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मीरा के पद

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मीराबाइ कृ ष्णभक्त कवययत्री हैं. ईनकी रचनाएँ ईनके अराध्य श्रीकृ ष्ण के प्रयि पूणणिः समर्पपि हैं.
श्रीकृ ष्ण के प्रयि प्रेम, समपणण, भयक्त ही ईनकी रचनाओं का कें द्र रहा है. मीरा प्रभु के सगुन रूप की भयक्त
करिी हैं. वे ऄपने आष्ट को प्रेमी, सखा और पयि मानकर सख्य भाव और माधुयण भाव की भयक्त भी करिी हैं
और स्वयं को ईनकी दासी मानकर दास्य भाव की भी भयक्त करिी हैं. कृ ष्ण के पेम में यवह्वल होकर प्रेम
मागण पर चल पड़िी हैं मीरा ऄपने अराध्य श्री कृ ष्ण को ऄपना पयि या प्रेमी मानिी हैं। ईनकी भयक्त में
इश्वर के प्रयि सम्पूणण समपणण का भाव है।
1. पहले पद में मीरा ने हरर से ऄपनी पीड़ा हरने की यवनिी ककस प्रकार की है?
ईत्तर- मीरा ने हरर से ऄपनी पीड़ा हरने की यवनिी आस प्रकार की है − प्रभु! यजस प्रकार अपने द्रौपदी का
वस्त्र बढाकर भरी सभा में ईसकी लाज रखी, नरससह का रुप धारण करके यहरण्यकश्यप को मारकर ऄपने
ऄनन्य भक्त प्रह्लाद को बचाया, मगरमच्छ ने जब हाथी को ऄपना ग्रास बनाना चाहा िो अपने ईसे
मगरमच्छ रूपी काल के गाल से और डू बने से बचाया िथा ईसकी पीड़ा भी हर ली।हे यगररधर! आसी िरह
ऄपनी दासी मीरा को भी हर संकट से बचाकर पीड़ा मुक्त करो। मीरा ने कइ ईदाहरण प्रस्िुि ककए हैं -
द्रौपदी, प्रह्लाद और हाथी आसयलए आस पद में दृष्टांि ऄलंकार है।
2. दूसरे पद में मीराबाइ श्याम की चाकरी क्यों करना चाहिी हैं? स्पष्ट कीयजए।
ईत्तर- मीरा का हृदय कृ ष्ण के पास रहना चाहिा है। ईसे पाने के यलए मीरा आिनी ऄधीर है कक वह ईनकी
सेयवका बन जाना चाहिी हैं।वह कृ ष्ण के यबस्िर सजाना चाहिी हैं िाकक सुबह सुबह ईनके दर्णन हो जाएँ.
वह बाग-बगीचे लगाना चाहिी हैं यजसमें श्री कृ ष्ण यवहार करें । मीरा वृंदावन की कुं ज गयलयों में कृ ष्ण की
लीला के गीि गाना चाहिी हैं।चाकरी करके बदले में गोसवद दर्णन चाहिी हैं। कृ ष्ण के नाम का
स्मरण/सुयमरन/यसमरन खरची के रूप में पाना चाहिी हैं। मीरा भाव और भयक्त की जागीर पाना चाहिी
हैं। आस िरह ईनकी िीनों मनोकामनाएँ पूणण होंगी-1.गोसवद दर्णन 2. कृ ष्ण नाम स्मरण 3.भाव व भयक्त की
जागीर।
3. मीराबाइ ने श्रीकृ ष्ण के रूप-सौंदयण का वणणन कै से ककया है?
