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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 -1 

( GREEK)  
 

इकाई क सरं चना
1.1 तावना
1.2 उेय
1.3 यनू ानी राजनीितक िचतन के िवकास क परि थितयाँ
1.3.1 भौगोिलक ि थितयाँ
1.3.2 िज#ासु – वृि&
1.3.3 िववेक - बिु (
1.3.4 मानव के मह+व का #ान
1.3.5 मानवीयता क भावना
1.3.6 शासन के िविवध .प/ क िव0मानता
1.4 यनू ानी राजनीितक िचतन क िवशेषताएं
1.4.1 नगर-रा1य
1.4.2 मानव अ3ययन को िवशेष मह+व
1.4.3 यथाथ5वादी िचतन
1.4.4 रा1य नैितक सं था के .प म8
1.4.5 िववेक को धानता
1.4.6 दास था
1.4.7 सामदु ाियक िहत क भावना
1.4.8 समाज व रा1य म8 अतर नह9
1.4.9 धम5 िनरपे: राजनीितक िचतन
1.4.10 रा;<ीय तथा अतरा5;<ीय =ि>कोण का अभाव
1.5 यनू ानी राजनीितक िचतन का मह+व
1.6 सारांश
1.7 श@दावली
1.8 अAयास B/ के उ&र
1.9 सदभ5 Cथ सचू ी
1.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामCी
1.11 िनबधा+मक B

उराखंड म
ु िविवालय 1
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

1.1 तावना-
यनू ान पाFा+य राजनीितक िचतन का िसरमौर रहा है। पाFा+य राजनीितक िचतन का ारHभ यनू ानी राजनीितक
िचतन से ही होता है। इसीिलए कहा जाता है िक यनू ानी िचतन सम त पाFा+य राजनीितक िचतन का ारHभ है,
पृJभिू म है और न9व है। सHपणू 5 पाFा+य राजनीितक िचतन या तो यनू ानी राजनीितक िचतन का समथ5न या िवरोध
तीत होता है। िकसी रा1य या समाज म8 होने वाली सामािजक एवं राजनीितक उथल-पथु ल राजनीितक िवचार/
(िस(ात/) के उ+पि& को उव5रता दान करती हL। यनू ान क सामािजक व राजनीितक अि थरता ने यनू ानी
दाश5िनक/ का 3यान इस तरफ आकृ > िकया िक सामािजक और राजनीितक Oयव था न8 सधु ार अपरहाय5 है।
िजससे यनू ान म8 राजनीितक िवचार/ ने जम लेना ारHभ िकया और वह इस .प म8 कट हQआ िक सHपणू 5 दिु नया
के राजनीितक िवचार/ का माग5दश5क या आधार िस( हQआ।
य0िप यनू ानी राजनीितक िचतन से पवू 5 भारत, िमR, ईरान, चीन, बेबीलोन आिद देश/ के िनवािसय/ ने न के वल
राजनीितक सं थाओ क रचना िकया वरन् िविभन राजनीितक सम याओ ं पर गहन िचतन और मनन भी िकया।
कुछ ऐसे िवचार/ का ितपादन भी िकया गया िजनका िवकास बाद म8 पि;चमी जगत म8 हQआ। िकतु पौवा5+य
जाितय/ का राजनीितक िचतन Vमब(, सOु यवि थत और वै#ािनक नह9 था। इस कार अय समाज/ को
राजनीितक िचतन को ारHभ करने का Wेय ाX होने के बावजदू इसे सव5 थम Vमब(, Oयवि थत और वै#ािनक
वYप दान करने का परू ा Wेय यनू ािनय/ को ही िदया जाता है।
यनू ानी अय जाितय/ क तरह धम5 के :ेZ म8 आगे बढ़ने के बजाय भौितक जगत क व तुओ ं पर आFय5 Oय\
करते हQए बिु ( के काश म8 िव] पर िवचार करने का य+न िकये। इस कार िनिव5वाद .प से यह कहा जा
सकता है िक राजनीितक िचतन का Oयवि थत व वै#ािनक .प यनू ािनय/ ^ारा ही ितपािदत िकया गया। यनू ानी
राजनीितक िचतन राजनीितक िचतन को समझने क =ि> दान करता है। यह वह आधार है िजस पर सHपणू 5
पाFा+य राजनीितक िचतन का महल िनिम5त तीत होता है।

1.2 उे
य-
यह इकाई के अ3ययन के उपरात -
1. पाFा+य राजनीितक िचतन के िवकास को समझने म8 सहायता िमलेगी ।
2. सामािजक व राजनीितक परि थितयां िकस कार राजनीितक िचतन को पनपने म8 सहयोग करती है का #ान
दान करे गा।
3. वत5मान राजनीितक िचतन को समझने म8 भी सहायता िमलेगी ।
4. वत5मान राजनीितक स ं थाओ ं क थापना म8 इसके योगदान को हम जान सके गे।

उराखंड म
ु िविवालय 2
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

1.3 यन
ू ानी राजनीतक चतन के वकास क परिथतयां
आवयकता अिव;कार क जननी होती है अथा5त सम या उ+पन होने पर उसका समाधान खोजना मानव क
कृ ितर रही है। यनू ान क सामािजक और राजनीितक सम याओ ं ने यनू ानी िचतक/ को उनका समाधान ढूढ़ने के
िलये ेरत िकया। िजससे यनू ानी राजनीितक िचतन का ादभु ा5व हQआ। पाFा+य राजनीितक िचतन यनू ािनय/ का
अवेषण था। यह स+य है िक यनू ानी राजनीितक िचतन से पवू 5 शासक एवं शािसत/ का अि त+व तो था िकतु
राजनीित का नही। यह एक मह+वपणू 5 िवचारणीय B है िक राजनीितक दश5न अथवा िचतन का उदय सव5 थम
यनू ान म8 ही aय/ हQआ इसके मख ु कारक/ का उbलेख िनHन .प/ म8 िकया जा सकता है-
1.3.1 भौगोिलक ि थितयां
यनू ानी राजनीितक िचतन के उदय पर उसक िविष> भौगोिलक ि थित का गहरा भाव िदखाई देता है। यनू ान के
पवू 5 क ओर असीरया तो दि:ण क ओर िमR था। फौनीिसया के Oयापारय/ ने यनू ािय/ को सAयता का सदेश
तो िदया परतु उनक वतZता पर कोई कुठाराघात नही िकया। इससे यनू ािनय/ को अपनी सAयताके िवकास का
िनरतर अवसर िमला।
यनू ान क जलवायु समषीतो;ण है। िजससे अ+यिधक ठdड या गमf यहां के िनवािसय/ के िलए परे षानी का सबब
नही बनती है। इस रा1य के वा थयबध5क जलवायु के कारण यनू ानी शारीरक एवं मानिसक =>ी से मजबतू होते
हL। कम उपजाऊ भिू म होने के बावजदू कृ ित ^ारा यनू ािनय/ के भोजन क सल
ु भता व समषीतो;ण जलवायु के
कारण वh/ क िचता का अभाव इनको अ3ययन, मनन, िचतन तथा सां कृ ितक िVयाकलाप/ के सचं ालन के
िलये चरु समय दान करता है।
1.3.2 िज़ासु विृ 
मानव वभाव म8 िज#ासावृित वाभािवक .प से पाई जाती है िकतु यनू ािनय/ म8 यह वृि& अ+यत बल थी।
उनक यह वृि& यनू ानी राजनीितक िचतन के िवकास का मख ु कारण बनी। अर तू ने िलखा है िक ’’सभी
मन;ु य जानना चाहते है। आFय5 क भावना दाश5िनक बनाती है, दश5न का एक माZ Rोत यही है। िज#ासा क
भावना यनू ानी जाित क एक मखु िवशेषता है। िकसी बात को वीकार करने से पवू 5 वे उसका बै#ािनक परी:ण
करते थे। अपनी इसी वृि& के कारण यनू ानी दाश5िनक/ ने िव] क उ+पित व रा1य सHबधी िचतन का ितपादन
िकया।
1.3.3 िववेक- बिु 
िज#ासा वृि& के साथ-साथ यनू ािनय/ म8 िववेक त+व क भी धानता थी। िववेक के कारण ही यनू ानी तक5 -
िवतक5 ,वाद-िववाद को अ+यिधक मह+व देते थे। िकसी भी स+य को वे तब तक वीकार नही करते थे जब तक िक
उसे तक5 क कसौटी पर कस कर सiचाई का #ान न ाX कर िलया जाय। िववेक क धानता के कारण ही
धािम5क अधिव]ास/ म8 उनक कोई .िच नही थी। िववेक व तक5 म8 गहरी आ था के कारण ही वे राजनीितक
िचतन के जनक के .प म8 कट हQए। यनू ानी इस बात से भलीभािं त परिचत थे िक वाद-िववाद िकसी काय5 के
माग5 म8 बाधक नह9 है बिbक कोई भी बिु (म&ापणू 5 काय5 तब तक भली-भांित सHपािदत नह9 हो सकता जब तक
िक उसे ारHभ करने से पवू 5 उस पर वाद-िववाद व मनन - िचतन िववेचन नह9 कर िलया जाता है। िकसी भी

उराखंड म
ु िविवालय 3
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
स ं था का िनमा5ण करने से पवू 5 उस पर समाज के लोग/ म8 वाद-िववाद िनि;चत .प से सं था के .प को िनखार
देता है। वह समाज या रा1य के िलए बेहतर भी िस( होती है।
1.3.4 मानव के महव का ान
राजनीितक िचतन के अAयदु य के िलए मानव को अपने मह+व का #ान होना भी अ+यत आवयक होता है।
यनू ािनय/ को यह पणू 5 िव;वास था िक िनयित ने बहQत ही कम चीज/ को पहले से िनि;चत कर रखा है। तमाम
अ=य शि\य/ के होते हQए भी मन;ु य अपनी सामjय5 से अपने समाज का िनमा5ण अपनी इiछानसु ार कर सकता है।
उनका यही िव;वास उह8 राजनीितक कायk म8 भाग लेने के िलए ेरत करता था और वे अपने अिधकार/ के ित
पणू 5 .प से जाग.क थे। यनू ािनय/ का मानना था िक यिद कोई मानव अपने राजनीितक व सामािजक दािय+व/ का
िनव5हन नह9 करता है तो उसका जीवन िनरथ5क होता है। मानव के मह+व के कारण ही यनू ानी मानव Oयि\+व के
िवकास के सम त साधन उसे उपल@ध कराने का समथ5न करते थे।
1.3.5 मानवीयता क भावना
यनू ानी मानवीयता क भावना से ओत- ोत थे। उनका िचतन मानवीयता पर आधारत दश5न ही है। सोफोaलीज
ने िलखा है िक ‘‘मन;ु य एक अlुत व तु है िजससे बढ़कर और कोई अlुत व तु नह9।’’ मानवीयता म8 आ था के
कारण ही यनू ािनय/ के ^ारा सदैव मानवीय समाज क बरु ाईय/ को दरू करने का यास िकया गया। अपने िवचार/ के
मा3यम से वे त+कालीन समाज के उन Oयव थाओ ं पर गहरी चोट करने का यास कर रहे थे जो मानव समाज या
मानवीयता के िलए कोढ़ सािबत हो रही थी। वही उन Oयव थाओ ं का वे बल समथ5न भी कर रहे थे जो मानव ेम
व सख ु -समृि( को बढ़ावा देने वाली थी। इस कार यह देखने को िमलता है िक यनू ािनय/ का सHपणू 5 यास
मानवता क सेवा करने के िलए ही था। मानवीय होने के कारण ही यनू ानी िचतन रा1य के अि त+व का आधार
पणू 5 सखु मय एवं आ+मिनभ5र जीवन को मानता था।
1.3.6 शासन के िविवध "प$ क िव%मानता
यनू ान छोटे-छोटे नगर रा1य/ का अlुत सगं म था। इन नगर - रा1य/ क शासन णािलयां भी िभन-िभन थी।
िजससे शासन के िविवध व.प/ का तल ु ना+मक अ3ययन कर आदश5 शासन क धारणा का ितपादन सHभव
था। अर तू ने अपनी प ु तक ‘पािलिटaस’ क रचना से पवू 5 लगभग 158 देश/ के सिं वधान/ का अ3ययन कर
यनू ान क राजनीितक Oयव था क बरु ाईय/ को दरू करते हQए शासनके सवm&म .प को खोजने का यास िकया।
यह िविवधता पणू 5 राजनीितक व सामािजक Oयव था राजनीितक िस(ात/ के ितपादन के िलए उव5रता दान
करती थी। शासन के िविवध .प/ का अि त+व यनू ािनय/ के शासकय अनभु व म8 बृि( िकया परणाम व.प वे
इस िन;कष5 पर पहQचँ े िक आदश5 शासन के िलए िकन-िकन चीज/ का होना अपरहाय5 है। यह उनके सHपणू 5 िचतन
म8 भी देखने को िमलता है।
अAयास B -1
िनदnष- 1. नीचे िदये गये र\ थान म8 अपना उ&र िलख8।
2. इकाई के अत म8 िदये गये उ&र से िमलान कर अपने उ&र क Zिु टय/
को दरू कर8 ।
1. पाFा+य राजनीितक िचतन का ारHभ सव5 थम हQआ-

उराखंड म
ु िविवालय 4
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
(क) यनू ान म8 (ख) रोम म8 (ग) उपय5\
ु दोन/ म8 (घ) इनम8 से कह9 नह9
..................................................................................................................................................
.....................
..................................................................................................................................................
.....................

2. यनू ानी इस बात के बल समथ5क थे िक कोई भी अiछा काय5 िबना वाद-िववाद व तक5 -िवतक5 के सHभव नह9
है।
1. स+य है/ 2. अस+य है
3. यनू ानी नगर-रा1य/ के शासन Oयव था म8 एक.पता पायी जाती थी ?
1. स+य है/ 2. अस+य है
..................................................................................................................................................
.....................

4. यनू ान के पवू 5 और दि:ण क ओर कौन-कौन देष बसे हQए थे


?................................................................................................................................................
.......................

1.4. यन
ू ानी राजनीतक चतन क वशेषताए
राजनीितक दाश5िनक का राजनीितक दश5न उसके जीवन यगु से िनकलता है। वा तव म8 उसका राजनीितक दश5न
उस समय क ि थित के िलए िदया गया उ&र होता है िजस समय का वह दाश5िनक होता है या यंू कह8 िक समय,
काल और परि थितय/ का भाव िनि;चत .प से +येक दाश5िनक या िचतक के िवचार/ पर पड़ता है। िजसके
कारण +येक समय के दश5न या िचतन म8 कुछ िवल:णताएं देखने को िमलती है। इनको ही हम उस समय के
िचतन क िवशेषताओ ं के .प म8 सHबोिधत करते हL। ाचीन यनू ान के समय, काल और परि थितय/ के भाव के
कारण ही यनू ानी राजनीितक िचतन म8 िनHनिलिखत िवशेषताएं देखने को िमलती हL।
1.4.1 नगर-राय
यनू ानी राजनीितक िचतक/ के अ3ययन के के p िबदु नगर-रा1य थे। नगर-रा1य को =ि>गत रखकर ही उह/ने
अपना दश5न िदया। इसका सबसे बल उदाहरण अर तू क प ु तक Politics (पॉिलिटaस) को माना जा सकता
है। Politics श@द क उ+पि& Polis (पोिलस) श@द से हQई है। िजसका अथ5 होता है नगर-रा1य अथा5त नगर-
रा1य का अ3ययन करने वाला िवषय iवसपजपबे कहलाया। :ेZफल और जनसंrया के =ि> से यनू ानी नगर-रा1य
लघु इकाईया थे। इसम8 िनवास करने वाले नागरक/ म8 सामदु ाियकता और सlाव क भावना पायी जाती थी
अथा5त संगिठत जीवन, समान धम5 और उपासना नगर- रा1य क मख ु िवशेषता थी। ये लोग आपस म8 एक दसू रे

उराखंड म
ु िविवालय 5
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
को करीब से जानने का यास करते थे। वैचारक आदान- दान, वाद-िववाद, भाषण, वाकपटुता एवं Oयवहार
कुषलता इनका सामाय ल:ण बन गया था। सामिू हक चरZ के अितर\ नगर रा1य का लsय सख ु ी एवं
आ+मिनभ5र जीवन क ािX करना था। tलेटो और अर तू दोन/ ने ही नगर रा1य को आ+मिनभ5र समदु ाय माना था।
यह नगर-रा1य लोग/ को सदज् ीवन (नैितक) जीवन दान करने म8 भी सहयोग करता था। अर तू ने िलखा है िक
’’रा1य जीवन के िलए अि त+व म8 आया और सदज् ीवन के िलए बना हQआ है।’’ इस कार नगर-रा1य एक पणू 5
राजनीितक व सामािजक इकाई था।
यनू ािनय/ ^ारा नगर-रा1य को आदश5 स ं था माना जाता था। यही कारण था िक वे नगर-रा1य क कमत पर बड़े
साuा1य को वीकार करने के िलए क&ई तैयार नही थे। जबिक अर तू के जीवन काल म8 ही िफिलप ने यनू ानी
नगर-रा1य/ का अत करके अपने साuा1य क थापना कर िलया था िफर भी अर तू ने इन साuा1य/ के बारे म8
कोई िवचार नह9 िकया। यनू ािनय/ को यह पणू 5 िव;वास था िक बड़े रा1य/ म8 जीवन का वह सामजं य नह9 रह
सकता जो छोटे-छोटे नगर-रा1य/ म8 सHभव था। इस चहार दीवारी के अतग5त मन;ु य एक सामाय एवं वाभािवक
जीवन म8 गथु े हQए थे।
1.4.2 मानव अ
ययन को िवशेष महव
मानव यनू ानी राजनीितक िचतन का मख ु अ3ययन िवषय था। यनू ानी मन;ु य को एक सामािजक और राजनीितक
ाणी मानते थे। अर तू ने कहा था िक ‘‘मन;ु य एक सामािजक व राजनीितक ाणी है जो मन;ु य समाज म8 नही
रहता या यह कहता है िक उसे समाज क आवयक ता नह9 है वह या तो पषु या देवता होगा। यनू ािनय/ का मानना
था िक सबसे आFय5 जनक व तु मानव है उससे अिधक आFय5 जनक व तु अय कुछ नह9 है। इसिलए मानव
का अनसु धं ान करना अित आवयक है िजससे उसके बारे म8 सHपणू 5 जानकारी ाX हो सके । इस कार यनू ािनय/
का उेय मानव को मानव बनाना था िजससे वह अपने साथ-साथ सHपणू 5 समाज व रा1य के लोग/ के सख ु व
समृि( म8 सहायक बन सके । यनू ानी Oयि\ के Oयि\+व के सवा5गीण िवकास के प:पोषक थे। इसके िलए वे Oयि\
को वे सभी साधन देने के प:धर थे जो इस िनिम& आवयक हो।
1.4.3. यथाथवादी िचतन
यनू ानी राजनीितक िचतन त+कालीन राजनीितक सम याओ ं के समाधान से सHबिधत था। य0िप tलेटो का दश5न
आदश5 वादी था िकतु वह भी अपने आदषm का ितपादन राजनीितक सम याओ ं के समाधान के िलए ही िकया
था। अर तू तो tलेटो का िष;य होते हQए भी tलेटो क आलोचना इसिलए िकया िक उसका िचतन यथाथ5 जगत से
सHबिधत नह9 था। अपनी प ु तक पॅािलिटaस क रचना के पवू 5 अर तू ने लगभग 158 देश/ के सिं वधान/ का
तुलना+मक अ3ययन िकया था। इसिलए अर तू के िसफ5 दासता सHबधी िवचार/ को छोड़ िदया जाय तो उसके
िस(ात आज भी उतने ही ासिं गक तीत होते हL िजतना िक वे अर तू के समय म8 थे। यनू ानी नगर-रा1य/ क एक
मख ु िवशेषता राजनीितक अि थरता थी। इसिलए यनू ानी राजनीितक िचतन का यास इस अि थरता को समाX
कर आदश5 राजनीितक Oयव था क थापना करना था। यह भी कहा जा सकता है िक यनू ानी राजनीितक िचतन
भौितक या सांसारक जगत या लौिकक या =;य जगत से सHबिधत था न िक पारलौिकक, अ=य या
आ3याि+मक जगत से। यनू ानी राजनीितक िचतन का उेय सामािजक और राजनीितक सम याओ ं का
Oयवहारक िनवारण करते हQए आदश5 समाज या रा1य क थापना करना था। ऐसा रा1य या समाज सभी कार
क किमय/ से अछूता होगा। इसम8 Oयि\ के Oयि\+व को कंु िठत करने वाला कोई त+व नह9 होगा। अर तू ने
Vाित व उसके ितकार से बचने का जो उपाय सझु ाया है वे सतत् व अनािद काल तक ासंिगक बने रहेगे।

उराखंड म
ु िविवालय 6
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1.4.4. राय एक नैितक संथा है
यनू ानी राजनीितक िचतन रा1य को एक नैितक स ं था मानता था। इसिलए उनका कहना था िक रा1य के बगैर
नैितक व आदश5 जीवन क कbपना नह9 क जा सकती है। अर तू ने िलखा था िक ‘‘रा1य जीवन के िलए
अि त+व म8 आया और सदज् ीवन के िलए बना हQआ है।‘‘ रा1य का उेय मानव म8 सwणु / या अiछी शि\य/ का
िवकास करना है। यह मानव को बौि(क, नैितक और शारीरक WेJता ाX करने म8 सहयोग दान करता है। िजस
कार Oयि\ नैितक जीवन का अनसु रण कर आनद ाX करता है उसी कार रा1य का आनद भी सकारा+मक
अiछाई का िवकास करना है। मन;ु य का उेय सदैव नैितक और आनदपणू 5 जीवन Oयतीत करना होता है, और
रा1य ऐसा जीवन सHभव बनाने के िलए ही अि त+व म8 बना हQआ है । इस कार रा1य एक नैितक स ं था है
िजसका उेय एक नैितक और सwणु ी जीवन का िवकास करना है। रा1य के वगैर नैितक जीवन क कbपना करना
आकाष कुसमु के समान होगा। रा1य और समाज के बाहर Oयि\ का Oयि\+व कुिठत हो जायेगा। वह वयं के
िलए अनपु य\ ु होने के साथ-साथ रा1य व समाज के िलए भी अनपु योगी हो जायेगा।
1.4.5 बिु ! िववेक को "धानता
यनू ानी राजनीितक िचतन िववेक त+व को अिधक धानता दान करता है। ऐसा तीत होता है िक सHपणू 5 यनू ानी
राजनीितक िचतन मानव िववेक क कहानी है। tलेटो के आदश5 रा1य का दाश5िनक शासक िववेक क ितमिू त5
था। tलेटो ने कहा था िक ससं ार के सम त क>ो को तब तक दरू नह9 िकया जा सके गा जब तक िक सभी राजाओ ं
को दाश5िनक या सभीदाश5िनक/ को राजा न बना िदया जाय। इससे यह तीत होता है िक यनू ािनय/ क मानव
िववेक म8 बल आ था थी। मानव िववेक म8 आ था के कारण ही यनू ानी िकसी भी Oयव था क ांसिगकता को
वीकारने के िलए तक5 क कसौटी को सवm&म मानते थे। उनका मानना था िक कोई भी Oयव था अiछी है या बरु ी
इसका #ान तभी होगा जब इसे तक5 या िववेक क कसौटी पर कसा जाय। यनू ािनय/ का िव;वास था िक स+य का
अनसु ंधान िववेक ^ारा ही िकया जा सकता है। उनक बिु ( धािम5क पवू ा5Cह/ से काफ हद तक म\ ु थी। इसी
कारण कहा जाता है िक यनू ानी राजनीितक िचतन मन;ु य के वतZ बिु ( एवं वiछद तक5 ना - शि\ का
परणाम है वह िकही धम5शाhीय मायताओ,ं .िढ़य/ अथवा अधिव]ास/ पर अवलिHबत नह9 है। उनका
राजनीितक िचतन उम\ ु बिु ( क वतZ Vड़ा था। यनू ािनय/ क बिु (वाद म8 आ था क षंसा अपने
साव5जिनक भाषण म8 करते हQए पैराaलीज ने कहा था ‘‘एथेसवासी िजन कायm को वयं ारHभ नह9 करते उनके
भी गणु -दोष/ को परखने म8 सदैव समथ5 होते हL इसिलए वे वाद-िववाद को काय5 के माग5 म8 बाधा नह9 मानते बिbक
उनका कहना था िक कोई भी बृि(म&ापणू 5 काय5 तब तक भली-भाँित सHपािदत नह9 हो सकता जब तक िक उसे
करने के पवू 5 उस पर वाद-िववाद या गहन िवचार-िवमश5 न कर िलया जाय।
1.4.6 दास "था
यनू ानी राजनीितक िचतन दासता का बल समथ5न करते हQए इसे पणू त5 ः ाकृ ितक एवं यायोिचत मानता है।
यनू ािनय/ के अनसु ार कृ ित ने दो तरह के मन;ु य/ का िनमा5ण िकया है- वामी और दास। दास वािमय/ क सेवा
के िलए िनिम5त िकये गये है ।अतः उनक सेवा ही उनके जीवन का उेयहै । कृ ित म8 भी यह सव5Z देखने को
िमलता है िक उ+कृ > ^ारा िनकृ J पर शासन िकया जाता है। उदाहरण व.प आ+मा-शरीर पर, मानव-पशओ ु ं पर,
प.
ु ष-hी पर और माता-िपता बiच/ पर शासन करते हL। इसिलए यह ाकृ ितक है िक शासक क अपे:ा बौि(क
=ि> से िनकृ J होने के कारण दास पणू त5 ः वामी के शासन-अनश ु ासन म8 रह8। यनू ानी िचतको का मानना था िक
यनू ानी सAयता के ांगण का िनमा5ण दासता से ही हQआ है। दासता के िबना यनू ानी सAयता के अि त+व को अिधक

उराखंड म
ु िविवालय 7
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िदन/ तक सरु ि:त रखना सHभव नह9 होगा। दासता के आधार पर ही यनू ानी नागरक/ को वह अवकाष ाX होता
था िजससे वे भोजन, वh आिद के िचता से म\ ु होकर अपने नागरक कत5Oय/ का िनव5हन करते थे। दासता के
बल प:पोषण के कारण अनेक िव^ान/ ने तो यनू ानी राजनीितक जीवन, सAयता एवं सं कृ ित को दास था पर
अवलिHबत माना है। यनू ानी िचतको का मानना था िक दासता क समािX का अथ5 यनू ानी सAयता को िवन>
करना होगा। इसिलए अमानवीय होते हQए भी यनू ािनय/ ^ारा दासता का बल समथ5न िकया गया।
1.4.7 सामदु ाियक िहत क$ भावना-
यनू ानीदाश5िनक/ ने Oयि\ और समाज के सHबध/ का िन.पण करते समय सामदु ाियक िहत को मह+वपणू 5 माना।
इह/ने ही सव5 थम यह ितपािदत िकया िक मन;ु य समाज और रा1य म8 रहकर ही अपना सवाyगीण िवकास कर
सकता है। समाज या रा1य से बाहर Oयि\ के अि त+व क कbपना नह9 क जा सकती है। सामदु ाियक िहत को
धानता दान करने के कारण ही यनू ानी रा1य को पणू 5 और Oयि\ को उसका अषं माZ मानते थे। उनका कहना
था िक िजस कार पणू 5 अषं से अिधक मह+वपणू 5 होता है। उसी कार समदु ाय िहत या रा1य िहत Oयि\गत िहत
से अिधक मह+वपणू 5 है। यनू ािनय/ म8 सामदु ाियक जीवन के ित वाभािवक लगाव का ही परणाम था िक वे संघो
और सं थाओ ं के मा3यम से अपने सामािजक और राजनीितक दािय+व/ का िनव5हन करते थे। समाज मानव म8
सामािजक गणु / का िवकास करता है। समाज म8 ही मानव का पालन-पोषण होता है और समाज म8 ही उसे आदश5
मानवीय गणु / क िष:ा िमलती है। इसका ता+पय5 यह है िक मन;ु य अपने आपको पणू 5 मानव बनाने के िलए
अथा5त अपनी अतिन5िहत शि\य/ को िवकिसत करके अपने जीवन को पणू त5 ा दान करने हेतु समाज पर िनभ5र
है। इसिलए यनू ान के मनीषीय/ तथादाश5िनक/ ने मन;ु य को पव5त/ के कदराओ ं या जंगल/ म8 जाकर परम-त+व का
िचतन करने का उपदेष देने के बजाय उनको सामािजक समदु ाय/ िजनम8 सबसे मह+वपणू 5 रा1य है तथा सं थाओ ं
को अिधक पणू 5 बनाने के िलए उ+ ेरत िकया। इस कार Oयि\ तथा समाज म8 समवय थािपत करते हQए यनू ानी
िवचारक/ ने राजनीित िव#ान क इस िचरंतन सम या का समाधान करने का यास िकया िक Oयि\ तथा रा1य म8
कौन सा3य तथा कौन साधन है।
1.4.8 समाज और राय म( अतर नह)-
यनू ािनय/ के अनसु ार रा1य और समाज म8 कोई भेद नह9 होता है। समाज और रा1य पृथक-पृथक न होकर एक-
दसू रे से अिविछन .प से जड़ु े हQए है। रा1य के बारे म8 उनका =ि>कोण अ+यत Oयापक था यही कारण था िक उह8
रा1य और समाज म8 कोई अतर परलि:त नह9 हQआ।
1.4.9 धमिनरपे+ राजनीितक िचतन
सधारणतः यनू ािनय/ को धम5िनरपे: राजनीितक िचतन का जमदाता माना जाता है। इसका कारण है िक ाचीन
यनू ािनय/ क जातीय मनोवृि& धािम5क नह9 थी न ही वहाँ कोई सगु िठत परु ोिहत वग5 था। ायः यह देखने को
िमलता है िक एक धम5 भी. Oयि\ वतZ बिु ( क :मता एवं तक5 ना शि\ क उपयोिगता म8 अिधक िव;वास
नह9 रखता बिbक वह धम5षाh/ ^ारा ितपािदत कुछ िव;वास/, मायताओ ं तथा िस(ात/ को zवु स+य मान लेता
है। धम5 - परु ोिहत लोग धम5षाh/ क आलोचना करने वाल/ को नरक का भय िदखाकर उसे चपु कर देने का यास
करते हL। यनू ानी दाश5िनक एवं िचतक धम5 शाh/ तथा धम5-परु ोिहत/ के ऐसे कठोर अनषु ासन से काफ हद तक
म\ ु थे। उनके इस योगदान क ओर संकेत करते हQए बाक5 र ने िलखा है िक ‘‘राजनीितक िचतन के जमदाता
यनू ानी हL इसका मल ू Rोत यनू ानी मि त;क का शात एवं स ु प> बिु (वाद है। भारत और जिू डया (पैले टाइन) के
लोग/ क भांित यनू ानी भी धम5 के :ेZ म8 आगे बढ़ने और इस जगत को िव;वास के आधार पर Cहण करने के

उराखंड म
ु िविवालय 8
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
बजाय िचतन के :ेZ म8 आगे बढ़े और =;यमान व तओ ु ं पर आFय5 कट करने का साहस करते हQए उहोने
िववेक के काश म8 िव] पर िचतन करने का यास िकया।‘‘
1.4.10 रा,-ीय तथा अतरा,-ीय .ि/कोण का अभाव
यनू ान के छोटे से भ-ू भाग पर कई छोटे-छोटे नगर रा1य ि थत थे िजनम8 घोर आपसी ई;या5 व ित^िदता OयाX थी।
अतः इनम8 आपस म8 िनरतर फूट व कलह का वातावरण था। यनू ानी राजनीितक िचतन कभी भी अपने को नगर-
रा1य/ क सीमाओ ं से म\ ु नह9 कर सका। यही कारण था िक आधिु नक यगु क तरह वे रा;<ीय और अतरा5;<ीय
=ि>कोण से िचतन नह9 कर सके और न ही अपने िचतन को नये िव तृत रा;<ीय और अतरा5;<ीय आयाम दान
कर सके । इस कार उनका िचतन हमेषा नगर-रा1य/ क सक ं ण5ता से C त रहा।
इस कार यह देखने को िमलता है िक पाFा+य राजनीितक िचतन का ारHभ यनू ानी जगत से होने के कारण
यनू ानी िचतन अपने आप मे अि^तीय तीत होता है। िजसम8 ऐसी तमाम िवल:णताएं देखने को िमलती है
िजनका अि त+व अय कही के िचतन म8 िदखाई नह9 देता है।

1.5 यूनानी राजनीतक चतन का मह व


यनू ानी राजनीितक िचतन क एक-एक िवशेषताएं पाFा+य राजनीितक िचतन के नीव क ईटं है। ाचीन काल म8
िजतनी उ+कृ > कोिट, िजतना स ु प> एवं वै#ािनक ढगं का राजनीितक िचतन यनू ान म8 हQआ उतना अयZ कही
देखने को नह9 िमलता है। यनू ािनय/ ने राजनीित िव#ान के िजन श@दाविलय/ तथा परभाषाओ ं का िनधा5रण िकया
उनका योग हम आज तक कर रहे है। उदाहरण व.प, राजनीित, राजतZ, कुलीनतत, वग5तZ, जनतZ,
इ+यािद श@द/ का मल ू Rोत ाचीन यनू ानी राजनीितक िचतन ही है। ाचीन यनू ािनय/ ने रा1य के उेय, काननू के
व.प Oयि\ के अिधकार/, शासन के कायm, Oयि\ तथा रा1य के सHबध/, रा1य के व.प इ+यािद B/ का
समीचीन उ&र िदया। िलिवगं टन का यह कथन अित;योि\पणू 5 नह9 है िक ाचीन यनू ािनय/ क सबसे महान देन
यह है िक उहोने राजनीितक िचतन का अिव;कार िकया था।
राजनीितक िचतन ाचीन यनू ानी राजनीितक िचतक/ का िकतना ऋणी है इसे प> करने के िलए मेयर के
अCिलिखत श@द उ(रणीय हL वह िलखता है िक ‘‘जीवन के ित यरू ोप का जो =ि>कोण है, उसे समझने का जो
यास है, उसक सम त Wेिणयां ारHभ से ही थायी .प से यनू ािनय/ ^ारा िनिम5त हQई हL। जब तक यरू ोपवासी
ऐितहािसक जगत को जानने का य+न करते रहेगे तक तक यनू ानी िवचार/ एवं धाराणाओ ं को अपनाकर ही यह
सHभव हो सके गा। ’’यनू ानी राजनीितक िचतन का मह+व राजनीितक िचतन म8 िकस हद तक है इसका अदाजा
इस बात से लगाया जा सकता है िक राजनीित िव#ान का जनक या णेता अर तू यनू ान का ही एक महान मनीषी
या िचतक था।
1अAयास B -2
िनदnष- 1. नीचे िदये गये र\ थान म8 अपना उ&र िलखे।
2. इकाई के अत म8 िदये गये उ&र से िमलान कर अपने उ&र क Zिु टय/
को दरू कर8 ।

उराखंड म
ु िविवालय 9
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1. यनू ानी अपने िचतन म8 िव;वास (आ था) को अिधक मह+व देते थे।
1. स+य है/ 2. अस+य है
..................................................................................................................................................
.....................
2. यनू ानी राजनीितक िचतन का के p िबदु कौन सी सं था थी ?
..................................................................................................................................................
.....................
3. यनू ानी दाश5िनक Oयि\गत िहत और सामदु ाियक िहत म8 1यादा मह+व देते थे -
(क) Oयि\गत िहत को (ख) सामदु ाियक िहत को (ग) इनम8 से िकसी को नह9
..................................................................................................................................................
.....................
4. यनू ािनय/ ने दास था का बल समथ5न िकया था ।
1. स+य है/ 2. अस+य है
..................................................................................................................................................
.....................

1.6 सारांश
पाFा+य राजनीितक िचतन का ारHभ यनू ान से माना जाता है। सामािजक व राजनीितक उथल-पथु ल को
राजनीितक िस(ात/ के िनमा5ण के िलए अपरहाय5 माना जाता है। यनू ानी नगर रा1य/ क राजनीितक अि थरता ने
िनि;चत .प से tलेटो और अर तू जैसेदाश5िनक/ को जम िदया। यनू ान के लोग/ म8 िज#ासा वृि& व िववेक क
धानता थी। इसिलए वह +येक चीज के बारे म8 जानने का यास करते थे और तक5 -िवतक5 व वाद-िववाद के
मा3यम से सदैव अiछा करने का यास करते थे। उनका मानना था िक तक5 वह कसौटी है जो स+य का अनसु ंधान
करने म8 मह+वपणू 5 सहयोग करता है। तक5 -िवतक5 , वाद-िववाद के िबना िकया गया कोई भी काय5 या स ं था समाज
के िलए उपयोगी िस( होगा इस बात क भी िनि;चत नह9 होगी।
यनू ानी नगर रा1य/ के शासन क िविवधता ने उहे तल
ु ना+मक अ3ययन करने का अवसर दान िकया। िजससे इस
बात का पता लगाया जा सकता था िक कौन शासन णाली सवm&म है। अर तू ने अपनी प ु तक ‘पािलिटaस’ क
रचना के पवू 5 लगभग 158 देश/ के संिवधान/ का तल ु ना+मक अ3ययन िकया। त+प;चात् वह ता+कािलक यनू ानी
समाज (नगर-रा1य/) म8 OयाX सम याओ ं का िनराकरण करने के िलए ही अपने Cथ ‘पािलिटaस’ क रचना क।
अर तू के िवचार िकतने यथाथ5वादी व Oयवहारक थे यह इसी से िस( है िक अर तू ने िजतने भी िवचार Oय\
िकये है के वल उसके दासता सHबधी िवचार/ को छोड़कर शेष आज भी उतने ही ासिं गक हे िजतने िक वे अर तू
के समय म8 थे। यथाथ5 िचतन पर आधारत होने के कारण ही अर तू क प ु तक को राजनीित िव#ान का थम
Cथ और अर तू को राजनीित िव#ान का जनक कहा गया।

उराखंड म
ु िविवालय 10
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
tलेटो और अर तू के िवचार ता+कािलक सामािजक और राजनीितक परि थितय/ एवं पवू 5 के यनू ानी दाश5िनक/ के
िवचार/ से भािवत थे और ये भावी राजनीितक िचतन के Rोत बने। इस कार सHपणू 5 पाFा+य राजनीितक दश5न
का आरHभ tलेटो और अर तू के िवचार/ से होता है। कहा जाता है िक पि;चमी राजनीितक िचतन का +येक
िवचारक या तो tलेटो का अनयु ायी है या अर तू का। इस कथन म8 बहQत अिधक सiचाई है aय/िक आज भी
राजनीित िव#ान के अ3ययन से ऐसा तीत होता है िक ऐसी बहQत कम चीज8 है तो यनू ानी िवचारधारा के इन दोन/
िवचारक/ के उ+कष5 काल म8 नह9 थी अतर के वल इनके िव तार का है। मल ू .प से ायः सारे त+व पिFमी
राजनीितक िचतन के इन िद}गजदाश5िनक/ म8 िमल जाते है। इसिलए कहा जाता है िक राजनीितक िचतन का #ान
ाX करने क कोई कोिषष तब तक साथ5क नह9 होगी जब तक िक tलेटो और अर तू (यनू ानी िचतन) का #ान
ाX न कर िलया जाय। यही वह आधार है िजसपर सHपणू 5 राजनीितक िचतन का महल खड़ा िदखायी देता है।
aय/िक इनके पवू 5 के जो भी िवचार है वे या तो हमारे िलए अ ाtय हो गये है या तो उनम8 वह Vमब(ता नह9 है जो
यनू ानी िचतन म8 देखने को िमलती है।

1.7 श!दावल$
पा;चा+य् - पिFमी जगत से सHबिधत
िचतन -िकसी भी िस(ात अथवा आचार के सारे आयाम/ के िवषय म8 सोचना
दाश5िनक - Oयि\गत अनभु तू तjय/ को Oय\ करने वाला
सं था -एक िनि;चत उेय के ािX हेतु सिVय Oयि\य/ का समहू
अवेषण - ऐसी खोज िजसका पवू 5 म8 कोई अि त+व न रहा हो
सAयता -िकसी भी समाज अथवा रा;< का आचरण
स ं कृ ित - िकसी भी रा;< अथवा समाज का भौितक िववेक
िज#ासु -जानने क इiछा शि\
नगर -Oयवि थत तरीके से बनायी गयी ससु Aय लोग/ क वि तयाँ
वाaपटु -जो भाषण म8 चतुर अथवा िनपणु हो
साuा1य - एक अिधनायकवादी :ेZ िजसक सH भतु ा एक Oयि\ अथवा सरकार ने हाथ/ म8
हो
आदश5 वाद -एक वैकिbपक भौितकवाद अथवा वैचारकया काbपिनक जगत म8 पणू त5 ा
यथाथ5वाद- वा तिवक जगत से सHबिधत

1.8 अ&यास 
न' के उ तर
अAयास B-1

उराखंड म
ु िविवालय 11
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1. (क) यनू ान म8 2. (1) स+य है 3. (2) अस+य है 4. पवू 5 क ओर असीरया और दि:ण
क ओर िमR
अAयास B-2
1. (2) अस+य है 2. नगर-रा1य 3. (ख) सामदु ाियक िहत को 4. (1) स+य है

1.9 सदभ) *थ सच


ू ी
1.डॉ.बी.एल. फािड़या, पाFा+य राजनीितक िचतन का इितहास, सािह+य भवन पि@लके षन, आगरा।
2. डॉ. जे.सी. जौहरी, राजनीित िव#ान, एस.बी.पी.डी. पि@लके शन, आगरा।
3. जे.पी.सदू , पाFा+य राजनीितक िवचार/ का इितहास (भाग ाचीन एवं म3यकालीन)
के . नाथ एdड कHपनी, मेरठ।

1.10 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. जीवन मेहता, राजनीितक िचतन का इितहास, 1985 सािह+य भवन आगरा।

1.11 नबधा मक 

1. यनू ानी राजनीितक िचतन के िवकास क परि थितय/ का िव तृत उbलेख किजए।
2. पाFा+य राजनीितक िचतन का ारHभ सव5 थम यनू ान म8 aय/ हQआ।
3. यनू ानी राजनीितक िचतन क मख
ु िवशेषताओ ं पर काश डािलये।

उराखंड म
ु िविवालय 12
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 2 :  (428 0  0 -347 0  0)


इकाई क$ संरचना
2.1 "तावना
2.2 उ4े5य
2.3 6लेटो का याय िस!ात
2.4 6लेटो का िश+ा िस!ात
2.5 पिनय9 और संपि: का सा;यवाद:
2.6 6लेटो के आदश राय का व=प
2.7 शासन एक कला है
2.8 दॅ लॉज 6लेटो का दसू रा सबसे अ?छा राय
2.9 सारांश
2.10 शAदावली
2.11 अBयास "C9 के उ:र
2.12 सदभ Dथ सचू ी
2.13 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
2.14 िनबधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 13
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

2.1 तावना
इसके पवू 5 क इकाई १ म8 हमने यनू ानी राजनीितक िचंतन क िवशेषताओ ं का 3यायन िकया है िजसम8 उसके
िविवध प:/ का अ3ययन िकया है िजसम8 यह जानने म8 सहायता िमली है िक िकस कार से पाFा+य राजनीितक
िचतन का ारHभ यनू ान से माना जाता है। सामािजक व राजनीितक उथल-पथु ल को राजनीितक िस(ात/ के
िनमा5ण के िलए अपरहाय5 माना जाता है। यनू ानी नगर रा1य/ क राजनीितक अि थरता ने िनि;चत .प से tलेटो
और अर तू जैसेदाश5िनक/ को जम िदया। यनू ान के लोग/ म8 िज#ासा वृि& व िववेक क धानता थी। इसिलए
वह +येक चीज के बारे म8 जानने का यास करते थे और तक5 -िवतक5 व वाद-िववाद के मा3यम से सदैव अiछा
करने का यास करते थे। उनका मानना था िक तक5 वह कसौटी है जो स+य का अनसु ंधान करने म8 मह+वपणू 5
सहयोग करता है। तक5 -िवतक5 , वाद-िववाद के िबना िकया गया कोई भी काय5 या सं था समाज के िलए उपयोगी
िस( होगा इस बात क भी िनि;चत नह9 होगी। यनू ानी नगर रा1य/ के शासन क िविवधता ने उहे तुलना+मक
अ3ययन करने का अवसर दान िकया। िजससे इस बात का पता लगाया जा सकता था िक कौन शासन णाली
सवm&म है।
इसी Vम म8 हम इस इकाई २ म8 यनू ानी राजनीितक िचंतन के ारंिभक िवचारक/ म8 अित मह+वपणू 5 tलेटो के
िवचार/ का अ3ययन कर8 गे िजसमे उह/ने अपने समय के अनक
ु ू ल िजस सामािजक राजनीितक ढाँचे क .परे खा
तुत क है उसका अ3ययन कर8 गे | इस अ3ययन से हम8 इसके आगे के पाFा+य राजनीितक िचंतक/ को भी
समझने क =ि> भी ाX होगी |

2.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के पFात हम -------
1.tलेटो के याय िस(ात के बारे म8 जान सक8 गे |
2.tलेटो के िश:ा िस(ात के बारे म8 जान सक8 गे |
3.tलेटो के साHयवादी िस(ात के बारे म8 जान सक8 गे |
4.tलेटो के आदश5 रा1य को जान सक8 गे

उराखंड म
ु िविवालय 14
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

2.3 .लेटो का याय 1स2ात


tलेटो का याय िस(ात उसके दश5न क आधारिशला है। tलेटो के अनसु ार +येक Oयि\ अपनी कृ ित के
अनक ु ू ल अपने कायm को कुशलता एवं सतोष भावना से करे , tलेटो इसे याय क स#ं ा देते है। आज हम याय को
िजस काननू ी पर ेsय म8 देखते अथवा मानते है, tलेटो का मत इससे िभन था। आज हम लोग याय का अथ5
काननू / ^ारा नागरक/ को िदये गये अिधकार काननू / ^ारा नागरक/ के वाहय सHबध/ का िनधा5रण अथवा
यायलय/ ^ारा नागरक/ के ऐसे अिधकार/ क र:ा करने से लगाते है। िव(ान/ का मत है िक याय एक
समवयकारी िस(ात है जो िक वतZता, समानता तथा बध+ु व के आदशm के बीच नागरक/ के िहताथ5 समवय
थािपत करता है। िकतु tलेटो क याय क धारणा इससे अलग है tलेटो िजसे हम नैितकता कहते है, को सiचा
याय मानते है। tलेटो का याय िस(ात Oयि\गत नैितकता तथा सामािजक नैितकता का िस(ात है िविध का
िस(ात नह9।
tलेटो रा1य के िवकास का वण5न करते हQए उसम8 “आिथ5क त+व, सैिनक त+व तथा दाश5िनक त+व” तीन कार
त+व का वण5न करता है, और इसी के आधार पर रा1य म8 तीन/ वगm के िवकास का वण5न करता है। समाज के
िवकास Vम म8 उसक आवयकताओ ं के अनक ु ू ल तीन वगm क उ+पि& होती है।
ये तीन वग5 है उ+पादक वग5 सैिनक वग5 एवं शासक वग5। tलेटो कहता है िक उ+पादक वग5 आिथ5क त+व का सैिनक
वग5 साहस वग5 का शासक वग5 दाश5िनक त+व का ितिनिध+व करते है। वा तव म8 रा1य के ये तीन/ वग5 मन;ु य क
आ+मा म8 अतिन5िहत :धु ा साहस तथा #ान के सsू म त+व/ के िवशद Yप है। tलेटो के अनसु ार मानवीय आ+मा के
तीन धान त+व :धु ा साहस तथा िववेक मानता है। मन;ु य के िवराट Yप रा1य रा1य म8 भी ये तीन त+व पाये जाते
है। रा1य म8 :धु ात+व का ितिनिध+व करने वाला उ+पादक वग5 है, िजसका एक माZ काय5 समाज के लोग/ क
भौितक आवयकताओ ं क पिू त5करना है। रा1य म8 साहस त+व का ितिनिध+व करने वाला सैिनक वग5 है। िजसका
एक माZ काय5 रा1य क र:ा करना है। रा1य म8 िववेक अथवा दाश5िनक त+व का ितिनिध+व शासक वग5 करता
है। दाश5िनक वग5 का काय5 रा1य का समिु चत शासन करना है।
tलेटो मन;ु य क आ+मा के तीन गणु / क िव तृत Oयाrया करता है तथा इनका रा1य के तीन वगm के साथ सHबध
क बात करता है। आ+मा के तीन त+व/ तथा रा1य के तीन त+व/ म8 अत सHबध/ को इस कार प> िकया जा
सकता है।
Oयि\ रा1य (Oयि\ का िवराट Yप)
Oयि\ क आ+मा म8 पाये जाने वाले त+व रा1य म8 पाये जाने वाले तीन वग5
1.:धु ा (वासना) 1.उ+पादक वग5
2.साहस 2.सैिनक वग5 (सहायक अिभभावक वग5)
3.िववेक 3.शासक वग5

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
मन;ु य क आ+मा के तीन त+व/ का िनYपण कर tलेटो इन त+व/ का सHबध समाज म8 पाये जाने वाले तीन त+व/
और उनका ितिनिध+व करने वाले वगm के साथ जोड़ता है। इस धारणा म8 tलेटो का याय का िस(ात िनिहत है।
tलेटो के अनसु ार याय के दो प: होते है एक Oयि\गत याय तथा सामािजक याय जब मन;ु य क आ+मा के तीन
त+व अपने अपने िनधा5रत कमm को करते हL और इस Vम म8 जब :धु ा वासना पर साहस और िववेक का िनयZण
हो तथा जब साहस िववेक के िनदnशन म8 काय5 करे Oयि\ के िलए यही याय है। tलेटो के अनसु ार Oयि\गत याय
वह है जब Oयि\ क वासना पर साहस िववेक का तथा साहस पर िववेक का अनश ु ासन हो। और सामािजक याय
वह है जब समाज के तीन/ वग5 अपने अपने कत5Oय/ का पालन कर8 जब कृ षक उ+पादन का काय5 कर8 । सैिनक देश
क र:ा कर8 और दाश5िनक शासक के आदेश/ का पालन कर8 और जब दाश5िनक शासक शासन का संचालन करे ,
और शासक वग5 क सवmiचता अय वगm पर रहे, tलेटो क मायतानसु ार यही सामािजक याय है।
+येक वग5 का सHपणू 5 द:ता से अपने िनिFत कत5Oय को करना तथा दसू रे वग5 के कायm म8 ह त:ेप न करना ही
tलेटो क परभाषा म8 सामािजक याय है। िजस कार Oयि\ के जीवन म8 :धु ा तथा साहस का सच ं ालन िववेक
त+व से करना याय है, उसी कार aय/िक रा1य अततोग+वा मन क ही उपज है, रा1य म8 यही याय है। tलेटो के
अनसु ार +येक वग5 ^ारा अपने सिु निFत कायm को कुशलतापवू 5क करना ही सामािजक याय है।

याय का वातिवक =प
उपय5\
ु िववेचना के आधार पर tलेटो क याय क धारणा के वा तिवक वYप को िनHनिलिखत Yप म8 प> िकया
जा सकता है।
1. tलेटो क मायता है िक मन;ु य को जम से ही कुछ यो}यताय8 कृ ित ^ारा ाX होती है। अतः Oयि\ को के वल
उसी यो}यता के अनसु ार अपने कत5Oय/ का पालन करना चािहए। समाज के +येक Oयि\ तथा वग5 ^ारा अपने
िनिFत कमf क कुशलता से करना ही याय है। tलेटो के याय िस(ात म8 Oयि\ के अिधकार/ पर नह9 कत5Oय/
पर बल िदया गया है।
2.tलेटो के अनसु ार याय वैयि\क तथा सामािजक नैितकता का िस(ात है। अतः tलेटो का याय सामािजक
शभु क ािX का नैितकता का माग5 है।
3. tलेटो के याय िस(ात म8 Wम िवभाजन अह त:ेप तथा कायm क िवशेष#ता के त+व िनिहत है।
4. tलेटो का याय िस(ात सामािजक एकता पर बल देता है। एथेस रा1य के िविभन बटं े हQए वगm म8 एकता और
सामािजक समरस&ा थािपत करना tलेटो का लsय था िजसक पिू त5 का साधन याय है।
5. tलेटो के याय िस(ात का तािक5 क परणाम िववेक क सवmपरता है। इस िस(ात के पीछे सफ
ु रात से ाX
tलेटो क यह मायता है िक #ान ही सदगणु हL दाश5िनक शासक #ान क ितिमिू त5 है अतः रा1य म8 दाश5िनक
शासक का िववेक का, शासन होना चािहए।

याय िस!ात क$ आलोचना


tलेटो के याय िस(ात का अ3ययन करने से उसक कुछ दबु लाऐ ं भी कट होती है जो इस कार है-

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1. tलेटो क याय क धारणा अ+यािधक िनि;Vय है िकसी ाकृ ितक गणु क :मता के नाम पर Oयि\ को जीवन
पय5त िनिFत थान पर अपने कत5Oय/ का पालन करने के िलए बाँध िदया जाता है◌।ै उस िनिFत थान से आगे
बड़ने अथवा उपर उठने क इस Oयव था म8 कोई गंजु ाइश नह9 है।
2. Oयि\य/ क इiछाओ ं के संघष5 अथवा टकराव/ का समाधान करने क याय िस(ानत म8 कोई Oयव था नही है।
3. tलेटो का याय िस(ात िविध और नैितकता के बीच क िवभाजक रे खा को धिू मलकर देता है। tलेटो के याय
के नाम पर नैितक कत5Oय/ को तथा काननू ी दािय+व को एक ही मान िलया है।
4. tलेटो Oयि\वादी वृि&य/ का िनराकरण करने तथा सामािजक एकता के लsय क ािX के नाम पर अ+यिधक
एककरण Oयव था क बात करता है।
पॉपर नामक िव(ात, tलेटो के याय िस(ात म8 सव5स&ावादी समाज के बीज ढूढं ता है। वह कहता है िक tलेटो के
समाज म8 िववेक के नाम पर एक वग5 िवशेष का शासन थोपा जाता है। पॉपर के अनसु ार tलेटो क याय क
परभाषा के पीछे आधारभतू तर पर एक ‘एक सव5स&ावादी वग5 का शासन’ क मांग है। tलेटो का समाज तीन
वगm क असमानताओ ं पर िटका हQआ है िजसम8 समानता का कोई थान नह9 है। लेिकन अत म8 बाक5 र का मत है
िक “tलेटो का राजनीितक िस(ात इस नैितक सावयव का िस(ात है और उसका याय िस(ात ऐसी नैितकता
क संिहता है। िजसके ^ारा वह समाज म8 जीता है।

2.4 .लेटो का 1श3ा 1स2ात


दाश5िनक ^ारा रा1य का शासन Oयापक िश:ा के जरए ही सभं व था और यह सम: गया िक सही िश:ा के जरए
ही सभं व था और यह समझा गया िक सही िश:ा के जरए ही यह सफल हो सकता है। tलेटो िश:ा को नैितक
सधु ार के जरए मानव को बदलने का हिथयार समझते थे। िश:ा दसू र/ क ओर िनः वाथ5 सेवा भावना भरकर
बेहतर होती है और नए समाज का िनमा5ण होता है। tलेटो ने इसे गभं ीरता से लेते हQए इस पर िव तृत िवचार िकया
है।

िश+ा योजना एवं पाठयचया का व=प


tलेटो क िश:ा योजना के दो तर है ‘ ारिHभक िश:ा’ तथा ‘उiच िश:ा’। tलेटो कहता है िक िश:ा आयु के
अनYु प होनी चािहए जैसे िक बाbयाव था म8 बालक को योगा+मक िश:ा देनी चािहए। ारिHभक िश:ा का
उेय भावनाओ ं को पर;कृ त करके चरZ का िनमाण5 करना है। यह िश:ा सैिनक वग5 को तैयार करने क है। tलेटो
क िश:ा का सHबध के वल सैिनक वग5 और दाश5िनक वग5 क िश:ा से है। tलेटो क िश:ा योजना म8 सैिनक वग5
म8 साहस जागृत करना है तथा पणू 5 संर:को के िलए िश:ा का उेय उह8 िव#ान और दश5न का अ3ययन करना है
िजससे िक इनम8 ‘िववेक’ का जागरण हो।

"ारि;भक िश+ा
tलेटो ने सलाह दी िक िश:ा को रा1य ^ारा िनयिZत होना चािहए। ाथिमक िश:ा को 18 वष5 क आयु तक
संर:क वग5 तक सीिमत होना चािहए। उसके बाद दो वषm क अिनवाय5 सैिनक िश:ा होनी चािहए और इनम8

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:मतावान को उiचतर िश:ा िमलनी चािहए। जहाँ ाथिमक िश:ा हम8 आस पास के वातावरण के ित संवेदी
बनाती है, वह9 उiचतर िश:ा सiचाई क खोज म8 सहायता करती है। ाथिमक िश:ा सै(ाितक और
Oयावहारक अनभु व िवकिसत करती है, नैितक और सौदय5 शाhीय िनण5य म8 मदद करती है और शरीर को व थ
और मजबदू बनाती है।
लड़के लड़िकय/ को समान िश:ा िमलनी चािहए तथा शारीरक अतर को छोड़कर tलेटो को उनक :मता म8
कोई अतर िदखायी नह9 देता। दोन/ क :मताएं भी समान होती है। इस कार उह/ने ाचीन यनू ान म8 hी क
गौण ि थित क सsु म आलोचना क।
ाथिमक िश:ा म8 सगं ीत और Oयायाम शािमल थे तािक Oयि\ के नu और कठोर प:/ को िमलाकर एक
समवयपणू 5 वयि\ का िनमा5ण हो। शारीरक िश:ा भावनाओ ं और इiछाओ ं को ि थरता दान करके मि त;क के
िलए शरीर को तैयार करती है। सगं ीत तक5 क िछपी शि\ को िवकिसत कर भावना को नu बनाती थी। किवता
और संगीत तथा कला सही काम करने का Yझान पैदा करते थे। इससे हर Oयि\ िबना अितवादी बने अपना काम
करता।
tलेटो ने सरं :क वग5 म8 आवयक गणु / के िवकास के िलए सािह+य और सगं ीत पर पाबदं ी लगाने का सझु ाव िदया
तािक उनम8 हािन कारक भाव/ से बचा जा सके । tलेटो ने जोर िदया िक बiच/ क मृ+यु से नह9 डराना चािहए नह9
तो य(ु भिू म म8 वे साहस का दश5न नह9 कर पाएग8। बiच/ को देवताओ ं और महान Oयि\य/ क कहािनयां बतायी
जानी चािहए तािक उनका नैितक िवकास हो सके । tलेटो यवु क के जीवन से हर तरह क बरु ाई और कुYपता दरू
रखना चाहते थे।
सही गणु / म8 िश:ण वग5 के सHपणू 5 सद य िनिम5त करे गा इस कार के उu के साथ सही Oयवहार िवकिसत होगा।
कला म8 िश:ा के बाद दो वष5 सैिनक िश:ा दी जाएगी अपOयय और बबा5दी पर पाबंदी लगाकर आ+मा को
मजबतू िकया जाएगा। tलेटो ने एथेिनयन Oयवहार पर जोर िदया था उसके तहत सZह अठारह से बीस वष5 क आयु
के बीच सैिनक सेवा अिनवाय5 थी ाथिमक िश:ा इन लोग/ को मजबतू कर सहायक सेना का िनमा5ण करे गी।

उ?चतर िश+ा
बीस वष5 क आयु म8 सबसे अiछे Oयि\य/ को उiच िश:ा दी जाएगी। इसम8 गिणत, रे खागिणत, खगोल िव0ा
और संगीत शािमल होगा। गिणत श( ु सiचाई क खोज म8 श( ु बिु ( का योग है। tलेटो क =ि> म8 सiचाई
िवचार म8 न िक िवशेष व तुअर8 म8 बसती है। इस दाश5िनक मह+व के अलावा गािणत का Oयावहारक मह+व भी है
अथा5त सठंया का ¬ योग यो(ाओ ं को अक ं ो का योग जानना जYरी है तािक सेवाओ ं क Oयहू रचना कर सके ।
खगोल शाh अतर: िपंडो के अवलोकन तक सीिमत नही है और संगीत कान/ ^ारा िवशेष वर ताल सनु ने
तक, बिbक दोन/ ही संवेदनाओ ं से मि त;क को उपर उठाते है और तक5 शि\ बढ़ाते है। उiचतर िश:ा म\ ु
बौि(क अनसु ंधान क भावना का िवकास करती है।
जो बिु (वादी Wेणी म8 नही आते है वे सैिनक बनकर शासक तबके क दसू री शि\ बनाते है। उiचतर िश:ा का
थम चरण दस वषm तक चलेगा और उनके िलए होगा िजनका िव#ान क ओर झक ू ाव है। तीस वष5 क आयु म8
एक ओर चनु ाव होगा। जो :मता रखते है वे डाइलैिaट स या पराभौितक तक5 और दश5न का अगले वषm तक
अ3ययन करे ग8। वे अiछाई के िवचार और अि त+व के थम िस(ात/ का अ3ययन करे ग8। उह8 शासन का

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आंिशक अनभु व होगा। वे सैिनक और राजनैितक जीवन म8 पLतीस वष5 क आयु तक सहायक पद/ पर रह8गे। यह
अगले पंpह वषm तक चलेगा। दाश5िनक 50 वष5 क आयु तक परू ी तरह तैयार हो जायेगा। वह अपने समय का
अिधकांश िह सा राजनैितक िजHमेदारय/ के साथ दश5न म8 लगाएगा। चंिू क वह अiछाई का िवचार आ+मसात कर
लेगा इसिलए समदु ाय क भलाई करने के लायक हो जायेगा। चिंू क tलेटो ने शासन को वै#ािनक िश:ण का
नतीजा बनाना चाहा, उह/ने इस बात पर जोर िदया िक सiचे #ान वाले लोग ही अiछे शासक बन सकते है।

6लेटो के िश+ा िस!ात का मHू यांकन


tलेटो का िश:ा िस(ात एक ओर सामािजक दािय+व/ को िनपणु ता से परू ा करने वाली Oयि\य/ एवं वगm के
िश:ण क योजना है दसू री ओर Oयि\ को उसके त+व #ान का #ान करा उसे नैितक और िव(ान बनाने क है।
हम कह सकते है िक tलेटो क िश:ा णाली नागरक/ के समाजीकरण क िविध है िजसके ^ारा Oयि\ को रा1य
के िनधा5रत उेय के अनYु प ढाला जा सके । tलेटो कहते है िक यिद Oयि\ को अiछी िश:ा दी जाती है तो
उसका भाव रा1य क उनित पर भी पड़ता है और गलत िश:ा का िवपरत असर पड़ेगा और रा1य म8 उनित क
बजाय अवनित होगी।
लेिकन tलेटो क िश:ा म8 गणु के साथ कुछ दोष भी है। सबसे बड़ा दोष यह है िक tलेटो क िश:ा समाज के दो
वगm सैिनक तथा दाश5िनक शासक/ के िलए है। समाज के बहQसढंयक उ+पादक वषm को इसके लाभ/ से वंिचत रखा
गया है। दसू रा कला और सािह+य के मल
ू पर कुठाराघात िकया है। aय/िक उसके कलेवर और वYप पर रा1य का
िनयZण थोप िदया जाता है। कला सृजना+मक Yप तभी िनखरता है जब वह रा1य के ितबध/ से म\ ु हो। इस
अधार पर tलेट/ को फासीवादी िवचार/ का व5तक भी कहा गया है। तीसरा Oयि\+व के िवकास िलए िश:ा के
:ेZ म8 जहाँ िवषय/ क िविवधता का होना िजतना आवयक है उतना ही Oयि\ क .िच क िविवधता का होना
भी िनतात आवयक है। tलेटो क योजना म8 Oयि\ क िश:ा के िलए वYिच क िविवधता के अवसर नह9 है।

2.5 पि नय' और संपि त का सा4यवाद:


tलेटो के अनसु ार समाज म8 इस बात का जोर था :मतावान समाज म8 +येक Oयि\ को अपने Yझान के अनYु प
काय5 के िलए तैयार करना, पि+नय/ और संHपि& के साHयवाद का उेय था >ाचार, दघु ट5 ना, पारवारक
सHबध, आनवु ांिशकता और धन सामािजक थान के िलए मानदdं ड नह9 बने।
tलेटो ने संर:क वग5 के िलए िनजी सHपि& और िनजी परवार समाX कर िदया aय/िक इससे >ाचार, प:पात,
Oयि\वाद, गटु बाजी और दसू री ऐसी > आदत8 पैदा होती है जो शासक/ के बीच पाई जाती है राजनीित का अथ5
Oयि\गत बढावा नह9 बिbक सामिू हक भलाई करना था। इस कार tलेटो ने शासन और शासक/ के िलए उiच
मानदdं ड थािपत िकए।
tलेटो कहता है िक सरं :क वग5 के लोग बैरक/ म8 सामाय सैिनक/ के समान रहे उनके पास सोना या चांदी न रहे
और आवयकतानसु ार वे एक छोटी सी सHपि& ही रखे। समाज के िकसी भी वग5 के लोग मकान या भडं ारधार
अथा5त अपनी िनजी सHपि& क कोई जगह नही होनी चािहए। वे उ+पादक वग5 क ओर से िसफ5 एक िनयत कोटा
पाएगं े जो उनक जीिवका के िलए आवयक होगा।

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tलेटो क योजना इस पाइथगोरसवादी मायता पर आधारत थी िक hी और प. ु ष ाकृ ितक वभाव और
:मताओ ं म8 समान थे। tलेटो िhय/ को िवधायक और शासक बनाना चाहते थे। उनके िस(ात म8 दो िवचार मख ु
थे परHपरागत िववाह का सधु ार और hी मिु \। इसके िलए tलेटो ने थायी िववाद/ और िनजी परवार/ के िवलयन
का ताव रखा। यह िसफ5 संर:को को िhय/ तक सीिमत था।
tलेटो िववाह को आ3याि+मक िमलन या ेम या आपसी आदर पर आधारत मानने से इकार कर िदया। लेिकन
tलेटो मानते है िक समाज तथा मानव जाित क िनरतरता के िलए िववाह अित आवयक है। इसिलए tलेटो ने
सतानो+पि& के िलए अ थाई यौन सHबध/ क वकालत क। उहोने िhय/ को बiचो के लालन पालन क
िजHमेदारी से म\ु का िदया। tलेट/ ने ताव रखा िक यौन सHबध/ का कठोरता से िनयमन िकया जाए तािक
सबसे अiछे और व थ मन;ु य रा1य के िहत/ म8 तैयार िकए जा सके ।
tलेटो के अनसु ार दोन/ िलंग/ के सबसे अiछे Oयि\य/ के अिधकािधक सHबध होने चािहए और िनHन गणु के
लोग/ के सHबध कम से कम होने चािहए। इस बात क जानकारी शासक/ को होनी चािहए िक यह कै से सHभव
हो।
tलेट/ ने िववाह के िलए आदश5 उu प.
ु ष/ म8 25 से 55 और िhय/ म8 20से 40 रखी। उहोने माता और पZु , िपता
और पZु ी के बीच समबध/ पर पाबदी लगा दी। थाई वैवािहक समबध/ को समाX करने का उेय यौन उiच
Wृखला को बढ़ावा देना नह9 था बिbक समदु ाय क भलाई करना था। अवैध बiच/ के सHबध म8 गभ5पात का
सझु ाव था अथा5त ऐसे बiच/ िजनक अनमु ित रा1य नह9 दी है या जो अनमु ित से अिधक उu के Oयि\य/ के बीच
सHबध/ से जिनत ह/।
रा1य ^ारा िनिम5त और शिसत नसm के ^ारा बiच/ क देखभाल क जाती है। अिभभावक और बiचे भी आपसी
सHबध/ के बारे म8 नह9 जानते। इसके पीछे जो उेय था वह िक बiचे सभी Oय क/ के ित सHमान का वह तर
रखे जो अपने िपता के साथ होता है। इसी कार सभी वय क बiच/ को उसी तरह tयार कर8 मान/ वे अपने बiचे
ह/। tलेटो ने जम को बहQत कम मह+व िदया और tलेटो के अनसु ार :मता आनवु ािं शक नह9 होती है। :€
िववाह/, िनयिं Zत लाटरी और चनु े हQए यौन सHबध/ के जरए उiच :मता वाले Oयि\ तैयार िकये जाते है।

आलोचनामक मHू यांकन


tलेटो के इस िस(ात का सबसे बड़ा दोष है िक वे परवार और िववाह सHबधी मानवीय भावनाओ ं का 3यान
नह9 रखते िफर शYु आती समाजवािदय/ ने इस िस(ात का समथ5न िकया। tलेटो ने जोर िदया िक सHपि& के ित
िनभ5व रा1य के कbयाण के िलए ज.री था। अपनी सHपि& से अिधक लगाव रा1य क एकता और नैितकता के
िलए हािनकारक था। इससे >ाचार पैदा होगा। और रा1य िवभािजत हो जाएगा tलेटो राजनीित म8 आिथ5क कारक/
क भिू मका को समझने वाले थम थे। दसू रा दोष है tलेटो ने सामािजक वग5 परवार और सHपि& क इजाजत दी,
लेिकन संर:क/ के कठोर िनयंZण म8 जो िकसी कार Oयावहारक नह9 है।
tलेटो का साHयवाद सादा था जैसा िक धम5 थल/ के जीवन म8 पाया जाता है। कई उह8 आधिु नक समाजवाद के
स ं थापक भी मानते है। साHयवाद सHपि& के सामिू हक वािम+व से बढ़कर था। इसम8 शोषण और दमन से म\ ु
एक ऐसे समाज क कbपना थी जो याय बराबरी, आजादी और जनतZं पर आधारत था।

उराखंड म
ु िविवालय 20
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2.6 .लेटो के आदश) रा6य का व7प


आदश5 रा1य क कbपना tलेटो क अ+यत मौिलक धारणा है। tलेटो के समय एथ8स म8 Oयि\गत वाथ5परता का
बोलबाला था, सामािजक एकता का अभाव था गैर राजनीितक लोग/ का राजनीित म8 ह त:ेप था। एथेस क इन
दबु 5लताओ ं ने tलेटो को आदश5 रा1य क Yपरे खा ततु करने के िलए ेरत िकया। tलेटो ने ता+कालीन
सम याओ ं को 3यान म8 रखते हQए काय5 िवशेषीकरण के िस(ात का ितपादन िकया।

आदश राय के आधारभतू िस!ात


tलेटो का आदश5 रा1य िजन िस(ात/ और त+व/ पर िटका हQआ है वे मल
ू िस(ात िनHनिलिखत है-
1. याय रा1य क आधारिशला:- tलेटो के आदश5 रा1य क आधारिशला ‘याय’ है। tलेटो कहता है िक समाज
का +येक Oयि\ तथा +येक वग5 अपने नैसिग5क गणु धम5 ^ारा िनिFत काय5 को कुशलतापवू 5क करे तथा दसू र/ के
कायm म8 ह त:ेप न करते हQए अपने काय5 को करे , यही याय है। आ+मा के तीन गणु / िववेक साहस और :धु ा के
अनक ु ू ल समाज म8 दाश5िनक शासक सैिनक तथा कृ षक वगm का अि त+व रहता है। समाज के ये तीन/ वग5 जब
अपने कत5Oय/ का पालन करे ग8 तभी समाज म8 सामज य थािपत होगा, काय5कुशलता बढेगी और समाज ठीक
कार से चलेगा। इह9 सभी गणु / को tलेटो ने याय के गणु के नाम से सHबोिधत िकया है स:
ं पे म8, याय tलेटो के
आदश5 रा1य का मल ू त+व है।
2. काय5 िविश>ीकरण के िलए िश:ा योजना:- tलेटो क धारणा है िक िश:ा के सश\ रचना+मक साधन ^ारा
Oयि\ को समाज के आदशm एवं कायm के अनक ु ू ल ढाला जा सकता है समाज के अय वगm के िलए तो िश:ा
मह+व है ही िफर भी दाश5िनक शासक के िनमाण5 म8 उसक महती भिू मका है। दाश5िनक राजा का िनमाण5 कसा
tलेटो के दश5न का अितम लsय है। tलेटो यनू ानी परHपरा के अनसु ार िश:ा को नागरक चरZ िनमा5ण का बल
साधन मानता है tलेटो के अनसु ार िश:ा रा1य के िनयZण म8 रहेगी। िश:ा Oयव था अपने िवश(ु Yप म8 अनवरत
चलती रहे, इसके िलए उसने दाश5िनक शासक/ को दािय+व भी सौपा है िक वे रा1य क िश:ा Oयव था को उसी
कार बनाये रखे जैसे उहे िवरासत म8 ाX हQई है। व रा1य क िश:ा Oयव था म8 िकसी कार के परवत5न नह9
आने द8। प> है िक एक िवशेष कार क िश:ा णाली tलेटो के आदश5 रा1य का अिवभा1य अगं है।
3. दाश5िनक शासक/ क िनरकंु शता िविधका लोप:- tलेटो के दश5न का अ3ययन करने से प> होता है िक tलेटो
के आदश5 रा1य म8 िविध और जनमत क अपे:ा क गयी है। tलेटो के आदश5 रा1य म8 िलिखत काननू का लोप है
aय/िक tलेटो क यह धारणा है िक वंय दाश5िनक शासन काननू क जीिवत ितमिू त5 है। उसका #ान ही सवmपर
है। िकतु एक बात याद रखने यो}य है िक tलेटो का दाश5िनक शासक काननू के अकंु श से म\
ु हQए भी अ+याचारी
क Wेणी म8 नह9 रखा जा सकता है। वह वेiछाचारी शासक नह9 है। न तो वह आततायी है और न जा उ+पीड़क
वा तव म8 जा का पालन कता5 है। इस कार यह थोड़े से दाश5िनक शासक/ का शासन होने से #ानवानो का
अbपतZ है। उपरो\ के अ3ययन के बाद हम कह सकते है िक tलेटो के आदश5 रा1य का अ+यावयक त+व
दाश5िनक राजा क अवधारणा है।
4. शासक वग5 के िलए साHयवादी सामािजक Oयव था:- जब हम tलेटो के साHयावादी धारणा का अ3ययन करते
है तो पाते है िक tलेटो शासक वग5 पणू 5 अिभभावक तथा सैिनक वग5 के िलए साHयवादी Oयव था को िनतात

उराखंड म
ु िविवालय 21
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
आवयक मानते है tलेटो के अनसु ार शासक वग5 के िलए न तो कोई कुटुHब होगा और न ही सHपि& क Oयव था
अiछे प.
ु ष/ का सHबध समाज क उiच तर क hय/ के साथ बने ऐसा रा1य का कत5Oय है। उससे समाज
अiछे लोगो क उ+पि& होगी। साHयावादी Oयव था भी tलेटो म8 आदश5 रा1य क एक िविशJता है।

2.7 शासन एक कला है


tलेटो मानता है िजस कार भवन िनमाण5 या िचZ कला एक यो}यता वाली कला है उसी कार शासन करने क
भी एक रचना+मक कला है। अतः शासन उह9 Oयि\य/ को करना चािहए जो इस :ेZ म8 िनपणु ता रखते है। इस
कार हम कह सकते है िक tलेटो ने आदश5 रा1य म8 शासन का एकािधकार शासन के कलाकार दाश5िनक राजा को
सौपा है। tलेटो मानता है िक िजस कार िशbपी क कला क सामCी सीिमत होती है जबिक दाश5िनक कलाकार
क िनमाण5 सामCी असीिमत है सHपणू 5 मानव और सHपणू 5 ‚dड दाश5िनक क कला क िनमा5ण सामCी है। अतः
tलेटो ने सच ही कहा है िक शासन एक कला है। अतः शासन करने का उह9 लोग/ को अिधकार है िजहे इस
कला का पणू 5 #ान है।

2.8 द लॉज: .लेटो का दस


ू रा सबसे अ8छा रा6य
दॅ लॉज म8 tलेटो ने दसू रे सबसे अiछे रा1य क बात क शायद यह सरकार िक उनको दाश5िनक आदश5 रा1य
हािसल नह9 िकया जा सकता aय/िक वह िश:ा पर अ+यिधक आधारत था और काननू क उपे:ा करता था।
अथा5त द लॉज म8 उह/ने रा1य के सHबध/ म8 काननू क ि थित का िवƒे षण िकया। काननू रा1य और जा दोन/
पर लागू था। tलेटो कहता है िक नगर म8 5040 परवार होने थे और +येक परवार के पास िनिFत भिू म का :ेZ
होता था। सबसे लायक बiचे को जमीन िमलती थी और अितर\ बiच/ को उन परवार/ को देिदया जाता था
िजनम8 सद य/ क संrया कम थी। नगर क जनसंrया बढ़ने पर नए थान पर जाने क योजना थी। +येक Oयि\
35 वष5 क आयु तक िववाह कर लेता अयथा उसे वािष5क दdड या टैaस देना पड़ता।
द लॉज म8 आिथ5क असमानता के बरु े नतीजे दरू करने क बात कही गई है। धन को िनरतर थान िदया गया। सबसे
मह+वपणू 5 बात यह थी Oयि\ उ&रािधकार म8 िजतनी सHपि& पाता था उससे के वल वो चार गणु ा सHपि& अपने
पास रख सकता था। यिद कोई Oयापार या दसू रे तरीके से अिधक सHपि& अिज5त करता था। तो उसे जनकोष म8
जमा कर िदया जाता था। सभी नागरक अपनी अपनी सHपि& एक जन स ं था म8 रिज टर कर8
tलेटो कहता है िक Wम िवभाजन म8 गल ु ाम खेती करते थे ऐसे Oयि\ जो नागरक नह9 थे Oयापार और नागरक परू ी
तरह राजनैितक काय5 म8 लगे रहते थे। अथ5तZ और राजकय ठाँचे म8 िमिWत संिवधान लागू होता था। सैिनक सेवा
के लायक लोग काननू के संर:क/ के िलए मतदान करते थे।
द लॉज म8 भी tलेटो ने िश:ा क िनणा5यक ि थित पैदा क काननू के संर:क िhय/ क एक सिमित चनु ते िजनका
काम था समझा बझु ाकर जनसंrया िनयZं ण के िलए िववाह काननू / का िनयमन करना। बiचे नह9 होने पर दस
साल बाद तलाक िदया जा सकता था। कुछ सद य बiच/ क देखभाल

उराखंड म
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करते थे। बiच/ क िश:ा तीन वष5 क आयु से शYु होकर 6 वष5 क आयु तक िश:ण िदया जाता था। छः वष5
के बाद लड़के व लड़िकय/ को अलग कर िदया जाता था। लेिकन दोन/ के िश:क/ ^ारा रा1य क िश:ा दी जाती
थी। इन िश:क/ का वेतन रा1य देता था।
tलेटो ने संगीत और Oयायाम पर जोर िदया। सािह+य और कला पर कठोर पाबंदी, िhय/ के िलए समान िश:ा और
सभी के िलए अिनवाय5 िश:ा पर जोर िदया। उहोने धम5 पर अिधक 3यान िदया, उसे रा1य के िनयंZण म8 रखा और
िकसी भी कार क िनजी धािम5क िश:ा पर पाबंदी लगाई एवं पजू ा पाठ रा1य ^ारा अिधकृ त पादरी ही कर सकते
थे। वे धम5 ^ारा अOयव था फै लाने, मिहलाओ ं और धमा5ध/ पर उनका भाव ख+म करने और नैितक Oयवहार के
प: म8 धम5 का योग करने के हक म8 थे। उह/ने नाि तक/ के िलए मृ+यदू dं ड क सलाह दी।

अAयास B
1.tलेटो ने दसू रे सबसे अiछे रा1य क बात अपने िकस प ु तक म8 क ?
2.tलेटो ने संगीत और Oयायाम पर जोर िदया | स+य /अस+य
3.tलेटो के अनसु ार आदश5 रा1य म8 जनसंrया िकतनी हो ?
4.tलेट/ ने प.
ु ष/ म8 िववाह के िलए आदश5 उu िकतनी बताई है ?
5.tलेट/ ने िhय/ म8 िववाह के िलए आदश5 उu िकतनी बताई है ?
6.tलेटो के अनसु ार आ+मा म8 िकतने गणु होते हL ?
7.tलेटो के अनसु ार आ+मा म8 तीन गणु के आधार पर रा1य म8 िकतने वग5 पाए जाते हL ?

2.9 सारांश
उपरो\ अ3ययन के उपरात हम8 त+कालीन यनू ानी रा1य/ के सHबध म8 जानकारी ाX होती है और यह जानने को
भी िमलता है िक िकस कार से उस समय वहाँ क सामािजक और राजनीितक जीवन म8 अि थरता OयाX थी |
िजससे tलेटो बहQत Oयिथत था |इस ि थित से अपने रा1य को उबारने के िलए एक िजHमे दार िचतक के .प म8
एक Oयापक सामािजक और राजनीितक ढाच ं ा ततु करता है | िजसमे वह आ+मा के तीन त+व/ के आधार पर
समाज म8 तीन वगk क बात करता है जो अपनी आ+मा म8 पाए जाने वाले धान त+व के आधार पर काय5 कर8 गे
|इस कार से उसने शासक ,सैिनक और Oयावसाियक वग5 क बात क | जहा शासक के एक दाश5िनक राजा
बनाने िलए एक Oयापक िश:ा योजना ततु क तो दसू री तरफ वह िकसी भी कार के आकष5ण से म\ ु हो
इसिल साHयवादी िस(ांत भी िदया है िज मने राजा के पास न तो अपनी कोई सपं ि& होगी और न ही कोई परवार
िजसके कारण वह िवना िकसी आकष5ण के अपनी िजHमेदारी का िनव5हन िनिल5X भाव से करे गा | परतु जबा वह
इस कार के रा1य क थापना म8 असफल रहा तब उसने ि^तीय आदश5 रा1य अथा5त क़ाननू पर आधारत रा1य
का िस(ांत अपनी प ु तक “द लाज ‘ म8 िदया है |

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2.10 श!दावल$
सव5स&ावादी:- वह िस(ात जो रा1य क सारी शि\ को एक ही जगह के िpत करने, और लोग/ के सHपणू 5 जीवन
पर पणू 5 या लगभग पणू 5 िनयZण थािपत करने का समथ5न करता है।
राजनीितक समाजीकरण:- वह िVया िजसके मा3यम से Oयि\ अपने समाज म8 राजनीितक जीवन के ित
अनकु ू ल =ि>कोण बनाता है और िजसके मा3यम से समाज अपने राजनीितक मानक/ और आदशm, मायताओ ं
और िव]ास/ को एक पीढ़ी तक पहQचँ ाता है।
िविधका शासन:- िविध का शासन ऐसी Oयव था है िजसके अतग5त शासन क शि\ का योग के वल काननू म8
िनिहत िVयाओ,ं िस(ात/ और ितबध/ के अतग5त ही होना चािहए व अय िकसी अधार पर नह9।
Wम िवभाजन:- आिथ5क जीवन के अतग5त वह Oयव था िजसम8 िभन -िभन Oयि\ अपनी -अपनी :मताओ ं के
अनसु ार िभन2 कायm के िलए उ&रदायी बना िदए जाते है।
शासक वग5:- उन लोग/ का समहू जो परू े समाज पर अपने भ+ु व एवं शि\ का योग करते है।
सामािजक संिवदा:- इसके अनसु ार मन;ु य/ ने आपस म8 अनबु ंध या समझौता करके रा1य का िनमा5ण िकया है
तािक वह उह8 अराजकता और िनयम हीनता क ि थित से उबार कर समिु चत सरं :ण और Oयवि थत जीवन
दान कर सके ।

2.11 अ&यास 
न' के उ तर
1.दॅ लॉज, 2.स+य, 3.5040, 4. 25 से 55, 5.20से 40, 6.तीन गणु , 7.तीन ,

2.12 सदभ) *थ सच


ू ी
1.डॉ.बी.एल. फािड़या, पाFा+य राजनीितक िचतन का इितहास, सािह+य भवन पि@लके षन, आगरा।
2. डॉ. जे.सी. जौहरी, राजनीित िव#ान, एस.बी.पी.डी. पि@लके शन, आगरा।
3. जे.पी.सदू , पाFा+य राजनीितक िवचार/ का इितहास (भाग ाचीन एवं म3यकालीन)
के . नाथ एdड कHपनी, मेरठ।

2.13 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. जीवन मेहता, राजनीितक िचतन का इितहास, 1985 सािह+य भवन आगरा।

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2.14 नबधा मक 

1. tलेटो के याय सHबधी िस(ात क आलोचना+मक परी:ण किजए?
2. जातZ के िवषय म8 tलेटो के िवचार/ क िववेचना किजए?
3. tलेटो के आदश5 रा1य के मौिलक िस(ात/ का वण5न किजए ?
4. tलेटो के साHयवाद क कbपना क आलोचना+मक Oयाrया किजए ? tलेटो के साHयवाद क तल
ु ना
आधिु नक साHयवाद से किजए ?
5. tलेटो क िश:ा योजना का वण5न किजए और बताइये िक वह िकस कार उसके मनोवै#ािनक तथा नैितक
िस(ात/ पर आधारत है ?

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 3 : 
इकाई क$ संरचना
3.1 "तावना
3.2 उ4े5य
3.3 अरतू के िवचार9 का वैIािनक वJप
3.4 अरतू का राय िस!ात
3.4.1 रायः उपि:, वJप तथा उ4े5य
3.5 दासता स;बधी अरतू के िवचार
3.6 नागLरकता स;बधी िवचार
3.7 सिं वधान के स;बध म( अरतू के िवचार
3.8 MेN OयावहाLरक सिं वधान
3.9 अरतू के कुटु;ब तथा स;पि: स;बधी िवचार
3.10 अरतू के िविध स;बधी िवचार
3.11 अरतू क$ याय स;बधी धारणा
3.12 अरतू के Pाित स;बधी िवचार
3.13 अरतू का आदश राय
3.14 पॉिलटी (वैQािनक लोकतR)
3.15 सारांश
3.16 शAदावली
3.17 अBयास "C9 के उ:र
3.18 सदभ Dथ सचू ी
3.19 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
3.20 िनबधामक "C

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3.1 तावना
इसके पवू 5 क इकाई २ म8 हमने यह अ3ययन िकया है िकया है िक िकस कार से उस समय क सामािजक और
राजनीितक जीवन म8 अि थरता से tलेटो बहQत Oयिथत था |इस ि थित से अपने रा1य को उबारने के िलए एक
िजHमेदार िचतक के .प म8 एक Oयापक सामािजक और राजनीितक ढांचा तुत करता है | िजसमे वह आ+मा के
तीन त+व/ के आधार पर समाज म8 तीन वगk क बात करता है जो अपनी आ+मा म8 पाए जाने वाले धान त+व के
आधार पर काय5 कर8 गे |इस कार से उसने शासक ,सैिनक और Oयावसाियक वग5 क बात क | जहा शासक के
एक दाश5िनक राजा बनाने िलए एक Oयापक िश:ा योजना ततु क तो दसू री तरफ वह िकसी भी कार के
आकष5ण से म\ ु हो इसिल साHयवादी िस(ांत भी िदया है िज मने राजा के पास न तो अपनी कोई सपं ि& होगी
और न ही कोई परवार िजसके कारण वह िवना िकसी आकष5ण के अपनी िजHमेदारी का िनव5हन िनिल5X भाव से
करे गा | परतु जब वह इस कार के रा1य क थापना म8 असफल रहा तब उसने ि^तीय आदश5 रा1य अथा5त
क़ाननू पर आधारत रा1य का िस(ांत अपनी प ु तक “द लाज ‘ म8 िदया है |
इस इकाई ३ म8 हम ग. ु िश;य क महान परHपरा क एके मह+वपणू 5 कड़ी अर तू के के सामािजक और राजनीितक
िवचार/ का अ3ययन कर8 गे और इसम8 यह भी अ3ययन कर8 गे िक िकस कार से वह सव5 थम तल ु ना+मक प(ित
का योग कर शासन Oयव था का अ3ययन कर ,अ3ययन क वै#ािनक परHपरा क श. ु आत सामािजक िव#ान/
म8 करता है |इसके साथ –साथ इस इकाई म8 हम रा1यक उ+पि&, व.प, दासता और नागरकता, िविध और
याय सHबधी िवचार/ के अ3ययन करने के साथ , Vाित सHबधी िवचार/ के अ3ययन और आदश5 रा1य के
सHबध म8 भी अ3ययन कर8 ग|े

3.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम अर तू के अनसु ार --
1. रा1यक उ+पि&, व.प को जान सक8 गे |
2.अर तू के दासता और नागरकता सHबधी िवचार को जान सक8 गे |
3.संिवधान के सHबध म8 िवचार को जान सक8 गे |
4. कुटुHब तथा सHपि& सHबधी िवचार के बारे म8 जान सक8 गे |
5. िविध और याय सHबधी िवचार के बारे म8 जान सक8 गे |
6. Vाित सHबधी िवचार के सHबध म8 जान सक8 गे |
7. आदश5 रा1य के बारे जान सक8 गे |

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3.3 अरतू के वचार' का वै<ानक व=प


अर तू के माता िपता कृ ित क वै#ािनक खोज से भािवत थे। अर तू के िपता एक िचिक+सक थे उनक
काय5शैली म8 वै#ािनक िवचार/ के बीच िव0मान थे। अतः अर तू को पैतक ृ िवरासत म8 वै#ािनक वभाव ाX
हQआ। ऐसे वै#ािनक वभाव क =ि> से उसने जीवन शाh तथा राजनैितक का िव#ािनक प(ित अपना कर
अ3ययन िकया। अर तू के िवचार/ का जब हम अ3ययन करते है तो पाते है िक उसने रा1य क बरु ाईय/ के कारण/
को ठूँठना, उह8 दरू करने के उपय/ का सझु ाव देना, तjय/ का संCह एवं उनका वगfकरण और उनक तल ु ना करना
तथा उन तjय/ के आधार पर अपने िन;कषk को थािपत करना, अनेक ऐसे उदाहरण है जो यह िस( करते है िक
अर तू क अ3ययन प(ित वै#ािनक थी। अतः अ3ययन करने से #ात होता है िक अर तू क अ3ययन-प(ित
अनभु वमल ू क थी जो उसे वंशागत भाव से िमली थी।
अ3ययन करने से #ात होता है िक अर तू ने यनू ानी राजनीित एवं राजनीितक सं थाओ ं का वै#ािनक =ि>कोण से
अ3ययन िकया था। अर तू ने यनू ान के 158 रा1य/ के संिवधान/ क आगमना+मक प(ित से तjय/ को एकZ कर
उनका तुलना+मक अ3ययन तुत िकया। और सिं वधान/ क तल ु ना करके उनके गणु एवं दोष/ का िववेचन िकया
था। इस कार हम कह सकते है िक अर तू क अ3ययन प(ित एक वै#ािनक थी।

3.4 अरतू का रा6य 1स2ात


अर तू अपने िवचार/ के आधार पर यह ितपािदत करता है िक रा1य एक ऐसा समदु ाय या संघ है िजसका अपना
एक िवकास Vम होता है परवार िमलकर Cाम/ का िनमा5ण करते है और जब Cाम के समदु ाय बनते है तो रा1य क
उ+पि& होती है। रा1य ‘‘सम.प Oयि\य/ के WेJ जीवन क ािX के िलए सं था है।’’ अर तू के अनसु ार परवार
मन;ु य क शारीरक आवयकताओ ं क और Cाम उसक आिथ5क व धािम5क आवयकताओ ं क पिू त5 के साधन
है।

3.4.1 रायः उपि:, वJप तथा उ4े5य


1. रा1य एवं नैसिग5क मानवीय सं था है- अर तू सोिफ ट िवचारक/ के िवपरत रा1य को एक नैसिग5क सं था
मानता है। अर तू कहता है कृ ित ने मन;ु य को िववके एवं संवाद क शि\ दान क है। िववेक और संवाद के
कारण मन;ु य, पश-ु पि:य/ से िभन है इससे इतर वह समदु ाय/ का िनमा5ण करता है। इस कार कुटुHब ािणय/ क
थम नैसिग5क सं था है। कुटुHब से Cाम और Cाम/ से रा1य बनता है। इस कार रा1य क आधारभतू सं थाऐ ं
नैसिग5क है, अतः उससे िनिभ5त रा1य भी एक नैसिग5क सं था है। रा1य क नैसिग5कता का माण यह है िक उसक
उ+पि& जीवन के िलए हQई तथा सख ु ी जीवन के िलए इसका अि त+व अभी भी बना हQआ है। हम यह भी मान
सकते है िक रा1य इसिलए भी एक नैसिग5क सं था है aय/िक वह मन;ु य वभाव अतिन5िहत है।
रा1य समहू / का समहू हैः- अर तू क मायता है रा1य क दसू री िवशेषता है िक यह समदु ाय/ का समदु ाय है।
अर तू कहता है िक रा1य एक िवकिसत सं था है। वह कहता है िक नर-नारी से कुटुHब, कुटुHब से Cाम तथा Cाम/
से रा1य का िवकास होता है। रा1य िविवध सं थाओ ं से िनिम5त एक सं था है। यह परवार और Cाम जैसे समदु ाय

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से िमलकर बना हQआ एक समदु ाय है। अर तू के िलए रा1य का व.प उसक बहQलता से है। इस .प म8 अपने
िवकिसत .प म8 रा1य समदु ाय/ का एक समदु ाय है।

राय का नैितक उ4े5य


अर तू के अनसु ार रा1य का रा1य का मल ू उेय Oयि\ के जीवन क नैितक आवयकताओ ं क पिू त5 करना है
अतः इसका नैितक उेय है। ‘‘य0िप रा1य का िवकास जीवन क भौितक व सामािजक आवयकताओ ं क पिू त5
के िलए हQआ है, िकतु उसका िनरतर अि त+व इसिलए बना है िजससे िक रा1य म8 मन;ु य के ‘WेJ जीवन’ क
आवयकताओ ं क पिू त5 होते रहे।’’ अर तू कहता है िक रा1य मन;ु य क सHपणू 5 कृ ित क पिू त5 करता है,
िवशेषतः उसक कृ ित के सवmiच प: है। रा1य एक ऐसी सं था है िजसके पास वे सारे साधन उपल@ध है िजससे
िक मन;ु य का सHपणू 5 एवं वतंZ नैितक िवकास होता है। रा1य क अि त+व मन;ु य के WेJ जीवन के िलए होता है।
इस कार अ3ययन करने से #ात होता है िक रा1य का उेय नैितक जीवन क आवयकता क पिू त5 करना है।
Oयि\ क अपे:ा रा1य क अCताः- रा1य के व.प के बारे म8 अर तू कहता है िक ‘‘रा1य Oयि\ क पवू 5वित5
सं था है। इस धारणा का प>ीकरण करते हQए वह िलखता है िक रा1य एक सHपणू त5 ा है, Oयि\ िजसका एक अगं
माZ है। इसका अि त+व ‘‘Oयि\ से अC (पवू 5) है।’’ अर तू रा1य को सावयवी सं था मानता है और Oयि\ इस
शरीर का एक अगं माZ है। यिद सHपणू 5 शरीर नह9 है तो असके अगं हाथ अथवा पैर का कोई वतZ अि त+व
नह9 होगा। यिद हम तािक5 क =ि> से िवचार करे तो अगं सHपणू 5 क पवू 5 कbपना करता है। पहले सHपणू 5 क कbपना
होगी तभी अगं क कbपना क जा सकती है। अतः रा1य Oयि\ पवू 5वतf है।
रा1य आ+मिनभ5र स ं था हैः- अर तू क मायता है िक ‘‘रा1य एक आ+म िनभ5र स ं था है।’’ वह रा1य को आ+म-
पया5िX क सवmiच स ं था मानता है। अतः यह परपणू 5 समाज है। उसका मानना है िक रा1य आिथ5क नैितक,
मनोवै#ािनक तथा सभी =ि> से वतZ स ं था है िजसके मा3यम से Oयि\ अपनी पवू 5ता को ाX करता है। वह
रा1य क िVयाओ ं का भागीदार बनकर उस आ+म-िनभ5रता का भागीदार बनता है। इस कार हम कह सकते है
यही रा1य का वा तिवक ायोजन होता है। मन;ु य के जीवन को कोई भी भौितक तथा नैितक आवयकता नह9
िजसक िक पिू त5 रा1य के ^ारा तथा रा1य के अतग5त न क जा सक8 । अतः अर तू को रा1य को इस कार
परभािषत िकया है िक यह कुटुHब/ और Cाम/ को समदु ाय है िजसका अि त+व ‘‘सख ु ी और आ+म-िनभ5र जीवन
के िलए है।

3.5 दासता स4बधी अरतू के वचार


इितहास का अ3ययन करने से #ात होता है िक ाचीन यनू ान म8 दास- था का चलन था। और अर तू ने दासता
सHबधी िवचार/ को तुत करता है। अर तू परवार म8 पित-प+नी, माता-िपता और सतान तथा वामी और दास
मानता है। अर तू दास को परवार का अिभन अगं मानता है। दास कौन है? इस संबंध म8 अर तू बताता है िक जो
Oयि\ कृ ित से अपना नह9 अिपतु दसू रे का है लेिकन िफर भी मन;ु य है, वह कृ ित से दास है और हम उसे जो िक
मन;ु य तो है िफर भी दसू रे के क@जे म8 है, उसे हम दसू रे के क@जे क व तु कहेग8 और जो व तु क@जे क है उसक
परभाषा यह है िक वह काय5 साधन है, ऐसा काय5 का साधन जो क@जाधारी से िभन है।’’ दास कौन है? को इस
कार प> िकया जा सकता है -

उराखंड म
ु िविवालय 29
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1.जो Oयि\ अपनी कृ ित के कारण वयं का नह9 अिपतु दसू रे का है, िफर भी मन;ु य है, वह वभावतः दास है।
2.दास का गणु बताते हQए वह कहता है िक वह Oयि\ जो मन;ु य होते हQए भी सHपि& क एक व तु है और जो दसू रे
के क@जे म8 रहता है, वह दास है।
3.तीसरा जो दसू रे के क@जे क व तु है जो काय5 का साधन है, और िजसे व तु के क@जाधारी से पृथक िकया जा
सके , वह दास है।
दास था के समथ5न म8 तक5 |अर तू ने दासता के ओिच+य म8 िविभन कार के तक5 है।

1.दासता नैसिगक है
अर तू कहता है िक दासता नैसिग5क है। कृ ित ने ही मन;ु य/ को इस कार बनाया है िक उसम8 दो वग5 का िनमा5ण
होता है वामी और दास। अर तू बताता है िक जा Oयि\ शासन चलाने क यो}यता रखते है और आदेश देने वाले
होते है उह8 वामी कहते है। और जो उन आदेश/ का पालन करते है उह8 दास कहते है। अर तू दासता को इस
नैसिग5क िनयम के आधार पर सही मानता है। aय/िक इसम8 WेJ Oयि\ हमेशा िनकृ > Oयि\ पर शासन करते है।
दासता को नैसिग5क बताने के िलए अर तू कृ ित के सव5Oयापी िस(ात लेता है।

2- दासता वामी और दास दोन9 के िलए उपयोगी है


अर तू मानता है िक दासता वामी और दास दोन/ के िलए िहतकर है। अर तू क मायता है िक वामी का
मह+वपणू 5 काय5 राजिनती है। नगर के राजकायk म8 भाग लेकर नैितक उ+थान म8 काय5 करना है और काय5 के िलए
वामी का अवकाश चािहए होता है। और वामी यह काय5 अवकाश तभी ले सकता है जबिक दास उसके घर के
कायk के िलए Wम कर8 । उसी अवकाश के समय म8 वामी नागरक जीवन का भागीदार बनकर अपने बौि(क तथा
नैितक जीवन क उपलि@ध के िलए करता है। और दास भी वामी साहचय5 म8 रहकर सदगणु / को सीखता है।
अ +य: .प से ही सही, वामी के सदगणु क छZछाया म8 दास लाभ को ाX करता है। इस कार दासता वामी
और दास दोनो के िलए लाभकारी िस( होती है।

3.दासता "ाकृ ितक िनयमानक


ु ू ल है
दासता क ामािणकता क पिु > अर तू ने कृ ित के शासन ‘शािमत िनयम’ के आधार पर भी क है। वह मानता
है िक कृ ित म8 हमेशा ‘शासक’ तथा ‘शिसत’ पदाथ5 होते है। उiच का िनHन पर हमेशा शासन रहता है। इस कार
सामािजक जगत म8 वामी का दास पर शासन कृ ित िनयमाकूल है।
दास कुटुHब क सHपि& है |अर तू क मायता है िक सHपि& दो कार क होती हL-
(1) सजीव सHपि&। (2) िनजfव सHपि&। घर क व तऐु ं कुटुHब क िनजfव सHपि& है िकतु दास कुटुHब क
सजीव सHपि& होती है। सHपि& के ये दोन/ ही कार जीवन के िलए आवयक है । अतः दास कुटुHब क सजीव
सHपि& के .प म8 पारवारक जीवन के िलए आवयक है।

उराखंड म
ु िविवालय 30
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
दासता के कारः- अर तू दासता के दो कार बताता है- नैसिग5क दासता तथा काननू ी दासता। वे Oयि\ जो कृ ित
से ही िनब5िु ( तथा शारीरक शि\ धान है, वे नैसिग5क दास है। वे Oयि\ जो य(
ु म8 बदी बना िलये जाता है और
िजह8 दास बना िलया जाता है, यह काननू ी दासता है। इस कार कृ ित और शि\ ^ारा दास बनाये जाते है।
काननू ी दासता के सHबध म8 अर तू के िवचार है िक यनू ािनय/ को िविजत दास नह9 बनाया जाए। के वल बब5र
जाित के लोग/ को ही काननू ी दास बनाया जाए।

3.6 नागरकता स4बधी वचार


अर तू ने tलेटो के िवपरत नागरकता को अपने राजनीितक िवƒेषण का के p बनाया। राजनैितक पद हािसल
करना एक वाभािवक .झान था। संवैधािनक सरकार के कारण लोग िबना गड़बड़ी के राजनैितक पद हािसल कर
सकते थे।
अर तू के नागरकता सHबधी िवचार/ क सबसे मह+वपणू 5 तjय यह है िक नागरकता िनवास थान से यह तय
नह9 होती थी aय/िक थानीय बाहरी और दास नागरको के साथ रहते हQए भी नागरक नह9 थे। न ही नागरकता
सामािजक अिधकार/ म8 िह सेदारी से परभािषत होती थी। नागरक वह था िजसे िवचार िवमश5 या याियक पद/ म8
िह सेदारी हािसल थी और जो अपने राजनैितक अिधकार/ का भावशाली योग कर सकता था। नागरक को
संवैधािनक अिधकार भी ाX थे।
अर तू क मायता थी िक बiचे, बढ़ू े और िhयां नागरक नह9 हो सकते थे aय/िक वे Vमशः अपरपaव कमजोर
और तक5 बिु ( िविहन थे। tलेटो के सामान अर तू समझते थे िक नागरकता एक िवशेषािधकार है और उ&रािधकार
म8 पाया जाता है। नागरक/ को छोटे और सगु िठत पोिलस म8 रहना चािहए। tलेटो का पाँच हजार नागरक/ का
सगं ठन काफ बड़ा था aय/िक उसके िलए असीिमत जगह क आवयकता थी। छोटे समदु ाय म8 सभी नागरक
एक-दसू रे को जानते, िववाद/ का िनपटारा करते और :मता के अनसु ार उिचत पद/ को बटवारा कर सकते थे।
अर तू का अiछा नागरक संिवधान का पालनकता5 है, िजHमेदारी वहन करने लायक उसके पास समय होता है,
िविवध िदलचि पयाँ होती है और िनः वाथ5 सहयोगी जीवन के गणु होते है। वे नागरक को ‘‘जनमामल/ म8
िह सेदारी क िमZता मानते है। यह अिधकार िनिFत वग5 के बाहर दसू र/ को नह9 िमल सकता था। वा तव म8
यनू ानी नागरकता अिधकार/ पर उतनी आधारत नह9 थी िजतनी िक िजHमेदारय/ पर।

3.7 संवधान के स4बध म? अरतू के वचार


अर तू क सिं वधान क धारणा आधिु नक सिं वधान/ क धारणाओ ं से अिधक Oयापक है। अर तू ‘सिं वधान’ को
रा1य का िनधा5रक त+व मानता है। सिं वधान का व.प ही है जो रा1य के व.प क पहचान कराता है। सिं वधान
को परभािषत करते हQए अर तू िलखता है िक ‘‘संिवधान सामायतः रा1य म8 पदो के संगठन क एक Oयव था है,
िवशेषतः ऐसे पद क सभी मpु / म8 सवmiच हL।’’
सिं वधान का वगfकरणः- अर तू ने संिवधान के दो वगfकरण को मायता दी है। (1) शासक/ क संrया िजनके
हाथो म8 शासन क स&ा रहती है, (2) शासन का उेय aया है? पहले आधार पर संिवधान का वगfकरण करते हQए
अर तू बताता है िक शासन क स&ा एक Oयि\, थोड़े से Oयि\ के शासन को राजतंZ ;डवदतं मील( थोड़े

उराखंड म
ु िविवालय 31
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
Oयि\य/ के शासन को ‘अbपतZ’ ;।तपेजवबंतंबल( तथा अिधक लोग/ के शासन को ‘पािलटी’ चंस् पजल
कहता है। संिवधान के इन तीन/ कार/ को आधार ‘शासक/ क सं था’ है।
िकतु अर तू इस आधार को आकाि मक मानता है। वगfकरण का वा तिवक आधार शासक/ को उेय aया है?
को मानता है। शासन यिद भले ही एक Oयि\ थोड़ से Oयि\ अथवा अिधक Oयि\य/ का हो, साव5जिनक िहत से
रत होकर काय5शील है, अर तू उसे ‘संिवधान’ मानता है। िनजी वाथ5 से रत होकर िकया गया शासन कभी
ठीक नह9 हो सकता। अर तू ऐसे सिं वधान को िवकृ त संिवधान क स#ं ा देता है। त…सु ार सामाय िहत से रत एक
Oयि\ के शासन को अर तू ‘राजतZ’ थोड़े से Oयि\य/ के शासन को ‘अbपतZ’ तथा अिधक लोग/ के शासन
को पॉिलटी अथा5त ‘सयं त लोकतZ’ बताता है। दसू री कोटी ‘िवकृ त सिं वधान/ क है।’ जब शासक ‘िनजी िहत’
से ेरत होकर शासन करते है तब तक एक Oयि\ िवकृ त शासन िनरंकुशतZ, थोड़े से Oयि\य/ का िवकृ त शासन
‘धिनकतZ’ और अिधक लोग/ का अिधक िनध5न लोग/ के िहताथ5 िवकृ त शासन लोकतZ कहलाता है। सrं या
के आधार पर तथ उेय के आधार पर िकये गये सिं वधान/ के वगfकरण को इस कार प> िकया जा सकता है-
1- शासक/ क संrया 2- उेय के अनसु ार
‘साव5जिनक िहत के िलए सही’ शासन िनजी वाथ5 के िलए िवकृ त
शासन
एक Oयि\ का शासन राजतZ िनरंकुशतZ
थोड़े Oयि\य/ का शासन कुलीतZ धिनतZ
बहQसंrयक Oयि\य/ का शासन पॉिलटी लोकतZ
(भीड़तZ)
श(
ु शासन के तीन कार
उपय\
ु शारणी से प> होता है िक ‘‘साव5जिनक िहत’’ म8 िकये जाने वाला शासन ‘सही’ अथवा श( ु है। यह
शासन जब एक Oयि\ ^ारा िकया जाता है उसे अर तू ‘‘राजतZ’’ कहता है। थोड़े Oयितय/ ^ारा िकया गया ‘श(ु ’
शासन अbपतZ है तथा अिधक सrं यक/ ^ारा साव5जिनक िहताथ5 िकया गया शासन पॉिलटी है। इस आधार पर
श(
ु सिं वधान के ये ती कार है- राजतZ, कुलीनतZ, तथा पॉिलटी।
िवकृ त शासन के तीन कारः- उपय\
ु तीन/ कार के शासन िनजी वाथk क पिू त5 के समय-समय पर िवकृ त .प
धारण कर लेते है। इस कार राजतZ का िवकृ त .प िनरंकुशतZ, कुलीनतZ का िवकृ त .प धिनकतZ तथा
सयंत लोकतZ (पॉिलटी) का िवकृ त .प भीड़त का अथा5त लोकतZ हो जाता है। िन;कष5 .प से यह कह जा
सकता है िक अर तू ने कुल 6 कार के शासन/ का वण5न िकया है िजनम8 अपने उेय के अनसु ार तीन श(
ु तथा
तीन िवकृ त कार हL।

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ु िविवालय 32
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3.8 @ेAठ Cयावहारक संवधान


अर तू सिं वधान/ को 6 कार म8 वगfकृ त करते हQए Oयावहारक =ि> से WेJ सिं वधान खोजता है। मन;ु य के वभाव
को 3यान म8 रखते हQए अिधकांश रा1य/ के िलए Oयावहारक सिं वधान क खोज करना अर तू के िचतंन का
आधार है। अर तू के अनसु ार ‘‘राजनीितक समाज का सव5WेJ व.प वह है िजसम8 स&ा का िनवास म3यवग5 म8
हो। ‘‘अर तू क मायता है िक WेJता म3यमान म8 पायी जाती है लेिकन इसके साथ शत5 है िक समाज म8 म3यवग5
काफ बड़ा है। अतः न तो धनी लोग/ का शासन ही उिचत है और न ही अ+यिधक िनध5न वग5 के लोग/ का।
Wेय कर रा1य इन दोन/ के म3य का है िजसे अर तू पॉिलटी के नाम से सHबोिधत करता है। पॉिलटी का शासन
म3यवग5 पर आधारत है। उसके िवचारानसु ार ‘पॉिलटी’ का शासन संयत तथा म3यममागf है। अतः यह
Oयावहारक भी है और WेJ भी। सयं त लोकतZ को अर तू वग5तZ और भीड़तZ का म3यमान भी मानता हL ऐसे
गणु / से य\
ु म3यवग5 पर आधारत ‘पॉिलटी’ को अर तू सामाय .प से Oयावहारक WेJ संिवधान वीकार है।

3.9 अरतू के कुटु4ब तथा स4पि त स4बधी वचार


अर तू मानता है िक कुटुHब एवं सHपि& को रा1य क एकता के नाम पर समाX नह9 िकया जा सकता, जैसा िक
tलेट/ ने अपनी साHयवाद क योजना म8 िकया है। अर तू tलेट/ के कुटुHब और सHपि& सHबधी िवचार/ क
आलोचना करते हQए कहता है िक कुटुHब तथा िनजी सHपि& Oयि\ के िलए परम आवयक है। अर तू के कुटुHब
और सHपि& िवणयक िवचार/ के अ3ययन से यह प> होता है िक उसका वैचारक =ि>कोण Oयि\वादी एवं
मानवीय आवयकताओ ं को समझने वाला यथाथ5वादी =ि>कोण है।
परवार सHबधी िवचारः- अर तू परवार को मन;ु य क नैसिग5क सं था मानता है िजसके ^ारा उसके जीवन क
िनतात ारिHभक आवयकताओ ं क सतुि> होती है। परवार म8 पित, प+नी सतान तथा दास सिHमिलत है।
परवार का चौथा आवयक त+व ‘अज5न’ है। इन त+व/ के अभाव म8 परवार क कbपना क जा सकती है। य0िप
कुटुHब Oयि\ के भौितक जीवन क आधारिशला है तथािप उसका बध एक नैितक कला है तथा िजसका उेय
परवार के सद य/ क नैितक WेJता को ाX करना है। अर तू क मायता है िक यिद परवार का साHयवादीकरण
करके उसे िछन-िभन िकया जाता है तो उसके सद य/ क नैितक WेJता’ क पहली पाठशाला ही न> हो जायेगी।
इस आधार पर अर तू tलेटो क आलोचना करता है िक उसके साHयवाद क योजना परवार को न> करके Oयि\
के जीवन क ाथिमक नैितक सं था तथा उसका नैितकरण करने वाली थम सं था को न> कर देती हL।
सHपि& के साHयवाद के िव.( अर तू के िवचारः- अर तू tलेटो के सHपि& के साHयवाद का योजना का भी
आलोचक है। अर तू सHपि& के साव5जिनक वािम+व Oयव था ही उपय\ ु है िजसम8 सHपि& पर Oयि\ का िनजी
वािम+व होता है। अर तू क समपि& सHबधी धारणा है िक वैयि\क .प से उस पर ‘‘ वािम+व हो िकतु उसका
उपयोग सामिू हक िहत’’ के िलए हो। अर तू का मानना है िक जब सHपि& पर िनजी वािम& होता है तब कलह/
को आधार पर Vम हो जाते हL सHपि& के कारण Oयि\ म8 दानशीलता, मैZी, आितjय सेवा अथवा उदारता जैसे
नैितक गणु / का िवकास होता है। िजसके पास िनजी सHपि& है वह Oयि\ रा1य के साथ अपने िहत को एक मानता
है तथा सHपि&हीन Oयि\ रा1य के ित एकता के भाव नह9 रख सकता। िनजी सHपि& क भावना Oयि\य/ को
अिधक उ0म करने क ेरणा देती है िजसम8 मन;ु य बालू रे त को भी सोने म8 बदल देता है। सHपि& के सHबध म8
अर तू सबसे बल तक5 यह है िक सHपि& क सं था यगु / से चली आ रही हL अतः यगु / के संिचत #ान को ठोकर

उराखंड म
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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
मारकर उसका ितर कार करना बड़ी भल
ू है। इस कार िविवध तक5 देकर अर तू सHपि& के िनजी वािम+व का
समथ5न करता है।

3.10 अरतू के वध स4बधी वचार


अर तू के अनसु ार रा1य म8 िविध क सH भतु ा होनी चािहए। उसक मायता है िक िनजी शासन, चाहे वह एक
Oयि\ को हो अथवा अनेक Oयि\य/ का, िविध के शासन समान WेJ नह9 हो सकता। काननू का शासन पवू -5
िनिFत िलिखत िनयम/ ^ारा सचं ािलत होता हL काननू के शासन म8 मनमानी त+व का अभाव रहता है। अर तू
काननू को ‘‘वासना से अ भािवत िववके ’’ मानता है और इस अधार पर यह ितपािदत करता है िक ‘‘िविध का
शासन िकसी Oयि\ के शासन क अपे:ा Wेय कर है।’’ अतः अर तू का िन;कष5 है िक काननू म8 ऐसा ‘अवैयि\क
त+व’ है जो िकसी WेJतम Oयि\ के शासन म8 भी संभव है। िविध के शासन क अय िवशेषताओ ं का वण5न करते
हQए अर तू बताता है िक काननू को संिवधान के अनकु ू ल होना चािहए। तभी काननू यायापणू 5 होता है िक अर तू
सतत .प से ‘िविध शासन’ क =ढ़ समथ5क है। अर तू के श@द/ म8 ‘‘िविध का शासन िकसी एक Oयि\ के शासन
क अपे:ा वाछंनीय है, भले ही Oयि\य/ का शासन उिचत लगता हो तब भी Oयि\य/ को िविध का सरं :क
अथवा िविधय/ का सेवक ही बनना चािहए।’’
अर तू िविधको िववके का ही दसू रा .प मानता है। काननू वाथk से य\ ु िववेक क वाणी है। aय/िक काननू
िववेक-सHमत होता है, अतः रा1य म8 िविध का शासन होना चािहएं अर तू क िविध क सवmiचता सHबधी
िवचार tलेटो के @लॉज म8 ितपािदत िवचार/ के समान ही है, िकतु काननू क सH भतु ा को वीकार कर अर तू ने
tलेटो के रपि@लक क उस धारणा को पJ .प से खंिडत िकया है िक रा1य म8 #ान का अथवा दाश5िनक राजा
का शासन सव5WेJ होता हL अर तू मतू 5 Oयि\ के शासन क अपे:ा अमतू 5 िविध के शासन

3.11अरतू क याय स4बधी धारणा


अर तू क याय क धारणा म8 सामािजक नैितकता तथा काननू ी दािय+व के त+व/ का समावेशन है। याय Oयाrया
करते हQए अर तू िलखता है िक ‘याय सदगणु का Oयावहारक योग है।’’ इसका अथ5 यह है िक अर तू क =ि>
म8 ‘सदगणु और याय’ पया5यवाची है। उसके अनसु ार जब सदगणु Oयि\ के Oयवहार म8 कट होता है, यही याय
है।
याय के दो कार-सामाय और िविश> यायः- अर तू ने याय के दो कार बताये है- ‘सामाय याय’ तथा
‘िविश> याय’। सामाय याय से ता+पय5 सHपणू 5 WेJता से है। इस सHपणू 5 WेJता का योग Oयि\ अपने पड़ोसी के
साथ Oयवहार म8 करता है। पड़ौिसय/ के ित नैितक Oयवहार तथा नैितक सदगणु का आचरण ही सामाय याय है।
‘िविशJ याय’ सामाय याय का ही अश ं है। इसका सHबध WेJता के िविशJ प: से है, िजसके परणाम व.प
Oयि\ समाज के अय Oयि\य/ के साथ समभाव से अथवा समता के साथ Oयवहार करता है।
’’अर तू िविशJ याय के कभी दो .प मानता है। िवतरणा+मक याय तथा परशोधना+मक याय।’’ अर तू क
याय क धारणा का वगfकरण इस कार प> िकया जा सकता है।
याय

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सामाय याय िविशJ याय
िवतरणा+मक याय परशोधना+मक याय
िवतरणा+मक याय
अर तू के राजनीितक िस(ात म8 िवतरणा+मक याय क धारणा का िवशेष मह+व है। िवतरणा+मक याय वह
Oयव था है िजसके ^ारा रा1य अपने सद य/ के बीच सरकार के पद/ सHमान/ तथा अय दसू रे कार/ के लाभ/ को
िवतरत करता है। िवतरणा+मक याय पद/ के िवतरण का वह िस(ात है िजसके ^ारा Oयि\ को उसके ^ारा रा1य
को िदये गये योगदान के अनपु ाता म8 उसे परु कार िदया जाता है, अिधक योगदान के अनपु ात म8 अिधक परु कार
तथा कम योगदान के अनपु ात म8 कम परु कार। अर तू क धारणा है िक िवतरणा+मक याय रा1य म8 असमानता
को बढ़ावा नह9 देता अिपतु जो यो}य है उह8 अयो}य/ से असमान वीकार कर उनक यो}यता के अनपु ात/ म8 पद
तथा दत करता है। अर तू क समानता क यही धारणा है िक रा1य के सभी सवं ैधािनक अिधकारधारी अपनी
यो}यतानसु ार ही रा1य के लाभ/ को ाX कर सक8 । अतः यो}यता के अनपु ात म8 रा1य के पद/ का लोग/ म8 िवतरण
करना ही अर तू का ‘िवतरणा+मक याय’ का िस(ात है। वक5 र के अनसु ार , ‘‘िविशJ याय (िवतरणा+मक
याय) समान Oयि\य/ के समदु ाय का ऐसा गणु है जो एक ओर अपने सद य/ को उनके योगदान के अनसु ार पद
एवं अय परु कार िवतरत करता है।’’
िविशJ याय का दसू रा प: सधु ारा+मक याय है। सधु ारा+मक याय रा1य क उस Oयव था को कहते है। िजसके
^ारा Oयि\य/ म8 पार पारक लेन-देन के सHबध/ का िनयमन िकया जाता है। सधु ारा+मक याय का दायरा ‘रा1य
और Oयि\’ नह9 है, यह ‘Oयि\ और Oयि\’ के बीच का दायरा है।

3.12 अरतू के Dाित स4बधी वचार


tलेटो परवत5न को पतन और >ाचार से जोड़ते थे, दसू री ओर अर तू परवत5न का अरवाय5 और आदश5 क
िश:ा म8 गित मानते थे। tलेटो के िवपरत वे गित को सHपणू त5 ा क ओर िवकास समझते थे लेिकन साथ ही
अनावयक ओर िनरतंर परवत5न के िखलाफ थे। अर तू का परवत5न सHबधी िवचार िव#ान और कृ ित के
अ3ययन का नतीजा था।
Vाितय/ के सामाय कारण/ को तीन Wेिणय/ म8 िवभािजत िकया गया-
(1) मनोवै#ािनक कारण (2) मि त;क म8 उेय (3) राजनैितक उथल-पथु ल और आपसी टकराव को जम देने
वाली परि थितयां।
मनोवै#ािनक कारण औिलगाकf म8 समानता और जनतंZ म8 असमानता क इiछा है। उेय/ म8 मनु ाफा सHमान,
घमdड, डर िकसी .प म8 बेहतरी घृणा, रा1य के िकसी िह से म8 असतं ुिलत िवकास चनु ाव के जोड़-तोड़,
उदासीनता िवरोध का डर, रा1य के अवपयव/ के बीच टकराव होते हL। Vाितकारी परि थितय/ को जम देने वाले
अवसर घमdड, मनु ाफा और आदर के िलए इiछा, WेJता, डर घृणा और रा1य के इस या उस अवयव का असमान
िवकास है।

उराखंड म
ु िविवालय 35
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
हर संिवधान म8 िवशेष कारण खोज िनकाले गए। जनतZ म8 कुछ ल†फाज जनता को भड़काकर धिनक/ पर हमला
करते थे। इस कारण का िनदान का दमन और शासक/ म8 मन-मटु ाव से अि थरता पैदा होती थी। कुलीनतZ म8
सरकार सिमित करने का अथ5 अि थरता का कारण था। िवpोह तब पैदा होता है जब-
(1) आम जनता वयं को शासको के बराबर समझती है। (2) जब महान Oयि\य/ का शासक/ ^ारा अपमान िकया
जाता है। (3) जब :मतावान लोग/ को सHमान से दरू रखा जाता है। (4) जब शासक वग5 के अदर कुछ गरीब होते
है और परवत5न का िशकार बनते है। गरीब/ से उिचत Oयवहार न होने पर वे िवpोह करके कुलीनतZ को जनतZ
म8 बदल देते है।
राजतZ म8 Vाित का िनदान काननू के ित वफादारी क भावना भसा है। ओिलगाकf और कुलीनतZ/ म8 िनदान
नागरक समाज और संवैधािनक अिधकार/ वाले लोग/ के साथ शासक/ के अiछे सHबध है। िकसी को भी अय
नागरक/ क तलु ना म8 बहQत ऊँचा उठाना चािहए aय/िक धन के मक
ु ाबले पद/ म8 असमानता लोगो को Vाित क
ओर धके लती है। सबको कुछ सHमान िदया जाय। िनरंकुश तानाशाह िवभाजन और शासक क नीित के जरए,
धनी और गरीब/ के बीच वगfय घृणा तेज करके तथा खिु फय/ का जाल िबछाकर अि थरता पर िवजय पाते हL। ऐसे
शासक को धािम5क दीख पड़ना चािहए, गरीब/ के रोजगार के िलए जन काय5 करने चािहए, िफजल ू खचk म8 कटौती
करनी चािहए और परHपराओ ं का पालन करना चािहए।
अर तू ने बताया िक Vाितयाँ और बगावत आमतौर पर सरकार क छिव के कारण होती हL। सरकारी पद/ का
Oयि\गत फायदे के िलए द. ु पयोग नह9 िकया जाना चािहए। संवैधािनक थािय+व के िलए पदािधकारय/ म8 तीन
गणु होने चािहए, एक संिवधान के ित वफादारी, दो असाधारण शासिनक :मता, तीन चरZ क एकाCता,
अiछाई और याय-ि यता। उह/ने सरकारी चार म8 िश:ा, काननू , याय और समानता इ+यािदा पर जोर िदया।

3.13 अरतू का आदश) रा6य


अर तू ने भी tलेटो क भॉित अपने Cथ ‘पॉिलिटaस’ के अितम चरण/ म8 ‘राजनीितक आदशk’ तथा WेJ एवं
सखु ी जीवन का िववेचन िकया है। अर तू तीन कार के शभु /’ क कbपना करता है- बाहन शभु , शारीरक शभु
तथा आ+म शभु । अनभु व यह िस( करता है िक इन िहतो अथवा शभु / म8 आ+मा के शभु क ाथिमकता रहती है।
साहस, िववेक एवं अय कार के नैितक गणु आि+मक शभु के अिभन त+व हL। इस आधार पर अर तू का िन;कष5
है िक ‘‘रा1य/ तथा Oयि\य/ दोन/ ही के िलए जीवन का सव5WJे माग5 शभु तापणू 5 जीवन है।’’ अर तू के
िवचारानसु ार आदश5 संिवधान वह है िजसम8 दाश5िनक वृि& तथा Oयावहारक गणु / से सHपन सभी कार म8 लोग/
को ऐसे अवसर िमल8 िजससे िक वे अपने WेJतव को ाX कर सक8 तथा सख ु ी जीवन जी सक8 ।

आदशराय के आव5यक तव


1. जनसrं याः- आदश5 रा1य के िलए अर तू इतनी जनसrं या को आवयक मानता है जो िक आकार अथवा माZा
म8 न हो और न ही कम। रा1य क आबादी इतनी पया5X होनी चािहए िजसम8 िक रा1य के नागरकता के कायk का
िन;पादन भली कार से हो सके । रा1य के िसिवल काय5 यह िनधा5रत करते हL िक रा1य क आबादी िकतनी होनी
चािहए। अिधक आबादी रा1य क महानता का परचायक नह9 होती। अतः अर तू क िसिवल काय5 को करने म8
एक दसू रे को Oयि\गत .प म8 पहचान सक8 तथा रा1य को आ+मिनभ5र बने रहने म8 सहयोग दे सक8 ।

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रा1य का भ-ू देशः- अर तू के अनसु ार रा1य का भ-ू देश भी जनसंrया के समान न हो तो बहQत कम हो और न ही
अ+यिधक बड़ा। रा1य क भिू म इतनी हो िजस पर िक नागरक अवकाश का जीवन िबता सक8 नागरक/ के भरण-
पोषण से सHबिधत इतनी फसल उस भिू म पर उ+पन हो, िजससे िक वे अपना जीवन आ+म िनभ5रता, िमZाचार
तथा उदारता के साथ जी सक8 । भिू म के सवn:ण के आधार पर रा1य क सरु :ा का बंध िकया जा सकता है। नगर
क आयोजना क जा सकती है तथा आिथ5क एवं सैिनक =ि> से तथा उसके आस-पास के इलाक/ के साथ संबंध/
का िनधा5रण िकया जा सकता है।
रा1य क सामािजक सरं चनाः-अर तू आदश5 रा1य के आवयक त+व/ म8 रा1य क समिु चत सामािजक सरं चना को
भी एक आवयक त+व मानता है। वह रा1य क सरं चना के दो मख ु आधार मानता है। ‘समाकलन अगं ’ ; तथा
उनके ‘सहायक सद य’ ; वह नागरक/ को ‘समान अगं ’ के .प म8 मानता है। दासो और अय सेवाओ ं को करने
वाल/ कृ षक/ तथा औजार इ+यािद बनाने वाल/ को वह ‘सहायक सद य/’ के नाम से पक ु ारता है। नागरक रा1य/
के कायk म8 भाग लेते हQए WेJ जीवन ाX करते है। सहायक सद य उस WेJ जीवन क सिु वधओ ं और सेवाओ ं क
Oयव था करते हL। रा1य क सरं चना के इन दोन/ अगं / ^ारा सेवाओ ं को समाज के िलए दान िकया जाना
आवयक है। ये सेवाएं इस कार है- कृ िष, कला एवं िशbप, रा1य क सरु :ा, भ-ू वािम+व, साव5जिनक पजू ा तथा
नागरक एवं राजनैितक जीवन क सेवा। आदश5 रा1य क सामािजक संरचना इतनी स:म हो िक जीवन क इन
आवयकताओ ं क पिू त5 उसक सं थाओ ं ^ारा क जा सके । इन सेवाओ ं क पिू त5 के िलए अर तू ने यहां तक भी
िनिFत िकया है िक कौर सी सेवा िकसके ^ारा िन;पािदत क जायेगी।
4- आदश5 रा1य क िश:ा Oयव थाः- tलेटो क भॉित अर तू क भी यह मल ू धारणा है िक िश:ा वह उिचत
साधन है िजसके ^ारा नागरक/ को िववेकशील बनाया जाता है तथा उनके वभाव म8 सदगणु / के जीवन के
आदशk के अनसु ार ढ़ालने क Oयव था है। अर तू tलेटो क भॉित नागरक/ तथा शासक/ के िलए िभन-िभन
कार क िश:ा- योजना तुत नह9 करता अिपतु एक ही कार क िश:ा- णाली क Oयव था करता है। उसक
यह धारणा है िक सभी Oयि\ समाज म8 एक समान वतZ नागरक है। उसक िश:ा णाली अवय ही आयु के
आधार पार Oयि\य/ के भेद को वीकार करती है। उसक मायता है िक बाbयव था के लोग/ के िलए तदनक ु ूल
िश:ा हो तथा ौढ़ो के िलए उनक आयु के अनसु ार िश:ा हो। समाज के बड़े लो शासन के कायk से जड़ु े रहते है
िकतु जो त.ण है वे शासनाधीन रहते हL। आज के त.ण ही कल के शासक होग8। अतः उह8 अपने वतZ रा1य
क आ#ाओ ं का पालन करना सीखना आवयक है। स: ं ेप म8, िश:ा का उेय ‘उ&म नागरक’ तथा ‘उ&म
Oयि\’ का िनमा5ण करना है। अर तू सभी नागरक/ के िलए एक समान िश:ा योजना का थापना करना
आवयक है। प> है िक अर तू िश:ा णाली को रा1य के िनयZण म8 रखने के प:पाित है। नागरक/ को जीवन
उसके वयं के जीवन तक ही सीिमत रहता है अिपतु रा1य के अय सद य/ से जड़ु ा रहता है। इस सामािजक प:
को 3यान म8 रखते हQए अर तू पाटा5 क रा1य ^ारा िनयंिZत िश:ा-प(ित का समथ5न अपने िश:ा िस(ात म8
करता है।
5- िविध के शासन क WेJताः- अर तू क =ि> म8 Oयि\ के शासन क अपे:ा िविध का शासन सदैव WेJ रहता
है। िविध का शासन तथा समिु चत Oयि\गत सHपि& अर तू के आदश5 रा1य के आधार- तHभ है। म3यम वग5 क
WेJता के साथ ही अर तू िविध के शासन क WेJता को भी आदश5 रा1य का आवयक त+व मानता है। अर तू
tलेटो क िविध से म\
ु दाश5िनक शासन क धारणा को दोषपणू 5 मानता है।

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स:
ं ेप म8, अर तू ^ारा तुत आदश5 रा1य क यही .प रे खा है। अर तू के आदश5 रा1य क धारणा का अ3ययन
करने से प> होता है िक उसका िचतन के वल Oयवहारपरक ही नह9, अिपतु आदश5 त+व/ से भी म\ ु होता है।
यही आदश5 त+व/ क समानता है जो tलेटो और अर तू को, उनके िवचार/ म8 कई B/ पर असामानता होते हQए
भी, उह8 एक धरातल पर लाकर खड़ा कर देती है। दोन/ ही िवचार/ को लsय यही िक ऐसे आदश5 रा1य क खोज
क जाय जो Oयि\ को WेJ नैितक जीवन क उपलि@ध करा सक8 ।

3.14 पॉ1लट$ (वैFयानक लोकतG)


अर तू क =ि> म8 िविभन कार के सावधान/ म8 पॉिलटी सव5WेJ Oयावहारक संिवधान है। पॉिलटी म8 म3यम वग5
के लोग/ का बाहQbय रहता है। अर तू के दश5न म8 म3य-माग5 के ित गहरी आ था है। अर तू क ऐसी मायता है
िक वह राजनैितक समाज सव5WेJ होता है िजनम8 म3यम वग5 के नागरक/ का वच5 व होता है। वे रा1य सश ु ािसत
रहते है िजनम8 म3यम वग5 िवशाल माZा म8 पाया जाता है। अर तू का यह =ढ़ िव]ास है िक म3यम वग5 रा1य का
मे.दdड होता है। िजस रा1य क सH भु शाित म3यम वग5 म8 होती है, उस रा1य म8 थािय+व होता है। उपय\ ु
आधार/ पर अर तू इस िन;कष5 पर पहQचँ ता है िक अय शासक/ क अपे:ा Oयावहारकता क =ि> से पॉिलटी एक
आदश5 शासनस Oयव था है aय/िक इसम8 म3यम वग5 क WेJता रहती है।

अAयास B
1. अर तू को िकसने ‘‘ थम राजनैितक वै#ािनक कहा है’’?
2. पॉिलिटaस क रिचयता कौन है ?
3. राजनीित शाh के अ3ययन म8 तल
ु ना+मक प(ित का जनक िकसे कहा जाता है ?
4. ‘‘hी-प.
ु ष तथा वामी और दास के योग से जो समहू बनता है वही परवार है। ’’ िकसने कहा है?

