हिंदी आर्टिकल

You might also like

Download as docx, pdf, or txt
Download as docx, pdf, or txt
You are on page 1of 5

चैंक बाउंस के मामलों में सबूत का भार

चैंक बाउंस कानून धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 में साबूत का कितना भार किस
पर हैं? चैंक बाउंस के मामलो में अक्सर यह कहा जाता हैं कि चैंक पर मात्र हस्ताक्षर होना ही पर्याप्त
हैं, उपधारणाएं परिवादी के पक्ष में और आरोपी को यह प्रमाणित करना हैं कि चैंक को ऋण अथवा
दायित्व के उन्मोचन में जारी नहीं किया गया था।

शीर्ष न्यायालय का कहना हैं कि आरोपी पर उतना भार नहीं हैं जितना की परिवादी पर हैं। चैंक बाउंस
के मामले में सबूत का भार अंतरित होता रहता हैं। साक्ष्य विधि की धारा 101 से लेकर 106
महत्वपूर्ण हैं। परिवादी का संबंध साक्ष्य विधि की धारा 101 से 105 तथा आरोपी का संबंध धारा
106 से हैं। आरोपी की ओर से प्रतिपरीक्षण साक्ष्य विधि की धारा 101 से 105 को ध्यान में
रखकर किया जाता हैं।

मामला इस प्रकार हैं कि परिवादी ने स्टांप पेपर पर लिखा पढ़ी करते हुए 5 लाख रूपए आरोपी को
उधार दिए थें। राशि की आंशिक अदायगी हेतु परिवादी ने 3 लाख 20 हजार रूपए का चैंक दिया था
जो कि बाउंस हो गया।

न्यायालय में परिवादी पर धारा 101 में परिवाद को प्रमाणित करने का भार हैं। परिवाद के अभिवचन
के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य पेश करना हैं। आरोपी की ओर से प्रतिपरीक्षण किए जाने पर परिवादी
स्टांप पेपर पर लिखा पढ़ी तो प्रमाणित करता हैं लेकिन धन का स्रोत प्रमाणित नहीं कर पाता हैं।
परिवादी यह नहीं बता पाता हैं कि 5 लाख रूपए की रकम उसने कहां से लाकर आरोपी को नगद
उधार दी थी।

चैंक बाउंस के अपराध में जब आरोपी ऋण प्राप्त करना अस्वीकार कर रहा हैं तब परिवादी पर सबूत का
भार हैं कि वह ठोस एवं विश्वसनीय साक्ष्य के माध्यम से यह प्रमाणित करें कि उसने कहां से लाकर
आरोपी को ऋण राशि प्रदान करी थी। परिवादी के 5 बैंको में खाते अवश्य थें लेकिन यह प्रमाणित नहीं
हो पाया था कि किस बैंक खाते से विशिष्ट दिनांक को आरोपी को रकम उधार दी गई थी।

इस मामले में आरोपी यह बचाव था कि चैंक चोरी हो गए हैं जिसे आरोपी न्यायालय में दस्तावेजी
साक्ष्य से प्रमाणित नहीं कर पाया हैं। न्यायालय में परिवाद पत्र को प्रमाणित करने का भार परिवादी पर
होता हैं जिसमें वह विफल हो जाता हैं तो आरोपी पर सबूत का भार नहीं आता हैं। आरोपी के मात्र
इतना कहने पर कि चैंक चोरी हो गया था, परिवादी का मामला स्वयं प्रमाणित नहीं हो जाता हैं।
अपराधिक विचारण प्रणाली में बचाव पक्ष की कमजोरी का लाभ परिवादी को नहीं दिया जाता हैं।
चैंक बाउंस के मामलों में मात्र चैंक धारक होने से आरोपी के द्वारा ऋण अथवा दायित्व के अधीन चैंक
जारी किया जाना स्वयं सिद्ध नहीं हो जाता हैं। परिवाद पत्र में आवश्यक अभिकथन के अभाव में,
अभिकथन के अनुरूप दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में परिवादी का धारा 138 का परिवाद विफल हो
जाता हैं। परिवाद सिद्ध होगा तो उपधारणाएं उत्पन्न होगी इसके बाद ही सबूत का भार आरोपी की ओर
अंतरित होगा।

