-देखकर लोग भय, िव मय और ा से हाथ जोड़कर
नम कार कर रहे थे।
समु -तट पर प च ँ कर कालभैरव को ान कराया गया। उनपर र -च दन
और र पु प चढ़ाए गए और य -म डप रचकर अघोर ताि क िविध से रौ य
कया गया। यहाँ मोती का संहासन बनाकर भैरव क थापना क गई थी।
अंधकारमयी अ राि थी। चार ओर का दृ य अ भुत और भयानक रस का िम ण
था। ठौर-ठौर पर ताि क जन बकरा, कु कुट, भसा, सुअर आ द बिल िलए खड़े थे।
एक महाकृ णवण ि लाल लंगोटा कमर म लपेटे, बड़ा भारी खा डा हाथ म िलए
र के क चड़ म खड़ा था। उसके आगे एक लकड़ी धरती म गड़ी थी, जो डेढ़ हाथ के
लगभग ऊँची थी। उसम एक छेद था तथा ऊपरी भाग म एक गढ़ा था। लोग अपने-
अपने पशु को ख चते-धके लते, कोई गोद म िलए उसके पास आते। एक ताँबे क मु ा
पा र िमक देते तथा पशु क गदन लकड़ी के गढ़े म फँ साकर लोहे क छड़ अटका देत।े
उसी ण भारी खांडा पड़ता; िसर िछटक कर पृथक हो जाता और धड़ छटपटाने
लगता। िसर को अधर, एक जालीदार छ के म थम ही ओट िलया जाता था। गहरे
लाल रं ग के र क धार बहती। और िसर देवता के चरण म अ पत होता, तथा पशु के
धड़ को घसीट कर साधक ले जाते। उसे उधेड़ते, ख ड-ख ड करते।
दूर तक समु -तट पर यही हो रहा था। इधर-उधर, यहाँ-वहाँ सैकड़ जन दो-
दो, चार-चार िमलकर पशु को उधेड़ तथा उनके अंग-अंग काट-काटकर, मांस टोकरी
म भर-भर कर ले जा रहे थे। काल भैरव के स मुख पशु के कटे ए िसर का ढेर लग
गया था तथा म क नदी बह रही थी। लोग साद का म पी-पीकर उ म हो रहे
थे। वे र का टीका म तक पर लगा, गटागट छककर घड़े क म पी, कवच म पाठ
करते-करते कोई-कोई उ म क भांित उछल-कू द करने, कसी श से अपने ही अंग
पर हार करने लगे थे, और कोई क ं ृ ित करके मू छत हो पृ वी पर पड़े थे।
एक मुख ताि क िविच र वण व पहने नर-मु ड क माला गले म
डाले, य कु ड क धधकती अि के स मुख खड़ा था। उसके हाथ म एक म -पूत
मायावी खा डा था। जो लोग साल भर के भूत- ेत को धागे म बांधकर लाए थे, वह
उन डि डय को एक-एक करके ओझ से लेता, कु छ बुदबुदाकर म पाठ करता और
फर हवा म अ भुत रीित से खा डा घुमाता, तब उन भूत- ेत से भरे धाग से िलपटी
ड डी को आग म झ क देता, ओझा स तु होकर वहाँ से हट जाता, फर दूसरा आगे
आता।
इसी कार पौ फटने तक यह काय होता रहा। फर सूय दय से थम ही
महाकालभैरव को उसी कार जंज़ीर से बाँध लाकर अंधगुहा म प च ँ ा दया गया।
ताि क जन मि दर के ांगण म जहाँ-तहाँ बैठ म पाठ करने लगे। भ महाकाल
क मू त के साथ ही गभगृह म चले गए। इसी समय सोमनाथ महालय म भातकालीन
दु दुभी बजी।
कृ ण वामी
कृ ण वामी बड़े भारी ताि क और म -शा ी िस थे। वे सोमनाथ
महालय के अिधकारी थे, अतः अिधकारी जी के ही नाम से िस थे। पर तु उनका
अिधक समय म -त क िसि म ही जाता था। िस था क वह ब त-से भूत- ेत-
बैताल के वामी ह तथा उ ह कण-िपशािचनी िस है। मारण-मोहन- उ ाटन-
वशीकरण क सब िव ाएँ वे जानते थे। वभाव उनका ब त सौ य और हँसमुख था।
इससे लोग उनसे डरते न थे। उनसे पाटन के ब त लोग का काम िनकलता था। अपने
भूत- ेत-वैताल क सहायता से वे बात-क -बात म लोग के असा य काम कर डालते
थे, उनके श ु का िवनाश कर डालते थे। िजसपर उनका कोप छा जाता था, उसक
खैर नह थी। या तो वह खून थूक-थूक कर मर जाता या उ म हो जाता। कृ ण वामी
योितष िव ा म भी पारं गत थे। भूत-भिव य का सारा ान उ ह था। पीला-पीला
वण-द भ और चाँदी का िस ा उ ह ब त ि य था। सोना देकर उनसे भला बुरा सब-
कु छ कराया जा सकता था। ब त से गजू लोग उ ह घेरे रहते थे। सोना भी खूब बरसता
था। महालय से भी उ ह उिचत-अनुिचत ब त आय थी। अिधकारी थे, ब त अिधकार
उ ह था। सव के बाद मि दर के ब ध, आय- य, व था क सारी िज मेदारी
कृ ण वामी के ही ऊपर थी। लाभ के िलए उिचत या और अनुिचत या, इसक िच ता
कृ ण वामी नह करते थे। बस लाभ होना चािहए, यही एक उनके जीवन का मुख
येय था। लाभ ही लाभ से उनके पास ब त-सा वण भ डार एक हो गया था।
कृ ण वामी क प ी का नाम था रमाबाई। रमाबाई ब त भारी-भरकम थ ।
एक क या-र को ज म देकर फर उनक कोख सूख गई थी। कृ ण वामी के म -त ,
भूत- ेत कोई भी इस मामले म तरी न ला सके । रमाबाई का वभाव तीखा और उ
था। रमाबाई क उ ता के आगे कृ ण वामी के भूत- ेत-वैताल सभी हार खाते थे, कसी
क आन वह मानती न थी। कभी-कभी तो वह खीझकर कृ ण वामी को उ ह के मुँह पर
पाख डी कह देती थी। रमाबाई का शरीर एक गठरी-सा तथा चाल हिथनी के समान
थी। प ी क चाल को देखकर कभी-कभी कृ ण वामी उ ह गजगािमनी कहकर ब त
लाड़- यार से लगी-िलपटी ठठोली कया करते थे। पर तु जब यह गजगािमनी अपनी
गोल-गोल आँख ल क भाँित घुमा- फराकर, कृ ण वामी को घूरकर क ं ारती, तो वे
झटपट ‘ , ल चामुंडायै फट् ’ आ द म का जाप करने लगते थे।
कृ ण वामी क एक बाल-िवधवा पु ी भी थी। उसका नाम था शोभना।
शोभना शोभा क खान थी। आयु अभी उसक के वल स ह वष क ही थी। उसका रं ग
च पा के ताजे फू ल के समान अथवा आम के फू ले ए बौर के समान अथवा के ले के
नवीन प े के समान था। सातवाँ वष लगते ही अधम के भय से कृ ण वामी ने ल
शोधकर उसका िववाह कर दया था। पर आठ वष क आयु पूरी होने से थम ही वह
िवधवा हो गई। िवधवा होने पर भी वैध क आन वह मानती न थी। वह हर समय
खूब ठाट-बाट का शृंगार कए रहती। आँख म अंजन, दाँत म िम सी, बाल म ताज़े
फू ल का जूड़ा, पैर म महावर, ह ठ म पान और हाथ म मेह दी आठ पहर आप
उसक धज म देख सकते थे।
िविध-िनषेध करने पर, समझाने-बुझाने पर वह सबक सुनी-अनसुनी करके
नृ य करने और हँसने लगती थी। उसे इस मु ा म देख कृ ण वामी आँख म पानी भर
आने पर भी हँस पड़ते थे। पर रमाबाई ोध से अपनी गोल-गोल आँख खूब िव तार म
फै लाकर इधर-उधर घुमाने लगती थ । शोभना को उसके िपता ने पढ़ाया-िलखाया था।
वह कु शा बुि थी। गु सा उसे भी खूब आता था। गु सा आने पर वह माता-िपता
कसी क भी आन नह मानती थी। सब िमलाकर वह एक सजीव ‘कनक-छु री सी
कािमनी’ थी, अथवा फू ल से लदी-फदी एक डाल।
रमाबाई शकु न- व और सुहाग का ब त िवचार करती थी। शोभना उसक
इकलौती बेटी थी, यह तो ठीक है; पर िवधवा होने के कारण वह ातः काल उठते ही
उसका मुँह देखना अशुभ समझती थी। वह अपने सुहाग का जब शृंगार करती, तब भी
वह िवधवा का दशन नह करना चाहती थी। पर शोभना जैसे उसे िचढ़ाने के िलए
उसक आँख के आगे आ ही जाती थी। माँ के ोध, फटकार पर वह मुँह िचढ़ाकर भाग
जाती थी। वह कहती थी, ‘‘मुझे जब न देखना चाहो तो आँख ब द कर िलया करो।’’
अब संग आने पर अनुपि थत बात भी कहनी पड़ी। ब त दन ए,
कृ ण वामी ने एक शू ा दासी को मोल खरीदा था। दासी युवती और सु दरी थी। स ती
िमल गई थी। रमाबाई के िलए ही दासी खरीदी गई थी, पर रमाबाई उस दासी पर
ब त कड़ी दृि रखती थी। कृ ण वामी िजस दन उसपर कु छ कृ पादृि करते, उस दन
उसे आहार-भोजन िमलना भी दूभर हो जाता था। कृ ण वामी कभी ब त िछपाकर भी
बड़ी सावधानी से उस दासी क ओर देखकर हँसते या मु कराते तो वह भी रमाबाई क
गोल-गोल आँख से िछपता नह था। उस मु कराने का सांगोपांग मूल कारण रमाबाई
को बताए िबना कृ ण वामी का छु टकारा न था। कृ ण वामी कभी-कभी इस दासी से
सेवा कराते और रमाबाई उसे देख पाती तो उसका झ टा पकड़ कर सारे घर म घुमाती।
पर तु ब त य करने, संभाल करने, कड़ी दृि रखने पर भी न जाने कब कै से उस शू ा
दासी को गभ रह गया। ब त तूम-तड़ाम करने पर भी वह गभ िगराया नह गया। दासी
ने एक सु दर पु र को ज म दया।
उसी समय पु ी शोभना का ज म आ। वह दासी-पु भी शोभना के साथ
खेल-खाकर बड़ा होने लगा। शू ा दासी के जारज पु के साथ अपनी लड़क का खेलना-
खाना रमाबाई को चता न था, पर तु पु को ज म देकर वह दासी बड़ी ढीठ हो गई
थी। ब धा पु के िलए माल कन से उलझ पड़ती थी। कृ ण वामी भी उससे न जाने
य दबते और भय खाते थे। बालक ब त ही सु दर और शुभ ल ण से यु था।
कृ ण वामी उसे मन ही मन यार करते थे। पर वे पूरे िन ावान ा ण थे। शू के हाथ
का छु आ जल पीना तो दूर, शू को दूर से देख पाने पर भी वे ान करते थे। इसिलए
उस बालक को गोद म बैठाकर यार नह कर सकते थे। ऐसे िन ावान पित पर भी
रमाबाई उनका और शू ा दासी का कु छ गड़बड़ स ब ध होने का स देह करती ही रहती
थी। ब त बार वह अपनी गोल-गोल आँख घुमाकर पित से पूछती–‘‘इस बालक क
आँख तु हारी-जैसी य ह? बताओ तो !’’ तब कृ ण वामी खीझकर कहते, ‘‘तु हारी-
जैसी य नह ह, तु ह कहो।’’ इस पर रमाबाई ब त धूम-धाम करती, और शू ा
दासी मुँह िछपाकर हँसती।
इतना होने पर भी वह दासी रमाबाई क बड़ी सेवा करती थी। उसके िबना
उनका काम चलता न था। बालक शोभना के साथ ब त िहल-िमल गया। कृ ण वामी ने
शोभना को पढ़ाना आर भ कया तो वह बालक भी पढ़ने लगा। वह कृ ण वामी के
िनजी क म नह आ सकता था। वे उसे पढ़ा भी नह सकते थे। पर तु इससे या। वह
क से बाहर दूर बैठकर पढ़ता, समय पर शोभना उसे पढ़ने म सहायता करती। बालक
बुि का चैत य और कु शा था। शोभना उसके िबना ण-भर भी नह रह सकती थी।
माता-िपता का कोई आदेश न मान, वह सदा उसक सुख-सुिवधा का यान रखती।
अपना आहार उसे िखलाती। बाद म शोभना का याह आ। वह िवधवा ई, तो यह
बालक उसका और भी सहारा हो गया। शोभना ने जाना भी नह क वैध या है।
रमाबाई को पु ी के साथ उस दासी-पु क इतनी घिन ता चती न थी। पर शोभना
िनषेध करने पर रो-रोकर घर भर देती, ठती। बाल-िवधवा पु ी के दुःख का िवचार
कर रमाबाई तरह दे जाती।
दन बीतते चले गए और शोभना और वह दासी-पु धीरे -धीरे यौवन क
देहरी पर आ प च ँ ।े अवसर पाकर भगवान् कु सुमायुध ने दोन के मन म छू म तर कर
दया तो दोन पर पर गाढ़ ेम म आस हो गए। इसी समय अचानक वह दासी मर
गई। इस दुःख पर दोन ने संयु आँसू बहाए। शोभना अब और भी अिधक उसे यार
करने लगी। रमादेवी क आँख से यह यार का लेन-देन िछपा नह रहा। उसने दोन क
घिन ता म बाधा उपि थत क । उसने पु ी क ताड़ना क और बालक क भी। ताड़ना
ब त बढ़ गई और अ त म अस हो गई। बालक घर से बाहर रहने लगा।
इन दन भास म एक द डी बाबा रहते थे। बाबा ब त बूढ़े थे। वे ाकरण,
योितष और दशन के भारी पि डत थे। संयोगवश बालक क द डी बाबा से मुठभेड़ हो
गई। उसे अ याचार-पीिड़त और अनाथ जान, बाबा ने उस पर दया क । उसे पढ़ाना-
िलखाना शु कया। बालक ाकरण, का और योितष मनोयोग से पढ़ने तथा
द डी बाबा क सेवा करने लगा। घर से अब उसका स ब ध भोजन और शयन का रह
गया। वह चोर क भाँित ब त देर से रात को आता और ठ डा-बासी जो िमलता,
खाकर पड़ रहता। अपने पढ़ने क तथा द डी बाबा के साथ आने-जाने क बात उसने
कसी ने नह कही। के वल शोभना से कोई बात िछपी न थी।
समय आगे बढ़ता गया। शोभना को उसका घर से दूर-दूर रहना अिधक और
अिधक खलने लगा। वह अनुनय-िवनय से उसे घर म बाँध रखने क ब त चे ा करती।
एक दन वह भगवान सोमनाथ के दशन को महालय के भीतरी पौर म चला गया, तो
पुजा रय ने ध े देकर उसे िनकाल दया। इस बात पर शोभना ब त रोई। सं ेप म,
ा ण के घर म शू युवक का रहना अस भव हो गया। अपमान और अव ा सहते-
सहते उसका मन िव ोह और ोध से भर गया। एक दन उसे म पढ़ता देख
कृ ण वामी ु हो तलवार लेकर उसे मारने दौड़े। अ ततः उसे शोभना से िवदा लेनी
पड़ी और वह शोभना से िवदा लेकर, उसे ब िवध आ ासन देकर, उसे आँसु से भरी
छोड़कर घर से चल पड़ा आ। कृ ण वामी ने मन का मोह िछपा, राजिनयम का आ य
िलया, कहा, ‘‘दासी का पु त दास भागेगा कहाँ, उसे खोजकर द ड दूगँ ा।’’ पर तु
रमाबाई ने उ ह गोल-गोल आँख से घूरकर कहा, ‘‘पाप कटा! घर म जवान िवधवा
बेटी है। चला गया, अ छा ही आ।’’
पीरो–मु शद
युवक का नाम उसक माता ने देवा रखा था, पर अब वह अपना नाम
देव वामी बताता था। अब वह िनबाध प से द डी वामी के पास रहने और
शा ा यास करने लगा। पर तु उसका यह आसरा भी देर तक रहा नह । वृ द डी
वामी का जब एक दन अक मात वगवास हो गया, तो उसके शोक और िनराशा का
अ त नह रहा।
उ ह दन सोमप न से बारह कोस दूर बीथल ाम के िनकट समु -तट से
थोड़ा हटकर वृ के झुटमुट म एक साधारण झ पड़ी बनाकर एक मुि लम फक र
आकर एका तवास कर रहे थे। वृ फक र बड़े िव ान थे। वे के वल अरबी भाषा म बात
करते थे। कसी से िमलते न थे। न कसी का दान हण करते थे। उनके पास ब त सोना
था। ामीण जन को, जो ब धा उनके पास जा िनकलते थे, वे अनायास ही वणदान
देते थे। लोग म वे क िमयागर साधु िस थे। पर वभाव के वे बड़े खे थे। स ाह
तक वे िबना खाए-िपए मूढ़वत् पड़े रहते। कभी-कभी कई-कई दन तक अरबी भाषा म
कु छ िनर तर िलखते रहते। उस समय वे कसी से बोलते नह थे। अपनी एका तता म
िव डालने पर वे ु हो जाते थे। स होने पर वण देते थे। पर तु वयं वे अ य त
िनरीह-भाव से रहते थे। के वल एक बार दो ट ड़ अपने हाथ से बनाकर खा लेते थे।
देवा भटकता आ इन फक र के पास जा प च ँ ा और उनका मुरीद होकर वह
रहने लगा। सब िववरण सुनकर तथा उसका बिल और सतेज शरीर देख, एवं बुि -
िव ा से स तु होकर फक र ने उसे रख िलया। फक र ने उससे िह दु तानी बोलना
सीखा, उसे अरबी पढ़ाई। धीरे -धीरे उसक सेवा, िवनय और स गुण से स हो वे
उसे पु वत् यार करने लगे। कु छ दन बाद युवक ने इसी फक र के हाथ मुि लम धम
अंगीकार कर िलया। फक र ने उसका नाम रखा, ‘फतह मुह मद।’’ दोन पीरो-मु शद
क भाँित झ पड़ी म रहने लगे।
यह वृ मुि लम फक र वा तव म गज़नी के िव यात िव ान अलब नी थे।
जो अमीर के आदेश से सोमनाथप न क गितिविध देखने छ वेश म यहाँ आ बैठे थे।
मुसलमान होने पर युवक पर भी यह भेद खुल गया। छ वेशी सुलतान का आना और
पीर के साथ अगम अघोर वन जाना भी उससे िछपा नह रहा। अघोर-वन म जाकर भी
जीिवत लौट आने पर उसक ा पीर पर ब त बढ़ गई। वह आ य से अ य त िवमूढ़
हो गया। अवसर पाकर शोभना के ित अपनी आसि भी उसने पीर को बता दी, कु छ
भी नह िछपाया। वृ फक र ने उसे आ ासन दया, ‘‘धीरज धर, व आने पर
शोभना तेरी होगी। ले कन इसके िलए तुझे तलवार क धार पर चलकर उसके पास
प च ँ ना होगा।’’ इतना कहकर फक र ने एक ब मू य िवकराल तलवार युवक को दी।
युवक ने तलवार म तक से लगाकर चूम ली। फक र ने खुश होकर कहा, ‘‘अब तू अपने
को अमीर का एक िसपहसालार समझ और हर तरह अपने को इस यो य बना।’’ इतना
कहकर, फक र ने उसे ब त वण देकर कहा, ‘‘घोड़ा और हिथयार खरीद और
िसपहसालार क तरह रह।’’ फतह मुह मद खूब ठाठ से रहने लगा। वृ फक र जैसे
ौढ़ िव ान् थे वैसे ही तलवार के भी धनी थे। उ ह ने युवक को घुड़सवारी और तलवार
के फन म कु छ ही दन म अि तीय बना दया। वह प ा यो ा और शहसवार बन गया
तथा उस दन क ती ा करने लगा, जब इन घम डी िह दु क छाती को अपनी
तलवार से चीर कर अपनी ि यतमा शोभना को ा करे गा। अपमान क आग और
यार क तड़प ने उसे संह के समान परा मी और साहसी बना दया।
अवसर पाकर पीर क आ ा से वह गु प से शोभना से िमला। उसे देखकर
शोभना जी उठी। उसके ब मू य व , श और अ को देखकर आ य से िवमूढ़ हो
गई। उसने कहा, यह सब उसके पीर क मिहमा है। उसने यह भी बता दया क वह
मुसलमान हो गया है और शी गज़नी के सुलतान क रकाब के साथ रहकर वह
सोमनाथ का भंग कर, इसी तलवार के जोर पर शोभना को लेकर रहेगा। उसने यह भी
कह दया क वह अमीर गज़नी का एक िसपहसालार है।’’
शोभना कु छ समझी, कु छ नह समझी। वह उसक बात से भीत, च कत भी
ई, स भी। वह इस बात पर सहमत थी क उसके साथ पित-प ी क भाँित जैसे भी
स भव हो, वह रहे।
फतह मुह मद ने उसे एक मु ी भर सोना देकर कहा, ‘‘यह मेरे पीर ने तेरे िलए
दया है। अब जब-जब म आउँ गा, इतना ही सोना साथ लाउँ गा। मेरे पीर औिलया ह,
क िमयागर ह। वह सोने का पहाड़ बना सकते ह।’’
सोना पाकर और बात सुनकर शोभना का एक-एक र -िब दु नाचने लगा।
उसे भलीभाँित यार कर, उसे सब भाँित तस ली दे, फतह मुह मद िवदा आ। शोभना
आन द िवभोर हो गई।
अली िबन उ मान अलहज़वीसी
लाहौर क अनारकली के उस छोर पर जहाँ इस समय नीला गु बज है, उस
थान पर एक खानकाह था। इसम िस अरबी िव ान संत अली िबन उ मान
अलहज़वीसी िनवास करते थे। यह त वदशन के िस थ ‘कशकु ल-महजूब’ के
रचियता थे। हज़रत अली िबन उ मान का शरीर काला, ठगना और वज़नी था। उनक
नािभ तक लटकती सफे द दाढ़ी, उनक ग भीरता को ब त बढ़ाती थी। अपने यौवन
काल म वे एक बिल पु ष रहे ह गे। िस था क वे एक प च ँ े ए संत थे और अपने
पूव जीवन म एक भारी कबीले के सरदार भी थे। पर तु वे अपने स ब ध म कभी एक
श द भी नह कहते थे। वे शु अरबी भाषा म भाषण करते थे। पर तु ब त आव यकता
होने पर टू टी-फू टी िह दी भी बोल लेते थे। खानकाह क ी थी और उसके चार ओर
ब त-से हरे -भरे पेड़-पौधे लगे थे। रात- दन इस फ़क र के पास आने-जाने वाल का
मेला लगा रहता था। लाहौर म उनके ब त शािगद थे। उनम िह दू भी थे और
मुसलमान भी। सुबह-शाम यह संत उनसे त व-दशन क बात करते और दन-भर मौन
पड़े रहते। भ गण आते, बैठते, दशन करते और चले जाते। हज़रत अली क उ स र
को पार कर गई थी। यह िस था क लाहौर का हा कम उनका मुरीद है, इस कारण
भी उनक ब त ित ा बढ़ गई थी।
स या गहरी होती जा रही थी। दो-चार भ अब भी साधु के पास बैठे
धमचचा कर रहे थे। उनम िह दू भी थे और मुसलमान भी। धीरे -धीरे एक-एक करके
लोग उठने लगे। अभी रात होने म कु छ देर थी। इसी समय एक परदेशी सवार खानकाह
के दरवाजे़ पर उतरा। उसने आगे बढ़कर इस साधु को छू कर हाथ आँख से लगाया।
आग तुक को देखकर वृ फ़क र अि थर हो गए। उनका संकेत पाकर एक िश य ने सब
मनु य को दूर कर दया। एका त होने पर फ़क र ने शु अरबी भाषा म कहा–
‘‘आप या अके ले ही ह ?’’
‘‘नह , मेरा घोड़ा और तलवार भी है !’’ आग तुक हँसा।
‘‘अलह दुिल लाह ! सुलतान क यही िह मत उसक फतह क वाइस है।’’
‘‘और आप जैसे बुज़ग का साया भी। मगर इस बार क मुिहम मामूली नह
है।’’
‘‘यह तो अमीर गज़नी का क मा नह ।’’
‘‘यह महमूद के दल क बात है हज़रत !’’
‘‘ या कोई नई बात देखने म आई ?’’
‘‘एक नह , तीन-तीन !’’
‘‘व लाह, तो या ये बात ऐसी ह िजससे अमीर गज़नी का दल दहलता है ?’’
‘‘बेशक हज़रत !’’
‘‘मसलन ?’’
‘‘वह िजन का बादशाह, ग़ैबी ताकत और करामात का मािलक !’’
‘‘आपने देखा ?’’
‘‘मुझे उसका मेहमान होने का फ़ है।’’
‘‘मेहमान ?’’
‘‘और शायद आदमज़ाद म मुझ फक र को ही यह फ़ हािसल है।’’
‘‘ या यह कु नह ।’’
‘‘म नह जानता, हजरत अलब नी भी यही कहते थे।’’
‘‘अलब नी ?’’
‘‘वे मेरी रक़ाब के हमराह थे।’’
‘‘ ,ँ िजन का यह बादशाह या अमीर गज़नी का दु मन है ?’’
‘‘नह , दो त।’’
‘‘खैर, दूसरी शै ?’’
‘‘वह गुसा ।’’
‘‘गंग ?’’
‘‘जी।’’
‘‘उसे देखा ?’’
‘‘देखा हज़रत !’’
‘‘उससे आप डरते ह ?’’
‘‘जी नह , परि तश करता ।ँ ’’
‘‘ श, वह का फ़र है।’’
‘‘हज़रत ! वह औिलया है।’’
‘‘ या अमीर गज़नी पर भी कु गािलब आ ?’’
‘‘वह भी अज़ करता ।ँ ’’
‘‘और भी कु छ है ?’’
‘‘तीसरी बात।’’
‘‘वह या है ?’’
‘‘कु ।’’
‘‘तौबा ! तौबा !’’
‘‘हज़रत ! उस कु ने महमूद के दल म डेरा डाला है।’’
‘‘ या म अमीर गज़नी से बात कर रहा ।ँ ’’
‘‘जी नह , आपके कदम म यह नाचीज़ महमूद-िबन-सुबु गीन है, जो
बेवकू फ से अपना दल एक बेखबर का फर के कदम म फक आया है।’’
‘‘ले कन सुलतान महमूद तो ऐसे सौद का आदी नह !’’
‘‘ले कन जो होना था, वह हो चुका।’’
‘‘अब अमीर का या खयाल है?’’
‘बस, इसी पर मेरी यह तलवार है।’’
“दीनो-ईमान?”
‘‘वही मेरा दीनो-ईमान है।’’
‘‘इ लाम?’’
‘‘उसके बाद।’’
फक र चुप रहे। ब त देर तक स ाटा रहा। फर उ ह ने धीरे से कहा–
‘‘कौन है वह बला?’’
‘‘एक नाज़नीन।’’
फक र फर गहरी िच ता म डू ब गए। उनके ह ठ फड़के , एक फु सफु साहट सी
ई, ‘‘अफसोस, सद-अफसोस!” फक र क आँख से झर-झर आँसू झरने लगे।
महमूद एक बालक क भाँित िवकल होकर डरते-डरते बोला, ‘‘ या मेरी यह
मुिहम नाकामयाब होगी?’’
‘‘अलह दुिल लाह! कामयाब होगी। मगर यही आिखरी मुिहम होगी। और
सु तान िज़ दा ज़ र गज़नी प च ँ ेगा, मगर बेकार।’’
सुलतान का मुँह सूख गया, उसने कहा, ‘‘ या मने हज़रत को नाराज़ कर
दया?’’
‘‘सुलतान! जब तुम अपना दल और तलवार एक नाज़नीन को दे आए हो, तो
अब मुझे य तकलीफ देते हो? तुम समझते हो, तु हारे पीर को भी नाज़नीन से
दलच पी होगी?’’
‘‘ले कन जूर! महमूद ने अपनी स ह शानदार फतह आप ही के पाक साए म
हािसल क ह।’’
‘‘खैर, अब मुझसे या चाहते हो?’’
‘‘रहम, हज़रत! आिखर महमूद भी एक हाड़-माँस का आदमी है!’’
‘‘म तुम पर रहम करता ँ महमूद!’’
‘‘तो दुआ दीिजए!’’
‘‘कह चुका, फतह होगी।’’
‘‘ले कन...।’’
“अमीरे -गज़नी को मुनािसब नह क वह फक र को तंग करे । अमीर के सब
अहकाम बजा लाए गए ह, मसऊद को वापस गज़नी भेज दया गया है।’’
‘‘म भी गज़नी वापस जा रहा ।ँ ’’
“सोचने-समझने के िलए नह , बि क दल का जो सौदा कर आए हो, उसक
िजतनी मुम कन हो, क़ मत जुटाने के िलए। खैर, मुझसे सुलतान अब या चाहते ह?’’
‘‘िसफ एक काम।’’
‘‘ या?’’
“िसफ मुलतान को ठीक कर दीिजए और सब म देख लूँगा।’’
‘‘वहाँ का राजा जयपाल मेरा मुरीद है, म कसर न रखूँगा।’’
‘‘हज़रत! आपक इस एक ही मदद से म अपने मकसद को प च ँ सकूँ गा।’’
‘‘तो अमीर, इ शा-अ लाताला, यह कु छ मुि कल न होगा। मेरी दुआ से उसे
बेटा आ है। वह मेरी बात टाल न सके गा।’’
महमूद स आ। उसने झुककर उस फक़ र का क़बा चूम िलया। साधु ने
कहा, ‘‘ या सुलतान आज ही रवाना ह गे?’’
‘नह हज़रत, म और मेरा घोड़ा दोन ही एकदम थक गए ह। आज म आपक
ख़ानकाह म आराम क ँ गा। या कु छ खाने को िमलेगा?’’
‘‘मकई क रो टयाँ और सरस का साग है।’’
‘‘तो इनायत फ़रमाइए हज़रत!’’
फ़क र उठकर दो रो टयाँ ले आया।
सुलतान ने हथेली पर रखकर मकई क रो टयाँ सरस के साग से खा और
साधु क सुराही से ठ डा पानी िपया। फर हँसकर कहा, ‘‘हजरत! बड़ी मीठी रो टयाँ
थ ।’’ इसके बाद अमीर अपने हाथ से घोड़े का चारजामा िबछा और नंगी तलवार
िसरहाने रखकर वह भूिम पर सो गया। वृ फ़क र सारी रात उस अ ितहत-िवजेता
के िसरहाने बैठकर यार और अफ़सोस के आँसू बहाते रहे।
िबना ार का दुग
िवदेिशय के िलए भारत सदैव ही िबना ार का दुग रहा है। मुह मद के ज म
से भी लगभग पाँच सौ वष पहले, ईसा क पहली शता दी म अरब और ईरान के ारा
ही भारतीय ापार का िसलिसला यूरोप तक फै ला आ था। भारत के पूव और
पि मी समु -तट के ब दरगाह जै चाल, क याण, सुपारा और मालाबार के आसपास
इन अरब ापा रय क भी बड़ी-बड़ी बि तयाँ बसी ई थ । यूनान और रोम के जो
जहाज़ भारत आते थे, उनके नािवक अरब ही होते थे। भारत और चीन का ापार भी
इ ह अरब के हाथ म था।
उस काल के ये अरब सीधे-सादे, वीर, साहसी, िव ासी और दृढ़ कृ ित के होते
थे। भारत-िनवािसय से वे खूब िहलिमल कर रहते थे। भारत म उनक बि तयाँ
खुशहाल थ । िम , फल तीन, काबुल, असी रया आ द देश के साथ भी भारत के ऐसे
ही ापा रक स ब ध थे। िम के ाचीन बादशाह ने भारत से ापार क सुिवधा
रहने के ही िवचार से लालसागर के कनार पर अनेक ब दरगाह क रचना क थी
और ईरान के बादशाह ने भी फ़ारस क खाड़ी म कई ब दरगाह इसी इरादे से बनवाए
थे। िम के धान ब दर िसक द रया म िह दु क अ छी आबादी थी। अरबी म लाह
भारतीय नौका पर नौकर रहते थे।
इ लाम का ज म होने पर भी अरब का वैसा ही स ब ध भारत से कायम रहा।
पर तु इनम अब नई स यता, नया जीवन और नए आदश का समावेश हो चला था।
यह बात हम ईसा क सातव शता दी के लगभग क कह रहे ह। इस समय तक तमाम
अरब, तातार, तु क तान और चीन क पूव सरहद तक, तथा पि म म िम -कथज
तथा सम त उ री अ का पर इ लाम क फ़तह हो चुक थी। मुसलमान ने िनदयता
से बल रोमन सा ा य को चीरफाड़ डाला था और वे पेन म जा धमके थे। उनक
िवजियनी सेनाएं जंगल , मैदान , पहाड़ और न दय को पार करती भारत क
सीमा तक प च ँ गई थ । और उ ह ने ईरान के बेड़ को जल-समािध देकर िह द
महासागर पर अपना एकािधप य जमा िलया था, तथा िह द महासागर के ापार को
हिथया िलया था।
इस समय, जब क मुि लम स ा म य एिशया और यूरोप म अपनी जड़ जमा
रही थी, भारत म स ाट् हषवधन का देहा त हो चुका था। पुरानी और नई जाितय ने
नवीन राजपूत शि को ज म दया था, िज ह ने म य भारत तथा उ र-पूव य भारत
म अनेक ख डरा य थािपत कर िलए थे। उनम पर पर यु होते रहते थे। उनपर
कसी बड़ी शि का िनय ण न था। पुराने सा ा य क राजधािनयां ख डहर हो गई
थ । िह दू कौम धम और जात-पांत के पचड़ तथा अँधिव ास म फँ सी थी। राजा
क भाँित ये धमसंघ भी पर पर लड़ते-िभड़ते रहते थे।
सन् 712 म एक बीस वष का साहसी मुसलमान युवक के वल छह हज़ार
घुड़सवार साथ लेकर िबलोिच तान क िव तृत म भूिम को पार करता आ िबना
कसी रोक-टोक के िस ध म आ धमका। यह ह ाज का भतीजा मुह मद-िबन-कािसम
था। ह ाज इ े युसुफ उन दन कोके का हा कम था। उसी क आ ा से यह िनडर
लड़का िस ध म आया था। राजा दािहर दस हजार सवार और बीस हज़ार पैदल लेकर
उसके स मुख गया, पर तु यु म मारा गया। इस मुिहम से स ह हज़ार मन सोना तथा
छह हज़ार ठोस सोने क मू तयाँ, िजनम से एक तीस मन क थी, साथ ही बीस ऊँट
हीरा-मोती-प ा-मािनक लेकर वह वापस चला गया। उसने येक िम -श ु िह दू को
क ल कर दया। िजस ओर से वह गुज़रा, उस राह के सब मि दर वंस कर दए, सब
गाँव जला दए। उनके घर और िनवािसय को लूट िलया। वह आबाल-वृ सबको
तलवार के घाट उतारता गया। आपस क फू ट और दुभा य के कारण कतने ही िह दू
राजा ने इस नवागत अ याचारी खूनी लड़के का वागत कया।
िजन दन िस ध पर यह गुज़रा, उ ह दन मालाबार तट पर कु छ अरब
ापा रय ने अपनी नई बि तयाँ बसाई थ । वे अपने जीवन म शा त-िश नाग रक
थे। वे भारतीय ि य से िववाह करके वह रहने लगे। इसी समय िहशाम का एक
कबीला भाग कर भारत म क कण और क याकु मारी के पूव कनार पर बस गया।
उ ह ने इन लोग को रहने और घर बसाने म कोई बाधा न दी। िह दू राजा ने इन
िवदेिशय क बड़ी आवभगत क । उ ह मि जद बनाने और ज़मीन खरीदने क आ ा दे
दी। इसका प रणाम यह आ क आठव शता दी बीतते-बीतते मालाबार तट पर
मुसलमान क बड़ी-बड़ी बि तयाँ बन चुक थ । और वहाँ के िह दु म वे अपने धम
का चार बड़ी लगन से करते थे। उनम कोई मु ला न था, पर तु येक ि चारक
था। उनके वैभव, धन और वीरता से मालाबार तट क द र नीच जाितयाँ भािवत हो
ग । उनके िवचार , आचरण , रीितय और वभाव को ये जाितयाँ चाव और कौतूहल
से देखती थ । उनका धम सीधा-सादा और उपासना दय ाही थी। वे दन-भर म
अनेक बार नमाज़ पढ़ते थे। नमाज़ क सफ़ब दी, रोज़ क स त पाब दी, खैरात और
उसके िनयम, पर पर सामािजक स यता आ द के िस ा त, ये सब ऐसी बात थ , जो
त कालीन दिलत िह दू वग क जाितय को, जो मालाबार तट पर फै ली ई थ ,
भािवत कए िबना न रह सकती थ । ये अरब यो ा भी थे और वे आसपास के राजा
से लड़कर उनक ज़मीन पर अपने िह दू राजा का अिधकार थािपत करने म सहायता
देते रहते थे।जहाँ-जहाँ राजा का अिधकार होता था, इन मुसलमान ापा रय क
मंिडयाँ भी वहाँ-वहाँ थािपत हो जाती थ । राजा जमो रन ने तो यह आ ा दे दी थी
क म वान जाित के येक म लाह प रवार का एक आदमी अव य इ लाम धम
वीकार करे । इसका फल यह आ क जब दसव शता दी म मसूदी ने भारत क या ा
क तो उसने दस हज़ार मुसलमान क बि तयाँ चौल म पाई थ ।
इस समय भारत म िह दूधम और समाज म िव लव मचा आ था। बौ , जैन,
शैव, शा पर पर भयानक संघष , कु रीितय और अंधिव ास म फँ से थे। ा ण ने
बौ और जैिनय को न ाय कर दया था। शैव और वै णव क बलता हो रही थी
और वे आपस म उलझ रहे थे। राजनैितक अव था िछ -िभ थी। ाचीन राजवंश
जजर हो ही गए थे। राजपूत के नए वंश जो उदीयमान हो रहे थे, अभी िति त नह
ए थे। मानिसक अंधता राजव गय तक म थी।
सा पि क दृि कोण से यह युग एक स प युग था। पर तु इस स पदा के
भो ा देश के सब लोग न थे। के वल राजा, ा ण और सेठ लोग ही उसका उपभोग
करते थे। शेष लोग क दशा अित दयनीय थी। स पि के सबसे बड़े भाग के भो ा
राजा लोग के राजमहल म िवलासपूण आहार-िवहार के अद्भुत साधन उपि थत
रहते। उनके राजदरबार म कतने ही किव, कलाकार, चापलूस, मसखरे सदा बने
रहते। दास-दािसय क फौज के िबना उनका काम नह चलता था। घर म ि य क
पलटन भरी रहती थ । उनक नैितकता और दािय व का कोई मापद ड न था। यु म
भी इनका भारी य होता था और ये यु ाय: िबना कसी उ े य के िनरथक िवजय
या पर पर क ई या या क याहरण के िलए कए जाते थे। इनक मनमानी के समथक
ा ण थे, जो इनसे बड़ी-बड़ी दि णा लेते थे। ा ण ने बड़े-बड़े देवालय और मि दर
बना िलए थे, जहाँ िह दु क अतोल स पदा खंची चली आती थी।
इन राजा के पार प रक संघष तथा धमके मि दर क बड़ी-चढ़ी समृि
के बढ़े-चढ़े वणन देश-देशा तर के डाकु के कान तक प च ँ चुके थे। महमूद ने वयं
आकर वह स पदा देखी और लूटकर मालामाल आ था। वह एक सफल साहसी डाकू
था। वह देख चुका था क भारत क इस अटू ट स पदा का कोई र क नह है। उस समय
भारत भूिम के राजा पर पर क कलह-ई या और अिभमान म चूर थे। अपने बड़ पन के
नशे म वे दूसरे को न देख पाते थे। आल य और अिवचार उनम भर गया था। वे अफ़ म
घोलते, म पीते और रसरं ग म म रहते थे। जा म भी एकता न थी। अनेक प थ,
अनेक मत, अनेक िवचार, अनेक अँधिव ास ने उनके मन म घर कर र खा था।
छु आछू त का भूत उ ह स चुका था। धम के नाम पर अधम उनके िन य कृ य हो चुके थे।
इस कार इस काल म भारत क एकता भंग हो चुक थी। उसका जीवन िबखर चुका
था। बल ध ा देकर स पूण भारत क राजनीित व धमनीित को एक सू म बाँधने
वाला उस काल म कोई पु ष देश म नह था।
िह दु के इस अरि त जीवन से लाभ उठाकर मुसलमान साधु-फक र सैकड़
क सं या म स पूण भारतवष म फै लकर बस गए थे। वे देश के दीन-द र को धड़ाधड़
मुसलमान बना रहे थे। इनम एक साधु बाबा फख़ ीन थे, जो ते ुकोडा म रहते थे।
उ हाने वहाँ के राजा को मुसलमान बनाया था। िलकु ल मलूक और उसका साथी
अिलयारशाह ऐसे साधु थे िज ह ने यारहव शता दी के म य काल म मदुरा म
अनिगनत मुसलमान बनाए थे। मुलतान और िस ध को िवजय करके जब कािसम लौट
गया, तब उसके लगभग 300 वष तक और कोई आ मण भारत पर नह आ। महमूद
के आ मण-काल म भारत के पि मी ा त के कु छ िह स पर मुसलमान शासक था
और का ठयावाड़, गुजरात, क कण, दाखव य, सोमनाथ, भड़ च, ख मात, िसहाना और
चौल म उनक बि तयाँ बस रही थ । य िप काबुल म इस समय भी एक ा ण रा य
कर रहा था, पर तु मुसलमान म सभी को दलच पी थी। ब त राजा उनसे ेम करते
थे। मुसलमान फक र का सव मान होता था और ये िबना ही ज़ोर-जु म और तलवार
के भारत म इसलाम का बीज बोते और मुसलमान आ ा ता को सब स भव सहायता
देते थे। उस समय के वातावरण म यह स भव भी था। अलब नी िलखता है क िह दू
धम इस यो य नह रह गया है क उसम ा ण के िसवा कोई ि आ म-स मान से
रह सके । ा ण और ि य ही इस काल म सवसवा थे।और इस कार भारत उन
दन िवदेशी आ ा ता के िलए ‘िबना ार का दुग’ बना आ था।
गज़नी
दसव शता दी के म यभाग म एक तुक गुलाम अपनी िह मत और जवांमद
से खुरासान और गज़नी को दखलकर बैठा। उन दन ये ा त अराजक ा त थे। सरदार
लोग जो वा तव म बड़े-बड़े डाकू थे, अपना दलबल लेकर मारकाट करते और अपनी
अ थायी स ा एक गाँव से दूसरे गाँव म थािपत करते थे। इस गुलाम का नाम
सुबु ग़ीन था। सुबु ग़ीन गुलाम होने पर भी अपनी यो यता तथा बुि म ा एवं
साहस से एक बल सरदार बन गया और उसने शी ही इतनी स ा ा कर ली क
आस-पास के सरदार म कोई भी उसे न पा सका।
खुरासान और गज़नी दखल करने के बाद उसने अपनी बबर सेना को
याशील बनाए रखने के िलए भारत क ओर मुँह कया। गज़नी और खुरासान उन
दन साधारण गाँव थे। आसपास के उजाड़, द र , और पहाड़ी दुगम इलाक म लूटपाट
करने के िलए कु छ भी नह था। उसने आने-जाने वाले ापारी का फल , फ़क र और
जासूस से भारत क समृि के िवषय म ब त-कु छ सुन रखा था। साहसी तो वह था
ही, अत: भारत म घुस आया।
उस समय पंजाब म महाराज जयपाल रा य करते थे। उ ह ने खैबर घाटी को
सुरि त रखने और उधर से कसी श ु को भारत म न घुसने देने क शत पर–नवाब
बनाकर–शेख हमीद नामक एक मुसलमान सरदार को पेशावर और खैबर का थानेदार
िनयत कया था।
सुबु ग़ीन को आगे बढ़ता देखकर महाराज जयपाल ने सावधानी के िवचार से
आगे बढ़कर जलालाबाद म छावनी डाल दी, जो क खैबर घाटी के पि छमी मुहाने पर
अफ़गािन तान क सीमा है। पर तु सुबु ग़ीन ने गहरी कू टनीित से काम िलया। वह
समय टालता और भयभीत होने का बहाना करता रहा। महाराज जयपाल यह भेद न
समझ पाए। शेख हमीद से भी उसने मामला ठीक कर िलया। जब शीतकाल आया और
बफ पड़ने लगी, तब सुबु गीन ने धावा बोल दया। जयपाल क सेना सहायता और
कु मुक के अभाव से सद म िनक मी हो गई। उससे यु करते न बन पड़ा। महाराज
जयपाल लौटे। पर तु शेख हमीद ने घाटी का मुहाना रोक दया और महाराज जयपाल
घाटी म िघर गए। िन पाय हो उ ह ने ढाई लाख पए तथा 50 हाथी देने का वचन
देकर सुबु ग़ीन से सि ध कर ली तथा उसके सरदार को संग लेकर वे लाहौर चले
आए। पर तु लेन-देन के मामले पर महाराज और सुबु ग़ीन के आदिमय से झगड़ा हो
गया। सुबु ग़ीन भारत म घुस आया। पेशावर म खुला यु आ। यु म द ली,
अजमेर, कािल र और क ौज के राजा ने जयपाल का साथ दया। फर भी इस यु
म महाराज जयपाल हारे , और उनक स पूण स पदा लूट ली गई। सुबु ग़ीन, महाराज
को ब दी करके गज़नी ले गया। पेशावर म उसने अपना हा कम बैठा दया। इस कार
शेख हमीद क नमक-हरामी का यह प रणाम आ क पंजाब पर सुबु ग़ीन का
अिधकार हो गया। सुबु ग़ीन के साथ ही एक िव ान् मुसलमान फक र अलीिबन
उ मान अलहज़वीसी लाहौर म आया। जो फर गज़नी नह लौटा, और वह बस गया।
कट म यह औिलया मुि लम धम का चारक था, पर तु वा तव म वह सुबु ग़ीन का
एक जासूस था, िजसके अनिगन चेले सारे उ र भारत म जासूसी जाल फै लाकर बैठ
गए थे।
इस अिभयान म महमूद अपने िपता के साथ था। य िप उसक अव था अभी
के वल यारह वष क ही थी, पर तु वह बड़ा साहसी और यु ि य बालक था।
अपने िपता सुबु ग़ीन क मृ यु के बाद महमूद ने अपनी स ा अफगािन तान
और गज़नी म और मज़बूत क , तथा बुखारे के समृ इलाके अपने अधीन कर िलए,
और उस समूचे देश का एक सवशि स प सरदार बन बैठा। फर इसने िनर तर
तीस बरस भारत पर खूनी आ मण कए तथा सोलह बार पि मो र भारत को
तलवार और अि क भट कया। नगरकोट का मि दर तोड़कर इसम से सात सौ मन
सोना-चांदी के बतन, सात सौ चालीस मन सोना, दो हजार मन चांदी और बीस मन
हीरा-मोती जवाहरात उसने लूटे। थाने र के आ मण म वह दो लाख िह दु को कै दी
बनाकर ले गया। यहाँ क लूट म उसे एक मािनक साठ तोले का िमला था। मथुरा क
लूट म उसने छह ठोस सोने क मू तयाँ पा , िजनके शरीर पर यारह अमू य र थे।
मथुरा को उसने बीस दन तक लूटा और जलाया था। मथुरा से वह इतने कै दी साथ ले
गया क गज़नी म एक-एक गुलाम ढाई-ढाई पए म बेचा गया। फर भी खरीदार न
िमले। इस समय उसके साथ एक लाख सवार और बीस हज़ार पैदल थे। इस कार
साहिसक अिभयान के कारण उसक िह मत, िसि और समृि ब त बढ़ गई। और
अब इस बार उसने गुजरात क घाटी को चीरकर महामिहम भगवान सोमनाथ के
मि दर को लूटने और भंग करने का इरादा कया था। िनर तर सोलह बार उसक रकाब
के साथ भारत को र दने वाले बबर ने, जो चाँदी और सोने से अपने घोड़ क ज़ीन भर
कर लौटे थे, उसक क त-कथा दूर-दूर तक फै ला दी थी। और उसने जो भारत क लूटी
ई यह अनमोल समृि और अटू ट स पदा ला-लाकर इस उजाड़ देश म बखेर दी, उसने
भी उस िसि म चार चाँद लगा दए थे। इस कार महमूद के इस शौय के कारण
गज़नी नगर पूव भूख ड का एक समृ और िस नगर बन गया था। नगर म बड़ी-
बड़ी मि जद और अनेक ासाद, ह माम और सराय थी। उसके बड़े-बड़े बारह बाज़ार
थे, िजनक दुकान देश-िवदेश क ब मू य व तु से भी भरी पड़ी थ । संसार के
ापारी वहाँ अपने-अपने देश क व तु बेचने आते थे। गज़नी क जामा-मि जद
थाप य कला क बेजोड़ व तु थी। जब उसक गगनचु बी मीनार पर खड़ा होकर
मु ला पुकार कर ‘‘ई र एक है और मुह मद उसका ितिनिध है’’ बांग देता, तो सब
कामकाजी मुसलमान काम-ध धा छोड़कर नमाज पढ़ने को एक हो जाते। सुलतान
अपने दरबारी जन सिहत हर शु वार को जब नमाज़ पढ़ने आता, उस समय उसक
सवारी क धूमधाम देखने ही यो य होती थी।
भारत पर िवजयी आ मण करके वापस लौटने पर सुलतान ने गज़नी म भारी-
भारी इमारत बनवा । इमारत बनवाने का उसे शौक था। इस काम के िलए उसने देश-
िवदेश के अनिगनत कारीगर और कलाकार बुलवाए थे। उ ह वह ऊँचे-ऊँचे इनाम देकर
उनके उ साह क वृि करता था। इन गुणी िशि पय ारा उसने गजनी म ऊँची-ऊँची
मीनार वाली मि जद, महल, बड़े-बड़े हौज़, ह माम, तालाब, बाविड़याँ, बाग, उपवन
और वीथी बनवाई थ ।
महमूद ने भारत क तीसरी िवजय से लौटकर गज़नी नगर क खूब मज़बूत
शहरपनाह बनवाई। भारत के दुग के घेरे म, उसे ाचीर का मह व िव दत हो गया
था, इससे उसने भारत के तीसरे आ मण से लौटकर ब त मज़बूत चहार-दीवारी
गज़नी के चार ओर बनवाई थी। इस समय बल से बल श ु भी गज़नी क कु छ हािन
नह कर सकता था। गज़नी क सुर ा के िलए चार ओर क पहािड़य पर उसने छोटी-
छोटी गढ़ी बनवाई थ , जहाँ आव यक सेना हर समय रहती थी।
य िप सुलतान क थायी सेना अिधक न थी, पर तु आव यकता होने पर वह
िजतनी चाहे उतनी साहसी बबर क सेना एक कर सकता था। उसक कमान के नीचे
लड़ने को येक सेनानी सो साह रहता था। वह जानता था क लूटपाट का और कह
ऐसा सुयोग लग ही नह सकता है। इससे आसपास के पहाड़ी े के अनिगनत डाकू
उसक सेना म खुशी से भत हो जाते थे। थायी सैिनक को सुलतान ने वेतन के थान
पर धरती दे रखी थी। वे शाि त-काल म हल लेकर भूिम जोतते और यु -काल म
िवकराल तलवार पकड़कर िवकट यु करते थे। इन लोग म ‘ममलूक’ लोग क
पलटन अपनी वीरता तथा शौय म िव यात थी। ममलूक सेना के हज़ार अजेय यो ा,
मू यवान अरबी घोड़ पर सवार होकर महमूद के चार ओर एक जीिवत दुजय दुग के
प म सदा साथ रहते थे। इनके िसवा व ु नदी के उस पार के तुक क घुड़सवार सेना
भी अजेय थी। इस सेना म पचपन हज़ार बांके और मर िमटने वाले तलवार के धनी और
धनुधर थे। अफगान और िखलिजय क सेना का न बर इनके बाद था। यह सेना भी,
सब भाँित के श से सि त रहती, और यु म सदैव अ भाग म लड़ती थी। इस सेना
के पठान और क ावर उजबक जब ल बी-ल बी दा ढ़य के बीच दाँत से घोड़े क
लगाम पकड़े , भारी-भारी तलवार लेकर आँधी क भाँित श ु पर टू ट पड़ते, तब बड़े-
बड़े धैयवान के छ े छू ट जाते थे।
अरब क भी एक चुनी ई सेना महमूद क कमान म थी। ये बड़े िनदय और
ू र िसपाही होते थे। तलवार क मार म इ ह कोई यो ा न पा सकता था।
महमूद इस स पूण संयु सेना का सेनापित था। इस स ब ध म एक मह वपूण
बात यह है क तुक लोग क अिधकांश सेना मुसलमान न थी, मू तपूजक थी। महमूद
एक कृ त यो ा था, वह अपनी सेना को इसिलए नह रखता था क वह उ ह बैठाकर
माल-मलीदे िखलाए । वह सदैव अपनी सेना को चु त और सो साह रखता, उसे
साहिसक आ मण म िनयोिजत करता रहता था।
सुलतान के दरबार म ईरानी लोग का भी खासा ाब य था। अबुल अ बास
उसका एक शि शाली वज़ीर था। वह अपढ़ था, क तु राजनीित और ब ध म बड़ -
बड़ के छ े छु ड़ा देता था। उसने सरकारी काम-काज के कागज़ात तथा जा क अज
आ द फारसी भाषा म तथा स वाद अरबी म िलखने क व था क थी।
महमूद के दरबार म किवय , इितहासकार तथा िव ान् दाशिनक जन का भी
स मान होता था। फरदौसी और अलब नी जैसे िव ान का वह पोषक था। उसने
देश-देश क पु तक का एक ब त भारी सं ह गज़नी के राजक य पु तकालय म कया
था। इस अल य थ-सागर को एक करने म उसने पानी क तरह पया खच कया
था। गज़नी और देहात म उसने रा य भर म ब क िश ा क उ म व था क थी।
उसने मु हाथ से लाख पया इस काय म य कया था। य िप वह वभाव से
कं जूस और धनलोलुप था, पर िव ालय म वह दल खोलकर खच करता था। किवता
सुनने का वह अ य त शौक न था। फरदौसी के पूववत किव अ सारी तथा ईरानी किव
दा कनी को उसने शाहनामा िलखने क आ ा दी थी िजसे फरदौसी ने पूरा कया था।
इ ही दन जब इं लै ड का िस राजा क युट दी ेट मैनचै टर के ाचीन
िगरजे के जीण ार म सोना-चाँदी और र -जवाहर िबखेर रहा था, यह तापी
सुलतान एक बार फर भारत पर आ मण करके महामिहम भु सोमनाथ महालय को
भूिमसात् करने को क टब हो रहा था।
ईदुल– फतर
आि न मास आधा बीत चुका था। गज़नी म बड़ी भारी रे लपेल थी। मास के
ार भ ही से यो ा के दल-बादल चार ओर के पहाड़ी देश से गज़नी म बढ़े चले
आ रहे थे। उनक आवा-जाही, भरती और चहल-पहल से, नगर म बड़ी भीड़-भाड़ और
शोरगुल भर गया था। मुह ले और बाज़ार तुक िसपािहय तथा तातार के पहाड़ी
डाकु से पटे पड़े थे। आसपास के इलाक म से चुने ए अनुभवी यो ा, िज ह ने
लगातार स ह बार सुलतान क लगाम के साथ रहकर अपने घोड़ क टाप से भारत
क भूिम तथा वहाँ के आबाल-वृ को र द डाला था, बड़े ठाठ और उमंग म ब ढ़या
पोशाक पहने और ताँबे के िस के थान पर सोना फकते ए अकड़ते फर रहे थे।
पहाड़ क िवकट गुफा के सरदार अपनी-अपनी टोिलयाँ िलए दनादन गज़नी म चले
आ रहे थे। लुटेर क टोिलयाँ आन द से बाँसुरी और डफ बजात और शौयपूण भाव से
भरे गीत गात , रणम ही व छ द गज़नी के बाज़ार म घूमती- फरती थ । ब त से
काबुली लुटेर और लु क टोिलयाँ गज़नी क गिलय म शाम होते ही घूमने लगती
थ , िजनके साथ भड़क ली ज़नानी पोशाक पहने लड़के , नकली बाल लगाए नाचते-गाते
चलते थे। इनके पाजाम पर तो सुनहरी काम था, पर तु इनके चेहरे पीले और मुझाए
ए थे। गज़नी के सब काफ -घर और जुए के अ म बदमाश , िगरहकट ,
उठाईगीर ,चोर और डाकु के साथ-साथ इस कार के लड़क क भी खूब भरमार
थी, िजनके साथ सब लोग अ य त िनल तापूण हंसी-मजाक एवं अ ील वहार
करते थे। अनेक तुक और पठान सरदार इन लड़क के िवशेष ेमी थे। वे उन लड़क को
ज़नानी पोशाक म सजे-धजे साथ लेकर बाज़ार म सैर करते थे, िजनसे उनके ग दे और
घृिणत स ब ध थे। इसे वे अपनी ित ा और अमीरी का िच न समझते थे।
इनम ब त-से लड़के बचपन म ही हीजड़े बना दए गए थे, और वे अपनी
हालत म खुश थे। वे बड़े चाव से ज़नाने हावभाव करके लोग को रझा रहे थे। सं या
होते ही शहर के बाहर क सफ ल के पास सैकड़ गुलाम और हीजड़े तथा लड़के खड़े हो
जाते थे। और इसके िलए उ ह गज़नी के सुलतान को टै स देना पड़ता था। शहर के
सरदार , अमीर और उमराव के महल म नाच-रं ग और तमाश क भरमार थी।
काफ -घर और नाटकघर म खचाखच आदमी भरे थे। मि जद , सराय और बड़े-बड़े
मकान ने फौजी छाविनय का प धारण कर िलया था। यह व था सुलतान क
आ ा से ई थी। लूट के लालच से कसान और ब त-से आवारागद भी वहाँ आ जुटे थे।
बड़े-बड़े मु ला और वाइज नमाज़ के बाद लोग को धमवा य सुना-सुनाकर जेहाद
करने के उ ेजनामूलक भाषण दे रहे थे। इस कार गाजे-बाजे और जयो लास म गज़नी
शहर डू ब रहा था। नगर के बाहर दूर तक त बू, घोड़ा, गधा, ख र, उँ ट तथा सैिनक
का एक नया िवराट नगर बन गया था।,
यह सब सुलतान महमूद क जबरद त तैया रयाँ थ , जो उसके इस बार के
आसाधारण अिभयान के ित उसक गहरी आसि का प रचय दे रही थ । इस बार
उसने सब प रिचत, अधीन एवं िम सरदार , कबीलेदार और स बि धय को सा ह
िनम ण भेजे थे। ये िनम ण गज़नी के धान मु ला ारा ले जाए गए थे, िज ह ने
धम का जुनून चढ़ाकर लोग को जेहाद का सवाब लूटने को ब त उ सािहत कया था।
अधीन सरदार पर तथा हा कम पर उसने ताक दी-परवाने जारी कए थे। इसके
फल व प तीस हज़ार अजेय घुड़सवार तुक, बारह हज़ार तीखे वभाव वाले अरब,
और इतने ही अचूक िनशाना लगाने वाले ईरानी गज़नी म आ जुटे थे।
ईद क नमाज़ अदा करने के िलए सुलतान क सवारी बड़ी धूमधाम से जामा-
मि जद क ओर चली। सबसे आगे तुक घुड़सवार का रसाला अपनी ज़कवक पोशाक
म था, उसके पीछे उँ ट पर नौबतखाना था। इनके पीछे अरब सवार क टु किड़याँ और
इनके बाद तातारी यो ा नंगी तलवार िलए पैदल चल रहे थे। उनके बीच म अमीर
महमूद ब त ऊँचे काले घोड़े पर सवार था। वह ब धा बड़ी देर तक चुपचाप बैठा रहता
था। अमीर क पोशाक गहरे उ ावी रं ग क िवलायती बानात क थी, िजस पर
िह दु तान के कारीगर के हाथ का सुनहरा काम कया आ था। वह बड़े गौरवपूण ढंग
से घोड़े पर बैठा, िबना इधर-उधर देखे अिवचल भाव से आगे बढ़ रहा था। य िप अभी
उसक आयु पतालीस ही वष क थी, पर तु क ठन यो ा-जीवन और गहन संघष के
िच न व प गहरी रे खाएँ उसके मि त क एवं चेहरे पर प दीख रही थ । एक दृि
देखने ही से वह एक अिवचल, एकिन और दृढ़ ित पु ष तीत होता था।
सुलतान ने जामा मि जद प च ँ मि जद के ार पर एक ऊँट क कु बानी दी,
फर वह मि जद म इमाम के दि ण पा व म बैठ गया। इमाम ने उसके नाम का खुतबा
पढ़ा और फर सुलतान ने एक लाख दीनदार के साथ ईद क नमाज अदा क ।
ईद का दरबार
गज़नी नगर के िनकट कोहे-सुलेमान क तराई म एक खुशनुमा घाटी थी, जो
तमाम तातार म फू ल क घाटी के नाम से िव यात थी। यह खुशनुमा घाटी बारह
मास चमेली और गुलाब से आ छा दत और उ ह के फू ल से सुवािसत रहती थी। वहाँ
से बृह र गज़नी क अनिगनत मि जद क गगनचु बी मीनार और उ त गु बज
सुनहरी धूप म चमकते दीख पड़ते थे। यह अमीरे -गज़नी ने अपनी नई छावनी डाली
थी। वह आज ईद का दरबार अपने शाही दीवानखाने म न करके अपने उन यो ा के
बीच करना चाहता था, िजनके साथ उसने इ स वष तक धरती को र दा था। अपनी
व क एिड़य से देश , नगर और जनपद को कु चला था, र क न दयाँ बहाई थ ।
अपने हाथ से काटे ए ल -ल नरमु ड पर िवजय- त भ थािपत कए थे। मृ यु-दूत
बनकर जीवन का िवनाश कया था।
बीस हज़ार गोल त बू वृ ाकार फै ले थे। इनपर रं ग-िबरं गी रे शमी पताकाएँ
हवा म लहरा रही थ । सबके बीच म महमूद का िवशाल खेमा था, िजसका हर बाज़ू
सवा सौ कदम ल बा था। उसक ऊँचाई तीन नेज के बराबर थी, और उसका म य
भाग बारह ऐसे वण- त भ पर टका था, िजनक मोटाई मनु य क मोटाई के बराबर
थी। लाल रं ग क पाँच सौ रे शमी डो रयाँ उस िवराट् खेमे को थाम ई थ । नीली,
पीली, लाल और हरे रं ग क प य से खेमे का बाहरी भाग सुसि त था। यह समूचा
त बू सफे द चमड़े का बना था।
खेमे के फश पर ब मू य ईरानी कालीन िबछे थे, िजन पर सुनहरी तार का
काम हो रहा था। खेमे के बीच बीच ठोस सोने का संहासन था, िजसके चार कोन पर
चार उकाब चांदी के बने थे। संहासन पर कम वाब का चंदोवा तना था, जो र ज टत
डंड पर फै ला आ था । िसहांसन पर वह अजेय,अ ितहत रथी, सखीमे- फरानी,
बादशाह का बादशाह, अमीर महमूद बैठा था।
वह जो चोगा पहने था, उसपर हज़ार मोती और हीरे टंके थे। उसके म तक पर
जो हरी पगड़ी सुशोिभत थी, और उसके तुर पर जो तेज वी लाल जड़ा था, वह उस
नरशादूल के इधर-उधर िसर िहलाने पर ऐसा दीख पड़ता था, मानो एक तृतीय ने
के वल अि - फु लंग से पूण िव को भ म करने के िलए उसके म तक पर उदय आ
हो। उसक आँख ल बी और तेज थ । उनसे कु छ भी नह िछपाया जा सकता था। अरब
के ि य र जम द का एक बड़ा तौक उसके गले म पड़ा था।
सुवािसत म से भरे ए चार सौ घड़े और शाही भोज का सु वादु द तरखान
करीने से तुत था, िजनम भाँित-भाँत के मेवे, तले और भुने ए मांस तथा भाँित-
भाँित के िम ा और पकवान थे।
अमीर के पीछे गवैये और पैर के पास र तेदार, दूसरे बादशाह, अमीर,
सरदार आ द बैठे थे, क तु उसक बगल म कोई न था।
आन द और िवजयो सव के िजतने साधन जुटाए जा सकते थे, वे सब वहाँ
एक थे। चार ओर ज़ोर से बाजे बज रहे थे। खेमे के सामने मैदान म अनेक मनोरं जक
खेल खेले जा रहे थे, िज ह जनता और सैिनक उ साह और आन द से देख रहे थे। कह
भांड और हँसोड़ अपने करतब दखा- दखाकर लोग को हँसा रहे थे। कह पहलवान
कु ती लड़ रहे थे, कह नट अपने अंग मरोड़ रहे थे, कह तलवारबाज़ी, नेजेबाज़ी और
घुड़सवारी का चम कार दखाया जा रहा था। कह ल डे ज़नाने कपड़े पहने नाच-गा रहे
थे। डफ क ताल पर उनक आँख के पलक और पैर एक साथ ही उठते-िगरते थे। लोग
खुश होकर तािलयाँ पीट रहे थे।
अमीर खुश क तु ग भीर था। वह उस भारी जन-रव और ऐ य के बीच जैसे
डू बा जा रहा था। जब सलामी और नज़राने क सब र म पूरी हो चुक तो उसने जलद-
ग भीर वर म एक हाथ ऊँचा करके कहा, ‘‘म अमीर महमूद, खुदा का ब दा, वही
क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए। रसूले पाक और खुदा के नाम पर, िजसके समान दूसरा
कोई नह है, म अमीर महमूद, खुदा का ब दा, आज ईद मुबारक के साथ तुमसे, जो मेरी
रकाब के जांिनसार साथी ह, और िजनके घोड़ क टाप ने आधी दुिनया र दी है, वही
क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए। हम चल रहे ह, अपनी सबसे बड़ी मुिहम को फतह करने,
िजसक इ तज़ारी फरदौसी और अलब नी उस का फर ज़मीन पर कर रहे ह, िजसक
हर शै दीनदार के िलए है। दो तो, म जानता ,ँ तु हारी तलवार क धार तेज़ है,
तु हारे घोड़े तरोताज़ा ह, और तु हारे घोड़ क ज़ीन, िज ह तुम िपछली बार चाँदी-
सोने से भर लाए थे, खाली हो रही ह और तुम मेरे दो तो, उ ह फर से भरने के िलए
बेचैन हो। म तु ह दुआ देता ँ क तु हारी मुराद वर आए। और तुमम से येक अपनी
जीन क ल बी थैिलय को चाँदी-सोना और जवाहर से भरकर और अपने घोड़ क
लगाम से चार-चार गुलाम बाँधकर घर लौटे–आमीन!’’
जय-जयकार और तािलय क गड़गड़ाहट से दशाएँ काँप उठ । बड़े-बड़े
न ारे और ढोल गरज उठे । तलवार झनझना उठ । हज़ार -लाख क ठ से िनकला,
‘‘आमीन, आमीन!’’
इसके बाद सब सरदार , सेनापितय , वीर और पदािधका रय को िखलअत
इनाम बाँटे गए, िव ान का मुहर और पदिवय से स मान कया गया।
दरबार बखा त आ। अमीर क शाहखच , शान और जलाल का बयान हर
मुँह से सुनाई पड़ रहा था। वह ईद गज़नी म उमंग, उ साह, िवजय और सफलता क ईद
थी।
क ठन अिभयान
ईद का दरबार करके अमीर ने दूसरे दन भोर म ही थान कया। थान के
समय उसने सेना के सम एक छोटा-सा सारग भत भाषण दया। यह अिभयान अमीर
के िलए अब तक के सब अिभयान से अिधक क ठन था। भारत क भूिम पर पैर रखने से
थम उसे एक-सौ पचह र गाँव क िवकट म भूिम पार करनी थी। इस म भूिम म
रे त और काली िचकनी िम ी को छोड़ दूसरी व तु न थी। न घास-फू स, न जल, न वृ ,
न छाया। ित दन वादेसमूम के झ के आते और दन क रात हो जाती। पर अमीर को
इस म थली का अनुभव था, य िप उसको पार करना एक महासमर िवजय करने के
समान था। पर तु अमीर ने अपने पूव अनुभव के आधार पर सब आव यक साधन क
व था कर ली थी । उसने माग म थान- थान पर सहायता के थािपत कर िलए
थे। इस तरह एक साहिसक और वि थत यो ा क भाँित वह अिभयान पर आगे बढ़ा
था। महमूद अपनी स पूण सेना का सेनापित था। पर पहाड़ी लुटेर क टु किड़य पर
उसने पहाड़ी सरदार को ही अिधकार दे रखा था। गज़नी क राजस ा अहमद ममैदी
को स प और पाटवीपु को साथ ले, दलबल सिहत वह खूब सतकता और सावधानी से
अ सर आ था।
कू च का वह दृ य भी अ भुत था। उस दन सब नगर-बाज़ार ब द थे। लोग
बड़ी भावभरी आँख से इस िवजेता का यह अिभयान देख रहे थे। आतुर माताएँ आँख
म आँसू और आँचल म आशीवाद भरे , पु को अ ात देश क ओर जाते देखने खड़ी थ ।
कु ल-वधुएं गोद म अबोध िशशु को िलए और धड़कते दय को हाथ से दबाए, ि य
पित को य जाते देख रही थ । मि जद म मु ला उ वर से दुआ पढ़ रहे थे।
कटक का िव तार ब त था। पचपन हज़ार मर-िमटने वाले तुक सवार नंगी
तलवार चमचमाते, िपघले ए लोहे क नदी क भाँित बढ़े चले जा रहे थे। दस हज़ार
मर-िमटने वाले ममलुक यो ा क मती अरबी घोड़ पर सवार एक जीिवत दुग बनकर
चल रहे थे। इसके बाद बुखारे के बीस हज़ार ऊँट पर चालीस हज़ार सधे ए तीर दाज़
थे। डेरा त बू वाले माग-दशक, माग-संशोधक, तेली, त बोली, बावच , साईस, म लाह,
दुकानदार, वे याएं, ल डे, दरवेश, मु ला, सा आ द क िगनती न थी।
मंिज़ल पर मंिजल मारता अमीर का यह कटक डेरा इ माईल खाँ के उस ओर
के पहाड़ क तलहटी म आ प च ँ ा। ये पहािड़याँ अित िवकट, दुगम और िनजन थ ।
उनके वह िशखर बारह मास बफ से ढके रहते थे। ी मकाल म जब बफ िपघलता तो
दर को चीरता आ और वहां के याि य को अपने म लपेटता आ चला जाता था।
शीतकाल म वहाँ इतनी ठं ड पड़ती थी क मनु य के शरीर का र ही जम जाता था।
पर तु महमूद के अनुभवी मि त क के कारण उसक सेना का ब त कु छ, इस क से
बचाव हो गया। इसके दो कारण थे, एक तो अभी वषा ॠतु समा ही ई थी और
शीतकाल नह आया था। कड़ी ठ ड नह पड़ी थी। बफ जमने से पहले ही उसक सेना ने
घाटी पार कर ली थी। दूसरे उसक सेना के सभी यो ा उस शीत, बफ और क ठनाई के
अ य त थे। उनके िलए वह कु छ नई व तु न थी।
गािड़याँ और दूसरे वाहन इस तंग दर को पार नह कर सकते थे। इसिलए
महमूद ने ऊँट, ख र और घोड़ ही से काम िलया था। उसने िन व इस दर को पार
कर िलया। यहां से दर के आसपास के खूंखार कबाइली पठान के दल-बादल सुलतान
क सेना म िमलते गए। जैसे नदी म बहाव आता है, उसी भाँित अमीर का कटक दन-
दन वृि पाता आ अटक के कू ल पर आ टका।
महानद के तट पर
संधुनद भारतीय सीमा पर महानदी है। इसका िव तार देखकर इसे नदी न
कहकर नद कहते ह। यह नद पवते र िहमालय के अंचल से िनकलकर अरब समु म
िगरता है। बारह मास यह नद अथाह जल से प रपूण रहता है। उसका ती जल- वाह
अगाध और पाट मील तक का है। इस महानद को पार उतरकर ही भारत भूिम पर
चरण रखना पड़ता है। सुलतान महमूद ने इस क ठन काय क भी सब व था ठीक कर
रखी थी।
अमीर ने िस धु के उस पार दो दन िव ाम कया। तीसरे दन िस धुनद पार
उतरने क व था क । येक पू णमा को नद म वार आता है। तब नद का जल ऊपर
खारा और नीचे मीठा होता है। इस समय महानद समु क भाँित गजना करता है और
उसम पवत के समान बड़ी-बड़ी लहर उठती ह।
अमीर ने तट से कु छ हटकर कु छ ऊँची जगह पर अपनी छावनी डाली थी।
छावनी का ब ध अ यु म था। घुड़सवार क टु किड़याँ उसके चार ओर घूम- फरकर
रात- दन पहरा देती थ । पहरे का यह दािय व एक दरबारी सरदार के सुपुद था। बीच
म अमीर का लाल रं ग का त बू था, िजसे चार ओर कनात से घेर दया गया था।
तीसरे दन भोर होते ही नद पार करने क हलचल ार भ हो गई। कछु ए और
बेड़े नद म डाल दए गए। बोझा ढोने वाले ऊँट और भारवाही पलटन पार उतरने लगी।
घोड़ पर, मशक पर, बेड़ पर, नाव पर साहिसक यो ा तैर-तैरकर पार उतरने लगे।
दन-भर नदी पार करने का म चलता रहा। सायंकाल के समय अमीर अपने मि य
एवं सेनापितय के साथ नदी पार होने का दृ य देखने तीर पर आया। दूसरे दन
म या न काल होते-होते स पूण ल कर भारत भूिम पर िन वरोध उतर गया। इस बबर
डाकू का इस भाँित िन वरोध उस पार उतर जाना और भारत का िन ंत पड़े सोते
रहना एक आ य क बात थी।
नद के इस पार अमीर का ल कर िव ाम करने लगा। समय और ॠतु अित
सुहावनी थी। वन म ह रण, मोर और दूसरे सहज िशकार ब त थे। सुलतान के सरदार
ने अमीर से िशकार क आ ा चाही। सुलतान ने कु छ ण चुप रहकर कहा–
‘‘मेरे बहादुर सरदारो, हम गज़नी क भूिम को छोड़कर यहाँ िशकार और
तफ़रीह के िलए नह आए ह। हमारा काम ब त मह व का एवं दािय वपूण है। अभी
हम ब त काय करना है। वीर व दशन का मैदान अभी दूर है। इस बार हम िवकट
म थली को चीर कर सोमनाथ क ट से ट बजानी है। दु मन का िशकार ही हमारा
स ा िशकार है। वही हमारा सबसे थम कत है। इस स े िशकार को छोड़कर
बेकसूर िहरन और प र द को मारने से या लाभ? यह सब मुझे पस द नह । चलो
बहादुरो, कू च करो, फतह करो और सुख ही हािसल कर दीनो-दुिनया म खुशहाली
हािसल करो।’’
इसके बाद ही अमीर ने त काल कू च करने का म दे दया। खूँट पर हथौड़
क चोट पड़ने लग । पलक मारते ही वह मायानगर अदृ य हो गया? और उँ ट , अ ,
ख र और पैदल क अटू ट कतार क कतार महासप क तरह रगती ई भारत भूिम
पर अ सर ई, जैसे यह िवजयी यो ा कसी िबना ार के दुग म घुस रहा हो।
अजयपाल का धम–संकट
मुलतान के चौहान राजा अजयपाल बड़े धमसंकट म पड़ गए। लाहौर के जा त
वीर औिलया अली िबन उ मान अलहज़वीसी ने उ ह संदश े भेजा था क–‘‘गज़नी का
सुलतान मुलतान क राह अपने रा ते खुदा के म से जा रहा है, उसे जाने दे। इसम
दरे ग करे गा तो तुझ पर और तेरी औलाद पर कहर नािज़ल होगा।’’
महाराज अजयपाल इस संदश े से ाकु ल हो गए। वे िस धुनद के द पाल थे।
गज़नी के इस लुटेरे को वे अ छी तरह जानते थे। पर तु अभी तक मुलतान क ओर
उसक दृि नह पड़ी थी। जब से लाहौर के महाराज जयपाल ने अि वेश कया था,
महमूद ने सदैव लाहौर होकर ही सोलह अिभयान कए। मुलतान का उ लंघन करने का
यह पहला ही अवसर था। इस बार उसे गुजरात को आ ा त करना था। इसिलए वह
लाहौर न जाकर मुलतान क राह सीधा म थली को पार कर सपादल जाना चाहता
था।
य िप महाराज अजयपाल को अभी तक यह पता न था क सुलतान कस
अिभ ाय से इधर से अिभयान कर रहा है, फर भी धम के के इस श ु क वृि वह
जानते थे। उनके सामने दो क ठनाइयाँ थ । एक यह क लाहौर के इस औिलया क
आ ा का उ लंघन वे नह कर सकते थे। उस वृ मुसिलम फ़क र पर इनक ा के
तीन कारण थे। एक यह क इसी क कृ पा, िसफा रश और सहायता से उसे मुलतान का
रा य ा आ था। दूसरे , उसके आशीवाद ही से उसे एकमा पु उपल ध आ था।
तीसरे यह क ये औिलया बड़े प च ँ े ए खुदापर त और बेलौस साधु िस थे। यह
कोई क पना भी नह कर सकता था क वे सुलतान के भे दए ह। उनक आ ा खुदा क
आ ा समझी जाती थी और वे य द कसी भ को कोई आदेश देते थे, तो यह समझा
जाता था क यह उसक भलाई के िलए ही होता था। और यह बात प ही स य तीत
होती थी, य क सुलतान क अथाह सेना से लड़ना आ मघात था। उसके सामने
घोघाबापा क तेज वी मू त आई। वह सोचने लगा–समय पर म घोघाबापा को या
मुँह दखाऊँगा? या म उ ह सूचना दू?ं उनसे परामश क ं , पर तु इतना समय कहां है?
फर य द उ ह ने यु का ही परामश दया और ऐसा तो वे करगे ही। वे वीर पु ष ह,
म थली के भी म ह। वे यह थोड़े हो िवचारगे क आगे-पीछे या होगा। वे तो स े
यो ा ह। कत पर िमटना उनका मूल म है। म या उ ह जानता नह ।
महाराज अजयपाल भारी धमसंकट म पड़े। वे कु छ भी िनणय न कर सके ।
उ ह ने ब त सोच-िवचार कर गु प से लाहौर क या ा करने क ठानी। अपनी
तलवार और एक िव ासी सेवक को ले एक अँधेरी रात म लाहौर क राह पर घोड़ा
छोड़ा।
औिलया ने उनसे बहस नह क , अिधक बात भी नह क । वह जैसा िव ान
और तेज वी िस था, वैसा ही द भी भी था। िबना द भ के धम और िसि का
कारबार चलता भी नह , फर इस फक र पर तो सुलतान के गूढ़ आदेश थे। जब राजा ने
िवन भाव से अपनी क ठनाई साधु के सामने रखी और नेक सलाह माँगी तो औिलया
ने के वल इतना कहा, ‘‘खुदा का म हमने तुझे भेज दया, अब तू जान। खुदा का म
मान या गज़ब क आग म अपने त और मुलतान को फूं क डाल। जा, फक र को तंग
कर।’’
औिलया फर मौन हो गए। बोले ही नह । पाषद ने राजा को समझा-बुझाकर
चलता कया।
मुलतान लौटकर अजयपाल ने रा य-प रषद् बुलाई। िश नाग रक का दल
बुलाया। सबसे परामश कया। ब त िवचार परामश आ। अ त म िनणय यही आ–
यु करना तो आ मघात करना होगा। इससे हमारा सवनाश हो जाएगा। अमीर के गा
नह । भलाई इसी म है क सुलतान को राह दे दी जाए। वह िसफ राह माँगता है, हम
पर चढ़ाई नह करता। औिलया ने ठीक कहा है। वे जा त पीर ह। हमारे शुभिच तक ह,
िनल भ ह, खुदापर त ह। उनका म खुदा का म है।
अमीर के सै य सागर के सामने अजयपाल क सेना एक बूँद के बराबर भी नह
थी। य द वह लड़ता तो उसका, उसक सेना का और मुलतान का सवनाश िनि त था।
अपना सवनाश करके भी वह सुलतान को रोक नह सकता था। फर अपना सवनाश
करने से या लाभ? पर तु देश और धम के इस बल श ु को कै से वह देश म घुसने दे?
यह भी एक था। यह उसके ि य व का था। म थली के ार पर घोघागढ़ म
उसके दादा घोघाबापा बैठे ह। लोहकोट म भीमदेव ह। सपादल म महाराज धम
गजदेव ह। ये सब स ब धी वीर और तेज वी पु ष ह, ये सब उसक कायरवृि देख
या कहगे?
महाराज अजयपाल को कोई छोर नह िमला। वह सोचने लगे, अव य ही
अमीर को राह देना पाप है, पर तु पाप का भागी या म ही ?ं यह अभागा भारत देश
य ख ड-ख ड है। य नह एक सू म संग ठत है। सब लोग छोटे-छोटे राजा बने बैठे
ह। वे सब अपनी ही अकड़ म म त ह। इतना बड़ा िवशाल भारत देश कै से िवदेशी लुटेर
के हाथ लूटा जाता है। यह तो हम देखते ही ह, पर तु सब हाथ पर हाथ धरे बैठे ह। कोई
कसी क नह सुनता, फर म ही या क ं ? मेरी शि ही कतनी, हैिसयत ही या?
पाप ही है तो सबका है। म य द सुलतान का िवरोध करता ,ँ तो मेरा तो सवनाश होगा
ही, यह समृ मुलतान शहर भी लूट और आग क भट होगा। यह या पाप नह होगा?
म िजस देश का राजा ,ं या उसे बचाना मेरा धम नह है? या वह पाप इस पाप से
भी बड़ा होगा?
अ त म अजयपाल ने इसी म भलाई समझी क वह सुलतान को राह दे दे। फर
उसका प रणाम जो हो सो हो।
मुलतान के ार पर
गज़नी से कू च कए अभी पूरा एक महीना भी नह बीता था क अमीर ने
मुलतान के ार पर बाग रोक ।
काबुल क िवकट घाटी पार कर िस धुनद जैसी अगाध नदी के पार उतर, और
उजाड़ रे िग तान को लांघकर के वल एक मास के अ पकाल म श ु देश के एक समृ
रा य क सीमा म िनभय घुस आना, कोई साधारण काम न था। पर महमूद के िलए यह
एक मनोरं जक खेल था।
मुलतान िस धु के मुख पर अित ाचीन नगर है। उसका ाचीन नाम मूल थान
था। स भवत: आय ने जब भारत- वेश करके प िस धु म अपना थम रा य कायम
कया था, तब इस नगर क बुिनयाद पड़ी हो। मुलतान म सूयदेवता का िस मि दर
था, िजसके दशन-पूजन के िलए देश-देश के या ी िनर तर आते रहते थे। यह मि दर
कभी समूचा वण का बना था, पर तु िजस काल क हम बात कह रहे ह, उस काल म
भी उसका वैभव अतोल था। यह कै से हो सकता था क महमूद-जैसे लुटेरे और उसके
डाकू सािथय क लोलुप गृ दृि उसपर न पड़ती।
पर तु मुलतान ने िबना िवरोध और िबना शत सुलतान को के वल आ म-
समपण ही नह कया, अिपतु वहां के राजा ने ब मू य भट लेकर अमीर का अिभन दन
कया। यह एक चम कार ही कहा जा सकता था। िजसने सुना उसी ने चम कृ त हो दाँत
तले उँ गली दबाई। पर तु इस चम कार के भीतर जो चम कार था, उसे तो के वल अमीर
ही जानता था। िबना यास मुलतान को ताबे होते देख अमीर बड़ा स आ। इसे
उसने एक शुभ शकु न समझा। अमीर क अवाई सुनकर ब त जन भयभीत हो नगर
छोड़कर भाग खड़े ए थे। अमीर के बबर लुटेरे मुलतान को लूटने को अधीर हो रहे थे।
क तु हज़रत अली िबन उ मान ने सुलतान को कहला भेजा था क मुलतान को कदािप
लूटा न जाए और महाराज अजयपाल से िम वत् वहार कया जाए। अमीर ने
औिलया को ऐसा ही आ ासन, कृ त ता सिहत भेज दया था।
अमीर महमूद जैसा साहसी यो ा और कु शल सेनापित था, वैसा ही िवल ण
राजनीित भी था। मुलतानपित महाराज अजयपाल क उसने एक दरबार करके
धूमधाम से अ यथना क और उसे बराबर बैठाकर कु शल ेम पूछा।
वा तव म महाराज अजयपाल अपने काम पर लि त थे। उनका काय चाहे
िजतना भी राजनीितमूलक और बुि म ा का था, पर िन दनीय तो था ही। सबसे बड़ा
भय उनको घोघाबापा का था, िजनके शौय और बड़ पन के आगे अजयपाल को सदैव
झुकना पड़ता था। अमीर क यह अ यथना उसे िवष के समान लगी। और वह बड़ी देर
तक अमीर के स मुख आँख नीची कए बैठा रहा।
क तु अमीर ने राजा के मनोभाव को ताड़ िलया। उसने खुशामदभरे वर म
कहा, ‘‘महाराज, जैसे म दु मन के िलए स त ,ँ वैसा ही दो त के िलए नम। आपसे म
ब त खुश ँ और आज से आप मेरे दो त ह। अपनी इस दो ती के िसलिसले म, म
आपको पंजाब और िस ध के वे इलाके देता ँ जो अब तक मेरे क जे़ म थे। िमहरबानी
करके इ ह कबूल फमाइए और हमेशा ऐसी ही दो ती कायम रिखए।’’
िस ध के इन इलाक पर क ज़ा हो जाना मुलतानपित के िलए साधारण
लोभन न था। इससे उसका रा य ही दूना हो गया। वह सोचने लगा, एक तरफ अमीर
को नाराज़ करके िवनाश को िनम ण देना था, दूसरी तरफ उसे स करके णा–भर
ही म उसका रा य दूना हो गया।
उसने झुककर अमीर का अिभवादन कया और कहा, ‘‘सुलतान, य द सचमुच
ही मेरे ऊपर स ह तो मुझे एक वचन द, ता क सुलतान क कृ पा कभी न भूल सकूँ ।’’
सुलतान ने कहा, ‘‘मेरे दो त, जो चाहते हो, अपने सुलतान से ले लो।’’
‘‘तो यश वी सुलतान, आप हमारे इ देव सूय के मि दर क र ा कर, उसे
खि डत न कर और मेरे मुलतान को भी अभयदान द।’’
सुलतान ने कहा, ‘‘मुलतान को लूटा नह जाएगा, आप इ मीनान रिखए, िसफ
शहर के कु छ मुिखय को मेरे पास भेज दीिजए। म उनसे थोड़ा-सा द ड लेकर ही स तु
हो जाऊँगा। वह भी िसफ अपनी आन कायम रखने के िलए।’’
राजा ने गदन नीची करके उदास भाव से कहा, ‘‘खैर, मगर दूसरी ाथना।’’
‘‘आप जानते ह महाराज, क म कु को बदा त नह कर सकता, और मश र
बुतिशकन ।ँ ’’
‘‘जानता ँ सुलतान, मगर सूयदेव के इस मि दर क बदौलत ही मुलतान क
सारी समृि , शोभा और िसि है। देश-देश के जो या ी सूयदेव के दशन को आते ह,
उनक खरीद-िब से मुलतान के बीस हज़ार कारीगर और पचास दुकानदार अपनी
रोज़ी-रोटी चलाते ह। मि दर भंग होने से उनक रोज़ी तो जाएगी ही, मुलतान का
सारा गौरव-वैभव भी न हो जाएगा। इससे तो अ छा यही है क सुलतान मेरा िसर
काट ल और फर नगर को लूट-पाट कर उसम आग लगा द,’ बूढ़े राजा ने आँख म आँसू
भरकर उ ेजना से काँपते-काँपते ये श द कहे।
अमीर ने तपाक से राजा का हाथ पकड़कर कहा, ‘‘नह दो त, ऐसा कभी नह
हो सकता। महमूद अपने िमहरबान दो त को कभी नाराज़ नह कर सकता। म आपक
बात मानता ,ँ मगर आपको मेरा एक काम करना पड़ेगा।’’
‘‘किहए।’’
‘‘लोहकोट, सपादल और झालौर के राजा आपके नज़दीक र तेदार ह।
घोघाबापा भी आपके बुजुग ह। आप इ ह समझा-बुझाकर मुझे गुजरात क राह दला
दीिजए। म आपको यक न दलाता ँ क इन राजा से म उसी तरह पेश आउँ गा, जैसे
आपसे। म उ मीद करता ँ क लोहकोट, सपादल और झालौर के राजा तथा
घोघाबापा भी आपक ही तरह अपना नुकसान और फायदा समझ जाएँगे और मेरे
अपना नुकसान फायदा समझ जाएँगे और मेरे रा ते म बाधक न ह गे । म अपनी दो ती
के िसले म आपके हाथ आपके इन स बि धय को मुनािसब नज़राना भी भेजना चाहता
।ँ ’’
महाराज का धम-संकट बढ़ गया। वे सोच म पड़ गए। अमीर ने ज़रा तेज़ वर
म कहा, ‘‘म तो उनसे आप ही क भाँित दो ती का वहार करना चाहता ,ँ इसे वे
अ वीकार कर तो उनक मज़ है। मगर औिलया ने जो राह आपको भलाई क बताई,
वही आपके इन र तेदार के िलए भी है। फर आपक इस तकलीफ के बदले म सारा
ही पि मी पंजाब आपके हवाले कर दूग ं ा।’’
अछता-पछताकर िन पाय अजयपाल को अमीर का अनुरोध मानना ही पड़ा।
भय और लोभन ने उसका िसर नीचा कर दया। अमीर ने स -वदन िसरोपाव दे उसे
िबदा कया। अब उसे राज थान का िवकट म थल पार करना था िजसम अनेक
भौितक और राजनैितक बाधाएँ थ । इस भयंकर म थल म सैकड़ कोस तक जल का
नाम-िनशान नह था। न पेड़-पौधे या ह रयाली थी, न राह-बाट। दन म कई बार
अंधड़-तूफान आते और रात-सा अ धकार छा जाता। पवत के समान रे त के टीले देखते-
ही-देखते इधर-से-उधर लग जाते थे। पर तु ये भौितक बाधाएँ तो थ ही। इस म थली
के मुख पर चौहान भी म घोघाबापा घोघागढ़ म सतक बैठे थे। घोघाबापा अजयपाल के
स ब धी थे। मुलतान और म थली के बीच म लोहकोट म अजयपाल का भतीजा
भीमपाल चौक दे रहा था। म थली के उस छोर पर झालौर के िस रावल
वा पितराज क चौक थी।
ये सारी बाधाएँ साधारण न थ , पर अमीर का साहस भी साधारण न था।
उसने सब ऊँच-नीच समझा-बुझाकर अजयपाल को अपने िव ासी सेनापित सालार
मसऊद और ह ाम ितलक के साथ ब त-सी र -मिण लेकर लोहकोट, सपादल ,
झालौर और घोघागढ़ एक मज़बूत द ते के साथ भेज दया। अजयपाल अपने पु को
मुलतान स प अमीर का दूतकम करने चल दया।
अब इसने इस काम से िनवृ होकर फर नगर पर दृि डाली। अजयपाल को
वह नगर न लूटने का वचन दे चुका था, लाहौर के पीर-मुशद का भी यही आदेश था।
सूयदव का मि दर भी वह नह लूट सकता था, य िप वहाँ क स पदा ने उसक लोलुप
दृि को चल-िवचिलत कर रखा था। उसने मुलतान के मुख नाग रक के ितिनिध-
म डल को अपने सामने हािज़र होने का म दया। नगर के इ स मुख भ नाग रक
डरते-काँपते अमीर के स मुख आ उपि थत ए।
अमीर ने उनसे शा त वर म कहा–
‘‘नाग रको! आप लोग को कस मतलब से यहाँ बुलाया गया है, वह आप
समझ गए ह गे। आप लोग ने हमारा सामना नह कया, हमारे साथ दु मनी नह क ,
इसीिलए आपके नगर को लूटने या उसे हािन प च ँ ाने क हम तिनक भी इ छा नह है।
बस, आप लोग हम दो करोड़ पया द ड दे द तो हम तुर त यहाँ से कू च कर। य द आप
यह जुमाना अदा करने म देर या हीला-हवाला करगे और अकारण हम रोक रखगे, तो
हम लाचार होकर दूसरा स त कदम उठाना पड़ेगा। इससे बताइए, आप लोग जुमाना
अदा करने के िलए कतनी मु त चाहते ह?’’
सुलतान क बात सुनकर नाग रक ने भयपू रत ने से उसे देखा और करब
कहा–
‘‘हमने आलीजाह का कोई नुकसान नह कया, कोई कु सूर नह कया, फर
इतना भारी जुमाना हमारे गरीब शहर पर य ? इतना भारी द ड मुलतान के गरीब
लोग नह भर सकते।’’
पर तु सुलतान ऐसी धातु का नह बना था क ऐसे दीन वचन से िपघल जाए।
उसने तुर त उन मुखजन को कै द करने क आ ा दे दी तथा उ ह भूखा- यासा रहने
दया। पर तु मुख नाग रक यह क भोग कर भी द ड देने म अपनी असमथता दखाते
रहे।
अली अ बास ने अमीर को कु छ द ड कम करने का परामश दया, पर अमीर ने
वह वीकार नह कया और नाग रक पर अ याचार करना ार भ कर दया। उ ह
िचत िलटाकर उनक छाती पर प थर रखवाए। फर उ ह धूप म टांग फै लाकर खड़ा
कर दया।
राजा नगर छोड़कर भाग गया है और अमीर नगर के मुख पर अ याचार कर
रहा है, यह अफवाह नगर म फै ल गई। लोग चार ओर से िसमटकर सूयदेव के पुजारी
सोमदेव के पास प च
ँ ।े
सोमदेव क अव था अ सी को पार कर गई थी। उ ह ने पूरे आठ वष तक
सूयदेव क आराधना क थी। नाग रक को भयभीत और अरि त देख सोमदेव वयं
सुलतान के पास गए, पर तु अमीर ने उनका भी अनुरोध नह माना। इस पर सोमदेव ने
मि दर का सब धन-र , द ड म देकर नगर के मुख जन को मुि दलाई।
अनायास ही के वल इतने ही धूम-धमाके से इतनी भारी रकम पाकर अमीर
स हो गया। अब उसने म थली क दशा म याण करने क अिवल ब तैया रयाँ
क । उसने सारी सेना क परे ड क । उसका नए िसरे से संगठन कया। नए दल, नए
सेनापितय को बाँटे। म थली पार करने के सब उपल ध साधन जुटाए। पाँच सौ
हािथय पर ब त-सी खा साम ी और बीस हज़ार ऊँट पर पीने का पानी साथ ले
उसने म थली पर बाग उठाई, िजसके एक नाके पर गृ क सी दृि जमाए म थली
के भी म घोघाबापा बैठे ए थे और उस छोर पर झालौर के महावीर वृ ा रावल
वा पितराज क चौक थी, िजसम सैकड़ कोस तक जल का नाम-िनशान न था। न पेड़,
न पौधे, न ह रयाली, न राह-बाट। जहाँ मृ यु रे त और आँधी से आँख-िमचौनी खेलती
थी।
घोघाबापा
म थली के िसर पर घोघागढ़ नामक एक छोटा-सा कला था। कला एक
ऊँची और सीधी खड़ी ई अगम च ान क चोटी पर था। दुगम िग र पर िवराजमान
ग ड़ क भाँित वह छोटा-सा दुग उस समय ब त मह व रखता था। िबना इस दुग क
दृि म पड़े कोई इस म थली म िव नह हो सकता था।
गढ़पित चौहान कु लिशरोमिण वीर घोघा राणा थे। घोघा राणा अित वृ थे।
उनक आयु न बे को पार कर रही थी। पर तु उनक दृि सतेज और क ठ वर व घोष
के समान ग भीर था। घोघा राणा बड़े वीर और धमपरायण थे। अपने उदा गुण और
वयोवृ होने से वे आसपास सव राजवग म तथा सवसाधारण म घोघाबापा के ि य
नाम से िचर िव यात थे। घोघाबापा का रं ग गौर, कद ल बा तथा शरीर छरहरा था।
इतनी आयु म भी उनक कमर नह झुक थी। उनक धवल गलमु छेदार मूँछ, उनके
तेज वी चेहरे पर अ यंत शोभायमान तीत होती थ । वे मन के शु , हँसमुख और
सरल पु ष थे। वे म थली के महाराजा कहाते थे।
घोघाबापा के प रवार म पु , पौ , पौ , दौिह , सब िमलाकर बयासी
पु ष थे। ये पु का नाम स न संह था। स न संह क आयु इस समय पसठ को
पार कर रही थी। उसम िपता के सब गुण िवकिसत ए थे। वह एक उ कृ यो ा और
स र पु ष थे।
स न संह के के वल एक पु था इसक आयु प ीस या छ बीस वष क थी।
यह युवक अित सु दर, सुकुमार और साहिसक था। घोघाबापा सबसे अिधक इसे ही
यार करते थे।
घोघाबापा के इ देव सोमनाथ थे। उ ह ने सोमनाथप न से महादेव का लंग
लाकर गढ़ के म य म बड़ी धूमधाम से िति त कया था। इस मि दर क पूजा-अचना
घोघाबापा के कु लगु ा ण नि दद ा करते थे।
नि दद बड़े िव ान् और स र पु ष थे। उनक आयु भी स र से ऊपर हो
चुक थी। नि दद ही घोघाबापा के रा य-म ी, पुरोिहत, गु और ि य िम थे।
घोघाबापा जब ु होते और जब कोई भी उनके िनकट नह जा सकता था, तब
नि दद ही उनके स मुख बात करने का साहस कर सकते थे। नि दद ने ही स न
और साम त दोन को अ रा यास कराकर श का अ यास कराया था।
घोघागढ़ म कु ल आठ सौ राजपूत और तीन सौ अ य पु ष थे। सब िमलाकर
सात सौ ि याँ थ । ब े भी थे। ये सब, राजा और जा, इस म थली के शीष थल पर
एक सि मिलत प रवार क भाँित रहते थे। घोघाबापा अपनी जा के राजा न थे, िपता
थे। येक के छोटे-छोटे दुख-सुख का भी उ ह ब त यान रहता था।
गज़नी के अमीर क अवाई सुनकर घोघागढ़ म भी उ ेजना और िच ता क
लहर फै ल गई थी। घोघाबापा कान से कु छ उँ चा सुनते थे। यहाँ यह कहने क
आव यकता नह क लोहकोट के भीमपाल ने भी अजयपाल के परामश से अमीर को
राह दे दी थी। मुलतान और लोहकोट का यह पराभव-वृ ा त घोघागढ़ प च ँ चुका था।
पर तु स न संह और नि दद ने यह वृ ा त घोघाबापा को उनक वृ ाव था का
िवचार करके सुनाया नह था। पर तु वे बड़ी बेबसी से आगे के समाचार जानने को
हो रहे थे।
एक दन गज़नी के दूत ने घोघागढ़ क पौर पर सांढ़नी रोक । गढ़वी एक
अधेड़ वय का चौहान यो ा था। उसका नाम राघव था। आयु उसक भी स र को पार
कर गई थी। उसने िचि तत भाव से दूत को वह रोककर स न संह को सूचना दी।
स न संह ने नि दद से परामश कर दूत को गढ़ म िव होने क आ ा दे दी। अब
और िवल ब न कर स न संह, नि दद और साम त संह को लेकर घोघाबापा के पास
प च ँ ।े
इधर-उधर क बात िछड़ने के बाद नि दद ने कहा, ‘‘महाराज, गज़नी का
सुलतान गुजरात म घुसा चला आ रहा है। उसके पास अगिणत बबर ले छ क सै य
है। सुनते ह, वह इस बार सोमप न को आ ा त करे गा। सोमनाथ के योित लग को भंग
करे गा।’’
घोघाबापा ने कहा, ‘‘वह आता है, आता है, यह तो सुनता ,ँ पर आता कहाँ
है?’’
‘‘महाराज, खबर तो प ही है।’’
‘‘अ छा प ही है तो आए, पर तु कै से आएगा? लोहकोट म मेरा भीमपाल
चौक पर मु तैद है, मुलतान म अजयपाल चाक-चौब द बैठा है। सपादल म मेरा
धमगजदेव है। यहाँ म थली के नाके पर म वयं बैठा ।ँ ’’
‘‘पर बापा, वह मुलतान और लोहकोट को लांघकर घोघागढ़ क सीमा म
प च ँ गया है।’’
‘‘घोघागढ़ क सीमा म प च ँ गया है? यह कै सी बात? और अजय?
भीमपाल?’’
‘‘अजलपाल काका और भीमपाल दोन ने मुँह म कािलख लगा ली है, उ ह ने
िबना ही लड़े-िभड़े ले छ को माग दे दया।’’
‘‘ या कहा? अजयपाल ने माग दे दया।’’
‘‘हाँ, महाराज।’’ नि दद ने दुिखत वर म कहा।
‘‘घोघाबापा ने लाल-लाल ने से स न क ओर देखकर कहा, ‘‘और
भीमपाल क या बात कही तून?े ’’
‘‘उस कायर ने भी अपने को बेच दया।’’
घोघाबापा बोले नह । मौन होकर बैठे रहे। यही उनका वभाव था। ोध के
आवेग म उनके ह ठ जुड़ जाते थे।
डरते-डरते स न ने कहा, ‘‘बापू।’’
घोघाबापा ने लाल-लाल आँख पु क और फे र । स न ने नि दद क ओर
देखा।
नि दद ने शा त वर म कहा–
‘‘महाराज, अमीर ने वहाँ से दूत भेजे ह।’’
‘‘दूत?’’
‘‘हाँ महाराज, दूत अव य ह, इसी से उ ह बाहर रोककर सेवा म िनवेदन करने
हम आए ह–अब जैसी महाराज क आ ा!’’
घोघाबापा के ने म िबजली-सी क घ गई। उ ह ने पूछा–
‘‘वे कतने ह?’’
‘‘दो ह।’’
‘‘दोन या ले छ ही ह?’’
‘‘एक िह दू है।’’
‘‘ या राजपूत है?’’
‘‘नह , ह ाम है, पर कहता है वह दुभािषया है। अमीर के दरबार म उसक
ित ा है।’’
‘‘और दूसरा?’’
‘‘वह एक त णा तुक सेनापित है।’’
कु छ देर घोघाबापा चुपचाप सोचते रहे, फर धीरे से बोले, ‘‘उ ह बुलाओ।’’
दोन दूत ने आकर घोघाबापा को णाम कया। ह ाम ने आगे बढ़कर हीर
से भरा आ थाल घोघाबापा के चरण म रख दया और पीछे हट हाथ बाँध कर खड़ा
हो गया।
घोघाबापा ने थाल पर, ह ाम पर और उसके पीछे खड़े त ण तुक पर एक
दृि डाली।
त ण क अव था तीस वष क होगी। वह एक गौरवण तेज वी युवक था।
उसक आँख म घम ड भरा था। उसका अंग गठा आ था और वह ब मू य व पहने
था। घोघाबापा को अपनी ओर ताकते देख उसने शु तुक भाषा म कहा, ‘‘आपक
शूरवीरता और बुजुग पूजा के यो य है। गज़नी के अमीर अमीनु ौला महमूद ने यह
तु छ भट अपनी िम ता के उपल म भेजी है । कु बूल फमाकर ममनुन क िजए।’’
ितलक ने अनुवाद कह सुनाया।
घोघाबापा के मुँह से बात नह िनकली। के वल मूँछ फड़क कर रह ग । दोन
दूत स देह म पड़ गए। नि दद ने अवसर देखकर पूछा, ‘‘अमीर या चाहता है?’’
‘‘आप म थली के महाराज ह, अमीर म थली म होकर भास जाने क
इजाज़त चाहता है?’’
युवक ने कु छ िवनय और कु छ दबंगता से कहा। ह ाम ने अनुवाद सुना दया।
बापा ने त ण क ओर संकेत करके पूछा, ‘‘वह कौन है?’’
‘‘महाराज, यह अमीर के िसपहसालार मसऊद ह,’’ ह ाम ने हाथ जोड़कर
कहा–‘‘अमीर क ओर से िवनय करते ह।’’
‘‘िवनय?’’ घोघाबापा ने धीरे से कहा। और फर घूमकर उस घम डी युवक को
देखा, जो तलवार क मूठ पर हाथ रखे तना आ खड़ा था।
‘‘िवनय,’’ घोघाबापा ने िसर िहलाया और हंस दए।
ितलक ब ांजिल खड़ा रहा। मसऊद अपनी पूरी उँ चाई म तन गया। बापा ने
कहा, ‘तो अमीर मुझसे प न जाने का माग माँगता है?’’
‘‘हाँ महाराज।’’
घोघाबापा नंगी तलवार हाथ म लेकर एकाएक उठ खड़े ए। मसऊद ने भी
तलवार ख च ली। साम त उछलकर उसक गदन पर जा पड़ा।
नि दद ने िवनय से कहा, ‘‘महाराज! दूत अव य है।’’
‘‘तो उसे कहो क यह लात ही मेरा उ र है।’’
उ ह ने कसकर एक लात उस हीर से भरे थाल म लगाई और वहाँ से चल
दए। राजगढ़ के उस क म वे हीरे िबखर कर वहाँ क धूल को दी करने लगे।
मसऊद के मुख पर उसके शरीर का समूचा र भर गया।
नि दद ने कहा, ‘‘आओ, म तु ह सुरि त गढ़ से बाहर प च
ँ ा दू।ं पु साम त,
राह छोड़ दो।’’
आगे-आगे वृ ा ण नि दद , उनके पीछे उतरा चेहरा िलए ह ाम ितलक
और सबके पीछे ोध से थर-थर काँपता आ सालार मसऊद गढ़ से बाहर जा रहे थे।
महो सग
कु छ ही देर म घोघाबापा कित थ हो गए । उनका ोध न जाने कहाँ
िवलीयमान हो गया। अभी तक स न और साम त हाथ म नंगी तलवार िलए िवमूढ़
खड़े गढ़ से बाहर जाती ई गज़नी के अमीर क सांढ़नी को रौ ने से ताक रहे थे।
घोघाबापा ने आकर पु के क धे पर हाथ रखकर कहा, ‘‘स न, इन जाते
को या ताकता है, अब आते क ताक म रहना होगा। जा, तू इसी ण सांढ़नी
लेकर दौड़ जा, न द और िव ाम का समय नह है। अरे , सूय और च के वंशधर ने
ाण के मोह और चमक ले कं कड़-प थर के लालच म धम और कत बेच दया। मेरी
मुलतान और लोहकोट क चौक टू ट गई। पर तु अभी म ,ँ िच ता नह । म भगवान्
सोमनाथ क चौक पर यहाँ म थली के मुख पर मु तैद ।ँ गज़नी के अमीर क या
मजाल जो मेरी म भूिम म पैर र खे। पर तू जा, अभी जा और झालौर प च ँ कर परमार
को होिशयार कर दे। िजतनी ज द प च ँ सके , प चँ जा पु , तुझे के वल जाना ही है,
आना नह । यह तलवार अभी यान म मत करना। वहाँ से सीधा सोमनाथप न प च ँ ना
और सव क आ ा से वह भगवान् सोमनाथ के र ण म जूझना। अभी तो म ही ,ँ
पर कदािचत् कोई अघट घटना घट जाए, तो तू अपने हाथ से अमीर का िसर काटना,
नह तो रणांगण म मर िमटना मेरे पु ।’’
इतना कहकर िबना उ र क ती ा कए राणा ने दो कदम आगे बढ़कर
साम त के िसर पर हाथ रखकर कहा, ‘‘पु , तुझे भी जाना होगा। य िप तेरे िबना मेरा
ाण ाकु ल रहेगा, पर मोह का राजपूत-जीवन म काम नह है। पहले कत और फर
जीवन। पु , तू िजतनी ज दी हो सके । अनिह ल प न जा और चालु य राज परम
परमे र महाराज चामु डराय को गज़नी के इस दै य से सचेत कर दे। जा पु , और तू
वह गुजरे र के आदेशानुसार भगवान सोमनाथ क र ा-सेवा करना। यहाँ लौट आने
क िच ता मत करना।’’
इस बार वृ भी म के अँगारे क भाँित जलते ए ने म जल छलछला आया,
पर उसे उ ह ने हँसकर ने ही म सुखा डाला।
स न ने हाथ बाँध कर कहा–
‘‘ क तु बापू, आप...’’
‘‘अरे रेरे’’, घोघाबापा अ हास करके हँस पड़े, ‘‘तुझे आज इस ण मेरी िच ता
ई है! मेरी आ ा पाने के बाद? म अब न बे वष का आ, तो या तूने ही मुझे रि त
र खा है? अरे , या तू नह जानता, जो िव भर िव -भर का पालन करता है, वह
सदैव घोघाबापा के अनुकूल रहा है, हा-हा-हा-हा’’ घोघाबापा फर हँस पड़े। ‘‘जाओ,
जाओ, एक-एक सांढ़नी ले लो और दो-दो सवार, बस।’’
इतना कहते-कहते घोघाबापा का कं ठ वर खा हो गया। ेह क आ ता जैसे
हवा म उड़ गई। उ ह ने ह ठ स पु टत कर उँ गली उठाकर दोन को वहां से तुर त चले
जाने का संकेत कया।
अब िपता-पु का साहस एक श द भी कहने को न आ। दोन ने भूिम म
िगरकर घोघाबापा के चरण म माथा टेका और चल दए।
बापा ने अब नि दद को बुलाया। उनके आने पर दोन हाथ फै लाकर कहा,
‘‘गु देव, अब आप ह और म ,ँ बस इतने म ही समझ जाइए। गढ़ गढ़वी का, अमीर
मेरा और अ त:पुर आपका। पर तु अभी हम ब त समय है। अमीर को यहाँ प च ँ ते एक
पखवाड़ा तो लग ही जाएगा। इस बीच म हम चाकचौब द हो रहगे। पर तु आपको एक
काय करना होगा। आपको इसी ण सपादल जाकर धमगजदेव को सावधान करना
होगा। समय िवपरीत है, कह ऐसा न हो, उसक बुि भी भीम पाल और अजय क
भाँित माग- हो जाए। इसी से और कसी को न भेजकर, आप ही को भेजता ।ँ
देखना, चौहान के मुंह म अब और कािलख न लगने पाए। फर आपको अमीर से पहले
ही लौट आना है। अ त:पुर आपका है, यह न भूलना। और बात म आपके आने पर
क ग ँ ा।’’
वृ नि दद कु छ देर खड़े कु छ सोचते रहे। इसके बाद एक पु प वृ राजा क
पगड़ी पर रख, दोन हाथ उठाकर उ ह ने आशीवाद दया और एक ण भी न खोकर,
एक श द भी न कहकर एक बारगी ही चल दए।
के स रया बाना
वृ घोघाबापा युवा पु ष क भाँित त काय म म जुट गए। उ ह ने गढ़वी
राघव के साथ घोड़े पर सवार होकर सारे गढ़ का िनरी ण कया। मर मत के यो य
थल क मर मत ार भ कर दी। अनाव यक ार को ट-प थर से भरवा दया।
खाई क सफाई कराई, पुल उठवा दया और गढ़ी के ार ब द कर दए, के वल मोरी
खुली र खी।
गढ़ी के लुहार क ध कनी आग क िचनगा रय से रात- दन मनोरं जन के खेल
खेलने लगी। ढेर के ढेर तीर, बछ और तलवार तैयार होने लग । राजपूत अपनी-अपनी
ढाल-तलवार मांजकर साफ करने लगे।
घोघाबापा के आदेश से गढ़ी के बाहर के सब गाँव उठकर गढ़ी म आ गए। खड़ी
फसल जला डाली ग । कु एँ, तालाब, बावड़ी पाट दए गए। अब पचास-पचास कोस
तक अ , जल और घास का नाम-िनशान न रह गया। गढ़ी म रोज जुझा बाजे बजने
लगे। मि दर म िन य क तन होने लगा। चौहान राजकु ल क वधुएँ त-उपवास और
दान कर पु याजन करने लग ।
वृ घोघाबापा िन य सायं ात: गढ़ी के बुज पर खड़े होकर दूर ि ितज क
ओर गज़नी के अमीर क सेना को भाव से देखा करते। उनके साथ ब त से राजपूत,
जन-साधारण और बालक भी होते थे।
और एक दन िजसक ती ा थी, वह स य आ। दूर ि ितज म भयानक
अजगर क भाँित सरकती ई अमीर गज़नी क िवकराल सै य चली आ रही थी। उस
सेना का आ द-अ त न था। घोड़ के खुर से उड़ाई ई गद ने आकाश को ढांप िलया था।
गद के बादल म िबजली क भाँित सेना के श चमक रहे थे। काले-पीले उछलते-दौड़ते
घुड़सवार पी िविवध मेघ के समान उमड़ती ई इस ले छ सेना को बढ़ती आती ई
देख, घोघाराणा क आँख से आग क िचनगा रयाँ िनकलने लग । उ ह ने िचि तत
भाव से सपादल क दशा म दृि फे री। नि दद अभी भी लौटकर नह आए थे।
राणा ने अ त:पुर का नाजुक दािय व नि दद को दया था, अत: उनका अमीर से थम
ही प चँ जाना अ य त आव यक था। राणा िवकल भाव से नि दद क ती ा करने
लगे।
देखते-ही-देखते अमीर क सेना ने इस तरह गढ़ी घेर ली, जैसे सांप कु डली
मारकर बैठ जाता है। घोघागढ़ के कं गूर पर धनुधारी यो ा जम कर बैठ गए। अमीर
क अगिणत सै य िन पाय थी। उसके हाथी, घोड़े गढ़ी के सीधे परकोटे पर चढ़ ही न
सकते थे। दुजय पवत पर घोघागढ़ का वह अजेय दुगम दुग िसर ऊँचा कए खड़ा था।
पदाितक को कम द के ारा दुग पर चढ़ाना भी बेकार था।
ह ाम ितलक घोड़े पर सवार हो सफे द झ डा फहराता आ अके ला दुग क
ओर अ सर आ। उस समय सूय अ ताचल जाने क तैयारी म थे। श ु सेना से एक
सवार को अ सर होते देख गढ़वी ने बाण सीधा कर ललकार कर कहा–
‘‘वह खड़ा रह। कह, या चाहता है?’’
‘‘म अमीर का दूत ।ँ ार खोल दो, मुझे घोघाराणा से अमीर का स देश
िनवेदन करना है।’’
‘‘ ार नह खुल सकता, तू अपना स देश िनवेदन कर।’’
‘‘तो मेरी ओर से करब राणा से ाथना करो क नाहक राड़ मत ठािनए।
अमीर को राह दे दीिजए। अमीर घोघाराणा पर चढ़ाई नह कर रहे ह।’’
‘‘करब ाथना कौन करता है?’’
‘‘म, अमीर का ह ाम, ितलक, ाथना करता ।ँ ’’
‘‘तू ह ाम है। तेरा काम टहल करना है, राजा से बात करना नह , तू भाग
यहाँ से।’’
‘‘ क तु म अमीर का दूत ,ँ यह अमीर क ाथना है।’’