3.15 सारांश
उपरो\ अ3ययन से यह प> होता है िक अर तू ने यनू ानी राजनीित एवं राजनीितक सं थाओ ं का वै#ािनक
=ि>कोण से अ3ययन िकया था। अर तू ने यनू ान के 158 रा1य/ के संिवधान/ क आगमना+मक प(ित से तjय/
को एकZ कर उनका तल ु ना+मक अ3ययन ततु िकया। इसके साथ ही उसने रा1य क उ+पि& और उसके व.प
का िव तृत िववेचन िकया है \िजसमे वह कहता है िक -रा1य एक ऐसा समदु ाय या संघ है िजसका अपना एक
िवकास Vम होता है परवार िमलकर Cाम/ का िनमा5ण करते है और जब Cाम के समदु ाय बनते है तो रा1य क
उ+पि& होती है। रा1य ‘‘सम.प Oयि\य/ के WेJ जीवन क ािX के िलए सं था है।’’
अर तू अपने समय म8 चिलत सामािजक परHपराओ ं से अपने को परू ी तरह से पृथक नह9 कर पाया और दासता
सHबधी िवचार/ को तुत करता है। अर तू परवार म8 पित-प+नी, माता-िपता और सतान तथा वामी और दास
मानता है। इस कार अर तू दासतासबं धं ी िवचार म8 गितशील है aय/िक वह उह8 परवार का अिभन अगं भी
मानता है।

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अर तू के नागरकता सHबधी िवचार/ को भी बड़े ही िव तार से तुत करता है िजसम8 मह+वपणू 5 तjय यह है िक
नागरकता िनवास थान से यह तय नह9 होती थी aय/िक थानीय बाहरी और दास नागरको के साथ रहते हQए भी
नागरक नह9 थे। न ही नागरकता सामािजक अिधकार/ म8 िह सेदारी से परभािषत होती थी। नागरक वह था िजसे
िवचार िवमश5 या याियक पद/ म8 िह सेदारी हािसल थी और जो अपने राजनैितक अिधकार/ का भावशाली
योग कर सकता था ।
जैसा िक हम प> कर चक ु े है िक 158 संिवधानो का अ3ययन कर अर तू ने सिवधान के सHबध म8 भी अपने
िवचार कट िकये है िजसम8 वह ‘सिं वधान’ को रा1य का िनधा5रक त+व मानता है। और वह कहता है िक सिं वधान
का व.प ही है जो रा1य के व.प क पहचान कराता है ।
अर तू क याय क धारणा म8 सामािजक नैितकता तथा काननू ी दािय+व के त+व/ का समावेशन है। याय Oयाrया
करते हQए अर तू िलखता है िक ‘याय सदगणु का Oयावहारक योग है।’’ इसका अथ5 यह है िक अर तू क =ि>
म8 ‘सदगणु और याय’ पया5यवाची है।
इसके अितर\ अपने ग.
ु tलेटो के िवपरीत अर तू मानता है िक कुटुHब एवं सHपि& को रा1य क एकता के नाम
पर समाX नह9 िकया जा सकता, जैसा िक tलेट/ ने अपनी साHयवाद क योजना म8 िकया है। अर तू tलेट/ के
कुटुHब और सHपि& सHबधी िवचार/ क आलोचना करते हQए कहता है िक कुटुHब तथा िनजी सHपि& Oयि\ के
िलए परम आवयक है। अर तू के कुटुHब और सHपि& िवणयक िवचार/ के अ3ययन से यह प> होता है िक
उसका वैचारक =ि>कोण Oयि\वादी एवं मानवीय आवयकताओ ं को समझने वाला यथाथ5वादी =ि>कोण है।
अर तू tलेटो के िवपरीत रा1य म8 िविध क सH भतु ा होनी चािहए । उसक मायता है िक िनजी शासन, चाहे वह
एक Oयि\ को हो अथवा अनेक Oयि\य/ का, िविध के शासन समान WेJ नह9 हो सकता। काननू का शासन पवू -5
िनिFत िलिखत िनयम/ ^ारा संचािलत होता हL काननू के शासन म8 मनमानी त+व का अभाव रहता है |
इसके अितर\ अर तू ने परवत5न क वृि&य/ का भी अ3ययन िकया और Vांित के सदभ5 म8 अपने िवचार
िव तार से Oय\ िकये है |
अतं तः उसने आदश5 रा1य क धरना ततु क है िजसमे उसने एक आदश5 रा1य के िलए आवयक त+व/ जैसे
िकस कार क भौगोिलक सरं चना हो .िकतनी जनसrं या हो और िकस कार क क सवं ैधािनक Oय था हो इस
पर िव तार से अपने िवचार Oय\ िकये है |

3.16 श!दावल$
1. राजतZ- ऐसी शासन-Oयव था िजनम8 शासन क शि\ या भसु &ा एक ही Oयि\, अथा5त राज या रानी के
हाथ/ म8 रहती है।
2. पॉिलटी- ऐसी शासन- णाली िजनम8 शासन क शि\ िनध5न एवं साधारण लोग/ के हाथ/ म8 रहती है।
3. सH भ-ु िकसी रा1य के अत5गत वह Oयि\ या िनकाय िजसे देश के सम त :ेZ और सम त Oयि\य/ पर
सवmiच अिधकार ाX हो।

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3.17 अ&यास 
न' के उ तर
1. मैHसी 2. अर तू 3. अर तू 4. अर तू

3.18 सदभ) *थ सच


ू ी
1.डॉ.बी.एल. फािड़या, पाFा+य राजनीितक िचतन का इितहास, सािह+य भवन पि@लके षन, आगरा।
2. डॉ. जे.सी. जौहरी, राजनीित िव#ान, एस.बी.पी.डी. पि@लके शन, आगरा।
3. जे.पी.सदू , पाFा+य राजनीितक िवचार/ का इितहास (भाग ाचीन एवं म3यकालीन) के . नाथ एdड कHपनी,
मेरठ।

3.19 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. जीवन मेहता, राजनीितक िचतन का इितहास, 1985 सािह+य भवन आगरा।

3.20 नबधा मक 

1.अर तू के सHपि& और परवार सHबिध िवचार/ क Oयाrया किजए?
2. अर तू के रा1य तथा सरकार म8 aया अतं र बताया है? अर तू के सरकार के वगfकरण का भी वण5न किजए?
3. tलेटो तथा अर तू के याय क कbपना क तल
ु ना किजए तथा अपने िवचार भी बताईये?
4. अर तू के िश:ा सHबिध िवचार/ क Oयाrया किजए?
5. अर तू के याय िस(ात क िववेचना किजए?

उराखंड म
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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 : 4 
  
 , 
इकाई क$ संरचना
4.1 "तावना
4.2 उ4े5य
4.3 िचतन का आशय एवं महव
4.3.1 िचतन के िविवध नाम
4.3.2 िचतन का महव
4.3.3 िचतन के Tोत
4.3.3.1 देशी Tोत
4.3.3.2 िवदेशी Tोत
4.3.3.3 परु ातव, अिभलेख, मUु ाए,ं मारक, मिू तया,ं तपू
4.4 िचतन का िवकास
4.4.1 िवकास के चरण
4.4.2 भारतीय िचतन क$ िवशेषताय(
4.5 सारांश
4.6 शAदावली
4.7 अBयास "C9 के उ:र
4.8 संदभ Dथ सचू ी
4.9 सहायक/उपयोगी पाठ सामDी
4.10 िनबधामक "C

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

4.1 तावना
ाचीन भारतीय िचतन का इितहास अ+यािधक ाचीन है। यह वैिदक काल से ारHभ होकर मगु ल काल तक
माना जाता है। यह दभु ा5}यपणू 5 है िक गल
ु ामी के समय इस म को फै लाया गया िक ाचीन भारतीय िचतन अित
साधारण तर का है। कुछ िव^ान/ ने इसे आदश5वादी अOयवहारक माना। भारत के वेद परु ाण उपिनषद ाचीन
भारतीय िचतन के उ+कष5 उदाहरण है। कौिटbय का अथ5शाh िचतन के आ0िु नक व.प का आदश5 उदाहरण
है। tलेटो के समकालीन कौिटbय का दश5न Oयावहारक है। भारतीय िचतन Oयावहारक ही नह9 अ+यािधक
उपयोगी है। भारतीय िचतन का मल ू मानव है व मानव के चार/ ओर घमू ता है। पाFा+य िचतन म8 मानव 18व9
शता@दी म8 के pिबदु बना। जबिक भारतीय िचतन म8 यह ारHभ से ही है। भारतीय िचतन को िविभन नाम/ से
पकु ारा जाता है। कभी इसे राजधम5, राजशाh , दdडनीित तथा नीितशाh के नाम से जाना जाता है। पचं तंZ म8 इसे
नृपतंZ कहा जाता था।
ाचीन भारतीय िचतन के अनेक hोत है इसम8 मrु य .प से ाचीन सािह+य , वेद परु ाण , धम5शाh/ , उपिनषद/,
महाकाOय/ , जैन Cथ/ तथा बौ( जातक/ को शिमल िकया जाता हL। इसके अलावा समय-समय पर िविभन
रचनाओ ं जैसे अथ5शाh, नीितशाh, शक ु नीित ने भी इसम8 योगदान िदया है। इसम8 ‡वेनसांग एवमं फा‡यान का
िववरण भी उbलेखनीय है। इसके अितर\ परु ातन अवशेष गफ ु ालेख, िशलालेख, तंभलेख, ताuलेख आिद को
शािमल िकया जाता है। ाचीन भारतीय िचतन के hोत के .प म8 मpु ाओ ं क भी मह+वपणू 5 भिू मका रह9 है।
ाचीन भारतीय िचतन म8 धम5 एवं राजनीित को एक साथ जोड़कर देखा जाता है। इसम8 आ3याि+मकता पर बल है।
भारतीय िचतन म8 राज को आवयक माना जाता है। इसम8 राज का काय5:Zे अ+यतं Oयापक है। इसम8 दdड क
कठोर क Oयव था है। सHपणू 5 ाचीन भारतीय िचतन का =ि>कोण Oयावहारक हL और राजा का काय5:Zे Oयापक
है।

4.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम ाचीन भारतीय िचतन -
1. को समझ सक8 गे ।
2.के मrु य hोत/ के बारे म8 जान सक8 गे ।
3. क मrु य िवशेषताओ ं को जान सक8 गे ।
4. पर देशी भाव तथा िवदेशी भाव को समझने म8 भी सहायता िमलेगी ।
5.और पाFा+य राजनैितक िचतन के अतर को समझ सक8 गे

उराखंड म
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4.3 चतन का आशय एवं मह व


ाचीन भारतीय िचतन का इितहास अित ाचीन है। यह वैिदक काल से ारHभ होकर मगु लकाल तक माना जाता
है। आज से हजार/ वष5 पवू 5 जब दिु नया म8 िचतन का िव तार नह9 हो पाया था उस समय भी भारतीय राजनैितक
एवं सामािजक िचतन सवmiच िशखर पर था। यह गौरवशाली परHपरा वैिदक काल से आज तक बनी हQई है।
औपिनवेिशक काल म8 कितपय पाFा+य िवचारक/ ने इस म को फै लाया िक भारत का ाचीन िचतन अित
साधारण है इसम8 कुछ भी उbलेख करने यो}य नह9 है। उनम8 से कुछ िव^ान/ ने इसे िनरा आदश5वाद, अOयवहारक
रह यवाद से भरा हQआ बताया। इस म को मैaस मल ू र, डिनग जैसे पवू ा5Cह से C त िव^ान/ ने आगे बढ़ाया ।
समय गजु रने के साथ नये तjय सामने आये और फै लाया गया म टूट गया। नये तjय/ ने प> िकया िक ाचीन
भारतीय िचतन पाFा+य राजनैितक िचतन से अ+यिधक ाचीन एवं ासंिगक है। भारत म8 tलेटो एवं अर तू से
शताि@दय/ पवू 5 राजनैितक का Oयापक िववरण िमलता है। भारत के वेद, परु ाण, एवं उपिनषद ाचीन भारतीय
िचतन क उ+कृ > नमनू े है। कौिटbय का अथ5शाh िचतन के आधिु नक व.प का उदाहरण है। अर तू के
समकालीन कौिटbय का सHपणू 5 दश5न Oयवहारक है तथा यह िस( कारता है िक भारत का िचतन कह9 भी पीछे
नह9 है। यहां पर मैaसी का कथन ासिगंक हो जाता है जब वह कहते है-’’हम8 यह नह9 भल ू ना चािहए िक भारत
का राजनैितक इितहास यरू ोप के राजनैितक इितहास से अिधक ाचीन है और राजनैितक िवचार/ क =ि> से
िन;फल भी नह9 है।’’एिशयािटक सोसायटी के उदय के साथ ि थित म8 बदलाव ारHभ हQआ। िटेन क बदली
परि थितय/ म8 भारतीय/ क सं कृ ित एवं इितहास क जानकारी क आवयकता महससू क गई। यह9 से भारतीय
िचतन का नया व.प दिु नया के सामने आया।
4.3.1 िचतन का महव
दिु नया म8 अनेक िव^ान राजनैितक िचतन को अनपु योगी एवं हािनपp मानते है। इसम8 मrु य .प से बेकन, ले ली,
टीफन, बक5 , डिनंगआिद मख ु हL। टीफन तो कहता है िक -’’वे देश भा}यशाली है िजनके पास कोई राजनैितक
दश5न नह9 है aय/िक ऐसा त+व िचतन िनकट भिव;य म8 होने वाली Vाितकारी उथलपथु ल का सचू क होता है।’’
डिनंग का प> मत था िक -’’ जब कोई राजनैितक प(ित राजनैितक दश5न का व.प Cहण करने लगे तो समझ
लेना चािहए िक उसके िवनाश क घड़ी आ गई है।’’
उपरो\ कथन िचतन को अनपु योगी मानते है। वे इसे आदश5वादी, काbपिनक म पैदा करने वाला मानते है। वे
तक5 देते है िक अiछे िवचारक ायः अiछे शासक नह9 होते हL। वे कहते हL िक सै(ाितक #ान Oयवहारक नह9
होता है तथा Oयवहारक #ान िस(ात पर खरा नह9 उतरता है। tलेटो इसका आदश5 उदाहरण है। वह अपने आदश5
रा1य को मतू 5 .प देने म8 पणू त5 ः असफल रहा। इसका दसू रा दोष यह है िक अिधकांश िवचार परि थित जय होते
हL। अतः उनका सामायीकरण करते हQए िस(ात नह9 बनाया जा सकता। राजनैितक दश5न म8 हाbस, .सो तथा
मैिकयावेली के मानव सबं धं ी िवचार त+कालीन समाज क देन थे। कितपय यही कारण था िक त+कालीन
परि थितय/ म8 उपजी िनराशा, हताशा ने उनके िवचार को मानव के ित नकारा+मक बना िदया था। उपरो\ दोष
के होते हQए भी िचतन का अ3ययन मानवोपयोगी है। इससे होने वाले लाभ िनHन है-
1.रा1य और उसका मतू 5 .प सरकार है। यह मानव से िनिम5त है तथा मानव के इद5-िगद5 ही घमू ता है। अतः मानव के
संबंध म8 िवचार करना, िविभन B/ पर िवचार करना सदैव से मानव तथा समाज के िलये लाभदायक रहा है।

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ु िविवालय 43
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2.राजनीितक िचतन का मानव के साथ घिन> संबंध रहा है। िव^ान/ ^ारा समय-समय पर ितपािदत िविभन
िस(ात/ ने मानव को बहQत लाभ पहQचं ाया है। .सो के िवचार/ ने 18 व9 शता@दी म8 ˆांसीसी Vाित को जम
िदया और इसी Vाित से समानता, वतZता तथा भाईचारे का िवचार सामने आया। माaस5 ने 20व9 शता@दी म8
‘‘बोbशेिवक Vाित’’ को जम िदया। इसी से साHयवादी िवचारधारा का उदय हQआ।
3.राजनीितक िचतन से एक अलग कार का लाभ यह होता है िक यह िविभन कार क गई श@दाविलय/,
िस(ात/ को जम देता है। इसम8 मrु य .प से रा;<ीयता, लोककbयाणकारी रा1य, Oयि\वाद, पथं िनरपे:ता
आिद मख ु है।
4.राजनीितक िचतन के अ3ययन से एक अय लाभ यह होता है इससे हम8 ऐितहािसक घटनाओ ं को समझने और
उसक Oयाrया करने म8 सहायता िमलती है।
5.इससे वत5मान घटनाओ ं को समझने म8 सहायता िमलती है। वत5मान सम याओ ं क जड़ सदैव इितहास म8 रहती
है। अतः उसका िनवारण भी इितहास से आता है। िचतन सम या का िनवारण ही नह9 करता वरन् भिव;य म8 आने
वाली सम याओ ं का हल एवं माग5दश5न ततु करता है।
इस कार से प> है िक िचतन का अ3ययन +येक =ि> से लाभ द है। यह वभािवक िVया है जो लHबे समय
से चली आ रही है।
4.3.2 िचतन के िविवध नाम
राजनीितक िचतन को ाचीन समय म8 िविभन नाम/ से पक ु ारा जाता था। यह समयानसु ार न के वल नाम वरन्
अपनी लोकि यता को खोता एवं पाता रहा है। यहां पर ो0 अलतेकर का कथन ांसिगक हो जाता है जब वह
कहते है-‘‘राजधम5, राजशाh, दdड नीित, नीितशाh अथ5शाh आिद नाम/ से ाचीन भारत म8 राजनीित शाh को
संबोिधत िकया गया है।’’ िविभन धािम5क Cथ/ म8 इसके िविवध नाम िदखायी पड़ते है जैसे िविभन मृितय/ म8
इसे राजधम5, महाभारत म8 इसे राजशाh , दdडनीित तथा अथ5शाh कहा गया। पचं तZ म8 इसे नृपतंZ कहा गया।
इसको दdडनीित पक ु ारने का आधार भी बहQत प> है। बहQत से िव^ान राजस&ा का अिं तम आधार दdड को ही
मानते है। वे मानते है िक राजनैितक स&ा यिद काननू तोड़ने वाल/ को दdड नह9 देगी तो अराजकता उ+पन हो
जायेगी। अतः दdड ^ारा ही भय उ+पन कर Oयव था लायी जा सकती है। अतः राजनीितक िचतन को दdड नीित
का पकु ारा गया।
कौिटbय ने इस धारणा को अ वीकार िकया। उसक मायता थी िक दdड से भय उ+पन होता है। वे कहते है िक
काननू तोड़ने वाल/ को दिdडत करने से जनता वतः काननू / का पालन करने क ओर बढ़ती है। मनु ने दdड देने
वाली मानवीय स&ा को राजा नह9 माना वरन् दdड को शासक माना। ऐसे म8 शासक को कत5Oय तथा समाज को
बताने वाले शाh को दdडनीित के नाम से जाना जाता है। कौिटbय का अथ5शाh वा तव म8 शासननीित का ही
िववरण था।
नीितशाh श@द म8 नीित का अथ5 सही माग5 िदखाने से िलया जाता है। उिचत अनिु चत म8 अतं र बताने वाला शाh
नीितशाh के नाम से जाना जाता है। भतृ5हर का िस( नीित शतक उस िवशाल अथ5 म8 नीित क चचा5 करता है।
कामदकं एवं शVु के शासन सबं धं ी Cथ नीित शाh के नाम से जाना जाता है। वे इसे रा1य शाh या दdड नीित के
नाम से नह9 पक
ु ारते हL। कौिटbय ने अपने शासन सबं धं ी Cथ को अथ5शाh कहा। कौिटbय क मायता थी िक
‘अथ5’ श@द से Oयि\ का Oयवसाय प> होता है। साथ ही वह भिू म भी इिं गत होती है िजस पर रहकर Oयवसाय

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िकया जाता है। अतः उस भिू म को ाX करना तथा उसको बनाये रखने का शाh ही अथ5शाh है। शV ु नीित म8 प>
िकया गया है िक अथ5शाh का :ेZ ने के वल संपित ािX के उपाय/ क चचा5 करना है वरन् शासन शाh के
िस(ात/ को भी थािपत करना है। Vामदक के समय म8 जो नीित श@द रा1य क नीित के संबंध म8 य\ ु िकया
जाता था वह9 जब सामाय आचरण के िलये य\ ु िकया जाने लगा है। राजनीित तो इसका एक िह सा है। ऐसे म8
रा1य से संबंध रखने वाले िनयम/ तथा तjय/ को आचरण के अय पहलूओ ं से अलग िदखाने के िलये नीित श@द
के साथ ‘‘राज’’ श@द का योग िकया जाने लगा। डा0 भdडारकर के श@द/ म8-‘‘ जब नीित श@द का योग
सामाय आचरण के िनयम/ के िलये िकया जाने लगा तो यह आवयक हो गया िक उनको राजा के आचरण
िनयम/ से अलग करने के िलये राजनीितक श@द का योग िकया जाय।’’
ाचीन भारत म8 राजशाh का Oयापक भाव रहा है। महाभारत म8 प> िकया गया है िजस कार हाथी के पैर म8
सबका पैर आ जाता है उसी कार राजशाh म8 सभी शाh आ जाते है। यह सक
ं ु िचत िवषय न होकर Oयापक िवषय
था। इसम8 आने वाले िवषय को धम5 से अलग नह9 रखा गया था। इसम8 सामािजक Oयव था, धम5 और राजा क
स&ा आिद के साथ Cथ कई बात8 सिHमिलत थी। इसम8 जनकbयाणकारी काय5 भी शािमल थे।
4.3.3 िचतन के Tोत
ाचीन भारतीय िचतन के अनेक hोत है। इसम8 मrु य .प से ाचीन सािह+य जैसे वेद, परु ाण, धम5 सZू /, धम5
शाh/, उपिनषेद/, महाकOय/, जैन Cथ/ तथा बौ( जातक शिमल हL। इनके अितर\ समय-समय पर िविभन
िव(ान/ क रचनाओ ं जैसे कौिटbय का अथ5शाh, कांमदकय नीितशाh, शV ु नीित आिद मख
ु हL। इसी समय
अनेक शासक/ के समय िवदेशी िव^ान/ ने उनके रा1य का न के वल मण िकया वरन् Oयापक सामाियक,
सां कृ ितक, आिथ5क एवं राजनैितक िवƒे षण अपने Cथ/ के मा3यम से ततु िकया गया। इसम8 फा‡यान एवं
‡वेनसांग का िववरण उbलेखनीय है। कुछ स ं कृ त के िव^ान/ जैसे पािणनी के Oयाकरण, अ>3यायी, कालीदास के
रघवु श
ं , िवशाखद& के मpु ा रा:स से भी जानकारी िमलती है। यहां पर डा0 जयसवाल का कथन ासिं गक हो
जाता है-‘‘ हम8 इस िवषय का #ान कराने वाले साधन िहदू सािह+य के िव तृत :ेZ म8 िमलते हL। वैिदक स ं कृ त
तथा ाकृ त Cथ/ और इस देश के िशलालेख/ तथा िसaक/ म8 रि:त लेख/ म8 हम8 इस िवषय क बहQत सी बात8
ाX होती है। सौभा}य से इस समय िहदू राजनीित शाh के कुछ मलू Cथ भी उपल@ध है।’’
भारतीय िचतन के hोत को अ3ययन क सिु वधा के िलये िनHन भाग/ म8 बांट सकते हL-
1. देशी अथवा भारतीय hोत
2. िवदेशी hोत
4.3.3.1 देशी hोत
देशी अथवा भारतीय hोत म8 अनैितहािसक सािह+य एवं इितहास परक सािह+य दोन/ शािमल हL। इसम8 सवा5िधक
मह+वपणू 5 वैिदक सािह+य हL िजसम8 मrु य .प से वेद उनक संिहताय8, ा‡मण Cथ और सZू सिHमिलत है। वैिदक
सािह+य के बाद महाकाOय/ जैसे रामायण, महाभारत का थान आता है। इसके अितर\ अय धम5 के सािह+य
जैसे बौ( सािह+य, जैन सािह+य आिद का भी उbलेखनीय योगदान है। भारतीय िचतन क प> झलक कौिटbय
के अथ5शाh तथा नीितशाh म8 भी िदखाती है। भारतीय िचतन के भारतीय hोत िनHनिलिखत है-
1.वेदः- भारतीय धािम5क सािह+य के सबसे ाचीन Cंथ वेद हL। यह चार भाग/ म8 हL िजनको ऋृगवेद , सामवेद,
यजवु nद तथा यथ5ववेद आिद हL। इनम8 वेद/ के मा3यम से शासन तथा रा1य क उ+पित के िस(ात/ का पता चलता

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ु िविवालय 45
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
है। इसम8 राजा के अिधकार, राजा- जा संबंध तथा शासन नीितय/ का िव तृत िमलता है। वा तव म8 वेद ाचीनतम
hोत है। इनसे त+कालीन राजनीित तथा प(ित का अiछा #ान होता है।
2.ा‡मण तथा उपिनषदः- वैिदक मंZ/ तथा संिहताओ ं क गटा टीकाओ ं को ा‡मण कहा जाता है। ा‡मण
सािह+य म8 मrु य .प से तटेय, पंचिवश, शतपथ, तैतरीय आिद मह+वपणू 5 हL।
उपिनषेद/ के ^ारा त+कालीन समाज, शासन तZ, राजा जा संबंध/ का पता चलता है। उपिनषेद/ क संrया बहQत
है। इसम8 मrु य .प से वृहदारdयक, छादो}य, ]ेताखतर, के न, कट, B, मdु डक आिद मख
ु हL। इनम8 िवHबसार के
पवू 5 क राजनैितक दशा का #ान होता है।
3.महाकाOयः-वैिदक सािह+य के बाद सािह+य के दो तHभ/ रामायण था महाभारत क रचना होती है। ाचीन
भारतीय सामािजक, राजनैितक, आिथ5क दशा को सामने लाने का Wेय इन Cथ/ को है। रामायण के रिचयता
वािbमक ने भगवान राम के चरZ वण5न से सHपणू 5 समाज का िचZ ही उके र कर रख िदया है। महाभारत म8 शांित
पव5 के राजधम5 पव5 के अ3याय/ म8 राजा के कत5Oय तथा रा1य के साथ सबं धं / का वण5न है। यह ाचीन िचतन को
मजबतू करते हL।
4.परु ाणः- महाकाOय/ के साथ परु ाण अपने समय क ऐितहािसक सामCी दान करते है। ये महाकाOय/ के
समकालीन हL। इसम8 आिदम काल से गXु काल क सम त सामCी का उbलेख है। िव;णु परु ाण मौय5 वंश के िवषय
म8, म+ य परु ाण आंz वेश के िवषय म8 Oयाrया करते हL। वायपु रु ाण म8 गXु / के िवषय म8 जानकारी उपल@ध कराते
हL। वायु परु ाण म8 ही सामािजक राजनीितक Oयव था क उ+पित का वण5न है। राजनैितक =ि> से अि}न परु ाण का
मह+व सवा5िधक है िजसम8 शासन का जनकbयाण का आधार बताया गया है। माक5 dडेय परु ाण म8 सामािजक वण5
Oयव था के िनयम/ के पालन तथा जनकbयाण पर बल िदया गया है।
5. मृितयाँ- ऐितहािसक उपयोिगता के =ि>कोण से मृितय/ का िवशेष मह+व है। मन,ु िव;ण,ु या#वbवय, नारद,
बृह पित, पराशर, आिद क मृितयाँ मह+वपणू 5 हL। ये धम5शाh के नाम से िवrयात हL। इन मृितय/ म8 साधारण
वणा5Wम, धम5, राजा के कत5Oय, ाचिFत आिद का िव तृत िववरण है।
6.जैन सािह+यः- जैन सािह+य ाचीन िचतन को मािणत करता है। मrु य .प से जैन सािह+य ाकृ त भाषा तथा
स ं कृ त भाषा दोन/ म8 उपल@ध है। जैन सZू / म8 इितहास क अनेक उपयोगी सामCी है। जैन सािह+य म8 ऐितहािसक
=ि> से आचाय5 हेमचp िलिखत ‘‘परिश> पव5न’’ बहQत मह+वपणू 5 है। इस Cथ म8 महावीर के काल से मौय5काल
का िव तृत िववरण िमलता है। भpवाहQ चरत नामक दसू रे Cथ म8 भpबाहQ से लेर चpगXु मौय5 तक बहQत जानकारी
िमलती है।
7.बौ( सािह+यः- बौ( धम5 म8 तीन मखु Cथ है। िजह8 िZपटक के नाम से जाना जाता है। इनम8 संत िपटक, धHम
िपटक और िवनय िपटक आिद है। इसम8 ब( ु के उपदेश/ का संCह है। इससे त+कालीन सामािजक, राजनीितक,
धािम5क, आिथ5क Oयव था का #ान ाX होता है। िनकाय एवं जातक Cंथ/ म8 त+कालीन एवं पवू 5वतf समाज का
उbलेख है। बौ( धम5 Cथ िदOयावदान, लिलतािव तार, महाव त,ु मंजश ु ी आिद सं कृ त हL। इसके अितर\
अ]ेघोष का ब(ु चरत वसवु ंधु का धम5 कोष, नागाजन5ु का माहयियका सZू मह+वपणू 5 Cथ है।
8.लौिकक सािह+यः- लौिकक सािह+य त+कालीन समाज का िविभन काल खdड म8 िचZण करते हL। इसम8
कालीदास क रचनाय8, पािणनी क रचनाय8, पतंजिल क रचनाय8 मखु हL। उ\ िव^ान/ ने अपनी रचनाओ ं जैसे
पािणनी क अ>3यायी तथा पतं जिल क Oयाकरण महाभा;य के ^ारा त+कालीन समाज का िचZ ख9चा।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
9.कौिटbय का अथ5शाhः- कौिटbय का ”अथ5शाh” भारत का ही नह9 वरन् िव] के मख ु राजनैितक Cथ/ म8 से
एक था। इसे राजनीित शाh का आधार माना जाता है। ”अथ5शाh” म8 राजा को वेद तथा त+व#ान आिद िवषय
का अ3ययन करने को कहा गया है। सलटोरो के श@द/ म8 - ‘‘ ाचीन भारत क राजनीितक िवचारधाराओ ं म8 सबसे
अिधक 3यान देने यो}य कौिटbय क िवचारधारा है।’’
10.नीितशाhः- नीितशाh/ म8 कांमदकय नीितशाh तथा शV ु नीित सार का मह+वपणू 5 योगदान है। कौिटbय के
बाद रा1य एवं शासन पर िलखे Cथ/ म8 यह सवा5िधक मह+वपणू 5 है। कांमदनीय नीितसार गXु काल म8 500ई0 के
आसपास िलखा गया। शV ु नीित भी त+कालीन शासन Oयव था का वण5न करता है। इसके समय म8 गणरा1य/ का
अतं हो चकु ा था अतः इसम8 राजा का ही वण5न है। शV
ु के अनसु ार शासन का उेय जनता का सवाyगीण िवकास
करना है।
11.अय ऐितहािसक hोतः- अय ऐितहािसक hोत म8 िविभन कालखdड/ म8 रिचत िविभन रचनाय8 है। इसम8
कbहण रिचत राजतंरिगणी मख ु है। इसम8 ाचीन काल से 12 व9 शता@दी तक का कमीरी इितहास का उbलेख
है। बाणभ‰ ^ारा रिचत “हष5 चरत“ म8 हष5 के शासन के िविभन पहलूओ ं का वण5न िकया गया है। प€गXु परमल
का ‘‘नवसाहसाँकचरत’’ परमार वंश क जानकारी देता है। वाaपितराज के काOयCथ ‘‘गौडवह/’’ से कनौज के
राजा यशोवम5न के शासन क जानकारी िमलती है। िवbहण रिचत “िवVमांक देव चरZ“ Cथ से कbयाण के
चालुaय वंश के इितहास का पता चलता है। पाँतजिल के “महाभा;य“ और कािलदास के ‘मालिवकाि}निमZ’
शगु वंश के इितहास पर काश डालते हL। िवशाखद& के “मpु ारा:स“ नाटक के ^ारा नंदवंश तथा मौय5वंश का
उbलेख िमलता है। चदवरदाई क रचना ‘पृjवीराज रासो’ से त+कालीन सामािजक, राजनैितक ि थित क
जानकारी िमलती है।
4.3.3.2 िवदेशी Tोत
भारतीय िचतन के अ3ययन का दसू रा मह+वपणू 5 hोत िवदेशी hोत कहलाता है। इसम8 मrु य .प से िवदेश/
िव^ान/ क रचनाओ,ं टीकाओ ं से ाX सचू नाओ ं को शिमल िकया जाता है। इसम8 मrु य .प से यनू ानी एवं रोम के
िवचारक/ को शािमल िकया जाता है। यनू ानी िवचारक/ को भी अ3ययन क सिु वधा क =ि> से तीन भाग/ म8 बाँटा
जाता हैः-
1. िसकंदर के पवू 5 के िवचारक - काइलेaस, हैरोडोटस, हीिसयस
2. िसकंदर के समकालीन - िनयिaस, ओिनसVे िटस
3. िसकंदर के बाद - मेग थनीय
िसकंदर के पवू 5 के यनू ानी िवचारकः- इसम8 मrु य .प से काइलेaस था जो एक यनू ानी सैिनक था। उसने अपनी
प ु तक म8 भारतीय सामािजक, राजनैितक Oयव था का वण5न िकया है। हेरोडोटस ने भी भारतीय Oयव था का वण5न
िकया है। उसका िववरण मrु यतः सीमावतf :ेZ/ पर आधारत था।
िसकंदर के समकालीन िवचारकः- िसकंदर के समकालीन िवचारक/ म8 अर टोवल ु स, िनया5कस, ओिनसVे िटस,
एरयन आिद मखु थे। ये वे िव^ान थे जो आVमण के समय िसकंदर के साथ भारत आये थे। वे भारतीय समाज
के साथ नजदीक से जड़ु े थे। कितपय यही कारण था िक इनका िववरण अिधक सटीक और मािणक माना जाता
है।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िसकंदर के बाद के िवचारकः- इसम8 मrु य .प से मेग थनीय, डायमेकस, िटखनी, डायोडोरस, tलटू ाक5 आिद
मखु हL। यनू ानी िवचारक/ म8 सवा5िधक मािणक िववरण मेग थनीय का माना जाता है। िजह/ने अपनी रचना
‘इिdडका’ के मा3यम से एक िव तृत िववरण तुत िकया। एरयन, जि टन, डायोडोरस का िववरण मrु यतः
िसकंदर के अिभयान/ से संबंिधत था।
इसके अितर\ एक िवदेशी रचना ’पेरीtलस आफ दी एरीिशयन सी’ ने त+कालीन Oयापार, िवदेश/ सबं ंध/ का
िव तृत िववरण तुत िकया। इसके अितर\ टाbमी का भगू ोल, िटलनी का ‘नैचरु ल िह <ी’ तथा इडं कोरलु टस
का ‘िVFयन आफ दी यनू ीवस5’ म8 भारत भौगोिलक सां कृ ितक िव तार का िववरण दान करते हL।
चीनी यािZय/ का िववरणः- चीनी यािZय/ ^ारा िविभन कालखdड/ मे िदया गया िववरण बहQत उपयोगी है। इन
चीनी यािZय/ म8 फाŠयान, ‡वेनसांग तथ इटिसंग है। फा‡यान चpगXु ि^तीय के शासन के समय भारत आया था।
उसने बौ( तीथf का मण िकया तथा उसका िव तृत िववरण िदया। ‡वेनसांग हष5 के समय भारत आया उसने
समचू े भारत का मण िकया। 7 व9 शता@दी म8 इटिसंग ने भारत म8 िश:ा के उiच अ3ययन के p नालंदा
िव]िव0ालय , त:िशला िव]िव0ालय का िव तृत िववरण ततु िकया। उनके सHपणू 5 िववरण से त+कालीन
सामािजक, राजनैितक, आिथ5क तथा शैि:णक अव था का #ान होता है।
मिु लम इितहासकार/ का िववरणः- भारत म8 इ लामी आVमण के साथ मिु लम इितहासकार/ तथा यािZय/ के
^ारा भारतीय Oयव था का िव तृत िववरण ाX होता है। अbव.नी ^ारा रिचत ‘तहकक एकिहद’ से त+कालीन
राजपतू कालीन भगू ोल, राजनीित, समाज, धम5, रीित-रवाज आिद का वण5न िमलता है। अलमसऊदी क
‘मज.ल जहाब’ आिद Cथ भी त+कालीन सामािजक, राजनैितक Oयव था का िचZण करते है।
4.3.3.3 परु ातव, अिभलेख, मUु ाए,ं मारक, मिू तया,ं तपू
परु ातन अवशेष ही अनेक उलझी पहेिलय/ को सल ु झाते हL। भारत के इितहास म8 ाचीन समय से लेकर आज तक
अनेक रह य/ से पदा5 हट रहा है। इसम8 मह+वपणू 5 भिू मका परु ातन अवशेष/ का रहता है। इह9 के अ3ययन से हम8
सामवाहन वश ं के आद के इितहास का #ान ाX होता है। परु ात+व म8 मrु य .प से ाचीन अिभलेख, ाचीन,
मpु ा, ाचीन भवन/, मारक/ आिद को शािमल िकया जाता है। माश5ल, यनू र, आर0डी0 बनजf ने अनेक थान/
पर खदु ाई कर नये तjय/ को उजागर िकया। उनके यास/ से इितहास का नया व.प तथा लोग/ के सोच क धारा
ही बदल गई। डा0 आर0 डी0 बनजf ने 1921-22 म8 िसंध ांत म8 मोहनजोदड़ो तथा पंजाब म8 हड़tपा क खदु ाई
करवाई। इन खदु ाई से जो नये तjय सामने आये उनसे प> हQआ िक भारतीय सAयता अ+यत ाचीन है। इस िदशा
म8 माश5ल का योगदान उbलेखनीय है। गया, कालीवंगा, लोथल आिद क खदु ाई ने नये रह य/ पर से आवरण
हटाया। परु ात+व िव^ान/ ने खदु ाई म8 ाX सामािCय/ जैसे शव, मpु ा, हड्डी, बत5न, हिथयार, औजार, W9गार
सामिCय/ का अ3ययन कर इितहास को नये तjय/ से अवगत कराया। िविभन गफ ु ाओ ं के अ3ययन से िविभन
कालखdड/ क जानकारी िमलती है।
िविभन अिभलेख/ जैसे गफ ु ालेख, िशलालेख, तंभ लेख, ताu पZ आिद को शािमल िकया जाता है। ये
अिभलेख िविभन भाषाओ ं म8 ाX हQए है। इनके अ3ययन से राजनीित, सामािजक, आिथ5क Oयव था का #ान
होता है। इन अिभलेख/ म8 अशोक के अिभलेख/ को ाचीनतम माना जाता है। उनके मखु अिभलेख/ म8 हाथी,
गफ
ु ा अिभलेख, जनू ागढ़ अिभलेख, गXु कालीन अिभलेख आिद हL। समpु गXु के अिभलेख/ म8 मrु य .प से याग
का अिभलेख मह+वपणू 5 है। दि:ण के चोल, पाdडव, पbलव राजाओ ं के अिभलेख मह+वपणू 5 है। ये सभी
अिभलेख ाचीन इितहास का िव तृत िववरण ततु करते है।

उराखंड म
ु िविवालय 48
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
मpु ाएँ- ाचीन भारतीय इितहास के #ान का मख ु आधार मpु ाएं हL। ईसा से पवू 5 200 से 300 ई0 तक के भारत के
इितहास क सHपणू 5 जानकारी हम8 मpु ाओ ं के मा3यम से ाX होती है। अनेक ाचीन शासक/ जैसे पbलव, शक,
वैिa<यन के अ3ययन का आधार मpु ा हL। मpु ाओ ं म8 गXु कालीन मpु ाओ ं का बहQत मह+व है। वे न के वल अ+यािधक
कला+मक है वरन् उसके िनिहताथ5 भी Oयापक हL। ये राजा क वंशावली, ितिथVम तथा उ&रािधकारी का बोध
होता है। मpु ाओ ं के मा3यम से ही अनेक रा1य/ का अि त+व िस( होता है। िशव, मालव, अज5नु ायन, कुणादे आिद
गणतZ/ का अि त+व इन मpु ाओ ं के मा3यम से िस( होता है।
मारक
इसके अत5गत िविभन भवन, मिू त5याँ आिद सिHमिलत हL। ाचीन मंिदर/, िवहार/, तूप/, मिू त5य/, भवन/ आिद को
शािमल िकया जाता है। इनसे सामािजक, धािम5क जीवन क जानकारी िमलती है। ल:िशला के टूटते भवन/ म8
कुषाणवंश का िव तृत िववरण िमलता है। पािटलीपZु के भवन/ से माय5 वंश का िव तृत #ान होता है। देवगढ़,
कानपरु , झांसी आिद के अनेक भवन/ म8 गXु वंश के सामािजक, राजनैितक Oयव था का बोध होता है।
इस कार से प> है िक ाचीन भारतीय िचतन को मािणत करने म8 अनेक त+व/ का योगदान रहा है। िचतन के
hोत म8 देशी-िवदेशी hोत तो को ही साथ ही िविभन परु ातन अवशेष, िशलालेख/, मpु ाओ ं ने न के वल तjय
उजागर िकये वरन् सHपणू 5 िचतन को भािवत िकया।

4.4 भारतीय चतन का वकास


भारत म8 िचतन के िवकास का ारHभ भारत म8 आयk के आगमन से माना जाता है। काल खdड क =ि> से यह
काल सोलह सौ से लेकर चौदह सौ वष5 ईसा पवू 5 तक है। इन आयk का समाज जैसे ऋ}वेद म8 अिं कत था िपतृ धान
था। शासन राजतZा+मक था। राजा िनवा5िचत एवं िनयिZत था। समय के साथ वह वंशानगु त एवं िनयZं णम\ ु हो
गया। वैिदक काल म8 सभा एवं सिमित लोकि य िनकाय थे। वरJ एवं शि\शाली Oयि\य/ क परषद ही राजा
का चनु ाव करती थी। वह राजा को समय-समय पर परामश5 भी देती थी।
धम5 एवं कम5काdड का भाव समय के साथ बढ़ा। य( ु म8 िवजय तथा लाभ क लालस ने ‘बिल’ था को बढ़ावा
िदया। परु ोिहत/ के काय5, मह+व को बढ़ावा िमला। जनसंrया बढ़ी तथा कायk के आधार पर ‘िवशेषीकरण’ पर बल
िदया गया। य( ु / क संभावना क अिधकता के कारण एक संगिठत सेना क आवयकता महससू क गई। य( ु के
िवशेष#/ को :िZय कहा गया। अनेक कम5काdड/, रवाज/ के िलये ा‡मण8 का मह+व बढ़ा। अ+यािधक उपजाऊ
भिू म म8 कृ िष का िव तार हQआ और Oयापारक गितिविधय/ को बढ़ावा िमला। इसके कारण समाज म8 एक
भावशाली Oयापारक वग5 का उदय हQआ। इसी समय कृ िष उ0ोग एवं अय कलाओ ं से जड़ु ी नई जाितयां बनने
लगी। इसके अितर\ गैर आय5 जो य( ु म8 परािजत हो गये थे वे दास के .प म8 थािपत हो गये। इस कार नई
परि थितय/ एवं िवकास ने समाज को चार भाग/ म8 िवभािजत कर िदया।
ि^तीय चरण म8 बड़े रा1य थािपत हो गये। सामािजक िवकास के साथ राजनैितक िवकास होने लगा। राजा क
सैिनक शि\ एवं भौितक शि\ का िवकास हQआ। राजा िनवा5िचत के थान पर वश ं आधारत हो गया। इसी समय
राजा काननू का सरं :क एवं सH भु बन गया। राजा क स&ा को धािम5क मायता दान क गई।
िवकास के तीसरे चरण म8 राजा धम5 के म+ु व से बाहर आ गया। राजा अ+यािधक सश\ हो गया और वह धम5 को
ही भािवत करने लगा। यह िVया बौ( धम5, जैन धम5 के साथ ारHभ हQई। ा‡मणवाद पर कठोर हार हQआ। इन

उराखंड म
ु िविवालय 49
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
दोन/ धमk ने राजा का समथ5न ाX िकया। राजा के समथ5न से न के वल इन दोन/ धमk का ती‹ िव तार हQआ वरन्
ा‡मणवाद का भाव कम हQआ। यह9 से नये उदार िवचार/ का जम हQआ। नये िवचार/ को समािहत करते हQए नये
काननू बनाये गये।
राजा नई परि थितय/ म8 और अिधक मजबतू हो गया। वह नये धमk का सार कर रहा था साथ ही क‰र परु ातन
Oयव था पीछे छूट रही थी। राजा िनरतर मजबतू होता जा रहा था। इसी समय बड़ी राजशाही थािपत होने लगी।
बड़े सuाट/ का झक ु ाव भी अलग-अलग धमk क ओर होने लगा। जहां सuाट चpगXु जैन धम5 का समथ5क था
वह9 सuाट अशोक बौ( धम5 का समथ5क था। सामािजक समरसता, सौहाद5 बनाये रखने तथा ितिVयावादी
शि\य/ को िनयिZत करने के िलये राजा ने बल का योग िकया। उसने वयं क आ#ाओ,ं आदेश/ को जारी कर
धािम5क :ेZ म8 भी दखल ारHभ िकया। मौय5 वश ं के पतन के बाद भारतीय राजनीितक एवं सामािजक Oयव था म8
Oयापक परवत5न आये। नये छोटे-छोटे रा1य थािपत हQए तथा नये राजा अि त+व म8 आये। शक एवं कुषाण रा1य
थािपत हQए। िवदेशी शासक/ ने थम हार सामािजक, राजनैितक तथा आिथ5क Oयव था पर िकया। ा‡मणवादी
Oयव था और कमजोर हQई। इसी समय दैवीय अिधकार/ पर बल िमला। अनेक शक एवं कुषाण शासक/ ने अपने
को ई]र पZु घोिषत कर िदया। यही से राजा का धम5 पर भी भ+ु व थािपत हो गया। राजा धम5 चारक, र:क तथा
सवmiच Oयाrयाकार बन गया।
ाचीन भारतीय रा1य/ का व.प संघा+मक था। इसके बावजदू मह+वपणू 5 मामल/ म8 शि\य/ का के pीकरण था।
सuाट अपने रा1य म8 सवmiच स&ा एवं सH भु था। उसक सवmiचता भिू म एवं जल पर थािपत थी। वह पिवZ
काननू का संर:क था धम5 वत5क था। वह देवता समान था तथा याय का सवmiच अिधकारी था।
4.4.2 भारतीय िचतन क$ "मख
ु िवशेषताय(
ाचीन भारत म8 जो राजनैितक Oयव था थी उसक अपनी िवशेषता थ9 जो उसे पाFा+य िचतन से अलग करती
है। ये िवशेषताय8 त+कालीन सामािजक, राजनैितक, धािम5क कारण/ से भािवत थी। ाचीन भारतीय िचतन क
मख ु िवशेषताय8 िनHन हैः-
1.धम5 एवं राजनीित का सांमज यः- ाचीन भारत म8 राजनीित तथा उसके िस(ात/ का िवकास धम5 के एक
िस(ात के .प म8 हQआ था। यही कारण है िक ाचीन राजनीितक िचतन म8 धम5 को राजनीित के साथ जोड़कर
देखा गया। ाचीन राजनीितक िचतन म8 धम5 से राजनीित को जोड़कर देखा गया। राजा से भी धम5 के पालन क
आशा क जाती है। वह हर कार के धािम5क परHपराओ,ं रीितय/ से बंधा हQआ है। राजा से आशा क जाती है िक
वह शासन भी धािम5क िस(ात/ के आधार पर करे । राजनीित म8 धम5 एवं नैितकता सदैव समावेश रहा है। भारत म8
ाचीन धािम5क Cथ ही राजनीित के मrु य Cथ माने जाते है। इनम8 वेद, उपिनषद, परु ाण, रामायण, महाभारत आिद
मखु हL।
2.आ3याि+मकता पर बलः- ाचीन भारतीय राजनीित का झक ु ाव आ3या+म क ओर अ+यािधक रहा है। भारत को
आ3याि+मक गणु भी कहा जाता है। जीवन के +येक पहलू का िवचार आ3या+म से ेरत है। यहां पर जीवन शैली
ही आ3याि+मक रही है। कितपय यही कारण है िक यहां राजनीित का रंग भी आ3याि+मक है। भारत म8 राजनीित म8
आ+मा का िवकास एवं मानव के सवा5ग9ण िवकास पर बल िदया गया है। भारतीय िचतन म8 माना गया िक जीवन
का मल
ू उेय आ+मा का िवकास करना है। जीवन इस उेय क ािX का साधन माZ है।

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ु िविवालय 50
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
3.रा1य आवयक सं था हैः- ाचीन भारतीय िचतन क यह मख ु िवशेषता है िक रा1य को आवयक सं था
मानती है। जीवन के तीन लsय/ धम5, अथ5 और काम क रा1य के िबना ािX संभव नह9 है। अराजकतावादी रा1य
को अनावयक और अनपु योगी मानते हL, Oयि\वादी रा1य को आवयक बरु ाई मानते हL। इनके िवपरीत भारतीय
िचतन ने रा1य को अित आवयक माना जाता है। यह न के वल भौितक आवयकताओ ं क पिू त5 का साधन है
वरन् आ+मा का िवकास करने का भी मा3यम है।
4.रा1य के िव तृत काय5 :ेZ पर बलः- भारतीय राजनीितक िचतन आदश5वादी तो है परतु इसम8 कही भी
Oयि\वाद क झलक नह9 िमलती है। भारतीय िचतन म8 राजा का काय5:ेZ अ+यत Oयापक है। रा1य न के वल
Oयि\य/ क र:ा करे गा वरन् उनक भौितक आवयकताओ ं क पिू त5 करे गा। रा1य इसके बाद नैितकता के माग5
पर ेरत कर अिं तम लsय (आ+मा का िवकास) को ािX के िलये वातावरण उपल@ध करायेगा।
5.राजा क सवmiच स&ा पर बलः-भारतीय राजनीितक िचतन म8 रा1य का थान सवmiच है। राजा सवmiच
शि\य/ का योग करता है। वह िकसी के ित जबावदेह नह9 है। अनेक िव^ान/ ने राजा को दैवीय माना है। उसम8
दैवीय गणु / का समावेश िकया है। कौिटbय ने राजा और रा1य के बीच कोई अतं र नह9 िकया है। राजा को सवmiच
थान िदया गया है। परतु उसे िनरंकुश नह9 िकया गया है।
6.दdड पर बलः- भारतीय राजनीितक िचतन यह मानता है िक मानव म8 आसरु ी शि\य/ क धानता होती है।
अतः उनको िनयिZत करने के िलये दdड क आवयकता होती है। भारतीय िचतन म8 कठोर दdड का ावधान है
िजससे समाज संदश े जाय और अय लोग काननू तोड़ने से बचे। ाचीन िव^ान/ ने इसे दdड नीित के नाम से पक
ु ारा
है। मन,ु कौिटbय सभी ने दdड पर बल िदया।
7.Oयवहारवादी =ि>कोणः- भारतीय िचतन आदश5वादी न होकर Oयवहारक है। भारतीय िचतन म8 यनू ानी
िवचारक/ tलेटो, अर तू क तरह कbपना का अभाव है। ए0के 0 सेन के श@द/ म8 - ‘‘िहदू राजनीितक िचतन
उ+कृ J वा तिवकताओ ं से भरा हQआ है। कुछ राजनीितक अपवाद/ को छोड़कर भारतीय राजनीितक िवचार/ का
सबं धं रा1य के िस(ात एवं दश5न से उतना नह9 िजतना रा1य क सम याओ ं से है।
8.िवचार/ क अपे:ा सं थाओ ं पर बलः- भारतीय ाचीन िव^ान/ ने अपनी रचनाओ ं का के p सं थाओ ं को
बनाया है। इन सं थाओ ं का मह+व, संगठन तथा काय5 आिद का Oयापक वण5न िकया गया है। सम त अ3ययन का
के p िबदु मल
ू .प से राजनीितक संगठन/ तथा उनके कायk को बनाया गया है।
9.सामािजक Oयव था का भावः- +येक देश क राजनीितक Oयव था वहां क सामािजक Oयव था क देन होती
है। +येक Oयव था म8 राजनीितक म8 हो रहा परवत5न सामािजक Oयव था क देन होता है। भारत के िचतन म8 ऐसा
देखा गया है िक यहां पर भी सामािजक Oयव था का Oयापक भाव राजनीितक Oयव था पर है।
10.राजा के Oयापक कायk का वण5नः- ाचीन भारतीय िचतन म8 ायः िव^ान/ ने राजा के कायk का Oयापक वण5न
िकया है। इन रचनाओ ं का अिधकांश िह सा राजपद क यो}यता, मह+व एवं कायk के वण5न म8 है। राजा का परम
कत5Oय aया है? उसे िकस कार इसका पालन करना चािहए? आिद B/ के उ&र प> .प से अिं कत है।
उपरो\ िववरण से यह प> होता है िक ाचीन काल म8 त+कालीन राजनैितक सम याओ ं पर न के वल िवचार
हQआ वरन उसका समाधान भी तुत िकया गया। यह उस समय हो रहा था जब पिFम म8 Oयवि थत अ3ययन भी
ारHभ नह9 हQआ था। भारतीय िचतन यथा5तवादी, सं थावादी तथा अिं तम लsय क ािX पर बल देता है।
मHू यांकन

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ु िविवालय 51
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
भारतीय राजनीितक िचतन अ+यत ाचीन है। कुछ िव^ान/ इसे पांच हजार वष5 से भी ाचीन मानते हL। यह
दिु नया क ाचीनतम सAयताओ ं म8 से एक है। य0िप कुछ पिFमी िव^ान/ ने झठू का एक ऐसा आवरण डाला
िजसम8 यह िस( िकया गया िक भारत म8 ाचीन िचतन था ही नह9। जो कुछ भी था वह पाFा+य िचतन के सामने
ठहरता ही नह9। नये शोध/, परु ात+व िवभाग क खोज ने यह िस( कर िदया िक भारत म8 अित ाचीन काल से ही
राजनैितक िचतन न के वल अि त+व म8 है वरन् उसका तर भी काफ अiछा है।
राजनैितक िचतन के ^ारा िकसी भी समाज क राजनैितक Oयव था का न के वल #ान होता है वरन् उसम8 सधु ार
क सभं ावना भी बनी रहती है। राजनैितक िचतन से िव] क घटनाओ ं को समझने क समझ उ+पन होती है। साथ
ही अय देश/ म8 उससे ेरणा लेकर मानव कbयाण का माग5 श त होता है। उदाहरण के िलये .सो के िवचार/ ने
ˆांस क Vाित म8 मह+वपणू 5 योगदान िदया। इसके साथ ही िचतन से नई श@दािलय/ , परभाषाओ ं का भी #ान
होता है।
जहां तक राजनैितक िचतन के hोत का B है तो यह दो तर/ पर पाया जाता है। इसका पहला hोत देशी है तथा
दसू रा hोत िवदेशी है। देशी hोत म8 भारतीय िव^ान/ क रचनाय8, Cथ, महाकाOय आिद है। इसम8 मrु य .प से
वेद, परु ाण, उपिनषद, रामायण, महाभारत तथा िविभन काल खdड/ म8 रिचत िविभन रचनाय8 आती हL। यह सभी
भारतीय िचतन क िदशा को प> करती है। इसके अितर\ िवदेशी hोत भी है। िजनम8 िविभन िवदेशी िव^ान/
के ^ारा समय-समय पर िलखी गई रचनाय8 आती हL। इसम8 मrु य .प से यनू ानी िवचारक/, चीनी िवचारक/ क
रचनाओ ं का योगदान है। इसके अितर\ िशलालेख, मpु ाओ,ं तूप आिद पर िलखी गई रचनाओ ं का अपना
योगदान है। भारतीय िचतन मल ू .प से यथा5त पर आधारत है। इसम8 आ3याि+मकता के त+व िदखाई पड़ते है।
भारतीय िचतन म8 राजनीित से धम5 को अलग नह9 देखा जाता है। इन दोन/ को साथ ही वीकार िकया जाता है।
भारतीय िचतन म8 राजा तथा रा1य का थान सवmiच है। रा1य का काय5:ेZ Oयापक वीकार िकया गया है। इसम8
सदैव सं थाओ ं को मह+व दान िकया गया है। सHपणू 5 भारतीय राजनीितक िचतन न के वल ाचीनतम है वरन् यह
Oयवहारक भी है। यह सामािजक Oयव था का आइना स=य िदखता है जो सामािजक Oयव था के अन. ु प अपना
व.प भी बदलता हQआ िदखायी पड़ता है। इस कार से प> होता है िक ाचीन भारतीय िचतन ने के वल ाचीन
वरन् अ+यत उiच कोिट का है। यह त+कालीन समाज से न के वल भािवत है वरन् आगे आने वाले समाज के
िलये पथ- दश5क का काय5 करता है।
व-मbू यांकन हेतु Bः-
1. ाचीन भारतीय िचतन उiच कोिट का है। स+य/अस+य
2. भारतीय राजनीितक िचतन पाया+य िचतन से ाचीन है। स+य/अस+य
3. tलेटो और अर तू कहां के िवचारक थे?
4. कौिटbय क रचना का aया नाम था?
5. ˆांस क Vाित पर सवा5िधक भाव िकस िवचारक का था?
6. राजनीितक िचतन का ..........................के साथ घिनJ सबं धं होता है।
7. ाचीन भारतीय िचतन के मख
ु hोत aया है?
8. ाचीन भारतीय िचतन के िवदेशी hोत कौन से है?

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9. अ]घोष क रचना का aया नाम है?


10. पािणनी क रचना का aया नाम है?

4.5 सारांश
इस कार से यह प> होता है िक भारतीय िचतन का इितहास अ+यािधक ाचीन है। यह वैिदक काल से ारHभ
होकर भारत म8 इ लािमक शासन तक माना जाता है। य0िप भारतीय िचतन के िवषय म8 पाFा+य समी:को क
=ि> सकारा+मक नह9 रही है। इसके बावजदू भारतीय िचतन न के वल यथा5थवादी हL वरन यह बहQत हद तक
आधिु नक भी है। भारतीय िचतन के के p म8 मानव है। जबिक पाFा+य िचतन के के p म8 मानव नह9 है। इसके
बावजदू मैaसमलू र , डिनंग जैसे पाFा+य समी:क/ ने इसे अOयावहारक व अनपु यु \
ु माना । उ\ आलोचनाय8
उपय\ु नह9 िदखाई पड़ती है। भारतीय िचतन अनवरत मानव उपयोगी रहा है।
भारतीय िचतन के अनेक hोत रह8 है। इसम8 मrु य .प से ाचीन रचनाय8 जैसे वेद,परु ाण,धम5सZू ,उपिनषद,
महाकाOय आिद। इसके अितर\ समय-समय पर िवदेशी िव^ान/ के िववरण ने भी इसम8 मह+वपणू 5 भिू मका अदा
क है। इसके अितर\ अलग-अलग कालखdड/ म8 आई िविभन रचनाओ ं जैसे अथ5शाh, नीितशाh, एवं
शVु नीित ने भी इसम8 योगदान िदया है। ाचीन भारतीय िचतन िशलालेख/, तंभलेख/ , गफ ु ालेख/, एवमं
ताuलेख/ म8 भी परलि:त होता है। भारतीय िचतन धम5 एवमं एवं राजनीित को एक साथ जोड़कर देखता है। इसम8
राजनीित क पिवZता पर बल है। इसम8 आ3याि+मकता पर झक ु ाव है। इसके साथ ही भारतीय िचतन म8 रा1य को
अपरहाय5 माना गया है। भारतीय िचतन म8 शासन एवं शासन के ित Oयावहारक =ि>कोण रखा गया है। इसम8
कठोर दdड क Oयव था िदखाई पड़ती है। भारतीय िचतन म8 राजा के काय5:ेZ को Oयापक माना गया है। उपरो\
िववरण से यह प> होता है िक भारतीय िचतन एकप:ीय परु ातनपंथी एवं अधरू ा नह9 है वरन यह पणू त5
Oयावहारक एवमं आधिु नक है।

4.6 श!दावल$
पाFा+य- पिFमी भभू ाग अथवा पिFम के देश जैसे यनू ान, इ}ं लैdड, ˆांस
औपिनवेिशक कालः- भारत म8 िबिटश शासन के समय को औपिनवेिशक काल कहा जाता है। पवू ा5Cहः- पहले से
िनण5य लेकर (तय करके ) काय5 करना ही पवू ा5Cह कहलाता है।
आदश5वादः- अiछी ि थित , आदश5 ि थित क कbपना करना तथा जो लागू करने म8 मिु कल हो आदश5वाद के
अतग5त आता है।

4.7 अ&यास 
न' के उ तर
1. स+य, 2. स+य, 3. यनू ान, 4. अथ5शाh 5. .सो 6. यथा5तवाद 7. वेद, परु ाण, िशलालेख,
तूप, Cथ,

उराखंड म
ु िविवालय 53
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
8. काइलेaस, मेग थनीज, हवेनसांग, फाहयान , 9. ब(
ु चरत, 10. अ>3यायी

4.8 संदभ) *थ सच


ू ी
1. राव एम0वी0 कृ ;णा, टडीज इन कौिटbया
2. समhे आर0 , कौिटbयस का अथ5शाh
3. परमा+मा शरण, ाचीन भारत म8 राजनीितक िवचार एवं सम याय8
4. वमा5 , वी0पी0, ाचीन भारतीय िचतन
4.9 सहायक/उपयोगी पाठ सामCी
1. वेनी साद, िद टेट इन एनिसएटं इिdडया
2. यामलाल पाdडेय, कौिटbय क राज Oयव था

4.10 नबधा मक 

1. राजनीितक िचतन से aया आशय है? भारतीय ाचीन िचतन के मख
ु hोत बताइए।
2. ाचीन भारतीय राजनीितक िचतन क मख
ु िवशेषताय8 बताइये।
3. ाचीन भारतीय राजनीितक िचतन aया है? यह िकस कार पाFा+य िचतन से िभन है, प> किजये।
4. ाचीन भारतीय राजनीितक िचतन के मह+व पर एक िनबध िलिखये।
5. राजनीितक िचतन से आप aया समझते है? इसके मख
ु चरण/ पर काश डािलये।
6. ाचीन राजनीितक िचतन के िवकास पर िनबध िलिखये।

उराखंड म
ु िविवालय 54
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 5 :
!

इकाई सरं चना


5.1 "तावना
5.2 उ4े5य
5.3 सामाय पLरचय
5.3.1 राय क$ उपि: संबंधी िवचार
5.3.2 राजा सबं धं ी िवचार
5.3.3 शासन संबधं ी िवचार
5.3.4 "ादेिशक शासन संबंधी िवचार
5.3.5 िवधाियका संबंधी िवचार
5.3.6 काननू , याय एवं दWड संबंधी िवचार
5.3.7 कर Oयवथा संबंधी िवचार
5.3.8 िवदेश नीित: मWडल िस!ात, षाड़गWु य नीित
5.4 मनु एवं कौिटHय: एक तल ु ना
5.5 मHू यांकन
5.6 सारांश
5.7 शAदावली
5.8 अBयास "C9 के उ:र
5.9 सदं भ Dथ सचू ी
5.10 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
5.11 िनबधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 55
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

5.1 तावना

इससे पहले क इकाई ४ म8 हमने ाचीन भारतीय राजनीितक िचतं न के बारे म8 अ3ययन िकया है |िजसम8 यह यह
प> होता है िक भारतीय िचतन का इितहास अ+यािधक ाचीन है। यह वैिदक काल से ारHभ होकर भारत म8
इ लािमक शासन तक माना जाता है। य0िप भारतीय िचतन के िवषय म8 पाFा+य समी:को क =ि> सकारा+मक
नह9 रही है। इसके बावजदू भारतीय िचतन न के वल यथा5थवादी हL वरन यह बहQत हद तक आधिु नक भी है।
इस इकाई म8 हम मनु के रा1य क उ+पि& संबंधी िवचार तथा राजा और उसके शासन के सHबध म8 िजसम8
ादेिशक शासन का अ3ययन कर8 गे |यही नह9 इसके आगे हम मनु के िवधाियका सबं धं ी िवचार,काननू , याय एवं
दdड और कर Oयव था के सHबध म8 अ3ययन करते हQए िवदेश नीितका भी अ3ययन कर8 गे |अतं तः हम मनु एवं
कौिटbय का तल ु ना+मक अ3ययन ततु कर8 गे |

5.2 उे

इस इकाई के अययन के उपरा!त हम मनु के -
1.रा1य क उ+पि& संबंधी िवचार का अ3ययन कर सक8 गे |
2. राजा और उसके शासन के सHबध म8 िजसम8 ादेिशक शासन का अ3ययन कर8 गे |
3.िवधाियका संबंधी िवचार,काननू , याय एवं दdड और कर Oयव था के सHबध म8 अ3ययन
4.िवदेश नीित का भी अ3ययन कर8 गे |
5.मनु एवं कौिटbय का तुलना+मक अ3ययन कर8 गे |

उराखंड म
ु िविवालय 56
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

5.3 सामाय परचय


ाचीन भारतीय िचतन म8 सवा5िधक मह+वपणू 5 िचतन मनु का माना जाता है। उह/ने अपनी रचना ‘‘मन ु मृित’’ म8
राजनीितक िचतन ततु िकया है। िविभन िव^ान इस बात को वीकार करते हL िक धम5 िवषयक सम त #ान मनु
के ^ारा ारHभ िकया गया। ”मनु मृित” को िहदं ू समाज क Oयव था क आधारिशला माना जाता है। ाचीन
धम5शाh/ म8 मनु मृित का सवा5िधक मह+व है।
”मनु मृित” के रचना काल के सदभ5 म8 िव^ान/ म8 मतैOय नह9 है। महाभारत म8 भी कई थान/ पर मनु का उbलेख
आता है। डा0 वी0सी0 सरकार ”मन ु मृित” को ईसा से 150 वष5 पवू 5 क रचना मानते हL। मैaस मल ू र इसे चौथी
शता@दी के बाद क रचना मानते हL। डा0 हdटर इसे ईसा से 600 वष5 पवू 5 से अिधक ाचीन नह9 मानते हL। कुछ
िव^ान इसे रामायण एवं महाभारत काल क रचना मानते हL। ˆांसीसी िव^ान रे नेिगनो मनु श@द को ऐितहािसकता
से जोड़ने के प:धर नह9 हL। उनका मानना है िक मनु क उ+पि& मल ू धातु मन से हQई है िजसका अथ5 है िचतन,
मनन और साव5भौम बिु ( तथा िवचार। मन धातु से ही मनु तथा मानव क उ+पि& हQई है। रे नेिगनो का मत है िक
िजस कार वेद क रचना का काल िनधा5रत नह9 है उसी कार मृित क उ+पि& के संबंध म8 यास भी िनरथ5क
है। मृितया एक लHबे काल तथा परHपरा का ितिनिध+व होता है। कुछ िव^ान/ का मत है िक मनु मृित का #ान
मनु से नारद, नारद से माक5 dडेय, माक5 dडेय से समिु त भाग5व, समिु त भाग5व से भृगु ऋिष को ाX हQआ। भृगु ऋिष के
^ारा ही मन ु मृित का सक
ं लन हQआ।
इसके रचना काल के संदभ5 म8 मतभेद अवय है परतु एक िविध Cथ, िनयामक Cथ के .प म8 इसक मायता पर
सव5सHमित है। भारत म8 गौतम एवं वृह पित ने इसको सव5WेJ बताया। जम5न िव^ान ने तो एक थान पर पर िलखा
है िक ‘‘मनु मृित बाइिबल क अपे:ा कह9 अिधक अनपु म उ+कृ > और बौि(क Cथ है।’’ मैकेजी ‹ाउन के
श@द/ म8 ‘‘ यह िहदू काननू का सवा5िधक ाचीन Cथ है।’’
”मनु मृित” क िवषय व तःु - मनु मृित म8 कुल 12 अ3याय है। ”मनु मृित” का अ3यायवार िववरण इस कार
है-
1. थम अ3यायः- जगत क उ+पित, भू लोक, अतं र: #ान, नदी, समpु उ+पित, चार वग5 उ+पित, hी प.
ु ष
उ+पित आिद। कुल 111 से 119 ƒोक तथा संि:X मृित सचू ी पायी जाती है।
2.ि^तीय अ3यायः- धमmपदेश, Wृित, मृित म8 कहे धम5 क शंसा, सदाचार, य#, सं कार , माता-िपता, चार/
आWम का वण5न है।
3.तृतीय अ3यायः- हाचय5 क मिहमा, गृह थ कत5Oय, य# क मिहमा आिद का वण5न है।
4.चत5ुथ अ3यायः- मन;ु य के िन+यकमk का वण5न है, करने तथा न करने यो}य कायk का वण5न।
5.पच
ं म अ3यायः- hी सबं धं ी Oयाrया, अय िश:ाओ ं का उbलेख है।
6.ष>म अ3यायः- वान थ क अव था, वान थ क मिहमा, सयास आWम आिद का वण5न।
7.सXम अ3यायः- राज Oयव था, शासन के िनयम, रा1य क उ+पित, दdड क उ+पित, कर तथा सेना सबं धं ी
िनयम/ का उbलेख है।
8.अ>म अ3यायः- दdड के िनयम, दdड से पवू 5 छानबीन, अपराध/ के िलये िदये जाने वाले दdड/ का िववरण है।

उराखंड म
ु िविवालय 57
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
9.नवम,् दशम तथा }यारहव8 अ3यायः- वैय, शpू / म8 धम5 का अनJु ान, कार वण5 सं कार/ क उ+पित आिद का
वण5न है।
10.बारहव8 अ3यायः- मो: ािX के साधन, िविभन कायk के गणु -दोष पाखdड, गणु -दोष आिद का वण5न है।
5.3.1 राय क$ उपित िवचार
”मनु मृित” के सातव8 अ3याय म8 रा1य संबंधी िवचार तुत िकये गये हL। इसी म8 रा1य क उ+पित एवं साOयवी
िस(ात तुत िकये गये हL। मनु ने रा1य क उ+पित ई]र के ^ारा मानी है। इसम8 कई जगह सामािजक अनंबु ध
िस(ात का भी आभास िदखता है।
मनु प> करता है िक रा1य के पवू 5 मानव क ि थित, क>पणू ,5 असहनीय थी। इस क> के िनवारण के िलये ई]र
इp, वाय,ु सयू 5, अि}न, व.ण, चpमा, कुबेर, यम आिद ने सारभतू अश ं से राजा का िनमा5ण िकया । इन आठ
उ+कृ > त+व/ से िमलकर राजा ने न के वल मानव दख ु / को दरू िकया वरन् उनके कbयाण को सिु निFत िकया। इन
आठ त+व/ से बना राजा िव] र:क, पोषक, समृि(कारक होता है। िनिFत .प से मनु रा1य क उ+पित के दैवीय
िस(ात का पोषक है परतु उसके इस िस(ात म8 सामािजक समझौते के िस(ात क झलक भी िदखती है। राजा
सवmiच है, वह ही सभी के कbयाण का मा3यम है। “मन ु मृित” म8 राजा का यह दािय+व है िक वह इस भिू म पर
सभी िदशाओ ं म8 शंित और Oयव था कायम रखे।
मनु का दैवीय उ+पित का िस(ात तथा पाFा+य दैवीय उ+पित के िस(ात म8 अतं रः- ायः मनु के दैवीय उ+पित के
िस(ात क तल ु ना पाFा+य दैवीय उ+पित के िस(ात से क जाती है। इन दोन/ म8 काफ अतं र िदखता है। पाFा+य
िव^ान/ ने दैवीय उ+पित के िस(ात के ^ारा राजा को िनरंकुश स&ा दान क है।
मनु राजा को िनरंकुश स&ा का प:धर नह9 है। मनु ने राजा को धम5, नैितकता के अधीन रखा है। उसने इस बात पर
बल िदया है िक राजा सदा जा का पालन करे तथा उसक र:ा करे । राजा को देव का अश ं बताया गया परतु
इसम8 उसके गणु / पर यो}यता पर बल िदया गया है न िक उसके अिधकार, शि\य/ एवं मनमानी पर है। यहां पर
मोरबानी का कथन ासंिगक लगता है िक - ‘‘राजा को समझना चािहए िक वह धम5 के िनयम/ के अधीन है। कोई
भी राजा धम5 के िव.( Oयवहार नह9 कर सकता है। धम5 राजाओ ं एवं मन;ु य/ पर एक समान ही शासन करता है।
इसके अितर\ राजा राजनीितक भु जनता के भी अधीन है। वह अपनी शि\य/ के योग म8 जनता क आ#ा
पालन क :मता से सीिमत है।
सालेटोर के श@द/ म8-‘‘ मनु ने िनःसंदहे यह कहा है िक जनता राजा को गी से उतार सकती है और उसे मार भी
सकती है। यिद एवं अपनी मख ू त5 ा से जनता को सताता है।’’
मनु ने प> िकया है िक राजा सभी िनयम/ एवं काननू / से बंधा है। वह िविश> है परतु साधारण मन;ु य/ क तरह
दdड भोगता है। उसका कहना है िक यिद िकसी अपराध म8 दdड एक पण है तो राजा के भगं करने पर उसे सौ पण
दdड िदया जाना चािहए aय/िक राजा अिधक िव^ान एवं यो}य है। इसके अितर\ राजा का िश:ण, िदनचया5
उसे िनरंकुशता क ओर नह9 जाने देते हL।
इस कार से प> हो जाता है िक दैवीय उ+पित िस(ात अपनाये जाने के बावजदू भी मनु का राजा िनरंकुश,
वेiछाचारी तथा अ+याचारी नह9 है। उसके ऊपर काननू , नैितकता एवं मया5दा का िनयZण है।
5.3.2 राजा संबंधी िवचार

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ु िविवालय 58
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मनु ने राजा को अनेक राजाओ ं के सारभतू अश
ं से िनिम5त बताया है। राजा ई]र से उ+पन है अतः उसका अपमान
नह9 हो सकता है। राजा से ^ेष करने का अथ5 है िक वयं को िवनाश क ओर ले जाना। “मनु मृित“ म8 तो यहां
तक िलखा है िक राजा म8 अनेक देवता वेश करते हL। अतः वह वयं एक देवता बन जाता है। “मनु मृित“ के
अनसु ार-‘‘ऐसा राजा इp अथवा िव0तु के समान ए]य5क&ा5, पवन के समान सबके ाणावत, ि य तथा ‡दय क
बात जानने वाला, यम के समान प:पात रिहत यायधीश, सयू 5 के समान याय, धम5 तथा िव0ा का काश, अि}न
के समान द>ु / को भ म करने वाला, व.ण के समान द>ु / को अनेक कार से बांधने वाला, चp के समान WेJ
प.
ु ष/ को आनद देने वाला तथा कुबेर के समान कोष भरने वाला होना चािहए।’’
मनु ने राजा के गणु / एवं कत5Oय/ का िव तृत िववरण ततु िकया है। वह कहता है िक राजा को जा तथा
ा‡मण/ के ित िवशेष .प से सवं ेदनशील रहना चािहए। राजा को अपने इिpय/ पर िनयZण रखना चािहए। उसे
काम, Vोध आिद से म\ ु रहना चािहए। ”मनु मृित” म8 प> िकया गया है िक उसे िशकार, जआ
ु , िदवाशयन,
परिनदा, परhी ेम, म0पान, नाच-गाना, चगु लखोरी, ई;या5, परिछpावेषण, कटुवचन,धन का अपहरण आिद से
बचना चािहए। मनु मृित म8 राजा के िलये मrु य िनदnश िनHन हL-
1.वह शh धन, धाय, सेना, जल आिद से परपणू 5 पव5तीय दगु 5 म8 हर कार से सरु ि:त िनवास करे तािक वह
शZओु ं से बच सके ।
2.राजा वजातीय और सव5गणु सHपन hी से िववाह करे ।
3.राजा समय-समय पर य# का आयोजन करे और ा‡मण/ को दान करे ।
4. जा से कर वसल ू ी ईमानदार एवं यो}य कम5चारय/ के ^ारा िकया जाना चािहए। जा के साथ राजा का संबंध
िपता-पZु क तरह होना चािहए।
5.राजा को य(
ु के िलये तैयार रहना चािहए। य(
ु म8 मृ+यु से उसे वग5 क ािX होगी।
6.िविभन राजकय कायk के िलये िविभन अिधकारय/ क िनयिु \ क जाय।
7.राजा को िव तारवादी नीित को अपनाना चािहए।
8.अपने सैय बल एवं बहादरु ी का सदैव दश5न करना चािहए।
9.गोपनीय बात/ का गोपनीय बनाकर रखना चािहए। शZओ
ु ं क योजनाओ ं को समझने के िलये मजबतू गXु चर
Oयव था रखनी चािहए।
10.अपने मंिZय/ को सदैव िव]ास म8 रखना चािहए।
11.राजा सदैव सत5क रहे। अिव]सनीय पर िबbकुल िव]ास न करे और िव]सनीय पर पैनी िनगाह रखे।
12.राजा को रा1य क र:ा तथा शZु के िवनाश के िलये त+पर रहना चािहए।
13.राजा को अपने कम5चारय/, अिधकारय/ के आचरण क जांच करते रहना चािहए। गलत पाने पर उनको
पदiयतु कर देना चािहए।
14.राजा को मृदभु ाषी होना चािहए।

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ु िविवालय 59
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मनु ने राजा क िदनचया5 का भी वण5न िकया है। उसने सHपणू 5 िदन को तीन भाग/ म8 बांटकर +येक के िलये अलग-
अलग काय5 िनधा5रत िकये हL। राजा को नान एवं 3यान के बाद ही याय का काय5 करना चािहए। राजकायk के
संबंध मे अपने मंिZय/ के साथ तथा िवदेश मामल/ म8 अपने गXु चर/ एवं राजदतू / के साथ परामश5 िनयिमत .प से
करना चािहए। ”मनु मृित” म8 राजा के गितशील जीवन क चचा5 क गई है। इसम8 राजा को सदैव सजग और
सावधान रहने क आशा क जाती है।
य(
ु एवं सक ं ट के समय राजा के काय5ः- मनु मृित म8 य(
ु के समय राजा के कत5Oय/ पर काश डाला गया है। इसम8
प> िकया गया है िक य( ु के समय राजा को भयभीत नह9 होना चािहए और परू ी तैयारी और मनोबल के साथ
शZु का सहं ार करना चािहए। यह राजा का धम5 है िक वह शZु का सहं ार कर मातृभिू म क र:ा कर8 । ”मनु मृित” म8
प> िकया गया है िक शांित के समय जा के धाय का छठा-आठवां भाग ाX करे परतु य( ु के समय वह चौथा
भाग भी ाX कर सकता है। आपातकाल म8 राजा ^ारा अितर\ कर लेना कोई पाप नह9 है।
5.3.3 शासन संबधं ी िवचार
मनु के अनसु ार शासन का मrु य उेय धम5, अथ5, काम क ािX म8 सहायक होना है। अतः राजा को अपने
सहयोिगय/ के मा3यम से (मिं Zय/) इस उेय क ािX के िलये सदैव य+नशील रहना चािहए। मनु मृित म8 प>
िकया गया है िक राजा को सदैव लsय/ को ाX करने का यास करना चािहए, जो ाX हो गया है उसे सरु ि:त
रखने का यास करना चािहए। राजकोष को भरने का सदैव यास करना चािहए। समाज के कमजोर एवं सपु ाZ
लोग/ को दान करना चािहए। राजा को जा के साथ पZु वत वता5व करना चािहए तथा रा;<िहत म8 कठोर भी हो
जाना चािहए। राजा को यायी, िस(ाति य तथा मातृभिू म से ेम करने वाला होना चािहए।
राजा को राजकाय5 म8 सहायता देने के िलए मंZीय/ क Oयव था है। ”मनु मृित” म8 ‘‘मंZी’’ श@द का योग नह9 है
परतु सिचव श@द का योग कई बार िमलता है। मनु मृित म8 कहा गया है िक अके ले आदमी से सरल काम भी
मिु कल हो जाता है। अतः शासन के जिटल कायk के िलये मंZी िनय\ ु िकये जाने चािहए। वे िव^ान,
कत5Oयपरायण, शाh#ाता, कुलीन तथा अनभु वी होने चािहए।
वह शासन काय5 म8 एकांत म8 तथा अलग-अलग तथा आवयकतानसु ार सयं \ ु मZणं ा करनी चािहए। मिं Zय/ को
उनक यो}यतानसु ार काय5 सŒपना चािहए। यहां पर मनु प> करता है -‘‘सरू , द: और कुलीन सद य को िव&
िवभाग, शिु च आचरण से य\ ु Oयि\ को र+न एवं खिनज िवभाग, सHपणू 5 शाh/ के #ाता मनोवै#ािनक,
अतःकरण से श( ु तथा चतुर कुलीन Oयि\ को संिध िवCह िवभाग का अिधJाता बनाया जाना चािहए।
मंिZपरषद के अमा+य नामक Oयि\ का दdड िवभाग, सेना िवभाग तथा राजा को रा;< एवं कोष अपने अधीन
रखना चािहए। इनम8 से वह ा‡मण/ को िवशेष मह+व देने पर बल देता है। उसका मत है िक -‘‘ इस पृjवी पर जो
कुछ भी है वह ा‡मण ही है। ा‡मण ‡मा का 1येJ एवं WेJ पZु है।’’ मनु क मायता है िक मZंणा अ+यत
गोपनीय होनी चािहए। वह इसके िलए म3या‡न अथवा आधी रात को इसके िलये उपय\ ु मानता है। ”मनु मृित”
से यह भी पता चलता है िक उस समय मZं ीय/ का राजा के ित उ&रदािय+व, मZंणा क गोपनीयता िमलकर िनण5य
लेने क भावना तथा मंZीय/ म8 िवभाग/ के बंटवारे क Oयव था िवकिसत हो गई थी। शासिनक कायk के संचालन
के िलये वह यो}य, अनभु वी तथा ईमानदार कम5चारी क िनयिु \ का प:धर है। > अिधकारय/ पर पैनी िनगाह
रखते हQए उनके िव.( कठोर काय5वाही करने चािहए। कम5चारय/ एवं मह+वपणू 5 पदािधकारय/ पर नजर रखने के
िलये गXु चर Oयव था को भावी बनाया जाना चािहए। राजदतू के सबं ंध म8 मनु ने प> िकया है िक िनभfक कृ ित

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ु िविवालय 60
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
के , सवु \ा,देश काल पहचानने वाले, ‡दय एवं मनोभाव को पहचानने वाले, िविवध िलिपय/ के #ाता तथा
िव]ासपाZ को राजदतू बनाया जाना चािहए।
5.3.4 "ादेिशक "शासन सबं धं ी िवचार
मनु ने शसिनक Oयव था सबं धं ी िनदnश अपनी प ु तक ”मनु मृित” म8 िदये है। मनु का प> मत है िक राजा दो,
तीन, पांच और सौ गांव/ के बीच अपना राज थान थािपत कर8 तथा यहां शित और Oयव था बनाये रखने के
िलये यो}य कम5चारी िनय\ ु करे । ”मनु मृित” म8 रा1य को :ेZीय आधार पर परु तथा रा;< को िवभािजत िकया
गया है। परु या दगु 5 से आशय राजधानी से है जो चार/ ओर से सरु ि:त सिु वधाओ ं से पणू 5 तथा व थ भ-ू भाग म8
बसाई जानी चािहए। शासन को Oयवि थत .प से सच ं ािलत करने के िलये रा;< को छोटी-बड़ी बि तय/ म8
िवभािजत करना चािहए। ”मनु मृित” मे प> .प से एक Cाम, दस Cाम, सौ Cाम तथा एक हजार Cाम/ क
अलग-अलग सगं ठन/ क Oयवथा है। Cाम शासन क सबसे छोटी इकाई है इसके अिधकारी को Cािमक कहा
जाता है। मनु के अनसु ार Cािमक का मrु य काय5 शित और Oयव था बनाये रखना है। इसको ही राज व एकZ कर
10 Cाम/ के अिधकारी के पास भेजना है। 10 Cाम/ के अिधकारी को दशCामपित कहा जाता है। बीस Cाम के
अिधकारी को िवशतं ी, सौ Cाम/ के अिधकारी को शती, तथा एक हजार Cाम/ के पित को सहhपित कहा गया है।
इन सभी अिधकारय/ के कायk के िनरी:ण उiच अिधकारी करता है। +येक अिधकारी के वेतन का भी उbलेख
मनु मृित म8 िमलता है। Cाम/ के अितर\ नगर/ के शासन क भी Oयव था क गई है। नगर अिधकारी को वाथ5
िचतक नाम िदया गया है।
5.3.5 िवधाियका (पLरषद)
मनु ने काय5पािलका के साथ ही िवधाियका अथवा परषद का उbलेख िकया है। परषद का अथ5 िवधाियका से
िलया जाता है। मनु मृित म8 प> िकया गया है िक परषद म8 तीन से दस तक सद य होने चािहए। इन सद य/ म8 से
तीन वेद/ के जानकार होने चािहए। वेद/ क जानकारी के साथ रा;<ीय नीितय/ को िVयािवत करने क :मता भी
होनी चािहए। यहां पर मोरवानी का कथन मह+वपणू 5 है- ‘‘परषद ऐसे िव^ान Oयि\य/ से िमलकर बननी चािहए
िजहोने वेद/, टीकाओ ं का अ3ययन िकया हो जो अपने तकk के संबधं म8 माण देने म8 स:म हो।’’
मनु मृित म8 कुल, जाित, Wेणी और जनपद नामक जनता क संघीय सं था का भी उbलेख िकया। इसम8 यह भी
बताया गया है िक इन सं थाओ ं ^ारा बनाये गये िनयम/ को वह वीकृ ित दान करे ।
5.3.6 काननू -याय एवं दWड Oयवथा
मनु मृित म8 सदैव राजा के यायपणू 5 आचरण पर बल िदया गया है। याय ही दdड का आधार है। मनु का यह
मानना था िक दdड के भय के कारण ही लोग ि थर रहते है। मनु का कहना है िक राजा का यह कत5Oय है िक वह
देश, काल, अपराध क गणु ता आिद पर िवचार करके ही अपरािधय/ को दdड देना चािहए। मनु का मानना है िक
राजा दdड के भय से ही शासन करता है। यिद राजा अपरािधय/ को दdड न दे तो बलवान लोग दबु ल 5 / को वैसे ही
पकाने लगेग8 जैसे मछिलय/ को लोहे क छड़ म8 छे दकर पकाया जाता है। राजा का यह परम कत5Oय है िक वह रा1य
म8 यायोिचत दdड क Oयव था कर8 । राजा को सदैव त+पर रहते हQए कुल, जाित, गण और जनपद म8 जो भी अपने
धम5 से िवचिलत हो तो राजा उह8 यथोिचत दdड क Oयव था करता है। मनु ने दdड के चार कार बताये है-
1. िघ}दdड
2. वा}दdड

उराखंड म
ु िविवालय 61
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3. धनदdड
4. वधदdड
मनु ने दdड क मह&ा पर बहQत अिधक बल िदया है। उसक मायता है िक दdड के अभाव म8 रा1य एक :ण भी
नह9 चल सकता है। मनु दdड को सामािजक जीवन का आधार मानता है। वह दdड के मह+व को िनHन तकk के
^ारा िस( करता है-
1.दdड सभी मन;ु य/ का र:क होता है। यही कारण है िक सभी उसका पालन करते है।
2.यह सवmiच एवं सव5शि\मान होता है।
3.दdड क सHपणू 5 सामािजक Oयव था क र:ा एवं देखभाल करता है।
4.दdड रा1य क संपित क र:ा तथा वृि( के िलये अिनवाय5 है।
दdड के सबं धं म8 मनु प> करता है िक यह सवmiच एवं सव5शि\मान त+व है। अतः दdड देने वाला Oयि\ रा1य म8
सवmiच होता है। ाचीन भारतीय सािह+य म8 Oय\ दdड सबं धं ी िवचार को ही सH भतु ा का आधार कहा जाता है।
कानून अथवा िविध सबं ंधी िवचार
मनु ने काननू िनमा5णके िलये परषद अथवा िवधाियका का उbलेख िकया है। परषद के सदभ5 म8 उसका प> मत
है िक इसका िनधा5रण बौि(क :मता से होना चािहए न िक संrया के आधार पर। उसने प> िकया है िक इसके
दस सद य/ म8 तीन वेद के #ाता, एक िनव5\ा, एक भीमांसाकर, एक िनस\, एक धम5 शाh का कहने वाला तथा
तीन Oयि\ मrु य Oयवसाय/ के होने चािहए। मनु यह भी प> करता है िक यिद ऐसे दस Oयि\ न िमले तो यो}य
वेद/ के जानकार तीन Oयि\ ही काफ है।
&याय सबं धं ी िवचार
मनु मृित म8 याय Oयव था का िव तृत िववेचन िकया जाता है। मनु के अनसु ार सामायतः दो कार के िववाद
होते हL - िहसं ा के कारण उ+पन िववाद तथा धन संबंधी िववाद। मनु का मानना है िक राजा को वंय िववाद/ का
समाधान करना चािहए। यिद वह वंय न कर पाये तो यो}य ा‡मण को िनय\ ु िकया जाना चािहए। राजा ^ारा
िनय\ु ा‡मण भी ऐसे तीन अय Oयि\य/ के साथ यायालय म8 याय करना चािहए। मनु अपे:ा करता है िक
सभी िववाद/ का िनण5य पणू 5 िन;प:ता से करना चािहए। यिद स+य अस+य से परािजत होती है तो उसके सद य भी
पाप से न> हो जाते है। मनु क प> मायता थी िक यायधीश वेद/ का जानकार ा‡मण Oयि\ को ही होना
चािहए। शpू / को यह मह+वपणू 5 दािय+व नह9 देना चािहए। यायधीश/ को शारीरक भाषा, मख ु संकेत तथा
मनोिव#ान समझने क :मता रखनी चािहए। जहां पर िनण5य हो उस थान का सभा कहा जाता है। सभा के
यायधीश को स+य क र:ा के िलये =ढ़ ित# होना चािहए। स+यता क जांच करने के िलये िलिखत यिु \ तथा
सा:ी आिद का परी:ण करना चािहए। मनु ने माण/ को भी दो भाग/ म8 बांटा है-
1. मानषु माण
2. िदOय माण
मानषु माणः- मनु ने मानषु माण को तीन भाग/ म8 बांटा है। ये मrु य .प से िलिखत, यिु \ तथा सा:ी होते है।
मनु आगे प> करते है िक िलिखत माण/ को सवा5िधक मह+व होता है। इसम8 भी यह देखना चािहए िक बलपवू 5क

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ु िविवालय 62
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तो कोई िलिखत माण तैयार नह9 कराया गया है। मनु क प> मायता थी िक झठू बोलने वाले, सेवक, शZ,ु
सयासी, कोढ़ी के ऊपर िव]ास नह9 करना चािहए। साsय से पवू 5 शपथ का िवधान रखना चािहए। िमjया साsय
देने वाल/ को कठोर दdड देना चािहए। hी के िलये hी सा:ी को वीकार करना चािहए। गवाह के .प म8 ा‡मण
गवाह को िवशेष मह+व देना चािहए। यिु \ माण के संबंध म8 मनु कहता है िक यिद िकसी Oयि\ क िकसी चीज
को कोई 10 वष5 से अिधक समय से भोग कर रहा है तो वह व तु उसी क हो जायेगी। इस संबंध म8 यह ज.र
कहता है िक संबंिधत मामला बालक तथा पागल का नह9 होना चािहए।
िदOय माणः- िदOय माण म8 शपथ लेन,े जल म8 डूबना, जलती अि}न को Cहण करना आिद सिHमिलत िकये गये
है। यह माण तभी ासिं गक होते है जब मानषु माण िवफल हो जाते है। मनु म8 याियक पनु रावलोकन के त+व भी
िमलते है। वह यह प> करते है िक यिद राजा को लगे िक याय गलत हो गया है तो वह िववाद का पनु ः
अवलोकन कर सकता है।
5.3.7 कर Oयवथा संबधं ी िवचार
करारोपण के संबंध म8 भी मन ु मृित म8 Oयापक Oयव था क गई है। मनु भी जा के साथ पZु वत संबधं रखने का
िहमायती था। उसक मायता थी िक जा से थोड़ा-2 कर ही लेना चािहए। वह प> करता है िक कर न लेने से
राजकोष खाली होता है और रा1य कमजोर होता है वही अ+यािधक, दमनकारी कर नीित से जा क जड़ तथा
िव]ास घटता है। कर का िनधा5रण सदैव यायपणू 5 होना चािहए। वह कहता है िक कर लगाने का उेय िवलािसता
नह9 वरन् जनकbयाण होना चािहए।
मनु मृित म8 कर क माZा का भी प> उbलेख िकया गया है। मनु के अनसु ार पशु एवं वण5 का 50 वां भाग, धाय
का छठां भाग, आठवा और बारहवां भाग लेना चािहए। उसक मायता थी िक अ+यािधक वृ(, लंगड़े तथा अधं /
से कर नह9 लेना चािहए। वह प> करता है िक कारीगर/, Wिमक/, बोझा ढोने वाल/ से एक महीने म8 एक िदन का
काम लेना चािहए। जा से कर के .प म8 ली जाने वाली सामCी को उसने बिल कहा। Oयापारय/ से िलया जाने
वाला कर शbु क कहलाया। िकसी Oयि\ से िलया गया आिथ5क दdड अथवा जमु ा5ना दdड कहलाया। उसने इसके
अितर\ संतरण कर, पशक ु र, आयकर का भी उbलेख िकया है।
5.3.8 िवदेश नीित संबंधी िवचार
मनु ने िवदेश नीित संबंधी दो मख
ु िस(ात/ का ितपादन िकया। ये मख
ु िस(ात िनHन है-
1.मdडल िस(ातः- मनु के अनसु ार राजा को मह+वाकां:ी होना चािहए। उसे सदैव अपनी सीमाओ ं के िव तार के
सबं धं म8 सोचना चािहए। इस उेय क ािX के िलये राजा को सदैव मdडल िस(ात के अनसु ार आचरण करना
चािहए। मनु के मdडल िस(ात का के p िबदु ‘‘िवजीगीषु राजा’’ होता है।
मनु ने रा1य मdडल क चार मल ू कृ ितयां बतायी है। जो राजा िविजगीषु राजा क सीमा के पास रहता हो,
िविजगीषु तथा उसके िवरोिधय/ म8 संिध होने पर अनCु ह करने म8 तथा िवरोध होने पर दिdडत करने म8 समथ5 हो वह
राजा म3यम है। जो िविजगीषु तथा म3यम राजाओ ं के म3य एकमत होने पर अनCु ह करने तथा िवरोध करने पर
िनCह करने म8 समथ5 हो तो वह राजा उदासीन है। शZु राजा तीन कार के होते है- सहज शZ,ु कृ िZम शZु , रा1य
क भिू म के पा]5वतf शZ।ु

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ु िविवालय 63
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मनु प> करता है िक िविजगीषु राजा का चािहए िक वह शZु राजाओ ं से अलग-अलग या िमलकर साम, दाम,
दdड, भेद से उनको अपने वश म8 करे । राजा को सदैव यह यास करना चािहए िक वह शZओ ु ं क किमय/ को पता
कर अपनी तैयारी करे । साथ ही वह सHपणू 5 तैयारी को गोपनीय बनाकर रखने पर बल देता है।
2.षाड़गdु य नीितः- मनु क यह मायता है िक राजा को छः नीितय/ का पालन करते हQए न के वल अपने रा1य क
र:ा करनी चािहए वरन् सीमाओ ं का िव तार भी करना चािहएं वह साम, दाम, दdड, भेद के ^ारा रा;<िहत म8 वृि(
पर बल देता है। इसके िलये उसे िनHन छः नीितय/ को अपनाना चािहए-
1. संिध
2. िवCह
3. यान
4. आसन
5. ^ैधीभाव
6. सWयं
इन छः नीितय/ का पालन मौके , परि थितय/ के अनसु ार करना चािहए। राजा को ऐसे सभी उपVम/ का योग
करना चािहए िजससे शZु म3यम तथा उदासीन राजाओ ं क संrया न बढ़ सके । इनक संrया बढ़ने से िमZ के शZु
होने तथा पराधीन होने क संभावना बढ़ जाती है।
मनु क मायता है िक शंितकाल म8 राजा को राजदतू के मा3यम से संबंध संचालन एवं िमZता को ाX करने का
यास करना चािहए। राजदतू के ऊपर ही दो रा1य/ के बीच अiछे संबंध बनाने क िजHमेदारी होती है। अतः
राजदतू क िनयिु \ म8 यो}यता, शाh/ का #ान, वाकपटुता तथा देश ेम जैसे गणु / पर 3यान देना चािहए। मनु के
श@द/ म8 - ‘‘राजा को साम, दाम, दdड, भेद का नीित का योग करके अपने रा1य का िव तार करना चािहए। इस
काय5 के िलये य(
ु को अिं तम िवकbप के .प म8 योग म8 लाना चािहए।
मनु का षाड़गdु य नीित का ावधान आपातकाल के िलये िकया गया है। सामाय काल म8 राजा से अपे:ा है िक
वह कूटनीित के ^ारा िहत सवं ध5न करे । मनु ने यह भी प> िकया है िक िवजेता राजा ^ारा परािजत राजा के साथ
मानवीय Oयवहार करना चािहए। िवजेता राजा के ^ारा परािजत लोग/ के रीित-रवाज, मया5दाओ,ं परHपराओ ं का
सHमान िकया जाना चािहए। िकसी यो}य Oयि\ को वहां का राजा िनय\ ु कर देना चािहए। उससे सिं ध कर उसको
िमZ बना लेना चािहए।

5.4 मनु और कौIटJय के बीच तल


ु ना
मनु और कौिटbय ाचीन भारत के मख ु राजनीितक िवचारक थे। उनके िवचार/ म8 अनेक िबदओ ु ं पर समानता
तथा अनेक िबदओ ु ं पर असमानता िदखायी पड़ती है। दोन/ ही िव^ान ाचीन भारतीय परHपराओ ं रीितय/ एवं
वणा5Wम Oयव था को वीकार करते हL। दोन/ ही ा‡मण/ को ऊंचा थान एवं कम सजा का ावधान क
Oयव था करते है। कौिटbय सृि> के सृजन के सHबध म8 प> मत नह9 रखता परतु मनु का मत है िक ा‡मण/ का
जम ‡मा के मख ु से, :िZय/ क उ+पित उनक भजु ाओ ं से, वैय/ क उ+पित उनके पेट से हQई है। दोन/ मानव

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जीवन का मrु य उेय धम5, अथ5, काम तथा मो: मानते है। दोन/ ही दdड नीित को वीकार करते है। मनु के
अनसु ार दdड ही राजा है। रा1य क उ+पित के संबंध म8 दोन/ के िवचार समान है। मनु दैवीय उ+पित के िस(ात को
तो मानता है परतु उसम8 समझौते क झलक िमलती है। कौिटbय भी उ+पित के संबंध म8 समझौतावादी िस(ात
वीकार करता है। दोन/ ही सावयवी िस(ात (Organic Theory), को वीकार करते हQए रा1य .पी शरीर के
सात अश ं बताये है। इनम8 वामी, अमा+य, जनपद, दगु 5, कोष, दdड और िमZ मख ु हL। दोन/ ही राजतZ को WेJ
शासन माना है। वे रा1य को सव5 स&ाधारी बताते है। दोन/ क रा1य का समान लsय मानते हL। दोन/ ने शासन म8
मंिZय/ क भिू मका को वीकार िकया है। मिं Zय/ क यो}यता के सबं ंध म8 दोन/ के िवचार समान है। कौिटbय ने
राजनीितक Oयव था पर अपनी प ु तक अथ5शाh म8 Oयापक Oयाrया क परतु मनु ने इतनी Oयापक Oयाrया नह9
क। दोन/ ने दdड Oयव था म8 ा‡मण/ को कम दdड देने क वकालत क है। कर Oयव था पर दोन/ के िवचार
समान है। वे कर जन कbयाण के िलये लगाने पर बल देते थे। अतरा5;<ीय मामल/ अथवा िवदेश नीित के संचालन
म8 दोन/ ही षाड़गdु य नीित तथा मdडल िस(ात का ितपादन िकया।
5.5 मbू यांकन
मनु को थम मानव माना जाता है। उनका Cथ ”मन ु मृित” िहदू धम5शाh क सवा5िधक ाचीन रचना मानी
जाती है। उह/ने रा1य, शासन, दdड, याय, पररा;< नीित पर मह+वपणू 5 िवचार िदये। उनका आदश5 राजा tलेटो के
दाश5िनक राजा से अिधक मह+वपणू 5 है। मनु ने राजतंZ का समथ5न िकया परतु उसका राजा िनरंकुश नह9 है। मनु ने
सH भतु ा, राजधम5, शासिनक Oयव था, कर Oयव था पर मह+वपणू 5 िवचार िदये है। राजा पर िनयZण तथा
जनकbयाणकारी िवचार एक लोककbयाणकारी रा1य क थापना करता है। वह मानवतावादी है। उनके िवचार/
के p म8 मानव है। सामािजक Oयव था को लेकर भी बहQत उ+कृ > िवचार िदये। वे धम5, वण5 Oयव था, आWम पर
मह+वपणू 5 िवचार रखते है। वे सभी के िवकास एवं कbयाण पर बल देते थे।
मनु के शासन संबंधी िवचार बहQत मह+वपणू 5 है। वे अराजकता को समाX करने तथा Oयव था थािपत करने पर
बल िदया। उहोन8 दdड एवं यायOयव था पर अ+यािधक बल िदया। उनका राज के कायk के संबंध म8 =ि>कोण
जनकbयाणकारी है। उनका राजा एक आदश5 राजा है। इसके बावजदू वह Oयवहारक भी है। वह धतू 5 एवं िनरंकुश
नह9 है। मनु ^ारा ितपािदत मdडल िस(ात तथा षाड़गdु य नीित आज के समय म8 भी ांसिगक है। आज दिु नया
के देश िवदेश नीित का आधार इह9 िस(ात/ को बनाते हL। संिध, िवCह, यान, य(
ु संबंधी िवचार मनु क अमbू य
देन है जो िक उह8 राजनीित शाh/ म8 अमर कर देता है ।
अAयास B -
1. मनु क रचना का aया नाम था?
2. मनु ^ारा ितपािदत रा1य क उ+पित का िस(ात aया है?
3. मनु िकस कार क शासन णाली का समथ5क था?
4. मनु वण5 Oयव था का समथ5क था। स+य/अस+य
5. मनु ^ारा ितपािदत षाड़गdु य नीित तथा मdडल िस(ात िकस से सHबिधत है?

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5.6 सारांश
मनु ाचीन भारतीय िचतन के मrु य िवचारक है। उह/ने अपनी कृ ित ”मनु मृित” म8 राजनीितक िवचार ततु
िकये। मनु ने रा1य क उ+पित के सHबध म8 दैवीय उ+पित के िस(ात को अपनाया। उनका दैवीय उ+पित का
िस(ात म8 समझौतावादी त+व िमलते हL। मनु ने राजतZ का समथ5न िकया परतु उनका शासक िनयZणिवहीन न
होकर सयं िमत है। उसे आशा क जाती है िक वह काननू / का पालन करे तथा रीितय/ एवं परHपराओ ं से सयं िमत है।
रा1य के संबंध म8 मनु रा1य .पी शरीर क बात करता है। वह रा1य के सात अगं / का साXांग िस(ात देता है। मनु
ने इन अगं / म8 राजा को सवा5िधक मह+वपणू 5 माना है। शासन को मनु ने कई भाग/ म8 बांटा है। मनु दdड एवं याय
क Oयव था का भी वण5न करता है। उसका दdड संबंधी िस(ात बहQत Oयवहारक एवं यथा5तवादी है। याय संबंधी
िवचार बहQत Oयापक है िजसम8 याय के िविभन पहलूओ ं का Oयापक वण5न िकया गया है। मनु ने िवदेश नीित के
संचालन म8 मdडल िस(ात एवं षाड़गdु य नीित को िदया है। इसम8 िविभन परि थितय/ म8 राजा ^ारा अलग-
अलग नीितयां अपनाने पर बल िदया गया है। यह िवदेश नीित के िनधा5रण का एक Oयवहारक िस(ात है। यह
बदलते िव] पर=य म8 बदलती नीित ^ारा रा;<िहत के संवध5न का एक यथा5तवादी समाधान है जो आज के
भमू dडलीकरण के दौर म8 भी ासंिगक है। मनु ^ारा ततु उपरो\ िस(ात बहQत ांसिगक है जो मनु को अमर
बना देती है।

5.7 श!दावल$
सावयवी िस(ातः- इस िस(ात म8 रा1य एक जीवधारी मानते हQए उसके िविभन अगं / क कbपना क जाती है ।
दैवीय उ+पितः- इसके अत5गत रा1य क उ+पित ई]र के ^ारा मानी जाती है। इसम8 यह वीकार िकया जाता है िक
रा1य को ई]र ने बनाया है।

5.8 अ&यास 
न' के उ तर
1. मनु मृित , 2. दैवीय उ+पित का िस(ात, 3. जातZ, 4. स+य, 5.िवदेश नीित के
संचालन से

5.9 संदभ) *थ सच


ू ी
1. राव एम0वी0 कृ ;णा, टडीज इन कौिटbया
2. समhे आर0, कौिटbयस का अथ5शाh
3. परमा+मा शरण, ाचीन भारत म8 राजनीितक िवचार एवं सम याय8
4. वमा5, वी0पी0, ाचीन भारतीय िचतन

उराखंड म
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5.10 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. वेनी साद, िद टेट इन एनिसएटं इिdडया
2. यामलाल पाdडेय, कौिटbय क राज Oयव था

5.11नबधा मक 
नः-
1. मनु के राजनैितक िवचार/ पर एक िनबध िलिखये।
2. मनु के िवदेश नीित संबंधी िवचार/ का आलोचना+मक परी:ण किजये।
3. मनु के राजनैितक िवचार/ का वत5मान म8 ासिगकता प> करते हQए एक िनबधं िलिखये।
4. मनु के िवचार/ का आलोचना+मक परी:ण किजये।

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 -6 : 
इकाई क$ संरचना
6.1 "तावना
6.2 उ4े5य
6.3 राय क$ उपि:
6.3.1 राय के काय एवं वJप
6.3.3 राजा संबंधी िवचार
6.3.4 सा[ांग िस!ात
6.3.4.1 िविभन अंग9 का तुलनामक महव
6.3.5 मंRी पLरषद अथवा अमाय सबं धं ी िवचार
6.4 "शासिनक Oयवथा
6.5 काननू एवं याय संबंधी िवचार
6.6 दWड एवं ग[ु चर संबंधी िवचार
6.7 िवदेश नीित संबंधी िवचार
6.8 मWडल िस!ात
6.9 षाड.गWु य नीित
6.11 कौिटHय एवं मैकयावेली
6.12 कौिटलय एवं यनू ानी िवचारक
6.13 सारांश
6.14 शAदावली
6.15 अBयास "C9 के उ:र
6.16 सदं भ Dथ सचू ी
6.17 सहायक/उपयोगी पाठ्यसामDी
6.18 िनबंधामक "C

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6.1 तावना
ाचीन भारतीय राजनीितक िवचारक/ म8 कौिटbय का थान बहQत मह+वपणू 5 है। साधारण ाहमण परवार म8 जम
के बावजदू अपनी यो}यता,मेधा,:मता तथा साहस से न के वल अपना मक ु ाम थािपत िकया वरन् अपनी संगठन
:मता, कूटनीित, शौय5 से नंदवंश का नाश िकया। उह/ने अपनी दरू =ि> से नंदवंश के अ+याचार से भारतीय
जनमानस को म\ु कराया साथ ही चpगXु मौय5 को थािपत करते हQए भारतीय राजनीितक एककरण के ^ारा एक
सश\ राजनीितक स&ा क थापना क।
िव^ान/ का मत था िक कौिटbय का जम 400 ई0 पवू 5 त:िशला के एक गरीब परवार म8 हQआ था। उनको कई
नाम/ से पकु ारा जाता था िजसम8 िव;णगु Xु , चाणaय, कौिटbय मख
ु थ8। कौिटbय ने नालंदा िव]िव0ालय म8 िश:ा
Cहण क। िश:ा समाX होने के साथ वह वह9 ा3यापक हो गये। समार् ट महानंद ^ारा सभा म8 िकये गये अपमान ने
उसे न के वल झकझोर िदया वरन् उसे सिVय राजनीित म8 धके ल िदया। नद बंश के नाश होने के बाद मौय5 वंश क
थापना हQई। िसकदर के जाने के बाद कौिटbय ने पंजाब के राजाओ ं से मैZी कर यनू ािनय/ को देश से िनकाल
िदया।
भारतीय राजनीितक दश5न म8 कौिटbय का मह+वपणू 5 थान है। कौिटbय ने अपनी कृ ित ‘‘अथ5शाh’’ के ^ारा
शासन सचं ालन , राजा के अिधकार , कत5Oय का Oयापक िचZण िकया है। उसने जा िहत के िलये राजा को कठोर
परWम एवं कड़े िनयम बनाने क वकालत क। वह ाचीन भारत का सभं वतः पहला िव^ान था िजसने राजनीितक
िस(ात/ का वण5न िकया। कौिटbय के ^ारा ततु साXांग िस(ात ,मdडल िस(ात तथा षाडगdु य िस(ात
राजनीित शाh को उसक अमbू य देन है। उह/ने अपने Cथ ‘‘अथ5 शाh’’ म8 इन िस(ात/ का वण5न िकया है।
उनके Cथ म8 pह अिधकरण एक सौ अ सी करण , एक सौ पचास अ3याय तथा छः हजार ƒोक है। इसम8
राजनीित के अितर\ , दश5न,िश:ाशाh/, नीित शाh, सैय शाh, रसायन शाh , इजं ीिनयरंग आिद का वण5न
िकया गया है।

6.2 उे

इकाई के उेयः- इकाई के िनHन उेय है-
1. ाचीन भारतीय िचतन के गौरव से िव0ािथ5य/ को परीिचत कराना ।
2.इसके ^ारा हम कौिटbय के िविभन िस(ात/ को जानने का यास कर8 ग8 ।
3.कौिटbय के िवचार/ के मा3यम से भारत के राजनीितक एककरण म8 उनके योगदान को जानने का यास करे ग8।
4.कौिटbय के िवचार/ के अ3ययन से आदश5 राजा के काय5, उसके अिधकार तथा उस पर थािपत िनयZण को
समझने का यास कर8 गे ।
5.कौिटbय के अ3ययन के ^ारा राजनीित के Oयवहारवादी प: (यथा5तवाद) को जानने का यास करे ग8 ।

उराखंड म
ु िविवालय 69
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

6.3 रा6य क उ पि त
कौिटbय ने रा1य क उ+पि& के सबं ंध म8 सामािजक समझौते के िस(ात से िमलते - जल
ु ते िवचार िदये है। उनका
मानना है िक रा1य से पवू 5 समाज म8 अराजकता, म+ य याय अथवा िजसक लाठी उसक भLस क तरह क
ि थित थी। इस ि थित म8 सभी परे शान थे। अपने जीवन, संपित क र:ा के िलए लोग/ ने मनु को अपना राजा
बनाया। शांित और Oयव था बनाये रखने के िलए लोग/ ने उपज का 1/6 भाग कर के .प म8 देने लगे। Oयापार म8
1/10 भाग तथा सोने से होने वाले आय का भी कुछ भाग ाX करने लगे।
कौिटbय अपनी प ु तक ‘‘ अथ5शाh ’’ म8 प> करता है िक राजा जनकbयाण म8 काय5 करे गा तथा लोग कोष म8
अपना अश ं तभी कर8 गे जब उनक सरु :ा, कbयाण आिद राजा ^ारा सिु निFत िकया जायेगा। इस कार कौिटbय ने
रा1य क उ+पि& म8 जन वीकृ ित का िवचार िदया है।
कौिटbय का रा1य क उ+पि& का िवचार समझौतावादी िवचाराक/ हाOस, लाक तथा .स/ से मेल खाता है। उनका
मानव भी वाथf, झगड़ालू है जो अपने वाथ5 क पिू त5 के िलये दसू रे को नक
ु सान पहQचँ ाने म8 नह9 िहकचता है।
मानव जीवन पर आये संकट, ने सभी को िमलकर Oयव था सिु निFत करने पर िववश िकया।
कौिटbय ने राजा पर जन कbयाण का अक ं ु श लगाया है। उसने आशा क है िक जन वीकृ ित से अि त+व म8 आया
राजा अपने को बनाये रखने के िलये सदैव यासरत रहता है। कौिटbय ने ‘‘राजकोष’’ पर जनता का िनयZण
माना है। उसक प> मायता थी िक िबना जन वीकृ ित के नया कर नह9 लगाया जा सकता है। वह राजा को पणू 5
आजादी नह9 देता वरन् उस पर जन वीकृ ित का बंधन लगाता है।
6.3.1 राय के काय एवं वJप
कौिटbय रा1य के व.प के संबंध म8 साOययी .प म8 िवचार रखते है। उनक प> मायता है िक रा1य सात अगं /
जैसे वामी, अमा+य, जनपद, दगु ,5 कोष, दdड और िमZ से िमलकर बना है। उसक मायता है िक यह आवयक
अगं है। कौिटbय के साOययी िवचार/ से पवू 5 क भारतीय िचतन म8 इसक झलक िमलती है। ऋ}वेद म8 जहां इसक
झलक िमलती है वह9 यज5वु ेद म8 कहा गया है िक िवराट प. ु ष क पीठ रा;< है और उसक उदर पीठ, जांघ तथा
घटु ने आिद उसक जा है।
कौिटbय ^ारा ततु सावयवी िस(ात पणू त5 ः प> और मौिलक है। इसका उlव ऋ}वेद के प. ु ष उि\ म8
िमलता है। कौिटbय ने अपने सात अगं / म8 राजा को सवा5िधक मह+व िदया है। राजा के बाद मZं ी या अमा+य है जो
उसे परामश5 देते है। उनक सहायता से ही रा1य का सचं ालन सभं व हो पाता है। दगु 5 रा1य क सरु :ा का कवच है।
जनपद अथवा भ-ू भाग रा1य के अि त+व का भैितक आधार है। जन कbयाण के िलए भरा हQआ कोष आवयक
है। इसके अितर\ दdड भी रा1य का आवयक अगं है aय/िक िबना भय के काननू का पालन सिु निFत कराना
असभं व है। कौिटbय इसम8 िमZ को भी थान देता है। आधिु नक समय म8 जनसrं या, िनिFत भ-ू भाग , सरकार तथा
सH भतु ा को रा1य का अगं माना जाता है परतु कौिटbय ने इसे साथ मानते हQए इसम8 कोष, दगु 5 िमZ को जोड़ा है।
कौिटbय ने रा1य को पिु लस रा1य नह9 माना है। वह रा1य के Oयापक कायk क वकालत करता है। उसका मानना
है िक रा1य को Oयि\ के पणू 5 िवकास म8 सहायता करना चािहए। उसक मायता थी िक इस परम् उेय को पाने
के िलये रा1य को सभी य+न करने चािहए। रा1य के ^ारा नागरक/ म8 देशभि\ और कत5Oय परायणता भरने के
यास करने चािहए। उसका मानना था िक रा1य ^ारा जन कbयाण के सभी काय5 करने चािहए। कौिटbय नागरक

उराखंड म
ु िविवालय 70
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सरु :ा, जनकbयाण को आवयक मानता था। वह िवदेशी रा;</ पर पैनी नजर रखने क भी वकालत करता था।
कौिटbय के अनसु ार रा1य के मख
ु काय5 िनHन है-
1. रा1य क सरु :ा करना।
2. शांित और Oयव था बनाये रखना।
3. जा क वा और आंतरक संकट/ से र:ा करना।
4. देश क सीमाओ ं का िव तार करना।
5. कृ िष को उनत करने का सदैव य+न करना।
6. पशओ
ु ं का सरं :ण और संव5(न करने का य+न करना।
7. Oयापार को बढ़ावा देना।
8. वन/ का िव तार तथा कल-कारखान/ का सार करना।
9. सामािजक, शै:िणक कायk को करना।
राजा एवं सेना संबंधी काय5ः- कौिटbय रा1य के सात अगं / म8 राजा को सवmiच थान दान करता है। वह शासन
क धरु ी के समान है। वह शासन को भावी बनाने तथा जनकbयाण को सिु नFत करने का मा3यम है।
राजा के गणु ः- कौिटbय ने राजा के आवयक गणु / का िव तृत िववरण िदया है। उसके अनसु ार राजा को कुलीन,
व थ, शाh का अनसु रण करने वाला होना चािहए। उसे अिभगामी गणु /, #ा गणु /, उ+साह गणु / तथा आ+म
सयंम गणु / से य\ु होना चािहए। अिभगामी गणु / अत5गत राजा क कुलीनता, धैय5, दरू दशfता, स+यवािदता, आिद
आती है। इसके अत5गत राजा से यह आशा क जाती है िक वह उिचत , स+य तथा शाh/ के अन. ु प चीज/ को
Cहण करे गा। उ+साह गणु म8 राजा म8 िनभfकता, तेजी एवं द:ता से काय5 करने क आशा रखी जाती है। आ+म
संयत गणु / म8 राजा से संयमी, बलवान, मृदभु ाषी तथा उदार होने क आशा क जाती है।
कौिटbय का मत है िक िश:ा एवं कठोर अAयास से इन गणु / का िवकास िकया जा सकता है। कौिटbय का कहना
था-‘‘ िजस कार घनु लगी लकड़ी शीŽ न> हो जाती है उसी कार अिशि:त राजकुल भी िबना िकसी य( ु के
अितशीŽ न> हो जाता है।’’
कौिटbय ने िश:ा पर बहQत मह+व िदया है। उह/ने िश:ा क Oयापक योजना ततु क है। उनके अनसु ार मdु डन
सं कार के बाद वण5माला और अक ं माला का अAयास कराया जाय। उपनयन के बाद उसे Vयी, वात5, दdड नीित
का #ान कराया जाए। वता5 के अ3ययन से राजा क आिथ5क सम याओ ं को समझने क :मता िवकिसत होती है।
दdड नीित म8 यो}य राजा अपने रा1य मे शांित और Oयव था लागू कर जनकbयाण सिु नFत करता है। आवी:क
िव0ा राजा क बिु ( को ती‹ करती है। यह लोक उपकार करती है। इसे राजा सख ु -दख
ु म8 ि थर रहता है और
िवचिलत नह9 होता है।
राजा क िदनचया5ः-कौिटbय के िचतन म8 राजा का मख ु थान है। राजा को सदैव सजग, सत5क रहना चािहए।
राजकम5 को ठीक कार से करने के िलए वह िदन-रात को आठ भाग/ म8 बांट देता है। वह +येक भाग को डेढ़ घटं े
का होगा। वह िदन के थम भाग म8 राजा के ^ारा र:ा तथा िपछले िदन/ के आय-Oयय को देखने पर बल देता है।
दसू रे भाग म8 वह जनता, नागरक/ से िमले तथा उनका कbयाण सिु निFत करने पर बल देता है। तीसरे भाग को

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ु िविवालय 71
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
नान, भोजन तथा व3याय के िलए सरु ि:त करता है। चौथे भाग म8 कर िवभाग का िनरी:ण पर बल देता है।
पांचवा भाग मंZीपरषद से परामश5 करने के िलए सरु ि:त है। सातव8 भाग म8 वेiछा से वह कोई काय5 कर सकता
है। आठवां भाग हाथी, घोड़े, सेना के िनरी:ण के िलये आरि:त है।
इसी कार रािZ को आठ भाग/ म8 िवभािजत िकया गया है। रािZ के पहले भाग म8 गXु चर/ को देखे। दसू रे भाग म8
नान, भोजन व3याय तथा तीसरे भाग म8 संगीत सनु ने के िलए िनिFत करता है। चौथा , पांचवा भाग शयन के
िलए िनिFत है। छठे भाग म8 जागकर िदन म8 सपं ािदत िकये जाने वाले काय5 पर िवचार कर8 । सातव8 भाग म8 गXु मZं णा
कर8 तथा गXु चर/ को यथा थान भेज8। आठव8 भाग म8 आचाय5 , परु ोिहत आिद से आाशीवा5द Cहण कर8 । इसी समय
वै0, रसोइया, 1योितष से परामश5 कर8 । इन सबसे िनवृत होने के बाद दान दि:णा देने के बाद वह दरबार म8 वेश
कर8 । कौिटbय वशं ानगु त राजतंZ का समथ5क था। वह राजा के बाद 1येJ पZु को राजगी सŒपने का प:धर था।
यहां पर कौिटbय यो}य उ&रािधकारी का प:धर था। उसक मायता थी िक यिद यो}य उ&रािधकारी न हो तो
धानमZं ी के ^ारा यो}य राजकया को उ&रािधकारी बनाना चािहए।
राजा के मख
ु काय5ः- कौिटbय ने राजा के िनHनिलिखत मख
ु काय5 बताये हैः-
1. जा का कbयाण के िलए यास करना।
2. धम5 का पालन तथा र:ा करना।
3. शांित और Oयव था बनाये रखना।
4. शासिनक कायk हेतु यो}य Oयि\य/ क िनयिु \ करना।
5. िविध िनमा5ण करना।
6. याियक काय5 करना।
7. दdड क Oयव था करना।
8. आिथ5क एवं वािणि1यक कायk क िनगरानी करना।
9. राजकोष क अिभवृि( के उपाय करना।
10. य(
ु के िलए सदैव तैयार रहना।
इस कार प> होता है िक कौिटbय राजा को Oयापक शि\यां दान करता है परतु वह सामािजक, धािम5क
िनयम/ से बंधा हQआ है। ो0 अbतेकर का प> मत है िक ‘‘कौिटbय का राजा बहQत लौिकक, सामािजक, धािम5क
तथा आ3याि+मक बंधन/ से मया5िदत है।’’

6.3 रा1य क उ+पि&


6.3.1 रा1य के काय5 एवं व.प
6.3.3 राजा संबंधी िवचार
6.3.4 साXांग िस(ात

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ु िविवालय 72
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

ाचीन समय से भारतीय िचतन म8 रा1य के साOयय .प का उbलेख िमलता है। इस िस(ात म8 रा1य क कbपना
एक जीिवत शरीर क तरह क जाती है। इस िस(ात म8 यह माना जाता है िक िजस कार मानव शरीर िविभन
अगं / से िमलकर बना है उसी कार रा1य .पी शरीर भी िविभन अगं / से िमलकर बना है। भारत के ाचीनतम
Cथ ऋ}वेद म8 रा1य क कbपना िवराट प. ु ष क तरह क गई है। कौिटbय ाचीन भारत का पहला िव^ान था
िजसने रा1य के सबं धं म8 इतने प> िवचार रखे है। कौिटbय ने रा1य सबं धं ी अपने िवचार म8 रा1य को सात अगं /
का िमWण बताया। उनक मायता थी िक रा1य .पी शरीर सात अगं / से िमलकर बना है। कितपय यही कारण है
िक कौिटbय का रा1य के सात अगं / का िस(ात साXांग िस(ात कहलाया। कौिटbय ने अपनी प ु तक
‘‘अथ5शाh’’ के छठे अिधकरण के पहले अ3याय म8 रा1य के सात अगं / का उbलेख िकया है। उनके अनसु ार सात
अगं िनHन हैः-
1. वामी अथवा राजा 2. अमा+य 3. जनपद 4. दगु 5 5. कोष
6. दडं
7. िमZ
1. वामी अथवा राजाः- कौिटbय के सात अगं / के िस(ात म8 वामी अथवा राजा का सवा5िधक मह+वपणू 5 थान
है। कौिटbय क प> मायता थी िक रा1य क सफलता राजा पर िनभ5र करती है। कौिटbय को भारत म8 ाचीन
समय म8 पाये जाने वाले गणतZ/ का पया5X #ान था परतु वह यो}य कbयाणकारी राजा का बल समथ5क था।
कितपय यही कारण था िक उसने राजा क यो}यता, गणु / तथा नीितय/ का Oयापक उbलेख अथ5शाh म8 िकया है।
बी0पी0 िसंह का प> मत है िक ‘‘कौिटbय क शासन णाली म8 राजा शासन क धरु ी है और शासन संचालन म8
सिVय .प से भाग लेने और शासन को गित दान करने म8 राजा का एकमाZ थान है।’’
कौिटbय राजा म8 आदश5 .प देखता है। उसका राजा सव5गणु सHपन एक आदश5 Oयि\ है। कौिटbय के राजा
संबंधी िवचार tलेटो के आदश5 राजा या दाश5िनक शासक (Philosopher King) के समान है। वह प> करता है
िक राजा ढृड़ िनFयी, िवचारशील, स+यवादी , वृ(/ के ित सHमान का भाव रखने वाला, िववेकपणू ,5 दरू दशf
उ+साही तथा य( ु म8 चतरु होना चािहए। उसम8 किठन समय म8 साहस न छोड़ने तथा सम या को पकड़ने क :मता
होनी चािहए। वह राजा म8 राजकोष क वृि( क :मता रखने क :मता होना आवयक मानता है।
कौिटbय राजा म8 आ3याि+मक एवं नैितक गणु को भी आवयक मानता है। उसका मानना है िक कुछ गणु वभाव
से होते है परतु कुछ गणु अAयास, अ3ययन से िवकिसत िकये जा सकते है। कितपय यह9 कारण है िक वह राजा
क िश:ा पर बहQत बल देता है। उसक प> मायता थी िक ‘‘ िजस कार घनु लगी लकड़ी जbद न> हो जाती है
उसी कार अिशि:त राजकुल िबना िकसी य( ु के न> हो जाते है।’’ कौिटbय के अनसु ार राजा को दdड नीित,
रा1य शासन, सैिनक िश:ा, मानव शाh, इितहास, धम5शाh तथा अथ5शाh का जानकार होना चािहए। राजा को
अपनी इिpय/ पर सदैव अक ं ु श रखना चािहए। कौिटbय के सात अगं / के िस(ात म8 राजा का थान सवmiच है।
राजा रा1य .पी शरीर म8 मि त;क के समान है। िजस कार मि त;क के अ:मता का भाव सHपणू 5 शरीर के अगं /
पर पड़ता है उसी कार अयो}य राजा से सHपणू 5 रा1य ही अ व jय हो जाता है।
2.अमा+य या मंZी:- सामायतः अमा+य का अथ5 मंZी से िलया जाता है। कौिटbय अमा+य के अत5गत मंZी एवं
शासिनक अिधकारय/ दोन/ से रखता है। कौिटbय का मत था िक िजस कार एक पिहये क गाड़ी नह9 चल

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ु िविवालय 73
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सकती उसी कार एक Oयि\ सHपणू 5 शासन नह9 चला सकता है। राजा को शासन म8 सहयोिगय/ से परामश5
लेना चािहए।
कौिटbय के अनसु ार सभी कायk क सफलता अमा+य/ पर िनभ5र करती है। कृ िष आिद कायk क सफलता राजवंश
अतपाल आपि&य/ का ितवाद , उपिनवेश/ क थापना, अपरािधय/ को दdड तथा राज करो का िनCह सHपणू 5
काय5 अमा+य/ ^ारा
सHपन होते है। कौिटbय का प> मत था िक यो}य, अनभु वी Oयि\ को िबना िकसी प:पात के अमा+य बनाना
चािहए। कौिटbय का मत है िक उनक चरZ परी:ा के बाद िनयिु \ होना चािहए। अमा+य/ को उनक :मता के
अनसु ार काय5 सŒपे जाने चािहए।
3.जनपदः- जनपद कौिटbय के रा1य .पी शरीर का तीसरा अगं है। कौिटbय का जनपद से अथ5 उस भ-ू भाग म8
िनवास करने वाले नागरक/ अथवा िनवािसय/ से है। उसका मानना था िक जनपद के अभाव म8 रा1य क कbपना
भी नह9 क जा सकती है।
कौिटbय का प> मत था िक दसू रे देश/ से लोग/ को आमंिZत कर नये जनपद थािपत िकये जाय। +येक
जनपद म8 कम से कम 100 घर तथा अिधक से अिधक 500 घर वाले गांव बसाये जाय िजसम8 िकसान एवं शpू
अिधक हो। एक गांव दसू रे से दो कोस से अिधक दरू न हो।
जनपद के संगठन के संबंध म8 कौिटbय प> करता है िक ‘‘आठ सौ गांव/ के बीच थानीय , चार सौ गांव/ के
बीच pोणमख ु , दो सौ गांव/ के बीच खा5विटक तथा दस गांव/ के समहू के .प म8 संCहण क थापना क जाय।
इस कार शासिनक =ि> से जनपद , थानीय, pोणमख ु , खा5विटक , संCहण और गांव म8 बंटा होगा। कौिटbय
रा1य के छोटे आकार म8 िव]ास करता था।
कौिटbय जनपद िनमा5ण क परू ी योजना देता है िजसम8 ारHभ म8 तथा सीमात म8 िकले बने हो िजसम8 अन व पानी
चरु ता से हो। आपात काल म8 बन एवं पव5त म8 जा र:ा क जा सके । जनपद के पास शZु राजा के िवरोिधय/ क
सrं या अिधक होनी चािहए। शZु रा1य कमजोर होना चािहए। उसके पास घने जगं ल हो जो कमती लकड़ी, िहसं क
पशओ ु ं से भरे हो। इसके अदर नदी , तालाब हो तथा इसक जलवायु अiछी हो। िनवािसय/ म8 नीच वग5 क
आबादी अिधक हो तथा मेहनती लोग/ क अिधकता हो। ऐसा जनपद सHपन जनपद होगा।
कौिटbय ने जनपद के िनवािसय/ के संदभ5 म8 प> िकया है िक वह िनJावान , वािभमानी और सHपन होनी
चािहए। वह सरल हदय वाली, राजा के करो को वेiछा से चक ु ाने वाली होनी चािहए। जा के अदर व-
अनशु ासन तथा कत5Oय परायणता होनी चािहए।
4.दगु ः5 - कौिटbय ने अपने अथ5शाh म8 दो तरह के दगु 5 का वण5न िकया हैः-
1. दगु 5 िवधान
2. दगु 5 िनवेश
दगु 5 िवधान का कौिटbय का आशय मrु य दगु 5 से है। इसम8 वह मrु य दगु 5 के िनमा5ण पर बल देता है।
दगु 5 िनवेश से उसका आशय दगु 5 के अदर के भवन/ तथा रा1य/ के अदर मह+वपणू 5 थान/ पर िनिम5त भवन/ से है।

उराखंड म
ु िविवालय 74
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
दगु 5 रा1य क र:ा+मक आVामक शि\ दोन/ का तीक है। +येक रा1य क सरु :ा के िलए मजबतू िकला
आवयक होता है। िकले म8 सेना क मोचा5बंदी , आVमण के िलए गXु िनकास ^ार , गोला बा.द , भोजन का
बंदोब त होना चािहए।
कौिटbय ने दगु 5 को चार Wेिणय/ म8 बांटा हैः-
1.औदक दगु ः5 - वह दगु 5 जो चार/ ओर से पानी तथा तालाब से िघरा होता है वह औदक दगु 5 कहलाता है।
2.पव5त दगु ः5 - बड़ी च‰ान/ से िनिम5त , पव5त/ पर ि थत दगु 5 पव5त दगु 5 कहलाता है।
3.धावन दगु ः5 - ये ऐसे दगु 5 होते हL जो ऐसे म. थलीय जगह/ पर बने होते है जहां न तो पानी होता और
न ही पहQचनं ा आसान होता है।
4.वन दगु 5ः- घने जगं ल/ म8 बना दगु 5 जहां का रा ता बेहद दगु 5म हो उसे वन दगु 5 क स#ं ा दी।
कौिटbय क मायता थी िक औदक और पव5त दगु 5 संकट के समय रा1य क तथा उसके नागरक/ क र:ा म8
सहायक होते हL, जबिक धाबन दगु 5 एवं वन दगु 5 संकट के समय राजा क सरु :ा के िलए आवयक एवं अित
उपयोगी होते हL।
5.कोष-
रा1य म8 राजा को अनेक काम करने होते हL। +येक काय5 के िलए धन क आवयकता होती है। अतः +येक रा1य
म8 कोष अ+यािधक मह+वपणू 5 होता है। अतः राजा का यह कत5Oय है िक वह कोष क वृि( के िलए सदैव
य+नशील रहे। कौिटbय का प> मत है िक धम5, अथ5, काम म8 अथ5 धान है। सेना, भिू म , समृि( आिद सभी म8
कोष क आवयकता होती है।
कौिटbय क प> मायता थी िक +येक रा1य को य( ु के िलए सदैव त+पर रहना आवयक है। य(
ु हो या न हो
परतु रा1य को तैयार रहना चािहए। इन सभी कायk के िलए यह आवयक है िक रा1य के पास पया5X कोष हो।
कोष से सेना एवं दगु 5 दोन/ क र:ा होती है।
कौिटbय का प> मत था िक राजा को कोष को चरु करने के िलए यास करना चािहए। उसे जा से ाX अनाज
का छठा भाग, Oयापार से दसवा,ं पशओ ु ं के Oयापार से ाX पचासवं ा भाग सदैव राजा के ^ारा राजकोष म8 जमा
िकया जाए। कौिटbय प> करता है िक -‘‘ राजा जा से इस तरह सCं ह करे जैसे माली बिगया से पके -पके फल
लेता है। जा यिद कर देने म8 असमथ5 है तो उसे कiचे फल क तरह Cहण न िकया जाय aय/िक अश\ जा से
कर सCं ह उसम8 असतं ोष अथवा िवpोह करने का कारण होता है।
6.दdड अथवा सेनाः - ाचीन भारत के सभी िचतक/ ने दdड को बहQत मह+व िदया है। कौिटbय ने दdड का योग
सेना के संदभ5 म8 िकया है। सेना रा1य क सरु :ा क तीक है। कौिटbय का मत है िक िजस राजा के पास अiछा
सैय बल होता है उसके िमZ तो बनते है साथ ही उसके शZु भी िमZ बन जाते है। कौिटbय सेना म8 :िZय/ को
अिधकािधक शािमल करने क बात करता है। उसक मायता है िक आवयकता पड़ने पर अय जाितय/ को भी
शािमल िकया जा सकता है।
कौिटbय क मायता थी िक सैिनक/ को वािभमानी होना चािहए। राजा को उनक बेहतर सेवा के िलये , बेहतर
वेतन तथा सिु वधा के िलए तैयार रहना चािहए। कौिटbय ने सेना म8 हि त सेना, अ] सेना , रथ सेना तथा पैदल
सेना का उbलेख िकया है। कौिटbय इसम8 हि त सेना को सवा5िधक मह+व देता है। दdड समान .प से सभी पर

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
लागू होता है अतः सभी पर समान .प से लागू करने के लए भी सेना अथवा शि\ क आवयकता होती है। दdड
अथवा भय के अभाव म8 सव5Z अराजकता उ+पन हो जायेगी। कौिटbय का मत है िक राजा को आपात काल के
िलये सदैव तैयार रहना चािहए। आपातकाल के समय िमZ/ क सहायता से मक ु ाबला िकया जाना चािहए।
“कौिटbय ने िमZ/ पर िवशेष बल िदया है। उसका मानना है िक िमZ वंश परHपरागत , िव]ासी, थायी एवं िहतैषी
होने चािहए।
6.3.4.1िविभन अंग9 का तल
ु नामक महव
कौिटbय ने रा1य के सात अगं बताये है। कौिटbय का प> मत है िक रा1य का िनमा5ण इन सात अगं / से िमलकर
हQआ है। अतः +येक अगं क मजबतू ी से रा1य शि\शाली होगा। वह +येक अगं को मह+वपणू 5 मानता है। इनम8
पर पर सहयोग से रा1य का सचं ालन सचु ा. हो सकता है। रा1य के सात अगं / के सदं भ5 म8 मन,ु भी;म,शV
ु का मत
है िक वामी, जनपद,दगु 5, कोष, दडं और िमZ आिद मह+व क =ि> से Vमानसु ार है। कौिटbय भी सापेि:क मह+व
क =ि> से वामी को सवा5iच, सव5शि\शाली और मह+वपणू 5 मानता है। वह सHपणू 5 शासन क आधारिशला
मानता है। इसके िवपरीत आचाय5 भार^ाज ने इस मत क उपे:ा करते हQए वामी क तल ु ना म8 अमा+य को 1यादा
मह+वपणू 5 माना है। कौिटbय ने अपनी रचना म8 वामी को अिधक मह+वपणू 5 माना है। उसने सHपणू 5 शासन के
के p म8 वामी को रखा है। उसका मानना है िक एक अयो}य अमा+य को हटाया जा सकता है। उसके थान पर
राजा नया अमा+य िनय\ ु कर सकता है। वह सHपणू 5 शासन क आधारिशला राजा को मानता है। कौिटbय अपने
साXांग िस(ात के ^ारा राजनीित शाh को अिधक लौिकक व.प दान करता है।
6.3.5 मंRी पLरषद अथवा अमाय संबंधी िवचार
कौिटbय ने अपनी रचना “अथ5शाh“ म8 राजा के िलये मZं ीपरषद क आवयकता पर बल िदया। उनक मायता
थी िक राजा एक रथ है जैसे रथ एक पिहये से नह9 चल सकता, उसी कार मिZय/ क सहायता के िबना अके ला
राजा रा1य का संचालन नह9 कर सकता। अतः राजा के िलये यह आवयक है िक वह यो}य अमा+य/ का चनु ाव
कर8 । कौिटbय +येक काय5 के सचं ालन पर सlावना पर िवशेष 3यान देता है।
महाभारत म8 प> िकया गया है िक िजस कार पशु बादल/ पर, बाहHण वेद/ पर , प+नी पित पर िनभ5र करती है ,
उसी कार राजा भी मZं ीपरषद पर िनभ5र करता है। मनु ने भी मंZीपरषद क अिनवाय5ता पर बल िदया है। कौिटbय
ने भी मZं ीपरषद क अिनवाय5ता पर बल िदया।
मंZीपरषद का िनमा5णः- मंZीपरषद के गठन म8 कौिटbय का सवा5िधक जोर अमा+य/ का यो}यता पर है। इसके
िलये उसने अ+यंत कठोन िनयम एवं मापदdड तय िकये हL। उसका मानना है िक :मतावान, यो}य और िबना दाग
का Oयि\ को मंZीपरषद म8 थान िदया जान चािहए। बेनी साद के श@द/ म8 ‘‘कौिटbय के अनसु ार िन;कलंक ,
Oयि\गत जीवन, बौि^क चातुय,5 उिचत िनण5य , कत5Oय क उiच भावना, लोकि यता मंZीपरषद के िलये
आवयक यो}यताय8 होने चािहए।
मZं ीपरषद म8 मिZय/ क सrं या िकतनी होगी उसका आकार aया होगा इस पर कौिटbय प> राय नह9 रखते। मनु
ने अमा+य/ क सrं या 12, वृह पित ने सोलह, शV ु ाचाय5 ने बीस मिZय/ क सrं या सझु ायी है। कौिटbय इस
सrं या के सदं भ5 म8 मौन है। वे काय5 के अनपु ात तथा यो}यता के आधार पर सrं या िनिFत करने पर बल देता है।