चैंक बाउंस कानून धारा 20 का खंडन एैसे करें


परक्राम्य लिखत अधिनिमय में आरोपी पक्ष अपने अधिवक्ता को बताता हैं कि चैंक पर उसके मात्र
हस्ताक्षर हैं और शेष इबारत प्रविष्टियां उसने नहीं लिखी हैं। परिवादी का परिवाद पत्र चैंक की प्रविष्टियों
पर मौन रहता हैं। कु छ मामलों में तो परिवाद पत्र चैंक की प्रविष्टियों के साथ साथ हस्ताक्षर पर भी मौन
रहता हैं। इस अर्थ हैं कि परिवादी यह स्वीकार करना नहीं चाहता हैं कि चैंक की प्रविष्टियां स्वयं उसके
द्वारा लिखि गई हैं। बचाव पक्ष के अधिवक्ता को तब समझ लेना चाहिए की धारा 20 पर यह प्रकरण
महत्वपूर्ण हैं और दोषमुक्ति संभव हैं।
कुं दनलाल बनाम कस्टोडियम ऐवेच्यू प्रोपर्टी एआईआर 1961 सु0 को0 1316 के मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने कहा हैं कि वस्तुत: वाक्यांश प्रमाण भार के दो अभिप्राय होना माने गए हैं। एक यह कि
प्रमाण भार विधि एवं अभिवचन का विषय का होता हैं और दूसरा मामले को प्रमाणित करने का भार।
पूर्ववर्ती विधि के प्रश्र बतौर अभिवचन के आधार पर नियत किया जाता हैं एवं संपूर्ण विचारण के दौरान
अपरिवर्तित रहता हैं। जबकि पश्चात्वर्ती स्थिर नहीं रहता हैं अपितु जैसे ही उसके पक्ष में उपधारणा
उत्पन्न होने के लिए समुचित साक्ष्य प्रस्तुत की जाती हैं अंतरित हो जाता हैं।
परक्राम्य लिखत अधिनियम में चैंक एवं प्रामिसरी नोट के निष्पादन को लेकर कोई उपधारणा उपलब्ध
नहीं हैं, यह प्रमाणित करने का विषय हैं। चैंक का जारी किया जाना और चैंक का निष्पादन में फर्क
होता हैं। परिवादी पर यह भार हैं कि वह चैंक का निष्पादन को प्रमाणित करें। इसके लिए परिवाद पत्र में
आवश्यक अभिवचन होना चाहिए।
मसलन प्रतिपरीक्षण में परिवादी चैंक पर हस्तक्षर एवं शेष प्रविष्टियों में अक्षरों की बनावट का फर्क एव
प्रयुक्त श्याही का फर्क का कारण नहीं बता पाता हैं। चैंक की प्रविष्टियों को कब, कहां और कै से लिखा
गया हैं, नहीं बता पाता हैं। कु छ मामलों में तो झूठ बोल दिया जाता हैं कि आरोपी ने ही चैंक की
प्रविष्टियों का भरा हैं दूसरी तरफ आरोपी इंकार कर रहा हैं तब तो परिवादी पर यह भार हैं कि वह धारा
45 साक्ष्य विधि का प्रयोग कर चैंक के निष्पादन को प्रमाणित करें। परिवादी पर ही यह भार हैं कि वह
अपने मामले को संदेह से परे प्रमाणित करें, आरोपी को के वल संभाव्य प्रतिरक्षा करनी हैं।
अब जबकि चैंक पर हस्ताक्षर में प्रयुक्त अक्षरों की बनावट एवं प्रविष्टियों में श्याही का फर्क मौजूद हैं।
चैंक का निष्पादन को लेकर परिवाद मौन हैं। चैंक को कब, कहां एवं कै से लिखा गया हैं, परिवादी स्पष्ट
कर पाने में विफल हैं। यद्यपित धारा 20 परिवादी के पक्ष में उपधारणा मौजूद हैं तब भी यदि प्रकरण
की परिस्थितियां चैंक के दुरूपयोग की तरफ इशारा कर रहीं हैं तब उपधारणा खंडित हो जाती हैं।
साक्ष्य विधि की धारा 1872 की धारा 73 महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
