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Sum Hi 12 (2 - 2) AG L1May22 050622
Sum Hi 12 (2 - 2) AG L1May22 050622
उम भ के लण
ाथना, दीप लन एवं गु वंदना के साथ भ योग नामक अंत सुंदर अाय का ारं भ आ। कई जों के पु के
आधार पर हम गीता जी सीख रहे ह ,समझ रहे एवं जीवन म उतार रहे ह । यिद हम गलत उारण भी कर रहे ह और हम याद
नहीं कर पा रहे ह ,तब भी िजस तरह माता अपने बालक की तोतली भाषा म भी स होती है , उसी कार भु स होते ह ,
भगवान का नाम हम िकसी भी तरह लगे काण ही होगा। वाीिक मरा मरा जप के संत हो गए अतः अशु बोलने से कोई
दोष नहीं लगता। यिद म शु बोलूंगा तब मुझे खुशी होगी की अतः हम मन से गीता को जीवन म अपनाएं एवं जो समय हमारा
भगवत भ म जा रहा है वही सबसे अनमोल है ।
12.11
अगर मेरे योग (समता) के आित आ (तू) इस (पूव ोक म कहे गये साधन) को भी करने म (अपने को) असमथ (पाता) है ,
तो मन इयों को वश म करके सूण कम के फल की इा का ाग कर।
िववेचन : अजुन भगवान से कहते ह िक भगवान आप मुझे इतने सारे राे बता कर िवचिलत मत कीिजए आप एक ही राा
बता दो तािक म संतु हो जाऊं। भगवान कहते ह िक म एक ों बताऊं म तो सारे राे बता दू ं गा कौन सा अपनाना है यह
तुारे हाथ म है अजुन तुम मेरे आित होकर सब कम के फल का ाग करना सीख जाओ।
12.12
अास से शाान े है , शाान से ान े है (और) ान से (भी) सब कम के फल की इा का ाग (े है )।
ोंिक ाग से ताल ही परम शा ा हो जाती है ।
िववेचन : िबना फल की इा से िकया गया काय एवं िबना फल की इा से िकया गया कम ही उम है । यिद हम परम शां ित
को ा करना है तो हम जो भी कम करना है वह िसफ भगवान को समिपत करते जाना है । हम यह नहीं सोचना है िक
उसका फल ा होगा। कई बार हम लोग फल का पहले सोचते ह और कम बाद म करते ह , िकंतु उससे हम शां ित नहीं
िमलती। "इये वही है जो राम रिच राखा" अतः हम सबसे पहले शाों का अयन करना चािहए, तान होने के बाद
ान और ान के बाद फल की इा का ाग ही सवे है , ोंिक जैसे ही हम कम की इा ाग दे ते ह हम तुरंत शां ित
परम शां ित िमलती है । भगवान कहते ह िक हम कोई भी कम करना ार करते ह उसके पहले ही सोच लेते ह िक इसका
फल ा होगा लेिकन यिद हम िनाथ भाव से अपने कम करते जाएं तो फल दे ना तो िनित ही ईर के हाथ म है ाग के
फल म जो आनंद है ोंिक फल की इा ही नहीं है वह िसफ अपने कम म खुश होकर करे गा कई बार जब हम अपने आप
को भ मान लेते ह िकंतु भगवान कहते ह तुम कह रहे हो िक तुम भ हो, अगर तुमने जनेऊ पहन िलया, ितलक लगा
िलया, राम-राम बोल िलया तो यह भों के पया लण नहीं है ।
आगे के ोकों म भों के 39 लण भगवान के ारा बताए गए ह । यिद अंदर से वैसा है तभी वे भ है ।
12.13
सब ािणयों म े षभाव से रिहत और िम भाव वाला (तथा) दयालु भी (और) ममता रिहत, अहं कार रिहत, सुख दु ःख की ा
म सम, माशील, िनरर सु, योगी, शरीर को वश म िकये ए, ढ़ िनयवाला, मुझ म अिपत मन बु वाला जो मेरा भ
है , वह मुझे िय है । (12.13-12.14)
िववेचन : जो िकसी से भी े ष भाव नहीं रखता, जो िकसी का शु नहीं है ,सभी से िमता का भाव रखने वाला है , िजसकी
िकसी से शुता नहीं है जो दयालु है । दू सरों के दु ख को दे खकर िपघल जाता है िजस तरह मन िपघल जाता है । उसी तरह
