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Constitution of India - Hindi
Constitution of India - Hindi
Constitution of India - Hindi
2021
भारत सरकार
�व�ध और न्याय मंत्रालय
�वधायी �वभाग
द्वारा प्रका�शत
Published by
GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF LAW AND JUSTICE
LEGISLATIVE DEPARTMENT
प्राक्कथन
यह भारत के सं�वधान का द्�वभाषी रूप म� पांचवां जेबी संस्करण
है । इस संस्करण म� सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम,
2021 स�हत सभी संशोधन� को सिम्म�लत करते हुए भारत के
सं�वधान के पाठ को अध्यतन �कया गया है । पाठ के नीचे पाद-
�टप्पण सं�वधान संशोधन अ�ध�नयम� को इं�गत करते ह�, िजनके
द्वारा ऐसे संशोधन �कए गए ह� ।
भारत और बांग्लादे श सरकार� के बीच अिजर्त और अन्त�रत
राज्य�ेत्र� के ब्यौर� को अन्त�वर्ष्ट करने वाले सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 का प�र�शष्ट 1 म� उपबंध �कया गया है ।
सं�वधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदे श, 2019 तथा
सं�वधान के अनच्
ु छे द 370(3) के अधीन घोषणा का क्रमशः प�र�शष्ट
2 और प�र�शष्ट 3 म� संदभर् के �लए उपबंध �कया गया है ।
6 �वषय सूची
उद्दे �शका
अनच्
ु छे द पष्ृ ठ
भाग 1
संघ और उसका राज्य�ेत्र
1. संघ का नाम और राज्य�ेत्र ............................................................ 2
2. नए राज्य� का प्रवेश या स्थापना...................................................... 2
[2क. �सिक्कम का संघ के साथ सहयुक्त �कया जाना – लोप �कया गया।] .. 2
3. नए राज्य� का �नमार्ण और वतर्मान राज्य� के �ेत्र�, सीमाओं या नाम�
म� प�रवतर्न ................................................................................. 2
4. पहल� अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपरू क,
आनषु ं�गक और पा�रणा�मक �वषय� का उपबंध करने के �लए अनच् ु छे द
2 और अनच् ु छे द 3 के अधीन बनाई गई �व�धयां …………………….............. 3
भाग 2
नाग�रकता
5. सं�वधान के प्रारं भ पर नाग�रकता ................................................... 4
6. पा�कस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के
नाग�रकता के अ�धकार ................................................................. 4
7. पा�कस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के
अ�धकार ...................................................................................... 4
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यिक्तय� के
नाग�रकता के अ�धकार .................................................................. 5
9. �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त करने वाले व्यिक्तय�
का नाग�रक न होना....................................................................... 5
10. नाग�रकता के अ�धकार� का बना रहना ............................................ 5
11. संसद् द्वारा नाग�रकता के अ�धकार का �व�ध द्वारा �व�नयमन �कया 5
जाना
�वषय सूची (ii)
अनच्
ु छे द पष्ृ ठ
भाग 3
मूल अ�धकार
साधारण
मं�त्र-प�रषद्
74. राष्ट्रप�त को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद् .................. 34
75. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध ......................................................... 34
भारत का महान्यायवाद�
76. भारत का महान्यायवाद� ................................................................. 35
�वषय सूची (vi)
अनच्
ु छे द पष्ृ ठ
अध्याय 2--कायर्पा�लका
राज्यपाल
भाग 11
संघ और राज्य� के बीच संबंध
अध्याय 1--�वधायी संबंध
�वधायी शिक्तय� का �वतरण
245. संसद् द्वारा और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� का
�वस्तार... ...................................................................................... 145
246. संसद् द्वारा और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� क� 145
�वषय-वस्तु ....................................................................................
246क. माल और सेवा कर के संबंध म� �वशेष उपबंध .................................... 145
247. कुछ अ�त�रक्त न्यायालय� क� स्थापना का उपबंध करने क� संसद् क�
शिक्त.... ....................................................................................... 146
248. अव�शष्ट �वधायी शिक्तयां ............................................................. 146
249. राज्य सूची म� के �वषय के संबंध म� राष्ट्र�य �हत म� �व�ध बनाने क�
संसद् क� शिक्त ............................................................................ 146
250. य�द आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� हो तो राज्य सूची म� के �वषय के
संबंध म� �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त ...................................…….. 147
251. संसद् द्वारा अनच् ु छे द 249 और अनच् ु छे द 250 के अधीन बनाई गई
�व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� म� 147
असंग�त………………………………………….........................................................
252. दो या अ�धक राज्य� के �लए उनक� सहम�त से �व�ध बनाने क� संसद्
क� शिक्त और ऐसी �व�ध का �कसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार �कया 147
जाना…………………………........................................................................
253. अंतरराष्ट्र�य करार� को प्रभावी करने के �लए �वधान .......................... 148
254. संसद् द्वारा बनाई गई �व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा
बनाई गई �व�धय� म� असंग�त ...................................................... 148
255. �सफा�रश� और पूवर् मंजरू � के बारे म� अपे�ाओं को केवल प्र�क्रया के �वषय
मानना.......................................................................................... 148
अध्याय 2--प्रशास�नक संबंध
साधारण
256. राज्य� क� और संघ क� बाध्यता ................................................... 149
257. कुछ दशाओं म� राज्य� पर संघ का �नयंत्रण ................................. 149
[257क. संघ के सशस्त्र बल� या अन्य बल� के अ�भ�नयोजन द्वारा राज्य� क� 150
सहायता – लोप �कया गया ।] ........................................................
258. कुछ दशाओं म� राज्य� को शिक्त प्रदान करने आ�द क� संघ क� शिक्त । 150
�वषय सूची (xviii)
अनच्
ु छे द पष्ृ ठ
282. संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से �कए जाने वाले व्यय ............... 163
283. सं�चत �न�धय�, आकिस्मकता �न�धय� और लोक लेखाओं म� जमा
धनरा�शय� क� अ�भर�ा आ�द .......................................................... 163
284. लोक सेवक� और न्यायालय� द्वारा प्राप्त वादकतार्ओं क� जमा रा�शय�
और अन्य धनरा�शय� क� अ�भर�ा ................................................ 163
285. संघ क� संप�� को राज्य के कराधान से छूट .................................... 164
286. माल के क्रय या �वक्रय पर कर के अ�धरोपण के बारे म� �नब�धन ....... 164
287. �वद्युत पर कर� से छूट ................................................................. 164
288. जल या �वद्युत के संबंध म� राज्य� द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म� छूट 165
289. राज्य� क� संप�� और आय को संघ के कराधान से छूट ..................... 165
290. कुछ व्यय� और प� शन� के संबंध म� समायोजन ................................... 166
290क. कुछ दे वस्वम ् �न�धय� को वा�षर्क संदाय ........................................... 166
[291. शासक� क� �नजी थैल� क� रा�श – लोप �कया गया ।]......................... 167
309. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� भत� और सेवा क� शत�.. 173
310. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� पदाव�ध .................... 173
311. संघ या राज्य के अधीन �स�वल है �सयत म� �नयोिजत व्यिक्तय� का
पदच्युत �कया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म� अवनत �कया जाना 174
312. अ�खल भारतीय सेवाएं ............................................................... 175
312क. कुछ सेवाओं के अ�धका�रय� क� सेवा क� शत� म� प�रवतर्न करने या
उन्ह� प्र�तसंहृत करने क� संसद् क� शिक्त ........................................ 175
313. संक्रमणकाल�न उपबंध ..................................................................... 177
[314. कुछ सेवाओं के �वद्यमान अ�धका�रय� के संर�ण के �लए उपबंध –
लोप �कया गया ।] ........................................................................ 177
भाग 15
3 �नवार्चन
324. �नवार्चन� के अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण का �नवार्चन आयोग म� 186
�न�हत होना ................................................................................
325. धमर्, मलू वंश, जा�त या �लंग के आधार पर �कसी व्यिक्त का �नवार्चक-
नामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने के �लए अपात्र न होना और उसके
द्वारा �कसी �वशेष �नवार्चक-नामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने का दावा
न �कया जाना ............................................................................... 187
326. लोक सभा और राज्य� क� �वधान सभाओं के �लए �नवार्चन� का वयस्क
मता�धकार के आधार पर होना ........................................................ 187
327. �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन� के संबध ं म� उपबंध करने क� संसद् क�
शिक्त ........................................................................................... 187
328. �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन� के संबंध म� उपबंध करने
क� उस �वधान-मंडल क� शिक्त ....................................................... 188
329. �नवार्चन संबंधी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न ............... 188
[329क. प्रधान मंत्री और अध्य� के मामले म� संसद् के �लए �नवार्चन� के बारे
म� �वशेष उपबंध -- लोप �कया गया ।] ......................................... 188
भाग 16
कुछ वग� के संबंध म� �वशेष उपबंध
330. लोक सभा म� अनुसू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए
स्थान� का आर�ण ........................................................................ 189
331. लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व ........................ 190
332. राज्य� क� �वधान सभाओं म� अनस ु �ू चत जा�तय� और अनुस�ू चत
जनजा�तय� के �लए स्थान� का आर�ण ........................................... 190
333. राज्य� क� �वधान सभाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व..... 191
334. स्थान� के आर�ण और �वशेष प्र�त�न�धत्व का स�र वषर् के पश्चात ् न रहना.. 192
335. सेवाओं और पद� के �लए अनस
ु �ू चत जा�तय� और अनस
ु �ू चत जनजा�तय�
के दावे .......................................................................................... 192
336. कुछ सेवाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय के �लए �वशेष उपबंध ........... 192
337. आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के �लए शै��क अनुदान के �लए
�वशेष उपबंध ................................................................................. 193
�वषय सूची (xxiii)
अनच्
ु छे द पष्ृ ठ
378क. आंध्र प्रदे श �वधान सभा क� अव�ध के बारे म� �वशेष उपबंध ............... 250
[379. अन्तकार्ल�न संसद् तथा उसके अध्य� और उपाध्य� के बारे म� उपबंध 250
- लोप �कया गया ।] ......................................................................
[380. राष्ट्रप�त के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।]............................. 250
[383. प्रान्त� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।].............. 250
और उपासना क� स्वतंत्रता,
तथा उन सब म�
बढ़ाने के �लए
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक
गणराज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्ट्र क� एकता” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भाग 1
संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) लोप �कया गया ।]
3. नए राज्य� का �नमार्ण और वतर्मान राज्य� के �ेत्र�, सीमाओं या नाम� म�
प�रवतर्न–संसद्, �व�ध द्वारा–
(क) �कसी राज्य म� से उसका राज्य�ेत्र अलग करके अथवा दो या अ�धक
राज्य� को या राज्य� के भाग� को �मलाकर अथवा �कसी राज्य�ेत्र को �कसी
राज्य के भाग के साथ �मलाकर नए राज्य का �नमार्ण कर सकेगी ;
(ख) �कसी राज्य का �ेत्र बढ़ा सकेगी ;
(ग) �कसी राज्य का �ेत्र घटा सकेगी ;
(घ) �कसी राज्य क� सीमाओं म� प�रवतर्न कर सकेगी ;
(ङ) �कसी राज्य के नाम म� प�रवतर्न कर सकेगी :
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) उपखंड (ख) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंतःस्था�पत ।
2
भारत का सं�वधान 3
(भाग 1—संघ और उसका राज्य�ेत्र)
1
[परं तु इस प्रयोजन के �लए कोई �वधेयक राष्ट्रप�त क� �सफा�रश के �बना और
जहां �वधेयक म� अंत�वर्ष्ट प्रस्थापना का प्रभाव 2***राज्य� म� से �कसी के �ेत्र, सीमाओं
या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस राज्य के �वधान-मंडल द्वारा उस पर अपने
�वचार, ऐसी अव�ध के भीतर जो �नद� श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए या ऐसी अ�त�रक्त अव�ध
ु ात क� जाए, प्रकट �कए जाने के �लए वह �वधेयक
के भीतर जो राष्ट्रप�त द्वारा अन�
राष्ट्रप�त द्वारा उसे �नद� �शत नह�ं कर �दया गया है और इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट या
अन�
ु ात अव�ध समाप्त नह�ं हो गई है, संसद् के �कसी सदन म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया
जाएगा ।]
3
[स्पष्ट�करण 1–इस अनच्
ु छे द के खंड (क) से खंड (ङ) म� , “राज्य” के अंतगर्त
संघ राज्य�ेत्र है, �कं तु परंतुक म� “राज्य” के अंतगर्त संघ राज्य�ेत्र नह�ं है ।
स्पष्ट�करण 2–खंड (क) द्वारा संसद् को प्रद� शिक्त के अंतगर्त �कसी राज्य या
संघ राज्य�ेत्र के �कसी भाग को �कसी अन्य राज्य या संघ राज्य�ेत्र के साथ �मलाकर
नए राज्य या संघ राज्य�ेत्र का �नमार्ण करना है ।]
4. पहल� अनस
ु ूची और चौथी अनस
ु ूची के संशोधन तथा अनप
ु रू क, आनष
ु �ं गक
और पा�रणा�मक �वषय� का उपबंध करने के �लए अनच् ु छे द 3 के अधीन
ु छे द 2 और अनच्
बनाई गई �व�धयां–(1) अनच्
ु छे द 2 या अनच्
ु छे द 3 म� �न�दर्ष्ट �कसी �व�ध म� पहल�
अनस
ु ूची और चौथी अनस
ु ूची के संशोधन के �लए ऐसे उपबंध अंत�वर्ष्ट ह�गे जो उस
�व�ध के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक ह� तथा ऐसे अनप
ु रू क, आनष
ु �ं गक
और पा�रणा�मक उपबंध भी (िजनके अंतगर्त ऐसी �व�ध से प्रभा�वत राज्य या राज्य� के
संसद् म� और �वधान-मंडल या �वधान-मंडल� म� प्र�त�न�धत्व के बारे म� उपबंध ह�)
अंत�वर्ष्ट हो सक�गे िजन्ह� संसद् आवश्यक समझे ।
(2) पव
ू �क्त प्रकार क� कोई �व�ध अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस
सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी ।
1. सं�वधान (पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 2 द्वारा (24-12-1955 से) परं तुक के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (अठारहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 2 द्वारा (27-8-1966 से) अंतःस्था�पत ।
भाग 2
नाग�रकता
5. सं�वधान के प्रारं भ पर नाग�रकता–इस सं�वधान के प्रारं भ पर प्रत्येक व्यिक्त
िजसका भारत के राज्य�ेत्र म� अ�धवास है और–
(क) जो भारत के राज्य�ेत्र म� जन्मा था, या
(ख) िजसके माता या �पता म� से कोई भारत के राज्य�ेत्र म� जन्मा था, या
(ग) जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले कम से कम पांच वषर् तक भारत के राज्य�ेत्र
म� मामल
ू � तौर से �नवासी रहा है ,
भारत का नाग�रक होगा ।
6. पा�कस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के
अ�धकार–अनच् ु छे द 5 म� �कसी बात के होते हए भी, कोई व्यिक्त िजसने ऐसे राज्य�ेत्र से जो
इस समय पा�कस्तान के अंतगर्त है , भारत के राज्य�ेत्र को प्रव्रजन �कया है , इस सं�वधान के
प्रारं भ पर भारत का नाग�रक समझा जाएगा–
(क) य�द वह अथवा उसके माता या �पता म� से कोई अथवा उसके �पतामह या
�पतामह� या मातामह या मातामह� म� से कोई (मूल रूप म� यथा अ�ध�नय�मत) भारत
शासन अ�ध�नयम, 1935 म� प�रभा�षत भारत म� जन्मा था ; और
(ख) (i) जब�क वह व्यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 से पहले इस
प्रकार प्रव्रजन �कया है तब य�द वह अपने प्रव्रजन क� तार�ख से भारत के राज्य�ेत्र म�
मामूल� तौर से �नवासी रहा है ; या
(ii) जब�क वह व्यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 को या उसके पश्चात ्
इस प्रकार प्रव्रजन �कया है तब य�द वह नाग�रकता प्रािप्त के �लए भारत डो�म�नयन
क� सरकार द्वारा �व�हत प्ररूप म� और र��त से उसके द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से
पहले ऐसे अ�धकार� को, िजसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के �लए �नयुक्त �कया है ,
आवेदन �कए जाने पर उस अ�धकार� द्वारा भारत का नाग�रक रिजस्ट्र�कृत कर �लया
गया है :
परं तु य�द कोई व्यिक्त अपने आवेदन क� तार�ख से ठ�क पहले कम से कम छह
मास भारत के राज्य�ेत्र म� �नवासी नह�ं रहा है तो वह इस प्रकार रिजस्ट्र�कृत नह�ं �कया
जाएगा ।
7. पा�कस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार–
अनच्
ु छे द 5 और अनच् ु छे द 6 म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई व्यिक्त िजसने 1 माचर्,
1947 के पश्चात ् भारत के राज्य�ेत्र से ऐसे राज्य�ेत्र को, जो इस समय पा�कस्तान के
अंतगर्त है , प्रव्रजन �कया है , भारत का नाग�रक नह�ं समझा जाएगा :
4
भारत का सं�वधान 5
(भाग 2—नाग�रकता)
परं तु इस अनुच्छे द क� कोई बात ऐसे व्यिक्त को लागू नह�ं होगी जो ऐसे राज्य�ेत्र को,
जो इस समय पा�कस्तान के अंतगर्त है , प्रव्रजन करने के पश्चात ् भारत के राज्य�ेत्र को ऐसी
अनु�ा के अधीन लौट आया है जो पन
ु वार्स के �लए या स्थायी रूप से लौटने के �लए �कसी
�व�ध के प्रा�धकार द्वारा या उसके अधीन द� गई है और प्रत्येक ऐसे व्यिक्त के बारे म�
अनच्
ु छे द 6 के खंड (ख) के प्रयोजन� के �लए यह समझा जाएगा �क उसने भारत के राज्य�ेत्र
को 19 जल
ु ाई, 1948 के पश्चात ् प्रव्रजन �कया है ।
8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के
अ�धकार–अनुच्छे द 5 म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई व्यिक्त जो या िजसके माता या �पता
म� से कोई अथवा �पतामह या �पतामह� या मातामह या मातामह� म� से कोई (मल ू रूप म� यथा
अ�ध�नय�मत) भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 म� प�रभा�षत भारत म� जन्मा था और जो
इस प्रकार प�रभा�षत भारत के बाहर �कसी दे श म� मामल
ू � तौर से �नवास कर रहा है , भारत
का नाग�रक समझा जाएगा, य�द वह नाग�रकता प्रािप्त के �लए भारत डो�म�नयन क� सरकार
द्वारा या भारत सरकार द्वारा �व�हत प्ररूप म� और र��त से अपने द्वारा उस दे श म� , जहां वह
तत्समय �नवास कर रहा है , भारत के राजन�यक या क�सल�य प्र�त�न�ध को इस सं�वधान के
प्रारं भ से पहले या उसके पश्चात ् आवेदन �कए जाने पर ऐसे राजन�यक या क�सल�य प्र�त�न�ध
द्वारा भारत का नाग�रक रिजस्ट्र�कृत कर �लया गया है ।
9. �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त करने वाले व्यिक्तय� का नाग�रक न
होना–य�द �कसी व्यिक्त ने �कसी �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है तो
वह अनच्
ु छे द 5 के आधार पर भारत का नाग�रक नह�ं होगा अथवा अनुच्छे द 6 या अनच्
ु छे द 8
के आधार पर भारत का नाग�रक नह�ं समझा जाएगा ।
10. नाग�रकता के अ�धकार� का बना रहना–प्रत्येक व्यिक्त, जो इस भाग के पव
ू ग
र् ामी
उपबंध� म� से �कसी के अधीन भारत का नाग�रक है या समझा जाता है , ऐसी �व�ध के उपबंध�
के अधीन रहते हुए, जो संसद् द्वारा बनाई जाए, भारत का नाग�रक बना रहे गा ।
11. संसद् द्वारा नाग�रकता के अ�धकार का �व�ध द्वारा �व�नयमन �कया जाना–इस
भाग के पूवग
र् ामी उपबंध� क� कोई बात नाग�रकता के अजर्न और समािप्त के तथा नाग�रकता
से संबं�धत अन्य सभी �वषय� के संबंध म� उपबंध करने क� संसद् क� शिक्त का अल्पीकरण
नह�ं करे गी ।
भाग 3
मूल अ�धकार
साधारण
12. प�रभाषा–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, “राज्य” के
अंतगर्त भारत क� सरकार और संसद् तथा राज्य� म� से प्रत्येक राज्य क� सरकार और �वधान-
मंडल तथा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर या भारत सरकार के �नयंत्रण के अधीन सभी स्थानीय
और अन्य प्रा�धकार� ह� ।
13. मल ू अ�धकार� से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाल� �व�धयां–(1) इस
सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के राज्य�ेत्र म� प्रव�
ृ सभी �व�धयां उस मात्रा तक शून्य
ह�गी िजस तक वे इस भाग के उपबंध� से असंगत ह� ।
(2) राज्य ऐसी कोई �व�ध नह�ं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� को
छ�नती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन म� बनाई गई प्रत्येक �व�ध उल्लंघन क�
मात्रा तक शन्
ू य होगी ।
(3) इस अनच्
ु छे द म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,--
(क) “�व�ध” के अंतगर्त भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाला कोई
अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसच
