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MASOOM-Topi Shukla (Hindi Edition)
MASOOM-Topi Shukla (Hindi Edition)
राजकमल पेपरबै स म
पहला सं करण : 1987
तेरहवाँ सं करण : 2016
© नैयर रज़ा
वेबसाइट : www.rajkamalprakashan.com
ई-मेल : info@rajkamalprakashan.com
बी.के . ऑफसेट
नवीन शाहदरा, द ली-110 032
ारा मु त
TOPI SHUKLA
Novel by Rahi Masoom Raza
ISBN: 978-81-267-0911-3
भूिमका
कौन आज़ाद आ
कसके माथे से गुलामी क याही छू टी ।
अब यह पंजाब नह एक हस ख़ाबन ।
अब यह दोआब है, सेह आग ह पंजाबनी ।।
जामा मसिजद म अ लाह क जात थी ।
चाँदनी चौक म रात ही रात थी ।।
आस क े घड़े क तरह बह गई ।
सोहनी बीच तूफ़ान म रह गई ।।
अज आखां वा रस शाह नूँ ।
कत कबरां िव ो बोल ।।
ते अज कताबे-इ क दा ।
कोई अगला वरका खोल ।।
टोपी दूसरा लड़का था । वह डाँट सुनने, मु ी बाबू क उतरन पहनने और भैरव क िज़द
पर चुप रहने का आदी हो चुका था । अलीगढ़ म उसे कोई डाँटनेवाला नह था । वह या
करे और या न करे , यह बतानेवाला भी कोई नह था । इसीिलए कई लोग , और फर
ब त-से लोग से दो ती हो जाने के बाद भी वह अपने-आपको अके ला ही पाता रहा । यह
हालत ब त संगीन थी ।
यही कारण है क जब इ फ़न से मुलाक़ात ई तो वह जी उठा । और जब पहली ही
मुलाक़ात म सक ना ने उसे डाँट िपला दी तो दो बरस क यास बुझ गई । वह अपना सारा
समय इ फ़न ही के घर गुज़ारने लगा । इ फ़न होता या न होता, वह आ जाता । इ फ़न
क कताब उलटता-पलटता, सक ना क डाँट सुनता । पाँच बरस क शबनम को िह दी
पढ़ाने क कोिशश करता और इस पर सक ना क डाँट सुनता ।...
इ फ़न के यहाँ उसका आना-आना इतना बढ़ा क शमशाद माकट, टाफ़ लब और
'के फ़े डी फूँ स' और 'के फ़े डी अलफ़ लैला' म इसक बात होने लग ।
यूिनव सटी एक छोटी-सी ब ती है । शहर से अलग-थलग । यूिनव सटी म ब त-से लोग
यह तक भूल जाते ह क मुसलमान का ब मत पा क तान म है । कठपुले के पार
िह दु तान है । कठपुले के इधर यूिनव सटी । इसिलए लोग एक-दूसरे क टोह म लगे रहते
ह । कसक बीवी कसे देखकर मुसकराती है ! कौन लड़का आजकल कस- कस लड़क पर
आिशक है और कस- कस पर आिशक़ होनेवाला है ।...
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ेशन !
फै िन टिस म !
"मौलाना मुह मद अली इस कमरे म रहते थे ।"
"हसरतज मोहानी, िलआकत अली, सदर अ यूब, लाला अमरनाथ, ग़ौस मुह मद,
शकू र, तलअत महमूद– कसने यहाँ नह पढ़ा साहब !"
"अलीगढ़ यूिनव सटी एक कलचर का नाम है ।"
"मजाज़ ने भी या ऐश कए ह गे साहब !"
"िजसने यहाँ नह पढ़ा वह गँवार है ।"
"यहाँ तो बेहारी भी आदमी हो जाते ह ।"
"नरिगस साली को देिखए । राजकपूर से छू टी तो सुनीलद से अटक गई ।"
"टोपी ने भी या हाथ मारा है !"
" या दन आ गए ह क मुसलमान लड़ कयाँ िह दु से दनादन याह कर रही ह !"
"बक़ िगरती है तो बेचारे मुसलमान पर ।"
"टोपी से अ छा तो कोई भी हो सकता है भई । चलो अज़ान हो गई ।"
इ फ़न ने सुनी-अनसुनी कर दी । सक ना टोपी को लेकर िप चर जाने लगी, पर तु टोपी
स ाटे म आ गया और एक दन जब उससे रहा न गया तो बोला :
"भाई, यह हमारी यूिनव सटी तो बड़ी ही घ टया जगह िनकली ।"
" य ?"
"म अब यहाँ नह आया क ँ गा ।"
" य ? या तुम सक ना से फँ स गए हो ?"
"यही कालीचरन तो रह गया है मेरे िलए ।" सक ना बोली ।
"अंकल टोपी आप..." शबनम बोली ।
"ख़बरदार जो फर मुझे टोपी कहा !"