दू सरों के दु ख से उसका दय िवत हो जाता है ,जो मा करना जानता है , जो सुख और दु ख म समान रहता है ।अपनी लाइन
बड़ी करने के िलए दू सरो की लाइन छोटी ना करता हो। िजसका िनय हमेशा ढ़ रहता है और उसकी बु हमेशा मेरा ही
ान करती रहती है । वह मुझे अंत िय है । अपने लोग, अे लोग और एक सन जो िक मेरे िय है यह
तीनों जन जब भी ठे इ हमेशा , बार-बार मना लेना चािहए ोंिक यिद मोितयों का हार टू ट जाता है तो हम भी उसे
बार-बार िपरो लेते ह , धागा टू टने पर भी ोंिक वह कीमती मोितयों का हार होता है । उसी तरह जो सन है वह िकतनी बार
भी ठ तो उ मना लेना चािहए। किव रहीम कहते ह
अे पुाा से मैी एवं दु खी के ित कणा भाव होना चािहए। कणा करने के िलए कुछ नहीं चािहए। बस दू सरों
के दु ख को दे खकर िपघल जाए।
उसके पात अगला गुण है मा, मा करना सबसे बड़ा भों का लण है मा करके भूल जाना चािहए। एक बार की बात
है महाराजा रणजीत िसंह अपनी सेना के साथ िनकल रहे थे, दोनों तरफ के राे बंद िकये गए थे। काफी संा म लोग
उपथत थे। तभी िकसी ने महाराजा रं िजत िसंह के सर पर एक पर मारा, िजससे उनके सर से खून िनकलने लगा। सैिनकों
ने दे खा िक पर एक बे ने े मारा और उस बे को पकड़ लाएऔर बोले िक इस बे को तुरंत मार िदया जाए। महाराजा
रं िजत िसंह जी बोले िक को, पहले बे से पूछो िक उसने ों पर मारा। बे से पूछा गया िक आपने पर ों मारा?
बे ने बताया िक मुझे तो पता ही नही की आप िनकल रहे े ह , मैनै तो आम के पेड़ पर पर मारा था ोंिक मुझे आम खाना
था लेिकन पर आपको लग गया। तब महाराणा रं जीत िसंह जी बोलते ह िक 5 पेटी मीठे आम के बे को दे दो। सैिनक
बोलते है िक आपको तो इसे दं ड दे ना चािहए इसने आपको पर मारा और आप इसे आम दे रहे ह । महाराजा रं िजत िसंह जी
बोलते े ह इस बे से तो मुझे बत अी बात िसखाई िक पेड़ पर पर मारा तो पेड़ उसे पर के बदले म फल दे े रहा। पेड़
तो जड़ है , म तो िफर भी जीिवत ं िक कोई अगरअनजाने म हमारे ऊपर पर भी मारे उसे अा ही फल दे ना चािहए ,यही
गुण मा कहलाता है ।
उसी कार जो भ िनमही होता है िजसम मम का भाव नहीं इसम कोई अहं कार नहीं होता है । वह भ मुझे अंत िय
है उदाहरण के िलए एक पित पी िज खरीदने जाते े ह जैसे ही वह िज कलर और साइज दे खकर पसं◌ंद करते उसके
ऊपर दु कानदार उनके नाम का टै ग लगा दे ता है और तभी से उनके मन म यह भाव आ जाता िक यह िज हमारा है । तभी
वहां पर एक नौकर बड़ा सा सामान लेकर आता है तो मािलक कहता है यह िज हमारा है दे खना इसको चोट मत लगा दे ना,
मतलब अभी पैसे िदए भी नहीं ह , और मेरे का भाव आ गया कुछ लोग तो कभी बड़े ही नहीं◌ं होते, ये मोबाइल मेरा है कोई मेरी
चीज को मत मत छु ओ अतः मेरे की भावना को छोड़ना ही उम भों का लण है ।
12.14
िववेचन : हे अजुन जो पूण प से संतु है , जो संतोषी है , संतोष धन के िबना सारे धन धूल के समान है । य ने जो पूछे थे
उसम से युिधिर से एक पूछा िक दर कौन है ? उनका उर था जो असंतु है वह दर है । दर वह है जो िक बत
पैसा होने के बाद भी वह संतु नहीं होता है , िजसके पास संतोष नहीं है । संतोषी के मन बु सब म थरता है या नहीं। मन
हमारा ामी यह मन के ामी अपनी इं ियों पर िनयंण कर सके, जो ढ़ िनयी ह , जो अपने मन और बु को मुझ म