ू ना, रू�ढ़ या प्रथा है ;
(ख) “प्रव�
ृ �व�ध” के अंतगर्त भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वधान-मंडल या
अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले पा�रत या बनाई गई
�व�ध है जो पहले ह� �नर�सत नह�ं कर द� गई है , चाहे ऐसी कोई �व�ध या उसका कोई
भाग उस समय पण
ू त
र् या या �व�शष्ट �ेत्र� म� प्रवतर्न म� नह�ं है ।
1
[(4) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात अनच्
ु छे द 368 के अधीन �कए गए इस सं�वधान के
�कसी संशोधन को लागू नह�ं होगी ।]
समता का अ�धकार
14. �व�ध के सम� समता–राज्य, भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी व्यिक्त को �व�ध के
सम� समता से या �व�धय� के समान संर�ण से वं�चत नह�ं करे गा ।
15. धमर्, मल
ू वंश, जा�त, �लंग या जन्मस्थान के आधार पर �वभेद का प्र�तषेध–(1)
राज्य, �कसी नाग�रक के �वरुद्ध केवल धमर्, मूलवंश, जा�त, �लंग, जन्मस्थान या इनम� से
�कसी के आधार पर कोई �वभेद नह�ं करे गा ।
ू वंश, जा�त, �लंग, जन्मस्थान या इनम� से �कसी के
(2) कोई नाग�रक केवल धमर्, मल
आधार पर–
1. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 2 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्था�पत ।
6
भारत का सं�वधान 7
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(क) खंड (4) और खंड (5) म� उिल्ल�खत वग� से �भन्न नाग�रक� के आ�थर्क
रूप से दब ु ल
र् �कन्ह�ं वग� क� उन्न�त के �लए कोई भी �वशेष उपबंध करने से �नवा�रत
नह�ं करे गी ; और
(ख) खंड (4) और खंड (5) म� उिल्ल�खत वग� से �भन्न नाग�रक� के आ�थर्क
रूप से दब ु ल
र् �कन्ह�ं वग� क� उन्न�त के �लए कोई भी �वशेष उपबंध करने से वहां
�नवा�रत नह�ं करे गी, जहां तक ऐसे उपबंध, ऐसी शै��णक संस्थाओं म� , िजनके अंतगर्त
अनच्
ु छे द 30 के खंड (1) म� �न�दर् ष्ट अल्पसंख्यक शै��णक संस्थाओं से �भन्न प्राइवेट
शै��णक संस्थाएं भी ह� , चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाने वाल� ह� या सहायता न
पाने वाल� ह� , प्रवेश से संबं�धत ह� , जो आर�ण क� दशा म� �वद्यमान आर�ण� के
अ�त�रक्त तथा प्रत्येक प्रवगर् म� कुल स्थान� के अ�धकतम दस प्र�तशत के अध्यधीन
ह�गे ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 2 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. सं�वधान (�तरानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2005 क� धारा 2 द्वारा (20-1-2006 से) अन्तःस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (14-1-2019 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 8
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य के या उसके �ेत्र म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन उस राज्य के भीतर
�नवास �वषयक कोई अपे�ा �व�हत करती हो” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सतह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 क� धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (पचासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 2 द्वारा (भूतल�ी प्रवाभ से) (17-6-1995 से) कुछ शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (इक्यासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 9
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(5) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात �कसी ऐसी �व�ध के प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी जो
यह उपबंध करती है �क �कसी धा�मर्क या सांप्रदा�यक संस्था के कायर्कलाप से संबं�धत कोई
पदधार� या उसके शासी �नकाय का कोई सदस्य �कसी �व�शष्ट धमर् का मानने वाला या
�व�शष्ट संप्रदाय का ह� हो ।
1[(6) इस अनुच्छे द क� कोई बात, राज्य को �वद्यमान आर�ण के अ�त�रक्त तथा
प्रत्येक प्रवगर् म� पद� के अ�धकतम दस प्र�तशत के अध्यधीन, खंड (4) म� उिल्ल�खत वग� से
�भन्न नाग�रक� के आ�थर्क रूप से दब
ु ल
र् �कन्ह�ं वग� के प� म� �नयिु क्तय� और पद� के
आर�ण के �लए कोई भी उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।]
17. अस्पश्ृ यता का अंत–“अस्पश्ृ यता” का अंत �कया जाता है और उसका �कसी भी रूप
म� आचरण �न�षद्ध �कया जाता है । “अस्पश्ृ यता” से उपजी �कसी �नय�ग्यता को लागू करना
अपराध होगा जो �व�ध के अनस
ु ार दं डनीय होगा ।
18. उपा�धय� का अंत–(1) राज्य, सेना या �वद्या संबंधी सम्मान के �सवाय और कोई
उपा�ध प्रदान नह�ं करे गा ।
(2) भारत का कोई नाग�रक �कसी �वदे शी राज्य से कोई उपा�ध स्वीकार नह�ं करे गा ।
(3) कोई व्यिक्त, जो भारत का नाग�रक नह�ं है , राज्य के अधीन लाभ या �वश्वास के
�कसी पद को धारण करते हुए �कसी �वदे शी राज्य से कोई उपा�ध राष्ट्रप�त क� सहम�त के
�बना स्वीकार नह�ं करे गा ।
(4) राज्य के अधीन लाभ या �वश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यिक्त �कसी
�वदे शी राज्य से या उसके अधीन �कसी रूप म� कोई भ� ट, उपलिब्ध या पद राष्ट्रप�त क�
सहम�त के �बना स्वीकार नह�ं करे गा ।
स्वातं�य-अ�धकार
19. वाक् -स्वातं�य आ�द �वषयक कुछ अ�धकार� का संर�ण–(1) सभी नाग�रक� को–
(ख) शां�तपव
ू क
र् और �नरायध
ु सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ 2[या सहकार� सोसाइट�] बनाने का,
1. सं�वधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 3 द्वारा (14-1-2019 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 10
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) “उपखंड (घ), उपखंड (ङ)
और उपखंड (च)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 11
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) क� कोई बात उक्त उपखंड द्वारा �दए गए अ�धकार के
प्रयोग पर साधारण जनता के �हत� म� यिु क्तयक्ु त �नबर्न्धन जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध
अ�धरो�पत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या वैसे �नबर्न्धन अ�धरो�पत
करने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी और �व�शष्टतया 1[उक्त उपखंड
क� कोई बात–
(i) कोई व�ृ �, उपजी�वका, व्यापार या कारबार करने के �लए आवश्यक व�ृ �क
या तकनीक� अहर्ताओं से, या
(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वा�मत्व या �नयंत्रण म� �कसी �नगम द्वारा कोई
व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नाग�रक� का पूणत र् ः या भागतः अपवजर्न करके या
अन्यथा, चलाए जाने से,
जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी
या इस प्रकार संबंध रखने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी ।]
20. अपराध� के �लए दोष�सद्�ध के संबंध म� संर�ण–(1) कोई व्यिक्त �कसी अपराध
के �लए तब तक �सद्धदोष नह�ं ठहराया जाएगा, जब तक �क उसने ऐसा कोई कायर् करने के
समय, जो अपराध के रूप म� आरो�पत है , �कसी प्रव�
ृ �व�ध का अ�तक्रमण नह�ं �कया है या
उससे अ�धक शािस्त का भागी नह�ं होगा जो उस अपराध के �कए जाने के समय प्रव� ृ �व�ध
के अधीन अ�धरो�पत क� जा सकती थी ।
(2) �कसी व्यिक्त को एक ह� अपराध के �लए एक बार से अ�धक अ�भयोिजत और
दं �डत नह�ं �कया जाएगा ।
(3) �कसी अपराध के �लए अ�भयुक्त �कसी व्यिक्त को स्वयं अपने �वरुद्ध सा�ी होने
के �लए बाध्य नह�ं �कया जाएगा ।
21. प्राण और दै �हक स्वतंत्रता का संर�ण–�कसी व्यिक्त को उसके प्राण या दै �हक
स्वतंत्रता से �व�ध द्वारा स्था�पत प्र�क्रया के अनस
ु ार ह� वं�चत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
[21क. �श�ा का अ�धकार–राज्य, छह वषर् से चौदह वषर् तक क� आयु वाले सभी
2
बालक� के �लए नःशुल्क और अ�नवायर् �श�ा दे ने का ऐसी र��त म� , जो राज्य �व�ध द्वारा,
अवधा�रत करे , उपबंध करे गा ।]
22. कुछ दशाओं म� �गरफ्तार� और �नरोध से संर�ण–(1) �कसी व्यिक्त को जो
�गरफ्तार �कया गया है , ऐसी �गरफ्तार� के कारण� से यथाशीघ्र अवगत कराए �बना अ�भर�ा म�
�नरुद्ध नह�ं रखा जाएगा या अपनी रु�च के �व�ध व्यवसायी से परामशर् करने और प्र�तर�ा
कराने के अ�धकार से वं�चत नह�ं रखा जाएगा ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 3 द्वारा (18-6-1951 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (�छयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2002 क� धारा 2 द्वारा (1-4-2010 से) अन्तःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 12
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(2) प्रत्येक व्यिक्त को, जो �गरफ्तार �कया गया है और अ�भर�ा म� �नरुद्ध रखा
गया है , �गरफ्तार� के स्थान से मिजस्ट्रे ट के न्यायालय तक यात्रा के �लए आवश्यक समय को
छोड़कर ऐसी �गरफ्तार� से चौबीस घंटे क� अव�ध म� �नकटतम मिजस्ट्रे ट के सम� पेश �कया
जाएगा और ऐसे �कसी व्यिक्त को मिजस्ट्रे ट के प्रा�धकार के �बना उक्त अव�ध से अ�धक
अव�ध के �लए अ�भर�ा म� �नरुद्ध नह�ं रखा जाएगा ।
(3) खंड (1) और खंड (2) क� कोई बात �कसी ऐसे व्यिक्त को लागू नह�ं होगी जो–
(क) तत्समय शत्रु अन्यदे शीय है ; या
(ख) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� �कसी �व�ध के अधीन �गरफ्तार या
�नरुद्ध �कया गया है ।
∗(4) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� कोई �व�ध �कसी व्यिक्त का तीन मास से
अ�धक अव�ध के �लए तब तक �नरुद्ध �कया जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जब तक �क–
(क) ऐसे व्यिक्तय� से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ह� या न्यायाधीश रहे
ह� या न्यायाधीश �नयुक्त होने के �लए अ�हर्त ह� , �मलकर बने सलाहकार बोडर् ने तीन
मास क� उक्त अव�ध क� समािप्त से पहले यह प्र�तवेदन नह�ं �दया है �क उसक� राय
म� ऐसे �नरोध के �लए पयार्प्त कारण ह� :
∗
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3 द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से, जो �क अ�धसू�चत
नह�ं हुई है) खंड (4) के स्थान पर �नम्न�ल�खत प्र�तस्था�पत �कया जाएगा--
'(4) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� कोई �व�ध �कसी व्यिक्त का दो मास से अ�धक क� अव�ध के
�लए �नरुद्ध �कया जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जब तक �क समु�चत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् क�
�सफा�रश के अनुसार ग�ठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास क� अव�ध क� समािप्त से पहले यह प्र�तवेदन नह�ं
�दया है �क उसक� राय म� ऐसे �नरोध के �लए पयार्प्त कारण ह� :
परं तु सलाहकार बोडर् एक अध्य� और कम से कम दो अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और अध्य� समु�चत
उच्च न्यायालय का सेवारत न्यायाधीश होगा और अन्य सदस्य �कसी उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवा�नव�
ृ
न्यायाधीश ह�गे :
परं तु यह और �क इस खंड क� कोई बात �कसी व्यिक्त का उस अ�धकतम अव�ध के �लए �नरुद्ध �कया
जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �व�हत क�
जाए ।
स्पष्ट�करण--इस खंड म� , “समु�चत उच्च न्यायालय” से अ�भप्रेत है--
(i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीनस्थ �कसी अ�धकार� या प्रा�धकार� द्वारा �कए गए �नरोध
आदे श के अनुसरण म� �नरुद्ध व्यिक्त क� दशा म� , �दल्ल� संघ राज्य�ेत्र के �लए उच्च न्यायालय ;
(ii) (संघ राज्य�ेत्र से �भन्न) �कसी राज्य सरकार द्वारा �कए गए �नरोध आदे श के अनुसरण म�
�नरुद्ध व्यिक्त क� दशा म� , उस राज्य के �लए उच्च न्यायालय ; और
(iii) �कसी संघ राज्य�ेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीनस्थ �कसी अ�धकार� या प्रा�धकार� द्वारा
�कए गए �नरोध आदे श के अनुसरण म� �नरुद्ध व्यिक्त क� दशा म� वह उच्च न्यायालय जो संसद् द्वारा इस
�न�म� बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�न�दर् ष्ट �कया जाए ।' ।
भारत का सं�वधान 13
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(ख) ऐसे व्यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद्
द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अनुसार �नरुद्ध नह�ं �कया जाता है ।
(5) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� �कसी �व�ध के अधीन �कए गए आदे श के
अनुसरण म� जब �कसी व्यिक्त को �नरुद्ध �कया जाता है तब आदे श करने वाला प्रा�धकार�
यथाशक्य शीघ्र उस व्यिक्त को यह संस�ू चत करे गा �क वह आदे श �कन आधार� पर �कया गया
है और उस आदे श के �वरुद्ध अभ्यावेदन करने के �लए उसे शीघ्रा�तशीघ्र अवसर दे गा ।
(6) खंड (5) क� �कसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खंड म� �न�दर् ष्ट है , करने वाले
प्रा�धकार� के �लए ऐसे तथ्य� को प्रकट करना आवश्यक नह�ं होगा िजन्ह� प्रकट करना ऐसा
प्रा�धकार� लोक�हत के �वरुद्ध समझता है ।
*
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(i) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) उपखंड (क)
का लोप �कया गया ।
∗∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(ii) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) उपखंड (ख)
को उपखंड (क) के रूप म� पुनःअ�ां�कत �कया जाएगा ।
∗∗∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(iii) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) उपखंड (ग)
को उपखंड (ख) के रूप म� पुनःअ�ां�कत �कया जाएगा ।
∗∗∗∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(iii) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) “खंड (4)
के उपखंड (क)” के रूप म� “खंड (4)” प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 14
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
1
[(1क) खंड (1) म� �न�दर् ष्ट �कसी अल्पसंख्यक-वगर् द्वारा स्था�पत और प्रशा�सत �श�ा
संस्था क� संप�� के अ�नवायर् अजर्न के �लए उपबंध करने वाल� �व�ध बनाते समय, राज्य यह
सु�निश्चत करे गा �क ऐसी संप�� के अजर्न के �लए ऐसी �व�ध द्वारा �नयत या उसके अधीन
अवधा�रत रकम इतनी हो �क उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अ�धकार �नबर्िन्धत या �नराकृत न हो
जाए ।]
(2) �श�ा संस्थाओं को सहायता दे ने म� राज्य �कसी �श�ा संस्था के �वरुद्ध इस आधार
पर �वभेद नह�ं करे गा �क वह धमर् या भाषा पर आधा�रत �कसी अल्पसंख्यक-वगर् के प्रबंध म� है ।
2
* * * *
31. [संप�� का अ�नवायर् अजर्न ।]–सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978
क� धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) �नर�सत ।
3
[कुछ �व�धय� क� व्याव�ृ �]
4
[31क. संपदाओं आ�द के अजर्न के �लए उपबंध करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ �–
5
[(1) अनच्
ु छे द 13 म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी,–
(क) �कसी संपदा के या उसम� �कन्ह�ं अ�धकार� के राज्य द्वारा अजर्न के �लए
या �कन्ह�ं ऐसे अ�धकार� के �नवार्पन या उनम� प�रवतर्न के �लए, या
(ख) �कसी संप�� का प्रबंध लोक�हत म� या उस संप�� का उ�चत प्रबंध सु�निश्चत
करने के उद्दे श्य से प�रसी�मत अव�ध के �लए राज्य द्वारा ले �लए जाने के �लए, या
(ग) दो या अ�धक �नगम� को लोक�हत म� या उन �नगम� म� से �कसी का
उ�चत प्रबंध सु�निश्चत करने के उद्दे श्य से समामे�लत करने के �लए, या
(घ) �नगम� के प्रबंध अ�भकतार्ओं, स�चव� और कोषाध्य��, प्रबंध �नदे शक�,
�नदे शक� या प्रबंधक� के �कन्ह�ं अ�धकार� या उनके शेयरधारक� के मत दे ने के �कन्ह�ं
अ�धकार� के �नवार्पन या उनम� प�रवतर्न के �लए, या
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीषर् "संप�� का अ�धकार"
का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 4 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत ।
5. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 17
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(ङ) �कसी ख�नज या ख�नज तेल क� खोज करने या उसे प्राप्त करने के
प्रयोजन के �लए �कसी करार, पट्टे या अनु�िप्त के आधार पर प्रोद्भूत होने वाले
�कन्ह�ं अ�धकार� के �नवार्पन या उनम� प�रवतर्न के �लए या �कसी ऐसे करार, पट्टे या
अनु�िप्त को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के �लए,
1
उपबंध करने वाल� �व�ध इस आधार पर शन् ू य नह�ं समझी जाएगी �क वह [अनुच्छे द 14 या
अनुच्छे द 19] द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी से असंगत है या उसे छ�नती है या न्यून करती
है :
परं तु जहां ऐसी �व�ध �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध है वहां इस
अनच् ु छे द के उपबंध उस �व�ध को तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक ऐसी �व�ध को, जो
राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखी गई है , उसक� अनुम�त प्राप्त नह�ं हो गई है :]
2
[परं तु यह और �क जहां �कसी �व�ध म� �कसी संपदा के राज्य द्वारा अजर्न के �लए
कोई उपबंध �कया गया है और जहां उसम� समा�वष्ट कोई भ�ू म �कसी व्यिक्त क� अपनी जोत
म� है वहां राज्य के �लए ऐसी भ�ू म के ऐसे भाग को, जो �कसी तत्समय प्रव� ृ �व�ध के अधीन
उसको लागू अ�धकतम सीमा के भीतर है , या उस पर �न�मर्त या उससे अनल ु ग्न �कसी भवन
या संरचना को अिजर्त करना उस दशा के �सवाय �व�धपण ू र् नह�ं होगा िजस दशा म� ऐसी भ�ू म,
भवन या संरचना के अजर्न से संबं�धत �व�ध उस दर से प्र�तकर के संदाय के �लए उपबंध
करती है जो उसके बाजार-मल् ू य से कम नह�ं होगी ।]
(2) इस अनच्
ु छे द म� ,–
3
[(क) “संपदा” पद का �कसी स्थानीय �ेत्र के संबंध म� वह� अथर् है जो उस
पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस �ेत्र म� प्रव� ृ भू-ध�ृ तय� से संबं�धत
�वद्यमान �व�ध म� है और इसके अंतगर्त–
(i) कोई जागीर, इनाम या मआ ु फ� अथवा वैसा ह� अन्य अनुदान और
4
[त�मलनाडु] और केरल राज्य� म� कोई जन्मम ् अ�धकार भी होगा ;
(ii) रै यतबाड़ी बंदोबस्त के अधीन धत
ृ कोई भ�ू म भी होगी ;
(iii) कृ�ष के प्रयोजन� के �लए या उसके सहायक प्रयोजन� के �लए धतृ
या पट्टे पर द� गई कोई भू�म भी होगी, िजसके अंतगर्त बंजर भ�ू म, वन भ�ू म,
चरागाह या भ�ू म के कृषक�, कृ�ष श्र�मक� और ग्रामीण कार�गर� के अ�धभोग
म� भवन� और अन्य संरचनाओं के स्थल ह� ;]
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनुच्छे द 14, अनुच्छे द 19
या अनुच्छे द 31” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सत्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 क� धारा 2(i) द्वारा (20-6-1964 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (सत्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 क� धारा 2(ii) द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) उपखंड (क) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. मद्रास राज्य (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 18
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
(ख) “अ�धकार” पद के अंतगर्त, �कसी संपदा के संबंध म� , �कसी स्वत्वधार�,
उप-स्वत्वधार�, अवर स्वत्वधार�, भ-ू ध�ृ तधारक, 1[रै यत, अवर रै यत] या अन्य मध्यवत�
म� �न�हत कोई अ�धकार और भू-राजस्व के संबंध म� कोई अ�धकार या �वशेषा�धकार
ह�गे ।
2
[31ख. कुछ अ�ध�नयम� और �व�नयम� का �व�धमान्यकरण–अनुच्छे द 31क म�
अंत�वर्ष्ट उपबंध� क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, नवीं अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट
अ�ध�नयम� और �व�नयम� म� से और उनके उपबंध� म� से कोई इस आधार पर शून्य या कभी
शून्य हुआ नह�ं समझा जाएगा �क वह अ�ध�नयम, �व�नयम या उपबंध इस भाग के �कन्ह�ं
उपबंध� द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी से असंगत है या उसे छ�नता है या न्यन ू करता है
और �कसी न्यायालय या अ�धकरण के �कसी प्र�तकूल �नणर्य, �डक्र� या आदे श के होते हुए भी,
उक्त अ�ध�नयम� और �व�नयम� म� से प्रत्येक, उसे �नर�सत या संशो�धत करने क� �कसी
स�म �वधान-मंडल क� शिक्त के अधीन रहते हुए, प्रव� ृ बना रहे गा ।]
3
[31ग. कुछ �नदे शक त�व� को प्रभावी करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ �–अनच् ु छे द 13
म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई �व�ध, जो 4[भाग 4 म� अ�धक�थत सभी या �कन्ह�ं त�व�]
को सु�निश्चत करने के �लए राज्य क� नी�त को प्रभावी करने वाल� है , इस आधार पर शून्य
नह�ं समझी जाएगी �क वह 5[अनच् ु छे द 14 या अनच्ु छे द 19] द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से
6
�कसी से असंगत है या उसे छ�नती है या न्यनू करती है [और कोई �व�ध, िजसम� यह घोषणा
है �क वह ऐसी नी�त को प्रभावी करने के �लए है , �कसी न्यायालय म� इस आधार पर प्रश्नगत
नह�ं क� जाएगी �क वह ऐसी नी�त को प्रभावी नह�ं करती है ]:
परं तु जहां ऐसी �व�ध �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस
अनच् ु छे द के उपबंध उस �व�ध को तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक ऐसी �व�ध को, जो
राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखी गई है , उसक� अनुम�त प्राप्त नह�ं हो गई है ।
31घ. [राष्ट्र �वरोधी �क्रयाकलाप के संबंध म� �व�धय� क� व्याव�ृ �।]–सं�वधान
7
(त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया
गया ।
1. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (पच्चीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) “अनुच्छे द 39 के खंड (ख) या
खंड (ग) म� �व�न�दर् ष्ट �सद्धांत�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, �मनवार् �मल्स
�ल0 और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 म� अ�व�धमान्य घो�षत कर �दया
गया ।
5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) “अनुच्छे द 14, अनुच्छे द 19
या अनुच्छे द 31” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. उच्चतम न्यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य ए.आई.आर. 1973 एस0सी0 1461 म� इटै �नक म� �लखे
