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उद्घोष
उद्घोष
तू कल का मोह नराला है
म आज शु ध हो जाता हूँ
या मोह-पाश म बांधेगा
म शी बु ध हो जाता हूँ
अब पाँचज य का घोष सन ु ो
स य शु ध उ घोष सन ु ो
और कान खोल लो द ु ट क ल
फ़र मेरे उर का रोष सन
ु ो
तू द मक है , तू है प तत
तनू े समाज को बाँट दया
कुछ वण बँटे,कुछ जात बने
और मानवता को छाँट दया
तू णभर का न वर वलाप
तू तु छ , घनौना अ भशाप
तेरा घट भरता जाता है
तू बु ढा होता जाता है
तू मर जाएगा द ु ट क ल
म तेर चता जलाऊँगा
म मानव म मानवता का
एक द प जलाता जाऊँगा
स दय तक ऐसे शल ू चभ ु े
तेर भाषा हम भल
ू चकु े
अब कससे पाप कराएगा
चँ ू तक या करवा पाएगा?
© ऋि वक ' '