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अमा+य/ क िनयिु \ः- इस संबंध म8 उसने सबसे पहले िविभन आचायk के पर कट िकये । कौिटbय ने आचाय5
भार^ाजक, िवशालर:, पराशर, वाटOयािध और बाहQदतं ीपZु के िवचार/ का िवƒे षण िकया । कौिटbय क मायता
थी िक िव0ा, साहस, गणु , दोष, काल और पाZ का िवचार करके ही अमा+य/ क िनय\ ु कर8 ।
कौिटbय क मायता थी िक अथ5शाh के िव^ान, बिु (मान, मरणशि\ सHपन, चतरु , उ+साही, भावशील,
सिह;ण,ु पिवZ, वामीभ\, सश
ु ील, समथ5, व थ, धैय5वान और ^ेषवृि& रिहत प.
ु ष ही धानमंZी के यो}य है।
अमा+य/ के आचरण क परी:ाः- कौिटbय ने अमा+य/ के आचरण क समी:ा पर िवशेष बल िदया। कौिटbय का
मत है िक धम5, अथ5, काम तथा भय के आधार पर अमा+य/ के आचरण का परी:ण करना चािहए। उ\ चार/
कसौिटय/ पर सफल होने के बाद ही अमा+य को मZं ीपरषद म8 िनय\
ु करना चािहए।
मZणं ा एवं गोपनीयताः- कौिटbय ने गोपनीय मZणं ा पर िवशेष बल िदया। उसक मायता थी िक मZणं ा का
गोपनीय न होना राजा एवं मZं ीपरषद के िलये घातक होता है। िजस कार कछुआ अपने कवच को समेटे होता है
और के वल आवयकता होने पर उह8 बाहर करता है। उसी कार भी मZं णा गोपनीय होनी चािहए। मZं ी क सरु :ा
के िलये यह आवयक है िक मZं णा का थान अ+यतं सरु ि:त हो। राजा एवं अय मZं ी इतने सयं िमत और
िवचारमान हो िक िकसी भी चेJा से भी गोपनीयता भगं न हो। मZं णा का थान ऐसा होना चािहए जहां प:ी भी
झांक न सके तथा आवाज बाहर न जाये। कौिटbय का मत था िक मZं णा सदैव तीन-चार ल/गो के साथ क जानी
चािहए। एक ही Oयि\ से बार-बार मंZणा करने से कई बाद संदहे एवं किठन B का सही हल नह9 िनकल पाता है।
इसम8 कई बार संबंिधत मZं ी ित^^ी के .प म8 काय5 करने लगता है। कौिटbय तीन से चार मZं ी का प:धर है।
इससे अिधक मंZी होने पर ायः सरु :ा एवं अिनण5य क सम या उ+पन होती है।
मंZीपरषद के काय5ः- कौिटbय के अनसु ार मंZीपरषद के िनHन काय5 हैः-
1.राजा को परामश5 देना।
2.संकट के समय राजा क र:ा करना।
3.राजा को >, अनैितक कायk से बचाना।
4.राजा के गXु भेद/ को िकसी के सम: उजागर न कर8 ।
5.राजा क मृ+यु का समाचार भी बहार नह9 जाना चािहए।
राजा एवं मZं ीपरषद का सबं धं ः- राजा एवं मZं ीपरषद के सबं धं / के िवषय म8 कौिटbय का िवचार है िक राजा
सामायतः मZं ीपरषद के बहQमत के आधार पर काय5 कर8 । इसके साथ ही यिद परामश5 उिचत न हो तो वह
विववेक से िनण5य ले सकता है। कौिटbय ने आगे यह भी प> िकया है िक अयो}य, अक5 मdय, िवलासी राजा
होने पर उस पर मZं ीपरषद का िनयZण आवयक है। भारत के ाचीन Cथ/ म8 इसका उbलेख िमलता है।
‘िदOयावदान’ म8 इस बात का उbलेख िमलता है जब बौ( धम5 के ित अित W(ालु राजा अशोक ने बौ( संघ/
को अधं ाधधु दान देना श.ु कर िदया और राजकोष खाली होने लगा तो मंिZय/ ने यवु राज के साथ िमलकर महान
अशोक को ऐसा करने से रोका था। कौिटbय ने वयं मौय5 साuा1य के महामZं ी के .प म8 िजस कार काय5 िकया
उसम8 भी महामंZी एवं मंZीपरषद क भिू मका का मह+व प> होता है।

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6.4 शासनक Cयवथा


राजा एवं मिं Zपरषद के अितर\ शासिनक Oयव था के Oयवहारक सच ं ालन के सबं धं म8 कौिटbय ने प>
िवचार रखे है। कौिटbय ‘ जा ेमी’ रा1य क कbपना करता है। िजसम8 शासन का मrु य उेय जन कbयाण करना
है। यही कारण है िक बड़े कायk के सचं ालन के िलये अनेक शासिनक सहयोिगय/ क आवयकता पर बल देता
है। वह राजा को सHपणू 5 शासन का धान मानता है परतु शासन हेतु अठारह (18) अय शासिनक
अिधकारय/ का वण5न करता है। कौिटbय ने उह8 अठारह तीथk क स#ं ा दी है। ये अठारह तीथ5 इस कार हैः-
1.मंZीः- रा1य शासन म8 राजा के बाद मंZी का मख
ु थान होता है। मंZी राजा का िव] त Oयि\ होता है। वह
राजा को परामश5 देता है।
2.परु ोिहतः- रा1य शासन म8 मंZी के बाद परु ोिहत का थान होता है। परु ोिहत राजा को धम5 एवं नीित के संबंध म8
संकेत देता है।
3.सेनापितः- सेनापित क रा1य के शासन म8 मह+वपणू 5 भिू मका होती है। वह सेना का धान होता है। वह सेना
का गठन करता है तथा संकट के समय म8 सेना का संचालन करता है।
4.दौवारकः- दौवारक राजमहल म8 र:क/ का धान होता है। उसी के ^ारा राजा के पास कोई ाथ5ना पZ पहQचं ता
है।
5.अतं वnिशकः- अतं वnिशक राजा का अतं परु म8 धान अगं र:क होता है। राजा क बीमारी क अव था म8 वह राजा
क िदनचया5 से सबं िं धत कायk का सपं ादन करता है।
6. शा ताः- शा ता एक पदािधकारी होता है जो सेना को िनयZण म8 रखता है। वह शंित और Oयव था के िलये
िजHमेदार होता है।
7.यवु राजः- यवु राज राजा का 1येJ पZु और रा1य का उ&रािधकारी होता है।
8.समाहतीः- कौिटbय क शासिनक Oयव था म8 समाहती को एक मह+वपणू 5 थान ाX है। उसका थान
िव&मंZी के समान है। उसका मrु य काय5 वािष5क बजट ततु करना होता है। वह सHपणू 5 आय-Oयय का लेखा-
जोखा रखता है। वह रा1य के आय को बढ़ाने के िलये कर लगाने तथा उसक वसल ू ी क Oयव था करता है।
9.सिनधाताः- सिनधाता रा1य का एक उiच पदािधकारी होता है। वह राजकोष का अ3य: होता है। उसका
मrु य काय5 राजकोष का भिलभांित संCह और पय5वे:ण करना है।
10. दे>ा आय\ ु ः- दे>ा आय\
ु एक उiच पदािधकारी होता है। वह काय5पािलका तथा याियक दोन/ कायk का
संपादन करता है। उसका मrु य काय5 अपराध/ का दमन करना तथा जो राज कर नह9 देते उनसे कर वसल
ू करना या
दडं देना होता है।
11.नायकः- यह सेना का सचं ालक होता है। वह एक सैिनक पदािधकारी होता है।
12.पौर Oयावहारकः- पौर Oयावहारक नगर का याियक पदािधकारी होता है।
13.कमा5ितकः- कमा5ितक खान उ0ोग/ का अिधकारी होता है। वह रा1य के कल कारखाने एवं उ0ोग/ क देख-
रे ख करता है।

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14.मंिZपरषद का अ3य:ः- मंZीपरषद का अ3य: धानमंZी होता हL इसके अलावा कौिटbय ने अय
िवभागा3य:/ का उbलेख िकया है जो शासन के =ि> से आवयक होते हL। इसम8 पोतवा3य:, गिणका3य:
आिद मख ु हL।
15.दडं पालः- यह सेना एवं पिु लस का मrु य अिधकारी होता है।
16.दगु 5पालः- यह दगु 5 का भारी होता है। यह रा1य के सम त दगु k क देखभाल करता है।
17.अतं पाल या सीमार:कः- यह मrु य अिधकारी होता है जो सीमावतf देश/ क र:ा करता है।
18.आटिवकः- आटिवक वन सपं ित क र:ा करता है।
"शासिनक िवभागा
य+
कौिटbय ने शासन का िव तारपवू 5क वण5न िकया है। उसने िविभन िवभाग/ के अ3य:/ का वण5न इस कार
िकया हैः-
1.कोषा3य:ः- कोषा3य: राजकोष का वामी होता है। वह कोष को सHपन रखता है। वह िविभन िवशेष#/ क
अनमु ित से कोष म8 िविभन र+न/, आभषू ण/ को भी रखता है।
2.सीता3य:ः- रा1य म8 कृ िष से ाX अनाज के .प कर के संCहण का िजHमेदार होता है। यह इन अनाज/ का
भंडारण करता है। यह कृ िष का जानकार भी होता है।
3.पठ्या3य:ः- पठ्या3य: एक मह+वपणू 5 अिधकारी होता है। यह रा1य म8 Vय िवVय वाली व तुओ ं क Oयव था
करता है।
4.आयधु ागारा3य:ः- आयधु गार का अ3य: य(
ु एवं अh शh संबधं ी चीज/ क Oयव था करता है।
5.पोतवा3य:ः- पोतवा3य: के पास मह+वपणू 5 िजHमेदारी होती है। वह सम त नापतौल क Oयव था का िजHमेदार
होता है।
6.शbु का3य:ः- यह वह पदािधकारी होता है जो रा1य क सम त शbु क या चगंु ी क Oयव था पर िनयZण रखता
है।
7.सZू ा3य:ः-यह वह पदािधकारी होता है जो सतू सबं धी सम त Oयवसाय का िनधा5रण करता है। यह सतू ,र सी
आिद क िनगरानी करता है।
8.सरु ा3य:ः- यह आबकारी िवभाग का मख
ु होता है। यह सम त मादक पदाथk जैसे भांग, गांजा, शराब आिद
पर िनयZण रखता है।
9.सनू ा3य:ः- सनू ा3य: के पास वधशाला क िजHमेदारी होती है। यह पशओ
ु ,ं मछिलय/, पि:ओ ं तथा जंगली
जानवर/ क िनगरानी करता है।
10.मpु ा3य:ः- यह मpु ा के िनमा5ण , संचालन के ित िजHमेदार होता है। इसका दािय+व अ+यािधक मह+वपणू 5
होता है।
11.रथा3य:ः- यह रथ सेना का भारी होता है। यह रा1य क सरु :ा के िलये भावी रथ सेना के िनमा5ण के िलये
िजHमेदार होता है।

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12.अ]ा3य:ः- यह घोड़/ क र:ा के िलये काय5 करता है। वह रा1य म8 अनेक थान/ पर घड़ु साल/ का िनमा5ण
करवाता है।
13.गजशाला अ3य:ः- यह हािथय/ के सHपणू 5 बंधन के िलये उ&रदायी होता है। वह उनक सरु :ा , उनके
आहार का भी बंध करता है।
14.गिणका3य:ः- इसका काय5 रा1य म8 गिणकाओ ं (वेयाओ)ं क िनगरानी करना होता है।
15.नौका3य:ः- नौका3य: नौकाओ ं के िनमा5ण, नौका मागk पर उनके िनबा5ध सच
ं ालन के िलये िजHमेदार होता है।
16.गो3य:ः- यह गोवंश क र:ा तथा उनके िवकास के िलये िजHमेदार होता है।
17.सवु णा53य:ः- यह रा1य के अदर सोने चादं ी के काय5 करने के िलये थान बनवाने तथा उनक िनगरानी का
काय5 करता है।
18.कोJगारा3य:ः- कोJगारा3य: रा1य म8 अनाज/ के भंडार क Oयव था करता है।
19.कुtया3य:ः- यह वह पदािधकारी होता है जो जगं ल म8 उपल@ध वनि पितय/ एवं अय सामिCय/ क र:ा
करता है।

थानीय शासन
कौिटbय ने शासन के सबसे िनचले िह से पर अथा5त थानीय शासन का भी उbलेख िकया है। वह राजा के ^ारा
गो, थािनक और नगरा3य: आिद अिधकारय/ क िनयिु \ का समथ5न करता है। उसके ^ारा विण5त मख ु
थानीय शासन के अिधकारी िनHन हैः-
1.गोपः- यह थानीय शासन का मख ु पदािधकारी था। वह पांच से दस Cाम/ का िजHमेदार था। इन Cाम/ क
सHपणू 5 िजHमेदारी गोप क होती है।
2. थािनकः- यह गोप के ऊपर थािपत एक मह+वपणू 5 पदािधकारी था। िजले के सम त गोप उसके अधीन थे।
3.नगरा3य:ः- +येक नगर का अ3य: नगरा3य: कहलाता है।
इस कार यह प> हो जाता है िक कौिटbय ने शासन क Oयापक एवं सचु ा. Oयव था क थी। उसने शासन के
+येक पहलू पर न के वल 3यान िदया वरन उसके िलये अलग िवभाग एवं पदािधकारी िनय\ु िकया। कौिटbय ने
शासन को अनेक भाग/ म8 बांटा। कौिटbय क सHपणू 5 शासिनक Oयव था म8 थानीय शासन को भी थान
िदया गया है। वह स&ा के के िpयकरण के थान पर िवके िpयकरण का समथ5क था।

6.5 कानून एवं याय संबंधी वचार


कौिटbय ने काननू / के सrती से पालन पर बल िदया। कौिटbय का काननू अनभु ववाद और आ3या+मवाद पर
आधारत है। उसके काननू का आधार धम5 है। उसक मायता थी िक जो रा1य काननू का पालन तथा याय
सिु निFत नह9 कर पाते वह शीŽ न> हो जाते है। उसक मायता थी िक रा1य का उेय जा के जीवन एवं सपं ि&
क र:ा करना है। असमािजक त+व/ तथा अOयव था उ+पन करने वाले Oयि\य/ को दिdडत करना है। वह काननू

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एवं दdड को सगी बहन/ क तरह मानता है जो रा1य को थािय+व और नागरक जीवन म8 सधु ार का संचार करता
है।
काननू का उेयः- काननू का उेय Oयि\ और समाज का कbयाण करना है। यह Oयि\ और समाज दोन/ के
सभी पहलओ ु ं का समाधान कbयाणकारी .प म8 करता है।
काननू क परभाषाः- कौिटbय के अनसु ार काननू शाही आदेश है जो वीकृ ित के ^ारा लागू िकया जाता है। काननू
सभी शाही आदेश/ का ित.प है। उउह/ने राजा को व.ण के समान माना है। वह सवmiच एवं सव5WेJ यायधीश
क भिू मका भी अदा करता है।
काननू के hोतः- कौिटbय ने काननू के चार hोत बताये हैः-
1. धािम5क उपदेश
2. Oयवहारक अथवा सािथय/ का Oयवहार
3. समाज के रीित रवाज और परHपरा
4. राजकय आदेश
कौिटbय ने उपरो\ के सदभं 5 म8 एक थान पर िलखा है िक ‘‘धम5 Oयवहार, चरZ राजा#ा ये िववाद के िनणा5यक
साधन होने के कारण रा;< के चार पैर माने जाते हL।
काननू का वग%करणः- कौिटbय ने काननू का Oयापक वगfकरण िकया है। उहोन8 इसको िनHन भाग/ म8 बांटा हैः-
1.िववाह संबंधी काननू ः- कौिटbय ने अपनी प ु तक “अथ5शाh“ म8 िववाह पर Oयापक िवमश5 िकया है। इसम8
उहोन8 धम5 िववाह, hी का पनु 5 िववाह , पित-प+नी ^ेष , पर प.
ु ष अनसु रण और पनु 5 िववाह पर Oयापक चचा5 कर
इनके िनयम और काननू का वण5न िकया है।
2.दाय अथवा उ&रािधकार िवषयक काननू ः- कौिटbय ने अपनी प ु तक “अथ5शाh“ म8 उ&रािधकार का सामाय
िनयम पैतक ृ Vम से िवशेषािधकार, पZु Vम से िवशेषािधकार का वण5न िकया है। उसक मायता है िक माता-िपता
या िपता के जीिवत रहते लड़के सपं ि& के उ&रािधकारी नह9 होते। िपता के न रहने पर वह सपं ित का बटवारा कर
सकते है। सयं \ु परवार/ म8 रहने वाले पZु / तथा पौZ चौथी पीढ़ी तक अिवभािजत पैतक ृ सपं ित के बराबर के
हकदार है िजसका कोई उ&रािधकारी न हो उसे रा1य ले लेवे। उसक मायता है िक पिलत, पिलत क सतं ान ,
मखू ,5 अधं ा कोढ़ी उ&रािधकार के अिधकारी नह9 होग8।
3.अचल संपित संबंधी काननू ः- इसके अत5गत कौिटbय ने संपित के बेचने, सीमा िववाद , कर क छूट, गांव/ का
बंदोब त, सामिू हक कायk म8 शािमल न होने का मआ ु वजा आिद का वण5न इसके अत5गत िकया गया है। इसम8 कर
क छूट , रा ते को रोकना, गांव/ का बंदोब त भी शािमल है।
4.ऋण संबंधी काननू ः- कौिटbय ने अथ5शाh म8 ऋण , @याज के िनयम , एक Oयि\ पर अनेक Oयि\ के कजा5
संबंधी काननू / का वण5न िकया है। वह @याज के संदभ5 म8 कहता है िक 100 पण पर सवा पण @याज लेना चािहए।
ऋण देने वाल/ तथा लेने वाल/ के चरZ क िनगरानी होनी चािहए। अन संबंधी @याज फसल के आधे से अिधक
नह9 होनी चािहए।

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5.धरोहर संबंधी काननू ः- इसके अत5गत धरोहर , िगरवी, उधार क व तु को लौटाने िगनकर रखी गई धरोहर आिद
के संबंध म8 Oयापक चचा5 क गई है।
6.दास और Wिमक संबंधी काननू ः-कौिटbय ने अपनी प ु तक “अथ5शाh“ म8 दास , Wिमक और नौकर/ के वेतन
पर भी काश डाला है। उह/ने यनू ानी िवचारक/ क तरह दास था को वीकार िकया है। वह िनHन जाितय/ तथा
अनायk को दास बनाने पर बल देता है। िवशेष ि थित म8 यिद उiच कुल का Oयि\ दास बन गया हो तो उसे म\ ु
कर देना चािहए। कौिटbय का मत है िक यिद दासी से सतं ान उ+पन हो जाए तो उसे दासता से म\
ु कर िदया जाना
चािहए।
7.साझेदारी िवषयक काननू ः- कौिटbय ने प> िकया है िक ठे के पर मजदरू ी करने वाले मजदरू ाX मजदरू ी को
आपस म8 बांट ल8। Oयापारी को माल खरीदने से बेचने तक हQए खचn को जोड़ने के बाद बेचने से ाX धन से हQए
लाभ को साझीदार से बांट लेना चािहए।
8.Vय-िवVय सबं धं ी काननू ः- कौिटbय ने Vय-िवVय सबं धं ी िनयम/ का िव तृत उbलेख अपनी प ु तक म8 िकया
है। उहोने प> िकया है िक Vय-िवVय करने वाले Oयापारय/ का बयान ; एक िदन म8 , िकसान/ का Vय-िवVय
तीन िदन तथा दधू वाल/ का बयाना 5 िदन म8 वापस िकया जा सकता है।
9. व- वामी संबंधी काननू ः- कौिटbय ने व- वामी संबंधी काननू / का भी उbलेख िकया है। उसका मत है िक
यिद कोई Oयि\ िकसी संपित को उपभोग कर रहा है तो उस पर उसी का वािम+व माना जाना चािहए। वह आगे
और अिधक प> करता है और कहता है िक यिद कोई Oयि\ दस वष5 तक िकसी सपं ित पर अपना अिधकार खो
देता है तो उस पर उसका दावा नह9 रह जाता है।
10.िनंदा संबंधी काननू ः- कौिटbय ने िनंदा संबंधी अथवा िववाद के संबंध म8 प> िकया है िक िकसी को
धमकाना, िनदां करना , वाaया.;य नामक अपराध के अतग5त है।
11.जआु संबंधी काननू ः- जआ
ु पर पैनी नजर रखने का समथ5क था। उसका यह मानना था िक धतू ा3य: को
अपनी िनगरानी म8 िनयत थान पर जआ
ु खलने क Oयव था करनी चािहए। इसका उbलंघन करने वाल/ को दdड
क Oयव था क है।
याय संबंधी िवचार
ाचीन भारतीय िचतक/ के अन. ु प कौिटbय भी वधम5 के पालन पर बहQत जोर देता है। उसक मायता थी िक
वधम5 पालन से न के वल वतः Oयव था बनती है वरन् लोक परलोक दोन/ सधु रता है। इसके बावजदू जो नागरक
काननू का उbलघनं करते है। उनको दिं डत करने क भी Oयव था वह करता है। उसक मायता थी िक याय िक
िबना जा धम5, अथ5, कात और मोs# से वंिचत हो जाता है। अतः याय के ^ारा ही जा के उ\ परम् लsय क
ािX हो सकती है। यही कारण है िक कौिटbय ने याय पर बहQत अिधक जोर िदया है। कितपय यही कारण है िक
कौिटbय याय को रा1य का ाण मानता है।
यायधीश क िनयिु \:- कौिटbय ने अपने राजनीितक दश5न का आधार राजा को माना है। उनक मायता एक
यो}य, कत5Oयपरायण तथा जनकbयाणकारी राजा क है। इसके बावजदू याय Oयव था को स=ु ढ़ करने के िलये वह
यायधीश/ क िनयिु \ का प:धर था। उसक मायता थी िक उiचतर यायालय म8 तीन धम5 थ यायधीश तथा
तीन अमा+य5 होने चािहए जो एक साथ बैठकर िववाद/ का िनपटारा कर सके । इन यायाधीश/ क िनयिु \ राजा के
^ारा क जायेगी।

उराखंड म
ु िविवालय 82
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
यायपािलका का संगठनः-कौिटbय ने अपनी प ु तक “अथ5शाh“ म8 चार थान/ पर यायपािलका के गठन का
सझु ाव िदया।उसके ^ारा क गई यायपािलका क Oयव था इस कार हैः-
1.जनपद संिध यायालयः- यह वह यायालय था जो दो रा1य/ या गांव/ क सीमा पर थािपत िकया जाता था।
यही कारण है िक इसे संिध यायालय भी कहा जाता है।
2.सCं हण यायालयः- कौिटbय क यायपािलका क मrु य इकाई थी। इसम8 10 गांव/ के के p म8 थािपत
यायलय को संCहण यायालय कहा गया।
3.pोणमख
ु यायालयः- यह कौिटbय क याय Oयव था क एक अय मह+वपणू 5 इकाई थी। इसका :ेZ और
अिधक Oयापक था। इसे चार सौ गांव/ के के p म8 थािपत िकया गया। इसका कम5:Zे सCं हण यायालय से
Oयापक था।
4. थानीय यायालयः- थानीय यायालय pोणमख
ु यायालय क अगली कड़ी था। इसका काय5:ेZ pोणमख ु
यायालय से भी Oयापक था। इसम8 आठ सौ गांव/ का समािहत कराया गया। यह आठ सौ गांव/ के के p म8
थािपत एक यायालय था।
यायपािलका का वगfकरण ( कारः-कौिटbय ने िववाद के व.प के आधार पर यायालय/ को दो भाग/ म8 बांटा
--
1. दीवानी अथवा धम5 थलीय या Oयवहार यायालय
2. फौजदारी अथवा क>क शोधन यायालय
दीवानी अथवा धम5 थलीय या Oयवहार यायालयः- धम5 थलीय यायालय वह यायालय है जो नागरक/ के
पर पर Oयवहार से उ+पन होने वाले िववाद/ का िनपटारा करते है। इस तरह के िववाद/ को कौिटbय ने Oयवहार क
सं#ा दी है। इसम8 मrु य .प से सHपित , संिवदा, उ&रािधकार, िववाह , ऋण , धरोहर, साझेदारी आिद संबंिधत
िववाद आते है।
फौजदारी अथवा क>कशोधन यायालयः- कौिटbय के अनसु ार क>कशोधन यायालय वह यायालय है िजनका
उेय रा1य के क>क अथवा शZओ ु ं को रा1य से दरू रखना है। इसका मrु य लsय राजा अथवा रा1य के िव.(
िकये जाने वाले अपराध/ पर िवचार करना है। इसके अत5गत मrु य .प से जा के ितिदन के सHपक5 के
धोबी,जु ीर् , रंगरे ज, सनु ार, वै0, नट आिद के ^ारा जा के शोषण आिद के मामले आते है। इसम8 कम5चारय/ के
^ारा जा के उ+पीड़न के मामले भी आते है। कौिटbय ने इन सभी अपराध/ को क>क क Wेणी म8 रखा है। इन
अपराध/ का पता लगाने के िलये गXु चर/ क Oयव था पर बल िदया।
कौिटbय क सHपणू 5 यायOयव था आधिु नक है। वह याय क िन;प:ता पर बहQत बल देता था। वह याय Oयव था
के िवके िpकरण का िहमायती था। उसने उiचतर यायालय म8 तीन धम5 थ यायधीश तथा तीन अमा+य/ पर बल
िदया तथा िनण5य सव5सHमित या बहQमत से करने पर बल िदया जो िक आज के समय (1यरू ी) बहQ सद यीय
याियक पीठ के .प म8 िव0मान है। उह/ने याय Oयव था को िन;प: बनाने के िलये सHपणू 5 िVया, गवाही के
िलखे जाने पर बल िदया। उसक मायता थी िक याय दान करने क Oयव था म8 िलंग तथा वग5 के आधार पर
भेदभाव नह9 करना चािहए। उसने यायधीश/ पर भी िनगरानी पर बल िदया है। यह काय5 गXु चर िवभाग को िदया
गया। यिद यायधीश िनयम/ क अनदेखी करता है तो उसे दिdडत िकया जाना चािहए।

उराखंड म
ु िविवालय 83
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
दdड एवं गXु चर Oयव थाः-कौिटbय ने याय Oयव था के साथ दdड Oयव था का भी वण5न िकया है। कौिटbय ने
दdड के औिच+य एवं दdड के कार का िव तृत िववेचन ततु िकया है। कौिटbय का दdड संबंधी िवचार बहQत
तािक5 क एवं यथा5तवादी है। उसक मायता है िक काम, Vोध, लोभ, मान, मद, हष5 आिद छः शZु न जाने कब
मन;ु य को उ&ेिजत कर दे तथा मन;ु य को अधम5, दरु ाचरण क ओर ले जाते है। ऐसी ि थित म8 अराजकता उ+पन
हो जायेगी। चार/ ओर ‘म+ य याय’ क ि थित उ+पन हो जायेगी, िजसम8 बड़ी मछली छोटी मछली को िनगल
जाती है। इस ि थित से बचने के िलये कौिटbय ने एक भावी दdड Oयव था क कbपना क िजसम8 काननू तोड़ने
तथा अOयव था उ+पन करने वाले को +वरत .प से दिdडत करने क बात क गई।
दdड का व.पः- कौिटbय क मायता थी िक समाज म8 धम5 बना रहे तथा समाज म8 लोककbयाण थािपत हो
इसी उेय के िलये दdड का योग िकया जाना चािहए। कौिटbय के अनसु ार राजा ही दdड देने का अिधकारी
होता है अतः उसका दdड सधु ारा+मक होना चािहए। उसके ^ारा ितशोधा+मक दdड नह9 देना चािहए। दdड सधु ार
के िलये कbयाण के िलये होना चािहए।

6.6 दLड एवं गु.तचर संबंधी वचार


१.कौिटbय दdड के िनधा5रण म8 समानता के िस(ात को नह9 मानता है। उसका मानना है िक मिहलाओ ं और
बiच/ को कम दdड िमलना चािहए। उसने वण5 Oयव था के आधार पर भी भेद िकया है। उसका मानना है िक
ाहमण/ को भी कम दdड िमलना चािहए। कौिटbय का मानना था िक दdड का िनधा5रण अपराध, अपराध क
परि थितय/, वण5, िलंग के आधार पर करना चािहए।
द*ड के कारः- कौिटbय ने तीन कार के दdड बताये हैः-
1.शारीरक दdडः- शारीरक दdड म8 वह कोड़े मारना, अगं छे दन, हाथ-पैर बांधकर उbटा लटकाना, ाहमण
अथवा उiच जाितय/ के माथे पर िचह अिं कत करने को शािमल करता है। उसने पाप काने वाले प. ु ष को अय
दdड भी बताये है। इसम8 मrु य .प से ब8त मारना, थtपड़ मारना, बांए हाथ को बांये पैर से तथा दांये हाथ को दांये
पैर से पीछे बांधना। दोन/ हाथ आपस म8 बांधकर लटका देना, नाखनु म8 सईु चभु ाना, घी िपलाकर धपू या आग के
पास बैठाना। जाड़े क रात म8 गीले िव तर पर सलु ाना। वह कहता है िक माता-िपता को गाली देने वाले क िजा
काट लेनी चािहए। राजा अथवा रा1य के भेद खोलने वाले को भी यिद दdड िदया जाना चािहए।
ाणदdडः- कौिटbय ने िविभन अपराध/ के िलये ाणदdड का भी ावधान िकया है। यिद झगड़े म8 िकसी क मृ+यु
हो गई हो तो दसू रे को ाणदdड दे िदया जाए। बला+कार करने तथा जीभ काटने वाले , स8ध लगाकर चोरी करने,
हाथी, घोड़े तथा रथ को नक ु सान पहQचं ाने वाले को भी मृ+यु दdड िदया जाना चािहए। माता-िपता ,पZु भाई,
आचाय5 के ह+यारे को भी यही दdड िदया जाना चािहए। अपने पित, पZु , ग. ु को िवष देने वाली hी को गाय से
कुचलवा कर मारा जाये। ाहमणी के साथ Oयािभचार करने वाले शpू को िजदं ा जला िदया जाए। रानी के साथ
Oयािभचार करने वाले को जीिवत भनू िदया जाय।
2. आिथ.क द*डः- कौिटbय ने आिथ5क दdड को तीन भाग/ म8 बांटा हैः-
1. थम साहस दdड

उराखंड म
ु िविवालय 84
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2. म3यम साहस दdड
3. उ&म साहस दdड
थम साहस दdडः- थम साहस दdड म8 48 से 96 पण तक का जमु ा5ना लगाने क Oयव था क गई है।
म3यम साहस दdड:- म3यम साहस दdड को दो सौ से पांच सौ पण तक क जमु ा5ने क Oयव था क गई है।
उ&म साहस दdडः- इसम8 पांच सौ से 1 हजार पण तक के जमु ा5ने क Oयव था क गई है।
कारागार अथवा जेलः- कौिटbय ने अपरािधय/ के िलये जेल क Oयव था क है। उसक मायता है िक यिद कोई
ाहमण रा1य के िव.( षणयZं करे तो उसे आजीवन कै द म8 डाल देना चािहए। कौिटbय ने प> िकया है िक
यायधीश/ तथा समाहाता5 से सजा जाये लोग/ को कारागृह म8 रखना चािहए। कारागृह म8 hी प.
ु ष के िलये अलग-
अलग थान होना चािहए। कारागार क पया5X सरु :ा होनी चािहए।
कौिटbय ने शभु अवसर/ पर कै िदय/ को म\
ु करने क Oयव था क। वह कौिटbय का मानवीय =ि>कोण था। उसने
आगे प> िकया है िक िवजय पर राजकुमार के रा1यािभषेक के समय, राजपZु के जमो+सव पर कै िदय/ को म\

कर देना चािहए।
रा1य अिधकारय/ के िलए दdडः- कौिटbय का मत था िक +येक रा1य अिधकारय/ को अपना कत5Oय पालन
करना चािहए। यिद कोई अिधकारी िनयिमत आय का कम िदखाता है तो वह राजधम5 का अपहरण करता है।
उसक अ:मता, अयो}यता से यिद यह कमी होती है तो उसे उसी Vम म8 दिdडत करना चािहए। यिद कोई
अिधकरी राजकोष म8 अिधक धन जमा कराता है तो उसक भी जांच करा कर उसको दिdडत करना चािहए aय/िक
उसक वसलू ी जा को तािड़त कर हQई होगी। यिद अिधकारी ने धन का गबन करते हQए जमा नह9 िकया है तो उसे
कठोर दdड िमलना चािहए।
वे]ावृि& के िलये दdडः- कौिटbय ने प> िकया है िक यिद कोई प. ु ष कामना रिहत मिहला से शारीरक संबंध
बनाता है तो उसे उ&म साहस दdड देना चािहए। राजा क सेवा म8 िनय\ ु गिणका को तािड़त करने वाले Oयि\
को बह&र हजार पण दdड देना चािहए। राजा क आ#ा पर कोई वैया यिद िकसी िविश> Oयि\ के पास जाने से
इक
ं ार कर दे तो उसे 1 हजार कोड़े लगवाये जाने चािहए। परू ी रात का शbु क ले बहाना बनाने पर शbु क का आठ
गनु ा दdड िलया जाना चािहए।
२.गXु चर Oयव था
कौिटbय ने गXु चर को शासन को मह+वपणू 5 िह सा माना था। उसक मायता थी िक बगैर भावी गXु चर
Oयव था के एक सरु ि:त, गितशील रा1य का िनमा5ण नह9 िकया जा सकता है। भारत म8 ाचीन काल से ही
गXु चर Oयव था पर अ+यािधक बल रहा है। रामायण तथा महाभारत म8 गXु चर Oयव था का वण5न िमलता है।
कौिटbय ने सव5 थम गXु चर Oयव था को थािपत िकया। उसने गXु चर/ के कार, काय5 तथा भिू मका का िव तृत
वण5न िकया। उसने दो कार के गXु चर बतायेः-
1. थायी गXु चर
2. मणशील गXु चर
थायी गXु चर:-कौिटbय ने थाई गXु चर/ को पांच भाग/ म8 बांटा हैः-

उराखंड म
ु िविवालय 85
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
कापरक गXु चरः- दसू र/ के रह य को जानने वाला एवं दबगं िक म का गXु चर होता है। यह सामायतः िव0ाथf
क वेशभषू ा म8 रहता है।
उदाि थत गXु चरः- यह सयासी .प म8 रहने वाला बिु (मान तथा सदाचारी Oयि\ होता है।
गृहपिलक गXु चरः- गरीब िकसान के वेश म8 रहने वाला एक बिु (मान Oयि\ होता है।
वैदहे क:- गरीब Oयापारी के वेश म8 बिु (मान गXु चर को वैदहे क कहा जाता है।
तापस गXु चरः- जीिवका के िलये िसर के बाल साफ कराये अथवा जहां रखे राजा का काय5 करने वाला Oयि\
तापस गXु चर कहलाता है। ये सामायतः िव0ािथ5य/ के साथ नगर के पास आWम बना कर रहते है।
/मणशील गु1चरः- ये एक थान से दसू रे थान जाकर काय5 करते है अतः इह8 मणशील अथवा सचं ार गXु चर
कहते है।
इसके मख
ु कार िनHन हैः-
सZी गXु चरः- ये राजा के सबं धं ी नह9 होते परतु इनका पालन राजा के िलये आवयक होता है। ये वशीकरण,
धम5शाh, नाचने गाने, 1योितष म8 अित पारंगत होते है।
तीsण गXु चरः- ये वे गXु चर होते है जो धन के िलये बड़े जोिखम उठा लेते है। वे हाथी, बाघ, सांप आिद से िभड़
जाते है। इह8 तीsण गXु चर कहते है।
रसद गXु चरः- अपने िनकट संबंिधय/ से संबंध न रखने वाला, कठोर एवं Vूर वभाव के Oयि\ को रसद (िवष देने
वाला) गXु चर कहा जाता है।
पर‹ािजका गXु चरः-धन क इiछुक ऐसी hी जो अमा+य/ के घर जाती हो, दबंग हो, बाहमणी हो तथा रिनवास म8
सHमान हो, को पर‹ािजका गXु चर कहा जाता है।
उभयवेतन भोगी गXु चरः- यह दोहरा वेतन पाने वाले , दसू रे रा1य/ क गितिविधय/ का पता लगाने वाले गXु चर
होते है। ये दसू रे रा1य म8 जा नौकरी करते है और दोहरा वेतन लेते है।
िवषकयाः- यह वह hी थी जो िवष का सेवन कर पाली जाती थी। इसे रा1य िहत म8 शZु के पास भेजा जाता था
जहां वह अपने सौदय5, यौवन, हावभाव से शZु को भोग के िलये तैयार कर लेती थी। यही शZु के िवनाश का
कारण बनता था।
गXु चर/ के काय5ः- कौिटbय ने गXु चर/ के मख
ु काय5 िनHन बताये हैः-
1.गXु चर को उiचािधकारय/ तथा अय अिधकारय/ के आचरण का पता लगाकर राजा को सिू चत
करना चािहए।
2.यिद कोई कम5चारी िवpोही वृित का है तो उसक सचू ना त+काल राजा को देनी चािहए।
3.ऐसे षड़यZ/ क सचू ना राजा को देना जो राजा के िव.( जा ^ारा रचे गये हो।
4.जनता के मनोभाव/ को पढ़ना तथा असं तोष के कारण/ को राजा के सम: तुत करना।

उराखंड म
ु िविवालय 86
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
कौिटbय के श@द/ म8-‘‘रा1य म8 कम5चारय/ एवं जा क शZतु ा जानने के िलए गXु चर/ क िनयिु \ क जाए। राजा
धन एवं मान ^ारा गXु चर/ को संतु> रखे।’’उपरो\ िववेचन से प> है िक कौिटbय ने गXु चर Oयव था का िवƒे षण
बड़ी सsू म =ि> से िकया है।

6.8 मLडल 1स2ात


कौिटbय ने अपनी प ु तक म8 मdडल िस(ात का िव तृत वण5न िकया है। कौिटbय ने पड़ोसी रा1य/ से संबंध
संचालन को मंडल िस(ात के नाम से तथा अय िवदेशी रा1य/ के साथ संबंध संचालन को षाडगdु य नीित के
नाम से अिभOय\ िकया। कौिटbय का मdडल िस(ात ाचीन भारतीय Cथ/ पर आधारत है। यह राम रा1य म8
चिलत ‘‘िदि}वजय िस(ात’’ पर आधारत है।
अथ5ः- मdडल का अथ5 ‘‘रा1य/ का वृ&’’ होता है। यह एक कार क रणनीित है िजसम8 िवषय क आकां:ा रखने
वाला रा1य अपने चार/ ओर के अय रा1य/ को मdडल मानता है।
मdडल िस(ात एक बारह रा1य/ के वृ&/ पर आधारत है। इसके अतग5त मdडल का के p ऐसा रा1य होता है जो
पड़ोसी रा1य को जीतकर अपने म8 िमलाने का +य+नशील रहता है। इसे वह िविजगीषु राजा कहता है। मंडल म8
बारह रा1य होते है- िविजगीष,ु अर, िमZ, िमZिमZ, अर िमZिमZ, पािJीCाहा, आVंद, पािdण5Cालसार,
आV ं ादासार, म3यम और उदासीन।
कौिटbय के अनसु ार िविजगीषु मडं ल के म3य रहता है। अर, िमZ, अरिमZ, िमZ िमZ और अरिमZ ये पं◌ाच
रा1य िवजीगीषु के सामने तथा पाि;णCाह, आंVद, पािdण5Cाहासार और आंVादासार ये चार रा1य के पीछे रहते
है। शेष दो रा1य म3यम एवं उदासीन बगल म8 रहते हL। कौिटbय के मdडल िस(ात के बारह रा1य/ का वण5न इस
कार िकया जा सकता हैः-
1.िविजगीषु रा1यः- अपने रा1य के िव तार क आकां:ा रखने वाला िविजगीषु कहलाता है। इसका थान मडं ल
के के p म8 होता है।
2.अरः- िविजगीषु के सामने वाला रा1य जो उसका शZु होता है अर कहलाता हे।
3.िमZः- अर के सामने का राजा िमZ कहलाता है। यह िविजगीषु का िमZ और अर का शZु होता है।
4.अरिमZः- िमZ के सामने वाला रा1य अरिमZ कहलाता है। यह अर का िमZ और िविजगीषु का शZु होता है।
5.िमZिमZः- अरिमZ के सामने वाला रा1य िमZिमZ कहलाता है। िमZ रा1य का िमZ होता है। यही कारण है िक
वह िविजगीषु रा1य के साथ भी उसक िमZता होती है।
6.अर िमZिमZः- िमZZिमZ के सामने वाला रा1य अर िमZ-िमZ कहलाता है aय/िक वह अरिमZ रा1य का िमZ
होता है। अतः अर रा1य के साथ उसका सबं धं िमZता का रहता है।
7.पाि;ण5Cाह (पीठ का शZ)ु - िविजगीषु के पीछे जो रा1य रहता है वह पाि;ण5Cाह कहलाता है। अर क तरह वह
भी िविजगीषु का शZु होता है।
8.आV
ं दः- पाि;ण5Cाह के पीछे जो रा1य होता है उसे आV
ं द कहते है वह िविजगीषु का िमZ होता है।
9.पाि;ण5Cाहासारः- आंVाद के पीछे वाला रा1य का पािdण5Cाहासार कहलाता है। यह पािdण5Cाह का िमZ होता है।

उराखंड म
ु िविवालय 87
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
10.आंVादासारः- पािdण5Cाहासार के पीछे वाला रा1य आंVदासार कहताता है। यह आंVाद का िमZ होता है।
11.म3यमः- म3यम ऐसा रा1य है िजसका देश िविजगीषु और पररा1य दोन/ क सीमा से लगा होता है। दोन/ से
शि\शाली होने के कारण यह दोन/ क सहायता भी करता है। ज.रत पड़ने पर यह दोन/ से अलग-अलग
मक
ु ाबला भी करता है।
12.उदासीनः- राजा का देश िविजगीष,ु अर, म3यम इन तीन/ से परे पर होता है। यह शि\शाली होने के कारण
तीन/ से मक
ु ाबला भी कर सकता है।
उ\ बारह रा1य/ का समहू रा1य मdडल कहलाता है। कौिटbय ने इस िस(ात के मा3यम से यह बताने का यास
िकया है िक भौगोिलक आधार पर कौन िमZ तथा शZु हो सकते है।
म*डल िसा&त का िव2े षणः- कौिटbय का मdडल िस(ात एक Oयवहारक एवं दरू दिश5तापणू 5 िस(ात है।
इस िस(ात म8 कौिटbय ने रा1य के चार/ ओर बनने वाले मdडल (दसू रे रा1य/ के घेरा) का िवƒे षण िकया है।
उसके मdडल िस(ात क मख ु त+व िनHन हैः-
1.कौिटbय का मdडल िस(ात 12 रा1य/ के एक के p क कbपना करता है।
2.मdडल िस(ात म8 रा1य/ को िवशेष नाम एवं िवशेष कृ ित का उbलेख िकया गया है।
3.कौिटbय के अनसु ार यह संrया घट बढ़ सकती है।
4.कौिटbय के अनसु ार म3यम एवं उदासीन रा1य को छोड़कर अय सभी रा1य/ क शि\ लगभग समान है।
5.कौिटbय क प> मायता है िक रा1य अपने पड़ोसी का शZु तथा उसके पड़ोसी का िमZ होता है।
6.उसक मायता है िक रा1य को पड़ोसी रा1य से सतक5 रहते हQए अपना गठबंधन बनाना चािहए।
7.यह शि\ संतल
ु न के िस(ात पर आधारत है। यह रा1य/ के आपसी सहयोग पर आधारत है।
कौिटbय का मdडल िस(ात त+कालीन परि थितय/ के अनसु ार थािपत िकया गया था परतु आज क बदली
परि थितय/ म8 िजसम8 भमू dडलीकरण का दौर है तथा सैिनक शि\ क अपे:ा आिथ5क शि\ का मह+व बढ़ गया
है , ांसिगक नह9 रह गया है। इसके बावजदू त+कालीन परि थितय/ को देखते हQए उसक यह मह+वपणू 5 देन है।

6.9 षाड.गुLय नीत


कौिटbय ने पड़ोसी देश/ के साथ Oयवहार के िलये 6 ल:ण/ वाली नीित अपनाने पर बल िदया। ाचीन भारतीय
िचतन म8 भी इसके ल:ण िमलते है। मनु के िवचार/ म8 तथा महाभारत म8 भी इसका उbलेख िमलता है। कौिटbय
क मायता थी िक िवदेश नीित का िनधा5रण इन छः गणु / के आधार पर करना चािहए। कौिटbय ने षड़गdु य नीित
को प> करते हQए िलखा है िक -‘‘उनम8 दो राजाओ ं का मेल हो जाना संिध, शZु का अपकार करना िवCह ,उपे:ा
करना, आसन हमला करना यान आ+म सम5पण करना संWय, दोन/ से काम लेना ^ैधीभाव कहलाता है।’’
षाड़गdु य नीित का Oयवहारक प:ः- कौिटbय ने षाड़गdु य नीित का िवकास Oयवहारक आधार पर िकया।
कौिटbय यह जानता था िक राजा अथवा रा1य को कई बार ऐसे अवसर देखने पड़ते है जब उनके सामने क
चनु ौती बहQत शि\शाली तथा कई बार चनु ौती बेहद कमजोर होती है। ऐसे म8 राजा को परि थितय/ के अनसु ार

उराखंड म
ु िविवालय 88
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
नीित बनानी चािहए तथा कमजोर होने पर िवCह कर लेना चािहए। यिद दोन/ समान ि थित म8 हL तो आसन को
वीकार कर लेना चािहए। यिद राजा वयं को स:म एवं तैयार समझता है तो उसे यान (चढ़ाई) का सहारा लेना
चािहए। समय, परि थितय/ के अनसु ार नीित म8 परवत5न करके रा;<िहत को साधना चािहए। कौिटbय क मायता
थी िक समय के साथ षाड़गdु य म8 परवत5न िकया जाना चािहए। कौिटbय क षाड़गdु य नीित इस कार हैः-
1. संिधः- कौिटbय के षड़गdु य नीित का पहला एंव मह+वपणू 5 त+व है। कौिटbय का मत है िक यह दो
राजाओ ं के म3य हQआ समझौता है। यह राजा के ^ारा िकया गया उपVम है िजसका उेय अपने को बलशाली
बनाना तथा शZु को कमजोर करना है। कौिटbय ने सिं ध के िलये िनHन आवयक परि थितयां बतायी हैः-
1. यिद राजा समझता है िक इससे उसके िहत िस( ह/गे तथा शZु को हािन होगी।
2. शZु प: के लोग/ को कृ पा िदखाकर अपने म8 शािमल करना।
3. शZु के साथ संिध कर उसका िव]ास हो जाये तो गXु चर/ और िवष योग से शZु का नाश करना।
4. उ&म कायk के साथ शZु के उ&म कायk से लाभ ाX करना।
सिं ध के कारः-कौिटbय ने अनेक कार क संिधय/ का उbलेख िकया है। इसम8 से कुछ मख
ु संिध इस कार
हैः-
हीन संिधः- हीन संिध एक िवशेष कार क सिं ध है जो बलवान राजा के साथ एक कमजोर राजा अपनी सरु :ा
और िहत सवंध5न के िलये करता है।
दडं ोपनत सिं धः- कौिटbय ने इसके तीन कार बताये है-
अिमष संिधः- जब परािजत राजा िवजयी राजा के सम: अपनी सेना, धन के साथ सम5पण कर दे तो उस संिध का
अिमष संिध कहते है।
प.
ु षांतर संिधः- अपने सेनापित तथा राजकुमार को िवजयी राजा को सŒपकर जो संिध क जाती है उसे प.
ु षंकर
संिध कहते है।
अ=य प.ु ष संिधः- यह एक िवशेष संिध होती है िजसम8 यह िनिFत होता है िक िवजयी राजा के िहत के िलये
परािजत सेना या राजा उपVम करे गा। यह संिध अ=य प.
ु ष संिध कहलाती है।
देशोपनत सिं धः- देशोपनत सिं ध के िनHन कार होते है-
परVय संिधः-यह वह संिध होती है िजसम8 बलवान राजा ^ारा य(
ु म8 िगर†तार िकये गये मह+वपणू 5 Oयि\य/ को
धन देकर छोड़ा जाता है।
उपCह सिं धः- यह वह सिं ध है िजसम8 धनरािश िनिFत हो जाती है। यह िक तवार धन अदा करने बल देती है।
सवु ण5 संिधः- सिु वधानसु ार िनिFत समय पर िनयिमत धनरािश देने क संिध सवु ण5 संिध कहलाती है।
कपाल संिधः- यह वह संिध हL िजसम8 संपणू 5 धनरािश त+काल अदा करने क शत5 होती है। इसे कपाल संिध कहते
है।
परपिणत देश संिधः- यह एक कार क रणनीितक संिध दो रा1य/ के बीच होती है। इसम8 दो रा1य रणनीित के
तहत अलग-अलग दो रा1य/ पर हमला करते है।

उराखंड म
ु िविवालय 89
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
परपिणत काल संिधः- यह समय (काल) को आधार पर क गई संिध होती है। इसम8 दो रा1य एक िनिFत समय
पर काय5 करने पर सहमत होते है।
परपिणत काय5 संिधः- यह दो रा1य/ के बीच एक िनिFत काय5 को करने का समझौता होता है। इसम8 अपने-अपने
िह से का काय5 तय हो जाता है।
िमZ संिधः- यह एक अलग कार क संिध है जो दो िमZ राजाओ ं के बीच पर पर िहत पिू त5 के िलये क जाती है।
िवषम सिं धः- यह दो रा1य/ के बीच दो अलग-अलग कायk को करने का समझौता है। इसम8 एक रा1य िहरdय का
तथा दसू रा भिू म का काय5 करता है।
अित संिधः- यह िवशेष संिध है जो उHमीद से अिधक लाभ ाX होने का तीक है।
भिू म सिं धः- यह दो रा1य/ के बीच भिू म ाX करने हेतु िकया गया समझौता है। इसे भिू म सिं ध कहते है।
िहरdय संिधः- यह िहरdय लाभ के िलये क गई संिध है। यही कारण है िक इसे िहरdय संिध कहते है।
िवCह या य(ु ः- यह राजा क मह+वपणू 5 नीित है। राजा को य(
ु का सहारा तभी लेना चािहए जब उसे लगे िक शZु
कमजोर हो गया है। कौिटbय ने आगे प> िकया है िक यिद िवजीगीषु राजा को यह लगे िक सिं ध और िवCह दोन/
से ही समान लाभ ाX हो रहा है तो उसे िवCह के थान पर सिं ध का सहारा लेना चािहए।
कौिटbय ने प> िकया है िक य( ु के िलये एक शि\शाली सेना आवयक है। उसने सेना के चार अगं बताये है-
पैदल सैिनक, हाथी, घोड़े , रथ आिद। कौिटbय उ\ चार/ म8 हाथी पर अिधक बल देता था। सैिनक/ क भतf के
संबंध म8 वह वंशानगु त सैिनक/ को अिधक मह+व देता था। वह :िZय/ को अिधकािधक सेना म8 रखने का प:धर
था। यिद संrया कम हो तो वह वैय एवं शpू / को भी शािमल करने पर बल देता है।
कौिटbय ने िवजय ाX करने के िलये तीन कार के बल को आवयक बताया। ये नैितक बल, अथ5 बल तथा
कूटनीितक बल है। इसम8 से वह नैितक बल अथवा उ+साह शि\ पर अिधक बल देता था।
य(
ु के कार - कौिटbय ने य(
ु के िनHन कार बताये है-
1. काश य(
ु ः- यह य(
ु िकसी देश या समय को िनिFत कर िकया जाता है।
2. लटू य(
ु ः- यह छोटी सेना को बड़ा िदखाकर िकया गया य(
ु है। इसम8 िकल/ को जलाना, लटू पाट करना,
धावा बोलना आिद शािमल है।
3. तू;णी य(
ु ः- िवष या औषिध के मा3यम से शZु को नाश करने का तरीका तू;णी य(
ु कहलाता है।
य(ु का उपय\
ु समयः- कौिटbय ने य( ु क Oयापक योजना ततु क है। उसने वष5 के बारह महीन/ का िवƒे षण
कर उिचत समय का वण5न िकया है। उनका मानना था िक य( ु म8 अिधक समय लगने क ि थित म8 पौष म8, म3यम
समय लगने क ि थित म8 चैZ म8, अbप समय लगने पर जेठ य( ु का WेJ समय है। वह वषा5काल को य( ु के िलये
घातक मानता है। यिद भ-ू देश अनक
ु ू ल है तथा य(
ु टाला नह9 जा सकता तो इस समय भी य( ु िकया जा सकता
है।
य(
ु का बंध तथा िनयमः- कौिटbय य( ु के Oयापक बंध का प:धर था। वह मानता था िक य( ु भिू म म8 सभी
आवयकता क पिू त5 का बंध य(
ु से पवू 5 कर लेना चािहए। यह सभी बंध य(
ु भिू म म8 तैयार रहना चािहए। इसम8

उराखंड म
ु िविवालय 90
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
आवयक औषिध सामCी, वै0, खाने-पीने क सामCी , रसोइय/ तथा सैिनक/ को खश ु करने वाली मिहलाय8 भी
शािमल है। कौिटbय य(ु मैदान के कुछ िनयम तय करता है। उसक मायता है िक य(
ु म8 घायल सैिनक/, भागते
सैिनक/ तथा आ+मसमप5ण करने वाले सैिनक/ पर हार नह9 करना चािहए। भयभीत एवं िगरे हQए मनोबल वाले
सैिनक/ को भी नह9 मारना चािहए।
िवजयी राजा के कारः- कौिटbय ने िवजीगीषु राजा के तीन कार बताये है-
1. धम5िवजयीः- धम5िवजयी गौरव एवं ितJा के िलये िवजय ाX करना चाहता है।वह शZु ^ारा
आ+मसमप5ण करने से संत>ु हो जाता है।
2. लोभ िवजयीः- लोभ िवजयी वह राजा होता है जो भिू म एवं धन दोन/ देने से सतं >ु हो जाता है।
3. असरु िवजयीः- असरु िवजयी राजा वह होता है जो आसरु ी वृितय/ से य\
ु होता है। इसम8 वह धन ,
भिू म, ाण तथा hी आिद को पाकर ही संत>ु होता है।
यान -
यान का अथ5 होता है आVमण। इस नीित को तभी अपनाया जाता है जब यह लगे िक उसक सैिनक शि\
मजबतू है तथा िबना आVमण िकये शZु को िनयिZत नह9 िकया जा सकता है। कौिटbय ने अपनी प ु तक म8 यान
का Oयापक वण5न िकया है।
आसन या तट थताः- यह वह अव था है िजसम8 उिचत समय क ती:ा म8 राजा चपु चाप तट थ होकर बैठा रहता
है। यह अपने को मजबतू करते हQए शZु पर आVमण करने के साही समय क ती:ा है। कौिटbय ने आसन के दो
कार बताये हैः-
1. िवCह आसन
2. संघाय आसन
िवCह आसनः- जब िवजीगीष(ु िवजयी) और शZु दोन/ ही सिध करने क इiछा रखते है तथा पर पर एक दसू र
को न> करने क शि\ न रखते हो तो कुछ काल य(
ु कर चपु बैठ जाते है।
संधाय आसन
जब दोन/ राजा एक सिं ध कर चपु चाप बैठ जाते है तो उसे सधं ाय आसन कहते है।
संWयः
यह एक कार का आWय या शरण है जो कमजोर रा1य बलवान राजा के यहां लेता है। यह तभी होता है जब
राजा बेहद कमजोर हो तथा अपनी र:ा करने म8 म8 असमथ5 हो।
^ैधीभावः
^ैधीभाव क नीित से कौिटbय का आशय एक रा1य के ित संिध तथा दसू रे के ित िवCह नीित को अपनाने क
नीित है। यह रा;<ीय उेय क पिू त5 के िलए एक से सहायता लेने तथा दसू रे से लड़ने क नीित है। वह िवशेष
परि थितय/ म8 िवशेष नीित अपनाने का प:धर था। िवदेश नीित के संचालन म8 वह साम, दाम, दdड, भेद आिद

उराखंड म
ु िविवालय 91
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
क नीित के अपनाने का प:धर था। इन चार/ म8 वह साम (समझाना) दाम (पैसे देना) से WेJ है तथा भेद (फूट
डालना) दdड (य(
ु से) WेJ है।
षाड़गdु य नीित का मbू यांकनः- कौिटbय क षाड़गdु य नीित का िनHन आधार पर आलोचना क जाती हैः-
1.आधिु नक समय म8 यह िवदेश नीित अनपु य\
ु है। इसे Oयवहारक नह9 माना जा सकता है।
2.इसम8 अनैितक मा3यम, छल, धोखा, आिद पर बहQत बल िदया जाता है।
3.कौिटbय भभू ाग िव तार का प:धर था। वह इसके िव तार के िलये सदैव य+नशील रहने का िहमायती था।
इसम8 िहसं ा एवं र\पात क संभावना बढ़ जाती है।
मूयाँकन
कौिटbय भारतीय राजदश5न का जनक है। कुछ पाFा+य िवचारक भी यह मानते है िक ाचीन भारतीय िव^ान/ म8
सवा5िधक मह+वपणू 5 िवचारक कौिटbय है। राजनीितक दश5न म8 कौिटbय के मह+व को हम िनHन िबदओ
ु ं के ^ारा
दशा5 सकते हैः-
1.कौिटbय ने अपने Cथ अथ5शाh म8 पवू 5 भारतीय िव^ान/ भार^ाज, मन,ु वृह पित के िवचार/ का िमWण
सOु यवि थत .प से ततु िकया।
2.कौिटbय पहला भारतीय िवचारक था िजसने राजनीित को धम5, नैितकता से अलग एक वतZ िवषय के .प म8
न के वल देखा वरन् उसक Oयाrया भी क।
3.कौिटbय ने राजनीित का Oयवहारक एवं यथा5थवादी व.प तुत िकया। उसने के pीकृ त एवं स=ु ढ़ शासन क
वकालत क। अपने िस(ात/ के आधार पर कोई मौय5 वंश क थापना क।
4.कौिटbय ने रा1य के कायk का जो वण5न िकया है उसम8 लोककbयाणकारी रा1य के बीच िनिहत िदखायी पड़ते
है।
5.कौिटbय राजतंZ का समथ5क है परतु उसका राजा एक यो}य ईमानदार और िनयिZत राजा है। वह कुछ हद तक
tलेटो के दाश5िनक राजा क तरह है।
6.कौिटbय ने Oयापक शासिनक Oयव था का उbलेख िकया है। उसने शासन को 18 भाग म8 िवभािजत िकया
है। उसका शासिनक िवके pीकरण उसक मह+वपणू 5 देन है।
7.कौिटbय ने काननू के शासन पर बल िदया। काननू अनभु व तथा आ3या+म पर आधारत है।
8.कौिटbय ने याय के िलये वतZ एवं िन;प: नयाय िवभाग क थापना पर बल िदया। उसने यायधीश/ क
िनयिु \ एवं कायk क प> Oयाrया क।
9.कौिटbय ने दdड क Oयापक Oयव था क। उसने दdड का व.प, दdड के िनधा5रण िस(ात, कार का िव तृत
िववरण तुत िकया। उसका दdड िस(ात पणू त5 ः Oयवहारक है।
10.कौिटbय ने राजपतू तथा रा1य क सीमा के अदं र गXु चर/ के ऊपर Oयापक वण5न िकया है। अतरा5;<ीय :ेZ म8
वह मdडल िस(ात के ^ारा िवदेश नीित संचालन तथा रा;< क सीमा को सरु ि:त रखने तथा िव तार क नीित
को प> करता है।

उराखंड म
ु िविवालय 92
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
11.उसने धम5 एवं राजनीित पर िवचार िकया। आतं रक एवं िवदेशनीित धम5 पर आधारत होनी चािहए। उसने
राजनीित को धम5 आधारत बताया परतु कुछ थान/ पर वह उसे वतZ भी रखता है। वह धािम5क सं थाओ ं पर
रा1य के िनयZण का प:धर है।

6.11 कौIटJय एवं मैकयावेल$


कौिटbय ने प ु तक “अथ5शाh“ तथा मैिकयावेली ने अपनी प ु तक ‘‘िद ि ंस’’ म8 अपने राजनीितक िवचार/ का
उbलेख िकया है। कुछ पाFा+य िवचारक कौिटbय को मैिकयावेली का अCदतू मानते है तथा उसक तल ु ना
मैिकयावेली से करते है। कौिटbय एवं मैिकयावेली म8 अनेक थान/ पर समानता िदखती है तथा अनेक थान पर
असमानता िदखती है। मैिकयावेली से समानता वाले मख ु त+व िनHन है-
1. दोन/ राजा को असीिमत शि\याँ देने के प:धर है। वे राजा को सवmiच िनणा5यक मानते है।
2. दोन/ ही रा1य क एकता एवं िव तारवादी नीित के समथ5क हL।
3. दोन/ ने य(
ु को रा1य क िव तार एवं िवदेश नीित का मख
ु आधार माना है।
4. दोन/ ही कठोर रा;<वादी थे। वे रा1य क एकता थािपत करने के प:धर थे।
5. दोन/ ही यथा5थवादी थे। दोन/ के राजनीितक िस(ात यथा5त पर आधारत थे।
6. दोन/ ही िवदेश नीित पर बड़ा बल िदया। दोन/ ही पड़ोसी रा1य को शक
ं ा से देखते हL।
7. दोन/ ने गXु चर पर िवशेष बल िदया। दोन/ गXु चर/ को रा1य क आख
ं एवं कान माना। दोन/ ने गXु चर/
का िव तृत िववेचन िकया है।
8. दोन/ ने रा1य के उेय क पिू त5 के िलये नैितकता के उbलघनं को सही ठहराया है। इसके िलये साम,
दाम, दdड, भेद क नीित को सही ठहराया है।
कौिट5य और मैिकयावेली म8 अंतरः- कौिटbय एवं मैिकयावेली म8 कुछ िबदओ ु ं पर अतं र िदखता हैः-
1.कौिटbय एक आचाय5 था। वह सादा एवं सयं िमत जीवन का समथ5क था। वही मैिकयावेली न तो आचाय5 था
और न ही सयासी था।
2.कौिटbय ने “अथ5शाh“ अपने लsय क ािX अथा5त मौय5 वंश क थापना के बाद क वह9 मैिकयावेली ने
इसक रचना अपने जीवन के िनराशाजनक पल म8 क थी। उसने ि ंस क रचना तब क जब वह राजनीितक .प से
िन;कािसत हो चक
ु ा था।
3.ि ंस के वल राजनीित से सHबिधत है जबिक “अथ5शाh“ राजनीित तथा मानव जीवन के +येक :ेZ से जड़ु ी है।
4.मैिकयावेली मानव के ित नकरा+मक =ि>कोण रखता है जबिक कौिटbय का =ि>कोण िनराशाजनक नह9 है।
5.मैिकयावेली का मrु य उेय रा1य क सरु :ा को बनाये रखना है जबिक कौिटbय का उेय Oयापक रा1य एवं
शासन Oयव था का ितपादन करना है।
6.कौिटbय परHपरावादी है जबिक मैिकयावेली आधिु नक है। कौिटbय राजतZ का समथ5न करता है जबिक
मैिकयावेली ने रा;<वाद का बीजारोपण िकया है।

उराखंड म
ु िविवालय 93
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
7.कौिटbय ने िवदेश नीित पर काश डाला है। इसके िलये राजदतू आिद का Oयापक वण5न िकया है। जबिक
मैिकयावेली म8 इसका अभाव है।

6.12 कौIटलय एवं यन


ू ानी वचारक
कौिटbय क पृJभिू म भारतीय थी जबिक यनू ानी िवचारक/ जैसे tलेटो क पृ>भिू म अलग थी। इसके बावजदू दोन/
के बीच कुछ समानताय8 िदखायी पड़ती है।
1. दोन/ ही िवचारक/ ने रा1य को एक शरीर के .प म8 है ।
2. दोन/ ने रा1य को आवयक बताया। उनका मानना था िक रा1य ^ारा ही Oयि\ अपने अिं तम उेय/ क
ािX कर सकता है।
3. दोन/ ही राजतZ/ के समथ5क है। दोन/ का राजा दाशिन5क या यो}य राजा है। उनक मायता उसक
यो}यता म8 है।
4. दोन/ क रा1य को Oयि\ के िवकास का मा3यम मानते है।
असमानताय8 -tलेटो एवं कौिटbय म8 िनHन िबदओ
ु ं पर असमानताय8 िदखायी पड़ती हैः-
1.tलेटो आदश5वादी िवचारक है तथा उसका =ि>कोण काbपिनक है। वह9 कौिटbय यथा5थवादी तथा उसका
=ि>कोण Oयवहारक है।
2.tलेटो आदश5 रा1य क कbपना कर िविभन िस(ात ततु करता है वह9 कौिटbय ने “अथ5शाh“ म8 राजनैितक
िस(ात तुत िकया िजसका उेय एक मजबतू एवं शि\शाली रा1य क थापना करना है।
3.tलेटो ने आदश5 रा1य के िलये दाश5िनक शासक तथा साHयवादी िस(ात ततु िकया जबिक कौिटbय ने
साHयवाद एवं आदश5 रा1य क थापना पर बल नह9 िदया।
4.tलेटो ने hी-प.
ु ष समानता पर बल िदया परतु कौिटbय ने राजकायk म8 hी सहभािगता पर बल नह9 िदया है।
5.कौिटbय के “अथ5शाh“ म8 रा1य के गठन, िवदेश नीित, गXु चर Oयव था, वैदिे शक नीित का Oयापक वण5न है
जबिक tलेटो के दश5न म8 इसका अभाव है।
वमbू याकंन हेतु Bः-
1. कौिटbय क प ु तक का नाम aया था ?
2. कौिटbय ने िकस राजवश
ं क थापना क ?
3. कौिटbय िकसका महामZं ी था ?
4. कौिटbय के िवचार िनHन म8 से िकससे मेल खाते है?
I. आग ताइन II. िमल III. माaस5 IV. मैिकयावेली
5. िनHन म8 से िकसने मdडल िस(ात िदया?

उराखंड म
ु िविवालय 94
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

I. कौिटbय II. tलेटो III. अर तू IV. माaस5


6. षाड़गdु य नीित िकसक देन है?
I.कौिटbय II. tलेटो III. िससरो IV. आग टाइन

6.13 सारांश
कौिटbय एक यथा5थवादी ाचीन भारतीय िवचारक था। उसने अपने Cथ अथ5शाh के मा3यम से िविभन
राजनीितक िस(ात/ का ितपादन िकया। वह रा1य के सात अगं / का िस(ात देता है जो यनू ानी िवचारक/ के
आिं गक िस(ात क तरह िदखता है। कौिटbय रा1य का शासन कै से चलाया जाए, राजा को िकन िनयम/ का
पालन करना चािहए? आिद B/ का उ&र ततु करता है।
कौिटbय अपनी प ु तक म8 िवदेश नीित के संचालन क Oयापक योजना ततु करता है। वह अपने मdडल िस(ात
एवं षाड़गdु य नीित के ^ारा िवदेश नीित तथा पड़ोसी रा1य के साथ संबंध संचालन क Oयापक योजना ततु
करता है। वह राजदतू क िनयिु \, गXु चर/ क िनयिु \ , राजा क िदनचया5 एवं उस पर िनयZण, दdड, याय आिद
िवषय/ का िव तृत िववेचन देता है।
कौिटbय का िविभन िवषय/ पर िदया गया सHपणू 5 िववेचन यथा5तवादी है। वह एक मजबतू रा1य का िनमा5ण
करना चाहता हL इस उेय क पिू त5 के िलए सेना क मजबतू ी तथा िव तारवादी नीित क वकालत करता है। वह
सदैव पड़ोसी देश पर पैनी नजर रखने का समथ5क था। इसके िलए वह देश के अदर मजबतू शासिनक Oयव था
तथा गXु चर/ के मा3यम से सचू ना संकलन पर जोर देता है। वह िव तारवादी नीित का समथ5क था। वह रा;<िहत क
पिू त5 के िलये साम, दाम, दdड और भेद क नीित अपनाने का प:धर था।
इस कार प> होता है िक कौिटbय ाचीन काल का पहला ऐसा िवचारक था िजसने राजनीित पर इतना Oयापक
और उेयपणू 5 Cथ िलखा। उसने शासन, शासन एवं िवदेश नीित संचालन पर िदये िवचार सैकण/ वष5 गजु र
जाने के बाद भी अ+यं त ांसिगक है। उसक कृ ित अथ5शाh उसक मानवता को दी गई अमbू य देन है।

6.14 श!दावल$

6.15 अ&यास 
न' के उ तर
1. अथ5शाh 2. मौय5वंश 3. चpगXु मौय5 4.मैिकयावेली 5.कौिटbय 6.
कौिटbय

उराखंड म
ु िविवालय 95
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

6.16 संदभ) *थ सच


ू ी
1. राव एम0वी0 कृ ;णा, टडीज इन कौिटbया
2. समhे आर0 , कौिटbयस का अथ5शाh
3. परमा+मा शरण, ाचीन भारत म8 राजनीितक िवचार एवं सम याय8
4. वमा5 , वी0पी0, ाचीन भारतीय िचतन

6.17 सहायक/उपयोगी पा+यसाम*ी


1. वेनी साद, िद टेट इन एनिसएटं इिdडया
2. यामलाल पाdडेय, कौिटbय क राज Oयव था
6.17 सहायक/उपयोगी पाठ्यसामCी

6.18 नबंधा मक 

1. कौिटbय के मख
ु राजनीितक िवचार/ पर िनबध िलिखये ।
2. कौिटbय के सांXाग िस(ात पर काश डािलए।
3. कौिटbय का मdडल िस(ात aया है? उसका िव तृत िववेचन किजये।
4. एक राजनीितक िवचारक के .प म8 कौिटbय क ांसिगकता को प> करते हQए िनबधं िलिखये।
5. अथ5शाh म8 विण5त शासिनक एवं याय Oयव था पर िनबंध िलिखये ।

उराखंड म
ु िविवालय 96
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 -7 :

      #$  %# 


! " 
इकाई क$ संरचना
7.1 "तावना
7.2 उ4े5य
7.3 चच एवं राय के बीच सघं ष
7.4 पोप क$ शि] के पतन के कारण
7.5 धािमक स:ा के प+ म( तक
7.6 राजस:ा के सव^?चता के प+ म( तक
7.7 चच एवं राजस:ा के म
य िववाद का राजनीितक िचतन पर "भाव
7.8 पLरषदीय आदोलन के उदय के "मख ु कारण
7.8.1 पLरषदीय आदं ोलन के उ4े5य
7.8.2 पLरषदीय आदोलन के "मख ु िस!ात
7.8.3 कुछ "मखु पLरषद(
7.8.4 पLरषदीय आंदोलन के असफलता के कारण
7.8.5 आदोलन का महव एवं "भाव
7.9 साराश ं
7.10 शAदावली
7.11 अBयास "C9 के उ:र
7.12 संदभ Dथ सचू ी
7.13 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
7.14 िनबधं ामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 97
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

7.1 तावना
म3य यगु के राजनीितक िचतन का मrु य िवषय चच5 एवं रा1य के बीच चलने वाला स&ा संघष5 था। दो स&ाओ ं के
बीच यह संघष5 वच5 व को लेकर था। इस संघष5 से पवू 5 तलवार/ का िस(ात चिलत था िजसका अथ5 था िक इस
पृjवी के शासन संचालन के िलये ई]र ने दो स&ाओ ं का िनमा5ण िकया हैः-
1. लौिकक स&ा (राजा)
2. पारलौिकक स&ा (ई]रीय)
इस पवू 5 Oयव था म8 यह वीकार िकया जाता था िक दोन/ को अपने-अपने :ेZ म8 काय5 करना चािहए। दोन/ को
सामािजक िहत म8 एक दसू रे को सहयोग करना चािहए।
बारहव9 शता@दी आते-आते दोन/ स&ा के के p के बीच संघष5, तनाव तथा िववाद ारHभ हो गया। इस संघष5 का
मrु य कारण चच5 के समथ5क/ के ^ारा राज स&ा पर थािपत होने का यास करना था। इसी समय राजा ^ारा
िवशप/ क िनयिु \ पर सवाल उठाये गये तथा यह चारत िकया गया िक यिद राजा अपने कत5Oय/ का पालन
ठीक से नह9 करता है तो उसे पदiयतु िकया जा सकता है। इसी ितिVया व.प राजतZ समथ5क/ ने भी घोषणा
कर दी िक राजा ई]र ^ारा िनय\ु है अतः यह िवशप/ क िनय\ ु से लेकर पोप के कायk को िनयिमत कर सकता
है। इसी समय चच5 के अय पदािधकारय/ क िनयिु \ को भी राजा को सŒपने के प: म8 तक5 तुत िकये गये।
स: ं ेप म8 कहे तो यह दो स&ाओ ं के बीच मह+वाका:
ं ा एवं काय5:ेZ के िव तार का सघं ष5 था। वह }यारहव9
शता@दी से चौदहव9 शता@दी तक चला दोन/ स&ाओ ं का सघं ष5 था। सेवाइन के श@द/ म8 - ‘‘इस समय क
राजनीितक रचनाय8 मrु य .प से लौिकक तथा धािम5क स&ाओ ं के सीमा सबं धं ी िववाद/ का ितपादन करती है।’’

7.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के ^ारा हम -
1 म3य यगु क राजनैितक ि थित को जानने का यास करे ग8।
2 चच5 एवं रा1य के बीच िववाद के कारण/ को समझने का यास कर8 ग8।
3 चच5 एवं रा1य स&ा के बीच िववाद का िचतन पर पड़े भाव को समझने का यास कर8 ग8।
4 परषदीय आदोलन के उदय के कारण को जानने का यास करे ग8 ।
5 परषदीय आदं ोलन के मख
ु िस(ात/ तथा पतन के कारण/ पर काश डाल8ग8 ।

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ु िविवालय 98
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

7.3 चच) एवं रा6य के बीच संघष)


चच5 एवं राजा के बीच हQए संघष5 को हम दो भाग/ म8 बांट सकते है-
1.चच5 क सवmiचता का काल (11 व9 और 12 व9 शता@दी का काल)
2.रा1य क सवmiचता का काल (13 व9 और 14 व9 शता@दी का काल)
चच. क सव:;चता का कालः- 11 व9 शता@दी से 12 व9 शता@दी के म3य का समय चच5 क सवmiचता का
समय था। यह वह समय था जब वषk से चल रही परHपरा को बदलते हQए राज स&ा को सीिमत करने एवं चच5 क
सवmiचता थािपत करने का यास िकया गया। इसम8 से एक मख ु परHपरा थी िवशप/ क िनयु ि\ क था।
1073 ई0 म8 Cेगरी सXम पदासीन हQआ। वह मह+वकां:ी Oयि\ था। वह चच5 क स&ा को और अिधक मजबतू
करना चाहता था अतः उसने राजा ^ारा िवशप/ क िनयिु \ क था को बदल िदया। उसने राजा ^ारा िनयिु \
िवशप/ को धम5िव.( घोिषत कर िदया। एक आदेश ^ारा यह भी घोषणा कर दी गई िक कोई भी उbलघनं करे गा
तो उसे धम5 से बिह;कृ त कर िदया जायेगा।
पोप Cेगरी सXम क इस काय5वाही के िव.( सuाट हेनरी चतुथ5 ने पोप को हटाने का यास िकया। इसक
ितिVया व.प पोप ने सuाट को धम5 से बिह;कृ त करके जा को राजा के ित िनJा रखने क शपथ से म\ ु कर
िदया। धम5 बिह कृ त होने से राजा क ि थित कमजोर हो गई तथा उसके िव.( सामतं / ने बगावत क तैयारी
ारHभ कर दी। इस सक ं ट से िनपटने के िलये सuाट हेनरी चत5ुथ ने तीन िदन भयक
ं र ठंडी जगह पर बने पोप के
िकले के बाहर खड़े हो :मायाचना क। अतं तः पोप ने :मा देते हQए अपना आदेश वापस ले िलया। यह सघं ष5 यह9
नह9 .का। अपनी गी सरु ि:त करने के बाद ितशोध म8 हेनरी चत5ुथ ने रोम पर हमला कर िदया और अपने
अधीन कर पोप को धम5 बिह कृ त करा िदया। पोप के सक ं ट के समय नारमन लोग/ से मदद मागं ी। नारमन लोग/ ने
रोम म8 वेश िकया परतु हेनरी जम5न भाग गया। नारमन लोग/ ने रोम को खबू लटू ा। इससे रोम के िनवासी पोप से
नाराज हो गये। वह नारमन लोग/ क शरण म8 चला गया। वह9 पर उसक मृ+यु हो गई।
इन/स8ट तृतीय क मह+वाकां:ा (1198-1216)- Cेगरी सXम क मृ+यु के 100 वष5 बाद इन/स8ट तृतीय पोप बना।
उसने गी पर बैठते ही अपने भाव एवं शि\ को बढाने़ का यास िकया। उसक यह मायता थी िक उसके पास
यह अिधकार है िक वह राजा के कायk एवं शासन क जांच कर8 । वह कहा करता था िक - ‘‘बाइिबल म8 मेरे संबधं
म8 कहा गया है िक तुझे जनताओ ं और राजाओ ं के ऊपर थािपत िकया गया है। तािक तू उमल ू न का और नाश
का तथा िनमा5ण का काय5 कर सके । तूझे वग5 क चाबी सŒपता ह’ँ िक िजसे तू पृjवी पर बांधेगा उसे वह वग5 से
बांधा जायेगा।’’
उसने अपने इह9 िवचार/ के आधार पर दो जम5न राजाओ ं को धम5 से बिह;कृ त कर िदया। उसने राजनीितक मामले
म8 दखल देते हQए चच5 क भतु ा थािपत क।
इन/स8ट चत5ुथ एवं ˆडरक ि^तीयः- जम5न सuाट ˆडरक ि^तीय ने यह दावा िक उसे स&ा ई]र से +य: .प से
ाX हQई है न िक पोप के ^ारा अतं ः उसे लौिकक मामल/ म8 पणू 5 अिधकार ाX है। पोप इनोस8ट ने इसे अ वीकार
कर िदया और पोप के पारलौिकक अिधकार/ का हवाला देते हQए राजा को अपने अधीन माना। अतं तः राजा क
वतंZता के यास िवफल हो गये और वह पोप के अधीन अचानक ˆे डरक ि^तीय क मृ+यु हो गई। उसके बाद
िफिलप चत5ुथ जो नविनय\ ु राजा था, ने पनु ः पोप को चनु ौती दी। चच5 एवं रा1य के बीच सघं ष5 ारHभ हो गया।

उराखंड म
ु िविवालय 99
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2.रा1य क सवmiचता का काल (तेरहव9 एवं चौदहव9 शता@दी)- पोप वेनीफे स अ>म के समय ˆांस एवं इ}ं लैdड
के बीच य(
ु चल रहा था। इसी समय त+कालीन राजा िफिलप चत5ुथ को धन क आवयकता थी अतः उसने चच5
क सHपित पर कर लगाने का यास िकया। पोप वेनीफोस ने इसका िवरोध िकया और एक आदेश जारी कर
िवशप/ को कर न चक ु ाने का िनदnश िदया। उसने कर देने वाल/ को धम5 बिह;कृ त करने क धमक दी। राजा ने
ितिVया व.प वयं अिधकारय/ को यह िनदnिशत िकया िक वह रोम को ाX होने वाली आिथ5क सहायता
रोक द8 तथा रोम के ितिनिधय/ को ˆांस से जाने के आदेश दे िदये। इससे राजा के सम: पोप को दोहरा नक
ु सान
हQआ। पहला तो उसे ाX होने वाली आय .क गई साथ ही उसका भाव घट गया अतं तः पोप ने घटु ने टेकते हQए
चच5 क संपित पर लगाये गये कर को वीकार कर िलया।
सघं ष5 यह9 पर समाX नह9 हQआ। कुछ समय बाद राजा िफिलप ने चच5 के एक ितिनिध को िहरासत म8 ले उस पर
अिभयोग चलाया। पोप ने इसे अपना तथा सHपणू 5 चच5 का अपमान माना। टकराव बढ़ा और िफिलप ने पोप पर
>ाचार के आरोप लगाते हQए अपनी सेना रोम भेज दी। पोप को बदं ी िलया गया। बाद म8 पोप म\ ु हQआ। परतु
गहरा आघात लगा और उसक मृ+यु हो गई। बेनीिडaट }यारहवां वेनीफे स क मृ+यु के बाद गी पर बैठा परतु वह
अिधक िदन तक िटक नह9 सका अतं तः जहर दे उसक ह+या कर दी गई।
चच5 म8 चल रहे अि थरता का लाभ राजा िफिलप को िमला। उसने चच5 के कायk एवं पोप क िनयिु \ म8 दखल
देना ारHभ कर िदया। अतं तः िफिलप के सहयोग से वं<ेdड aलीम8ट पंचम के नाम से सशत5 पोप क गी पर बैठा।
ˆांस के राजा के समथ5न के कारण उसने रोम को छोड़ कर ˆांस के शहर ‘एिव}नोन’ को अपना मrु यालय बनाया।
यह थान परवत5न ही नह9 था वरन् भाव परवत5न का भी सचू क था। यह पहला अवसर था जब चच5 पर राजस&ा
का पणू 5 भाव थािपत हो गया था। एिव}नोन 1309 से 1377 तक पोप क राजधान रहा। इितहास म8 इसे
‘वेवीलोिनयन कै द’ कहा जाता है। जम5नी, इटली म8 पोप का भाव समाX हो गया।
पोप जॉन और जम5न सuाट लुइस चत5ुथ(1314-1347)- यह भी एक मह+वपणू 5 संघष5 था। 1314 म8 लुईस चत5ुथ
को पिवZ रोमन सuाट के .प म8 िनवा5िचत िकया गया। इसी समय आि <या के ˆे डरक को भी कुछ लोग/ ने
िनवा5िचत घोिषत कर िदया। अतं ः दो दावेदार/ के म3य टकराव ारHभ हो गया। इसी समय पोप जान बाइसवां
एिव}नोन म8 गी पर बैठा। त+कालीन पोप जांन बाइसंवा ने राजनीित म8 दखल देते हQए घोषणा कर दी िक वह िजसे
ही सuाट घोिषत करे ग8 वह9 सuाट होगा। इससे नाराज होकर लुईस ने पोप को हटा िदया और नये पोप के चनु ाव म8
मदद क। पोप ने लुईस को धम5 िवरोधी घोिषत कर िवpोह को उकसाया। पोप के आ‡वाहन का िवशेष भाव नह9
हQआ और पोप क कमजोरी जगजािहर हो गई। इसी समय एक अपरCह आंदोलन संत “ांिसस के नेतOृ य म8 चला
िजसम8 कहा गया िक धमा5िधकारय/ को अिधक सपं ित नह9 रखनी चािहए। पोप ने इसे अपने िव.( मानते हQए
जांन को धम5 िवरोधी घोिषत कर िदयां इसक Oयापक ितिVया हQई और पोप क Oयापक आलोचना हQई। इस परू े
घटनाVम के कारण 14व9 शता@दी आते-आते पोप क स&ा कमजोर हो गई और राजस&ा थािपत हो गई।

7.4 पोप क शिPत के पतन के कारण


14व9 शता@दी आते-आते पोप क शि\ का पतन हो गया। उसक शि\ के पतन के मख
ु कारण िनHन है-
1.चच5 म8 OयाX >ाचार के कारण जनता का िव]ास उसम8 िनरतर घटता जा रहा था।

उराखंड म
ु िविवालय 100
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2.पोप रोम छोड़कर ˆांस के ‘एिव}नोन’ जाने से वह अ+यंत कमजोर हो गया। वह पणू त5 ः ˆांस के शासक के
ऊपर िनभ5र हो उसके हाथ क कठपतु ली बन गया। इसी समय इटली एवं “ांस म8 टकराव इतना बढ़ गया िक ˆांस
के सहयोग से चनु ा गया पोप aलीम8ट सXम एिव}नोन के पोप के .प म8 इटली क ेरणा से चनु ा गया पोप अव5न
पJ रोम के पोप के .प म8 एक ही समय शासन करने लगे। यह अlुत घटना 40 वष5 तक चली जब एक साथ दो
पोप काय5 कर रहे थे और दोन/ के कारण चच5 क गरमा, भाव घट रहा था।
इस सHपणू 5 घटना का गहरा भाव पड़ा। दोन/ समहू / के समथ5न म8 Oयापक सािह+य सामCी का सृजन हQआ। पोप के
समथ5क ‘पेपिल ट’ अथवा पोपवादी कहलाये तथा सuाट के समथ5क ‘सेaयल ू रर ट’ अथवा लौिकक स&ावादी
के नाम से जाने गये। पेपिल ट/ के समथ5न म8 स8ट बना5ड, सेbसबरी आफ जान, एaवीनास आिद थे। वह9
सेaयल
ू रर ट के समथ5न म8 मासfिलयो, ओकमवासी िविलयम, दांते , आिद थे। ये दोन/ समहू के सद य अपनी
स&ा को मजबतू करने के प: म8 िनHन तक5 देते थे-
7.5 धािम(क सा के प) म* तक(
पोप क स&ा क सवmiचता को िस( करने के िलये उस समय िनHन तक5 िदये जाते हैः-
1.शरीर से आ+मा WेJ हैः- इसके ^ारा यह िस( करने का यास िकया गया िक शरीर तो के वल सांसारक आनद
के िलये है परतु वा तिवक आनद तो आ+मा से है। अतः आि+मक शाित क खोज पोप के िबना संभव नह9 है।
पोप िसधवु े टर के श@द/ म8 - ‘‘पादरय/ तुHहारी टोिपय/ के मक
ु ाबले राजा के मक
ु ु ट का थान वह9 है जो वग5 क
तुलना म8 शीशे का है।’’
2.धम5 शाh के िविभन उदाहरणः- इनके समथ5क/ ने ईसाई धम5शाh/, संत/ के कथन के आधार पर चच5 क WेJता
िस( क है। मैjयू और ईसा के श@द/ म8 - ‘‘तुम पृjवी पर िजसे बंधन म\ ु करोगे वह वग5 म8 भी बंधन म\

होगा।’’ इससे यह िस( िकया गया िक राजा क स&ा पृjवी तक है परतु पोप स&ा वग5 तक है। पीटरी िस(ात
भी इसम8 मह+वपणू 5 है िजसम8 कहा गया है िक ईसा ने पीटर को वग5 क चाबी का वामी बनाया है।
3.दो तलवार/ का िस(ातः- इस िस(ात म8 यह वीकार िकया गया है िक ई]र ने दो स&ाओ ं के तीक दोन/
तलवार पीटर को दी है। पीटर से यह पोप को ाX हQई है। पोप ने धािम5क तलवार अपने पास तथा लौिकक मामल/
क तलवार राजा को सŒप दी है। अतः राजा को स&ा का योग पोप के अनसु ार ही करना चािहए। पोप का थान
राजा से ऊँचा है aय/िक वह स&ा का मलू hोत है।
4.ऐितहािसक घटनाओ ं का हवालाः- ऐितहािसक =ि> से भी पोप क शि\ को ऊँचा रखने का यास िकया गया
है। इसका पहला उदाहरण संत अ‹ं ोज का िमलता है िजसने राजा क साव5जिनक आलोचना कर राजा को :मा
याचना के िलये िववश कर िदया था। इसके अलावा ˆांस के शासक िशbपरक को अपनी :मता से गी से
हटाकर ‘पेिपन’ को राजा घोिषत कर िदया। तीसरा उदाहरण ‘का सरे dटाइन’ के दानपZ के .प म8 िदखता है।
िजसम8 अपनी लौिकक स&ा को ही दान कर िदया गया था। चौथी घटना म8 पोप के ^ारा शाल5मेन को पिवZ रोमन
सuाट के .प म8 रा1यािभषेक करना माना जाता है। इससे चच5 का गौरव बढ़ा है।

7.6 राजस ता के सवQ8चता के प3 म? तक)


समय के साथ लौिकक स&ा के प: म8 कुछ तक5 िदये गये जो इस कार हैः-

उराखंड म
ु िविवालय 101
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1.राजाओ ं के दैवीय अिधकार का समथ5नः- इसके समथ5क/ का तक5 था िक धम5 स&ा क थापना ई]र के ^ारा
क गई है तो राजस&ा का भी िनमा5ता भी वह9 है। अतः उसका धारणक&ा5 भी ई]र क इiछा से है। अतः राजा पोप
के ित नह9 के वल ई]र के ित उ&रदायी है। ई]र ^ारा ही राजस&ा जनकbयाण के िलये उसे सŒपी है। पोप उसे
राजस&ा से वंिचत नह9 कर सकता है। ई]र दो तरह के काय5 करने के िलये राजा को िनय\ ु करता है। कठोर काय5
तथा दयालु काय5। दोन/ ि थित म8◌ं राजा के काय5 ई]र क ेरणा से है। राजा ^ारा िकया अ+याचार भी ई]रीय
िवधान है।
2.द/नो स&ाओ ं का एक ही हाथ म8 के pीकरण धम5 िव.(ः- पोप गेलेिसयस ^ारा ितपािदत ‘दो तलवार/’ का
िस(ात के आधार पर यह िस( िकया गया है िक ई]र ने ससं ार का सचं ालन करने के िलये दो स&ाओ ं का िनमा5ण
िकया है- लौिकक स&ा, पारलौिकक स&ा। इन दोन/ का के p पोप है जो िक धम5 के अनकु ू ल नह9 है। अतः पोप को
के वल धािम5क मामल/ का सच
ं ालन करते हQए लौिकक मामल/ म8 दखल नह9 देना चािहए। राजा पोप से म\ ु है।
3.रोमन काननू के आधार पर WेJताः- राजस&ा के समथ5क अपने तकk क पिु > म8 रोमन काननू / का भी हवाला देते
है। वे कहते है िक ारHभ से स&ा रोमन साuा1य के पास थी वही ये यह िनबा5ध .प से चली आ रही है। िकसी भी
शासक क स&ा पोप द& नह9 है। एक तक5 और िदया िक राजा का पद उसे पवू 5ज/ से ाX संपित के समान है।
अतः उसको पद से हटाना वैसे ही गलत है जैसे िकसी क संपित का अपहरण करना। पोप राजा को पद नह9 देता
वरन् के वल कुछ सं कार करता है।
4.चच5 एवं पादरय/ का नैितक पतनः- चच5 के अदं र पादरय/ का नैितक पतन िनरतर होता जा रहा था। वे संपित
संCह, यौनाचार म8 िलX पाये जा रहे थे अतः ऐसे म8 उनके ित िव]ास, सHमान िनरतर घट रहा था। इसी समय
िबbकुल िनHन तर पर िनय\ ु धमा5िधकारय/ का िव]ास भी िहल रहा था अतः वे राजा क स&ा क समथ5न दे रहे
थे।
5.राजा ई]र के ित जबावदेह न िक चच5 के ितः- रा1य समथ5क िवचारधारा के अनसु ार राजा ई]र के ित
उ&रदायी है। राजा का ई]र के ित सीधा सबं धं है। राजाओ ं के ^ारा लैिकक शासनािधकार क ािX के माग5 म8
चच5 कोई मा3यम नह9 है। अतः वे राजकाय5 म8 बाधक नह9 बन सकते।
6.चच5 आचरण क िनयामक शि\ नह9 हैः- रा1य के समथ5क/ का यह मानना है िक रा1य क Oयि\ के आचरण
िनयिमत कर सकता है। वह रा1य म8 Oयव था देता है। याय करता है। याय के सभी Oयि\, अिधकारी तथा
धमा5िधकारी आ जाते है।
7.अिविछत रा1य शि\ का िस(ातः- रा1य के समथ5न म8 त+कालीन िविधवेताओ ं ने अिविछन साuा1य शि\
का िस(ात ततु िकया। इसम8 कहा गया िक राजाओ ं और सuाट/ क भु शि\ ाचीन रोमन काल से चली आ
रही है। यह पोप क देन नह9 है।

7.7 चच) एवं राजस ता के मRय ववाद का राजनीतक


चतन पर भाव
चच5 एवं राजस&ा के बीच िववाद का राजनीितक िचतन पर गहरा भाव पड़ा। उसके भाव िनHन हैः-

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1.राजनीितक िचतन धािम5क भाव से म\ ु हQआः- रोमन साuा1य के पतन तथा ईसाई धम5 के उदय के साथ धम5
का भाव +येक :ेZ म8 थािपत हो गया। यह िकसी भी राजनीितक Oयव था के िलये शभु संकेत नह9 था। सHपणू 5
राजनीितक िचतन धािम5क मायताओ,ं अधं िव]ास/ पर आधारत हो गया। गैटल के श@द/ म8 - ‘‘राजनैितक
िचतन अनैितहािसक, अवै#ािनक, व.प का हो गया था। इसम8 पय5वे:ण, अवेषण, अनभु व का पणू 5 अभाव हो
गया।’’ इस काल का सHपणू 5 िचतन पाखdड,ढ/ग का दास बन कर रह गया। अधं िव]ास के िव.( तक5 करना
नाि तकता का आधार माना गया। पोप एवं धािम5क अिधकारी स&ा के मrु य अिधकारी बन गये। सं:पे म8 कहे तो
पांचव9 शता@दी से तेरहव9 शता@दी तक सHपणू 5 राजनीितक स&ा धािम5क स&ा के अधीन हो गई।
2.िव] बधं +ु व क भावना का सारः- इस धम5 रा1य के सघं ष5 के समय राजनीितक िचतन अराजनीितक बना रहा।
इस समय ायः कहा जाता था िक ‘‘यह रोम का भतू म3ययगु को अVांत करता रहा है।’’ यह भतू था रोम ^ारा
ितपािदत िव]बधं +ु व का िव तार । ईसाई धमा5चायk और सतं / ने रोमन िव] बध+ंु व के िवचार को अपनाकर
ईसाई समाज म8 एकता एवं ात+व भावना का िवकास िकया। सभी के ित ेम एवं भाईचारे क भावना का चार
िकया गया।
3.दो तलवार/ का िस(ातः- इसम8 माना गया िक ई]र ने दो तरह क स&ा का िनमा5ण िकया है। इसम8 एक धािम5क
स&ा तथा दसू री लौिकक स&ा। धािम5क आ+मा क तीक है तथा राजस&ा शरीर क तीक है। लौिकक स&ा क
तुलना म8 धािम5क स&ा उiच है aय/िक धािम5क स&ा परलोक तक सीिमत है। यह िवचार म3ययगु का के pीय
िवचार बना रहा। इस िस(ात के कारण ही म3ययगु म8 दो स&ाओ8 के बीच संघष5 हQआ।
इस संघष5 म8 ारHभ म8 चच5 का पलड़ा भारी रहा परतु बाद म8 राजा का पलड़ा भारी हो गया। यह िववाद परू े
म3ययगु म8 छाया रहा। यह सदैव संघष5 का कारण बनता रहा। सी0डी0बस5 के श@द/ म8 - ‘‘चच5 के समथ5क/ ने
राजा को चच5 के अधीन रखने का यास िकया गया तथा सuाट के समथ5क/ ने चच5 को रा1य के अधीन करते हQए
राजा को चच5 बना िदया।’’
इस कार से प> हो जाता है िक चच5 रा1य WेJता सघं ष5 म3ययगु के राजिनितक िचतन को भािवत करने वाला
मrु य त+व है। इसी का परणाम था िक िचतन धम5 सापे: बन गया। यह पणू त5 ः रोम तथा यनू ानी िचतन के
िवपरीत था।
परषदीय आदोलनः- पpहव9 शता@दी के पवू ा5ध म8 चलने वाला आदोलन था जो िक सHपणू 5 यरू ोप को भािवत
कर रहा था। इसक पृJभिू म का िनमा5ण परस आफ जान, मासfिलयो िविलयम ^ारा िकया गया। इसम8 पोप क
स&ा एवं सामाय परषद संबंधी िवचार/ से ेरणा लेकर पेरस िव]िव0ालय के कुछ िव^ान/ ने इसे दाश5िनक
आधार दान िकया। इन िव^ान/ म8 पेरस िव]िव0ालय के जान गस5न, इटली के पीटर तथा िनकोलस थे। इसम8
गस5न तथा िनकोलस ने न के वल दाश5िनक आधार दान िकया वरन् Oयवहारक नेत+ृ व भी दान िकया।

7.8 परषद$य आदोलन के उदय के मख


ु कारण
1.चच5 म8 महान फूटः- परषदीय आदोलन का मrु य कारण चच5 म8 उ+पन महान फूट थी। यह 1378 से 1417 ई0
तक चच5 को अिभशX करती रही। चच5 क महान फूट के उदय का मख ु कारण 1378 म8 पोप Cेगरी एकादश क
मृ+यु पर इटली के दबाव के कारण धमा5चायk के ^ारा इटली के अब5न षJ को पोप के .प म8 चनु ा गया। ˆांस ने इसे
वीकार नह9 िकया। वहां के लोग/ ने aलीम8ट सXम को नया पोप चनु वा िदया। यह पहली बार हQआ िक एक साथ

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दो पोप अि त+व म8 आये। इटली के पोप का िनवास रोम था जबिक ˆांसीसी पोप का िनवास ˆांसीसी नगर
‘एिव}नोन’ म8 था। दोन/ अपने को वा तिवक WेJ एवं सव5गणु सHपन बताते तथा दसू रे का िवरोध करते थे। इहोन8
अलग-अलग धािम5क ढ़ाचा तैयार करते हQए धािम5क अिधकारय/ को िनय\ ु िकया। यह गभं ीर घटना थी और
इसका दरू गामी भाव हQआ। सHपणू 5 ईसाई समाज दो भाग/ म8 िवभािजत हो गया। काटलैdड, सेवाम, पेन, और
पतु 5गाल आिद ‘एिव}नोन’ के पोप का समथ5न कर रहे थे वह9 जम5नी, ˆांस , िटेन ,हगं री, पोलैdड आिद देश रोम
का समथ5न करने लगे।
इस तनावपणू 5 माहौल से मिु \ िदलाने के िलये तथा एकता थािपत करने के िलये कुछ धमा5चायk ने ‘पीजा’
नामक नगर म8 एक परषद का आयोजन िकया। यहां पर दोन/ पोप को हटाकर एलaजेडर पचं म को पोप चनु िलया।
अब दो के थान पर तीन पोप हो गये। अब इस िववाद को हल करने के िलए सामाय परषद के िस(ात को
वीकार िकया जाने लगा।
पोप शाही का नैितक पतनः- परषदीय आदोलन के उदय का दसू रा कारण पोप तथा दसू र/ धमा5चायk का नैितक
पतन था। पोप का मrु यायल धनलोलपु ता, यौनाचार का के p बन गया था। त+कालीन ि थित का वण5न करते हQए
पे<ाक5 ने िलख है- ‘‘यह भतू ल का नरक बरु ाइय/ का आगाज तथा संसार का गंदा नाला है। इसम8 ने तो W(ा न दान
का भाव, न धम5 और न ई]र का भय है। संसार क सारी गदगी और द>ु ता यहां एकिZत है। अिववािहता माता-
बहन आिद का िनकटवतf िनिष( Oयि\य/ के साथ सHभोग, बला+कार, परhी गमन, पोप के दरबार के Vड़ओ ं
के कामक ु आनद है।’’
बाइिaलफ और जान हस ने चच5 म8 फै ले अनाचार के संबंध म8 ईसाई जगत का 3यान आकिष5त िकया था और
सधु ार क मांग क।
पोप क िनरंकुशता का भावः- पोप के हाथ म8 धािम5क, राजनैितक शि\ आ जाने से वह बेहद िनरंकुश हो गया
था। उसने जम से मृ+यु तक के सभी मामल/ म8 दखल देना ारHभ कर िदया। उसके आशfवाद के िबना िनजी
जीवन के स ं कार भी नह9 हो पा रहे थे। जीवन ही नह9 मृ+यु के बाद मो: क ािX भी उसके िबना अधरू ी थी। वह
अपनी अ+यािधक शि\ के कारण िनरतर > होता जा रहा था। उसके पास िविभन कर/ तथा दान से अथाह
सपं ित एकिZत हो गई थी। उसके पास अपनी सेना थी। अपनी मजबतू ि थित के कारण वह कई बार राजनीितक
मामल/ म8 दखल देता था। उसने यह घोिषत कर िदया था िक िबना उसके आशfवाद के कोई भी राजा नह9 हो
सकता। वह राजा क अयो}यता के आधार पर पदiयतु कर देता था और वह आम जन/ को िवpोह करने के िलए
ेरत ो+सािहत करता था।
इसके अलावा याय :ेZ म8 भी उसका िनरतर ह त:ेप रहता था। कई भाग/ को धािम5क यायालय म8 लाकर वह
मनमाना िनण5य करता था। यह एक कार क िनरंकुशता थी िजससे लोग म\
ु होना चाहते थे।
रा+,वाद का िवकास तथा ईसाई समाज के िवघटन का भय
सभी ईसाई एक समान के सद य थे तथा वे एक ही धािम5क स&ा से िनयिZत थे। 14 व9 15 व9 शता@दी क
घटनाओ ं के कारण यह िवचार भािवत हो गया। 1350 म8 यरू ोप म8 फै ली महामारी काली मृ+यु ;ठसंबा कमंजी( ने
धम5 के दावे के खोखलेपन को दशा5 िदया। धम5 ^ारास इस महामारी से र:ा न कर पाने के कारण धम5 के ित लोग/
का िव]ास घट गया। पनु 5जागरण से उ+पन नई अिभ.िचय/ तथा यनू ानी और रोमन दश5न के पनु रो+थान ने भी धम5
के ित सदेह को बढ़ा िदया।

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इसी समय चच5 क सम याय8 िनरतर बढ़ती जा रही थी। भाषा, जाित, देश के आधार पर अनेक रा;<ीयता क
भावना िवकिसत होने लगी। रा;< रा1य क उदय होने लगा। इससे साव5भौग एकता को बनाये रखना तथा साव5भौग
ईसाई समाज क र:ा करने तथा उसक साव5भौम एकता को बनाये रखने हेतु धम5 सधु ार के आंतरक आंदोलन के
.प म8 परषदीय आदोलन ारHभ हQआ।
चच5 के ितिनिधआ+मक बनाने का यासः- इसी समय शासन के सचु ा. सचं ालन के िलये ितिनिधआ+मक
शासन क धारणा का िवकास हQआ। इसी समय रा;<ीय जनतािं Zक स ं थाओ ं का उदय हQआ। िटेन म8
‘पािल5याम8ट’ तथा ˆांस म8 ‘ टे्टस जनरल’ ने त+कालीन समय म8 आिथ5क एवं सैिनक Oयव थाओ ं को िनधा5रत
करने म8 मह+वपणू 5 भाग िलये। इससे ेरत होकर चच5 म8 सधु ार के िलये ितिनिधआ+मक स ं था के .प म8 सामाय
परषद क थापना पर बल मासfिलयो, िबिलयम जैसे िव^ान/ ने अपनी रचनाओ ं के मा3यम से िदया। सामाय
परषद के इस िवचार ने परषदीय आदोलन को ारHभ करने म8 मह+वपणू 5 भिू मका अदा क।
7.8.1 पLरषदीय आदं ोलन के उ4े5य
परषदीय आदोलन के उदय म8 त+कालीन परि थितय/ तो िजHमेदार थी।इनका मrु य उेय चच5 म8 सधु ार करते
हQए इसका खोया गौरव लौटाना था। वे मrु य .प से फूट को समाX करना, >ाचार को रोकना, पोप क िनरकंु शता
पर रोक लगाना, धािम5क Oयव था म8 नैितक पतन को रोककर एक लोकतांिZत समतामल ू क Oयव था को थािपत
करना था। इसके मखु उेय िनHन हैः-
1.चच5 म8 उ+पन फूट को समाX कर एकता को थािपत करना।
2.चच5 म8 Oयापत >ाचार का उमल
ू न करके उसे पनु ः श(
ु करना।
3.पोप क िनरंकुशता पर रोक लगाकर इसका लोकतांिZककरण करना।
4.इसके सचं ालन के िलये एक सामाय परषद क थापना करना।
5.चच5 के पवू 5 गौरव एवं सHमान को बहाल करना।
6.धमा5वलंिबय/ के नैितक एवं आ3याि+मक िवकास को सिु नFत करना।
7.8.2 पLरषदीय आदोलन के "मख ु िस!ात
परषदीय आदं ोलन के मख
ु िस(ात िनHन थेः-
1.चच5 क सवmiच स&ा पोप म8 नह9 वरन् सामाय परषद म8 िनिहत है। अतः चच5 का संचालन इस कार िकया
जाय िक वा तिवक शि\य/ का योग सामाय परषद करे ।
2.पोप चच5 का बधक है। वह काननू िनमा5ण का ािधकारी नह9 है। यह अिधकार के वल सामाय परषद को ाX
है। पोप सामाय परषद के काननू / से िनयिZत है।
3.सामाय परषद चच5 क ितिनिध सभा है। वह सवmiच है तथा पोप उसके अधीन है।
4.पोप पृjवी पर ईसा का या पीटर का नही वरन् चच5 का ितिनिध हे। पोप के न होने पर मानव कbयाण सभं व है।
5.पोप के आदेश सदैव मानने यो}य नह9 है। ये तभी माने जाने चािहए जब वे जनता के िहत म8 हो। वह9 आदेश माने
जाने चािहए जो जनिहत म8 हो तथा सामाय परषद ^ारा अनमु ोिदत हो।

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6.चच5 वयं म8 एक पणू 5 भतु ासHपन समाज है िजसके पास अपने को श(
ु करने क :मता है। वह अयो}य,
चरZहीन, पोप को पद से हटा सकती है।
7.पोप मन;ु य होने के कारण भल
ू कर सकता है। वह पापी भी हो सकता है।
8.धािम5क िवषय/ पर अिं तम िनण5य का अिधकार पोप का नह9 वरन् सामाय परषद का है।
9.पोप ाकृ ितक काननू / क अनदेखी नह9 कर सकता है। ाकृ ितक काननू सदैव मानवीय काननू / से WेJ है।
ाकृ ितक काननू ही उसक स&ा का आधार है।
10.चच5 के पास उतनी ही संपित होनी चािहए िजतनी चच5 के संचालन के िलये आवयक है। इसके अितर\
संपित लोककbयाणकारी कायk म8 उपयोग क जानी चािहए।
उपरो\ िस(ात/ से प> हो जाता है िक परषदीय आदोलन चच5 के अदं न उ+पन खािमय/, >ाचार, िनरकंु शता
को रोकने का यास था। यह पोप क शि\य/ को िनयिZत करने तथा चच5 के लोकतािZककरण का साथ5क
यास था।
7.8.3 कुछ "मख
ु पLरषद(
परषदीय आदोलन को भावपणू 5 बनाने और उसके उेय/ को ाX करने के िलये आदोलनकारय/ ^ारा समय-
समय पर िविभन परषद/ का आयोजन िकया गया। इन परषद/ म8 कासट8स क परषद तथा बेसेल क परषद
अिधक मह+वपणू 5 थी।
1 .कासट8स क परषद ; (1414.1418)- चच5 म8 उ+पन महान फूट को समाX करने के िलये सधु ार के िलये पोप
जान तेईसव8 क सलाह पर इस परषद का आयोजन िसिगसमाdड ^ारा जम5नी के ाडेन ांत के ‘कासट8ट झील’
के पास िकया गया। इसम8 5000 ितिनिधय/ ने भाग िलया। इस परषद म8 कुल 48 अिधवेशन हQए। अपने पाँचवे
अिधवेशन म8 िव] िस( घोषणा क गई। इसम8 कहा गया -‘‘यह परषद कै थोिलक चच5 क महासभा है इसे
अपनी शि\ ईसा से ाX हQई है। कोई भी Oयि\ िजसका पद कोई भी हो पोप तक, संध भेद के िनवारण, चच5 के
सधु ार के संबंध म8 उसके आदेश/ को मानने के िलये बा3य है।’’ यह मह+वपणू 5 घोषणा थी। इस परषद ने सव5 थम
अपने को पोप से ऊपर घोिषत कर िदया। चच5 क मख ु शि\ पोप म8 नह9 वरन् जनता म8 िनिहत है। पोप उन
शि\य/ का योग करने वाला ितिनिध माZ है, वह वामी नह9 है। यहां पर +येक दस वष5 बाद परषद बल ु ाने पर
सहमित बनी। चच5 क महान फूट को समाX करने के िलये इस परषद ने तीन/ पोप/ को पद से हटा िदया और नये
पोप ‘मािट5न पंचम’ को िनय\ु िकया। इस कार महान फूट का अतं हो गया।
य0िप यह परषद फूट समाX करने म8 सफल रही परतु चच5 म8 >ाचार को समाX करने म8 सफल नह9 रही। इसम8
मािट5न पचं म क मह+वपणू 5 भिू मका थी। इसके दरू गामी परणाम हQए। इस संबंध म8 िफिगस ने कहा -‘‘इस परषद ने
पहली बार िवश( ु राजनीित के सघं षk को बड़े पैमाने पर दिश5त िकया। इस परषद ^ारा ितपािदत वैधािनक
शासन के िवचार यरू ोप ^ारा वीकृ त िकये गये। इसके ^ारा राजनीित म8 ऐसी िविध का ितपादन िकया गया िजसने
राजाओ ं के अिधकार/ क र:ा करते हQए जनता को उनक वतZता ाX करा दी। इसने भावी पीिढ़य/ को िलये
वैधािनक सधु ार/ का माग5 श त िकया।’’
2.बेसेल क परषद ;( 1431.1449):-

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इससे पहले क कासटेस क परषद ‘‘चच5 क महान फूट’’ को समाX करने म8 सफल रही थी। परतु उस परषद
म8 चच5 क आतं रक सम याओ ं , >ाचार, नैितक पतन आिद का समाधान नह9 हो पाया था। इन किमय/ को दरू
करने के िलये 1431 म8 ि वटजरलैdड के बेसेल शहर म8 परषद का आयोजन िकया गया। इसम8 पोप के िनवा5चन
को इस कार करने क कोिशश क गई। िजससे परषदीय िनण5य का सHमान हो सके । इसम8 चच5 को ाX आय को
पोप के थान पर परषदीय कोष पर जमा करवाने पर बल िदया गया। इस परषद ने रा;<ीय ित पधा5 एवं गटु बाजी
हावी हो गई। कितपय यह9 कारण था िक अपेि:त परणाम ाX नह9 हो सके । सेवाइन के श@द/ म8 -‘‘वह परषद
जो वयं +येक कार के रा;<ीय ^ेष का िशकार हो धमा5िधकारय/ के जब5द त िनिहत वाथk पर सफलतापवू 5क
आVमण नह9 कर सकती थी।’’
7.8.4 पLरषदीय आंदोलन के असफलता के कारण
परषदीय आंदोलन लगभग 100 वषk से अिधक समय तक चला। इसम8 कई िवषय/ पर सव5सHमित बनी तथा
अनेक 1वलंत िबदओ ु ं पर चचा5 हQई। यह ऐसा आदं ोलन था िजसम8 चच5 म8 सधु ार, लोकतािZकरण तथा ईसाई
समाज क एक जटु ता के िलये Oयापक सास िकये गये। इन सबके बावजदू फूट को समाX करने के अितर\
िकसी अय :ेZ म8 िवशेष सफलता नह9 िमली। चच5 म8 कोई िवशेष सधु ार नह9 िदखायी पड़ा। दसू रे श@द/ म8 कहे तो
संपणू 5 परषदीय आंदोलन असफल हो गया था। इस आंदोलन क असफलता के मख ु कारण िनHन हैः-
1.मrु य सम याओ ं के संबंध म8 िचतन क अ प>ताः- परषदीय आदोलन ने महान फूट को समाX करने म8
ऐितहािसक एकजटु ता िदखायी। इसके अितर\ अय मु / पर उनम8 एकजटु ता नह9 थी। अय मु / पर आम
सहमित का अभाव था। परषद के पास उनका सव5सHमत हल भी नह9 था। अतः अय मु / पर आम सहमित के
अभाव म8 हल नह9 हो पाया। परषद के सद य ‘महान फूट’ को समाX कर सतं >ु हो गये। यह इसके अ भावी हो
जाने का मख
ु कारण बना।
2.जन सहयोग का अभावः- परषदीय आंदोलन का यह मख ु लsय था िक इससे पोप क िनरकंु शता को कम
करना। यह तभी संभव हो सकता था जब इसम8 जन सहभािगता का अभाव हो। परषदीय आदं ोलन म8 जन नेत+ृ व
का अभाव थ। नेत+ृ व िविभन िव]िव0ालय म8 अ3यापन कर रहा बिु (जीवी वग5 था। इनक सहभािगता जनता के
बीच कम थी। यही कारण था िक इसम8 जनता क सहभािगता नह9 हो पाई और आंदोलन मजबतू नह9 हो पाया
और अतं तः असफल हो गया।
3.सही समय का न होनाः- आंदोलनकारी पोप क िनरंकुशता को कम करने के िलए यास कर रहे थे लेिकन
जनमत उनके साथ नह9 था। सेवाइन के श@द/ म8 -‘‘ईसाई समाज क सामाय भावना चच5 क एकता क
पनु 5 थापना क आवयकता पर एकमत थी परतु वह इस बात पर =ढ़ ित# नह9 थी िक पोप क सवmiचता को
समाX करके समचू े चच5 के शासन के िस(ात म8 परवत5न कर िदया जाय।’’
4.यो}य नेत+ृ व का अभावः- परषदीय आदोलन म8 यो}य नेताओ ं का अभाव था। पोपशाही के समथ5क नेताओ ं के
सामने स:म, यो}य, नेत+ृ व का अभाव था। कितपय यही कारण था िक आदोलन ऊँचाइय/ पर न पहQचँ िबखर
गया।
5.अOयवहारक आदोलनः- यह परषदीय आदोलन का मrु य दोष था। इसम8 यह िवचार रखा गया िक एक ही
संिवधान के ^ारा सHपणू 5 यरू ोप के चचk का संचालन िकया जाए। यह कपोल कbपना थी aय/िक िबना यरू ोिपय
देश/ क सहमित के यह संभव नह9 था। यह वह समय था जब रा;<ीयता क भावना बल थी तथा रा;< रा1य/ का

उराखंड म
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उदय हो रहा था। अतः ऐसे माहौल म8 एक संिवधान से सHपणू 5 यरू ोप का संचालन कपोल कbपना थी। रा;<ीयता क
भावना अतरा5;<ीय चच5 के माग5 म8 बाधा थी। अतः रा;<ीयता क भावना ने इस आदोलन को अOयवहारक बना
िदया।
6..िढ़वादी धारणाः- परषदीय आदोलन से जडु े़ हQए लोग अपने लsय तभी ाX कर सकते थे जब वे पोप के पद
को ही समाX कर देते परतु वे इसके प: म8 नह9 थे। वे परू ी Oयव था को बदलना नह9 चाहते थे। वे .िढ़वादी थे
अतः वे पोप के पद को बना कर रखना चाहते थे। उनके इस िदशिवहीन सक ं bप का फायदा पोप एवं Oयव था
समथ5क/ ने उठाया और उहोन8 अपने समथ5क/ के मा3यम से सHपणू 5 आदोलन को असफल बना िदया।
7.अ+यािधक काननू / पर बलः- गीकn के अनसु ार परषदीय आदोलन म8 काननू पर अ+यािधक बल रहा। ये नेता
काननू के जानकर थे। वे मलू पहलू को छोड़कर काननू ी पहलू पर अिधक बल देते थे। उनके वाद-िववाद एवं बहस
अ+यंत तीखे हो जाते थे। कितपय यही कारण था िक मलू उेय ही पीछे छूट गया।
8.पोप क कूटनीितः- परषदीय आदोलन के जम से ही पोप इसे कमजोर बनाने का िनरतर यास कर रहा था।
वह फूट डालो तथा राज करो क नीित पर काय5 कर रहा था। वेसल े क परषद के बाद परषद के मख
ु नेता
‘िनकोलस’ को लोभन दे अपनी ओर िमला िलया। आदोलन के कमजोर पड़ते ही इसम8 भगदड़ ारHभ हो गई
और लोग परषद को छोड़ पोप के साथ जड़ु ने लगे। अनेक शासक/ ने पोप के साथ संिध कर ली। उनम8 से कुछ को
पोप ने नई जागीर8 दान क। इस परू े घटनाVम तथा पोप क कूटनीित से आदोन ही टूट गया।
9.Oयि\गत वाथ5ः- परषदीय आदोलन से जडु े़ अिधकांश लोग/ क इiछा धम5 सधु ार करने क नह9 वरन् पोप के
वैभव म8 िह सेदारी क थी। वे पोप से िनकटता का माग5 खोज रहे थे जो इस आदोलन से ाX हो गया। वे जो भी
ताव पास करते थे उसम8 धमा5िधकारय/ के िहत/ के िलये रा ता ज.र छोड़ देते थे। इस कार यह एक ‘नरू ा
कुती’ का मचं बन कर रह गया । यह वा तिवकता से दरू नाटक माZ बन कर रह गया और अपनी िव]सनीयता
खोता चला गया।
7.8.5 आदोलन का महव एवं "भाव
परषदीय आदोलन का ारHभ त+कालीन परि थितय/ म8 चच5 म8 OयाX >ाचार, चच5 क फूट के कारण हQआ था।
इसका उेय एवं लsय अ+यंत पिवZ था परतु यह अपने लsय को ाX न कर सका। इसके बावजदू इस
आदोलन ने राजनीितक िचतन म8 एक नये यगु का सZू पात िकया। यह िव] का पहला आदोलन था िजसने चच5
एवं पोप पर B उठाये। इहोन8 पहली बार चच5 के ऊपर िनयZण लगाने तथा पोप क जबावदेही तय करने क
मांग क। यह आदोलन सHपणू 5 चच5 क काय5 णाली के लोकतािZककरण का प:धर था। य0िप यह आदोलन
लsय को न ाX कर सका परतु इसका िचतन पर दरू गामी भाव हQआ। इसके मख ु भाव/ को िनHन िबदओु ं
^ारा प> िकया जा सकता हैः-
1.संिवधानवाद पर बलः- यह आदोलन िनरकुशता के अधं ेरे से Oयव था के उजाले क ओर ले जाने क बात
करता है। यह ऐसा आदोलन था िजसने म3ययगु म8 ‘िविध के शासन’ का संकेत दे िदया। इसके भाव को प>
करते हQए सेवाइन ने िलखा है - ‘‘परषदीय आदोलन का राजनीितक िवचार/ मे मह+व इस तjय के कारण है िक
यह िनरंकुशता के िव.( संिवधान का थम महान िववाद था और इसने ऐसे िवचार ततु कर उनका चार
िकया िजनका उपयोग बाद के संघषm म8 िकया गया।’’

उराखंड म
ु िविवालय 108
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
इस आदोलन म8 सीिमत धािम5क स&ा का िस(ात बहQत मह+वपणू 5 था। यह िवचार आज भी मह+वपणू 5 है। यह
कहना अितयोि\पणू 5 नह9 होगा िक संिवधानवाद का िवचार परषदीय आदोलन क मह+वपणू 5 देन है।
2.पोप के अ+याचार म8 कमीः- यह स+य है िक यह आदोलन पोप के अ+याचार, दोहरे मापदdड के िव.( था
परतु यह अपने लsय को पणू त5 ः पाने म8 असफल रहा। इसके बावजदू इसने पोप का उ&रदािय+व एवं जबावदेही
का B उठा िदया। इस परू े घटनाVम का परणाम यह हQआ िक पोप ने अपने आचरण एवं शि\य/ को सीिमत
िकया। इसी आदोलन का ही परणाम था िक पोप काननू िनमा5ता क भिू मका से हटकर एक शासक क भिू मका
म8 आ गया।
3.रा;<ीयता का भावना का िवकासः- परषदीय आदोलन के परणाम व.प एक साव5जिनक चच5 के थान पर
रा;<ीय चच5 का उ+थान हQआ। िटेन, जम5नी, ि वटजरलैdड, हालैdड आिद म8 थािपत रा;<ीय चचk म8 रा;<ीयता
क भावना का िवकास हQआ।
4. ाकृ ितक काननू एवं अिधकार/ के िस(ात को माय बनायाः- यह ऐसा आदोलन था िजसने ाकृ ितक काननू /
को आधार बनाया और अिधकार/ क बात को वीकार िकया। यह अधं िव]ास के िव.( तक5 पर आधारत
आदोलन था िजसने नये उजाले को जम िदया।
5.लोककbयाणकारी रा1य के िवचार का ितपादनः- यह ऐसा आदोलन था िजसने प> िकया िक स&ा का hोत
जनता है। अतः इसका योग जनकbयाण के िलये िकया जाना चािहए। के वल यह शासक िहत म8 नह9 होना
चािहए। इस आदोलन ने यह संकेत िदया िक शासन शिसत/ के िहत म8 जन सहमित से होना चािहए।
6.धम5 सधु ार का ारHभः- यह आदोलन अपने लsय को ाX नह9 कर सका परतु इसने धम5 सधु ार का सZू पात
िकया। इस आदोलन क असफलता के बाद यह िवचार मजबतू हQआ िक बाहर से सधु ार आदोलन चलाकर भी
सधु ार िकया जा सकता है। कितपय यही कारण था िक इसके बाद मािट5न लूथर िकंग, कै िbवन आिद ने धम5सधु ार
आदोलन चलाया।
अAयास B -
1.म3य यगु का संघष5 िकन दो स&ाओ ं के म3य था?
2.रोम के बाद पोप का मrु यालय कहां बना?
3.सuाट के समथ5क िकस नाम से जाने लगे?
4.पोप के समथ5क/ का aया नाम था?
5.दो मख
ु परषद/ का नाम बताइय8।

7.9 सारांश
म3ययगु क यह मख ु िवशेषता थी। यह ऐसा काल था जब चच5 एवं रा1य स&ा के बीच टकराव ारHभ हो गया
था। म3ययगु से पवू 5 चच5 एवं राजस&ा समानातर .प से एक सहमित के आधार पर सचु ा. .प से चल रही थी िक
लैिकक िवषय/ का संबंध राजा से है तथा पारलौिकक िवषय/ का संबधं चच5 एवं पोप से है। अतः दोन/ पर पर एक
दसू रे का सHमान करते हQए दसू रे के काय5:Zे म8 दखल नह9 देते थे। बारहव9 शता@दी आते-आते आपस म8

उराखंड म
ु िविवालय 109
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
अिव]ास तनाव तथा WेJता का संघष5 ारHभ हो गया। मोटे तौर पर यह संघष5 दो भाग/ म8 बांटा जा सकता है।
पहले भाग म8 11 व9 एवं 12व9 शता@दी का काल है जहां पर चच5 क सवmiचता है। दसू रे काल म8 13व9 और
14व9 शता@दी का काल है िजसम8 राजस&ा क सवmiचता थािपत है।
13व9, 14व9 शता@दी म8 राजस&ा मजबतू ी से उभरी और पोप के भाव, शि\ का ‡ास हQआ। इसका मrु य कारण
चच5 म8 OयाX >ाचार, पोप एवं धमा5िधकारय/ का नैितक पतन था। इसी समय चच5 क महान फूट भी चच5 क
शि\ के पतन का कारण बना। इस िववाद से िचतन पर गहरा भाव पड़ा। राजनीितक िचतन धािम5क भाव से
म\
ु हQआ। इससे बधं +ु व क भावना का भी िवकास हQआ।
पpहव9 शता@दी म8 इस संघष5 के परणाम व.प उपजी िनराशा, हताशा और चच5 एवं धम5 म8 सधु ार के िलये
परषदीय आदोलन का जम हQआ। इस आदोलन का मrु य कारण चच5 क महान फूट, पोप का नैितक पतन, पोप
क िनरंकुशता, ईसाई गौरव क बहाली तथा चच5 को ितिनिधया+मक बनाने के िलये हQआ। इस आदोलन के
मrु य िस(ात पोप के थान पर परषद को सŒपने, पोप का काननू का िनमा5ता नह9 वरन् काननू के अधीन है, पोप
परषद के अधीन है तथा पोप के आदेश/ का उbलंघन जन कbयाण िवरोधी होने पर िकया जा सकता है।
परषदीय आदोलन कुछ समय बाद टूट का िशकार हो गया और अपने लsय/ को ाX न कर सका। इसक
असफलता का मख ु कारण िचतन क अ प>ता, जनसहयोग का अभाव, यो}य नेत+ृ व का अभाव, .िढ़वादी
धारणा का होना, आ3याि+मक काननू / पर बल तथा पोप क कूटनीित थी। इसके बावजदू इस आदोलन का
िचतन पर गहरा भाव पड़ा। इस आदोलन क सवा5िधक मह+वपणू 5 देन संिवधानवाद था। इसके अलावा इस
आदोलन से पोप के अ+याचार म8 कमी, रा;<ीयता क भावना का िवकास, ाकृ ितक काननू तथा अिधकार/ पर
बल, लोककbयाणकारी रा1य का उदय तथा धम5 सधु ार का सZू पात हQआ। इस आदोलन ने सHपणू 5 िचतन तथा
मानव जाित को वतZता, समानता, भाईचारे तथा िविध के शासन से य\
ु नये यगु म8 वेश कराया।

7.10 श!दावल$
पेपिल ट- पोप के समथ5क ‘पेपिल ट’ कहलाये।
सेaयल
ू रर ट- जो राजा के समथ5क थे वे ‘सेaयल
ू रर ट’ कहलाये।
महान फूट- एक साथ दो पोप का उदय तथा दो मrु यालय का होना ही महान फूट कहलाता है।
एि}वनोन:- यह पोप ^ारा ˆांस म8 थािपत िकया गया मrु यालय था।
बेवीलोिनयन कै दः- ˆांस के एिव}नोन म8 थािपत मrु यालय म8 पोप ˆांस के दबाव म8 था। अतः उसके वहां के
वास को बेवीलोन कै द कहा जाता है।
दो तलवार/ का िस(ातः- यह वह िस(ात है जो बताता है िक भु ने राजस&ा एवं धािम5क स&ा .पी दो
तलवार पीटर को सŒपी है। पीटर ने इसे पोप को दी। पोप ने धािम5क स&ा तो अपने प: रखी पर लौिकक स&ा राजा
को सŒप दी। यह ही दो तलवार/ का िस(ात कहा जाता है।

उराखंड म
ु िविवालय 110
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

7.11 अ&यास 
न' के उ तर
1.लौिकक पारलौिकक 2.एिव}नोन 3. सेaयल
ू र ट 4.पेपिल ट 5.का ट8सक, बेसेल क

7.12 संदभ) *थ सच


ू ी
1.मेहता जीवन -पाFा+य राजनीितक िचतन
2.िसंह वीरके ]र साद ितिनिध राजनीितक िवचारक
3.जैन पख
ु राज पाFा+य राजनीितक िचतन

7.13 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1.सदू जे0पी0 राजनीितक िचतन का इितहास

7.14 नबंधा मक 

1.चच5 एवं रा1य के म3य िववाद के मख
ु कारण aया थे? इसके परणाम/ को प> किजये।
2.परषदीय आदोलन से aया समझते है? इसके दरू गामी परणाम/ पर काश डािलये।
3.परषदीय आदोन के aया कारण थे? यह aय/ असफल हQआ प> किजये।
4.चच5 एवं रा1य के बीच िववाद का िचतन पर गहरा भाव पड़ा, इस पर िनबध िलिखये।

उराखंड म
ु िविवालय 111
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

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इकाई क$ संरचना
8.1 "तावना
8.2 उ4े5य
8.3 आगटाइन, मास`िलयो तथा एaवीनास के िवचार
8.4 आगटाइन के राजनैितक िवचार
8.4.1 दो तलवार9 का िस!ात
8.4. 2 राय संबंधी िवचार
8.4.3 स;पित एवं दासता संबंधी िवचार
8.4.4 आगटाइन के राजनीितक िचतन का "भाव
8.5 मास`िलयो के राजनीितक िवचार
8.5.1 मास`िलयो के राय संबंधी िवचार
8.5.2 शासन संबंधी िवचार
8.5.3 काननू संबंधी िवचार
8.5.4 चच सबं धं ी िवचार
8.5.5 मHू याकं न
8.6 थामस एaवीनास के राजनैितक िवचार
8.6.1 राय संबंधी िवचार
8.6..2 शासन संबंधी िवचार
8.6.3 राय के काय
8.6..4 राजस:ा एवं धािमक स:ा म( स;बध
8.6.5 काननू संबंधी िवचार
8.6..6 याय संबंधी धारणा
8.6.7 दासता संबंधी िवचार
8.6.8 मHू याकंन
8.7 साराश ं

उराखंड म
ु िविवालय 112
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
8.8 शAदावली
8.9 अBयास के "C9 के उ:र
8.10 संदभ Dथ सचू ी
8.11 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
8.12 िनबधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 113
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

8.1 तावना
म3य यगु को राजनीितक िचतन का ‘अधं कार यगु ’ कहा जाता है। यह ऐसा समय था जब चच5 एवं रा1य के बीच
संघष5 चल रहा था। घोर अिनिFतता, अि थरता का दौर था। जन सामाय दो चिaकय/ के बीच िपस रहा था। इसी
समय आग ताइन , मासfिलयो तथा एaवीनास जैसे िवचारक/ ने अधं ेरे म8 नई रोशनी का सचं ार िकया। इह/ने
राजनीित के िविभन िवषय/ रा1य क उ+पित, रा1य के काय5, शासन णाली,दdड, काननू तथा चच5 एवं रा1य के
संबंध म8 िव तृत िववेचन ततु िकया।
इसके पवू 5 अिनFतता के माहौल म8 तक5 के ऊपर अधं W(ा भावी हो गई थी। इनके आने के बाद से तक5 पनु ः
भावी हQआ और धीरे -धीरे अधं ेरा छटा। इन तीन/ िवचारक/ ने पोप एवं चच5 को सीिमत करने का यास िकया। इन
तीन/ ने दो स&ाओ ं को प> .प से वीकार िकया। जहां आग ताइन एवं एaवीनास का रवैया चच5 के ित नम5 है।
वे रा1य को चच5 के अधीन मानते है। परतु वह9 मासfिलयो ने चच5 को रा1य के अधीन िस( कर िदया। ये तीन/
िवचारक इस =ि> से और मह+वपणू 5 हो जाते है िक वे पहले बार चच5 एवं रा1य के बीच संबंध/ क न के वल
तािक5 क Oयाrया करते है वरन वे शासन के अय पहलूओ ं जैसे दdड, काननू , रा1य क उ+पित आिद पर मह+वपणू 5
िवचार रख एक नये उजाले और नये यगु का सZू पात करते है।

8.2 उे

1 म3य यगु के राजनैितक Oयव था से परिचत कराना।
2. इस अ3याय के ^ारा आग टाइन के राजनैितक िवचार/ का अ3ययन करना।
3. मासfिलयो के चच5 एवं रा1य संबंधी मह+वपणू 5 िवचार/ का अ3ययन करना।
4. एaवीनास के राजनीितक िवचार/ तथा काननू के िस(ात का अ3ययन करना।

उराखंड म
ु िविवालय 114
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

8.3 आगटाइन, मासU1लयो तथा एPवीनास के वचार


इस इकाई म8 हम आग टाइन, मासfिलयो तथा एaवीनास के राजनीितक िवचार/ का Vमशः अ3ययन कर8 गे |जो
इस कार है ------

8.4 आगटाइन के राजनैतक वचार

सतं आग टाइन का जम 354 ई0 म8 उ&री अˆका के नगर ‘ टेगे टे’ (Tegaste) म8 हQआ था। काथnज
िव]िव0ालय से उiच िश:ा ाX करने के उपरात उसने मैिनिकयन सH दाय का सद य बना। आ+मसतं ुि> न होने
से उसने इस धम5 को +याग िदया। इसके उपरात इटली के नगर िमलान म8 अपना िनवास बनाया। यह9 पर वह िवशप
एHोज के सHपक5 म8 आकर इसाई धम5 वीकार िकया। उसक सतं िु >, िव]ास िनरतर ईसाई धम5 म8 मजबतू होता
चला गया। 391 ई0 म8 उसे अˆका के नगर िहtपो का पादरी िनय\ु िकया गया।
आग टाइन उस समय ईसाई धम5 से जड़ु ा था जब लोग/ का िव]ास धम5 म8 िनरतर कम होता जा रहा था। चच5 म8
धमा5िधकारय/ म8 िनरतर नैितकता का संकट उ+पन होता जा रहा था। यह वह समय था जब चच5 को चनु ौती
िमलती जा रही थी। आग टाइन ने इनको चनु ौती के .प म8 लेते हQए ईसाई धम5 क र:ा के िलये िस( Cथ De-
civitate अथवा City of God (ई]रीय नगर) क रचना क। यह 22 भाग/ म8 िवभािजत Cथ था
िजसम8 पहले 10 भाग/ म8 आलोचक/ को जबाब िदया गया है। अगले चार अ3याय/ म8 लौिकक और ई]रीय नगर
क उ+पित पर काश डाला गया है। इसके आगे उह/ने सामािजक, राजनीितक िवचार/ का उbलेख िकया है। उसने
अपने Cथ म8 यह िस( िकया िक रोम का पतन ईसाई धम5 के कारण नह9 वरन मिू त5पजू क समाज के नैितक पतन के
कारण हQआ है। ईसाईयत ने तो इसके पतन को कम कर िदया। उसका यह भी तक5 था िक रोम क पराजय म8 ई]रीय
ेरणा भी िजHमेदार है। यह स&ा रोम के थान पर ‘ई]रीय नगर’ क थापना चाहती है। उसके ^ारा िदये गये मख

