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रामायण के अमर पा

माहसती
सीता

eISBN: 978-93-5261-553-7
© काशकाधीन
काशक डायमंड पॉकेट बु स ( ा.) ल.
X-30 ओखला इंड टयल ए रया, फेज-II
नई िद ी- 110020
फोन : 011-40712100
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
सं करण : 2016
Ramayan Ke Amar Patr Mahasati Sita
By - Dr. Vinay & Ashvini Parashar
भूिमका

रामायण और महाभारत भारतीय सं कृित के िवराट कोष ह और इन दोन म रामायण का


स मान भ क ि म महाभारत से अ धक है। य िप रामायण म मयादा पु षो म ीराम का
ितपादन है और महाभारत म कौरव -पांडव क कथा के बहाने कृ ण का व िति त िकया
गया है। रामायण का मान सामा य जन म इस लए अ धक है िक उसके च र नायक राम का
जीवन च र यि और समाज दोन के लए जीवन-मू य क ि से अनुकरणीय है।
आिदकिव वा मीिक ने स पूण रामकथा म राम को मयादा पु षो म के प म ितपािदत कर
एक महान सां कृितक आधार िति त िकया था और उसके बाद अनेक कार से रामकथा का
व प िवक सत होता रहा। जैन धमावल बय ने अपने ढंग से इस कथा को तुत िकया और
बाद के आने वाले रचनाकार ने‒ह र अन त ह र कथा अन ता‒के आधार पर राम क कथा को
उसके मू य क र ा करते हए अपने ढंग से तुत िकया है। गो वामी तुलसीदास ने रामकथा
को भि का यावहा रक के िब द ु बना िदया। उनके राम भि के आधार ह और उनका
जीवन ही अनुकरणीय है। गो वामी तुलसीदास के बाद भी रामकथा को िविभ प म अनुभव
िकया जाता रहा और जहां-जहां इस िवराट भाव-भूिम म किवय क ि म जो थल मानवीय
ि से उपेि त रह गये, उ ह के बनाकर राम क कथा म अ य आयाम जोड ने का उप म
भी जारी रहा।
रामकथा हमारे सामने जहां भि का बहत बड ा मू य तुत करती है, वही कु छ ऐसे न
भी छोड देती है जनका कोई तकपूण समाधान शायद नह िमल पाता और जब मन िकसी
बात को मानने से मना कर दे तथा उसका तकपूण समाधान न हो, तब एक गहरे रचना मक
क रचना होती है। हमने रामकथा के िविभ पा को उस कथा के मूल आदश वृ म ही रखकर
मनन और अनुसध ं ान से, औप या सक प म िचि त करने का यास िकया है। चूंिक रामकथा म
येक पा िकसी न िकसी जीवन ि या जीवन-मू य को भी ितपािदत करता है। राम यिद
आदश पु , पित ह तो ल मण आदश भाई के प म िति त ह और इसी कार अ य पा का
मूल मू य वृ भी देखा जा सकता है। अब आधुिनक ि म यह मू य वृ कहां तक हमारे
जीवन म रच सकता है, यह बहत बड ा न है। इस लए िकसी भी लेखक का यह रचना मक
यास िक पुराकथा के पा म या कोई मान सक रहा होगा? या उ ह ने सहज मानव के
प म ह ठ को मु कराने क और आंख को रोने क आ ा दी होगी? और तब हम यह अनुभव
करते ह िक उस िवराट मू य के आलोक म छोटा-सा मानवीय काश ख ड उठाकर अपने
ि कोण से अपने पाठक के सामने तुत कर सक। रामगाथा के िविश पा पर
औप या सक रचनावली के पीछे हमारा यही ि कोण रहा है िक हम उस िवराट यि व को
अपनी ि से अपने लए िकस प म साथक कर सकते ह।
गो वामी जी के श द म‒
सरल किव , क रित िबमल, मुिन आदरिहं सुजान।
सहज बैर िबसराय रपु, जो सुिन करै बखान।।

हम इस रा ते पर यिद चल नह पाते तो चलने क सोच तो सकते ह। हमारे सामने सबसे


बड ा न यह रहा िक जहां-जहां रामकथा के बड े-बड े थ कु छ नह बोलते, यहां उसी
मू य चेतना म हम ग म कैसे उस अबोले यथाथ को िचि त कर। पुराकथा क ि से जो सच
हो सकता है और आधुिनक ि से जो वीकार भी हो, ऐसे कथा तं को क पनाशीलता से
रचते हए हमारा हमेशा यान रहा है िक मनु य के अ तर का उदा भाव भी मुखर हो सके चूंिक
हमने जब-जब इन बड े पा से सा ा कार िकया है, तब-तब एक उदा त व के आलोक क
तरह ि के सामने आया है। उस आलोक म से थोड ा बहत अब हमारी ओर से आपके सामने
है।
महासती सीता
ल मण के लए यह रात कालराि के समान बीती और यह जो सवेरा हआ, इसक येक
िकरण उसे चुभ रही थी। उ ह िफर भयानक परी ा क घड ी से गुजरना था।
राम का आदेश था—, ‘‘ल मण! कल सवेरे तुम सारथी ारा संचा लत रथ पर सीता को ले
जाकर इस रा य क सीमा से बाहर छोड आओ। गंगा के उस पार तमसा नदी के िकनारे
महा मा वा मीिक का आ म है। जाओ, मेरी आ ा का पालन हो।’’
‘‘लेिकन—।’’
‘‘कोई न नह , कोई परामश नह । जो यि मेरे इस कथन के बीच कू दकर अनुनय-िवनय
करे गा और मेरे िनणय को बदलने के लए मुझ पर दबाव डालेगा, वह मेरा श ु होगा।।
‘‘तुम लोग मेरा स मान करते हो और मेरी आ ा म रहना चाहते हो तो सीता को यहां से ले
जाओ।
सीता क इ छा भी थी िक वह गंगातट पर ऋिष का आ म देख ले।
‘‘अब जाओ ल मण।”
ल मण ने साफ देखा िक राम क आंख से आंसू छलक आए थे, लेिकन िनणय क ढ ता
म कोई िश थलता नह आने पाई। पास म खड े भरत और श ु न मौन थे।
या िनयित है! जब जसने चाहा, आदेश िदया‒िपता ने भरी युवाव था म वन का आदेश
िदया, भाभी सीता ने वण मृग के पीछे राम क आवाज सुनकर मुझे राम क सेवा म जाने का
आदेश िदया तथा रावण के छल का िशकार हई ं और आज वयं ीराम मुझे ही सीता को वन म
छोड आने का आदेश दे रहे ह। इ छा के ितकू ल आदेश क बा यता बार-बार मेरी ही परी ा
ले रही है और म भी ातृ आदेश मानने के लए बा य ह।ं
ल मण बहत देर तक अपने महल क ऊंचाइय को देखते हए सोच रहे थे। अगर आज यह
सूय न उिदत होता तो आदेश पालन क घड ी कु छ और टल जाती, लेिकन आदेश का तो
पालन करना ही है। इसम देरी या है? लेिकन संकट तो यह है िक वे सीता से कहगे या? और
कैसे जुटा पाएंगे साहस कहने का?
या वे कह पाएंगे िक रावण ने बलपूवक उ ह अपनी गोद म उठाकर अपहरण िकया था?
और िफर वह उ ह अपनी लंका म भी ले गया तथा वहां अ तःपुर के ड ा कानन अशोक
वािटका म रखा। इस तरह रा स के वश म रही सीता अयो या क जा के लए अपिव हो गई
ह और सीता के बारे म फैला यह अपवाद सुनकर ही राम ने उ ह याग िदया।
िकतनी किठन परी ा क घड ी है यह!
आदेश का पालन करना था। अतः ातःकाल होते ही ल मण ने मन दख
ु ी होते हए भी सारथी
से कहा‒
“सारथी! एक सु दर रथ म शी गमन करने वाले घोड े जोतकर उसम सीताजी के लए
सु दर आसन िबछाओ। म महाराज क आ ा से सीताजी को तप वय के आ म पर पहच ं ा दग
ं ू ा।
शी रथ लेकर आओ।”
और सारथी जो आ ा कहते हए आदेशानुसार रथ ले आया और बोला, “रथ तैयार है
ीमान!”
रथ को तैयार कराकर ल मण संकोच और दःु ख अनुभव करते हए देवी सीता के महल म
पधारे ।
“आज ातःकाल भाभी क याद कैसे आ गई देवर जी?”
“आपक इ छा थी िक आप मुिनय के आ म म जाना चाहती ह। अतः महाराज ीराम का
आदेश है िक गंगातट पार करके ऋिषय के सु दर आ म ह, आज उसी िदशा म मण करना
है।”
“तु हारे महाराज भी बड े िविच ह, म इतने िदन से कह रही थी तो राजकाय म य तता के
कारण कभी मेरी बात नह सुनी और आज अचानक ताव वीकार कर लया। िफर भी मुझे
स ता है, उ ह मेरा यान तो रहा।”
ल मण के इस ताव पर सीता हिषत होकर चलने के लए शी तैयार हो गई।ं
सीता ने अपने साथ बहमू य व और नाना कार के र न लये तथा या ा के लए उ तृ
होकर बोल , “ये सब साम ी म मुिन-प नय को दग
ं ू ी।”
“जैसी आपक इ छा कहते हए ल मण ने सीता को रथ पर चढ ाया और सारथी से रथ
बढ ाने के लए कहा।
ल मण के मन म यह कसक थी िक एक सरल वभाव क ी को वे छल से िन का सत
करने म सहयोगी हो रहे ह लेिकन राजा ा के सामने वे लाचार ह।
य ही रथ आगे बढ ा, सीता क दाई ं आंख फड कने लगी। उ ह लगा िक कह अिन तो
नह हआ या होने क आशंका तो नह है? यह सोचकर उ ह ने ल मण को कहा, “देवर जी!
आज मुझे शकु न कु छ सही नह िदखाई दे रहे। मेरा मन ठीक नह है। पता नह य आज यह
अधीर हो रहा है? भु करे , आपके भाई कु शल से रह। तीन राजमाताएं और जनपद के सभी
ाणी कु शल रह, सबका क याण हो।” िफर ल मण को स बो धत करते हए सीता ने कहा‒
“तुम कु छ बोल नह रहे ल मण!”
“म आपक बात सुन रहा हं भाभी! और अनुभव कर रहा हं आपक अधीरता। आप वन म तो
जा ही रही ह, मुिनय के स संग म आपके मन को शा त िमलेगी। भागीरथी के तट पर नान
करके आप सुख अनुभव करगी।”
“िकतना अ छा होता, जो तु हारे भैया ीराम भी साथ होते!”
ल मण मौन होकर सीता के मन म उठने वाली शंकाएं महसूस कर रहे थे और डर भी रहा थे
िक ल य सामने आने पर वे अपनी बात कैसे कह पाएंग?े भाभी ने तो अिन अनुभव करके
कह लया, लेिकन वे तो रात से इस अिन के च वाती दबाव म घूम रहे ह। वे अपनी पीड ा
िकससे कह? अव ा भी नह कर सकते।
और तभी कु छ देर म उ ह ने देखा, सामने गोमती नदी का तट िदखाई दे रहा था।
“दे खए भाभी! हमारी या ा का पहला पड ाव िकतनी ज दी आ गया! आइए, इस भूिम का
पश कर। इस नदी के जल से पैर धोएं। मन और आ मा दोन शीतल हो जाएंग।े ”
ल मण के साथ सीता भी रथ से उतर आई।ं
वनवास काल के बाद पहली बार सीता ने इतना खुला आकाश और िव तृत ह रयाली देखी
थी। गोमती के िकनारे बसा था एक छोटा-सा गांव। यह ऋिषय , मुिनय , तप वय के कई
आ म थे। सं या हो चुक थी, सूय अ ताचल क ओर जा रहे था।
नदी तट पर आकर सूय क परछाई ं झलिमलाती पानी म देख सीता को लगा मानो सूयदेव
उ ह नम कार कर रहे ह और कह रहे ह, ‘देवी! आज क राि यह िव ाम करो, ातःकाल
िफर आपके दशन क ं गा।’
वह राि ल मण और सीता ने सारथी के साथ गोमती के तट पर ही एक रमणीक आ म म
यतीत क ।
ातःकाल होते ही जैसे ही पि य का कलरव शु हआ और यह आभास हआ िक पौ फटने
वाली है, ल मण ने सारथी को आदेश िदया, “सारथी शी रथ तैयार करो, हम सायंकाल तक
भागीरथी के तट पर पहच
ं जाना है।”
सारथी को तो आदेश क ती ा थी, उसका रथ तैयार था। आदेश पाते ही वह रथ लेकर
तैयार हो गया और अब ये लोग तेजी से गंगातट क ओर बढ गए।
रथ इतनी तेजी से चला िक वे दोपहर तक ही भागीरथी के िकनारे पहच
ं गए। जल क धारा
देखकर ल मण क आंख म आंसू आ गए और वे ऊंचे वर से फूट-फूटकर रोने लगे।
“अरे यह या? ल मण! तुम रो रहे हो, मां भागीरथी के तट पर आकर तु हारी आंख म
आंसू। या कारण है? इतने आतुर य हो गए? िकतने िदन से मेरी अिभलाषा थी िक म मां
भागीरथी के दशन क ं । आज मेरी अिभलाषा पूण हई है और तुम रो रहे हो। तुम इस समय
जबिक म स हो रही ह,ं रोकर मुझे दख
ु ी य करते हो?”
िफर ल मण को छे ड ते हए देवी सीता ने कहा, “ या तु हारे ाणि य भाई तु ह इतना याद
आ रहे ह िक दो िदन क िबछु ड न भी सहन नह कर पा रहे हो? इतने शोकाकु ल य हो?
तुम तो सदा ही राम के साथ रहते हो।
हे ल मण! राम तो मुझे भी ाण से बढ कर ि य ह, पर तु म तो इस कार शोक नह कर
रही। तुम ऐसे नादान न बनो। चलो, शी ता करो। मुझे गंगा के पार ले चलो। म उ ह व और
आभूषण दग ं ू ी। उसके बाद उन महिषय का यथायो य अिभवादन करके एक रात ठहरकर हम
लोग अयो या लौट जाएंग।े
मेरा मन भी राम से अ धक दरू रहने पर िवच लत हो जाता है। इस लए हे स यवीर! शोक
छोड ो और म ाह से कहो, वे नाव तैयार कर।”
सीता क सहजता देखकर ल मण िफर हक उठे , लेिकन तुर त ही अपने आपको संयत करते
हए रथ से उतरे और अपनी दोन आंख प छ ल ।
ल मण ने नािवक को बुलाया और उ ह सीताजी के साथ भागीरथी पार कराने के लए कहा।
म ाह ने हाथ जोड ते हए कहा, “ भु! आपके आदेश पर नाव तैयार है।”
अब ल मण आगे बढ ते हए सीताजी के साथ नाव पर बैठ गए। नािवक ने बड ी
सावधानी के साथ उ ह गंगा के उस पार पहच
ं ाया।
भागीरथी के उस तट पर पहच
ं कर अब ल मण का साहस टू टने लगा और वह घड ी आ गई,
जसका उ ह डर था।
वह राि ल मण ने दिु वधा और अ त म यतीत क ।
ातःकाल जब भागीरथी के तट पर बने मुिनय के आ म म जाने के लए सीता उ त हई ं तो
ल मण क दशा देखकर वे िचंितत हो उठ ।
“कहो ि य ल मण! या बात है? एक ही राि म तु हारा मुख इतना फ का कैसे हो गया?
या संकट है? या दिु वधा है? िकस म फंसे हो? देखो जो कु छ भी कहना हो, मुझसे प
कहो। या कोई अिन हो गया है? य िक मने अनुभव िकया है िक चलते समय भी तुम बहत
उदास थे। तुम अपने मन म कोई गु रह य पाले हए हो।
“मेरा दय बड ा िवशाल है ल मण! और म हर कटु बात सहने क आदी हो गई ह।ं रावण
के घर म जतने िदन रही ह,ं उससे बड ा यातनामय जीवन का कोई भाग नह हो सकता।
इस लए मुझसे कोई रह य मत छु पाओ। कह देने से पीड ा ह क हो जाती है।”
“लेिकन भाभी! कह देने का साहस जुटाना तो सरल नह होता। यह ठीक है िक या ा म मेरा
मन अ य त िचंितत रहा। एक अनागत संकट मेरे सामने है और एक आदेश भी।”
“तुम पहले क बात करो। अव य ही वह ीराम का आदेश होगा और ीराम कोई गलत
आदेश नह करते।”
“यही तो क है भाभी! जो आदेश मुझे िदया गया है, वह मुझे पूरा भी करना है और मेरे ारा
पूरा होगा, यह यं णा भी मुझे ही झेलनी है।”
“तो िफर इस यं णा को दिु वधा म य झेल रहे हो? और इतना लंबा य कर रहे हो? साफ-
साफ य नह कहते िक बात या है।”
“म तो तुमसे कल दोपहर से ही पूछ रही ह,ं या संकट है? लेिकन तुमने मुझे बताया ही
नह ।”
“तब से अब तक साहस जुटा रहा था।”
“तुम बोलो ल मण! मेरा आदेश है, उसका पालन करो।”
“भाभी! नगर और जनपद म आपके िवषय म रावण के यहां बलात् रहने को लेकर अ य त
भयानक अपवाद फैला हआ है, जसे राजसभा म सुनकर भैया राम का दय दख ु ी हो उठा। वे
मुझे आदेश देकर चले गए। जन अपवाद वचन को न सह सकने के कारण उ ह ने मुझसे छु पा
लया, वह तो म नह बता सकता और जो कु छ मुझसे कहा, वह यही है िक भले ही आप अि -
परी ा म िनद ष स हो चुक ह तो भी अयो या का जनसमूह इसे स य नह मान रहा। इसी
लोकोपवाद से महाराज ने आपको याग िदया है।”
“ या! तुम या कह रहे हो ल मण? महाराज ने याग िदया है और तुम मुझे यहां बता रहे
हो?”
“हां भाभी! यह महाराज क ही आ ा थी। उ ह के आदेशानुसार आपको रथ पर चढ ाकर म
यहां आ म के पास छोड ने के लए आया ह।ं ”
ण भर के लए सीता ने अपनी आंख मूंद ल । वह एक वृ के सहारे बैठ गई। हाथ कांप रहे
थे, दय क धड कन तेज हो रही थी, माथे पर पसीना छलक आया था और आंख के सामने
अंधरे ा छा गया।
“आप िवषाद न कर भाभी! यहां से तमसा का िकनारा पास ही है। वह महिष वा मीिक का
आ म है और अ य अनेक तप वी ऋिष-मुिन वहां वास करते ह। आप महा मा वा मीिक के
चरण क छाया का आ य लेकर वहां सुखपूवक रह।
“आप तो जनकपु ी ह, सब सह लगी। म जानता हं राम म आपक अन य भि और अनुरि
है। आप दय म राम का जाप करती हई पित त का ही पालन करगी और यही आपके लए
उ म माग शेष है।”
सीता वृ के नीचे ही गहन दख
ु का अनुभव करती हई अचेत हो गई।ं कु छ ण के लए उ ह
होश ही नह रहा। उनक आंख से आंसुओं क अिवरल धारा बहने लगी।
या िवड बना थी? िववाह के बाद जब राजसुख भोगने का अवसर आया तो माता कैकेयी के
वरदान आड े आ गए और एक राज मिहषी को वनवास के लए जाना पड ा।
पंचवटी म जब एक आ म बनाकर सुखपूवक रहने का मन बनाया तो लंका का द ु राजा
रावण उ ह छल से हर ले गया।
राम ने यथा यास करते हए वानर क सेना तैयार क , रावण का वध िकया और उ ह उसके
कारागार से मु कराया। एक बार िफर िदन पलटे और अयो या क भूिम पर पैर रखने का
सुअवसर िमला।
अभी तो जीवन के सुखद िदन पूरी तरह आ भी नह पाए थे िक यह वनवास!
“ल मण! वा तव म िवधाता ने मुझे केवल दख
ु भोगने के लए ही रचा है। पल- ितपल केवल
दख
ु ही मेरे सामने नाचता रहता है।
“पता नह पूवज म म मुझसे ऐसा कौन-सा पाप हआ है अथवा िकसका ी से िबछोह कराया
था, जो मुझ शु आचरण वाली को ये क भोगने पड रहे ह और आज वयं मुझे मेरे
देवा धदेव पित ीराम ने याग िदया।
“मने तो वनवास के दख
ु म भी सदैव उ ह के चरण का मरण िकया।
“तुम ही बताओ ल मण! अब म अकेली अपने प रवार और ि यजन से अलग इस आ म म
कैसे रह पाऊंगी? दख
ु पड ने पर िकससे अपनी बात कहग
ं ी।
“बताओ ल मण! जब मुिनगण मुझसे पूछगे िक राम ने तु ह िकस अपराध के कारण यागा है
तो म या जवाब दग
ं ू ी?
“म तो अभी इसी पल देवी मां भागीरथी क गोद म शरण ले लेती, िक तु म ऐसा नह कर
सकती। अयो या का राजवंश मेरे आंचल म सांस ले रहा है। राम का अंश मेरी कोख म पनप
रहा है।
“लेिकन तुम िचंता मत करो। तु ह जो आदेश िदया गया है, वही करो। मुझ द ु खयारी का या
है? वन म रहने क मेरी आदत है। यिद महाराज क इसी म स ता है तो इसे म सहष वीकार
क ं गी।
ल मण! तुम राजमाताओं को मेरी ओर से चरण पश करना और महाराज को आ व त
करना िक सीता उनक िचरसंिगनी, उनके आदेश का सदैव पालन करे गी।
राम से कहना‒हे रघुनदं न! आप जानते ह, सीता शु च र है। आपके िहत म त पर रहने
वाली, आप ही म ेम-भि रखने वाली है।
“हे वीर! आपने अपयश से डरकर मुझे यागा है। अतः लोग म आपक जो िनंदा हो रही है
अथवा मेरे कारण जो अपवाद फैल रहा है, उसे दरू करना मेरा भी कत य है, य िक मेरे परम
आ य आप ही तो ह।
“हे महाराज! म द ु खयारी समय क मारी ह।ं आपसे और या िनवेदन क ं , पुरवा सय के
साथ तो आप उदार यवहार करगे ही, अपने भाइय के साथ भी नेह बनाए रख।
“ ी के लए तो उसका पित ही देवता होता है, वही बंधु और गु होता है। एक लेश मुझे
अव य है, यिद आप मुझे अपने मन क पीड ा बता देते तो संभवतया मुझे अ धक स ता
होती और यह िव वास होता िक आप मेरा िव वास करते ह, लेिकन आप भय के कारण मुझसे
कु छ नह कह पाए िक तु म जीिवत रहने के लए अिभश ह।ं ऋतुकाल का उ ंघन करके
गभवती जो हो चुक ह।ं ”
ल मण अपना साहस खो चुके थे। उनके मन म उि ता पैदा हो रही थी। राम के इस यवहार
से वे ु ध भी थे,लेिकन रघुकुल क रीित है िक मयादा का उ ंघन नह िकया जा सकता। वे
छोटे भाई ह और राम राजा। उनके आदेश का पालन तो ल मण को करना ही है।
ल मण ने धरती पर माथा टेकते हए सीता को णाम िकया। उनक जीभ ठहर गई थी, आंख
पथरा-सी गई थ , गला खु क हो रहा था और एक अकथनीय वेदना से चेतना िवलु होना
चाहती थी, िफर भी रोते हए ही उ ह ने सीता िक प र मा क और पुनः उनके चरण छू ते हए
बोले‒
“हे िन पाप पित ते! आपको यहां वन म छोड ने का जो पाप म कर रहा ह,ं उसके लए मुझे
मा कर देना। म आपका अपराधी ह।ं ”
और िफर िबना सीता क तरफ देखे ल मण नाव म सवार हो गए।
ल मण अनुभव कर रहे थे िक दो िनरीह आंख उ ह देख रही ह, लेिकन वे इन आंख को
देखने का साहस नह जुटा पा रहे थे।
िनजन वन म एका त अकेली खड ी सीता जाते हए ल मण को देखती रह । ल मण क
नाव आगे बढ चुक थी।
उस पार पहच ं कर ल मण रथ पर सवार हो गए। गंगा के इस पार से उस पार गए ल मण
इतनी दरू आने पर भी पीछे देखने का साहस नह कर पाए।
सारथी रथ को दौड ाए चले जा रहे थे। रथ के पीछे -पीछे सीता क आंख धुध
ं ली पड ने
लगी थ ।
अब रथ भी िदखाई नह दे रहा था। केवल धूल-ही-धूल और इस धूल म उ ह िदखाई िदया
अपने िपता जनक का राजमहल, वह पु प वािटका जहां उ ह ीराम पहली बार िमले थे और
स खय के साथ खड ी सीता संकुिचत पूजा के फूल हाथ म लये ऐसी लग रही थ मानो उनका
देवता सा ात् सामने आ गया है और वे उसे पूजने के लए ही इस वािटका म आई ह।
जनकपुरी म सीता
उसे नह मालूम अपने ज म क कथा। वह तो इतना जानती है िक वह धरती क बेटी है।
िम थला के महाराज जनक तब संतानहीन थे। रा य म अकाल क थित हो गई थी। महाराज ने
ापूवक िवशाल य िकया और भूिम का पूजन िकया।
खेत म सामूिहक हल चलाने के लए राजक य आयोजन िकया गया। बड ा पंडाल सजाया
गया, महिष शतान द ने वेद मं ो चार करते हए महाराज के हाथ म पिव जल से छ टे देकर
कहा, ‘‘च लए महाराज! हल चलाइए।’’ और जैसे ही महाराज ने हल चलाया, अभी वे खेत को
एक पारी भी पूरी नह कर पाए थे िक उ ह लगा हल के एक घड े से टकराने क आवाज हई
है।
यह देखते ही सेवक ने उस जगह को खोदा, वहां एक सुवण पा म एक नवजात क या लेटी
मु करा रही थी। यह क या हल से उ प हई थी, इस लए उसका नाम सीता रख िदया गया।
महारानी सुनयना ने जब उस क या को देखा तो उनक आंख म ममता उभर आई और य ही
उ ह ने उसे अपने सीने से लगाया, उनके तन म दधू उतर आया। पास ही वृ क छाया के नीचे
बैठकर महारानी ने प रचा रकाओं क ओट म होकर क या को तनपान कराया।
‘महाराज जनक ने हल चलाते हए एक िद य क या ा क है।’ जब यह समाचार
नगरवा सय को िमला तो सब लोग बधाईयां देने आए।
महाराज िवदेह थे, इस लए पु ी को पाकर वे अ य त स हए। उनक खुशी क सीमा न
रही। जो आंगन अब तक रा यादेश क आवाज से गूज ं ता था, आज पहली बार वहां िकसी
बालक के रोने क आवाज सुनाई दी।
िकसी भी घर का यह सौभा य होता है िक वहां बालक क िकलकारी उभरे ।
आज तक महाराज ने कभी इस सुख का अनुभव नह िकया था, पर सीता के आने पर
महाराज जनक और महारानी सुनयना के हष क कोई सीमा न रही मानो उ ह मुंहमांगी मुराद
िमल गई हो।
िफर या था? रा यमं ी और महिष शतान द के परामश से महाराज जनक ने दर-दू रू तक के
रा य के अ धपितय और राजाओं के पास यौता भेजा िक वे अपने यहां पु ी के ज म का उ सव
मना रहे ह, सभी राजागण पधारकर बा लका को आशीवाद द।
बा लका सीता के ज म क खुशी म महाराज ने िकतने ही बंिदय को रहा कर िदया, जी
खोलकर दान िदया। रानी सुनयना के लए वह िदन एक अनमोल ण था, उनक सूनी गोद भर
गई थी। उनका नीरस जीवन रस स हो गया था। अब उनके आंगन म जद करने वाला आ गया
था।
बा लका सीता न केवल प सौ दय म अ ितम थी, ब क वह अपने हाव-भाव म भी
आकषक थी।
सीता के ज मो सव पर अनेक राजागण पधारे । पूरे पखवाड े यह उ सव चलता रहा। इ
देवता इतने अ धक स हए िक िन य ही आकाश म बादल घुमड ते थे और पृ वी को सुख
पहचं ाते थे। महाराज के भूिम-पूजन य से न केवल महाराज जनक का अपना आंगन लहलहा
उठा, ब क उनके खेत म भी ह रयाली छा गई। जो भूिम कल तक ऊसर हो रही थी, वह आज
उपजाऊ लग रही थी। यह िम थला के लए एक सुखकारी वष था। अब िन चय ही कोई यि
गरीब नह होगा। िकसी कार का अभाव नह रहेगा।
महाराज जनक तो वैसे भी धमा मा, दानी और उदार जापालक के प म च लत थे, लेिकन
पु ी के आगमन ने उ ह कृित से और उदास बना िदया। अब तो यहां िन य ही मेले लगने लगे।
पूरे पखवाड े चले ज मो सव सं कार के स प होने के बाद इस िवशाल ांगण म, जहां
भूिम-पूजन िकया गया था, सभी राजाओं ने िमलकर देवी सीता को अपने आशीवाद से समृ
िकया।
महाराज जनक के लए तो यह दल ु भ ण था। वे संतान क ओर से य िप िनराश नह हए थे,
िफर भी इस अ यािशत तरीके से पु ी का ा होना उनके लए सुखद अनुभव अव य था।
जो सौभा यशाली होता है, उसके कदम पड ते ही चार तरफ सौभा य-ही-सौभा य िदखाई
पड ता है। महाराज के यहां भी यही हआ। सीता के आगमन के कु छ समय बाद ही महारानी
सुनयना गभवती हई।ं
महाराज जनक ने जब यह जाना तो सीता को साथ लेकर वे महारानी के क म गए।
रानी ने शैया से उठकर सीता को अपने अंक से लगा लया और बोल , “मेरी सौभा यशाली
बेटी! तू देवी है, तू साधारण क या नह है, तू देवक या है, तेरे आगमन से ही मेरे यहां एक और
फूल खलने वाला है।”
सीता ने अपने िपता से पूछा, “मेरे आने से कहां फूल खला िपताजी?”
राजा असमंजस म पड गए। इस बा लका को या जवाब द? तब रानी ने कहा, “हे पु ी!
कु छ िदन म तु हारे साथ खेलने के लए तु हारी छोटी बहन आएगी।”
बाल सुलभ स ता जािहर करते हए सीता खल खला पड ी, “अ छा मेरी छोटी बहन
आएगी, तब म इसे बहत यार क ं गी। जैसे आप मुझे गोद म खलाते ह, वैसे म उसे अपनी गोद
म खलाते हए उसे ढेर सारे फूल दग
ं ू ी।”
और िफर कु छ समय बाद महाराज जनक के यहां एक क या ने ज म लया। इसका नाम
उिमला रखा गया।
सीता तो अपनी छोटी बहन पाकर बहत स हई,ं य िक अब उनके लए यह महल अकेला
नह था, उनके साथ उनक सहेली बनकर छोटी बहन आ गई थी।
लड क पराया धन होती है और बेल क तरह बढ ती है। देखते-ही-देखते महाराज जनक
क ये दोन क याएं युवती हो गई।ं
महाराज ने सीता को बड े होते देखा तो उ ह स ता भी हई, लेिकन साथ ही उनके िववाह
क िचंता भी।
एक िदन सीता ने महाराज के िवशेष क म रखे हए धनुष को क क सफाई कराते हए
उठाकर एक थान से दसरे
ू थान पर रख िदया। महाराज जनक को जब यह ात हआ िक सीता
ने यह धनुष उठा लया है तो उनके आ चय क सीमा न रही।
यह भगवान महादेव िशव का धनुष था, जसे महादेव ने अपने वसुर जापित द महाराज के
य को न - करने के लए उठाया था। उ ह ने देवताओं से कहा था िक म अपना य -भाग
लूग
ं ा, लेिकन जापित द ने उसे वीकार नह िकया।
महाराज द क पु ी और महादेव क प नी सती को अपना और अपने पित का यह अपमान
सहन नह हआ और देखते ही देखते वे य कुं ड म कू द पड ी।
सती के इस कार अि -समपण से िशव ु हो गए।
देवताओं के अनुनय-िवनय पर उ ह ने स होकर यह धनुष उ ह दे िदया।
महाराज जनक के पूवज ने देवताओं से इस धनुष को ा िकया।
इस िशव-धनुष को उठाना कोई सरल काम नह था, यंचा चढ ाना तो दरू क बात है।
इसक यंचा तो वही चढ ा सकता है, जो िशव का अन य भ हो या जस पर िशव क
कृपा हो।
जब सीता ने यह धनुष उठा लया तो िन चय ही इसके लए सुयो य वर वही हो सकता है, जो
इस धनुष क यंचा चढ ाए।
बस िफर या था! देवी सुनयना को बुलाकर महाराज जनक ने अपने मं ीमंडल के स मुख
यह ित ा क िक वे अपनी पु ी सीता का िववाह उसी वीर ि य के साथ करगे, जो इस धनुष
क यंचा चढ ा देगा।
सीता के लए तो यह एक सामा य बात थी। जब भी कभी सीता उसके पास आती-जात या
उसे वयं सफाई करने का यान आता तो वे उसे बड ी सरलता से उठा लेत और पूजा-भाव
से नीचे क जमीन साफ करके बड े आदर के साथ धनुष को वह रख देत ।
महाराज जनक ने धनुष क यंचा चढ ाने के लए दरू देश से अनेक राजा। महाराजाओं
को आमंि त िकया और साथ ही यह घोषणा करा दी िक महाराज जनक अपनी पु ी का िववाह
उसी ि य से करगे, जो इस धनुष को उठाकर इसक यंचा चढ ाएगा।
इसके लए उ ह ने धनुष य का आयोजन िकया।
राम का जनकपुर आगमन
अयो या के महाराज दशरथ बड े तापी राजा थे। उनक तीन रािनयां थ -कौश या, कैकेयी
और सुिम ा।
महाराज िनःसंतान थे। इतने बड े रा य का कोई उ रा धकारी नह था। इससे वे िचंितत रहने
लगे।
उनक रा य प रषद म अनेक िव ान महा मा थे। महिष व स राजगु थे। उ ह के परामश
पर महाराज दशरथ ने अ वमेध य िकया और मुिन ऋ य ंग को य का पुरोिहत बनाया गया।
ऋ य ंग के य ताप से पूणाहित के िदन य कुं ड से एक खीरपा कट हआ। मुिन ऋ य
ंग ने महाराज से कहा, “ली जए महाराज! आपक मनोकामना पूरी हो। यह खीरपा ली जए
और अपनी प नय को इसे खला दी जए।”
महाराज ने खीरपा से आधी खीर कौश या को और आधी कैकेयी को दे दी। दोन रािनय ने
अपनी खीर का आधा-आधा अंश सुिम ा को दे िदया।
समय आने पर अयो यापित महाराज दशरथ के यहां मशः चार पु उ प हए।
कौश या के पु राम, कैकेयी के भरत और सुिम ा के यहां ल मण व श ु न ज मे।
महाराज दशरथ इन चार पु को पाकर अ य त स हए। उनक खुशी क कोई सीमा न
रही। जहां राजमहल म एक भी िकलकारी नह उभरती थी, वहां चार-चार ब च क िकलका रय
ने धूम मचा दी।
धीरे -धीरे ये राजपु बड े हए। महिष व स , वामदेव और जाबा ल के संर ण म इ ह ने वेद
और धनुिव ा सीखी।
राम बड े थे, अतः महाराज दशरथ को अ य त ि य थे। राम यु -कु शल भी थे और धीर,
गंभीर, दयावान व सिह णु भी थे। उनक याित महाराज दशरथ के चार पु म सबसे अ धक
थी।
यही सोचकर एक िदन महिष िव वािम अयो या पधारे ।
महाराज दशरथ ने जब सुना िक महिष िव वािम पधारे ह तो उ ह बहत अ धक स ता हई।
अपने संहासन से उठकर महाराज दशरथ ने मुिन का आय पा सेवन करते हए वागत िकया
और उ ह राजसभा म उ च थान पर बैठाते हए कहा, “आज अयो या के अहोभा य, जो ऋिषवर
पधारे ह।” और िफर उनका यथावत् अिभवादन करते हए उनसे िनवेदन करते हए कहा, “आ ा
क जए देव! म आपक या सेवा कर सकता ह? ं आपके अयो या आगमन का योजन या
है?”
महाराज को अपना आशीवाद देते हए और उनके वागत से स महिष िव वािम ने उनसे
कहा, “हे राजन! म एक सि य कर रहा हं और देख रहा हं िक अनेक रा स बार-बार मेरे
य म यवधान डाल रहे ह। य िप म वयं इन रा स का वध करते हए बार-बार उठ नह
सकता और उनका वध नह कर सकता। अतः म इस शुभ कम के लए तु हारे पु राम को
मांगने आया ह।ं आप राम को मेरे साथ भेज द। म इसे बला, अित बला शि य से स प कराके
सभी िद या से यु क ं गा, तािक यह स पूण आयावत को एक अखंड रा य के प म
संगिठत करके उसका िन कंटक अ धपित बन सके। इसे म पाशुपता , इ ा और आ ेया
जैसे िद य अमोघ अ से यु कर दग ं ू ा।”
महाराज दशरथ राम से अ य धक ेम करते थे। िव वािम क राम को ले जाने क बात
सुनकर महाराज दशरथ को बहत दखु हआ और राम के िवयोग क क पना करके वे अचेत हो
गए।
कु छ समय प चात् चेत य होने पर वे अ य त भयभीत हो गए और राम का िवयोग सहन
करने म वे अपने आपको असमथ अनुभव कर रहे थे।
कु छ ण शा त रहने के प चात् महाराज दशरथ ने मुिन से कहा, “हे महिष! राम तो अभी
बहत छोटा है, वह तो अभी पूरे सोलह वष का भी नह हआ है। म आपके सामने तुत ह।ं मेरी
अ ौिहणी सेना आपक सेवा म तैयार है। आप मुझे आदेश दी जए, म वयं ही हाथ म धनुष
लेकर य के मुहाने पर रहकर आपके य क र ा क ं गा। मेरे ारा सुरि त आपका अनु ान
िनयमानुसार िबना िकसी िव न-बाधा के पूरा हो जाएगा। चूंिक राम तो अभी बालक है, यह दसरे

के बलाबल को नह जानता। यह न अ -बल म कु शल है और न िकसी कला म िनपुण और
मने तो देवासुर सं ाम म भी स बर जैसे असुर का वध िकया था। अतः म सब कार से आपके
य क र ा करने यो य ह।ं मेरी सम त सेना आपके आदेश पर यु के लए भी तैयार है।
“और आप तो जानते ह, राम अभी बालक है। रा स माया से अप रिचत है। वे रा स िकतने
परा मी ह, िकसके पु ह, उनका डील-डौल कैसा है, राम तो यह भी नह जानता और िफर हे
मुिनवर! म राम के िवयोग म दो घड ी भी जीिवत नह रह सकता। अतः आप इस पर
पुनिवचार कर और राम के थान पर म अपनी सेवाएं देने को तैयार ह।ं मेरी अव था भी अब
काफ हो गई है।
“आप तो यह भी जानते ह िक मने िकतनी किठनाई से वृ ाव था म ये पु पाए ह।”
महाराज दशरथ क बात सुनकर िव वािम ने कहा, “म आपक बात समझता हं महाराज!
पर आपको पहले तो यह बता दं ू िक महिष पुल य के कु ल म उ प िव वा पु यह रावण एक
रा स है, जसे ा से यह वरदान है िक वह देवताओं, दानव , दै य , य , िक र और ग धव ं
से नह मारा जा सकता।
“यह कु बेर का भाई महाबली िनशाचर वयं य म िव न नह डालता, ब क इसक ेरणा से
मारीच और सुबाह अपने दल बल के साथ आते ह और य म िव न डालकर चले जाते ह।”
“तो िफर?” महाराज दशरथ ने कहा, “ऐसे भयानक रा स से मेरा पु राम कैसे टकराएगा?