गए शब्द� को �नष्प्रभावी कर �दया है ।
7. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 19
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 6 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (पचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (11-9-1984 से) अनुच्छे द 33 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 20
(भाग 3—मल
ू अ�धकार)
34. जब �कसी �ेत्र म� सेना �व�ध प्रव� ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� पर
�नबर्न्धन–इस भाग के पव ू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् �व�ध द्वारा संघ
या �कसी राज्य क� सेवा म� �कसी व्यिक्त क� या �कसी अन्य व्यिक्त क� �कसी ऐसे कायर् के
संबंध म� ��तप�ू तर् कर सकेगी जो उसने भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी ऐसे �ेत्र म�, जहां
सेना �व�ध प्रव�ृ थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पन ु ःस्थापन के संबंध म� �कया है या ऐसे
�ेत्र म� सेना �व�ध के अधीन पा�रत दं डादे श, �दए गए दं ड, आ�दष्ट समपहरण या �कए गए
अन्य कायर् को �व�धमान्य कर सकेगी ।
35. इस भाग के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए �वधान–इस सं�वधान म� �कसी बात
के होते हुए भी,–
(क) संसद् को शिक्त होगी और �कसी राज्य के �वधान-मंडल को शिक्त नह�ं
होगी �क वह–
(i) िजन �वषय� के �लए अनच् ु छे द 16 के खंड (3), अनच्
ु छे द 32 के
खंड (3), अनच्ु छे द 33 और अनुच्छे द 34 के अधीन संसद् �व�ध द्वारा उपबंध
कर सकेगी उनम� से �कसी के �लए, और
(ii) ऐसे काय� के �लए, जो इस भाग के अधीन अपराध घो�षत �कए
गए ह� , दं ड �व�हत करने के �लए,
�व�ध बनाए और संसद् इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र ऐसे काय� के
�लए, जो उपखंड (ii) म� �न�दर्ष्ट ह� , दं ड �व�हत करने के �लए �व�ध बनाएगी ;
(ख) खंड (क) के उपखंड (i) म� �न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी से संबं�धत या उस
खंड के उपखंड (ii) म� �न�दर् ष्ट �कसी कायर् के �लए दं ड का उपबंध करने वाल� कोई
प्रव�
ृ �व�ध, जो भारत के राज्य�ेत्र म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले प्रव�ृ थी,
उसके �नबंधन� के और अनच् ु छे द 372 के अधीन उसम� �कए गए �कन्ह�ं अनक ु ू लन�
और उपांतरण� के अधीन रहते हुए तब तक प्रव� ृ रहे गी जब तक उसका संसद् द्वारा
प�रवतर्न या �नरसन या संशोधन नह�ं कर �दया जाता है ।
स्पष्ट�करण–इस अनच्
ु छे द म� , “प्रव�
ृ �व�ध” पद का वह� अथर् है जो अनच्
ु छे द 372 म�
है ।
भाग 4
राज्य क� नी�त के �नदे शक त�व
36. प�रभाषा–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,
“राज्य” का वह� अथर् है जो भाग 3 म� है ।
37. इस भाग म� अंत�वर्ष्ट त�व� का लागू होना–इस भाग म� अंत�वर्ष्ट
उपबंध �कसी न्यायालय द्वारा प्रवतर्नीय नह�ं ह�गे �कं तु �फर भी इनम�
अ�धक�थत त�व दे श के शासन म� मल ू भूत ह� और �व�ध बनाने म� इन त�व� को
लागू करना राज्य का कतर्व्य होगा ।
38. राज्य लोक कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध के �लए सामािजक व्यवस्था
बनाएगा– 1[(1)] राज्य ऐसी सामािजक व्यवस्था क�, िजसम� सामािजक, आ�थर्क
और राजनै�तक न्याय राष्ट्र�य जीवन क� सभी संस्थाओं को अनप्र ु ा�णत करे ,
भरसक प्रभावी रूप म� स्थापना और संर�ण करके लोक कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध
का प्रयास करे गा ।
[(2) राज्य, �व�शष्टतया, आय क� असमानताओं को कम करने का प्रयास
2
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 38 को
खंड (1) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
21
भारत का सं�वधान 22
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (च) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 23
1. सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 3 द्वारा (15-2-2012 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (�छयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2002 क� धारा 3 द्वारा (1-4-2010 से) अनुच्छे द 45 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 24
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) “संसद् द्वारा �व�ध
द्वारा घो�षत” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
1
[भाग 4क
मूल कतर्व्य
ू कतर्व्य–भारत के प्रत्येक नाग�रक का यह कतर्व्य होगा �क वह–
51क. मल
(क) सं�वधान का पालन करे और उसके आदश�, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज
और राष्ट्रगान का आदर करे ;
(ख) स्वतंत्रता के �लए हमारे राष्ट्र�य आंदोलन को प्रे�रत करने वाले उच्च
आदश� को हृदय म� संजोए रखे और उनका पालन करे ;
(ग) भारत क� प्रभुता, एकता और अखंडता क� र�ा करे और उसे अ�ुण्ण
रखे ;
(घ) दे श क� र�ा करे और आह्वान �कए जाने पर राष्ट्र क� सेवा करे ;
(ङ) भारत के सभी लोग� म� समरसता और समान भ्रातत्ृ व क� भावना का
�नमार्ण करे जो धमर्, भाषा और प्रदे श या वगर् पर आधा�रत सभी भेदभाव से परे
हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो िस्त्रय� के सम्मान के �वरुद्ध है ;
(च) हमार� सामा�सक संस्कृ�त क� गौरवशाल� परं परा का महत्व समझे
और उसका प�रर�ण करे ;
(छ) प्राकृ�तक पयार्वरण क�, िजसके अंतगर्त वन, झील, नद� और वन्य
जीव ह�, र�ा करे और उसका संवधर्न करे तथा प्रा�ण मात्र के प्र�त दयाभाव रखे ;
(ज) वै�ा�नक दृिष्टकोण, मानववाद और �ानाजर्न तथा सुधार क� भावना
का �वकास करे ;
(झ) सावर्ज�नक संप�� को सुर��त रखे और �हंसा से दरू रहे ;
(ञ) व्यिक्तगत और सामू�हक ग�त�व�धय� के सभी �ेत्र� म� उत्कषर् क�
ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे िजससे राष्ट्र �नरं तर बढ़ते हुए प्रयत्न और
उपलिब्ध क� नई ऊंचाइय� को छू ले ;]
2
[(ट) य�द माता-�पता या संर�क है, छह वषर् से चौदह वषर् तक क� आयु
वाले अपने, यथािस्थ�त, बालक या प्र�तपाल्य के �लए �श�ा के अवसर प्रदान
करे ।]
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (�छयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2002 क� धारा 4 द्वारा (1-4-2010 से) अंतःस्था�पत ।
25
भाग 5
संघ
अध्याय 1–कायर्पा�लका
राष्ट्रप�त और उपराष्ट्रप�त
52. भारत का राष्ट्रप�त–भारत का एक राष्ट्रप�त होगा ।
53. संघ क� कायर्पा�लका शिक्त–(1) संघ क� कायर्पा�लका शिक्त राष्ट्रप�त म�
�न�हत होगी और वह इसका प्रयोग इस सं�वधान के अनस ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ
अ�धका�रय� के द्वारा करे गा ।
(2) पव
ू ग
र् ामी उपबंध क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, संघ के र�ा
बल� का सव�च्च समादे श राष्ट्रप�त म� �न�हत होगा और उसका प्रयोग �व�ध द्वारा
�व�नय�मत होगा ।
(3) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात–
(क) �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा �कसी राज्य क� सरकार या अन्य
प्रा�धकार� को प्रदान �कए गए कृत्य राष्ट्रप�त को अंत�रत करने वाल� नह�ं समझी
जाएगी ; या
(ख) राष्ट्रप�त से �भन्न अन्य प्रा�धका�रय� को �व�ध द्वारा कृत्य प्रदान
करने से संसद् को �नवा�रत नह�ं करे गी ।
54. राष्ट्रप�त का �नवार्चन–राष्ट्रप�त का �नवार्चन ऐसे �नवार्चकगण के सदस्य कर� गे
िजसम� –
(क) संसद् के दोन� सदन� के �नवार्�चत सदस्य ; और
(ख) राज्य� क� �वधान सभाओं के �नवार्�चत सदस्य,
ह�गे ।
1
[स्पष्ट�करण–इस अनच्ु छे द और अनच् ु छे द 55 म� , “राज्य” के अंतगर्त �दल्ल�
राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र और *पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र ह� ।]
55. राष्ट्रप�त के �नवार्चन क� र��त–(1) जहां तक साध्य हो, राष्ट्रप�त के �नवार्चन
म� �भन्न-�भन्न राज्य� के प्र�त�न�धत्व के मापमान म� एकरूपता होगी ।
(2) राज्य� म� आपस म� ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्य� और संघ म� समतुल्यता
प्राप्त कराने के �लए संसद् और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा का प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य
ऐसे �नवार्चन म� िजतने मत दे ने का हकदार है उनक� संख्या �नम्न�ल�खत र��त से
अवधा�रत क� जाएगी, अथार्त ् :–
(क) �कसी राज्य क� �वधान सभा के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के उतने
मत ह�गे िजतने �क एक हजार के ग�ु णत उस भागफल म� ह� जो राज्य क�
जनसंख्या को उस �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने
पर आए ;
1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतःस्था�पत ।
*
पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 3 द्वारा (1-10-2006 से) अब यह पुडुचेर� है ।
26
भारत का सं�वधान 27
(भाग 5—संघ)
(ख) य�द एक हजार के उक्त गु�णत� को लेने के बाद शेष पांच सौ से
कम नह�ं है तो उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट प्रत्येक सदस्य के मत� क� संख्या म� एक
और जोड़ �दया जाएगा ;
(ग) संसद् के प्रत्येक सदन के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के मत� क� संख्या
वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्य� क� �वधान सभाओं
के सदस्य� के �लए �नयत कुल मत� क� संख्या को, संसद् के दोन� सदन� के
�नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने पर आए, िजसम� आधे से अ�धक
�भन्न को एक �गना जाएगा और अन्य �भन्न� क� उपे�ा क� जाएगी ।
(3) राष्ट्रप�त का �नवार्चन आनप
ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस
ु ार एकल
संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे �नवार्चन म� मतदान गप्ु त होगा ।
[स्पष्ट�करण–इस अनच्
1
ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव
ू वर् त� जनगणना
म� अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए
ह� :
परं तु इस स्पष्ट�करण म� अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सुसग
ं त आंकड़े
प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह
1971 क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।]
56. राष्ट्रप�त क� पदाव�ध–(1) राष्ट्रप�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर्
क� अव�ध तक पद धारण करे गा :
परं तु–
(क) राष्ट्रप�त, उपराष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) सं�वधान का अ�तक्रमण करने पर राष्ट्रप�त को अनच् ु छे द 61 म�
उपबं�धत र��त से चलाए गए महा�भयोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा ;
(ग) राष्ट्रप�त, अपने पद क� अव�ध समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद
धारण करता रहे गा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर लेता
है ।
(2) खंड (1) के परं तुक के खंड (क) के अधीन उपराष्ट्रप�त को संबो�धत त्यागपत्र
क� सूचना उसके द्वारा लोक सभा के अध्य� को तुरन्त द� जाएगी ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्ट�करण के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 2 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 28
(भाग 5—संघ)
57. पन ु �नर्वार्चन के �लए पात्रता–कोई व्यिक्त, जो राष्ट्रप�त के रूप म� पद धारण
करता है या कर चक ु ा है, इस सं�वधान के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए उस पद के
�लए पन
ु �नर्वार्चन का पात्र होगा ।
58. राष्ट्रप�त �नवार्�चत होने के �लए अहर्ताएं–(1) कोई व्यिक्त राष्ट्रप�त �नवार्�चत
होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नाग�रक है,
(ख) प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक
ु ा है, और
(ग) लोक सभा का सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अ�हर्त है ।
(2) कोई व्यिक्त, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन
अथवा उक्त सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के
अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा ।
स्पष्ट�करण–इस अनच्
ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्यिक्त केवल इस कारण
कोई लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का राष्ट्रप�त या
उपराष्ट्रप�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का
मंत्री है ।
59. राष्ट्रप�त के पद के �लए शत�–(1) राष्ट्रप�त संसद् के �कसी सदन का या
�कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के
�कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य
राष्ट्रप�त �नवार्�चत हो जाता है तो यह समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना
स्थान राष्ट्रप�त के रूप म� अपने पद ग्रहण क� तार�ख से �रक्त कर �दया है ।
(2) राष्ट्रप�त अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा ।
(3) राष्ट्रप�त, �बना �कराया �दए, अपने शासक�य �नवास� के उपयोग का हकदार
होगा और ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का भी, जो संसद्, �व�ध द्वारा
अवधा�रत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक
ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का, जो दस ू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�,
हकदार होगा ।
(4) राष्ट्रप�त क� उपलिब्धयां और भ�े उसक� पदाव�ध के दौरान कम नह�ं �कए
जाएंगे ।
60. राष्ट्रप�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक राष्ट्रप�त और प्रत्येक व्यिक्त, जो
राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है, अपना पद
ग्रहण करने से पहले भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् या उसक� अनप ु िस्थ�त म� उच्चतम
न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के सम� �नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा
या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा, अथार्त ् :–
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख या
उप-राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 29
(भाग 5—संघ)
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक --------------------------------------�क म� श्रद्धापव
ू क
र् भारत के
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
राष्ट्रप�त के पद का कायर्पालन (अथवा राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन) करूंगा
तथा अपनी परू � योग्यता से सं�वधान और �व�ध का प�रर�ण, संर�ण और
प्र�तर�ण करूंगा और म� भारत क� जनता क� सेवा और कल्याण म� �नरत
रहूंगा ।”।
61. राष्ट्रप�त पर महा�भयोग चलाने क� प्र�क्रया–(1) जब सं�वधान के अ�तक्रमण
के �लए राष्ट्रप�त पर महा�भयोग चलाना हो, तब संसद् का कोई सदन आरोप लगाएगा ।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नह�ं लगाया जाएगा जब तक �क–
(क) ऐसा आरोप लगाने क� प्रस्थापना �कसी ऐसे संकल्प म� अंत�वर्ष्ट नह�ं
है, जो कम से कम चौदह �दन क� ऐसी �ल�खत सूचना के �दए जाने के पश्चात ्
प्रस्ता�वत �कया गया है िजस पर उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम
एक-चौथाई सदस्य� ने हस्ता�र करके उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने का अपना
आशय प्रकट �कया है ; और
(ख) उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-�तहाई बहुमत
द्वारा ऐसा संकल्प पा�रत नह�ं �कया गया है ।
(3) जब आरोप संसद् के �कसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दस
ू रा
सदन उस आरोप का अन्वेषण करे गा या कराएगा और ऐसे अन्वेषण म� उपिस्थत होने
का तथा अपना प्र�त�न�धत्व कराने का राष्ट्रप�त को अ�धकार होगा ।
(4) य�द अन्वेषण के प�रणामस्वरूप यह घो�षत करने वाला संकल्प �क राष्ट्रप�त के
�वरुद्ध लगाया गया आरोप �सद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले
सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर �दया जाता
है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पा�रत �कए जाने क� तार�ख से राष्ट्रप�त को
उसके पद से हटाना होगा ।
62. राष्ट्रप�त के पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और
आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त क� पदाव�ध–(1) राष्ट्रप�त क�
पदाव�ध क� समािप्त से हुई �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समािप्त से
पहले ह� पण
ू र् कर �लया जाएगा ।
(2) राष्ट्रप�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई
उसके पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, �रिक्त होने क� तार�ख के पश्चात ्
यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा म� छह मास बीतने से पहले �कया जाएगा और �रिक्त को
भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त, अनच् ु छे द 56 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अपने पद
ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण करने का हकदार होगा ।
63. भारत का उपराष्ट्रप�त–भारत का एक उपराष्ट्रप�त होगा ।
64. उपराष्ट्रप�त का राज्य सभा का पदे न सभाप�त होना–उपराष्ट्रप�त, राज्य सभा
का पदे न सभाप�त होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा :
भारत का सं�वधान 30
(भाग 5—संघ)
परं तु िजस �कसी अव�ध के दौरान उपराष्ट्रप�त, अनच्
ु छे द 65 के अधीन राष्ट्रप�त
के रूप म� कायर् करता है या राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन करता है, उस अव�ध के
दौरान वह राज्य सभा के सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन नह�ं करे गा और वह
अनच्ु छे द 97 के अधीन राज्य सभा के सभाप�त को संदेय वेतन या भ�े का हकदार नह�ं
होगा ।
65. राष्ट्रप�त के पद म� आकिस्मक �रिक्त के दौरान या उसक� अनप ु िस्थ�त म�
उपराष्ट्रप�त का राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् करना या उसके कृत्य� का �नवर्हन–(1)
राष्ट्रप�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद म� हुई
�रिक्त क� दशा म� उपराष्ट्रप�त उस तार�ख तक राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् करे गा िजस
तार�ख को ऐसी �रिक्त को भरने के �लए इस अध्याय के उपबंध� के अनस ु ार �नवार्�चत
नया राष्ट्रप�त अपना पद ग्रहण करता है ।
(2) जब राष्ट्रप�त अनप
ु िस्थ�त, बीमार� या अन्य �कसी कारण से अपने कृत्य� का
�नवर्हन करने म� असमथर् है तब उपराष्ट्रप�त उस तार�ख तक उसके कृत्य� का �नवर्हन
करे गा िजस तार�ख को राष्ट्रप�त अपने कतर्व्य� को �फर से संभालता है ।
(3) उपराष्ट्रप�त को उस अव�ध के दौरान और उस अव�ध के संबध ं म� , जब वह
राष्ट्रप�त के रूप म� इस प्रकार कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है,
राष्ट्रप�त क� सभी शिक्तयां और उन्मुिक्तयां ह�गी तथा वह ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और
�वशेषा�धकार� का जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे , और जब तक इस �न�म� इस
प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का,
जो दस ू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, हकदार होगा ।
66. उपराष्ट्रप�त का �नवार्चन–(1) उपराष्ट्रप�त का �नवार्चन 1[संसद् के दोन�
सदन� के सदस्य� से �मलकर बनने वाले �नवार्चकगण के सदस्य�] द्वारा आनप ु ा�तक
प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनसु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे �नवार्चन म�
मतदान गप्ु त होगा ।
(2) उपराष्ट्रप�त संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के
�कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के
�वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रप�त �नवार्�चत हो जाता है तो यह
समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना स्थान उपराष्ट्रप�त के रूप म� अपने पद
ग्रहण क� तार�ख से �रक्त कर �दया है ।
(3) कोई व्यिक्त उपराष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नाग�रक है,
(ख) प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक
ु ा है, और
1. सं�वधान (ग्यारहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा (19-12-1961 से) “संयुक्त अ�धवेशन म� समवेत
संसद् के दोन� सदन� के सदस्य�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 31
(भाग 5—संघ)
(ग) राज्य सभा का सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अ�हर्त है ।
(4) कोई व्यिक्त, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन
अथवा उक्त सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के
अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा ।
स्पष्ट�करण–इस अनच्
ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्यिक्त केवल इस कारण
कोई लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का राष्ट्रप�त या
उपराष्ट्रप�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का
मंत्री है ।
67. उपराष्ट्रप�त क� पदाव�ध–उपराष्ट्रप�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर्
क� अव�ध तक पद धारण करे गा :
परं तु–
(क) उपराष्ट्रप�त, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) उपराष्ट्रप�त, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया
जा सकेगा िजसे राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत ने पा�रत
�कया है और िजससे लोक सभा सहमत है; �कं तु इस खंड के प्रयोजन के �लए
कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को
प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सूचना न दे द� गई
हो ;
(ग) उपराष्ट्रप�त, अपने पद क� अव�ध समाप्त हो जाने पर भी, तब तक
पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर
लेता है ।
68. उपराष्ट्रप�त के पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय
और आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त क� पदाव�ध–(1) उपराष्ट्रप�त
क� पदाव�ध क� समािप्त से हुई �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समािप्त
से पहले ह� पण