‘‘तो उसका उ र यह मेरा बाण है।’’
गढ़वी ने तानकर बाण फका, वह अमीर के दूत के झ डे को चीरता आ पार
चला गया। गढ़वी ने कहा, ‘‘जा, भाग जा। दूत अव य होता है, इसी से छोड़ता ।ँ
म थली के महाराज उसे माग नह दगे।’’
दूत चुपचाप पीछे लौट गया।
रात हो गई। अमीर क सेना म सैकड़ मशाल जला दी ग । दूर-दूर तक अमीर
क छावनी पड़ी थी। अमीर ब त िचि तत था। गढ़ पर चढ़कर उसे िवजय करना
असा य था। घेरा डालना और भी थ था। वष घेरा डाले रहने पर भी घोघागढ़
िवजय नह हो सकता था। उधर अमीर वहाँ चौबीस घ टे भी नह ठहरना चाहता था।
उसके घोड़े और िसपाही सब भूखे- यासे थे। यहाँ न एक ितनका घास थी, न एक बूँद
जल। अभी उसे म थली क दुगम राह पार करनी थी। साथ का पानी और रसद यह
पर समा कर देना वह नह चाहता था। अजेय घोघागढ़ ऊँचा िसर कए उसका
उपहास कर रहा था और अमीर क च ड सेना िन पाय उसक ओर ताक रही थी।
अभी सूय दय म देर थी। गढ़ के र क ने देखा, अमीर क वह अथाह सेना
धीरे -धीरे दुग का घेरा छोड़ इस कार म थली म धँस रही है, जैसे साँप बांबी म
धँसता है।
गढ़वी ने दौड़कर राणा से कहा, ‘‘बापा, अमीर म थली म घुस रहा है।’’
घोघाबापा खड़े हो गए। उ ह ने तलवार उठा ली। ोध से थर-थर काँपते ए
कहा, ‘‘म स र वष से म थली का वामी रहा ,ँ आज तक इन स र वष म मेरी
आ ा के िबना एक पंछी भी म थली म नह घुस सका है। अब यह गज़नी का अमीर
घोघाबापा के िसर पर लात रखकर, मेरी चौक को लाँघ कर म थली म पैर धरे गा?
यह मेरे जीते-जी हो नह सकता। जा बेटा, साका रचने क तैयारी कर, तब तक म आता
।ँ ’’
गढ़वी का मुँह भय से सफे द पड़ गया। घोघाबापा के मंसूबे को उसने समझ
िलया। उसने हाथ बाँध कर राजा क ओर देख कु छ कहने का उप म कया, पर उसक
जीभ तालू से सट गई। राणा ने उसका अिभ ाय समझ जलती ई आँख से उसक ओर
देखा। गढ़वी ने डरते-डरते कहा, ‘‘बापू, श ु क सेना असं य है।’’
‘‘सो इससे या आ रे ? घोघाबापा या श ु को िगनकर अपना कत पालन
करे गा?’’
गढ़वी को और कु छ कहने का साहस नह आ। वह िसर झुकाकर तेज़ी से चल
दया। ण भर बाद ही वह छोटी-सी गढ़ी िविवध रणबाज क तथा जयनाद क विन
से गूँज उठी। गढ़ म भाग-दौड़ मच गई। बेटे-पोते और स ब धी एवं सब ि य श
चमकाते ए महादेव के मि दर के आँगन म आ जुटे। घोड़ और ऊंट क िहनिहनाहट
और बलबलाहट से कान के पद फटने लगे।
घोघाबापा ने िन यकम से िनवृ हो ज़री का बागा पहना, िसर पर के सरी पाग
बांधी। म तक पर कुं कु म ितलक लगाया। कमर म दुहरी तलवार बाँधी। पर तु उनक
आँख नि दद को ढू ंढ रही थ । नि दद अभी तक भी सपादल से लौटे न थे।
घोघाबापा का म तक िच ता से िसकु ड़ गया। वे ह ठ म बड़बड़ाते बोले, ‘‘गढ़ गढ़वी
का, अमीर मेरा और अ त:पुर कु लगु नि दद का। पर तु नि दद कहाँ है? अब
अ त:पुर कसे स पा जाए?’’ घोघाबापा ने घबराई दृि से इधर-उधर देखा।
स मुख बदहवास नि दद दौड़े आ रहे थे। उनके व और दाढ़ी धूल म भरी
थी। वे चढ़ी सवारी सीधे राजा के पास आकर बोले, ‘‘महाराज यह सब या? महाराज,
महाराज!’’
उ ह ने दोन हाथ से मुँह ढांप िलया। वे धरती म बैठ गए और उनक आँख से
आँसू झर चले।
राणा उ ह देखते ही हष से िच ला उठे । उ ह ने कहा, ‘‘नि दद जी खुद आए।
अब सुनो, काम ब त और समय कम है। हाँ, पहले धमगजदेव क बात तो कहो।’’
‘‘अ दाता! महाराज धमगजदेव पु कर के मैदान म श ु क राह रोके बैठे ह।
उ ह ने कहा है, ‘‘बापा िच ता न कर। य द अमीर बापा क चौक लाँघकर यहाँ तक
आया तो जीिवत नह लौटेगा।’’
घोघाबापा क बाँछ िखल ग । उ ह ने कहा, ‘‘अब सुनो, तुम हमारे कु लगु
और रा यम ी हो। अत: मेरा अि सं कार तुम वयं अपने हाथ करना, और स न
और साम त म से कोई जीिवत लौट आए तो उसका राजितलक उसी भाँित करना, िजस
भाँित आज से स र वष पूव तु हारे िपता ने मेरा कया था।’’
इतना कहकर वृ ा ने हाथ से आँख के कोर म आया एक आँसू प छ
डाला।
नि दद क धवल दाढ़ी आँसु से भीग गई थी। उ ह ने कहा, ‘‘अ दाता! यह
कै सी आ ा! भला यजमान का िधर िगरे और कु ल-पुरोिहत भू-भार होकर पृ वी पर
जीिवत रहे?’’
“नह -नह , यह बात नह है, नि दद जी! पर तु आप सब शा के ाता
महा ानी पु ष ह। आपने देश-देशा तर मण कया है। आप भली भाँित जानते ह क
मेरा जीवन-योग तो कभी का पूरा हो गया था। भगवान् सोमनाथ को यह अभी है क
इस दास क मृ यु कृ िमक ट क भाँित न हो, वे इस अधम को धूमधाम से कै लासवास
कराना चाहते ह। मने जो न बे वष भगवान क एकिन सेवा क , आज मेरा वह सब
पु य फलेगा। अब आप अपने कत को िनबाहना। अ त:पुर आपका है, यह न भूलना ।
अवसर उपि थत होने पर िविध-िवधान से चौहान कु ल-वधु का अि रथ-अिभयान
स प कराना।’’
इस बार संह क भाँित वलंत ने से उ ह ने कुं कु म-अ त के थाल हाथ म
सजाए चौहान कु लांगना को झरोखे म खड़े देखा। फर उ वर से कहा, ‘‘चलो
पुि य , हम आज कै लास-गमन करते ह। तुम सब हम से थम वहाँ प च ँ कर इसी कार
अ त-कुं कु म से हमारा स कार करना। इसम अब देर नह है। कु छ ही घड़ी क बात है।’’
कु मा रयाँ मंगल गान कर उठ ।
नि दद ने आगे बढ़कर कुं कु म का ितलक राणा के म तक पर लगाया और
उ वर से कहा, ‘‘हे नरशादूल, याव - दवाकर तेरा यश अमर रहे!’’
बाहर सेना म जयनाद आ। राणा ने अ -पूजन कर अ ारोहण कया। रं ग-
महल से ताजे़ पु प बरसाए गए।
सब कोई मि दर के ांगण म एक ए। राणा ने देवाचन कया। नि दद ने
देव-िनमा य राजा को दया। घोघाबापा ने कहा–
‘‘सेवक, दुकानदार और बीमार सब पहले गढ़ से बाहर चले जाएँ और भी जो
कोई ाण बचाना चाहे, ी-पु सिहत, तथा जो साम ी ले जाना चाहे, लेकर चला
जाए।’’
बड़ी देर तक राणा ने ती ा क , पर तु एक भी ि जाने को राज़ी नह
आ। राणा ने एक दृि चार ओर फे री, सव के सरी पाग िहलोर ले रही थ ।
राणा ने राघवम ल गढ़वी को पुकारकर कहा, ‘‘राघव! ार खोल दे वीर, गढ़
तेरा है!’’
राघवम ल ने तलवार दाँत म दबाकर कहा, ‘‘नह अ दाता, म चरण म ,ँ
गढ़ गु देव ही को सम पत क िजए।’’
‘‘तब ऐसा ही हो। नि दद जी, गढ़, अ त:पुर और हमारी कु लमयादा आपके
हाथ रही।’’
नि दद िबना एक श द कहे भीड़ म घुस गए और अपने युवा पु को साथ ले,
राजा के सामने आकर कहा, ‘‘महाराज, आपक सब आ ा का मने पालन कया। म
आपका कु लगु ,ँ मुझे अब इस बेला गु -दि णा दीिजए।’’
‘‘माँग लीिजए, गु देव! आपके िलए कु छ अदेय नह है।’’
‘‘अ दाता! यह मेरा पु अपनी शरण म ले जाइए। मुझे गु तर भार स पकर
साथ चलने से आपने रोक दया है। म राजा ा का पालन क ँ गा, पर तु मेरा पु आपके
साथ ही र दान देगा। य िप वह श िव ा का पारं गत नह है, पर युवा है, सश है।
श ु एकाएक इसे मार न सके गा।’’
‘‘नह , नह , नि दद जी, आपका वंश...’’
‘‘उसक िच ता नह महाराज, मेरे पास मेरा पौ है, उसे म रख लूँगा, भगवान
सोमनाथ सा ी ह।’’
राजा घोड़े से उतर पड़े। उ ह ने त ण ा णपु को छाती से लगाया। अपनी
तलवार उसक कमर म बाँधी, फर अपने घोड़े पर हाथ का सहारा देकर उसे चढ़ाते ए
कहा, ‘‘चलो पु , जो सौभा य मेरे स न को नह ा आ, वह तु ह आ।’’
जय-जयकार से दशाएँ गूँज उठ । ह का ची कार करके दुग के फाटक खुल गए
और िवषधर सप क भाँित फु फकार मारती यह मर िमटने वाले वीर क छोटी-सी
म डली, घोघागढ़ के संह- ार के भात क थम करण म ानपूत हो, रणांगण म
अ सर ई।
अमीर ने देखा तो िवमूढ़ हो गया। इस कार इ छा करके मृ यु को वरण करने
का अथ वह समझ ही न सका। पर तु एक चतुर रण-पि डत क भाँित वह पतरा काट
घूम पड़ा। वह नह चाहता था क राजपूत पीछे से आ मण करके उसक सेना को
िवशृंखल कर द। उसने झटपट रसद और जल से भरे ए ऊँट, अश फय से लदे ए
हाथी और सेना का एक भाग सालार मसऊद क अ य ता म त ु गित से म थली म
िव कर दया। सेना के दूसरे भाग को िजसम हाथी, ऊँट और तीर दाज थे, अपने ि य
गुलाम सम क कमान म धीरे -धीरे व था से म थली म आगे बढ़ाया। इसके बाद
वह अपने चुने ए बारह हज़ार बलूची सवार को लेकर राजपूत पर बाज क भाँित टू ट
पड़ा।
िगने-चुने राजपूत अपना काट दखा- दखाकर धराशायी होते गए। घोघाबापा
के िसर पर सैकड़ तलवार छा ग । यह तेज वी वृ िजस कार वीरता से तलवार
चला रहा था उसे देखकर सुलतान महमूद आ यच कत रह गया। उसने ब त चाहा क
वृ राणा को जीिवत पकड़ िलया जाए, पर यह कसी भाँित स भव न था। राणा क
के स रया पाग, तलवार क चकाच ध म चमकती और डू बती रही।
यह यु न था, साका था। अमीर महमूद भी इस श ु का लोहा मान गया।
इसके स मान क र ा के िलए उसने अपनी तलवार भी यान से बाहर नह क । देखते
ही देखते आठ सौ राजपूत और तीन सौ अ य ि कटकर खेत रहे िजनम घोघाबापा
के चौरासी पु , पौ और प रजन भी थे। घोघाबापा भी अपने हाथ से काटे ए श ु
क लाश पर िगरकर कै लास-वासी ए।
नि दद का पु षाथ
गढ़ म अके ले नि दद ही एक पु ष थे। उनके ऊपर क ठन कत का भारी
भार था। बड़ी क ठनाई से उ ह ने एक दासी को राज़ी करके अपने तीन वष के पौ को
गढ़ से बाहर भेज दया। फर पुल को तोड़ गढ़ के ार भीतर से भलीभाँित ब द कर वे
अपनी आव यक व था म जुट गए । गढ़ म िजतना धन और वलनशील पदाथ
उपल ध हो सके , सबको ला-लाकर उ ह ने मि दर के ांगण म एक िवशाल िचता क
रचना आर भ कर दी। उनका थका आ बूढ़ा शरीर प र म से टू क-टू क हो गया, पर तु
उ ह जो काम करना था, वह तो करना ही था।
अ त:पुर म सभी ि याँ एकि त थ । आज उनम छोटी-बड़ी का भेद भी न था।
येक ने नख-िशख से शृंगार कया था। वे सब पूजा के थाल हाथ म सजाए, ना रयल,
कुं कु म और पु प से गोद भरे , कु ल-पुरोिहत नि दद के आदेश क ती ा म बैठी थ ।
सब आव यक साम ी जुटाकर, घी, तेल और कपूर के डल को यथा थान
िचता म उपि थत करके नि दद बुज पर चढ़कर यु क गित देखने लगे। उनके देखते
ही देखते चौहान वीर और वीर के िशरोभूषण घोघाबापा धराशायी ए। उ ह ने भूिम
पर अपना िसर पटक मारा। ब त देर तक वे मू छत पड़े रहे, फर होश म आकर वे
पागल क भाँित लड़खड़ाते ए अ त:पुर क ओर चले। उनके कान म घोघाराणा के ये
श द गूँज रहे थे, ‘‘अ त:पुर तु हारा।’’ अ त:पुर के ार पर आकर उ ह ने पुकार लगाई,
‘‘चलो बे टय , अब हमारी बारी है।’’
मंगलगान करती ई ना रयल उछालत और माग म फू ल बखेरत , पूजा के
थाल हाथ म िलए सात सौ ि याँ पंि ब आगे बढ़कर मािनक चौक म बनी िचता के
चार ओर आ खड़ी । नि दद क आँख से चौधारा आँसू बह रहे थे। पर तु उ ह ने
सबके भाल को कुं कु म, च दन से अ चत कया। सबने अ त-पु प से िचता का पूजन
कया, सूय को अ य दया। कु लदेवता को णाम कया और अपने-अपने पितय के
मृित-िच न गोद म लेकर िचता पर आ बैठ । िचता आरोहण से थम नि दद क
पु वधू ने मूकभाव से ससुर के चरण छु ए। यह देख नि दद कटे वृ क भाँित पृ वी म
िगर गए।
कु छ देर म वे उठे । अभी क ठन काय तो शेष ही था। उनका अंग थर-थर काँप
रहा था और वाणी जड़ हो रही थी। आँख आँसु से अँधी हो रही थ । फर भी उ ह ने
टू टे-फू टे वर म म ो ारण कया और काँपते हाथ से िचता म आग दे दी।
िचता अि वाहक पदाथ के संयोग से धांय-धांय जलने लगी। ब त-सी अबोध
बालाएँ वाला क वेदना न सहन कर ची कार कर उठ । एक भयानक दन, अस
दद और न देखने, न सहने यो य वेदना से ओत- ोत हो नि दद वयं िचता म कू दने को
उ त हो गए, पर तु अभी उनका कत पूण नह आ था। अभी घोघाबापा का शरीर
रण े म पड़ा था। उसे वहाँ से लाकर अि सं कार करना शेष था।
वे वह , िचता के िनकट भूिम पर िगर गए। उ ह गहरी मू छा ने घेर िलया। वह
मू छा उनके िलए आशीवाद- व प थी। उससे उनका वेदना से इतने काल के िलए
िप ड छू ट गया
ब त देर तक वे मू छा पड़े रहे। जब उनक मू छा भंग ई तो उ ह ने देखा,
िचता जल चुक है। लाल-लाल अंगार म जली ई सितय के अवशेष बड़े डरावने
तीत हो रहे थे। उस समय गढ़ म वे ही अके ले जीिवत पु ष थे। कु ,े िब ली भी इस
आप काल म घोघागढ़ को छोड़ गए थे। वे आँख फाड़-फाड़कर िचता क चमकती
िचनगा रय को देखने लगे। िजन बािलका का उ ह ने िववाह कराया था, गोद म
िखलाया था, नववधू के प म वागत कया था, उन सबक जली ई अि थय को
यहाँ एक देख उनका मि त क िवकृ त हो गया।
वे लड़खराते पैर से एक बार बुज पर गए। उ ह ने देखा, यवन सै य अपनी
व था म संल ह और उसक एक टु कड़ी दुग पर चढ़ी चली आ रही है। सबसे आगे
उ ह ने उस ह ाम को देखकर पहचान िलया। अनेक बात पर िवचार करके , दौड़कर
दुग के ार खोल दए और पुल भी िगरा दया। फर वह मि दर के गभ-गृह म जाकर
अध-मू छत अव था म पड़े रहे। अंग को िहलाने डु लाने क उनम साम य नह रही।
यवन सैिनक गढ़ म घुस आए। उ ह कह भी कसी बाधा का सामना न करना
पड़ा। नि दद अ मू छत अव था म पड़े ए कभी-कभी श ु क खटपट सुन लेते
थे। पर तु उनसे उठा न गया और वे गहरी मू छा म पड़ गए। जब उनक आँख खुली,
नव भात हो चुका था। लय के आठ पहर बीत चुके थे। कसी जीिवत ाणी का
घोघागढ़ म िच न भी न था। वे उठकर बाहर आए। िचता बुझ चुक थी, पर तु राख
अभी गम थी। मि दर का वज टू टा पड़ा था और महादेव क िप डी भ थी। राज-
महल को लूट िलया गया था। पर ऐसा तीत होता था क श ु उस शू य िनजन दुग म
अधजली महािचता म सैकड़ जीिवत मू तय को जलता देख भयभीत होकर भाग गए
थे।
नि दद ने बुज पर खड़े होकर देखा क श ु का वहाँ कोई िच न न था।
नि दद धीरे -धीरे दुग से नीचे उतर रण-भूिम म आए। िग और गीदड़ लाश को
लथेड़ रहे थे। लाश सड़ने लगी थ । नि दद ने बड़े य से घोघाराणा का शव शव के
ढेर से ढू ँढ़ िनकाला। उसे पीठ पर लादकर एक शु थान पर र खा। ान कराकर शु
कया और इधर-उधर से सूखा का एक कर अि सं कार कर दया। इसके बाद
उ ह ने अ य ि य क अ येि भी करना अपना कत समझा। सबका िचता-दाह
तो स भव नह था। उ ह ने सब पर म थली का रे त डालकर शव को ढांप दया तथा
अंजिल म जल लेकर सबका मौन तपण कया।
पर तु अभी भी इस कमिन ा ण का कत पूरा नह आ था। वर क
वाला और भूख- यास से उनका अंग-भंग हो रहा था। गत सोलह हर से वह ा ण
मरने वाल से कह अिधक यातना सह रहा था। फर भी उसने दुग म आकर गंगाजल से
िचता को ठ डा कया। फर अि थ और राख का संचय कर मािनक चौक ही म भूिम
खोदकर उसे दाब दया। इसके बाद उन सबका ा -तपण कर सबक आ मा के िलए
शाि त-पाठ कया।
अब उनका यान अ त:पुर क ओर गया। एक बार घोघाबापा के वे श द
‘‘अ त:पुर तु हारा’’ उनके कान म गूँज उठे ।
उ ह ने दुग का ार फर ब द कया और पुल तोड़ दया।
अनिह ल–प न
ईसवी सन् 720 म उ र गुजरात म चावड़ा वंश क थापना ई। इस वंश ने
पंचासर म अपनी राजधानी थािपत क । पंचासर क छ क म भूिम के छोर पर एक
छोटा-सा नगर था। इससे थम चावड़ा वंश के पु ष सौरा क सीमा पर देवप न म
रहते और समु ी लुटेर का ध धा करते थे। िजन दन चावड़ा वंश ने थम बार उ र
गुजरात म रा य थापना क , उन दन का ठयावाड़ म ब लभीपुर समृ नगर था।
वहाँ ब लभीवंश के राजा का ाचीन रा य था। दि ण गुजरात म चालु य, गुजर
तथा रा कू ट के छोटे-छोटे रा य थे। का ठयावाड़ म भी जाड़ेजा तथा चुड़ासभा वंश के
छोटे-छोटे राजा रा य कर रहे थे।
चावड़ा वंश के जयिशखर नाम के वीर और साहसी ि ने पंचासर म
चावड़ा रा य क थापना क । वह बलवान और तेज वी पु ष था। शी ही उसक
क त आसपास फै ल गई। उसक यह क त चालु यराज भूवड़ से सहन नह ई। उसने
भारी सै य ले जयिशखर पर आ मण कया। इस यु म जयिशखर खेत रहा और
पवती गभवती रानी पसु दरी भाग कर अपने भाई सुरपाल के आ य म चली गई।
श ु के भय से सुरपाल अपनी गभवती बिहन को लेकर जंगल म जा िछपा। वन
ही म रानी ने पु सव कया। उसका पालन उसके मामा ने बड़े य से कया। वन म
ज म लेने से उसका नाम ‘वनराज’ िस आ। बालक वनराज को उसके मामा ने
श -शा क उ म िश ा दी। आयु पाकर वनराज वीर, साहसी और तलवार, तीर
तथा अ य श के संचालन म अ ितम यो ा बन गया। अ -आरोहण म भी उसक
कोई समता न कर सकता था।
भूवड़ राजा ने गुजरात जीत कर उसक आय अपनी पु ी मीनलदेवी को अपण
कर दी थी । मीनलदेवी का दीवान गुजरात पर शासन करता और उसक आय
मीनलदेवी के पास भेज देता था।
वनराज ने आसपास के जंगली भील और नाग एवं िमयान तथा अपनी जाित
के युवक को लेकर एक मज़बूत गुट बनाया, और गुजरात के गाँव म डाके डालना और
लूटमार करना ार भ कर दया। शी ही वनराज का आतंक देश-भर म फै ल गया। पर
वनराज कौन है यह कोई नह जान सका। एक अवसर ऐसा आया क मीनलदेवी के
आदमी देश क आय का कोष लेकर मीनलदेवी के पास जा रहे थे। वनराज ने धावा
मारकर वह सब खज़ाना लूट िलया। इस लूट म उसे चौबीस लाख मोहर और चार
हज़ार घोड़े हाथ लगे। घोड़े उसने अपने सािथय को बाँट दए, तथा धन से उसने नई
सेना इक ी करके उसे भली-भाँित श -सि त कया। और उसी वन म उसने अनिह ल
प न नगर बसाना ार भ कर दया। थोड़े ही दन बाद उसने उस नव-िन मत नगर म
अपना रा यािभषेक कर अपने को गुजरात का राजा घोिषत कर दया। शी ही उसने
गुजरात से मीनलदेवी के दीवान को खदेड़ दया और अपने नाम का डंका बजवा दया।
उनचास वष क आयु म उसने अपना अिभषेक कया और साठ वष रा य करके एक सौ
नौ वष क आयु म उसने मृ यु पाई। मृ यु के समय वनराज गुजरात का सबसे मुख
राजा था।
वनराज के बाद उसका पु योगराज गुजरात क ग ी पर बैठा। यह राजा भी
वीर यो ा और िस धनुधर आ। इसने अपने रा य क और भी वृि क । हमारे
पूवज समु ी डाकू थे, इस अपवाद को दूर करने के िवचार से इसने अपने जीवन-काल म
याय और उदारता से जा का पालन कया।
इसके बाद र ा द य, बैरी संह और ेमराज अनु म से ग ी पर बैठे। इ ह ने
भी अपने रा य का यथावत र ण कया और उसम वृि क । उनके बाद चामु ड
साम त संह और भूभ ग ी पर बैठे। इन सब राजा ने गुजरात क रा य ी म ब त
वृि क , और अनिह ल-प न भारत का एक िस और समृ नगर हो गया। देश-देश
के ापारी और कामकाजी जन से वह प रपूण रहने लगा।
चावड़ा वंश के बाद सोलंक वंश के हाथ गुजरात क ग ी गई। सोलं कय का
पहला राजा मूलराज था। मूलराज चावड़ा राजा भूभ क बिहन का पु था। मूलराज
मामा को मार कर ग ी पर बैठा था। इसने पि म म क छ और का ठयावाड़ तक
अपनी स ा थािपत क । दि ण गुजरात के राजा वारप का उसने हनन कया तथा
अजमेर के चौहान से सि ध क । सोरठ के राजा गुह रपु को भी उसने यु म परा त
कया। इस राजा ने अनिह ल-प न म ि पुर ासाद नामक िस देवालय बनवाया।
वृ ाव था म मूलराज वान थी हो सर वती तीर पर ी थल म रहने लगा। वहाँ
उसने औदी य, ीगौड़ और का यकु ज ा ण के अनेक प रवार को देश-देश से
बुलाकर और बड़ी-बड़ी जागीर देकर गुजरात म बसाया। यहाँ उसने महालय क
थापना क , िजसे बाद म िस राज ने पूरा कया।
मूलराज के बाद चामु डराय अनिह ल-प न क ग ी पर बैठा। िजस समय क
चचा हम कर रहे ह, उस समय चामु डराय अनिह ल-प न क ग ी पर सुशोिभत थे।
इस समय स पूण भारतवष म गुजरात का राजा सबसे अिधक बलवान और शौयवान्
िस था। और गुजरात क राजधानी अनिह ल-प न अित समृ ापा रक नगर
माना जाता था। पर तु वा तव म चामु डराय म सोलं कय क राजधानी क मयादा
रखने यो य शि न थी। वह एक दुबल मन और क े कान का आदमी था। वह चार
ओर खटपटी खवास और जी-हजू रय से िघरा रहता था। ये लोग राजा को उ टा-
सीधा समझा कर अपना उ लू सीधा करते थे। रा य म अंधेरगद चल रही थी। जा का
दु:ख-दद सुनने वाला कोई न था। राजा का मन भी राजकाज म नह लगता था। वह
नाच-तमाशे और ऐश-आराम तथा अफ म क िपनक म गक रहता था। भांड, वे या, नट
और ऐसे ही लु -े लफं गे लोग सदा उसके पास भरे रहते थे। इनके खेल-तमाशे और
जल ड़ा से जो समय िमलता, उसे वह रनवास म तीत करता था। जा क दशा
देखने-सुनने का उसे अवसर ही न िमलता था। फर जा और रा य क उ ित क तो
बात ही या थी। राजा के दशन महीन तक जा को नह होते थे। जो लोग कसी काम
से राजा से िमलना चाहते थे, उ ह जू रए लोग बात ही म टरका देते थे– जूर रनवास
म ह, जूर का म नह है, अभी जूर को समय नह है। इसी भाँित राजा को अँधकार
म रखा जाता था। रा य म कोई सुधार नह हो रहा था। खेतीबाड़ी करने वाले कृ षक
पर अमलदार मनमाने अ याचार करते और लूटते थे। सेना क दशा अ य त शोचनीय
थी। िसपािहय को छ:–छ: मास तक वेतन न िमलता था। उनके श ा तक का
ठकाना न था। पुरानी र ी तलवार और र ी पुरानी ब दूक तथा िबना फणी के बाण
उनके हिथयार थे। िसपािहय क वद क तो अ य त दुदशा थी। राजपूत म अफ म
घोलने का सन बढ़ गया था। ाय: िसपाही पहर दन चढ़े उठते, अफ म घोलते और
िपनक म बैठे ऊंघते या ग प मारते बैठे रहते।
राजा ने वीकणशाह नामक एक विणक को म ी क पाग बंधाई थी। वह एक
काइयाँ बािणयाँ था। उसे रा य म याह–सफे द करने के सब अिधकार ा थे। वह
स पूण रा य का भार अपने िसर िलए मनमानी रीित से लूट-पाट करके अपना उ लू
सीधा करता था। अधीन थ कमचारी भी जा को मनमानी रीित पर लूटते और अपनी
जेब भरते थे।
राजा जैसे बाजीगर का ब दर था, िजसे हीरे -मोती क जड़ाऊ पोशाक
पहनाकर जी- जू रए जैसे चाहते, नचाते थे। गोल , खवास से लेकर बड़े बड़े
कमचा रय तक येक राजा के अ ान और िसधाई से लाभ उठाता था। भूदव े ,
योितिषय और र माल क बन आई थी। वे भी राजा को खूब भरमाते थे। राजा का
वभाव खच ला था। वह एक के थान पर दस खच करने को आतुर रहता। आसपास के
मतलबी लोग रा य-कोष को लूटते ही रहते थे और राजा अफ म क िपनक म ट रहता
था
िजसके हाथ म गुजरात के र ण का भार था, उसक यह दीन दशा थी। फर
देश क दुदशा का या कहना था।
राजा के ये पु का नाम व लभदेव था। वह समझदार और वीर था। पर जी-
जू रए सदैव उसके िव राजा के कान भरते रहते थे। राजा को सदा भय रहता था
क युवराज व लभदेव उसे मार कर रा य लेने क खटपट म है। इससे राजा सदैव अपने
पु को अपने से दूर रखता था। राजा से युवराज के दूर रहने से ही जी- जू रय का
मतलब सधता था।
राजा के दूसरे पु का नाम दुलभदेव था। यह दु वभाव का, ढ गी, चालाक
एवं अ याचारी िन ु र ि था। वह खटपटी जी- जू रय के बीच आड़े नह आता था।
इसिलए ये लुटेरे अिधकारी सदैव उसीका प लेते थे। तीसरे पु नागराज का पु
भीमदेव था। वह िस धनुधर था और गुजरात म ‘बाणबली’ के नाम से िस था।
वह एक उ साही यो ा और साहसी एवं िववेक त ण था। पर तु लोग ने इसके िव
भी राजा के कान भर रखे थे। युवराज व लभदेव और भीमदेव म काफ मेलजोल था।
और ये दोन चाचा-भतीजे इस अँधेरगद से अस तु थे। तथा राजा से भी अनादृत हो
राजधानी से दूर एका त म एक मनपस द गाँव म रहते थे।
गुजरात क वा तिवक दशा ऐसी ही थी, जब गज़नी का अमीर बबर दुजय
पठान के दल-बादल ले गुजरात को दिलत करने के हेतु दबादब बढ़ा चला आ रहा था।
गुजरािधपित
महाराजािधराज, परमभ ारक, परममाहे र, गुजरािधपित ीचामु डराय
महाराज क आयु साठ को पार कर गई थी। महाराज को नई-नई इमारत बनवाने का
भारी शौक था। इस समय आप ेत ममर का एक िवशाल जलाशय बनवा रहे थे। उसके
साथ एक बृहत् वा टका भी तैयार हो रही थी। वा टका के िलए देश-देश के फल-फू ल
वाले वृ मँगाए और रोपे जा रहे थे। वीण मािलय ने मनोरम रौस िनकाल और ठौर-
ठौर पर लताकुं ज बनाकर वा टका का दृ य अित मनोहर बनाया था। जलाशय का
िनमाण भी अ भुत था। उसम कटाई और जाली का काम तथा प थर खोदकर उसम
िभ -िभ रं ग के मिण-र जमाने का काम सैकड़ गुणी और िस कारीगर कर रहे
थे, जो देश-देश से भारी वेतन और राह-खच देकर बुलाए गए थे। देश-िवदेश म जहाँ जो
व तु इस जलाशय एवं वा टका के उपयोग क देखी-सुनी जाती थी, वह के राजा के
नाम गुजरािधपित का अनुरोध प प च ँ ता था। और येक मू य पर वह व तु ा
करने का य कया जाता था। हज़ार गुजर, यवन एवं िवदेशी कारीगर अपने-अपने
काम म लगे ए थे। महाराज गुजरे र सब काम अपनी आँख से देखते और कु शल
कारीगर को इनाम-इकराम बाँटते। राज- ासाद छोड़कर वे इसी वा टका म डेरा-त बू
ताने रनवास-सिहत िवराजमान थे। महाराज का मनोरं जन करने और उनक उदारता
से लाभ उठाने को दूर-दूर से नट, बाजीगर, कं चिनयाँ, म ल, गायक आ द कलाकार के
ज थे-के -ज थे ित दन आते रहते थे। वे अपनी कला से महाराज का मनोरं जन करते
और भारी इनाम-िसरोपाव पाकर महाराज क यश-क त को दि दग त म ा करते
जा रहे थे। तथा उनके थान पर और आते जा रहे थे। महाराज उ ह भी मु हाथ से
इनाम-िसरोपाव देते और स होते थे।
म या न होने म अभी देर थी। शरदकालीन सुनहरी धूप चार और फै ली थी।
महाराजािधराज गुजरे र अमल-पानी से िनपट कर अपने िवशाल सुनहरी खेमे म
मसनद पर पौढ़ गए। एक खवास ने मोरछल िलया, दूसरे ने पैर के पास बैठकर
मखमली पायदान िनकट सरका दया। जी- जू रए आ-आकर जुहार करके बैठ गए।
महाराज अफ म क िपनक म झूमने लगे।
एक जू रए ने कहा–
‘‘कु मार भीमदेव आज भी नह आए अ दाता।’’
दूसरे ने कहा, ‘‘सुना है, कु मार और युवराज दोन ही िस े र म जा बैठे है।’’
‘‘पर तु यह सब तो दरबार से दूर-दूर रहने के ढंग ह। युवराज और कु मार दोन
ही अ दाता क आ ा का पालन नह करते ह।’’ दूसरे मज़ दान ने धीरे से कहा।
गुजरे र िपनक म थे। उ ह ने के वल अि तम वा य सुना और िपनक से च क
कर आधी आँख उघाड़ कर कहा–
‘‘जो हमारी आ ा का उ लंघन करता है, उसे अभी सूली पर चढ़ा दो।’’
अब जी- जू रय ने जैसे डरते-डरते हाथ जोड़कर कहा–
‘‘अ दाता, यह बात नह है, य ही हम लोग युवराज क चचा कर रहे थे।’’
गुजरे र ने गरज कर कहा, ‘‘हरामखोर, हम धोखा देते हो, अभी तुम नह कह रहे थे
क हमारी आ ा...’’
गुजरे र अफ म क झ क म पूरी बात कहना भूल गए और पूरी आँख फै लाकर
खवास क ओर ोध-भरी दृि से ताकने लगे।
खवास ने हाथ जोड़कर कहा–
‘‘महाराज ने युवराज को याद फरमाया था।’’
‘‘तो फर?’’
‘‘युवराज राजकु मार को लेकर िस े र चले गए ह।’’
‘‘हमारी आ ा का उ लंघन करके ?’’
‘‘अ दाता, न कहने यो य बात कै से क ।ँ ’’
‘‘कह रे हरामखोर।’’ महाराज ने ोध से उबलकर कहा।
‘‘अ दाता, युवराज ी महाराज को ग ी से उतार कर वयं राजा होने क
खटपट कर रहे ह। वे वहाँ सै य-सं ह कर रहे ह।’’ खवास ने धीमे वर से कहा।
यह सुनते ही राजा ोध से जल उठे । उ ह ने तुर त म दया, ‘‘तो उन दोन
राजिव ोिहय को बाँधकर यहाँ ले आ।’’
खवास चुपचाप खड़ा रहा। खवास कै से युवराज को बाँधकर ला सकता है, वह
यही सोचने लगा। राजा ने कहा, ‘‘जा रे हरामखोर, खड़ा य ह?’’
‘‘ या अ दाता, म सेनापित को बुलाऊँ?”
‘‘अभी बुला।’’
खवास ने जी- जू रय से आँख िमला और वहाँ से चल दया।
महाराज फर िपनक म झूमने लगे। इसी समय ार पर ब त-से लोग का
शोरगुल सुनाई दया। शोरगुल सुनकर महाराज क िपनक फर टू ट गई। ब त से
ा णा ने भीतर घुसकर पुकार क , ‘‘दुहाई महाराज क , दुहाई गुजरे र क , हम लूटे
गए ह, हमारा सव व हरण कर िलया गया है।’’ राजा ने िबना सोचे-समझे चीखकर
कहा, ‘‘पकड़ो इन राजिव ोिहय को, और सूली पर चढ़ा दो।’’
एक ा ण ने आगे बढ़कर और हाथ म जनेऊ लेकर कहा, ‘‘महाराजािधराज
परम माहे र गुजरे र क जय हो, हम राज-िव ोही नह ह, महाराज क राजभ
जा ह। हम पुकार करने आए ह, हम सोमे र क या ा को जा रहे थे क राह म
डाकु ने हम लूट िलया।’’
राजा ने आधी आँख उघाड़ कर तथा एक खवास क ओर देखकर कहा,
‘‘ कसने इ ह आने दया? बोल!’’
‘‘अ दाता, ये सब जबद ती भीतर घुस आए, राजा ा नह मानी।’’
ा ण ने कहा, ‘‘दुहाई, हम लूटे गए ह।’’
‘‘इन सबको बाँधकर ब दीगृह म डाल दो।’’
‘‘महाराज, हमारी फ रयाद है।”
‘‘तुम सब राजिव ोही हो।’’
इतने म सेनापित बालुकाराय ने आकर महाराज को णाम कया और कहा,
‘‘महाराज क या आ ा है?’’
महाराज ने कसिलए सेनापित को बुलाया था, यह वे इस समय भूल गए।
उ ह ने ा ण क ओर हाथ उठाकर कहा–
‘‘इन सब राजिव ोिहय को बाँधकर ब दी कर लो।’’
‘‘अ दाता, ये भूदव
े ह, वेदपाठी ा ण।’’
‘‘तो यहाँ इनका या काम?’’
‘‘अ दाता, ये सोमे र क या ा को जा रहे थे। राह म लुटेर ने इ ह लूट
िलया।’’
‘‘लुटेर को पकड़ा तुमने?’’
‘‘अ दाता, महमद सेती–क छ का दुदा त डाकू है, उसके हज़ार साथी ह।’’
‘‘तो उन सबको सूली पर चढ़ा दो।’’
‘‘अ दाता...’’
महाराजा क िपनक म हर बार िव पड़ रहा था। उ ह ने ोध करके खवास
से कहा, ‘‘िनकालो, िनकालो इन सब हरामखोर को।’’
‘‘अ दाता, ये वेदपाठी ा ण आपको आशीवाद देते ह।’’
‘‘अ छा, आ, इ ह एक-एक सोने क मुहर दे दो, जाओ, तंग न करो।’’
इतना कह वे और आराम से लेटने को मसनद पर लुढ़क गए और आँख बंद कर
ल । अब और बात करना अश य समझकर सेनापित बालुकाराय ा ण को ले बाहर
चले गए।
ष ं
एक पहर रात जा चुक थी। अनिह ल-प न के सब नगर- ार ब द हो चुके थे।
दनभर काम-काज म त नगर के पौरजन एवं राजपु ष सब िन ादेवी क आराधना
म लगे थे। आकाश व छ था, उसम उ वल तारे ब त भले तीत हो रहे थे। ि तीया
का ीण च नूतन वधू क दुलभ काि त ितभािसत कर रहा था। इसी समय सर वती
नदी के िनजन तट पर एक पु ष त परता से टहल रहा था। नदी-तट पर अनिगनत
छोटे-बड़े, नये-पुराने मि दर क पंि बनी ई थी। वह पु ष उन मि दर क परछा
म अपने को िछपाता आ वहाँ टहल रहा था। इस पु ष का कद ठगना, शरीर कृ श और
चेहरा साधारण था। व भी उसने साधारण ही पहने ए थे, पर तु एक उ दा तलवार
अव य उसक कमर म लटक रही थी।
वह पु ष अव य कसी ि के आने क ती ा म था। थोड़ी-सी आहट होने
पर यह चौक ा होकर चार ओर देखने लगता था। थोड़ी देर बाद घोड़ क टाप के
श द सुनाई दए और कु छ ही देर म दो मनु य-मू त घोड़ पर सवार आती ई उसने
देख । उस पु ष के सामने ही कु छ फासले पर एक गहन वट-वृ था, उस वृ के नीचे
आकर उ ह ने अ रोके । दोन घोड़ से उतर पड़े। घोड़े वृ से अपनी ल बी बागडोर से
अटका दए। और दोन पु ष उन मि दर क ओट आगे बढ़े।
पूव पु ष ने एक दीवार क आड़ म अपने को िछपा िलया था। दोन छाया-
मू तयाँ उसके िनकट होकर चली गय । दोन ही काले आवरण से शरीर को िछपाए थे।
इस पु ष ने िन:श द उसका अनुगमन कया।
दोन ही छाया-मू तयाँ मि दर और ख डहर को पार करती नदी के
कनारे - कनारे आगे बढ़ती चली ग । वह पु ष भी अ य त सावधानी से उनके पीछे-
पीछे चलता गया। मि दर क पंि समा हो गई। नदी के ऊबड़-खाबड़ कगार पर
चलती ई दोन मू तयाँ बबढ़ती ही ग । अ त म वे एक जीण िशवालय के सामने
जाकर क । िशवालय उजाड़ था। वहाँ दन म भी कोई पु ष नह जाता था। इस समय
राि क नीरवता म वह थान ब त भयानक तीत हो रहा था। दोन म से जो मू त
आगे थी, उसने तलवार यान से बाहर करके इधर-उधर चार ओर देखा, वह अपने
साथी को संकेत करके मु य ार छोड़ मि दर के िपछवाड़े क ओर चला। इस पु ष ने
भी तलवार यान से बाहर िनकाल ली और अ य त सावधानी से पदश द बचाता आ
पीछे-पीछे चलने लगा। मि दर ब त बड़ा था, तथा उसके िपछले भाग म ब त से टू टे-
फू टे घर थे। उन सबको पार करते ए तीन ि अ तत: एक अपे ाकृ त अ छे घर के
ार पर प च ँ गए। आगे वाले ि ने फर कु छ संकेत कया। थोड़ी देर म एक पु ष
दीपक लेकर भीतर से आया। उसके दूसरे हाथ म नंगी तलवार थी। आग तुक का संकेत
समझ स तु हो, उसने दोन को भीतर कर िलया। पीछे वाले पु ष ने देखा, वह
ना दोल का िस जैन यित-िजनद सू र है। जैन यित को वहाँ देख उस पु ष को
आ य आ। पर तु भीतर जाकर उन दोन आग तुक ने जब अपना आवरण उतारा तो
उ ह पहचान कर यह पु ष आ य से िवमूढ़ ही हो गया। आगे तलवार हाथ म िलए जो
पु ष था, वह बालच खवास था। और दूसरा उसका साथी, वयं महारानी दुलभदेवी
थ।
ार ब द हो जाने से वह और कु छ न देख सका, पर तु उसे यह जान लेने म
तिनक भी स देह नह रहा क यह कोई भारी ष ं है, िजसम ना दोल का रा य भी
सि मिलत है।
उसने उस ख डहर के चार ओर च र लगाया और फर वह एक थान पर
भ दीवार पर चढ़ गया। कई छत को पार करके वह उस छत के कनार पर आ
प च ँ ा, जहाँ ये लोग बैठे थे। कु ल छह ि थे। दीपक जल रहा था। तीन का प रचय
तो िमल गया। चौथा था गुजरात का महाम ी वीकणशाह, पाँचवाँ कु मार दुलभदेव का
स ब धी एक सरदार था। और छठी थी परम माहे र, परम परमे र गुजरािधपित ी
चामु डराय देव क सु दरी मुंहलगी ता बूलवािहनी च पकबाला।
गूढ़ पु ष दीवार से िचपककर छत पर लेट गया और एका होकर उनक बात
सुनने लगा।
एक धीमा वर सुनाई दया। जैन यित िजनद बोल रहा था। वह कह रहा
था–
‘‘महारानी बा, आप जानती ह, म आप ही के राजकु ल का पु ष ।ँ मने जैन
धम वीकार कया है। ना दोल के सात सौ को ािधप से ठया जैन धम म आ था रखते
ह। िजनके प रजन तीन लाख ह। मेरे जैन धम वीकार करने तथा राजकु ल म जैन धम
क ित ा होने से ना दोल के महाराज अनिह ल राज क स ा ब त बढ़ गई है।
ना दोल के महाराज आपके भतीजे ह। उनका तेज ताप ब त है। वे एक तापी
राजस ा क थापना कर रहे ह। मालवा उनसे शं कत रहता है। सपादल के महाराज
धमगजदेव उ ह ब त मानते ह। पाटन, क छ, भ च, सौरा और ख भात के सब
ावक, सेठ, नगर-सेठ हमारे प म ह। आपक कृ पा हो तो पंचनद-पय त उ र म और
अंगदेश-पय त पूव म एक अजेय रा य थािपत होकर भारत म जैन धम का उदय हो
जाए। धमत और राजत , दोन ही एक होकर चल तो इससे उ म या है?’’
यित को सहारा देते ए सरदार ने कहा, ‘‘महारानी माता, फर एक बात भी
तो है, पृ वी तो सब चौहान क है। मुलतान म अजयपाल और लोहकोट म भीमपाल
है। म भूिम के राजा घोघाबापा ह, और सपादल म धमगजदेव ह। ना दोल म आपके
अनिह ल राजा ह ही। अब रह गया अबुदराज परमार और चौलु य का पाटन, सो
अबुदराज के युवराज कृ णदेव इस समय ना दोल म ह। वे हमारे युवराज बाला साद
के घिन िम है। दोन को घुड़सवारी का बेहद शौक है। दोन एक ाण दो शरीर ह।
अबुदपित धुंधुकराज भी इस समय मेदपाट म मालवराज के साि य म ह, सो ना दोल
के माग म अबुदे र क कोई बाधा नह है। आप य द यह वचन द क ग ी पर बैठने के
बाद महाराज दुलभदेव यह घोषणा कर क वे ना दोल के युवराज बाला साद को गोद
लेकर पाटन का उ रािधकारी िनयु करते ह तो फर सब काम ठीक है। देखते ही
देखते ना दोल-राज महाराज दुलभदेव को पाटन क ग ी पर बैठा दगे। यहाँ पाटन के
महाम ी बीकणशाह हमारे साथ ह ही। सारा राजकोष तुर त महाराज दुलभदेव के
हाथ म आ जाएगा।”
यह कहकर चौहान सरदार ने भेदभरी दृि से वीकणशाह क ओर देखा।
वीकणशाह दुबला-पतला, चालाक और सावधान बिनया था। उसने इधर-उधर देखते
ए कहा, ‘‘राजकोष राजा का, और म राजा का चाकर। पाटन क ग ी पर जो राजा
बनकर बैठेगा, उसी क सेवा म वीकणशाह और सम त राजकोष उपि थत है।’’
‘‘तो अब दो रह गए। एक महाराजािधराज का, दूसरा युवराज व लभ देव
का। भीम संह बाणबली युवराज के साथ ह, वे गज़नी के सुलतान का सामना करने के
बहाने िस थल म बैठे सै य सं ह कर रहे ह। भीमदेव बड़ा यो ा है, और युवराज
व लभदेव भी साधारण पु ष नह ह।’’ िजने र द ने खूब सावधानी से कहा।
‘‘पर तु उनके पास धन कहाँ है भाई? वे सेना-सं ह करगे कहाँ से? श
खरीदगे कहाँ से? सेना को वेतन दगे कहाँ से?’’ वीकणशाह ने कु टलता से मु कराकर
कहा।
‘‘ य ? य ही दुलभदेव राजा ह गे, वे तुरंत खुला िव ोह करके लूटपाट
ार भ कर दगे। फर जा उ ह मानती है। वह उ ह धन से मदद देगी।’’ चौहान ने
कहा।
‘‘ऐसा नह हो सकता। थम पाटन के लोग सब जैन- ावक-सेठ-सा कार
हमारे साथ ह। वे भीमदेव क कोई सहायता नह करगे। दूसरे भीमदेव जा पर लूटपाट
करगे तो जा उनके प म न रहेगी। फर वह जा म लूटपाट करगे ही नह ।’’ यित
िजनद ने कहा।
‘‘पर तु यह न भूिलए क उनके साथ िवमलदेव शाह ह। वह रा य का तो
कोषा य है, पर है वह वा तव म व लभदेव का म ी। वह एक ऐसा छोकरा है, क न
राजा क आन मानता है, न राजम ी क । उसे हाथ म िबना कए छु टकारा नह है।’’
वीकणशाह ने मु कराते ए कहा।
‘‘उसे मेरे सुपुद क िजए। म उसे जानता ,ँ वह मु स ा नह है, रण-यो ा है।
उसे अपने धनुष-बाण का बड़ा अिभमान है, और अ छे-अ छे महालय बनवाने का शौक
है। वह जैन धमानुयायी है। वह हमसे बाहर जा नह सकता।‘ जैन यित ने कहा।
चौहान सरदार ने कहा, ‘‘तो सबसे पहला काम यह है क व लभदेव और
भीमदेव को ही ब दी कया जाए।’’
‘‘पर तु यह काम यु करके या बल से नह , छल से ही होना चािहए,’’
वीकणशाह ने कहा।
‘‘छल से कै से?’’
‘‘आज इस समय दोन पाटन म उपि थत ह। संग म सेना भी नह है। महाराज
उ ह ब दी करने क आ ा दे चुके ह। म द डपाल को आदेश देता ँ क उ ह नगर ार
पर ब दी कर िलया जाए।’’
‘‘यह उ म है, पर तु इससे राजधानी म िव ोह हो गया तो?’’ राजमाता ने
कहा।
‘‘कै से होगा? कान -कान यह बात कोई जान भी न पाएगा। दोन ही छ वेश
म आए ह। कौन जानता है क कौन ब दी आ। राज ार के सौ झमेले होते ह।’’
‘‘तो वीकण, तुम यह भार लेते हो?’’
‘‘ य नह , पर तु महाम ी क मु ा तो मुझे ही िमलेगी न?’’
‘‘इसम या स देह है? अब महाराज?’’
‘‘उनसे महारानी बा, आप ही िनब टए। यह अ त:पुर का मामला है।’’
‘‘ या उ ह ब दी कर िलया जाए?’’ रानी ने धीरे से कहा।
‘‘यह तो अ वाभािवक है महारानी माता। महाराज को अ त:पुर म ब दी करने
का कु छ अथ ही नह । जा म तुर त िव ोह उठ खड़ा होगा। महाराज के ब दी करने का
कोई कारण हम बता ही न सकगे।’’
‘‘तब दुलभ कट म सेना लेकर महाराज को ब दी कर ले?’’
‘‘यह भी खतरनाक योजना है। सेनापित बालुकाराय हमारे हाथ म नह है। वह
खून ही नदी बहा देगा। हमारी सारी योजना िछ िभ हो जाएगी।’’ वीकणशाह ने
कहा।
‘‘तब?’’ रानी ने कहा।
‘‘यह काम तो बालच द ही पार कर सकता है, दूसरे क साम य नह ।’’
वीकणशाह ने मु कराकर कु टल हा य हँसते ए कहा।
बालच द खवास ने हाथ मलते ए कहा, ‘‘महारानी कह तो म इनका
आ ाकारी सेवक ।ँ ’’
महारानी दुलभदेवी काँप ग । उ ह ने बात का मम समझकर कहा, ‘‘ या कोई
दूसरा उपाय नह है?’’
‘‘नह , महारानी, यह राजत है। इसम जीवन का कु छ भी मू य नह ।’’
वीकणशाह ने ह ठ टेढ़े कर कहा, ‘‘आप यह अवसर चूक तो चूक । महाराज
तो भोर के दीपक ह, आज गए तो, कल गए तो, और फर व लभदेव और भीमदेव ह।
आपको और महाराज दुलभदेव को तो फर दासता ही भोगनी है।’’
‘‘यह तो कभी नह हो सके गा, बीकण!”
‘‘तो महारानी बा, साहस क िजए। जो काम आपका है, उसे भुगताइए।’’
‘‘तौ म अपना काम क ँ गी। बालच द, तू या कहता है?’’ उ ह ने भेदभरी
नज़र से खवास क ओर देखा।
‘‘महारानी बा, मेरे पास सब-कु छ है, यह देिखए।’’ उसने व से एक छोटी-सी
पोटली िनकालकर दखा दी। ‘‘मुझे के वल मेरा पा र िमक िमलना चािहए। और
च पकबाला का सहयोग।’’ खवास ने लु ध दृि से च पकबाला क ओर देखा।
रानी ने उसी समय अपना कं गन उतार कर उस पर फक दया। कहा, ‘‘पचास
हजार द म का है, पर तु काम भात ही म होना चािहए। िवल ब का काम नह ।’’
रानी ने कहा।
‘‘िवल ब य ?’’ खवास ने तृिषत ने से कं गन को देखा, और ह षत हो व
म िछपा िलया। फर च पकबाला क ओर अिभ ायपूण दृि से देखा। रानी ने क ठ से
मोितय क माला िनकालकर च पकबाला को देकर कहा, ‘‘तू डरती तो नह ?’’
च पकबाला ने कहा, ‘‘सब हो जाएगा रानी बा।’’
जैन यित ने पूछा, ‘‘बालच द, तेरा काम कब तक पूरा हो जाएगा?’’
‘‘दोपहर तक–भोजन-काल म।’’
‘‘और चौहान, महाराज दुलभदेव कब तक पाटन प च ँ जाएँगे?’’
‘‘य द इसी समय म चल दूँ तो कल तीसरे पहर तक।’’
‘‘ठीक है। राजम ी, भीमदेव और व लभ?’’
‘‘उ ह म सूय दय से थम ही ब दी कर लूँगा।’’
यित ने कु छ सोचकर कहा–
‘‘अ छी बात है, और राजकोष?’’
‘‘इसके िलए िवमलशाह को वश म करना होगा।’’
‘‘म भोर ही िवमलशाह के पास जाउँ गा।’’ जैन यित ने कहा।
‘‘सब ठीक हो गया! अब महारानी बा, यह लेख है, इसम िलखा है, ‘महाराज
दुलभ िन स तान ह, वे अपने भतीजे ना दोल के अनिह लराज के राजकु मार
बाला साद को गोद लेते ह, और उ ह पाटन का उ रािधकारी िनयु करते है।’
लीिजए, इसपर सही क िजए और अपनी मु ा मुझे दीिजए, क म अभी ना दोल को
थान क ँ ।’’ रानी ने काँपते हाथ से सही कर दी, और राजमु ा भी उसे दे दी।
इसके बाद सभा भंग ई और सावधानी से सब-कोई बाहर आए।
दामो महता
सब लोग के वहाँ से चले आने के बाद वह छ पु ष भी अपने थान से
उठा। उसने सावधानी से अपने चार ओर देखा तथा मु ी म दृढ़ता से तलवार थामकर
िन:श द चरण रखता आ िजधर सब गए थे, उसक िवपरीत दशा को चला। भ
मि दर से कु छ दूर हटकर एक िवशाल शा मली वृ था। उसक सघन छाया काफ दूर
तक फै ली थी। पर तु उसके चार ओर थोड़ी दूर तक खुला मैदान था। उसी वृ क
छाया म प च ँ कर उसने चार ओर देखा। फर ताली बजाई। एक पु ष तुर त वृ क
खोखल से िनकलकर उसके िनकट आ उपि थत आ। उसे देखते ही उस पु ष ने कहा,
‘‘आन द, तू इसी समय सेनापित बालुकाराय के आवास म जा, और उनसे कह, क
सश सवार का एक द ता तुर त राजमाग पर भेज द, वहाँ एक जैन यित ना दोल को
जा रहा है, उसे िन य प से ब दी कर अधीन कर ल। दूसरा एक द ता िस थल के
राजमाग पर भेजा जाए, वहाँ एक साम त घुड़सवार िस थल जा रहा है, उसे भी
ब दी करके अिधकार म कर ल। तथा नगर के सब ार पर ह रय क सं या बढ़ा द।
और िबना संकेत कोई जन नगर से भीतर तथा भीतर से बाहर न जाने-आने पाए।
संकेत-श द होगा ‘जयसमु ’।’’
आन द णाम करके जाने लगा। पर तु पूव पु ष ने कहा, ‘‘ठहर, सेनापित को
दो सौ सैिनक सिहत धवलगृह के दि ण–िबलकु ल नगर- ार के िनकट– वयं मेरी
ती ा करनी चािहए।’’
आन द फर णाम करके जाने लगा। पर तु उस पु ष ने रोककर कहा, ‘‘मेरा
घोड़ा?’’
‘‘वह है।’’
‘‘ठीक है, तू जा।’’
आन द चला गया। वह पु ष वहां से सर वती नदी के कनारे - कनारे चलने
लगा। एक टू टे मि दर के िनकट प च ँ कर उसने फर ताली बजाई। एक पु ष घोड़ा लेकर
आ उपि थत आ।
पूव पु ष ने कहा, ‘‘देवसेन, या तू खवास बालच को पहचानता है?’’
‘‘अ छी तरह महाराज!’’
‘‘और महाराज क ता बूलवािहनी च पकबाला को भी?’’
‘‘उसे भी महाराज!’’
‘‘तो तू जैसे भी स भव हो, उन दोन को सूय दय से थम ही अपने आधीन
कर। और मेरी दूसरी आ ा क ती ा कर। वे कसी कारणवश इस समय रं ग महल से
बाहर ह। और सामने कु छ पु ष जा रहे ह, उनम वे दोन भी ह, जैसे स भव हो तू उ ह
माग ही म धर। नगर- ार पर वे प च ँ ने न पाएँ। और इस मामले म शोर भी न मचने
पाए।’’
‘‘जो आ ा!’’ कहकर वह त ण अ तधान हो गया।
इस गूढ़ पु ष का नाम दामोदर था। पर पाटन म यह दामो महता के ही नाम से
िव यात था। यह पाटन रा य का सि धिव िहक और कू टम ी था। कहने क
आव यकता नह , क राज-दरबार म यह उपेि त था। परम माहे र गुजरािधपित
ीचामु डराय देव को कभी इस िवल ण म ी क आव यकता पड़ती ही न थी। यह
पु ष भी अपने काय के िलए कभी राजा क अपे ा नह करता था। पर तु देखा जाए तो
यह देखने म साधारण पु ष अके ला ही पाटन के राजत का समथ वतक था।
चर के चले जाने पर वह बड़ी देर तक चुपचाप कु छ सोचता रहा। अनेक
उ ेिजत कर देने वाले िवचार उसे िवचिलत कर रहे थे। वह सोच रहा था–‘आज ही
या पाटन म लय होगा? पर तु दामो महता के रहते? यह असंभव है!’ एक दृढ़ िन य
क भावना से उसके ओ स पु टत हो गए, उसने तलवार यान म क और घोड़े पर
सवार हो तेज़ी से एक ओर को चल दया।
कू टम
उसी रात म, उसी नगर म एक दूसरा ही काय हो रहा था। अनिह ल पाटन के
एक एका त भाग म एक ब त पुरानी भ अ ािलका थी। अ ािलका िबलकु ल सूनी और
बेमर मत थी। यह नह कहा जा सकता था क इसम कसी मनु य का िनवास है।
अ ािलका का मु य ार सदैव ब द रहता था। उसके आस-पास घास-फू स उग आई थी
और प था क मु त से यह ार खुला ही नह था।
पर तु वा तव म बात ऐसी न थी। इस समय इस अ ािलका म चार ि
उपि थत थे। िजस क म ये लोग बैठे थे, वह एक कार से सुसि त था। दीपक का
काश उस क म फै ल रहा था। क के बाहर एक सश यो ा सावधानी से पहरा दे
रहा था।
चार मनु य धीरे -धीरे बातचीत कर रहे थे। पर तु उनक चे ा से यह कट था
क वे कसी ि के आने क ती ा कर रहे ह। अ राि तीत हो गई थी। पर तु ये
चार ि मनोयोग से अपनी बातचीत म संल थे।
इनम एक त ण ि याम वण, तेज वी, नीलका त मिण क आभा धारण
कए था। उसक बड़ी-बड़ी काली चमकदार आँख उसक बुि म ा और साहस को
कट करती थ । उस पु ष का अंग ग ठत, नाक नुक ली और क ठ वर ग भीर
घोषयु था। उस वीर पु ष को पाठक इस उप यास के ार भ ही म देख चुके ह। यह
गुजर का िस बाणबली युवराज भीमदेव चालु य था। अभी इसक आयु के वल
छ बीस वष क थी। पर तु अपने गा भीय, तेज और वैिश से वह हज़ार मनु य के
शीष थान पर सुशोिभत होता था।
दूसरा एक ौढ़ अव था का गौरवण दीघाकार और तेज वी राजसी ि था।
इसक बड़ी-बड़ी राजसी आँख म लाल डोरे , इसक ऐ य-भावना, ताप और िवलास
क साम य को कट कर रहे थे। यह एक दृढ़-िन यी, वचन- ितपालक, ि थरबुि
और वीर पु ष था। यह गुजरे र चामु डराय का ये पु व लभदेव था।
तीसरा पु ष एक तेज वी त ण था। इस पु ष क आकृ ित म सौ दय, शौय,
दृढ़ता और भावुकता का अ भुत सि म ण था। यह सादा ेत व पहने, एक तलवार
सामने र खे चुपचाप वातालाप म योग दे रहा था। यही पु ष आबू के िस मि दर का
िनमाता, गुजर-म ी िवमलदेव था।
चौथा पु ष एक कृ शतनु ा ण था। उसक मुखाकृ ित िवशेष आकषक न थी,
पर तु उसक येक बात से िवचारशीलता टपकती थी। वह ब त धीरे -धीरे नपी-तुली
बात कहता था । यह अधेड़ अव था का पु ष ‘गुजरात का चाण य‘ कहलाता था।
इसका नाम च ड शमा था। और यह गुजर रा य का महासि ध वै ािहक था।
भीमदेव बाणबली ने कहा, ‘‘काका, महाराज क जो दशा है, उससे तो अब
कु छ आशा नह है। अब गुजरात क मानर ा के िलए आप ही को कु छ करना होगा। इस
समय तो हम भीतरी और बाहरी श ु से िघरे ए ह। अब य द हम महाराज पर ही
िनभर रह तो बस हो चुका।’’
‘‘कु मार, तु ह यह नह मालूम क आज ही महाराज ने तु ह और युवराज को
ब दी करने क आ ा दी है।’’
व लभदेव ने कहा, ‘‘ कस अपराध पर?’’
‘‘अपराध क या बात है युवराज, जैसे िजसने महाराज के कान भर दए,
महाराज को वही सूझ गया। अब तो वे यह िव ास कए बैठे ह, क आप और कु मार
िमलकर महाराज को राज युत करने क साँठ-गाँठ कर रहे ह। बस, इसी अपराध पर।’’
‘‘तो कर नह तो डर नह ! इन बात से हम भय य कर?’’
‘‘पर तु युवराज, अिववेक के स मुख िववेक नह चलता। जहाँ अिववेक है वहाँ
िववेक सावधान रहता है। आपका काय यही है क भिव य को िवचार और समझ क
गुजरात के महाराज चामु डराय नह ह, आप ह।’’
‘‘पर तु अभी तो भीतरी-बाहरी श ु क बात है न?’’
‘‘सबसे पहले गज़नी का महमूद। वह आ रहा है। घोघाबापा साका रच चुके।
उ ह पदा ा त कर अब वह सपादल प च ँ ना चाहता है। महाराज धमगजदेव उसके
स मुख होने को तैयार बैठे ह। पर तु महमूद के च ड सवार से हम असावधान न
रहना चािहए। महमूद को म देख चुका ,ँ वह साहसी, एकाक ही सोमनाथ प न
छ वेश म चला आया था। पर तु सव क दृि से िछपा नह । दुख इतना ही है क
मेरी तलवार से जीता बच गया।’’
‘‘तो दुख या है कु मार, तु हारी शोभा तो उसे स मुख यु म धराशायी करने
म है।’’
‘‘वह समय भी आ रहा है। काका जी, अब िवचारना यह है क कहाँ उससे
मुठभेड़ क जाय। या हम सपादल चल, या ना दोल, या उसे पाटन तक आने द?’’
च ड शमा ने कहा, ‘‘कु मार, अब पहले तिनक भीतरी मामल पर भी दृि दो,
तभी इस का हल िमल सकता है। पहले ना दोल क बात ही िवचारो।’’
‘‘िवचारना या है, ना दोल का अनिह लराज तो हमारे मामा का बेटा है,
स ब धी है। फर पाटन का साम त है।’’ व लभदेव ने कहा।
‘‘और य द ऐसा न हो?’’ दामो महता ने तभी क म वेश करते ए कहा।
सबने महता को और आ य से देखा।
च ड शमा ने कहा, ‘‘आओ दामो महता, हम तु हारी ही ती ा कर रहे ह, पर
तु हारे इस कथन का अिभ ाय या है?’’
‘‘यही, क ना दोल के महाराज अनिह लराज पाटन क ग ी के स ब धी और
िहतैषी नह ह, साम त भी नह ह। वे के वल महाराजकु मार दुलभदेव के स ब धी ह।’’
‘‘यह कै से दामो?’’
‘‘महाराज, अभी तक तो हम िवदेशी श ु और पड़ोस के श ु से ही
िनबटना था। अब र के श ु से िनबटना उससे भी अिधक आव यक हो गया।’’
‘‘दामोदर, पहेली न बुझाओ, प कहो।’’
‘‘तो महाराज, प ही कहता ।ँ राजधानी म गहरा ष चल रहा है,
िजसका सारांश यह है क महाराज को िवष देकर मार डालने तथा आप और कु मार को
ब दी करने क योजना बना ली गई है। आप यहाँ उपि थत ह, इसका भी पता श ु
को चल गया है।’’
‘‘ क तु वे श ु ह कौन?’’
‘‘महारानी दुलभदेवी, ना दोल-राज अनिह लराज और जैन यित िजनद
सू र।’’
‘‘यह तुम या कह रहे हो महता?’’
‘‘उनके सहायक ह वीकणशाह–गुजरात के महाम ी, और महाराज क नाक
के बाल बालच द खवास।’’
‘‘पर तु इसका माण?”
‘‘मेरा वा य ही माण है महाराज, म अभी श ु के गु ष को आँख से
देखकर आ रहा ।ँ ’’
‘‘तब इसका उपाय?’’
‘‘उपाय पीछे सोचा जाएगा। अभी जो बात चल रही है, वही हो।’’
‘‘तो ना दोल के अनिह लराज का िवचार पाटन से िव ोह करने का है?’’
‘‘यह तो प है महाराज! वे सब िमलकर राजकु मार दुलभदेव को पाटन क
ग ी देने क सोच रहे ह।’’
‘‘तो सबसे थम यही िवषय िवचारने यो य है।’’
‘‘नह महाराज, सबसे थम िवचारणीय बात यह है क गज़नी का अमीर, जो
गुजरात को दिलत करने आ रहा है उसक रोक-थाम होनी चािहए।’’
‘‘वह कस कार?’’
‘‘इस कार महाराज, क पाटन क उ र दशा का द पाल िस धुपित ह मुक
देव, पि म का अबुदे र और पूव म ना दोल, सपादल ।’’
‘‘पर तु हारे कथन से तो यह प है क ना दोलपित अनिह लराज ने पाटन
क स ा का याग कर दया है।’’
‘‘और अबुदे र धुंधुकराज ने भी।’’
‘‘अरे ! यह कै से?’’
“ उसने मालवराज का आ य िलया है।’’
‘‘ क तु मालवराज भोज तो आजकल वेदपाट म ह न?’’
‘‘हाँ महाराज, धुंधुकराज भी वह ह ।’’
‘‘अरे , तो यह पाटन के िव एक ि पुटी तैयार हो रही है?’’
‘‘और उधर गज़नी का महमूद दल-बादल ले पाटन पर धँसा चला आ रहा है।
और भी एक बात है!’’
‘‘ या?’’
‘‘कृ णदेव बाला साद के पास ना दोल गया है।’’
‘‘तो इसका यह अथ है क अबुदाचेल क राजधानी म राजा भी नह है,
युवराज भी नह । यह तो असहनीय है अबुदपित धुंधुकराज पाटन क स ा को
अपमािनत कर गुजरात के िचरश ु भोजराज के आ य जाएँ, और उसका पु कृ णदेव
ना दोल के युवराज के पास रहकर पाटन के िव तैयारी करे ।’’
‘‘अब रही िस धुपित ह मुकराज क बात, वह सीधी शमशेर से बात करता है।
यह है महाराज, पाटन के द पाल क कथा।’’
‘‘अब पाटन क कथा कहो दामो महता।’’
‘‘महाराज, चामु डराय के तो वही रं ग-ढंग ह। आपके िव यह ष तो
हो ही रहा है। और महाराज ने आपको ब दी करने का आदेशा दे दया है। भावी आपि
से वे सवथा बेखबर ह। उधर रनवास म ष चल रहे ह।’’
‘‘सबसे थम महाराज क ाण-र ा तो होनी ही चािहए दामो,’’ युवराज
व लभदेव ने भाव से कहा।
‘‘तो महाराज, आप आ ा दीिजए क महारानी दुलभदेवी को ब दी कर िलया
जाए।’’
‘‘िवमल और तुम, जैसा ठीक समझो, उसी भाँित महाराज क ाण-र ा क
व था करो। पर तु यह यान रखो क राजप रवार क बदनामी सवसाधारण म न
होने पाए।’’
‘‘तो महाराज, आप िनि त रह। इस ष को िवफल करने का य म
कर लूँगा। पर तु महाम ी वीकणशाह क िज मेवारी िवमलदेवशाह अपने पर ल तो
ठीक है। जैसे आप पाटन के भावी महाराज ह, वैसे िवमलदेवशाह पाटन के भावी
महाम ी ह। यह तो ुव है।’’
िवमलदेव ने कहा, ‘‘म महाम ी से िनपट लूँगा महता। अब बाहर क बात
कहो–पहले ना दोल।’’
‘‘वहाँ मेरा पु ष गया है, समय पर समाचार िमल जाएगा।’’
‘‘ठीक! अबुद?”
‘‘वहाँ से भी आप िनि त रह। सब सूचनाएँ िमल जाएँगी।’
‘‘तो अब रहे िस धुराज और मालवराज भोज। िस ध पर अिभयान कर कु मार
भीमदेव?”
‘‘यह ठीक नह होगा। पहले अबुदे र और ना दोलराज ठीक ह , तब। तीन
क संयु सै य लेकर।’’
‘‘पर तु इधर गज़नी का अमीर जो आ रहा है।’’
‘‘उससे थम ही तीन दशा म द पाल क दृढ़ थापना हो जानी
चािहए।’’
‘‘पर तु कै से? क पना क िजए क मालवराज भोज और ना दोलपित
अनिह लराज तथा धुंधुकराज क ि पुटी पाटन पर चढ़े तो?’’
‘‘तो भारी पड़े।’’
‘‘ फर गज़नी का दुदा त अमीर है, उसके िलए हम अपनी शि याँ सुरि त
रखनी आव यक ह।’’
‘‘तब तो ब त कु छ मालवराज के िनणय पर िनभर है।’’
‘‘ऐसा ही है।’’
‘‘तब मालव पर ही पहले अिभयान हो?’’
‘‘यह य , अभी मालव म चर जाए।’’
‘‘यह भी ठीक है, पर तु चर िव ान, ितभाशाली और राजनीित-पटु होना
चािहए।’’
‘‘महाराज, मालवराज क सभा म जाने यो य ि पाटन म एक ही है,
भ मांकदेव।’’
‘‘तो दामो, भ मांक को तुर त मालव भेजो। और ऐसा करो िजसम अभी यह
बाहरी कलह टले। पहले गज़नी का अमीर और पीछे और कु छ।’’
“ऐसा ही होगा महाराज, पर तु आप भी अभी इसी ण यहाँ से थान
क िजए। के वल एक हर राि शेष रह गई है। आपको सूय दय होने से पूव ही
िस थल प च ँ जाना चािहए। यहाँ हम और िवमलदेवशाह सब ठीक-ठाक कर लगे।
आप राधनपुर म सै य-सं ह करना ार भ कर द। िस थल याग द। अब दुलभराय
पर भरोसा नह कया जा सकता।’’
‘‘तब हमारे अ मँगाओ दामो।’’
‘‘सब लोग उठे । महाराजकु मार भीमदेव और व लभदेव अ पर सवार हो गु
माग से वहाँ से चल दए। उनके पाीछे दो अ ारोही और चले। इसके बाद च ड शमा,
दामोदर महता और िवमलदेव अपने-अपने पथ पर चले।
भ मांकदेव
उस टू टती रात म, सबके िवदा हो जाने पर दामोदर महता अपनी घोड़ी पर
सवार हो धीरे -धीरे राज-पथ पर अ सर ए। इस समय उनके मि त क म दो
िवचारधारा का संघष हो रहा था। इधर अ त व ह से पाटन का राजत खि डत
हो रहा है, उधर मालवराज पाटन का बिह:संर ण खि डत कर गजसै य पाटन पर
लाने क अिभसि ध म ह। तीसरे –गज़नी का यह दै य पाटन पर धँसा चला आ रहा है।
जैसे भी हो, दोन िवनाश क योजना को थ करना होगा। वह भी िबना तलवार
के । तलवार तो गज़नी के सुलतान के िलए ही सुरि त रखनी होगी।
उ ह ने भ मांकदेव के आवास क ओर घोड़ी फे री। नगर के बाहर धवलगृह के
माग पर भ मांकदेव का भ आवास था। यह आवास एक मनोरम उ ान म था।
भ मांकदेव गुजरे र के राजम ी न होने पर भी राजम ी थे। वे राजपु के
िव ागु , परम तेज वी और िव ान ा ण थे। पाटन म उनका मान और नाम राजा
और जा दोन ही म ब त था। राजकाज और राजनीित म यह ा ण राजपु ष न
होने पर भी स य भाग लेता था। कु मार भीमदेव को उ ह ने सवशा -िन णात कया
था। और युवराज व लभदेव के ये ‘ ि गत म ी’ समझे जाते थे। राजा, रा य और
देश के गौरव के िव कोई भी बात भ मांकदेव सहन नह कर सकते थे। इस ा ण
क योजनाएँ और याशि अित समथ होती थ । शा के परम िन णात पि डत
होने के साथ भ मांकदेव श के समथ यो ा, संगीत और सािह य के मम ाता
और वृि के अित सरल साि वक पु ष थे।
भ मांकदेव के ार पर प च ँ कर दामोदर को सेवक ारा मालूम आ क
भ मांकदेव अपने अ ययन-क म ह। सूचना पाते ही उ ह ने उसे बुला िलया।
िश ाचार के बाद भ मांकदेव ने हँसकर कहा–
‘‘यह या बात है दामो, पाटन क राजनीित तार क छांह म चलती है?’’
‘‘राजनीित और ाननीित दोन ही तार क छाँह म चल तो ठीक ही है। सूय
के काश म तो उनक गूढ़ता भंग होती है। तभी तो देव रात-रात भर अ ययन करते
है।’’
‘‘यह तो मेरी आदत है दामो, पर तु तुम कहो। देश-देश के राजम ी जहाँ इस
समय सुख क न द सो रहे ह, यह पाटन का म ी कहाँ-कहाँ भटक रहा है?’’
‘‘ या कया जाए, यह राजत है ही ऐसी आपि ।’’
‘‘पर तु इस आपि म राजम ी ही राि -जागरण करते ह या राजा भी?’’
‘‘राजा भी जागरण करते ह गे। वे दन-भर ऊँघते ह। इसी से समझा जा सकता
है। पर तु उनके जागरण के कारण तो दूसरे ही ह।’’
‘‘म , संगीत और सौ दय?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘तो महता, कहो, म तु हारी या सेवा कर सकता ?ँ ’’
‘‘मेरी नह , देव, पाटन क ।’’
“ हाँ-हाँ, पाटन क । पाटन म दामो महता के समान दूसरा कोई ि है,
िजसे पाटन क ित ा का इतना िवचार हो?’’
‘‘ य नह , भ मांकदेव जो ह।’’
‘‘पर तु महता, राजा क तो यह दशा है!’’
‘‘देव, देवमू त तो प थर क होती है। सारी चैत य स ा तो उसके पुजारी ही म
है। पुजारी उसके भोग-ऐ य का कता-धता है, म तो रा य का म ी ,ँ के वल एक
चाकर। पर तु आप रा य के म ी ही नह , रा य के िम ह। इस समय पाटन पर संकट
है, आपको उठना होगा। आपके अ ययन म िव पड़े तो पड़े।’’
‘‘सो उसक िच ता नह , पर मुझे करना या होगा?’’
‘‘इस समय रनवास ही अ तःकलह का के बन रहा है उधर अवंितराज भोज
इसी सुअवसर से लाभ उठाकर पाटन क र ा-शि को भंग करने के य म ह। आप
जानते ही ह क गज़नी का सुलतान गुजरात म धँसा चला आ रहा है। ऐसी दशा म
पाटन के द पाल य द असावधान रह तो पाटन का सवनाश है। चालु य का युग-युग
का यश िछ -िछ हो जाएगा। अबुदे र धुंधुकराज और ना दोल का अनिह लराज,
दोन ही मेदपाट म अवि तपित के साि य म बैठे पाटन के िवनाश का ताना-बाना बुन
रहे ह। िजनपर र ा का भार है, वे श ु के सहायक ह। उधर िस धुपित खु लमखु ला
वत घोिषत हो रहा है। उसे उ र का द पाल िबना िनयु कए, गुजर भूिम तो
िबना रखाए खेत के समान न हो जाएगी। पर तु देव, इस समय पाटन इन घरे लू
श ु पर तलवार नह उठाना चाहता। तलवार तो गज़नी के दै य के िलए सुरि त
रहनी चािहए।’’
‘‘यह स य है, पर कहो, म या क ं ?’’
‘‘आप मालव जाइए।’’
‘‘म? म वहाँ या क ँ गा?’’
‘‘पाटन म दूसरा ि ऐसा और नह , जो मालव के पि डत और
वारांगना के पंच से बचकर आ सके । आप मालव क कृ ित के जानकार ह। मालव
राज ार म आपका मान भी है। आप उससे लाभ उठाइए। मालवराज पाटन को िवष-
दृि से देखता है। िस धु तक सा ा य-िव तार करने म पाटन ही उसक बाधा है। उधर
पाटन का वह अपराधी भी है, पाटन को उससे वैर लेना है, पर तु आज नह । आज तो
उसे रोकना होगा। यह काम आप ही कर सकते ह देव।’’
‘‘दामो, यह काम तो तु हारे बूते का है।’’
‘‘म ही जाता। पर म य द आज पाटन छोड़ता ँ तो देव, स य जािनए, पाटन
भी नह , पाटन के महाराज भी नह । इसिलए पाटन को मुझ पर छोिड़ए। आप मालव
जाइए।’’
भ मांकदेव िवचार म पड़ गए। दामोदर ने धीमे वर म कहा, ‘‘आप तैलप
राज क बिहन, मुंज क िवधवा महारानी कु सुमवती को जानते ह। वह भी आपको ब त
मानती है?’’
‘‘तो इससे या?’’
‘‘सब कु छ इसी म हो गया देव, वह बड़े तेज़ वभाव क ी ह। तैलपराज ने
अपने हाथ से महाराज मुंज का िशर छेद कया था, यह अव ती का साधारण अपमान
नह है। भोजराज इस अपमान को भूलकर इधर-उधर यान दे रहे ह। आप कु सुमवती
को उकसाइए, सारी राजसभा को उकसाइए, सारे मालव म आग लगा दीिजए–और
मालवराज को तैलपराज पर अिभयान म पेल दीिजए। यह आप ही क साम य है, दूसरे
क नह । यह सुयोग भी अ छा है। मालवराज अव ती से बाहर ह। आपके काम म बांधा
न होगी ।”
भ मांकदेव ने गंभीर िवचार करके कहा, ‘‘ठीक है महता, म जाउँ गा।’’
‘‘तो यह महाराज क मु का है, आप अभी, इसी ण थान कर जाएँ। एक
ण भी हमारे िलए मू यवान है।’’
‘‘ऐसा ही होगा’’, कहकर भ मांकदेव उठे । दामोदर भी उठे । दो घड़ी बाद, दो
अ ारोही अव ती- ार पर प च ँ ।े एक ार के बाहर अव ती के माग पर चला। दूसरा
उस पर शुभ दृि िबखेरता पीछे लौटा।
ाची दशा उ वल हो रही थी।
दामोदर क कू टनीित
ी भ मांकदेव को नगर के अवि त- ार से बाहर कर दामोदर पीछे लौटे। इसी
समय आन द ने स मुख आकर णाम कया। दामोदर ने स होकर कहा–
‘‘हो गया?’’
‘‘जी!’’
कु छ देर दामोदर कु छ सोचते रहे। फर उ ह ने कहा, ‘‘आन द, सुना है ना दोल
म सैिनक तैया रयाँ बड़ी धूम-धाम से हो रही ह। इस समय य द कोई श का सौदागर
अ छे श ा वहाँ जाकर बेचे, तो लाभ ही लाभ है।’’
‘‘महाराज, एक अ छा सौदागर आज ही अपने साथ ब त-से श ा लेकर
जाने वाला है।’’
‘‘यह तो ब त अ छी बात है। वहाँ इस समय अबुद राजकु मार ी कृ ण साद
देव भी िवराजमान ह, वे ना दोल के युवराज ी बाला साद के परम िम ह। दोन
िम को श िव ा का भी बड़ा शौक है। य द वह गुणी उ ह श -संचालन से स
करके उ ह अनुकूल कर ले, तो भिव य उसका ब त उ त हो सकता है। पाटन रा य क
ओर से उसे माण-प दया जा सकता है।’’
‘‘सौदागर िन य ही दोन राजकु मार को अपनी अ -िव ा से स कर
लेगा।
‘‘पर तु आन द, ना दोल के राजकु मार और अबुदे र के पाटवी दोन ही परम
रिसक ह। वे गान-वा के भी बड़े ेमी ह। य द वह गुणी सौदागर संगीत का भी पारखी
आ तो राजकु मार का ि य अ तवासी बन सकता है।’’
आन द से हँसकर कहा, ‘‘महाराज, वह सौदागर ऐसा ही पटु और पारं गत है।’’
‘‘तो आन द, यह मु ा ले, तू माण-प तैयार करके सौदागर को दे। यही मु ा
दखाकर िवमलशाह से िजतना जी चाहे, द म सौदागर को दला दे।’’
‘‘जो आ ा!’’ आन द नम कार करके चलता आ। इसी समय देवसेन ने
स मुख आकर णाम कया। और कहा, ‘‘महाराज, दोन क ज़े म ह।’’
‘‘ठीक है, देवसेन, म अब िव ाम क ँ गा। तू जा िवमलशाह के घर, और उनसे
कह, क महाम ी वीकणशाह पर कड़ी नज़र र ख, और उसके घर पर भी पहरा बैठा
द।’’
देवसेन णाम करके चला गया। दामोदर ने अपने आवास म जा िव ाम कया।
अभी सूय क एकाध ही करण पूव दशा म फू टी थी।
िवमलदेव शाह
िवमलदेव एक साम यवान् त ण था। वह देखने म दशनीय, वहार म न
और यु - थल म क ठन यो ा था। बाण-िव ा म कु मार भीमदेव के बाद उसी का नाम
गुजरात म िव यात था। यह एक भावुक ावक जैन था। जाित का बिनया था पर तु
वभाव का ि य। य िप महाराज चामु डराय के रा य म यह धान कोषा य था,
पर तु कु मार भीमदेव का अिभ िम और युवराज व लभदेव का धानम ी था।
महाराज चामु डराय को यह ि पस द नह था, य क वह सदैव महाराज के खच
पर टीका- ट पणी करता रहता था। ब धा महाराज क माँग क अव ा भी कर बैठता
था। वह अपने अिधकार और कत म चौकस था। उसका आ मस मान और
वािभमान इतना बढ़ा आ था क वह गुजरात म अपने समान वीर और राजपु ष
दूसरे को समझता ही न था। गुजरात म के वल दो ही पु ष थे िज ह यह पु ष आदर क
दृि से देखता था। एक युवराज व लभदेव, दूसरे ा ण भ मांकदेव। दामोदर को यह
अपना ित पध समझता था, तथा उससे भय भी खाता था।
दामोदर थोड़ा िव ाम कर झटपट िन यकम से िनपटकर घोड़े पर सवार हो
िवमलदेव के आवास क ओर गया।
िवमल का आवास पाटन म अित भ और भावशाली था। उससे वामी क
शालीनता और सु िच दोन ही कट होती थ । दामोदार को देखते ही िवमल ने
आ हपूवक उसका वागत करते ए कहा, ‘‘महता, महाराज व लभदेव को नई सै य
भत करने के िलए धन भी तो चािहए।’’
‘‘यह तो पाटन के अथम ी के सोचने क बात है।’’
‘‘अथम ी या करे , बड़े महाराज के लानतान के खच से कु छ बचे तब तो!’’
‘‘राजकोष पहले राज-काज म खच होगा, पीछे राजा के लानतान म, वह भी
मया दत।’’
‘‘वही तो महता, इसीिलए म िन य महाराज चामु डराय क घृणा का पा
बनता ।ँ ’’
‘‘यह तो जब तक वीकणशाह का थान िवमलदेव नह हण कर पाते, तब
तक सहना ही पड़ेगा।’’
िवमलदेव ने म द मु कान िबखेरते ए दामोदर को देखा और कहा–
‘‘महता, व देख रहे हो?’’
“ व रात देखा था, आज तो जो कु छ देखूँगा, वह य ही।’’
‘‘ या कोई और योजना है?’’
‘‘ व को स य करने क ।’’
‘‘कब?’’
‘‘आज ही।’’
िवमलशाह महता क ओर ताकते ही रहे। फर उ ह ने कहा, ‘‘महता, छोड़ो
यह बात, मने आज ही कु छ द म महाराज व लभदेव के पास नई सेना क भत करने के
िलए भेज दए ह।’’
‘‘के वल नई सेना से या होगा? श भी तो चािहए– फर घोड़े-हाथी। जानते
हो महाम ी, मालव-महीप भोज का गज–सै य तीन हज़ार है।’’
‘‘जानता ,ँ पर बाणबली कतने ह?’’
दामोदर ने बात टालकर कहा, ‘‘पाटन म श ा अिधक-से अिधक उ प
कराने क योजना भी आव यक है। फर बालुक राय भी तो सै य भत कर रहे ह।’’
‘‘उ ह तो एक स ाह हो गया। िस ध-सौरा और कनाटक से िजतने घोड़ के
ापारी पाटन म आए थे, सबके घोड़े उ ह ने खरीद िलए ह। वे द भ माँग रहे ह।’’
‘‘सो तो माँगे ह गे।’’
‘‘पर वीकण ने बड़े महाराज के कान भर दए ह। उ ह ने संहल से कु छ नये
िश पी बुलाए ह। कु छ बंगीय कलाव त आए ह, उनके िलए उ ह दस लाख द म तुर त
चािहए।’’
‘‘इसपर आज के बाद िवचार होगा, अभी एक अ य क बात पर परामश
करने आया ।ँ ’’
‘‘कौन सी बात?’’
‘‘भ मांकदेव गए।’’
‘‘ठीक आ — और ना दोल?’’
‘‘वहाँ एक श का ापारी गया है।’’
“श का सौदागर?’’
‘‘ना दोलराज नई सै य भत कर रहे ह, उ ह पाटन और अव ती, दोन ही से
िनपटना है। इससे अ छे श के वहाँ अ छे दाम उठगे, इसीसे। फर एक और बात
है।’’
‘‘ या?’’
‘‘अबुदे र के महाराज कु मार और ना दोल के कु मार, दोन ही श िव ा के
बड़े ेमी ह। वह सौदागर उ ह श -संचालन क िश ा देगा। साथ ही वह संगीत से भी
उ ह स करे गा।’’
िवमल ज़ोर से हँस पड़े। दामोदर भी हँसे। फर कहा, ‘‘अब िस धु क बात
कहो।’’
‘‘उसक या बात?’’
‘‘वहाँ आप जाएं महाम ी।’’
‘‘म?’’
“ िस धुपित मक क नस-नस से आप जानकार ह।आपको जाना ही पड़ेगा।"
“ क तु...”
“ क तु-पर तु पीछे, आज आपको पाटन का धानम ी बनना है, इसके बाद
िस धु देखे िबना चलेगा नह ।’’
‘‘ या कहते हो महता...’’
“महाम ी, आज मुझे ब त काम है, आप समय पर महाराज क सेवा म
उपि थत रह।’’
‘‘पर राजा द म मांगगे।’’
‘‘तो कहना, द म देने ही आया ।ँ ’’
‘‘ फर?’’
‘‘ फर दामोदर देख लेगा।’’
‘‘महता, तुम कोई भयानक खेल तो नह खेल रहे?’’
‘‘भयानक नह , एक मनोरं जक खेल! मेरा संदश
े िमला था?’’
‘‘वीकणशाह के स ब ध म?’’ ‘‘हाँ। सब ठीक है महता।’’
‘‘तो म चला महाम ी।’’
‘‘यह या...’’
‘‘जय!..जय!’’
राज–कलह
गुजरे र महाराज चामु डराय अ य त ु थे। वे ोध म आकर अंटसंट जो
मुँह म आता था, वही बकझक रहे थे। उनके स मुख गुजरात के राज व सिचव िवमलदेव
शाह बैठे थे। उनके चेहरे पर भी दृढ़ता और िव ोह के िच न प थे।
महाराज ने कहा, ‘‘गुजरात का राजा म क तू?’’
‘‘आप,’’ िवमलदेव शाह ने संि जवाब दया।
‘‘तो राजकोष का वामी कौन?’’
‘‘म।’’
महाराज ने ोध से काँपते ए कहा, ‘‘तू तो चाकर।’’
‘‘चाकर रा य का, राजा का नह ।’’
‘‘राजा का य नह ?’’
‘‘राजा भी रा य का चाकर।’’
‘‘यह बात है? तू राजिव ोही है।’’
‘‘म राजसेवक ।ँ ’’
‘‘पर म, जैसी मेरी इ छा होगी, राजकोष खच क ँ गा।’’
‘‘यह नह हो सकता।’’
‘‘तूने व लभ को द म य भेजा?’’
‘‘उसक आव यकता थी राजकाय के िलए।’’
‘‘मेरी आ ा य नह ली?’’
‘‘महाराज को राजकाज देखने का होश ही नह है, राजकाज तो दूसरे ही देखते
ह।’’
‘‘दूसरे कौन?’’
‘‘जैसे म।’’
‘‘तो राजा कौन?’’
‘‘महाराज!’’
‘‘तब दे राजकोष मुझ।े ’’
‘‘नह , राजकोष रा यकाय म य होगा।’’
‘‘म तुझे पद करता ।ँ ’’
‘‘म अ वीकार करता ।ँ ”
‘‘तेरा इतना साहस?’’
‘‘िबना साहस के तो महाराज, राजकाज होता नह ।’’
राजा के मुँह से ोध के मारे झाग िनकलने लगे। उ ह ने एक खवास क ओर
देखकर कहा, ‘‘पकड़ इस हरामखोर को।’’
हरामखोर क गाली राजा के मुँह लगी थी। गाली सुनकर िवमलदेव शाह का
मुँह लाल हो गया। उ ह ने तलवार सूँत ली। इसी समय खवास राजा ा का पालन करने
को आगे बढ़ा । िवमलदेव ने खट से उसका िसर काट िलया।
राजा के सामने खून क नदी बह िनकली, लाश तड़पने लगी। राजा का ोध
हवा हो गया। वह भय से थर-थर काँपने लगा। खवास, चाकर, जी जू रये सब भाग
खड़े ए।
िवमलदेव शाह ने आगे बढ़कर कहा, ‘‘महाराज, उिचत तो यह है क आप क
िजस ज़बान पर गाली चढ़ी है, वह ज़बान अभी काट ली जाए, पर इस बार माफ करता
।ँ िवमलदेव शाह गुजरात का राज व-सिचव है, उसके साथ गुजरे र को ित ा का
वहार करना चािहए।’’
राजा क वाणी जड़ हो गई। उसने भराए वर म कहा, ‘‘तो िवमल, तू अपने
राजा को मार डाल या द म दे।’’
‘‘द म तो दूग
ँ ा नह । िजतना था, दे चुका ।ँ ’’
राजा को पय क बड़ी आव यकता थी। उसने ब त-सा मू यवान प थर
खरीदा था। कु छ मालव क गिणकाएँ आई थ । उ ह धन देना था। और भी खच थे।
िजतना पया आता था वह तुर त ही उड़ जाता था। महाराज िहसाब- कताब रखते
नह थे। हाथ उनका खुला आ था। उ ह हर समय ही धन क आव यकता रहती थी।
राजा ने आँख म आँसू भरकर कहा, ‘‘तो तू मुझे मार डाल िवमल।’’
‘‘यह काम म तो नह क ँ गा। पर महाराज, इसका भी ब ध हो चुका है।
स भवत: आज ही आपक यह इ छा भी पूरी हो जाएगी। म अब जाता ।ँ ’’ यह कहकर
र से भरी तलवार हाथ म ले िवमलदेव शाह लौट चले।
राजा ने रोककर कहा, ‘‘अरे ठहर िवमल, यह या बात कही तूने? इसका या
मतलब है?’’
अब धीरे -धीरे दामोदर महता ने आकर राजा को णाम कया। उसने कहा,
‘‘यह बात मुझसे पूिछए महाराज।’’
‘‘ या तू भी इस ष म है महता? और तुम सब लोग राज-वध कया
चाहते हो?’’
‘‘महाराज!’’ दामोदर ने कहा,‘‘राजवध कौन करना चाहते ह, और कौन
महाराज क र ा करते ह, महाराज को इस पर िवचार करने क फु रसत ही नह है।’’
‘‘फु रसत य नह है, पर तुम लोग सब मनमानी करते हो, मुझे कु छ बताओ
तभी न।’’
‘तो महाराज, यह यश वी महाराज मूलराज देव क अकलंक गद्दी है। और
महाराज राजराजे र चामु डराय याय-िवधान म पीछे नह है। म एक अिभयोग
उपि थत करता ,ँ महाराज इस पर िवचार कर।’’
‘‘और िवमल?’’
‘‘िवमलदेव शाह सा ी रह।’’
‘‘अ छी बात है, अिभयोग उपि थत कर।’’
‘‘पर तु महाराज, एक वचन दीिजए, अिभयोग चाहे िजस भी पु ष के िवपरीत
हो, और वह पु ष चाहे जैसा भी भावशाली और महाराज का ि य हो, आपको याय
करना होगा।’’
‘‘पर अिभयोग या है?’’
‘‘महाराज क ह या का, और गुजरात के राजत को उलटने का।’’
‘‘तो म वचन देता ।ँ अिभयोग कसके िव है? अपरािधय को उपि थत
कर।’’
दामोदर ने संकेत कया। सेनापित बालुकाराय, रि सय से बंधे यित िजनद
सूरी को लेकर उपि थत ए। राजा आ यच कत हो दामोदर क ओर देखने लगा।
दामोदर ने कहा, ‘‘महाराज, म बालुकाराय से कु छ करता ,ँ वह सुिनए, पर तु
ठह रए।’’ उसने फर संकेत कया। इस बार देवसेन बालच द खवास और महाराज क
ि य ता बूलवािहनी च पकबाला को लेकर आ उपि थत आ। दोना के हाथ रि सय से
बंधे थे।
अब दामोदर ने बालुकाराय से पूछा–
‘‘बालुकाराय, तुमने इस यित को कहाँ पकड़ा?’’
‘‘ना दोल के राजमाग पर।’’
‘‘यह कहाँ जा रहा था?’’
‘‘ना दोल।’’
‘‘तुमने इसे कसिलए पकड़ा?’’
‘‘दामो महता के आदेश पर।’’
‘‘इसके पास तुमने या पाया?’’
‘‘एक प और एक मु ा।’’
‘‘ये दोन व तुएँ महाराज के स मुख उपि थत करो।’’
सेनापित ने दोन व तुएँ तुर त महाराज के आगे धर द । महाराज महारानी
दुलभदेवी के ह ता र और मु ा देखकर अचरज म डू ब गए।
अब महता ने देवसेन से पूछा–
‘‘देवसेन, इस दोन को तुमने कहाँ पकड़ा।’’
‘‘सर वती–तट पर नगर– ार के बाहर।’’
‘‘ कस समय?’’
‘‘तीन हर राि जाने पर।’’
‘‘ कसक आ ा से?’’
‘‘आपक ।’’
‘‘इनके साथ कौन-कौन था?’’
‘‘महारानी दुलभदेवी, यह यित और कु मार दुलभदेव का साम त।’’
‘‘अ छा, अब यित जी महाराज, आप कह सकते ह क आप उस अ राि म
महारानी और इन सबके साथ या षड् य कर रहे थे?’’
‘‘नह , म इनको जानता भी नह । मुझे ना दोल जाते ए पकड़ा गया है।’’
‘‘और यह मु ा तथा पि का?”
‘‘म इस िवषय म कु छ नह जानता।’’
‘‘अ छी बात है, च पकबाला, तुम कु छ बता सकती हो?’’
‘‘म कु छ नह जानती।’’
‘‘और तुम बालच ?”
‘‘म महाराज का िनद ष सेवक ।ँ ’’
दामोदर ने देवसेन से कहा–
‘‘देवसेन, इनके व क तलाशी तो लो।’’
“तलाशी म बालच के पास से महारानी का कं गन, वणद म और
च पकबाला के पास मोती क माला िमली। खवास के पास िवष क पुिड़या भी िमली।
तीन व तुएँ महाराज के पास रख दी ग । राजा उन व तु को पहचान कर काठ हो
गए।
दामोदर ने कहा, ‘‘तुम बता सकते हो, ये व तुएँ तु हारे पास कहाँ से आ ।’’
‘‘नह बता सकते, हम कु छ नह जानते।’’
दामोदर ने संकेत कया। देवसेन दो सैिनक को भीतर ले आया। दामोदर ने
उनसे कहा, ‘‘इस ी को नंगा करके कोड़े लगाओ।’’
िसपाही आगे बढ़े, यह देख च पकबाला रोती ई बोली, “नह -नह , म सब
साफ-साफ कह देती ।ँ ’’
इसके बाद उसने सब ष का भ डाफोड़ कर दया। बालच खवास भी
अपराध वीकार करके राजा के चरण म आ िगरा। के वल यित ने कु टल हा य करके
कहा, ‘‘झूठ, सब झूठ।’’
अब बालुकाराय ने उस साम त को भी लाकर उपि थत कया, पर उसने भी
सब अ वीकार कया।
पर तु अिभयोग मािणत करने भर क सब साम ी जुट गई थी। दामोदर ने
कहा, ‘‘महाराज, आपक आ ा के िबना हमने महारानी और रा यम ी वीकणशाह को
ब दी नह कया था। सो आप इन दोन को ब दी करने क आ ा दीिजए।’’
महाराज चामु डराय शोक, ोध और संताप से िसर पकड़कर बैठे रह गए।
दामोदर ने कहा, ‘‘महाराज ने याय का वचन दया है। आ ा दीिजए!’’
राजा ने दोन को लाने क आ ा दी। महारानी ोध से लाल मुँह कए संिहनी
क भाँित आ खड़ी ।
दामोदर ने कहा, ‘‘महारानी बा, म आपसे कु छ क ँ गा।’’
‘‘गुजरात क रानी अपने चाकर को जवाब देने को बा य नह है।’’
‘‘पर तु म महाराज क ओर से पूछता ।ँ ’’
‘‘महाराज अभी जीिवत ह, उनम बोलने क भी शि है, वे ही य नह
पूछते?’’
राजा ने कहा, ‘‘महारानी, महता क बात का जवाब दो।’’
‘‘म कोई जवाब नह दूग ँ ी। म कसी के ित जवाबदेह नह ।ँ ’’
‘‘आपने राजिव ोह कया रानी बा?’’
‘‘रानी वयं ही राजा क अधािगनी है, उसके ित राजिव ोह का अपराध
लगाने का अिभ ाय है, उसका अपने ही ित िव ोही होना। सो यह अस य है।’’
‘‘आपने महाराज को मारने का ष ं कया था?’’
‘‘राजा कभी मरता ही नह है, राजा िचरं जीव है।’’
‘‘पर त म महाराज चामु डराय के स ब ध म कहता ।ँ
‘‘राजा वही है जो सबका वामी है, िजसे राज व का ान है और मयादापालन
क शि है। िजसम वह नह है, वह राजा ही नह । उसके ित िव ोह का ही नही
उठता।’’।
‘‘आपने महाराजा चामु डराय क ह या करके कु मार दुलभदेव को राजा
बनाने क योजना ि थर क थी?’’
‘‘रानी रा य क उ ित के और ि थरता के िलए जो ठीक समझे , कर सकती
है।’’
‘‘तो आप वीकार करती ह?’’
‘‘म कु छ वीकार नह करती।’’
वीकणशाह ने सब बात िव तार से बयान करके कहा, ‘‘ क म तो भेद लेने को
ष म सि मिलत आ था। म महाराज का िचर कं कर ।ँ ’’
महाराज ने सब बि दय को अभी ब दीगृह म ले जाने तथा महारानी को
राजमहल म नज़रब द करने क आ ा दी।
उसके बाद, ‘‘ओफ, आफत टली।’’ कहकर वे मसनद पर लुढ़क गए।
दामोदर ने कहा, ‘‘अभी आफत नह टली महाराज, आफत िसर पर आ रही
है।’’
महाराज फर घबराकर बैठ गए। उ ह ने कहा, ‘‘अब या?’’ दामोदर के संकेत
से साम त संह चौहान ने आगे बढ़कर राजा को णाम कया।
राजा ने पूछा, ‘‘यह कौन?’’
महता ने कहा, ‘‘महाराज, यह साम त संह चौहान है–घोघाबापा का पु ,
आज आठ दन से महाराज के दशन को भटक रहा है।’’
महाराज के मुख पर वा स य क स मु ा छा गई, उ ह ने दोन हाथ
फै लाकर कहा, “आ-आ पु , आहा घोघाबापा, ब त दन से देखा नह । तू आठ दन
से...ये हराम खोर...’’ राजा ने भयभीत ने से िवभलदेव शाह क ओर देखा। अभी भी
उसके हाथ म वही र -भरी तलवार थी, और वह आ ोपा त सब नाटक चुपचाप
देखता रहा था।
दामोदर ने कहा, ‘‘महाराज, िवपि िसर पर है।’’
‘‘कै सी िवपि भाई, िवपि -िवपि -िवपि का कोई आ द-अ त भी है?’’
‘‘महाराज, चौहान आपके पास घोघाबापा का स देश लाए ह।’’
‘‘ या स देश है पु ?’’
महराज, गज़नी का दै य नगर-गाँव जलाता-लूटता, सब ी-पु ष को तलवार
के घाट उतारता गुजरात क ओर धँसा चला आ रहा है।’’
‘‘गुजरात क ओर?’’
महाराज ने बालुकाराय क ओर सूचक दृि से देखा।
बालुकाराय ने महता क ओर देखा। महता ने कहा, ‘‘महाराज, पहले
घोघाबापा का स देश पूरा सुन ल।’’
राजा ने फर साम त क ओर देखा। साम त संह ने कहा, ‘‘महाराज, उसने
मुलतान को आ ा त कया है, और बापा से उसने राह माँगी है।’’
‘‘राह?’’
‘‘म थली क राह, वह म थली को पारकर सपादल को जाना चाहता
है।’’
‘‘घोघाबापा या उसे राह दगे?’’
‘‘उ ह ने उसके हीर -भरे थाल म लात मारकर कहा है क यह लात ही मेरा
उ र है।’’
राजा सब बात भूलकर बालक क भाँित हो-हो करके हँस पड़े उ ह ने कहा,
‘‘यह ह घोघाबापा, म या उ ह जानता नह ।ँ ’’
‘‘पर तु महाराज, मुलतान के महाराज अजयपाल और लोहकोट के भीमपाल
ने भय और लालच म फँ सकर उसे राह दे दी है। बापा ने कहा, जब तक म थली के मुख
पर मेरी चौक है, म थली म एक पंछी भी पर नह मार सकता। पर तु फर भी
महाराज सावधान रह। इसी से मुझे भेजा गया है।’’
‘‘तो अ छा कया।’’ फर बालुकाराय क ओर देखकर कहा, ‘‘बालुका, बेटा,
इस अमीर को मार भगा। देख, यह गुजरात क भूिम पर पैर न रखने पाए।’’
बालुका चुपचाप खड़ा रहा। दामोदर ने कहा, ‘‘महाराज! यह सब तो समय पर
होता रहेगा। पर अभी आप िवमलदेव शाह को महाम ी के पद पर िनयु क िजए।’’
महाराज ने भयभीत ने से िवमल क ओर देखा। फर कहा, ‘‘ठीक है िवमल,
तू इन हरामखो...नह , नह , यह बात नह , सब टंटेखोर को ठीक कर।’’ फर साम त
क ओर देखकर आन द मु ा से कहा, ‘‘आ पूत, आ। अरे महता, देख, यह साम त अभी
जाए नह ।’’ और वे फर मसनद पर लुढ़क गए। महता ने हाथ ऊँचा करके कहा,
‘‘महाम ी िवमलदेव शाह क जय!’’ सब कं ठ ने िमलकर जयघोष म योग दया।
धम क तलवार
आपने अजमेर से आगरे तक का भू-भाग देखा होगा। इस समय इस भूभाग म
ल बी-चौड़ी साफ-सुथरी सड़क, साँप क तरह बलखाती ई छोटी-बड़ी पहािड़य के
अँचल म फै ली ई दीख पड़ती ह। इधर से उधर रात- दन रे ल-गािड़याँ दौड़ती ह, राह
म अलवर, बांदीकु ई, अछनेरा, फु लेरा, जयपुर, भरतपुर और अजमेर के शानदार टेशन
बने ए ह। जब आप फ ट लास म गुदगुदे ग पर अधलेटे, सुगि धत िसगरे ट के धुएँ
का गुबार बनाते इन टेशन पर गाड़ी के कते ही खानसामा को, चाय-टो ट-
म खन, सोडा-बफ सु िचपूण ढंग से िलए जराफ सफे द साफ पोशाक पहने सेवा म
उपि थत आ देखते ह, तथा जब सावन क ठं डी बरसाती हवा के झ के , घड़घड़ाती
सरपट दौड़ती ई रे लगाड़ी के आपके िड बे म अनायास ही घुसकर आपक या ा को
अिधक आन द द बना देते ह, और जब आप जयपुर, अजमेर जैसे समृ शहर क भ
छटा का अवलोकन करते ह, तब शायद ही आपके यान म यह बात आती होगी क अब
से एक हजार वष पूव यह भूभाग लगभग जनशू य, उजाड़, दुगम और हंसक पशु से
प रपूण था। बड़े-से-बड़ा साहिसक या ी भी इस ज टल भयानक देश म होकर
एकाक या ा करने का साहस न कर सकता था।
भ जयपुर के पा व म, जो व त आमेर नगर दीख पड़ता है, वह उन दन
मीना लोग क मु य राजधानी था। उन दन माची, खो , गेटोर तथा कोटवाड़ा जैसे
छोटे गाँव म भी, मीना सरदार क छोटी-बड़ी गढ़ी बनी ई थ । मीना बड़े लड़ाके
और बलवान थे। आसपास के इलाक म उनक धाक बंधी थी। आसपास के पाव य
देश म उनके अधीन बावन दुग थे, िजनम हज़ार मीना-सुभट हर समय तीर-कमठा
िलए रणस ा म सजे तैयार रहते थे।
आमेर रा य के सं थापक कछवाहा ई रदास ने, सनक म आकर अपना सब
धन ा ण को दान दे डाला था और आमेर का रा य अपने दोहते जय संह तोमर को
देकर वयं वान थी हो गए थे। उन दन वािलयर भी आमेर रा य के अ तगत था,
और वहाँ ई रदेव के पु सौढ़देव रहते थे। उनसे तोमर ने कहा, क आपके िपता ने यह
स पूण रा य हम दे दया है, अत: अब वािलयर भी आप खाली कर दीिजए। िपता क
आन मानकर सौढ़देव ने वािलयर छोड़ दया और दौसा म बड़गूजर के आि त हो आ
बसे। उन दन दौसा एक अ छा ापा रक के था और वह बड़गूजर क राजधानी
था। पर वह चार ओर से मीना क रयासत से िघरा था। अत: मीना से आए- दन
झगड़े-झंझट होते ही रहते थे। बड़गूजर राजा दुबल था। वह मीना के अ याचार और
लूट-खसोट से ब त तंग था। सौढ़देव जैसे बात के धनी थे, वैसे ही तलवार के भी धनी
थे। सेनानी भी वे बड़े बांके थे। बड़गूजर ने जब उनक खूब आवभगत क , तो सौढ़देव ने
उनका संगठन करके उनके अनुरोध से मीना क संयु सेना से घोर यु करके सदा
के िलए उनका बल ीण कर दया। तोमर ने अपनी ओर से एक मीना सरदार को
राजा बनाकर आमेर पर बैठा दया। अब आमेर ही मीना का मुख नगर था। सौढ़देव
ने मीना को आमेर से िनकाल बाहर कया और अपने को आमेर का राजा घोिषत कर
दया।
इसी समय सौढ़देव क मृ यु हो गई। उनके बाद उनका पु दुलभदेव आमेर क
ग ी पर बैठा। पर तु दुलभदेव िनपट बालक था, इसे सौढ़देव के भाई ने बलपूवक ग ी
से उतार दया और वयं आमेर का राजा बन बैठा। सौढ़देव क रानी तािड़त हो
बालक राजा को टोकरे म रख, िभख़ा रणी के वेश म खो गाँव म आ वहाँ के मीना
राजा के घर रसोई बनाने पर नौकर हो गई। काला तर म मीना राजा ने उसे
पहचानकर और उसके शाील, चातुय और कायपटु ता से स हो उसे अपनी धम-बिहन
बना िलया और दुलभदेव को भांजा मान िलया। अब दुलभदेव को राजोिचत िश ा दी
जाने लगी। आयु पाकर दुलभदेव बुि मान और वीर युवक के प म कट आ।
द ली उन दन तोमर क थी। आसपास के सब राजे तोमर के अधीन थे।
खो का मीना राजा भी उनको कर देता था। अब खो के मीना राजा को अपना एक
ितिनिध द ली म रखने क आव यकता ई। राजा ने अपने इस त ण भांजे दुलभदेव
को वहाँ अपना ितिनिध बनाकर भेज दया।
दुलभदेव ने द ली म अपनी िमलनसारी, कायपटु ता और बुि म ा से तोमर
राजा के मन म घर कर िलया। उ ह ने उस उ ीस वष के बालक क िवल ण बुि म ा,
साहस और वीरता को देखा, तो उसे ेह क दृि से देखने लगे। द ली म दुलभदेव
पाँच वष रहा। इस बीच उसने दो बार यु म वीर व का दशन कया और श ु को
िवजय कर तोमर राजा के चरण म ला डाला। इससे वह और भी उसक नज़र म चढ़
गया। मीना के िव लूट-खसोट, अ याचार तथा अ व था क िशकायत द ली म
िनर तर आती रहती थ । द ली-दरबार म मीना राजा के श ु भी थे। वे इस साहसी
त ण को मीना राजा के िव समय-समय पर उकसाते रहते थे। इसी समय द ली म
यह खबर प च ँ ी क गज़नी का अमीर सोमनाथ प न को वंस करने सपादल क ओर
बढ़ा आ रहा है। और चौहान राजािधराज धमगजदेव उससे लोहा लेने क तैया रयाँ कर
रहे ह। उसका युवा र जोश खा गया, और उसने इस धम-यु म भाग लेने का संक प
कर िलया। द ली म इसके अधीन पाँच सौ सुभट रहते थे, उतने ही सुभट संग लेकर वह
द ली से उस धमयु म योग देने चल पड़ा। दीपावली का पव था। मीना लोग का यह
जातीय यौहार था। वे िनि त होकर यह यौहार मना रहे थे, म ढाली जा रही थी
और नृ यो सव हो रहे थे। दुलभराय ने वहाँ प च
ँ कर वीरोिचत श द म मामा क
भ सना क , और आगे बढ़कर गज़नी के बबर को रोकने म शौय कट करने का अनुरोध
कया। पर तु मीना राजा इस समय म के नशे म म था। उसने दुलभराय को हाथ से
धके ल दया। दुलभराय ने इसी ण तलवार िनकालकर उसका िसर काट िलया। उसके
सुभट, तलवार सूंत-सूंतकर मीन पर िपल पड़े। सब मीना गाजर-मूली क भाँित काट
डाले गए। इस कार अकि पत घटना घट जाने से भयभीत हो शेष मीना ने
दुलभराय क अधीनता वीकार कर ली। और दुलभराय ने उसी ण चढ़ी रकाब आमेर
को दखलकर, अपने को आमेर का राजा घोिषत कर दया, तथा रा य क उ म
व था क । पाँच वष द ली म रहकर उसे जो दरबारी अनुभव ए थे उनसे उसे ब त
लाभ आ। उसने देखते ही देखते रा य का सारा ब ध नये िसरे से ठीक कर िलया।
लूट-खसोट, मार-काट, चोरी सब ब द हो गई। इसके बाद उसने सपादल के राजा
धमगजदेव चौहान को, मीना मामा के खून से भरी अपनी तलवार भेजकर कहलाया क
गज़नी के सुलतान के साथ होने वाले धमयु म मेरी यह तलवार आपक आ ा के
अधीन है।
धमगजदेव
सांभर और अजमेर का संयु इलाका उन दन सपादल कहलाता था,
सांभर पुरानी राजधानी थी और अजमेर क नई ब ती बसी थी, तब चौहान राजा ने
इस थान को यु ोपयोगी जान, पहािड़य पर चार ओर सुदढ़ृ गढ़ बना, अजमेर ही को
अपनी मु य राजधानी बनाया था।
उन दन अजमेर पर चौहान राजा धमगजदेव का अबाध शासन था।
धमगजदेव बड़े वीर, साहसी और यो ा पु ष थे। अजमेर अरावली क उप यका म
राज थान का मुख था। यह नगर चार ओर से दुगम पवत- ेिणय से िघरा आ अित
सुरि त था। धमगजदेव को िव दत था क मारवाड़ क म थली को पार करके जो
आततायी आ ा ता राज थान म वेश करना चाहे, उसे अजमेर ही के माग से आना
पड़ेगा। इससे वह अपने को राज थान का द पाल समझकर सदैव चौक ा रहता था
धमगजदेव ने जब सुना क गज़नी का अमीर बबर तुक के दल-बादल ले
मारवाड़ क म थली को पार करके ताबड़तोड़ अजमेर क ओर घुसा चला आ रहा है,
तो उसने अिवल ब उसके स मुख होने क तैया रयाँ ार भ कर द । अमीर से मुठभेड़
का उसका यह पहला ही अवसर न था, इससे थम वह दो बार उससे ट र ले चुका था
। वह जैसा रणशाूर था, वैसा ही राजनीितपटु भी था । उसने सब कोष–खज़ाना माल-
म ा ‘वीटवी’ के कले म भेज दया। काफ दन तक चल सकने यो य रसद अजमेर के
कले म एक कर ली। गाँव-गाँव ढंढोरा िपटवा कर लोग को सावधान और सुसि त
रहने का आदेश दे दया। िजन नगर-गाँव पर खतरा था, उ ह खाली कर दया।
राहबाट के कु एँ-तालाब-बाँध सब तोड़ डाले। फसल जला द । वृ काट डाले, सड़क-
पुल-माग सब तोड़ डाले। घा टय को ब द कर दया। इस अ पकाल म िजतना स भव
था, तैयार होकर उसने अजमेर से बाहर आकर पड़ाव डाला। धमगजदेव के आ वान पर
ामीण कृ षक हल-बैल छोड़, धनुष-बाण और ढाल-तलवार हाथ म ले, इस आततायी से
लड़ने को आ जुटे। आसपास के ठकानेदार, ज़म दार और सगे–स ब धी राजा लोग भी
उसक सहायता को आ प च ँ े। चार ओर से चौक पहरे का ब ध कर धमगजदेव ने
अपनी सेना का िनरी ण कया। उसके िवभाजन कए और फर वह अनुभवी दूत को
अमीर क खोज खबर लेने भेजकर सावधान हो अमीर क अवाई क ती ा करने
लगा।
महमूद ताबड़तोड़ मंिजल-दर-मंिजल कू च करता आ, म थली क थकान
उतारने क परवाह न कर अजमेर क सीमा म आ घुसा। उसने पु कर के उस पार अपनी
छावनी डाली। धमगजदेव यह समाचार पाते ही पु कर क ओर बढ़ा। उसने पु कर का
पिव जलाशय अपने अिधकार म कर िलया। और सेना को यु के िलए स कर
छावनी डाल, अमीर क गितिविध का िनरी ण करने लगा।
अमीर महमूद चौहानराज धमगजदेव के परा म से बेखबर न था। वह उससे
यु का खतरा उठाना नह चाहता था। अत: उसने मै ी-स देश लेकर दूत, मुलतान के
अजयपाल, सेव दराय, सालार मसऊद और ितलक ह ाम को अजमेरपित के पास
भेजा। साथ म ब त-सी ब मू य भट भी भेजी।
सुलतान के दूत का यथोिचत स कार करके धमगजदेव ने उनके आने का कारण
पूछा। इसपर सालार मसऊद ने सुलतान का खरीता महाराज क सेवा म पेश कया।