वह तो मारा जाएगा।
“नह महिष! नह , म अपने पु को नह दग
ं ू ा। आप चाह तो म चल सकता ह।ं ”
महाराज दशरथ से अ वीकार सुनकर मुिन िव वािम को ोध आ गया।
महाराज दशरथ के येक श द म अपने पु के ित नेह भरा हआ था। इससे कु िपत होकर
िव वािम ने उनसे कहा‒
“राजन! पहले ित ा करके उसे तोड रहे हो। या यही रघुकुल क रीित है? यिद तुम
ऐसा करना चाहते हो तो ठीक है। म लौट जाता ह,ं लेिकन यह तु हारे कु ल के िवनाश का सूचक
है।”
महिष व स ने जब मुिन िव वािम का यह ोध देखा तो उ ह ने महाराज दशरथ से कहा,
“राजन! महिष ठीक कह रहे ह। आप त-पालक ह और आपको धम का प र याग नह करना
चािहए। आपने उनक इ छत व तु देने का वचन िदया है, अब अ वीकार करना आपको शोभा
नह देता। आपको धम का पालन ही शोभा देता है। अतः ीराम को महिष िव वािम के साथ
भेजना ही य
े कर है।”
“ या आप नह जानते िक महिष िव वािम वयं सा ात् अ के भंडार ह। ि लोक का कोई
भी अ इनको परा त नह कर सकता, चाहे वह ा हो या महादेव का पाशुपता या
भगवान नारायण का नारायणा ।
"आपक ि म राम भले ही अभी बालक है, लेिकन जस कार अि ारा सुरि त अमृत
पर कोई हाथ नह डाल सकता, उसी कार कु िशक नंदन िव वािम से सुरि त यि का रा स
कु छ नह िबगाड पाएंग।े इ ह ने तप के बल से को ा िकया है। ये तप या क खान ह,
सा ात् धम क मूित ह, िव ा म इनसे बढ कर िव व म कोई नह है। जन अ को ये जानते
ह, इनके सवा दसरा
ू पु ष न जानता है, नह जान पाएगा।
ायः सभी अ जापित कृशा व के धमा मा पु ह। जापित ने िव वािम को रा य शासन
करते हए समिपत कर िदया था।
" जापित क दो पुि यां अनेक प वाली ह। सब-क -सब महान! शि शाली ह। जया और
सु भा ने एक सौ परम काशमान अ को उ प िकया और ये सभी अ -श महिष
िव वािम के आदेश पर उप थत होकर उनके आदेशानुसार काय करते ह। जो अ अब तक
उपल ध नह हए ह, उनका भी उ पादन करने क उनम अपूव मता है।
"हे महाराज! मुिन िव वािम के िश य व म रहकर राम का यि व उस कार फौलादी हो
जाएगा, जैसे सोना आग म तपकर कंचन हो जाता है।”
व स मुिन के इस कार कहने पर महाराज दशरथ के भीतर का राजा जाग उठा और
रा िहत के लए उ ह ने राम को ल मण सिहत राजसभा म बुलाया और स तापूवक माता-िपता
ने पुरोिहत महिष व स ारा व त वाचन के साथ महिष को स प िदया।
अब राम और ल मण महिष के साथ या ा पर चल िदए।
दोन भाई पीठ पर तरकश बांधे थे, उनके हाथ म धनुष थे और वे िव वािम के पीछे फणधारी
सांप क तरह चल रहे थे।
सरयू नदी पर पहचं कर महिष ने राम को आचमन कराते हए सबसे पहला पाठ बला और
अबला शि मं का ान कराके िदया। इसके भाव से शारी रक थकावट तो होगी ही नह , न
ही प म िकसी कार का िवकार आएगा और सबसे बड ी बात तो यह है िक सोते समय या
असावधानी के समय रा स भी इनके ऊपर आ मण नह कर सकगे। इस शि का अ यास
करने से राम तीन लोक म अि तीय हो जाएंग।े ”
आचमन करके स मुख राम ने दोन िव ाएं हण क । उस समय उनका मुख सह
िकरण से यु शरदकालीन सूय के समान चमक रहा था।
यहां से ये लोग सरयू गंगा संगम के समीप पु य आ म म ठहरे ।
ातःकाल नाव से गंगा पार क तो वह थल भी देखने को िमला, जहां भीषण शोर के साथ
सरयू गंगा म आकर िमलती है।
गंगा पार करके जब वे आगे चलने लगे तो वहां एक भयानक वन िमला। जसम िहरण आिद
पशुओं के अित र संह और या जैसे िहंसक पशु भी थे। यह महिष ने राम को ताड का
नाम क रा सी का प रचय िदया, “मारीच इसी का पु है। यह मारीच सदा ही यहां क जा को
क पहच ं ाता है और ताड का इस वन देश से लगे हए जनपद का िवनाश करती है। छह
कोस दरीू तक का यह माग इस ताड का के द ु भाव से त है। यह दर-द ू रू तक अपना
भाव जताकर िफर इस वन म आकर िछप जाती है।”
िव वािम ने राम से कहा‒
“तु ह अपने बाहबल का पहला योग यह करना है, इस ताड का को मारकर।”
राम ने वयं को तैयार करके अपने हाथ म धनुष को जोर से पकड लया और उसक
यंचा पर ती टंकार क । उससे उस वन म रहने वाले सभी ाणी थरा उठे ।
जब ताड का ने वह टंकार सुनी तो वह बौखला उठी।
िवकराल रा सी ताड का को सामने देखकर राम ने कहा, “ल मण! देखो तो सही, इस
यि णी का शरीर कैसा दा ण और भयानक है। अपने मायाबल से यह कैसी दजु य हो रही है,
लेिकन म अभी इसके नाक और कान काटकर इसे पीछे लौटने को िववश करता ह।ं ”
अभी राम कह ही रहे थे िक ोध म ताड का वहां आ पहच
ं ी।
जब वह राम के ऊपर झपटी तो िव वािम ने हक
ं ारकर कहा, “रघुकुल के इन दोन
राजकु मार का क याण हो।”
ताड का ने अपनी माया से धूल उड ाते हए ण-भर के लए उ ह म म डाल िदया और
िफर उन पर प थर क वषा करने लगी।
राम ने यह देखा तो उ ह ने ताड का के प थर क वृि रोककर उसके दोन हाथ अपने
तीखे बाण से काट डाले।
अक मात् इस कार अपने हाथ कट जाने से वह बौखलाकर और ऊधम मचाने लगी तो
ल मण ने एक बाण से उसक नाक और कान काट डाले।
लेिकन वह तो इ छानुसार प धारण करने वाली थी। अतः िफर से अनेक प बनाकर राम
और ल मण को मोह म डालती हई अ य हो गई।
राम ने सोचा, ‘यह अबला नह , इससे पहले िक यह अपनी माया से कट हो, इसे मार डालना
ही उिचत है।’
िव वािम ने उ ह संकेत िकया िक सं याकाल से पहले ही इसका मर जाना ठीक होगा तो राम
ने श दबेधी बाण से उस यि णी को सब ओर से अव कर िदया।
बेबस ताड का ने राम और ल मण पर भारी आ मण कर िदया, लेिकन ये दोन सतक थे।
वेग से आती ताड का को देखकर राम ने एक बाण मारकर उसक छाती चीर डाली और वह
मायावी रा सी पृ वी पर िगरते ही ाणहीन हो गई।
राम के ारा ताड का का वध हो जाने पर महिष ने अगले िदन ातः राम पर स होकर
उ ह िद या का दान िकया तथा उनक संहार िव ध भी बताई। इस कार महिष िव वािम के
साथ राम और ल मण उनके स आ म म आ गए। यह मुिन को अपना य स प करना था।
र ा क सारी यव था राम को स पकर मुिन य के लए आसन पर बैठ गए। छह िदन और
छह रात ये राजकु मार तपोवन क र ा करते रहे। सातव िदन वे र ा म लगे हए थे िक उ ह ने
देखा, य क वेदी सहसा व लत हो उठी अथात् रा स आ गए थे, जो य को न करना
चाहते थे। तभी मारीच और सुबाह अपनी माया के साथ वहां आए, उनके साथ उनके अनुचर भी
थे और यहां उ ह ने र क धारा बरसाना आर भ कर िदया।
इससे पहले िक वे मुिन का य न कर, एक बाण से राम ने मारीच क छाती को बेधकर पूरे
सौ योजन दरू समु के जल म िगरा िदया और िफर आ ेया का संधान करके सुबाह को भी
मृ यु के घाट उतार िदया, जबिक उन दोन रा स के अनुचर भाग खड े हए।
सातव िदन क समाि पर मुिन का य पूरा हो गया और जो उनका ल य था, उसक
सफलता पर उ ह ने राम को आशीवाद िदया और कहा‒
“हे महाबाहो! म तु ह पाकर कृताथ हो गया। तुमने गु क आ ा का पूण प से पालन िकया
है। आज तुमने इस स ा म का नाम साथक कर िदया।”
यह राि मुिन के साथ राम और ल मण ने उस य शाला म ही िबताई।
ातःकाल आ म के मुिनय ने महिष से िनवेदन िकया िक िम थला के राजा जनक का परम
धािमक य आर भ होने वाला है, उसम उ ह ने सीता के िववाह के लए वयंवर रचा है और
उनक ित ा है, “जो वीर इस िशव के धनुष को तोड देगा, उसी के साथ वे सीता का िववाह
कर दगे। अब तक िकतने ही वीर िद गज वहां आ चुके ह और अपना बल िदखा चुके ह, लेिकन
सुना है िक अभी तक िकसी के ारा भी वह धनुष उठाया नह जा सका।
यह सुनकर महिष ने राम से कहा‒
“हे नर े ! अब तक तुम मेरी सेवा म थे। अब तुमने अपना काय स कर लया है। अतः
यिद इ छा हो तो जनकपुर के महाराज का य भी देख लया जाए। इससे मण भी हो जाएगा
और तुम ि य हो, धनुष-य म भी स म लत हो सकते हो।
“अतः मेरा यही कहना है िक तुम हमारे साथ चलो।”
महिष िव वािम ने राम को बताया िक यह िशव का धनुष महाराज जनक को िकस कार
ा हआ और वह िकतना अ ुत है।
“हे राम! िम थला नरे श जनक ने य के फल व प देवताओं से यह धनुष मांगा था और
भगवान शंकर ने उनसे स होकर उ ह यह दान कर िदया था।
“जनक के महल म यह धनुष देवता क तरह िति त है। अनेक कार क धूप आिद से
इसक पूजा होती है।”
यह सुनकर राम और ल मण के मन म जनकपुरी जाने क इ छा पैदा हो गई और उ ह ने
महिष के साथ जाने का काय म बना लया।
स ा म से चलते हए महिष ने वन देवताओं से कहा, “म अपना य -काय पूरा करके इस
स ा म से जा रहा ह।ं गंगा के तट पर होता हआ िहमालय क उप यका म जाऊंगा। आपका
क याण हो।’’ िफर महिष िव वािम आ मवा सय , राम और ल मण को साथ लेकर जनकपुरी
क ओर चल िदए।
माग म महिष िव वािम अनेक थान पर ठहरते हए जब िम थला पहच
ं े तो जनकपुरी क
शोभा देखकर वे उसक भू र-भू र शंसा करने लगे।
िम थला के उपवन म एक पुराना आ म था, जो कभी अितरमणीय था, लेिकन आज सूना
िदखाई दे रहा था। इसे देखकर राम ने मुिन से पूछा, “हे महा मन्! यह कैसा थान है, जो देखने
म तो आ म जैसा िदख रहा है, िक तु यहां तो कोई िदखाई ही नह पड ता। यह उजड ा हआ
आ म िकसका है?”
“राम! बहत पहले यहां गौतम मुिन अपनी प नी अिह या के साथ रहते थे। उन गौतम मुिन ने
ोधपूवक अपनी प नी को शाप दे िदया। तब से यह उजाड हो गया है, लेिकन यह सदा से
ऐसा नह था। यह िद य आ म था। मुिन ने यहां वष ं तक पूजा क ।
िफर दभु ा य से एक िदन जब महिष गौतम आ म म नह थे तो देवराज इ गौतम मुिन का
वेश बनाकर यहां आए और अिह या से बोले, ‘हे सुंदरी! रित क इ छा रखने वाले ाथ पु ष
ऋतुकाल क ती ा नह करते। हे सु दर किट देश वाली नारी! म तु हारे साथ समागम करना
चाहता ह।ं ’
‘‘अिह या गौतम का वेश धारण िकए इ को पहचानकर भी मोहास हो गई और यह
जानकर िक देवराज इ उसे चाहते ह, वह उनके साथ समागम के लए तैयार हो गई।
‘‘समागम के प चात् अिह या ने देवराज इ से कहा, ‘हे सुर े ! आपके समागम से म
कृताथ हो गई। आज बहत समय के बाद मने यह समागम सुख ा िकया है। हे देवे वर! अब
आप यहां से शी चले जाइए, य िक महिष गौतम यिद आ गए तो समझ ली जए िक मेरा और
आपका दोन का अिन हो जाएगा।’
‘‘अिह या का यह भय और संकोच देखकर इ ने कहा, ‘ठीक है देवी! म भी संतु हो
गया।’ यह कहते हए वे कु िटया से बाहर आ गए और जैसे ही वे बाहर िनकले, गौतम मुिन के
आने क आशंका से भयभीत वे भागने का य न करने लगे।
‘‘इतने म इ ने देखा, तपोबली महामना गौतम हाथ म सिमधा लये हए आ म क ओर आ
रहे ह, उनका शरीर जल से भीगा हआ है और व लत अि के समान दी हो रहा है।
‘‘मुिन को देखते ही इ भय से थरा उठे ।
‘‘और जब मुिन गौतम ने इ को अपना ही छ वेश धारण िकए देखा तो रोष म भरकर
कहा, ‘हे दबु ुि ! तूने मेरा प धारण करके जो पापकम िकया है, उसके कु फल के प म तू
अ डकोष रिहत हो जाएगा।’
‘‘मुिन के ऐसा कहते ही इ के अ डकोष उसी ण पृ वी पर िगर पड े।
‘‘गौतम मुिन ने अपनी प नी अिह या को शाप देते हए कहा‒
‘दरु ाचा रणी! तू भी यहां कई हजार वष ं तक केवल हवा पीकर उपवास करती हई, क
उठाती राख म पड ी रहेगी। तू सम त ािणय से अ य इस आ म म िनवास करे गी।’
‘‘अिह या यह सुनकर मुिन से मायाचना करने लगी और बोली, ‘हे मुिन! जो कु छ भी हआ
है, आपके प म हआ है। मने आपके ही स मुख समपण िकया है। मुझे मा कर देव!’
“मुिन ने तब िवचारकर कहा, ‘जब दशरथ कु मार राम इस वन म पदापण करगे तो उनका
अित थ स कार करने से तु हारे लोभ, मोह आिद दोष दरू हो जाएंग।े तब पिव होकर तुम मेरे
पास पहचं कर अपना पूव शरीर धारण कर लोगी।’
‘‘अिह या से इस कार कहकर वह महातेज वी मुिन गौतम इस आ म को छोड कर
िहमालय के रमणीय िशखर पर तप या करने के लए चले गए।
‘‘इ अ डकोष से रिहत होकर बहत डर गए। उनके ने म रोष छा गया, िफर भी उ ह ने
देवताओं से कहा िक महा मा गौतम क तप या म िव न डालने के लए मने उ ह ोध िदलाया
था।
‘‘मुिन ने ोध म मुझे अ डकोष से रिहत कर िदया और अपनी प नी का प र याग कर िदया।
ऐसा करते हए मने देवताओं का िहत ही िकया है।
‘‘इ से यह सुनकर मा तगण सिहत अनेक देवताओं ने िपतृदेव से यह िनवेदन िकया िक
उनको भेड के अ डकोष दे िदए जाएं। िपतृदेव ने इ ह इ को दे िदया। तभी से वहां आए हए
सम त िपतृदेवता अ डकोष रिहत भेड को ही उपयोग म लाते ह।”
महिष िव वािम से अिह या के शाप क यह कथा सुनकर राम देवी अिह या के आ म म
पधारे ।
वहां अिह या अपनी तप या से दैदी यमान हो रही थी, लेिकन वह सबके लए अ य थी और
केवल राम ही उसे देख सकते थे।
अिह या का व प िवधाता ने बड े य न से िनिमत िकया था। इस समय राम को वह
व लत अि िशखा-सी जान पड ी।
राम का दशन िमल जाने से अिह या के शाप का अ त हो गया।
उस समय ीराम और ल मण ने बड ी स ता के साथ अिह या के दोन चरण का पश
िकया और महिष गौतम के वचन का मरण करके अिह या ने बड ी सावधानी से उन दोन
भाइय को आदरणीय अित थ के प म वीकार िकया तथा उनका अित थ स कार िकया।
महिष गौतम के अधीन रहने वाली अिह या अपनी तपोशि से िवशु व प को ा हई।
इस ताप से महातप वी गौतम भी अिह या को अपने साथ पाकर सुखी हो गए।
अिह या का उ ार करके राम और ल मण महिष िव वािम के साथ गौतम आ म से
ईशानकोण क ओर चले तथा िम थला नरे श महाराज जनक के य मंडप म जा पहच
ं े।
य मंडप म पहच
ं कर राम और ल मण ने वहां क शोभा देखकर आ चयिम त स ता का
अनुभव िकया।
राम ने कहा, “हे महाभाग! महा मा जनक के य का समारोह तो बड ा भ य और सु दर
िदखाई पड रहा है। यहां तो अनेक कार के अित थ, ा ण आिद उप थत ह। आप भी ऐसा
कोई थान िन चत क जए, जहां हम लोग ठहर सक।”
राम क यह बात सुनकर महामना िव वािम ने जल-सुिवधास प एक एका त थान म
अपना डेरा डाल लया।
इधर जब महाराज जनक को यह ात हआ िक उनके य म महिष िव वािम वयं पधारे ह
तो वे अ य त स हए और अपने राजपुरोिहत गौतम पु शतान द को आगे करके उनका
वागत करने चल िदए।
महाराज जनक के साथ अ य लए महा मा ऋ वज भी आगे चले।
महाराज जनक ने िवन भाव से आगे बढ कर महिष िव वािम क अगवानी क और उ ह
अ य समिपत िकया।
महिष ने राजा जनक क पूजा हण क और उनके कु शल समाचार पूछे। ऋिष के साथ जो
मुिन उपा याय आए थे, उन सबका वागत िकया।
इसके प चात् महाराज जनक ने िव वािम से हाथ जोड कर िनवेदन िकया िक वे आसन
पर िवराजमान ह ।
यह बात सुनकर मुिन िव वािम आसन पर बैठ गए। इसके बाद िफर पुरोिहत आिद ने भी
अपना आसन हण िकया।
महाराज जनक के य -दी ा के बारह िदन शेष थे, अतः उ ह ने िनवेदन िकया िक हे महिष!
बारह िदन के बाद यहां य भाग हण करने के लए आए हए देवताओं का दशन कर।
ऋिष ने उनका आ ह वीकार कर लया।
तभी लौटते हए महाराज जनक ने महिष से पूछा, “हे महिष! आपके साथ ये दो सु दर
राजकु मार कौन ह?”
महिष ने हंसते हए कहा, “राजन! ये अयो या के च वत स ाट महाराज दशरथ के पु राम
और ल मण ह।
‘‘मेरे स आ म के य म इ ह ने ही भयानक रा स सुबाह और मारीच का वध िकया और
ताड का को भी मौत के घाट उतार िदया। इ ह के बल व प मेरा य पूण हो सका।
‘‘ये अिमत तेज वी ह महाराज! तीन लोक म ऐसा कोई अ या यु िव ा का दशन नह है,
जसम राम पारं गत न ह ।’’
मुिन ने यह भी बताया िक स आ म के बाद जब वे य पूण करके िम थला के लए आ रहे
थे तो माग म इ ह ने ही देवी अिह या का उ ार िकया।
मुिन शतान द ने जब माता अिह या के उ ार क बात सुनी तो उ ह रोमांच हो आया। ये गौतम
के ये पु थे।
ये तो राम के दशन मा से ही िव मृत हो गए
उ सुकतावश शतान द ने महिष से कई न एक साथ पूछ डाले िक मेरी माता बहत िदन से
तप या कर रही थी, या आपने राम को उनके दशन कराए? राम का मां ने पूजन आिद िकया?
या राम से आपने माता के ित देवराज इ क छल क गाथा का वणन िकया। या मेरे िपता
ने राम का पूजन िकया था?
महिष िव वािम ने कहा, “हे व स! तु हारी माता राम के दशन से उनका अित थ स कार
करके पूण िवशु व पिव होकर तु हारे िपता से जा िमली ह।”
यह सुनकर पु को अपनी माता के संकटमु होने से अ य त सुख िमला।
वे जान गए थे िक महिष िव वािम के कम अिच य ह। इ ह ने तप या से िष पद ा
िकया है। इस पृ वी पर राम से बढ कर ध य पु ष और कौन होगा, जसे कु िशक नंदन का
संर ण िमला।
इसके प चात् महिष शतान द ने राम को महिष िव वािम के गुण से प रिचत कराया और
यह बताया िक िकस कार इ ह ने महिष व स क चुनौती वीकार करके पहले राजिष, िफर
देविष और िफर िष पद ा िकया।
शतान द मुिन के ारा महिष िव वािम का प रचय कराने के बाद महाराज जनक ने मुिन से
कहा‒
“हे मुिनवर! आप राम और ल मण के साथ मेरे य म पधार, इससे म ध य हो गया। आपने
मुझ पर बड ी कृपा क ।”
“हे देव! आपक तप या अ मेय है, बल अन त है, गुण वणन से परे ह, पर तु इस समय य
का समय हो गया है। सूयदेव ढलना चाहते ह। कल ातःकाल पुनः दशन ह गे।” इस कार
कहते हए महाराज जनक ने िव वािम से िवदा ली।
ातःकाल िन यकम करने के प चात् राम और ल मण ने मुिन क आ ा से मण करने हेतु
जनकपुरी के राजभवन क पु प वािटका देखने का ताव रखा।
महिष मु कराए और उ ह पु प वािटका जाने क आ ा दी। उ े य यह भी था िक वे सु दर पु प
वािटका से महिष क पूजा के लए फूल ले आएंग।े
राम और ल मण पु प वािटका के बहाने महाराज जनक क राजधानी नगरी को देखते हए
आगे बढ चले। इसक शोभा आंख को सुख देने वाली थी।
नगर क पूव िदशा म ार था, जहां भांित-भांित के पु प खले हए थे और देखकर ऐसा
लगता था मानो यह ार संसार के चलने वाले नाटक का सू धार है।
इस आय नगरी को देखते हए तो कोई भी सहज दय यि क पना के संसार म खो सकता
है। यह सु दर नगरी राम और ल मण को बड ी रह यमयी लगी। यह पूव ार िकतना
शि शाली है, िश प िव ा का सार यहां िदखाई पड ता है। जस िकसी ने भी पूव िदशा से
जनकपुरी पर आ मण क ठानी, यहां अनेक श ुओं को मुंह क खानी पड ी। इसके ाचीर
आय सं कृित को अ ु ण रखने का तीक बने हए ह। जहां सु दर दगु ह और जसके भीतर
वेश करते हए महाराज जनक के श ु भय से कांपते ह।
और आगे बढ ने पर नगर क भवन अ ा लकाएं तो िदखाई दे ही रही थ । यहां से आगे वे
दि ण ार क ओर चल िदए।
एक तरफ पूव का ार सु दर िदखाई देने वाला, उ प त व का पसारा फैलाता हआ
िदखाई पड ता है तो दसरी
ू ओर नए-नए रस क संगीत लहरी क तान छे ड ने वाला यह
दि ण यम ार है। जहां ु ध नदी शा त होकर बहती है और इसके भाव से यह नगरी िनभय
बनी हई है।
इसी कार प चम ार क शोभा भी बड ी िनराली िदख रही थी।
इस नगर का उ री ार, जसे काितकेय ार भी कहा जाता है, यहां महाराज जनक क
राजपताका फहराती है।
नगरी के चार ार पर मण करते हए राम और ल मण सु दरता क ितमूित इस नगरी के
ह रत प रधान क ओर आगे बढ े, जहां चार तरफ ह रयाली-ही-ह रयाली िदखाई पड रही
थी। खेत म फसल लहलहा रही थ । कह गौएं चर रही थ और कह खेत म हल चल रहे थे।
यहां से आगे बढ कर वे उस सु दर उपवन म आ गए, जसे महाराज ने पु प वािटका के प म
जनकपुरी क शोभा बना रखा है।
यहां चार ओर सु दर सजी हई या रयां थ । अशोक वे दसरे ू अ य वृ और उनके नीचे
छायादार थ लयां मानो राहगीर यहां कु छ देर िव ाम करते ह ।
राम और ल मण भी इस नगरी का मण करके कु छ थकान अनुभव कर रहे थे, इस लए एक
छोटे से आसन पर वे लोग वहां बैठ गए।
राम सोच रहे थे िक यह जनक नगरी कैसी धीर गंभीर और रमणीय है। सा ात् सुख और
स प का धाम बनी हई है। यहां के वासी िकतने शा त और ई वर िव वासी ह। कह भी िकसी
कार क कोई द ु वृ के यि य के दशन उ ह नह हए।
यहां तो िच वृ ही बदल गई। एक कार से यह नगरी वा तव म धरती का वग-सी िदखाई
पड रही थी। बड ी-बड ी ऊंची अ ा लकाएं, भवन आिद िश पकला के उदाहरण थे। नगर
के बड े-बड े गढ के बीच यह पु प वािटका िकतनी सु दर और शोभायमान लगती है।
चार ओर बना राजमाग, उस पर मं ो चारण करते हए ा ण क कतार, जो ातःकाल
जनकपुर क प र मा करते ह। यहां सभी लोग ितिदन मण करते ह और इस पुरी क
प र मा करते ह।
वृ क डा लयां फूल से लदी हई ह। बड े-बड े राजमाग यापा रय के लए आने-जाने
का माग बने हए ह। िन य ित यह माग जलकण से स चा जाता है। ऐसा लगता है मानो इस
पृ वी पर आकाशगंगा उतर आई हो। रथ के आवागमन से यह माग य त रहता है। घोड क
टाप क आवाज सुनाई पड ती ह।
इस सबसे परे यह रमणीय उ ान, जसक अनुपम शोभा हरी-भरी लताओं से लदी, धीरे -धीरे
चलती हई हवा और उनसे जब कोमल क लयां और प व िहलते ह तो पूरे वातावरण को सुगध ं
से भर देते ह।
राम और ल मण इ के नंदन वन के समान सुशोिभत इस सु दर वािटका म आए तो सोचने
लगे िक जनकपुर क यह वािटका िवहार के लए िकतना सु दर थान है।
राम और ल मण को वहां बैठा हआ देखकर मण के लए आए हए नर-नारी यह सोचने लगे
िक अब कह और जाने क आव यकता या है, जबिक ेतायुग क माधुरी ही यहां िव मान है।
हर डाली अपने मधुर वर से गुज
ं ायमान लग रही थी।
हर यारी मधुरस से भरी हई सलोनी लग रही थी मानो पृ वी क सारी सु दरता यहां आकर
समट गई हो।
भवर क झनकार पु प के आस-पास मंडरा रही थी।
यहां वृ के बीच घनी छाया वाले ऐसे खुले थल थे, जो राही को वहां बैठने पर घर के सुख
जैसे आन द देने वाले थे। िकनारे -िकनारे सु दर जल वाली बाविड यां और सरोवर, उनम खले
कमल मानो नवल ेमी और ेिमकाओं को आमंि त करते ह । इसी सु दरता का रसपान करने
के लए नई नवेली ना रयां अपनी गोरी बांह म जल-कलश लये जस मतवाली चाल से चलती
थ , वह सौ दय देखने वाला था।
यहां ातः-सायं नगरवासी भि भाव से, शा त क इ छा से इस कार दौड े चले आते थे
मानो बछड ा अपनी गाय से िमलने के लए आकु ल रा ता छोड कर दौड पड े।
अभी वे इस वािटका के अ ितम सौ दय को िनहार रहे थे िक तभी उ ह मधुर पैजिनय क
झंकार सुनाई दी और उ ह ने देखा िक दो राजकु मा रयां अपनी स खय के साथ इस पु प वािटका
म पूजा के फूल चुनने के लए आ रही ह। उ ह देखकर णभर को ऐसा लगा मानो ातः क
हवा से दो छोटी क लयां िछटक गई ह । उनके मुखमंडल पर ल जा का भाव था, आंख नीचे
झुक थ और देखकर यह लगता था िक अव य ही ये महाराज जनक क पुि यां ह।
राम को लगा...हो-न-हो, ये गौरवण क दािहनी ओर वाली क या जसका िवराट म तक है,
िद य तेज और मुखमंडल पर सूय कैसी आभा उसके सीता होने का आभास िदला रही थी और
उसके साथ बाई ओर अव य ही महाराज जनक क दसरी ू पु ी होगी।
राम और ल मण ऐसे थान पर बैठे थे, जहां से वे वािटका म होने वाले सारे घटना म को
अपनी आंख से देख सकते थे और उ ह केवल वही देख सकता था, जो देखने क लालसा
रखता हो।
ये बाल मु धाएं अपनी सु दर छिव के साथ धीरे -धीरे चरण बढ ाती हई पु प लितका के पास
खड ी हो गई।ं
यहां से राम सीधे सीता को देख सकते थे।
काले-काले लंबे केश, सुती हई नाक, चंचल िक तु गंभीर भाव कट करने वाले ने , पतली
गदन, उ त व , लचीली पतली कमर और पु िनत ब े , कदली जंघाएं, सपाट और पु
हाथ मानो सा ात् रित अिभसार के लए इस कंचन कानन म आई है और पु प से उठने वाली
गंध पूरे वातावरण को मादक बना रही है।
ये दोन क याएं महाराज जनक के आंगन के दो मू यवान मोती ह और ऐसा लगता था मानो
जुड वां बहन ह । इनके ललाट पर जो खर तेज झलक रहा था मानो ये दािमनी क िकरण ह ।
माथे पर बाल क िगरती लट जब बार-बार उड कर आत तो सु दरता को और अ धक
बढ ा जात । अपनी मां क ये लाड लयां िकतनी भोली लग रही थ , जैसे सरोवर के िकनारे
हं सनी ह ।
हंसते हए जब इनके दांत क पंि यां झलकती थ तो ऐसा लगता था मानो कली-कली खल
गई हो।
सीता के साथ उिमला भी आगे-आगे बढ ती हई चल रही थी। इस सौ दय को देखकर
िकसका मन करे गा िक वह यहां से जाए। उनके गोल-गोल गाल क ला लमा मानो िवधाता ने
सारी कोमलता इ ह म समािहत कर दी हो और ह क -सी हंसी ऐसी लग रही थी, जैसे िकसी ने
अमृत का पा उड ेल िदया हो।
मण करते हए सीता ने देखा और अनुभव िकया िक दो जोड ी आंख उ ह बहत देर से देख
रही ह। आज ातःकाल उ ह महाराज जनक को माता सुनयना से बात करते हए यह सुना तो था
िक महिष िव वािम के साथ अयो यापित महाराज दशरथ के पु राम और ल मण भी य म
पधारे ह और जब सामने इन दो धनुधा रय क झलक उ ह देखने को िमली तो वे ण भर को
चिकत होकर रह गई।ं
यही दशा कु छ-कु छ राम क भी थी।
सीता को अपनी ओर कन खय से देखते हए राम अपने माथे पर पसीने क बूदं अनुभव करने
लगे। जैसे ही वे पीछे को हटे, उनका पैर एक झाड ी म अटक गया और एक फूल उनका माथा
छू ते हए उनके पैर पर आ िगरा। ऐसा लगा मान सीता ने संकेत प म इस फूल के मा यम से
अपना णाम भेजा है।
राम को िगरे देख साथ क स खयां ठहाका मारकर हंस पड तो उिमला ने उ ह डांटते हए
कहा‒
“यह अ छा लगता है िक आप िकसी पर इस कार हंस!”
सीता नजर झुकाए एक मूितमान-सी खड ी रह ।
सीता के लए यह पहला अनुभव था, जब अपने स मुख िकसी पु ष को देखकर उनके दय
म एक कंपकंपी-सी हई। सारा शरीर रोमांिचत हो गया मानो दशन म ही ि तरं ग के प म
उ ह पूरी तरह आलोिड त कर िदया हो।
िफर पीछे से उिमला ने मु कराते हए कहा, “चलो दीदी! पूजा को देर हो रही है।” और उसके
गले म अपनी लुनाईदार गोरी बांह डाल द ।
सीता के माथे क लट झटके से उनके चेहरे पर आ गई।ं
राम के लए यह पहला अनुभव था।
ल मण जानते थे िक भैया राम सीता को देखकर मु ध हो रहे ह। उनक आंख म ेमरं ग तरं ग
ले रहा है और दय म भावना जागृत हो रही है। िफर भी उ ह ने इस मूक संवाद म यवधान पैदा
करते हए राम से कहा, “च लए भैया! महिष क पूजा का समय हो रहा है।”
राम क यह दशा बड ी िविच थी-कदम उठना नह चाहते थे और समय कने का नाम नह
ले रहा था।
सीता ने जब यह देखा तो वे मन-ही-मन पंिदत होने लग ।
अब सीता क आंख म आंसू आ गए। भागीरथी नदी के तट पर एका त म अकेली खड ी
सीता सोच रही थ , उन पल के बारे म िकतने सुखदायी थे वे पल। आज भी याद करती ह तो
लगता है िक अभी कल ही क बात है। कंधे पर धनुष- बाण रखे, कमर पर तरकश सजाए,
तेज वी ललाट वाले ीराम िकस बेकली म से जूझ रहे थे।
आ खरकार समय को देखते हए मन क कोमल भावनाओं पर िवजय पाते हए लौट गए थे
ीराम और वे देखती रह गई थ उनके लौटते कदम को।
कु छ कदम चलने के बाद जब राम ने पीछे मुड कर देखा तो सीता अब भी वह खड ी
थ।
सीता सोच रही थ , या हो गया था उ ह उस समय? उिमला के कहने पर भी उनके कदम
मानो जड हो गए ह , धरती ने उ ह पकड लया हो।
तब न वे अपने ि यतम को पुकार सक और न पीछे लौट सक ।
“दीदी! च लए। अब वे चले गए। यिद उनम बल होगा तो धनुष भंग करके तु हारा वरण कर
लगे। तुम वीय शु का हो, जसम ि य परा म है और जो धनुिव ा का पुजारी है, वही िशव-
धनुष तोड सकता है।
“यह तो िकसी राजा के राजकु मार ह, िपछले िकतने ही िदन से यह खेल देख रही ह।ं िकतने
बड े-बड े राजा आए, पु षाथ , परा मी, महाबली िक तु भगवान महादेव का यह धनुष
उनसे िहल भी नह सका।”
“तब तो मुझे मां भगवती क पूजा करनी चािहए।”
“इस लए िक तु ह ये यामल राजकु मार भा गए ह?”
“चल हट, बहत बोलने लगी है।”
और िफर सीता अपनी स खय के साथ उिमला को लये मंिदर म आ गई,ं जहां उ ह अपनी
िन य पूजा करनी थी।
मंिदर म मां भगवती के सामने पु प-हार समिपत करते हए हाथ जोड े, आंख मूंदे सीता मौन
खड ी हो गई।ं बहत देर तक वे मन-ही-मन ाथना िनवेदन करती रह । कु छ देर बाद देवी के
सामने जल िछड काव करने के बाद मूित क प र मा करते हए जब वे िफर अपने थान पर
आई ं और िफर से पु प अिपत करते हए मां भगवती के चरण छू कर उनके चरण म बैठ गई ं तो
एक साथ उनके हाथ म दो फूल िगर पड े।
उिमला चंचल थी। वह पूजा के बीच म ही बोल पड ी।
“जीजी! मां भगवती ने तु ह यह दो फूल िकस लए िदए? तुमने तो वरदान एक के लए मांगा
था।”
सीता ने हंसकर उसे उ र िदया‒
“एक तेरे लए है पगली! य , या तू मेरे साथ वािटका म नह थी? या गोरे और सलौने जो
दसरे
ू राजकु मार थे, वे बार-बार कन खय से तेरी ओर नह िनहार रहे थे?”
उिमला ने लजाते हए कहा, “जीजी! तुम भी बड ी वह हो।”
“ य , इतनी देर से मुझे खझा रही है, तब कु छ नह ? मने एक छोटी-सी चुटक ली तो झप
गई। जब अपने पर पड ती है बहन तो ऐसा ही होता है।”
सीता का पूरा शरीर कांप गया। वा तव म चौदह वष का वनवास काल उ ह ने राम के साथ
िबताया है और इस समय जबिक उनके िवयोग के िदन आए ह तो वे िवच लत हो रही ह। उ ह
आज अनुभव हआ िक बेचारी उिमला, उसक सारी चंचलता एकांक जीवन के बंद झरोख के
भीतर समटकर रह गई, जो हंसना भी भूल गई। कैसा क कारी जीवन भोगा है उसने।
उिमला ने व न म भी नह सोचा होगा िक उसका भावी जीवन घोर अकेलेपन का अिभशाप
बनकर रह जाएगा।
दो ण ककर सीता ने भागीरथी म अपनी परछाई देखते हए अंज लय से दो घूटं पानी लेकर
अपनी आंख पर डाला। कु छ बूदं प और कु छ सर से लगाकर जल क आराधना क और
सामने वृ के नीचे मौन ितमा-सी बैठ गई।
धनुष-य और सीता-िववाह
राम महिष के लए पूजा के फूल लेकर आ म पहच
ं े। महिष तो जहां पहच
ं ते ह, वह आ म हो
जाता है। अतः महाराज जनक ने जस थान पर इ ह ठहराया, वह महिष के तप और बल से
आ म सुगध ं देने लगा।
दैिनक काय ं से िनवृत् होकर नान, यान, पूजा-पाठ करके महिष िव वािम , राम और
ल मण सिहत य मंडप म पहच ं े, य िक महाराज के सेवक पहले ही उ ह आकर य मंडप म
पधारने का िनवेदन कर गए थे।
य मंडप म पहच ं कर जब महाराज जनक ने िव वािम का वागत िकया तो महिष अ य त
स हए और महाराज के ारा यह पूछे जाने पर िक म आपक या सेवा क ं ? महिष ने कहा,
“राजन! महाराज दशरथ के ये दोन पु महान धनुधारी और अि तीय ि य वीर ह। आपके यहां
जो महादेव का धनुष रखा है, ये उसे देखना चाहते ह।”
“आपका क याण हो, वह धनुष इ ह िदखा दी जए। िफर ये दोन कु मार उस धनुष के दशन से
संतु होकर इ छानुसार अपनी राजधानी लौट जाएंग।े ”
और िफर महाराज जनक ने उ ह धनुष-गाथा सुनाते हए कहा‒
“हे महिषराज! िनिम के ये पु देवरात के नाम से िव यात थे। उ ह महा मा के हाथ म यह
धनुष धरोहर के प म िदया गया था।"
इसके लए यह स है िक जापित द के िव वंस के समय महादेव शंकर ने इस धनुष को
हाथ म उठाकर देवताओं से कहा था‒‘देवगण! म य -भाग ा करना चाहता था, लेिकन तुम
लोग ने ा नह करने िदया। इस लए इस धनुष से म तुम लोग के परम पूजनीय े अंग-
म तक काट डालूग
ं ा।"
“ ोधी महादेव के मुख से यह बात सुनकर देवता उदास हो गए और िफर यह जानकर िक
शंकर भोलेनाथ ह, पूजा तुित से स हो जाते ह। अतः सब देव ने महादेव को स करने के
लए उनक तुित-गायन ार भ कर िदया।"
‘‘महादेव स हो गए। स महादेव ने यह धनुष देव को अिपत कर िदया। यही धनुष मेरे
पूवज देवरात के पास धरोहर के प म रखा गया था। आपको तो ात ही है, भूिम-पूजन य के
लए म भूिम-शोधन करते समय जब खेत म हल चला रहा था, उसी समय हल के अ भाग से
जोती गई भूिम से यह क या कट हई। मने हल ारा ख ची गई रे खा से उ प होने के कारण
इसका नाम सीता रख िदया। यह मेरी अयोिनजा क या थी। पृ वी से कट हई यह क या िदन-
ितिदन बढ ती धीरे -धीरे सयानी हो गई।
‘‘एक िदन मने देखा िक जस क म धनुष रखा था, वहां सफाई करते हए इसने धनुष को
उठाकर एक थान से दसरे ू थान पर रख िदया और वह जगह जहां यह रखा हआ था, भली
कार साफ करके धनुष को िफर उसी पुराने थान पर रख िदया। शायद तब मेरी मित मारी गई
थी, जो मने अपनी पु ी का साहस देखकर इसे वीय शु का बना िदया और यह ित ा क िक
जो कोई वीर इस धनुष क यंचा ख चेगा, उसी के साथ म इसका िववाह क ं गा।
पृ वी के अनेक राजाओं ने जब सीता के िवशेष गुण के बारे म सुना, इसक सु दरता क चचा
सुनी तो कई राजाओं ने इसके साथ अपने िववाह का ताव रखा।
मने उन सभी ताव करने वाले राजाओं को यह बता िदया िक मेरी पु ी वीय शु का है। इस
धनुष क यंचा चढ ाने पर ही कोई इससे िववाह कर सकता है। तब से अब तक िकतने ही
राजा आए, पर यंचा चढ ाना तो दरू धनुष को िहला तक नह सके। अतः तब से अब तक
यह कुं वारी क या मेरे घर म है। इसका िववाह नह कर सका।
‘‘जब िववाह के इ छु क राजाओं को मने धनुष क यंचा न चढ ा पाने के कारण अयो य
जानकर उनका ताव वीकार नह िकया तो अपने परा म को िदखाने के लए संय ु प से
िम थला को घेरकर खड े हो गए और हमारे सामने एक सम या बन गई। हे मुिन े ! यह यु
वष भर चला। मेरे सारे साधन ीण हो गए। तब मने तप या के ारा सम त देवताओं को स
िकया। देव क सहायता से वे सभी राजा जो वा तव म बलहीन थे, भय से भाग खड े हए।’’
धनुष को िदखाते हए महाराज जनक ने महिष िव वािम से कहा, “हे मुिन वर! यही वह परम
काशवान धनुष है, जसे म राम और ल मण को भी िदखाऊंगा। यिद राम ने इसक यंचा
चढ ा दी तो म अव य उनके साथ सीता का िववाह कर दग ं ू ा।”
महिष िव वािम ने राम को संकेत से पास बुलाया और कहा, “देखो व स! इस भारी संदक

पर यह िवशाल धनुष रखा हआ है। यह सम त राजाओं ारा स मािनत धनुष है। इसका
जनकवंशी नरे श ने सदा ही पूजन िकया है तथा जो इसे उठाने म समथ न हो सके, इसक
यंचा देवता, असुर, रा स, ग धव, य , िक र, नाग कोई नह चढ ा सका। मनु य म तो
इसे िहलाने क भी शि नह है।”
महिष क आ ा से राम ने उस पेिटका म रखा हआ वह धनुष देखा और मुिन को णाम करते
हए कहा, “आशीवाद द मुिनवर! म इस िद य और े धनुष को हाथ लगाता ह।ं इसे उठाने का
ही नह , ब क इसक यंचा चढ ाने का यास क ं गा।”
‘तु ह यही करना है व स!’ मानो मुिन कह रहे थे, ‘तु ह म इसी उ े य से लाया था िक तुम
संय ु आयावत के तीक पु ष बन सको। अयो या और िम थला रा य िमलकर संय ु आयावत
क एकसू ता को बताने म मह वपूण भूिमका िनभाएंग।े ”
और धनुष क यंचा चढ ाने से पूव महिष को णाम करते हए राम सोच रहे थे, "मेरी भी
यही अिभलाषा है िक म उस सुमु ख का वरण क ं , जसे आज मने ातःकाल मुहत म देखा
था और जसे देखकर मने मन से ही वरण कर लया था। यिद िनयित को मेरा और उसका संयोग
वीकार है तो अव य ही आज म इस धनुष क यंचा चढ ाकर अपने बल का दशन
क ं गा, लेिकन इस बल क ेरणा शि महाराज जनक क पु ी जानक ही होगी।"
राम िवचार कर रहे थे और महाराज जनक को यह म हआ मानो राम धनुष को देखकर भय
खा गए ह और उनका साहस छू ट गया है।
महाराज जनक तो पहले ही िनराश हो चुके थे, उ ह तो आशा ही नह थी िक ये नवयुवक
ि य राजकु मार धनुष को िहला भी पायगे। वह तो महिष िव वािम के कारण उ ह यहां तक ले
आए।
और यह जानकर िक राम संकोच म आकर बोल नह रहे ह, लेिकन धनुष उठाने का साहस
नह कर पा रहे।
तो महाराज जनक ने कहा, “म तो पहले ही जानता था िक इस पृ वी पर कोई ऐसा वीर नह
है, जो इस धनुष क यंचा चढ ा सके।”
राम तो िवचारम थे। इस लए वे महाराज जनक क यह िनराशा भरी बात नह सुन पाए,
लेिकन ल मण ने जब महाराज जनक के मुंह से पृ वी को वीर से खाली सुना तो वे अपने
आवेश को नह रोक सके और बोल पड े, “महाराज! आप हमारे स माननीय ह, इस लए
आपक बात सुनकर म केवल यही कहना चाहता हं िक यह तो या धनुष है, पुराना गला हआ।
यिद िकसी वीर म शि हो तो सामने आए और भुजदंड का बल देखे। राम मेरे अ ज ह, मुझसे
पहले उनका अ धकार बनता है और िफर मुझे महिष क आ ा भी नह है। इस लए म मयादा से
बंधा हआ ह,ं लेिकन मुझे यिद महिष आ ा द तो इस धनुष को उठाकर िम ी के ढेले क तरह
आपके सामने तोड -मरोड कर रख दग ं ू ा।”
तब तक राम अपनी मु ा म आ गए थे और ल मण को महिष ने शा त करते हए कहा, “शा त
हो जाओ ल मण! राम धनुष को उठाने से पूव महादेव शंकर का मरण कर रहे थे, इस लए
महाराज को म हआ। तुम देखना, तु हारे परा मी भाई अभी उसक यंचा चढ ा दगे।”
िफर महिष के चरण पश करते हए राम ने सव थम महाराज जनक से आशीवाद लया और
धनुष क प र मा करते हए ‘ओंकार’ का नाम लेकर अपने दािहने हाथ क मजबूत मु ी से
धनुष बीच म से पकड कर एक ही झटके म उठा लया।
राम के हाथ ारा धनुष के उठने से आकाश म नगाड े बज उठे , धरती कांप गई, देवता
ददं ु िु भ करने लगे मानो सब लोग राम के ारा हो रहे इस य के सा ी ह। वे राम के धनुष उठाने
का वागत कर रहे ह।
महाराज जनक ने जब देखा िक राम ने धनुष उठा लया है तो उ ह यह िव वास हो गया िक
यह बालक सामा य बालक नह , ब क वयं नारायण ह, य िक िशव के धनुष को उनके
अलावा और कोई उठा सकता है तो वह केवल ीर सागरवासी देव े वयं िव णु ह। अव य
ही राम उनके अवतार ह, य िक अभी तक महादेव का यह धनुष िकसी ने नह उठाया। कहते ह
िक महिष परशुराम के पास जो धनुष है, वह इसी का जुड वां भाई है।
िव वकमा ने दो ही धनुष बनाए ह, एक वयं महादेव के पास था और दसरा
ू परशुराम के
पास।
महिष पुल य का पौ और िव वा का पु रावण महादेव का पुजारी था। अतः महादेव क
कृपा से वह यह धनुष उठा सकता था। वह धनुष िव ा िवशारद है। इस लए वह उसक यंचा
भी चढ ा देता, लेिकन शायद देवगण को यह वीकार नह था। इसी लए उ ह ने रावण को
धनुष उठाने के लए उ त जानकर वह आकाशवाणी कर दी थी।
“रे रावण! तेरी लंका जल गई है। तू यहां या कर रहा है? जा अपनी लंका म जा।” और तब
वह महापंिडत धनुष को बीच ही म छोड कर अपनी राजधानी लौट गया था।
महाराज जनक िफर से व न से यथाथ म आ गए। उ ह ने देखा िक बाएं हाथ क मु ी से
धनुष को पकड े राम ने उसक यंचा चढ ाने के लए जैसे ही कोदंड को झुकाया,
गगनभेदी गजना के साथ कोदंड टू टकर बीच से दो टु कड े हो गया और राजकु मार राम उस टू टे
हए धनुष को छोड कर यह कहते हए अलग हो गए, “ली जए महाराज! आपका यह धनुष
यंचा को सह ही नह सकता।”
महाराज क सभा म टू टे धनुष का इस कार भंजन देखकर मं ीगण, गु जन और मंडप म
उप थत जाजन सभी स हो गए और उस सभा म जो अनेक राजागण िवराजमान थे, सबके
चेहरे लटक गए।
पल भर म यह समाचार सीता के पास पहच
ं गया।
“राजकु मार राम ने धनुष तोड िदया।”
“सुना तुमने? राजकु मार राम ने धनुष क यंचा चढ ाई और धनुष टू ट गया।”
सीता ने जब यह सुना तो वे हष िवभोर हो उठ । तभी महाराज जनक ने उ ह सभामंडप म बुला
लया।
अपने दोन हाथ म वरमाला लये माता सुनयना और उिमला से रि त, स खय से िघरी सीता
रथ पर सवार होकर सभाभवन म पधार । उ ह ने एक ि टू टे हए धनुष पर डाली और दसरी

ि से अपने िपता को देखा।
महाराज जनक ने कहा, “पु ी! म आज अ य त स ह।ं मेरी ित ा पूरी हई। इस पृ वी पर
ऐसे वीर ह, ऐसे अिमत तेज वी ि य ह, जो िकसी ि य क ित ा को पूरा करने क मता
रखते ह।”
और िफर पास खड े हए ल मण से महाराज जनक ने कहा, “मुझे मा करना व स! ि य
राजाओं क मता से िनराश एक राजा ने नह , ब क एक िपता ने यह कहा था िक यह पृ वी
ि य से खाली है। मुझे मा करना व स!”