ईत्तर- मीरा ने कृ ष्ण के रुप-सौंदयण का वणणन करिे हुए कहा है कक ईनके यसर पर मोरपंखी मुकुट है, र्रीर
पर पीले वस्त्र हैं और गले में वैजंिी फू लों की माला है। वे वृंदावन में बाँसुरी पर मनमोहक धुन बजािे हुए
गाय चरािे हैं और बहुि सुंदर लगिे हैं।वे मन को मोह लेने वाले मोहन हैं।
4. मीराबाइ की भाषा र्ैली पर प्रकार् डायलए।
ईत्तर- मीरा की भाषा सरल, सहज व अम बोलचाल की भाषा है जो राजस्थानी, ब्रजभाषा और गुजरािी
का यमश्रण है। पदावली कोमल, भावानुकूल व प्रवाहमयी है। पदों में भयक्त रस है िथा दृष्टांि, ऄनुप्रास,
पुनरुयक्त प्रकार्, रुपक अकद ऄलंकार का भी प्रयोग ककया गया है।
5. मीरा श्रीकृ ष्ण को पाने के यलए क्या-क्या कायण करने को िैयार हैं?
ईत्तर - मीरा कृ ष्ण को पाने के यलए सेयवका बनकर ईनके साथ रहना चाहिी है, ईनके यवहार करने के
यलए बाग बगीचे लगाना चाहिी है।ईनका यबस्िर लगाना चाहिी है िाकक ईनके दर्णन प्रािः काल ही कर
सके । वृंदावन की गयलयों में कृ ष्ण की लीलाओं का गुणगान करना चाहिी है। उँचे-उँचे महल और ईन
महलों में यखड़ककयाँ बनवाना चाहिी हैं िाकक असानी से कृ ष्ण के दर्णन कर सके । कु सुम्बी (के सररया रं ग
की) साड़ी पहनकर अधी राि को यमुना िट पर कृ ष्ण से यमलकर ईनके दर्णन करना चाहिी है।ऄपने
जीवन में व्याप्त दुःख रूपी घने ऄँधेरे को दूर करना चाहिी है।
काव्य-सौंदयण स्पष्ट कीयजए-
1. हरर अप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, अप बढायो चीर।
भगि कारण रुप नरहरर, धयो अप सरीर।
ईत्तर-आस पद में मीरा ने भक्त वत्सल श्रीकृ ष्ण के ऄपने भक्तों पर कृ पा दृयष्ट रखने वाले रूप का वणणन ककया
है। वे कहिी हैं - "हे हरर ! यजस प्रकार अपने ऄपने भक्तजनों की पीड़ा हरी है, मेरी भी पीड़ा ईसी
प्रकार दूर करो। यजस प्रकार द्रौपदी का चीर बढाकर, प्रह्लाद के यलए नरससह रुप धारण कर अपने रक्षा
की, ईसी प्रकार मेरी भी रक्षा करो।"
2. बूढिो गजराज राख्यो, काटी कु ण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल यगरधर, हरो म्हारी भीर।
ईत्तर-आन पंयक्तयों में मीरा ने कृ ष्ण से ऄपने दुख दूर करने की प्राथणना की है। जैसे अपने डू बिे गजराज को
बचाया और ईसकी रक्षा की वैसे ही अपकी दासी मीरा की पीड़ा भी दूर करो। आसमें दास्य भयक्त का भाव
है।
3. चाकरी में दरसण पास्यू, ँ सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगिी जागीरी पास्यू, ँ िीनूं बािाँ सरसी।
ईत्तर- मीरा कृ ष्ण की चाकरी करने के यलए िैयार हैं क्योंकक आससे वह ईनके दर्णन, नाम स्मरण और
भयक्त भाव पा सकिी है। आसमें दास्य भाव दर्ाणया गया है। भाषा ब्रज यमयश्रि राजस्थानी है। ऄनुप्रास
ऄलंकार, रुपक ऄलंकार और कु छ िुकांि र्ब्दों का प्रयोग भी ककया गया है। श्रीकृ ष्ण की सेयवका बनकर
मीरा को िीन लाभ होंगे - 1.चाकरी के बदले दर्णन प्राप्त होंगे 2.खरची के रूप में नाम सुयमरन का
लाभ होगा 3.भाव और भयक्त की जागीर यमलेगी।

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