महाराज क आ ा से खरीता भरी सभा म पढ़ा गया। उसम िलखा था–
‘‘अजमेर के महाराज, आपक वीरता और द रया दली का हमने ब त बखान
सुना है। हम, गज़नी के यश वी सुलतान आपक दो ती के िलए हाथ पसारते ह। हमारी
राह रोकने को, अपना ल कर लेकर आने का आपका या मतलब है? हमारा इरादा
आपके मु क पर हमला करने का नह है। खुदा के म से कु तोड़ने, थोड़े से जांिनसार
सािथय के साथ हम गुजरात क ओर जा रहे ह। आप हमारी राह छोड़कर दो ती का
सबूत दीिजए। हमारा नाम महमूद है, हमारी तलवार और गु सा दु मन का काल है।
हमारे दु मन को मौत और आग तथा गुलामी के आँसू नसीब होते ह। उ मीद है, आप
दु मनी का नह , दो ती का हम सबूत दगे। अ सलाम।’’
महाराज ने धैय से प सुना और ममभेदी दृि अपने साम त पर डाली। फर
उसने सुलतान के दूत को देखा। उसक दृि मुलतान के राजा अजयपाल पर ठहर गई।
अजयपाल ने आगे बढ़कर िवन वाणी से कहा, ‘‘महाराज, राजनीित कहती है क
अयािचत आपि को िनम ण नह देना चािहए। सो आप आगे-पीछे क सब बात
सोच-िवचार कर अमीर से मै ी- वहार क िजए। इसी म भलाई है।’’
महाराज ने उसे घूरकर देखा। वह जानते थे क उनका यह स ब धी वीर और
बुि मान है। उसक आँख चमकदार, नाक उभरी और दाढ़ी अधकचरी थी। कु छ देर उसे
वह घूरते रहे फर धीरे से ग भीर वर से बोले–
‘‘महाराज अजयपाल, आपने िबना ही लड़े मुलतान अमीर को स प दया?’’
‘‘महाराज, हमारा बल नग य था, हम यु नह कर सकते थे, आप ही
सोिचए, न होने के िलए आ मघाती यु करने से या लाभ?’’
‘‘इसीसे आपने सुलतान को आ म-समपण कर दया?’’
‘‘हाँ महाराज! और सुलतान ने नाग रक से थोड़ा द ड लेकर उ ह छोड़ दया।
नगर को काई हािन नह प च ँ ाई, न नगर लूटा गया।’’
‘‘द ड कस अपराध का?’’
‘‘अजयपाल क वाणी लड़खड़ाई। उसने कहा, ‘‘अपराध का नह महाराज,
नगर न लूटने का वचन देकर।’’
‘‘और सुलतान से इस सहयोग करने के िसले म आप ही मुलतान के राजा
कायम रहे?’’
‘‘हाँ महाराज, यश वी सुलतान ने मुझे मुलतान का अधी र वीकार कर
िलया है।’’
‘‘इसी से कृ तकृ य होकर अब आप सुलतान क मुसािहबी कर रहे ह। और को
भी अपनी भांँित सुलतान का कृ पापा बनाना चाहते ह–िवशोषकर अपने स बि धय
को?’’
‘‘यही बात है महाराज, लाभ-हािन...।”
‘‘वह म समझ गया। हािन क जोिखम आप उठाना नह चाहते, के वल लाभ ही
लाभ। भीमपाल को भी आपने यही लाभ क राह दखाई है, और अब मुझे भी यही
परामश देने आए ह!’’
महाराज धमगजदेव ण भर मौन रहे, फर उ ह ने सेव दराय क ओर देखकर
कहा–
‘‘आप भी शायद राजपूत ह?’’
‘‘हाँ महाराज, आपक इ छा हो तो अमीर आपको यथे हरजाना...’’
‘‘बस, बस, इतना ही यथे है। तो, स नो, मेरा उ र है क यश वी गज़नी के
सुलतान का हमने कु छ िबगाड़ा नह है। इसिलए कसी भी हालत म हम सुलतान के
श ु नह ह। पर तु सुलतान बुरी नीयत से िह दु के धममि दर सोमनाथ को भंग करने
के िनिम , राह म खूनखराबा और लूटपाट करता और गाँव -नगर को जलाकर खाक
करता आ रहा है, यह ज़बद ती दूसर के धम और अिधकार क अव ा है। दूसर के
घर पर डाका डालना है। इसे न बहादुरी कहा जा सकता है, न इससे सुलतान क
नेकनामी बढ़ती है। इसके िव सुलतान ऐसे काम से लालची, अ याचारी, लुटेरा,
खूनी और आततायी िस हो रहा है। यश वी सुलतान ने कई बार भारत को तलवार
और आग क भट कया है। हर बार उसने िह दू मि दर को तोड़ा, िह दू ि य क लाज
लूटी और िह दू लोग को गुलाम बनाया है। इन लोग ने सुलतान का कभी कु छ नही
िबगाड़ा था। वे उसके देश से दूर, अपने देश म, अपने धम और िव ास से रहते ह।
उ ह ने सुलतान के देश पर हमले नही कए, उसके देश को लूटा नह । फर उनके देश म
आकर जबद ती उनके धम, जीवन और घर-बार को इस तरह िनदयता से न करना,
यश वी सुलतान के िलए याय क बात नह है। शोभनीय भी नह है। इसिलए,
सुलतान य द सचमुच इस सेवक के स मुख िम ता का हाथ आगे बढ़ाते ह, तो म िम
क हैिसयत से क ग ँ ा क सुलतान अपने देश को लौट जाएँ और दूसर के धम म तलवार
के ज़ोर से बाधा न डाल। य द सुलतान इस राजपूत िम क यह नेक सलाह नह
मानगे, तो मुलतान को जीते-जी अपने रा य म होकर आगे बढ़ने से रोकना मेरा वैसा
ही पिव धम और कत हो जाता है, जैसा सुलतान का ऐसे खूनी आ मण करना...।
‘‘हम राजपूत िम का अितिथ-स कार करने म तुलना नह रखते। य द
सुलतान िम ह, तो वे हमारे धम और देश के येक आदमी के साथ वैसा ही बताव
कर, जैसा अपने और देश के आदिमय के साथ करते ह। तब सुलतान का अजमेर म
वागत है। धमगजदेव उनका अितिथ-स कार करने म सव व योछावर करे गा। पर तु
य द सुलतान हमारे धम, और हमारे देश के आदिमय को तलवार और मौत के घाट
उतारने पर ही तुले ए ह, तो यह चौहान धमगजदेव रण थली म तलवार से उनका
स कार करने को यहाँ स है।’’
सपादल के अिधपित महाराज धमगजदेव ने जलद ग भीर वाणी से ये वचन
कहे। फर मुलतान के महाराज अजयपाल क ओर मुँह करके कहा–
‘‘महाराज अजयपाल, आप हमारे स ब धी ह, चौहान ह। हमारा आपका खून
एक है। पर तु आप जो संदश े लेकर आए ह, उसके कारण इस खून क एकता के नाम पर
म आपक ओर से लि त ।ँ महाराज, आप िस ध नद के द पाल ह। सो आपने अपना
कत पालन न कर ाण बचाने का ेय-लाभ कया। यह आपने ि य क नवीन
मयादा थािपत क । आपने इस युि से मुलतान बचा िलया, और अब रहा-सहा पु य
लाभ करने सुलतान क दासता करके उनका दूत व करते ए, उसे देव थान न करने
प न ले जा रहे ह। आप ही ने लोह कोट के सुलतान को माग देने को राज़ी कया था,
यह आपक क त म सुन चुका ।ँ महाराज, आपक इस क त का वग म बखान करने
आपके दादा घोघाबापा पहले ही वग प च ँ चुके ह, िज ह ने आपको बचपन म घुटन
पर िखलाया था। महाराज अजयपाल, आपने चौहान को अ छा माग दखाया, आप
जैसे शूरवीर तलवार के धनी तो श ु के गोइ दे बन, और आपके वृ पू य पु ष
रण थली म मृ यु के भोग बन? आप सपादल के उपकार के ही िवचार से आए थे,
अ ततः यह रा य भी तो आप ही का है। पर तु महाराज, म दुभागी आपक भली सीख
से लाभ न उठा सका। अब आप सुलतान के सेनापित को हमारा व समझा दीिजए।
िजससे वह सुलतान को ये ही सब बात ठीक-ठीक बता सके ।...
“और अब, महाराज अजयपाल, आप जा सकते ह। आपसे, स ब धी क भाँित
भुज-भर भट करने का यह अवसर नह है। आपका समय ब मू य है और कु छ कहने-
सुनने यो य बात नह है।’’
महाराज धमगजदेव का यह भाषण सुनकर, मुलतान के अिधपित का मुँह
ठीकरे के समान िन भ हो गया। उ ह ने ने नीचे कर िलए। शेष दोन दूत के मुँह भी
भरे बादल के समान ग भीर हो गए और वे नीचा िसर कए वहाँ से चल दए।
चौहान क रणस ा
महाराज धमगजदेव ने अब िबना एक ण िवल ब कए तुर त यु सिमित क
एक संि बैठक क । सिमित म सांभर के ढु ं ढराज, आमेर के दुलभदेव, बदनेर और
देवगढ़ के ठाकु र सरदार और सोजत-पाली के इलाके दार म डले र सि मिलत ए।
सपादल के महाराज क कमान म इस समय सब िमलाकर साठ हजार सेना
एकि त हो गई थी। इसम तीस हजार सवार, आठ हज़ार धनुधर भील, एक हज़ार
हाथी और शेष पैदल सेना थी।
अजमेर से आगे गुजरात के माग पर अरावली क पवत- ेिणयाँ ार भ हो
जाती ह, और य - य आगे बढ़ते जाते ह, दुगम वन-पथ आता-जाता है। ना दोल से
आगे िवकट वन है, और उसके बाद दूर तक एक तंग घाटी म होकर माग जाता है। उस
घाटी के उस पार फर खुले चौड़े हरे -भरे मैदान और फर आबू के मनोरम दृ य नज़र
आते ह।
महाराज धमगजदेव ने आमेर के राजा दुलभदेव क बढ़ाई करके कहा, ‘‘हे
वीर! म तु ह सबसे पहले सबसे क ठन काम स पता ।ँ गज़नी के इस रा स को म
भलीभाँित जानता ।ँ इसने सोलह बार भारत को आ ा त कया है। मुझसे जहाँ तक
बनेगा, म इसे रोकूँ गा। पर मुझे आगे का भी िवचार करना चािहए। सो तुम अपनी मीना
राजपूत क स पूण सेना और आठ हज़ार भील को लेकर सीधे ना दोल जाओ। वहाँ
मेरा भतीजा अनिह ल राज है, वह गुजरात के सोलं कय का भी स ब धी है, वह
तु हारी सहायता करे गा। सो तुम सब, य द यह दै य कदािचत् यहाँ से बचकर भी
िनकल जाए तो थ यु करके अपनी शि न न करना। युत इसे ना दोल के वन
म घेरकर घाटी म ले जाना। वहाँ तु हारे भील, मीना और राजपूत इससे िनबट लगे।
चाहे िजतना सै यबल होने पर भी वहाँ से इसका िन तार नह है।’’
इतना कहकर, उसने युवक दुलभराय क कमर म अपनी जड़ाऊ तलवार बांधी,
और उसे िवदा कया। देवगढ़, सोजत और बदनेर के सरदार को भी ऊँच-नीच
समझाकर उसके साथ ही आदरपूवक रवाना कर दया।
यह कमठ राजा सारी रात त रहा। उसने अपनी कु ल सेना के तीन भाग कर
डाले। आठ हज़ार सवार और दस हज़ार पैदल सेना तथा चार सौ हाथी सांभर के
महाराज ढु ं ढराज क कमान म स प, पु कर से पीछे हटाकर अमीर के वाम भाग म
िछपा दया। आठ हज़ार सवार और प ह हज़ार पैदल, म ी-पु सोढल क कमान म
अजमेर क र ा म छोड़े। शेष हाथी-घोड़े और पैदल सेना ले वह वयं अमीर का सामना
करने को ूहब खड़ा आ। ूह म स मुख पदाितक, प म अ ारोही और पृ भाग
म गज-सै य ि थत क । सरदार और सेनानायक अपनी-अपनी टोली के स मुख स
खड़े हो गए। भाट-चारण िवरद बखानने लगे। कू च का न ारा बजा, ध से पर चोट
पड़ी। सेना ने रणांगण क ओर याण कया।
ब दीजन धमगजदेव तथा अ य मंडले र क शि त गाते चले। सेना म
उ साह और िवजय-नाद क िहलोर उठने लग । सैिनक के र म उ ेजना भरने वाले
मा बाजे बजने लगे। सेना क कू च से पृ वी क धूल आकाश म उड़कर छा गई। कब
सूय दय आ, इसका भी भान न रहा।
अमीर ने अपने दूत के मुँह से जब धमगजदेव का स देश सुना, तो वह ग भीर
हो गया। उसने तुर त यु करने का िन य कर, सेनापितय सिहत अथक म कर
रात रात सेना को ूहब कया। अमीर य िप म थली को पार करके अभी आया
था। उसक सेना थक ई और कु छ अ वि थत भी थी। पर तु तुर त यु के िसवा
दूसरा चारा न था। राि के िपछले पहर अमीर एक चंचल अ पर सवार अपने
सरदार सिहत, एक ऊँचे टीले पर चढ़कर िह दु क सेना क गितिविध देखने लगा।
उसने देखा, मशाल क रोशनी म राजपूत सेना ूहब रणस ा से सज रणांगण म
अ सर हो रही है। ध से क धमक से अमीर का दल दहल गया। उसने तीर क भाँित
अ फका और त काल अपनी सेना को वि थत प से यु थली क ओर कू च करने
का आदेश दया। िजहाद के जनून से उ म बबर पठान और तुक के दल-बादल
‘अ लाहो-अकबर’ का नाद करते आगे बढ़ चले।
पु कर का यु
चौहान और अमीर के ल कर य ही एक-दूसरे क दृि -मयादा म प च ँ े,
य ही दोन ओर से बाण क वषा ार भ हो गई। अभी ठीक-ठीक सूय दय नह आ
था। बाण-वषा ार भ होते ही दोन सेना का आगे बढ़ना क गया। महाराज
धमगजदेव ने य और चातुरी से सब स भव टील और ऊँचे थान पर अपनी सेना को
दूर-दूर तक फै ला दया था। अमीर भी योजना से असावधान न था। उसने सैिनक को
वृ , टील और आड़ क जगह म टु किड़य को िबखेरकर, आड़ लेकर तीर मारने का
आदेश दया।
देखते-ही-देखते दोन ओर के िसपाही घायल हो-होकर ची कार करने लगे।
राजपूत आगे बढ़कर हाथ हाथ तलवार का यु करने के इ छु क थे। पर तु अमीर के
कौशल से ऐसा वे न कर सके । वह समूचा दन इसी कार तीत आ। सं याकाल होने
पर अमीर ने यु ब द करने का संकेत कया। और दोन ओर क सै य अपने–अपने
िशािवर को फरी । महाराज धमगजदेव ने पीठ नह खोली, सेना कािनरी ण कया।
घायल यो ा को अजमेर िभजवा दया गया तथा सै य का फर से वग करण कर,
दूसरे दन के यु क योजनाएँ बनाई। दूर थ सै य को स देश देकर सांढ़िनयाँ रवाना
क ग ।
दूसरे दन सूय दय से थम ही राजपूत को सावधान होने का अवसर न दे,
अमीर ने अपने दुधष घुड़सवार को ले अक मात् धावा बोल दया। इस काय से थम
तो राजपूत सै य म घबराहट और अ व था फै ली। पर तुर त ही राजपूत तलवार ले-
लेकर टू ट पड़े। देखते-ही-देखते वे अपने छोटे-छोटे दल बनाकर अमीर क सेना म धँस
पड़े। हाथ -हाथ मार-काट होने लगी। ड-मु ड कट-कटकर पृ वी पर पड़ने लगे। मेर
क सेना, जो बछ के यु म अ ितम थी, अपनी न क ली ब छयाँ ले-लेकर यवन का
संहार करने लगी। उनक ब छयाँ श ु क अंतिड़याँ बाहर ख च लाए िबना शरीर से
बाहर िनकलती ही न थ । उनक खमदार तलवार के करारे घाव खा-खाकर श ु
हाहाकार कर उठे । अमीर अपनी सेना क यह दुदशा देख ोध से उ म हो गया। उसने
मेर के उस बछ -यु क क पना भी न क थी। यह मेर, व था और यु –िनयम क
परवाह न कर काल–दूत क भाँित अमीर क सेना का उछल-उछल कर संहार कर रहे
थे। घोड़ को भी वे सैिनक के समान ही हलका करने लगे। अमीर ने ोध से पागल हो
इन जंगली मेर का इसी दन आमूल नाश करने क ठान ली। उसने बलूची घुड़सवार
को ललकारा। ये खूंखार बलूची चार ओर से मेर क टु किड़य को घेर कर बड़े-बड़े
भाल से उ ह छेदने और अपने सधे ए घोड़ से उ ह ं धने लगे। मेर क सै य म ास
कट आ, उनके पास घोड़े न थे, वे पैदल थे। महाराज धमगजदेव ने यह देख बल
परा मी चौहान घुड़सवार को श ु पर पेल दया। अब बराबरी का यु था। चौहान
खून जग िस बलूची पठान से जूझ रहा था। राजपूत को मनचाहा अवसर िमल
रहा था। यह तलवार का हाथ -हाथ यु दोपहर होते-होते ऐसा घातक प धारण कर
बैठा क दोन ओर के सरदार ने समझा क कदािचत् आज का यु ही िनणायक यु
हो रहा है। मरे ए सवार और घोड़ से यो ा के माग क गए। अपरा न होते–होते
अमीर क सेना म अ व था दीखने लगी। बलूची-पठान जगह–जगह पीछे हटने लगे।
महाराज धमगजदेव ने यह देख अपने सुरि त अ ारोिहय को धावा बोलने क आ ा
दी। इस नई सेना के ध े को पठान सहन न कर पीठ दखाकर भागने लगे। अमीर ने
िवपि को स मुख देख भागते बलूिचय के स मुख अपना अ दौड़ाया। और हरा झंडा
ऊँचा करके ललकार कर कहा, ‘‘खुदा और इ लाम के नाम पर मरो और मारो। भागने
क गुंजाइश नह है। गज़नी ब त दूर है।’’
बलूची जैसे-तैसे संग ठत ए। एक बार फर घमासान यु आ। लाश पर
लाश िगरने लग । दोन ओर क सेना म थकान और लाि त दीखने लगी। अमीर ने
सूया त से थम ही यु ब द करने का संकेत कया। इस दन भी िबना कसी िनणय के
दोन सेनाएँ पीछे फर । पर तु राजपूत सेना उ साह म थी और अमीर क सेना
घबराहट म। य िप राजपूत क सेना का भी आज भारी संहार आ था। पर तु अमीर
क सेना क ित साधारण न थी। अमीर िचि तत आ।
तीसरे दन अमीर क इ छा यु ब द करने क थी। पर तु महाराज धमगजदेव
ने नह माना। उ ह ने अमीर क सेना पर आ मण कर दया। अमीर को यु करना
पड़ा। यु ार भ करने से पूव महाराज ने अमीर को स देश भेजा क वह चाहे तो उसे
सुरि त लौटने दया जा सकता है। अमीर क सारी सेना म िनराशा ाप गई। उसने
उस दन खेत सारी सेना के बीच ात: कालीन नमाज़ पढ़ी। नमाज़ के बाद उसने संि
भाषण दया। भाषण म उसने कहा, “बहादुर पठानो, तुमने अब से पहले सोलह बार
अपने घोड़ क टाप से का फर के इस मु क को र दा है। और सदैव तुम अपने िसर
पर फतह का सेहरा बाँध कर और अपने घोड़ क ज़ीन को मुहर और जवाहरात से
भर कर, और गुलाम को घोड़ क जीन से रि सय से बाँध कर गजनी लौटे हो।
तु हारी औरत इस बार भी तु हारे उसी तरह लौटने का इ तजार कर रही ह। सो या
तुम इस बार लड़ाई म हार कर लौटोगे? अपनी तलवार और इ लाम के नाम पर आओ,
फतह हािसल करो। भागने क राह ब द है। खुदा तु हारे साथ है। का फर पामाल है।’’
सेना म एक बार अ लाहो-अकबर का जयनाद आ। बबर तातार और पठान
नए आवेश के जनून म भरकर घोड़ पर सवार ए।
देखते-ही देखते घमासान यु होने लगा। यह चौमुखी यु था। कह पर
तलवार झनझना रही थ , कह ब छयाँ कलेज के आर-पार हो रही थ । आकाश तीर
से भरा था। दोन ओर के भट एक–दूसरे के खून के यासे हो कर मारा मारी कर रहे थे।
अमीर िव ुत-वेग से घोड़े पर सवार कभी यहाँ और कभी वहाँ अपनी सेना को
उ सािहत करता फर रहा था। म या न म अभी देर थी क अमीर क सेना म चंचलता
कट होने लगी। महाराज धमगजदेव का दबाव बढ़ता जा रहा था। अमीर अपने
सैिनक को हाथ उठाकर कु छ कहना चाह रहा था। इतने म एक बाण आकर अमीर क
भुजा म घुस गया। उससे बेसुध होकर अमीर घोड़े पर से नीचे आ पड़ा।
त ण अफगान सरदार ने अमीर को चार ओर से घेर िलया। एक सरदार ने
ख चकर तीर िनकाल िलया और घाव पर प ी बाँध दी। कु छ ही देर म अमीर होश म
आया, और तुर त घोड़े पर सवार होकर सैिनक को उ ेिजत करने लगा। वह अपनी
सेना के दि ण क से थोड़ा पीछे हटा। त ण ही दि ण क हटने लगा और उसके
सैिनक िबखरने लगे। इसी समय उस क के दो धान सेनानायक मारे गए। महाराज
धमगजदेव ने यह संयोग पा वयं क को भारी दबाव म डाल दया। अमीर यह देखकर
तीर क भाँित उधर दौड़ा। उसने वामक क दो टु किड़य को बुलाकर इस क को
मज़बूत कया। पर तु इसी समय दि ण क के एक सरदार ने आकर कहा, ‘‘ ज़ूर,
फौज प त-िह मत हो रही है। ब त नुकसान हो रहा है। कसी तरह लड़ाई रो कए।’’
अमीर ने कहा, ‘‘लड़ाई रोकने का कोई चारा नह है। हम शाम तक जैसे बने
लड़ना ही होगा।’’ अमीर ने अभी क ठनता से यह वा य कहा था क गोफ से छू टा एक
प थर उसक छाती म आ लगा। इसी ण उसके घोड़े क आँख म एक तीर घुस गया।
घोड़ा चार पैर से उछला। अमीर घोड़े से फर िगर पड़ा और मुँह से र -वमन करने
लगा।
अफ़गान सरदार अमीर को घेरकर खड़े हो गए। उनके चार ओर मारकाट मच
रही थी। सरदार घबराए ए थे। क तु अमीर कु छ ण म वयं उठ खड़ा आ। उसने
कहा, ‘‘कु छ फ नह , दूसरा घोड़ा लाओ।’’ घोड़ा आते ही वह उछलकर घोड़े पर
सवार हो गया।
तीसरा पहर होते-होते मुसलमान क सेना पीछे हटने लगी। राजपूत ने
अवसर देखकर श ु-सै य म घुसकर हाथ -हाथ यु करने क ठान ली। अमीर के
सरदार ने त ण यु ब द करने क अमीर को सलाह दी, पर तु अमीर ने नह माना।
उसने कहा, ‘‘जैसे भी हो हम सूया त तक लड़ना होगा।’’
िह दू–सेना हर–हर महादेव करके यवन–सेना मेु घुस गई। यवन–सेना क
टु किड़यां िततर–बितर होती ग । उसक व था िबगड़ गई । राजपूत और मेर दोन
ने तीर–कमान छोड़ बछ , कटार और तलवार चमकानी ार भ कर द । अ ततः अमीर
एक भाला हाथ म लेकर श ु को ललकारता आ आगे बढ़ा। उसके साथ जूझ मरने
वाले खूंखार बलूची पठान का एक ज़बरद त द ता था। महाराज धमगजदेव ने यह
देखा। वे संह क भाँित घोड़ा उड़ाते अमीर के स मुख जा धमके ।
उनके चार ओर चौहान सरदार और मा डिलक राजा का दल था। दोन
दल म मु त भर के िलए तुमुल सं ाम िछड़ गया। इसी बीच म अमीर और दो घाव खा
गया। महाराज धमगजदेव भी घायल हो गए।
स याकाल हो गया। पर इस यु का िवराम नह आ। इसी के पर दोन
ओर के यो ा िसमट-िसमट कर एक होने और कट-कट कर िगरने लगे। पि म दशा
लाल ई। फर अंधकार ा आ, पर मारा-मार चलती ही रही। पठान का दल िघर
गया। अमीर को सरदार ने फर समझाया क पीछे हटे, पर अमीर ने नह सुना। वह
मदम हाथी क भाँित लड़ रहा था।
महाराज धमगजदेव ने देखा क यही समय है। उ ह ने संकेत कया, और सांभर
के ढु ं ढराज अपनी बीस सह नवीन सै य लेकर बाज़ क भांित अमीर क सेना पर
बगल से टू ट पड़े। यह देख अमीर हताश हो घोड़े पर ही मू छत हो गया।
उसके सरदार ने त ण उसे हाथ –हाथ उठा िलया । भारी मारकाट से
िनकालकर तलवार क छाया म उसे पीछे हटा ले गए। अब िन पाय उ ह ने सुलह का
सफे द झ डा खड़ा कर दया। यु ब द हो गया। चुने हए सरदार अमीर को पालक म
डालकर िशिवर म ले भागे। शेष सैिनक और सरदार राजपूत के ब दी ए। महाराज
धमगजदेव िवजय-वैजय ती फहराते ए वापस फरे ।
कपट–सि ध
महाराज धमगजदेव ने उसी समय कु लदेवी शाक भरी के मि दर म जाकर
बिलपूजा-अचना क । ना रयल फोड़ा। सभी साम त, मांडिलक और सरदार ने
महाराज क जय-जयकार क । तदन तर घायल क सेवा और मृत सैिनक एवं बि दय
क समुिचत व था करके महाराज ने राि के िपछले हर श खोलकर िव ाम
कया। घाव का उपचार कराया।
दूसरे दन हर दन चढ़े ेत पताका उड़ाते ए अमीर के सि ध-दूत ने,
महाराज धमगजदेव के दरबार म अित विन भाषा म अमीर का सि ध– ताव
उप थित कया। महाराज ने ेम और कृ पापूवक दूत का भरी सभा म वागत कया
एवं सब सरदार से परामश करके कहा, ‘‘य द अमीर वे छा से भारतवष छोड़कर
वदेश लौट जाए और फर कभी भारत म आने क चे ा न करे , तो हम िबना कसी
बाधा के उसे चला जाने दगे। सब बि दय को भी मु कर दगे। हमारी अमीर से कोई
श ुता नह है। अतः हम अकारण उससे यु नह करना चाहते।’’
सि ध-दूत ने अमीर क ओर से अ य त कृ त ता और स ता से यह ताव
वीकार कया। और वचन दया क य िप अमीर ब त घायल ह, चलने- फरने और
या ा करने के यो य नह ह, पर तु हम आज ही यहाँ से कू च कर दगे।
सि ध थािपत हो गई। सि ध-दूत वापस अमीर क सेवा म लौट गए। दोपहर
दन तीत होते-होते अमीर का ल कर पीछे हटने लगा। खेमे उखड़ने लगे। ऊँट लदने
लगे। सारे ल कर म लदालदी होने लगी। यह देख संतु हो महाराज धमगजदेव ने थोड़ी
सेना साथ म रख, शेष सब सै य अजमेर को वापस भेज दी। िवजियनी सेना ने बाजे-
गाजे से अजमेर म वेश कया। य िप राजपूत के बीस हजार सैिनक खेत रहे थे, फर
भी िवजय के मद म राजपूत सेना अ य त उ सािहत थी। नगरवािसय ने सेना का
हषनाद से वागत कया। नगर सजाया गया, रं ग-िबरं गी पताकाएँ राजमाग पर
फहराने लग । लोग आन द-उ सव मनाने लगे। कले, राजमहल म गान, वा , रोशनी,
दीपावली क व था ई। राजकु ल क ि य ने महारानी को बधाइयाँ द । महारानी
ने मु -ह त से वण–र दान करके अपनी उदारता का प रचय दया। नगर के सभी
देव-मि दर म जय-घ ट बजने लगे। राजपुरोिहत कृ पाशंकर आचाय ने राजमहल म
आकर य ानु ान कया। नगर-सेठ पानाच द शाह ने आकर बधाइयाँ द । स पूण नगर
ने उस दन दीपावली मनाई।
शाह मदार
एक हर राि बीत चुक थी। सारा नगर रास-रं ग म म त था। ऐसे ही समय
म दो ि िछपी नज़र से यह सब समारोह देखते अ य त सावधानी से नगर के मु य
बाजार म होते ए, बीच-बीच म गली-कू च को पार करते चुपचाप चले जा रहे थे।
उ ह ने साधारण नाग रक का वेश धारण कया था।
इस समय अजमेर नगर के पूव कोण म जो शाह मदार क टेकरी है, उसी
टेकरी क तलहटी म एक पुराना िशवालय था। िशवालय के चार ओर ब त छोटे-बड़े
मि दर थे। मि दर का वेश- ार पूव दशा म था और उ र म पुजा रय के घर थे।
पुजा रय म अनेक वहाँ पु -प रजन के साथ रहते थे। इ ह पुजा रय के मकान से
तिनक हटकर टेकरी के ऊपर एक छोटी-सी खानकाह थी िजसम िस सूफ स त शाह
मदार रहते थे। शाह मदार म त और दौला-मौला आदमी थे। वे बेलौस और फ ड़
िस थे। खुशिमज़ाज और िमलनसार थे। अजमेर के आस-पास उनक ब त मा यता
थी। वे गंड-े तावीज़, मं -दुआ देते, लोग क खैर मनाते और ट ड़ मांगकर खाते थे।
खानकाह के पास एक पुराना मठ था, पर वह सूना ही रहता था। कोई भूला-भटका
साधु वहाँ ठहर जाता था। शाह मदार ब धा कसी वृ के नीचे चुपचाप बैठे रहते थे।
घूमते– फरते ये दोन ि टेकरी के पास जा प चँ ।े शाह साहेब इस समय
यान-मु ा म वृ के नीचे बैठे थे। दो भ गण स मुख बैठे उनक मुख-मु ा िनहार रहे
थे। दोन ि य ने िह दू प ित से धरती पर माथा टेक कर उ ह णाम कया। पर तु
फक र ने उनक तरफ आँख उठाकर भी नह देखा। दोन ि चुपचाप दूसरे मनु य
के बीच म जा बैठे। ब त देर तक कोई बातचीत नह ई। बैठे ए जन म अनेक उठकर
चले गए। एकाएक साधु ने ने उघार-कर इन अग तुक को देखा और और आप-ही-आप
कु छ गुनगुनाते ए कहा, ‘‘अय नादान, खुदा क ब दगी कर, और उसके जलाल का
ज़ र देख।’’
दोन आग तुक ने पृ वी पर फर माथा टेका। इसी समय एक पु ष ने उनका
क धा छू कर अपने पीछे आने का संकेत कया। दोन ि उठकर उसके पीछे-पीछे
चल दए। वह आदमी मठ के ार पर खड़ा हो गया और उ ह भीतर जाने का संकेत
कया। दोन ि मठ म घुस गए और वह ि मठ के ार पर इस तरह खड़ा हो
गया क एक म खी भी ार म िव न हो सके ।
भीतर एक युवक बेचैनी से टहल रहा था। युवक के व ब मू य, तलवार
क मती और मुख-मु ा सु दर थी। उसक आयु छ बीस वष के लगभग थी। रं ग उसका
गौर था और म तक क पगड़ी म एक मू यवान् हीरा भी चमक रहा था।
दोन ि य ने हाथ जोड़कर युवक को णाम कया और करब खड़े हो
गए।
युवक ने उ ह घूरकर देखा, फर कहा, ‘‘संकेत?’’
“सोमनाथ।”
‘‘ठीक है। कहो, या कहना है?’’
‘‘सुलतान को लाचार सुलह करनी पड़ी। वे ज मी ए और फौज िबलकु ल
बबाद हो गई।’’
‘‘ फर?’’
‘‘सुलह क शत के अनुसार हम आज ही छावनी उठाकर लौटना आव यक हो
गया है, अमीर के सारे मंसूबे धूल म िमल गए।’’
‘‘तो म या क ं ?’’
‘‘य द वादे के अनुसार आपक मदद िमलती तो ऐसा न होता।’’
‘‘ या छावनी उठा दी गई?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘अमीर या घोड़े पर सवार होने यो य ह?’’
‘‘सवार हो सकते ह, लड़ नह सकते।’’
‘‘अमीर क सेना म कोई जीवट का सेनापित है?’’
‘‘है।’’
‘‘और अमीर का वादा?’’
‘‘प ा है।’’
‘‘ज़ािमन?’’
‘‘शाह मदार।’’
‘‘उनके मुँह से सुना चाहता ।ँ ’’
‘‘चिलए।’’
‘‘ठहरो, एक हर रात रहते महाराज पर हमला कर दो। िसफ एक हज़ार प े
सवार काफ ह।’’
‘‘वह हो जाएगा, ले कन...’’
‘‘राजपूत क सब सेना अजमेर आ चुक है। मने उ ह तीन दन मौज-मज़ा
करने क छु ी दे दी है। वे सब अपने-अपने गाँव को चले गए ह। पु कर म महाराज के
के वल अंगर क ही उनके साथ ह। ा मु त म महाराज स याव दन करते ह, वही
समय ठीक होगा। उ ह घेरकर कै द कर लो, फर जैसा जी चाहे, उनके साथ बताव
करो।’’
‘‘ले कन अजमेर से मदद िमलते कतनी देर लगेगी?’’
‘‘अजमेर क सेना मेरे अधीन है। य द अमीर का वादा प ा है तो अजमेर से
सहायता नह िमलेगी।’’
‘‘वादा प ा है, शाह ज़ािमन ह, चिलए।’’
‘‘चलो।’’ तीन ि शाह के पास आए। आकर चुपचाप बैठ गए। इस समय
शाह साहेब अके ले चुपचाप बैठे थे। युवक ने कहा—
‘‘शाह ज़ािमन ह?’’
शाह ने धीरे से कहा, ‘‘खुदा भी जािमन है।’’
‘‘तब ठीक है।’’
युवक शाह को णाम कर चल दया। उसके पीछे दोन पु ष भी। बाहर अ
बँधे थे। अ पर सवार हो उ ह ने तेज़ी से पु कर क घाटी म अपने अ फक दए।
शाह ने आँख उठाकर आसमान क ओर देखा-और अंगड़ाई ली।
िव ासघात
रात ब त देर तक सैिनक खान-पान और रास-रं ग म म त रहे थे। इससे इस
समय वे सब पड़े सो रहे थे। एक-दो हरी अपने थान पर सजग हो पहरा दे रहे थे।
महाराज धमगजदेव हर रात रहे पु कर-तट पर ान कर आि नक पूजन कर रहे थे ।
पूजन करते–करते उ ह कु छ असाधारण आहट सुनाई पड़ी, जैसे चुपचाप ब त-से
आदमी रगते ए आ रहे ह । अभी चार दशा म अँधकार था। उ ह ने पूजा के आसन
से िबना उठे ही आँख उठाकर चार ओर देखा। ऐसा तीत आ, ब त-सी काली-काली
मू तयाँ चार ओर से उनके िनकट चली आ रही ह। णभर बाद ही उ ह तीत आ क
िव ासघात आ है। वे त ण ही आसन छोड़कर उठ खडे़ ए । इसी समय हरी ने
भयसूचक भेरी–नाद कया।और उसके साथ ही‘अ लाहो–अकबर’ के गगनभेदी नाद के
साथ अमीर के बलोची पठान ने सोते-बैठे-उन दे सभी राजपूत को काटना ार भ कर
दया। साथ ही छावनी म भी आग लगा दी। छावनी धांय-धांय जलने लगी। महाराज
उसी असि त अव था म पुकार-पुकार कर तलवार घुमाते ए अपनी सेना क
व था करने लगे। उ ह ने त ण एक सवार अजमेर को सेना क सहायता के िलए
दौड़ा दया। राजपूत, जो जहाँ िजस अव था म थे, उनके हाथ जो श लगा, उसी को
लेकर वे श ु से मोचा लेने लगे। पर तु एक तो वे ब त कम थे, दूसरे कसी के पास
श था ही नह , कसी ने कवच पहना था, कोई नंग-धड़ंग था। पर तु थोड़ी ही देर म
कु छ सैिनक सि त होकर महाराज के चार ओर आ जुटे। श ु ने महाराज को ास
िलया था, और उनपर हज़ार तलवार छा रह थ । राजपूत ाण ण से महाराज तक
प च ँ कर उनक र ा करने का भगीरथ य करने लगे। महाराज धमगजदेव नंगे,
बदन, पीता बर धारण कए दोन हाथ से तलवार चला रहे थे और उनके शरीर से
झर-झर र बह रहा था। उनका वीर-दप देख श ु ति भत रह गए। तलवार से
तलवार िभड़ गई। ब छयाँ अंतिड़य को चीरने लग । महाराज ण- ण पर अजमेर से
सहायता क ती ा कर रहे थे। हर ण पर चर सूचना दे रहा था, सेना नह आ रही
है। इसी समय जंगल म िछपे ए एक हजार बलोची घुड़सवार बाज क तरह महाराज
पर टू ट पड़े। महाराज ने म तक ऊँचा करके देखा, मृ यु उनका आ लंगन करने को हाथ
पसार रही है। ‘जय शाक भरी’ कहकर वे अ धाधु ध तलवार चलाने लगे। देखते ही
देखते उनके मुट्ठी-भर राजपूत कटने लगे। महाराज क तलवार भी एक पठान क
तलवार से टकराकर दो टू क हो गई। उनके तीर उनके अँग म अटक रहे थे। उ ह ने
िन पाय इधर-उधर देखा। एक दुदात पठान ने कमान गले म डालकर उ ह ख च िलया।
साथ ही तलवार का एक भरपूर हाथ उनके मोड़े पर पड़ा। महाराज आकाश से टू टे
न क भाँित पृ वी पर िगर पड़े। श ु ने अ लाहो-अकबर का नारा बुल द कया;
जो राजपूत बचे थे, वह आ जूझे, वे सब ितल-ितल कटकर खेत रहे।
महाराज धमगजदेव के रण थली म काम आने का समाचार शी ही अजमेर
प च ँ गया। महाराज के अँगर क ने महाराज का शव मुद के ढेर से िनकालकर बड़े
य से कले म प च ँ ा दया। कले और नगर का उ लास गहरे शोक क घनघोर घटा
म िछप गया। चार तरफ रोना-पीटना मच गया। मरे ए पु क माताएँ छाती कू टने
लग । िवधवा युवितय के क ण- दन से आकाश भर गया, अनिगनत कोमल
कलाइय क सुहाग-चूिड़या चटापट प थर पर टू टने लग । िपता अपने पु के िलए
िसर धुनते पागल क भाँित दन करने लगे। युवती अबलाएँ और अबोध बालक अनाथ
होकर िससकने लगे। लोग हजा़र-हज़ार मुख से गज़नी के दै य को गािलयाँ देने और
कोसने लगे। लाख मनु य का धरती-आकाश पर कोई र क न रह गया।
महाराज धमगजदेव के शव के कले म प च ँ ते ही महारानी तुर त सती होने
को तैयार हो ग । उनके साथ महल क अ य सैकड़ राज-प रवार क ि य , दािसय
और सिखय ने भी िचता-रोहण कर भ म होने का िन य कर िलया। रानी ने शोक-
स त वाणी से कहा, “अरी सिखय , सुख-दु:ख का साथी, लाड़- यार करने वाला, इस
देह का आधार जब नह रहा, तो फर जी कर, जीवन क वारी करने से या? जब
शरीर से जीव ही चला गया तो िनज व शरीर का शृंगार ही या? या हम ि य पित
का िवयोग सहकर, िवधवा-वेश धारण करके जीिवत रहगी? य न हम वग का अ य
सुख भोग, जहाँ हमारे ाण- यारे वीर पित थम ही प च ँ चुके ह। चलो सिखय , हम
वीर पित का सहगमन कर, िजतना िवल ब होता है उतना ही अ तर पड़ता है। शोक
यागो, अि -रथ पर बैठकर पितलोक को चलो।’’
रानी ने इतना कह आँसू प छ डाले। माथे पर गुर का टीका कया, कुं कु म क
आड़ लगाई, कं ठ म सुगि धत फू ल के हार पहने। काले िचकने बाल क लट मु कर
द , हाथ म महदी रचा दी। पचरं गी चूनरी शरीर पर धारण क । अ य ि य ने भी
ऐसा ही शृंगार कया। आगे-आगे रानी और पीछे अ य ि याँ चल । पीछे हज़ार दास-
प रजन रोते ए। जय शाक भरी, जय अ बे, जय सती माता क पुकार ने आकाश को
चल-िवचिलत कर दया।
चौक म चबूतरे पर िवशाल िचता सजी थी। उसम महाराज का च दन-च चत
शरीर थािपत कया गया। िचता के िनकट आकर रानी ने सूय को अ य दया और
ि थर चरण से िचतारोहण कर पित का िसर गोद म िलया तथा यान म ि थर होकर
बैठ ग । ढोल, शहनाई बजने लगे। उनका ऐसा नाद आ क कान कान श द नह
सुनाई देता था। सह क ठ से ‘जय माता सती, जय अ बे’ क विन िनकली। रानी
दोन ने ब द कर पित का िसर गोद म िलए यान थ बैठी थ । अ य ि याँ भी उनके
पीछे िचता पर उसी भाँित बैठी थ । राज पुरोिहत आचाय कृ पाशंकर ने दन करते ए
बालक कु मार वीसलदेव को आगे कर कहा, ‘‘माता सती, अजमेर और अजमेर के भावी
अिधपित को आशीवाद दीिजए!’’ रानी ने ि थर क ठ से हाथ उठाकर कहा, ‘‘अजमेर के
िनवािसय और भावी अजमेर के अिधपित क जय हो!’’ रानी ने अब िचता म अि देने
का संकेत कया। ा ण ने िचता म घृत और कपूर रख म पाठ करते ए अि दी।
बाजे ज़ोर से बज उठे । सैकड़ शंख और घिड़याल गजने लगे। सूखा च दन, का , घी
और वलनशील पदाथ क सहायता से यह िचता देखते-देखते धधकने लगी। वाला
का वेग इतना बढ़ा क िचता के पास से लोग हटने लगे। पर तु उनके राजभ सेवक
और दािसयाँ भी दौड़-दौड़कर िचता म कू द पड़ । सह जन के जय-जयकार, दन,
दन और बाज के घोर श द के कारण कान के पद फटे जा रहे थे। ब त जन
मू छत हो कर िगर गए। देखते-ही देखते वे सैकड़ जीिवत स व जलकर राख का ढेर हो
गए। िचता के लाल-लाल दहकते ए अँगारे मानो ा तेज से सूय के तेज क पधा-सी
करने लगे। ज़ार-ज़ार रोते, दाढ़ी न चते, िसर पर धूल-राख िबखेरते, िगरते-पड़ते नगर
िनवासी पीछे लौटे। नगर के कोटपाल ने शोकसूचक झ डा कले पर चढ़ा दया। उस
दन स पूण नगरी म चू हा नह जला। रात म कसी ने दयाब ी भी नह कया। सारा
नगर गहरे अँधकार म डू बा रह गया। अजमेर के आबाल-वृ भूख-े यासे धरती म लोट-
लोटकर शोक- दन करते रहे।
राजपु ष कु मार वीसलदेव, अविश राज प रवार को ले वीटली दुग म चले
गए। अजमेर म सती माता क ऊ व दैिहक- या करने को के वल राजपुरोिहत
कृ पाशंकर आचाय और कु छ सेवक रह गए
अजमेर क तबाही
अमीर क सेना ने चढ़ी रकाब अजमेर पर धसारा कया। बलोची पठान और
दुदा त तुक सवार धड़धड़ाते ए नगर म घुस गए। सूय दय के साथ ही नगर म
क लेआम, लूटमार और बला कार का न ता डव होने लगा। दु:ख, शोक और िवनाश
क चपेट म अजमेर के नाग रक ी-पु ष, बालक-वृ , रोगी सब िजधर िजसका स ग
समाया, िगरते-पड़ते ाण लेकर भागने लगे। यह देख मसऊद एक सैिनक टु कड़ी लेकर
कले और राजमहल पर जा धमका। महल के र क ने महल म आग लगा दी। आग-
आग-आग चार तरफ आग ही आग धांय-धांय जलने लगी। राजमहल के बड़े-बड़े धरन
कड़ककर टू टने और राजक जलकर धाराशायी होने लगे। करोड़ पय क मू यवान
साम ी जलकर राख हो गई। सब धन-र वाहा हो गया। माल और मािलक क राख
एक हो गई।
खीझकर मसऊद नगर क ओर फरा। वहाँ बलोची सवार ने नरक का दृ य
उपि थत कर रखा था। मसऊद ने येक नाग रक से धन लूटना ार भ कया। बलोची
दै य मार-मारकर धन कहाँ िछपा है, पूछने लगे। न बताने पर नर-ना रय पर अक य
अ याचार होने लगे। कसी क आब सलामत न रही। अ त म मसऊद ने स पूण नगर
को आग क भट कर दया। धांय-धांय जलते अजमेर नगर को लूटकर मसऊद ने सेना
को नगर खाली करने क आ ा दी और वयं शाह मदार क खानकाह म जाकर शाह
को िसजदा कया। शाह नीरव, त ध, चुपचाप बैठा था। आज उसके पास एक भी
ि न था। वह अके ला था। उसने आँख उठाकर मसऊद क ओर नह देखा। मसऊद ने
उसके सामने दुजान बैठकर कहा, ‘‘हज़रत, अमीर गज़नी शाह क दुआ चाहते ह और
म भी।’’
‘‘दुआ देता ,ँ ले कन म खुदा का, जाओ।’’
मसऊद ने अिधक बात करने का साहस नह कया। वह वहाँ से चल दया।
राह-बाट म एक भी पु ष जीिवत न था। नगर चार ओर धांय-धांय जल रहा
था। लाश पर लाश पटी पड़ी थ , घर से ची कार और दन- विन आ रही थी।
मसऊद अपने ब मू य अरबी घोड़े पर सवार चुपचाप बढ़ा चला जा रहा था। उसक
जड़ाऊ तलवार के र धूप म चमक रहे थे।
पुर कार
अजमेर को लूट और आग क भट कर अमीर ने वीटली दुग पर धावा करने का
इरादा कया। उसे सूचना िमली थी क वीटली दुग म राजा का शेष प रवार, राजपु ,
अटू ट राजकोष तथा ब त-सी धन-साम ी है। पर तु वीटली दुग साधारण दुग न था।
वह एक दुगम और ऊँची पहाड़ी पर था। उसक तीन दशा म सीधी दु ह पवत क
च ान और एक दशा म अगम ख ड था। दुग क ाचीर बाईस हाथ ऊँची और यारह
हाथ चौड़ी थी। दुग म र ा और खान-पान के भूत साधन एक थे। दुग भंग करना
अस भव था और दस वष घेरा डालने पर भी दुग ताबे हो, यह स भव न था।
उधर अमीर क सेना को भी इस यु म कम ित नह ई थी । गज़नी से
चलकर उसे यह पहली ही बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इसम वह वयं घायल हो गया
था। साथ ही उसके ब त से साहसी सैिनक खेत रहे थे। ब त से घोडे़ मारे गए थे। उसक
सेना ही खंिडत हो गई थी । इससे वह खीझ रहा था । उसे िव ाम क अ य त
आव यकता थी । पर उसे सोमनाथ प च ँ ने क ज दी थी । उसे यह भी भय था क
कदािचत् ढु ि ढराज सांभरपित उस पर पीछे से न टू ट पड़े । दूत के ारा उसे मालूम हो
गया था क अजमेरपित क ब त सेना अभी भी है। वीटली दुग म भी यथे सेना थी।
चार ओर से सैिनक एक होते चले आ रहे थे। लोग म ोध और जूझ मरने के भाव
भरे ए थे। इससे उसने अपने सरदार और सेनापितय का एक छोटा-सा दरबार
कया। सब िवषय पर िवचार-परामश कर तुर त गुजरात क ओर कू च करने का
िवचार ि थर कया। तुर त अभी उसे एक मह वपूण काम और करना था, वह था उस
िव ासघाती को पुर कृ त करना िजसक सहायता से उसक िवजय पराजय म बदल
गई थी। यह अजमेरपित का म ीपु सोढल था, िजसपर राजा का पु वत् यार और
िव ास था, और िजसे राजा ने आठ हज़ार सवार और प ह हज़ार पैदल देकर अजमेर
क र ा स पी थी। अमीर ने उसे अपने स मुख उपि थत करने क आ ा दी। सामने
आकर युवक ने अमीर को को नश क । अमीर ने पूछा–
‘‘तु ह वह आदमी हो, िजसने हम अजमेर के वीर महाराज के सब भेद दए?’’
‘‘म ही वह आदमी ।ँ ”
‘‘तुम अजमेर के महाराज के म ीपु और उपसेनापित हो?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘अजमेर के महाराज ने तु हारे साथ कभी कोई बदी क थी?’’
‘‘नह ।’’
‘‘अजमेर के महाराज से उनक रआया या खुश नह थी?’’
‘‘खुश थी।’’
‘‘तु हारे िपता अजमेर के वज़ीर या यह जानते ह क तुमने अपने मािलक से
दगा क है?’’
‘‘नह ।’’
‘‘और कोई जानता है?’’
“नह ।’’
‘‘तुमने यह काम या इसिलए कया था क तुम अजमेर क ग ी पाओगे?’’
‘‘इसीिलए।’’
‘‘और तो कोई कारण नह था?’’
‘‘और भी कारण था।’’
‘‘वह कहो!’’
‘‘महाराज क एक पु ी थी।’’
‘‘ फर?’’
‘‘म उसे यार करता था।’’
‘‘समझा।’’
‘‘उसने मेरा ेम अ वीकार कया था।’’
‘‘ य ?’’
‘‘उसने कहा था क तुम न कह के राजा हो, न तु हारी वीरता ही देखी गई
है।’’
‘‘ठीक है, तो तुमने वीरता दखाकर नह , िसफ राजा होकर उसे पाना चाहा?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘हम जानते ह क तु हारी मदद न िमलने पर हम इस लड़ाई को नह जीत
सकते थे।’’
‘‘अब मुझे वादे के अनुसार अजमेर क ग ी िमलनी चािहए।’’
‘‘अजमेर के महाराज का कोई वा रस है?’’
‘‘है।’’
‘‘ या उसके पास काफ फौज है?’’
‘‘है।’’
‘‘राजा होने पर वह य द तुमसे लड़े?’’
‘‘तो आप अपनी सेना से मेरी मदद कर, म आपको िखराज दूग ँ ा।’’
‘‘यह तो हमने वादा नह कया था।’’
“ यश वी अमीर ने वादा कया था क य द मेरी मदद से अमीर जीत जाएँगे,
तो मुझे अजमेर क ग ी दगे!’’
‘‘ले कन यह वादा नह कया था क इसके िलए अजमेर के राजा के
उ रािधकारी से भी लड़गे।’’
‘‘मने अपना वादा पूरा कर दया।’’
‘‘अब वह लड़क तु हारे राजा होने पर तुमसे शादी कर लेगी?’’
‘‘अफसोस! नह ।’’
‘‘ य ?’’
‘‘वह रानी माँ के साथ जल मरी।’’
‘‘ या वह जानती थी क तुम इस कार राजा होने क तैयारी कर रहे हो?’’
‘‘नह , पर मने कहा था क म राजा होकर तु ह दखाउँ गा।’’
‘‘वह या तु ह यार करती थी?’’
‘‘नह ।’’
‘‘ कसी और को यार करती थी?’’
‘‘ढु ि ढराज सांभरपित के पाटवी कुं वर को।’’
‘‘पाटवी कुं वर कहाँ है?’’
‘‘लड़ाई म काम आए।’’
‘‘कु छ देर तक अमीर ग भीर मु ा म सोचता रहा । फर उसने आिह ते से
कहा–
‘‘तो अपने वायदे के मुतािबक हम तु ह अजमेर का राजा मंजूर करते ह।’’
‘‘खुदाव द अमीर क जय हो।’’
‘‘ले कन तुमने अपने मािलक से दगा क है, इसिलए हम तु ह अजमेर के राजा
के उ रािधकारी के सुपुद करते ह और तु हारी कारगुज़ारी से भी उसे आगाह कए देते
ह।’’
‘‘यह कै सी बात?’’
‘‘यह बादशाह और राजा क बात है। गुलाम, दगाखोर और कमीने लोग
उसे नह समझ सकते ह।’’
अमीर ने मीर मुंशी को म दया, ‘‘इस आदमी क तमाम हक कत िलखकर,
इसे हथकिड़य और बेिड़य से जकड़ कर राजपूत के सुपुद कर दो।’’ मीर मुंशी ने अदब
से अमीर का म वीकार कया। सोढल का मुँह काला पड़ गया। एक बार साहस
करके उसने फर अमीर को उसके वायदे क याद दलाई। दया क ाथना क । पर
अमीर ने घृणा ने मुँह िसकोड़कर कहा–‘‘अजमेर के नए महाराज, हमने अपना वचन
पूरा कर दया। तु ह राजा मंज़ूर कर िलया। इसी से तु ह क ल करने का म न देकर
राजपूत के सुपुद करते ह। हमारी मदद का इनाम तु ह िमल गया। अब अपने मािलक
से दगा करने क सज़ा तु ह उनसे पानी है।’’
इतना कहकर अमीर ने उसे अपने सामने से हटाने का संकेत कया और त काल
वहाँ से कू च करने क आ ा दी।
दुलभराय का अिभयान
आमेर का युवक राजा दुलभराय सपादल के वीर महाराज का आदेश पा
भील , मीन और राजपूत क संयु सै य ले ना दोल क ओर बढ़ा। उसके साथ देवगढ़
और सोजत के ठाकु र सरदार भी थे। य िप दुलभराय क इ छा महाराज धमगजदेव के
साथ-साथ पु कर े म अमीर से लोहा लेने क थी, पर तु वह जैसा वीर था वैसा ही
मेधावी और िवचारशील भी था। उसने तुर त समझ िलया क मु े क बात यु नह है,
अमीर क राह रोकनी है। इसिलए वह दूरदश महाराज से तुर त ही न के वल सहमत
हो गया, युत उसने साथी सरदार को सब बात समझा-बुझाकर अपनी मौिलक
योजना भी बना ली। उसने सोच िलया क यु म शौय दखाने क आव यकता नह है।
कौशल से श ु-सेना क गित म बाधा प च ँ ाना और कम से कम अपनी हािन करके
अिधक-से-अिधक श ु को ित प च ँ ाना ही उसका येय है।
अभी यह वीर देवगढ़ ही प च ँ ा था क उसे महाराज धमगजदेव के पतन का
समाचार िमला। महाराज क दूरद शता का मह व उसने अब समझा। उसने झटपट सब
अ ारोही राजपूत को दो दल म िवभ कर उ ह देवगढ़ और सोजत के सरदार को
स प कर कहा, ‘‘आप तमाम इलाके म फै ल जाएँ। सब गाँव-बि तय को उजाड़ द। जा
को पवत म भेज द। खेत, कु एँ, जलाशय न कर द, राह, घाट, पुल को तोड़-फोड़ द।
धीरे -धीरे यह सब व था करते ए आगे बढ़कर ना दोल म मुझसे िमल जाएँ।’’
यह व था करके वह अपनी भील और मीना क पैदल सेना ले दुहरा कू च
करता आ तेज़ी से ना दोल जा प च ँ ा।
ना दोल का राजा अनिह लराय एक मह वाकां ी और तेज वी युवक था।
उसके हौसले बढ़े ए थे। वह अभी तक य िप गुजरात का एक साम त था पर उसने
गुजरे र चामु डराय क ढलिमल नीित और खराब प रि थित से लाभ उठाकर वहाँ
वष से वा षक कर भेजना ब द कर दया था। उधर वह अवि तराज भोज से मुठभेड़
करने को तैयार बैठा था, इधर गुजरात का सामना करने क भी उसने तैयारी कर ली
थी। पाठक जानते ही ह क वह गुजरात क महारानी दुलभदेवी के ष म
सि मिलत होकर अपने पु को गुजरात का वामी बनाकर स पूण गुजरात, सौरा ,
लाट और मालव का एकछ वामी होने का व देख रहा था।
मालवराज भोज क उसपर दृि थी। वह मह वाकां ी िव ान् राजा, िस ध
नद के मुहाने तक समु को छू ता आ अपना सा ा य थािपत करना चाह रहा था।
उसने अबुदे र धु धुराज को अपने अनुकूल कर िलया था। अब ना दोल का
अनिह लराय ही उसक सबसे बड़ी बाधा थी। उसे नम करने ही को धु धुराज का पु
बाला साद ना दोल म युवराज का िम बनकर उसे अनुकूल करने क खटपट म त
था। ना दोल म धड़ाधड़ नई सेनाएँ भरती हो रही थ । अ , गज खरीदे जा रहे थे।
क छ, भ च और िस धु के ापारी घोड़ और श ा को लेकर आ रहे थे।
ऐसे ही समय दुलभराय ने ना दोल प च ँ कर नगर से बाहर अपनी छावनी
डाली और फर वह राजा से िमला। राजा अपनी भीतरी खटपट म इतना त था क
उसे अमीर के इस अिभयान म िबलकु ल रस नह िमला। पर तु रस न िमलने से या
होना था? अमीर तो दल-बादल सै य को िलए बढ़ा चला आ रहा था। उसके िलए दो ही
माग थे क या तो मुलतान और लोहकोट के राजा क भाँित कायर-वृि हण करे ,
अमीर से उ कोच ले और उसे माग दे; या फर घोघाबापा और धमगजदेव क भाँित
अपने कत पर दृढ़ रहकर लो बहा दे।
अनिह लराय य िप इस समय गुजरे र के अनुकूल न था, पर वह वयं यह
आशा रखता था क एक दन गुजरात क ग ी उसी के पु को िमलेगी। इससे वह उसके
िव इस ले छ क सहायता नह कर सकता था। वह य िप जैन धम पर आ था
रखता था और ना दोल के राजदरबार म जैन धम का बोलबाला भी था, फर भी वह
ज मजात शैव था तथा भगवान् सोमनाथ का भ भी। वह घोघाबापा और महाराज
धमगजदेव के पतन से भी थरा उठा। सब बात पर िवचार करके वह गज़नी के सुलतान
का अवरोध करने को स तो हो गया, पर तु उसे इस बात का ब त दु:ख था क
उसने िजस उ े य क पू त के िलए सै य का सं ह कया था, वह तो रह ही जाएगा।
उसक सब शि इस दै य का सामना करने म ही न हो जाएगी। फर यह भी कौन
कह सकता है क उसक दशा धमगजदेव और घोघाबापा के समान ही न हो जाए।
धमगजदेव के स मुख तो उसका सै य बल कु छ था ही नह ।
इन सब िवचार ने उसे बड़ी भारी उलझन म डाल दया और वह कु छ भी
िनणय न कर सका क या करना चािहए।
उन दन ना दोल एक समृ नगर था। उसम सात सौ लखपितय के बसने थे,
यह िस था। फर यह नगर मारवाड़, राजपूताना और गुजरात के मुँह पर होने से
ापार का बड़ा भारी के हो गया था। नगर म बड़ी-बड़ी अ ािलकाएँ, बाग, उपवन
और राजमाग तथा बाज़ार थे। राजा भी खूब स प था। उसके खजाने म भी काफ
वण-कोष था। उसे अपनी बुि और वीरता का घम ड भी था।
उसक गहरी उलझन को दुलभराय ने अपने वा चातुय से दूर कर दया।
दुलभराय आयु म कम होने पर भी द ली के दरबार म रहने के कारण काफ राजनीित-
पटु हो गया था। उसने कहा, ‘‘महाराज, हम ले छ से यु तो करना ही नह है, वह
कोई हमारे रा य पर तो चढ़ नह रहा। वह तो जा रहा है गुजरात। हमसे राह माँगता
है, पर अधम को हम राह नह दगे। इसिलए मने जो योजना बनाई है, वह ऐसी है क
उससे हमारी धन-जन क कु छ भी हािन नह होगी और इस दै य को हम नाक चने
चबवा दगे। आप जानते ह कृ ित हमारी सहायक है, ना दोल से आगे गहन वन ह।
उसके आगे िवकट तंग घाटी है। बस, वह हम अपनी करामात दखाएँग।े अभी हम नगर
खाली कर देना चािहए। धन-र , जा-प रवार सब को सुरि त दुगम पवत पर भेज
देना चािहए। दै य को चारा, जल, अ न िमले, ऐसी व था कर देनी चािहए।’’
दुलभराय क स मित से अनिह लराय सहमत हो गया।
अब सब बात पर पूवापर िवचार करके उसने योजना बना ली।
देवगढ़, सोजत, बदनौर और टोडागढ़ के सरदार भी अपनी-अपनी सेनाएँ लेकर
आप च ँ ।े इन सबको अपने-अपने काय करने के गु आदेश दे दुलभराय ने आगे चलता
कर दया। ये सब सरदार छोटी-छोटी टु किड़य म सारे जंगल म िबखरकर श ु क घात
म जमकर बैठ गए।
भील और मीना को भी तीर-कमान ले घाटी के दोन ओर दुगम िग रशृ ग
पर चढ़ िछपकर बैठने का आदेश दे िवदा कया।
इस काय से िनपट कर उसने राजधानी को खाली करना ार भ कया। नगर म
ढंढोरा फरवा दया गया । नगर–िनिवासय को बारह हर के भीतर–भीतर अपना–
अपना सब धन-जन लेकर अरावली क दुगम उप यका म जा बैठने का आदेश दे दया
गया। देखते-ही-देखते चहल-पहल और धन-धा य से भरा-पूरा नगर ना दोल जन-शू य
होने लगा। लोग िविवध वाहन पर अपनी गाँठ–गठरी लादे पंि बाँध पवत- ेिणय
क ओर जाने लगे। राज सेना व था और ब ध म त ई। राजकोष, प रवार और
सब धन भी राजमहल से हटा दया गया। बारह हर म नगर जन-शू य हो गया। अब
राजा ने सब घाट, कु एँ, माग तोड़-फोड़ डाले और वयं सुरि त थान म अपनी सेना
क छावनी डालकर बैठ गया।
दुलभराय ने महाराज अनिह लराय को यह स मित दी क य ही अमीर यहाँ
से पार हो जाए, आप अपने नगर म आ जाएँ तथा वहाँ क व था कर। उसने उसक
सै य क सहायता भी नह ली, तथा अपनी योजना पूरी करने को गहन वन म वेश
कया।
ना दोल के बाहर िनकलते ही घना जंगल था, और इसके बाद वह पहाड़ी घाटी
जो मील ल बी थी। कह -कह तो यह इतनी तंग थी क इसक दोन ओर के पवत-
ृं ग पर पर िमले ए तीत होते थे। इसके बाद ही एक हरा भरा समतल मैदान था,
जहाँ मीठे पानी क एक छोटी-सी पहाड़ी नदी बहती थी, जो वषा ॠतु म तो भयानक
हो जाती थी, पर तु और ॠतु म उसम थोड़ा पानी भरा रहता था। दुलभराय ने
अपनी िवल ण योजना से व था ठीक करके , सेना को आव यक आदेश देने ार भ
कर दए।
अमीर अजमेर से आगे बढ़ा। रा ता साफ और हरा-भरा देख उसका िच शांत
आ। अब तक उसने भयानक रे िग तान और भारी-भारी न दय क बाधाएँ झेली थ ।
अब यह सुखद हरा-भरा जंगल देखकर वह स हो गया। य िप उसे अनिहल प न
प च ँ ने क ज दी थी। पर वह और उसक सेना इस मनोरम देश को देखकर म त हो
गई। चार ओर हरे -हरे खेत लहरा रहे थे। पर तु गाँव म उसे कोई मनु य नह दीख
पड़ता था, इसपर उसने अिधक िवचार नह कया। वह आगे बढ़ता ही गया। य - य
वह आगे बढ़ता गया, बाधाएँ सामने आती ग । गाँव नगर सब उजाड़ थे, राह-घाट टू टे
ए, खेत जले ए और िनजन। उसक सारी स ता हवा हो गई।
ना दोल प चँ कर उसने नगर को उजाड़ शू य पाया। एक िचिड़या का पूत भी
वहाँ न था। यह देखकर ोध से उसक आँख जल उठ । उसने यह सुन रखा था क यह
नगर अजमेर रा य का िम है, अत: उसने ोध म आकर नगर को फूं क कर छार करने
का आदेश दे दया।
नगर धांय-धांय जलने लगा और देखते-ही-देखते वह छार हो गया। पहले
उसक इ छा वह पर पड़ाव डालने क थी, पर अब उसने कू च करना ही ठीक समझा।
वह और आगे बढ़ा। उस गहन और सघन वन म घूमता चला गया। पर तु य - य वह
आगे बढ़ता था, राह-बाट नह िमलती थी। उसक सेना क गित म द पड़ गई। व था
भी गड़बड़ हो गई। य क सूया त म अब िवल ब न था। उसने उसी वन म एक
समुिचत थान देख छावनी डाल दी। पर तु थान इतना सघन और असम था क इतनी
भारी सेना क छावनी वहाँ नह पड़ सकती थी। पर तु लाचारी थी इसम। सेना क
सारी ही व था अस ब हो गई।
राह म और यहाँ भी उसे एक भी मनु य देखने को नह िमला था। सैिनक थके
ए थे। जैसे-तैसे छावनी डालकर वे अपने खान-पान और आराम म लगे। राि हो गई।
वह ग भीर होती गई। धीरे -धीरे छावनी क धूमधाम स ाटे म बदलने लगी। थके ए
सैिनक मीठी न द के झ के लेने लगे।
इसी समय जंगल म चार ओर काश फै लता-सा दीखने लगा। काश फै लता
ही गया। ह रय ने कु छ भी ठीक-ठीक नह समझा। पर तु दो हर राि होते-होते वन
म चार ओर आग क लपट लहर मार रही थ । अमीर जाग उठा। पल भर ही म वह
प रि थित को भांप गया। भय से उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसने वन म आग लगने
के ब त क से सुने थे। वन म चार ओर आग ही आग लगी थी। आग ने उसके ल कर
को इस भाँित घेर रखा था जैसे साँप कु डली मार कर मढक को घेर लेता है। अब बड़े-
बड़े वृ अराकर िगरने लगे। धुएँ के बादल आकाश तक छा गए। अमीर ने देखा क
उसका सारा ल कर आग के समु म डू ब रहा है। शोक से अधीर होकर वह अपना माथा
कू टने और दाढ़ी नोचने लगा। िसपाही और सेनापित, जो जहाँ िजस दशा म थे, भाग
िनकलने क चे ा करने लगे। सेना म कोई व था ही न रही। हाथी चंघाड़ते और
घोड़े बेकाबू होकर उछलते ए इधर-उधर दौड़ने और सेना को कु चलने लगे। चलती ई
सेना के ऊपर भारी-भारी जलते ए वृ िगरकर सेना को चकनाचूर करने और
झुलसाने लगे। पृ वी पर जैसे आग का समु बह रहा हो ऐसा तीत हो रहा था। उसपर
होकर चलना घोड़ और पैदल , दोन ही के िलए अस भव था। पर तु कना या
अटकना िबना मौत मरना था। अमीर पागल क भाँित उ म और हताश हो रहा था।
कौन कहाँ है, यह कसी को पता न था। येक ि कसी तरह इस अि के समु से
जान लेकर पार होने क िच ता म था। पहाड़ी हवा गज़ब ढा रही थी। न माग का पता
चलता था, न दशा का। दम घ टनेवाला धुआँ हवा म भरा था। अनिगनत िसपाही-घोड़े
उस धुएँ म दम घुटकर और आग म झुलस कर, िगरते ए पेड़ से कु चलकर मरे -अधमरे
होकर वह रह गए। भागने वाल ने उ ह कु चल कर चटनी कर दया। उषा का उदय
आ। सूय िनकला, पर तु इस आग के समु का तो कह पार ही न था। अमीर घायल
और कमज़ोर पहले ही से था। अब जीवन से िनराश होकर मू छत हो घोड़े से िगर
पड़ा।
उसके जां-िनसार सरदार और गुलाम ने उसे हाथ -हाथ उठाया। वे उसे सब
आपदा से बचाते ए ाण के मोल पर ले दौड़े। दो हर दन चढ़ते-चढ़ते ल कर
आग के इस समु से बाहर आ। पर तु इस आग से अमीर का ब त ल कर न हो गया।
सेना क सारी व था िबगड़ गई। डेरे-तंबू सब जलकर खाक हो गए। हाथी-घोड़े- यादे
सब अधमरे हो गए। सारी ही खा साम ी और पीने का पानी न हो गया।
जंगल पार करके ल कर ने जैसे-तैसे एक छोटे-से मैदान म छावनी डाली।
छावनी या थी, ऐसा तीत होता था, ब त से खानाबदोश आदिमय का रे वड़ पड़ा
हो। सबके कपड़े–ल े झुलस गए थे। अनेक क दा ढ़याँ आधी जल कर उनक िविच
सूरत बन गई थी। रसद और खाने-पीने का कु छ भी सामान पास न था। फर भी आगे
बढ़ना स भव न था। उस दन भूखी- यासी, थक और अ वि थत अमीर क सेना
अ य त हतो सािहत हो वह पड़ी रही।
दूसरे दन सूय दय से थम ही अमीर ने वहाँ से कू च कर दया। उसने सोचा क
राह म जो कोई समृ नगर-गाँव िमले, उसी को लूटपाट कर सेना के भोजन, व क
व था क जाए। पर तु कु छ चलने के बाद ही उसे उस तंग घाटी म घुसना पड़ा।
ज दी ही उस मुसीबत को पार करने के िवचार से अमीर सेना लेकर िबना ही आगा–
पीछा सोचे उस दर म घुस गया। आधा दरा पार करने पर उसे अपनी नई िवपि का
आभास िमला। उसने देखा, दुगम पवत-शृंग पर च टय क भाँित रगते ए अनिगनत
धनुधारी फर रहे ह। उसका मन शंका और भय से काँप उठा। अमीर के सेनापितय ने
भी इस भयानक प रि थित का अनुभव कया। पर तु पीछे लौटने का तो कु छ अथ ही न
था। ाण क बाज़ी लगाकर अमीर और आगे बढ़ा। अब उसपर दोन ओर से तीर क
वषा ार भ हो गई । बड़े–बड़े प थर लुढ़क कर अमीर के बलोची सवार को घोड़
सिहत चकनाचूर करने लगे। अमीर ने ज द से ज द घाटी को पार करने क जैसे स भव
हो, ताक द क । सेना भारी हािन सहकर भी इस िवपि से बच िनकलने को अपने ही
िसपािहय , घोड़ , हािथय आ द को कु चलती ई आगे बढ़ चली। तीसरे हर तक
अमीर ने घाटी के बाहर मुँह कया। दुलभराय के कौशल ने िबना एक आदमी का घात
कराए, अमीर क सेना को एक कार से तहस-नहस कर दया था। अब उसने स मुख
यु करना थ समझ अमीर को आगे भागने का माग तो दे दया, पर प ात् भाग म
वि थत उसका सब धन-र खजाना लूट िलया। अमीर धन-खजाना-कोष िछनाकर,
बत से िपटे ए कु े क भाँित दर से िनकलकर ताबड़तोड़ भागा। नदी को पार कर
उसने खुले मैदान म छावनी डाली। और ई र को ध यवाद देने को नमाज पढ़ी।
दुलभराय अपने सफल अिभयान पर स हो पीछे लौटा।
िस पुर म
ी थल क पिव भूिम म आज भी िस पुर एक समृ नगर है। गुजरात म
वह पिव तीथ माना जाता है। अ य त ाचीन काल म यहाँ मह ष किपल ने अपनी
माता को त व ान का उपदेश दया था। िजस काल क कथा हम कहते ह, उस काल म
िस पुर क आबादी खूब बढ़ी-चढ़ी थी। य िप अनिह लवाड़ पाटन गुजरात क
राजधानी थी, पर तु िस पुर क शोभा और समृि उस समय पाटन से कम न थी।
िस पुर का इलाका महाराज चामु डराय ने अपने मंझले पु दुलभदेव को दे दया था।
दुलभदेव राजधानी म न रहकर िस पुर म ही रहते थे।
दुलभदेव बड़े खटपटी पु ष थे। उ ह सा कार चोर कहना ठीक होगा। वह
ई यालु, लोभी, द भी और मह वाकां ी पु ष थे। जबद त के आगे झुक कर काम
िनकालने म वे बड़े िनपुण थे। अपनी काय-िसि के िलए वह सब–कु छ कर सकते थे।
वह कभी कसी का िव ास नह करते थे, सदा सबको स देह क दृि से देखते थे। लु े-
लफं गे, जी जू रए सदैव उ ह घेरे रहते, िजनसे वह अपने सारे उ टे-सीधे काम लेते
रहते थे। अपने काम िस कर लाने वाल को दुलभदेव दल खोलकर इनाम-इकराम
देते थे। वह िनर तर कोई-न-कोई षड् य करते ही रहते थे। मन का भेद कभी कसी पर
कट नह करते थे। वभाव के वह पूरे िनदयी थे।
िस पुर का इलाका और पूरी आय उनके अधीन न होने पर भी लोग उ ह
िस पुर का राजा ही मानते थे। पाटन क राजनीित क ढील और अ व था से उ ह ने
काफ लाभ उठाया था। महाराज चामु डराय क तो वह कु छ परवाह ही नह करते थे।
वष से उ ह ने राज व, न राजकोष म जमा कराया था, न उसका िहसाब- कताब ही
कसी को दया था । और अब तो वह इस खटखट म पड़े थे क अपने िपता महाराज
चामु डराय और बड़े भाई व लभदेव को मारकर या बंदी बनाकर गुजरात क ग ी
हिथया ल। महारानी दुलभदेवी और म ी र वीकणशाह उनके ष म सि मिलत
थे। उधर ना दोल का अनिह लराय भी मह वाकां ी था। गुजरात क ग ी पर उसक
गृ -दृि थी। अत: वह भी अपने ताने-बाने बुन रहा था। पाठक जानते ही ह क उनके
खटपटी दूत जैन यित ने कस कार पाटन का राजपाट िव ोह और ष से दूिषत
कर दया था। पर तु मु े क बात यह थी क दुलभदेव एक तो अपने भतीजे भीमदेव से
भय खाता था, और अपने भाई व लभदेव से उनके ेम और सहयोग को नह सह
सकता था; दूसरे वह अनिह लराय क मह वाकां ा को भी िवष–दृि से देखता था।
वह तो उ ह अपना हिथयार बनाना चाहता था और कु छ नह ।
पाठक जानते ही ह क दामोदर महता क जा त कू टनीित ने, उसका पाटन का
िव ोह िवफल कर दया था। पर तु वह हार मानने वाला पु ष नह था। इसी समय
उसके िलए यह एक कार का सुयोग ही हाथ आ लगा क गज़नी के सुलतान क
गुजरात पर अिभयान क सूचना उसे िमली। उसने दुलभ संयोग से दुलभ लाभ उठाने
क ठान ली।
वह ढ गी तो था ही। इन दन वह अपनी मह वाकां ा पर परदा डालने के
िलए साधु-वेश धारण करता रहा था। वह चांदी क खूँटी क खड़ाऊँ पहनता, भगवा
व धारण करता, और मृग-चम पर बैठकर धम-काय और रा य-काय करता था।
इतना होने पर भी वह राज-छ , चंवर और मशाल का मान अव य धारण कए रहता
था। लोग उसे साधु, यागी और धमा मा राजकु मार समझ कर उसका मान करते थे।
िस पुर का कला गुजरात के िस कल म से एक था। वहाँ उसने ब त-सी
सेना, सेवक और श ा सं ह कर िलया था। पर तु उसने कले के राज महालय का
िनवास याग दया था। कले के कोटे से संल ही िस महालय था। यह महालय
महाराज मूलदेव राज ने बनवाया था। उसक िवशालता और थाप य-कला ऐसी थी
क वैसा दूसरा देव थान गुजरात म न था। सोमनाथ के बाद इसी का थान था। यह
ढ गी राजकु मार साधु-वेश म परम माहे र का पद धारण करके इसी महालय म
िनवास करता था।
वह िनरिभमान होने का दशन भी करता था। वह सब छोटे-बड़े ि य के
घर चला जाता, उनके सुख-दु:ख का हाल-चाल पूछता। उनक संपि -िवपि म
सहायता करता। इन सब कारण से वह खूब लोकि य हो गया था।
गज़नी के सुलतान क खबर खूब रं ग-रं गाकर आ रही थी। सारे ही गुजरात म
उन खबर से आतंक फै ल रहा था। लोग घबराकर अपना माल-म ा िछपा रहे थे। कु छ
इधर-उधर भाग रहे थे। अजमेर और ना दोल क तबाही और घोघागढ़ के पतन क
खबर ने, लोग के र का पानी बना दया था। देश का सारा कारोबार, यातायात,
कृ िष आ द उ ोग ठ प पड़ गए थे। समूचे देश म भय, आतंक, िनराशा और अिनि तता
का वातावरण भर गया था। पर तु दुलभदेव अ य त सावधानी औद द ता से अपनी
योजना बना रहा था। उसने यह योजना ि थर क थी क इस ले छ को यथास भव
गु सहायता प च ँ ा कर देश को उजड़वा डाला जाए। इसी से सब िवरोिधनी शि य
का नाश कर डाला जाए। पीछे, जब वह लौट जाए तो गुजरात पर अपना अिधकार
सुदढ़ृ कर िलया जाए। इसके अित र इस आड़ म खूब सै य भरती करके तथा श ा
सं ह करके दूर से जो हो रहा है देखा जाए। पीछे इसी शि क सहायता से गुजरात क
गद्दी हिथया ली जाए।
इस कार योजना ि थर करके वह जी-जान से उसक पू त म जुट गया। उसने
ब त-से चर, देश-भर म फै लाकर घर-घर यह चार कराया क ले छ देश पर चढ़ा
चला आ रहा है, उसका सामना करने के िलए सब कोई िस पुर म एक ह । अनेक
थान पर उसने वयं जाकर राजपूत , गरासदार और सवसाधारण को उ ेिजत
कया। उसक भावशाली मुख-मु ा, साधु-वेश, धम- ेम और देश- ेम क उ ेजना-
मूलक बात सुन-सुनकर भावुक और धम ाण पु ष हज़ार क सं या म उसके झ डे के
नीचे आ प च ँ े। और देखते ही देखते एक अ छा ल कर उसने सं ह कर िलया।
सोरठ म िमिहर लोग क ब ती थी। ये सोरठ के िस लड़ाकू वीर थे, पर
चोरी-डकै ती या छोटे-मोटे काम करके खानाबदोश क भाँित रहते थे। इस चालाक
राजकु मार का उनक ओर यान गया। उसने अपने साधु व के भाव से इ ह अपनी ओर
आक षत कया, भगवान् सोमनाथ के नाम पर उसने ऐसी उ ेजना उनम भरी क वे
ाणपण से मुसलमान से लोहा लेने को स हो गए और देखते ही देखते प ीस
हजार िमिहर यो ा उसके झ डे के नीचे आ खड़े ए।
अब उसने अपने ल कर को यु -कला िसखाने के िलए चतुर सेनानायक िनयु
कए । उ म श ा का संचय और िनमाण कया । िभ -िभ सरदार क अधीनता
म सेना क टु किड़याँ बाँटी। ित दन उनक कवायद करने का उप म जारी कया। इस
काम म ग़फलत न हो इसिलए वह िन य ातःकाल वयं सेना क कवायद देखता। इस
कार उसने चाहे िजस भी प रि थित का सामना करने का सब ब दोब त कर िलया
और पूरी सावधानी से अमीर क गितिविध देखने लगा।
उधर राजधानी म ग भीर उलट-फे र हो चुके थे। महारानी दुलभदेवी और
पाटन का धानम ी वीकणशाह, जो उसका सहायक था, राजवध के अपराध म ब दी
हो गए थे और धानमं ी का पद उसके श ु और श ु के समथक िवमलदेव शाह को
िमल चुका था। धान सेनापित बालुकाराय और दामोदर महता पहले ही व लभदेव के
गुट के ि थे। सो एक कार से रा य इस समय व लभदेव का था। महाराज
चामु डराय अब नाममा के पुतले क भाँित ग ी पर बैठे थे। उनक कोई बात अब
कोई सुनता ही न था। पाठक जानते ही ह क िवमलदेवशाह एक ऐसा जनूनी और
तेज वी ि था जो कसी क , यहाँ तक क राजा क भी परवाह न करता था। उसने
राजा क मज़ के िबना ही व लभदेव और भीमदेव को लाख द म सेना क भरती के
िलए भेज दए थे। अब तो वह खु लमखु ला धानम ी था। और दामोदर महता तथा
बालुकाराय क सलाह से उसक सवारी राज-गज पर नगर म धूमधाम से िनकल चुक
थी, िजससे सब छोटे-बड़े जन ने महाम ी के प म उसका अिभन दन कया था।
पर तु इन सब िवपरीत प रि थितय से दुलभदेव नह घबराया। सेना क
व था और कोषागार का ब ध ठीक करके उसने तीन काम कये।
महारानी दुलभदेवी, जो ना दोल के राजकु मार को गोद लेना वीकार कर
ना दोल क सहायता ा करना चाहती थी, वह उसे िबलकु ल पस द न था। इस गोद
लेने क योजना का वह पूरा िवरोधी था। य िप अभी उसका कोई पु उ प नह आ
था। फर भी उसे आशा थी। पर तु अपने िवरोध को उसने कभी कसी पर कट नह
कया। वह रानी क हाँ-म-हाँ िमलाता रहा। अनिह लराय को भी ेम और आदर से
भरे प िलखता रहा तथा भट भेजता रहा। जब गज़नी का अमीर अजमेर से आगे बढ़ा
और ना दोल म आमेर के दुलभराय ने आकर अपनी योजना अनिह लराय से कही तो
अनिह लराय ने सांढ़नी-सवार भेजकर दुलभदेव से राय पूछी थी। दुलभदेव तो यह
चाहता था क इस अवसर पर अमीर से टकराकर अनिह लराय िपस मरे । उसने खूब
उ ेिजत भाषा म अनिह लराय को इस धम-श ु से लोहा लेने को उकसाया और दो
हाथी सोने के द म भर कर सहायताथ भेज दए। प और द म पाकर अनिह लराय
स हो गया। और जब दुलभराय कछवाहे ने उसे ऐसी योजना बताई िजसम न तो
उसके एक सैिनक पर आँच आती थी, न एक पाई खच होती थी, वह धम के श ु से िमल
जाने के अपवाद से भी बच जाता था और दुलभराय का भी ेम-भाजन बनता था, इन
सब बात पर िवचार करके , उसने दुलभराय कछवाहे क योजना वीकार कर ली थी।
अत: इस मामले म दुलभदेव क आशा कु छ भी फलवती न ई। अनिह लराय का कु छ
भी नुकसान नह आ, जो आ उसक पू त उसने आनन-फानन कर डाली।
दूसरा काम उसने यह कया क अ य त गु प से उसने अमीर के पास अपना
दूत भेजकर इस शत पर उसका माग-िवरोध न करने तथा सब स भव सहायता देने क
वीकृ ित भेज दी क वह सोमनाथ–अिभयान के सफल होने पर वापसी म उसे ही
गुजरात का अधी र वीकार कर ले। दुलभदेव का यह संदश े वा तव म अमीर के िलए
एक वरदान था। य द इस समय दुलभदेव अपनी सेना लेकर अमीर पर िपल पड़ता तो
इसम तिनक भी संदह े न था क अमीर का एक-एक घोड़ा और एक-एक सवार इसके
तीर से बंध जाता। और अमीर को गुजरात क दहलीज़ म ही अपनी समािध लगानी
पड़ती। दुलभदेव ने इतना ही नह कया, उसने ऐसी भी व था कर दी क आबू और
झालौर के परमार भी अमीर का अवरोध न कर। उ ह इस खटपटी राजपु ने िव ास
दला दया क वे अपने धन-जन को खतरे म न डाल-गज़नी के दै य को सीधा गुजरात
क सीमा म धँसा चला आने द। यहाँ आने पर वह उसे पीस डालेगा। पीछे आव यक
आ तो वह उनसे अमीर के पृ भाग पर आ मण करने का अनुरोध करे गा। यह योजना
य द अमल म सचमुच आती, तो अमीर का यहाँ से िन तार नह था। पर भारत के
भा य ऐसे कहाँ थे; भारत को तो अपनी लाज खोनी थी। दुलभदेव ही के समान आबू के
परमार अपनी वाथमयी मह वाकां ा क िखचड़ी पका रहे थे। वह न के वल
अव तीपित भोज का पराभव करने पर तुले थे अिपतु गुजरे र क अधीनता का इस
सुअवसर पर जुआ उतार फकने को भी उतावले हो रहे थे। य द इस सुयोग म अमीर
दुलभदेव और गुजरे र का दलन कर डाले और उनका सै य बल तथा कोष अ ु ण बना
रहे तो इससे उ म बात और हो या सकती थी। उ ह ने दुलभदेव क योजना का हष से
वागत कया तथा कपट-भाव से आ ासन दया क आव यकता पड़ने पर पीछे से
आ मण करके उसे सहायता प च ँ ाएँगे। पर तु उ ह ने यह ठान ली थी क यह कोरा
आ ासन ही रहेगा। गु प से उ ह ने भी अमीर को दूत भेज कर कहला भेजा था क
य द अमीर उनके रा य क सीमा म कोई उप व न करे तो वे उसे िनबाध प से आबू
क राह गुजरात म िव होने से रोकगे नह ।
हाय रे भारत के भा य, हाय रे राजपूत क कलं कत वाथ-नीित! इसी ने तो
राजपूत को संग ठत न होने दया, इसी से तो वे महावीर होते ए इस मार–काट के
युग म बड़े-बड़े सुयोग पाकर भी कोई अपना सा ा य थािपत न कर सके । वे अपने ही
वाथ म, अपनी ही योजना म मरते-कटते रहे। अमीर ने न के वल परमार के इस
आ ासन का वागत कया-अिपतु उसने परमार को ब त-सी भट-भलाई भेजकर
बार बार अपनी िम ता का वचन दया। यहाँ गुजरात के ार पर आकर उसे नये
अनुभव हो रहे थे। जहाँ उसे अ य मै ी क भीख माँगनी पड़ी थी, यहाँ मै ी क भीख
उससे माँगी जा रही थी। जब क वह अ यंत जीण-शीण और िवप ाव था म था और
उसे सोमनाथ-िवजय तो एक ओर, सही-सलामत गज़नी लौट जाने क भी आशा न रही
थी।
झालौर का रावल वा पित राज परमार चौहान का स ब धी था। वह एक
बूढ़ा, सनक और घम डी आदमी था। उसे अपनी वीरता पर बड़ा अिभमान था। अपने
को वह घोघाबापा से तिनक भी कम न समझता था। इनम स देह नह क वह एक
साहसी यो ा था। पर एक राजा को या यो ा होना ही यथे है! उसके म ी भी ऐसे
ही थे। राजा क आयु स र को पार कर चुक थी, वह अफ म घोलने और रनवास क
नई-नई डेवडिनय से मठोली मारने म अपने बुढ़ापे के दन तीत कर रहा था। उसका
राज-काज आप ही आप चल रहा था। भूख-े यासे कसान अपना खून-पसीना एक करके
जो अ उपजाते थे, उनक गाढ़ी कमाई का अिधकांश भाग उसके अ याचारी कमचारी
उनसे वसूल कर अपनी भी जेब भरते थे और राजकोष भी भरते थे, िजसे मनमानी रीित
पर खच करने से इस बूढ़े, कामुक और सनक राजा को रोकने वाला कोई भी न था।
दुलभदेव ने उसे िलखा, ‘‘काकाजू, िच ता मत क िजए, गज़नी के इस दै य को सीधा
पाटन क ओर तक चला आने दीिजए। यहाँ म उसे तलवार के घाट उता ँ गा। आपको
अपनी यशि वनी तलवार को यान से ख चने क मुझ दास के रहते आव यकता नह
है।’’
और सु दरी त णी डावडिनय से पगच पी कराता आ यह राजा हंस-हंसकर
दुलभदेव का यह प पढ़ता और कहता, ‘‘रं ग है, अरे ! मेरी तलवार देखनी हो तो देख,
पर छोकरा अ छा है, परमार को जानता है। यह बेटा अमीर गुजरात जाता है तो जाय।
झालौर पर उसने नजर करी तो जीता छोडू ग ँ ा नह । हा–हा–हा–हा।’’ और इसके बाद
जब अमीर ने उसक सेवा म अमू य जवाहरात से भरा थाल भेजकर मै ी-याचना क ,
तो यह लालची बूढ़ा बड़ी देर तक उन र म कौन कतनी क मत का है, इसी बात पर
अपने र के पारखीपन क ड ग हाँकता और गोली–बां दय पर यह कट करता रहा
क यह अमीर वा तव म उसके भय से थर-थर काँपता है।
इस कार अपनी दोन योजना को कायाि वत कर तथा अमीर को िन कं टक
करके दुलभदेव ने अपना तीसरा ने अब पाटन क ओर फे रा। उसके िलए िजन लोग ने
िविपि मोल ली थी, उनक उस वाथ ने िच ता नह क । उसे के वल अपनी माता
महारानी दुलभदेवी को जैसे बने, महाराज का मन फे र कर िस पुर ले आने और म ी
िवमलशाह को समझा-बुझाकर जैसे बने, अपने प म करने क ता थी।
िस पुर के महालय के मठपित शु लबोध तीथ, सं कृ त और वेदा त के
पंिडत, वयोवृ सं यासी थे। राजपु के भि -भाव से वह स थे। दुलभ ने उ ह
ब त-सी जागीर दे रखी थी। उसक कृ पा से यह बूढ़े सं यासी राजशाही रीित पर रहते
थे। दुलभदेव देवाराधन क अपे ा मठपित क ही अिधक आराधन करता था। इससे
मठपित उसक भू र-भू र शंसा करते अघाते न थे। दुलभदेव ने और अ य जन से भी
पाटन क राज- व था क दुरव था के उ टे-सीधे जो िच इस वेदा ती सं यासी के
स मुख ख चे थे–उसपर इसने यह प राय बना ली थी क य द दुलभदेव पाटन का
अिधपित हो जाए तो गुजरात का ब त भला हो सकता है। कु छ स े भाव से भी और
कु छ दुलभदेव क आराधना से िवत होकर वे दुलभदेव के समथक बन गए थे। इ ह को
अब दुलभदेव ने पाटन जाकर राजा को नम करके जैसे बने, महारानी दुलभदेवी को
मु कराने और म ी वर िवमलदेव शाह को अपना अनुगत बनाने के िलए ब त ऊँच-
नीच समझा कर भेजा। राजनीित को तिनक भी न समझने वाला यह बूढ़ा सं यासी,
िबना इस बात क गु ता का िवचार कए क वह कहाँ, कस काय के िलए जा रहा है,
पाटन क ओर चल दया। दुलभदेव उ क ठा से प रणाम क ती ा करने लगा।
िवफल यास
पाटन म महाम ी क स ा एकबारगी ही ाप गई। वह शूरवीर, तेज वी,
िमलनसार और कु लीन जैन विणक था। इससे नगर के सभी महाजन म उसका पहले ही
ब त मान था। उसके म ी होने पर सबने उसे आन द बधाइयाँ द । महाम ी के
महालय के आगे हाथी झूम रहे थे, नौकर-चाकर, दास-दासी, दूत, ापारी, मा डिलक,
म ी, यो ा और अनेक पु ष भाँित-भाँित के अिभ ाय और काम-काज के िलए आ-जा
रहे थे।
मठपित महाम ी का यह वैभव देखकर िवमूढ़ हो गए। सं याकाल म वे
महाम ी से िमलने गए।
िवमलदेव ने उनका उ थानपूवक स कार कया। साधारण िश ाचार के बाद
वातालाप ार भ आ। म ी ने कहा–
‘‘किहए, कै से कब पाटन म पधारना आ?’’
‘‘आज ही म ी र।’’
‘‘आज? और तुर त ही इस सेवक को दशन से कृ ताथ कया–बड़ी कृ पा ई
महाराजकु मार दुलभदेव स तो ह?’’
‘‘ स ह। उनपर दुहरा भार है म ी र, देवता का भी और रा य का भी।’’
‘‘अ छा!’’ म ी िवमलदेव शाह ने म द ि मत करके स मुख पड़े ब त से
कागज़ पर दृि डाली। मठपित नह समझ पाए क इस एक ‘अ छा’ श द म कतना
अंश ं य का है और कतना अिव ास और ितर कार का। वे कोई राज-दरबारी पु ष
न थे। वे इसी एक श द से हत भ हो गए। कु छ ठहरकर उ ह ने कहा, ‘‘रा य पर संकट-
काल है। महाराज कत से बेसुध ह, अब आप ह तो गुजरात का सब-कु छ है।’’
‘‘यह या महाराजकु मार का संदशे है?’’
‘‘नह म ी र, पर तु गुजरात का र ण होना चािहए।’’
‘‘उसक समुिचत व था हो रही है।’’
‘‘ कस कार म ी र?’’
‘‘यह काम राज-पु ष का है, आपका नह । आप मुझसे या कहना चाहते ह,
वह किहए।’’
‘‘म ी के ताप और तेज से मठपित क सारी ान-ग रमा लु हो गई।
उ ह ने देखा, चापलूसी और भय इस पु ष को पश ही नह करते। उ ह ने धीरे से कहा,
‘‘म यही कहने आया था म ी र।’’
‘‘तो यह बात तो ख म ई।’’
‘‘मेरा एक अनुरोध भी है।’’
‘‘आपका?’’
‘‘महाराज दुलभदेव क ओर से।’’
‘‘महाराज दुलभदेव कौन है?’’
‘‘महाराज...’’
‘‘हाँ–हाँ, क तु महाराज तो चामु डराय अभी पाटन म िवराजमान ह।’’
‘‘म महाराजकु मार क बात कह रहा ।ँ ’’
‘‘किहए।’’
“देश पर ले छ आ रहा है। महाराज...’’
‘‘ फर महाराज! कौन महाराज?’’
‘‘नह , नह , कु मार दुलभदेव उसके दमन म कृ तो म ह, आप उनक सहायता
क िजए।’’
‘‘आपको या कु मार दुलभदेव ने यहाँ भेजा है?’’
‘‘नह म ी र, म तो आपसे एक अनुरोध कर रहा ।ँ ’’
‘‘तो देिखए, आप मठपित ह। इसिलए महालय के स ब ध म य द कु छ ु ट
हो तो किहए। म उसपर िवचार क ँ गा। राज-काज म अनुरोध मानकर शासन करने क
मेरी आदत नह । रही कु मार दुलभदेव क बात, वे राजिव ोह के एक अिभयु ह, इस
स ब ध म ज़ा ते क कारवाई क जा रही है जो शी उ ह ात हो जाएगी।’’
‘‘पर तु म ी र, वे राजपु ह।’’
‘‘राजपु या राजमाता, जो भी ह , पाटन का याय-िवधान सबके िलए एक-
सा ही है।’’
‘‘ क तु...’’
‘‘सुिनए महाराज, य द राज-दरबारी मामल म िच रखगे तो यह समझा
जाएगा क आप भी षड् य म सि मिलत ह। आप िव ान पु ष ह, सं यासी ह, इसी से
म आपक भलाई क बात कहता ।ँ आप अपना काम क िजए। कु मार दुलभदेव सै य-
संधान कर रहे ह, वह हमारी दृि से ओझल नह है तथा रा य और श ु पर उनक
जैसी दृि है, वह भी पाटन का म ी जानता है। पर तु आपको उिचत तीत हो तो
आप उनके िहतैषी के प म उ ह समझा दीिजए क जब वे िवर होकर साधु ही हो
गए ह तो इस कार क खटपट म माथाप ी न कर, यही उ म है। नम कार!’’
मठपित को और कु छ कहने क िह मत नह ई। वे आशीवाद दे वहाँ से उठकर
चले आए।
िवमलशाह ने एक कु टल हा य उनपर डाला, और एक पा वद को कु छ संकेत
कया। पा वद तिनक झुककर चुपचाप मठाधीश के पीछे रवाना हो गया।
पाटन म हड़क प
घोघाबापा और महाराज धमगजदेव के रणांगण म िगरने के समाचार हवा म
तैरते ए पाटन पर छा गए। अमीर दबादब गुजरात क ओर बढ़ा चला आ रहा है,
इसक भाँित-भाँित क िवकृ त और कि पत कहािनयाँ लोग कहने-सुनने लगे। कोई
कहता, उसके साथ दै य क सेना है; कोई कहता, उसके पास उड़ने वाली सांढ़िनयां ह;
कोई कहता, वह मर कर भी जी उठता है, उसका िसर कट कर फर जुड़ जाता है।
िजतने मुँह, उतनी बात। पाटन के उ ग े का ठकाना न रहा। लोग के चेहर पर
हवाइयाँ उड़ने लग । सेठ, सा कार, गृह थ अपना धन-र धरती म या तहखान म
िछपाने लगे। िजससे जो लेकर भाग जाते बना, ले भागा। िजसका िजधर मुँह उठा, वह
उधर ही भाग िनकला। कसी को कसी क सुध न रही। अमीर के चम कार और
अ याचार के अितरं िजत क से अनेक प धारण करके लोगो म आतंक उ प करने
लगे। पाटन म भगदड़ मच गई।
इस समय पाटन म दो ही ऐसे पु ष थे, िजनपर पाटन का सारा दािय व था।
एक वैदिे शक म ी दामोदर महता, दूसरा म ी र िवमलदेव शाह। दोन ने पर पर
िवचार-िविनमय कया। प रि थित को परखा और आगे-पीछे क योजना बनाई।
महाराज व लभदेव और भीमदेव इस समय राधनपुर म सै य तथा यु -साम ी का
सं ह कर रहे थे। दामोदर महता ने तुर त नगर, रा य और रा यकोष क सुर ा क
व था क । नगर क भगदड़ रोक दी और ढंढोरा फराकर नगर िनवािसय को रा य
व था के अनुसार काम करने का आदेश दया गया। क ौज, उ ियनी, ीमाल और
भूगक छ के ा ण प रवार को तथा राजकोष,राजप रवार एवं उ वग य प रवार
को ख भात और भ च भेज दया गया। अवांछनीय जन को दूर देशांतर म रवाना कर
दया, गाँव-देहात के लोग को सुरि त थान म थाना त रत कर दया। राह-घाट,
पुल और जलाशय पर पहरे िबठा दए। ख भात क खाड़ी म समुिचत जहाज़ को,
सब साधन से स प करके तैयार रखा गया। पाटन और आसपास के नगर- ाम क
सारी खा -साम ी पर रा य ने अिधकार कर उसे तथा धन से भरे छकड़ को महाराज
व लभदेव के पास राधनपुर भेज दया गया।
अब रह गए गुजरात के तापी महाराजािधराज-पाटन नगर और पाटन के
राजमि दर और देवालय। इनके स ब ध म देर तक दोन चतुर राजनीितिवशारद ने
िवचार-िविनमय कर अपनी गु योजनाएँ बना । िवमलदेव शाह ने महाराज को
थाना त रत करने का बीड़ा अपने हाथ म िलया और दामोदर महता ने नगर क र ा
का।
दोन राजपु ष अपनी-अपनी योजना को सफल करने म जुट गए।
जूनागढ़ का राव
जूनागढ़ के राव नवधन िबना ही कसी पूव सूचना के इसी समय पाटन म आ
धमके । उनके साथ दो हज़ार क छी सवार थे। उ ह ने नगर से बाहर सह लंग सरोवर
के तट पर डेरा डाला।
राव नवधन एक तेजवान, वीर, सरल क तु िन ावान पु ष थे। वे बात के धनी
भी थे। गुजरात म उनक ब त धाक थी। लोग उनसे भयभीत रहते थे। वे राजकु मार
भीमदेव के सुर थे। उनक इकलौती बेटी उदयमती भीमदेव को याही थी। रानी
उदयमती य िप अभी नवोढ़ा ही थी, पर तु िपता के समान ही तेजि वनी और
वािभमानी थी। िमज़ाज भी उसका तीखा था। चाल-ढाल, रहन-सहन गव ला था।
अपने िपता पर उसे ब त घम ड था। िबना माता क इकलौती पु ी को राव ाण से
बढ़कर यार करते थे। राव नवधन एक कठोर, दृढ़ ित और कड़े वभाव के यो ा
अव य थे, पर तु दय उनका शु था।
पाटन क अधोगित, अ तःपुर का िव ोह, और गुजरे र क अकम यता एवं
अमीर क अवाई सुनकर ही राव िबना िनम ण, पाटन म अपना कत पालन करने
आए थे। पर तु इस टेढ़े अवसर पर राव का ससै य आना सुनकर लोग आ य और भय
से पर पर कानाफू सी करने लगे। िबना बुलाए ससै य राजधानी म आना मया दत न
था। राजपु ष िच ता म पड़े। पर तु दामोदर महता तुर त रा य क ओर से राव का
स कार करने उनके डेरे पर प च ँ ।े
राव अपने पट-म डप म ब मू य रे शमी ग ी पर बैठे थे। उनक बड़ी-बड़ी मूँछ,
भारी डील, लाल डोरे वाली आँख, घन याम शरीर और घन–गजन सा क ठ वर अित
भ था। उनके आगे ग ी पर जड़ाऊ मूठ क नंगी तलवार र खी थी, तथा राव के हाथ
म ा क माला थी। दामोदर को देखकर राव नवधन ने ऊँचे वर म हाथ ऊँचा
करके कहा, ‘‘आओ महता, बैठो, बैठो!’’
दामोदर ने िनकट जा हाथ जोड़कर कहा, ‘‘महाराज, सूचना भी नह भेजी,
चुपचाप पधारे ।’’
‘‘घर आने के िलए सूचना कै सी? कहो, पाटन पर कै सी बीत रही है भाया?’’
‘‘सब ठीक-ठाक है महाराज।’’
‘‘यही देखने तो आया ।ँ गुजरे र तो अपनी बावड़ी और ताल बनवाने म
संल ह, य ?’’
‘‘महाराज देखगे तो स ह गे, धवल-गृह तो बनकर तैयार हो चुका है।’’
‘‘देखूँगा भाया। पर पहले गुजरात क ित ा क बात देखनी है। गज़नी का
अमीर आ रहा है, सो गुजरे र या धवल-गृह म ही इस ले छ का वागत करगे?’’
‘‘यह कै सी बात दरबार! जब तक जूनागढ़ क तलवार है, तब तक...’’
‘‘अब यह बात रहने दो महता, तु ह तो अपनी शि पर बड़ा भरोसा है, फर
अपन को य बुलाने लगे। पर भाया, मुझसे तो रहा नह गया। चला आया। समय
आया है तो अब मानापमान या। अब सच-सच जो बात है, वह कहो।’’
महता ने हाथ जोड़ और अधीनता जताकर कहा, ‘‘अब आपका िवराजना आ
है तो सब ठीक हो जाएगा। सब िनवेदन क ँ गा। क तु या कु मार को सूचना दे दू?ँ ’’
‘‘अभी नह , महाराज से िमलने के बाद।’’
‘‘तो म महाराज को िनवेदन करता ।ँ ’’
‘‘िनवेदन हो चुका है महता, अभी महाराज नशे-पानी क झ क म ह। जब
सावधान ह गे तब...’’ राव नवधन इतना कह ं य से मु करा दए। फर कु छ सोचकर
बोले, ‘‘महता, महाराज गुजरे र ह, पर म भी सोरठ का धनी !ँ गज़नी का अमीर जो
सोमनाथ पर आए, तो राव के ज म को ही िध ार है।’’
‘‘पर तु महाराज, वह आए तो, सोरठ क तलवार के साथ-साथ गुजरात क
तलवार भी तैयार है।’’
‘‘और कु मार भीमदेव?’’
‘‘महाराज, गुजरात क तलवार तो कु मार ही के हाथ म है।’’ फर उसने इधर-
उधर देखकर म द वर म कहा, ‘‘यश वी मूलदेव क ग ी पर तो एक दन कु मार ही
क ित ा होगी। और महारानी उदयमती गुजरात के भावी अिधपित क माता।’’
राव नवधन स हो गए। उ ह ने स तु होकर कहा, ‘‘ क तु महता, या
कु मार भीमदेव पाटन म आते ही नह ?’’
“ य नह महाराज,पर तु इधर तो वह अमीर क अवाई क खटपट म लगे
ह।”
‘‘तो भाया, कु मार को सूचना भेज दो, और घर-बाहर के सब सगे-स बि धय
को भी बुलाओ। के सरदेव मकवाना पर अभी एक सांढ़नी रवाना कर दो। अरे भाई, यह
तो धम पर तलवार है! हाँ राजपु दुलभदेव का या समाचार है? सुना है, उ ह ने
सं यास िलया है।’’
“राज-सं यास महाराज’’ महता ने हँसकर कहा, ‘‘महाराजकु मार योग और
भोग दोन ही का आन द-लाभ कर रहे ह।’’
‘‘और तो कु छ बात नह है महता?’’
सोरठ का राव गुजरात क घ राजनीित म उतरे , यह दामोदर को चा नह ।
उसने बात को उड़ाकर कहा, ‘‘महाराज जब पाटन म पधारे ही ह तो सब वयं देख-
भाल लगे।’’
‘‘पर सुनता ,ँ दुलभदेव ने खूब सैिनक तैयारी क है!’’
“िस पुर क र ा का भार भी तो उन पर है। आिखर िस पुर गुजरात का मुख
है।’’
‘‘ठीक है महता।’’
दामोदर णाम करके उठ खड़ा आ। उसने पुनः हाथ जोड़कर कहा, ‘‘तो म
सांढ़नी-सवार रवाना करता ।ँ ’’
राव ने स कार से दामोदर को िवदाई दी और ग ी पर बैठकर माला फे रने लगे।
परम–परमे र
परम-परमे र परम माहे र गुजरे र बल ताप मात ड महाराजािधराज
चामु डराय बेचैनी और घबराहट म उ म क भाँित बड़बड़ा रहे थे। राजा के सब
खुशामदी, जी- जू रए, खवास, गोले, दास-दासी राजा को छोड़कर िजसके हाथ जो
लगा, लेकर भाग गए थे। गुजरे र अपने महल म अके ले पड़ गए थे। जब से उ ह मार
डालने के षड् य का भ डाफोड़ आ था, वह येक आदमी को स देह और भय क
नजर से देखते, अपने ही पैर क आहट से च क उठते, हर समय हाथ म नंगी तलवार
िलए रहते और नौकर-चाकर, गुलाम-गोले सभी से भयभीत और सशं कत रहते थे।
अपनी परछा से भी डर जाते थे। भोजन और जल, सभी म उ ह िवष का भय रहता
था। भोजन को वे दूर फक देते, चीखते-िच लाते, और ब धा भूख-े यासे पड़े ोध और
जुनून म बड़बड़ाया करते थे।
आज उनक िन य या म भी बाधा आ उपि थत ई। बार बर पुकारने पर भी
कोई गोला-गोली, खवास-चाकर उपि थत नह आ। वे ज़ोर-ज़ोर से गािलयां बकने
लगे, उनके मुँह से फे न िनकलने लगा। ब त देर बाद एक दासी हाथ बाँधे आकर खड़ी
ई। राजा उसे देखते ही च क पड़े। उ ह ने तलवार का हाथ ऊँचा करके कहा, ‘‘तू य
आई, बोल?’’
‘‘म अ दाता क सेवा म हािजर ।ँ ’’
‘‘कै सी सेवा?’’
‘‘जैसी ज़ूर क मज़ ।’’
‘‘और सब चाकर-गुलाम कहाँ गए?’’
‘‘सब भाग गए महाराज।’’
‘‘ य भाग गए?’’
‘‘सारा पाटन ही भाग रहा है, अ दाता। नगर म भगदड़ मची है।’’
‘‘महाराज यह सुनकर एकदम ग ी पर िगर गए। उ ह ने कहा, ‘‘पाटन भाग
रहा है और मुझे खबर ही नह ।’’
दासी ने जवाब नह दया। नीचा िसर कए खड़ी रही।
राजा ने कहा, ‘‘बोलती य नह , बोल,’’ फर राजा ने गु से म भरकर कहा,
‘‘म समझ गया। तुम सब अपने राजा को मार डालना चाहते हो।’’
‘‘अ दाता, म तो बचपन से ही ज़ूर क िखदमत म ,ँ महाराज ने तो सदा ही
मुझपर िव ास कया है।’’
‘‘पर अब...’’ महाराज ने दासी क ओर देखा।
दासी ने िनकट आकर महाराज क मसनद ठीक क । फर हाथ बाँधकर कहा,
‘‘अ दाता, बाहर म ी र िवमलदेव शाह ड् यौ ढ़य पर हािज़र ह, वे ज़ूर को सब
बात बता सकते ह।’’
‘‘तो िवमल को यहाँ ले आ।’’
िवमलदेव शाह राजा के िनकट आ खड़े ए। राजा ने पुछा, ‘‘िवमल, यह सब
या हो रहा है? सुनता ,ँ पाटन के सब नगर-जन घरबार छोड़कर भाग रहे ह।’’
‘‘महाराज ने स य ही सुना है।’’
‘‘पर तु य ?’’
‘‘गज़नी का ले छ गुजरात पर रहा है महाराज।’’
‘‘तो बालुकाराय या कर रहा है, उसने उसे मारकर भगाया नह ?’’
‘‘नह महाराज।’’
‘‘ य नह ?’’
‘‘ ले छ क सेना अपार है। पाटन म सेना नह है, सेना के पास श नह है।’’
‘‘ य नह ह िवमल?’’
“राजकोष का सब धन महाराज ने धवल-गृह और सरोवर के िनमाण म खच
कर दया है।’’
‘‘अरे , क तु जा क र ा कै से होगी?’’
‘‘नह होगी महाराज।’’
‘‘यह कै सी बात?’’
‘‘यह बात जा जानती है। परम-परमे र गुजरािधपित महाराज चामु डराय
अपनी जा क र ा करने म असमथ ह, इसी से वह भाग रही है।’’
‘‘ब त खराब बात है...अब या होगा?’’
‘‘पहले पाटन का और फर सोमनाथ का िव वंस होगा।’’
‘‘नह , नह रे िवमल, ऐसा नह होना चािहए, तू नह जानता क
अनिह लप न पि मी भारत का मुख है और भगवान् सोमनाथ सोलं कय के कु ल-
देवता ह।’’
‘‘जानता ँ महाराज।’’
‘‘तो फर?’’
‘‘तो फर महाराज, उठाइए तलवार घोघाबापा रण म जैसे जूझ गए, महाराज
धमगजदेव जैसे कट मरे , उसी कार रण म एक-दो हाथ मार-मूरकर आप भी वीरगित
ा क िजए। पीछे पाटन का जो हो सो हो।’’
राजा भय और आतंक से पीला पड़ गया। उसे जीवन का ब त मोह था। उसने
म ी क ओर भीत मु ा से देखा। म ी अिवचल भाव से खड़ा था। राजा ने भराए वर
म कहा, ‘‘िवमल, पाटन क लाज रख।’’
‘‘ कस कार महाराज।’’
‘‘जैसे तू ठीक समझे। मेरी ओर से तुझे छू ट है, समझा!’’
‘‘ब त अ छा महाराज, तो आप तैयार हो जाइए।’’
‘‘ कसिलए?’’
‘‘शु ल तीथ पधारने के िलए। वहाँ महाराज िवराज कर शाि त से परलोक
िच तन कर।’’
‘‘और पाटन?’’
‘‘अब रा य क खटपट म पड़ने का महाराज का काम नह । उसक समुिचत
व था हो जाएगी।’’
‘‘तो िवमल, तू मुझे ग ी से उतारता है?’’
‘‘महाराज को ग ी पर िवराजने म ब त क उठाना पड़ रहा है।’’
‘‘और जो म ग ी नह छोडू ?ँ ’’
‘‘तो और अ छा है। उठाइए तलवार।’’
‘‘तलवार?’’
‘‘हाँ महाराज, य द आप कसी ले छ क तलवार का भोग होना ही चाहते ह
तो फर जैसी महाराज क इ छा!’’
राजा क आँख से झरझर आँसू झरने लगे। उसने कहा, ‘‘अरे िवमल, यह या
मेरा तलवार उठाने का काल है?’’
‘‘नह है महाराज, इसी से मने िनवेदन कया क अब महाराज शु ल तीथ
पधार।’’
‘‘वहाँ या है?’’
‘‘देव थान ह, राय थली है, सुपणा नदी है, वन-िवहंगम है, शीतल-म द पवन
है।’’
‘‘और गज़नी का यह दै य?’’
‘‘वहाँ न जाने पाएगा महाराज।’’
‘‘और य द जाए तो?’’
‘‘िवमल के जीते-जी नह महाराज।’’
‘‘यह...यह या यथे है?’’
‘‘एक भी गुजर जब तक जीिवत है, तब तक नह ।’’
‘‘हाँ, अब ठीक है। क तु ये ह यारे , जो अपने राजा को िवष देकर मार डालना
चाहते ह?’’
‘‘सब द ड पाएँगे महाराज, वहाँ उनका कु छ भय नह है।’’
‘‘तो तू जान िवमल।’’
‘‘महाराज िनि त रह।’’
‘‘अ छा, तो तैयारी कर।’’
‘‘महाराज का गजराज ार पर उपि थत है। रनवास रवाना हो चुका है।
सेवक, खवास और सब िव ासी जन रवाना हो चुके ह महाराज।’’
‘‘तो फर म चला।’’
‘‘राजा काँपता आ ग ी से उठ खड़ा आ। जीवन के पचास वष जहाँ बैठकर
उसने क छ, लाट, झालौर, मारवाड़, थानक और िस ध के छ पित राजा का छ
भंग कया था, उ यनी के मालवराज िजससे सदा प ा करते तथा भयभीत रहते थे।
वही सोलंक गुजर र चामु डराय आज थर-थर काँपता आ, बुढ़ापे म धुंधली आँख से
अिवरल अ ुधारा बहाता आ ग ी से नीचे लड़खड़ाते पैर रख रहा था।
वीर के दल-बादल
देखते ही देखते वीर के दल-बादल पाटन म आने लगे। भृगुक छ के द ा
चौलु य, क छ के कमा लाखाणी, क तगढ़ के के सर मकवाणा आ द साम त-भायात
अपनी-अपनी सै य लेकर पाटन म आ जुटे। जूनागढ़ के राव तो पहले ही से जमे थे।
ा रका, बांसवाड़ा और दमन से आबू-पय त छोटे-बड़े सरदार यो ा सैिनक तथा क छ,
लाट, सोरठ, ीमाल, गुजरात और क कण के धम-वीर अपनी-अपनी तलवार धम को
अपण करने आ जुटे। इस समय पाटन म अनोखा दृ य था। एक ओर पाटन के नगर-जन
घर-बार छोड़कर बाहर जा रहे थे, दूसरी ओर देश-देश के यो ा श बांध यु उमंग म