िफर तभी महिष िव वािम , मुिन शतान द सिहत महाराज जनक क पु ी सीता ने अपने
आरा यदेव राम के गले म वह प रणय माला डाल दी।
य म डप म उप थत सभी राजागण ने और उप थत मुिन एवं ा ण समूह ने इस प रणय
का करतल विन से वागत िकया।
इसके प चात् राम ने महाराज जनक ारा तुत दसरी
ू जयमाला देवी सीता के गले म डाल
दी।
या चम कार है यह! आज ातः जसे देखने पर आंख हट ही नह रही थ , वह इस समय
सामा जक वीकृित के साथ उनक िचरसंिगनी हो गई थी।
कु छ-कु छ यही दशा सीता क भी हो रही थी।
वरमाला के आयोजन के बाद ीराम और सीता ने सव थम िपता जनक और माता सुनयना
के चरण छू कर आशीवाद लया। महिष िव वािम का आशीष लया। महिष शतान द को णाम
करके उनका आशीष लया।
महाराज जनक ही नह , अिपतु वहां उप थत सम त समुदाय ने दशरथ न दन ीराम का
परा म आज अपनी आंख से देख लया।
महाराज जनक क ित ा पूरी हो गई थी। राम ने सीता को ा करने के लए िनयत परा म
दिशत करके ही उ ह हण िकया।
अब महाराज जनक को शी ही िववाह सं कार स प कराना था। अतः उ ह ने महिष से
िनवेदन करते हए कहा‒
“हे मुिन े ! यिद आपक आ ा हो तो मेरे मं ी रथ पर सवार होकर शी ही अयो या जाएं
और महाराज दशरथ क सेवा म िववाह का िनवेदन करते हए उ ह स मान सिहत जनकपुरी
लवा लाएं।
“उ ह यहां का सारा िववरण भी दे द िक वीय शु का सीता के लए िनयत िशव-धनुष क
यंचा चढ ाकर राम ने सीता को पाने क पा ता स कर दी है। राम ने िव धवत प से
सीता के यो य पित प म वयं को स कर िदया है। इस लए सीता एवं राम के िववाह को
अपने आशीवाद से सफल बनाने के लए उ ह हम दय से आमंि त करते ह।”
महिष िव वािम ने महाराज जनक के ताव को उिचत मानते हए अपनी वीकृित दान कर
दी और महाराज के स देशवाहक सिचव शी ही अयो या के लए थान कर गए।
महाराज जनक के दतू अयो या चले गए थे। इधर राम तो अब महाराज जनक के जामाता हो
गए थे। अतः िववाह क र म पूरी होने तक उनके लए महाराज जनक ने िवशेष महल म उनके
आवास का ब ध कर िदया। सारे जनकपुर म इस िववाह से उ ास क लहर आ गई थी।
वरमाला डालकर अपने क म लौटी सीता से स खय ने िठठोली ार भ कर दी। सबसे
अ धक सताया नटखट उिमला ने।
उिमला िकसी भी कार नह मान रही थी तो सीता ने उसे छे ड ते हए कहा, “मेरी रानी!
घबरा मत, दसरे
ू सलोने राजकु मार ल मण भी कम सु दर नह ह। इस समय अवसर भी है, बोल
िपताजी से कहकर तेरी भी भावर डलवा द?
ंू ”
उिमला ने कते हए कहा, “जीजी!...आप भी बड ी वो ह।’’ उधर से आते हए मां सुनयना
ने यह बात सुन ली थी। अतः सीता क बात को गंभीरता से लेते हए वे वहां कु छ नह बोल ,
िक तु म या काल म जब महाराज भोजनशाला से भोजन के प चात् िव ाम के लए अपने
क म पधारे तो सुनयना ने कहा‒
“महाराज!”
“हां कहो रानी! आज तो म बहत स ह।ं मेरा बड ा भारी बोझ ह का हो गया।”
“बोझ और भी ह का हो सकता है।”
“ या मतलब?”
“यही िक राम के साथ आए उनके छोटे भाई...।”
“म तु हारा ता पय समझ गया, पर या उिमला तैयार है?”
“हां, मने उसे और सीता को पर पर बात करते सुन लया था।”
“यह तो बहत अ छी बात है। और हां, म तुमसे यह कहना तो भूल ही गया िक मने भाई
कु श वज को भी सप रवार बुलावा भेज िदया है िक सुना है महाराजा दशरथ के दो पु भरत-
श ु न और भी ह तो य न अपनी मांडवी और ुितक ित का िववाह भी इसी म डप के नीचे हो
जाए।”
सुनयना ने वीकृित देते हए स मन होकर कहा, “हां, यह तो बहत उ म ताव है। चार
बहन अयो या क राजरानी बनगी।”
ओ फ...कैसी व न कथा-सी लगती ह ये घटनाएं!
मां ने समझा था िक चार बेिटयां अयो या क राजरानी बनगी। उ ह या पता था िक चार ही
कालच के पटे पर घूमती हई ऐसी िनयित का िशकार ह गी िक िकसी को भी राजसुख यौवन म
नह िमलेगा।
बेचारी उिमला!
उसे या िमला? और मांडवी- ुितक ित? वे भी तो अयो या म रहकर वनवा सनी होकर ही
रह गई।ं
और अब...म वहां...िफर राजरानी के व न के िबखर जाने पर उसी अव था म लौट आई।
कहां लखा है मेरे भा य म राजसुख!
िहचिकयां लेते हए सीता सोचने लग िक मेरे िह से म तो पित-सुख भी नह रहा। कम-से-कम
चौदह वष के वनवास म पित साथ तो थे, पर शायद िवधाता को अभी भी स तोष नह हआ और
मुझसे मेरा पित-संग भी छीन लया।
डाल िदया मुझे यहां एका त वन म उपेि ता करके। या सुख देख पाई हं म अयो या रा य
का? केवल मा िनवासन। उस िनवासन क तो एक अव ध भी थी, िक तु यह िनवासन तो
संभवतया जीवन के साथ ही समा होगा।
भागीरथी क जल-लहर िकनारे से टकरा-टकराकर लौट रही थ , िक तु िनरीह सीता के लौटने
के सारे माग अव थे। वे भी तो एक लहर क तरह होकर रह गई ह जसका कोई िकनारा
नह , कोई सहारा नह ।
उनक आंख से आंसू तो लुढ क ही रहे थे, दय क गित भी तेज हो रही थी।
म या का सूय सर पर था। वह िकंकत य िवमूढ बैठी सोच रही थी।
और अतीत के पृ पर पृ खुलते चले जा रहे थे। न चाहकर भी वे िफर जनकपुरी के उसी
वातावरण म पहच
ं गई,ं जहां िववाह के लए स खयाँ उनका ंगार कर रही थ ।
िकतनी स थी उिमला। मेरा िकतना यान रखती थी वह। म चलते समय िकसी से िमलकर
भी तो नह आ सक ।
महाराज दशरथ ने जनक के मंि य से जब यह स तादायक समाचार सुना िक उनके पु
राम और ल मण महिष िव वािम के साथ जनकपुरी जा चुके ह और वहां राम ने महादेव शंकर
का धनुष भंजन करके वीय शु का सीता से प रणय क यो यता ा कर ली है तो उनक
स ता क कोई सीमा न रही।
शी ही उ ह ने महिष व स और वामदेव आिद मुिनय तथा गु जन से परामश करके बारात
ले चलने का बंध कर िदया। आदेश के अनुसार उनक चतुरंिगनी सेना महाराज के पीछे -पीछे
चल दी।
जनकपुरी पहचं ने पर जब महाराज जनक ने बारात सिहत आए महाराज दशरथ का वागत
िकया तो देवगण भी आकाश से पु पवषा करने लगे।
महाराज जनक ने सं ेप म सभी समाचार देते हए अपना सौभा य दिशत िकया िक उनके ार
पर आयावत के च वत स ाट महाराज दशरथ पधारे ह।
वागत-स कार के प चात् महाराज दशरथ ने कहा, “हे राजन! ित ह दाता के अधीन होता
है। अतः जैसा आप चाहगे, हम वैसा ही करगे।”
महाराज जनक ने जब यह सुना तो वे दशरथ क इस धमवृ के ित भावुक हो उठे ।
राजभवन म आने पर महिष िव वािम सिहत जब िपता ने अपने दोन पु को सामने देखा तो
उनक आंख खुशी से छलछला उठ ।
राम और ल मण ने चरण छू कर िपता को णाम िकया। महाराज दशरथ ने महिष िव वािम
के स मुख झुककर उनका वागत करते हए अ य पा तुत िकया।
सौभा य क बात थी िक महाराज जनक का य भी आज पूण हो चुका था। उनके छोटे भाई
कु श वज भी प रवार सिहत आ गए थे।
सभी लोग अपने-अपने आसन पर िवराजमान थे।
सभाभवन म महाराज दशरथ ने महिष व स से कहा, “हे कु लगु ! आप हमारी कु ल पर परा
का महाराज को प रचय द।’’
महाराज दशरथ के कथनानुसार महिष व स ने महाराज दशरथ क कु ल पर परा बताते हए
यह कहा िक इ वाकु कु ल म महाराज समर से आगे उनके पु असमंजस से अंशुमान से िदलीप
से कु कु स य से रघु और इनसे आगे चलकर नहष के ययाित के अज और अज के यहां महाराज
दशरथ के चार पु राम, ल मण, भरत, श ु न हए ह।
रघुकुल का प रचय पूरा होने पर महाराज जनक के कु लगु मुिन शतान द ने महाराज जनक
के वंश का प रचय देते हए कहा‒
“ ाचीनकाल म महाराज िनिम बड े तापी राजा हए है। उनके यहां िम थ नामक पु ने ज म
लया। िम थ के पु का नाम जनक था। ये ही हमारे वंश के पहले जनक हए ह और उ ह के
नाम पर इस वंश के येक राजा जनक के नाम से पुकारे जाते ह। जनक से उदावसु से आगे
चलता हआ यह वंश राजिष देवरात तक आया। देवरात के वृह थ के सुधृित के धृ केतू के
ह रअ व के म हए और इस वंश म आगे धमा मा राजा क ितरथ हए।
आगे क ितरथ के देवमीढ के िवबुध के महि थ हए महि थ के महाबली पु राजा क ितरात
हए राजिष क ितरात के महारोमा से वणरोमा से वरोमा उ प हए।’’
यहां तक आकर मुिन शतान द मौन हो गए।
अब महाराज जनक ने कहा, “हे महाराज! राजा वरोमा के दो पु हए- ये म और किन
मेरा छोटा भाई कु श वज है। मेरे िपता मुझ पर रा य का भार छोड कर और कु श वज को मुझे
स पकर वन म तप करने के लए गए। मेरे राजा बनने के कु छ समय बाद सांका या के राजा
सुध वा ने िम थला पर आ मण कर िदया। वह चाहता था िक म उसे महादेव िशव का उ म
धनुष और अपनी पु ी सीता दे द।ं ू यु म वह द ु लोभी राजा मेरे हाथ मारा गया। अब
सांका या पर मेरा आ धप य था। मने सुध वा का वध करके अपने छोटे भाई कु श वज को वहां
राजा के प म अिभ स कर िदया।’’
महाराज जनक ने राजा धराज दशरथ से िनवेदन करते हए कहा‒
“हे महाराज! सीता का प रणय तो राम के साथ होना िन चत हो ही गया है। म अपनी दसरी

क या का ताव ल मण के लए करता ह।ं अपनी ये दोन पुि यां म आपको स होकर
पु वधू के प म दे रहा ह।ं ”
जब महाराज जनक अपनी बात कह चुके तो अब तक दशक के प म िवराजमान महिष
िव वािम ने कहा, “राजन! आप दोन ही कु ल म यह धम संबध ं जो थािपत होने जा रहा है,
एक-दसरे
ू के सवथा यो य है। इस पर भी मेरा कथन यह है िक महाराज जनक के छोटे भाई
सांका या नरे श राजा कु श वज यहां उप थत ह ही। उनक दोन पुि यां मांडवी और ुितक ित
भी िववाह के यो य ह। महाराज दशरथ के दोन छोटे पु भरत और श ु न भी यहां उप थत ह
और वय के अनुसार वे भी िववाह के यो य ह। अतः यिद इस शुभ अवसर पर महाराज
कु श वज क दोन क याओं का पािण हण भरत और श ु न के साथ हो जाए तो यह अ य त
उ म रहेगा।”
महाराज जनक ने जब यह सुना तो उ ह ने उ साह म खड े होकर कहा‒
“मुिनवर! अपने मेरे ही मन क बात कही है, लेिकन म संकोचवश कह नह पाया था। म
आपका आभारी ह।ं ”
महाराज दशरथ ने यह ताव दय से वीकार करते हए कहा‒
“महामुिन! यह बड े सौभा य क बात है िक एक ही न म चार पु िववाह-बंधन म बंध
जाएंग।े मेरे लए इससे बड ा शुभ अवसर और कौन-सा होगा।”
यहां राजमंडप म यह चचा चल ही रही थी िक इस कार के संकेत सू तेजी से अ तःपुर म
हवा क तरह िव हो गए और मांडवी तथा ुितक ित जो अभी तक बहन सीता और उिमला
को िववाह-मंडप म ले जाने का उप म कर रही थ , देखते ही देखते वे भी स खय से िघर गई।ं
उनके लए भी िववाह के जोड े तुत हो गए। उ ह भी नथनी पहना दी गई।
उनक चंचल वृ णभर म लु हो गई। अब जैसे ही िववाह सं कार का समय हआ, चार
भाई वेदी के समीप चौक पर आकर बैठ गए और साथ-साथ महाराज जनक क और कु श वज
क क याएं भी िववाह के जोड म स जत अि के स मुख सा ी के लए उप थत हो गई।ं
क याप क ओर से महिष शतान द ने पौरोिह य कम िकया और िफर वेदमं क विनय के
बीच राम ने सीता का, ल मण ने उिमला का, भरत ने मांडवी का और श ु न ने ुितक ित का
पािण हण िकया।
महाराज दशरथ ने एक-एक पु के मंगल के लए सोने से मढ े स ग वाली एक-एक लाख
गौएं दान क ।
जस िदन अपने पु के िववाह के िनिम महाराज दशरथ ने यह उ म गौ-दान िकया उसी
िदन भरत के मामा कैकय राजकु मार युधा जत भी वहां आ पहच
ं े।
महाराज दशरथ ने उ ह देखा तो वे आ चयचिकत रह गए‒
“अरे युधा जत! तुम!”
“हां महाराज! पू य िपताजी ने आपका समाचार पूछा है। भरत को देखे बहत िदन हो गए थे।
उनक इ छा थी िक वे अपने दोिह को देख ल। अतः म इ ह लेने ही अयो या आया था, पर तु
जब मुझे बहन कैकेयी से यह ात हआ िक आप राम के िववाह के लए जनकपुरी बारात लेकर
आए ह तो म यहां के लए चल पड ा।”
महाराज जनक ने जब जाना िक महाराज दशरथ क रानी कैकेयी के भाई युधा जत भी आए ह
तो उ ह ने कैकय राजकु मार का भ य वागत िकया।
अब वे भी िववाह सं कार म स म लत हो गए।
सब लोग िववाह-मंडप म बैठे हए थे।
सबसे पहले महाराज जनक ने सीता का हाथ राम के हाथ म देते हए कहा, “यह मेरी पु ी
सीता तु हारी सहधिमणी के प म उप थत है। इसे वीकार करो और इसका हाथ अपने हाथ म
लो। यह परम पित ता और छाया क तरह सदा तु हारे पीछे चलने वाली होगी।”
यह कहते हए महाराज जनक ने ीराम के हाथ म मन से पिव हआ संक प का जल छोड
िदया।
देवता नगाड े बजाने लगे, आकाश से फूल क वषा होने लगी।
पेड के नीचे बैठी हई सीता अपने उस दािहने हाथ को देखने लगी।
यह वही हाथ था, जसे ीराम ने पहली बार पश से सौभा यशाली बनाया था।
सीता के हाथ म उस थम पश क फुरफुरी अब तक िव मान थी और वह सं पश उ ह
आज भी उसी अतीत क ोड म ले जा रहा था।
राम का हाथ सीता के साथ िववाह-बंधन म बांधने के बाद महाराज जनक ने ल मण से कहा,
“तु हारा क याण हो व स! म उिमला को तु हारी सेवा म दे रहा ह।ं इसे वीकार करो।”
उिमला का हाथ ल मण के हाथ म देने के बाद महाराज जनक ने मशः मांडवी और
ुितक ित के साथ भरत तथा श ु न का पािण हण कराया और कहा, “तुम चार भाई शा त
वभाव हो। कु कु य कु ल के भूषण प चार भाई प नय से संय ु हो जाओ।”
महाराज जनक का यह आदेश सुनकर चार राजकु मार ने चार राजकु मा रय के हाथ अपने
हाथ म ले लये और िफर गठबंधन म बंधे उ ह ने अि , वेदी, िपता और मुिनय क प र मा
क।
इस कार यह काय स प हआ।
सीता का अयो या आगमन
िववाह के प चात् महामुिन िव वािम ातःकाल होने पर राम और ल मण को महाराज
दशरथ के स मुख ले आए। महिष व स के सम उ ह ने कहा, “राजन! आपके दोन पु
सकु शल, सप रवार आपक सेवा म लौटा रहा ह,ं आपका आभारी हं जो आपने मेरे संकटकाल म
अपने पु को मेरे साथ भेजकर मेरा य स प कराने म सहयोग िकया।’’
महाराज दशरथ ने जब यह सुना तो वे वा तव म ल जत हो गए। उ ह ने जस अनागत भय
से राम के ित अपनी ममता िदखाते हए उ ह िव वािम के साथ भेजने म असमथता कट क
थी, वह भय आज िनराधार स हो गया था।
भावुक कंठ से ा कट करते हए दशरथ ने िव वािम के चरण छू कर उनसे मायाचना
क।
कु िशक नंदन िव वािम ने स मन होकर उ ह आशीवाद िदया और बोले, “राजन! राम
आयावत का तीक पु ष है। इसे रा य क सीमाओं म बांधकर मत रखना।”
“म आपका अथ नह समझा महिष!”
मु कराते हए िव वािम ने कहा, “समय आने पर समय वयं इसक या या उप थत कर
देगा।’’ िफर वे सभी से िवदा लेकर िहमालय पवत पर कौिशक के तट पर अपने आ म म चले
गए।
अब महाराज दशरथ भी िवदेहराज जनक से अनुमित लेकर शी ही अयो या के लए तैयार
हो गए।
वे अपने साथ बारात म दो पु लाए थे और अब राम, ल मण, भरत, श ु न सिहत उनक
चार पु वधुओं को लेकर जा रहे थे। यह सोचते हए महाराज दशरथ ने भावुक बने जनक से
कहा‒
“राजन! िव वास क जए, आपके आंगन क ये चार क लयां अयो या म सुगध ं यु पु प के
प म खलकर वातावरण को अपनी सुरिभ से आ लािवत कर दगी। आप यह जािनए िक एक
िपता अपनी इन क याओं को दसरे
ू िपता के यहां भेज रहा है। मेरे लए ये पु से बढ कर
ह गी।”
िफर महाराज जनक ने अपनी क याओं के िनिम अपनी साम य के अनुसार बहत-सा दान
और दहेज िदया इस तरह वह िवदा क घड ी आ गई, जो हर माता-िपता के लए एक क क
घड ी होती है।
महाराज जनक तो िफर भी िपता थे, लेिकन मां सुनयना के आंसुओं को कोई नह रोक पा रहा
था। जसके घर से एक साथ चार-चार दीपक जा रहे ह , वह अपने घर के अंधकार को कैसे
समेटेगा। यह उस समय कोई मां सुनयना के दय क दशा को समझकर ही जान सकता था।
सुनयना ने ुितक ित, मांडवी और उिमला को रथ पर बैठा िदया और उसके बाद जब सीता
क बारी आई तो िबफर पड । वह और बोल , “बेटी! मने तुझे ज म नह िदया लेिकन म
जानती ह,ं मेरा अ ततम जानता है िक मने तुझे अपना ही दधू िपलाया है। जतने िदन तू मेरे
आंगन म खेली, तेरे मुख से फूटी हर हंसी मेरे शरीर म बहने वाले र म ऊजा का संचार करती
रही। तेरे कारण मने िकसी भी कार क कभी कोई िचंता महसूस नह क । तेरी द ता, तेरी
कु शलता, तेरी कु शा ता और तेरी समझ, सबने ही िमलकर तेरा यि व बनाया है। कहने को
तो तू धरती क बेटी है, लेिकन मेरे इन हाथ म पलकर बड ी हई तू, मेरे ही शरीर का अंग बन
गई।
‘‘आज म तुझे िबलखते दय से िवदा करते हए यही सीख दे रही हं िक अपनी ससुराल म भी
तुझे उसी मयादा का पालन करना है, अपनी माताओं के अनु प आचरण करते हए वसुर िपता
क सेवा करनी है।
‘‘और एक दािय व भी स पती हं बेटी! ये तेरी छोटी तीन बहन तेरे साथ जा रही ह। अब तू ही
इनक मां, बहन और सखी है। तू इनसे बड ी है और गंभीर है। अब इनक भूल को सुधारने का
दािय व भी तेरा है।’’
इस तरह सीता को अपने आंचल से दरू करते हए मन पर प थर रखकर मां सुनयना ने उ ह
रथ पर चढ ा िदया। भाव िव ल सीता ने कातर आंख से एक बार मां को और िफर िपता
जनक को देखा, िफर इसके बाद वे उन िव ल आंख को दबु ारा देखने का साहस नह कर
सक ।
अपनी आंख पर हाथ फेरते हए सीता सोचने लग , “िकतना लंबा समय बीत गया। उसके बाद
उ ह मां के दशन सुलभ नह हए। वे उ ह रोती-िबसूरती छोड कर आई थ ।”
एक ण के लए सीता के मन म कंपन हआ। वे बाहर से भीतर तक कांप उठ ।
माता सुनयना को यिद यह पता चलेगा िक उनक पु ी सीता को राम ने वन म भेज िदया है तो
इस वृ ाव था म उस मां पर या बीतेगी? अब उ ह प चाताप होने लगा, ल मण तो बहत दरू
जा चुके थे। वे िकसी कार संदेश िभजवा नह सकती थ िक उनक माता को यह समाचार न
िमले। िफर यह सोचकर सीता ने संतोष कर लया‒मां और पृ वी को बहत कु छ सहना पड ता
है।
सीता माता के िबलखते चेहरे को देखते हए िफर अतीत म खो गई।ं वे रथ म बैठ गई थ ।
महाराज दशरथ बारात सिहत अयो या क ओर लौट रहे थे िक तभी माग म उ ह भयंकर बोली
बोलने वाले पि य क चहचाहट सुनाई दी। यह चहचाहट सीता ने भी सुनी और वे भीतर-ही-
भीतर कांप उठ । यह तो िकसी अशुभ के होने का अपशकु न था और ह रण उनके बाएं भाग से
होकर भाग रहे थे। पता नह या होगा?
महाराज दशरथ ने जब यह देखा तो उ ह ने घबराकर महिष व स से पूछा।
महिष व स ने उ ह सा वना देते हए कहा, “महाराज! पि य क चहचहाहट जस अशुभ
फल का संकेत दे रही है, मृग का हमारे बांएं से होकर जाना यह दशाता है िक यह संकट
अ थाई है।”
अभी वे बात ही कर रहे थे िक भयानक आघ चल पड ी, पृ वी कांप उठी, वृ धराशायी
होने लगे, सूय अंधकार म िछप गए। िकसी को िदशा का ान न रहा और धूल से ढक जाने के
कारण सेना मू छत सी हो गई।
रथ म बैठी हई जनकसुता सीता यह देखकर अच भे म आ गई,ं यह या हो रहा है? यह िकस
अनि का संकेत है?
कु छ देर बाद महाराज दशरथ ने देखा िक महिष परशुराम भयानक ोध म हाथ म न फरसा
लये, म तक पर बल डाले, कालाि के समान चले आ रहे ह। उनके एक हाथ म महादेव िशव
का धनुष है।
इससे पहले उ ह ने कभी महिष को इतने ोध म नह देखा था।
व स के संकेत पर महाराज दशरथ ने महिष परशुराम क सेवा म अ य तुत िकया और
िवन िनवेदन करते हए उनका वागत िकया।
महिष परशुराम ने िबना कोई भूिमका बांधे सीधे राम से कहा, “तु हारा परा म अ ुत है राम!
तुमने िशव के धनुष का भंजन िकया है। यह समाचार मुझे िमल चुका है, इसी लए म उस अ ुत
और अिच य धनुष टू टने के बाद एक दसरा ू धनुष लेकर आया हं और यह जमदाि कु मार
परशुराम का िवशाल धनुष है। तुम इसक यंचा ख चकर इस पर बाण चढ ाकर अपना बल
िदखाओ। इस धनुष के चढ ाने म भी तु हारा वैसा ही बल है, यह देखकर ही म तु ह यु
के लए कहग ं ा।”
महाराज दशरथ ने जब यह सुना तो वे घबरा उठे और बोले‒
“हे ा ण! आप तो परम ानी और तप वी ह। बालक को अभय द।”
“यह सामा य बालक नह है राजन!”
“महामुिन! इसका अपराध मा हो।”
“यह अपराध का न भी नह है। यह तो बल का न है।”
“तुम जवाब दो राम! लो यह धनुष, य िक दो ही धनुष संसार म े थे-एक जसे तुमने
तोड िदया और दसराू तु हारे स मुख है।”
“वह धनुष देवताओं ने ि पुर रा स का वध करने के लए भगवान शंकर को िदया था और
यह धनुष िव णु को िदया गया था। श ु पर िवजय ा करने वाला यह वै णव धनुष है।”
राम ने जब यह सुना तो उ ह ने िनवेदन करते हए कहा‒
“हे महिष! म ि य हं और आप ा ण। अतः म आपके सामने िवन होकर आपका तेज
और बल वीकार करता ह,ं लेिकन आप मुझे परा महीन न कह, य िक यिद मने यंचा
चढ ा दी तो िन चय ही इस बाण का भाव बड ा अिन कारी होगा और वह िन फल नह
होगा।”
“आप ा ण होने के नाते मेरे पू य ह।”
“बाण चढ ाओ राम!”
“तो िफर आप ली जए, दे खए।” राम ने यह कहते हए बाण धनुष पर रखकर उसक यंचा
ख च दी और बोले‒
“मुिन! म आपको महिष िव वािम का संबध
ं ी जानकर धमसंकट म ह।ं म इसे आपके शरीर
पर नह छोड सकता। अतः िवचारकर मुझे बताइए िक इस बाण से आपक सव
शी तापूवक आने-जाने क शि को समा क ं अथवा आपके तपोबल से ा पु य लोक
को न क ं ?”
महिष परशुराम ने जब यंचा चढ ी हई देखी तो वे ीहीन से हो गए और राम से िनवेदन
करते हए बोले‒
“हे राम! म तु हारे िव व प को पहचान गया ह।ं तुम कृपया मेरी गमन शि को न न
करो। म मन के समान वेग से अभी महे पवत पर चला जाऊंगा। इस बाण से तुम मेरे पु य
लोक को न कर दो। उ ह तो म अपने तपोबल से िफर ा कर लूग ं ा।”
और राम ने यह बाण छोड कर महिष परशुराम के पु य लोक को न कर डाला।
परशुराम स थे। उ ह अपनी इस पराजय म भी िवजय झलक रही थी, य िक वे अपने ही
समान धमा िव णु के अवतार ीराम से परा त हए थे।
परशुराम शी ही महे पवत पर चले गए और उनके जाने पर सारा भूचाल शा त हो गया।
सीता ने चैन क सांस ली।
ओह...िकतनी घबरा गई थ वे उस समय मानो ाण पर बन आई थी। अभी तो उ ह अपने
िववाह के बाद पित-िमलन का एक भी ण नह भोगा था और उ ह लगने लगा था िक कह घोर
अिन न हो जाए? महिष परशुराम के ोध ने उ ह डरा िदया था।
लेिकन महिष के जाते ही सब शा त हो गया।
महाराज दशरथ ने राम के इस परा म को देखकर अपने आपको ध य समझा। वे बड े
हिषत हए, य िक उ ह तो अपने पु का वह पुनज म लगा था।
अब िबना देरी िकए महाराज दशरथ ने सेना को तेजी से कू च करने क आ ा दी और कु छ ही
समय बाद यह समूचा दल अयो या के ांगण म पहच ं गया।
सरयू के जल म नाव पर पैर रखते हए महाराज दशरथ ने चैन क सांस ली, चलो अब वे
सुरि त अयो या आ गए।
जैसे ही वे सरयू पार करके अयो या क भूिम पर बढ े, उनके लए वागत का वा वृदं बज
उठा। राजरािनयां राजभवन के बाहर उनक अगवानी करने के लए पहले से ही दीपमालाएं लये
खड ी थ ।
कैसा विगक वातावरण बन गया। महारानी कौश या, कैकेयी और सुिम ा तीन आरती का
थाल लये मशः राम सीता, ल मण-उिमला के वागत के लए तुत थ , लेिकन जब उ ह ने
भरत के साथ मांडवी को और श ु न के साथ ुितक ित को देखा तो उनक स ता क सीमा न
रही।
आज अयो या के राजमहल म चार कु लदीप िशखाएं जलगी।
माताएं तीन और पु वधुएं चार। यह स ता वे कैसे समेट पाएंगी? यही सोच रही थ । सबसे
पहले ार पर महारानी कौश या ने राम और सीता का, ल मण, भरत और श ु न का प नय
के साथ आरती करते हए वागत िकया। िकसी भी माता के लए यह िदन िकतनी आशाओं भरा
होता है। बालक के ज म से माता इसी िदन का इ तजार करती है।
मां के लए सबसे मह वपूण िदन वह होता है, जब उसका बालक उसे पहली बार अपनी
तोतली आवाज म मां कहता है और दसरा
ू िदन, जब वह घर म बह लाता है। आज कौश या के
लए सबसे बड ा सुख का िदन है।
उ ह तो राम को महिष िव वािम के साथ उनके य क र ा के लए भेजा था। पु के िववाह
के लए तो मां व न संजोती है, लेिकन यह तो अचानक ही मानो खुशी का ोत आकाश से
फूटकर उनके आंगन म बह पड ा था।
कौश या ने बड े य न से अपनी आंख म आने वाले खुशी के आंसू को आंचल से प छते
हए पु और पु वधू क बलाएं ल और िफर थाल को कैकेयी के हाथ म स प िदया।
कैकेयी और सुिम ा ने चार पु क पु वधुओं के साथ आरती उतारी। मंगल गान बज उठे ,
दीपिशखाएं जल उठ ।
ार-पूजा के बाद चार पु वधुओं ने अपनी माताओं के चरण पश िकए, महाराज दशरथ से
आशीवाद लया, महिष व स से आशीवाद लया और िफर देवपूजा के लए ये सभी लोग इ
क म गए।
पार प रक पूजा-िवधान के बाद िव ाम के लए पु वधुओं को उनके महल म पहच
ं ा िदया
गया।
हर प नी को नववधू के प म आने वाले भिव य के ित एक भय और आशंका रहती है,
य िक आगे का जीवन नए जीवन क शु आत होता है।
जब राम ने अपने क म वेश िकया तो यहां का य उनके लए अजनबी लगा, य िक
आज वे अपने उसी क म अकेले नह थे, उनके साथ उनक नई सहचरी बनी सीता भी थी और
क का व प एक िवशेष गंध लये हए था। भावना का पुट लये यह ेमगंध उनके नथुन म
समा रही थी। अब तक उ ह ने धनुष क यंचा चढ ाई थी, लेिकन आज उन पर चलने वाले
कामबाण उ ह धराशायी कर रहे थे और वे उन बाण के सामने अपने आपको अश अनुभव
कर रहे थे।
इधर सीता पहली बार अपने दय म इस संयोग संबध
ं को लेकर भयभीत थ ।
लेिकन य ही ीराम सीता के समीप आए तो वे उठकर खड ी हो गई ं और उ ह ने ीराम
को चरण छू कर णाम िकया और स मानपूवक उ ह आसन देते हए कहा‒
“ थान हण क जए वामी!”
कु छ देर राम अपलक उ ह देखते रहे। आज उनके सामने कोई मयादा का संकट नह था। न
पीछे से ल मण ही यह कहने वाले थे िक भैया चलो, महिष क पूजा का समय हो गया है।
इस लए वे िन चंत होकर अपनी ाणि या के प को अपनी तृिषत आंख से पीना चाहते थे।
अपने साथ लाए एक पु प को सीता के जूड े म लगाते हए उ ह ने कहा‒
“नीलमिण के समान तु हारा यह सलोना प िन चत ही ा ने बड े अवकाश के समय
रचा है। पु प वािटका म अचानक तु ह देखकर मुझे लगा िक कोई है, जो मुझे पुकार रहा है।”
सीता ने धीरे से पु प उठाते हए कहा‒
“लेिकन मने तो आपको आवाज नह दी थी।”
“आवाज दी नह जाती ि ये! सुनी जाती है। जब तु हारे पास से तु हारा पश करके पवन
लहरी फूल के रा ते चलकर मेरे पास आई तो वायु तरं ग तु हारी संक प शि के बल से विन
तरं ग म प रवितत हो गई।ं ”
“यह आप िकस िव ान क बात ले बैठे ाणनाथ!”
उसी िव ान क , जसने हम दोन के मन म एक तार झंकृत कर िदया और शायद उस
संक प शि का ही यह भाव था िक वह धनुष मने उठा लया और य ही उसक यंचा
चढ ाई तो वह टू ट गया।
िफर राम ने सीता के कान म कहा‒
“तुमने अव य ही अपनी पु पमाला म मेरा नाम अंिकत कर िदया था।”
“आपका नाम तो िवधाता ने अंिकत कर िदया था ीराम! म तो एक कठपुतली थी और दे खए
आपके साथ-साथ उिमला का नाम ल मण के साथ जुड गया है। उिमला बड ी भोली है।”
“तो या तुम भोली नह हो?”
“म उससे बड ी ह।ं वह बालपन म अपनी हठ मेरे साथ ही तो करती थी। म उसक हठ क
शि भी जानती ह।ं ”
“तुम तो बड ी गंभीर और चतुर मालूम पड ती हो।”
“आपके यो य बनने के लए इतनी गुणव ा तो अपेि त ही है।”
“तो िफर या सारी रात जागकर िबतानी है?” राम ने ह क हंसी के साथ कहा।
“म तो आपक दासी ह।ं आप थक गए ह गे, लाइए आपके चरण दबा द।ं ू ”
और जैसे ही सीता ने अपने हाथ राम के चरण को दबाने के लए आगे बढ ाए, राम ने उन
हाथ को अपने हाथ म लेकर पहले िनहारा, िफर अपनी आंख से छु आया और िफर तपते हए
अधर उन पर रख िदए।
सीता ने एक झटके के साथ अपने वे हाथ छु ड ा लये मानो बहत अ धक शि वाला
िव ुत-झटका उ ह लगा हो।
“आपका पश तो बड ा तीखा है। मेरा सारा शरीर झनझना गया है।”
“नह , पश तीखा नह , ब क मेरे पश ने तु हारे ेमरं खोल िदए ह और उनम ाणगंध
आने-जाने लगी है। तु ह जीवन-राग सुनाई दे रहा है और दीपक क यह मि म होती बाती यह
संकेत दे रही है िक अब और अ धक उजाल क आव यकता नह है। हमारे िमलन क यह
थम राि है, जो अब हम पर छा जाना चाहती है।”
“म आपक भाषा नह समझ पा रही ह।ं ”
“या यास नह कर रही हो?”
“नह , ऐसा नह है।”
“तो िफर ऐसा है।”
और ऐसा कहते हए राम ने सुस जत व ाभूषण से यु सीता को अपने अंक म समेट
लया। कु छ ण के लए समु म लहर का भयानक वार उठा। तलहटी का इतना कु छ बह
गया उस वार म मानो ये तरं ग सतह से उठकर आंचल म समटे च मा को पाने के लए
उ सुक ह। अब उनके क म तरं ग थ , प दन था, आलोड न था और गंध थी। पूरे क म
या गंध।
अभेद हआ यह िमलन दोन ही ेिमय को एक असीम जीवन अनुराग के बंधन म जकड ता
चला गया तथा दीपक धीरे -धीरे और घना अंधरे ा करता हआ बुझ गया, य िक आ मा के काश
म इस कृि म दीप क कोई उपयोिगता नह रह गई थी।
नवल ातः अयो यानगरी के लए सुखद भिव य क नई र मय का संचार करता ाचीन
िदशा से अपने पदापण का संकेत कर रहा था।
चार क लकाएं एक ही राि म खलकर पूण पु प बन गई थ और उनक सुगध
ं से सारा
राजमहल महक उठा था।
महाराज दशरथ क झोली म इतना अ धक सुख समेटे नह समेटा जा रहा था।
अब राम आिद चार ही भाई अपनी प नय सिहत िपता क सेवा म लीन रहने लगे।
धीरे -धीरे यह सुख अयो या के महल क दीवार म, फश म, छत म याप गया। सब तरफ
आ मसुख का काश ही काश था।
तभी एक िदन कैकेय राजकु मार युधा जत ने अवसर पाकर महाराज दशरथ से िनवेदन िकया,
“यिद आप आ ा कर तो म भी अब वदेश लौटना चाहता हं और िपताजी क इ छा है िक वे
भरत को देख ल तो आप भरत को कु छ िदन के लए मेरे साथ कैकेय देश भेज द।”
महाराज ने रानी कैकेयी और भरत से परामश िकया तथा श ु न व भरत को सप रवार नाना
के यहां भेज िदया।
भरत के जाने पर अब राम-ल मण िपता क सेवा म ाणपण से जुट गए।
राम यश वी भी थे तथा गुणवान भी और सीता जैसी सहधिमणी पाकर तो वे िनहाल हो गए थे।
उनका मन सदा सीतामय रहता था और सीता के दय-मंिदर म ीराम एक देवता के प म
िति त थे।
सीता राम को बहत अ धक ि य थ । सीता के समपण भाव से राम और भी अ धक भािवत
हए। उनक सु दरता और गुण दोन ही राम के आकषण का कारण थे। वे राम के अिभ ाय को
मन म आते ही समझ लेती थ और उसी के अनु प आचरण करती थ ।
सीता और राम क यह पार प रक िनभरता उनके लए िव वास और ेम का सश आधार
थी।
तो या आज िव वास और ेम का आधार यह पार प रक िनभरता कम हो गई है? यह न
सीता को बार-बार कचोट रहा था। वे अकेली सुनसान वन देश म इस दा ण न से जूझ रही
थ । उनके पास इसका कोई समाधान नह था।
राम के रा यािभषेक क घोषणा
जैसे सूय अपनी िकरण से कािशत होता है, उसी कार राम भी सवगुण स प और अपने
िपता को ि य लगने वाले, जा का िहत करने वाले तापी पु ष के समान याित पा रहे थे।
राम के इन गुण को देखकर सहज ही महाराज दशरथ के मन म यह िवचार आया िक वे
अपने जीवनकाल म ही राम का रा यािभषेक कर द।
यह सोचकर उ ह ने अपने मंि य से राम को युवराज बनाने के लए परामश िकया।
मं ीगण और िव ान मनीिषय ने महाराज के ताव का दय से वागत िकया तो इस िवचार
को िनणय मानते हए महाराज ने मंि य को यह आदेश िदया िक रा यािभषेक क तैयारी शु क
जाए।
महाराज क इस उतावली म उनके दय का राम के ित ेम और जा का अनुराग भी कारण
था।
इसके लए दरदराज
ू के जनपद के साम त राजाओं को और धान पु ष को आमं ण िभजवाए
गए और न मालूम यह कैसे हआ िक महाराज क इस बुलावा सूची म कैकेय नरे श अ वपित
और िम थला नरे श जनक छू ट गए। महाराज ने सोचा िक चलो, ये लोग इस समाचार को बाद म
सुन लगे।
अित थय के आने पर महाराज दशरथ जब दरबार म बैठे तो उनके सामने एक बड ा समूह
उप थत था।
उन सबको संबो धत करते हए महाराज दशरथ ने अपना म त य कहते हए उ ह बताया िक
पु य न से यु च मा क भांित सम त काय ं के साधन म कु शल े पु ष िशरोमिण राम
को म कल ातः युवराज के पद पर िनयु क ं गा।
महाराज से यह सुनकर वह जनसमुदाय हष विन से गूज
ं उठा। सबको इस समाचार से अ य त
स ता हई।
अपने ताव को इस कार करतल विन से वीकार जानकर महाराज भी स हए।
सेवक और कमचा रय को रा यािभषेक क सम त तैयारी करने का आदेश दे िदया गया।
महिष व स ने कहा, “कल सूय दय होते ही व त वाचन होगा, इसके लए ा ण आमंि त
िकए जाएंग।े ”
उनके लए उिचत आसन के बंध का आदेश िदया गया।
महिष व स और महाराज दशरथ ारा सुझाई गई सम त आव यक साम ी तैयार रखने के
लए सेवक जुट गए। तब महाराज दशरथ ने सुमं को राम को बुलाने के लए भेजा।
आदेश क देर थी, कु छ ही ण म राजकु मार राम ये रघुकुल िशरोमिण दरबार म उप थत
हए।
राम को पास आकर हाथ जोड णाम करते हए देख महाराज दशरथ ने उनके दोन हाथ
पकड लये और नेह म उ ह पास ख चकर अपने व से लगा लया, िफर मिणजिड त
सुवणाभूिषत सु दर संहासन पर बैठने क आ ा दी।
और इसके प चात् राम से कहा‒
“व स! तु हारा ज म मेरी बड ी महारानी कौश या के गभ से हआ है, तुम गुण म अपनी
माता और मुझसे भी बढ कर हो। अपने गुण से ही तुमने जा को स कर िदया है। अतः इस
सभा ने यह िन चय िकया है िक कल पु य न म तु ह युवराज पद पर अिभिष िकया जाए।”
यह आदेश पाकर राम अपने महल म लौट आए। अभी वे मां कौश या को पूरी बात बता भी
नह पाए थे िक तभी उ ह िफर बुलावा आ गया।
जब राम पुनः महाराज दशरथ के स मुख पहच
ं े तो उ ह ने देखा िपता का िच अशा त है। राम
के पूछने पर महाराज दशरथ ने बताया‒
“व स! आजकल मुझे बड े बुरे सपने िदखाई देते ह। व पात के साथ-साथ भयंकर श द
करने वाली उ काएं िगर रही ह। योितिषय का कहना है िक मेरे ज म न को सूय, मंगल
और राह ने आ ा त कर लया है। ऐसे अशुभ ल ण के होने का संकेत यही है िक राजा िवप
म पड सकता है। अतः म चाहता हं िक कल ातः ही तु हारा अिभषेक कर द,ं ू तािक कोई
िव न न पड े। मेरा मन है िक जब तक भरत अपने मामा के यहां है, तब तक तु हारा अिभषेक
हो जाना चािहए।”
यह महाराज दशरथ के मन का संकोच था अथवा भय, लेिकन राम िपता को आ व त करते
हए ‘जो आ ा’ कहकर िफर अपने महल म लौट आए।
उ ह रा यािभषेक के िनिम उपवास त का पालन करना है, तािक िपता के ह न म राह,
सूय और मंगल का भाव न हो सके।
रा यािभषेक के लए त-पालन के िनिम जब यह समाचार राम सीता को बताने के लए
अपने महल आए तो उ ह ने सीता को वहां नह पाया।
जब राम वहां से माता कौश या के पास गए तो उ ह ने देखा, वे तो पहले से ही देव मंिदर म
बैठी हई ं पु के लए रा यल मी क कामना कर रही ह और सीता भी उनके पास पूजा म म
ह।
कु छ ण ती ा करने के बाद जब उ ह ने अपनी पूजा समा क तो देखा िक उनके पीछे
राम, ल मण और सुिम ा भी खड े ह।
“अरे , या बात है? कु शल तो है, जो आज सुबह देव म दर म ही, मुझे घेर लया। म कह
भागी तो नह जा रही।”
सुिम ा ने हंसकर कहा‒
“दीदी! आप नह भागी जा रह , लेिकन वह घड ी तो भागी जा रही है, जसके लए कोई मां
अथवा कोई प नी त िनयम करती है।”
“ या बात है सुिम े?”
“तु हारे राम का कल राजितलक होगा।”
“अ छा, तो इसका अथ यह हआ िक मां भगवती ने मेरी ाथना सुन ली।”
राम ने माता कौश या क गले लगते हए कहा‒
“तो मां! तुम मेरे रा यािभषेक के लए मां भगवती से ाथना कर रही थ ?”
“हां व स!”
“अ छा मां! िपताजी आज कु छ अ धक िचंितत लगे। उनका िवचार है, कल ातःकाल वे पु य
न म मुझे युवराज बना द। पर न जाने य , वे दःु व न से िघर गए ह? बार-बार उ ह बुरे
व न आते ह। उ ह लगता है िक उनके यह न सूय, मंगल और राह से िघर गए ह, इस लए
मुझे और सीता को त का पालन करना होगा। चय धारण करते हए कु शा पर सोना होगा।”
तभी सीता ने आगे बढ ते हए कहा‒
“तो िफर इसम िचंता क या बात है वामी!”
