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भेल संहिर्ा

आचार्य भेल - काल - 1000 ईसा पूर्य में

र्र्य मान में भेल संहिर्ा का काल - 7र् ं सद

भेल संहिर्ा का हर्हिष्टर्

 8 स्थान 120 अध्याय थे , उपलब्ध 113


 काल -7 व ीं शताब्द

 भेल संहिर्ा भाषा – त्रु टिपूर्ण

रक्तसर्िन क प्रटिया सबसे पहले भे ल में टनर्दे टशत है ।


प्रमे ह 7 प्रकार भस्मेह का वर्ण न
प्रमे ह के भे ल सीं टहता ने प्रकृटत व प्रभव र्दो भे र्द टकये है ।
कुष्ठ - 18 (9 साध्य + 9 असाध्य)- अनुवासन् टनषे ध बताया है ।
शुकनाश घृत – अपर्न्त्रक (भे ल)
अधारर् य वे गो में टपत, कफ के वे गो को भ मानता है (च. केवल – वात के वे ग को
अधारर् य वे ग में मानता
» धुमर्हर्य - 6,8, 12 अीं गुल (च. -8 अीं गुल)
हिपक्ष में – नखबाल केश कािने का टनर्दे श। (नोि - चरक में पक्ष में त न बार है ।)
हिफला का प्रर्ोग का क्रम –

चरक भेल

टवटभतक - भोजन के पू वण – 2 आमलक - भोजन के पू वण - 4

आमलक – भुक्ते – 4 हर तक – भुक्ते - 1

हर तक – टजर्ाण न्ते - 1 हर्हभर्क – टजर्ाण न्ते -2

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 चर्ु स्पाद का क्रम – भै षज को प्रथम रखा है तथा टभषक को चतुथण स्थान


पर रखा है ।
 भेल सहपय गुड – वातरक्त रोगाटधकार में
 हृदर् रोग - टहीं गु पीं चक
 ,शु कनाशक, काकार्दन घृ त - अपर्न्त्रक
 अपस्मार में - टशर ष तै ल
 क्षौद्र व नवन त के साथ क्षार का प्रयोग -अिय के व्रणरोपण में
 -जनपर्दोध्वनस को भे ल ने जनमार कहा है तथा सु श्रुत ने मरक शब्द का
प्रयोग टकया है ।
 जनमार पू र्यरूप - वषाण काल में वषाण न होकर िे मन्त ऋर्ु में वषाण होना।
 भेल ऐषणाएं - प्रार् ऎषर्ा, धन ऎषर्ा, धमण ऐषर्ा।
 हृदर् आकृहर् – पु ण्डर क व कुम्भ क सदृश।
 हृर्दय - प्राणों क स्स्थटत मान है ।
 र्ारूण मध – प्रमु ख रक्तर्दूषक / रक्त प्रर्दोषक माना
 हनदाध (ग्र ष्म) - र्दूध का से वन
 अन्न – मिौषध (नोि – काश्यप ने आहार को महौषध कहा है ।)
 जल - मिारस
 अन्न उत्पहर् में प्रमु ख कारण – सू यण
 आभ्यान्तर मल – स्वे र्द, रक्त, मू त्र, फेन
 बािर हनकले स्वे द को - बाह्य मल
 अवश्याय, टहम, अम्बु – बाह्यस्वे द के हलए
 का./भे ल स्वे द -8
 सहन्नपार्ज - टवरे चन श्रे ष्ठ है ।
 उपनाि -3 प्रकार
 प्रार्हिर् - 2 प्रकार
 चू णय भे द - 2 प्रकार
 भे ल में सहन्नपार्ज ग्रन्थि के भे द -5  र्र्ागू -8
 अबुयद के भे द - 5  पथ्य अन्न - 12 (नोि - चरक में अन्नपान
 खाहलत्य, पाहलत्य के भे द -5 वगण – 12)
 हर्सपय के भे द - 5
 अिय के भे द - 6
 श्ल पद के भे द -7
 िुक्र के भे द -7

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 श्ल पद उत्पादक - र्दटध


 क्षपण कारक - ति
 िोथ में श्रे ष्ठ – गोमू त्र
 अत्यहधक र्ार्कारक – मसू र, हरे नु
 र्र्गोधूम के अहर्ररक्त – सभ पै टिक द्रव्य प्राय अवृ ष्य
 सर्े दु ग्धे अहभष्यन्दं – गाय