ं ार भरते पाटन आ रहे थे।
अब अिधक समय न करना ठीक न समझ दामोदर महता ने राजगढ़ म
दरबार क घोषणा कर दी। छोटे-बड़े सबने इस दरबार म भाग िलया। दरबार म
सवस मित से व लभदेव को गुजरात के अधी र क पाग बंधाई गई तथा उनके नाम
क शि त गाई गई। रा य के मुख जन को एवं राज-कारबा रय को एवं नगर जन
को दान-मान से स कृ त करके दरबार क औपचा रक कारवाई समा कर डाली गई।
बूढ़े सनक महाराज चामु डराय को कसी ने याद भी नह कया। दरबार क समाि
पर उसी रात गु मं णा-सभा बैठी, िजसम सभी मुख राजपु ष और राज अितिथ
उपि थत ए।
दामोदर महता ने वाता ार भ क । उसने एक बार चार ओर दृि डाली और
कहा, ‘‘आज हमारे स मुख मह वपूण क ठनाइयां ह। हम चार ओर श ु से िघरे ह।
हमारे घर म िछ ह, और एक बल श ु हमारे धम और हमारी सं कृ ित को िव वंस
करने आ प च ँ ा है। पाटन क एक िन ा है, पहले धम और पीछे राज-स ा। अब हम एक
पथ िनधा रत करना है, िजससे राजनीित घ श ु पर और तलवार धम-श ु पर
यु हो। इसी पर हमारी िवजय िनभर है।’’
‘‘िन संदह े ऐसा ही है!’’ भ मांकदेव ने ग भीर मु ा से कहा, ‘‘तो थम मालव
पर िवचार करना चािहए।’’
‘‘उसके स ब ध म आप या कहते ह, देव? आपने वहाँ या देखा?’’
‘‘के वल एक बात, मालव क साम य अपार है और अशि िन सीम।’’
‘‘इसका या अथ है?’’ राव नवधन ने आ य-मु ा से कहा।
भ मांकदेव ने कहा, ‘‘महाराज, पाटन मालव के सामने नग य है। पाटन क
मह ा महाराज मूलराजदेव तक ही सीिमत है। पर तु मालव म पर परा क मह ा है।
महाराज मुंज, उनके िपता, भाई िस धुराज और आज के मालवपित भोजराज इन
सबक अपनी महती िन ा है। मालव म वीर ह, िव ान ह, वीरांगना ह, िवशाल गज-
सै य है।’’
‘‘यह ई अपार साम य; अब िन सीम अशि कै सी है, वह भी किहए।’’
दामोदर ने ग भीर मु ा म कहा।
‘‘कहता ,ँ िव ा, वीर और वारांगना–इन तीन का संगम ही मालव क
िन सीम अशि है। जब भी उसका पतन होगा, इसी ि पुटी के ारा।’’
‘‘यह कै सी बात?’’ राव ने भौह िसकोड़ कर कहा। वह यो ा इस चाण य क
गहरी राजनीित नह समझा।
‘‘महाराज, मालवा म वारांगना का ामु य है। वीर और िव ान, दोन ही
उनके उपासक ह, इसी म मालवराज का पतन है।’’
‘‘और पाटन?’’ भीमदेव ने कया।
‘‘पाटन का तो एक व है, िजसे स ा कया जा सकता है।’’
‘‘पर तु उसके िलए भी तो साम य चािहए।’’
‘‘कु मार, तु हारा गौरव ही पाटन क साम य है। वह अभी तक छ है। अब
उसके कट होने का काल है।’’ भ मांकदेव ने ेह- े रत वर म ये श द कहे और फर
म द मु कान िबखेरते ए उनक ओर देखा। सोरठ का राव यह सुनकर स हो गया।
उसने अपनी तलवार ऊँची करके कहा, ‘‘उसके िलए तो यह तलवार भी है।’’
‘‘ठीक है, तलवार धम-श ु के िलए और के वल राजनीित घ श ु के िलए–
हम यह सू नह भूलना है।’’ महता ने कहा।
‘‘हाँ, हाँ।’’ भ मांकदेव ने म भाव से कहा, ‘‘महता, मालव से तुम िनि त
रहो। मालव पाटन पर दृि नह डालेगा।’’
‘‘सो कै से?’’ राव ने आ य से कहा।
‘‘यह ा ण उसका प ा ब दोब त कर आया है।’’
“बड़ा काम आ देव,पर तु कस कार?” महता ने शंसा क दृि भ मांकदेव
पर डाली। भ मांकदेव ने हँसकर कहा, ‘‘मुझे कु छ अिधक प र म नह करना पड़ा।
मालवराज तो राजधानी म थे ही नह , मेदपाट म थे। मुझे के वल ना टका का आयोजन
करना पड़ा। उसम मालव के सब नामां कत िव ान और सा कार आमि त कए गए।
मुंज क िवधवा महारानी कु सुमावती भी पधार । ना टका म तैलपराज का एक
अिभनय आ उसम तैलपराज ने मालवराज मुंज के िसर काटने का गवपूण दशन
कया। इस पर कु छ पा ने मालव क धषणा क । बस, इतने ही से काम हो गया।’’
महारानी ने ोध म आकर उसी ण कहा, ‘‘ना टका तुर त ब द कर दी जाए,
और मालव क गज-सेना इसी ण तैलप पर चढ़ाई करे । महारानी के वभाव से म
प रिचत था, मने यही आशा कर रखी थी और ऐसी व था कर रखी थी क मालव के
सब पि डतगण और नाग रक इसका अिभन दन कर, सो ऐसा ही आ। अब मालवराज
ने भी अनुमित दे दी। है। मालव गजसै य को, म तैलपराज पर अिभयान करता छोड़
आया ।ँ ’’
सोरठ का राव स ता का हा य हँसा। दामोदर ने संतोष क साँस ली। कु मार
भीमदेव ने कहा, ‘‘अब ना दोल’’
‘‘वहाँ क सूचना थान-पु ष ने मुझे दी है। महाराज धमगजदेव और
सपादल के अत कत पतन से वह िवमूढ़ हो गया है। आमेर के दुलभराय क नीित पर
चलकर उसने अमीर से यु करने का खतरा नह उठाया, इससे उसक सै य-शि तो
वैसी ही है, पर तु अमीर ने ना दोल को भूिमसात् कर दया है। और अब उसे इसी को
बसाने म दस वष लग जायगे। धन भी अपार खच होगा। फर, अभी उसे वापसी म
अमीर का भय है। इसिलए अभी उधर से हम िनि त रह सकते ह।’’ दामोदर महता ने
िववेचना क । महाराज व लभदेव ने कहा–‘‘ले कन आबू च ावती पर तो हम तुर त
ही अिधकार कर लेना चािहए।’’
‘‘िन संदहे , राजा और युवराज राजधानी म नह ह। राजा मालवराज के पास
है, और युवराज ना दोल के राजकु मार के पास। अमीर से वे आ त ह ही। इससे वे
अभी मालवराज और अनिह लराय का साि य छोड़ इधर नह आएंगे। परमार ने हम
न राज व दया है, न सहायता। इसिलए मेरा ताव है क च ावती पर तुर त
अिधकार कर िलया जाए और म ी र वहाँ के द डनायक होकर जाएँ।’’
‘‘पर तु िवमल के िबना हमारा दािहना हाथ ही भँग हो जाएगा।’’ भीमदेव ने
कहा।
‘‘नह महाराज, हमारी दािहनी भुजा तो च ावती ही है, िबना म ी र के
वहाँ गए िन तार नह है।’’ महता ने बल देकर कहा।
‘‘ या अमीर से वह लोहा लेना होगा?’’ राव ने पूछा।
‘‘न, अमीर को छेड़ने का कोई काम नह है। म ी र परमार क सि ध क
आन रख उसे चला आने द। अमीर ऐसी अव था म है क इस भीतरी प रवतन पर
उसका यान न जाएगा। दुलभराय ने अरावली क उप यका म अमीर को दुगम घा टय
म फं सा रखा है, अब तक क िमली सूचना के आधार पर वह गहरी िवपि म दुगम
वन म फँ सा है।’’ महता ने जवाब दया।
इसपर महाराज व लभदेव ने कहा, ‘‘ क तु वहाँ उसक समाि तो होगी नह ।
हम ढीला नह पड़ना चािहए।’’
‘‘यह तो है ही। इसी से मने कहा। म ी र आबू म बैठकर परमार और अमीर
दोन पर गृ दृि रख। या जाने, अमीर क वापसी पर च ावती म ही िनणायक यु
हो।’’ दामोदर ने ग भीरता से कहा।
‘‘यह ब त स भव है, यह तो ठीक ही कहा है।’’ भ मांकदेव ने समथन कया।
दामोदर के ताव का सबने समभन कया। िवमलशाह का आबू जाना िनि त
हो गया।
‘‘अब िस धुपित मकदेव?’’ महाराज व लभदेव ने कहा।
‘‘तुमने कहा था महता, वह तो सीधी तलवार से बात करना है, है न?’’
भीमदेव ने कहा।
‘‘हाँ, महाराज।’’
‘‘तो उसपर मेरी यह तलवार है,’’ क तनगर के के सर मकवाणा ने जोश म
आकर कहा, ‘‘गज़नी के दै य के आने से पहले ही म मकदेव क तलवार दो टू क करके
सोमनाथ प न म आपक सेवा म आ उपि थत होऊँगा।’’
जूनागढ़ के राव ने क ं ृ ित क , ‘‘अब ठीक आ।’’ दामोदर ने संतोष क साँस
ली–‘‘अब पाटन।’’
‘‘पाटन और उसक राजनीित को मेरे ऊपर छोिड़ए। म वचन देता ,ँ पाटन
क एक ट क भी ित नह होगी, एक द म भी खच नह होगा, एक मनु य क भी
ाण-हािन नह होगी। मुझे के वल भ मांक को दे दीिजए। अब तक चुप बैठे महासंिध-
वै िहक च ड शमा ने ि थर वर से कहा। महता ने कहा, ‘‘म भी आप ही के साथ ।ँ
‘‘न, तुम परछा क भाँित कु मार भीमदेव के साथ रहो। और कु मार को
भासप न क सि मिलत धम-सै य का सेनापित िनयत करो। उनका र ण और नीित-
संतुलन महता, तु ह करना है।’’ च डशमा ने कहा।
‘‘ऐसा ही हो, अब म या क ं ?’’ महाराज व लभदेव ने कहा।
‘‘महाराज, आप छ प से राधनपुर म िवरािजए। आपक सुर ा क म
व था क ं गा।’’
‘‘ या पाटन के स ब ध म और कु छ िवचार यहाँ होगा?’’
‘‘नह ।’’ च ड शमा ने सं ेप म कहा।
‘‘तो उन राजब दी और अपरािधय क बात ही रह गई, राजवध क चे ा और
राजिव ोह के दो भारी-भारी अिभयोग इनपर ह।’’
‘‘महारानी दुलभदेवी को ब दी करके दामोदर कसी गु थान पर भेज द,
अ य अपरािधय को ाण-द ड दे दया जाए। कु मार दुलभदेव के स ब ध म फर
िनणय होगा। अभी उ ह मेरी िनगरानी म छोड़ दया जाए।’’ च ड शमा ने कहा।
‘‘ या राह, घाट, पुल सब न कर दए जाएँ? अमीर का अवरोध कै से कया
जाएगा?’’
‘‘यह सब पाटन क राजनीित पर छोिड़ए। म समुिचत व था कर लूँगा।
कु मार समूची सि मिलत सै य लेकर कल भोर ही म कू च कर द। अमीर का िवरोध-
अवरोध जो होना है, भास म ही हो। महाराज व लभदेव भी इसी ण पधार जाएँ,
और म ी र िवमलदेव भी। समूची सुरि त सै य वे साथ ले जाएँ।’’ च ड शमा ने दृढ़
िव ास के साथ कहा।
‘‘और पाटन?’’
‘‘पाटन क र ा के िलए पचास सैिनक यथे ह। नाग रक का िन कासन अब
ब द कर दया जाए। यातायात के सारे साधन पर इसी ण कु मार भीमदेव अिधकार
कर ल। पाटन से भास तक समूचे माग पर सैिनक िनय ण कायम कर िलया जाए।
एक हर दन चढ़े बाद पाटन पर मेरी स ा थािपत होगी। उस समय मेरे पचास
सैिनक के अित र और सब कोई पाटन छोड़ द।’’ च ड शमा ने ि थर वर म कहा।
च ड शमा क बात कसी ने नह काटी। दामोदर ने कहा, ‘‘अब सब-कु छ
िनणय हो गया। सभा भंग हो।’’
एक हर रात रहते सभा भंग ई। पर तु इन राजपु ष म से िव ाम कसी ने
नह कया। सभी अपनी-अपनी योजना म जुट गए। सूय दय से थम ही पाटन म कू च
का नगाड़ा बज उठा।
ा ण क कू टनीित
सूय दय होते-होते तो सारा पाटन ही सूना हो गया। िजन गली और राजमाग
पर सैिनक , घोड़ , हािथय का जमघट जमा रहता था, वे सब सूने हो गए। िजन हाट-
बाज़ार म भाँित-भाँित का य-िव य होता था, वहाँ स ाटा छा गया। दरबार गढ़ क
सारी चहल-पहल ख म हो गई। के वल पाँच सैिनक दरबार गढ़ क ड् यो ढ़य म बैठे और
दो-चार भीतर-बाहर आते-जाते दीख पड़ते थे। घर के ार ब द, दूकान के ार ब द,
देवालय के पट ब द और िव ालय के ार ब द। पनघट सूने, ताल-सरोवर-नदी-कू प-
बावड़ी सब सूने। जैसे आज सूय थ ही पाटन पर काश बखेर रहा था, वायु थ ही
चल रही थी। इस कार आज पाटन जीिवत मशान हो रहा था।
च ड शमा ने नगर म ड् योढ़ी फरवा दी–कोई जन नगर से बाहर न जाए। नगर
के फाटक ब द करा दए गए और अपने आदेश और कू टनीित का भाव देखने वह वयं
घोड़े पर सवार होकर नगर म िनकले। उनके अके ले अ क टाप क आवाज़ उ ही के
कान म आघात करने लगी।
दोपहर दन चढ़े दोन ा ण क म णा-सभा बैठी। म णा-सभा म कु ल
जमा दो ही आदमी थे। च ड शमा और भ मांकदेव। भ मांकदेव ने कहा, ‘‘यहाँ तक तो
आ अब?’’
‘‘अब यह, क आप इसी ण िस पुर चले जाइए और दुलभदेव के स मुख
भली-भाँित रोना गाना करके किहए क राजा, जा, सेठ, सा कार सब कोई पाटन को
सूना छोड़कर भाग गए ह, बाणबली भीमदेव सोमनाथ म अमीर से यु करने सारी
सेना ले गए ह। सारा राजकोष राजा ले गए ह। पाटन अरि त है–आप धीर-वीर,
तापी, धमा मा और सब भाँित यो य पु ष ह, जैसे स भव हो, पाटन क र ा क िजए।
जो नगर-जन वहाँ ह उ ह अभय दीिजए। आप देश के राजा ह राजधम पािलए। जा के
जान-माल क र ा क िजए–इस कार क बात आप किहए, पर तु चे ा ऐसी क िजए
क वह न तो पाटन आए, न अपनी सेना लाए। उसक समूची ही सै य-शि को हम
समय-कु समय के िलए सुरि त और अ ु ण रखना है। कदािचत् अमीर से िनणायक यु
आबू म ही करने का अवसर आए, तो यही सै य हमारे पृ का बल होगी, यह हम न
भूलना चािहए। आप ऐसा क िजए क वह अमीर को ठ डा करके पाटन ले आए और
अमीर पाटन क िबना कोई हािन कए आगे को सरक जाए। इतना हो क बस। फर
वापसी म दैव-िवपाक से वह बच आया भी–तो हम उसे समझ लगे। य द आप ही दुलभ
के ितिनिध बनकर अमीर से िमल ल और पाटन म हम अमीर का वागत कर और
पाटन क तिनक भी ित िबना कए उसे भास क राह पर धके ल द, तो और भी
अ छा है।...
‘समय ब त कम है और काम अिधक है। इसिलए देव, आप अभी, इसी ण
िस पुर क ओर कू च कर जाएँ, म गु राजकोष आ द क सुर ा- व था करके
नाग रक क सहायता से तब तक अमीर के वागत क तैया रयाँ कर रखूँगा।’’ देव
सहमत ए तथा आव यक परामश कर त ण िस पुर क ओर कू च कर गए।
अब च ड शमा ने नगर के अविश नाग रक के मुख को दरबार गढ़ म
बुलाया और उनसे कहा, ‘‘भाइयो, यह भारी िवप काल आया है, ऐसा करो िजससे साँप
मरे , लाठी न टू टे। राजा सब राजकोष और सेना लेकर भाग गया है। हमारे पास न लड़ने
के श ह, न िसपाही। हम कसी भाँित गज़नी के सुलतान का मुकाबला कर ही नह
सकते। इसिलए मेरी राय तो यह है क हम लोग चलकर अमीर क खाितर-खुशामद
करके कसी तरह उससे यह आ ासन ले ल क पाटन पर वह आ मण न करे , सीधी
राह सोमनाथ चला जाए। हम उसका कोई िवरोध नह करते। सोमनाथप न म उसका
जो हो सो हो।’’
कु छ लोग ने इसका िवरोध कया। कहा, ‘‘ऐसे कायर ताव से तो मर िमटना
ही अ छा है, ऐसा हम करगे तो पाटन क ित ा कहाँ रहेगी?’’ पर तु च ड शमा ने
कहा, ‘‘भाइय , जान-बूझकर अपना स यानाश करना बुि मानी क बात नह है।
अमीर तु हारे घर-बार लूट-लाटकर, तु हारी ब -बे टय क आब धूल म िमलाकर,
पाटन को राख का ढेर बनाकर आगे जाए, वह अ छा, या वह बाहर-ही-बाहर िखसक
जाए, यह अ छा है? आिखर बाणबली भीमदेव उसके दाँत तोड़ने को भास म बैठे ही
ह। यह तो एक राजनीित क बात है, इसम कायरता या है। के वल न होने के िलए
साहस करना तो आ मघात कहाता है, और आ मघात सदैव ही पाप है।’’
अछता-पछताकर पाटन के नाग रक ने च ड शमा क युि को वीकार
कया। और तब च ड शमा ने उ ह समझा-बुझाकर तथा शा त कर िवदा कया। इसके
बाद वे अपनी योजना-पू त क सब गोपनीय व था करने लगे।
श ु िनमं ण
जैसा सोचा था वही आ। दुलभदेव इस ा ण क राजनीित को न समझ
सका। भ मांकदेव जनेऊ-ना रयल राजकु मार को अपण करके अधोमुख हो बैठे रहे।
राजकु मार ने ही वातालाप शु कया।
‘‘किहए देव जी, पाटन म कु शल तो है।’’
‘‘अब कु शल कहाँ महाराज, यश वी मूलदेव राज का संिचत पु य य हो गया,
पाटन आज मशान हो गया। महाराज गुजरे र और उनके खुशाम दये राजधानी छोड़
न जाने कहाँ भाग गए। बाणबली भीमदेव अपने नए र के आवेश म अमीर से दो-दो
हाथ करने भास म जा बैठे ह, नगरिनवासी अपनी जान-माल को लेकर जहाँ िजसका
स ग समाता है, भाग रहे ह। पाटन को महाराज, अब आपका ही आसरा है।’’
‘‘और राजकोष?”
“राजकोष म एक फू टी कौड़ी भी नह , महाराज ने सब धवलगृह और सरोवर
बनवाने तथा भांड़-भंड़त े म खच कर दी।’’
‘‘और सेना?’’
‘‘सेना पाटन म कहाँ है, कु छ िबगड़े- दल अव य भीमदेव के साथ गए ह, शेष
सब हल जोत रहे ह। उ ह न वेतन, न श , न उनके पास अ , न उनका कोई नायक।’’
‘‘और बालुकाराय?’’
‘‘बालुकाराय या और दामोदर महता या–सब बाणबली के गीत गाते ह।
सुना है, वे सब भी उ ह के साथ ह।’’
‘‘आपको कसने मेरे पास भेजा है?’’
‘‘नगरजन ने, उनके घर- ार अरि त ह। मने बड़ी ही क ठनाई से उ ह रोका
है। अब सबक आशा-दृि आप ही पर है।’’
‘‘म या कर सकता ,ँ यह तो राजा का काम है।’’
‘‘अब आप ही हमारे राजा ह महाराजािधराज।’’
‘‘और व लभ?’’
‘‘उनका तो कह पता ही नह है, सुना है, वे साधु होकर म थली म
रणाथ मी माता के थान पर तपने चले गए ह।’’
‘‘तो य कहो, गुजरात का कोई धनी-धोरी ही नह है।’’
‘‘ऐसा म कै से क ,ँ जब क अभी चालु य कु लकमल दवाकर महाराज
महामाहे र ी दुलभदेव क अजेय तलवार उपि थत है?’’
‘‘देव, मुझे खटपट म न डािलए, पाटन जाने और अमीर।’’
‘‘वाह, यह कै सी बात महाराज, पाटन गया तो िस पुर कहाँ रहेगा? कु छ तो
सोिचए!’’
‘‘तो आप मुझे या करने को कहते ह?’’
‘‘म कु छ नह कहता, पाटन के नाग रक कहते ह।’’
‘‘वे या कहते ह?’’
‘‘वे कहते ह, हमारे महाराज दुलभदेव ह, वे हमारी र ा कर, हम उनक धन-
जन से सहायता करगे।’’
‘‘ या पाटन के से ठया मुझे द म दगे?’’
‘‘अ दाता, उनका धन ही नह , जीवन भी आपका है, जब आप उनक र ा के
िलए ाण योछावर करगे, तो वे आपको धन य नह दगे?’’ इसके बाद उसने
अिभ ायपूण दृि से इस ढ गी और लालची राजकु मार के कान के पास मुँह ले जाकर
कहा, ‘‘गु राजकोष कहाँ है, यह म जानता ।ँ ’’
दुलभ बड़ी देर तक सोचते रहे। फर बोले, ‘‘तो या आप मुझे अमीर के सामने
पड़ने को कहते ह?’’
‘‘नह महाराज, इससे या लाभ? हम घोघाबापा और धमगजदेव का
अनुसरण नह करना है।’’
‘‘तो फर?’’
‘‘बस, साँप तो मरे , कं तु लाठी न टू टे।’’
‘‘ क तु कै से?’’
‘‘अमीर हमारे रा य को तो लूटना चाहता नह । न यहाँ का राजा ही बनना
चाहता है। वह जाना चाहता है सोमनाथप न। सो जाए। वहाँ कु मार भीमदेव का लोहा
खाकर वह खेत रहा तो जय गंगा। वापस आया तो सीधा अपनी राह लेगा। इस समय
हम लड़ते ह तो उसका बल ब त है। सोमनाथ से लौटने पर, जय पाकर भी वह िवशाल
सेना का मुकाबला नह कर सके गा। इसके अित र भीमदेव भी वहाँ लोहा लेकर ज द
नह पनपगे। इससे अमीर का यह आगमन आपके िलए वरदान है। इस सुयोग से लाभ
उठाइए महाराज, पाटन ने आपका आ वान कया है!’’
दुलभदेव सोच म पड़ गए। मन क बात कै से कह, यही सोचने लगे। उनके मन
क बात ताड़कर भ मांक ने कहा, ‘ या अमीर ने अभी तक आपके पास स देशा नह
भेजा? वह तो अब सुना है, आबू क उप यका म पड़ा आ है।’’
“अमीर का स देश मुझे िमला है।अमीर के सामने पड़ना म भी नह चाहता
।ँ ’’
‘‘बस, बस, वह पाटन और िस पुर क सलामती का वचन दे, तो इतना ही
बस है।’’
‘‘अ छा तो देव, आप ही अमीर के पास मेरे दूत बनकर जाएँ।’’
‘‘अ छा, किहए, या कहना होगा?’’
‘‘अब यह भी आप ही बताइए क उससे हम या कहना चािहए।’’ भ मांक
हँस दए। उ ह ने कहा, ‘‘महाराज, ‘वचने का द र ता’ यह नीित का वा य है।
राजनीित भी कहती है क मन म चाहे जो हो, पर वाणी तो मीठी ही रहे। िवशेषकर
श ु के स मुख, तो उसके अनुकूल बोलना ही ठीक है।’’
‘‘तो समय पर जैसा सूझे, वही किहए। म पाटन का िनम ण वीकार करता
।ँ पर तु आप ही को धानम ी बनना होगा।’’
‘‘नह महाराज, इस काय के िलए यो य पु ष को मने पाटन म ही रोक रखा
है।’’
‘‘वह कौन?’’
‘‘च ड शमा।’’
‘‘वह तो दामोदर के गुट का आदमी है।’’
‘‘कभी था। अब तो वह आपका अनुगत है, मेरी स मित है क आप वयं चाहे
पाटन म अभी न जाएँ, अपनी आन फे र द! म नह चाहता क लोग यह कह क आप ही
डर कर अमीर को पाटन म ले आए ह। इसक बदनामी को तो हम अपने िसर ले लगे।
ा ण ,ँ सो पाप नह लगेगा।’’ भ मांक हँस दए। दुलभदेव भी हँस।े
‘‘अ छी बात है, तो आप अमीर से िमिलए। म प और मु ा देता ।ँ ’’
भ मांकदेव दुलभ का िव ास-प और मु ा लेकर आबू क उप यका म अमीर
क छावनी म जा प च ँ ।े अमीर ने खूब ठसक से इस ा ण का वागत कया। उसके
िलए गुजरात क भूिम म बराबर सुयोग िमलते जा रहे थे। अमीर ने कहा, ‘‘हमारे दो त
गुजरात के महाराज दुलभदेव अमीर से या चाहते ह?’’
‘‘नामदार अमीर हमारे महाराज के ऐसे ही दो त हमेशा बने रह, यही उनक
इ छा है।’’
‘‘यक नन, हम गुजरात के महाराज के दो त ह।’’
‘‘तो महाराज चाहते ह क िस पुर और पाटन को कोई नुकसान न प च ँ ाया
जाए। महाराज क आ ा से हम पाटन म अमीर का शाही वागत करगे। अब अमीर
नामदार भी पाटन क रयाया को अपनी रयाआ समझ कर उसक जान-माल क
सलामती का वचन द।’’
‘‘अ ह दुिल लाह, ऐसा ही होगा।’’
‘‘हमारे महाराज, यह भी चाहते ह क महाराज के साथ अमीर नामदार के जो
कौल-करार ए ह, वे अभी पोशीदा ही रह। िजससे रयाया बदगुमान न हो। फर
भास क वापसी म अमीर खुले दरबार म हमारे महाराज को गुजरात का राजा
वीकार कर ल।’’
‘‘हमको मंजूर है।’’
‘‘तो जहांपनाह, क बल जैसे-जैसे भीगता है, भारी होता है।’’
‘‘यह या महाराज क बात है?’’
‘‘नह , इस ा ण क ।’’
अमीर ने हँसकर कहा, ‘‘आप हमारे बुजुग ह, आपक बात क हम क करते ह
और समझ गए ह।’’
इसके बाद अमीर ने खूब भारी भट देकर भ मांकदेव को िवदा कया। सब तरह
कृ तकृ य होकर भ मांकदेव पाटन लौटे।
गुजरात क राजधानी म
अमीर भ मांकदेव का संकेत समझ गया। उसने तुर त छावनी तोड़ दी और
गुजरात क श य- यामला भूिम को उजाड़ता, राह-बाट के गाँव को लूटता, जलाता
और िनरीह ी-पु ष को तलवार के घाट उतारता, झपाटे ब द अनिह ल प न क
पौर पर जा खड़ा आ। िस पुर को उसने बगल म छोड़ दया, आबू-च ावती से भी
कतरा गया। दुलभ देव ने उसके माग म बाधा नह दी। और िवमल देव शाह भी जैसे
कान म तेल डालकर सो गए। दुलभदेव क तैया रय से भयभीत पड़ा आ अमीर आगे
बढ़ने म िहचक रहा था। वह उसक तैया रय से आ ासन पाने पर भी भयभीत हो रहा
था। अब जैसे भ मांकदेव ने उसके दल का काँटा ही िनकाल दया, दुलभदेव क
अयािचत मै ी और पाटन का िन वरोध समपण उसके िलए दैवी वरदान बन गए। अब
उसने एक ण भी खोना घातक समझा और वह ताबड़तोड़ कू च-दर-कू च करता चला
गया।
अमीर क अवाई सुनकर पाटन के तथाकिथत थानेदार च ड शमा नगर के
अविश जन का एक ितिनिध-म डल बनाकर अमीर क सेवा म प च ँ ।े और अ यंत
अधीनताई जताकर कहा, ‘‘पाटन म आपका अवरोध करने वाला एक भी पु ष नह है,
इसिलए आप नामदार से हमारी यह अज दाशत है क हम अपन अनुगत जा समझकर
हमारी जान-माल क र ा कर। नगर म लूटमार न हो। हम सब नगर-िनवासी आपक
शरण ह।’’
सुलतान यह सुनकर स हो गया। वा तव म गुजरात क जगत िस यह
समृ राजधानी इस कार िन वरोध िबना यास उसके हाथ लग जाएगी, इसक
उसने क पना भी नह क थी। उसे सब-कु छ व वत् भान हो रहा था। वह नह चाहता
था क सोमनाथ प न प च ँ ने से पहले उसके एक भी यो ा, एक भी घोड़े क ित
प चँ ।े यह उसका दुधष भाव, रण–चातुय तथा असीम धैय ही था क वह ना दोल वन
के िवनाश को सहकर भी अपनी सेना को सुग ठत कर सका। फर भी वह अपनी उस
ित को जानता था, और अब उसे अपनी िवजय म घोर स देह था। इस समय य द
अके ला दुलभदेव ही िस पुर म उसक राह रोक लेता, या िवमलदेव शाह और भीमदेव
क संयु सेना अबुदिग र म ही उससे मोचा लेती तो अमीर का िन तार नह था। उसे
गुजरात क ओर एक कदम उठाना मौत के मुँह म िव होना जान पड़ रहा था। इन
सब कारण से–इन सब अनागत भय से मु होने से अमीर के आन द का पार न रहा।
उसने नाग रक क अज़दा त वीकार क और खड़ी रकाब पाटन म वेश कर दरबार
गढ़ दखल कर अपने नाम का डंका बजवा दया। फर शु ाने क नमाज पढ़ी। अपने
नाम का अमल नगर म फे रकर नगर-िनवािसय को अभयदान दया। और उ ह तथा
सेना को तीन दन ज मनाने का म दया।
नगर-िनवािसय को मन क गहरी उदासी मन म िछपाकर, घर म रोशनी
करनी पड़ी। अमीर के दरबार म हाजरी बजाकर भेट-नज़र देनी पड़ी। अमीर ने य िप
नगर को न लूटने क आ ा दे दी थी, पर िवजयो म पठान और तुक िसपाही जहाँ जो
व तु पाते, उठाकर ले जाते। उ ह रोकने, या उनसे दाम मांगने का साहस नगर-जन नह
कर सकते थे। सैिनक यह सुयोग पाकर ना दोल वन के सवनाश क यथास भव ित-
पू त कर चाक-चौब द होने लगे।
पर तु अमीर को ज मनाने का अवकाश न था। वह अ य त त हो अपने
जीवन क सबसे बड़ी मुिहम का सामना करने क तैयारी कर रहा था। उसका अद य
उ साह, असीम साहस और रणपाि ड य भी उसके मन से भय, शंका और दुिवधा को दूर
नह कर सके थे। उसने बार-बार अपने सरदार और सेनापितय से गूढ़ परामश कए।
क छ और भास के चार ओर फै ले ए अपने जासूस को गु आदेश भेजे। सब बात
पर िवचार करके उसने इस समय अपने सैिनक और ितिनिध पाटन म छोड़ना िनरथक
समझा। उसक सारी ही सफलता अब सोमनाथ प न क िवजय पर िनभर थी।
सोमनाथ क िवजय से समूचे गुजरात पर उसी क िवजय थी। पाटन भी उसी के
चरणतल म था। उसे सूचना िमल गई थी क भास म सारे क छ, गुजरात,
का ठयावाड़ क तलवार उसके वागत के िलए तैयार ह। इसिलए वह अब इधर-उधर
देख ही न सकता था। उसने एक ही ठान ठानी–पहले भास और पीछे और कु छ। उसने
पाटन म और समय थ खोना ठीक नह समझा। उसे जो कु छ उपयोगी भट पाटन म
िमली, उसे ले, च ड शमा को ही अपना ितिनिध बनाकर और उ ह ही नगर स प–
उसने तीसरे ही दन सूय दय से पूव सोमनाथ प न क ओर सवारी बढ़ाई। पाटन म
एक भी ले छ नह रहा।
च ड शमा और भ मांकदेव ने संतोष क साँस ली। अब वे इस दुधष श ु का
वापसी म स कार करने और नगर क क ठन-से-क ठन समय म र ा करने के सब
स भव य करने म जुट गए। उ ह ने िवमलदेव शाह और दुलभदेव से अपने स ब ध
कायम कए। नगर के येक घर को इस भाँित स कया क आव यकता होने पर
येक घर एक दुग का प धारण कर ले। इस कार दुधारी मीठी तलवार क
राजनीित पर दोन ा ण अपनी योजना के ताने-बाने बुनने लगे।
पाटन म इस समय कु ल तीन हज़ार पु ष और के वल पाँच सौ ि यां शेष थ ।
इन सबको च ड शमा ने सैिनक प म संग ठत कर दया। आव यकता पड़ने पर येक
को, श ु से मोचा कस भाँित लेना पड़ेगा–यह सब उ ह समझाया। घरे लू पदाथ को
यु -साधन कै से बनाया जाए यह बताया। योजना बनाकर वि थत प से पीछे
हटना और आगे बढ़ना िसखाया। उनके हौसले बढ़ाए और भय, िनराशा के भाव उनके
मन से दूर कए।महाराज व लभदेव और िवमलदेव शाह से यातायात-साधन तथा
समाचार-वाहन स बि धत रह, ऐसी व था क । दुलभदेव क एक-एक, गितिविध पर
दृि रखी। वे येक बात क मनचाही सूचना दुलभदेव को देत,े उ ह अपना राजा
समझने का अिभनय करते और उनके आदेश को मनमानी रीित पर पूरा करते।
दुलभदेव अब अपने को सोलह आना गुजरात का राजा समझने लगे थे। वह
छ प से एक-दो बार पाटन भी आ चुके थे। च ड शमा क व था से वे संतु थे।
उन पर उ ह तिनक भी स देह नह था। च ड शमा क वह सीख– क जब तक अमीर
खु लमखु ला उ ह गुजरात का राजा घोिषत न करे –वे चुप ही बैठे रह, उ ह ने मान ली
थी।
महाराज व लभदेव भी उसी भाँित पाटन म छ भाव से समय-समय पर
आकर इस कु टल ा ण से परामश कर जाते थे तथा राजकोष क गु सहायता ले
जाते थे। इस कार पाटन म अमीर क वापसी के वागत क तैया रयाँ हो रही थ । यह
नह कहा जा सकता था क पाटन अमीर का वागत करे गा या भीमदेव अथवा
दुलभदेव का। सब-कु छ सोमनाथ प न के प रणाम पर ही िनभर था।
कमा यमतः परम्
िजस समय गज़नी का यह आततायी, उ र भारत को इस कार र दता आ,
नगर-जनपद सबको आग क भट करता आ–सोमनाथ पाटन को भूिमसात् करने बढ़ा
चला जा रहा था, उस समय दि ण का चोल राजा छह लाख अ का अिधपित था।
पर तु उसने आँख उठाकर भी इस आततायी क ओर नह देखा। वह बमा और बंगाल
को जीतने ही म लगा रहा। य िप राजा जयपाल क सहायता, द ली, अजमेर,
का लंजर और क ौज के राजा ने क थी, पर फर भी उनक पराजय ही ई। महमूद
के ये आ मण तो भारत के िलए भावी खतरे क एक िव ि थे। महमूद से परािजत
होना उतना िन दनीय नह था, िजतना उसके िनबल और परािजत उ रािधका रय से
रा य को न फे र लेना। सन् 1175 तक पंजाब म महमूद का उ रािधकारी शासन करता
रहा, जब क उसका गज़नी का सा ा य इससे ब त पहले ही व त कर दया गया था।
िसक दर ने भी पंजाब को आ ांत कया था, पर उस समय भारत छह साल ही म
वत हो गया था। यह चाण य और च गु जैसे महापु ष का चम कार था। अ त
म वह खतरा भारत पर व क भाँित टू ट पड़ा। अमीर महमूद के बाद शहाबु ीन ने
भारत पर करारे आघात कए। और अ ततः उ र भारत के िह दू रा य क लाश पर
मुि लम सा ा य क थापना होकर रही। इससे देश म जो राजनीितक और सामािजक
अि थरता उ प ई, वह बड़ी ही क कर थी। के वल देश का शासन ही मुसलमान के
हाथ म नह चला गया–सामािजक सं था , धा मक या , आ थक वहार , तथा
कला, ापार, थाप य, िव ान और अ या य रा ीय-जीवन स ब धी बात म भी
उलट-फे र हो गया। िह दु क सैिनक-वृि न कर दी गई। य क उ ह इन मुि लम
िवजेता ने अपने रा य म कोई थान नह दया। अरबी-फारसी क िश ा चिलत
कर दी गई। य िप सारा भारत कभी भी मुि लम स ा के अधीन नह आ, पर तु
सारा देश मुि लम शासन से भािवत अव य हो गया।
मुि लम रा य म िह दू, नाग रकता के अिधकार से वंिचत हो गए और उ ह
सामूिहक प से अधदास के प म रहना पड़ा। िजन बौ क धमपताका नील
महानद पु तक फहरा चुक थी, इ लाम ने उ ह उनक ज मभूिम से एकबारगी ही
िनकाल बाहर कया। ा ण के हाथ से राजनीित, िश ा और याय-शासन छीन िलए
गए। और वे गव ले राजपूत, िज ह ने के स रया बाना पहनकर आतताियय से लोहा
िलया, िजनक बे टयाँ और वधुएँ जौहर क आग म भ म होकर छार हो ग , अपनी
टू टी तलवार फक हल जोतने लगे।
‘नल बावड़ी’ क राह उसने कू च कया। चतुर और िव त पथ दशक उसे
राह दखा रहे थे। कू च करते-करते ही वह सब व था करता जाता था। कसी ने
उसक राह म बाधा न दी। ऋतु सुहावनी थी और माग आरामदेह। चार ओर ह रयाली
फै ली थी। माग म उसे खारे पानी के सरोवर िमले, िजनम भाँित-भाँित के द रयाई प ी
आन द से कलरव कर रहे थे। उ ह इस आततायी के आगमन का कु छ गुमान भी न था।
अमीर और उसके बबर सैिनक के िलए ये सब दृ य नवीन और अपूव थे। उसके गोइ दे,
अ वेषक तथा र क टोिलयाँ चौिगद फै लकर चल रही थ । इस भूिम म खुदरौ (िबना
बोए) वीड पैदा होते ह, िज ह खोद-खोद कर वहाँ के िनवासी लोधी आन द से खा रहे
थे। अमीर ने लोग से पूछा तो उसने जाना, दु काल म हज़ार गरीब जन के ाण क
र ा इसी से होती है। अधन , कृ णवण लोिधय को उसने बड़े कौतूहल से देखा। जंगल
म सुअर के झु ड, मोथे क जड़ अपनी थुथनी से खोद-खोद कर खा रहे थे। यह सब
देखता और चार ओर से चौक ा आ अमीर, झपाटेब द आगे बढ़ा जा रहा था। उसक
आशाएँ ित ण बदलती जा रही थ ।
राजपूत राजा ने य िप गुजरात और गुजरात क राजधानी के र ण का
कोई य नह कया था, पर तु सोमनाथ के र ण के िलए उ ह ने अपनी पूरी साम य
लगा दी थी। अनेक छ धारी राजा, महाराजा, उमराव, राव, यो ा, ठाकु र और
म डले र अपनी-अपनी साम य से सै य ले-लेकर आए थे। सोरठ के छोटे मोटे सरदार,
जम दार तथा आसपास के जापाल, भूपाल और जागीरदार बड़े उ साह से तलवार
बाँधकर भगवान् सोमनाथ के िलए अपना र दान करने आए थे। सह कु ल-वधु ,
गुजरबाला ने अपने वण-र -आभरण उतार कर इस धम-यु म सहायता भेजी थी,
और अपने पित-पु को उ सािहत करके यु - े म भेजा था। नंग धड़ंग, भीमकाय,
उघाड़े पैर भटकने वाले कोली ठाकु र गंड़ासे लेकर आए थे। गुजरात के वन , उप यका
और ाम म रहने वाले भील, मोटे-मोटे चांदी के कड़ से सुशोिभत हाथ म तीर-
कमान लेकर आए थे। सोरठ, गुजरात के पहाड़ी इलाक के क ावर और िनभय काठी
भी उपि थत ए थे। इस कार अपनी ही अ तः ेरणा से गुजरात के एक लाख त ण
अपने-अपने श ले भगवान् सोमनाथ के िलए र दान देने, अपने-अपने दल बनाकर
आए थे।
यह एक मह वपूण बात थी क ये िह दू अपने राजनैितक जीवन म तो
अस ब थे, क तु धा मक और सामािजक जीवन म स ब थे। इसी से िजस मुि लम
शि ने इतनी सरलता से हंद ु क राजशि को धूल म िमला दया, िजसके छू ते ही
िह दू रा य िबखरते चले गए, उसका समूचा बल भी िह दू धम को व त न कर सका।
जब-जब मुसलमान ने िह दु क धम-भावना और सामािजक जीवन पर बलात्
भाव डालना चाहा, तब-तब उ ह अजेय साम य से ट र लेनी पड़ी और इसी का यह
प रणाम आ क मुसलमान से सब कार का असहयोग िह दु म एक धा मक प
धारण कर गया।
राज थान, सोरठ, गुजरात और आसपास के राजा-महाराजा, छ धारी
महीपित, ठाकु र, म डले र जो अपनी-अपनी सै य लेकर इस धमश ु से लोहा लेने
धम े भास म आ-आकर एक हो रहे थे,उनके हािथय ,घोड़ और सैिनक क
धमाचौकड़ी, शोर-गुल तथा श क झनझनाहट से भास धम े मुख रत हो उठा।
भीड़-भाड़ और धूम-धाम इतनी बढ़ गई क िनवास और भोजन क नगर म अ व था
हो गई।
देलवाड़े का माग आने वाले सैिनक तथा रसद के भरे ए सैकड़ छकड़ से पटा
पड़ा था। िजतना अिधक रसद, खा साम ी और श ा जुटाए जा सकते थे,जुटाने
का येक स भव उ ोग कया जा रहा था।युवराज भीमदेव ने अनिह लप न खाली
कराते समय यह व था क थी– क लोग अपना मालमता लेकर तो सुरि त थान म
चले जाएँ, क तु अ -श सब राजधानी ही म छोड़ जाएँ। वह सब अ -भ डार और
श ा च ड शमा ने अमीर के आने से थम ही शी तापूवक भास म भेज दया था।
उधर महाराज व लभदेव अब ख भात प च ँ गए थे और उ ह ने सूिचत कया था क
आठ जहाज भरकर अ वहाँ से जलमाग ारा भास को भेजा जा रहा है।
युवराज भीमदेव बाणबली–अपने कू ट म ी दामोदर महता के साथ, अठारह
हज़ार सि त रणबांकुरे गुजर यो ा को लेकर भास आ प च ँ े थे। उनक अवाई सुन
आबाल-वृ हष म हो उ वर से अपनी-अपनी अटा रय पर चढ़कर गुजर वीर का
आगमन चाव से देखने लगे। आशा और उ साह क एक अभूतपूव उमंग भास म
लहराने लगी।
य ही घोड़ क टाप से उड़ाई ई धूल, नगर-जन को दखाई दी क नगर
और मि दर म ढोल-दमामे बज उठे । मि दर के ऊँचे कं गूर पर चढ़कर लोग ने देखा–
गगन पश धूल के समु म श को चमकाते गुजर यो ा धीर-मंथर गित से आगे बढ़े
आ रहे ह। उनके श सूय क करण म चमक रहे थे।
िनकट आने पर लोग ने देखा–बाणबली का गजराज अपने
सेनापितय ,मि य और शरीर-र क से िघरा आ, छ -चंवर सिहत आगे बढ़ रहा
है। उनक सतेज यामल मुख-छिव और गठीले शरीर तथा तेज वी आँख म जो वीर व
और पौ ष का आभास चमक रहा था, उसे देख हज़ार क ठ एकबारगी ही हषा-
िव वल होकर ‘जय-जय’ िच ला उठे ।
बाणबली का नगर म धूमधाम से वागत आ। नगर-जन ने राजपथ को
वजा-पताका से सजाया। गंग सव ने पुकारकर कहा, ‘‘धम के श ु का संहारक
आ रहा है, उसका सब कोई यथोिचत स कार करे ।’’ सव ने सब धान पौरजन , सेठ-
सा कार , समागत धमािधकारी महीपितया, ठाकु र तथा नेता सिहत नगर- ार पर
बाणबली का स कार कया। उ ह ने अ त, रोली, ग ध एवं माला से वीर क अ यथना
क । य ही बाणबली ने तोरण म वेश कया, वैसे ही डंक क गड़गड़ाहट ने उसका
जय-जयनाद कया। उस ण जैसे भास का धम- े वीररस म डू ब गया–जैसे सा ात्
भगवान् सोमनाथ िशव- प तजकर रौ प म अवि थत हो गए।
अंितम नृ य
उसी दन योित लग का एक सह घड़े गंगाजल से ािभषेक आ। एक
सह घृत के दीप महालय म जलाए गए। एक सह शु माला और िव वप
योित लग को सम पत कए गए। देवाचन के बाद र -म डप म नृ य आ। नृ य के वल
चौला ने ही कया।
पहले ही दन जब चौला ने कु मार भीमदेव को देखा था, तभी वह यार का
घाव खा गई थी। भीमदेव क सलोनी मू त को वह चुपचाप दय म रख यार क पीर
को िछपाती रही। बाणबली आएँगे, इसक वह ित ण ती ा ही कर रही थी। जब
बाणबली क अवाई क धूम मची, तो वह सबक दृि बचाकर ि य के झुरमुट म,
सबसे पीछे खड़ी हो धड़कते दय से, मि दर के कोट के एक कं गूरे पर से ने क यास
बुझा रही थी। उस याम-सलोनी मू त को राज-गज पर देख, उसके शरीर क एक-एक
बूंद नृ य करने लगी।
और अब, जब वह देवता के स मुख नृ य करने आई, तो उसक सुषमा ही कु छ
और थी। उसने आचूड़ शु शृंगार कया था। उस शृंगार म वह शर पू णमा क चांदनी
क ितमू त-सी लग रही थी। उसके क ठ और क ट देश म बड़े-बड़े मोितय क माला
और मेखला थी। म तक पर उ वल हीर से जड़ा मुकुट था, इन सब आभरण म वह
वयं हीरे क किनय क एक दीि वान् रािश-सी लग रही थी। उस दन उसक
स मोिहनी मु ा को देख उपि थत राजा-महाराजा, छ धारी, ठाकु र, सरदार सैिनक
सब कोई म -मु ध से हो गए। कोई ‘वाह’ भी न कह सका।
युवराज भीमदेव क भी ऐसी ही ि थित थी, वे भी थम दशन म ही उसक
मधुर मू त को दय म धारण करके जो ले गए सो आज उसे स मुख देख उ ह ने अपने
ने का फल ा कर िलया। वे ने के ारा जैसे उस शोभा-सुषमा, सुख और शोभा
क अज धारा को पीने लगे। उसी रस-पान म वे आ मिव मृत हो गए।
उ ह होश तब आ जब गंग सव ने नृ य ब द करने का आदेश दया। सव
का आदेश पाते ही चौला नत-वदन देव-व दन कर वह भूिम पर लोट गई। उसने मन-
ही-मन ाथना क –‘‘हे देव, मेरे इस आरा य क र ा करना।’’
इसी ण गंगसव ने जलद ग भीर वर म कहा, ‘‘आज आप सब अि तम बार
भगवान् सोमनाथ का दशन कर लीिजए। अब से जब तक गज़नी के अमीर का आतंक
दूर न हो, देव-पट ब द रहगे। आप दशन न कर सकगे। के वल म देव दास एकमा
देवाचन क ँ गा, आज म इस देवधाम और देवनगर के सब अिधकार गुजर युवराज
भीमदेव को स पता ।ँ आज से नगर और महालय पर उ ह का अबाध शासन चलेगा।
आप सब लोग पूण अनुशासन से इस िवपि -काल म उनके आदेश का पालन करगे।
युवराज भीमदेव को म आज देवािव करता ।ँ अब से भूतपावन भगवान सोमनाथ का
िनवास युवराज के शरीर म रहेगा। युवराज भीमदेव ही अब से इस संयु धम-सेना के
एकछ महासेनापित ह। सो इनक येक आ ा का पालन आप भगवान् सोमनाथ क
आ ा समझ कर क िजए!’’
गंग सव क इस घोषणा के उ र म उपि थत जनता ने गगनभेदी जयनाद
कया–‘‘महाराज भीमदेव क जय।’’, ‘‘महा धम-सेनापित क जय,’’ “भगवान्,
सोमनाथ क जय!’’
इसी जय-जयकार के बीच खड़े होकर भीमदेव ने एक संि भाषण दया–
‘‘सद्गृह थो, महा भु सव ने जो भार मुझे दया है वह म ाणा त उ ोग
करके वहन करना अपना धम समझूँगा। हम सब पर घोर धम-संकट आया है। यह
गज़नी का दै य जो अपने घोड़ क टाप से हमारे धम और देश को हर बार र दता आ
हमारी वण-मिण और ित ा के साथ हमारी देव-स पदा का हरण करता है सो यह
उसका दोष नह , हमारा ही दोष है। हमारी ही कायरता, फू ट और वाथ ने उस
धम ष े ी को सफल अिभयान वाला बनाया है। आज म चालु य भीमदेव अपने ाण क
शपथ खाकर कहता ँ क जब तक मेरे र क एक भी बूँद मेरे शरीर म रहेगी म इस
दै य का दलन क ँ गा। और यह म आप ही के सहयोग और सहायता के बल पर कह रहा
।ँ ’’
एक बार फर गगनभेदी जय-जयकार आ। सव ने हाथ के संकेत से सबको
िनवारण कया। भीमदेव ने कु छ ण शा त रहकर कहा, ‘‘अब आज से यह भास
तीथ– भास दुगािध ान आ। सोमनाथ महालय और भासप न नगर दोन ही क
व था सैिनक िनयम के आधार पर दुग क भाँित क जाएगी। म आशा करता ँ क
सोमनाथ महालय क र ा और सैिनक व था के िलए जैसा आदेश आप लोग को
दया जाएगा, उसे आप यथावत् मा य करके हमारी शि क वृि करगे।
‘‘हमारी सबसे पहली आ ा है क भगवान् सोमनाथ क र ा के िलए र दान
देने क साम य िजस त ण म हो, वही श धारण करके भास दुगािध ान म रहे। जो
कोई समय-समय पर दए गए आदेश का उ लंघन करे गा, वह ाण-द ड का भोग
भोगेगा। अब आप सब कोई शा त भाव से अपने-अपने आवास को चले जाएँ।’’
इस बार जनता ने जयनाद नह कया। सब लोग ग भीर मु ा से उठकर
चुपचाप चले गए। मि दर का जनाक ण र -म डप देखते-देखते जन-शू य हो गया।
धमसू
सभा-म डप म रह गए गंग सव , जो इस समय शा त, िनवाक् , िन ल,
समािध थ, िनमीिलत-ने बैठे थे और रह गए बाणबली भीमदेव, जो वीरासन से उनके
स मुख बैठे थे। चौला गंग सव के चरणतल म बैठी रह गई, गंगा गभ ार के बीच बीच
तर मू त-सी खड़ी थी। र -म डप म ये चार ही ाणी उस समय िनवाक् -िन प द,
मूक-मौन कु छ ण बैठे रहे।
कु छ देर म सव ने िनमीिलत ने खोले। ा -चम से वे उठ खड़े ए। उ ह ने
भीमदेव से म द वर म कहा, ‘‘आ पु ’’, और वे उ ह गभ-गृह म ले गए। भीमदेव ने
चुपचाप उनका अनुसरण कया, उनके पीछे चौला ने। गंगा ने उ ह माग दया, पीछे वह
भी गभगृह म चली गई। सव ने पीछे लौटकर कहा, ‘‘गंगा, तू गगनरािश को यह ले
आ और फर गभगृह का ार ब द कर दे।’’
गंगा ने ऐसा ही कया। ठीक योित ल ग के नीचे एक ासासन पर सव
बैठे। उ ह ने स मुख भीमदेव को बैठने का आदेश दया। चौला िन प द खड़ी रही।
सव फर समािध थ हो गए।
इसी कार दो घड़ी समय बीत गया। सव ने कृ ित थ हो ने खोले। उनके
ह ठ पर हा य क एक रे खा आई, उ ह ने मृद ु वर म कहा, ‘‘के वल इस गभगृह और
देवता पर तेरा अिधकार नह रहेगा महासेनापित। यहाँ के वल म देविनिम र ग ँ ा। इस
ण जो गभगृह के ार ब द ए, सो ऐसे ही रहगे।’’
भीमदेव ने ब ा िल कहा, ‘‘गु देव, देव-र ण तो करना होगा।’’
‘‘नह , तुम के वल देव थान क र ा करो पु !’’
“देव-र ा भी होनी चािहए।’’
‘‘देवता तो िन य-रि त ह पु ।’’
‘‘ फर भी सुर ा के िवचार से देवता का थाना त रत होना आव यक है।’’
‘‘सवदेश थ–सव ापी देवता का कै से थाना तर करोगे पु ?’’
‘‘मेरा अिभ ाय योित ल ग से है भु।’’
‘‘पा थव लंग शरीर से जब योित अ तधान ई, तब देवािध ान वहाँ कहाँ
रहा? देव थान तो हो चुका।’’
‘‘कब?’’
‘‘आज–अभी।’’
‘‘तो अब यह लंग, देवता नह ?’’
‘‘नह , देवता का पा थव शरीर है–जैसे मृत पु ष का िन ाण शरीर रह जाता
है।’’
‘‘देवता कहाँ गए?’’
‘‘अ तधान हो गए।’’
‘‘ कसिलए?’’
“धम ष े ी श ु के िवनाश के िलए।’’
‘‘कहाँ?’’
‘‘ कसी पु य शरीर म।’’
‘‘ कस कार?’’
‘‘तेरे ही शरीर म देव का वास आ है पु । तू अब िशव प है, जा, देव ष
े ी का
संहार कर।’’
‘‘ क तु लंग-शरीर?’’
‘‘वह अचल है, यह रहेगा।’’
‘‘य द मले छ उसक मयादा भंग करे तो?’’
‘‘उसका र क म ,ँ म अपना कत -पालन क ँ गा।’’
‘‘ले कन आप यहाँ न रह सकगे!’’
‘‘भलीभाँित रह सकूँ गा,’’ गंग सव ने हँसकर कहा, ‘‘महासेनापित या देव-
सेवक पर भी अनुशासन चलाएँग?े ’’
‘‘भीमदेव भी हँस दए, उ ह ने कहा, ‘‘ य नह , अब तो यह शरीर
देवािधि त हो गया। अब यह आपका िचर- कं कर भीमदेव नह , देवदेव महादेव बोल
रहे ह।’’
‘‘तो देव जानते ह क ऐसी ि थित म देवता के इस पा थव शरीर क र ा के
स ब ध म मेरा या कत है। तुम सेनापित, इतना भी नह जानते क नग य पु ष का
भी िन ाण शरीर, जीिवत शरीर क अपे ा अिधक स मानीय होता है, फर यह तो
देवता का लंग-शरीर है।’’
‘ क तु भु, उसने अनेक देव थान को भंग कया है, अनेक देवमू तय को
अपमािनत कया है।’’
‘‘तो पु , यह उसका अपना पु य-पाप, िन ा और आचार है। इसका लेखा-
जोखा हम कहाँ तक करगे?’’
‘‘तब हम या करना होगा?’’
‘‘के वल कत -पालन।’’
‘‘ कसके ित?’’
‘‘तु हारा देव थान के ित, तुम ाण रहते इसक र ा करो! और मेरा
देव लंग के ित, ाण रहते म इसक ित ा रखूँगा।’’
‘‘इसके बाद?’’
‘‘इसके बाद जो दैवे छा!’’
‘‘ क तु...।’’
‘‘नह पु , दैवे छा म क तु-पर तु नह ।’’
‘‘तो लंग-शरीर यह रहेगा।?’’
‘‘िन य।’’
‘‘और आप?’’
‘‘जहाँ देवमू त, वहाँ देव-सेवक।”
‘‘य द दैव-िवपाक से ले छ हम पराभूत कर?’’
‘‘तो यह भी दैवे छा!’’
‘‘तब हम?’’
‘‘जैसे अब तैसे तब, ाणा त अपना कत -पालन करगे।’’
‘‘जैसी भु क आ ा!’’
गंग ने ब द कर समािध थ हो गए। इसी समय गगन को संग ले गंगा गभगृह
म आई। सव ने ने खोले, उ ह ने देखा, गगन ने स मुख आ सा ांग द डवत् कया।
‘‘गगन’’, सव ने अकि पत वाणी से कहा।
गगन ब ांजिल सव के स मुख बैठा। सव ने कहा, ‘‘म आज इसी ण तेरा
प ािभषेक करता ।ँ ’’ और उ ह ने देव ात गंगोदक क धार उसके म तक पर डालकर
उसका अिभषेक कया। बड़ी देर तक वे मं ो ारण करते रहे। फर उ ह ने लकु लेशदेव
क पादुका और लंग उसे स प कर कहा, ‘‘गगन, अब तू अभी, इसी ण भ क छ को
थान कर। अब से तू ही पाशुपत आ ाय का अिध ाता है, देवता और सेनापित के
स मुख मने तेरा यह प ािभषेक कया।’’ फर कु छ ठहरकर उ ह ने भीमदेव क ओर
देखा और कहा, ‘‘तुम पाशुपत आ ाय के अिध ाता के संर क और सा ी हो–व स!’’
‘‘हाँ महाराज,’’ भीमदेव ने ब ांजिल कहा।
‘‘और चौला, तू भी!’’
चौला ने यह सुनकर हाथ जोड़े।
गंगा ने कहा, ‘‘म नह भु?’’
‘‘नह ।’’ गंग ने फर ने ब द कर िलए। गगन को िवदा करने का संकेत कर
गंग ने भी ने प छे और कहा, ‘‘जा पु , शुभा ते प थानः युः।’’
गगन भू िणपात कर आँसू बहाते ब त देर तक सव के चरण म पड़े रहे।
इसके बाद फर गंग सव ब त देर तक ने ब द कए िन ल-िनवाक् बैठे रहे।
फर उ ह ने म द वर म भीमदेव से कहा, ‘‘अब पु , कह, तूने या योजना ि थर क
है?’’
‘‘ भु, राजधानी का स पूण अ और अ -भ डार भास म आ गया है।
महाराज व लभदेव ख भात प च ँ गए ह। वे यथासा य अ और श एवं सैिनक वहाँ
से भेजने क व था कर रहे ह। आठ भारवाहक और तीन या ी जहाज़ क व था
हमारे पास है। अब हम भास से अनाव यक ी-पु ष को सुरि त ख भात म प च ँ ा
देना है। सो उसक व था म महता संल ह। वे पहले वािणक् - ापा रय को उनके
धन और माल मता सिहत कल ातःकाल रवाना कर दगे। वापसी म वही यान उधर से
आव यक साम ी ले आएँग।े पीछे ी,बालक,वृ और अनाव यक ि भी भेज दए
जाएँगे। स भवतः परस तक इस िन कासन और सैिनक और सि वेश क थापना हो
जाएगी।’’
‘‘साधु!’’
‘‘ क तु मि दर का धन-र भी सुरि त होना चािहए।’’
‘‘वह स पूण पेण स भव नह है, पर तु आंिशक प से जो-जो ले जाने यो य
है, उसे यथा थान ले जाओ।’’ यह कहते-कहते गंग सव गहरी िच ता म म हो गए।
भीमदेव भी कु छ सोचने लगे।
‘‘ क तु महालय क ि याँ?” एक िछपी दृि चौला पर डालते ए भीमदेव ने
कहा। चौला अभी तक िन ल भाव से सारा वातालाप सुन रही थी। अब साँस रोककर
भीमदेव के उ र क ती ा करने लगी।
सव ने कहा, ‘‘उ ह भी ख भात जाना होगा पु ।’’ फर उ ह ने गंगा क ओर
देखकर कहा, ‘‘गंगा, यह व था तू कर।’’
‘‘ क तु गंगा का थान तो यह है भु।’’ गंगा अभी तक एक ख भे के सहारे
खड़ी सारा वातालाप सुन रही थी।
अब उसने ि थर क ठ से ये श द कहे,–और आगे बढ़कर गंग सव के दोन
चरण गोद म लेकर उनपर अपने ह ठ थािपत कर दए।
बड़ी देर तक स ाटा छाया रहा। धीरे -धीरे कित थ होकर सव ने गंगा के
िसर पर हाथ रखकर कहा, ‘‘गंगा, यह तू या कर रही है, सावधान हो!’’
‘‘म सावधान ,ँ आपका थान देवता के चरण म है तो मेरा थान आपके
चरण म। आप देवता के सेवक ह और म आपक कं करी ।ँ अब म इस काल कौन-सी
लाज क ँ , ब त आ, ज मभर जलती रही, अब मेरी स ित का समय सि कट है, सो
म अब उस सुयोग को छोडू ग ँ ी नह ।’’
गंग िन र ए। उनके ह ठ पर हा य और आँख म जल फै ल गया। उ ह ने
कहा, ‘‘गंगा, म तेरी कसी भी इ छा म बाधक नह होऊँगा। जैसा तू चाहे, वही कर।’’
बड़ी देर तक सव िन प द बैठे रहे। उनक कू ट थ दृि देर तक अतीत के
िच को देखती रही। और गंगा अपनी आँख से अिवरल अ ु बहाती रही। युवराज
भीमदेव क आँख भी सजल । ह क िससक सुनकर भीमदेव और सव दोन ही ने
आँख उठाकर देखा, एक ख भे से िचपक चौला िससक-िससक कर रो रही थी। एक
भीमदेव के ह ठ पर आया, पर तु वाणी जड़ हो गई। उनके ने भी इधर-उधर
डोलायमान होकर पृ वी पर झुक गए।
गंग ने ेहा वर म आसन से उठकर कहा, ‘‘भीमदेव पु , यहाँ आ और पु ी
चौला, तू भी। दोन आओ।’’
वे दोन को योित ल ग के साि य म ले गए। कि पत चरण से चल कर
चौला भीमदेव के पा व म खड़ी हो गई। उसका सवाग काँप रहा था। बड़ी देर तक
सव यान थ हो देवता के स मुख खड़े रहे। फर ि थर क ठ से कहा, ‘‘आगे बढ़ो
युवराज, और तुम भी चौला।’’
दोनो योित ल ग के िनकट अ तरायण म जा खड़े ए। वहाँ एकाएक चौला
का हाथ भीमदेव के हाथ म देकर उस पर मं पूत जल और िब व-फल रख सव ने
कहा, ‘‘पु भीमदेव, आज तुम देवािव स व हो–तु हारी सेवा के िलए यह देवदासी
चौला म तु ह अपण करता ।ँ यह तु हारे ही समान उ वंशो व राजकु ल क क या
है। इसक र ा और स मान करना। और पु ी चौला, यह सा ात् िशव प स व
भीमदेव तेरी ा, पूजा और सेवा का पा है, इसी के मा यम से तू अब से अपनी
ा, पूजा और देवापण करना। अब तुम अिभ हो–धम-सू म ब हो।’’
चौला पीपल के प े क भाँित काँपने लगी। भीमदेव अवाक् रह गए। एक
अिनवचनीय सुख से अिभभूत होकर वे गंग के चरण म झुक गए। चौला अ मू छत हो
पृ वी पर वह देव-साि य म िगर गई।
भास दुगािध ान
भीमदेव ने नगर का भार बालुकाराय को स पा। मि दर क र ा का भार
जूनागढ़ के राव को दया गया। मि दर का धन-र , कोष और भीतरी व था
मकवाणा के सुपुद ई। दामोदर महता को गु चर िवभाग और सूचना िवभाग स पा
गया। रसद और व था पतरी के ठाकु र को और भास प न के जल-तट क र ा कमा
लाखानी के सुपुद क गई। स पूण संयु धम-सै य का भार बाणबली ने वयं िलया।
बालुकाराय ने तुर त नगर म सैिनक व था घोिषत कर दी। और तुर त ही
िन कासन काय आर भ हो गया। नगर के ापारी, सेठ-सा कार अपना अपना
मालमता धन-र लेकर पु -प रजन सिहत ठठ-के -ठठ ख भात जाने के जहाज पर आने
लगे। तीन हर बीतते-बीतते यह काय समा हो गया। उसी दन रात को प न के
स पूण ा ण-प रवार भी रवाना कर दए गए। उ ह के साथ सब बालक और ि याँ
भी। ब त नगर-जन थल-माग से इसी दन चले आए।
आठ हर म नगर का प ही बदल गया। सभी सूने घर म सैिनक ने अपने
अ े जमा िलए। थान- थान पर मोचब दी होने लगी। ाचीर, तट, पुल, खाई, परकोट
सभी का सं कार आ। सव ही ह रय क िनयुि ई। नगर म एक भी ी, एक भी
बालक दृि गोचर नह होता था। हाट-बाट म श के बनाने के कारखाने देखते-देखते
खड़े हो गए। थान- थान पर यो ा अपनी-अपनी तलवार क धार सान पर चढ़ाने
लगे। वातावरण म वीर रस का ादुभाव हो गया। लोग बेस ी से देवभंजक गज़नी के
दै य क ती ा करने लगे।
यह सारी व था करके महा सेनापित ने स पूण संयु सै य क परे ड कराई।
सारी सेना को एक कया गया। उसम बारह हज़ार का ठयावाड़ के अिडग यो ा अपने
गठीले ट पर सवार थे। सात हज़ार गुजरात क िवकट पहािड़य क गुफा म नंगे
रहने वाले भील हाथ म भाला और तीर-कमान िलए आए थे। तीन हज़ार कोली ठाकु र
क ामीण सै य गंडास और फरस से लैस थी। दस हज़ार राजपूत ी मारवाड़,
िस ध और आसपास के इलाके से आए थे, एवं अठारह हज़ार गुजर सेना बाणबली क
कमान म थी। इस कार भास के ांगण म पचास सह दल का जमाव था।
जरीन ज़ीन वाले सफे द घोड़े पर सेनापित के ठाठ म बाणबली भीमदेव छ -
चमर धारण कर उपि थत ए। उनका चपल अ हवा म उछल रहा था। उसके मुकुट–
कान-क ठ और ज़ीन पर जड़े मिण सूय क धूप म चमक रहे थे। महा सेनापित भीमदेव
ने िझलिमल कवच धारण कया था। उनके तेज वी यामल चेहरे पर तेज झलक रहा
था। स मुख खड़े िह दू बल को देखकर उ ह ने तलवार यान से िनकाल कर जय-घोष
कया–‘‘जय योित ल ग! जय सोमनाथ! जय सोमनाथ!’’ एक साथ ही सह क ठ
से जय योित ल ग का गगनभेदी वर िनकला, जैसे समु म तूफान आ गया हो।
िव ल ध
महालय के अ तरायण म दूसरे ख ड पर एक एका त को था। उसके सामने
खुली छत थी। छत पर से स पूण महालय का, महालय के उस ओर लहराते समु का
तथा ीण-कलेवरा िहर य नदी का सब दृ य दीख पड़ता था। बाणबली भीमदेव ने
इसी को म अपना डेरा डाला था।
अभी सं या होने म देर थी। सेना क परे ड से िनवृ हो, धूप और थकान से
लांत, िशिथल गात भीमदेव अपने आवास म लौटे। उनका बूढ़ा िव ासी सेवक भीमा
उपि थत आ, उसने युवराज के श -व उतारने म सहायता दी। एक िगलास शीतल
जल पीकर भीमदेव ने कहा, ‘‘भीमा, अब म थोड़ा सोना चाहता ,ँ देख–कोई मुझे दक
न कर।’’ बूढ़े सेवक ने िसर झुकाया और ार ब द करता आ बाहर चला आया। थोड़ी
ही देर म महाराज भीमदेव शीतल पवन के झंकोर क थप कयाँ खाकर मीठी न द सो
गए। ब त देर तक वह सोते रहे। एकाएक एक मृदल ु सुखद पश से उनक न द टू ट गई।
उ ह ने आँख खोल और अचकचा कर देखा, जैसे उनके चरण-तल म फू ल का ढेर पड़ा
हो। चौला उनके दोन चरण को आ लंगन म भरे , िनमीिलत ने और अपने दोन गम
ह ठ उनके चरण-नख पर थािपत कए अधोमुखी पड़ी थी।
उ ह ने हड़बड़ा कर दोन हाथ पसार दए। उनके चरण-तल का त प भाग
आँसु से भीग गया है, यह उ ह ने देखा। ेम, आवेश और आन द से अिभभूत होकर
उ ह ने चौला को अंक म भर कर उसका चु बन कया और कहा, ‘‘ ाण सिख, रोती
य हो?’’
पर तु चौला क वाणी जड़ हो गई। वर उसके क ठ से नह फू टा। भीमदेव ने
अनेकिवध उसका आ लंगन कर िविवध चु बन िलए, बार बार कहा, ‘‘कह, कह, रोने
का कारण या है?’’
चौला के ह ठ खुले। उसने कहा, ‘‘म म म–म नह जाऊँगी, मुझे यह चरण-तल
म आ य दीिजए।’’
‘‘पर तु ह भेज कौन रहा है?’’
‘‘सव भु क आ ा है। वे मुझे ख भात जाने का आदेश दे चुके ह।’’
‘‘ क तु...’’ भीमदेव िवचार म पड़ गए।
चौला ने कहा, ‘‘आप उनसे किहए, उ ह रो कए!’’ उसक िहच कयाँ बँध ग ।
‘‘तो गंगा से कहो, वह सव से िनवेदन कर देगी।’’
‘‘कहा था।’’
‘‘ फर? गंगा ने सव से कहा?’’
‘‘नह ।’’
‘‘ य ?’’
‘‘सव भु समािध थ ह, िनवेदन अस भव है।’’
‘‘तब?’’
‘‘आप आ ा दीिजए। सेनापित ने मुझे ले जाने को चर भेजे ह, उ ह िनवारण
क िजए।’’
‘‘ क तु...’’वे फर िवचार म पड़ गए। चौला चुपचाप आँसू बहाती रही।
भीमदेव ने कहा, ‘‘देख,ूँ य द सव ...’’ वे उठकर क से बाहर चले, ार पर गंगा खड़ी
थी। गंगा को देखकर उ ह ने हंसकर कहा–
‘‘देखा, चौला रो रही है।’’
‘‘ य ?’’
‘‘वह जाना नह चाहती।’’
‘‘उसे जाना होगा, महाराज।’’
‘‘ क तु...’’
‘‘सव का आदेश है।”
‘‘उनसे कहो, उसे रहने द।’’
‘‘कहना अस भव है।’’
‘‘ य ?’’
‘‘वे समािध थ ह।’’
‘‘समािध भंग होने पर?’’
‘‘समािध अभी भंग नह होगी। उनका आदेश टाला भी नह जा सकता है।
चौला को जाना ही होगा।’’
भीमदेव असमंजस म पड़ गए। फर उ ह ने हँसकर कहा, ‘‘म सवािधप
सेनापित ,ँ य द म आदेश दू?ँ ’’
‘‘सव के आदेश को र करके ?’’
‘‘नह , नह , पर तु...’’ वे फर िवचार म पड़ गए। गंगा भीतर गई और सूखी
वाणी म कहा, ‘‘उठ चौला, िवल ब न कर, यान जाने म अब िवल ब नह है, सेनापित
ती ा कर रहे ह।’’
चौला ने कातर दृि से भीमदेव क ओर देखा। भीमदेव असंयत ए, उ ह ने
कहा, ‘‘गंगा, चौला को रहने दे, कु छ हज नह । म समािध भंग होने पर सव से िनवेदन
कर दूग
ँ ा।’’
‘‘यह अस भव है महाराज, सव का आदेश टाला नह जा सकता।’’
‘‘तो सव क समािध भंग होने तक यान को रोका जाए, म बालुकाराय से
कहता ।ँ ’’
इसी समय बालुकाराय ने िव होकर चौला को ल य करके कहा, ‘‘ब त
िवल ब हो रहा है।’’
भीमदेव ने कहा, ‘‘उसे रहने दो बालुक, मेरा आदेश है।’’
बालुकाराय ने िसर झुकाया। इसी समय दामोदर महता ने बालुकाराय के पीछे
से िनकलकर कहा, ‘‘नह महाराज, उ ह जाना ही होगा।’’
‘‘ क तु सव क समािध भंग होने तक...’’
‘‘मने सव से िनवेदन कया था महाराज, पर तु उ ह ने फर आदेश दया क
उसे िन य जाना होगा।’’
भीमदेव ने देखा, चौला ि थर चरण से उठी, उनके चरण छु ए और गंगा क
छाती से जा लगी। फर िबना पीछे देखे सेनापित के पास जाकर कहा, ‘‘चिलए।’’
आगे-आगे सेनापित बालुकाराय, उसके पीछे चौला और उसके पीछे दामोदर
महता क से बाहर हो गए।
भीमदेव का एक-एक र -िब दु ची कार कर उठा। ‘‘नह , नह , ठहरो, मत
जाओ! ओ ाण सखी, ाणािधक, कु सुम-कोमल, चौला, चौला,’’ वे उ म क भाँित
हाथ पसार कर ार क ओर दौड़े।
पर तु गंगा ने उ ह रोककर कहा, ‘‘मेरे महाराज, आपक एक मयादा है, फर
महा भु सवदश ह, उसक सुर ा सव प र है, िवचार क िजए।’’
भीमदेव आहत पशु क भाँित श या पर िगरकर छटपटाने लगे। छ वेशी
सुलतान का वह अिसयु , चौला पर उसक आसि , उनक दृि म घूम गया। सव ने
जो उसका समपण उ ह कया है, उसे मरण कर उ ह रोमांच हो आया, उनके मुँह से
अ फु ट वर िनकला, ‘‘वह मेरी है, वह मेरी है, पर तु यह ठीक है, उसे सुरि त होना ही
चािहए।’’
गंगा ने िनकट आकर कहा, ‘‘हाँ महाराज, वहाँ उसक सुर ा और सुख-सुिवधा
के िलए सव ने िवशेष आदेश दे दए ह। आप िनि त होकर आराम क िजए।’’
उसने अपनी कोमल बाँह का सहारा दे महाराज भीमदेव को श या पर िलटा
दया और दुकूल उनके अंग पर डालकर चुपचाप क से चली गई।
अिभसार
अभी सूय दय नह आ था। आकाश म तारे टम टमा रहे थे, माग जनशू य थे।
शोभना को प रिचत संकेत- विन सुनाई दी। उसने चुपके से पीछे क िखड़क खोलकर
देखा–एक छाया-मू त दीवार से सटी खड़ी थी। वह हलके पैर सीढ़ी उतरकर नीचे आई
और धीरे से ार खोल दया। दोन ेमी गाढ़ा लंगन म ब ए। शोभना ने ेमी के गले
म बाँह डालकर कहा, ‘‘आज इतने दन बाद आकर सुध ली।’’
‘‘यह बात नह शोभना, म दूर चला गया था।’’
‘‘दूर ेमी?’’
‘‘अभी मत पूछो, भेद क बात है।’’
‘‘नही, बता दो।’’
‘‘म अमीर के पास गया था।’’
‘‘ या अमीर के पास?’’ शोभना का मुँह भय और आ य से फै ल गया। उसके
मुँह पर हाथ रखते ए फतह मुह मद ने कहा, ‘‘हाँ शोभना, अमीर ने मुझे भेजा था।’’
‘‘तुमने अमीर को देखा?’’
‘‘अमीर ने मुझे यार से थपथपाया और कहा, ‘‘बरखुरदार, तुम तो जैसे मेरे
एक होनहार िसपहसालार हो।’’
‘‘अमीर ने यह कहा?’’ शोभना क आँख म आन द नाचने लगा।
‘‘यही नह , उसने मुझे एक टु कड़ी फौज का सरदार भी बनाया है।’’
‘‘सच?’’
‘‘देखना अब मेरी तलवार के जौहर।’’
‘‘ क तु, देव, या तुम धम के िव तलवार उठाओगे?’’
‘‘धम, यारी शोभना, वह धम िजसने तुम जैसे कु सुम-कोमल अमल-धवल
रमणी-र को वैध के दुभा य से बाँध रखा है, और मेरे उछलते दय को लात से
दिलत कया है? देखा नह था जब तु हारे िपता मेरे म पाठ करने पर तलवार लेकर
मारने दौड़े थे, तब कसी ने मुझपर दया क ? सभी ने कहा, ‘‘मारो साले शू को, वेद
पढ़ता है नीच-अधम ! और उसी धम क तुम अभी तक दुहाई देती हो?’’
‘‘ क तु देव, वह हमारे बाप-दाद का धम है।’’
‘‘ क तु हमारे बेटे-पोत का धम ऐसा होगा, जहाँ सब समान ह गे, कोई छोटा-
बड़ा न होगा। जहाँ तुम रानी और म राजा होऊँगा, तु ह या कु छ एतराज़ है?’’
‘‘नह , म तु ह यार करती ,ँ तु हारे िबना रह नह सकती। म कोई दूसरी
बात सोच ही नह सकती। तुम जैसे ठीक समझो करो, म तु हारी ।ँ ’’
‘‘तो यारी शोभना, तुम िनि त रहो, हम दोन ही इस धम क गुलामी से
मु होकर जीवन का फल लाभ करगे। खैर, अब यह कहो, यहाँ का या हाल-चाल है,
देखता ँ सारा प न ही खाली हो रहा है। सब से ठए, ापारी प न से बाहर चले गए
ह, चार ओर के राह बाट सैिनक ही से पटे पड़े ह।’’
‘‘तु ह नह मालूम, बाणबली भीमदेव सवािधपित ए ह। पाटन म इस समय
एक लाख तलवार अमीर का वागत करने को तैयार खड़ी ह।’’
‘‘तो या परवाह, इन तलवार के पीछे दासता, घम ड, वाथ, दुराचार,
पाख ड जो िछपा आ है। ये एक लाख तलवार अमीर क उस अके ली तलवार का भी
मुकाबला नह कर सकत जो के वल एक ई र को मानता है, िजसका एक धम, एक
जाित, एक ई र और एक ईमान है–जहाँ छोटे-बड़े सब बराबर ह।’’
‘‘यह तुम या कह रहे हो, देव! या सचमुच अमीर सोमनाथ को भंग
करे गा?’’
‘‘नह तो या? उस दन जब मने सोमनाथ क पौर म खड़े होकर दशन करने
चाहे थे, तब मुझ शू को ध े देकर खदेड़ दया गया था। अब म ही अपनी इस तलवार
से इस सोमनाथ के दो टु कड़े न कर डालूँ, तो तु हारे ेम का दंभ न भ ँ ।’’
‘‘नह , नह , देव! ऐसी भयानक बात मत कहो। पैर पड़ती ।ँ भगवान्
सोमनाथ देवािधदेव ह, संसार के वामी ह।’’
‘‘देखा जाएगा, अभी तो म तुम से एक खास मामले म सहायता लेने आया ।ँ ’’
‘‘कहो।’’
‘‘मेरा काम तु ह करना होगा।’’
‘‘क ँ गी।’’
‘‘पर काम मेरा नह , अमीर का है।’’
‘‘अमीर का या काम है?’’
‘‘उसे पूरा करने पर ही हमारा भा योदय िनभर है।’’
‘‘तुम कहते हो तो क ँ गी।’’
‘‘ज़ र करो।’’
‘‘कहो।’’
‘‘महालय क सब ि याँ ख भात जा रही ह?’’
‘‘हाँ, आँ।’’
‘‘चौला भी?’’
‘‘वह भी। िपताजी कह रहे थे।’’
‘‘और तुम?’’
‘‘म भी।’’
‘‘ठीक है, तो सुनो। जैसे बने, छाया क भाँित चौला के साथ रहो। उसक
िव ास-भाजन बनो। एक ण को भी अपनी आँख से उसे ओझल मत होने दो।’’
‘‘ य ?’’
‘‘अमीर का म।’’
‘‘ क तु य ?’’ शोभना ने भयभीत होकर पूछा।
‘‘ य का उ र नह । जब म ख भात म तुमसे पूछूँ क चौला कहाँ है, तब मुझे
बताना।’’
‘‘ख भात तुम कब आओगे?’’
‘‘सोमनाथ को जलाकर छार करने के बाद।’’
‘‘ऐसी बात मत कहो।’’
‘‘खैर, कहो, कर सकोगी?’’
‘‘क ँ गी।’’
‘‘तुम कब जा रही हो?’’
‘‘आज ही रात को यान जा रहा है, उसी म।’’
‘‘चौला उसी म जा रही है न?’’
‘‘सुना है।’’
‘‘और भी कु छ सुना है।?’’
‘‘सुना नह , देखा है।’’
‘‘ या देखा?’’
‘‘चौला रो रही थी।’’
‘‘ य ?’’
‘‘वह ख भात जाना नह चाहती।’’
‘‘ कस िलए?’’
‘‘वह बाणबली को यार करती है’’
‘‘सच?’’
‘‘जैसे म तु ह।’’
‘‘झूठ!’’
‘‘नह ।’’
‘‘तो फर?’’
‘‘वह गंगा से कह रही थी।’’
‘‘तब?’’
‘‘गंगा ने कहा–जाना होगा। सव क आ ा है।’’
‘‘चौला ने सव से नह कहा?’’
‘‘न, सव समािध थ ह।’’
‘‘ढ ग!’’
‘‘चौला न जाए तो?’’
‘‘तुम भी मत जाना।’’
‘‘कै से?’’
‘‘चौला क सेवा म रहने क आ ा लेकर।’’
‘‘आ ा कौन देगा?’’
‘‘तु हारे िपता आसानी से यह व था कर दगे, उनसे कहना।’’,
‘‘ऐसा ही क ँ गी।’’
‘‘बस तो एक यार।’’
‘‘यहाँ नह , ख भात म।’’
‘‘तो यही सही।’’
युवक तीर क भाँित ार से बाहर जाकर मकान क छाया म लोप हो गया।
शोभना सकते क हालत म खड़ी देखती रही। आँख उसक जलधार से गीली और
धुंधली हो रही थ ।
पित ता रमा
कृ ण वामी के अनुरोध से शोभना को चौला क सखी बनकर उसी के साथ
रहने म कोई क ठनाई नह ई। कृ ण वामी को भी इससे एक कार क िनि तता हो
गई। बालुकाराय ने स ता से कृ ण वामी का अनुरोध मान िलया और शोभना को
चौला के पास प च ँ ा दया। शोभना क आयु य िप चौला से कु छ अिधक ही थी पर तु
दोन को एक कार से समवय का ही कहा जा सकता था। शोभना जैसी आन दी, चतुर
और त पर सहेली पाकर चौला भी ब त स ई। राह म ही दोन िहलिमल ग ।
ख भात प च ँ ते-प चँ ते दोन िचर सखी हो ग । महाराज महा सेनापित भीमदेव का
संकेत पाकर ख भात म चौला को सब स भव सुख-साधन जुटा दए गए और वहाँ
महारानी क भाँित मयादा से रहने लगी। शोभना उनक परछा क भाँित रात- दन
साथ रहने तथा उसका मनोरं जन एवं सेवा करने लगी। अपनी सेवा- ेम-त परता और
आन दी वभाव से शोभना ने शी ही चौला का मन मोह िलया।
पर तु रमाबाई कसी तरह ख भात जाने को राज़ी न ई। भाषा और भाव
उसके चाहे जैसे रहे ह , अिभ ाय उसका यही था क पित ही उसका लोक-परलोक म
शरण है, पित ही परमे र है, पित ही ाण है, पित ही धम है, उसके चरण का आ य
छोड़कर वह जीते-जी कह नह जाएगी। जो पित क गित सो उसक गित। वह जीवन-
मरण, सुख-दुःख, लाभ-हािन, स पि -िवपि म पित क अख ड संिगनी, सहध मणी
और भाया है।
पर तु यह आ अिभ ाय। भाव-भाषा भी देिखए इसम कसी का वश भी या
है। मनु य अपने वभाव ही के अनुसार मनोभाव कट करता है। सो जब रमाबाई से
ख भात जाने को कहा गया तो उसने अ छा-खासा महाभारत खड़ा कर दया। वह
गु से से मुँह फु ला कर अपनी गोल-गोल आँख घुमाती ई बेलन लेकर कृ ण वामी के
सामने तन कर खड़ी हो गई और स पणी क भाँित फु फकार मार कर बोली, ‘‘देखती ,ँ
तुम मुझ जीती-जागती को कै से घर से िनकालते हो, चार फे रे डाल अि क सा ी करके
लाए हो, भाग कर बाप के घर से नह िनकली ।ँ अब इस क देहरी के बाहर मेरी लाश
ही िनकलेगी, समझे!’’ क तु कृ ण वामी ने खूब नम होकर समझाते ए कहा, ‘‘यह
बात नह है शोभना क माँ, वह गज़नी का रा स आ रहा है। उसी के भय से सब लोग
घरबार छोड़कर भाग रहे ह। तु ह घर से िनकालता कौन है! घर-बार तो सब तु हारा
ही है। तु ह न घर क माल कन हो।’’ इस पर िज़द करके रमा ने कहा, ‘‘तो िजसे डर
हो, वह भागे। आए वह गज़नी का रा स, इसी बेलन से उसका िसर न फोड़ूं तो मेरा
नाम रमा नह ।’’ वह गद क तरह लुढ़कती ई सारे घर म घूम गई। फर फफक-फफक
कर रोने लगी। रोते-रोते बड़बड़ाने लगी, ‘‘तुमने ज म भर जलाया है, और अब डर के
मारे औरत को घर से बाहर भेज रहे हो, बड़े बांके बहादुर हो। अरे नामद, औरत क
र ा नह कर सकते थे, तो उसका हाथ चार पंच म य पकड़ा था? फर डर है तो तुम
भी चलो। तुम यहाँ कहाँ के तीर-तमंचे चलाओगे। देखी है तु हारी जवांमद बस अिधक
न कहलाओ।’’
कृ ण वामी ने फर साहस कया। समझाते ए बोले, ‘‘शोभना क माँ,
महाराज महासेनापित क आ ा है। वह तो माननी ही पड़ेगी।’’
रमा ने खीझ कर कहा, ‘‘ य माननी पड़ेगी, मने महासेनापित से याह नह
कया, न उनक दबैल ।ँ महासेनापित मेरे सामने तो आएँ। कौन से शा वचन से वह
प ी को पित के चरण से दूर करते ह? घरनी को घर से िनकालते ह? सुने तो! बड़े आए
तीसमारखाँ।’’
कृ ण वामी ने खीझ कर कहा, ‘‘तो तुम नह जाओगी?’’
‘‘नह , नह जाऊँगी, नह , जाऊँगी, नह जाऊँगी–जहाँ तुम वहाँ म।’’ वह
रोती-रोती कृ ण वामी के पैर से िलपट गई। रोती-रोती बोली, ‘‘इस बुढ़ापे म अधम
म मत खसीटो, इन चरण से दूर न करो, दया करो, दया करो!’’
बालुकाराय ने आकर समझाया। शोभना ने भी दम- दलासा दया। फु सलाया-
बहलाया। पर रमाबाई एक से दो न । िववश हो, शोभना माता से अंक भर िमल
रोती ई िवदा ई। रमाबाई ने कृ ण वामी को घर के भीतर ख च, ार क सांकल
भीतर से चढ़ा ली।
अलब नी
शेख अलब नी ब त भारी िव ान् थे। इनक अव था स र से भी ऊपर थी।
रं ग एकदम काला, ब त ऊँची उठान, ल बी सफे द दाढ़ी, गृ के समान तेज और भे दनी
दृि । स पु टत ओ , अ प भाषी।
शेख नदी-तीर क अपनी एका त झ पड़ी म बैठे कु छ योितष क रे खाएँ ख च
रहे थे। उनके स मुख दि वजयी अमीर छद्म-वेश म बैठा चुपचाप उनके मि त क पर
बनने-िबगड़ने वाली रे खा को यान और अधैय से देख रहा था। दोन मौन थे। वृ
शेख कु छ उलझन म थे, ऐसा तीत होता था क वे कु छ िनणय नह कर पा रहे ह। अ त
म अधीर होकर अमीर ने कहा–
‘‘जैसा कु छ आपने समझा है, किहए।’’
‘‘अभी कु छ नह कह सकता सुलतान!’’
‘‘अब नह तो फर कब? जो कु छ कहना है, अभी किहए।’’
‘‘तो बेहतर हो क आप चुपचाप अभी िस ध क राह वापस गज़नी चले
जाएँ।’’
‘‘खूब, यह आप महमूद को सलाह दे रहे ह हज़रत?’’
‘‘ जूर, म लाचार ,ँ आपके िसतारे मुझे उलझन म डाल रहे ह।’’
‘‘का फर का यह इ म नजूम भी ु फ है। आप इस पर य यक न करते ह?’’
बूढ़े शेख ने भ ह म बल डालकर एक बार अमीर क ओर देखा, फर शा त
वर से कहा, ‘‘सुलतान, इ म क कोई जात-िबरादरी नह । वह सदा स ा है, सूरज क
तरह चमकदार हीरा, गलाज़त से उठाया आ भी हीरा ही है। बस, आपको अगर इ म-
नजूम कु दीख पड़ता है तो शेख को माथा-प ी करने क आव यकता नह है।
िबि म लाह क िजए।’’
उसने त ती उठाकर रख दी और मौन हो बैठा। अमीर ने नरम होकर कहा,
‘‘खैर, आपने जो कु छ समझा हो, वह किहए।’’
‘‘आपका एक िसतारा ब त खराब है, ले कन उसका असर आज क तारीख से
ठीक चौथे माह होगा।’’
‘‘उसका या असर है?’’
‘‘आपक िज दगी, फतह और इ त पर खतरा।’’
‘‘कै सा खतरा?’’ अमीर के हाठ गु से से िचपक गए।
‘‘लड़ाई म िशक त भी हो सकती है, आपके दु मन क जान को भी जोिखम
है।’’
‘‘तो या परवाह, महमूद ने तो ऐसे बहत-से खतरे उठाए ह हज़रत!’’
‘‘सुलतान, हर उ ज का एक ज़वाल है; सूरज उगता है, उठता है, तपता है,
फर आिखर ग़ ब होता है।’’
‘‘तो इससे या? दूसरे दन सुबह फर उगता है।’’
‘‘हजूर, इ म म बहस बेकार है।’’
‘‘जाने दीिजए, आपने कहा, ‘वह िसतारा आज से चौथे महीने असर करे गा’?’’
‘‘जी हाँ।’’ शेख ने फर अपनी त ती पर नज़र फै लाई।
‘‘खैर, तो तब तक म गज़नी प च ँ जाऊँगा।’’
‘‘यह नामुम कन है।’’
‘‘ य ?’’
‘‘आपने य द लड़ाई छेड़ दी तो वह ल बी मुिहम होगी। सोमनाथ क फतह
आसान नह है।’’
‘‘यह तो इ फ़ाक़ पर मौक़ू फ़ है।’’
‘‘जी नह । हाँ, अगर आपको कोई गै़बी मदद िमल जाए, तो बात जुदा है।’’
‘‘मसलन?’’
‘‘जैसे वही खतरनाक गुसा स ा उतरे ।’’
‘‘उसपर आपको शक है?’’
‘‘जो खबर िमली है, उससे तो वह आपक मदद करे गा। मगर का फ़र का
भरोसा या? फर वह जो मािलक से दगा कर रहा हो, अपने दीन -ईमां से बगावत कर
रहा हो।’’
‘‘ले कन वह तो अपने देवता िज ात के म क तामील कर रहा है िजसके
हम शाही मेहमान बन चुके ह और अब फर उसने मुझे बुलाया है।’’
‘‘ठीक है, पर कौन जाने, इसम या भेद है?’’
‘‘ या आपने उससे मुलाक़ात क थी?’’
‘‘मुलाक़ात नह ई। मगर मेरे-उसके बीच बातचीत तो है ही।’’
‘‘उसी नौजवान क माफत, िजसे आपने अपना स देश लेकर मेरे पास भेजा
था?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘वह लड़का कहाँ है?’’
‘‘मेरे ही काम से प न गया है।’’
‘‘िज ात के बादशाह से कल वह मुलाकात होगी न?’’
‘‘यही उसने कहलाया था, ले कन उसने इस बार मुझे अके ला बुलाया है। म
ज़ र जाऊँगा।’’
‘‘खैर, मेरी सुलतान से एक इ तजा है।’’
‘‘ या?’’
‘‘अगर सुलतान इस मुिहम को सर करने पर तुले ही ए ह तो ऐसी कोिशश
क िजए क ज द से ज द मुिहम ख म हो जाए, और आप चौथे चाँद से पे तर ही गज़नी
लौट जाएं।’’
‘‘अलह दुिल लाह, ऐसा ही क ँ गा, हाँ, वह नाज़न ?’’
‘‘सब लोग के साथ ख भात भेजी जा रही है। मने ब दोब त कया है क एक
भरोसे क औरत उसके साथ रहे।’’
‘‘कौन है वह?’’
‘‘फ़तह क होने वाली जो ।’’
‘‘फ़तह कौन है?’’
‘‘वही नौजवान। हज़रत, उसे मने एक टु कड़ी फौज का सरदार बनाया है, अगर
वह यह िखदमत ठीक-ठाक बजा लाया तो उसे िसपहसालार म रखूँगा।’’
‘‘वह जी-जान से ज़ूर के काम म लगा है।?’’
‘‘ले कन हज़रत, िसफ एक चीज़ लेकर भी म सोमनाथ को छोड़ सकता ।ँ ’’
‘‘वह या ?’’
‘‘वही नाज़न ।’’
‘‘ या नाम है उसका?’’
‘‘चौला।’’
‘‘यह शायद नामुम कन है सुलतान, एक लाख नंगी तलवार उसक िहफ़ाजत
कर रही ह।’’
‘‘उस ल डी क ?’’
‘‘वह देवदासी है जूर, देवता क जो ।’’
‘‘प थर के देवता क जो िज़ दा औरत?’’ अमीर हँसा।
‘‘इसी से सोमनाथ और ल डी क इ ज़त बराबर ही है।
‘‘तो म सोमनाथ के इसी गुज से चार टु कड़े करके उस ल डी को अपनी िखदमत
म रखगा।’’
‘‘अब सुलतान कस बात का इ तज़ार कर रहे ह?’’
‘‘ कसी बात का नह , मेरी सब िबखरी फ़ौज इक ी हो गई है। कल उस ग़ैबी शै
से मुलाकात होने के बाद खुले मैदान म छावनी डालूँगा।’’
‘‘मुझे कोई म?’’
‘‘उस छोकरे को मेरे पास भेज दीिजए।’’
‘‘बेहतर!’’
अमीर ने वृ शेख के दोन हाथ अपनी आँख से लगाए, चूमे और चुपचाप
घोड़े पर चढ़कर रवाना आ। अभी भी दन िनकलने म देर थी। पूव दशा म सफे दी छा
रही थी।
सह ाि -सि धान
पर तु भ ने धम-सेनापित क आन नह मानी। वह एक सह धधकती
धूिनय के बीच वह कू ट थ मु ा म बैठा रहा। उसका िवशाल कृ णकाय शरीर, लाल
भ म भूिषत जटाएँ, म से लाल-चोट ने , भयानक काली सघन भ ह, मोटे िनर तर
िहलते ह ठ और बीच-बीच म ‘ला िवनाश’ का ची कार, यह सब िमलकर दशक के मन
पर एक ऐसा बीभ स, रौ और भयानक भाव छोड़ते थे क िजसका वणन ही दुलभ
है। उसे न सेना का भय था, न श का, न उसे गु के आदेश क परवाह थी, न
सेनापित क । ि पुरसु दरी के मि दर के बाहर िवशाल मैदान म उसने अब सह ाि
तपना ार भ कया था। उसके साथ उसके तीन सह संगी-साथी अघोरी, वामप थी
और कलमुँहे भी वैसी ही मायािवनी आकृ ित बनाए उन धधकती ई एक हज़ार धूिनय
के चार ओर िमथुन-मु ा म बैठे म -जप कर रहे थे। उनके सैकड़ चेले-चांटे उन
जलती सह महािचता म िनर तर वृ -वन पित काट-काट कर धन झ क रहे थे।
के वल यही नह , नगर म जो कु छ भी जहाँ कह जलने-यो य अ छा-बुरा पदाथ िमल
जाता, वे उसी को उठा लाकर धूिनय म झ क रहे थे। वे लोग कोई भी िविध-िनषेध
नह सुनते थे, कसी से नह डरते थे, रोकने पर लड़ने-मरने को उ त हो जाते थे, वे
छू टते ही घातक आ मण करते थे।
नगर म नाग रक तो कम ही रह गए थे, अिधकांश बाहर से आए ए सैिनक थे,
वे उनके इस वहार से बड़े आतं कत हो रहे थे। उनसे उनके स मुख िवरोध करते ही न
बन पड़ता था। अंधिव ास ने उ ह कायर बना दया था। उ ह देखते ही बड़े-बड़े वीर
भाग खड़े होते थे, िनकट आते ही ये अघोरपंथी छू टते ही अपने िवकराल चीमट का
हार ऐसे वेग से करते थे क अ छे-से-अ छे बिल पु ष क भी खोपड़ी फट जाती।
अपने नेता भ के साथ वे– ँ फट, , ल का उ ारण करते, उनके ह ठ िनर तर
िहलते रहते और बीच-बीच म वे सब सह -सह कं ठ से ‘ला िवनाश’, ‘ला िवनाश’
िच लाते।
महा मेधावी तापवान सेनापित बालुकाराय इन दुभट हठीले अघो रय के
स मुख िन पाय हो गए। उ ह ने महासेनापित भीमदेव और दामोदर महता से परामश
कया।
बालुकाराय ने कहा, ‘‘ या उन पर बल- योग कया जाए?’’
‘‘यह शायद ठीक न होगा’’ भीमदेव ने कहा, ‘‘ क तु य न सव से िनवेदन
कया जाए?’’
‘‘सव अ तः थ ह। उनसे िमलना अश य है। बात करना भी स भव नह ।’’
‘‘ब त िवचार-परामश के बाद दामोदर महता ने कहा, ‘‘उ ह मुझ पर छोड़
दीिजए। म उन सबसे िनपट लूँगा। ये मूख हमारा कु छ भी न िबगाड़ पाएँग।े और इनका
आप ही िवनाश हो जाएगा।’’
यही बात तय रही। दामोदर महता ने उनक गितिविध क देख-रे ख अपने प -
िश य गजानन के सुपुद क । उसक अधीनता म पचास सश सैिनक भी दे दए। उसे
आदेश दे दया गया क उ ह छेड़ने का कोई काम नह है। वे दूसर का अिन न कर,
के वल यही देखना चािहए। इसके अित र इस धूत भ क कोई कह गहरी चाल
तो इस ढ ग-धतूरे क ओट म नह चल रही है, यह भी देखने का आदेश महता ने अपने
िश य को दे दया।
गजानन ने अपने पचास सैिनक को उ ह कलमुंह के दम वेश म उनम िव
कर दया। वे उनम घुल-िमलकर धन लाने, िच लाने तथा ह ठ िहलाने लगे।
मह वपूण और आव यक सि द ध संदश े गजानन के ारा महता दामोदर के पास
प च ँ ने लगे।
दै य आया
गज़नी का दै य नल वावणी होता आ भास क सीमा म धंसा चला आ रहा
है। अ ततः इसक सूचना भीमदेव को िमली। भीमदेव ने त काल ही एक यु -सिमित
क बैठक क । इस सिमित म भीमदेव चालु य, सेनापित बालुकाराय, जूनागढ़ के राव,
के सर मकवाणा, राय र ा द य, कमा लाखाणी, द ा सोलंक , साम त संह और
स िनसंह आ द मुख भट सेनानायक उपि थत थे।
था क या अमीर को भास तक आने का अवसर दया जाए, या उसे राह
ही म अटकाया जाए? य द राह म अटकाया जाता है तो दुगािध ान का मह व जाता
रहता है, बल िबखर जाता है, अतः सवस मित से यही िनणय आ क अमीर को आगे
बढ़ने दया जाए तथा उसके वापस जीिवत लौटने के सब माग ब द कर दए जाएँ।
मकवाणा ने वीर दप से मूंछ पर ताव देकर कहा, ‘‘म इस तलवार से उसके दो
ख ड क ँ तो मेरा नाम मकवाणा। इसी धम े म रा स क मुि हो।’’
जूनागढ़ के राव ने कहा, ‘‘जब तक शरीर म ाण ह, हम लोहा बजाएँगे। आगे
जैसी शंकर क इ छा।’’
स न चौहान ने कहा, ‘‘अब मेरा तो जीवन ही उस दै य का सवनाश करने के
िलए है।’’
और भी ब त ने ब त बात कह । सभी ने वीर-दप से क ं ृ ितयाँ भर । सबके
अ त म जलद ग भीर वर म भीमदेव ने कहा, ‘‘यह तो आ। अब यह कहो, अमीर का
बल कै सा है, उसक सै य कतनी है, उसका संगठन कै सा है?’’
‘‘उसके पास चालीस हज़ार मंजे ए घुड़सवार ह, इसके अित र दो हज़ार
सांढ़िनयाँ और पाँच सौ हाथी ह। बारह हज़ार अचूक तीर दाज़ ह िजनके तीर म पाँच
टंक क अनी पड़ती है महाराज।’’
भीमदेव ने कहा, ‘‘तो पहले तीर दाज़ ही को लो। हमारे पास कु ल सात हज़ार
तीर दाज ह। वे सब उतने होिशयार और अचूक तो नह ह, पर तु हमारे पास गढ़ ह,
खाई ह, दुग ह, तथा भरपूर रसद और रण के साधन ह। सबसे थम उ ह क मुठभेड़
हो। इन सात हज़ार धनुधर का अिधकार म लेता ।ँ ’’ क तु बालुकाराय ने बाधा देकर
कहा, ‘‘नह महाराज, उनका अिधकार म लेता ।ँ आप स पूण धम-सै य के नेता और
सेनापित ह। आपको स मुख यु म आने का कोई काम नह है। महाराज बाणबली
िस ह, पर तु म एक ही बाण से उसका दय िवदीण न क ँ तो बालुकाराय नाम न
धराऊँ।’’
भीमदेव ने हँसकर कहा, ‘‘बालुक, तु हारे ह त-लाघव और शौय पर तो म
ई या करता ,ँ पर तु तु हारे अधीन नगर-र ा भी है, इसी से...’’
पर तु बालुक ने बात काटकर कहा, ‘‘नगर अब कहाँ है महाराज, यह भास तो
अब सैिनक-सि वेश है। फर भी तो म वे छा से दािय व ले रहा ।ँ आपको म कसी
भी हालत म कोई जोिखम िसर न लेने दूग ँ ा।’’
भीमदेव ने कहा, ‘‘तब ऐसा ही हो। अपने धनुधा रय को तुम स भालो। अब
हम कु ल तीन मोच थािपत करने ह। थम होगा मु य तोरण–उसका र क कौन
होगा?’’
जूनागढ़ के राव ने अपनी तलवार ऊँची करके कहा, ‘‘यह लोहा। इसके रहते
दै य महालय के मु य तोरण पर पदाघात न कर सके गा।’’
‘‘ठीक है। आप दो सह घुड़सवार और दस सह सै य सिहत मु य तोरण क
र ा करगे।’’
‘‘अब दूसरा मोचा जूनागढ़- ार सागर-तट है, उसे कौन स भालेगा?’’
‘‘म’’ कमा लाखाणी ने मेघ-गजन क भाँित कहा, ‘‘सागर–तट पर मेरा
ज मिस अिधकार है।’’
‘‘अ छा, तो तट पर इस समय तीन सौ नाव ह तथा छह भारवाहक और तीन
श सि त जहाज़ ह। श ु के पास जल-यु का कु छ भी सरं जाम नह है। ये आपके
अिधकार म ए। आपको अ ारोही सेना क तो दरकार ही नह । पाँच हज़ार तलवार
और बछ के धनी यो ा और बालुकाराय के तीर दाज़ भी आपके साथ रहगे।’’
‘‘तो महाराज, तट भाग अभंग है, सो अभंग रहेगा।’’
‘‘अब रहा नगर- ार’’ भीमदेव ने कु छ िचि तत होकर कहा।
‘‘उसके िलए के वल पाँच सौ अ ारोही मुझे दे दीिजए।’’ मकवाणा ने हँसकर
कहा। भीमदेव हँस पड़े। उ ह ने कहा, ‘‘पाँच सौ नह , दो हज़ार अ ारोही और पाँच
हजार पदाितक, साथ ही दामो महता भी।’’
‘‘तब तो अिधक यािधकं फलम्।’’
स न संह चौहान ने कहा, ‘‘ क तु मुझे या काम स पा जाता है?’’
भीमदेव ने ग भीर मु ा से कहा, ‘‘हाँ, अब आपक बारी है, स न संह जी।
आपको म सबसे क ठन काय स प रहा ।ँ ’’
‘‘यही मेरी अिभलाषा भी है।’’
‘‘तो देिखए, य द दैव-दु वपाक से हम दिलत करके यहाँ से सुलतान वापस
लौटे तो म थली म ही उसको समािध तुम देना। यही काय म तु हारे सुपुद करता ।ँ
ातः मरणीय घोघाबापा का तपण तु ह ही करना होगा वीरवर! और अब तो तु ह
म थली के र क भी हो।’’
‘‘ऐसा ही होगा महाराज, म ित ा करता ।ँ ’’
‘‘तब कहो, तु ह कतने सैिनक चािहए? यह देख लो, हमारे पास यो ा क
ब त कमी है।’’
‘‘यह म देख रहा ँ महाराज!’’
‘‘तु ह कम से कम यो ा दूग
ँ ा’’
‘‘ठीक है महाराज!’’
‘‘कहो, फर कतने?’’
स न संह ने फ क हँसी हँसकर कहा, ‘‘एक भी नह महाराज, वह सामने
नीम क छाया म मेरी साँढ़नी बँधी है। बस, वह और म दो ही यथे ह।’’
स न संह क बात सुनकर सब कोई आ य से उसका मुँह ताकने लगे। स न
ने कहा, ‘‘महाराज, िबना कु छ खाए-िपए मेरी सांढ़नी ने पाँच बार इस म थली को
पार कया है। वह म समु का जहाज़ है। वह चालीस दन तक िबना खाए-िपए धावा
कर सकती है। पर तु एक बात है।’’
‘‘वह या?’’
‘‘य द अमीर पीछे म थली क ओर न लौटे।’’
‘‘स भवतः वह राज थान क ओर मुँह न कर सके गा।’’
‘‘ क तु अबुदाचल के माग जाए तो?’’
‘‘उसक िच ता नह । िवमलदेव शाह तीस हज़ार गुजर-सै य सिहत उसका
माग रोकने को आबू म स ह। फर काका दुलभदेव क गज-सै य भी है, और अभी
तो यहाँ हम ह। य द भगवान् सोमनाथ क ऐसी ही इ छा ई, तो सुलतान के भा य का
अि तम िनबटारा या तो तु हारी म थली म होगा या अबुदाचल म। म थल स न
का और अबुदाचल मेरा।’’
‘‘तो महाराज, म थल क ओर य द दुभा य अमीर को ले गया, तो वहाँ से
एक भी ले छ जीता न लौटेगा!’’
‘‘अब रहा साम त। साम त को म यहाँ न रहने दूग ँ ा। यह इसी समय घोघागढ़
जाए।’’
‘‘मेरा अपराध महाराज?’’ साम त ने भरे क ठ से कहा।
‘‘अपराध नह भाई, घोघाबापा का वंश जीिवत रखना होगा। घोघाबापा के
चौरासी पु -पौ म एक तुम और स न बस दो बचे हो। स न को तो म उ सग के
माग पर भेज रहा ।ँ पर साम त, तु ह अपने वंश क र ा करनी होगी।’’ महासेनापित
भीमदेव क वाणी कि पत हो गई। आँख मह बरसाने लग ।
‘‘तो साम त, महाराज क बात रख।’’ स न ने आँख म आँसू भरकर कहा।
साम त ने अव क ठ से कहा, ‘‘बापू, म यहाँ धमयु से िवमुख़ होकर चला
जाऊँ तो मेरा ि य धम जाए।’’
‘‘ऐसा नह साम त।’’ भीमदेव ने कहा।
‘‘म नह जाऊँगा महाराज। म सेनापित क आ ा को अ वीकार करता ,ँ मुझे
अनुशासन भंग करने का द ड दीिजए।’’
महाराज भीमदेव ने हँसकर ेह से उस त ण को छाती से लगा िलया।
दामोदर महता ने कहा, ‘‘महाराज, साम त संह जी के िलए एक मह वपूण काय है।’’
‘‘ या?’’
‘‘उ ह ख भात क र ा का भार दीिजए। अ ततः ख भात का सामु क मह व
सबसे अिधक बढ़ता जाएगा।’’
‘‘ठीक है, तो साम त, तु ह ख भात स पता ।ँ वहाँ गुजरे र ी व लभ देव
है, सु ी चौला ह, पाटन के हज़ार आबाल-वृ ह; गुजरात क सभी ित ा और
स पदा इस समय ख भात म है, इन सबका र क म तु ह बनाता ।ँ वीर!’’
साम त ने िसर झुकाकर कहा, ‘‘जैसी महाराज क आ ा!’’
अ य आव यक व था के बाद यह यु -म णा भंग ई। बीस सह सुरि त
सै य क कमान महाराज भीमदेव के अधीन रही।
श ु–िम
देलवाड़े का राजमाग आबाल-वृ नर-ना रय से पटा पड़ा था। कोई ऊँट,
घोड़ा, बैलगाड़ी पर, कोई पैदल, कोई असमथ-रोगी-अपािहज आने म असमथ साथी को
पीठ पर लादे ए भास क ओर आ रहे थे। उनम ब त घायल थे। मुमूषु थे, अनेक
िवलाप करती स ःिवधवाएँ थ , िजनका एक ही रात म िचर सुहाग लुट चुका था।
अनेक िससकते भूखे- यासे अनाथ बालक थे, जो रात को माता क सुखद गोद म सोए
थे। एक ही रात म उनपर व पात आ था। उनके घर-बार लूट-पाट और जलाकर खाक
पर दए गए थे। ी-पु ष सभी को तलवार के घाट उतार दया गया था। देलवाड़े क
स प और खुशहाल ब ती एक ही रात म उजाड़ कर ऐसी कर दी गई थी क उसे भूता
का वास कह सकते थे। बचे-खुचे लोग जैसे तैसे भास क शरण म आ रहे थे।
गज़नी का दै य देलवाड़े तक आ प च ँ ा है और उसने देलवाड़े को भंग कर दया
है, यह बात िबजली क भाँित भास म फै ल गई। ठठ-के -ठठ लोग देलवाड़े के राजमाग
पर आ जुटे। िससकती ई अबला , लुटे ए वृ और आहत युवक ने देलवाड़े क
र रं िजत कहानी–चौधारे आँसू बहा-बहाकर कह सुनाई। सैिनक और नगर के अगिणत
जन ने उ ह धैय दया, नगर के भीतर िलया। उनके भोजन और िव ाम क व था
क । घायल तथा रोिगय क सु ूषा होने लगी। नगरपाल ने तुर त ही इन शरणा थय
को भी ख भात भेजने क व था कर दी। उ ह ने यह भी समझ िलया क अब यु म
िवल ब नह है। त काल नगरकोट और दुग के सब ार ब द कर दए गए। खाई-समु
जल से भर दी गई। बु जय पर धनुधारी तैनात कर दए गए। नगर से बाहर जाना
िनषेध कर दया गया।
नगरपाल जब शरणा थय , नाग रक और सैिनक क व था तथा र ा एवं
थम मुठभेड़ क तैया रय म त थे और महासेनापित भीमदेव भाव से यु
मोच क देख-भाल कर रहे थे, तभी दामोदर महता ने एक दु साहिसक काय कया। वे
श -सि त घोड़े पर सवार होकर चुपचाप परकोटे से बाहर िनकल गए। बाहरी
परकोटे के बाहर, खाई के उस पार दि ण-पि म कोण पर, परकोटे से सटा जो
महाकाल भैरव का मि दर था, वे वहाँ तक चले गए। बड़ी देर तक वे मि दर से दूर-दूर
उसके चार ओर घूम-घूम कर कु छ िनरी ण करते रहे। फर वे िहर या नदी के कनारे -
कनारे अघोरवन के अिभमुख चलते चले गए। दो हर दन चढ़ आया था और सूरज क
धूप खूब साफ चमक रही थी। उसम बलखाती ई िहर या का जल िपघलते ए वण
क भांित चमक रहा था। कनारे क बालू चाँदी क भाँित चमक रही थी।
चार तरफ स ाटा था। दूर तक मनु य का नामो-िनशान न था। दूर पर भास
का नगरकोट और उसके ऊपर महालय का वण-कलश चमक रहा था। दामो महता
चौक े हो चार और राह-बाट ताकते नदी के उस पार अघोरवन क काली-काली
पहािड़य क चो टय को, और कभी दूर तक टेढ़ी-मेढ़ी बहती ई ीण िहर या नदी
क धार को देखते चल रहे थे। एकाएक उ ह ऐसा तीत आ क िहर या नदी के उस
पार अघोरवन के तट पर कोई व तु िहलती और इधर-उधर घूमती फर रही है। उ ह
बड़ा कौतूहल और भय भी आ। वह तो अग य थल है, िपशाच का वास है, मनु य का
वहाँ जाना-रहना अश य है, तब यह या कोई िपशाच या ेत है?
स मुख ही महा मशान था। पर तु इस समय वहाँ भी स ाटा था। उ ह ने एक
बार उधर देखकर फर अपनी दृि उसी िहलती ई व तु पर ि थर क । उ ह ने अब
प देखा। वह मनु य मू त है और अ पर सवार है। वह बड़े यान से उस मनु य मू त
क गितिविध देखने लगे। उ ह ने देखा–उस मू त ने अपना अ िहर या म डाल दया
है, और वह इस पार आ रहा है। य - य वह िनकट आता जाता था, उसक आकृ ित
प होती जाती थी। उसके िसर पर हरे रं ग क पगड़ी थी और ऐसा ही एक चोगा
उसके शरीर पर था। उसक ल बी नंगी तलवार धूप म चमक रही थी और वह घोड़े पर
आसीन बड़ी द ता से नदी पार हो रहा था। कु छ िनकट आने पर उ ह ने देखा–सवार
कोई तुक ले छ है, उसक लाल दाढ़ी हवा म फरफरा रही है। देखते ही देखते वह इस
पार भूिम पर आ गया। आते ही उसका बिल अ हवा म उछला और छलांग मारने
लगा।
अब दामोदर महता को अपनी एकाक तथा असहाय अव था का यान आया।
दामो जैसे कू टनीत थे, वैसे ही यु -िवशारद भी थे। उ ह ने त काल खतरे को समझ
िलया। नदी-तट से हटकर सामने कु छ वृ का एक झुरमुट था, वे तेज़ी से उधर ही चल
दए।
पर तु तुक सवार ने उ ह देख िलया। तीर क भाँित अपना अ उड़ाता और
हवा म अपनी तलवार घुमाता आ वह उन पर दौड़ा।
महता ने अपना अ दो भारी वृ के बीच -बीच वि थत कया। और ि थर
होकर श ु के आ मण के वेग को रोकने के िलए स हो गए। अपने अ को थ
थकाना उ ह ने ठीक नह समझा। श ु जब एक तीर के अ तर पर रह गया, तब तुक ने
घोड़े को दािहनी ओर मोड़ा और तेज़ी से महता क बगली देकर वह पृ भाग म जा
प च ँ ा। फर एकबारगी ही उन पर टू ट पड़ा। महता सावधान थे। उ ह ने त ु गित से
उसी ओर अ को घुमाकर ितरछा खड़ा कया। तलवार उ ह ने हाथ म ले ली।
श ु को वार करने का अवसर नह िमला। इस पर खीझकर वह एक तीर के
फासले पर चला गया और फु त से तलवार ख चकर वहाँ से बाज़ क भाँित झपटा।
महता के िनकट आकर य ही वह हाथ ऊँचा करके तलवार के एक वार म श ु के दो
टु कड़े करना चाह रहा था क महता ने फु त से घोड़े को एड़ देकर उसपर धके ल दया।
फर अ य त कौशल से उसे उसक कमर म हाथ डालकर उसे घोड़े से नीचे िगरा िलया,
और बड़े ही ह त-लाघव से उसक गदन अपने धनुष क डोरी म फँ सा ली। धनुष क
डोरी म गदन फँ सने से तुक श ु छटपटाने लगा। तलवार उसके हाथ से छू ट गई। दोन
यो ा पूरा बल लगाकर पृ वी पर -यु करने लगे। पर तु गदन डोरी म फँ सी रहने
से तुक के हाथ-पैर ढीले पड़ गए। दामो महता ने दो-तीन करारे झटके दए और
अनायास ही उसक छाती पर चढ़ बैठे। और तलवार क धार उसक गदन पर रखकर
कहा, ‘‘अब तू मर।’’
क तु पराभूत तुक ने मृ यु क िवभीिषका से तिनक भी भयभीत न होकर कहा,
‘‘शाबाश बहादुर, तुम िसपाही तो नह हो, मगर बड़े बहादुर हो, मरने से पहले म
तुमसे दो ती करना चाहता ।ँ ’’
‘‘तुम कौन हो?’’
‘‘दु मन।’’
‘‘तब तुम समझते हो क तु हारी दो ती म फँ सकर म तु हारी जान ब श
दूग
ँ ा?’’
‘‘अगर तुम अपनी बहादुरी के िसले म िसफ मेरी दो ती कबूल कर लो, तो म
तु हारे हाथ से मरना हज़ार िज़ दिगय से भी बेहतर समझूँगा। फर मरने से पहले म
तु ह कु छ सौगात भी दूग ँ ा।’’
‘‘ या?’’
‘‘यह तलवार, िजसे तुमने फतह कर िलया।’’
‘‘देखता ,ँ तुम एक बहादुर दु मन हो।’’
‘‘और बहादुरी क क करके म तुमसे तु हारी दो ती माँग रहा ।ँ ’’
‘‘ फर तो मुझे तु हारी जान ब शनी होगी।’’
‘‘जान दु मन क है, दो तमन। मगर अपना हाथ दो।’’
महता ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। तुक ने अपनी तलवार उसके हाथ म थमा
कर कहा, ‘‘इसे नाचीज़ न समझना बहादुर।’’ फर कु छ ठहर कर उसने धीरे से कहा,
‘‘अब तुम अपना काम करो, खुदा हा फज़।’’
वह आँख ब द करके िनढाल िगर गया। दामो महता उसक छाती से उतर गए।
उसके क ठ से धनुष क डोरी िनकाल ली और सहारा देकर उसे उठाते ए उ ह ने
कहा–
‘‘तुम आज़ाद हो दो त।’’
‘‘इस आज़ादी क कोई क मत तुम नह लोगे?’’
‘‘दो त को कोई चीज़ क मत लेकर नह दी जाती।’’
‘‘सच है, सच है।’’ उसने अपने कपड़ को ठीक कया। फर कहा–‘‘तो तुमने
मेरी दो ती कबूल कर ली?’’
‘‘तुम अगर इसके िलए पछता रहे हो, तो म तु हारी दखा त नामंजूर भी कर
सकता ।ँ ’’
‘‘नह , मगर हम कसम खानी होगी। म खुदा और पैग बर क कसम खाता ँ
क तु हारी दो ती को दुिनया क सबसे बड़ी िनयामत समझूँगा।’’
‘‘और म भी भगवान् सोमनाथ क कसम खाकर कहता ँ क जब तक तु हारा
िम -भाव कायम है, म सदैव तु हारा िम र ग ँ ा।’’
‘‘तुम कहाँ तक मेरा यक न कर सकते हो, दो त?’’
‘‘जहाँ तक एक दो त का कया जा सकता है।’’
‘‘तो तु ह मेरे साथ चलना होगा।’’
‘‘कहाँ?’’
‘‘अमीर गज़नी के ल कर म।’,
‘‘ कसिलए?’’
‘‘उनके ब हम अपनी दो ती क सनद दगे। म अमीर का एक खास उमरा
,ँ मेरे िलए यह ज री है।’’
महता ने मम-भेदनी दृि से तुक क ओर देखा। उसक काली चमक ली आँख
िनभय आन द क धारा बहा रही थ । उसने कहा–
‘‘ या तु ह मुझसे डर है?’’
‘‘नह , मुझे तु हारी बात मंजूर है।’’
दोन वीर ने अपने-अपने घोड़े ठीक कए और उन पर सवार ए। वे धीरे -धीरे
भास क िवपरीत दशा क ओर चलने लगे। ये ण दामो महता के िलए अ य त
मह वपूण थे। वे प ही एक ऐसे खतरे क ओर बढ़ रहे थे, िजसका साहस ब त कम
लोग कर सकते थे।
तुक सैिनक क ावर और बलवान था। उसका घोड़ा ब त उ म था। अपने
ब मू य व ाभरण से वह उ कु ल का भी तीत होता था। यह प था क वह
गजनी के अमीर का कोई उमराव है और महता अमीर के सै य-बल क सही झलक
अपनी आँख से देखने के िलए यह भारी खतरा उठा रहे थे। उ ह ने अभी-अभी उस
यवन श ु क आँख म एक गहरे िव ास क चमक देखी थी। तथा अभी उसे ाणदान
भी दया था। इसी से वह स साहस करके उसके साथ श ुपुरी म िनभय घुसे चले जा रहे
थे।
कु छ दूर दोन अ भुत िम चुपचाप साथ-साथ चलते रहे। तुक ने अपने घोड़े
क रास ख चकर कहा, ‘‘ या म अपने नए दो त का नाम जान सकता ।ँ ’’
‘‘म गुजरे र का एक सेवक ,ँ और अब लोग मुझे महता के नाम से पुकारते
ह।’’
‘‘अगर गुजरात के राजा के पास ऐसे ही सेवक ह, जैसे क तुम हो, जो श ु के
सामने पहाड़-सा अिडग और दो त के सामने पहाड़-सा महान् है, तो म गुजरात के
महाराज के भा य पर ई या क ँ गा।’’
‘‘ या तु हारा ऐसा तबा है क तुम तापी गुजर र के भा य से पधा कर
सको?’’
‘‘यह म नह कह सकता दो त। ले कन मने जो कहा है, उसे फर दुहराता ।ँ ’’
‘‘तो मेरा नाम तुमने पूछ िलया तुक सरदार, या तुम भी मुझे अपना नाम
बताओगे?’’
‘‘ य नह , मगर थोड़ा स करने के बाद। अभी तुम मुझे िसफ एक दो त ही
समझ लो।’’
‘‘य द इसम कोई भेद है तो ऐसा ही सही, ले कन तुम यह जानते हो क म इस
तलवार क दो ती के नाम पर कतना खतरा मोल ले रहा ।ँ ’’
‘‘ले कन रसूल और खुदा के नाम पर जो तु हारा दो त बना है, उसके िज दा
रहते तु ह खतरे से या डर?’’
‘‘ले कन तुम या मुझे अमीर के सामने ले जाओगे?’’
‘‘मेरा िबलकु ल यही इरादा है।’’
‘‘ या अमीर एक का फर का अपने ल कर म आना पस द करे गा?’’
‘‘ य नह , जब क वह उसके एक इ ज़तदार सरदार का जीवनदाता है।’’
‘‘यह बात अमीर से कहेगा कौन?’’
‘‘म क ग ँ ा।’’
‘‘ या सचमुच गज़नी का अमीर अपने सरदार क इतनी इ ज़त करता है क
वह तुम जैसे एक अदना दरबारी सरदार के दो त का वागत करे , जो एकदम अजनबी
है?’’
‘‘दो तमन्, अमीर बहादुर का क दान है, और तुम देखोगे क वह उस आदमी
को उठकर गले से लगाएगा, िजसम बहादुरी और बड़ पन दोन ही ब त ह।’’
‘‘खैर, यह म देख लूँगा।’’ महता चुप हो गए। कु छ देर दोन चलते चले गए।
धीरे -धीरे माग के घुमाव के उस ओर घने जंगल म अमीर क छावनी दृि गोचर ई।
मील तक छावनी का फै लाव था। हाथी, घोड़े, पैदल, िसपाही, नौकर-चाकर सब
अपना-अपना काम कर रहे थे।
भावशाली तुक ने िनर तर एक िवशेष संकेत-श द करते ए छावनी म िव
होना ार भ कया, और वे दोन िन व छावनी क म थली म प च ँ गए।
महता उस िवराट् सै य क व था और च ड स ा को देखते ए तुक सवार
के साथ-साथ चलते चले गए।
अब उनम कभी-कभी ब त धीरे -धीरे बातचीत होती थी। तुक सवार कु छ
मह वपूण बात कहना चाह रहा था। पर तु महता चुपचाप ने से जो देख रहा था, उस
पर िववेचन कर रहा था। इसिलए वह बातचीत म अ यमन क हो रहा था।
इसी समय वे एक लाल रं ग के ब मू य खेमे के स मुख जा खड़े ए। उसके
स मुख कोई पचास तीरं दाज़ पहरा लगा रहे थे। उ ह ने अदब से तुक सरदार का
अिभन दन कया। तुक फु त से घोड़े से कू द पड़ा। उसने संकेत से महता को घोड़े से
उतरने के िलए कहा और बताया वह अमीर से िनवेदन करके उसे अभी भीतर बुला
लेगा।
वह भीतर चला गया। दो ह शी गुलाम ने आगे बढ़कर अ थाम िलए, सैिनक
घूर-घूरकर महता को देखने लगे। महता अपने िवचार म डू व-उतरा रहे थे। पर तु उ ह
अिधक सोचने-िवचारने का अवसर नह िमला। एक स ा त दरबारी पु ष ने अ य त
आदर-मान से उसका अिभवादन कया और अमीर के खेमे म चलने का िवन अनुरोध
कया। महता धड़कते कलेजे से अमीर के खेमे म घुस गए।
थम य वह वहाँ क महाघता देख, सकते क हालत म रह गए। खेमे म जो
सजावट थी, वह अक पनीय थी। उसम क मती कालीन िबछे थे। खेमे के म यभाग म
मसनद के िनकट अमीर सुलतान महमूद स -वदन खड़ा था। उसने कहा, “खुश-
आमदन दो तमन, मेरे पास मसनद पर बैठकर मुझे ममनून करो, और बताओ क गज़नी
का सुलतान अपने दो त को कस तरह खुश कर सकता है?’’
दामोदर महता ने दरबारी कायदे से सुलतान का अिभवादन कया और कहा,
‘‘आलीजाह, य िप यह गुलाम आपको पहचानता न था, फर भी कु छ भान हो गया था
क उसे, हो न हो, जूर क ही दो ती का तबा िमला है। हम लोग दुभा य से दो
अलग-अलग उ े य म स ह, पर तु नामवर अमीर दामोदर महता को जब चाहगे,
दो त क तरह काम म ले सकगे।’’
अमीर ने कहा, ‘‘दो त्मन, म चाहता ँ क तु ह िनहाल कर दू,ँ मगर म देखता
ँ क तुम वह बशर हो िजसे शहनशाह ममनून नह कर सकते।’’
‘‘ फर भी नामवर सुलतान नाजुक मौक पर जब चाह, दामोदर महता को
अपना दो त पाएँगे।’’
‘‘मुझे यक न है, ले कन म चाहता ँ क तुम मुझसे कु छ माँगकर मुझे ममनून
करो।’’
‘‘आलीजाह ने इस साधारण राजसेवक को दो त कहकर सब कु छ दे दया। अब
और कु छ माँगने को रहा नह ।’’
‘‘ या इस जंग क बाबत मेरे दो त गज़नी के सुलतान से कु छ कहना चाहगे?’’
‘‘आलीजाह, म महा धम-सेनापित महाराज भीमदेव का स देशवाहक नह
।ँ ’’
‘‘ठीक है म समझता ।ँ तो दो त, गज़नी के अमीर क जान तु हारी अमानत
है। बस जाओ, खुदा हा फज़!’’
अमीर उठकर महता के गले िमला। खेमे के ार तक साथ आया। खेमे के बाहर
अमीर के साथ मनसबदार ने उसे िवदाई क सलामी दी। और राहदारी का सवार देकर
उसे िवदा कया।
जय शंकर
पौष क पू णमा क भात-बेला म य ही उषा क थम करण फू टी, मि दर
के िशखर पर आ ढ़ हरी ने शंख फूं का। णभर ही म चार ओर शंख और भेरी-नाद से
दशाएँ गूँज उठ । डंक और न ार क धमक से भास गरज उठा। सह सैिनक ने
जयघोष कया–‘‘जय शंकर!’’
महासेनापित युवराज भीमदेव हड़बड़ाकर उठ बैठे। पा वद ने घबराए ए
आकर कहा, ‘‘आ मण आ, अ दाता।’’
‘‘तो मेरे श और व ला’’ भीमदेव तुर त ही सि त होकर कोट पर चढ़
गए। वहाँ गंग सव , जूनागढ़ के राव, लखा कामानी, के सर मकवाणा और दामोदर
महता आ द साव त सिचव उपि थत थे। ब त लोग भाग-दौड़ रहे थे। सैिनक कं गूर पर
चढ़ रहे थे। धनुधर धनुष ताने आ ा क ती ा म थे। घुड़सवार भाले-बरदार ांगण
म ब -प रकर खड़े थे।
दूर नदी के कनारे - कनारे अध दत सूय के चरण-तल म धूल-गद के बादल उड़
रहे थे। और उसम से काली-काली मूितयाँ कट होती-सी दीख रही थ –पहले दो-चार
और पीछे शत-सह । ये अमीर के अ ारोही थे।
झपटते ए बालुकाराय ने बुज म वेश कया। उ ह ने महाराज भीमदेव के
हाथ म धनुष-बाण देकर कहा, ‘‘देिखए तो महाराज, यह थम बाण है, इसी से आप
श ु का इस धमनगरी म स कार क िजए।’’
‘‘अभी ठहरो बालुक’’ महासेनापित ने सुदरू उड़ती ई धूल पर दृि गड़ाकर
कहा। सबने देखा, एक दुधष यो ा काले अरबी घोड़े पर सवार हो सेना से बाहर आया।
उसके साथ कु छ और चुने ए सवार थे। सबके सुनहरी तारकशी के व उस भात-
कालीन सूय क पीत करण म चमक रहे थे। जो सबसे आगे था, वह पगड़ी पर एक
मू यवान प े का तुरा बाँधे था। उसक दाढ़ी लाल रं ग क थी। वह णभर शांत भाव
से खड़ा महालय क फहराती वजा को देखता रहा, फर उसने साथी से धनुष लेकर
एक बाण संधान कया। तीर खाई म आकर िगरा।
बालुकराव ने कहा, ‘‘महाराज, अब आपक बारी है,’’ बाणबली ने कहा, ‘‘ या
यही गज़नी का अमीर है?’’ महता ने आगे आकर कहा, ‘‘यही है महाराज!’’
बाणबली ने बारह टंक क अनी बाण म लगाकर धनुष को कान तक ख चा।
और फर बाण छोड़ दया। बाण तुर-सिहत अमीर क हरी पगड़ी को लेकर भूिम पर जा
िगरा।
सैिनक गजना कर उठे , ‘‘जय शंकर! जय सोमनाथ! हर हर महादेव,
ब भोला।’’
वह लाल दाढ़ी वाला सरदार घोड़े को घुमाकर तीर क भांित पीछे को फरा।
और एक च र काटकर फर सेना के म य भाग म आ खड़ा आ। उसने संकेत कया और
तीर क एक बौछार मि दर पर पड़ी। साथ ही अ लाहो-अकबर का गगनभेदी नाद भी
उठा। पर तु उसके उ र म इधर से कोई उ र नह दया गया। तुक सवार आगे बढ़कर
खाई के कनारे तक चले आए। ब त से सवार ने घोड़े पानी म डाल दए। ब त सवार
तट पर खड़े होकर ही तीर फकने लगे।
इसी समय बालुकाराय ने संकेत कया और मि दर के कं गूर से तीर क वषा
ार भ ई। इस भीषण बाण-वषा से घबराकर तुक सै य क गित क गई। अनेक सवार
मुँह मोड़कर लौट चले। अनेक खाई के जल म ही डू बने उतराने लगे। पर तु कु छ खाई के
इस पार आकर ऊपर चढ़ने क चे ा भी करने लगे। इन पर राव के क छी यो ा ने
तलवार क भारी मार करनी ार भ क । देखते-ही-देखते वह सारा रण े भयानक
मार-काट, िच लाहट और वीभ स दृ य से भर गया।
सूय का खर तेज बढ़ने लगा और यु भी घमासान होने लगा। बाण से
आकाश छा गया। घायल क कराह और ची कार से वातावरण गूँज उठा। अपरा न म
सूया त से पहले ही अमीर ने यु ावसान का संकेत कया। तुक और अरबी अपने यो ा
मृत शव को छोड़ भ ो साह पीछे िशिवर म लौटे। िह दू सै य म जय जयकार का बोल-
बाला आ।
दामो महता क चौक
थम दन के यु म िवफल-मनोरथ होकर अमीर के लौट जाने पर हष और
उमंग क जो बाढ़ राजपूत सैिनक म आई, उसे अपनी आँख देखते, शाबाशी देते तथा
दूसरे दन के यु के िलए ठीक-ठीक व था करते, ज थेदार को आदेश देते महाराज
महा सेनापित भीमदेव ब त रात गए तक सारे मोच पर घूमते रहे। आज के यु म
िह दू सै य क कु छ भी हािन नह ई थी। एक भी आदमी ापक प से आहत नह
आ था। एक भी मोचा भंग नह आ था। थम बाण से जो अमीर क पगड़ी िगरा दी
गई थी, उसक हँस-हँसकर चचा हो रही थी। िसपाही अपने-अपने कौशल क ड ग मार
रहे थे।
ब त रात बीतने पर महाराज भीमदेव अपने शयन-क म गए। वहाँ उ ह
सूचना िमली क सव अभी तक समािध थ ही ह। सब सेनापित और म डले र एक-
एक करके महासेनापित से िवदा ए। गंगा ने आकर महासेनापित को देव- साद दया
और कहा, सव तथा देवता के कल भी दशन नह ह गे।
धीरे -धीरे सारा सोमप न न द म ऊँघने लगा। दशा म शाि त एवं नीरवता
छा गई। के वल एक ि जो अब भी िव ाम नह कर पाया, वह था दामो महता। वह
चुपचाप सारे मोच को बारीक से देखता आ, और बीच-बीच म अमीर क छावनी म