“यह तो केवल एक राि का न है, लेिकन यिद िपता के दःु व न अथवा िवपरीत ह
न को िनयंि त करने के लए अथवा उनका शमन करने के लए हम जीवन-भर भी त
रखना पड े तो यह हमारे लए बड े सौभा य क बात होगी। म आपके साथ आपके त को
उसी िन ा के साथ धारण क ं गी, जस स ाव से हमारे िपता िचंतामु हो सक।”
िफर ये सभी लोग देव मंिदर से चलकर अपने-अपने महल म चले गए। सभी के चेहरे पर
राम के रा यािभषेक क स ता झलक रही थी।
जब राम अपने महल म पहच ं े तो वे अ य त स थे। सीता को अपने अंक म लेकर उ ह ने
उनक पलक अपने अधर से अंिकत करते हए उ ह अपने अंक म ले लया। इतना झंकृत कर
देने वाला पश था यह। सीता के प म उ ह लगा स पूण रा यल मी उनके अंक म समा गई हो
और वे उसके एकमा वामी ह ।
सीता के लए तपूव का यह िमलन अ य त रोमांचकारी था। वे अपनी खुिशय को समेट नह
पा रही थ । यकायक उनक आंख से आंसू ढु लक पड े। वे आज मा पु वधू ह। कल
ातःकाल सूरज क पहली िकरण के साथ य ही व त वाचन का ार भ होगा, तब तक वह
राजरानी बन चुक ह गी।
राजरानी वह बनगी और व न माता का पूरा होगा।
सीता को याद है, जब पु प वािटका से लौटकर पूजा के फूल सीता और उिमला ने मां सुनयना
को िदए तो मां ने सीता से यही कहा‒
“तुम िकतनी सौभा यशाली हो पु ी! तु हारे भीतर क सादगी और समपण म तु हारे राजरानी
होने का गुण झलकता है।”
शायद यह मां का ही ताप था या आशीवाद, उसके बाद अभी च द ण ही बीते ह गे िक वह
सुस जत होकर अपने क म आई ही थ िक उ ह एक भयानक गगनभेदी गजना सुनाई पड ी।
उनका दय थरथरा उठा और साथ-ही-साथ बाई ं आंख फड क उठी। यह िन चय भी नह कर
पाई थी राम के बारे म िक तभी दासी ने आकर सूचना दी, “राम ने िशव का धनुष तोड िदया
है। महाराज जनक क ित ा पूरी हो गई। अब सीता का िववाह राम से होगा।”
िववाह-मंडप म जब सीता, उिमला, मांडवी और ुितक ित चार पुि य का राम, ल मण,
भरत, श ु न से िववाह हआ तब भी मां सुनयना स मन से िवधाता का ध यवाद कर रही थ ‒
“म िकतनी सौभा यशाली ह,ं मेरी चार पुि यां राजरानी बनगी।”
और इस समय राम के अंक म अकु लाती, कु लबुलाती सीता मां के व न को साकार होते
देख रही थ ।
उ ह धीरे से आगे बढ ते पित के ह ठ पर अपनी उं गली रखते हए कहा‒
“शेष बात कल राि के लए ाणनाथ! आज हम अपनी िन ा को माता-िपता के ित समिपत
करना है। दािय व िनवहण क इस बेला म कोई अवकाश नह ।”
तभी उ ह यह सूचना िमली िक महिष व स राम और सीता को उपवास त क दी ा देने के
लए आए ह।
राम का भवन वेत बादल के समान उ वल था। वहां पहच ं कर महिष व स ने तीन
ोिढ य म रथ के ारा ही वेश िकया और िफर राम के ारा स मािनत महिष उनके साथ
शी तापूवक उनके महल म आ गए।
राम ने महिष को वयं उनका हाथ पकड कर उ ह रथ से नीचे उतारा।
महिष ने उ ह बताया‒
“ि य राम! तु हारे ि य िपता का आदेश है िक आज रात तुम वधू सीता के साथ उपवास
करोगे।”
“हे राम! जैसे नहष ने ययाित का अिभषेक िकया, उसी कार तु हारे िपता तु हारा अिभषेक
करगे। तु ह कल ातः युवराज पद पर िति त करगे।”
यह कहते हए महिष व स ने राम और सीता को कु शा के आसन पर बैठाकर उपवास- त
क दी ा दी।
महिष व स राम के ारा िव धवत पू य हए और राम को उनका कत य समझाकर पुनः लौट
आए।
राम का भवन उस समय हष और उ साह क लहर से नहा रहा था। नर-ना रयां चहल-पहल
को बढ ा रहे थे। सड क पर झुड ं -के-झुड
ं राम का अिभषेक देखने के लए लालाियत थे।
अयो या क कोई भी अ ा लका ऐसी नह बची थी, जहां राम के युवराज होने क स ता का
कोई संकेत न झलक रहा हो। अयो या म यह उ सव वयं म एक नवीनता का संकेत देने वाला
तो था ही, पर पर िव वास और एकता का तीक भी था।
पुरोिहत जी के चले जाने पर संयमी राम ने सव थम नान िकया, दसरी
ू ओर स खय ने सीता
को भी स पूण नान कराया और िफर दोन ने एक व ा होकर नारायण क उपासना आर भ
क।
उ ह ने हिव य पा को सर झुकाकर नम कार िकया और िफर व लत अि म शेष शैया
पर िवराजमान भगवान नारायण क स ता के लए िव धपूवक हिव य क आहित दी। उसके
बाद अपने मनोरथ क सि का संक प लेकर और िपता के गोचर पर न के अनुकूलन के
लए िवचार करते हए उस य शेष का हिव य दोन ने खाया। िफर मन को संयम म रखकर
मौन होकर राजकु मार राम सीता के साथ भगवान िव णु के सु दर मंिदर म उ ह का यान करते
हए अलग-अलग िबछे हए कु श पर सो गए।
तीन पहर बीत जाने पर जब रात केवल एक पहर ही रह गई, तब वे उठ गए। सभामंडप
सजाने के लए सेवक को आ ा दी और िफर ातःकाल क स योपासना के लए बैठ गए तथा
एका िचत होकर जाप करने लगे।
इसके प चात् राम ने रे शमी व धारण िकए, म तक झुकाकर भगवान नारायण को णाम
करते हए उनका तवन िकया और ा ण से व त वाचन कराया।
अयो यावा सय ने जब यह सुना िक राम ने सीता के साथ उपवास- त आर भ कर िदया है तो
उन सबको बड ी स ता हई।
ातःकाल होने पर जैसे-जैसे अयो यावा सय को राम के अिभषेक का समाचार िमलता गया,
वे सब अपने घर , ग लय , सड क को सजाने म जुट गए।
त पूण होने पर सीता के मुखमंडल पर एक िद य आभा िवराज गई। आज क ातः वतः ही
उ ह नई ातः-सी लगने लगी और जैसे ही वे त-काय से िनवृत होकर कु छ ण के लए
िव ाम क मु ा म अपने आसन पर बैठ , अक मात् उनक दाई ं आंख फड कने लगी। आज
पहली बार उ ह अपने महल के पीछे क ओर बेल वृ पर उ ू के बोलने क आवाज सुनाई दी
और वे घबरा उठ ।
उ ह ने राम को अपने मन क शंका बताई।
“यह तु हारा म है जानक ! हमारे त के भाव से जब िपता के िवपरीत ह न अनुकूल
हो सकते ह तो हमारे ह न यवधान य डालगे?”
और इस तरह सीता क शंका बीच म ही अधूरी रह गई।
राम पूण प से तैयार होकर रा य प रषद के आमं ण क ती ा करने लगे। वे दो बार माता
कौश या के भी दशन कर चुके थे। राम और सीता दोन ही उनका आशीवाद पा चुके थे, लेिकन
प रषद का बुलावा अभी तक नह आया था।
अब राम के मन म भी भय और शंका िघरने लगी। मुहत का समय टलता िदखाई देने लगा। वे
कु छ िनणय कर पाते इससे पहले ही उ ह सुमं िदखाई पड े।
सुमं को देखकर राम का टू टता साहस लौट आया और उ ह ने वयं ही सुमं से कहा‒
“ य ? या बात है? तुमने इतनी देर य लगा दी? महाराज व थ तो ह, उ ह ने बुलाया
है?”
“हां राजकु मार! महाराज ने आपको याद िकया है।”
राम ने य ही सुमं के चेहरे पर ि डाली, उ ह लगा िक यह आमं ण राजसभा से नह
आया, लेिकन राम तो चतुर और गंभीर थे। अतः उ ह ने सुमं से कोई न नह िकया और वे
उसी रथ पर बैठ गए, जस पर सुमं उ ह लेने आए थे।
चलते हए राम ने सीता से कहा‒
“ि ये! तुम माता कौश या के क म चलो। म िपताजी के पास से लौटकर, उनका आदेश
लेकर तु हारे पास आता ह।ं ”
जो आ ा कहते हए सीता माता कौश या के महल क ओर चल द और राम सुमं के साथ
महाराज दशरथ क सेवा म आगे बढ गए।
राम के महल के बाहर अनेक नर-नारी शुभ घड ी के ार भ होने क ती ा म बधाइयां देने
के लए आतुर खड े थे। जब राम से उ ह ने पूछा‒
“अिभषेक म या देर है महाराज?”
“म यही जानने के लए महाराज के पास जा रहा ह।ं आगामी सूचना तक आप लोग ती ा
कर।”
उधर महाराज दशरथ के महल के बाहर भी अनेक बंदीजन, वृदं गायक, सेवक और मं ी
उनक ओर से िमलने वाले संकेत क ती ा कर रहे थे। जबिक राजदरबार म आमंि त
राजा धराज के साथ अनेक धान पु ष के साथ वयं महिष व स , वामदेव, जाबा ल और
सुिव आिद महाराज क ती ा म थे।
वस सोच रहे थे िक राजदरबार के लए महाराज दशरथ ने इससे पहले तो कभी इतना
िवलंब नह िकया, िफर आज या बात हई?
सुमं राम को महाराज क सेवा म बुला लाए।
जैसे ही राम िपता के महल म उप थत हए, वहां क थित को देखकर वे आ चयचिकत रह
गए। यहां तो सारा व प ही बदला हआ था।
कोई नह जानता था िक महाराज दशरथ के लए यह बीती हई राि कालराि के समान बीती
है।
महाराज दशरथ के सामने यही िचंता सबसे बड ी थी िक जस अिभषेक के लए दर-द
ू रू से
राजागण को आमंि त िकया है, वे या सोचगे?
महल म जाकर जब राम ने िपता को कैकेयी के साथ उ च आसन के पास धरती पर िवषाद
म देखा तो मानो व न लोक से यथाथ म आ गए। महाराज का मुख सूखा हआ था और वे
बड े दयनीय िदखाई दे रहे थे।
िनकट पहच ं ने पर राम ने िवनीत भाव से िपता के चरण म णाम िकया और उसके बाद माता
कैकेयी के चरण म म तक झुकाया।
दशरथ के कान म य ही राम का श द पड ा, उ ह ने णभर क अपनी अचेत दशा म ही
आंख खोलकर राम को िनहारा और अ य त दख
ु म व लेश के साथ ‘राम’ कहकर वे चुप हो
गए।
उनके ने म आंसू छलक आए, जसके कारण वे आंख खोलने पर भी राम को न देख सके
और न ही उनसे कोई बात कर सके।
राम के लए िपता का यह भयंकर प अभूतपूव था। मानो िकसी के पैर से सांप छू गया हो,
ऐसा भय और आशंका राम को िहला गई।
राजा शोक से दबु ल और दीन हीन हो रहे थे। उनक सांस ल बी चल रही थ । िच म एक
याकु लता थी। उनके शोक का कारण या है? यह राम क सोच से परे था। िफर भी उ ह ने
साहस करते हए माता कैकेयी से पूछा‒
“माता! आज ऐसी या बात हो गई, जो िपता मुझसे स नह ह और न बात कर रहे ह,
जबिक और िदन तो िपता कु िपत होने पर भी मुझे देखकर स हो जाते थे, िक तु आज तो मेरी
ओर देख भी नह रहे ह। इनके शोक का कारण या है? मां! ये इतने दीन हीन य ह? िकस
कारण इनके मुख क का त म लन हो रही है? या मुझसे अनजाने म कोई अपराध हो गया है?
आप तो जानती ह गी, य िक राजदरबार से लौटने पर ये सीधे आप ही के पास आए ह और राि
शयन भी इ ह ने आप ही के महल म िकया है।”
कैकेयी ने मौन रहते हए एक झलक राम को देखा। राम को लगा िक माता कु छ कहना चाहती
ह, पर कहने का साहस नह कर पा रही ह।
वयं ही अनुमान लगाते हए राम ने कहा‒
“ या कोई शारी रक संताप या मान सक िचंता तो इ ह पीिड त नह कर रही है? या कह
िकसी ने महाराज को असंतु करके कोई अि य बात तो नह कह दी? भरत, श ु न अथवा
मेरी माताओं का कोई अमंगल तो नह हआ?
‘‘और कह आपने तो अपने अिभमान के कारण िपता को कोई अि य बात कहकर लेश म
नह डाल िदया? जससे इनका मन दख
ु ी हो गया।’’
कैकेयी सोच रही थी मानो महाराज ने करवट बदली हो और यह कातर ने से देखते हए
कैकेयी से कह रहे ह‒
“बोलती य नह रानी! अपने मन का भेद खोल दे राम के सामने। यह तेरा वही ि य पु है,
जसके लए िम या भी यिद तुझ कोई अि य बात कहता तो तू स य म दखु ी हो जाती और तेरे
लए राम का अिहत असहनीय था। तू आज इस तरह चुप य है?”
लेिकन महाराजा अचेत थे, यह कैकेयी के मन का पाप अमूत होकर उसके सामने संवाद कर
रहा है।
राम ने कहा‒
“माता! तु हारा मौन मेरे मन म संदेह उपजा रहा है। हे मां! स य बाताओ, महाराज क इस
शोचनीय दशा का कारण या है?”
अब राम ने इस कार आदेश क भाषा म माता कैकेयी से न िकया तो उसके लए चुप
रहना किठन हो गया और वह िढठाई से बोली‒
“न तो म और न ही तु हारे िपता तुम पर कु िपत ह। यह तो हमारे और इनके बीच दो वचन
का अनुबध
ं था, जससे महाराज िवच लत हो गए ह।”
“तुम उनके ि य हो, तुमसे यह कोई अि य बात कहने का साहस नह जुटा पा रहे, िक तु
अनुबधं के अनुसार जो वचन इ ह ने मुझे िदए थे, वे मने इनसे मांग लये ह। वचन क मयादा के
कारण बा य महाराज न तो उ ह अ वीकार कर सकते ह और न ही वीकार करके उसका
प रणाम सहन कर सकते ह, लेिकन तु हारे िपता ने जो वचन िदए ह, उसके कारण जो कु छ मने
इनसे मांगा है...
“आपने या मांगा है माता?”
“एक वचन के प म मने तु हारी जगह भरत का युवराज पद पर अिभषेक मांगा है।”
“यह तो कोई अ स ता क बात नह है। युवराज म बनूं या भरत, रा य तो जा का है।
उसके िहत म ही हम समिपत भाव से हर िनणय वीकार करना चािहए। मुझे इसम िकसी कार
के क क बात नह िदखाई पड रही।”
“क तो दसरे
ू वचन म है पु ! जसम मने तु हारे युवराज पद के बदले तु हारे लए चौदह
वष का वनवास मांगा है।’’
यह सुनते ही राम को खटका लगा िक अव य ही िपता मेरे वनवास से िचंितत हो गए ह।
वे जानते थे िक जब महिष िव वािम के साथ उ ह भेजने क बात आई थी, तभी महाराज पु
नेह के कारण उ ह भेजना नह चाहते थे।
वह तो बहत अ पकालीन अलगाव था, जबिक यह तो िनवासन है और वह भी चौदह वष के
लए। राम समझ रहे थे िक माता ने यह वरदान उनके लए दंड प म िनधा रत िकया है।
इसी लए िपता क यह दशा है।
रानी कैकेयी से यह सुनकर राम के दय म शोक नह हआ, िक तु िपता के इस दख
ु को
देखकर वे य थत हो उठे और बोले‒
“मां! आपका आदेश िशरोधाय है। िपता क ित ा को पूण करने के लए म अव य ही
व कल और चीर धारण करके वन चला जाऊंगा, पर म जानना चाहता हं िक मेरे िपता मुझसे
अ स य ह? या उ ह िव वास नह िक उनका पु राम उनक आ ा का पालन करे गा?
“राजा तो मेरे िपता और गु ह तथा िहतैषी ह। उनक आ ा होने पर ऐसा कौन-सा काय है
जसे म न क ं , िक तु यह बात मुझे अ य धक पीड ा दे रही है िक वयं महाराज ने मुझसे
भरत के अिभषेक क बात नह कही।
“हे माता! यिद आप ही का आदेश हो तो भी म भाई भरत के लए रा य तो या, अपने ाण
और सारी स प स तापूवक दे सकता हं तो िफर महाराज यिद आ ा द और वह भी आपका
ि य करने के लए तो म ित ा का पालन करते हए वह काय य नह क ं गा? अव य
क ं गा मां! मेरी ओर से महाराज को आ वासन दो िक वे इस कार िनरीह होकर आंसू न
बहाएं। म आज ही चौदह वष के लए शी द डकार य चला जाता ह।ं आप महाराज क आ ा
से शी ही दतू को ुतगामी घोड पर सवार करके भरत को बुला ली जए।”
राम क यह बात सुनकर कैकेयी अब अ यािशत प से स हो गई।ं उसे िव वास हो गया
िक राम वन चले जाएंग।े अतः उसने कहा‒
“तुम ठीक कहते हो व स! ऐसा ही होना चािहए। भरत को मामा के यहां से बुलाने के लए
ुतगामी दतू भेजे जाने चािहए। वे अव य जाएंग,े िक तु राम तु हारा वन जाने के लए िवलंब
करना ठीक नह , जतना शी संभव हो, तुम यहां से वन को चल दो। महाराज ल जत होने के
कारण यिद तुमसे कु छ नह कह पा रहे ह तो इसका िवचार मत करो और इस दख ु को अपने मन
से िनकाल दो, य िक जब तक तुम वनगमन नह करोगे, तु हारे िपता नान अथवा भोजन नह
कर पाएंग।े ”
महाराज दशरथ अचेत अव य थे, िक तु बीच-बीच म जब भी उनक तं ा टू टती तो वे छु ट-पुट
बात सुन ही लेते थे।
जब उ ह ने कैकेयी को यह कहते पाया िक “म राम के वनगमन क ती ा कर रहा हं और
तभी नान भोजन क ं गा जब ये चले जाएंग”े लंबी सांस ख चकर दशरथ ने कहा‒
“ ध कार है तुम पर रानी! तुमने मुझे िकतना नीचे िगरा िदया!”
राम ने महाराज को उठाकर बैठा िदया और वयं वन जाने के लए उठ खड े हए।
माता कैकेयी से राम ने कहा‒
“म धन का उपासक होकर संसार म नह रहना चाहता। िपता का जो भी ि य काय म कर
सकता ह,ं उसे ाण देकर भी क ं गा। आप िकसी कार क िच ता न कर। य िप यह आदेश
मुझे िपता ने वयं नह िदया, िफर भी म चौदह वष ं का यह वनवास आपक आ ा से वीकार
कर जा रहा ह।ं आपका मुझ पर पूरा अ धकार था और है, िफर भी आपने अपने मन क यह बात
मुझे न कहकर महाराज से कही और इनको क िदया, लगता है शायद आपका मुझ पर
िव वास नह रहा। अब मुझे आ ा दी जए, तािक म मां कौश या को समझा सकूं , उनक आ ा
ले सकूं और सीता को इसके लए तैयार कर सकूं िक वह मेरी अनुप थित म चौदह वष माता-
िपता क सेवा म यतीत कर। आप केवल यह य न करना िक भरत इस रा य का पालन करते
हए िपताजी क सेवा करते रह, य िक यही सनातन धम है।’’
राम क यह िन ा और भि देखकर महाराज दशरथ अ य त याकु ल हो उठे । वे शोक के
आवेग से कु छ बोल तो न सके, िकंतु केवल फूट-फूटकर रोने लगे।
राम इसके बाद वहां ठहर नह सके। उनके रा यािभषेक का िनणय उलट चुका था। अब उ ह
द डकार य के लए थान करना था। अतः वे वहां से िपता को मौन णाम करते हए और माता
कैकेयी के ित आभार कट करते हए उस भवन से बाहर चले आए।
राम का वनगमन
राम माता कौश या से वन क आ ा लेने के लए य ही रानी कैकेयी के महल से बाहर
िनकले, वैसे ही अ तःपुर क राज मिहलाओं का आतनाद शु हो गया। उनक िचंता का िवषय
यही था िक सबके भले म लगे रहने वाले राम जब वन चले जाएंगे तो उनके िबना हम िकसके
सहारे रहगे?
सबका समवेत वर यही था िक महाराज क बुि मारी गई है, इसी लए वे इस घमंडी रानी के
बहकावे म आ गए ह और अब ल जा के मारे िबछौने म अपना मुंह िछपा लया है।
इधर राम को बाहर आया देखकर िबना यह जाने िक घटना म िकस तरह बदला है, वहां
उप थत जनसमूह ने उ ह बधाइयां देनी ार भ कर द । सभी लोग राम क ोढ ी पर खड े
उनक माता कौश या को बधाई दे रहे थे और कभी उनके भा य को सराह रहे थे।
अपने स मुख स ता से भरा यह जनसमूह देखकर राम असमंजस म पड गए। वे इ ह
िकस कार समझाएं िक अब यह बधाई माता कौश या के दरवाजे पर नह , ब क रानी कैकेयी
के दरवाजे पर दी जानी चािहए, लेिकन वे चुप रहे और सीधे माता के अ तःपुर म िव हो गए।
महारानी कौश या अब भी िव णु-पूजा म संल थ । कु छ देर बाद जब कौश या ने राम को
देखा तो वे स हई ं और उ ह कसकर अपने अंग से लगा लया और बोल ‒
“हे व स! अब जाओ, देर मत करो। अपने िपता के दशन करो। वे धमा मा आज ही तु हारा
रा यािभषेक करगे।”
राम ने मन को कठोर करते हए माता से कहा‒
“शायद आपको बदली हई थितय का ान नह है। अब युवराज पद पर अिभषेक मेरा नह ,
भरत का होगा और म जानता हं िक इससे आगे जो म कहने जा रहा ह,ं उससे आपको, सीता को
और ल मण को भी बहत दखु होगा, लेिकन कहना तो है, य िक उसे करना भी है।”
कौश या तो अवाक् थ । वे तो भरत के रा यािभषेक पर ही आ चय म डू ब गई थ , यह
प रवतन य ? इस लए भ चक हो वे राम के चेहरे क ओर देख रही थ ।
“मां! अब मुझे चौदह वष के लए द डकार य के लए जाना है। अब इन बहमू य व तुओं क
मेरे लए या उपयोिगता? मुझे तो कु शा क चटाई पर ही बैठना होगा। रा य-व तु का याग
करके मुिनय क भांित कंद-मूल फल खाते हए यह समय गुजारना है।”
“महाराज युवराज का पद भरत को दे रहे ह और मुझे चौदह वष का द डकार य।”
कौश या ने सप नी के कारण अपने संदभ म जो क उठाए, उ ह उ ह ने हंसकर सहन िकया
लेिकन अब पु पर यह िवप आई तो वे केले क भांित कटकर जमीन पर िगर पड ।
राम ने मां को सहारा िदया और उ ह आसन पर बैठाया। कौश या अब भी मन पर इस गहन
चोट क पीड ा अनुभव कर रही थ ।
एक बेजान शरीर क तरह उ ह ने धीरे से कहा‒
“यिद तु हारा ज म न होता तो मुझे केवल वं या होने का शाप ही भोगना पड ता, इसके
अित र तो कोई दख ु न होता पर जसे पित के भु व काल म जो सुख ा होना चािहए, वह
पहले कभी देखने को नह िमला। सोचा था िक पु के रा य म ही कु छ सुख देख लूग ं ी, इसी
आशा से अभी तक जीिवत थी। मने कभी सप नी के ितर कार को भी मह व नह िदया, लेिकन
अब जबिक पित तो पहले से ही मेरे अपने नह थे, अब मेरे पु को भी मुझसे अलग िकया जा
रहा है। म भा यहीनता कैसे अपने िदन काटूंगी?”
राम के लए मां का यह दख
ु असहनीय था, लेिकन िफर भी उ ह आ ा पालन तो करना ही
था।
ल मण जो अब तक मौन थे, उनके ोध क सीमा टू ट गई और वे चीखते हए बोले‒
“म अपने धनुष क सौगंध खाकर कहता हं भैया! आपके सामने िकसी क मता नह , जो
रा य क ओर आंख भी उठा सके। मेरा तो कहना यह है िक जब तक कोई बाहर का यि
आपके वनवास क बात को जाने, उससे पहले ही रा य क बागडोर आपको अपने हाथ म ले
लेनी चािहए। जो िवरोध करगे, वे अपने ाण से हाथ धो बैठगे।”
राम ल मण क मता जानते थे, इस लए उ ह ने उनको शा त िकया और दख
ु ी मन से ही
सही, मां से वन जाने क आ ा ली।
राम ने ल मण को समझाते हए कहा‒
“यह रा य अिभषेक क साम ी अब यहां से हटाओ ल मण! और मन शा त करो। देखो हमारे
िपता सदा ही स यवादी रहे ह, इस लए उनके ित मन म िकसी कार का दभु ाव मत लाओ।
‘‘म व कल और मृगचम धारण िकए तथा सर पर जटाजूट बांधे वन को चला जाऊंगा, तभी
रानी कैकेयी के मन को शा त िमलेगी। जस िवधाता ने कैकेयी को ऐसी बुि दान क है और
जसक ेरणा से उनका मन मुझे वन भेजने का हआ है, उसे िवकल मनोरथ करके म क नह
देना चाहता।
“तुम तो जानते हो, माता कैकेयी ने कभी भी मुझम और भरत म भेद नह िकया। इस लए यिद
वे आज कठोर हो रही ह तो इसे देव-इ छा मानकर हम वीकार करना चािहए, य िक यिद ऐसा
न होता तो वे मुझे वन भेजने का ताव नह करत । इस लए मेरे लए जब रा य और वनवास
दोन समान ह तो िफर तुम इस उलट-फेर के बारे म संताप य करते हो?”
ल मण तो पहले ही उि हो रहे थे, उनका ोध भड क गया और ोध क पराका ा यह
हई िक और लेश म ल मण क आंख म आंसू आ गए।
राम ने उनक आंख से आंसू प छते हए उ ह साम ी हटाने के लए आ ा दी।
कौश या तो राम के साथ वन जाना चाहती थ , लेिकन राम ने उ ह यह कहकर शा त िकया
िक उनक मुि पित-सेवा म ही है।
अपने मन पर जैसे-तैसे िनयं ण रखते हए कौश या ने पु के म तक पर अ त रखकर चंदन
और रोली लगाई। मनोरथ को स करने वाली िवश यकरणी नामक औष ध लेकर र ा के
उ े य से मं पढ ते हए उसे राम के हाथ म बांध िदया और मं का जप िकया। िफर माथा
चूमकर राम को दय से लगाते हए बोल ‒
“तुम सफल मनोरथ होकर अब सूखपूवक वन जाओ व स! जब तुम लौटोगे, उस समय तु ह
राजमाग पर मेरी आंख ती ा करती िमलगी। जाओ, अब सीता से िवदा लो।’’
सीता को अभी तक इन गितिव धय के बारे म कु छ भी ान नह था, य िक न कोई समाचार
िमल रहा था और न ही कोई चहल-पहल थी। दाई ं आंख के फड कने से उ ह िकसी अिन का
भय अव य था, िफर भी वे अपनी पूजा समा करके राम के आगमन क ती ा रही थ ।
िकतना कु छ नह देखा सीता ने? िववाह के बाद अयो या म वे राजरानी होने वाली थ , लेिकन
एक ही रात के अ तराल म सारी थितयां पलट गई।ं जनका रा यािभषेक होना था, उ ह व कल
चीर पहना िदए गए और जब वामी मेरे पास आए थे, सीता सोच रही थ , वह चाहते थे िक म
अयो या म रहकर माता-िपता क सेवा क ं लेिकन म ढ ित ा थी इस बात के लए िक
जब माता कौश या का धम पित क सेवा है, िपता और पु म से उ ह िपता यानी अपने पित को
चुनना है तो िफर सीता कैसे पीछे रहती?
और तब, जब वामी मेरे क म आए थे...
सजा-सजाया क , जसम राम उ फु मन आया करते थे, आज उनका मुख म लन और
भाव संकुिचत थे।
सीता जैसे ही उ ह देखकर अपने आसन से उठ , राम आकर मं मु ध से मौन खड े हो गए।
वे सीता को देखकर अपने मान सक शोक भी न सह सके और उ ह ने अपनी आंख के पानी,
माथे के पसीने और शरीर के कंपन को दबाकर शांकुल होकर सीता को अपने अंक से लगा
लया।
“आपक कैसी दशा है भु?”
“हे कमलनयनी! पू य िपता ने मुझे वन जाने का आदेश िदया है?”
“और अिभषेक?”
“भरत के लए।”
“लेिकन यह प रवतन...इसका कारण?”
“माता कैकेयी के दो वरदान।”
“इस असमय?”
“असमय नह , समय कहो देवी!”
“ य ? रा यािभषेक िन चत होने पर यह कैसा यवधान?”
“माता जानती ह िक कल मेरे युवराज होने के बाद सारी यव था, रा यतं और रा यकोष
मेरे अ धकार म होगा। तब वह अपने िवप पित से या मांग सकती थ । अतः उ ह ने आज ही
महाराज के रा यकाल म ही उन दो वचन को भुनाना उिचत समझा। म वन जाऊंगा, तु ह मेरी
अनुप थित म माता-िपता क सेवा करनी होगी सीते! म इस समय िनजन वन म थान से पूव
यहां तुमसे िमलने आया ह।ं यह यान रखना, भरत के सामने कभी मेरी शंसा मत करना,
य िक मेरी अनुप थित म उनके मन के अनुकूल बताव ही तु ह शा त और सुर ा दे पाएगा।
अब तुम धैय धारण करके रहना।”
“हे ाणनाथ! आप मुझे यह िश ा य दे रहे ह! जब म यहां रहग ं ी, तभी तो इन सब बात का
यान रखूंगी। मेरा वग तो वहां है, जहां आप ह। मेरी अयो या वही ह, जहां आप ह। नाथ! प नी
केवल पित का अनुसरण करती है और पित का भा य ही प नी का भा य होता है। ना रय के
लए इस लोक और परलोक म एकमा पित ही तो आ य देने वाला होता है। िपता, पु , माता,
स खयां तथा उसका अपना यह शरीर भी स चा सहायक नह । अतः हे राम! यिद आप आज ही
वन क ओर थान कर रहे ह तो म आपक अनुगािमनी, आपके रा ते के कु श और कांट को
कु चलती हई आपके आगे-आगे चलूग ं ी।
“मुझे िकसके साथ कैसा बताव करना चािहए, इसके बारे म मेरे माता-िपता ने मुझे पया
िश ा दी है। अतः इस संबधं म कोई उपदेश देने क आव यकता नह है। म जस कार अपने
िपता के घर म रहती थी, उसी कार वन म भी सुख ही अनुभव क ं गी।”
“तो तुम मेरे साथ चलोगी? भला सोचो, यह या कह रही हो सीता!”
“वही जो आप सुन रहे ह।”
“तो िफर म वहां ती का जीवन िकस कार जऊंगा?”
“हे आय! आप इस बारे म लेशमा िचंता न कर। िनयमपूवक रहकर, चय का त-पालन
क ं गी। मेरे लए तीन लोक का ऐ वय कु छ भी नह ।”
“लेिकन वन का जीवन संकट द होगा।”
“जो वयं दसर
ू क र ा करने म समथ ह, िफर उनके संर ण म मुझे या संकोच अथवा
भय? म आपके लए भार नह , सहचरी बनूग
ं ी। आपके भोजन के बाद जो बचेगा, वही मेरा
भो य होगा।”
“म तु हारी धमशीलता, िमत यियता और गुणधिमता से पूरी तरह प रिचत हं और म जानता हं
िक तुम वन म भी उसी कार सुख का अनुभव करोगी, िक तु जरा सोच िक मां कौश या और
िपता पर मेरे जाने के बाद या बीतेगी? या ये मेरे और तु हारे दोन के जाने का लेश सहन
कर पाएंग?
े ”
“हे वामी! प नी क गित पित के चरण म ही है। अतः म आपके चरण म अनुर रहती हई,
आपके साथ ही सुख का अनुभव कर पाऊंगी। आपके िबना तो मुझे वग भी वीकार नह , िफर
अयो या क तो बात ही या?”
“और यिद इस पर भी आप मुझे ठु कराकर यहां छोड जाएंगे तो आपके िवयोग म, िन चय
ही नह जी सकूं गी और जब आप लौटगे तो मुझे नह पाएंग।े ”
राम सीता का यह ढ िन चय सुनकर िवच लत हो गए, लेिकन िफर भी उनक इ छा यही
थी िक वे सीता को छोड जाएं। माता और िपता क सेवा के लए सीता का अयो या म रहना
अ य त आव यक था।
तभी राम ने देखा िक सीता क आंख म आंसू भर आए थे, नाक से पानी बहने लगा था और
िवयोगज य भय से उनका शरीर कांपने लगा था और चेहरा ीहीन-सा होने लगा था।
यह देखकर राम ने सीता को समझाते हए कहा‒
“तुम तो उ म कु ल म उ प हई हो देवी! सत्-आचरण के बारे म पूरी तरह िव हो, तु ह तो
यहां रहकर अपने धम का पालन करना चािहए, जससे मेरे मन को संतोष हो। तुम नह जानत ,
वन का जीवन िकतना क दायी होता है। शायद इसी लए तुम वन जाने क जद कर रही हो।’’
“आप व य जीवन के भयावह संग को छे ड कर मेरे मन को िवच लत करना चाहते ह।
आप एक बार अपने मन से तो पूछ दे खए िक या वह मुझे अयो या म छोड ने के लए तैयार
है?”
“सीते! यि मन और िवचार के म जब फंसता है तो कई बार मन का तक उसे यागना
पड ता है। म आज मन का न नह उठा रहा। म तो सामियक थितय को देखते हए
समयानुकूल आचरण क बात कर रहा ह।ं या तुम समझती हो िक म वन अपनी इ छा से जा
रहा ह? ं माता कौश या को पु -िवयोग का क मन से दे रहा ह?ं नह सीते! यह मेरी धमगत
बा यता है और यि जब बा य होता है तो मन क इ छाओं का याग करने के लए बा य होता
है। तु ह म इसी संदभ म आज अयो या म छोड रहा ह।ं ”
“छोड रहा हं नह , छोड ने के बारे म सोच रहा हं किहए नाथ! य िक म यहां आपक
अनुप थित म रहने के लए िकसी भी थित म तैयार नह ह।ं ”
“तुम कोमल हो, नारी हो, मेरे जैसा किठन जीवन जीने क अ य त नह हो, बात को समझो।
म वन के िहंसक पशुओं से अपनी र ा क ं गा या तु हारी? तुम मेरे लए वहां एक दािय व बन
जाओगी।”
“यह आप या कह रहे ह नाथ! दािय व तो म उसी िदन हो गई थी, जस िदन आपने अि के
सम सात फेरे लये थे। म आपक प नी ह,ं आपका धम आपका दािय व ह।ं चाहे अयो या म,
चाहे वन म। आप उससे कैसे मु हो सकते ह? आपके सभी तक बड े कमजोर ह।”
“जब मतवाला हाथी आएगा तो उसक िचंघाड से कांप उठोगी। जब निदयां पार करनी ह गी
तो ाह को देखकर डर जाओगी। जो नारी यहां घर क चारदीवारी से बाहर नह िनकली, वह
खुले आकाश म िकतनी असुरि त होगी, इसक क पना क है?
“िदन-भर के प र म से थके-मांदे मनु य को जमीन के ऊपर अपने आप िगरे हए सूखे प के
िबछौने पर सोना पड ता है। िकतना दख ु भरा है वन का जीवन।”
“लेिकन वहां यिद प नी का ेम और साि य िमले तो वह थकान कु छ तो कम हो जाएगी
नाथ!”
“तु हारा यह जीवनराग कोरी भावुकता है सीता! वनवासी को ितिदन िनयमपूवक तीन समय
नान करना होता है। वहां वयं चुनकर लाए फूल ारा देवताओं क पूजा करनी होती है। जब
जैसा आहार िमल जाए, खाना पड ता है। हे देवी! राि म पहाड ी सप सोते हए यि क
जीवन-लीला समा भी कर देते ह।”
“आपके साि य म मुझे इनम से कोई बात कैसा भी क नह पहच
ं ाएगी।”
“और जब कांटेदार रा त पर चलना होगा? भयानक आकार के वानर और रा स िमलगे,
कोमल शरीर पर खर च पड गी, पैर म छाले पड जाएंग?
े ”
“तो म उसे अपने आंचल से साफ कर लूग
ं ी। आपको िव ांित दग
ं ू ी।”
“अथात् तुम िकसी भी कार नह मानोगी?”
“यह मानने का न नह है नाथ! यह तो मेरे धम का न है, मेरी आ था और मेरे िव वास
का न है? और म मानती हं िक आपका नेह पाकर वन के सारे दोष मेरे लए गुण प हो
जाएंगे और जन िहं पशुओं क बात आप कर रहे ह, वे तो आपका प देखकर भाग जाएंग।े
आपके समीप रहने पर तो वे भी मेरा ितर कार नह कर पाएंग।े हे नाथ! पित ता ी अपने पित
से िवयु होकर कैसे जी पाएगी? और िफर मुझे तो आपके साथ चलने म कोई क नह है।
आप य संकोच कर रहे ह? म जानती हं िक वन म दख ु िमलगे, लेिकन जीवन भी तो वन म
ही िमलेगा। आपके अनुगमन से परलोक म भी मेरा क याण होगा। म आपक धमप नी ह,ं
इस लए आपके पैर क परछाई ं बने रहना ही मेरी िनयित है। म िनयित से भाग नह सकती। म
आपके सुख-दख ु म समान प से हाथ बंटाने वाली ह।ं और िफर सुख िमले या दख ु , दोन
अव थाओं म म समान भाव ही अनुभव करती ह।ं यह कहते हए तरं ग म आकर सीता ने अपनी
दोन िनवसन बांह राम के कंध पर रखते हए अपनी वास गंध से उ ह अिभभूत करते हए
कहा‒
“म आपके साथ ही चलूग ं ी और यिद आपने मेरे िनवेदन को वीकार नह िकया तो िन चय
जािनए, चाहे मुझे िवष खाना पड े, आग म कू दना पड े, जल-समा ध लेनी पड े, म मृ यु
का वरण कर लूग ं ी। आपके वन जाने के बाद अगली ातः मेरे जीवन म नह आएगी।”
सीता का यह ढ िन चय देख राम कांप उठे और बोले‒
“तुम इतनी ढ ता से मेरी बात को अ वीकार करके मेरी भावनाओं का उपहास करना
चाहती हो।”
“नह नाथ! म आपके स मुख अपनी भावनाएं तुत कर रही ह,ं ज ह वन जाते समय आपने
िबलकु ल उपेि त कर िदया है। आपक या सोच है? िकस बात का भय है? आप मेरा प र याग
य करना चाहते ह? जब जीवन-मरण तक साथ िनभाने क शपथ ली है, अि को सा ी
मानकर मेरा वरण िकया है तो हे आय! जान ली जए, म भी सती ह,ं िकसी भी दशा म म आपके
िबना जीिवत नह रहग ं ी। म िकसी अ य क भांित नह ह।ं आपके सवा म िकसी पु ष के बारे म
सोच भी नह सकती। मन से देखने का तो न ही नह उठता। अतः यह िन चत जान ली जए,
म आपके साथ ही चलूग ं ी। और िफर आप मुझे जसके अनुकूल चलने क िश ा देकर जाना
चाहते ह और जसके लए आपका रा यािभषेक रोक िदया गया है, उस भरत के आ ापालक
बनकर आप रिहएगा, म नह रहग ं ी। अतः आपका मुझे छोड कर वन क ओर थान करना
िकसी भी कार उिचत नह है। िफर चाहे आप तप या कर, रा य कर, वन म रह या वग म
रह, म सभी जगह आपक िचरसंिगनी बनकर रहग ं ी। आप वन म प के िबछौने पर सोएंगे और
म यहां ग ेदार शैया पर सोऊंगी‒मुझे न द आएगी? आप वहां क दमूल फल खाएंगे और म यहां
छ ीस पकवान खा सकूं गी? एक भी कौर मेरे मुंह म जा सकेगा? आप वहां सरकंड के कांटेदार
माग पर चलगे, यहां म रथ पर भला िवहार कर सकती ह? ं कदािप नह , नाथ! कदािप नह । हे
नाथ! च ड आंधी से उड ी धूल भी मुझे आपके साथ च दन-सी लगेगी। म स य कहती हं िक
िकसी भी कार आपके माग म अवरोध नह बनूग ं ी‒केवल आप मुझे साथ ले च लए। म आपक
छाया क तरह चुपचाप चलती रहग ं ी। आपको मुझसे कोई क नह होगा। मेरा कोई भी ितकू ल
यवहार आप वहां नह देखगे। यह बालपन म अथवा भूल से यिद कोई हठकारी भी है तो वन म
िबलकु ल आपक अनुगािमनी आ ाका रणी ही रहग ं ी। आपके साथ जहां भी रहना पड े, मेरे
लए वही थान वग होगा।’’
यह कहते-कहते सीता के अ ुजल बह िनकले। राम से िफर भी कोई सां वना नह िमली तो
सीता यह कहते-कहते अचेत सी हो गई।ं
यह देखकर राम का ढ - प िपघल-सा गया, वे बोले, “उठो सीते! ि य उठो! तु ह दःु ख
देकर मुझे भी वग या सुख देगा? नह ि ये! म भी तु हारे िबना अधूरा ही तो रहग ं ा। यिद तुम
इतना हठ कर रही हो तो मुझे तु हारा अपने साथ चलना वीकार है। यिद तु हारी िनयित भी मेरी
भांित ही वन क है तो म इसम या कर सकता ह।ं म तो यह चाहता था िक िकसी कार म तो
वन का जीवन काट लूग ं ा, तु ह या क दं ू पर यह तो नह चाहता िक तुम यहां क पाओ।
और िफर म तु ह क पहच ं ाने के लए तो यहां नह छोड ना चाह रहा था। तु हारी कोमलता
को देखकर चाहता था िक वह कठोर जीवन तुम कैसे झेल पाओगी, लेिकन यिद तुम इतना सब
सहने के लए तैयार हो तो ि ये, िनःशंक होकर यह कहता ह,ं तुम मेरे साथ चल सकती हो।
िपता के वचन क र ा के लए वन तो मुझको जाना है, य िक िपता और माता के अधीन रहना
पु का धम है। ठीक है म अपना धम िनबाहग ं ा, तुम अपना धम िनबाहो। अब मने तु हारी
ढ ता देखकर अपना िवचार बदल लया है, मेरी आ ा है, तुम मेरे साथ ही चलो। और अब
य िक हम दोन चल रहे ह। अतः वनवास के यो य दान, धम आिद कम पूरे करो। देखो, ये
सभी काय शी करो। ा ण को अपनी सभी उ म व तुएं दान कर दो। िभ ुओं को भोजन करा
दो और जो साम ी बचे, उसे सेवक को दान कर दो।”
सीता ने जब राम का यह मन जाना िक वे उ ह अपने साथ ले जा रहे ह तो उनक स ता क
कोई सीमा न रही। उ ह भावाकु ल होकर राम के चरण छू लये और राम ने उ ह बीच म ही
रोककर अपने अंक से लगा लया।
“लो ि ये! अपनी तैयारी पूरी करके अपना धमपालन करो, हमने तु हारी बात मान ली।”
सीता के लए यह मुंहमांगी मुराद के समान था। उ ह ने हठ क थी, अपने पित त धम का
वा ता भी िदया, िक तु इतने पर भी यह िव वास इतना बल नह था और यह भी तो सच था िक
एक सती ी क मन क अिभलाषा अछू ती रह कैसे सकती थी?
अतः यह जानकर िक वामी ने मेरा जाना वीकार कर लया है, वे अ य त स हई ं और
शी तापूवक सब व तुओं का दान करने म लग गई।ं
सीता को दान देते स होते व देख ल मण अचरज म पड गए। वे अभी-अभी तो भाई
राम से िमलने उनके महल म आए थे। सीता साथ जा रही ह, यह देख ल मण क आंख म आंसू
आ गए।
अब ल मण ने राम के पांव पकड कर िनवेदन करते हए कहा, “हे कृपािनधान! यिद आपने
वन म जाना िन चत कर ही लया है तो यह जान ली जए िक आपसे रिहत इस अयो या म
आपका यह सेवक कभी नह रहेगा। अतः इस सेवक को भी साथ ले चलने क आ ा क जए।”
“तुम यह या कह रहे हो ल मण? भला िपताजी, माताएं या सोचगे? मेरे पीछे उनका यान
कौन रखेगा?”
“वही आपका अनुज भरत!”