समिपत करता है , वह मुझे िय है । पावती ने िशवजी को पाने के िलए कठोर तपा की। एक समय ऐसा आया िक
उोंने पे खाकर ही तपा की इसीिलए उनका नाम अपणा पड़ा। जब स ऋिष उनके पास आए और उ बोले िक तुम
ों तपा कर रही हो िशवजी के िलए, पावती जी कहती है िक आप सौ बार मना कर या हजार बार म िशवजी से ही
िववाह क
ं गी , ये मेरे मन म ढ़ िनय ह नहीं तो कुंवारी रह जाऊंगी।
12.15
िजससे कोई भी ाणी उि (ु) नहीं होता और जो यं भी िकसी ाणी से उि नहीं होता तथा जो हष, अमष (ईा ), भय
और उे ग (हलचल) से रिहत है , वह मुझे िय है ।
िववेचन : ना ही िकसी को परे शान करना और ना ही िकसी के परे शान करने से परे शान होना। ना तुम िकसी को उेिजत करो
ना तुम िकसी के कारण उेिजत हो। कोई मुझे परे शान नहीं कर सकता भगवान मेरे साथ है , ना ादा बत स होना, ना ही
बत दु खी होना,अपने अनुकूल बात ना होने पर परे शान नहीं होना। जोअनुकूलता ितकूलता सब कुछ सह सकता है वह भ
मुझे अंत िय है । भ कोन िचंता नहीं होती है उसे भगवान पर पूण िवास है मेरे साथ है रघुनाथ तो िकस बात की िचंता।
वही भ मुझे िय है ।अंत सुंदर भजन के साथ ये बात की गई। भजन की िलंक
https://drive.google.com/file/d/1zFLbvVCte4I5aghh8Ud6K9n44JJI5_YO/view?usp=sharing
12.16
अनपेः(श्) शुिचद , उदासीनो गतथः|
सवारपरागी, यो मः(स्) स मे ियः||16||
जो अपेा (आवकता) से रिहत, (बाहर-भीतर से) पिव, चतुर, उदासीन, था से रिहत (औरः सभी आरों का अथा त् नये-
नये कम के आर का सवथा ागी है , वह मेरा भ मुझे िय है ।
िववेचन : अपने कत को सही तरीके से पूण करना एवं िकसी से कोई भी अपेा नहीं रखना। सारे दु खों का कारण अपेा ही
है , सामने वाला कैसा भी है उससे पहले हम हमारे कत को पूण कर । यिद कोई गलत भी है तो वह गलत है , वह अशां त रहे ।
हम एकदम अपेा रिहत एवं शां त रहना है । पूण कर हम बाहर और भीतर से जो पिव है मतलब बाहर से तन की शु है व
अंदर से मन की पिवता की, एकदम चतुर एवं अपने िवास पर अिडग रहने वाला िजसे भगवान पर पूण िवास हो हमारे
साथ है रघुनाथ तो िफर िकस बात की िचंता। जो एकदम िचंता रिहत हो, यह नहीं सोचता हो िक कल ा होगा, उसे पता हो
जो भी करे गा मेरा भगवान करे गा। अात उदासीन जो िक िकसी भी प म नहीं होता ऊपर बैठ कर दे खता है ।
था से रिहत जो िक बात बात म उेिजत नहीं होता है मन के अनुकूल ना होने पर भी वह हमेशा खुश ही रहता है ,भ का
लण है सता। गंधारी जी ने जब कृ भगवान को ाप िदया था िक जाओ तुारा पूरा वशं न हो जाए तब भी वह स
थे, उनके चेहरे पर कोई भी िचंता के भाव नहीं थे।
एक बार की बात है तीन ापारी एक जगह पर िमले वह िदन भर ापार कर के आए थे। शाम को जब िमले तो उनम से दो
ापारी भोजन लेकर आए थे, एक ापारी भोजन लेकर नहीं आया था। दोनों ापारयों ने उनसे आह िकया िक आप भी
हमारे साथ भोजन कर लीिजए जो ापारी भोजन नहीं लाए थे, उोंने मना िकया िक नहीं नहीं मुझे भूख नहीं है िकंतु दोनों
ापारी नहीं माने। उोंने कहा िक जो भी हमारे पास है िमल कर खा लगे। उसम से एक ापारी के पास पाँ च रोटी थी और
एक ापारी के पास तीन रोटी थी कुल आठ रोटी हो गई। उोंने हर रोटी के तीन टु कड़े िकए और आपस म 8 -8 टु कड़े बां ट