जलती और धूकती ई हज़ार मशाल को देख रहा था। उसी के पीछे चुपचाप उसके दो
चर उसी क भाँित छाया-मू त बने चल रहे थे।
ा रका- ार पर आकर महता खड़ा हो गया। उसने बड़े यान से ार के सब
मोच को देखा। फर उसने पीछे मुँह कर म द वर से कहा, ‘‘यहाँ कसक चौक है
आन द?’’
‘‘द ा सोलंक क ।’’
‘‘हाँ, हाँ, पर तु इस समय द ा कहाँ ह? दीख नह रहे।’’
‘‘उधर बुज पर वे बैठते ह, बैठे तो ह सामने।’’
‘‘ठीक है, क तु तुम कहते हो, वह युवक इसी घाट पर आता है।’’
‘‘जी।’’
‘‘द ा ने या उसे एक बार भी नह देखा?’’
‘‘मालूम तो ऐसा ही होता है। मने द ा से पूछा था क चौक -पहरा सब ठीक
है, तो उ ह ने हँसकर यही कहा, ‘‘सब ठीक-ठाक है भाया, जब तक यह तलवार है।’’
‘‘हाँ, आँ, उ ह तलवार ही का तो भरोसा है।, अरे आन द, ये यो ा तलवार ही
को काम म लेना जानते ह, बुि को नह , ले कन तूने कहा था क वह आज भी
आएगा।’’
‘‘जी, हाँ।’’
‘‘कब?’’
‘‘दो पहर रात-बीते।’’
‘‘इसम तो अब देर नह है, ले कन तूने तो कहा था, वह कृ ण वामी क लड़क
से ेम करता है, वह तो अब है नह , फर अब य आता है?’’
“िस े र से िमलने।’’
‘‘िस दे र कौन है?’’
‘‘अमीर और भ का म यदूत।’’
‘‘ठीक कह सकते हो?’’
‘‘जी, मने वयं उनक बात सुनी है, िन य ही कु छ गहरी चाल चली जा रही
ह।’’
‘‘तो तुम इस िनणय पर प च ँ चुके हो क भ सह ाि तप का जो ढ ग कर
रहा है, उसका कु छ और ही उ े य है?’’
‘‘स देह तो मेरा यही है, अब आज आप वयं देख ल।’’
‘‘ या वह यो ा है?’’
‘‘खूब त ण है।’’
‘‘पर शायद बुि मान नह !’’
‘‘कम–से–कम सावधान नह है, पर साहसी है।’’
‘‘तो आन द, तू उसका िव ास–भाजन बन।’’
‘‘इसी के िलए तो म यह चीज़ लाया ’ँ ’–आन द ने हंस ँ कर कहा।
‘‘ या?’’
‘‘ ा रका– ार क चाबी।’’
‘‘ क तु...।’’
‘‘नकली है, इसे िसफ दखाऊँगा, दूग ँ ा नह । उसी से काम हो जाएगा।’’ आन द
हँसा। इसी समय पानी म कु छ श द आ। आन द ने कहा, ‘‘वह शायद आया है, आप
इसी वृ क आड़ म िछप जाएँ, उसका कौशल देिखए, कस युि से आता है क द ा
का चौक –पहरा ही थ जाता है।’’
‘‘ऐसा वह य न करे , यह का खेला–खाया है, सब घर–घाट जानता है, द ा
क आँख म धूल झ कना उसके िलए क ठन या है!’’
‘‘ या द ा को सावधान कर दया जाए?’’
‘‘तब तो िशकार हाथ से िनकल जाएगा, कसी से कु छ कहने क आव यकता
नह है, देखो वह छाया–मू त।’’
‘‘वही है, आप उस वृ क ओट म हो जाएँ।’’
‘‘ठीक है, देवसेन, तुम अवसर पाकर पानी म पैठना, और अ तत: सावधानी से
उसका पीछा करना। तथा सूय दय होने से पहले ही मुझे उसका सब िववरण देना।’’
देवसेन णभर म दृि से ओझल हो गया। दामो महता पीछे हटकर वृ क
ओट म िछप गए। आन द छाया म िछपता आ तट क ओर बढ़ा। तट पर एक ब त
बड़ा ाचीन वट–वृ था, उसक अनिगनत जटाएँ जल तक लटक ई थ । ऐसी ही
एक जटा को पकड़कर कमर तक जल म घुसकर उसने एक श द कया, श द सुनकर
जल से एक िसर बाहर िनकाला।
आन द ने कहा, ‘‘िनभय रहो िम , और िनकट आ जाओ, कोई खटका नह
है।’’
छाया–मू त ने पास आकर कहा, ‘‘द म म ले आया ,ँ यह लो!’’ उसने सोने से
भरी एक भारी थैली आन द के हाथ म दे दी, और इधर-उधर िसर िहलाकर बाल का
जल झाड़ा। वण-द म से भरी थैली लेकर आन द ने कहा, ‘‘ठीक है, म भी तु हारी
चीज़ ले आया ,ँ देखो!’’ उसने व से िनकाल कर बड़ी–सी चाबी दखाई।
युवक ने स होकर कहा, ‘‘लाओ, दो, बाक इनाम कल िमल जाएगा।’’
आन द ने चाबी व म िछपा कर कहा, ‘‘अभी नह िम , सब काम खूब होिशयारी से
आगा-पीछा देखकर होना चािहए। अभी दे दूग ँ ा, तो हम पकड़े जाएँगे। ात:काल चाबी
माँगी जाएगी, न देने से मुझ पर िवपि आएगी। तथा ार पर पहरा-चौक बढ़
जाएगा। हमारी सारी योजना थ जाएगी।’’
‘‘तब?’’
‘‘मने एक युि सोची है। इसी कार क दूसरी चाबी बनवाई है, वह कल
िमल जाएगी। उसे लेकर तुम अपना काम करना। कसी को स देह भी न होगा।’’
‘‘यही सही, पर अब िन य आने म जोिखम है।’’
‘‘बस, एक बार और। पर तु म तु हारी एक सहायता करना चाहता ।ँ ’’
‘‘ या?’’
‘‘एक पु ष से मुलाकात।’’
‘‘कौन है वह?’’
‘‘काम का आदमी है’’
‘‘कहाँ?’’
‘‘जल के बाहर आओ।’’
‘‘वह या सहायता करे गा?’’
‘‘सब-कु छ?’’
‘‘तुमसे भी अिधक?”
‘‘सबसे अिधक।”
‘‘ या उस पर िव ास कर सकता ’ँ ’
‘‘ ाण का इतना मोह है तो ऐसा दु साहस न करो। जाओ, यह लो अपने
द म।’’
‘‘नाराज न हो दो त।’’
‘‘ फर िव ास य नह करते?’’
‘‘करता ।ँ ’’
‘‘तो मेरे साथ आओ।’’
दोना ि शाखा के सहारे तट पर आए। और पेट के बल रग कर उस वृ
के िनकट प चँ ।े दामो महता भी वहाँ पेट के बल धे पड़े थे।
दामो ने कहा, ‘‘यही वह युवक है?’’
‘‘जी हाँ।’’
‘‘तो ज़रा िखसक कर मेरे पास आओ।’’ युवक दामो महता से सट गया।
महता ने छाती के नीचे से तलवार िनकाल कर कहा, ‘‘इसे भली-भाँित देखकर
बताओ क पहचान सकते हो, यह कस क तलवार है?’’
युवक ने घने प के झुरमुट से छन कर आती ई च क ीण छाया म
तलवार को भली-भांित परखकर कहा, ‘‘पहचान गया।’’
‘‘तो िजसक यह तलवार है, उसके पास जाकर कहो, क िजसके पास यह
तलवार है, उसके साथ तु ह कै सा वहार करना चािहए। फर य द वह तु ह यहाँ भेजे
तो कल इसी समय यह भेट होगी–और बात फर।’’
यह कहकर दामो महता िखसक कर तेज़ी से िनकट क एक अंधेरी गली म घुस
गए।
युवक सकते क हालत म रह गया। आन द ने कहा, ‘‘ या तुम जानते हो, यह
कसक तलवार है?’’
‘‘तुम जानते हो?’’
‘‘नह ।’’
‘‘म भी नह जानता।’’ युवक के चेहरे पर गहरी घबराहट के िच न थे। संयत
होकर उसने कहा, ‘‘कल मुझे आना होगा दो त।’’
‘‘इस तलवार को देखने?’’
‘‘बेशक!’’
‘‘इसी समय?’’
‘‘इसी समय।’’
‘‘तो तब तक के िलए िवदा।’’
युवक ने आन द से हाथ िमलाया। और उसी भाँित रग कर पेट के बल पानी म
पैठ गया। आन द ने म द वर से कहा, ‘‘मेरे द म मत भूलना।’’
युवक ने कहा, ‘‘अ छा।’’
दूसरा दन
सूय दय से पूव ही अमीर क सेना म न ारे बज उठे । न ार क गड़गड़ाहट से
हड़बड़ा कर राजपूत यो ा भी स होकर अपने-अपने मोच पर जा जमे। सोरठी
सरदार और मुकुटधारी राजा लोग अपनी-अपनी टु किड़याँ ले-लेकर िनधा रत मोच पर
जा डटे। ा ण ने महालय म वेद-पाठ कया। देव ार ब द होने पर सबने देव ार ही
क व दना क । प नी सेना म भी डंके-दमामे बज उठे और रण संहे फूं के गए।
महाराज सेनापित भीमदेव ने ात:कृ य से झटपट िनवृ होकर गोदान-
वणदान दया। ा ण ने देव विन करके आशीवाद दया। राजा ने तलवार से मौत
माँगी। और घोड़े पर सवार होकर, मोच के िनरी ण को चल दए। महमूद क सेना से
चुने ए तुक-सवार क टु किड़याँ मोच बनाकर बाण-वषा करती ई खाई क ओर
अ सर । धीरे -धीरे अमीर क सेना का सारा भार म य ार पर आ जमा।
यह देख अपने-अपने सेनापितय के आदेशनुसार हज़ार राजपूत यो ा
मोचब दी करके बाणवषा करने लगे। खाई के दोन तट पर दोन ओर के शूरवीर दूर
तक डटे बाण-वषा करने लगे। पर तु अमीर िन पाय था। उसके बाण थ जा रहे थे।
उधर खाई के इस पार तथा कोट से जो बाणवषा हो रही थी, वह आगे बढ़ती ई अमीर
क सेना क भारी ित कर रही थी। अमीर ने दुधष साहस करके हािथय को खाई म
धके ल दया, उसी के साथ अ लाहो-अकबर का नाद करते सह तुक िसपाही भी पानी
म कू द पड़े। बालुकाराय ने कोट पर तेज़ी के साथ धनुधर को अवि थत कर तलवार के
धनी क छी सवार को मु य ार पर स कया। खाई म आधी दूर तक श ु के हाथी
घुस आए। तो राजपूत यो ा भी ‘जय-जय महादेव सोमनाथ’ का नाद करते ए जल म
कू द पड़े। उ ह ने िसमट कर अमीर क म य सेना पर वार करने ार भ कए। पर तु
अमीर के हाथी धंसे ही चले आ रहे थे। ऊपर से दोन ओर से जो बाण-वषा हो रही थी,
उससे आकाश भरा पड़ा था। महासेनापित भीमदेव एक ऊँचे बुज पर खड़े यु देख रहे
थे। बालुकाराय बल परा म से श ु क सेना का गितरोध कर रहे थे, य िप क छी
यो ा क मार से अमीर के हािथय क पंि दो भाग म िवभ हो गई थी, और
राजपूत ने तलवार से उनके बीच दरार बना ली थी। वे कं धो पर ढाल रखे जल म
तलवार चला रहे थे। पर अमीर के िसपािहय का तांता ही नह टू ट रहा था। वह
दबादब सेना को खाई म धके ल रहा था। हािथय क ओट म असं य बबर यो ा खाई
पार कर रहे थे। उनपर न तीर क मार थी, न तलवार क । महाराज भीमदेव ने इस
क ठनाई को देखा। उ ह ने त काल कमा लाखाणी को आदेश भेजा क अपने कछु से
अमीर क गज-सेना म धंसार करो। संकेत पाते ही दो सौ कछु ए ितरछी छोटी-छोटी
तलवार लेकर पानी म पैठ गए। जल के भीतर-ही-भीतर वे अमीर के हािथय के चार
ओर फै लकर अपनी ितरछी तलवार से हािथय क सूंड और पैर म करारे घाव करने
लगे। अपने काम म वे बड़े उ ताद थे। क छी यो ा उ ह घेर कर उनक र ा करने लगे।
देखते-ही-देखते खाई का जल र से लाल हो गया। हाथी, कछु से सूंड और पैर म
घाव खाकर चंघाड़ते ए सूंड़ उठा-उठाकर पीछे क ओर अपनी ही सेना को कु चलते
ए भागे। अमीर इस भगदड़ का कु छ भी अिभ ाय न समझ सका। उसने भागते सैिनक
को ब त उ सािहत कया, पर हाथी भाग रहे थे, सैिनक नह , अत: भगदड़ बढ़ती ही
गई। अमीर ने ोध म आकर अपना घोड़ा खाई म छोड़ दया। यह देख ‘अ लाहो-
अकबर’ का व -नाद करके दस हज़ार बलूची सवार भी खाई म पैठ गए। वे छाितय
क दीवार बनाकर आगे बढ़ने लगे। उनक सुर ा म दो हज़ार कारीगर अपने औज़ार
को लेकर बढ़ चले। हािथय पर र सी और लकड़ी के त त से बना पुल था। खाई के उस
ओर पुल खूंट से जमा दया गया था–अब अमीर क खास तलवार राह बनाती दस
हज़ार तलवार क छ -छाया म खाई पर पुल को फै ला रही थी।
बालुकाराय ने यह देख, अधीर होकर अपनी समूची गजसै य को मु य ार पर
फै ला दया। और वे अपने चुने ए तीन सह सोरठी अ ारोिहय को ले पानी म पैठ
गए। खाई म घनघोर यु होने लगा। हािथय , घोड़ और मनु य क लाश पानी पर
तैरने और समु क ओर बहने लग । लाश को पैर से ं दते ए अमीर क सेना खाई
पर पुल को फै लाती आगे बढ़ी। नीचे तलवार के हाथ चल रहे थे ऊपर बाण-वषा हो रही
थी।
महाराज भीमदेव ने यु क गितिविध को देखकर सैिनक को बाण के थान
पर प थर बरसाने का आदेश दया। उधर मु य ार को प थर से भरवा देने का ब ध
कया। चबूतर , मि दर और मकान से बड़े-बड़े प थर उखाड़ कर मु य ार को प थर
से ऊपर तक पाट दया गया। पर तु अमीर क गित म बाधा नह प च ँ ी। वह अपने
दुधष बलूची सरदार को िलए बढ़ता ही चला आ रहा था। और अब वह पुल खाई के
इस पार तक आ प च ँ ा था। महाराज भीमदेव ने यह िवपि देखी। वे फु त से कोट से
उतरकर गज-सै य म घुस गए। उ ह ने चुपचाप कु छ म त हाथी ले पीछे हटकर पा व से
खाई म वेश कया। उ ह घेरकर लाट यो ा जल म पैठे। महाराज भीमदेव िबना बाधा
के खाई के म य भाग म प च ँ गए। इस बीच अमीर के ब त से यो ा इस पार प च ँ
जल से बाहर आ तलवार क छाया म पुल को जंजीर से बांधने लगे। भय और आशंका
क लहर फै ल गई। इसी समय महाराज के म त हािथय ने बीच धार म पुल को ट र
दी। पुल एक बार िहला। महावत ने वेग से हािथय को ला। म हाथी चंघाड़ते ए
पुल को धके लने लगे। अमीर यह देख घबराकर अपनी बलूची सेना ले उधर को पलटा।
बालुकाराय ने भी यह देखकर अपने क छी यो ा को महाराज के चार ओर फै ला
दया। इधर अमीर के सैिनक मु य ार पर झटपट पुल को जंज़ीर से बांध देने म ाण
खो रहे थे। सौ-सौ, हज़ार-हज़ार, बलूची सैिनक लाश को र दते ए जल से बाहर आ
रहे थे। उधर जल के म य भाग म अमीर तड़प कर जी-जान से महाराज के हािथय पर
िपल रहा था। बालुकाराय के क छी यो ा बेढब तलवार फक रहे थे। खाई के इस पार
ट ी दल के समान बबर पठान और तुक पुल के सहारे -सहारे बढ़े चले आ रहे थे। ये
दोन ही प के िलए शंका और स देह के ण थे। इसी समय महावत ने हािथय को
एक साथ ल दया। तलवार और भाल क चोट से वे बौखला उठे , उनक सि मिलत
ट र को पुल न झेल सका। वह आिखर टू ट गया। पुल के सहारे हज़ार तुक-सैिनक
सवार जल म डू बने-उतराने लगे। राजपूत ने हषनाद कया, ‘हर-हर महादेव!’ और
चार ओर से घेर कर मार करनी ार भ क । बड़ी ही क ठनाई से अमीर अपने ाण
बचाकर खाई के उस पार प च ँ ा। उसक सारी सेना िछ -िभ हो गई। इधर जो यो ा
प च ँ चुके थे, सब काट डाले गए। जो ाण–भय से जल म कू दे, उनम अिधकांश डू ब
गए। कु छ तलवार के घाट उतार दए गए, कु छ कसी तरह मार खाकर उस पार प च ँ ।े
राजपूत ने पुल म आग लगा दी।
अमीर रण े से एक कोस पीछे हट गया। अभी सूय म या न तप रहा था।
मि दर म िवजय-दु दुभी बज उठी–भेरी, शंख, घिड़याल से दशाएँ गूँजने लग । सूय क
उ वल धूप म महालय के सुनहरी कं गूर को अमीर हताश भाव से खड़ा देख रहा था
और उसके सैिनक अ त- त भाग रहे थे।
आधे दन के इस महा घनघोर यु म य िप िह दु क भी ब त हािन ई
थी, पर तु अमीर क तो सारी सेना क व था ही िबगड़ गई थी। सब से बड़ी बात तो
यह थी उसक समूची ही गज-सै य का स यानाश हो गया था। उसके पास अब सौ हाथी
भी शेष नह बचे थे–जो घायल न ह । कछु ने सबक सूंड़े काट डाली भ , पैर म घहरे
घाव कर दए थे।
अमीर शोक और िनराशा म अिभभूत हो घोड़े से उतर वह भूिम म दोन हाथ
से मुँह ढांपकर बैठ गया। उसने शोक-संत होकर कहा, ‘‘या अ लाह, ऐसा दन तो
कभी िज़ दगी म देखा ही न था।’’ मि दर म न ारे बज रहे थे। सादी क तैया रयाँ हो
रही थ । य ही घायल और थ कत भीमदेव अपने क के ार पर प च ँ ,े उ ह ने देखा-
गंग सव शा त मु ा म खड़े ह। भीमदेव ने उ ह सा ा ग द डवत् कया। सव ने
कहा, ‘‘हे धम-र क, तेरी सदा जय हो!’’
फतह मुह मद
प रिचत श द-संकेत से आ त होकर फतह मुह मद ने पानी से िसर
िनकाला। आन द ने वट-वृ क डाल पर से झूलकर कहा, ‘‘कोई डर नह है दो त,
बाहर आ जाओ’’, जब युवक ने जल से बाहर िनकल कर कहा, ‘‘वह बुजुग कहाँ ह, म
उनसे िमलूँगा
‘‘तब मेरे पीछे आओ।’’
दोन ि चुपचाप िखसक कर एक अंधेरी गली म घुस गए और टेढ़े-ितरछे
रा ते पार करते एक छोटे-से मकान के ार पर जा खड़े ए। ार पर प च ँ कर आन द
ने संकेत कया। संकेत होते ही ार खुल गया। दोन ने भीतर जाकर देखा–एक श त
क म दामोदर महता ग ी पर बैठे ह। युवक ने आगे बढ़कर अदब से उनका अिभवादन
कया।
अिभवादन का जवाब देकर महता ने हँसकर कहा, ‘‘इ मीनान से बैठ जाओ।
और कहो, िजसक वह तलवार थी, उससे मुलाकात ई?’’
‘‘ ई।’’
‘‘उसने या कहा?’’
उसने कहा, ‘‘िजसके पास वह तलवार है, उसका हर म बजा लाना लािज़म
है।’’
‘‘तो तुम उस आदमी क मयादा भी समझ गए न?’’
‘‘जी हाँ, म ज़ूर को तबे म अमीर से कसी हालत म कम नह समझता।’’
‘‘ठीक है, अब अपनी बात कहो।’’
‘‘मुझे सुलतान ने आपक िखदमत म भेजा है।’’
‘‘ कसिलए?’’
‘‘सुलतान का पैग़ाम लेकर।’’
‘‘पैगाम या है?’’
‘‘सुलह! िसफ एक चीज़ पाकर वे इस मुिहम से लौट जाएँग।े ’’
‘‘कौन चीज़?’’
‘‘जांब शी हो तो अज़ क ँ ?’’
‘‘कहो।’’
‘‘वह नाज़न ।’’
‘‘कौन?’’
‘‘चौला नतक ।’’
दामोदर महता ग भीर मु ा म णभर बैठे रहे। फर कहा, ‘‘कल भी या इसी
बात को कहने आए थे?’’
‘‘जी नह ।’’
‘‘वह बात या थी?’’
‘‘अब उस बात को रहने दीिजए।’’
‘‘तु हारा नाम या है?’’
‘‘फतह मुह मद।’’
‘‘यह तो नया नाम है, पुराना नाम या था?’’
‘‘उस नाम से अब या?’’
‘‘ फर भी, म जानना चाहता ।ँ ’’
‘‘देवा, देव वामी।’’ कहकर युवक उदास हो गया।
‘‘तुमने कृ ण वामी के पास ब त-कु छ पढ़ा-िलखा है।’’
‘‘जी हाँ, ले कन उनके पास नह , पीर के पास।’’
‘‘तुम तो सं कृ त भी जानते हो, फर ले छ भाषा य बोलते हो?’’
‘‘पर शू ,ँ दासी-पु ,ँ सं कृ त पढ़ना मुझे िनिष है, इसक सज़ा मौत है, म
ले छ भाषा नह , शाही ज़बान बोलता ,ँ जो मेरे पीर ने मुझे िसखाई है।’’
‘‘ले कन म तु ह य द तु हारे पुराने नाम से पुका ँ ?’’
‘‘बेकार है।’’
‘‘उस नाम से भी तु ह नफरत है?’’
‘‘उसक याद से भी।’’
‘‘तुमने िसफ शोभना के िलए ही धम यागा न?’’
‘‘जी नह , मने धम कबूल कया।’’
‘‘मेरा मतलब िह दू धम से है।’’
‘‘वह धम नह , कु है, धम तो िसफ इ लाम है।’’
‘‘इ लाम म तु ह कु छ िमला?’’
‘‘जी हाँ–समानता, उदारता, जीवन, आशा, आन द और दौलत।’’
‘‘और शोभना?’’
‘‘वह भी।’’
‘‘ले कन वह तो अब मेरे क ज़े म है, य द म तु ह न दू?ँ ’’
‘‘तो म आपसे लडू ग ँ ा।’’
‘‘मेरा म नह मानोगे?’’
‘‘नह जनाब।’’
‘‘अमीर का जो म है।’’
‘‘वह सुलतान के काम के िलए है, यह मेरा काम है। शोभना के िलए तो म
सुलतान नामदार से भी लडू ग ँ ा।’’
‘‘ या तु हारी ऐसी हैिसयत है?’’
‘‘हैिसयत का सवाल नह है, जनाब! तिबयत का सवाल है।’’
‘‘ या मतलब?’’
‘‘एक तरफ शोभना और एक तरफ सारी दुिनया, यही मतलब!’’
‘‘तु हारी बात से मुझे तुम पर यार हो गया, य द म तु ह शोभना दे दू,ँ और
वह तलवार भी, िजसक क मत तु ह मालूम है, तो या तुम फर देव वामी बन सकते
हो?’’
‘‘नह हज़रत, म मुद का मांस नह खाता।’’
‘‘मुद का मांस कै सा?’’
‘‘कमीना िह दू धम, ऐसा मुदा है क इसक सड़ी ई बू से दूर ही रहना
चािहए।’’
‘‘तुम शोभना के िलए इतना नह कर सकते?’’
‘‘ज़ रत नह है, शोभना के िलए मेरे पास यह तलवार है, ले कन हम लोग
व बबाद कर रहे ह।’’
‘‘खैर, तो तुम या कहना चाहते हो?’’
‘‘सुलतान क जो वािहश है, वह तो अज़ कर चुका।’’
‘‘ले कन वह तो मेरे बूते क बात नह है भाई।’’
‘‘आप या अपने देवता को बचाने के िलए एक अदना औरत क कु बानी नह
कर सकते?’’
‘‘एक अदना औरत के िलए तुमने अपना धम, ईमान, क , देशभि , सबको
लात मार दी, िवदेशी-िवधम तुक के दास बन गए, अपने ही घर को बबाद करने पर
तुले बैठे हो, इसके िसवा, गज़नी का अमीर िजसे लेकर सारी मुिहम से ही मुँह फे रने को
तैयार हो, उसे तुम ‘अदना औरत’ कहकर पुकारते हो? अभी तुम ब े हो, देव वामी,
तु हारा िसर फर गया है, और ित हंसा और वाथ ने तु ह पागल कर दया है, फर
भी तु ह यह भूलना न चािहए क तुम कसके दूत हो और कससे बात कर रहे हो–तु ह
मयादा से बात करनी चािहए।’’
फतह मुह मद का िसर झुक गया। उसने आगे झुककर दामो महता के दोन
हाथ छू कर आँख से लगाए। फर कहा, ‘‘मुझे माफ क िजए, आपक जो भी मयादा हो–
मगर आप मेरे िलए तबे म अमीर से कम नह ह। मने िसफ साफ-गोई क है, अब ज़ूर
का या म है?’’
‘‘खेद है क अमीर का यह संदश े म महाधम सेनापित तक नह ले जा सकता।’’
‘‘तो ज़ूर, मुझे ही महाराज महासेनापित तक प च ँ ा द।’’
‘‘तब तो तुर त तु हारा िसर काट िलया जाएगा, य क तुम सैिनक िनयम के
िव चोरी से पाटन म आए हो।’’
‘‘तो ज़ूर, या मेरी र ा न करगे?’’
‘‘नह कर सकता, फर तुम य द अमीर का संदश े महाधम सेनापित तक ले
जाना ही चाहते हो तो खुले प म अमीर के दूत का अिधकार-प लेकर महाराज के
पास जा सकते हो, बाधा नह होगी।’’
‘‘सुलतान के िलए या आप कु छ भी नह कर सकते?’’
‘‘सुलतान पर य द कोई गहरी िवपि आ पड़े और वह मेरा आ य चाहे तो म
उसक मदद इस तलवार क मै ी के नाम पर क ँ गा और तुम जो इस समय चोरी से
आए हो, तु ह ाण-द ड से बचाकर जीता चला जाने दूग ँ ा, यह काफ नह है?’’
‘‘काफ है जूर, म सुलतान नामदार से जूर क मेहरबानी क बात क ग ँ ा।’’
‘‘तु ह और कु छ कहना है?’’
‘‘जी नह ।’’
‘‘तो अब तुम जा सकते हो और कभी कसी मुसीबत म तु ह एक शुभ िच तक
क आव यकता हो तो मेरे पास आना देव वामी, यह मत भूलना क म तु ह यार
करता ।ँ और तु ह फतह मुह मद नह –देव वामी ही समझता ।ँ ’’
फतह मुह मद ने दोन हाथ जोड़कर िह दू रीित से महता का अिभवादन कया
और क से बाहर हो गया। आन द भी उसके साथ-साथ पीछे चला। पानी म पैठकर
फतह मुह मद ने कहा, ‘‘मेरी चीज़?’’
‘‘यह है, ले कन द म?’’
‘‘यह लो’’ युवक ने मुहर का तोड़ा आन द को पकड़ा दया। फर कहा, ‘‘वह
चीज़ मुझे दो।’’
‘‘अभी मेरे पास ही रहने दो, इससे म तु हारी मदद क ं गा।’’
फतह मुह मद ने कु छ सोचकर कहा, ‘‘अ छा, तो अब म चला।’’
‘‘ फर अब कब?’’
‘‘कल।’’
‘‘ठीक है’’ युवक ने पानी म गोता लगाया, पर तु वह गया नह । दम साध कर
कु छ देर पानी के भीतर ही भीतर बहाव से ऊपर को चला, और फर कनारे पर आकर
एक सीढ़ी के सहारे थोड़ा ऊपर आकर उसने सांस ली, फर इधर-उधर देखा।
आन द भी तट से गया नह । दो-चार कदम जाने का अिभनय करके वह लोमड़ी
क भाँित घूमकर पेट के बल रगता आ कनारे - कनारे बहाव के ऊपर चलने लगा। उसे
यह समझते देर न लगी क फतह मुह मद गया नह , पानी म यह है। जब उसने पानी
से िसर िनकाला तो आन द ने देख िलया। वह भी धीरे से जल म पैठ गया। तलवार नंगी
कर उसने हाथ म ले ली। फतह मुह मद ने डु बक लगाई और आन द ने यान से उसक
गितिविध देखी। फर उसने भी डु बक लगाई।
दोन साहसी युवक अपने-अपने काय म त पर थे। जल ही जल म वे मु य ार
तक प च ँ गए। यहाँ काफ काश था। पहरा भी ब त था। फतह मुह मद थोड़ा हटकर
गहरे जल म पैठ गया। आन द ने देखा, वह के वल िछपकर आगे बढ़ना चाहता है, वह भी
सावधानी से जल के भीतर-ही-भीतर आगे बढ़ने लगा। ि पुर सु दरी के मि दर के
पा वभाग म जल के ऊपर ही एक ब त भारी शमी का वृ था। उस वृ से आन द को
कु छ संकेत-श द सुनाई दया। उस श द को सुनकर फतह मुह मद ने पानी से िसर
िनकाल कर संकेत कया और फर कनारे क ओर बढ़ा। आन द एक सीढ़ी से िचपक
गया।
िस े र ही था। वह वृ से उतरकर सीढ़ी तक चला आया। फतह मुह मद ने
उसके कान के पास मुँह ले जाकर के वल इतना ही कहा, ‘‘मंजूर है’’ और वह पानी म पैठ
गया। आन द ने प यह श द सुना। उसने देखा, फतह मुह मद तीर क भाँित लौटा जा
रहा है। िस े र ने अपने चार ओर देखा और मि दर के िपछवाड़े क ओर चला गया।
आन द भी पानी से िनकलकर उसके पीछे-पीछे हो िलया। नंगी तलवार उसके पास थी।
िस े र चोर दरवाज़े से घुसकर जहाँ छोटे-छोटे ब त से मि दर थे, उनम च र काटता
आ जाने लगा। आन द ने भी िनरश द उसका पीछा कया। घूमते- फरते वह संकटे र
क बावड़ी के िनकट आकर एकाएक आन द क दृि से ओझल हो गया। आन द ने ब त
खोजा, पर िस े र का पता न लगा, जैसे उसे धरती िनगल गई हो। इस समय भात
क सफे दी आकाश पर फै ल रही थी। आन द पीछे लौटा।
रात के अंधेरे म
कृ ण प क ितपदा का ीण च आकाश म बांक छटा दखा रहा था।
सागर त ध था। आधी रात बीत चुक थी। इस समय सव स ाटा था। य -त
ह रय क पदचाप सुन पड़ती थी। समु क लहर तटवत च ान से टकरा रही थ ।
सुदरू श ु क छावनी क मशाल धुंधली-सी तीत हो रही थ । कमा लाखानी अपने
मोच पर मु तैद थे। उनके कान चौक े थे। वे अमीर क चु पी से स देह म थे। इससे वे
बड़ी उ सुकता और बारीक से अमीर क गितिविध पर अपनी गृ -दृि जमाए थे।
उ ह ने अपने दो सौ कु शल कछु को कसी भी ण तैयार रहने का आदेश दया आ
था।
उनके कान म कु छ असाधारण श द सुन पड़े। दूर कह बड़ी सावधानी से ठोक-
पीट हो रही थी। बीच-बीच म छपाक से कसी के पानी म िगरने का धमाका तथा तैरने
का भी स देह हो रहा था। उस ीण च - काश म साफ-साफ कु छ भी दीख नह रहा
था। पर उधर कनारे पर कु छ नौकाएँ जमा हो रही ह ऐसा उ ह अनुमान आ। उनक
दृि एक अंधकारपूण वृ पर के ि त ई। तब उ ह ने समझा क वहाँ चुपचाप कु छ
काली-काली मू तयाँ एक हो रही ह।
उ ह ने अपने िव त नायक जीवन को बुलाकर कहा, ‘‘भाया, ऐसा चल क
पैर क आहट न हो। और िजतनी ज द हो सके सारी बु जय पर तैनात ह रय को
सचेत कर दे और सेनापित से कह क िजतने धनुधर स भव ह , उन सबको िजतनी
ज दी हो सके यहाँ भेज द। सावधान रह, ज़रा भी श द न हो, ज़रा भी हलचल न हो।
यो ा मशाल साथ न लाव तथा काश से बचकर, खाई से सट कर कोट क आड़ म
यथा थान िछपकर मेरे संकेत क ती ा कर।’’
नायक ने त ण राव क आ ा का पालन कया। उसके जाने पर राव ने अपने
िनकट खड़े एक यो ा से कहा, “उधर, जहाँ समु खाई म िमलता है, उस आ कुं ज के
अंधकार-वृ म तुझे कु छ दखाई देता है भाया?’’
‘‘बापू, वहाँ तो ब त से आदमी इक े हो रहे ह, तो या कोट पर कोई आ मण
होगा?’’
‘‘श ु क सेना तो खाई से ब त दूर है, यह आ मण क तो नह , कसी दूसरी
ही वृि का उ े य दीख पड़ रहा है।
राव सोच म पड़ गए।
‘‘बापू!’’ यो ा ने िचि तत होकर कहा।
‘‘ या?’’
‘‘वे जहाज़!’’
‘‘दूर ि ितज पर कु छ वहण धीरे -धीरे भास क ओर बढ़ रहे थे। राव ने
आँख पर हाथ रखकर देखा और कहा, ‘‘भाया, वह तो अपने ही वहण ह, अमीर या
उ ह पकड़ने का य कर रहा है?’’
‘‘उ ह या सावधान नह कया जा सकता बापू?’’
‘‘कै से?’’
‘‘संकेत से?’’
‘‘मशाल से संकेत देना जोिखम का काम है।’’
‘‘और य द म संकेत-श द क ं तो? वहण के नायक मेरा संकेत- वर पहचानते
ह।’’
‘‘ठीक नह है भाया, श ु का यान उधर है भी या नह , कहा नह जा सकता।
तेरे श द-संकेत से या मशाल के संकेत से श ु का उधर यान जा सकता है।’’
‘‘पर बापू, नौका को आने देना भी तो खतरे क बात है।’’
‘‘यह तो है भाया, या तू भोला को पहचानता है?’’
‘‘हां बापू।’’
‘‘उसे इसी ण ला सकता है?’’
‘‘देखता ।ँ ’’
‘‘तो जा, और तट क सारी मशाल बुझाता जा, पर तेरी परछा भी न दीखने
पावे, हाँ।’’
यो ा ने जवाब नह दया। वह तेज़ी से एक ओर चल दया। राव फर उधर ही
देखने लगे। उ ह ने दूसरे एक यो ा को बुलाकर कहा, ‘‘भाया, तू कु छ र से िजतनी
ज द हो सके , जुटा ले। दो-चार आदमी और संग ले। पर देख, आहट न हो और इधर क
हलचल उधर श ु क दृि म न पड़ जाए, तू पृ वी पर रगकर जा।’’
सैिनक ने त काल ही आ ा का पालन कया।
इसी समय एक तट- हरी ने आकर िनवेदन कया, ‘‘महाराज, श ु चुपचाप
नाव का एक बेड़ा बना रहे ह।’’
राव ने ाकु ल होकर हरी को देखा। पर उसने संयत वर म कहा, ‘‘कै सा
बेड़ा भाया?’’
‘‘उ ह ने सैकड़ नाव को जोड़ कर एक भारी बेड़ा बना िलया है, और वे उसे
खाई के मुहाने से कु छ हटकर खूँट से बाँध रहे ह।’’
हरी साँस रोककर राव का मुँह ताकने लगा। उ ह ने फर कहा, ‘‘बापू, उधर
हमारे वहण पड़े ह, श ु कह उन पर संकट तो लाने क तैयारी नह कर रहा है?’’
क तु राव ने फर भी कु छ उ र नह दया। वे गहरे िवचार म पड़ गए।
‘‘महाराज, कु छ यो ा भी बाहर िनकािलए।’’
‘‘भाया, वे तो उन तरिणय के पास प च ँ ने से पहले ही तीर म ब ध दए
जाएँगे।’’
सैिनक िवचार म पड़कर राव का मुँह ताकने लगा। राव ने कहा, ‘‘भाया, तू
अपनी जगह पर सावधान रह, और कोई नई बात हो तो मुझे कहना। पर तु चुपचाप
मेरे पास नायक को भेज दे।’’
सैिनक चला गया। और कु छ ण बाद नायक ने आकर राव को मुजरा कया।
राव ने श ु क हलचल समझते ए कहा, ‘‘देखा तुमने?’’
‘‘बापू, महाराज को सूचना देनी होगी।’’
‘‘उ ह या इस समय क देना ठीक होगा? यह या हमारे बूते के बाहर क
बात है?’’
इसी समय भोला ने आकर मुजरा कया। राव ने कहा, ‘‘भाया, मुझे तेरी अभी
आव यकता है।’’
‘‘तो अ दाता, यह दास हािज़र है।’’
‘‘तू साहस करे गा?’’
‘‘ य नह अ दाता।’’
राव ने इधर-उधर देखकर कहा, ‘‘र से?’’
सैिनक ने कहा, ‘‘ये ह।”
‘‘इ ह कोट से नीचे लटका दो।’’ फर पलटकर भोला से कहा, ‘‘भाया, दु मन
वहाँ बेड़ा बना रहे ह, वहाँ उस आम क अमराई क ओर देख।’’
‘‘देख चुका ँ बापू।’’
‘‘तो जाकर मेरे वीरदेव को सावधान कर दे। ऐसा न हो, वह श ु के चंगुल म
फँ स जाए।’’
‘‘म अभी चला महाराज।’’ उसने र से पर हाथ डाला।
‘‘पर तु श द न हो, संकट के समय मुझे सूचना कै से देगा?’’
‘‘अ दाता मेरा संकेत तो पहचानते ह।’’
“हाँ-हाँ वीर, वैसा ही कर, बन पड़े तो देख आ, बेड़े क र ा कै से हो रही है।’’
भोला ने पानी म डु बक लगाई।
राव ने कु छ देर उसे देखा, फर नायक क ओर मुड़कर कहा, ‘‘श ु गहरी चाल
चल रहा है।’’
‘‘कै सी बापू?’’
‘‘देखते नह हो, वह बेड़ा!’’
नायक पूरी बात सुनने के िलए राव क ओर ताकता रहा। राव ने कहा,
“सूय दय होते ही अमीर आ मण करे गा। आ मण के ार भ म ही वह इसे खाई म
ख च लाएगा और कोट पर चढ़ने क चे ा क जाएगी।’’
‘‘यह तो बड़ी भयानक िवपि है बापू।’’
‘‘इसे दूर करना होगा, भाया।’’
‘‘बापू, महाराज को सूचना देनी चािहए।’’
‘‘नह , यह हमारा काम है। तुम िजतने तैराक इसी ण इक े कर सकते हो,
उ ह लेकर खाई के मुहाने पर मेरी ती ा करो। पर तु सावधान रहो। श ु को तु हारी
हलचल का तिनक भी पता न लगने पाए।’’
नायक चला गया। राव ने देखा-धनुधर यो ा दो-दो, चार-चार क सं या म,
दल-बादल क भाँित आ-आकर बु जय पर, मोच पर, ठी पर आसीन होते जा रहे ह।
राव आ त ए। पर तु इसी समय उ ह ऐसा भास आ क वह िवराट बेड़ा
िहला। उ ह ने आ य से देखा, वे नाव िबखर कर िभ -िभ दशा म बह चल । राव
को आँख पर िव ास नह आ। या यह भगवान् भूतनाथ सोमनाथ का दैवी
िचम कार तो नह है?’’
इतने म कोट के नीचे से संकेत आ। राव ने र सी लटका दी। भोला चढ़ रहा
था।
राव हष से नाच उठे । उ ह ने कहा, ‘‘आ वीर, या यह तेरी ही का र तानी
है?’’
भोला हँसते-हँसते अपने भीगे व िनचोड़ने लगा। उसने कहा, ‘‘बड़ा मज़ा
आ बापू, जाते-जाते मने सोचा क चुपचाप बेड़े को देखता ही चलूँ। जाकर देखा, वहाँ
कोई नह है। बेड़ा खूँटे से बाँधकर मेरे बेटे सब चले गए थे। हरी कु छ दूर आग ताप रहे
थे। मने डु बक लगाई और बेड़े क तली म प च ँ दाँत से बेड़े क सब रि सयाँ काट
डाल । कसी को पता नह लगा। बेड़ा लहर के थपेड़ म घूमता आ गहरे समु म यह
जा, वह जा।’’
भोला दाँत िनकालकर हँसने लगा।
‘‘बड़ी बात ई भाया, तैने भास को भी बचा िलया और मेरी इ ज़त को
भी।’’ उ ह ने आगे बढ़कर भोला को छाती से लगा िलया। फर कहा, ‘‘पर तु अभी तुझे
फर जाना पड़ेगा।’’
‘‘समझ गया बापू, मुझे वीर संह जी को सावधान करना है।’’
“हाँ-आँ, कह हमारे वहण श ु क दृि म न पड़ जाएँ।’’
‘‘तो म अभी चला।’’ भोला ने र से पर हाथ डालते ए कहा और वह चुपचाप
गहरे पानी म पैठ गया।
द ा चौलु य
िजस समय मुहाने क चौक पर वृ शादूल कमा लाखानी अपनी जा त स ा
से भास का संकट टालने का यह य कर रहे थे, उसी समय उसी अ िनशा म
ा रका- ार पर कु छ दूसरा ही दृ य समुपि थत था। भ च के द ा चौलु य क चौक
ा रका- ार पर थी। आधी रात बीत चुक थी। और चौलु य एक सैिनक के साथ कोट
क देखभाल कर रहे थे। उनक आयु अभी त ण थी। शरीर सुकुमार और सु दर था। वे
कमठ पु ष न थे। मूलराजदेव ने जब दि ण के सेनापित वारप को परा त कर भृगु
क छ ले िलया, तब उ ह ने चौलु य के पुराने राजा के वंशधर म से एक को लाट क
ग ी पर बैठा दया था। क तु उस पर शासन पाटन के द डनायक का रहता था।
चामु डराय के शासनकाल म द ा के िपता ने िव ोह कया था, सो उसे पद युत करके
चामु डराय ने द ा को ग ी पर बैठा दया था। अब राजा बने द ा भ क छ म चैन क
बंसी बजा रहे थे। पाटन के द डनायक का फरमान पाने पर उ ह यहाँ आना पड़ा। पौष
क िशिशर रजनी म उ ह अपनी नव-प रणीता तृतीया रानी को सूनी सेज पर छोड़कर
आना पड़ा था। सो वे पल-पल म भ च भागने क सोच रहे थे। लड़ाई-झगड़ा उ ह
पस द नह आ रहा था। यु म उ ह तिनक भी रस न था।
फर भी द ा चौलु य एक िवचारवान् त ण थे। य िप भी थे, सुकुमार थे,
पर तु स दय थे। जब उ ह महाराज भीमदेव ने ा रका- ार क चौक सुपुद क , तो
उ ह ने िन ापूवक वह सेवा हण क । वे पूरे धमभी थे। वे वाम शैव थे और भगवती
ि पुरसु दरी के सेवक थे। भ पर उनक अपार ा थी। उसके आशीवाद से उ ह
पु -लाभ आ था। उसी के र ा-कवच से उ ह भ च क ग ी िमली थी। उसी के तप के
भाव से वे जीते-जागते ह, ऐसा वे मानते थे। उ ह ने अपनी थम पु ी चौला को उ ह
के कहने से ि पुरसु दरी को भट कर दया था, जो गंग सव के ह त ेप से भगवान
सोमनाथ को अ पत क गई थी। िजससे भ का ोध भड़क कर सीमा पार कर गया
था।
भास म आते ही उ ह ने सुना क भ सह ाि -सि धान तप कर रहे ह।
उ ह ने यह भी सुना क उनका भेजा िनमा य ि पुरसु दरी क भट नह आ, इसी से
ु होकर भ िवनाश का आ वान कर रहे ह। उ ह यह भी िव ास हो गया क
गज़नी का दै य ही यह िवनाश बन कर आया है और इसम भ क तप: ेरणा है। और
भी ब त क यही राय थी। इसक चचा भी ब त थी। सव तक यह चचा प च ँ चुक
थी, पर उ ह ने उस पर कान नह दया था।
द ा जब भ को णाम करने धूनी पर गए, तो भ ने उनका णाम
वीकार नह कया। उ ह ने लाल-लाल आँख करके ह ठो-ही-ह ठ म ‘िवनाश-िवनाश’
कहकर उ ह देखा और दूर चले जाने का संकेत कया। भय से काँपते ए चौलु य चले
आए। तब से वे अ य त िचि तत, अपमान और अममंगल-आशंका से आतं कत रहने
लगे। उ ह फर भ के स मुख जाने का साहस न आ। चौला से िमलने का सव ने
उ ह िनषेध कर दया था। तथा बलपूवक यह व था कर दी थी क चौला िपता से
िमलने न पाए।
पर तु उस अध िनशा म कोट का िनरी ण करते ए उ ह ने एक छाया-मू त
को अपनी ओर आते देखा। उ ह ने नंगी तलवार हाथ म ली। िनकट आने पर पहचाना,
वह भ है। कमर म के वल एक र ा बर है। शरीर नंग-धड़ंग। भयंकर जटाजूट के
नीचे आग के अँगारे के समान जलते ने ह। भ म-भूिषत िवशाल कृ ण काय है।
िवकराल दाढ़ी म संपु टत मोटे-मोटे काले ह ठ ह। क ठ, भुजा और कमर म ा ह।
हाथ म एक भारी चीमटा है। उस भीमकाय कृ णवण भयानक आकृ ित को देखकर द ा
चौलु य का खून सूख गया। जैसे सा ात् काल भैरव ही उनके स मुख आ खड़ा आ।
उ ह ने हाथ क तलवार पृ वी पर फक दी और भूिम पर िगरकर सा ांग द डवत्
कया।
व गजन क भाँित एक श द उनके कान म पड़ा, ‘‘उठ चौलु य!’’
द ा खड़े होकर काँपने लगे, वे ब ांजिल चुपचाप खड़े रहे। अपनी बड़ी-बड़ी
घनी काली भ ह पर जलती ई दृि को ि थर करके भ ने एक उँ गली उठा कर
कहा, ‘‘इस बार आशीवाद नह दूग ँ ा। िवनाश दूग
ँ ा।’’ द ा थर-थर काँपने लगे।
भ ने अ हास करके कहा, ‘‘अरे धाम ोही, नह जानता, िवनाश आ रहा
है, सावधान हो जा। यहाँ रोने के िलए कु े और यार आ रहे ह।’’ उसने अपना
िवकराल चीमटा हवा म घुमाया और आकाश क ओर देखकर कहा, ‘‘ला िवनाश, ला
िवनाश!’’
आसपास के सैिनक सहम कर पीछे हट गए।
भ ने व गजन करके कहा, “ि पुरसु दरी का िनमा य आ।’’
चौलु य हाठ िहलाकर रह गए।
भ ने फर हवा म चीमटा ऊँचा करके कहा, ‘‘ला िवनाश, ला िवनाश!’’
उसने ऐसी मु ा बनाई जैसे भगवान् ही लय का ता डव नृ य कर रहे ह । द ा ने
कॉपते-काँपते कहा, ‘‘र ा करो, भु, र ा करो!’’
पर तु भ का उ माद कम नह आ, उसने अि मय ने से घूरते ए कहा,
‘‘नह , नह , यह दासपुरी भ म होगी। महाकाल का कोप है।’’ फर कु छ ठहरकर कहा,
‘‘आ मेरे साथ...’’ इतना कह वह ा रका- ार क ओर बढ़ा।
पर द ा चौलु य प थर क मू त क भाँित वह खड़े रहे।
भ ने पीछे घूमकर कहा, ‘‘आदेश सुना नह रे ?’’
‘‘ भु, यहाँ मेरी चौक है।’’
‘‘पर यह देवता क आ ा है।’’
‘‘देवता क या आ ा है?’’
‘‘मेरे साथ आ’’, भ ने व -गजना क ।
पर द ा फर भी उसी भाँित िन प द खड़े रहे। भ ने चीमटा हवा म ऊँचा
करके कहा, ‘‘पातक , तू देवा ा को वीकार नह करता। तो मेरा दया पु फे र दे।
महाकाल अभी उसका भ ण करगे। ला दे।’’ उसने उसी ण पृ वी म प ासन से बैठ
िस दूर से भैरवी च रचा और अघोर म का उ ारण कर फट् -फट् करने लगा।
द ा ने कहा, ‘‘ भु, र ा करो, मेरा एक ही पु है।’’
‘‘वह मने तुझे दया था रे । अब म उसे लूँगा।’’ उसने ज दी-ज दी म ो ारण
करते ए गीली िम ी का एक पुतला बनाया।
द ा ने कहा, ‘‘नह नह , म आ ाधीन ,ँ चिलए।’’
‘‘तो आ’’, पुतले को वह िम ी म दबाकर वह ा रका- ार क ओर चल
दया।
द ा चौक छोड़ नीचे उतरे ।
ा रका- ार पर आकर भ ने कहा, ‘‘खोल दे ार।’’
द ा ने भ को सा ांग द डवत् करके कहा, “नह -नह , गु देव, महाराज
क आ ा नह है। ऐसा म क ँ गा तो मेरा िसर धड़ पर नह रहेगा।’’
‘‘म कहता ,ँ चाबी दे।’’
‘‘नह , गु देव, नह ।’’
‘‘तेरे पु को महाकाल भ ण कर लेगा रे !’’ उसने िम ी का पुतला दखला कर
कहा।’’
‘‘सो कर ले।’’
‘‘तेरा नाश होगा।’’
‘‘सौ बार हो। म चला’’ द ा मु ी म कसकर तलवार पकड़े पीछे को भागे।
पर तु भ ने दौड़कर एक भरपूर चीमटे का हाथ कस कर उनके िसर पर दे मारा।
द ा घूम कर िगर पड़े।
भ ने उनके व से चाबी िनकाल ार क िखड़क खोली। ेत क भाँित
िस े र कह से आकर िखड़क क राह बाहर हो गया। िखड़क ब द कर और चाबी को
य से अपनी जटा म रख भ तेज़ी से एक ओर को चल दया।
संकटे र क बावड़ी
रात-भर के जागरण से थका आ आन द, िख होकर अपने डेरे पर आया।
िन यकम से िनवृ होकर उसने िव ाम क परवाह न कर दामो महता से िमलना
चाहा, पर दामो महता अपने आवास म न थे। आन द ने उनक खोज म समय न
करना ठीक नह समझा। वह ा रका- ार क तरफ चला। उसक दृि खाई के उस पार
मशान के उस छोर पर पड़ी अमीर क छावनी पर घूमने लगी। सूय काफ ऊपर उठ
गया था, धूप क ितरछी करण अब सुहावनी लग रही थ । उसक उ वल आभा म
र ाकर क फे न-रािश बड़ी शोभायमान दीख रही थी। वह कु छ देर तक खूब यान से
अमीर क छावनी को देखता रहा। वहाँ इस समय इतना दन चढ़ने पर भी कोई नई
हलचल न थी। आज अमीर या यु नह करे गा? आन द कु छ देर यही सोचता रहा।
पर तु फर उसक िवचारधारा िस े र क ओर गई। आिखर िस दे र एकाएक उसक
आँख से ओट होकर गायब कै से हो गया?
सोचते-सोचते आन द तेज़ी से संकटे र क बावड़ी क ओर चला। इस समय
भी वहाँ स ाटा था। महालय म सब लोग यु -स ा म दौड़-धूप कर रहे थे। कोई श
सजा रहा था, कई सैिनक-टु किड़याँ इधर से उधर आ-जा रही थ । अके ले-दुकेले िसपाही,
सवार, यादे अपने रा ते आ-जा रहे थे। आन द का यान इन सबसे हटकर संकटे र क
बावड़ी म लगा था।
बावड़ी पर आकर वह चुपचाप एक सीढ़ी पर बैठकर जल क िहलती ई लहर
को देखने लगा। ब त से िवचार उसके मि त क म आए। आज अमीर यु नह कर रहा
है, िस े र उस युवक से संकेत पाकर यहाँ आकर लोप हो गया है। इन दोन बात म
कोई स ब ध है या नह । आन द यही सोच रहा था। दोपहर हो गया। सूय का खर तेज
बढ़ गया। भूख- यास, थकान उसे सता रही थी। उसे िव ाम क अ य त आव यकता
थी। इसी समय उसे जल म कु छ हलचल तीत ई। णभर ही म जल म से एक िसर
िनकला। यह देख आन द िबजली क भाँित फु त से भूिम पर एक प थर के ढोके क आड़
म लेट गया। लेटे ही लेटे वह िखसक कर एक वृ क आड़ म िछप गया। यह देखकर
उसके आ य का ठकाना न रहा क िस दे र जल से बाहर आ रहा है। वह जल से
बाहर आकर भारी–भारी डग रखता आ एक ओर को चला गया। आन द का मन एक
बार उसका पीछा करने का आ, पर कु छ सोच कर वह ठठक गया। वह बड़े यान से
बावड़ी के जल को देखने लगा। एकाएक उसने एक संक प मन म दृढ़ब कया और वह
व सिहत जल म पैठ गया।
उसने चार ओर दृि डाली, कोई न था, वह बावड़ी के म य भाग म प च ँ
गया, जहाँ क ठ तक जल था। साहस करके उसने पानी म गोता लगाया और बावड़ी के
चार ओर घूम गया। साँस फू ल जाने से वह फर बाहर आया। दूसरी बार और फर
तीसरी बार उसने गोता लगाया। इस बार उसे दीवार म एक िछ नज़र आया। िछ
ब त बड़ा था, चार ओर टटोलकर वह उस िछ म घुस गया। घोर अ धकार था। पर तु
उसे तुर त ही मालूम हो गया क वह एक सुरंग का ार है। तथा सुरंग म ऊपर जाने के
िलए सी ढ़याँ बनी ई ह। 5-6 सी ढ़याँ चढ़ने पर ही वह जल से ऊपर हो गया। जल से
ऊपर आकर वह एक सीढ़ी पर बैठकर सु ताने लगा। उसने देखा, सामने आगे सुरंग म
कह से काश आ रहा है। वह आगे बढ़ा। दस-बारह सी ढ़याँ और चढ़ने पर उसने देखा,
ऊपर एक बड़ा िछ है, िछ म होकर एक भारी वट वृ उसे दीख रहा था। वह समझ
गया, यह वही िवशाल वट वृ है जो काल भैरव के मि दर के पा व म है, यह से ऊपर
को सी ढ़यां उस िछ तक जा रही थ । पर स मुख सीधी सुरंग थी। अब उसने अपने
गीले व को िनचोड़ कर नंगी तलवार हाथ म ले ली और सुरंग म आगे बढ़ गया।
सुरंग म घोर अंधकार था। उसके अंग म कं पकं पी होने लगी। पर तु उसने अ त तक जाने
का िन य कर िलया, और अंधकार म तैरता आ-सा आगे बढ़ने लगा। उसने दोन हाथ
आगे पसार दए। और अनुमान कया क सुरंग जंगल और मैदान पार कर रही है। बीच
म उसे एक-दो िछ िमले जहाँ किचत् काश मोटे-मोटे िछ से आ रहा था।
वह आगे बढ़ा। यहाँ सुरंग दो तीन दशा म फट गई थी। सोच-िवचार कर
वह एक दशा म आगे बढ़ा। कोई व तु उसके िसर को छू ती ई उड़ गई, वह िसहर उठा,
एक तरफ उसने म द-म द कसी के धसकने का श द अनुभव कया। भय से उसके समूचे
अंग म पसीना छा गया। वह और भी आगे बढ़ा। अब उसे य दीख पड़ा क सुरंग म
सप और िचमगादड़ ब त ह। पर तु अब साहस ही उसका आसरा था। वह बड़ी देर तक
चलता गया। धीरे -धीरे सुरंग ऊँची होती गई और उसका िसर ऊपर छत पर जा
टकराया। टटोल कर देखा। स त प थर क च ान थी। अब वह भूिम पर बैठकर दोन
हाथ-पैर से पशु क भाँित चल रहा था। उसने तलवार मुँह म दबा ली थी। धीरे -धीरे
सुरंग तंग होती गई। और अब उसे िब कु ल लेटकर िखसकना पड़ा। पर थोड़ा और चलने
पर काश क झलक उसे दखाई दी, काश बढ़ता गया। अ त म एक चौकोर-सा
समतल थान आया जहाँ से ऊपर को सी ढ़याँ बनी थ । सीढ़ी चढ़कर उसने सुरंग से
बाहर मुँह िनकाला। और उसने देखा क वह पापमोचन के ख डहर म आ प च ँ ा है।
उचक कर वह बाहर आया। उसके हाथ-पैर, मुख और शरीर म धूल, मकड़ी के जाले और
ग दगी लग गई थी। उसने झटक कर व साफ कए और चार ओर दृि फे री।
पापमोचन एक तीथ था। पर तु िचरकाल से वह ख डहर और वीरान पड़ा था।
इधर लोग का आना-जाना नह था। दूर तक मोटे-मोटे प थर के टू टे-फू टे मि दर और
मठ फै ले पड़े थे। यह थान सोमनाथ प न से बारह मील पर था। आन द ने इसके
स ब ध म सुना तो था, पर तु उसने कभी यह थान देखा नह था। वह सावधानी से
ख डहर म घूमने और यह देखने लगा क वहाँ कसी मनु य का कोई गु वास तो नह
है। ख डहर म घूमते-घूमते वह जब उसके नैऋ य कोण क दशा म प च ँ ा तो यह
देखकर उसके भय और आ य का ठकाना न रहा क सामने ही गज़नी के अमीर का
ल कर पड़ा है। उसे अपनी एकाक ि थित का भान आ और अब उसे यह समझने म
देर न लगी क िस दे र इस गु माग से अमीर के पास िमलने आया है। उसक मेधा-
शि ने यह भी समझ िलया क य द इस गु माग का उपयोग सोम-प न म िव
होने के िलए करे , तो फर प न का िन तार नह है। अब उसके मि त क म दो िवचार
आए, एक यह क वह उसी माग से ज द-से-ज द कोट म लौट जाए, महता को सूचना दे
दे और इस माग पर चौक -पहरा रखवा दे; दूसरा यह क थोड़ा और साहस करके अमीर
क गितिविध का अनुसंधान करे । ब त सोच-िवचार कर उसने अमीर क छावनी क
ओर ख कया। पर तु इसी समय तुक सवार ने उसे घेर िलया। आन द ने हौसला
बनाए रखा। उसने तलवार यान म रख ली और कहा, ‘‘म श ु नह , िम ,ँ मुझे
सुलतान नामदार क सेवा म ले चलो।’’ तुक सवार उसे बाँधकर छावनी म ले गए।
राज-ब दी
आन द को तुर त ही अमीर के स मुख पेश कया गया। आन द अमीर के तेज,
ताप और दी ि व से डगमगा गया। उसने तलवार क मै ी क भी याद
दलाई, फतह मुह मद के ित मै ी-भाव भी कट कया, पर तु इससे उसका अिन ही
आ। अमीर जैसे राजनीित के महापि डत को यह समझते देर न लगी क सुरंग के रा ते
एकाएक नये अनपेि त ि का आना युि संगत नह है। उसने फतह मुह मद और
िस े र दोन से परामश करके िव त प से उसे श ु मानकर कड़े पहरे म ब दी कर
िलया। पर तु उसके खान-पान और रहन-सहन क अ छी व था कर दी। िस े र ने
प कह दया था क यह हमारे भेद को जान गया है। य द इसे छोड़ दया गया तो
इसका घातक प रणाम होगा। और हमारी सारी योजना ही िन फल हो जाएगी।
ब दी आन द क खूब खाितर–तवाज़ै क गई। कोई काम क बात उससे
उगलवाने के पूरे य कए गए। पहले उसने पागल होने का वांग भरा, पर वह भी
िनभा नह , अ त म वह शा त और मौन हो बैठा! ब त कहने-सुनने पर भी फतह
मुह मद से उसे नह िमलने दया गया। आन द अमीर के िशिवर म ब दी है, यह बात
अ य त गोपनीय र खी गई।
अ तत: सब बात पर खूब आगा-पीछा सोचकर आन द ि थर हो गया। वह
ऊपर से स और िनि त रहने लगा। छू टने क उसने कोई चे ा नह क । एक-दो
बार अमीर ने उससे बात भी क , कु छ मामले क बात िनकलवाने क बड़ी चे ा क ,
पर तु उसने हँसकर टाल दया। कहा, ‘‘अभी तो म अमीर नामदार क सेवा म ँ ही,
समय आने पर अमीर के लाभ क बात िनवेदन क ँ गा।’’ अमीर ने और भी य से इस
गूढ़ पु ष पर पहरे -चौक क व था कर दी।
भ से अमीर क और एक बार मुलाकात ई। िस े र का दूत व तो जारी
ही रहा। अमीर अब यह भेद भी जान गया क अघोर वन का वह िपशाचराज और कोई
नह , वही धूत भ है। अमीर उसे महालय क सारी स पदा स पकर उसे महालय का
अिध ाता वीकार कर ले, इस शत पर उसने अमीर को सुरंग क राह महालय म ले
जाने का वचन दया। बीच म ब त से आदान- दान ए और अ त म सब योजना ि थर
कर ली गई। योजना अ य त गु रखी गई। अमीर अपना िशिवर और पीछे हटा ले
गया। और योजना क पू त म लग गया।
दामोदर महता को आन द के इस कार एकाएक गायब हो जाने का ब त
आ य आ। और जब पूरा दन और राि भी बीत गई, तो उनका आ य िच ता म
बदल गया। एक िवशेष बात यह भी िच ता क थी क अमीर ने कोट पर आ मण करने
क चे ा नह क । उ टे वह अपना ल कर पीछे हटा ले गया। राजपूत यो ा हिथयार
बांधे अपने-अपने मोच पर मु तैदी से डटे ए आ मण क ती ा करते रहे। सदैव ही
िह दू रण-नीित यही रही है, आगे बढ़कर श ु का दलन करने क नह । जब दूसरा भी
दन य ही बीत गया और अमीर ने यु करने का कोई ल ण कट नह कया अथवा
अमीर का कोई सैिनक भी दृि गोचर नह आ, तो दामो महता अ य त ग भीर हो
गए। वे सोचने लगे, ‘ या आन द के इस कार एकाएक गायब हो जाने और अमीर के
पीछे हटने म कोई तारत य है?’ उनका यह िव ास इसिलए और भी बढ़ गया क फर
फतह मुह मद नह आया।
भ और िस े र के ित उनके स देह के भाव अव य थे। भ के समूचे
पाख ड म वे कसी गहरी कारवाई का अनुमान कर रहे थे। धीरे -धीरे इसी ल य िब दु
पर उनका सारा स देह के ि त हो गया। उ ह ने चुपचाप भ और िस े र पर
अपनी सैकड़ आँख थािपत कर द । पर तु दो दन य ही बीत गए कोई नई बात उ ह
नह दीख पड़ी। दैव-दु वपाक से संकटे र क बावड़ी का भेद उनसे अ ात ही रह गया।
क ठन उलझन को सुलझाने म दामो महता दूसर को साझी नह बनाते थे।
वयं ही उलझ-सुलझ कर िनपट लेते थे। पर तु अब, जब उ ह कोई कोर- कनारा न
िमला, तो उ ह ने बात का मह व समझ कर सब बात महासेनापित से कह डालना ही
ठीक समझा। महता ने महाराज महासेनापित भीमदेव से एका त मुलाकात कर सारा
िववरण उ ह अथ से इित तक जा सुनाया। महता क अमीर से मुठभेड़, तलवार क
मै ी, फतह मुह मद और िस े र का ष और आन द के एकाएक गायब हो जाने
के समाचार सुनकर महाराज भीमदेव ब त िचि तत ए। उ ह ने कहा, ‘‘महता, या
म णा-सभा बुलाई जाय।’’ महता ने कहा, ‘‘महाराज, इन िवषय को काश म लाना
ठीक न होगा। आन द के स ब ध म जब तक यह न ात हो जाए क वह कहाँ है, कोई
कदम आगे बढ़ाना िहतकर न होगा। इस स ब ध म अपनी गु कारवाई जारी रखूँगा।
आव यकता होगी तो छ प से अमीर क छावनी म भी जाऊँगा। उसक
गितिविध समझनी होगी। तथा अमीर के आ मण से िवरत होने का कारण या है,
इसका पता लगाना होगा। उसके बाद य द आव यक आ तो फर म णा-सभा बुला
ली जाएगी।’’
पर तु महता का सारा ही चातुय बेकार गया। धूत भ और उसके चर को
य ही इस बात का पता लग गया क उनका म फू ट गया है, तथा उन पर दृि र खी
जा रही है, तो वे भी चौक े और सावधान हो गए। इसी कार और तीन दन तीत
हो गए। कहाँ या हो रहा है, इस बात का मम कोई न जान सका।
दो घड़ी क ाण–िभ ा
आकाश म बदली छाई ई थी और उनके बीच तृतीया का अ तंगत च ीण
काश डाल रहा था। एकाध तारे बादल म झाँक रहे थे। इसी समय द ा सोलंक क
मू छा टू टी। कु छ देर वे िसर पकड़कर बैठे रहे, पर तु शी ही उ ह घटना का मरण हो
आया। उ ह ने भयभीत होकर अपनी कमर टटोली, ा रका- ार क चाबी वहाँ न थी।
भय से उनका मुँह पीला हो गया। उ ह ने आँख उठाकर खाई के उस पार िबखरे ए
अंधकार पर दृि डाली। उ ह ने देखा, असं य काली-काली मू तयाँ च टय क भाँित
कसी माया से े रत-सी खाई के इस पार धँसी चली आ रही ह और अव ा रका-
ार से महालय के परकोट म िव हो रही ह। कह भी एक श द नह हो रहा है।
उनका िसर घूमने लगा और आँख म अंधेरा छा गया। िसर के घाव से अभी भी खून बह
रहा था और िसर दद से फटा जा रहा था। पर तु वह दौड़कर दो-दो, चार-चार सी ढ़याँ
फलांगते ए ा रका- ार क ओर दौड़े। राह म एक बुज था, वहाँ सैिनक क एक
टु कड़ी पहरा बदल रही थी। बुज ा रका- ार से तिनक आड़े पड़ता था। द ा के िसर से
खून बहता देख टु कड़ी के नायक ने कहा, ‘‘बापू, यह या? र कै सा?’’ पर द ा ने
पागल क भाँित कहा, ‘‘ लय हो गया रे , लय, उधर देख!’’
दलपित ने देखा तो स ाटा छा गया। उसने तुर त नर संहा म फूं क दी। वह
नर संहा-िननाद उस ीणमा राि के स ाटे म गूँज उठा। सहसा सभी बुज से
नर संहे बज उठे और सैिनक क टु किड़य म भाग-दौड़ मच गई। द ा नंगी तलवार
हाथ म िलए पागल क भाँित ‘सावधान-सावधान’ िच लाते ा रका- ार क ओर
दौड़े। जहाँ के वे र क थे और जहाँ च टय क पंि क भाँित श ु धँसे चले आ रहे थे।
इसी बीच म सैकड़ मशाल का काश हो गया था और टड् डी-दल क भाँित
राजपूत यो ा नंगी तलवार ले-लेकर ा रका क ओर बरसाती नदी क भाँित बढ़े चले
आ रहे थे। धनुधर अपने-अपने नाक पर जमकर तीर बरसाने लगे। बछ वाले बांके वीर
बछा फकने लगे। हज़ार वीर खाई म कू दकर बढ़े आते हािथय पर करारा वार करने
लगे। देखते ही-देखते टू टती ई वह रात लय-राि हो गई।
शी ही दोन दल जुट गए। हर-हर महादेव और अ लाहो-अकबर का िननाद
एक दूसरे से टकरा गया। यो ा छाती से छाती िभड़ाकर घातक हार करने लगे। तीर
से आकाश पट गया। घायल क ची कार, मरते का आतनाद, हािथय क चंघाड़,
घोड़ क िहनिहनाहट, श क झंकार सब िमलकर र म अवसाद उ प करने लगे।
महाराज महासेनापित भीमदेव झटपट कवच धारण कर श ा ले घोड़े पर
सवार िव ुत-गित से सारे मोच क व था का िनरी ण करने और समुिचत आदेश
देने लगे। बालुकाराय और दामो महता उनक रकाब के साथ थे। महासेनापित ने
ा रका- ार पर आकर ग भीर ि थित देखी। द ा चौलु य मु ी म तलवार थाम, खून
से सराबोर, महाराज महासेनापित भीमदेव के स मुख आ िच लाकर बोले, ‘‘म
कत युत आ ँ महाराज, मेरा िशर छेद करने क आ ा दीिजए।’’
महाराज ने पूछा, ‘‘ या बात है चौलु य?’’
‘‘म ार क र ा न कर सका।’’
‘‘अव य ही आपने शि -भर कत -पालन कया होगा।’’
‘‘नह महाराज, मने कत -पालन नह कया। मने चौक याग दी।’’
‘‘ या?’’ महाराज ने ोध ने नथुने फु लाकर कहा।
हठात् उ ह याद आया क चौलु य चौला के िपता ह। उ ह ने नम होकर कहा,
‘‘ आ या चौलु य?’’
चौलु य ने सब घटना ज दी-ज दी उ ह सुना दी। महाराज क आँख से आग
िनकलने लगी।
उ ह ने पूछा, ‘‘तुम भ के साथ चौक छोड़कर ा रका- ार पर गए।’’
‘‘गया-गया, म गया।’’
‘‘तुमने ार क चाबी भ को दी?’’
‘‘नह महाराज। मेरे िसर पर उस रा स ने िचमटे से हार कया। म
बेसुध होकर िगर गया, फर होश म आया तो अनथ हो चुका था।’’
‘‘तु ह मरना होगा।’’ महासेनापित ने ग भीर होकर बालुकाराय को पुकारा।
बालुकाराय स मुख आए तो महाराज ने आ ा दी, ‘‘चौलु य को ले जाकर अभी
िशर छेद करो।’’
‘‘दुहाई महाराज!’’ चौलु य ने दाँत से तृण दाबकर कहा।
‘‘ या ाण-िभ ा माँगते हो?’’
‘‘नह महाराज, के वल थोड़ा समय मुझे िभ ा म िमले।’’
‘‘ कसिलए?’’
‘‘ ायि के िलए।’’
‘‘ कतना समय?’’
‘‘के वल दो घड़ी।’’
‘‘तो बालुक, चौलु य को बाँधा लो, उसक तलवार छीन लो।’’
‘‘यह नह महाराज, मृ यु-द ड तक मुझे और मेरी तलवार को वत ता
दीिजए।’’
‘‘तुम चाहते या हो?’’
‘‘पृ वीनाथ, समय कम है, िववाद म ब मू य ण न हो रहे ह। मुझे दो घड़ी
को मेरी तलवार ब श दीिजए।’’
दामो महता ने कहा, ‘‘महाराज, समय टेढ़ा है, चौलु य का िज़ मा म लेता
।ँ ’’
‘‘तो दामो, दो घड़ी बाद, तु ह इसका िसर काट लेना। शायद मुझे फर आ ा
देने का अवसर न िमले।’’ उ ह ने अपना अ आगे बढ़ाया और द ा तलवार ऊँची कए,
छलाँगे भरते ा रका- ार क ओर दौड़े।
उ ह ने अपने क छी यो ा को ललकारकर कहा, ‘‘भाइयो, यह ाण और
तलवार मुझे दो घड़ी को िमले ह। इसी बीच हम यह कलंक धो बहाना है। आगे बढ़ो,
ार हमारा है’’ और इस कोमल भावुक त ण के यो ा ाण का मोह छोड़ छाितय क
दीवार बनाकर ार पर अड़ गए। अमीर ने अपनी गित को अव देख ार पर उ म
हाथी ल दए। पर द ा चौलु य क तलवार उनसे भी नह झुक । लोथ पर लोथ
पाटकर द ा ने दो घड़ी बीतते-न-बीतते ार पर अिधकार कर िलया। ार ब द होने पर
वह घूमे और भीतर घुस आए श ु को गाजर-मूली क भाँित काटने लगे। द ा पर जो
रणरं ग चढ़ा, उसके भाव से श ु आतंक से भया ा त हो पटापट िगरने लगे। एक बार
फर भीषण नाद आ–‘‘हर-हर महादेव!’’
सम पत तलवार
इसी समय जूनागढ़- ार पर तुमुल कोलाहल आ। महाराज महासेनापित का
यान उधर गया। मामला ग भीर होता जा रहा था। कमा लाखाणी क तिनक भी आन
न मानकर, श ु कोट म घुस आए थे। हज़ार कछु ए धातु क बड़ी-बड़ी ढाल म िसर
िछपाए, िनसैिनयाँ पीठ पर लादे तैरते ए कोट तक आ रहे थे। पीछे बलूची घुड़सवार
उनपर बाण क छांह कर रहे थे। उनक अगल-बगल अमीर के हाथी दीवार बनाकर
चल रहे थे। देखते-ही-देखते सैकड़ सी ढ़याँ कोट पर लग ग और जीवट के तुक ल बी-
ल बी दाढ़ी के बीच बड़ी-बड़ी तलवार को दाँत म पकड़ सी ढ़य पर चढ़ने लगे। कोट
के राजपूत ने ऊपर से तीर, प थर और गम तेल उलीचना आर भ कया। वृ कमा
लाखाणी अकथ परा म दखा रहे थे। उनके पाँच हज़ार तलवार और बछ के धनी
यो ा क लोथ से कोट और तट पट गया था। अब उनक आशा अपने जहाज़ पर थी
जो तेज़ी से बढ़े चले आ रहे थे। जहाज़ के बीच म तीन सौ नाव थ िजनम से येक पर
इ स-इ स धनुधारी थे। मार के भीतर जाते ही जहाज़ और नौका से बाण-वषा
होने लगी। नौकाएँ आगे बढ़कर अमीर के तैरते ए हाथी-घोड़ और पदाितक का
कचूमर िनकालने लग । इस पर अमीर ने अपने स पूण म त हािथय को कोट म ठे ल
दया। घुड़सवार बलूची भी पानी म पैठ गए। इस काली बला से उलझ-उलझकर नाव
उलटने लग । अमीर ने जहाज़ म आग लगाने को अि -बाण छोड़ने आर भ कए।
अब मु य यु जल म हो रहा था। देखते-ही-देखते एक जहाज म आग लग गई।
शी ही वह जहाज़ धांय-धांय करके जलने लगा। इसी समय वीरवर द ा चौलु य ने
ा रका-दुग को अिधकृ त कया। ा रका के दुग से हर-हर महादेव का िननाद ऊँचा
आ और खाई म आग क लपट को लहराता देख, श ु ने हष से उ लिसत हो
अ लाहो-अकबर का नाद कया। हष और भय दोन के नाद आपस म टकरा गए।
महाराज महासेनापित भीमदेव मु ध ने से द ा का असह िव म देख रहे थे।
इस दुधष कोलाहल से उनका यान जूनागढ़- ार क तरफ गया। वे अ को और ऊँचाई
पर ले जाकर वहाँ क गितिविध यान से देखने लगे। देखते-देखते उनक भृकुटी म बल
पड़ गए। उ ह ने इधर-उधर िच ता- त ने से देखा। इसी समय र से सराबोर, अंग
से झर-झर खून झरते ए द ा हांफते ए आए और अपनी तलवार महाराज
महासेनापित के स मुख बढ़ाते ए उ ह ने वीर-दप से कहा, ‘‘अपने पाप का ायि
और अपराध का प रहार मने कर िलया है, महासेनापित, देिखए वह ार अब हमारे
अिधकार म है, दो घड़ी पूरी । अब महाराज, यह मेरी तलवार और यह मेरा ाण।’’
महाराज भीमदेव ने तुर त घोड़े से कू दकर द ा को छाती से लगा िलया। ेम के आँसू
बहाते ए उ ह ने कहा, ‘‘चौलु य, ि य धम बड़ा कठोर है! अभी यह तलवार अपने
वीर हाथ म मज़बूती से पकड़े रहो। उधर देखो, जूनागढ़- ार पर दबाव बढ़ रहा है।
कमा लाखाणी संकट म ह, जाओ वीर, यह मेरा अ है, अपना जौहर दखाओ, िजससे
चौलु य का र उ वल हो।’’
चौलु य ने तलवार म तक से लगाई। महाराज महासेनापित ने रकाब थामकर
वीर को अपने अ पर चढ़ाया और र क होली खेलने म म त त ण चौलु य, अपने
शूर को ललकारता आ जूनागढ़- ार पर लपका।
उसके साथ अब के वल पाँच सौ ही यो ा थे। सभी के अंग लो से रं ग चुके थे।
पर यह आन पर खेलने क बात थी। बात क ही तो बात है। इन वीर ने श ु के छ े
छु ड़ा दए। वीर चौलु य श ु म धँसे चले गए। उनके चुने ए वीर से उ ह चार ओर
से घेरकर वह मार मारी क आतंक छा गया। पर इसी समय अमीर के बलूची दै य
ल बी-ल बी खमदार तलवार ले-लेकर द ा के छोटे-से दल पर टू ट पड़े। कमा उनक
मदद नह कर सकते थे। वे अपने जहाज़ क सुर ा म त थे। महाराज महासेनापित
ने देखा तो ोध से थर-थर काँपते ए महाराज भीमदेव पाँव- यादे ही तलवार हाथ म
ले दौड़ चले। यह देख बालुकाराय ने दौड़कर उ ह अपना अ दे दया। महाराज
चौलु य के पीछे श ु म धँसते ही चले गए। उ ह ने कसी क आन नह मानी। िवकट
संकट देख बालुकाराय ने महाराज के हज़ार शरीर-र क को ललकारा। पर तु इतने
आदिमय के एक साथ बढ़ने क वहाँ गुंजाइश न थी। बढ़ती ई सेना क गित धीमी
पड़ गई। उधर महाराज और द ा एकबारगी श ु के दबाव म पड़ गए। बालुकाराय
िच ता से अधीर हो गए।
इसी समय एक अ य त भयानक अघट घटना घटी। लड़ते-लड़ते एक बिल
तुक से द ा क िभड़ त हो गई। तुक का एक पैर सीढ़ी पर था, दूसरा कोट पर। उसके
एक हाथ म िवकराल टेढ़ी तलवार थी, दूसरे से वह सीढ़ी थामे था। द ा ने लात मारकर
उसे पीछे धके लना चाहा। लात सीढ़ी म उलझ गई। सीढ़ी उलट गई, एक ण के िलए
दोन हवा म िनराधार लटके और तुक के साथ द ा भी खाई म जा िगरे । उस थान पर
खाई म तुक ही तुक दीख रहे थे। पानी म िगरकर, तुक द ा से िभड़ गए। द ा-जैसे
सुकुमार त ण का, जब क वे पहले ही घायल हो चुके थे, इस भयानक मुठभेड़ म जुट
जाना जीवट का ही काम था। सैकड़ तलवार उन पर पड़ रही थ । और इसम तिनक भी
स देह न था क द ा के टु कड़े-टु कड़े हो जाते। महाराज भीमदेव उस समय उनके िनकट
प च ँ चुके थे, पर उ ह िगरने से बचा न सके । अब इस कार इस वीर का िनधन देखना
भी उनके िलए स भव न था। महाराज भीमदेव हाथ म तलवार िलए घोड़े समेत ही
खाई म कू द पड़े। भय और िव मय से राजपूत हाहाकार कर उठे । चार ओर कु हराम
मच गया। महाराज महासेनापित भीमदेव को खाई म घोड़े-सिहत कू दते हज़ार
आदिमय ने देखा। महाराज का ाण-संकट और ऐसा दु साहस देखकर ललकारते ए
सैकड़ यो ा स र हाथ ऊपर कोट से मोट म कू द पड़े। ऊपर कोट पर अनिगनत यो ा
आ जुटे, और बाण-वषा करने लगे। महाराज भीमदेव तैरते ए बल परा म से श ु
का दलन करते ए द ा के िनकट आ प च ँ े और चौलु य से गुंथे ए दै य का िसर काट
िलया। दै य से मु होकर चौलु य पास ही तैरते ए एक घोड़े पर चढ़ गए। पल-पल म
यो ा कोट पर से मोट म कू द रहे थे। उस समय पानी म वह खंजर और तलवार चली
क मोट का जल लाल हो गया। उस पार से श ु ट ी दल क भाँित बढ़े चले आ रहे थे।
महाराज और द ा पर हज़ार तलवार छा रही थ । बाण क बौछार ने उ ह ढांप
िलया था।
बालुकाराय ने द ा को मोट म िगरते और महाराज को उनके पीछे छलांग
मारते देखा। इस समय वे ा रका- ार पर मोचा ले रहे थे। वहाँ बड़े वेग का धंसारा हो
रहा था तथा ार ‘अब टू टा,अब टू टा’ हो चला था। अब वे या कर? सोचने-िवचारने
का समय न था। संकट भारी था। बालुकाराय ने चरम साहस कया, अपने पाँच सह
सुरि त लाट यो ा को ललकारा और ार खोल दया। एक ओर हर-हर महादेव का
नाद करते ए लाट-यो ा ार से श ु को धके ल कर अपने महाराज के ाण क
र ा के िलए बाहर आ-आकर जल म कू दने लगे। दूसरी ओर तुक सवार अ लाहो-अकबर
कहते ए, एक बार दुधष वेग से फर ार म धँस गए। बालुकाराय का सारा यान
महाराज पर था। और वे जल म कू दकर दोन हाथ से तलवार चलाते ए अपने
यो ा को बढ़े आने को ललकार रहे थे। और गुजर-यो ा आकाश से टू टते न क
भाँित जल म कू द कर तलवार चला रहे थे। बड़ा ही दुघट समय था। अ त म गुजर यो ा
महाराज के िनकट प च ँ पाए। क ठन मार म उ ह ने महाराज और द ा का सैकड़
घाव से भरा मू छत शरीर अपने क जे म कया और हाथ -हाथ लेकर ा रका- ार
क ओर लौटे। पर इस बीच अरि त ार पर फर तुक ने अिधकार कर िलया था और
उनके दल-बादल कोट म घुसे चल आ रहे थे। मकवाणा ने दूर से यह संकट-भरा दृ य
देखा। उ ह ने यह भी देखा क महाराज, द ा और बालुकाराय तीन क खैर नह है।
उनका कोट म िव होना तथा जीिवत रहना क ठन है। वह दुधष वेग से अपने
यो ा को लेकर ा रका- ार पर दौड़े और लोहे क जीिवत दीवार बनकर ार अड़
गए। एक बार श ु क गित फर क गई। अब इस वीर ने बल साम य से श ु को
चीरकर राह बनाई। बालुकाराय और महाराज को भीतर िलया तथा एक बार फर ार
को अिधकृ त करने म सफल ए। राजपूत ने उमंग म भरकर तुमुल हषनाद कया–‘हर-
हर महादेव!’
िवनाश का अ दूत
धूत और महान् रणपंिडत अमीर समूचे यु - े पर अपनी गृ -दृि दए
सै य-संचालन कर रहा था। अभी उसक सेना का मु य भाग तथा वह वयं, खाई के
उस पार ही था। इधर राजपूत सभी मोच म दबाव म पड़ गए थे। राजपूत के मोच
जजर और अरि त हो रहे थे, पर सबसे भयानक बात तो महासेनापित का मू छत हो
जाना था। कु टल और येक मू य पर िवजय, के वल िवजय ही ा करने का हौसला
मन म रखने वाले अमीर को यह भास गया क िनणायक यु का ण अब दूर नह है
और उसने अिवल ब अपनी योजना कायाि वत क ।
फ़तह मुह मद और िस े र उसक रकाब के साथ थे। उसने फ़तह मुह मद क
ओर भेदभरी दृि से देखा और अपनी दाढ़ी पर हाथ फे रते ए कहा, ‘‘अय नेकब त,
यही व है क तू अपनी मुराद को प च ँ सकता है, या तू सबसे ज़बद त नाज़क मुिहम
का सरदार बनकर इस बड़ी फ़तह का सेहरा अपने िसर पर बांधने को तैयार है?’’
फ़तह मुह मद ने आगे बढ़कर अमीर क रकाब चूमी। उसने कहा, ‘आलीजाह,
मेरे खून क येक बूंद सब-कु छ कर गुज़रने पर आमादा है। म िज़ दगी को एक ितनके
के समान समझता ,ँ जूर म द।’’ उसने तलवार सूंत ली।
‘‘तो जा, िसफ दो सौ मर-िमटने वाल को छांट ल। यह गुसा तुझे राह
दखाएगा। अब से दो घड़ी के भीतर उस बुल द दरवाज़े क पौर पर गज़नी के सुलतान
का इ तकबाल कर। म खुदा का ब दा महमूद, वही क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए। और
म कहता ँ क वह दरवाज़ा आज से फतह-दरवाज़ा कहलाएगा। यह ले वह तलवार,
िजसने सोलह बार फ़तह का पानी िपया है, पाक परवर- दगार और पैग बर इसे
स हव फतह तेरे हाथ से दे। जा, राह के हर रोड़े को र द डाल और अपनी राह साफ
कर। तुझे इस तलवार के साथ वे सब हकू क मने दए, जो अमीर महमूद को ा ह। जा-
जा, अलह िल लाह! राज़ क बात से तू अनजान नह ।’’
युवक ने तलवार को दोन हाथ म लेकर चूमा। एक नज़र उसने अमीर के चुने
ए यो ा पर डाली। दो-सौ जीवट के वीर को अपने पीछे आने का संकेत कर,
िस े र के अ क लगाम अपने घोड़े के चारजामे से बाँध, तलवार क न क उसक
छाती पर रखकर कहा, ‘‘चलो गुसा ।’’
िस े र इस दासी-पु क प दा और दबंगता से कु ढ़ गया। उसने घृणा से
उसक ओर देखा। फर सुलतान से कु छ कहना चाहा। मगर सुलतान ने अपना ख
फे रकर पास खड़े मसऊद से कहा, ‘‘मसऊद, अब हमारी बारी है।’’ और ऐसा तीत
आ जैसे एकबारगी ही समूचा अचल िहमालय चल-िवचल हो गया। य ही अमीर ने
घोड़ा पानी म डाला, उसके साथ ही तीस हज़ार यो ा पानी म पैठ गए। अ लाहो-
अकबर के तुमुल नाद से महालय कि पत हो गया। महालय के सभी मोच पर जूझते
ए राजपूत के हाथ एक ण को क गए। श ु दल नया बल पाकर िव ुत-गित से
आगे बढ़ा।
फ़तह मुह मद अपनी छोसी-सी टु कड़ी को िलए त ु -गित से ल कर के पीछे
हटकर पापमोचन क ओर बढ़ा और कु छ ही ण म सुरंग के ार पर आकर घोड़े से
उतर पड़ा। सभी यो ा घोड़ से उतर पड़े। फतह मुह मद ने िस े र क पीठ म
तलवार क न क छु आकर कहा, ‘‘आगे चलो गुसा ’’
पर तु िस े र इस दासी-पु का यह अपमानजनक वहार न सह सका।
उसने कहा, ‘‘ या तेरे कहने से?’’
पर तु फतह मुह मद ने तक नह कया। फु त से र सी उसक कमर म डालकर
उसके दोन हाथ पीछे कसकर बाँध िलए। और दो तुक सैिनक के हाथ म र सी थमाकर
कहा, ‘‘इस आदमी को तिनक भी दरे ग करते देखो, तो तुर त िसर उड़ा दो।’’ इसके बाद
उसने मशाल जलवाई और िस े र को धके लता आ सुरंग म घुस गया। उसके पीछे
उन दो सौ दै य क सेना भी। िस े र रि सय से जकड़ा आ, तलवार क न क से
धके ला जाकर सुरंग म बदहवास क भाँित चलने लगा। िव ासघात करने के प ाताप
से उसका मन लािन और दुख से भर गया। पर अब या हो सकता था। अपमान और
ोधाि क वाला से जलता-भुनता, शोक और अनुताप म डू बता-उतराता, तलवार
क न क से धके ला जाता आ वह िव ासघाती -रा स िवनाश क उस अंधेरी
सुरंग म राह दखाता, मन-ही-मन अछता-पछताता, बढ़ा चला जा रहा था।
िनणायक ण
डंका बजाते और नर संहा फूं कते ए, धान तुक सेनापित मसऊद हािथय पर
पुल बनाने क साम ी लेकर खाई म घुसा। दो सौ हािथय पर मोटी-मोटी लोहे क
जंजीर, भारी-भारी र से, छोटे-बड़े त ते और पुल बनाने क आव यक साम ी थी।
हािथय क आड़ लेकर हज़ार बढ़ई अपने-अपने औजार पीठ पर बाँधा, बड़ी-बड़ी लोहे
क ढाल के नीचे िसर िछपाए चल रहे थे। उनके पीछे अपने बलूची घुड़सवार के बीच
कसा आ अमीर हरी पगड़ी पर प े का तुरा पहने, अपनी लाल दाढ़ी को फराता आ
आगे बढ़ा। उसके पीछे बाण का मेह बरसाते असं य यो ा मशक पर, हािथय पर
और घोड़ पर तैरते ऐसे बढ़े चले आ रहे थे, जैसे भूिम पर ही ह ।
अभी सूरज ढलने लगा था। उसक ितरछी पीली करण अमीर क तलवार म
पीली चमक उ प कर रही थ । सेना गगनभेदी ‘अ लाहो-अकबर’ के नारे बुल द
करती ई बरसाती नदी के वाह क भाँित बढ़ी चली आ रही थी। मृ यु और िवपि य
को खेल समझने के अ य त पाव य- देश के ये बबर तु क तानी सैिनक कसी भी बाधा
को बाधा न समझ, दुधष तेज से दौड़ते चले आ रहे थे। उनके आगे िवजयी महमूद था,
िजसे अपनी सतकता, साहस, योजना और यु -नेतृ व पर पूरा भरोसा था।
संह ार पर जूनागढ़ के राव क चौक थी। वे अपने दस हज़ार सैिनक के साथ
इस आती ई िवपि का सामना करने को अ सर ए। अभी तक यु म इनका मोचा
अ ु ण बचा था। उ ह ने झटपट दूसरे मोच पर सावधानी से रहने के स देश भेजे और
क ठन यु के िलए तैयार हो गए। संकट के ण को उ ह ने समझ िलया था। ण- ण
म अ य मोच के समाचार उ ह िमल रहे थे। आधे दन से भी अिधक काल तक जो उनके
ने के स मुख खून क होली खेली गई थी, उसे देखते ए भी वे अब तक अचल-अभंग
रहे थे। अब उनक बारी आ गई थी। सोरठी यो ा ने तलवार ख च ली। राव ने
सैिनक को स बोधन करके कहा, ‘‘भाया, यह जीवन का अमर साखा है। याद रखना,
जहाँ तु हारे पैर ह, वहाँ से आगे तु हारे जीते-जी श ु के पाँव इस देवधाम को अपिव
न करने पाएँ।’’
सोरठी यो ा गरज उठे और अब उ ह ने एकबारगी ही कोट से बाण का मेह
बरसाना शु कया। देखते-ही-देखते म य ार के स मुख श ु उतरने लगे। वे तीर से
बंध- बंधकर घायल ची कार कर और घूम-घूमकर िगरने लगे। पर तु उनके ची कार
‘अ लाहो-अकबर’ और ‘हर-हर महादेव’ के घोर नाद म ा होने लगे। मरे ए
सैिनक का थान दूसरे सैिनक तुर त लेते। एक घोड़ा िगरता तो दूसरा घोड़ा आता।
मुदा से खा पट गई। पर मुदा और अधमर को पैर से ं धते ए दूसरे बबर सैिनक धँसे
ही चले आ रहे थे। अब पुल बनाने वाले इस तट पर आकर पुल के र से कोट क दीवार
म जमाने का य कर रहे थे। उन पर ऊपर से बड़े-बड़े प थर लुढ़काए जा रहे थे।
संह ार पर श ु के दल-बादल एक हो रहे थे। यह देखकर राव ने अपने हज़ार
यो ा को बड़े-बड़े प थर से ार को भीतर से पाट देने का आदेश दया था। बड़े-बड़े
प थर इधर- उधर के मकान , मि दर और चबूतर से उखाड़-उखाड़कर ार पर ढेर
कए जा रहे थे। खाई म मरे ए तुक के तीर से कोट पर के राजपूत िव हो-होकर
खाई म िगर रहे थे। इधर भारी-भारी प थर से चटनी होकर महमूद के यो ा मर रहे
थे।
पर तु आज जैसे ाण का कसी को मोह नह रहा था। खाई और खाई के
बाहर मुदा का टीला लग रहा था, फर भी श -ु दल टड् डी-दल क भाँित बढ़ता ही आ
रहा था।
अब ार पर हािथय क ट र लगने लगी। आठ म त हाथी सूंड से भारी-भारी
शहतीर ले ार को ठे लने लगे। उनके कं धे पर बैठे महावत िनदयता से उनके कान क
जड़ म अंकुश ब ध रहे थे। और हाथी चंघाड़ते ए बड़े-बड़े शहतीर से संह ार के
लौह-ज टत फाटक पर आघात कर रहे थे।
उधर पुल भी खाई पर फै ल गया। और इधर-उधर तैरते ए यो ा उसपर
चढ़कर दौड़ने लगे। अब ऊपर से उनपर खौलता आ तेल और जलती ई लकिड़याँ
फक जाने लग । बड़े-बड़े लकड़ी के कु द म तेल और ग धक से तर कपड़ा लपेटकर
आग लगाकर उ ह हािथय पर फका गया। ग धक क ग ध से घबराकर हाथी चंघाड़ते
ए, पीछे हटकर खाई म जा िगरे । इसी समय श ु ने संह ार म आग लगा दी।
कोट म भय क लहर ाप गई। इसी ण कोट के अ तरायण से एक
वज़िननाद सुन पड़ा, ‘‘अ लाहो-अकबर !’’ राजपूत यो ा आ यच कत हो भीतर क
ओर देखने लगे। जो कु छ देखा, उसे देख वे भय से िच ला उठे । न जाने कहाँ से कै से
धरती फोड़कर अ तरायण म श ु घुस आए थे। कोई कु छ न समझ सका।
महता क दृि
दामोदर महता यु नह कर रहे थे, पर तु वे सारे ही मोच पर बारीक दृि
रख रहे थे, क तु उनके मि त क को आन द का एकाएक गायब हो जाना ही मथ रहा
था। य िप इसका प कारण वे नह समझ पाए थे, पर तु यह वे िनि त प से समझ
गए थे, क वह श ु का ब दी हो गया है। यह भी उनके जानने से शेष न रह गया था क
भ श ु को सहायता दे रहा है। पर तु कै सी? यह वे भी न समझ पाए थे। फर भी
कसी अत कत और अकि पत भयानक घटना क वे ती ा कर रहे थे; पर तु वह या
हो सकती है, नह समझ पा रहे थे। एक बात और थी, आन द के साथ िस े र भी
गायब था। आिखर ये दोन कहाँ गए? या िस े र भी ब दी है! तब तो बात ही दूसरी
हो जाती है, यही उलझन थी िजसे दामो महता इस समय नह सुलझा सके थे।
गत रात से इस ण तक उ ह ने पीठ नह खोली थी। सारे आ मण क ि थित
पर उ ह ने दृि र खी थी। और अब इस ण संकट के ल ण वे य देख रहे थे। उ ह
अपना िनणय करने म देर नह लगी। य ही उ ह ने जहाज म आग लगी देखी, वे शेष
दो जहाज़ को कौशल से बचाकर खाड़ी के एक सुरि त थान म ले गए। नौका के
धुनधर को श ु पर बाण-वषा करते ए पीछे हटकर जहाँ तक स भव हो सुरि त
रहने के उ ह ने आदेश दए। कमा लाखाणी को योजना का सारा प समझा दया।
उनका याल था क श ु का यान शी ही जूनागढ़- ार से हट जाएगा। और वह संह-
ार पर ही मु य आ मण करे गा। वही आ भी। दामो महता क इस योजना और
कौशल को श ु ने नह समझा। इधर से िनवृ हो उ ह ने ा रका- ार क ग भीर
ि थित पर िवचार कया। ार क ि थित ब त ही खराब हो गई थी–पर तु इस समय
बड़े-बड़े प थर और मलबे के पहाड़ से वह पट चुका था। तथा अमीर के संह ार पर
धंसारा करते ही वहाँ भी दबाव कम पड़ गया था। य िप इस समय वह ार एक कार
से अरि त ही था और कोई भी सेनापित वहाँ न था, पर तु अब उसके िलए और कु छ
कया भी नह जा सकता था। दलपित और नायक जो कु छ कर सकते थे, कर रहे थे।
िजस समय वह भयानक घटना घटी–चौलु य खाई म िगरे और महाराज भी
मोट म कू दे–उस समय दामो वहाँ से काफ फासले पर गणपित-मि दर के इधर-उधर
गहरी िच ता म सोचते–िवचारते च र लगा रहे थे। इधर श ु थे ही नह । अिपतु यह
भाग एक कार से शू य हो रहा था। ि पुरसु दरी के बाहरी मैदान म भ और उसके
पाख डी स गी साथी धूिनयां तप रहे थे। जैसे इनके िलए यह महा-िवपद् काल कोई
मू य ही नह रखता था। इन धूत को इस कार िनि त देख, दामो महता को अब इस
बात म तिनक भी स देह नह रह गया था, क ये लोग अव य ही कसी गहरी
अिभसि ध म िल ह। भ के ऊपर उनक ती दृि थी। य िप वे उसक दृि से
सवथा बचे ए थे। उनके दूत ण- ण पर इधर-उधर के समाचार ला और उनके आदेश
ले जा रहे थे। वे येक ण कसी अ यािशत घटना क ती ा कर रहे थे, क इसी
ण महाराज महासेनापित के मोट म छलांग मारने से ए तुमुल नाद ने उनका यान
उधर ख चा। और वे घोड़ा दौड़ाते उधर दौड़ पड़े। हवा म उछलते महाराज के अ क
एक झलक उ ह ने देखी थी। वे जब तक मोच पर प च ँ , बालुकाराय साहस का प रचय
दे चुके थे। उ ह ने ार खोल दया था और उनक िवकटवािहनी ार के बाहर जा रही
थी। कोट से यो ा तलवार ऊँची कए दबादब मोट म महासेनापित के चार ओर कू द
रहे थे।
दामो महता ने कोट के कं गूरे पर चढ़कर इस िवकट यु को देखा। उनके देखते-
देखते ही महाराज और द ा का मू छत त-िव त शरीर बालुकाराय ने अिधकृ त
करके कोट क ओर मुँह मोड़ा। य िप उन पर महान् संकट था, पर तु दामो महता उसे
देखने के नह ।
वे पीछे लौटे। वे जूनागढ़- ार के िनकट तक आ गए। यहाँ अब, मरे और अधमरे
श -ु िम के ढेर पड़े थे। यु का दबाव यहाँ ब त कम हो गया था। कमा लाखाणी
ब त घायल हो गए थे, पर वे बराबर मोच पर डटे ए थे। दाम ने उनके िनकट
प चँ कर कहा, ‘‘वीरवर, िजतने धनुधर यो ा स भव ह , मोच के पीछे जहाज़ पर
भेजना ार भ कर दो!’’ लाखाणी ने ममभेदी दृि से महता को देखकर कहा, ‘‘जैसी
भगवान् सोमनाथ क इ छा। महता, महासेनापित को मेरा जुहार कहना।’’
दोन वीर पु ष ने गीली आँख से एक-दूसरे को देखा, और अपने-अपने काम
म लगे। महता अब संह ार क ओर फरे । यहाँ भारी घमासान यु हो रहा था। धीर-
वीर जूनागढ़ के राव बढ़-बढ़कर हाथ मार रहे थे। महता को देखकर उ ह ने िच लाकर
कहा, ‘‘महता, महाराज का यान रख भाया !’’
‘‘महाराज के साथ बालुकाराय ह अ दाता, उनक िच ता न कर। यह भारी
लोहा लेना तो आप ही का भाग है।’’
‘‘महता, तुम भी जाओ, यहाँ तो म ही ब त ।ँ आज ले छ से दल खोलकर
दो-दो हाथ क ं गा। अभी तो वह दूर है, वह हरी पगड़ी देखते हो न?’’ राव ने हँस कर
तलवार क नोक उधर उठाई।
‘‘हाँ, बापू देख रहा ।ँ आप देवासुर-सं ाम कर रहे ह। महाराज के िलए
आपका कोई स देश है बापू?’’
‘‘वे िजएं, ले छ का स यानाश देखने के िलए, और यह आज य द मेरे हाथ से
िज़ दा बच िनकले तो अपने हाथ से इस धम ोही का िशर छेदन कर। भाया, मेरा यही
स देश है। और सब को यार।’’
राव उधर से मुँह फे रकर यु म लग गए, जैसे महता का माया-मोह सभी वे
भूल गए।
इस समय अमीर के सैिनक बड़ी-बड़ी जंज़ीर से पुल को, संह- ार के तर-
त भ म अटका रहे थे। राव ने अपने यो ा को ललकारा, ‘‘अरे , हमारे रहते यह
या हो रहा है, वीर , कू द पड़ो और पुल को तोड़ दो।’’ हज़ार यो ा कोट म कू द पड़े।
ऊपर से जलते ए तेल और भारी-भारी प थर क बौछार क भरमार हो गई। अमीर
के यो ा पुल पर चढ़ आए, दोन प ने बाण से आकाश को पाट दया। क छी यो ा
बड़ी-बड़ी रे ितयाँ लेकर जंज़ीर से िचमट कर जंज़ीर को काटने लगे। ऊपर तलवार के
वार हो रहे थे, और वे अपनी कसी ई मु ी म रे ितयाँ िलए लुढ़क रहे थे।
पुल पर हज़ार मनु य, और पदाितक चढ़ गए थे। उस पर बोझ ब त पड़ गया
था। इसी समय तड़तड़ा कर जंज़ीर टू ट ग । उधर पुल म आग लग गई। पुल टू ट गया।
राजपूत हष से िच ला उठे , ‘‘हर-हर महादेव!’’
पर तु इसी ण अ तक ट के भीतर से दल को थरा देनेवाला िननाद उठा,
“अ लाहो-अकबर” ण-भर के िलए राजपूत यो ा थम गए। दामोदर जो मु ध होकर
सोरठ के राव का परा म िनहार रहे थे, अब तलवार ऊँची करके अ तक ट क ओर दौड़
पड़े।
दो तलवार
न जाने कस अिच य िविध से संकटे र क बावड़ी का जल एकाएक सूख
गया। बावड़ी म क चड़-ही-क चड़ रह गया। उसी क चड़ म से थम एक, फर दूसरा
इसके बाद तीसरा, इस कार एक के बाद एक अनिगनत िसर िनकलने लगे-मानो दै य
पाताल फोड़कर ज म ले रहे ह । सबसे आगे र स से बंधा िस े र था, और उसके पीछे
नंगी तलवार हाथ म िलए फतह मुह मद। उसके पीछे अ य तुक यो ा। उनके िवकराल
शरीर क चड़ और ग दगी म लथपथ, वीभ स भयानक ेत के समान दीख रहे थे।
भूिम पर पैर रखते ही िबना एक ण का िवल ब कए फतह मुह मद ने
तलवार का एक भरपूर हाथ िस े र क गदन पर मारा। उसका िसर भु े के समान
कटकर दूर जा िगरा। उसे सांस लेने का भी अवसर नह िमला। फतह मुह मद ने
तलवार ऊँची करके कहा, ‘‘यह हमारी पहली क त है।’’ उसक तड़पती ई लाश को
वह छोड़ वे सब ेत-मू तयाँ वृ और दीवार क आड़ म िन:श द गणपित-मि दर क
ओर बढ़ । गणपित-मि दर के ांगण को बगल म छोड़, वे सब चुपचाप महाकाल भैरव
के िवशाल चौक तक आ ग । यु का शोर यहाँ तक सुनाई पड़ रहा था, पर तु यु का
यहाँ और कु छ भी भाव न था। सामने ही भ और उसके सैकड़ वामाचारी चेले-
चांटे और कलमुंहे लोग सह ाि -सि धान तप रहे थे। जहाँ तक दृि जाती थी, धूिनयां
धधक रही थ , उनम बड़े-बड़े ल ड़ जल रहे थे। सबके बीच म दै याकार भ का
काजल-सा काला शरीर अचल ि थर आसीन था।
फतह मुह मद बाज़ क भाँित इन पाखि डय पर टू ट पड़ा। देखते-ही-देखते
उसके बबर तुक-सैिनक उन पाख डी तपि वय को गाजर-मूली क भाँित काटने और
धूिनय म झ कने लगे। बाबा लोग म भगदड़ मच गई। सब कलमुँह,े अघोरी वामाचारी
अपनी-अपनी धूनी छोड़ जान ले-लेकर इधर-उधर,जहाँ िजसका स ग समाया, भाग
िनकले। पर फतह मुह मद ने ललकार कर कहा, ‘‘देखना, एक आदमी भी इन शैतान म
से िज दा यहाँ से न िनकलने पाए।’’ क ावर तुक उन पर िपल पड़े और देखते-ही-देखते
उन सबके टु कड़े कर डाले।
भ क सारी िसि याँ और द शि याँ हवा हो ग । वह सू के पाठ
भूल गया। और भय से डरता, काँपता, िगड़िगड़ाता आ फतह मुह मद के पैर पर
िगरकर कहने लगा, ‘‘अरे देव वामी, मुझे पिहचान, म अमीर का दो त ,ँ अमीर का
दो त। तू तुझे अमीर के पास ले चल, वह तुझसे स होगा। उसका मुझसे कौल-करार
हो चुका है, म अमीर का दो त...’’
‘‘तो ले, यह अमीर क तलवार है, इसका पानी पी!’’ उसने तलवार का एक
भरपूर हाथ मारा और उस दै य का िसर भूिम पर लुढ़कने लगा। काजल के ढेर के समान
उसके शरीर से खून क नदी बह चली। फतह मुह मद ने खून टपकाती ई तलवार हवा
म घुमाते ए कहा, ‘‘बहादुरो, यह दूसरी क त है। आओ, अब अमीर नामदार का
इ तकबाल करने हम फतह दरवाज़े क ओर बढ़। याद रखो, हमारा एक-एक पल
क मती है, हम िसफ दो घड़ी का व है।’’
और वे अ लाहो-अकबर का संहनाद करते ए संह ार क ओर बढ़े, िजसे
फतह मुह मद ने अभी से फतह दरवाज़ा कहना ार भ कर दया था। यह उस गहरे
आ मिव ास का फल था जो मुि लम स ा क सफलता का मूल कारण था। वह
अ तक ट क ओर गली-कू च को पार करता आ तेजी से बढ़ रहा था। राह म जो
िमला, उसी के उसने दो टु कड़े कर दए। वह मु य मि दर के परकोटे के ार पर प च ँ ा,
जहाँ कभी पहर-पहर पर चौघिड़यां बजती थ , वहाँ इस समय स ाटा था। वह
दीप त भ पर ितर कार क दृि फकता आ सीढ़ी पर चढ़कर सभा-म डप म जा
प च ँ ा। जहाँ एक शू के चरण कभी नह प च ँ े थे और जहाँ खड़े होकर देव-दशन करने
क चे ा म एक बार उसे धा े देकर िनकाल दया गया था। सभा-म डप के पास ही
र -म डप था और उसके मूल म वह गभगृह था, जहाँ भगवान भूतपावन महाकाल
सोमनाथ का योित ल ग था। कदािचत् वह इस समय अपना कत भूलकर
योित ल ग के दशन करने क इ छा से र -म डप क ओर बढ़ा। उसने सोचा, एक
बार उस प थर के देवता को देखूँ तो, िजसे देखने का अिधकार िसफ इन ा ण को ही
है।
पर तु उसक गित क गई। र -म डप के ार पर नंगी तलवार हाथ म िलए
अचल भाव से दामोदर महता िनभय खड़े थे।
दोन तलवार ऊँची और िभड़ ग । बबर तुक अ लाहो-अकबर का िननाद
करते ए तलवार ले-लेकर दामोदर पर टू टे। वहाँ इस समय एक िचिड़या का पूत भी न
था। दामोदर ने दो सी ढ़याँ उतरकर मु कराते ए कहा, ‘‘देव वामी, इस तलवार को
पहचानते हो?’’
फतह मुह मद सहम कर दो कदम पीछे हट गया। उसके यो ा भी कसी जादू
से जड़ हो गए। िजसक तलवार जहां थी, वह रही। फतह मुह मद ने अदब से िसर
झुकाकर कहा, ‘‘पहचान गया जनाब, ले कन ऐसी ही तलवार यह मेरे पास भी है। आप
भी पहचान लीिजए।’’
दामोदर ने अपनी मु कान को और िव तृत करके कहा, ‘‘ठीक है देव, तो ये
दोन तलवार लड़ तो नह सकत ?’’
‘‘जी नह ।’’
‘‘और िजसके हाथ म यह तलवार है, उसके साथ तुम कै सा सलूक करोगे?’’
‘‘जी, जहाँ तक तलवार का सवाल है, मुझे भी हक हािसल है क म उससे
बराबरी का सलूक क ँ । य क ऐसी ही दूसरी तलवार मेरे पास भी है। मगर आप
बुजुग और मुर बी ह, मेरा फज़ है क म आपक इ ज़त क ँ । म अमीर का म ज़ र
बजा लाऊंगा, मगर अमीर नामदार के बाद मुझपर आपका म बजा लाना फज़ हो
जाता है।’’
‘‘और य द ऐसा करने म तु ह खतरा उठाना पड़े?’’
‘‘तो या हज है, खतरे के डर से फतह मुह मद या फज को तक करे गा?’’
‘‘शाबाश बहादुर, तो या अमीर ने तु ह र –म डप तक आने का म दया
है?’’
‘‘नह जनाब।’’
‘‘तो िम , अमीर का म बजा जाओ। अभी यहाँ मेरी चौक है। यहाँ आने क
वह आदमी िह मत करे िजसे इस तलवार क वह आन न हो।’’
फतह मुह मद ने एक बार दामोदर को िसर झुकाकर णाम कया और
चुपचाप पीछे लौट चला।
छ –भंग
ा रका- ार को पार कर जो तुक के दल-बादल कोट म घुस आए थे, वे
ाचीर पर चढ़कर बुज पर दखल करने लगे। कमा लाखाणी क तिनक-भी आन न
मानकर अमीर के कछु ए इस पार आ रहे थे और नसैनी लगा-लगाकर कोट पर चढ़ रहे
थे। जो कोट पर प च ँ चुके थे, वे एक हाथ से तलवार चला रहे थे, दूसरे से आने वाल
को सहायता दे रहे थे। लड़ाई चौमुखी हो रही थी। लाश से जल-थल पट गए थे।
संह ार पर जूनागढ़ के राव अपने का ठयावाड़ी यो ा क अिडग दीवार
बनाए लोथ का पहाड़ बना रहे थे। बड़े-बड़े क ावर तुक अपनी दाढ़ी दाँत म भ च
दुहरी तलवार फक रहे थे। उधर बलोची सवार के द ते गहरा धंसारा कर रहे थे। ार
क ब त ही दुदशा हो चुक थी और अब वह कसी भी ण िगर सकता था। ऊपर-नीचे
चार ओर हज़ार तलवार छा रही थ । नीचे च टय क कतार क भाँित हठी तुक
यो ा पल–पल पर बढ़े आ रहे थे। राजपूत उ ह पीछे धके ल रहे थे। वृ राव नवधन
श ु से गस गए थे। उ ह ने आँख उठाकर चार ओर देखा, मन म समझा, आज ही
लय का ण उपि थत हो गया तीत होता है। गुजर यो ा असीम परा म दखाने
लगे। अब बाण, तलवार, गदा और कु ती का हाथ -हाथ यु हो रहा था। म य एिशया
के च ड यो ा क अजेय सेना िलए अमीर, संह ार पर तलवार ऊँची कए खड़ा
था। राव ने अमीर को देखा, उ ह ने सोचा, य न दो-दो हाथ इस गज़नी के दै य से कर
िलए जाएँ। फर कै लास-वास तो होना ही है। उ ह ने तलवार स भाली और अमीर को
ललकारते ए कोट से कू दने को तैयार ए। क छी यो ा ‘बापू-बापू’ कर-करके दौड़
पड़े। पर तु इसी समय अ तरायण से अ लाहो-अकबर का िवकट नाद उठा, और
मायामू त क भाँित भीतर कोट से तुक यो ा िनकलकर पीछे से मार करने लगे। जब
तक क राजपूत संभल क फतह मुह मद ने उनके िसर पर छलांग मारी और िब ली
क भाँित उछलकर ार खोल दया। नदी के वाह क भांित श ु जय-िननाद करते ए
भीतर घुस चले।
राव ने देखा तो असंयत हो उधर दौड़ पड़े। पर तु जैसे ितनका भंवर म पड़कर
टु कड़े-टु कड़े हो जाता है, उसी कार ितल–ितल कर वे खेत रहे।
राजपूत म हाहाकार मच गया। अब यु क कु छ व था न रही। दो-दो
चार-चार यो ा दल बांधकर लड़ने लगे। चार ओर पुकार मच गई, ‘अ तक ट !
अ तक ट !’ और बचे-खुचे यो ा िसमटकर अ तक ट क ओर दौड़ चले। राहबाट सब
लाश म भर गए। मरते के आतनाद, यो ा के ची कार और घोड़ तथा हािथय
क िच लाहट से वातावरण अशांत हो उठा। फतह मुह मद ने अमीर क रक़ाब चूमकर
अमीर का वागत कया। फर वह उछलकर घोड़े पर चढ़ा, और अमीर के आगे-आगे
तलवार क धार से राह बनाता चला। अमीर अपने िवशाल काले घोड़े पर सवार अपनी
अ ितहत वीर वािहनी के दल-बादल िलए महालय क संह-पौर म धँसा।
धमानुशासन
र -म डम क पौर पर दामोदर महता उसी कार अचल-भाव से िन पंद खड़े
रहे। वे सोच रहे थे, दासी-पु के शौय-परा म, िवनय और उ ाशयता क बात। कु छ
ही ण म उ ह तीत हो गया क संह ार का पतन हो गया और अमीर क सेना
अ तरायण म धँसी चली आ रही है। या करना चािहए, इसका कु छ भी िनणय वह
कमठ राजपु ष इस समय न कर सका। वह देख रहा था, आज उसी के ने के स मुख
गुजरात के उस िव ुत देव- थान के भंग होने का ण आ लगा। कै से वह उसे देख,े कै से
वह उसे रोके ? उसके हाथ म अमीर क दी ई तलवार थी, या वह उसके नाम पर
अमीर से याचना करे , उस अमीर से, िजसे उसने एक बार ाण-दान दया था। नह ,
नह । उसने वह तलवार यान म कर ली और गुजर तलवार सूंत ली। उस साहसी पु ष
ने इस पु य पव पर ाणो सग का िनणय कर िलया। उसने अपने ही आपसे कहा, ‘नह -
नह , इस पौर पर मेरे रहते ले छ का पांव नह पड़ेगा।’
शोर और अ लाहो-अकबर का नाद िनकट आ रहा था। श क झनझनाहट
और मरनेवाल के आतनाद बढ़ रहे थे। पर तु इस थान पर एक भी पु ष न था। सामने
गद उड़ती आ रही थी। और कु छ ही ण म श ु इस भूिम क रजकण को र -रं िजत
करने आ प च ँ गे, यह वह जानता था।
दामो महता और एक पौर नीचे उतरे । इसी समय कसी ने पीछे से उ ह छु आ।
उलटकर देखा, तो गंग सव । वही शा त मु ा, वही अचल धैय। सव ने क ण ने से
गुजरात के म ी को देखा और ि थर वर से कहा, ‘‘आ पु !’’
उस वाचाल राजपु ष के मुँह से एक श द भी न िनकला। उसने आँख म आँसू
भरकर गंग क ग भीर मु ा देखी और चुपचाप बालक क भाँित उनके पीछे–पीछे हो
िलया। गभगृह म जाकर सव ने गभगृह के ार ब द कर िलए। फर योित लग के
ठीक पीछे जा एक गु ार उ ह ने खोला और कु छ दूर तक अ धकारपूण सुरंग म
चलकर एक छोटे क म जा प च ँ ।े
क म महाराज भीमदेव और चौलु य के शरीर भूिम म पड़े थे। बालुकाराय
शोक-संत चुपचाप खड़े थे। नंगी तलवार उनके हाथ म थी, उनक तलवार और शरीर
पर लगा र सूख गया था। पास ही म गंगा त ध-िन ल खड़ी थी।
गंग ने शांत वाणी से कहा, ‘‘पु , चौलु य तो कै लास-वासी ए। पर तु
महाराज सेनापित के वल मू छत ह। उनक र ा का भार म तु ह स पता ।ँ पु ,
गुजरात के गौरव क र ा करने को ही भीमदेव जीिवत रह, ऐसा ही देव आदेश है। अब
समय कम और काम ब त है, एक-एक ण मू यावान् है। आओ मेरे साथ!’’–यह कहकर
सव ने अनायास ही महाराज भीमदेव का शरीर अपने बिल हाथ से क धे पर उठा
िलया।
बालुक ने बाधा देकर कहा, ‘‘गु देव, यह या? य द ऐसा ही है तो वह भार
मुझे दीिजए।’’
‘‘नह पु , तु हारी भुजा पर तलवार का भार है, वही रहे। यह मेरा
धमानुशासन है, बाधा मत दो। अपनी तलवार ले सावधानी से मेरे पीछे आओ। फर
गंगा क ओर घूमकर कहा, ‘‘गंगा, अब तू?’’
‘‘जहाँ आपके ीचरण।’’
‘‘गंगा, जा, चौला को देख।’’
‘‘िजसे देखना मेरा त है, उसे ही देखूँगी, इसके िलए मने महासेनापित का
रा यानुशासन भी नह माना, आपका धमानुशासन भी नह मानूँगी।’’
‘‘तो घड़ी भर यह ठहर, म अभी आता ।ँ तब चौलु य के शरीर क व था
करगे।’’
गु देव के नह । मू छत महाराज भीमदेव का अंग कं धे पर लादकर उस
अंधेरी गुहा म बढ़ चले, पीछे नंगी तलवार हाथ म िलए दामोदर महता और
बालुकाराय चले।
वे चलते चले गए। धीरे -धीरे अंधकार कम होने लगा और वे उ मु आकाश के
नीचे आ खड़े ए। सामने समु िहलोर ले रहा था। नौका तैयार थी। महाराज भीमदेव
का शरीर नौका पर रख, उ ह ने बालुकाराय और महता को भी नौका पर चढ़ाकर कहा,
‘‘पु ो, आशीवाद देता ।ँ सुखी होओ। यह वाहण खड़ा है, िजतना शी हो, गंदावा
दुग प चँ जाओ। महाराज क र ा करना। जाओ, तु हारा क याण हो।’’
सव एकबारगी ही पीछे लौटकर तेज़ी से उस अंध-गुहा म घुस गए। दोन
राजपु ष ने उ ह हाथ जोड़कर णाम कया और उनक नाव वाहण क ओर बह
चली।
आ म–य
क म आकर सव ने देखा, गंगा ज दी-ज दी िचता बनाने म जुटी है। उसने
पास-पास दो िचताएँ बनाई थ । वह फु त से जलने यो य जो सामान वहाँ जुटा सकती
थी, जुटा रही थी। सव ने देखा तो कहा, ‘‘यह या?’’
‘‘चौलु य के िलए अि -रथ।”
‘‘और दूसरी?–
‘‘गंगा के िलए’’ वह हँस दी। पर तु गंग रो दए। उनका वीतराग दय जैसे
बालक क भाँित अधीर हो गया। गंगा ने उनके अ य त िनकट आकर उनके व पर
अपना िसर रखकर कहा, ‘‘आप भी रोते ह?’’
‘‘गंगे, िहमालय क िहम धवल च ान भी िपघलती ह, पर तु अब तो तुझे
जाना ही होगा। आ, म तुझे िवदा कर दू।ँ ’’ उ ह ने उसके म तक पर हाथ फे रा। और
बड़ी देर तक उसे व से लगाए िन प द खड़े रहे।
इसी समय उनके एक अ तरं ग िश य ने आकर कहा, ‘‘देव, अ तक ट िगर गया,
अब अ तक ट पर श ु धावा कर रहे ह। कु छ ही ण म वे र म डप तक प च ँ जाएँगे।’’
‘‘एक ण ठहर पु , तू जा, और कृ ण वामी से कह क र -कोष क समुिचत
सुर ा- व था कर। ग गंगा को मो देकर अभी आता ।ँ ’’ िश य म तक नवाकर चला
गया। सव ने कहा, ‘‘आ गंगी।’’ उ ह ने अपने हाथ से उसका के श-िव यास कया।
अंग- यंग च दन-च चत कया, फर हाथ पकड़ कर िचता पर बैठाया, कु छ ण मौन
रह, कि पत वाणी से कहा, ‘‘जा क याणी, कै लासवािसनी हो।’’
गंगा ने सव क चरण-रज को म तक पर चढ़ाया, और आख ब द करके
यान थ बैठ गई। सव ने घी और कपूर के बड़े-बड़े डले िचता पर रख अि थापना
कर दी।’’
दोन िचताएँ शी ही धधकने लग । धुआँ क म फै ल गया। क तु वह दृ य
देखने सव वहाँ के नह , तेज़ी से गभगृह क ओर लपक चले।
श ु र -म डप म घुस आए थे। सबसे आगे अमीर मह मूद था। उसक हरी
पगड़ी पर प े का तुरा झलक रहा था। और लाल दाढ़ी हवा म फहरा रही थी। उसके
हाथ म नंगी तलवार थी। उसके एक पा व म एक भारी गुज हाथ म िलए फतह मुह मद
था, और दूसरे पा व म ेत म ुधारी िस अरबी िव ान् अलब नी था। उसके हाथ
म एक ल बी तलवार थी।
अमीर ने संकेत से सबको आगे बढ़ने से रोक दया। तीन ि आगे बढ़े। र -
म डप के मिणज टत ख भ पर अ तंगत सूय क रं गीन करण िझलिमला रही थ । उस
अ ितम मिणमय ासाद को देखकर अमीर आ य से जड़ हो गया। सहमते ए, वह
गभगृह म घुसा। उसने देखा घृत के दीपक अपनी पीली आभा और सुग ध िबखेर रहे थे।
और िनता त शा त वातावरण म गंग सव वण-थाल हाथ म िलए देवािधदेव
सोमनाथ क आरती उतार रहे थे।
ण-भर अमीर भाव-िवमोिहत-सा मु ध खड़ा रहा। कु छ देर बाद उसने सतेज
वर म कहा, ‘‘यहाँ कौन है?’’
‘‘म और मेरा देवता’’, गंग ने शा त वर म कहा। फर िबना ही अमीर क ओर
मुँह फे रे उ ह ने कहा, ‘‘व स महमूद, कु छ ण ठहर जा।’’
वे अपनी अचना स प करने लगे, मानो कु छ आ ही न हो। महमूद और उसके
दोन साथी इस अ ितम देव और उस देव के सेवापु ष को अिनमेष देखते खड़े रहे।
शी ही सव ने अचना-िविध समा क । भूिम म िगरकर देवता को णाम
कया। फर िबलकु ल योित लग से सटकर बैठ गए। बैठकर वैसी ही शा त-ि ध वाणी
से उ ह ने कहा, ‘‘अब तू अपना काम कर महमूद।’’
उ ह ने ने ब द कर िलए। देखते-ही-देखते उनका शरीर िन प द हो गया।
अमीर ने सािथय से दृि -िविनमय कया। फर वह फतह मुह मद के हाथ से गुज लेकर
आगे बढ़ा।
योित लग के िनकट जाकर उसने कहा, ‘‘म खुदा का ब दा महमूद वही क ग
ँ ा
जो मुझे कहना चािहए। अय बुजुग, दूर हट जा और बुत–िशकन को कु तोड़ने दे।’’
पर तु गंग सव ने और भी योित लग को अपने अंक म लपेट िलया। उ ह ने
आँख खोलकर क ण दृि से महमूद क ओर देखा, और धीर वर से कहा, “पहले सेवक
और पीछे देवता।’’
उ ह ने योित लग पर अपना िहमधौत िसर रख दया। अमीर ने गुज का
भरपूर वार कया। सव का भेजा फट गया। और उनके गम र से योित लग लाल हो
गया। उनके मुँह से विन िनकली, ‘‘ओ३म्’’, और ाण-पखे र को भेदकर उड़
गए। अमीर ने गुज का दूसरा वार और फर तीसरा वार कया। योित लग के तीन
टु कड़े हो गए।
दूज का ीण च आकाश म चढ़ रहा था। इधर-उधर तारे टम टमा रहे थे।
मग़ रब क नमाज़
र म डप म आकर अमीर ने मग रब क नमाज़ अदा करने को घुटने टेक दए।
सह नर-मु ड जो जहाँ थे झुक गए। हज़रत अलब नी ने अमीर के नाम का खुतबा
पढ़ा। उ ह ने कहा, ‘‘गाज़ी अमीर महमूद शहंशाहे-गज़नी, िजनपर परमा मा क
असीम कृ पा है और रहेगी, दुिनया म खुदा के ितिनिध ह।’’ इसके बाद उ ह ने महालय
से कं गूरे पर चढ़कर बांग लगाई । “ला इलाइि ललाह-मुह मद रसूल अ लाह।”
सबने ‘आमीन! आमीन!’ कहा। अमीर ने जलद ग भीर वर म कहा, ‘‘म
अमीर महमूद, खुदा का ब दा वही क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए। और वही क ँ गा जो
करना चािहए। खुदा के म से कु तोड़ना सबसे बड़ा सवाब है। और म खुदा का ब दा
महमूद, धम क इस तलवार को कु तोड़ने के काम म लाता ँ और आप सब सवाब के
िह सेदार ह।’’
फर सबने आमीन कहा। योित लग के ािभषेक के िलए जो गंगो ी का
पिव गंगाजल चांदी के घड़ म गभगृह म भरा रखा था, उसी से उसने वजू कया और
मग़ रब क नमाज़ अदा क –उसी र -म डप म, जहाँ कभी देव–साि य म शत–सह
ने के स मुख पसी देवदािसयां नृ य–लास करती थ । इसके बाद उसने र –म डप
क पौर म कु बानी क । फतह मुह मद ने महालय के िशखर पर चढ़ गगनचु बी
भगवा वज भंग कर महमूद का हरा झ डा फहरा दया।
इस कार अपने लाशरीक खुदा को स कर, उसके ित अपनी कृ त ता
जता, वह अपने अ पर सवार आ। उसने महालय और देवप न म अपनी आन फे री,
यु बंद करने का आदेश दया। आदेश न मानने वाल को कै द करने या क ल करने का
म दया। सब मुख नाक , आगार , महालय पर पहरे -चौक का ब ध कया। और
संह- ार के फाटक उखाड़कर उ ह साथ ले, सब ओर से िन ंत होकर वह तुरही,
नफ री, शहनाई और न ारे बजाता आ, िजहाद का हरा िवजयी झ डा फहराता
अपनी छावनी म लौटा। जब उसने घोड़े क पीठ छोड़ी, एक पहर रात बीत रही थी।
हज़ार घायल, बे-घायल राजपूत ब दी कर िलए गए। लाश के उठाने का उस
रात कोई ब दोब त नह आ। िजस क म गंगा ने अि रथ-अिभयान कया था, उसके
आसपास के सब क जल कर राख हो गए थे। रात-भर वहाँ आग धधकती रही। कसी
ने भी उसे बुझाने क चे ा नह क ,
वृ वीरवर कमा लाखाणी इस समय सैकड़ घाव से लदे-फदे अपने वाहण
म एक ओर खड़े महालय के अंचल क उठती ई लपट के काश म भ भगवा वज को
आँसू-भरी आँख से देख रहे थे। वाहण म अचेत महाराज भीमदेव को चेत म लाने के
िलए दामोदर महता और बालुकाराय अथक य कर रहे थे। संसार अंधकार म डू बता
जा रहा था और इस अंधकार म एक गहरा काला ध बा-सा, वह वाहण लहर पर
िहलता-डोलता-सा समु -व पर बढ़ता आ, क छ क खाड़ी म सुरि त गंदावा दुग
क ओर बढ़ रहा था।
न भात
रात ही म देवप न म भगदड़ मच गई थी। िह दू यो ा और पुजारी ाण ले-
लेकर जल-थल क राह भाग चले थे। भात होते ही तुक के दल-बादल नगर-महालय
लूटने को अ लाहो-अकबर का नाद करते टू ट पड़े। श ु के भय से िह दू मछु ए होड़ी आ द
जो िजसके हाथ लगा, उसी म बैठकर समु म तैरने लगे। पर इस समय समु भी अभागे
िह दु का श ु हो गया था। उसम बड़ी-बड़ी पहाड़ क च ान के समान लहर उठने
लग । अनेक अभागे उन लहर क चपेट म आकर समु -गभ म िवलीन हो गए। अनेक
लोग श ु के हाथ ब दी ए या कट मरे ।
देखते-ही-देखते देवनगर धांय-धांय कर जलने लगा। महमूद अपने काले घोड़े
पर सवार हो िवजयो लास से भरा आ दल-बल सिहत महालय क पौर म धँसा। इस
िवजय का महमूद को बड़ा गव था। हष से उसका दय उछल रहा था। महमूद और
उसके म ीगण आ यच कत होकर महालय क भ शोभा िनरखने लगे। उस अग य
देव थली म उनके पैर के पड़ने से देव थान मिलन होने लगा। आँख से कभी न
देखी और कान से कभी न सुनी ई शोभा और ऐ य क रािश देख महमूद और उसके
म ीगण िवमूढ़ हो गए। उसे अपने गज़नी के राजमहल के ऐ य का बड़ा गव था।
पर तु सोमनाथ महालय के ऐ य को देखकर उसका गव खि डत हो गया। वह आगे
बढ़कर गभ-गृह म घुसा। योित लग के तीन टु कड़े िबखरे ए पड़े थे। गंग सव का
िछ शरीर भी उसी भाँित देव-साि य म पड़ा था । उनका र बहकर सूख गया था ।
उसने मि दर के पुजा रय और अिधका रय को स मुख आने क आ ा दी। ब त
पुजारी भाग गए थे। जो शेष थे, वे कृ ण वामी को आगे करके डरते-काँपते अमीर के
स मुख करब आ खड़े ए।
कृ ण वामी ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘पृ वीनाथ, िजतना धन आपको चािहए,
हम द ड देने को तैयार ह, पर तु महालय को भंग मत क िजए। यह हमारा िह दु का
अित ाचीन देव थान है। हम दीन जन आपसे अब यही िभ ा माँगते ह।’’
महमूद ने कहा, “ ज़र-जवाहर के लालच से इ लाम के ब द का खून बहाने म
यहाँ नह आया ।ँ म मू तपूजक के धम का ितर कता, मू तभंजक महमूद ,ँ बुतपर ती
के कु को दूर करना मेरा धम है। म मू त बेचता नह , मू तय को तोड़कर अ लाताला
खुदा के पैग बर मुह मद क आन कायम करता ।ँ ’’ इतना कहकर उसने अपने हाथ क
र ज टत सुनहरी छड़ी से तीन बार उस भ योित लग पर आघात कया और सब
मू तय तथा महालय को तोड़ने-फोड़ने का म दया। देखते-ही-देखते उसके हज़ार
बबर सैिनक महालय क मू तय , महराब और तोरण को तोड़ने-फोड़ने और ढाने लगे।
अब महमूद ने कृ ण वामी से धन-र -कोष क चािबयाँ तलब क । अछता-
पछता कर कृ ण वामी ने देवकोष महमूद को समपण कर दया। उस देवकोष क
स पदा को देखकर महमूद क आँख फै ल ग । भू-गभ-ि थत चहब म वण, र ,
हीरा, मोती, मािणक, आ द भरे थे। उस दौलत का अ त न था। उस अटू ट स पदा को
देखकर महमूद हष से अपनी दाढ़ी नोचने लगा। उसने तुर त ही सब र कोष उठाकर
मंजूषा म भर-भरकर िशिवर को रवाना कर दया। अ सी मन वज़नी ठोस सोने क
ज़ंजीर, िजसम महाघ ट लटकता था, तोड़ डाली। कवाड़ , चौखट और छत से चाँदी
के प र छु ड़ा िलए। कं गूर के वणप उखाड़ िलए। मिणमय त भ पर जड़े ए र
उखाड़ने म उसके हज़ार बबर जुट गए। सोने-चाँदी के सब पा ढेर कर उसने ऊँट पर
लाद िलए।
फर भी उसे स तोष न आ। उसके गोइ द ने गु कोष क तलाश म समूचे
गभ-गृह को खोद डाला। योित लग के मूल थान म ब मू य मिण–मािण य का एक
महा-भ डार उसे और िमल गया। इससे उ सािहत होकर उसने समूचे महालय के गोख,
फश, अिल द को खोद–खोदकर गु कोष ढू ंढ़ना ार भ कया। कृ ण वामी से उसने
ब त कया। अ त म उसे बाँधने क आ ा दी। सैिनक कृ ण वामी को बाँधने लगे।
कृ ण वामी िगड़िगड़ाने लगे और ाण क िभ ा माँगने लगे। चार ओर तुमुल
कोलाहल मच रहा था। उस कोलाहल के बीच जैसे दय को िवदीण करती ई एक ती

