अष्टौ निन्दिनीय

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"अष्टौ-निन्दितीय"

इह खलु शरीरम ्-अधिकृत्य-अष्टौ परु


ु षा निन्दिता भवन्दत; तद्यथा- अनतिीर्घश्च, अनत-
हस्वश्च, अनत-लोमा च, अलोमा च, अनत- कृष्णाश्च, अनत- गौरश्च अनत स्थूलश्च, अनत
कृशश्च इनत ॥ च. सू. २१/३

1. अनतिीिघ (Gigantism)
2. अनतहस्व (Dwarfism)
3. अनतलोम (Excess hair on body)
4. अलोमा (Hairless body)
5. अनतकृष्ण (Nigro body)
6. अनतगौर (Albinism)
7. अनतस्थूल (Obese)
8. अनतकृश (Emaciation)
अनत-कृश और अनत-स्थूल परु
ु षो के निन्दित होिे में कारण :-
१. अति-स्थूल परु
ु ष की आयु का क्षय अति शीघ्र होिा हैं ।
२. उनके शरीर में ककसी भी कायय को करने में विषेश उत्साह नही होिा हैं ।
३. मैथुन कायय में कठनाई का सामना करना पडिा हैं ।
४. दर्
ु लय िा ।
५. शरीर में दर्
ु यन्ध का होना ।
६. पसीना से अधधक कष्ट होना ।
७. अधधक मात्रा में भक
ू का लर्ना ।
८. अधधक प्यास का लर्ना ।
अनत-कृश अनत-स्थूल
नििाि
आहार :- आहार :-
• रुक्ष आना पान • र्ुरु, मधुर, शीि, स्स्नग्ध आहार
• कषाय रस सेिन
• लघु और अपिपयण आहार रव्यो का सेिन
ववहार : • र्ुरु और संिपयण आहार
• रोर्ी
• िातिक प्रकृति का होना ववहार :-
• उपिास
• मात्रा से अल्प भोजन • अधधक भोजन करना
• नपा-िुला भोजन • अ-व्यायाम
• शारीररक और मानससक कायो को अधधक
करना • अ-मैथन

• अधधक अध्ययन • ददिाशयान
• मलमूत्र और तनन्रा आदद के िेर्ो को
रोकना • सियदा प्रसन्न धित्त रहना
• रुक्ष रव्यो से तनसमयि उर्टन/ स्नान • धिन्िा,भय,क्रोध,शोक आदद
• अधधक स्नान करना
• िधृ ािस्था मनससक विषयो से तनित्त

• रात्रत्र जार्रण • मािा-वपिा त्रर्जानुसार स्िाििा
• अधधक मैथुन
• अधधक भय, धिन्िा, शोक, क्रोध
अनत-कृश अनत-स्थूल

पररभाषा

शष्ु क-स्स्िर्-उदर-ग्रीिो, धधमनी-जाल-संििः । मेदा-मांस-अतििध्


ृ दत्िा-िल-स्स्िक-उदर-स्िनः।
त्िर्-अस्स्थ-शेषो-अतिकृशः स्थल
ू पिाय नरो अयथोप्ियोत्साहो नरोऽतिस्थल
ू उच्ियिे ॥
मिः ॥ ( ि. सू. २१/१५)

संप्रान्तत

दोष - िाि-वपत्त दोष - कि-िाि -वपत्त क्रमशाः ।


दस्ु ष्ट - मेदोमांस-रक्ि ( मंद/विषम अस्ग्न ) दस्ु ष्ट - मेद, अस्ग्न ( तिक्ष्णास्ग्न)
स्त्रोिस - अतिप्रिवृ त्त (सशघ्रकारी) स्त्रोिस - स्त्रोिोसंर्
स्त्रोिस- अन्निह स्त्रोिस । व्याधध - धिरकालीन, आमाश्यसम्मथ

रोर् - श्िास-कास-शोष-प्लीहोदर-र्ल्
ु म- ग्रहणी उपरि - िाि-वपत्त-कि रोर् ।
र्ि रोर् ।
अनत-कृश अनत-स्थूल
धिककत्सा

र्ह
ृ ण कषयण
र्ुरु और अपिपयण आहार:- लघु और संिपयण आहार:-
शारीररक धािुओ को िप्ृ ि न करे िथा शासल िािल, हररण, र्करे का मांस, नया
शारीररक धािुओ का शोषण करें । अन्न, िवनिर्मघत मद्य, ग्राम्य, आनप
ू िथा
शहद, मध,ु जौ आटा, सााँिा, जई, यि (जौ), जलिासी जीिो का मांसरस, र्ेहू, र्ुड तनसमयि
कोदो, मूर्, कुल्थी, अरहर के र्ीज, परिल िस्िुए, िैल ।
सशलाजि,ु र्ड
ु ू िी, नार्मोथा, त्रत्रिला,
िक्राररष्ट, िायधिडंर् सोंठ, क्षार, िीक्ष्ण लोह
भस्म, आमलकी िूणय , र्ह
ृ ि पंिमूल (
त्रर्ल्र्, श्योनाक, पाटला, र्म्भारी, अस्ग्नमंथ)

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