के खा िलए। सुबह जब ापारी लोग उठे तो िजस ापारी ने उनके साथ खाना खाया था वह जा चुका था। उ समझ म नहीं
आया िक कहीं कुछ सामान तो नहीं ले गया लेिकन उोंने दे खा िक वह धवाद का प रख गया थाऔर वह बत अमीर था
इसिलए आठ सोने की मोहर रख गया था। दोनों ापारयों ने जब मोहरे दे खी तो उोंने कहा ा मने आपस म चार -चार
बाँ ट लेना चािहए। एक ापारी बोला िक नहीं मेरी रोटी पाँ च थी और तुारी तीन थी इसिलए ादा मोहरे मुझे िमलनी चािहए।
दू सरा ापारी बोला िक नहीं यह तो ाय की बात है मुझे थोड़ी पता था िक मेरे पास तीन रोटी रहे गी हमने बाँ टी बराबर है ना,
तो हम चार -चार मोहरे ही आपस म िमलना चािहए। इस तरह से उन दोनों की बात बढ़ती गई। सब लोगों का िववाद बढ़ता ही
गया तब सब ने फैसला िकया िक सरपंच के पास चलते ह । सरपंच बड़ा नेक और द थे। कई गां व के लोग उनसे ही
फैसला लेते थे। सरपंच के पास जब यह लोग पं चे तो सरपंच ने कहा िक मुझे इस झगड़े म नहीं पड़ना ोंिक आप लोग
अगर मेरी बात नहीं मानगे तो मुझे अा नहीं लगेगा। ापारी बोले नहीं आप जो फैसला कर गे हम मानगे। सरपंच ने एक
ापारी को सात और एक ापारी को 1 मोहर दे दी। ापारी बोले झगड़ा तो 4-4 या 5 और 3 मोहरों का था। यह तो कुछ
और ही हो रहा है तब उोंने कहा िक सरपंच यह कैसा िनणय है तो सरपंच ने कहा िक तुम लोग िकतनी िकतनी रोटी लाए
थे। जो पाँ च लाए थे उसके पंह टु कड़े ए और जो तीन लाए थे उसके नौ टु कड़े ए और आप लोगों ने 8-8 टु कड़े खाए।
सरपंच जी बोले िक जो तीन रोटी लाया था उसकी रोटी के नौ टु कड़े ए और उोंने उस म से आठ टु कड़े खा िलए तो उनका
दान एक टु कड़े का आ इसिलए उ एक मोहर िमल जाएगी और पां च रोटी लाया था उसने सात टु कड़े का दान िकया अत:
उसे सात मोहरे िमल जाएगी और जो तीन रोटी लाया था उसके एक टु कड़े का दान आ इसिलए इस तरह वही सोच
सकता है जो िक बत ही ादा द हो। यह जो बंटवारा आ यह ािनयों◌ं का ान है िजसे अ बु कभी नहीं समझ
सकते अत: हम वर लोगों के ान पर िवास करना चािहए वही बुमानी है ।
12.17
जो न (कभी) हिषत होता है , न े ष करता है , न शोक करता है , न कामना करता है (और) जो शुभ-अशुभ कम से ऊँ चा उठा
आ (राग-े ष रिहत) है , वह भमान् मनु मुझे िय है ।
िववेचन : जो बत खुशी की बात होने पर उछलने लग जाए, दु ख की बात होने पर, थोड़ी सी बात होने पर रोने लग जाय, जो
ादा खुश होता है उसके आं सू भी जी िनकलते ह िकंतु जो छोटे -मोटे नुकसान पर िवचिलत नहीं होता जो शुभ और अशुभ
दोनों का पराग कर दे ता है ।अशुभ कम को ाग करने के िलए शुभ कम को अपनाता है और शुभ कम हो जाने के बाद
उनका भी ाग कर दे ता है , जो शुभाशुभ लाभ हािन से ऊपर उठकर दे खता है , जो राग े ष से परे ह , वह भ मुझे अंत
िय है ।
12.18
(जो) शु और िम म तथा मान-अपमान म सम है (और) शीत-उ (शरीर की अनुकूलता-ितकूलता) तथा सुख-दु ःख (मन
बु की अनुकूलता-ितकूलता) म सम है एवं आस रिहत है (और) जो िना ुित को समान समझने वाला, मननशील,
िजस िकसी कार से भी (शरीर का िनवा ह होने न होने म) संतु, रहने के थान तथा शरीर म ममता आस से रिहत (और)
थर बुवाला है , (वह) भमान् मनु मुझे िय है । (12.18-12.19)