ं ृ ित ने सभी को च का दया। उस पागल ण म चीखती-िच लाती, न जाने कहाँ से
रमादेवी, एक मोटी लकड़ी हाथ म िलए भीड़ को चीरती ई धँस आई। उसके व फटे,
ने फै ले ए, बाल िबखरे ए और मुँह िवकराल था। उसने सैिनक को पीछे धके लकर
कृ ण वामी को अपने आँचल म िछपाते ए ललकार कहा, ‘‘कहाँ है वह मु डी–काटा
गज़नी का अमीर, आए मेरे सामने! देखूँ कै से वह मेरे आदमी को ब दी करता है!’’
सैिनक ने झपटकर रमाबाई को पकड़ िलया। धकापेल म उसके व तार-तार
हो गए। वह िगर गई। पर तु संिहनी के समान गरजकर उसने उछाल भर कर कई
सैिनक को िगरा दया। सैिनक ने तलवार ख च ल । सैकड़ तलवार रमाबाई पर छा
ग ।
फतह मुह मद अब तक चुपचाप अमीर क बगल म बड़ा था। अब वह तलवार
सूंत एकदम रमाबाई के आगे छाती तानकर खड़ा हो गया। उसने ललकार कर कहा,
‘‘खबरदार, जो कोई इस औरत को छु एगा, उसके धड़ पर िसर नह रहेगा।’’
नामदार अमीर महमूद क उपि थित म यह घटना असाधारण थी। महमूद
अिवचिलत भाव से यह सब देख रहा था। अब उसने आगे बढ़कर कहा, ‘‘उस औरत को
छोड़ दो।’’
िसपािहय ने रमाबाई को छोड़ दया। छू टते ही उसने कृ ण वामी के ब धन
खोल दए और फर वह अपने हाथ क लकड़ी मज़बूती से पकड़कर अमीर क ओर
फरी। उसने अपनी गोल-गोल आँख घुमाते ए कहा, ‘‘तू ही वह अमीर है?’’
‘‘हाँ औरत, म ही अमीर महमूद ।ँ ’’
‘‘तूने सव को मारा, देव लंग भंग कया?’’
‘‘हाँ, म िवजयी मू तभंजक महमूद ।ँ ले कन औरत, तू या चाहती है?’’
‘‘मै तुझसे यह पूछती ,ँ क या तुझसे कसी ने यह नह कहा क तू मृ यु का
दूत, जीवन का श ु और मनु य म कलंक प है?’’
‘‘अय औरत, म तेरी सब बात सुनूँगा, कहती जा।’’
‘‘तूने िवजय ा क , पर कसी क भलाई नह क ।’’
‘‘म खुदा का ब दा, खुदा के म से कु तोड़ता ।ँ ’’
‘‘तू भगवान के पु को मारता है, िज ह ने तेरा कु छ नह िबगाड़ा। उ ह
लूटता है और उनके घर-बार जलाता है। तू कं कड़-प थर का लालची है, और आदमी का
दु मन है। तेरा खुदा य द तेरी इन काली करतूत से खुश है, तो वह खुदा नह , शैतान
है।’’
महमूद क भव म बल पड़ गए। क तु वह चुपचाप अपने ह ठ को दबाता
आ इस दबंग औरत को देखता रहा, िजसके साहस और शि का अ त न था। वह इस
औरत क बात का मम समझ गया। उसने फतह मुह मद क ओर देखा–वह उसी भाँित
तलवार नंगी कए रमादेवी के आगे छाती तानकर खड़ा था। महमूद ने कहा–‘‘अय
बहादुर, या इस औरत को तू जानता है?’’
‘‘जानता ँ जहाँपनाह।’’
‘‘कौन है यह?’’
‘‘मेरी माँ।’’
महमूद बड़ी देर तक उस औरत क ओर ताकता रहा, एक ह क मु कान और
क णा क झलक उसके ने म आई। उसने जलद ग भीर वर म कहा, ‘‘औरत,
तलवार के िवजेता महमूद के सामने तूने जो सच कहा, वह बादशाह के िलए इ ज़त क
चीज़ है। दुिनया म दो चीज़ लोग को िज़ दगी ब शती ह–एक सूरज क करन और
दूसरा माँ का दूध। तूने िज़ दगी से यार करने क ओर मेरा यान दलाया है। ठीक कहा
तूने औरत। और तू माँ है, माँ के िबना महमूद पैदा ही न हो सकता था। फरदौसी,
अलब नी, अर तू, शेख सादी, ये सब माँ के ब े ह। अय माँ, आगे बढ़, और इस ब े के
िसर पर हाथ रखकर इसे दुआ ब श, िजसने तीस वष तक धरती को अपने पैर से
कु चलकर उसे लो से लाल कया है।’’
दो कदम आगे बढ़कर महमूद िसर झुकाकर एक बालक क भाँित रमाबाई के
आगे आ खड़ा आ।
रमाबाई का –भाव एकबारगी ही जाता रहा। उसने हाथ क लकड़ी फककर
आगे बढ़कर महमूद के म तक पर हाथ रखा और आँख म आँसू भरकर कहा, ‘‘कै से तू
जंदा आदमी को मार सकता है, उनका घर-बार लूट सकता है! अरे महमूद, उनक भी
तेरी–सी जान है, उ ह कतना दु:ख होता होगा, बोल तो?’’ रमाबाई क आँख से झर-
झर आँसू बह चले।
महमूद ने िसर ऊँचा कया। उसने कहा, ‘‘ब त लोग मुझसे अपने रा य और
दौलत के िलए लड़े। ले कन इ सान के िलए आज तक मुझसे कोई नह लड़ा। म खुदा का
ब दा महमूद, वही क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए। यह औरत, जो मेरे सामने खड़ी है,
उसने मुझे एक नई बात बताई है, िजसे म नह जानता था। इसके हाथ म तलवार नह
है, तलवार का डर भी इसे नह है। यह रोती और िगड़िगड़ाती भी नह । बादशाह के
बादशाह महमूद को फटकारती है, इ साफ के यार ने इसे इस कदर मज़बूत बनाया है।
इसके आँसु का मोल तमाम दुिनया के हीरे -मोितय से भी नह चुकाया जा सकता।
इसने महमूद को माँ क तरह नसीहत दी है और अब म महमूद, खुदा का ब दा, वही
क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए। दो सौ घुड़सवार िजनक सरदारी फतह मुह मद करे गा,
इ ज़त के साथ बादशाह के बादशाह क माँ को इसके घर तक प च ँ ा द और उसका हर
एक म बजा लाएँ। महमूद इस औरत का बेटा है। वह कहता है, वह िजतनी दौलत
चाहे, ले जाए और जो चाहे उसे वही म दे।’’
ले कन रमा देवी ने कहा, ‘‘महमूद, मुझे कु छ नह चािहए। म के वल यही
चाहती ँ क तू अभी, इस देवप न से चला जा और अब अिधक िवनाश न कर! और
जान रख, क तू जैसे खुदा का ब दा है वैसे ही और सब लोग भी ह। वे सब तेरे भाई ह
महमूद, उ ह यार कर, तेरी नामवर तलवार उनक र ा के िलए है, उनक गदन काटने
के िलए नह ।’’
महमूद ने तलवार ऊँची करके कहा, ‘‘महमूद, खुदा का ब दा, इस औरत का
म मानकर इसी ण इस देवप न को छोड़कर कू च का म देता है।’’
महमूद ने तलवार को यान म कया और अपना घोड़ा मँगाया। उसके सब
सैिनक चुपचाप अपनी तलवार नीची कए उसके पीछे-पीछे चले। के वल फतह मुह मद
अपने दो सौ सवार के साथ रह गया।
‘‘अब तू, देवा, तू भी जा,’’ रमादेवी ने उसे देखकर कहा।
‘‘माँ, या तुम मुझसे नाराज़ हो?’’
‘‘जो कु छ तूने कया, वह होनहार था। पर अब तू जा और इन अपने संगी–
सािथय को भी ले जा। तेरी आँख के आगे सव का हनन आ। यह महापाप तेरे ही
ऊपर है। पर म तुझे दोष नह दूग ँ ी। सवनाश का ण ही आ लगा था।’’
कु छ देर फतह मुह मद िसर नीचा कए खड़ा रहा। वह शोभना के स ब ध म
कु छ कहना चाहता था, पर कु छ सोचकर चुप रहा गया। फर उसने कहा, ‘‘माँ, और
कु छ कहना है?’’
‘‘ना, तू जा अब!’’
फतह मुह मद चुपचाप चला गया। उसने आँख उठाकर एक बार भी
कृ ण वामी क ओर नह देखा। उसके पीछे उसके दो सौ सवार भी गए।
कृ ण वामी नीचा िसर कए खड़े थे। अब कृ ण वामी और रमाबाई को
छोड़कर और कोई वहाँ उपि थत न था। रमाबाई ने भरे ए बादल के वर म कहा,
‘‘अब इस तरह खड़े रहने से या होगा, चलकर पहले सव का ऊ व दैिहक करो, पीछे
और कु छ।’’
और वे दोन ाणी उस न भात म अपनी ही पग- विन से च कते ए
ख डहर , मलब और भ मू तय के सूने ढेर से उलझते, भय आतंक और भूख– यास
से जजर, उस भ गृह म घुस रहे थे, जहाँ अब के वल सव का िछ -िभ शरीर भूिम
पर पड़ा था। योित लग के भ ख ड, धन-र भ डार साथ ही अमीर ले गए थे।
गंदावा दुग
महमूद को देवप न क यह िवजय ब त महँगी पड़ी। य िप यहाँ से उसे अथाह
स पदा िमली, पर तु उसका सैिनक बल िछ –िभ हो गया। अब उसे यह भय होने
लगा क वह इस अतोल स पदा को लेकर सही-सलामत गज़नी प च ँ सके गा भी या
नह । उसक सेना के ायः सारे ही हाथी इस यु म न हो चुके थे। ब त से मर चुके
थे, जो बचे थे अंग-भंग, कमज़ोर और घायल थे। उनम से अ छे ऊँट और हाथी चुनकर
उसने उनपर सोना, र और लूटा आ धन-माल लादा। पचास हाथी और दो सौ ऊँट
पर यह सब स पदा लादी गई। सबके बीच एक गजराज पर संह- ार के चंदन के फाटक
और योित लग के तीन टु कड़े थे। चुने ए दस हज़ार उ कृ सवार इस खज़ाने क र ा
के िलए देकर और सेनापित मसऊद को उसका नायक बनाकर अनिह ल प न क ओर
सीधा रवाना कर दया। बंदी, घायल, रोगी तथा अनाव यक साम ी भी उसने उनके
साथ ही भेज दी।
महासेनानी महमूद को पता लग चुका था क उसका श ु भीमदेव घायल
अव था म गंदावा दुग म जा िछपा है तथा उसके साथ ब त–से राजपूत भी ह। िन य
ही वह पीछे से आ मण कर सकता है। भला महमूद–जैसा अनुभवी यो ा कै से श ु को
बगल म छोड़कर आगे बढ़ सकता था! वह भीमदेव को साँस लेने का अवसर भी नह
देना चाहता था। उसका दल ीण हो गया था और सहायता िमलने क उसे आशा न
थी। अतः वह नह चाहता था क श ु संग ठत हो या उसे शि –संचय का समय िमले।
अभी गुजरात म ब त बल था और लौटना िनरापद न था, इसिलए उसने अपने
बलतम क तु घायल, िवप श ु भीमदेव क ओर अपनी दृि क और िनणय कया
क जैसे भी हो, उसे आमूल न करना ही ेय कर है। इन सब बात पर िवचार करके
उसने चुने ए तीन सह धनुधर देकर फतह मुह मद को आगे गंदावा दुग भेज दया।
फतह मुह मद यह का िनवासी तथा सब घर-घाट से प रिचत था। उसे जहाँ िजतनी
नौका िमल , उ ह लेकर तथा बाँस के बेड़े बनाकर क छ क खाड़ी म घुसा और शी -
से-शी बढ़कर गंदावा दुग के उपकू ल पर जा धमका।
अमीर शेष स ह हज़ार सुग ठत वीर को लेकर थल-माग से दुग क ओर
बढ़ा।
यह कला क छ के कनारे पर महासागर के ख म था। कला ब त मज़बूत
और सुरि त था। एकाएक उसपर कसी श ु का आ मण स भव नह था। दुग का तीन
भाग सागर-गभ म था। ब त बार गुजरपितय ने िवपि -काल म इस दुग का आ य
लेकर धन, मान और ाण बचाए थे।
फतह मुह मद क सेना ने सूय िछपते-िछपते दुग के जल–माग को घेर िलया।
इस समय दुग कमा लाखाणी क कमान म था। दामोदर महता और बालुकाराय
महाराज भीमदेव क रोग-श या पर बैठे उ ह होश म लाने क तथा उनके घाव पूरे
करने क चे ा कर रहे थे। महाराज भीमदेव य िप अब मू छत न थे, पर तु उनक
चेतना शि जाती रही थी। वे बार बार उठ-उठ-कर लाप करते ए भाग रहे थे। और
कसी को पहचानते भी न थे। उनके शरीर म से ब त–सा र िनकल गया था । अभी
उनके जीवन क आशंका बनी थी । राजवै उपचार कर रहे थे तथा भ क छ और
ख भात से िच क सक बुलाए गए थे, िजनक ती ा हो रही थी। इसी समय फतह
मुह मद के नेतृ व म अमीर क सेना ने दुग पर आ मण कर दया।
संकट-काल समुपि थत देखकर दुग के अिधवािसय ने एक छोटी-सी यु -
म णा क । उस म णा सभा म के वल तीन ि थे। घायल और वृ कमा लाखाणी,
बालुकाराय और दामोदर महता। कु छ परामश आ। अि तम िनणय के अनुसार दुग
कमा लाखाणी को स प दया गया। आहत भीमदेव तथा दूसरे घायल को लेकर महता
और बालुकराय अ य त छ भाव से ख भात को रवाना हो गए। यह काय ऐसे तुत-
फु त और सावधानी से आ क कसी को भी कान कान पता न लगा। कमानी ने
आ हपूवक ायः सब लड़ने यो य यो ा महासेनापित भीमदेव के साथ ख भात भेज
दए थे। अब शेष दोन वहण भी ख भात रवाना कर दए गए। दुग म अब छोटी
जाित के सौ-पचास मनु य और सौ यो ा बच रहे थे। भोजन-साम ी क भी दुग म
कमी थी। इससे कम-से-कम मनु य को ही वहाँ रहने क व था क गई। उ ह सौ
यो ा को लेकर वीरवर कमा लाखाणी सब बुज पर चौक पहरे क व था करके
तथा दुग- ार भलीभाँित ब द करके बैठ गए। उनक गृ -दृि अब श ु क गितिविध
पर थी।
दुग अ य त दृढ़ और अजेय था। समु से िघरी तीन ओर क ढालू फसलती ई
च ान पर कसी भी तरह मनु य का चढ़ना स भव नह था। दुग का मु य तोरण ब त
ऊँचा था और वहाँ तक प च ँ ने के िलए तीन मील टेढ़ी-मेढ़ी पचीली पहाड़ी पगडंडी पर
चढ़ना पड़ता था। जहाँ क ठनाई से के वल एक आदमी चल सकता था। घोड़ा-हाथी तो
वहाँ जा ही न सकते थे। सारा पवत जंगली लता-पु प -गु म एवं कं टीली झािड़य से
भरा था। कले के कं गूर पर सौ धनुधर आ मणका रय के िवफल यास का तमाशा
देख रहे थे।
इस समय समु म वार आ रहा था और अमीर क जल-यु से अनिभ सेना
समु क तूफानी पवत-सी तरं ग क चपेट म उछल रही थ । उसक नौकाएँ उलट रही
थ ; या दूर-दूर लहर पर िबखर गई थ । उसके साथ साहसी और कु शल म लाह भी
नह थे। फतह मुह मद ब त साहसी यो ा था, पर तु यहाँ उसे सफलता नह िमल रही
थी। कसी तरह वह लहर पर काबू नह पा रहा था। तीर तक नाव का प च ँ ना स भव
नह था। लहर उ ह पीछे फक देती थ । अनेक नाव लहर से उठाई जाकर च ान से
टकराकर चूर-चूर हो रही थ । कु छ साहसी यो ा नाव पर से तीर चला रहे थे, पर वे
दुग के इस ओर ही ाचीर से टकराकर िगर रहे थे। दुग थ वीर उनका यास देख-
देखकर हँस रहे थे।
सारी रात फतह मुह मद िवफल यास करता रहा। भोर होते-होते अमीर
अपनी वीर वािहनी लेकर दुग के सामने आ डटा। समु भी शांत आ और गु से म
उबलता आ फतह मुह मद खीझ भरा-सा अमीर के सामने जा खड़ा आ। अमीर ने
देखा, उसका सारा सै य-बल िनरथक है। कले के फाटक पर प च ँ ना स भव नह है और
घेरा डालकर महीन -वष म भी कले का कु छ नह िबगाड़ा जा सकता।उधर अमीर के
िलए एक-एक ण भारी हो रहा था। नीचे से कोई तीर कले तक नह प च ँ रहा था।
एक-एक, दो-दो आदमी, जो उन बीहड़ पगडंिडय के रा ते से दुग- ार पर प च ँ रहे थे,
वह दुग से बरसते ए तीर से बंध- बंधकर और लुढ़क-लुढ़कर अमीर के स मुख ढेर हो
रहे थे। अमीर क घुड़सवार सेना भी बेकार मािणत हो रही थी। य क वहाँ घोड़ा
दौड़ने का थान ही नह था। ोध और खीझ से पागल होकर अमीर दुग के बाहर बसे
छोटे लोग , खेडूत क ब ती पर टू ट पड़ा। ी-ब और िनरीह बूढ़ तक को उसने
काट डाला। अभी एक औरत के सामने िसर झुकाकर इस खुदा के ब दे ने जो वचन दया
था उसे भूल गया। पर यह ह याका ड करके भी उसे कु छ लाभ नह आ। उसे न दुग को
छोड़ते बनता था, न आ मण करते। वह सोच ही न पा रहा था क या करे । भीमदेव-
जैसे श ु को वह अछू ता नह छोड़ सकता था, और दुग भंग करना उसके बूते से बाहर
क बात थी।
िन पाय उसने दुग पर घेरा डाल दया और ि थर होकर सोचने लगा क अब
या करना चािहए। फर कु छ सोच-समझकर उसने फतह मुह मद को दूत बनाकर
कलेदार के पास सुलह क शत लेकर भेजा। सुलह क शत िसफ यही थ क य द
कलेदार महाराज भीमदेव को उनके सुपुद कर दे, तो वह कला छोड़ सकता है।
फतह मुह मद सफे द झ डा फहराता आ कले क पौर पर प च ँ ा। पौर क
बुज पर चढ़कर वृ कमा लाखाणी ने अमीर का सुलह का स देश सुना। सुनकर हँसा,
हँसकर कहा, ‘‘अमीर नामदार से हमारा सलाम कहना, और कहना, अभी नह , पर तु
उपयु काल म म महाराज को लेकर अमीर क सेवा म हािज़र ग ँ ा। अभी महाराज
भीमदेव बीमार ह, अमीर क अ यथना के यो य नह ।’’
स देश म कतना ंग और कतना त य था, यह अमीर नह समझ सका।
उसने दुग म घुसने यो य कोई गु माग हो, तो उसे ढू ंढ िनकालने, या कोई दरार च ान
म बनाने, तथा कसी तरह दुग म घुसने क कोई-न-कोई तदबीर िनकालने को, चार
ओर अपने जासूस रवाना कर दए।
अ ासी तलवार
दन बीतते चले गए, पर कु छ लाभ नह आ। एक-एक करके सात दन बीत
गए। दुग म अ -जल के वल एक ही दन का शेष रह गया। वृ कमा लाखाणी ने वीर
को एकि त करके कहा, “भाइय , खेद है क समय ने हमारी सहायता नह क । हमने
कतनी भूल क है क दुग म यथे अ -जल का ब ध नह कया। पर तु अब भू- यास
से तड़पकर मरने का या लाभ है? और दो दन बाद य द हमने साहस कया तो हमारा
बल आधा रह जाएगा। भूख- यास से हम जजर हो जाएँग।े इससे चलो, अपने िह से का
शेष काय आज ही, अभी पूरा कर द। श ु क सेना पर बल परा म से टू ट पड़, और
वीरगित ा कर।’’ उसने िगनिगनाकर कहा, ‘‘हम अट् ठासी वीर ह। सब व थ ह,
सबके पास श ह, फर िवल ब काहे का? चलो, अपने-अपने ाण का मू य चुकाएँ।
वीरवर सोरठ के राव धम े म ितल-ितल कट मरे , अब आज हम भी उनक राह
चल।’’
वीर ने दप से क ँ ार भरी। सभी ने अपना अि तम भोजन डटकर कया। जो
खा -साम ी बची, उसे न कर दया। जल भी सुखा दया। कु आँ पाट दया और
अपने-अपने घोड़ पर सवार हो दुग- ार खोल दया। एक-एक वीर बाहर िनकला।
सबसे आगे वीरकर कमा लाखाणी अपनी सफे द दाढ़ी फहराते चले। उनके पीछे अ य
यो ा।
अमीर ने सोचा, या सचमुच वे आ म-समपण कर रहे ह। उसने सेना को
सि त होने क आ ा दी। घोड़े पर सवार वह सेना के आगे खड़ा आ। राजपूत नीरव
और िन: त ध नीचे आ रहे थे। उनक तलवार नीची थ । अमीर ने एक भी तीर न
छोड़ा। दोन सेनाएँ के वल एक तीर के फासले पर आमने-सामने खड़ी हो ग । पर तु
एक तरफ बीस हज़ार सि त सेना थी और दूसरी ओर के वल अ ासी नर- ा |
अमीर ने ललकार कर कहा, ‘‘ या गुजरात का राजा हमारे ताबे आ?’’
उ र म वीर कमा लाखाणी ने अपनी तलवार छाती से लगाई। घोड़े को ज़रा
आगे बढ़ाया और हवा म फहराती ई अपनी धवल दाढ़ी क छटा दखाते ए कहा,
‘‘य द तू ही गज़नी का अमीर है तो हमारे पास अ ासी तलवार ह, ले, एक-एक िगन!’’
उ ह ने तलवार ऊँची क । घोड़े को एड़ मारी। का ठयावाड़ी पानीदार घोड़ा
हवा म उछला और सीधा अमीर पर टू ट पड़ा। अमीर फु त से बगल म दब गया, और
कमा लाखाणी क तलवार, जो अमीर के िसर को ल य कर चुक थी, उसके घोड़े के
मोढ़े पर पड़ी। अमीर अवाक् रह गया। वीर धुर धर कमा और उसके अ ासी यो ा इस
तरह उस महासै य क चीरते चले गए, जैसे खरबूजे को चाकू चीरता है। वे सेना के म य
भाग तक प च ँ गए। चार ओर मुँह करके वृ कमा लाखाणी को के म रखकर वे
चौमुखी तलवार चला रहे थे। ण- ण पर तेज़ी से उनक सं या कम होती जा रही थी,
पर उससे अिधक तेज़ी से वे अपनी राह िनकाल रहे थे। सेना के समु को वे अ ासी वीर
इस कार पार कर रहे थे, जैसे मगरम छ पानी को चीरता जा रहा हो।
श ु हैरान थे और अमीर िवमूढ़ बना इन वीर के शौय को देख रहा था। अ त
म वे श ुदल को भेदने म सफल ए। पर तु अ ासी म से कु ल दो यो ा अब जीिवत थे।
एक उनम कमा लाखाणी थे। वे र म सराबोर थे। श ु-सै य से बाहर होते ही दूसरा
यो ा घोड़े से िगर पड़ा। कमा लाखाणी ने रास मोड़ी और घोड़े से कू दकर अपने दुधष
यो ा का िसर अपनी जांघ पर रख िलया। यो ा ने एक बार सूखे ह ठ पर जीभ फे री
और आँख पलट द । कमा लाखाणी ने वह थोड़ी िम ी ऊँची कर उसका िसर टेक दया।
वे उठकर खड़े ए, तब तक हज़ार श ु ने उ ह घेर िलया था। अमीर ने ललकारकर
कहा, “खबरदार, इस बुजुग का बाल भी बांका न होने पाए।’’ यो ा हट गए और कमा
लाखाणी अपनी तलवार हाथ म िलए खड़े रहे। घाव से उनके शरीर पर र बह रहा
था।
अमीर घोड़े से कू द पड़ा। उसने कहा, ‘‘अय बुजुग, तुझ पर आफर , तू कौन है?
अपना नाम बताकर महमूद को ममनून कर।’’
‘‘म क छ का धनी कमा लाखाणी ,ँ पर तु अमीर महमूद, अब म खड़ा नह
रह सकता। दो घड़ी पहले, जब म तेरे सामने आया था, मेरे पास अ ासी तलवार थ ,
पर तु अब के वल एक है। यह म िसफ तुझे देना चाहता ।ँ ज दी कर, मेरी आँख भी
जवाब दे रही ह। तलवार उठा।’’ वृ कमा लाखाणी ने हवा म तलवार घुमाई, पर
उनका शरीर झूल गया। अमीर ने लपककर उ ह आँचल म भर िलया। उसक आँख म
आँसू भर आए। उसने कहा, ‘‘क छ के िवजयी महाराज, आपक इस अके ली तलवार ने
दि वजयी महमूद को जे़र कया है, महमूद क या ताब क इसे छु ए!’’
वीरवर कमा लाखाणी के कान म महमूद के पूरे श द नह पड़े। अमीर क गोद
म उनका िसर ढु लक गया। उनको गोद म लेकर अमीर महमूद वह भूिम पर बैठ गया।
एक बार वीरवर ने आँख खोली, ह ठ िहले और सदा के िलए िनः प द हो गए।
अमीर ने आँख उठाकर देखा तो उसके यो ा चुपचाप खड़े यह तमाशा देख रहे
थे। अमीर ने म दया ‘‘अय बहादुरो, घोड़ से उतर पड़ो, हिथयार ज़मीन पर रख दो
और बहादुर के बादशाह इस बुजुग क इस तलवार के सामने िसर झुकाओ।” बीस
हज़ार बबर दुदा त खूनी डाकु ने भूिम पर घुटने टेककर अपने-अपने हिथयार ज़मीन
पर रख िसर झुका दए।
अमीर क आँख से झर-झर आँसू बह चले। उसने दोन हाथ से वृ ा क
तलवार लेकर आँख से लगाई। उसे चूमा और उसे वीरवर के व : थल पर थािपत कर
अपना िसर भी उस िनः प द व पर झुका दया।
र –ग ध
अमीर ने ब त खोज क , पर दुग म एक भी जीिवत ि य न िमला जो वीरवर
कमा लाखाणी क ऊ वदैिहक या करता। अमीर ने तब अपने उमराव ि य सरदार
को आदरपूवक वीर क अि तम या धमानुसार करने क आ ा दी। वह वयं नंगे पैर
पांव- यादा कु छ दूर तक अथ के साथ चला तथा इस वृ वीर के स मान म अपनी
सारी सेना क तलवार नीचे झुक रखने का आदेश दया। लूटमार करने यो य वहाँ कु छ
भी शेष न बचा था। दुग सूना था, वहाँ न एक ाणी था, न एक दाना अ , न एक बूंद
पानी। दुग के तल भाग म बसी ब ती थम ही जलाकर छार कर डाली गई थी। सब
लोग कट-िपट चुके थे; जो बच सके थे, वे ाण लेकर भाग गए थे। लाश सड़ रही थ ,
गीध मंडरा रहे थे; वायु का सांय-सांय श द और समु क उ ाल तरं ग भयानक दीख
रही थ । अमीर क सारी सेना त, थ कत, भूखी- यासी और अशा त थी। वहाँ न
उनके घोड़ को घास और दाना-चारा था, न िसपािहय के िलए अ -जल।
वीर का स कार कर चुकने पर इस संह- ा का यान फर अपने मुख श ु
भीमदेव क ओर गया। या भीमदेव बचकर भाग िनकला, या इसी यु म मर-कट
गया? पर तु ऐसा होता तो उसका पता अव य लग जाता। ब त से गोइ दे इसक टोह
म लगा दए थे। वयं फतह मुह मद अपने सवार सिहत खोज म िनकला था।
तीसरे पहर फतह मुह मद समाचार लाया क भीमदेव बचकर ख भात को
रवाना हो गया है। अमीर के पाषाण-सम कठोर दय पर जो मू त अं कत थी, वह भी
ख भात म थी। अब तक अमीर अपने रण-रं ग म उसे भूला था, अब एकबारगी ही वह
मू त उसक र -िब दु म ऊधम मचाने लगी। उसने मन-ही-मन याद करके उसका
नाम दुहराया–चौला, चौला। और वह ल बी-ल बी सांस लेने लगा। उसके नथुने जलने
लगे। इसी समय उसे याल आ क उसका श ु भीमदेव भी ख भात म है। और वह
उसक माशूका नाज़न भी। एक अ ात ई या से उसका रोम-रोम जल उठा। एक
छ भावना से अिभभूत होकर उसने अपने मन म कहा–नह -नह , ये दोन कभी
नह िमलने पाएँगे। कभी नह । उसे मरण आ, वह थम दशन, भीमदेव का अक मात्
आकर तलवार उठाना और फर गंग के आने से िन पाय लौटना। उसने धरती पर पैर
पटककर कहा, ‘‘ ह ं , जब तक यह तलवार है, उसे दूसरा कोई न छू सके गा। वह महमूद
क दौलत है। उसक संिचत सारी दौलत से भी अिधक। उसक स ह बड़ी-बड़ी
दि वजय से भी अिधक मू यवान्!”
पर तु गव और गौरव ने कसी के सामने उसे अपने दय क इस भूख को कट
नह करने दया। वह मन-ही-मन ताव-पेच खाता रहा। अ त म उसने फतह मुह मद को
एका त म बुलाकर कहा, ‘‘ या तू ख भात क राह-बाट जानता है?’’
“जानता ।ँ ’’
‘‘राह म दाना-घास-पानी है?’’
‘‘ब त है।’’
‘‘ख भात देखा है?’’
‘‘देखा है हज़रत।’’
‘‘वहाँ क गली-कू च से वा कफ है?’’
‘‘अ छी तरह। म वहाँ रह चुका ।ँ ’’
‘‘और वह नाज़न ?’’
‘‘मेरी एक आँख उस पर है जूर।’’
‘‘ या तुझे उसक कु छ खबर है?’’
‘‘वहाँ जाते ही िमल जाएगी।’’
‘‘ कस तरह?’’
‘‘मेरा आदमी उसके साथ है।’’
‘‘वह या भरोसे का है?’’
‘‘मेरी बीवी है।’’
‘‘तो चल, अभी कू च कर। अपने तीन हज़ार सवार चुन ले और उ ह तीन
टु किड़य म बाँटकर मुझसे तीन कोस आगे चल। हरएक टु कड़ी का आधे कोस का
फासला रख।’’
‘‘जो म!’’
‘‘और तुझे म िसफ उस नाज़न के ऊपर छोड़ता ,ँ लड़ाई से दूर रहकर, िसफ
उसी पर आँख रख!’’
‘‘जो म जूर!’’
‘‘और तेरी बीवी, य द िसपहसालार क बीवी बनने का फ हािसल करना
चाहती है, तो उसी नाज़न क साया म रहे, यह बात उसे कह देना।’’
‘‘कह दया है जूर।’’
‘‘तू एक दािनशम द खुशगवार बहादुर है। म तुझसे खुश ।ँ ’’
फतह मुह मद ने अमीर का दामन चूमा और िसर झुका कर तेज़ी से चल दया।
और कु छ ही ण के बाद अमीर का ल कर ख भात क राह-बाट जा रहा था,
जैसे कोई र -िपपासु हं पशु अपने मारे ए िशकार क र -ग ध लेता आ उसके
पीछे जाता है।
ख भात
ख भात गुजरात का वैकु ठ कहलाता था। वहाँ क कृ ित-शोभा अपूव थी।
कृ ित और कला दोन ही के संयोग ने इस क याण-नगरी को गुजरात का िशरोभूषण
नगर बना रखा था। नगर का ब त बड़ा िव तार था। मह वपूण समु -तट पर होने के
कारण उसक ापार-मह ा और बढ़ गई थी। अरब और रोम के ापारी जहाज़
ख भात ही के ार पर भू पश करते थे। देश-िवदेश के विणक् - ापारी यहाँ सदैव बने
ही रहते थे। समु -तट क तर-गरम वायु, तरं िगत समु क सुषमा, और जल-थल के
पि य का कलरव एवं पु प क ग ध, के ला, ना रयल, आम आ द वृ क सघन घन
छटा देखते ही बनती थी। सा य बेला म अ तंगत सूय- करण क लािलमा अकथ
शोभा-िव तार करती थी। नगर म अनेक उपवन, ताल, बावड़ी और रमणीय थान थे।
वहाँ के लोग भी अ य त स प , सु िचपूण, व छ और स य थे। नगर क समृि
इतनी थी क वहाँ के ापा रय क हाट म हीरा, मािनक, मोती और मुहर के ढेर लगे
रहते थे। अरब समु से िनकलने वाले गजमु ा क उन दन ख भात ही सबसे बड़ी
म डी थी। इस समय नगर का े फल प ह गाँव क सीमा म तीस मील तक फै ला था।
नगर के ा त म समु -तट पर भूरे रं ग के प थर का एक दुग था। दुग ब त
िवशाल और ऊँचा था। उसके चार ओर क खाई साठ हाथ चौड़ी और इतनी ही गहरी
थी, जो सदा समु के जल से भरपूर रहती थी। धनी जन क हवेिलयाँ प थर क तथा
सवसाधारण के मकान दो फ ट क ल बाई वाली पतीस-पतीस सेर क वज़नी, भ ी म
पकाई ई समचौरस या ल बचौरस ट के बने ए थे। पर तु इस समय ख भात का
गौरव- व प देवािध ान अचले र महादेवालय था, जो समु के म तक पर एक अित
भ उ म शृंग पर भूरे रं ग के प थर का बना सुशोिभत हो रहा था। िजसके वण-
कलश म या न के सूय म जगमग करते दस-दस गाँव के लोग को दीख सकते थे।
मि दर म सैकड़ ा ण िनर तर िशव तो का पाठ करते थे। मि दर का िवशाल
म डप फ टक के ख भ पर आधा रत था। जहाँ जगह-जगह वेद, पुराण आ द के वा य
तथा देवमू तयाँ खुदी ई थ , इसे कै लास म डप कहा जाता था। मि दर म िति त
िशव लंग क ित ा, सोमनाथ के बाद अ ग य थी। लंग के स मुख फ टक ही का
िवशाल न दी था। देवता ही नह , देवता के पुजारी नृ संह वामी क क त भी गुजरात
म दग त ा थी। राजा और जा दोन ही उ ह एकिन चारी और महापु ष क
भाँित पूजते थे। नृ संह वामी गत तीस वष से देव-सेवा कर रहे थे। उनके उ त ललाट
और स मु ा देखते ही छोटे-बड़े सब मोिहत हो जाते थे। वे सभी क ा और भि
के पा थे। इसके अित र और भी अनेक भ देवालय थे। जहाँ के येक भात,
म या न और स याकाल के तवन से सम त ख भात नगर मुख रत हो उठता था।
ख भात उ ोग-िश प म भी वािण य क भाँित ही यात था। हरएक व तु
के पृथक् -पृथक् बाज़ार थे। नगर का राजमाग बड़ा िवशाल था। नगर दृढ़ ाचीर से
िघरा था। इसम इतने बड़े-बड़े बुज व बड़े-बड़े ार थे, जहाँ अ बारी वाले हाथी
अनायास ही िनकल सकते थे।
समु -तट नगर से कोई पौन मील के अ तर पर था। वह अित िवशाल और भ
था। माग के दोन ओर िवशाल वन, उपवन, बावड़ी, धमशाला, अितिथगृह और
वा टकाएँ बनी थ । जहाँ िविवध फल-फू ल लदे ए थे तथा भाँित-भाँित के प ी कलरव
करते थे। वस तघोषी कोयल आ -मंजरी पर बैठी कु क विन करती और आम च पा,
तमाल, अशोक वृ क सघन छाया म ी-पु ष व छंद िवहार करते तथा उ मु
नैरो य समु ी वायु का सेवन करते थे।
इन दन ख भात म ब त भीड़ हो गई थी। देवप न के सब ा ण-प रवार,
सेठ, उनके प रजन और इधर-उधर के भागे ए लोग वहाँ भर गए थे। सैिनक भी ब त
थे। सोमनाथ और गंदावा दुग के पतन के समाचार सुनकर सावंत संह चौहान को दुग
स प, महाराज व लभदेव अपना सदर मुकाम यहाँ से उठाकर ब त से धनी प रवार
तथा ा ण सिहत अपनी सै य ले आबू को रवाना हो गए थे। इससे सव उदासी,
बेचैनी और िच ता क लहर फै ल रही थी। कारबार ढीले हो रहे थे। लोग आशंका से भरे
थे।
िवयोग–संयोग
ख भात के दुग का पि छमी भाग समु क ओर था।उसी दशा म एक छोटा-
सा महल भूरे प थर का अित ाचीन बना आ था। कहते ह क उस महल को
व लभीपुर के महाराज िशला द य ने िनमाण कराया था। महल सु दर और कलापूण
था। और उसम आठव -नवमी शता दी क भ थाप य-कला का दशन था। इसी
महल म चौला को रखा गया था। शोभना उसक धान सहचरी के प म उपि थत
थी। पाठक भूले न ह गे क उसे फतह मुह मद ने चौला पर जासूसी के िलए िनयत कया
था। पर तु शोभना वा तव म बड़े ही व छ दय क युवती थी। उसका मन ब त ही
भावुक और कोमल एवं सरल था। चौला के सौ दय, उदारता और कोमल भावुकता से
शोभना का मन मेल खा गया था और वह स े मन से उसे यार करने लगी थी। वह
उसक उदास, आँसु से भरी आँख, बेचैनी से करवट बदलती ई रात आँख से देख
चुक थी। वह देखती थी, चौला घ ट िनः प द बैठी सुदरू समु क तरं ग के उस ओर
देवप न को अिनमेष भाव से देखती रहती है। फर ल बी साँस ख च िस आँख प छ
लेती ह। वह ब त कम बोलती, ब त कम खाती, ब त कम सोती और ब त कम अपनी
आव यकताएँ दूसर को बताती है।
पर तु शोभना छाया क तरह उसके साथ रहती। कभी-कभी वह नाच-गाकर
उसे खुश करने क चे ा करती, हँसती-हँसाती। उसके सरल वहार और आन दी
वभाव को देख, कभी-कभी चौला मु करा देती। कभी कहती–बिहन, इतना क य
करती हो। कभी-कभी जब वह बरजोरी शोभना को बरजती तो वह मुँह फु लाकर ठ
जाती। चौला को उसे मनुहार करके मनाना पड़ता, तो वह िखलिखलाकर हँस पड़ती।
कभी वह िवचारती, ‘ य देवा ने उसपर दृि रखने को कहा है, य गज़नी
का अमीर उसपर नज़र रखता है। अव य ही उसक नज़र अ छी नह है।’ देव वामी
को वह यार करती थी, और उस यार क झ क म उसे उसका मुसलमान होना भी नह
खला था। धम-श ु गज़नी के अमीर का अनुवत होना भी उसे बुरा न लगा था। पर तु
वह कसी प म चौला का अिन करे , यह वह नह सह सकती थी। उसने मन-ही-मन
चौला क येक मू य पर संकट-काल म र ा करने क ठान ली। सोमनाथ के पतन के
समाचार दुग म प च ँ चुके थे। वह सोच रही थी, ‘ य उस सव ासी अमीर क सेवा
देवा करता है।’ वह िन य कर चुक थी क य द इस बार देवा से मुलाकात ह तो वह
कहेगी, क वह उस धम ोही का साथ छोड़ दे, और महाराज भीमदेव क सेवा म रहकर
आततायी का सामना करे ! महाराज भीमदेव के साथ चौला का धम-िववाह देव-
साि य म हो चुका है, यह बात अभी उसे नह मालूम थी। पर तु महाराज भीमदेव के
ित चौला के िवरह-वैक य को वह ठीक-ठीक समझ गई थी। वह भु -भोिगनी थी।
इससे उसके मन म चौला के ित यथे सहानुभूित थी।
ख भात का कलेदार साम त संह िनयत कया गया था। और उसने चौला को
महारानी क भाँित रहने क सब स भव व था कर दी थी। वह िन य सुबह-शाम
उपि थत होकर चौला क आव यकता को पूछ लेता। दािसय तथा शोभना को
आव यक िहदायत, तथा देवप न के समाचार देता था। देवप न के पतन से वह
िचि तत था, और शोभना क िवपि क आशंका से सावधान।
और एक दन जब स या-काल म शोभना और चौला समु क उ वल फे न-
रािशय के साथ अ तंगत सूय क अ ण करण को ड़ा-िवलास करते देखने म म
थ , तभी त भाव से चौहान ने वहाँ प च ँ कर सूचना दी, क महाराज स त घायल
ए ह, एवं महाराज क सवारी ख भात आ रही है। चौला एकबारगी ही उ म क
भाँित बाहर को दौड़ पड़ी, उसने देखा, सेना क एक छोटी-सी टु कड़ी दुग म िव हो
रही है। सबके आगे घोड़े पर सवार नंगी तलवार हाथ म िलए सेनापित बालुकाराय ह।
महाराज के मू छत घायल शरीर को चौला के ही क म लाकर रखा गया।
चौला सब लाज-संकोच भूल महाराज का िसर गोद म ले ज़ार-ज़ार दो आँसू बहाती
और महाराज के सूखे बाल म अपनी कोमल अँगुिलयाँ फे रती रही। भाव-िवमोिहत हो
शोभना भी महाराज के चरण को गोद म ले बैठी। राजवै का उपचार जारी था। दुग
म हलचल फै ल रही थी। साम त संह दौड़-दौड़कर सब बुज पर सुर ा क व था कर
रहे थे, अब कसी भी ण अमीर के ख भात पर आ धमकने क स भावना थी। िनराश
और उ ग े का वातावरण सव छा रहा था। धीरे -धीरे रात ग भीर होने लगी।
िनः त ध राि म चौला के साि य म चौला का सुख- पश पाकर महाराज भीमदेव
को चेतना ई। महाराज ने आँख फाड़ कर चार ओर देखा, उनक दृि चौला के सूखे
और मुरझाए मुँह पर अटक गई। उ ह ने ीण वर से पूछा, ‘‘म कहाँ ?ँ ’’
पर तु चौला के मुँह म वर अटक गया। वह बोल न सक । उसक आँख से झर-
झर आँसू बह िनकले।
शोभना ने कहा, ‘‘घणी ख मा, अ दाता ख भात म ह।’’
‘‘और तुम?’’
शोभना उ र न दे सक । महाराज क दृि चौला पर अटक गई। उसे पहचान
कर महाराज ने कहा, ‘‘तुम हो चौला,’’ उ ह ने हाथ ऊँचा करके अपने बाल म घूमती
चौला क अँगुिलयाँ छु ।
चौला ने आँसू प छे।
‘‘रोती हो, या अशुभ हो चुका? यही स भव था। क तु और सब?’’
‘‘महाराज...’’ चौला क िहच कयाँ बँध ग ।
‘‘बालुकाराय है?’’
चौला ने धीरे से कहा, “हाँ, ह, या बुलाऊँ?’’
‘‘नह , और महता दामो?’’
‘‘वह भी है महाराज।’’
‘‘ या म यहाँ कई दन मू छत रहा?’’
‘‘महाराज को आज ही बालुकाराय लेकर आए ह’’
‘‘देवप न से?’’
‘‘नह , गंदावा दुग से।’’
‘‘तो गंदावा दुग का भी पतन हो गया?’’
चौला ने िसर झुका िलया। महाराज ने जल माँगा। चौला ने चाँदी क झारी से
जल महाराज के मुँह म डाला। कु छ देर महाराज चुप रहे, फर उ ह ने एक कार से
आतनाद-सा करते ए कहा–
‘‘तो गुजरात क तलवार टू ट चुक ? कौन-कौन खेत रहे, कौन-कौन बचे?’’
‘‘सब यौरा सेनापित शायद बता सक, उ ह बुलाऊँ?’’
‘‘अभी नह !’’ उ ह ने फर शोभना को देखकर कहा, ‘‘तुम कौन हो?’’
‘‘म शोभना ,ँ देवी क िचर कं करी।”
महाराज ने चौला क ओर देखा। चौला ने सािभ ाय दृि से शोभना क ओर
देखा,शोभना धीरे से उठकर बाहर चली गई । क म एका त हो गया । महाराज
एकटक ब त देर तक दीपक के धीमे पीले काश म चौला के पीले मुँह को देखते रहे।
फर आिह ता से उसे ख चकर अपने व पर डाल िलया। पु प के ढेर क भाँित चौला
महाराज के व पर िगरकर भारी-भारी साँस लेने लगी। जीवन और मृ यु के म य थ
उस संयोग-िवयोग के उ ग े से उसका व लुहार क ध कनी के समान उठने-बैठने लगा।
दोन ही आकु ल- ाकु ल दय पर पर आ लंिगत धड़क रहे थे, और उनके सा ी थे,
दोन के ेम-िपपासु सूख,े िवरह–िवद ध स पु टत चुि बत ओ ।
महाम
महाराज भीमदेव क णश या पर म णा-सभा जुड़ी। सभा म के वल तीन
पु ष थे : बालुकाराय, दामो महता और महाराज भीमदेव।
महाराज भीमदेव ने पूछा–
‘‘तो देवप न का पतन हो गया, गुजरात क मयादा भंग हो गई?’’
‘‘गुजरात क मयादा भंग नह होगी महाराज, जब तक बाणबली भीमदेव
ख ग-ह त ह,’’ महता दामोदर ने ि थर वर से कहा।
‘‘सव गंग क कु छ सूचना िमली है?’’
‘‘नह महाराज।’’
‘‘देवता क र ा ई?’’
‘‘कु छ कहा नह जा सकता।’’
‘‘राव रायधन?’’
‘‘वे स भवतः खेत रहे।’’
‘‘और कमा लाखाणी?“
‘‘गंदावा दुग हमने उ ह ही स पा था। उ ह ने हम सब यु -साधन समेत िवदा
कर दया था। दुग म कु ल सौ यो ा भी नह थे। पर दुग दृढ़ था, कौन जाने, उनपर या
बीती, सूचना अभी नह िमली है।’’
‘‘दुग म या यथे अ -जल था?’’
‘‘नह ।’’
‘‘तब तो...’’ महाराज के ने सजल हो गए। उ ह ने कहा, ‘‘राजवै कहाँ ह?’’
‘‘उपि थत ह महाराज।’’
‘‘उ ह अभी बुलाओ।’’
राजवै ने आकर महाराज को जुहार कहा। महाराज ने कहा, ‘‘वै राज, मेरे
घाव कतनी देर म भर जाएँगे।’’
‘‘अ दाता, अभी एक मास न अ क पीठ ले सकते ह, न तलवार हण कर
सकते ह।’’
‘‘यह तो अस भव है वै राज।’’
‘‘अस भव तो महाराज के ाण का इस त-िव त शरीर म शेष रह जाना
था।’’ वै राज ने आँख म आँसू भरकर कहा।
‘‘वह तो स भव आ वै राज।” महाराज ने सूखी हँसी हँसकर कहा।
‘‘महाराज के पु य- ताप और देव-सहाय से महाराज।’’
‘‘तो वै राज, येक मू य पर यह भी स भव करो क म एक स ाह म श
हण कर सकूं ।’’
‘‘अपराध मा हो अ दाता, म कसी तरह ीमान के ाण पर खतरा नह
आने दूग
ँ ा।’’
‘‘पर तु गुजरात क ित ा का है।’’
‘‘गुजरात के धनी के ाण का मू य उससे ब त अिधक है अ दाता।’’
‘‘नह वै राज, म अिधक काल तक श या पर नह रह सकता।’’
वै राज ने िसर झुका िलया। महता ने कहा, ‘‘महाराज, हम जैसे भी स भव
होगा, आपको वा य-लाभ कराने क शी ता करगे, पर तु अभी अग य क बात है।’’
संकेत पाकर वै राज चले गए। महाराज ने कहा, ‘‘हाँ, पर तु मेरी तो एक ही
बात है, क गज़नी का यह दै य और उसके संगी-सािथय म कोई यहाँ से जीिवत लौटने
न पाए।’’
‘‘यही हम िनणय करना है महाराज, मेरी एक योजना है’’, महता ने कहा।
‘‘कहो महता।’’ महाराज ने आकु ल दृि से महता को देखकर कहा।
‘‘महमूद के लौटने के दो माग ह, एक आबू को होकर राज थान को भंग करके –
दूसरा क छ के रन म होकर।’’
‘‘तब?’’
‘‘हम राज थान का माग अव करना होगा। और यह मोचा आबू च ावती
क उप यका म होगा। िवमलदेव शाह साठ सह संग ठत यो ा िलए वहाँ तैयार बैठे
ह। महाराज व लभदेव भी सब सै य और साधन ले उनसे जा िमले ह। मने देवप न से
चलते ही यह व था कर दी थी। िवमलदेव को सूचना भी भेज दी थी। च ावती के
परमार और अनिह लराय, ना दौल से सै य समेत आबू को चल पड़े ह। उनक आँख
खुल गई ह। दोन क संयु सेना चालीस हज़ार है–पर तु एक बाधा है।’’
‘‘वह या?’’
‘‘कु मार दुलभदेव। उ ह ने अमीर से गु सै य संिध कर ली है। और वे
गुजराधीश बनने को तैयार बैठे ह। उनके पास पचास सह सि त सेना है। यु म वह
िन य ही अमीर का प लगे।’’
‘‘ या उनके सब सेनापित और यो ा भी उ ह क भाँित श ु के दास और
देश ोही ह?’’
‘‘नह महाराज, वे सब हमारे साथ ह।’’
‘‘तो य न दुलभदेव को ब दी कर िलया जाए?’’
‘‘वह तो ठीक न होगा महाराज, मने एक बात सोची है।’’ महता ने कहा।
‘‘ या?’’
‘‘अमीर पाटन प च ँ कर उनका अिभषेक करे गा, यह मुझे ात है। हम ऐसा
उपाय करगे क पाटन जाते समय दुलभदेव के साथ अिधक सै य न हो। यह कु छ भी
क ठन नह होगा। य क सेनानायक से सब कु छ िनणय कया जा चुका है। अमीर
स भवतः ज द से ज द पाटन से पलायन करने क सोचेगा। उसका बल भंग हो गया है।
और उसके सैिनक भी अशांत ह। हम उसे और भयभीत करगे। वह हमारी आबू क
तैयारी से बेखबर भी न रहेगा। बेखबर हम रहने भी न दगे। बस, वह पाटन म अिधक न
ठहरे गा। दुलभदेव को रा य दे, लूट का माल ले सीधा गज़नी भागेगा। उस समय
अरि त दुलभ को कै द कर लेना कु छ भी क ठन न होगा।’’
‘‘ क तु अमीर?’’
‘‘वह आबू क ओर बढ़कर आ मघात न करे गा।’’
‘‘और य द करे ?’’
‘‘तो महाराज क रकाब म, वहाँ डेढ़ लाख तलवार उसका ऐसा वागत करगी
िजसक उसने कभी क पना भी न क होगी।’’
‘‘और य द वह क छ के अथाह रन म घुसे?’’
‘‘तो चौहान स न संह वहाँ उसका ऐसा वागत करगे क िजसका नाम
नह ।’’
‘‘ या स न को हम कोई सहायता नह प च ँ ा सकते?’’
‘‘अस भव है महाराज, फर उसक आव यकता भी नह है। वह रणथ मी
माता के थान पर चौक िलए बैठे ह, जहाँ से आगे तीन सौ मील के भीतर न एक बूँद
जल है, न एक झाड़। न घास-फूं स। के वल रे त ही रे त है। रे त के अंधड़ ह। तूफानी वायु के
थपेड़े ह। ये सब इन दै य क जीिवत समािध के िलए उ सुक ह।’’
‘‘तो अब?’’
‘‘अब ख भात का कोई भरोसा नह है। गज़नी का दै य आपक गंध सूँघता आ
चाहे जब आ धमके गा। इसिलए आप चौला रानी तथा बालुकाराय को लेकर अभी इसी
ण आबू को कू च कर द, और म सब ा ण , से ठय , ि य और आव यक जन को
भ क छ रवाना करता ।ँ धन, स पि और अ आ द को बचाने का समय नह है,
आव यक होगा तो हम सब-कु छ आग लगाकर भ म कर डालगे।’’
‘‘पर तु यह कदािप न हो सके गा, महता, म इन सब ा ण और भ
नाग रक को अरि त छोड़कर नह जाऊँगा।’’
‘‘ क तु महाराज...’’
‘‘चुप महता, म इसी अपनी तलवार क शपथ खाकर कहता ,ँ क नह
जाऊँगा। अरे , जीवन या बार बार िमलता है। या भीमदेव अब ाण का भार लेकर
इधर-उधर भटकता फरे गा? नह -नह , कभी नह । हाँ, तुम चौला रानी को सुरि त
प चँ ाने क व था कर दो।’’
पर तु इस बार चौला, जो जालीदार गवा म बैठी म णा सुन रही थी, लोक-
लाज छोड़ उ म क भाँित दौड़कर महाराज के पैर से िलपट गई। उसने कहा, ‘‘चाहे
जो भी हो, पर म आपको छोड़कर कह नह जाऊँगी, नह जाऊँगी– ाण रहते नह
जाऊँगी।’’
‘‘ क तु ि ये, समय क ठन है, हम क ठनाई होगी।’’
‘‘नह होगी महाराज, म भी राजा क पु ी ।ँ जैसे मेरे चरण नृ य-िनपुण ह
वैसे ही मेरे हाथ तलवार चलाने म भी पटु ह। अब श ु ाणी क तलवार का पानी
भी पीकर देख।े ’’
महाराज भीमदेव ने चौला क ओर देखा। हाथ बढ़ाकर उसका हाथ थाम
िलया। फर बालुकाराय से कहा, ‘‘तो बालुक, ऐसी ही व था करो। साम त क
सहायता से नगर-दुग क र ा क व था कर लो। नगर साम त के हाथ रहे और दुग
तु हारी र ा म। और महता, तुम िजतनी शी िजतने प रवार को बाहर भेज सको,
भेज दो। पर यान र खो, कम-से-कम भार लेकर लोग जाएँ। तथा यु के यो य ि
और अ बाहर न िनकलने पाएँ। चौहान से कहो, जी-जान से ख भात क र ा का
ब ध कया जाए। तथा कमा लाखाणी और अमीर क गितिविध जानने के िलए जासूस
भेजो।’’
गनगौर
उस दन गनगौर का पव था। इस पव पर ख भात म बड़ा भारी मेला लगता
है। गौरी क मू त का समु म िवसजन होता है। णभर के िलए आबाल-वृ सब
िच ता भूलकर, उ म-उ म व ाभूषण पहनकर अपने-अपने वाहन म सजे-धजे
गनगौर पूजने को घर से िनकले थे। घुड़सवार सैिनक सुर ा और व था कर रहे थे।
नगर के चौक म गौरी क ितमा लाकर रखी गई थी। समु -तीर पर ितमा को ले
जाने क तैयारी होने लगी। घुड़सवार सैिनक पंि ब खड़े हो गए। नाना कार के
वा बजने लगे। िविवध रं ग-िबरं गी पताकाएँ िलए बालक-बािलकाएँ आन द से
कलकारी भरने लगे।
अभी सूय दय ए एक हर भी नह आ था। फर भी सूय क करण तेज़ हो
गई थ । गौरी क ितमा एक वण-िन मत िशिवका म रखी गई थ । उसको सेठ के
युवक पु ने उठा िलया और हष से उछलते ए दय से देवी- ितमा को ले चले।
गौरी क ितमा पीले रं ग के रे शमी व से अलंकृत थी। अनेक कार के र ,मोती और
वणालंकार से उसका ृंगार कया गया था। िशिवका के आगे-आगे नगर के िश
नाग रक और िति त सेठ-सा कार चल रहे थे। और पीछे के भाग म नगर क
कु मा रका को आगे करके सब सुहािगन, िविवध अलंकार से अलंकृत हो चल रही
थ । इनक के श-रािश नाना कार के फू ल से शृंगा रत थ । ऐसा तीत होता था क
मानो वस त- ी मू तमती होकर उस दन ख भात म शोभा-िव तार कर रही थी।
अनेक कु मा रयाँ हाथ म चाँदी के ड डे िलए िशिवका के पीछे चल रही थ । अनेक सोने
के ड डे वाले च दन के पँख से ितमा क सेवा करत या चंवर डु लात चल रही थ ।
कु छ कु मा रकाएँ और सुहािगन अपने वीणा-िविनि दत वर से गौरी का तवन करती
जा रही थ ।
इस कार गौरी क ितमा का यह समारोह समु तट पर जा प च ँ ा। वहाँ एक
ऊँचे मंच पर ितमा का डोला रखा गया। समु म सैकड़ छोटी-बड़ी तरिणयाँ तैर रही
थ । भ समारोह से सब नर–नारी देवी- ितमा का दशन कर, गाते-बजाते, ितमा को
एक सि त तरणी म बैठाकर, और वयं भी तरिणय म बैठ-बैठ कर जल-िवहार करने
लगे। ान-पूजन के बाद समु क सुनहरी रे ती म मेला जमा।बािलकाएँ, ठौर-ठौर
गरबा गाने, हँसने-खेलने-उछलने लग । लोग अपने साथ लाए पकवान का भोग लगाने
लगे। सारा ही दन ख भात-िनवािसय ने समु तट के िवहार म लगाया, सा यवेला म
देवी क सवारी धूम-धाम से पीछे फरी। कु लांगनाएं गाती-बजात और युवकगण
िविवध खेल- ड़ा करते पीछे लौटे। आकाश म च ोदय आ। नगर- ार पर दीपावली
और अि - ड़ा का भ दृ य था। धीरे -धीरे सारा ही जनजमाव नगर- ार पर आकर
आन द-म हो अि - ड़ा देखने लगा। नर-नारी अपने यूथ बाँधकर गाने-बजाने और
नृ य करने लगे। ढोल, दमामे, तुरही, शंख और घ ट का तुमुल नाद होने लगा।
इतने ही म दै य के समान काली-काली मू तयाँ न जाने कहाँ से घोड़े दौड़ात
और तलवार घुमात इन आन दम िनरीह नर-ना रय पर टू ट पड़ । पहले एक, फर
अनेक, फर अनिगनत। देखते-ही-देखते कु हराम मच गया। अभी कु छ ण पूव जहाँ का
वातावरण व छ द आन द एवं कोलाहल से प रपूण था, वहाँ अब वह भय, वेदना और
हाय-हाय के भयानक ची कार से भर गया। हँसते-बोलते, खेलते-कू दते आबाल-वृ
नर-नारी कटने-मरने, चीखने-िच लाने और ाण लेकर जहाँ िजसका स ग समाया
भागने लगे। कसी को कसी क सुध न रही। सैकड़ अबोध बालक घोड़ क टाप से
कु चल कर चटनी हो गए। अनेक कु ल-बाला को इन दै य ने जीिवत ही पकड़कर
अपने घोड़ से बाँध िलया। कु छ साहसी जन ने जो हाथ लगा, उसी से सामना कया,
तो उ ह त ण टु कड़े-टु कड़े होकर मृ यु क शरण लेनी पड़ी। इस कार वह स पूण
आन दो सव मृ यु, िवनाश और र पात म डू ब गया।
आसकरण सेठ का देसावर
आसकरण सेठ ख भात के नगर-सेठ थे। उनका कारबार, ित ा और धन-वैभव
ब त चढ़ा-बढ़ा था। देश-देशा तर म उनके नाम क डी चलती थी। आयु पूरी होने
पर अ सी वष क आयु म उनक मृ यु ई। प रवार म उनके छोटे भाई मदनजी महता
और पु -पौ -प रजन सब िमलकर पचास ि थे।
मदनजी महता ने बड़े भाई क मृ यु पर देसावर करने का मनोरथ कया था।
अंजार, मांडवी, मु ा, लखपत, बेराजा, सुथरी, तेरा, रोहा, पतरी आ द बारह गाँव के
महाजन ख भात म एकि त ए थे। ब त वष से कसी धनी ने देसावर नह कया था,
अत: इस अवसर पर दूर-दूर से िज ह आना था, वे भी जाित-गंगा म ान करने आए थे।
एकि त होने वाल क िभ -िभ भावनाएँ भी थ । ब त लोग सगे-स बि धय से
िमलने आए थे, ब त जन कारबार, बहीवट, लेखा-जोखा देखने आए थे। कतने लोग
िज ासा क भावना से, कतने सैर-सपाटे के िलए और माल-मलीदे उड़ाने के िवचार से
आए थे। इस कार आसकरण क मृ यु के यारहव दन ख भात के बाज़ार म बड़े-बड़े
नगर के सेठ, ीम त ापा रय , पटेल-वािणय क भीड़ क भीड़ घूम रही थी। अनेक
िपता अपने पु को सजा-धजाकर उनक सगाई कराने के िवचार से बेटी वाल क
नज़र म चढ़ाने लाए थे। ये गाँव-गाँव के सेठ-महाजन कसकसे अंगरखे पहने, के स क ध
पर डाले, पान चबाते बाज़ार म घूमकर पर पर िमल-भट कर एक-दूसरे का कु शल-
मंगल पूछते फर रहे थे। िघरावदार अंगरख पर चु त चु ट पड़ी आ तीन, मलमल क
इज़ारब द क फै ट, और चमकता लाल सोरठी जूता ठाट बता रहा था।
नगर-सेठ के घर धूम मची थी। िविवध पकवान बन रहे थे। िमठाइय के थाल-
पर-थाल सजाए जा रहे थे। सैकड़ जन काम-काज म त थे। मदनजी सेठ और उनका
पु देवच हाथ बांधे न ता से सब आगत-अ यागत का वागत-स कार कर रहे।
अभी स या नह ई थी। भोजन क पांत बैठी। बाहर के तथा नगर के महाजन
जीमने के पाट पर आ बैठे। परोसगारी ार भ ई। कसी का हाथ ल डू पर गया,
कसी का पूरी पर, पर तु मुँह तक कसी का हाथ नह प च ँ पाया। इसी समय भयानक
कोलाहल सुनकर सब कोई चौक े हो गए। एक युवक लो -लूहान िगरता-पड़ता सेठ क
देहरी म िगर गया। उसने हांफते-टू टे वर म कहा, ‘‘अनथ, अनथ! ा ण-वध, देव-
भंग!”
सब कोई हाथ का कौर छोड़ उठ खड़े ए। मदन जी सेठ ने आगे बढ़कर कहा,
‘‘अरे , रामदेव महाराज, या आ? कहो तो सही!’’
रामदेव ने टू टते वर म कहा, ‘‘गज़नी का अमीर आया है, उसने गु देव नृ संह
वामी को बाँध िलया है महालय भंग कया जा रहा है। ा ण वध कए जा रहे ह।’’
उसने फटी-फटी आँख से चार ओर देखा और िनज व होकर भूिम पर िगर
गया।
‘‘हरे राम, हे गोिव द, िशव-िशव, ा ण-ह या!” कहकर सब महाजन िवमूढ़
हो एक-दूसरे को देखने लगे! सभी प ल छोड़ उठ खड़े ए।
मदनजी सेठ और देवच जैसे थे, वैसे ही नंगे-पैर मि दर क ओर दौड़ चले।
महाजन ने बाहर आकर देखा–सैकड़ ा ण भागते-िच लाते दौड़े चले आ
रहे ह। उनम से ब त के व लो म तर ह। उनके पीछे घुड़सवार पठान सैिनक घोड़े
दौड़ाते, भागते ा ण क नंगी पीठ पर तलवार और ब छय से घाव करते, दबाए
चले आ रहे ह। सबके आगे क मती घोड़े पर सवार फतह-मुह मद हाथ म र -भरी नंगी
तलवार हवा म उछलाता आ रहा है।
देखते ही देखते इन बबर सैिनक ने महाजन को घेर िलया। सैकड़ लपलपाती
खूनी तलवार हवा म ऊँची ।
ितलक ह ाम भी र -व पहने फतह मुह मद के साथ एक अ छे घोड़े पर
सवार था। उससे फतह मुह मद ने कहा, ‘‘ये सब अमीरज़ादे से ठया ह, सब लखपित-
करोड़पित ह, इ ह मारने क अपे ा कै द करना अ छा है। इनके छु टकारे क भारी रकम
अमीर को िमलेगी।”
इतना कहकर उसने सवार को र पात करने से रोक दया। और सबको ब दी
करने क आ ा दे दी। देखते ही देखते देश-देश के सब सुकुमार, ीम त, सेठ ब दी हो
गए। भागते ए ा ण भी घेर िलए गए। इसी समय देवच वहाँ आ गया। उधर
बलूची सवार ने सेठ के घर को राई र ी लूट िलया। और सबको बाँधकर ले गए। सेठ
क नव कसलय सुकुमारी कु मारी कं चनलता को भी घर म से घसीटकर उ ह ने बाँध
िलया। सेठ-प ी मू छत हो भूिम पर पड़ी रह गई।
व पात
धम- ाण मदन जी सेठ और उनका पु देवच , दोन ही ाण का मोह छोड़
नृ संह वामी और देव-र ण के िवचार से समय और बलाबल का िबना ही िवचार
कए, पागल क भाँित मि दर क ओर दौड़े जा रहे थे। वे दौड़ते ए घुड़सवार पठान
क झपट से बचते ए, कभी गली-कू च और कभी कसी मकान या वृ क आड़ म होते
ए दौड़ रहे थे। कतनी ही बार उ ह भागती ई भीड़ म ध े खाकर िगरना पड़ा। घोड़
क टाप उ ह र दती चली ग । इस संघष म िपता-पु का साथ भी छू ट गया। पर तु इस
समय मदनजी सेठ को न ाण क परवाह थी, न पु क । वह जैसे भी स भव हो,
देवता और उसके पुजारी नृ संह- वामी क र ा करना चाह रहे थे। वह सोच रहे थे–
अमीर य द उसक करोड़ क स पि लेकर भी देव-भंग न करे , वामी जी को छोड़ दे,
तो उसे सब स पि दे दगे।
मदनजी सेठ ने मि दर के िनकट प च ँ कर देखा–मि दर क वजा टू ट चुक है,
सैकड़ बबर सैिनक मि दर के कं गूर पर चढ़े मि दर को ढहा रहे ह। ा ण और
पुरजन क लाश जहाँ-तहाँ पड़ी ह। ब त-से बबर िसपाही लूट का माल लाद-लादकर
ले जा रहे ह।
सेठ का िसर घूमने लगा। उसी समय कोई व तु लुढ़कती ई उसके पैर म
आकर िगरी। सेठ ने झुककर उसे उठा िलया। र से उसका हाथ भर गया, उसने देखा
और उसका शरीर थर-थर काँपने लगा। हे ई र! वह नृ संह वामी का कटा आ िसर
था। सेठ म खड़े होने क साम य न रही। िसर को गोद म िलए वह वह भूिम पर िगर
गया। सैकड़ आततायी घुड़सवार, पैदल उसे मुदा समझकर कु चलते ए चले गए। सेठ
मू छत पड़ा रहा।
पर तु उसके ाण नह िनकले। रात आई और चली गई। सेठ क मू छा टू टी।
उसने देखा–आकाश म शु न पूव दशा म अके ला टम टमा रहा है। सामने भ
देव थान िवशाल दै य क भाँित खड़ा है। मनु य का नामोिनशान भी वहाँ नह है।
वह उठा। मुद और अधमर को ं धता नगर- ार पर प च ँ ा। वहाँ दूर तक
गनगौर से लौटे ए नर-ना रय के िछ -िछ शरीर भूिम पर पड़े थे। उनके रं ग-िबरं गे
व समु ी हवा म फड़फड़ा रहे थे। गीध और चील आकाश म मंडरा रही थ । सूय
लाल-लाल आँख कए ऊपर उठ रहा था। सेठ अपने घर लौटा। घर के ार पर स ाटा
था, ार खुला था, पर भीतर कसी जीिवत ि के िच न न थे। सब घर अ त- त
लुटा-िपटा था। हे ई र, या मेरे कु टु ब म एक भी पु ष जीिवत नह रहा! उसे अब
अपने पु देवच क याद आई। उसने ज़ोर-ज़ोर से िच लाकर देवच को पुकारा।
धीरे -धीरे एक ी मू त आकर उसके ऊपर िगर गई। यह सेठ क प ी थी। उसने रोते-
रोते कहा–
‘‘वे सब कु छ लूट ले गए। वे कं चनलता को भी...’’ आगे वह बोल न सक , और
मू छत हो भूिम पर िगर गई।
मदनजी सेठ भूिम पर बैठ गए। प ी को य करके उ ह ने सावधान कया।
फर कहा, “ सब-कु छ सुना दो, सब-कु छ सुना दो।”
सेठ क प ी ने कहा, ‘‘हंगामा सुनकर हम सब भुंहरा म िछप गए थे। वे सब
से ठय को पकड़-पकड़ ले गए। फर घर म घुसकर लूट मचाने लगे। इसी समय देवच
आ गया। उसे वे सब मारने दौड़े–कं चन से न रहा गया। मेरे रोकने पर भी वह भ हरे से
बाहर आ देवच को भीतर ख चने लगी। पर उनक दृि उसपर पड़ गई। उ ह ने उसे
घसीटकर घोड़े से बाँध िलया, उसे बचाने म देवच घायल होकर िगर गया। पता नह
जीिवत है या मृत। वे उन दोन को ले गए–दोन को!’’
सेठ ने एक ठ डी साँस ली। प ी को वह ढारस न दे सका। ब त देर चुप बैठे
रहकर उसने अपना कत ि थर कया। फर अित कोमल भाव से प ी को उठाकर
कहा, ‘‘अब चलो ि ये, हम भी अपना धम पूरा कर।’’ और दोन भीतर चले गए।
तेल देखो, तेल क धार देखो!
महाराज भीमदेव का घायल और अरि त अव था म ख भात म रहना
दामोदर महता को असंगत लगा। कू टनीित का यह पि डत महाराज और महारानी
चौला देवी दोन ही को खतरे म डालना पस द नह करता था। पर िन ा और
ित ा का था। न तो महाराज भीमदेव ही ाण के मोह से ख भात को अरि त छोड़ने
को राज़ी हो सकते थे, न चौला रानी ही उ ह छोड़कर जा सकती थी। दामोदर मह ा
क दृि म स भात क र ा से अिधक मह व का राजा और रानी क र ा का हो
उठा। दुग, नगर और राजा-रानी, तीन क र ा का था। अ य त ग भीर था।
यो ा और यु साम ी क तो कमी थी ही, िनर तर परािजत होने के कारण उनम
साहस क भी ब त कमी हो गई थी। दामोदर महता भ - दय सेना क क ठनाई से
असावधान न थे। अतः अब उ ह ने ही सबसे अिधक साहस करने क ठान ली। पर तु न
तो महता को, न बालुकाराय ही को यह िव ास था क श ु इतनी शी ता से उनके
िसर पर आ टू टेगा। िजस दन यह म णा ई, उसके दूसरे दन ही गनगौर का यौहार
था। यौहार म हँसते-खेलते नर-ना रय पर दै य टू ट पड़ा। राजपूत सेना के सावधान
होने तक वह तीन करारी मार कर चुका था। नगर- ार पर गनगौर के मेले म िबखरे ए
नर-ना रय को उसने काट डाला। अचले र देवालय भंग कर नृ संह वामी और सब
पुजा रय को भी मार डाला, तथा आसकरण सेठ के देसावर म आए से ठय को भी
ब दी कर िलया।
िव ु वेग क भाँित यह खबर दुग म प च ँ ी। ज दी-ज दी आव यक आदेश
देकर, साम त को सेना-सिहत दुग से बाहर नगर-कोट पर भेज दया गया। फर
बालुकाराय से आव यक परामश करके दामो महता घोड़ा दौड़ाते वयं एकाक ही
नगर क ओर दौड़े। दुग- ार ब द हो गया। खाई का पुल तोड़ दया गया।
साम त को अिधक से अिधक सहायता प च ँ ाना ही दामो महता का उ े य था।
साम त को उसने समझा दया था क स मुख जमकर यु न करे । गली-कू च म मार-
काट करते बलूची सवार पर बगल से टू ट कर आ मण करे । दबाव होने पर भाग जाए।
मकान और वृ क आड़ म, मौके क ताक म दस-दस, पाँच-पाँच आदिमय क
टोिलयाँ िछपा दे। साहस क ेरणा करके नगर-िनवािसय को भी भागने से रोककर
श ु पर आ मण म सहायता करने क चे ा करे । साम त ने यही यु -नैपु य अपनाया।
जगह-जगह सारे नगर म उसके यो ा िबखर-िबखरकर नगर-जन से सहयोग लेकर
बगल से श ु पर आ मण करने लगे। इसका फल भी उ म आ। श ु क गित क
गई। वे चौक े होकर चलने लगे। नगर-जन म साहस बढ़ा।
दामो महता अब गली-कू चे पार करते ए कसी तरह ब दी से ठय म िमल
गए। सेठ लोग द ड देने क चचा चला रहे थे। दामोदर ने बातचीत शु क ।
एक सेठ ने कहा, ‘‘पाँच करोड़ कोरी ब त है, इतना द ड दे कहाँ से सकते ह?’’
दूसरे ने कहा, ‘‘देना चाह तो भी नह दे सकते। कोरी या हमारे पास यहाँ
परदेश म है!’’
तीसरे ने कहा, ‘‘ डी कर सकते ह, पर वह रा स मानेगा य ! उसे तो नकद
ही चािहए। िबना नकद दए छु टकारा नह है।’’
शुभकरण सेठ ख भात के सेठ का चौधरी था। उसने कहा, ‘‘एक करोड़ कोरी
म दे सकता ।ँ ’’
ि लोकच द ने कहा, ‘‘दस लाख म।”
लखपत के एक सेठ ने कहा, ‘‘मुझे समय िमले तो दस लाख कोरी म दूग ँ ा। पर
यहाँ नह , लखपत से मँगाकर दे सकता ।ँ ’’
दामो महता चुपचाप सुनते रहे। फर उ ह ने आकर कहा, “ से ठयाओ, आ ा
हो तो म भी कु छ क ।ँ म भी आपक इस िवपत का साथी ।ँ आप भले ही पाँच करोड़
कोरी उस दै य के मुँह म डाल द, पर तु कोरी लेकर भी वह िव ासघात करे , आपको न
छोड़े तो? भला उस ले छ श ु क ज़़मानत कौन देगा?’’ दामो क बात सुनकर सब
सेठ के कान खड़े हो गए। सबने कहा, ‘‘ठीक तो है। दु िव ासघात न करे गा, इसका
या ठकाना है। तब आप ही बताइए, या कया जाए?’’
‘‘सीधी बात है, श ु को द ड नह दया जाएगा, प रणाम चाहे जो कु छ हो।
अभी तो हम आ म-र ा के जो उपाय स भव ह , अपनाने चािहएँ। आप य द सब कु छ
मेरे ऊपर छोड़ द, तो म आपक र ा का िज मा लेता ।ँ ’’
दामोदर क इस बात से सबको ढाढ़स बंधा। सबने कहा, ‘‘आप जो कहगे, हम
वही करगे।’’
‘‘तब ठीक है, अब सब बात का जवाब आपका ितिनिध होकर म ही श ु को
दूग
ँ ा। आप शा त होकर बै ठए।’’
अभी यह सलाह हो ही रही थी क अमीर के बलूची सेनानायक ने आकर कहा,
‘‘से ठयो, अब तुम या कहते हो? दाम देते हो, या फर तु हारी सबक गदन मारी
जाए?’’
दामोदर ने कहा, ‘‘हम रातभर सोचने का समय िमले।’’ वह सोच रहे थे।
बालुकाराय और साम त के यु -कौशल का या प रणाम होता है यह देख िलया जाए।
पर तु उ ड बलूची सरदार ने कहा, ‘‘नह , नह , इतना समय नह दया जा सकता,
जो कु छ कहना है, अभी कहो–नह तो अभी तुम सबक गदन मारी जायगी।’’
‘‘अभी कहाँ से पया आएगा? पया या हमारी जेब म है? फर, गदन मारने
से ही तु ह काम है तो वही करो। पर हम जो कु छ देना-लेना है, रातभर म सोचगे,
ब दोब त करगे, तब होगा।’’
सरदार कु छ सोच-समझ कर चला गया। से ठय ने कहा, ‘‘इससे या लाभ, जो
सुबह कहना था, वह अभी य न कह दया गया?’’
महता ने कहा, ‘‘तेल देखो, तेल क धार देखो!’’
मृ युंजय महमूद
अमीर ने अिवल ब दुग पर धंसारा बोल दया। उसका परम श ु भीमदेव और
चाहना क ब मू य व तु चौला देवी इस समय इसी दुग म ह, यह सूचना उसे िमल
चुक थी। और दोन ा य को वह येक मू य पर ा करने पर तुल गया था। िजस
साहिसक वृि ने इस दुदा त यो ा को अजेय बनाया था, वह वृि आज उसके दय
क िल सा और वासना से िमलकर अप रसीम बन गई थी। आज तक अपने जीवन म
वह हीरे -मोती क भूख तृ करता रहा था। पर तु जबसे उसने चौला को देखा था–एक
दूसरी ही भूख उसके र म जाग उठी थी। आज र के नद म सराबोर हो चुकने पर,
महा-सं ाम को जय करने पर, वह भूख अपना भोजन ा करे –यह ण आ लगा था।
इसके िलए अमीर अपने हज़ार ाण का भी िवसजन कर सकता था। इसिलए उसने
एक ण को भी थ न खोकर अपना ा पा लेने या ाण देने का संक प कर
िलया। दुग का भंग होना अस भव था। वह चार ओर से अ य त दृढ़ और अजेय था।
पर तु महमूद भी दुजय यो ा था। उसने अपने यो ा को ललकार कर कहा,
‘‘बहादुर ! इन प थर के उस पार गज़नी के अमीर क इ ज़त,गैरत और िज़ दगी क़ै द
है,जो कोई सबसे पहले फसील पर चढ़कर पहला बुज़ दखल करे गा–उसे गज़नी का
अमीर आधी दौलत देगा।’’
अमीर का यह व साधारण न था। दुदा त दुजय तुक और बलूची यो ा
ाण क होड़ लगाकर सीधी फसलने वाली च ान पर चढ़ने लगे। पर अमीर इतने ही
से स तु न आ। वह वयं भी अपनी सब ग रमा भूल च ान पर साधारण िसपािहय
क भाँित चढ़ने लगा। कह रि सयाँ प थर म फँ साकर, कह आदिमय क पीठ का
ज़ीना बनाकर, कह ब दर क भाँित खतरनाक उछाल मार कर, असं य यो ा ाण
को मोह छोड़ दुग पर चढ़ने लगे। दुग- ार भी भारी दबाव म पड़ा। ढेर के ढेर
वलनशील पदाथ को ार पर लाकर जला दया गया। च मा के ीयमान काश म
असं य टि य के दल क भाँित श ु को दुग पर आ मण करते देख बालुकाराय
ब त त हो गए। चौहान साम त संह नगर म िघर गए थे। और उनक कोई सूचना
नह िमली थी। वे जीिवत ह या मृत, इसका भी कोई िन य नह था। ब त-से सैिनक
उनक सहायता को दुग से बाहर भेज दए गए थे। दुग म ब त कम सैिनक थे। उ ह को
लेकर बालुकाराय दुग-र ा क व था करने लगे।
पर तु ण- ण पर दुग के पतन क आशंका हो रही थी। दुग के पतन का
नह था–चौलारानी और महाराज भीमदेव क सुर ा का था। महता भी दुग से बाहर
थे। उनक भी कोई सूचना नह िमल रही थी। अतः सारा भार इस नाजुक मौके पर
अके ले बालुकाराय पर ही था। बालुकाराय भी ाण के मू य पर दुग-र ा क आन ठान
चुके थे। सच पूछा जाए, तो आज उनके जीवन का यह सबसे भयानक और क ठन सं ाम
था।
सारे ही यो ा को पीछे धके लकर अमीर और फतह मुह मद सबसे आगे
प चँ गए। दोन म पहले कौन बुज को आ ा त करता है–इसक होड़ लग गई। ऊपर से
तीर बरस रहे थे और भारी-भारी प थर भी ढु लकाए जा रहे थे। पर तु ये दोन जीवट के
पु ष कसी भी बाधा को न मानकर, उन अगम च ान पर ऊपर िखसक रहे थे। बुज
कु छ हाथ रह गया था। अमीर का वज़नी शरीर िसफ उँ गिलय क पोर पर लटक रहा
था। और फतह मुह मद ब दर क भाँित पंज के सहारे दीवार से िचपका था। अमीर का
दम फू ल रहा था। उसने युवक से हाँफते ए कहा–
‘‘बहादुर, या तुम म अब भी दम है?’’
‘‘अब देर या है आलीजाह।’’
‘‘तो तू िह मत कर।’’
‘‘आलीजाह गु ताखी माफ फरमाएँ’’ उसने इतना कहा, और उछलकर अमीर
के क धे पर जा चढ़ा। अमीर लड़खड़ाया, उसक उँ गिलयाँ च ान से िखसकने लग ,
पर तु इसी ण फतह मुह मद चीते क भाँित उछाल मारकर बुज़ पर जा प च ँ ा। बुज
पर प च ँ ते ही राजपूत ‘मारो-मारो!‘ कहके उसपर टू ट पड़े। पर उसने एक हाथ से
तलवार घुमाते ए कमर म बँधी र सी नीचे लटका दी तथा एक गोख म पैर अड़ाकर
पीठ के बल िगर गया। िगरे -िगरे ही वह अपने िसर के चार ओर तलवार घुमाने लगा।
अमीर क उँ गिलयाँ च ान से िखसक चुक थ , और यह स भव था क वह
फतह मुह मद के असह भार से डगमगा कर अतल तल म िगरकर चूर-चूर हो जाय, पर
इसी समय र सी उसके हाथ आ गई। उसने लपक कर र सी पकड़ ली और दूसरे ही ण
अमीर भी बुज पर था।
बुज़ पर प च ँ कर उसने तलवार हवा म ऊँची करके ‘अ लाहो-अकबर!‘ का
नारा बुल द कया। उसने कहा, “फतह, तेरी ही फतह रही!’’ और उसने फु त से र सी
एक गोख म बाँध दी। देखते-ही-देखते अनेक साहसी तुक यो ा बुज़ पर चढ़ आए।
राजपूत वहाँ ब त कम थे। उनम दस-पाँच तो इसी ण कट मरे , बाद म
नर संहा फूँ ककर उ ह ने दुग म चेतावनी दी, तो चार ओर से ‘हर-हर महादेव!’ करते
ब त-से राजपूत उधर दौड़ चले।
कोमल कृ पाण
अब संकट-काल समुपि थत देख बालुकाराय ने महाराज क सुर ा का सबसे थम
िवचार कया। वह महाराज के क म गए। महाराज क सेवा म चौला देवी और
शोभना थी। दो-एक सेवक भी उपि थत थे। बालुकाराय ने कहा, ‘‘महाराज, श ु दुग म
घुस आए ह। हमारे पास सेना ब त कम है। अब आप अिवल ब यहाँ से थान
क िजए।’’
पर तु महाराज भीमदेव असंयत होकर श या से उठकर खड़े हो गए और अपने
श माँगने लगे। इससे उनके अनेक घाव के टाँके टू ट गए और उनसे खून बहने लगा।
चौलादेवी ने त-भाव से उ ह श या पर िलटाकर कहा, ‘‘महाराज, मेरी एक
िवनती है!’’
‘‘कहो ि ये ।’’
‘‘इसी ण दुग मुझे दान क िजए।”
‘‘तुमको?’’
‘‘हाँ महाराज, िवचार मत क िजए।’’
‘‘ क तु बालुक...’’
‘‘महाराज, तुर त दुग मुझे दीिजए, या मेरा ाण जायगा।’’
‘‘देवी, तु ह तुर त र ा- थान म जाना चािहए।”
क तु चौला ने त काल महाराज भीमदेव क तलवार उठा ली। और कहा,
‘‘महाराज, इसी तलवार क आपको आन है, दुग मुझे दीिजए। मने कहा, मेरे चरण म
जैसा नृ य-कौशल है, हाथ म वैसा ही यु -कौशल भी है। महाराज, मेरा वह कौशल
देख।’’
‘‘तो फर जैसी चौला महारानी क इ छा!’’
चौला तुर त बालुकाराय क ओर मुड़ी। उसने कहा, ‘‘सेनापित, इसी ण
महाराज को सुरि त दुग से बाहर ले जाओ, और आबू क राह लो। दुग म मुझे एक भी
यो ा क आव यकता नह है–सभी यो ा महाराज क र ा म जाएँ।’’
महाराज ने असंयत होकर कहा, ‘‘यह या? भला म तु ह यहाँ अरि त
छोड़कर जाऊँगा?’’
‘‘अरि त नह महाराज, गुजरात के धनी क तलवार मेरे हाथ म है, फर यह
ख भात क दुगािध ा ी क आ ा है, इसका तुर त पालन होना चािहए।’’
‘‘नह , नह रानी, यह अस भव है, म यु क ँ गा। बालुक, मेरा घोड़ा लाओ।’’
महाराज भीमदेव एकबारगी ही उठ खड़े ए, पर तु दूसरे ही ण कटे वृ क
भाँित भूिम पर िगर गए। उनके घाव से र बहने लगा। वे मू छत हो गए।
इसी समय एक सैिनक ने आकर सूचना दी–दुग म ब त श ु घुस आए ह। वे
इधर ही चले आ रहे ह। रह-रहकर ‘अ लाहो अकबर’ का नाद िनकट आ रहा था। चौला
ने ाकु ल होकर कहा, ‘‘सेनापित, येक ण ब मू य है। गुजरात के वामी क र ा
क िजए, वह गु राह है।’’
‘‘ क तु आप?’’
‘‘म अपनी र ा म समथ ।ँ ’’
‘‘ फर भी?’’
चौला ने एकबारगी ही ोधावेिशत होकर कहा, ‘‘ या तुम दुगािध ा ी क
आ ा नह सुन रहे सेनापित?’’
‘‘सुन रहा ,ँ ’’ बालुक ने आँख म आँसू भरकर कहा।
‘‘तो तुम इन ण का मू य नह आँक रहे, एक ण का िवल ब भी घातक है।
गुजरात को अनाथ करने क जोिखम तुम उठा रहे हो।’’
बालुकाराय ने महाराज का मू छत शरीर क धे पर उठा िलया और भूिमगभ
म वेश करते ए कहा, ‘‘आपको म भगवान् सोमनाथ क र ा म छोड़ रहा ँ
महारानी।’’ और वह अ धकार म िवलीन हो गया। चौला ने िजतने सैिनक वहाँ थे, सभी
को भू-गभ म उतार दया और भली-भाँित भू-गभ का ार ब द करके िछपा दया। फर
शोभना से कहा, ‘‘सखी, अब हम-तुम दो ह।’’
‘‘हम एक ह महारानी।’’
‘‘रानी नह –बिहन।’’
‘‘महारानी जी, आप आ ा दीिजए।’’
‘‘तो बिहन, ार ब द कर ले, और एक तलवार हाथ म ले ले, िजससे एक
मु त-भर कसी भाँित इस भूगभ क र ा कर सक। फर गुजरात का अिधपित सुरि त
है। इसके बाद हमारा जो हो, सो हो।’’
‘‘जो आ ा!’’ कहकर शोभना ने ार ब द कर िलए और नंगी तलवार ले ार
से सटकर बैठ गई।
शोभना का स य
अभी गु गृह म गए महाराज भीमदेव को कु छ ण ही तीत ए थे क सोलह हाथ
ऊँची दीवार को फाँद, हाथ म र -भरी नंगी तलवार िलए फतह मुह मद आँगन म कू द
गया। सामने शोभना को देखकर उसने हाथ क तलवार ऊँची कर कहा, ‘‘शोभना, म
आ गया!’’
हष से वह फू ल रहा था। य िप शोभना को ण- ण म उसके आने क
स भावना थी, पर तु इस समय इस प म उसे वहाँ देखकर उसक चीख िनकल गई।
ण-भर तो वह सकते ही हालत म खड़ी रही। फर दूसरे ही ण वह सब प रि थित
भाँप गई; उसने आँख ही के संकेत से चौला को भीतर जाकर भीतर से क का ार
ब द करने को कहा, और आप हाथ क तलवार वह फक बाहर आ ार से अड़कर खड़ी
हो गई। फतह मुह मद ने कहा–
‘‘म आ गया शोभना!’’
‘‘म तु हारी ती ा ही कर रही थी।’’
‘‘अब ती ा क बेला समा ई, शोभना, अब तो िमलन का ण आ गया,
अब मुझसे तु ह कौन छीन सकता है?’’
‘‘पर तु ग़ज़नी का वह दै य?’’
‘‘अमीर, अमीर ने मुझे अपना सेनापित बनाया है शोभना, और आज म अमीर
से सबसे बड़ा इनाम लूंगा।’’
‘‘ क तु वह धम, देश और मनु य का श ु है?’’
‘‘पर तु हमारा िम है। अब िवल ब न करो, मेरी चीज़ मेरे हवाले करो।’’
‘‘कै सी चीज़?’’
‘‘िजसक देखभाल का काम मने तु ह स पा था।’’
‘‘चौला रानी?’’
‘‘हाँ, वह यह है, म उसक झलक देख चुका ।ँ ’’
‘‘तु ह, बड़े लोग के स ब ध म मयादा से बात करनी चािहए।’’
‘‘ओह, वह अभी तो मेरी बि दनी है। अलब ा, जब अमीर क बेगम बन
जाएगी, तब मयादा से बात क ँ गा।’’ वह हँसा, और तलवार हवा म ऊँची क ।
‘‘देवा, यह तुम अमीर के दास के समान बोल रहे हो।’’
‘‘दास य ? म अमीर का सबसे बड़ा िसपहसालार ।ँ आज क यह क ठन
मुिहम मने सर क है। सोमनाथ मने सर कया, और अमीर िजसे सबसे बड़ी दौलत
समझता है, वह या है, जानती हो?’’
‘‘ या है?’’
‘‘चौला! वह दौलत उसक गोद म डालकर म आज आधी दुिनया क
बादशाहत अमीर से लूँगा। शोभना, अब तुम अपने को कसी महारानी से कम न
समझना।’’
‘‘देवा, तुम तो बड़े-बड़े सौदे करने लगे।’’
‘‘यह इस तलवार क बदौलत शोभना, और तेरी इन आँख के जादू क
बदौलत–िजनम मुझे मारने और िज़ दा करने क ताकत है।’’
‘‘ले कन देवा, देखती ,ँ तुमने सबसे बड़ा सौदा भी कर िलया!’’
‘‘कै सा?’’
‘‘तुम अपने को भी बेच चुके!’’
‘‘तो इससे या, उसक क मत कतनी िमली–जानती हो? शोभना, मेरी ाण
से भी अिधक यारी चीज़–और एक बादशाहत।’’
‘‘पर तु देवा, एक दन न शोभना रहेगी, न यह भीख म िमली बादशाहत।
के वल तु हारे ये काले कारनामे रह जाएँगे।’’
‘‘ या कहा–भीख म?’’
“ नह ग ारी,िव ासघात,देश और धम के ोह के िसले म िमली बादशाहत।”
‘‘शोभना, यह तुम या कह रही हो, जानती हो–यह सब तु हारे ही िलए।’’
‘‘इसी से तो, म शम से मरी जाती ।ँ ’’
‘‘तु हारी ी-बुि है न।’’
‘‘ ी ,ँ तो मद क बुि कहाँ से लाऊँ?’’
‘‘खैर, अब देर हो रही है, बाहर मेरे िसपाही खड़े ह, मेरी चीज़ मेरे हवाले
करो।’’
‘‘कौन सी चीज़?’’
‘‘वह चौला देवी।’’
‘‘ कसिलए?’’
‘‘उसे म अमीर नामदार को भट क ँ गा।’’
‘‘अमीर कहाँ है?’’
‘‘पास ही है, इसी कले म।’’
‘‘मेरी बात मानो देवा, तुम इतने बड़े बहादुर हो–मेरी खुशी का एक काम कर
दो।’’
‘‘शोभना क खुशी के िलए तो म अपना दािहना हाथ भी काटकर दे सकता ।ँ
कहो, या चाहती हो।’’
‘‘उस दै य अमीर का िसर काटकर मुझे ला दो।’’
फतह मुह मद चमक कर दो कदम पीछे हट गया। उसने कहा, ‘‘ह, यह कै सी
बात!’’
“ या नह कर सकते? िजसका पेशा लूट-ह या,धम ोह,अ याचार और
अ याय है, जो लाख मनु य क तबाही का कारण है, जो मृ युदत ू क भाँित स ह बार
भारत को तलवार और आग क भट कर चुका, वह इस ण तु हारे हाथ म है, चंगुल म
है, जाओ, अभी उसका िसर काट लाओ–शोभना देवी क यही तुमसे आरजू है।’’
‘‘नह , नह शोभना, यह नह हो सकता। म दास, अनाथ, अपमािनत,
बिह कृ त देवा, उसक कृ पा से ही आज इस तबे को प च ँ ा ।ँ भला म उसके साथ
धोखा कर सकता !ँ ’’
‘‘ या शोभना के िलए भी नह ?’’
‘‘भगवान के िलए भी नह , कसी तरह नह । चलो–ज दी करो, अमीर ती ा
म है। अब देर हो रही है, चौला को मेरे हवाले करो।’’
‘‘तुम कस अिधकार से उ ह मुझसे माँगते हो?’’
‘‘मने तु ह उनक िनगरानी पर िनयत कया था।’’
‘‘सो मने उनक िनगरानी क है।’’
‘‘वह यह है?’’
‘‘यह ह।’’
‘‘और महाराज भीमदेव?’’
‘‘वे नह ह।’’
‘‘कहाँ ह?’’
‘‘म नह जानती।’’
‘‘खैर, उ ह ढू ँढ़ िलया जाएगा। कहाँ है चौला?’’
‘‘भीतर इसी महल म।’’
‘‘तो ार खोलो, उसे मेरे हवाले करो।’’
‘‘तो तुम या इस बात पर तुल ही गए हो?’’
‘‘शोभना, हमारे जीवन का हेस-नेस अब इसी बात पर है।’’
‘‘पर याद रखना, तुमने शोभना क बात नह रखी।’’
‘‘अब इसके बाद, म शोभना का ही दास ।ँ शोभना क बात रखना ही मेरा
काम होगा।’’
‘‘वाह, तुमने तो दासता का ध धा ही खोल दया है, अमीर के दास बने, फर
शोभना के बनोगे।’’
‘‘शोभना का दास बनने के िलए म अमीर का दास बना ,ँ यह बात न भूलना
शोभना।’’
‘‘अ छी बात है, न भुलूँगी।’’
‘‘तो अब ार खोलो।’’
शोभना कु छ देर सोच म पड़ गई। उसने मम-भे दनी दृि से फतह मुह मद को
देखा, फर कहा, ‘‘ज़रा सोच लो देवा।’’
‘‘देर न करो शोभना।’’
‘‘तो शोर न करो। चुपचाप मेरे पीछे आओ।’’
‘‘ले कन भीतर और कौन है?’’
‘‘अके ली देवी ह।’’
‘‘तब चलो।’’
शोभना दीवार क छाया म दीवार से सटकर िन श द चलने लगी। फतह
मुह मद उसके पीछे-पीछे उसी भाँित चला। महल के िपछवाड़े प च ँ कर एक छोटे-से
ार म घुसकर उसने कहा, ‘‘जूता बाहर उतार दो और िन श द भीतर आ जाओ।’’
फतह ने ऐसा ही कया। ार के भीतर उसे करके शोभना ने भीतर से ार ब द कर
िलया। अब वह उसे एक अंधेरी गली म हाथ पकड़कर ले चली।
फतह मुह मद ने फु सफु सा कर कहा, ‘‘कहाँ िलए जा रही हो शोभना?’’ पर
शोभना ने अपनी नम-नम हथेिलयाँ उसके मुँह पर रख द । वे एक शू य अिल द म
प चँ ।े सामने एक ब द ार था। शोभना ने उसक दरार को झांक कर देखा। फर फतह
मुह मद के पास जाकर कहा, ज़रा मुझे अपनी तलवार तो दो! उसने उसे सोचने-
िवचारने का अवसर नह दया, उसके हाथ से तलवार लेकर उसक न क दीवार क
दरार म घुसाई, ार खुल गया। तलवार हाथ ही म िलए वह ार म घुस गई और फतह
मुह मद को पीछे आने का संकेत कया। ण भर को वह िझझका और फर लपककर
भीतर घुस गया। भीतर अंधकार था। घुसने के बाद ार अपने आप ही ब द हो गया।
ार ब द होने क आहट पाकर उसने पीछे क ओर देखा, एक भीित क भावना उसके
मन म ाप गई, उसने पुकारा, ‘‘शोभना।’’
पर तु शोभना ने कोई उ र नह दया। वह उस घने अंधकार म दोन हाथ
फै ला-फै ला कर शोभना-शोभना िच लाने और इधर-उधर दौड़ने लगा। पर तु शी ही
दीवार से उसका िसर टकरा गया। उसने उलटकर ार खोलने क चे ा क पर तु
सफलता नह िमली। अब ोध और अधैय से पागल होकर उसने ज़ोर-ज़ोर से
िच लाकर कहा, “दगा-दगा! तुमने मुझसे दगा क , शोभना!’’
एक छोटा-सा मोखा खुला। उसम से थोड़ा काश उस क म आया। शोभना ने
मोखे म झांककर कहा–
‘‘िन स देह देवा, मने तुमसे दगा क । य क म औरत ।ँ मेरे पास और उपाय
नह था।’’
‘‘ले कन शोभना, मने तुझे यार कया था।’’
‘‘ यार तो मने भी तुझे कया था देवा।’’
‘‘पर तेरा यार मेरे-जैसा नह था।’’
‘‘शायद, यार कभी कसी ने तराजू पर तो तोला नह । तेरा कै सा यार था,
यह तू जान, म तो अपने यार को जानती ।ँ ’’
‘‘उसी यार का नतीजा? िव ासघात !’’
‘‘िन स देह, यार तूने भी कया, और मने भी। पर यार होता है अंधा। वह
यह न देख सका, क तू त दासी का दास बेटा है, और म ा ण क बेटी ।ँ ’’
‘‘इससे या शोभना, हम दोन एक-दूसरे को यार करते थे।’’
‘‘पर दास और ा ण के र म तो अ तर है न? दास के र ने यार को
दासता के दांव पर लगाया। धम, ईमान, मनु यता सब पर लात मारकर उसने वाथ-
िल सा ही को देखा। पर ा ण के र ने मनु यता पर यार को यौछावर कर दया।
आज मेरी आँख खुल ग । मने तु हारा असली प देख िलया।’’
‘‘ या देखा?’’
‘‘ क तुम मनु य नह , कु े हो। तु हारे यार का मू य एक जूठी रोटी का टु कड़ा
है।’’
‘‘शोभना’’, फतह मुह मद ोध से उ म होकर िच लाया। उसने कहा,
‘‘शोभना, जैसा मेरा यार अंधा है वैसा ही गु सा भी है।’’
‘‘ब त कु का गु से म गुराना देखा है मने।’’
अधीर होकर फतह मुह मद ने उछल कर गोख को पकड़ िलया। शोभना
चुपचाप खड़ी रही। फतह मुह मद क खूनी तलवार उसके हाथ म थी। फतह मुह मद ने
गोख म िसर डाला, वह उसी राह बाहर आने क चे ा करने लगा। शोभना चुपचाप
देखती रही। य ही उसक पूरी गदन गोख से बाहर ई, शोभना ने एक भरपूर तलवार
का हाथ मारा, फतह मुह मद क आधी गदन कट गई। वह आहत सांड़ क भाँित चीख
उठा। उसका धड़ लटक गया। उसी समय शोभना ने ह ठ को दाँत म भ चकर दो-तीन
हाथ और मारे , िसर कटकर उसके चरण म आ िगरा। अब वह र -भरी तलवार लेकर
तेज़ी से एक ओर को भाग चली।
शरणाप
ाण से यारे देवा के खून से भरी तलवार से गम और ताज़ा खून क बूँद
टपकाती ई शोभना उ मा दनी क भाँित िगरती-पड़ती, दालान-अिल द पार करती
ई, उस क म प च ँ ी, जहाँ अके ली चौला, तलवार हाथ म िलए, भय, आशंका और
उ ग े से भरी बेचैनी से एक-एक ण काट रही थी। कले म बाहर जो मार-काट मची
थी और शोर मच रहा था, उसक जो आवाज़ दीवार से छन-छन कर आ रही थी, वह
उसे अधीर बनाए ए थी। कस ण या होगा, नह कहा जा सकता था। शोभना को
इस कार के भयानक वेश म आते देख चौला दौड़कर उसके पास आई। शोभना के बाल
िबखर रहे थे, ह ठ सूख रहे थे और चेहरा सफे द मुद के समान हो रहा था, आँख भय से
फट रही थ । शोभना तलवार फक चौला के पैर म िगर फफक-फफक कर रोने लगी।
चौला देवी ने उसे अंक म भरकर अनेक भाँित सा वना दी। वह यह तो समझ गई क
कोई अघट घटना घटी है, पर आ या, यह जानने को बार बार उसे बोध करने लगी।
शोभना अध-मू छत अव था म उसक गोद म पड़ी बड़बड़ाने लगी। चौला ने झारी से
शीतल पानी लेकर उसके क ठ म डाला और आँख पर छ टे दए, फर कहा, ‘‘कह
बिहन, आ या?’’
शोभना ने ह ठ ही ह ठ म फु सफु साकर कहा–
‘‘मने उसे मार डाला देवी, उसका िसर काट िलया, उसी क तलवार से।’’
‘‘ कसका? कसका?’’
पर शोभना ने सुना नह । वह मू छत हो गई। चौला देवी ब त हो ग ।
सहायता के िलए कसे पुकारा जाए। क म एक भी आदमी न था। पर तु समय पर
साहस का आप ही उदय हो जाता है। चौला ने कसी तरह शोभना को बोध कया।
होश म आकर शोभना आँख फाड़-फाड़कर चार ओर देखने लगी, फर रोते-रोते चौला
क गोद म िगर गई। धीर-धीरे उसने अपने दय क गु थी खोली। देवा का प रचय,
उससे ेम-भावना और उसका घर से भागना, मुसलमान होना, िछपकर िमलना, सब-
कु छ बता दया। अपने मन क आसि भी न िछपाई। उसे उसी ने चौला देवी पर अमीर
क ओर से जासूसी करने पर िनयत कया था–यह भी कहा। और अ त म यह भी कह
दया क कस कार उसे देवी से ेम आ, और उसी ेम और कत पर उसने आज
िन पाय हो अपने यारे का िसर काट डाला।
सब सुनकर चौला जड़ हो गई। ब त देर तक वह िनः प द शोभना को व से
लगाए बैठी रही। फर कहा, ‘‘सखी, तूने तो वह कया, िजसका उदाहरण नह । मेरे
िलए तूने अपना ही घात कर डाला।
‘‘आपके िलए नह देवी, अपने यार के िलए, जो मेरे मन म देवा के िलए था।
अभी भी जो वैसा ही है। उस दासी-पु ने उसी का सौदा कर डाला था, उसे मने आज
कलं कत होने से बचा िलया। और अब म आपक शरणाप ।ँ ’’
उसने अपने को चौला क गोद म डाल दया। चौला ने उसे उठाकर दय से
लगा िलया।
ाण का मू य
इसी समय महल के फाटक पर आघात होने लगा–जैसे ार तोड़ा जा रहा हो।
श क झनकार और घायल क ची कार िनकट आने लग । शोभना ने कहा, ‘‘देवी,
हम सावधान हो जाना चािहए, श ु शायद महल पर धावा बोल रहे ह।’’
दोन ि य ने तलवार हाथ म ले ल और उठ खड़ी । शोभना ने कहा,
‘‘देवी, समय क ठन है, हम सहायता िमलना स भव नह है। आप भूगभ म चली जाएँ
और जैसे भी स भव हो, सुरंग पार कर महाराज के दल से िमलकर आबू प च ँ जाएँ।
महाराज घायल ह, वे धीरे -धीरे जाएँग,े उ ह पा लेना आपके िलए क ठन नह है, आप
शी ता क िजए।’’
पर तु चौला देवी ने शोभना के ताव को अ वीकार कर दया। कहा, ‘‘नह
सखी, हम साथ ही मरगी।’’
‘‘पर तु मरना तो हमारा ुव येय नह है देवी।’’
‘‘पर मरने का ण आ गया तो या कया जाए?’’
‘‘अविश कत को पूरा करने क राह रहते बच रहना चािहए।’’
‘‘तो तुम भी मेरे साथ चलो।’’
‘‘तब तो दोन ही क िन य मृ यु होगी, या इससे भी भयंकर दशा। हम लोग
शी ही पकड़ ली जाएँगी। आप जानती ह, वह दै य आप पर दृि रखता है। य द
आपका शरीर उस पाजी के हाथ पड़ा तो या होगा?’’
‘‘म ाण दे दूग
ँ ी।’’
‘‘और महाराज? गुजरात? भगवान् सोमनाथ?’’
‘‘अब उनके िलए म या क ँ ?’’
‘‘बिहन, यह यु काल है, और हमारी ि थित िसपाही क है। भावुकता को
छोिड़ए, आप गु राह जाकर महाराज से िमल जाइए। और उ ह अपने यार का बल
देकर गुजरात क ित ा, धम और देवता क र ा क िजए। िजस तरह भी हो, यह दै य
जीिवत न जाने पाए।’’
‘‘और तुम?’’
‘‘म देवी का अिभनय करके िजतनी देर तक स भव होगा, दै य को यहाँ
अटकाऊँगी। फर अिधक-से-अिधक मू य पर ाण दूग ँ ी। तुम तो जानती ही हो सखी,
क इन ाण का वामी, वही त-दासी का पु था, िजसके ाण का मू य चुका कर
मने गुजरात के र क क शि , आपक र ा कर ली। अब अपने ाण के मू य म
गुजरात, उसके देवता और धम क र ा क ँ गी। िव ास करो बिहन, मेरे ाण स ते
नह ह। मुझे मुझ पर छोड़ दो, और तुम इन ब मू य ण को न न करो।’’
‘‘तो सखी, म गुजरात को जीवन देने चली।’’
‘‘जाओ बिहन, भगवान् तु हारी र ा करगे। समय आ तो फर िमलगे। न
िमले तो भी...।’’
‘‘सखी, तुम सदैव मेरे दय म रहोगी ।’’ चौला ने उसे छाती से लगाया,
तलवार हाथ म ली और गभगृह म उतर गई।
गभगृह का ार भली-भाँित ब द करके शोभना ने अपने व बदल डाले। देवी
चौला के व पहने, आभरण से अपने को अलंकृत कया। रानी क -सी ग रमा धारण
कर, वह एक चौक पर आगे आने वाले ण का सामना करने को बैठ गई।
इसी ण फाटक टू ट गया और अनेक सैिनक क म घुस गए। शोभना ने
कड़ककर कहा, ‘‘खबरदार, एक कदम भी भीतर न रखना। के वल तु हारा जो सेनापित
हो, वह भीतर आए।’’
एक ौढ़ तुक सेनानायक आगे बढ़ा। शोभना, रानी के समान चौक पर बैठी
रही, उसने नायक को घूरकर कहा, ‘‘मूख, श बाहर रख दे, और तब स मुख आ ।’’
नायक ने देखा, यह रानी के समान गुण-ग रमावती ी कदािचत् वही रानी है,
िजसक अमीर ने माँग क है। वह ी है, िन श है। उसने अपने श खोलकर रख
दए। और डरता-डरता आगे बढ़कर शोभना के स मुख आ खड़ा आ। शोभना ने कहा–
‘‘अमीर नामदार का तु ह या म है?’’
‘‘आलीजाह उस नाज़न को अपने ब देखना चाहते ह, जो इस महल म
रहती है।’’
‘‘तो अमीर नामदार को हमारा म प च ँ ा दो, क वह दो घड़ी बाद यहाँ
तशरीफ लाएँ। और इस महल पर तुम िसफ पचास जवान के साथ अपना पहरा रखो।
तु हारे जवान महल से दो तीर के फासले पर रह। और तुम अके ले ौढ़ी पर हािज़र
रहो।’’
‘‘यह म कसका है?’’
“उनका, िज ह अमीर नामदार ब देखना चाहते ह।’’
नायक ने िसर झुकाकर शोभना को णाम कया। और, ‘‘अभी म बजा
लाता ’ँ ’ कहकर चला गया।
शोभना आसन से उठकर उस सूने आँगने म टहलने लगी। एक भी ाणी उसका
सहायक न था। वह अके ली ी, गज़नी के अितरथ िवजेता महमूद से जूझने को तैयार
खड़ी थी।
अितरथ का सा मु य
उस दो घड़ी शोभना ने गज़नी के अ ितरथ महारथी के स मुख होने क सब
तैया रयाँ कर ल । शारी रक भी और मानिसक भी। क म चौलादेवी के िलए यथे
राजसी साम ी तुत क गई थी। शोभना ने व , अलंकार और शृंगार क पराका ा
कर दी। उसी पराका ा म उसे अपने यारे के घात का हाहाकार िछपाना था। उसी से
उस अ ितरथ िवजेता को परा त करना था। समय और प रि थित ने, ाणो सग क
क पना ने उसम असीम साहस का सृजन कर दया था। उसी साहस ने उसके येक
जीवन-कण म ग भ स ा को आपूण कर दया। िजस कार श ु का हनन करने के
िलए तलवार पर सान रखकर तीखी धार तैयार क जाती है, उसी कार उसने अपना
शृंगार उ वण बनाया। क को भी सब स भव साधन से सुसि त कर आसन के नीचे,
वही यारे के र से भरा ख ग िछपाकर वह महारानी क स ा से बैठ गई। उस
संिहनी क भाँित, जो िहरण क ताक म बैठी हो। इस समय भय, िच ता और शोक का
उसके मन म लेश भी न था। के वल स साहस से उसका येक र िब दु प रपूण था।
शौय को यास क शा त भूख रहती है। वा तव म रस क दृि से देखा जाय
तो वीर और शृंगार, िजस एक ही थान पर संघात खाता है, वह के है ‘पौ ष’ ।
महमूद म समथ पौ ष था। वह िजस कु ल और वातावरण म ज मा और बढ़ा था, उसम
स भवतः यार क पीर का कोई मह व ही न था। जहाँ ी-शरीर पु ष-शरीर क
दासता करते ह, जहाँ इ छा होते ही त दािसयाँ वासना और कामना क िनज व पू त
करती ह, जहाँ यार क ित ा नह है, जहाँ के वल वासना ही वासना है, वहाँ यार क
पीड़ा के िमठास क अनुभूित कै से हो सकती है। पर तु चौला के ित थम दशन ही म,
अमीर महमूद के मन म यार क पीर का उदय आ था। चौला उसे ा य न थी। इसी
से उस पीर ने उसके स पूण शौय को आहत कया था। और जो दुदा त मू तभंजक और
दुधष िवजेता सोलह बार स पूण भारत को आग और तलवार क भट कर चुका था, इस
वाध य म चौला के यार से तड़पता आ सोमतीथ आ प च ँ ा। पर तु इस माँग म यार
कतना था और वासना कतनी, इसका शायद उसे ान न था। यार और वासना का
भेद वह कदािचत् जानता भी न था। अभी तक उसके मन का पशु व ही जीिवत था, उस
पशु व को ी-शरीर ही क भूख थी। उसे अधीन करके ही िचरकृ ताथ होना वह समझ
रहा था, ी-मन क तो उसने कभी क पना भी न क थी। इसीिलए वह अपनी
र रं िजत तलवार क धार ही से यार क इस राह को साफ करता यहाँ तक आ प च ँ ा
था।
शोभना का स देश पाकर उसके ाण हरे हो गए। अ ात ही म उसके मन म
ेम के सती व भाव का उदय आ। वह अपने भीतर एक क प, एक वैक य अनुभव
करने लगा, जीवन म पहली ही बार वह समझा क कु छ ऐसी व तु भी संसार म है,
िजसके स मुख उस-जैसा दुदा त िवजेता भी दीन िभ ुक है।
फर भी वह स था। उसने तुर त आ ा दी, क यु , मार-काट, लूट-पाट
तुर त ब द कर दी जाए। और चौला क सब आ ाएँ पालन क जाएँ। वह यह क पना
भी न कर सका क चौला देवी के थान पर शोभना देवी उसके साथ खेल रही है।
िनयत समय पर अमीर ने महल के अ तरं ग म एकाक वेश कया। उसने
अपने िव त गुलाम अ बास को भी ौढ़ी पर ही छोड़ दया। भीतर ांगण म
स ाटा था। एक भी ि वहाँ न था। वह सहमता आ धीरे -धीरे आगे बढ़ा। दालान म
प च ँ कर वह खड़ा हो गया। उसने ताली बजाई।
भीतर से जवाब दया शोभना ने, ‘‘य द आप गज़नी के यश वी अमीर ह, तो
आप भीतर आ सकते ह। खेद है क इस समय मेरे पास कोई दास-दासी आपक
अ यथना के िलए नह है–के वल म अके ली ।ँ ’’
कोमल क ठ से अ य त ि ध वा य सुनकर अमीर क ी बज उठी।
उसने कहा, ‘‘आप ही य द मि दर क महारानी ह, िजनका दशन मुझे एक बार हो चुका
है, तो म वीकार करता ँ क म गज़नी का अमीर खुदा का ब दा और आपका गुलाम
महमूद यहाँ हािज़र ।ँ ’’
‘‘ले कन मने सुना था क गज़नी का यश वी अमीर बादशाह का बादशाह है,
तब यह गुलाम महमूद कौन है?’’
‘‘वही, जो बादशाह का बादशाह है, आपका गुलाम है।’’
‘‘यह जानकर भी क म एक तु छ दासी, देवदासी ?ँ ’’
‘‘ले कन महमूद क मिलका ह।’’
‘‘मेरा याल है क अमीर महमूद तो मिलका के भी गुलाम नह ह।’’
‘‘सच है, ले कन आपका गुलाम ।ँ ’’
‘‘सच! इसीिलए अमीर नामदार इस खूनी तलवार से राह बनाते यहाँ तक आ
प च ँ े ह?’’
‘‘मुझे अफसोस है मिलका, पर अब म यह तलवार तु हारे कदम म सदके
करता ।ँ ’’
यह कहकर महमूद ने तलवार कमर से खोलकर शोभना िजस जाली के भीतर
बैठी बात कर रही थी, उसके िनकट भूिम पर रख दी। शोभना का रानी के समान
देदी यमान मुख तेज से प रपूण हो उठा। उसने कहा–
‘‘अमीर नामदार क सारी िज़ दगी क बरकत इसी तलवार क धार पर है,
अमीर को उिचत नह क इस क मती तलवार को एक अदना औरत के कदम म रखने
क बेवकू फ करे ।’’
‘‘आज अमीर अपनी बेवकू फ पर खुश है मिलका!’’
‘‘यह िबलकु ल नई बात है जूर, आपको शायद िह दु तान क हवा लग गई है।
यहाँ कु छ लोग ऐसे ही जो के गुलाम होते ह। ले कन अमीर नामदार को तो ऐसा नह
होना चािहए।’’
‘‘यह य ? या महमूद के दल नह है?’’
‘‘ दल शायद हो। ले कन दल तो यार को तलवार क धार पर चलने क
इजाज़त नह दे सकता।’’
‘‘इसी से, म महमूद अमीर, खुदा का ब दा, वही क ग ँ ा, जो मुझे कहना
चािहए। मने यह तलवार आपके कदम म सदके क है।’’
‘‘ कसिलए?’’
‘‘इसिलए क अमीर महमूद खुदा का ब दा, आपको यार करता है।’’
‘‘ले कन नामदार अमीर िजसे यार करते ह, वह य द उ ह यार न करे तो?’’
‘‘तो?’’
‘‘तो शायद अमीर महमूद, खुदा का ब दा, उसे इसी तलवार से टु कड़े-टु कड़े
करके उसका गो त कु को िखला देगा।’’
‘‘नह , म अमीर महमूद, खुदा का ब दा, वही क ग ँ ा जो मुझे कहना चािहए।
वह, िजसे म यार करता ,ँ य द मुझे यार न करे , तो म अमीर, खुदा का ब दा, इसी
ण इसी तलवार से अपने टु कड़े-टु कड़े कर डालूँगा ।’’
‘‘ओह, यार क इतनी क मत? और वह सब ज़र-जवाहर? जो जूर ने अपनी
िज़ दगी म खून क नदी बहाकर जमा कए ह?’’
‘‘आज महमूद, खुदा के ब दे क नज़र म कं कड़-प थर के ढेर ह!’’
‘‘ब त खूब। ले कन हज़रत, यह या धमक नह है?’’
‘‘धमक कै सी?’’
‘‘ क वह आदमी, िजसे खुदा का ब दा अमीर यार करता है, वह भी उसे यार
करे , वरना वह अपने को हलाक कर डालेगा। या नामदार अमीर यह नह जानते क
यार न धमक से, न क मत से, न माँगने से िमलता है, वह तो अ पत कया जाता है।’’
‘‘ कस तरह?’’
‘‘िजस तरह हम देवता को फू ल अ पत करते ह, और िजस तरह यश वी अमीर
अपना यार अपण कर रहे ह।’’
‘‘खुदा का शु है, तुमने उसे समझा।’’
‘‘समझा भी, देखा भी और सुना भी। अमीर नामदार इस नाचीज़ को पाने के
िलए बड़ी-से-बड़ी कु बानी, बड़ी-से-बड़ी क मत देने को तैयार ह।’’
‘‘यह सच है मिलका ।’’
‘‘ले कन यह खुदा के ब दे अमीर महमूद के िलए शम क बात है।’’
‘‘ओह, यह कै सी बात।’’?
‘‘सुलतान, म तो यह सुनती आ रही थी क खुदा का ब दा अमीर महमूद
बादशाह का बादशाह है, दीनो-दुिनया का मािलक है, वह दुिनया को िनयामत
ब शता है। वह दाता है। ले कन आज म अपनी आँख के सामने उसे एक दीन-हीन भूखे
िभखारी क भाँित पाती ,ँ या यह शम क बात नह है?’’
‘‘ओफ, ले कन नाज़न , म िसफ तु हारे दर का िभखारी ।ँ ’’
‘‘ले कन म देवता क दासी ,ँ मेरा तबा दुिनया क औरत से अलग है। म
िभखारी को यार नह दे सकती। मने जब अपने देवता को यार दया तो मेरे देवता ने
उस ओर आँख उठाकर भी नह देखा, जैसे मेरे-जैसी करोड़ ना रय के यार से वे
स प थे। मने अपना यार उ ह अपण कया, म ध य ई। अब या म एक िभखारी को
यार दू?ँ नह -नह , ऐसा नह हो सकता।’’
‘‘इतनी ज़ािलम न बनो मिलका।’’
‘‘खुदा के ब दे महमूद को नाउ मीद होने क ज़ रत नह , तलवार उठा
लीिजए। और इस बेअदब औरत का िसर धड़ से अलग कर दीिजए। और य द आप एक
गरीब औरत को मार कर अपनी यशि वनी तलवार को कलं कत करना नह चाहते, तो
ज लाद को बुलवाइए, वे अपना काम कर। और दुिनया देखे क खुदा के ब दे अमीर
महमूद के यार को ठु कराने क सज़ा या है।’’
महमूद के मुँह से जवाब नह िनकला। वह घुटन के बल झरोखे के सामने भूिम
पर बैठ गया। उसक आँख से आँसू बहने लगे। वह दोन हाथ से मुँह ढांप कर ज़ार-
ज़ार रोने लगा। शोभना का दय पसीजा। वह आसन छोड़कर खड़ी ई। उसने कहा,
‘‘उ ठए, शहंशाह, म कु छ िनवेदन करना चाहती ।ँ ’’
अमीर ने मुँह उठाया, गम आँसु से उसक दाढ़ी भीग रही थी। आहत पशु क
भाँित उसने झरोख से उस लाव य-सुधा को देखकर अ प विन क ।
‘‘सुलतान गज़नी को ऐसा कातर नह होना चािहए।’’
इस पर महमूद ने लड़खड़ाती भाषा म कहा, ‘‘जानेमन, यार क इस चोट से
म अब तक बेखबर था। आज देखता ,ँ जैसे मने अपनी सारी िज़ दगी ही बरबाद क ।
अब अगर तु हारा यार िनहाल न करे गा, तो खुदा का ब दा महमूद िज़ दा नह रह
सकता है।’’
‘‘ ले कन खुदा के ब दे महमूद ने कभी मेरा यार नह चाहा। मुझे चाहा। वह
भी फतह करके , तलवार और ज़ोर-जु म से। अब िजतना जोर-जु म कया जा सकता
था, हो चुका। गुजरात क हरी-भरी भूिम खून से लाल हो चुक । गुजरात के भु
सोमनाथ का दरबार भंग हो गया। न जाने कतने हौसले वाले ाण का संहार आ। न
जाने कतनी कु ल-वधुएँ िवधवा । खुदा के ब दे अमीर महमूद ने जो आग गुजरात के
घर, गाँव, नगर म लगाई है, उसे बुझाने को आज गुजरात क लाख अबलाएँ ज़ार-ज़ार
आँसू बहा रही ह। पर तु यह नह कहा जा सकता क इन आँसु को, उस आग को
बुझाने म कतने दन लगगे। अब ज़ूर से इस अभािगनी दासी का यही िनवेदन है, क
यार के सौदे क बात तो रहने दीिजए। आप देखते ही ह क म अके ली ,ँ मेरे पास
दास-दासी कोई नह । र क भी कोई नह । गुजरात के वीर आपक तलवार क धार का
पानी पी खेत रहे। और गुजरात का देवता भी आपने भंग कया। अब गुजरात क एक
अबला का र क कौन है...
‘‘ म अबला ी ।ँ तु छ दासी ।ँ पर तु खुदा के ब दे अमीरे -गज़नी क भाँित
कातर होना पस द नह करती। इसिलए मेरी ाथना है क यार के कारबार क बात
अभी रहे। आपने मेरे यार को न सही, मुझे तो ा कर ही िलया। मुझे बि दनी
क िजए। और फर जैसी जूर क मज़ हो, इस धृ ा बि दनी के साथ वहार क िजए।
’’
अमीर ने भराए ए क ठ से कहा, ‘‘ऐ नाज़न , तूने महमूद क तरह यार का
घाव नह खाया, इसी से ऐसा कहती है। ले कन म, खुदा का ब दा महमूद, वही क ग ँ ा
जो मुझे कहना चािहए। म म देता ँ क इस नाज़न के साथ एक मिलका क भाँित
सलूक कया जाए। और वह समझ ले क ग़ज़नी का सुलतान उसके येक म को बजा
लाने के िलए उसक रकाब के साथ है।’’
अमीर लौटा, पर तुर त ही घूमकर उसने कहा, ‘‘एक औरत आपक िखदमत म
थी...’’
‘‘जी, थी, ले कन आपके पधारने के पहले आपका एक त ण सेनापित उसे
लेकर कह चला गया?’’
‘‘कह चला गया?’’ अमीर क यौ रय म बल पड़ गए। उसने आप ही आप
भुनभुना कर कहा, ‘‘फतह मुह मद कहाँ गया?’’ फर अ बास से कहा, क 500 सवार
के द ते के साथ मिलका के हमराह रहे और ज द कु छ िह दू ल िडय का इ तज़ाम कर
दे, और मिलका का हर म तुर त बजा लाया जाए।’’
अमीर महमूद चला गया। उसक तलवार वह पड़ी रही।
ि यतम के पास
शोभना ने दुदा त महमूद को परा त कर दया था। और अब वह सक ण भाव
से उसक आहत-वेदना क िच तना म म थी। इसी समय वाजा अ बास ने आकर
ज़मीन चूमकर उसे णाम कया और हाथ बांध कर अज़ क , ‘‘ क जूर का गुलाम
अ बास वाजा िखदमत म हािज़र है, ल िडयाँ ज द हािज़र हो रही ह। और जो म
हो, बजा लाया जाए।’’
शोभना एकाएक यान से चमक पड़ी। सावधान होकर उसने कहा, ‘‘ कसी
ल डी क मुझे ज़ रत नह है, तुम खुद ौ ढ़य पर हािज़र रहो। और जब तक म न
बुलाऊँ, मेरे आराम म बखल न दो। म ब त थक गई ँ और अब आराम करना चाहती
।ँ ’’
अ बास हाथ बाँधे पीछे हट गया। शोभना ने महल के दालान को भीतर से ब द
कर िलया और वह अब पागल क भाँित दालान और अिल द को पार करती ई
सीधी वहाँ प च ँ ी जहाँ अभागे फतह मुह मद क लाश पड़ी ई थी वह दौड़कर लाश से
िलपट गई। आतनाद करते ए वह िवलाप करने लगी– हे ाणनाथ! ि यतम! अब म
तु हारे पास आई ।ँ बोलो, बोलो, अपनी शोभना से तुम या कहते हो, उसे तु हारी
आ ा या है। अरे , मने तु हारी कतनी ती ा क है, कतनी रात जागते िबताई ह,
तड़पती रही ँ तु हारी याद म। अब, अरे िनठु र, तुम िमले तो बोलते भी नह । वे सब
यार क बात एक बार फर कहो, जो तुमने ब त बार कह ह। वे सब वादे पूरे करो।
हाय, कतने सु दर थे तुम। यह या हो गया। कसने तु हारी यह गत कर दी। कौन मेरी
सौत, मेरी ज म बै रन िनकल आई। कसने तु हारा मुँह मेरी ओर से फे र दया। अरे , म
तु हारी शोभना ।ँ शोभना, तु हारी शोभना। अरे देवा, तुम तो कभी भी ऐसे िन ु र
नह थे। कतने भी ठे रहते थे, पर मुझे देखते ही हँस पड़ते थे, आज या हो गया तु ह।
हँसते या नह । इतने या ठे हो। बोलो, बोलो, अजी बोलो। हाय-हाय बोलो देवा, म
पुकार रही ।ँ तु हारी शोभना, अजी, शोभना। ओ, शोभना के छैला, ओ छिलया, ओ
ि यतम!!!
शोभना मू छत हो गई। मू छत होकर लाश से िलपटी पड़ी रही। ब त देर
बाद उसे होश आ। उसने आँख फाड़-फाड़कर चार ओर देखा। लाश को उठाकर वह
दालान म ले गई। वहाँ फतह मुह मद का कटा िसर पड़ा था। उसे उठाकर उसने उसे
घूर-घूर कर देखना शु कर कया। फर एक उ माद का आवेश उसे आ, बड़बड़ाते ए
उसने जैसे फु सफु साकर कहा, ‘‘वही हो, वही हो, वही आँख ह, पर नज़र वह नह । वही
ह ठ ह, पर रं ग वह नह , वही तुम हो पर– फर उसने ज़ोर से िसर को छाती से लगाया।
फर िसर को धड़ से जोड़कर उसे घूर-घूरकर देखने लगी।
सूय पि छम से नीचे को झुक रहा था। धूप पीली पड़ रही थी। वह उठी, िसर
को झरने पर ले जाकर धोया। सूखा खून आँचल से प छा। फर उसे लाकर धड़ पर जमा
कर रख दया। वह बड़ी देर तक उसे देखती रही। अब उसके आँसू सूख गए थे। कु छ
िवचार उसके मि त क म आए। उसने सोचा, अब इस जीवन से या काम। य न अभी
इस जीवन को समा कर दू।ँ पर तुर त ही उसने सोचा–यह तो ठीक नह । महल म
खोज होगी, यहाँ हम दोन क लोथ िमलेगी। भेद खुल जाएगा। और चौला देवी क
तलाश होगी। नह , नह । इस लाश को िछपाना होगा। और अ ततः मुझे वही अिभनय
करना होगा। उसने इधर-उधर देखा। वह उठकर झाड़ी के पास गई। वहाँ क िम ी कु छ
गीली थी। तलवार क नोक से उसने ब त-सी िम ी खोद ली। खोद कर गढ़ा कया।
फर उसने अपनी ब मू य साड़ी उतार कर लाश से लपेट दी। लाश को उठाकर उसने
क धे पर रखा और लाकर गढ़े म उतार दया। दोन न ह मु य म िम ी लेकर कहा,
‘‘मेरे ि यतम! अपना काम तुमने कया और अपना मने। तुमने धम, ईमान का यार के
नाम पर सौदा कया, और मने यार का धम और ईमान के नाम पर। अ ततः तुमने
अपनी राह पकड़ी और मने अपनी। िमलन आ और उसी ण िवदाई भी हो गई–
िमलन के ही िणक ण म हो गई मेरी िवदाई। अ छा ि यतम िवदा, िचर िवदा। खूब
िमले और खूब चले। वाह।’’ उसने अपनी दोन मु य क िम ी धीरे -धीरे गढ़े म डाली।
इसी समय दो आँसू ढरक गए। पर उसने अिधक आँसू न बहने दए। ज दी-ज दी उसने
गढ़ा भर दया। वह तलवार भी उसने लाश के साथ ही दफना दी। फर उसने र के
सब दाग प छ डाले और सावधानी से चार ओर देखती ई, वह उसी क म लौट आई।
भूख, यास, थकान, न द, दु:ख-दद और पीड़ा से वह अधमू छत-सी भूिम पर पड़ी
रही।
पाटन क ओर
फतह मुह मद का अपनी ेयसी को लेकर इस कार एकाएक गायब हो जाना
अमीर महमूद क समझ ही म न आया। शोभना के कौशल क उसने क पना भी न क
थी। अमीर फतह मुह मद पर ब त खुश था। उसी क सहायता से उसे यह मह वपूण
िवजय ा ई थी। अब, इस समय जब क उसे बड़े से बड़े इनाम क आशा थी, वह
य ं और कै से वहाँ से गायब हो गया। ब त-सी क पनाएँ अमीर ने क । गोइ दे छोड़े,
पर तु फतह मुह मद का सुराग न लगना था, न लगा।
अब थ ख भात म समय न न कर उसने सब ल कर लेकर पाटन क ओर
कू च कया। उसे लूटे ए उस अटू ट धन क ब त िच ता थी, िजसे वह सेनापित मसऊद
और अपने उ ताद अलब नी क देख-रे ख म पाटन भेज चुका था। वह अपनी मूल सेना
से भी देर तक पृथक् रहना नह चाहता था। वहाँ य िप उसे िवजय िमली थी और
उसक समझ से उसक ाण से ि य चौला देवी भी उसके हाथ आई थी, पर तु उसने
पहली बार ही अपनी स ह िवजय या ा म िनरीह नाग रक का जमकर मुकाबला
करने का स साहस देखा था। इससे वह भयभीत हो गया था। उसक धान मुिहम फतह
हो चुक थी, उसके येक िसपाही के ज़ीन म सोना-चाँदी, और ज़र-जवाहर भर चुके
थे। अब कसी का मन लड़ने म नह , अपने घर लौटकर मौज-मज़ा करने म था। अपने
बबर िसपािहय क मनोवृि वह खूब समझता था, तथा इन भेिड़य को पालने का ढंग
भी वह जानता था। इससे उसने लौटने म देर करना ठीक नह समझा।
शोभना ने िजस शान और शालीनता से उससे वातालाप कया था, उसने
उसक ी के तार को झंकृत कर दया था। जीवन म पहली ही बार उसने समझा
क कसी औरत पर काबू पाना और चीज़ है, पर उसका यार पाना िबलकु ल जुदा चीज़
है। महमूद पढ़ा-िलखा अिधक न था। पर किव व के मम को जानता था। भावुकता उसम
थी। फर उसका यह वाध य था, जब दय वभावत: कोमल और भावुक हो उठता है।
जीवन म पहली बार उसने एक औरत के सामने आ मापण करने के वाद का अनुभव
कया था। उसका मन यार क पीड़ा से कोमल और भावुक हो रहा था। इस समय
फतह मुह मद को िनकट पाने के िलए वह बेचैन हो उठा था। वही उसका इस समय
सबसे बड़ा समथ सलाहकार और सेनानायक था। दूसरा समय होता तो वह उसके इस
कार गायब होने पर स देह करता, पर तु इस समय वह अिधक सोच-िवचार नह कर
सकता था।
उसने वाजा अ बास अहमद को बुलाकर अपनी चहेती मिलका क सवारी के
स ब ध म सब आव यक आदेश दए, और कै दय के का फले को आगे कर कू च बोल
दया। ल कर म सबसे आगे बाजा–गाजा–घ सा और िनशान का हाथी था। उसके पीछे
ऊँटिनय पर तुक तीर दाज़ थे। इसके पीछे अ बास अपने पाँच सौ सवार के बीच
शोभना रानी को ले जा रहा था। शोभना क सवारी एक द गज हाथी पर थी, िजस पर
सुनहरी अ बारी कसी थी।
शोभना क सवारी के पीछे हािथय पर खज़ाना था। और उसके पीछे अमीर
अपने बलूची सवार से िघरा ऊँचे काले घोड़े पर सवार चल रहा था। सबसे पीछे रसद,
डेरे त बू, राशन और बावच , तोशाखाना, साईस आ द थे। अमीर का यह ल कर मील
ल बा था। और राह म जो खेत-गाँव-ब ती आती थ , सब उजड़ जाती थ । गाँव के
िनवासी गाँव छोड़-छोड़ कर भाग जाते थे। ब धा बबर सैिनक अकारण ही िजसे भी
पाते मार डालते, लूट लेते, आग लगा देत।े कह कसी क कोई सुनवाई नह थी।
साम त चौहान
पाठक को ात है क साम त चौहान को अि तम समय म ख भात का नगर
स पा गया था। और जब गनगौर के मेले पर आ मण आ, तो वह अपनी सेना क एक
टु कड़ी लेकर वहाँ लड़ने गया था। उसके साथ ब त कम िसपाही थे। तथा मेले म
अनिगनत ी-ब े और िनरीह नाग रक एक थे। अमीर के बबर पशु, भेिड़य क
भाँित उन पर टू ट पड़े थे। यह कोई यु न था, िनदय ह याका ड था। इस समय साम त
ने वेग से श ु पर धावा बोल दया। उसने बड़ा क ठन यु कया। और उसका फल
यह आ क वह घाव से जजर होकर भूिम पर िगर गया। उसके ऊपर भी श ु, िम
क लोथ पड़ ग । साम त क कसी ने सुध नह ली। वह वह अधमृत अव था म लोथ
के नीचे दबा पड़ा रहा। राि आई और गई। दन िनकला तब साम त को होश आया।
पर तु उसम उठने क साम य नह थी। उसने कसी कार अपने ऊपर पड़े ए मुद को
हटाया और िसर ऊँचा कया। यास से उसका क ठ सूख रहा था। पर जल वहाँ कहाँ
था। थोड़ी ही देर म वह फर मू छत हो गया। ब त देर वह मू छत पड़ा रहा। और
इस बार जब उसक मू छा टू टी तो दो पहर दन चढ़ चुका था। कले म मार-काट का
शोर मच रहा था। प था क श ु ने कला दखल कर िलया है। वह नह जानता था
क घायल महाराज, चौला देवी और शोभना का या प रणाम आ होगा। चौला देवी
और महाराज भीमदेव के िलए उसके ाण छटपटा उठे । पर ब त चे ा करने पर भी वह
उठकर खड़ा न हो सका। िसर पर खर सूय तप रहा था। चार ओर लोथ सड़ रही थ ।
चील और गृ मंडरा रहे थे। एक भी जीिवत ाणी न था। भूख और यास से उसके ाण
क ठगत हो रहे थे और िसर दद से फटा जा रहा था। घाव का र अंग पर सूख गया
था। घाव ग दे होकर कसक रहे थे। उसने पूरा ज़ोर लगाकर अपना क धा उकसाया।
उसने दूर एक ी को लोथ के बीच फरती पाया। कई बार पुकारने क चे ा करने पर
ही उसके क ठ से आवाज़ िनकली। ी ने सुनकर मुँह उठाकर उधर देखा। वह आई। एक
वृ ा ी थी, रोते-रोते आँख सूज गई थ । उसने सहारा देकर साम त को उठाकर खड़ा
कया, साम त ने कहा–
‘‘माँ, कसे ढू ँढ रही हो?’’
‘‘मेरा बेटा, तेरे जैसा था वीर।’’
‘‘तो माँ, मुझे एक घूँट पानी कह से िपला दे, तो म भी तेरे पु को ढू ंढने म
मदद क ँ ।’’
वृ ा का छोटा-सा फू स का घर पास ही था। वह ा णी थी, उसका पु
महालय का पुजारी था। गनगौर का मेला देखने गया था। घर लाकर वृ ा ने साम त को
पानी िपलाया। फर थोड़ा दूध भी दया। उसके अंग साफ कए। घाव पर प ी बाँधी।
इससे आ त होकर साम त ने कहा, ‘‘माँ, चलो, तु हारे लाल को ढू ंढ़, एकाध
लाठी या बाँस का टु कड़ा हो तो मुझे दे दो।’’
‘‘नह बेटा, तू ब त कमज़ोर है, यह आराम कर, म जाती ।ँ ’’
‘‘नह माँ, म साथ चलता ,ँ आज न जाने कतनी माँ िबना पु क , तेरा
पु िमल जाए तो मेरा फर जीना भी साथक हो।’’
दोन ने फर लोथ का उलटना-पलटना ार भ कया। इस काम म स या हो
गई। पर तु ा णी का बेटा न िमलना था, न िमला। वृ ा ने ठं डी सांस भर कर कहा,
‘‘ ा णी ,ँ बेटा, ा ण का धन स तोष है। अब स तोष ही क ँ गी। चल, घर चल।’’
साम त थकावट से चूर-चूर हो रहा था। अब और घूमना श य न था। वह बूढ़ी
ा णी क लाठी का सहारा ले फर उसक कु टया म लौट आया। बूढ़ी ने कहा, ‘‘तू
तिनक लेट पु , देखूँ, गाय हाथ लग जाए तो दूध दुहकर गम क ँ ।’’ वह त भाव से
बाहर क ओर चली। साम त बेदम होकर भूिम पर पड़ रहा। उसे गहरी न द ने धर
दबाया।
जब वृ ा ने उसे जगाकर लोटा-भर दूध दया तो उसको पीने से ब त बल
िमला। उसने कहा, ‘‘माँ, आपने जीवन-दान दया। ि य का बालक ,ँ पर तेरा ही पु
।ँ मेरा नाम साम त है। समय पर म फर िमलूंगा-अभी म चला।’’
पर ा णी ने उसे ब त बाधा दी। इस राि म जाने देना वीकार नह कया।
पर तु साम त ने कहा, ‘‘माँ, क नह सकता, एक बार कले म अव य जाऊँगा ।’’
और वह लड़खड़ाते कदम रखता वहाँ से चला। दुग िनकट आने लगा। वहाँ
कसी आदमी के होने का कु छ भी िच न न था। पद-पद पर वह हांफ रहा था, पर क
नह सकता था। दुग का फाटक टू टा आ था। वह कसी तरह पार करके भीतर प च ँ ा।
चार ओर उसने देखा, कसी जीिवत ि का वहाँ कोई िच न भी न था। वह िजतनी
ज दी स भव हो सकता था, पैर क घसीटता आ महल क पौर पर बढ़ा। पौर का
दरवाज़ा भी टू टा पड़ा था। उसे देखते ही उसका मन भय और आतंक से काँप गया। हे
भगवान! महाराज भीमदेव और चौला देवी या उस दै य के भोग हो चुके। वह
आतनाद–सा करता आ एक क से दूसरे क म, अ धेरे म अ धे क भाँित हाथ
फै लाए, ‘देवी, देवी! महाराज, महाराज!’ िच लाता आ उ म होकर दौड़ने लगा।
उसे एक ठोकर लगी और वह दीवार से टकराकर, िगरकर मू छत हो गया।
रात-भर वह उस शू य दुग म मू छत पड़ा रहा। जब मू छा भंग ई, तब
भात का आलोक गवा म झांक रहा था। वह फर अधीर होकर उठा। एक-एक क -
गवा उसने देखे।आवास लूटा नह गया था।चौला देवी के ब त-से व -साम ी वह
थे। वह सबको उलट-पलट कर देखने और हाहाकार करने लगा। अब उसे इस बात का
तिनक भी स देह न रहा क महाराज भीमदेव और चौला देवी उस दै य के भोग ए।
पर तु इसी समय उसक दृि दीवार पर कोयले से िलखे एक लेख पर पड़ी,
लेख शोभना का िलखा था। ज दी-ज दी उसने िलखा था, ‘‘महाराज सुरि त आबू क
राह ह। बालुक साथ ह। देवी एकाक भूमाग से गई ह। उनका अनुगमन और र ा होनी
चािहए। शोभना।’’
साम त क बांछ िखल ग । जैसे ज म-द र ी को िनिध िमल गई। उसने इस
बात पर िवचार भी नह कया क इस लेख को िलखने वाली शोभना कहाँ रही, उसक
या दशा बनी होगी। वह तेज़ी से भूगभ-माग क ओर जाकर उसम घुस गया। उस माग
से वह प रिचत था। दुग म आते ही उसे माग का पता लग गया था, वह दूरद शता के
िवचार से उसम दूर तक हो आया था। अब वह भूख- यास और थकान सब भूलकर उस
अ धकारपूण माग पर भरसक दौड़ लगाने लगा। वह ब त बार ठोकर खाकर िगरा।
ब त बार उठकर भागा। ब त बार िसर दीवार से टकराया। पर जैसे उसे इन सब बात
क सुध ही न थी। वह भागा जा रहा था। अ त म उस अ ध गुफा का अ त आ। काश
कण आया और जब वह नदी-तीर के एक पाव य देश म बाहर िनकला, तो सूय
म याकाश म खर तेज बखेर रहा था। उसने दौड़कर कल-कल बहती नदी के िनमल
जल पर अपने यासे ह ठ लगा दए।
नगर–सेठ क समािध
ख भात नगर िनज व-सा हो गया था। ब त लोग अमीर के स मुख यु म कट
मरे थे। ब त नगर छोड़कर भाग गए थे, ब त को अमीर ब दी बनाकर ले गया था।
ख भात म ऐसा एक भी घर न था जो इस समय मशान प न हो गया हो। कतने ही
घर तो लुट-िपटकर िबलकु ल ही बरबाद हो गए थे। आज उनम दीया जलाने वाला भी
कोई नह बचा था। ब त म से रोने-पीटने तथा हाय-हाय क आवाज़ आ रही थी।
कसी का पु , कसी का पित, कसी का भाई, कसी क प ी, कसी क पु ी, कसी क
पु वधू महमूद ब दी बनाकर ले गया था। ऐसा तीत होता था, मानो सारे नगर पर
मृ यु और अवसाद क काली छाया छा गई हो।
नगर-सेठ मदन जी महता एक िति त और करोड़पित ापारी थे। उनक
युवती पु ी कं चनलता को कस कार अमीर के बबर िसपाही सेठानी क आँख के
सामने ही उठा ले गए थे, यह पाठक को ात है।
आज भात ही से लोग क भीड़ नगर-सेठ क हवेली के सामने एक होने
लगी थी। जो लोग नगर छोड़कर भाग गए थे, उनम ब त-से लौटे आ रहे थे। नगर म
िबजली क भाँित यह खबर फै ल गई थी क नगर-सेठ मदन जी महता अपनी ित ा
और कु ल-मयादा भंग होने से िख हो आज जीिवत समािध ले रहे ह। जो लोग कभी घर
से बाहर न िनकलते थे, वे भी आज यह अत कत-अकि पत बात सुनकर सेठ के घर क
ओर दौड़े आ रहे थे। ठठ-के -ठठ लोग घर के सामने जुट गए थे। पर तु सेठ क िवशाल
अ ािलका म पूण शाि त और नीरवता िवराज रही थी। आज वहाँ िन य काम करने
वाले दजन मुनीम, गुमा ते, िसपाही, नौकर-चाकर और ापा रय क चहल-पहल न
थी। न आज तराजू पर पए और अश फयाँ तोली जाकर थैिलय म भरी जा रही थ । न
गुमा ते खोटे-खरे पए परख रहे थे। इस समय ऐसा तीत हो रहा था, मानो घर म
कोई जीिवत पु ष है ही नह ।
सेठ के मकान का ार उ मु था। ार पर कोई ारपाल या मनु य न था।
फर भी उपि थत जन म से कसी का साहस भीतर जाने का नह होता था। ार पर
लाल कुं कु म क थाप दी ई थी। आँगन म एक गहरा गढ़ा खुदा आ था।
उपि थत भीड़ म भी स ाटा था। सबक आँख आँसु से तर तथा िज वा जड़
थी। कसी को कसी बात क िज ासा न थी। सब कोई सब-कु छ जानते थे। जैसे सबके
हाथ कसी दै य ने सी दए ह । जैसे सबको लकवा मार गया हो। येक ि क
आँसु से भरी आँख चौक म खुदे ए गढ़े पर जमी ई थ । तीकार, िज ासा और
कौतूहल क भावना जैसे थम ही उस गढे़ म दफना दी गई थी।
धीरे -धीरे एक वृ ा ण को आता देख सब लोग उ सुकता से उधर ही देखने
लगे। ा ण का सब शरीर उघाड़ा था, उसपर साफ जनेऊ चमक रहा था, कमर म
उ वल धोती थी। उनक उ ब त थी। आँख धुंधली हो गई थ । िसर और मूँछ के बाल
ई के पहल क भाँित सफे द थे। ा ण का िसर और पैर भी नंगे थे। पैर म जूता और
िसर पर पगड़ी नह थी। शोक और वृ ाव था के बोझ को, मानो न सह कर ा ण
सोमदेव लाठी टेकते ए थ कत भाव से चले आ रहे थे। ऐसा तीत होता था, मानो
ा ण िजधर आ रहे ह, उससे िवपरीत दशा क ओर उनका मन मचल रहा है। ा ण
का मुख बफ के समान ठ डा और सफे द हो गया था। धीरे -धीरे लाठी टेकते ए ा ण
भीड़ के िनकट आए। सबने उनको चुपचाप माग दे दया, कसी ने भी उनसे कु छ कहने
का साहस नह कया। वृ ा ण ने पौर पर प च
ँ ार पर लाल कुं कु म क थाप देखी,
उनक आँख से आँसू बहने लगे। आँसू प छ वे कु छ देर ार पर खड़े रहे। उ ह ने अपने
काँपते ए दोन हाथ आकाश क ओर उठाए, आँसु से धुंधली आँख को सूय क ओर
फराया, और कु छ ह ठो-ही-ह ठ म कहा। उनका कं ठ- वर फू टा नह , के वल ह ठ
फड़ककर रह गए।
भीड़ म दो-चार ग यमा य नाग रक थे। उनम कु छ सेठ के स ब धी और िम
भी थे।उ ह ने आगे बढ़कर ा ण से धीमे और अव वर से कहा,“ उ ह रो कए।”
ा ण ठठक गए। उनक आँख के आँसू सूख गए। उ ह ने धीमे क तु ि थर
वर से कहा–
‘‘नह ।’’
और उ ह ने ि थर कदम से घर म वेश कया। कु छ देर तक स ाटा रहा। इस
समय अनिगनत मनु य वहाँ एकि त हो सांस रोके खड़े थे।
सब ने देखा, नगर-सेठ धीरगित से बाहर आए। उ ह ने सफे द पोशाक धारण
क थी। म तक पर के सर का ितलक था। उनका मुख भावहीन, दृि पृ वी पर झुक ई
और दोन हाथ नीचे लटके ए थे। आगे कु ल-पुरोिहत वृ ा ण, पीछे सेठ मब –
सब नीरव, सब शा त।
मुख नाग रक, सेठ, स ब धी सब पौर चढ़ कर भीतर गए। नगर-सेठ ने कहा–
‘‘भाइयो, कहा-सुना माफ! अपनी लाज अपनी आँख म लेकर आज म जा रहा
।ँ ई र आप लोग को सुखी रख!’’
इतना कहकर सेठ ग े म उतर गए। वह बीच म र खे एक आसन पर पलौथी
मारकर बैठ गए। फर उ ह ने उ वर से कहा, ‘‘भाइयो, जो पु ष अपनी पु ी क
र ा नह कर सका, उसके िसर पर एक-एक मुट्ठी धूल डालने क कृ पा करो।’’
सबसे थम वृ ा ण ने दोन मु य म िम ी उठा, म -पाठ कर िम ी
डाली, उ ह ने सब मनु य को भी िम ी डालने को े रत कया। आँख से चौधार आँसू
बहाते और–‘हे देव, हे भु’ का अ फु ट उ ारण करते उन सैकड़ मनु य ने िम ी भरनी
ार भ कर दी। देखते-ही-देखते नगर-सेठ मदन जी महता ने जीिवत समािध ले ली।
इस भयानक कृ य को देख उपि थत जनता मूढ़ बनी एक-दूसरे को देखती रह गई।
इसी समय आग-आग का शोर उठा। लोग ने देखा, नगर-सेठ क िवशाल
अ ािलका भीतर-ही-भीतर सुलग उठी है। उसम से चार ओर अि क लपट िनकल
रही ह। लोग बाहर-भीतर दौड़ने लगे। इसी समय ऊपर के ख ड का ार खुला और
उसम एक ी-मू त आ खड़ी ई। उसके स पूण व घी म तर थे। और व से आग क
लपट िनकल रही थ । मानो उसने अि का ही प रधान पहना हो। उसका मुख तेज से
देदी यमान था। लट िबखरी थ । अचल वाणी से उसने कहा–
‘‘जो कोई आग बुझाने का य करे , उसे भगवान सोमनाथ क आन है। मेरे
पित ने अपना माग चुना और मने अपना। अ ित ा क अस वाला म जलने क
अपे ा इस आग म जीते-जी जल मरना हमारा आज का सबसे बड़ा सुख है।’’
एकाएक शत-सह क ठ- वर खुल गए। व -गजना क भाँित एक वर से सब
बोल उठे , ‘‘जय अ बे, जय सती माँ, जय जय!’’
आग क लपट ने घर को चार ओर से घेर िलया। लोग दूर हट कर खड़े हो यह
अ भुत अघ टत दृ य देखने लगे। के वल वृ ा ण वह अिडग खड़े रहे। ब त भारी
कड़ाके के साथ छत िगरी और लोग ने उसी के साथ एक वर सुना, ‘जय-देव!‘
सारी हवेली धांय-धांय जल रही थी, उसी के साथ घर पर क गृहल मी, वधुएँ
और बालाएँ चुपचाप जल रही थ । साथ म कु लगु भी। कह हाहाकार न था, कह
दन न था।
एक धीमी आवाज़ बीच-बीच म कु छ देर सुनाई देती रही, ‘‘जय देव, जय-जय
देव!’’ और फर वह भी ब द।
कै दय का काफला
ख भात, भास और सौरा से एक लाख बीस हज़ार कै दय के काफले को
साथ लेकर महमूद पाटन क ओर लौटा था। इस काफले म सबसे आगे साहिसक और
ऐसे कै दी थे, िज ह ने जम कर अमीर क सेना का मुकाबला कया था या वे जो कोई
खास िवरोध करते ए पकड़े गए थे, या िज ह ने अमीर के ब त-से आदिमय को मार
डाला था। और उनके िव खास रपोट दज थी। इन सबक कमर म एक ल बी र सी
बँधी ई थी, और उस र सी से ये सब एक-दूसरे से जुड़े थे। इनके पीछे हाथ-बँधे
साधारण िसपाही, नाग रक, धुना-जुलाहे, ऐरे -गैरे सब पचमेल कै दी थे, जो ब त से
हिथयारब द िसपािहय से िघरे चल रहे थे। इनके पीछे रोगी, घायल और ी कै दी थे,
जो बाँधे ए तो न थे पर हिथयाब द पैदल और घुड़सवार िसपािहय से िघरे चल रहे
थे।
सबके पीछे बड़े-बड़े िस सेनापित, सरदार, धनी, सेठ-सा कार और
िगरासदार ि थे। ऐसे दो-दो या तीन-तीन कै दी एक-एक सवार के सुपुद थे। वे
उनक कमर म र सी बाँध, उनको मज़बूती से घोड़े क काठी म अटका, नंगी तलवार
उनके िसर पर घुमाते ए बढ़े चले जा रहे थे।
मील तक ल बाई म इन अभागे कै दय क कतार बनी ई थी। उनम ब त-से
ज़ार-ज़ार रोते, आँसू बहाते, छाती कू टते, िगरते-पड़ते सािथय के साथ िघसटते बढ़े चले
जा रहे थे। रोगी और घायल क दशा और भी खराब थी। उनम ब त से चलने- फरने
के यो य भी न थे। फर भी उ ह सवार के साथ िघसटना पड़ता था। उनके घाव क
मरहम-प ी भी नह क गई थी। ब त के घाव सड़ गए थे। ब त के घाव से लो बह
रहा था। पर तु वहाँ कोई कसी का िमज़ाजपूसा न था।
ि य क दशा और भी ददनाक थी। इनम अनेक ग भणी आस - सवा एवं
सूताएँ थ । ब त-सी ि य क गोद म ब का बोझ था, जो भूख, यास और गद-
गुबार से ाकु ल होकर रो-पीट रहे थे। उनक अभािगनी माताएँ भी रोकर उनका साथ
दे रही थ । ब त-सी कु लवधू, नववधू और कु मा रकाएँ ऐसी थ िज ह ने घर क
दहलीज़ से बाहर कभी पैर भी न र खा था, पर-पु ष क कभी सूरत भी न देखी थी।
पर तु दैव-दु वपाक से उ ह इन दुदा त िनदय डाकु के साथ चलना पड़ रहा था।
उनके पैर लो -लुहान हो गए थे और चलने क शि न रही थी, पर तु िबना चले कोई
चारा न था।
कोई घायल रोगी या ी कै दी य द चलते-चलते िगर जाता, तो उसके िलए
कने क कसी को आव यकता न थी। लाख मनु य और घोड़े उ ह कु चलते-र दते
उनके ऊपर से गुज़र जाते थे और उ ह वह , मृ यु उस वेदना से छु टकारा दे देती थी।
जो कोई चलने म ढील करता, अटकता, उस पर ऊपर से चाबुक बरसते थे। जो
भागने क चे ा करता उसका तुर त िसर काट िलया जाता था।
आसमान धूल से भर गया था। आगे वाले कै दय क धूल पीछे वाल के िसर
पर पड़ती थी।
दस मील चलने के बाद ल कर का पड़ाव पड़ता। तब इन अभागे कै दय को भी
भोजन-िव ाम िमलता। िव ाम को न िब तरा, न िबछौना, न छाया। सारी ही सुिवधा
के थान िसपाही घेर लेत–े इन भा यहीन को खुली धूप या खुले आकाश के नीचे नंगी
ज़मीन पर, कं कड़-प थर पर पड़े रहना पड़ता था।
भोजन क दशा ब त खराब थी। ब त कम लोग को भोजन िमलता था। वह
भी कद । ब त से िबना भोजन के रह जाते। जो भोजन िमलता वह अितिनकृ होता
था। य द पास-पड़ौस म कोई गाँव होता, तो इन कै दय को रि सय से बाँधकर वहाँ
िसपाही ले जाते–जहाँ वे गाँव वाल से भीख माँगते। गाँव वाले तो इस दल-बल से डर
कर ब धा भाग जाते थे। कु छ दृढ़ ालु, िसपािहय का भय याग अपने आँसु से
अिभिष अ जैसे बनता, इ ह दे देते थे। कोई-कोई फटा-पुराना व देकर अबला
क लाज ढकते थे।
ब त कै दी राह म मर जाते। ब त-सी माता क गोद के बालक िससकते,
ाण यागते रह जाते। उ ह उसी हालत म छोड़कर आगे चल देना पड़ता। चलते-चलते
अनेक ि य को सव-वेदना उठती, सव हो जाता, पर उनके िलए कोई कता न था।
या तो उस हतभािगनी क वह असहाय छोड़ सब चल देत,े या वह रि सय से बँधी
हाय-हाय कर िघसटती ई िगर पड़ती, और फर घोड़ , हािथय -पदाितक से ं धी
जाकर वह ढेर हो जाती थी।
भोजन के बाँटने के समय और भी दय- ावक दृ य होता। िवपि और ाण
के भार ने उन सबको मनु य से भेिड़या बना दया था। भोजन बँटने के समय वे ह टर
और ड ड क मार क तिनक भी परवा न कर एकबारगी ही टू ट पड़ते। सबम खूब