ू र् कर �लया जाएगा ।
(2) उपराष्ट्रप�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई
उसके पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, �रिक्त होने के पश्चात ् यथाशीघ्र �कया
जाएगा और �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त, अनच्
ु छे द 67 के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण
करने का हकदार होगा ।
69. उपराष्ट्रप�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक उपराष्ट्रप�त अपना पद ग्रहण
करने से पहले राष्ट्रप�त अथवा उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त �कसी व्यिक्त के सम�
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख या
उप-राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 32
(भाग 5—संघ)
�नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र
करे गा, अथार्त ् :–
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक -----------------------------------------�क म� �व�ध द्वारा स्था�पत
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ूं ा तथा िजस पद को म�
ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र् �नवर्हन करूंगा ।”।
70. अन्य आकिस्मकताओं म� राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन–संसद्, ऐसी �कसी
आकिस्मकता म� जो इस अध्याय म� उपबं�धत नह�ं है, राष्ट्रप�त के कृत्य� के �नवर्हन के
�लए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठ�क समझे ।
1
[71. राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के �नवार्चन से संब�ं धत या संसक्त �वषय–(1)
राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के �नवार्चन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और �ववाद�
क� जांच और �व�नश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय
अं�तम होगा ।
(2) य�द उच्चतम न्यायालय द्वारा �कसी व्यिक्त के राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के
रूप म� �नवार्चन को शन् ू य घो�षत कर �दया जाता है तो उसके द्वारा, यथािस्थ�त,
राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के पद क� शिक्तय� के प्रयोग और कतर्व्य� के पालन म� उच्चतम
न्यायालय के �व�नश्चय क� तार�ख को या उससे पहले �कए गए कायर् उस घोषणा के
कारण अ�व�धमान्य नह�ं ह�गे ।
(3) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के
�नवार्चन से संब�ं धत या संसक्त �कसी �वषय का �व�नयमन संसद् �व�ध द्वारा कर
सकेगी ।
(4) राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के रूप म� �कसी व्यिक्त के �नवार्चन को उसे
�नवार्�चत करने वाले �नवार्चकगण के सदस्य� म� �कसी भी कारण से �वद्यमान �कसी
�रिक्त के आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा ।]
72. �मा आ�द क� और कुछ मामल� म� दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या
लघकू रण क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–(1) राष्ट्रप�त को, �कसी अपराध के �लए �सद्धदोष
ठहराए गए �कसी व्यिक्त के दंड को �मा, उसका प्र�वलंबन, �वराम या प�रहार करने क�
अथवा दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक
ू रण क�–
(क) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं ड या दं डादे श सेना न्यायालय ने �दया
है,
1. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से) प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ्
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 33
(भाग 5—संघ)
(ख) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं ड या दं डादे श ऐसे �वषय संबध
ं ी �कसी
�व�ध के �वरुद्ध अपराध के �लए �दया गया है िजस �वषय तक संघ क�
कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है,
(ग) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं डादे श, मत्ृ यु दं डादे श है,
शिक्त होगी ।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) क� कोई बात संघ के सशस्त्र बल� के �कसी आ�फसर
क� सेना न्यायालय द्वारा पा�रत दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक ू रण क� �व�ध
द्वारा प्रद� शिक्त पर प्रभाव नह�ं डालेगी ।
(3) खंड (1) के उपखंड (ग) क� कोई बात तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन
�कसी राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा प्रयोक्तव्य मत्ृ यु दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या
लघक
ू रण क� शिक्त पर प्रभाव नह�ं डालेगी ।
73. संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार–
(क) िजन �वषय� के संबध
ं म� संसद् को �व�ध बनाने क� शिक्त है उन
तक, और
(ख) �कसी सं�ध या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोक्तव्य
अ�धकार�, प्रा�धकार और अ�धका�रता के प्रयोग तक,
होगा :
परं तु इस सं�वधान म� या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध म� अ�भव्यक्त रूप से
यथा उपबं�धत के �सवाय, उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी
2
*** राज्य म� ऐसे �वषय� तक नह�ं होगा िजनके संबध ं म� उस राज्य के �वधान-मंडल को
भी �व�ध बनाने क� शिक्त है ।
(2) जब तक संसद् अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस अनच् ु छे द म� �कसी बात
के होते हुए भी, कोई राज्य और राज्य का कोई अ�धकार� या प्रा�धकार� उन �वषय� म� ,
िजनके संबध ं म� संसद् को उस राज्य के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त है, ऐसी
कायर्पा�लका शिक्त का या कृत्य� का प्रयोग कर सकेगा िजनका प्रयोग वह राज्य या
उसका अ�धकार� या प्रा�धकार� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले कर सकता था ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क और भाग ख म� उिल्ल�खत” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 34
(भाग 5—संघ)
मं�त्र-प�रषद्
74. राष्ट्रप�त को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद्– 1[(1) राष्ट्रप�त को
सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी िजसका प्रधान, प्रधान मंत्री होगा
और राष्ट्रप�त अपने कृत्य� का प्रयोग करने म� ऐसी सलाह के अनस
ु ार कायर् करे गा :]
2
[परं तु राष्ट्रप�त मं�त्र-प�रषद् से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुन�वर्चार
करने क� अपे�ा कर सकेगा और राष्ट्रप�त ऐसे पन
ु �वर्चार के पश्चात ् द� गई सलाह के
अनस
ु ार कायर् करे गा ।]
(2) इस प्रश्न क� �कसी न्यायालय म� जांच नह�ं क� जाएगी �क क्या मं�त्रय� ने
राष्ट्रप�त को कोई सलाह द�, और य�द द� तो क्या द� ।
75. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध–(1) प्रधान मंत्री क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त करे गा
और अन्य मं�त्रय� क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त, प्रधान मंत्री क� सलाह पर करे गा ।
3
[(1क) मं�त्र-प�रषद् म� प्रधान मंत्री स�हत मं�त्रय� क� कुल संख्या लोक सभा के
सदस्य� क� कुल संख्या के पन्द्रह प्र�तशत से अ�धक नह�ं होगी ।
(4) �कसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रप�त तीसर� अनुसूची म�
इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप� के अनस
ु ार उसको पद क� और गोपनीयता क� शपथ
�दलाएगा ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 35
(भाग 5—संघ)
(5) कोई मंत्री, जो �नरं तर छह मास क� �कसी अव�ध तक संसद् के �कसी सदन
का सदस्य नह�ं है, उस अव�ध क� समािप्त पर मंत्री नह�ं रहेगा ।
(6) मं�त्रय� के वेतन और भ�े ऐसे ह�गे जो संसद्, �व�ध द्वारा, समय-समय पर
अवधा�रत करे और जब तक संसद् इस प्रकार अवधा�रत नह�ं करती है तब तक ऐसे ह�गे
जो दस
ू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� ।
भारत का महान्यायवाद�
76. भारत का महान्यायवाद�–(1) राष्ट्रप�त, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश
�नयक्
ु त होने के �लए अ�हर्त �कसी व्यिक्त को भारत का महान्यायवाद� �नयक्
ु त करे गा ।
(2) महान्यायवाद� का यह कतर्व्य होगा �क वह भारत सरकार को �व�ध संबध ं ी
ऐसे �वषय� पर सलाह दे और �व�धक स्वरूप के ऐसे अन्य कतर्व्य� का पालन करे जो
राष्ट्रप�त उसको समय-समय पर �नद� �शत करे या स�पे और उन कृत्य� का �नवर्हन करे जो
उसको इस सं�वधान अथवा तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध द्वारा या उसके अधीन प्रदान
�कए गए ह� ।
(3) महान्यायवाद� को अपने कतर्व्य� के पालन म� भारत के राज्य�ेत्र म� सभी
न्यायालय� म� सुनवाई का अ�धकार होगा ।
(4) महान्यायवाद�, राष्ट्रप�त के प्रसादपय�त पद धारण करे गा और ऐसा
पा�रश्र�मक प्राप्त करे गा जो राष्ट्रप�त अवधा�रत करे ।
सरकार� कायर् का संचालन
77. भारत सरकार के कायर् का संचालन–(1) भारत सरकार क� समस्त
कायर्पा�लका कारर्वाई राष्ट्रप�त के नाम से क� हुई कह� जाएगी ।
(2) राष्ट्रप�त के नाम से �कए गए और �नष्पा�दत आदे श� और अन्य �लखत� को
ऐसी र��त से अ�धप्रमा�णत �कया जाएगा जो राष्ट्रप�त द्वारा बनाए जाने वाले �नयम� 1 म� 13
1. दे �खए समय-समय पर यथा संशो�धत अ�धसूचना सं. का.आ. 2297, तार�ख 3 नवंबर, 1958, भारत का राजपत्र,
असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3(ii), पष्ृ ठ 1315 ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 14 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंतःस्था�पत �कया
गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 12 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 36
(भाग 5—संघ)
78. राष्ट्रप�त को जानकार� दे ने आ�द के संबध
ं म� प्रधान मंत्री के कतर्व्य–प्रधान
मंत्री का यह कतर्व्य होगा �क वह–
(क) संघ के कायर्कलाप के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक
प्रस्थापनाओं संबध
ं ी मं�त्र-प�रषद् के सभी �व�नश्चय राष्ट्रप�त को संस�ू चत करे ;
(ख) संघ के कायर्कलाप के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक
प्रस्थापनाओं संबध
ं ी जो जानकार� राष्ट्रप�त मांगे, वह दे ; और
(ग) �कसी �वषय को, िजस पर �कसी मंत्री ने �व�नश्चय कर �दया है
�कन्तु मं�त्र-प�रषद् ने �वचार नह�ं �कया है, राष्ट्रप�त द्वारा अपे�ा �कए जाने पर
प�रषद् के सम� �वचार के �लए रखे ।
अध्याय 2–संसद्
साधारण
79. संसद् का गठन–संघ के �लए एक संसद् होगी जो राष्ट्रप�त और दो सदन� से
�मलकर बनेगी िजनके नाम राज्य सभा और लोक सभा ह�गे ।
80. राज्य सभा क� संरचना–(1) 1[ 2*** राज्य सभा]–
(क) राष्ट्रप�त द्वारा खंड (3) के उपबंध� के अनस
ु ार नाम�नद� �शत �कए
जाने वाले बारह सदस्य�, और
(ख) राज्य� के 3
[और संघ राज्य�ेत्र� के] दो सौ अड़तीस से अन�धक
प्र�त�न�धय�,
से �मलकर बनेगी ।
(2) राज्य सभा म� राज्य� के और 3[और संघ राज्य�ेत्र� के] प्र�त�न�धय� द्वारा
भरे जाने वाले स्थान� का आबंटन चौथी अनस ु ूची म� इस �न�म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� के
अनसु ार होगा ।
(3) राष्ट्रप�त द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नाम�नद� �शत �कए जाने
वाले सदस्य ऐसे व्यिक्त ह�गे िजन्ह� �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� �वशेष �ान या
व्यावहा�रक अनभ ु व है, अथार्त ् :–
सा�हत्य, �व�ान, कला और समाज सेवा ।
1. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) “राज्य सभा” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के
उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 37
(भाग 5—संघ)
(4) राज्य सभा म� प्रत्येक 1*** राज्य के प्र�त�न�धय� का �नवार्चन उस राज्य
क� �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� द्वारा आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस
ु ार
एकल संक्रमणीय मत द्वारा �कया जाएगा ।
(5) राज्य सभा म� 2[संघ राज्य�ेत्र�] के प्र�त�न�ध ऐसी र��त से चन
ु े जाएंगे जो
संसद् �व�ध द्वारा �व�हत करे ।
3
[81. लोक सभा क� संरचना–(1) 4[अनच्
ु छे द 331 के उपबंध� के अधीन रहते हुए
5
***] लोक सभा–
(क) राज्य� म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन
ु े गए
6
[पांच सौ तीस] से अन�धक 6[सदस्य�], और
(ख) संघ राज्य�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करने के �लए ऐसी र��त से, जो
संसद् �व�ध द्वारा उपबं�धत करे , चनु े हुए [बीस] से अन�धक [सदस्य�],
7 7
से �मलकर बनेगी ।
(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजन� के �लए,–
(क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा म� स्थान� का आबंटन ऐसी र��त से
�कया जाएगा �क स्थान� क� संख्या से उस राज्य क� जनसंख्या का अनप
ु ात सभी
राज्य� के �लए यथासाध्य एक ह� हो, और
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत
�कया जाएगा �क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान�
क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म� यथासाध्य एक ह� हो :
[परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध �कसी राज्य को लोक सभा म� स्थान�
8
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसच
ू ी के भाग क या
भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसच
ू ी के भाग ग म�
�व�न�दर् ष्ट राज्य�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 81 और अनुच्छे द 82
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) “अनुच्छे द 331 के उपबंध� के
अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “और दसवीं अनुसूची के पैरा
4” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ
पच्चीस सदस्य�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) “पच्चीस सदस्य�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
8. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 38
(भाग 5—संघ)
(3) इस अनच्
ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म�
अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस
ु ग
ं त आं
क ड़े प्रका�शत हो गए ह� :
[परन्तु इस खंड म� अं�तम पव
1
ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सुसग
ं त आंकड़े
प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् क� गई पहल�
जनगणना के सस ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, 3[यह अथर् लगाया जाएगा �क
ु ग
वह,–
(i) खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजन� के �लए
1971 क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ; और
(ii) खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजन� के �लए 4[2001] क� जनगणना
के प्र�त �नद� श है ।]]
ु ः समायोजन–प्रत्येक जनगणना क� समािप्त
82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात ् पन
पर राज्य� को लोक सभा म� स्थान� के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-
�ेत्र� म� �वभाजन का ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी र��त से पन ु ः समायोजन �कया
जाएगा जो संसद् �व�ध द्वारा अवधा�रत करे :
परन्तु ऐसे पन
ु ः समायोजन से लोक सभा म� प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव
नह�ं पड़ेगा जब तक उस समय �वद्यमान लोक सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है :
5
[परन्तु यह और �क ऐसा पन ु ः समायोजन उस तार�ख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रप�त
आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे और ऐसे पनु ः समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के
�लए कोई �नवार्चन उन प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन ु ः
समायोजन के पहले �वद्यमान ह� :
परन्तु यह और भी �क जब तक सन ् 6[2026] के पश्चात ् क� गई पहल�
जनगणना के सस ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह� तब तक 7[इस अनच्
ु ग ु छे द के
अधीन,–
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (22-6-2003 से) "1991" के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
6. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा (21-2-2002 से) "2000" के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
7. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
(प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 39
(भाग 5—संघ)
(i) राज्य� को लोक सभा म� 1971 क� जनगणना के आधार पर पन
ु ः
समायोिजत स्थान� के आबंटन का ; और
(ii) प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन का, जो 1[2001]
क� जनगणना के आधार पर पन ु ः समायोिजत �कए जाएं,
पन
ु ः समायोजन आवश्यक नह�ं होगा ।]]
83. संसद् के सदन� क� अव�ध–(1) राज्य सभा का �वघटन नह�ं होगा, �कन्तु
उसके सदस्य� म� से यथा संभव �नकटतम एक-�तहाई सदस्य, संसद् द्वारा �व�ध द्वारा
इस �न�म� �कए गए उपबंध� के अनस ु ार, प्रत्येक द्�वतीय वषर् क� समािप्त पर यथाशक्य
शीघ्र �नव�
ृ हो जाएंगे ।
(2) लोक सभा, य�द पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने प्रथम
अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से 2[पांच वषर्] तक बनी रहेगी, इससे अ�धक नह�ं और
2
[पांच वषर्] क� उक्त अव�ध क� समािप्त का प�रणाम लोक सभा का �वघटन होगा :
परन्तु उक्त अव�ध को, जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब, संसद्, �व�ध
द्वारा, ऐसी अव�ध के �लए बढ़ा सकेगी, जो एक बार म� एक वषर् से अ�धक नह�ं होगी
और उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रह जाने के पश्चात ् उसका �वस्तार �कसी भी दशा म�
छह मास क� अव�ध से अ�धक नह�ं होगा ।
84. संसद् क� सदस्यता के �लए अहर्ता–कोई व्यिक्त संसद् के �कसी स्थान को
भरने के �लए चनु े जाने के �लए अ�हर्त तभी होगा जब–
3
[(क) वह भारत का नाग�रक है और �नवार्चन आयोग द्वारा इस �न�म�
प्रा�धकृत �कसी व्यिक्त के सम� तीसर� अनस ु च
ू ी म� इस प्रयोजन के �लए �दए
गए प्ररूप के अनस ु ार शपथ लेता है या प्र�त�ान करता है और उस पर अपने
हस्ता�र करता है ;]
(ख) वह राज्य सभा म� स्थान के �लए कम से कम तीस वषर् क� आयु का
और लोक सभा म� स्थान के �लए कम से कम पच्चीस वषर् क� आयु का है ; और
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अहर्ताएं ह� जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी
�व�ध द्वारा या उसके अधीन इस �न�म� �व�हत क� जाएं ।
1. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (22-6-2003 से) "1991" के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) के स्थान पर प्र�तस्था�पत
और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) "छह वषर्" के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 40
(भाग 5—संघ)
[85. संसद् के सत्र, सत्रावसान और �वघटन—(1) राष्ट्रप�त समय-समय पर,
1
संसद् के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठ�क समझे, अ�धवेशन के
�लए आहूत करे गा, �कन्तु उसके एक सत्र क� अं�तम बैठक और आगामी सत्र क� प्रथम
बैठक के �लए �नयत तार�ख के बीच छह मास का अंतर नह�ं होगा ।]
(2) राष्ट्रप�त, समय-समय पर–
(क) सदन� का या �कसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) लोक सभा का �वघटन कर सकेगा ।
86. सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रप�त का अ�धकार–
(1) राष्ट्रप�त, संसद् के �कसी एक सदन म� या एक साथ समवेत दोन� सदन� म�
अ�भभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के �लए सदस्य� क� उपिस्थ�त क� अपे�ा कर
सकेगा ।
(2) राष्ट्रप�त, संसद् म� उस समय लं�बत �कसी �वधेयक के संबध
ं म� संदेश या
कोई अन्य संदेश, संसद् के �कसी सदन को भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश
इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा �वचार करने के �लए अपे��त �वषय
पर सु�वधानसु ार शीघ्रता से �वचार करे गा ।
87. राष्ट्रप�त का �वशेष अ�भभाषण–(1) राष्ट्रप�त, 2[लोक सभा के �लए प्रत्येक
साधारण �नवार्चन के पश्चात ् प्रथम सत्र के आरं भ म� और प्रत्येक वषर् के प्रथम सत्र के
आरं भ म�] एक साथ समवेत संसद् के दोन� सदन� म� अ�भभाषण करे गा और संसद् को
उसके आह्वान के कारण बताएगा ।
(2) प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� द्वारा ऐसे
अ�भभाषण म� �न�दर्ष्ट �वषय� क� चचार् के �लए समय �नयत करने के �लए 3*** उपबंध
�कया जाएगा ।
88. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महान्यायवाद� के अ�धकार–प्रत्येक मंत्री और
भारत के महान्यायवाद� को यह अ�धकार होगा �क वह �कसी भी सदन म� , सदन� क�
�कसी संयक्ु त बैठक म� और संसद् क� �कसी स�म�त म� , िजसम� उसका नाम सदस्य के
रूप म� �दया गया है, बोले और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले, �कन्तु इस
अनच्
ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नह�ं होगा ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) “अनुच्छे द 85” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा (18-6-1951 से) “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा (18-6-1951 से) “और सदन के अन्य कायर् पर
इस चचार् को अग्रता दे ने के �लए” शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 41
(भाग 5—संघ)
संसद् के अ�धकार�
89. राज्य सभा का सभाप�त और उपसभाप�त–(1) भारत का उपराष्ट्रप�त राज्य
सभा का पदे न सभाप�त होगा ।
(2) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने �कसी सदस्य को अपना उपसभाप�त चन
ु ग
े ी
और जब-जब उपसभाप�त का पद �रक्त होता है तब-तब राज्य सभा �कसी अन्य सदस्य
को अपना उपसभाप�त चन ु ेगी ।
90. उपसभाप�त का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना–राज्य
सभा के उपसभाप�त के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) य�द राज्य सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �रक्त कर
दे गा ;
(ख) �कसी भी समय सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख
