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Summary Hin CH 07 Pt1 SW 13mar22 Mar22 - 100158
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वसुदेवसुतं दे वं कंसचाणूरमदनम् |
ृ णं व दे जग ु म् ||
दे वक परमान दं क
अजुन के मन म कसी कार का संशय शेष ना रह, इसी निम भगवान अपने ीमुख से आगे
कहते ह क:-
7.1
ीभगवानुवाच
म यास मनाः(फ्) पाथ, योगं (म्) यु दा यः।
असं शयं (म्) सम ं(म्) मां(म्), यथा ा य स त छणु॥1॥
7.2
तेरे लये म व ानस हत ान स पूणतासे क ँगा, जसको जाननेके बाद िफर इस वषयम
जानने यो य अ कुछ भी शेष नह रहे गा।
2
उदाहरण व प कोई कतना भी रसगु ले के बार मे, उसके आकार, क
ृ ित, साम ी, बनाने क
व ध के बारे म बताएं , तो यह आ ान। परं तु ा रसगु ले को बना चखे, वा त वकता म जाना
जा सकता है, तो रसगु ले का वाद लेना, यह आ व ान।
7.3
ववेचन: त – वो (परमा ा)
व – भाव
ी राम वनवास संग म जब भगवान राम को गंगा पार करनी थी, तब केवट ने उ गंगा पार
करवाई। केवट परम ानी था, परमा ा के भाव से प रिचत था, इस लए जब भु ी राम ने गंगा
पार करने के पा रतोिषक के प मे अपनी वण मु का देनी चाह तो केवट ने यह कहकर
अ वीकार कर द क जब आप वनवास से लौटगे, तब लूँगा। इस ‘ना’ को न केवल उसने भु राम
से पुन: िमलने का अवसर बना लया बि क, परमा ा के सि कट जाने का उसे सौभा य भी
िमला। चौदह वष उपरांत, भु ीराम के रा ा भषेक होने के बाद, केवट को दय से लगाते ए
3
ीराम ने कहा क तुम मुझे भरत समान ि य हो, इस लए सदैव अयो या आते रहना। भु के साथ
ऐसा संबंध ह परम स है।
7.4-7.5
अपरे य मत व ां(म्), क
ृ ित(म्) व मे पराम्।
जीवभूतां(म्) महाबाहो, ययेदं(न्) धायते जगत्॥5॥
पृ वी, जल, तेज, वायु, आकाश -- ये प महाभूत और मन, बु तथा अहं कार -- यह आठ
ृ ित है। हे महाबाहो ! इस अपरा क
कार के भेद वाली मेर 'अपरा' क ृ ितसे भ जीव प बनी
ृ ित को जान जसके ारा यह जगत् धारण कया जाता है।
ई मेर 'परा' क
1. क
ृ ित : अपरा (जड़)
2. पु ष : परा (चैत )
क
ृ ित आठ कार क होती है। भूिम, जल, अि , वायु, आकाश,मन, बु और अहं कार। जब क
चैत प म ह परमा ा को अनुभूत कया जा सकता है। जो सम त भूत मा म अंत न हत होती
है। यह परमा ा का ित बब है।
संसार को जानना ह व ान है। परं तु केवल पंच ( व ान) को ह अंितम स मान लेना भी
अ ान है, क जो यम है, वह सब तो मा ित बब है और वा त वक व पदशन तो
आ ान से ह संभव है। जो परमा ा का प है।
4
“ सया राम मय सब जग जानी”
7.6
भगवान कहते ह क स पूण संसार का रचियता म ँ और जसम यह सारा संसार वलीन हो जाता
है, वह भी म ह ँ । तभी तो परमा ा सव या त है, जो अ य है।
7.7
5
अथात आकाश म वच रत सम त सौरमंडल, आकाश गंगाय और उनम त सम त ह को
संभालने वाला त तु या सू वह पर परमा ा ह तो है।
7.8
7.9
7.10
6
बीजं (म्) मां(म्) सवभूतानां(म्), व पाथ सनातनम्।
बु बु मताम , तेज तेजि वनामहम्॥10॥
7.11
ह र ॐ त त्
ह र शरणम् व न के साथ आज के स का समापन आ।
7
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हर घर गीता, हर कर गीता !
आइये हम सब गीता प रवार के इस येय से जुड़ जाय, और अपने इ -िम -प रिचत को गीता क ा का उपहार
द।
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http://vivechan.learngeeta.com/
|| गीता पढ़, पढ़ाय, जीवन म लाय ||
ृ णापणम तु ||
||ॐ ीक