गाली-गलौज और ध ा-मु होती। वे येक आपस म खून के यासे हो गए थे।
पड़ाव पर प च ँ ते ही सब कोई अ छी जगह पर आराम करने को क ज़ा करने
के िलए झपटते, इस समय भी उनम लड़ाई होती। इससे भी अिधक ददनाक दृ य यह
होता क वे रो टय और मु ी भर चावल पर, जो उ ह खाने को िमलता था, जुए का
दाव लगाते। जो जीतते वे झपट कर साथी का िह सा छीन पशु क भाँित बेस ी से खा
जाते। और उनका साथी भूखा- यासा टु कुर-टु कुर उनक ओर देखता रह जाता।
शोर, हाहाकार, दन और अ व था का अ त न था। राह म और पड़ाव म
भी ब त ी-पु ष कै दी मर जाते थे। उ ह य ही छोड़ शेष कै दय को संग लेकर
िसपाही चल देते थे। ऐसा तीत होता था, मानवता पृ वी से उठ गई है और सारा
संसार नरक क आग म जल रहा है।
िविश कै दय को सबसे थम ठहराया जाता था। पड़ाव पर प च ँ ते ही
उनका यह काम होता, क थान को झाड़-बुहार कर साफ कर। फर उ ह आगे रवाना
कर दया जाता था। वे ब धा अपना भोजन रोिगय , ि य और घायल को दे देते थे
तथा वयं अनाहार रह जाते थे। ि य पर अ याचार रोकने म वे कभी-कभी जान पर
खेल कर िसपािहय से लड़ पड़ते थे। पर तु िसपािहय को दया-माया छू तक नह गई
थी। मनु य के जीवन का उनके िलए कोई मू य न था। वे कठोरता और ू रता क
सा ात् मू त थे।
इस कार यारह दन कू च करने के बाद जो कै दी जीिवत पाटन प च ँ ,े उनक
दशा मृतक से बढ़कर थी। िजस घर को बाँस और बि लय से घेरकर जेल बनाया गया
था, वह य िप ब त बड़ा था पर तु इतने कै दय के रहने के यो य न था। कमरे अ धेरे,
सील और ग दगी से भरे थे। मु त से उनक सफाई नह ई थी। जहाँ तक दृि काम
करती थी, वहाँ आदमी ही आदमी दीख पड़ते थे। कै दय के पास ओढ़ने-िबछाने का
कोई व न था। वे वैसी ही नंगी और गीली भूिम पर रोग, भूख और थकान से अधमरे -
से होकर आ पड़े थे। येक अपनी मृ यु चाह रहा था। हाहाकार, कराहना और रोने क
आवाज़ के मारे कान के पद फटे जाते थे। ी-पु ष क कोई वहाँ मयादा न थी। वे
सब नंगी ज़मीन पर ऐसे पड़े थे जैसे कसी ने मनु य का फश िबछा दया हो। पैर तो
या, ितल धरने क कह जगह न थी। य द कोई ट ी-िपशाब को जाना चाहता तो उसे
मनु य क छाती या पीठ पर पाँव रखकर जाना होता था। ऐसा करने पर ितरोध
करने क कसी म ताब न रह गई थी, इस कार पैर से कु चले जाने पर वे के वल
ितलिमलाकर कराह उठते थे।
लाख मनु य के मलमू - याग के िलए कोई व था ही न थी। जहाँ
िजसेसुिवधा होती, बैठ जाता। ल ा और स यता का कोई ही न था। रोगी और
अपािहज जो अपने थान से िहल भी न सकते थे, वह पड़े-पड़े मल-मू याग कर
ग दगी बढ़ा रहे थे। िजससे भयानक अस दुग ध और मृ यु से भी अिधक दुखदायी
हाहाकार क विन उस वातावरण म भरी ई थी। रात से अिधक दन और दन से
अिधक रात वहाँ जीवन के िलए अस हो रही थी। येक को अपने ाण भारी थे।
माता ने पु को फक दया था। पितय ने पि य से मुँह फे र िलया था और येक
ि यह चाह रहा था क उनका साथी उनका गला घ टकर उन पर अनु ह करे ।
म या न म एक बार उ ह नगर म िभ ा माँगने को बाहर िनकाला जाता। और
वे ल बी-ल बी रि सय से बँधे ए, घुड़सवार बलोिचय से िघरे ए नगर क गली-
गली, हाट-बाज़ार म भीख माँगने िनकलते। इन कै दय म लखपित, करोड़पित, सेठ-
सा कार, िव ान्, किव, पि डत और ापारी, िसपाही, जागीरदार-उमराव, िसपाही
सभी थे। ब त के सगे-स ब धी र तेदार पाटन म थे। वे अपने स बि धय को रि सय
से बाँधा आ देख, ज़ार-ज़ार आँसू बहाते, दौड़-दौड़ कर उ ह भोजन-व देते, तस ली
देते। दै य के समान िसपाही कसी कै दी को नाग रक से बात करना देखते ही मार-पीट
करने लगते। तिनक-तिनक-सी बात के िलए, अपने स बि धय को कोई व तु देने के
िलए नाग रक को बड़ी-बड़ी र त इन बबर िसपािहय को देनी पड़त । उ ह यह भी
भय था क जैसे ये िनरपराध नाग रक आज इस दुदशा म पड़े ह, वैसे ही कल हम भी
पड़ सकते ह। हमारी र ा करने वाला पृ वी पर कौन है?
दरबारगढ़ म
यारह दन क मंिज़ल पूरी कर, अमीर अपने लाव-ल कर सिहत अनिह ल-
प न प च ँ ा। जहाँ उसका सेनापित मसऊद, गु अलब नी, वज़ीर अ बास के साथ
उपि थत था। पाटन से नगरपाल च ड शमा ने नगर- ार पर उसक अ यथना क और
आदर-स कार से उसे दरबारगढ़ म ले आए। दरबारगढ़ म आकर अमीर ने एक दरबार
कया और नगर म अपने नाम क आन फे रकर ढंढोरा फराया, क जा क जान-माल
का िह दू-रा य क भाँित र ण होगा, सब लोग हाट-बाज़ार खोल, और अपने-अपने
काम-रोज़गार म लग।
य िप यह ढंढोरा च ड शमा के उ ोग का प रणाम था, और इससे नगरजन
क घबराहट कु छ कम ई पर तु अमीर के बबर सैिनक ने बाज़ार म अ धेरगद मचा
दी। वे चाहे िजसक जो व तु उठा ले जाते थे। मोल का पैसा नह देते थे, गृहि थय के
घर से गाय-बकरी-भेड़ खोल ले जाते और काट-पीट कर हंिडया चढ़ाते। कोई ब -बेटी
अपना ार नह खोल सकती थी। लोग ने अपना धन-र भुंहर म दबाकर िछपा दया
था। ब त कम दुकान खुलत , ब त कम कारोबार होता था। च ड शमा उधर अमीर का
िमज़ाज संतुिलत रखते, इधर नगरजन को शा त रखते। उनक नीित नगर क कम-से-
कम हािन उठाकर अमीर को पाटन से िबना लड़े-िभड़े िनकाल बाहर करने क थी।
अमीर अब लड़ने के मूड म न था। उसक सेना थक गई थी और बल िबखर
गया था। अपनी मुिहम वह पूरी कर चुका था और अब के वल अपनी थकान उतार रहा
था। फर यार के घाव से भी वह पीिड़त था।
िजस शोभना को वह चौला देवी समझे आ था, वह अभी तक अपना भेद
िछपाए ए थी। उसको डेरा राजमहल म ही दया गया था, और दजन दास-दासी
उसक सेवा म िनयत कए गए थे। वह उससे िमलने को छटपटा रहा था। पर शोभना ने
कहला भेजा था, ‘‘आप य द तलवार हाथ म लेकर आते ह, तो आप अपने और मेरे
मािलक ह, अब चाहे आइए, पर तु य द मेरी धम-मयादा कायम रखना चाहते ह, तो म
देवानु ान कर रही ।ँ मेरी इ छा है, जब तक भारत भूिम पर आप ह, मेरे िनकट न
आइए। आपके मु क म म आपका दल से वागत क ँ गी।’’ महमूद गम खून का युवक न
था, ौढ़ पु ष था। शोभना का अनुरोध उसने सादर वीकार कर िलया और वह िवरह
क मीठी अनुभूित करता रहा। फर भी वह ित दन दो बार सुबह-शाम अपना खास
गुलाम उसके पास भेजकर उसक खैरा फयत मँगा लेता था।
च ड शमा अ य त छ भाव से आबू से अपना स ब ध थािपत कए ए
थे। वे िस थल म दुलभदेव क एक-एक गितिविध को देख-भाल कर उसका र ी-र ी
हाल िवमलदेव शाह को भेज रहे थे। उ ह यहाँ अमीर के आते ही पता लग चुका था क
सोमनाथ क देवदासी चौलादेवी अमीर के साथ है, और अमीर ने उसे एक राजरानी क
भाँित पाटन के राजमहल म रख छोड़ा है। य िप उ ह चौलादेवी का िव तृत हाल
ात नह ं था और यह भी वह नह जानते थे क महाराज भीमदेव के साथ उसका गु -
िववाह हो गया है। पर तु गु चर से उ ह इतना ात हो गया था क चौलादेवी
ख भात म थ , और वहाँ के दुग से अमीर ने उसे ा कया है। महाराज भीमदेव
सकु शल आबू प च ँ चुके थे, पर तु उ ह ने भी चौलादेवी के स ब ध म च ड शमा को
कु छ न िलखा था, इसिलए अिधक तो नह , पर आंिशक प से वह चौलादेवी के स ब ध
म कु छ िज ासा अव य रखते थे। और उ ह ने अपनी एक गु आँख िनि त प से उस
नकली चौलादेवी पर थािपत कर रखी थी। जो िह दू दािसयाँ यहाँ शोभना क सेवा म
रखी गई थ , वे सब च ड शमा ारा ही भेजी गई थ । अमीर च ड शमा को अपना
अनुगत कमचारी समझ कर, पाटन म अपनी सब आव यकता को च ड शमा के ारा
ही पूण कराता था। और इसी कारण एक दजन से भी अिधक दािसयाँ च ड शमा को
चौलारानी के पास प च ँ ानी पड़ी थ , पर तु शोभना ने इन दािसय के स मुख भी
अपना भेद खोला नह था। और वे नह जानती थ क उनक वािमनी कौन है। वे यही
जान पाई थ क वह सोमनाथ महालय क नतक है, जो अमीर क िति त बि दनी
है। च ड शमा भी इतनी ही बात जान पाए थे। अलब ा उ ह ने उसका नाम भी जान
िलया था और अपने गु संदश े म यह संदश े भी आबू भेज दया था क अमीर के साथ
चौला नाम क सोम–महालय क एक नतक भी बि दनी है, िजसे उसने रानी क भाँित
दरबारगढ़ के ज़नाने राजमहल म ठाठबाट से रखा आ है।
इस कार पाटन म अमीर क सवारी को आए के वल तीन ही दन तीत ए
थे, क इतने ही काल म पाटन नई–नई–हलचल से भर गया था। च ड शमा ब त
त हो उठे थे। उनपर दुहरा भार था। वही पाटन क कू टनीित के एकमा संचालक
थे। उनका ब त समय अमीर क सेवा म तीत होता था, उ ह ने अमीर के सब सुख–
साधन जुटाकर उसे स कर िलया था, और अब वह नगर– व था स ब धी सारी ही
बात च ड शमा ही क अनुमित से करता था। एक कार से वह च ड शमा पर िनभर
था।
दो द ड राि जा चुक थी। च ड शमा गढ़ से अमीर को आिखरी सलाम करके
लौटे थे। उ ह ने देखा, एक सवार उनके पीछे घोड़ा दौड़ाता चला आ रहा है। उ ह ने
अपना घोड़ा रोक दया, पास आने पर देखा, वह एक तुक सवार है। च ड शमा ने कहा–
‘‘तुम या चाहते हो?’’
‘‘मुझे अमीर नामदार ने म दया है, क म आपका हमराह रहकर िहफाज़त
से आपको आपके घर प च ँ ा दू,ँ इससे सेवा म हािज़र हो रहा ।ँ ’’
‘‘मुझे डर या है, मुझे तो तु हारी कु छ भी ज़ रत नह है।’’
‘‘ब त ज़ रत है, आप दुहरी चाल चल रहे ह और खतरे से बेखबर ह।’’
च ड शमा िसपाही के ममभेदी वा य सुनकर घबराए। उ ह ने कहा–
‘‘दुहरी चाल से तु हारा या मतलब है?’’
‘‘आप घर चिलए, वह क ग ँ ा।’’
‘‘यह कहो।’’ च ड शमा ने यान से तलवार िनकाल ली।
पर तुक सरदार ने हंस कर कहा, ‘‘इसक या आव यकता है शमा जी, चिलए,
घर चिलए। मुझे आपसे कु छ खानगी बातचीत करनी है।’’
शमाजी अपनी उ ेजना पर लि त ए।तलवार यान म रखकर बोले,“
देखता ,ँ तुम कोरे िसपाही ही नह हो।’’
‘‘सच पूिछए तो म भी दुरंगी चाल का शौक न ।ँ ’’ सवार ने एकदम अपना
घोड़ा शमाजी के घोड़े से सटा दया। फर िसर का कु लेदार साफा हटाकर िखलिखला
कर हँस पड़ा। च ड शमा ने चम कृ त होकर कहा, ‘‘अरे महता, तुम कहाँ?
‘‘चुप रिहए, और बातचीत घर म होगी।’’
और वे दोन तेज़ चाल चलकर घर प च ँ े। च डशमा ने घर का ार ब द करना
चाहा, महता ने कहा, ‘‘तुक सवार को घर म घुसाकर ार ब द करना ठीक नह है।
मेरा घोड़ा पकड़ने को कसी को बुलाइए, वही ार क देखभाल कर लेगा। इस बीच
हम बात कर लगे।”
च ड शमा ने ऐसा ही कया। दामो महता ने सं ेप म सारा हाल सोमनाथ के
पतन तथा गंदावा दुग और ख भात का सुनाया। च ड शमा ने सुनकर एक बूँद आँसू
िगराकर कहा, ‘‘अब इस वांग का या अिभ ाय है?’’
‘‘बि दय क र ा। इस समय बि दय क मुि ही सबसे मह व क बात है।
एक लाख से ऊपर िनरीह नर–नारी नारक य वेदना भोग रहे ह।’’ उ ह ने अपनी
तलवार क कहानी च ड शमा को सुनाकर कहा, ‘‘इसक बदौलत म नाना भेष धारण
करके बाहर भीतर सव जा सकता ।ँ और अमीर से सबसे बड़ा अनुरोध भी कर
सकता ।ँ पर तु मेरा आ मस मान इसम बाधक है। मने कभी उससे अनुरोध कया भी
नह , क ँ गा भी नह । अपनी बुि –बल पर ही इस दै य का सवनाश करने क चे ा
क ँ गा।’’
‘‘तो महता, अब हम तुम एक और एक यारह ह। िच ता न करो। इस गज़नी के
दै य का गुजरात से िन तार नह है। यहाँ वह चूहद े ानी म चूहे क भाँित फँ सा है।’’
‘‘पर तु चौलारानी?’’ महता ने शोकपूण वर म कहा, ‘‘उसका या होगा?’’
‘‘कौन, वह देवदासी?’’
‘‘आप नह जानते, चौलारानी क दुभा य–कथा।’’ फर सं ेप म महता ने सब
कथा कहकर कहा, ‘‘वह गुजरात क महारानी है। अमीर के हाथ उसका पड़ना बड़ा
भारी दुभा य है, शमा जी।’’
‘‘पर मुझे जो सूचना िमली है, उसके आधार पर वह अपनी वतमान ि थित म
ब त खुश है। या उसने महाराज भीमदेव को एकबारगी ही भुला दया?’’
‘‘कै से िव ास क ँ ? चौलारानी क भावुक ेम-भावना मने देखी है। महाराज
के िलए उसका वैक य भी मने देखा है। म जानता ,ँ महाराज जब सुनगे, सहन न कर
सकगे। पर यह हो या गया?’’ महता ने बेचैनी से कहा।
पर तु शोभना रानी के समथ-च का वे दोन गुजरात के कू टनीित च र
काटकर भी पार न पा सके । च ड शमा ने सखेद वाणी से कहा, ‘‘अब म इस स ब ध म
और भी छान–बीन क ँ गा महता, वहाँ सभी दािसयाँ मेरी िव ास भाजन ह। चौला
रानी को येक मू य पर अमीर के पंजे से िनकालना होगा। और य द वह धम– ई
है तो उसे द ड पाना होगा। यह गुजरात क रानी क मयादा का है, इसे य ही नह
जाने दया जाएगा।’’
‘‘िन संदह े !’’ महता ने कहा। फर दोन ने आव यक परामश कया और महता
उसी वेश म बाहर आकर धीरे –धीरे अमीर क छावनी क ओर चल दए।
बि दय का स साहस
िवपि से स साहस क उ पि होती है। इस घोर िवपि से सबसे थम
ि य म स साहस का उदय आ। बबर िसपाही उनसे सब कार का कु ि सत हँसी-
मजाक और दु वहार करते रहते थे। उ ह ने सबसे थम उन िसपािहय को डांट-डपट
कर सीधा कया। एक ी ने अवसर पाकर अपने भोजन करने का एक पा उठाकर एक
िसपाही के िसर पर दे मारा। इससे थम तो िसपािहय म यह उ ेजना फै ल गई, पर तु
तुर त ही एक भीित ने उनके मन म घर कर िलया। वे यह भली–भाँित जानते थे क
य द अमीर के कान म ऐसी बात प च ँ ग तो फर खैर नह है।
इसके बाद ही कै दय ने दूसरा कदम यह उठाया क नगर म भीख माँगने से
इ कार कर दया। थम ि य ने ही दृढ़तापूवक यह िन य कया, उसके बाद ही पु ष
कै दय ने भी इ कार कर दया। अब ज़रा-ज़रा-सी बात पर सारी ि याँ सामूिहक प
से िसपािहय का हंसक िवरोध करने लग । यह सब देखकर िसपाही डर गए। उ ह ने
सालार महमूद से सब बात कह , जो कै दय का इ चाज आ फसर था।
सालार ने ब दीगृह म आकर सब कै दय का मुआयना कया। िसपािहय ने
ब त–सी िशकायत क । इस समय सब ी-कै दय का नेतृ व कं चनलता कर रही थी
और पु ष कै दय के नेता देवच थे।
मसऊद ने कै दय के बाड़े म जाकर कं चनलता को तलब कया। पर तु मसऊद
क आ ा पाकर भी वह उठकर उसके पास नह गई। जहाँ बैठी थी वह बैठी रही। ोध
म भरा आ मसऊद वयं उसके िनकट गया। वह चाहता था क उसे द ड दे। पर तु
उसक प-माधुरी, मृदल ु देहयि , बड़ी-बड़ी कमल-सी आँख और उ वल मोती के
समान रं ग देखकर वह दंग रह गया। अपने जीवन म प-माधुय और सौकु माय का ऐसा
िम ण उसने देखा न था। उसका सैिनक जीवन कठोर और बबर कृ य से भरपूर था।
फर भी वह एक उ वंशीय कु लीन तुक था। वह वयं एक सु दर सजीला जवान था
और एक व थ युवक क भाँित उसके मन म भी कोमल भावनाएँ थ , जो त सैिनक
जीवन म सु हो गई थ । अब इस पसी बाला को देखते ही उसक सब भावनाएँ
एकबारगी ही जा त होकर भड़क उठ ।
वह देर तक एकटक यासी आँख से उसे देखता रहा। फर उसने उससे कहा,
‘‘खड़ी हो जाओ।’’
पर तु कं चनलता खड़ी नह ई। मसऊद ने कहा, ‘‘तुमने मेरा म नह
सुना?’’
कं चनलता ने इसका भी कु छ जवाब नह दया। मसऊद ोध नह कर सका।
वह उसके िनकट धरती पर बैठ गया। और मृदल ु क ठ से कहा, ‘‘तु हारे िखलाफ ब त
बात ह। म सालार मसऊद अमीर का िसपहसालार ,ँ सफाई म तु ह जो कहना हो,
कहो।’’
मसऊद कं चनलता के िब कु ल िनकट सरक आया। वह मुँह उठाकर अपने
के उ र क ती ा करने लगा।इसी समय अक मात् अत कं त रीित से कं चनलता ने
तीन–चार तमाचे उसके मुँह पर कस कर जड़ दए। फर कहा, ‘‘यह मेरा तुझे और तेरे
अमीर को जवाब है।’’
देवच िखलिखलाकर हँस पड़ा। और कै दी भी हँसने लगे। ि य ने जोश म
आकर मसऊद को घेर िलया।
ोध और अपमान से अ धा होकर मसऊद ने आ ा दी, ‘‘इस औरत को नंगा
करने पचास कोड़े मारे जाएँ।’’
ण-भर के िलए सव स ाटा छा गया। रि सय म जकड़े ए कै दय ने
लानत और िध ार क बौछार मसऊद पर करके उसक ओर थूका। ि य ने कं चनलता
को चार ओर से घेर िलया। मसऊद अब यहाँ अिधक न ठहर तेज़ी से बाहर चला गया।
शी ही आठ हिथयारब द पठान िसपाही और दो क ावर ज लाद हाथ म
चमड़े के कोड़े िलए आ उपि थत ए।
सब पु ष कै दी ोध से थर–थर काँपने लगे। ब त ने रि सयाँ तुड़ाने क चे ा
क । ी कै दय ने कं चनलता पर अपने शरीर झुका दए।
िसपाही आगे बढ़े। कं चनलता ने कहा, ‘‘खबरदार, वह रहो। िसपािहय क
आव यकता नह है। ज लाद ही काफ ह। म कोड़े खाने को तैयार ।ँ ’’ िसपाही ठठक
रहे। वह उठी और हंिसनी क चाल से चलकर ज लाद के िनकट आई और कहा, ‘‘तुम
अपना काम करो।’’
ज लाद, िसपाही और कै दी सब अवाक् थे। ज लाद ने उसे द ड- थल पर जाने
का संकेत कया। वहाँ जाने पर उ ह ने उसके हाथ बाँधे। उसका व फाड़ डाला। शु
ममर क ितमा-सा उसका व और पीठ नंगी हो गई। देवच ने प थर पर िसर दे
मारा, कै दय ने लानत और अपश द क झड़ी लगा दी। सबने अपनी आँख ब द कर
ल । ि याँ पछाड़ खाने लग । देखते-ही-देखते उस कु सुम-कोमल अबला बाला का व
और पीठ लो से भर गई। वह मू छत होकर द ड– थल पर िगर गई।
ज लाद और िसपाही अपना काम पूरा करके चले गए। ी कै दय ने उसक
लो -लुहान मू छत देह को हाथ हाथ उठा िलया। अभी उसके शरीर म ाण था।
उ ह ने उसे व से ढका। औषध उपचार और मरहम-प ी का कोई ही न था। वे
धीरे -धीरे जल क बूँद उसके मुख और आँख म टपकाती रह , कु छ देर के उपचार के
बाद उसने आँख खोल द । अपने को ि य से िघरी देखकर वह मु कराई। पर तुर त ही
वेदना ने उसक मुखाकृ ित िबगाड़ दी।
इसी समय एक िसपाही ने एक पुिड़या और कु छ गम दूध उसे लाकर दया। दूध
पीने से उसे कु छ बल आया। पुिड़या म एक कार का चूण था। िजस कागज़ म पुिड़या
बँधी थी, उसम िलखा था, ‘‘हौसला रखो, सहायता िनकट है, चूण ज़ म पर िछड़क
दो।’’
ऐसा ही कया गया। उस दन कै दय को यह तस ली ई क बाहर से
सहायता का उ ोग हो रहा है और वे िनरे असहाय-िनरीह नह ह। वह रात कं चनलता
को गोद म िलए रहकर ी कै दय ने तीत क । इसी एक घटना से कै दय म एक
संगठन और सहयोग क भावना का उदय हो गया।
दूसरे दन ही से सब ी कै दय ने भोजन करना याग दया। उनक
सहानुभूित म पु ष कै दय ने भी ऐसा ही कया। तीन दन तक इस िवषय पर कोई
िवचार नह कया था। पर तु इसके बाद मसऊद िचि तत हो गया। उसने चाहा क
अमीर से कु छ कहे, पर उसका साहस न आ। कै दय के िनकट जाने का भी अब उसे
साहस न होता था। य िप उसने कं चनलता पर कोड़े बरसवाए थे, पर सच पूिछए तो वे
कोड़े उसी क पीठ पर पड़े थे। उसक भूख- यास-न द सब उड़ गई थ । पर उस कोमल
कु सुम-कली के ित कए ए अपने िनमम वहार के िलए अपने को िध ार दे रहा
था। वह उसे देखना चाहता था, पर तु िनकट जाने का साहस नह करता था। जब उसने
सुना क कोड़े खाकर वह मरी नह , जीिवत है, उसने उसक मरहम-प ी और खाने-पीने
क समुिचत व था कर दी। पर तु कै दय ने भोजन करना वीकार नह कया।
मसऊद इससे डर गया। पु ष कै दय म िनभयता, उ डता औरा ोध क
भावना बढ़ती जाती थी। ब त य करने पर भी कै दय क भीतरी दशा बाहर अनेक
प धारण करके फै लती जा रही थी, िजससे नगर म अशाि त का वातावरण बढ़ रहा
था। ि य ने अब एक जोरदार कदम उठाया। उ ह ने िनणय कया क इस कार से
नंगी होकर कोड़े खाने से मर जाना अिधक उ म है। कं चनलता अभी तक ब त कमज़ोर
थी। पर तु अब सब ि य का नेतृ व ि मणी नामक एक सोरठ मिहला कर रही थी।
उसने कहा, ‘‘बिहन , कं चन बिहन क ित ा पर हम बिल होना होगा। कहो, कौन
अपने ाण देने को उ त है?’’ त काल सैकड़ हाथ उठ गए। उनम से बीस ि य को
चुना गया। अनेक युि य से ब त-सी अफ म मँगाई गई और बीस ि याँ शाि तपूवक
अफ म खाकर िचरिन ा म सो ग ।
इस कार बीस कै दी ि य का एक ही रात म आ मघात करने का समाचार
सुनकर मसऊद क िप डिलयाँ काँप गई। वह भागा आ ब दीगृह म आया। वह नह
चाहता था क बाहर यह बात फै ले और अमीर तक प च ँ ।े उसने उनके शव को
ब दीगृह म गाड़ दया तथा ि य को ब त भाँित तस ली दे भोजन करने का आ ह
कया। पर तु ि य ने वीकार नह कया।
अब इस आ म-य म ि य का साथ देना पु ष ने भी आव यक समझा।
त काल ही वे छा से मरने वाल क सूची बनाई जाने लगी। सूची आव यकता से ब त
अिधक ल बी हो गई। पर तु उनम से के वल अ सी ि उस दन मरने के िलए चुने
गए। शेष लोग ने उनके िनकट बैठकर भोजन न करने क ठान ली। इस बार भी ब त-
सी अफ म मँगा ली गई। और अ सी जन ने धैयपूवक अफ म खा ली। वे चुपचाप
िब तर पर लेट गए। बाक लोग उ ह घेर कर भजन-क तन करने लगे। हज़ार क ठ के
सि मिलत वर ने ब दीगृह क दीवार को क पायमान कर दया। बि दय के इस
आ मो सग के उदाहरण से दूसरे बि दय पर बड़ा भारी भाव पड़ा। उनम ेम, भि
और सहानुभूित तथा आ मस मान का जोश िहलार मारने लगा। वे भी ज़ोर-ज़ोर से
क तन करने लगे।
थोड़ी ही देर म िज ह ने अफ म खा थी, उनके िसर दद से फटने लगे। उस
िवकट वेदना को कसी भाँित सहन न कर वे छटपटाने लगे। उनक नस खंचने लग ।
देह अकड़ने लगी और आँख क कौिड़याँ बाहर िनकल आ ।
सब लोग अपने सािथयो का यह घोर उ सग प थर क छाती करके देख रहे थे।
ब त जन आँख से चौधार आँसू बहाते जाते थे और भजन गाते जाते थे।
इतना अिधक िवष खा लेने पर भी उनम से स ाईस ि य के ाण नह
िनकले, अत: उ ह दुबारा अफ म दी गई। जो मृ यु के िनकट प च ँ जाते थे, उनका क
कम हो जाता था। यह देख दूसरे कै दी ह षत हो उनके कान के पास मुँह करके ज़ोर-ज़ोर
से ह रनाम-क तन करते थे।
अ त म दो ि अब भी न मरे । उ ह तीसरी बार फर अफ म घोलकर िपला
दी गई। रात टू ट रही थी और वीरा मा के शव भूिम पर चुपचाप पड़े वे। उ ह घेर कर
सैकड़ जन भगवान का व क तन कर रहे थे। िजन दो ि य को तीसरी बार िवष
दया गया था, उनम से एक उठ बैठा। उसने अपने साथी के क ठ क घुरघुराहट सुनी।
अपने साथी क अि तम अव था िनकट जानकर बड़े य और क से िखसक कर उसके
पास प चँ ा, उसे अपनी छाती से लगाकर उसका ललाट चूमा, और इस बार ब त-सी
अफ म और खाकर अपने साथी क बगल म सदा के िलए सो गया।
लाल नज़र
ब त िछपाने पर भी ब दी गृह का यह भीषण समाचार अनेक प धारण कर,
नगर और ल कर म फै ल गया। नगर म हाहाकार मच गया। लोग ने कारोबार हाट-
बाज़ार सब ब द कर दया। अमीर के कान म भी यह समाचार इस ढंग पर प च ँ ा
दया गया क वह गु से से लाल चोट हो गया।
अमीर महमूद एक िवजेता, साहिसक यो ा और उ मन का बादशाह था। वह
िव ा- सनी और तेज वी भी था। अपनी महान आकां ा क पू त करने म उसे बड़े-
बड़े नरमेध करने पड़े, लाख मनु य का वध करना पड़ा। पर तु ऐसे अ याचार और
िनमम ह याका ड का कलंक वह नह सह सका।
उस काल म अभागे बि दय क सव ऐसी ही दुदशा होती थी। इसिलए जो
भयानक अव था इन कै दय क थी, उसका दोष के वल सुलतान पर ही नह लादा जा
सकता था। एक बार जो ब दी आ, उसे तो उन दन जीते ज म नारक य दु:ख भोगना
ही पड़ता था। न करने यो य काम उ ह करने पड़ते थे, और उन पर कोई दया क कोर
करता भी न था।
महमूद के सलाहकार ने कहा क इन कै दय म जो भयानक अपराधी ह ,
हरीफ ह , िज ह ने मुसलमान पर तलवार उठाई हो, उ ह क ल कर दया जाए। शेष को
बाज़ार म ऊँचे दाम क बोली बोलकर बेच दया जाए।
इस संबंध म महमूद के िवचार कु छ और ही थे। वह जानता था क इन कै दय
को गुलाम क भाँित बेचने से अिधक दाम िमलते ह, अत: मनु य को पशु क भाँित
बेचने म कु छ दोष है। इस पर उसने कभी िवचार ही नह कया। अब तक कै दी भी
उसक आमदनी का एक ज़बद त ज रया बनते रहे थे। लोभी मनु य के दय म दया-
माया कहाँ? उस काल म ब त लोग गुलाम को बेचने का ध धा करते थे। उ ह कोई
अधम नह समझता था। ऐसे मनु य टोली बाँधकर, हिथयारब द हो, अरि त गाँव पर
टू ट पड़ते, और जो सामना करता, उसे िनदयता से मार-काटकर युवक , युवितय और
पवती ि य को पकड़ चलते बनते, और उ ह िवदेश म बेचकर खूब धन कमाते थे।
इस कु कम को करते उ ह तिनक भी दया-माया नह उपजती थी।
महमूद भी इसका अ य त था। कै दय पर के अ याचार उसे अ याचार नह
तीत होते थे। पर तु इस बार जो घटना उसके कान म पड़ी, उससे वह ोध से अधीर
हो गया। उसने वयं ब दीगृह म जाकर अ याचार क जाँच क । कस प रि थित म
िगरकर इतने आदमी िवष खाकर मर गए, और दूसरे मरने को तैयार ह, इस बात ने
उसका यान आक षत कया।
इस सामूिहक आ मघात के भीतर मसऊद का अनौिच य, अिवचार और
ल पटता देख वह ोध से आगबबूला हो गया। उसे ऐसा तीत आ क जैसे आज
उसका वंश कलं कत हो गया। उसने खुला दरबार कया।
मसऊद अमीर का ब त मुंहलगा, ढीठ और धान सहचर था। वह साहिसक
यो ा और अमीर का स ब धी भी था। उसक मयादा राजकु मार के तबे क थी। फर
भी अमीर ने मसऊद को मा नह कया। उसने सब सेनापितय , मि य , दरबा रय
और िसपािहय के स मुख उस पर अिभयोग उपि थत कया। अमीर ने पूछा–
‘‘मसऊद, या यह सच है क तूने उस औरत को िबना कसूर कोड़े लगवाए?’’
‘‘ जूर, उसने मेरी म–उदूली क ।’’
‘‘ या तूने उसे छु आ? उस पर बदनज़र डाली।’’
‘‘खुदाब द, वह एक का फर कै दी औरत है।’’
‘‘ या अ मतफरोश? या तूने उसके खानदान का पता लगाया?’’
‘‘जी हाँ, वह ख भात के बड़े सेठ क बेटी है।’’
‘‘ या उसक शादी हो चुक थी?’’
‘‘जी।’’
‘‘और उसका शौहर?’’
‘‘वह शायद इसी पाटन का बा शंदा है।’’
‘‘तो तूने यह जानकर भी, क वह दूसरे क औरत है, तूने उस पर बदनज़र
डाली औैर उस पर हददज क बेरहमी क ।’’
मसऊद नीची नज़र कए थर-थर काँपता रहा। अमीर ने कहा, ‘‘जंग जंग है —
ले कन बु ज़ क वहाँ गुंजायश नह , न बदनीयती क । खासकर जब एक िज़ मेदार
िसपहसालार, बु ज़ र खे, पराई औरत पर बदनीयत र खे, उसपर ज़ािलमाना हमला
करे , तो उसका क़सूर ब त बढ़ जाता है। पर, म अमीर महमूद, खुदा का ब दा — वही
क ग ँ ा, जो मुझे कहना चािहए। और म म देता ँ क वह औरत अपने हाथ से इस
बदब त मसऊद को नंगा करके सब िसपािहय के ब पचास दुर लगाए और यह
खोटा और बेईमान मसऊद अब से िसपहसालार नह , अदना िसपाही रहे।’’
अब अमीर ने कै दय के स ब ध क और बात पर भी िवचार कया। इतने बड़े
कै दय के काफले को इस बार िवदेश ले जाकर बेचना उसे संगत नह तीत हो रहा
था। इस बार लौटने म उसे एक अत कत भीित क भावना का भान हो रहा था। फर
कै दय म िव ोह क , सामना करने क जो भावना उ प हो रही थी, और नगर म जो
अस तोष उ प हो रहा था–इन सब बात से उसके मि त क का संतुलन जाता रहा।
इसी समय अवसर पाकर उसके वज़ीर अ बास ने कहा, ‘‘ जूर खुदाव द, इसम संदह े
नह क िवदेश ले जाकर कै दय को बेचने म अिधक क मत िमलेगी, पर तु यह व
ऐसा नह है क सवा लाख कै दय को इतनी दूर ले जाने क जोिखम उठाई जाए। फर
कै दी बगावत करने पर आमादा ह, शहर म भी हवा खराब हो रही है, इसम इन
कमब त कै दय म जो हरीफ ह, उ ह क ल कर दया जाए — और बाक सबको उनके
भाई-ब द म बेआब करके अपमानपूवक बेच डाला जाए।’’
इस पर महमूद ने कहा, ‘‘म महमूद खुदा का ब दा वही क गँ ा जो मुझे कहना
चािहए। म म देता क वे सब बदब त कै दी, जो फसाद पर आमादा ह, और
िज ह ने शाही म-उदूली क है, और िज ह ने इ लाम के ब द पर तलवार उठाई है,
उनका कल सरे आम क ल कर डाला जाए। और बाक सब गुलाम बोली क डाक पर
बेच डाले जाएँ। जो िबकने से बच रह, उ ह गज़नी क ओर बेचने के िलए रवाना कर
दया जाए।’’
अमीर के इस म से लोग के दल दहल गए। च ड शमा ने आँख -ही-आँख
म छ वेशी महता को संकेत कया। और महता िसपािहय क तरफ से हटकर एक ओर
को चल दए। ब त-सी बात पर िवचार करके च ड शमा ने इस स ब ध म अमीर से
एक श द भी नह कहा।
अमीर त त से उठकर महल म चला गया। आज उसका मुँह भरे बादल के
समान भारी हो रहा था।
वे छा ब दी
ब दीवाड़े म एक ओर िसमटकर, ाण द ड पाए ए कै दी बैठे अपने जीवन क
घिड़याँ िगन रहे थे। कोई रो रहा था, कोई हँस रहा था, कोई पागल क भाँित अंट-संट
बड़बड़ा रहा था। कोई ग भीर मु ा म गुमसुम बैठा था।
कं चनलता और देवच सबसे पृथक् एक कोने म बैठे अपने दुभा य का सामना
करने को तैयार बैठे थे। ठ ड काफ थी। कं चनलता कु छ काँपने लगी, उसके दाँत
कटकटाने लगे। देवच ने कहा, ‘‘ठ ड लग रही है कं चनलता, पर तु कोई व तो है
नह , आग भी नह जलाई जा सकती।’’ वह िखसक कर अपने शरीर क गम प च ँ ाने
को उससे सटकर बैठ गया। और कोई सहायता ा क जा सकती है या नह , इसके
िलए वह इधर-उधर देखने लगा। इसी समय उसने झपटते ए अपने बहनोई पूनमच द
को अपनी ओर आते देखा। उसके मुँह से िनकल गया, ‘‘अरे , तो या तुम भी पकड़े गए।
पर तु यहाँ तो के वल ाणदंड. ..।’’ उसने संदह े और िवषाद से भरी दृि से बहनाई क
त कं चन जैसी मुखमु ा क ओर देखा। वह उठकर पूनमच द से िलपट गया। कं चनलता
के अंग-अंग मं पसीना आ गया। वह मू छत-सी होकर धरती पर झुक गई।
दोन ने य पूवक उसे स भाला। फर पूनमच द ने अपने क धे का शाल
उतारकर कं चन का लगभग अधन शरीर अ छी तरह ढांप िलया। फर फ क हँसी
हँसकर कहा, ‘‘देवच , कै सा अ भुत संयोग है। याद है, हम आज से थम कब िमले थे?
जब म तु हारी बहन को िवदा कराने गया था, उस दन क सुखद मृित आज भी
कतना सुख देती है।’’
देवच ने िवषाद-भरे वर म कहा, ‘‘भाई, कया या जाए। ार ध म जो
होता है, वही होकर रहता है। तब य द बहन को िवदा कर दया गया होता, तो आज
उसे यह दन नह देखना पड़ता। पर, तुम कै से पकड़े गए? या यहाँ भी पकड़-धकड़
शु हो गई?’’
‘‘नह , वहाँ पाटन म चालीस गाँव के महाजन एक होकर सारे बि दय को
छु ड़ाने का य कर रहे ह। म उसी खटपट म तुमसे अब तक न िमल सका, आज मने
सुना क तु ह आज ही ाणदंड दया जाने वाला है, सो फर न रह सका, चला आया।’’
‘‘ या वे छा से?’’ देवच ने भय से पीला पड़कर कहा।
‘‘हाँ भाई, मुझे एक चीज़ िमल गई थी, उसी क मदद से। यह देखो।’’ उसने
एक शाही मु ा दखाई। ‘‘अब सुनो, समय कम है, अिधक बातचीत का भी अवसर
नह । यह मु ा लो और हरी को दखाकर बाहर चले जाओ। म यहाँ कं चनलता के साथ
।ँ ’’ यह कहकर मु ा उसने देवच के हाथ म थमा दी।
देवच ने कहा, ‘‘यह कै सी बेवकू फ क बात है, तुम जान-बूझकर मृ यु के मुख
म घुस आए। नह , नह हमारे भा य म जो हो सो हो, तुम अभी, इसी समय बाहर चले
जाओ, ज लाद के आने म देर नह है।’’
‘‘फजूल बात है। तु ह शायद अभी यह नह मालूम क तु हारे िपता ने जीिवत
समािध ले ली, और माता सब कु ल ि य तथा प रवार के इ स ि य सिहत जल
मर । हवेली जलकर खाक हो गई। ख भात के नगर–सेठ का पुराना घराना बरबाद हो
गया। अब तु ह एकमा जीिवत िच न हो। जाओ, जाओ, इतना उ सग मत करो,
ख भात के नगर–सेठ का खानदान युग–युग तक अमर हो गया–उसके वंश के दीपक को
जीिवत रहना होगा।’’
‘‘सुनकर स तोष आ। मेरे पू य िपता ने और माता ने जो कु छ कया, वह
उनका धम था। अब उनक चंता िमटी। अब हमारी बारी है, हम अपना कत करने
दो। भाई, तुम चले जाओ, िवनती करता ,ँ हा-हा खाता ,ँ तुम चले जाओ–तुम अपने
कु ल के अके ले सूय हो, जाओ-जाओ।”
‘‘यह अस भव है। कं चन के साथ मरने का तु हारा कोई हक नह है, मेरा है।
मेरा उसका जीव-जीवन का स ब ध है; वह मेरी प ी है, मेरे साथ वह, उसके साथ म
मरने-जीने के साझीदार ह। तुम पागलपन मत करो भाई, चले जाओ।’’
‘‘म ऐसा कायर नह ँ क तु ह और कं चन को, िज ह सदैव मने ाण से भी
यारा समझा है, मौत के मुंह म छोड़कर भाग जाऊँ, ऐसा ही है तो तीन ही मरगे।’’
पूनमच द अब कं चनलता क ओर बढ़ा। कं चन चौधारे आँसू बहा रही थी और
उसका मुँह एकदम सफे द हो गया था। पूनमच द ने उसके िनकट प च ँ कर कहा, ‘‘कं चन
ि ये, िलहाज़-शम का तो यह समय नह है, तुम देवच को समझाओ, वह चला
जाए।’’
कं चन ने अपना क ठ– वर संयत कया। उसने कहा, ‘‘भैया, ये ठीक कहते ह,
तुम चले जाओ। िपताजी का वंश लोप नह होना चािहए।’’
देवच ने उसके म तक पर हाथ रखा, फर कहा, ‘‘बिहन, बेसमझी क बात
मत करो। तुम अ छी तरह जानती हो क संसार म मेरा तु हारे िसवा अब और कोई
नह है।’’ फर उसने एकाएक कु छ सोच कर कहा, ‘‘पूनम भाई, एक काम य न कया
जाए। कं चनलता बाहर जाए।’’ फर उसने कं चन क ओर मुड़कर कहा, ‘‘सुनो बिहन,
तुम जाकर अपने वृ और दुखी ससुर क सेवा करना, और...’’
देवच आगे न कह सके । उनका क ठ क गया।
कं चनलता ने कहा, ‘‘मेरा थान तो इनके चरण म है भाई, तुम जानते ही हो।
तुम चले जाओ भाई, पैर पड़ती ।ँ ’’
पर तु देवच ने कहा, ‘‘तुम सब मुझे कायर बनाने पर तुले हो, पर यह नह
हो सकता।’’
उसका दृढ़ श द सुनकर कं चनलता सोच म पड़ गई। पूनमच द आँख म आँसू
भरे उसे ताकता रह गया। कं चनलता ने अब ि य पित क ओर देखा, और संसार-भर क
क णा और अनुनय आँख म भर कहा, ‘‘तु ह मान जाओ, जीिवत रहोगे, तो दोन घर
का उजाला होगा। मने तु हारी कभी भी सेवा नह क , िसफ फे र पर ही प ला पकड़ा
था। तुम िववाह कर लेना, सुखी रहना।’’ इतना कह कर वह सब लोक-लाज छोड़ आगे
बढ़ पूनमच द के व पर िगर फफक-फफक कर रोने लगी।
पूनमच द ने कहा, ‘‘यह समय तो साहस और दृढ़ता का है, और तुम रोती
हो?’’
‘‘म िपताजी क बात सोच रही ,ँ वे बूढ़े और रोगी ह, यह घाव वे कै से
सहगे।’’
‘‘म उनक आ ा से आया ।ँ ’’
तीन ने एक-दूसरे को पानी ढरते ने से देखा। ेम- याग-साहस और उ सग
क वहाँ गंगा बह रही थी। फर वे तीन कं चनलता को बीच म करके एक-दूसरे से
सटकर, जो कु छ आगे होने वाला था, उसका सामना करने को चुपचाप बैठ गए।
ब त देर बाद देवच ने कहा, ‘‘एक मलाल मन म रह गया पूनम भाई?’’
‘‘ या?’’
‘‘उस मसऊद कु े को म अपने हाथ से न मार सका।’’
‘‘उसके तो सात कम पूरे हो गए?”
‘‘अरे , यह कै से?’’
पूनमच द ने व हटाकर अपनी छाती दखाई। छाती खून से भरी ई थी।
देखते ही कं चन के मुँह से चीख िनकल गई। देवच ने आकु ल वर से कहा, ‘‘अरे , तुम
तो घायल हो, देखूँ।’’
पूनमच द ने घाव को व से ढकते ए कहा, ‘‘यानी मरते-मरते घाव दे गया।
मु ा उसी के पास तो िमली।’’ फर उसने सब हाल सुनाते ए कहा, ‘‘सर वती तीर पर
उसक लोथ पड़ी है, इस समय तो देखने वाल क वहाँ भीड़ लग रही होगी।’’
पूनम मु कराया।
कं चन ने हो साड़ी फाड़ डाली। वह घाव पर प ी बाँधने उसक ओर मुड़ी।
पूनम ने लापरवाही से कहा, ‘‘कु छ ऐसा भारी घाव नह है, रहने दो।’’
पर तु देवच ने आ ह कया, कहा, ‘‘घाव गहरा है। िछपाते य हो — प ी
बाँधने दो।’’ उसने बिहन का हाथ बँटाने को हाथ बढ़ाया।
उसके हाथ को नरमी से अपने हाथ म लेकर पूनम ने कहा, ‘‘यार, अब यह सब
खटपट कतनी देर के िलए? कु छ घड़ी क तो बात ही है, क सब बेड़ा पार।’’
पर तु कं चन का मूल आ ह टाला नह जा सका। उसने अपने हाथ से व हटा,
घाव पर प ी बाँध दी। पूनमच द ने और िवरोध नह कया।
इसी समय ार पर कु छ शोर सुनाई दया, और कु छ देर बाद ज लाद सिहत
ब त-से हिथयारब द िसपाही वहाँ आ प च ँ ।े उ ह देखते ही ब दीगृह हाहाकार और
दन से भर गया। के वल ये तीन ब दी मूक-िन प द एक-दूसरे का हाथ दृढ़ता से पकड़े
पृ वी पर दृि दए बैठे थे। उनक आँख म आँसू न थे।
ज लाद के मुिखया ने कै दय को िगनना ार भ कया। और कहा, ‘‘सब
ितरसठ ह।’’
‘‘ितरसठ? गलत, बासठ होने चािहएँ।’’ ज लाद के मुिखया ने अपनी
बुि म ा दखाते ए कहा, ‘‘ फर िगनो!’’
इस बार भी ितरसठ ही रहे। सहायक ने मुिखया ज लाद से कहा, ‘‘अब तुम
िगन लो।’’
उसने िगनकर देखा, ितरसठ थे। पर तु उसने कहा, ‘‘मुझे बासठ बताए गए ह।
अरे भाई कै दय , या तुमम कोई गलती से आ गया है?’’
कइय के ह ठ एक साथ ही खुले। पर तु वर नह िनकला। ह ठ वह िचपक
गए। मुिखया ज लाद ने कहा, ‘‘तब एक यादा ही सही। या कया जाए। पर
मेहनताना तो िमलेगा बासठ ही का। एक का िसर फोकट म काटना पड़ेगा।’’
इसके बाद उसने अपने सहायक क मदद से दो-दो के हाथ रि सय से पीठ पर
बाँधने ार भ कए।
सबको बाँध चुकने पर जब वह इन तीन के िनकट आया तो, पूनमच द ने
चुपचाप अपनी हीरे क अँगूठी उसके हाथ म थमाकर कहा, ‘‘दो त, हम तीन को एक
ही साथ बाँधना।’’
ज लाद ने खुशी से मंजूर कया। वे तीन एक साथ बाँध दए गए।
अब कै दय का यह जलूस पंि ब वध- थल क ओर चला।
नगर– ढंढोरा
अनिह लप न म ढंढोरा फर गया क कल एक हर दन-चढ़े, गुनहगार
कै दय को मािनक चौक म क ल कया जाएगा। बाक सबको गुलाम क भाँित नीलाम
कर दया जाएगा।
यह भयंकर ढंढोरा सुनकर अनिह लप न म हाहाकार मच गया। लोग खाना-
पीना भूल इस महा-िवपि क बात सोचने लगे। िन पाय सब नगर-िनवासी, नगर-सेठ
मािनकच द शाह क ड् यौ ढ़य म प च ँ े और पुकार लगाई क राजा हम छोड़ चला।
हम िबना राजा क जा ह। ाचीन काल से नगर-सेठ इस देश का दूसरा राजा होता है।
जब-जब जा पर िवपि आती है, वह उसका ितिनिध होकर राजा के पास जा पुकार
करता है और जा के दु:ख-दद क दाद देता है।
नगर-सेठ मािनकच द शाह के पास च ड शमा का गु स देश पहले ही प च ँ
चुका था। उसने सब महाजन और नगर के मुख जन को एकि त करके कहा, ‘‘यह
बड़ी अनहोनी बात है क िह दु क राजधानी म एक िवदेशी राजा इस कार आकर
िनरीह िनद ष जन को िबना िव -बाधा के हनन करे । कै से हम िह दू यह सब बैठे देख?
फर आज उनके कए है, कल हमारी बारी है। भाइयो, ज म-ज म से हमने धन-संचय
कया है। धन ही के कारण हमारी आव यकता है। इस समय चाहे हमारा सव व लुट
जाए, लाख-करोड़ पया खच करना पड़े, पर तु कसाई के हाथ से इन गरीब मनु य के
ाण क र ा तो करनी ही होगी। हमारे राजा य द कम य होते तो हमारी यह दुदशा
न होती। िबना वामी के भु क भाँित आज यह गुजरात क वग-सम राजधानी सूनी
और शोभाहीन हो रही है। िबना राजा के जा क र ा कौन करे ?’’
सभा म कु छ लोग बोल उठे , ‘‘हम अपने ाण क परवाह न करके महमूद क
सेना पर टू ट पड़ना चािहए। जहाँ तक ाण ह, हम कै दय पर आँच न आने दगे।’’
मािनकच द शाह ने कहा, ‘‘आपका यह जोश-उबाल थ है, आप ठाकु र ह,
आपको तलवार का आसरा है। पर जब राजा ही जा को अरि त छोड़कर भाग
िनकला, तो आपक दो-चार तलवार हज़ार रा स का या कर सकती ह। तलवार म
पानी होता तो भला कह सोमनाथ प न भंग होता? इन बात को छोिड़ए, जैसा समय
है उसके अनुसार काम क िजए। महमूद लोभी है, इसी से काम बन जाएगा। झुकने के
समय झुकना और अकड़ने के समय अकड़ना राजनीित है। हमारी शि न हो गई है,
अत: अब हम साम-दाम से इन रा स से काम िनकालना है। वह मनमाना द ड लेगा।
यही न, सो पया हमारे हाथ का मैल है, आब गई सो गई। इसिलए, हम सुलतान का
मुँह पय से भरना होगा। दूसरा कोई चारा नह है। यह देखो, चालीस गाँव के महाजन
सब बि दय को छु ड़ाने के िलए तन-मन-धन से तैयार ह।’’
नगरसेठ क इस बात म सबने सहमित दखाई। नगरसेठ मािनकच द शाह
साथ म पाटन के सब नगर-महाजन को तथा चालीस गाँव के महाजन को संग ले
सुलतान के पास गया।
सुलतान के वज़ीर अ दुल अ बास ने महाजन का वागत कया और आने का
कारण पूछा।
मािनकच द शाह सेठ ने आने का अिभ ाय वज़ीर को कह सुनाया। सुनकर
वज़ीर सुलतान के पास गया। अ दुल अ बास एक बुि मान और िव ान् वज़ीर था।
उसने सुलतान से कहा, ‘‘ जूर, शहर के महाजन-सेठ ौढ़ी पर यह अज़ करने हािज़र
ए ह क सब कै दय को रहाई िमले।’’
सुलतान क आँख म अभी भी गु सा भरा था। उसने कहा, ‘‘यह कै से हो सकता
है! िजन कै दय ने इरादतन मुसलमान को मारा है, उ ह क ल कर दो, बाक सबको
ऊँची बोली म नीलाम कर दो। यह तो म हो चुका है।’’
‘‘ज़ र हो चुका है खुदाव द, और इससे कु छ पया खज़ाने म आ जाएगा।
मगर जूर, पए से नेकनामी बड़ी चीज़ है। ये महाजन एक अ छी रकम देने को य द
राज़ी ह , तो पया भी िमल जाए और जूर खुदाव द क नेकनामी भी सलामत
रहेगी।’’
‘‘तब उन महाजन को हािज़र करो।’’ सुलतान ने म दया। महाजन ने
सुलतान के स मुख आ सलाम कया। फर मािनकच द शाह ने तिनक आगे बढ़कर कहा,
‘‘ जूर, आप िवजयी बादशाह है, आपक ताकत का अ त नह । हम महाजन लोग
आपसे अज़ करने आए ह, मानना न मानना जूर के हाथ म है, हम लोग तो मािलक के
सामने अज ही कर सकते ह।
सुलतान ने कहा, ‘‘तु हारी अज़ या है महाजनो।’’
मािनकच द शाह ने िसर झुकाकर कहा, ‘‘खुदाव द, आप अ छी तरह जानते है
क इन अभागे कै दय का कोई कसूर नह है। य द इनस से कसी ने अपने बचाव के
िलए कोई हरकत क हो, तो वह याय, इ साफ क दृि से मा के यो य है। फर इनम
गरीब-बेबस औरत, लड़ कयाँ, नगर-िनवासी लोग ह। इ ह ने तो आपका सामना कया
नह । फर, उ ह ने ब त बेआब ई और क उठाए ह, ये लोग सब गरीब जाजन ह, ये
न शूरवीर ह, न िसपाही। इसिलए नेकनाम सुलतान, आप उ ह माफ करके उ ह छोड़
दीिजए।’’
अमीर ने कहा, ‘‘महाजनो, ये गुनहगार कै दी का फर ह, इ ह मारने म सवाब
होता है, फर इ ह ने हमारी फौज का सामना कया है। हमारे आदिमय को इजा
प च ँ ाई है। इसिलए हमने शरह क से इ ह क ल करने और बेच डालने का म
दया है।’’
सेठ ने न ता से कहा, ‘‘आलीजाह, मािलक य द रै यत को मारे तो फर उसका
बचाने वाला कौन है? आपके एक वचन से हज़ार के ाण बचगे, यह भी बड़ा भारी
लाभ है।’’
‘‘ले कन िबना जुमाना कै दी नह छोड़े जा सकते।’’
‘‘खुदाव द, गरीब कै दी कहाँ से जुमाना अदा करगे? उनके पास खाने-पीने का
भी ठकाना नह । वे तो पहले ही लुटे-िपटे बैठे ह। फर जूर, उनका अपराध भी तो
कु छ नह है। तो भी आपका इरादा द ड लेने ही का है, तो दए िबना छु टकारा नह है,
तब कृ पा कर नाममा का द ड लेकर उ ह छोड़ दीिजए।’’
अ दुल अ बास ने च ड शमा का इशारा पाकर कहा, ‘‘महाजनो, तुम थ
समय बरबाद न करो, सवा लाख सोने क मुहर जूर सुलतान क िखदमत म पेश करो
तो गुनहगार को माफ िमल सकती है।’’
नगरसेठ ने ब त अनुनय-िवनय कया। पर सुलतान ने एक न सुनी। िववश
महाजन ने मुहर क थैिलयाँ सुलतान के सामने रख द । मुहर को िगनकर अ दुल
अ बास ने माफ का परवाना िलखकर उस पर सुलतान क मुहर लगाकर नगरसेठ के
हाथ म दे दया।
महाजन ने हाथ उठा-उठा कर सुलतान को ब त-ब त ध यवाद-आशीवाद
दया और वे अब एक ण का भी समय न न कर दौड़ते ए मािनक चौक क ओर
चले, जहाँ अभागे कै दय के भा य का फै सला होने वाला था।
मािनक चौक म
अनिह ल प न के मािनक चौक म आदिमय के ठठ टू टे पड़ते थे। चार ओर से
लोग दौड़े चले आ रहे थे। आज अभागे कै दय को क ल और भेड़-बकरी क भाँित
नीलाम कया जाने वाला था। कै दय को मजबूत रि सय म बाँध, पठान िसपािहय ने
घेर रखा था। िजन कै दय का िसर काटा जाने वाला था, वे सबसे पृथक् पीठ-पीछे
हाथ-बाँधे दो-दो क कतार म खड़े थे।
कै दय क दुदशा देख-देख कर सह ाविध नाग रक क आँख से चौधार आँसू
बह रहे थे। इस समय कै दय क दशा वणनातीत थी। इनम सैकड़ सरदार, से ठया,
सैकड़ ि याँ और कशोर अव था क युवक-युवितयां थे। इनम ब त-से छाती कू ट-
कू टकर रो रहे थे। अठवाड़ से ये अंध कारागार म ब द थे। महीन से इ ह भर-पेट
भोजन और न द-भर सोना नह िमला था। नहाने-धोने क तो बात या है। वह जीते-
जी नरक का दुख भोग रहे थे। पु ष क दाढ़ी बढ़कर और मैल-िम ी लगकर उनक
सूरत भूत के समान बन गई थी। महीन से उ ह ने व नह बदले थे। उनके सगे-
स ब धी जो दूर देश से उनके साथ ही साथ उ ह छु ड़ाने क खटपट म बड़े-बड़े दु:ख
सहकर िगरते-पड़ते आए थे, इस भीड़ म भटकते-रोते और िजस-ितस क खुशामद करते
फर रहे थे। ब त पि याँ पित को, ब त माताएँ पु को, ब त पु िपता-माता को,
ब त भाई-भाई को ढू ंढ़ते फर रहे थे। पृ वी पर उनक सुनने वाला, उस संकट से उ ह
उबारने वाला कोई न था। उनका क ण-क दन सुन-सुनकर बड़े-बड़े दृढ़ िच वाल का
कलेजा दहल जाता था।
िजन कै दय को ाणद ड िमलने वाला था, उनक दशा और भी खराब हो
रही थी। अकारण इतने िनद ष ी–पु ष का इस कार हनन होने क क पना से उस
दन गुजरात क राजधानी आँसु से नहा रही थी। बाज़ार-कारबार सब ब द थे। एक
भी घर म चू हा नह जला था। य मृ यु को मू तमान देखकर ाणद ड पाए ए
कै दी थर-थर काँप रहे थे। वे जानते थे, कोई घड़ी के मेहमान ह। यम के समान ज लाद
सुख पोशाक पहने, भारी तेगा हाथ म िलए, म के इ तजार म खड़े थे। कु छ कै दी
धीरज धर के भगवान का मरण कर आँख ब द करके बैठ गए थे।
ाण-द ड का समय हो गया। सरदार ने आगे बढ़कर सुलतान का म उ
वर से सुनाया–
“ बदब त कै दय , तुमने शाहे-जलाल सुलतान महमूद के मुकाबले तलवार
उठाई, और िजहाद के िसपािहय का मुकाबला कया। तुम का फर हो, अब सुलतान के
म पर तु हारा िसर काटा जाता है, िजससे तुम अपनी करनी का फल भोगो और
ताकयामत दोज़ख क आग म जलो।’’
यह मृ यु-घोषणा सुनकर अनेक कै दी ज़ोर-ज़ोर से राम, राम, िशव, िशव
पुकारने लगे, अनेक हँसने और अनेक रोने लगे।
अब भी नगर-िनवािसय क आशा सेठ क ओर थी, जो सुलतान के पास
बि दय को छु ड़ाने गए थे।
दो-दो कै दी पांत म बैठाए गए। और दो-दो ज लाद तलवार नंगी करके उनके
िसर पर खड़े ए। नगर-िनवासी काँपते ए इस भयानक दृ य को आँख फाड़-फाड़ कर
देखने लगे। ब त-से िच ला-िच ला कर इधर-उधर भागने लगे। देर हो रही थी, पर एक
तुक सरदार ललकार कर अिधकारी को रोक रहा था। उसके हाथ म सुलतान क
तलवार थी। वह कह रहा था, ‘‘अभी ठहरो, अमीर नामदार का आिखरी म आने
दो।’’ कहने क आव यकता नह , यह तुक िसपाही छ वेशी दामोदर महता थे।
इतने ही म सेठ क टोली दौड़ती ई आती दीख पड़ी। नगरसेठ ने दोन हाथ
उठाकर पुकारकर कहा, ‘‘ठहरो, ठहरो, भाइयो, तिनक ठहरो!’’
जैसे सूखे पर वषा िगरे , सबने आशा और स देह से देखा। ज लाद क तलवार
क गई। नगरसेठ ने सब बि दय क माफ का परवाना, झपट कर अिधकारी के हाथ म
दे दया । अिधकारी ने सुलतान का परवाना पढ़ा । कु छ देर उसे उलट-पलटकर देखा,
फर उसने उ वर म पुकार कर कहा–
‘‘गुनाहगारो, खुदा का शु मनाओ, आ दल-इ साफ सुलतान ने मेहरबानी
करके तुम सबको छोड़ दया। खबरदार, आज के बाद कभी शाहेजलाल सुलतान के
सामने हिथयार न उठाना।’’
एक अत कत-अकि पत आन द क कलका रयाँ हवा म भर ग , िजनके साथ
सुख के दन क िससका रयाँ भी थ । बात-क -बात म कै दय के ब धन खुल गए।
िबछड़े ए िपता-पु , पित-प ी गले िमले। यम क डाढ़ से छु टकारा िमला।
लोग हाथ उठा-उठाकर पागल क भाँित हँसने और रोने लगे। कै दी गुलाम-
गीरी और मौत के पंजे से इस कार छू टने पर भी जैसे िव ास न कर सके । ब त-से
पागल क भाँित नाचने-कू दने लगे।
अनिह ल-प न उस दन ब त त रहा। घर-घर म कै दय के स कार-सेवा
म िम ान-पकवान, व बंटते रहे। कै दय ने ान कर ौर करवाया, नये व पहने।
नगरसेठ मािनकशाह ने सब सेठ क ओर से अ -व -धन देकर उ ह अपने-अपने घर
भेजा।
के वल तीन ऐसे कै दी थे, जो कै द से छु ी पाकर भी घर नह गए। वे अपने तन-
बदन क सुध-बुध भूलकर दीन ी-पु ष कै दय क सेवा-सु ूषा और व था म हाथ
बंटाते रहे। ये तीन कै दी कं चनलता, देवच और पूनमच द थे। वृ मोतीच द शाह
उस भीड़-भाड़ म पु को ढू ंढ़ते फर रहे थे। अ त म िपता-पु िमल गए। तीन ने सेठ के
चरण म म तक झुका दया और सेठ ने उ ह छाती से लगाकर मन का संताप दूर
कया।
चौलारानी
नव कसलय-कोमल,कमल- कशोरी प-कौमुदी क मूत ितमा चौलारानी
आज अपने कोमल लाल चरण ऊबड़-खाबड़ भूिम पर रखती, ठोकर खाती, अंधकार म
राह टटोलती भा य-दोष से उस अंधेरे भूगभ-माग म िनराशा के अंधकार म डू बती-
उतराती ◌ाकारमडू बती–उतराती चली जा रही थी। आज न उसका कोई र क था, न
सहायक। नंगी तलवार उसक कोमल कलाई पर भार थी और उ फु ल अरिव द के
समान उसके ने रोते-रोते फू ल गए थे। काले घंघुराले बाल, िजनम कभी मोती गूंथे
जाते थे, धूल म भरकर उलझ गए थे। और नीलमिण क कं ठी से कभी का सुशोिभत कं ठ
धूल और ग दगी से मिलन हो रहा था। िब बाधर खे, मुख-च रा त-सा और
सुषमा का आगार उसका नवल गा एक सूखे झाड़-सा तीत हो रहा था।
वह साहस करके आगे बढ़ती ही चली गई। और जब वह सुरंग के उस पार
प चँ ी तो उसने देखा, उस वीरान जंगल म आदमी क परछाई भी नह थी। वह सुर ा
क अिभलािषणी थी। वहाँ पशु और उनसे भी अिधक दुदा त नर-पशु के आ मण से
वह शं कत थी। वह चाहती थी क शी उसे महाराज के साि य म प च ँ ने क कोई
राह िमल जाए। वह सीधी नदी के कनारे - कनारे चलती चली गई। भूख, यास और
थकान से वह बेदम हो रही थी। सामने ही िनमल नीर नदी म बह रहा था। पर उसने
उसक और आँख उठाकर भी नह देखा, वह सीधी बढ़ती चली गई।
पर तु उसे ब त अिधक नह चलना पड़ा। सामने अमराई के उस पार एक
छोटा-सा गाँव था। चौलारानी धीरे -धीरे आँचल म लाज समेटे गाँव क ओर चली।
उसने देखा, गाँव के छोर पर ही एक जीण िशवालय है, उसी के पास पुजारी का टू टा-सा
घर है। वह चुपचाप घर क देहरी पर जा खड़ी ई। वृ पुजारी ने भीतर से िनकलकर
कहा–
‘‘कौन हो तुम?’’
‘‘एक असहाय दुिखया ी ,ँ आप देवता के पुजारी ह, ा ण ह, या आप
आ य दगे?’’
“ ा णी हो?’’
‘‘न, ि य ।ँ ’’
ा ण सोच म पड़ गया। चौला ने कहा, ‘‘आपको क नह दूग ं ी। देव-सेवा का
मुझे अ यास है। म देव-सेवा क ं गी, भोजन के िलए भी धन मेरे पास है, आपको भार
नह होगा।’’ उसने पाँच वण-मु ा आँचल से िनकाल कर पुजारी के स मुख चरण म
रख द । पुजारी ने ण भर िवचार कया, एक बार उसके पीले सूखे मुँह को देखा, फर
वण-मु ाएँ हाथ म उठाकर कहा, ‘‘इ ह आँचल म बाँध लो बेटी। और कसी से कहना
मत, क तु हारे पास सोना है। घर म अके ली ा णी है। जवान बेटा अभी सोमतीथ म
देवापण हो गया, इससे उसका िमज़ाज ज़रा खराब हो गया है। बकझक ब त करती है,
सो उसका कु छ याल मत करना। आओ, भीतर आ जाओ। तुम कहाँ से आ रही हो?’’
‘‘ख भात से िपताजी।’’
‘‘वहाँ भी या ले छ प च ँ गया?’’
‘‘वहाँ सब कु छ हो चुका है िपताजी।’’
‘‘तु हारे घर या कोई है?’’
‘‘कह नह सकती। अभी तो आपक ही शरण ।ँ ’’
‘‘तो बेटी, ा ण के घर जो कु छ खा-सूखा देवा है, खाकर रहो।’’
‘‘ क तु माता को नह देख रही ।ँ ’’
‘‘बाहर गई है, आती होगी। तेरा मुँह सूख रहा है। तू भूखी है। थोड़ा दूध घर म
है, देता ,ँ पी।’’
इतना कहकर वृ ा ण त भाव से घर म घुस गए। चौला का िनषेध
उ ह ने नह माना, थोड़ा दूध लाकर िपला दया।
इसी समय गजन-तजन करती ा णी आ गई। यजमान के घर से वह थोड़ा
चावल माँग लाई थी। चौला को आँगन म बैठी देख ा ण से उसने तीखी होकर कहा,
‘‘यह मेरी सौत कौन आ गई?’’
चौला ने उठकर आँचल गले म डालकर ा णी के चरण छू कर कहा–
‘‘आपक पु ी –ँ दुिखया ी। आपक शरण आई ँ माताजी।’’
‘‘सो दूर रह, छू मत। कु वेला नहाना पड़ेगा। िनपूता न जाने कहाँ से कस जात-
कु जात को बटोर लाता है।’’ उसने घूरकर ा ण को देखा। ा ण उ र न देकर
खड़ाऊँ खड़खड़ाते बाहर चले गए। उ ह ने सोचा, दोन ि याँ वयं ही अपना स तुलन
ठीक कर लगी। कु छ देर बाद ा णी ने कहा, ‘‘कौन जात हो?’’
“ ि य।“
‘‘कहाँ से आई हो?’’
‘‘ख भात से।’’
‘‘अके ली?’’
‘‘ ले छ ने ख भात म कहर मचाया है माताजी, ाण लेकर आपक शरण म
आई ।ँ ’’
ा णी कु छ नरम ई। वह बड़बड़ाती ई चावल बीनने लगी। चौला ने कहा–
‘‘चावल म बीनती ,ँ आप चू हा सुलगाइए।’’
‘‘पानी भी तो नह है। म ही भर कर लाऊँगी। बूढ़ा तो कु छ करे गा नह ।’’
‘‘पानी म लाती ँ माँजी, कु आँ कहाँ है?’’
‘‘वहाँ अमराई म है। वह घड़ा है।’’
चौला घड़ा बगल म दबाकर जल भरने चली। ऐसे काम क वह अन य त थी।
पर तु चातुय और प र म, तथा शील एवं मृद ु वचन से उसने वृ ा पर मोिहनी डाल
दी।
भात तैयार होने पर ा णी ने कहा, ‘‘तू खा, भूखी होगी!’’
‘‘पहले देवता को भोग लगेगा, पीछे िपताजी और आप भोजन करगे, फर
आपका साद म लूँगी।’’
ा णी स तु हो गई। चौला ने घर क झाड़-बुहार से लेकर देव-सेवा तक सब
काम अपने हाथ म ले िलए। वह उस घर क एक सद या बन गई।
ा ण द पती उसे बेटी समझने लगे।
पर तु चौला रानी वहाँ आयु काटने तो आई न थी। उसे िजतना शी स भव
हो, महाराज भीमदेव क सेवा म आबू प च ँ ना था। वह अपने मन का अिभ ाय कै से
ा ण पर कट करे , यह िनणय नह कर पाती थी। वह अपना प रचय देना भी ठीक
नह समझती थी। ा ण उसक शालीनता सोचकर स देह करता था क यह अव य
कोई बड़े कु ल क ी है, पर तु ा णी के डर से वह उसपर कसी भाँित कृ पा नह कर
सकता था। ा णी य िप अपे ाकृ त उस पर सदय थी, पर तु अपने वभाव के
अनुसार वह सदैव खीझती रहती थी।
दन बीत रहे थे और पाटन के समाचार िवकृ त होकर उसके पास आ रहे थे।
उन समाचार का सार यही था, क पाटन म इ लामी रा य कायम हो गया है। अमीर
ने सब सेठ-सा कार का क ल कर दया है और गुजरात के राजा व लभदेव और
भीमदेव भाग गए ह। ये सब समाचार सुन-सुनकर चौला रानी ब त घबराती, कभी
िछपकर रोती। कभी उसका रोना ा ण पर कट हो जाता, कभी नह ।
पर तु एक दन ा ण ने उससे बात क । उसने कहा, ‘‘ल मी बेटी, तू अपने
मन क बात मुझसे कह; और यह भी बता क तू कौन है, और म तेरी या सहायता कर
सकता ?ँ ’’
चौला ने कहा, ‘‘य द आप कसी भाँित मुझे आबू प च ँ ा द, तो बड़ी कृ पा हो।
खच मेरे पास है।’’
‘‘आबू म कौन है।’’
‘‘मेरे पितदेव ह।’’
‘‘इतने दन बाहर रहने पर वे तुझे रखगे?’’
‘‘रखगे।’’
‘‘उनका नाम या है बेटी?’’
‘‘वह, वह चलकर बताऊँगी।’’ ा ण फर सोच म पड़ गया। उसने कहा,
‘‘ब त क ठन है बेटी, राह म पाटन है। वहाँ ले छ का रा य है, सुना है वहाँ ब -बेटी
क आन नह है। ले छ िजसे पाते ह, पकड़ कर ले जाते ह। म दुबल ा ण तेरी र ा
नह कर सकता।’’
पर तु चौला साहस कर चुक थी। उसने कहा, ‘‘िपताजी, म भेष बदल कर
पु ष-वेष म आपके साथ जाऊँगी। ा ण को कोई नह सताएगा। फर मेरे पास
तलवार है, आप िच ता न कर। ये दस मोहर ह। इ ह माताजी को दे दीिजए, वे स तु
हो जाएँगी। मेरे पास खच के यो य और भी मुहर ह।’’ अ तत: ा ण राज़ी हो गया।
सोना पाकर ा णी भी राज़ी हो गई। और एक दन खूब भोर म, सूय दय से थम ही
चौला ा ण कु मार का वेश बना, व म तलवार िछपा, यथास भव अपने प को
अप प कर वृ ा ण को संग लेकर घर से िनकल पड़ी।
राह-बाट म जो िमलता, वही पाटन क भयानक बात सुनाता। दोन िभ ा
मांगते, खाते, कभी चना-चबेना खाते, कभी ट ड़ सकते, गाँव-पर-गाँव पार करते
पाँव- यादे पाटन क ओर बढ़ने लगे।
ा ण ने कहा, “पाटन म मेरे एक स ब धी ह, वे राजवग पु ष ह। वे तुझे
सहायता दगे। म तुझे वहाँ तक ले चलता ।ँ फर आगे जैसी वह राय द, करना। इसी म
तेरा भला होगा।’’
चौला ने वीकार कया। वह पाटन क ओर य - य बढ़ने लगी, उसे तीत
होता था क वह बाघ के मुँह म जा रही है। पर तु उसने साहस नह छोड़ा।
अ त म वह ठीक उस दन पाटन म प च ँ ी, िजस दन ब दी मु कए गए थे
और पाटन म हष क लहर-लहरा रही थी। इस दन चौक -पहरे का भी िवशेष ब ध न
था। वृ ा ण ओर उसके युवा पु क ओर कसी ने ल य नह कया। गोधूिल वेला
म वे दोन लोटा, लकु टया और स ू क पोटली क धे पर रख च ड शमा के ार पर जा
खड़े ए।
ब त काल बाद च ड शमा अपने पुराने स ब धी को देखकर बड़े स ए।
उ ह ने दोन का वागत स कार कया। पर तु वे छ वेशी ा ण कु मार को बार बार
यान से देखने लगे। उ ह ने ने ही म पूछा, ‘‘यही या आपका पु है?’’
ा ण ने आँख म आँसू भरकर कहा, ‘‘मेरा पु तो सोमतीथ म ले छ का
भोग आ। यह युवक तो अपना प रचय वयं देगा। इसी को आपके पास लेकर आया ।ँ
अभी इसके आहार-िव ाम क व था कर दीिजए।’’
व थ होने पर चौला ने अपना इस कार प रचय दया, क म ख भात म
चौलारानी क प रचा रका थी। चौलारानी से मेरा ख भात क भगदड़ म साथ छू ट
गया, अब मुझ िवपत क मारी को इन ा ण देवता ने आ य दया।’’
यह समाचार सुनकर च ड शमा को आ य भी आ और स ता भी। उ ह ने
कहा, ‘‘तो या तु ह मालूम है क तु हारी सखी चौलारानी अपना सब कत भूल
ले छ के साथ आई है और राजरानी क भाँित रहती है?’’
चौला शोभना के जीिवत होने का संकेत पाकर ब त स ई। उसने कहा,
‘‘ या आप मुझे उसके पास कसी तरह प च ँ ा सकते ह।’’
‘‘यह मुि कल है। उसक सेवा म जो दािसयाँ िनयु ह, सभी मने िनयु क
ह। म तु ह उन दािसय के साथ भेज सकता ।ँ ’’
दूसरे दन भोर ही म चौला जल क भरी झारी क धे पर रख दासी के वेश म
शोभना के पास दरबारगढ़ के रं गमहल म जा प च ँ ी। देवी चौलारानी को अपने स मुख
पाकर शोभना आन द-िव वल हो गई। उसने सब दािसय को हटा दया और चौला से
िलपट गई। थम दोन ने अपनी-अपनी था सुनाई। चौला क सब बात सुनकर
शोभना ने कहा, ‘‘सखी, अब तुम अिवल ब यहाँ से आबू चली जाओ। और महाराज को
बल दो, िजससे गुजर भूिम का उ ार हो।’’
‘‘पर तु तुम?’’
‘‘मेरा मरना-जीना सब समान है। इससे जब इतना िवल ब हो गया है, तब
थोड़ा और सही। इस दुदा त पशु को मने पालतू बना िलया है। य िप मेरी भट उससे
ख भात ही म ई है, और अब वह फर मेरे स मुख नह आया है, पर सखी, मने अभी
उसे न छोड़ने का ही िन य कया है। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यह है क वह तु हारी
ओर से िब कु ल िनि त है। और यही समझता है क तुम ही इस पर कृ पादृि रखकर
उसका दया राज भोग रही हो।’’
‘‘पर तु सखी, यह खतरनाक खेल कब तक चलेगा?’’
‘‘जब सब लोग ाण क होली खेल रहे ह, तो यह भी उसी का एक भाग है।
अत: इस नाटक को अ त तक चलने दो और देखो, अ त म या प रणाम होता है।’’
और भी ब त-सी बात । और फर अपना-अपना कत ि थर करके दोन
सिखयाँ िवदा ।
इधर चौलारानी के दरबार गढ़ जाने के बाद ही छ वेशी दामो महता च ड
शमा के पास आए। च ड शमा ने चौला क सखी के पाटन म आने के सब समाचार
उनसे कहे। सुनकर शोभना से िमलने और चौलादेवी के मन क बात जानने क
उ सुकता से महता अधीर हो गए। वे वह क कर शोभना के लौटने क ती ा करने
लगे।
पर तु देखते ही ण भर म महता ने चौलारानी को पहचान िलया। महता
आन द से नाच उठे । उ ह ने आगे बढ़कर न तापूवक उ ह णाम कया। च ड शमा को
यह सुनकर, क चौलारानी यही ह, बड़ा आ य आ। शोभना ने अमीर को अ छे नाटक
म फं साया है,ै यह सुनकर यह पाटन का चाण य ब त हँसा। उसने शोभना क भू र-
भू र शंसा क । फर दोन कू टनीित ने िमलकर यही िनणय कया क जो कु छ हो
रहा है, वही ठीक है। अभी चौलादेवी च ड शमा के घर म गु वास कर और शोभना
देवी अपना अिभनय करती रह।
उसी ण महता ने आबू को गु स देश भेज दया क चौलादेवी के स ब ध म
िच ता करने क आव यकता नह है।
पाटन से थान
वस त क मनोरम ॠतु गुजरात पर छाई। र य गुजर भूिम िविवध लता-पु प
से भर गई। पु प क भीनी महक से वातावरण सुरिभत हो गया आम के वृ मौर से
लद गए। उनपर कोयल कू कने लगी। गुजरात क भूिम एक मनोहर वा टका क शोभा
धारण कर उठी। सघन-वन थली म िग रशृंग से िनकलती ई व छ जल क पहाड़ी
न दयाँ और िनझर टेढ़ी-सीधी भूिम पर सपाकार बहते अित शोभायमान तीत होने
लगे। िविवध रं ग के पि य के चहचहाने से विनत-सी गुजर भूिम वग क सुषमा
दखाने लगी। गत िवपि को भूल लोग िविवध रं ग के व ाभूषण धारण कर फाग का
आन द लेने लगे।
अनिह लप न के दरबारगढ़ म सुलतान महमूद िन य सायं- ातः दो दरबार
करने लगा। दरबार म छोटे-बड़े राव-रं क येक को आने क छू ट थी। दरबार म महमूद
वण- संहासन पर तड़क-भड़क से अपने वज़ीर और िव ान से िघरा आ बैठता और
िविवध रास-रं ग और राजकाज क बात चलाता।
चैत और वैशाख बीत गया। एक दन महमूद के दरबार म चचा चली। िस
िव ान अलब नी ने कहा, ‘‘खुदाव द, यह मु क गुजरात तो बिह त-सा लगता है, यह
िह द का बाग मश र है। गुजरात म क ा सोना उगता है, ऐसा यह लोग कहते ह। यहाँ
के लोग खुशहाल और बुि मान ह, वे बड़े ठाठ और मौज-शौक से रहते ह। यह एक
अजब बात है क खुदा ने मू तपूजक का फर को ऐसा सरस ज़ और ज़रखेज़ मु क
दया। य न इसे इ लामी स तनत का पाये-त त बनाया जाए!’’
वज़ीर अ दुल हसन ने कहा, ‘‘यही य ? या जूर ने गोलकु डा क बाबत
नह सुना, िजसे जवाहर-भरा मु क कहते ह। जहाँ क जमीन म कं कड़-प थर क जगह
हीरे भरे ए ह। गोलकु डा म मील क ल बाई तक हीर क खान फै ली ई ह। ज़मीन
के पेट म इस कदर जवाहर भरा है क एक पीढ़ी म िनकाला नह जा सकता।’’
अलब नी ने कहा, ‘‘ फर संहल ीप है, जो वहाँ से कु छ ही फासले पर है, और
उस पर बआसानी दखल कया जा सकता है। जहाँ के द रया म दुिनया भर से अ छे
और बेशुमार मोती िनकलते ह।’’
महमूद ने अपने िव ान मि य से यह वातालाप सुनकर मन म अनेक बात
का िवचार कया। उसके मुँह म लालच का पानी भर आया।
अलब नी ने सुलतान का ख देखकर फर कहा, ‘‘अगर गुजरात को पायत त
बनाकर एक जहाज़ी का फला कसी बहादुर जांिनसार क मातहती म संहल भेजा
जाए,साथ ही गोलकु डा पर फौजकशी क जाए तो जूर दुिनया के सबसे बड़े
बादशाह के तबे को प च ँ सकते ह। साथ ही अनिगनत दीनदार का भला हो सकता
है। इसके अलावा मु क से कु दूर होकर दीने-इलाही का ज़ र होगा।’’
वज़ीर ने कहा, ‘‘खुदाव द, इस मु क म व पर बरसात होती है, व पर धान
पकता है। गम म यादा गम नह और सद म यादा सद नह , मनपस द मेवा, फल
और तरका रयाँ उगती ह। दुिनया म ऐसा मु क और कौन-सा है?’’
पर तु महमूद के सेनापित इस राय के िवरोधी थे। वे राजनीित क ग भीरता से
अ ान थे, वे िसपािहय क बेचैनी से भी प रिचत थे, जो अपने बाल-ब से दूर िवदेश
म आकर अब घर लौटने को उ सुक हो रहे थे। उ ह ने कहा–
‘‘शाहेव , आिलम क राय के बीच िसपाही को बोलना मुनािसब नह । मगर
ज़ूर, अपने मु क को सूना छोड़कर दौलत के लालच म परदेश म धँस जाना खतरे से
खाली नह है। मु क म अपनी स तनत है, अपना अमल है। वहाँ अपना कबीला है,
िबरादरी है। उनसे दूर रहकर दु मन के इस मु क म जहाँ कदम-कदम पर कावट ह,
फं सना गुलाम को ठीक नह जँचता। िबलफज, ज़ूर गोलकु डा या संहल पर फौजकशी
कर तो िबला शक और शुबाह यह तय है क एक बेड़ा हिथयारब द जहाज़ क िसरे ब दी
करने म ही जूर का सारा खज़ाना ख म हो जाएगा। जूर को यह भी न भूलना चािहए
क अज़मेर और सोमनाथ क जंग म हमारे काफ िसपाही मारे गए ह और िसपाही
इतने दन घर से दूर रहने से बे दल और उतावले हो रहे ह। हम न उ ह त क न दे सकते
ह, न उस कमी को पूरी कर सकते ह, जो इन लड़ाइय म हमारी ई है। उधर दु मन
चार ओर से पेशबि दयाँ कर रहे ह। जूर यह न समझ क भीमदेव चुप बैठा है, वह
तमाम मु क म जंग क आग सुलगा रहा है, और सब राजा को इक ा कर रहा है,
ता क हमारी वापसी क राह रोक ली जाए। और हम घेरकर जेर कर दया जाए। ऐसी
हालत म हम, आप इन दु मन से बेखबर होकर नई फौजकशी कर और खुदा ना खा ता
हम नाकामयाबी हो तो जो नाम और शोहरत हमने पाई है, धूल म िमल जाएगी। साथ
ही अपने मु क को हमम से एक भी आदमी िज़ दा न लौटने पाएगा। इसिलए खुदाव द,
मेरी अरज़ तो यह है क िजतना ज द मुम कन हो, हम सब सोना, हीरा-मोती जर-
जवाहर लेकर अपने मु क को लौट चलना चािहए।’’
अपने बहादुर िसपहसालार क यह क मती सलाह सुनकर सुलतान सोच म पड़
गया। फतह मुह मद के अक मात् गायब हो जाने और मसऊद के रह यपूण ढंग से मारे
जाने के िच उसक आँख म घूम गए।
दन बीतते गए और चातुमास आ लगा। कसान खेत जोतने लगे। पर तु
आषाढ़- ावण का मास सूखा गया, एक बूंद जल नह िगरा। लोग घबरा गए। दु काल
क छाया उनके मुख पर प होने लगी। अ महँगा हो गया। गरीब भूख मरने लगे।
ीम त ने सदा त खोल दए। पर तु एक मास बाद तो दु काल चार ओर मुँह फाड़कर
मनु य का ास करने लगा। समूचे गुजरात म अकाल फै ल गया। सुलतान ने अपनी
फौज के िलए ब त-सा अ अपने क जे म कर िलया। देखते-ही-देखते हज़ार ही मनु य
‘ हा-अ , हा अ !’ कहके मरने लगे। गाँव-देहात म लूट-खसोट मच गई। लोग खा -
अखा सब खा-खाकर पटापट मरने लगे। बालक भूख के मारे माता-िपता के सामने
रोते-रोते बेहोश होकर मर गए। ब त माता-िपता प थर का कलेजा कर अपने ब को
असहाय छोड़कर भाग गए।
वषा के िलए िविवध उपाय काम म लाए जाने लगे। िशव-मि दर म धूमधाम
से घ टा बजाकर आराधना ार भ हो गई। ा णभोज होने लगे। जगह-जगह क तन
कए जाने लगे। ा ण ने य , अनु ान, त,उपवास कए, पर वषा न होनी थी, न
ई। ावण क भाँित भा पद भी सूखा गया। जंगल क घास भी सूख गई।
अभ याभ य खाने से नगर-गाँव म हैज़ा फू ट िनकला। लोग पटापट मरने लगे।
हैजे क छू त महमूद क सेना म भी प च ँ ी। सैकड़ सैिनक िन य मरने लगे। सेना म
घबराहट और िव ोह के िच न फै ल गए।
लोग म आम-तौर पर यह बात फै ल गई क यह सब भगवान् सोमे र का कोप
है। लोग जगह-जगह कहने लगे क भगवती ि पुर सु दरी ने काली-कपाली आ द
भैरिवय को भेजा है। वे नर-र से ख पर भर-भरकर भगवती ि पुर सु दरी को तथा
नर मु डमाल भगवान् सोमे र को अपण कर रही ह। काली-कपाली और जोिगिनय के
कोप क शाि त के भी अनेक उपाय कए जाने लगे। घर-घर खीरवाकड़ा के नैवे होने
लगे। चौक बाजार म ि याँ उतारा उतार कर रखने लग । ार पर नीम के प के
तोरण बांधे जाने लगे, देव-मि दर म धूप-दीप, होम-हवन होने लगे। नगर के चार ओर
दूध क धार दी गई — पर तु महामारी का िवकराल प तो और भी िवकराल होता
गया।
नगर के भंिगय ने भंगी टोले म महाकाली को स करने के िलए अलग
टोटका कया। एक काला कु ा मारकर भ हरा म लटका दया। फर सब लोग नंग-
धड़ंग हो शराब पी-कर नाचने-गाने लगे। भूपा लोग िस दूर माथे पर लपेट म -पाठ
करके उड़द िबखेरने लगे। धूम-धड़ाके क भी खूब भरमार ई। पर तु महामारी ने सबसे
अिधक भंिगय को ही समेटा। उ ह ने उड़द का पुतला म पूत कर दुलभ सरोवर म
डाल दया था, इससे हज़ार लोग कु हो-होकर और ला ठयाँ ले-लेकर भंिगय पर
कहर बरसाने लगे।
इन सब कारण से तथा फौज क बढ़ती ई िव ोह-भावना से भयभीत होकर
महमूद ने ज द-से-ज द गज़नी लौटने का िवचार कया। उसने एक आम दरबार क
घोषणा क । दरबार म नगर के सब महाजन और धान पु ष को भी बुलाया गया।
सबके स मुख सुलतान ने यह रखा क गुजरात का रा य कसे स पा जाए? महमूद
ने प रीित पर यह घोिषत कर दया क वह चामु डराय के कसी भी वंशज को रा य
स पने को राज़ी है, बशत क वह रा यािधकारी सुलतान को अपना अिधपित वीकार
करे और िनयिमत प से िखराज़ गज़नी भेजता रहे।
दरबार म दुलभदेव और व लभदेव दोन ही के ितिनिध उपि थत थे।
महाराज चामु डराय तो राजपाट का सब मोह याग ेत तीथ म जा परलोक-िच तन
म म थे। दुलभदेव िस पुरे म भगवा व पहन सं यासी बन बैठे थे। व लभदेव और
भीमदेव छ भाव से अब अबुद, ना दौल और आसपास के राजा क सै य एक
कर महमूद क राह रोके अबुद क घा टय म चाक-चौब द बैठे थे।
दुलभदेव के चर ने सुलतान के मि य और सलाहकार को घूस देकर अपने
प म कर िलया था। उ ह ने कहा–
‘‘रा य के अिधकारी और रा य करने यो य के वल दुलभदेव ह, वह सुलतान के
िम ह और खुशी से सुलतान नामदार को, िजतना सुलतान कहगे, िखराज दगे और
अ त तक आप ही क आ ा के अधीन रहगे।’’ उ ह ने उस कौल-करार क भी
याद दहानी क , जो सुलतान और दुलभदेव के बीच हो चुके थे। पर तु व लभदेव के
िहमायितय ने कहा–
‘‘व लभदेव पाटवी कुं वर है, ग ी पर उ ह का हक है, जा उनसे स तु है।
वह िववेक , यायी और वीर पु ष ह। उ ह ही गुजरात का राजा होना चािहए।’’
वज़ीर ने कहा, ‘‘ले कन उसने सोमनाथ क लड़ाई म हमारा सामना कया,
अभी तक वह भीम के साथ िमलकर सुलतान के िखलाफ फौजकशी कर रहा है। वह
अभी तक माफ माँगने को सुलतान क िखदमत म हािजर नह आ। रा य पर अपना
हक भी कट नह कया। इसिलए यह ग ी उसे नह स पी जा सकती।’’
सुलतान ने सब तक सुनकर म दया। दोन म आज से जो सात दन के
भीतर आकर हमारे जूर म सलाम करे , यादा से यादा िखराज़ दे, और जो शत तय
ह उनका पालन करे , उसी को ग ी स प दी जाएगी। नह तो सात दन बाद गुजरात म
इ लामी रा य क थापना हो जाएगी।’’
इतना कहकर सुलतान ने दरबार ख म कया। दोन ही प के समथक अपनी-
अपनी खटपट म दौड़ने लगे। दोन रा यािधका रय को शाही खरीते भेज दए गए।
महाराज व लभदेव ने उ र दया–
‘‘म ि य ,ँ गुजरात क ग ी पर मेरा अिधकार है, उसे म देश और धम के
परम श ु गज़नी के महमूद से भीख माँगकर नह , उसके िसर पर यह तलवार मारकर
लूँगा।’’
दुलभदेव ने सुना और झटपट फक री बाना उतार कर राजक य ठाठ से आकर
सुलतान क हािज़री बजाई। नज़र गुजारी और अपनी कमर से तलवार खोल, घोड़े के
मुँह म दे, हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।
उसके इस आचरण से सुलतान स तु हो गया। अपने हाथ से तलवार उसक
कमर म बाँधी, आदर से बैठाया। सब शत तय हो ग । सुलतान ने उसे गुजरात का
राजािधराज वीकार कर िलया।
दूसरे ही दन अनिहलप न म धूमधाम से दुलभदेव का रा यािभषेक आ।
गुजरात म उसके नाम क दुहाई फे र दी गई।च ड शमा महाम ी के पद पर अिभिष
ए।
पर तु जा ने कोई उ सव नह मनाया। खा-सूखा रा यािभषेक करा, होम-
हवन, पूजा-पाठ क रीित पूरी कर वण-दि णा ले ा ण अपने घर गए। महमूद ने
मनचाहा नज़राना ले, लूटा आ माल-खज़ाना दो सौ हािथय पर लाद लाव-ल कर के
साथ पाटन से थान कया।
कं थ कोट क ओर
पाटन से नल कोट तक, और आबू से झालौर तक राजपूत क एक लाख
तलवार महमूद के वागत के िलए उतावली हो रही ह, जब महमूद ने यह सुना तो
उसका चेहरा भय से पीला पड़ गया। इतनी बड़ी सेना का सामना करने का साहस अब
महमूद क सेना म न था। उसक सेना म अनेक कार के वहम और स देह घर कर गए
थे। वे अब वैसे भूखे भेिड़ये न थे, जैसे गज़नी के पहाड़ी इलाक से िशकार क टोह म
िनकले थे। इस बार उनक ज़ीन म सोना, मोती, और हीरा-मुहर ठसाठस भरे पड़े थे।
और अब उनका मन यु म नह , अपने घर जाकर मौज-मज़ा करने म लगा था। घर
छोड़े उ ह ब त दन हो चुके थे, वे अब पीछे लौटने को उ सुक थे। अब वे यु का खतरा
नह उठाना चाहते थे।
पर तु घर तो अभी ब त दूर था और तलवार क धार पर पैर रखकर ही वे
लौट सकते थे। अमीर के पास भी अतोल खज़ाना था। उसक र ा का ब त
मह वपूण हो उठा था। उसके िलए वह अधीर हो उठा। फर शोभना के ेम ने उसे
िवगिलत कर दया था।और अब वह दुदा त यो ा नह –आकु ल- ाकु ल िमलन-आतुर
ेमी था। िजतने भी ण बीतते थे, उसके िलए भारी थे। वह ज द-से-ज द भारत क
सीमा को पार कर ेयसी का ेम- साद पाकर ध य आ चाहता था।
इतनी बड़ी सेना से लोहा लेना आ मघात ही था। इसिलए उसने राजपूत क
तलवार से बचने के िलए िस ध क राह पकड़ना ेय कर समझा और क थ कोट क
ओर बाग मोड़ी। भ भर प च ँ कर उसने अपने िव त ममलूक यो ा क संर ता म
खज़ाने के हािथय को इ लाम कोट क ओर आगे रवाना कर दया और आप सारा
लाव-ल कर िलए धीरे -धीरे िस ध म घुसा। छ वेशी दामो महता इसी ताक म थे। इसी
ण तिड़त्-वेग से उनक सांड़िनयाँ चार दशा को छू ट ।
अभी अमीर क थ कोट प च ँ भी नह पाया था, क उसको सूचना िमली क
भीनमाल से अमरकोट तक राजपूत क तलवार छा रही ह। अजमेर के नए चौहान
राजा महाराजा वीसलदेव अपने चाचा ढु ि ढराज के साथ पीलू के मैदान म उसक राह
रोके साठ हज़ार यो ा के साथ महमूद के र से अपने िपता धमगजदेव का तपण
करने को स खड़े ह–सुनकर अमीर दाढ़ी न चने लगा और उसका िसर घूम गया।
आज उसे सोमतीथ का िवजेता फतह मुह मद और त ण मसऊद याद आ रहे थे। उसने
देखा, मेरा सारा ही खज़ाना श ु क डाढ़ म चला गया। एक ओर से महाराज वीसलदेव
और दूसरी ओर से सांभरपित दुि ढराज धीरे -धीरे अमीर का माल-खज़ाना लादे ई
गज-सै य को दबोचते इ लाम कोट क ओर बढ़ रहे थे। इस कार अमीर और उसके
खज़ाने के बीच एक दीवार खड़ी हो गई थी। इसी समय उसे यह दु:खद समाचार भी
िमला, क महाराज भीमदेव अमीर क पीठ पर दबाव डालते ए भीनमाल से आगे बढ़
रहे ह। अब तो अमीर को चार ओर से मृ यु, मुँह बाए उसे समूचा िनगल जाने को
िवकराल प धारण कए िनकट आती दीख पड़ी। अब यही नह क इतने य से लूटा
आ उसका सारा माल-खज़ाना िछन जाने का भय था, उसका तो सवनाश ही
समुपि थत था। वह पागल क भाँित अपने खेमे म बफरे बाघ क भाँित घूम रहा था।
उसके वज़ीर-सेनापित सब िन पाय थे। अब उसके सामने एक ही राह थी, क वह क छ
के अगम महा-रन म घुसने क जोिखम उठाए। पर तु इस अगम रन को वह पार कै से
करे गा? उसके पास साधन कहाँ ह? ऊँट कहाँ ह? पानी कहाँ है? पथ- दशक कहाँ ह? वह
कसका िव ास करे ? कसका आसरा तके ? कहाँ जाए? आज तो खुदा के ब दे महमूद
को खुदा भी राह नह दखा रहा था। उसके सेनापितय ने लड़ने से साफ इ कार कर
दया था। िन पाय अपने सब धन-र से िनराश हो, वह पीछे भ भर क ओर मुड़ा।
क छ के महारन म घुसने को छोड़ उसका कसी तरह िन तार न था।
बाग मोड़ने के समय उसने शोभना से कहलाया, ‘‘खुदा का ब दा महमूद
दौराने-ग दश म है, वह आपको आज़ाद करता है, आप जहाँ जी चाहे, चली जाएँ —
अ बास अपने पाँच सौ सवार के साथ आपक रकाब के साथ है।’’
पर तु शोभना ने जवाब दया, ‘‘यह रहाई नह , बेबसी है। म मंजूर नह कर
सकती। आपक इस मुसीबत म मेरा भी िह सा है। अमीर नामदार जब अपने उ ज
और तबे पर ह और इस बि दनी को रहाई देना चाह, तो उस समय देखा जाएगा।’’
शोभना के इस जवाब से महमूद इस िवपि म भी बाग़-बाग़ हो गया।
भायात क ट र
क छ म ब त-से भायात ठाकु र िगरासदार-जागीरदार थे। ये सब छोटे-छोटे
राजा थे और अपनी-अपनी रयासत का ब ध वयं करते थे, के वल गुजरे र को कर
देते और दरबार म आव यकता होने पर हािज़री बजाते थे। वे सभी सोमतीथ पर जूझे
थे। उनम अनेक वह खेत रहे थे, जो बचे थे वे, और जो खेत रहे, उनके उ रािधकारी,
इन सबने िमलकर, ख भात के उदाहरण से सावधान होकर अपना संयु संगठन
कया। सबने अपनी-अपनी सेना एक ही जगह एक क , और उसका अिधपित मांडवी
के ठाकु र को बना दया। जब अमीर पाटन के दरबार गढ़ म बैठ गया और गुजरात म
अपनी आन उसने फे र दी, तो इन भायात ने उसक आन नह मानी। न ये अमीर के
दरबार म गए। इ ह ने भीमदेव को सूचना भेज दी क इस बार य द अमीर ने क छ म
मुँह कया तो उसका तलवार से वागत कया जाएगा। वे यान से अमीर क गितिविध
को देखने लगे। अब, जब अमीर ने भ भर क ओर बाग मोड़ी तो भायात क सै य
चाक-चौब द हो आगे बढ़ी और उसने अदेसर म आकर उसका मुहाना रोक दया।
अब तो महमूद को लड़ने के िसवा कोई चारा न रह गया। उसके िलए तीन माग
थे — या तो वह भायात क सेना से स मुख यु करने का खतरा उठाए, या वह क छ
के छोटे रन म घुसे और उसे पार कर का ठयावाड़ मे जा िनकले — या वह महारन म
जाए। छोटे रन म घुसने का कोई अथ ही न था। वह उसके माग से िवपरीत दशा म था।
महारन के िवकराल गाल म जाने के अित र उसे दूसरी राह न थी, पर तु भायात क
तलवार का उ लंघन िबना कए वह न इधर बढ़ सकता था न उधर। िन पाय उसने
सेना को ूह-ब कया, और अिवल ब भायात पर धावा बोल दया। उसने अपने
तीन हज़ार मार वाले धनुधर और इतने ही बलूची घुड़सवार को दाएं-बाएं आ मण
करने क आ ा दी तथा दस हज़ार पदाितक को उसने स मुख मार करने को अ सर
कया। पर इस बार भा य उसके साथ न था। भायात ने लड़ते-लड़ते और िबखरते ए
पीछे हटना ार भ कया। अमीर ने इस कौशल पर यान नह दया। वह झटपट यु
का प रणाम देखना चाहता था। उसके बलूची सवार भायाती सै य को दबाते ही चले
गए। दािहनी ओर का मोचा हटते-हटते मील तक पहाड़ी उप यका म फै ल गया। और
अब वहाँ दो-दो चार-चार यो ा छु टपुट लड़ने लगे। वे पर पर स बि धत न रहे। अ त
म अमीर क यह सेना वह िघर गई। बा और क सेना को दबाव डालकर छोटे रन म
पेल दया गया। पदाितक पर िनदय तलवार क मार पड़ी। वह सेना िछ -िभ हो गई
और बौखलाकर महारन म घुस पड़ी। सेना क यह दुदशा देखकर अमीर ने शोभना देवी
को दो हज़ार सुरि त सवार क र ा म खादर क ओर बढ़ने क आ ा दे, शेष समूची
सेना ले भायात पर धंसारा कया। पर तु शी ही उसे अपनी इस ज दबाजी का
प रणाम भी दीख गया। अवसर पाकर बगल के पहाड़ी देश से िनकल-िनकलकर
ठाकु र ने अमीर क पीठ पर मार करनी ार भ कर दी। यह एक अनोखा और बेतुका
यु हो रहा था। स मुख सेना िबना लड़े-िभड़े भाग रही थी। और अमीर उसे अपनी
झ क म खदेड़े िलए जा रहा था। पर तु न जाने कहाँ से अनिगनत यो ा छोटे-छोटे
का ठयावाड़ी घोड़ पर िनकल-िनकलकर अमीर क पीठ पर घाव कर रहे थे। इस
कार से भायात क सै य उसे अंजौर तक धके लती चली गई। यहाँ उसक सेना अनेक
दल म िबखर गई और िघर गई। अब अंजौर म ि थत नई सेना ने धंसारा करके चार
ओर अमीर क सेना को घेरकर समेटना ार भ कर दया। सा ात् यम क डाढ़ म जाने
क अपे ा अमीर ने शौय दखाकर जूझ मरना ठीक समझा। उसने अपने साहसी
यो ा को ललकारा, पर तु प रणाम यही आ क के वल एक हज़ार सवार के दल के
साथ, वह भायात क सै य-पंि को भेदकर तीर क भाँित मा डवी तक चला गया।
अब वह िन य ही पथ- था — अपनी राह से सैकड़ कोस दूर। अपनी सेना
से दूर और अपने म त -ग त से दूर। अब उसके बचने क एक ही आशा थी, क कोई
छोटा-मोटा कला दुग उसके हाथ लग जाए तो वह उसम पनाह ले और फर अपनी
िबखरी ई सेना का संगठन करे । मांडवी पर उसने दृि डाली। पर मांडवी सर करना
उसके बूते क बात न थी। उसके साथ के वल एक हज़ार यो ा थे। उसने िन पाय हो
मु ा क राह पर अ छोड़ा। आशा और िनराशा के बीच उसका दय झूल रहा था।
उसने सुना था, मु ा म ठाकु र नह ह, महाजन का पंचायती रा य है। वहाँ का कला
समु -तट पर खूब दृढ़ है। इसी से वह तेज़ी के साथ मु ा क ओर चला।
मु ा म
अभी अ छी तरह सूय दय नह आ था। रात-भर पहरे -चौक पर सजग
पहरे दार ऊँघ रहे थे। इसी समय एक त ण धूल-भरे व और बदहवास चेहरे से पाँव-
पैदल मु ा के राजमाग पर दौड़ा आ रहा था।
ार पर आकर उसने उ ग े -भरे वर म पहरे दार से कहा, ‘‘भाई, थानेदार क
देहरी कधर है?’’
पहरे दार ने यान से आग तुक क ओर देखा। आग तुक के पास घोड़ा-ऊँट या
कोई हिथयार भी न था । उसने अिधक नह कया । सामने एक ऊँची अ ािलका क
ओर उँ गली उठा दी। आग तुक िबना एक ण के उसी ओर को चल पड़ा मु ा का
थानेदार अपनी देहरी के आगे एक पाटे पर बैठा दातून कर रहा था, आग तुक ने उसके
आगे प च ँ कर कहा–
‘‘मु ा के थानेदार से मुझे काम है।’’
‘‘कह, भाया, म ही थानेदार ।ँ या काम है?’’
‘‘गज़नी का अमीर मु ा क ओर दबादब आ रहा है?’’
थानेदार च का, उसने कहा, ‘‘ म तो नह आ?’’
‘‘कै सा म, अपनी आँख से देखकर आ रहा ।ँ भायात क सेना से उलझ रहा
है। उ ह ने उसे उसक धान सेना से पृथक् कर दया है, वह हज़ार-एक सवार के साथ
इधर ही भागा आ रहा है।’’
‘‘के वल एक हज़ार?’’
‘‘बस इतने ही। उसक सारी फौज भायात ने घेर ली है।’’
‘‘ठीक है, तुम ठहरो, खा-पीकर जाना, कहाँ के िनवासी हो?’’
‘‘मांडवी का ,ँ भायात उसे अंजौर तक धके ल लाए। उसी म उसका मु य सेना
से स ब ध छू ट गया, अब वह आ मर ा के िलए इधर आ रहा है!’’
समु के तट पर मु ा नगर एक अ छा ब दरगाह था। उसका कला दूर से
काले दै य के समान जल-थल के याि य को दखाई देता था।
थानेदार क दातून अधूरी रह गई। उसने अपनी िसरब दी के जमादार को
बुलाकर कहा, ‘‘शहर के सब दरवाजे बंद कर दो। और उनक र ा का पूरा इ तज़ाम
ठीक कर दो।’’
इसके बाद उसने व पहने। हिथयार से सि त आ और टेढ़े-ितरछे गली-
कू च को लांघता आ एक बड़ी अ ािलका म घुस गया।
अ ािलका नगर के मुख सेठ मेघजी क थी। सेठ भी अभी िन यकम से िनपट
रहा था। उसने कहा, ‘‘सेठ, गज़नी का सुलतान आ रहा है।’’
‘‘ या मु ा म?’’ सेठ ने आ य और आतंक से कहा।
“ हाँ,पर तु घबराने से काम नह चलेगा । जाओ तुम,महाजनो और
नगरिनवािसय को कह दो, ी-ब को कले म प च ँ ा द। और सब मद, अपने-अपने
हिथयार से सजकर नगरकोट पर चढ़ जाएँ। आज सभी को हिथयार लेना पड़ेगा।’’
सेठ ने कहा, ‘‘अभी एक ण म म चला।’’
थानेदार नगर- ार क ओर बढ़ा। वहाँ िसरब दी के सब िसपाही शहर के
दरवाजे ब द कर तीर-कमान और तलवार से लैस अमीर के स कार को स खड़े थे।
थानेदार एक वृ राजपूत था। वह ज म से क छी था। उसके मुख पर सफे द
गलमु छा और माथे पर सफे द पाग थी; कमर म क छी बागा, बागे पर ल बी तलवार,
और फटे म र खी कटार।
उसने कले क राग पर चढ़कर देखा। दूर धूल उड़ती आ रही है। देखते-ही
देखते सवार के हिथयार धूप म चमकने लगे। सबके आगे अरबी घोड़े पर सवार अमीर
महमूद था।
इसी बीच अपने-अपने तीर-कमान, प थर और तलवार, जो िजसके हाथ लगा,
िलए सैकड़ नगर-िनवासी कले क रांग पर चढ़ आए थे।
थानेदार ने कहा, ‘‘भाइयो, घबराना नह , और थ अपने तीर न मत
करना। अमीर भायात क सेना से ताड़ा आ मु ा के कले क शरण पाने आ रहा है।
उसके साथ के वल हजार िसपाही ह। आज उसक खैर नह है। य ही मेरा तीर छू टे, सब
एक साथ तीर छोड़ना — पहले कोई न छोड़े।’’
सबने थानेदार क बात गाँठ बाँध ली। हज़ार आदमी साँस रोककर समय क
ती ा करने लगे। सैकड़ तीर, धनुष पर चढ़े छू टने को तैयार थे।
अमीर क सेना िनकट आई और थानेदार का तीर सनसनाता छू टा। साथ ही
सैकड़ तीर क बौछार पड़ी।
अमीर क बढ़ती ई सेना क गई। तीर से बंधकर घोड़े हवा म उछलने और
िहनिहनाने लगे। सैिनक ची कार कर उठे ।
अमीर घोड़ा उछालता आगे बढ़ा। उसने तलवार ऊँची करके कहा, ‘‘म गज़नी
का सुलतान तु ह म देता ँ क दरवाजे़ खोल दो और कला हमारे ताबे करो।’’
‘‘ क तु यहाँ गज़नी के सुलतान का अमल नह है।’’ थानेदार ने हँसकर कहा।
‘‘ या तु ह मु ा के थानेदार हो?’’
‘‘नामदार अमीर ने ठीक पहचाना।’’
‘‘तो तु ह जानना चािहए क तमाम गुजरात पर हमारा अमल है और हम
गुजरात के बादशाह ह। दरवाज़े खोल दो, म तु ह क छ का रा य दूग ँ ा।’’
‘‘दरवाज़ा एक शत पर खोला जा सकता है।’’
‘‘वह या है?’’
‘‘यह क गुजरात के बादशाह सुलतान महमूद अके ले हिथयार रखकर शहर म
दािखल ह । फौज सब बाहर रहे।’’
‘‘सुलतान ने हाठ चबाए। ोध से गरजते ए उसने कहा, ‘‘म मु ा म एक भी
आदमी िज़ दा नह छोड़ूग ँ ा।’’
‘‘यह बात पीछे-देखी जाएगी। अभी तो गज़नी के अमीर को अपनी जान क
खैर मनानी चािहए।’’
इसके साथ ही एक बाण अमीर क पगड़ी को उड़ाता आ दूर िनकल गया और
उसके साथ ही सैकड़ तीर उस पर बरस पड़े।
ोध म अधीर हो अमीर ने अपनी सेना को फाटक तोड़ने का आदेश दया,
सैकड़ सवार फाटक पर िपल पड़े, पर ऊपर से प थर, तीर और बछ क मार से मर-
मरकर वे ढेर होने लगे।
म या न काल आ गया। हवा म धूप और गम भर गई। मु ा के फाटक पर
दोन ओर ज़ोर-आज़माई हो रही थी। इसी समय दूर से धूल के बादल उमड़ते दीख पड़े।
अमीर ने भयभीत होकर इस नई िवपि को देखा, िजसका सामना करने क इस समय
उसम साम य न थी। उसने ज दी-ज दी आ मण से िवरत हो अपनी सेना को
वि थत कर पीछे बाग फे री। पीठ पर तीर के घाव खाते अमीर के सैिनक लौट चले।
पर तु यह सब थ था। उसक सेना को चार ओर से नए श ु क ढृ ढ़ टु कड़ी ने घेर
िलया। अमीर एक दुभ च के बीच फँ स गया।
चार ओर से मारता-काटता, वार करता यम के अवतार क भाँित घुड़सवार
का यह फु त ला दल अमीर को दलमल करने लगा। ये सवार का ठयावाड़ी मज़बूत
टट् टु पर सवार, फु त ले और अ भुत थे। वे चार ओर से घेरा समेटते-समेटते इस
कार िसमट गए क अमीर के सैिनक को िहलने-जुलने का भी थान न रहा।
इस दल का नायक एक ठगना, मज़बूत और तेज वी यो ा था। उसका रं ग
काला, आँख लाल, चेहरे पर रग भीगती । भुजद ड पर उछलती ई मछिलयाँ —
हाथ म र से भरी नंगी तलवार।
महमूद घोड़ा बढ़ाकर सामने आया। उसने ोध और दक से कहा–
‘‘तू कौन है?’’
‘‘म पारकर का तहार िमयाना ।ँ डाका मारना मेरा खानदानी पेशा है। तू
कौन है?’’
‘‘म गज़नी का सुलतान महमूद ।ँ ’’
‘‘तब तो बहार-ही-बहार है। गज़नी का सुलतान है, मने सुना है, महमूद के
आदमी खूब मज़बूत और घोड़े ब त ब ढ़या ह।’’
‘‘तूने मेरी राह य रोक है?’’
‘‘वाह, यह भी पूछने क बात है? यह तो मेरा पेशा है। हमारा भा य-जो तू
हमारे हाथ चढ़ गया। घोड़े हमारे काम आएँगे और तुझे और तेरे आदिमय को रन म
बेचकर अ छे दाम उठाऊँगा।’’
‘‘तू डाकू है? तुझे शम नह ?’’
‘‘अरे महमूद, हम तुम दोन डाकू ही ह। कल तेरा दांव था, आज मेरा है। तैने
दुिनया लूटी है। आज तू मेरे हाथ चढ़ा है। झट-पट ताबे हो आ। नाहक खून-खराबी न
कर।’’
‘‘तू या मुझे पकड़ना चाहता है?’’
‘‘बेशक, पर दाम चुकाया क छु ी।’’
‘‘ कतना दाम?’’
‘‘तीस लाख कोरी से कम नह । अके ले तेरे दाम। तेरे इस रे वड़ के अलग।’’
‘‘ कतने!’’
‘‘करोड़ कोरी।’’
अमीर का साँस क गया। गढ़ के कं गूर पर चढ़े सैिनक ठठाकर हँस पड़े।
तापी िवजयी सुलतान को जीवन म पराभव का यह पहला ही समय था। उसने
तलवार ऊँची कर ताहर पर एक भरपूर हाथ मारा। ताहर ने घोड़ा कु दाकर उछाल
भरी। उसने कहा, ‘‘बस कर, बेवकू फ, तू गज़नी का सुलतान है, और म क छ के रन का
राजा, तेरे ऊपर घाव नह क ँ गा, नाहक इन पहाड़ी बकर को मत कटा। या तो कोरी
भर, नह तो घोड़े से उतर।’’
इस समय अमीर के एक सरदार ने आगे बढ़कर तलवार से ताहर पर वार
कया। अनजाने म क धे म घाव खा गया। फर िबफरे ए बाघ क भाँित उछल कर
तलवार का एक तुला आ हाथ सरदार के िसर पर दया। तलवार पगड़ी को चीरती
ई, खोपड़ी के दो टू क करती ई छाती तक उतर गई। सरदार भूिम पर लोट गया।
अमीर ने उ वर से कहा, “ खून-खराबी क ज़ रत नह है, हम ताबे होते
ह।’’
वह घोड़े से वीर-दप से कू द पड़ा। ताहर ने कहा, ‘‘तू सवार रह और सब घोड़
से उतर पड़। अपने हिथयार भी रख द।’’ देखते-देखते अमीर के सब सैिनक घोड़ से
उतर पड़े और अपने हिथयार भी उ ह ने नीचे रख दए। दुदा त डाकू के सािथय ने
कोतल घोड़ क बाग मोड़ी, हिथयार घोड़ पर लादे और कै दय को घेरकर चल दए।
चलती बार ताहर ने दुग क रांग पर खड़े थानेदार को वालैकुम-सलाम कहा।’’
ताहर क गढ़ी म
अपने कै दय को लेकर ताहर डाकू तेज़ी से लौट चला। वह राज-माग छोड़
जंगल म घुसा। बीहड़ दुगम जंगल म भूख-े यासे गव ले बलूची सवार, अपने घोड़ और
हिथयार तथा िह दु तान क समूची कमाई गंवा,पशु क भाँित ब दी बने पांव- यादे
डाकु के साथ दौड़े चल रहे थे। जब उ ह ने िह दू ी-पु ष को रोते-क पते रि सय
से बाँधकर अपने घोड़ के साथ िनदयतापूवक घसीटा था, तब उ ह ने उनके दु:ख-दद
और दुभा य क क पना भी न क थी। पर अब आज इस समय उ ह अपनी गज़नी क
पहािड़य म ती ा करती ई पि य और ब क याद आ रही थी। वे अधीर हो रहे
थे।
जंगल के एक िव तृत मैदान म एक व छ पानी का सरोवर था। वहाँ
ह रयाली भी काफ थी। ताहर ने वह डेरा डाल दया। कई डाकू कमर खोल हाथ-मुँह
धोने और हवा खाने लगे । ब त-से डाकू घोड़ पर चढ़कर आस-पास के गाँव से भेड़-
बक रयाँ लूट लाए। बात-क -बात म पशु को काट-कू टकर वे खा गए। कै दय को भी
भोजन दया। ताहर ने महमूद को पास बैठाकर भोजन कराया और फर वे आगे को
चले। रात-भर वे चलते ही चले गए। दूसरे दन उजाड़ रे िग तान के ल ण दीख पड़ने
लगे। चार ओर बालू के टीले, थूहर और नागफनी के कांटेदार झाड़। बबूल और पीलू के
इ ा-दु ा पेड़। कह -कह पहाड़ी टीले और सूखी-नंगी च ान।
अ त म ताहर क गढ़ी आई। गढ़ी क ी िम ी क बनी थी। गढ़ी क दीवार
बारह हाथ चौड़ी थी। एक के बाद एक, इस कार उसके तीन परकोटे थे। ताहर ने
भीतर ले जाकर सब कै दय को पशु क भाँित एक बाड़े म ब द कर दया। और
महमूद के िलए एक उसारे पर चारपाई डालकर कहा, ‘‘बैठ महमूद। आराम कर।’’ और
गज़नी का सुलतान, अमीर महमूद, खुदा का ब दा, जगि जयी, चुपचाप चारपाई पर
बैठ गया। इसी समय ताहर ब त-से मकई के भु े गमागम भुने ए लेकर आया। और
कहा, ‘‘खा महमूद, एकदम ताज़ा ह।’’
वह खुद भी पास बैठकर भु े खाने लगा। महमूद क आंत भूख से िबलिबला
रही थ । भु े उसे अमृत क भाँित वा द लगे। खा चुकने पर उसने पानी के िलए
इधर-उधर देखा, अिभ ाय समझकर ताहर ने उँ गली से संकेत करके कहा, ‘‘वहाँ कु आँ
है, वह डोलची पड़ी है, ख चकर पी आ।’’ और जब अमीर डोलची ख च रहा था, उसके
जांिनसार तुक िसपाही और सरदार बाड़ म ब द भा य का यह खेल देख रहे थे।
भु े खाकर महमूद नीम क छांह म सो गया। थकावट ने उसक सब चंता
पर परदा डाल दया। भरपूर न द सोने के बाद उसका मन कु छ ह का आ। उसने ताहर
से बातचीत क ।
अमीर ने कहा, ‘‘ताहर, म खुदा का ब दा महमूद, वह क ग ँ ा जो मुझे कहना
चािहए। तेरी कै द म म खुश ँ — सब िज़ मेदा रय और पाबि दय से दूर। तेरे दए इन
भृ क म क मत अदा नह कर सकता।’’
‘‘तू महमूद, या अपना तावान कतई माफ कराना चाहता है? या कम कराना
चाहता है? या वह ब त यादा है?’’
‘‘ब त कम है।’’
‘‘तू या देना चाहता है?’’
‘‘वह तू सोच भी नह सकता।’’
‘‘तेरी कु छ आरजू है।’’
“ िसफ एक।’’
‘‘ या?’’
‘‘मेरी एक दौलत है, उसे ढू ंढ़कर ला।’’
‘‘कहाँ से?’’
‘‘यही कह , रन के इधर-उधर।”
‘‘ या ब त क मती है?’’
‘‘तेरा तावान हज़ार गुना महमूद दे सकता है, पर उस दौलत क क मत नह ।’’
‘‘उसका अता-पता?”
‘‘वह एक नाज़न है।’’
‘‘ओफ’’, ताहर खूब ज़ोर से ठहाका मारकर हँसा। उसने कहा, ‘‘वाह यार, खूब
दलफक है तू महमूद। मगर कह, कै सी है वह महबूबा?’’
‘‘लािमसाल है, सूरत म भी और सीरत म भी।’’
‘‘तो खुदा क कसम, म उसे अभी ढू ँढ़ लाऊँगा। ले कन इनाम या देगा?’’
‘‘अपनी सारी दौलत, बादशाहत, और तू माँगे तो जान भी।’’
“ तो तू इ मीनान रख, तेरी दौलत सूरज िनकलने से पहले ही तुझे िमल
जाएगी।”
और ताहर डाकू ने अपने सैकड़ डाकु को शोभना क खोज म भेज दया।’’
वाजा अ बास अपने ढाई हज़ार मु तैद सवार के साथ रन क बांक म पड़ा,
अमीर क ती ा कर रहा था। उसने ब त से गोइ दे अमीर क तलाश म भेज रखे थे।
ताहर के आदिमय ने शी ही उ ह पा िलया, और सूय दय से थम ही उ ह ताहर क
गढ़ी म ले आए। सवार को बाहर रख उ ह ने ताहर को सूचना दी। महमूद क अँगूठी
लेकर ताहर का आदमी बाहर गया और शोभना क सांड़नी को भीतर ले आया। बाक
सवार बाहर रहे।
शोभना को पाकर अमीर ने दोन हाथ उठाकर खुदा क ब दगी क , और कहा,
‘‘म महमूद, खुदा का ब दा, वही क ग ँ ा, जो मुझे कहना चािहए, म अपने करार का
प ा ।ँ और अपने हर एक िसपाही को म देता ँ क उनक ज़ीन म जो कु छ ज़र-
जवाहर हो, ताहर के कदम म ढेर कर दे। हर एक को गज़नी लौटने पर चार-गुना
िमलेगा।’’
देखते-ही-देखते ताहर के सामने हीरे , मोती, सोना और अश फय का ढेर लग
गया। महमूद ने अपने अंग से उतारकर क मती मोती और प े के क ठे , द तब द और
कमरब द ताहर के सामने रख दए। िसफ लाल क त बीह हाथ म रख ली, िजसक
क मत पचास लाख दीनार थी। यह देखकर शोभना ने भी अपने सब र ाभरण ताहर के
ऊपर फक दए। ताहर ने कहा–
‘‘तुमसे तावान नह लूँगा।’’
‘‘तावान नह , इनाम है।’’ शोभना ने रानी क ग रमा से कहा।
‘‘इनाम?’’ महमूद ने शोभना के आगे िसर झुकाया।
इतने हीरे -मोती ज़र-जवाहर का ढेर देखकर ताहर खुशी से नाचने लगा। उसने
कहा, ‘‘महमूद, यह तो सचमुच ब त यादा है। तू िजतना चाहे, वापस ले जा।’’
‘‘ले कन िजतना म देना चाहता था, उतना यह नह है।’’
‘‘तब तो तू सचमुच बादशाह है, ला, दो ती का हाथ दे।’’
महमूद ने अपना हाथ बढ़ाया। ताहर ने कहा, ‘‘अब मांग ले, दो ती के िसले म
जो चाहता है।’’
‘‘देना चाहता है तो मेरे आदिमय को घोड़े और हिथयार दे दे। उनक ज़ीन म
जो ज़र-जवाहर ह, उ ह बेशक ले ले।’’
‘‘ताहर राज़ी हो गया। अमीर जाने लगा तो ताहर ने सदल-बल उसको दावत
दी। नाच-रं ग कया। और अमीर महमूद अपनी दल बा शोभना देवी को सांड़नी पर
सुनहरी काम क जाली म बैठाकर सवार सिहत रन क ओर बढ़ा। ताहर से उसने
महारन के स ब ध म ब त बात पूछ और पथ- दशक साथ ले कू च बोल दया।
क छ का महारन
इस रन म रे त-ही-रे त है। तीन सौ मील के िव तृत मैदान म न एक झाड़, न
पानी का ठकाना। लाल-लाल रे त के पवत, जो आँधी के थपेड़ के साथ कभी इधर और
कभी उधर अ भुत और नये-नये दृ य उपि थत करते ह। रह-रहकर रे त के भयानक
तूफान आते ह, और आग क भाँित जलती ई रे ती क च ान, इधर-उधर घूमती लय
का दृ य उपि थत करती है। उनके बीच मनु य, हाथी, घोड़ा, पशु-प ी जो आता है,
उसी क समािध लग जाती है। जो कोई जीिवत मनु य इन रे तीले तूफान के थपेड़ म
िघरता है, उसे इस रे त म जीिवत समािध ही लेनी पड़ती है। दन म सघन अ धकार छा
जाता है।
रन के म य थल म रणथ भी माता का मि दर था। यह मि दर एक टेकड़ी पर
था। क छ-का ठयावाड़ के ब त ालु जन रणथ भी माता क आन मानते और यहाँ
आते थे। यह थान रन म एकमा हरा-भरा थान था। क छ के कनारे से यह तीसरे
पड़ाव पर था। यहाँ तक का माग उतना िवकट नह था। राह म एकाध झाड़ दीख जाता
था, कह पानी भी िमलता था। इस टेकड़ी पर एक पुराना मि दर, दो-तीन टू टी-फू टी
झ पिड़याँ और पाँच-सात जंगली वृ थे। एक तालाब था िजसम वषा ॠतु का जल
एक होता था। जल दूिषत था, पर इसी को लोग पीते थे। इसके बाद आगे तीन सौ
योजन तक न झाड़, न पानी। रणथ भी माता को लाँघ कर आगे रन म घुसना सा ात्
मृ यु के मुँह म घुसने के समान था। रणथ भी माता को लाँघने क बात सुनते ही लोग
सहम जाते थे।
गज़नी के इस दै य को रोकने जहाँ दूसरी ओर एक लाख साठ हज़ार तलवार
स थ , वहाँ इस नाके पर म थली के वामी घोघाबापा का वीर पु स न अके ला
ही रणथ भी के रन पर अपनी चौक िलए बैठा था। वह सोच रहा था, य द दुभा य उस
डाकू को यहाँ ले आया तो फर यहाँ से उसका िन तार नह है।
महीन से वह इस क ठन साधना म तप कर रहा था। वह और उसक ऊँटनी,
िजसे वह अपनी स तान क भाँित यार करता था और िजसके जोड़ क सांड़नी
का ठयावाड़ भर म न थी। इस पर उसे भरोसा था। वह उसे िन य अपने साथ ान
कराता। अपने हाथ से वृ के कोमल प े तोड़कर िखलाता। उसक गदन सहलाता,
उससे बात करता, उसे यार करता। कतनी सूनी रात उसने इस म थली के सूने व
पर तीत क । कतनी आँिधयाँ, कतने तूफान देख।े कतनी बार वह लय के तूफानी
अंधड़ को िनमि त कर चुका था।
भुिमया लोग और ालु या ी, जो रणथ भी माता क आन-मानता मान
यहाँ आते, वह संसार म कहाँ लय हो रहा है — इसका उड़ता-िगरता वणन करते।
सोमनाथ का पतन हो गया। देवता क ित ा भंग हो गई। और गुजरात का राजा न
जाने कहाँ चला गया। सारे गुजरात पर अमीर क दुहाई फर गई है। और सब जगह
आग और तलवार का रा य है। यही सूचनाएँ उसे िमलती रहती थ । भुिमया लोग
कभी-कभी उसे रो टयाँ ला देते, कभी वह स ू-चना खाकर पड़ रहता, वह घ ट तक
आँख पर हाथ रखकर अपने श ु को रणथ भी के कराल गाल म िव होते देखता
रहता।
अ ततः उसने एक दन सुना, गज़नी का दै य रण म धंसा चला आ रहा है।
उसने अपनी सांड़नी को थपथपया। हष से उसके र क एक-एक बूँद नाच उठी। उसने
कहा, ‘‘अब, बस अब। भगवान् सोमनाथ ावतार तृतीय ने खोलगे।’’
और एक दन उसने देखा, काली-काली च उ टयाँ-सी रगती ई रन म बढ़ रही
ह। जैसे साँप कु डली मारकर बैठ जाता है, उसी कार अमीर क सेना ने टेकरी को
चार ओर से घेर िलया। दै य के समान तुक पठान सैिनक तालाब पर िपल पड़े। सारा
पानी उ ह ने ऊँट पर भर िलया। अ तत: उनक दृि स न पर पड़ी। मैला व , बढ़ी
ई दाढ़ी, दुबल शरीर, गढ़े म धंसी आँख, उलझी ई मूँछ। वे उसे पकड़कर सेनानायक
के सामने ले गए। सेना नायक ने पूछा–
‘‘तू कौन है?’’
‘‘म भुिमया ।ँ ’’
‘‘कहाँ का?’’
‘‘भ भ रया का।’’
‘‘तू रण का माग जानता है?’’
‘‘जानता ।ँ ’’
‘‘हम राह दखा सकता है।’’
‘‘नह ।’’
‘‘ या?’’
“रणथ भी माता क आन है। माता को लाँघकर कोई रण म नह जाता।’’
‘‘तू गया है?’’
‘‘गया ।ँ ’’
‘‘तो माग दखा, तुझे सोना िमलेगा।’’
‘‘नह दखाऊँगा।’’
स न ने मूख भुिमया का अिभनय कया। नायक ने उसे पकड़कर पहरे म रख
िलया और अमीर क सेना म पेश कया। अमीर ने देखकर पूछा, ‘‘ य राह दखाने से
इ कार करता है?’’
‘‘माता क आन है। माता को लाँघकर जाने से कोई जीता नह बचता।’’
‘‘ले कन तुझे सोना िमलेगा।’’
‘‘ कतना?’’
‘‘ब त।’’ अमीर के संकेत से एक पा वद ने मुहर से भरी एक भारी थैली उस
पर फक दी। मुहर को पाकर स न ने खुश होने का अिभनय कया। जैसे वह लालच म
आकर अमीर को राह दखाने को राज़ी हो गया हो।
अमीर ने पूछा, ‘‘ कतने दन क राह है?’’
“आठ-दस दन क ।’’
‘‘दगा क , तो िज दा नह रहेगा।’’
‘‘िज दा कै से र गँ ा।’’ स न हँसा। उसे कड़े पहरे म र खा गया, पर उसक
खाितर खूब क गई।
दो घड़ी िव ाम आ। और एक पहर रात गए अमीर ने रणथ भी माता का
उलंघन कर म य रन म वेश कया। सबसे आगे स न संह सांड़नी पर सवार तार क
छांह म तार को देखता-परखता चला। उसके पीछे, अमीर के सब तीर दाज, पैदल-
पदाितक, भारवाही ऊँट, ख र और घोड़े। उनके पीछे क मती ऊँट पर जालीदार
जरदोज़ी क काठी पर शोभना गुलाम अ बास क कमान म पाँच सौ सवार से िघरी
ई। इसके बाद अपने अरबी घोड़े पर सवार अमीर महमूद अपने िबलोची सवार और
ऊँट के साथ। इसके पीछे कोतल हाथी-घोड़े-ऊँट और पानी-रसद। रात बीती, दन
आया। िव ाम आ, फर चले। दूसरा दन, तीसरा दन, चौथा दन, अमीर क सेना
रन म घुसती चली गई। पर तु अब सूय का अस उ ाप झुलसाने लगा। घोड़े सब बेदम
हो गए। पदाितक िसपाही लड़खड़ाने लगे। यास लगने पर ब त कम पानी िमलता।
घोड़े िगरकर मरने लगे। पैदल बेहोश होने लगे। ऊँटिनयाँ हवा म मुँह उठाकर बलबलाने
लग । आकाश पर अंधड़ छा गया। ऊँटिनयां इधर– उधर भागने लग । पर स न आगे
ही बढ़ता चला गया। रे त के पवत इधर-से-उधर उड़ने लगे और हाथी, घोड़े, ऊँट उसम
डू बने लगे। अनिगनत बवंडर मनु य और घोड़ को लेकर घुमा-घुमाकर फकने लगे।
हवा अिधकािधक गम होने लगी। सैिनक ने व उतारकर फक दए। रे त के बड़े-बड़े
त भ बनने और आकाश तक उड़ने लगे।
सारी सेना क शृंखला िबगड़ गई। बल वायु के थपेड़ म बहकर हाथी, घोड़े,
ऊंट, सब उजड़ चले। अमीर ने तलवार ऊँची करके चीखकर कहा, ‘‘तू कौन है शैतान?’’
‘‘म भगवान् सोमनाथ का गण ।ँ देख, वह भगवान् सोमनाथ का तृतीय ने ।’’
अमीर क तलवार उठी क उठी रह गई। एक भयानक काले बवंडर ने उसे घेर
िलया। उसका घोड़ा उसी म च र खाता आ उसे ले उड़ा। ऊँटिनयाँ पूँछ उठा-उठाकर
भागने लग । हाथी चंघाड़ने लगे। घोड़े दो पैर पर उछलने लगे। पैदल सवार सभी इस
जलती-भुनती रे ती म समािध थ होने लगे। इसी समय लय के समान घोर क ं ार
भरते, शत-सह सूय क भाँित चमकते ए रे त के पवताकार गोले आकाश म उड़-
उड़कर भूिम पर फटने और अपनी चपेट म जीिवत-अजीिवत सभी को समािध थ करने
लगे। ऐसा तीत होता था क लय काल आ प च ँ ा है। अब वे रे त के टीले िन सीम
अि - फु लंग क भाँित मंडलाकार घूमते, हाथी, घोड़े, ऊंट मनु य सबको समूचा
िनगलते ए, -धू धू करके लय-गजन करने लगे।
इस कार वह लय का अंधड़, अ ितरथ िवजेता महमूद क िवजियनी समूची
सेना को अपने म लपेट, इस िवनाश क दूत रािश को, िवनाश के आँचल म लपेटकर
िवलीन हो गया। का तृतीय ने अपना संहार-कृ य पूरा करके िनमीिलत हो गया।
सुर–सागर पर
भात आ। आकाश व छ था और शीतल म द पवन बह रहा था। कल के
िवनाशक महाकाल के िवकराल प का इस समय कु छ भी ल ण न था। दूर तक लाल-
लाल रे त के टीले-ही-टीले नज़र आते थे। ऐसे ही समय म शोभना ने आँख खोल उसने
देखा, उसका समूचा शरीर रे त म दबा पड़ा है और उसक सांड़नी अपनी थूथन से उस
पर अटे ए रे त को उछाल रही है। थोड़ा बल लगाकर उसने अपने शरीर को रे त क
समािध से बाहर िनकाला। वह उठ खड़ी ई। सांड़नी आगे आकर उसके िनकट आ खड़ी
ई। शोभना ने यार से उसक थूथन को हाथ म लेकर थपथपाया। उसने अपने चार
ओर दृि डाली। कसी जीिवत जीव का वहाँ िच न न था। उसने सोचा, हे भगवान्, यह
इतना बड़ा ल कर और वह तापी महमूद, सभी इस म भूिम के भोग बन गए। न जाने
कस अत कत आकषण से अिभभूत हो वह मन म अमीर के िलए वैक य अनुभव करने
लगी। उसने महमूद के दय का यार देखा था। और उसके आँसू भी। उन आँसु ने उसे
िवत कर दया। इस समय वह अपनी स पूण चेतना से अमीर क क याण-कामना
करने लगी। पर, िजस अमीर पर शोभना क कृ पा-कोर पड़ी है, वह अमीर है कहाँ?
धीरे -धीरे सूय ऊँचा उठने लगा। उसने देखा, इधर-उधर कु छ काली-काली
व तुएँ रे त म चमक रही ह। दौड़कर उसने पास जाकर देखा, हाथी, घोड़े, िसपाही, ऊँट
थे। सबक रे त म समािध हो गई थी। वह सोचने लगी, या अमीर भी यह -कह िचर-
िन ा म सो रहा है। वह आशंका और उ ग े से भरी, दौड़-दौड़कर एक-एक को देखने
लगी। ब त मनु य और पशु दम घुटकर मर चुके थे। कु छ म दम था, पर शोभना को
उनके िलए कु छ करना श य न था। थोड़ी ही देर म उसक दृि कसी चमकदार व तु
पर पड़ी। भात क सूय क करण म वह व तु आग के अँगारे क भाँित दहक रही थी।
बालू हटाकर उसने देखा तो उसका दय धड़कने लगा। हे ई र , यह तो सुलतान क
कलगी का लाल है। अव य ही सुलतान भी कह पास है। थोड़े ही प र म से अपने घोड़े
के शरीर के नीचे दबे ए सुलतान महमूद को उसने खोज िनकाला। ज़ोर करके उसने
उसे घोड़े के नीचे से िनकाला, नाक पर हाथ रखकर देखा, धीरे -धीरे साँस चल रही थी।
छाती पर कान र खा, दय धड़क रहा था। शोभना आन द से िवभोर हो गई। उसने
भूिम पर माथा टेककर भगवान सोमनाथ क व दना क , और फर उसने इधर-उधर
देखा, कोई देखनेवाला वहाँ न था। वह धीरे से झुक और अमीर के सूखे िन प द ह ठ
पर अपने जलते ए ह ठ रख दए।
अब उसे अमीर को होश म लाने क िच ता ई। उसे यह देखकर परम हष आ
क अमीर के घोड़ क जीन म पानी क भरी ई मशक पड़ी थी। उसने पानी लेकर
थम वयं िपया। पानी पीने से उसके ाण हरे हो गए। फर उसने पानी क बूँद अमीर
के मुँह और आँख म डालनी ार भ क । थोड़ी ही देर म अमीर ने आँख खोल । उसने
अपनी आँख इधर-उधर घुमाई । इधर-उधर घूमकर उसक आँख शोभना के मुख पर
के ि त हो ग । उसके ह ठ िहले, पर श द नह फू टा। शोभना ने थोड़ा जल और उसके
मुँह म डाला। जल पीने से अमीर क चेतना ठीक ई। उसने यान से शोभना क ओर
देखा, उस देखने का अिभ ाय था, तुम कौन हो? शोभना क आँख म हष नाच उठा।
उसने कहा, ‘‘आप या बैठ सकते ह?’’ उसने सहारा देकर उसे अपनी गोद म बैठा
िलया।
थोड़ी देर म अमीर क चेतना और शि लौट आई। अब शोभना ने अपने मुख
पर थोड़ा आँचल ढांप िलया। फर उसने मृद ु क ठ से कहा, ‘‘ या आप ऊँट पर चढ़
सकते ह।’’
अमीर ने िसर िहलाकर वीकृ ित दी। फर उसने बेचैनी से चार ओर देखकर
कहा, ‘‘उस कयामत के तूफान म कौन-कौन िज़ दा बचा?’’
शोभना ने दो उँ गिलयाँ उठाकर कहा, ‘‘के वल दो — म और आप।’’
‘‘ब त ह, ब त ह। शु है खुदा का!’’
उसने वह बालू से वजू कया और घुटन के बल बैठकर नमाज़ पढ़ी। फर
फाितहा पढ़कर दो मु ी बालू उठाकर भूिम पर डालकर, ‘‘अलिवदा, बहादुर सािथयो’’
कहा। अब उसी के साथ दो बूँद आँसू िखसककर उसक दाढ़ी को छू गए। फर अमीर ने
सहारा देकर शोभना को सांड़नी पर सवार कराया और आप भी सवार आ। रे त के
समु म तैरती ई सांड़नी वहाँ से चल खड़ी ई।
सूरज का यान कर वह पूव क ओर को बढ़ता चला गया। चार ओर से गीध
क काली-काली टोिलयाँ उसी ओर को चली आ रही थ । उसने राह म रे त म ढके -उघड़े
हाथी, घोड़े, ऊँट और िसपािहय को चुपचाप पड़े देखा। ब त तक गीध प च ँ चुके थे।
मील तक मुद क कतार-ही-कतार बँधी थी। बीच-बीच म हाथी रे त म दबे ए सूंड़
िहला रहे थे, और घोड़े पड़े ए पैर फड़-फड़ा रहे थे। कसी- कसी मुद िसपाही क आँख
गीध ने िनकाल ली थ । कह -कह गीदड़ के झु ड-के -झु ड रे त से मुद को उखाड़कर
उनका पेट फाड़ आंत ख च रहे थे। यह सब दयिवदारक दृ य देखते ए कठोर- दय
अमीर महमूद आँख से अ -ु िवमोचन करता आ चला जा रहा था। िबना राह क राह
पर भूख और यास, दु:ख और दद से ओत- ोत। पर तु शोभना के साि य से स प ।
तपता सूय इन आरोिहय के िसर पर होकर अ ताचल को चला गया। दशाएँ
लाल और फर उ ह ने अ धकार के पद से मुँह ढाँप िलया। इसी समय उनक
सांड़नी सुरसागर के तीर पर जा क । अमीर सांड़नी से उतरा, शोभना को हाथ
पकड़कर उतारा। पाल पर बसना िबछा दया, उसपर शोभना को बैठने का संकेत कर
उसने वजू कया। नमाज़ पढ़ी। और फर चुपचाप आकर शोभना के सामने खड़ा हो
गया।
वह गज़नी का सुलतान अमीनु ौला िनज़ामु ीन कािसम महमूद, जो बीस वष
गज़नी के वीर के शीष- थल पर सुशोिभत रहा; िजसक िवजियनी तलवार का आतंक
आधे भूम डल पर ा हो गया था; िजसने अपने साहस से अतुल स पदा, स ा और
वैभव ा कया; खुरासान और गज़नी अिधकृ त कर अतुल ऐ य का वामी
बना,िजसने वािलयर,क ौज, द ली,सपादल और गुजरात क संयु -सै य को
परािजत कया; िजसका खर ताप दि दग त म फै ला था; िजसने नगरकोट क
अप रिमत स पदा ह तगत क , और मथुरा क शताि दय क संिचत स पदा को लूट
उसे भ म कर दया था; िजसने बड़े-बड़े अिभमानी पि डत और ीम त को गज़नी के
बाज़ार म दो-दो पय म बेचा था; िजसके शौय और तेज क यशोगाथा किवगण गाते
नह थकते थे; जो अि तीय नेता, अ ितरथ िवजेता और च ड यो ा था, आज
सुरसागर के तीर पर एकाक , तार क छांह म खड़ा, भूख क िच ता से िचि तत,
िन पाय उस ी का मुँह ताक रहा था, िजसका मू य उसक नज़र म उसक समूची
बादशाहत से भी अिधक था। उसके क ठ से बात नह फू ट रही थी। शोभना ने पेट पर
हाथ रखकर हँसते ए कहा, ‘‘पेट का ब दोब त?’’
महमूद ने एक अँगूठी िनकालकर कहा, ‘‘यह अँगूठी मेरे पास है, मगर यहाँ इसे
मोल कौन लेगा?’’
‘‘एक अशरफ मेरे पास भी है।’’ शोभना ने अशफ हथेली पर रखकर महमूद
को दखाई।
अमीर ने िसर िहलाकर भुनभुनाते ए कहा–
‘‘ले कन इसका भुनाना इस व ठीक नह है। लोग को शक हो गया क हमारे
पास सोना है, तो अजब नह , हम लूट िलए जाएँ। फर भी दो, म देख।ूँ ’’
अमीर ने शोभना के आगे हाथ फै ला दया। शोभना ने अमीर का हाथ अपनी
दोन नम-नम हथेिलय म लेकर कहा, ‘‘यह हाथ या कभी कसी के आगे इससे पहले
फै ला था?’’
‘‘नह ।’’ अमीर ने झुककर शोभना क कोमल हथेिलयाँ अपनी आँख से लगा
ल । आँसु से शोभना क अंजिल भर गई।
धीरे -धीरे शोभना ने हाथ ख च िलया। उसने कहा–
“आप ठह रए, म जाती ।ँ ’’
अमीर ने त भाव से कहा, ‘‘नह बानू।’’
‘‘कै दी ,ँ भागूँगी नह , ले कन ा ण क बेटी ।ँ सुर-सागर तीथ म मेरे िलए
िभ ा क कमी नह है।’’ वह हँसी। अपनी हथेली से अमीर का व छु आ और तेज़ी से
चली गई।
और जब वह आई, उसके हाथ म एक हांडी म दूध,कु छ भात और रो टयां थ ।
अमीर ने हथेिलय पर रखकर भोजन कया और सागर-तीर पर जाकर चु लू से पानी
िपया। फर उसने सांड़नी को भी जल िपलाया, आहार दया। इस समय अमीर एक
अ य त कोमल भावुक भावना से ओत- ोत था। वह शोभना से दल भर कर बात
करना चाहता था। पर भावाितरे क से उसका क ठ अव था। शोभना का मुख च मा
क ि ध चांदनी म अपूव सुषमा कट कर रहा था। वह चौला क ण-भर देखी मू त
को िव मृत कर चुका था। और अब उसके र -िब दु म शोभना बसी थी, जो इस
समय सुरसागर के एका त पाल पर ि ध चांदनी म अलस भाव से अमीर महमूद के
असमंजस को देख मु कराकर आ मसमपण का िनम ण-सा दे रही थी। और शोभना के
अल य यार क संपदा से स प अमीर आज असहाय, एकाक होने पर भी अपने को
संसार का सबसे बड़ा बादशाह समझ रहा था। वह सब-कु छ खो चुका था और सब-कु छ
पा चुका था।
छु म छननन–नननन
िस ध के यु म अमीर के चहेते ममलूक यो ा महाराज बीसलदेव क कृ पाण
के भोग बन ितल-ितल कट मरे । जो बचकर इधर-उधर भागे, उ ह िस ध के अहीर और
जाट ने लूट-मार कर बराबर कर दया। समूची गज सै य और अमीर का सारा खज़ाना
लेकर राजपूत क सेना ध सा बजाती ई पीछे फरी।
इधर महाराज भीमदेव ने क थ-कोट से लौटते ए तुक और ईरानी धनुधर क
पीठ पर करारी मार मारकर, उनका स ब ध अमीर से तोड़कर, उ ह िछ -िभ कर
दया। अमीर क यह शि -स प सेना सवथा अनुशासन-रिहत हो, न - होकर
िस ध और राज थान के उजाड़ इलाक म िबखर गई। अपने लूटे ए धन-माल के भय
से, िजसका जहाँ स ग समाया, वह भागकर िछप गया।
संयु राजपूत क सेना को लेकर महाराज भीमदेव िस पुर लौटे,जहाँ
दुलभदेव क साठ हज़ार सै य िव ोही होकर उनसे आ िमली। अब अवसर देख महाराज
भीमदेव ने चढ़ी रकाब पाटन पर अिभयान बोल दया। दुलभदेव डरकर ग ी छोड़
जंगल म भाग गए और नगर- ार पर च ड शमा ने महाराज भीमदेव का मुख पौर
जन के साथ वागत कया।
राज गजराज पर महाराज भीमदेव क सवारी अनिह लप न के बाज़ार म
िनकली। गुजरात के इस त ण ाता के यश:पूत दशन करने को सम त गुजरात के ाण
ही पाटन म आ जुटे। पाटन का राजमाग फू ल से और ब मू य वणखिचत पाट बर से
सजाया गया था। घर-घर आन द क बधाइयाँ बज रही थ । नृ य-गान-पान गो ी का
आयोजन हो रहा था। कं थ कोट क दुलभ रण- थली म िजन यो ा ने शौय कट
कया था, उनका िविवध कार के दान-मान से पौरगण स कार कर रहे थे। जगह-जगह
अमल कु सुम घोला जा रहा था। पुरवासी ि याँ घर-घर मंगलगान कर रही थ ।
आन द-वा से कान के पद फटे जाते थे। गवा और बाज़ार से सुहािगन और वधुएँ
खीलपु प बरसा रही थ ।
महाराज भीमदेव का गजराज सुमे पवत क भाँित िसर से नख तक
वणज टत मखमली झूल से सुसि त था। वह अ बारी, िजसम गुजरे र परम माहे र
परम परमे र ी भीमदेव िवराजमान थे, उसका वण-कलश सूय के समान भात क
धूप म चमक रहा था। सवारी के आगे नगर-कु मा रकाएँ गरबा नृ य करती जा रही थ ।
सुनहरी चूिड़य से सि त राजगज के द त पर एक च दन क चौक रखी थी।
चौक पर राजनतक नृ य कर रही थी। गजराज ऊँची सूंड़ उठाए जैसे गुजरात के नए
राजा का अिभन दन करता चल रहा था। यह गजद त पर का अ भुत नृ य देखकर लोग
आ य और आन द से िव वल हो रहे थे। जैसे वायु म चरणाघात हो, इस कार नतक
के चरण तैर रहे थे।
गु वािसनी िव ल भा चौलादेवी अपने अछू ते नवल ेम क अज धारा
को अपने न हे-से कोमल दय म िछपाए, च ड शमा के घर के झरोखे से लाज, आन द
और उ लास ने म भरे अपने अधीर ाण को धड़कते दय म य से रोक, यह
महो सव देख रही थी।
दामो महता अपनी चपल नीली घोड़ी पर सवार, दो-दो तलवार कमर म बाँधे,
कसूमल पाग धारण कए, पान का बीड़ा चबाए, बगुले के पर के समान धवल चु टदार
बागा पहने, कभी राजगजराज के इधर कभी उधर, सारे जुलूस पर नज़र डालते,
आव यक आ ाएँ देते जा रहे थे।
राज गजराज के पीछे एक सुनहरी हौदे म ा ण राजब धु च ड शमा और
भ मांकदेव बैठे बढ़ रहे थे। उनके पीछे गुजरात के धानम ी िवमलदेव शाह क
सवारी का हाथी था। िवमलदेव शाह िसर से पैर तक उ वल प रधान कए, धनुष-बाण
से सि त बैठे थे । उनके पीछे अ ,रथ,गज,ऊँट और पैदल पलटन थी । हाट-बाजार,
चौबारे , सतख डे महल, अटारी, बुज, झरोखे, बारजे सब रं ग-िबरं गी पोशाक धारण
कए ए दशनाथ नर-ना रय से भरे थे।
महाराज व लभदेव ने रा य याग, तप वी क भाँित एका त जीवन तीत
करना पस द कया और वे अपने िपता महाराजािधराज चामु डराय के पास शु ल तीथ
चले गए।
दरबारगढ़ म दरबार क भ तैया रयाँ थ । िविवध तोरण-पताका से
दरबारगढ़ सजाया गया था। सब राजा-महाराजा, िगरािसए, जागीरदार, ठाकु र
भायात उपि थत थे। यथािविध राजितलक स प आ। ब दी जन ने पहले पाटन का
क तगान कया। राजपुरोिहत ने स तीथ का जल राजा के म तक पर संचन कर
ितलक कया और घोषणा क , “ महाराजािधराज परमे र परम भ ारक उमापित ी
सोमदेव वरल ध साद ौढ़ ताप बालाक अ व पराभूत श ुगण ी ी ी भीमदेव
गुजरे र का जयजयकार हो!’’
जयजयकार क च ड गजना से सभा-म डप गूंज उठा। फर चरण और भाट
ने महाराज क िबरद बखानी। महाराज ने उ ह िसरोपाव, इनाम-इकराम, जागीर-
ब शीश दी। फर भायात ने भट दी, इसके बाद जागीरदार, िगरािसए, राजा-
महाराजा क बारी आई। महाराज भीमदेव ने यु म काम आए यो ा के
उ रािधका रय और प रजन को नई जागीर ब श । वीर को दान-मान-िखताब से
स प कया। फर ा ण और धम सं था को दान क घोषणाएँ । इसके बाद
गुजरे र ी भीमदेव ने खड़े होकर सबको ध यवाद दया, आभार माना। और धम क
शपथ ली। जा क सुख-शांित और समृि क कामना क । च ड शमा और भ मांकदेव
को ‘रा यब धु’ क उपािध दी गई । िवमलदेव शाह रा य के धानमं ी और दामोदर
महता मुख सि ध-वै िहक आमा य घोिषत कए।
अ त म नाचरं ग क मह फल जमी । और राजनतक के चरणाघात सजे घूंघ
बज उठे — छु म छनन ननननन...
उपसंहार
और, खुदा का ब दा महमूद और महमूद क बि दनी शोभना तार क छांह म
सांड़नी पर सवार हो, सुरसागर से एकाक िविवध वन, पवत, उप यकाएँ, नद-नदी,
सरोवर, जन-जनपद पार करते ए लाहौर क राह पर जा रहे थे। अके ली रात, भात
और सा य बेलाएँ, जलती दोपहरी। हं पशु से भरपूर वन आते गए, जाते गए।
स ह बार वह िवजेता तलवार क छाया म इसी राह आया था। आग और कहर
बरसाता आ और आज वह जा रहा था एक औरत के आँचल क छाया म।
लाहौर प च ँ कर उसने औिलया अलीिबन उ मान-अलहज-बीसी क दरगाह म
जाकर चौखट चूमी। चार और िबखरे ए उसके िसपाही, यो ा, िसपहसालार, म ी
भी आ जुटे। महमूद ने सबके साथ सफ बाँधकर नमाज़ पढ़ी। सब अहवाल औिलया को
सुनाया, सुनकर औिलया ने कहा, ‘‘महमूद, अब तू उस औरत से बात कर।’’
और महमूद ने औिलया के सप शोभना से दल खोलकर बात क । शोभना ने
कहा, ‘‘म शोभना ,ँ चौलादेवी नह । मने अमीर के वफादार िसपहसालार को क ल
कया और अमीर को धोखा दया है, अब शाहे-गज़नी जो सज़ा मुनािसब समझ, मुझे
द।’’ शोभना ने धीरे -धीरे सब हक कत खोलकर स य-स य सुना दी।
सुनकर अमीर देर तक मौन बैठा रहा। फर उसने कहा, ‘‘म अमीर महमूद,
खुदा का ब दा, वही क ग ँ ा, जो मुझे कहना चािहए। खुदा के ब दे क नीयत बद थी,
िजसक सज़ा खुदा ने अपने ब दे को दी। फर उसने अपने रहमोकरम से तेरे आँचल का
साया उसे दया, िजसने महमूद को िज़ दगी, राहत और खुशी दी, अब िज़ दगी तेरे
सदके ।’’
महमूद ने ज़मीन तक झुककर शोभना का प ला चूम िलया। और ज़ार-ज़ार
आँसू बहाने लगा। ब त देर शोभना चुपचाप बैठी रही। फर उसने भीगी पलक उठाकर,
कहा ‘‘अय शहनशाह, म एक बदनसीब औरत ।ँ लूटी ई, बरबाद। और अब इतनी दूर
आगे बढ़ आई ,ँ क लौटने क सब राह ब द हो गई ह। अब मेरे सामने एक बेकस और
गरीब शहनशाह है। िजसने िज़ दगी म िलया ही िलया, दया कु छ नह । और अब
देखती ,ँ जो कु छ उसने िलया है, उसके बोझ से वह दबा जा रहा है। उसके दद को मने
देखा है। िजसने दद सहा है, वह पराए दद को देख नह सकता। शहनशाह इसिलए,
अपनी इस बि दनी क सज़ा कु छ नम कर सक, और गज़नी के कसी कोने म पनाह दे
सक तो, यह बदनसीब शोभना इस खुदा के ब दे मद के दद को िजतना और जैसे बन
पड़े, कु छ कम करने म अपनी िज़ दगी क बची ई घिड़यां िबताए।’’
औिलया के मुँह से िनकला, ‘‘मरहबा! मरहबा!’’ और उसक सफे द दाढ़ी
आँसु से तर हो गई। महमूद और झुका, उसने तलवार शोभना क गोद म डालकर
कहा, ‘‘यह तलवार और इसक बदौलत हािसल क ई गज़नी क स लनत तेरी है।
और तू अपने दर के िभखारी महमूद को उसी तरह अपने मुबारक हाथ से एक टु कड़ा
रोटी देती रह, जैसा क स ह दन से आज तक देती आई है।’’
और, वह दि वजयी महमूद, उस गुणग रमामयी ा ण कु मारी के आँचल क
छांह म काबुल क दुगम राह पर, दु ह खैबर के दर म खो गया। भारत म रह गए,
उसक स ह िवजय-या ा के अमर चरण-िच न!!!