द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और
(ग) राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प
द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया
जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह
�दन क� सूचना न दे द� गई हो ।
91. सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� कायर्
करने क� उपसभाप�त या अन्य व्यिक्त क� शिक्त–(1) जब सभाप�त का पद �रक्त है या
ऐसी अव�ध म� जब उपराष्ट्रप�त, राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का
�नवर्हन कर रहा है, तब उपसभाप�त या य�द उपसभाप�त का पद भी �रक्त है तो, राज्य
सभा का ऐसा सदस्य िजसको राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के
कतर्व्य� का पालन करे गा ।
(2) राज्य सभा क� �कसी बैठक से सभाप�त क� अनप ु िस्थ�त म� उपसभाप�त, या
य�द वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्यिक्त, जो राज्य सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा
अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्यिक्त उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य
व्यिक्त, जो राज्य सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, सभाप�त के रूप म� कायर् करे गा ।
92. जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन
है तब उसका पीठासीन न होना–(1) राज्य सभा क� �कसी बैठक म� , जब उपराष्ट्रप�त को
उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब सभाप�त, या जब उपसभाप�त को
उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपसभाप�त, उपिस्थत रहने पर
भी, पीठासीन नह�ं होगा और अनच्ु छे द 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के
संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे,
यथािस्थ�त, सभाप�त या उपसभाप�त अनप ु िस्थत है ।
भारत का सं�वधान 42
(भाग 5—संघ)
(2) जब उपराष्ट्रप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा म�
�वचाराधीन है तब सभाप�त को राज्य सभा म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा
भाग लेने का अ�धकार होगा, �कन्तु वह अनच्ु छे द 100 म� �कसी बात के होते हुए भी ऐसे
संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर, मत दे ने का �बल्कुल
हकदार नह�ं होगा ।
93. लोक सभा का अध्य� और उपाध्य�–लोक सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो
सदस्य� को अपना अध्य� और उपाध्य� चनु ेगी और जब-जब अध्य� या उपाध्य� का
पद �रक्त होता है तब-तब लोक सभा �कसी अन्य सदस्य को, यथािस्थ�त, अध्य� या
उपाध्य� चन
ु ेगी ।
94. अध्य� और उपाध्य� का पद �रक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया
जाना–लोक सभा के अध्य� या उपाध्य� के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य–
(क) य�द लोक सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �रक्त कर
दे गा ;
(ख) �कसी भी समय, य�द वह सदस्य अध्य� है तो उपाध्य� को
संबो�धत और य�द वह सदस्य उपाध्य� है तो अध्य� को संबो�धत अपने
हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और
(ग) लोक सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प
द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया
जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह
�दन क� सूचना न दे द� गई हो :
परन्तु यह और �क जब कभी लोक सभा का �वघटन �कया जाता है तो �वघटन
के पश्चात ् होने वाले लोक सभा के प्रथम अ�धवेशन के ठ�क पहले तक अध्य� अपने पद
को �रक्त नह�ं करे गा ।
95. अध्य� के पद के कतर्व्य� का पालन करने या अध्य� के रूप म� कायर् करने
क� उपाध्य� या अन्य व्यिक्त क� शिक्त–(1) जब अध्य� का पद �रक्त है तब
उपाध्य�, या य�द उपाध्य� का पद भी �रक्त है तो लोक सभा का ऐसा सदस्य, िजसको
राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक्ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा ।
(2) लोक सभा क� �कसी बैठक से अध्य� क� अनप ु िस्थ�त म� उपाध्य�, या य�द
वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्यिक्त, जो लोक सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा
अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्यिक्त उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य
व्यिक्त, जो लोक सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, अध्य� के रूप म� कायर् करे गा ।
भारत का सं�वधान 43
(भाग 5—संघ)
96. जब अध्य� या उपाध्य� को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब
उसका पीठासीन न होना–(1) लोक सभा क� �कसी बैठक म� , जब अध्य� को उसके पद से
हटाने का संकल्प �वचाराधीन है तब अध्य�, या जब उपाध्य� को उसके पद से हटाने का
कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपाध्य�, उपिस्थत रहने पर भी, पीठासीन नह�ं होगा और
ु छे द 95 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध
अनच् ं म� वैसे ह� लागू ह�गे
जैसे वे उस बैठक के संबध
ं म� लागू होते ह� िजससे, यथािस्थ�त, अध्य� या उपाध्य�
अनप
ु िस्थत है ।
(भाग 5—संघ)
कायर् संचालन
99. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान–संसद् के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य
अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रप�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त
व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार,
शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।
(2) संसद् के �कसी सदन क� सदस्यता म� कोई �रिक्त होने पर भी, उस सदन
को कायर् करने क� शिक्त होगी और य�द बाद म� यह पता चलता है �क कोई व्यिक्त, जो
ऐसा करने का हकदार नह�ं था, कायर्वा�हय� म� उपिस्थत रहा है या उसने मत �दया है या
अन्यथा भाग �लया है तो भी संसद् क� कोई कायर्वाह� �व�धमान्य होगी ।
सदन का अ�धवेशन ग�ठत करने के �लए गणप�ू तर् सदन के सदस्य� क� कुल संख्या का
दसवां भाग होगी ।
(4) य�द सदन के अ�धवेशन म� �कसी समय गणप�ू तर् नह�ं है तो सभाप�त या
अध्य� अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त का यह कतर्व्य होगा �क वह सदन
को स्थ�गत कर दे या अ�धवेशन को तब तक के �लए �नलं�बत कर दे जब तक गणप�ू तर्
नह�ं हो जाती है ।]
सदस्य� क� �नरहर्ताएं
101. स्थान� का �रक्त होना–(1) कोई व्यिक्त संसद् के दोन� सदन� का सदस्य
नह�ं होगा और जो व्यिक्त दोन� सदन� का सदस्य चन ु �लया जाता है उसके एक या
दस
ू रे सदन के स्थान को �रक्त करने के �लए सं स द् �व�ध द्वारा उपबंध करे गी ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 18 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) खंड (3)
और खंड (4) का लोप �कया गया । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा
45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
भारत का सं�वधान 45
(भाग 5—संघ)
(2) कोई व्यिक्त संसद् और �कसी 1*** राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन,
दोन� का सदस्य नह�ं होगा और य�द कोई व्यिक्त संसद् और 2[�कसी राज्य] के �वधान-
मंडल के �कसी सदन, दोन� का सदस्य चन ु �लया जाता है तो ऐसी अव�ध क� समािप्त
के पश्चात ् जो राष्ट्रप�त द्वारा बनाए गए �नयम� ∗ म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, संसद् म� ऐसे
व्यिक्त का स्थान �रक्त हो जाएगा य�द उसने राज्य के �वधान-मंडल म� अपने स्थान को
पहले ह� नह�ं त्याग �दया है ।
(3) य�द संसद् के �कसी सदन का सदस्य–
(क) 3[अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) या खंड (2)] म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता
से ग्रस्त हो जाता है, या
[(ख) यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� को संबो�धत अपने हस्ता�र
4
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐस कोई राज्य”
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
∗ दे �खए, �व�ध मंत्रालय क� अ�धसूचना सं0 एफ. 46/50-सी, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प0ृ 678 म� प्रका�शत समसाम�यक सदस्यता प्र�तषेध �नयम, 1950 ।
3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द 102 के खंड (1)” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 46
(भाग 5—संघ)
102. सदस्यता के �लए �नरहर्ताएं–(1) कोई व्यिक्त संसद् के �कसी सदन का
सदस्य चन
ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा–
1
[(क) य�द वह भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन,
ऐसे पद को छोड़कर, िजसको धारण करने वाले का �नर�हर्त न होना संसद् ने
�व�ध द्वारा घो�षत �कया है, कोई लाभ का पद धारण करता है ;]
(ख) य�द वह �वकृत�च� है और स�म न्यायालय क� ऐसी घोषणा
�वद्यमान है;
(ग) य�द वह अनन्
ु मो�चत �दवा�लया है ;
(घ) य�द वह भारत का नाग�रक नह�ं है या उसने �कसी �वदे शी राज्य क�
नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है या वह �कसी �वदे शी राज्य के प्र�त
�नष्ठा या अनष
ु िक्त को अ�भस्वीकार �कए हुए है ;
(ङ) य�द वह संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन
इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है ।
2
[स्पष्ट�करण–इस खंड के प्रयोजन� के �लए,] कोई व्यिक्त केवल इस कारण
भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला
नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है ।
3
[ (2) कोई व्यिक्त संसद् के �कसी सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा
य�द वह दसवीं अनस
ु ूची के अधीन इस प्रकार �नर�हर्त हो जाता है ।]
4
[103. सदस्य� क� �नरहर्ताओं से संब�ं धत प्रश्न� पर �व�नश्चय–(1) य�द यह प्रश्न
उठता है �क संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य अनच्
ु छे द 102 के खंड (1) म� व�णर्त
�कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न राष्ट्रप�त को �व�नश्चय के �लए
�नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 19 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) इस प्रकार
पढ़े जाने के �लए प्र�तस्था�पत �कया गया है : "(क) य�द वह भारत सरकार के या �कसी राज्य सरकार के अधीन
कोई ऐसा लाभ का पद धारण करता है, िजसे संसद् ने �व�ध द्वारा उसके धारक को �नर�हर्त घो�षत �कया है" ।
इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर
�दया गया ।
2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजन�
के �लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 20 द्वारा (3-1-1977 से) अनु ्च्छे द 103 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 14 द्वारा (20-6-1979
से) अनु ्च्छे द 103 के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 47
(भाग 5—संघ)
(2) ऐसे �कसी प्रश्न पर �व�नश्चय करने के पहले राष्ट्रप�त �नवार्चन आयोग क�
राय लेगा और ऐसी राय के अनस
ु ार कायर् करे गा ।]
104. अनच्
ु छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या अ�हर्त न
होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त–य�द संसद् के
�कसी सदन म� कोई व्यिक्त अनच् ु छे द 99 क� अपे�ाओं का अनप
ु ालन करने से पहले, या
वह जानते हुए �क म� उसक� सदस्यता के �लए अ�हर्त नह�ं हूं या �नर�हर्त कर �दया गया
हूं या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� द्वारा ऐसा करने से प्र�त�षद्ध कर
�दया गया हूं, सदस्य के रूप म� बैठता है या मत दे ता है तो वह प्रत्येक �दन के �लए,
जब वह इस प्रकार बैठता है या मत दे ता है, पांच सौ रुपए क� शािस्त का भागी होगा
जो संघ को दे य ऋण के रूप म� वसल
ू क� जाएगी ।
(2) संसद् म� या उसक� �कसी स�म�त म� संसद् के �कसी सदस्य द्वारा कह� गई
�कसी बात या �दए गए �कसी मत के संबध
ं म� उसके �वरुद्ध �कसी न्यायालय म� कोई
कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी और �कसी व्यिक्त के �वरुद्ध संसद् के �कसी सदन के
प्रा�धकार द्वारा या उसके अधीन �कसी प्र�तवेदन, पत्र, मत� या कायर्वा�हय� के प्रकाशन
के संबध
ं म� इस प्रकार क� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 21 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत क� जानी है) प्र�तस्था�पत ।
इस संशोधन का, सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया
गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 48
(भाग 5—संघ)
(4) िजन व्यिक्तय� को इस सं�वधान के आधार पर संसद् के �कसी सदन या
उसक� �कसी स�म�त म� बोलने का और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का
अ�धकार है, उनके संबध ं म� खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू
ह�गे िजस प्रकार वे संसद् के सदस्य� के संबध
ं म� लागू होते ह� ।
106. सदस्य� के वेतन और भ�े–संसद् के प्रत्येक सदन के सदस्य ऐसे वेतन और
भ�े, िजन्ह� संसद्, समय-समय पर, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस संबध ं
म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे भ�े, ऐसी दर� से और ऐसी शत�
पर, जो भारत डो�म�नयन क� सं�वधान सभा के सदस्य� को इस सं�वधान के प्रारं भ से
ठ�क पहले लागू थीं, प्राप्त करने के हकदार ह�गे ।
�वधायी प्र�क्रया
ं म� उपबंध–(1) धन
107. �वधेयक� के परु ःस्थापन और पा�रत �कए जाने के संबध
�वधेयक� और अन्य �व� �वधेयक� के संबध ं म� अनच्ु छे द 109 और अनच्ु छे द 117 के
उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई �वधेयक संसद् के �कसी भी सदन म� आरं भ हो
सकेगा ।
(2) अनच्
ु छे द 108 और अनच् ु छे द 109 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई
�वधेयक संसद् के सदन� द्वारा तब तक पा�रत �कया गया नह�ं समझा जाएगा जब तक
संशोधन के �बना या केवल ऐसे संशोधन� स�हत, िजन पर दोन� सदन सहमत हो गए ह�,
उस पर दोन� सदन सहमत नह�ं हो जाते ह� ।
(3) संसद् म� लं�बत �वधेयक सदन� के सत्रावसान के कारण व्यपगत नह�ं होगा ।
(4) राज्य सभा म� लं�बत �वधेयक, िजसको लोक सभा ने पा�रत नह�ं �कया है,
लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत नह�ं होगा ।
(5) कोई �वधेयक, जो लोक सभा म� लं�बत है या जो लोक सभा द्वारा पा�रत
कर �दया गया है और राज्य सभा म� लं�बत है, अनच्
ु छे द 108 के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत हो जाएगा ।
108. कुछ दशाओं म� दोन� सदन� क� संयक्ु त बैठक–(1) य�द �कसी �वधेयक के
एक सदन द्वारा पा�रत �कए जाने और दस
ू रे सदन को पारे �षत �कए जाने के पश्चात ्,–
(क) दस
ू रे सदन द्वारा �वधेयक अस्वीकर कर �दया गया है, या
(ख) �वधेयक म� �कए जाने वाले संशोधन� के बारे म� दोन� सदन अं�तम
रूप से असहमत हो गए ह�, या
(ग) दसू रे सदन को �वधेयक प्राप्त होने क� तार�ख से उसके द्वारा
�वधेयक पा�रत �कए �बना छह मास से अ�धक बीत गए ह�,
भारत का सं�वधान 49
(भाग 5—संघ)
तो उस दशा के �सवाय, िजसम� लोक सभा का �वघटन होने के कारण �वधेयक व्यपगत
हो गया है, राष्ट्रप�त �वधेयक पर �वचार-�वमशर् करने और मत दे ने के प्रयोजन के �लए
सदन� को संयक् ु त बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क�
सूचना, य�द वे बैठक म� ह� तो संदेश द्वारा या य�द वे बैठक म� नह�ं ह� तो लोक
अ�धसूचना द्वारा दे गा :
परन्तु इस खंड क� कोई बात धन �वधेयक को लागू नह�ं होगी ।
(2) छह मास क� ऐसी अव�ध क� गणना करने म� , जो खंड (1) म� �न�दर्ष्ट है,
�कसी ऐसी अव�ध को �हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसम� उक्त खंड के उपखंड (ग) म�
�न�दर्ष्ट सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक �दन� के �लए स्थ�गत कर �दया
जाता है ।
(3) य�द राष्ट्रप�त ने खंड (1) के अधीन सदन� को संयक्ु त बैठक म� अ�धवे�शत
होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क� सूचना दे द� है तो कोई भी सदन �वधेयक
पर आगे कायर्वाह� नह�ं करे गा, �कन्तु राष्ट्रप�त अपनी अ�धसूचना क� तार�ख के पश्चात ्
�कसी समय सदन� को अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट प्रयोजन के �लए संयक् ु त बैठक म�
अ�धवे�शत होने के �लए आहूत कर सकेगा और, य�द वह ऐसा करता है तो, सदन
तद्नसु ार अ�धवे�शत ह�गे ।
(4) य�द सदन� क� संयक्
ु त बैठक म� �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत, य�द कोई ह�,
िजन पर संयक् ु त बैठक म� सहम�त हो जाती है, दोन� सदन� के उपिस्थत और मत दे ने
वाले सदस्य� क� कुल संख्या के बहुमत द्वारा पा�रत हो जाता है तो इस सं�वधान के
प्रयोजन� के �लए वह दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा :
परन्तु संयक्
ु त बैठक म� –
(क) य�द �वधेयक एक सदन से पा�रत �कए जाने पर दस ू रे सदन द्वारा
संशोधन� स�हत पा�रत नह�ं कर �दया गया है और उस सदन को, िजसम� उसका
आरं भ हुआ था, लौटा नह�ं �दया गया है तो ऐसे संशोधन� से �भन्न (य�द कोई
ह�), जो �वधेयक के पा�रत होने म� दे र� के कारण आवश्यक हो गए ह�, �वधेयक
म� कोई और संशोधन प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ;
(ख) य�द �वधेयक इस प्रकार पा�रत कर �दया गया है और लौटा �दया
गया है तो �वधेयक म� केवल पवू �क्त संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन
�वषय� से सुसग ं त ह� िजन पर सदन� म� सहम�त नह�ं हुई है, प्रस्था�पत �कए
जाएंगे,
और पीठासीन व्यिक्त का इस बारे म� �व�नश्चय अं�तम होगा �क कौन से संशोधन इस
खंड के अधीन ग्राह्य ह� ।
(5) सदन� क� संयक्ु त बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने
आशय क� राष्ट्रप�त क� सच ू ना के पश्चात ्, लोक सभा का �वघटन बीच म� हो जाने पर
भी, इस अनच्ु छे द के अधीन संयक्ु त बैठक हो सकेगी और उसम� �वधेयक पा�रत हो
सकेगा ।
ं म� �वशेष प्र�क्रया–(1) धन �वधेयक राज्य सभा म�
109. धन �वधेयक� के संबध
परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ।
भारत का सं�वधान 50
(भाग 5—संघ)
(2) धन �वधेयक लोक सभा द्वारा पा�रत �कए जाने के पश्चात ् राज्य सभा को
उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत �कया जाएगा और राज्य सभा �वधेयक क� प्रािप्त क�
तार�ख से चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधेयक को अपनी �सफा�रश� स�हत लोक
सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा क� सभी या �कन्ह�ं
�सफा�रश� को स्वीकर या अस्वीकार कर सकेगी ।
(3) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी �सफा�रश को स्वीकार कर लेती है तो
धन �वधेयक राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार �कए
गए संशोधन� स�हत दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा ।
(4) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी भी �सफा�रश को स्वीकार नह�ं करती
है तो धन �वधेयक, राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए �कसी संशोधन के �बना, दोन�
सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा
पा�रत �कया गया था ।
(5) य�द लोक सभा द्वारा पा�रत और राज्य सभा को उसक� �सफा�रश� के �लए
पारे �षत धन �वधेयक उक्त चौदह �दन क� अव�ध के भीतर लोक सभा को नह�ं लौटाया
जाता है तो उक्त अव�ध क� समािप्त पर वह दोन� सदन� द्वारा, उस रूप म� पा�रत
�कया गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा पा�रत �कया गया था ।
(ङ) �कसी व्यय को भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय घो�षत करना
या ऐसे �कसी व्यय क� रकम को बढ़ाना ;
भारत का सं�वधान 51
(भाग 5—संघ)
(च) भारत क� सं�चत �न�ध या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त
करना अथवा ऐसे धन क� अ�भर�ा या उसका �नगर्मन अथवा संघ या राज्य के
लेखाओं क� संपर��ा ; या
(छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) म� �व�न�दर्ष्ट �कसी �वषय का आनष
ु �ं गक
कोई �वषय ।
(2) कोई �वधेयक केवल इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह
जमु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के अ�धरोपण का अथवा अन�
ु िप्तय� के �लए फ�स�
क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है
अथवा इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या
�नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार,
प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है ।
(3) य�द यह प्रश्न उठता है �क कोई �वधेयक धन �वधेयक है या नह�ं तो उस पर
लोक सभा के अध्य� का �व�नश्चय अं�तम होगा ।
(4) जब धन �वधेयक अनच् ु छे द 109 के अधीन राज्य सभा को पारे �षत �कया
जाता है और जब वह अनच् ु छे द 111 के अधीन अनम ु �त के �लए राष्ट्रप�त के सम�
प्रस्तुत �कया जाता है तब प्रत्येक धन �वधेयक पर लोक सभा के अध्य� के हस्ता�र
स�हत यह प्रमाण पष्ृ ठां�कत �कया जाएगा �क वह धन �वधेयक है ।
111. �वधेयक� पर अनम ु �त–जब कोई �वधेयक संसद् के सदन� द्वारा पा�रत कर
�दया गया है तब वह राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा और राष्ट्रप�त घो�षत
करे गा �क वह �वधेयक पर अनम ु �त दे ता है या अनम
ु �त रोक लेता है :
परन्तु राष्ट्रप�त अनम ु �त के �लए अपने सम� �वधेयक प्रस्तत ु �कए जाने के
पश्चात ् यथाशीघ्र उस �वधेयक को, य�द वह धन �वधेयक नह�ं है तो, सदन� को इस
संदेश के साथ लौटा सकेगा �क वे �वधेयक पर या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर्ष्ट उपबंध� पर
पनु �वर्चार कर� और �व�शष्टतया �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� के परु ःस्थापन क� वांछनीयता पर
�वचार कर� िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �वधेयक इस प्रकार
लौटा �दया जाता है तब सदन �वधेयक पर तद्नस ु ार पन
ु �वर्चार कर� गे और य�द �वधेयक
सदन� द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर �दया जाता है और
राष्ट्रप�त के सम� अनम ु �त के �लए प्रस्तुत �कया जाता है तो राष्ट्रप�त उस पर अनम ु �त
नह�ं रोकेगा ।
�व�ीय �वषय� के संबध
ं म� प्र�क्रया
112. वा�षर्क �व�ीय �ववरण–(1) राष्ट्रप�त प्रत्येक �व�ीय वषर् के संबध