“नह ल मण! ऐसा मत कहो, तु ह यह माता और िपता क सेवा म रहना है।”
“कदािप नह भैया!”
“तुम तो मेरे आ ाकारी, नेही, धमपरायण, धीर-वीर तथा सदा स माग म थत रहने वाले
भाई हो, तुम ऐसी अव ा करोगे?”
“म अव ा नह कर रहा भैया, अपने मन क यथा कह रहा ह।ं जब सखा और अनुचर मानते
हो तो िफर य कर अपने से अलग कर रहे हो।”
“नह , अलग नह कर रहा, दािय व बांट रहा ह।ं भरत रा य पाकर यिद रानी कैकेयी के
अधीन हो गया तो मां कौश या और सुिम ा का यान कौन रखेगा?”
“श ु न, वह मेरा छोटा भाई है। मुझे उस पर पूरा भरोसा है और िफर म यहां रह गया तो भरत
के अधीन म संयत नह रह पाऊंगा। अतः आप मुझे अपना अनुगामी बना ली जए भैया!
मेरे वन जाने से आपक धम-हािन नह होगी, ब क म आपके वनवास काल म सहायक ही
स होऊंगा।”
“म जानता हं ल मण! तुम सदा ही मेरे दािहने हाथ रहे हो और म वयं भी तु हारे िबना रह
सकता ह‒
ं या तुम इसक क पना कर सकते हो?”
“तो िफर आप मुझे अपने साथ ले चलने म संकोच य कर रहे हो? जब आप िवदेहकु मार
के साथ पवत िशखर पर मण करगे, वहां आप जागते ह या सोते, म हर समय आपक सेवा
करते हए आपके सभी आव यक काय पूण क ं गा।”
“तो ठीक है भैया! जाओ, माता से आ ा ले लो और पूछ लो उिमला से, जसे तु हारी
अनुप थित म यहां ल बी अव ध िकतनी ासदायी लगेगी।’’
और तब सीता ने कहा, “हां ल मण! यह िवचार तो तु ह करना ही होगा।”
“भाभी! यह अिभशाप जो माता कैकेयी ने हम सबको एक साथ परोसा है, उसका एक िह सा
तो उिमला को भी सहना ही पड ेगा। चय त तो हम सभी को धारण करना है, साथ रहकर
आप भी इसी त का पालन करगी तो उिमला या इतनी कमजोर है िक यह अव ध सह नह
पाएगी। नह भाभी! वह मेरी प नी है, मेरा िव वास है, वह मेरा ल य, मेरा संक प िडगने नह
देगी। मेरी आ था उसी के बल पर बलवती है। हां, मां सुिम ा से िवदा लेने म उतनी किठनाई नह
है, जतनी मां कौश या के सामने जाने म अनुभव कर रहा ह।ं ”
राम ने कहा, “अब यह तु हारा काम है ल मण! मेरे साथ चलने म मेरी वीकृित है, िक तु
माताओं से आ ा तु ह वयं लेनी है।”
माताएं या मना करत , ढ िन चयी यि के इराद को कोई बदल सका है या? राम-
सीता और ल मण तीन ही वनगमन के लए तैयार हो गए।
“ल मण! तुम वन के लए तैयार हो गए। तुम धम ती हो, म मानती ह,ं िक तु उिमला से िबना
िमले जाओगे? एक बार उससे िमल लो। िबना उससे िवदा लये या तुम चौदह वष क अव ध
काट सकोगे?”
“नह भाभी! म जानता हं िक उससे िबना िमले म नह जाऊंगा, लेिकन साहस जुटा रहा हं
उससे िमलने का।”
“साहस जुटाने क आव यकता नह है व स!” पीछे खड ी माता कौश या ने ल मण से
कहा, “जाओ, उससे िवदा लो और यिद वह भी जाना चाहे तो उसे भी साथ ले जाओ। यह मेरा
आदेश है।”
मन म संकोच और आशंका तथा लंबी अव ध का न सही, कु छ तो यवधान था माग का।
कल तक जो उ ास एक नएपन के लए पैदा हआ था, वह दसरे
ू नएपन के अवसाद म
प रवितत हो गया।
ल मण का संकोच यही था िक वे कैसे कह पाएंगे उिमला से िक वे वन जा रहे ह, भाभी और
भाई क सेवा के लए और उिमला को यह अयो या म रहकर उसक ती ा करनी होगी।
िकतना कठोर दंड है!
िक तु यहां तो सभी िनरपराधी दंड भोगने के लए अिभश ह।
यह सोचते-सोचते ल मण के पैर कब उिमला के क म पहच ं गए, उ ह भान ही नह हआ।
महल म हवा से िहलती एक परछाई ं झरोख के पास िदखाई दी। यही उिमला थी, जो एक त भ
के सहारे खड ी थी। यह कहना मु कल था िक वह त भ उिमला के सहारे खड ा था या
उिमला त भ के सहारे । यह भी नह कहा जा सकता था िक आंसू उिमला क आंख से बह रहे थे
या िफर त भ से कोई ोत फूट पड ा था।
पीछे से जाकर ल मण ने उिमला के कंधे पकड ते हए उसे अपनी ओर घुमाते हए कहा‒
“तु ह सारी कहानी मालूम है उिमला!”
“जानती ह।ं तब से जानती ह,ं जब आप पु प वािटका म िमले थे और यह िबना जाने िक कोई
आपको देख भी रहा है, फूल लेकर लौट गए थे अपने भैया के साथ। आज भी आप अपने भाई
के साथ जा रहे ह।”
“म यह कहने आया हं िक तुम मेरे साथ चल सकती हो।”
“यह माता कौश या का आदेश है?”
“नह , म तुमसे िमलने आया ह।ं ”
“आ ा लेने के लए?”
“हां उिमला! आ ा लेने आया ह।ं ”
“दीदी ने भेजा है?”
“ या ोध क मु ा म हो?”
“मुझे कभी ोध आया है?”
“तो िफर इतनी उखड ी-उखड ी य लग रही हो?”
“आप संयत ह?”
“नह , म तो नह ह।ं ”
“ या थितयां सामा य ह?”
“नह , तुम जानती हो िक यह सब प रवतन िकस कु च का संकेत है और िह सा है?”
“जानती भी ह,ं महसूस भी कर रही हं और देख भी रही ह।ं आप यहां आए ह और चौदह वष
के लए िवदा लेने के लए आए ह तो ऐसा कु छ तो दे जाइए, तािक म उन अिव मरणीय याद
को अपनी अंजु ल म सहेजकर कोई व न देखती हई जीवन क आक मक घनेरी रात को तार
से बात करते हए गुजार सकूं ।”
उिमला क यह बात सुनकर ल मण का संयम डोल गया। तपते अधर आकु ल अधर से बात
करने लगे। यासी आंख इ छत अिभलाषाओं को बांधने लग और गम सांस आलोिड त
हवाओं का साथ देने लग । उन दोन को ही यह ान नह रहा िक बाहर भीषण दन और चीख-
िच ाहट के बीच कोई िपता अंितम याण कर जाना चाहता है, कोई पु ित ा का शव ढोना
चाहता है और कोई प नी अपने वरदान को समय रहते भुना लेना चाहती है और कोई मां अब भी
कत य क ब लवेदी पर धीरज और साहस क ितमूित, सहनशीलता और सहजता का नया
उदाहरण बन रही है।
यह कु छ ण आक मक नह थे, िक तु योजनाब भी नह थे। यथाथ के वीकार म सहज
व तुगत ि ने यह थित उपल ध कराई थी। कु छ पल बाद उिमला ने ल मण के चरण छू ते हए
उस चरण धूली को अपनी मांग म भरकर कहा‒
“जाइए नाथ! म एक जलती लौ क तरह आपक ती ा क ं गी और दीए का तेल सूखने
नह दग
ं ू ी।”
ण-भर के लए ल मण अवाक् रह गए।
“तुम मेरे साथ चलने क हठ नह करोगी?”
“अ ासंिगक बात को आप इस समय य उठाना चाहते ह ि य! म उन ना रय म से ह,ं जो
समय क शि और सीमा को पहचानती ह। म जानती हं िक आप मुझे ले जाने के थित म नह
ह। म केवल इस लए आप पर दबाव डालूं िक बहन सीता जा रही ह? नह नाथ! नह । ी का
जीवन पाने और खोने के संतुलन के बीच झूलता है। पाना और खोना उतना मह वपूण नह है,
जतनी मह वपूण वे बात होती ह, जनके लए हम पाते और खोते ह। आप मेरे पित ह, मेरे ेमी
ह, मेरे समिपत ह। यह मुझसे अ धक और कौन जान सकता है तो या इस लए म आपके
कत य-माग क बाधा बनूग ं ी? नह , म सहधिमणी ह।ं म आपके साथ-साथ अपना कत य भी
जानती ह।ं म जानती ह,ं जीवन म भावना के साथ-साथ दािय व का भी मह व होता है और कई
बार दािय व भावना से बड ा हो जाता है।
माता कौश या, ज ह ने जीवनपय त तप या क है, वे पित से हमेशा दरू रही ह और आज
उनका पित‒हमारे महाराज दशरथ, मृ यु के मुख म जा रहे ह और एक इकलौता पु चौदह वष
के लए वन जा रहा है। नाथ! आप भाई और भाभी क सेवा म जा रहे ह। मुझे लगता है, मेरी
कमभूिम अयो या है, और आपक कमभूिम वन। मुझे यह रहकर माता कौश या और सुिम ा क
सेवा करनी है। इस तरह म आप ही के ल य को पूरा क ं गी।”
ल मण ने एक बार िफर उिमला के उ ी मुखमंडल पर ि पात करते हए उस नारी को
अपने भुजदंड म जकड ते हए कहा‒
“तुम ध य हो उिमला! मुझे तुम पर गव है। अब म संतोष के साथ वन जा सकता हं और
दािय व िनभा सकता ह।ं ”
“ल मण!”
“कौन भाभी! आओ।” कहते हए ल मण ने उिमला से अलग होते भाभी सीता के क म आने
के लए वातावरण बनाया।
“आओ दीदी!” उिमला ने कहा।
दोन बहन एक-दसरे
ू से गले िमलकर रो पड । कहने के लए कु छ नह था। केवल एक
शू य था, जसे समयव ध ने गहरा बना िदया था।
अपने मन क गहन हलचल को रोककर उिमला कु छ ण के लए मौन हो गई। वा तव म
उस समय जब कह सकने वाला यि मौन साधकर बैठ चुका था, उसे बा यताओं क अगला ने
जकड लया था और ये पु होने के नाते राम के सामने िपता क आ ा के पालन के
अित र कोई दसराू िवक प नह था, य िक मयादा सव प र चीज थी और इसी कारण कु लगु
व स भी लाचार थे। इस सम या का समाधान महाराज दशरथ के बाद जस यि के पास था,
वह भरत था और वही अनुप थत थे। बाक सभी अकारण उप थत होने वाले अिभशाप से त
थे।
सीता उिमला क यह दशा जानती थ , इस लए वे कु छ देर अपनी गोद म उिमला को समेटे
उसक पीठ पर हाथ फेरती रह ।
अचानक फूट पड ी उिमला ने कहा‒
“दीदी! िववाह के बाद पहली बार तु हारे इस पश ने मां क याद िदला दी और तुम भी अब
लंबे समय के लए जा रही हो। म िकतना रोकूं गी मन को? िकतना समेटूंगी अपने आपको?
िकतनी सीिमत हो जाऊंगी म और मेरा क ?”
और िफर कु छ सोचकर उिमला ने अपने जूड े से एक फूल िनकाला और बहन सीता को
देते हए कहा‒
“दीदी! म अपनी ओर से तु ह यह फूल दे रही ह।ं ”
और इसके बाद उिमला पलटकर पीछे लौट गई। उसम न ल मण क ओर देखने का साहस था
और न ही सीता क ओर।
वृ के नीचे बैठी सीता आज इतने वष ं बाद उस िवरह वेदना को उसी धरातल पर अनुभव
करने क थित म आई थ । आज वह भी अकेली ह, पितिवहीना ह। वे सोचती है िक उिमला का
िवरह चौदह वष तक सीिमत था, लेिकन उनका तो असीिमत है और वे सोच रही थ , रानी
कैकेयी के च र को याद करके िक उस समय इस देवी को या चंडी चढ ी थी? या हआ
था?
“आह! िकतनी कठोर हो गई थी माता कैकेयी उस समय!”
दान आिद सारे पु य कम करने के बाद जब राम व कल चीर धारण कर वन जाने क
अनुमित मांगने के लए अंितम बार िपता महाराज दशरथ के स मुख गए, वे उस समय अचेत थे।
सुमं ने ही महाराज को बताया िक उनके पु राम और ल मण सीता सिहत वन के लए
आपसे आ ा मांगने आए ह।
महाराज दशरथ क वह आकु ल दशा िकसी से भी देखी नह जा रही थी।
वयं राम-ल मण भी सीता सिहत रो पड े थे िक तु उनक िवकलता देखकर रानी कैकेयी
अब भी उसी कार ढ खड ी थ ।
“महाराज! आप हम लोग के वामी ह, म द डकार य जा रहा ह।ं आप आशीवाद द िक
अव ध पूण होने पर मुझे िफर आपक सेवा का अवसर ा हो”
“मेरे साथ ल मण और सीता भी जा रहे ह िपताजी!”
महाराज दशरथ ने रा यािभषेक के लए तैयार अपने पु को जब वन के लए व कल चीर
धारण करे देखा तो उनका मन िबलख उठा।
लेिकन रानी कैकेयी ने जब सीता को चीर धारण करने के लए िदए, यह देख महिष व स
क आंख म भी आंसू आ गए और उ ह ने कहा‒
“शील का प र याग करने वाली द ु े! देवी सीता वन म नह जाएंगी। राम के लए तुत
संहासन पर अब ये बैठगी। तू तो कैकेय राज के यहां ज मी जीता-जागता कलंक है। महाराज
को छलकर भी तू शांत नह हई। तूने कु ल-मयादा सब कु छ भुला िदए। तू नह जानती िक तेरा
पु भरत, जसके लए तूने रा य मांगा है, तुझे ही आकर ध कारे गा। यिद िवदेहनंिदनी सीता राम
के साथ वन म जाएंगी तो हम सब वन म जाएंग।े सारी जा वन म जाएगी। भरत, श ु न भी
व कल चीर धारण कर राम क सेवा करगे। तब तू अकेली इस सूनी पृ वी पर रा य करना।
याद रख, ी कु ल क मयादा होती है और तू दरु ाचा रणी कु ल का नाश करने पर तुली है। म
कहता हं िक यिद भरत वा तव म महाराज दशरथ के पु ह तो िपता के स तापूवक िदए िबना
इस रा य को कभी नह लेना चाहगे। तू पृ वी छोड कर आसमान म उड जाए तो भी भरत
अपने िपता के कु ल के िव आचरण नह करगे। तूने अपने पु का ि य करने क इ छा से
वा तव म उसका अि य िकया है। तू यह भूल गई िक सीता तेरी भी पु वधू है और तेरी पु वधू
मांडवी क बड ी बहन भी है। इसके शरीर से व कल हटाकर इसे उ म राजसी व पहनने के
लए दे। तूने वनवास राम के लए मांगा है, सीता के लए नह । यह राजकु मारी व ाभूषण से
स जत पूरे ृग ं ार के साथ राम के साथ वन जाएगी।”
महिष व स के कहने के बाद भी सीता ने अपने पित के समान ही व कल धारण िकए तो
चार ओर से ‘दशरथ तु ह ध कार है’ क आवाज आने लग , तो दशरथ ने भी गम सांस
ख चकर कैकेयी से कहा‒
“रानी! महिष ठीक कहते ह। यह सुकुमारी बा लका है। कु श चीर पहनकर यह वन जाने यो य
नह है। यह जानक इसी प म वन जाएगी।”
लेिकन सीता ने माता कैकेयी के ारा तािवत वे व धारण करते हए महाराज दशरथ से
कहा‒
“िपताजी! आप इसके लए संताप न कर। जस हाल म पित रहते ह, प नी के लए भी वही
अपेि त होता है। मेरे पित मुिन वेश म रह तो राजसी व म कैसे धारण कर सकती ह?
ं मुझे तो
आपके पु का ही अनुसरण और अनुगमन करना है।”
अब दशरथ के पास कहने के लए कु छ भी नह रह गया था।
राम और ल मण के साथ सीता ने महाराज दशरथ क प र मा क , उनको णाम िकया,
माताओं को णाम िकया, महिष व स से आशीवाद लया और महाराज के आदेश पर ही
वनवासी हए राम, सीता और ल मण सुमं के साथ उस रथ पर बैठ गए, जो उ ह भर ाज मुिन
के आ म तक छोड कर आएगा।
वृ के नीचे बैठी हई सीता उदासमना होकर सोच रही थ , ‘िकतना दा ण य था वह। सभी
नर-नारी अपना घर- ार छोड कर िबलखते-चीखते उनके साथ हो लये थे। कोई भी इस बात
को वीकार करने के लए तैयार नह था िक वे राम के िबना अयो या म रहगे,
राम के ित यह जग-भावना का दशन ही शायद रानी कैकेयी के मन म यह भय पैदा कर
गया हो िक यिद राम अयो या म रहते ह तो भरत िन कंटक रा य नह कर पाएगा।
तमसा के िकनारे जाकर जब राम का रथ का तो उ ह ने सभी नर-ना रय से िनवेदन िकया
िक वे अयो या लौट जाएं, लेिकन उनम से कोई भी लौटने को तैयार नह था।
सूया त हो जाने पर सुमं ने घोड को लाकर बांध िदया और सं या उपासना करके राम
और ल मण के साथ सीता के शयन क यव था क ।
तमसा के तट पर वृ के प से बनी वह शैया देखकर राम, ल मण और सीता उस पर बैठे।
माग क थकान के कारण राम और सीता सो गए, लेिकन ल मण रात-भर जागते रहे।
ातः राम शी ही पौ फटने से पहले उठ गए। उ ह डर था िक यिद पुरवासी उठ गए तो वे
िफर हमारे साथ चलगे। अतः उ ह ने सुमं से कहा‒
“हे वीर! तुम रथ तैयार करो। हम अभी इसी समय नदी के पार जाना है।”
आदेश क देर थी, रथ तैयार हो गया। राम, ल मण और सीता उस रथ पर बैठ गए और
ती गित से बहने वाली भवर से भरी वह तमसा नदी उ ह ने रथ से पार क ।
नदी के पार पहच
ं ने पर राम ने कहा‒
“हे सारथी! हम यह उतार दो और तुम अपने रथ को उ र िदशा क ओर ले जाओ। कु छ देर
बाद उसे दसरे
ू माग से लौटाकर िफर यह ले आओ। इस तरह पुरवा सय को हमारे गमन क
िदशा का बोध नह होगा, वरना ये लोग बहत अ धक दख
ु ी ह गे। कहां तक जाएंगे हमारे साथ!”
और इस तरह चौदह वष के लए छू ट गई यह अयो या। िकसी को िकसी का समाचार नह
िमला। या गित है संसार क !
िच कू ट म सीता
ंगवेरपुर म िनषादराज गुह से स मािनत और आित य पाए राम, सीता और ल मण ने वहां
नदी के तट पर एक राि िव ाम िकया।
राजा गुह के कहने पर भी राम ने घास-फूस के आसन पर सोना वीकार िकया, य िक अब
वे वनवासी थे।
सीता को तृण शैया पर िवराजमान देखकर गुह क आंख म आंसू आ गए। वह देख रहा था
िक एक कु लवधू जो ऐ वयशाली िबछौन पर सोने क अ धका रणी थी, िकस कार भा यच
से अिभश हई आज तृण क शैया पर िवराजमान है।
सीता के मुख पर इस शैया पर सोते समय जो आ मगौरव और सुख झलक रहा था, वह
अतुलनीय था। रात बीत गई, ातः काल हआ, पि य का कलरव होने लगा। राम ने सुमं को
यहां से अयो या लौटने के लए कहा।
सुमं क तो अिभलाषा यह थी िक वह यह , म के साथ ही शेष जीवन वन म काट दे और
अव ध समा हो जाने पर इसी रथ पर बैठाकर उ ह अयो यापुरी ले जाए। इस लए राम ने
िनषादराज गुह ारा तािवत नौका पर पहले सीता को िबठाया और िफर ल मण सिहत उस पर
चढ गए। नाव आगे बढ गई, राजा गुह और सुमं पीछे छू ट गए।
नदी पार करने के बाद जब सीता सिहत राम और ल मण ने भूिम पर पैर रखे तो यह उनका
अपने जनपद से बाहर पहला कदम था। यह देश अयो या जनपद क सीमा से बाहर है। यह
देखते हए राम ने ल मण से कहा‒
“ि य भाई! तुम हम यहां तक छोड ने आए, इतना काफ है। अब तुम कल यहां से अयो या
लौट जाओ। सीता के साथ अब म अकेला ही दंडक वन जाऊंगा।”
ल मण को वापस अयो या भेजना, जतना कहना सरल था, उतना भेजना नह । अतः राम को
यह वीकार करना ही पड ा िक अब वे तीन ही वन चलगे। यह सोचते हए सीता को साथ
लये राम आगे एक वटवृ के नीचे बैठ गए। ल मण ने वयं इस वृ के नीचे सु दर शैया का
िनमाण िकया था और यह राि उ ह ने यह यतीत क ।
इससे आगे चलते हए राम महिष भर ाज के आ म म पहच
ं े।
महिष को देखते ही तीन ने उनके चरण म णाम िकया और उ ह बताया‒
“हे भगवन्! हम दोन महाराज दशरथ के पु राम और ल मण ह और यह मेरी प नी सती
सा वी सीता ह, जो इस िनजन तपोवन म भी मेरा साथ देने के लए आई ह।”
“म इस आ म पर िचरकाल से तु हारी ती ा कर रहा ह।ं मने सुना है िक तु ह अकारण ही
वनवास दे िदया गया है। यह एका त थान है और बड ा पिव व मनोरम है। तुम यहां
सुखपूवक िनवास कर सकते हो।”
“लेिकन महिष! यह हमारे जनपद के समीप होने के कारण सुखदायी नह रहेगा, य िक यिद
नाग रक को यह ात हो गया िक म यहां हं तो हम देखने के लए वे ायः आते-जाते रहगे।
अतः थायी िनवास के लए तो हम दसरा
ू ही थान देखना होगा।”
महिष भर ाज से आित य हण करने पर ये लोग समीप ही िच कू ट पवत के लए आगे
बढ गए। यहां यमुना नदी को वृ क टहनी काटकर बनाए गए बेड े से ये लोग दि ण तट
पर पहच
ं गए। बेड ा वह छोड िदया। यहां राम ने सीता को ल मण के साथ आगे भेज िदया
और वे वयं धनुष धारण िकए हए उनक र ा करते हए चलने लगे।
इस देश म आई सीता पूरे देश से अप रिचत थ । अतः एक-एक वृ , झाड ी और पु प
शोिभत लताओं को देखकर उनके बारे म जानती हई चलने लग । रे त पर चलती हई सीता
अ य त स थ । राम के साथ गम रे त होने पर भी वे थक नह थ और न ही मुख पर िकसी
कार का अवसाद था।
यहां एक राि वृ के नीचे िव ाम करने के बाद अगले िदन ल मण क सहायता से राम ने
एक सु दर कु िटया का िनमाण कर लया और वे कु छ समय के लए यहां रहने लगे।
िच कू ट पवत राम को तो ि य था ही ार भ से ही ि य था, लेिकन िवदेहराज-क या सीता ने
भी इस सुर य थान को अपने हाथ से लीप-पोतकर और अ धक आकषक बना लया। अब वे
लोग यहां पूरी तरह रम गए थे।
य िप यहां रहते हए कई बार राम के मन म यह िवचार आया िक वे रा य- हो गए ह।
उ ह अपने िहतैिषय और ि यजन से िवलग होकर रहना पड रहा है, लेिकन इस वातावरण म
भी जब वे अपने आपको ल मण क सेवा से संतृ अनुभव करते ह और सीता का साहचय पाते
ह तो उनका सारा लेश शा त हो जाता है।
कु िटया बनाने के बाद एक िदन इ ह रमणीय थ लय का िवहार करते समय एक ऊंचे प थर
पर बैठकर राम ने सीता से कहा‒
“देवी! म जब सामने आकाश क ओर देखता हं तो मुझे लगता है िक म रा य- हं और
यहां िनवा सत जीवन जी रहा ह,ं िक तु जब म इस पवत ण े ी को देखता ह,ं पास म बहती हई
नदी को देखता ह,ं हरे -भरे वृ , खले पु प को देखता हं तो मेरा सारा दख
ु दरू हो जाता है और
उस समय रा य का न िमलना और ि यजन का िबछोह भी मेरे मन को य थत नह करता।”
“आप सही कह रहे ह वामी! यिद हम अभाव क ओर देखते ह तो िन चय ही मन म िनराशा
पैदा होती है और साहस टू टता है, लेिकन यहां रहकर भी जब उपल धय पर ि डालते ह तो
वह हताशा िकनारे से टकराई हई लहर क तरह िफर लौट जाती है। ये पवत देख रहे ह? जहां
असं य प ी कलरव कर रहे ह। ये बार-बार आकाश क ओर जाते ह और िफर अपने वृ क
शाख पर लौट आते ह।”
“हे राम! यह िच कू ट पवत ण े ी िकतनी िविभ ताओं को लये हए है। म तो यहां जब खाली
होती हं तो इस पवतमाला को देखकर अपना मन बहला लेती ह।ं अयो या क ऊंची-ऊंची भ य
अ ा लकाओं क छत को देखने के बाद वहां के रा य अनुशासन म रहने के बाद मुझे यहां का
खुला आकाश बड ा सुखकारी लगता है। सच पूिछए नाथ! यहां आकर पहली बार मने अनुभव
िकया है िक मेरा भी अपना कोई अ त व है। अयो या म म मा एक पु वधू, एक रानी बनकर
रह गई थी और यहां म एक गृिहणी ह,ं जसके आप वामी ह और देवर ल मण मेरी जा।
दे खए, िकतनी ज दी यह पूरा देश मेरा अपना हो गया। यह िच कू ट देश िविभ धातुओं से
अलंकृत िकतना सु दर लगता है! कह चांदी क सी सफेद चमक, कह लोह क लाल आभा,
पीले और हरे रं ग क यह कृित सु दरी, कह मिणयां, कह पुखराज और कह फिटक के
समान ये फूल, िकतना नयापन दे रहे ह, िकतना अपनापन दे रहे ह। भांित-भांित के प ी, मृग
के झुड ं , या , चीते और रीछ से भरा यह देश और आपसी स ाव! हे वामी! यह सब
िकतना दल ु भ था अयो या म। ये रमणीय पवत िशखर और ये देश, जस ती ता से ेम-िमलन
क भावना को बढ ाकर आ त रक हष दान कर रहे ह, यह िकतना मनोहारी है! िक र-
िक रयां एक साथ युगल प म िवचरण करते िकतने भले लगते ह। वृ चाहे फल के ह
अथवा अ य लाभ के। ये अपनी छाया से अपनी हवा और सु दरता से येक ाणी का मन हर
रहे ह। ये िव ाधर यां अपनी मनोरम ड ा से वातावरण को िकतना संगीतमय बना रही ह।
और ये िगरते हए झरने और इनका कलकल नाद या कह अयो या म उपल ध था? छोटे-छोटे
ोत िमलकर एक बड ा कुं ड बनाते हए िकतने सु दर लग रहे ह। हे नाथ! आपके साथ इन
गुफाओं से िनकली हई पु प-गंध के बीच िवचरण करते हए मुझे नगर- याग का शोक लेशमा
भी नह है। यहां मेरा मन पूरी तरह लग गया है।”
“तुम ठीक कह रही हो जानक ! तु हारे और भाई ल मण के साथ यह देश मुझे भी बहत
अपना-सा लगने लगा है। राि म इस पवतराज के ऊपर उगी हई औष धयां अि िशखा के समान
चमकती ह।”
“यह य भी अव य देखंगू ी ि य! िकतना सु दर होगा!”
“हे ि ये जानक ! तुमने इस रमणीय थान म वयं को रचा-बसा लया है, यह जानकर मुझे
अ य त स ता हो रही है और अब मुझे लगता है िक इस वनवास ने मुझे जहां िपता क आ ा-
पालन के ऋण को पूरा करने का अवसर िदया और भरत का ि य िकया, वह मुझे इस बहाने
इस मनोरम थान के दशन का अवसर िमला और तु हारे साथ वतं एका त ण जीने के लए
िमले। यहां म भी अपनी शि और परा म से इस देश क सम याओं का िनदान और
िनराकरण कर सकूं गा।”
“मेरे लए भी तो एक गृिहणी के प म यह सुअवसर िमला है नाथ! िक म यहां एक प नी क
भूिमका सहज ही िनभा सकती ह।ं ”
इस तरह मण करते हए राम और सीता पु य स लला रमणीय मंदािकनी के िकनारे आ गए।
मंदािकनी क शोभा देखते हए सीता वयं एक हं सनी क तरह इधर से उधर उड ती,
बालुका पर ड ा करती, नाना कार के पु प के बीच से भागती-दौड ती नदी के िकनारे
आकर बैठ गई।
अपने सु दर पैर को नदी के जल से पश कराती हई वह तरं ग म गुनगुनाने लगी।
कृित तो वयं सवसाधन स प होती है। इसके बीच िवचरण करने वाला यि इसक
अलौिककता और लौिककता के बीच संतरण करता हआ सहज ही किव एवं गायक बन जाता
है, िफर सीता तो वयं भावनामयी थी।
सीता को गुनगुनाते देख एक फूल क टहनी पकड कर राम ने उनके कान के पास छु आते
हए उसम तरं ग उ प कर दी। सीता खल खला उठ और उछलकर राम के अंक म आ िगरी।
हवा के झ को से िशखाएं झूल रही थ । नदी के तट पर िबखरे हए फूल-प े इस कार उड
रहे थे मानो यह पूरा देश नृ य करने लगा हो और इस सबके साथ नदी का बहता जल शीतलता
दान कर रहा था।
सीता क पतली कमर के पास अपनी वास गंध छोड ते हए राम ने उ ह भीतर तक
आलोिड त कर िदया मानो वयं काम रित क तप या भंग करने के लए अवसर क तलाश
म वे बोले‒
“सुनो सीते! इस नदी म िन य ित िकतने ही महा मा ितिदन नान करते ह। चलो, तुम भी मेरे
साथ इस नदी म नान कर लो। हे ि ये! एक सखी दसरी ू सखी के साथ जस कार ड ा
करती है, इस मंदािकनी म उतरकर लाल और सफेद कमल को जल म डु बोती हई तुम भी जल-
ड ा करो। यहां के वन िनवा सय को पुरवासी समझ कु छ ण के लए यह मान लो िक यह
िच कू ट मानो अयो या है और मंदािकनी मानो सरयू है।”
“आप मानने क बात कर रहे ह, म अनुभव कर रही ह।ं आपके चरण जहां थत ह, मेरे लए
तो वह थान सदैव अयो या क भांित रहेगा और आपके साि य से उठने वाली दय तरं ग मुझे
सरयू का शीतल अनुभव कराती रहगी। यह िच कू ट तो मेरे लए अयो या है ही, म तो सघन
वन को भी आपके साि य म अयो या ही मानती ह।ं ”
“हे नाथ! म आपके साथ केवल भावना के कारण नह आई, अिपतु पूरी तरह िवचार करने पर
आई ह।ं संहासन और राजमुकुट के अभाव म भी मुझे आपक जा होने का जो अवसर िमला है,
वह आपक अनुप थित म अयो या म दल ु भ था नाथ!’’
अब सीता वहां से उठकर िफर तमसा के िकनारे आ गई।ं वह एकाक और िनवा सत नारी
जीवन संघष ं म राम क संिगनी रहने पर भी राम के साि य का सुख कहां पा सक ! वन देश
म रहते हए वनवास के त का पालन िकया और जब अयो या लौटी तो यह िनवासन। इस
अ तराल म केवल एक दािय व िनभाने का अवसर उसे अव य िमला है िक वह अयो या के
उ रा धकारी को ज म देगी। उसके गभ म राम का अंश पनप चुका है। अब वह िवकास क
ि या म है।
सीता ने अपने उदर भाग पर हाथ रखते हए कहा‒
“व स! तू िकतना भा यहीन है। कहां तो तुझे िपता क छ छाया म अयो या के राजमहल म
ज म लेना चािहए था और कहां तू एका त नीरव वन देश म आ गया है। तुझे भी मां के
अिभशाप का सहभागी होना पड ा है व स!
रे तू तो अपने िपता से भी अ धक भा यहीन िनकला। तेरे िपता तो स ाइस वष क आयु म
वन गए थे। इससे पहले उनका सारा लालन-पालन, अ ययन, िश ा-दी ा, िवकास राज- ासाद
म हआ। वे तो केवल चौदह वष वन म रहे, िक तु तेरा तो ज म भी राज- ासाद से दरू घने वन
म होगा।”
यह सोचते हए सीता क आंख म आंसू आ गए। सब कु छ अचानक घिटत हो गया। अभी वे
राजमहल के सुख को अपने आंचल म समेट भी नह पाई थ िक उ ह िन कासन का दंड िमल
गया।
वे आज सोचती ह...राम का वनवास उनक अपनी इ छा नह थी, माता कैकेयी के वचन क
बा यता ने उ ह वन जाने के लए बा य िकया और वन म उनका आपहरण, उसक एक भूल का
प रणाम अव य था, लेिकन इसम दोष भा य का भी तो है उनका दोष कहां? रावण के घर म वह
रह अव य, लेिकन राम क मृितय क छ छाया म रह , एक ितनके के सहारे रह , िफर भी
उ ह अि -परी ा से गुजरना पड ा।
यह अि -परी ा यि गत होकर रह गई। समाज ने उनका िव वास नह िकया और इसी लए
उनके बारे म अपवाद फैल गया और राम ने िबना उ ह िव वास म लये ल मण के हाथ
िन का सत करा िदया।
सीता नदी के जल म अपनी िहलती-डु लती परछाई ं देखते हए सोच रही थ , यह उसका
अपमान है, वह या करे गी? पित ने उसे जस िबंद ु पर आकर छोड ा है, अब वह इस जीवन
को कौन-सी िदशा देगी। सब कु छ अंधकार के गत म िछपा था। उसके सामने सबसे बड ा न
था, वल त न‒वह अपने िन कासन का या कारण देगी? कैसे संतु करे गी ा य समाज
को िक वह आज भी पूरी तरह पिव है।’
अब सीता के सामने पंचवटी क ध गई।
िच कू ट म भरत ने राम से िमलकर अपना प िबलकु ल साफ प कर िदया था और कह
िदया था िक राजा राम ही ह, वह रहगे। मां के इस ताव म उनका कोई हाथ नह है।
िच कू ट म ही अपनी िवशाल सेना के साथ, माताओं के लये भरत राम को अयो या लौटाने
आए थे, लेिकन राम तो ढ ित थे। उ ह ने प अ वीकार कर िदया। वे तो िपता के
आदेश का पालन करते हए चौदह वष पूरे होने पर ही वन से लौटगे। इस लए िनराश, अकेले
राम के आदेश को वीकार करते हए भरत वणजिडत खड ाऊं पर राम के चरण िच लेकर,
उ ह के संर ण म रा य के संचालन का त लेकर लौट गए थे।
हां, िच कू ट म एक सुखकारी घटना अव य हई। कु छ ण के लए उिमला और ल मण का
िमलन हो गया।
यह भी कैसा संयोग था िक जब महिष व स राम को लौटने के लए समझा रहे थे, माताएं
उसी सभा म िवचार के लए उप थत थ , कन खय के संकेत से सीता ने ल मण को बुलाकर
कु िटया से कु छ लाने का आदेश िदया। पूव योजना के अनुसार ि य िवरह म ितल-ितल जलती
दीपिशखा-सी उिमला कु िटया म िव मान थी।
य ही ल मण ने कु िटया म अपने कदम भीतर रखे, सामने उिमला को देखकर इस
अ यािशत िमलन से वे अपनी भावना को काबू म न रख सके और यासे िहरण क तरह
उसक आंख म आंख डालकर िबना ह ठ खोले सब कु छ कह िदया। इतने िदन का गुजारा हआ
अकेलापन सूरज क धूप से िपघली बफ क तरह बह गया।
िकतना सुख िमला सीता को दो िवरही आ माओं को िमलाने से और इसके बाद एक लंबा
अ तराल।
अब राम ने भरत के अयो या लौटने के बाद वह थान भी िनरापद न जानकर आगे क ओर
थान का मन बना लया। अब वे और आगे दि ण क ओर बढ गए।
राम और ल मण सीता के साथ दि ण िदशा क ओर बढ ते जा रहे थे और सीता बार-बार
उह य के बीच घूमती हई अपनी ि को उसी पणकु टी पर के त रखे चल रही थ । अभी
कल ही तो लौटे ह भरत।
माता कौश या, सुिम ा और कैकेयी तीन माताएं भी तो साथ थ , लेिकन जब कौश या ने
सीता को देखा तो उनक आंख उसी तरह बरस पड मानो सावन बदली के छा जाने पर धरती
का पोर-पोर िभगो देता है। सीता अनुभव कर रही थ मां के दय से िनकली हक, वह िववश
हक, जसम कु छ न कर पाने क िववशता आंसुओं के वाह को और बढ ा रही थी।
“ या आ चय है।” माग म सीता ने राम से कहा‒
“तीन माताएं आई,ं कैकेयी ने तो आपसे लौटने के लए कहा भी, िक तु माता कौश या ने
एक बार भी आपसे लौटने के लए नह कहा। आप इसका कारण बता सकते ह नाथ?”
“हां सीते! कारण प है‒यिद मां कौश या मुझसे कहत िक पु ! अयो या लौट चलो,
तु हारा रा य तु हारी ती ा कर रहा है तो मां का दजा िपता से अ धक मा य है, मेरे स मुख
लौटने के अित र कोई िवक प नह था सीते! लेिकन म जानता था िक मां नह कहगी, य िक
वे इस रघुकुल क सा ा ी ह, वे कु ल क मयादा जानती ह। वे आ ममोह म कत य और मयादा
का होम नह करगी और उ ह ने ऐसा नह िकया, यही उनक शि है। इस तरह एक बार िफर
उ ह ने रघुकुल क रानी होने का दािय व िनभाया। सीते! तुम या सोचती हो िक मुझे लौट जाना
चािहए था?”
“भर ाज मुिन के आ म से पहले तो म यही सोचती थी, लेिकन जब से भर ाज मुिन से भट
हई और उ ह ने इस वनवास को आपक कमभूिम बताया है तो मेरा म तक और ऊंचा हो गया है।
मुझे आपक धमप नी बनने का सौभा य ा हआ, इससे मेरा गौरव बढ ा है। यह अयो या
केवल मा रा य नह , ब क रा रा य है नाथ! और आप इसके सवमा य स ाट ह। यह
आपक कमभूिम है, यह वास करते हए आप शरभंग मुिन के आ म म पहच ं कर, उनसे िदशा
ा करके, यहां अनेक थान पर वास करते हए आतंकवादी गितिव धय को समूल न करके
शा त का वातावरण थािपत करगे। वनवासी जन को, जो िक हमारी ही जा है, उनक र ा
करने का दािय व भी हमारा है। इस लए यहां भी आप एक ि याशील राजा क ही भूिमका
िनभाएंग।े ”
इस तरह वातालाप करते, सम याओं पर िवचार िव लेषण करते ये वनवासी शरभंग मुिन के
आ म क ओर बढ गए।
सीता-हरण
मृितय क धारा म बहती हई सीता कब मौन हो गई, उ ह ात ही नह रहा। आकाश म सूय
अपनी र मय को समेट रहे थे और सीता माग खोजती एकाक पथ पर आ य क तलाश म
चलती जा रही थी, िवचार क नाव पर सवार। सामने धवल केशधारी सौ य सुशील, कृित से
उदार एक महामना तप वी आते िदखाई पड े।
“तुम कौन हो पु ी? एक सा वी के प म तुम यहां!”
य ही सीता ने मुिन को णाम क मु ा म सर नीचे झुकाया, मुिन ने उ ह आशीवाद देते हए
कहा‒
“तुम अव य ही महाराज दशरथ क पु वधू और राजा जनक क पु ी महाराज राम क
पटरानी सीता हो। तु हारा वागत है पु ी! जब तुम यहां आ रही थ , तभी अपनी धम-समा ध के
ारा मुझे यह ात हो गया िक तु हारा प र याग िकया गया है और उसके कारण मने मन से ही
जान लये।
हे पु ी! इस संसार म जो कु छ हो रहा है, वह मुझे िविदत है। अब तुम िन चत हो जाओ। इस
समय तुम मेरे पास हो।” और सीता महिष वा मीिक के साथ-साथ उनके आ म म चली आई।ं
उ ह आ म म अनेक तापसी यां िमल । वे सब तप या म संल थ । सीता को पाकर
उ ह ने उ ह अपनी बेटी के समान मानते हए उनका वागत िकया।
महिष ने सीता को अ य देते हए कहा‒
“इसे हण करो पु ी और िनभय हो जाओ। अब तुम अपने ही घर म आ गई हो, यह मानकर
िकसी कार का लेश अनुभव मत करो। तु ह तो अयो या के कु लवंशी को ज म देना है पु ी!”
सीता के लए भी अब उस आ म म एक कु िटया िनयत कर दी गई।
महिष ने आ मवा सय को यह प कर िदया िक महाराज राम क धमप नी सीता िन पाप
होने पर भी प र याग क गई,ं आज यहां हमारे स मुख ह। अब मुझे ही इनका लालन-पालन
करना है। अतः आप सब इन पर अपनी नेह ि बनाए रख।
मुिन ने सीता को िन पाप कहकर उनका जो स मान िकया, इससे वे कु छ ण के लए अपने
आ त रक दख ु से उबर गई ं लेिकन उनके अतीत अकम क उ ह यह सजा िमली है।
सीता िफर मृितय म खो गई।ं
शरभंग मुिन के आ म से चलकर राम और ल मण के साथ ये लोग सुती ण मुिन के आ म
म पहच
ं े। िकतनी दरू का माग तय करके अगाध जल निदय को पार करके वे लोग यहां पहच
ं े थे
और यहां जब सुती ण मुिन के दशन हए तो लगा मानो मुिन ती ा कर रहे थे। यह उ ह ात
हआ िक यह कमभूिम उनक ती ा कर रही है। यहां ू रकमा रा स के ारा अनेक आ म
उजड गए ह। अनेक रा स तप वय को मार डालते ह। इस देश म ा ण क सेवा करने
का यह अवसर उ म था, य िक ये तप वी रा स से आ ा त होकर सदैव अपने लए आ य
खोजते थे। यिद यहां से रा स का आतंक हट जाए तो अव य ही यह देश शा त देश हो
जाएगा।
यह सोचते हए राम ने अपना कत य िन चत िकया और लगभग दस वष तक िभ -िभ
थल पर रहकर आ ा ताओं का िवनाश करते हए राम अग य मुिन के आ म म पहच
ं े और
यह से आगे चलकर उ ह ने पंचवटी म अपनी कु िटया िनिमत क ।
पांच वटवृ के बीच यह रमणीय देश जहां िवपणशाला बनाकर राम, ल मण और सीता के
साथ थायी आवास के लए ठहरे , बड ा ही मनोरम देश था। समीप ही गोदावरी नदी थी,
लेिकन दैव का कोप िक एक िदन द ु रा सी शूपणखा पता नह कहां से घूमती-घूमती उनक
कु िटया म आ गई।
अभी दोपहर भी नह हई थी, राम सीता के साथ बैठे थे िक उस कु पवती ने आते ही नेिहत
वातावरण म खलबली मचा दी। वह राम से िववाह करना चाहती थी। वह कामपीिड ता इतने
ओछे तर पर उतर आई िक या तो उससे िववाह करो अथवा वह इनको खा जाएगी।
राम ने ही यह कहा िक मेरी प नी है, मेरे साथ रहती है, म तो इसके रहते दसरा
ू िववाह नह
कर सकता, शूपणखा चाहे तो ल मण से यह ताव कर सकती है।
थोड ी ही देर म उसे यह ात हो गया िक ये दोन ही भाई उसका उपहास कर रहे ह।
पता नह उसम कैसा भाव जागा, वह अंगार के समान ने वाली रा सी सीता पर झपटी। राम
ने जब यह देखा िक सीता के ाण संकट म पड सकते ह, उ ह ने तुरंत ल मण को आदेश
िदया‒
“प रहास मत करो ल मण! सीता के ाण संकट म ह। तुम इसको अंगहीन कर दो।”
और ल मण ने यान से तलवार िनकालकर उस अभ रा सी शूपणखा के नाक और कान
काट लये।
यह से एक भयानक अहंकारी रा स रावण से श ुता का उदय हो गया।
शूपणखा क नाक, कान कटने पर खर-दषण
ू ने अपनी बहन का बदला लेने के लए राम पर
आ मण िकया, लेिकन उसके चौदह हजार रा स क सेना का राम ने बड ी सरलता से
सफाया कर िदया।
द ु खयारी शूपणखा ने अपनी पीड ा को रावण के सामने रखा।
अहंकारी रावण बात का मम समझे िबना ो धत हो उठा और उसने अपनी बहन शूपणखा के
अपमान का बदला लेने के लए राम को मार डालने का मन बनाया, लेिकन जब उसे यह ात
हआ िक राम के साथ उसक प नी सीता भी है तो उसने अपना िवचार बदल िदया और यह
सोचकर िक िकसी क ित ा पर आ मण करना िकतना घातक होता है, उसने सीता का
अपहरण करने क योजना बनाई।
रावण को बताया गया िक राम और ल मण द डक वन म पंचवटी म आ म बनाकर वास
कर रहे ह। वह द डक वन ही आ गया और अपने मामा मारीच से सहायता का िनवेदन करने
लगा।
रावण जानता था िक मारीच मायावी शि म िनपुण है। वह जैसा भी प चाहे बना सकता है।
अतः उसने मारीच से िमलकर अपना िवचार उसके सामने रखा। जब मारीच ने यह सुना िक
रावण सीता को चुराने के लए यहां आया है तो उसक बुि का मु य यं ि याशील हो गया
और वह बोला‒
“हे रावण! िम के प म तु हारा ऐसा कौन-सा श ु है, जसने तु ह सीता के अपहरण क
यह सलाह दी। ऐसा कौन-सा यि है जसे तु हारा सुख, वैभव और ऐ वय अ छा नह लग रहा
है और वह तु हारा िवनाश करने पर तुला है। वह अव य ही कोई द ु है, जसने सीता के हरण
के बहाने तमाम रा स समुदाय का नाश करने का िवचार िकया है। अरे मूख! राम तो वह गंध-
यु गजराज है, जसक गंध सूंघकर ही यो ा भाग जाते ह। िफर अकारण उससे श ुता नह
लेनी चािहए। शायद तुम राम को नह जानते।
बहत पुरानी बात है, महिष िव वािम तप या कर रहे थे और राम चौदह-प ह वष का
राजकु मार था। तब इसने मेरे सामने ही मेरी बहन ताड का को मृ यु के घाट उतार िदया और
एक ही बाण से मुझे सौ योजन दरू समु म फक िदया और सुबाह सिहत अनेक वीर रा स मार
िगराए थे।
ऐसे बलशाली राम को उसक प नी का हरण करके श ु बनाने का परामश कोई तु हारा घोर
श ु ही दे सकता है, िम नह । जाओ, अपनी लंका लौट जाओ और जो सुख-वैभव तु हारे पास
है, उसका उपभोग करो। तु हारा िहत इसी म है।”
रावण को मारीच क बात जंच गई और वह लंका लौट आया।
यहां जब शूपणखा ने देखा िक मामा मारीच के बहकाने से रावण ने ितशोध लेने का मन
बदल लया है तो उसने रावण को फटकारते हए कहा, “तुम तो वीर म े हो िनशाचर पित!