िस(ात तथा िवचार िनHन है-
8.4.1 दो तलवार9 का िस!ात
आग टाइन का यह मत था िक +येक Oयि\ दो नगर/ का सद य होता है। पहले वह सांसारक नगर ( city of
earth) का सद य है तथा बाद म8 वह ई]रीय नगर ( city of god) का सद य है। ये दोन/ मानव शरीर के
दो .प/ से सHबिधत है। सांसारक नगर का संबंध मानव शरीर अथवा भोग से है तथा ई]रीय नगर उसक आ+मा
है। मन;ु य क आ+याि+मक और नैितक उ+थान ई]रीय नगर क सद यता से ही है। यह ई]र ^ारा सचं ािलत है। वह
कहता है िक ई]र नगर क सद यता ई]र क ेरणा से ही है। ई]र क ेरणा तथा आशीवा5द चच5 क सद यता से
ही है। आग टाइन का ई]रीय नगर क कbपना ईसाई चच5 रा1य क कbपना के .प म8 क है। उसने ई]रीय नगर
क सद यता चच5 क सद यता से अिधक Oयापक है। इसम8 चच5 से जडु े़ हQए Oयि\ ही सिHमिलत होते है।
आग टाइन क यह मायता थी िक चच5 ई]रीय नगर का अश ं माZ ही है। आग टाइन ने चच5 एवं रा1य के बीच
घिनJ सबं धं बताया है। फो टर के श@द/ म8-‘‘ यह ई]रीय नगर का वह भाग है िजसम8 वह सभी सद य सिHमिलत
है जो अभी अपनी िव]याZा ही कर रहे है और वे सब जो ई]रीय रा1य के सद य है , इससे गजु र चक ुे
है।’’आग टाइन क यह मायता थी िक चच5 से ही गजु र कर ही ई]रीय नगर क सद यता Cहण क जा सकती है।

उराखंड म
ु िविवालय 115
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सेवाइन के श@द/ म8-‘‘संत आग टाइन के अनसु ार मानव इितहास सदा से दो समाज/ के पार परक संघष5 ^ारा
िनयिZत होता रहा है। एक ओर संसार का नगर है जो मन;ु य को अधोमख
ु ी वृित काम, Vोध, मद, लोभ, मोह
आिद पर आधारत है। दसू री तरफ ई]र का नगर है जो वगfय शाित और आ3याि+मक मिु \ क आशा क
आशा के ऊपर आधारत है।’’
आग टाइन क यह मायता थी िक चच5 एक संगिठत सं था है। मन;ु य क मिु \ और ई]रीय जीवन से सा:ा+कार
तभी सभं व है जब हम चच5 को सम त िव]ासी Oयि\य/ का एक सामािजक सघं वीकार कर8 । मानव इितहास म8
ई]र क क.णा चच5 के मा3यम से ही काय5 करती है। यह िस(ात दो कार क जीवन प(ित का तीक है।
ई]रीय रा1य ईसाई चच5 Oयव था एवं आ3याि+मक जीवन प(ित का तीक है जो शा]त और अन]र है। जबिक
सांसारकरा1य गैर ईसाईयत ^ारा सगं िठत लौिकक एवं भौितक है जो न]र और :णभगं रु ी है।
ई]रीय जीवन के आवयक त+वः- ई]रीय रा1य के मख
ु त+व िनHन है-
1.धम5 अथवा यायः- वह धम5 तथा याय को एक दसू रे का पया5यवाची मानता था। वह धम5 तथा याय को िविभन
इकाइय/ परवार, रा1य, सH दाय आिद के बीच Oयव था बनाये रखने के उेय से +येक Oयि\ ^ारा अपने
कत5Oय पालन का धारणा म8 िनिहत है। वह धम5 तथा याय को सामािजक Oयव था का तीक मानता था। +येक
Oयि\ को अपने काय5 रा1य ^ारा िनिम5त िनयम/ के अनसु ार करने चािहए। इसके बावजदू रा1य सवmiच नह9 है।
रा1य से भी ऊपर एक सं था है और वह है साव5भौम समाज िजसका +येक मन;ु य सद य होता है। साव5भौम
समाज ही सHपणू 5 आ3याि+मक उेय/ क पिू त5 करता है। उसके अनसु ार याय का :ेZ देशकाल क सीमाओ ं से
बंधा नह9 है। यह सव5Oयापक और सव5कािलक है।
2.शाित आग टाइन का दसू रा मह+वपणू 5 त+व शाित है। वा तिवक शाित वह अव था है िजसम8 सHपणू 5 समाज
म8 सlावना, ेम, सामज य, िव0मान होता है। इससे Oयि\ का जीवन पणू त5 ः सख
ु मय और संतोष द हो जाता है।
वह दो कार क शित क बात करता है। इसम8 मrु य .प से सांसारक शित तथा आ3याि+मक शित शिमल है।
सांसारक शित के वल इस समाज म8 रहकर अपनी भौितक आवयकताओ ं क पिू त5 से ाX क जा सकती है।
जबिक आ3याि+मक शाित भौितक शाित से ऊपर तथा WेJ है। इसका माग5 भौितक शित से ही िनकलता है। यह
अपनी वासनाओ ं पर िनयZण कर ही इसे ाX कर सकता है।
8.4. 2 राय सबं धं ी िवचार
आग टाइन क यह मायता थी िक मन;ु य के उ+थान के िलये , सरु :ा के िलये ही ई]र ^ारा रा1य क थापना क
गई है। अतः रा1य का िनमा5ता ई]र है। तथा राजा उसका ितिनिध है। +येक Oयि\ को रा1य क आ#ा का पालन
करना चािहए। यिद राजा गलत आदेश देता है तो उसक अव#ा क जानी चािहए। आग टाइन रा1य को मन;ु य क
मिु \ का साधन मानता है। यनू ानी और रोमन िवचारक/ क तरह आग टाइन रा1य के मह+व को वीकार करते हQये
भी उसे याय का आधार नह9 मानता है। रा1य ईसाई धम5 को मानने वाला तथा न मानने वाले दोन/ हो सकता है।
याय तथा धम5 ईसाई रा1य म8 ही उपल@ध होते है। यह रा1य का गणु न होकर चच5 का गणु है। यही कारण है िक
चच5 रा1य से उiच तथा WेJ है। अतः सभी रा1य अिधकारय/ को धम5 के अधीन ही काय5 करना चािहए।
आग टाइन के रा1य संबंधी िवचार/ से यह प> होता है िक वह पहले के ईसाई धािम5क गणु ओ ं क तरह रा1य को
आवयक बरु ाई नह9 मानता है। यह मन;ु य के पाप म\ ु जीवन को सिु निFत करने तथा अय भौितक साधन/ क
पिू त5 का साधन मानता है। रा1य को अपरहाय5 मानने के बावजदू वह उसे चच5 के िनयZण म8 रखने का प:धर है।

उराखंड म
ु िविवालय 116
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
8.4.3 स;पित एवं दासता संबधं ी िवचार
आग टाइन अपने पवू 5वतf िव^ान/ क तरह Oयि\गत सHपित के अिधकार का समथ5न करता है। वह प> करता है
िक Oयि\गत सHपित के अभाव म8 मन;ु य लौिकक सख ु एवं पारलौिकक सख ु से विं चत हो जाता है। वह आगे प>
करता है िक मन;ु य को उतनी ही सपं ित रखना चािहए िजतनी इस उददेय क ािX के िलये आवयक है। इससे
अिधक सपं ित रखने वाल/ को इसका योग विहत म8 न कर जनिहत म8 करना चािहए।
अय यनू ानी िवचारक/ क तरह आग ताइन दास था को समथ5क था परतु वह यनू ानी िवचारक/ क तरह
ाकृ ितक नह9 मानता है। वह इसे सीधे धम5 से जोड़ते हQए प> करता है िक यह मन;ु य ^ारा िकये गये पापपणू 5 काय5
का ई]रीय दdड है। यह मन;ु य/ को दdड व.प आ+मा का पर;कार करने के िलये िदया जाता है। यह मन;ु य के
पतन, असफलता, िगरावट का परणाम है। दासता के समय मन;ु य/ को अपनी पणू 5 :मा के साथ परWम करना
चािहए िजससे उसको िमल रहा दdड जbद ही समाX हो सके । यह मन;ु य के पाप/ का ई]रीय उपचार है। +येक
दास को अपने वामी क परू ी :मता से सेवा करनी चािहए। फो टर के श@द/ म8-‘‘ आग टाइन का दासता
िस(ात असतोषजनक और समझ से परे है। aय/िक यिद उसके िवचार/ को वीकार कर िलया जाय तो यह
मानना पड़ेगा िक थम Oयि\ (आदम) ^ारा िकये गये पाप के कारण सHपणू 5 मानव समाज को दासवृि& करनी
चािहए। वह वामी और दास का अतं र कै से होता है इसको प> नह9 कर पाता है।’’
8.4.4 आगटाइन के राजनीितक िचतन का "भाव
आग टाइन के िवचार/ का लHबे समय तक भाव रहा। उसने राजस&ा पर धािम5क स&ा क WेJता थािपत क।
उसने ईसाई धम5 के गौरव एवं मह+व को पनु ः थािपत करने का यास िकया। उसने ई]रीय नगर का िवचार ततु
कर ईसाई समाज के सामने आदश5 तुत िकया। चच5 ^ारा ही मानव के कbयाण क बात कर चच5 क WेJता को
थािपत िकया। उसने रोमन एवं यनू ानी िवचारक/ के बीच समवय थािपत िकया। गैटेल के श@द/ म8-‘‘ उसने
tलेटो के आदश5 रा1य के दश5न को, िससरो के िव]रा1य के िवचार को तथा ईसाईयत के धम5 ेरत रा1य के
िस(ात को समिवत कर अपने ई]रीय रा1य क थापना क।’’
आग टाइन ^ारा तीन/ िवचारधार/ के बीच िकया गया यह समवय बाद क पीिढ़य/ के िलये ेरणा hोत रहा है।
उससे रोमन, कै थोिलक, ोटे ट8ट िवचारक नये त+व/ को ाX करते रहे। उसका ‘ई]रीय नगर’ का िवचार लHबे
समय तक ईसाई समाज का आदश5 बना रहा। ाइस के श@द/ म8 -‘‘ पिवZ रोमन साuा1य का िनमा5ण ‘ई]रीय
नगर’ क न9व पर हQआ है।’’ मैaसी के श@द/ म8 -‘‘ म3ययगु ीन यरू ोप क राजनीितक िवचारधारा पर िकसी अय
Oयि\ ने इतना भाव नह9 डाला िजतनी चौथी शता@दी के अˆका के इस महान संत ने डाला था।’’

8.5 मासU1लयो के राजनीतक वचार


म3य यगु का सHपणू 5 िचतन लौिकक एवं पारलौिकक स&ा के म3य संघष5 का है। यह दोन/ स&ाओ ं के बीच
सवmiचता का संघष5 था। चौदहव9 शता@दी आते-आते लौिकक स&ा अथवा राजस&ा का पलड़ा भारी होता
चला गया। ˆांस के राजा िफिलप चत5ुथ ने अपनी स&ा को अ+यािधक मजबतू िकया और पोप के भाव एवं
आदेश को खारज िकया। इसी समय मासfिलयेा जैसे िवचारक/ ने राजतंZ क सवmiचता को और अिधक
मजबतू ी दान क।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
मासfिलयो का जम इटली के पाडुआ नगर म8 1210 ई0 को हQआ था। ारिHभक िश:ा के बाद उह/ने िचिक+सा
शाh म8 डाaटर क उपािध ाX क। उसे आक5 िवशप का पद भी िदया गया िजसे उसने अ वीकार कर िदया।
अपने जीवनकाल म8 उसने वकल, सैिनक, राजनीितक आिद क भिू मका का िनव5हन िकया। उसने एिव}नोन ि थत
पोप मrु यालय क याZा कर चच5 का नंगा सच, वहां का >ाचार देखा। यह9 से उसक राजतंZ के प: म8 िवचार
मजबतू हQआ। उसके िवचार पणू त5 ः मौिलक तथा कुछ हद तक Vाितकारी थे। उसके संबंध म8 ोफे सर मरू े ने कहा
है-‘‘ मासीिलयो चौदहव9 शता@दी का सबसे मौिलक िवचारक था िजसने न के वल अपने समय के वरन उसके बाद
आने वाले यरू ोप को देखा था।’’उसने अपने िवचार अपनी रचना ‘‘ िडफे सर पेिसस’’ नामक प ु तक म8 रखे । पोप
ने इस प ु तक को चच5 िवरोधी मानते हQए इस पर ितबंध लगा कर मासfिलयो को बिह;कृ त कर िदया। अपनी र:ा
के िलये मासfिलयो ने जम5नी म8 बेवेरया के शासक लुइस के यहाँ शरण ली। यही पर उसने िडफे सर पेिसस का
संि:Xीकरण करते हQए िडफे सर माइनर क रचना क। यही पर 1342 ई0 म8 उसका देहावसान हो गया। मासfिलयो
के ऊपर त+कालीन परि थितय/ का गहरा भाव था। इटली के िबखराव से वह दख ु ी था। वह इटली के पतन के
िलये वह पोप को िजHमेदार मानता था। कितपय यही कारण था िक वह इटली पर से पोप के भाव को कम करने
के िलये वह अपनी रचनाओ ं को कािशत करता है। यह यही नह9 .कता वरन चच5 को रा1य के अधीन करने क
वकालत करता है। उसके यह िवचार अ+यंत Vाितकारी थे तथा अय म3ययगु ीन िवचारक/ से बहQत आगे थे। दो
सौ वषk जम5नी के िवचारक एरे टस के िवचार/ मे भी इसक झलक िमलती है। कितपय यही कारण था िक सेवाइन
उसे ‘‘ थम ऐरे ि टयन’’ घोिषत िकया। इसके अितर\ उसके ऊपर अर तू तथा एवरोवाद के कृ ितवादी एवं
बिु (वाद िवचार/ का भी भाव पड़ा। उसने अपने ऊपर अर तू के भाव को वीकार करते हQए अपनी प ु तक क
भिू मका म8 िलखा है ‘‘ उसके Cथ को पािलिटaस के उस भाग का परू क माना जा सकता है िजसम8 अर तू ने
Vाित एवं नागरक उपpव के कारण/ का िववेचन िकया है।’’
8.5.1 मास`िलयो के राय संबंधी िवचार
मासीिलयो का रा1य संबंधी िवचार यनू ानी िवचारक/ से िमलता जल ु ता है। वह रा1य को सजीव स&ा मानता है।
वह रा1य क उ+पित परवार से मानता है। यह मानता है िक कृ षक, िशbपकार, उ0ोगपित, सैिनक, परु ोिहत आिद
िकसी समाज के िविभन वग5 है, आपसी सहयोग के आधार पर िविवध काय5 करते है। रा1य का वा jय सभी
अगं / के समिु चत एवं Oयवि थत काय5 करने पर िनभ5र है। िजस कार अगं / म8 असंतुलन वा jय का ल:ण नह9 है
उसी कार रा1य म8 भी संतल ु न सांमज य होना आवयक है। मािस5िलयो रा1य के उेय संबंधी िवचार भी अर तू
से िमलते है। अर तू क तरह वह मानता है रा1य को सरु :ा ही नह9 वरन WेJ जीवन क िदशा म8 अCसर होना
चािहए। अर तू के WेJ जीवन एवं मासfिलयो के WेJ जीवन म8 अतं र है। मासfिलयो का WेJ जीवन लोक एवं
परलोक तक फै ला है। अर तू का WेJ जीवन बिु ( एवं िववेक पर आधारत है। जबिक दसू रे कार का जीवन W(ा
और िव]ास पर आधारत है। सांसारक जीवन म8 Oयव था के िलये िववेक क आवयकता होती है जबिक
पारलौिकक जीवन म8 मो: ािX के िलये धम5 और W(ा क आवयकता होती है।
समाज के िविभन वगk का उbलेख करते हQए वह +येक के अपने काय5:ेZ का उbलेख करता है। वह प> करता
है िक कृ षक, िशbपी, पंजू ीपित वग5 समाज क भैितक आवयकताओ ं क पिू त5 करते है, सैिनक और शासक
रा1य र:ा , परु ोिहत तथा पादरी धम5शाh का अ3ययन कर लोग/ को धािम5क िश:ा दान करने का काय5 करते है।
वह मिु \ का माग5 िदखाते है। उनका काय5 आ3याि+मक है। वह सांसारक :ेZ म8 काय5 नह9 कर सकते । इसी तक5
के आधार पर वह पादरय/ पर रा1य के िनयZण का प:धर था। वह चच5 को रा1य का एक िवभाग मानता था। वह
पहला िवचारक था िजसने चच5 को रा1य के अधीन रखा। सेवाइन के श@द/ म8-‘‘ राजनीितक =ि> से मासfिलयो के

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िन;कष5 का मह+वपणू 5 अश
ं यह है िक लौिकक संबंध/ म8 वह (पादरी वग5) अय वगk के समान एक वग5 है।
मासfिलय/ तािक5 क =ि>कोण से ईसाई पादरय/ को अनय अिधकारय/ के भाँती समझता है।’’
8.5.2 शासन संबधं ी िवचार
मासfिलयो के अनसु ार उ&म शासन वह है जो सामिू हक िहत के िलये जनता क इiछा के अनसु ार शासन करता
है। अपने िहत म8 जनता के िवचार/ क अनदेखी कर िकया गया शासन िनकृ > शासन होता है। वह अर तू के उस
िवचार को नह9 मानता िक कुछ लोग के वल शासन के िलये ही बने है तथा कुछ लोग शािसत होने के िलए बने है।
वह िकसी एक शासन णाली का समथ5क नह9 था। उसक मायता थी िक िविभन शासन णिलयां िविभन देश,
काल म8 उपयोगी तथा सही हो सकती है। वह शासन के दो अगं काय5पािलका तथा Oयव थािपका को मानता है।
काय5पािलका क =ि> से वह िनवा5िचत राजतZं को और Oयव थािपका क =ि> से वह ितिनिधया+मक सभा को
WेJ मानता है। वह मया5िदत (िनयिZत) राजतंZ का समथ5क था तथा वह चाहता था िक राजतंZ अपने कायk के
िलये Oयव थािपका के ित उ&रदायी हो। वह प> करता है िक यिद राजा जनकbयाण सिु निFत नह9 करता तो
उसे पद से हटा देना चािहए।
8.5.3 काननू संबधं ी िवचार
मासीिलय/ ने काननू के सबं धं म8 बहQत मह+वपणू 5 िवचार िदये। मासfिलयो ने म3य यगु म8 चिलत याय क
अवधारणा ‘‘सामिू हक िहत के िलये िववेक का आदेश’’ को अ वीकार करते हQए काननू क एक अलग परभाषा
ततु क। उसके अनसु ार -‘‘ काननू िवधायक का बल वतf आदेश है िजसका पालन यायालय/ के ^ारा कराया
जाता है।’’मासfिलयो म3ययगु का पहला िवचारक था िजसने काननू क िविधशाhीय परभाषा दी। उसने आगे
काननू क Oयाrया करते हQए काननू को दो भाग/ म8 बांटा हैः-
1.दैवीय काननू
2.मानवीय काननू
दैवीय काननू ः- वह दैवीय काननू को ई]रीय आदेश मानता है। वह इसको पणू 5 मानता है तथा इसम8 सश ं ोधन एवं
परवत5न क सभांवना को अ वीकार करता है। यह वह काननू है जो मन;ु य/ को बताता है िक वह aया कर8 तथा
aया न कर8 ? इस िविध म8 मन;ु य को सव5WेJ शासन ाX करने तथा ससं ार के वांछनीय परि थितय/ के िनमा5ण का
उपाय भी बताया जाता है। वह दैवीय काननू / को वह सांसारक जीवन से अलग रखते हQए जीवन के अिं तम लsय
के िलये आवयक मानता है।
मानवीय काननू ः- वह मानवीय काननू को सHपणू 5 नागरक/ का अथवा उसके ब( ु भाग का आदेश मानता है। ये
काननू मानवीय िहत/ को 3यान म8 रखकर Oयापक जनिहत म8 जारी िकये जाते है। मानवीय काननू मानव ^ारा
मानव/ के सांसारकिहत/ क पिू त5 के िलये जारी िकये जाते है। यह Oयापक जन िहत म8 समाज के ऊपर िनयZण
लगाने को सही ठहराते है। यह मानव को aया करना है? तथा aया नह9 करना है? इसको सिु निFत करवाता है। यह
ऐसा आदेश होता है िजसम8 उbलंघन करने वाल/ का दिdडत िकया जाता है।
मासfिलयो का काननू सबं धं ी िवचार पवू 5तः आधिु नक है। वह कानन/ को अलग ही नह9 करता वरन इसको तोड़ने
वाल/ को दdड क Oयव था करता है। वह प> करता है िक दैवीय काननू / का उbलंघन करने पर मृ+यु के बाद उस
Oयि\ को दdड िमलता है। यह दdड ई]र ^ारा िदया जाता है। जबिक मानवीय काननू के उbलंघन होने पर दdड

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
इसी संसार म8 राजस&ा ^ारा िदया जाता है। मानवीय काननू / के उ+पित म8 वह दैवीय अथवा ाकृ ितक काननू / का
अशं नह9 देखता है। वह मानता है िक यह मानवीय िववेक से िनिम5त होता है।
वह मानवीय काननू / को मानवीय बिु ( क उपज मानता है। अतः उसे लागू करने वाला शि\ का hोत होता है।
यह hोत स&ा का ब( ु hोत होता है। ब( ु अश ं के संबंध म8 वह प> करता है िक -‘‘मL कहता ह’ँ िक समाज म8
संrया तथा गणु व&ा दोन/ क =ि> से ब(
ु अश ं क ओर 3यान िदया जाना चािहए। ’’
वह ब(ु अश
ं के संबंध म8 प> करता है िक यह जनता का वह भाग है जो संrया का नह9 वरन गणु क =ि> से
अिधक मह+वपणू 5 मानता है। वह सभी मन;ु य/ क पणू 5 समानता का प:धर नह9 था। वह मानता था िक समाज के ‘
धान Oयि\’ साधारण Oयि\य/ से अिधक मह+वपणू 5 है। वह समानता के िस(ात को पणू 5 अथk म8 वीकार नह9
करता है।
वह मानता था िक शासन म8 काय5पािलका एवं यायपािलका िवभाग/ का िनमा5ण नागरक/ के ^ारा होता है।
Oयव थािपका भी नागरक/ क देन होती है। उसी से काय5पािलका का गठन होता है। यिद काय5पािलका उिचत .प
से काय5 नह9 करती तो Oयव थािपका को उसे हटाने का अिधकार है। Oयव थािपका को यह अिधकार देने के बाद
यह Oयव थािपका क सवmiचता का समथ5न करता है। उसने काय5पािलका को मजबतू ही नह9 िकया वरन उसम8
एकता पर बल िदया िजससे काननू Oयव था, शाित को बनाये रखा जा सके । यही कारण है िक वह जांतZ पर
राजतंZ को वरीयता देता है। वह राजतंZ म8 भी वंशानगु त राजतंZ क अपे:ा िनवा5िचत राजतंZ को बेहतर मानता
है। वह एककृ त एवं वतंZ काय5पािलका का समथ5क है। यही कारण है िक उसके दश5न म8 वZंत चच5 क कोई
गजु ाइश
ं नह9 है। वह चच5 क राजस&ा का सतथ5न करता है। वह राजतंZ का समथ5क है परतु िनरकुश राजतंZ को
अ वीकार करता है। उसक मायता है िक यिद राजा मनमानी करता है तो जनता उसक मनमानी (िनरकंु शता) पर
रोक लगाकर उसे दिdडत कर सकती है।
8.5.4 चच संबंधी िवचार
मासfिलयो के िवचार अपने यगु से आगे के थे िजसने राजनीितक िचतन को एक नई िदशा दान क। वह म3ययगु
क िनराशा, अि थरता तथा अOयव था के िलये दो स&ाओ ं के सघं ष5 को िजHमेदार ठहराता था। उसक मायता थी
िक चच5 के ह त:ेप के कारण ही राजनैितक अि थरता तथा राजनैितक स&ा का पतन हो रहा है। त+कालीन
घटनाओ ं से भािवत होकर उसने राजनैितक स&ा क मजबतू ी का समथ5न िकया। अपनी प ु तक ‘ िडफे सर
पेिसस’ म8 दसू रे भाग म8 वह चच5 सबं ंधी पणू त5 ः मौिलक िवचार रखता है।
चच5 स&ा पर बल हार करते हQए उस पर जन भसु &ा तथा ितिनिध+व के िस(ात लागू िकया। उसने पोप के
सभी अिधकार/ को अनावयक तथा रा1य िवरोधी बताया। उसने पोप के अिधकार/ को चनु ौती देते हQए कहा िक
चच5 के सभी अिधकार/ का के p पोप नह9 हो सकता है। चच5 क शि\य/ का के p सामाय परषद है। यह िकसी
Oयि\ िवशेष का सगं ठन नह9 वरन ईसाई धम5 म8 िव]ास रखने वाले करोड़ो लोग/ के िव]ास का तीक है। इस
सामाय परषद म8 पादरी एवं सामाय लोग दोन/ ही सिHमिलत है। वह कहता है िक िजस कार रा1य क शि\
उसके सभी नागरक/ ^ारा िनवा5िचत Oयव थािपका म8 िनिहत होती है। उसी कार चच5 क शि\ भी ईसाईय/ के
^ारा िनवा5िचत सामाय परषद म8 होती है। इस सामाय परषद के पास ही चच5 सबं धं ी सभी िनण5य लेने का
अिधकार , िववाद/ के िनपटारे का अिधकार तथा चच5 से बिह;कृ त करने का अिधकार होना चािहए। सामाय
परषद ^ारा ही अय अिधकारय/ क िनयिु \ होनी चािहए। पोप भी अपने कायm के िलये सामाय परषद के ित

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
जबावदेह है। यिद पोप भी >ाचार, अनैितक आचरण का दोषी होता है तो परषद उसे भी पद से हटा सकती है।
इस कार मासfिलयो ने पोप को सामाय परषद के अधीन कर एक नये यगु का सZू पात िकया ।
मासfिलयो रा1य क Oयव थािपका क तरह इस सामाय सभा को भी सवmiच नह9 मानता है। वह सदैव इस बात
का प:धर था िक इसके सद य िकसी तट थ थान पर बाइिबल के अनसु ार धािम5क िवषय/ एवं िस(ात/ का
िन.पण करे ग।8 मासfिलयो ने न के वल पोप िनबा5ध स&ा पर अक ं ु श लगाया वरन यह यह िस( िकया िक पोप के
अिधकार/ एवं शि\य/ का hोत ई]रीय नह9 है। उसने पोप को सवmiच न मानकर उसे चच5 का के वल शासक
घोिषत िकया। उसने पोप क सवmiचता को अ वीकार िकया साथ ही पीटरी िस(ात िजसम8 कहा गया िक पीटर
ने रोम के चच5 क थापना क, को गलत िस( िकया। उसने यह भी िस( िकया िक पोप का अय चच5 पर भी कोई
अिधकार नह9 है। मासfिलयो ने पादरय/ का अिधकार के वल धािम5क एवं आ3याि+मक मामल/ तक सीिमत रखने
तक सीिमत था। वह कहता था िक धािम5क अिधकारय/ को िकसी कार के भौितक अिधकार ाX नह9 है। उसने
चच5 के काननू एवं अिधकार/ को मानने से इकार कर िदया। उसने दो कार के काननू का हवाला देते हQए कहा िक
परलोक का काननू अथवा ई]रीय काननू तथा दसू रा इहलोक म8 लागू होने वाला मानवीय काननू । ई]रीय काननू
का उbलघनं करने पर दdड का अिधकारी ई]र है तथा इहलोक म8 दdड अिधकारी राजा है। धम5 अिधकारय/ को
दdड देने का कोई अिधकार नह9 है। मासfिलयो चच5 के पास िकसी कार क संपित का िवरोधी था। वह तक5 देता
है िक भु यीशु भी कोई संपित नह9 रखते थे। यिद चच5 को दान से संपित ाX होती है तो उसका उपयोग भोग एवं
वैभव के िलये नह9 वरन जन कbयाण म8 होना चािहए। वह चच5 क अितर\ संपित पर राजकय िनयZण का
िहमायती था। वह चच5 के राजनैितक कायk का िवरोधी था। वह चच5 क बा3यकारी शि\ को समाX करने का
प:धर था ।
8.5.5 मHू याक
ं न
म3ययगु के राजनैितक िचतन म8 मासfिलया को बहQत मह+व है। उह/न8 अपने समय क िचतन क धारा को
बदल कर नये यगु का सZू पात िकया। उह/ने चच5 म8 OयाX >ाचार, िवलास तथा अनैितकता का न के वल िवरोध
िकया वरन नये िवचार/ के ^ारा चच5 को पणू त5 ः रा1य के अधीन कर िदया। धमा5िधकारय/ के ^ारा राजनैितक कायk
म8 दखल देने का उसने िवरोध िकया। वह पोप के ^ारा असयं िमत आचरण का िवरोधी था। मासfिलयो क यह
मायता थी िक पोप के वल धािम5क गणु है और उसका अिधकार :ेZ चच5 के अदर है। वह अय चचk तथा
धमा5िधकारय/ को िनदnिशत नह9 कर सकता। वह रा1य के मामल/ म8 भी दखल नह9 दे सकता। चच5 क अ+यािधक
संपित पर वह रा1य के िनयZण का िहमायती था। वह काननू / को दैवीय आधार पर वीकार करने को तैयार नह9
था यिद उसका आधार मानवीय नह9 है। शासन संबंधी उसके िवचार म3ययगु से आगे पणू त5 ः आधिु नक है। वह
लोकतंZवादी है। वह राजाओ ं को Oयव थािपका के ित उ&रदायी बनाता है। वह सीिमत तथा चयिनत राजा का
समथ5क था। पोप के ऊपर सामाय परषद के िनयZण का िहमायती था। उसी के िवचार/ म8 रा;<ीय लोकतZ के
उदय का माग5 श त हQआ। पोप को सामाय परषद के अधीन करने के िवचार के कारण ही परषदीय आदोलन
का सZू पात हQआ। 16व9 शता@दी म8 मािट5न लूथर के नेत+ृ व धम5 सधु ार आदोलन भी मासfिलयो से भािवत था।
इस कार कहा जा सकता है िक उसका योगदान अमbू य है।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

8.6 थामस एPवीनास के राजनैतक वचार


एaवीनास का जम इटली के नेपbस नामक रा1य म8 1225 ई0 म8 हQआ था। ारिHभक िश:ा के बाद उसने अर तू
के Cथ/ का अ3ययन िकया। धािम5क िश:ा ाX करने के िलये वह पेरस गया और वहां पर अbवट5 महान का
िश;य बना। 1256 ई0 म8 उसे पेरस िव]िव0ालय से उसे धम5 ग.
ु क उपािध ाX हQई। अपनी सारा जीवन उसने
ईसाई धम5 को समािप5त कर िदया। अतं तः 1274 ई0 म8 इनक मृ+यु हो गई। एaवीनास ने अपनी जीवन काल म8
उसने 37 Cथ/ तथा 40 लघु Cथ/ क रचना क। उनके मrु य Cथ ‘‘ धम5 शाh का सार’’ ,‘‘ सHु मा
िथयोलोिजका’’ थे। इसके अितर\ उसने ‘‘ राजाओ ं के िनयमः अर तू क राजनीितक टीका’’ आिद क रचना
क।
एaवीनास के ऊपर त+कालीन परि थितय/ का गहरा भाव पड़ा। अर तू के भाव के कारण उसम8 वतंZ िचतन,
सदेहवाद तथा नाि तकता क भावना बढ़ने लगी। उसने ईसाई धम5 के ^^ को समाX करने का काय5 िकया। उसने
म3यकालीन िचतन तथा यनू ानी िचतन के म3य समवय करते हQए अर तू तथा आग टाइन के पर पर िवरोधी
िवचार/ के बीच म8 सामज य थािपत िकया। उसके िवचार/ म8 साHयवाद के त+व िमलते है। गैटेल के श@द/ म8-‘‘
उसने िववेक तथा अत5#ान म8 सबं धं थािपत करने और चच5 के िस(ात/ का यनू ानी #ान के पनु .+थान से काश
म8 आये तक5 सगं त अधमf दश5न म8 तालमेल िबठाने का यास िकया ।’’
8.6.1 राय संबंधी िवचार
एaवीनास ने रा1य के संबंध म8 जो िवचार िदये वह आग टाइन के िवचार/ के ठीक उलटे थे। उसने आग टाइन के
िवचार/ का खdडन िकया िक रा1य क उ+पित पाप के कारण हQई है और यह आवयक बरु ाई है। वह अर तू के
िवचार/ से भािवत होते कहता है िक मन;ु य एक सामािजक एवं राजनीितक ाणी है। अपनी इसी वृि& के कारण
रा1य क उ+पित हQई है। रा1य समाज के संचालन के िलये आवयक है। यह आवयक बरु ाई नह9 है। वह रा1य
संबंधी िवचार/ म8 अर तू से भािवत है परतु कई िबदओ
ु ं पर वह अर तू से अलग िवचार रखता है। वह अर तू के
नगर-रा1य संबंधी धारणा को वीकार नह9 करता। वह बदली परि थितय/ म8 नगर-रा1य से िमलकर बनने वाले
ांत/ से आ+मिनभ5रता के लsय को ाX करने का समथ5क था। उसने नगर रा1य के थान पर ांत/ का समथ5न
िकया िजसको उसने ‘‘ रे गनम (रा1य)’’ पक ु ारा। वह म3य यगु म8 रा;< रा1य का समथ5न करने वाला था। वह रा1य
क भसु &ा का अिं तम hोत ई]र को मानता है।
8.6..2 शासन संबंधी िवचार
शासन Oयव था संबंधी िवचार अर तू से भािवत है। वह अर तू क तरह वह सबका कbयाण करने वाली शासन
णाली को WेJ तथा यायपणू 5 मानता है तथा के वल शासक िहत म8 शासन करने को अयायपणू 5 तथा िनकृ J
मानता है। अर तू रा1य का अिं तम लsय सwणु ी जीवन क ािX मानता है। एaवीनास भी मानव का अिं तम लsय
मो: क ािX मानता है। अर तू लोकतंZ को WेJ शासन णाली मानता है। जबिक एaवीनास राजतंZ के ा सव5WेJ
शासन णाली मानता है। वह इस संबंध म8 तक5 देता है िक िजस कार िव] पर एक ई]र का , शरीर पर ‡दय का,
मधमु िaखय/ पर रानी मaखी का शासन होता है उसी कार मन;ु य पर एक Oयि\ का शासन WेJ होगा। वह दसू रा
तक5 देता है िक लोकbयाण के िलये समाज म8 एकता एवं शाित आवयक है। यह राजतंZ म8 ही संभव है। वह
तीसरा तक5 राजतZं के प: म8 देता है िक लोकतंZ म8 फूट एवं झगड़ा क सभं ावना बनी रहती है जबिक राजतZं म8
इसक सभं ावना नह9 रहती। अतः वह राजतZं का बल समथ5न करते हQए वह िनवा5िचत राजतZं को सव5WेJ शासन

उराखंड म
ु िविवालय 122
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
णाली मानता है। वह राजतंZ के िनरकंु श हो जाने क संभावना को खारज कर देता है। वह िनरंकुश शासक/ को
मृ+यु दdड देने का प:धर नह9 है। वह कहता है िक ऐसी Oयव था करने से वध िकये जाने वाल/ म8 अिधकार यो}य
शासक ही होग8।वह राजा को िनयिZत करने के िलये राजा ^ारा ई]रीय िनयम/ का पालन अिनवाय5 करता है। वह
कहता है िक राजा को ई]रीय िनयम/ के अनसु ार ही आगे बढ़ना चािहए।
8.6.3 राय के काय
एaवीनास ने रा1य के कायk पर Oयापक काश डाला है। उसके रा1य के कायk के सबं धं म8 िवचार यनू ानी , रोमन
तथा ईसाई धम5 के िवचार/ से िमलते-जलु ते है। दसू रे श@द/ म8 कहे तो यह तीन/ धाराओ ं का िमWण है। उसके
अनसु ार रा1य के मख
ु काय5 िनHन है-
1.रा1य का मख
ु काय5 उ&म जीवन जीने क Oयव था करना है। रा1य म8 शाित और Oयव था क थापना करना।
रा1य को वाहय आVमण/ से सरु :ा दान करना है। रा1य को ऐसी नीित बनानी चािहए िजसम8 काननू तोड़ने वाले
को दिdडत करने तथा पालन करने वाले को परु कार क Oयव था हो।
2.रा1य के अदर आवागमन के साधन को सरु ि:त बनाना। उह8 उपpिवय/ से सरु ि:त रखना है।
3.मpु ा प(ित के चलन तथा नापतौल क िवशेष Oयव था को बनाना।
4.समाज कमजोर लोग/, गरीब/ के भरण पोषण को करना। यह रा1य का एक मह+वपणू 5 काय5 है।
8.6..4 राजस:ा एवं धािमक स:ा म( स;बध
एaवीनास राजस&ा एवं धािम5क स&ा के पणू 5 पृथaककरण का प:धर नह9 था। वह कहता है िक मन;ु य के दो
लsय होते है- पहला सांसारकसखु पाना तथा दसू रा आ+मा का सखु पाना। दोन/ सखु / क ािX के िलये दो तरह
क स&ाओ ं क Oयव था क गई है। इसम8 सांसारक सख ु के िलये रा1य क Oयव था है तथा आ+मीय सख ु के
िलये चच5 क थापना क गई है। रा1य भौितक सख ु पाने का साधन है। जबिक चच5 आ3यिमक उनित तथा मिु \
का साधन है। अतः रा1य को चच5 के िनयZण म8 रहकर उसके िनदnशानसु ार काय5 करना चािहए।
अतः यह िस( हो जाता है िक एaवीनास रा1य क तुलना म8 चच5 को अिधक मह+व दान करता है। दोन/ म8 संघष5
अव था म8 िजस कार भौितक सख ु / क तलु ना आ3याि+मक सधु अिधक मह+वपणू 5 है उसी कार रा1य क
तुलना म8 चच5 अिधक मह+वपणू 5 है। वह यह कहता है िक दोन/ स&ाएं संघष5 के िलये नह9 वरन सहयोग के िलये है।
इनका अिं तक उेय मानव का सHपणू 5 कbयाण करना है। एaवीनास के अनसु ार -‘‘ चच5 सामािजक संगठन का
मकु ु ट है। वह लौिकक संगठन का ित^^ी नह9 है वरन उसक पणू त5 ा का तीक है।’’
8.6.5 काननू संबंधी िवचार
एaवीनास के काननू के संबंध म8 बहQत िव तृत एवं मह+वपणू 5 िवचार िदये है। उसके पणू 5 काननू के संबंध म8 ऐसे प>
िवचार िदखायी नह9 पड़ते है। उसक काननू संबंधी Oयाrया अ+यंत Oयापक है। यह अर त,ू टोवक, आग टाइन
आिद के िवचार/ का अlुत िमWण है। डिनग के श@द/ म8 -‘‘ एaवीनास का काननू एवं याय िस(ात वह धारा है
िजसके मा3यम से अर त,ू टोइक, आग टाइन , िससरो, रोम के साuा1य वादी िविधवेताओ ं आिद के िस(ात
समिवत .प से आधिु नक यगु को संH ेिषत िकये गये है।’’
एaवीनास के काननू संबंधी िवचार/ पर कोकर का मत है-‘‘ राजनीितक िचतन के िलये सामायतः एaवीनास का
काननू िवषयक िववेचन सHभवतः उसक महानतम देन है।’’ एaवीनास ने अपने काननू संबंध िवचार/ म8 यनू ानी

उराखंड म
ु िविवालय 123
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
तथा रोमन िवचारधाराओ ं का समवय िकया। जहां यनू ान म8 काननू िववेक का परणाम है वह9 रोम म8 इसे बिु ( पर
आधारत सuाट अथवा Oयि\ िवशेष क इiछा क अिभOयि\ का साधन मानते है। उसने दोन/ ही धाराओ ं के
बीच समवय थािपत करते हQए इसे बिु ( का परणाम तथा Oयि\ िवशेष क इiछा का परणाम भी माना। वह
काननू क Oयाrया करते हQए कहता है- ‘‘ काननू िववेक का वह अ3यादेश है िजसे लोकिहत क =ि> से उस
Oयि\ के ^ारा उ”ोिषत िकया जाता है जो समाज क देखभाल करने का अिधकारी होता है।’’ उपरो\ परभाषा से
प> हो जाता है िक उसने दोन/ पवू 5 चिलत धाराओ ं म8 समवय थािपत िकया।
काननू के कार:- एaवीनास ने काननू के चार कार बताये हैः
1.शा]त काननू ः- शा]त काननू ई]रीय िववेक का तीक है। सम त सृि> इस काननू के अनसु ार िनिम5त है तथा
इसके अधीन है। मन;ु य क सीिमत :मता होने के कारण उसे पणू 5 .प से समझने म8 असमथ5 है। अतः ई]र
ाकृ ितक काननू के मा3यम से उसे शा]त काननू से परिचत कराता है।
2. ाकृ ितक काननू ः- इस काननू के ^ारा मन;ु य भले-बरु े , स+य-अस+य के बीच भेद करता है। इसी के मा3यम से वह
स+य को ाX करता है तथा अस+य से म\ ु होता है। शा]त काननू सभी के िलये समान होता है। यह मन;ु य क
िविभन ाकृ ितक इiछाओ ं तथा िविभन व तओ ु ं म8 समान .प से OयाX होता है। मन;ु य/ क सम त ाकृ ितक
इiछाओ ं जैसे समाज म8 रहना, आ+मर:ा करना, संतान उ+पित करना, िववेक का िवकास करना आिद ाकृ ितक
काननू से ही संभव है।
3.दैवीय काननू ः- एaवीनास ने दैवीय काननू को प> करते हQए कहा िक मानव के जीवन का उेय के वल भौितक
उेय/ के िलये नह9 हQआ है वरन वह आ3यि+मक लsय/ को भी ाX करना चाहता है। यह उेय दैवीय काननू के
मा3यम से ाX िकया जाता है। यह ऐसे काननू है जो मन;ु य को पणू त5 दान करते है। यह परम सख
ु क ािX के
साधन है। यह बहQत मह+वपणू 5 और WेJकर होते है।
4.मानवीय काननू :- एaवीनास मानवीय काननू को अ+यािधक मह+व वह9 देता है। वह इसे अय काननू / से िनHन
मानता था। वह कहता है िक यह मानवीय िववेक क देन है। अतः यह मानवीय िहत/ क पिू त5 का साधन है। यह
मानव/ के िलये अिनवाय5 होते है। यह समाज म8 Oयव था, समाज का संचालन करता है। यह रा1य ^ारा ितपािदत
दdड Oयव था का तीक होता है। मानवीय काननू मानवीय िववेक ^ारा िनिम5त होते है। साथ ही Oयापक समाजिहत
म8 योग म8 लाये जाते है।
इन काननू / क कसौटी ाकृ ितक होता है। मानवीय एवं ाकृ ितक काननू म8 इस कार एक सबं धं थािपत हो जाता
है । यिद मानवीय काननू ाकृ ितक काननू के िव.( होता है तो वह सही और यायपणू 5 नह9 होगा। इस कार वह
िस( करता है िक मानवीय काननू ाकृ ितक काननू का ितिबHव है। वह प> करता है िक ाकृ ितक काननू के
िव.( मानवीय काननू / का अि त+व नह9 हो सकता है। मानवीय काननू का उेय लोककbयाण तथा
जनसहभािगता होती है। यह तभी हो सकता है जब वह ाकृ ितक काननू / के अन. ु प हो। उसने मानवीय काननू के
तीन आधार बताये है -
1.यह जनकbयाणकारी होने चािहए ।
2.यह वै0 शासक ^ारा िनिम5त होने चािहए ।
3.यह सभी पर समान .प से लागू होने चािहए ।

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ु िविवालय 124
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
एaवीनास का काननू परवत5न संबधं ी =ि>कोण अ+यत कठोर था। वह काननू को थायी बनाने का प:धर था।
उसका प> मत था िक समाज म8 होने वाली हलचल/ का भाव काननू पर नह9 पड़ना चािहए। यिद ऐसा हQआ तो
इसके द;ु परणाम समाज को भगु तने पड़ते है। कई बार इससे अराजकता क ि थित भी उ+पन हो जाती है। बहQत
आवयक होने पर ही लोकिहत म8 मानवीय काननू म8 परवत5न िकया जा सकता है।
8.6..6 याय संबधं ी धारणा
एaवीनास के याय सबं धं ी िवचार/ पर रोम के िविध Oयव था का भाव िदखायी पड़ता है। वह कहता है िक -‘‘
याय +येक Oयि\ को उसको अिधकार दान करने क िनिFत तथा सनातन इiछा है।’’
एaवीनास क याय संबंधी धारणा म8 अर तू का भी भाव पड़ता है। वह कहता है िक याय समानता पर आधारत
होना चािहए। यह समानता ाकृ ितक तथा मानवीय आधार पर िनधा5रत क जानी चािहए।
8.6.7 दासता संबंधी िवचार
अय म3ययगु ीन िवचारक/ क तरह एaवीनास ने भी दास Oयव था पर अपने िवचार रखे। म3य यगु म8 दास
Oयव था समाज म8 चिलत थी। यह समाज का िह सा थी। एaवीनास ने दासता संबंधी िवचार/ म8 अर तू से
भािवत नह9 िदखता। जहां अर तू दासता को ाकृ ितक एवं दास/ के िहत म8 मानता था। वह दासता को वीकार
करते हQए कहता था िक जम से सभी Oयि\ समान नह9 होते है, सभी क :मता अलग-अलग होती है। कुछ
अपनी :मता से वामी बन जाते है तो कुछ सेवक बन जाते है। यह सHपणू 5 Oयव था को वह ाकृ ितक मानता है।
दसू री ओर एक और म3ययगु ीन िवचारक आग टाइन दासता को ई]रीय दdड मानते है। वे तक5 देते है िक दासता
पाप/ का परणाम है जो ई]र ^ारा दdड व.प दान िकया गया है।
एaवीनास इन दोन/ िवचारक/ से अलग यह तक5 देता है िक दासता के ^ारा वीरता क अिभवृि( होती है। य( ु म8
सैिनक दासता के त+व के कारण वीरता से लड़ते है। वे िवजेता होते है तो उह8 नये दास/ का लाभ होता है जो उह8
वीरता एवं िवजयी होने के िलये ेरत करता है। परािजत होने पर उनके दास बनने क संभावना हो जाती है। अतः
वे वीरता का परचय देते है।
8.6.8 मHू याकंन
एaवीनास के उपरो\ िवचार/ से यह प> हो जाता है िक उसका िचतन चच5 एवं धम5 से भािवत है साथ ही
अर तू के धम5िनरपे: िचतन का भी भाव है। वह कई थान/ पर दोन/ म8 समवय थािपत करने का यास करता
है। कई थान/ पर दोन/ के बीच समवय करने के यास म8 िवरोधाभास, उ+पन हो जाता है। कई बार इसी आधार
पर आलोचक उसक आलोचना भी करते है।
इसके बावजदू यह आलोचना सही तीक नह9 होती aय/िक उसके सHपणू 5 िचतन को Oयापक पर ेsय म8 देखना
चािहए। उन परि थितय/ को समझना चािहए िजसम8 वह अपने िवचार रख रहा था। वह अपने यगु का एक मौिलक
एवं ितिनिध िवचारक है। उसके ऊपर अपने यगु का भाव िदखायी पड़ता है। वह समवयवादी है। वह अर तू ,
रोमन आिद िवचाराधाराओ ं का समवय करता है। यही उसके िचतन क मख
ु िवशेषता है जो उसके िचतन को
अ+यािधक उपयोगी तथा अपने यगु का ितिनिध िवचारक बना देती है।
अAयास Bः-
1.दो तलवार/ के िस(ात का समथ5क कौन था?

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ु िविवालय 125
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

2.िडफे सर पेिसस के रिचयता कौन था?


3.िनHन म8 से िकसको थम एरे ि टयन कहा जाता था?
1. मासfिलयो 2. आग टाइन 3 .अर तू 4. एaवीनास
4.सHु मा िथयोिलिजका का रिचयता कौन था?
5.काननू क सवा5िधक वृहद Oयाrया िनHन म8 से िकसने क?
1. अर तू 2. मासfिलयो 3. एaवीनास 4. आग टाइन
6.िनHन म8 से िकसने चच5 को पणू त5 ः रा1य के अधीन माना था?
1. आग टाइन 2. संत बनाड5 3. मासfिलयो 4. एaवीनास

8.7 सारांश
500 ई0 से 1500 ई0 तक के काल को म3ययगु कहा जाता है। यह वह समय था जब राजनीितक अि थरता, चच5
एवं रा1य के बीच संघष5, नैितकता का पतन हो रहा था। यह वह दौर था जब सH भु कौन है इसका फै सला ही नह9
हो पा रहा था। चार/ ओर अिनिFतता का वातावरण था। इसी समय कुछ राजनीितक िचतक/ ने आगे आकर
अपने राजनीितक िचतन से यगु को ि थरता तथा नई रोशनी देने का यास िकया। इनम8 सबसे पहले सतं
आग टाइन का नाम आता है िजह/ने संघष5 को समाX करने एवं Oयव था लाने के उेय से कुछ िस(ात िदये।
इसम8 सवा5िधक मह+वपणू 5 दो तलवार/ का िस(ात था। यह वह िस(ात था िजसम8 धािम5क एवं आ3याि+मक
कायk हेतु चच5 तथा लौिकक कायk के िलये राजस&ा के मह+व को वीकार िकया गया। वह चच5 एवं रा1य म8
सामज य का िवचार देता है। वह अपने पवू 5 के िव^ान/ क तरह रा1य को आवयक बरु ाई नह9 मानता है। वह रा1य
को मानव जीवन के िलये आवयक मानता है। वह कहता है िक ई]र ^ारा रा1य का िनमा5ण िकया गया है। वह
चच5 एवं रा1य के बीच चच5 को अिधक मह+व देता है। मासfिलयो ने चच5 एवं रा1य के बीच संबंध/ म8 नया
=ि>कोण रखा। उसक मायता थी िक चच5 का काय5 धािम5क है अतः उसे राजनीितक कायk म8 दखल नह9 देना
चािहए। वह मानता था िक धम5 के अ+यािधक ह त:ेप के कारण ही इटली का पतन हQआ। वह रा1य को
शि\शाली एवं सH भु रखने का िहमायती था। वह चच5 को रा1य के अधीन रखने क वकालत करता है। कितपय
यही कारण है िक वह ‘ थम एरे ि टयन’ कहलाता है। वह रा1य क उ+पित परवार से मानता है तथा रा1य का
काय5 िविभन समहू / के बीच सांमज य रखने को बताता है। वह रा1य के ^ारा मानव जीवन क र:ा तथा सत
जीवन क ओर ेरत करने का मा3यम मानता है। धािम5क :ेZ के लोग/ को सांसारक :ेZ म8 दखल नह9 देना
चािहए। ऐसी उसक मायता थी। वह शासन के सबं धं म8 राजा के ऊपर सकारा+मक िनयZण का प:धर था। वह
सीिमत राजतंZ का समथ5क था। वह चच5 के Oयापक सधु ार/ का िहमायती था। चच5 म8 पोप को के वल एक
शासािनक अिधकारी मानता है। धम5 संबंधी िनण5य लेने क शि\ सामाय परषद को सŒपता है। वह पोप क
संपित को िनयिZत करने , शि\य/ को सीिमत करने तथा गलत काय5 करने पर सामाय परषद ^ारा दिdडत करने
का प:धर था।

उराखंड म
ु िविवालय 126
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
एaवीनास ने नगर रा1य के थान पर रा;< रा1य का िवचार िदया। वह शासन जनिहत म8 हो इसका िहमायती था।
वह राजतंZ को सव5WेJ शासन णाली मानता है। वह एक Oयि\ के शासन का समथ5क था। राजा ^ारा सरु :ा,
उ&म जीवन तथा अथ5 के सभी काय5 िकये जाने का प:धर था। वह चच5 एवं रा1य के संबंध/ म8 चच5 को
आ3याि+मक काय5 देने तथा रा1य को भौितक काय5 देने का प:धर था। वह आ3याि+मक काय5 को अिधक
मह+वपणू 5 मानते हQए रा1य को चच5 के अधीन िकये जाने का िहमायती था। काननू क िव तृत Oयाrया उसक
राजनीित शाh को मह+वपणू 5 देन है। दासता को वह वीकार करता है परतु ाकृ ितक नह9 मानता है।

8.8 श!दावल$
लौिककः- जो िदखायी पड़ता हो , जो सामने प> हो लौिकक कहा जाता है।
सीिमत राजतंZः- राजा के ऊपर यिद काननू का िनयZण हो तो ऐसा राजतंZ सीिमत राजतंZ कहलाता है।
शा]त काननू ः- यह ई]र क देन कहा जाता है। इसम8 माना जाता है िक सHपणू 5 Oयाव था ई]रीय आदेश से इस
काननू म8 िनिहत है।

8.9 अ&यास के 
न' के उ तर
1. संत आग टाइन 2.मासfिलयो 3. मासfिलयो 4.एaवीनास 5. एaवीनास
6.मासfिलयो

8.10 संदभ) *थ सच


ू ी
1. मेहता जीवन- पाFा+य राजनीितक िचतन
2. िसहं वीरके ]र साद- ितिनिध राजनीितक िवचारक
3. जैन पखु राज- पाFा+य राजनीितक िचतन

8.11सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. सदू जे0पी0- राजनीितक िचतन का इितहास

8.12 नबधा मक 

1. आग टाइन के राजनीितक िवचार/ पर एक िनबंध िलिखये।
2. मासfिलयो के रा1य एवं चच5 संबंधी िवचार/ क Oयाrया किजये।
3. एaवीनास के राजनीितक िवचार/ क Oयाrया किजये।
4. aया एaवीनास अपने यगु का ितिनिध िवचारक था? प> किजये।

उराखंड म
ु िविवालय 127
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
5. मासfिलयो के राजनीितक िवचार/ क Oयाrया किजये।
6. एaवीनास के िविध संबंधी िवचार/ पर काश डािलये।

उराखंड म
ु िविवालय 128
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 -9 : ) *
इकाई क$ संरचना
9.1 "तावना
9.2 उ4े5य
9.3 मैिकयावेली के िवचार9 क$ ऐितहािसक पृNभिू म
9.4 इटली क$ दरु ावथा पर मैिकयावेली के िवचार
9.5 मैिकयावेली क$ अ
ययन "णाली
9.6 मन,ु य वभाव के स;बध म( मैिकयावेली के िवचार
9.7 नैितकता स;बधी िस!ात
9.8 धम और राजनीित के "ित मैिकयावेली का .ि/कोण
9.9 इितहास और पLरवतन
9.10 राय के स;बध म( मैिकयावेली के िवचार
9.11 शासन स;बधी िवचार
9.11.1 राज तंR
9.11.2 गण तंR
9.12 राय का िवतार
9.13 सवशाि]मान िवधायक क$ अवधारणा
9.14 िविध क$ अवधारणा
9.15 सेना का रा,-ीयकरण
9.16 रा,-ीयता क$ अवधारणा
9.17 अपने यगु के िशशु के =प म( मैिकयावेली
9.18 "थम आधिु नक िवचारक के =प म(
9.19 सारांश
9.20 शAदावली
9.21 अBयास "C9 के उ:र
9.22 सदभ Dथ सचू ी
9.23 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
9.24 िनबंधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 129
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

9.1 तावना
इसक पवू 5 वाली इकाई म8 बताया जा चकु ा है िक म3ययगु क Oयव था तथा उसके मbू य/ को समाX करने तथा
आधिु नक काल का िशलायास करने का पनू जा5गरण के बहQआयामी आदोलन ने िकया था। पनू जा5गरण के भाव
के परणाम व.प यरू ोप के जीवन के हर :ेZ म8 परवत5न आने लगे। साथ ही इटली क सामािजक और राजनैितक
जीवन भी मैिकयावेली के िवचार :ैितज को िनिम5त करने म8 मह+वपणू 5 भिू मका िनभाई। इस इकाई के अ3ययन के
उपरात आपको मैिकयावेली के राजनीितक िवचार/ को जानने और समझने म8 सहायता िमलेगी, और आप यह
जान सक8 ग8 िक देश काल और परि थित िकस कार से िवचार को भािवत करती है। साथ ही जान8ग8 िक
मैिकयावेली ने राजनीितक उेय को िसि( के िलए िकस हद तक नैितक मानदdड/ क अवहेलना करने तक क
भी इजाजत देता है।
अततः आप को यह जानने को िमलने िक मैिकयावेली अपने िचतन म8 िकस हद तक म3यकालीन मायताओ ं से
अलग हQआ और राजनीित म8 धम5िनरपे: को शािमल करने क वकालत क।

9.2 उे

इस ईकाई के अ3ययन का उेय है
1 मैिकयावेली के राजनीितक और सामािजक िवचार/ को समझने म8 सहायता िमलती है।
2 इटली क ददु श
5 ा और उसके िलए माप और चच5 को उ&रदायी मानना।
3 आधिु नक काल म8 राजनीित के अ3ययन के िलए पय5व:
े णा+मक तथा ऐितहािसक प(ित को

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ु िविवालय 130
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9.3 मैWकयावेल$ के वचार' क ऐतहा1सक पAृ ठभ1ू म


मैिकयावेली 16 व9 शता@दी के ारिHभक काल म8 ऐसे समय म8 अपने िवचार/ को ततु करता है जब एक ओर
म3ययगु ीन Oयव था का अत और दसू री ओर नव जागरण काल का उदय हो रहा था। हम जानते है िक म3ययगु के
िचतन म8 धम5, ई]र, परलोक पोप को स&ा सव5भौग ईसाई समाज, जैसे B/ का बोलबाला था। ता+कालीन
सामािजक, राजनीितक एवं आिथ5क Oयव था सामतवादी था पर िटक हQई थी। नगर/ का वYप भी वाय&शासी
था। सामत/ के आपसी य( ु / के कारण समाज म8 ि थरता और शाित का अभाव था। सोलहव9 शता@दी के
आरिHभक वषm तक पिFमी यरू ोप के देश/ म8 िनरकुश राजतंZीय शासन का अAयदु य हो गया था। aय/िक सव5ग
म3ययगु ीन सं थाओ ं का अधोपतन हो रहा था। िनरकुश राजाओ ं ने चचा5 के पदािधकारय/ को अपने काननू ी
िनयंZण म8 ले िलया था। इसी साथ इस अवधारणा का भी िवकास हQआ िक राजा ही रा1य म8 सH भु है जो सम त
राजनीितक स&ा का अितम Rोत है।
इन िव3वंसकारी परवत5न/ क अिभOयि\ मैिकयावेली के राजनीितक िस(ात म8 अ+यत प>ता से होती है।
मैिकयावेली का राजनैितक िचतन सोलहव9 शता@दी का दप5ण है िजसम8 त+कालीन समाज क Oयव था तथा
उसम8 आये िव3वसं कारी परवत5न/ को प> Yप से देखा जा सकता है। अपने यगु क उभरती राजनीितक वृितय/
को मैिकयावेली ने समझा तथा उन नवीन वृितय/ को अपनी राजनीितक िचतन म8 समा िलया। उसके िवचार
16व9 शता@दी म8 उभरती नवीन वृितय/ से अ+यिधक भािवत है।

9.4 इटल$ क दरु ावथा पर मैWकयावेल$ के वचार


मैिकयावेली के काल म8 इटली क भयंकर ददु श5 ा थी। इटली तब पाँच रा1य/ नेपbस, िमलन, वेिनस, †लोरे स तथा
के p म8 पोप ^ारा शािसत रा1य म8 िवभाितज था। इटली के इन रा1य/ क आतरक एवं बाŠ ि थित शोचनीय थी।
पेन, जम5नी और ˆांस के शासक/ का इटली पर समय -समय पर आVमण करना, इन रा1य/ क आपसी कटुता
िजसके िलए िवदेशी ताकत/ को इटली के आतरक मामल/ म8 ह त:ेप करने के िलए आमंिZत िकया जाना,
इ+यािद कारण/ से इटली क राजनीितक ि थित अ+यत बरु ी थी। मैिकयावेली इटली क ऐसी ददु श 5 ा के िलए पोप
और चच5 को उ&रदायी मानता है। वह इस बात से दःु खी था िक जब िक यरू ोप के अय देश/ म8 रा;<ीय एककरण
हो गया िकतु इटली का एककरण नह9 हो रहा है। इस सम या के िलए वह पोप क नीितय/ को िजHमेदार मानता
था। उसका मानना था िक न चच5 न तो वंय इतना शि\शाली है िक परू े इटली का एककरण कर सक8 और न वह
िकसी अय स&ा को ऐसा करने का अवसर देती है। इसिलए इटली िकसी एक मख ु के अधीन स=ु ढ़ रा1य नह9
बन सकता है। सारांश यह है िक तब इटली म8 ऐसा वातावरण बन चक ु ा था जहाँ Oयि\ पर िकसी भी कार का
अकंु श नह9 था न यास का और न काननू का। इटली के इस कार के पितत जन जीवन एवं > राजनीितक जीवन
को =ि>गत रखकर मैिकयावेली अपने िवचार/ का ितपादन करता है और यह कामना भी करता है िक देश का
कोई राजनेता उसके Cथ ‘ि ंस’ का अ3ययन कर देश को स=ु ढ़ रा1य बनायेगा।

9.5 मैWकयावेल$ क अRययन णाल$


आधिु नक काल म8 मैिकयावेली ऐसी पहला िवचारक था िजसने म3ययगु म8 चिलत िनगमा+मक प(ित का
पर+याग िकया। उसने अपने समय क सांसारक सम याओ ं को अ3ययन का िवषय बनाया तथा उन सम याओ ं

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का ऐितहािसक =ि>कोण से अ3ययन करने का यास िकया। समकालीन घटनाओ ं का तट थ =ि> से पय5व: े ण
करते हQए उन घटनाओ ं को ाचीन इितहास क घटनाओ ं के साथ जोड़ते हQए उसने अपने िन;कषm का ितपादन
िकया। मैिकयावेली क धारणा थी। िक मन;ु य वभाव सदा और सव5Z एक जैसा ही है। अतः वत5मान अथवा
भिव;य क सम याओ ं को समझाने के िलए भतू काल के इितहास का सहारा लेना चािहए। ऐसा करते समय हम8 यह
समझने का अवसर िमलता है िक ाचीन काल म8 अमक ु 2 परि थितय/ म8 कै सी नीितय/ का पालन िकया गया
िजनसे aया सफलता िमली या असफलता िमली थी। उसक मायता थी िक उन परणाम/ के काश म8 हम अपनी
समकालीन घटनाओ ं का िववेचन कर अपने िन;कष5 िनकाल सकते है। इसी कारण मैिकयावेली को आधिु नक
काल म8 राजनीित के अ3ययन के िलए पय5व:
े णा+मक तथा ऐितहािसक प(ित को अपनाने वाला पहला िवचारक
माना जाता है।

9.6 मनुAय वभाव के स4बध म? मैWकयावेल$ के वचार


मैिकयावेली क मायता है िक मन;ु य “सामायतः कृ तहन, वाथf सनक, धोखेबाज, कायर और लोभी होता है।
मन;ु य माZ का नैसिग5क गणु उसक अहवं ादी वृित है। अहवं ाद एक साव5भौम मानवीय स+य है। अपने अहम क
र:ा के के िलए मन;ु य दसू र/ से उCता के साथ ित पध5 करता है। अपने अहम क र:ाथ5, अथा5त अपने जीवन
अपनी सHपि& तथा अपने सHमान क र:ा के िलए वह और/ से सघं ष5 करता है।
यह =ि>ाकोण कािbवन तथा हॉaस आिद िवचारक/ से काफ िमलता जल ु ता है। ऐसा तीत होता है। िक ईसाइय/
के मन;ु य के पापी होने के समकालीन िस(ात का भी मैिकयावेली पर भाव पड़ा। मैिकयावेली यह मान कर
चलता है िक मन;ु य का अहम तथा उसक वाथ5 वृितयां ऐसी ेरणादायी शाि\याँ है जो उसे आगे बढ़ने के िलए
िववश करती है। मन;ु य आनद चाहता है। और क> तथा दख ु से बचने क बराबर कोिशश करता रहता है। मन;ु य
कृ त3न कायर व लालची होता है। वह अiछा बनने क तभी कोई कोिशश करता है जब ऐसा करने म8 उसे कोई
लाभ तीत हो। मैिकयावेली का कहना था िक भय मानव जीवन को ेम से भी अिधक भािवत करता है। इसिलए
राजा को जा व+सल नह9 वरन् ऐसा बनना चािहए िक लोग उससे बारबार डरते रह8। जब तक वे डर8 गे तभी तक
राजा से ेम कर8 ग8 और उसके आदेश मान8ग।8 परतु भय घृणा और अपमान के बीच अ+यत स ु प> रे खा ख9चते
हQए उसका कहना था िक शासक को चािहए िक वह अपने कायm से जा को भयभीत तो रखे लेिकन ऐसा न कर
बैठे िक रा1य का कोई वग5 उससे घृणा करने लगे तो उसक मान हािन का य+न कर8 ।
मानव वभाव के िवषय म8 मैिकयावेली के उपरो\ िवचार इटली क त+कालीन ि थित से भािवत हQए थे। परतु
मैिकयावेली के िवचार/ से अनेक िवरोधा+मक वृि&यां देखने को िमलती है।

9.7 नैतकता स4बधी 1स2ात


मैिकयावेली ही आधिु नक काल का ऐसा िवचारक है िजसने राजनीित को धम5 और नैितकता के सव5था पृथक
िकया है। मैिकयावेली के अनसु ार, यिद शासक को अपने राजनीितक उेय/ क ािX के िलए यिद अनैितक
साधन/ का योग करना पड़े तो ऐसा करना वांिछत है स&ा ािX के िलए यिद शासक को ह+या धोखाधड़ी वचन
भंग अथवा Vूरता इ+यािद साधन/ का योग करना पडे़ तो शासक को ऐसा करना नही िहचिकचाना चािहए। एक
शासक क सफलता का मbू यांकन इस आधार पर नह9 होता िक उसने नैितकता का धािम5कता का माग5 अपनाया

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और िजससे अपनी स&ा को खो िदया। इससे उसक असफलता िस( होगी। िकतु यिद शासक ह+या इ+यािद का
सहारा लेकर भी अपने रा1य क र:ा कर पाता है तो इितहास उस शासक क सराहना करे गा। नैितकता के सHबध
म8 मैिकयावेली के िवचार/ का अ3ययन करने से प> होगा िक वह नागरक/ के िलए एक कार क नैितकता का
तथा शासक/ के िलए दसू रे कार क नैितकता का मापदdड िनधा5रत करता है। मैिकयावेली का नैितकता सHबधी
दोहरा मापदdड है- Oयि\य/ क नैितकता और शासक/ क नैितकता Oयि\ के िलए वह नैितकता को आवयक
मानता है। िकतु शासक/ के िलए नैितकता क आवयकता नही मानता शासक/ के िलए उसका मापदdड
राजनीितक सफलता है भले ही वह साधन िकतने ही अनैितक aय/ न ह/। उसक मायता है िक शासक नैितकता
से ऊपर होता है, नैितकता के िनयम/ से शासक बधां नह9 होता। उसका कथन है िक शासक के िलए िव]ास को
िनभाना बहQत ही शंसनीय है िकतु रा1य क स&ा को बनाये रखने के िलए िव]ासघात और छल अ+यत
आवयक है।

9.8 धम) और राजनीत के त मैWकयावेल$ का [िAटकोण


धम5 के ित भी मैिकयावेली का =ि>कोण नैितकता के समान ही है। वह राजनीित को धम5 से पृथक करता है। ि ंस
क अपे:ा िड कोस5ज म8 मैिकयावेली धम5 को रा1य क ि थरता के िलए उपयोगी त+व माना है। मैिकयावेली धम5
को रा1य क सOु यव था के साधन के Yप म8 वीकार करता है। धम5 के मह+व को वीकार करते हQए मैिकयावेली
िड कोसnज म8 िलखता है जो राजा तथा गणरा1य अपने को >ाचार से म\ ु रखना चाहते है, उह8 धािम5क स ं कार/
क श( ु ता को बनाये रखना चािहए और उनके ित उिचत अ(ाभाव रखना चािहए aय/िक धम5 हािन होते हQए
देखने से बढ़कर िकसी देश के िवनाश का और कोई ल:ण नह9 होता। इस हद तक मैिकयावेली धम5 के मह+व को
वीकार अवय करता है िकतु जब धम5 राजनीितक स&ा के माग5 म8 बाधक हो, तब ऐसे धम5 का पर+याग करने
का वह समथ5न करता है। प> है िक मैिकयावेली धम5 और राजनीित के बीच एक िवभाजक रे खा िनधा5रत करता
है।

9.9 इतहास और परवत)न


इितहास के सHबध म8 मत कट करते हQए मैिकयावेली परवत5न के िस(ात का िन.पण िकया है। इितहास म8
कोई व तु ि थर नह9 है। मन;ु य इतना लोभी और वासनामय है िक उसक इiछांए लगातार बढ़ते ही जाती है।
इनका बढ़ना ही परवत5न/ का कारण है। इस कार के पितरवत5न/ क Vमब( कथा ही इितहास है। चिँू क परवत5न/
का मलू कारण वासनाएँ है और इितहास इह9 परवत5न/ का िववरण है अतः मानव जाित के कृ +य/ का इितहास
गौरवमय या उ1जवल नह9 है। अपनी बरु ाईय/ के कारण ही मानव जाित िदन ित िदन अिधकािधक अधः पतन के
ग5त म8 िगरती जा रही है। इितहास क गित मानव जाित के उस अिं तम िवनाश और लय क ओर ही इिं गत करती
है िजसक और वह बढ़ती जा रही है। अतः मैिकयावेली इितहास को मानव जाित के छल कपट और वाथm का
लेखा जोखा मानता है। इितहास चVवत घमू ता है। एक अiछी चीज आती है कालातर म8 वह > हो जाित है तो
उसका थान दसू री व तु ले लेती है। इस कार इितहास का चV घमु ता रहता है। अर तु ने भी लगभग ऐसी ही
बात कही थी। उसने रा1य/ का जो वगfकरण िकया था उसम8 बतलाया था िक राजतंZ के बाद अिभजा+यतंZ और
अिभजा+य तंग के > होने के बाद जातZ और िफर राजतंZ आता है। िफर भी मैिकयावेली ने अर तु का कह9
उbलेख नह9 िकया है। इस कार एक आलोचक के श@द/ म8 उसने िबना कृ त#ता कट िकये चोरी क है।

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9.10 रा6य के स4बध म? मैWकयावेल$ के वचार


मैिकयावेली रा1य को कृ िZम स ं था मानता है। मैिकयावेली क रा1य क धारणा उसक मन;ु य सHबधी धारणा से
जड़ु ी हQई है। मैिकयावेली के अनसु ार मन;ु य वभाव से वाथf होता है। तथा उसम8 व तओ
ु ं के सCं हण करने क
वृित होती है। इसी कारण मन;ु य/ म8 ित पधा5 रहती है जो समाज म8 अशाित और अOयव था का कारण होती है।
मैिकयावेली क मायता है िक समाज म8 अशाित और अOयव था को िनयिं Zत करने के िलए रा1य क थापना
मन;ु य/ के ^ारा क गई है। वह कहता है िक रा1य मन;ु य क वाथf वृितय/ को िनयिं Zत करने के िलए थािपत
क गयी मानव कृ त सं था है। रा1य आवयकता क उपज है नैसिग5क नह9 मैिकयावेली का यह भी मत है िक
अय सामािजक संगठन/ क तुलना म8 रा1य एक उiच सं था है। मैिकयावेली क रा1य क धारणा क िववेचना
करते समय उसक इस दबु ल 5 ता को भी 3यान म8 रखना होगा िक उसने सH भतु ा जैसी रा1य क शि\ का कह9
वण5न नह9 िकया है। रा1य क बा3यकारी शि\ का उसने िजस तरह से वण5न िकया है उससे के वल इतना ही संकेत
िमलता है िक वह सH भतु ा क शि\ को रा1य म8 िनिहत मानता है। सH भतु ा क वह कह9 Oयाrया नह9 करता।
सH भतु ा क Oयाrया न करते हQए भी वह रा1य क शि\ को वीकार करता है िजसका योग राजतंZ म8 राजा के
^ारा अथवा गणतंZ म8 जा के ^ारा िकया जाता है।

9.11 शासन स4बधी वचार


अर तू और िसरस/ क भाँित मैिकयावेली भी सरकार/ को श( ु अश( ु इन दो भाग/ म8 बाटता है। श(
ु सरकार के
कार है राजतंZ कुलीनतंZ और गणतंZ िनरकुशतंZ, धिनकतंZ और लोकतंZ Vमशः इनके िवकृ त Yप है। प> है
िक मैिकयावेली भी अर तु का अनसु रण करते हQए सरकार/ को श( ु और िवकृ त मानकर उनके छह कार/ को
मानता है। िसरसो क भाँित मैिकयावेली भी वीकार करता है िक “िमिWत संिवधान” Wे> होता है। शासन के 6
कार/ को वीकार करते हQए भी वह के वल राजतंZ और गणतंZ क तथा िडसकोसnज म8 गणतंZ क Oयाrया
तुत क है। राजतZं और गणतंZ के सHबध म8 मैिकयावेली के aया िवचार है उनका सिं :X वण5न यहाँ तुत है।

9.11.1 राज तंR


राजतZं Oयव था क मैिकयावेली ि िं सपेिलटी के नाम से सHबोिधत करता है। मैिकयावेली ने राजतंZ के दो
व.प/ को माना है। पहले कार का वह राजतंZ है िजसम8 कोई राजा दसू रे रा1य को परा त कर उस पर अपना
शासन थािपत करता है। दसू रा कोिट का राजतंZ वशांनगु त राजतंZ है िजसम8 अपने पैतक
ृ अिधकार के कारण कोई
उ&रािधकारी रा1य क स&ा ाX करता है। राजतंZ का समथ5न मैिकयावेली ने त+कालीन इटली क परि थितय/
को 3यान म8 रखते हQए िकया है। उसके मतानसु ार इटली क राजनीितक अव था को सचु ा. बनाने के िलए राजतंZ
का समथ5न िकया है। मलू .प से तथा साधारण परि थितय/ म8 वह गणतंZीय शासन को अiछा मानता है।

9.11.2 गण तंR
मैिकयावेली िडसकोसnज म8 वह वीकार करता है िक गणतंZ Wे> कोटी का शासन है aय/िक इस Oयव था म8 अनेक
गणु को देखता है। गणतंZ म8 जनता क राजनीितक जीवन म8 भागीदारी होती है, तथा िविध के मा3यम से शासन
संचािलत होता है। वह मानता है िक काननू ^ारा शािसत रा1य थायी होता है। रा1य म8 थािय+व के िलए वह बल

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के योग का समथ5क है िफर भी यिद बल का संयत Yप से योग िकया जाये तो वह उिचत है। मैिकयावेली Oयि\
क अनेक वतंZताओ ं का समथ5न िडसकोसnज म8 करता है। Oयि\गत सHपि& रखने क वतंZता शासक/ को
चनु ने क वतंZता, िवचार/ क अिभOयि\ क वतंZता तथा शासन म8 साव5जिनक िहत के सधु ार/ को तािवत
करने क नागरक/ क वतंZता इ+यािद वतंZताओ ं का वह समथ5क है। मैिकयावेली यह भी मानता है िक
नागरक/ क शासन के कायm म8 भागीदारी होनी चािहए। उसने प>तया वीकार िकया है िक िजस शासन म8
अिधकांश लोग भागीदार होते है वह शासन थायी होता है। वह वंशानगु त राजतंZ क अपे:ा जनता ^ारा चनु े हQए
राजतंZ को अiछा मानता है गणतंZीय शासन क अपे:ा नागरक/ का >ाचार रिहत मत अिधक भावशाली
होता है इन िवचार/ के आधार पर यह िन;कष5 िनकालना उिचत ही होगा िक भले ही ि ंस म8 मैिकयावेली के ित
पािदत िवचार िकतने ही िनरकंु शवादी एवं सनक aय/ न हो िडसकोसnज म8 उसने गणतंZ एवं उदारवादी शासन का
समथ5न िकया है।

9.12 राय का िवतार


रा1य के िनरतर िव तृत होते रहने क आवयकता बतलाते हQए मैिकयावेली ने बतलाया िक मन;ु य का वभाव
पारे क भाँित होता है। वह बारबार बढ़ते रहना चाहता है। यिद वैभव और Oयव था है तो रा1य को भी बढ़ना
चािहए। मन;ु य का वभाव चचल होता है वह ि थर नह9 रह सकता अतः ऐसी कोई व तु शा]त या दीघ5जीवी नह9
हो सकती जो ि थर रहे। अतः ि सं तथा िडसकोसnज म8 मैिकयावेली ने यह समझाने क चे>ा क िक रा1य मे
अिधकृ त देश को िनरतर बढ़ाते रहने क आवयकता है। एक ही राजा के छZ के नीचे शािसत/ क सrं या
िनरतर बढ़ती रहनी चािहए। ऐसा उस समय तो बराबर ही होना चािहए जब के pीय राजस&ा को अपनी ही देश के
िकसी भभू ाग को अपने अतग5त लाना हो। उपरो\ बात मैिकयावेली ने इटली क दशा को देखते हQए कह9 थी।
राजा को साम, दाम दdड और भेद क चार/ नीितय/ को काम म8 लाना चािहए। उसे यिद आवयकता पड़े तो सेना
का योग करने से भी नह9 चक ू ना चािहए। शाित Oयव था और सरु :ा क =ि> से रा1य के भिू म भाग को बढ़ाते
रहना चािहए।

9.13 सवशाि]मान िवधायक क$ अवधारणा


आधिु नक भाषा म8 हम िजसे शासक कहते है मैिकयावेली उस शासक को िविध दाता के नाम से सHबोिधत करता
है। िविध दाता अथा5त िवधायक, पर मैिकयावेली क अपवू 5 W(ा है। उसका िव]ास है िक िकसी सफल रा1य क
थापना के वल एक Oयि\ के वल एक सव5शि\मान िवधायक ^ारा क जा सकती है। उसक मायतानसु ार िविध
दाता सव5शि\मान है। िविध दाता ^ारा थािपत रा1य तथा काननू / के िनमा5ण से नागरक/ का चरZ भी िनधा5रत
होता है। जैसे िविध दाता के काननू ह/गे वैसा ही चरZ उसके रा1य के सद य/ का होगा। िवधायक क बिु (मता
और दरू =ि> के सहारे समाज क र:ा ओर िवकास संभव है। िजस तरह रा1य के संचालन हेतु उस पर िकसी कार
के ितबध नह9 होते उसी कार समाज रचना और समाज के िवकास काय5 म8 भी िविध दाता पर िकसी कार क
सीमाएँ नह9 है। िविध दाता यिद अपने काय5 म8 द: है तो वह समाज Oयव था क रचना और उसके उ+थान के िलए
सब कुछ कर सकता है। ऐसा करने म8 उस पर कोई बधन नह9 है। वह परु ाने संिवधान को बदल सकता है रा1य क
पनु 5रचना कर सकता है, आबादी मनचाहे तरीके से थानातरत कर सकता है नैितकता के नये मापदडं थािपत कर
सकता है, और शासनतंZ को परवित5त कर नई प(ितय/ क Oयव था कर सकता है। मैिकयावेली के िविध दाता
क धारणा का अ3ययन करने से प> होता है िक इन िवचार/ म8 सH भु क झलक है। आधिु नक काल म8 हम

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सH भतु ा क िजस धारणा क चचा5 करते है मैिकयावेली सH भतु ा क उस कार क औपचारक परभाषा तो
तुत नह9 कर सका िफर भी उसने रा1य/ क सवmiच काननू ी शि\ के ल:ण/ का वण5न सव5शि\मान िविध दाता
क अवधारणा के .प म8 िकया है। मैिकयावेली क इस कमी को हॉ@स ने अपनी सH भतू ा क धारणा ^ारा परू ा
िकया है, मैिकयावेली क इस कमी को हॉ@स ने अपनी सH भतु ा क धारणा ^ारा परू ा िकया है, मैिकयावेली ने
सव5शि\मान िवधायक के िजन ल:ण/ का वण5न िकया है हॉ@स उह9 ल:ण/ के आधार पर सH भतु ा क
िविधवत धारणा तुत करता है।

9.14 िविध क$ अवधारणा


मैिकयावेली िवधानमdडल को सव5शि\मान मानता है। उसक इस अवधारणा म8 िविध क अवधारणा भी
सिनिहत है। मैिकयावेली ने बतलाया है िक लोग िविध के आदेश/ को भय के कारण मानते है। मैिकयावेली क
िविध क परभाषा बहQत सीिमत थी। वह के वल नागरक िविध के अि त+व को ही वीकार करता था। उसका
कहना था िक िविधयाँ शासक ^ारा बनायी जाती है अतः उनका Rोत शासक है। शासक या रा1य क उ+पित के
पहले िविधयाँ नही थी। अराजकता और िविध Oयव था का अभाव पया5यवाची श@द है। अराजकता क अव था
म8 समाज और रा1य के सारे अगं िविWखिलत हो जाते है। िविध का काय5 इही िविWखिलत अगं / के बीच
सामंज य और समवय क थापना करना है। म3य यगु के िविभन लेखक/ क भांित मैिकयावेली ने िविध को
ाकृ ितक, ई]रीय परHपरागत आिद वगm म8 िवभ\ नह9 िकया नागरक िविध क अवधारणा को बतलाने के बाद
उसने आगे और कुछ नह9 िलखा। उसका िविध और िवधानमdड सHबधी दश5न भी अ+यत सीिमत है। वह शासक
को ही िवधानमdडल सHबधी दश5न भी अ+यत सीिमत है। वह शासक को ही िवधानमdडल मानता है।

9.15 सेना का रा,-ीयकरण


सेनाओ ं के सHबध म8 भी मैिकयावेली के िवचार अ+यनत मह+वपणू 5 है। उसके समय म8 तीन कार क सेनाएँ हQआ
करती थी।
1. रा;<ीय सेनाएँ 2. राि1यक सेनाएँ 3. िकराये पर लड़ने वाली सेनाएँ
समकालीन इटली म8 िजतनी िवदेशी फौज लड़ने बाती थी, वे सब रा;<ीय सेनाएँ होती थी। ये सेनाएँ बहQधा पेन,
“ांस और जम5नी क होती थी। इनका मक ु ाबला इटली क छोटी2 रयासत/ क सेनाओ ं को करना पड़ता था। इन
सेनाओ ं म8 फूट भी रहती थी। इनके अलावा कुछ सेनाएँ िकराये पर भी लड़ा करती थ9। इटली क सामरक पराजय/
के कारण/ का िनदान करते हQए मैिकयावेली ने रयासती सेनाओ ं और िकराये पर लड़़ने वाली सेनाओ ं के बहQत से
दोष िगनाये है। उसका कहना था िक ऐसी सेनाएँ द@ब,ू कायर, लालची, और मह+वाकां:ी होती है। इसक ेरणा
देने वाला लsय रा;< क सेवा भाव नह9 बिbक धन होता है। अतएव इस कार क सेनाओ ं पर भरोसा करके
इटली रा;< रा1य/ का सामना नही कर सकता। यिद इटली को वतंZता ाX करनी है तो उसे भी ˆांस आिद क
भांित रा;<ीय सेनाओ ं का संघठन करना चािहए और िकराये तथा अय कार क सेनाओ ं पर िनभ5र रहना चािहए।

9.16 रा,-ीयता क$ अवधारणा


आधिु नक यगु म8 मैिकयावेली ही ऐसा िवचारक था िजसने रा;<ीयता के सHबध म8 अपने िवचार कट िकये। िकतु
आलोचक ने इस सHबध म8 बड़े पर पर िवरोधी िवचार कट िकये है। एलन का कहना है िक मैिकयावेली ने यह

उराखंड म
ु िविवालय 136
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
नही बतलाया िक रा;< रा1य म8 कौन कौन से अगं होते है। िवचार/ क अ प>ता मैिकयावेली क एक बहQत बड़ी
Zिु ट है। एलन के मत के िवपरत हरनशाँ का कहना है िक व ततु ः रा;< रा1य का जनक मैिकयावेली ही था। यह
बात इस अथ5 म8 वीकार क जा सकती है िक मैिकयावेली ने ही सबसे पहले रा;< रा1य क .परे खा दी। चाहे वह
Yप रे खा अ प> ही aय/ न थी।

9.17 अपने यगु के िशशु के =प म( मैिकयावेली


मैिकयावेली को ो. डिन5ग ने अपने यगु का िशशु कहा है। मैिकयावेली िजस यगु म8 पैदा हQआ था वह यगु
पनु जा5गरण का था िजस काल क वृि&य/ का भाव मैिकयावेली के िचतन पर पड़ा था। 14 शता@दी से 16 व9
शता@दी का काल था िजस काल के िवचार/ ने म3ययगु ीन मायताओ ं को छोड़कर एक बार िफर से यनू ानी
मायताओ ं को वीकार करना आरHभ िकया। यनू ानी िचतन के पनु ः सार के कारण म3ययगु ीन Oयव था टूटने
लग9 और म3ययगु ीन िचतन िबखरने लगा तथा नवीन बौि(क सां कृ ित और राजनीितक मbू य/ का भाव यरू ोप
म8 िदखाई पड़ने लगा। यह काल ब(ता और बधनमिु \ का काल था। यनू ानी िचतन के पनु ः आिवभा5व के साथ
ही मन;ु य समाज, कृ ित, ई]र, कला सािह+य और राजनीित को देखने क नयी कसौिटयाँ नये मापदdड/ का
आिवभा5व हQआ। समाज क अपे:ा अब Oयि\ को मह+व िदया जाने लगा। मानव आबादी =ि>कोण के िवकास
के कारण अब माने जाने लगा िक मन;ु य ही सभी चीज/ क कसौटी है। चच5 के िनयZं ण के िवY( भी वतंZता क
भावना का उदय होने लगा। यरू ोपीय जगत म8 पनू जा5गरण क परणाम वYप िजन नये िवचार/ का और =ि>कोण का
जम हो रहा था। मैिकयावेली उन िवचार/ से भािवत था। ये नवीन वृि&याँ मैिकयावेली के िचतन म8 कट हQई।
इसिलए उसे अपने यगु के िशशु के Yप म8 मायता दी जाती है। मैिकयावेली अनेक भाँित से अपने यगु का ितिनिध
िवचारक था। यह उसके =ि>कोण से प> हो जाता है। मन;ु य वभाव का िचZण, अ3ययन क ऐितहािसक णाली
को चनु ना, चच5 तथा पोप क स&ा का खल ु ा िवरोध, राजनीित को धम5 तथा नैितकता से पृथक करना, रा;<ीय
रा1य क मह&ा को वीकार करना, सव5शि\मान िविधदाता क अवधारणा का ितपादन करना रा;<ीय सेना का
िवचार तथा सामतवादी वग5 को रा;<ीय एकता म8 बाधा मानकर उस पर राजा के अक ं ु श को लगाना इ+यािद उसके
ऐसे िवचार थे िजन पर अपने यगु का भाव प> िदखाई पड़ता है। पनु जाग5रण यगु जो वैचारक अथवा बौि(क
वृि&याँ थी, मैिकयावेली के िवचार/ म8 उन वृि&य/ क अिभOयि\ होती है। इसिलए उसे अपने यगु का िशशु
कहा गया है।

9.18 "थम आधिु नक िवचारक के =प म(


राजनीितक िवचार/ के इितहास म8 मैिकयावेली को पहला आधिु नक िवचारक अथवा आधिु नक राजनीितक
वै#ािनक कहा गया है। इस मायता को प>ु करने के िलए िनHनिलिखत तक5 तुत िकये जाते है।
1. मैिकयावेली के पहले राजनीित का अ3ययन अनभु वमल ू नह9 था। म3ययगु के ायः सभी लेखक वयं िस(
मायताओ ं को वीकार कर उस आधार पर अपने राजनीितक िवचार/ क Oयव थाएँ िनिम5त करते हQए िदखायी
पड़ते है। इसक तल ु ना म8 मैिकयावेली म3ययगु क अ3ययन प(ित को छोड़कर पय5व: े णीय ऐितहािसक एवं
अनभु वमल ू क प(ित का योग करता है। आधिु नक काल म8 इस कार क वै#ािनक प(ित का योग करने वाला
मैिकयावेली पहला िवचारक माना जाता है।

उराखंड म
ु िविवालय 137
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2. मैिकयावेली क आधिु नक िवचारक मानने के समथ5न म8 यह कहा जाता है िक उसने राजनीित और नैितकता को
पृथक िकया है। मैिकयावेली क मायता है िक राजनीित का एक वतंZ दायरा है। राजनीित का दायरा स&ा है।
राजनीित का लsय स&ा को ाX करना स&ा ाX कर उसे =ढ़ बनाना तथा स&ा का िव तार करना है। इसक
तुलना म8 नैितकता का सHबध मन;ु य के िनजी Oयवहार के नैितक प:/ से जड़ु े िनण5य/ से रहता है। इस आधार पर
मैिकयावेली इस िवचार का ितपादन करता है िक राजनीित के उेय एवं साधन नैितकता के उेय/ एवं साधन/
से सव5था पृथक है। राजनीित के :ेZ म8 सल
ं }न Oयि\य/, शासक/ और राजनीित#/ के िलए यह आवयक नह9 िक
वे राजनीित म8 नैितकता के साधन/ का योग कर8 । मैिकयावेली के िलए साधन/ का नैितक - अनैितक होना िनरथ5क
मापदdड है। राजनीित को नैितक और धम5 से पृथक करने के पीछे मैिकयावेली का िवचार था िक वह राजनीित को
म3ययगु ीन बंधनो से म\
ु कर दे। मैिकयावेली का यह यास भी उसक आधिु नक मानिसकता का परचायक है।
3. मैिकयावेली ने ि सं से अपे:ा क िक कोई देशभ\ राजा इटली को रा;<ीय रा1य के Yप म8 सगं िठत करे गा।
मेडीसी परवार के शासक ल/रजो को सHबोिधत करते हQए उसने िलखा था, देिखए इटली क भिू म उस 3वज के
नीचे खड़े होने क िबनती कर रही है जो उसे िवजय िदला सके यह मातृभिू म आपके घराने क ओर इस आशा से
देख रही है। यिद आप उन आदशm का योग कर8 ग8 िजनक चचा5 मैने ि सं म8 क है तो यह काय5 आपके िलए
तिनक भी किठनल नह9 होगा। वे साधन दयावान एवं उिचत है। जो मातृभिू म का उ(ार कर8 । मैिकयावेली ने
रा;<ीयता क भावना से ेरत होकर रा;<ीय सेना क थापना का िवचार ततु िकया था। रा;<ीय एकता का
िवचार भी मैिकयावेली क आधिु नकता का 0ोतक है।
4. आधिु नक रा1य क धारणा का ितपादक आधिु नक काल क राजनीितक Oयव था रा1य क धारणा पर
आधारत है। मैिकयावेली को यह Wेय ाX है िक उसने रा1य क धारणा को सव5 थम अथ5 दान िकया। रा1य का
आधिु नक अथ5 ऐसी राजनीितक सH भु शि\ है। िजसम8 अपने नागरक/ और :ेZ/ पर एकािधकार है तथा जो
शि\ अतरा5जीय सHबध/ के :ेZ म8 भी सवmiच एवं िनबा5ध है। रा1य क धारणा का इस कार का अथ5
मैिकयावेली के Cथं / ^ारा ही दान िकया गया है। रा1य से जड़ु ी हQई सH भतु ा क धारणा के ल:ण/ क Oयाrया
भी मैिकयावेली ^ारा सव5 थम क गयी है। रा1य और उसक सH भु शि\ के मह+व को पिहचानने वाले िवचारक/
म8 मैिकयावेली आधिु नक काल का अCणी िवचारक था।
5. Oयि\ के आ+मिहत पर बल मैिकयावेली का आधिु नक काल के उन िवचारक/ म8 थम थान है िजह/ने Oयि\
के आ+मिहत अथवा वाथ5 को राजनीित का के p बनाया। मैिकयावेली मानता है िक मन;ु य वभाव से ही वाथf
अथवा अहवं ादी है इस तjय को शासक को पिहचानना चािहए तथा शासन क Oयव था इस कार से क जानी
चािहए िजससे िक Oयि\ के आ+म िहत को आघात न लगे।

अAयास B के उ&र म8 उपरो\ का अ3ययन कर िलिखए


B 1 दाँ ि स नामक Cथ क रचना िकसने क ?
B 2 मैिकयावेली का जम िकस सन् म8 हQआ था?
B 3 मैिकयावेली ने िकस अ3ययन णाली को अपनाया था ?
B 4 िड कोसnज म8 मैिकयावेली िकस Oयव था का समथ5न करता है ?

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ु िविवालय 138
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

B 5 मैिकयावेली रा1य को ................................................................सं था मानता है।


B 6 राजतंZ Oयव था को मैिकयावेली ........................................... के नाम से सHबोिधत करता है।

9.19 सांराश
उ\ ईकाई के अ3ययन से यह आप समझ गये होग8 िक िकसी भी राजनीितक िवचारक के राजनीितक िचतंन पर
उसके समय क परि थितयां भािवत करती है। आपने देखा िक मैिकयावेली मानव वभाव का बरु ा िचZण करता
है। मैिकयावेली मानव वभाव का बरु ा िचZण इसिलए ततु करता है aय/िक उसने इटली क ददु श5 ा को देखा
और उसके िलए पोप और चच5 को उ&रदायी माना। वह इटली का एककरण करना चाहता है लेिकन चच5 व पोप
को उस काय5 िलए अ:म मानता है। मैिकयावेली ने अपने समय क सांसारक सम याओ ं को अ3ययन का िवषय
बनाया तथा उन सम याओ ं का ऐितहािसक =ि>कोण से अ3ययन करने के यास िकया। साथ ही मैिकयावेली ने
धम5 और नैितकता का राजनीित से िवiछे द कर अपने िवचार/ को म3ययगु ीन िवचारधारा से सव5था िभन बना
िदया उसने रा1य क र:ा के िलए नैितकता तथा धम5 क धारणाओ ं को ताक पर रख िदया िससरो क भाँित
मैिकयावेली भी िमिWत संिवधान को WेJ मानता है और गणतZ शासन को WेJ मानता है अत म8 मैिकयावेली ही
इटली म8 रा;<ीयता क भावना पैदा करने वाला पहला िवचारक था।

9.20 श!दावल$
गणतZ:- वह शासन णाली िजसम8 स&ा का अितम सZू जनसाधारण के हाथ/ म8 रहता है। तािक उसका योग
जन िहत को बढ़ावा देने के िलए िकया जाए।
आधिु नककरण:- वह िVया िजसम8 कोई समाज पंरपरागत मbू य/ और सं थाओ ं से आगे बठकर आधिु नक यगु
के अन.ु प जीवन प(ित अपना लेता है।
सामतवाद:- म3ययगु ीन यरू ोप म8 चिलत वह राजनीितक Oयव था िजसके अतग5त रा1य शि\ थानीय जमीदार/
मनसबदार/, इ+यादी म8 बटं ी रहती थी। और अपना पर उ&रािधकार के Yप आधारत थी।
रा;<ीयता:- वह ि थित िजसम8 कोई Oयि\ िकसी िवशेष रा;< रा1य का सद य माना जाता है, चाहे वह वयं उस
रा1य म8 जमा हो, या उस रा1य से सHबंध रखने वाले परवार से।

9.21 अ&यास 
न' के उ तर

9.22 सदभ) *थ सच


ू ी
1. मेहता जीवन- पाFा+य राजनीितक िचतन

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ु िविवालय 139
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2. िसंह वीरके ]र साद- ितिनिध राजनीितक िवचारक
3. जैन पख
ु राज- पाFा+य राजनीितक िचतन

9.23 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. सदू जे0पी0- राजनीितक िचतन का इितहास

9.24 नबंधा मक 

1. धम5 व नैितकता के सHबध म8 मैिकयावेली के िवचार/ क िववेचना किजए ?
2. मैिकयावेली आधिु नक यगु का थम िवचारक aय/ माना जाता है ?
3. मैिकयावेली सही अथm म8 अपने यगु का िशशु था। समी:ा किजए।
4. मैिकयावेली के रा1य और सरकार के सHबध म8 िवचार/ क िववेचना किजए।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

-10 :+
,-#.- (1530-1596)
इकाई क$ संरचना
10.1 "तावना
10.2 उ4े5य
10.3 जीन बोदाँ क$ कृ ितयाँ
10.4 अ
ययन प!ित
10.5 राय स;बधी िवचार
10.6 नागLरकता स;बधी िवचार
10.7 स;"भतु ा स;बधी िवचार
10.7.1 स"ं भतु ा क$ सीमा स;बधी िवचार
10.8 जीन बोदाँ का राय एवं शासन के स;बध म( िवचार
10.9 जीन बोदाँ का सिह,णतु ा स;बधी िवचार
10.10 जीन बोदाँ का Pाित स;बधी िवचार
10.11 जीन बोदाँ का राजा तथा "जा के बीच संिवदा स;बधी िवचार
10.12 जीन बोदाँ और मैिकयावली क$ आधिु नकता के अDदतू के Jप म( तल
ु ना
10.13 साराश ं
10.14 शAदावली
10.15 अBयास "C9 के उ:र
10.16 सदभ Dथ सचू ी
10.17 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
10.18 िनबधं ामक "C

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10.1 तावना
िस( दाश5िनक एवं राजनीितक िवचारक जीन बोदाँ का जम सन् 1530 म8 हQआ एवं बोदाँ का वग5वास सन्
1596 म8 हो गया। बोदाँ के जीवन काल म8 ˆांस गृहकलह एवं धम5य(ु / म8 फँ सा हQआ था। सन् 1562 से सन् 1598
तक ˆांस म8 9 धम5य(ु हQए थे। बोदाँ के िवचार भी अपने समय क परि थितय/ से भािवत थे। बोदाँ के अ3ययन
एवं #ान का :ेZ बहQत ही Oयापक था। उसने राजनीित, यायशाh, इितहास, मpु ा, साव5जिनक िव&, िश:ा एवं धम5
जैसे िवषय/ पर अपने िवचार ततु िकए तथा कृ ितयाँ िलखी। बोदाँ अपने समय का सवा5िधक मौिलक िवचारक
था। वह आधिु नक भी था और अनेक बात/ म8 म3ययगु ीन भी। बोदाँ ने राजनीित के लगभग सभी प:/ पर अपने
िवचार ततु िकये।

10.2 उेय-
बोदाँ का उेय ˆांस म8 एकता क पनु था5पना थी। उसने राजनीित के सभी प:/ से ˆांस क एकता पर िवचार
िकया जो िक उसक साव5भौिमकता के िस(ात से प> है। उसके िवचार .िढ़वादी होते हQए भी पनु .+थान क
भावना से ओत- ोत थे। उसके िस(ात/ म8 एकता और संगठन का +य: सZू पात िदखाई देता है। उसने प> .प
से ˆांस के राजतंZ का समथ5न िकया aय/िक उसका यह मानना था िक के वल राजतंZ ही ˆांस को िवन> होने से
बचा सकता है और यह काय5 राजा क सवmiचता ^ारा ही हो सकता है। िनिFत .प से सH भतु ा के िस(ात
ितपािदत करने का Wेय बोदाँ को ही है।

उराखंड म
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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

10.3 जीन बोदाँ क कृ तयाँ


1. रे सपॉस (Response)
2. डेमीनोमैनी (Demenomanie)
3. हेtटाtलोमस5 (Heptaplomeres)
4. यिू नवस5 नेचर िथये<म (Universe Nature Theatrum)
5. िसaस िलवस5 िड-लॉ-रपि@लक (Six Livers De-La-Republique)

10.4 बोदाँ क अययन प त-


बोदाँ का राजनीितक िवचार उसक प ु तक 'The Six Books on the Republic or State' से जान सकते हL तो
उसका दसू रा Cथ 'A Method for the Easy Understanding of History भी मह+वपणू 5 है। उसम8 उस
प(ित का िववरण है िजसका योग उसने अपने राजनीितक िवकbप म8 िकया और िजसे बोदाँ नवीन समझता था।
यह प(ित भी दश5न तथा इितहास का सिHमWण है। बोदाँ के अनसु ार काननू के वा तिवक व.प तथा मल ू को
समझने के िलये यायशाhी को इितहासकर से सहायता लेनी चािहये और िविभन देश/ क काननू णािलय/ का
अ3ययन करना चािहये। इस कार उसे दश5न तथा इितहास का सिHमWण करना चािहए। बोदाँ के अनसु ार
मैिकयावेली क अ3ययन प(ित म8 दश5न क सव5था उपे:ा के कारण ही शायद वह नीितशाh तथा राजनीित म8
िवiछे द िकया, aय/िक उसक प(ित िवश( ु .प से अनभु व धान थी; उसे दश5न ^ारा पर;कृ त नह9 िकया गया
था। दसू री ओर बोदाँ ने tलेटो तथा मोर सरीखे वtन=>ाओ ं (Utopians) क आलोचना इसिलये क िक aय/िक
उनका दश5न अयथाथ5वादी था aय/िक उसका आधार ऐितहािसक तjय नह9 था। बोदाँ क धारणा थी िक आदश5
प(ित मे दश5न और इितहास दोन/ का योग होना चािहए। दश5न इितहास के तjय/ के अथ5 दान करता है तथा
इितहास दाश5िनक धारणाओ ं के िलये सामCी ततु करता है। ‘‘तjय ठोस बनाते हL और िववेक सारगिभ5त।’’
अपनी राजनीितक मायताओ ं का इितहास के तल ु ना+मक अ3ययन पर आधारत करके बोदाँ ने अर तू क प(ित
को अपनाया। इसम8 कोई सदेह नह9 िक बोदाँ के सामने अपने काय5 का िचZ अपने समकालीन/ क अपे:ा
अिधक Oयापक था। परतु जैसा िक सैबाइन का कहना है, बोदाँ म8 उस काय5 के सHपन करने क पणू 5 :मता न थी;
उसके राजनीितक दश5न म8 काफ वंचना पाई जाती है। उसके पास कोई प> णाली न थी िजसके ^ारा वह
अपनी ऐितहािसक सामCी को Oयवि थत कर सकता। बोदाँ का अपनी कृ ितय/ म8 मrु य 3येय इितहास के िलए
सामाय दश5न क खोज करना नह9 था, बिbक के वल उसे सरलतापवू 5क समझने क एक प(ित का पता लगाना
था इसका परणाम यह हQआ िक उसके Cथ/ म8 पाई जाने वाली अतल ु ऐितहािसक सामCी म8 कोई Oयव था नह9
पाई जाती। परतु यह तो हम8 मानना ही चािहये िक काननू तथा राजनीित म8 घिनJ सHबध है और दोन/ का
अ3ययन ऐितहािसक =ि>कोण से होना चािहये, बोदाँ का एक बड़ा गणु था। उसक दाश5िनक अत=5ि> तथा
ाकृ ितक काननू म8 उसके िव]ास ने उसे मैिकयावेली के नैितक उपरामवाद (Moral Indifferentism) से बचा
िलया। बोदाँ तथा मैिकयावेली और बोदाँ तथा हॉ@स म8 यह एक आधारभतू अतर है।

उराखंड म
ु िविवालय 143
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
अब हम बोदाँ के उस राजनीितक दश5न पर आते हL जो उसक कृ ित 'Books Concerning the State' म8 िमलता
है। कई बात/ म8 उसम8 रा1य के मल
ू व.प तथा राजनीितक आ#ापालन के िवषय म8 हम8 मौिलक िवचार िमलते हL।
परतु वे पणू 5 .प से प> नह9 है। सबसे पहले हम अगली इकाई खdड म8 उसके रा1य के मल
ू तथा सामािजक
आधार पर िववरण द8ग,े िफर उसके सं भतु ा के िस(ात तथा अय िवषय/ का उbलेख कर8 गे और अत म8 यह
देख8गे िक राजनीितक िवचार के इितहास म8 उसका aया थान है।

10.5 जीन बोदाँ का राय सबधी वचार


रा1य के सHबध म8 बोदाँ के नवीन िस(ात तथा नवीन मbू य/ को भली कार समझने के िलये यह जानना
आवयक है िक बोदाँ िकन परि थितय/ म8 और िकस उेय को लेकर अपनी रचनाय8 क9। #ात रहे िक ोटे टेdट/
तथा कै थोिलक/ के बीच धािम5क संघष5 ने रा1य क एकता तथा शि\ को बड़ा धaका पहQचँ ाया और शाित तथा
Oयव था कायम रखने और जन-कbयाण क अिभवृि( करने क उसक :मता को बहQत घटा िदया। इस िलये
बोदाँ रा1य को धािम5क िववाद/ से अलग रखना और यह िस( करना चाहता था िक रा1य क शि\ िनरपे: है जो
उसके सम त नागरक/ को नैितक .प से माय है। वह यह भी िदखाना चाहता था िक रा1य का समिु चत काय5
सामािजक कbयाण क अिभवृि( करना है, न िक अपने अनसु ार सiचे धम5 को कायम रखना। इस 3येय क पिू त5
के िलए उसने उस िस(ात को जो िक रा1य को एक दैिवक सं था समझता है और उस िस(ात का जो िक शासन
क जन-इiछा के ऊपर आधारत करता है, खdडन करना पड़ा।
यहाँ यह भी उbलेखनीय है िक ˆासं ीसी तथा कॉिटश कािbवनवादी अतःकरण के नाम पर रा1य क शि\ क
अव#ा करते थे और Oयि\ को रा1य से कह9 अिधक मह&ा देते थे। राजनीितक शि\ के ित कािbवनवािदय/ का
यह =ि>कोण बोदाँ के उेय से ताल नह9 खा सकता था। बोदाँ का उेय रा1य के ािधकार क मह&ा िस(
करना था, Oयि\गत वतZताओ ं और अिधकार/ क र:ा करना नह9। अपने इन उेय/ क पिू त5 बोदाँ ने रा1य क
यह परभाषा देकर क िक ‘‘रा1य परवार/ तथा उनक सामाय सHपि& का एक समदु ाय है िजसके ऊपर सवmiच
शि\ तथा िववेक का शासन है। यह परभाषा ‘िसaस बaु स कसिनyग िद रपि@लक के लैिटन अनवु ाद म8 िजसे ‘िड
रपि@लक िलीिसaस’ या के वल ‘िड रपि@लक’ के नाम से ही जानी जाती है म8 दी गयी है।
उपरो\ परभाषा से थमतया जो दिश5त होता है वह यह है िक बोदाँ रा1य को परवार/ तथा उनक सामाय
सHपि& का समदु ाय बतलाता है, Oयि\य/ का नह9। Oयि\ का सHबध रा1य से परवार तथा मजदरू संघ सरीखे
अय समहू / क सद यता ^ारा है। बोदाँ के राजनीितक दश5न म8 Oयि\ का Oयि\ के नाते अिधक मह+व नह9 है।
दसू री बात यह है िक य0िप अर तू का अनक
ु रण करते हQए बोदाँ रा1य को परवार/ का समदु ाय बतलाता है। िकतु
उसे वह परवार का वाभािवक िवकास तथा मन;ु य क वाभािवक सामािजकता क वाभािवक अिभOयि\ नह9
मानता जैसा िक महान यनू ानी दाश5िनक मानता था, उसके अनसु ार रा1य शि\ क उपज है। दसू रे श@दो म8 यह
कहा जा सकता है िक जो सZू Oयि\य/ को परवार, Oयापार संघ अथवा धािम5क संघ जैसे समदु ाय/ म8 बाँधता है
वह उससे कह9 िभन है जो िक Oयि\य/ को रा1य के सद य/ के .प म8 एकब( करता तहै। कुटुHब इ+यािद
समदु ाय/ म8 इस सHबध का आधार र\, िमZता अथवा पार परक समझौता हो सकता है िकतु रा1य म8 यह
बधन शि\ का है।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
ऐसा लगता है िक बोदाँ का यह मानना था िक वह एक परवार िजससे मानव जाित का ारHभ हQआ आगे चलकर
ाकृ ितक कारण/ से कई परवार/ म8 िवभ\ हो गया। समिु चत थान/ पर उह/ने अपने घर बसा िलये। सामाय
लाभ और िहत के िलए एक दसू रे से िमलने क वृि& मन;ु य म8 वाभािवक होती है, इसी वृि& के कारण बहQत से
परवार एक ऐसे थान पर बस गये जहाँ उह/ने जल, र:ा इ+यािद के =ि>कोण से दसू र/ क अपे:ा अiछा समझा।
ऐसे अiछे थान/ क संrया सीिमत थी। इसिलए परवार उन पर अिधकार जमाने के िलए आपस म8 लड़ने लगे।
उस संघष5 म8 सबल क िवजय हQई, िनब5ल परा त हो गये। िवजेताओ ं ने परािजत/ पर अपना थायी भ+ु व थािपत
करना चाहा और उस िVया म8 वे वयं उन सरदार/ क अधीनता म8 आ गये िजह/ने िक लड़ाई म8 उनका नेत+ृ व
िकया। इस कार रा1य का जम हQआ। मानव इितहास म8 इस बात का यथे> माण है िक शि\ को रा1य के जम
का मrु य आधार समझने म8 स+य का काफ अश ं है। रा1य के िवकास म8 शि\ चाहे एकमाZ या मrु य साधन न रही
हो, िकतु एक मह+वपणू 5 साधन वह अवय रही है। सामािजक शि\य/ का बोदाँ एक तीsण िवƒे षणकता5 था।
बोदाँ ^ारा क गई रा1य क परभाषा म8 तीसरी बात 3यान देने यो}य यह है िक रा1य पर सवmiच शि\ का शासन
होता है। सवmiच शि\ रा1य का सार है, यह रा1य को अय समदु ाय/ से अलग करती है। इसे खो देने पर रा1य का
अि त+व ही नह9 रह सकता। रा1य क इस सवmiच शि\ को बोदाँ सH भतु ा कह कर पक ु ारता है। सH भतु ा का
िस(ात राजनीितक दश5न को बोदाँ क सबसे बड़ी देन समझी जाती है। उसके मत का सार है िक काननू / को बनाने
तथा उह8 लागू करने क रा1य क शि\ ही सं भतु ा है।
चौथी बात यह है िक बोदाँ के अनसु ार रा1य के िनदnशन म8 िववेक का भी बड़ा हाथ होता है। यह एक मह+वपणू 5
िवचार है। उसका अथ5 यह है िक रा1य म8 सवmiच शासन अिधकार को जो चीज यायसंगत बनाती है वह है उसका
िववेकसHमत होना। रा1य और लटु ेर/ के एक िगरोह म8 भेद करने वाली इसके अितर\ अय कोई चीज नह9 है।
िववेक के काननू से बोदाँ का अथ5 कदािचत कृ ित के काननू से था। इसका अथ5 यह है िक य0िप वह रा1य का
मलू शि\ म8 देखता था िकतु उसके अनसु ार शि\ वयं अपना औिच+य नह9 है। रा1य बन जाने के पFात् शि\
उसका आधारभतू गणु नह9 रह जाता। अपने आपको यायसगं त बनाने के िलए सH भु को िववेक तथा नैितक
िनयZण के अधीन रहना चािहए। इस कार बोदाँ ने उस र\ थान को भरने का य+न िकया जो िक दैिवक
अिधकार िस(ात के ितर कार से उ+पन हो गया था।
10.6 जीन बोदाँ का नागरकता सHबधी िवचार-
बोदाँ क नागरकता सHबधी िस(ात/ म8 प> आधिु नक त+व िमलते हL। आरHभ म8 ही हम8 बोदाँ क णाली म8
एक ऐसी किठनाई िमलती है जो अयZ नह9 पाई जाती। उसके िलये रा1य का ारिHभक त+व परवार है, Oयि\
नह9। Oयि\ रा1य म8 अपनी भिू मका आधारभतू सामािजक समदु ाय/ क अपनी सद यता ^ारा अदा करता है। इस
किठनाई को बोदाँ यह कहकर दरू करता है िक परवार का धान नागरक का परधान के वल तभी धारण करता है
जबिक वह घरे लू कत5Oय/ को छोड़ता है और साव5जिनक कायk को करने के िलये अय परवार/ के धान/ से
िमलने के िलए घर के बाहर िनकलता है जो चीज उसे नागरक बनाती है वह उन अिधकार/ तथा िवशेषािधकार/
का उपभोग नह9 है जो िक ाचीन यनू ान तथा रोम म8 नागरकता क धारणा से सामायतया सHब( थे और जो
आज भी इस श@द के अथ5 का एक भाग है, बिbक वह है उसका रा1य क सH भतु ा क अधीनता वीकार करना।
उसके अनसु ार नागरक वह वतZ Oयि\ है जो िक रा1य क भश ु ि\ के अधीन है। नागरकता क इस चिलत
परभाषा म8 िक ‘नागरकता रा1य के ित शि\ है’ बोदाँ के िस(ात का भाव ितिबिHबत है।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
10.7 सं भतु ा (Sovereignty) सHबधी िवचार -
स ं भतु ा का िस(ात जो िक उसके राजनीितक दश5न का सबसे अिधक आधारभतू अगं तथा आधिु नक
राजनीितक िवचार को उसक मौिलक देन है। उससे पवू 5 िकसी भी राजनीितक िवचारक ने सH भतु ा क धारणा का
ितपादन नह9 िकया। अर तु ने िजस सवmiच शि\ का उbलेख िकया है, उसे बोदाँ ^ारा ितपािदत सH भतु ा के
िवचार के अन. ु प समझा जा सकता है, वह काननू ^ारा परिमत थी िजसका Rोत िववेक है। म3य यगु क
परि थितयाँ इस धारणा के िवकास के िलये अनक ु ू ल न थ9। सuाट क शि\ एक ओर तो सामत सरदार/ के
अिधकार/ ^ारा और दसू री ओर पोप के WेJतर शि\ के दाव/ ^ारा सीिमत थी। 16व9 शता@दी म8 ि थित सव5था
िभन हो गई थी। इ}ं लैdड तथा ˆासं सरीखे रा;<-रा1य/ के राजाओ ं ने अभतू पवू 5 एकब(ता तथा के pीकरण ाX
कर िलया और अपने आपको पोप के िनयZण से म\ ु कर िलया था। िनःसदेह यह स+य है िक पिवZ रोमन सuाट
का अि त+व उस समय था और वह साuा1य के ऊपर नाममाZ का अिधकार जताता था। परतु बोदाँ के िलये
उसका कोई मह+व न था उसके िलये ˆांस का राजा हेनरी तृतीय ही सब कुछ था। अपने सH भतु ा के िस(ात का
ितपादन करके बोदाँ उस वृि& का सै(ाितक औिच+य िस( कर रहा था जो िक पिFमी यरू ोप म8 सव5Z धान हो
उठी थी। ˆांस, िटेन तथा पेन के राजा बोदाँ के मख ु से यह सनु कर बहQत सन हQए ह/गे िक ‘सम त Oयि\य/
तथा सम त िवषय/’ पर उनका िनयZण करने का य+न सH भतु ा के उन अदेय अिधकार/ का ही योग था जो
िक +येक रा1य म8 वाभािवक .प से शािमल रहते हL।
बोदाँ के अनसु ार सH भतु ा एक रा1य म8 शासन करने क िनरपे: तथा थायी शि\ है। वह नागरक तथा जाजन
के ऊपर वह सवmiच शि\ है िजसके ऊपर काननू क कोई सीमाय8 नह9 है। इन श@द/ म8 बोदाँ का aया ता+पय5 था,
वह समझना आवयक है। यह कहकर िक रा1य अपने :ेZ के अतग5त रहने वाले सम त नागरक/ तथा जाजन
पर िनरपे: तथा अितम शि\ रखता है। बोदाँ दो उेय/ क िसि( करना चाहता था। थम, वह पोप तथा पिवZ
रोमन सuाट सरीखी िकसी भी वा स&ा के रा1य के लौिकक िवषय/ के ऊपर अिधकार करने के दावे को िनिFत
.प से ठुकराता था। यह सH भतु ा का वा व.प था। दसू रे , उसने सामत सरदार/, नगर/ तथा िनगम/ के िकसी
भी अदेय अिधकार को मानने से इकार कर िदया। उसके अनसु ार वे सब साधारण नागरक/ के स=श राजा क
शि\ के अधीन थे। उह8 ऐसे अिधकार देना, िजनसे राजा भी उह8 विं चत न कर सके , रा1य क सH भतु ा क
िनरपे:ता को कम करना था। इसे हम सH भतु ा का आतरक व.प कह सकते हL।
सH भतु ा को थायी बताकर बोदाँ यह िस( करना चाहता था िक उसका योग समय-िवशेष से सीिमत नह9 है।
उसके अनसु ार वह राजा जो िक अपने जीवन-पय5त िनरंकुश शि\य/ का उपभोग करता है, बोदाँ के अनसु ार
भसु &ाधारी है, उसके िवषय म8 यह कहा जा सकता है िक वह ई]र को छोड़कर िकसी को भी अपने से बड़ा नह9
समझता।
अितम बात यह है िक बोदाँ के अनसु ार ‘सH भतु ा पर काननू क कोई सीमाय8 नह9 होती। इसका अथ5 यह है िक
वह Oयि\ अथवा Oयि\-समहू जो िक रा1य म8 सवmiच शि\ का उपभोग करता है वयं उन काननू / से बािधत
नह9 होता िजह8 वह जनता के िलये बनाता है, वह काननू के ऊपर होता है। यिद शासक काननू / से बािधत है तो
िफर वह िनरंकुश और सवmiच कहाँ रहा? सचमचु िनरंकुश तथा सवmiच होने के िलये उसे काननू / के ऊपर होना
चािहये। परतु बोदाँ एक :ण के िलये भी यह नह9 सोचता िक राजा क सH भतु ा सम त काननू / से ऊपर है। वह
के वल अपने बनाये हQए काननू / के ऊपर है, अय कार के काननू / के नह9। ‘सम त शासक दैिवक काननू ,

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
ाकृ ितक काननू तथा इनसे िनःसृत रा;</ के सामाय काननू से बािधत है। उसके यह मानने से िक सH भतु ा दैिवक
तथा ाकृ ितक काननू ^ारा सीिमत है बोदाँ के िस(ात म8 एक ऐसा त+व आ जाता है जो उसे हॉ@स से एकदम
िभन कर देता है, िजसका िस(ात अय बात/ म8 उसके बहQत िनकट है। इससे कट है िक वह अब भी ‘उस महान
म3यकालीन परHपरा के िनकट था जो िक रा1य तथा उसके काननू / को यनू ािधक उस पणू 5 याय, शभु , तथा स+य
के ितिबHब के .प म8 देखती थी जो िक भु क नैितक Oयव था म8 अिभOय\ होते हL।
उपरो\ जो भी कहा गया है उससे हम सH भतु ा क एक दसू री िवशेषता पर पहQचँ ते हL। वह है नागरक/ क
Oयि\गत .प से तथा सामिू हक .प से काननू बनाने क शि\ िजसके िलये िकसी WेJतर, हीनतर तथा समान
Wेणी वाले क अनमु ित क आवयकता नह9 है। सH भतु ा ही काननू / का एकमाZ Rोत है िजसके ^ारा समाज के
Oयापार, शािसत तथा िविनयिमत होते हL। बोदाँ के िस(ात का यह एक आवक त+व है िक +येक रा1य म8 एक
ऐसा Oयि\ अथवा Oयि\ समहू होना चािहये जो िक उसक िवधायनी िVयाओ ं के ऊपर पणू 5 अिधकार रखता हो।
अपने िविध-िनमा5ण के अिधकार के योग करने म8 भसु &ाधारी शासक को ससं द सरीखे हीनतर अिभकरण के
परामश5 को मानना आवयक नह9 है, उसके ऊपर कोई ऐसी उiचतर शि\ नह9 है िजसक अनमु ित उसके िलये
आवयक हो या जो उसके बनाये हQये काननू / को र कर सके । यिद हम यह जानना चाहते हL िक अमक ु रा1य म8
सH भतु ा का िनमा5ण कहाँ है तो बोदाँ के अनसु ार हम8 यह पता लगाना चािहये िक उसम8 िविध-िनमा5ण करने क
अितम शि\ कहाँ है।
बोदाँ के सH भतु ा के िस(ात के िवषय म8 ात धारणा से बचने के िलये हम8 यह 3यान रखना चािहये िक बोदाँ के
अनसु ार सवmiच शि\ का योग िववेक के अनसु ार होना चािहए। बोदाँ- लुटेर/ के एक िगरोह क िनरंकुशता तथा
सH भतु ा के बीच बड़ा भेद करता है। अपने शासन-काय5 के िलये शासक ई]र के ित उ&रदायी है, िकतु िकसी
मानवी शि\ के ित नह9। ाकृ ितक या दैिवक उiचतर काननू का हॉ@स क कृ ितय/ म8 कोई थान नह9 है। रा1य
का धान होने के नाते भ&ु ाधारी म8 अय गणु होते हL, जैसे िक य( ु क घोषणा करने, शाित थािपत करने,
याय-र:क/ को िनय\ ु करने, मpु ा बनाने, अपरािधय/ को :मा दान करने तथा कर लगाने के अिधकार।
इस कार बोदाँ क सH भतु ा कोई अमतू 5 अथवा अगHय चीज नह9 रह जाती। यह एक साकार चीज है िजसक
परभाषा क जा सकती है और िजसे Oयि\य/ को दान िकया जा सकता है। यह रा1य को समाज को शािसत
करने वाले काननू / को बनाने क वैधािनक :मता है जो +येक रा1य म8 रहती है। यह सHपणू 5 समाज म8 सामिू हक
.प से वत5मान रह सकती है और उसी के ^ारा इसका योग िकया जा सकता है। ऐसी ि थित म8 रा1य पणू . 5 पेण
लोकतZी होगा अथवा इसका वािम+व एक Oयि\ म8 हो सकता है और वह वंशानगु त .पसे उसके
उ&रािधकारय/ को ाX हो सकती है। ऐसी दशा म8 रा1य वंशानगु त राजतZ हो जायेगा। िकतु रा1य चाहे
राजतZी हो, कुलीनतZ हो या लोकतZी हो, उसम8 भसु &ा ज.र होगी जो सम त काननू / का Rोत है और जो
वयं अपने बनाये हQये काननू / से बा3य नह9 है। वह अपनी इiछानसु ार उन काननू ो को बदल सकती है, उह8 र कर
सकती है। यह सवmiच स&ा अिवभा1य और अदेय है। हिथयाने (Prescription) का िनयम भी उस पर लागू नह9
होता। समाज क इiछा क सवmiच अिभOयि\ होने के नाते यह अिवभा1य है, एक रा1य म8 दो या अिधक
भसु &ाधरी नह9 हो सकते। यह अदेय है aय/िक इसे रा1य से अलग करना रा1य को न> कर देना है। अ योग ^ारा
यह भी न> नह9 होती।

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यह िनरपे: तथा सवmiच शि\ रा1य म8 वभावतः पाई जाती है। यह समाज क अपने िहत/ के िलए अपने सद य/
के ऊपर अपनी इiछा का योग करने क शि\ है। यह नह9 कहा जा सकता िक इसे ई]र ने अपनी इiछा क पिू त5
के िलये मन;ु य को िदया है। सारांश यह है िक सH भतु ा मल
ू .प से मानव इiछा क अिभOयंजना है। समाज के
बाहर इसका कोई Rोत नह9 है।

10.7.1 स;"भतु ा क$ सीमा स;बधी िवचार-


1. ई]रीय काननू क सवmiचता-
बोदाँ इस बात के ऊपर बहQत जोर देता है िक सH भतु ा िनरंकुश तथा अपरिमत है िफर भी वह मानता है िक उसक
कुछ सीमाय8 भी है। बोदाँ वीकार करता है िक सवmपर काननू ऐसा है िजसके अधीन सम त शासक होते हL। वह है
ई]रीय काननू ाकृ ितक काननू को इसी का एक अगं कहा जा सकता है। यह काननू सदाचार के कुछ अपरवत5नीय
मापदdड िनधा5रत करता है, िजनके अनसु ार शासक को सदैव चलना चािहए। इह9 मापदdड/ का अनसु रण करना
एक राजा क शि\ को वैध बनाता है। ई]रीय काननू , ाकृ ितक काननू तथा अतरा5;<ीय काननू ^ारा लगाई गई
सH भतु ा के ऊपर सीमाओ ं का यही सiच अथ5 है। िकतु इस कार के काननू क Oयाrया करने का अिधकार
वयं शासक को है, उसे शासक के ऊपर लागू करने के समिु चत साधन नागरक/ के पास नह9 है। इसिलये ऐसे
काननू ^ारा लगाये गये ितबध/ का कोई वैधािनक या राजनीितक मह•व नह9 है। वे नैितक है और इसीिलये
वेiछापणू 5 लगाए हQए हL। वेiछापणू 5 लगाये हQये ितबध/ को पारभािषक .प से ितबध नह9 कहा जा सकता।
इसिलये यह वीकार कर लेने से िक सH भतु ा ई]रीय काननू या ाकृ ितक काननू के अधीन है उसके िनरंकुश तथा
अपरिमत होने पर कोई भाव नह9 पड़ता जो िक बोदाँ के िवचार म8 उसका सबसे मख ु त+व है।
िकतु यथाथ5 जगत म8 अिधकतर शासक ऐसे नह9 होते जैसे िक होने चािहए। उनके बनाये हQए काननू सदैव उस
उiचतर ई]रीय काननू के अनक ु ू ल नह9 होते जो िक िव] म8 +येक चीज के ऊपर िनयZण रखता है और जो
मन;ु य को शभु ाशभु का #ान दान करता है। तब ऐसी ि थित म8 जबिक शासक ^ारा बनाये हQए काननू और
ाकृ ितक काननू म8 सघं ष5 हो तो aया होगा? aया यायर:क को सH भु ^ारा बनाये गये काननू को लागू करने से
इकार कर देना चािहए? aया नागरक/ को उसक अव#ा करनी चािहए। बोदाँ ने इन B/ का कोई +य: उ&र
नह9 िदया, उसने ऐसी ि थितय/ को के वल लघ&ु म सीमाओ ं के अदर बद कर िदया है िकतु ऐसा करने से
िवडHबना तो दरू नह9 हो जाती, वह तो बनी ही रहती है। ‘‘काननू सH भु क इiछा है और साथ ही साथ शा]त
याय क अिभOयंजना भी, तथािपत दोन/ म8 संघष5 हो सकता है।
2.सांिवधािनक काननू क धानता
बोदाँ का कहना है िक राजा को रा1य के सांिवधािनक काननू के िवपरीत आचरण नह9 करना चािहए। इस िस(ात
के अनसु ार ˆांस के राजा िसंहासन के उ&रािधकार के काननू को नह9 बदल सकते थे जो िक सैिलक काननू
(Salic Law) के अधीन था। वह काननू यह था िक 1येJतम पZु को अपने िपता का िसंहासन उ&रािधकार म8
िमलना चािहए। पिु Zयां उ&रािधकार से सव5था वंिचत थ9। राजस&ा के ऊपर इस ितबध के औिच+य को िस(
करना पहले ितबध से कह9 अिधक किठन है। बोदाँ ने इस ितबध को इसिलये वीकार कर िलया aय/िक उस
यगु म8 चिलत काननू ी मत यह था िक राजस&ा के योग से सHबिधत कुछ ऐसे काननू हL िजह8 राजस&ाधारी नह9
बदल सकता। वभाव से तथा काननू ी िश:ा-दी:ा के कारण वह संिवधानवादी था, इसिलए वह रा1य क ाचीन

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स ं थाओ ं को बनाये रखना चाहता था। परतु यिद शासक सचमचु सवmiच है, यिद राजनीितक समाज का शासक
तथा जा के सHबध के अितर\ कोई अि त+व नह9 हो सकता तो समझ म8 नह9 आता िक शासक को उन
काननू / को बदलने का अिधकार aय/ नह9 होना चािहए िजनके बनाने म8 उसका कोई हाथ न था। आगे चलकर
हॉ@स ने ऐसा तक5 िकया है इसके िवपरीत, यिद रा1य एक ऐसा राजनीितक समाज है िजसका अपना संिवधान है
और िजसके अपने काननू हL िजह8 शासक नह9 बदल सकता तो राजस&ा तथा राजा को हम8 एक.प नह9 समझना
चािहए जैसा िक बोदाँ समझता था। इस कार सांिवधािनक काननू / के इस बा3यकारी वभाव को वीकार करने
के बोदाँ के िस(ात म8 एक दसू री किठनाई उ+पन हो गई।
3.िनजी सHपि& क अपहरणीयता-
सH भतु ा के ऊपर तीसरा ितबध है िनजी सHपि& क अपहरणीयता। बोदाँ िनजी सHपि& को पिवZ समझता था,
उसका िव]ास था िक शासक सHपि& को उसके वामी क इiछा के िबना नह9 छू सकता। ता+पय5 यह है िक
साधारण समय म8 िबना सहमित के राजा को जा के ऊपर +य: कर लगाने का कोई अिधकार नह9 है। एक ओर
तो यह मानना िक राजा को मनमाने काननू बनाने का अिधकार है और दसू री ओर यह कहना िक उसक कर लगाने
क शि\ बहQत सीिमत है, ये दोन/ धारणाय8 एक दसू रे के साथ संगितब( नह9 हो सकती। यह कहना िक शासक क
कर लगाने क शि\ सीिमत है, वयं अपना ही िवरोध करना है। इस सHबध म8 हम8 बोदाँ ^ारा क गई रा1य क
परभाषा को याद रखना चािहये िक रा1य परवार/ तथा उनक सामाय सHपि& का एक समदु ाय है। िजन इकाइय/
से िमलकर रा1य बना है वे अपनी सHपि& सिहत परवार है। इस कार बोदाँ क णाली म8 सHपि& के अिधकार
एक आधारभतू मह+व रखते हL। यही कारण है िक बोदाँ सHपि& को सH भतु ा के ऊपर एक वाभािवक ितबध
समझता है।
यह वीकार करने से िनजी सHपि& का अिधकार आधिु नक काननू तथा ाकृ ितक काननू शासक क िनरपे: शि\
को सीिमत करते हL। एक आधारभतू B खड़ा होता है, यिद शासक इन सीमाओ ं का उbलंघन करे तो aया
नागरक/ को उसक अव#ा करने का अिधकार है? उस यगु के इस मख ु B का बोदाँ ने कोई सीधा उ&र नह9
िदया। ऐसा तीत होता है िक वह िवpोह को उिचत नह9 समझता था। शायद उसका िवचार यह था िक जैसे जैसे
सामािजक तथा राजनीितक सं थाओ ं का िवकास होता जायेगा, वैसे-वैसे वे ाकृ ितक काननू के अिधकािधक
अनकु ू ल होते जाय8गे जो िक उनके अनसु ार कोई जिटल और कठोर िविध नह9 थी बिbक अ+यत लचीली थी,
नागरक/ का िवpोह करना आवयक नह9।
सH भतु ा के िस(ात का ितपादन करने वाला और उसका िवƒेषण करने वाला बोदाँ सव5 थम राजनीितक
दाश5िनक था। इसिलए यिद उसक इस आधारभतू धारणा क िववेचना म8 कुछ असगं ितयाँ आ गई हL तो इसम8
आFय5 क कोई बात नह9। उसका यह आCह ठीक ही है िक सH भतु ा को िनरंकुश तथा अपरिमत होना चािहए,
परतु वह यह भी अनभु व करता है िक यिद रा1य के उेय को समिु चत .प से परू ा करना है तो राजस&ा के योग
करने वाले Oयि\ के ऊपर कुछ ितबध लगने चािहये। दसू रे श@द/ म8, उसके िवचार क वृि& यह थी िक रा1य
क िनरंकुश राजस&ा तथा रा1य के धान क सीिमत शि\य/ म8 और भसु &ाधारी Vाउन (Crown) .पी सं था
म8 तथा उसे वहन करने वाले सीिमत शि\य/ वाले राजा म8 भेद है। वह इस मह+वपणू 5 िवभेद पर इसिलए नह9 पहQचँ
सका aय/िक रा1य क भसु &ा तथा शासन क भसु &ा को एक.प मान लेने म8 उसने बहQत जbदबाजी से काम
िलया।

उराखंड म
ु िविवालय 149
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
10.8 रा1य एवं सरकार सHबधी िवचार
रा1य तथा सरकार म8 बोदाँ िवभेद करता तहै। उसका िवचार था िक इस िवभेद के न करने के कारण ही अर तु तथा
अय िवचारक/ के िस(ात/ म8 कुछ दोष आ गये हL। उसने कहा िक रा1य तथा सरकार दोन/ के कई .प हL। रा1य
का .प सH भतु ा के िनवास थान से िनधा5रत होता है। सरकार का .प इस बात के ऊपर िनभ5र करता है िक
सH भतु ा का योग िकस कार िकया जाता है। यिद िकसी रा1य म8 सH भतु ा एक Oयि\ म8 है तो वह राजतZ है
यिद वह कुछ Oयि\य/ म8 है तो वह कुलीनतZ एक Oयि\ म8 है तो वह सम त जनसाधारण म8 है तो वह लोकतZ
है। सH भतु ा को रा1य के िविभन त+व/ म8 िवभािजत नह9 िकया जा सकता, इसिलये बोदाँ िमिWत रा1य क
धारणा को वीकार नह9 करता। उसका यह कथन बहQत मह+वपणू 5 है िक सरकार का .प रा1य के .प के ऊपर
िनभ5र नह9 करता। एक राजतZी रा1य म8 एक कुलीनतZी अथवा लोकतZी सरकार का होना िनतात सHभव है।
कुलीनतZी सरकार वह होती है िजसके अतग5त रा1य के सHमान तथा पद एक छोटे से वग5 के सद य/ का ही
दान िकये जाते हL और सव5साधारण को उनम8 विं चत रखा जाता है। जनतZी सरकार वह होती है िजसके अतग5त
रा1य के सHमान तथा पद िबना वग5गत भेदभाव के गणु के आधार पर दान िकये जाते हL। इस कसौटी के अनसु ार
िटेन क सरकार गत शता@दी के म3य तक कुलीनतZी थी और आज वह जनतZी है। ससं द ^ारा भ+ु व ाX
करने से पवू 5 इ}ं लैdड एक राजतZी रा1य था, आज वह जनतZी है।
रा1य के तीन .प/ राजतZ, कुलीनतZ तथा जनतZ म8 से बोदाँ राजतZ को, िवशेष .प से ˆांसीसी ढरn के
राजतZ को सव5WेJ समझता था। aय/िक उसके अनसु ार रा1य क सवmiच स&ा को कुछ नागरक/ अथवा सम त
नागरक/ को सŒप देने से अराजकता आ जाने तथा जा के न> हो जाने का भय है। राजतZ के इस मbू यांकन को
समझने के िलये हम8 यह मरण रखना चािहये िक बोदाँ ने यह 16व9 शता@दी के ˆांस क परि थितय/ म8 अपने
राजनीितक िवचार ततु िकये थे।

10.9 सIहAणुता स4बधी वचार


‘सिह;णतु ा’ ; वह िवचार है िजसके िलए बोदाँ सिु वrयात है। उसने धािम5क सिह;णतु ा के िस(ात का चार उस
समय िकया जबिक धािम5क दमन अपनी चरम सीमा पर था और कै थािलक/ तथा ोटे टेdट/ म8 िनरतर संघष5 चल
रहा था। परतु सिह;णतु ा को उसने एक नीित के .प म8 अपनाया, िस(ात के .प म8 नह9। एक ऐसे रा1य म8, जहाँ
क कै थािलक/ तथा ोटे टेdट/ क बड़ी-बड़ी संrयाय8 ह/, सरकार क ओर से सHपणू 5 समाज पर एक ही धम5 को
लादने का परणाम घातक होगा, उसम8 गृह-य( ु िछड़ेगा और रा1य दबु 5ल हो जायेगा। इस संकट से बचने के िलये
यही उिचत है िक रा1य धािम5क िव]ास क िविभनताओ ं को सहन कर8 । परतु बोदाँ रा1य म8 नागरक/ को सहन
करने के िलये तैयार नह9, aय/िक उसके मतानसु ार वे अiछे नागरक बन ही नह9 सकते। वह यह भी चाहता है िक
रा1य नये-नये सH दाय/ को न पनपने द8 aय/िक उनसे सामािजक अOयव था फै ल सकती है। इस कार बोदाँ क
सिह;णतु ा पर बहQत सी सीमाय8 थ9। जहाँ धािम5क दमन म8 सफलता िमलने क बड़ी आशा है, वहाँ वह उसक
अनमु ित दे देता है।