ं म� संसद्
के दोन� सदन� के सम� भारत सरकार क� उस वषर् के �लए प्राक्क�लत प्रािप्तय� और
व्यय का �ववरण रखवाएगा िजसे इस भाग म� “वा�षर्क �व�ीय �ववरण” कहा गया है ।
(2) वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� �दए हुए व्यय के प्राक्कलन� म�–
भारत का सं�वधान 52
(भाग 5—संघ)
(क) इस सं�वधान म� भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय के रूप म�
व�णर्त व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां, और
(ख) भारत क� सं�चत �न�ध म� से �कए जाने के �लए प्रस्था�पत अन्य
व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां,
पथ
ृ क् -पथ
ृ क् �दखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद
�कया जाएगा ।
(3) �नम्न�ल�खत व्यय भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय होगा, अथार्त ् :–
(क) राष्ट्रप�त क� उपलिब्धयां और भ�े तथा उसके पद से संब�ं धत अन्य
व्यय;
(ख) राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा लोक सभा के
अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े ;
(ग) ऐसे ऋण भार, िजनका दा�यत्व भारत सरकार पर है, िजनके अंतगर्त
ब्याज, �न�ेप �न�ध भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और
ऋण मोचन से संब�ं धत अन्य व्यय ह� ;
(घ) (i) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध
ं म� संदेय
वेतन, भ�े और प� शन ;
(ii) फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध
ं म� संदेय प� शन ;
(iii) उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध ं म� द� जाने
वाल� प� शन, जो भारत के राज्य�ेत्र के अंतगर्त �कसी �ेत्र के संबध ं म�
अ�धका�रता का प्रयोग करता है या जो 1[भारत डो�म�नयन के राज्यपाल वाले
प्रांत] के अंतगर्त �कसी �ेत्र के संबध
ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले �कसी
भी समय अ�धका�रता का प्रयोग करता था ;
(ङ) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को, या उसके संबध
ं म� , संदेय
वेतन, भ�े और प� शन ;
(च) �कसी न्यायालय या माध्यस्थम ् अ�धकरण के �नणर्य, �डक्र� या पंचाट
क� तुिष्ट के �लए अपे��त रा�शयां ;
(छ) कोई अन्य व्यय जो इस सं�वधान द्वारा या संसद् द्वारा, �व�ध
द्वारा, इस प्रकार भा�रत घो�षत �कया जाता है ।
ं म� प्र�क्रया–(1) प्राक्कलन� म� से िजतने
113. संसद् म� प्राक्कलन� के संबध
प्राक्कलन भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय से संब�ं धत ह� वे संसद् म� मतदान के
�लए नह�ं रखे जाएंगे, �कन्तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा
�क वह संसद् के �कसी सदन म� उन प्राक्कलन� म� से �कसी प्राक्कलन पर चचार् को
�नवा�रत करती है ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क म� �व�न�दर् ष्ट राज्य के तत्स्थानी प्रांत” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 53
(भाग 5—संघ)
(2) उक्त प्राक्कलन� म� से िजतने प्राक्कलन अन्य व्यय से संब�ं धत ह� वे लोक
सभा के सम� अनद ु ान� क� मांग� के रूप म� रखे जाएंगे और लोक सभा को शिक्त होगी
�क वह �कसी मांग को अनम ु �त दे या अनम ु �त दे ने से इंकार कर दे अथवा �कसी मांग
को, उसम� �व�न�दर्ष्ट रकम को कम करके, अनम ु �त दे ।
ु ान क� मांग राष्ट्रप�त क� �सफा�रश पर ह� क� जाएगी, अन्यथा
(3) �कसी अनद
नह�ं ।
114. �व�नयोग �वधेयक–(1) लोक सभा द्वारा अनच् ु छे द 113 के अधीन अनद
ु ान
�कए जाने के पश्चात ्, यथाशक्य शीघ्र, भारत क� सं�चत �न�ध म� से–
(क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार �कए गए अनद
ु ान� क�, और
(ख) भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत, �कन्तु संसद् के सम� पहले रखे
गए �ववरण म� द�शर्त रकम से �कसी भी दशा म� अन�धक व्यय क�,
प�ू तर् के �लए अपे��त सभी धनरा�शय� के �व�नयोग का उपबंध करने के �लए �वधेयक
परु ःस्था�पत �कया जाएगा ।
(2) इस प्रकार �कए गए �कसी अनद
ु ान क� रकम म� प�रवतर्न करने या अनदु ान
के ल�य को बदलने अथवा भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय क� रकम म�
प�रवतर्न करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे �कसी �वधेयक म� संसद् के
�कसी सदन म� प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा और पीठासीन व्यिक्त का इस बारे म�
�व�नश्चय अं�तम होगा �क कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नह�ं ।
(3) अनच्
ु छे द 115 और अनच् ु छे द 116 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारत क�
सं�चत �न�ध म� से इस अनच्ु छे द के उपबंध� के अनसु ार पा�रत �व�ध द्वारा �कए गए
�व�नयोग के अधीन ह� कोई धन �नकाला जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
ु ान–(1) य�द–
ु रू क, अ�त�रक्त या अ�धक अनद
115. अनप
(क) अनच्
ु छे द 114 के उपबंध� के अनसु ार बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा
�कसी �व�शष्ट सेवा पर चालू �व�ीय वषर् के �लए व्यय �कए जाने के �लए
प्रा�धकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन� के �लए अपयार्प्त पाई जाती है या उस
वषर् के वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� अनध् ु यात न क� गई �कसी नई सेवा पर
अनप ु रू क या अ�त�रक्त व्यय क� चालू �व�ीय वषर् के दौरान आवश्यकता पैदा हो
गई है, या
(ख) �कसी �व�ीय वषर् के दौरान �कसी सेवा पर, उस वषर् और उस सेवा
के �लए अनदु ान क� गई रकम से अ�धक कोई धन व्यय हो गया है,
तो राष्ट्रप�त, यथािस्थ�त, संसद् के दोन� सदन� के सम� उस व्यय क� प्राक्क�लत रकम को
द�शर्त करने वाला दस ू रा �ववरण रखवाएगा या लोक सभा म� ऐसे आ�धक्य के �लए मांग
प्रस्तत
ु करवाएगा ।
भारत का सं�वधान 54
(भाग 5—संघ)
(2) ऐसे �कसी �ववरण और व्यय या मांग के संबध ं म� तथा भारत क� सं�चत �न�ध
म� से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संब�ं धत अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग
प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� भी, अनच्ु छे द 112,
अनच् ु छे द 113 और अनच् ु छे द 114 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय
�ववरण और उसम� व�णर्त व्यय या �कसी अनद ु ान क� �कसी मांग के संबध ं म� और भारत
क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत
करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी ह� ।
(क) �कसी �व�ीय वषर् के भाग के �लए प्राक्क�लत व्यय के संबध ं म� कोई
अनद ु ान, उस अनद ु ान के �लए मतदान करने के �लए अनच् ु छे द 113 म� �व�हत
प्र�क्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध ं म� अनच्
ु छे द 114 के उपबंध�
के अनस ु ार �व�ध के पा�रत होने तक, अ�ग्रम दे ने क� ;
(ख) जब �कसी सेवा क� मह�ा या उसके अ�निश्चत रूप के कारण मांग
ऐसे ब्यौरे के साथ व�णर्त नह�ं क� जा सकती है जो वा�षर्क �व�ीय �ववरण म�
सामान्यतया �दया जाता है तब भारत के संप�� स्रोत� पर अप्रत्या�शत मांग क�
प�ू तर् के �लए अनद
ु ान करने क� ;
(ग) �कसी �व�ीय वषर् क� चालू सेवा का जो अनद
ु ान भाग नह�ं है, ऐसा
कोई अपवादानद
ु ान करने क�,
शिक्त होगी और िजन प्रयोजन� के �लए उक्त अनद
ु ान �कए गए ह� उनके �लए भारत क�
सं�चत �न�ध म� से धन �नकालना �व�ध द्वारा प्रा�धकृत करने क� संसद् को शिक्त
होगी ।
(2) खंड (1) के अधीन �कए जाने वाले �कसी अनद ु ान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� अनच्
ु छे द 113 और अनच्ु छे द 114 के उपबंध
वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� व�णर्त �कसी व्यय के बारे म� कोई
अनद ु ान करने के संबधं म� और भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए
धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी
ह� ।
परन्तु �कसी कर के घटाने या उत्सादन के �लए उपबंध करने वाले �कसी संशोधन
के प्रस्ताव के �लए इस खंड के अधीन �सफा�रश क� अपे�ा नह�ं होगी ।
भारत का सं�वधान 55
(भाग 5—संघ)
(2) कोई �वधेयक या संशोधन उक्त �वषय� म� से �कसी के �लए उपबंध करने
वाला केवल इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह जम ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के
अ�धरोपण का अथवा अन� ु िप्तय� के �लए फ�स� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स�
क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नह�ं समझा जाएगा
�क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर
के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है ।
(3) िजस �वधेयक को अ�ध�नय�मत और प्रव�तर्त �कए जाने पर भारत क�
सं�चत �न�ध म� से व्यय करना पड़ेगा वह �वधेयक संसद् के �कसी सदन द्वारा तब तक
पा�रत नह�ं �कया जाएगा जब तक ऐसे �वधेयक पर �वचार करने के �लए उस सदन से
राष्ट्रप�त ने �सफा�रश नह�ं क� है ।
साधारणतया प्र�क्रया
118. प्र�क्रया के �नयम–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद्
का प्रत्येक सदन अपनी प्र�क्रया ∗ और अपने कायर् संचालन के �व�नयमन के �लए �नयम
बना सकेगा ।
(2) जब तक खंड (1) के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक इस सं�वधान
के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन के �वधान-मंडल के संबध ं म� जो प्र�क्रया के
�नयम और स्थायी आदे श प्रव� ृ थे वे ऐसे उपांतरण� और अनक ु ू लन� के अधीन रहते हुए
संसद् के संबध ं म� प्रभावी ह�गे िजन्ह� , यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा
का अध्य� उनम� करे ।
(3) राष्ट्रप�त, राज्य सभा के सभाप�त और लोक सभा के अध्य� से परामशर्
करने के पश्चात ्, दोन� सदन� क� संयक् ु त बैठक� से संब�ं धत और उनम� परस्पर संचार से
संब�ं धत प्र�क्रया के �नयम बना सकेगा ।
(4) दोन� सदन� क� संयक्ु त बैठक म� लोक सभा का अध्य� या उसक�
अनप ु िस्थ�त म� ऐसा व्यिक्त पीठासीन होगा िजसका खंड (3) के अधीन बनाई गई
प्र�क्रया के �नयम� के अनसु ार अवधारण �कया जाए ।
119. संसद् म� �व�ीय कायर् संबध ं ी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन–संसद्,
�व�ीय कायर् को समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के �लए �कसी �व�ीय �वषय से
संब�ं धत या भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग करने के �लए �कसी �वधेयक
से संब�ं धत, संसद् के प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया और कायर् संचालन का �व�नयमन �व�ध
द्वारा कर सकेगी तथा य�द और जहां तक इस प्रकार बनाई गई �कसी �व�ध का कोई
उपबंध अनच् ु छे द 118 के खंड (1) के अधीन संसद् के �कसी सदन द्वारा बनाए गए
�नयम से या उस अनच् ु छे द के खंड (2) के अधीन संसद् के संबध ं म� प्रभावी �कसी �नयम
या स्थायी आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अ�भभावी होगा ।
∗ सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 22 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) "(िजसके
अन्तगर्त सदन क� बैठक का गठन करने के �लए गणपू�तर् सिम्म�लत है)" शब्द और कोष्ठक अंतःस्था�पत । इस
संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर
�दया गया ।
भारत का सं�वधान 56
(भाग 5—संघ)
120. संसद् म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा–(1) भाग 17 म� �कसी बात के होते हुए
भी, �कन्तु अनच्
ु छे द 348 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद् म� कायर् �हन्द� म� या अंग्रेजी
म� �कया जाएगा :
परन्त,ु यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा का अध्य� अथवा उस
रूप म� कायर् करने वाला व्यिक्त �कसी सदस्य को, जो �हन्द� म� या अंग्रेजी म� अपनी
पयार्प्त अ�भव्यिक्त नह�ं कर सकता है, अपनी मातभ
ृ ाषा म� सदन को संबो�धत करने क�
अन�
ु ा दे सकेगा ।
(2) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस सं�वधान के
प्रारं भ से पंद्रह वषर् क� अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् यह अनच्
ु छे द ऐसे प्रभावी होगा
मानो “या अंग्रेजी म� ” शब्द� का उसम� से लोप कर �दया गया हो ।
121. संसद् म� चचार् पर �नबर्न्धन–उच्चतम न्यायालय या �कसी उच्च न्यायालय
के �कसी न्यायाधीश के, अपने कतर्व्य� के �नवर्हन म� �कए गए आचरण के �वषय म�
संसद् म� कोई चचार् इसम� इसके पश्चात ् उपबं�धत र��त से उस न्यायाधीश को हटाने क�
प्राथर्ना करने वाले समावेदन को राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ह� होगी,
अन्यथा नह�ं ।
122. न्यायालय� द्वारा संसद् क� कायर्वा�हय� क� जांच न �कया जाना–(1) संसद्
क� �कसी कायर्वाह� क� �व�धमान्यता को प्र�क्रया क� �कसी अ�भक�थत अ�नय�मतता के
आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा ।
(2) संसद् का कोई अ�धकार� या सदस्य, िजसम� इस सं�वधान द्वारा या इसके
अधीन संसद् म� प्र�क्रया या कायर् संचालन का �व�नयमन करने क� अथवा व्यवस्था बनाए
रखने क� शिक्तयां �न�हत ह�, उन शिक्तय� के अपने द्वारा प्रयोग के �वषय म� �कसी
न्यायालय क� अ�धका�रता के अधीन नह�ं होगा ।
अध्याय 3–राष्ट्रप�त क� �वधायी शिक्तयां
123. संसद् के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–
(1) उस समय को छोड़कर जब संसद् के दोन� सदन सत्र म� ह�, य�द �कसी समय
राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण
तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत
कर सकेगा जो उसे उन प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� ।
(2) इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्या�पत अध्यादे श का वह� बल और प्रभाव होगा जो
संसद् के अ�ध�नयम का होता है, �कन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श–
(क) संसद् के दोन� सदन� के सम� रखा जाएगा और संसद् के पन ु ः समवेत
होने से छह सप्ताह क� समािप्त पर या य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले
दोन� सदन उसके अननम ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ते ह� तो, इनम� से दस
ू रे
संकल्प के पा�रत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा ; और
भारत का सं�वधान 57
(भाग 5—संघ)
(ख) राष्ट्रप�त द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा ।
स्पष्ट�करण–जहां संसद् के सदन, �भन्न-�भन्न तार�ख� को पन ु ः समवेत होने के
�लए, आहूत �कए जाते ह� वहां इस खंड के प्रयोजन� के �लए, छह सप्ताह क� अव�ध क�
गणना उन तार�ख� म� से पश्चातवत� तार�ख से क� जाएगी ।
(3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता
है िजसे अ�ध�नय�मत करने के �लए संसद् इस सं�वधान के अधीन स�म नह�ं है तो और
वहां तक वह अध्यादे श शन् ू य होगा ।
1
(4)* * * *
अध्याय 4–संघ क� न्यायपा�लका
124. उच्चतम न्यायालय क� स्थापना और गठन–(1) भारत का एक उच्चतम
न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमू�तर् और, जब तक संसद् �व�ध द्वारा अ�धक
संख्या �व�हत नह�ं करती है तब तक, सात ∗ से अन�धक अन्य न्यायाधीश� से �मलकर
बनेगा ।
(2) 2[अनच् ु छे द 124क म� �न�दर्ष्ट राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग क� �सफा�रश
पर], राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के
प्रत्येक न्यायाधीश को �नयक् ु त करे गा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करे गा जब
तक वह प�सठ वषर् क� आयु प्राप्त नह�ं कर लेता है :
3
[* * * * *]
4
[परन्त]ु ,–
(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा
अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) �कसी न्यायाधीश को खंड (4) म� उपबं�धत र��त से उसके पद से हटाया
जा सकेगा ।
1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत �कया गया
था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 16 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया ।
∗ उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 37) क� धारा 2 द्वारा (9-8-2019
से) अब "त�तीस" ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) "उच्चतम न्यायालय के और
राज्य� के उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश� से परामशर् करने के पश्चात ्, िजनसे राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए
परामशर् करना आवश्यक समझे" शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन
�रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम
न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
3. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) पहले परन्तुक का लोप
�कया गया । संशोधन के पूवर् यह �नम्नानुसार था--
“परन्तु मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न �कसी न्यायाधीश क� �नयुिक्त क� दशा म� भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से
सदै व परामशर् �कया जाएगा :”। यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ
ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
4. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “परन्तु यह और �क” शब्द�
के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत
संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 58
(भाग 5—संघ)
[(2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश क� आयु ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी
1
1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अन्तःस्था�पत । यह
संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 59
(भाग 5—संघ)
(क) भारत का मुख्य न्यायमू�तर् -- अध्य�, पदे न ;
(ख) भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् से ठ�क नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो
अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीश -- सदस्य, पदे न ;
(ग) संघ का �व�ध और न्याय का भारसाधक मंत्री -- सदस्य, पदे न ;
(घ) प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायमू�तर् और लोक सभा म� �वप� के
नेता या जहां ऐसा कोई �वप� का नेता नह�ं है वहां, लोक सभा म� सबसे बड़े
एकल �वप�ी दल के नेता से �मलकर बनने वाल� स�म�त द्वारा नाम�न�दर्ष्ट
�कए जाने वाले दो �वख्यात व्यिक्त -- सदस्य :
परं तु �वख्यात व्यिक्तय� म� से एक �वख्यात व्यिक्त, अनस ु �ू चत जा�त, अनस ु ू�चत
जनजा�त, अन्य �पछड़े वगर्, अल्पसंख्यक वगर् के व्यिक्तय� अथवा िस्त्रय� म� से
नाम�न�दर्ष्ट �कया जाएगा :
परं तु यह और �क �वख्यात व्यिक्त तीन वषर् क� अव�ध के �लए नाम�न�दर्ष्ट �कया
जाएगा और पन ु ःनाम�नद� शन का पात्र नह�ं होगा ।
(2) राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग का कोई कायर् या कायर्वा�हयां, केवल इस
आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएंगी या अ�व�धमान्य नह�ं ह�गी �क आयोग म� कोई
�रिक्त है या उसके गठन म� कोई त्र�ु ट है ।
124ख. आयोग के कृत्य--राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग के �नम्न�ल�खत कतर्व्य
ह�गे,--
(क) भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर्, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश�, उच्च
न्यायालय� के मुख्य न्यायमू�तर्य� तथा उच्च न्यायालय� के अन्य न्यायाधीश� के
रूप म� �नयिु क्त के �लए व्यिक्तय� क� �सफा�रश करना ;
(ख) उच्च न्यायालय� के मख् ु य न्यायम�ू तर्य� और अन्य न्यायाधीश� का एक
उच्च न्यायालय से �कसी अन्य उच्च न्यायालय म� स्थानांतरण करने क� �सफा�रश
करना ; और
(ग) यह स�ु निश्चत करना �क वह व्यिक्त, िजसक� �सफा�रश क� गई है,
स�म और सत्य�नष्ठ है ।
124ग. �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त--संसद्, �व�ध द्वारा, भारत के मुख्य
न्यायम�ू तर् और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� तथा उच्च न्यायालय� के मख् ु य
न्यायमू�तर्य� और अन्य न्यायाधीश� क� �नयिु क्त क� प्र�क्रया �व�नय�मत कर सकेगी तथा
आयोग को �व�नयम� द्वारा उसके कृत्य� के �नवर्हन, �नयिु क्त के �लए व्यिक्तय� के
चयन क� र��त और ऐसे अन्य �वषय� के �लए, जो उसके द्वारा आवश्यक समझे जाएं,
प्र�क्रया अ�धक�थत करने के �लए सशक्त कर सकेगी ।]
125. न्यायाधीश� के वेतन, आ�द– 1[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को ऐसे
वेतन� का संदाय �कया जाएगा जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस
�न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन� का संदाय �कया
जाएगा जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� ।]
(2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे �वशेषा�धकार� और भ�� का तथा अनप ु िस्थ�त छुट्ट�
और प� शन के संबध ं म� ऐसे अ�धकार� का, जो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या
उसके अधीन समय-समय पर अवधा�रत �कए जाएं और जब तक इस प्रकार अवधा�रत
नह�ं �कए जाते ह� तब तक ऐसे �वशेषा�धकार�, भ�� और अ�धकार� का जो दस ू र�
अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, हकदार होगा :
1. सं�वधान (चौवनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 60
(भाग 5—संघ)
परन्तु �कसी न्यायाधीश के �वशेषा�धकार� और भ�� म� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्ट� या
प� शन के संबध ं म� उसके अ�धकार� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार�
प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
126. कायर्कार� मुख्य न्यायमू�तर् क� �नयिु क्त–जब भारत के मुख्य न्यायमू�तर् का
पद �रक्त है या जब मख् ु य न्यायम�ू तर्, अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्यथा अपने पद के
कतर्व्य� का पालन करने म� असमथर् है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� म� से ऐसा
एक न्यायाधीश, िजसे राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य�
का पालन करे गा ।
127. तदथर् न्यायाधीश� क� �नयिु क्त–(1) य�द �कसी समय उच्चतम न्यायालय के
सत्र को आयोिजत करने या चालू रखने के �लए उस न्यायालय के न्यायाधीश� क� गणप�ू तर्