जसे इस ैलो य म कोई परा त नह कर सकता। िफर भी तुम खर-दषण ू जैसे महावीर के मरण
पर और अपनी बहन के अपमान पर चुप बैठ जाओगे, तु हारा र इतना ठं डा हो गया है? मने
तु ह तेज वी भाई समझा था, लेिकन तुमसे अ धक तेजवान तो ल मण है जसने अपने भाई के
एक बार कहने पर मुझे अंगहीन कर िदया। और वह राम, जसने हमारे चौदह हजार रा स मार
डाले।
म तो कहती हं िक तु ह राम क उस प नी को, जसे अपने प पर अिभमान है, उसका
अपहरण करके अपने महल म, अपनी रानी बनाना चािहए। जब राम अपनी प नी का िवयोग
सहने को बा य होगा, तब उसे ात होगा िकसी का अपमान करने का फल या होता है!”
शूपणखा से यह सुनकर रावण उ े जत हो उठा। अब उसके मन म सीता का प-स दय छा
गया। वह उसके सु दर तपाए शरीर क सुवण का त को अपने भुजदंड म देखना चाहता था।
उसके लाल-लाल नख, शुभ ल ण से स प माथा, सु दर किट देश, सुडौल अंग, यह सा ात्
रित प िवदेहराज जनक क क या अब उसके रं गमहल क शोभा अव य बनेगी।
जस कार शूपणखा ने उसके प का बखान िकया है, तब तो अव य ही देव , ग धव ,ं य ,
िक र क य म भी उसके समान कोई सु दर नह होगी।
वह िकतना सौभा यशाली होगा, जसक भाया सीता हो और जो उसका हष से भरकर
आ लंगन करे । उसका जीवन तो इ से भी अ धक भा यशाली है। शूपणखा ने ही उसे बताया िक
उसका एक-एक अंग पृहणीय है, वभाव उ म है। िन चय ही हे भाई! तुम उसके यो य े
पित हो।
रावण को उकसाते हए शूपणखा ने कहा‒
“यिद तु ह सीता को अपनी भाया बनाने क इ छा है तो अपना दािहना पैर आगे बढ ाओ
और राम को जीतने के लए थान करो।
जस राम ने हमारे जन- थान म िनशाचर सिहत खर और दषण
ू को मौत के घाट उतारा है,
उसे तो उसके द ु कृ य का फल िमलना ही चािहए।”
जब मारीच ने िफर से रावण को अपने पास आया देखा तो वह भ चक रह गया।
“तु हारी लंका म सब कु शल तो है? तुम इतनी ज दी िफर वापस कैसे आ गए?”
“सुनो मामा! तुम वण मृग बनकर राम क पंचवटी के बाहर मण करना और जब सीता
तु ह देखकर तुम पर मोिहत हो राम को तु हारे पीछे भेजे तो उसे इतनी दरू ले जाना िक वह
थान कम-से-कम दस योजन दरू हो और जब तुम राम के बाण से घायल हो जाओ तो ‘हा
ल मण’ और ‘हा सीता’ िच ाना तािक कु िटया म बैठी हई सीता राम को संकट म जानकर
ल मण को उसक सहायता के लए भेज दे और इस तरह म उसे अकेली पाकर अपना
वा तिवक प िदखाकर इस िद य पु पक िवमान पर हर लाऊंगा।’’
“हे रावण! मुझे तो लगता है, यह जनकनंिदनी सीता तु हारा वध करने के लए ही ज मी है।
तभी तो तुम इतनी उ ंडता से इस संकट को अपने ऊपर ले रहे हो। तुम समझते हो, राम ीहीन
है। अरे , वह तो कैकेयी ारा िपता को धोखे म डालकर मांगे वर के कारण, िपता के वचन को
िम या न करते हए वयं धन-स पदा का याग करके द डक वन म आया है। अरे वह ू रकमा
नह है, न िम याभाषी है और यह भी जान लो िक उसक प नी सीता अपने ही पित य के तेज
से सुरि त है। तुम भयानक व लत अि म िव होने का खेल य खेल रहे हो रावण?
अरे , जस यि ने िशव के धनुष क यंचा चढ ाकर सीता का वरण िकया है, जसने
महिष परशुराम के वै णव धनुष क यंचा चढ ा दी और उनके पु य लोक का नाश कर
िदया, उन राम को तुम साधारण मानव समझ रहे हो। तुम तो बहत मूख हो रावण’’
“सुनो मारीच! मने तु हारा बहत स मान िकया है। म तुमसे यहां राम क शंसा या सीता के
पित य धम पर भाषण सुनने नह आया। म जो आदेश देता हं या तो उसका पालन करो, वरना
मेरे हाथ से मरने के लए तैयार हो जाओ। जस यि का स मान दांव पर लग गया हो, जसक
बहन के नाक-कान काट लये गए ह , वह अपने श ु से बदला अव य लेगा। िफर भले ही
प रणाम कु छ भी हो। जाओ और जैसा मने कहा है, वैसा ही करो।”
मारीच को िक अब मृ यु सि कट है। पहली बार वह राम के बाण से बच गया था, लेिकन
अबक बार ाण जाने ही ह तो िफर इस द ु पापी रावण के हाथ से मरने क अपे ा राम के हाथ
से ही मरना मेरे लए उिचत है।
यह सोचते हए मारीच वण मृग बनकर कु लाच भरता हआ पंचवटी पहच
ं गया।
मारीच ने बड ा ही सु दर प धारण कर रखा था। उसके स ग के ऊपरी भाग इ नीलमिण
के बने हए जान पड ते थे, मुखमंडल पर सफेद और काले रं ग क बूदं थ , मुख का रं ग लाल
कमल के समान था, उसके कान नीलकमल से थे, गदन ऊंची थी। वह समूचा वण क का त
वाला था।
सैकड रजत िब दओ
ु ं से यु यह िविच प धारण करने वाला मृग वृ के कोमल प
को खाता हआ वह पंचवटी के पास इधर-उधर िवचरने लगा। केले के बगीचे म जाकर वह
कनेर के कुं ज म जा पहच
ं ा, जहां सीता क ि उस पर पड सके और धीमी चाल से घूमने
लगा।
कभी खेलता-कू दता आ म के ार पर आकर मृग के झुडं के पीछे चल देता। उसके मन म
यही अिभलाषा थी िक सीता उसक तरफ देखे और िफर सीता, जो वहां फूल चुनने म लगी थी,
उसने उस कंचन मृग को अपनी आंख से देखा तो आ चय से स हो उठ और बड े नेह से
उसे देखने लग ।
वह तो मायावी मृग था, सीता को लुभाता उ ह के आसपास मंडराने लगा।
सीता ने ऐसा मृग पहले कभी नह देखा था। यह तो मानो र न से बना हआ है।
फूल चुनते-चुनते ही सीता स हो उठ और वह से राम-ल मण को धनुष बाण लेकर आने
के लए कहने लग । वह मृग को देखती जात और राम-ल मण को पुकारती जात , “हे आय
पु ! शी आइए, धनुष के साथ आइए।”
सीता के पुकारे जाने पर राम जब वहां पहच
ं े और उनके पीछे -पीछे ल मण भी पहच
ं गए तो
दोन ने ही उस वण मृग को देखा।
ल मण को तो इसे देखते ही मन म संदेह पैदा हो गया और वे बोले‒
“भैया! म इसे पहचान गया ह।ं यह तो मारीच रा स है, जो वे छा से वेश धारण करके,
कपट वेश बनाकर वन म िशकार खेलने आए िकतने ही राजाओं का वध कर चुका है। यह तो
बड ा मायावी है। मृग के प म यह मारीच ही है।”
लेिकन सीता क िवचार-शि को मृग ने छल लया था। अतः ल मण को रोककर उ ह ने
राम से कहा‒
“आय पु ! इस मृग ने मेरा मन हर लया है। आप इसे पकड लाइए। यिद जीिवत पकड
लया गया तो हमारे मन बहलाव का साधन बनेगा और यिद आप मृत पकड लाए तो इसक
चमशाला बनेगी।”
सीता क बात सुनकर और उस मृग के प पर मु ध होकर राम ने ल मण से कहा‒
“देखो ल मण! इस मायावी मृग को पाने के लए सीता के मन म िकतनी इ छा जाग रही है।
वा तव म इसका प है भी बहत सु दर। देवराज इ के नंदन वन म भी ऐसा मृग नह होगा।
यह जब ज हाई लेता है तो मुख से िबज लयां िनकलती ह। इसे देखकर िकसके मन म िव मय
नह होगा। और िफर मृगया तो ि य का धम है। चलो, आज यह मृग ही सही। िफर यिद तु हारे
कहने से यह रा स क माया है तो मुझे इसका वध तो करना ही है, य िक द ु िच वाले इस
मारीच ने पता नह िकतने लोग को मृ यु के मुख म पहच
ं ाया है।”
“देर न क जए आय! नह तो मृग चला जाएगा। दे खए न, वह िकतनी दरू चला गया है।”
सीता को इतना उतावला होते देख राम ने ल मण से कहा, “देखो ल मण, सीता िकतनी
उ कंिठत हो रही है। म मृग के पीछे जा रहा ह,ं तुम यहां सीता का यान रखना।”
महिष वा मीिक के आ म म अपने एका त क म बैठी सीता िवचार कर रही थ ‒आज
िकतने िदन हो गए उसको यहां आए हए, स ाह, पखवाड ा, मास और ऋतु। अब ी म ऋतु
आने वाली है और अनुमानतः मासा त तक वह पु वती भी हो जाएगी। िकतने संकट म बीता था
यह सब, लेिकन अपने अपहरण संग को याद करते हए वे सोच रही थ , तब उनक बुि को
या हो गया था?
जैसे ही वन से ‘हा सीते’ और ‘हा ल मण’ क आवाज आई और वे च क गई।ं उ ह लगा िक
उनके पित संकट म ह। पास ही र ा के लए सचेत ल मण को बुलाकर उ ह ने कहा‒
“देवरजी! सुना तुमने? मेरे और तु हारे नाम क आवाज आ रही है। यह अव य ही तु हारे
भैया क आवाज है। मुझे लगता है, उनके ाण संकट म ह। तु ह उनक र ा के लए जाना
चािहए।”
“भाभी! आज आपको या हो गया है? सुबह सवेरे आपने भैया राम को उस मायावी मृग के
पीछे भेज िदया और अब मुझे भी यहां से भेजना चाहती हो। आपको ात है, यह वन िकतने िहं
पशुओं से भरा पड ा है और यह जो मायावी मारीच है, यह इसक एक चाल है। राम को भला
इस जग म संकट म डालने वाला है कोई? नह भाभी, आप अनाव यक घबरा रही ह। यह तो
इस रा स क एक चाल है। इस बहाने यह मुझे यहां से हटाना चाहता है, तािक आपका अिहत
कर सके।”
दसरी
ू ओर राम ने जब मारीच के मुख से अपना नाम सुना तो आ चय म पड गए। अब
उ ह अपनी गलती का अनुभव हआ और लगा िक ल मण सही कह रहा था, यह अव य ही
मायावी मारीच है। यह तो मेरी ओर से सीता और ल मण क पुकार कर रहा है।
यिद यह सुनकर सीता ने हठ करके ल मण को मेरी सहायताथ भेज िदया तो अनथ हो
जाएगा, य िक तब अव य अकेली सीता पर कोई भारी संकट आ सकता है।
यह सोचकर राम तो ज दी-ज दी अपने आ म क ओर बढ ने लगे, लेिकन इधर सीता ने
ल मण को राम क सेवा म जाने के लए बा य कर िदया।
ल मण ने जब कहा, “भाभी! आप िचंता न कर, राम सुरि त ह और मुझे वे आपक र ा के
लए छोड गए ह। यह मेरा दािय व है। म इससे पीछे नह हट सकता। उनका आदेश म यूं ही
नह टाल सकता।”
“तो तुम आदेश क आड लेकर अपने भाई क पुकार नह सुनोगे?”
‘‘यह मेरे भाई राम क आवाज नह है। उ ह कु छ नह हो सकता। यह छली मारीच क
आवाज है, जो पहले तु ह परं ग क चमक से छलकर राम को यहां से दरू ले गया और अब
मुझे मेरा ही नाम पुकारकर यहां से दरू करना चाहता है, तािक म चला जाऊं और तुम अकेली
रह जाओ, जससे द ु रा स क चाल क िशकार हो जाओ।”
“हे सुिम ा कु मार! तुम िवल ब कर रहे हो, मुझे तो तुम भाई के श ु ही जान पड ते हो।
इसी लए संकट क अव था म सहयोग के लए जाने म आनाकानी कर रहे हो। मुझे तो स देह हो
रहा है िक तुम मुझ पर अ धकार करने के लए इस समय राम का िवनाश ही चाहते हो। मुझे
लगता है तु हारे मन म लोभ आ गया है।”
“यह आप या कह रही ह भाभी! वनवास काल के तेरह वष बीत चुके ह और तुम अब इन
अंितम घिड य म दोषारोपण कर रही हो?”
“यिद ऐसा नह होता तो तुम उनक र ा के लए नह जाते? आ खर तुम उ ह क सेवा के
लए तो वन म आए हो, यिद उ ह के ाण संकट म पड गए तो यहां मेरी र ा कौन करे गा?”
यह कहती हई सीता िवलाप करने लग । उनक आंख से आंसू बह िनकले।
िफर भी ल मण ने साहस करके कहा‒
“भाभी...!”
“मत कहो मुझे भाभी! तु हारे मन म मेरे ित पाप समा गया है पर यान रखो, यिद उनका
कु छ भी अिन हआ तो म अि -समा ध ले लूग ं ी, िक तु तु हारी अिभलाषा पूण नह क ं गी।”
“आपको मां मानता हं और आप मेरे ित इतना बड ा पाप का लांछन लगा रही ह। शायद
आपको पता नह , यह वही मारीच है, जसे वन म ताड का को मारने के बाद ीराम ने महिष
िव वािम के य -भंग करने के अपराध म एक ही बाण से सौ योजन दरू समु म फक िदया
था। इसके साथी और ताड का-पु सुबाह को भी मार डाला था। और िफर इस लोक म तो या
देव और पाताललोक म भी ीराम को कोई परा त नह कर सकता। जो यु भूिम म इ को भी
परा त करने का साहस रखता हो, उसे यह रा स कैसे ित पहच ं ा सकता है। राम का तो ये
द ु जन बाल भी बांका नह कर सकते। अतः आप अपना दय शा त रख और संताप छोड
द।”
“हे िनदयी! अनाय! ू रकमा! कु लांगार! अब म तुझे खूब समझ गई ह।ं तू यही चाहता है िक
राम िवप म पड जाएं। तू तो बड ा द ु है। तू राम को अकेले वन म आता देख मुझे ा
करने के भाव से ही इनक सेवा का बहाना लेकर यहां आया है और या भरोसा भरत ने तुझे
भेजा हो? लेिकन याद रख, तेरा या भरत का यह मनोरथ कभी पूरा नह होगा। राम के अित र
म िकसी क कामना कैसे कर सकती ह!ं या तो तुम मेरा आदेश मानकर राम क र ा के लए
चले जाओ, वरना म अभी इसी समय अपने ाण याग दग ं ू ी।”
सीता के ये कठोर वचन िकसी का भी दय दख
ु ा सकते थे, िफर ल मण तो वा तव म एक
समिपत भाई थे। वे हाथ जोड कर बोले‒
“आप जो कु छ कह रही ह‒आपके लए आ चयजनक नह , य िक आप भी तो ी ह, एक
सामा य ी! संसार क ना रय से भला आप अलग कैसे हो सकती ह! आपको इस समय मेरी
बात पर िव वास नह आएगा, लेिकन मेरे जाने के बाद यिद कोई संकट उप थत हो गया तो
आप या करगी? यह सोचा है?”
यहां वन म िकतने िहं पशु ह। रा स से यह देश पहले ही आतंिकत है। आप नह जानत
िक ये रा स िकतने मायावी ह, जो नाना कार के प धारण करने म कु शल और नाना बो लयां
बोलने म चतुर ह। आप उनसे अपनी र ा कैसे करगी? यिद आपको कु छ हो गया तो म राम को
या उ र दगं ू ा?”
“तु ह अपने भाई क सौग ध ल मण! जाओ, उनक र ा करो। यही इस समय तु हारा धम
है।”
मन म सोचते हए ल मण कहने लगे, ‘मेरा या धम है यही तो सोच रहा ह,ं िक तु लगता है
िक आप िकसी अिन को कराकर ही मानगी।’
और िफर वन म िवचरने वाले पशु-पि य को सा ी करते हए ल मण ने चीखते हए कहा‒
“सभी मेरा कथन सुन‒मने याययु बात कही है, िफर भी जानक क मेरे ित यह कठोर
वाणी मेरा दय बेध रही है। िन चय ही आज इनक बुि मारी गई है। यह अपने लए संकट को
आमंि त कर रही ह। अतः हे वन देवतागण! आप देवी सीता क र ा कर। इस समय मुझे
अपशकु न िदखाई पड रहे ह। इस लए म संशय म ह।ं पता नह िफर सीता भाभी को सकु शल
देख सकूं गा या नह ?”
अभी भी ल मण िवचारम थे।
यह देखकर सीता ने रोते हए कहा‒
“ल मण! म राम से िबछु ड कर गोदावरी म समा जाऊंगी या पवत िशखर पर चढ कर
वहां से अपने शरीर को नीचे धकेल दग
ं ू ी या अि म समा जाऊंगी, िक तु राम के अित र
िकसी अ य पु ष का पश तो या िवचार भी कभी नह क ं गी।”
ल मण के सामने यह ित ा करके सीता शोकम दोन हाथ से अपने व और टांग पर
आघात करने लग ।
सीता क यह दशा देख ल मण िवच लत हो उठे और सीता को समय के भरोसे छोड कर
राम क खोज म चल िदए।
रावण तो बहत देर से मानो इसी ताक म था। जैसे ही ल मण ि से ओझल हए, वह द ु
मायावी साधु वेश म कम डल हाथ म लये सीता क कु िटया के स मुख आ खड ा हआ।
शरीर पर गे ए व , म तक पर िशखा धारण प र ाजक बना रावण सीता को अकेला जान
उनक कु िटया के पास आकर िभ ा मांगने लगा।
य ही रावण ने सीता क पूणकु टी के बाहर आकर गुहार क तो जन थान म आतंक-सा छा
गया। हवा का वेग क गया, प ने िहलना ब द कर िदया और अपनी गित से बहने वाली
गोदावरी नदी भय के मारे धीमी हो गई।
राम से बदला लेने का अवसर ढू ढं ने वाला रावण िभ ु प म सीता के पास पहच
ं ा।
सीता को बाहर क कु छ खबर नह थी। वह तो अपने पित के लए शोक और िच ता म डू बी
हई थी और रावण उ ह खड ा-खड ा देख रहा था।
सीता को देखकर उसके मन म कु सत िवचार आ गए‒
‘यह तो बहत सु दर है। तीन लोक म ऐसी सु दरी कहां होगी?’
सीता के सौ दय क शंसा करते हए रावण ने उससे कहा‒
“सा ात् ल मी अथवा अ सरा क तरह हे कमलनयनी! तुम कौन हो? और इस द डकार य
म िकस लए अकेली यहां वास कर रही हो? यह तो घोर रा स से िघरा द डकार य है। यहां तुम
अकेली कैसे रहती हो?”
सीता का यान भंग हआ और उ ह ने देखा िक उनके सामने गे आ व धारण िकए एक
ा ण ार पर खड ा है।
शी ता से सीता ने उस अित थ का अ य देते हए वागत िकया और अित थ-स कार के लए
उपयु सभी सामि य ारा उसका पूजन िकया तथा उ म आसन पर िबठाते हए उससे कहा‒
“ ा ण! भोजन तैयार है, हण क जए। यह आसन है, इस पर थान हण क जए और वन
म उपल ध जो फल-मूल यहां उप थत ह, उ ह हण क जए।”
ा ण वेशधारी उस सं यासी के वा तिवक प से वह भोली नारी सीता प रिचत नह थी,
लेिकन रावण के मन म उनका हरण करने का िवचार ढ था। अतः अपने भोलेपन म सीता ने
आसन हण िकए हए उस ा ण तप वी को अपना स पूण प रचय िदया और यह बताया िक वे
यहां पर अपने पित ीराम और देवर ल मण के साथ िपता ारा िदए गए चौदह वष का वनवास
काल िबता रही ह।
सीता का प रचय पाकर रावण ने अपना प रचय देते हए उसे बताया‒
“ जसके नाम से देवता, असुर और मनु य सिहत तीन लोक थरा उठते ह, म वही रा स का
राजा, महिष िव वा का पु रावण ह।ं ”
“हे अनुपम सु दरी! तु हारे इस विणम सौ दय ने मुझे तु हारे ित आकृ कर िदया है। अब
मेरा मन अपनी य से िवर हो गया है। मने अपने जीवन म न जाने िकतनी य को हरकर
उ ह अपनी पटरानी बनाया, लेिकन तु ह देखकर मुझे लगता है िक वे सब तो तु हारे सामने कु छ
भी नह । वा तव म तुम मेरी पटरानी बनने यो य हो।
मेरी राजधानी लंका है, जो समु के बीच ि कू ट पवत पर बसी हई है। यिद तुम मेरी भाया हो
जाओ तो वे सब जो आज तक मेरी रानी बनी हई ह, दासी बनकर तु हारी सेवा करगी।”
सीता ने जब यह सुना और एक ा ण के बदलते हए इस िवकृित व प को देखा तो वे
घबरा उठ । यह तो अनथ हो रहा है। जसे मने अित थ समझा, वह तो लुटेरा है। इसका अथ तो
यह हआ िक मने ल मण को भेजकर गलती क । यह तो वा तव म राम और ल मण को मुझसे
दरू करने क सोची-समझी चाल थी।
और अब तो ल मण भी बहत दरू चले गए ह गे।
‘हे भु! मुझसे यह कैसा अपराध हो गया। अब इस दख
ु से म अपने आपको कैसे बचा
पाऊंगी!’ सीता सोच रही थ और िफर मन म अपने दबु ल भाव को दबाते हए, ोध को
झलकाते हए वह जनकनंिदनी रा स का ितर कार करती हई बोली‒ तुम कोई भी हो, मने तु ह
ा ण जानकर तु हारा आित य िकया। मरण रखो, मेरे पित ीराम बल म इ के समान,
गंभीरता म महासागर के समान ह और म उनक ही अनुरािगनी ह।ं तुम मेरे ित ऐसे कु िवचार
मन म मत पैदा करो, य िक यिद राम तुम पर ु हो गए तो तु हारा जीवन संकट म पड
जाएगा।”
रावण ने यह सुना तो वह अ हास करने लगा और उसके चेहरे पर कु िटलता झलक आई।
इससे सीता और भयभीत हो उठ और बोल ‒
“अभागे! तेरा इतना साहस िक तू कु िटलतापूवक अ हास करता है। तू मेरा अपहरण करना
चाहता है। या तुझे अपनी मृ यु का िबलकु ल भय नह ?”
“तू नह जानती भोली ी! रावण को का वरदान है िक उसे देवता, ग धव, रा स, दै य,
दानव, य , िक र कोई नह मार सकता, मनु य क तो िबसात ही या! तू राम को या
समझती है?”
“ जसने तेरे िवराट बलशाली खर-दषण
ू को उसक सेना सिहत अकेले मार िगराया था, जसने
मारीच और सुबाह जैसे रा स को अपने बाण से सौ योजन दरू फक िदया और मार डाला,
रा सी शूपणखा के नाक-कान काट डाले...।”
“बस, बस...म देखंगू ा उस राम का बल, जसने मेरी बहन क ित ा म यह अपराध िकया
है। शूपणखा मेरी बहन थी द ु ा! और तुमने उसका अपमान िकया। इस अपमान का बदला म
तेरा अपहरण करके लूगं ा और िफर देखता हं िक राम मेरा या कर लेगा?”
“तो यह वण मृग भेजकर राम को मुझसे दरू करने का तु हारा ही ष ं था?”
“हां, मेरा ही था और मने ही मारीच से यह प धरकर तु ह िमत करने क योजना बनाई
थी।”
“वह समझता है िक मेरी छोटी-सी सेना को और उसके सेनानायक को मारकर वह मुझ पर
अपना भय का भाव िदखा सकता है। म उसे बताऊंगा िक म िकतना शि शाली ह।ं ”
रावण यह भूल गया िक पूवज म म जस तप वनी वेदवती का उसने अपमान िकया था, यह
सीता उसी का पुनज म है।
िवधाता ने रावण क बुि हर ली और सीता के िवरोध के बाद भी रावण ने एक हाथ उसक
कमर म डाला उ ह अपने कंधे पर िबठा लया। सीता चीखती-िच ाती रह गई।ं
रावण उस समय पूरी तरह िनदयी हो गया था।
जसने अपने िपता समान बड े भाई के ित अ याचार करने म कोई कमी नह छोड ी
और उसे लंका छोड ने पर बा य कर िदया, वह रावण सीता पर या दया करता! अब हाथ-
पैर मारती सीता को अपने भुजदंड से दबोचे वह पु पक िवमान क ओर बढ ने लगा।
यह िवकराल य देखकर हवा जो ठहर गई थी, भयानक आंधी क तरह चलने लगी; प े जो
सहम गए थे, जोर से फड फड ाने लगे; प ी जो डर गए थे, वे भय से थराकर भयानक
कलरव करने लगे, िहरण इधर-से-उधर तेजी से बौखलाए हए कु लाच भरने लगे, हाथी
िचंघाड उठा, संह ने दयिवदारक गजना क , कु छ ही ण म वह पूरा जन थान एक िविच
बौखलाहट से भर गया। सारी रमणीयता एक ण म आ दोलन क मु ा म आ गई। सामा य
थितयां एक पल म ही असामा य हो गई।ं आकाश म बादल छा गए। घनघोर घटाएं पूरे वेग से
पृ वी को आ लािवत करने लग । वृ टू टकर िगर गए। पवत िशखर से प थर लुढ कने लगे।
भयंकर िव वंस-सा होता िदखाई पड ने लगा, लेिकन द ु रावण इनम से िकसी भी उ पात से
भयभीत नह हआ। वह तो बलात् सीता को अपने दोन भुजदंड म दबाए चला जा रहा था,
पु पक िवमान क ओर।
“तू िकतना भी य न कर ले, मेरे चंगुल से नह छू ट सकती। म अब तुझे अपनी पटरानी
बनाकर ही मानूग
ं ा। राम के ित तेरा अनुराग न न कर दं ू तो मेरा नाम रावण नह । अरी मूखा!
जसे िपता ने रा य से वंिचत करके वनवास दे िदया हो, वह तेरी या सहायता कर पाएगा?
भला दो आदिमय से एक िवशाल रा य काबू म आ जाएगा?”
अब सीता के पास िवलाप के अित र कोई अ नह था। वह ‘हे राम’ कहकर जोर से
पुकार करने लगी।
और रावण ने उनक पुकार को अनसुना करते हए उ ह अपने बाहबल से पु पक िवमान पर
एक ओर पटक िदया और कहा‒
“ले बैठ यहां और अपने उस वनवासी राम को याद कर। कु छ ही पल म मेरा यह िवमान तेरे
राम क मता से बाहर िनकल जाएगा।”
झुझ
ं लाती हई सीता ने कहा‒
“द ु ! तेरे सर पर काल नाच रहा है। तेरा िववेक समा हो गया है। बुि िवपरीत हो गई है।
तूने जो पाप िकया है, उसका दंड केवल तेरी मृ यु है, जो राम के हाथ होगी।”
रावण ने िनल ज अ हास करते हए उससे कहा‒
“ य िनरथक अपना मुंह दख
ु ाती हो। राम अब इस जीवन म मुझे नह पा सकेगा। तू कहां है,
उसे तो यह भी ात नह हो पाएगा और यिद उसे िकसी कार से यह पता लग भी गया तो मेरी
लंका म उसे वेश नह िमल सकेगा। यिद लंका म भी वह आ गया तो मेरी िवशाल सेना के
सामने उसका कोई वश नह चलेगा। उसके शरीर को संह नह , भेिड ए खाएंगे और मेरे रा स
अनुचर उसक हि य को समु म फक दगे।”
ण-भर के लए सीता सकते म आ गई,ं यह या हो गया? उनके िकस द ु कम का यह फल
उनके सामने आया है?
तब उसके मन म अभी रावण से पहले ल मण के साथ हआ उनका यवहार क ध गया।
उ ह ने देवता समान भ -पु के ित िकतनी ल जत बात कही। जो ल मण छोटे भाई के
समान रहा, जसने भाई क सेवा के लए अपने िन ज सुख का याग िकया, उस ल मण पर
सीता ने कु िवचार का आरोप लगाया और यह कहा िक वह सीता के ित कामभावना से त है,
वह उसे ह थयाना चाहता है, राम का अिन देखना चाहता है। आह! कहते हए य ही उनके हाथ
अपने कुं डल क ओर गए, उनक आंख के सामने अंधरे ा छा गया। अब वे राम क पुकार
करती जा रही थ और िवमान द डक वन के ऊपर होता हआ लंका क िदशा म बढ रहा था।
िकसी ी क क ण पुकार सुनकर वृ पर बैठे िग राज जटायु ने अपने ऊपर से एक िद य
िवमान को उड ते हए देखा तो उ ह ने सीधे िवमान पर छलांग लगा दी। जटायु ने देखा, अरे !
यह तो रामि या सीता ह, जो द ु रावण के चंगुल म फंसी क ण दन कर रही ह और यह
िनदयी रावण उ ह हरकर ले जा रहा है।
वह जान गया िक इस िनशाचर को रोक पाना उसके वृ शरीर के वश का नह है।
िफर भी रावण से कहा‒
“देखो दश ीव! तुम जो िनंिदत कम कर रहे हो, वह तु हारे जैसे वीर को शोभा नह देता। ये
तो राम क धमप नी सीता ह और तुम धम म थत रहने वाले राजा। िफर भला पराई ी को
तुमने कैसे छु आ? राजा को तो िवशेष प से ी क र ा करनी चािहए। बुि मान पु ष को वह
कम नह करना चािहए, जसक दसरे ू लोग िनंदा कर। तुम तो पुल य कु लनंदन हो, िफर तुमम
इस द ु वृ का ादभु ाव कैसे हआ? मुझे तो आ चय हो रहा है िक जब तु हारा वभाव ऐसा
पापपूण है और तुम इतने कामी और नीच हो, तब देवताओं के िवमान क भांित तु ह यह ऐ वय
कैसे ा हो गया? िफर जब राम ने तु हारे रा य अथवा नगर म कोई अपराध नह िकया, तब
तुम यह अपराध कैसे कर रहे हो?”
सीता ने कहा‒
“हे िग राज! यह द ु शूपणखा के बदले म मेरा अपहरण कर लाया है।”
“शूपणखा के बदले म? इसम राम ने या अपराध िकया? अरे , वह द ु नारी जब िकसी
स य ित पु ष का शील भंग करने के लए अपने दानवीय व प का आरोप करने लगी तो
उसके साथ तो यह यवहार होना ही था और रही खर-दषण ू क बात तो उ ह ने तो िबना सोचे-
िवचारे ही राम का अपमान करते हए और उ ह अकेला जानकर, कमजोर जानकर आ मण कर
िदया। अरे , यिद आप श ु क पूरी मता नह पहचानगे और पूरी सेना के साथ आ मण कर दगे
तो मरगे ही। हे रावण! तुम यह भूल गए िक तुम सीता का हरण नह कर रहे, ब क भयानक
िवषधर को अपने कपड े म बांध रहे हो। तु ह आज नह सूझ रहा, लेिकन यान रखो िक तुम
अपने गले म मृ यु का फंदा फंसा रहे हो।
अब तक तुम जस वरदान से अम य रहे, इस अपहरण के बाद तुम मरणशील हो गए हो
रावण! यह मत जानो िक म बूढ ा हो गया हं और तुम नवयुवक हो। मेरे जीते जी तुम वैदेही
को नह ले जा पाओगे। मुझे अपने ाण देकर भी वैदेही क र ा तो करनी ही है।”
यह कहते हए वृ िग राज जटायु रावण पर अपनी पैनी च च और पंज के नाखून से टू ट
पड े।
पहले तो रावण उस आक मक आ मण से भयभीत हो उठा और च च के घाव से घायल
होकर मू छत हो गया, लेिकन जटायु आ खर जटायु थे। य िप उ ह ने रावण का धनुष तोड
िदया, उसके रथ के टु कड े-टु कड े कर िदए, लेिकन जब रावण को होश आया तो उसने
ोध म आकर अपनी तलवार से उनके दोन पंख काट डाले।
पंख कटने पर जटायुराज अश हो गए और खून से लथपथ िनराधार से याकु ल पृ वी पर
आ िगरे ।
सीता ने जब यह देखा तो रावण के चंगुल से मु होने क उनक आ खरी संभावना भी जाती
रही। अब तक वे िक क धा के पास पहच ं चुके थे और कु छ िवचार न करते हए सीता ने राम
क रट लगाते हए अपने कुं डल, बाजूबदं और कु छ अ य आभूषण अपनी साड ी के एक
टु कड े म बांधकर उस पवत पर िगरा िदए। कम-से-कम यिद राम यहां तक पहच ं े तो उ ह यह
िदशा- ान तो हो जाएगा िक वह इस माग से आगे गई ह।
अब सीता लाचार थ । इस समय उ ह िकसी कार क सहायता क कोई आशा नह थी। वे
रावण को उपालंभ देते हए िवलाप कर रही थ , लेिकन वह िपंजरे म बंद मैना के िवलाप जैसा
था, य िक द ु आदमी पर भला-बुरा कहने से असर नह होता, वह तो शि से उसका मदन
करने म अपनी िवजय समझता है।
रावण इस समय एक िवजेता क भांित सीता के प म अपनी सा ात् मृ यु का अपहरण
करके वन , निदय , पवत को लांघता समु से होता हआ धीरे -धीरे ि कू ट पवत पर पहच
ं गया।
जैसे ही िवमान पवत पर उतरा, सीता ने वयं को बड ी-बड ी अ ा लकाओं से िघरे
राजमहल क कैद म अनुभव िकया। उ ह ने देखा िक भयानक आकृित वाले बड े-बड े
दै य-दानव यहां पहरा दे रहे ह।
रावण ने सीता को भयानक आकार वाली िपशाचिनय के हाथ स पते हए कहा‒
“अब यह तु हारे हवाले है, मेरी िबना आ ा के इससे कोई नह िमल सकता और न कभी
तुमम से कोई अि य बात कहेगा। जसने मेरे आदेश का उ ंघन िकया, म समझूग ं ा िक वह
आगे जीना नह चाहता। मने अपने महान श ु से बदला लेने के लए इसका अपहरण िकया है।
मुझे वा तिवक शा त राम का वध करके िमलेगी।”
‘रावण जनकनंिदनी को हर लाया है।’ इस समाचार ने सबसे अ धक स ता शूपणखा को
पहच
ं ाई। वह तो खल उठी। चूंिक रावण का आदेश उससे िमलने का नह था, इस लए वह अपनी
इस स ता का दशन सीता के स मुख न कर सक ।
रावण ने अपने अ तःपुर म सीता को अपना वैभव िदखाते हए उ ह बहत समझाया िक वह हठ
छोड दे और उसक पटरानी बन जाए, लेिकन सीता तो केवल रामिन थ । वे रावण जैसे
उ पाती द ु , पापी रा स को अपना इ कैसे मान सकती थ ।
उ ह ु होते हए रावण से कहा‒
“द ु नीच रा स! तू मुझे अप त करके यहां ले आया, िक तु यान रख तेरी मृ यु अब तुझसे
अ धक दरू नह है। राजकु मार राम क ि म आते ही तू दो पल भी जीिवत नह रह पाएगा।
यिद तू मुझे स मानपूवक नह छोड देता है तो याद रख, अपने इस रा स वंश सिहत तू और
तेरा नाम इस समु म िवलीन हो जाएगा। तू जस र यता के व न देख रहा है, पापी िनशाचर! तू
अपने गले म वयं फांसी का फंदा डाल रहा है।”
कहने को सीता ने उससे ये कड वी बात कह अव य दी थ , लेिकन मन-ही-मन वह डर भी
रही थ , य िक यहां उ ह दर-द
ू रू तक कोई अपना सहायक नह िदखाई दे रहा था। चार तरफ
रा स थे, द ु -ही-द ु और इसके रं गमहल क यां िकतनी िनल ज! राजमहल के सेवक के
साथ ही ेमलीला रचा रही ह। िकतना वीभ स य है यह! अ त- य त व म कोई एक व ा
है, कोई अधन , कोई आ लंगनब , यहां तो दर-द
ू रू तक कह मयादा का नामोिनशान भी नह ।
यह कैसी द ु नगरी है!
रावण ने सीता का हरण तो िकया, पर तु उन पर बलात् संभोग के लए दबाव नह डाला। वह
चाहता था िक सीता उसे मन से अंगीकार करे , जो िक ि काल म भी संभव नह था। यही
सोचकर रावण ने कहा‒
“हे देवी! तु हारे इन चरण म म अपने ये दस म तक रख रहा ह।ं मने जस कामभावना से
तुमसे णय-िनवेदन िकया है, उसे िन फल न करो। रावण िकसी ी को सर झुकाकर णाम
नह करता, लेिकन तु हारे सामने उसका म तक झुका है।”
सीता ने एक ितनके क ओट करके उस िनशाचर से कहा‒
“ य अपने जीवन का अंत करने पर तुले हो? तु हारी यह अिभलाषा ि काल म भी संभव
नह होगी, य िक सीता राम का अंश है, उ ह क अधािगनी है। तुमने जस छल से मेरा
अपहरण िकया है, वह तु हारी कायरता का ोतक है। तुमम यिद शि होती तो राम के सामने
एक यो ा क तरह, उ ह परा त करके मुझे जीतकर लाते, जैसे राम लाए थे मुझे। तुम जानते हो
िक म वीय शु का ह,ं मेरे िपता ने मेरे िववाह से पूव यह ित ा क थी िक जो यि महादेव
िशव के धनुष क यंचा चढ ा देगा, उसी के साथ सीता का िववाह कर िदया जाएगा। और
महिष िव वािम -िश य ीराम ने भरी सभा म उस धनुष क यंचा चढ ाई, जसे बड े-
बड े वीर उठाने म सफल नह हो सके तो ऐसे राम के ारा जीती हई म िकसी कायर, लुटेरे
और चोर को अपना पित कैसे चुन सकती ह? ं ”
ं लाहट म सीता को अशोक वािटका म ू र और िनदयी रा सय के बीच छोड
रावण ने झुझ
िदया। सीता के लए िनयित को वीकार करने के अित र कोई उपाय नह था।
अपहरण क हई सीता अशोक वािटका म एक वृ के नीचे बैठी दिु दन को कोसने के लए
बा य थ ।
हनुमान ारा सीता क खोज
पणकु टी क ओर लौटते हए जब राम ने ल मण को अपनी ओर आते देखा तो उ ह अिन के
सारे संकेत एक साथ िदखाई दे गए। उ ह िन चय हो गया िक अब पणकु टी म सीता के दशन
नह ह गे, य िक जसे र ा के लए छोड कर आया, जब वही मेरी तरफ चला आ रहा है तो
इसका मतलब यह हआ िक द ु मारीच क चाल सफल हो गई। अव य ही सीता ने बलपूवक
ल मण को भावुकता म आकर उनक खोज के लए भेजा होगा, वरना ल मण सीता को ऐसे
छोड कर आने वाला नह था। और यही हआ। ल मण ने राम को सारी घटना बताते हए कहा‒
“कोई भाई, कोई देवर या कोई पु जब बहन, भाभी या मां से उसके ित कु ि रखने का
लांछन सुनग े ा तो वह या तो आ मह या करे गा या िफर यथा आदेश-काय करने के लए बा य
होगा। मेरे सामने भी सवा वहां से आपक सेवा म थान करने के कोई उपाय नह था
रघुनदं न!”
जब वे पणकु टी म आए तो उनका संदेह सही िनकला। कु िटया म सीता नह थी। राम के लए
सीता का इस कार न िमलना एक अक मात् होने वाला भारी नुकसान था। वह ण-भर के लए
मू छत से हो गए। उ ह कु टी से बाहर घसीटे जाने के साफ िच िदखाई पड े। कु छ दरीू पर
उनके कणफूल, शीशफूल िबखरे िदखाई िदए।
अब वे पशु-पि य से पूछ, िदशाओं से पूछ, नदी, तालाब से पूछ, कौन उ र देगा उनके न
का? सब मौन थे।
सीता के हरण के समय उठने वाला ाकृितक उ पात अब शा त हो चुका था।
राम इस समय हताश एक वृ के नीचे बैठ गए।
राम को इस कार हताश देखकर ल मण भी अ य त दख ु ी हए। उ ह अपने ऊपर लािन होने
लगी, वे थोड ी देर के लए भाभी का ोध सहन य नह कर पाए? वे कैसे भूल गए िक
भावुकता म ी मूखता भी कर बैठती है। इसका एक उदाहरण तो वे वयं कैकेयी के प म
देख चुके ह। राम को वन भेजते समय वह कठोर दया सबके लए एक अबूझ पहेली बन गई
थी और िच कू ट म वही ाय च क मु ा म िवलाप कर रही थी।
िवधाता ने उसे बनाया ही ऐसा है िक उसे ोध म अपना आपा खोते और शा त म अपनी भूल
के ित मायाचना करते देर नह लगती। भयंकर अपराध करके भी वह पल-भर म बात समझ
आने पर उसी भावना से मा क मु ा म भी आ जाती है। ये दो अितय के सरे और उनके बीच
संतरण करती ी इसी लए पु ष जगत् के लए एक पहेली है।
ल मण जानते ह िक सीता ने उनके जाने से पूव ोध म आकर न जाने िकतना बुरा-भला
कहा, लेिकन अगर वह अब सामने आ जाएंगी तो िन चय ही आंसुओं से अपने ोध का भाव
िमटाती हई शा त और शालीनता क ितमूित हो जाएंगी। यह कैसा िवरोधाभास है ी के च र
म, कोई नह जान पाता। प रणाम से पहले ी प रणाम से ऊपर सोचने के लए तैयार ही नह
होती, यही उसक सबसे बड ी कमजोरी है। एक िवडंबना यह भी है िक यिद ी प रणाम से
पूव सोचने का दािय व संभाल ले और उसी के अनु प आचरण करे तो उसक कोमलता न हो
जाएगी। तब वह ी के मूल गुण से दरू हो जाएगी। सीता क भी यही बा यता रही।
ल मण ने जो िव लेषण सीता का िकया, वह उसे वीकार नह था।
िन य वैिम क कम करते हए वा मीिक मुिन के आ म म वास करती हई सीता उ ह िदन
क मृितय के च म मण करती हई कई बार स य क खोज के लए वयं से उलझी है,
जूझी है अपने से, िक तु प रणाम वही ढाक के तीन पात। उ ह हर बार यातना सहने के लए
बा य होना पड ा। आ खर ी का अपना अ त व य नह है? वह ि तीय कोिट का यि व
बनकर रह जाती है। आ खर िकस अ धकार से उ ह राम ने िनवासन िदया? रावण क लंका म
उनका अपना दोष होते हए भी राम और ल मण के ि कोण से देखा जाए तो वे भी उसी कार
दोषी ह। आ खर राम भी तो मायावी ह रण क माया के भुलावे म आ गए थे।
सीता के ही एक मन ने कहा राम क यह कमजोरी मेरे ित भावुक होने क थी, वे मेरी इ छा
को टाल नह सके। वे चाहते तो मुझे गलत बताकर टाल सकते थे।
यिद वे ही मेरी इ छा को टाल देते तो इतना बड ा अिन होने से बच जाता।
लेिकन यह अिन कहां है? मेरे मा यम से ही तो रावण और उसके अनेक ददु ा त रा स का
िवनाश हो सका।
लेिकन कैसा भयानक समय था! इधर म िबलकु ल असहाय, अकेली द ु रा स के बीच म
बेबस थी और उधर राम पणकु टी म मुझे न पाकर दीन-हीन और संताप से मोिहत गोदावरी के तट
पर मुझे पुकार रहे थे...।
“सीता कहां है? या रा स रावण ारा हर ली गई? ऐ गोदावरी! या तू भी चुप रहेगी?