उराखंड म
ु िविवालय 150
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

10.10 Dाित स4बधी वचार


अपनी कृ ितय/ म8 Vाित के िवषय म8 भी बोदाँ िवचार Oय\ करते हL जो िक अर तु के भाव का सक ं े त करता है।
िकतु वह उससे काफ आगे जाता है। बोदाँ का आरHभ िबदु यह िव]ास है िक मानव ािणय/ क भाँित रा1य/ म8
परवत5न होते हL। वे बढ़ते हL, परपaव होते हL, :ीण होते हL तथा न> हो जाते हL। ये परवत5न अपरहाय5 है। इसिलये
एक बिु (मान शासक को उह8 के वल िनयिमत करने का य+न करना चािहये, उह8 रोकने का नह9। ये परवत5न
धीरे -धीरे तथा शाितपवू 5क हो सकते हL अथवा अक मात् और िहसं ा+मक हो सकते हL। उनका भाव काननू , धम5,
सामािजक तथा राजनीितक सं थाओ ं के ऊपर पड़ सकता है या उससे भी आगे चलकर सH भतु ा के िनवास थान
को ही बदल सकता है। बोदाँ के अनसु ार के वल उसी परवत5न को Vाित कहा जा सकता है िजसके ^ारा रा1य का
व.प ही बदल जाता है जैसे िक राजतZ का कुलीनतZ अथवा लोकतZ हो जाना या उसके िवपरीत हो जाना।
Vाितय/ के वह तीन कार के कारण बतलाता है- दैिवक, ाकृ ितक तथा मानवीय। दैिवक कारण सदा अ=य
तथा अ#ात रहते हL। ाकृ ितक कारण/ का िजनम8 िक न:Z/ का भाव भी सिHमिलत है हम पता लगा सकते हL।
िकतु मानवीय कारण/ के िवƒे षण म8 ही बोदाँ ने राजनीितक चातुय5 का परचय िदया है। इनक रोकथाम के संग
म8 उसने शासन क +येक शाखा पर िवचार िकया है। उसने इस बात के बड़े मbू यवान सझु ाव िदये हL िक नागरकां
के साथ सHबध म8, अगं र:क/ क िनयिु \ म8, धािम5क मतभेद के िवषय म8 तथा अय बहQत सी बात/ म8 शासक को
कै सा आचरण करना चािहए। वाद-िववाद क असीम वतZता तथा शh रखने का अिधकार उसे पसद नह9।
इसी संग म8 वह भौितक परवेश तथा रा;</ के पार परक सHबध तथा उपरो\ के जनता क सामािजक तथा
राजनीितक सं थाओ ं के ऊपर भाव के अपने िस(ात का ितपादन करता है। Vाितय/ के कारण/ के इस संि:X
िववरण को समाX करने से पवू 5 यह बताना आवयक है िक बोदाँ कोई समतावादी नह9 था, तथािपत धनसHबधी
गहरी िवषमताओ ं को वह रा1य के अदर िवpोह का एक मख ु कारण समझता था। बोदाँ ने यह भी कहा िक
शासक को काननू म8 बहQत जbदी-जbदी और बड़े-बड़े परवत5न नह9 करने चािहये aय/िक काननू म8 अ+यिधक हेर-
फे र करने से Vाित हो सकती है। बोदाँ के Vाित सHबधी िवचार/ पर िटtपणी करते हQए मैaसी ने कहा िक वह
वा तव म8 अनेक आधिु नक िवचारक/ से कह9 अिधक आधिु नक था।

10.11 राजा तथा जा के बीच संवदा स4बधी वचार


इकाई के अितम पड़ाव पर बोदाँ के एक अय मह+वपणू 5 िवचार का उbलेख कर8 ग8। वह िवषय है: जा को िदये हQए
वचन तथा सिधय/ का शासक को कहाँ तक पालन करना चािहए? इस िवषय का मह+व इसिलए है aय/िक
राजनीित तथा नीित के पार परक सHबध पर इसका भाव पड़ता है।
बोदाँ का कहना है िक शासक अपनी ली हQई शपथ तथा िकये गये वाद/ से बा3य नह9 है aय/िक राजस&ा को शपथ
तथा वचन से परिमत नह9 िकया जा सकता। परतु संिवदा (@वदजतंबज) क बात दसू री है। संिवदा दो प:/ के
म3य एक समझौता है और वह दोन/ के िलये बा3यकारी है। ाकृ ितक काननू का यह एक आदेश है िक सिं वदा का
पालन होना चािहए। इसिलये शासक को संिवदा का पालन करना चािहए। काननू राजस&ा के :ेZ के अतग5त
आता है िकतु संिवदा नह9। इसी कार वह मैिकयावेली क इस धारणा का िवरोध करता है िक शासक को दसू रे
शासक/ के साथ क हQई संिधय/ के पालन करने क आवयकता नह9, यिद वे उसके िहत/ के िव.( ह/।
अतरा5;<ीय Oयवहार म8 शासक/ के आचरण को संयत रखने क आवयकता को वह वीकार करता है। इस कार

उराखंड म
ु िविवालय 151
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
हम कह सकते हL िक यिद मैिकयावेली राजनीित को नीितशाh से अलग करने का आCह करता था तो बोदाँ उन
दोन/ को िमलाने के िलए उतना ही संकbपब( था।

10.12 बोदाँ तथा मैWकयावेल$ आधु नकता के अ*दत


ू -एक
तुलना
राजनीितक िचतन के :ेZ म8 मैिकयावेली व बोदाँ दोन/ को ही आधिु नकता के अCदतू के .प म8 वीकार िकया
जाता है िकतु बोदाँ ने मैिकयावेली के अनेक िवचार/ को िवकिसत िकया, इस कारण वह उससे अिधक आधिु नक
माना जाना चािहए।
मैिकयावेली ने म3य यगु क अनेक मायताओ ं और परHपराओ ं का खdडन िकया। उसने राजनीित को Oयवहारक
बनाने का यास िकया। आधिु नक यगु क अनेक मायताएँ व िस(ात आज भी उसक रचनाओ ं म8 =ि>गोचर
होते हL जैसे आधिु नक अ3ययन प(ित का अनसु रण करना, राजनीित को नैितकता से अलग करना आिद। इसी
कारण डिनगं का यह कथन स+य तीत होता है िक ‘‘यह कहना िक वह आधिु नक यगु का ारHभकता5 है उसी
कार ठीक है जैसे यह कहना िक वह म3ययगु को समाX करने वाला है। परतु यह भी ठीक ही है िक मैिकयावेली
के यगु म8 बीज-.प म8 जो िवचार उ+पन हQए उनका िवकास बोदाँ के ही यगु म8 हो पाया। आधिु नकता के सHबध म8
दोन/ क ि थित िनHन आधार पर प> हो जाती हैः-
1.अ3ययन प(ित- मैिकयावेली ने धम5 िनरपे: =ि>कोण अपनाया और म3यकालीन इितहास के मा3यम से अपने
परणाम/ को प>ु करने का यास िकया। मगर उसने इितहास का िन;प: आलोचना+मक अ3ययन नह9 िकया
बिbक अपनी धारणाओ ं को प>ु करने के िलए इितहास से िविभन माण खोजने का यास िकया: मैिकयावेली
^ारा रा1य के सHबध म8 अनेक ऐसे िनयम/ का ितपादन िकया गया जो शासन के संचालन से ही सHबिधत थे, वे
रा1य के मौिलक िस(ात/ क Wेणी म8 नह9 आते। बोदाँ ने इस ि थित म8 सधु ार िकया। उसने ऐितहािसक प(ित को
Oयापक .प म8 अपनाया। साथ ही साथ उसने िविध-शाh म8 तल ु ना+मक ऐितहािसक अ3ययन क आधिु नक प(ित
का भी Wी गणेश िकया। परणाम व.प उसक प(ित अिधक वै#ािनक बन गयी।
2. भसु &ा- मैिकयावेली का रा1य तो भतु ा सHपन है िक वह भतु ा का प> िववेचन नह9 करता। िकतु बोदाँ
ऐसा थम िवचारक था िजसने रा1य का सै(ाितक िववेचन करते हQए भसु &ा क धारणा पर िव तृत .प से
काश डाला। भसु &ा क परभाषा ^ारा उसने आधिु नक राजनीितक िचतन को एक मौिलक धारणा दान क।
जाज5 के टलीन का मत है िक आधिु नक यगु म8 ‘सH भतु ा’ (Sovereignty) का योग सबसे पहले बोदाँ ने अपने
Cथ रपि@लक (Republic) म8 िकया। भतु ा-सHपन शासक के बारे म8 बतलाते हQए उसने भसु &ा के त+व/ का
भी वण5न िकया है। भसु &ा सHबधी धारणा भी बोदाँ को मैिकयावेली से अिधक आधिु नक बना देती है।
3.रा1य- मैिकयावेली ने रा1य का कोई दश5न तुत नह9 िकया, उसने रा1य के मौिलक त+व/ और िस(ात/ क
उपे:ा क। िकतु बोदाँ ने रा;<-रा1य क कbपना का एक िवकिसत िचZ ततु िकया। इस कार म3यकाल के
साव5भौम साuा1य क कbपना का अत करके रा;<ीय रा1य को राजनैितक मानिचZ पर लाने का Wेय बोदाँ को ही
है। इसके साथ ही सH भतु ा का िस(ात राजनीितक िचतन के :ेZ म8 उसक मौिलक देन है।

उराखंड म
ु िविवालय 152
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
4.नागरकता- मैिकयावेली नागरकता के सHबध म8 अपने िवचार Oय\ नह9 करता। जबिक इस आधिु नक धारणा
पर बोदाँ अपने प> िवचार Oय\ करते हQए कहता है िक नागरक वह वतZ Oयि\ है जो िक रा1य क भु शि\
के अधीन है। यह धारणा भी बोदाँ को मैिकयावेली क तुलना म8 अिधक आधिु नक बनाती है।
5.नैितकता और राजनीित- मैिकयावेली ने राजनीित का नैितकता से पृथaकरण िकया। उसने रा1य को धम5 और
नैितकता दोन/ से ही ऊपर उठाया। यह भी कहा जा सकता है िक उसने नैितकता क भावना को तो लगभग +याग
ही िदया। बोदाँ ने इस :ेZ म8 अिधक तक5 संगत माग5 अपनाया। उसने भी राजनीित को धम5 से पृथक िकया मगर धम5
और नैितकता को Oयि\य/ अथवा रा1य के िलए एक िवजातीय व तु नह9 बनने िदया। उसने रा1य को धम5 का
सरं :क भी बनाये रaखा और धािम5क सिह;णतु ा का आधिु नक िवचार भी दान िकया। इस कार बोदाँ ने
मैिकयावेली क अित और Zिु ट म8 सधु ार िकया। बोदाँ ने म3य माग5 अपनाया िजसम8 उसे यह िव]ास था िक यह
सiचाई है।
6.भौगोिलक परि थितय/ का भाव- tलेटो और अर तु ने राजनीित पर भौगोिलक परि थितय/ के भाव को
वीकार तो िकया था परतु इस पर िव तार से िवचार नह9 िकया। परतु इस सदभ5 म8 बोदाँ ने िव तार से काश
डाला। ो0 डिनगं के अनसु ार भौगोिलक ि थित के सामािजक तथा राजनीितक भाव का बोदाँ का वण5न सiचे
अथk म8 वै#ािनक है और इसम8 बोदाँ मौिलकता का दावा कर सकता है। मैिकयावेली ने इस िवषय म8 वण5न तक
नह9 िकया।
इस कार हम कह सकते हL िक बोदाँ ने मैिकयावेली के बीज .प म8 उपल@ध िवचार/ को िवकिसत िकया और
िविभन :ेZ/ म8 अपनी मौिलकता और सझू -बझू का परचय िदया। अतः कहा जा सकता है िक बोदाँ मैिकयावेली
क अपे:ा अिधक आधिु नक था। िकतु यह भी ठीक है िक बोदाँ अपने आपको मैिकयावेली के समान म3ययगु ीन
भाव से म\
ु न रख सका िजसके कारण उसके िवचार/ म8 िवरोधाभास िदखायी देता है।

अAयास B
1.बोदाँ का जम िकस देश म8 हQआ था?
a. ˆांस b. िटेन c. जम5नी d. भारत
2. बोदाँ अपने िवचार/ म8 म3यकालीन तो नह9 रहा, िकतु आिधिनक भी नह9 हो पाया। िकसका कथन है-
.a ला कb. सेबाइन c. मैकाइवर d. गान5र
3. िनHन म8 से कौन सा Cथ बोदाँ ^ारा िलिखत है-
a. िसaस िलवस5 िड-लॉ-रपि@लक b. यिू नवस5 नेचर िथये–म
c. हेtटाtलोमस5 d. उपरो\ सभी
4. िनHन म8 से बोदाँ ^ारा िलिखत Cथ कौन सा है-
A. रे सपॉस b. डेमीनोमैनी
c. उपरो\ दोन/ d. उपरो\ दोन/ नह9

उराखंड म
ु िविवालय 153
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

5. ‘सं भतु ा’ के िस(ात का जनक कौन है-


a. हॉ@स b. मैिकयावली c. बोदाँ d. लॉक

10.13 सारांश
िन;कष5ः हम कह सकते हL िक य0िप बोदाँ का दश5न भले ही थम Wेणी क कोई दाश5िनक संरचना नह9 थी िकतु
उह/ने राजनीितक िचतन के िवकास को बड़ी हद तक भािवत िकया था। बोदाँ ने मैिकयावली के अधरू े काय5 को
परू ा िकया। मैिकयावली के बीज .प म8 उपल@ध िवचार/ को िवकिसत िकया और उनके िवकास को करते समय
उसने िविभन :ेZ/ म8 अपनी मौिलकता और सझू -बझू का परचय भी िदया। अतः कहा जा सकता है िक बोदाँ
मैिकयावली क अपे:ा अिधक आधिु नक था िकतु यह भी ठीक है िक बोदाँ अपने आपको मैिकयावली के
समान म3यकालीन भाव से म\ ु न रख सका, िजसके कारण उसके िवचार/ म8 िवरोधाभास भी िदखाई देता है। इस
तरह प> होता है िक बोदाँ का सHपणू र5 राजनीितक दश5न ाकृ ित िविध के िस(ात पर आधारत था।

10.14 श!दावल$
1. सH भतु ा- सH भतु ा रा1य का िनमा5ण करने वाले त+व/ म8 सबसे अिधक मह+वपणू 5 है। वा तव म8 यही वह
कसौटी है िजसके ^ारा रा1य एवं अयाय समदु ाय/ के बीच भेद कट होता है। सH भतु ा का ता+पय5 रा1य क उस
सवmiच शि\ से है जो आदेश दे सकती है और उनका पालन करा सकती है। सH भतु ा के दो पहलू होते हL-
आतं रक और वा। आतं रक .प से रा1य सवmiच होता है और वा .प से वतZं । रा1य के अदर िनवास
करने वाले +येक Oयि\ एवं समदु ाय के िलये आवयक है िक वह रा1य के आदेश/ को िशरोधाय5 कर8 । रा1य
अपने से बाहर िकसी शि\ के आिWत नह9 होता है।
2.नागरकता- Oयि\ तथा रा1य के बीच वैिधक सHबध िजसके आधार पर Oयि\ क रा1य के ित िनJा होती है
तथा रा1य Oयि\ क र:ा करता है। इस सHबध का िनधा5रण रा;<ीय िविध के अतग5त होता है और इसे
अतरा5;<ीय िविध के अतग5त मायता ाX होती है।
3.Vाित- अCं ेजी का ‘‘रे वोbयश
ू न’’ श@द लैिटन के ‘‘रे वोलूिशयो’’ से बना है िजसका अथ5 है सवा5िधक
+याव&5न या नवीकरण। राजनीितक इितहास के :ेZ म8 ‘‘रे वोbयश ू न’’ श@द को बल योग ^ारा राजनीितक
िनण5य क ि थितय/ पर अिधकार करने के िलये और समाज क सरं चना म8 आधारभतू परवZन करने के िलये
य\
ु िकया जाता है। ‘‘िवtलव’’ और ‘‘िवpोह’’, ‘‘Vाित’’ से िमलते जल ु ते श@द हL िजनका ता+पय5 ायः
असफल Vाित से है।

10.15 अ&यास 
न' के उ तर
1. a 2. b 3. d 4. c 5. c

उराखंड म
ु िविवालय 154
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

10.16 सदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीित दश5न का इितहास-जॉज5 एच0 सेबाइन
2.पॉिलिटकल jयोरीज, एनिसएट एdड मेडीवल-डिनंग
3.मा टस5 ऑफ पॉिलिटकल थॉट- ड@bय0ू टी0 जोस
4.पाFा+य राजनीितक िवचार/ का इितहास-डा0 भदु & शमा5
5.राजनीितक िचतन क .परे खा-ओ0पी0 गाबा

10.17 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1.राजनीित-कोश- डा0 सभु ाष कयप एवं िव] काश गXु
2.पाFा+य राजनीितक िचतक- आर0एम0 भगत

10.18 नबंधा मक 

1. बोदाँ के भसु &ा िस(ात को िवकिसत किजए और उसका आलोचनातमक परी:ण किजए।
2. बोदाँ का आधिु नक राजनीितक िचतन के ित योगदान/ का उbलेख करए।
3. राजनीितक िचतन के इितहास म8 आधिु नक यगु के आिवभा5व क सचू ना मैिकयावली नह9 बिbक बोदाँ
देता है। इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हL।

उराखंड म
ु िविवालय 155
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

+% ह+-%
इकाई क$ संरचना
11.1 "तावना
11.2 उ4े5य
11.3 जीवन चLरR, कृ ितयाँ
11.4 मानव वभाव
11.5 "ाकृ ितक अवथा
11.6 "ाकृ ितक अिधकार और "ाकृ ितक िनयम
11.7 आमर+ा क$ "कृ ित
11.8 राय क$ उपि: तथा उसक$ "कृ ित
11.9 "भसु :ा
11.10 नागLरक काननू
11.11 राय और चच
11.12 Oयि]वाद
11.13 आलोचना
11.14 सारांश
11.15 शAदावली
11.16 अBयास "C9 के उ:र
11.17 सदभ Dथ सचू ी
11.18 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
11.19 िनबधं ामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 156
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

11.1 तावना
इस इकाई के पवू 5 क इकाई १० म8 हमने ब/दा के राजनीितक िवचार/ का अ3ययन िकया है िजसके आधार पर हम
यह कह सकते हL िक य0िप बोदाँ का दश5न भले ही थम Wेणी क कोई दाश5िनक संरचना नह9 थी िकतु उह/ने
राजनीितक िचतन के िवकास को बड़ी हद तक भािवत िकया था। बोदाँ ने मैिकयावली के अधरू े काय5 को परू ा
िकया। मैिकयावली के बीज .प म8 उपल@ध िवचार/ को िवकिसत िकया और उनके िवकास को करते समय उसने
िविभन :ेZ/ म8 अपनी मौिलकता और सझू -बझू का परचय भी िदया। अतः कहा जा सकता है िक बोदाँ
मैिकयावली क अपे:ा अिधक आधिु नक था िकतु यह भी ठीक है िक बोदाँ अपने आपको मैिकयावली के
समान म3यकालीन भाव से म\ ु न रख सका, िजसके कारण उसके िवचार/ म8 िवरोधाभास भी िदखाई देता है। इस
तरह प> होता है िक बोदाँ का सHपणू 5 राजनीितक दश5न ाकृ ित िविध के िस(ात पर आधारत था।
अब हम इस इकाई ११ म8 हा@स क राजनीितक िवचार/ का अ3ययन कर8 गे िजसमे हम यह देहग8 े िक िकस कार से
हा@स ने रा1य क उ+पि& का सामािजक समझौते का िस(ांत िदया है िजसम8 उसने रा1य को एक साधन के .प म8
थािपत िकया और उसे उपयोिगता के तर पर ले गया |

11.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम -
1.हा@स क राजनीितक िवचार/ के बारे म8 जान सक8 गे |
2.रा1य क उ+पि& का सामािजक समझौते का िस(ांत के बारे म8 जान सक8 गे |
3.Oयि\वादी िवचार के सHबध म8 भी जान सक8 गे |
4.हा@स के ाकृ ितक अव था और ाकृ ितक अिधकार के सHबध म8 भी जान सक8 गे |

उराखंड म
ु िविवालय 157
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

11.3 जीवन चरG, कृतयाँ


हा@स का नाम रा1य क उ+पि& के समझौतावादी िवचारक/ म8 मख ु ता से िलया जाता है। इस िस(ात का समथ5न
सव5 थम सोिफ ट िवचारक/ ने िकया था। हा@स का जम 5 अ ैल सन् 1588 को इ}लैdड के माजHबरी नगर म8
हQआ था। इ}लैdड क C( ु जिनत ि थित से डरकर वह ˆास चला गया। यही पर उसने ‘लेिवयाथन’ क रचना
क। हॉ@स के िवचार/ को वागत इ}लैdड म8 1650 म8 पनु ः राजतZ क थापना के बाद िकया जाने लगा। aय/िक
हॉ@स अपनी लेखनी म8 अराजक ि थित से िनबटने के िलए राजतंZ का समथ5न करता है। 1679 म8 उसका िनधन हो
गया।हा@स के ^ारा िनHनिलिखत प ु क/ क रचना गई है ----
Decive – 1642, De- corpora – 1642, Leviathan – 1651, Elements of Law – 1650,

11.4. मानव वभाव


- रा1य क उ+पि& के समझौतावादी िस(ात के ितवादन के Vम म8 हॉ@स सव5 थम मानव वभाव का िचZण
करता है। चिँू क गृहय(
ु जिनत और अराजक ि थित को देखकर हॉ@स ने मानव वभाव के बरु े प: का ही एहसास
िकया। इसिलए उसने मन;ु य को वभाव से असामािजक ाणी माना है। हा@स मानता है मन;ु य अपनी =ि> और
उसक ज.रत/ के अनसु ार व तओ ु ं को अiछा या बरु ा कहता है। मन;ु य का +येक Oयवहार वाथ5 से ेरत होता
है उसी से वह सचं ािलत होता है। हा@स के अनसु ार कृ ित ने सभी मन;ु य/ को शारीरक शि\य/ और बिु ( म8
समान बनाया है। इसिलए िकसी एक व तु क मांग कोई एक करता है तो उसी कार के अय भी करते है। चिँू क
व तुओ ं क संrया सीिमत है संघष5 ारHभ होता है। परणाम व.प कभी न .कने वाला संघष5 ारHभ हो जाता है।
इन झगड़/ के पीछे हॉ@स तीन मख ु कारण मानता है-
1- ित प(ा5 2- पार परक अिव वास 3- वेभव
हॉ@स के अनसु ार चँिू क मन;ु य वाथf है। इसिलए पार परक सबं धं / के सहयोग को कोई थान नह9 है। यिद है तो
वह उसी सीमा तक जहाँ तक वह वाथ5 िसि( सहायक है।

11.5 ाकृतक अवथा


मानव वभाव के िचZण के उपरात हा@स ाकृ ितक अव था क िववेचना करता है और वह कहता है िक
ाकृ ितक अव था पवू 5 सामािजक अव था है। िजसम8 जीवन म8 सहयोग न होकर िहसं ा धान है। यह अव था
िजसक लाठी उसक भLस क है िजसम8 अपने िहत/ क िसि( के िलए बल योग म8 िव]ास करते है। इस कार
से यह अव था +येक का +येक के िव.( य( ु क अव था हो जाती है। इस अव था म8 सभी के पास अपनी
र:ा के िलए अपनी चालािक और शि\ है। जो िक सभी म8 समान है। इसिलए इस अव था म8 संघष5 भया वह होता
है। जहाँ िकसी क कोई सHपि& नह9 होती, न ही इस असरु ि:त वातावरण म8 कोई उ0ोग धधे संभव हL। इस कार
हॉ@स क ाकृ ितक अव था क तीन मख ु िवशेषताएं =ि>गोचन होती है -

उराखंड म
ु िविवालय 158
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1- नैितकता का अभाव
2- याय, अयाय क धारणा का अभाव
3- अनवरत संघष5 क अव था होने के कारण सHपि& का अभाव।
यहाँ एक तjय यह प> करना िनतांत आवयक है िक हॉ@स इस कार के िकसी ाकृ ितक अव था के
ऐितहािसक का दावा नह9 करता हL। उसका उेय यह प> करना था िक राजशि\ के अभाव म8 लोग/ के जीवन म8
इसी कार क असरु :ा और समाज म8 सघं ष5 क ि थित बनी रह सकती है इसिलए ऐसा अराजक और िहसं क
ि थित (जो िक Cहय(ु जिनत वातावरण म8 िदखाई देता है) के िनर:ण के िलए एवं शि\शाली राजस&ा का होना
आवयक है।

11.6 ाकृतक अधकार और ाकृतक नयम


हॉ@स अपने समझौतावादी िस(ात के ितदान के Vम म8 िजस ाकृ ितक अव था क कbपना करता है उस
अव था म8 +येक Oयि\ के पास कुछ भी ाX करने का समान ाकृ ितक अिधकार देता है। परणाम व.प +येक
के िव.( +येक के महू का कारण ाकृ ितक अिधकार ही होता है। परतु ाकृ ितक अव था म8 भी Oयि\ सरु ि:त
जीवन जीने क लालसा रखते हQए, बिु ( ^ारा कुछ िनयम बना लेते है। इन ाकृ ितक िनयम/ को हॉ@स शाित क
धाराएं कहता है। हॉ@स ने ाकृ ितक िनयम को इस कार परभािषत िकया है- ‘‘यह वह िनयम है जो िववके ^ारा
खोजा गया है, िजसके ^ारा मन;ु य के िलए वे काय5 ितबंिधत हL जो उसके जीवन के िलए िवनाश द है और
िजनके ^ारा उनको उन कायk को करने से कोई ितबंध नह9 है, जो जीवन क र:ा म8 सहयोग देते हL। ’’ इस कार
प> है िक ाकृ ितक अिधकार ाकृ ितक अव था म8 अनवरत संघष5 क ि थित पैदा करते हL तो , ाकृ ितक िनयम,
ाकृ ितक अव था के इस संघष5 और अराजकता क ि थित से उनक र:ा करते हL। हॉ@स ने कुल 19 ाकृ ितक
िनयम/ का उbलेख िकया है। िजनम8 से मख ु इस कार हL-

11.7 आ मर3ा क कृत


चँिू क हा@स अपने रा1य क उ+पि& के समझौतावादी िस(ात म8 ाकृ ितक अव था का िचZण करता है। और वह
ाकृ ितक अव था ऐसी है िजसम8 +येक के िव.( य( ु जैसी है। ऐसी ि थित म8 हॉ@स के सामने सव5 मख
ु B
आ+मर:ा का है। जैसा िक हम ऊपर प> कर चक ु े है िक हा@स ऐसी िकसी ाकृ ितक अव था का ऐितहािसक
दावा तो नह9 करता है परतु यह प> है िक उसके ऐसा कहने का ता+पय5 यह िक गृहय( ु जिनत अव था या
रा1यहीन Oयव था होने पर आ+मर:ा का सवाल सव5 मख ु B के .प म8 सामने आता है। इसीिलए हा@स ने
आ+मर:ा के सवाल पर िव तार चचा5 क है। इसी Vम म8 हॉ@स कहता है िक मन;ु य क मल ू कृ ित उसक सरु :ा
क इiछा है िजसके िलए वह सदैव य+नशील रहता है। तथा जो तjय इसम8 सहायक होता है उसे वह अiछा और
जो सहायक नह9 होता है उसे बरु ा कहता है।
इस कार से प> है िक मन;ु य अनवरत सरु :ा क ज.रत महससू करता हL। इसी िलए वह अय सभी उपलि@धयाँ
अिज5त करना चाहता है िजससे वह अपने सरु :ा संबंधी िचताओ ं का िनराकरण कर सके । इसिलए िकसी मन;ु य के

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ु िविवालय 159
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िलए अय मन;ु य/ का वह9 तक मह+व है जहाँ तक वह उसक सरु :ा संबंधी िवषय/ को सकारा+मक या
नकारा+मक .प से भािवत करता है।
हॉ@स मानव वभाव के दो प:/ अिभलाषा और िववके क िव तार से चचा5 करता है और कहता है िक
अिभलाषा के कारण कोई मन;ु य सभी व तओ ु ं को ाX करना चाहता है, िजसक चाहत अय लोग रखते है। चिँू क
सभी शि\ और बिु (म&ा म8 समान है। इसिलए संघष5 श. ु हो जाता है। जबिक िववेक के कारण मन;ु य आ+मर:ा
क वृि& को मह+व देता है, िजससे वह शाित थापना पर बचन देता है।
इस कार प> है िक जहाँ संकण5 अिभलाषा संधष5 को बढ़ाती है वही िववेकपणू 5 वाथ5 शाित थापना के िलए
आधार तैयार करने का काय5 करता है।
हॉ@स कहता है िक चँिू क समाज म8 लोग िववेक के िनयम/ के अनसु ार काय5 नह9 करते है वरन वे :िणक उ^ेग/ से
ेरत होकर आचरण करते है इसिलए मन;ु य अपने उ^ेग/ को िनयिं Zत करने क ि थित म8 नह9 होता है। इसिलए
हॉ@स कहता है िक एक ऐसी सव5शि\शाली, भ+ु व सHपन स&ा क आवयकता है जो मन;ु य को िववेक के
अन. ु प् आचरण करने के िलए िववश कर सक8 परतु ऐसा होने के िलए आवयक है िक शासन भवशाली हो,
aय/िक भावशाली शि\ सHपन शासन पर ही सरु :ा िनभ5र करती है।

11.8 रा6य क उ पि त तथा उसक कृत


हॉ@स मानता है िक मन;ु य वभाव से वाथf और संघष5शील है। वह वभाव से शांितपणू 5 रहने वाला नह9 है।
इसिलए एक ऐसी स&ा क आवकता होती होती हो जो उसे िववेक के अनसु ार आचरण करने के िलए बा3य कर
सके तथा उbलंघन पर दdड भी दे सके । हॉ@स मानता है िक ऐसी स&ा के वल रा1य म8 ही संभव है जो सभी
Oयि\य/ का ितिनिध+व करती है और सभी को िववेक के अनसु ार आचरण करने के िलए बा3य कहर सकती है।
तथा इसका उbलंघन करने वाले को दिdडत भी कर सकती है। अततः हॉ@स यह कहता है िक यह रा1य अपने
अि त+व म8 सामािजक समझौते के फल व.प आता है।
यह समझौता सभी Oयि\य/ के बीच इस कार से होता है िक जैसे हर एक Oयि\ ने हर एक Oयि\ से कहा हो िक
‘‘मL इस Oयि\ को या Oयि\य/ के समहू को अपना शासन, वयं कर सकने का अिधकार और शि\ इस शत5 पर
समिप5त करता ह’ँ िक तमु भी अपने इस अिधकार को िकसी तरह (इस िवशेष Oयि\ या Oयि\ समहू ) समिप5त कर
दो।
इस कार सHपणू 5 समदु ाय एक Oयि\ या समहू म8 संय\ ु हो जाता है स&ा योग के संदभ5 म8, इसे हा@स रा1य (
commonwealth) या लैिटन म8 िसिवटास (Civitas) कहते है। हा@स के अनसु ार यही वह लेिवयावन या महान
देवता है जो हम8 शाितपणू 5 और सरु ि:त जीवन दान करता हL इस कार के समझौते से उ+पन सuाट या भसु &ा
(सवmiचस&ा) समझौते म8 कोई वचन नही देती है िजसका परणाम यह होता है िक शासन Oयव था खराब होने के
बाद भी जनमानस को शासन के िव.( बोलने या िवpोह का अिधकार नह9 होता है। aय/िक यही शासन है जो
शाितपणू 5 और सरु ि:त जीवन दान करता है। िजसके िव.( जाने का मतलब है ाकृ ितक अशात Oयव था म8
जाना।

उराखंड म
ु िविवालय 160
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
उपरो\ िववेचन के आधर पर हॉ@स के रा1य क उ+पि& के सामािजक समझौते िस(ात क िनHनिलिखत
िवशेषताएं हैः-
1- हॉ@स का यह समझौता िस(ात सामािजक और राजनीितक दोन/ है यह सामािजक इसिलए है िक सभी लोग
अपन Oयि\गत मनोवृ& को +यागकर एक साथ सामािजक बधन को वीकार करते है जबिक राजनीितक इसिलए
है िक इसके फल व.प सव5शि\मान राजस&ा क उ+पि& होती है।
2- इस समझौते म8 सH भु शािमल नह9 है। इसिलए यह सरकारी समझौता नह9 है aय/िक यह समझौता तो Oयि\य/
के म˜य होता है।
3- सH भु क स&ा असीिमत है अभया5िदत है aय/िक वह समझौते अगं नह9 है वरन समझौते का परणाम है वह
िकसी कार क शतk से बधा नह9 है इसिलए वह िनरंकुश भी है।
4- एक बार समझौता हो जाने पर उससे अलग होने का अिधकार िकसी को नह9 है। इस समझौते के बाद िकसी भी
Oयि\ के कोई अिधकार व वतंZता नह9 होती है aय/िक समझौते के समय सभी ने अपने अिधकार और वतंZता
का +याग िकया है। इसिलए उह8 िनरंकुश स&ा के िव.( िकसी कार के दावे को रखने का कोई अिधकार नह9 है।
5- सम भ&ु ा िवभािजत नह9 है। aय/िक यह समझौते का परणाम है वह सH भु चाहे एक Oयि\ हो या Oयि\य/
का समहू ।
7- चँिू क सH भ&ु ा अभया5िदत, अिवभा1य है। इसीिलए वह िविधय/ का Rोत भी है। उसका आदेश ही काननू है।
िकसी भी िवशेष पर अितम िनण5य लेने का अिधकार सH भसु &ा को ही है। य(
ु क घोषणा और सिध करने का
अिधकार के वल इसी को है।
य0िप हॉ@स ने सH भसु &ा को अमयmिदत और िनरंकुश स&ा सHपन बताया। िजसके िव.( जाने का अिधकार
जनमानस को नह9 है परतु कुछ ि थितय/ म8 हॉ@स ने राजा के आदेश क अवहेलना करने का अिधकार दान
करता है। हॉ@स कहता है िक यिद राजा Oयि\ को अपने आपको मारने, घायल करने या जीवन र:क उपमाओ ं को
योग करने का आदेश दे तो ऐसी आ#ाओ ं का उbलंघन करने का अिधकार है। aय/िक शासन को जनमानस
सरु :ा क आवायकता क पिू त5 के िलए ही वीकार करते है। इस कार से हॉ@स अपने रा1य के िस(ात क
चरमOयाrया म8 Oयि\वादी हो जाता और रा1य को उपयोिगता के तर पर ले जाता है जो िक कृ ितम संrया है,
िजसे जनता ने अपनी आ+म र:ा के िलए बनाया है।

11.9 भस
ु ता
हॉ@स के भसु &ा के िस(ात
़ को समझने के िलए यह आवयक है उसके समझौते वादी िस(ात को समCता म8
समझने का यास िकया जाए। यहाँ यह पनु ः बताना आवयक है िक चँिू क समझौते िस(ात म8 िजस अराजक
ाकृ ितक अव था क कbपना हॉ@स करता है। उससे िनजात पाने के िलए सभी ने एक दसू रे से िकसी Oयि\ या
Oयि\ समहू को अपने ऊपर शासन करने क स&ा सŒप दी। इसके फल व.प सH भसु &ा क उ+पि& होती है जो
वयं समझौते का अगं न होने के कारण िकसी कार से मया5िदत नह9 है। उस पर िकसी कार को कोई बधन नह9
है इस कार से प> है िक हॉ@स सH भसु &ा का बध समथ5क था उसका सHपणू 5 भ+ु व सHपन शासक पणू त5 ः

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ु िविवालय 161
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िनरंकुश है। उस पर िकसी भी कार क कोई मया5दा नह9 है। उसने उन सभी मया5दाओ ं को समाX कर िदया िजसे
ब/दा ने सH भतु ा पर आरोिपत िकये थे।
हॉ@स के अनसु ार सH भतु ा सभी काननू / का Rोत है। aय/िक वही शाित Oयव था और सरु :ा के िलए उ&रदायी
हL। aयोिक ऐसी स&ा समझौते के दौरान लोग/ ने उसे दी है। सH भ&ु ा िनरपे: है उसे जनसाधारण पर असीिमित
अिधकार ाX है जो िकसी भी मानवीय शि\ से मयािदत नह9 है। यहाँ यह भी प> करना आवयक है िक वह
ाकृ ितक काननू / के भी अधीन नह9 aय/िक वे तो काननू न होकर िववेक के आदेश है।
हॉ@स ने अपने सH भतु ा के िस(ात शि\ के िवभाजन तथा िनयंZण और सतल ु न के िस(ात को कोई मह+व
नह9 पदान िकया है aय/िक वह मानता है िक सभी स&ा का Rोत वयं सH भु है तो स&ा का िवभाजन कै से।
हॉ@स ने, ब/दा ^ारा सH भतु ा पर सHपि& सबं धं ी अिधकार का बधं न अ वीकार िकया aय/िक सHपि& का
सृजनहार भी वह सH भतु ा को ही मानता है aय/िक िबना शांित और सरु :ा के सHपि& का सृजन सभं व नह9 है।
इसिलए सपं ि& के सबं धं म8 काननू िनमा5ण का अिधकार भी सH भु को ही है।
इसके आगे हॉ@स कहता है िक सH भु के अिधकार बदले नह9 जा सकते (अपरवत5नीय) िकसी को िदये नह9 जा
सकते (अदेय) इनका िवभाजन नह9 िकया जा सकता (अिभभा1य) है। ऐसा करना सH भतु ा को न> करना होता है
िजसका परणाम होगा पनु ः असरु :ा का वातावरण जो कोई भी नह9 चाहेगा। अतः उपरो\ िववेचन के आधार पर
हम यह कह सकते है िक हॉ@स के सH भतु ा के िस(ात म8 िवरोधामास है। वह यह िक एक तरफ तो वह सH भतु ा
को अिभभा1य, अमया5िदत और ह तातरणीय बताता है तो दसू री तरफ वह जनमानस को सH भु के ऐसे आदेश
का उbलंघ करने क शि\ दान करता है जो उसक आ+मर:ा के िवपरत है। साथ ही यह भी दिु वधा है िक यह
िनण5य कौन करे गा िक अब ऐसी ि थित आ गई है। जब िवरोध िकया जा सकता है।
ब/दा क भॉित हॉ@स ने भी सH भतु ा के िनवास के आधार पर ही शासन णाली का वगfकरण िकया है।
भसु &ा का िनवास शासन का व.प
एक Oयि\ म8 राजतंZ
कुछ Oयि\य/ म8 कुलीनतंZ
सब लोग/ म8 लोकतंZ
हॉ@स कहता है िक िमिWत एवं सीिमत शासन णाली क बात करना Oयथ5 है aय/िक भसु ता अिभभा1य
अपरवत5नीय और उेय है।
यहाँ पर यिद हम हॉ@स और बोदा के भसु &ा िस(ात का तुलना+मक अ3ययन करते हL तो यह पाते हL िक ब/दा ने
अपने भसु &ा िस(ात म8 भसु &ा पर कई ितबंध आरोिपत िकये है। जैसे ई]रीय िनयम, ाकृ ितक िनयम और
रा1य के मल ू भतू िनयम। परतु हॉ@स ने अपने सH भु पर ऐसे िकसी ितबंध को आरोिपत नह9 िकया है जो
आरे िपत िकये भी है वह बंधन वैधािनक नह9 है। इस कार से प> है िक ब/दा के सH भु क तल
ु ना म8 हॉ@स का
सH भु अिधकार सHपन है।

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ु िविवालय 162
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11.10 नागLरक काननू
हॉ@स काननू को सH भु का आदेश कहता है। और इन िविधय/ म8 को ही परHपरा या रीित दान नह9 है, धान है
तो वह है सH भु क इiछा। यही नह9 उस सH भु म8 अपनी इiछा से िनिम5त काननू को पालन करने क शि\ भी
िनिहत है। इसक इiछा से िनिम5त िकसी भी िविध को नैितक मानदdड/ पर नह9 परखा जा सकता है। aय/िक ये
िविधयाँ ही Oयवहार क मानदdड तय करती है।
हॉ@स ने िविध के दो कार वीकार िकये है
1- िवतरणा+मक या िनषेधा+मकः- इसके अतं ग5त नागरक/ के वैधािनक या अवैधािनक कायk का िववरण ततु
िकया जाता है।
2- अ#ा+मक या दdडा+मकः- इसके अतं ग5त एक तरफ िनद™श होते है िजनका पालन अिनवाय5 होता हे िजनके
उbलंघन क दशा म8 दdड का ावधान भी होता हL।
हॉ@स ाकृ ितक िविध और िविध म8 अतर भी करता है। वह कहता है िक िविध तो सH भु का आदेश है सH भु ही
ऐसी िविवय/ का Rोत भी है। और Oयाrयाकार भी है। जबिक ाकृ ितक िविध िववेक का आदेश है। इसके पीछे
कोई दdडा+मक शि\ नह9 होती जबिक िविध के पीछे दdडा+मक शि\ होती है िजसका पालन न िकया जाने क
ि थित म8 उbलंघनकता5, उbलंघन कही माZा तक दdड का पाZ होगा।
यहाँ एक सवाल उठता है िक यिद सH भु का आदेश ही काननू है िजसका उbलंघन कोई नह9 कर सकता यह आज
के लोकतािZक यगु म8 कहाँ तक सHभव है। इसका उ&र शायद नह9 ही होगा। aय/िक िकसी भी लोकतािZक देश
म8 अितम स&ा म8 िनिहत होती है। िजसे िनयतकािZक चनु ाव के आधार पर भसु &ा के परयोग करने वाले को
बदलने का अिधकार ाX होता है।
इसके साथ ही हॉ@स सH भु के उन आदेश/ क अवहेलना करने का अिधकार जनता को दान करता है। जो
उसक आ+मर:ा के िव.( हो।
इसके आगे हॉ@स सH भु को अिधक काननू / के िनमा5ण न करने क बात करता है। aय/िक इससे उनके अनपु ालन
को सिु निFत करने म8 अनेकानेक सम या उ+पन होगी इस कार हम देखते है िक एक तरफ काननू को सH भु का
आदेश मानता है, िजसे सH भु सि^वेक क अिभOयि\ कहता तो दसू री तरफ आ+मर:ा हेतु तलवार उठाने तक
क अनमु ित जनता को देता है। इस कार हॉ@स का सH भतु ा िस(ात म8 िनरपे:ता का पटु िजतना िदखाई देता है,
उतना है नह9। हॉ@स के सH भतु ा िस(ात म8 जो िनरंकुशता िदखाई देती है वह भी उपयोिगता के कारण है और
उपयोिगता है आ+मर:ा जनमानस। इस कार हॉ@स के इस िनरंकुश भसु &ा म8 उदारवादी त+व िनिहत तीत होते
है।

11.11 रा6य और चच)


जैसा िक हम ऊपर यह प> कर चकु े है िक हॉ@स सव5शि\शाली, भसु &ा सHपन रा1य का समथ5न करता है।
इसका वाभािवक परणाम यह है िक वह रा1य के समातर िकसी भी ऐसी स&ा को वीकार नह9 कर सकता जो

उराखंड म
ु िविवालय 163
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
रा1य स&ा को चनु ौती दे। जैसा िक त+कालीन समय म8 उसने यह देखा िक पादरी और पोप के दावे ऐसे थे िक यिद
उह8 छुट दी जाती तो वे धािम5क :ेZ से बाहर जाकर शासक/ को पदiयतु करने क स&ा भी अपने हाथ म8 के िpत
करना चाहते थे। इसिलए हॉ@स ने प> .प से कहा है िक चच5, रा1य के समक: स&ा न होकर उसके अधीन है।
aय/िक उस समय वह देख रहा था िक िकस कार से त+कालीन पादरी और पोप ने समाज म8 अOयव थाएं फै ला
रखी थी।
इसिलए हॉ@स धािम5क स&ा को, राजस&ा के अधीन मानता है रा1य म8 सH भु ही सवmiच आ3याि+मक स&ा भी
है, िवशेय उसक अनकु Hपा से ही आ3याि+मक स&ा ाX करते हL। हॉ@स इसके आगे कहता है िक जब िनण5य का
आधार बिु ( न होकर आलौिकक अनभु िू त हो तो समाज म8 अराजकता का वातावरण होता है। इसीिलए हॉ@स ने
चच5 को अधं कार का रा1य कहा है।
हॉ@स कहता है िक धम5 का आधार अ=> शि\ के ितमय है। इसका फायदा आ3याि+मक जगत उठाता है। अतः
रा1य का दािय+व है िक अपने लोग/ क इस भय क ि थित से र:ा कर8 । इस कार हॉ@स ने चच5 को परू ी तरह से
राजस&ा के अधीन कर िदया है। यहाँ पर मािस5िलय/ ऑफ पड़šवा का िजV करना आवयक है िक इह/ने
आ3याि+मक स&ा और लौिकक स&ा को पृथक कर, चच5 को नागरक शासन के अधीन करने क िजस िVया
को आरHभ िकया था, हॉ@स ने उसे अजं ाम तक पहQचँ ा िदया। अततः हम कह सकते है िक हॉ@स ने आ3याि+मक
जगत को परू ी तरह से काननू और रा1य के अधीन कर िदया है।

11.12 CयिPतवाद
अभी तक हमने िजतना अ3ययन िकया है। उसको देखकर यह लगता है िक हॉ@स िनरंकुश राजस&ा का समथ5न
करता है। परतु जब इसके आगे हम देखते है िक aय/ वह िनरंकुश राजस&ा का समथ5न करता है तो प> होता है
िक वह Oयि\वादी भी है aय/िक ऐसा समथ5न वह Oयि\ के िलए करता है उसक सरु :ा के िलए करता हL। अथा5त
अपने िस(ात ितवादन म8 मलू .प से वह Oयि\वादी है और इस Oयि\ क सरु :ा के िलए रा1य को उपयोिगता
तर पर ले जाता है।
हॉ@स ने िचतन म8 Oयि\ अलग-अलग हL िजनके िहतो म8 टकराहट भी है। इनम8 सामंज य बैठाने के िलए राजस&ा
का उlव होता है, समझौते के फल व.प वह िहत है आ+मर:ा के अिधकार। इस अिधकार क र:ा के िलए वह
Oयि\ को रा1यस&ा के िवरोध का अिधकार भी दान करता है।
इस कार जब हॉ@स रा1य को समझौते का परणाम और कृ िZम मानता है, िजसका दािय+व जनमानस क र:ा
करना है तो वह बल Oयि\वादी हो जाता है। हॉ@स पहला िवचारक है िजसने Oयि\ के आ+मर:ा के अिधकार
को सव5पर मह+व िदया, और रा1य का दािय+व इस अिधकार क र:ा करना माना, जो रा1य क उ+पि& का
कारण और अि त+व का आधार है। इस कार Oयि\ अपने आप म8 सा3य है और रा1य साधन।

11.13 आलोचना
हॉ@स एक ऐसा िवचारक था िजसे अपने समय म8 समाज और स&ा के सभी प:/ के आलोचना का िशकार होना
पड़ा। उसक आलोचना िनरंकुश राजतंZ वािदय/ के साथ लोकतंZ वािदय/ ने भी क। साथ ही धािम5क िचतक/ ने

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ु िविवालय 164
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
भी आलोचना क। aलेरेडन ने तो हॉ@स क प ु तक को जलाकर यहाँ तक कहा िक ‘‘मLने कभी कोई ऐसी प ु तक
नह9 पढ़ी िजसम8 इतना राजpोह िव]ासघात और धम5pोह भरा हो।’’
िनHन आधार पर हॉ@स क आलोचना क जाती हैः-
1.हॉ@स के िचतन क एक मख ु आलोचना उसके ^ारा मानव वभाव के िवकृ त व.प के िचZण के कारण क
जाती है। aय/िक उसने मन;ु य को वाथf और झगड़ालू कहा है। जबिक मन;ु य म8 दया, ेम, सहयोग, +याग आिद
सामािजक गणु भी पाये जाते हL।
2.हॉ@स का समझौता िस(ात भी म उ+पन करता है। एक तरफ तो मन;ु य को झगड़ालू और वाथf कहता था
िजससे ाकृ ितक अव था सघं ष5 क अव था हो जाती है, िफर िववेक लोग/ को ाकृ ितक अव था से मिु \ के
िलए समझौते के िलए तैयार करता है। िफर एक अय दिु वधा िक समझौते म8 सH भु शािमतन नह9 है जबिक
सै(ाितक =ि> से समझौता के िलए दो प: होते हL।
3.एक तरफ हॉ@स ाकृ ितक अव था क अराजकता से िनराकरण के िलए िनरंकुश राजस&ा का समथ5न करता है
तो दसू री तरफ Oयि\ को आ+मर:ा के िव.( िकसी भी आदेश के िव.( जाने का अिधकार भी देता है।

अAयास B
१.हा@स का हा@स का िकस सन म8 हQआ ?
२.हा@स ने ‘लेिवयाथन’ क रचना कहाँ पर क क।
, ३.Elements of Law प ु तक क रचना िकसने क ?

11.14 सारांश
उपरो\ िववेचन के आधार पर हम यह कह सकते है िक हा@स ने रा1य के उ+पि& के दैवीय िस(ांत के िवपरीत
,रा1य क उ+पि& का सामािजक समझौता िस(ात िदया है िजसम8 रा1य अब एक साधन के समान है जो Oयि\
के अिधकार/ क र:ा के िलए ल/ग/ ने आपसी समझौते से बनाया है | िजसका यह सं भु समझौते म8 शािमल न
होने के कारण सभी कार क मया5दाओ ं से म\
ु है | लेिकन इसी के साथ हा@स यह भी कहता है यिद रा1य Oयि\
को ऐसे काय5 करने के आदेश देता है जो उसके अि त+व के िवपरीत है या उसे संकट म8 डालता है तो Oयि\ को
रा1य का िवरोध भी करने का अिधकार है aय/ िक रा1य के िनमा5ण का उसका मख ु 3येय आ+मर:ा ही है |इस
कार से हा@स Oयि\वादी िवचारक के .प म8 सामने उभरकर आता है |

11.15 श!दावल$
ाकृ ितक अव था - यह समाज हीन और रा1यहीन अव था है |

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11.16 अ&यास 
न' के उ तर
१.1588 २.ˆास ३.हा@स

11.17 सदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीित दश5न का इितहास-जॉज5 एच0 सेबाइन
2.पॉिलिटकल jयोरीज, एनिसएट एdड मेडीवल-डिनगं
3.मा टस5 ऑफ पॉिलिटकल थॉट- ड@bय0ू टी0 जोस
4.पाFा+य राजनीितक िवचार/ का इितहास-डा0 भदु & शमा5
5.राजनीितक िचतन क .परे खा-ओ0पी0 गाबा

11.18 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1.राजनीित-कोश- डा0 सभु ाष कयप एवं िव] काश गXु
2.पाFा+य राजनीितक िचतक- आर0एम0 भगत

11.19 नबंधा मक 

1.हा@स के रा1य के उ+पि& के िस(ांत क िववेचना किजये |
2.हा@स एक Oयि\वादी िवचारक था |इस कथन क Oयाrया किजये |

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 12 +/
*/
इकाई क$ संरचना
12.1 "तावना
12.2 उ4े5य
12.3 जॉन लॉक के िवचार9 क$ पृNभिू म
12.4 लॉक के सिहWणतु ा स;बधी िवचार
12.5 लॉक का अनभु ववाद
12.6 मन,ु य वभाव स;बधी लॉक के िवचार
12.7 "ाकृ ितक अवथा का िचRण
12.8 लॉक का सामािजक संिवदा का िस!ात
12.9 हॉAस लॉक एक तल ु नामक अ
ययन
12.10 लॉक के शासन स;बधी िवचार
12.11 सरकार के काय
12.12 Oयि]वाद
12.13 स;पि: का अिधकार
12.14 लॉक के िवचार9 क$ आलोचना
12.15 सारांश
12.16 शAदावली
12.17 अBयास "C9 के उ:र
12.18 संदभ Dथ सचू ी
12.19 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
12.20 िनबधं ामक "C

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12.1 तावना
इसके पहली क इकाई म8 हम हॉ@स के समझौतावादी राजनीितक िवचार/ का अ3ययन कर चक ु े है। आपने यह
देखा िक हॉ@स के अनसु ार रा1य िकसी देवीय शि\ से उ+पन न होकर के समिजक आपसी समझौते का परणाम
है। िजसे आ+मर:ा के िलए बनाया गया है।
इस इकाई म8 हम समझौतावादी िवचारक लॉक के राजनीितक िवचार/ का अ3ययन कर8 ग8। िजससे प> होगा िक
लॉक भी रा1य को समझौते का परणाम मानता है। साथ ही यह भी देख8ग8 िक हॉ@स के िवपरत लॉक ने मानव
वभाव के सकारा+मक प:/ पर बल िदया है।

12.2 उे

इस इकाई के अ3ययन से आप समझ सक8 ग8 िक
1. लॉक हॉ@स के िवपरत मानव के उदार प:/ पर बल देता है।
2. आप जान सके ग8 िक लॉक उदारवादी जातािZक Oयव था का समथ5क है।
3. लॉक ने ाकृ ितक अव था को शाित, सदभावना पार परक सहायता ओर सरं :ण क अव था बताया है।
4. सरकार का मख
ु काय5 +येक सद य के जीवन वतZता और सHपि& क र:ा करना है।

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12.3 जॉन लॉक के वचार' क पAृ ठभ1ू म


1642 ई0 म8 इ}ं लैdड का गृह य(ु इस कारण आरHभ हQआ aय/िक त+कालीन राजा चाbस5 थम अपने शाही
अिधकार/ पर ििटश ससदं के िकसी भी कार के अक ं ु श को वीकार करने के िलए त+पर नह9 था। यह िववाद
राजा क शि\य/ और ससं द क शि\य/ के बीच था। चाbस5 थम क ह+या, राजतंZ का पतन, कॉमवैल क
अ3य:ा म8 कामनवैbथ क थापना, आिलवर कामवैल का िनरंकुश गणतं ंZीय शासन कॉमवैल का पतन तथा
चाbस5 ि^तीय को राजा बनाकर पनु ः इ}ं लैdड म8 राजतZ क थापना, जेHस ि^तीय को राजा बनाकर उसके िव.(
पनु ः जनाVोश और िवpोह तथा राजा जेHस ि^तीय को िव थािपत कर उसके थान पर आरे ज के ि ंस िविलयम
को इ}ं लैdड क राजगी पर िबठाया जाना, ये इन 47 वषm क मख ु घटनाएँ थी। 1688 ई0 क र\हीन Vांित के
साथ ि ंस िविलयम को इ}ं लैdड का राजा बनाएं जाने क घटना के साथ राजा िनरंकुश शि\य/ का अत तथा
ससंद क शि\य/ का उदय हQआ। राजनीितक िचतन के इितहास के िवधािथ5य/ के िलए याद रखने यो}य यह तjय
है िक इस गृह यृ( क घटनाओ ं म8 हॉ@स का झक
ू ाव राजतZ एवं िनरंकुश शासनतZ के प: म8 था इसके िवपरत,
लॉक संसदीय दल के समथ5क के Yप म8 र\हीन Vांित का समथ5न करता है। 1688 ई0 क र\हीन Vांित के िजन
राजनीितक दश5न म8 आदशm क थापना क थी। लॉक ने इही आदशm का ितपादन अपने राजनीितक दश5न म8
िकया है। ऐसा लगता है। मान/ लॉक र\हीन Vािं त का समथ5न कता5 दाश5िनक है। लॉक के राजनीितक िचतन का
सार यही है िक शासक क शि\याँ यास के समान है अतः शासन का काय5 समाज ^ारा सौपी हQई स&ा .पी
धरोहर क र:ा करना है।

12.4 लॉक के सIहLणुता स4बधी वचार


लॉक Oयि\ क धािम5क वतZता का बल समथ5क था। उसक मायता थी िक रा1य अथवा िकसी
Oयि\/Oयि\ समहू को दसू रे Oयि\ क धािम5क वतZता म8 ह त:ेप नह9 करना चािहए। लॉक यह तक5 ततु
करता है िक मानवीय #ान न तो जमजात और न ही यह ई]रीय रह योदघाटन है। मानवीय #ान मन;ु य के िवचार/
क उपज है जम के समय मन;ु य का मि त;क उस साफ सधु री लेट के समान है िजस पर कुछ भी िलखा नह9 गया
है। िकतु अनभु व से उ+पन होने वाले िवचारक था जो यह मानता था िक मन;ु य के िवचार जमजात नह9 होते
अनभु व/ के साथ पेदा होते है। स&ा को यह अिधकार कदािप नह9 हो सकता िक वह अपने िवचार/ को सही
अथवा नैितक =ि> से WेJ मानकर दसू र/ के ऊपर अपने िवचार/ को थोपे। स&ा को सिहdणु होकर दसू र/ के िवचार/
का दमन नह9 करना चािहए। लॉक के धािम5क सिहdणतु ा सHबधी िवचार/ क पृिJभिू म म8 ईसाई धम5 के िववाद थे
िजनम8 कुछ धािम5क िवचारक/ ने यह ितपािदत िकया था। िक जो Oयि\ धम5 क आ#ाओ ं का पालन नह9 करते,
अथवा जो धम5 pोह का माप करते है, ऐसे Oयि\य/ को रा1य ^ारा दिं डत िकया जाना चािहए। लॉक के अनसु ार
रा1य क शि\ का उेय लौिकक शि\ एवं सOु यव था क थापना करना तथा सHपि& क र:ा करना, है न िक
धम5 क थापना करना अथवा उसक र:ा करना राजा अपनी शि\ को समाज के सद य/ से ाX करता है। इन
िवचार/ से प> होता है िक लॉक के धम5 सHबधी िवचार उदारवादी है। सामािजक एवं धािम5क जीवन म8 सिहdणतु ा
के िस(ात का ितपादन करने के कारण लॉक को राजनीितक िचतन के इितहास म8 उदारवािदय/ क अितम
पंि\ म8 थान िदया जाता है।

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12.5 लॉक का अनुभववाद


लॉक के िवचार/ का व.प अनभु ववादी है। वह #ान का अनभु व जय मानता है। उसके #ान सHबधी िवचार/ का
अ3ययन करने से यह तjय प> होता है िक वह मन;ु य के #ान को जमजात नह9 मानता उसक यह मायता है िक
मानवीय मि त;क म8 कोई जमजात य+न नह9 होते। जम के समय मानवीय मि त;क साफ होता है िजस पर कुछ
भी अेिकत नह9 होता। मन;ु य को #ान #ानेिpय/ से ाX होता है। #ानेिpय/ ^ारा ाX अनभु व मन;ु य के मि त;क
म8 वेश करता है जो उसम8 चेतना एवं ितबHब पैदा करत8 है। मि त;क म8 उनके िवƒे षण क तल ु ना करने क तथा
उनको एककृ त करने क िVया होती है। इस िVया म8 िवचार/ क उ+पि& होती है। सं:पे म8 लॉक के मतानसु ार
मन;ु य के िवचार/ का जम अनभु व/ से होता है। िवचार/ को #ान नह9 कहा जा सकता हाँ ये #ान के साधन अवय
है। #ान का जम तब होता है जब मि त;क ^ारा अनेक िवचार/ क तुलना करके सहमित अथवा इसके िवपरत
असहमित Oय\ क जाती है। #ान को अनभु व जम मानने के कारण लॉक को एक अनभु ववादी िवचारक माना
जाता है।

12.6 मनAु य वभाव स4बधी लॉक के वचार


हॉaस के अनसु ार मन;ु य कृ ित से ही वाथf, झगड़ालू और आसामािजक ाणी है। िकतु लॉक क मन;ु य
वभाव सHबधी मायताएँ हॉaस से सव5था िभन है वह मानता है िक मन;ु य म8 वाभािवक अiछाई होती है।
कृ ित ने मन;ु य को एक महान गणु से िवभिू षत िकया है और वह गणु है मन;ु य क िववेकशीलता मन;ु य म8
सहयोगी भवना होती है, वह सामािजक ाणी है। कृ ित ने ही मन;ु य को शि\-ि य, नीित िनयम/ का आ थावान
तथा एकता और अiछाई क चाह करने वाला ाणी बनाया है। इसके अितर\, कृ ित से ही मन;ु य/ म8 समानता
होती है। ाकृ ितक अव था समानता क अव था है िजसम8 +येक Oयि\ क शि\ एवं उसका :ेZािधकार
पार परक होता है। तथा िजसम8 िकसी के पास दसू रे से अिधक शि\ नह9 है। लॉक के मतानसु ार मन;ु य क
समानता शारीरक अथवा मानिसक समानता नह9 है। अिपतु वह नैितक =ि> से दसू रे के समान होता है। मन;ु य
वभाव सHबधी लॉक के ये िवचार उसके राजनीितक िवचार/ के मल ू म8 अवाि थत है।

12.7 ाकृतक अवथा का चGण


हम8 #ात है िक हॉ@स ने ाकृ ितक अव था को एकाक, दीन हीन कुि+सत, जंगली एवं :िणक बताया है। इसके
िवपरत लॉक ने ाकृ ितक अव था को शाित सदभावना, पार परक सहायता और संर:ण क अव था बताया
है। सामािजकता मन;ु य का वह मलू गणु है िजसके कारण वह ाकृ ितक अव था म8 अय सद य/ के साथ रहता है
एवं सहयोग करता था। ाकृ ितक अव था म8 मन;ु य म8 ातृ+व भवना एवं याय क भवना थी। उस अव था म8
मन;ु य िनछल था और इसीिलए सख ु ी था। ाकृ ित ने उह8 समानता और वतZता का आशीवा5द दान िकया
था। अतः कोई िकसी क मजf पर िनभ5र नह9 करता था। मन;ु य अपने जीवन का यापन एवं अपनी धन सHपि& का
उपयोग वेiछानसु ार करता था। मन;ु य म8 मैZी याय और सदभावना के गणु थे। लॉक का कथन है िक “ ाकृ ितक
अव था को शािसत करने वाला एक ाकृ ितक काननू है और उस काननू को हम िववेक कहते है।
ाकृ ितक अव था का िचZण करते हQए लॉक बताता है िक उस अव था म8 मन;ु य को कुछ नैसिग5क अिधकार ाX
थे। लॉक क नैसिग5क अिधकार/ क धारणा का आशय यह है िक इन अिधकार/ का िनमा5ता अथवा दाता रा1य

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नह9 है। यह अिधकार नैसिग5क है। कृ ित ने ही मन;ु य को कुछ जमजात अिधकार दान िकये है। ाकृ ितक
अिधकार/ क धारणा को ततु करने म8 लॉक का प> मतOय यह थािपत करना है िक रा1य उ+पि& के पवू 5 भी
Oयि\य/ के अिधकार नैसिग5क एवं रा1य से पवू 5 है अतः रा1य क स&ा इन अिधकार/ का अपहरण नह9 कर
सकता। लॉक के राजदश5न क यह मल ू मायता है िक रा1य क थापना Oयि\ िसफ5 इसिलए करते है िजससे िक
रा1य उनके अिधकार/ क र:ा करे ।
लॉक के अनसु ार इस अव था म8 ाकृ ितक िविध का शासन था िजसक छZछाया म8 िववेक और समानता थािपत
थी तथा जहाँ +येक Oयि\ अपने ाकृ ितक अिधकार/ का वामी था। वह यह भी वीकार करता है िक दसू रे
Oयि\ के भी ऐसे ही ाकृ ितक अिधकार थे िजनका सHमान िकया जाता था। अतः ाकृ ितक अिधकार थे िजनका
सHमान िकया जाता था अतः ाकृ ितक अव था म8 वतZता थी, वiछदता नह9।
यिद ाकृ ित अव था इतनी अiछी थी तब B का उठना वाभािवक है िक उस अव था म8 रहने वाले लोग/ ने उसे
छोड़ कर रा1य क थापना aय/ क ? लॉक ने इसका उ&र िदया है िक ाकृ ितक अव था म8 +येक मन;ु य
ाकृ ितक िनयम क अपने िहत के अनसु ार Oयाrया करता था िजसके परणाम व.प +येक Oयि\ को यह
अिधकार था िक वह Oयव था अथवा काननू का उbलंघन करने वाल/ को दिं डत कर सके । ाकृ ितक अव था म8
दो Oयि\य/ के मह+व िववाद/ का िनपटारा वह Oयि\ वंय अपनी धारणानसु ार कर लेता था, जबिक सही
यायपणू 5 अव था म8 ऐसे िववाद/ का िनपटारा तीसरी िन;प: याियक स&ा के ^ारा िकया जाना आवयक है।
िकतु ाकृ ितक अव था म8 तीसरी िन;प: स&ा का अभाव था। लॉक के िवचारानसु ार ाकृ ितक अव था म8 तीन
मखु असिु वधाएँ थी।
1. ाकृ ितक अव था म8 ाकृ ितक िविध क कोई प> परभषा नह9 थी, अतः +येक Oयि\ अपने मन के
अनकु ू ल काननू को परभािषत करता था।
2. ाकृ ितक िविध क प> परभाषा करने वाले िकसी िन;प: यायधीश का अभाव था।
3. ऐसी स&ा का अभाव था जो भावशाली Yप से उस िविध को लागू कर सके । aय/िक ाकृ ितक काननू के
िVयावयन का अिधकार +येक Oयि\ म8 िनिहत था इसके परणाम वYप +येक Oयि\ अपने िववाद का वंय ही
यायकता5 बन जाता है। िजससे समाज का सहयोग टुटता है।

12.8 लॉक का सामािजक संवदा का 1स2ात


सामािजक संिवदा:- ाकृ ितक अव था क असिु वधाओ ं से मिु \ पाने का माग5 सामािजक संिवदा ^ारा ाX होता
है। लॉक के श@द/ म8 ाकृ ितक अव था को +यागने के िलए मन;ु य/ ने वेiछा से समझौता िकया िजससे िक वे एक
समाज म8 सिHमिलत हो और सगं िठत ह/ तािक उनका जीवन सख ु ी सरु ि:त और शाितपणू 5 हो जहाँ वे अपनी
सHपि&य/ का सरु ि:त Yप से आनद ले सक8 ।
लॉक ^ारा ितपािदत सामािजक संिवदा के वYप के बारे म8 िवचारक/ के िभन -2 मत है । कुछ लेखक मानते है
िक समाज और शासक के बीच एक ही समझौता हQआ िजससे राजनीितक समाज अथा5त रा1य क थापना क
गयी। इसके िवपरत कुछ लेखक/ कर मत है िक लॉक ने दो तर पर समझौत/ के होने क कbपना है। इनके

उराखंड म
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मतानसु ार पहला समझौता सामािजक था जो ाकृ ितक अव था म8 रहने वाले मन;ु य के बीच पार परक तर पर
हQआ था िजसके परणाम व.प समाज क थापना हQई। लॉक के कथनानसु ार मल ू संिवदा के अनसु ार +येक
Oयि\ ाकृ ितक काननू क वंय दडं देने के ाकृ ितक अिधकार का पर+याग करके ऐसा अिधकार सHपणू 5 समाज
को दान करता है। दसू रा समझौता राजनीितक था जो समाज और शासक के बीच हQआ िजसके ^ारा िसिवल
शासन क थापना क गई। लॉक के लेखन म8 यह पणू त5 ः प> नह9 है िक उसने एक या दो समझौतो क कbपना
क है। िकतु उसने मल
ू समझौता श@द/ का योग िकया है िजससे यह संकेत िमलता है िक इसके अलावा भी कोई
दसू रा समझौता हQआ हो। मल ू संिवदा के ^ारा ाकृ ितक अव था के लोग समाज क थापना करते है। दसू रा
समझौता समाज के सद य/ तथा शासक के बीच होता है। िजससे रा1य जैसी सं था क थापना होती है। पहले
समझौते के ^ारा Oयि\ यह िनधा5रत करते हL िक वे अपवने सHबध म8 Oयव था करने का अिधकार समाज को
दान करते है। इस कार समझौता कर लेने के बाद समाज के Oयि\ शासक के साथ समझौता कर उसे शासन
करने का अिधकार कुछ शतm के साथ दान करते है। शासक का समझौते ^ारा िनधा5रत यह कत5Oय है िक वह
नागरक/ के नैसिग5क अिधकार/ क र:ा करे गा। यिद शासक संिवदा क शतm का उbलंघन करे अथवा साव5जिनक
िहत के िव.( शासन करे तब समाज को यह अिधकार होगा िक उbलंघनकता5 को अपद थ कर उसके थान पर
नये शासन को थािपत करे ।

12.9 हॉ!स लॉक एक तुलना मक अRययन


सिं वदा ^ारा शासन के िनमाण5 क लॉक क धारणा हॉ@स के िवचार/ से ठीक िवपरत है। हॉ@स के मतानसु ार
सH भु शासक सिं वदा से बधा हQआ नह9 अिपतु उसके बाहर एवं ऊपर है िजसके परणाम व.प राजनीितक स&ा
का व.प िनरंकुश हो जाता है तथा िजसका कभी ितरोध नह9 िकया जा सकता है। इसके िवपरत लॉक शासक
को सिं वदा क शतm से ितबिं धत मानता है इस कार लॉक सीिमत शासन तZ का समथ5न करता है। लॉक जा
को यह अिधकार देता है िक वह शासक का ितरोध करे यिद शासक जा के नैसिग5क अिधकार/ का अपहरण
करने क कुचे>ा करता है। हॉ@स का मत है िक जा ^ारा संिवदा के मा3यम से अपने सम त ाकृ ितक अिधकार/
को के वल आ+म संर:ण के अिधकार को अपने पास रखते हQए सH भु को समिप5त कर िदया जाता है। त+पFात
नागरक/ के के वल वे ही अिधकार रहते है िजह8 सH भु ^ारा दान िकया जाता है। इसके िवपरत लॉक के
मतानसु ार नागरक ^ारा राजस&ा को के वल एक अिधकार सŒपा जाता है और वह अिधकार है, ाकृ ितक काननू
को वािहतानसु ार लागू करने का अिधकार। ऐसी धारणाओ ं के आधार पर यह िन;कष5 िनकाला जाता है िक हॉ@स
क संिवदा क धारणा िनरंकुशवाद का और लॉक क धारणा Oयि\वाद का समथ5न करती है।

12.10 लॉक के शासन स4बधी वचार


लॉक का कथन है िक शासन संिवदा ^ारा िनिम5त सं था है लेिकन शासन का aया व.प है एवं उसके काय5 -
कलाप aया है, उसके काय5 - कलाप/ क aया सीमाएँ है। लॉक के मतानसु ार सरकार के काय5 मया5िदत होते है।
सरकार क थापना करने म8 लॉक समदु ाय और सरकार के बीच एक यायधारी यास के ^ारा सरकार क थापना
क जाती है। सरकार को यासी बताकर लॉक यह ितपािदत करना चाहता है िक समाज ने समचू े समाज क शि\
को धरोहर के Yप म8 सरकार को सौपा है। अतः सरकार का यह वैिधक दािय+व है िक वह उस धरोहर क र:ा एक
यासी के Yप म8 करे । यिद सरकार इस दािय+व का िनवा5ह नह9 करे , अथा5त नागरक/ के जीवन वतZता ओर

उराखंड म
ु िविवालय 172
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सHपि& के अिधकार/ क र:ा नह9 करे अथवा उनका अपहरण करे, तब समदु ाय को यह अिधकार है िक उस
धरोहर क अनचाही सरकार से पनु ः अपने हाथ/ म8 लेकर उसे दसू री सरकार को सŒप दे जो अिधकार/ को सरु ि:त
रख सके । लॉक यह िस( करने का यास करता है िक सरकार क शि\याँ समाज कह शि\ क अपे:ा सीिमत है
सरकार विहत के िलए नही अिपतु समाज के िहत/ क र:ा के िलए थािपत क जाती है, तथा सरकार पर समाज
का िनयZं ण सदा बना रहता है। सामािजक िहत का भाव वह अक ं ु श है जो शासन पर सदा लगा रहता है। लॉक क
मायता है िक सरकार समदु ाय के िहत/ क र:ा के िलए समदु ाय के ित उ&रदायी है िकतु समदु ाय का सरकार के
ित ऐसा कोई दािय+व नह9 होता। सरकार के व.प म8 सHबध म8 लॉक क यही धारणा है िक सरकार समाज क
धरोहर क र:ा एक यासी के Yप म8 करती है। सरकार ^ारा इस धरोहर को हड़पने पर अथवा वचन भंग करने पर
उसे अपद थ कर नये यासी क िनयिु \ का अिधकार सदा समदु ाय के हाथ/ म8 रहता है।

12.11 सरकार के काय)


लॉक का कथन है िक िजस महान एवं मख ु उेय से ेरत होकर मन;ु य अपने आपक/ शासनाधीन करते है, एवं
रा1य के Yप म8 संगिठत करते है, वह उेय है, अपनी सHपि& का संर:ण सHपि& श@द से उसका ता+पय5 जीवन,
वा थ, वतZता और सHपदा के अिधकार/ क र:ा करना है। आिखर ये ही वे ाकृ ितक अिधकार है िजनका
उपभोग Oयि\ ाकृ ितक अव था म8 करता था िकतु इन अिधकार/ क समिु चत Oयाrया तथा उनका समिु चत
िVयावयन करने वाली स ं था के अभाव म8 ये अिधकार असु र:त थे। सरकार क थापना इसी उेय से क
जाती है िक ऐसे ाकृ ितक अिधकार +येक Oयि\ के िलए सरु ि:त एवं थायी रह8। अतः सरकार का यह थम
काय5 हो जाता है। िक ऐसे सामाय मापदdड/ क थापना करे िजसके ^ारा उिचत अनिु चत तथा यायपणू 5
अयायपणू 5 का बोध हो सके ।
सरकार का दसू रा मह+वपणू 5 काय5 ऐसी िन;प: स&ा का ावधान करना है जो Oयि\य/ के बीच के िववाद/ का
थािपत काननू के आधार पर िनपटारा कर सके । आधिु नक भाषा म8 हम इसे सरकार के याियक काय5 कह सकते
है।
लॉक के अनसु ार सरकार का तीसरा मख ु काय5 फै डरे िटव हL। िजस काय5 करे आज हम सरकार के काय5कारणी
काय5 कहते है। लॉक ने इही कायm को फै डरे िटव कृ +य कहा है। लॉक के अनसु ार सरकार के फै डरे िटव काय5 इस
कार है अपराध/ को रोकना, समदु ाय के िहत/ क र:ा करना, नागरक/ के बीच के सHबध/ को िनयिमत करना
य(
ु और शाित का संचालन करना तथा अय रा1य/ से संिधया इ+यािद करना है। इस कार लॉक सरकार के
कायm को तीन भाग/ म8 बाँटता है िवधाियनी, याियक एवं काय5पािलका सHबधी काय5।
लॉक क ऐसी मायता है िक िवधायी एवं काय5कारणी शि\य/ को सदैव पृथक रखा जाना चािहए। ऐसी मायता
है िक जो Oयि\ काननू बनाते है उह9 Oयि\य/ के हाथ/ म8 उन काननू / को लागू करने क शि\ दान नह9 क
जानी चािहए। इस कार हम देखते है िक लॉक शि\ पृथaकरणके िस(ात का ितपादन करते हQए िदखायी पड़ते
है। लॉक कहते है िवधायनी एवं काय5कारणी शि\याँ पृथक होनी चािहए एक ही स ं था म8 के िpत नह9 होनी
चािहए। इसी कार लॉक याियक शि\य/ को भी िवधायनी एवं काय5कारणी क शि\य/ से पृथक पृथक होनी
चािहए एक ही स ं था म8 के िpत नही होनी चािहए। इसी कार लॉक याियक शि\य/ को भी िवधायनी एवं

उराखंड म
ु िविवालय 173
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
काय5कारणी क शि\य/ से पृथक करने का प:धर है। िविध क Oयाrया करने का काय5 वतZ यायपािलका का
है हम देखते है िक लॉक के इन िवचार/ म8 शि\ पृथaकरण के त+व िनिहत है।

12.12 CयिPतवाद
लॉक के िवषय म8 यह कहा जाता है िक लॉक क प(ित म8 +येक व तु वयि\ के चार/ ओर घमू ती है, +येक
व तु को इस कार Oयवि थत िकया गया है िक Oयि\ क सवmiच स&ा सब कार से सरु ि:त रहे। Oयि\वाद
लॉक के राजनैितक िवचार/ का आधार है। उसके राजदश5न म8 Oयि\ परमसा3य है और रा1य और समाज दोन/
उसके अिधकार/ को बनाये रखने के साधन है। जहाँ कह9 रा1य Oयि\ के अिधकार म8 िकसी कार से बाधक होता
है वहाँ उस पर ितबध लगाया जाना चािहए। इस कार शासक जनता का ितिनिध माZ है। Oयि\ समाज
अथवा रा1य का िकसी भी कार का ऋणी नह9 है। इस वाaय म8 लॉक का Oयि\वाद क परमसीमा िदखलाई
पड़ती है।
लॉक रा1य को Oयि\ के अिधकार/ का संर:क तथा जनसेवा का मा3यम मानकर Oयि\ को रा1य Oयव था का
के p िबदु बना देता है। Oयि\ के नैसिग5क अिधकार/ का संर:ण करना, यही रा1य का दािय+व है। उसके िवचार/
म8 रा1य के pीय नह9 है, उसके दश5न का के p िबदु Oयि\ है यही लॉक का Oयि\वाद है। लॉक के दश5न म8 Oयि\
के िलए समचू ी राजनीितक Oयव था का िनमा5ण िकया गया है । Oयि\ के नैसिग5क अिधकार/ क र:ा के िलए
रा1य क थापना करना, Oयि\ के अिधकार/ का शासक ^ारा अपहरण करने पर ऐसे शासन को अपद थ करना
Oयि\ क सहमित को रा1य का आधार मानना इ+यािद ऐसे िवचार है िजनका ितपादन करने के कारण लॉक को
Oयि\वादी दश5न का णेटा माना जाता है। अर तु यह कहना उिचत नह9 है िक लॉक पणू त5 या और असीम Yप से
Oयि\वादी था। इस सHबध म8 बोदाँ का जो कथन पीछे िदया गया है वह एकांगी स+य है।

12.13 स4पि त का अधकार


लॉक Oयि\ के िनजी सHपि& के अिधकार का बल समथ5क है। उसके अनसु ार Oयि\ का सHपि& का अिधकार
कृ ित द& है। लॉक का मत है िक मन;ु य सिं वदा ^ारा िसिवल समाज क रचना अथवा सरकार क थापना माZ
इसी उेय से करते है िक सरकार उनक सHपि& के अिधकार क र:ा करे ।
लॉक के अनसु ार ाकृ ितक अव था म8 ाकृ ित क व तुओ ं पर सभी का समान अिधकार था। तब भी िकसी एक
Oयि\ का ाकृ ितक सHपदा पर एकािधकार नह9 था। िजस एक चीज पर उसको कृ ित ने एकािधकार दान िकया
था, वह उसका वंय का िनजी Oयि\+व िकतु जब Oयि\ ने अपने परWम को कृ ित क िकसी व तु को संजोया
संभाला अथा5त कृ ित क सHपदा के साथ अपने परWम को िमिWत िकया तब वह व तु उस Oयि\ क िनजी
सHपि& बन गयी। लॉक का मत है िक सHपि& का अिधकार िकसी समझौते का परणाम नह9 है aय/िक Oयि\
अपने जम के साथ साथ ही इसे कृ ित से ाX कर समाज म8 अवरत होता है। रा1य अथवा समाज ने इस
अिधकार का िनमा5ण नह9 िकया है। अतः सरकार अथवा समाज को िकसी Oयि\ से सHपि& को छीनने का
अिधकार भी नह9 है। लॉक के मायतानसु ार सHपि& Oयि\ कर अनल ु ंघनीय अिधकार है।
लॉक के ाकृ ितक अिधकार/ के िस(ात का, िवशेषतः सHपि& के अिधकार का राजनीितक िचतन को मह+वपणू 5
योगदान है। इस िस(ात ^ारा लॉक ने यह ितपािदत िकया था िक शासन ाकृ ितक अिधकार/ से मया5िदत रहता

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ु िविवालय 174
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
है तथा रा1य का दािय+व है िक वह Oयि\ के जीवन, वतZता तथा सHपि& क र:ा करे । इस अिधकार का
समथ5न करके लॉक ने Oयि\वादी दश5न क ाण ितJा क। राजकय ह त:ेप के िस(ात ने लॉक के सरकार
सHबधी िवचार/ से गहरी ेरणा ाX क है। दसू री और लॉक के सHपि& के िस(ात क धारणा ने एडम ि मथ
तथा समाजवादी दश5न के मbू य िस(ात को भी भािवत िकया।

12.14 लॉक के वचार' क आलोचना


लॉक क सीिमत राजतंZ के उपरो\ िस(ात/ के िव.( िनHनिलिखत तक5 उपि थत िकये गये है।
1. लॉक के िस(ात म8 भतु ा रा1य म8 नह9 बिbक Oयि\ म8 रहती जान पड़ती है। भश
ु ि\ के अभाव म8 रा1य क
िवशेषता न> हो जाती है।
2. लॉक रा1य को िवशेष उेय/ क पिू त5 के िलए बनी हQई एक िलिमटेड कHपनी का Yप देता है रा1य के वYप
क उसक कbपना यथाथ5 नह9 है।
3. ाकृ ितक दशा म8 मानव समाज का लॉक ^ारा खीचा गया िचZ अiछा होने पर भी वा तिवकता से दरू है। जब
कृ ित म8 रा1य म8 मन;ु य को कोई किठनाई नह9 थी तो के वल काननू क Oयाrया और उसे लागू करने के िलए
रा1य क उ+पि& क कbपना रा1य का पया5X कारण नह9 है।
4. अनेक िवचारक लॉक के िस(ात/ म8 कोई मौिलकता नह9 मानते। सामािजक सिं वदा, ाकृ ितक िनयम,
ाकृ ितक अिधकार और Vांित के अिधकार आिद के िवषय म8 लॉक के िस(ात उसके पहले से चले आते हQए
िवचार/ पर आधारत है।
लॉक का योगदान
पाFा+य राजशाh के इितहास मं लॉक का थान मह+वपणू 5 है। उसके शि\य/ के पृथaकरण के िस(ात को आगे
चलकर माटे aयू ने िवकिसत िकया। उसके िस(ात/ के आधार पर Yसो ने लोकि य भतु ा का िस(ात बनाया।
उसके िस(ात अिधक Oयवहारक थे। उसका यह कहना आज भी सब कही माय है िक शासन जनता क इiछा
पर आधारत है। उसका लोकि य भतु ा का िस(ात आधिु नक जनतंगीय रा1य का आधार है। उसक िनरपे:
रा1य क कbपना अिधकतर आधिु नक रा1य/ म8 साकार हQई है। ाकृ ितक अिधकार/ के िवषय म8 उसका िस(ानत
आधिु नक रा1य/ म8 नागरक के मौिलक अिधकार/ का आधार है।

अAयास B -
1. ‘ए लैटर ऑन टॉलरे शन’ नामक Cथ के लेखक कौन है ?
2. इ}ं लैdड क र\हीन Vांित कब हQई ?
3. लॉक Oयि\ के .............................................. अिधकार का बल समथ5क है
4. लॉक को आधिु नक काल म8 ........................................का ितपादक माना जाता है।
5. ‘टू <ीटाइजेज ऑफ गव5नमैट’ क रचना िकसने क ।

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ु िविवालय 175
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

6. #ान को अनभु व जम मानने के कारण लॉक को एक ................................िवचारक माना जाता है।
7. लॉक सरकार के कायm को ........................... भागो म8 बाटता है।

12.15 सारांश
उ\ इकाई के अ3ययन से यह आप समझ गये होग8 िक िकसी भी राजनीितक िवचारक के राजनीितक िचंतन पर
उसके समय क परि थितयां भािवत करती है। आप ने देखा िक जहाँ हॉ@स मानव वभाव का बरु ा िचZण करता
है वही लॉक मानव के वभाव के उदात और सकारा+मक प:/ पर बल देता है। ऐसा इसिलए सभं व हो सका
aय/िक लॉक ने इ}ं लैdड के गौरपणू 5 Vांित को देखा िक िकस कार बड़# परवत5न भी शांितपणू 5 तरीके से हो
सकता है। साथ ही लॉक ने ाकृ ितक अव था म8 भी जीवन वतZता और सHपि& के अिधकार/ को वीकार कर
Oयि\ को गौरवपणू 5 थान दान िकया है और रा1य के उ+पि& के मख ु कारण के Yप म8 इन अिधकार/ क र:ा
को माना यिद कोई सरकार इन अिधकार/ क र:ा नह9 कर पाती है तो उसे अपद थ करने का अिधकार जनता को
देता है। ऐसा करके वह ितिनिध सरकार का समथ5न करता है। सHपि& के अिधकार को मायता देकर वह
त+कालीन समय म8 उभरते हQए पजंू ीवाद को समथ5न दान करने का काय5 िकया वतZता क र:ा के िलए शासन
के अगं ो म8 शि\य/ के पृथaकरण क बात कर वह मैिकयावली का पवू 5 सकं े त देता है।

12.16 श!दावल$
ितिनिध सरकार:- जब सरकार के गठन म8 जनता क +य: या परो: भागीदारी हो, और वह सरकार जनता के
ित उ&रदायी हो तो उसे .................................................कहते है।
सीिमत सरकार:- िनरकुश सरकार के िवपरीत काननू का शासन अथा5त सरकार भी काननू से िनयिं Zत होती है।
ाकृ ितक अिधकार:- ाकृ ितक अिधकार वे अिधकार है जो मन;ु य को जमजात ाX होते है
जैसे जीवन, वा थ, वतZता तथा सHपि& के अिधकार।
फै डेरेिटवे:- वत5मान समय म8 िजसे हम काय5पािलका ^ारा िकया जाने वाला काय5 कहते है। लॉक इह9 कायm को
फै डेरेिटव कहता है।

12.17 अ&यास 
न' के उ तर
1. लॉक 2. 1688 ई0 3. सHपि& का अिधकार 4. सिं वधानवाद 5. 6. अनभु ववादी 7. तीन

12.18 संदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीित दश5न का इितहास-जॉज5 एच0 सेबाइन
2.पॉिलिटकल jयोरीज, एनिसएट एdड मेडीवल-डिनंग

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ु िविवालय 176
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
3.मा टस5 ऑफ पॉिलिटकल थॉट- ड@bय0ू टी0 जोस
4.पाFा+य राजनीितक िवचार/ का इितहास-डा0 भदु & शमा5
5.राजनीितक िचतन क .परे खा-ओ0पी0 गाबा

12.19 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1.राजनीित-कोश- डा0 सभु ाष कयप एवं िव] काश गXु
2.पाFा+य राजनीितक िचतक- आर0एम0 भगत

12.20 नबंधा मक 

1. लॉक के राजनीितक िवचार/ क िवशेषताऐ ं बताइये।
2. लॉक के ाकृ ितक अव था के िस(ात का पी:ण किजए।
3. लॉक के सामािजक संिवदा िस(ात क आलोचना+मक Oयाrया किजए।

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ु िविवालय 177
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

-13 : +
)% .% :(Jean Jacques Rousseau)
(1712-1778)
इकाई क$ संरचना
13.1 "तावना
13.2 उ4े5य
13.3 Jसो क$ कृ ितयाँ
13.4 Jसो का जीवन पLरचय एवं प!ित
13.5 Jसो का "ाकृ ितक अवथा के स;बध म( िवचार
13.6 Jसो का मानव वभाव के स;बध म( िवचार
13.7 Jसो का सामािजक संिवदा स;बधी िवचार
13.7.1 Jसो क$ "ाकृ ितक अवथा और सामािजक सिं वदा क$ आलोचना
13.8 Jसो क$ सामाय इ?छा स;बधी िवचार
13.8.1 यथाथ इ?छा
13.8.2 वातिवक इ?छा
13.8.3 सामाय इ?छा का िनमाण
13.8.4 सामाय इ?छा, जनमत और समत क$ इ?छा म( अतर
13.8.5 Jसो क$ सामाय इ?छा क$ िवशेषताएं
13.8.6 Jसो क$ सामाय इ?छा और िविध िनमाण के स;बध म( िवचार
13.8.7 Jसो क$ सामाय इ?छा िस!ात क$ आलोचना
13.8.8 Jसो क$ सामाय इ?छा िस!ात का महव
13.9 Jसो क$ स;"भतु ा स;बधी अवधारणा
13.10 Jसो के शासन स;बधी िवचार
13.11 Jसो के काननू , वतंRता, समानता, धम एवं िश+ा स;बधी िवचार
13.11.1 Jसो का काननू स;बधी िवचार
13.11.2 Jसो का वतंRता स;बधी िवचार
13.11.3 Jसो का समानता स;बधी िवचार
13.11.4 Jसो का धम स;बधी िवचार

उराखंड म
ु िविवालय 178
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
13.11.5 Jसो का िश+ा स;बधी िवचार
13.12 Jसो क$ हाAस तथा लॉक के साथ तल
ु ना
13.13 सारांश
13.14 शAदावली
13.15 अBयास के िलय "C
13.16 सदभ Dथ/सहायक पु तक(
13.17 अBयास "C9 के उ:र
13.18 िनबंधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 179
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

13.1 तावना
हा@स, लॉक एवं .सो ये तीन/ नाम आधिु नक राजनीितक िचतं न म8 सामािजक सिं वदा िस(ात से सHब( है।
िपछली इकाईय/ म8 हम हा@स तथा लॉक के बारे म8 सHयक .प से िववेचना कर चक
ु े हL। इस इकाई म8 हम .सो के
बारे म8 अ3ययन कर8 ग-े
सामािजक संिवदा के िवचारक/ म8 .सो का अ+यत मह•वपणू 5 थान है। वह एक rयात दाश5िनक एवं
Vाितकारी िवचार/ का णेता, िश:ा-शाhी आदश5वादी, मानवतावादी और यगु -िनमा5ता सािह+यकार था। उसके
Cथ/ ने ाचीन शासन के सHपणू 5 सामािजक ढाँचे को झकझोर िदया और एक नवीन लोकतZीय Oयव था िलए
माग5 तैयार कर िदया। Oयि\वाद, आदश5वाद और अ^ैतवादी लोकि य सH भतु ा के िविभन िस(ात/ को उसक
लेखनी से नया समथ5न और नया िदशा िनदnशन िमला। सव5Oयापी सामाय इiछा के िस(ात ^ारा उसने राजनीित म8
थायी सावयवी समाज क कbपना को बल िदया। .सो ने संिवदा िस(ात के आधार पर एक पणू . 5 पेण जनि य
सH भतु ा का िस(ात खड़ा कर िदया। लोकि यता, सH भतु ा, िविध, सामािजक वीकृ ित, शासन, Vाित आिद
िवषय/ पर अपने िनभfक और प> िवचार/ के कारण .सो ने अमर rयाित अिज5त क।

13.2 उेय
.सो का मrु य उेय मानव के आंतरक वभाव के िलये अपेि:त सiची वतZता िदलाना था। जबिक
त+कालीन ˆाँस म8 रा1य के पाशिवक बल और ािधकार म8 िनतात असंगित थी। उन िदन/ ˆाँस पर Oयि\य/ का
शासन था, काननू का नह9। ˆाँस क जनता को कोई वतZता नह9 थी। ˆाँस क जनता को अपने भओ ु ं क
+येक उिचत, अनिु चत आ#ा का पालन करना पड़ता था। जबिक ऐसे म8 .सो का मrु य उेय एवं िव]ास यह था
िक समाज के एक सiचे सगं ठन म8 न कोई वामी होगा और न कोई आदेश। ऐसे समाज म8 सभी सiची वतZता
का उपभोग कर सक8 गे। अब B उठता है िक aया कोई ऐसा राजनीितक सगं ठन सHभव है। .सो का उेय यह था
िक इस किठन सम या का समाधान वह अपने सामािजक सिं वदा िस(ात ^ारा दे सके । अपने Cथ ‘सोशल
का<ैaट’ म8 वह इसी उेय क ािX के िलये िविभन राजनीितक िस(ात/ का ितपादन करता है िजसका
अ3ययन हम इकाई म8 आगे कर8 गे।

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13.3 =स' क कृतयाँ


1. ‘‘हैज द रवाइवल ऑफ द साइस एdड द आट्5स हेbtड टू tयरू ीफाई ऑर टू करtट मोराbस’’
पर िनबध- 1749 ।
2. िड कोसnस ऑन द ओरिजन एdड फाउdडेशन ऑफ इनइaवािलटी पर िनबध- 1754
3. सोशल काटैaट अथवा ि ंिसपल ऑफ पॉिलकल राइट्स- 1762 म8 कािशत।
4. लॉ नॉवेल हेलॉयज-1761 म8 कािशत।
5. इमाइल-1762 म8 कािशत। 6. कफै शस 7. डाइलॉ}स 8. रवरीज

13.4 जीवन-परचय, कृतयाँ एवं प2त


.सो का जम सन् 1712 म8 िनध5न आइजक नामक घड़ी-बनाने वाले के यहाँ जेनेवा म8 हQआ। जम के समय ही
माता का देहात हो गया और िपता ने पZु को अपने दOु य5सन/ का साथी बना िदया। इस कार जम से ही वह
उपेि:त और नेहिवहीन रहा। इह9 परि थितय/ म8 10 वष5 क अव था म8 ही वह जेनेवा छोड़कर भाग गया।
त+पFात् लगभग 14 वष5 क अbपाव था म8 ही .सो को एक कठोर संगतराश (खदु ाई का काम करने वाला) के
पास काम करना पड़ा जो उसके साथ बड़ा ही पाशिवक Oयवहार करता था। वहाँ .सो को पेट भरने के िलए के वल
कठोर परWम ही नह9 करना पड़ा बिbक उसने चोरी करने और झठू बालने क कला भी सीखी। आिखर अपने
मािलक से तंग आकर .सो घर से भाग िनकला। तब उसक आयु 16 वष5 क थी।
जीवन के अगले कुछ वष5 .स/ ने ˆाँस म8 आवारागदf म8 िबताए। वह न के वल बरु ी संगित म8 पड़ गया बिbक
उसका वभाव ऐसा बन गया िक वह हमेशा वत5मान म8 ही रहता था, न भतू के िलए पछताता था और न भिव;य के
िलए िचता करता था। बाजा. औरत/ के साथ उसके ेम-सHबध चले, िकतु ये सHबध थायी मैZी का .प
कभी नह9 ले सके । पेरस म8 उसका िमZ वग5 उसे आिथ5क सहायता देता रहा। वह मजदरू / क गदी बि तय/ म8
जीवनयापन करने लगा । जीवनभर वह अिववािहत ही रहा, िकतु उसके अवैध सHबध सदा बने रहे। उसे वेिनस म8
ˆे च दतू ावास म8 नौकरी भी िमली िकतु अपने खराब िमजाज के कारण उसे पदiयतु होना पड़ा ।
आवारा, तािड़त और पीिड़त होने पर भी .सो बहQत करीब से जीवन के हर पहलू को देखता रहा। धम5 के सHबध
म8 .सो अि थर रहा। उसने कभी कै थोिलक धम5 को अपनाया तो कभी ोटे टेट मत को। इतना सब होने के बाद
आिखर उसके भा}य ने पलटा खाया। सन् 1749 म8 उसने एक ितयोिगता का समाचार पढ़ा। ितयोिगता का
िवषय था Has the revival of the Sciences and the Arts helped to purify or to corrupt morals
.सो ने इस ितयोिगता म8 भाग िलया। उसे थम परु कार िमला। अपने िनबध म8 िबलकुल मौिलक और
सनसनीखेज िवचार कट करते हQए उसने िलखा िक िव#ान तथा कला क तथाकिथत गित से ही सAयता का
›ास, नैितकता का िवनाश और चरZ का पतन हQआ है। अब .सो एकाएक ही िस( हो गया। पेरस के

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सािहि+यक :ेZ/ म8 उसे सHमान िमला, िकतु उसने भp समाज और धनाढ्य मिहलाओ ं के संसग5 म8 लौटने क
कोिशश नह9 क।
अब .सो क सोई हQई सािहि+यक ितभा और बौि(क चेतना जाCत हो गई थी। अब िलखना ही उसका Oयवसाय
और जीवन बन गया। सन् 1754 म8 उसने ‘डीजॉन क िव0ापीठ’ (Academy of Dijon) क ही एक अय
िनबध ितयोिगता म8 भाग िलया िजसका िवषय था ‘‘मन;ु य/ म8 िवषमता उ+पन होने का aया कारण है? aया
ाकृ ितक काननू इसका समथ5न करता है।’’ य0िप .सो परु कार नह9 जीत सका, तथािप उसने िनजी सHपि& और
त+कालीन ˆाँस के कृ िZम जीवन पर कठोर हार िकये। सन् 1754 ई0 म8 .सो पनु ः जेनेवा लौट गया जहाँ वह
कै थोिलक ोटे टेट बन गया और उसे िफर से जेनेवा गणतZ क नागरकता दे दी गई।
कुछ समय बाद .सो पनु ः पेरस चला गया। िवrयात लेिखका मदाम ऐिपने (Madam Epinay) ^ारा पेरस के
िनकट मौdट मेरेसी म8 .सो के िलए िनवास और भोजन क Oयव था कर दी गई। पेरस के कृ िZम जीवन से दरू
कृ ित क गोद म8 रहते हQए .सो ने Lock Nouvelle Heloise, The Emile तथा Social Contract नामक
िवrयात Cथ/ क रचना क िजनसे उसका नाम चार/ और फै ल गया। उसके ‘इमाइल’ Cथ ने तो ˆाँस म8 Vाित
सी उ+पन कर दी। उसके Vाितकारी िवचार/ से शासक और पादरीगण Vु( हो गए। सन् 1762 म8 उसक
िगर†तारी का आदेश िनकाला गया। .सो ने पेरस छोड़ िदया तथा जीवन के अय 16 वष5 एक खानाबदोश के .प
म8 िबताए। उसका वा jय िगरता रहा, िकतु लेखन काय5 जारी रहा। ाण र:ा के िलए वह जम5नी, इ}ं लैdड आिद
देश/ म8 भटकता रहा। 1766 म8 इ}ं लैdड म8 दाश5िनक मू ने उसे शरण दी। वहाँ बक5 भी उसका िमZ बन गया।
लेिकन .सो के िमZ उसक अिभमानशीलता को सहन नह9 कर सके । अतः िमZ/ के ित शंकालु होकर .सो पनु ः
गXु .प से ˆाँस भाग गया। मू अपने ितभाशाली िमZ/ क सहायता से यह Oयव था कर दी िक .सो को बदी
बनाने क आ#ा िVयािवत न क जाए।
.सो क अ3ययन प(ित बहQत कुछ हॉ@स के समान थी। उसने इितहास का सहारा लेकर अनभु िू तमल ू क प(ित
(Empirical Method )का अनमु ान िकया। उसक प(ित हॉ@स क ही तरह मनोिव#ानय\ ु थी। मैिकयावली,
बोदाँ, अbयिु सयस, हॉ@स, लॉक, Cोिशयस, िसडनी, मॉdटे aय,ू वाbटेयर आिद का उस पर पया5X भाव िदखाई
पड़ता है। यनू ानी और रोमन सािह+य तथा कािbवन के धािम5क िवचार/ से भी वह भािवत हQआ।

13.5 =सो क ाकृतक अवथा के स4बध म? वचार


.सो क ाकृ ितक अव था म8 मन;ु य कृ ित क गोद म8 वiछदतापवू 5क जीवनयापन करता था। वह अव था भय
और िचता से म\ ु थी। ाकृ ितक अव था म8 .सो का मन;ु य भला असAय जीव (Noble Savage) था, जो
ारिHभक सरलता और सख ु पणू 5 रीित से जीवन बसर करता था। वह वतZ, सतं ु>, आ+मतु>, व थ एवं िनभ5य
था। उसे न तो सािथय/ क आवयकता थी और न वह समाज के Oयि\य/ को दःु ख देना चाहता था। उसक सहज
वृि& और सहानभु िू त क भावना ने ही उसका दसू र/ के साथ गठबधन िकया। वह न तो सही को जानता था और न
ही गलत को। वह गणु और अवगणु क सब भावनाओ ं से अछूता थां उस दशा म8 के वल नैसिग5क शि\य/ से य\ ु
था। बिु ( एवं िववेक क करततू / का उसम8 अभाव था। ाकृ ितक अव था म8 ऊँच-नीच तथा मेरे-तेरे का कोई
भेदभाव नह9 था। Oयि\ वयं अपना वामी था। वह आ+मिनभ5र होता था। सAयता का िवकास न होने से उसक
आवयकताएँ बहQत कम थ9 और जो थ9 वह कृ ित क मा3यम से सहज ही परू ी हो जाती थ9। मन;ु य अपने वत5मान

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से ही सत>ु था, उसे भिव;य के िलए संचय क िचता नह9 थी। .सो क ाकृ ितक अव था वाला समाज सAयता
के भाव/ से सव5था म\ ु था। वह समाज ऐसी सनता का इiछुक था। िजसम8 सामािजक िनयम और सामािजक
सं थाओ ं का भाव िबलकुल न हो।
.सो क ाकृ ितक अव था ऐसे विण5म यगु सी थी िजसम8 िनयZण/ से म\
ु Oयि\ एक भोले और िनदmष प:ी
क तरह ाकृ ितक सौदय5 का उपभोग करता हQआ म ती से वiछदतापवू 5क िवचरता रहता था। उसे जंगली
कहना आसान था, aय/िक वह पहाड़/-जंगल/ म8 ही अिधवास करता था लेिकन जंगली होते हQए भी वह स1जन
तथा नेक था। सादगी उसका गणु था और भोलापन उसका जीवन।
िकतु विण5म यगु िछन-िभन हो गया। ाकृ ितक दशा क अव थाएँ िचरकाल तक ि थर नह9 रह सक9। .सो क
ाकृ ितक दशा को न> करने के िलए दो त+व उ+पन हQए। एक तो जनसंrया क वृि( था और दसू रा था तक5 का
उदय। जनसंrया क वृि( से आिथ5क िवकास तेजी से होने लगा। सरलता और ाकृ ितक सनता से ारिHभक
जीवन का लोप हो गया। सHपि& का अAयदु य हQआ और मन;ु य/ म8 परवार एवं वैयि\क सHपि& बनाने क इiछा
उ+पन हQई। पर‹ाजक क तरह वiछद घमू ने वाले वनचारी ने भिू म के िह से पर अपना अिधकार सहज,
नेहवश या अ थायी आवास क तरह जमाया। धीरे -धीरे वहाँ उसका थाई आवास बन गया। दसू रे सद य/ ने, जो
िनछल थे, Oयि\ िवशेष के इस आधार को िनःसंकोच मान िलया। वाद-िववाद या ितरोध उनक कृ ित से परे
था। जनसंrया क वृि( के साथ-साथ यह िVया बढ़ती गई। परवार और सHपि& क Oयाrया घर कर गई। अब
िवषमता का जम हQआ। मानवीय समानता न> होने लगी। मन;ु य ने मेरे और तेरे के भाव से सोचना आरHभ िकया
िजससे िनजी सHपि& क Oयव था का Wीगणेश हQआ। .सो के अनसु ार, ‘‘वह थम मन;ु य ही नागरक समाज का
वा तिवक सं थापक था िजसने भिू म के एक टुकड़े को घेर लेने के बाद यह कहा था िक वह मेरा है और उसी समय
समाज का िनमा5ण हQआ था जब अय लोग/ ने उसक देखा-देखी थान/ और व तुओ ं को अपना समझना ारHभ
िकया।’’ परणाम व.प अपे:ाकृ त बलवान आदमी अिधक माZा म8 काम करता था, िकतु द तकार को अिधक
अशं िमलता था। इस िवकास Vम का यह परणाम हQआ िक अब एक िवकृ ित सी सारी दशा पर छा गई। मन;ु य
सहज सख ु -शाित से हाथ धो बैठा। जीवन कलिु षत हो उठा।
यहाँ उbलेखनीय है िक .सो ने ाकृ ितक अव था के तीन कार माने हL। सबसे पहले आिदम ाकृ ितक अव था
थी। उस समय मन;ु य िनपट जंगली था, िफर म3यवतf ाकृ ितक अव था आई। तब असमानता का ारHभ हQआ
और संचयवृि& बढ़ गई। त+पFात् दमन एवं अ+याचार क पोिषका अितम अव था आई जो असहनीय थी और
िजसम8 मन;ु य क गित बरु े से सव5नाश क ओर (From bad to wrose and still wrose) थी। इस कुचV को
रोकने के िलए ही सामािजक संिवदा क आवयकता महससू हQई। इसी समय मन;ु य ‘ कृ ित’ क ओर वािपस
(Back to nature) चलने का नारा िदया। िकतु .सो हम8 सAयता क सम त देन/ का पर+याग करके पवू -5 रा1य
क अव था म8 नह9 ले जाना चाहता अिपतु ाकृ ितक दशा को आदश5 अव था तक पहQचँ ाना चाहता है। वह
जानता है िक समाज म8 आगे बढ़े हQए रथ को पीछे लौटना सHभव नह9 है पर साथ ही वह कृ ित-सल ु भ सौदय5,
सरलता और सहानभु िू त का उपासक है। ‘‘िववेक तथा तािक5 क बिु ( को वह कृ ित के ितकूल मानता है। .सो
का 'Natural Men' वह आदश5 है िजसको िवकास करते-करते हम8 ाX करना है। हम8 एक ऐसे ितJान क
आवयकता है जो Oयि\ और सं थाओ ं का पनु िनमा5ण करे गी।

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.सो ने ाकृ ितक दशा के बारे म8 यह दावा नह9 िकया िक िनिFत .प से कभी िकसी जगह वैसी दशा रही होगी।
अनमु ान से वह उस दशा क कbपना करता है। अपने िवचार/ म8 आगे चलकर वह संशोधन और परवत5न करता है
िजससे कई असंगितयाँ पैदा हो गयी हL लेिकन .सो वयं कहता है, ‘‘मL प:पात या पवू ा5Cह क बजाय
िवरोधाभास (Paradoxes) का ेमी ह’।ँ ’’

13.6 =सो का मानव-वभाव के स4बध म? वचार


मानव- वभाव के सHबध म8 .सो के अनसु ार मन;ु य वभावतः सदाशय और अiछा होता है। वह मन;ु य को
वभावतः भोला मानता है िजसे िकसी बात क िचता नह9 है। उसका जीवनयापन कृ ित क गोद म8 होता है।
संसार म8 पाये जाने वाले पाप, >ाचार, द>ु ता आिद गलत एवं > सामािजक सं थाओ ं क उ+पि& है। मन;ु य के
पतन के िलए > और दिू षत सामािजक सं थाएँ दोषी हL। मन;ु य वभाव से बरु ा नह9 होता अिपतु > कला के
कारण बरु ा बन जाता है।
अपने िवचार/ को िस( करने के िलए .सो मानव वभाव क दो मौिलक िनयामक वृि&याँ बताता है। मानव-
वभाव के िनमा5ण म8 सहायक थम वृि& है-आ+म- ेम अथवा आ+म-र:ा क भावना, िजसके अभाव म8 वह
कभी का न> हो गया होता। मानव वभाव िनमा5ण से दसू री सहायक वृि& है सहानभु िू त अथवा पर पर सहायता
क भावना जो सभी मन;ु य/ म8 पाई जाती है और जो सHपणू 5 जीवनधारी सृि> का सामाय गणु है। इसके कारण ही
जीवन संCाम इतना किठन तीत नह9 होता है। ये सभी भावनाएँ शभु हL इसिलए वभावतया मन;ु य को अiछा ही
माना जाना चािहए।
.सो का कहना है िक मन;ु य क उपरो\ दोन/ मल ू भतू भावनाओ ं म8 कभी-कभी सघं ष5 होना वाभािवक है।
पारवारक िहत क कामना कभी-कभी ऐसे कायk क माँग करती है जो समाज के िहत/ से तालमेल नह9 खाते।
चँिू क ये दोन/ भावनाएँ पणू 5 .प से सत>ु नह9 क जा सकत9, अतः Oयि\ समझौता करने के िलए िववश होता है।
आ+म-र:ा और परमाथ5 के कायk म8 सघं ष5 होने से पैदा होने वाली नई सम या का समाधान वह समझौतावादी
वृि& से करना चाहता है। इस कार के समझौते से एक नवीन भावना उ+पन होती है िजसे अतःकरण कहते हL।
अतःकरण कृ ित का उपहार है, यह के वल एक नैितक शि\ है, नैितक माग5दश5न नह9। माग5दश5न के िलए Oयि\
को िववेक नामक वयं म8 िवकिसत होने वाली एक अय शि\ पर िनभ5र रहना पड़ता है। िववेक Oयि\ को यह
िसखाता है िक उसे aया करना चािहए। िववेक मन;ु य का नैितक पथ- दश5न करता है और अतःकरण उसको उस
माग5 पर ेरत करता है। .सो इस तरह बतलाता है िक आ+म-र:ा एवं सहानभु िू त इन दो भावनाओ ं म8 सामंज य
और अय भावनाओ ं के िवकास करने म8 अतःकरण तथा िववेक दोन/ का योग होता है। .सो ने िववेक क
अपे:ा अतःकरण को अिधक मह•व सHभवतः इसिलए िदया है िक उस यगु म8 अतःकरण क बहQत उपे:ा क
जा रही थी। अतःकरण पर इतना अिधक बल देने के कारण ही उसे िववेक-िवरोधी एवं रोमांचकारी तक कह िदया
गया है। वा तव म8 .सो ने िववेक पर बड़े आ:ेप िकए हL। उसने बिु ( एवं िव#ान का िवरोध करके इसके थान पर
सlावना और W(ा को ितिJत िकया है। उसके अनसु ार बिु ( भयानक है aय/िक वह W(ा को कम करती है।
िव#ान-िवनाशक है aय/िक वह िव]ास को न> करता है और िववेक बरु ा है aय/िक वह नैितक सहज #ान के
िवरोध म8 तक5 िवतक5 को धानता देता है। िकतु िववेक के ित उसका िवरोध पणू 5 अथवा िनम5म नह9 है। वह
मानव Oयि\+व के िवकासम8 िववेक को उिचत थान दान करता है, हाँ उसे असीम अिधकार नह9 देता।

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प> है िक .सो के िववेचन का आधार मrु यतया यह िस( करना है िक मन;ु य वभाव से ही अiछा होता है। तो
िफर B उठता है िक पथ-> aय/ हो जाता है? .सो का तक5 है िक मन;ु य पथ-> उस समय होता है जब उसका
आ+म- ेम , दHभ म8 परवित5त हो जाता है। अतः शभु एवं वाभािवक बने रहने के िलए दHभ का पर+याग कर
देना आवयक है। िववेक को दHभ के चगं ल
ु म8 नह9 फँ सने देना चािहए।

13.7 =सो का सामािजक संवदा स4बधी वचार


.सो के अनसु ार ाकृ ितक अव था के अितम चरण क अराजकता से जब Oयि\ दख ु ी हो गए तब उह/ने वयं
को एक ऐसी सं था म8 संगिठत कर लेने क आवयकता अनभु व क िजसके ^ारा +येक Oयि\ क जान-माल क
र:ा हो सके और साथ ही Oयि\य/ क वतZता भी अ:dु ण बनी रहे। अतः उहोन8 पर पर िमलकर यह
समझौता िकया िक +येक मन;ु य अपनी वतZता, अिधकार एवं शि\ समाज को अप5ण कर दे। .सो के श@द/
म8, Oयि\य/ ने समझौते क शतk को इस कार Oय\ िकया है-‘‘हम म8 से +येक अपने शरीर को और अपनी
समचू ी शि\ को अय सबके साथ संय\ ु सामाय इiछा के सवmiच िनदnशन म8 रखते ह8 और अपने सामिू हक
व.प म8 हम +येक सद य को समि> के अिवभा1य अश ं के .प म8 वीकार करते हL।’’ .सो आगे िलखता है
िक, ‘‘समझौता करने वाले +येक Oयि\ के Oयि\गत Oयि\+व के थान पर, समहू बनाने क इस िVया म8,
एकदम नैितक तथा सामिू हक िनकाय का जम होता है जो िक उतने ही सद य/ से िमलकर बना है िजतने िक उसम8
मत होते हL। समदु ाय बनाने के इस काय5 से ही िनकाय को अपनी एकता, अपनी सामाय स&ा अपना जीवन तथा
अपनी इiछा ाX होती है। सम त Oयि\य/ के सगं ठन से बने हQए इस साव5जिनक Oयि\ को पहले नगर कहते थे,
अब उसे गणरा1य अथवा राजनीितक समाज कहते हL। जब यह िनि;Vय रहता है तो उसे रा1य कहते हL और जब
सिVय होता है तो सH भु तथा ऐसे ही अय िनकाय/ से इसक तल ु ना करने म8 इसे शि\ कहते हL।’’
प> है िक .सो के अनसु ार मन;ु य अराजक दशा को दरू करने के िलए जो समझौता करते हL, वह दो प:/ के बीच
िकया जाता है। एक प: म8 मन;ु य अपने वैयि\क .प म8 होते हL और दसू रे प: म8 मन;ु य अपने सामिू हक .प म8
होते हL। इस तरह समझौते के परणाम व.प रा1य-सं था के संगिठत हो जाने पर मन;ु य अपनी वतZता अिधकार
एवं शि\ को अपने से पृथक नह9 कर देते। वे इह8 अपने पास रखते हL पर Oयि\ .प से नह9 अिपतु सामिू हक .प
से अथा5त् समाज के अगं के कारण। अब मन;ु य क जान और माल क र:ा का उ&रदािय+व अके ले अपने ऊपर
नह9 रह जाता, वरन् सHपणू 5 समाज का कत5Oय हो जाता है िक वह +येक मन;ु य क वतZता और अिधकार/ क
र:ा करे । रा1य-सं था के संचालन क शि\ जनता म8 िनिहत होती है aय/िक जनता वयं भ+ु व शि\-सHपन
होती है। रा1य-शि\ के योग का अिधकार िजस शासक वग5 को िदया जाता है, वह जनता क आकां:ा के
अनसु ार ही काय5 करता है, aय/िक वह जनता क इiछा को िVया .प म8 परणत करने का साधन माZ है और
अपने क&5Oय/ का भली-भाँित पालन न करने पर अपने पद से पृथक िकया जा सकता है तथा उसके थान पर दसू रे
शासक वग5 को िनय\ ु िकया जा सकता है यिद वह जनता क इiछानसु ार काय5 करने का वचन दे।
.सो के समझौता िस(ात क िवशेषताएँ िनHनिलिखत हL
ाकृ ितक अव था के पहले चरण म8 सभी Oयि\ िनछल और सरल होते हL, िकतु कालातर म8 जनसrं या म8
वृि(, तक5 के उदय और सHपि& के वेश के कारण वे सघं ष5रत होते हL। इस अराजकता को समाX करने और पनु ः
अपनी वतZता क थापना के िलए वे एक समझौता करते हL। यह समझौता दो साव5भौिमक लsय/ पर आधारत

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होता है पहला यह िक मन;ु य जो समहू बनाते हL उसके अपने धन-जन क र:ा म8 सHपणू 5 समाज क सहायता उह8
ाX हो सके और दसू रे वे अिधकतम वतंZ हो सक8 ।
सामािजक समझौते के िVयाशीला एवं के pीय भाग का अथ5 है िक +येक सद य अपने सHपणू 5 अिधकार एवं
शि\याँ समाज को समिप5त कर देता है। इस ह तातरण क शत5 है समता, अथा5त सभी के साथ एक ही-सी शत5।
अतः इस समझौते से +येक को लाभ है। इस समझौते के फल व.प उ+पन हQआ समाज कभी भी दमनकारी एवं
वतZता िवरोधी नह9 हो सकता। इस समहू ीकरण से एक नैितक और सामिू हक िनकाय का जम होता है।
य0िप सभी Oयि\ अपने अिधकार/ का पणू 5 समप5ण करते हL तथािप जो अिधकार िवश( ु .प से Oयि\गत हL,
मन;ु य उह8 अपने पास रख सकते हL। उदाहरणाथ5 समाज का इस बात से कोई सHबध नह9 होता िक Oयि\ aया
खाता है, aया पहनता है। पर कोई िवषय साव5जिनक मह•व का है अथवा नह9 इसका िनण5य समाज ही करता है।
इस समझौते के फल व.प हQई एकता पणू 5 है, aय/िक ‘‘ +येक Oयि\ सबके हाथ/ म8 अपने आपको समिप5त करते
हQए िकसी के भी हाथ/ म8 अपने को समिप5त नह9 करता’’ एवं ‘‘ +येक Oयि\ अपने Oयि\+व और अपनी पणू 5
शि\ को सामाय योग के िलए, सामाय इiछा के सवmiच िनदnशन के अधीन समिप5त कर देता है और एक
समहू के अिवभा1य अगं के .प म8 उह8 ाX कर लेता है। अतः समाज क सामाय इiछा सभी Oयि\य/ के िलए
सवmiच हो जाती है और +येक Oयि\ उसके अधीन हो जाता है।’’ .सो के समाज म8 िकसी भी सद य को
िवशेषािधकार ाX नह9 है, सबका थान समान है। इस तरह रा1य म8 नागरक वतZता ही नह9 अिपतु समानता
भी ाX करते हL।
.सो के अनसु ार यह समझौता िनरतर चलने वाली िVया है िजससे +येक Oयि\ सामाय इiछा म8 िनरतर भाग
लेता रहता है और इस तरह रा1य को िनरतर सहमित दान करता रहता है।
सिं वदा के कारण मन;ु य अपने शरीर को अपने अिधकार/ और शि\य/ को िजस साव5जिनक स&ा को समिप5त
करता है, वह सब Oयि\य/ से िमलकर ही िनिम5त होती है। इसी को ाचीनकाल म8 नगर रा1य कहते थे और अब
गणरा1य या रा1य-सं था या राजनीितक समाज कहते हL। इसका िनमा5ण िजन Oयि\य/ से िमलकर होता है उह9
को सामिू हक .प से ‘जनता’ कहा जाता है। जब हम उह8 राजशि\ क अिभOयि\ म8 भाग लेते हQए देखते हL तब
हम उह8 ‘नागरक’ कहते हL और जब रा1य के काननू पालक/ के .प म8 देखने हL तो उह8 हम ‘ जा’ क स#ं ा देते
हL। सं:पे म8, .सो के अनसु ार सामिू हक एकता ‘रा1य’, ‘शि\’, ‘जनता’, ‘नागरक’ एवं ‘ जा’ सब कुछ है।
.सो के अनसु ार समझौता Oयि\ के दो व.प/ के म3य होता है। मन;ु य एक ही साथ िनि;Vय जाजन भी हL और
िVयाशील सH भु भी। एक सH भतु ा पणू 5 सघं का सद य होने के नाते +येक Oयि\ के वल उतना ही वतZ नह9
रहता िजतना वह पहले था बिbक सामािजक ि थित के अतग5त उनक वतZता और भी अिधक बढ़ जाती है
तथा सरु ि:त बन जाती है।
समझौते के फल व.प समाज अथवा रा1य का व.प सावियक होता है। +येक Oयि\ रा1य का अिवभा1य अगं
होने के कारण रा1य से िकसी भी कार से अलग नह9 हो सकता और न वह रा1य के िव.( आचारण ही कर
सकता है। .सो का समाज हॉ@स एवं लॉक क धारणा के समान Oयि\वादी नह9 है। .सो का यह समझौता एक
नैितक तथा सामिू हक ाणी का िनमा5ण करता है िजसका अपना िनजी जीवन है, अपनी िनजी इiछा है तथा अपना
िनजी अि त+व है। .सो इसे साव5जिनक Oयि\ कहकर पक ु ारता है। रा1य या समाज का सावयिवक .प बतलाते

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
हQए .सो ने एक थान पर िलखा है िक िविध िनमा5ण शि\ िसर के समान, काय5कारणी बाहQ के समान,
यायपािलका मि त;क के समान, कृ िष, उ0ोग तथा वािण1य पेट के समान और राज व र\-संचार के समान है।
समझौते ^ारा Oयि\ के थान पर समि> और Oयि\ क इiछा के थान पर सामाय इiछा आ जाती है। सामाय
इiछा का िस(ात .सो के सामािजक समझौते का सवा5िधक िविश> अगं है। सामाय इiछा सदैव यायय\
ु होती
है और जनिहत इसका लsय होता है।
सामािजक समझौते से उ+पन होने वाला समाज अथवा रा1य ही वयं सH भतु ा सHपन होता है। अपने िनमा5ण क
िVया म8 समाज वयं सH भतु ाधारी बन जाता है और समाज का +येक सद य इस भतु ा-सHपन िनकाय का
एक िनणा5यक भाग होता है। समझौते से िकसी कार क थापना नह9 होती, अिपतु सामाय इiछा पर आिधारत
सHपणू 5 भ+ु व सHपन समाज क थापना होती है और सरकार इस भतु व शि\ ^ारा िनय\
ु यZमाZ होती है।

13.7.1 Jसो क$ "ाकृ ितक अवथा और सामािजक सिं वदा क$ आलोचना


.सो क ाकृ ितक अव था और सामािजक संिवदा िस(ात क आलोचना के मrु य िबदु िनHनांिकत हL-
.सो ने ाकृ ितक अव था का जो िचZ ततु िकया है वह िनराधार एवं काbपिनक है। ऐितहािसक तjय यह
मािणत नह9 करते िक मन;ु य कभी ऐसा शाितमय, सख ु मय और आदश5 जीवन यापन करते थे। .सो क
ाकृ ितक अव था मानव- वभाव क गलत धारणा पर आधारत है।
.सो गित के िस(ात का िवरोध करते हQए कहता है िक मानव-समाज का िनरतर ›ास हो रहा है िकतु यह
िवचार तक5 -सHमत नह9 है। बिbक मन;ु य क िज#ासा वृि& उसे िन+य नवीन :ेZ/ क ओर उमख
ु करती है, पीछे
क ओर नह9 धके लती।
.सो के अनसु ार समझौता Oयि\ एवं समाज म8 होता है, िकतु दसू री ओर समाज समझौते का परणाम है-यह
प>तः एक िवरोधा+मक है और इस =ि>कोण से समझौता असंगत हो जाता है।
.सो क यह धारणा भी गलत है िक रा1य का जम िकसी समझौते का परणाम है। रा1य का जम तो मानव के
Vिमक िवकास ^ारा हQआ है।
.सो समझौते के ^ारा Oयि\ क खिु शय/, कामनाओ ं और वतZता को, सामाय इiछा क आड़ म8 रा1य क
इiछा पर यौछावर कर देता है।
.सो का समझौता रा1य-सं था के अभाव म8 सHभव नह9 है। समझौते के िलए यह आवयक है िक उसका
ितपादन करा सकने वाली कोई शि\ िव0मान हो अतः रा1य-सं था के ादभु त5ू होने के बाद तो मन;ु य आपस म8
कोई समझौता कर सकते हL, उसके पहले नह9। अराजक दशा म8 भी मन;ु य पर पर िमलकर कोई समझौता कर
सकते हL, यह कतई यिु \संगत तीत नह9 होता।
.सो के सामाय इiछा क जो Oयाrया क है, वह रा1य को वेiछाचारी बना देती है। चँिू क िविध िनमा5ण इसी
सामाय इiछा का अबाध अिधकार है, अतः यह अयाय भी कर सकती है। इसक आड़ म8 िनरंकुशता एवं अयाय
को ो+साहन िमल सकता है।

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13.8 =सो क सामाय इ8छा स4बधी वचार


.सो के सामािजक सिं वदा के िस(ात म8 ‘सामाय इiछा’ का बहQत अिधक मह+व है। ‘सामाय इiछा’ का
िस(ात राजनीितक िचतन के िलए .सो क अमर देन है। लेिकन जहाँ जनतZ के समथ5क/ ने म\ ु ‡दय से
इसका वागत िकया है वहाँ िनरंकुश शासक/ ने इसका दामन पकड़ कर जनता पर मनमाने अ+याचार भी ढाए हL।
शायद ही कोई िस(ात इतना िववादा पद रहा है िजतना क सामाय इiछा का िस(ात।
.सो क सामाय इiछा को भली-भाँित समझने के िलए सबसे पहले हम8 इiछा के व.प को समझना चािहए।
.सो के अनसु ार +येक Oयि\ क दो मख
ु इiछाएँ होती हL-
1. यथाथ5 इiछा (Actual Will)
2. वा तिवक इiछा (Real Will)

13.8.1 यथाथ इ?छा-


यथाथ5 इiछा वह इiछा है जो वाथ5गत, सक ं ण5 एवं परवत5नशील है। जब मन;ु य के वल अपने िलए ही सोचता है
तब वह यथाथ5 इiछा के वशीभतू होता है। .सो के अनसु ार मन;ु य क यह इiछा भावना- धान होती है िजसके
वशीभतू होकर मन;ु य िववेकहीनता से काय5 करता है। इनम8 Oयि\ का =ि>कोण सक ं ण5 तथा अत^5^मयी होता है।

13.8.2 वातिवक इ?छा-


इसके िवपरीत वा तिवक इiछा वह इiछा है जो िववेक, #ान एवं सामािजक िहत पर आधारत होती है। .सो के
अनसु ार यही एकमाZ WेJ इiछा है एवं वतZता क 0ोतक है। यह Oयि\ क वह उ+कृ > इiछा है जो ससु ंगिठत,
वाथ5हीन, कbयाणकारी एवं ससु ं कृ त होती है। यह इiछा Oयि\ म8 थाई .प से िनवास करती है। इस इiछा से
संचािलत Oयि\ यथाथ5 इiछा क भाँित अ थाई परणाम/ क ओर आकिष5त न होकर थाई िनण5य/ को वीकार
करता है। इसके िलए Oयि\ साव5जिनक िहत का िचतन करते हQए वाथ5 को िनHन थान देता है। मन;ु य क इस
इiछा का अिभOयि\करण Oयि\ और समाज के म3य होता है।
.सो के अनसु ार यथाथ5 इiछा Oयि\ के ‘िनHन व’ पर आधारत होती है तथा आदश5 इiछा उसके ‘WेJ व’ पर ।
यथाथ5 और वा तिवक इiछा के भेद पर ही ‘सामाय इiछा’ का िवचार आधारत है। वा तव म8 सामाय इiछा
समाज के Oयि\य/ क आदश5 इiछाओ ं का िनचोड़ अथवा उनका संगठन और समवय है। सामाय इiछा सब
नागरक/ क इiछा है, जबिक वे अपने Oयि\गत िहत/ के िलए नह9 बिbक सामाय कbयाण के इiछुक होते हL।
यह सबक भलाई के िलए सबक आवाज है। इस कार से सामाय इiछा सामिू हक कbयाण का ितिनिध+व
करती है।
सामाय इiछा क Oयाrया करते हQए .सो कहता है- ‘‘मेरी सामाय इiछा के अनबु ध म8 सभी लोग अपना
सव5 व रा1य को सŒप देते हL। रा1य का िहत सभी नागरक/ का सव5WेJ िहत हL।’’ वह आगे कहता है- ‘‘हमारे
सम त िVयाकलाप हमारी इiछा के परणाम है िकतु रा1य के कbयाणाथ5 जो मेरी इiछा है वह Oयि\गत लाभ/
क इiछा से या समाज के कbयाण क इiछा से अिधक नैितक है, aय/िक Oयि\गत लाभ/ या समाज के लोग/ क

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
इiछा का 3येय बदल सकता है। चँिू क ‘सामाय इiछा’ सम त नागरक/ क सव5WेJ इiछाओ ं का योग है, अतः
वह सव5साधारण क पणू 5 भ+ु व-सHपन इiछा ही है।’’ आगे चलकर .सो पनु ः िलखता है, ‘‘चँिू क सामाय इiछा
मेरी ही सव5WेJ इiछा है अतः मझु े इस इiछा का पालन अवय ही करना चािहए। यिद मL िकह9 वाथkवश उस
इiछा को परू ा नह9 करता तो सम त समाज क सामाय इiछा मझु े मजबरू कर सकती है िक मL तदनसु ार आचरण
क.ँ। aय/िक सामाय इiछा के आदशk का पालन करने म8 वयं अपने आदशk का ही पालन कर रहा ह’ँ और इस
कार सiची वतZता का उपभोग कर रहा ह’।ँ ’’
.सो के मतानसु ार ससं दीय शासन णाली म8 सामाय इiछा का ितिनिध+व सHभव नह9 है, aय/िक ‘‘जब रा;<
अपने ितिनिध िनय\ ु कर देता है तब सामाय इiछा वतZ नह9 रह जाती है। स+य यह है िक सामाय इiछा का
अि त+व ही नह9 रहता।’’ .सो का कहना है िक द& सामाय इiछा का अथ5 तो मृत सामाय इiछा है।
प> है िक .सो के अनसु ार सामाय इiछा Oयि\ का ही िविश> .प नह9 वरन रा1य का भी है। +येक समदु ाय
एवं सं थान, िजसके सद य/ म8 साव5जिनक भावना होती है, एक सामिू हक मि त;क क िव0मानता को इिं गत
करता है। यह सामिू हक मि त;क Oयि\य/ के मि त;क/ के योग से उiचतर होता है। इस कार रा1य को, जो िक
सबसे उiच समदु ाय है, सामिू हक मि त;क भी उiचतर होगा एवं एक नैितक अि त+व रखेगा। .सो का िवचार है
िक िजस अनपु ात म8 लोक साव5जिनक िहत को सामने रख सक8 गे और अपने Oयि\गत िहत/ को भल ु ा सक8 गे उसी
अनपु ात म8 सामाय इiछा पणू 5 होगी।

13.8.3 सामाय इ?छा का िनमाण


.सो के अनसु ार सामाय इiछा के िनमा5ण क िVया ‘सव5साधारण क इiछा’ से ारHभ होती है। Oयि\
सम याओ ं को पहले वयं के =ि>कोण से देखते हL िजसम8 उनक यथाथ5 एवं वा तिवक दोन/ इiछाएँ शािमल रहती
हL, िकतु राजनीितक चेतना वाला Oयि\ अपने िववेक के काश म8 इन इiछाओ ं का अश( ु और अनैितक भाग
समाX कर देता है और तब के वल वा तिवक इiछा ही बची रहती है। इiछाओ ं का ऐसा श( ु समवय ही सामाय
इiछा बन जाती है। सामाय इiछा के िनण5य आदश5 होते हL िजनका पालन सभी Oयि\ करते हL। साव5भौिमकता का
ितिनिध+व सामाय इiछा ही करती है। जब साव5भौिमकता लोककbयाण के िहत म8 काय5 करती है तो सामाय
इiछा का पालन होता है।

13.8.4 सामाय इ?छा, जनमत और समत क$ इ?छा म( अतर


सामाय इiछा म8 सामाय िहत पर बल िदया जाता है जबिक जनमत म8 संrया बल पर। सामाय इiछा एक Oयि\
या थोड़े Oयि\य/ क इiछा भी हो सकती है, िकतु जनमत का आधार यह है िक िकस िवषय पर जनता को
िकतना समथ5न ाX है।
.सो के अुनसार सामाय इiछा के वल सामाय िहत/ का िवचार करती है, सम त इiछा वैयि\क िहत/ का िवचार
करती है और िवशेष इiछाओ ं का योग माZ है। सामाय इiछा का ‘सHपणू ’5 के .प म8 (Oयि\य/ के एक समहू माZ
के .प म8 नह9) समाज क इiछा को अिभOय\ करती है, वह सद य/ क पर पर िवरोधी इiछाओ ं के बीच
समझौता नह9 है बिbक यह एकल तथा एका+मक इiछा है। हॉ@स का यह कथन िक ‘लेिवयाथन’ क सवmiच
इiछा सबक इiछाओ ं से कह9 अिधक है और वह एक ही Oयि\ म8 उन सबका एककृ त हो जाना है, .सो क
सामाय इiछा पर भी लागू होता है। सामाय इiछा के वल वा तिवक इiछा का सार है और सदैव सामाय िहत क

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ओर ही संकेत करती है। सामाय इiछा समाज के उiचतम िवचार क अिभOयि\ होती है और यह आवयक
नह9 है िक समाज क बहQसंrया ^ारा यह िनधा5रत हो। सामाय इiछा म8 भावना क धानता है जबिक सव5सHमित
अथवा सम त क इiछा म8 सHमित देने वाले Oयि\य/ क संrया का मह+व है। वा तिवक इiछा क धानता होने
पर जनिहत म8 वृि( होगी और यथाथ5 इiछा क धानता होने पर के लव वग5 िवशेष क वाथ5-िसि( होगी।
सामाय इiछा म8 अिहत क कोई गंजु ाइश ही नह9 है। वह तो सदा WेJ और शभु है।

13.8.5 Jसो क$ सामाय इ?छा क$ िवशेषताएँ-सामाय इiछा िववेकय\ु एवं बिु (जय होने के
कारण वह आ+म-िवरोधी नह9 होती। इस इiछा का अिभ ाय ही यह है िक िविभनता म8 एकता थाितप हो जाए।
.सो के वयं के श@द/ म8-‘‘यह रा;<ीय चरZ क एकता को उ+पन और ि थर करती है और उन समान गणु / म8
कािशत होती है िजनके िकसी रा1य के नागरक/ म8 होने क आशा क जाती है’’
सामाय इiछा थायी एवं शा]त है। #ान और िववेक पर आधारत होने के कारण इसम8 ि थरता होती है। .सो के
श@द/ म8-‘‘इसका कभी अत नह9 होता, यह कभी > नह9 होती। यह अिन+य, अपरवत5नशील तथा पिवZ होती
है।’’
सामाय इiछा सदैव शभु , उिचत तथा कbयाणकारी होती है और सदैव जनिहत को लेकर चलती है। यह इiछा
WेJ इiछा है aय/िक यह सबक वा तिवक इiछाओ ं का योग है। सामाय इiछा के होते हQए थम तो कोई दोषपणू 5
िनण5य हो ही नह9 सकता और यिद ऐसा हो भी जाए तो दोष सामाय इiछा का नह9 वरन् उसके संचालन करने
वाल/ का होता है।
सामाय इiछा सH भतु ाधारी है। सH भतु ा के समान ही वह अिवभा1य अदेय है। यह छोटे-छोटे समहू / म8 िवभ\
नह9 हो सकती। इसे सरकार के िविभन अगं /-काय5पािलका, यायपािलका आिद म8 भी िवभ\ नह9 िकया जा
सकता। इसके िवभाजन का अथ5 इसे न> करना है। सामाय इiछा का ितिनिध+व भी इसके अितर\ और कोई
नह9 कर सकता। सH भतु ा के समान ही सामाय इiछा भी िनरपे: है। .सो के अनसु ार सामाय इiछा ^ारा ेरत
काय5 सदैव िन;काम होते हL। यह िन;काम दो कार से होती है- थम, इसका 3येय सदैव सामाय िहत होता है और
ि^तीय, यह सामाय िहत क बात/ म8 जनसेवा भाव से ेरत होती है।
सामाय इiछा को रा1य का अिधकार मान लेने पर यह प> हो जाता है िक रा1य शि\ से नह9, अिपतु जनता क
सहमित से संचािलत होता है।