चौलादेवी के आकु ल- ाकु ल ाण ि य-िमलन के िलए छटपटा रहे थे। आज के


इस ण के िलए उसने न जाने कतनी साधना क थी। कब ि यतम का स देश आता है,
उसका दय भय, आशंका और आन द के झूले म झूल रहा था। वह गुजरे र क ि य
अ ािगनी और गुजरात क महारानी है। एक दन मु त म िजसने अपना तन, मन िजस
देवता को िवस जत कया था, आज वह उसका मूल- याज सभी पा रही है। महाराज
भीमदेव का सु दर याम व प, व गात, नािसका का उठाव, िवशाल ने , सौ य
मुखमु ा, मधुर मु कान, उसके मानस ने म शत-सह प धारण कर उसके र क
येक बूंद म नृ य क वासना उ प कर रहा था।

उधर महाराज भीमदेव के रोम-रोम म चौला का नव कसलय कु सुम कोमल


गात रम रहा था। इस ाण सखी से िमलने को उनके ाण छटपटा रहे थे। उ ह ात न
था क यह कहाँ है। यु -िव ह और राजक य खटपट म पड़े रहकर वह इस स ब ध म
कु छ अिधक जान ही न सके थे। वे के वल दामोदर के उसी एक वा य से आ त थे, जो
उ ह ने कहला भेजा था। अब दरबार से िनवृ हो राजा ने दामोदर को एका त क म
बुलाया और चौला क बात पूछी। दामोदर ने सारा भेद कट करके कहा, चौलारानी
महाराज के आ वान क ती ा म ह। सुनकर महाराज भीमदेव ेम-दीवाने हो गए।
और उसी ण उ ह ने आ ा दी क चौला रानी के राजमं दर म आने के उपल य म
महो सव हो । िववाह क जो र म देव-साि य म ई है, वह अब राजसी ठाठ-बाट से
सब नगर पौर जनो और नरपितय के सम हो, िजससे उसक मयादा महारानी के
समान ि थर हो तथा उसे राजगढ़ म धूमधाम से लाया जाए। महाराज ने म ी र
िवमलेव शाह को बुलाकर राजसी ठाठ से महारानी चौलादेवी को राजगढ़ म धूमधाम
से ले आने क आ ा दी।
पर तु म ी र ने गुजरे र क यह थम आ ा अमा य कर दी। उ ह ने कहा,
‘‘महाराज, गुजरात क महारानी उदयमती ह। मि दर क नतक — देवा पत देवदासी
— पाटन के राजगढ़ म नह िव हो सकती। फर सोलं कय क ग ी का
उ रािधकारी, तो महारानी उदयमती का पु ही हो सकता है।’’
बात का बतंगड़ बन गया। महारानी उदयमती तीखे वभाव क राजग वता
ी थी । उसने भी चौलारानी का वैध अिधकार वीकार नह कया । म ी र
गुजरे र के सम अड़ गए। चौलादेवी का राजगढ़ म वेश एक मह व का हो
गया। िजस म ी िवमलदेव शाह ने गुजरे र चामु डराय के स मुख नंगी तलवार
चमकाकर भीमदेव का प पु कया था, वही अब चौलादेवी के िवरोध म गुजरात के
इस तेज वी त ण अिधपित के स मुख तन गए। सारे पाटन म इस राज-कलह क चचा
फै ल गई। मि दर क नतक देवदासी को महारानी वीकार करने से पाटन के सेठ-
सा कार और नगरजन ने भी इ कार कर दया। वा तव म वे सब सा कार जैनधम
थे। और िवमलदेव शाह भी जैनधम थे। उनक दृि म पाटन के म ी क मयादा
गुजरािधपित से कम न थी। फर धा मक ब धन से वे सब िवमलदेव शाह से बँधे थे।
उनके साथी भी म ी र से स बि धत थे।
पर तु भीमदेव भी अपनी आन पर अड़ गए। भीमदेव का ि व साधारण न
था। उस तेज वी राजा क थम आ ा का इस कार न के वल उ लंघन होना, अिपतु
सारे नगर और राजमहल तक का िवरोधी हो जाना कोई साधारण बात न थी। उ ह ने
कहा, ‘‘पाटन, पाटन क राजग ी और सब राज-प रजन यागा जा सकता है, पर
चौलादेवी नह यागी जा सकत ।’’ इस कार यह एक बल राजकलह का प
धारण कर गया। और पाटन के रस-रं ग पर फर िच ता क एक काली छाया पड़ गई।
महाराज ने दामोदर महता को राज गजराज लेकर च ड शमा के घर से चौला देवी को
राजगढ़ म ले आने क आ ा दी। दामोदर महता राजा ा मानकर गजराज ले
चौलारानी क सेवा म उपि थत ए।
सब िववाद चौला ने भी सुना। उसका स पूण आ म-स मान आहत हो गया।
पर तु न उसने एक बूँद आँसू िगराया, न मुँह से एक श द कहा। राजकलह के मह व को
उसने समझ िलया और दृढ़ संक प क साि वक भावना से उसके ने म नई दीि भर
गई।
दामो महता ने चौलादेवी को राजगढ़ चलने का िनवेदन कया। महाराज ने
राज गजराज सवारी को भेजा है, यह भी कहा। चौलादेवी ने सुनहरी झूल और मोितय
क झालर से सुसि त अ बारी पर, द गज के समान िवशाल राज गजराज पर एक
दृि डाली। एक ि मत रे खा उसके अधर पर फै ल गई। उसने धीरे से कहा, ‘‘म ी र,
महाराज ी के िबना सूना राज गजराज सुशोिभत नह है। णाम-सिहत मेरा यह
िनवेदन गुजरे र के चरण म िनवेदन कर दीिजए।’’ दामो महता चौलादेवी के मम को
समझ गए।
वह चौलादेवी को णाम कर लौट गए। सूना गजराज लौटा देखकर और
चौलादेवी का मा मक स देश सुनकर महाराज भीमदेव लि त हो, अिवल ब गजराज
पर बैठ, वयं च ड शमा के घर पर चौलादेवी को राजगढ़ ले आने के िलए जा प च ँ ।े
चौलादेवी ने गुजरे र क िविधवत् पूजा क । राजगढ़ चलने का संग आने पर
कहा, ‘‘महाराज, आपके नेह से म स प ।ँ राजगढ़ जाने का मुझे मोह नह । आपसे म
दूर नह । राज-मयादा क भी एक स ा है, गुजरे र को उसका िवचार करना होगा।
फर नेह कया है तो टीस भी होगी, पीर भी होगी। अब टीस क पीर से, महामिहम
गुजरे र भी य द साधारण पु ष क भाँित कातर हो अपना मनोदा रद् य कट करगे,
तो फर सोलंक कु ल क आन या रहेगी!’’
महाराज ने भराए क ठ से कहा, “ि ये, सोलंक कु ल क आन रखने क शि
मुझम नह है। राजगढ़ नह तो जहाँ जी चाहे, मुझे ले चलो। मुझे न राजगढ़ का मोह है
न रा य का।’’
‘‘के वल एक ी का मोह है?’’ चौला के ह ठो म हा य और आँख म मोती थे।
वह आगे बढ़कर महाराज के व से आ लगी। देर तक िन त धता रही। कसी
अिच य मूक भाषा म दोन के दय एक-दूसरे को समझते-समझाते रहे। फर चौला ने
कहा–
‘‘महाराज, गुजरे र से मेरी एक िवनय है!’’
‘‘कहो ि ये!”
‘‘गुजरात के नाथ भगवान् सोमनाथ ह। अभी तक वे अ तधान ह। दै य वे दलन
कर चुके। अब उनका ाक होना चािहए। एक ण भी गुजरात को देव-र ण से
रिहत न रहना चािहए। देवप न म चलकर अिवल ब देव- ित ा होनी चािहए।’’
‘‘तो ि ये, चलो, मेरा राज गजराज उपि थत है ही, म इसी ण खड़ी सवारी
देवप न को थान करता ।ँ ’’
‘‘महाराज क क त अमर हो। मेरा एक अनुरोध भी है महाराज!’’
‘‘वह भी कहो’’
‘‘गुजरे र के शुभ थान के समय, मंगल-मु त के िलए वण-कलश म
तीथ दक ले, नगर क कोई कु मा रका नगर- ार पर खड़ी हो, ऐसी था है।’’
‘‘है तो।’’
‘‘तो महाराज, वह ित ा मुझ दासी को दान क जाए।’’
भीमदेव का दय हाहाकार कर उठा। उ ह ने आँसु से गीली आँख से चौला
क ओर देखकर कहा, ‘‘जैसी तु हारी इ छा ि ये, तुमने अब जीवन को िवसजन म लय
कर ही िलया, तो अब कहने को या रह गया?’’ उ ह ंने उसी ण देवप न को थान
करने क आ ा दे दी।
सह वेद ा ण के साि य म िविधवत् देवप न म नवीन लंग क
थापना ई। ाण- ित ा क गई। गगन रािश को भ क छ से बुलाकर पाशुपत
आ ाय के अिध ाता का पद दान कया गया। शत-सह क ठ से एक बार फर ‘जय
सोमनाथ’ क विन घोिषत ई और चौलादेवी के चरण ने र गृह के सभाम डप म
एक बार फर देव-साि य म नृ य कया।
और राज गजराज पर आरोहण के पूव, जब गुजरे र ने चौला के स मुख
जाकर वा पाव क ठ से कहा–
‘‘तो ि ये, अब?’’
‘‘िवदा ि यतम!”
उसने अपनी मृणाल-कोमल भुज-व लरी गुजरे र के क ठ म डाल दी।
गुजरे र चले गए, और चौलादेवी वह भूिम पर, जहाँ महाराज भीमदेव के
चरण थे, अपना व र खे िससकती पड़ी रह गई।
आधार
तीस बरस पूव!
अब से लगभग तीस वष पूव, मने थम बार गुजरात क या ा क । गुजरात
के भु सोमनाथ और वहाँ के शैवत व के स ब ध म मने ब त उ सुकता से उन दन
अ ययन कया था। गज़नवी महमूद का सोमनाथ पर आ मण उन दन मेरे अ ययन
का रोचक और आकषक िवषय था। और तभी मेरी इ छा ‘सोमनाथ’ नामक एक
उप यास िलखने क ई। पर तु कू ल के इितहास क पा -पु तक म सोमनाथ के
आ मण क जो ज़रा-सी चचा थी, उसे छोड़कर अ य कह भी इस िवषय का कोई
अ छा सािह य मुझे िह दी म नह िमला। धीरे -धीरे मेरी ाकु लता बढ़ती गई और म
सोमनाथ के इस आ मण के स ब ध से अिधक-से-अिधक जानने को अधीर हो उठा।
मजे़ क बात यह थी क मेरे मुँह से यह सुनकर, क म सोमनाथ पर एक उप यास
िलखना चाहता ,ँ एक काशक ने अपने अिधकार के बल से उसका िव ापन भी छाप
दया, और सुना क आडर भी बुक करने आर भ कर दए। इसके बाद तो उसके तकाज़
ने नाक म दम कर दया। थम तो मुझे इस स ब ध म इितहास क अिधक जानकारी
नह । दूसरे ऐसी लोक-िव ुत घटना को वैसे ही भावशाली ढंग से िचि त करने क
क पना-शि और साहस नह । म उप यास िलखता कै से? धीरे -धीरे िवल ब होता
गया, दन बीतते गए। अं ेजी इितहासकार के िलखे कु छ टू टे-फू टे िववरण मुझे िमले,
पर वे यथे न थे। कु छ लोग तो यह भी कह देते थे क यह घटना ही कपोल-कि पत है।
गुजराती सािह य तथा गुजराती सं कृ ित से मेरा थोड़ा लगाव भी है। इसका
ेय म अपने दवगंत िम हाजी मुह मद अ लारिखया िशवजी को, जो गुजराती भाषा
के ‘बीसव सदी’ प के यश वी और जनूनी स पादक थे, को देना चाहता ,ँ िज ह ने
बरबस मेरा मन गुजराती-सािह य के कोमल भावुक भाव-िच पर मोिहत कर दया।
सन् 1914 से 20 तक म ब बई म रहा। तभी मुझे इस िम का अल य सहवास िमला।
इसने मेरे उप यास ‘ दय क यास’ का गुजराती अनुवाद कया था। पीछे ‘ दय क
परख’ का भी गुजराती-अनुवाद आ। इस कार म गुजर सािह य और सं कृ ित के
िनकट आया। ब बई म िनवास करने से म गुजराती पढ़ने और समझने भी लगा। पर तु
सोमनाथ के ित मेरी आ था तब ई, जब दैवदु वपाक म फं सकर मुझे ब बई छोड़नी
पड़ी। कं चन क सघन वषा म डू बकर छू ंछा हाथ िलए घर लौटना पड़ा।
मुंशी का थम दशन
स भवत: सन् 36 म म काफ अरसे के बाद फर ब बई गया। और इस बार इरादा कर
िलया क सोमनाथ के स ब ध म गुजराती-सािह य म जो कु छ भी िमल सके गा, बटोर
लाऊँगा। पर तु मेरी आशा फलवती न ई। एक-दो पु तक िमल । पर ामािणक
जानकारी उनसे मुझे कु छ भी न िमली। ब त िनराशा ई। इसी समय मेरे िम और
िश य ी महावीर साद दाधीच ने, जो आज ब बई के नामां कत सालीिसटर ह, मुझे
ी क हैयालाल मािणकलाल मुंशी से िमलने क सलाह दी। उ ह ने कहा, वे गुजराती के
अ छे सािह यकार ह, उनसे आपको अव य ही कु छ काम क बात मालूम हो जाएँगी।
दाधीच ही को लेकर मने ी मुंशी से उनके आ फस म जाकर मुलाकात क । पर
मुलाकात करके खुश नह आ। खीझ ही गया। उन दन वे ब बई म ैि टस करते थे
और फोट म उनका आ फस था। उनक न दृि ही म, न बातचीत म, मुझे कु छ रस
िमला। मने यह तिनक भी अनुभव नह कया क म एक सािहि यक ब धु के पास िमलने
आया ।ँ सोमनाथ के स ब ध म मने कु छ कए, पर जवाब ऐसे ही िमले, जैसे
वक ल अपने मुव ल से कसी मुकदमे क बाबत कर रहा हो। जहाँ तक मुझे मरण है,
मुलाकात खड़े ही खड़े ख म हो गई। काफ देर बाद जब उ ह ने मुझसे बैठने को कहा,
तब उनके उस ठ डे लहजे से म इतना कु ढ़ गया क तुर त ही उनका इतना समय न
करने के िलए मा माँग भाग खड़ा आ। फर मुझे कसी गुजराती सािह यकार से
िमलने का साहस नह आ। हालां क मुझे हाजी मुह मद अ लारिखया क आठ-आठ
घ ट क मुलाकात नह भूली थ । इसके बाद जब म अहमदाबाद आकर गुजर श द-
िश पी ी धूमके तु से िमला, तो एक बार फर मेरे मन क िख ता िमटी। ी धूमके तु ने
मुझे एक-दो पु तक के संकेत दए। कु छ बात भी बता । फर भी मेरे पास ऐसी साम ी
न जुट पाई क म सोमनाथ पर उप यास िलख सकता। फलतः यह उप यास िलखने का
िवचार मने दमाग से ही िनकाल दया। दन-पर- दन और वष-पर-वष बीतते चले
गए। एक-दो लहर आ और शु के तीन-चार प र छेद मने िलखे पर गाड़ी फर वह
क गई।
सन् 45 आ गया, और मने िह दी-सािह य का इितहास िलखा। उसम मने
महमूद के आ मण के सां कृ ितक भाव पर काश डाला। और एक बार फर ‘भारतीय
सं कृ ित पर मुि लम भाव’ पर जाकर मेरी िवचारधारा के ि त ई। अब म कभी-कभी
सोमनाथ पर एक उप यास िलखने को मन-ही-मन अधीर होने लगा। इसी समय ी
मुंशी का ‘जय सोमनाथ’ मेरे सामने आया। पहले मने उसे मूल गुजराती म पढ़ा, पीछे
िह दी-अनुवाद पढ़ा। मुझे इस बात का याल ही न रहा क यह उप यास ी मुंशी ने
िलखा है या मने। म यही सोचने लगा, क या वा तव म सोमनाथ िलख दया गया है।
पर तु मेरा मन भरा नह । और कसी एक अत कत भावना ने मेरे दय म एक ऐसी
ऐसी ती आकां ा उ प कर दी, क अब म सोमनाथ पर कलम उठाए िबना रह ही न
सकता था। अब मने यह िवचार कया क म ी मुंशी के इस उप यास से कु छ ा कर
सकता ँ या नह । मने दो-तीन बार उसे बारीक से पढ़ा। इस समय तक मेरा ‘वैशाली
क नगरवधू’ उप यास कािशत हो चुका था और म ‘इितहास रस’ क थापना मन म
दृढ़ब कर चुका था। अब मुझे इस बात क परवाह नह थी क म इितहास से इधर-
उधर हो जाऊँगा तो या होगा? मनमानी कु लांच भरने के िलए म तैयार बैठा था। ी
मुंशी के ‘जय सोमनाथ’ के ित मने एक ित प ा क दृि डाली। मन म कहा, य द
मेरा उप यास इससे िनकृ बना, लोग ने उसे न पढ़ा, तो या होगा? मने य िप ी
मुंशी के इस उप यास म कु छ भी ा नह पाया था। पर तु ी मुंशी का आब तो
मुझ पर था ही। सािहि यक न सही, ठाट-बाट का ही सही।
नहले पर दहला
अभी म इसी ऊहापोह म फँ सा था, और उप यास के वही पुराने दस-बारह वष
पूव िलखे पाँच-छह प र छेद मेरे सामने थे, िज ह म जब-तब उमंग म आकर िम को
सुना दया करता था। मेरे िम मेरा मज़ाक उड़ाया करते थे, क इन प र छेद का
उ लंघन करके ‘वैशाली क नगरवधू’ जन-जीवन म अपना थान पा चुक । अब आपका
यह ‘सोमनाथ’ उसपर नहले पर दहला मारे तो बात है। इस ‘दहले’ ने मुझे और भी
दहला दया। अभी तो ी मुंशी ही का आब मारे डाल रहा था, अब इस ‘दहले’ ने मेरी
साँस ही रोक दी। पर तु यह मेरे बस क बात तो थी ही नह । म आज भी यह नह जान
पाया ँ क ‘नगरवधू’ म कतना सौ व है। म िन स देह उसपर मोिहत ,ँ उसपर
अपनी स पूण सािहि यक स पदा को वार चुका ।ँ पर तु यह तो म कसम खाकर कह
सकता ँ क उसक िजस सुषमा पर म इतना मोिहत हो गया ,ँ उसे मने अपने प र म
से िन मत नह कया। म वा तव म ‘नगरवधू’ का िनमाता नह , ‘ कटकता’ ।ँ न जाने
कस अिच य शि ने वे भ मू तयाँ मेरी िघसी-िघसाई चालीस साल पुरानी कलम
से करा द । भला म नग य कहाँ उन द मू तय का िनमाण कर सकता था।
पर तु अब, यह नहले पर दहला? यह तो िम क एक चुनौती थी। इसका यह प
अथ था क ‘नगरवधू’ से उ कृ ‘सोमनाथ’ बन सके , तो ही ‘सोमनाथ’ िलखना, नह
तो नह ।
अब बताइए, इस चुनौती का या जवाब दू?ँ बस, मने फर इसे िलखने का
इरादा याग दया। वही ारि भक पाँच-सात प र छेद पड़े थे, उ ह पर अपनी
हसरत-भरी नज़र जब-तब डाल लेता था। कभी-कभी के वल इसी िवचार से ‘नगरवधू’
के प र छेद पर आँख फै ला देता था, क आगे कह कलम चलाने क गुंजाइश है भी या
नह ।
िवभाजन का िव ाट
इसी समय िवभाजन का िव ाट मेरी आँख के आगे आया। द ली म रह कर द ली
और लाहौर के सारे लाल-काले बादल मने अपनी आँख से देख।े कान से अनहोनी बात
सुन । और िव के मानव-इितहास का सबसे बड़ा महािभिन मण देखा। यह ऐसी
बात नह थी, िजसे म देखूँ और दर-गुज़र कर दू।ँ क रता के अिभयोग से म िह दु को
मु नह कर सकता। पर तु म उ ह खूनी कृ ित का तो नह वीकार करता। िज ा का
‘डाइरे ट ऐ शन’ और उसका स ा असली व प देख म समझ गया, क चाहे बीसव
शता दी का स यकाल हो, चाहे चौदहव शता दी का, जंगली पठान -िखलिजय और
गुलाम का अंध-युग–मुि लम भावना तो खून म तर है और रहेगी। जब तक इसका
जड़मूल से िवनाश न हो जाएगा, इसक खून क यास बुझेगी नह । यह सवथा मानव-
िवरोिधनी भावना है, जो सां कृ ितक प से मुि लम समाज से दृढ़ ब मूल है। य - य
पंजाब के अ याचार,बला कार, उ पात और लूटमार मेरे कान म पड़ते जाते थे, म
सुलगता जाता था।
आर भ म य िप मुझे ब त कम बात का पता लगा। पर तु आगे चलकर जो
कु छ आ, उसक एक भीितमू त मेरे मन म पहले ही अं कत हो चुक थी। िवभाजन से
ब त पूव ही से, समथ िम से ब धा कहा करता था क कसी तरह पंजाब और संध
से िह दू प रवार को िनकाल लाना चािहए। ब त िम को मने त काल लाहौर छोड़
देने क सलाह भी दी थी। सन् 46 के माच म मेरा िह दी-सािह य का इितहास छपा और
म उसी समय जनवरी-फरवरी-माच के लगभग लाहौर म रहा। मेरे काशक–मेहरच द
ल मणदास, सैदिम ा गली म रहते थे। यह मुह ला ही मुसलमानी आबादी म था।
अपनी अंितम या ा म मने लाहौर का वह व देखा, जो िव फोटो मुख वालामुखी
को होता है। टेशन से अपने इन िम के घर तक प च ँ ना मेरे िलए अ य त ासदायक
हो गया। उस बार एक स ाह तक लाहौर म रहा, और अ भुत वातावरण देखा।
रणजीत संह क समािध टू टी-फू टी थी। वहाँ ढेर मलबा और घास-फू स जमा था, पर तु
बादशाही मि जद के गु बज पर फर से संगमरमर मढ़ा जा रहा था। मुझे ऐसा अनुभव
आ, जैसे एक घर म दुलहन के याह क तैया रयाँ हो रही ह, दुलहन पर ह दी चढ़ाई
जा रही है–और दूसरे घर म मुदा उठाने को पड़ा है। दो घटना ने मुझे स य प का
दशन करा दया। एक दन सुबह ही म पड़ोस के एक सैलून म जा बैठा, बाल कटाए।
ण- ण म मुझे ऐसा भय हो रहा था क यह नाई कह मेरा गला ही न काट डाले।
ल बे-चौड़े डील-डौल का पंचह था जवान था। बड़ी ही लापरवाही से कची, उ तरा
और ुश चला रहा था। शु म मुझे गु सा आया, पर फर मुझपर आतंक छा गया। म
अपनी भूल समझ गया। अ त म मने एक पया दया और बकाया रे ज़गारी वापस पाने
को हाथ फै लाया। पर तु वह जवान मुि लम नाई धूततापूवक हँसकर बोला, ‘‘बा छा,
तूने जो दया सो दे दया, अब चलता हो!’’ और मने चुपचाप होने ही म कु शल समझी।
हजामत ठीक बन चुक थी।
इस कार एक मेवे वाले से मने दो आने का एक संतरा िलया, और पया देकर
बाक पैसे माँगे, तो उसने पया ग ले म डालकर और यह कहकर, क ‘‘ फर कभी ले
जाना।’’ मेरी ओर से ख फे र िलया। िन स देह यह सरासर डाकाज़नी थी–वह भी
बीच-बाज़ार। दुकानदार डाकू बने ए थे। दूसरे दन म वहाँ से चल दया, और अपने
िम से लाख-लाख अनुरोध करता आया, क वे तुर त लाहौर छोड़ द।
अ त म जो होना था वह होकर रहा। पर तु म भय, ोभ और आतंक से जैसे
सराबोर हो गया–और िजस दन िवभाजन हो जाने पर द ली म वतं ता- दवस
मनाया गया–घ टाघर पर शानदार रोशनी क गई–लाल कले पर ितरं गा फहराया
गया–म अपने घर के सब दरवाज़े ब द करके चुपचाप पड़ा िससकता रहा। उस रात को
मने घर म दीप नह जलाया। दूसरे दन अखबार म पढ़ा, क जब द ली म घ टाघर
रोशनी से जगमग कर रहा था, लाहौर धांय-धांय जल रहा था। पर तु इस सािह यकार
के आँसू कसने देख,े लाहौर क िचताभ म म जैसे वे भी जल- िमल गए।
भिव य-दशन
म लाहौर से चलते-चलते अपने िह दी-सािह य के इितहास के अंितम पृ पर
ये पंि याँ िलख आया था, ‘‘महाकाल क गित अित िवषम है, वह घड़ी के काँटे क
भाँित ठीक-ठीक नपी-तुली गित से नह चलती। कभी वह म द हो जाती है, और कभी
अितभीषण ती गित धारण कर लेती है। उसी के भाव से ि क भाँित रा के
जीवन का एक-एक वष कभी-कभी सौ वष के समान भारी हो जाता है। और कभी
हँसते-खेलते ही बात-क -बात म शताि दयाँ बीत जाती ह। भारत के गत छ बीस वष
बड़े ही तेज़ी से बीते ह, सह ाि दय से सु और आ म-िव मृत भारतीय रा एक
अ भुत उमंग और तेज के साथ जाग उठा है। ये छ बीस वष बड़ी ही तेज़ी म बीते ह,
सह ाि दय से सु और आ म-िव मृत भारतीय रा एक अ भुत उमंग और तेज के
साथ जाग उठा है। इन छ बीस वष म जो कु छ आ है, उसका भारत के रा ीय और
सां कृ ितक जीवन पर कै सा भाव पड़ेगा, यह अभी नह कहा जा सकता। पर तु यह
दीख पड़ता है क आगामी पाद शता दी और भी दुत-गित से आगे बढ़ेगी,और बड़ी-बड़ी
घटनाएँ और बड़े-बड़े प रवतन अकि पत तेज़ी से भारत म ह गे, िजनका भाव स पूण
िव पर पड़ेगा।
अब ये मेरे ही वा य बार बार शत-सह प धारण करके मेरे मि त क म
च र खा रहे थे, क मानव-र बहकर मेरे चरण-तल तक ही आ प च ँ ा। और अब एक
हं , अस और दुधष वैक य तथा खीझ से मेरा तन-मन भर उठा। और कसी
अिच य शि से ओत- ोत हो मेरी कलम अपना काम करने लगी। लीिजए साहेब,
रात- दन म अनवरत गित से एक के बाद दूसरे प र छेद आप-ही-आप स पूण होने लगे।
खून-खराबी, लूटपाट, अ याचार और बला कार के जो दृ य, घटनाएं मेरे कान और
आँख को आ ा त करने लग , उन सबको म अपने इस उप यास म, यारहव शता दी
के उस बबर आ ा ता के उ पात म आरोिपत करता चला गया। म नह जानता क
मेरा यह काम कहाँ तक सािहि यक अपराध हो सकता है। पर तु य द यह अपराध ही है,
तो म इसे आपसे िछपाना पस द नह क ँ गा।
तीन बात
क तु तीन बात का मने अपने इस उप यास क रचना म आ य िलया। ी मुंशी, चूँ क
मुझसे थम ‘जय सोमनाथ’ िलख चुके थे–इसिलए इस कथा म मने ी मुंशी को आ
पु ष मा य कया। उनक अनेक का पिनक थापना को मने स य क भाँित हण
कर िलया। इससे एक तो मेरे उप यास म पर परामूलक रसो क े आ। दोन उप यास
पढ़ने पर पाठक के मन पर उस घटना का ि गुण भाव होगा, िवरोधी भावना नह
पैदा होगी। इससे रस-भंग का दोष नह आएगा, यही मने सोचा। ऐितहािसक स य क
मने परवा नह क । इतना ही काफ समझा क महमूद ने सोमनाथ को आ ा त कया
था। उसने गुजरात क लाज लूटी थी।
फर भी मुझे त कालीन वातावरण तथा घटना क परे खा बनाने म
गुजराती-सािह य और गुजर िव ान के िलखे सं कृ त- ाकृ त अनेक ंथ का मनन
करना पड़ा। सोलंक वंश, त कालीन सामािजक एवं राजनैितक ि थित, अथ- व था,
राजतं , कू टनीित च , सा दाियक भावना–सभी पर मने िवचार कया। इस काल के
वातावरण का सबसे मह वपूण अंश, िजसने गुजरात क राज स ा को ब त हािन
प च ँ ाई, यह था क राजा शैव िह दू और म ी जैन होते थे। इससे रा य क अथ-
व था जैन के हाथ म होती थी। नाग रक, सेठ-सा कार भी जैन होने से रा य म शैव
राजा क अपे ा जैन मं ी का अिधक भाव रहता था। पर तु यह बात गुजरात ही म
थी, राज थान म नह । और य िप गुजरात के राजा राज थान के भी अंशत: वामी
तथा स ब धी र तेदार थे, फर भी राज थान-मालवा, िस ध और गुजरात के राजा
म सहयोग के थान पर यु और कलह का ही बोलबाला रहता था।
ये ई दो बात–तीसरी बात मेरी अपनी थी। िम क चुनौती मुझे याद थी।
वही, ‘नहले पर दहले’ वाली। ‘नगरवधू’ पर अभी भी मुझे मोह था।
अ बपाली,सोम भ, िब बसार, च पा क राजकु मारी, कु डनी आ द असाधारण
रे खािच ह। पर तु सोमनाथ म तो मुझे नहले पर दहला मारना था, भावशाली नए
िच क सृि करनी थी।
सबसे थम मेरा यान िह दु के ढ़वाद, अ ान, धमा धता, क रता तथा
जाित-भेद और आ म-कलह आ द पर गया। मने वीकार कया, क इसी ने िह दु को
दिलत कया, परािजत कया है। मने इसक ित या व प, दासीपु देवा–देव
वामी–फतह मुह मद क सृि क । उसम िव ोह, तेजि वता, शौय, ेम, कमठता,
िन ा और दृढ़ता क म ित ा करता चला गया–और, अपनी समझ म उसे मने उसी क
अन य ेिमका के हाथ से वध कराकर उसके जीवन को साथक कर दया। दूसरी िजस
अलौ कक मू त क रचना मुझे करनी पड़ी, वह है ‘शोभना’, एक बाल-िवधवा ा ण-
कु मारी। इस मू त म मानवीय कोमलतम ेम क पराका ा क थापना करने क मने
चे ा क । स साहस, दप, यु पु मित, सेवा, दया, धम, कत , औदाय और आ मापण
क ित ा करने म मने अपनी धुंधली दृि को न जाने कतनी बार एकबारगी ही अ धा
बना दया। एक ही श द म, इस ि यतमा युवती को मने अपनी स दयता के स पूण
आँसु म आचूड़ ान कराकर ही अपने पाठक के स मुख उपि थत कया है। जो ी
अपने एका त ेमी का िसर काट सकती है, और धम और मानवता के श ु को अपना
िन छल यार अपण कर सकती है, खतरे म िन शंक दृढ़ता से आगे बढ़ती ही जाती है,
उसको कतना यार दया जाए, और कतनी उसक पूजा क जाए, इसका िनणय म
नह कर सकता ,ँ आप ही वह िनणय कर। मने तो चुपचाप गज़नी के दुदा त महमूद
को उसके आँचल क छांह म गज़नी क राह भेज दया है।
महमूद
पर तु िन संदह
े , वह अपने आँचल क छाँह म िजस महमूद को ले जा रही है,
वह उसी का िन मत पु ष है, एक ी का अपने हाथ पु ष का िनमाण करना आसान
बात नह है। महमूद का स ा च र चाहे जो हो,वह एक दृढ़ यो ा, आ ा ता और वीर
पु ष था। उसका जीवन ही क ठन अिभयान म बीता। पर उस ि म मानवोिचत
गुण न थे, यह म कहने का साहस कै से क ँ ? िन संदह े , जैसा क मने पहले कहा,
िवभाजन क िवभीिषका से भािवत मने सभी स भव अ याचार का आरोप इस
अिभयान के नायक महमूद पर कया है। पर तु वह मेरी खीझ ही तो थी। कु छ िह दू
होने के नाते नह , मनु य होने के नाते भी। इसिलए उस खीझ म आकर म एक ऐसे
महान िवजेता के साथ अ याचार ही करता र ,ँ यह मेरी सािहि यक िन ा नह । अतः
मने अपनी स पूण सािहि यक कोमलता, भावुकता और ेम क स प ता उसे दान
कर दी। मुझे यह याद ही न रहा, क वह मनु य का श ,ु खूनी और डाकू है। अ ततः वह
मनु य है, यह म कै से भूल सकता था। फर, वह मनु य भी साधारण नह –महान्
िवजेता, यो ा और िनय ता। अतः उसम जो धषणा के यो य था, उसक धषणा करके ,
उसम पूजाह था, उसक मने पूजा क । और ऐसा करके मने अपने सािहि यक धम का
पालन कया।
जब मने उसे दामो महता से परािजत कराया, तभी मने उसके स े शौय और
मानव व को पश कया। इसके बाद रमादेवी क बातचीत म, शोभना क मुलाकात म,
सुर-सागर के तट पर, तथा पीर क दरगाह म उसके स पूण मानवत व को कोमल तथा
भावुक यार-पीर और आ मापण से ओत- ोत करके उसे शोभना के आँचल म बाँध
दया। अब आप ही देख-समझ ल क वह शोभना को िलए जा रहा था, या शोभना उसे।
अ याचार के रे खािच
मुि लम सं कृ ित क खूनी, िज ी और सा दाियक क रता-मूलक वृि पर म
िजतना गु सा कट कर सकता था, कर चुका। परािजत पर, कै दय पर मने
अ याचार के जी भरकर रे खािच ख चे। पर तु इस सारे र पात और मानव-िवरोधी
भावना का मूल प जो महमूद था, उसे तो म वैसा ही दुदा त, र िपपासु, न छोड़
सकता था। उसे मने जो एक स ी मानवता का बाना पहना कर गज़नी वापस भेजा है,
शोभना के क याणांचल म बाँधकर, इसे आप इितहास-िवरोधी त व कह सकते ह। पर
मने तो उप यास म के वल इतना ही इितहास का सहारा िलया है, क सोमनाथ पर
महमूद का यह आ मण आ। और यह उसका अि तम आ मण था। इसी सोमनाथ और
महमूद के इितहास-मूल को लेकर म फर व छ द अपनी उप यास क मू तय को
गढ़ने लगा। और मेरा सािह यरस सूख न जाए, इसी का िच तन मने अ तत: कया।
के वल यही नह , क आदशवा दता क झ क म मने ऐसा कया। म मानववादी भी तो
,ँ मनु य को म दुिनया क सबसे बड़ी इकाई समझता ।ँ म मनु य का पुजारी ँ और
मनु य मेरा देवता है। पर तु ‘मनु य’,‘मानवता’ नह । मानवता का म पुजारी नह ।
मानवता मानवीय े गुण क भावना क तीित कराती है। जो लोग मानवता के
ेमी ह, वे धीर, वीर, उदा और स र महापु ष के पूजक है। क तु म नह । म के वल
मनु य का पुजारी ।ँ वह मनु य, जो घृिणत, पापी, अपराधी, खूनी, डाकू , ह यारा,
लुटेरा, कोढ़ी, िभचारी, ग दे रोग से आ ा त, मल-मू से लथपथ या पागल है, वही
मेरा देवता है। उसम जो यह कलुष है उसका अपना नह है, नैस गक नह है, उसपर
ऊपर से लादा आ है। यह तो मेरा, पुजारी का काम है, क उसे धो-प छकर, साफ-शु
करके , पिव -पूजनीय बनाए और अपना स पूण यार और सेवा उसे अ पत करे , जैसे
मल-मू से लथपथ अपने ब े के ित माँ करती है।
वह मने कया। स ह बार भारत को तलवार और आग क भट करने वाला,
लाख बि दय को िनरीह पशु क भाँित क गज़नी के बाज़ार म बेचने वाला, दुदा त
लुटेरा महमूद मेरे हाथ लग गया। गु से और िवरि से उसके सब कु कृ य मने देखे।
पर तु उसका छ मानव–त व भी तो मुझे देखना था। सो अवसर पाकर मने उसका
सब कलुष धो-प छकर, उसे साफ-शु करके , एक कोमल भावुक, आकु ल, आतुर ेमी
बनाकर, ेम-त व के ही ितिनिध एक रमणीर के आँचल क छाँह म उसे उसके घर
गज़नी रवाना कर दया। गंग सव के प म मने उसे आशीवाद दया। और आशीवाद
का त व भी मने भीमदेव को बता दया। फर दामो महता से परािजत करा, उसे उसका
दो त बना, उसके स पूण पौ ष को स कृ त कया। पर तु शायद यह काफ न था। मने
शोभना का प धारण कया, और उस प म मने उस दुदा त लुटेरे को कतना धोया-
माँजा, कतना मानवता के त व से उसे ओत- ोत कया–इसका फै सला तो म आप ही
पर छोड़ देता ।ँ अब यहाँ कह मने चूक ही क है तो आप मेरे कान पकड़ सकते ह।
पर तु आपक बात म मानूँगा थोडे़ ही। म तो यही कहे जाऊँगा, क मने जो कु छ कया
ठीक कया। ठीक कया। ठीक कया। िव का िव ोह करने पर भी यह क ग ँ ा। ितल-
ितल काट डालने पर भी यही क ग ँ ा।
चौलादेवी और भीमदेव
चौलादेवी िन स देह मेरे उप यास क नाियका है। उसक मू त को िजतना
अमल-धवल, कोमल, भावुक बनाना श य था, बनाकर मने सारे संघष के इस पार से
उस पार तक प च ँ ाकर, फर अपने ि यतम के व से लगाकर इसे िवदा कर दया है।
इस ‘िवदा’ क वेदना आँसू नह बहाने देती, मू छत कर देती है। भीमदेव िन स देह
शौय का मूत अवतार है। वह इस उप यास का नायक भी है, पर तु उसके शौय का ही
उ कष दखाकर म स तु हो गया। इससे बड़ा पु ष तो म उसे मान ही न सका।
राजपूत क राजनैितक प रि थित पर भी म थोड़ा काश डालना ठीक
समझूँगा। उस काल म, िजसक यह घटना है, गुजरात के सोलंक भारत के सव े
राजा थे। चामु डराय के अ छे-बुरे च र पर मने आगे ऐितहािसक काश डाला है।
यहाँ तो म उस बात का प ीकरण कर रहा ँ क मने य चामु डराय को एक सनक
और िन तेज राजा अं कत कया। िन स देह अपनी वृ ाव था म चामु डराय ऐसा हो
गया था। पर तु म तो उसके काल से िह दू राजा के उस असावधान जीवन क ओर
संकेत कर रहा ,ँ क िजसके कारण िह दू राजा हारते ही चले गए। हाँ, उनम मुलतान
के अजयपाल, घोघागढ़ के घोघाबापा, सपादल के धमगजदेव, अजमेर के दुलभराज
और सोमतीथ म शौय कट करने वाले छोटे-बड़े नरपित भी थे।
एक मह वपूण बात का संकेत तो म कर ही चुका ,ँ क गुजरात के राजा शैव
और म ी जैन थे। जाजन म जनसाधारण शैव और सा कार जैन थे। इनम उन दन
सा दाियक झगड़े होते रहते थे। इससे राजस ा राजा और म ी म िवभािजत रहती
थी। िह दू रा य के पतन का यह भी एक कारण है। पर सबसे बड़ी और मु य बात
उनम संगठन और एकता का अभाव ही था। य द ये राजपूत एक बार आपस म संग ठत
हो गए होते, तो भारत को कभी भी ऐसे भयानक र पात और पराजय के दृ य न देखने
पड़ते। राजपूत के सा ा य थापन के जो अनेक सुअवसर आए, वे य ही न चले जाते।
िशव
‘ॠ वेद’ म ततीस देवता म से एक ह। वे ‘पशुपित’ भी कहे गए ह।
‘यजुवद’ क शता दी म वे िशव के प म ई र ह। ‘अथव’ म उ ह ई र ही माना गया
है। जहाँ ‘भाव’ और ‘ शव’ दो देवता ह। ‘शतपथ’ ा ण म तथा ‘कौशीतक ’
उपिनषद् म उशस् के पु ह। इनके चार नाम हािनकर और चार नाम लाभदायक
ह। ये आठ नाम इ ह जापित ने दान कए ह। ‘ ेता तरोपिनषद्’ म िशव पूण
परमे र ह। इस कार यजुवद के बाद से उपिनषद्-काल तक इनका पूरा मह व रहा है।
गीता म, िजसे पाँचव शता दी बी. सी. क कहा जाता है, वे पहले-पहल िव णु के पीछे
रह जाते ह। दूसरी शता दी बी. सी. म ‘लकु िलन’ अथवा ‘लकु लीश’ नामक महा मा ने
पाशुपत मत चलाया,ऐसा भांडारकर का कथन है। इसक पूजन-िविध म नृ य, गान
और क ँ ार आ द सि मिलत ह। देवी के स ब ध म कु छ शृंगारपूण अनुिचत भाव भी ह।
‘पंतजिल’, जो दूसरी शता दी बी. सी. के पु ष ह, उनके काल म ‘िशव’, ‘ क ध’ और
‘िवशाख’ क मू तयाँ पूजी जाती थ । किन क के िपता ‘वेमकडफइजेज़’ के िस पर
िशव क मानुषी मू त है, लंग क नह । ये िस े लखनऊ- युिज़यम म रखे ए ह। पहली
शता दी ई वी म शैव मत क वृि और महायान बौ स दाय क वृि साथ ही साथ
ई। िशव लंग क सब पुरानी मू तयाँ इसी समय क िमलती ह। वराहिमिहर, जो छठी
शता दी के पु ष ह, िलखते ह क शैव मू त क थापना ा ण से कराए। कािलदास
(पाँचव शता दी), भवभूित (छठी शता दी), ीहष (बारहव शता दी) के किव
ंथार भ म िशव क उपासना करते ह। ‘मालतीमाधव’ म भवभूित ने िशव-मि दर का
वणन कया है।
सातव शता दी म महारा म कापािलक का होना पाया जाना मािणत है।
आठव शता दी के शंकराचाय ने पाशुपत धम के आचाय नीलक ठ को शा ाथ म
परािजत कया था। महाभारत म भी उपम यु ारा लंग-पूजन का कथन है। अनुशासन
पव म िशव को ा य का देवता कहा है। क मीर म क लट(ई वी सन 854),सोमान द
(दसव शता दी) ने परमो भावपूण शैव पूजन चलाया। 1160 म दाि णा य वासव ने
लंगायत स दाय को थािपत कया। एलौरा के गुफा मि दर, िजनका िनमाण तीसरी
से नव शता दी के बीच आ, उनम िशव क मह ा के अनेक मि दर ह। यही हाल
खजुराहो, मदुरा और कांची आ द के शैव मि दर का है, िजनका समय आठव से
बारहव शता दी तक है। बारहव शता दी के चौल राजा बड़े भारी शैव थे। ठे ठ दि ण
म 63 शैव भ के मठ ह। वहाँ क शैव मिहमा ब त ाचीन है। चौदहव शता दी का
गोरखनाथ का स दाय भी शैवमत-ग भत है। सारे भारत म फै ले ए ादश
योित लग शैव धम क ापकता के वल त माण ह।
शैव मत का बौ महायान से ब त आदान- दान आ। भारत से बौ िवचार
को हटाने म शैव मत का भारी हाथ था। य िप शैव मत भय के आधार पर उठा,
इसिलए ब त काल तक उसका शा प रहा, पर तु धीरे -धीरे वह ेम का तीक
बनता गया। अठारह पुराण म छह वै णव ह, और छह शैव। कु ल िमलाकर पौरािणक
सािह य म िशव दै य , दानव , िनशाचर आ द के भी कृ पालु, िहतैषी, आशुतोष और
संहारक देवता ह।
ादश योित ल ग
िशवपुराण म ादश योित ल ग व णत ह। सौरा म ‘सोमनाथ’, ी शैल
पर ‘मि लकाजुन’, उ ियनी म ‘ ी महाकाल’, ‘आकारे र’, के दार ख ड म
‘के दारनाथ’, डा कनी म ‘भीम शंकर’, काशी म ‘िव नाथ’, गोदावरी तट पर
‘ य बके र’, िचता भूिम म ‘वै नाथ’, दा कवन म ‘ ी नागे र’, सेतुब ध म
‘ ीरामे र’ और ‘घु मे र’1 । िशवपुराण, रामायण, महाभारत और दूसरे ाचीन
धम थ म इन योित लग का माहा य खूब बढ़ा-चढ़ाकर िलखा गया है। इन सबम
सव थम मह व सोमनाथ ही के मि दर को दया गया है। इस मि दर का वणन सं ेप म
यह है क द जापित ने अपनी स ाईस क या का िववाह च के साथ कया,
पर तु च ने एकमा रोिहणी के ित आकषण दखाया। तब द ने उसे य होने का
ाप दया, िजसपर च ने भासतीथ म मृ युंजय क आराधना क , और छह मास
तक िनर तर घोर तप कया, िजससे च को मुि और अमर व ा आ और ने
उससे कहा क कृ ण प म तु हारी एक कला ीण होगी, और शु ल प म उसी म
से बढ़ेगी, और येक पू णमा को पूण च हो जाया करे गा। इसके पीछे च ने
योित लग के प म उसी े म क थापना क । वही यह सोमनाथ देवािधदेव ह
िजनक बढ़ी-चढ़ी मिहमा महाभारत, ीम ागवत और क दपुराण म गाई गई है।
भारत म ाचीनतम िशव मू त जो हम िमलती है, वह भारत के गुिडम ल के मि दर क
है। यह मू त आज से बाईस सौ वष पूव, ईसा से दो शता दी पूव क है। इस मू त का अब
तक पूजन होता है। यह एक त भाकार लंग-मू त है। लंगद ड के एक ओर ि भुज
पशुपित िशव खड़े ह, उनके एक हाथ म मेष पशु है और दूसरे म परशु।2 दि ण और
उ र भारत म दो हज़ार वष पूव क और भी चतुभुज लंग-मू तयाँ िमली ह।
कु षाणयुगीन प थर क दो अँगुिल-मु ा िमली ह, जो कलक े के अजायबघर म रखी ई
ह, जो बड़ी भ और भावशाली है। िब कु ल गुंिडम लम क िशव-मू त के समान ही
एक िशव-मू त स भवतः ईसा से दूसरी शता दी क कु षाण-युग क मथुरा म िमली है।
ऐसा मालूम होता है क गु युग म खड़ी ई िशव क मू त उ व लंग के प म ही थी,
इस कार क मू त का नाम ‘लकु लेश’ था। ‘लकु ल’ श द लंगवाचक है। 7व शता दी
म प र ाजक वेनसांग ने काशी म जो िशव-मू त देखी थी, उससे वह ब त भािवत
आ था। उसने िलखा है क यह मू त िवशाल और महानता से प रपूण है, और मू त को
देखते ही दशक स ा त और सं त हो जाता है। ब बई के िनकट एिलफै टा ीप के
िग र मि दर म जो िवरा काय महािशव मू त है, वह सारे संसार क भा कयक कला म
अ ितम है। उस िवशाल मू त के तीन मुख दखाए ह, जो िशव के ि पुर के ोतक ह।
िवड़ देश म जो िशव क नटराज क मू त ा ह है, े ता क दृि से उसका थान
सबसे थम है। ऐसी ही कु छ अि तीय िशवमू तयाँ जावा ीप म भी ा ई ह। इसके
अित र इ डोचीन, म यबमा, क बोिडया, कोचीन, दि ण बमा और मलाया के ीप
म, संगापुर, सुमा ा और बो नयो तथा फलीपाइन ीप म भी िशव क अनेक मू तयाँ
ा ई ह। इतना ही नह , उनके सं कृ त िशलालेख और िव मयकारी मि दर के ा
भ ावशेष भी मह वपूण ह। ऐसे ही िशलालेख म एक मह वपूण िशलालेख याम देश
म दाक काकथाम के त भ पर उ क ण आ िमला है।3 दाक काकथाम का अथ है,
महानल- द, अथात् सरक ड क बड़ी झील। िजस िवशाल मि दर के ख डहर का यह
लेख है, उसके पूव क ओर एक बड़ी झील है। मि दर के झील तक जाने के िलए 330 गज़
ल बी एक पुिलया है, उसके बाद घना जंगल है। खंडहर को देखने से पता लगता है क
वह लगभग 150 गज़ ल बी और चौड़ी जगह पर बना आ था। इस मि दर के गभ म
िह दू देवी-देवता और िशव क खि डत मू तयाँ ह। इसके उ र-पूव के बीच के कोने म
वह त भ, िजसपर क वह िशलालेख खुदा आ है, अपनी पूव जगह पर कायम है।
आधार को बाद देकर उसक ऊँचाई 60 इं च है। उसके चार पहलू ह और िशलालेख
चार म समा होता है, िजसम कु ल 240 पंि याँ ह। अ र ब त सु दर ह, और लगभग
वैसे ही ह जैसे दि ण भारत के 10व या 12व शता दी के िशलालेख म िमलते ह। लेख
क पहली 194 पंि याँ सं कृ त म ह और शेष वहाँ क ाचीन मेर भाषा म। लेख म
िशव और ा क तुित क गई है। स ाट् उदया द य और उसके गु देव िशवकै व य
क महानता का बखान है,और कस कार वह िशव लंग थािपत ए और मि दर
बनाए, इन सबका वणन राजप रवार और गु प रवार-वणन के साथ िलखा आ है, जो
बड़ा ही भावशाली है।
ईसा क पहली शता दी म कु षाण राजा ने एक िव तृत सा ा य क
थापना क थी, िजसका िव तार काशी तक था। इस वंश का राजा वीम डफाईसीस
शैव था और महादेव का पोषक था। उसके िस पर एक तरफ राजा का िच है, दूसरी
तरफ महादेव न दी को िलए खड़े ह। एवं िशवजी ि शूल और डम िलए दखलाए गए
ह। वीम राजा का एक भी ऐसा िस ा नह है, िजस पर िशव क और न दी क मू त न
हो। इस राजा के उ रािधकारी किन क और उसके वंशज ने भी ऐसे ही िशव-मू त-
अं कत िस े चलाए, य िप किन क ने बौ धम अंगीकार कर िलया था। किन क के
िस म िशवजी ईशो या ईश के नाम से (Oeshe) अं कत ह। इस मू त क चार भुजाएँ
ह िजनम से एक म डम साफ दीख पड़ता है।4 कु शाणवंशी राजा के िस पर िशव
का दूसरा नाम मयासेनो (Meaceno) आया है। यह श द िन स देह महेश श द का
अप ंश प है। कु षाणवंशी वासुदवे के िस े पर तो के वल चतुभुज िशव क मू त और
न दी क आकृ ित दखाई पड़ती है। ऐसा तीत होता है क कु षाण राजा के
रा यकाल म िशव-पूजा का इतना मह व था क लगभग 200 वष तक–तीसरी और
चौथी शता दी तक–कु षाण ने िनर तर िशव को ही अपने िस म थान दया।
िन स देह इन तीन शताि दय म लंगपूजा का ाधा य नह रहा। य िप इसके बाद
लंगपूजा का ाधा य रहा। कु षाण के बाद गु रा य से पहले म यभारत म नागवंश
का भी रा य रहा। िशलालेख से तीत होता है क इस वंश के आ दपु ष ने िशव लंग
को क धे पर रखकर अपने वंश क थापना क थी, इसीिलए इस वंश का नाम
‘भारिशव’ पड़ा।
काशी म एक पु ष आकृ ित म बनी मू त िमली है, िजसके म तक पर िशवजी
क िप डी रखी ई।
इस काल के बाद ही उ री भारत म गु सा ा य का ादुभाव आ। गु वंशी
नरे श वै णव थे, और इनक उपािध ‘परम भागवत’ थी। य िप रा य-धम प रव तत
हो गया था, फर भी इस काल म िशव-पूजन भारत भर म चिलत था। इसी काल का
एक िशव लंग लखनऊ के यूिज़यम म है, िजसको कु मारगु ने तैयार कराया था। यह
लंग ऊपर से गोलाकार है और इसके नीचे का भाग चपटा है। इसपर एक लेख खुदा है,
िजसे ‘कमद डा क शि त’ कहते ह। ऐसा तीत होता है क इस काल म भी
िशव लंग-पूजन क यह वृि बढ़ती ही चली गई। यहाँ तक क बाहरी आ मणकारी
जाित ने भी भारत म बसकर शैव धम अंगीकार कर िलया। क दगु के काल म ण ने
भारत पर बार बार आ मण कया, और क दगु से इनका ब त भारी संघष आ।
अ त म ण ने म यभारत म एक सुदढ़ृ रा य क थापना कर ही ली। इस वंश के
तोरमाण के पु िमिहरकु ल ने एक छोटा िस ा चलाया था, िजस पर एक तरफ वृषभ
क मू त अं कत थी, और उसके नीचे ‘जयतु वृषः’ िलखा आ था। मू त पर राजा क
आकृ ित के सामने भी एक वृषां कत वजा का िच न था। इससे प है क शक क
भाँित ण ने भी अपना कु लदेव िशव को ही वीकार कया था। गु के पतन के बाद
छठी शता दी म जब मौखरी राजा क रा य- थापना ई,तो उ ह ने भी अपनी
उपािध ‘परम माहे र’ िस क , जो क इन राजा के िशलालेख पर अं कत है।
म य ा त के असीरगढ़ म िमली एक मोहर पर न दी का िच अं कत है। न दी के साथ
दो सेवक भी ह। बाण ने अपने ‘हषच रत’ म संकेत कया है क बंगाल के राजा शशांक
ने मौखरी वंश के अि तम राजा को मार डाला। यह राजा बौ धम का बल िवरोधी
और शैव धम का अनुयायी था। इसी राजा ने बोध-गया से बोिधवृ को उखड़वाकर
फं कवा दया था। इसके िस पर भी न दी सिहत िशव का िच अं कत है।
इसी शता दी के लगभग व लभी राजा ने भी वृषभ के िच को अपने िस
पर थान दया था।5 िन स देह व लभी राजा शैवधम थे। इसम तिनक भी स देह
नह , क सातव शता दी से लेकर दसव शता दी तक सारे भारत म िशव-पूजा क
धानता रही। ओिह द के राजा ने भी िशव को अपना उपा य माना, और अपने
िस पर वृषभ का िच रखा। राजपूत नरे श ने भी ऐसे ही अपने िस े चलाए। मेवाड़
के राणा ने एकािधदेव ी एक लंग का मि दर बनवाया, जो समूचे भारत म एकमा
ऐसा मि दर है, क िजसक पूजा अख ड प से हज़ार वष से होती चली आ रही है।
9व शता दी म का मीर म िशवपूजा का बड़ा भारी जोर था। राजा अवि तवमन के
म ी सूर ने एक मि दर म भूते र महादेव क मू त थािपत क थी। इसके बाद ही
दि ण म शंकराचाय ने शैवत व का चार कया। 10व शता दी म चौलवंशी
महाराजा राजराजा ने तंजौर म अपने नाम पर राजराजे र का ऐसा िवशाल मि दर
बनवाया क उसक जोड़ का कोई मि दर िह दू काल म देखने को नह िमलता। 10व
शता दी के बाद तो िशव-मि दर का भारत-भर म ाब य होता चला गया।
भारिशव और वाकाटक राजवंश
कु षाणवंशी स ाट् किन क सन् 78 ई वी म संहासन पर बैठा। इसके रा य म
का मीर, बुखारा, खानदेश और फारस का कु छ अंश तथा पाटिलपु पय त सम त
भारतवष सि मिलत था। इसक राजधानी पेशावर थी। पीछे यह बौ हो गया।
किन क का उ रािधकारी िव क आ। और िव क के बाद सन् 138 म वासुदव े ग ी
पर बैठा। वासुदव े क मृ यु से लेकर सा ा य क थापना तक 150 वष का अंधकारावृत
काल, िजसका इितहास नह है, वह समय है, जब ‘भारिशव’ और ‘वाकाटक’ राजा
ने भारत म शैवधम क थापना क । शक और कु षाण स ाट् िह दू धम के घोर िवरोधी
थे, उ ह ने ढू ंढ़-ढू ंढ़कर मि दर तुड़वाए, ा ण और ि य को नीचे दबाया, और नीच
जन को ऊँचा पद दया। जा पर भी उ ह ने भारी-भारी टै स लगाए। ऐसे ही समय म
नागवंश का उदय आ। नाग राजवंश िव दशानगरी म रा य करता था। इस वंश म
भोगनाग, रामच नाग, भूतन दी, िशशुन दी आ द िस शासक ए। ये सन् 80-140
के म य लगभग 60 वष तक म यभारत के जंगल म बसे, जहाँ उ ह ने छोटा-सा एक
जंगली रा य थािपत कर िलया। पीछे रीवां बु देलखंड होते ए गंगा के तट पर शक
को परािजत कर सम त आयावत म इ ह ने सा ा य थािपत कया। इन नव नाग का
राजवंश ‘भारिशव’ के नाम से िस आ। इनम वीरसेन, हयनाग, ि नाग, चरजनाग
और भवनाग िस स ाट् ए। इ ह ने लगभग 150 से 250 ई वी तक रा य कया।
इनके वंश का नाम भारिशव पड़ने का कारण िन िलिखत ता प के लेख से प होता
है।–
अंशभारसि वेिशतिशव लंगो हन िशवप रतु समु पा दतराजवंशानां
परा मािधगत-भागीर यमलजलमू ािभिष ानां
दशा मेधावमृथ ानानां भारिशवानाम् ।...
इस लेख म यह भी प होता है क इ ह ने दस अ मेध य कए। काशी क
वही य थली अब दशा मेध घाट कहलाती है, ऐसा संकेत इस ता प लेख म है। ये
िशव लंग को क धे पर िलए रहते थे, इसीिलए इनका नाम ‘भारिशव’ पड़ा।
भारिशव के समान ही दूसरा तापी राजवंश वाकाटक राजवंश इनका पड़ौसी
था। यह दोन रा य पर पर स बि धत थे। अि तम भारिशव महाराज भवनाग के
दौिह सेन वाकाटक महाराज वरसेन के पौ थे, जो दोन रा य के उ रािधकारी
ए। और इनके बाद दोन रा य िमल गए। वाकाटक सा ा य अपनी समृि म ब त
बढ़ गया और वरसेन थम ने चार अ मेध य करके ‘स ाट् ’ का पद हण कया।
वरसेन के पु िस गौतमीपु थे, पर तु वह राजा नह ए। राजा ए उनके पौ
सेन थम। आगे चलकर इसी वंश क एक शाखा ने प लव वंश क थापना क
िजसके भाव से दि णापथ म शैव धम का चार आ, िजसे आय और िवड़ दोन ने
वीकार कया। दूसरे श द म कहा जा सकता है क आय और िवड़ स यता के भेद को
अलग करके , आय और िवड़ को एक बनाकर, दि ण और उ र को एक शैव धम म
दीि त करने का ेय इसी वाकाटक वंश को है। िजस मू त को क धे पर लेकर भारिशव
ने यह उपािध ा क ,वह नागौद रा या तगत पारसमिनया पहाड़ी पर, भुमरागाँव के
िनकट, घोर वन म एक भ म दर म अब भी ि थत है, िजसे वहाँ के जंगली लोग
भाकु लबाबा कहकर पूजते ह। यह भाकु ल श द िन स देह भारकु ल का ही अप ंश है।
इस मि दर के चार ओर ऐसी ट िमली ह, िजन पर कु छ अ र खुदे ह। ऐसी कु छ ईट
क जाँच ी काशी साद जायसवाल ने क थी, और उ ह ने उन ट पर 150-200
ई वी तक के अ र पाए थे। यही समय भारिशव क समृि का था। स भव है क
अपने वैभव म नाग ने अपने इ देव क इस मू त को इस िवकट वन म िछपा दया हो।
शैव स दाय
शैव स दाय के जो थ कािशत ए, वे ‘आगम’ नाम से िस ह। इस
स दाय वाले िभ -िभ नाम से िभ -िभ कार क िशवमू त बना और पूजने लगे
थे। ये मू तयाँ छोटे त भ क आकृ ित क गोल लंग के प म, या ऊपर का भाग गोल
और चार तरफ चार मुख के प म बनी थ । ऊपर का भाग िव का सूचक तथा
चार ओर के चार मुख म पूव का मुख सूय का तीक, उ र वाला ा का, दि ण
वाला का और पि म वाला िव णु का तीक होता था। कु छ ऐसी भी मू तयाँ िमली
ह, िजनम मुख के थान म चार मू तयाँ साकार खड़ी बनी ह। इस कार मू त बनाने
क भावना यही है क सव जगत् का कताधता िशव और ये देवता ह, जो उसके िभ -
िभ प ह। कह -कह िशव क िवशालकाय जटाधारी ि मू त भी पाई गई है, उसके
छह हाथ, जटा सिहत तीन िसर और तीन मुख ह। िजनम एक रोता आ है जो का
तीक है। उसके बीच के दो हाथ म से एक म िबजौरा, दूसरे म भाला, दािहनी तरफ के
दो हाथ म से एक म सूय और दूसरे म ख पर और बा ओर के दो हाथ म से एक म
पतले द ड-सी कोई व तु और दूसरे म ढाल क आकृ ित का कोई छोटा-सा गोल पदाथ
है। ये ि मू त वेदी पर दीवार से सटी रहती है, और उसम छाती से कु छ नीचे तक का ही
िह सा होता है। इस ि मू त के सामने भूिम पर ब धा िशव लंग होता है, ऐसी
ि मू तयां के वई से छह मील दूर धारापुर नामक टापू म, िच ौर के कले म, िसरोही
रा य आ द थान म देखने म आई ह। पर सबसे ाचीन मू त धारापुर वाली है। िशव
के ता डव नृ य क पाषाण या धातु क मू तयाँ भी कई जगह िमली ह। 6
शैव स दाय क शाखाएँ
मूल शैव स दाय पाशुपत स दाय कहलाता था। इसी म से लकु लीश
स दाय का ज म आ। इस स ब ध म ई. सन् 971 का िलखा एक िशलालेख भी िमला
है, उसम िलखा है क पहले भृगु को िव णु ने शाप दया, तब भृगु ने िशव क आराधना
कर उ ह स कया, इस पर िशव हाथ म लकु ट (डंडा) िलए कट ए,इसी से वे
लकु टीश कहलाए। उ ह को लकु लीश भी कहते ह। यह अवतार कारवा ट (बड़ौदा
रा य) म आ। वही इस स दाय का मु य थान समझा जाता है। लकु लीश क कई
मू तयाँ राजपूताना, गुजरात, का ठयावाड़, दि ण (मैसूर तक), बंगाल-उड़ीसा म पाई
जाती ह। ये मू तयाँ ि भुज होती ह–तथा इनके िसर पर जैन मू तय के समान के श होते
ह। उनके दािहने हाथ म िबजौरा और बाय हाथ म लकु ट होता है, मू त प ासन म बैठी
होती ह तथा उ वरे ा होने के िच न व प मू त म ऊ व लंग बना रहता है। 7
लकु लीश के चार िश य कु िशना, गग, िम और कौ य के नाम लंगपुराण म
ह। इस चार के नाम से चार शैव स दाय चले ह। अब इस स दाय के मनु य नह है
तथा लकु लीश नाम भी ब त कम लोग म प रिचत है।
पाशुपत स दाय ही शैव का मुख स दाय है। वे िशव को ही कता-धता-
हता परमे र समझते ह।8 योगा यास और भ म- ान को आव यक समझते और मो
को मानते ह। ये छह कार क हास, गान, नतन, डु ार (बैल क भाँित आवाज़),
सा ांग िणपात और जप- या करते ह। और भी कु छ याएं ह। शैव का िव ास है
क जीव के कमानुसार िशव फल देता है, पशु या े जीव िन य और अणु ह। जब
वह पाश (माया का एक प) से छू ट जाता है, तो िशव- प हो जाता है। कम और पाश
माया ही है। जप और योग को भी ये मानते ह। कापािलक और कालमुख दो इस
स दाय क उपशाखाएँ ह, जो िशव-अनुयायी भैरव और क उपासना करते ह।
इनके छह िच न ह–माला, भूषण, कु डल, र , भ म और उपवीत। ये लोग मनु य क
खोपड़ी म खाते तथा मशान-भ म अंग म लपेटते ह। उसे ही खाते भी ह। एक डंडा और
शराब का याला पास रखते ह। और पा म ि थत देवता क पूजा करते ह। इ ह बात
को वे ऐहलौ कक और पारलौ कक इ छा-पू त का साधन समझते ह।
वसुगु ने इस स दाय का मूल धम- थ ‘ प दशा ’ िलखा है, िजसक टीका
उसके िश य क लट ने–जो अवि त वमा के रा यकाल (ई. स. 854) म
था–‘ प दका रका’ के नाम से क है। इसका मु य िस ा त यह है क परमा मा मनु य
के कमफल क अपे ा न कर अपनी इ छा से ही कसी साम ी के िबना ही सृि क
रचना करता है।
ईसा क 10व शता दी म सोमान द के का मीर म शैव स दाय क एक
शाखा ‘ यिभ ा-स दाय’ का चार कया। उसने ‘िशवदृि ’ नामक थ भी िलखा।
9
12व शता दी म कलचु र राजा िव ल के काल म बसव नामक ा ण ने इस
स दाय क एक नई शाखा लंगायत (वीर-शैव) मत चलाई, और ‘बसव-पुराण’ िलखा
जो क ड़ भाषा म है। इसने जैन को न करने का उ ोग कया। िव ल राजा ने बसव
को अपना म ी बना िलया था। म ी होने पर उसने ब त राजकोष से खच कर
जंगम ( लंगायत धम पदेशक ) को चार-काय म िनयु कया। डा टर लीट के
मतानुसार इस स दाय का वतक एका त था; बसव एक चारक मा था। ये जैन के
क र श ु थे। य िप इस स दाय म अ हंसा को मु य थान ा था, पर तु इ ह ने
जैन और उनक मू तय का िन ु रतापूवक उ छेद कया। ये न वण- व था मानते थे
न सं यास या तप ही को मु यता देते थे। बसव का कहना था क येक को म से
कमाना चािहए। सदाचार पर भी उसने पूरा यान दया था। भि इस स दाय क
िवशेषता थी और लंग का िच न इस स दाय का सबसे बड़ा िच न था। इस स दाय
के लोग अपने गले म िशव लंग लटकाए रहते थे, जो चाँदी क िडिबया म रहता था।
उनका िव ास था क िशव ने अपने त व को लंग और अंग म िवभ कया था।
िविश त ै से इस मत म कु छ समानता थी, पर तु वै दक मत से यह स दाय ब त
बात म मतभेद रखता था। य ोपवीत क जगह इस स दाय म दी ा सं कार होता
था िजसम गाय ी के थान पर वे ‘नम: िशवाय’ कहते तथा य ोपवीत क जगह गले म
लंग को लटकाते थे।
तिमल देश के शैव भी जैन और बौ के क र श ु रहे। इनके धा मक
सािह य के यारह सं ह ह जो िभ -िभ समय पर िलखे गए ह। सबसे अिधक
िति त लेखक ित ान स ब ध आ, इसक मू त भी शैव मि दर म तिमल देश म
पूजी जाती है। तिमल किव और दाशिनक अपने थ के ार भ म उसी के नाम से
मंगलाचरण करते ह।
बौ धम और शैव धम
बौ धम क अवनित का वणन इितहास म बड़ा िविच है। अनेक यान म
प रव तत होता आ यह धम, अनेक धम क सृि करता चला गया। य िप बौ धम
क अवनित का आर भ तो बु के िनवाण के तुर त बाद ही होने लगा था, और उसम
हीनयान और महायान स दाय के िवभाजन हो गए थे। पर तु अशोक और किन क
का राजा य िमलने से उसका िव तार आ। किन क के बाद भारत म बौ धम का
कोई पुर कता न रहा, िजससे वह पितत होता चला गया। य क हीनयान का माग
अित दु कर था। महायान मत कु छ सरल था। महायान से म यान का तृतीय प थ
छठव शता दी म िवकिसत आ। उसके बाद व यान। इन सब यान म अनेक ामक
िवचार चिलत होते चले गए और साथ ही अनेक कार के अनाचार उनम चिलत
होते गए। उसका अि तम प कालच यान का प बना, िजसम भूत- ेत और िपशाच
आ द क पूजा चिलत क गई। इस पंथ का गु जगदल-िवहार का िनवासी
िवभूितच था। इसी काल म बौ धम और शैव धम के कु छ त व को लेकर, पंतजिल
और बु के येय को लेकर नाथप थी योिगय का एक प थ चला। पर तु बु और
पंतजिल का मत तो मो अथवा िनवाण के िलए था, जब क नाथप थ का येय ऐिहक
िसि याँ ा करना था।
नाथ स दाय और शैव त
यह स दाय नेपाल और उसके आस-पास ब त चिलत आ, िजसम
गोरखनाथ क बड़ी िसि रही, जो पहले व यानी बौ साधु था, और िजसका नाम
रमणब था। इसी काल के लगभग बौ धम म सहजयान स दाय चला, िजसका
व क का हपा था। यह स दाय ित बत म अब भी चिलत है। इसम ताि क िविध
से वाममाग पूजा का चलन तथा अवधूत-माग, चा डाली-माग और डोवी-माग का
वेश आ। इन वाममाग बौ के भाव से शैव ने भी ताि क माग क थापना क ।
िजसम िशव, शि , भैरव, हनुमान, , महा , अिजता, अपरािजता, उमा जया,
च डी, ख गह ता, ि दशे री, कपािलनी, घोरी, कपालमाला, परशुह ता, योिगनी,
पचडा कनी, भूत, िपशाच और बेताल आ द दु देवता का पूजन ताि क िविध से
म -त , जपतप, य , जारण-मारण आ द के ारा स पा दत आ और उसके साथ
ही म -मॉस, िभचार आ द दुराचार का वेश भी इस वाम धम म आ–
दु करै नयमै ती :ै से मानो न िस यित।
सवकामोपभोगै तु सेिवत ाशु िस यित॥

एक समय ऐसा आया क यह ताि क शा मत बौ , जैन और शैव म


ित पधा क व तु बन गया। िसि ा करने के िलए, मशान म मुद के उपर बैठकर
म जपना, मलमू का भ ण करना, नर-कपाल म खाना-पीना, आ द अघोर कृ य
ब त काम म लाए जाते थे, िजनका भयंकर भयपूण भाव जनता पर था। म -िसि
से क िमयािगरी, पानी का दूध करना, आँख ब द कर चुपचाप िन ल समािध थ बैठना,
धूनी तापना, शू य माग से इ थान पर जाना, भूक प उ प करना और मृतक को
जीिवत कर देना आ द भयंकर और अ ाकृ ितक काय करना िसि के िलए स भव माने
जाते थे।
इस कार के स दाय से एक कापािलक भी था। महारा के महाराज
पुलके शी तृतीय (ई. स. 610–39) के भतीजे नागव न का एक ता प िमला है, िजसम
नािसक िजले म कपाल क माला धारण करने वाल के मुिखया को कपाले र क पूजा
के िलए तथा उ मि दर म िनवास करने वाले महा ितय के िनवाह के िलए एक ाम
देना िलखा है। इस लेख म ‘महा त’ श द कापािलक अथवा कालमुख का ोतक है।
इससे यह मािणत होता है– क ई.सं. क सातव शता दी के म य म शैव का
कापािलक स दाय चिलत था। कािलदास, सुब धु, बाण, ीहष, भ नारायण,
भवभूित आ द िव ान ने अपने-अपने थ के आर भ म िशव क तुित क है। बाण
और भवभूित क रचना म पाशुपत और कापािलक का उ लेख है।
रामानुज का कथन है क कापािलक के िस ा तानुसार जो पु ष ष मु ा के
त व तथा उनके उपयोग को भली-भाँित जानता है, वह गित का अिधकारी है। वे
छह मु ाएँ इस कार ह–1. माला 2. आभूषण 3. वण-भूषण 4. जटा-मिण 5. भ म-
धारण और 6. य ोपवीत। उनके मत म िजन मनु य म ये िच न ह , उनका पुनज म
नह होता। पुनज म से बचने के िलए कापािलक नर-खोपड़ी म खाता, देह पर
िचताभ म लपेटता, ा क माला धारण करता, िसर पर िबखरे ए के श रखता था।
‘शंकर दि वजय’ म एक कथा उि लिखत है। एक समय माधव ने शंकर क उ ैन म
एक कापािलक से भट कराई। उसके शरीर पर मशान क भ म और हाथ म नरकपाल
तथा लौह द ड था। उसने शंकर से कहा–आपक देह पर लगी भ म तो अ छी है–पर तु
पिव कपाल-पा के थान पर आप मृ पा य रखते ह? और कपालधारी भैरव को
य नह पूजते? य द आप म और नर-र -रं िजत कपाल-पा से उनक पूजा नह
करते, तो वे (भैरव) कै से स ह गे? इसपर उनके साथ आए ए राजा सुध वा और
कापािलक के मुिखया कच म झगड़ा हो गया। शंकर ने भी कच को शाप दया। इस
पर कच ने अपने इ देव भैरव को म दरा आ द से स कया। भैरव वहाँ उपि थत
हो गया, क तु शंकर को अपना ही अवतार मानकर उसने कच को ही मार डाला।
भवभूित ने ‘मालतीमाधव’ म ीशैल को कापािलक का मु य िनवास बताया
है। वहाँ कपाल कु डला नामक दूती नर-मु ड क माला धारण करती थी। अघोरघ ट
ारा चामु डा को बिल देने के िलए वह मालती को आधी रात म मशान पर ले गई
थी।
वा तव म भयो पादक वै दक का प रवतन भैरव और उसक प ी
चि डका, जो नर-मु ड क माला पहनती है, के प म आ। रामानुज ने कालमुख
स दाय का–कापािलक से भी अिधक भयंकर प म िच ण कया है। अघोरप थी भी
इसी स दाय के होते थे, जो गे ए व पहनते, म –माँस खाते तथा नर-कपाल म
भोजन करते थे। इनके आरा य देव भैरव और शि थे। ये सब ताि क साध ना म रहते
थे, और रात म मशान जगाते तथा अनेक घोर कृ य करते थे।
दि ण म शैव धम
कांचीपुर म शैव मि दर के िशलालेख से छठी शता दी म शैव धम के दि ण म
चिलत होने का पता लगता है। ई.स. 550 म प लव शासक राज संह ने राज संहे र
का िशव मि दर बनवाया था। यह राजा शैव िस ा त का िव ान् था, इसका उ लेख
िशलालेख म है। 10
ा क मू त
ा के अनेक मि दर अब तक िव मान ह। य िप देव म सबसे कम इस देव
क पूजा होती है। ा को सृि का उ पादक और य का वतक माना गया है।
इसक मू त चतुमुखी है। पर तु जो मू त दीवार म लगी होती है, उसके तीन ही मुख
दखाए जाते ह। प र मा वाली म चार मुख ह। ऐसी चतुमुखी मू त थोड़ी ही िमली ह।
ा के एक हाथ म ुवा दीखता है जो य कता का सूचक है। िशव-पावती के िववाह
सूचक मू त-समुदाय म ा को पुरोिहत का थान दया गया है। पर तु यह एक
िविच बात है क िशव और िव णु के समान ा का कोई स दाय नह ह। क पना
म ा, िव णु और िशव एक ही परमा मा के ि व प माने गए ह। ऐसी ाक
अनेक मू तयाँ िमली ह िजनके ऊपर के एक कनारे पर िशव और दूसरे पर िव णु क
छोटी-छोटी मू तयाँ बनी ह। ऐसे ही िव णु क मू तय पर ा और िशव तथा िशव क
मू तय पर ा और िव णु क छोटी-छोटी मू तयाँ बनी ह। इससे यह तीत होता है
क तीन देवता म एकता थािपत क गई है। भ ने अपनी-अपनी अपनी-अपनी
इ छा से कसी एक क मुखता मानकर उपासना क है। बाद म इन देवता क ी
सिहत मू तयाँ बनने लग । िशव-पावती क मू त के अित र िशव क अ नारी र
मू तयाँ भी िमलती ह, िजनम आधा शरीर िशव का और आधा पावती का होता है। ऐसी
ही सि मिलत मू तयाँ भी होती ह। िशव और िव णु क सि मिलत मू त के ह रहर तथा
तीन क सि मिलत मू त को ह रहर-िपतामह कहते ह।
ि देव
18 पुराण म इ ह तीन व मु य देवता के वणन ह। िव णु, नारदीय,
भागवत, ग ड़, प और वाराहपुराण िव णु से–तथा म य, कू म, लंग वायु, क ध
और अि पुराण िशव से–एवं ा ड, वैवत, माक डेय, भिव य, वामन और
पुराण ा से स बि धत ह।
शि पूजा
इन देवता क पि य क भी िभ -िभ प म पूजा चिलत ई। ी,
माहे री, कौमारी, वै णवी, वाराही, नार संही और ए ी–इन सात शि य को
मातृका कहते ह। कु छ भयंकर शि याँ भी ह–जैसे काली, कराली, कापाली,
चामु डी और च डी। इनका स ब ध कापािलक और कालमुख से है। कु छ शि याँ
ऐसी भी ह जो िवषय-िवलास से स बि धत ह। जैसे आन द भैरवी, ि पुर सु दरी,
लिलता आ द इनके उपासक का कहना है–िशव और ि पुरसु दरी के योग से संसार
बना है। वणमाला के थम अ र ‘अ’ से िशव और अि तम अ र ‘ह’ ि पुरसु दरी का
अिभ ाय है। इन दोन का योग ‘अहं’ काम-कला का सूचक है। 11
मौिलक और भैरवी च
य का मु य भैरवी च है, य के दो भेद ह–1. मौिलक 2. समियन।
मौिलक म भी दो भेद ह। ाचीन मौिलक तो योिन के िच क , दूसरे वा तिवक योिन
क पूजा करते ह। पूजा के समय वे म , माँस, मीन आ द का भ ण करते ह। समियन ये
याएँ नह करते। भैरवी च के समय वण भेद का स ब ध-भेद नह रहता–माता,
पु ी, प ी, शू , चा डाल और ा ण सब समान होते ह।12
“किवराज शेखर नव शता दी के अ त के आसपास आ। उसने
‘कपूरमंजरी’िलखा है। उसम भैरवान द के मुँह से कौल मत का इस कार वणन कराया
गया है–

मंताणं तंताणं ण कं िप जाणे झाणं चणो कं िप गु पसाओ।


म ं िपआमो मिहलं रमामो मो खं च जामो कु ल म गल गा॥22॥
अिवअ–

र डा-च डा दि खआ ध म दारा म ं मंसं िप ऐ ख ऐ अ। िभ खा भोजं


च म ख डं च से ा कोलोध मो क स णो भाइ र मो॥23॥13

(हम म -त आ द कु छ नह जानते, न गु -कृ पा से हम कोई ान ा है।


हम लोग म पान और ी-गमन करते ह, तथा कु लमाग का अनुसरण कर मो पाते
ह।) पुन –
(कु लटा को दीि त कर हम धमप ी बना लेते ह। हम लोग म पीते तथा
माँस खाते ह। िभ ा ही हमारा भोजन और चमख ड ही श या है, ऐसा कौल धम
कसे ि य नह ?)
गणेश-पूजा
गणेश-पूजा भी इस काल से थम ही ार भ हो चुक थी। गणेश या िवनायक
के गण का नायक था। या व य- मृित म गणेश और उसक माता अि बका क
पूजा का वणन िमलता है। 14 पर तु न तो चौथी शता दी से पूव क कोई गणपित क
मू त िमली है, न त कालीन िशलालेख म इसका उ लेख िमलता है। इलौरा क गुफा
म कु छ देिवय क मू त के साथ गणपित क मू त बनी है। ई. स. 862 के घ टयाला के
त भ म गणेश क चार मू तयाँ बनी ह। इन मू तय म सब म सूंड़ बनी है। नह कहा
जा सकता, गणेश के मुख म सूंड़ क क पना कब से आिव कृ त ई है। ‘मालतीमाधव’ म
भी गणेश क सूंड़ का वणन है। गाणप य क भी अनेक शाखाएँ है। सब देव क भाँित
गणपित क भी पूजा होती है। 15
का तके य क द
िशव के ि तीय पु क द का तके य क पूजा भी ाचीन है। रामायण म16 उसे
गंगा का पु कहा गया है। क द देवता का सेनापित है। पंतजिल के महाभा य म
िशव और क द क मू तय का उ लेख है।17 किन क के िस पर क द, महासेन
आ द-आ द कु मार के नाम िमलते ह। हेमा के त ख ड म क द क पूजा का वणन है।
सोमनाथ का योित ल ग
सोमनाथ के योित ल ग क थापना गुजरात म स भवतः व लभी वंश के
राजा ने पाँचवी या छठी शता दी म क होगी। च गु (ई. सन् 410),
कु मारगु (416), और क दगु (ई.स. 456) इन तीन राजा के अित र और कोई
दूसरा गु राजा गुजरात म उि लिखत नह है। भाट और चारण के कथनानुसार ई वी
सन् 470 म क दगु का वगवास आ और उसके सेनापित मैतृकवंशी भ ारक ने
गुजरात म एक नये वत राजवंश क न व डाली, जो तीन सौ वष तक चलता रहा।
इसी पु ष ने व लभी नगर बसाया, और उसे अपनी राजधानी बनाया और व भी
स वत् भी चलाया। स भवत: यह सेनापित सूयवंशी था। इस वंश म लगभग बीस राजा
ए, िजनम िशला द य स म सबसे अि तम था। सेनापित भ ारक–िजसने व लभी वंश
क थापना क , वयं शैव था। य क येक व लभी ता प पर महादेव के न दी क
ितमा और भ ारक का नाम खुदा आ है। 18
इस वंश के कु छ राजा ने वै णव धम भी वीकार कया और बौ धम भी
वीकार कया। गुहसेन िस बौ था। उसे परमोपासक कहा जाता है। पर तु उसके
पु -पौ सूय-पूजक थे, इसिलए उ ह परमा द य भ कहा गया है। पर तु पीछे के सब
राजा परममाहे र के नाम से िव यात ह। मेवाड़ के सं थापक बा पा रावल और उसके
वंशज मेवाड़ के राणा, भावनगर के गोहल–ये भी व लभी वंश क ही शाखा म से
आए ह और आज तक भी िशव के पूजक ह और परममाहे र कहाते ह। इन माण से
भी यही सािबत होता है क व लभी वंश शैव उपासक था इससे यह अिधक स भावना
है क सोमनाथ का सव थम िनमाण कसी व लभी राजा ने ही कया होगा–स भवतः
तृतीय िशला द य ने अथवा चतुथ िशला द य ने।
सौरा
आज भी सौरा के गाँव-देहात म घर-घर रमते योगी लोग एक गीत गाते
फरते ह। उसका अिभ ाय यह है क सौरा म पाँच र ह–घोड़े, नदी, ी, सोमनाथ
और ह र का िनवास। इनम सबसे अिधक िस सोमनाथ का महालय है,जो
का ठयावाड़ के दि ण समु तट पर ि थत है। आज इस े को का ठयावाड़ कहते ह।
पर तु इससे थम इसका नाम सौरा अथवा सौर रा था। ‘सौरा ’ का अथ है–उ म
रा , और ‘सौर रा ’ का अथ है–सूय का देश।
सोमनाथ-प न
सोमनाथ महालय क भारत के बारह योित लग म गणना है और बारह
योित लग म उसका मुख थान था। महालय के ाचीर को अनेक बार ू र
आ ा ता ने अपने आ मण और अि वाला से भ म कया, पर तु उनके पीठ
फे रते ही उसी भ म से फर नवीन देव थान का उदय आ। इन सारे आ मण म
सवािधक बल आ मण ई वी सन् 1025 म महमूद गज़नी का था।
आज पाटन नगर अपना ाचीन वैभव और व त खंडहर का अवशेष रहकर
अपने ऊपर कए गए अ याचार का मूक सा ी-सा खड़ा है। सोमनाथ के ाचीन वैभव
के खंडहर के साथ यहाँ एक जामा मि जद भी है, जो यहाँ के ाचीन सूय मि दर,
पा वनाथ मि दर, कोठार, श ागार तथा पूव पि मी ार को तोड़कर, उ ह के
सामान से सूय-मि दर के थान पर बनाई गई है। इसी कार नगर क मायापुरी
मि जद भी और दूसरा मकबरा भी मि दर को तोड़-फोड़कर उ ह के मसाल से
बनाया गया है।
धम-संकट
सोमनाथ के इितहास म थम महान् धम-संकट ई वी सन् 1015 म आया,
जब क मू तभंजक महमूद गज़नवी अपनी भारी सेना लेकर सुदरू गज़नी से मु तान और
अजमेर क राह देवमू त को भंग करने के िलए पाटन पर प च ँ ा। ‘रोज़त-उस-सफा’, जो
15व शता दी म िलखी गई थी, म इस आ मण का वृ ा त इस कार िलखा है,
‘‘सोमनाथ एक बुत का नाम है, िजसे िह दू लोग सब बुत का मािलक मानते ह।’’
इितहासकार इसे वीकार करते ह क सोमनाथ समु -तट पर ि थत देवालय म
िति त एक मू त थी, इस मू त क िह दू पूजा करते थे। िवशेषतया हण पड़ने पर।
िह दु का यह भी िव ास था क मृ यु होने पर शरीर म से आ मा िनकलकर
सोमनाथ के पास आती है, और फर वहाँ से नए-नए शरीर म वेश-आ ा लेकर जाती
है। उनका यह भी िव ास था क समु देव भी सोमनाथ क पूजा करते ह। समु का
वार-भाटा इस उपासना का माण माना जाता था। भारत के कोने-कोने से लोग इस
मू त क पूजा करने के िलए आते थे। इसक पूजा के खच के िलए एक हज़ार गाँव मि दर
क भट थे। और इसम इतनी र रािश एकि त थी, क इसका दशांश भी कसी राजा के
कोश म न होगा। दो हज़ार ा ण मू त क सेवा करते थे। और दो सौ मन क सोने क
जंज़ीर म घ टा लटका रहता था। जो िनधा रत समय पर बजकर लोग को पूजा के
िलए आमि त करता था। तीन सौ नाई और पाँच सौ नृ य कु मा रयाँ और तीन सौ
वा बजाने वाले वहाँ रहते थे। इन सबका य याि य क भट और दान से चलता
था। सोमनाथ के इस िवशाल वैभव को महमूद ने सबसे थम न कया। िह दु के
ारा क गई ाथनाएँ और र ाथ यु कु छ भी काम न आए। पचास हज़ार से भी
अिधक िह दु का क ल मि दर के ांगण और आसपास म आ।’’ ‘फ र ता’ िलखता
है–‘‘महमूद ने मि दर म घुसकर ा ण क ाथना और क ण िवनितय को ठु करा
दया, और अपनी भारी गदा को मू त पर दे मारा और मू त के टु कड़े-टु कड़े कर दए।
इसका एक टु कड़ा वह गज़नी ले गया और वहाँ मि जद क देहली पर जड़ दया, िजससे
ईमान ◌ान वाले उसे िन य पैर से र द और इ लाम क सव स ा का प रचय द।’’
अ ब नी ने भी इस बात क पुि क है। अ ब नी महमूद के दरबार म रहा और इस
आ मण म महमूद के साथ था। अपनी ‘तवारीखे-िह द’ म उसने िलखा है–‘‘मू त को
शाह महमूद ने 416 िहजरी म तोड़ा, खुदा उसपर रहम करे । उसने मू त के ऊपरी भाग
को चूर-चूर कर डाला और नीचे के भाग को उसके शृंगार, आभूषण और व सिहत ले
जाने का म दया। उसने मू त के एक भाग को च वािमन् क मू त के साथ, िजसे
वह थाने र से लाया था, गज़नी के चौराहे पर फं कवा दया। मू त का दूसरा भाग
गज़नी क मि जद के ार के आगे लगा दया गया है, िजसपर लोग अपने पैर क धूल
और क चड़ मि जद म वेश करने से थम प छते ह।’’ मि दर 56 ख भ पर टका आ
था। येक ख भ मिणय , जवाहरात और ब मू य प थर से सुसि त था। येक
ख भ पर उसके िनमाता राजा का नाम खुदा रहता था। इन ख भ क भी सब र रािश
उखाड़ कर लूट ली गई। यह भी कहा जाता है क महमूद मि दर के ार को, जो चाँदी
और च दन का का बना था, उखाड़ गज़नी ले गया।
य िप महमूद ने मि दर को कया था, क तु उसको उजाड़ा नह था। उसे
उजाड़ा उसके सूबेदार ने, िजसे वह अपने पीछे देश पर शासन करने छोड़ गया था।
भीमदेव थम ने ई वी सन् 1022-72 म महमूद के जाते ही, नगर को फर जीत िलया
और सोमनाथ क ितमा को पुनः थािपत कया। सन 1100 म िस राज जय संह
देवपाटन म ी सोमे र के दशन को आए, और मि दर का जीण ार कराया। ई वी
सन् 1169 के लगभग इस मि दर को फर लूटा गया और न कया गया, य क ई वी
सन् 1169 म कु मारपाल ने, जो िस राज जय संह के बाद गुजरात के महाराजािधराज
बने, इस मि दर का नए िसरे से पुन ार कया, यह बात सोमनाथ पाटन के भ काली
मि दर म लगे एक िशलालेख से कट है। लेख से यह भी पता चलता है क कु मारपाल
को उसके जैन म ी हेमच ने यह स मित दी थी– क सोमनाथ के मि दर का, िजसका
कु छ भाग लकड़ी का बना आ है और िजसपर समु क लहर के थपेड़ से हािन
प च ँ ती है, शी ता से पुन ार करे । जब मि दर का पुन नमाण हो गया तो मि दर के
पुजारी बृह पित को सोमनाथ पाटन का सवािधकारी बनाया गया, और कु मारपाल ने
सप रवार सोमपाटन आकर लंगाचन करके उसक ित ा क । यह सारा िववरण भी
उसी लेख म खुदा है–िजसपर व लभी स वत् (ई वी सन् 1169) दया गया है।
इसके बाद एक शता दी तक इस मि दर पर कसी ने आ मण नह कया।
ई वी सन् 1297 म द ली के िखलजी सुलतान के सेनापित अलफ खाँ ने पाटन पर
चढ़ाई क और सोमनाथ को फर धूिल-धूस रत कया। लंग को उखाड़ डाला गया, और
उसक जड़ को गहराई तक खोद कर िछपाए ए खज़ाने क तलाश क गई। िशखर को
नीचे िगरा दया गया और दीवार पर खुदी मू तय को खर चकर िब कु ल अ प और
अदृ य कर दया गया। इसके बाद तो गुजरात पर मुसलमान के ज दी-ज दी अनेक
आ मण ए। कु छ ही दन बाद अनिह लप न के अि तम िह दू राजा भी िन संतान
मर गए। िगरनार म खुदे लेख के अनुसार इस बार के व त सोमनाथ का पुन नमाण
ई वी सन् 1308-1325 म चूड़ासमा राजा महीपाल देव ने कया, क तु उसके
जीवनकाल म यह िनमाण पूरा नह आ। उसके पु खंगार ‘चतुथ’ ने ई वी सन् 1325-
1351 म मि दर म लंग क पुनः थापना क । इन िपछले आ मणका रय ने ितमा को
भंग करके लूटा और चलते बने। उ ह उस साम ी से मि जद बनाने क बात नह सूझी।
ई वी सन् 1318 म सोमनाथ पर फर आ मण आ। ई वी सन् 1394 म गुजरात के
गवनर मुज फर खाँ ने एक बल धम-यु पड़ोसी िह दू राजा के िव कया,
िजसम सोमनाथ मि दर को न करके उसक जगह मि जद बना दी। महीमाल देव ने
जो कु छ बनाया था, सब तोड़ डाला गया, क तु कु मारपाल का मि दर बचा रहा।
फ र ता मुज फरखां के आ मण, 795 िहजरी के िसलिसले म कहता है–‘‘तब वह
सोमनाथ क ओर बढ़ा, और वहाँ ि थत सब िह दू मि दर को व त करके उनके थान
पर मि जद बनवा दी। उसने वहाँ धम चार के िलए मु ला को छोड़ दया। अपने
कु छ अफसर को वहाँ का शासन स भालने पर िनयु कया और वयं 798 िहजरी म
पाटन लौट आया। अब िह दू पूण हताश हो गए और फर कभी सोमनाथ क इतनी
धूमधाम नह सुनाई दी।
वतमान मि दर का थान भी पूव-ि थत मि दर के थान पर नह तीत होता।
वतमान मि दर इ दौर क रानी अिह याबाई ने उन ख डहर के समीप ही बनवाया
था। इस पर भी एक और अि तम मुि लम आ मण गुजरात के महमूद बघरा या
मुज फर ि तीय ने कया। 19व शता दी म भारत के एक गवनर-जनरल ने तथाकिथत
सोमनाथ मि दर के ार गज़नी से लाकर आगरे के कले म र खे थे। पर तु पीछे यह
मािणत हो गया क वा तव म वे ार सोमनाथ के नह थे। अि तम काल म
मुसलमानी आ मण से बचने के िलए मि दर म दो लंग क थापना क गई थी। एक
भूिम थ, दूसरा बाहर। भूिम थ असली था और वहाँ जाने का माग गु र खा गया था।
यूरोिपयन लेखक कोिज स (Cousens) मि दर का िववरण इस कार िलखता
है19 –‘‘सोमनाथ का पुराना मि दर नगर म, समु के पूव तट पर ि थत है। समु और
मि दर के बीच एक भारी दीवार है, जो मि दर को सुरि त करती है। इस मि दर क
दीवार क ाचीनता लगभग न हो चुक है। उसम ब त बार मर मत हो चुक है और
ब त भाग फर से बनाया जा चुका है। खासकर उस समय-जब क उसे मि जद से
प रव तत कया गया। वह िवशाल गु बद, अिपतु सारी छत और मीनार–जो वेश- ार
के सामने ही है–मुसलमान ारा बनाए ए ह। सन् 1838 म लेि टने ट पो ट स
िलखता है– क उसके आने के कु ल (Lieutent Postans) साल थम तक मि दर क छत
तोप रखने के िलए काम आती थी–जो बेरावल के ब दर को समु ी डाकु से रि त
रखने के िलए रखी गई थ । के वल एक ही बात से यह कट होता है क सारा मि दर
फर से बनवाया गया–और वह बात यह है क उसके मूलाधार म ‘अ रथ’ बने ह। और
इस मि दर का प रमाण–जो लगभग 140 फ ट है–उतना ही है िजतना िस पुर के ‘
महालय’ का है।
दीवार के बाहरी भाग–जो व त हो चुके ह–उनसे तीत होता है क वे
दीवार ाचीन दीवार पर ही बनाई गई ह। खासकर दि ण भाग म, जहाँ पुराने
मि दर के नीचे के धरातल का भाग प दीख पड़ता है–यह बात प हो जाती है।
अनेक कारण पर िवचारकर म इस िनणय पर प च ँ ा ,ँ क मि दर का वतमान व त
भाग, उसका अवशेष है जो ई वी सन् 1169 म कु मारपाल ने बनवाया था। य द यह
स य है तो वह पुराना मि दर, िजसके अवशेष दीवार के बीच म कट होते ह,
स भवत: भीमदेव का बनाया आ होगा; पर तु असल ाचीन मि दर, िजसपर महमूद
ने आ मण कया था–उसका कोई नामोिनशान भी नह है। भीमदेव के मि दर के जो
वंस अभी ह, उनसे यह भी कट होता है क वह मि दर कु मारपाल के मि दर क
अपे ा ब त छोटा था। कनलौक फाबस का कहना है– क ‘‘फ र ता ने जो महमूद-
काल के सोमनाथ का वृ ा त दया है, वह वतमान वंस पर लागू नह होता। और इस
कारण यह अस भव तीत होता है क महमूद ने जो मि दर ढहा दया था, वह िह दु
ने फर से बना िलया हो। मने यह साफ तौर पर देखा है क भीमदेव के 100 साल बाद
के एक िशलालेख पर यह खुदा है, और कु छ दूसरे लेख से भी पता लगता है क मि दर
भीमदेव ने बनवाया था। दूसरा कोई इस कार का नह बना सकता था। य क यह
राजा सोमनाथ का एकमा र क तथा गुजरात का त कालीन राजा था। इसी से म इसे
ाचीन मि दर नह , बि क भीमदेव का मि दर समझता ।ँ स भवतः ाचीन मि दर
खाड़ी के एकदम कनारे पर, िजसे वहाँ के लोग हीरा कोट कहते ह, वह होगा।
कै टेन िवलबर फोस बैल का ठयावाड़ के इितहास म फाबस क बात मानकर
कहते ह क िस राज जय संह ने भीमदेव के मि दर का जीण ार कराया। पर इस
बात को अिधकृ त प से वह नह कहते। पो टन का िवचार है क वह मि दर वैसा ही
था, जैसा महमूद ने उसे छोड़ा था–पर यह बात सही नह है। पो टन का मत है क
कदािचत् यह मि दर पहले बौ का मठ था, पीछे शैव ने उसे अपना िलया। अपनी
बात के समथन म उनका यह कहना है क मि दर म कह भी बौ िच न नह है। पर तु
पो टन का तक यह है क मि दर के िनमाण और थाप य तथा सजावट म सभी पु ष
मू तय म कह भी िह दू िच ण नह है, बौ िच ण है। वे अिधकांश म बौ सं कृ ित-
यु ह। डॉ टर जॉन िवलसन भी इससे सहमत नह ह। वह इस मि दर को भी गुजरात
के अ य शैव मि दर क भाँित शैव िन मत ही मानते ह।
बड़ा मि दर, िजसका मुख पूव दशा म है, उसम एक िवशाल ब द भवन था,
िजसे ‘गुहा-म डप’ कहते थे। इसके तीन वेश- ार थे, िजनम येक म ऊँचे महराब
बने थे, और िशव लंग हॉल के पि मी भाग म था, िजसके चार तरफ श त दि णा
थी। इसम काश के िलए ऊपर बड़े-बड़े रोशनदान तीन भाग म थे, और बाहर से
उसका दखाव ब त भ तीत होता था। पि म दशा क महराब अब िगर गई है
और शेष तीन महराब भी ढह गई ह। यह अिधक स भव है क मुढेरा म जो सूय का
मि दर है उसी क भाँित इसम भी एक सभा-म डप रहा हो, िजस पर मायापुरी मि जद
क छत बनाई गई है। असल छत अब िगर गई है और मुसलमान ने उसे ज दी म फर
से बनाया हो। ख भे भी खड़े कए ह, और गु बद बनाकर छत के बाहर के िह से को
मि जद का प दे दया है। जो उसके वा तिवक ख भ तथा आधार से, जो आबू के
तेजपाल के ॠषभदेव मि दर के ढंग के ह, जो अब ब त कम बचे ह तथा व त ाय ह।
समु क नमक न हवा से वे प थर गल गए ह। अब िसवाय दि णा के –जो बच रही
ह–सब जगह क खुदाई भी िमट गई है। वतमान ख भे, उ ह पुराने ख भ क जगह पर
खड़े तीत होते ह। सतह क दशा देखकर तीत होता है क यह िबना छत के बरस
तक मेह और पानी म खड़े रहे। तब यह िब डंग बनाई गई है। लंग के भीतर के भाग
भी खराब हो गए ह,पर छत क ाचीन कारीगरी अभी है। पीछे क दीवार जो टू ट गई
थी,वह कसी तरह बना दी गई है। लंग के दरवाजे़ के प थर का े म भी फर से बनाया
गया है। फश पर एक चबूतरा अभी है। कदािचत् यहां न दी रहा होगा। न दी के टु कड़े
बाहर पड़े ह। मि दर के बाहरी भाग म खासकर महालय के दि णी-पि मी भाग म
खुदी ई मू तय क दशा इतनी खराब हो गई है, क उनका पहचानना ही क ठन है।
इनम अनेक देवी और दािसयां ह। दि ण के पूव भाग क एक िखड़क म िशव क
ता डव नृ य करते ए, टू टी ई एक खि डत मू त है, िजसक 12 भुजा के आधे
अवशेष बाक ह। नर मु डमाल उनक टाँग तक लटक रही है। न दी, िजसक िसफ दो
टाँग शेष रह गई ह, उनके दािहने पा व म ह, और िशव के िसर पर का जटा-जूट र सी
क भाँित िलपटा आ है। दीवार के मोड़ पर बा ओर को एक और, स भवतः िशव क
ितमा ही है। इन सबके ऊपर छोटी-छोटी पावती-िशव क मू तयां ह, िजनम िशव
पावती को अपनी जाँघ पर बैठाए ए ह। कोन म हर ओर द पाल क मू तयां बनी
ह। गभगृह क छत पर उ र-पूव कोण म रामायण के कु छ दृ य दीख पड़ते ह। कु छ
भाग अ य त सु दर और भ बने ह। िवशेषकर बाहरी ार के दोन ओर खड़ी ई
मू तय के अवशेष ह–ये मू तयां भीतरी ार तक चली गई ह, पर तु अब कु छ ही समूची
रह गई ह। दरवाज़ा स भवत: पहले के ही समान है। मि दर के बाहर जो खि डत
मू तयां पड़ी ह, उनम सूय क दो बड़ी और एक छोटी मू त है, िजसम सूय अपने हाथ म
पूरा िखला कमल का फू ल िलए ए ह। इनम एक का हाथ टू ट गया है। छोटी मू तयां
बड़ी क अपे ा अवाचीन तीत होती ह। स भवतः बड़ी मू त सूय के ाचीन मि दर क
है, िजसे पीछे जामा मि जद बना दया गया था। जैसी सूय-मि दर क छत है, क कण
देश के अ बरनाथ के ाचीन मि दर क छत पर भी वैसा ही काम है। एक मू त बड़ी
दाढ़ी और मूँछ क है, जो स भवत: कालभैरव क है। उसक आठ टू टी भुजाएं ह िजनम
एक म ख ग, दूसरी म ि शूल, तीसरी म नर-मुंड है। मि दर का भीतरी भाग भी
मि जद बना दया गया था। इसिलए मुसलमान ने ख भ को फर से खड़ा करके
गु बद बनाया तथा कु छ सजाया भी। बीच क ाचीन छत–जो कभी अ य त भ रही
होगी–जैसी मायापुरी मि जद है, पर तु बेकार होने से वह फर काम म नह लाई गई।
हॉल तथा मू त का थान–जहां स भवत: न दी था–वहां छत नह ढाली गई। यहां के
ख भे सबसे अिधक टू ट गए ह। जो मि दर का मुख ार था, वह हटा दया गया था।
उसके थान पर एक सादा महराबदार दरवाज़ा लगा दया गया था। दि णा क
भीतरी दीवार भी मू तय से भली-भाँित सजी थ । यह माग अंधेरा न था, िखड़ कय से
काश आता था, िजनसे सब भ ता दीख पड़ती थी। भीतरी भाग िस पुर के
महालय और मुढेरा के सूय-मि दर ही के समान है। िजस थान पर लंग थािपत था,
वह चौकोर है।
मि दर का थाप य यारहव शता दी का है, जब क मुढेरा, अ बरनाथ,
महालय और िवमलशाह के मि दर तैयार ए थे। िवशेषकर ख भे वैसे ही ह, जैसे आबू
के तेजपाल के ॠषभदेव के मि दर ह।
ऐसा तीत होता है क भीमदेव का मि दर कु मारपाल के मि दर क भाँित
श त और भ नह था। इसका कारण शायद यह रहा हो क वह ज दी म और
लूटमार के तुर त बाद बनाया गया था।
भारत म मुसलमान क सफलता के कारण
लगभग चार हजार वष तक िह दू सं कृ ित िनर तर िवकिसत होती रही। देश-
देशा तर म भी उसका चार आ। उसका संपक दूसरी सं कृ ितय से आ, उनका
भाव भी उस पर पड़ा, पर तु उसका अपना प िब कु ल ि थर ही रहा। िवदेशी
िवजेता तक ने उस सं कृ ित के आगे िसर झुकाया और उसम अपने को लीन कर
िलया। य िप ये िवदेशी–शक, ीक, ण, सीिथयन, मूची, कु शान आ द–िह दु क
वण- व था एवं िविभ जातीय समुदाय के कारण उनम पूणतया नह िमल पाए,
पर तु उ ह ने िह दू धम, िह दू भाषा, सािह य, रीित- रवाज, कला और िव ान को
पूणतया अपनाकर िह दु क अनेक जाितय क भाँित अपनी एक जाित बना ली,
और ये िह दू जाित का एक अिवि छ अंग बन गए–ये ही आज राजपूत, गूजर, जाट,
ख ी, अहीर आ द के प म ह।
पर तु मुसलमान म एक ऐसा जुनून था क वे ईरान, ीस, पेन, चीन और
भारत कह क भी सं कृ ित से भािवत नह ए। कसी भी देश क सं कृ ित उ ह अपने
म नह िमला सक । वे जहां-जहां गए, अपनी िवजियनी सं कृ ित का डंका बजाते ही
गए। उनके सामने एके रवाद, मुह मद साहब क पैगंबरी, कु रान का मह व, बिह त
और दोज़ख के प कड़े िस ा त ऐसे थे, क कसी भी सं कृ ित को उनसे प ा करना
अस भव हो गया। उनके धम म तक को थान न था, तलवार को था। तलवार लेकर
अपनी अ भुत सं कृ ित क वषा करते ए, वे जहां-जहां गए, अपनी राजनैितक स ा
एव सां कृ ितक स ा थािपत करते गए। इसम कोई स देह नह क भारतवष अ य
देश क अपे ा अपनी सां कृ ितक स ा पर िवशेषता रखता था, और भारत पर
मुि लम सं कृ ित क िवजय, अ य देश क अपे ा िभ कार क ही थी। भारत क
राजनैितक स ा संयोजक और िवभाजक से प रपूण थी। संयोजक स ा क
बलता होने पर मौय, गु , वधन आ द सा ा य सुग ठत ए, पर तु जब िवभाजक
स ा का ादुभाव आ, तो के ीय शि के ख ड-ख ड हो गए और देश छोटे-छोटे
टु कड़ म बँट गया।
िवभाजक स ा
िजस समय भारत म मुि लम आगमन आ; उस समय िवभाजक स ा का
बोलबाला था। भारत छोटे-छोटे अिनयि त टु कड़ म बँट गया था। एकदेशीयता क
भावना उनम न रही थी। ये अिनयि त रा य पर पर राजनैितक स ब ध नह रखते
थे। येक ख ड रा य अपने ही म सीिमत था। य द कसी एक ख ड रा य पर कभी
िवदेशी आ मण होता, तो वह भारत पर आ मण नह समझा जाता था। न ऐसे
आ मण का सामना करना सबका सामूिहक कत ही समझा जाता था। य द कु छ
राजा िमलकर एक होते भी थे, तो वैयि क स ब ध से। यह नह समझते थे क यह
हमारा एक रा ीय कत है। धा मक और सामािजक िभ ताएं भी इसम सहायक थ ।
द ली का पतन चौहान का, और क ौज का पतन राठौर का समझा जाता था। इसम
िह दु व के पतन का भी समावेश है, इस पर िवचार ही नह कया जाता था। फर,
भारत म जो मुि लम रा य स ाएं थ , उनके ित तो श ु-भाव ही सबके थे। ये छोटी-
छोटी रयासत, साधारण कारण से ही पर पर ई या- ष े और श ुभाव से ऐसी
िवरोिधनी शि य के अधीन हो गई थ , क सहायता तो दूर रही, एक के पतन से
दूसरी को हष होता था। ऐसी हालत म एक शि को े मानकर िवदेशी आ ा ता
का सामना करना तो दूर क बात थी।
ातृ व, एकता और अनुशासन
मुसलमान एकदेशीयता और एकरा ीयता के भाव म िथत थे। सब
मुसलमान ब धु व के भाव से बँधे थे। सामूिहक रोज़ा-नमाज़, खानपान ने उनम
ऐ यवाद को ज म दे दया था। उनक सं कृ ित म एक का मरना सबका मरना, और एक
का जीना सबका जीना था। राजपूत म अनै य ही नह –घम ड भी बड़ा था। इससे
कभी य द वे एक होकर लड़े भी, तो अनुशासन ि थर न रख सके । मुसलमान का
अनुशासन अ भुत था। उनके अनुशासन और धा मक क रता ने ही उ ह यह बल दया,
क अपने से कई गुना अिधक िह दू सेना पर भी उ ह ने िवजय पाई। यु म जहां उ ह
लूट का लालच था, वहां धा मक पु य क भावना भी थी। धन और पु य दोन को
तलवार के बल पर वे लूटते थे। का फर को मौत के घाट उतारना या उ ह मुसलमान
बनाना, ये दोन काम ऐसे थे, िजनसे उ ह लोक-परलोक के वे सब सुख ा होने का
िव ास था, िजनके लुभावने वणन वे सुन चुके थे। और िजन पर बड़े-से-बड़े मुसलमान
को भी अिव ास न था। इसी ने उनम फू त और एकता एवं िवजयो माद उ प कर
दया। िह दु म ऐसा कोई भाव न था। जात-पांत के झगड़ ने उनक ब धु व-भावना
न कर दी थी, और िवभाजक स ा ने उनक राजनीितक एकता को िछ -िभ कर
दया था। ितस पर स ाधा रय क गुलामी ने उनम िनराशा, िवरि और िख ता के
भाव भी भर दए थे। ऐसी हालत म देश- ेम या रा - ेम उनम उ प ही कहां से
होता? राजपूत म राजपूतीपन का ज़ र जुनून था, पर इस रती-भर उ ेजक शि के
बल पर वे िसफ पतंगे क भाँित जल ही मरे , पाया कु छ नह ।
िह दू समाज- व था ही पराजय का कारण
जब कोई नया आ मणकारी आता, जा राजा को सहयोग देने क जगह
अपना माल-मता लेकर इधर-उधर भाग जाती थी। राजा के न होने पर वह दूसरे
राजा क अधीनता िबना आपि वीकार कर लेती थी। राजपूत अ य जाित के कसी
यो ा या राजनीित को कु छ िगनते ही न थे। इसी से कड़े से कड़े समय म भी राजा
और जा म एकता के भाव नह उदय होते थे। पर तु मुसलमान म भंगी से लेकर
सुलतान तक एक ही जाित थी। येक मुसलमान तलवार चलाकर का फर को मारकर
पु य कमाने का या मरकर गाज़ी होने का इ छु क रहता था। इस कार िह दू समाज-
व था ही िह दु क पराजय का एक कारण बनी।
दूिषत यु नीित
राजपूत क यु नीित भी दूिषत थी। सबसे बड़ा दूषण हािथय क पर परा
थी। िसक दर के आ मण तथा दूसरे अवसर पर य ही हाथी पराजय का कारण
बने थे। मुि लम अ बल िव ुत-शि से श ु को दिलत करता था। पर तु िह दू सेनानी
तोप का आिव कार होने पर भी हाथी पर ही जमे बैठे रहकर ि थर िनशाना बनने म
वीरता समझते थे।
दूसरी व तु ि थर होकर लड़ना तथा पीछे न हटना, उनके नाश का कारण बने।
अवसरवा दता को वहां थान ही न था। यु -योजना दु साहस पर ही िनभर थी।
बौि क योग तो वहां होता ही न था। पीठ दखाना घोर अपमान समझा जाता था।
यु म जय- ाि क भावना न थी, क तु जूझ मरने क थी। य िप राजपूत साधारण
कारण से आपस म तो आ मण करते थे, पर िवदेिशय पर इ ह ने कभी आ मण नह
कया।
तीसरा दोष, सेनापितय का आगे होकर उस समय तक यु करना, जब तक
क वे मर न जाव, यु न था, वरन् मृ यु-वरण था। यह नीित महाभारत से लेकर
राजपूत के पतन तक भारत म देखी गई। सं ेप म यह कहा जा सकता है क भारतीय
यु -कला का नेतृ व यो ा के हाथ म रहा, सेनापित के हाथ म नह । सेनापित का
तो भारतीय यु म अभाव ही रहा। भारतीय यु के इितहास म तो आगे चलकर
के वल दो ही रणनीित-पि डत ए, एक मेवाड़ के महाराज राज संह, दूसरे छ पित
िशवाजी। और दैव-िवपाक से दोन ही ने अपनी ु शि से आलमगीर औरं गज़ेब क
बल वािहनी से ट र ली, तथा उसे सब तरह से नीचा दखाया।
मुसलमान का भत - े अि तीय था। अफगािन तान और उसके आस-पास
क मुि लम जाितयां, जो भूखी और खूँखार थ , िज ह लूट-लालच और िजहाद का जुनून
था, जो का फर से लड़कर मरना, शहीद होना और जीतना मालामाल होना समझते
थे, भत के समा न होने वाले े थे। मुसलमान को कभी भी सैिनक क कमी न
रही। महमूद गज़नवी और मुह मद गोरी क सेना म अनिगनत मनु य क मृ यु
होती थी, पर तु ट ी दल क भाँित उसे अनिगनत और सैिनक िमल जाते थे। उ ह इन
अिभयान म जो धन-जन क ित होती थी, उससे उ ह अधैय और िनराशा नह होती
थी, य क उ ह अटू ट धन-र , सु दर दास-दासी और ऐ य ा होते थे, साथ ही
धा मक याित और लाभ होने का भी िव ास था। वे इ ह धम-यु समझते और सदा
उ सािहत रहते थे।
िह दु का भत े सदा संकुिचत था, वह एक रा य या एक जाित और एक
वग तक सीिमत था। छोटी-छोटी रयासत थ । उनम भी के वल ि य लड़ते थे। अ य
वग क उ ह कोई सहायता ही नह ा होती। इसिलए वे यु ो र-काल म िनर तर
ीण होते जाते थे। उनक यु कला ऐसी दूिषत थी क एक-दो दन के यु म ही उनके
भा य का समूल िनपटारा हो जाता था। फर कु छ करने-धरने-संभलने क तो कोई
गुंजाइश ही न थी।
य द आप कौ टलीय अथशा म व णत यु -नीित पर ग भीर दृि डाल, तो
आपको आ यच कत हो जाना पड़ेगा। उसम ऐसी िवकिसत यु -कला क क ा या
है, क िजसके आधार पर सा ा य का िनमाण होता है। िजस महापु ष ने वह थर
िलखा है, उसने सब मानवीय और अमानवीय त व तथा गुण-दोष को यु के उपयोग
म िलया है। बड़े दु:ख का िवषय है क राजपूत को इस यु -कला से वंिचत रहना पड़ा;
उनक यु -कला के वल मृ यु-वरण कला थी।
सेनानायक क जबतक मृ यु न हो जाए, तबतक यु म आगे बढ़कर वैयि क
परा म कट करते रहना बड़ी भयानक बात थी। इसक भयानकता तथा घातकता का
यह एक अ छा उदाहरण है क पृ वीराज ने संयोिगता के वरण म अपने सौ वीर
साम त म से साठ को कटा डाला और फर कसी भाँित वह उनक पू त न कर सका।
िजससे तराइन के यु म उसे परािजत होकर अपना और भारतीय िह दू रा य का
नाश देखना पड़ा। राणा साँगा, राणा ताप तथा पानीपत के तृतीय यु के अवसर पर
सेनानायक क इस कार ित होने पर, उसक पू त न होने पर ही िह दु को
पराजय का सामना करना पड़ा।
मुसलमान क सेना म येक मह वाकां ी यो ा को उ त होने, आगे बढ़ने
तथा यु - े म तलवार पकड़ने का अिधकार तथा सुअवसर ा था। यहां तक, क
त दास को भी अपनी यो यता के कारण, न के वल सेनापितय के पद ा होने के
सुअवसर िमले, युत वे बादशाह तक क ेणी म अपना तथा अपने वंश का नाम
िलखा सके । कु तुबु ीन, इ तमश, बलबन आ द ऐसे ि थे जो दास होते ए भी
अि तीय परा मी और शि शाली थे। इस कार आप देखते ह क मुसलमान
आ ा ता ने भारत म आकर यहां क जनता को अ त- त, रा य को ख ड-ख ड,
राजा को असंग ठत और राजनीित तथा यु नीित म दुबल पाया। अलब ा उनम
शौय, साहस और धैय अटू ट था। पर तु के वल इ ह गुण के कारण वे सब भाँित
सुसंग ठत मुसलमान पर जय ा न कर सके –उ ह रा य और ाण दोन ही खोने पड़े।
गुजरे र
गुजरे र ◌े र सोलं कय का मूल पु ष, िजसने क गुजरात म प न का रा य
थािपत कया, मूलराज थम था। उसने सपादल ीय राजा चौहान िव हराज और
तैलंग सेनापित वारप से यु कए। इन यु म वारप मारा गया। और उसके दस हज़ार
घोड़े और अठारह सौ हाथी मूलराज के हाथ लगे। स भवतः चौहान राजा िव हराज से
उसने सि ध कर ली।20 पर तु ‘ ब ध-िच तामिण’ म आगे चलकर यह िलखा है क
मूलराज िव हराज से डर कर क था दुग म भाग गया था। पृ वीराज-िवजय का और
हमीर-महाका भी मूलराज क पराजय ही को विनत करते ह।21 पृ वीराज-रासो म
इस लड़ाई का िव तृत वणन है। उसम गुजरात के राजा बालुकाराय का नाम िलखा है।
परं तु इस नाम का कोई राजा गुजरात म नह आ। स भवतः ‘चालु यराय’ के थान
पर बालुकाराय िलखा गया है। वह यु िव म स वत् 987 म आ था। पर तु रासो का
यह स वत् गलत मालूम होता है। मूलराज ने िव म स वत् 1017 से 1052 तक रा य
कया। इसिलए यह यु िव म स वत् 1017 के बाद ही होना चािहए। इसके अित र
िव हराज दूसरे वीसलदेव का एक िशलालेख िव म स वत् 1030 का हषनाथ के
मि दर म, जो शेखावाटी म है, िमला है। उसम इस यु का कोई िज़ नह है। इससे यह
विनत होता है क यह यु उ स वत् के पीछे आ। इसके अित र हेमच ने अपने
या य का म िव हराज और मूलराज के इस यु क कोई चचा नह क । पर तु
सोलंक वारप को मारने क बात ब त बढ़ा-चढ़ाकर क है। य द वारप मूलराज के हाथ
से मारा गया हो, तो भी लाट देश पर मूलराज का अिधकार नह पाया जाता। जैसा क
क तराज के दानप से मािणत है। या य का के आधार पर ही यह भी ात
होता है क मूलराज ने सौरा के आभीर राजा गृह रपु यादव चूड़ासमा को यु म
घायल करके ब दी कया, और उसके सहायक क छ के राजा लाखा को यु म मारा।
फर उसने सोमनाथ क या ा क ।
‘क तकौमुदी’22 और ‘सुकृतसंक तन’23 तथा ‘कु मारपाल-च रत’ म भी
मूलराज के हाथ से लाखा का मारा जाना मािणत है। पर तु ब धिच तामिणकार यह
कहता है क उसने मूलराज को यारह बार हराया था। अ त म मूलराज ने उसे
किपलकोट के कले म घेर कर -यु म मारा। कहते ह क मूलराज एक कपटी
अनपढ़ ि था। उसके िव म स वत् 1043 के दानप म जो उसके ह ता र ‘ ी
मूलराज य’ ह, उनक िलिप भ ी है, और के वल छह अ र होने पर भी सीधी पंि नह
िलख सका। इससे मालूम होता है क वह अिधक पढ़ा-िलखा नह था।
िस पुर का -महालय
मूलराज ने िस पुर म -महालय नाम का एक श त िशवालय बनवाया,
तथा इसक ित ा के िलए कु े , क ौज तथा गौड़ देश से एक हजार ा ण
बुलवाए। और उनको दो सौ ितह र गाँव तथा अ य जागीर देकर गुजरात म बसाया
था।24 ये गुजरात म उ र से आए थे, इसिलए ‘औदी य’ और उनक सं या एक सह
होने से ‘सह औदी य’ कहलाए। इस समय औदी य ा ण क गणना पंच िवड़ म
होती है। पर तु देखा जाए तो िवड़ क पर परा से उनका कोई स ब ध नह है।
ा ण के भेद मूलराज से ब त पीछे ए। कु छ लेखक का यह भी कहना है क -
महालय मूलराज के हाथ से पूण नह आ था, जय संह िस राज ने उसको पूरा कया
था। मूलराज के एक दानप म, जो िव त स वत् 1043 का है, यह प िलखा है क
िव म स वत् 1043 माघ-बदी अमाव या, सूय- हण के दन ी थल म -महालय
देव का पूजन कर क बोइका गाँव, म डली नगर के मूलनाथ को भट कया। 25
इससे प होता है, क -महालय क थापना िव म स वत् 1043 के पहले
हो चुक थी। हेमच अपने ‘ या य-का ’ म मूलराज के पु चामु डराज का
महालय म महाभारत सुनने का वणन करता है। य द महालय क ित ा मूलराज से
नह ई होती तो यह स भव नह था। हेमच , जय संह िस राज का समकालीन था।
महालय का मि दर भी सुलतान गज़वनी क चढ़ाई के समय तोड़ा गया था, इसके
भी माण ह–और इसका जीण ार जय संह िस राज ने कराया था।
मूलराज ने अनिह लप न म भी ि पुर- ासाद नामक मि दर बनवाया था।
या य का म िलखा है क मूलराज दान-पु य करने क इ छा से अपना रा य अपने
ये पु चामु डराय को स प कर िस पुर म जा रहा, और वह जीिवत अि म वेश
करके वग को िसधारा।26
मूलराज ने िव म स वत् 1017 से 1052 तक रा य कया था।
चामु डराज
मूलराज के पु और उ रािधकारी चामु डराज के िव ‘परम भ ारक’,
‘महाराजािधराज’ और ‘परमे र’ िमलते ह। जय संह सू र अपने ‘कु मारपाल-च रत’ म
िलखते ह क, ‘‘चामु डा के वर से बल होकर चामु डराज ने मदो म हाथी जैसे
िस धुराज को यु म मारा।’’27 िस धुराज मालव के िस िव ानुरागी परमारवंशी
राजा भोज का िपता तथा मुंज,वाक् पितराज अमोघवष का छोटा भाई और
उ रािधकारी था। पर तु इस घटना का उ लेख मालव के राजा के िशलालेख और
ऐितहािसक पु तक म नह है। न गुजरात के इितहासकार ने ही इस घटना का उ लेख
कया है। बड़ानगर से िमली महाराज कु मारपाल क शि त म, जो िव म स वत्
1208, आि न शु ल 15, गु वार क है, िलखा है क ‘‘उस मूलराज का पु , राजा म
िशरोमिण, चामु डराज आ, िजसके म त हािथय के मद-ग ध क हवा के सूँघने मा
से दूर से ही मदरिहत होकर भागते ए अपने हािथय के साथ ही साथ राजा िस धुराज
इस तरह न आ क उसके यश क ग ध तक नह रही।’’28
शि त के िशलालेख म “िस धुराज: ोिणपित:’’ पाठ है–िजसका अथ राजा
िस धुराज या िस धुराज नामक यह होता है। डॉ टर वूलर ने उ शि त का स पादन
करते ए इसका अथ िस धु देश का राजा कहा है। पर तु यह ठीक नह है। य क
िस धुराज का िवशेषण ोिणपित है, इससे यह िन य होता है क चामु डराज के हाथ
से िस धुराज नामक राजा ही मारा गया, िस धु का राजा नह । स भवत: यह घटना
िव म स वत् 1066 के कु छ पहले ई। कारण, िव म स वत् 1050 तक तो मुंज ही
मालव का राजा था, िजसका छोटा भाई िस धुराज था। चामु डराय का देहा त 1066
म आ। इसिलए िव म-स वत् 1050 और 1066 के बीच ही िस धुराज का मारा जाना
माना जा सकता है।
हेमच आचाय ने अपने या य का म चामु डराज को गुणी,कत -
परायण श ु-संहारक, परोपकारी और धनी दखाया है।29
चामु डराज के तीन पु थे : व लभराज, दुलभराज और नागराज। व लभराज
ने मालव पर चढ़ाई क , पर वह बीमार होकर वह मर गया। वहां से उसका सेनापित
लौट आया। व लभराज क मृ यु से चामु डराज ब त दु:खी आ और वह दुलभराज को
रा य दे नमदा-तट पर शु ल तीथ म आ म- यान म वृ आ। इस घटना का उ लेख
य िप या य का म कया तो गया है, पर तु उसका टीकाकार अभयितलक गणी
यह कहता है, क चामु डराज बड़ा कामी था। इसीिलए उसक बिहन चािचणीदेवी ने
उसको संहासन से उतार कर व लभराज को ग ी पर बैठाया। अभयितलक गणी के इस
कथन म स यता कट होती है, य क भीमदेव थम के वृ ा त म फारसी के
इितहासकार से उ धृत कए जाने वाले दाबिशलीन के हाल से उसका समथन होता है।
‘ ब धिच तामिण’ के कथनानुसार चामु डराज ने अनिह लप न म चायणे र का
मि दर बनवाया था। इससे चािचणी देवी नाम तो ठीक है।
फाबस ने अपनी ‘रासमाला’ म िलखा है क चामु डराज ने अपनी बिहन
चािचणी देवी से िभचार कया। क तु गुजरात के कसी भी इितहास से इस कथन
क पुि नह होती। स भवतः फाबस ने अभयितलक गणी के व को म से ऐसा
िलख दया है। र मालाकार िलखता है क चामु डराज का शरीर पीले रं ग का, कृ श
था। खाने-पीने और शृंगार म वह ब त िच रखता था, तालाब आ द बनवाने तथा बाग
लगाने का भी उसको ब त शौक था। चामु डराज ने िव म स वत् 1053-1066 तक,
अनुमानतः 14 वष रा य कया।
कहा जाता है क बचपन म एक बार चामु डराज अपने िपता महाराज
मूलराज के पास बैठा था। उस समय लाट देश के राजा वारप ने मूलराज को भट म कु छ
हाथी भेजे थे। चामु डराज ने एक हिथनी को ल य करके कहा, ‘‘यह अशुभ हिथनी है।
य क इसक पूँछ कु े के समान है। इस ल ण वाला हाथी िजस राजा के यहाँ रहेगा,
उसका रा य और घर न हो जाएगा। लाट देश के राजा ने जान-बूझकर श ुता से यह
हिथनी भेजी है।’’ ऐसा कहकर चामु डराज ने िपता क आ ा लेकर वारप पर चढ़ाई
क , और उसे मार डाला।30 या य का म तो यह िलखा है, पर ‘ ब धिच तामिण’
म वारप को तैलंग का राजा और सुकृतसंक तन म का यकु ज 31 का राजा िलखा है।
पर तु क तकौमुदी32 म उसे या य का क भाँित लाट देश का म ी िलखा है। चाहे
जो हो, पर तु वारप का मूलराज या चामु डराज के हाथ से मारा जाना तो िनि त ही
है। पर तु वारप के पौ क तराज और क तराज के पौ ि लोचनपाल का एक
दानप शक स वत् 972, िव म स वत् 1107 का िमला है।33 इससे तो यह मािणत
होता है क उस काल तक वारप के वंशज पाटन के सोलं कय के अधीन न थे। िव म
स वत् 1030 म क याण के चालु य राजा तैलप ने राठौर से लाट देश छीना। छीन कर
अपने सेनापित वारप को दया, वारप क मृ यु िव म स वत् 1030 म ई — या
अिधक से अिधक 1050 के अ तगत। पर तु लाट देश पर अिधकार इसी के वंशज का
रहा।
कु छ इितहासकार का मत है क चामु डराज भोगी-िवलासी, संगीत और ऐश-
आराम म पड़ा रहने वाला राजा था। उसने अपनी बढ़ती उ म अपना सब राजकाज
मि -म डल को स प दया था, और जा क तरफ से बेखबर हो गया था। वह दय
का कोमल और ेमी था, और ि य के साथ मौज-मजे़ म अपने दन काटता था। उसे
गु सा भी ज दी आता था। उसका हाथ खुला आ था। य - य उसक उ बढ़ती गई,
वह आलसी और कायर होता गया। अ त म उसका काल मृ युपय त वनवास के प म
तीत आ।
व लभराज
चामु डराज के ये पु व लभराज के िव द ‘ महाराजािधराज-परमे र-
परमभ ारक–राजमदनशंकर और जग फपन, जग क पन’ िमलते ह। पूव तीन िव द
तो सोलं कय के कतने ही दानप म िमलते ह। चामु डराय के रा य युत होने पर
व लभराज राजा आ। कु छ दन बाद उसने मालव पर आ मण कया और चेचक से
वह उसका देहा त हो गया। ब धिच तामिण म िलखा है क व लभराज ने पाँच
महीने उनतीस दन रा य कया और दुलभराज ने बारह वष। पर तु वही आचाय
मे तुंग अपनी ‘िवचार ेणी’ नामक पु तक म मूलराज के पीछे चौदह वष तक
व लभराज का और उसके बाद बारह वष तक दुलभराज का राज करना िलखते ह।
इ ह आचाय के मत से चामु डराज तेरह वष, एक मास और चौबीस दन राज कर
चुका था। पर तु मूलराज के पीछे तो चामु डराज का राजा होना गुजरात के इितहास
क सभी पु तक म तथा ता -प से भी मािणत है। पर तु व लभराज ने तो पूरे एक
वष भी राज नह कया। कसी- कसी ने तो राजा क नामावली म व लभराज का
नाम ही नह िलया। िव म स वत् 1966 म व लभराज का देहा त हो गया।
व लभराज ने जब मालवा पर चढ़ाई क थी, तब वहां का राजा भोज था।
पर तु कु मारपाल-च रत क ह तिलिखत ित म उसका नाम मुंज िलखा है।
सुकृतसंक तन और क तकौमुदी म मालव राजा का नाम ही नह दया। पर तु मुंज और
िस धुराज दोन ही व लभदेव के ग ी पर बैठने के काल म मर चुके थे। व लभ पि डत
ने भोज- ब ध म िस धुराज का अपने छोटे भाई को रा य देना और बालक पु भोज
को उसे स प देना िलखा है। पर तु यह म है, मुंज के मारे जाने के बाद िस धराज
मालवा का राजा आ, िजसका पु भोज था।
कु छ इितहासकार व लभदेव को रं गीली कृ ित का, शूरवीर और बात का धनी
राजपूत कहते ह। उसे िववेक , वाचाल, िन कपट और पिव मन का आदमी भी कहा
गया है। वह अपने वचन का पालन करने वाला और मुसलमान का िवरोधी था।
दुलभराज
इस राजा का िव द ‘परमभ ारक’, ‘महाराजािधराज’ और ‘परमे र’ िमलता
है। या य का यह िलखता है क दुलभराज के पास राजा महे क बिहन
दुलभदेवी के वयंवर का िनम ण आया, िजससे वह अपने भाई नागराज के साथ
वयंवर म गया। जहां अंगराज, काशीनरे श, चेदी र कु राज, णािधप मथुरेश आ द
राजा आए थे। दुलभदेवी ने वरमाला दुलभराज को ही पहनाई। पर तु महे ने अपनी
दूसरी बिहन ल मी का िववाह नागराज के साथ कर दया। लौटते समय सब राजा से
उनका यु आ,और उसम दोन भाइय ने उनको परा त कया,और अनिह लवाड़ा म
आप च ं 34 क तु वयंवर क यह कथा िव सनीय नह मालूम होती। ऐसा मालूम
होता है क रघुवंश म व णत इ दुमती के वयंवर के वणन का अनुकरण करते ए
हेमच ने अपने इस का म यह संग िलख दया है। फर भी इतना तो माना ही जा
सकता है क महे ने अपनी बिहन का िववाह दुलभदेव से कया होगा। पर तु महे
कहां का राजा था, इसका प ीकरण हेमच ने नह कया। ले कन या य का का
टीकाकार उसे मारवाड़ का राजा बताता है। स भवत: यही ठीक है। उस समय मारवाड़
म मु य रा य ना दौल के चौहान का था और महे ना दौल पर चौहान का रा य
थािपत करने वाले राव लखन संह के छोटे पु िव हपाल का बेटा था। ऐसा ना दौल
के चौहान के दानप से मािणत होता है।
फाबस क अपनी स पा दत ‘रासमाला’ म यह घटना िब कु ल उलटी िलखी है।
वह कहता है क दुलभराज ने अपनी बिहन दुलभदेवी का िववाह मारवाड़ के राजा से
कया, पर तु गुजरात का कोई इितहासकार इसका समथन नह करता। स भवत:
फाबस ने या य का के अिभ ाय को समझने म गलती क है।
जय संह सू र िलखता है क यायी दुलभराज ने लाट के राजा को हराकर
उसक ल मी और जमीन छीन ली।35 इितहास से मािणत यह है क दुलभराज के
समय लाट देश का राजा सोलंक वारप का पौ क तराज था। और उसके पीछे उसके
पौ ि लोचनपाल तक के समय का दानप उस समय के िव म स वत् 1075 तक का
िमल चुका है। लाट पर राजा वारप के वंशज का अिधकार था। स भव है क दुलभराज
ने लाट देश के उ री अंश को रा य के अधीन कर िलया हो।
सोमे र दुलभराज को अपने रा य का र क तथा पर ी और ि जधन क
ओर दृि न देने वाला बताता है।36 ऐसा ही सुकृतसंक तन’ का भी कहता है।37 इससे
दुलभदेव का यायी, सदाचारी और याय-र क होना पाया जाता है । र ामालाकार ने
कहा है, क दुलभराज का कद ल बा था। वह सेवा ती, ानवान् और कत परायण
था। उसको तप वी के समान ान- यान और ग गा-तट से ीित थी। वह यु -ि य
नह था।38 हेमच ने िलखा है क त व ानी दुलभराज ने एका तवाद को िनमूल
ठहराकर स यता हण क ।39 इससे ऐसा मालूम होता है क दुलभराज क जैन-धम क
ओर भी आ था थी।
‘ ब धिच तामिण’ म िलखा है क दुलभराज अपने भाई नागराज के पु
भीमदेव को राज संहासन पर बैठाकर या ा क इ छा से काशी गया। क तु जब वह
मालव देश को पार करने लगा तो वहां के राजा मुंज ने उससे कहा– क या तो छ -चंवर
आ द यह छोड़कर या ी के वेश म जाओ, या मुझसे यु करो। इस कार धम काय-म
िव होने से अपना सारा हाल भीम को कहला भेजा और या ी के वेश म काशी चला
गया। तभी से मालव और गुजरात म श ुता क जड़ जमी।40 पर तु मे तुंग का यह
कथन स य तीत नह होता, य क या य का के णेता हेमच ने जो बात
चामु डराज के स ब ध म िलखी है, उसी को उसने दुलभराज के साथ जोड़ दया। एक
तो दुलभराज के काल म मालव का राजा मुंज नह , भोज था। दुलभराज का
रा यारोहण िव म स वत् 1050 और 1054 के बीच हो चुका था। फर मालव के
परमार और गुजरात के सोलं कय के बीच पर परागत वैर का िसलिसला चामु डराज
के समय से ही हो गया था। चामु डराज ने िस धुराज को मारा और मालव वाल ने
चामु डराज को काशी जाते समय लूट िलया, और छ -चंवर आ द छीन िलये। इस पर
व लभराज ने चढ़ाई क , और वह पर उसक मृ यु हो गई। इस कार इन दोन रा य
का वैर और पहले से आर भ आ था।
हेमच ने दुलभराज के रा य को छोड़ने के िवषय म िलखा है, क दुलभराज
को तीथ म रहने क इ छा थी, तो उसने नागराज के पु भीमदेव क ग ी देनी चाही।
और दुलभराज तथा नागराज दोन के समझाने से भीमदेव राजा आ।41 पर तु हेमच
का यह कथन भी िव सनीय नह तीत होता। दुलभराज और नागराज दोन का
रा य का इ छु क होना और भीमदेव के ग ी पर बैठते ही उनका एक साथ वगवास हो
जाना िविच नाटक य घटना-सी है। फर कु छ ऐसे माण भी ह, क िजनसे यह
विनत होता है क दुलभराज ने अपनी इ छा से राज नह छोड़ा, भीमदेव ने बलात्
उससे रा य छीना। अनेक िव ान का यह मत है। और हेमच ने तो
ऐसी ही बात चामु डराज के रा य प र याग के िवषय म भी कही है। या य
का के टीकाकार का तो यह प कथन है क चामु डराज को रा य- युत कया गया
था।
दुलभराज ने अनिह लप न म दानशाला, हि तशाला, घ टका-गृह सिहत स
भूिम वाला धवल गृह, मदनशंकर ासाद और दुलभ-सर नाम का तालाब बनवाया।
फर कु छ इितहासकार दुलभराज को द भी और पाख डी कहते ह। जैसा क
इितहासकार का कथन है–दुलभराज ने भी महमूद से यु कया होगा य क महमूद
ने िस पुर का महालय भी भ ग कया था। फर दुलभ ने महमूद क अधीनता
वीकार कर अपनी ित ा क र ा भी नह क । गुजरात क जा भी दुलभदेव को
चाहती न थी, ऐसा कु छ िव ान का मत है।
मे तु ग आचाय ने ‘ ब धिच तामिण’ म िव म स वत् 1065, चै शु ल छठ
को दुलभराज का रा यािभषेक होना और िव म स वत् 1077, ये सुदी ादशी को
अपना रा य भतीजे भीम को देना िलखा है। पर तु ‘ ब धिच तामिण’ क अपे ा
‘िवचार ेणी’ अिधक मािणत तीत होती है। िवचार ेणी के अनुसार दुलभराज ने
1078 तक रा य कया।
कु छ इितहासकार दुलभराज को दगाबाज़ और सा कार चोर कहते ह। अपना
मतलब िस करने के िलए वह अ छे-बुरे क परवाह नह करता था। वह कसी पर
भरोसा भी नह करता था। न उसे भाई-भतीज पर िव ास था। खुशामदी एवं जी-
हजू रए उसे घेरे रहते थे। वह अस तोषी पु ष था और मतलब पूरा करने के िलए वह
दया-माया, नीित-अनीित क तिनक भी परवाह नह करता था। कहा जाता है क उसने
महमूद से सि ध कर ली थी, और अपने भाई व लभदेव को श ु के सुपुद करने म
सहायता क थी।
भीमदेव
सं कृ त पु तक म भीमदेव का काफ च र िमलता है। ‘ बंध-िच तामिण’
का म िलखा है क भीमदेव ने िस धु देश पर चढ़ाई क । उस समय मालव के राजा
भोज के सेनापित कु लच द ने अनिह लवाड़े पर हमला कया और उस नगर को जीतकर
‘धवल गृह’ के ार पर, जहां घड़ी बजा करती थी — कौिड़यां गढ़वाकर और िवजय-
प साथ लेकर मालव को लौटा। सब वृ ा त सुनकर भोज ने कहा क तुमने वहाँ पर
कोयले य नह गाड़े, कौिड़याँ गाड़ने का फल तो यह होगा क मालव का कर गुजरात
को जाएगा।42 भोज क इस िवजय का उ लेख वािलयर रा य के उदयपुर म िमले ए
परमार राजा उदय द य के समय के िशलालेख म भी िमलता है। पर तु
ब धिच तामिण का का कार कु छ दूसरी ही बात कहता है।43 उसने यह िलखा है क
एक साल ऐसा आ क वृि नह ई, और अ और घास का िमलना कम हो गया।
इसी समय भीमदेव को सूचना िमली, क भोज ने उसके देश पर आ मण कया है। इस
पर उसने अपने संिध-वै िहक ‘डांमर’ को यह आ ा दी, क कु छ द ड देकर इस चढ़ाई
को रोकना चािहए। डांमर भोज के दरबार म गया। वहां होने वाले एक नाटक-अिभनय
म तैलपदेव का एक दृ य आया। उस संग पर डांमर ने राजा भोज के सामने भरी सभा
म यह कहा क तैलपदेव मुंज को सूली पर चढ़ाने के कारण िस ह। इस आ ेप से
उ ेिजत होकर भोज ने तैलप देश पर चढ़ाई कर दी।44 उधर से तैलप क बड़ी सेना भी
उसका सामना करने को आई। इस अवसर पर डांमर ने एक जाली प बनाकर भोज से
कहा, क भीम भी मालव के िलए थान कर भोगपुर तक आ प च ं े ह। इस पर भोज ने
घबराकर डांमर से कहा, क इस समय गुजरात के महाराज भीमदेव को मालव पर
आ मण करने से रोको। और एक हािथय क जोड़ी भीमदेव को भट क ।45 पर तु कु छ
ऐितहािसक त व इस घटना के िवरोधी ह। पहली बात तो यह है क तैलप का देहा त
स वत् 1054 म ही हो गया था और उस समय मालव का राजा भोज नह , वरन् उसका
िपता िस धुराज था। भोज ने तैलप पर नह , क तु उसके पौ जय संह पर चढ़ाई क
थी। भीमदेव का तो रा यािभषेक भी इस घटना के 12 वष बाद आ। भोज ने मुंज का
बदला लेने के िलए तैलप के वंशधर जय संह पर चढ़ाई करके क कण को जीता था,
िजसका उ सव िव म स वत् 1059 म मनाया गया। भोज के उ स वत् के दानप से
यह बात मािणत होती है। इसी ंथकार ने भोज और भीम क लड़ाई के स ब ध म
तीसरी बात यह भी िलखी है क डाहल देश के राजा कण ने राजा भोज पर चढ़ाई क ,
और उसको आधा रा य देने क शत पर भीम को पीछे क ओर से हमला करने को
बुलाया। इसी लड़ाई के समय म भोज रोगी होकर मर गया और कण ने भोज क सारी
स पि लूट ली। भीम ने इस पर डांमर को आ ा दी क या तो भोज का आधा रा य
मेरे सुपुद करो, नह तो तु हारा िसर काट िलया जाएगा। इस पर डांमर ने ब ीस
सवार को लेकर कण को उसके डेरे म दोपहर के समय घेर िलया। इस पर राजा कण ने
एक िह से म नीलक ठ-िच तामिण और गणपित आ द सिहत वण क बनी ई
मंडिपका तथा दूसरे म रा य क सारी स पि रखकर कहा- क जो िह सा अ छा
समझ, उठा ल। सोलह पहर तक वे िह से य ही पड़े रहे। इसके बाद भीम क आ ा से
डांमर ने मंडिपका लेकर भीम को भट कर दी।46 यह घटना िव म स वत् 1110 के
आसपास ई। िजसम लाभ डाहल के राजा कण को ही िमला।47 भीमदेव के समय भोज
ने अनिहलवाड़े पर चढ़ाई क थी, िजसका बदला लेने के िलए भीमदेव राजा कण का
सहायक बना।
आबू के परमार से भीमदेव का संघष
सोलंक मूलराज ने आबू के परमार राजा धरणीवराह का रा य अपने अधीन
कर िलया था। तब से आबू के परमार गुजरात के सोलंक राजा के साम त कहलाते
थे। भीमदेव के काल म आबू का राजा धुंधक था। उसने भीमदेव क अधीनता वीकार
करनी नह चाही। िजसके कारण भीमदेव के साथ उसका संघष आ। इस स ब ध म
गुजरात के इितहास से स बि धत पु तक म तो कु छ नह िलखा। पर तु पौरवाड़
‘ ागवाट् ’ महाजन िवमलशाह के बनाए ए आबू पहाड़ पर के देलवाड़ा गाँव के िस
आ दनाथ के जैन मि दर िवमलवश ही के जीण ार के , िव म स वत् 1378, ये सुदी
9 के िशलालेख म िलखा है–‘‘ क च ावती नगरी का राजा धुंधक48 वीर का अ णी
था। जब उसने राजा भीमदेव क सेवा वीकार नह क , तब राजा भीमदेव उस पर
ु आ। िजससे वह मन वी धुंधक राजा भोज के पास चला गया। फर राजा भीम ने
ागवाट वंशी मं ी िवमल को अबुद का मं ी बनाया। उसने िव म स वत् 1088 म
अबुद के िशखर पर आ दनाथ का मि दर बनवाया।’’49 इसके समथन म िजन भु सू र
का तीथक प का लेख भी है, िजसम िलखा है क जब गुजरे र भीमदेव राजा धुंधक पर
ु आ, तब उस िवमलशाह ने भि से उस भीमदेव को स करके उस धुंधक को
िच कू ट से लाकर िव म स वत् 1088 म उस धुंधक क आ ा से िवमल ब ती नामक
मि दर बनवाया।50 इन दोन कथन का सारांश यही है क धुंधक ने भीमदेव से िवरोध
कया िजससे उसे मालव के राजा भोज परमार क शरण म रहना पड़ा। पीछे म ी
िवमलशाह क म य थता म उसने भीमदेव से संिध क और उसक सेवा वीकार करके
अपना रा य वापस पाया। धुंधक के पीछे उसका पु णपाल आबू का राजा आ, और
उसके पीछे उसके छोटे भाई कृ णराज ने रा य पाया। कृ णराज से कसी कार नाराज
होकर भीमदेव ने उसे कै द कर िलया।51 जोधपुर रा य के सुझा नामक पहाड़ पर के देवी
मि दर क िव म स वत् 1319 क शि त म ना दौल के राजा बाला साद चौहान के
वणन म िलखा है क उसने राजा भीमदेव क सेवा म रहकर कृ णदेव को छु ड़ाया। 52
भीमदेव का ना दौल के चौहान से यु
जैसे भीमदेव ने आबू के परमार को अपने अधीन कया, वैसे ही ना दौल के
चौहान पर चढ़ाई करके उ ह अपने अधीन बनाया। ना दौल रा य जोधपुर के गौड़वाड़
परगने म है। ना दौल के चौहान स भर के चौहान क छोटी शाख म से ह। और इस
समय उनके वंश म बूँदी, कोटा और िसरोही क ग यां ह। जोधपुर रा य के जसव तपुर
िज़ले म सूधा नामक पहाड़ पर देवी का मि दर तथा वहां िव म स वत् 1319 का एक
िशलालेख िमला है। उसम ना दौल के चौहान राजा अनिह लराय का वृ ा त िलखा है–
क उसने यु म भीमदेव क हि त-सेना का संहार कया और भोज के सेनापित साढ़ा
को मारा।53 स भव है क थम यु म भीमदेव क पराजय ई हो। पर तु अ त म उसे
भीमदेव क अधीनता ही वीकार करनी पड़ी। भीमदेव और भोज के यु म उसने
भीमदेव क सेना के साथ कपट से यु कया था। य क उसी लेख म उसके पु
बाला साद का भी वणन है, क िजसने राजा भीमदेव क चरण-सेवा कर राजा
कृ णदेव को कै द से छु ड़ाया था। अनिह लराय का भोज के सेनापित साढ़ा को मारना या
तो भोज के सेनापित कु लच के अनिह लवाड़े पर चढ़ाई के समय क घटना है, या
भोज के अि तम समय म भीमदेव के धारा नगरी पर चढ़ाई करने से स ब ध रखती है।
या य का म िलखा है क राजा भीमदेव के श ु अ त हो गए थे, और उनक क त
यमुना-तट और मगध देश तक फै ल गई। उसने नीित का चार कया था। िभचा रय
को द ड देकर परदार-गमन को रोका था। एक दन एक दूत ने उसे बताया क अब सब
देश आपके अधीन ह, क तु िस धचेदी के राजा आपके श ु ह। उ ह ने आपको न करने
का िवचार कया है। िस ध के राजा ह मुक ने िशवशरण को िजताकर अपने प म
िमला िलया है और कई देश उसके अधीन ह। इस पर भीमदेव ने िस ध देश पर चढ़ाई
क और िस ध नदी पर पुल बँधवाकर िस ध को जय कया। ह मुक को परा त कया
और चेदी पर चढ़ाई क जहां के राजा ने सोना, घोड़े, हाथी और भोज से ली ई
वणम डिपका देकर उससे िम ता क ।54 पर तु हेमच का यह कथन अित योि पूण
मालूम होता है। िस ध देश पर चढ़ाई करने का उ लेख तो ब धिच तामिणकार ने भी
कया है, पर तु चेदी पर चढ़ाई करने का उ लेख नह िमला है । राजा कण से उसने
वणम डिपका ली तो अव य, पर तु चेदी पर चढ़ाई करके नह । ह मुक, शायद िस ध
म रा य करने वाले सुमरावंश का ह मीर दूसरा हो, जो भीमदेव का समकालीन माना
जाता है। ऐसा िस है क ह मुक ने क छ देश के मकवाड़ा (झाला) के सर को मारा,
िजससे उसका कुँ वर हरपाल वहां से भागकर अनिह लवाड़े के राजा कण क शरण म
आया, िजसने उसको झालावाड़ का इलाका देकर अपना साम त बनाया।
भीमदेव का शरीर पु ,ल बा,रोमवाला और र ग कु छ याम था । वह
अिभमानी, धनी, यो ा और ले छ से न डरने वाला था।55 भीमदेव के तीन रािनय
का होना पाया जाता है। िजनम दो के नाम उदयमती और बकलादेवी मालूम ए ह।56
ब धिच तामिण म बकलादेवी के थान पर चौलादेवी पाठ िमलता है। मे तु ग
बकलादेवी (चौलादेवी) को पथ ा वे या बताता है, पर तु कसी भी थ और
िशलालेख से इसक पुि नह होती। भीमदेव के तीन पु बतलाए गए ह : मूलराज,
ेमराज और कण । ेमराज बकु लादेवी (चौला) से,और कण उदयमती से ए। मूलराज
कस रानी से आ, इसका िनणय नह आ। भीमदेव के ये पु मूलराज के िवषय म
मे तु ग िलखता है– क एक वष गुजरात म वृि नह ई, िजसके कारण कृ षक लोग
रा य का महसूल जमा नह कर सके , िजससे वे ीप न लाए गए। मूलराज ने घोड़ा
फराने क चतुराई से राजा को स कर वह कर माफ करा दया। िजसके तीन दन
बाद ही मूलराज का देहा त हो गया। दूसरे वष अ छी वृि होने पर कृ षक ने दोन
वष का कर चुका दया। उस धन से मूलराज का मारक- व प ि पुर- ासाद नामक
मि दर बनाया गया।57 कु मारपाल-च रत के अनुसार भीमदेव के दो पु थे, िजसम बड़ा
ेमराज और छोटा कण था। ेमराज ने कण को राज संहासन पर बैठाया य क उसके
िपता ने उसक माता को ऐसा वचन दया था। ेमराज के पु देव साद को कण ने
दिध थली गांव दया। इस घटना का समथन च र सु दर गणी ने भी कया है। और
जय संह सू र रिचत कु मारपाल-च रत से भी यही मािणत होता है। भीमदेव ने िव म
स वत् 1078 से 1110 तक रा य कया। देहांत के समय उसक आयु लगभग 60 वष
थी।58 ब धिच तामिण म िव म स वत् 1077 ये सुदी ादशी को भीमदेव का
रा यािभषेक तथा िव म स वत् 1120 चै बदी स मी तक रा य करना िलखा है।
पर तु उसी लेखक ने पीछे से अपनी िवचार ेणी म िव म स वत् 1078 से 1120 तक
रा य करना माना है, जो अिधक मािणत है। भीमदेव के दो ता प िमले ह, िजनम
पहला िव म स वत् 1086, का तक सुदी 15 का है। इसम क छ का मसूर गाँव आचाय
म गलिशव के पु भ ारक अजयपाल को देने का उ लेख है।59 दूसरा ता प िव म
स वत् 1093 का है, िजसम व स गो के ा ण दामोदर के पु गो वंद को क छ देश
म सहसचापा गाँव म एक हलवाह भूिम देना िलखा है।60 एक हलवाह म आधुिनक 10
बीघे के लगभग जमीन मानी जाती थी। िनयम यह था, क एक दन म एक हल से
िजतनी भूिम जोती जाए, उसे एक हलवाह कहा गया है। दोन दानप का दूतक
सि धवै िहक ी च ड शमा और लेखक कांचन का पु बटे र बताया गया है। दूतक
उस पु ष को कहते थे 61 िजसके पास दानप क सनद या दान करने क राजा ा
ं ती थी।61
प च
िवमलशाह
िवमलशाह के स ब ध म कसी िव ान् का कोई लेख नह िमलता है। पर तु
आबू वाले िवमलशाह के मि दर के जीण ार के एक िशलालेख से हम इतना ही पता
चलता है — क ागवाट् (पौरवाड़) जाित का महाजन, दृढ़ व जैन धमावल बी और
वीर कृ ित का यो ा था। उसके आबू के मि दर को देखकर यह कहा जा सकता है —
क उसके पास अप रिमत धन-समृि थी। आबू का यह भ मि दर िनमाण करने म
उसने 18 करोड़ पए खच कए थे। िव म स वत् 1568 म अनिह लवाड़े के जैन साधु
मुनी लावय ने ाचीन गुजराती भाषा म िवमल ब ध नाम से िवमलशाह का च र -
थ िलखा है। िजसके आधार पर कु छ बढ़ाकर सौभा य सु दर सू र ने िव म स वत्
1574 म ‘िवमल ब ध’ नामक सं कृ त थ क रचना क । ये दोन ही थ िवमलशाह
के समय के लगभग 500 वष पीछे िलखे गए। इनम िवमलशाह के स ब ध म कु छ
चम का रक और अ युि पूण बात िलखी ह, जो क िव सनीय नह ह। िवमल ब ध म
िलखा है क आठव शता दी के अ त म िवमलशाह के पूवज नीन म ी चानड़ा वंशी
राजा वनराज के समय म अनिह लवाड़े म जा बसा। नीन का पु लिहर तापी आ,
िजसको वनराज ने अपना द डनायक बनाया। वनराज के बाद के राजा के समय तक
वह द डनायक बना रहा। लिहर का पु वीर और वीर का पु िवमलशाह आ।
वनराज ने िव म स वत् 821 से 882 तक रा य कया। और उसके राजा के अित र
योगराज, र ा द य, बैरी संह और ेमराज ने िव म स वत् 882 से 944 तक रा य
कया। िवमलशाह िव म स वत् 1088 म िव मान था।
िवमलदेवशाह ने जो यह मि दर आबू म बनाया है, इसक समता का कोई
दूसरा देव- ासाद भारतवष म नह है। तेजपाल का बनवाया आ नेिमनाथ का मि दर
भी ब त भ है, क तु िवमलदेवशाह का यह मि दर उससे बढ़-चढ़कर है। फगुसन
इसके िवषय म कहता है क वह इस मि दर म जो क संगमरमर का बना आ है,
अ य त प र म सहन करने वाले िह दु क टांक से फ ता-जैसी बारीक के साथ ऐसी
मनोहर आकृ ितयां बनाई गई ह, क उनक नकल कागज़ पर बनाने को ब त प र म
करने पर भी म समथ नह आ।62 टाड ने भी वहां के गु बज के िवषय म कहा है, क
इसके िच बनाने म कलम थक जाती है। और अ य त प र म करने वाले िच कार क
भी कलम को महान म करना पड़ेगा।63 गुजरात के इितहास ‘रासमाला’ के लेखक
फाबस ने भी इस मि दर क भू र-भू र शंसा क है। िवमलदेवशाह के इस अनुपम
मि दर का कु छ भाग मुसलमान ने तोड़ फोड़ डाला था। िजससे िव म स वत् 1378 म
ल ल और वीजड़ नामक दो सा कार ने िसरोही के महाराव तेज संह के रा यकाल म
इनका जीण ार करवाकर ॠषभदेव क मू त क थापना क । कनल टाड ने जो क
आबू पर चढ़ने वाले सबसे पहले योरोिपयन ि थे, उसे भारत का सव म ासाद
कहा है, और कहा है क आगरे का ताज ही उसक कु छ समता कर सकता है।
सपादल
सपादल सांभर और अजमेर के रा य के अधीन स पूण े का नाम था।64
िव हराज बीसलदेव सपादल देश का राजा था, ऐसा ब धिच तामिण म िलखा है।
उस थ म सपादल ि ितपित अथवा उसके पयायवाची श द का जो योग कया
गया है, वह चौहान राजा का सूचक है। अजमेर बसाए जाने से पूव चौहान क
राजधानी शाक भरी थी। इसी से वे शाक भरी र अथात् स भरीराव कहाते थे।
अजयपाल ने अजमेर नगर बसाया, तब से वही राजधानी बना। पर तु सब चौहान
राजा नवराि आते ही अपनी कु लदेवी शाक भरी क पूजा करने सांभर चले जाया
करते थे।65
कं था दुग या कं थकोट का कला
यह कला क छ रा य के पूव बागड़ म एक पहाड़ी पर बना है। ाचीन काल म
यह अ छी आबादी वाला थान था। यह सुरि त और सुदढ़ृ कला है। िवपि -काल म
गुजर राजा ने इस दुग म ब त बार आ य िलया था। 66
भासप न
सोमनाथ क िसि के अनेक कारण ह। थम तो भासप न तीथ ही ब त
ाचीन है। महाभारत-काल म यह पर यादव का िव ह और कु ल- य आ था।
महाभारत-काल के बाद, कृ ण-वंश के अवसान के कारण तथा कृ ण-भूिम ारका के
िनकट होने के कारण, वह आगे चलकर सा दाियक काल म थम वै णव ारा पूिजत
तीथ रहा होगा, िजस पर पीछे से शैव शि का वेश आ। भास तो थम ही
सुपूिजत तीथ था। फर म यकाल म वहाँ सूय मि दर तथा जैन मि दर के िनमाण होने
से इस महातीथ क गणना और अिधक ापक हो गई और वह भारत का िस तीथ
हो गया। इसके बाद िस मू तभंजक महमूद के अि तम अिभयान के कारण, िजसम
सोमनाथ का भंग आ, वह एक ऐितहािसक मह व धारण कर गया। इसके बाद अनेक
मुसलमान बादशाह ने मि दर का वंस समय-समय पर कया, पर हर बार िह दु ने
उसके व त हो जाने पर फर से उसक थापना कर ली। लगभग चार सौ वष तक इस
महातीथ म िह दु और मुसलमान म संघष चलता रहा। अ त म 15व शता दी म
िह दु ने ाचीन महालय के िनकट ही एक नया मि दर बना िलया। सोमनाथ का
ाचीन महालय, जो बाद म मि जद के प म प रव तत कर दया गया था, अब के वल
ख डहर ही रह गया।
महमूद का अिभयान
महमूद ने गुजरात पर चढ़ाई तो अव य क और सोमनाथ को भंग भी कया,
गुजरात और सोमनाथ को लूटा भी, फर भी उसने अपनी स ा िह द म थािपत करने
क चे ा नह क । उसने ब त-से देश को सर कया, फर भी उनम सूबा ारा
अपनी स ा जमाने का उ ोग उसने नह कया। वह एक साहसी यो ा अव य था,
पर तु उसे सा ा य का शौक नह लगा, उसे तो स पि क ही भूख थी। और यही
कारण था क सोमनाथ के पराभव होने के बाद गुजरात पर ऐसी भयानक िवपि आने
पर भी सम गुजरात के जीवन का वाह महमूद क पीठ फे रते ही पूववत् चलता रहा।
यह एक बड़े ही आ य का िवषय था। वा तव म वह युग ही दूसरा था। महमूद िजस
ऊजड़ देश म रहता था, वहाँ अन त भू-िव तार उसके अधीन था। इसिलए उसे धरती
क भूख नह थी। अमर क त क लालसा थी — धन का लोभ था।
कु छ इितहासकार महमूद को धमा ध कहते ह। और उनका कहना यह है क
उसने सोमनाथ क मू त भंग करने के िलए ही यह िजहाद का झ डा उठाया था, पर तु
कु छ इितहासकार उसे लुटेरा कहते ह। स भवत: दोन ही बात म स य हो, और इ ह
भावना से े रत होकर महमूद ने ऐसे भारी-भारी अिभयान कए ह । फर भी इतना
तो कहना ही पड़ेगा क महमूद के दु साहस म उसक जा का पूरा-पूरा हाथ था।
महमूद बादशाह था, फर भी जा का सेवक था। यह ज़माना वोटो े सी अथवा
िमिलटरी िड टेटरिशप का था। पर तु रा य का कारोबार डेमो े सी प ित पर चलता
था। आज डेमो े सी का युग है, पर कार बार सब िड टेटरिशप क रीित पर चलते ह।
टािलन क सोिवयत सरकार तो यह कहती रही क जन वात य के िलए ही यह
िड टेटरिशप है।
महमूद का यह युग गज़नी क जाहोजलाली, राजा और जा के ेम,
मुसलमान क साहसि यता, भारतीय ि य के अनै य तथा िविजत जा के साथ
महमूद क उदारता और मू त-पूजा का िवकृ त प कट करता है।
ऐितहािसक आधार पर नीचे िलखी बात मािणत ह–
1. ई वी सन् 1025 म महमूद ने आ मण कया।
2. ि य राजा के भय से उसे म थली क राह से आना पड़ा।
3. रा ते म गुजरे र भीम के भय से उसे क छ के महारन से वापस जाना पड़ा।
4. उसने सोमनाथ का मि दर तोड़ा।
5. वह आया और चला गया। क तु गुजरात का राजक य, सामािजक और
धा मक जीवन अभंग ही रहा। इस आ मण को इतना तु छ समझा गया क
हेमच , सोमे र और मे तुंग-जैसे इितहासकार ने उसक कह चचा तक
नह क ।
6. गुजरात क स ा और समृि म कु छ भी कमी न आई, य क उसके सात ही
वष बाद 1032 म म ी र िवमलदेवशाह ने आबू पर आ दनाथ का मि दर
बनवाया, िजसम अठारह करोड़ पए खच ए।
सोमनाथ पर महमूद का यह आ मण नैपोिलयन के मा को पर कए गए
आ मण से ब त समानता रखता है। दोन आ मणकारी मह वाकां ी थे–और दोन
ही पररा य म ज़बरद ती घुस।े नैपोिलयन कृ ित के ारा अव होकर पीछे फरा,
क तु महमूद को श ु से भय खाकर कृ ित का भोग होना पड़ा। य िप महमूद के इस
आ मण का उ लेख गुजरात के कसी भी इितहासकार ने नह कया, पर तु कु छ
िशलालेख ऐसे िमलते ह िजनम महमूद के इस आ मण का उ लेख है।67
सोमनाथ के िवनाश और जीण ार का िववरण ी अमृतलाल पा ा ने इस
कार दया है–
िवनाश:–
महमूद गज़नवी ई वी सन् 1024
अलफ खान, ई वी 1297
अहमदशाह, 1314
श सखान, 1318
मुज फरखान दूसरा, 1394
तातारखान, 1520
औरं गजेब मारफत, 1706
जीण ार:–
भीमदेव थम, ई वी सन् 1026
कु मारपाल, 1196
महीपाल, 1325
अिह लयाबाई हो कर, 1765
इस कार एक के बाद दूसरा आ मणकारी आता गया जाता गया, और
सोमनाथदेव अपना चोला बदलता गया। वे सब आ मणकारी आज नह रहे, पर तु
देवािधदेव सोमनाथ आज भी उसी थान पर सु िति त ह। स पूण िव म आज के
दन सुपूिजत इतना ाचीन देवता कोई दूसरा नह है।
17 मई, सोमवार, 1954
वैशाख पू णमा, 2011
ानधाम- ित ान
द ली-शाहदरा
–चतुरसेन
स दभ
1. सौरा े सोमनाथ च ीशैले मि लकाजुनम्।
उ िय यां महाकालं आकारे परमे रम्॥
के दारं िहमव पृ े य बकं गोमतीतटे।
वै नाथं िचताभूमौ नागेशं दा कावने॥
सेतुब धे च रामेशं धु मेशं च िशवालये।
ादशैतािन नामािन ात थाय य: पठे त॥

स ज म कृ तं पापं मरणेन िवन यित॥ िशवपुराण॥
2. टी. गोपीनाथ राव–एलीम स आफ िह दू इकोनो ाफ , िज द 2, माग 1।
3. देिखए–आईमोिनय का 1901 का ‘जनरल एिशया का र ू’ (न.1–3, पी.
डब यू. एफ.)
4. देिखए–लाहौर यूिज़यम, मु ा सूची, लेट, 17, नं. 65।
5. देिखए– ी एलन क गु -िस क सूची क भूिमका, पृ 101।
6. रा. ब. महामहोपा याय गौरीशंकर हीराच द ओझा कृ त म यकालीन,
भारतीय सं कृ ित’, पहला आ यान, पृ 21।
7. रा. ब. गौरीशंकर हीराच द ओझा-कृ त ‘म यकालीन भारतीय सं कृ ित’, .
ा यान, पृ 22
8. लंगपुराण,24–131।
9. रायबहादुर गौरीशंकर हीरान द ओझा–कृ त ‘म यकालीन भारतीय सं कृ ित’
पृ 24
10. सर रामकृ ण गोपाल भ डारकर–कृ त–वै णिव म शैिव म ए ड अदर
माइनर रलीज स िस ट स पृ 115-142
11. सर रामकृ ण भा डारकर कृ त–‘वै णािव म एंड अदर माइनर रिलजस
िस ट स, पृ -142-146
12. सर रा.कृ . भ डारकर–‘वै णिव म शैिव म एंड अदर माइनर रलीज स’,
पृ –146-47।
13. कपूरमंजरी– थम यविनका तर।
14. या व य- मृित।
15. म. म. गौरीशंकर हीराच द ओझा-कृ त ‘म यकालीन भारतीय सं कृ ित’, पृ
29।
16. रामायण।
17. पातंजल महाभा य।
18. देिखए, बो बे गज़े टयर क का ठयावाड़ नाम क आठव पु तक और कै टन
एच. िबलफोस बैल-कृ त ‘िह ी ऑफ का ठयावाड़’ ।
19. Cousens—Somnatha another mediaval temples in Kathiawar—
Archeological Survey of India, Volume XIV, Imperial Series
Plates II-IX.
20. ब धिच तामिण।
21. अ यु तीर त वीरवीर संसे मान कृ मपाद यु मम्।
ी मूलराजं समरे िनह य यो गुजयं जगरतां सनैषित॥9॥
(ह मीर महाका –नवच सू र–कृ त। िव.सं. 1440 और 1550 के बीच
रिचत।)
22. क तकौमुदी, सग 2, ोक 5 ।
23. सुकत-संक तन, सग 2, ोक 5 ।
24. देिखए, याि क नीलकं ठ के पौ और जगजीवन के पु वेणीद -रिचत
‘औदी य- काश’।
25. महाराजािधराज ी मूलराज: ××× मोढ़ेक या ि मषु कं बोइका ामे
सम त राजपु षान् ××× बोधय य ुव: संिव दतम्। यथा। ीमदणिहल
पाटन थानावि थतैर मािभः सूय हण पविण ी थल के ाचीन सर वती
वा रणा ा वातृं (ि ) दशप तं महा वय देवम य य ××× उप रिलिखत
ामीयं व िवषये मंड यां थािपत ी मूलनाथ देवाय शासनेनी क
पूवम मािभ: द :। (इं िडयन एं ट ै री; िज. 6, पृ –191-1927)
26. या य का , सग 6, ोक 103-107।
27. कु मारपाल च रत, 1–13 ।
28. सूनु त य बभूव भूपितलक ामु डराजा वयो
य धि पदानग ध पवन- ाणेन दूरादिप।
विभ्र य मदग धम क रिभ: ीिस धुराज तथा
न : ोिणपितयथा य यशसां ग धािप िनणािशत:।
ऐिप ा फया इि डका, िज. 1, पृ. 297।
29. या य का , सग 7, ोक 1-58
30. देिखए– हेमच सू र-कृ त ‘ या य का ’।
31. सुकृतसंक तन–सग 2, ोक 5 ।
32. क तकौमुदी, सग 2, ोक 3 ।
33. डॉ. कोलहान-सं िहत ‘इ सकृ शंस अॉफ नादन इं िडया’; सं या 354, पृ. 50

34. या य का सग 7, ोक 66-142।
35. कु मारपालच रत, सग 1 ।
36. क तकौमुदी, सग 2 ।
37. सुकृतसंक तन, सग 2 ।
38. र माला, र 2, पृ 32 ।
39. या य का , सग 7, ोक 64 ।
40. ब धिच तामिण, पृ. 49-50 ।
41. या य का , सग 8, ोक 15-22 ।
42. ब ध िच तामिण, पृ 80-81 ।
43. चेदी रे रथ (तो ग) ल (भीममु) यान्।
कणाट लाटपित गु रराट् तु कान्।
य भृ य मा िविधतानवलोकमाला
दो णां वलािन कलयि त न (यो ) लोकान्॥19॥
(ऐिप ा फया इि डका, िज द 1, पृ 235
44. सोलं कय का इितहास (गौरीशंकर हीराच द ओझा), थम भाग, पृ 75-
80 ।
45. ब धिच तामिण, पृ –76-79
46. देिखए ब धिच तामिण, पृ 122-23
47. डाहल चे द देश का रा य था। यह रा य जबलपुर के आसपास म य ा त म
था।
48. धुंधकराज आबू के परमार राजा महीपाल का पु था।
49. एिप ा फया इं िडका, पृ 155-56 ।
50. तीथ क प म अ भुत क प।
51. एिप ा फया इं िडका, पृ 75-76 ।
52. कृ णदेव का एक िशलालेख िव म संवत् 1117 माध सुदी छठ का भीनमाल
म िमला है, िजसम उसको परमार राजा धुंधक का पु िलखा है।
53. एिप ा फया इि डका, पृ 74-75 ।
54. या य का , सग 9, ोक 23 से 66 तक।
55. र माला, पृ 33 ।
56. ब धिच तामिण, पृ 131 ।
57. ब धिच तामिण, पृ 129-31 ।
58. ब धिच तामिण।
59. इं िडयन एंटी ै री, िज द 6, पृ 193-95 ।
60. इं िडयन एंटी ै री 18, पृ 109 ।
61. भारतीय ाचीन िलिपमाला, दूसरा सं करण, पृ 29 ।
62. िप चस इल ेशन अॉफ एंिशएंट आ कटे चर इन िह दु तान (फगुसन-
कृ त)।
63. देिखए टाड-कृ त राज थान।
64. ना. . पि का, भाग 2, पृ 330-32 ।
65. ब धिच तामिण।
66. ब धिच तामिण (मे तुंग), पृ 40-43 ।
67. देिखए कृ णाजी क र माला म उि लिखत िशलालेख का िववरण ओर
इसी िवषय पर रामलाल चु ीलाल मोदी का लेख।

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