वैदेही के बारे म मुझे कु छ नह बताएगी?”
राम पर इस समय िवि ता हावी हो रही थी। वे ल मण से बोले‒
“सौ य! यह गोदावरी नदी तो मुझे कोई उ र ही नह देती। अब म राजा जनक के िमलने पर
उ ह या जवाब दग ं ू ा? जानक के िबना उसक माता से िमलकर म उ ह यह अि य समाचार
कैसे सुना पाऊंगा? मुझ रा यहीन के साथ फल-फूल पर िनवाह करने वाली वह जनक सुता अब
कहां िमलेगी?”
लंबी सांस लेते हए राम ने कहा‒
“तुमने िकतनी बड ी भूल क ल मण! तुम सीता क िति या को टाल नह सके? जबिक
तुम जानते हो िक यां कभी व तुिन सोच ही नह सकत , वे सदैव यि िन होकर सोचती
ह। म भी िकतना मूख था, यह जानते हए भी िक वह मृग सामा य नह , एक िविच िविश ता
लये है, िफर भी उसक माया को जान न सका और उसके पीछे चल िदया।
देखो, ये रा स के पैर के िनशान, ये टू टा धनुष, ये रथ के िबखरे हए टु कड े और देखो
ल मण! ये घुघं , सीता के आभूषण म लगे हए ये घुघ ं ।”
“अरे !” िफर च ककर राम बोले, “यहां तो र क बूदं भी पड ी ह। ऐसा लगता है िक इस
भूिम पर भयानक यु हआ है।”
आगे बढ ने पर उ ह सोने का कवच पड ा िमला। एक छ िमला, जसका दंड टू टा हआ
था। इधर-उधर भयानक बाण िबखरे पड े थे।
राम क दशा ल मण के लए असहनीय हो रही थी।
“रघुनदं न! आपको इस कार िवलाप नह करना चािहए। शा त होकर िवचार करना चािहए,
सीता का अपहरण िकसने िकया ह, उसी क खोज करनी चािहए। आप और म धनुष बाण लेकर
बड े-बड े ऋिषय क सहायता से उ ह खोज सकते ह। हम समु म खोजगे, पवत और
वन म उ ह ढू ढं गे, सरोवर छान मारगे। देव, ग धव और पाताललोक म भी तलाश करगे। हे
कोशल नरे श! जब तक देवी सीता का पता हम नह लग जाएगा, हम शा त नह बैठगे। और
िफर हे भैया! यिद आप इस दख ु को धैयपूवक नह सहगे तो िफर साधारण पु ष क या गित
होगी?”
“ल मण! दख ु पड ने पर हर यि साधारण हो जाता है। म भी इस समय एक पित क
तरह सीता का िवयोग सह रहा ह।ं ”
“पर हे देव! शोक से सम या का समाधान नह हो पाएगा।”
राम और ल मण दोन को ही सीता के अक मात् इस कार खो जाने का दख
ु था और इसी
दख
ु म वे दोन इधर-उधर भटकते हए आगे बढ रहे थे।
अभी वे कु छ ही आगे बढ े थे िक उ ह प ीराज जटायु िदखाई पड े।
पहले तो राम को लगा िक यह अव य ही जटायु के प म कोई मायावी रा स है, लेिकन
बाद म उनक यह ददु शा देखकर और समीप आकर उ ह पहचाना तो कर यह िव वास हो गया
िक वे प ीराज जटायु ही ह, जो उनके िपता के िम थे।
जटायु अध मू छत थे, लेिकन राम क पदचाप से उ ह ने पहचान लया और बोले‒
“हे राम! इस दज
ु न वन म तुम जसे औष ध के समान ढू ढं रहे हो, वह देवी सीता और मेरे
ाण को रावण ने हर लया है।”
“हे जटायुराज! रावण ने सीता को हर लया है?”
“हां राम! तु हारे और ल मण के न रहने पर वह महाबली रावण आया और सीता को हरकर
ले जाने लगा।”
“जब मने सीता क चीख-पुकार और िवलाप सुना तो मने देखा िक अरे , यह तो जानक ह
और यह द ु रा स इ ह हरकर ले जा रहा है तो मने उसके साथ यु भी िकया, िक तु मेरी या
साम य! म तो बूढ ा हो गया ह।ं जतना संघष म कर सकता था, उतना िकया। मने उस रावण
का रथ तोड िदया, छ िगरा िदया, रथ का सारथी मार िदया, घोड े घायल कर िदए। एक
बार तो रावण को भी मू छत कर िदया, लेिकन तब तक म भी बहत थक गया था। मेरे पास
इतनी शि नह थी िक म उड कर आपको सूिचत कर सकता, न इतना समय था।”
च च के इशारे से जटायु ने िदखाया िक वह सामने रावण का सारथी मरा पड ा है।
“लेिकन जब रावण को शी ही होश आ गया तो उसने सीता को एक ओर पटककर मेरे पंख
काट िदए और िवदेहकु मारी को लेकर आकाश म उड गया।”
राम ने धनुष बाण छोड कर िग राज जटायु को गले से लगा लया।
जटायु म थोड े ही ाण बाक थे, िफर भी उ ह ने राम को यह बता िदया िक यह रावण
महिष िव वा का पु और कु बेर का सगा भाई है।
“और एक बात, जस मुहत म रावण सीता को ले गया है, वह ‘िब द’ था। इसम खोया हआ
धन शी ही उसके वामी को िमल जाता है। अतः तुम अपने मन म खेद न करो। सं ाम म
रावण का वध करके तुम सीता को पुनः ा कर लोगे।”
यह कहकर प ीराज जटायु ने अपने ाण का प र याग कर िदया।
िकतने अकेले पड गए थे राम, इस घने वन म कह कोई आसरा नह था। इतना क तो
उ ह अयो या से वन आते समय भी अनुभव नह हआ, जतना इस समय सीता के िवयोग से हो
रहा था य िक एक रा स, जसका कोई अता-पता नह , उससे यु करके सीता को ा करना
है, लेिकन उसक शि तक का ान नह ।
सौभा य से वे एक ऐसी जगह पहचं े, जहां उ ह कब ध िमला। श ल से यह बड ा भयावह
था। न इसका म तक था, न गला, केवल घड था। छाती म ही ललाट के नीचे एक आंख थी।
इस कब ध ने दोन भाइय को दो हाथ से पकड कर अपने हाथ फैलाकर लटका िदया। वह
भूखा था, इससे पहले िक वह इनको अपना ास बनाता, दोन ने िमलकर उस द ु क एक-एक
भुजा काट दी। अब वह िबना हाथ के धरती पर िगरा तड पने लगा।
उसी के कहने पर राम ने उसका दाह-सं कार िकया, य िक वह इस शरीर म एक ऋिष का
शाप भोग रहा था और इन हाथ के कटने से वह उस शाप से मु हो गया था। उसी ने राम को
बताया िक वानर जाित के सु ीव बड े मन वी वीर ह, वे आपक सहायता करगे। वे वयं
अपने बड े भाई बाली के अ याचार से दख
ु ी ह।
आप यहां से शी ही सु ीव के पास जाएं और उससे मै ी संबध
ं थािपत कर।
सु ीव इ छानु प शरीर धारण करने वाले, परा मी और कृत ह और वे वयं भी अपने
लए एक सहायक ढू ढं रहे ह। वे ऋ रजा के सुपु ह और बाली से भयभीत होकर ही पंपा
सरोवर के िनकट अपना िनवासन काल िबता रहे ह। हे राघव! जहां तक म समझता ह,ं संसार म
शायद ही ऐसा कोई थान हो या व तु हो, जो सु ीव के लए अ ात हो।
निदय , पवत , दगु म थान , िग र-क दराओं तक म खोजकर वे आपक प नी का पता लगा
लगे। अपने वानर दतू को भेजकर रावण के घर से भी सीता को ढू ढं िनकालगे। िफर चाहे
आपक प नी मे पवत के अ भाग म पहच ं ाई गई हो या पाताल म रखी गई हो। सु ीव रा स
का वध करके भी उसका पता लगा दगे।
कब ध के ारा राम को यह ात हो गया िक यिद सु ीव से िम ता कर ली जाए तो िन चय
ही वे सीता का पता लगाने म सरलता से सफल हो सकगे। यही सोचकर वे दोन भाई अपने माग
पर पंपा सरोवर क ओर चल िदए।
उ ह यह भी ात नह था िक उस वन म कोई उनक अन य भि म जीवन क अथक साधना
लये, उनका यान करके तप या कर रही है, वह शबरी थी।
यही स तप वनी राम को देखकर हाथ जोड कर खड ी हो गई और बोली‒
“हे भु! आपके दशन करके ही मेरी तप या स हो गई।” इसके बाद राम क सेवा करने के
उपरा त उस देवी ने ाण याग िदए और यहां से ये लोग ऋ यमूक पवत क िदशा म बढ गए।
िकतनी दरी
ू थी सीता को पाने के बीच म? अब उ ह सु ीव क खोज करनी थी।
राम-ल मण दोन ही भाई उि अपने माग पर आगे बढ रहे थे। ऋ यमूक पवत क एक
चोटी पर बैठे सु ीव अपने िम हनुमान, जा बवान और नल-नील के साथ अपनी िचंताओं म
य त थे।
अचानक जब उ ह ने माग म आते हए इन दो युवक को देखा तो वे डर गए। उ ह बाली का
भय था। शी ही उनके मन म यह याल आया, अव य ही बाली ने उ ह उसके वध के लए
भेजा है।
सु ीव को इस कार िचंता त देखकर महाबली हनुमान बोले‒
“आप िचंता मत क जए ीमान! इस मलय पवत पर बाली का कोई भय नह है और यिद
आपको इनसे भय लग रहा है तो मुझे आदेश द, म अभी आपको वा तिवकता बताता ह।ं उनका
प रचय लेकर आता ह।ं ”
हनुमान महाबली थे ही, िव ान भी थे। वे समझ गए िक ये अव य ही पु ष वेश म कोई
िद या मा ह, िफर भी वे ा णवेश म उनके स मुख गए और उ ह ने अनुभव िकया िक महाराज
सु ीव का संदेह िनमूल था। ये तो वयं यहां के उ ंड रा स से त ह।
तथा ये राम-ल मण अयो या के महाराज दशरथ के पु ह और इनके साथ राम क प नी भी
थ , जसे द ु रावण हरकर ले गया है। ये तो वयं सु ीव से िमलकर, उनसे िम ता करके सीता
क खोज म उनक सहायता लेना चाहते ह।
सु ीव से भट होने पर राम को एक संतोष िमला िक चलो, इस वन म वे अकेले नह ह। उन
जैसा दख
ु ी आ मा सु ीव भी है, जसक प नी और रा य का अपहरण उसके भाई बाली ने िकया
है।
सु ीव को राम ने िव वास िदलाया, “ि यवर! अब तुम हमारे िम हो और अब तु हारा दख

हमारा दख
ु है। अतः हम भरोसा िदलाते ह िक तु हारा यह क शी ही िमट जाएगा।”
राम जैसे िम को पाकर सु ीव भी ध य हो गया।
अब राम के सामने सबसे पहला ल य यही था िक िकसी भी कार उप म करके सु ीव को
उसका रा य वापस लौटाना और उसक प नी को उसे स पना। वे जानते थे िक बाली बहत उ ंड
है, इस लए उसका वध आव यक है।
यही हआ भी, राम के कहने पर सु ीव ने उसक नगरी म जाकर बाली को ललकारते हए यु
का िनमं ण िदया और िफर दोन म घमासान यु हआ।
अपने िदए आ वासन के अनुसार राम को वृ क आड लेकर बाली को मारना था,
लेिकन संकट यह हआ िक दोन ही भाई श ल से इतने समान थे िक राम उनक पहचान ही नह
कर पाए िक कौन बाली है और कौन सु ीव। सु ीव जब बाली क मार सहन नह कर सका तो
भाग खड ा हआ।
अबक बार राम ने उसके गले म पहचान के लए अपनी माला डाल दी और बाली को एक ही
बाण से मार डाला।
वादे के अनुसार बाली के मरने के बाद सु ीव िक क धा के नरे श हो गए, लेिकन बाली-पु
अंगद को उ ह ने युवराज बनाकर प रवार क कटु ता को भी आगे बढ ने से रोक िदया। सु ीव
को उसक प नी िमल गई।
एक लंबे समय के बाद रा य और प नी-सुख म सु ीव कु छ समय के लए इतना खो गया
िक वह यही भूल गया िक उसे राम का काय भी स प कराना है, लेिकन राम तो उदार थे।
उ ह ने अपने अनुज ल मण को भेजकर वषा ऋतु बीतने पर यह मरण िदलाया िक‒
“हे महाराज सु ीव! अब माग साफ हो चुके ह। आपका अपनी ित ा पूरी करने का समय
आ गया है।”
आदेश क देर थी, आ ाकारी सेवक सु ीव पूरी तरह से राम के काय म जुट गए। उनके लए
चार िदशाओं म अपने वानर दतू भेजना कोई बड ी बात नह थी। शी ही बड े-बड े
वानर यूथपितय को अपनी सेना सिहत, दल-बल सिहत िक क धा बुला लया गया। वानर तो
शाखा-मृग होते ह, पलक झपकते ही कू दते-फांदते िक क धा म आ गए।
उ र, दि ण, पूरब, प चम चार िदशाओं म खोज के लए उ ह भेजा गया और यह अव ध
िन चत कर दी िक एक मास के भीतर उ ह सीता क खोज करके अपने काय का िववरण देने
वापस लौटकर यह उप थत होना है।
अनुमान यह था िक रावण सीता को दि ण िदशा म लेकर गया है, इस लए दि ण िदशा म
खोज का काय अंगद के नेतृ व म हनुमान को स पा गया और शायद राम को हनुमान क कु शल
मता पर िव वास था। अतः उ ह ने अपनी मुि का हनुमान को देते हए कहा‒
“ि यवर! मुझे िव वास है, सीता क खोज का य
े तु हारे ही हाथ होगा। अतः यिद तु ह कह
जनकसुता िमल तो पहचान के लए इसे ले जाओ। सीता तु हारा िव वास करगी और मेरा दतू
जानकर तु ह अपना संदेश भी दगी।”
िकतना असीम सुख का वह ण था, जब चार ओर से िघरी हई सीता रा स के जाल म
फंसी िबना पानी क मछली क तरह जीवन और मृ यु के बीच फड फड ा रही थ । उस
समय राम का समाचार उनके लए अमृत-सा हो गया। उ ह क पना म भी यह िव वास नह था
िक वे इस रा स क कारा से मु भी हो पाएंगी या नह ।
उनके भा य म या लखा है, यह वह कैसे जान पात । िववाह के बाद कु छ ही िदन तो
राजमहल का सुख देखा था, िफर यह वनवास िमल गया। तेरह वष वनवास क अव ध बीतते-
बीतते वे वयं माया के च म फंसकर इस संकट म उलझ गई ं और द ु दानव रावण ने छल से
उ ह हर लया। यह हरण िनयित ने िकया, रावण तो मा मा यम बना।
भा य म इतना समय घोर भय त यातना का था, जो उ ह ने यहां रावण क कारा म िबताया।
शु म तो जब हनुमान के मुंह से सीता ने अपनी कथा सुनी िक िकस कार अयो यापित
महाराज दशरथ के चार पु उ प हए, बड े हए, उनका एक साथ िववाह हआ, रानी कैकेयी
के वरदान व प राम को रा यािभषेक क जगह वनवास हआ और िफर एक िदन रावण ने सीता
का अपहरण िकया तो उ ह लगा िक अव य ही यह कोई रा स रावण क मायावी चाल है, जो
उ ह राम क कथा का यह कणसुख देकर छलना चाहती है। िफर जब हनुमान ने वा तिवकता
बताई तो वे आ चयचिकत रह गई।ं उनके सामने ीराम क दी हई वह मुि का थी। अब तो संदेह
के लए कोई अवकाश ही नह था।
आ चय क बात तो यह थी िक पवन-पु हनुमान एकमा ऐसे वीर थे, जो अपने बल पर सौ
योजन लंबा यह समु पार करके उन तक पहच
ं े।
हनुमान को तो अपने इस बल का मरण भी नह था, य िक बालपन म ही उनक इस
अलौिकक परा मणशीलता को देखकर उनको इस बल को भूल जाने का शाप िमल चुका था,
लेिकन वयोवृ िचरवान जामव त के मरण िदलाने पर उ ह यह याद आ गया िक वे तो
महाबलशाली ह। यह समु तो या, वह इस पृ वी क प र मा भी कर सकते ह। तो िफर या
था, ‘जय ीराम’ कहते हए पलक झपकते ही हनुमान लंका के ि कू ट पवत पर जा पहच
ं े।
सीता भी जानती थ िक राम उनके पास िकसी ऐसे यि को नह भेजगे, जसके परा म
और शील का उ ह ान न हो। इस लए हनुमान पर अिव वास करने का उनके पास कोई आधार
नह था।
पित के हाथ क उस मुि का को यान से देखते हए सीता इतनी स हइ मानो कु छ ण के
लए उनके पित उनके सामने आ गए ह और उस क पना िबंद ु म जो सुख उ ह िमला, वह इस
रा सपुरी म दल
ु भ था।
हनुमान ने सीता को आ व त करते हए कहा‒
“हे देवी! ीराम को यह ात नह िक आप लंका म ह और यह लंका समु पार यहां इस
ि कू ट पवत पर बसी हई है। इसी लए उ ह ने वानरराज सु ीव से िम ता करके सबसे पहले
आपक खोज का काय पूरा िकया है। आप इस बारे म लेशमा भी िचंता न कर। राम अ ुत
शि के के ह, वे चाह तो समु पर अपने बाण का पुल बनाकर इस लंकापुरी म पहच ं सकते
ह। आप कु छ ही समय म ीराम के दशन करगी।”
राम के बारे म यह सुनकर सीता क आंख म आंसू आ गए और वे सोचने लग , ‘जब राम
पणकु टी लौटे ह गे और मुझे नह पाया होगा तो िकतना िवलाप िकया होगा उ ह ने।’
आज उ ह इस लंका म आए दस माह बीत चुके ह। अब दो मास का समय केवल शेष है, यिद
राम ने इस अव ध के भीतर ही य न करके मुझे रावण क कारा से मु नह कराया तो िन चय
ही मेरा जीवन पूरा हो जाएगा। रावण के भाई िवभीषण ने तो रावण को बहत समझाने का यास
िकया, लेिकन उस द ु क बुि पर तो कोई असर नह हआ।’
सीता क यह िव लता देखकर हनुमान ने कहा‒
“देवी! इतनी अधीर न होइए, धैय धारण क जए। राम अव य ही वानर क सेना सिहत यहां
पहच
ं कर रावण का वध करके आपको मु कराएंगे या कह तो म अभी आपको इस रा स क
कारा से मु करा सकता ह।ं आप मेरी पीठ पर बैठ जाइए, म समु लांघ जाऊंगा। मुझम रावण
सिहत सारी लंका को ढो ले जाने क शि है और आज ही आप ीराम के समीप पहच ं
जाएंगी।”
“हनुमान! म तु हारी शि पहचानती ह,ं िक तु हे वानर िशरोमिण! रावण तो मुझे बलपूवक
मेरी अिन छा से उठाकर लाया, उस समय म िन पाय थी, िक तु एक सती प नी के लए िकसी
पु ष का पश पाप होता है। अतः म चाहकर भी तु हारे इस ताव को वीकार नह कर
सकती। तुम तो ीराम से मेरा यही िनवेदन करना िक वे शी ही लंका पर चढ ाई करके, द ु
रावण का वध करके मुझे उसक कारा से मु कराएं।
हां, तुमने यहां मुझे दशन देकर जतना स िकया है, यह मेरा मन जानता है। अतः तुमने जो
मुझे पहचान के प म यह मुि का दी है, इसके बदले म तु ह यह चूड ामिण दे रही ह।ं यह तुम
उ ह स प देना और कहना िक वामी! देवी सीता ने कहा है िक जसका यह कंठहार है, वह
आपके लए अ य त याकु ल है, उसे आपका साि य कब िमलेगा?
हनुमान! म तु ह एक संग और बताती ह‒
ं िच कू ट पवत पर मंदािकनी नदी के समीप जब म
तापस आ म म िनवास करती थी, उस समय एक कौआ आकर बार-बार मुझ पर च च मार रहा
था। म उस पर ो धत थी। अतः अपने लहंगे को ढ तापूवक कसने के लए किटसू को
ख चने लगी, उस समय मेरा व कु छ नीचे खसक गया और उस अव था म आपने मुझे देख
लया। आपने मेरी हंसी उड ाई, लेिकन कौए क हरकत कम नह हई। कु छ देर बाद जब आप
मेरी गोद म सर रखकर सो रहे थे तो वह कौआ िफर आकर मेरे तन के ऊपरी भाग म च च
मार गया, जससे टपक लह क बूदं आपके कपोल पर पड ी और लह क गम से आप जाग
उठे और जब आपको यह ात हआ िक यह हरकत द ु कौए क है तो हे नाथ! आपने कु श क
चटाई से एक कु श िनकालकर उसे ा से अिभमंि त कर कौए क ओर फक िदया। उस
कु श से बचने के लए वह कौआ तीन लोक म घूम आया, लेिकन राम के ा से बचाव का
कोई उपाय उसे कह नह िमला। िकसी ने उसे शरण नह दी, अंत म वह वयं थककर राम क
शरण म आया और आप उदारमना ने उसके ाण क र ा करते हए उसक दािहनी आंख न
कर दी।
यह संग कहते हए हे हनुमान! तुम ाणनाथ से कहना‒एक साधारण अपराध करने वाले
कौए पर भी ा का योग करने वाले राम! जो आपके पास से मुझे हर ले आया है, आप
उसे कैसे दंिडत नह कर रहे?
िन संदेह मेरा ही कोई महान पाप मुझे उिदत हआ है, जसके कारण ैलो य म सव प र वीर
और स म होने पर भी मुझ पर कृपा ि नह हो रही है।”
यह कहते हए सीता िफर रोने लग ।
हनुमान ने उ ह आ व त करते हए कहा‒
“देवी! आप अब िन चंत हो जाइए। राम के य न म सबसे बड ी बाधा आपक खोज क
थी, जसे मने उनके ताप से आपको पाकर हल कर लया है। अब तापी राम शी ही आपक
अव ध से पूव उस द ु रावण का वध करके आपको कारा से मु करा दगे।”
महिष वा मीिक के आ म म आज सीता को आए हए कई मास बीत चुके थे और अब वह
िदन भी समीप आने को था, जब उनके अंक म पल रहा राम का अंश अब पृ वी पर पदापण
करे गा।
यिद यह न होता तो वे यह िवयोग का समय इस कार न काटत । जब ल मण उ ह राम के
ारा िनवा सत िकए जाने का आदेश लेकर भागीरथी के तट पर छोड कर गए थे, वे तभी
भागीरथी के जल म अपना यह शरीर समिपत कर देत !
िबना पित के जीवन का कोई आधार नह होता, लेिकन अंक म पल रहा यह वीर तो िनद ष
था। अतः उसक ह या का दोष वे अपने सर नह ले सकती थ । पित न सही, पु को तो वह
अपनी ममता दे ही सकती ह और िफर अयो या क राजमिहषी होने के कारण उनका दािय व भी
तो था िक वे अयो या के उ रा धकारी को ज म द।
और उ ह ने यह लंबा समय इसी एक अिभलाषा म काट िदया।
सीता ने बचपन म अपने िपता का भरपूर नेह पाया, उ ह के संर ण म वे पली-बढ और
एक व न लेकर वे अयो या आई थ िक यहां भी वसुर िपता क भरपूर सेवा करगी, लेिकन
िनयित का च ऐसा उ टा घूमा िक न सेवा ही कर पाई ं और न िपता ही रह पाए और यह च
एक बार िफर घूमा। िनवासन क यं णा सहते हए ही सही, सीता को महिष वा मीिक के प म
एक बार िफर िपता िमले।
इस आ म म िपता के वा स य क छाया म वे जो आ मसंबल पा सक ह, यिद महिष
वा मीिक न िमलते तो वहां के िहंस पशु उनक सारी आशा और आकां ा को अपने जबड
और नाखून से न चकर खा जाते।
िवधाता िकतना यायकारी है! संकट म भी जीवन का कोई-न-कोई सू अव य बना देता है‒
रावण क लंका म भय त सीता अशोक वािटका म अव ध को पास आते जानकर िकतना
सं त हो जाती थ , िक तु समय रहते ही वीर हनुमान ने आकर िकतना बल िदया था उ ह और
एक आशा जगा दी थी िक अव ध समा होने से पूव ही राम उ ह इस कारा से मु करा दगे।
िकतना बड ा अंतर आ गया था इस आशा से। कहां तो वे यह सोचकर एक-एक िदन काट
रही थ िक हर बीतने वाला िदन उनके जीवन क समाि क अव ध को िकतना समीप ला रहा
है और कहां हनुमान के आने के बाद और यह आ व त पा जाने के बाद िक ीराम अव ध से
पूव ही मु करा लगे, अब वह येक पल इस आशा म काट रही थ िक सुखद जीवन और इस
कारागार के बीच हर ण कम हो रहे ह।
एक िदन उ ह ने यह भी सुना िक ीराम समु पर सेतु बनाकर लंका क भूिम पर आ चुके ह।
अब वे शी ही अपनी सेना सिहत, जसे उ ह ने वानर क सहायता से संगिठत िकया है, रावण
पर आ मण कर दगे।
जब हनुमान लंका से लौटकर गए थे तो अपने ारा मचाए उ पात से उ ह ने एक बार तो सारी
लंका को ही िहला िदया और रावण को यह प जता िदया िक-हे मूख जस राम को तू
साधारण नर समझ रहा है, उसका एक दतू ही तेरी इस लंका को जलाने क मता रखता है तो
सोच राम के कोप का तुझ पर या भाव पड ेगा। तू उस िवनाश क क पना भी नह कर
सकता।
अतः जब लंका म दबु ारा हलचल मची और चार तरफ दहशत फैल गई िक वही वानर जो
पहले लंका को जलाकर गया था, िफर आ गया है तो अशोक वािटका म राम के िवचार म म
सीता अ य त स हो उठ ।
यह तो उ ह बाद म ात हआ िक यह हनुमान नह , ब क िक क धा का युवराज और बाली
का पु अंगद था जसने रावण के दरबार म उसे यह कहकर चुनौती दी, “हे रावण! या तो सीता
को आगे करके अपनी रािनय सिहत हाथ जोड कर, नंगे पैर चलते हए ीराम के सामने
जाकर उनके चरणो म सर नवाकर अपने अपराध क मा मांग ले। राम उदार ह, तु ह मा
कर देगे, वरना तु हारी लंका अब बहत िदन तु हारी नह रह पाएगी।”
िकतना द ु था यह रावण! जसने स परामश देने वाले अपने भाई को भी इस अहंकार म िक
मेरा कोई या िबगाड सकता है, अपमािनत करके राजदरबार से िनकाल िदया।
िवभीषण तो थे ही रामभ । उ ह ने भी राम के चरण म शरण ली थी, लेिकन इस द ु रावण
को बुि नह आई िक म अपने अहंकार को यागकर, व तु थित को समझते हए समपण कर
द।ं ू
यु अव य भावी हो गया।
अंगद क वापसी के बाद सीता ितफल का िबगुल सुनने के लए आतुर हो उठी, य िक अब
तो दोन ही शि यां आमने-सामने थ । राम अपनी पूरी सेना सिहत लंका के परकोटे से बाहर
अपना डेरा जमाए हए थे। चार ओर से उ र, प चम, पूव, दि ण, चार ार पर उनक वानर
सेना कु शल सेनापित के नेतृ व म आ मण के ार भ करने के आदेश क ती ा कर रही थी।
सीता के लए अब वह समय आ गया, जब उ ह राम के अंश को ज म देना था। वे सव-
पीड ा अनुभव कर रही थ । एक यह भी सव पीड ा है, जब उ ह अयो या के उ रा धकारी
को ज म देना है और एक वह भी सव पीड ा थी, जब राम क सेना को ार तोड कर लंका
म वेश पाना था। एक यु क शु आत का ण था और दसरा ू नौ मास के प चात् िनिमत को
तुत करने का ण था।
आ म के बाहर महिष वा मीिक माथे पर पसीने क बूदं लये आ-जा रहे थे। भीतर महिष क
प नी और कु शल सव ि या कराने वाली दाई अपने काय म संल थी और सीता इस समय
भी जीवन-मरण के बीच िहचकोले खा रही थ ।
कु छ ण का अ तराल और िफर एक दन का वर।
सीता ने एक बालक को ज म िदया, िक तु उनके माथे का पसीना अभी नह सूखा था। वे अभी
भी भयानक पीड ा से त थ । उनके दख ु का पूरा अंत अभी नह हआ था, वह छटपटा रही
थ मानो मृ यु उनके ार पर द तक दे रही थी, लेिकन भीतर से उनका आ मबल उनक
जजीिवषा को थामे हए था। वे अभी भी जीवन-मृ यु के बीच संघष कर रही थ । कु छ देर बार
िफर से उनक बेचनै ी बढ ी, िफर से हाथ-पांव िन य हए, िफर से जबड ा कसा, एक बार
िफर शरीर ऐंठा मानो जीवन-सं ाम के बाद एक दन का दसरा ू वर उभरा और इसके बाद
सीता शा त हो गई मानो उ ह ने बहत बड ी वेदना से मुि पा ली। इस मुि के साथ-साथ
अतीत के िच म मण करती सीता ने वह यु का िबगुल भी सुना‒उ ह लगा राम ने लंका पर
आ मण कर िदया और उनक मुि का शंख बज गया।
सीता क अि -परी ा
राम ने रावण क लंका पर अपनी वानर सेना सिहत आ मण कर िदया। हनुमान, सु ीव,
नल, नील, अंगद, सुषेण, महाराज केसरी आिद बड े-बड े िद गज रणबांकुरे वानर और भील
अपने हाथ म बड े-बड े वृ तथा च ान उठाए रा स पर वार करने लगे।
रा स अपने ह थयार बरछी, भाल और तलवार से लड रहे थे तथा वानर उन पर पाषाण
से हार कर रहे थे। हनुमान, सु ीव अपनी गदा से अनेक रा स महावीर का संहार कर रहे थे।
यु म रा स परा जत हए।
एक थित तो वह आई, जब ीराम और ल मण को इ जीत मेघनाद ने नागपाश म बांध
लया। जामव त इनक सेना म बड े अनुभवी और सहनशील यो ा थे। अतः वे जानते थे िक
यह संकट कु छ ही पल का है, लेिकन रावण के लए यह समय बड ा लाभकारी था।
नागपाश म बंधे राम और ल मण अचेत पड े थे, जबिक रावण इस अवसर का पूरा लाभ
उठाना चाहता था। अतः उसने ि जटा और अ य रा सय को आदेश िदया िक वे शी ही पु पक
िवमान पर सीता को चढ ाकर रणभूिम म मारे गए उनके पित और देवर के दशन करा द। तब
सीता क वह आशा भी समा हो जाएगी, जसके भरोसे वह अभी तक यह सोचे बैठी है िक राम
आएंगे और उसे अव य एक िदन मु करा लगे।
इ ह मृत देखकर िन चय ही सीता को वयं मेरे पास आना होगा।
यह सोचकर रावण मन-ही-मन स हआ िक उसके पु इ जीत ने उसके श ुओं को
मारकर उसका संकट सदा-सदा के लए दरू कर िदया है।
पु पक िवमान पर बैठी सीता ने देखा िक अचेत राम और ल मण के पास वानरगण अ य त
याकु ल और िवकल अव था म िदखाई पड रहे ह। सीता के लए यह बहत अ यािशत और
दख
ु दायी समाचार था।
अपने वामी और देवर को इस कार अचेत और असहाय भूिम पर पड ा देख वह कोमल
भाव वाली नारी िबलख उठी और क ण दन करती हई िवलाप करने लगी। उसके सामने सारा
योितष स ा त असफल हो गया था। जन ा ण ने उसे यह बताया था िक उसके पित के साथ
उसका रा यािभषेक होगा, ये बात उसे झूठी लगने लगी थ ।
िवलाप करते हए सीता सोच रही थ ‒ ज ह ने सारे जन थान को मेरे लए छान मारा, समु पर
पुल बांधकर वानर सेना सिहत रावण को परा जत करने के लए यहां तक आ गए ये दोन बंधु,
सभी िद या के ाता थे। िफर यह सब कु छ कैसे हो गया? या िवधाता मेरे िबलकु ल
ितकू ल है?
रावण ने सीता क र ा के लए जन रा सय को यह दािय व स पा था, उनम ि जटा वा तव
म एक देवी के समान थी। ि जटा ने सीता को सदैव पु ी के समान नेह िदया, वही अब उनके
साथ थी।
सीता को इस कार िबलखता हआ देख ि जटा से नह रहा गया और वह बोली‒
“िवषाद न कर पु ी! तु हारे पितदेव अचेत ह और कु छ ही ण म िफर से व थ हो जाएंग।े
तुम नह जानत , जस िवमान पर तुम िवराजमान हो, यह िद य िवमान है। यिद राम और
ल मण ाणहीन हो गए होते तो यह तु ह धारण न करता।
और तुम देख रही हो िक िकस कार सेना म एक य नशीलता झलक रही है। ये लोग राम
क चेतना को वापस लौटा लाने के लए यासरत ह।
हे सीता! तु हारा शील वभाव और िनमल च र मेरे मन म घर कर गया है। अतएव न मने
पहले कभी तुमसे झूठ बोला और न आज बोलूग ं ी। मेरा इ जानता है िक मने तु ह पु ी के
समान समझा है और िफर राम तो अिवन वर ह वे रावण के हाथ नह मारे जाएंग,े ब क
िवधाता ने तो रावण क मृ यु के लए ही राम को धरती पर भेजा है। ये ही सामा य ािणय के
ासहता ह। तुम दख ु याग दो पु ी!” और तब ि जटा के अंक से लगकर सीता ने िकतना सुख
अनुभव िकया था मानो बहत िदन बाद उ ह अपनी मां िमल गई हो और अभी सीता पु पक िवमान
से लौटकर वािटका म अपने िनयत थान पर आ भी नह पाई ं िक सम त रा स के चेहरे पर
िफर से आतंक छा गया तथा यह समाचार जंगल म लगी आग क तरह फैल गया िक राम और
ल मण िफर से व थ हो गए ह और यु के लए रावण को ललकार रहे ह।
उ ह यह भी ात हआ िक महा मा ग ड वयं बड े जोर के वेग से यु भूिम म तुत हए
और उ ह देखते ही वे महाबली नाग, ज ह ने बाण के प म राम और ल मण को बांध रखा था,
वहां से भाग खड े हए। महा मा ग ड का पश पाते ही राम और ल मण के सारे घाव भर
गए तथा वे पुनः पूवबल से यु हो गए।
यह समाचार सुनकर सीता के चेहरे पर िद य खुशी झलक आई और उनका ि जटा पर
िव वास और अ धक ढ हो गया।
िफर तो वानर सेना म एक अ यािशत जोश भर गया और उ ह ने रावण क सेना के वीर को
मौत के घाट उतारना शु कर िदया।
अकंपन मरा, ह त मरा, नरातक और देवातंक मारे गए, रावण का भाई कु भकण, जो
भयानक वीर था, वह भी मारा गया। यहां तक िक आितकेय, महोदर और महापा व भी मारे गए।
अब रावण क सेना म वीर के नाम पर केवल एक वीर बचा रह गया, रावण का ये पु
इ जीत।
इ जीत मायावी था। अतः उसने मायायु से वानर क सेना को व त करना आर भ कर
िदया। एक बार तो उसने अपने चाचा िवभीषण पर भी वार िकया, लेिकन ल मण ने उसको भी
िनर कर िदया।
राम क शि को समा करने के याल से मेघनाद ने ल मण पर महाशि का हार
िकया। ल मण उसक माया को न समझ सके और शि के िशकार हो गए।
सीता को ि जटा के ारा ही यह समाचार ात हआ िक महाबली हनुमान, जा बवान के आदेश
से ल मण के उपचार के लए िद य औष धय का पवत ही उठा लाए। यह काम केवल हनुमान
ही कर सकते थे।
मन-ही-मन सीता ने हनुमान को आशीवाद िदया और भुकृपा से संजीवनी औष ध के ताप से
शी ही ल मण चैत य हो गए।
य िप ल मण क अचेत अव था म राम क आंख के सामने अंधकार छा गया था, उनको
जीवन िन सार लगने लगा था। ल मण को खोकर यिद उ ह सीता िमल भी जाए तो या सुख पा
सकते ह। उनक िचंता का िवषय यही था िक वे माता कौश या को, सुिम ा को और िवशेषकर
उिमला को या उ र दगे।
माता कौश या ने तो चलते समय िवशेषकर यह कहा था िक चौदह वष बाद भी इसी तरह
लौटना व स! सीता और ल मण के साथ अथात् इसके पीछे शायद उनका यही अिभ ाय था िक
ल मण के िबना यह अयो या तु ह नह वीकार करे गी।
ल मण क मू छा क थित म राम यही सोचकर िवलाप कर रहे थे िक जस भाई ने उनके
संकट म इतना साथ िदया, उसक अनुप थित म अथात् उसके िबना वे रा य भी लेकर या
करगे और रा य ही या, उनके लए तो जीवन भी िन सार हो जाएगा।
लेिकन सौभा य से ऐसा कु छ नह हआ। सीता के चेहरे पर एक िद य स ता छा रही थी।
ल मण चेतना पा चुके थे और िफर से मेघनाद को यु के लए ललकारने लगे थे।
मेघनाद तो मायावी था ही, अबक बार वह वयं को और अ धक शि संप करने के लए
िनकु भला के मंिदर म जाकर पूजा करने लगा।
उसने तो राम और ल मण को िमत करने के लए सीता क मायावी ितमा का वध करके
राम और ल मण के सामने मृत िदखा िदया, तािक ये दोन भाई यु से उपराम होकर अपनी
पराजय वीकार करके, ह थयार डालकर िनराश लंका से लौट जाएं, लेिकन यहां भी यह मायावी
सफल नह हआ, य िक िवभीषण इन रा स क माया को जानते थे, अतः उ ह ने बताया,
“ जस सीता को आपने मेघनाद के हाथ मारी जाती हई देखा है, हे राम! वह सीता नह , ब क
एक मायावी जानक बनाई गई थी आपको िमत करने के लए, तािक आप उसके िवलाप म यह
राि गुजार द और वह अवसर का लाभ उठाकर िनकु भला मंिदर म जाकर पूजा का िवधान पूरा
कर ले।
िवषाद छोिड ए राम! और ल मण को इ जीत के वध के लए िनकु भला मंिदर क ओर
भे जए। यिद उसका होम पूरा हो गया तो िफर उसे सं ाम म परा त करना इ ािद देव के लए भी
किठन होगा।
ि जटा ने ही यह सुखद समाचार सीता को िदया िक‒
“हे देवी! अब तुम स हो जाओ। तु हारी मुि और ीराम के बीच अब केवल मा एक
ददु ा त रा स रावण ही बचा रह गया है।”
आ चयिम त स ता म सीता ने च ककर ि जटा से कहा‒
“ या तुम यह कहना चाहती हो िक मेरे वीर देवर ल मण ने इ जीत को मार डाला है?”
“हां देवी! तु हारे वीर देवर ने इ जीत को मार डाला है। उसका धड यु भूिम म पड ा है
और अब रावण अकेला रह गया है।”
एक लंबी सांस भरते हए सीता ने मन म िवचार िकया...पाप का अंत िन चत ही होता है।
वाह दरु ा मा रावण! तूने अपनी दभु ावनाओं को पूरा करने के लए िकतना बड ा अिन
आमंि त िकया। समूचे रा स वंश को मृ यु के ार पर धकेल िदया। हे नीच रा स, तूने तो
देवता समान भाई का भी अपमान िकया। कु बेर का अपमान तो तू पहले ही कर चुका था, तूने तो
िवभीषण का भी घोर अपमान िकया। उसक आ था और भि को खंिडत करना चाहा। आ था,
भि , िव वास कभी िकसी के खंिडत करने से खंिडत नह होते। िवभीषण का िव वास राम म
था तो देख तेरे ही कारण वह उनक शरण म गया।
रावण के लए मेघनाद के वध का समाचार िन चय ही उसक कमर को तोड ने के समान
था। अब वह भयानक ू रता पर उतर आया और यह िन चय कर लया िक वह सीता को
जीिवत नह छोड ेगा। उसक आंख ोध से लाल हो गई ं और वह बोला‒
“मेघनाद ने तो मायावी सीता का वध िकया था, म उस वा तिवक सीता को ही अब जीिवत
नह छोड ूंगा।”
यह िवचार करते ही वह अपनी तलवार लेकर कु िपत होता हआ सीता का वध करने के लए
अशोक वािटका पहच
ं गया।
सीता रा सिनय के बीच अपनी मुि के ण क ती ता से ती ा कर रही थ और इस
समाचार के लए आतुर थ िक कब रावण मारा जाएगा?
लेिकन अक मात् जब उसने रावण को अपनी ओर आते देखा तो वे प चाताप करने लग ।
उ ह लगा िक यह दबु ुि रा स जस तरह कु िपत होकर उनक ओर दौड ा आ रहा है, जान
पड ता है िक वह मुझ सनाथा को आज अनाथ क तरह मार डालेगा। वे णभर के लए
सोचने लग ...इससे तो अ छा था िक म हनमान क बात मानकर उसी समय उनक पीठ पर
बैठकर अपने पित के पास चली जाती।
मेरी सास देवी कौश या एक ही बेटे क मां ह। यिद वे यु म अपने पु के िवनाश का
समाचार सुनगी तो उनके मन पर या बीतेगी? वे तो पहले ही पितिवहीना ह। यह सुनकर तो
िन चय ही पु -िवयोग म सरयू म िवसजन कर जाएंगी और इस समय सीता को रावण पर यह
ोध देखकर वह द ु मंथरा याद आ गई, जसके कारण यह सारा कु च फलीभूत हआ।
इधर सीता रावण के ोध से डर रही थ िक आज यह द ु अव य ही मुझे मारने के िवचार से
आया है और जैसे ही रावण ने यान से तलवार िनकालकर सीता क ओर उसक गदन धड
से अलग करने के लए ऊपर उठाई, रावण के िव ान मं ी सुपा व ने त काल उसे रोकते हए
कहा‒
“ठह रए महाराज! आप तो सा ात् कु बेर के छोटे भाई ह। आप ोध म इस संकट के समय
धम का याग य कर रहे ह? हे रा सराज! आपने तो पूण प से िव धवत् चय का पालन
करते हए वेद-िव ा का अ ययन िकया है और जीवनपय त अपने कत य-पालन म लगे रहे।
आज आवेश म आकर एक अबला ी का वध करना आपको शोभा नह देता। हे पृ वीनाथ!
आप तो अजेय ह। संसार म आपके बल के सामने कौन िटक सकता है तो िफर आप अपना यह
ोध यु म राम पर य नह उतार रहे?”