13.8.6 Jसो क$ सामाय इ?छा और िविध-िनमाण के स;बध म( िवचार


.सो के अनसु ार सामाय इiछा का मह+वपणू 5 काय5 िविध-िनमा5ण करना है। .सो के ही श@द/ म8 संिवदा रा1य को
अि त+व एवं जीवन दान करता है और Oयव थापन ^ारा हम8 उसे गित तथा इiछा दान करनी होती है, aय/िक
िजस मलू सिं वदा के ^ारा रा1य का िनमा5ण तथा सगं ठन होता है, वह िकसी भी कार यह िनधा5रत नह9 करता िक
रा1य को अपने ित:ण के िलए aया करना चािहए।’’
िविध-िनमा5ण का काय5 सH भतु ाधारी का है और सH भतु ा सामाय इiछा म8 िनिहत है, अतः िविध-िनमा5ण
एकमाZ सामाय इiछा का ही काय5 होना चािहए। सामाय इiछा के अितर\ अय िकसी के ^ारा िवधायी काय5
नह9 िकया जा सकता और चिँू क िविध सामाय इiछा क अिभOयि\ है अतः +येक मन;ु य के िलए उसक आ#ा

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का पालन करना आवयक है। िविध अयायपणू 5 नह9 हो सकती aय/िक वह उस सामाय इiछा का आदेश होती
है। िजसका उेय सव5साधारण का वा तिवक कbयाण होता है। .सो के अनसु ार िविध के अधीन रहने पर भी हम
वतZ रह सकते हL, यिद िविध वयं हमारी इiछा को ही अिभOय\ करती हो। िविध का अि त+व भी तभी है जब
सब लोग त…सु ार काय5 करते रह8। .सो के िवचार/ म8 यहाँ एक िवरोधाभास है। वह सामाय इiछा ^ारा अिभOय\
िविध क सवmiचता का भी उतना ही समथ5क है िजतना Oयि\गत अिधकार/ का। वह वयं कहता है, ‘‘रा1य
अपने सद य/ पर ऐसा कोई बधन नह9 लगा सकता जो समाज के िलए बेकार हो।’’
चँिू क सामाय इiछा सदैव सद् होती है, िकतु उसका िनदnशन करने वाली िनण5यबिु ( पणू 5 #ानय\
ु नह9 होती अतः
जनता को सद-असद या शभु -अशभु का #ान कराने के िलए और दरू दिश5तापणू 5 एवं िववेक-सHHत िविध िनमा5ण
करने के िलए .सो िविध िनमा5ता का िवधायक ( महपेसजं वत) क भी Oयव था करता है। इस िवधायक को
अि^तीय ितभा सHपन और उिचत िविधय/ एवं स ं थाओ ं क Oयव था करने म8 समथ5 होना चािहए। उसे एक
ऐसा िव^ान दाश5िनक होना चािहए जो जनसाधारण क िविभन आवयकताओ ं को समझता हो और परि थितय/
के अन. ु प िविधय/ क .परे खा बना सकता हो। उसका काय5 माZ एक िवशेष# परामश5दता का है। िविधय/ को
काया5िवत करने का काय5 सH भतु ाधारी ही करे गा।
13.8.7 .सो क सामाय इiछा के िस(ात क आलोचना
.सो क सामाय इiछा राजदश5न को एक अमbू य देन है तथािप इस िस(ात क िनHनिलिखत आधार/ पर कटु
आलोचना क गई है-
.सो क सामाय इiछा का िस(ात बड़ा अ प> और जिटल है। यह बताना किठन है िक यह सामाय इiछा कहाँ
है। .सो क सामाय इiछा क परभाषा म8 हमको कह9 भी प> काश नह9 िमलता।’’ वेपर - कहता है िक ‘‘जब
.सो सामाय इiछा का पता ही हमको नह9 दे सकता तो इस िस(ात के ितपादन का लाभ ही aया हQआ? य0िप
.सो ने हमको सामाय इiछा के बारे म8 बहQत कुछ बतलाया है िफर भी जो कुछ बतलाया गया है वह पणू त5 ः
अपया5X है।
.सो के बचाव म8 हम यह9 कह सकते हL िक वह पणू त5 ः दोषी नह9 है। यह िवषय ही बड़ी जिटलता िलए हQए है।
‘सामाय इiछा’ िकतनी भी वा तिवक aय/ न हो, वह साकार नह9 हो सकती और उसका यह िनराकार व.प ही
उसके िवƒे षण को बड़ा किठन बना देता है।
सामाय इiछा िजस साव5जिनक िहत पर आधारत है उसे जानना किठन है। साव5जिनक िहत क Oयाrया
शासकगण अपनी इiछानसु ार करते हL। ऐसे म8 सामाय इiछा के मा3यम से शासकगण इसका द.
ु पयोग भी कर
सकते हL।
मानवीय इiछा को यथाथ5 और वा तिवक इiछा म8 बाँटना सHभव नह9 है। aय/िक मानवीय इiछा तो ऐसी जिटल,
पणू ,5 अिवभा1य समि> है यिद ऐसे िवभाजन क कbपना कर भी ली जाय तो यह िनण5य करना असHभव सा होगा
िक कौन सी इiछा यथाथ5 है और कौन सी वा तिवक?
‘सामाय इiछा’ का िस(ात एक ओर तो रा1य क िनरंकुशता क थापना करता है और दसू री ओर Vाित के
औिच+य को िस( करता है। .सो के िस(ात म8 Oयि\ अपने सम त अिधकार ‘सामाय इiछा’ को समिप5त कर

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
देता है जो सवmiच शि\ के .प म8 शासन करती है। य0िप उसका उेय वैयि\क वतZता को सरु ि:त रखना है
तथािप बहQमत से असहमत होने वाले Oयि\य/ के िलए बचाव के सभी माग5 बद हL। .सो ने Oयि\ क तल ु ना म8
रा1य और सरकार के हाथ म8 असाधारण स&ा और शि\ सŒप दी है। पनु F, .सो िलखता है िक, ‘‘जनता सदैव
अपना िहत चाहती है, िकतु वह सदैव इसे नह9 देख सकती।’’ अतः जनता को उसका िहत बतलाने वाले नेता
और पथ- दश5क सHपणू 5 स&ा हिथयाकर िनरंकुश शासक बन सकते हL। जोस का कहना है िक ‘‘सामाय इiछा
क धारण के योग म8 मन;ु य का भय यह है िक रा1य म8 तानाशाही क वृि& का उदय हो जाता है।’’
सामाय इiछा का िस(ात छोटे रा1य/ म8 भले ही सफल हो सके , पर आधिु नक िवशाल और िविवध िहत/ से
परपणू 5 जनसrं या वाले रा1य/ म8 सफल नह9 हो सकता। आधिु नक रा1य/ म8 सामाय िहत का िनधा5रण करना
लगभग असHभव ही है।
.सो सामाय इiछा के िनधा5रण के िलए राजनीितक दल/ क स&ा और ितिनिध मल ू क शासन-Oयव था का
िवरोध करता है जबिक इनका होना आधिु नक जातािZक रा1य/ क सफलता के िलए अिनवाय5 है।
.सो क सामाय इiछा न तो सामाय है और न इiछा ही, वरन् िनराधार एवं अमतू 5 िचता माZ है।
व तुतः .सो क सामाय इiछा के िस(ात क गHभीरतम आलोचना यही लगती है िक न तो ‘‘यह सामाय है
और न इiछा ही’’ इस आपि& का अथ5 यह है िक इiछा सामाय होने पर इiछा ही नह9 रहती। दसू रे श@द/ म8
इiछा िकसी िवशेष क हो सकती है। Oयि\ अपनी जमजात शारीरक, मानिसक और आ3याि+मक वृि&य/ को
सतु> करने के िलए तथा अपनी जीवन क आवयकताओ ं को परू ा करने के िलए कुछ कामना करता है और कुछ
चीज8 चाहता है और यही वा तव म8 उसक इiछा है। इस कार क इiछा अलग-अलग Oयि\य/ म8 िनवास करती
है aय/िक अलग-अलग Oयि\य/ का अपना-अपना जीवन होता है। वा तव म8 सामाय जीवन जैसी कोई चीज नह9
है और जब सामाय जीवन ही नह9 है तो सामाय इiछा कै से हो सकती है? हो सकता है िक एक Oयि\ अपने
कbयाण क इiछा करे और अपने ही सरीखे दसू रे लोग/ के कbयाण क इiछा कर8 िकतु इन दोन/ ही सरू त/ म8
इiछा िविश> होगी, सामाय नह9।

13.8.8 Jसो क$ सामाय इ?छा के िस!ात का महव


.सो क सामाय इiछा के िस(ात क िविभन आलोचनाओ ं के बावजदू राजदश5न म8 इसका मह+वपणू 5 थान है-
.सो क सामाय इiछा ने आदश5वादी िवचारधारा क न9व डाली िजसे आधार मानकर टी.एन. Cीन ने रा1य का
मrु य आधार बल न मानकर इiछा को माना। उसने इसी िस(ात क सहायता से यह मािणत करने का यास
िकया िक जनतZ बहQमत क शि\ का परणाम नह9 है वरन् सिVय िनः वाथ5 इiछा का फल है।
.सो क सामाय इiछा राजनीितक कायk म8 पथ- दश5न का काय5 करती है। उसके अनसु ार सामाय इiछा का
मख
ु काय5 िविध िनमा5ण और शासनतZ क िनयिु \ और उसे भगं करना है।
अपने िस(ात के ^ारा .सो ने Oयि\गत वाथ5 क अपे:ा सामाय िहत को उभारा है और बतलाया है िक
सामाय उेय क सामाय चेतना ही समाज को व थ और पर;कृ त बनाती है।

उराखंड म
ु िविवालय 192
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
.सो ने एक ऐसे समाज क थापना क िजसम8 नागरक नैितक वतZता ाX कर सके । .सो के अनसु ार Oयि\
के अिधकार- वतZता और नैितकता, सामाय इiछा के ^ारा ाX हो सकते हL। .सो के इस िस(ात के आगे
चलकर कbयाणकारी रा1य िस(ात के िवकास म8 बड़ा योग िदया। सामाय इiछा के िस(ात ने इस िवचार का
पोषण िकया िक रा1य एक नैितक संगठन है जो मानव क असामािजक एवं वाथf वृि&य/ का पर;कार करते
हQए सामिू हक कbयाण पर 3यान देता है।
सामाय इiछा का िस(ात समाज एवं Oयि\ म8 शरीर तथा उसके अगं / का सHबध थािपत करके मानव के
सामािजक व.प को =ढ़ करता है।
.सो क सामाय इiछा प> करती है िक रा1य एक ाकृ ितक सं था है और हम उसका पालन इसिलए करते हL
aय/िक सामाय इiछा हमारी आतरक इiछा का ितिनिध+व माZ है।

13.9 Jसो क$ स;"भतु ा स;बधी अवधारणा


.सो का सH भतु ा िस(ात हॉ@स, लॉक तथा बोदाँ के िवचार/ से भािवत है। उसने सH भतु ा क Oयाrया हॉ@स
क पणू त5 ा और संि:Xता के साथ तथा लॉक क िविध के आधार पर क है।
.सो ने सH भतु ा को सामाय इiछा म8 के िpत माना है। यह समाज अथवा समदु ाय म8 िनवास करती है। सH भतु ा
को जनता म8 ितिJत करके .सो िनरंकुशवाद के िव.( एक बहQत बड़ा शh तुत करता है। उसके अनसु ार
+येक Oयि\ भु शि\ का िह सेदार है। चँिू क समाज वयं सH भु है, अतः वह9 सवmiच शि\ है और उस शि\
का कोई शZु नह9 हो सकता। जनता सरकार के कायk पर कड़ी और सचेत िनगाह रखती है। यहाँ िवpोह का कोई
B ही नह9 उठता, aय/िक जनता वयं सH भु है।
.सो ने सH भतु ा को ‘सामाय इiछा’ म8 िनिहत करके एक असीम, अिवभा1य और अदेय साव5भौिमकता का
समथ5न िकया है। हॉ@स क भाँित िनरंकुशता के तर म8 उसने कहा है िक ‘‘िजस कार कृ ित मन;ु य को अपने
अगं / पर िनरंकुश स&ा देती है उसी कार सामािजक समझौता भी रा1य को अपने अगं / पर सHपणू 5 िनरंकुश स&ा
दान करता है।’’ िकतु हॉ@स क िनरंकुशता और .सो क िनरंकुशता म8 एक बहQत बड़ा अतर है। जहाँ हॉ@स क
िनरंकुशता शासक से सHब( है वहाँ .सो क जनता से। .सो ने हॉ@स क िनरंकुश भतु ा और लॉक क
साव5जिनक इiछा को एक साथ िमलाकर लोकि य सH भतु ा को जम िदया है।
.सो के अनसु ार सH भतु ा सHपणू 5 जनता म8 सामिू हक .प से िनवास करती है अथवा यह ‘सामाय इiछा’ को
दिश5त करती है, अतः इसका ितिनिध+व नह9 हो सकता। वा तव म8 यह सH भतु ा ही िविधय/ का मलू Rोत है।
.सो क सH भतु ा िस(ात भी िवराधाभास/ से पणू 5 है। एक ओर तो वह सH भतु ा को असीिमत बतलाता है।
दसू री ओर यह भी िवचार रखता है िक सH भतु ा कोई ऐसा काय5 नह9 कर सकती जो सामाय िहत के िवरोध म8 हो।
सH भु को सवmiच शि\याँ देने पर भी .सो का आCह है िक शासक को उिचत कार से शासन करना चािहए
तथा याय और समानता का िनयम सदैव लागू होना चािहए। यह िवरोधाभास लोकि य शासन के ित .सो के
अगाध ेम के कारण ही है।

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ु िविवालय 193
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िन;कष5 .प म8, .सो लोकि य भसु &ा म8 िव]ास रखता है। उसके राजनीितक दश5न का रह य ‘एक राजा के
थान पर लोक भ+ु व को थािपत करने म8 है। aय/िक समाज ही सH भतु ा का Rोत और वामी है।

13.10 Jसो के शासन स;बधी िवचार


लॉक क भाँित ही .सो भी रा1य और शासन अथवा सरकार के म3य अतर प> करता है। उसके श@द/ म8
‘‘सामािजक समझौते ^ारा िनिम5त सHपणू 5 समाज िजसम8 िक सामाय इiछा का वास होता है रा1य है। जबिक
शासन अथवा सरकार के वल वह Oयि\ अथवा Oयि\ समहू है िजसको समाज ^ारा यह अिधकार िदया जाता है
िक वह सH भतु ा क इiछा लागू करे ।’’ अथा5त् यहाँ प> है िक Oयि\ एक बरु े शासक का िवरोध कर सकता है,
रा1य का नह9।
.सो के िवचार से प> है िक सामािजक समझौते ^ारा रा1य अथवा सH भतु ा का जम होता है, शासन या सरकार
का नह9। शासन तो एक म3यवतf सं था (।द tदजमतउमकपंजम ठवकल) है िजसक थापना सH भतु ा ओर
जनता के बीच क जाती है तािक लोग/ क नागरक और राजनीितक वतZता क र:ा हो सके । इसी Vम म8
शासन के िनमा5ण के िलए ‘एकिZत सH भु जनता’ ने पहले शासन का व.प िनधा5रत िकया और तब यह िनिFत
िकया िक इस कार थािपत पद/ पर िकन Oयि\य/ क िनयिु \ क जाए। .सो का िव]ास है िक +येक शासन
का .प जनतZ से ही आरHभ होता है।
.सो के िवƒे षण से प> होता है िक रा1य परू े समाज का सचू क है जो अनबु ध ^ारा बना है और सामिू हक इiछा
को अिभOय\ करता है। इसके िवपरीत शासन के वल शि\ या Oयि\-समहू का सचू क है जो समाज ^ारा आदेश
पाकर सामाय इiछा को काया5िवत करने म8 त+पर है। .सो ने सरकार को याय-र:क मdडल अथवा राजा कहकर
पक
ु ारा है। सरकार या शासन सH भु सHपन जनता क नौकर माZ है और सH भु जनता ^ारा दी गई शि\य/ को
योग ही कर सकता है। जनता अपनी इiछानसु ार सरकार क शि\ को सीिमत या सश ं ोिधत कर सकती है और
उसे वािपस भी ले सकती है। यहाँ हॉ@स और .सो क धारण म8 प> अतर है। हॉ@स के अनसु ार शासन को न तो
बदला जा सकता है और न उसके िव.( िवpोह ही हो सकता है aय/िक जनता और शासन के सHबध म8 आधार
सिं वदा है। इसके िवपरीत .सो के शासन या सरकार का िनमा5ण िकसी सिं वदा ^ारा नह9 बिbक सH भु सHपन
जनता के +यादेश ^ारा होता है।
.सो ने शासन का वगfकरण िकया है, िकतु यह वगfकरण .सो के राजनीितक िचतन क सबसे कमजोर कड़ी है।
उसके अनसु ार शासन के िनHन .प हो सकते हL:-
(1) राजतZ (Monarchy) (2) कुलीनतZ (Aristocracy)
(3) जनतZ (Democracy) (4) िमिWत (Mixed)
िजस सरकार क बागडोर एक Oयि\ के हाथ म8 होती है तो उसे राजतZ, कुछ Oयि\य/ के हाथ म8 होती है तो उसे
कुलीनतZ और सम त जनता या उसके बहQमत के हाथ म8 होती है तो उसे जनतZ कहा गया है। सरकार के इन
तीन/ कार/ क .परे खा बदलती रहती है। चौथा वग5 िमिWत सरकार का है। सरकार के इन .प/ म8 सवm&म कौन-
सा है, सै(ाितक .प से यह बताना सHभव नह9 है। परि थितय/ और देशकाल के अनसु ार कोई भी शासन
सवm&म या िनकृ >तम हो सकता है। हाँ, यह अवय है िक शासन क गित का िनिFत िचह् जनसंrया है। िजस

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ु िविवालय 194
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
रा1य म8 जनसंrया बढ़ती जाएगी, समझना चािहए िक वह गित क ओर बढ़ रहा है। .सो क यह बात आज के
यगु म8 िनFय ही िविचZ लगती है।
उbलेखनीय है िक शासन के िविवध कार/ म8 .सो का सझु ाव यनू ानी नगर रा1य/ के +य: जातZ क ओर है।
वह ितिनिध सभाओ ं को राजनीितक पतन का िचह् मानता है। ितिनिध+व का अथ5 है- वतZता का हनन।
िटेन क िनवार् चन था के िवषय म8 उसका मत था िक वहाँ नागरक के वल िनवा5चन काल म8 ही वतZ होते हL,
इसके बाद दास बन जाते हL। .सो ने देखा िक सरकार म8 लोक िनयZण से बचने और अपनी शि\य/ का सार
करने क वृि& होती है। अतः उसने यह मत कट िकया िक सरकार ^ारा शि\ के अपहरण को रोकने के िलए
यह आवयक है िक भ+ु व सHपन जनता क समय-समय पर सभाएँ हQआ कर8 जो यह िनFय करे िक वत5मान
शासन Oयव था और अिधकारय/ म8 कोई परवत5न िकया जाना उिचत है अथवा नह9। उसका यह भी कहना था
िक जब जनता भ+ु व सHपन सभा के .प म8 एकिZत होती है तो सरकार का :ेZािधकार समाX हो जाता है। .सो
के =ि>कोण म8 इस िवचार का पवू ा5भास िमलता है िक िनिFत अविध पर सिं वधान क तथा सरकारी अिधकारय/
के कायk क समी:ा क जानी चािहए।

13.11 =सो के कानन


ू ,वतंGता,समानता,धम) एवं 1श3ा
स4बधी वचार
13.11.1 Jसो का काननू स;बधी िवचार
.सो ने अपनी रचना ‘राजनीितक अथ5शाh’ म8 काननू के िवशेष मह•व देते हL। काननू ही से +येक Oयि\ को यह
िश:ा िमलती है िक वह अपने िनधा5रत िवचार/ के अन.ु प काय5 करे और अपने से असगं त .प के काय5 से बचे।
यिद काननू का पालन नह9 िकया जाएगा तो नागरक समाज क Oयव था समाX हो जाएगी और मन;ु य को पनु ः
ाकृ ितक अव था म8 लौट जाना पड़ेगा। अपने स ु िस( Cथ सामािजक अनबु ध म8 .सो ने चार कार के काननू /
का वण5न िकया है-(1) राजनीितक काननू िजनके ^ारा सH भतु ा का रा1य के साथ सHबध िनधा5रण होता है, (2)
दीवानी काननू िजनसे नागरक/ के पार परक सHबध िनधा5रत होते हL, (3) फौजदारी काननू जो काननू क आ#ा
के उbलंघन का दdड िनिFय करते हL और (4) जनमत नैितकता तथा रीित-रवाज। .सो के अनसु ार ये रा1य के
वा तिवक संिवधान हL और के ‡दय-पटल पर अिं कत हL।
.सो के अनसु ार काननू सामाय इiछा क अिभOयि\ है। सामाय इiछा सदैव जनता के कbयाण क कामना
करती है, अतः यह कभी भी काननू ^ारा अयाय करने क इiछा नह9 कर सकती। ‘‘काननू हमारे आतरक
संकbप क अिभOयि\ है अतः वतZता और काननू / क आ#ाकारता म8 कोई िवरोध नह9 है।’’
.सो के अनसु ार काननू ही समाज म8 समानता लाता है और कोई भी रा1य के वल तभी तक वैध है जब तक वह
काननू के अनसु ार काय5 करता है। प> है िक .सो भी काननू को उसक कार सवmiचता देता है िजस कार
tलेटो ने दी थी। अतर के वल यही है िक .सो अपने काननू .पी भु को सामाय इiछा के अधीन कर देता है।
काननू पर िवचार करते समय .सो ने िविध िनमा5ता क आवयकता को नह9 भल ु ाया है। सही .प म8 काननू क
Oयापकता का उ”ाटन करने के िलए िविध िनमा5ता तथा िवधायक का होना ज.री है। िकतु .सो इसके िलए
अि^तीय बौि(क :मताय\ ु ितभा सHपन Oयि\य/ क ही स ं तिु त करता है।

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ु िविवालय 195
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
13.11.2 Jसो का वतRता स;बधी िवचार
.सो वतZता का महान पैगHबर था। अपने Cथ 'Social Contract म8 उसने िलखा है- ‘‘ वतZता मानव का
परम आतरक त•व है।’’ वतZता मानवता का ाण है िजसके अपहरण का अथ5 है मानवता का िवलोप होना।
वतZता ही नैितकता का आधार है। वतZ भाव से काम करने पर ही उ&रदािय+व अिभOय\ होता है। जड़वत
काय5 करने म8 नैितकता क अिभOयजं ना नह9 हो सकती। .सो सH भु और सरकार म8 िवभेद करता है। यिद सरकार
सH भु क शि\ का अपहरण कर ले तो सामािजक अनबु ध टूट जाता है और सम त नागरक अपनी उस
नैसिग5क वतZता को ाX कर लेते हL िजसे नागरक समाज म8 आने पर उह/ने +याग िदया था पर चँिू क अनबु ध
सहमित पर आिWत है अतः अनबु धवाद का समथ5न वैयि\क वतZता का अनमु ोदन है।
.सो वतZता का अथ5 वiछदता या मनमाना काय5 करने क आजादी से नह9 लेता। समाज ^ारा सामाय िहत
क =ि> से बनाए गए िनयम/ का पालन Oयि\ को अवय करना चािहए। उसके िव.( िकया गया आचरण
सामाय इiछा क अवहेलना करना होगा। जो वतZता नह9 उiछृ ं खलता होगी।
अतः मरणीय है िक .सो लॉक क भाँित वतZता, जीवन और सHपि& को मन;ु य के ाकृ ितक नह9 अिपतु
रा1य- द& नागरक अिधकार मानता है।

13.11.3 Jसो का समानता िवषयक िवचार


.सो क मायता है िक समानता के अभाव म8 वतZता नह9 रह सकती। य0िप भौितक असमानताएँ न> नह9 हो
सकत9 िकतु मन;ु य काननू ी =ि> से समान बनाए जा सकते हL। .सो यह भी नह9 चाहता िक िकसी को इतनी शि\
ाX हो जाए िक वह उसका िनरंकुश योग कर सके । शि\ का योग तो काननू और पद के अन. ु प ही करना
होगा। रा1य का आिथ5क वा jय तभी बना रह सकता है जब न कोई नागरक इतना धन सHपन हो िक वह दसू रे
को खरीद ले और न गरीब एवं साधनही हो िक वह वयं को ही िबक जाने दे। .सो के इन िवचार/ से धन क
भयावह िवषमताओ ं के ित उसक घृणा प> .प से कट होती है।

13.11.4 Jसो का धम स;बधी िवचार


.सो के धम5 सHबधी िवचार Vाितकारी हL। वह हॉ@स क तरह धम5 को रा1याधीन मानता है। उसने धम5 के तीन
कार बताए हL-(1) वैयि\क धम5, (2) नागरक धम5 एवं (3) परु ोिहत धम5।
वैयि\क धम5 मन;ु य क अपने सं थाओ ं और अपने आतरक िव]ास/ पर आधारत है। यह धम5 सव5WJे है िकतु
सांसारक =ि> से अOयावहारक है। वैयि\क धम5 ई]रीय िनयम/ पर आधारत आडHबरहीन सहज धम5 है।
नागरक धम5 रा;<ीय तथा वा और स ं कार/, .िढ़य/ तथा िविधय/ से िनिFत है। नागरक धम5 .सो क एक
िनराली कbपना है जो सHभवतः उसके मि त;क म8 tलेटो के ‘लॉज’ एवं अय यनू ानी िवचारक/ के िचतन से
उ+पन हQई है। .सो ने समाज को =ढ करने के िलए नागरक धम5 क कbपना क है। .सो ने इस धम5 के बीच
िवधेया+मक सZू बताए हL-(1) ई]र क स&ा म8 िव]ास करना और यह मानना िक वह परम#ानी, दरू दशf और
दयालु है, (2) पनु ज5मवाद म8 िव]ास (3) पु या+मा सख
ु पाय8ग,े (4) पापा+मा दdड भोग8गे तथा (5) सामािजक
अनबु ध और िविधय/ क पिवZता क र:ा करना महत् क&5Oय है। .सो ने नागरक धम5 का के वल एक

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िनषोधा+मक सZू बतलया है और वह है असिह;णतु ा। इसका अिभ ाय है िक असिह;णु Oयि\य/ के िलए रा1य म8
थान नह9 होना चािहए। यह आFय5 क बात है िक .सो नागरक धम5 पर पवू 5 सHमित देकर िफर उसके ितकूल
आचरण करने वाल/ का वध करने का समथ5न करता है। आलोचक/ का तक5 है िक .सो का यह िवचार िनरंकुशता
को ो+साहन देने वाला है जो उसक उदारता को समाX कर देता है।
परु ोिहत धम5 वह धम5 है जो परु ोिहत/-पादरय/ ^ारा िदया जाता है। यह धम5 सबसे िन;कृ > है aय/िक यह दो तरह के
धान/ अथवा स&ाओ ं को जम देता है और जनसाधारण को पर पर िवरोधी क&5Oय/ म8 फँ सा देता है। फल व.प
सघं ष5 और कहल का वातारण उ+पन होता है और रा1य क गित म8 बाधा पहQचँ ती है।
.सो के अनसु ार रा1य को नागरक िव]ास/ के धम5 पर जो सामािजकता और स1जनता पर बना है चलना
चािहए।

13.11.5 Jसो का िश+ा स;बधी िवचार-.सो के िश:ा सHबधी िवचार उसके मउ् पसमश् नामक
Cथ म8 है िजसम8 िश:ा का उेय ‘मन;ु य क िनवा5िसत कृ ित क पनु था5पना बतलाया गया है। इस Cथ के
कारण उसे गितवादी िश:ा का जनक माना जाता है। .सो ने ऐसी िश:ा का समथ5न िकया है जो मन;ु य क
आतरक कृ ित को संवार कर उसे वैभवशाली बनाए। .सो ने िश:ा-योजना और िश:ण िविध जो िवचार िदए
हL, वे आज भी िश:ा के :ेZ म8 पथ- दश5न कर रहे हL। .सो अपने समय क िश:ा Oयव था का िवरोधी था। उसने
िलखा था िक त+कालीन िश:ा ऐसे Oयि\य/ का िनमा5ण करती है िजनके पास न ाकृ ितक वाधीनता है, न पणू 5
नागरक आWय। बाल-िश:ा को पादरय/ के हाथ से िनकाल लेने तथा िकशोराव था तक धम5-िश:ा का िनषेध
करने क उसक थापनाओ ं के कारण पादरी वग5 उससे .> हो गया। उसने उसके Cथ ‘एिमल’ को अि}न के भ8ट
चढ़ा िदया और ˆाँस क संसद तथा जेनेवा क सरकार ने भी उसक िनदा क।

13.12 =सो क हा!स तथा लॉक के साथ तुलना


इनम8 सबसे पहले बड़ा अतर जो हम देखते हL वह यह िक सोशल कॉटैaट म8 हम8 इस बात का कोई िव तृत
िववरण नह9 िमलता है िक ाकृ ितक अव था कै सी थी और कौन से उेय/ से मन;ु य रा1य क थापना करने के
िलये उ+ ेरत हQये। इसके िवपरीत, हॉ@स तथा लॉक ने इस िवषय पर िव तारपवू 5क िलखा है। इसी के साथ-साथ
.सो के लेख/ म8 ाकृ ितक काननू तथवा ाकृ ितक अिधकार/ का िजनका िक हॉ@स तथा लॉक क िवचार
णािलय/ म8 इतना मह+वपणू 5 थान है, पणू 5 अभाव है। इन दोन/ बात/ का अभाव मह+वपणू 5 है, यह इस बात का
सचू क है िक .सो के मि त;क म8 सिं वदा िस(ात का थान के वल गौण है।
दसू रा अतर यह है िक जहाँ तक िक संिवदा क शतk का सHबध है, .सो, हॉ@स के स=श परतु लॉक के िवपरीत,
Oयि\ ^ारा अपनी सम त शि\य/ के समप5ण क कbपना करता है। परतु .सो तथा हॉ@स म8 एक प> अतर है।
हॉ@स के मतानसु ार Oयि\ अपनी शि\य/ का समप5ण एक Oयि\ िवशेष अथवा Oयि\ समहू को करता है जो िक
संिवदा म8 कोई प:कार नह9 है, बिbक उससे बाहर है, िकतु .सो के अनसु ार Oयि\ अपने आपको सHपणू 5 समाज
को समिप5त करता है। इन दोन/ धारणाओ ं म8 आकाश-पाताल का अतर है जबिक लॉक के अनसु ार यह समप5ण
के वल आिं शक होता है, के वल ाकृ ितक काननू क Oयाrया करने तथा उसे लागू करने का अिधकार ही समाज
को समिप5त िकया जाता है, अय सम त ाकृ ितक अिधकार Oयि\ के पास अ:dु ण रहते हL। इसका अथ5 यह है

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ु िविवालय 197
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िक हॉ@स तथा .सो, दोन/ के अनसु ार (िनःसदेह दोन/ म8 आधारभतू अतर तो है ही) रा1य िनरंकुश अथा5त् एक
न]र-देव बन जाता है, िकतु लॉक के अनसु ार रा1य का अिधकार सीिमत रहता है। तीन/ िवचारक/ के इस अतर
को िनHनिलिखत श@द/ म8 अिभOय\ िकया जा सकता है।
तीसरा अतर हम यह देखते हL िक हॉ@स के अनसु ार संिवदा के फल व.प िजस इiछा का उदय होता है, वह
वा तिवक होती है aय/िक वह एक Oयि\ क इiछा होती है, परतु इसी कारण वह सामाय नह9 हो सकती, लॉक
म8 उस इiछा को सामाय तो कहा जा सकता है, aय/िक वह बहQमत क इiछा है, परतु वह वा तिवक नह9 होती
aय/िक वह एका+मक नह9 होती, .सो म8 वह वा तिवक तथा सामाय दोन/ है। वह वा तिवक इसिलये है aय/िक
वह समाज िजसक इiछा वह होती है, एक नैितक तथा सामिू हक Oयि\ होता है और इसिलये एका+मक है, वह
सामाय है, aय/िक वह सम त नागरक/ क एक सामिू हक इiछा है।
चौथा अतर इस कार है िक .सो का न]र-देव एक सHपणू 5 समाज है, जबिक हॉ@स का के वल एक Oयि\। दोन/
म8 इस मह+वपणू 5 अतर के अितर\ इतना ही मह+वपणू 5 एक अतर और भी है, वह यह है िक हॉ@स के न]र-देव
का Oयव थािपका तथा काय5पािलका दोन/ शि\य/ के ऊपर अिधकार है और इसिलये यह िनरंकुश है और
जाजन दास, िकतु .सो का सH भतु ा सHपन समाज के वल Oयव थािपका शि\य/ का योग करता है।
काय5पािलका शि\य/ को वह सरकार को सŒप देता है जो िक उसका अिभकता5 अथवा नौकर है। इस कार से
.सो Oयि\ क वतZता को अ:dु ण रखना चाहता है। दसू रे श@द/ म8, .सो म8 सH भतु ा सHपन रा1य तथा
सरकार म8 भेद है, जबिक हॉ@स म8 दोन/ एक.प है।
लॉक के मतानसु ार सरकार को यास कहकर पकु ारा गया है, उनक शि\याँ धरोहर के .प म8 है, संिवदा+मक नह9।
यहाँ तक तो लॉक तथा .सो म8 कुछ साHय है। परतु जबिक .सो सH भतु ा सHपन जनता को अपनी
Oयव थािपका शि\य/ को िकसी ितिनिध िनकाय के प: म8 ह तातरत करने का िनषेध करता है, लॉक के
िवचार म8 Oयव थािपका शि\य/ का योग साधारणतया जनता के ितिनिधय/ ^ारा ही होना चािहए। सारांश यह
है िक जब िक .सो संसदा+मक स ं थाओ ं का बिह;कार करता है और +य: जनतZ का समथ5न करता है िजसम8
न ितिनिध हो न दल, लॉक संसदा+मक सं थाओ ं का पaका समथ5क था।
यहाँ प> हो जाता है िक सिं वदा िस(ात क कुछ िवशेषताय8 .सो, हॉ@स से और कुछ लॉक से Cहण करता है
और उनका सिHमWण करके एक नवीन सHपणू 5 िस(ात तैयार करता है। उसक सH भतु ा क परभाषा म8 हॉ@स
जैसी पणू त5 ा तथा सिु निFतता है िकतु उसे वह जनता म8 रखता है िजससे िन सदेह लॉक सन हQआ होगा।

अAयाय B-
1. .सो का जम िकस देश म8 हQआ था।
a. ि वट्जरलLड b. ˆांस c. इटलीd. जम5नी
2. ‘‘िव#ान तथा कला क गित ने नैितकता को > करने म8 सहयोग िदया है’-यह िकसका कथन है-
a. बोदाँ b. हा@स c. लॉक d. .सो
3. िनHन म8 से कौन सा/से Cथ .सो ^ारा िलिखत है।

उराखंड म
ु िविवालय 198
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

a. सोशल काटैaट ;b. इमाइल


c. लॉ नॉवेल हेलॉयज d. उपरो\ सभी
4. िनHन म8 कौन सा/से Cथ .सो के हL-
a. कफै शस b. रवरीज c. डाइलौ}स d. उपरो\ सभी
5. ‘सामाय इiछा’ को सामािजक सिं वदा का मल
ू त+व कौन मानता है।
a. लॉक b. हॉ@स c. .सो d. बोदाँ

13.13 सारांश
.सो के मbू याँकन के िवषय म8 आलोचक/ म8 घोर मतभेद है। जहाँ वेपर, कोल, लLसन आिद ने .सो क खल
ु कर
शसं ा क है वहाँ वाbटेयर, बक5 , मालn आिद ने .सो क कटु आलोचना क। एक ओर .सो को महान दाश5िनक
पकु ारा गया है और दसू री ओर उसे िमjयावादी तथा सAयताहीन कहा गया है। जी0डी0एच0 कोल ने .सो को
राजदश5न का िपता कहा है और उसके ‘सोिशयल कॉटेªaट’ को राजदश5न के ऊपर महानतम Cथ बताया तो
कॉसटेट ने .सो को +येक कार के अिधनायकवाद का सबसे भयानक िमZ कहा है। इसी तरह अय कितपय
िव^ान/ ने .सो को Oयि\ के िलए अिधकतम वतZता चाहने वाला Oयि\वादी माना है तो कुछ ने उसे
सवा5िधकारवाद का पोषक बतलाया है।
इन पर पर िवचार/ के िलए .सो वयं उ&रदायी है। उसने िवरोधाभास संय\ ु वाaय/ का योग इतनी अिधकता से
िकया है िक वे पाठक के मि त;क म8 म उ+पन कर देते हL। साथ ही उसने अपने ^ारा य\ ु श@द/ को कोई
सिु निFत परभाषा भी नह9 दी है उbटे िकह9-िकह9 श@द/ को उसने अनेक थान/ पर िविभन अथk के लए ततु
िकया है।
िकतु इस बात से इकार नह9 िकया जा सकता िक िवरोधाभासी िवचार/ के ा कट करते हQए भी .सो ने राजदश5न
के इितहास पर गहरा भाव डाला है। वह सामाय इiछा के िस(ात ^ारा भसु &ा और वाधीनता म8 समवय
थािपत करता है और इस कार जातZ के िलए बहQत बड़ा नैितक आधार दान करता है। उसका यही िस(ात
इस मल ू स+य का उ”ाटन करता है िक ‘शि\ नह9, इiछा रा1य का आधार है।’ .सो ने लोकि य सH भतु ा क
न9व डाली है। .सो ने रा1य और शासन के म3य तथा सH भु काननू एवं सरकारी काननू के बीच प> भेद िकया
है। उसका सH भु काननू ही आधिु नक मौिलक अथवा साँिवधािनक काननू का Rोत है। उसके भाव के
परणाम व.प ही आधिु नक यगु म8 इस बात पर बल िदया जाता है िक शासन के िवधेया+मक काननू देश के
मौिलक काननू के अनक ु ू ल होने चािहए। ˆ8 च Vाित के समय .सो के भाव क तुलना उस भाव से क जा
सकती है जो धम5-सधु ार यगु म8 बाइिबल का जनता पर पड़ा था अथवा 20व9 शता@दी म8 .सी जनता पर माaस5 क
प ु तक ‘दास कै िपटल’ ने डाला था। डॉयल ने ठीक ही िलखा है-.सो ने घोर दिु वधा एवं असतोष के समय म8
यरू ोप के सामने एक ाचीन और जज5र ढांचे को तोड़ डालने का औिच+य दिश5त िकया तथा एक ऐसे आदश5 को
उसके सामने रखा िजसे वह िवनाश के पFात् ाX कर सकता था।

उराखंड म
ु िविवालय 199
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सेबाइन के अनसु ार, ‘‘.सो वयं रा;<वादी नह9 था िकतु उसने नागरकता के ाचीन आदश5 को एक ऐसा .प
दान िकया िजससे रा;<ीय भावनाओ ं के िलए उसे अपनाना सHभव हो सका।’’ .सो के िवचार/ का जम5न
िव#ानवाद पर भी गहरा असर हQआ। वह मानव क नैितकता का समथ5क था। वतZता को वह जीवन का
परमत•व मानता था और इस कारण नीितशाh के :ेZ म8 भी उसका Vाितकारी भाव रहा। काँट कहता था िक
सरल मानव क नैितक वृि&य/ का मह•व उसे .सो के Cथ से ही िविदत हQआ। तािक5 क वा}जाल के बदले ‡दय
क सरलता पर जो 3यान .सो ने िदया वह9 मानववादी नीित-शाh का आधार हो सकता है। वतZता क िवराट
उ”ोषणा .सो ने क और नैितकता का इसे आधार बतलाया। इस ताव का गहरा असर जम5नी के दाश5िनक/ पर
पड़ा। इसी कारण हीगल ने कहा था िक .सो के Cथ/ म8 ही वतZता क बिु (पवू 5क अिभOयि\ हQई है। वतZता
के साथ ही समानता पर .सो ने जो बल िदया है, इस कारण कहा जा सकता है िक न के वल लोकतZ का ही नह9
अिपतु समाजवाद का बीज भी .सो के Cथ/ म8 िनिहत है। इस कार हम देखते हL िक .सो क िवचारधारा से तीन
=ि> िबदओ
ु ं Oयि\वाद, समहू वाद और नैितक वातZयवाद को Cहरा Wय ाX हQआ।

13.14 श!दावल$
1. सामाय इiछा- इस श@द का आरिHभक योग ˆाँसीसी िवचारक डेिनस दीpो (1713-1784) ने अपने
िव]कोश म8 िकया था िफर इसे जीन-जेकस .सो (1712-1778) ने अपनी िस( कृ ित ‘सोशल काटैªaट’ म8
िवकिसत िकया। .सो मन;ु य क ता+कािलक और ताि+वक इiछा म8 अतर करते हQये कहते हL िक ता+कािलक
इiछा वाथ5 आधारत होती है जबिक ताि+वक इiछा सबके िहत एवं परमिहत से जड़ु ी होती है। सामाय इiछा परू े
समाज क ताि+वक इiछा को Oय\ करती है।
2. लोकि य भसु &ा- यह वह िस(ात है जो साधारणतः नैितक आधार पर जनसाधारण को भसु &ा का उपय\ ु
पाZ मानता है। इस िवचार के आरHभक संकेत ाचीन रोमन िवचारक माक5 स तुिलयस िससरो के दश5न म8 िदखता
है। िकतु सबसे पहले चौदहव9 शता@दी म8 इतावली दाश5िनक मासfिलयो आफ पादआ ु ने लोकि य भसु &ा को
पोप क स&ा को चनु ौती देने म8 योग िकया। 18व9 शता@दी म8 यह िस(ात जे0जे0 .सो के राजनीितक दश5न का
सार त+व बना। टॉमस जैफ़स5न ने भी लोकि य भसु &ा के िस(ात को आगे बढ़ाया। लोकि य भसु &ा क
अिनवाय5 शतn हL: साव5जिनक मतािधकार, िवधानमdडल पर सव5साधारण के ितिनिधय/ का िनयंZण और रा;< के
िव& पर जन- ितिनिधय/ के सदन का िनयंZण।
3. भोला-भाला असAय जीव -ऐसा मन;ु य िजसक कbपना .सो ाकृ ितक अव था म8 वतंZ, सतु>, आ+मत>ु ,
व थ एवं िनभ5य जीव के .प करता है जो कृ ित क गोद म8 वiछदतापवू 5क जीवन यापन करता है।

13.15 अ&यास 
न' के उ तर
1.a 2.d 3.d 4.d 5.c

13.16 सदभ) *थ सच


ू ी
1. राजनीित दश5न का इितहास- जॉज5 एच0 सेबाइन

उराखंड म
ु िविवालय 200
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2. मा टस5 ऑफ पॉिलिटकल थॉट- ड@bय0ू टी0 जोस
3. राजनीितक िचतन क .परे खा- ओ0पी0 गाबा
4. राजदश5न का वा3ययन- सी0एल0 वेपर

13.17 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. राजनीित कोश- डा0 सभु ाष कयप एवं िव] काश गXु
2. पाFा+य राजनीितक िचतक- आर0एम0 भगत
3. राजनीित िव#ान िव]कोश- ओ0पी0 गाबा

13.18 नबधा मक 

1.‘‘.सो क सामाय इiछा हॉ@स का शीष5िवहीन लेिवयाथान है।’’ प> करते हQए िवƒे षणा+मक Oयाrया
किजए।
2..सो के िवचार म8 पाये जाने वाले अतिव5रोध/ को उ+पन करने वाले कारण/ पर काश डालते हQए
िववेचना+मक िवƒे षण कर8 ।
3.आधिु नक राजनीितक िवचार को .सो क देन का मbू यांकन किजये।
4..सो का सामािजक समझौता लॉक का ही िस(ात है, िजसे हॉ@स क प(ित ^ारा िवकिसत िकया गया है।
Oयाrया किजए।
5..सो ने लॉक के Oयि\वाद तथा हॉ@स के िनरंकुशवाद म8 सामंज य िबठाने का जो यास िकया है, उस म8 वह
कहाँ तक सफल रहा है। िववेचना+मक िवƒे षण किजए।

उराखंड म
ु िविवालय 201
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

-14 :
 &- /0 " 1) (Charles-Louis de
Montesquieu) (1689-1755)
इकाई क$ Jपरे खा
14.1 "तावना
14.2 उ4े5य
14.3 कृ ितयां
14.4 प!ित
14.5 राय क$ उपि: स;बधी िवचार
14.6 िविध स;बधी िवचार
14.7 सरकार9 का वग`करण स;बधी िवचार
14.8 वतंRता स;बधी िवचार
14.9 शि]-पृथaकरण का िस!ात
14.10 शि]-पृथaकरण िस!ात क$ आलोचना
14.10.1शि]-पृथaकरण के िस!ात का OयावहाLरक "भाव एवं मHू यांकन
14.11 अय िस!ात
14.12 साराश

14.13 शAदावली
14.14 अBयास "C9 के उ:र
14.15 सदभ Dथ सचू ी
14.15 सहायक/उपयोगी पाठ्य पु तक(
14.17 अBयास "C9 के उ:र
14.18 िनबधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 202
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

14.1 तावना-
अठारहव9 शता@दी म8 ˆाँस म8 िजतने भी दाश5िनक हQए, उनम8 .सो को छोड़कर मॉdटे aयू सबसे मह+वपणू 5 था।
मॉdटे aयू ऐसा िवचारक था िजसने सामािजक और राजनीितक िस(ात के :ेZ म8 मौिलक योगदान िकया। उसे
सामािजक दश5न क जिटलताओ ं का अय दाश5िनक/ क अपे:ा अिधक प> #ान था। य0िप उसने समाज एवं
शासन पर िव तार से Oयावहारक अ3ययन िकया, तथािप उसक अिधकाँश धारणाएँ ऐसी थ9 िजनके िलए माण
एकZ करने का उसने य+न नह9 िकया। उह/ने समाजिव#ान, ऐितहािसक अनसु धान, तुलना+मक राजनीित-
िस(ात और काननू के िवकास क भिू मक तैयार क, िजसके कारण ही उसे समकालीन राजनीितक समाजिव#ान
और सां कृ ितक मानव िव#ान के अCदतू के .प म8 याद िकय जाता है।
मॉdटे aयू का जम एक िवrयात ˆाँसीसी वकल के घर म8 सन् 1889 म8 हQआ था। 66 वष5 क अव था म8 10
फरवरी, 1755 ई0 को वह इस ससं ार से िवदा हो गया। उसके जीवन म8 .सो के समान िवल:णता का अि त+व
नह9 था, िकतु अपनी रचनाओ,ं िवशेषकर ‘The Spirit of Laws ‘ के कारण वह िशि:त समाज म8 सदा के
िलए अमर हो गया।

14.2 उे
य-
मॉdटे aयू को अपने जीवन म8 .सो क भाँित अभाव के िदन नह9 देखने पड़े। उसे अपनी माता से और त+पFात्
अपने ताऊ से िवरासत म8 िवशाल सHपि& िमली और िजस मिहला से उसने िववाह िकया वह भी अपनी पैतक ृ
सHपि& लाई। यही कारण था िक वह सख ु एवं शाित क िजदगी बसर करते हQए, सामािजक एवं बौि(क कायk
को करते हQए िनिFत .प से अपने ाण/ का उ+सग5 िकया। उसने सन् 1728 म8 ऑि <या, ि वटजरलैdड, इटली,
हॉलैdड, हगं री आिद अनेक देश/ का मण करके अपने #ान को समृ( बनाया। उसने इन देश/ के राजनीितक
इितहास का अ3ययन तुत कर समाजशाhीय और ऐितहािसक प(ित का माग5 श त िकया। सन् 1729 से
1731 ई0 तक वह इ}ं लैdड म8 रहा और इस िन;कष5 पर पहQचँ ा िक राजनीितक शि\य/ का िवभाजन ही वहाँ क
राजनीितक मख ु ता का Rोत है। अपने मण से लौटकर वह लाीडी (अपने जम- थान) म8 रहने लगा। यदा-कदा
वह पेरस भी चला जाता था।
मॉdटे aयू को ˆाँस क ददु श
5 ा देखकर बड़ा दख
ु होता था। वा तव म8 उसका आिवभा5व एक ऐसे समय हQआ था
जब ˆांसीसी जनता कर/ के बोझ से िपस रही थी। जनता के पास तन ढकने का वh और पेट भरने को परू ा भोजन
न था। राजा एवं उसके सामत/ का जीवन ऐ]य5 और िवलास से परपणू 5 था। कृ षक वग5 सामत/ क दमनकारी
नीित से और म3यम वग5 कर/ के बोझ से पीिड़त था। मॉdटे aयू त+कालीन राजनीितक Oयव था का अत करके
ˆाँस मे एक सOु यवि थत शासन- णाली क थापना करना चाहता था। अपने मण और इ}ं लैdड के दो वषfय
आवास से लौटकर उसने शासन-Oयव था के बारे म8 अपने िवचार/ को जनता के सामने रखा। शासन-स&ा के
िवके pीकरण अथवा िवभाजन का समथ5न करते हQए उसने िविधय/ क परभाषा एवं उ+पि&, सरकार क कृ ित
एवं उसका वगfकरण, राज व, सैिनक Oयव था आिद िविभन िवषय/ पर िवचार कट िकए।

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ु िविवालय 203
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

14.3 मांटे Pयू क कृतयाँ


1. पिस5यन लेटस5 (Persian Letters)
2. रफलेaशन ऑन द कॉजेज आफ द Cेटनेस एdड िडaलाइन आफ द रोमस (Reflection on the
causes of the Greatness and Decline of the Romans)
3. द ि ट ऑफ लॉज (The Spirit of Laws)
मॉdटे aयू के सम त मह+वपणू 5 Cथ उसके िवदेश मण से लौटने के बाद ही िलखे गये, तथािप सन् 1721 ई0 म8
जबिक वह के वल 32 वष5 का था, उसक एक कृ ित ‘Persian Letters कािशत हो चक ु  थी िजसम8 कुछ ऐसे
किbपत पZ/ का संCह था िजसके ^ारा ˆाँस के सामािजक, राजनीितक एवं धािम5क जीवन क वतZ आलोचना
क गई थी। चच5, रा1य, राजा एवं देश क अय सं थाओ ं पर Oयंग कसे गए थे और ˆ8 च समाज क मखू 5ताओ ं तथा
अधिव]ास/ का मजाक उड़ाया गया था। य0िप यह प ु तक िबना लेखक का नाम िदए ही कािशत कराई गई थी,
िकतु यह बात िछपी नह9 रह सक थी िक इसका लेखक मॉdटे aयू ही था। ˆाँस क पीिड़त सामाय जनता
मॉdटे aयू के इस िचZण से अ+यत भािवत हQई।
सन् 1734 म8 मॉdटे aयू ने अपना Cथ ‘^Reflection on the Causes of the Greatness and Decline of
the Roman कािशत कराया िजसम8 उसने उन ितिVयाओ ं का वण5न िकया जो िविभन देश/ के इितहास/ के
अ3ययन के कारण उस पर हQई थ9। यह Cथ उसके दश5न के व.प एवं प(ित को प> .प से कट करता है। इस
Cथ म8 उसका यह िव]ास झलकता है िक सामाय कारण/ म8 से घटनाओ ं का उदय होता है और ऐितहािसक
घटनाएं एवं िVयाएँ संयोग से नह9 +यतु ् कुछ िनिFत िस(ांत/ ^ारा अनश
ु ािसत होती है। मॉdटे aयू ने रोमन
इितहास का अ3ययन, रोम के पतन के कारण/ को समझकर भिव;य के िलए सबक सीखने क =ि> से िकया था
और इसिलए यह मानने म8 कोई असंगित तीत नह9 होती िक उसके राजदश5न के सामाय व.प को िनधा5रत
करने वाले मख
ु त+व/ म8 रोमन इितहास और ििटश सं थान/ का थान अCणी था।
सन् 1748 म8 मॉdटे aयू का अमर Cथ ‘The Spirit of Laws कािशत हQआ। इस Cथ म8 उसने सरकार के भेद,
िविध, आिथ5क एवं सैिनक Oयव था, सामािजक परHपराओ ं एवं नागरक चरZ, धािम5क सम याओ ं आिद पर
अपने िवचार कट िकए। मॉdटे aयू का यह Cथ 18व9 शता@दी के ग0 क सव5WेJ कृ ित मानी जाती है जो अपनी
शैली और िवषय-सामCी दोन/ ही =ि>य/ से अि^तीय है। मैaसी के अनसु ार ‘‘यह कहने म8 कोई अितशयोि\ नह9
िक राजनीितक िव#ान को उन प ु तक/ म8 जो कभी भी िलखी गई हL ‘ि ट ऑफ लॉज’ सबसे अिधक पठनीय
Cथ है।’’ डिनंग ने िलखा है िक इस प ु तक का :ेZ इतना Oयापक है िक यह िवश( ु राजनीित क बजाय
समाजशाh क प ु तक बन गई है। ‘ि ट ऑफ लॉज’ 31 अ3याय/ म8 िवभ\ है। िवचार/ क =ि> से इसे मोटे तौर
पर छः भाग/ म8 िवभािजत िकया जा सकता है- पहले भाग म8 काननू और सरकार का िचZण है, दसू रे भाग म8
राज व तथा सैिनक Oयव था आिद पर िवचार िकया है, तीसरा भाग सामािजक परHपराओ ं क Oयाrया करता है
और बतलाता है िक एक देश के नागरक/ के चरZ-िनमा5ण म8 वहाँ के भौगोिलक वातावरण का aया भाव पड़ता
है, चौथे भाग म8 आिथ5क िवषय/ क, पाँचव8 भाग म8 धम5 सHबधी सम याओ ं क और छठे भाग म8 िविभन देश/ के
काननू / क चचा5 क गई है। सं:ेप म8, यह Cथ सभी कार के पाठक/ को िचतन क कुछ न कुछ सामCी दान

उराखंड म
ु िविवालय 204
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
करता है। इसीिलए, मॉdटे aयू का यह Cथ इतना लोकि य हQआ िक दो वष5 म8 ही इसके 22 सं करण छपे और
यरू ोप क िविभन भाषाओ ं म8 उसके अनवु ाद हQए।

14.4 मॉLटे Pयू क प2त


मॉdटे aयू समाजशाhी और ऐितहािसक प(ित का समथ5क था। अनेक समालोचक/ क =ि> म8 उसक देन प(ित
के :ेZ म8 है, सै(ाितक :ेZ म8 नह9। ‘The Spirit of Laws क अभतू पवू 5 सफलता का एक धान कारण उसक
यह प(ित ही थी जो समकालीन लेखक/ से सव5था िभन थी। उसने tलेटो, हॉ@स और .सो के समान बिु (वािदय/
^ारा अपनाई गई उस प(ित का ितर कार िकया िजसके अनसु ार वे मानव- वभाव के सHबध म8 कुछ मायताओ ं
को लेकर चल8 और इन पवू 5 िनधा5रत मायताओ ं के आधार पर उह/ने एक आदश5 रा1य का ढाँचा खड़ा करने का
य+न िकया। मॉdटे aयू ने अनभु िू तमलू क =ि>कोण तथा िनरी:ण , पर आधारत वै#ािनक ऐितहािसक प(ित को
अपनाया। वह ऐितहािसक घटनाओ ं के िवƒे षण के ^ारा िन;कष5 िनकालकर इितहास से उनको प>ु करता था।
उसने राजनीितक B/ का िनरपे: राजनीितक िस(ात/ के आधार पर नह9, बिbक वा तिवक परि थितय/ को
3यान म8 रखकर िववेचन िकया। उसने वै#ािनक अनश ु ीलन ^ारा अपने मागk को प>ु िकया और तल ु ना+मक प(ित
^ारा उनके अपेि:त मह+व का पता लगाया। मॉdटे aयू क प(ित के व.प को ‘Persian Letters से उ(तृ
उसके इस कथन से बहQत कुछ माना जा सकता है- ‘‘मLने इस बात पर ायः िवचार िकया है िक सरकार के िविभन
.प/ म8 से कौन सा .प बिु ( के सबसे अिधक अनक ु ू ल है और मझु े यह तीत होता है िक सवm&म सरकार वह
होती है जो जनता क वाभािवक वृि&य/ के अिधकािधक अनक ु ू ल उसका पथ दश5न कर8 ।’’ इस कथन का
अिभ ाय यही है िक यह आगमन तक5 शाhीय िव^ान/ ^ारा अपनाई गई प(ित का िवरोध था और सरकार क
िकसी ऐसी अमतू 5 योजना क रचना म8 िव]ास नह9 करता था जो सम त देश और काल के िलए अनक ु ू ल हो। वह
समकालीन वाह के ितकूल अर तू का अनसु रण करते हQए ाचीन और समकालीन मानव-समाज के इितहास के
अ3ययन और अनभु व क न9व पर अपने राजनीितक िस(ात/ का महल खड़ा करने को य+नशील हQआ था।
डिनंग के श@द/ म8 ‘‘राजनीितक सम याओ ं का समाधान क =ि> से उसक प(ित अर तू क है, tलेटो, बोदाँ,
हॉ@स या लॉक क नह9 अपने समकालीन सब िवचारक/ क भाँित वह अपने याय के िलए, िवचार क कसौटी के
िलए कृ ित क ओर देखता है, िकतु उसक कृ ित क िश:ाएँ अथवा िनयम िवश( ु तक5 क अमतू 5 कbपनाओ ं
पर आधारत नह9 है, अिपतु वत5मान और अतीत के जीवन के ठोस तjय/ पर अवलिHबत है।’’ अर तू क लुX ाय
प(ित को पनु ः जीवनदान करने के कारण ही उसे 18व9 शता@दी का अर तू तक कहा जाता है। रोमन इितहास और
ििटश सं थान वे मrु य त+व थे िजह/ने उसके राजदश5न के सामाय व.प को िनधा5रत िकया। इनके अ3ययन
और अनभु व से उसने िनगमना+मक णाली क ऐितहािसक प(ित के ^ारा अपने राजनीितक िन;कष5 िनकाले।
मॉdटे aयू का िव]ास था मानवीय परHपराओ ं एवं स ं थाओ ं म8 जलवाय,ु भिू म क भौगोिलक दशाओ ं तथा
भौितक, सामािजक, धािम5क और आिथ5क परि थितय/ के कारण बहQत भेद पाया जाता है और इस िविभनता के
मल
ू म8 कुछ िनिFत साव5भौिमक िस(ात एवं आचरण के सामाय आदश5 िमलते हL िजह8 जाना जा सकता है।
इसिलये ो0 जोस का कथन है िक, ‘‘मॉdटे aयू जो काय5 चाहता था, उसके दो पहलू थे। थम, वह यह िनधा5रत
करना चाहता था िक ये आधारभतू एवं मल ू सामाय िस(ात aया हL? ि^तीय, यह #ात करना चाहता था िक
यथाथ5 जगत् म8 पाई जाने वाली िविवधता को लाने वाले कौन से त+व हL? अत म8 ,उसक यह जानने क भी इiछा
थी िक वा तव म8 इन िविभनताओ ं का उदय aय/ होता है, तािक राजनीित# और िविध िनमा5तागण +येक कार
क सरकार को अिधकािधक आदश5 के िनकट लाने हेतु उन िविभनताओ ं को िनयिZत कर सक8 ।’’

उराखंड म
ु िविवालय 205
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
मॉdटे aयू का िव]ास था िक मानवीय सं थाओ,ं परHपराओ ं और काननू / का उlव एकदम िकसी दैिवक Rोत से
नह9 होता बिbक पेड़-पौध/ क भाँित अनक ु ू ल ि थितय/ म8 इनका शनैः-शनैः िवकास होता है और इसिलए
राजनीितशाh का उसका सHपणू 5 मानवीय सHबध/ के साथ अ3ययन िकया जाना चािहए, िजनम8 धम5, अथ5शाh,
इितहास, भगू ोल, मनोिव#ान, मानवशाh आिद सभी िव#ान/ का अ3ययन सिHमिलत है। सरल .प म8 यह कहना
चािहए िक मॉdटे aयू ने उन सभी िव#ान/ को राजनीितशाh के अतग5त समझा था िजह8 आजकल समाजशाh
के अतग5त माना जाता है।
वा तव म8 मॉdटे aयू ^ारा य\
ु ऐितहािसक प(ित अर त,ू मैिकयावली आिद पवू 5वतf िवचारक/ क अपे:ा
उ+कृ > कोिट क थी aय/िक जहाँ उनक =ि> यरू ोप के सAय रा1य/ तक ही सीिमत थी वहाँ मॉdटे aयू का अ3ययन
और #ान बहQत अिधक Oयापक था। जोस के इस कथन म8 कोई अ+यिु \ तीत नह9 होती िक ‘‘ मॉdटे aयू का
िवशेष मह+व राजनीितक िस(ात/ म8 नई देन के कारण इतना नह9 है िजतना राजनीितक और सामािजक अ3ययन
के प(ित-शाh का िवकास करने म8 है।’’

14.5 मांटेPयू का रा6य क उ पि त स4बधी वचार-


मॉdटे aयू ने रा1य क उ+पि& के सHबध म8 सामािजक अनबु ध के िस(ात को अ वीकार करते हQए रा1य क
उ+पि& का कारण उपय\ ु वातावरण एवं परि थितय/ को माना है। उसका िवचार था िक +येक सामािजक एवं
राजनीितक सं थान के िलए Oयि\य/ क सद यता अिनवाय5 होती है। सामािजक एवं राजनीितक सं थान पर पर
एक-दसू रे से वाभािवक .प से इसी कार सHबिधत होते हL िजस कार एक Oयि\ का अि त+व अय Oयि\य/
से उसके सHबध/ पर आधारत है। मॉdटे aयू के अनसु ार मानव का आरिHभक अव था म8 िनवास रा1यहीन
वातावरण म8 था। अय िवचारक/ क भाँित मॉdटे aयू भी ाकृ ितक अव था क सं#ा देता है। वह यह भी मत
कट करता है िक मन;ु य क यह ाकृ ितक अव था शात एवं उ&म न थी। मन;ु य इस अव था म8 सदैव भयभीत
रहता था िकतु शनैः-शनैः परि थितयाँ बदल9, मन;ु य म8 बिु ( एवं #ान का िवकास हQआ और भय क अव था से
वह म\ु होने लगा। उसम8 ऐसी भावनाएँ जाCत होने लग9 िक अपने से िनब5ल Oयि\य/ को दबाकर अपने िनयZण
म8 रखा जाए। दसू रे श@द/ म8 मन;ु य/ म8 अपने से िनब5ल/ पर शासन करने क भावना का उदय हQआ। इस वृि& का
वाभािवक परणाम यह िनकला िक य( ु और संघष5 क भावनाएँ उ&रो&र बढ़ती गई ंaय/िक सभी लोग एक-दसू रे
को दबाकर उन पर शासन करने क िदशा म8 सोचने लगे। इस तरह मानव-इितहास म8 एक ऐसी अव था आई
िजसम8 शासक और शािसत इन दो वगk का आरHभ हQआ। इस कार, शासन करने क बढ़ती हQई वृि&, िवशेष
परि थितय/ और उपय\ ु वातावरण के कारण ही रा1य क उ+पि& हQई।
मॉdटे aयू ने मानव- वभाव, ाकृ ितक अव था और राजकय उ+पि& का जो िचZण िकया है वह हॉ@स और लॉक
के िवचार/ से सव5था िभन है। उसने ाकृ ितक अव था म8 मन;ु य को भी. एवं मख
ू 5 बताया है। मॉdटे aयू सामािजक
संिवदा के िस(ांत को पणू त5 या ठुकराकर रा1य क एक सावयिवक कbपना ततु करता है और रा1य को
वातावरण क उपज तथा वतः िवकिसत होने वाली सं था मानता है। डॉयल ने िलखा है िक मॉdटे aयू के िलए
रा1य, उसके सद य/ म8 संिवदा अथवा समझौते का परणाम नह9 था अिपतु अपने वातावरण क उपज था और
कृ ित के काननू के अनश
ु ािसत था। इस कार, मॉdटे aयू के िलए रा1य का व.प सावयव था।

उराखंड म
ु िविवालय 206
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

14.6 मॉLटे Pयू का वध स4बधी वचार


मॉdटे aयू के काननू अथवा िविध क धारणा ही वा तव म8 वह सZू है जो िश:ा, ˆाँसीसी राजतZ के इितहास,
अथ5शाh, जलवाय,ु भगू ोल, ििटश सिं वधान एवं बहQत से अय िवषय/ पर कट िकए गए असHब( िवचार/ को
एकता के बधन म8 बाँधता है। मॉdटे aयू क िविध सHबधी धारणा उसक अय सभी धारणाओ ं म8 सबसे अिधक
किठन िकतु सबसे अिधक रोचक और मह+वपणू 5 है।
मॉdटे aयू से पहले काननू के व.प के सHबध म8 िविभन धारणाएँ चिलत थ9। कुछ िवचारक इसे िववेक-बिु (
का आदेश (Dictate of Reason) समझते थे, जैसे िक tलेटो एवं अर तू, तो दसू रे िवचारक इसे उiचतर शि\
का आदेश (command of the Supeiror) मानते थे, जैसे िक बोदाँ एवं हॉ@स। मॉdटे aयू ने इन दोन/ क मत/ से
असहमित कट करते हQए काननू का अपना अलग ही ल:ण माना। उसने कहा िक काननू अपने िव तृत अथ5 म8
‘व तुओ ं क कृ ित या व.प से उ+पन होने वाले आवयक सHबध हL।’ (Law are the necessary
ralations arising from the nature of things)। काननू को इतना Oयापक .प देकर और कारण तथा काय5
के सामाय सHबध (General relationship of cause and effect) को उसके अतग5त समािव> करके
मॉdटे aयू ने व तुतः अपने Cथ ‘ि ट ऑफ लॉज’ म8 काननू के एक नए दश5न का िनमा5ण िकया है। यही कारण है
िक कितपय समालोचक/ ने कहा है िक ‘‘ऐितहािसक िविध-शाh का अ3ययन ‘ि ट ऑफ लॉज’ से आरHभ
होता है।’’
मॉdटे aयू ^ारा काननू का उपरो\ ल:ण बहQत Oयापक है और िव] क सम त जड़-चेतन व तुओ ं के सHबध म8
है। मॉdटे aयू यह मानता है िक कृ ित-जगत बिु (हीन है aय/िक उसम8 सोचने-समझने क शि\ नह9 है। यह
यगु यगु ातर से चला आ रहा था तथा उसे अनश
ु ािसत करने वाले िनयम थायी, अिवकारी और अपरवत5नशील
हL।
मॉdटे aयू मन;ु य को अ#ानी और काम, Vोध, मोह आिद भावनाओ ं के भँवर म8 फँ स जाने वाला ाणी वीकार
करते हQए कहता है िक वह ई]र ^ारा दान क गई वाक् शि\ एवं अय शि\य/ का द. ु पयोग करता है। वह
अपनी जनन शि\ का द. ु पयोग अपनी कामक
ु ता को सतु> करने के िलए करता है। मन;ु य/ के िलए यह
वाभािवक है िक वह आवेग/ म8 बहकर ई]र के ित अपने सHबध/ को िव मृत कर दे अतः उसे इनका मरण
कराने हेतु धम5 के काननू हL।
मॉdटे aयू का कहना है िक अय सब िनयम/ के बनने से पहले मन;ु य ाकृ ितक दशा के ाकृ ितक िनयम/ से
अनश ु ािसत होता था। उसके िवचार से कृ ित का थम िनयम आ+म-र:ा, शाित एवं सरु :ा क आकाँ:ा है।
ाकृ ितक दशा का मानव डरपोक था। आ+मर:ा क भावनाओ ं और सक ं ट/ से बचने के िलए तथा भोजन, वh
एवं आवास क आवयकताओ ं क तृिX के िलए मानव वभाव ने उसे सHभवतः शीŽ ही अय मन;ु य/ के साथ
सगं िठत होने के िलए उ+ ेरत िकया। कृ ित का दसू रा िनयम यह है िक ‘‘जीवन-िनवा5ह और सरु :ा के िलए मन;ु य
को अपने अय सािथय/ के साथ सगं िठत होना चािहए।’’ मॉdटे aयू के मतानसु ार, मन;ु य पर पर दसू रे Oयि\य/ के
साथ िमलकर अपनी शि\ बढ़ाने लगे और इस कार समाज म8 य( ु क ि थित उ+पन हो गई। मानवीय आचरण
के वल कृ ित के िनयम/ से अनश ु ािसत नह9 रह सका। तब इस अव था म8 ाकृ ितक िनयम/ क पिू त5 मानव-कृ त
काननू / ^ारा करनी पड़ी। प> है िक मॉdटे aयू के अनसु ार कृ ित-जगत म8 के वल एक ही कार के काननू होते हL

उराखंड म
ु िविवालय 207
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
जबिक मानव-जगत म8 दो कार के काननू होते हL- जैसा िक जोस ने िलखा है ‘‘मानव कायk के :ेZ म8 ाकृ ितक
काननू के अलावा एक कार का काननू और होता है, िजसे मॉdटे aयू िवधेया+मक अथवा मानव-कृ त काननू
कहता है।’’
मॉdटे aयू इन मानवीय काननू / क कृ ित को बतलाते हQए ाकृ ितक काननू / से इनके अतर को कट करता है।
उसके अनसु ार-
I.मानव-कृ त काननू ‘‘िवधायक ^ारा बनाए हQए िविश> और सिु निFत सं थान होते हL।’’
II.ये काननू साव5भौम नह9 होते और न ही यह आवयक है िक वे अिवकारी ह/।
III.ये काननू परवत5नशील होते हL, इन पर समाज के व.प, जलवाय,ु धम5 नैितक िनयम/ आिद का भाव पड़ता
है।
IV.समाज म8 होने वाले परवत5न/ और िवकास से मानव- सHबधी काननू भािवत होते रहते हL। देश, काल और
समाज िवशेष के चरZ इनके व.प म8 परवत5न लाते रहते हL।
प> है िक मॉdटे aयू समाज-िवशेष के काननू को बाहर से थोपा गया कोई कृ िZम काननू नह9 मानता। उनक =ि>
म8 तो यह बहQत से जिटल, िवकासशील और परवत5नशील सHबध/ का समहू है जो एक समाज म8 िविभन घटक/
म8 पर पर सHबध पाए जाते हL। अपने सHपणू 5 .प म8 काननू वह चीज है जो समाज को उसका िविश> और
अि^तीय चरZ दान करता है।
मानवीय अथवा सामािजक काननू / को मॉdटे aयू ने तीन वगk म8 िवभािजत िकया है-
I.अतरा5;<ीय काननू जो एक रा1य तथा दसू रे रा1य के सHबध म8 होते हL। इनक समी:ा करने म8 मॉdटे aयू ने
Cोिशयस का अनक ु रण िकया है, तथािप दोन/ म8 अतर यह है िक मॉdटे aयू ने य(
ु के काननू क अपे:ा शाित-
धम5 पर अिधक बल िदया है।
II.राजनीितक काननू जो शासक तथा शािसत वग5 के बीच होते हL, इनके ^ारा +येक Oयि\ का रा1य और सरकार
से सHबध िनिFत होता है। ये काननू सरकार क शि\य/ को सीिमत करके नागरक अिधकार/ क र:ा करते हL।
III.नागरक काननू जो एक नागरक का दसू रे नागरक के साथ सHबध बताते हL।
मॉdटे aयू के अनसु ार इन तीन/ कार के काननू / म8 अतरा5;<ीय काननू सब देश/ और समाज के िलए एक सा होता
है िकतु राजनीितक और दीवानी काननू सब देश/ म8 वहाँ क िविश> परि थितय/ के अनसु ार िविभन कार के
होते हL। उसका मत था िक काननू सापे: होते हL और आवयकतानसु ार उनम8 परवत5न भी होता है तथा होना भी
चािहए। काननू / म8 िभनता इसिलए आती है aय/िक देश, काल, भौगोिलक ि थित आिद म8 िभनता है। काननू
समाज म8 Oयव था उ+पन करते हL। वे मानव से सHबिधत आवयक िनयम हL िजनके अनक ु ू ल मन;ु य को चलना
होता है। काननू / का सHबध, िवशेषकर राजनीितक काननू / का नागरक/ क चारिZक उiचता से होता है। यिद
काननू के पालन म8 Oयि\ असमथ5ता कट करते हL तो यह अवैधािनक जीवन है, जो सव5था अनिु चत है। मॉdटे aयू

उराखंड म
ु िविवालय 208
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
ने कहा है िक सभी कार के राजकय काननू / को ऐसा होना चािहए, िजनसे भौगोिलक एवं सामािजक
आवयकताओ ं क पिू त5 हो।

14.7 मांटेPयू का सरकार' का वगUकरण स4बधी वचार


मॉdटे aयू ने यनू ानी दाश5िनक/ का अनसु रण करते हQए सरकार/ का वगfकरण िकया है, िकतु वह राजतZ,
कुलीनतZ और जनतZ के परHपरागत वगfकरण के थान पर एक नवीन योजना ततु करता है िजसके अनसु ार
सरकार के तीन मल
ू .प हL- गणतािZक (Repulbic) राजतZा+मक (Monarchic) एवं िनरंकुशतZ
(Despotic )

गणतािZक सरकार के उसने पनु ः दो भेद िकए हL-

लोकतZ (Democracy ) और कुलीनतZ (Aristocracy)। गणतZ वह रा1य होता है िजसम8 सवm&म शि\
सम त नागरक/ अथवा उनके एक भाग म8 िनिहत होती है। राजतZा+मक रा1य वह है िजसम8 रा1य पर एक ही
Oयि\ कुछ सिु निFत काननू / ^ारा शासन करता है। यिद वह Oयि\ वेiछाचारी .प से गैर-काननू ी आचरण करते
हQए शासन करने लगता है तो वह रा1य िनरंकुशवादी हो जाता है। गणतZ-रा1य म8 जब राजनीितक स&ा समचू ी
जनता म8 होती है तो वह लोकतZ होता है िकतु जब स&ा कुछ Oयि\य/ के अbपसrं यक वग5 म8 होती है तो
शासन कुलीनतZ कहलाता है।
मॉdटे aयू के अनसु ार +येक कार क शासन-प(ित का अपना मौिलक िस(ात होता है। ‘िस(ात’ से उसका
आशय है सरकार को गित दान करने वाली मानव-भावना अथवा एक िवशेष ेरक शि\ |गणतZ म8 वह शील
या सदाचार के िस(ात क धानता बतलाता है। ‘शील’ से उसका ता+पय5 िकसी आ3याि+मक िवराट िनयम से
नह9 है वरन् देश- ेम, राजनीितक ईमानदारी और समानता क भावना से है। मॉdटे aयू के अनसु ार राजतZ का
िस(ात है ‘सHमान’ अथवा गौरव क भावना। यही भावना रा1य के +येक वग5 को गित दान करती है और उह8
पर पर सHब( रखती है। ‘सHमान’ क यह वृि& वग5 के अिधकार/ क र:ा के ित जाग.कता म8 Oय\ होती है,
लेिकन +येक Oयि\ अपने िहत/ के बारे म8 सोचते हQए भी सम त के कbयाण के िलए काय5 करता है। िनरंकुश
शासन का िस(ात है भय । िनरंकुश नरे श क दdड-शि\ सव5Z अपना आतंक फै लाती है। राजतंZ और
िनरंकुशतZ म8 मलू अतर यह है िक जहाँ राजतZ काननू -सHमत शासन होता है वहाँ िनरंकुशतZ काननू -िवहीन
शासन हो जाता है। प> है िक मॉdटे aयू ^ारा Oय\ ये िस(ात उन मनोवै#ािनक भावनाओ ं और वासनाओ ं का
ितिनिध+व करते हL िजनसे सरकार को िVया-शि\ ाX होती है। इन मानव वासनाओ ं से ही सरकार परचािलत
है। सरकार के ‘िस(ात/’ क िववेचना म8 ‘शील’ पर बल दान करना मॉdटे aयू क यनू ानी-रोमन िवचारधारा क
िनJा को प>ु करता है। यनू ानी और ाचीन रोमन गणतZ म8 राजनीितक अनरु ि\ और समि> शि\ को मह+वपणू 5
माना गया था।
िजस कार सरकार के ‘िस(ात’ क िववेचना मॉdटे aयू ने क है उसी कार सरकार के ‘ व.प’ क भी क है।
िस(ात से उसका ता+पय5 मनोवै#ािनक वासनाओ ं से है, व.प से वह सरकार क बनावट का अिभ ाय Cहण

उराखंड म
ु िविवालय 209
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
करता है। मॉdटे aयू ने िकसी भी शासन को आदश5 नह9 माना है। उसने आदश5 .प म8 सवm&म रा1य क धारणा को
असHभव और भावपणू 5 कहकर ठुकरा िदया है। िकसी भी कार क िविधयाँ साव5भौिमक आधार पर अiछी नह9
मानी जा सकत9। इसका िनFय तो ऐितहािसक एवं सापेि:क आधार पर िकया जा सकता है। मॉdटे aयू
सापे:तावाद का उपासक है और यह िव]ास करता है िक िवशेष परि थितय/ म8 तथा िविश> िस(ात/ का
अनसु रण करने वाली णाली ही सवm&म होती है और इनके बदल जाने पर वह िन; भावी हो जाती है। शासन का
.प भौितक परवेश पर िनभ5र करता है जो देश-देश म8 िभन-िभन होता है। काननू / म8 भी इसीिलए िविवधता होती
है। जो काननू एवं राजनीितक सं थान ठdडे देश/ के िनवािसय/ के अनक ु ू ल हो सकते हL, उनका गम5 देश/ के
िनवािसय/ के िलए उपय\ ु होना अिधकाँशतः सHभव नह9 है।
मॉdटे aयू ने गणतZ, राजतZ एवं िनरंकुशतZ को Vमशः ‘ काश, गोधिू ल एवं अधकार’ बतलाया है। गणतZ
‘ काश’ इसिलए है िक इसम8 Oयि\ के मानिसक िवकास पर बल िदया जाता है। गणतZीय शासन Oयावहारक
नह9 है aय/िक आधिु नक िवशाल रा1य/ म8 उसका योग नह9 हो सकता। यह के वल यनू ान के नगर-रा1य/ या कम
:ेZ वाले रा1य/ म8 ही सHभव था। मॉdटे aयू का राजतZ आधिु नक बड़े रा1य/ म8 भलीभाँित हो सकता है। इसके
अितर\ वह ˆांसीसी राजतZ से ेम करता था। राजतZ के समथ5न का एक बड़ा कारण यह भी था िक
मॉdटे aयू यथाथ5वादी था और वह जानता था िक राजतZ क जड़/ को उखाड़ फL कना सरल काय5 नह9 है।
िनरंकुशतZ का मॉdटे aयू क‰र िवरोधी था aय/िक इस शासन म8 धन, वािण1य, उ0ोग सभी कुछ खतरे म8 पड़े
रहते हL और जा क ि थित दास जैसी होती है।

14.8 मॉLटे Pयू का वतGता स4बधी वचार


मॉdटे aयू पर इ}ं लैdड के संिवधान का Oयापक भाव पड़ा था। अिधकारी-वग5 क स&ा.ढ़ता के बदले िटेन म8
वतZता पर अिधक बल िदया जाता था। स&ा का मद, पतन का िनिFत माग5 है, इसका मॉdटे aयू को िव]ास हो
गया था। यही कारण था िक Spirit of Laws* म8 वतंZता क धारणा को अिधक मह+वपणू 5 थान िदया गया।
अCं ेज/ के वतZता सHबधी िवचार/ क अनभु िू त वह ˆांस म8 देखना चाहता था। उसने ििटश शासन- णाली
का िवƒे षणा+मक अ3ययन करके वतZता क Oयापक अथ5 म8 परभाषा करते हQए कहा था िक ‘‘यह Oयि\ का
ऐसा िव]ास था िक वह अपनी इiछानसु ार काय5 कर रहा है।’’ जब Oयि\ अपनी इiछा के िव.( काय5 करता है
तो वह वतZ नह9 रह जाता।
मॉdटे aयू ने वतZता के दो व.प बतलाए हL-
1. राजनीितक वतZता (Political Liberty), एवं
2. नागरक या Oयि\गत वतZता (Civil Liberty)।
राजनीितक वतZता राजकय काननू ^ारा अनमु ोिदत कोई भी काय5 करने क वाधीनता है। मॉdटे aयू के ही
श@द/ म8, ‘‘रा1य म8, अथा5त् काननू ^ारा िनदnिशत समाज म8 वतZता का अथ5 है िक एक Oयि\ को उन काम/ के
करने क वाधीनता हो जो करने यो}य है और जो काम नह9 करने चािहए, उनको करने के िलए उसे िववश न
िकया जाए।’’ Oयि\ को aया इiछा करनी चािहए इसके सव5WेJ सचू क राजकय काननू हL, और इसीिलए
‘‘ वतZता वह काय5 करने का अिधकार है िजसक काननू इजाजत देते है और यिद नागरक ऐसे काय5 कर सकता

उराखंड म
ु िविवालय 210
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
है िजसका काननू िवरोध करते हL तो उसके पास वतZता नह9 रह पाएगी, aय/िक अय सब नागरक/ को भी वैसी
ही शि\ ाX होगी।’’ प>तः मॉdटे aयू के िस(ात का के p-िबदु यह है िक वतZता काननू / के ित अधीनता
म8 है मन;ु य के ित अधीनता म8 नह9।
मॉdटे aयू के इस िवचार से िक जब मन;ु य को अपनी इiछा के िव.( काय5 करना पड़ता है तो वह वतZ नह9
रहता, एक किठन सम या तब खड़ी हो जाती है जब रा1य के काननू और Oयि\ के नैितक िव]ास म8 संघष5 उठ
जाता है। मॉdटे aयू इस किठनाई से परिचत था। अतः उसने प> कर िदया िक वतZता ाX करने के िलए यह
आवयक नह9 है िक राजकय काननू , जो हमारे आचरण को िविनयिमत करते ह/, ‘सद’् के मौिलक िस(ात/ पर
आिWत रहने वाले और जनता के नैितक िव]ास/ से सामजं य िकए जा सकने वाले ह/, +यतु आवयक यह है
िक नागरक काननू / से परिचत ह/ और काननू का उbलंघन करने पर दdडनीय ह/।
मॉdटे aयू ^ारा ितपािदत राजनीितक वतZता के िवƒे षण से उसक िनHनिलिखत िवशेषताएँ प> होती हL◌ः-
1.राजनीितक वतZता म8 शासक एवं शािसत/ के सHबध/ का थािय+व अिभिनिहत है।
2.राजनीितक वतZता क सरु :ा िविध-सHमत-शासन म8 िनिहत है।
3.इस वतZता म8 िविध का उbलघं न नह9 िकया जा सकता।
4.राजनीितक वतZता िविध ^ारा अनमु ोिदत Oयवहार का ही नाम है।
मॉdटे aयू ने नागरक वतZता पर भी अपने िवचार Oय\ िकये हL। डिनगं के अनसु ार, ‘‘मॉdटे aयू ने नागरक
वतZता क परभाषा प> .प से नह9 क है, िकतु उसके िवचार/ से यह प> है िक शासनतZ ऐसा होना
चािहए िजसम8 Oयि\गत तथा राजनीितक वतZता Oयि\य/ को पणू . 5 पेण ाX हो सके । पणू 5 वतZता Oयि\य/
को तभी िमल सकती है जब शासनतZ असीिमत शि\-सHपन या िनरंकुश न हो।’’ मॉdटे aयू के मत म8 नागरक
वतZता एक Oयि\ के दसू रे Oयि\ के साथ सHबध का परणाम है। दासता के साथ इसका वही सHबध है जो
िनरंकुशवाद का राजनीितक वतZता के साथ। एक Oयि\ जब दसू रे Oयि\ को दास बना लेता है तो उसक
नागरक वतZता समाX हो जाती है। नागरक वतZता के िस(ात ^ारा मॉdटे aयू ने दास- था पर कठोर हार
िकया है और इसे िनतात अमानवीय, अ ाकृ ितक एवं ईसाई धम5 िवरोधी माना है।

14.9मॉLटे Pयू का शिPत-पथ


ृ Pकरण का 1स2ात
सेबाइन ने िलखा है, ‘‘मॉdटे aयू के समसामियक िवचार/ के मह+व का कारण यह था िक उसने ििटश सं थाओ ं
को राजनीितक वतZता ाX करने का एक साधन बतलाया और इस .प म8 इसका चार िकया। मॉdटे aयू कुछ
समय इ}ं लैdड म8 रहा था। वहाँ रहने से उसक यह पवू 5धारणा दरू हो गई थी िक राजनीितक वतZता एक उiचतर
सwणु के ऊपर आधारत है। यह सwणु के वल रोमन/ को ही #ात था और इसे के वल नगर-रा1य म8 ही िस( िकया
गया था। उसने िनरंकुशता के ित उसक अ.िच को सार .प दान िकया और एक ऐसे उपाय का िनदnश िकया
िक िजसके ^ारा ˆाँस के िनरंकुशतावाद के द;ु परणाम/ को दरू िकया जा सकता है।

उराखंड म
ु िविवालय 211
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
शि\-पृथaकरण के िस(ात क थम सु दर और वै#ािनक Oयाrया मॉdटे aयू ^ारा यह क गई- िक स&ा का मद
पतन का िनिFत माग5 है अतः इसके िलए रोक और समतोलन या सतुलन आवयक है। वतZता तभी बनी रह
सकती है जब काय5पािलका, यायपािलका और Oयव थािपका अपना काय5 अलग-अलग सHपादन कर8 तथा एक
दसू रे के :ेZ पर हावी न ह/। शि\ का एक अगं यिद दसू रे अगं के काय5 म8 ह त:ेप न करे तो शि\ का समतोलन
रह सकता है। मॉdटे aयू ने यह मत कट िकया िक जहाँ िविध-िनमा5ण और काय5कारी शि\याँ एक ही Oयि\ म8
के िpत ह/गी वहाँ िकसी भी कार क वतZता नह9 रह सकती aय/िक एक ही Oयि\ काननू -िनमा5ता भी होगा
और काननू को िVयािवत करने वाला भी। इसी कार यिद िवधायी और याियक शि\य/ का सचं य भी एक ही
Oयि\ के हाथ/ म8 कर िदया जाएगा तो जा अपने जीवन और वतZता को सरु ि:त नह9 रख सके गी aय/िक
िविधय/ का िनमा5ण करने वाला ही िविधय/ क Oयाrया करके याय का िनणा5यक बन जाएगा। इसी तरह यिद
काय5पािलका और यायपािलका सHबधी शि\य/ का भी एक ही शि\ वामी रहेगा तो वतZता क र:ा
असHभव है, aय/िक एक ही सं था अिभयो\ा भी होगी और यायाधीश भी। पनु F, यिद िवधायी, काय5कारी और
याियक सभी कायk का समप5ण एक Oयि\ के हाथ/ म8 होगा तो िवनाश अवयHभावी है। सं:पे म8, मॉdटे aयू का
सZू यह था िक काननू -िनमा5ण, बधकारी तथा याय िवभागीय कृ +य/ का एकमाZ Oयि\ अथवा Oयि\य/ के
समहू म8 के pीकरण का अिधकार द. ु पयोग करने वाला होता है और सरकार का इस कार का संगठन आतंकपणू 5
है। इस कार मॉdटे aयू के अनसु ार यह परम आवयक है िक सरकार के िविभन अगं पृथक-पृथक् रह8 और कोई
िकसी के :ेZ म8 ह त:ेप न करे ।
मॉdटे aयू पणू 5 पृथaकरण का प:पाती था अथवा आिं शक पृथaकरण का, इस सHबध म8 यही कहना उिचत होगा
िक वह ‘शि\, शि\ का िवरोध करती है’ म8 िव]ास करता था। वह चाहता था िक सरकार के तीन/ अगं / क
शि\याँ इस कार रखी जाएं िक एक शि\ दसू री शि\ के मक ु ाबले सतल
ु न और ितरोध उ+पन करती रहे।
फाइनर ने मॉdटे aयू क धारणा पर काश डालते हQए कहा है िक ‘‘मॉdटे aयू क इiछा थी िक Vाउन क
शि\याँ सीिमत रह8 और संिवधान ऐसा साधन बने िजसके मा3यम से शि\ का Rोत बहे। पर ये Rोत अपनी सीमाएं
पार न कर पाए,ं अयथा लोग/ म8 Zािह-Zािह मच सकती है। परतु अपनी इन मायताओ ं के बावजदू भी मॉdटे aयू
पणू 5 लोकतZ क मायताओ ं से दरू न रहने का यास कर रहा था।’’
मॉdटे aयू चाहता था िक काय5पािलका Oयव थािपका को आह’त करे , उसका काय5काल िनिFत करे और
Oयव थापन क Oयव था करे । वह इस प: म8 भी था िक Oयव थािपका काय5पािलका पर महािभयोग लगा सकती
है। आगे चलकर उसने कहा िक चाहे Oयव थािपका काय5पािलका- धान पर दोषारोपण न कर सके , पर चँिू क
सम त काय5पािलका-शि\ का योग के वल काय5पािलका का धान ही िबना अपने सहयोिगय/ क मदद के
अके ला नह9 कर सकता, अतः िजन सहयोिगय/ को िविधवत मZी कहा जाता है उन पर Oयव थािपका ^ारा
मकु दमा चलाया जा सकता है, चाहे िविधयाँ उसको था होने के नाते बचाने वाली ही aय/ न ह/।

14.10 मांटेaयू के शि] पृथaकरण िस!ात क$ आलोचना-


मॉdटे aयू के शि\-िवभाजन या शि\ पृथaकरण के िस(ात क िनHनिलिखत आधार/ पर आलोचना क जाती
है-

उराखंड म
ु िविवालय 212
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1.Oयावहारक =ि> से शि\य/ का पणू 5 पृथaकरण सHभव नह9 है। सरकार के तीन/ अगं / का पृथक् रहने पर भी
पर पर एक-दसू रे के सहयोग पर आिWत हL। पणू 5 पृथaकरण का अथ5 होता है +येक अगं को िनरंकुश बना देना।
शासन इस कार के तीन सH भु शि\य/ के रहते हQए चल ही नह9 सकता।
2.शासन के तीन/ अगं / म8 इतनी Oयापक घिनJता पाई जाती है िक उनका पणू 5 िवभाजन अOयावहारक है। सरकार
के िविभन अगं / ^ारा शासन का चाहे जो भी व.प हो, िमिWत कार के कायk का सHपादन होता है। यायाधीश
काननू क Oयाrया करते समय व-िववेक से कुछ ऐसे िनण5य लेते हL और ऐसे िनयम/ का िन;पादन करते हL जो
आगे चलकर काननू बन जाते हL। काय5पािलका3य: परि थितय/ का सामना करने के िलए चाहे जो अ3यादेश
िनकालते हL वे भी Oयवहार म8 काननू के समान ही भावी होते हL। Oयव थािपका ^ारा कई कार के काय5पािलका
और यायपािलका सHबधी काय5 िकए जाते हL। ससं दीय Oयव था म8 तो काय5पािलका ही Oयव थापन के :ेZ म8
नेत+ृ व Cहण िकए रहती है। व ततु ः राजनीित का कोई भी मह+वपणू 5 B काय5पािलका और Oयव थािपका के पश5
से अछूता नह9 होता। फाइनर के अनसु ार ‘‘पृथaकरण का िस(ात शासन को कभी लाप क ओर तथा कभी
बेहोशी क ओर धके लता रहता है।’’
3.मॉdटे aयू ने शि\-पृथaकरण के िस(ात क Oयाrया ामक आधार पर ततु क। <ाँग के श@द/ म8,
‘‘शि\य/ के पृथaकरण के िस(ात के ादभु ा5व के सHबध म8 सबसे िविचZ बात यह है िक ारHभ म8 इसे ििटश
संिवधान क ि थरता के िवशेष आधार के .प म8 तुत िकया गया था जो िबलकुल ही अस+य है और जो उस पर
िबbकुल भी लागू नह9 होता’’ aय/िक िटेन म8 शि\य/ के सामंज य के िस(ात को वीकार िकया गया है।
4.शि\-पृथaकरण का िस(ात अपने िवश( ु अथवा पणू 5 .प म8 सरकार क काय5-:मता को न> करने वाला है
aय/िक सरकार के अगं / के पार परक सदेह/ और आतरक संघष5 के कारण शासकय यो}यता कुिdठत होकर
मर जाएगी और +येक िवभाग म8 थानीय वाथ5 का बोलबाला हो जाएगा। जे0एस0 िमल ने ‘ ितिनिध सरकार’
म8 इसी तjय क ओर संकेत िकया है िक कठोरता से लागू िकया गया शि\-पृथaकरण संघष5 को ो+साहन देगा
और जनमानस पर िवपरीत भाव डालेगा।
5.नागरक वतZता के िवचार से भी अिधकार/ का पणू 5 िवभाजन आवयक नह9 है aय/िक Oयि\गत वतZता
अिधकार/ के िवभाजन पर इतनी आिWत नह9 रहती िजतनी सिं वधान क आ+मा पर। इ}ं लैdड म8 शि\ पृथaकरण
का िस(ात न होते हQए भी अमेरका से कम वतZता नह9 है।
6.यह िस(ात असामियक है िजन परि थितय/ म8 इसका जम हQआ है वे आज बदल गई हL। आज रा;< शि\ के
िलए शासन म8 िवभाजन क नह9, एकता क आवयकता है। इसके अितर\ आज के लोक-कbयाणकारी रा1य
का िवचार भी शि\-िवभाजन िस(ात के अन.ु प तीत नह9 होता।

14.11 मॉWटेaयू के शि]-पृथaकरण के िस!ात का OयावहाLरक "भाव और


मHू याँकन
मॉdटे aयू के शि\य/ के पृथaकरण के िस(ात म8 ˆांसीसी Vाित को ो+साहन दान िकया और Vाितकारी
काल क ायः सभी सरकार8 शि\ िवभाजन के िस(ात पर सगं िठत क गई।ं नेपोिलयन के शासन म8 इस िस(ात

उराखंड म
ु िविवालय 213
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
क अव#ा क गई, िकतु सव5साधारण के ‡दय म8 यह िस(ात अपना घर िकए रहा और सांिवधािनक सZू के .प
म8 आज भी इसक शंसा क जाती है।
अमेरका म8 मॉdटे aयू के इस िस(ात का भाव िनणा5यक िस( हQआ। डॉ0 फाइनर का कथन है िक ‘‘हम नह9
कह सकते िक अमेरकन सिं वधान के िनमा5ताओ ं ने संिवधान म8 शि\य/ का पृथaकरण मॉdटे aयू के िस(ात से
भािवत होकर िकया था, या उनका उेय यह था िक नागरक/ क सHपि& एवं वतZता क र:ा के िलए
शि\य/ के पृथaकरण का आWय लेना ही चािहए। िफर भी इसम8 कोई सदेह नह9 है िक अमेरकावासी एवं
अमेरकन सिं वधान-िनमा5ता मॉdटे aयू ^ारा ितपािदत वतZता के प:पाती थे य0िप साथ ही वे वेiछाचारता
को भी सीिमत करना चाहते थे। बाद के इितहास ने भी अमेरकन सिं वधान म8 शि\य/ के िवभाजन के िस(ात को
मान लेने म8 हाथ बटं ाया पर िफर भी इससे इकार नह9 िकया जा सकता िक अमेरकन सिं वधान पर मॉdटे aयू क
प> छाप पड़ी थी। इसी कारण मेिडसन बार-बार कहा करता था िक ‘‘हम मॉdटे aयू क िनरतर अ=य छाया से
ेरणा Cहण कर रहे हL।’’
इस िस(ात क उपयोिगता यह बल देने म8 है िक शासन के तीन/ अगं / के बीच अिधकार-िवभाजन शासन क
अiछाई को बनाए रखने के िलए आवयक है, िकतु यह िवभाजन उसी सीमा तक करना चािहए जहाँ तक इन
अगं / म8 सहयोग के िलए परू ा अवसर िमलता रहे। राजदश5न के इितहास म8 मॉdटे aयू का यह िस(ात एक महान्
िस(ात के .प म8 अिव मरणीय है।

14.11 अय 1स2ात


मॉdटे aयू के मह+वपणू 5 िस(ात/ पर िवचार कर लेने के बाद सगं वश उसके अय कितपय मह+वपणू 5 िवचार/ को
भी साँकेितक .प म8 जान लेना उपयोगी है।
सबसे पहले हम भौितक परि थितय/ के भाव के बारे म8 मॉdटे aयू के िवचार/ को लेते हL। उसका िव]ास था िक
िकसी देश क राजनीितक, सामािजक, आिथ5क एवं धािम5क सं थाओ ं पर भौितक परि थितय/ का बड़ा भाव
पड़ता है। िजस देश क जलवायु गम5 होती है उस देश के िनवािसय/ म8 आल य-वृि& अिधक होती है। शीत- धान
देश/ के िनवािसय/ म8 िVयाशीलता, फूित5 और म0मान क वृि& अिधक रहती है। िजस देश क जैसी जलवायु
होती है◌ै वैसी ही वहाँ के मन;ु य/ क आवयकताएँ और जीवन-प(ितयाँ होती हL। वतZता और जलवायु म8
घिनJ सHबध है। उदाहरणाथ5 गम5 जलवायु एिशयायी देश/ म8 िनरंकुश शासन सं थाओ ं को प>ु करती है जबिक
यरू ोप क ठdडी जलवायु िनरंकुश शासन को सहन नह9 कर सकती और इसी कारण वहाँ वतZता एवं
आ+मिनभ5रता क भावनाएँ अिधक िवकिसत होती हL। मॉdटे aयू का मत था िक िटेन का संिवधान वहाँ क
जलवायु और लदन के कुहरे का परणाम है। मॉdटे aयू के अनसु ार भतू ल क रचना भी रा;<ीय स ं थाओ ं को
भािवत करती है। पव5तीय देश वतZ सरकार के िलए तथा समतल मैदान िनरंकुश शाससन के िलए अiछा
आधार ततु करते हL। गहरी निदय/ और ऊँची पव5त Wेिणय/ से रिहत देश/ म8 िनरंकुश शासन इसिलए पनपते हL
aय/िक ऐसे देश/ को अथा5त् मैदान/ को िवजय करना आसान होता है। पव5तीय देश/ को िवजय करना
अपे:ाकृ त किठन होता है, इसिलए वहाँ वतZ राजनीितक जीवन िवकास पाता है। चिँू क पव5तीय देश/ म8 खेती
करना किठन होता है अतः लोग प. ु षाथf होते हL। मॉdटे aयू के अनसु ार महा^ीप/ के िनवािसय/ क अपे:ा
^ीपवािसय/ म8 लोकतZा+मक भावनाएं अिधक बल होती हL। महा^ीप/ म8 आVमण/ का भय सदैव िव0मान

उराखंड म
ु िविवालय 214
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
रहता है। वैधािनक शासन और जातZ छोटे रा1य/ म8 उपय\
ु एवं सHभव है जबिक िवशाल रा1य/ का शासन
िनरंकुश नरे श ही अiछी तरह कर सकते हL।
इस बात से इकार नह9 िकया जा सकता िक मानव- वभाव एवं वृि& के िनमा5ण म8 भौितक परि थितय/ का
िवशेष भाव होता है, लेिकन इह8 इतना मह+व नह9 िदया जा सकता िजतना मॉdटे aयू ने िदया है। यिद मॉdटे aयू
क जलवायु और भ-ू रचना सHबधी धारणा को सही मान िलया जाए तो िफर aया कारण है िक भारत और अय
गम5 जलवायु वाले मैदानी देश/ म8 वतZ सं थाएं सफलतापवू 5क काय5 कर रही हL। अमेरका और आ <ेिलया जैसे
िवशाल देश/ म8 लोकतZीय सरकार/ क सफलता भी मॉdटे aयू क धारणाओ ं का खdडन करती है।
मॉdटे aयू ने सामािजक परवेश के भाव क भी चचा5 क है। सामािजक रीितयाँ, Oयवहार, आचार, िव]ास आिद
िमलकर सामािजक परवेश का िनमा5ण करते हL और एक देश के काननू / तथा राजनीितक सं थान/ पर इसका बड़ा
भाव पड़ता है। जन-रीितय/ और जन-आचरण के िवपरीत जाने वाले राजकय काननू / का न तो सHमान ही हो
सकता है और जा उनका वेiछा से पालन ही करती है। अतः िविध-िनमा5ताओ ं को चािहए िक वे सामािजक
परवेश को 3यान म8 रखते हQए िविधय/ का िनमा5ण कर8 ।
मॉdटे aयू ने धम5 को Oयि\गत िव]ास क व तु माना है। रा1य को धम5 के :ेZ म8 कोई ह त:ेप नह9 करना चािहए;
तभी Oयि\ क वतZता सरु ि:त रहेगी और रा1य के थािय+व म8 भी वृि( हो सके गी। िकसी समाज म8 कौन सा
धम5 चिलत हो, इसका िनधा5रण उस समाज क िविश> ि थितय/ ^ारा ही होना चािहए। मॉdटे aयू ने धम5 पर
िवचार करते समय अपना यह िनिहत िव]ास Oय\ िकया है िक सीिमत सरकार वाले देश म8 ईसाई धम5,
िनरंकुशवादी रा1य म8 इ लाम धम5, राजतZ म8 कै थोिलक धम5 और गणतZ म8 ोटे टेट धम5 सवा5िधक उपय\ ु है।
मॉdटे aयू रोमन कै थोिलक सH दाय क िभ:-ु णाली तथा पादरय/ ^ारा िववाह न करने सHबधी िनयम का भी
कठोर आलोचक था।

14.13 मॉLटे Pयू का मJ


ू याँकन
मॉdटे aयू के बारे म8 ायः कहा जाता है िक उसका राजनीितक दश5न अ प> और उलझा हQआ है। य0िप उसने
Oयि>मलू क एवं ऐितहािसक प(ित का अनसु रण िकया है तथा Oयावहारक राजनीितक B/ क समी:ा क है
तथािप रा1य क उ+पि& और वभाव के सHबध म8 उसक Oयाrया सतोषजनक नह9 है। उसके िन;कष5
अ मािणत और संिद}ध सचू नाओ ं पर आधारत हL। िवचार-Oयव था क शैली भी िबखरी और उलझी हQई है। ये
दोष सHभवतः इसीिलए रह गए हL aय/िक मॉdटे aयू का ितपा0 िव;#य बहQत Oयापक था िजसे प> करने म8 वह
समिु चत सतुलन और अनश ु ासन नह9 िनभा पाया। इस कारण मॉdटे aयू क ितभा को ‘Genious of hasty
generalisation* कहा गया है।
मॉdटे aयू के दश5न म8 मौिलक ितभा क कमी भी खटकती है। अपनी वतZता सHबधी धारणा म8 उसने िववेक,
परHपरा, धम5, मानव- वृि& आिद का इस तरह एककरण कर िदया है िक वतZता सHबधी िवचार िशिथल हो
गया है। सरकार/ के वगfकरण म8 भी मौिलकता का अभाव है। मॉdटे aयू यह भी नह9 बतलाता िक > शासन ^ारा
उ+पन अराजकता से बचने के aया उपाय हL। उसने रा1य-Vाितय/ के िकसी िस(ात का ितपादन नह9 िकया है
और न ही िनरंकुशतZ को सधु ारने के उपाए बतलाए हL।

उराखंड म
ु िविवालय 215
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िकतु इन सब किमय/ के बावजदू मॉdटे aयू के महान् अनदु ाय और भाव क उपे:ा नह9 क जा सकती। उसके
Cथ ‘^The Spirit of Laws ने चाहे अठारहव9 और ारिHभक उनीसव9 शता@दी के राजदश5न पर िवशेष भाव
नह9 डाला, िकतु बाद के राजनीितक िवचारक/ ने उसके मह+व को समझा है। मॉdटे aयू के दश5न को उसके
समकालीन समय म8 सHभवतः इसिलए नह9 समझा जा सका िक वह राजनीित शाh के अ3ययन को यायशाh,
अथ5शाh, भगू ोल आिद सामाय सामािजक शाh/ से िमलाना चाहता था जबिक उसके समकालीन और कुछ
परवतf िवचारक राजनीित शाh को अय शाh/ से सव5था पृथक् रखना चाहते थे। समकालीन िचतन से
मॉdटे aयू का एक अतर यह था िक वह ˆ8 च राजतZ को सधु ारने का आकां:ी था, वाbटेयर तथा .सो क भाँित
उस पर आ:ेप करने वाला नह9। जहाँ उसके समकालीन िव^ान/ ने नागरक-अिधकार/ तथा राजा के
िवशेषािधकार/ पर बल िदया वहाँ मॉdटे aयू ने याय, वतZता, रा1य क काय5:मता आिद Oयावहारक B/ पर
अिधक िवचार िकया।
मॉdटे aयू ने राजदश5न के :ेZ म8 अनेक कार से अमbू य योग िदया है। उसका सबसे महान् अनदु ाय ‘ वतZता का
िस(ात’ है। वतZता क सरु :ा के िलए ही उसने शि\-िवभाजन के िस(ात का ितपादन िकया िजसका िव]
क अनेक शासन-Oयव थाओ ं पर भाव पड़ा। मॉdटे aयू ने Oयि\ क वतZता का रह य शि\-पृथaकरण म8
पाया, ाकृ ितक अिधकार/ म8 नह9। पर हम8 यह नह9 भल ू ना चािहए िक वतZता का महान् समथ5क होते हQए भी
मॉdटे aयू लोकतZवादी नह9 था। अपने वभाव और िवचार से वह संिवधानवादी था। जनता क भावना को
उ&ेजना देना उसे एकदम अ.िचकर था। वतZता का समथ5न करते हQए भी वह सHपणू 5 जनता को राजनीितक
और साHपि&क समानता देने क उदारता दिश5त न कर सका।

अAयास B
1. माटे aयू का जम िकस देश म8 हQआ था?
a.ˆांस b.इटली c. जम5नी d.आि <या
2. िनHन म8 से कौन सी कृ ित/कृ ितयाँ मांटे aयू क है-
a.पिस5यन लेटस5 b.रफलेaशन ऑन द कॉलेज ऑफ द Cेटनेस एdड िडaलाइन ऑफ द रोमस
c.ि ट ऑफ लाज d.उपरो\ सभी
3. ‘‘शि\-पृथaकरण’’ का िस(ात िकसने िदया?
a..सो b.मांटे aयू c.ला क d.लॉक
4. मांटे aयू के सरकार/ के वगfकरण म8 सरकार के िकतने मल
ू .प हL?
a.1 b.2 c.3 d.4
5. मांटे aयू गणतािं Zक सरकार के िकतने भेद बताता है?
a.1 b.2 c.3 d.4
6. अठारहव9 शता@दी का अर तू िकसे कहा जाता है?

उराखंड म
ु िविवालय 216
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

a.मांटे aयू b.हा@स c.लॉक d..सो

14.12 सारांश
मॉdटे aयू ने अर तू और मैिकयावली से बढ़कर अिधक Oयवि थत और िवकिसत .प म8 ऐितहािसक प(ित का
अनसु रण िकया, य0िप साथ ही वै#ािनक और पय5वे:णा+मक णाली का सहारा िलया। उसने भौगोिलक
वातावरण को राजनीित का अगं मानकर Oयि\+व को गौरव दान िकया। उसने के वल उह9 िवचार/ को अपनाया
जो उसक =ि> म8 Oयावहारक उपयोिगता क कसौटी पर खरे उतरे । मॉdटे aयू ने काननू क मह&ा थािपत करते
हQए प> .प से कहा िक काननू ^ारा ही शासन सचु ा. .प से चलाया जा सकता है। उसने िविधय/ के आतरक
त+व क िववेचना क तथा कहा िक िविध-िनमा5ण ाकृ ितक और सामािजक वातावरण तथा ऐितहािसक रीित-
रवाज/ और धािम5क मायताओ ं को 3यान म8 रखकर िकया जाना चािहए। िविधय/ क सह समाजशाhीय मीमांसा
िनFय ही मह+वपणू 5 है। मॉdटे aयू का मह+व इस बात म8 भी है िक िनरंकुशता का खdडन करके उसने ितिनिधक
संसदीय शासन का अनमु ोदन िकया तथा राजा पर सांिवधािनक रोकथाम का समथ5न िकया। उसके भाव का
मbू याँकन करते हQए मैaसी ने ठीक ही िलखा है िक राजनीितक िचतन के :ेZ म8 मॉdटे aयू tलेटो, अर त,ू
मैिकयावली और बोदाँ के समान िविश> मह+व रखता है। वह य0िप 18व9 शता@दी का ˆाँसीसी था िकतु उसके
िस(ात/ और अ3ययन प(ित का साव5भौितक मह+व है। उपयोिगतावािदय/ ने उसके िवचार/ को बहQत हद तक
Cहण िकया। बेथम तो उसक अनभु िू तमल ू क प(ित से बड़ा भािवत था।

14.13 श!दावल$
1.िवके pीकरण -िवके pीकरण क वृि& के pीकरण क वृि& से उbटी होती है और इसम8 थानीय उपVम
तथा साधनशीलता पर िवशेष जोर िदया जाता है। अथा5त् अिधकार/ और शि\य/ का के pीय स&ा क ओर से
ादेिशक तथा थानीय शासन-स ं थाओ ं के बीच के िवभाजन को िवके pीकरण कहते हL।
2.अतं रा5;<ीय काननू -उन सामाय िस(ात/ और िविश> िनयम/ का समiु चय िजह8 अतं रा5;<ीय समदु ाय के सद य
रा;< पर पर सHबध/ के िनवा5ह म8 मायता देते हL। अतं रा5;<ीय काननू का मrु य 3येय यह है िक रा1य/ के पर पर
सHबध सचु ा. .प से सचं ािलत िकए जा सक8 और उनम8 पैदा होने वाले िववाद/ का शांितपणू 5 समाधान हो सके ।
3.गणतZ- ऐसा रा1य जहाँ रा1य का बंध सिVय नागरक/ का कत5Oय है, सuाट/, अिभजात वगk का सचू क
माना जाता है। परंतु िस(ात क =ि> क यह अिभजाततंZ के िव.( है। गणतंZ क भावना यह माँग करती है िक
काननू बनाने और बदलने का काय5 सिVय नागरक/ को िमल-जल ु कर करना चािहये।
4.शि\-पृथaकरण-आधिु नक रा1य के बहQमख ु ी काय5 साधारणतः तीन वगk म8 िवभािजत िकये जा सकते हL।
काय5कारी, िवधायी और याियक और इन कायk के अन. ु प ही सरकार के तीन िविश> अगं वीकार िकये जाते हL-
कायाyग, िवधानांग और यायांग। िवधानांग का काय5 िविध िनमा5ण करना, कायाyग का काय5 उह8 काया5िवत करना
और यायागं का काय5 उनक Oयाrया करना है। रा1य के िविभन अगं / को एक-दसू रे से अलग रखने का िस(ातं
ही शि\-पृथaकरण का िस(ात है।

उराखंड म
ु िविवालय 217
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

14.14 अ&यास 
न' के उ तर
1. a 2. d 3.b 4. C 5. b 6. a

14.15 सदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीित दश5न का इितहास - जॉज5 एच0 सेबाइन
2.राजनीितक-िचतं न क .परे खा - ओ0पी0 गाबा
3.पाFा+य राजनीितक िचतं न - आर0एम0 भगत
4. मख
ु राजनीितक िचतक-खdड-2 - डा0 जिकशोर झा
5.ि ंिसपल ऑफ सोशल एdड पॉिलिटaस jयोरी - बाक5 र
6.ए िह <ी ऑफ पािलिटकल jयोरीज़ ˆाम लथू र टू माटे aयू - डिनगं

14.16 सहायक/उपयोगी पा+य प


ु तक?
1 राजनीित कोश - डा0 सभु ाष कयप एवं िव] काश गXु
2.राजनीित िव#ान िव]कोश - ओ0पी0 गाबा
3.राजनीितक िवचार िव]कोश - ओ0पी0 गाबा

14.17 नबधा मक 

1.माटे aयू के वतZता क धारणा का िव तार और िवƒे षण किजए।
2.माटे aयू के राजनीितक दश5न के मrु य िस(ात/ क चचा5 किजए।
3.‘सभी साuा1य/ म8 थम साuा1य जलवायु का है’’- समी:ा कर8 ।
4.‘‘ि ट ऑफ लॉज’’ म8 ितपािदत माटे aयू के मल
ू िवचार/ क आलोचना+मक समी:ा किजये।

उराखंड म
ु िविवालय 218
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 – 15 : ह E*, F/ & ह* 2


इकाई क$ संरचना
15.1 "तावना
15.2 उ4े5य
15.2.1 हीगल के आम तव का िस!ात
15.2.2 हीगलः e!वाद का िस!ात
15.2.3 हीगल का राय िस!ात
15.2.4 रा,-ीय राय अतरा,-ीयतावाद और य!ु
15.2.5 दWड तथा सपि:
15.2.6 सिं वधान पर हीगल के िवचार
15.3 Dीन का आ
यािमक िस!ात
15.3.1 Dीन क$ वतRता स;बधी धारणा
15.3.2 Dीन क$ अिधकार स;बधी धारणा
15.3.3 "ाकृ ितक काननू पर Dीन के िवचार
15.3.4 सामाय इ?छा पर Dीन के िवचार
15.3.5 राय के काय^ पर Dीन के िवचार
15.3.6 राय और Oयि]
15.3.7 स;पि: पर Dीन के िवचार
15.4 हीगल और Dीन के िवचार9 का एक तल ु नामक अ
ययन
15.5 सारांश
15.6 शAदावली
15.7 अBयास "C9 के उ:र
15.8 सदभ Dथ सचू ी
15.9 सहायक /उपयोगी पाठ्य सामDी
15.10 िनबंधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 219
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

15.1 तावना
इसके पवू 5 क इकाई १४ म8 हमने मांटे aयू के राजनीितक िवचार/ का िव तार से अ3ययन िकया और देखा िक
िकस कार से उसने ल/गो के अिधकार/ क र:ा और वतंZता क र:ा के िलए शि\ पृथaकरण के िस(ांत का
ितपादन िकया है | मॉdटे aयू ने अर तू और मैिकयावली से बढ़कर अिधक Oयवि थत और िवकिसत .प म8
ऐितहािसक प(ित का अनसु रण िकया, य0िप साथ ही वै#ािनक और पय5वे:णा+मक णाली का सहारा िलया।
उसने भौगोिलक वातावरण को राजनीित का अगं मानकर Oयि\+व को गौरव दान िकया। उसने के वल उह9
िवचार/ को अपनाया जो उसक =ि> म8 Oयावहारक उपयोिगता क कसौटी पर खरे उतरे । मॉdटे aयू ने काननू क
मह&ा थािपत करते हQए प> .प से कहा िक काननू ^ारा ही शासन सचु ा. .प से चलाया जा सकता है।
अब हम इस इकाई १५ म8 हीगल और Cीन के राजनीितक िवचार/ का अ3ययन कर8 गे |इसम8 हम सव5 थम हीगल
के आ+मत+व संबंधी िवचार का अ3ययन कर8 गे | इसके पFात हम यह देख8गे िक िकस कार से हीगल ने
^(वादी प(ित से समाज के उि^कास क Oयाrया क है और प> िकया है िक समाज के िवकास म8 मrु य स&ा
चेतना क है | साथ ही हम हीगल के अतरा5;<ीयतावाद, य(
ु ,दdड तथा स+पि& तथा संिवधान के सHबध म8 िदए
गए िवचार/ का भी अ3ययन कर8 गे |इसी Vम म8 हम तामस िहल Cीन के वतZता , अिधकार और काननू
सHबधी धारणा का अ3ययन कर8 गे और देख8गे िकस कार से Cीन ने ल/गो के अिधकार/ को मह+व दान िकया है
| और इसका Oयि\ और रा1य के बीच संबंधो पर aया भाव पडता है ,इसका भी अ3ययन िकया जाएगा |

15.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम
1. हीगल के ^(वाद का िस(ात का अ3ययन कर सक8 गे |
2. ^(वाद के िस(ात के आधार पर समाज के िवकास क गित को समझ सक8 गे |
3. अतरा5;<ीयतावाद, य(
ु ,दdड तथा स+पि& तथा संिवधान पर हीगल के िवचार/ को समझ सक8 गे |
4. Cीन क वतZता , अिधकार और काननू सHबधी धारणा को जान सक8 गे |
5. सामाय इiछा पर Cीन के िवचार का अ3ययन कर सक8 गे |
6.Cीन के अनसु ार Oयि\ और रा1य के म3य सबधं / का अ3ययन कर सक8 गे |

उराखंड म
ु िविवालय 220
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

15.2.1 ह$गल के आ म त व का 1स2ात


एक आदश5वादी दाश5िनक के Yप म8 हीगल क यह आधारभतू मायता है िक सृि> म8 सHपणू त5 ा OयाX है। इस सृि>
का चरम स+य दैिवक मन है। इसी दैिवक (स+य) शि\ को हीगल िवचार त+व िववेक अथवा आ+म त+व जैसे
अनेक नाम/ से भी सHबोिधत करता है। सृि>, इसका जड़ जगत और बा‡य जगत इ+यािद इसी आ+म त+व क ही
िनिम5त है। हीगल के अनसु ार िववेक िव]ा+मा ही ससं ार का सH भु है। आ+म त+व क िवशेषता यह है िक वह
सव5# है। सभी चीज/ का #ान ाX करना इसका िवशेष गणु है जब तक िववेक अपने वंय का पणू 5 #ान ाX नह9
कर लेती, तब तक यह सृि> म8 िवकिसत होती रहती है। इसक याZा का अत के वल आ+म बोध ाX करके ही
होता है। यिद हम इितहास को देख8 तो #ात होगा िक यह आ+म त+व अपनी लीला करता रहा है। हीगल के
कथनानसु ार िववेकशील ही यथाथ5 है और यथाथ5 ही िववेकशील है। हीगल क मायता है जो आधारभतू और
मह+वपणू 5 है के वल वही यथाथ5 है। िफर भी हीगल वा तिवक क उपे:ा नह9 करता aय/िक उसका मानना है िक जो
कुछ भी वा तिवक घटता है वह घटना आ+म त+व के ^ारा ही संभव है।
हीगल के भावा+मक िस(ात का सार इतना ही है िक इितहास म8 जो कुछ होता है वह वैसे ही हQआ है जैसे उसे
होना चािहए जो हQआ है वह िववेक क रचना है अतः उसका सHमान िकया जाना चािहए। इितहास म8 जो कुछ भी
िवकिसत हQआ है वह योगा+मक है, उनम8 अनावयक पीछे रह जाती है, और आ+म त+व िजन त+व/ को आगे
बढ़ाता है उनम8 िववेक है। आ+म त+व ने िजस वYप म8 अपने आप को कट िकया वह िवकास के माग5 का एक
चरण था जो िनरतर आ+म ािX क िदशा क ओर बढ़ रहा था। इसका अथ5 है िक सHपणू 5 इितहास आ+म-त+व
क िव तृत कहानी है। इितहास म8 आ+म-त+व जम लेते हQए िदखता है, उसके उतार-चढ़ाव िदखते है, उसका पतन
भी िदखता है और उसक उनत अव था भी।

15.2.2 ह$गलः Fव2वाद का 1स2ात


उ&रकालीन यनू ान के िवचारक/ का मानना था िक यिद िकसी ि थित को उसक अित तक पहQचँ ाया जाय तो
ितिVया वYप उसक िवपरत ि थित उ+पन होती है। उदाहरण5 के तौर पर,
राजतZं क अित से कुलीनतZं उ+पन होता है और कुलीनतZं क अितयाँ लोकतZ को जम देती है। लोकतंZ को
अित तक धके लने पर तानाशाही उ+पन होती है और तानाशाही से राजतZं । हीगल ^(वाद के इस यनू ानी
िस(ात से भािवत हQआ था िजसे उसने अपनी दाश5िनक प(ित अगं बनाया।
हीगल क मायता है िकसी भी व तु के उसक पणू 5 व था पर पँहQचने पर यह आभास होता है िक उसम8 अपने त+व
के अलावा उसके िवपरत अथवा िवरोधी त+व/ का समावेश होता है। हीगल के अनसु ार परवत5न क िVया म8
वाद ितवाद और संवाद क तीन किड़या िनिहत रहती है। इस आधार पर हीगल क मायता है िक +येक
अि त+व को समझने के िलए के वल इतना ही जानना पया5X नह9 है िक यह aया है अिपतु यह भी जानना
आवयक है िक “यह aया नह9 है” हीगल कहता है िक ^(वाद क मख ु अवधारणा यह है िक िवरोधी त+व/ के
संघष5 और सांमज य के ^ारा गित होती है। इितहास को इस िस(ात के ^ारा आसानी से समझा जा सकता है।
सृि> िवचार जगत अथवा मानवीय इितहास म8 गित अथवा िवकास कै से और aय/ होता है, ^(वाद इन B/ क

उराखंड म
ु िविवालय 221
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
खोज करता है हीगल के ^(वाद क यह मख ु धारणा है िक कृ ित म8, िवचार जगत म8 अथवा मानवीय इितहास
मे गित संघष5 और समवय के िनयम/ ^ारा होती है।
हीगल ने ^(वाद क िVया क िजन तीन किड़य/ क चचा5 क है, वे तीन किड़याँ वाद ितवाद, और संवाद क
है वाद िकसी थापना क पिु J करता है। उस थापना का खdडन ितवाद करता है। िकतु बात यह9 समाX नह9
हो जाती वाद और ितवाद म8 जो स+यांश है वह िमल कर सवांद म8 कट होता है। इस कार वाद, ितवाद और
सवांद पर आकर समाX नह9 होती। जो कल तक सवांद था वह कालातर म8 पनु ः वाद म8 परवित5त हो जाता है
और एक बार पनु ः वाद ितवाद सवांद क Zयी िVयाशील होती है। यह िVया तब तक समाX नह9 होती जब
तक िक अिं तम स+य को ाX नह9 कर िलया जाता प> है िक हीगल का ^(वाद से अथ5 ^( और सामजं य क
उस िVया से है िजससे िवचार जगत और सृि> म8 गित होती है िवचार त+व के िवकास का उदाहरण ले सकते है।
िजसे हीगल वाद कहते है िवचार त+व के िवकास का उदाहरण ले सकते है। िजसे हीगल वाद कहते है, जब तक
यह अपने उेय तक नह9 पहQचँ जाता तब तक वह वाद पणू त5 ा से दरू रहता है इन अपणू त5 ाओ ं को दरू करने के िलए
एक ितिVया शYु होगी िजसे हीगल ितवाद कहता है। उसके बाद वाद और ितवाद का ^( होगा और यह
सघं ष5 तब तक चलता रहेगा जब तक िक सवांद का आिवभा5व नह9 हो जाता। सवांद तक पहQचं कर िवचार त+व क
समािX नह9 होती, वह9 सवांद अब वाद का Yप धारण करता है और एक बार िफर से वाद का ितवाद और वाद
ितवाद से सवांद क िVया चालू हो जाती है जब तक िक िवचार त+व अपनी पणू त5 ा को ाX नह9 कर लेता है।
हीगल वाद ितवाद सवांद िस(ात ^ारा इस तjय को रे खािकत करना चाहता ह’।ँ िक सृि> जगत म8 जो कुछ भी
स+यांश है, उसका कभी लोप नह9 होता। स+य का वह अश ं , चाहे िवचार जगत म8 हो अथवा सामािजक जगत म8,
सदा संघष5 और समवय क िVया म8 और अिधक श( ु और उनत होकर आगे बढ़ता है। अतः हम कह सकते है
िक वाद- ितवाद के अतिव5रोधी को बाधाएं नही मानना चािहए। ये बाधाएँ नह9 अिपतु स+य को उजागर करने
वाली आवयक परि थितयां है। यिद अतिव5रोध नह9 है तो गित भी सभं व नह9 है। गित इन ^(ो का ही
परणाम है।
हीगल के वाद ितवाद सवांद िस(ात क िVया िकस कार काय5 करती है उसको प> करने के िलए हम कुछ
उदाहरण का सहारा ले सकते है। हीगल का जो तक5 शील िस(ात है यिद हम उसके अनसु ार ‘अि त+व’
;(Thesis) वाद है तो ‘अनि त+व’ ;(Antithesis) उसका ितवाद है और वाद ितवाद से बना है ‘सवांद
(Synthesis) है। सरकार के कार/ का ऐितहािसक िवकास िकस कार होता है, हीगल के िवचारानसु ार
‘िनरंकुशवाद’ वाद है, िजसका ितवाद लोकतZ है और िनरंकुशवाद तथा लोकतZ का समवय सवं ैधािनक
राजतZ Yपी सवांद म8 होता है। इस कार जब हम इस िस(ात का अ3ययन गहनता के साथ करते है तो #ात
होता है िक रा1य जैसी सं था क Oयाrया हीगल ने अपने ^(वाद के िस(ात के आधार पर क है। हीगल मानता
है िक कुटुHब वाद है, ‘िसिवल समाज’ ; उसका ितवाद है और वाद ितवाद के ^( से रा1य Yपी सवांद का
आिवभा5व होता है। हीगल ने ^(ा+मक णाली से होने वाले परवत5न/ के तीन आधारभतू िनयम/ का वण5न िकया
है जो इस कार है-
परवत5न के तीन िनयम
1. संrया+मक चीज/ म8 गणु ा+मक परवत5न और गणु ा+मक चीज/ म8 सrं या+मक परवत5न का िनयम।

उराखंड म
ु िविवालय 222
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2. िवरोध/ क एकता का िनयम।
3. िनषेध के िनषेध का िनयम।
उपरो\ तीन/ िनयम/ का सं:ेप म8 सार यह है।
1. संrया का गणु म8 और गणु का संrया म8 परवत5न का िनयम:- हीगल कहता है िक व तुओ ं म8 संrया+मक
/माZा+मक और गणु ा+मक परवत5न होते रहते है। िकसी व तु म8 अ=य संrया+मक परवत5न/ के ^ारा उस व तु का
गणु ा+मक Yप इतना बदल जाता है िक उसके आगे वह व तु एक नया गणु ा+मक Yप धारण कर लेती है। पानी का
भाप बनना अथवा बफ5 बनना सrं या से गणु ा+मक परवत5न का उदाहरण है। इसी कार, इसके िवपरत गणु से
सrं या म8 परवत5न होता है बादल से पानी का बनना इसका उदाहरण हो सकता है। माZा से गणु म8 और गणु से
माZा म8 परवत5न/ का होना, परत5न का पहला िनयम है। हीगल इस िस(ात से यह बताता है िक सामािजक
स ं थाएँ परवत5नशील है िजनम8 सrं या+मक और गणु ा+मक परवत5न होते रहते है।
2. िवरोधी त+व/ क एकता का िनयम:- हीगल ितपािदत करता है िक +येक एकता म8 िवरोध के वर होते है। हम
िजस व तु को एकता मानते है, जैसे िक सं था क एकता, उसक कुछ समय वह एकता बनी रहती है िकतु
कालातर म8 यह प> होने लगता है िक उस एकता म8, उस सं था क एकता म8 पर पर िवरोधी त+व है। इन पर पर
िवरोधी त+व/ का संघष5 होगा और उनक एकता न> होगी तथा सं था नया Yप धारण करे गी। जो िनयम सं था के
िलए सही है वह सत् के िलए भी सही है। हीगल मानता है िक सत् क अतिव5रोधी कृ ित होती है। मल
ू मायता है
िक +येक एकता म8 िवरोधी त+व/ का समावेश रहता है।
3. िनषेध के िनषेध का िनयम:- हीगल कहता है िक अपने अतः िवरोध/ के कारण वाद का िव फोट होता है और
उसका थान ितवाद का िव फोटक होता है और उसका थान ितवाद ^ारा ले िलया जाता है, अथा5त वाद का
िनषेध ितवाद है। इसी तरह ितवाद भी उही कारण/ के फल वYप िबखर जाता है यही ितवाद का िनषेध है
इसका साधारण अथ5 यह है िक ितवाद पिहला िनषेध है और सवांद ितवाद का भी िनषेध है अतः उसे िनषेध
कहा गया है।
इस िवचार को समझाने के िलए हीगल ही एक उदाहरण देते है। रा1य जैसी स ं था क Oयाrया करते हQए हीगल
मानते है िक िवकास के Vम म8 पहले परवार का आिवभा5व हQआ िफर िसिवल समाज का और अत म8 रा1य का।
हीगल क भाषावली म8 परवार वाद है, िसिवल समाज उसका ितवाद और रा1य इनका सवांद। इस तरह िसिवल
समाज परवार का िनषेध है पहला िनषेध और िसिवल समाज का िनषेध रा1य (दसू रा िनषेध) है अतः रा1य पहले
िनषेध का भी िनषेध है।

15.2.3 ह$गल का रा6य 1स2ात


हीगल ने ^(ा+मक णाली के आधार पर अपने रा1य िस(ात क Oयाrया क है। हीगल कहता है िक मानव क
िवकास याZा पहले परवार को जम देती है, परवार के ितवाद के Yप म8 िसिवल समाज का आिवभा5व होता है
और इनके सवांद के Yप म8 रा1य का उदय होता है। जैसे भौितक जगत के िवकास का सवmiच िबदु मन;ु य है, उसी
तरह सामािजक जीवन का सवmiच िबदु रा1य है िजसम8 अ+म त+व अपने पणू 5 उेय को िस( करता है।

उराखंड म
ु िविवालय 223
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
परवार hी और बiचे:-
परवार के बारे म8 हेगल का िवचार बड़ा ही आदश5वादी था। इसे वे सतं ुि> एवं एकता पर आधारत :ेZ मानते थे।
हेगल ने परवार के सभी मह+वपणू 5 प:ो िववाह परवार, संपि&, पंजू ी बiच/ क िश:ा परवार के िनयमन इ+यािद
पर िवचार िकया। उनके िलए िववाह एक नैितक सHबध था। यह एक िवशेष कार क एकता थी “िजसका
व तुगत Rोत Oयि\य/ क म\ ु सहमित है, िवशेषकर एक Oयि\ म8 िवकिसत होने क सहमित, ाकृ ितक एवं
Oयि\गत Oयि\+व +यागकर एक दसू रे के साथ एकता” िववाह ेम पर आधारत होता है। परवार एवं समदु ाय
^ारा मायता उतनी ही मह+वपणू 5 है।
हेगल म8 उनके काल के पवु ा5Cह/ का ितिबHब िमलता है। वे परवार म8 यौन िवभाजन और hी क पारHपरक छिव
के समथ5क थे। बाहरी मामल/ म8 पYु ष शि\शाली था और hी िनि;Vय और मनोवादी नागरक समाज परू ी तरह
पYु ष के िलए था। hी का :ेZ घर है।
अर तू के समान हेगले भी िववाह को जनन के िलए आवयक और इितहास से बाहर ाकृ ितक मानते थे। बाद म8
उहोने मन क एकता माना। िववाह तक5 वYप था और एकता के साथ यह गणु रा1य के िलए जYरी था। परवार म8
पYु ष म8 अवधारणा सHबधी िचतंन क :मता थी। इससे वे इितहास एवं राजनीित क रचना कर सकते थे। िhय/
को िश:ा दी जा सकती है लेिकन उनम8 िव#ान, दश5न या कला क :मता नह9 होती ये िवषय आदश5 के िलए
जYरी है। इसिलए वे अनभु व पर ही िनभ5र रहती है और इससे परे जाने म8 असमथ5 होती है। इसिलए साव5जिनक :ेZ
म8 उन पर रोक लगती है।
लॉक के समान हेगल
े का िवचार था िक बiच/ को खचn का अिधकार था और अिभभावक उनके अनश ु ासन एवं
िश:ा के िलए िजHमेदार थे। बiच/ को दडं नैितक Yप से उिचत था तािक उह8 ाकृ ितक Yप से िवकिसत होती
आजादी का उपभोग करने से और उनक चेतना म8 साव5िगकता भरने से रोका जाए। बiचे वाभािवक Yप से म\ ु
होते है और अिभभावक उह8 सHपि& नह9 समझ8। श. ु के वषm म8 ेम, आ था और आदेश पालन पर जोर होना
चािहए। िश:ा का उेय बiच/ को आ+मिनभ5र बनाना है तािक वे Oयि\+व क आजादी का उपभोग कर सक8 । वे
इतनी शि\ ाX कर ल8 िक परवार क वाभािवक एकता छोड़ बाहर आने के कािबल बन सक8 और अपना
परवार और अपनी सHपि& रख सक8 । Oयि\ को पारवारक सपं ि& को अपनी इiछानसु ार य\ ु करने क
आजादी होनी चािहए।
िवकास क इस िVया पर =ि>पात करने से प> होगा िक सामािजक िवकास का पहला चरण परवार है और
इसका दसू रा चरण ’िसिवल समाज’ है। ^( क भाषा म8 परवार वाद है और िसिवल समाज उसका ितवाद।
परवार .पी वाद क कुछ यनू तम थी उसम8 कुछ अत5िवरोधी थे िजनके ितवाद के .प म8 िसिवल सामािजक का
आिवभा5व हQआ।:
िसिवल समाज
परवार और रा1य के बीच एक मह+वपणू 5 रचना िसिवल समाज है िजसका उदय आधिु नक है। जब Oयि\ परवार
मे रहते हQए उसके मन परवार से अलग रहने का िवचार उसके मन म8 आते हQए अपने दािय+व/ का बोध होता है िक
उसके कुछ धािम5क या आ3याि+मक दािय+व भी है तो Oयि\ को अहसास होने लगता है अब उसे परवार म8 बोझ
नही बनना चािहए। अब उसे वंय आिजिवका अिज5त करनी चािहए। वह एक मानिसक तनाव का अनभु व करता