REF - रहर् मू ल िर रं हि, िर रस्य रहर् फलं

 हनरन्तर ग र् गाना - हपर्ज उन्माद का लक्षण - भेल


(नोट - चरक में वात उन्मार्द व गन्धवण उन्मार्द का लक्षर् )
 राजक हपर् - रज्जक टपत
 आलोचक हपर् के भेद – 2
बुन्थि र्ै िेहषक - भ्रू मध्य श्रृीं गािक ममण के सम प
चक्षु र्ै िेहषक
 नाहभ के मध्य – सोममण्डल - मध्य- सूर्यमण्डल मध्य – अहि
 जठराहि का प्रमाण –
 स्थूल कार्य - यव प्रमार्
 िस्वकार् – त्रुटि प्रमार्
 कृहमक ट पर्गों में – वायु प्रमार्

 िर र में -10 अन्तर गुहा 10 बाह्य गुहा


 गभय क हृदर् में प्रथम उत्पहि – पारािर मर् से
 चक्षु उत्पहि – काश्यप
 गभयपोषण केदार कुल्या न्यार् – वा/भे ल

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 27 मानस प्रकृहर् - टर्दव्य काय कहा है ।


 7 िार र प्रकृहर् - मानस कहा है ।
 मन्थिक, िुक्र – 1 अीं जटल (नोि – चरक – 1/2 अीं जटल)
 भेल आध्यन्थिक हर्षर् - 16
(सु. आध्यान्थिक हर्षर् - 13 = 11 इन्थिर्ा + बु न्थि + अिकार)
 हकन्थिस - 7 र्े मां स में
 टकस्िस क टचटकत्सा – टत्रफला चूर् + शशक रूटधर का लेप
 र्मन हर्रे चन व्यापाद - च./भे ल - 10
 र्न्थि कमय में श्रे ष्ठ द्रव्य - मर्दनफल (नोि - चरक में पािला है ।)
 आस्थापन, अनुर्ासन के व्यापाद - 10
-

सिचर र्ै ल - ग्रघ्रस में

र्ल्लमक घृर् – हृर्दयरोग

हिर्ार्हर्य - टवसूटचका

दिागंघृर् – गु ल्म

- हपप्पल र्धय मान का रोगाहधकार – राजयक्ष्मा (नोि – सु श्रुत - वातरक्त)

र्ाल िपिर्टक /प्राणदा गु हटका - अशण – मात्रा – 1 अक्ष

 हपर्ज कास - कामला के समान लक्षर् माने है ।


 अनुर्ासन िे र्ु श्रे ष्ठ – साधारर् ऋतु (प्रावृ ि शरर्द वसन्त)
 र्मक क उत्पहि – वायु से
 प्रार् - 10 माने है ।
(वात, टपत, कफ, मू त्र, पु र ष, स्वे र्द, शोटर्त, स्तन्य, शुि, उष्मा

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ऋर्ु के अनुसार द्रव्य सेर्न भे ल संहिर्ा ने बर्ार्ा िै :-

हिहिर ऋर्ु में र्ारूण

बसन्त में मृद का

िरद सहपय

ग्र ष्म दु ग्ध

र्षाय मधु

 मिाभूर्ों में – वात प्रधान


(नोि – महाभू तो में - आकाश प्रधान - हार त)
 पु रूष - षडधावत्वात्मक
 र्ार् से दो र्रि के रोग – सवाां ग व पक्षाीं ग
 बालक का नामकरण - 10 वाीं मास (नोि - चरक/ सु श्रुत 10 वें टर्दन)

(वाग्भि ने 10 टर्दन, 100 टर्दन व 1 वषण पर)

 उदक मे ि का लक्षण - स्फटिकाभ् अम्बु टनम्भीं


 आगन्तु क उन्माद का हनदान – धन नाश व मरर्
 स्त्र पु रुष प्रसन्नमन से- सत्व यु क्त सीं तान
 ओज र्े ज के स्थान - 12

(रस से शु ि (शु क्ल शब्द), मू त्र, पु र ष, स्वे र्द, टपत, कफ)

 कोष्टां ग – 15 (चरक के पक्वाशय क जगह अवहनन माना है ।)


 प्राणार्र्न, - त्वचा, अस्स्थ (चरक के समान)
 9 वें मास अनुवासन बस्स्त - कर्दम माीं स तैल (AIAPGET -2021)
 (चरक – मु लेठ टसद्ध तैल क अनु वासन वस्स्त)
 (सु श्रुत - 8 वें मास टनरूह + अनुवासन तै ल)

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 ज्वर उपक्रम -11


 हर्षम ज्वर में – महापर्दम तै ल (चरक ने महापर्दम तै ल – वातरक्त )
 नरस्य स्त्र स्वर, स्त्र पु रूष स्वर लक्षण - आमर्दोष
 रूपार्दान का कारर् – परजन्य (पू वणजन्म)

Dr .Vivek Tiwari
IMS BHU

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