रावण को सही िदशा दशाते हए सुपा व ने कहा‒
“हे शूरवीर िशरोमिण! राम का वध करके तो आप सीता को वैसे ही ा कर लगे।”
सुपा व के वचन से रावण क बुि िफर गई। उसने अपनी तलवार यान म रख ली।
यह देखकर सीता को संतोष हआ। रावण लौट गया था। अब उसका ल य राम थे।
सीता क आंख के सामने यकायक ोधी रावण क तलवार देखकर जो अंधरे ा छा गया था,
वह छंटने लगा था।
काल का अित मण कौन कर सकता था, आ खर रावण को अपने ारा िकए गए सम त
अहंकारज य पाप का ाय चत् भी तो करना था।
ातःकाल होते ही रावण कमर कसकर राम के स मुख अपनी सेना के साथ आ गया। यह
अमाव या थी। यह राि घनघोर अंधरे ी होती है। आज यह अंधरे ा िकस प को िनगलेगा? यह
िन चत नह था, पर दोन ही प से भीषण बाण-वषा होने लगी।
पूरा िदन यु म बीत गया। सं या होते-होते ु रावण ने ल मण को अपने ल य क सीमा म
लेकर अमोघ शि बाण छोड िदया।
ल मण िफर अचेत हो गए और रावण स मन वानर का नाश करता रहा।
राम ने जब यह देखा िक ल मण को शि बाण लग गया है और वह अचेत होकर धरती पर
िगर पड े ह तो उ ह ने अपना ोध रावण क सेना पर उतारना ार भ कर िदया और ऐसा लगा
मानो लयकाल म व लत अि रोष से उदी हो उठी है और ‘यह िवषाद का समय नह है’
यह सोचकर राम रावण के वध का िन चय करके अपनी सारी शि से भयानक यु करने
लगे। उनक आंख के सामने ल मण का लहलूहान शरीर घूम रहा था।
िफर कु छ देर बाद राम ने य न करके अपने दोन हाथ से ल मण के शरीर से उस शि बाण
को िनकाला और तोड डाला और ोध म यह िवचारकर ‘अब इस पापा मा रावण को मार
डाला जाए।’ उ ह ने अपने तीखे बाण से रावण को बेधना ार भ कर िदया।
राम के बाण क वषा को रावण सह न सका और भाग खड ा हआ।
जामव त ने एक बार िफर हनुमान से कहा‒
“वीरवर! जाओ और उ ह औष धय को एक बार िफर लेकर आओ। उ ह से ल मण के
जीवन क र ा होगी।”
पलक झपकते ही हनुमान महोदर पवत पर पहच
ं गए और िद य औष धय को उस पवत
सिहत उखाड लाए, जस पर वे लगी हई थ ।
वै सुषेण ने ल मण क िचिक सा क और ल मण एक बार िफर चैत य हो गए। अब राम के
सामने यही ल य था िक जैसे भी हो और जतना िदन बचा है, रावण को मारकर इस यु को
समा िकया जाए।
वयं इ ने उनके लए अपना िद य रथ भेजा और अब वे उस रथ पर िवराजमान हो रावण
के साथ अंितम यु के लए िभड गए।
ि जटा ने ही सीता को यह समाचार िदया‒
“हे रानी! रा स िशरोमिण रावण, महाराज राम के हाथ वीरगित को ा हो गया है।”
हष ास के साथ सीता ने जब सुना िक द ु रावण मारा गया है तो वे स ता से खल उठ ।
अब उनके वामी और उनके बीच म केवल एक औपचा रकता शेष रह गई थी।
अब वह उस ण क ती ा करने लग , जब वयं राम चलकर आएंगे अथवा हनुमान के
ारा उ ह बुलवाएंग।े
अपने आंगन म खेलते हए दोन ब च ‒कु श और लव क ओर िनहारती सीता सोच रही थ ‒
“िकतनी या ा तय कर आई ह वह। िकतनी आशाएं उनके सामने थ िक उ ह राम उसी उ साह
के साथ अपनाएंगे और उनका वह जीवन जो वण मृग के चम के लए ीराम को भेजने से
पहले था, वही िफर लौट आएगा लेिकन उनक सारी आशाओं पर उस समय तुषारापात हो गया,
जब िव धवत् नान यान से सुस जत सीता राम के स मुख गई ं और उ ह ने उ ह अपनाने से
इनकार करते हए कहा‒
भ े! मने यु म श ु को परा जत करके तु ह उसक कारा से मु करा िदया है। मुझ पर जो
कलंक लगा था, उसका मने ालन कर िदया है। कलंक और श ु दोन को ही एक साथ न
कर िदया है लेिकन मने यह तु ह पाने के लए नह , इस कलंक का ालन करने के लए ही
िकया था। तु हारे च र पर संदेह िकया जा सकता है, इसी लए तुम आज यहां खड ी हई मेरी
आंख म खटक रही हो।
हे जनक दलु ारी! तुम जहां इ छा हो, चली जाओ। अब तुमसे मेरा कोई योजन नह है। कौन
ऐसा कु लीन पु ष होगा, जो तेज वी होकर भी दसरे
ू घर म रही हई ी को केवल यह सोचकर
िक कभी वह उसक ाणि या रही है, मन से वीकार कर सकेगा? िफर तु ह तो रावण अपनी
गोद म उठाकर ले गया था। तुम पर अपनी कु सत ि भी डाल चुका है। ऐसे म म तु ह कैसे
हण कर सकता ह।ं
अतः हे सीते! मने जस उ े य से रावण के साथ यु िकया था, तु हारी मुि के साथ और
उसके मरण के साथ मेरा वह उ े य पूरा हो गया है। अब यह तुम पर िनभर करता है िक तुम
कहां जाओगी? य िक म तु ह अब वीकार नह कर सकता। मेरी ओर से तुम िबलकु ल वतं
हो।
मने तु ह बहत सोचने और समझने के बाद ही यह कहा है सीते! अब तुम चाहो तो भरत या
ल मण िकसी के साथ भी रहकर अपना जीवन सुख से यतीत कर सकती हो। अब यह तु हारी
इ छा पर िनभर करता है िक तुम श ु न, वानरराज सु ीव अथवा रा सराज िवभीषण के पास
भी रह सकती हो, य िक तुम जैसी िद य पा नारी को अपने घर म थत देखकर रावण
िचरकाल तक तुमसे दरू नह रह सका होगा।’’
सीता के लए राम का यह यवहार िबलकु ल अ यािशत था। एक कार से वे आकाश से
धरातल पर आ िगरी थ । उ ह ने तो व न म भी नह सोचा था िक राम उनके बारे म ऐसा सोच
भी सकते ह, लेिकन अब इस समय इस उप थत जनसमूह के सामने वे कह रहे ह तो या स य
ही ीराम ऐसा मानते ह। आ चयचिकत सीता क आंख म आंसू आ गए।
िकतनी कठोर बात उ ह ने इस समय उप थत जनसमुदाय के सामने कही।
आंख म आ लये सीता ने कहा‒
“हे ीराम! जस तरह आपने ये कठोर श द मेरे लए कहे ह, ऐसा तो कोई िन न कोिट का
यि , िन न कोिट क ी से ही कहता है, या आप मुझे ऐसा ही समझते ह? यिद आपके मन
म यही सब कु छ था तो िफर जब हनुमान को मेरी खोज के लए भेजा था, उसी समय आपने मुझे
य नह याग िदया। कम-से-कम म आपके मुख से ये कठोर श द सुनने से पहले अपने आप
को याग देती।
म पृ वी पु ी ह,ं साधारण मानव जाित से अलग हं राम! इसी लए मेरा आचरण भी अलौिकक
और िद य है। आपने मेरी इन िवशेषताओं को सामने नह रखा। मेरे शील, मेरी भि को एक
साथ भुला िदया?”
भरे गले से लािन का अनुभव करते हए सीता ने ल मण से कहा‒
“हे सौिम ! अब मेरे जीवन म कोई अिभलाषा, आकां ा नह है। म कलंिकत होकर अब
जीिवत नह रह सकती, तुम मेरे लए िचता तैयार करो।”
जस ी का पित, उसका पू य देव, आरा य उसे याग दे और भरी सभा म उसका इस तरह
च र को लेकर अपमान करे तथा िन पृह होकर उसका प र याग करे तो ऐसी दशा म कोई भी
स मान रखने वाली ी आ मदाह ही कर सकती है, जीिवत नह रह सकती।
और िफर राम को संबो धत करते हए सीता ने कहा‒
“हे नाथ! म अि को सा ी करके कहती हं िक म मन, वचन, कम से आपक ही रही।
बलात् रावण मुझे हरकर अव य ले गया लेिकन वह मेरा पश नह कर सका, मेरा नेह पाने
का तो न ही नह था। आप रावण के यहां मेरे वास पर लांछन लगाकर मेरा प र याग कर
सकते ह, लेिकन या यह परामश मुझे नह दी जएगा िक म अपना जीवन कहां िबताऊं? कृपया
अपने से अलग करते हए िकसी अ य के साथ मेरा नाम जोड कर मुझे अपमािनत न कर।”
आपने मुझे याग िदया, मुझे इसका लेशमा भी लेश नह है, य िक आप राजा ह और
आपके लए रा यमयादा भी एक न है, िक तु अपने जीवन का अ त करते समय भी यह
लेश मेरे साथ जाएगा िक आपने मन से मेरा अिव वास िकया। मुझे ल मण, सु ीव और
िवभीषण के साथ रहने का परामश िदया। आप इतने कठोर ह गे, मुझे आशा भी नह थी।”
ल मण ने दख
ु ी मन से सीता का आदेश-पालन करते हए िचता तो तैयार कर दी, लेिकन सीता
का यह जो अपमान हआ उसे देखकर ल मण अ य त दख ु ी हए।
य िप वयं हरण क थितयां सीता ारा ही बनाई गई थ और जब सीता सेवाभावी भ और
पुजारी ल मण के ित कठोर िवचार रखते हए उ ह अपनी ओर आकृ होने का दोष लगा
सकती ह तो वह तो वयं रावण के यहां रही ह तो राम ने दोष लगा िदया तो कु छ भी गलत नह
िकया, लेिकन ल मण के मन म यह भाव िबलकु ल नह आया। वे सीता को अब भी देवी, सती
और पू या ही मानते थे।
जैसे ही सीता ने दरू से राम को णाम करके ल मण के पास िठठकते हए यह कहा‒
“अ छा भैया ल मण! भूल से यिद तु हारे ित कोई अि य श द कहा हो तो मा कर देना।
अब तु हारी यह भाभी अ तम िवदा लेती है।”
ल मण ने जब यह सुना तो उनक आंख से टप-टप आंसू बहने लगे।
या िविच य था, राम के ित ोध म भरे ल मण के ने लाल थे और अि क ओर
बढ ती अपनी पू या भाभी को देखकर वे िवत भी हो रहे थे। िकतनी िवरोधी थितयां थ ।
िफर समूचे समुदाय को णाम करती हई रामि या सीता उस व लत अि क प र मा
करने के बाद अि को णाम करते हए बोल ‒
“हे अि देव! यिद मेरा दय एक ण के लए भी ीराम से दरू न हआ हो यिद मेरा च र
शु , पिव और िन कलंक हो; यिद मने मन, वचन, कम से अपने पित त धम का पालन िकया
है तो हे अि देव! मेरी र ा करना। आप ही जगत् के सा ी ह।”
यह कहते हए सीता उस जलती हई अि म कू द पड ।
सीता के अि म कू दते ही उप थत जनसमुदाय म रौ दन मच गया। सब लोग सीता को
आग म िगरते देखकर रो पड े और चार ओर आतनाद गूज ं उठा। ऐसा लगा मानो आकाश के
देवता राम से कह रहे ह ‒
“हे ीराम! तुम तो सकल जगत् के ाता हो, तुम सीता क उपे ा कर रहे हो? या तुम
वयं नह जानते िक सीता सब कार से शु , पिव और तु हारे ित समिपत है।”
सीता को अि म िव होते देखकर वे राम जो अभी तक कठोर मु ा अपनाए हए थे, फूट-
फूटकर रोने लगे और य ही राम के आंसू धरती पर िगरे मानो सीता क अि इन आंसुओं क
ही ती ा कर रही थी, शा त होने के लए। सामने जलती हई िचता क राख इधर-उधर िबखर
गई और ातःकालीन सूय क लाल-पीली आभा से यु तपे हए सोने क भांित भाववान् सीता
यथावत् उप थत थ ।
अि के शा त होने के बाद भी सीता सुरि त और पहले से अ धक सौ दयमयी होकर सामने
उप थत थ । ऐसा लग रहा था मानो वयं अि देव उ ह अपनी गोद म लेकर राम को समिपत
करते हए कह रहे ह ‒
“लो राम! तु हारी सीता िन पाप, िन कलंक, िनद ष है। इसे वीकार करो राम! शायद तुम नह
जानते, तुमने जानने का यास भी नह िकया और सीता को तुमने कहने का अवसर नह िदया
तथा सीता के अित र तु ह यह सब कु छ कोई कैसे बता सकता था िक जो कु छ सीता पर बीता
है, यह तो वही जानती है।
“हे राम! तुम तो माया-मृग को ल य बनाकर उसका वध करने वन म चले गए। छली मारीच
ने ल मण को वहां से हटाने के लए और सीता को िमत करने के लए ल मण और सीता को
आवाज तु हारी आवाज म दी थी। तुम वयं अपने वर म मारीच के मुख से िनकली आवाज को
सुनकर च क उठे थे तो िफर सीता के िमत होने म या दोष? अपने बल परा म का घम ड
करने वाला रा स रावण इसी अवसर क तलाश म था। उसने छल-बल से इस सती को सूने
आ म म अकेला पाकर उठा लया। नारी थी, इतना बल कहां से लाती िक द ु रावण का
ितरोध कर पाती? तुम तो वयं िद य बलयु हो राम! तुम वयं ल मण सिहत दो बार मायावी
मेघनाद के नागपाश म और शि घात से परा त हो चुके हो तो यह बेचारी अगर रावण का
सामना नह कर पाई तो उसम इसका या दोष?
और हे राम! रावण ने इसका हरण करके इसे अपने अ तःपुर म बंदी बना लया था। इस पर
पहरा िबठा िदया, िकतनी ही भयानक रा सिनय ने िदन-रात इसे ास िदया, तब भी इसका मन
आपक ओर से िवच लत नह हआ। िकतने ही लोभ िदए गए और िकतना आतंिकत नह िकया
रावण ने, लेिकन यह अ तरा मा से आपके ित िन ावान रहते हए कभी नह िडगी और रावण
भी इसको हर ले जाने का दोषी अव य है, लेिकन पु पक िवमान से वह इसे अशोक वन म
छोड गया तथा सभी को यह आदेश िदया िक सीता के मन को उसके प म िकया जाए।
उसने अपने बल से इसे डराया, डांटा, धमकाया, मारने का डर भी िदया िक तु वह कभी सीता से
िमलने अकेला नह आया। वह सदैव मंदोदरी के साथ आया, अपने मंि य के साथ आया।
ल जा के लए ितनके क ओट बहत बड ी होती है ीराम! और धैयशाला एकिन भाव
वाली तु हारी इस प नी ने यह िनवासन और कारागृह का दंश इस िव वास पर ही झेला िक एक
िदन तुम इसे इस कारागृह से मुि िदलाओगे।
यिद इसे लेशमा भी इसका आभास होता िक तुम इसक तप या, साधना और तु हारे ित
िन ा का यह प रणाम दोगे िक इसे भरी सभा म लांिछत करके इसका प र याग करोगे तो यह
अपने तप बल से अपने अपहरण से पूव ही अि दाह कर सकती थी। यह तु ह ेम करती है
ीराम! और यह जानती भी है िक तुम इसके िवयोग को सह नह पाओगे, इसी लए इसने इतना
क सहा और अब तक जीिवत रही।”
राम के लए मानो यह िद य आकाशवाणी थी और उ ह लग रहा था िक व लत अि से
सुरि त लौटी सीता के भीतर से ितभा सत का त वयं मूितमान होकर उनसे संवाद कर रही है
और सीता क पिव ता का माण दे रही है।
राम क आंख म आंसू आ गए और उ ह ने सा ात् अि देव को णाम करते हए कहा‒
“ मा कर देव! सीता के बारे म मेरा मन उसी तरह शु है, जतनी शु सीता है। म तो व न
म भी सीता के ित यह िवचार नह रख सकता िक वह मेरे इतर िकसी के बारे म सोच भी
सकती है। उसक एकिन ता पर मुझे पूरा िव वास है, िक तु रावण के अ तःपुर म लगभग वष
भर रहने के कारण सामा जक ि से इसक पिव ता का माण आव यक था और म यिद ऐसा
न करता तो कु ल क मयादा का उपहास यह समाज करता। जस कार महासागर अपनी
तटभूिम को नह लांघ सकता, उसी कार रावण सीता के तेज का अित मण नह कर सकता
था। िफर भी तीन लोक के ािणय के मन म सीता के ित िव वास िदलाने के लए एकमा
अि ही सहारा थी और इसम मेरा स य ही मेरा सहारा था। मुझे िव वास था िक सीता पिव है,
इसे अि का आशीवाद िमलेगा और यह सुरि त मेरा साि य पा सकेगी।”
इसके बाद राम ने आकाश म देखा, उ ह लगा मानो उनके िपता महाराज दशरथ अपने पु के
मयादा पु षो म व प को देखकर स ता से अिभभूत हो रहे ह और देवलोक से अपना
आशीवाद दे रहे ह। िफर राम ने अपने भावुक मन को रोकते हए, धीरे -धीरे आगे बढ ते हए
सीता को अपने दय से लगा लया और फुसफुसाते हए कहा‒
“मुझे मा करना देवी! िक तु यह सब कु छ मने तु हारी ही ित ा को सव यापी बनाने के
लए िकया था। अब तुम लोक क ि म पूण प से िनद ष हो सीते! मेरे यो य तो तुम तब भी
थ और अब भी हो, लेिकन अब तुम समाज क ि म भी वही पुरानी सीता हो गई हो।”
सीता सिहत राम ने ल मण को साथ लेकर अपने िशिवर म वेश िकया।
पूरे एक वष के बाद राम सीता के सामने थे और सीता राम के सामने। दोन मौन थे।
िकतनी ज दी नाटक का पटा ेप हआ है। यह प रवतन सीता के लए सुखद भी था और
स मानजनक भी। उस समय तो सीता को भी और ल मण को भी राम का वह यवहार बड ा
अटपटा लगा था, लेिकन अब उ ह यह िव वास हो गया था िक राम केवल पित और भाई ही
नह , वे जापालक भी ह और मयादा के र क भी।
इस ि से राम भी सीता क ि म पहले से कह अ धक बड े हो गए। वे उनके ित और
अ धक ा पद हो गई।ं
वा मीिक आ म म सीता
समय िकतनी ज दी करवट बदलकर आगे बढ गया, एक उ साह प रवार के बीच घुल-
िमल गया। राम रा स रावण पर िवजय के बाद िवभीषण को लंका का रा य स पकर उ ह के
पु पक िवमान म सवार होकर चौदह वष क समाि पर अयो या लौट आए।
राम के अयो या आगमन क ती ा जतनी माता कौश या को थी, उतनी ही भरत को और
इन दोन से अलग एक ती ारत आंख और थ उिमला क , जो चौदह वष से इसी आगमन के
लए ितल-ितल कर जल रही थ ।
अयो या आने पर य ही राम ने नंदी ाम क धरती पर पैर रखा, भरत तो नंगे पांव भाई के
चरण क रज सर पर लगाने के लए बेतहाशा दौड पड े। उनक आंख के आंसू थम नह
रहे थे। अपने चरण से उठाते हए राम ने भरत को गले से लगा लया।
“राम! तुम अयो या आ गए। मेरा तप सुफल हो गया। आज वग से पू य िपता यह य
देखकर अव य ही स हो रहे ह गे।”
भाव िव ल कौश या ने राम और सीता को गले से लगा लया। एक माता क सूनी गोदी म
पु क आंख से िमलन के आंसू िगरे , इससे बड ा सुख मां को और या िमल सकता था! िफर
माता कैकेयी और सुिम ा भी िमल ।
महिष व स ने इस माता-पु और भाई-भाई के िमलाप के बाद राम से कहा‒
“व स! अब कल मुहत म तुम इस रा य को िव धवत् हण करके अपना कायभार
संभालो और ती ातुर जा को अपने दशन से कृताथ करो।”
अवसर पाकर सीता ने ल मण से कहा‒
“देवर जी! म उिमला के पास जा रही ह?
ं और तुम भी मेरा अनुगमन करो।”
सीता जैसे ही उिमला के क म पहच
ं , वहां अब भी धूप और अगर क सुगध
ं फैली हई थी
तथा म य चौक पर एक दीप जल रहा था और उसके स मुख बैठी एक ती ातुर ि यतमा
अपने ि य के आने क आशा लयेे यानम थी।
सीता ने धीरे -धीरे िबना आहट िकए उिमला के कंधे के पास ठहरकर कान म फुसफुसाते हए
कहा‒
“आंख खोलो रानी! तु हारी तप या का सुफल तु हारे सामने है। यह फूल तुमने मुझे िदया था,
इसे मने बहत सहेजकर रखा है। तु ह स पती ह,ं अब तुम संभालो।”
बावरी उिमला उ सुकता म और उतावली म खड ी भी न हो पाई थी िक बीच से साड ी
उलझने के कारण िगर पड ी।
सीता ने उसे अपने दोन हाथ से संभालकर उठाते हए कहा‒
“अब िगरने क ज रत नह है मेरी लाडली! अब तो तु ह उठाने वाला आ गया है।”
उिमला सीता के कंधे से लगकर िहचिकयां भरकर रो पड ी। उसके मुंह से कोई बोल नह
िनकल पा रहा था, मगर सीता ने उसे ढांढस देते हए कहा‒
“म तु ह केवल अपने आने क सूचना देने आई ह,ं िमलूग ं ी बाद म। पहले अपने आने को
फलीभूत तो कर लूं और जो इतने िदन से तु हारे कमरे म खुली हवा नह आई, इसे ेमराग से
गंधयु कर लो उिमला!”
अपनी ि य बहन के लए संदेश देकर सीता िबना कु छ कहे बाहर चली आई ं और जैसे ही
ल मण ने उिमला के क म वेश िकया। उिमला को लगा घनी अमाव या के बाद यह पहली
पूिणमा आई है, जसक चांदनी उसके महल म िव हो रही है।
उिमला क आंख इस तेज रोशनी को सहन नह कर पाइ और वह िचर िवरहणी मू छत होकर
धरती पर िगर गई।
अब उिमला ल मण क गोद म सर रखकर वष ं क भरी आंख ह क कर रही थी और
ल मण उसके बाल म उं गली िफराते हए उसे अपने होने का माण दे रहे थे।
महल का कण-कण इस य न म लगा था िक यह रात बीते नह । च मा एक ही जगह ठहर
जाए। आंख जसे देखने को तरस रही थ , उसे अपलक देखते रहने के लए इतना तो आव यक
था ही।
उधर ातःकाल महाराज व स के िनदशन म राम के रा यािभषेक क तैया रयां आर भ हो
गई।ं कु शल नाई बुला लया गया। इस वनवास काल म राम और ल मण ही नह , भरत और
श ु न भी जटाधारी हो गए थे। अतः उन सबके ौर कम के लए बंध िकया गया। नान आिद
के बाद िद य आभूषण से यु ीराम ने सीता, ल मण, उिमला, भरत, मांडवी और श ु न,
ुितक ित और तीन माताओं सिहत रा यसभा म वेश िकया।
लंकापित रावण के छोटे भाई महाराज िवभीषण, महाराज सु ीव, हनुमान और अ य सभी
उप थत अित थय तथा िविश तप वय के बीच ा ण के मं ो चार के साथ अयो या का
राजमुकुट ीराम के म तक पर िवराजमान कर िदया गया।
िकतनी शी स प हो गया यह रा यारोहण, लेिकन आज देवलोक म ही सही महाराज
दशरथ क आ मा पूरी तरह स थी िक इतने यवधान आने के बाद भी अयो या के
राजप रवार क एकता अखंिडत रही। कैकेयी के वरदान ने थोड े समय के लए जो काली
घटाएं अयो या के रा याकाश पर फैला दी थ , उनके राजपु ने संयम और धैय से धीरे -धीरे
उ ह छांट िदया और अपूण भामंिडत सूय आकाश म भासमान हो रहे थे।
यही तो ल य था महाराज दशरथ का भी।
िवडंबना यह थी िक वयं सीता िकतने कम समय देख पाई यह सुख! वे तो लोकापवाद क
िशकार हो ही गई ह। उ ह तो महिष ने ही बताया िक जब उ ह ने लव और कु श को ज म िदया
था, उस राि सौभा य से श ु न महिष वा मीिक के ही आ म म थे और राि म जब मुिन कु मार
के साथ महिष वा मीिक ने सीता के सव होने का समाचार िदया और यह बताया िक देवी सीता
ने दो सुंदर एवं िवल ण पु को ज म िदया है तो उनक स ता का िठकाना न रहा।
महिष क आ ा से ही वे सीता क पणशाला म गए, उ ह णाम िकया।
बहत िदन के बाद अयो या से आए अपने ही राजप रवार के एक यि से िमलकर सीता को
सुख क अनुभूित हई।
“मत रोइए भाभी! आपने किठन तप या के बाद भी एक मां का दािय व पूरा िकया है और
अयो या को उसका उ रा धकारी िदया है। आपक यह भट अयो या गव से वीकार करे गी।
जसने आपको ठु कराया है, वह आपक इस भट को वीकार कर आपको पुनः ित ा दान
करे गा भाभी!”
यह कहते हए श ु न अपने ल य पर चले गए, जहां उ ह ने लवणासुर का वध करके
मधुरापुरी बसाई।
संयोग क बात भी िनराली थी। सीता के ये दोन पु लव और कु श महिष वा मीिक के
संर ण म पलते-बढ ते बारह वष के हो गए। समय िकस कार बीत गया कोई नह जान सका
और िफर मधुरापुरी से अयो या लौटते हए जब वा मीिक आ म म एक बार िफर श ु न के तो
िफर से उनक पुरानी याद ताजा हो आई। यह उ ह ने राम के च र का का यब गायन सुना,
जसका येक अ र और वा य स चे घटनावृ का प रचय दे रहे थे।
यह का य गायन सुनकर श ु न भाव-िवभोर होते हए मू छत से हो गए। उनक आंख म
आंसू आ गए और जो लोग उनके साथ थे, वे आ चयचिकत थे, य िक जन बात को वे पहले
अपनी आंख से देख चुके थे और राम से सुन चुके थे, उनका य का य वणन महिष ने अपने
इस का य म िकया था।
श ु न को लौटना था। अतः वे ातःकाल ही अयो या लौट गए।
राम ने अयो या म अ वमेध य का अनु ान िकया। इस य म महिष वा मीिक भी उप थत
हए। उनके साथ लव और कु श भी आए। य को स प करने के लए उ म ल ण से संप
काले रं ग का एक घोड ा ल मण के संर ण म छोड िदया गया था, जो भूमडं ल म मण
करके लौट चुका था। इस य म सु ीव और िवभीषण को भी स मानपूवक आमंि त िकया गया
था।
महिष वा मीिक ने ऋिषय के ठहरने के लए जो बाड े बनाए थे, उनके पास ही अपनी एक
पणशाला बना ली और लव तथा कु श से कहा‒
“तुम दोन भाई एका िच होकर, सब ओर घूम-िफरकर इस रामायण का य का गान करो।
ऋिषय और ा ण के थान पर, ग लय म, राजमाग ं म, राजाओं के थान पर, ीराम के
दरवाजे पर और जहां ा ण लोग य कर रहे ह और खासकर ऋ वज के आगे िवशेष प से
इसका गान करना। धन का लोभ न करना और यिद ीराम तुमसे पूछ िक तुम दोन िकसके पु
हो तो केवल कहना िक हम महिष वा मीिक के िश य ह।”
ातःकाल से ही लव और कु श ने महिष के ारा बताए िवधान के अनुसार सुमधुर कंठ से
रामायण का गान ार भ कर िदया।
सौभा य से ीराम ने जब उनका यह सुमधुर गान सुना तो उ ह बड ा कु तूहल हआ। िफर तो
कमानु ान से अवकाश ा करके महाराज ने सभी िव ान , महाजन और अित थगण को
एकि त करके उन दोन बालक को सभा म बुलाया।
यहां लव और कु श ने सबक उप थित म का य-पाठ का गान िकया।
देखने वाल ने यह प देखा िक इन दोन ही कु मार क आकृित राम से बहत अ धक सा य
रखती थी। यिद इनक जटाएं हटा दी जाएं तो इनम और राम म कोई अंतर नह लगता।
इस पहली बैठक म दोन मुिन कु मार ने बीस सग ं तक रामायण गान िकया, जसे सुनकर
महाराज राम ने भरत को आदेश िदया‒
“हे रघुनदं न! इ ह अठारह हजार वण मु ाएं पुर कार म दी जाएं।”
कु श ने ितरोध करते हए कहा, “नह महाराज! हम वनवासी ह, जंगली फल-मूल से िनवाह
करते ह, वण मु ा घर म ले जाकर हम या करगे?”
राम ही नह , वहां सभा म बैठा येक यि इन िनल भी कु मार के इस च र को देखकर
ह भ रह गया।
राम ने आचयचिकत होकर पूछा-
“तु ह इस का य क उपल ध कहां से हई? इसक लोक सं या िकतनी है और इसके
रचियता कौन ह?
िवन होकर कु श ने उ ह बताया‒
“हे महाराज! हमने जस का य के ारा आपके इस स पूण च र का दशन कराया है, उसके
रचियता वयं वा मीिक ह और इसम चौबीस हजार लोक और सौ उपा यान ह। पांच सौ सग ं
और छः का ड का यह स पूण का य है। महिष ने इसके उ र का ड क रचना भी क है। यिद
आप इसे पूरा सुनना चाहते ह तो य कम से अवकाश िमलने पर हम इसे सुना दगे।”
यह कहते हए लव और कु श लौट आए। राम के मन म ये अबोध बालक एक बेचन
ै ी जगा
आए थे।
कई िदन तक रामायण का यथावत् पाठ चलता रहा। इस कथा से ही उ ह यह ात हआ िक
कु श और लव दोन कु मार सीता के ही पु ह।
राम उ ह देखकर याकु ल हो उठे । सभा के बीच म ही उ ह ने अपने िव व त दतू को बुलाकर
कहा‒
“जाओ, महिष वा मीिक को मेरा यह संदेश दो िक यिद सीता शु च र ह और उनम िकसी
तरह का पाप नह है तो वे आप महामुिन क अनुमित लेकर यहां जनसमुदाय म अपनी शु ता
मािणत कर।”
राम ने आदेश िदया, “इस संदभ म महिष वा मीिक और सीता का अिभ ाय मुझे शी बताया
जाए। कल सवेरे िम थलेश कु मारी जानक भरी सभा म आकर कलंक दरू करने के लए शपथ
ल।”
राम का यह आदेश सुनकर वह दतू ह भ रह गया, लेिकन आदेश था, अतः वह शी ही
महिष वा मीिक क पणकु टी म पधारा, जहां वे ठहरे हए थे।
महिष तो पहले से ही ऐसे सुयोग क ती ा कर रहे थे, इस लए उ ह ने लव और कु श को
अयो या क ग लय म रामायण गान के लए े रत िकया था। दतू को ‘ऐसा ही होगा’ कहते हए
महिष वा मीिक ने आ व त िकया, य िक पित ी के लए देवता है। इस लए सीता वही
करे गी, जसक आ ा राम दगे।
अगले िदन ातः य -मंडप म पूरी सभा आयो जत थी। सभी लोग महाराज राम के जीवन म
सीता क पुनवापसी को लेकर स थे। सभा म व स , वामदेव, जाबा ल, का यप, िव वािम ,
दवु ासा आिद अनेक ऋिष-मुिन यहां तक िक नारद और तपोिन ध अग य भी कु तूहलवश वहां
आ गए। महापरा मी रा स और वानर तो पहले से ही िव मान थे। अनेक ानिन , कमिन
और योगिन महापु ष इस सभा म उप थत थे।
िनयत समय पर यह जानकर िक महिष वा मीिक सीता के साथ पधार रहे ह, सारा समूह
प थर क भांित िन चल हो गया।
महिष के पीछे सीता सर झुकाए चली आ रही थ । उनके दोन हाथ जुड े थे और ने से
आंसू झर रहे थे। अपने दय मंिदर म अब भी वे ीराम का िचंतन कर रही थ ।
सम त दशक समुदाय यह य देखकर शोक से याकु ल, अ ुपू रत ने से भीग गया।
जनसमुदाय के म य म पहच
ं कर महिष वा मीिक ने उ ोष करते हए कहा‒
“हे महाराज राम! आपने लोकापवाद से डरकर जसे मेरे आ म के समीप याग िदया था, म
अपने तप, पु य, त, िनयम और धम अनु ान को सा ी करके कहता हं िक यिद मेरे कथन म
कह कोई अस यता हो तो मेरी तप या िन फल हो जाए। आपक प नी सीता धमपरायण, उ म
त का पालन करने वाली है। म चेता (व ण) का दसवां पु ह।ं मने कभी झूठ वचन मुख से
नह िनकाला। मने कई हजार वष ं तक तप या क है। म स य कहता ह‒ ं ये दोन कु मार कु श
और लव, ज ह जानक ने ज म िदया है, ये आप ही के पु ह और आप ही के समान यो ा और
वीर ह।
यह देवी सीता, जो आपके स मुख ने झुकाए, हाथ जोड े खड ी है, पाप इसे छू भी नह
सका। यह मने िद य ि से जान लया िक सीता का भाव और िवचार परम पिव है। आपको भी
यह ाण से अ धक यारी है और आप वयं भी यह जानते ह िक यह सवथा पिव है। आपने तो
केवल लोकापवाद से डरकर एक राजा क मयादा का पालन करते हए सीता का प र याग
िकया। अतः यह देवी इस जनसमुदाय के सम अपनी शु ता का िव वास िदलाने के लए
आपके सामने उप थत हई है।”
राम, जो अभी तक अपने धैय, संयम, भावना, नेह और संवेदना को रा य के दािय व के तले
दबाए हए थे, वह अज ोत ने के रा ते आंसुओं के प म फूट पड ा और उ ह ने भावुक
होकर सभा म महिष को संबो धत करते हए कहा‒
“हे महाभाग! आप धम के ाता ह। सीता के बारे म आप जो कह रहे ह, उससे मुझे उनक
शु ता पर पूरा िव वास हो गया है। एक बार पहले भी सीता अपनी अि -परी ा म िन पाप स
हो चुक ह, लेिकन वह माण क ि या लंका म वानर समूह के स मुख महाराज िवभीषण के
सा य म हई थी। अयो यावासी उससे अप रिचत थे, जसके कारण यहां िफर से एक बार
लोकापवाद उठ खड ा हआ, जससे िववश होकर मुझे बा यता म सीता का प र याग करना
पड ा। यह जानते हए िक सीता सवथा िन पाप है। मने केवल समाज के भय से इनका प र याग
िकया। आप उदारमना! मेरे इस अपराध को मा कर।”
ीराम ने यह भी कहा, “म जानता हं िक ये जुड वां पु ज ह सीता ने ज म िदया है, मेरे ही
ह िफर भी इस जनसमुदाय म लोकापवाद के संशय को िमटाने के लए सीता को अपनी शुि का
माण तो देना ही होगा।”
राम ने यह कह तो िदया, लेिकन उ ह वयं अपनी कठोरता जानक के ित अ याय लगी। वह
बा य थे, लेिकन यह ताव करने के बाद ण-भर को उ ह ऐसा अनुभव हआ मानो देवलोक से
महा तापी ा आिद य, वसु, , िव वदेव, म तगण सभी महिष, नाग, ग ड और स गण
राम क इस कठोरता को देखकर सीता के ित भावुक मन हए राम को समाझाने आए ह िक हे
राम! तुम यह या कर रहे हो? लेिकन राम तो मयादा पु षो म थे। यह ठीक है िक महिष
वा मीिक के िनद ष वचन से पूरी सभा स ाटे म आ गई थी और ऐसा लग रहा था िक सभी को
महिष क बात पर िव वास हो गया था, िक तु वे यह भी मानते थे िक यिद जनसमुदाय म सीता
अपने मुख से अपनी शुि को एक बार मािणत कर दे तो अ धक अ छा होगा। यह देखते हए
महिष वा मीिक ने सीता के पास आकर कहा‒
“पु ी! रा य क मयादा बड ी कठोर होती है। तुम ही नह , राम भी इस समय एक राजा क
मयादा से बंधे हए ह। तुम तो जानती हो, वयं तु हारे वसुर महाराज दशरथ, जो सब कार से
समथ थे, केवल मयादा के कारण ही रानी कैकेयी के वचन से परा त हो गए और जो राम उ ह
अ य धक ि य थे, उ ह भी वे वनवास देने के लए बा य हए। राजा यि नह होता पु ी! वह
जनसमुदाय क अिभ यि होता है। जहां महाराज दशरथ अिभ यि थे, उसी कार राम भी
अिभ यि ह। इनका अपना कु छ नह है पु ी! इनके ऊपर रा य का दािय व है और इनक िनजी
भावना का उसके सामने कोई मह व नह है। राजा क सम त चेतना रा य के लए समिपत होती
है।
और जो राजा अपने दािय व को अपने िहत म यु करता है उसका उसी कार िवनाश
होता है जैसे रावण का हआ। उसने जन भावना का ितर कार िकया और अपने िवचार को
समाज पर थोपा लेिकन राम समाज के िवचार को वीकार करते हए यायपूवक उनका
अनुमोदन और अनुपालन करते ह। यही राजधम है पु ी!”
महिष वा मीिक से यह सुनकर हाथ जोड े-जोड े ि ऊपर उठाते हए सीता ने पहले राम
को देखा िफर धीरे -धीरे उस सभा म उप थत जन-समुदाय को देखा और िफर एक बार आकाश
को देखते हए अपनी ि झुका ली और महाराज राम के स मुख णाम क मु ा म कांपते हए
अधर से उसने कहा‒
“मने सदैव ीराम का मरण िकया है। मन, वचन, कम से म उ ह क रही ह,ं यिद यह स य
है िक मने िकसी पु ष का पश तो दर,ू उसका िचंतन भी नह िकया तो हे धरती माता! मुझे
अपनी गोद म थान दे। यिद म एकिन पित ता रही ह,ं केवल राम ही मेरे आरा य रहे ह तो हे
पृ वीमाता! जस कार तुमने मुझे ज म िदया, उसी कार आज मेरी मयादा क र ा करो और
मुझे अपनी गोद म थान दो।
मने अपने जीवन म िकसी के साथ कोई अपराध नह िकया स य का आचरण िकया है। हे
ीराम! ज म-ज मा तर तक आप ही मेरे पित रह, यही अिभलाषा लेकर म अपनी जननी धरती
माता से िनवेदन करती हं िक वह अपनी इस िन पाय पु ी को अपनी गोद म ल। म आपके दोन
पु आपको स पती ह।ं ”
जैसे ही सीता ने यह कहते हए एक पु ी क भांित मां धरती से िनवेदन िकया, उसी समय पृ वी
से कंपन के साथ एक दरार बनकर संहासन कट हआ।
यह अलौिकक य वहां उप थत सभी सभाजन ने देखा और सब आ चयचिकत रह गए।
उस संहासन के साथ ही उस पर िवराजमान पृ वी क अ ध ा ी देवी अपने िद य प म
कट हई और एक मां क तरह दोन बाह फैलाकर अपनी पु ी को उसका वागत करते हए,
अनुमोदन करते हए अपने संहासन पर िबठा लया।
सीता का भूतल म इस कार वेश देखकर सब लोग हष और शोक म डू ब गए। हष इस
अलौिकक य का था और शोक सीता क िबछु ड न का। दो ण के लए वहां का सारा
समुदाय मोहा छंद-सा हो गया।
उप थत मुिनगण, “ध य सीता! ध य” क आवाज गुज
ं ाते हए उनके च र क शंसा करने
लगे।
लेिकन राम को सीता के ारा शु ता का िदया गया यह माण भारी पड ा। ण-भर पहले
सीता के पुनः िमलन क संभावना को लेकर उनके मन म एक आशा क लहर उठी थी वह
अंधरे े के गत म डू ब गई और िबलखते हए उ ह ने कहा‒
“यह तुमने या िकया सीते?”
महिष वा मीिक ने बड े संयत होकर कहा‒
“तु हारे ारा िकए गए अपमान से मुि पाने के लए उसके पास यही एकमा उपाय था
राम!”
“और हे राम! सीता ने यह जीवन िनवासन के बाद जो मेरे आ म म यतीत िकया है, वह
अपने लए नह ब क इस कृत न अयो या के लए िकया जसने उसके वनवास के याग को
भुला िदया और असहाय दशा म रावण के यहां िबताए गए समय को लांछन के प म उसके
च र के साथ जोड िदया।
हे राम! यिद सीता पर अयो या के उ रा धकारी उ प करने का दािय व न होता और जस
समय ल मण उ ह मण के िहत भागीरथी के तट पर असहाय छोड कर आ गए थे और उ ह
यह बता िदया था िक राम ने उनका प र याग कर िदया है, यिद सीता उस समय गभवती न होती
तो हे राम! िन चय ही वह उसी समय भागीरथी क शीतल लहर म समा गई होती। उसने यह
िनवासन का समय अपने दो पु , लव और कु श के लए ही झेला था राम!
अब तुमने और तु हारी अयो या ने जान लया होगा िक तप म या शि होती है! एक सती
नारी, जो सेवा म पूणतया समिपत होती है, यिद वह पूण एकिन होने पर भी पित के ारा
अपमािनत होती है तो वह अपने जीवन को िनरथक मानकर मृ यु का ही वरण करती है और
सीता ने भी धरती क गोद म आ य लेकर एक कार से मृ यु का ही वरण िकया है।”
यह कहकर महिष शा त हो गए और लव व कु श को मौन आशीवाद देते हए सभा भवन
छोड कर जाने के लए उ त हए।
राम क आंख म आंसू छलछला रहे थे, वे बार-बार िवलाप कर रहे थे।
एक बार िफर उनके भीतर का शि शाली पु ष जाग उठा और बोले‒
“पहली बार सीता समु के उस पार लंका म जाकर मेरी आंख से ओझल हई थी, तब म
हनुमान और सु ीव क सहायता से उ ह वापस लौटा लाया था तो पृ वी के भीतर से लौटा लाना
कौन बड ी बात है?”
यह कहते हए धीर वीर राम ने ोध करते हए कहा‒
“हे पूजनीय भगवती वसु धरे ! मेरी सीता मुझे लौटा दो अ यथा म अपना ोध िदखाऊंगा या
िफर मुझे भी अपनी गोद म ले लो वरना म तु हारी सारी भूिम का िवनाश कर दग
ं ू ा, भले ही लय
आ जाए।”
महिष वा मीिक ने अ य महा मा, ऋिषय के सम राम को उनका कत य बोध कराया और
यह बताया िक‒
“यह ठीक है िक तुम सम त पृ वी को आ दो लत कर सकते हो, उसका िवनाश कर सकते हो
लेिकन तुम राजा भी हो राम! और तु ह सामा जक िनयम के साथ-साथ ाकृितक िनयम का भी
पालन करना है। सीता का पृ वी को गोद म समा जाना तु हारी उस भूल का प रणाम है जसके
कारण तुमने समय रहते नारी मनोिव ान को पढ ने का यास नह िकया। रा य शासन म भी
कु छ स ाएं ऐसी होती ह जसके ऊपर राजा को िनजी तौर पर अपने िववेक से िनणय लेना होता
है, लेिकन तुमने यह नह िकया। अब एक वीर पु ष क भांित कृित के इस स य को वीकार
करो राम! और कु श और लव को अपना पु वीकार करो। यही उस देवी के ित तु हारा भाव
समपण होगा।”
महिष के वचन के बाद राम का ोध शा त हो गया और उ ह ने सीता के िबछोह को कृित
के ारा िनयित स य और याय जानकर एक बार िफर कु श और लव को अपने गले लगा
लया।
सीता अब एक मृित मा रह गई।
सीता वा तव म वीय शु का ही थ । राम ने उनका वरण करने के लए रखी गई शत को िशव
धनुष क यंचा चढ ाकर पूरा िकया और उ ह प नी के प म हण िकया, इस ऋण का
ितदान सीता ने िनवासन के बाद भी जीिवत रहकर, राम के दोन पु को जनम देकर पूरा
िकया। सीता को अपने सामने ही रसातल म समाते देखकर राम िवच लत तो हो ही गए थे। सीता
के िनवासन पर उ ह यह तो िव वास था िक सीता जीिवत ह िक तु अब तो उ ह ने वयं अपनी
आंख से उनका अवसान होते देख लया था अतः अब उनके जीवन म एक शू य-सा उप थत
हो गया था जसे अब इस जीवन म उनके लए उसे भरना असंभव था।
राम अपने दोन पु को अपनी बांह से थामे दय से लगाए हए रोते हए िन चल खड े थे।
महिष व स और महिष वा मीिक ने उ ह सा वना देते हए कहा‒
“धैय धारण करो राम!”
तीन माताओं ने भी राम को सां वना देते हए कहा‒
“अब सीता लौटकर नह आएगी व स! वह देवी अयो या के ित अपना दािय व पूण करने के
लए ही अवत रत हई थी और अपना वह काय पूरा करके तुमसे, हमसे, सबसे िवदा ले गई है।”
अ ुपू रत ने लए राम मानो एकाक से खड े कह रहे थे‒“हे सीता म तु हारा दोषी ह,ं मुझे
मा करना। तु हारा यह अवसान लोक म सदैव याद िकया जाएगा।”

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