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
है। इसी Oयाकुलता के बीच वह परवार को छोड़ कर ‘िसिवल समाज’ म8 वेश करता है। ‘िसिवल समाज’ को
हीगल ‘बजु 5आ
ु समाज’ के नाम से भी सHबोिधत करता है। िसिवल समाज के व.प के बारे म8 वण5न करते हQए
हीगल प> करता है िक यह वृह&र समाज वतंZ िवचार वाले hी पYु ष/ क सं था है जो िक विहत भावना से
तथा अनबु ंध के सZु / से बनती है। कुटुHब म8 परवार के मिु खया का िनयZण है तो िसिवल समाज म8 काननू का
िनयZण है। िसिवल समाज म8 मन;ु य क उन आवयकताओ ं क पिू त5 होती है जो कुटुHब ^ारा परू ी नह9 क जाती।
हीगल कहता है िक इस नये समाज म8 Oयापार, उ0ोग काननू का शासन, िगbडो तथा िनगम/ क उ+पि& होती है जो
आिथ5क जीवन को संचािलत करते है।
हीगल का ^( वाद अभी तक यह ितपािदत कर चक ु ा है िक ेम पर आधारत कुटुHब एक एकता है जो वाद है
कुटुHब का ितवाद िसिवल समाज है जो ित पधा5 पर आधारत Oयि\य/ का समहू है। परवार Yपी वाद का
िसिवल समाज Yपी ितषाद है। इस वाद ितवाद का सवांद रा1य है। रा1य Yपी सवांद म8 परवार (वाद) और
िसिवल समाज ितवाद के WेJ गणु / का सरं :ण होता है।
रा1य
हेलेग का रा1य सवा5िZक वा तिवकता का ितिनिध+व करते हQए परवार एवं नागरक समाज के त+व/ का
डाइलेिaटकल समावेश करता है। परवार के समान रा1य भी सबके िहत/ म8 काम करता है। यह समाज के सवा5िZक
त+व/ का ितिनिध+व करता है और इसिलए नागरकता के िवचार को जम देता है। रा1य का अि त+व िवशेष
आ+म चेतना म8 िनिहत है जो सवा5िZक के तर तक उठता है। रा1य परू ी तरह तािक5 क है और सार Yपी इiछा है जो
इितहास के जरए कट होता है और इसिलए अत है। मि त;क इितहास के जरए वंय को हािसल करता है।
रा1य एक ऐसी रचना है “िजसका Oयि\ पर सवmiच अिधकार है और िजसक उiचतम िजHमेदारी रा1य का
सद य होना है।
रा1य का व.प:-
(1) रा1य दैिवक है- हीगल के कथनानसु ार यह पृjवी पर ई]र क याZा है। aय/िक आ+म त+व ई]र का Yप है।
रा1य उस आ+म त+व का एक भाग माZ है। अतः हम कह सकते है िक रा1य भी ई]र के ^ारा जिनत है। रा1य एक
कृ िZम सं था है हीगल इसका खडन करता है और कहता है िक रा1य एक दैवीय सं था है।
(2)रा1य का अपना Oयि\+व:- हीगल कहता है िक रा1य का अपना वयं का Oयि\+व होता है। रा1य क अपनी
वतंZ इiछा होती है तथा उसका अपना वतंZ Oयि\+व होता है। हम यह नही मान सकते िक रा1य के वल
Oयि\य/ क इiछाओ ं का योग माZ है। मन;ु य के जीवन का अत उसक मृ+यु है िकतु रा1य का जीवन पीढ़ी दर
पीढी बना रहता है। रा1य का अि त+व, वत5मान भतू काल और भिव;य भी रहता है।
(3) रा1य एक सा3य है:- हीगल रा1य को एक सा3य वीकार करता है रा1य से उiच और कोई
उेय नह9 होता। रा1य आ+म त+व क सवmiच अिभOयि\ है। आ+म त+व अपनी आ+मानभु िू त क िजस याZा
को आरHभ करता है उसक सवmiच उपलि@ध रा1य है, रा1य को सा3य बताकर हीगल Oयि\ को रा1य का एक
साधन मानता है।

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(4) रा1य क सावयवी एकता:- हीगल का िवचार है िक “रा1य को एक सावयव के Yप म8 समझा जाना चािहए”।
रा1य एक ऐसी सHपणु 5 ईकाई है जो िक अपने िविभन अगं ो के योग माZ से कह9 अिधक है। िजस कार मन;ु य
शारीर के अगं / का कोई वतंZ मह+व नह9 होता उसी कार रा1य से िभन Oयि\ का भी कोई मह+व नह9 होता।
Oयि\ के अिधकार/ तथा उसके Oयि\+व का मह+व के वल इसिलए है िक वे रा1य Yपी िवशाल शरीर के अगं माZ
है।
(5) रा1य म8 Oयि\ क वतनZता का िव तार:- रा1य म8 Oयि\ क वतंZता सीिमत नह9 होती अिपतु उसक
वतंZता का दायरा िवकिसत होता है। हीगल क मायता ‘आ+म त+व’ क िवशेषता उसक वतZता है। आ+म
त+व व के िpत है और व के pीयता म8 ही वतंZता सार िनिहत रहता है। जैस2े आ+मत+व का िवकास होता है
उसी के साथ2 वतZता का भी िवकास होता है। हीगल धारणा है िक रा1य के काननू / म8 और Oयि\ क वतंZता
म8 कोई अतिव5रोध नह9 होता। हीगल के दश5न म8 वतZं ता का अथ5 Oयि\ के अिधकार/ से नही है जैसा िक
Oयि\वािदय/ के दश5न क मायता है। हीगल के अनसु ार Oयि\ क वतZता का अथ5 रा1य क आ#ाओ ं का,
रा1य के काननू / का वेiछा से पालन करना है।

15.2.4 राA]$य रा6य, अतरा)A]$यतावाद और य2



हीगल के रा1य सHबधी िवचार/ से प> है िक वह रा;<ीय रा1य का समथ5न करते हQए उसे मानव संगठन का
सवmiच Yप मानता है। वह िकसी भी अतरा5;<ीय अथवा िव] Oयापी सगंठन के रा;<ीय रा1य के उपर होने क
कbपना नह9 करता। हीगल कहता है िक एक पणू 5 वतंZ रा1य के िलए सबसे मह+वपणू 5 B आ+म र:ा का है
अतः अपना साव5भौिमकता व सH भ&ु ा बनाये रखने के िलए रा1य कोई भी काय5 करने के िलए पणू 5 वतंZ है।
इसिलए हीगल के श@द/ म8 रा1य वंय पणू 5 मि त;क है जो अiछाई और बरु ाई ल1जा और तुiछता और
धोखेबाजी आिद के भावा+मक िनयम/ को वीकार नह9 करता।
अतरा5;<ीयतावाद के िवषय म8 हीगल कहते है िक रा1य/ को अय रा1य/ के साथ सHबध थािपत करने म8 कोई
आपि& नह9 होती बशतn िक उसक सरु :ा कायम रहती है। अतरा5;<ीय सHबध ऐसे भसु Hपन रा1य/ के साथ
होता है। जो या िव]ास करते है िक अपना िहत ही उिचत है तथा अपने िहत के िवY( काय5 करना पाप है अथा5त
जब रा1य/ क िवशेष इiछाएँ आपसी समझौता से पणू 5 नह9 हो पाती तो िववाद को के वल य( ु ^ारा ही समाX
िकया जा सकता है।
हीगल का मत है िक य( ु को एक पणू 5 बरु ाई नह9 मानना चािहए। मानव जाित का िव] Oयापी ेम तो एक
मख
ू 5तापणू 5 आिव;कार है। य(
ु अपने आप म8 एक गणु ा+मक काय5 है। हीगल शाितपणू 5 उपाय/ और समझौतो को
अ वीकार करता है। वह थायी शाित का िवरोध बन गया है। समाज चाहे य( ु को सदैव हय समझती रहे, िकतु
हीगल के िवचार से य(ु के अनेक लाभदायक परणाम होते है। य( ु Oयि\ के अहम का नाश करता है और समाज
क पतन से र:ा कर उसम8 िVयाशीलता का सचं ार करता है।
हीगल का मत है िक य(
ु को घोर अपराध नह9 मानना चािहए। य(
ु वमेव एक नैितक काय5 है। शाित >ाचार का
सार करती है और अनत शि\ >ाचार फै लाएगी। य( ु वह काय5 है जो सांसारक वाथm और अहम को
Oयि थत करती है।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
15. 2.5 दWड तथा सपि:
कॉdट क भाँित हीगल भी दdड के B को नैितक =ि> से देखता है िक िकसी भी अिधकार के उbलघनं होने पर
रा1य का कत5Oय हो जाता है िक वह अपराधी को दिdडत कर8 । हीगल क =ि> म8 दdड का उेय साव5जिनक सरु :ा
नह9 है। बिbक दdड क भावना को बलवती करता है। दdड समाज और अपराधी दोन/ का समान अिधकार है।
और इसी के ^ारा दोन/ को अपना उिचत याय िमल जाता है। हीगल के अनसु ार जब िकसी अिधकार का
अितVमण हो तो उस अिधकार क थापना का एक माZ उपाय है थम पीिड़त Oयि\ पर िकए गए अ+याचार का
साव5जिनक िनराकरण और ि^तीय उनके मा3यम से समाज और याय के िनयम/ पर अनािधकार चे>ा का
िनराकरण । हीगल सHपि& को मन;ु य के िलए आवयक मानता है। हीगल क मायता है िक मन;ु य के Oयि\+व
क पणू त5 ा के िलए सHपि& आवयक है aय/िक इसके ^ारा ही Oयि\ क इiछाशि\ िVयाशील रह सकती है।
यिद Oयि\ के पास सHपि& नह9 है तो Oयि\ के Oयि\+व का िवकास नह9 हो सकता। हीगल के अनसु ार सHपि&
का िनमा5ण रा1य अथवा समाज नह9 करता +यतु वह मानव Oयि\+व क अिनवाय5 अव था है।

15. 2.6 संिवधान पर हीगल के िवचार


हीगल ने रा1य क सांिवधािनक शि\य/ को तीन भाग/ म8 ही िवभािजत िकया है। तीन शाि\याँ है काय5पािलका
Oयव थािपका और यायपािलका जो िक माdटे aयु आिद िवचारको ने बताई थी जब हीगल के अनसु ार ये
शि\याँ है िवधायी, शासिनक तथा राजतZा+मक हीगल यायपािलका को काय5पािलका क शाखा मानते है।
दसू रा सबसे बड़ा अतर यह है िक हीगल ने तीन/ शि\य/ को एक दसू रे से वतंZ और एक दसू रे को िनयिZत
करने वाली न मानते हQए उनह8 पर पर परू क और एक महान समि> के अिभन अगं के Yप म8 माना है।
हीगल तीन/ शि\य/ म8 राजतZा+मक शि\ को मख ु मानते है हीगल क धारणा है िक सांिवधािनक राजतZ म8
ही पणू 5 िववेकशीलता उपल@ध हो सकती है aय/िक इसम8 राजतZ, कुलीनतंZ औ जातZं तीन/ के त+व िनिहत है।
हीगल कहता है िक भसु &ा जनसाधारण को न दी जाकर राजा के हाथ/ म8 रहनी चािहए। िवधानमdडल म8 चाहे
जनता का ितिनिध+व हो और उसके ^ारा िनिम5त काननू / को काय5पािलका देश म8 लागू करे , िकतु अितम .प
देने का अिधकार राजा को होना चािहए। हीगल संिवधािनक शासन के िस(ात को िन.पन करता है। हीगल
मानता है िक रा1य क शि\ िनरपे: अवय है लेिकन वेiछाचारी नह9 रा1य को अपनी िनयामक शि\ को िविध
के अनसु ार योग करना चािहए।
हीगल के िवचार/ क दबु 5लताएँ:-
हीगल का ^(वाद का िस(ात Zिु टपणू 5 है - हीगल का ^(वाद बहQत अ प> है। उसक तािक5 क णाली दिु षत
है। वा तिवकता यह है िक ^(वाद का िस(ात पर पर िवरोधी त+व/ के सघं ष5 और समवय क िVया से होने
वाली गित का िस(ात हीगल के दश5न म8 माZ फामल 5ू ा बनकर रह गया है। आलोचको का कहना है िक ^(वाद
के नाम पर िकसी भी मनचाही िवरोधी िदखने वाली परि थित अथवा घटनाVम को वाद ितवाद का नाम िदया
जा सकता है, जैसे िक िवरोधी ि थित दdड है अथवा िक के p िवमख ु ि थित का िवरोधी त+व के p मख
ु ी है।
वा तिवकता यह है ये तािक5 क िवरोधाभास नह9 है। इितहास क Oयाrया के Yप हम इस िस(ात क वै#ािनकता
को वीकार नह9 कर सकते है। ^( क आलोचना करते हQए डॉ0 वेपर ने ठीक ही कहा है िक “उनी वी और
बीसवी शताि@दय/ म8 ^(वाद िस(ात इसिलए लोकि य हो गया aय/िक इसके आधार पर िवचारक इितहास से

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ु िविवालय 227
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
रा1य सHबधी ऐसे िन;कषm को िनYिपत कर सके िजनक/ िक वे वीकार कर लेना चाहते थे। सं:ेप म8 हीगल का
^(वाद का िस(ात एक िववाद पद धारणा है िजसके मा3यम से वेिiछत िन;कषm को सही अथवा गलत िस(
िकया जा सकता है। इसे आप Oयाrया का वै#ािनक साधन नह9 मान सकते।
हीगल चरम रा;<ीयतावादी िवचारक था। जो Oयि\ क वतZता का रा1य के बिलदान कर देता है। वह एक
शि\शाली िनरकुशंता वादी रा1य का पजु ारी या समथ5क था। वाक5 र के श@द/ म8 उसने रा;<ीय रा1य को एक
रह या+मक तर तक पहQचँ ा िदया है। 17वी शता@दी म8 िवचारक राजाओ ं के दैवीय अिधकार क बात करते है
लेिकन हीगल ने रा1य के दैवीय अिधकार क थापना क है। हीगल का सावा5िधकारवादी रा1य जनतZवादी
रा1य से िबलकुल मेल नह9 खाता है। आलोचक/ ने हीगल को 20वी शता@दी क दो बड़ी सवा5िधकारवादी
िवचारधारणाओ ं फासीवाद और साHयवाद का मल ू Rोत माना है। ऐब8सटीन का आरोप है िक हीगल ने शि\ और
नैितकता को अिभन बना िदया है।
हीगल ने वतZता के िस(ात का जो तुतीकरण िकया है वो ऐसा लगता है िक जैसे उस िस(ात को तोड़
मरोड़ कर वतZता को आ#ाकारता का Yप दे िदया है। उसने Oयि\ के Oयि\+व के िस(ात को परवित5त कर
मन;ु य/ क दैवी शि\ क वािधक निलका बनाकर उह8 रा1य म8 आ+मसात कर िदया है। जोड़ के श@द/ म8, रा1य
का िनरपे: िस(ात Oयि\ क वतZता का शZु है aय/िक जब भी Oयि\ और रा1य म8 कोई संघष5 होता है तो
उसके अनसु ार रा1य ही सही होना चािहए हीगल िकसी भी सरू त म8 रा1य के िवY( िवpोह का अिधकार दान नह9
करता।
रा1य क सावयवी धारणा:- हीगल क रा1य और समाज क सावयवी धारणा दोषपणू 5 है। हीगल कहता है िक
रा1य एक सावयव Yपी अवधारणा है। मन;ु य को रा1य Yपी शरीर का अगं मानना उसके दश5न क बड़ी दबु 5लता है।
शरीर का और उसके अगं ो का कोई उेय नह9 होता, िसवाय इसके ईकाई िक शरीर को अ:dु ण बनाये रखा जाए,
िकतु समाज क +येक ईकाई मन;ु य का उेय होता है मन;ु य
म8 िववेक उेय परकता और मावामकता होती है िजन गणु / का शरीर (रा1य) म8 अभाव रहता है। हीगल के
िवचार/ म8 मन;ु य के इन िविशJ गणु / क, उसक िववेक शीलता, उेयपरकता और भावा+मकता क अवमानना
िदखायी पड़ती है। Oयि\ को रा1य समाज का अगं मानकर हीगल का िचतन मन;ु य के Oयि\+व का सHमान नह9
कर सका। रा1य क एकता क धनु म8 हीगल Oयि\ को िव मृत कर देता है। हीगल के इस =ि>कोण का सबसे
दबु 5ल प: यह है िक वह यह भल ू जाता है िक Oयि\ के िलए िजस तरह समाज आवयक है उसी कार समाज भी
अततो}+वा Oयि\य/ ^ारा ही िनिम5त होता है। हीगल Oयि\ क इस िनमा5णकारी भिू मका को भल
ू ा देता है।

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+% ह 2

15.3 *ीन का आRयाि मक 1स2ात


हम मन;ु य को भौितक कृ ित का एक अश ं मानकर तथा उसक अय िVयाओ ं को के वल ाकृ ितक घटनाएं
मानकर उसके वा तिवक व.प को नही जान सकते। वह आधारभतू िबदु िजससे Cीन मानव वभाव का
िवƒे षण करता है, मन;ु य क आ+म चेतना ाX करने का गौरव के वल मन;ु य को है।
हीगल तथा िफHटे क भांित Cीन भी यह मानता है िक संसार और आ+मा म8 एक ही त+व िनिहत है। यह त+व
बिु (गHय होता है। इस िववेकशीलता के कारण ही #ान क ािX होती है। यिद संसार क कोई व तु बिु (गHय नह9
होगी तो उसका अि त+व ही नह9 होगा। Cीन क मायता है िक संसार क सभी व तुऐ ं तथा आ+मा िववेकशील
होती है। बा‚ाdड का #ान िववेक ^ारा हो सकता है। इस परम िववेक या बिु ( को ही िजसके ^ारा सांसारक
व तुओ ं के म3य सHबध थािपत होता है, परमा+मा का नाम िदया जाता है। Cीन ने इसे शा]त चेतना क सं#ा दी
है। चंिु क यह ‚ाdड क स&ा है और इसको जाना जा सकता है, इसिलए यह सHपणू 5 िव] म8 OयाX और उसक
चेतना सबम8 िव0मान रहती है। एकता और Oयाrया थािपत करने वाला यह एक Vमब( िस(ात है। संसार क
+येक व तु इसी शा]त चेतना क ओर बढ़ने का यास करती है।
Cीन कहता है िक संसार म8 तीन त+व है, मन;ु य त+व या मानव आ+मा, जगत त+व ओर परम त+व इनको िमलकर
एक ईकाई का िनमा5ण होता है। इनका आपस म8 जो सHबध है वह योिगक न होकर सावयिवक होता है। इस कार
Cीन का पणू 5 िव]ास है िक +येक मन;ु य म8 शा]त् चेतना का िनवास रहता है। यही उसके राजनीितक एवं नैितक
िवचार/ का जम दाता है। अतः मन;ु य जो िक शा]त चेतना का ही अश ं है, भी सदैव नैितक जीवन के िलए स&
वतZता क कामना करता है। मानवीय चेतना क Oयाrया करते हQए Cीन बताता है िक मन;ु य एक नैितक ईकाई
है और उसके नैितक जीवन क उपलि@ध के िलए वतंZता िनतात आवयक है।

15.3.1 Dीन क$ वतRता स;बधी धारणा


Cीन के वतZता सHबधी िवचार/ अ3ययन करते हQए हम8 #ात होता है िक Cीन ने वतZता को मानवीय चेतना
के साथ जोडा है। Yस/ तथा काट क वतZता क धारणा से भािवत होकर Cीन यह मानता है िक नैितक
वतZता मन;ु य का िविश> गणु है। वतZ नैितक इiछा के कारण ही मन;ु य सदैव अपने आपको एक लsय के
Yप मे मानता है। Cीन के पवू 5 Oयि\वादी िवचारक/ ने वतZता को नकारा+मक शि\ नह9 मानता। Cीन क
मायता वतनZता Oयि\ को ाX एक सकारा+मक शि\ है िजसका योग Oयि\ आदश5 =ि> से करने यो}य
कायm को करने म8 करता है और अपनी नैितक पणू त5 ा को ाX करता है Cीन के श@द/ म8 वतZता करने यो}य
कायm को करने क तथा उपभोग करने यो}य चीज/ के उपभोग करने क सकारा+मक शि\ है। साधारण श@द/ म8 वे
काय5 जो नैितक उ+थान क =ि> से करने यो}य है, अथवा वे व तु िजनका उपभोग करना नैितक =ि> से वांछनीय है
ऐसे कायm को करने क सकारा+मक शि\ को वतZता कहते है। वतZता का सHबध सद् इiछा से है, अतः
िकसी कुि+सत काय5 को करने क छूट को वतZता नह9 कहते है। जो करने यो}य काय5 है अथा5त जो सामािजक
=ि> से नैितक व वीकृ त काय5 है, उनको करने क शि\ ही वतZता है। Cीन के अनसु ार करने यो}य काय5 वे काय5

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होते है िजह8 सामािजक मायता ाX होती है, अथा5त जो समाज के िहत म8 हो। स:
ं ेप म8 सामािजक नैितकता से
वीकृ त कायm को करने क शि\ ही Oयि\ क वतZता है। यह Oयि\ क सकारा+मक शि\ इसिलए है िक वह
इसका वेiछा से सदपु योग कर, करने यो}य कायm को कर सके ।
Cीन वतZता को Oयि\ ^ारा करने यो}य कायm क सकारा+मक शि\ बताकर उसका सHबध अिधकार/ क
धारणा के साथ जोड़ता है। वतZता का वा तिवक उपभोग तभी िकया जा सकता है जब अिधकार म\ ु हो।
अिधकार िविहन वतZता उiछखंलता म8 परणत हो जाती है। यिद हम8 Oयि\+व क उनित के िलए पणू 5
वतंZता क अपे:ा है तो यह वाभािवक है िक हम8 जीवन का अिधकार सHपि& का अिधकार, वतZता पवू 5क
मण का अिधकार, Oयवसाय, िश:ा एवं काय5 का अिधकार आिद ाX ह/, िकतु इसका अथ5 यह नह9 होता िक
हम अपने माग5 म8 आने वाली बाधाओ ं को इस Yप म8 हटाने को य+नशील हो जाएँ िजससे दसू र8 लोग/ के
अिधकार/ का हन हो।

15.3.2 Dीन क$ अिधकार स;बधी धारणा


Cीन के मतानसु ार अिधकार Oयि\ के काय5 करने क वतZता है। इस वतZता को समाज ^ारा वीकृ ित िमलती
है। Cीन कहता है िक सामािजक मायता अिधकार का आवयक त+व है। सामािजक मायता के िबना कोई दावा
अिधकार का Yप Cहण नह9 कर सकता। Cीन ाकृ ितक अिधकार/ के िस(ात को अ वीकार करता है। तथा
साथ2 ाकृ ितक अिधकार/ क आलोचना करता है। ाकृ ितक अिधकार उन अिधकार/ को कहते है जो अिधकार
Oयि\ को नैसिग5क देन है, Oयि\ के अिधकार उसे कृ ित से जीवन के साथ िमले है, समाज अथवा रा1य से नह9।
अतः रा1य को अिधकार/ को छीनने का अिधकार भी नह9 है। Cीन ाकृ ितक अिधकार/ को िस(ात को
अ वीकार करने के पीछे कारण बताते है िक अिधकार/ के िलए सामािजक मायता आवयक है। Cीन का कथन है
िक “ ाकृ ितक अिधकार एक ऐसा अिधकार है जो िक समाज हीन ाकृ ितक अव था म8 पाया जाता है।”
Cीन कहता है िक अिधकार न तो Oयि\ के वाथ5 से जड़ु े हQए होते है िजसे िक वह समाज के सHमख
ु पेश करता है
और न ही अिधकार ाकृ ितक होते है। अिधकार वे होते है िजह8 समाज मायता दान करता है और िजह8 ाX
करके Oयि\ साव5जिनक कbयाण को अपना कbयाण बना लेता है।
Cीन के अिधकार/ के दो कार/ को वीकार िकया है। वे दो कार है।
(1) आदश5 नैितक अिधकार ;
(2) काननू ी अिधकार ;
आदश5 अिधकार उन अिधकार/ को कहते हL िजनक Oयि\ को एक मन;ु य होने के नाते आवयकता होती है। चाहे
रा1य ऐसे अिधकार/ को मायता दे अथवा नही, ऐसे अिधकार मानव जीवन म8 आदश5 के Yप म8 आवयक होते है।
जीवन के अिधकार को हम इसका एक उदाहरण मान सकते है। आदश5 अिधकार/ का दायरा Oयापक होता है
लेिकन इनको लागू करने वाली कोई बा3यकारी शि\ इनके पीछे नह9 होती है। आदश5 अिधकार समाज के सHमख

नैितकता का मापदdड तुत करते है िजसके आधार पर काननू ी अिधकार सरलता से समाज म8 लागू िकये जा
सके ।

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ु िविवालय 230
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
काननू ी अिधकार उन अिधकार/ को कहते है िजह8 रा1य ^ारा अपने नागरक/ को दान िकये जाते है और सरकार
िजह8 समाज म8 लागू करती है या Oयि\य/ से उनका पालन कराती है। अथा5त रा1य ^ारा िनिम5त एवं द& होने से
उनको लागू करने वाली रा1य क बा3यकारी शि\ जड़ु ी रहती है। Cीन के अनसु ार आदश5 नैितक अिधकार/ क
तुलना म8 काननू ी अिधकार/ का दायरा सीिमत रहता है।
अथा5त काननू ी अिधकार लागू िकये जाते हL िकतु आदश5 अिधकार/ को लागू नह9 िकया जा सकता।
Cीन के आदश5 नैितक अिधकार/ का जब हम मbू यांकन करते है तो #ात होता है िक य0िप Cीन ने कृ ितक
अिधकार/ का खंडन िकया है िकतु जब गहराई से अ3ययन करते है तो प> होता है आदश5 नैितक अिधकार/ का
िस(ात भी ाकृ ितक अिधकार/ के िस(ात से मेल खाता है। Cीन के आदश5 नैितक अिधकार/ म8 एक दोष यह
िक Cीन उनक प> होता है िक Cीन का आदश5 नैितक अिधकार/ का िस(ात उसी कार दोष पणू 5 है िजस कार
के दोष ाकृ ितक अिधकार/ के िस(ात म8 पाये जाते है।

15.3.3 "ाकृ ितक काननू पर Dीन के िवचार


Cीन के अनसु ार काननू इस =ि> से ाकृ ितक कहे जाते है िक वे सामािजक लsय क ािX के िलए आवयक है।
समाज क नैितक भावना के िवकास के साथ ाकृ ितक काननू / म8 भी परवत5न हQआ करता है। उनका मानना है िक
ाकृ ितक याय शाh को ही इस बात का िनण5य करना चािहए िक िकन काननू / को ाकृ ितक समझा जाए। तभी
वह माय होग8 और लागू करने यो}य ह/गे िफर चाहे वे रा1य ^ारा िनिम5त काननू / का अगं हो अथवा न ह/।
Cीन ाकृ ितक काननू और नैितक कत5Oय म8 भेद कट करते हQए कहता है “ ाकृ ितक काननू और नैितक कत5Oय म8
अतर हL aय/िक ाकृ ितक काननू और िविध पारत काननू म8 शाि\ त+व िनिहत है तथा नैितक कत5Oय/ म8 िकसी
बा‡य शि\ का दबाव नह9 होता”। नैितक कत5Oय/ क पिू त5 के िलए बाहरी दबाव, िजसक नीवं कितपय लsय/
क पिू त5 पर िनभ5र है, उन लsय/ क पिू त5 असHभव कर देता है और इसी कारण रा1य ^ारा लागू िकए गए काननू /
क सीमा िनधा5रत होती है। अतः ाकृ ितक काननू , अिधकार और कत5Oय/ का अनबु ध वा तिवक नैितकता से
िभन है, िकतु इससे जडु े़ हQए है।

15.3.4 सामाय इ?छा पर Dीन के िवचार


सामाय इiछा क धारणा के सHबध म8 Cीन हॉ@स, लॉक तथा Yसो से बहQत भािवत है। Cीन मानता है िक
सामाय िहत क चेतना समाज को जम देती है। सामाय िहत क जो सामाय चेतना होती है, उसक Cीन
‘सामाय इiछा’ क सं#ा देता है। सामाय इiछा ही रा1य क कृ िटकरण है। यह सH भतु ा क सृि> करती है
िजसका 3येय अिधकार/ को िVयािवत करना एवं उन सं थाओ ं को पणू 5 व थ अव था म8 रखना है जो अिधकार/
और काननू / के मतू 5.प है।
Cीन क मायता है िक रा1य का जम सामािजक समझौते ^ारा न होकर मन;ु य/ के सामाय िहत क िस( के िलए
होता है। रा1य के िबना सामाय िहत क ािX नह9 क जा सकती और Yस/ के िस(ात म8 स+य का इतना अश ं है
िक रा1य का आधार शि\ नह9 बिbक सामाय इiछा है। Cीन ने भी इiछा के दो Yप माने है 1. वा तिवक इiछा
2. यथाथ5 इiछा। वा तिवक इiछा वाथ5पणू 5 होती है। वा तिवक इiछा का िनमाण5 काम, Vोध, मोह आिद
भावनाओ ं को लेकर होता है। इसम8 िववेक नह9 होता है तथा ये यथाथ5 इiछा माने सद इiछा के माग5 म8 सम या

उराखंड म
ु िविवालय 231
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
खड़ी करती है। सद इiछा Oयि\ के अत5ःमन से उ+पन होती है। इन सद इiछाओ ं को सामिू हक Yप से Cीन
सामाय इiछा का नाम देता है।
Cीन का मत है िक रा1य Oयि\ क सद इiछा पर आधारत है। Cीन का कथन है िक रा1य शि\ पर नह9 अिपतु
Oयि\ क सद इiछा पर आिWत है। Cीन क धारणा है िक मन;ु य एक सामािजक ाणी है। ऐसा सामािजक ािण
अिनवाय5तः समाज क सद यता तथा सामािजक पार परकता के मा3यम से ही अपने जीवन के नैितक लsय/ को
ाX करता है। Cीन वीकार करता है िक अिधकार/ को लागू करने के िलए आवयकता पड़ने पर रा1य बा3यकारी
शि\ का योग करता है और शि\ उसके त+व/ म8 से एक त+व है िकतु एक माZ शि\ ही रा1य का आधार नह9
है। दसू री और रा1य क दdं ड शि\ भी उसका आधार नह9 है। Cीन कहता है िक यिद मन;ु य दdड से डरकर िकसी
क आ#ाओ ं का पालन करता है तो मन;ु य और पशु म8 aया अतर रहेगा। Cीन का मानना है िक एक चेतनशील
ाणी के नाते मन;ु य रा1य का सद य है तथा शि\ रा1य का आधार नह9 हो सकती है। रा1य का आधार Oयि\ क
सदइ् iछा है। Cीन का कथन है िक रा1य का आधार सामाय उेय क सामाय चेतना है। इसका अथ5 है िक
समाज के +येक Oयि\ क सदइ् iछा क यह चेतना है िक नैितक जीवन क ािX उसके जीवन का लsय है नैितक
WेJता क ािX उसका सामाय उेय है। िकतु इस सामाय उेय क चेतना समाज क सद् इiछाओ ं क है,
अथा5त सद् इiछाओ ं क यह सामिू हक चेतना है। इस नैितक उ+थान के सामाय उेय से ेरत होकर Oयि\ क
सद् इiछा रा1य को वीकार करती है। अतः Oयि\ क सद् इiछा ही रा1य का आधार है। भय अथवा Oयि\ रा1य
का आधार नह9 है। Oयि\य/ क सद् इiछा, िजसका सामिू हक Yप सामाय इiछा है, यही सामाय इiछा रा1य का
आधार है। िजस शि\ को Yस/ ने सामाय इiछा कहा है उसी शि\ को Cीन ने सामाय िहत क सामाय चेतना
कहा है।

15.3.5 राय के काय^ पर Dीन के िवचार


Cीन के अनसु ार रा1य के काय5 नकारा+मक और सकारा+मक दोन/ कार के होने चािहए। सकारा+मक =ि> से वह
चाहता है। िक रा1य Oयि\ को वह काय5 करने दे जो काय5 करने यो}य है, और इनके करने म8 जहाँ बाधाएँ आती हो,
उन बाधाओ ं को समाX करना रा1य का काय5 है। Cीन के अनसु ार रा1य को यह अिधकार है िक नैितकता के
िवकास के िलए उिचत होने पर वह नागरक/ के कायm म8 ह त:ेप करे तथा आवयक होने और इनके करने म8
जहाँ बाधाएँ आित हो, उन बाधाओ ं को समाX करना रा1य का काय5 है। Cीन के अनसु ार रा1य को यह अिधकार है
िक नैितकता के िवकास के िलए उिचत होने पर वह नागरक/ के कायm म8 ह त:ेप करे तथा आवयक होने पर
बल योग से भी न िहचके ।
नकारा+मक =ि>कोण के अनसु ार Cीन के मत से रा1य का यह कत5Oय िकसी भी Oयि\ को आतरक अथवा
नैितक सहायता दान करना नह9 है, अिपतु रा1य का परम कत5Oय है िक वह बा‡य ह त:ेप ^ारा ऐसा वातावरण
का िनमाण5 करे िजससे Oयि\ के अदर अिधक से अिधक सामािजक अथवा नैितक चेतना उ+पन हो। रा1य को
ऐसे Oयि\य/ के िलए दdड क Oयव था करनी चािहए जो Oयि\ के सामािजक उनित के माग5 म8 बाधाएँ उ+पन
कर रहे हो। रा1य का िनरतर यास यह होना चािहए, उन सब ि थितय/ को दरू करने हेतु य+नशील हो, जो
नैितकता के िवकास म8 बाधक हो। रा1य का िवशेष काय5 सवm&म जीवन िनवा5ह क बाधाओ ं को दरू करना है।

15.3.6 राय और Oयि]

उराखंड म
ु िविवालय 232
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
हीगल के राजनीितक िवचार/ का जब हम अ3ययन करते है तो #ात होता है िक हीगल ने Oयि\ को पणू 5 Yप से
रा1य के अधीन कर िदया है और Oयि\ को रा1य के िव.( िकसी कार का अिधकार ाX नह9 है। िकतु Cीन के
िवचार रा1य और Oयि\ के सHबध उदार है। Cीन का िवचार है िक Oयि\ को रा1य के िकसी काननू को िजसे वह
सामाय िहत का िवरोधी होने के नाते बरु ा मानता है, साधारण परि थितय/ म8 उbलंघन अथवा ितकार नह9 करना
चािहए अिपतु उसका पालन करना चािहए। लेिकन Oयि\ उस बरु े काननू को िनर त कराने म8 संवैधािनक तथा
काननू ी साधन/ का योग कर सकता है। समाचार पZ, राजनीितक दल, गैर, सरकारी संगठन, सामािजक संगठन
इ+यािद के मा3यम से उस काननू के िवY( जनमत तैयार कर सकता है। िजससे िक उस काननू को िनर त िकया जा
सके । यिद संिवधािनक साधन रा1य के बरु े काननू को समाX कराने म8 असमथ5 हो तब Oयि\ रा1य क अव#ा
अथवा उसका ितकार करने के िवषय म8 सोच सकता है।
Cीन हर परि थित म8 रा1य क अव#ा को उिचत नह9 मानता है। िजसके िलए उसने इतनी शतm को लगाया है। Cीन
क इस सावधानी और सतक5 ता को 3यान म8 रखते हQए ो0 बाम5र ने Cीन को एक ‘उiच आदश5वादी’ के साथ उसे
एक ‘गभं ीर यथाथ5वादी’ भी बताया है। aय/िक वी मन चाहे तरीके अथवा मनचाही रा1य ितकार करने का Oयि\
का अिधकार नह9 मानता Cीन कहता है िक रा1य का ितकार करने का Oयि\ का अिधकार नह9 मानता। Cीन
कहता है िक रा1य का ितकार के वल िविश> परि थितय/ म8 एक दःु खपणू 5 कत5Oय के नाते िकया जा सकता है
अिधकार के .प म8 नह9 |
Cीन एक आदश5वादी िवचारक होने के साथ शाितवादी िवचारक भी है। एक ऐसा िवचारक जो य( ु को हमेशा
एक बरु ाई के Yप म8 देखता है। Cीन मानता है िक य( ु मन;ु य के जीवन के अिधकार को न> करता है। उसका कथन
है िक Oयि\ के जीवन क वतZता य( ु म8 न> हो जाती है। Cीन ने आVामक तथा र:ा+मक इन दो कार के
य(ु ो क चचा5 क हL। आVामक य( ु वह य( ु है जो िकसी देश पर बल आVमणकारी रा1य ^ारा थोपा जाता है
तथा र:ा+मक य( ु वह है जो िकसी रा1य को उस पर थोपे गये य( ु के िवY( अपनी र:ा के िलए करना पड़ता है।
Cीन र:ा+मक य( ु को अपे:ाकृ त एक कम बरु ाई के Yप म8 मानता है। Cीन कहता है िक य( ु चाहे र:ा+मक हो या
आVामक य( ु तो य( ु ही है। और इसिलए एक बरु ाई है। Cीन क मायता है िक य( ु होने का अथ5 यही है िक
रा1य म8 कह9 न कह9 ‘नैितक दोष’ अवय है। य( ु के िवरोध म8 Cीन का सवm+कृ > तक5 है। Cीन कॉ> क भाँित
शाितवादी एवं िव]बधं +ु व के आदश5 का अनयु ायी है।

15.3.7 स;पि: पर Dीन के िवचार


सHपि& के िवषय पर Cीन न तो Oयि\वादी है और न समाजवादी Cीन सHपि& का समथ5न इस आधार पर करता है
aय/िक Cीन मानता है िक सHपि& Oयि\ के िवकास के िलए अिनवाय5 है। Cीन सHपि& को परभािषत करता है
सHपि& उन सम त साधन/ का योग है जो मन;ु य म8 आ+मानभु िू त के िस(ात को वतZ िवकास और सामाय
िहत म8 योग देने के िलए आवयक हL। वतZ अिभOयि\ क मांग करते हQए िचर थायी आ+मा ने िजन व तुओ ं
को ाX कर िलया है, वह उसी का फल है। इस कार हम देखते है िक Cीन Oयि\गत सHपि& का समथ5क है।
Cीन यह वीकार करता है िक Oयि\गत सHपि& मानव यो}यता क िसि( का ाकृ ितक साधन है, वतZ जीवन
का एक आवयक आधार है और Cीन क मायता है िक यह आवयक नह9 है िक Oयि\ अपनी सHपि& को
सदैव ही सामाय िहत के िलए य\
ु कर8 । Cीन के वल इस बात पर बल देता है िक सHपि& का सHभािवत लsय
सामािजक िहत होना चािहए। उसका िव]ास था िक सHपि& के मा3यम से व तओ ु ं को अपने अिधकार म8 कर एवं

उराखंड म
ु िविवालय 233
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
उह8 मानव क आवयकताओ ं के अनक ु ू ल Yप देकर मन;ु य जहाँ एक ओर अपनी वाभािवक आवयकताओ ं क
पिू त5 कर सकता है वही दसू री ओर सामािजक =ि> से मbू यवान उ&म मनोभाव/ को भी Oय\ कर सकता है। इस
कार Cीन के सHपि& पर िवचार/ का अ3ययन करने के बाद हम8 #ात होता है िक Cीन सHपि& िवषयक अपनी
धारणा म8 वा तव म8 उदार था।

15.4 ह$गल और *ीन के वचार' का एक तल


ु ना मक
अRययन
Cीन एक ऐसा आदश5वादी है जो एक ओर हीगल के अनेक आदश5वादी िवचार/ को वीकार करता है िकतु दसू री
ओर वह उC Oयि\वाद का ितपादन करता है। Cीन के िवचार/ म8 िनHनिलिखत हीगलवादी त+व पाये जाते है।
1.Cीन हीगल क ‘दैिवक आ+मा’ अथवा िववेक क इस धारणा को वीकार करता है। हीगल क भाँित Cीन भी
यह मानता है िक सृि> म8 ‘ई]रीय आ+मा’ क लीला है जो अपनी पणू त5 ा के लsय क ओर िनरतर है। हीगल क
भाँित Cीन भी वीकार करता है िक मानवीय समाज क सं थाएँ उ&रो&र शा]त चेतनशीलता को अिभOयि\
करती हQई तब तक आगे बढ़ती है जब तक वह चेतना अपनी पणू त5 ा को ाX नह9 कर लेती मन;ु य से कुटुHब,
कुटुHब से समाज और समाज से रा1य वह शा]त चेतनशीलता का उ&रो&र िवकास है।
2.रा1य क धारणा के सHबध म8 भी Cीन के िवचार हीगलवाद का ही अनसु रण करते है। वह रा1य को कोई
आवयक बरु ाई नह9 अिपतु Oयि\ के नैितक जीवन क पिू त5 करने वाली स था मानता है। िजस तरह हीगल रा1य
को दैिवक िवचार मानता है, Cीन भी रा1य को ई]रीय िवचार का कटीकरण कहता है। दैिवक सं था से अलग
रा1य समाज क सव5WेJ सं था है िजससे Oयि\ के अिधकार/ का उदभव होता है, यह िवचार दोन/ के िवचार/ से
मेल खाता है।
3. वतZता क धारणा के सHबध म8 भी Cीन हीगल के िवचार/ से भािवत होता है। हीगल के अनसु ार, जब
Oयि\ अपना तादातHय रा1य के काननू / के साथ कर लेता है, मनमौजी तरीके से Oयवहार न करके िव]ा+मा के
तीक रा1य काननू / का पालन करता है यही सiची वतZता है। Cीन मानता है िक वतZता नैितक =ि> से करने
यो}य कायm क सकारा+मक शि\ है िजसे Oयि\ समाज के अय Oयि\य/ के साथ भोगता है। Cीन का िवचार भी
वतZता ‘सामािजक िहत’ क तथा Oयि\ के नैितक उ+थान क भावना के साथ जड़ु ी हQई है ऐसा मानता है।
4.समाज क धारणा म8 Cीन और हीगल के िवचार/ म8 समानताएँ पायी जाती है। हीगल क तरह Cीन भी समाज क
समदु ाय/ का समदु ाय मानता है। अनेक समदु ाय/ से समाज बनता है और समाज म8 भाग लेकर Oयि\ सामािजक
िहत को अपना अनदु ान देता है। और वंय को वह नैितक जीवन क अनभु िू त करता है। हीगल और Cीन के
िवचार/ गहराई से अ3ययन करने से #ात होता है िक Cीन और हीगल म8 िवचार/ म8 िव]ा+मा रा1य, वतZता और
समाज जैसी धारणाओ ं के सHबध म8 एक समान मायताएँ है।

अAयास B
1.िकसने इiछा के दो Yप माने है 1. वा तिवक इiछा 2. यथाथ5 इiछा ?

उराखंड म
ु िविवालय 234
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

2.सामाय इiछा क धारणा के सHबध म8 Cीन िकससे भािवत है ? से बहQत भािवत है


3 कौन मानता है िक रा1य Oयि\ क सदइiछा पर आधारत है शि\ पर नह9 ?
4.िकसने रा1य के काय5 नकारा+मक और सकारा+मक दो वगk म8 िवभािजत िकया है ?
5. Cीन को एक ‘उiच आदश5वादी’ के साथ उसे एक ‘गंभीर यथाथ5वादी’ िकसने बताया है।

15.5 सारांश
उपरो\ अ3ययन म8 हमने हीगल और Cीन के िचतं न के िविवध प:/ का अ3ययन िकया है |िजसके आधार पर हम
इस िन;कष5 पर पहQचं े है िक िविभन Zिु टय/ और दबु ल
5 ताओ ं के बावजदू हीगल क यगु परवत5नकारी िवचारधारा
का अCिलिखत कारण/ से िवशेष मह+व है। हीगल ने राजनीित तथा नीितशाh के पार परक सHबध/ को हीगल
ने सवा5िधक प> एवं सsू म Yप से समझा था। हीगल ने अपने दश5न म8 इस बात पर िवशेष जोर िदया िक रा1य
Oयि\ क उनित के िलए अिनवाय5 है तथा Oयि\ रा1य का एक अिवभा1य अगं है। यही नह9 हीगल पहला
िवचारक था िजसने इितहािसक णाली को समझा तथा अपने िस(ात म8 योग िकया। हीगल को वै#ािनकता का
ितपादक भी माना जाता है। हीगल ने अपने दश5न म8 इस अ+यत वै#ािनक िस(ात का ितपादन िकया िक
िववेक ^ारा गित होती है। हीगल ने Oयि\ क आ+म चेतना पर समाज क ेरणामल ू क बिु ( के कारण को
समझने और वीकार करने का बहQमbू य यास िकया है। हीगल Oयि\वाद के िवरोध म8 है वह मानता है िक
Oयि\वाद मन;ु य के सामािजक चरZ का पर+याग करता है। हीगल सतुलनवादी है। वह यह भी ितपािदत करता
है िक मन;ु य समाज के िलए िकतना भािवत रहता है। हीगल ने वतZता पर बहQत बल िदया है। वह वतंZता
को Oयि\ के जीवन का सार मानते हQए कहता है। “ वाधीनता मन;ु य का एक िविश> गणु है िजसे अ वीकार
करना उसक मन;ु यता को अ वीकार करता है।
इसी Vम म8 हम Cीन के िचतं न के िविवध प:/ का अ3ययन कर इस िन;कष5 पर पहQचं े हL िक Cीन रा1य को नैसिग5क
एवं नैितक जीवन क आवयक स ं था मानते हQए भी उसक शि\य/ के दायरे को सीिमत करता है। वह रा1य को
आतरक एवं बा‡य :ेZ म8 िनयिं Zत रखने का समथ5न करता है। इस कार हम कह सकते है िक Cीन रा1य कर
िनरंकुशता का समथ5न नह9 करता है। Cीन मानता है िक Oयि\ के िवकास के िलए Oयि\ क वतZता एवं उसके
अिधकार पणू 5 Yप िमलने चािहए। वह रा1य के िवशेष कायm म8 बाधाओ ं को दरू करने के उेय तक सीिमत रखता
है। इस कार प> होता है िक Cीन रा1य के नैितक मह+व को वीकार करते हQए भी Oयि\ क वतZता का
बिलदान नह9 करता। उसके राजनीितक दश5न का सार सीिमत शि\य/ वाला रा1य है िजसम8 Oयि\ क वतZ
इiछा के वतZ िवकास का समथ5न है। Cीन के आदश5वाद के ेरणा Rोत अर तु और कॉ> है। Cीन के िवचार/
का मह+व इस बात म8 है िक उसने रा1य क स&ा को सीिमत कर Oयि\ क वतZता का समथ5न िकया है। इस
कार Cीन ने आदश5वाद को उदारवादी वYप दान िकया है।

15.6 श!दावल$
1.बजु 5वु ा समाजः- पंजू ीवाद के अतग5त बड़े बडे़ पंजू ीपितय/ का वह वग5 जो सामािजक उ+पादन के मख
ु साधन/
(भिू म, कारीखान/, कiचेमाल के Rोतो) पर अपना वािम+व और िनयZण थािपत कर लेता है।

उराखंड म
ु िविवालय 235
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2.सवं ैधािनक राजतZ:- ऐसी शासन णाली िजसम8 राजा या सuाट नाममाZ को रा1य का अ3य: होता है और
शासन क वा तिवक शि\यां लोकि य सं थाओ ं जैसे िक संसद मिं Zमdडल, तथा अय ऐसे अगं ो म8 िनिहत होती
है िजनक Oयव था संिवधान म8 क जाती है।
3.कुलीनतZ:- ऐसी Oयव था िजसम8 एक छोटा सा गटु या समहू िकसी संगठन क सHपणू 5 स&ा पर अपना िनयZंण
थािपत करके वाथ5- पिू त5 के िलए उसका उपयोग करता है।
4.िसिवल समाज:- सामािजक जीवन म8 रा1य औा िव तृत परवार क म3यवतf सं थाओ ं का समiु चय । जैसे िक
धािम5क संगठन, िश:ा सं थाऐ ं मनोरंजन aलब तथा अनेक वैिiछक साहचय5।
5.सवा5िधकारवाद:- वह िस(ात जो रा1य क सारी शि\ को एक ही जगह के िpत करने, और लोग/ के सHपणू 5
जीवन पर पणू 5 या लगभग पणू 5 िनयZण थािपत करने का समथ5न करता है।
6.रा1य का सावयव िस(ात:- राजनीित का वह िस(ात िजसम8 रा1य और Oयि\ का सHबध िनधा5रत करने के
िलए जीिवत ाणी के =>ांत का योग िकया जाता है। इसके अनसु ार रा1य एक सHपणू 5 शरीर के समान है।
7.अतरा5;<ीयवाद:- यह मायता िक िव] शाित तभी थािपत हो सकती है जब सम त रा;< अपने अपने रा;<ीय
चरZ का +याग िकए िबना अतरा5>ीय याय और सहयोग क िसि( के िलए समानता के आधार पर एक मैZीपणू 5
संघ के Yप म8 सगं िठत हो जाये।
8.स ं भतु ा - रा1य क स&ा का सबसे बिु नयादी आधार सं भतु ा के बल पर ही कोई रा1य ऐसे काननू और आदेश
जारी कर सकता है जो इसके काय5:ेZ म8 अिनवाय5 Yप से लागू होते है। संसाधन/ का आवंटन काननू या आदेश/
का उbलंघन करने वालो को दdं ड, सिधयाँ करना आिद कर सकता है।
9.उदारवादी:- उदारवादी राजनीित का वह िस(ात है जो सामतवाद के पतन के बाद राजनीित को बाजार
अथ5Oयव था के अनYु प मोड़ देने के िलए अि त+व म8 आया।
10.Oयि\वाद:- वह राजनीितक िस(ात जो Oयि\, अथा5त +येक मन;ु य को िववेकशील ाणी मानते हQए यह
मांग करता है िक साव5जिनक नीित और िनयम/ का िनमाण5 करते समय Oयि\ क गरमा, उसके वाधीन अि त+व
को परू ी मायता दी जानी चािहए।
11.परवत5नवादी:- वह Oयि\ या समहू जो वत5मान Oयव था को अनपु य\
ु भृ> या गई बीती मानता है और उसम8
त+काल आमल ू चलू परवत5न मांग करता है।

15.7 अ&यास 
न' के उ तर
1. Cीन 2. हॉ@स, लॉक तथा Yसो 3. .Cीन 4. .Cीन 5. ो0 बाम5र

15.8 सदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीितक िचतं न क .परे खा - ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, थम सं करण-1996

उराखंड म
ु िविवालय 236
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
2.आधिु नक राजनीितक िवचार/ का इितहास, चतुथ5 भाग-1योित साद सदू - के 0 नाथ एdड कHपनी, मेरठ, 1994-
95
3.राजनीित कोश- डॉ0 सभु ाष कयप, िव] काश गXु , िहदी मा3यम काया5वय िनदेशालय, िदbली
िव]िव0ालय, थम सं करण-1998
4.राजनीित िस(ांत क .परे खा- ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, पंचम सं करण-2001
5.राजनीित िव#ान िव]कोश- ओ0पी0 गाबा- नेशनल पि@लिशगं हाउस, दरयागजं , िदbली, थम स ं करण-
1998
6.पाFा+य राजनीितक िचतं न – पी.डी. शमा5

15.9 सहायक /उपयोगी पा+य साम*ी


पाFा+य राजनीितक िचतं न- जीवन मेहता

15.10 नबंधा मक 

1.हीगल क ^^ं ा+मक प(ित क िववेचना किजये |
2. हीगल के अनसु ार क़ाननू और अतरा5;<ीयतावाद क Oयाrया किजये |
3.Cीन के अनसु ार –रा1य का आधार इiछा है न िक शि\ | Oयाrया किजये |

उराखंड म
ु िविवालय 237
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 : 16  3 '(1748-1832), +. &.


*(1806-1873)
इकाई क$ संरचना
16.1 "तावना
16.2 उ4े5य
16.3 जरमी ब(थम
16.3.1 ब(थम का सख ु वाद
16.3.2 राय संबंधी िवचार
16.3.3 मHू यांकन
16.4 जे. एस. िमल
16.4 .1 उपयोिगतावाद म( सश ं ोधन
16.4 .2 वतंRता संबधं ी िवचार
16.4 .3 राय के काय
16.4 .4 "ितिनिध सरकार
16.4 . 5 िमल अिन?छुक लोकतRवादी
16.5 साराश ं
16.6 शAदावली
16.7 अBयास "C9 के उ:र
16.8 सदभ Dथ सचू ी
16.9 सहायक /उपयोगी पाठ्य सामDी
16.10 िनबधं ामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 238
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

16.1 तावना
इसके पवू 5 क इकाई १५ म8 हमने हीगल और Cीन के राजनीितक िवचार/ के साथ ही साथ िचतं न के अय प:/
का भी अ3ययन िकया है िजसमे िवशेष .प से हीगल के आ+म त+व का िस(ात,^(वाद का िस(ात ,रा1य
िस(ात ,रा;<ीय रा1य अतरा5;<ीयतावाद और य( ु ,दdड तथा स+पि& तथा संिवधान संबंधी =ि> का िवशेश .प
से अ3ययन िकया है |इसके साथ ही Cीन का आ3याि+मक िस(ात, वतZता,अिधकार सHबधी धारणा
, ाकृ ितक काननू और सामाय इiछा पर Cीन के िवचार और अतं त रा1य के कायm तथा रा1य और Oयि\ के
म3य सHबध का िवशेष .प से अ3ययन िकया है |िजसम8 यह पाया है िक उ\ िचंतक/ ने रा1य को एक कृ िZम
सं था के .प म8 मायता िदलाने म8 महती भिू मका अदा क है |
अब हम इस इकाई १६ म8 १९ व9 शदी के उपयोिगतावादी िवचारक ब8थम और जान टुअट5 िमल के बारे म8
अ3ययन कर8 गे |िजसम8 हम दोन/ िवचारक/ के िचतं न का अ3ययन हम समCता म8 करे गे और देखग8 े िक िकस कार
से ब8थम और जान टुअट5 िमल रा1य को जनमानस के िहत का साधन माना है | य0िप दोन/ के ^ारा Oयि\ क
आवयकताओ ं और इiछाओ ं को लेकर मतभेद भी है | परतु एक बात म8 मतैaय है िक रा1य एक कृ िZम सं था है
िजसका काय5 जनमानस के िहत क िसि( है |

16.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम -
1.ब8थम के उपयोिगतावाद के बारे म8 जान सक8 गे |
2.यह भी जान सन सक8 गे िक रा1य िकस कार से कृ िZम सं था है ,जो जनता के िहत का साधन है |
3.यह भी जान सक8 गे िक िमल ने िकस कार से ब8थम के उपयोिगतावाद म8 संशोधन िकया है |
4.िमल के वतंZता संबंधी िवचार और ितिनिध शासन के बारे म8 भी जान और समझ सक8 गे |

उराखंड म
ु िविवालय 239
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

16.3 जरमी ब?थम (1748-1832)


बेथम िटेन म8 उपयोिगतावाद के वत5क बने। उहोने ाचीन यनू ानी दाश5िनक एपीaयरू स क बात/ को 18 व9 19
व9 शदी म8 नए Yप म8 पेश कर आधिु नक उपयोिगतावाद क नीव डाली। 19 व9 शदी क चिलत दाश5िनक
मायताओ ं से यह िस(ात इतना अलग हो गया िक इसे दाश5िनक उCवाद तक क स#ं ा दे दी गई पर इसी
उपयोिगतावाद ने अिधकतम Oयि\य/ के अिधकतम सख ु क अवधारणा के ^ारा एक ऐसे रा1य क न9व डाली
िजसे 20 व9 शदी म8 आकर कbयाणकारी रा1य कहा गया।

16.3.1 ब(थम का सख
ु वाद
बेथम का जम इ}ं लैड के एक सHपन परवार म8 हQआ था। पढ़ाई परू ा कर वह िविधशाhी बन गया। उसने उस यगु
म8 याियक सधु ार योजनाओ ं का समथ5न िकया तथा याियक सधु ार के मा3यम से समाज म8 बदलाव लाने का
य+न िकया। अपने जीवन काल म8 एक बल जनतंZी जेHस िमल से बेथम क िमZता हो गई िजसके भाव से
बेथम राजनैितक सधु ार/ का भी बल समथ5क बन गया। अपनी प ु तक Introduction to the Principles of
morals and legislation म8 उसने मनोवै#ािनक तकm का सहारा लेकर एक नए यायदश5न एवमं िविध िनमा5ण के
लsय क थापना क। डेिवड हयमू ^ारा अपनी प ु तक “Treatise on human nature” म8 ितपािदत
उपयोिगता क अवधारणा तथा ी टल ^ारा ितपािदत अिधकतम Oयि\य/ के अिधकतम सख ु क अवधारणा से
मेल कराकर उसने एक नए सख ु वाद क रचना कर डाली।
हयमू ने संशयवाद क अपनी अवधारणा के आधार पर उपयोिगता म8 ही िकसी व तु का औिच+य ढॅूढ़ा था। इसी
आधार पर बेथम ने घोषणा क िक उपयोिगता ही सख ु क कसौटी है। सख ु एवमं ् दःु ख मन;ु य एक इिpय परक
ाणी है, जो सखु पाना चाहता है एवंम् दःु ख कम करना चाहता है। जो बात सख ु को बढ़ाती है तथा दःु ख कम
करती है उसे उपयोिगता कहते है। बेथम का मानना है िक सखु एवम् दःु ख आ+मपरक अनभू िू त नही वरन् व तपु रक
मानदdड है। इनक कृ ित परमाणा+मक है, अथा5त दो सखु / म8 अतं र इनके गणु का नही होता बिbक इनके परणाम
का होता है। सख
ु उ+कृ > या िनकृ > नही होते, माZ कम या अिधक होते है। बेथंम िलखता है यिद सख ु क माZा
बराबर हो तो किवता पाठ् एवम् कंचे के खेल म8 कोई अतर नह9 है।
बेथम का सखु वाद सखु एवम् दःु ख का नैितक आयाम दान कर देता है। बेथम का कहना है के सख ु ही नैितक
है। अतः हर वह कम5 जो सख
ु को बढ़ाती हो नैितक है। अब B यह उठता है, िक सखु एवंम् दःु ख परमाणा+मक है
तो िफर इस परमाण क गणना कै से क जाए? बेथम ने इसके िलए एक सखु वादी गणना प(ित का िनमा5ण िकया
है िजसके 7 आधार हL-
तीता , समयाविध, िनिFतता, िनकटता, उव5रता, श( ु ता, तथा िव तार है। अब इन आधार/ पर वह काय5 Wेय कर
है, िजसम8 तीता सख
ु िमले, अिधक समय तक सख ु िमले, िनिFत सख ु िमले तथा शीŽ सख ु िमले। उव5रता का
ता+पय5 एक ऐसे सखु से है जो आगे चलकर भी सख ु दे। कुछ ऐसे काय5 होते है, जो सख ु तो देते है, पर उनका
परणाम दःु खद होता है। ऐसे काय5 उिचत नह9 है। श(ु ता का ता+पय5 ऐसे सख ु से है, जो िवश( ु हो अथा5त िजसम8
दःु ख क िमिWत अनभु िू त न हो। िव तार का ता+पय5 ऐसे सख ु से है, जो अिधक लोग/ को सख ु दे। इन आधार/ पर

उराखंड म
ु िविवालय 240
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सख
ु क गणना करने के पFात बेथम कहता है, िक अिधकतम लोग/ का अिधकतम सख
ु ही सामािजक लsय
होना चािहए।
उपय5\
ु िववेचना से यह प> है िक बेथम वैयि\क अिभYिचय/ का 3यान नही रखता है। वह यह मान लेता है िक
अगर कोई एक काय5 सख ु द है तो उससे सभी को सख
ु क ािX होगी। वह यह नही मानता िक एक ही काय5 अलग-
अलग Oयि\य/ के िलए अलग-अलग भाव रख सकते है। इस कार उसका सख ु वाद नैितक मायताओ ं को
िछन-िभन कर देता है। इसी आधार पर काला5इव ने उपयोिगतावाद को सवु र/ का दश5न तक कह डाला।
उपयोिगतावाद ने मन;ु य को एक ऐसा ाणी मान िलया जो, जीवन पय5त एिpक सख ु / क तलाश म8 मारा-मारा
िफरता है। सख
ु वाद क मनोवै#ािनक आधार/ पर भी आलोचना क जाती है। मनोिव#ान कहता है िक जब तक
सखु के पीछे भागा जाए तब तक सख ु क ािX नही हो सकती है। बेथन का मन;ु य तो जीवन पय5त सखु के पीछे
भागता रहता है। aया वह ऐसे सखु ी हो पायेगा।

16.3.2 राय संबंधी िवचार


बेथम रा1य को कृ िZम सं था माना है। रा1य ऐसी सं था है, जो Oयि\य/ के सख ु / म8 अिभवृि( करती है। इसे लsय
अिधतम Oयि\य/ के अिधकतम सख ु / को बढ़ावा देना है। दसू रे श@द/ म8 रा1य से सख ु / म8 वृि( हो। अब अगर
ता+कािलक परि थय/ म8 रा1य के इस काय5 को देखा जाए तो हम पाते है िक वभावतः रा1य के कायk म8 वृि(
होने लगती है। बेथम ने माना िक एक िनर:र Oयि\ क अपे:ा सा:र Oयि\ के सख ु पाने क सHभावना बेहतर
होती है। इस आधार उसने िश:ा क Oयव था करने, का काय5 रा1य/ को सौप िदया। इह9 आधार/ पर बैथम ने
यनू तम मजदरू ी क Oयव था करने, रोजगार क गांरटी देने वा थ सिु वधाओ ं क Oयव था करने आिद का समथ5न
िकया। इस कार बेथमं का रा1य सीिमत रा1य नही रह गया उसके िस(ात/ म8 कbयाणकारी रा1य क झलक
िदखाई देने लगी इस आधार पर हम मान सकते है िक कbयाणकारी कायm का समथ5न करने वाला पहला िस(ांत
बेथंम ही बना।
बेथमं अपने यगु क दिु वधा से पणु त5 ः बाहर नह9 िनकल सका। कbयाणकारता क तमातम सभं ावनाओ ं के
बावजदू बेथमं नकारा+मक वेदारवादी ही बना रहा। सकारा+मक उदारवाद वतZं ता को आ+मोपलि@ध बताकर
मन;ु य के चरZक िवकास से रा1य को जोड़ देता है, पर बेथमं के रा1य का लोग/ के नैितक अथवा चरZक िवकास
से कोई मतलब नह9 हो बेथंम कहता है िक Oयि\ के जीवन म8 शासन का ह त:ेप कम से कम हो aय/िक Oयि\
अपने भले बरु े को सबसे बेहतर समझता है। रा1य एक िविध िनमा5ता िनकाय है। जनता से इसका सHबध के वल
काननू ^ारा थािपत होता है। यह दdड एवंम् परु कार क Oयव था ^ारा लोग/ को समाज िवरोधी काय5 करने से
रोकता है। रा1य का काय5 लोग/ के अिधकार का िनधा5रण करना है िजससे एक Oयि\ क वतंZता दसू रे के िलए
खतरा ल बन जाए। साईबाईन ने बेथंम् को प> करते हQए िलखा है िक यिद एक Oयि\ दसू रे क वतंZता म8
ह त:ेप करे गा तो वह दdड का भागी बनेगा। इसी दdड के भय से दसू रे Oयि\ को पहले क वतंZता म8 ह त:ेप
करने से रोका जा सकता है। प>तः यह ितबंध/ के अभाव क अवधारणा से ही जड़ु ा है, जो नकारा+मक
उदारवाद क अवधारणा है। इसके साथ ही बेथमं ने नकारा+मक उदारवाद क पि(त पर संपि& के अिधकार का
समथ5न िकया एवंम् आिथ5क असमानता का औिच+य िस( करने का यास िकया। बेथंम कहता है, िक अगर सभी
आिथ5क Yप से समान हो जाएँ तो आिथ5क उ+पादन ठप हो जाएगा। मन;ु य काम करना नही चाहता, aय/िक काम
करना क> देता है। अतः अगर भख ू से मरने का डर तो लोग काम करना बंद कर द8गे सामािजक उ+पादकता समाX

उराखंड म
ु िविवालय 241
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
हो जाएगी। इस कार बेथंम ने आिथ5क समानता का पर+याग कर िदया जो उसके िस(ात का वभािवक िन;कष5
था। अगर ‡ासमान उपयोिगता के िनयम के आधार उपयोिगता को परख8 तो हम पाते है, िक सामािजक सHपि& म8
हQई वृि( पहले गरीब को िमलनी चािहए, aय/िक इस सपं ि& से अमीर क अपे:ा गरीब को अिधक खश ु ी िमलेगी।
इस कार अगर अिधकतम लोग/ के अिधकतम सख ु के लsय के अनसु ार रा1य सामािजक लाभ का बँटवारा
करने, लगे, तो िनHन ि थितवाले को अिधक लाभ िमलेगा और समानता अपने आप थािपत हो जाएगी। पर बेथंम
ने जैसा िक C.B. Mc.Pherson ने कहा है, पँजू ीवाद के लाभ के िलए समानता क अवधारणा का +याग कर
िदया। अतः बेथंम तथा J.S. Mill भी, िजसम8 कbयाणकारता बेथंम से अिधक है, नकारा+मक उदारवाद को
पणू त5 ः नह9 छोड़ सका। J.S. Mill एक ऐसा िस(ांतकार बन गया, जो नकारा+मक एवंम् सकारा+मक उदारवाद के
बीच ि थत है।
जहाँ तक राजनीित क बात है, बेथमं ने समानता के िस(ांत को कुछ हद तक वीकार भी िकया। शासन प(ित क
बात करते हQए बेथमं ने लोकतंZ का समथ5न िकया। बेथमं कहता है िक वशासन दसू रे ^ारा शासन से बेहतर हL यह
शासन िजसम8 सािसता का शासन म8 िह सा हो, लोकतZ ही हो सकता है। इस लोकतZ म8 भी बेथमं ने Oय क
मतािधकार का समथ5न िकया। उदारवादी मायता के अनसु ार बेथमं मन;ु य को िवेकशील ाणी मानता था तथा
सभी सख ु दःु ख से ही परचािलत होते थ8 अतः बेथमं ने कहा िक +येक को एक िगना जाए तथा िकसी को भी एक
अिधक न िगना जाए। बेथंम ने एक Oयि\ एक मत का समथ5न िकया। प>तः समानता को बेथंम ने राजनैितक
:ेZ म8 तो सही माना पर आिथ5क :ेZ म8 नह9 बेथंम ने कहा भी समानता राजनैितक शभु है।
लोकतZ को मजबतू बनाने के िलए ही बेथंम ने लाड5 सभा के समािX क माZा को तथा संसद के वािष5क चनु ाव
का समथ5न िकया। व ततु ः 19व9 शदी के िटेन के राजनैितक पर बेथंम का मह+वपणू 5 भाव रहा है। उसने ऐसे
सधु ार/ का भी समथ5न िकया िजसके िलए आज का िटेन भी तैयार नहं हो सका है बेथंम ने राजतZ को समाX कर
गणतZा+मक Oयव था के थापना क माँग क िजसे आज भी वीकार नही िकया जा सका है। जैसा िक हम देख
चक ु े है, बेथमं ने काननू के आधार पर ही रा1य और Oयि\ का सबं धं िनधा5रत िकया। वह िविध अिधकार/ को ही
मायता दान करता है एवमं ् टॉम प8न जैरां लोग/ ^ारा समिथत ाकृ ितक अिधकार िस(ात को नकार देता है।
बेथमं कहता है िक ाकृ ितक अिधकार म है अथवा मानिसक माद है। ˆांस म8 मन;ु य के अिधकार/ क घोषणा
ने उन हजार/ म8 से एक Oयि\ के ाण/ क र:ा नह9 क जो Vािं तकारी यायालय के सामने खीचकर लाए गए, न
ही अमेरीका म8 इसने एक भी ह@शी को दासता के बधन से म\ ु िकया।
बेथंम के उपयोिगता के संबध म8 यह भी B उठता है िक अगर हर मन;ु य Oयि\गत सख ु और दःु ख के आधार पर
काय5 कर8 , तो सामािजकता का िनवा5य िकस कार सभं व होगा। इस वैयि\क सख ु और अिधकतम लोग/ के
अिधकतम सख ु म8 टकराव भी तो संभव है? बेथंम ने नैितक मानयताओ ं के अपने िवचार ^ारा इस िववाद को दरू
करने का यास िकया है। वह कहता है िक कुछ ऐसे सख ु तथा दःु ख होते है, जो Oयि\ को दसू र/ के सख
ु के िलए
अपने िनजी सख ु का बिलदान करने के िलए ेरत करते है, बेथंम इह8 नैितक मायता कहता है। उसने ऐसी चार
मायताओ ं क बात क है। भौितक मायता, साव5जिनक मायता, धािम5क मायता एवंम् राजनैितक मायता।
भौितक मायता कहती है, िक हम िकसी व तु का उतना ही ोग करे िजससे वह हम8 अिधकतम सख ु पहQचं ाए।
ज.रत से अिधक खाना हमारी सेहत को िबगाड़ सकता है, अथवा जYरत से अिधक अिधक वh पहन लेना
क> द हो सकता है। अतः हम सीिमत माZा म8 ही इन व तुओ ं का योग करते है। िजससे यह और/ को भी सल ु भ

उराखंड म
ु िविवालय 242
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
हो जाता है। साव5जिनक मायता के कारण हम ऐसे कायm को पसद करते है, िजसके करने से हम8 कित5 िमले
अथवा यश ाX हो तथा ऐसे कायm से बचते है, िजसम8 िनदा का भय हो। धािम5क मायता भी हम8 कुछ कायm को
करने से मना करती है, तथा कुछ कायm के िलए ो+सािहत करती है। राजनैितक मायता का ता+पय5 रा1य क
मायता से है। रा1य कुछ कायm को परु कृ त करता है, तो कुछ कायm को दिdडत करता है। इही मायताओ ं के
कारण अिधकतम लोग/ के अिधकतम सख ु क ािX संभव हो पाती है, तथा सामािजकता का िनव5हन संभव हो
पाता है।

उराखंड म
ु िविवालय 243
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
16.4 जे. एस. िमल
जान टुअट5 िमल क पहचान ऐसे िस(ातकार के Yप म8 होती है। िजसने उपयोिगतावाद म8 सधु ार करने के यास म8
उसम8 इतना बदलाव ला िदया िक िमल का उपयोिगतावाद बेथमं के उपयोिगतावाद का समथ5क नह9 बिbक
आलोचक बन जाता है। िमल को बेथमं तथा िमल ने उपयोिगतावाद के समथ5क के Yप म8 तैयार िकया। िकतु धम5
एवं सािह+य के उसके अ3ययन ने िमल को नैितक भावनाओ ं क तरफ मोड़ िदया। ितबधं पणू 5 बचपन ने जे0 एस0
िमल को वतंZता के अकां:ा क तरफ मोड़ िदया साथ ही अपने Oयि\गत जीवन पर लग रहे सामािजक आ:ेपो
ने िमल को इस िवचार क तरफ मोड़ा िक सामािजक रीितरवाज एवं जनमत Oयि\गत वतZं ता को िजतना
नकु सान पहQचँ ाते है उतना तो रा1य के ितबधं भी नही पहQचँ ते।

16.4 .1 उपयोिगतावाद म( संशोधन


उपयोिगतावाद पर लागू रहे आ:ेपो का जवाब देने के िलए िमल ने उपयोिगतावाद म8 सधु ार लाना ज.री माना।
इसी सधु ार को लाने के यास म8 उसके िवचार बेथमं से अलग होने लगते है। जहाँ बेथंम ने यह माना था िक सख
ु /
या दख
ु / म8 िसफ5 परणा+मक फक5 होता है वही िमल ने इनके बीच गणु ा+मक अतर को भी वीकार िकया।
िमल का कहना है िक कुछ सख ु उ+कृ > होते है तथा कुछ िन;कृ > एवं सख
ु / को उससे ऊंचा थान िदया। एक सतु>
सअु र से असत>ु मन;ु य हर हाल म8 बेहतर है या एक असत>ु सक ु रात सत>ु मख
ू 5 क अपे:ा बेहतर है। िमल ने
यह भी वीकार नह9 िकया िक हम िसफ5 सख ु या दःु ख के आधार पर काय5 करते है। इस िबदु पर वह ईसाई
नैितकता क अवधारणा को वीकार करता है। वह ईसा मसीह क इस यिु \ का उदाहरण देता है िक दसू र/ के साथ
वही करना चािहए जो Oयि\ वयं के साथ चाहता है।
िमल ने यह भी कहा िक उ+कृ > सखु को ाX करने के िलए उiच चरZ का होना ज.री है। वह बेथमं क तरह इस
िबदु पर सबको समान नही पाता एवं चरZ िवकास के िलए वह वतंZता को आवयक मानता है। एक वतंZ
मनपु थ ही चरZ िवकास के ^ारा उiच चरZ ाX कर सकता है। इसी कारण िमल ने वतंZता को अपने आप म8
एक सख ु मान िलया। वह कहता है िक िजसे एक बार वतZता का अनभु व हो जाता है वह िकसी भी कमत पर
उसे छोड़ने के िलए तैयार नह9 होता। इससे यह िन;कष5 िनकलता है िक वतZता का अनभु व हो जाता है वह
िकसी भी कमत पर उसे छोड़ने के िलए तैयार नह9 होता। इससे यह िन;कष5 िनकलता है िक वतZता वंय म8 एक
सा3य है एक सखु है।
Oयि\ सख
ु एवं दःु ख के बीच से सामिू हकता का माग5 श त करने के िलए बेथमं 4 मायताओ ं क बात करता है।
1- भौितक मायता
2- सामािजक मायता
3- धािम5क मायता
4- राजनीितक मायता

उराखंड म
ु िविवालय 244
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
िकतु जान टुअट5 िमल इहे मानता है, एवं कहता है िक Oयि\ वा‡य ितबंध/ के आधार पर काय5 करता है।
उिचत काय5 करने से Oयि\ को आतरक उbलास एवं नही करने से आतरक पीड़ा होती है। अपने काय5 म8 वह
आ+मसHमान क भावना महससू करता है। उिचत काय5 से उसे Oयि\गत गरमा क ािX होती है।

16.4 .2 वतंRता संबंधी िवचार


वतंZता को अपने आप म8 एक सख
ु मानने के कारण िमल ने िवशेष Yप से इनक चचा5 क है। वह दो आधार/ पर
इस वतंZता को देखता है।
1- िवचार एवं अिभOयि\ क वतंZता
2- कम5 क वतंZता
िमल का मानना है िक िवचार एवं अिभिOयि\ के :ेZ म8 Oयि\ को पणू 5 वतंZता िमलनी चािहए वह कहता है िक
अपने शरीर एवं मि त;क का Oयि\ वयं वामी है। िमल कहता है। िक अगर सHपणू 5 मानवता एक Oयि\ को
छोड़कर एक जैसा सोचे तो भी उस अके ले Oयि\ क बात को नही दबाया जा सकता अगर उसक बात स+य है तो
उसक बात दबाकर हम स+य से िवमख ु हो जाऐग8 एवं अगर उसक बात आंिशक स+य है तो दोन/ िवचार/ म8 वाद
िववाद होने से स+य का वYप और िनखरे गा स+य और परश( ु होगा। लेिकन यिद उसक बात पणू 5 Yप से गलत
हो तो भी उसक बात को नह9 दबाया जाना चािहए। aय/िक अस+य के सम: स+य और िनखरता है। जहाँ तक
कम5 के :ेZ म8 वतंZता का सवाल है िमल के इस तरपरक िजस अथ5 म8 वृि( के ^ारा समय समय पर रा1य को
बदला है। वह कहता है िक इसी ऐितहािसक अनभु व के आधार पर रा1य व Oयि\ का सHबध देखा जा सकता है।
इसी ऐितहािसक अनभु व से रा1य के ित मन;ु य म8 िव]ास पनपता है, एवं यही िव]ास रा1य को चलाता है।

16.4 .3 राय के काय


उपयोिगतावाद म8 यह माना गया िक चंिू क मन;ु य के सख
ू / म8 वृि( करना ही सामािजक उेय है अतः रा1य को
वही काय5 करना चािहए जो मन;ु य के सख ु / को बढ़ाए िमल भी रा1य के सकारा+मक कbयाणकारी काय5 का
समथ5न करता है िकतु वह इसके िलए अलग आधार लेता है वह कहता है िक चिु क एक उiच चरZ वाला ही
उ+कृ > सख
ु का अनभु व कर सकता है अतः रा1य का काय5 है उन सभी कायm को करना जो मानव के चरZ
िवकास क संभावनाओ ं को बढ़ाए ता+कािलक ििटश समाज को देखकर िमल यह पाता है िक भिू म उ0ोग, एवं
#ान पर कुछ लोग/ के िनयZण ने बाक लोग/ को सHमान पणू 5 जीवन से वंिचत कर िदया है।
िमल का कहना है िक इस ि थित से बाहर िनकलने के िलए भिू म का परसीमन होना चािहए एवं इसे कर के दायरे
म8 लाया जाना चािहए उ0ोग के :ेZ म8 वह यनू तम मजदरू ी क Oयव था करने बालWम पर ितबध लगाने एवं
काम के घdट/ को कम िकए जाने क वकालत करना है। चरZ िवकास के िलए #ान को आवयक मानते हQए िमल
रा1य ^ारा िनशbु क िश:ा क Oयव था करने क भी बात करता है।
सHपि& के अिधकार को भी सीिमत करते हQए िमल उ&रािधकार के िनयमन इस पर करआरोपण एवं आरोही कर
Oयव था क बात करता है।

उराखंड म
ु िविवालय 245
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
रा1य ^ारा इही कार के कायm क बात करके जान टुअट5 िमल ने एक िनरकंु श एवं िन;प: रा1य को मानव िहत
के िलए ितब( रा1य म8 बदल डाला। यही वे कारण है िजहोने आगे चलकर कbयाणकारी रा1य क संकbपना
को जम िदया हाँलािक रा1य^ारा कbयाणकारी कायm के सHपादन को वीकार करने वाला पहला िस(ातकार
बेथम था िकतु ितल ने ही Oयवि थत एवं चारत िकया।

16.4 .4 "ितिनिध सरकार


िमल ने अपनी प ु तक Representative Government म8 बेथंम के इस बात को वीकार नही िकया िक सबको
समान मतािधकार िमलना चािहए िमल का कहना है िक +येक को समान मानना अनठू े लोकतंZ का आधार है
सiचे लोकतंZ म8 यो}यता को उिचत थान िमलना चािहए। वह ऐसे लोग/ को मतािधकार देने का िवरोध करता है
जो िलखना पढ़ना एवं सामाय गिणत भी नह9 जानते हो िजनके िलए मतािधकार वीकार करता है उहे भी वह
बराबर नह9 मानता अिधक यो}य Oयि\ को वह अिधक मत देता है 14 से लेकर 4 मत के आधार पर िमल पारत
मतदान को वीकार करता है। ता+कािलक राजनीितक Oयव था म8 अय सधु ार/ क मांग करते हQए िमल मिहला
मतािधकार का समथ5न करता है एवं अbपसंrयक ितिनिध+व सिु निFत करने के िलए ि^तीय सदन अथवा उiच
सदन म8 अbपसंrयक ितिनिध+व क बात करता है। िमल मतदान Oयव था के िलए अनपु ाितक ितिनिध+व को
मायता देता है। इस आधार पर उसने हेयर णाली का सम5थन िकया है। साथ ही िमल खल ु े मतदान का समथ5क है
वह कहता है िक गXु मतदान म8 िनदा का डर नह9 रहने से वाथ5 पणू 5 मतदान क संभावना रहती है।
सरकार म8 िमल बहQमत के साथ साथ काय5कुशलता का भी समावेश करना चाहता है। वह कहता है िक ससंद वाद
िववाद का :ेZ होना चािहए िकतु वा तिवक या रोजमरा5 का शासन नौकरशाही के िजHमे होना चािहए जो
मिZय/ के िनयनZण म8 काय5 करे इसी कार के शासन म8 बहQमत एवं काय5 कुशलता दोन/ का समावेश हो सके गा।

16.4 .5 िमल अिन?छुक लोकतRवादी


जे0 एस0 िमल के लोकतांिZक होने के सवाल पर लोग/ ने िववाद उठाया | बेपर के अनसु ार िमल अिनiछुक
लोकतZवादी है | इस सदभ5 म8 यह देखते है िक लोकतZ को वीकार कर Oयि\ के िलए मत योग एवं
शासन म8 भागेदारी को उसके चरZ िवकास म8 आवयक बताकर िमल अपने लोकतZवादी होने का सबतू देता है
वह कहता है िक मत योग करना को िजHमेदार बनाता है यह इसका शै:िणक मदु ा है राजनीितक ाणी के िलए
उसी कार आवयक है िजस कार भौितक ािणय/ के िलए ]ास लेना साथ ही िमल वतंZता का पणू 5 समथ5क
है वह रा1य के कायm म8 जन लाभ का आधार िदखाकर भिू म के परसीमन एवं आरोही कर Oयाrया को मायता
देकर भी लोकतZवादी होने का सबतू देता है।मिहला मतािधकार का समथ5क होना भी िमल के लोकतािZक होने
का सबतू है।
िकतु कुछ ऐसे िबदु भी है जो िमल के लोकतंZ समथ5क होने पर सदं हे उठाते है उसके ^ारा भारत मतदान का
समथ5न िकया जाना एवं िपछड़े रा;</ के िलए लोकतंZ को सही नही ठहराना इन िबदओ ु ं म8 देखे जा सकते है।
िमल का कहना है िक जो समाज समान वाद िववाद के आधार पर एक उिचत बौि(क तर ाX करले िसफ5 उह8
ही वतंZता िमलनी चािहए। िमल मतािधकार के िलए सHपि& को भी एक आधार मान लेता है िमल का कहना है
िक जो वंय कर नही देते हो उहे अपने मत ^ारा दसू र/ के पैसे से िखलवाड़ करने का हक नह9 िदया जाना चािहए
उपय\ु सम त तjय िमल के लोकतािZक होने पर संदहे Oय\ करते है। िकतु िमल के िवचार/ के मbु यांकन का

उराखंड म
ु िविवालय 246
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
आधार 19 व9 सदी के म3य क ि थितयां ही है। लोकतZ क 20 व9 एवं 21 व9 सदी क परकbपना को हम िमल
पर नही लाद सकते कbयाणकारी रा1य का आधार देकर एवं Oयि\गत वतंZता को मायता देकर िमल
लोकतZवादी बन जाता है।
1-मन;ु य के कायm को वपरक एवं अय परक कायm म8 िवभािजत नही िकया जा सकता िमल ^ारा ऐसा िकया
जाना सही नही माना जा सकता।
2-यह मान लेना िक एक Oयि\ के इiछा को Oयि\ से 1यादा भी कोई जानता है या जान सकता है एक गलत
अवधारणा है। वतZता क यह अवधारणा बा3यता क तरफ ले जाती है।
3-िमल अbपसrं यक समहू के िलए वतZता का पणू 5 समथ5क है, न िसफ5 िमल परू ी मानवता के सम: एक Oयि\
क आवाज को अिभOयि\ देता है बिbक अbप सrं यक ितिनिध+व सिु निध+व सिु निFत करने के िलए इहे उiच
सदन म8 थान भी देता है।
4-अिनiछुक लोकतZवादी
5-िमल ^ारा उपयोिगतावाद म8 लाया गया सधु ार चाहे िकतना ही सही aय/ न हो इसने उपयोिगतावाद के वYप को
ही बदल डाला उपयोिगता वाद का समथ5न करने पर अपने योग म8 उपयोिगतावाद ऐसी आलोचना कर डाली
जो के आलोचको ने भी नही िक थी।

अAयास B
1. कौन िमल को अिनiछुक लोकतZवादी मानता है ?
2. Representative Government के लेखक कौन है ?
3 िकसने यह माना िक सख
ु / या दख
ु / म8 िसफ5 परणा+मक फक5 होता है
4. िकसने यह माना िक सख
ु / या दख
ु / के बीच गणु ा+मक अतर होता है ।
5.बेथम का जम कहाँ हQआ था ?
6.बेथम रा1य को कृ िZम सं था माना है।स+य/अस+य
7.Introduction to the Principles of morals and legislation

16.5 सारांश
बेथंम का िस(ात 19वी सदी के ारिHभक चरण म8 लोकतांिZक दबाव/ का मख ु मा3यम बनता है। ब8थम ने जब
Oय क मतािधकार क बात क तब बहQत कम लोग इसके िलए तैयार थे। िटेन म8 तो अगले 100 वषk वषk तक
इसे लागू करना संभव नही हो सका। इस =ि>कोण से ब8थम अपने समय से काफ आगे क सोच रखते थे। पर
अपने समय के दबाओ ं से वे पणू त5 म\
ु भी नही हो सके । पँजू ीवाद का उहोने गैर तांिZक समथ5न करने का यास
िकया। उपयोिगतावाद नैितक मायताओ ं पर सही नही ठहर सका। यह एक कार के बहQमतवाद म8 बदल गया।

उराखंड म
ु िविवालय 247
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
इसम8 यह सHभव था िक बहQमत के सख ु के िलए अbपमत का दमन िकया जा सके । इसम8 5 के सख ु के िलए 4 को
साधन बनाना सHभव था। अतः कातीवादी नैितकता िजसके अनसु ार Oयि\ अपने आप म8 सा3य है इसे दसू रे के
िहत का साधन नही बनायाजा सकता के मापदdड पर वह सही नही उतरता। जॉन रॉbस ने इसी आधार पर
आलोचनावाद क आलोचना क है। ब8थम ने सख ु और दःु ख को पणू त5 ः परणा+मक बता िदया िजसक उसके
िश;य िनल तक ने आलोचना क। वह सख ु ी, खश
ु ी, आनद आिद अनभु िू तय/ म8 भी अतं र नही कर सका पर ब8थम
का योगदान को भी नकारा नही जा सकता। ˆांस म8 िजन मिू त5य/ क थापना के िलए Vाित क आवयकता पड़ी
उहे अगर िटेन म8 Vमशः वीकार कर िलया गया तो इससे ब8थन जैसे िस(ातकारी के मह+व को वीकार करना
ही पड़ेगा। रा1य को मन;ु य के सख
ु / म8 अिभवृि( करने वाली सं था बताकर ब8थन ने एक ऐसे नए माग5 क खोज
क, िजस पर-----चलकर रा1य कbयाणकारी रा1य म8 बदला। उपयोिगतावाद वयं चाहे िजतना सही या गलत हो
परतु िटेन के राजनैितक जीवन म8 इसक उपयोिगता से इकं ार नही िकया जा सकता।
साथ ही यह भी जान सके है िक िकस कार से िमल ने ,ब8थम के उपयोिगतावादी िस(ांत म8 आमल ू चलू परवत5न
कर िदया है |िजसम8 उह/ने ब8थम के माZा+मक सख ु के िस(ांत का खडं न िकया और बताया क मानव जीवन म8
मह+व माZा+मक सख ु का नह9 है वरन गणु ा+मक सख ु का है | वतंZता को अपने आप म8 एक सख ु मानने के
कारण िमल ने िवशेष Yप से इनक चचा5 क है | और प> िकया है िकस कार से एक लोकतांिZक देश म8
वतंZता के अिधकार मह+वपणू 5 है | इसने वतंZता पर इतना बल िदया है िक िमल को उसके िलए िवशेष .प से
जाना जाता है |

16.6 श!दावल$
उपयोिगतावाद – इस श@द का योग ब8थम और िमल ने रा1य क कृ ित को प> करने के िलए िकये है |िजसके
अनसु ार रा1य एक कृ िZम सं था है | िजसका आधार यह है िक रा1य Oयि\ िलए एक उपयोगी (साधन )सं था है |
ितिनिध सरकार – ऐसी सरकार जो जनता के ितिनिध के .प म8 काय5 करती है |िजसके अि त+व का आधार
जनता क सहमित होती है |

16.7 अ&यास 
न' के उ तर
1. बेपर 2. िमल 3. .बेथंम 4. िमल.5. इ}ं लैड 6. स+य 7. प ु तक

16.8 सदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीितक िचतं न क .परे खा - ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, थम सं करण-1996
2.आधिु नक राजनीितक िवचार/ का इितहास, चतुथ5 भाग-1योित साद सदू - के 0 नाथ एdड कHपनी, मेरठ, 1994-
95
3.राजनीित कोश- डॉ0 सभु ाष कयप, िव] काश गXु , िहदी मा3यम काया5वय िनदेशालय, िदbली
िव]िव0ालय, थम स ं करण-1998

उराखंड म
ु िविवालय 248
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
4.राजनीित िस(ांत क .परे खा- ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, पंचम सं करण-2001
5.राजनीित िव#ान िव]कोश- ओ0पी0 गाबा- नेशनल पि@लिशगं हाउस, दरयागंज, िदbली, थम सं करण-
1998

16.9 सहायक /उपयोगी पा+य साम*ी


1. पाFा+य राजनीितक िचतं न – पी.डी. शमा5
2.पाFा+य राजनीितक िचतं न – जीवन मेहता

16.10 नबंधा मक 

1.ब8थम के उपयो}तावादी िस(ातं पर एक िनबधं िलिखए |
2.जान टुअट5 िमल के उपयो}तावादी िस(ांत क िववेचना किजये |

उराखंड म
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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

 17 :   )%
इकाई क$ संरचना
17.1 "तावना
17.2 उ4े5य
17.3 जीवन पLरचय
17.4 eeं ामक भौितकवाद
17.5 ऐितहािसक भौितकवाद
17.6 वग संघष
17.7 अितLर] मHू य का िस!ांत
17.8 यवु ा माaस
17.9 साराश ं
17.10 शAदावली
17.11 अBयास "C9 के उ:र
17.12 सदभ Dथ सचू ी
17.13 सहायक /उपयोगी पाठ्य सामDी
17.14 िनबधं ामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 250
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

17.1 तावना
इसके पवू 5 क इकाई म8 हम उपयोिगतावादी िवचारक/ ब8थम और िमल के िवचार/ का अ3ययन कर चकु े है |िजसम8
हम8 ब8थम ने उपयोिगतावादी िवचार म8 सख
ु क गडना माZा+मक आधार पर क है और रा1य का आधार उसक
आमजनमानस के िलए उसक उपयोिगता बताया है | जान टुअट5 िमल ने उपयोिगतावाद म8 सधु ार करने के यास
म8 उसम8 इतना बदलाव ला िदया िक िमल का उपयोिगतावाद बेथंम के उपयोिगतावाद का समथ5क नह9 बिbक
आलोचक बन जाता है। िमल को बेथंम तथा िमल ने उपयोिगतावाद के समथ5क के Yप म8 तैयार िकया | िमल ने
,ब8थम ^ाराडी गई सख ु क माZा+मक Oयाrया,को गणु ा+मक Oयाrया क है |
इस इकाई म8 माaस5 के राजनीितक िवचार/ का िव तार से अ3ययन कर8 गे | इसम8 हम ^^ं ा+मक भौितकवाद के
िस(ांत का भी अ3ययन कर8 गे .िजसम8 यह देखग8 े िक िकस तरह से समाज के िवकास का आधार भौितक शि\या
है |िजसम8 उ+पादन संरचना ऐसी है िक उ+पादन के साधन/ पर कुछ ल/गो का वािम+व थािपत हो जाता है |िजससे
समाज म8 वग5 िवभाजन प> हो जाता है |और इसी पजू ीवादी Oय था म8 ही इसके िवनास के बीज िनिहत होते है
|इसका भी अ3ययन इस इकाई म8 िकया जाएगा |

17.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम माaस5 के --
1. राजनीितक िवचार/ के सHबध म8 िव तार से जान सक8 गे |
2.^^ं ा+मक भौितकवाद के िस(ांत को समझ सक8 गे |
3.ऐितहािसक भौितकवाद के िस(ांत को समझ सक8 गे |
4.अितर\ मbू य का िस(ांत और वग5 संघष5 के बारे म8 जान सक8 गे |
5.यह भी जान सक8 गे िक वे कौन से कारक है जो अतं तः सवा5हार वग5 को संगिठत होकर Vांित के िलए अCसर
करते हL |

उराखंड म
ु िविवालय 251
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

17.3 जीवन परचय


माaस5 को एक ऐसे िस(ांतकार के Yप म8 जान जाता है िजससे समाज िव#ान/ म8 आिथ5क Oयाrया के त+व को
शािमल कराया। राजनीित िव#ान म8 माaस5 साHयवादी िवचारधारा को लाया तथा सव5हारा के अिधनायकतंZ क
थापना के िलए उसने Vांित का समथ5न िकया। माaस5 का जम 1818 म8 सा के एक यह’दी परवार म8 हQआ। बाद
म8 परवार ने इसाई धम5 को अपना िलया तथा माaस5 धम5 से िवमख ु होने लगा। 1935 म8 माaस5 िविध क पढ़ाई
करने वॉन िव]िव0ालय पहQचँ ा, पर 1936 म8 वह बिल5न पहQचँ गया जहाँ पहQचँ कर वह हीगल के भाव म8 आ
गया। अपनी िश:ा के बाद उसने पZकार का पेशा अपनाया तथा पेरस आ पहQचँ ा जहाँ उसक मल ु ाकात उस यगु
के समाजवादी िवचारको से हQई। इनम8 कै बेट, दू / तथा ऐजं bस आिद का नाम मह+वपणू 5 है। 1844 म8 माaस5 ने
Economic and Philosophical manuscript िलखा िकतु यह प ु तक िछपी रही तथा 1930 के दशक म8 ही
िव] को इसका पता चल सका। ˆांस क 1848 क Vांित के बाद माaस5 को ऐजं bस के साथ िमलकर
साHयवािदय/ के िलए घोषणापZ िलखने का काय5 िदया गया तथा इहोने Communist Manifesto क रचना
क। यही प ु तक माaस5 क rयाित का आधार बनी। 1859 म8 माaस5 ने Critic of Political Economy िलखा
तथा 1868 म8 दास कै िपटल का थम भाग कािशत हQआ। 1883 म8 लंदन म8 माaस5 क मृ+यु हो गई।

17.4 FवंFवा मक भौतकवाद


माaस5 का मल ू िस(ात ^^ं ा+मक भौितकवाद का िस(ांत है। माaस5 ने ^^ं वाद का =ि>कोण हीगल से तथा
भौितकवाद का =ि>कोण फे यर बैक से Cहण िकया है। इनही दोन/ जम5न िवचारक/ के भाव को देखते हQए लेिनन
के बाद म8 कहा िक माaस5 पर जम5न दश5न का भाव देखा जा सकता है। ^^ं वादी िVया म8 यह माना जाता है िक
अतं िव5रोध ही परवत5न का मल ू कारण है। माaस5 इस िवचार को वीकार कर कहता है िक संघष5 सभी परवत5न/
के मल ू म8 है। दसू री और भौितकवाद कहता है िक हमारे िवचार भौितक परि थितय/ से िनधा5रत होते है। माaस5 इन
दोन/ िवचार/ अथा5त ^^वाद एवं भौितकवाद को िमला देता है। िकतु इस परवत5न क प(ित ^^ा+मक होती है।
िकसी भी समाज म8 भौितकता आिथ5क ढ़ॉचे म8 िनिहत होती है िजसका िनमा5ण मन;ु य अपनी भौितक ज.रत/ क
पिू त5 के िलए करता है। मन;ु य का उेय अपने भौितक आवयकताओ ं क सतिु > होती है एवं इही
आवयकताओ ं क सतिु > के िलए समाज क आिथ5क िVया समाज का आधारभतू ढांचा बनाती है। माaस5
कहता है िक +येक सामािजक सरं चना म8 दो ढाँचे िनिहत होते है आधारभतू ढाँचा एवं उपरी ढाँचा। आधार का
िनमा5ण आिथ5क िVया से होता है एवं राजनैितक िविधक वैचारक एवं दाश5िनक Oयव थाएं ऊपरी ढाँचे म8 िनिहत
होती है। भौितकवादी =ि>कोण के आधार पर माaस5 कहता है िक चिंू क भौितकता आिथ5क िVया म8 िनिहत होती
है इसिलए आिथ5क िVया का बदलाव ही सामािजक बदलाव को िनधा5रत करता है। एक समाज िक िवचारधारा
धम5, राजनीित आिद वैसी ही होती है जैसी उस समाज क आिथ5क िVया होती है। दसू रे श@द/ म8 जैसी उस
एसमाज क उ+पादन रीित होती है वैसी ही समाज होता है। इह9 सदभm म8 माaस5 ने कहा है िक रा1य क जड़
राजनीित म8 िनिहत न होकर आिथ5क िVया म8 िनिहत होती है। हीगल के ^^ा+मक आदश5वाद को भौितकवादी
आधार से जोड़ देने के कारण ही माaस5 ने कहा िक हीगल सर के बल खड़ा था मैने उसे पॉव पर खड़ा कर िदया।
यहाँ सर का ता+पय5 चेतना से एवं पैर का ता+पय5 भौितकता से है।

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ु िविवालय 252
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
समाज क आिथ5क िVया का िनधा5रण उ+पादन रीित से होता है। माaस5 का कहना है िक उ+पादन रीित म8 होने
वाला हर बदलाव समाज को िवकास क ओर ले जाता है। समाज िवकास के िविभन चरण/ म8 आने वाले पड़ाव
एक िनिFत उ+पादन रीित ^ारा ही िनधा5रत होते है। माaस5 कहता है िक हर आिथ5क सामािजक सरं चना एक
िनिFत उ+पादन रीित पर आधारत होती है। यिद सामंतवाद कृ षक उ+पादन रीित पर आधारत था, तो पंजू ीवाद
औ0ोिगक उ+पादन रीित पर आधारत होती है। +येक उ+पादन रीित के दो माग5 होते है- उ+पादन शि\ तथा
उ+पादन सHबध उ+पादन शि\ के भी दो भाग होते है- उ+पादन के साधन तथा मानव शि\। उ+पादन के साधन के
भी दो भाग होते है- Wम का साधन तथा Wम क व तु। Wम क व तु वह है िजस पर Wम आरोिपत होता है तथा
Wम का साधन वह है िजसक सहायता से हम Wम आरोिपत करते है। यिद इस सHपणू 5 िVया को उदाहरण/ से
प> िकया जाये तो हम देखते है िक सामतवादी आिथ5क सामािजक संरचना म8 कृ षक उ+पादन प(ित िनिहत
होती है। यहाँ उ+पादन सHबध सामात/ व कृ षक/ के बीच का सHबध है। मानव शि\ का ता+पय5 कृ षक/ क
उ+पादन शि\ है। Wम क व तु भिू म है तथा Wम का साधन हल है। माaस5 कहता है िक इसी आिथ5क िVया के
बदलाव से समाज आता है। आिथ5क िVया का बदलाव अतिव5रोध के कारण है।
यह अतिव5राध उ+पादन शि\ एवं उ+पादन सHबध के बीच होता है। उ+पादन शि\याँ िवकिसत होती रहती है पर
उ+पादन सHबध नही बदलते, यही इस अतिव5राध का कारण है। उ+पादन सHबध का उ+पादन के साधन/ पर
िनयZण होता है। उ+पादन के साधन/ पर िनयंZण दो कार से सHभव है- िनजी अथवा सामिू हक िनजी िनयZण
क ि थित म8 उ+पादन सHबध वाथ5 पर आधारत होते है। माaस5 कहता है िक हर वग5 िवभािजत समाज म8 दो मल

वग5 होते है एक वह िजसका उ+पादन के साधन/ पर िनयZण होता है दसू रा वह िजसका उ+पादन के साधन/ पर
कोई िनयZण नह9 होता। इन वग5 िवभािजत समाज/ म8 उ+पादन सHबध वग5 िहत म8 होते है। अथा5त इनम8 उस वग5
का िहत होता है िजसका उ+पादन के साधन/ पर िनयZण होता है यह वग5 उ+पादन सHबध को नह9 बदलने देना
चाहता है। माaस5 क परकbपना कहती है िक उ+पादक शि\य/ का िवकास िनरतर होता रहता है जबिक उ+पादन
सHबध नही बदलते। उ+पादक शि\ का हर बदलाव उ+पादन सHबध/ म8 बदलाव क अपे:ा करता है, परतु जब
उ+पादन सHबध नह9 बदलते तो उ+पादक शि\य/ एवं उ+पादन सHबध/ म8 तनाव बनने लगता है एवं उ+पादक
शि\य/ का िवकास अव.( होने लगता है।
परतु चँिु क उ+पादन शि\य/ का िवकास होना ही है तो एक िनिFत अव था के बाद जब उ+पादक शि\ और
िवकिसत नह9 हो सकती, Vांित होती है तथा उ+पादक प(ित बदल जाती है। इस नई उ+पादन प(ित अथवा
उ+पादन रीित म8 नये सHबध होते है एवं इन नये सHबध/ के तहत उ+पादक शि\य/ का िवकास होने लगता है।
लेिकन अगर उ+पादन सHबध अभी भी वग5 िहत म8 हो तो उ+पादक शि\य/ का िवकास िफर अव.( होने लगता
है एवं नए िसरे से Vांित होती है, नई उ+पादन रीित बनती है एवं उ+पादक शि\याँ बढ़़ती रहती है। बदलाव क यह
िVया इह9 अतिव5रोधी के फल व.प आग8 बढ़ती जाती है। तबतक जब तक िक उ+पादन के साधन/ पर
सामिू हक वािम+व थािपत न हो जाए वग5 िवभाजन समाX न हो जाए एवं उ+पादक शि\य/ के िवकास पर कोई
ितबध न रहे। बदलाव क इस प(ित म8 अतिव5रोधी म8 सामंज य एवं नए अतिव5रोध/ का िवकास अतिन5िहत
है। उ+पादन रीित म8 आने वाला वदलाव अगर वाद है तो उ+पादक शि\य/ एवं उ+पादन सHबध/ के बीच का
तनाव ितवाद है, नई आिथ5क सामािजक संरचना का िनमा5ण संवाद है।

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17.5 ऐतहा1सक भौतकवाद


^^ा+मक भौितकवाद क इसी प(ित को जब माaस5 ने इितहास क Oयाrया के िलए योग िकया तो ऐितहािसक
भौितकवाद का िस(ात सामने आया। ऐितहािसक भौितकवाद व ततु ः इितहास क भौितकवादी Oयाrया का
यास है। माaस5 कहता है िक इितहास भौितक आधार/ और मल ू तः उ+पादन रीित म8 आने वाले परवत5न से
िनधा5रत होता है। इितहास का यह िवकास एक िनिFत रे खा पर समान गित से न हो कर िविभन चरण/ मे होता है।
+येक चरण एक िनिFत सामािजक आिथ5क संरचना से बनता है िजसका एक िनिFत उ+पादन रीित होती है।
माaस5 के अनसु ार इितहास म8 ऐसे पाँच चरण आते है। इनम8 से चार चरण/ से हम गजु र चक
ु े है एवं पॉचवा भिव;य म8
सामने आएगा। थम चार चरण
1. आिदम साHयवाद
2. दासमल
ू क समाज
3.सामतवाद एवं
4. पँजू ीवाद से बनते है।
पाँचवाँ चरण साHयवाद का होगा िकतु उसके पहले समाजवादी का एक म3यवतf चरण आएगा जो पजँू ीवाद से
साHयवाद म8 सV
ं मण काल के दौर म8 िदखेगा।
थम चरण िजसे माaस5 आिदम साHयवाद कहते है। एक वग5 िवहीन एवं रा1य िवहीन ि थित थी। उ+पादक शि\य/
का िवकास काफ कम हQआ था, िजसके कारण उ+पादन, उपभोग से कम था। जो भी उ+पािदत होता था वह
उपभोग म8 आ जाता था, िजसके कारण िकसी अिधशेष क उपि थित नही थी। अिधरोष न होने से िनजी सHपि&
क अवधारणा भी नह9 थी। समाज म8 समानता थी एवं वग5 का अि त+व नह9 था। वग5 न होने से वग5 शोषण के
उपकरण क ज.रत भी नह9 थी, इस कार रा1य भी अनपु ि थत था aय/िक रा1य शोषण के उपकरण के अितर\
और कुछ नह9 है। पर उ+पादक शि\य/ का िनरतर िवकास हो रहा था। इसी िवकास Vम म8 एक ऐसी ि थित आई
जब उ+पादन ने उपभोग के तर को ाX कर िलया। अब अिधशेष का बचना सHभव हो गया। इससे समाज वगm म8
बटने लगा। सHपि&वान वग5 को अपनी संिप& को बचाए रखने क िचतं ा थी अतः वग5 शोषण के उपकरण रा1य का
िनमा5ण िकया गया।
इसी के साथ हम दासमल ू क समाज म8 आ गए। यह समाज िवकास क दसू री अव था थी। इसम8 वग5 एवं रा1य दोन/
का अि त+व था। उiच वग5 अथा5त दास वािमय/ ने दास/ को िनयिZत का योग िकया। माaस5 कहता है िक आगे
के समाज िवकास के चरण भी वग5 िवभािजत थे। सामतं वाद म8 सामंत और कृ षक तथा पतू ीवाद म8 मजदरू समाज
वग5 के मखु थे। माaस5 कहता है िक पँजू ीवाद का िवकास वयं ही पजँू ीवाद को िवनाश क और ले जायेगा तथा
Vांित के पFात सव5हारा अिधनायकतंZ थािपत होगा। अब समाज एक संVमण काल से गजु रे गा िजसे माaस5
पँजू ीवाद और साHयवाद के बीच का म3यवतf चरण बताता है तथा समाजवाद का नाम देता है। इसक पहचान
सव5हारा के अिधनायकयZं के .प म8 इसिलए है aयोिक यह भी एक शोषण परक Oयव था होगी। इसम8 सव5हारा
अथा5त बहQसंrयक, पँजू ीपित अथवा अbपसंrयक का शोषण करे गा। इसका लsय शोषण को बनाए रखना नही

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
वरन इसे समाX करना होगा। इसम8 सामािजक िवतरण +येक को उसक यो}यता के अनसु ार एवं +येक को उसके
यो}यता के अनसु ार होगा। इसम8 पँजू ीवादी वृि&य/ को धीरे -धीरे समाX का िदये जायेगा तथा धीरे -धीरे वग5
िवभाजन समाX हो जायेगा।
यही साHयवाद का चरण होगा िजसम8 न तो वग5 क उपि थित होगी न वग5 शोषण के उपकरण रा1य क। यह धम5
िवहीन रा1यिवहीन ि थित होगी। इसम8 सामािजक िवतरण का आधार होगा +येक से उसक यो}यता के अनसु ार
और +येक को उसक आवयकता के अनसु ार यहाँ वग5 िवरोध न होने के कारण उ+पादक शि\य/ को रोकने
वाला उ+पादन सबं धं नही होगा। उ+पादन के साधन सामिू हक वािम+व म8 होगे तथा सHं बध समानता के ह/गे अतः
उ+पादक शि\य/ एवम् उ+पादन सबं धं / म8 तनाव उ+पन नही हो पाएगा। उ+पादन शि\ के िवकास के कारण
उ+पादन इतना बढ़ जाएगा िक सबके आवयकता क पिू त5 करना सभं व हो जायेगा। माaस5 का यह ऐितहािसक
भौितकवाद अतं तः िनयतीवादी =ि>कोण बन जाता है। इसम8 इितहास क एक िनिFत रे खा िनधा5रत कर दी गई है।
हर समाज को इसी रे खा से होकर गजु रना है। माaस5 कहता है िक एक िवकिसत रा;< एक िपछड़े रा;< को उसके
भिव;य क त वीर िदखाता है। इसका यह ता+पय5 हQआ िक एक ही रे खा पर सभी बढ़ रहे है। कोई थोड़ा आगे है तो
कोई थोड़ा पीछे । इस कार का िनयितवादी =ि>कोण मानवीय यास क सभं ावना को @यथ5 बना देता है। मानव
समदु ाय अपनी इiछा एवंम् सोच से समाज के भिव;य का िनधा5रण नही कर सकता है, पर माaस5 के बाद के
इितहास को देखने पर हम पाते है िक ऐसा नही हQआ। .स से सव5हारा के अिधनायकतंZ क थापना का यास
ज.र हQआ पर इससे रा1य के समािX के यास क झलक नही िमली एवम् साHयवादी िवचार को नकारकर
लोकतंZ क थापना क गई इसके अितर\ साHयवाद मनोवै#ािनक =ि>कोण पर भी सही नही ठहरता मानव
मनोिव#ान कहता है िक आवयकता को संतिु > संभव ही नही है।

17.6 वग) संघष)


माaस5 कहता है िक अब तक का इितहास वग5 संघष5 का इितहास है। यह वग5 संघष5 इस कारण है िक वग5 िवभािजत
समाज म8 शोषण अतिन5िहत है। वग5 का िनधा5रण उ+पादन के साधन/ पर िनयZण से होता है िजनका उ+पादन के
साधन/ पर िनयZण से होता है वे समाज म8 शि\शाली होते है। माaस5 का मानना है िक हर सामािजक आिथ5क
संरचना म8 िजसक एक िनिFत उ+पादन रीित होती है एवं जो वग5 िवभािजत होता है। दो मल ू वग5 होते है। एक वह
िजसका उ+पादन के साधन पर िनयZण है तथा दसू रे वे िजनका िनयZण नही होता है। इन दो के अलावा और भी
वग5 उपि थत हो सकते है परतु यही दो मल ू वग5 होते है। इनका सHबध संघष5 पणू 5 सHबध होता है aय/िक एक
शोिषत होता है और दसू रा शोषण करने वाला होता है। एक शोषण पर ही दसू रे का िहत िटका होता है। इस कारण
इन दोन/ वगm म8 सघं ष5 अतिन5िहत होता है। हर वग5 िवभािजत समाज म8 यह सघं ष5 देखा जा सकता है। दास/ व
दास वािमय/, सामात/ एवं कृ षक/ तथा मजदरू / एवं पँजू ीपितय/ म8 यह सघं ष5 िव0मान रहा है। इस सघं ष5 के दो
परणाम सभं व हL या तो शोिषत वग5 क िवजय होगी या दोन/ वग5 समाX हो जायेगे । शोिषत/ क िवजय सHभव
नही aय/िक ये अbपसrं यक है जीतना तो शोिषत/ को ही है। पर न तो दास जीत सके न कृ षक पर सव5हारा इस
सघं ष5 म8 िवजय ाX करे गा। दास मल
ू क समाज क समािX पर न दास बचे न दास वामी एवं सामतवाद क
समािX पर सामत रहे न कृ षक परतु पजंू ीवाद क समािX सव5हारा क जीत के साथ होगी। ऐसा कारण होगा िक
जहाँ दास एवं कृ षक वयं म8 एक वग5 थे वही सव5हारा वयं के िलए एक वग5 म8 बदल जाएगा।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
वंय म8 एक वग5 का ता+पय5 वग5 चेतना क अनपु ि थित से है। ऐसी ि थित म8 एक Oयि\ अपनी वग5 ि थित को
अपनी चेतना से नही जोड पाता और इस कारण वग5 एकता का अभाव होता है। इस एकता के अभाव म8 वह
अपनी िनHन एवं शोिषत ि थित का कारण नही समझ पाता। वह इह8 Oयि\गत कारण/ से जोडता है। स+य का उसे
पता नही होता। वह िवचारधारा, धम5 आिद क िमjया चेतना से जड़ु ा होता है। एकता क अनपु ि थित ही उसे
कमजोर बनाती है और इस कारण वग5 संघष5 म8 उसक जीत क सभं ावना कम हो जाती है। ऐसा ही दास/ एवं
कृ षक/ के साथ हQआ परतु पंजू ीवाद क ि थित िभन है। इसने औ0ोगीकरण को बढ़ावा िदया है। लाख/ मजदरू
एक साथ काय5 कर रहे है। इससे उहे एक दसू रे का आभास िमलता है। अपने शोषण एवं अपने सहयोिगयो के
शोषण क समानता को वह पहचान जाते है। वे एकताब( होने लगते है और वंय म8 एक वग5 से वंय के िलए एक
वग5 म8 बदल जाते है। अब उह8 अपनी वग5 ि थित एवं अपने वग5 क ऐितहािसक भिू मका का अहसास हो जाता है।
अपनी भिू मका क इसी वीकृ ित का परणाम है Vांित के फल व.प सव5हारा अपना अिधनायकतZ थािपत
करता है एवं उ+पादन के साधन/ पर सामिू हक वािम+व थािपत कर िदया जाता है। इससे अिधशेष िकसी एक वग5
अथवा Oयि\ के पास नही जाता। वग5 िवभाजन समाX होने लगता है और अततः साHयवाद म8 जाकर वग5 क
अवधारणा समाX हो जाती है। अतर माZ इतना रहता है िक जहाँ आय िदन साHयवाद मे उ+पादन शि\य/ के कम
िवकिसत होने एवंम् ाकृ ितक बधं न/ के मजबतू होने के कारण मानव जीवन पर अनेक बंधन होते है वही
साHयवाद म8 आकर मानव ाकृ ितक बंधन/ से म\ ु हो जाता है। उसक सभी आवयकताएँ संतु> हो जाती है और
वह िववशता के लोक से वतंZता के लोक म8 पहQचँ जाता है। वह आ+म ेरत Oयवहार करने लगता है। इस कार
हम देखते है िक समाज का वग5 िवभाजन इितहास के एक िनिFत दौर का यथाथ5 है। वग5 न तो हमेशा से थे न ही
हमेशा रह8गे। ये इितहास क एक िनिFत अव था म8 उ+पन हQए तथा इितहास क एक िनिFत अव था म8 जाकर
समाX हो जाऐगं 8। उ+पादक शि\य/ के िवकास से जब उ+पादन उपभोग से अिधक हो गया तो इस अिधशेष ने वगm
को उ+पन कर िदया एवमं जब उ+पादन के साधन/ पर सामिू हक वािम+व हो जायेगा तो वग5 समाX हो जायेग8। पणू 5
समानता के इस समाज म8 ही वा तिवक वतZता िनिहत होगी।
वग5 िवभेद रिहत समाज के इस वtन ने पीिढ़य/ तक लोगो को माaस5वादी िवचार से जोड़ा है। पर यह =ि>कोण
Oयवहारक के पैमानो पर आलोिचत भी होता रहा है। लोग/ का कहना है िक हर समाज म8 WेणीVम िनधा5रत हो
जाते है। िनिFत .प से यह माना जा सकता है िक वत5मान समाज म8 सHपि& असमानता का मख
ु कारण है पर यह
मानना मिु कल है िक िनजी सHपि& क अनपु ि थित वाले समाज म8 पणू 5 समानता आ जाएगी। इजराइल के
िकब+ु ज पर अ3ययन करने वाले लोग/ ने भी कहा है िक पणू 5 समानता यहाँ भी नह9 है।
यहाँ माaस5 ने िजस साHयवादी ि थित क बात क है उसम8 रा1य को कोई अि त+व नह9 है। रा1य िवषयक अपने
=ि>कोण म8 माaस5 ने कहा है िक आधिु नक रा1य शोषण के उपकरण के अितर\ और कुछ नह9 है। माaस5 का
कहना है िक रा1य का काय5कारणी पजू ीपितय/ क सिमित माZ है। माaस5 के सहयोगी ऐजbस ने अपनी प ु तक
‘Origin of Family, Private Property and State’ म8 िलखा है िक रा1य समाज िवकास म8 एक िनिFत
अव था का उ+पाद है। यह अव था व तुतः आिदम साHयवाद से दासमल ू क समाज म8 संVमण क आव था है।
इस संVमण काल म8 जब अिधशेष क उपि थित के कारण वग5 िवभाजन कट हो गया तो सHपि&वान वग5 को
अपने िहत/ को बनाए रखने क िचतं ा हQई इस िचतं ा ने वग5 शोषण के एक उपकरण को जम िदया। रा1य यही वग5
शोषण का उपकरण है। इसक सहायता से अमीर वग5 अपना िहत साधता है दासमल ू क समाज म8 इस रा1य ने दास/
को िनयिZत रखने म8 दास मािलक/ क मदद क। सामतवाद म8 इसी कार इसने सामतं ो का और पँजू ी वाद म8
पँजू ीपितय/ का साथ िदया। इसने शोषण से लोग/ का 3यान हटाने के िलए सहमित का म पैदा िकया। इसके िलए

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इसने रा;<वाद एवम् रा;<ीयता आिद िवचारधाराओ ं का योग िकया। माaस5 का मानना है िक िवचारधारा स+य का
अहसास नह9 होने देती, यह एक कार क िमjया चेतना है। यहाँ िवचारधारण एवंम सहमित आिद बात/ से यह
िन;कष5 नही िनकाल लेना चािहए िक माaस5 के अनसु ार पँजू ीपित वग5 सहमित पैदा कर अपना िहत साधता है।
सहमित के आधार पर शोषण का =ि>कोण तो आगे चलकर CाHशी ने िदया। माaस5 तो बल योग पर ही अपनी
आ था रखता है। माaस5 का मानना है िक रा1य अपनी शि\ के ^ारा पँजू ीपित वग5 क मदद करता है। इसका काय5
उस शोषण परक अनबु ध को लागू करना है जो मजदरू को पँजू ीपित का गलु ाम बना देता है माaस5 का मानना है िक
जब Vांित के पFात सव5हारा का अिधनायकतZ थािपत होता है तब भी रा1य क शोषण परक भिू मका बनी
रहती है। अब वह मजदरू / के िहत म8 पँजु ीपितय/ का शोषण करता है। इस चरण म8 उ+पादन के साधन/ पर िजस
सामािजक वािम+व क बात होती है वह Oयवहारक Yप म8 रा1य के वािम+व म8 ही रहता है। इस व तुतः
माaस5वादी अवधारणा म8 रा1य क भिू मका तब तक बनी रहती है जब तक वग5 िवभाजन बना रहता है। इस
अवधारणा के अनसु ार जब साHयवादी चरण म8 जाकर वग5 िवभेद समाX हो जाएगा तभी रा1य लुX हो जाएगा।

17.7 अतरPत मJ
ू य का 1स2ांत
समािजक परवत5न के मा3यम से साHयवाद क थापना का ाथिमक िबदु सव5हारा Vांित है। माaस5 कहता है।
िक दिु नया के मजदरू एकजटु होकर पँजू ीवाद का नाश करे ग8 िकतु माaस5 इसे मजदरू / क इiछा पर नह9 छोड़ता वह
इसे पँजू ीवाद के िवकास का वभािवक परणाम बताता है। माaस5 कहता है िक पँजू ीवाद अपने ही अतिव5रोध/ के
तले टूटकर िबखर जाएगा। माaस5वादी िवचार म8 पँजू ीवाद क समािX को शोषण क अिनवाय5ता िदखाने का
िस(ांत अितर\ मbू य का िस(ातं है। अितर\ मbू य का माaस5 का यह िस(ात रकाडm ^ारा ितपािदत मbू य
के Wम िस(ात से भािवत है। यिद िकसी व तु के उ+पादन म8 4 घटं े लगे तो इसक कमत उस व तु से दोगनु ी
होगी िजसके उ+पादन म8 2 घटं े लगते है। माaस5 का कहना है िक पँजू ीवाद क िVया म8 जो कुछ भी मbू य
उ+पािदत होता है वह मजदरू के ^ारा होता है। िकतु मजदरू िजतना Wम करता है उतना मbू य नही ाX करता। उसे
िजतने घटं े का वेतन िमलता है उसके अितर\ भी कूछ काय5 करना पड़ता है। इसी अितर\ समय म8 िकए गये
काय5 ^ारा द+पािदत मbू य से पँजू ीपित का लाभ िनधा5रत होता है। उदाहरण के िलए यिद मजदरू 10 घटं े काय5 करे
तो उसे 7 धंटे का ही वेतन िमलता है। इस अितर\ 3 धंटे म8 उ+पािदत मbू य को पँजू ीपित अपने पास रख लेते है
और यही उसका लाभ है। पँजू ीपित का परू ा ढांचा और पँजू ीपित का सHपणू 5 लाभ इसी अितर\ मbू य के शोषण पर
िटका हQआ है। इसम8 मजदरू शोिषत होता है aय/िक वही मbू य का उ+पादन करता है और पँजू ीपित ही शोषक है
aयोिक वह िबना िकसी योगदान के लाभ ाX करता है।
माaस5 कहता है िक पँजू ीपित म8 अतिव5रोध िनिहत होता है। पँजू ीपित अिधक ये अिधक लाभ क आशा करता है।
इसिलए वह िजस अितर\ मbू य का शोषण करता है उसका पनु ः पजँू ी के .प म8 िनवेश करता है। इसके ^ारा नये
मजदरू / को काम पर लगाया जाता है जो और अिधक काय5 कर अिधक मbू य एवं अततः अिधक अितर\ मbू य
का उ+पादन करते है। इस िVया म8 उ+पादन म8 वृि( होती है। दसू री और पँजू ीवाद के िवकास के साथ-साथ
पँजू ीपितय/ के बीच ित पधा5 भी बढ़ती जाती है। इस ित पधा5 के फल व.प पँजू ीपित का लाभ घटता है aय/िक
ित पधा5 का परणाम कमत/ का कम होना है। लाभ के कम न होने देने के िलए मजदरू / का शोषण बढ़ा देते है।
इससे मजदरू / क ि थित खराब होती जाती है। समाज म8 वग5 िवभाजन भी प> हो रहा होता है। अतः एक ऐसी
ि थित आती है जब अिधसrं यक जनता मजदरू बन चक ु  होती है। पजँू ीपित अपना लाभ समाX नही कर सकता
अतः वाभािवक Yप से मजदरू गरीब होते जाते है और मजदरू / क बढ़ती संrया अततः सHपणू 5 समाज को गरीब

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बना देती है। माaस5 इसे सव5हाराकरण क िVया कहता है। पँजू ीवाद गित करते हQए अितउ+पादन क ि थित म8
पहQचँ जाता है। इस ि थित से उ0ोग धधे होने लगते है aय/िक और उ+पादन क ज.रत ही नह9 रह जाती अब
मजदरू बेकार होने लगते ऐसी ि थित म8 मजदरू / के पास Vांित म8 अितर\ और कोई चारा नह9 रह जाता। इस
कार माaस5 ने अितर\ मbू य के िस(ात के आधार पर यह िदखाने का यास िकया है िक पँजू ीवाद का अत
अवयHभावी है। अतः मजदरू Vांित को सफल ही होना है। पँजू ीपित अपना लाभ नही छोड़ सकता aय/िक
उ+पादन के साधन को खड़ा करने म8 उसक पँजू ी लगती है वह शोषण भी नह9 छोड़ सकता aय/िक यही शोषण
उसके लाभ का आधार है। माaस5 यह बताना चाहता है िक मजदरू Vांित पँजू ीवाद का ही परणाम है न िक मजदरू /
क इiछा का पँजू ीवाद के शोषण क इस अिनवाय5ता का आधार उ+पादन के साधन/ का िनजी वािम+व है। इसी
आधार पर माaस5 यह कहता है िक साHयवाद म8 शोषण को अनपु ि थित होगी, aय/िक उ+पादन के साधन/ पर
सामिू हक वािम+व होगा।
माaस5 पर ˆांसीसी समाजवाद का भाव जैसा िक लेिनन ने कहा है माaस5 के िवचारो पर ारंिभक “ांसीसी
समाजवाद का भाव भी देखा जा सकता है। ˆांस म8 1789 क Vांित के बाद से ही समाजवादी िवचार/ क
उ+पि& होने लगी थी। ˆांसीसी Vािं त म8 वतZता समानता और बधं +ु व का नारा िदया गया था। पर िजस कार
यरु ोप म8 औ0ोिगक Vांित को लागू िकया गया उसने इन मांगो को श@द माZ बनाकर छोड़ िदया। औ0ोिगक
Vांित के साथ साथ वे सभी बरु ाइयाँ भी सामने आती गई िजह8 इसके साथ जोड़ा जाता है। औ0ोगीकरण ने
अमीर/ तथा गरीब/ के बीच क खाई को बढ़ाया। इसी के िव.( ितVया व.प समाजवादी िवचार/ का जम
हQआ। माaस5 पेरस म8 अपने वास के दौरान इन िवचार/ के संपक5 म8 आया। स8ट साईमन, चाbस5 फूरए तथा
एिटयाने कै बेट जैसे ारिभक समाजवादीय/ तथा दू / जैसे सामािजक अराजकतावािदय/ के भाव के कारण माaस5
ने यह मानना श. ु कर िदया िक सामािजक सम याओ ं क वजह पँजू ीवाद वंय है। पँजू ीवाद म8 शोषण अतंिन5िहत
है। यरू ोप के इन सामाजवािदय/ ने यह माना िक औ0ोिगक समाज के आगमन से समाज म8 कई कार क सम याएँ
सामने आई। सामािजक सम याओ ं को इस नजर से देखने क ेरणा माaस5 ने उही से पाई। हालॉिक माaस5 ने उन
लोग/ क तरह यह नह9 माना िक पँजू ीपितय/ को ेरणा देकर पँजू ीवाद क सम या का समाधान हो सकता है। पर
यह भी सच है िक उह9 क ेरणा से माaस5 ने इन सम याओ ं को पहचानना श. ु िकया। यह अलग बात है िक
माaस5 ने समाधान अलग िदया। वग5 क अवधारण भी माaस5 ने इही ˆांसीसी समाजवािदय/ से ाX क तथा
सामािजक समानता का िवचार भी माaस5 ने उही से ाX िकया।

17.8 युवा माPस)


माaस5 को िव] ने 1848 म8 कािशत कHयिू न> मेिनफे ट/ से जाना। वग5क सघं ष5 तथा सव5हारा Vांित के िवचार ही
माaस5 क पहचान का आधार बने। हालािक 1844 म8 ही माaस5 ने एक प ु तक के लेखन का यास िकया था पर
यह प ु तक छप नही पाई तथा 1920 के दशक तक िव] को इस प ु तक क जानकारी नह9 थी। यह मल ू तः जम5न
भाषा म8 थी तथा 30 के दशक के ारंभ म8 इसे अCं ेजी भाषा म8 कािशत िकया गया तथा Economic and
Philosophical Manuscript of 1844 नाम िदया गया। इस प ु तक म8 िदए गए िवचार Communist
manifesto एंव बाद क प ु तक/ म8 िदए गये िवचार/ से काफ िभन थे। इस दौर म8 माaस5 कुछ हद तक
आदश5वादी था। यवु ाव था के कारण उसम8 Oयवहारक अनभु व क कुछ कमी थी। वह दश5न तथा हीगल के
िवचार/ से भािवत था। इस दौर के माaस5 के िवचार/ को देखकर उसे Vांितकारी कहने क अपे:ा मानवतावादी

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कहना अिधक उिचत होगा। यह माaस5 उस माaस5 से काफ िभन था िजसे अब तक िव] ने जाना था अतः इसे
त.ण माaस5 का नाम िदया गया। त.ण माaस5 मानव वतZता क बात करता है। यह महससू करता है िक मन;ु य
क वतZता न> हो गई िकतु यह इसका कारण िकसी वग5 िवभेद म8 नह9 ढुँढता। यह मानना है िक पजँू ीवाद के
कारण मन;ु य अलगाव क एक िVया से गजु र रहा है तथा यह अलगाव ही मन;ु य क वतंZता का नाश करता है।
अलगाव क यह िVया चार तर/ पर चलती है।
1. उ+पादन के तर पर
2. कृ ित के तर पर
3. समाज के तर पर
4. वंय के तर पर
1. उ+पादन के तर पर मन;ु य का अलगाव उ+पादन िVया से उसे अलग कर देता है। पँजू ीवाद म8 उ+पादन
के pीकृ त होता है एवं Wम का िवभाजन कर िदया जाता हL यहाँ उ+पादन कई लोग/ के सिHमिलत यास का
परणाम होता है। जबिक पँजू ीवादी Oयव था के पहले क सहायता से करता था। तथा एक व तु का उ+पादन एक
कामगार वयं एवं अपने परवार के दसू रे सद य/ क सहायता से करता था। उ+पादन क सHपणू त5 ा से जड़ु ा होने के
कारण उसे रचना+मक सतिु > िमलती थी िकतु पँजू ीवाद म8 Wम िवभाजन के कारण यह उ+पािदत व तु का एक
छोटा सा िह सा ही बना पाता है, अतः रचना+मक सतुि> का अनभु व नह9 कर पाता। दसू री ओर पजँू ीवाद के
पहले उ+पादन थानीय उपभोग के िलए होता था, अतः एक मजदरू उ+पािदत व तु को अपने आस-पास ही पाता
था लेिकन पँजू ीवाद म8 उ+पािदत व तु दरू दरू तक जाती है। इन सभी कारण/ से मन;ु य उ+पादन िVया और अपने
उ+पाद से अलग हो जाता है।
2. कृ ित के तर पर माaस5 कहता है िक पँजू ीवाद म8 मन;ु य एक कृ िZम वातावरण म8 काय5 करता है। चार दीवार/
और एक छत के नीचे कै द इस Oयि\ को यह पता नही होता िक बाहर aया हो रहा है। पँजू ीवादी उ+पादन िVया
के पहले क ि थितय/ म8 मन;ु य कृ ित गोद म8 काय5 करता था। वह खल ु ी हवा म8 सांस ले सकता था, वृ:/ क छांव
म8 आराम कर सकता था। लेिकन पजँू ीवाद ने उसे कृ ित से अलग कर िदया।
3. समाज के तर पर माaस5 कहता है िक पँजू ीवाद ित पधा5 पर िटका है। यहाँ एक कामगार दसू रे कामगार से
ित पधा5 करता है। पहले इनके बीच सहयोग था। सभी अपने समदु ाय से जडु े थे। जब कोई एक Oयि\ बीमार हो
जाता था तो दसू रे उसक मदद करते थे। पर पँजू ीवाद म8 यिद एक मजदरू बीमार होता है तो दसू रा मजदरू उसक
मदद करने क जगह उसक नौकरी छीनने म8 लग जाते है। इस कार मन;ु य का वाथ5 उसे समाज से अलग कर
देता है।
4. वंय से अलगाव - माaस5 कहता है िक उ+पादन िVया समाज कृ ित आिद से अलगाव के कारण मन;ु य के
भीतर एक पाप बोध घर करने लगता है यह पाप बोध उसे अलगाव के उiचतम तर तक ले जाता है और वह
वंय से अलग हो जाता है।

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त.ण माaस5 क मrु य सम या मन;ु य का यही परायापन अथवा अलगाव है। िकतु इस माaस5 के पास इस सम या
का कोई समाधान नह9 है। वह कहता है िक ित पधा5 को हटाकर सहयोग को अपनाया जाना चािहए, कृ िZमता
को हटाकर ाकृ ितक वातावरण म8 लौटना चािहए। िकतु यह कै से होगा यह प> नह9 है। इह9 कारण/ से त.ण
माaस5 आदश5वादी तीत होता है, िकतु यह भी सच है िक बीसव9 सदी के माaस5 वािदय/ को िजनम8 नवमाaस5
वािदय/ का मख
ु थान है, अगर माaस5 क िकसी एक प ु तक ने सवा5िधक भािवत िकया तो वह यही प ु तक है।

अAयास B
1.ˆांस म8 क Vांित िकस सन म8 हQई ?
2.दिु नया के मजदरू एकजटु होकर िकसने नारा िदया है ?
3. अब तक का इितहास वग5 सघं ष5 का इितहास है िकसने कहा है ?
4. माaस5 क मृ+यु कहाँ हQई थी ?
5. माaस5 को िसि( िदलाने म8 िकस प ु तक का योगदान मख
ु है ?