"टोपी, खुदा के वा ते मेरी ब ी क ज़बान ख़राब न करो ।" सक ना ने िघिघयाकर कहा
।
"तु हारे खुदा के िलए म कोई काम य क ँ ?" टोपी ने कया । "अरे , उ ह तो मने
पा क तान भेज दया है ।"
"अंकल टोपी िह दू ह ।" शबनम ने ताली बजाकर यूँ कहा जैसे िह दू होना कोई बेवक़ू फ
हो ।
"तु ह कसने बताया ?"
"आज कू ल म मेरी एक ड कह रही थी क अ मी टोपी से फँ स गई ह । और टोपी
अंकल िह दू ह ।" शबनम ने ताली बजाई । "आप िह दू ह ।" उसने फर गाली दी ।
कमरे म स ाटा छा गया । टोपी का मुँह ग़ से से लाल हो गया । इ फ़न उदास हो गया ।
सक ना हँस पड़ी :
"यहाँ वाल को तो बदनाम करना भी नह आता ।" उसने कहा । "यह सुनकर इस टोपी
का दमाग़ चल जाएगा । कसी लड़क से इ क़ का इज़हार कर देगा और जूितयाँ खाएगा
।"
"आज राखी का योहार है । तुम मुझे राखी य नह बाँध देत ?"
राखी !
महेश ! रमेश !
राखी !
"म िह दु को राखी नह बाँधती ।"
" ीमती जगाम, राखी िह दु ही के बाँधी जाती है ।"
"मेरे िमयाँ का नाम िबगाड़ोगे तो मार डालूँगी ।"
"अंकल िह दू ह ।" शबनम ने अपनी गुिड़या के कान म कहा ।
"पर तु..."
"रहने दो अपना अरनतू परनतू ।" सक ना िबगड़ गई । " या इसिलए राखी बाँध दूँ क
यहाँ के कलिज भे मुझे तु हारे साथ बदनाम कर रहे ह ? म हर साल एक राखी खरीदकर
नाली म फक देती ँ ।"
"और यह भूल जाती हो क महेश ने तु हारी िहफ़ाजत क । और रमेश सफ़र करके
राखी बँधवाने आता रहा ।" इ फ़न ने कहा ।
"हाँ । मगर म यह नह भूल सकती क अ बा क ईरानी टोपी नाली म फं क गई थी ।"
"अरे तो या मने फक थी तु हारे अ बा क टोपी नाली म ?" टोपी उखड़ गया ।
"चुप । तू भी िह दू है ।"
"अरे , तो तुम मुझे नाली म फ़क दो । म भी टोपी ँ । बात बराबर हो जाएगी ।"
सक ना वहाँ से उठ गई । इ फ़न यूँ ही एक कताब उलटने-पलटने लगा । टोपी ल बे-
ल बे साँस लेने लगा । ये मुसलमान इस क़ािबल ही नह ह क कोई इ ह मुँह लगाए ।
"भाई तुम अपनी इस बीवी को लेकर पा क तान चले जाओ ।"
इ फ़न ने कोई जवाब नह दया । वह यह सोच रहा था क अगर टोपी क जगह कोई
मुसलमान रहा होता तो शायद लोग इतना बुरा न मानते ।
फर वही िह दू !
या यह श द यूँ ही पीछा करता रहेगा ? टोपी, तुम िह दू य हो–या फर म
मुसलमान य ँ ? य ? यह भी कतना अजीब श द है । मनु य को जवाब देने पर
मजबूर कर देता है । पर तु अगर कसी के पास जवाब ही न हो तो ? तो वह या करे
आिख़र ?
इ फ़न ने कताब फक दी ।
"तुम मुसलमान से नफ़रत करते हो । सक ना िह दु से िघन खाती है । म...म डरता ँ
शायद । हमारा अंजाम या होगा बलभ ? मेरे दल का डर, तु हारे और सक ना के दल
क नफ़रत–ये या इतनी अटल स ाइयाँ ह क बदल ही नह सकत ? िह ी का टीचर
कल या पढ़ाएगा ? वह इस सूरते-हाल को कै से ए स लेन करे गा क म तुमसे डरता था
और तुम मुझसे नफ़रत करते थे । फर भी हम दो त थे । म तु ह मार य नह डालता ?
तुम मुझे क़ ल य नह कर देते ? कौन हमारे हाथ थाम रहा है ? म िह ी नह पढ़ा
सकता । म रज़ाइन कर दूग ँ ा ।"
"यह कोई ब त अकलम दी क बात नह करोगे ।"
"मगर..."
"भाई !" टोपी ने उसे टोक दया । "अकलम दी कहने पर तुमने मुझे टोका य नह ?"
इ फ़न मुसकरा दया ।
दोन चुप हो गए । कु छ कहने-सुनने क ज़ रत ही नह थी । इ फ़न पहली बार अपने
डर पर शक कर रहा था । और टोपी पहली बार अपनी नफ़रत पर झुँझला रहा था । दो ती
झूठी है या डर ? दो ती झूठी है या नफ़रत ?...