परिवाद पत्र में चैंक के निष्पादन को लेकर स्पष्ट अभिवचन होना चाहिए। परिवादी ने स्वयं चैंक की
प्रविष्टियों को लिखा हैं तो उसे परिवाद में लिखना चाहिए था कि यह अधिकार स्वयं उसे परिवादी ने ही
दिया था। इस दशा में धारा 20 की उपधारणा परिवादी के पक्ष में उपलब्ध होगी अन्यथा नहीं होगी।
शीर्ष न्यायालय कहती हैं कि चैंक पर हस्ताक्षर पर्याप्त हैं तो उन मामलो में कहती हैं जबकि परिवाद पत्र
में निष्पादन के संबंध में आवश्यक अभिवचन किए गए हैं, प्रश्रगत् चैंक को साक्ष्य विधि की धारा 67
के मापदण्डों पर प्रमाणित किया गया हैं। परिवाद पत्रानुसार संव्यवहार स्थापित हो जाता हैं, विधिमान्य
ऋण एवं दायित्व स्थापित हो जाता हैं तब भी यदि निष्पादन प्रमाणित नहीं होता हैं तो आरोपी दोषमुक्ति
का हकदार हैं।
अवैधानिक साहूकारी का अपराध भारत के बड़े महानगरों से लेकर गांव गांव तक विस्तारित हैं जिसके
कारण भारत के शेयर बाजार में निवेश करने के बजाए धनवृद्धि के लिए बाहुबली, पेशेवर अपराधी,
राजनेता, नौकरशाह अपने काले धन को अवैध साहूकारी में लगा देते हैं। चैंक अनादरण का अपराध
मूलधन एवं चक्रवृद्धि राशि वसूली का जरिया बना हुआ हैं जिससे समाज के कमजोर एवं मजदूर किसान
वर्ग का शोषण होता हैं। आर्थिक दबाव के कारण महिलाए दोहरे शोषण का शिकार होती हैं तो वही
दूसरी तरफ दोषसिद्धि पर आरोपी आत्महत्या तक कर रहे हैं, कु छ आरोपी लापता हैं।
परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 148 के प्रावधान आपत्तिजनक हैं जिसमें उभय पक्षों के अपील
के प्रक्रम पर प्रारंभिक तर्क को सुने बिना ही 20 प्रतिशत राशि जमा करने का आदेश दे दिया जाता हैं
तो यह कानून का ही एक दोष हैं कि वह न्यायिक अधिकारी को विचार करने का कोई अवसर नहीं देता
हैं, कोई विवेकाधिकर नहीं देता हैं। विचारण न्यायालय ज्यादातर मामलों में गलत दोषसिद्धि के लिए
बदनाम हैं, यह बात आरोपीगण और अधिवक्तागण को पता हैं जिन्हे गलत दोषसिद्धि का दंश चुभता हैं,
कानून निर्माताओं को भी पता होनी चाहिए कि गलत दोषसिद्धि के सामाजिक और आर्थिक परिणाम
घातक होते हैं। गलत दोषसिद्धि का स्तर इतना ज्यादा खराब हैं कि चैंक पर लिखी गई आपत्तिजनक
दिनांक 20/32/0018 को लिपिकीय त्रुटि मानकर आरोपी को दोषसिद्धि कर न्यायिक मजिस्ट्रेट
कानून को तथा शीर्ष न्यायालय के प्रतिपादित विधि एवं न्यायिक सिद्धांतो को तक चुनौति दे डालता हैं।
विचारण न्यायालय के समक्ष चैंक बाउंस के मामलों में आरोपी पक्ष के अधिवक्ता को चाहिए कि वह शीर्ष
न्यायालय के न्यायदृष्टांतो जिनमें चैंक के निष्पादन को महत्वपूर्ण बताया गया हैं लिखित बहस में
उल्लेखित करते हुए प्रस्तुत अनिवार्य रूप से करना चाहिए। चैंक बाउंस के मामलों में सिविल एवं
क्रिमिनल मामलों की तरह प्रतिपरीक्षण नहीं किया जाता हैं, संभाव्य प्रतिरक्षा की शैली अलग होती हैं।
न्यायदृष्टातो पर आधारित प्रतिपरीक्षण का लाभ मिलता हैं।
प्रति,
मा. उपसंचालक तथा चौकशी अधिकारी,
इतर मागास वर्गीय कल्याण विभाग,
पण
ु े