17.9 सारांश
उपरो\ अ3ययन के उपरात हम यह समझ सकते है िक माaस5 ऐसे िस(ातकार के .प म8 जाना जाता है िजसने
समाज िव#ान/ म8 आिथ5क Oयाrया को मह+वपणू 5 थान िदलाया। इसके पहले सामािजक Oयाrया के िलए
धािम5क, राजनीितक, दाश5िनक आिद प(ितय/ का सहारा िलया जाता था। माaस5 कहता है िक एक समाज वैसा ही
होता है जैसी उसक उ+पादन रीित होती है। यह ज.र कहा जाता है िक आिथ5क त+व/ पर हद से अिधक बल देकर
माaस5 का िस(ात एक प:ीय हो जाता है िकतु इस तjय को भी वीकार िकया जाना चािहए, िक िविभन
सामािजक िVयाओ ं म8 आिथ5क िVया का भी मह+वपणू 5 थान है और इसे मह+वपणू 5 बनाकर माaस5 ने
सामािजक Oयव था क Oयाrया को समु नत ही बनाया है। दसू री और माaस5 पर यह भी आरोप लगाया जाता है
िक ऐितहािसक भौितकवाद का उसका िस(ात िनयितवाद को बढ़ावा देता है एवं मानव चेतना तथा मानव इiछा
के मह+व को शू य कर देता है। कुछ हद तक माaस5 म8 िनयितवाद का आभाष िमलता है इसे माना जाना चािहए,
िकतु दसू री और समतामलू क समाज क थापना एवं शोषण रिहत समाज का वtन देकर माaस5 ने मानवतावाद
को बढ़ावा ही िदया िवशेष Yप से यवु ा माaस5 के िवचार/ म8 इस मानवतावादी =ि>कोण को प> Yप से देखा जा
सकता है।
माaस5 ने आने वाले समाज के सदभ5 म8 जो अपे:ाएं रख9 थी, उसे इितहास ने गलत िस( कर िदया। माaस5 के
अनसु ार Vांित िटेन म8 होनी थी िकतु .स म8 जाकर हQयी। चीन म8 तो Vांित क तो कोई सHभावना ही नह9 थी,
जबिक ऐसा हQआ। माओ ं ने एक कृ षक समाज म8 Vांित क संभावना को सच कर िदखाया। अतः भिव;य के
सदभ5 म8 माaस5 के अनमु ान गलत ही िस( हQए। माaस5 ने यह भी कहा था िक लोकतािZक मा3यम से समाज म8
बदलाव नही लाए जा सकते िकतु 20व9 सदी म8 लोकतZ क सव5 वीकृ ित एवं कbयाणकारी रा1य के हमारे
अनभु व ने इस बात को गलत ही िस( िकया। सव5हारा के अिधनायकतZ के संदभ5 म8 माaस5 का िवचार भी परू े
िव] म8 आलोचना का पाZ रहा है। टाट क ने यह कहा था िक सव5हारा का अिधनायकतZ जो लोकतािZक
के pवाद के िस(ात पर आधारत है अततः तानाशाही म8 ही बदल जाता है। .स के अनभु व एवं टािलन क

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काय5 प(ित इस बात को सही िस( करती है। सामािजक शि\ के सदभ5 म8 भी माaस5 का िवचार आलोचना का
पाZ बनता रहा है। माaस5 ने यह कहा था। िक िकसी समाज म8 वही शि\शाली होता है िजसके पास आिथ5क शि\
होती है। िकतु मैaस वेबर ने अपने िस(ात/ म8 यह सािबत िकया िक आिथ5क शि\ सामािजक शि\ का के वल
एक भाग है। सामािजक ि थित एवं राजनैितक शि\ भी एक Oयि\ को शि\शाली बना सकते हL। रा1य के वग5
चरZ के संदभ5 म8 माaस5 का िवचार भी िववाद/ म8 रहा है। लूई बोनापाट5 के शासन के िवषय म8 माaस5 ने वतः यह
माना था िक यह शासन वग5 िनरप: था। यिद रा1य वग5 शोषण के उपकरण के अितर\ और कुछ नह9 है तो ऐसा
कै से सHभव था। भारतीय रा1य के सदभ5 म8 हHजा अलवी तथा अनपु म सेन का अ3ययन भी इसे वग5 घोिषत करता
है। अगर माaस5 के िवचार/ पर उठने वाले िववाद/ को देखा जाए तो हम पाते है िक माaस5 के बाद आने वाले हस
िस(ातकार ने माaस5 क कुछ न कुछ बात/ को नकारा तो साथ ही कुछ न कुछ नया जोड़ा भी। अतः माaस5 क
आलोचना के पया5X िबदु िमल ही जाते है। पर माaस5 का मह+व इस बात म8 है िक एक ऐसे समाज म8 जहाँ शोषण
था, भेदभाव था, इसने लोग/ को समता मल ु क समाज का वtन िदया तथा पीिढ़य/ को समािजक बदलाव के िलए
ेरत िकया यह कमोबेश माaस5 का ही दबाव था िजसके कारण उदारवाद को अपना रा ता बदलना पड़ा तथा
नकारा+मक से सकारा+मक व.प म8 आना पड़ा। हाँलािक काल5 पॉवर ने म\ ु समाज के दु मन/ म8 माaस5 को भी
रखा पर माaस5 का िस(ात तो वा तिवक वतंZता क ही तलाश कर रहा था। औ0ोिगक पँजू ीवाद क सAयता से
वतंZता क अनपु ि थित को ही माaस5 दरू करना चाहता था। वा तिवक वतंZता क इसी आशा ने पीिढ़य/ को
माaस5वादी चेतना म8 िशि:त िकया।

17.10 श!दावल$
परायापन अथवा अलगाव- िकसी Oयि\ के ^ारा अपने समाज,समहू , काय5 थल, अपने Wम के उ+पाद और
अतं तः वयं से सHबध का न होना |
सव5हारा – उ+पादन के वािमय/ के अितर\ अय सभी सामिू हक .प से |
ऐितहािसक भौितकवाद - ऐितहािसक भौितकवाद व तुतः इितहास क भौितकवादी Oयाrया का यास है

17.11 अ&यास 
न' के उ तर
1. 1789 2. माaस5 3. माaस5 4..लंदन म8 5.Communist Manifesto

17.12 सदभ) *थ सच


ू ी
1.राजनीितक िचतं न क .परे खा - ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, थम सं करण-1996
2.आधिु नक राजनीितक िवचार/ का इितहास, चतुथ5 भाग-1योित साद सदू - के 0 नाथ एdड कHपनी, मेरठ, 1994-
95
3.राजनीित कोश- डॉ0 सभु ाष कयप, िव] काश गXु , िहदी मा3यम काया5वय िनदेशालय, िदbली
िव]िव0ालय, थम स ं करण-1998

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ु िविवालय 261
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
4.राजनीित िस(ांत क .परे खा- ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, पंचम सं करण-2001
5.राजनीित िव#ान िव]कोश- ओ0पी0 गाबा- नेशनल पि@लिशगं हाउस, दरयागंज, िदbली, थम सं करण-
1998

17.13 सहायक /उपयोगी पा+य साम*ी


1. पाFा+य राजनीितक िचतं न – पी.डी. शमा5
2.पाFा+य राजनीितक िचतं न – जीवन मेहता

17.14 नबंधा मक 

1.माaस5 के ^^ं ा+मक भौितकवाद क Oयाrया किजये |
2. माaस5 के एितहािसक भौितकवाद क िववेचना किजये |
3. माaस5 के वग5 सघं ष5 सबं धं ी िवचार/ क Oयाrया किजये |

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

-18 : ह4 #56


इकाई क$ Jपरे खा
18.1 "तावना
18.2 उ4े5य
18.3 महामा गाधं ी
18.3.1 महामा गाधं ी का जीवन पLरचय
18.3.2 महामा गांधी के सामािजक एंव राजनीितक िवचार
18.3.3 महामा गांधी एवं रा,-ीय आदोलन
18.3.4 महामा गांधी एवं नारी चेतना
18.3.5 महामा गाधं ी एवं सयाDह आदोलन
18.3.6 गाधं ीवाद और सा;मवाद या माaसवाद के नैितक आधार
18.3.7 महामा गांधी क$ 21व) शताAदी म( "ासंिगकता
15.3.8 गांधी जी का सव^दय एवं -टीिशप क$ अवधारणा
15.3.9 गांधी जी का सयाDह स;बधी अवधारणा-
15.3.10. गांधी जी क$ सय एवं अिहसं ा क$ अवधारणा
18.4 सारांश
18.5 शAदावली
18.6 अBयास "C9 के उ:र
18.7 सदभं  Dथ
18.8 सहायक/उपयोगी पाठ्य सामDी
18.9 िनबधं ामक "C

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18.1 तावना
मोहनदास करमचp गांधी िजह8 सHपणू 5 िव] भारत के रा;<िपता महा+मा गांधी के .प म8 जानता है। महा+मा गांधी
िवश(ु दाश5िनक नही थे िफर भी Oयवहारक जीवन म8 आदोलन के जो साधन और िवचार अपनाये उनम8 भारतीय
दश5न को लेकर पाFात् िचतन के कई िवचारक का जैस-े टॉल टाय, थोरो आिद का भाव था। गांधी जी
परHपरागत अथk म8 न राजनीितक दाश5िनक थे, न ही ऐसा होने का उह/ने दावा िकया।
गांधी जी दाश5िनक से अलग एक िVयाशील Oयि\ थे परतु उह/ने समाज और रा1य म8 मल ू भतू परवत5न लाने के
िलए अनेक मह+वपणू 5 यास िकये और शि\शाली साधन/ का िवकास िकया िजससे राजनीितक दश5न म8 नवीन
मायताओ ं का सZू पात हQआ और इह9 मायताओ ं के आधार पर गांधीवादी िवचार धारा का िवकास हQआ। गांधी
वाद एक ऐसी िवचारधारा है िजसके आधारभतू िस(ात है-स+य और अिहसं ा ये िस(ात उसक आ+मा के तीक
हL िजनके चार/ तरफ गांधीवाद .पी शरीर का ताना-बाना बनु ा गया है।
महा+मा गांधी ने सदैव अपने को िव] का नागरक समझा और उस .प म8 अपने कायk को अिधक मह+व िदया।
दि:ण अˆका तथा भारत क राजनीित उनक योगशाला थी िजसम8 उहोन8 अपने स+य अिहसं ा सHबधी
िस(ात का परी:ण िकया। गांधी के संदश े क साथ5कता पर बल देना आवयक है। इस यगु म8 जब सामिू हक
संहार ने शि\शाली वा अh/ ने मानवीय Oयव था को बरु ी तरह झकझोर िदया है, गांधी जी मानवीय मbू य/ का
संदशे देते हL। आधिु नक जगत के राजनीितक आदश5 माbथस, डािब5न और नी+से के इस िस(ात से िनधा5रत हो
रहे हL िक जीवन-शाhीय िनयम/ के अनसु ार बलशाली क दबु ल 5 / पर िवजय ाकृ ितक और आवयक है। यही
कारण है िक आधिु नक बिु (वादी के िलए ारHभ म8 गांधी जी के उस संदशे को अगं ीकार करना किठन हो जाता है।
aय/िक उनका संदश े वेदाितय/, बौ(/, टाइक/ और ईसाइय/ क इस धारणा का सार है िक अत म8 िवजय स+य
क ही होती है न िक सबसे अिधक बलशाली क। इस यगु म8 जब वीभ+सतापणू 5 आतंक, गोपनीयता क वृि&
तथा जाससू ी पराकाdठा पर पहQचं गयी हL, गांधी जी ^ारा ितपािदत स+य और सज5ना+मकता अिहसं ा का संदश े
अित परु ातन जान पड़ता है। लेिकन वा तिवकता यही है िक आज िबना संवाद और अ3या+म के हम उदारीकरण
के इस यगु म8 अपने को थािपत नही कर सकते।
दिु नया क राजनीित म8 संभावतः महा+मा गांधी ही एक ऐसे अपवाद थे जो आजादी के क&ा5-धता5 होकर भी
आजादी के बाद भी स&ा से दरू रहे। गांधी जी का Oयि\+व दिु नया के सभी राजनीितय/ से अलग है। कारण उह/ने
जहां स&ा क राजनीित से अपने को पृथक रखा, वह9 दिु नया का हर राजनेता स&ा के पीछे पागल बना रहा। गांधी
जी Oयव था चाहते थे इसिलए उह/ने राजनीित म8 नीित को मख ु ता दी। स+य, अिहसं ा असहयोग आिद उह/ने
अh बनाए, िजनके सHबध म8 अनेक ाितय/ ारHभ हQई, लेिकन बाद म8 हर Oयि\ गांधी- दश5न का कायल हो
गया।
बीसव9 शदी म8 दिु नया क राजनीित को काल5 माaस5 और महा+मा गांधी ने समान .प से भािवत और उ(ेिलत
िकया। इसका मrु य कारण यह था िक दोन/ ने अपने जीवन से एक सौ साल आगे के काल को अपने सामने रखा।
यही कारण है िक झझं ावत/ के बावजदू आज या कल न तो माaस5 मर8 गे और न गांधी क मौत होगी।

उराखंड म
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18.2 उे

इस इकाई के अतग5त महा+मा गांधी के जीवन से सHबिधत सभी पहलओ ु ं पर िव तार पवू 5क िववेचन िकया
जायेगा। महा+मा गांधी का जीवन परचय महा+मा गांधी का रा;<ीय आदोलन म8 भिू मका, गांधी जी के सामािजक
एवं राजनीितक िवचार aया थे। उनके िवचार/ क वत5मान वैि]क सदं भ5 म8 aया ासिं गकता है। aया गाधं ी जी के
स+य एवं अिहसं ा का िस(ात आज के इस मारक यगु म8 ासिं गक है िक नही? आिद बात/ का िव तार पवू 5क
िववेचन िकया जायेगा, गांधी जी के िवचार/ क गहरी समझ वत5मान आनिु धक यगु म8 +येक नागरक के िलए
अित आवयक हो जाती है। अतः आप इस इकाई के सHयक एवं गहन अ3ययन के पFात आपः-
1.गांधी जी के मह+व को समझ सक8 गे।
2.गांधी जी के साि+वक जीवन के िवषय म8 जान सक8 गे।
3.गांधीवाद aया है इसक समझ हो सके गी।
4.गांधी जी का रा;<ीय आदोलन एवं देश क आजादी म8 aया योगदान था यह जान सक8 गे।
5.गांधी जी के जीवन क aया उपलि@धयां रही हL और उह/ने समाज एवं देश को aया िदया है यह भी आप समझ
सक8 गे।
6.गांधी जी 21व9 शता@दी म8 aया ासंिगक है। इससे भली-भांित परिचत हो सक8 गे।

उराखंड म
ु िविवालय 265
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

18.3 महा मा गांधी


इस इकाई के अत5गत हम महा+मा गांधी का जीवन परचय, महा+मा गांधी के सामािजक एवं राजनीितक िवचार,
गांधी एवं रा;<ीय आदोलन, गांधी जी एवं नारी चेतना, तथा रा;< िनमा5ण म8 गांधी जी का योगदान आिद िवषय पर
चचा5 कर8 गे। महा+मा गांधी का माaस5 से तल
ु ना+मक अ3ययन एवं गांधी जी का 21व9 सदी म8 उनक वैि]क
ांसिगकता तथा उनक उपलि@धयां तथा देन आिद िवषय पर िव तार पवू 5क अ3ययन कर8 गे।

18.3.1 महामा गांधी का जीवन पLरचय


महा+मा गांधी एक महान् यगु वत5क महापYु ष थे। उनके जीवन का एक-एक पल लोकिहत और रा;< के िनमा5ण के
िलए संपणू .
5 प से समिप5त था। य0िप उनका जम 02 अaटूबर 1869 को गजु रात के पोरबदर नामक थान पर
हQआ था िकतु अपने समिप5त सादा जीवन और अनक ु रणीय कायk के परणाम व.प गांधी जी माZ गजु रात और
पोरबदर के ही नह9 अिपतु सHपणू 5 भारत के ि य और सHपणू 5 िव] के अनक ु रणीय आदश5 के तीक िस( हो गये।
उनके गणु अपने पवू 5पYु ष/ ^ारा िवरासत म8 ाX हQए थे। गांधी वंश म8 उ&मचp नामक एक महापYु ष उस समय के
सौरा;< नामक रा1य के मंZी थे। उनके छः पZु / म8 वीरोिचत िवचार/ से य\ ु , स+यवादी और सभी को अपने गणु /
और कायk से भािवत करने वाले करमचp सबसे अिधक िस( हो गये। उन करमचp के य0िप चार पि+नयां
थ9 िकतु पतु ली नामक उनक प+नी सभी गणु / से य\ ु और उ&म वभाव से य\ ु एक आदश5 गृिहणी थ9। उह9 ने
गांधी जी को जम िदया िजनका नाम परHपरानसु ार मोहनदास करमचp गांधी हQआ। यही आगे चलकर महा+मा
गांधी के .प म8 िस( हो गये।
गांधी अपने शरीर और सखु क कभी िचता नह9 िकया। सभी के कbयाण के िलए उह/ने अपना जीवन सदा के
िलए समिप5त कर िदया। अधोिलिखत प0 के भाव उन गांधी जी के सदं भ5 म8 पणू त5 ः संगत हL-
परोपकारै किधयः वसख
ु ाय गत पृहाः।
परोपकाराव जायते महा+मान/ महा‹ताः।।-(सं कृ त म\
ु ावली पृJ-12)
ऐसे महा‹ती महा+मा के रोम-रोम के अतग5त उनके माता और िपता के गणु / का अिमत एवं अिमट भाव असंrय
गणु उनके दबु ल
5 शरीर म8 िव0मान रहते थे। िनभfकता और सहनशीलता उनम8 भरी पड़ी थी। मतलब भर के काम
चलाऊ माZ वh धारण कर पद-याZा करना तथा सव5धम5 म8 समभाव थािपत करना उनके जीवन का िवशेष लsय
था। वदेश व तुओ ं और वोपािज5त व तुओ ं के ित उनका िवशेष लगाव हQआ करता था। अपने जीवन को
यथाथ5 बनाने, ि थर ित# होने और दरpता तथा दासता से पीिड़त जनता को मिु \ िदलाने के उेय से ही उह/ने
अपना जम वीकार िकया था।

18.3.2 महामा गांधी के सामािजक एवं राजनीितक िवचार


उनीसव9 तथा बीसव9 शता@दी के लगभग सभी भारतीय िचतक/ एवं महापYु ष/ का िचतन जीवन के सभी :ेZ/
से सHब( रहा है। भारत क राजनीितक पराधीनता के फल व.प देश के धािम5क, सां कृ ितक तथा आिथ5क जीवन
पर ितकूल भाव पड़ने के कारण, वतंZता आदोलन छे ड़ने के साथ ही देश के सामािजक तथा आिथ5क जीवन
म8 भी सधु ार क आवयकता अनभु व क गयी, के वल राजनीितक वतंZता का कोई मह+व नह9 था। गांधी जी से

उराखंड म
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पवू 5 राजा राममोहन राय, वामी दयानद सर वती, िववेकानद, अरिवद, वामी रामकृ ;ण परमहसं , लोकमाय
ितलक, आिद अनेक सामािजक सधु ारक हो चक ु े थे। राजा राममोहन राय ^ारा रोपी गयी भारतीय पनु जा5गरण क
बेल िजसे पनपाने म8 वामी दयानद, िववेकानद आिद ने योगदान िदया था जो गांधी जी के य+न/ से परपaव
हQई। राजा राममोहन राय ने नारी उ(ार एवं िश:ा का उ+थान आरHभ िकया। वामी दयानद ने अ पृयता, शpू व
नारी िश:ा, व क भावना तथा धािम5क अधं िव]ास/ एवं .िढ़य/ के +याग का मंZ तथा वैिदक सAयता क र:ा
का आान िकया। वामी िववेकानद ने भारतीय आ3याि+मकता क र:ा, पाFा+य भौितक सAयता के अनक ु रण
न करने का परामश5 और सव5धम5 समवय, िव]-बध+ु व एवं सेवा का उपदेश तथा भारत मे सव5 थम बल
वािभमान क भावना उ+पन क। सधु ारक/ ने बाल-िववाह, बहQ-िववाह, कया-वध, बलात वैधOय व सती था
समाX करने का यास िकया। िhय/ व शpु / के उ+थान के माग5 क बाधाओ,ं अधिव]ास/ एवं चिलत .िढ़य/
के िव.( उह/ने जोरदार आदोलन छे ड़ा। महा+मा गांधी के जीवन, िचतन, िश:ाओ ं और कायk म8 भारतीय
पनु जा5गरण अपने चरमो+कष5 को ाX हQआ। गांधी जी के अAयदु य से राजनीितक और सामािजक पर=य बदल
गया। अCं ेजी िश:ा ाX अिभजन क =ि> म8 अिहसं ा, औ0ोगीकरण, िश:ा, यौन और िववाह सHबधी उनके
िवचार असंगत (िवल:ण) और परु ाने ढर™ के तीक होते थे। परतु उनके िनधन के लHबे समय के बाद वे अlुत
.प से आधिु नक तीत होने लगे हL। अbपिवकिसत िव] क सामािजक-आिथ5क सम याओ ं के सवn:ण के दौरान
गु नार िमडा5ल ने गांधी जी को सम त Oयवहारक :ेZ/ म8 एक ब( ु उदारवादी घोिषत िकया।
आज क राजनीितक परि थित म8 नैितकता का सव5था अभाव है। अिहसं ा तथा स+य के िस(ात/ क चचा5 करना
मख
ू 5ता समझी जाती है। सामायतः शासनतंZ म8 >ाचार OयाX है। समाज का राजनीितक ढांचा नैितकता िवहीन हो
जाय यह गंभीर िचता का िवषय है। अतः राजनीितक संदभk पर =ि>पात करना आवयक है।
गांधी जी ने िवके pीकरण क बात कह9 थी और उसका कुछ समावेश संिवधान म8 हQआ था। रा1य/ को सिं वधान म8
बहQत से अिधकार िदये गये थे। उदाहरण के िलए िश:ा रा1य का िवषय थी िकतु 1976 म8 उसे समवतf सचू ी म8
ला िदया गया। इसका अथ5 यह हQआ िक िश:ा के ऊपर के pीय िनयZं ण बढ़ गया। वैसे िश:ा म8 िव]िव0ालय/ पर
िनयZं ण उसी के pीयकरण क िVया के अगं थे। सारे देश के िलए एक .प पाइ्यVम बनाना और चलाना उसी
के pीकरण क िVया का एक व.प है।
गांधी जी मrु यतः Oयि\वादी थे और Oयि\ के ित उनक अपार आ था थी, य0िप परू े समाज और िव] को
उह/ने अपने सक एक .प कर रखा था। वे वा तव म8 Oयि\ और समाज म8 कोई ^( या भेद नह9 मानते थे। िकतु
आज का यगु समाजीकरण का यगु है। समाज के सामने Oयि\ का कोई अि त+व नह9 है। समाजवाद के भाव म8
उ+पादन और िवतरण के अनेक :ेZ/ का समाजीकरण हो चक ु ा है। बLक/ का रा;<ीयकरण समाजीकरण क िVया
का ही एक अगं हL। Oयि\ क पजंू ी, सHपि& और सामाय जीवन पर रा1य का िनयZं ण बढ़ता जा रहा है। जहां
पंजू ीपितय/ के शोषण क सम या थी वहां अब रा1य Oयि\ का शोषण कर रहा है।
वत5मान समय म8 परू ा शासनतंZ > चनु ाव क िVया पर आधारत है। करोड़/ .पये चनु ाव म8 खच5 करके जो
पािट5यां गलत तरीक/ से स&ा म8 आती हL वे उन लोग/ के िनयंZण म8 रहती हL जो चनु ाव म8 उह8 धन देते हL। आज
राजनीित जनिहत के बजाय वाथ5 और लोक-सेवा के बजाय लोकशोषण पर के िpत है। पदलोलुपता का
बोलबाला है और कोई काम िबना घसू के नह9 हो सकता है। इस राजनीित का यिद कोई िवकbप नह9 सोचा जाता
है तो नागरक जीवन सरु ि:त और सख
ु ी रहना असंभव है।

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गांधी जी के जीवन का अिं तम चरण ि^तीय महाय( ु के िवषा\ वातावरण और उसके दरू गामी भाव/ से
आiछािदत था। आज इतने वष5 के बाद य(ु के बादल िफर गरज रहे हL। गांधी जी ने जो अिहसं ा का पाठ पढ़ाया था
वह संकुिचत रा;<वाद पर नह9 बिbक सम त मानवता के कbयाण क भावना पर आधारत था। आज रा;</ के
बीच म8 पर पर अिव]ास, घृणा और िव^ेष क भावना अिधक बलवती है। इसके अितर\ पंजू ीवाद और
साuा1यवाद के शोषण के जो तरीके पहले थे वे आज अिधक परमािज5त और iछत .प से भावी हL।
गांधी जी के राजनीितक दश5न म8 य(
ु का कोई थान नह9 था। हर बात म8 समझौते, सlावना और ‡दय परवत5न से
सलु झाना उनके दश5न का मलू मZं था। B यह है िक अतरा5;<ीय :ेZ म8 िकस राजनीित को अपनाना है-य(
ु क
राजनीित अथवा शाित क? और आज यह B िजतना 1वलतं है और सदं भ5 िजतना साथ5क है उतना कदािचत्
मानव-जीवन के इितहास म8 कभी नह9 था।

18.3.3 महामा गांधी एवं रा,-ीय आदोलन


दि:ण अˆका से 1918 म8 भारत आने के बाद गांधी जी ने गजु रात ात के अहमदाबाद िजले म8 साबरमती नदी
के िकनारे साबरमती आWम क थापना क। गांधी जी ने गोपाल कृ ;ण गोखले को अपना राजनीितक ग. ु मानकर
उह9 के िनदnश पर भारतीय राजनीित का अ3ययन ारHभ िकया। 1917 ई0 के चHपारन स+याCह के अतग5त गांधी
ने िबहार के चHपारन िजले म8 नील क खेती करने वाले िकसान/ पर यरू ोपीय मािलक/ ^ारा िकये जा रहे अ+याचार/
के िखलाफ आदोलन चलाया िजसम8 उह8 सफलता िमली। इस आदोलन म8 गांधी जी का सहयोग मज.ल हक,
आचाय5 कृ पलानी एवं महादेव देसाई ने िकया।आदोलन के इह9 िदन/ म8 रवीp नाथ टैगोर ने सव5 थम गांधी जी
को महा+मा क उपािध दी तथा बापू क उपािध सभु ाष चp बोस ने दी।
खेड़ा म8 िकसान/ पर अिधक कर का बोझ सरकार ^ारा डाले जाने पर गांधी जी ने यहां के िकसान/ का नेत+ृ व
िकया। उह/ने 1918 ई0 म8 खेड़ा म8 कर नह9 दो आदोलन चलाया। साथ ही स+याCह का योग िकया िजसके
परणाम व.प उह8 कर क दर कम करवाने म8 सफलता िमली। 1918 ई0 म8 गांधी जी ने अहमदाबाद के िमल
मजदरू / क वेतनवृि( के िलए आमरण अनशन िकया। अनशन के चौथे िदन ही सरकार मजदरू / क मागं मानने के
िलए िववश हो गयी।
गांधी जी चंिू क गोखले से भािवत थे, इसिलए उह/ने भारतीय राजनीित म8 ििटश सरकार के सहयोगी के .प म8
वेश िकया। उह/ने थम िव] य( ु के समय ििटश सरकार क अभतू पवू 5 सहायता क िजससे खश ु होकर
सरकार ने उह8 के सर-ए-िहद सHमान से सHमािनत िकया। परतु शीŽ ही गांधी जी िवदेशी सरकार से िनराश होने
लगे, फल व.प वे सरकार के सबसे बड़े असहयोगी बन गये। गांधी जी को असहयोगी बनाने के िलए उ&रदायी
कारक/ म8 मह+वपणू 5 थे-रौलट ऐaट, जिलयावाला बाग ह+याकाdड, िखलाफत सम या आिद। गांधी जी ने 1919
ई0 म8 िखलाफत आदोलन का नेत+ृ व िकया। उह/ने अगं ेजी को शैतानी लोग कहा और 1920-22 ई0 तक
असहयोग आदोलन चलाया। 1920 ई0 म8 यंग इिdडया एवं नवजीवन समाचार पZ/ क थापना क। उह/ने
1924 ई0 के बेलगांव म8 हQए काCं ेस अिधवेशन क अ3य:ता क। 1930 ई0 म8 गांधी जी ने सिवनय अव#ा
आदोलन के अतं Cत 6 अ ैल 1930 को 78 अनयु ाियय/ के साथ नमक काननू तोड़ने के िलए डाdडी समpु तट
के िलए याZा आरHभ क। 4 मई को गांधी जी को िगर†तार कर िलया गया। 26 जनवरी 1931 को एक सिं ध हQई
िजसे गांधी-इरिवन समझौता के नाम से जाना जाता है। नवHबर, 1931 म8 गांधी जी ने लदन म8 हQए ि^तीय
गोलमेज सHमेलन म8 कांCेस का नेत+ृ व िकया। गांधी जी दिलत/ के पृथक िनवा5चन णाली के िवरोध म8 1932 ई0

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जेल म8 आमरण अनशन िकया, फल व.प सरकार को झक ु ना पड़ा। 7 अ ैल, 1934 को गांधी जी ने सरकार के
ित असहयोग क नीित अपनायी। 1940 ई0 म8 Oयि\गत सिवनय अव#ा आदोलन चलाया िजसके थम
स+याCही िवनोबा भावे तथा ि^तीय स+याCही जवाहर लाल नेह. थे। माच5 1942 म8 भारत आये िVtस िमशन
^ारा मई, 1942 म8 तुत िVtस ताव के बारे म8 गांधी जी ने कहा िक उ&रितथीय चेक ; है। 8 अग त 1942 को
गांधी जी ने ऐितहािसक अCं ेज/ भारत छोड़/ ताव को कांCेस से पास करवाया, िजसम8 उह/ने करो या मरो का
नारा िदया। गांधी जी के सतत् य+न/ के परणाम व.प 18 अग त 1947 को भारत आजाद हो गया।

18.3.4 महामा गांधी एवं नारी चेतना


गांधी के िलए औरत8 बेजबु ान और गमु नाम मिहला शि\ माZ नह9 थ9 िजसम8 शि\ का सचं ार िकया जाना ज.री
थी, बिbक उनके िलए मिहलाएं उiचतर मानवीय मbू य/ जैसे क.णा बिलदान का तीक थी। वे उह8 महज घर क
शोभा बढ़ाने वाली व तु या गृह थी क चaक म8 िपसती रहने वाली सद य नह9 मानते थे। गांधी जी का कहना था
मL मिहलाओ ं को घरे लू दासता को बहशीपन क िनशानी मानता ह’ँ । मेरे राय म8 रसोई घर क दासता के वल बब5रता
का ही अविश> .प है। अब समय आ गया है िक मिहलाओ ं को इस दासता से म\ ु कराया जाये मिहलाओ ं का
सारा समय िसफ5 घेरलू काम म8 नही िबताना चािहए।
गांधी जी ने पदा5, कु था और नारी क पिवZता को लेकर मिहलाओ ं क अ+यिधक िफV पर भी हार िकये।
अपनी प> वादी शैली म8 उह/ने कहा अगर मिहलाओ ं को प. ु ष/ क पिवZता के बारे म8 कुछ कहने का अिधकार
हो तो aया वे भी शिु चता के बारे म8 इसी कार OयC रह8ग?े अगर उसका उ&र नह9 म8 है तो प. ु ष/ को इस बात का
aया अिधकार है िक वे श( ु ता को लेकर अपनी मजf दसू रे पर थोप8। उह/ने भारत क मिहलाओ ं से आCह िकया
िक वे एक जोरदार झटके के साथ पदn को फाड़ डाल8, इसी तरह वे कहते थे शिु चता िकसी बद कमरे म8 रखकर
उगाया जाने वाला पौधा नह9 है, इसे िकसी पर थोपा नह9 जा सकता पदn क दीवार8 बना कर इसे तो अदर से
उ+पन होना चािहए और अगर शिु चत का कोई मbू य है तो यह यही है िक इसे िकसी भी लोभन से बचाने म8
स:म होना चािहए।
महा+मा गांधी के दश5न, सघं ष5 एवं िवचार/ ने परू े भारत म8 वतंZता क चेतना को उ+पन िकया, िजसके फल व.प
शताि@दय/ से पराHपराओ ं क वज5नाओ ं म8 जकड़ी नारी भी आदोलन और सघं ष5 के माग5 पर बेधड़क िनकल पड़ी।
गांधी ने ‘यंग इिdडया’, ‘हरजन’ आिद रचनाओ ं और भाषणाओ ं म8 नारी को माता, पृjवी, ग. ु आधी सृि>,
सहगािमनी आिद कहकर उह8 सHमान दान िकया। गांधी जी मानते थे िक जब तक आधी आबादी रा;<ीय
आदोलन से नही जड़ु ेगी, तब तक यह आदोलन जन आदोलन नही बनेगा। इसिलए उह/ने नारय/ को सतू
कातना, वदेशी वh धारण करना, छुआछूत न मानना, भातफे री एवं ाथ5नाओ ं म8 अिधकािधक िह सा लेने के
िलये ेरत िकया, उह8 घर क चहरदीवारी से बाहर िनकाल कर साव5जिनक जीवन म8 िव> कराया। िजससे
नारय/ म8 आ+मिव]ास और नेत+ृ व का िवकास हQआ।

18.3.5 महामा गांधी एवं सयाDह आदोलन


स+याCह का अथ5 स+य के ित अCाह या स+य पर िनिFत रहना है। परतु गांधीवादी परभाषा म8 ही स+याCह
उसके एक राजनीितक शh या साधन होने का इशारा है। गांधीवाद के अनसु ार स+याCह स+या ित परभाषा इस
कार है- स+यािद धमk का पालन करने का आCाह और अधम5 का स+यािद ^ारा ही िवरोध। गांधीवादी नजर से

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स+याCह का उेय अपने उेय या िवकास के िलये िहसं ा िकये िबना य+न करना है। महा+मा गांधी अिहसं ा और
नानवायलेस श@द/ का योग अपने राजनीितक आदोलन/ के काय5Vम का .प बताने के िलये करते थे। उनक
Oयव था के अनसु ार अिहसं ा और नानवायलेस का अथ5 अपने उेय के िलये िकसी कार क शारीरक शि\
का योग न करना है। िवप:ी ^ारा अपने िवY( शारीरक बल का योग करने पर शारीरक शि\ ^ारा आ+म र:ा
या ितकार का उपाय न करके , िवरोधी का चोट सह लेना और वयं क> सहने के हठ ^ारा िवप:ी को परा त कर
देने का िनिFय था। शारीरक शि\ का उपयोग न करने अथवा वयं सह लेने को ही अिहसं ा क कसौटी नही मान
िलया जा सकता। शारीरक शि\ का योग िकये िबना के वल िजद से दसू रे Oयि\ को िवषम परि थित म8 डाल
देने के Oयवहार को के वल इसिलए सही नही कहा जा सकता, िक शारीरक शि\ का उपयोग नही िकया जा रहा
है, इस कार के Oयवहार को िनि;Vय िहसं ा ही कहा जायेगा। स+याCह का Oयवहारक अथ5 अपने लsय या उेय
के िलये शारीरक शि\ का योग िकये िबना वयं क> सहकर =;हता पवू 5क य+न करना ही है। गांधी जी ने
स+याCह के दो .प माने हL- पहला Oयि\गत स+याCह दसू रा सामिू हक स+याCह। गांधी जी ने स+याCह के िलये
परि थित के अनसु ार िनHनिलिखत साधन/ को अपनाये जाने का सझु ाव िदया है-
असहयोग,
सिवनय अव#ा,
वेिiछक पलायन,
अनशन या उपवास,
धरना, हड़ताल,
सामािजक बिह;कार,
गांधी जी ने साधन/ क तलु ना बीज से क है-साधन/ क तल
ु ना बीज से क जा सकती है और सा3य क वृ: से।
जो अटूट सHबधी बृ: और बीज म8 है वही सा3य और साधन म8 है। कहा जाता है िक िनि;Vय ितरोध अथा5त्
स+याCह दबु 5ल/ का हिथयार है लेिकन स+याCह का के वल ताकतवर ही इसका इ तेमाल कर सकता है। यह
िनि;Vय ितरोध क शि\ नह9 है। इसके िलये तो सघन सिVयता चािहए, दि:ण अˆका का आदोलन िनि;Vय
नही बिbक सिVय आदोलन था। स+याCह शारीरक बल नही है। स+याCह कभी भी अपने शZु को क> नह9
पहQचं ाता वह अपने शZु का िवनाश नही चाहता है। स+याCह के योग म8 दभु ा5वना के िलये कोई थान नही होता
है।
स+याCह तो श( ु आ+मबल है, स+य ही आ+मा का आधार होता है, इसिलये इस बल को स+याCह का नाम िदया
गया है। गांधी जी ने स+य, अिहसं ा के बल पर ही भारत को आजादी िदलायी। देश एवं िवदेश म8 अपने नाम का
लोहा मनवाया।
महा+मा गांधी ने य(
ु और Vाित के िबकbप के .प म8 राजनीितक :ेZ म8 स+याCह के साधन का सफलता पवू 5क
योग िकया और यह िस( िकया िक राजनीितक और सामािजक :ेZ म8 इसका योग य( ु एवं Vाित के समय म8

उराखंड म
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समान मह+वपणू 5 है। माaस5 अवलेिनन िजस परवत5न को िहसं ापणू 5 Vाित से करना चाहते थे, गांधी जी उसे
अिहसं क स+याCह से सHपन िकया।

18.3.6 गांधीवाद और सा;यवाद या माaसवाद के नैितक आधार


गांधी जी ^ारा ितपािदत सवmदय अथा5त् सभी का सवाyगीण िवकास का िस(ात तथा समाजवादी =ि>गत कुछ
ऐसे ही हL िजससे यह भय हो सकता है िक गांधीवाद एवं माaस5वाद या साHयवाद ायः एक से हL। िहसं ा रिहत
साHयवाद गांधीवाद तथा साHयवाद िहसं ाय\
ु गांधीवाद है।
अमेरका के स ु िस( पZकार लईु िफशर ने सन् 1946 म8 जल
ु ाई के अितम सXाह म8 गांधी जी के पच
ं गनी म8
िविवध िवषय/ पर चचा5 क है उस िदन िफशर से गांधी जी ने प> कहा था-‘‘मL अपने आपको साHयवादी ही
कहता ह’ँ ।’’
स ु िस( गांधीवादी अथ5शाhी कुमारtपा का भी कथन है ‘‘जहां तक हम भौितक िहत के लsय तक पहQचं ने का
यास करते हL, साHयवाद, समाजवाद और गांधीवाद म8 कोई अतर नह9 हो सकता है।’’ इससे प> होता है िक
गांधीवाद और माaस5वाद म8 कुछ नैितक आधार सामाय है जो िनHनिलिखत हL-
1.Wिमक/ के िलए आिथ5क सामािजक याय।
2.आधिु नक समाज Oयव था म8 िनHन वगk का शोषण।
3.गांधीवाद और माaस5वाद दोन/ ही यह िव]ास करते हL िक +येक मन;ु य जम से समान होता है और इसिलए
सबको समान अवसर पाने का अिधकार है।
4.गांधी जी और माaस5 ^ारा ततु समाज म8 सभी सद य बराबर दजn के ह/गे।
5.माaस5वाद और गांधीवाद दोन/ ही िव]ास करते थे िक राजनीितक वतंZता आिथ5क वतंZता के िबना
आधारहीन और अथ5हीन है जहां गांधी जी ने िलखा है ‘‘मेरे वरा1य का सपना गरीब/ के वरा1य का है’’ वहां
माaस5 ने ‘‘सव5हारा वग5 के अिधनायक+व क थापना’ के प: म8 दी है।
6.गांधी वाद और माaस5वाद दोन/ ही रा1यहीन समाज क थापना के प: म8 थे गांधी जी ने िलखा है िक ‘‘रा1य
िहसं ा का के pीकृ त और सगं िठत .प है’’ इसिलए इससे दरू ही रहना उिचत है।
7.गांधीवाद और साHयवाद दोन/ ही चाहते हL िक रा;<ीय धन का समान िवतरण होना चािहए aय/िक इसके िबना
समाज म8 पाई जाने वाली आिथ5क असमानताओ ं को दरू नह9 िकया जा सकता और आिथ5क असमानताओ ं को दरू
िकये िबना वतंZता का कोई भी अथ5 नह9 है।
माaस5 अपने उेय/ क ािX के िलए िहसं ा या Vाित का योग करते हL जबिक गांधी जी का साधन पणू त5 या
अिहसं ा+मक है। इस कार यह कहा जा सकता है िक गांधीवाद और माaस5वाद के उेय म8 चरु समानता है
लेिकन उेय/ क पिू त5 के साधन/ म8 पणू त5 या िभनता है।

18.3.7 महामा गांधी क$ 21व) शताAदी म( "ांसिगकता


उराखंड म
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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
गांधी जी ने भारत क सामािजक सम याओ ं 3यानपवू 5क अ3ययन िकया था वे सम याएं जो हमारे सामािजक ढांचे
को खोखला कर रही थी इन सम याओ ं के ित उनका =ि>कोण बड़ा Oयापक था, उनक =ि> गहन थी। गांधी जी
ने सामािजक बरु ाईयां आिथ5क गित और राजनीितक ि थरता तथा Oयव था को थायी .प से दरू करने का यास
िकये थे।
गांधी जी िजह8 लोग tयार से बापू कहते हL भारतीय रंगमंच पर 1919 से 1948 तक इस कार छाये रहे िक इस यगु
को भारतीय इितहास का गांधीवादी ही कहा जाता है। शाित और अिहसं ा के दतू , गांधी का संदश े सम त िव] के
िलये है और उससे मानव जाित भािवत है। गांधी जी पहले भी ासिं गक थे और आज भी ासिं गक हL और जैस-े
जैसे िव] म8 िव3वशं क अh एवं शh/ का िवकास होता जायेगा वैस-े वैसे गांधी जी और उनके िवचार तथा साधन
और ासिं गक होते जाय8गे। अˆक नेता नेसन मdटेला के ेणा गाधं ी जी ही थे अमेरक रा;<पित वराकओबामा
से लेकर मािट5न लथु र िकंग आिद गांधी जी के सश ं क एवं समथ5क हL। िपछल/ िदन/ अमेरक रा;<पित बराक
ओबामा ने Oहाइट हाउस म8 अˆक महादीप के 50 अˆक देश/ के यवु ा नेताओ ं को सHबोिधत करते हQये कहा
िक आज के बदलते परवेश म8 यवु ाओ ं को गांधी जी से ेरणा लेने क ज.रत है। गांधी एक यगु पYु ष हL भारत क
दासता को िछन-िभन करने वाले िनशh यो(ा हL, वराज के सदं हे वाहक एवं दीन-हीन दिु खय/ के दाता, नारी
जाित, अ पृयता, Cामीण जनता, Wिमक वग5 के िलये उनके ‡दय म8 अपार सHमान था, उह/ने मन;ु य क पीड़ा का
िनकट से अनभु व िकया और उसको दरू करने का यास भी िकया। गांधी जी रा;< धम5िनJ थे गांधी जी का परू ा
जीवन समाज के िहत के िलये लगा रहा, डॉ0 के 0एम0 मु शी ने गांधी जी के िवषय म8 बताया है िक गांधी जी ने
अराजकता पायी एवं Oयव था म8 परवित5त कर िदया, कायरता पायी उसे साहस म8 बदल िदया अनेक वगk के
िवभाजन जन समहू को रा;< म8 बदल िदया, िनराशा को सौभा}य म8 बदल िदया और िबना िकसी कार क िहसं ा
या नैितक शि\ का योग िकये एक साuा1यवादी शि\ के बधन/ का अत कर िदया और िव] शाित को जम
िदया। िवदेश/ म8 तो गांधी के कpदान/ म8 काफ बढ़ो&री हQई है, इस शता@दी म8 इनक ामािणकता और बढ़ी है
िनःसंदहे गांधी ासंिगक हL, आधिु नक एवं नैितक Vाित के उwाता हL, अ3याि+मक राजनीित के परु ोधा हL, शाित
के संदहे वाहक और अिहसं ा के पजु ारी हL, वे मानवतावादी, रा;<वादी एवं नैितक यथाथ5वादी हL। गांधी एक दश5न
है, एक िवचार है, धम5 है, कम5 है, और मानवता तथा िव] शाित का मम5 है।

15.3.8 गाधं ी जी का सव^दय एवं -टीिशप क$ अवधारणा


गांधी के सवmदय क जड़े ाचीन भारतीय दश5न म8 थ9। उह8 वेदात क इस धारणा से िक सभी ािणय/ म8
अ3याि+मक एकता है और गीता तथा ब( ु के सव5भतू िहत के आदश5 से ेरणा िमली थी। सवmदय का Oयापक
आदश5वाद, लॉक के बहQसंrयावाद, माaस5 गtु लोिव+भ के वग5 और जातीय संघष5 के िस(ात तथा वेथम के
‘अिधकतम संrया का अिधकतम सख ु ’ के आदश5 के िव.( है। एक =ि> से tलेट/ और गांधी म8 बहQत साHय है
tलेट/ ने अपनी रपि@लक म8 काbपिनक आदश5वाद का ितवादन िकया है। िकतु लॉज तथा टेट्समैन म8 उसने
मानव वभाव तथा सामािजक Oयव था क यथाथ5वादी आवयकता का 3यान रखा है।
गांधीवादी सवmदय िस(ात के अनसु ार एक आदश5 समाज म8 न के वल मजदरू / के ही, बिbक समाज के िविभन
Oयवसाय/ म8 लगे हQये नागरक/ के भी पारWिमक समानता होनी चािहए। समाज के सभी लोग/ को अपनी
ाकृ ितक आवयकताओ ं के अनसु ार साधन िमलने चािहए। इस कार सामािजक एवं आिथ5क बरु ाइय/ के थायी

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
उपचार के िलए गांधी जी ने वकल, डाaटर, अ3यापक और मंZी आिद सभी प8श/ के लोग/ को समान पारWिमक
देने का एक Vाितकारी िस(ात ससं ार को िदया।
Wम-िवभाजन के इस Vाितकारी िस(ात के अनसु ार थम चरण म8 +येक मन;ु य क अपनी ाकृ ितक
आवयकताओ ं के िलए साधन होना चािहए। कह9 भी अनावयक संCह न हो। आिथ5क समता के ारिHभक
आधार के .प म8 +येक परवार के िलए संतुिलत भोजन, वiछ आवास, िचिक+सा-Oयव था तथा बiच/ क
िश:ा क सिु वधा आवयक है। आिथ5क समता से गांधी जी का यह अिभ ाय नह9 है िक सभी Oयि\य/ क
सHपि& िबbकुल समान .प से बटं जाय। ऐसी समता न तो सHभव ही है, न उिचत ही। ऐसी समता का के वल
सांिrयक मह+व होगा। अर तु क तरह आनपु ाितक समानता के िस(ात को गांधी जी नह9 मानते थे। अर तू के
अनसु ार गणु और उपल@ध को 3यान म8 रखकर समता क थापना होनी चािहए। गांधी जी के इस कथन से वकल
और भगं ी को समान पारWिमक िमलना चािहए। इससे साफ जािहर है िक वे अर तू के िस(ात का खdडन करते
हL। आिथ5क समता लाने के चखा5 और उससे सबं िं धत उ0ोग/ का सहारा लेना अ+यत आवयक है। इनके सहारे
बहQत हद तक सामािजक तथा आिथ5क समता ाX हो सकती है। गांधी जी Oयि\गत शारीरक Wम पर जोर देते थे।
उह/ने िलखा है, ‘‘मेरी योजना के अनसु ार रा1य िसफ5 नागरक/ क इiछा को पणू 5 करने के िलए ही रहेगा। रा1य न
तो जनता पर अपना हQकुम लादेगा और न वह अपनी मरजी के मतु ािबक काम करने के िलए उह8 बा3य ही करे गा।
घृणा को हटाकर ेम क शि\ से लोग/ को अपने िवचार के अनक ु ू ल बनाते हQए मL अिहसं ा के जरये आिथ5क
समता क थापना क.ँगा । जब तक परू ा समाज मेरे िवचार के अनक ु ू ल नह9 हो जाता तब तक मL इतजार नही
क.ँगा बिbक वयं इसे श. ु कर दगँू ा। यिद मL खदु 50 मोटरकार या 10 बीघे भिू म का मािलक रह’ँ तो यह साफ
जािहर है िक मL अपने िस(ात के अन. ु प आिथ5क समता नही ला सकता। उसके िलए मझु े अपने को सबसे गरीब
आदमी के तर पर लाना होगा।
सरं :कता (< टीिशप) का िस(ात-महा+मा गांधी आिथ5क िवषमताओ ं का अत करने के प: म8 थे, लेिकन वे
आिथ5क समानता थािपत करने के साHयवादी ढगं से सहमत नह9 थे, िजसके अतग5त धिनक/ से उनका धन
बलपवू 5क छीनकर उसका साव5जिनक िहत म8 योग करने क बात कही जाती है। गांधी जी का िवचार था िक
िहसं ा+मक होने के कारण साHयवादी प(ित उपयोगी नह9 हो सकती और पजंू ीपित वग5 को पणू त5 या न> कर देने से
समाज उनक सेवाओ ं से विं चत रह जायेगा। इस सHबध म8 गांधी जी का िवचार था िक यिद स+य और अिहसं ा के
आधार पर साव5जिनक िहत के िलए Oयि\गत सHपि& ली जा सके तो ऐसा अवय ही िकया जाना चािहए।
इस सHबध म8 गांधी जी ने < टीिशप के िस(ात का ितपादन िकया। इसका यह मतलब है िक धनी Oयि\ अपनी
आवयकताओ ं से अिधक जमीन, जायदाद, कारखाने तथा िविवध कार क सHपि& का अपने को वामी न
समझे अिपतु इसे समाज क अमानता या धरोहर माने, उसका उपयोग अपने लाभ के िलए नह9 अिपतु समाज के
कbयाण के िलए कर8 । गांधी जी का यह िस(ात अपरCह के िवचार पर आधारत है। अपरCह का अथ5 है िक
मन;ु य को अपने जीवन क आवयकताओ ं से अिधक िकसी व तु का संCह नह9 करना चािहए। यिद िकसी के
पास अिधक सHपि& हो गयी है तो उसे उसको अपनी न समझ कर ई]र क तथा समाज क समझनी चािहए।
संसार क सभी व तुओ ं पर ई]र का वािम+व है, मन;ु य को अपने परWम और आवयकतानसु ार इसम8 से अपना
िह सा लेने का अिधकार है। अतः वह िकसी भी कार क सHपि& का वामी नह9 अिपतु उसका सरं :क माZ है।

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गांधी के < टीिशप िस(ात के अनसु ार धनी लोग/ को वेiछापवू 5क यह समझना चािहए िक उनके पास जो धन है,
वह समाज क धरोहर है, वे उसम8 से के वल अपने िनवा5ह के िलए आवयक धनरािश ही ले सकते हL। शेष सारी
धनरािश उह8 समाज क =ि> से िहतकर कायk म8 लगा देनी चािहए। इसका यह मतलब नह9 है िक धनी अपनी
जीवन िनवा5ह से बची हQई सHपि& को िनध5न Oयि\य/ म8 बांट दे। ऐसा करने पर तो यह सHपि& उपभोग म8 आकर
शीŽ न> हो जायेगी। अतः धिनक वग5 अपनी फालतू सHपि& को ऐसे उ0ोग-धंधो म8 लगाये, िजनम8 साधारण
जनता को रोजगार िमल सके ।उह8 दसू रो को काम देकर तथा उ+पादन बढ़ाकर अपनी पंजू ी का सदपु योग
साव5जिनक िहत के कbयाण एवं वृि( के िलए करना चािहए। वे इसे तालाब, िव0ालय, िचिक+सालय, आिद
बनाने के जनकbयाणकारी कायk म8 भी लगा सकते हL। जम9दारी अपनी फालतू जमीन भिू महीन िनध5न Oयि\य/ को
जोतने, बोने के िलए दे सकते हL।
वे सहजता, Cामीणता, कुटीर उ0ोग, < टीिशप वावलHबी जीवन Wमशील आचरण और सवmदयी िवचार के थे।
सव5हारा के िलए उह/ने बहQत कुछ िकया भी। उनके हरजन आदोलन, अ पृयता िनवारण, नारी जागरण, िकसान
आदोलन आिद इसी Vम म8 आते हL। हरजन माच5 31, 1946 भिू म के अिधकार के सHबध म8 गांधी जी का यह
िस(ात उनके दसू रे िस(ात के िवपरीत पड़ता है िक जम9दार िकसान/ के यासधारी (< टी) हL। 1939 ई. म8
ि^तीय गोलमेज परषद क संघीय Oयव था सिमित म8 भाषण करते हQए गांधी जी ने कहा था ‘‘गांधी ने इन दोन/
=ि>कोण/ का समवय करने का य+न िकया। इसके िलए दश5नीय है। एक सीमा तक वे माaस5वाद को मानते थे।
गांधी जी का आदश5 ऐसे समाज क थापना करना था, जो पार परक सिVय ेम एवं सामज य पर आधारत ह/
वह पणू 5 आि तक (ई]रवादी) हो, aय/िक सभी ई]र क संतान हL। रि कन के इस िस(ात को उह/ने भी माना है
िक जो थम को िमलता है-वही अितम को भी िमलना चािहए। सवmदयी िवचार को उह/ने सदैव सHमान िकया
है।

15.3.9 गांधी जी का सयाDह स;बधी अवधारणा-


स+याCह शारीरक शि\ नह9 हL, यह आ+मबल है। अतः यह शि\ स+याCह कहलाती है। िजसम8 #ान और ेम क
लौ उजागर रहती है। यिद कोई अ#ानवश हम8 क> देता है तो हम उसे ेम से जीत8गे यही स+याCह है। महा+मा गांधी
भारतीय राजनैितक मंच पर 1919 से 1948 तक इस कार छाए रहे हL िक इस यगु को भारतीय इितहास का गांधी
यगु कहा जाता है। शाित और अिहसं ा के दतू गांधी का संदश
े सम त िव] के िलए हL। उससे सHपणू 5 मानव जाित
भािवत हQई।
गांधीवादी िवचारधारा राजनीितक िचतन के इितहास म8 एक िनणा5यक मोड़ है। इितहास सा:ी है िक मन;ु य ने
सदैव अयाय के िव.( आवाज उठायी है। गांधी जी के यास/ से भारतीय/ ने अपना िवरोध कट करने के िलए
पार परक तरीक/ को नह9 चनु ा बिbक गांधी जी ने भारतीय/ को िवरोध दिश5त करने का एक नवीन माग5 सझु ाया।
यह माग5 था स+याCह।
गांधी जी का स+याCह-दश5न स+य के सवmiच आदश5 से उ+पन हQआ है। यिद स+य ही परम त+व है तो उसके
पजु ारी का पनु ीत कत5Oय है िक स+य क कसौटी तथा उसके आधार/ क र:ा कर8 । ई]र ही परम स+य है अतः ई]र
भ\ के िलए आवयक िक है वह पणू त5 ः िवनu और वाथ5रिहत हो। उसम8 नैितक तथा आ3याि+मक मbू य/ के
िलए सघं ष5 करने को अजेय कbप तथा साहस होना चािहए तभी वह अपनी सiची नैितक भावना का माण दे
सकता है।

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ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सब कार के अयाय, उ+पीड़न और शोषण के िव.( श( ु तम आ+मबल का योग ही स+याCह है। क>-सहन
तथा िव]ास आ+मबल के गणु हL। ‘तेज वी दीन’ के सिVय अिहसं ा+मक ितरोध का ‡दय पर त+काल भाव
होता है। वह िवरोधी को जोिखम म8 नह9 डालना चाहता, बिbक वह उसे अपनी िनदmिषता क चdड शि\ से
अिभभतू कर देना चाहता है। स+याCह अथवा ‡दय-परवत5न के िव मयकारी तरीके सरकार तथा सामािजक
अ+याचारय/ एवं परHपरावाद के नेताओ,ं सभी के िव.( योग िकया जा सकता है।
स+य पर अटल रहना ही स+याCह है। स+याCह अस+य को स+य से व िहसं ा को अिहसा से जीतने का नैितक शh
है। इसका उेय, धैय5पवू 5क, क> सहकर अिहसं ा+मक एवं उिचत तरीक/ से स+य को कट करना, भल
ू / को सधु रना
एवं भलू करने वाल/ का ‡दय परवत5न करना है। स+याCह एक सरल, िकतु अचक ू उपाय है।
स+याCह का ही एक .प असहयोग आदोलन है। िजसका योग गांधी जी ने नीितय/ का िवरोध करने के िलए
िकया था। महा+मा गांधी अपने यगु के महान नेता थे। उह/ने स+य, अिहसं ा एवं स+याCह के साधन/ से भारतीय/
को वतंZता आदोलन का नेत+ृ व िकया। स+य अिहसं ा जैसे िस(ात गांधी ^ारा य\ ु ऐसे िस(ात थे जो उह8
महा+मावादी व.प दान करने म8 सहायक रहे हL। अपनी अlुत आ3याि+मक शि\ से मानव के शा]त मbू य/ को
उlािषत करने वाले िव] इितहास के महान तथा अमर नायक महा+मा गांधी आजीवन स+य, अिहसं ा और ेम का
पथ दिश5त करते रहे।
राजनैितक :ेZ म8, अिहसं ा क िवचारधारा को काय5Vम म8 परणत करने के िलए िजस काय5 प(ित का योग एवं
ितपादन िकया, उसे स+याCह कहा जाता है। स+याCह स+य और आCह दो श@द/ से िमलकर बना है। स+य का
आCह अथा5त् स+य के हेतु आCह। गांधी जी के जीवन के तीन मख ु िस(ात थे-स+य, अिहसं ा और साधन/ क
श( ु ता। इह9 के बल पर उह/ने अCं ेज/ से संघष5 िकया और अत म8 सफलता ाX क। महा+मा गांधी का सHपणू 5
जीवन स+य पर आधारत था, उसके सामने वे िकसी बात से समझौता नह9 करते थे। स+य के िवषय म8 उनका
कहना था-स+य से ऊँचा कोई ई]र नह9 और हर इसं ान को स+य क खोज करनी चािहए स+य और अिहसं ा को
अलग-अलग नह9 िकया जा सकता है। जहां िहसं ा है वहां स+य नह9 रह सकता जो स+य म8 िव]ास करता है वह
दु मन को भी नह9 हािन पहQचं ायेगा।
वे अिहसं ा के पजु ारी थे। वे अिहसं ा को मन;ु य क अतिनिह5त धािम5क भावना के िवकास के िलए बहQत ही
आवयक समझते थे। गांधी जी वयं कहा करते थे िक-स+याCही अिहसं ा के पजु ारी थे वे सदा हसं ते हQए, िबना
ित रोध के मरने के िलए रहना चािहए।
स+याCह के ^ारा गांधी जी ने दि:णी अˆका म8 अभतू पवू 5 सफलता ाX क त+पFात् वह भारत आकर ििटश
शासन के िव.( भारतीय जनता को भी स+याCह क भावना से ओत- ोत कराया। वह मोह, ममता, िवषय,
वासना, ऐ]य5, छल कपट आिद से दरू रहने क सलाह दी।
सया<ह क ि=या-
महा+मा गांधी जी ने स+याCह को एक रणकला कहा है। उसके अनसु ार एक स+याCही को पणू त5 ः समिप5त रहना
चािहए, उसे अपने लsय के ित पणू 5 जाग.क होनी चािहए। स+याCही के मन म8 िकसी के ित कुिटल भावना नह9
चािहए उसके िलए छल के ित +याग करके उसके अदर और बाहर समान रहते हQए कथनी और करनी म8 कुछ

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अतर न करके परू ी तरह अिहसं क रहना बहQत आवयक है। वह अiछाई से बरु ाई को, ेम से Vोध को, स+य के
^ारा अस+य को, अिहसं ा ^ारा िहसं ा को जीतने का यास कर8 ।
डॉ. वी.पी. वमा5 िलखते हL िक-गांधी जी का स+याCह के सवmiच आदश5 से उ+पन हQआ है। स+य के पजु ारी का
यह कत5Oय है िक स+य क कसौटी तथा उसके अिधकार/ क र:ा कर8 ।
स+याCही को पणू त5 या अनश
ु ािसत और िनJावान रहते हQए स+याCह के माग5 पर िमलने वाली किठनाइयां◌े भरी
यातनाओ ं को सहष5 वीकार करना पड़ता है।
गांधी जी के अनसु ार-स+याCही को अिहसं ा, स+य, अ तेय, ‚चय5, अिपरCह, शारीरक अ वाद, िनभ5यता, आिद
गणु / से य\
ु धमk को समान देखने वाला तथा वदेशी तथा अ पृयता िनवारण करने वाला होना चािहए।
सया<ह के िविभ&न "प-
गांधी जी के िवचार म8 स+याCही ेम और अिहसं ा के ^ारा शZु के ‡दय पर िवजय ाX करता है। वह वीर/ का अh
है। वह ेम मलू क है और शZु के ित ेम और उदारता का भाव रखता है। स+याCह Oयि\गत और सामिू हक दोन/
कार का हो सकता है। स+याCही +याग और सेवा क भावना से ेरत होकर अपने आप को खादी, Cामो0ोग
अ पृयता िनवारण, ौढ़ िश:ा, रा;< भाषा चार, जातीय एकता, म0पान िनषेध, जनकbयाणकारी कायk म8 लगा
रहता है।
सामिू हक स+याCह का योग गांधी जी ने पहले दि:ण अˆका म8 भारत म8 िवकिसत वग5 सामिू हक स+याCह के
.प म8 िनHन काय5वािहयां वीकृ त क गयी हL-
1.हड़ताल-इसका उेय काय5 को बद करके जनता, सरकार और सHबिधत सं था के मि त;क को भािवत
करना, लेिकन आवयक है िक हड़ताल8 जbदी न क जाय8। वह सदैव अिहसं ा+मक होना चािहए।
2.बिह;कार-इसका अथ5 समाज के उन कलंक लोग/ का बिह;कार करना है जो जनमत क अवहेलना करते हL
और सहयोग नह9 करते हL। उनका सामािजक बिह;कार करना बहQत ही परु ाना तरीका है। इसका योग सीिमत अथ5
म8 ही िकया जाना चािहए।
3.असहयोग-स+याCह का ही .प असहयोग है। िजसका गांधी जी ने अCं ेज/ क नीितय/ का िवरोध करने के िलए
िकया, गांधी जी का िवचार था िक-अयाय करने वाला भी अयाय सहने वाले के िबना अ+याचार नह9 कर
सकता, अतः गांधी जी ने जन साधारण से अCं ेजी सरकार के साथ सहयोग करने क अपील क। aय/िक सरकार
का सभी काम जाजन/ के सहयोग से ही चलता है। यिद जा असहयोग कर8 , सरकारी Oयव था को वीकार करे
तो अके ले शासन चला पाना किठन है।
4.धरना-धरना देने का अथ5 िक जब तक स+याCही क यायपणू 5 बात नह9 मानी जाएगी तब तक वह एक आसन
पर ि थर होकर भख ू ा बैठा रहेगा। धरना शाितपणू 5 होना चािहए। इसम8 िकसी कार का बल योग, अभp,
आचरण करना पणू त5 ः िनिष( है। सन् 1920-22 म8 तथा 1930-34 म8 उह/ने शराब, अफम आिद मादक pOय/
और िवदेशी कपड़/ क दक ु ान/ पर इस कार क घटना का आवाहन् िकया था।

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ु िविवालय 276
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
5.िहजरत-इसका अथ5 है वैिiछक देश िनकाला। स+याCह के अतग5त इसका अथ5 है दमन के थान को छोड़कर
दसू रे थान पर चले जाना। महु Hमद साहब के जीवन के घटना से गांधी जी िहजरत का योग िकया। जब मोहHमद
साहब का मaका म8 रहना उनके िवरोिधय/ ने दभु 5र कर िदया तो वे मदीना िहजरत कर गये। अथा5त् मaका छोड़
मदीना चले गये। इसी कार िहदओ ु ं के अमानवीय अ+याचार/ से पीिड़त हरजन/ को गांधी जी ने यह राय दी थी
िक यिद वे अपने अ+याचार/ को बदं न कर8 तो वे दसू रे गांव चले जाएं।
6.उपवास-उपवास को गांधी जी अपने शhगार म8 सबसे अिधक फलदायक अh मानते थे। उपवास का उेय
आ+मशिु ( है, यह सामिू हक भी हो सकता है, Oयि\गत भी। उह/ने सन् 1922 म8 5 िदन, 1924 म8 21 िदन, 1953
म8 5 िदन, 1947 व 1948 म8 अनेक/ िदन/ तक लगातार उपवास िकया।
7.सिवनय अव#ा-बैbस फोड5 ने इस आदोलन के िवषय म8 िलखा-भारतीय अपना उेय िनिFत कर चक ु े थे।
अपने िदल/ म8 वे वतंZता ाX कर चक
ु े थे। गांधी जी ने एक सौHय तथा िनि;Vय रा;< को शताि@दय/ क िनpा से
जगा िदया था।
गांधी जी के अनसु ार काननू जनता के कbयाण के िलए होता है। यिद काननू जनिहत का िवरोध करता है तो वह
अयायपणू 5 और अनैितक हो जाएगा। अतः ऐसी ि थित म8 उस काननू क अव#ा करना उसे न मानना नैितक
आचरण हो जाता है। अतः कुशासन करने वाल/ को सहयोग न देना जनता का सहज अिधकार है। गांधी जी ने इसी
काय5 को सिवनय अव#ा क स#ं ा दी है।
सया<ही का आचरण-
गांधी जी ने स+याCही के िलए कुछ आचार व िनयम बनाएं जो िनHन थे-
1.‚चय5-गांधी जी का मानना था िक मन, वचन कम5 से अपनी इिpय/ पर पणू त5 ः िनयZं ण करते हQए पारवारक
जीवन के पणू 5 कत5Oय/ को िनभाना था। अथा5त् वैवािहक जीवन के वे िवरोधी नह9 थे। उनके अनसु ार सHपणू 5 जीवन
शि\ िवषयोमख ु न होकर उiच आदशk के िलए होनी चािहए िजसे स+याCही क शारीरक नैितक और
आ3याि+मक शि\ बल हो।
2.िनभ5यता-स+याCही को पणू त5 ः िनभfक होकर काम करना चािहए। वह के वल ई]र से ही डरे उसके अितर\
िकसी से भी भयभीत नह9 होना चािहए। गांधी जी क शंसा करते हQए डॉ. के .एम. मंश
ु ी ने िलखा है- गांधी जी ने
अराजकता पायी और उसे Oयव था म8 परवित5त कर िदया, कायरता पायी और उसे साहस म8 बदल िदया, अनेक
वगk म8 िवभािजत लोग/ को जनसमहू म8 बदल िदया। िनराशा को सौभा}य म8 बदल िदया और िबना िकसी कार
क िहसं ा या सैिनक शि\ का योग िकये एक साuा1यवादी शि\ के बंधन/ को अत कर िव]शाित को जम
िदया।
3.अ तेय-इसका शाि@दक अथ5 तो चोरी न करना है। अतः स+याCही को +यागी वृि& का बनकर सचं य करने व
संCह करने सव5दा दरू रहना चािहए।
4.अपरCह-सांसारक पदाथk को +याग करना ही अपरCह है। अतः स+याCही को +यागी सचं य करने व संCह
करने से सव5दा दरू रहना चािहए।

उराखंड म
ु िविवालय 277
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
5.Wम व उपाज5न-अपने परWम ^ारा अपने जीिवकोपाज5न को करते हQए िकसी अय के Wम का लाभ नह9 लेना
चािहए, aय/िक गांधी जी के अनसु ार ऐसा करना शोषण माना जायेगा।
6.जीिवत रहने के िलए भोजन-भोजन जीने के िलए करना चािहए न िक भोजन करने के िलए जीना चािहए। भोजन
वाद के िलए नह9 जीिवत जीने के िलए है। अतः भोजन साि+वक होना चािहए। गांधी जी के जीवन का सबसे बड़ा
िस(ात सादा जीवन उiच िवचार था।
7.सब धमk को समान भाव से देखना-स+याCही भले ही िकसी भी धम5 का अनयु ायी हो पर उसे सभी सH दाय/
और मत/ को समान भाव से देखना चािहए।
8. वदेश ेम क भावना- वदेशी का अथ5- वदेशी का अथ5 अपने देश म8 िनिम5त सभी चीज/ का उपयोग करना है।
अतः स+याCही को चािहए िक वदेश म8 बनी चीज8 ही उपयोग म8 लाए,ं ऐसा करने म8 भले ही उसे परे शानी या क>
का सामना करना पड़8।
9.मानवतावादी =ि>कोण-एक सiचे स+याCही का =ि>कोण मानवतावादी होना चािहए। मन;ु य का मानवतावादी
=ि>कोण तभी संभव है जब िक उसम8 अहक
ं ार न हो।
इस कार हम देखते हL िक गांधी जी के अनसु ार स+याCही का जीवन समाज के अय Oयि\य/ के िलए ेरणा का
Rोत होना चािहए साथ ही उसे उपय\ु गणु / से परपणू 5 समाज का नेता होना आवयक है।

15.3.10. गांधी जी क$ सय एवं अिहसं ा क$ अवधारणा-


गांधी जी के अनसु ार, ‘स+य ही ई]र है।’ परतु B उठता है िक वह स+य जो ई]र है और िजसक ािX जीवन का
उेय है, aया है?
गांधी के मतानसु ार ‘स+य’ सत श@द से िनकला है, इसका अथ5 है अि त+व या होना। स+य को ई]र ‚ कहने का
यह कारण है िक स+य वही है िजसक स&ा होती है, जो सदा िटका रहता है। ‚ या परमा+मा क स&ा तीन/
काल/ म8 बनी रहती है, अतः यह स+य है। गांधी जी अपने जीवन का 3येय स+य क शोध करना समझते थे। उह/ने
अपनी आ+मकथा का नाम ‘मेरे स+य के योग’ रखा है।
सामायतः स+य श@द का अथ5 के वल सच बोलना ही समझा जाता है, लेिकन गांधी जी ने स+य का Oयापकतम
अथ5 लेते हQए बार-बार यह आCह िकया है िक िवचार म8, वाणी म8 और आचार म8 स+य का होना ही स+य है। गांधी
जी क =ि> म8 स+य क आराधना ही सiची भि\ है।
गांजी जी के अनसु ार दैिनक जीवन म8 स+य सापे: है, िकतु सापे: स+य के मा3यम से एक िनरपे: स+य पर पहQचं ा
जा सकता है और यह िनरपे: स+य ही जीवन का चरम लsय है, इसक ािX ही मन;ु य का परम धम5 है।
गांधी जी के स+य के परवेश म8 के वल Oयि\ नह9 आता है, अिपतु इसम8 समहू और समाज भी समावेश है। वे
चाहते हL िक सHपणू 5 स+य का पालन धम5, राजनीित, अथ5-नीित परवार-नीित सब म8 होना चािहए। राजनीित म8 स+य
के पणू 5 पालन का उनका नवीन योग तो िव] इितहास के िलए एक अिव मरणीय घटना है।

उराखंड म
ु िविवालय 278
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
अिहसं ा का अथ5-अिहसं ा का शाि@दक अथ5 है िहसं ा या ह+या न करना। िहसं ा का अथ5 िकसी भी जीवन को
वाथ5वश, Vोधवश या दख ु देने क इiछा से क> पहQचं ाना या मारना है। िहसं ा के मल
ू म8 वाथ5, Vोध या िव^ेष
क भावना होती है। इसे िवपरीत अिहसं ा के अनयु ायी को इन सभी भावनाओ ं पर िवजय पाते हQए ाणी माZ के
ित ेम और मैZी क भावना रखनी होती है िजसे गांधी जी अिहसं ा कहते हL।
गांधी जी के िलए अिहसं ा का अथ5 अ+यत Oयापक है िजसम8 काय5 ही नह9, अिपतु िवचार म8 भी सावधान रहना
आवयक है। िकसी को न मारना अिहसं ा का एक अगं अवय है, िकतु अिहसं ा म8 इसके अितर\ और भी कुछ
है। कुिवचार माZ िहसं ा है, िमjया भाषण िहसं ा है, ^ेष िहसं ा है, िकसी का बरु ा चाहना िहसं ा है। जगत को िजस चीज
क आवयकता है उस पर क@जा रखना भी िहसं ा है।
अिहसं ा के दो प:-अिहसं ा के दो प: हL-नकारा+मक तथा सकारा+मक। िकसी ाणी को काम, Vोध तथा िव^ेष से
वशीभतू होकर िहसं ा न पहQचं ाना इसका नकारा+मक .प है, िकतु इससे अिहसं ा का परू ा व.प समझ म8 नह9
आता है। अिहसं ा का यथाथ5 व.प तो हम8 इसके भावा+मक प: से पता लगता है। भावा+मक अथवा सकारा+मक
व.प वाली अिहसं ा को साव5भौम ेम और क.णा क भावना कहा जाता है। इसके चार मल ू त+व, ेम, धैय5,
अयाय का िवरोध और वीरता है।
िजस कार िहसं ा का आधार िव^ेष होता है उसी कार अिहसं ा का आधार ेम है। अिहसं ा का ‹त लेने वाला
साधक अपने उCतम शZु से भी वैसा ही ेम रखता है जैसा िपता बरु ा काय5 करने वाले अपने पZु से नेह करता है।
वह शZु क बरु ाई से घृणा करता है न िक शZु से। अिहसं ा तथा ेम क शि\ से यह शZु क बरु ाई दरू करने का
य+न करता है। वह वयं सनता पवू 5क क> सहन कर लेता है, िकतु शZु को क> नह9 पहQचं ाता। अिहसं ा का
दसू रा त+व अनत धैय5 है। यिद अिहसं क को अपने य+न म8 जbदी सफलता नह9 िमलती तो वह िनराश नह9 होता।
उसे =ढ़ िव]ास रहता है िक अिहसं ा अचक ू ‚ाh है, वह अत म8 अवय सफल होगी। भारी असफलताएं िमलने
के बावजदू अिहसं क िहHमत नह9 हारता और धैय5 पवू 5क अपने पथ पर आगे बढ़ता रहता है। अिहसं ा क तीसरा
त+व अयाय का ितरोध करना है। अिहसं ा िनि;Vयता या उदासीनता नह9 है अिपतु बरु ाई का तथा अयाय का
सतत् ितकार करते रहना है। अिहसं क अयायी के अ+याचार/ से घबराता नह9 है अिपतु वीरता पवू क 5 उनका
सामना करता है, अतः अिहसं ा का चौथा मल ू त+व वीरता है। गांधी जी ने इस पर बहQत बल िदया है। उनके
मतानसु ार अिहसं ा साहसी और वीर पYु ष/ का गणु है, िनब5ल/ और कायर/ का हिथयार नह9। अधकार और काश
क तरह कायरता और अिहसं ा म8 िवरोध है। अिहसं ा के योग तभी मह+व रखते हL जब हम बलवान होते हQए तथा
पशबु ल का परू ा सामjय5 रखते हQए भी इसका योग न कर8 । अिहसं क यो(ा का सबसे बड़ा गणु वीरता और
िनभ5यता है। इसम8 शh य( ु क अपे:ा अिधक साहस अपे:त है, aय/िक इसम8 सबसे बड़ा हिथयार उसक आ+मा
का बल है। ऐसा वीरता पवू 5क आ+मबल न होने क दशा म8 गांधी जी िहसं ा और बल योग को अिधक WेJ
समझते थे। एक बार उह/ने वयं कहा था, ‘‘िवदेशी रा1य के सामने दीन भाव से अपनी ितJा खोने क अपे:ा
यह कह9 अिधक अiछा है िक भारत शh धारण करके आ+मसHमान क र:ा कर8 ।’’
अिहसं ा का आधार-गांधी जी क अिहसं ा का आधार अ(ैत क भावना है। उनका िव]ास था िक सृि> क सभी
व तुओ ं म8 एक ही चेतन स&ा या ‚ ओत- ोत है। सभी म8 भगवान का िदOय अश ं है। जब सब कुछ भगवान का
.प है और मL भी वा तव म8 उसी का .प ह’ँ तो मL िकसी से कै से ^ेष कर सकता ह’ँ । वह अ(ैत क भावना सृि> के

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ु िविवालय 279
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सभी ािणय/ के ित मझु े आ+म.प होने के कारण ेम और अिहसं ा के धम5 का पालन करने के िलए बािधत
करती है।
अिहसं ा क तीन अव थाए-ं गांधी जी ने अिहसं ा क िनHनिलिखत तीन अव थाएं बतायी हैः
1.जागृत अिहसं ा-इसे वीरे पYु ष/ क अिहसं ा भी कहते हL। यह वह अिहसं ा है जो िकसी दःु खपणू 5 आवयकता से
पैदा न होकर अतर आ+मा क वाभािवक पक ु ार से जम लेती है। इसको अपनाने वाले अिहसं ा को बोझ समझ
कर वीकार नह9 करते वरन् आतरक िवचार/ क उ+कृ >ता या नैितकता के कारण वीकार करते है। सबल Oयि\
इसे अपनाते हL और वे शि\ सHपन होकर भी शि\ का तिनक सा भी योग नह9 करते। अिहसं ा के इस .प को
के वल राजनीितक :ेZ म8 ही नह9 अिपतु जीवन के सभी :ेZ/ म8 =ढ़ता के साथ अपनाया जाना चािहए। अिहसं ा के
इस .प से असHभव को सHभव म8 बदलने और पहाड़/ को िहला देने क अपार शि\ िनिहत है।
2.औिच+यपणू 5 अिहसं ा-इस कार क अिहसं ा वह है जो जीवन के िकसी :ेZ म8 िवशेष आवयकता के पड़ने पर
औिच+यानसु ार एक िनि;Vय ितरोध। इसम8 नैितक िव]ास के कारण नह9 वरन् िनब5लता के कारण ही अिहसं ा का
योग िकया जाता है। य0िप यह अिहसं ा जाCत अिहसं ा क भांित भावशाली नह9 है िफर भी यिद इसका पालन
ईमानदारी, सiचाई और =ढ़ता और अिहसं ा पर पर िवरोधी है।’’
3.कायर/ क अिहसं ा-कई बार डरपोक तथा कायर लोग भी अिहसं ा का दHभ भरते हL। गांधी जी ऐसे लोग/ क
अिहसं ा को अिहसं ा न मानकर ‘िनि;Vय िहसं ा’ मानते हL। उनका िव]ास था िक ‘‘कायरता और अिहसं ा पानी और
आग क भांित एक साथ नह9 रह सकते।’’ अिहसं ा वीर/ का धम5 है और अपनी कायरता को अिहसं ा क ओट म8
िछपाना िनदनीय तथा घृिणत है। यिद कायरता और िहसं ा म8 से िकसी एक का चनु ाव करना हो तो गांधी जी िहसं ा
को वीकार करते हL। इस सHबध म8 उनका यह प> िवचार है िक, ‘‘यिद हमारे ‡दय म8 िहसं ा भरी है तो हम अपनी
कमजोरी को िछपाने के िलए अिहसं ा का आवरण पहन8, इससे िहसं क होना अिधक अiछा है।’’ व तुतः गांधी जी
कायरता के प: म8 कभी नह9 थे।
गांधी क अिहसं ा क िवशेषताए-ं गांधी जी क अिहसं ा क दो बड़ी िवशेषताएं हL - पहली िवशेषता इसका सsू म
और िव तृत िववेचन है तथा दसू री इसके :ेZ का िव तार करके इसे नयी गित तथा नया िव तार दान करना है।
पहली िवशेषता-गांधी जी से पहले अिहसं ा का सामाय अथ5 िकसी जीव का ाण न लेना तथा इसे खान-पान के
िवषय तक सीिमत रखना था। गांधी जी ने इसका िव तृत िववेचन करते हQए कहा िक यह खा0 के िवषय से परे है।
मांसाहारी अिहसं क हो सकता है, फलाहारी या अनाहारी घोर िहसं ा करते देखे जाते हL। एक Oयापारी झठू बोलता
है, Cाहक/ को ठगता है, कम तोलता है, िकतु यह Oयापारी च9टी को आटा डालता है, फलहार करता है। िफर भी
यह Oयापारी उस मांसाहारी Oयापारी क अपे:ा अिधक िहसं क हL, जो मांसाहार करते हQए भी ईमानदार है और
िकसी को धोखा नह9 देता। इस कार गांधी जी ने जीव िहसं ा क िववेचना करते हQए अिहसं ा क परHपरागत
परभाषा और सीमा म8 नवीन Vाितकारी परवत5न और िव तार िकया।
दसू री िवशेषता-अिहसं ा के काय5 :ेZ का िव तार है। गांधी जी ने अिहसं ा को Oयि\गत और पारवारक :ेZ क
संकण5 परिध से िनकालकर इसे सामािजक और राजनीितक :ेZ/ म8 सभी कार के अयाय/ का ितकार करने
का शh बनाया। इसे ऋिष-मिु नय/ तक मया5िदत न रखकर साव5जिनक और साव5भौम बनाया। गांधी जी के श@द/
म8, ‘‘अिहसं ा यिद Oयि\गत गणु है तो मेरे िलए +या1य व तु हL। मेरी अिहसं ा क कbपना Oयापक है। वह करोड़/

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ु िविवालय 280
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
क हL। मL तो उसका सेवक ह’.ं ..हम तो यह िस( करने के िलए पैदा हQए हL िक स+य और अिहसं ा Oयि\गत आचार
के िनयम नह9 हL वे समदु ाय, जाित और रा;< क नीित का .प ले सकते हL अिहसं ा सबके िलए है, सब जगह/ के
िलए हL, सब समय के िलए है।’’ हरजन सेवक म8 उह/ने िलखा था, ‘‘हम8 स+य और अिहसं ा को के वल Oयि\य/
क व तु नह9 बनाना है, बिbक ऐसी व तु बनाना है िजस पर समहू , जाितयां और रा;< अमल कर सक8 ।’’ अिहसं ा
के िवषय म8 गांधी जी क यह सबसे बड़ी मौिलक देन थी। भारत क वZतं ा ािX के िलए राजनीितक :ेZ म8
अिहसं ा के सफल योग से उह/ने अपने उपय5\ ु दावे को स+य िस( िकया ।

अAयास B
1. महा+मा गांधी का जम कब हQआ था?
A. 02 नवHबर 1869 ई0 B. 02 अaटूबर 1869 ई0
C. 02 अaटूबर 1879 ई0 D. 02 अaटूबर 1859 ई0
2. महा+मा गांधी का जम कहाँ aया था?
A. पोरबदर B. राजकोट
C. गजु रात D. अहमदाबाद
3. महा+मा गांधी का दि:ण अˆका से भारत आगमन कब हQआ था।
A. 02 नवHबर 1869 ई0 B. 02 अaटूबर 1869 ई0
C. 02 अaटूबर 1879 ई0 D. 02 अaटूबर 1859 ई0
4. महा+मा गांधी ने िनHनिलिखत आदोलन/ म8 से िकसम8 भाग नही िलया था।
A. खेड़ा स+याCह B. चHपारण स+याCह
C. िखलाफत आदोलन D. बारदौली आदोलन
5. महा+मा गांधी के राजनीितक ग.
ु कौन थे।
A. रवीp नाथ टैगोर B. मोती लाल नेह.
C. गोपाल कृ ;ण गोखले D. दयानद सर वती

18.3.4 सारांश
गांधी जी का जीवन िवशेष .प से वत5मान शता@दी के पवु ा(5 से संबंिधत है। उनक मृ+यु 30 जनवरी 1948 को हQई
थी। और आज इतने वषk बाद जब हम उनके जीवन दश5न के बारे म8 सोचते हL तो हम8 त+कालीन व वत5मान
सामािजक, राजनीितक, सां कृ ितक संदभk को 3यान म8 रखना आवयक हो जाता है। चंिू क गांधी जी ने अपना परू ा
जीवन सामािजक, राजनीितक एवं सां कृ ितक कुरीितय/ को दरू करने म8 ही लगा िदया। महा+मा गांधी िटेन से

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ु िविवालय 281
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
वकालत क पढ़ाई करने के बाद जब भारत म8 1892 म8 आये, उसके बाद से ही वह सामािजक बरु ाईय/ को दरू
करने के िलये कूद पड़े। महा+मा गांधी के अ3याि+मक आदश5वाद म8 ई]र, स+य, नैितकता, साधन क WेJता,
अिहसं ा आिद का िविशJ थान है। गांधी जी स+य और अिहसं ा के माग5 पर चलना Wे कर समझा था। स+य और
अिहसं ा का अटूट सHबध को मानते हQये उसी िस(ात पर सारा जीवन चलते गये। महा+मा गांधी भारत के Oयापक
:ेZ म8 राजनीित को लेकर आये, देश के रा;<ीय आदोलन म8 एक अभतू पवू 5 सेनानी के .प म8 उनक भिू मका रही।
अतः भारतीय जनता ने उह8 राजनीितक नेता और देशभ\ रा;<वादी के .प म8 अिधक जाना-माना िनःसंदहे , गांधी
जी रा;<वादी थे। गांधी के ‡दय म8 राजनीितक वतंता क उ+कृ > कामना थी वे वराज को स+य का एक अगं
मानते थे। अतः वभािवक था िक वतंZता उनके िलये अिधक पिवZ व तु थी। उनका िव]ास था िक राजनीितक
वतंZता अथा5त् वराज ती‹ संघष5 और क> सहन के ^ारा ही ाX िकया जा सकता है। गांधी जी राजनीित
वतंZता के साथ ही आिथ5क वतंZता भी चाहते थे। गांधी जी ने इस बात पर बार-बार जोर िदया िक यिद हम
भारत को एक रा;< बनाना चाहते हL तो के वल िहदी ही रा;< भाषा हो सकती है। हरजन म8 उह/ने िलखा है- यिद
हम8 भारतीय रा;<ीयता का लsय ाX करना है तो हम8 :ेिZयता क जजं ीर को तोड़ना ही होगा। समकालीन समाज
म8 िवकास से जड़ु ी सम याओ ं के संदभ5 म8 गांधी जी के िचतन म8 िवशेष अिभ.ची ली जा रही है। वैसे गांधी जी
िवकास को कोई िवशेष िस(ात तुत नही िकया परतु उह/ने िभन-िभन अवसर/ पर मन;ु य के माग5 दश5न के
िलये जो ओज वी िवचार तुत िकये उह8 िमलाकर िवकास का एक ित.प उभारा जा रहा है।
महा+मा गांधी जी ने समाज के +येक :ेZ तथा सम याओ ं पर अपने िवचार रखे थे चाहे वह मिहलाओ ं क
वतंZता एवं चेतना का िवचार हो चाहे समाज के अ+यिधक शोिषत, पीिड़त, दिलत या कमजोर वग5 क बात हो।
उनके िहत के िलये उह/ने उनके साथ िमलकर समय-समय पर संघष5 िकया है और उनको एक नई िदशा दी तथा
समाज क मrु य धारा म8 जोड़ने का यास िकया। वा तव म8 यह उह9 के य+न/ का फल था िक आतंकवाद
सीमत रहा और भारत म8 िबना बहQत र\पात के वतंZता ाX कर ली।
गांधी जी िहद-ू मिु लम एकता के महान समथ5क थे गांधी जी िhय/ के वतंZता के प:पाती थे। वे िhयो के
समथ5क थे और उनको प. ु ष/ के बराबर दजा5 देना चाहते थे। उह/ने भारतीय नारी को रा;<ीय आदोलन म8 भाग
लेने का सअ
ु वसर दान िकया। गाधं ी जी साधारण धम5 और राजनीितक को एक दसू रे से पृथक समझ और धम5 को
राजनीित से अलग िकया। गांधी जी बसदु वे कुटुHबकम के िस(ात पर चलने वाले िचतक थे। गांधी जी क ह+या
एक Oयि\ क ह+या नही बिbक भारत क नैितक, शि\ और आिथ5क सोच क ह+या थी आज हम8 बार-बार ऐसा
लगता है िक काश कोई गांधी होता जो हमारे पतनोमख ु एवं िदशा हीन समाज को एक गित दान करता। असल
म8 आज ज.रत है उन त+व/ को पहचानने क जो :@ु ध वाथk के कारण भारतीय जनता के िहत को िगरवी रख
देना चाहते है। यिद हम आज गांधी को ठीक से समझ ढगं से समझ सके और उनके ^ारा बताये गये माग5 पर चलने
का यास कर सके तो ि^वगं त आ+मा के िलये यही सiची W(ांजिल होगी। और हमारे उ(ार का एक माZ यही
उपाय है।

18.3.5 श!दावल$
1. स+याCह - स+य पर अटल रहना।
2. अिहसं ा - िहसं ा न करना।

उराखंड म
ु िविवालय 282
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
3. अपरCह - सांसारक पदाथk का +याग करना।
4. कुटुHब - परवार
5. िवके pीकरण - स&ा को एक जगत के िpत न होकर िविभन तर/ पर पाया जाना।

18.3.6 अ&यास 
न' के उ तर
1.B 2.A 3.A 4.D 5.C

18.3.7 संदभ) *ंथ सच


ू ी
1. वमा5, िव]नाथ (1998), आधिु नक भारतीय राजनीितक िचतन, लsमी नारायण अCवाल काशन, आगरा।
2. Cोवर, बी.एल. तथा यशपाल (2003), आधिु नक भारत का इितहास, एस.चp एdड कHपनी िल0, रामनगर,
नई िदbली।
3. िविपन चp (2001), भारत का वतंZता सघं ष5, िहदी मा3यम काया5वयन िनदेशालय, िदbली िव]िव0ालय।
4. वमा5, दीना नाथ (2004) आधिु नक भारत, #ानदा काशन (पी.एdड डी.), दरयागंज, नई िदbली।
5. पाdडेय, एच.एल. (1997) गांधी, ने., टैगोर एवं अHबेडकर, याग प ु तक भवन, यनू व5िसटी रोड, इलाहाबाद।

18.3.8 सहायक/उपयोगी पा+य साम*ी


1. गांधी, महा+मा (2005), स+य के योग/आ+मकथा, नवजीवन काशन मंिदर, अहमदाबाद।
2. एम.के . गांधी, समाज सधु ार, सम या और समाधान।
3. िहद वराज चौथा सं करण ।
4. हरजन, 18 माई 1940 ।
5. शमा5, अ.ण द& (2009), भारतीय राजनीितक िवचारक, यनू ीक पि@लशस5, लालपत नगर, नई िदbली।

18.9 नबंधा मक 
न-
1. महा+मा गांधी के राजनीितक एवं सामािजक िवचार/ का िव तार से उbलेख किजए।
2. महा+मा गांधी का भारतीय रा;<ीय आदोलन म8 उनक भिू मका का मbू यांकन किजए।

उराखंड म
ु िविवालय 283
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

-19 H-4%-!E (1893-1976)


इकाई क$ Jप रे खा
19.1 "तावना
19.2 उ4े5य
19.2.1 जीवन पLरचय
19.3 माओ-से-तंगु के दाशिनक िवचार
19.4 माओ-से-तंगु के सामािजक िवचार
19.5 माओ-से-तंगु के दल स;बधी िवचार
19.6 माओ-से-तंगु के Pांित स;बधी िवचार
19.6.1 छापामार य! ु प!ित
19.6.2 छापामार य! ु क$ सफलता के िलये आव5यक दशाएं
19.6.3 छापामार य!ु का सैिनक दल का नेततृ व
19.6.4 माओ और चेgव(रा के िवचार9 म( अंतर
19.6.5 माओ के Pांित स;बंधी िवचार9 म( िवकास
19.7 साराश

19.8 शAदावली
19.9 अBयास "C9 के उ:र
19.10 सदभ Dंथ
19.11 सहायक पु तक( /उपयोगी पु तक(
19.12 िनबंधामक "C

उराखंड म
ु िविवालय 284
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

19.1 तावना
इस इकाई का उेय माओ के िस(ांत/ को Oयाrयाियत करना एवं समय-समय पर माओ ^ारा िलखे गये लेख/ के
आधार पर उसके िवचार/ को समझना है। इस इकाई म8 माओ के दाश5िनक िवचार, सां कृ ितक, सामािजक िवचार,
उसके दल सHबंधी एवं Vांित सHबंधी िवचार तथा चे}व8रा से उसके िवचार/ म8 अतं र को बृहद .प से रे खांिकत
िकया गया है। मrु य .प से माओ सै(ाितक िवचारक नह9 था, वह एक Oयवहारक राजनीित# था िजसके नेत+ृ व
म8 चीन म8 माaस5वादी Vाित हQयी थी। चँिू क उसका उेय Oयवहारक था अतः उसक तुलना लेिनन से क जा
सकती है।
उसने समय-समय पर िविभन कार के लेख िलख8। उसके इन लेख/ का सHबध िकसी न िकसी Oयवहारक
सम या से था। वा तव म8 माओ का उेय िकसी िस(ात क थापना करना नह9 था, माओ क सफलता इसम8
िनिहत है िक चीन जैसे कृ िष धान देश म8 उसने सफलतापवू 5क माaस5वादी Vाित का नेत+ृ व िकया तथा 1
अaटूबर 1949 म8 उसके नेत+ृ व म8 चीन म8 समाजवादी सरकार क थापना क गयी। उ\ के सदभ5 म8 िव तार से
इस इकाई म8 अ3ययन िकया गया है |

19.2 उे

इस इकाई के अ3ययन के उपरात हम –
1.यह समझ सक8 गे िक िकस कार से माओ ने चीन क परि थितय/ के अन.
ु प माaस5 के िवचार/ का िवƒे षण
िकया ।
2.माओ के दाश5िनक और सामािजक िवचार/ के बारे म8 जान सक8 गे |
3.माओ के दल संबंधी िवचार को जान सक8 गे |
4.माओ के Vांित और छापामार य(
ु के बारे म8 िव तार से अ3ययन कर सक8 गे |

उराखंड म
ु िविवालय 285
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

19.2.1 जीवन परचय


माओ-+से-तंगु का जम चीन के हQनान ांत के शाओशान गाँव म8 26 िदसHबर, 1893 को एक िकसान परवार म8
हQआ था। माओ के िपता का नाम माओशनु चेऊ और माता का नाम बेनची मेई था। माओ के शै:िणक जीवन का
आरHभ अपने गाँव के कूल से हQआ था। ारिHभक काल म8 उसने चीन क परHपरागत िश:ा Cहण क तथा चीन
क परHपराओ ं से अवगत हQआ। लेिकन Vिमक .प से उसका सHबध पाFा+य िवचार/ से हQआ। 1917 क .स
क Vाित के पFात् वह माaस5 के िवचार/ के करीब आया।
1920-21 म8 जब चीन ने साHयवादी दल क थापना क गयी तब माओ उसका सद य बना। चीन म8 साHयवादी
दल का आरHभ .स के िनयZण म8 थािपत िकया गया था। माओ ने Vमशः यह अनभु व िकया िक चीन क
परि थितयां िभन कार क थी, अतः जो .स के िलए आदश5 था वह आवयक .प से चीन के िलए आदश5
नह9 हो सकता था। अतः .स के नेत+ृ व क सभी बात/ से वह सहमत नही था। उदाहरण के िलए .स के नेत+ृ व म8
इस पर बल िदया िक शहर का थान मrु य है अतः Vाित का सार शहर से गाँव क ओर होना चािहए।
माओ इससे सहमत नह9 था। उसने इस पर बल िदया िक चीन क परि थितय/ म8 चीन क आवयकता क =ि> से
Cाम/ का थान मह+वपणू 5 था अतः Vाित का सचं ालन Cाम/ से िकया जाना चािहए।
1928-29 म8 माओ तथा चीन वे साHयवादी दल के उन सद य/ म8 जो सोिवयत .स से भािवत थे मतभेद अिधक
आगे बढ़ा। इस मतभेद के पFात् माओ ने नू ान के Cामीण :ेZ म8 अपना काय5 थल बनाया। 1930 के पFात्
इसने छापामार य(
ु क नीित को वीकार िकया। 1935 म8 माओ ने लHबी पदयाZा क। वह लोग/ के सHपक5 म8
आया तथा 1935 के पFात् वह साHयवादी दल का माय नेता वीकार िकया गया। 1935 से मृ+यपु य5त वह चीन
के साHयवादी दल का सवmiच नेता बना रहा। 8 िदसHबर 1976 को माओ को वग5वास हो गया।
उसक रचनाओ ं म8 िनHन के नाम मह+वपणू 5 है:-
1.एनॉिलिसस ऑफ चाइनीज़ सोसाइटी (Analysis of Chinies Society (1924)इसम8 माओ ने माaस5 के
िस(ात/ के अन.
ु प चीन के समाज क Oयाrया क थी।
2.मू न रपोट5 (Human Report (1927)माओ ने इस रपोट5 म8 यह प> करने क कोिशश क थी िक चीन क
परि थित .स क परि थित से िभन थी। चीन म8 कृ षक/ तथा Cाम/ का थान मह+वपणू 5 था।
3.गु रbला वार (Guerilla War (1932)इसम8 माओ ने छापामार य(
ु क मह&ा पर बल िदया था।
4.ऑन ैिaटस एdड ऑन कं<ािडaशन (On Practice and On Contradiction (1933)-इन दोन/ लेख/ म8
माओ ने अपने दाश5िनक िवचार/ को प> करने क कोिशश क है तथा इस पर बल िदया गया है िक माaस5 के
अनसु ार िवकास क =ि> से Oयवहार तथा अतिव5रोध का थान मह+वपणू 5 है।
5.यू डेमोVे सी (New Democracy (1924 )इसम8 माओ ने जातंZ क नयी Oयाrया क थी तथा इस पर बल
िदया था िक चीन क परि थितय/ म8 माaस5वादी Vाित क सफलता के िलए समान उेय वाले सभी वगk के
साथ िमZतापणू 5 सHबध थािपत होने चािहए।

उराखंड म
ु िविवालय 286
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
6.ऑन पीपल ु कोिलयम (On People Coalium,)- सव5हारा वग5 क तानाशाही क सफलता के िलए िविभन
वगk के म3य उिचत कार के सHबध म8 थापना होनी चािहए। इसी िस(ात पर इस प ु तक क रचना क गयी है।
7.ऑन करे aट हLडिलंग ऑफ कं<ािडaशन (On Correct handling of Contradiction (1957)- इसम8 इस
पर बल िदया गया है िक अतिव5रोध के ित उिचत नीितय/ का अवलHबन िकया जाना चािहए।

19.3 माओ के दाश)नक वचार


माओ के दाश5िनक िवचार माaस5 और लेिनन के िवचार/ से भािवत है। माaस5 तथा लेिनन क भाँित माओ भी
अतिव5रोध क मह&ा पर बल देता है। माaस5 तथा लेिनन क भाँित माओ ने भी इसे माना है िक सामािजक िवकास
का सबसे मrु य कारण अतिव5रोध का होना है। इस =ि> से उसने ^दा+मक भौितकवाद को वीकार िकया है।
माaस5 क भाँित माओ ने इसे भी वीकार िकया है िक िवकास के Vम म8 सबसे मrु य थान आिथ5क त+व/ का
होता है। उ+पादन के साधन िजन त+व/ को जम देते हL इनसे समाज के वगk के सHबध िनिFत होते हL।
लेिकन एक =ि> से माओ ने अतिव5रोध के िस(ात को और आगे बढ़ाने क कोिशश क। माओ के अनसु ार
इितहास क िविभन अव थाओ ं म8 दो कार के िवरोध होते हL- एक आधारभतू अतिव5रोध जो उस ऐितहािसक
अव था म8 आधारभतू थान रखता है। इस आधारभतू अतिव5रोध के अतग5त दसू रे अतिव5रोध भी काय5 करते हL।
माओ ने इसे मrु य अतिव5रोध कहा है। माओ के अनसु ार एक ऐितहािसक अव था म8-िवकास क कई अव थाएं
होती हL। अतः मrु य अतिव5रोध बदलता रहता है, लेिकन आधारभतू अतिव5रोध बना रहता है। उदाहरणाथ5 उसके
अनसु ार पँजू ीवादी अव था म8-पँजू ीपित वग5 तथा मजदरू वग5 के म3य आधारभतू अतिव5रोध है। इसके अतग5त
वत5मान समय म8 साuा1यवाद तथा उपिनवेश/ के लोग/ के म3य मrु य अतिव5रोध है। aय/िक अभी भी अव था
साuा1यवाद क अव था है।
माओ अपने िवचार/ म8 लेिनन के िवचार/ से भािवत हL। लेिनन ने दो कार के अतिव5रोध के उbलेख िकये थे (1)
ितकूल तथा (2) अ ितकूल। लेिकन लेिनन ने अपने इस िस(ांत/िचंतन को अिधक िवकिसत नह9 िकया। माओ
ने इसका और अिधक िवकास िकया है।
माaस5 के िवचार/ म8 अतिव5रोध का सHबध ‘वग5 समाज’ से है। माओ ने इस पर बल िदया िक समाजवाद क
थापना के पFात् भी अतिव5रोध का अत नह9 होता, aय/िक माओ के अनसु ार अत5िवरोध का सHबध मानव
वभाव से है। य0िप समाजवाद म8 भी अतिव5रोध बना रहता है, इसके .प म8 परवत5न आ जाता है। वग5 समाज म8-
अतिव5रोध का व.प ितकूल होता है समाजवाद म8 इसका व.प अ ितकूल होता है।
माओ के अनसु ार इसक संभावना बनी रहती है िक अ ितकूल अतिव5रोध ितकूल अतिव5रोध के .प म8 बदल
जाय। इस ि थित म8 वग5 समाज पनु ः वापस लौट आता है। अतः माओ ने इस पर बल िदया िक इसक आवयकता
सतत् बनी रहती है-िक अतिव5रोध का व.प अ ितकूल बना रहे।
माओ का यह िव]ास है िक मन;ु य क िवचार प(ित म8-परवत5न िकया जा सकता है। मानव वभाव म8 िनिहत-
ितकूल अतिव5रोध को अ ितकूल अतिव5रोध के .प म8 बदल सकते हL। माओ ने इस पर बल िदया िक हमेशा

उराखंड म
ु िविवालय 287
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
इसके य+न िकये जाने चािहए िक आदश5 मन;ु य क थापना क जाय aय/िक मन;ु य के आदश5 होने से ही आदश5
समाज क सHभव है।

19.4सामािजक वचार
अपने सामािजक िवचार/ म8 माओ, माaस5 तथा लेिनन से भािवत हL िकतु वह चीन क परि थितय/ से भी
भािवत हL। िकंतु वह चीन क परि थितय/ से भी भािवत हL- इस =ि> से उसने लेिनन के सामािजक िवचार/ म8
संशोधन करने क कोिशश क है।
1926 तक माओ ने इस िवचार को वीकार िकया िक सव5हारा वग5 क Vाित का नेत+ृ व औ0ोिगक मजदरू से ही
सHभव है, कृ षक मजदरू से सभं व नह9 है। लेिकन 1926 के पFात् उसके िवचार/ म8 परवत5न िदखाई देता है। अपने
Aनउंद +मचवतज म8 माओ ने इस पर बल िदया िक चीन क परि थितय/ म8 कृ षक मजदरू का थान मह+वपणू 5 है।
माओ ने इसे वीकार िकया िक सव5हारा वग5 क Vाित का नेत+ृ व कृ षक मजदरू वग5 के ^ारा िकया जाना चािहए।
जैसा िक मैaलेनन ने िलखा है िक यह माओ का एक मह•वपणू 5 अनदु ान है-(डंततपेउ ◌ंिजमत डंतग)। माओ
पहला मrु य िवचारक था िजसने Vाित के नेत+ृ व के .प म8 कृ षक मजदरू क मह&ा पर बल िदया। लेिनन ने .स
क परि थितय/ म8 माaस5 के सामािजक िवचार/ म8 सश ं ोधन करने क कोिशश क थी तथा औ0ोिगक और कृ षक
मजदरू दोन/ क पर पर िमलाने क कोिशश क थी। उसके अनसु ार इन दोन/ के िमलने के पFात् ही सव5हारा वग5
क Vाित सफल ह/ग8। माओ ने इसे वीकार िकया इसने भी लेिनन के िवचार/ म8 कुछ सशं ोधन भी िकया।
1. लेिनन ने औ0ोिगक मजदरू के नेत+ृ व पर बल िदया। माओ ने कृ षक मजदरू के नेत+ृ व पर बल िदया।
2. माओ ने न के वल औ0ोिगक तथा कृ षक मजदरू / को िमलाने क कोिशश क, वरन् इस िVया को और आगे
बढ़ाया। अपने लेख छमू aमउवबतबं ल म8 माओ ने चीन के समाज क Oयाrया क तथा समाज को दो वगk म8 बाँटा
I. िमZ वग5 और II. शZु वग5। िमZ वग5 म8 उसने औ0ोिगक मजदरू , कृ षक मजदरू , रा;<ीय पँजू ीपित तथा छोटे-छोटे
पँजू ीपित को सिHमिलत िकया। शZवु ग5 म8 उसने साuा1यवादी शि\ तथा इसके समथ5क/ को सिHमिलत िकया।
माओ के अनसु ार चीन क परि थितय/ म8 सव5हारा वग5 क Vाित क सफलता के िलए इन चार िमZ वगk के
म3य िमZता क थापना क जानी चािहए तथा दो शZु वगk के प:/ का िवरोध िकया जाना चािहए। अपने इसी
िस(ांत को माओ ने ‘नवीन जातांिZक िस(ात’ का नाम िदया।
माओ के अनसु ार सव5हारा वग5 क Vाित क सफलता के िलए उन सभी त+व/ क सहायता को वीकार िकया
जाना चािहए िजनका उेय रा;<ीय िहत का समथ5न करना है। चीन म8 जापानी आVमण हो रहे थे, िवदेशी त+व/
का भाव बढ़ रहा था। माओ ने चीन क वतंZता के िलए इन िवदेशी साuा1यवादी त+व तथा इनके समथ5क
त+व/ का िवरोध िकया और इनके िवरोध म8 एक ‘सिHमिलत नेत+ृ व’ थािपत करने क कोिशश क, उसने िजस
सिHमिलत नेत+ृ व क थापना क उसी के परणाम व.प चीन म8 1949 म8 Vाित हQयी तथा समाजवाद क
थापना हQयी।

उराखंड म
ु िविवालय 288
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
एक बार जब इस सिHमिलत नेत+ृ व म8 तानाशाही क थापना हो गयी। समाजवाद का व.प ि थर हQआ तब िफर
से 1954 के पFात् माओ के िवचार/ म8 परवत5न आया। अब माओ ने उन िवचार/ पर बल िदया, िजससे सव5हारा
वग5 के शासन क थापना, तथा वग5िवहीन समाज क थापना होगी।
इस =ि> से हम यह कह सकते हL िक माओ के सामािजक िवचार/ म8 एक िवकास िदखाई देता है। यह िवकास चीन
क परि थितय/ से भािवत था। य0िप ारिHभक काल म8 इसने समझौते का रा ता अपनाया लेिकन बाद म8
उसका उेय वग5िवहीन समाज क थापना करना था।

19.5दल स4बधी वचार


माओ के पवू 5 लaजमबग5 और लेिनन ने दल के सHबध म8 अपने िवचार/ को Oय\ िकया था। चीन क सम याओ ं
के सदभ5 म8 माओ लेिनन तथा लaजमबग5 के िस(ात/ को िमलाने का यास लाता है। अपने दल सHबधी
िवचार/ म8 माओ लेिनन के इस मत को वीकार करता है िक दल क सफलता के िलए नेत+ृ व आवयक है। नेत+ृ व
के अभाव म8 सव5हारा वग5 क Vाित सफल नही हो सकती।
लेिकन साथ ही साथ माओ ने इस पर भी बल िदया िक Vाितकारी उेय/ क ािX के िलए जन समथ5न का
थान मह+वपणू 5 है। अतः जनता क भावनाओ ं का आदर िकया जाना चािहए। दल का यह कत5Oय है िक वह
जनभावनाओ ं के अन. ु प अपनी नीितय/ का िनधा5रण कर8 । इस =ि> को माओ ने साHयवादी दल म8 नौकरशाही क
वृि& का िवरोध िकया तथा ‘सव5हारा वग5 क सहजता क भावना तथा दल के नेत+ृ व’ के म3य घिनJ सHबध/
क आवयकता पर बल िदया।
वा तव म8 माओ अपने िवचार/ म8 चीन क परि थित से भािवत था। उसका यह िव]ास था िक सोिवयत .स के
नेताओ ं के िवचार/ को चीन म8 सफलतापवू 5क लागू नह9 कर सकते हL aय/िक चीन क परि थित .स क
परि थित से िभन है। चीन म8 शि\शाली िवदेशी त+व/ का भ+ु व था इनम8 जापान का थान मख ु था।
शि\शाली जापान का सामना करने के िलए साHयवादी दल को ‘जनसमथ5न’ ाX करने क आवयकता थी।
माओ ने िजस साHयवादी दल को वीकार िकया, इसके सद य न के वल दल के सिVय सद य थे वरन् सामािजक
काय5कता5 भी थे। माओ के अनसु ार दल को जनता क भावनाओ ं के अनसु ार काय5 करना चािहए। इस =ि> से हम
कह सकते हL िक माओ के दल सHबधी िवचार/ म8 लेिनन तथा लaज़मबग5 के िमले जल ु े िवचार थे। लेिनन क
नीित से एक ओर उसने दल के सगं ठन क मह&ा पर बल िदया तो दसू री ओर लaज़मबग5 क भांित सव5हारा वग5
क ‘सहज भावनाओ’ं क मह&ा को भी वीकार िकया।
1920-21 म8 जब चीनी साHयवादी दल का गठन िकया गया, तब यह मrु यतः सोिवयत .स के भाव म8 था।
माओ ने भी आरHभ म8 .स के नेताओ ं के िवचार/ को माना। लेिकन 1926 के पFात् माओ के िवचार/ म8 परवत5न
आने लगे। चीन क परि थितय/ म8 उसने शहर/ क अपे:ा Cाम/ क मह&ा पर बल िदया तथा कृ षक मजदरू / के
नेत+ृ व पर बल िदया। उसने चीन म8 साHयवादी दल क सफलता क =ि> से कृ षक मजदरू एवं दल के म3य घिनJ
सHबध/ क आवयकता को वीकार िकया।

उराखंड म
ु िविवालय 289
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1930 म8 चीन क साHयवादी दल के नेताओ ं से उसका मतभेद हQआ तथा गू ान के Cामीण :ेZ/ को उसने अपना
काय5 थल बनाया। Cामीण :ेZ से ही अपने Vाितकारी संघष5 का नेत+ृ व िकया। 1935 तक माओ चीन के
साHयवादी दल के सवmiच नेता के .प म8 ितिJत हQआ।
िजस कार लेिनन ने .स म8 Vाित क सफलता के िलए कृ षक मजदरू वग5 और औ0ोिगक वग5 के मजदरू / के
म3य िमZता पर बल िदया था, इसी कार माओ ने भी चीन म8 साHयवादी दल क सफलता के िलए उन सभी
सामािजक वगk के म3य िमZता पर बल िदया िजनक सहानभु िू त िवदेशी साuा1यवादी त+व/ के ित नह9 वरन
रा;<ीय िहत/ के ित थी।
इस =ि> से अपने दल सHबधी िवचार/ म8 माओ ने न के वल लेिनन के िवचार/ को वीकार िकया वरन उसे और
आगे बढ़ाने क कोिशश क। उसने इस पर बल िदया िक Vाितकारी उेय/ क ािX के िलए संय\ ु तानाशाही
क थापना क जानी चािहए। इस संय\ ु तानाशाही म8 उसने उन छोटे-छोटे पँजू ीपितय/ को भी शािमल िकया
िजनक सहानभु िू त-रा1य के ित थी तथा जो िवदेशी साuा1यवािदय/ के िवरोधी थे।
चीन के साHयवादी दल के िजस सयं \ु तानाशाही को वीकार िकया, उसी के नेत+ृ व म8 1949 म8 चीन म8
सफलतापवू 5क Vाित क गयी तथा समाजवादी शासन क थापना क गयी। एक =ि> से माओ ने चीन म8
साHयवादी दल के िलए-उस जातांिZक के pवाद के िवचार को वीकार िकया, िजसे .स म8 वीकार िकया गया
था।
.स क भाँित माओ ने भी एक ओर के pीय नेत+ृ व क मह&ा पर बल िदया तथा दल के नीचे के तर/ के ^ारा उसे
वीकार िकये जाने क आवयकता पर बल िदया। दसू री ओर उसने दल क सफलता के िलए चनु ाव के िस(ात
पर बल िदया तथा सव5हारा वग5 क सहजता के िस(ात को वीकार िकया।
1949 के पFात् माओ के दल सHबधी िवचार/ म8 िफर से परवत5न िदखाई देता है। 1956 म8 उसने िजस नवीन
नीित को वीकार िकया उसे ‘सौ फूल/ के िखलने क नीित’ कहते हL। Aनदकतमक jसवमू ते ळसववउश् माओ ने
इस पर बल िदया िक दल के काय5कता5ओ ं को अपने िवचार कट करने क वतZता होनी चािहए। इस =ि> से
हम कह सकते हL िक माओ ने दल के सHबध म8 उदारवादी त+व/ को वीकार िकया तथा के pीयकरण को सीिमत
करने क कोिशश क।
1958-59 म8 चीन के साHयवादी दल के नेत+ृ व म8 कई =ि>य/ से अतर िदखाई देने लगा। चीन क साHयवादी दल
मrु यतः दो भाग/ म8 बँट गयी। पहला भाग-जो अपने िवचार/ म8 अनदु ारवादी था। दसू रा भाग- जो अपने िवचार/ म8
गितवादी था।
पहले भाग अथा5त अनदु ारवादी दल का नेततृ व िलय-ु शाओ-िचयु तथा द8ग कर रहे थे। दसू रे दल का नेत+ृ व िलन-
िपआऊ कर रहे थे। जैसा िक कोला काव क ने िलखा है िक एक दल के इन दो भाग/ के म3य मrु यतः तीन =ि>य/
से अतर थे-
I. सेना के सगं ठन के सHबध म8।
II. आिथ5क िवकास के सHबध म8।

उराखंड म
ु िविवालय 290
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
III. िश:ा के सHबध म8।
1.सेना के सHबध म8 एक भाग Wेणीब( सेना का समथ5न कर रहा था, िजसम8 िविभन तर/ पर अनशु ासन क
मह&ा पर बल िदया जा रहा था। दसू री ओर सेना क सफलता क =ि> से Vाितकारी भावनाओ ं क मह&ा पर
बल िदया जा रहा था। इसम8 गु रbला छापामार य(
ु क प(ित क मह&ा पर बल िदया जा रहा था।
2.आिथ5क :ेZ म8 पहला भाग आिथ5क िवकास क =ि> से पाFा+य प(ित क मह&ा को वीकार कर रहा था।
आिथ5क िवकास हेतु वेतनमान क मह&ा पर बल दे रहा था। दसू रा भाग वेतन के थान पर रा;<ीय उेय क मह&ा
पर बल दे रहा था।
3.िश:ा के :ेZ म8 एक प: सोिवयत .स क भाँित Vमब( िश:ा क मह&ा पर बल दे रहा था। दसू रा प: िश:ा
के सदभ5 म8 Vाितकारी चेतना को उभारने क मह&ा पर बल दे रहा था।
इन दोन/ प:/ के िववाद म8 माओ क सहानभु िू त गितवादी प: क ओर थी। दल के अनदु ारवादी नेत+ृ व क
आलोचना क गयी तथा इनके मह+व को कम करने क कोिशश क गयी।
1960 के दशक म8 चीन म8 सां कृ ितक Vाित हQयी। इस Vाित के सदभ5 म8 िवचारक/ ने िविभन कार के मत िदये
हL। एक मत के अनसु ार इस Vाित का उेय चीन के साHयवादी दल म8 माओ के नेत+ृ व को थािपत करना था।
लेिकन जैसा िक टुअट5 Rैन (ने िलखा है-िक कभी भी चीन म8 माओ के सवmiच नेत+ृ व पर Bिचह् नह9 लगाया
गया। 1935 के पFात् से लेकर मृ+यपु य5त तक वह चीन का सवmiच नेता बना रहा।
वा तव म8 सां कृ ितक Vाित का मrु य उेय दल के िवचार/ म8 सधु ार करना था। माओ के अनसु ार चीन के
साHयवादी दल म8 जो नौकरशाही त+व आगे बढ़ रहे थे उनका िवरोध करना चािहए। जैसा िक टुअट5 Rैन िलखते हL
िक-‘‘सां कृ ितक Vाित ने यह िस( कर िदया िक चीन के साHयवादी दल को उह9 आदशk का पालन करना
चािहए जो माओ के आदश5 थे इसी म8 चीन क जनता क भलाई है।’’
लेिकन माओ दल का िवरोधी नह9 था, य0िप सां कृ ितक Vाित के समय उसने इस बात पर बल िदया िक दल को
सव5हारा वग5 क भावनाओ ं को समझना तथा उसके अन. ु प काय5 करना चािहए। लेिकन 1966 म8 जब सां कृ ितक
Vाित समाX हQयी तब माओ ने पनु ः दल के संगठन क आवयकता पर बल िदया तथा दल के नेत+ृ व क मह&ा
को वीकार िकया। इसके पFात् चीन का साHयवादी दल माओ के आदशk के अन. ु प काय5 करता रहा।
1976 म8 जब माओ क मृ+यु हQयी तब चीन म8 नयी गित हQयी। Vमशः द8ग िफर से दल के सवmiच नेता के .प म8
उभरकर सामने आये। उह/ने दल के सगं ठन और इसके उेय/ के सHबध म8 परवत5न िकये। वा तव म8 इनके िजन
िवचार/ को 1959-60 म8 वीकार नह9 िकया गया था, वरन् आलोचना क गयी थी, उह/ने इन िवचार/ को िफर से
थािपत करने क कोिशश क।

19.6 Pाित स;बधी िवचार


अपने Vाित सHबधी िवचार/ म8 माओ, माaस5 तथा लेिनन से भािवत था। लेिकन चीन क परि थितय/ म8 उसने
इस िस(ात म8 कुछ परवत5न भी िकये। Vाित के सदभ5 म8 माaस5 ने दो कारण/ क मह&ा पर बल िदया था- एक
तो ऐितहािसक काननू का िवकास और दसू रे इiछा का त+व। इन दोन/ म8 माaस5 ने ऐितहािसक काननू को अिधक

उराखंड म
ु िविवालय 291
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
मह+व िदया था। माaस5 के अनसु ार ऐितहािसक भौितकवाद के िस(ात के ^ारा इस िन;कष5 क पिु > क जाती है
िक पँजू ीवादी Oयव था के पFात् Vाित होगी: तानाशाही क थापना होगी िजससे आदश5 समाज क थापना क
जायेगी।
लेिनन ने माaस5 के िवचार/ को वीकार िकया लेिकन उसने .स क परि थितय/ म8 एक तो, इiछा के त+व पर
अिधक बल िदया। लेिनन के अनसु ार इसके अभाव म8 Vाित सफलतापवू 5क नह9 क जा सकती। दसू रे लेिनन ने
माaस5 के ^ारा वीकार िकये गये, Vाित के दो चरण/ म8 ( तर/ म8) अतर नह9 िकया वरन् इस पर बल िदया िक
1917 क परि थितय/ म8 दोन/ चरण एक साथ सHपन हQए और तीसरे लेिनन ने इस पर बल िदया िक Vाित क
सफलता के िलए औ0ोिगक मजदरू तथा कृ षक मजदरू वग5 के म3य िमZता आवयक है।
माओ इन िवचार/ से भािवत था, लेिकन िजस कार लेिनन ने .स क परि थितय/ के अन. ु प माaस5 के
िस(ात म8 परवत5न करने क कोिशश क थी, उसी कार माओ ने चीन क परि थितय/ म8 इसम8 परवत5न करने
क कोिशश क।
माओ ने अपने िवचार/ म8 ऐितहािसक काननू / क मह&ा पर अिधक बल नह9 िदया। उसने लेिनन के इस िवचार को
मान िलया िक वत5मान यगु साuा1यवाद का यगु है। मrु य अतिव5रोध साuा1यवादी शि\ तथा उपिनवेश/ क
शोिषत जनता के म3य है। उसने इस पर बल िदया िक Vाित के पFात् सव5हारा वग5 क िवजय होगी तथा
तानाशाही क थापना क जायेगी इससे आदश5 समाज क थापना होगी।
लेिनन क भाँित माओ ने भी Vाित के िविभन चरण/ क मह&ा को वीकार नह9 िकया। उसके िवचार/ म8 इस पर
बल नह9 िदखाई देता है। लेिनन क भाँित उसने भी वीकार िकया िक िविभन चरण एक साथ सHपािदत हो सकते
हL।
Vाित क सफलता क =ि> से उसने लेिनन क भाँित सव5हारा वग5 के िविभन वगk के म3य िमZतापणू 5 सHबध
क आवयकता पर बल िदया। वा तव म8 माओ ने लेिनन के इस िवचार को और आगे बढ़ाया। इसने न के वल
औ0ोिगक मजदरू और कृ षक मजदरू वग5 क िमZता क आवयकता पर बल िदया, वरन इसे और अिधक
Oयापक बनाने क कोिशश क। चीन क परि थितय/ म8 उसने इस पर भी बल िदया िक Vाित का नेत+ृ व कृ षक
मजदरू वग5 के ^ारा िकया जाना चािहए।
माओ ने अपने Vाित के िस(ात म8 सवा5िधक मह+व शि\ को दान िकया। उसने िलखा है िक ‘बदक ू क नली
से Vाितयाँ होती हL’’ माaस5 के िवचार/ म8 भी शि\ क मह&ा को वीकार िकया गया है, लेिनन ने भी इसके
मह+व को वीकार िकया है। लेिकन माaस5 और लेिनन म8 जातांिZक त+व/ क मह&ा को भी वीकार िकया गया
है। Vाित के सदभ5 म8 शि\ क मह&ा पर बल देने म8 माओ इनसे आगे हL।
शि\ के अभाव म8 छापामार य( ु प(ित- माओ का यह िव]ास था िक संगिठत शि\ के अभाव म8 चीन म8
सफलतापवू 5क Vाित नह9 क जा सकती थी। इसी =ि> से उसने एक िवशेष य( ु प(ित पर बल िदया, िजसे
छापामार य(
ु प(ित कहते हL तथा चीन म8 उसने िविश> सेना का गठन िकया, िजसे लाल सेना का नाम िदया गया।

19.6.1 छापामार य!
ु प!ित

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ु िविवालय 292
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माओ के Vाित िस(ात म8 इन दोन/ का थान मह+वपणू 5 है। छापामार य(
ु प(ित माओ का एक िवशेष अनदु ान
है। इस प(ित के अनसु ार शि\शाली शZु से खल ु े .प म8 सामना करना उिचत नह9 है वरन् इसका सामना िछपकर
करना चािहए। माओ ने िजस छापामार य( ु प(ित पर बल िदया है उसम8 उसने इसक कई अव थाओ ं पर बल
िदया है। इसक सफलता के िलए एक िवशेष रणनीित क आवयकता होती है। ‘माओ के अनसु ार जब शZु
आVमण करता है हम पीछे हटते हL जब शZु .कता है तब हम तैयारी करते हL और जब शZु थक जाता है तब हम
उसे परे शान करते हL तथा जब शZु वापस लौटता है तब हम आVमण करते हL।’’

19.6.2 सफलता के िलए आव5यक दशाएं


माओ का यह िव]ास है िक इस य( ु प(ित म8 एक के ^ारा दस शZओ
ु ं का सामना िकया जा सकता है लेिकन
माओ के अनसु ार छापामार य(
ु क सफलता के िलए कुछ आवयक दशाएं होती हL-इनके अभाव म8 यह सफल
नह9 हो पाती, इसक सफलता क मrु य दशाएं ये हL-
1.जनता म8 इसके िलए एक िविश> थान का होना अथा5त जनता ^ारा इस प(ित का समथ5न होना।
2.दल के ^ारा सश\ नेत+ृ व क थापना।
3.एक शि\शाली सैय संगठन।
4.उपय\
ु य(
ु :ेZ क ािX- जंगली या पहाड़ी भिू म म8 यह य(
ु अिधक सफलतापवू 5क िकया जा सकता है।
5.आवयक आिथ5क संगठन का होना।
19.6.3 छापामार य(
ु का सैिनक एवं दल का नेत+ृ व
माओ के अनसु ार छापामार य(ु का सैिनक के वल सैिनक माZ नह9 होता है, वरन वह जनता का पथ द5शन भी
करता है। वह Vाितकारी चेतना के िवकास म8 सहायता करता है। सामाय समय/ म8 वह जनता म8 िहल िमलकर
रहता है तथा घर-घर म8 Vाित का सदेश पहQचँ ाता है। माओ ने इस पर भी बल िदया है िक इस य(
ु प(ित क
सफलता के िलए दल का नेत+ृ व आवयक होता है।

19.6.4 माओ तथा चेgव(रा म( अतर


इस =ि> से माओ तथा चे}व8रा के िवचार/ म8 अतर है। चे}व8रा ने लैिटन अमेरका क परि थितय/ म8 इस पर बल
िदया िक छापामार सैिनक नेत+ृ व दान करता है। इन सैिनक/ से साHयवादी दल के नेत+ृ व क थापना क जाती है।
अतः चे}व8रा ने अपने िवचार/ म8 पृथक दल के नेत+ृ व क अपे:ा छापामार सैिनक/ के नेत+ृ व पर अिधक बल िदया
है। चे}व8रा के िवचार/ म8 दल का थान इनके पीछे है। माओ ने दल के नेत+ृ व पर बल िदया है तथा छापामार सैिनक/
पर दल के ^ारा िनयZण क थापना पर बल िदया है।

19.6.5 Pाित स;बधी िवचार9 म( िवकास


1926 के बाद- माओ के Vाित सHबधी िवचार/ म8 एक िवकास िदखाई देता है। 1926 ई0 के पवू 5 चीन के
साHयवादी दल पर सोिवयत .स के साHयवादी दल के िवचार/ का भाव था। Vाित क सफलता क =ि> से

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ु िविवालय 293
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
सोिवयत .स के नेताओ ं ने गाँव क अपे:ा नगर/ क मह&ा पर अिधक बल िदया था। उनके अनसु ार Vाित का
आरHभ नगर से िकया जाना चािहए aय/िक देश म8 नगर/ का थान अिधक मह+वपणू 5 होता है।
दसू रे सोिवयत .प के नेताओ ं ने चीन म8 Vाित क सफलता के िलए इस पर बल िदया था िक चीन के साHयवादी
दल को वहाँ के कोिमंक-तांग-पाटf से िमलकर काय5 करना चािहए। इसका नेत+ृ व चांग-ताई-शेक कर रहे थे। 1926
तक माओ ने इसके साथ िमलकर काय5 िकया िकतु 1926 के उपरात उसने इन दोन/ बात/ क आलोचना क।
माओ के अनसु ार चीन म8 नगर/ के थान पर Cाम/ का थान अिधक मह+वपणू 5 है अतः Vाित क ािX क िदशा
नगर/ से गाँव क ओर नह9 वरन Cाम/ से नगर/ क ओर होना चािहए। दसू रे माओ ने इस पर भी बल िदया िक
Vाित क सफलता के िलए ‘कोिमक-तांग-दल’ पर िनभ5र नह9 रहना चािहए वरन् साHयवादी दल को वयं अपनी
शि\ का िवकास करना चािहए।
आरHभ म8 माओ के इन िवचार/ को चीन के साHयवादी दल ने वीकार नह9 िकया लेिकन 1930 तक माओ के
िवचार/ क स+यता मािणत होने लगी। चीन के िजन नगर/ म8 Vाित के य+न िकये गये थे वे असफल िस( हQए
और इन Vाितय/ के असफल होने म8 #dडdज् का भी सहयोग था।
1930 के बाद 1935 तक- 1930 के पFात् माओ तथा चीन के साHयवादी दल के नेततृ व के म3य मतभेद उभरकर
सामने आए। माओ ने नू ान के Cाम/ म8 अपने अलग दल क थापना क तथा नू ॉन के Cाम/ से वह Vाित का
संचालन करने लगा। इसके िलए माओ ने एक सश\ सेना का िनमा5ण िकया। छापामार य( ु प(ित को वीकार
िकया तथा इनका उपयोग िवदेशी शि\, साuा1यवादी और साuा1यवाद के समथ5क/ के िव.( िकया। चँिू क इस
काल म8 चीन म8 जापान का भ+ु व बढ़ रहा था। अतः जनता म8 जापािनय/ के िलए आदर क भावना नह9 थी।
इसिलए माओ को जन समथ5न ाX हQआ।
Cाम/ क सहायता से उसने अपने भाव का िव तार िकया। 1934-35 म8 माओ ने अपने समथ5क/ के साथ लHबी
याZा क तथा जनता के सम: अपने िवचार/ को रखा। 1935 तक माओ ने Vाित के िजस व.प को तुत
िकया था उसे चीन के साHयवादी दल ने भी वीकार कर िलया था। Vाित के सदभ5 म8 शि\ क मह&ा और लाल
सेना तथा Cामीण जनता के समथ5न क मह&ा को वीकार कर िलया गया।
1935 के पFात- 1935 के पFात् माओ के Vाित सHबधी िवचार/ म8 िफर एक परवत5न िदखाई देता है उसने
सव5हारा वग5 क तानाशाही के सदभ5 म8 लेिनन के िवचार/ को और आगे बढ़ाने क कोिशश क। उसने Vाित क
सफलता क =ि> से न के वल कृ षक मजदरू वग5 और औ0ोिगक मजदरू वग5 के म3य घिनJ सHबध/ क
आवयकता पर बल िदया, वरन् उन सभी वगk क सहायता वीकार िकया, िजनक सहानभु िू त रा;<ीय
आकां:ाओ ं के ित थी। माओ ने अपने लेख छमू aमउवबतंबल (1940( म8 चीन क जनता म8 शZु वग5 ओर िमZ
वग5 के म3य एक िवभाजन क रे खा ख9चने क कोिशश क। उसने सव5हारा वग5 क Vाित क सफलता क =ि> से
रा;<ीय पँजू ीपितय/ तथा छोटे-छोटे पँजू ीपितय/ क सहायता को वीकार िकया।
इस =ि> से माओ ने एक संय\
ु तानाशाही क थापना पर बल िदया। इस संय\
ु तानाशाही के नेत+ृ व म8 ही चीन म8
Vाित सफल हQयी तथा 1949 म8 वहाँ समाजवादी शासन क थापना क गयी।
1949 के पFात्

उराखंड म
ु िविवालय 294
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201
1949 के पFात् माओ के Vाित सHबधी िवचार/ म8 िफर से एक बदलाव िदखाई पड़ता है। अब माओ के िवचार/
म8 ‘संय\
ु तानाशाही’ के थान पर ‘समाजवादी समाज क तानाशाही’ क थापना पर बल िदखाई देता हL।
1960 के दशक म8
"On Correct Handling and Contradiction म8 माओ ने इस बात पर बल िदया िक समाजवाद क थापना
के िलए अतिव5रोध/ का अत िकया जाना चािहए। अब माओ माaस5 के आदश5 समाज क ओर झक ु ा हQआ
िदखाई देता है। 1960 के दशक म8 जो सां कृ ितक Vाित हQयी उस Vाित म8 माओ ने (1) समाज िवरोधी त+व/ को
दबाने पर बल िदया तथा उसने (2) चीन के समाज को आदश5 समाज क ओर बढ़ाने क कोिशश करते हQए (3)
अतिव5रोध/ को समाX करने का यास िकया।
सां कृ ितक Vाित म8 Vाितकारी गितिविधय/ को नेत+ृ व दान करने के िलए कHयू स (@वउउनदमे) क थापना
क गयी थी। इस Vाितकारी नेत+ृ व म8 माओ ने तीन त+व/ को शािमल करने क कोिशश क (1) सेना का
ितिनिध (2) दल का ितिनिध (3) यवु ा Vाितकारय/ का ितिनिध+व- माओ ं के इसी िस(ात को Three in
One का िस(ात कहा गया है।
अपने Vाित सHबधी िवचार/ म8 माओ ने इस पर बल िदया िक ‘अतिव5रोध’ मानव वभाव म8 िनिहत है अतः
Vाित क सHभावना हमेशा बनी रहती है। माओ के इस िस(ात को सतत् Vाित का िस(ात कहते हL। इस
िस(ात के अनसु ार िवरोध के दो .प है- एक ितकूल तथा दसू रा अ ितकूल।
समाजवादी समाज म8 िवरोध का व.प अ ितकूल होता है। वग5 समाज म8 इसका .प ितकूल होता है।
समाजवाद क थापना म8 पFात् भी इसक सHभावना बनी रहती है। अतिव5रोध का व.प अ ितकूल से
ितकूल हो जाय और िफर से वग5 समाज वापस लौट आये। इसिलए इसे रोकने क आवयकता हमेशा बनी रहती
है अतः Vाित क आवयकता हमेशा बनी रहती है। इसक सHभावना समाजवाद क थापना के बाद भी बनी
रहती है।
माओ का यह िव]ास था िक मानव वभाव को बदला जा सकता है। माओ के अनसु ार जब तक आदश5 Oयि\
क थापना नह9 होती आदश5 समाज क थाना नह9 क जा सकती है। माओ के िवचार/ का वा तिवक उेय
आदश5 Oयि\ का िनमा5ण करना है। इस =ि> से वह िवचार क उपयोिगता को वीकार करता है। िस(ात/ के ^ारा
Oयि\ का वभाव बदल कर आदश5 Oयि\ का िनमा5ण िकया जा सकता है। अतः इस =ि> से टािलन तथा माओ
म8 अतर है।
टािलन ने अपने िवरोिधय/ को समाX करने क कोिशश क जबिक माओ ने उनको सधु ारने क कोिशश क।
उनके मि त;क को बदलना होगा, माओ के िवचार/ म8 आदश5 Oयि\ का िनमा5ण करना मह+वपणू 5 है। िवचार/ के
मा3यम से आदश5 Oयि\ क थापना करना माओ के िवचार/ का एक मह+वपणू 5 अनदु ान है। राजनीितक िवचार/
का आधार Oयि\य/ क अबिु (वादी वृि&याँ है। अतः इन िवचारक/ ने अपने िवचार/ म8 राजनीितक तथा
मनोवै#ािनक त+व/ के म3य घिनJ सHबध/ क थापना पर बल िदया।

अAयास B-

उराखंड म
ु िविवालय 295
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

1. ‘यू डेमोVे सी’ िकसी रचना है?


a.माaस5 b. लेिनन c. टािलन d. माओ
2. िनHन म8 कौन सी प ु तक/प ु तक8 माओ ^ारा िलिखत है-
a. ‘ऑन करे aट हLडिलंग ऑफ कं<ािडaशन b. ‘ऑन ैिaटस एdड ऑन
कं<ािडaशन’
c. ‘गु रbला वार’ d. उपरो\ सभी
3. माओ-+से-तंगु क जमितिथ है-
a. 26 िदसHबर 1893 b. 26 माच5 1893
c. 26 अग त 1893 d. 26 जनवरी 1893
4. माओ ने अपने िवचार/ म8 धानता दी-
a. िस(ांत को b. Oयवहार को
c. उपरो\ दोन/ को d. इनम8 से कोई नह9
5. माओ के समय चीन म8 सवा5िधक असंतोषक िकस वग5 म8 था-
a. मजदरू वग5 b. पं◌ूजीवादी वग5
c. कृ षक वग5 d. उपरो\ कोई नह9

19.7 सारांश
तुत इकाई के अतं ग5त अपने माओ-+से-तंगु का जीवन परचय जाना एवं माओ के समय के चीन क
परि थितय/ से अवगत हQए। आपने यह भी देखा िक चीन क परि थितय/ का माओ के दाश5िनक, सामािजक एवं
Vांित के िस(ांत/ पर मह+वपणू 5 अकं न है। माओ चीन क पर थितयो से पणू त5 या भािवत था िकंतु 1917 क
Vांित के बाद वह माaस5 एवं लेिनन के िस(ातं / से भी अपने को भािवत होने से रोक न सका।
माओ त+कालीन चीन क सम याओ ं के समाधान को एक ऐसी Vांित के .प म8 देखता है जो साHयवादी दल के
मा3यम से संय\
ु तानाशाही के .प म8 थािपत होती है और इसम8 छापामार य(
ु प(ित का मख ु थान होता है।
िन;कष5तः हम कह सकते हL िक माओ का वा तिवक उेय आदश5 Oयि\ का िनमा5ण करते हQये चीन के वत5मान
समाज को आदश5 समाज बनाने का य+न था। अत म8 माओ के सदभ5 म8 सबसे मह+वपणू 5 बात यह है िक वह यह
मानता था िक मन;ु य का वभाव बदला जा सकता है, यही वजह थी िक टािलन क भाँित वह िवरोिधय/ को
समाX करने क जगह िवचार/ के मा3यम से आदश5 Oयि\ क थापना पर जोर देता है।

उराखंड म
ु िविवालय 296
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

19.8श!दावल$
1.साHयवाद- ऐसी समाज-Oयव था िजसम8 िकसी समदु ाय के सद य िमल-जल ु कर रहते हL। कोई छोटा-बड़ा
नह9 होता। ऐसे समाज म8 िकसी व तु पर िकसी का Oयि\गत वािम+व नह9 होता, बिbक समदु ाय क सभी व तएु ं
सब सद य/ के सामाय वािम+व म8 रखी जाती है।
2.अिधनायकवाद- अिधनायकवाद का योग साधारणतः ऐसे सदभ5 म8 करते हL जहाँ कोई Oयि\ अपने िवल:ण
नेत+ृ व, लोकि यता या सैय संगठन क िनJा के बल पर सांिवधािनक Oयव था को धाराशायी करके पणू 5 स&ा पर
अपना अिधकार कर लेता है। इस Oयव था के अतं ग5त स&ा के िवरोिधय/ के दमन पर िवशेष बल िदया जाता है।
3.सां कृ ितक Vांित- नव माaस5वाद के साथ जड़ु ा यह िवचार के वल आिथ5क या काननू ी :ेZ म8 Vांित हो जाने पर
सारी Oयव था अपने आप वग5हीन समाज क ओर अCसर नह9 होगी। समाजवाद के लsय क पिू त5 के िलये समाज
क िचंतन णाली, िवचारधारा और सं कृ ित को बजु 5वु ा सं कार/ से म\
ु करके नए समाजवादी ढांचे म8 ढालना
ज.री है।
4.शि\- साधारणतः लोग जो कुछ नह9 करना चाहते उनसे वैसा कराने क :मता को ‘शि\’ क सं#ा दी जाती
है।
5.K.M.T कुओिमटांग, 1891 म8 सनु यात-सेन ^ारा स ं थािपत चीन का रा;<वादी दल।
6.सव5हारा- माaस5वाद के अनसु ार औ0ोिगक कामगार/ का वह िवशाल वग5 जो औ0ोिगककरण के साथ
अि त+व म8 आया और पजंू ीवादी यगु म8 जनसाधारण का पया5य है। इसके पास कोई िनजी सHपि& नह9 होती और
यह के वल अपनी Wम शि\ के बल पर जीवन िनवा5ह करता है ।

19.9 अ&यास 
न' के उ तर
1.d 2.d 3.a 4.b 5.c

19.10 सदभ) *थ सच


ू ी
1.‘एनािलिसस ऑफ चाइनीज सोसाइटी’ (1924)
2.‘मू न रपोट5’ (1927)
3.‘गु रbला वार’ (1932)
4.‘ऑन ैिaटस एdड ऑन क<ािडaशन’ (1933)
5.‘यू डेमोVे सी’ (1924)
6.‘ऑन करे aट हLडिलंग ऑफ कं<ािडaशन’ (1957)

उराखंड म
ु िविवालय 297
ितिनिध राजनीितक िवचारक BAPS-201

19.11 सहायक/उपयोगी प
ु तक?-
1.राजनीितक िचतं न क .परे खा - ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, थम स ं करण-1996
2.आधिु नक राजनीितक िवचार/ का इितहास, चतुथ5 भाग-1योित साद सदू - के 0 नाथ एdड कHपनी, मेरठ, 1994-
95
3.राजनीित कोश- डॉ0 सभु ाष कयप, िव] काश गXु , िहदी मा3यम काया5वय िनदेशालय, िदbली
िव]िव0ालय, थम स ं करण-1998
4.राजनीित िस(ांत क .परे खा- ओ0पी0 गाबा-मयरू पेपर बैaस, पंचम सं करण-2001
5.राजनीित िव#ान िव]कोश- ओ0पी0 गाबा- नेशनल पि@लिशगं हाउस, दरयागंज, िदbली, थम सं करण-
1998

19.12 नबधा मक 
न-
1.माओ-+से-तंगु के Vांित सHबंधी िस(ांत/ का िव तृत िवƒे षण करते हQये आलोचना+मक परी:ण किजए?
2.माओ-+से-तंगु के दाश5िनक िवचार/ पर िव तृत .प से िववेचन ततु कर8 ?

उराखंड म
ु िविवालय 298

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