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उ घोष

तू कल का मोह नराला है
म आज शु ध हो जाता हूँ
या मोह-पाश म बांधेगा
म शी बु ध हो जाता हूँ

जीते ह गे संसार सकल


ऊँचे पवत, भू म समतल
न दय का बहता नमल जल
ाची, दनकर या अ ताचल

अब पाँचज य का घोष सन ु ो
स य शु ध उ घोष सन ु ो
और कान खोल लो द ु ट क ल
फ़र मेरे उर का रोष सन
ु ो

तू द मक है , तू है प तत
तनू े समाज को बाँट दया
कुछ वण बँटे,कुछ जात बने
और मानवता को छाँट दया

तझु को लालच पर घमंड है


भख ू को दे ख इतराता है
और मादकता क अंगीठ पर
तू आंख सक दखलाता है

तू णभर का न वर वलाप
तू तु छ , घनौना अ भशाप
तेरा घट भरता जाता है
तू बु ढा होता जाता है

तू मर जाएगा द ु ट क ल
म तेर चता जलाऊँगा
म मानव म मानवता का
एक द प जलाता जाऊँगा

स दय तक ऐसे शल ू चभ ु े
तेर भाषा हम भल
ू चकु े
अब कससे पाप कराएगा
चँ ू तक या करवा पाएगा?

आज नह ं तो कल तेरा सा ा य बखरने वाला है


वो मनु य िजसम मानव है , अब ना डरने वाला है

ट नशाचर, कान खोल


आ नेय क व,अि न-से बोल
म हूँ वशेष , भ नावशेष
म ह वदे श, पर-प रवेश
म हूँ यि ट , म हूँ समाज
म ग वत कल,स मान आज
म मं दर हूँ , म हूँ मजार
म गरजाघर , म गु वार
म हूँ मनु य , म हूँ न वर
पर राग अमर,म स य- वर
अं धयारे म बाण चलाऊँ
भोर तले खल जाऊँगा
म ट से नकला तन मेरा
म ट म मल जाऊँगा

यान लगा कर सनु लेना


जो सह लगे वो चनु लेना

हमम से आधे वीर बन


कुछ ानी,साध,ु धीर बन
कछ मयादा म राम बन
कुछ पाथसाथ याम बन
कुछ ल मीबाई बन जाए
शमशीर उठाकर रण जाए
राणा ताप के जैसे कुछ
द ु मन के आगे तन जाए
अब ज मे कोई वीर भगत
कोई सभ ु ाष-सा बन जाए
कोई बापू क लाठ -सा
आज़ाद लाकर दखलाये

सनु लो अं तम तमु बात मेर


केवल मनु य है ज़ात मेर
सन ु ो पु षाथ क प रभाषा
न छल, नमल यह अ भलाषा

क राह म क टक लगे ह गे , उ ह म नोच दँ ग


ू ा
म सध
ु ाकर को नशा म चर- वचर कर खोज लग ंू ा
और ची ँ गा दय म फ़र क ल के वंश का
लोभ, ई या, कामक
ु -इ छा और तम के अंश का

जो पाठ पढ़ाए थे उसने , म उ ह मटाता जाऊँगा


म कलयग ु को त े ा, वापर के व न दखाता जाऊँगा
तमस भर इस सिृ ट को आलो कत करता जाऊँगा
ब धु व, ेम, स भाव भरा एक गीत बनाता जाऊँगा
ये व व सगु ं धत हो जाए , संगीत सन
ु ाता जाऊँगा

© ऋि वक ' '

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