"ले कन फर मुसलमान को नौक रयाँ य नह िमलत ?" इ फ़न ने यूँ सवाल कया
जैसे वे देर से िह दू-मुसलमान सम या पर बहस करते रहे ह ।
" य क उनके दल म चोर है ।" टोपी ने कहा ।
" या चोर है ?"
"यह चोर है क चूँ क उ ह ने पा क तान बनवा िलया है इसिलए भारत पर उनका या
हक़ रह गया है । भाई हर मुसलमान के दल म पा क तान क ओर एक िखड़क खुली ई
है ।"
" फर म पा क तान य नह गया ?"
टोपी के पास इस सवाल का कोई जवाब नह था । हाँ, फर यह इ फ़न पा क तान य
नह गया ? चार-साढ़े चार करोड़ मुसलमान यहाँ या कर रहे ह ? मेरे पड़ोसी कबीर
अहमद ने नया घर य बनवाया है ?...
"पर तु मुसलमान पा क तान क हॉक टीम के जीतने क खुशी य मनाते ह ?"
"यह सवाल यूँ भी कया जा सकता है क िह दु तान क हॉक टीम म मुसलमान य
नह होते ? या मुसलमान हॉक खेलना भूल गए ह ?"
"नह । पर तु इसका डर लगा रहता है क वह पा क तान से िमल जाएँगे ।"
डर !
तो यह डर दोन तरफ़ है । उदासी और गहरी हो गई । अँधेरा और बढ़ गया । यह डर
आिखर कहाँ-कहाँ है ! इस डर से िप ड छू टने क कोई श ल है या नह ...
"ले कन मुसलमान यह कै से सािबत कर क वे पा क तान से नह िमलगे अगर उ ह
पा क तान के िख़लाफ़ खेलाया ही नह जाएगा ?"
"मुसलमान क वफ़ादारी देखने के िलए हम अपना गो ड मेिडल तो नह खो सकते ना
?"
"मगर फर दूसरी श ल या है ?"
"फ़रज़ करो क हॉक नह यु हो रहा है । य द हम मुसलमान क वफ़ादारी देखने के
िलए उ ह फौज़ म ल और वे पा क तान से िमल जाएँ तो यह इ तहान कसे महँगा पड़ेगा
?"
इस लॉिजक ने टोपी का जी खुश कर दया । यह शक ही ठीक है । यह नफ़रत ही ठीक है
। अिधक-से-अिधक यही होता है न क बलवे होते रहते ह । सौ-दो सौ आदमी मारे जाते ह
।...
"सौ-दो सौ आदिमय क जान बचाने के िलए हम अपनी इं िडपडस को ख़तरे म नह
डाल सकते ।"
"तो ?"
"तो या ? या मने मुसलमान का ठीका िलया है ?"
टोपी पर झ लाहट सवार हो गई । वह इ फ़न पर झ ला रहा था क अगर वह
मुसलमान न रहा होता तो ऐसे परे शान कर देनेवाले िसर य उठाते ।...
हमारा पीछा नह छोड़ते । मनु य मौत को जीत सकता है, पर तु को नह जीत
सकता । कोई-न-कोई दुम के पीछे लगा ही रहता है...
"अगर मुसलमान इतने बुरे ह तो तुम उनक यूिनव सटी म पढ़ने य आए ?" इ फ़न ने
कया ।
"यह मुसलमान के बाप क यूिनव सटी है ?" टोपी ने कया, "के ीय सरकार से
जो एड िमलती है या उसम हमारा पैसा नह है ? सारे मुसलमान ग़ ार ह ।"
"हाँ" सक ना आ गई, "मेरे अ बा भी ग़ ार थे ?"
"तुम बात-बात म अपने अ बा को य घसीट लाती हो? अ बा न ए राम नाम हो गए
! जहाँ देखो वह मौजूद ह । बलव म और भी कई अ बा मारे गए ह ।" वह बरस पड़ा ।
फर वह घबरा गया । "सॉरी भाबी !"
वह तेज़ी से उठा और चला गया ।
जाते-जाते वह शबनम का यार लेना भी भूल गया वरना होता यह था क वह शबनम
का यार लेता और वह इस डर से ज दी से गाल प छने लगती क कह टोपी के रं ग का
ध बा न पड़ गया हो ।
"अंकल टोपी ने हम यार य नह कया ?" शबनम ने अपनी माँ से सवाल कया ।
"वह पागल हो गया है ।"
शबनम ने दूसरे दन कू ल म अपनी सहेिलय को यह बता दया क उसक अ मी
कहती ह क अंकल टोपी पागल हो गया है ।
सहेिलय ने यह बात अपनी-अपनी अि मय को बताई और बात का चरखा फर चल
पड़ा ।...
यारह
1. जौजा : प ी ।
तेरह
1. बात सुबह होते-होते दबा दी गई । पर तु थाना िसिवल लाइं ज के रोज़नामचे म यह रपोट अब भी होगी ।
अठारह