प्राप्त न हो तो 1[राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् द्वारा उसे
�कए गए �कसी �नद� श पर, राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त से] और संब�ं धत उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायमू�तर् से परामशर् करने के पश्चात ्, �कसी उच्च न्यायालय के �कसी ऐसे
न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नयक् ु त होने के �लए सम्यक्त रूप
से अ�हर्त है और िजसे भारत का मख् ु य न्यायम�ू तर् नामो�दष्ट करे , न्यायालय क� बैठक� म�
उतनी अव�ध के �लए, िजतनी आवश्यक हो, तद्र्थ न्यायाधीश के रूप म� उपिस्थत रहने के
�लए �ल�खत रूप म� अनरु ोध कर सकेगा ।
(2) इस प्रकार नामो�दष्ट न्यायाधीश का कतर्व्य होगा �क वह अपने पद के अन्य
कतर्व्य� पर प�ू वर्कता दे कर उस समय और उस अव�ध के �लए, िजसके �लए उसक�
उपिस्थ�त अपे��त है, उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� , उपिस्थत हो और जब वह इस
प्रकार उपिस्थत होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश क� सभी
अ�धका�रता, शिक्तयां और �वशेषा�धकार ह�गे और वह उक्त न्यायाधीश के कतर्व्य� का
�नवर्हन करे गा ।
128. उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� उपिस्थ�त–इस
अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, 2[ राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग], �कसी भी
समय, राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त से �कसी व्यिक्त से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल
न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है [या जो उच्च न्यायालय के
3
1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 4 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर्
राष्ट्रप�त क� पूवर् सहम�त से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर्
एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के
तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 5 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य
न्यायमू�तर्,” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य
बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के
आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
3. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 61
(भाग 5—संघ)
परन्तु जब तक यथापव ू �क्त व्यिक्त उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� बैठने
और कायर् करने क� सहम�त नह�ं दे दे ता है तब तक इस अनच् ु छे द क� कोई बात उससे
ऐसा करने क� अपे�ा करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।
129. उच्चतम न्यायालय का अ�भलेख न्यायालय होना–उच्चतम न्यायालय
अ�भलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त स�हत
ऐसे न्यायालय क� सभी शिक्तयां ह�गी ।
130. उच्चतम न्यायालय का स्थान–उच्चतम न्यायालय �दल्ल� म� अथवा ऐसे अन्य
स्थान या स्थान� म� अ�ध�वष्ट होगा िजन्ह� भारत का मुख्य न्यायमू�तर्, राष्ट्रप�त के
अनम ु ोदन से समय-समय पर, �नयत करे ।
131. उच्चतम न्यायालय क� आरं �भक अ�धका�रता–इस सं�वधान के उपबंध� के
अधीन रहते हुए,–
(क) भारत सरकार और एक या अ�धक राज्य� के बीच, या
(ख) एक ओर भारत सरकार और �कसी राज्य या राज्य� और दस
ू र� ओर एक
या अ�धक अन्य राज्य� के बीच, या
(ग) दो या अ�धक राज्य� के बीच,
�कसी �ववाद म� , य�द और जहां तक उस �ववाद म� (�व�ध का या तथ्य का) ऐसा कोई
प्रश्न अंतवर्�लत है िजस पर �कसी �व�धक अ�धकार का अिस्तत्व या �वस्तार �नभर्र है तो
और वहां तक अन्य न्यायालय� का अपवजर्न करके उच्चतम न्यायालय को आरं �भक
अ�धका�रता होगी :
1
[परन्तु उक्त अ�धका�रता का �वस्तार उस �ववाद पर नह�ं होगा जो �कसी ऐसी
सं�ध, करार, प्रसं�वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह� अन्य �लखत से उत्पन्न हुआ है जो
इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और ऐसे प्रारं भ के
पश्चात ् प्रवतर्न म� है या जो यह उपबंध करती है �क उक्त अ�धका�रता का �वस्तार ऐसे
�ववाद पर नह�ं होगा ।]
2
[131क. [केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के बारे म�
उच्चतम न्यायालय क� अनन्य अ�धका�रता ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 4 द्वारा (13-4-1978) से लोप �कया गया ।
132. कुछ मामल� म� उच्च न्यायालय� से अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील�
अ�धका�रता–(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल, दां�डक या
अन्य कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम
न्यायालय म� होगी 3[य�द वह उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर
दे ता है] �क उस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ्
प्रश्न अंतवर्�लत है ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 द्वारा (1-11-1956 से) परन्तुक के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 23 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत कर दे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 62
(भाग 5—संघ)
68(2)*
1
* * *
(3) जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे �दया गया है 2*** वहां उस मामले म� कोई प�कार इस
आधार पर उच्चतम न्यायालय म� अपील कर सकेगा �क पव ू �क्त �कसी प्रश्न का
�व�नश्चय गलत �कया गया है 4***।
स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, “अं�तम आदे श” पद के अंतगर्त ऐसे
�ववाद्यक का �व�नश्चय करने वाला आदे श है जो, य�द अपीलाथ� के प� म� �व�निश्चत
�कया जाता है तो, उस मामले के अं�तम �नपटारे के �लए पयार्प्त होगा ।
133. उच्च न्यायालय� से �स�वल �वषय� से संब�ं धत अपील� म� उच्चतम न्यायालय
क� अपील� अ�धका�रता– 3[(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल
कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम
न्यायालय म� होगी 4[य�द उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता
है �क]–
(क) उस मामले म� �व�ध का व्यापक महत्व का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत
है ; और
(ख) उच्च न्यायालय क� राय म� उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा
�व�नश्चय आवश्यक है ।]
(2) अनच् ु छे द 132 म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय म� खंड (1) के
अधीन अपील करने वाला कोई प�कार ऐसी अपील के आधार� म� यह आधार भी बता
सकेगा �क इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्रश्न का �व�नश्चय
गलत �कया गया है ।
(3) इस अनच् ु छे द म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक
न्यायाधीश के �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� तब तक
नह�ं होगी जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे ।
134. दां�डक �वषय� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील� अ�धका�रता–(1) भारत के
राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य,
अं�तम आदे श या दं डादे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� होगी य�द–
(क) उस उच्च न्यायालय ने अपील म� �कसी अ�भयक् ु त व्यिक्त क� दोषमुिक्त
के आदे श को उलट �दया है और उसको मत्ृ यु दं डादे श �दया है ; या
(ख) उस उच्च न्यायालय ने अपने प्रा�धकार के अधीनस्थ �कसी न्यायालय से
�कसी मामले को �वचारण के �लए अपने पास मंगा �लया है और ऐसे �वचारण म�
अ�भयक् ु त व्यिक्त को �सद्धदोष ठहराया है और उसको मत्ृ यु दंडादे श �दया है ; या
(ग) वह उच्च न्यायालय 5[अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता है]
�क मामला उच्चतम न्यायालय म� अपील �कए जाने योग्य है :
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत करता है” खंड (2) का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) कुछ शब्द� का लोप �कया
गया ।
3. सं�वधान (तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय
प्रमा�णत करे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमा�णत करता है” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 63
(भाग 5—संघ)
परन्तु उपखंड (ग) के अधीन अपील ऐसे उपबंध� के अधीन रहते हुए होगी जो
अनच्
ु छे द 145 के खंड (1) के अधीन इस �न�म� बनाए जाएं और ऐसी शत� के अधीन
रहते हुए होगी जो उच्च न्यायालय �नयत या अपे��त करे ।
(2) संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च
न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, अं�तम आदे श या दं डादे श क�
अपील ऐसी शत� और प�रसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट क�
जाएं, ग्रहण करने और सुनने क� अ�त�रक्त शिक्त दे सकेगी ।
1
[134क. उच्चतम न्यायालय म� अपील के �लए प्रमाणपत्र–प्रत्येक उच्च न्यायालय,
जो अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड
(1) म� �न�दर्ष्ट �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दंडादे श पा�रत करता है या दे ता है, इस
प्रकार पा�रत �कए जाने या �दए जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, इस प्रश्न का अवधारण
�क उस मामले के संबध ं म� , यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के
खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) म� �न�दर्ष्ट प्रकृ�त का प्रमाणपत्र
�दया जाए या नह�ं,–
(क) य�द वह ऐसा करना ठ�क समझता है तो स्वप्रेरणा से कर सकेगा ; और
(ख) य�द ऐसा �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दं डादे श पा�रत �कए जाने या
�दए जाने के ठ�क पश्चात ् व्य�थत प�कार द्वारा या उसक� ओर से मौ�खक
आवेदन �कया जाता है तो करे गा ।]
135. �वद्यमान �व�ध के अधीन फेडरल न्यायालय क� अ�धका�रता और शिक्तय�
का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना–जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा
उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय को भी �कसी ऐसे �वषय के संबध ं म� , िजसको
अनच्
ु छे द 133 या अनच्
ु छे द 134 के उपबंध लागू नह�ं होते ह�, अ�धका�रता और शिक्तयां
ह�गी य�द उस �वषय के संबध ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी �वद्यमान
�व�ध के अधीन अ�धका�रता और शिक्तयां फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य थीं ।
136. अपील के �लए उच्चतम न्यायालय क� �वशेष इजाजत–(1) इस अध्याय म�
�कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने �ववेकानस ु ार भारत के राज्य�ेत्र
म� �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा �कसी वाद या मामले म� पा�रत �कए गए या
�दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र�, अवधारण, दं डादे श या आदे श क� अपील के �लए �वशेष
इजाजत दे सकेगा ।
(2) खंड (1) क� कोई बात सशस्त्र बल� से संब�ं धत �कसी �व�ध द्वारा या उसके
अधीन ग�ठत �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा पा�रत �कए गए या �दए गए �कसी
�नणर्य, अवधारण, दं डादे श या आदे श को लागू नह�ं होगी ।
ु �वर्लोकन–संसद् द्वारा
137. �नणर्य� या आदे श� का उच्चतम न्यायालय द्वारा पन
बनाई गई �कसी �व�ध के या अनच् ु छे द 145 के अधीन बनाए गए �नयम� के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए �नणर्य या �दए गए
आदे श का पन
ु �वर्लोकन करने क� शिक्त होगी ।
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 20 द्वारा (1-8-1979 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 64
(भाग 5—संघ)
138. उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता क� वद् ृ �ध–(1) उच्चतम न्यायालय को
संघ सूची के �वषय� म� से �कसी के संबध ं म� ऐसी अ�त�रक्त अ�धका�रता और शिक्तयां
ह�गी जो संसद् �व�ध द्वारा प्रदान करे ।
(2) य�द संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अ�धका�रता और
शिक्तय� के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को �कसी �वषय के संबध
ं
म� ऐसी अ�त�रक्त अ�धका�रता और शिक्तयां ह�गी जो भारत सरकार और �कसी राज्य
क� सरकार �वशेष करार द्वारा प्रदान करे ।
139. कुछ �रट �नकालने क� शिक्तय� का उच्चतम न्यायालय को प्रद� �कया
जाना–संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनच् ु छे द 32 के खंड (2) म� व�णर्त
प्रयोजन� से �भन्न �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए ऐसे �नदे श, आदे श या �रट, िजनके अंतगर्त
बंद� प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार पच्ृ छा और उप्रेषण �रट ह�, या उनम� से
कोई �नकालने क� शिक्त प्रदान कर सकेगी ।
1
[139क. कुछ मामल� का अंतरण– 2[(1) य�द ऐसे मामले, िजनम� �व�ध के समान
या सारतः समान प्रश्न अंतवर्�लत ह�, उच्चतम न्यायालय के और एक या अ�धक उच्च
न्यायालय� के अथवा दो या अ�धक उच्च न्यायालय� के सम� लं�बत ह� और उच्चतम
न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवाद� द्वारा या ऐसे �कसी मामले के
�कसी प�कार द्वारा �कए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है �क ऐसे प्रश्न
व्यापक महत्व के सारवान ् प्रश्न ह� तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन
उच्च न्यायालय� के सम� लं�बत मामले या मामल� को अपने पास मंगा सकेगा और उन
सभी मामल� को स्वंय �नपटा सकेगा :
परन्तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उक्त �व�ध के प्रश्न� का
अवधारण करने के पश्चात ् ऐसे प्रश्न� पर अपने �नणर्य क� प्र�त�ल�प स�हत उस उच्च
न्यायालय को, िजससे मामला मंगा �लया गया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय
उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे �नणर्य के अनरू
ु प �नपटाने के �लए आगे
कायर्वाह� करे गा ।]
(2) य�द उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्दे श्य क� प�ू तर् के �लए ऐसा करना
समीचीन समझता है तो वह �कसी उच्च न्यायालय के सम� लं�बत �कसी मामले, अपील
या अन्य कायर्वाह� का अंतरण �कसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा ।]
140. उच्चतम न्यायालय क� आनष ु ं�गक शिक्तयां–संसद्, �व�ध द्वारा, उच्चतम
न्यायालय को ऐसी अनप ु रू क शिक्तयां प्रदान करने के �लए उपबंध कर सकेगी जो इस
सं�वधान के उपबंध� म� से �कसी से असंगत न ह� और जो उस न्यायालय को इस
सं�वधान द्वारा या इसके अधीन प्रद� अ�धका�रता का अ�धक प्रभावी रूप से प्रयोग करने
के योग्य बनाने के �लए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत ह� ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 24 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 21 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 65
(भाग 5—संघ)
141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध का सभी न्यायालय� पर आबद्धकर
होना–उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध भारत के राज्य�ेत्र के भीतर सभी न्यायालय�
पर आबद्धकर होगी ।
142. उच्चतम न्यायालय क� �ड�क्रय� और आदे श� का प्रवतर्न और प्रकट�करण
आ�द के बारे म� आदे श–(1) उच्चतम न्यायालय अपनी अ�धका�रता का प्रयोग करते हुए
ऐसी �डक्र� पा�रत कर सकेगा या ऐसा आदे श कर सकेगा जो उसके सम� लं�बत �कसी
वाद या �वषय म� पण ू र् न्याय करने के �लए आवश्यक हो और इस प्रकार पा�रत �डक्र� या
�कया गया आदे श भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र ऐसी र��त से, जो संसद् द्वारा बनाई गई
�कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत क� जाए, और जब तक इस �न�म� इस
प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, ऐसी र��त से जो राष्ट्रप�त आदे श 1 द्वारा
�व�हत करे , प्रवतर्नीय होगा ।
76
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
उच्चतम न्यायालय को भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र के बारे म� �कसी व्यिक्त को हािजर
कराने के, �कन्ह�ं दस्तावेज� के प्रकट�करण या पेश कराने के अथवा अपने �कसी अवमान
का अन्वेषण करने या दं ड दे ने के प्रयोजन के �लए कोई आदे श करने क� समस्त और
प्रत्येक शिक्त होगी ।
143. उच्चतम न्यायालय से परामशर् करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–(1) य�द �कसी
समय राष्ट्रप�त को प्रतीत होता है �क �व�ध या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है
या उत्पन्न होने क� संभावना है, जो ऐसी प्रकृ�त का और ऐसे व्यापक महत्व का है �क
उस पर उच्चतम न्यायालय क� राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को
�वचार करने के �लए उस न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी
सुनवाई के पश्चात ् जो वह ठ�क समझता है, राष्ट्रप�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत
कर सकेगा ।
(2) राष्ट्रप�त अनच् ु छे द 131 *** के परन्तुक म� �कसी बात के होते हुए भी, इस
2
प्रकार के �ववाद को, जो 3[उक्त परन्तुक] म� व�णर्त है, राय दे ने के �लए उच्चतम
न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात ् जो
वह ठ�क समझता है, राष्ट्रप�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत करे गा ।
144. �स�वल और न्या�यक प्रा�धका�रय� द्वारा उच्चतम न्यायालय क� सहायता म�
कायर् �कया जाना–भारत के राज्य�ेत्र के सभी �स�वल और न्या�यक प्रा�धकार� उच्चतम
न्यायालय क� सहायता म� कायर् कर� गे ।
4
144क. [�व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के �नपटारे के बारे म�
�वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 5 द्वारा
(13-4-1978 से) लोप �कया गया ।
145. न्यायालय के �नयम आ�द–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के
उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रप�त के अनम ु ोदन
से न्यायालय क� पद्ध�त और प्र�क्रया के, साधारणतया, �व�नयमन के �लए �नयम बना
सकेगा िजसके अंतगर्त �नम्न�ल�खत भी ह�, अथार्त ् :–
(क) उस न्यायालय म� �व�ध-व्यवसाय करने वाले व्यिक्तय� के बारे म�
�नयम ;
1. उच्चतम न्यायालय (�डक्र� और आदे श) प्रवतर्न आदे श, 1954 (सं.आ. 47) दे �खए ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “के खंड (i)”
शब्द�, कोष्ठक� और अंक का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “उक्त खंड” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 25 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 66
(भाग 5—संघ)
(ख) अपील� सुनने के �लए प्र�क्रया के बारे म� और अपील� संबध ं ी अन्य �वषय�
के बारे म� , िजनके अंतगर्त वह समय भी है िजसके भीतर अपील� उस न्यायालय म�
ग्रहण क� जानी ह�, �नयम ;
(ग) भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी का प्रवतर्न कराने के �लए उस
न्यायालय म� कायर्वा�हय� के बारे म� �नयम ;
1
[(गग) 2[अनच् ु छे द 139क] के अधीन उस न्यायालय म� कायर्वा�हय� के बारे
म� �नयम ;]
(घ) अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपील� को ग्रहण
�कए जाने के बारे म� �नयम ;
(ङ) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए �कसी �नणर्य या �कए गए आदे श का
िजन शत� के अधीन रहते हुए पन ु �वर्लोकन �कया जा सकेगा उनके बारे म� और ऐसे
पन ु �वर्लोकन के �लए प्र�क्रया के बारे म� , िजसके अतंगत र् वह समय भी है िजसके
भीतर ऐसे पन ु �वर्लोकन के �लए आवेदन उस न्यायालय म� ग्रहण �कए जाने ह�,
�नयम ;
(च) उस न्यायालय म� �कन्ह�ं कायर्वा�हय� के और उनके आनष ु �ं गक खच� के
बारे म� , तथा उसम� कायर्वा�हय� के संबध ं म� प्रभा�रत क� जाने वाल� फ�स� के बारे म�
�नयम ;
(छ) जमानत मंजरू करने के बारे म� �नयम ;
(ज) कायर्वा�हय� को रोकने के बारे म� �नयम ;
(झ) िजस अपील के बारे म� उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है �क वह
तुच्छ या तंग करने वाल� है अथवा �वलंब करने के प्रयोजन से क� गई है, उसके
सं��प्त अवधारण के �लए उपबंध करने वाले �नयम ;
(ञ) अनच्ु छे द 317 के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट जांच� के �लए प्र�क्रया के बारे म�
�नयम ।
(2) 3[ 4*** खंड (3) के उपबंध�] के अधीन रहते हुए, इस अनच् ु छे द के अधीन बनाए
गए �नयम, उन न्यायाधीश� क� न्यन ू तम संख्या �नयत कर सक�गे जो �कसी प्रयोजन के
�लए बैठ�गे तथा एकल न्यायाधीश� और खंड न्यायालय� क� शिक्त के �लए उपबंध कर
सक�गे ।
(3) िजस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ् प्रश्न
अतंव�र् लत है उसका �व�नश्चय करने के प्रयोजन के �लए या इस सं�वधान के अनच् ु छे द
143 के अधीन �नद� श क� सुनवाई करने के प्रयोजन के �लए बैठने वाले न्यायाधीश� क�
5 4***
[ न्यनू तम संख्या] पांच होगी :
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द 131क और अनुच्छे द
139क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3) के उपबंध�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) कुछ शब्द� लोप �कया
गया ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “न्यूनतम संख्या” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 67
(भाग 5—संघ)
परन्तु जहां अनच्
ु छे द 132 से �भन्न इस अध्याय के उपबंध� के अधीन अपील क�
सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीश� से �मलकर बना है और अपील
क� सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है �क अपील म� सं�वधान के
�नवर्चन के बारे म� �व�ध का ऐसा सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत है िजसका अवधारण अपील
के �नपटारे के �लए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो
ऐसे प्रश्न को अंतवर्�लत करने वाले �कसी मामले के �व�नश्चय के �लए इस खंड क�
अपे�ानस ु ार ग�ठत �कया जाता है, उसक� राय के �लए �नद� �शत करे गा और ऐसी राय क�
प्रािप्त पर उस अपील को उस राय के अनरू ु प �नपटाएगा ।
(4) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक �नणर्य खल ु े न्यायालय म� ह� सुनाएगा, अन्यथा नह�ं
और अनच्ु छे द 143 के अधीन प्रत्येक प्र�तवेदन खल ु े न्यायालय म� सुनाई गई राय के