विषय:- श्री संत गाडगे महाराज निवासी अपंग विद्यालय दत्तनगर नांदेड
या शाळे च्या कर्मचारी मान्यता चौकशीबाबत

संदर्भ:- माननीय उपसंचालक इतर मागासवर्गीय यांचेकडील दिनांक


18/08/2020 रोजीच्या सन
ु ावणी संदर्भात

महोदय,
  उपरोक्त संदर्भित विषयांवर विनंतीपर्व
ू क खल
ु ासा सादर करण्यात येतो की,
माझ्याकडे जिल्हा समाज कल्याण अधिकारी, जि. प. नांदेड या पदाचा अतिरिक्त
कार्यभार कालावधी दिनांक 19/11/2018 ते 01/06/2019 असा होता.
सदर कालावधीमध्ये मी जिल्हा परिषद, लातूर येथे नियमित सेवेत होतो. 
उपरोक्त चौकशीच्या अनुषंगाने मी संत गाडगेबाबा निवासी अपंग विद्यालयातील
कर्मचाऱ्यांची अंशदायी खाते मंजुरीसाठी मा.  प्रादे शिक उपायुक्त, लातूर यांचक
े डे
पाठवावयाची संचिका अपंग शाखेकडून 23/04/2019 रोजी माझ्याकडे नियमाप्रमाणे
आलेली होती. सदर संचिका ही श्री गोडगोडवार, वैद्यकीय सामाजिक कार्यकर्ता
यांनी टिपणी सह संबधि
ं त कर्मचाऱ्यांना अंशदायी खाते मंजरु ीकरिता मा. प्रादे शिक
उपायक्
ु त, लातरू यांचक
े डे पाठविण्याची शिफारस केलेली होती तथापि मी माझ्या
नोटिंग मध्ये संबधि
ं त कर्मचाऱ्यांना मान्यता दे ऊन तीन वर्षे झालेले असताना
उशिराने संचिका सादर करण्याचे कारण काय?  त्याचे स्पष्टीकरण विचारले होते.
परत स्पष्टीकरणासह संचिका सादर करण्यात आली त्यानंतर मी सदरचा प्रस्ताव
मा. प्रादे शिक उपायक्
ु त लातरू यांचेकडे पाठवलेला होता.  तसेच सदरचा प्रस्ताव
संदर्भात सविस्तर वत्ृ तांत पढ
ु ीलप्रमाणे:- 
 मख्
ु याध्यापक, श्री संत गाडगे महाराज निवासी अपंग विद्यालय यांनी दिनांक
15/04/2019 रोजी अंशदायी खाते मिळणेबाबतचा प्रस्ताव जिल्हा समाज समाज
कल्याण अधिकारी, जिल्हा परिषद, नांदेड यांचे नावे समाजकल्याण कार्यालयात
दाखल केला होता ज्याचे आवक क्रमांक 7332 दि. 15/04/2019 असा आहे (सोबत
परु ावा जोडला आहे ) यानंतर संबंधित दिव्यांग विभागाने दी, 24/04/2019 रोजी
तीपानोसः संचिका सादर केली व त्यानंतर मी सदर टिपणीवरून उशिराने प्रस्ताव
सादर करण्याचे स्पष्टीकरण विचारले व टिपणी फेरसादर केल्यानंतर सदरचा
औषदायी खाते प्रस्ताव मा. प्रादे शिक उपायुक्त लातूर यांच्याकडे पाठविला या
प्रक्रियेमध्ये मी कोणतीही चक
ू अथवा अनियमितता केलेली नाही.
उपरोक्त प्रमाणे मी माझा खुलासा पुराव्यानिशी मा. उपसंचालक, इतर
मागासवर्गीय  कल्याण, पण
ु े यांचक
े डे विनंतीपर्व
ू क सादर करीत आहे सदरचा खल
ु ासा
मान्य करावा ही माननीय महोदयांना विनंती आहे
 
सोबत:-
1.  आवक जावक रजिस्टर झेरॉक्स
2.  मुख्याध्यापक संत गाडगे महाराज निवासी अपंग विद्यालय यांचे पत्र
3.  वैद्यकीय सामाजिक कार्यकर्ता यांच्या  शिफारशीसह कार्यालयीन टिप्पणी 

आपला विश्वासू

एस के मिनगीरे ,
तत्कालीन जि. स. क., अधिकारी,
जि. प. नांदेड

You might also like