िववेचन : शु और िम म जो समान भाव रखता हो। इसका अथ है िक दोनों म समान सित रख। एक उदाहरण ारा ये
बात की गई। रामायण म जब राम जी का दू त बनकर रावण के पास अंगद जा रहे थे। तब अंगद ने पूछा िक रावण से ा
कहना है , रामजी ने कहा िक अपना काम हो जाए और उनका भी काण हो जाए। वह रावण जो सीता जी को चुरा कर लाया
है । भगवान कहते है िक उसका भी काण करो, उसका भी बुरा ना हो। राम जी के मन म िवभीषण के िलए भी काण की
भावना थी तो रावण के िलए भी। दोनों के िलए वहार अलग-अलग कर गे ,रावण को बाण मारा और िवभीषण को लंका का
राजा बना िदया िकंतु मन म दोनों के िलए एक ही भाव है । जो भावनाओं को िनयंित कर िजसके िलए मान अपमान, सुख-
दु ख ,सद गम सभी परथित म अनुकूलता का भाव रखता है जो िक थर बु वाला एवं आस से रिहत भ मुझे हमेशा
िय होता है ।
12.19
िववेचन : िनंदा और थित को समान समझने वाला, मान और अपमान दोनों िजसके िलए समान हो।
वह सा इं सान फूल और कां टों म भी िजसके समान भाव हो, जो शंसा सुनकर बत ादा खुश न हो, जो खूब ादा खुश
व बुराई करने म दु खी ना होता हो ,जो आज की परथित म िजसके पास जो भी है उसम बत ादा संतु हो यह सारे गुण
िजस म होते ह वह मुझे अंत िय है ।
12.20
परु जो (मुझ म) ा रखने वाले (और) मेरे परायण ए भ इस धममय अमृत का जैसा कहा कहा है , (वैसा ही) भली भां ित
सेवन करते ह , वे मुझे अ िय ह ।
िववेचन : जो भगवान की सता के िलए काम कर वही भ उम है । ा से यु होकर मेरे परायण को पाना , शाों के
वचनों पर िजसकी परम ा हो , जब सभी शंकाएं शां त हो जाए एवं ा बढ़ जाए जो मेरे धीन होकर पूण प से मेरे ित
समिपत हो वह भ मुझे अंत िय है । जब राम जी वनवास से वापस आ गए थे तब हनुमान जी ने एक बार सीता मैया से
पूछा िक माता आप िसंदूर ों लगाती ह माता ने सोचा इनकी तो शादी भी नहीं ई है अब म ा बताऊं, तो सीता जी ने कह
िदया िक आपके भगवान को अा लगता है इसिलए लगाती ं । हनुमान जी ने कहा अा भगवान को िसंदूर पसंद है तो
उोंने ऊपर से नीचे तक पूरा िसंदूर लगा िलया। तब िसंदूर िबखर गया तो िफर माता सीता के पास गए। माता बोली उसम घी
भी िमलाना पड़ता है हनुमान जी ने िसंदूर और घी िमलाकर अपने ऊपर से नीचे तक लगा िलया। मेरे भगवान को अा लगता
है यही मेरे िलए सबसे महपूण है ।यही भगवान के ित समपण है , जीवन म जब ा होती है तभी भ का भाव होता
है ।भ शत नहीं रखता, ऐसे ा भाव रखने वाला भ ही भगवान को अितशय िय है ।
हर कीतन के कुछ णों के संग भ रस से परपूण यह अाय यहीं सूण आ।
हम िवास है िक आपको िववेचन की रचना पढ़कर अा लगा होगा। कृ पया नीचे िदए िलंक का उपयोग करके हम अपनी
ितिया दीिजए।
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जय ी कृ !
संकलन: गीता परवार - रचनाक लेखन िवभाग
हर घर गीता, हर कर गीता!
आइये हम सब गीता परवार के इस ेय से जुड़ जाय, और अपने इ-िम -परिचतों को गीता का का उपहार द ।
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गीता परवार ने एक नवीन पहल की है । अब आप पूव म सािलत ए सभी िववेचनों िक यूूब िविडयो एवं पीडीऍफ़ को दे ख एवं
पढ़ सकते ह । कृ पया नीचे दी गयी िलंक का उपयोग करे ।
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