अनस
ु ार ह� �दया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(5) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक �नणर्य और ऐसी प्रत्येक राय, मामले क�
सुनवाई म� उपिस्थत न्यायाधीश� क� बहुसंख्या क� सहम�त से ह� द� जाएगी, अन्यथा
नह�ं, �कन्तु इस खंड क� कोई बात �कसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नह�ं है, अपना
�वसम्मत �नणर्य या राय दे ने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।
146. उच्चतम न्यायालय के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय–(1) उच्चतम
न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� �नयिु क्तयां भारत का मुख्य न्यायमू�तर् करे गा
या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� करे गा िजसे वह �न�दष्ट करे :
परन्तु राष्ट्रप�त �नयम द्वारा यह अपे�ा कर सकेगा �क ऐसी �कन्ह�ं दशाओं म� ,
जो �नयम म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �कसी ऐसे व्यिक्त को, जो पहले से ह� न्यायालय से
संलग्न नह�ं है, न्यायालय से संब�ं धत �कसी पद पर संघ लोक सेवा आयोग से परामशर्
करके ह� �नयक्ु त �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(2) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय
के अ�धका�रय� और सेवक� क� सेवा क� शत� ऐसी ह�गी जो भारत के मुख्य न्यायमू�तर् या
उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� द्वारा, िजसे भारत के मुख्य
न्यायमू�तर् ने इस प्रयोजन के �लए �नयम बनाने के �लए प्रा�धकृत �कया है, बनाए गए
�नयम� द्वारा �व�हत क� जाएं :
परन्तु इस खंड के अधीन बनाए गए �नयम� के �लए, जहां तक वे वेतन�, भ��,
छुट्ट� या प� शन� से संब�ं धत ह�, राष्ट्रप�त के अनम
ु ोदन क� अपे�ा होगी ।
(3) उच्चतम न्यायालय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अतंगतर् उस न्यायालय के
अ�धका�रय� और सेवक� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और प� शन ह�,
भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे और उस न्यायालय द्वारा ल� गई फ�स� और
अन्य धनरा�शयां उस �न�ध का भाग ह�गी ।
भारत का सं�वधान 68
(भाग 5—संघ)
147. �नवर्चन–इस अध्याय म� और भाग 6 के अध्याय 5 म� इस सं�वधान के
�नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्रश्न के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया
जाएगा �क उनके अतंगत र् भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 के (िजसके अंतगर्त उस
अ�ध�नयम क� संशोधक या अनप ु रू क कोई अ�ध�नय�म�त है) अथवा �कसी सप�रषद्
आदे श या उसके अधीन बनाए गए �कसी आदे श के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अ�ध�नयम,
1947 के या उसके अधीन बनाए गए �कसी आदे श के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी
सारवान ् प्रश्न के प्र�त �नद� श ह� ।
अध्याय 5–भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क
148. भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क–(1) भारत का एक �नयंत्रक-
महालेखापर��क होगा िजसको राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मुद्रा स�हत अ�धपत्र द्वारा
�नयक्
ु त करे गा और उसे उसके पद से केवल उसी र��त से और उन्ह�ं आधार� पर हटाया
जाएगा िजस र��त से और िजन आधार� पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया
जाता है ।
(2) प्रत्येक व्यिक्त, जो भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क �नयक्ु त �कया जाता है
अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रप�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त व्यिक्त
के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार, शपथ
लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।
(3) �नयंत्रक-महालेखापर��क का वेतन और सेवा क� अन्य शत� ऐसी ह�गी जो
संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक वे इस प्रकार अवधा�रत नह�ं क� जाती
ह� तब तक ऐसी ह�गी जो दस ू र� अनस
ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� :
परन्तु �नयंत्रक-महालेखापर��क के वेतन म� और अनप ु िस्थ�त छुट्ट�, प� शन या
�नव�ृ � क� आयु के संबध ं म� उसके अ�धकार� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए
अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
(4) �नयंत्रक-महालेखापर��क, अपने पद पर न रह जाने के पश्चात ्, भारत सरकार
के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी और पद का पात्र नह�ं होगा ।
(5) इस सं�वधान के और संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन
रहते हुए, भारतीय लेखापर��ा और लेखा �वभाग म� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� सेवा क�
शत� और �नयंत्रक-महालेखापर��क क� प्रशास�नक शिक्तयां ऐसी ह�गी जो �नयंत्रक-
महालेखापर��क से परामशर् करने के पश्चात ् राष्ट्रप�त द्वारा बनाए गए �नयम� द्वारा
�व�हत क� जाएं ।
(6) �नयंत्रक-महालेखापर��क के कायार्लय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अंतगर्त उस
कायार्लय म� सेवा करने वाले व्यिक्तय� को या उनके संबधं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और
प� शन ह�, भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे ।
भारत का सं�वधान 69
(भाग 5—संघ)
149. �नयंत्रक-महालेखापर��क के कतर्व्य और शिक्तयां–�नयंत्रक-महालेखापर��क
संघ के और राज्य� के तथा �कसी अन्य प्रा�धकार� या �नकाय के लेखाओं के संबध ं म� ऐसे
कतर्व्य� का पालन और ऐसी शिक्तय� का प्रयोग करे गा िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई
�व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत �कया जाए और जब तक इस �न�म� इस प्रकार
उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, संघ के और राज्य� के लेखाओं के संबध ं म� ऐसे
कतर्व्य� का पालन और ऐसी शिक्तय� का प्रयोग करे गा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क
पहले क्रमशः भारत डो�म�नयन के और प्रांत� के लेखाओं के संबध ं म� भारत के
महालेखापर��क को प्रद� थीं या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य थीं ।
1
[150. संघ के और राज्य� के लेखाओं का प्ररूप–संघ के और राज्य� के लेखाओं को
ऐसे प्ररूप म� रखा जाएगा जो राष्ट्रप�त, भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क 2[क� सलाह पर]
�व�हत करे ।]
151. संपर��ा प्र�तवेदन–(1) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के संघ के लेखाओं
संबध
ं ी प्र�तवेदन� को राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तत
ु �कया जाएगा, जो उनको संसद् के प्रत्येक
सदन के सम� रखवाएगा ।
(2) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के �कसी राज्य के लेखाओं संबध
ं ी प्र�तवेदन�
को उस राज्य के राज्यपाल 3*** के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा, जो उनको राज्य के
�वधान-मंडल के सम� रखवाएगा ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 27 द्वारा (1-4-1977 से) “अनुच्छे द 150” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 22 द्वारा (20-6-1979 से) “से परामशर् के पश्चात ्” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भाग 6
1***
राज्य
अध्याय 1–साधारण
152. प�रभाषा–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,
“राज्य” पद 2[के अंतगर्त जम्मू-कश्मीर राज्य नह�ं है] ।
अध्याय 2–कायर्पा�लका
राज्यपाल
153. राज्य� के राज्यपाल–प्रत्येक राज्य के �लए एक राज्यपाल होगा :
[परन्तु इस अनच्
3
ु छे द क� कोई बात एक ह� व्यिक्त को दो या अ�धक राज्य� के
�लए राज्यपाल �नयक्ु त �कए जाने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।]
154. राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त–(1) राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त राज्यपाल
म� �न�हत होगी और वह इसका प्रयोग इस सं�वधान के अनस ु ार स्वयं या अपने
अधीनस्थ अ�धका�रय� के द्वारा करे गा ।
(2) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात–
(क) �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा �कसी अन्य प्रा�धकार� को प्रदान �कए
गए कृत्य राज्यपाल को अंत�रत करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ; या
(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ �कसी प्रा�धकार� को �व�ध द्वारा कृत्य प्रदान
करने से संसद् या राज्य के �वधान-मंडल को �नवा�रत नह�ं करे गी ।
155. राज्यपाल क� �नयिु क्त–राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र
और मद्र
ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा �नयक्
ु त करे गा ।
156. राज्यपाल क� पदाव�ध–(1) राज्यपाल, राष्ट्रप�त के प्रसादपय�त पद धारण
करे गा ।
(2) राज्यपाल, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना
पद त्याग सकेगा ।
(3) इस अनच्
ु छे द के पव ू ग
र् ामी उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्यपाल अपने
पदग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध तक पद धारण करे गा :
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क म� के” शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “का अथर् पहल�
अनुसूची के भाग क म� उिल्ल�खत राज्य है” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया ।
70
भारत का सं�वधान 71
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 7 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 72
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
उस राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� क� कुल संख्या के पंद्रह प्र�तशत से अ�धक नह�ं
होगी :
परं तु �कसी राज्य म� मुख्यमंत्री स�हत मं�त्रय� क� संख्या बारह से कम नह�ं
होगी :
परं तु यह और �क जहां सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 के
प्रारं भ पर �कसी राज्य क� मं�त्र-प�रषद् म� मुख्यमंत्री स�हत मं�त्रय� क� कुल संख्या,
यथािस्थ�त, उक्त पंद्रह प्र�तशत या पहले परं तुक म� �व�न�दर्ष्ट संख्या से अ�धक है वहां
उस राज्य म� मं�त्रय� क� कुल संख्या ऐसी तार�ख 4 से, जो राष्ट्रप�त लोक अ�धसूचना
7
द्वारा �नयत करे , छह मास के भीतर इस खंड के उपबंध� के अनरू ु प लाई जाएगी ।
(1ख) �कसी राजनी�तक दल का �कसी राज्य क� �वधान सभा का या �कसी राज्य
के �वधान-मंडल के �कसी सदन का िजसम� �वधान प�रषद् है, कोई सदस्य जो दसवीं
अनसु ूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त है, अपनी
�नरहर्ता क� तार�ख से प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख तक िजसको ऐसे सदस्य के रूप
म� उसक� पदाव�ध समाप्त होगी या जहां वह, ऐसी अव�ध क� समािप्त के पव ू ,र्
यथािस्थ�त, �कसी राज्य क� �वधान सभा के �लए या �वधान प�रषद् वाले �कसी राज्य के
�वधान-मंडल के �कसी सदन के �लए कोई �नवार्चन लड़ता है उस तार�ख तक िजसको
वह �नवार्�चत घो�षत �कया जाता है, इनम� से जो भी पव ू त
र् र हो, क� अव�ध के दौरान,
खंड (1) के अधीन मंत्री के रूप म� �नयक् ु त �कए जाने के �लए भी �नर�हर्त होगा ।]
(2) मं�त्र-प�रषद् राज्य क� �वधान सभा के प्र�त सामू�हक रूप से उ�रदायी होगी ।
(3) �कसी मंत्री द्वारा अपना पदग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसर� अनस
ु च
ू ी म�
इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप� के अनस ु ार उसको पद क� और गोपनीयता क� शपथ
�दलाएगा ।
1. सं�वधान (चौरानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2006 क� धारा 2 द्वारा (12-6-2006 से) “�बहार” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2
उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 (2011 का 15) क� धारा 4 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत ।
4. दे �खए अ�धसूचना सं. का.आ. 21(अ), तार�ख 7-1-2004 ।
भारत का सं�वधान 74
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) और उसका सं�वधान
(चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) अन्तःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 75
(भाग 6—राज्य)
1. “आंध्र प्रदे श” शब्द� का आंध्र प्रदे श �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1985 (1985 का 34) क� धारा 4 द्वारा
(1-6-1985 से) लोप �कया गया ।
2. आंध्र प्रदे श �वधान प�रषद् अ�ध�नयम, 2005 (2006 का 1) क� धारा 3 द्वारा (30-3-2007 से) अंतःस्था�पत ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई” शब्द का लोप �कया
गया ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत क� जानी है) अंतःस्था�पत ।
5. त�मलनाडु �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 40) क� धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से)
“त�मलनाडु ” शब्द का लोप �कया गया ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
7. मैसूर राज्य (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) “मैसूर” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत, िजसे सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8(1) द्वारा (1-11-1956
से) अंतःस्था�पत �कया गया था ।
8. पंजाब �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 46) क� धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) “पंजाब”
शब्द का लोप �कया गया ।
9. त�मलनाडु �वधान प�रषद् अ�ध�नयम, 2010 (2010 का 16) क� धारा 3 द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से)
अंतःस्था�पत ।
10. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 96 द्वारा (1-6-2014 से) "त�मलनाडु " के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
11. बंगाल �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 20) क� धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) “उ�र प्रदे श
और पिश्चमी बंगाल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 76
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 9 द्वारा (1-11-1956 से) “अनुच्छे द 170” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्ट�करण के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 77
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत । सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) मूल अंक
"1971 के स्थान पर "1991"" अंक प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक चौथाई” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 78
(भाग 6—राज्य)
परं तु �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य� क� कुल संख्या �कसी भी दशा म�
चाल�स से कम नह�ं होगी ।
(2) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक �कसी राज्य क�
�वधान प�रषद् क� संरचना खंड (3) म� उपबं�धत र��त से होगी ।
(3) �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य� क� कुल संख्या का–
(क) यथाशक्य �नकटतम एक-�तहाई भाग उस राज्य क� नगरपा�लकाओं,
िजला बोड� और अन्य ऐसे स्थानीय प्रा�धका�रय� के, जो संसद् �व�ध द्वारा
�व�न�दर्ष्ट करे , सदस्य� से �मलकर बनने वाले �नवार्चक-मंडल� द्वारा �नवार्�चत
होगा ;
(ख) यथाशक्य �नकटतम बारहवां भाग उस राज्य म� �नवास करने वाले
ऐसे व्यिक्तय� से �मलकर बनने वाले �नवार्चक-मंडल� द्वारा �नवार्�चत होगा, जो
भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वश्व�वद्यालय के कम से कम तीन वषर् से स्नातक
ह� या िजनके पास कम से कम तीन वषर् से ऐसी अहर्ताएं ह� जो संसद् द्वारा
बनाई गई �कसी �व�ध या उसके अधीन ऐसे �कसी �वश्व�वद्यालय के स्नातक क�
अहर्ताओं के समतुल्य �व�हत क� गई ह� ;
(ग) यथाशक्य �नकटतम बारहवां भाग ऐसे व्यिक्तय� से �मलकर बनने
वाले �नवार्चक-मंडल� द्वारा �नवार्�चत होगा जो राज्य के भीतर माध्य�मक
पाठशालाओं से अ�नम्न स्तर क� ऐसी �श�ा संस्थाओं म� , जो संसद् द्वारा बनाई
गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत क� जाएं, पढ़ाने के काम म� कम से
कम तीन वषर् से लगे हुए ह� ;
(घ) यथाशक्य �नकटतम एक-�तहाई भाग राज्य क� �वधान सभा के
सदस्य� द्वारा ऐसे व्यिक्तय� म� से �नवार्�चत होगा जो �वधान सभा के सदस्य
नह�ं ह� ;
(ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंध� के अनस
ु ार
नाम�नद� �शत �कए जाएंगे ।
(4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग) के अधीन �नवार्�चत
होने वाले सदस्य ऐसे प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� चन
ु े जाएंगे, जो संसद् द्वारा बनाई गई
�व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत �कए जाएं तथा उक्त उपखंड� के और उक्त खंड के
उपखंड (घ) के अधीन �नवार्चन आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस ु ार एकल
संक्रमणीय मत द्वारा ह�गे ।
(5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नाम�नद� �शत �कए जाने
वाले सदस्य ऐसे व्यिक्त ह�गे िजन्ह� �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध
ं म� �वशेष �ान या
व्यावहा�रक अनभ ु व है, अथार्त ् :–
भारत का सं�वधान 79
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से)
“छह वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 80
(भाग 6—राज्य)
1
[174. राज्य के �वधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और �वघटन–(1) राज्यपाल,
समय-समय पर, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और
स्थान पर, जो वह ठ�क समझे, अ�धवेशन के �लए आहूत करे गा, �कं तु उसके एक सत्र
क� अं�तम बैठक और आगामी सत्र क� प्रथम बैठक के �लए �नयत तार�ख के बीच छह
मास का अंतर नह�ं होगा ।
(2) राज्यपाल, समय-समय पर,–
(क) सदन का या �कसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;
(ख) �वधान सभा का �वघटन कर सकेगा ।]
175. सदन या सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल
का अ�धकार–(1) राज्यपाल, �वधान सभा म� या �वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म�
उस राज्य के �वधान-मंडल के �कसी एक सदन म� या एक साथ समवेत दोन� सदन� म� ,
अ�भभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के �लए सदस्य� क� उपिस्थ�त क� अपे�ा कर
सकेगा ।
(2) राज्यपाल, राज्य के �वधान-मंडल म� उस समय लं�बत �कसी �वधेयक के
संबध ं म� संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� को
भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश
द्वारा �वचार करने के �लए अपे��त �वषय पर सु�वधानस ु ार शीघ्रता से �वचार करे गा ।
176. राज्यपाल का �वशेष अ�भभाषण–(1) राज्यपाल, 2[�वधान सभा के �लए
प्रत्येक साधारण �नवार्चन के पश्चात ् प्रथम सत्र के आरं भ म� ] और प्रत्येक वषर् के प्रथम
सत्र के आरं भ म� �वधान सभा म� या �वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� एक साथ
समवेत दोन� सदन� म� अ�भभाषण करे गा और �वधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण
बताएगा ।
(2) सदन या प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� द्वारा
ऐसे अ�भभाषण म� �न�दर्ष्ट �वषय� क� चचार् के �लए समय �नयत करने के �लए 3***
उपबंध �कया जाएगा ।
177. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महा�धवक्ता के अ�धकार–प्रत्येक मंत्री और
राज्य के महा�धवक्ता को यह अ�धकार होगा �क वह उस राज्य क� �वधान सभा म� या
�वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� दोन� सदन� म� बोले और उनक� कायर्वा�हय� म�
अन्यथा भाग ले और �वधान-मंडल क� �कसी स�म�त म� , िजसम� उसका नाम सदस्य के
रूप म� �दया गया है, बोले और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले, �कन्तु इस
अनच् ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नह�ं होगा ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 8 द्वारा (18-6-1951 से) “अनुच्छे द 174” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 9 द्वारा (18-6-1951 से) “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 9 द्वारा (18-6-1951 से) “तथा सदन के अन्य कायर् पर
इस चचार् को अग्रता दे ने के �लए” शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 81
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
कायर् संचालन
188. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान–राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद्
का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस
�न�म� �नयक् ु त व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए
प्ररूप के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा ।
189. सदन� म� मतदान, �रिक्तय� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क�
शिक्त और गणप�ू तर्–(1) इस सं�वधान म� यथा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, �कसी राज्य
के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� बैठक म� सभी प्रश्न� का अवधारण, अध्य� या
सभाप�त को अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त को छोड़कर, उपिस्थत और मत
दे ने वाले सदस्य� के बहुमत से �कया जाएगा ।
अध्य� या सभाप�त, अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्यिक्त प्रथमत: मत
नह�ं दे गा, �कं तु मत बराबर होने क� दशा म� उसका �नणार्यक मत होगा और वह उसका
प्रयोग करे गा ।
(2) राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� सदस्यता म� कोई �रिक्त होने पर
भी, उस सदन को कायर् करने क� शिक्त होगी और य�द बाद म� यह पता चलता है �क
कोई व्यिक्त, जो ऐसा करने का हकदार नह�ं था, कायर्वा�हय� म� उपिस्थत रहा है या
उसने मत �दया है या अन्यथा भाग �लया है तो भी राज्य के �वधान-मंडल क� कायर्वाह�
�व�धमान्य होगी ।
1
[(3) जब तक राज्य का �वधान-मंडल �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब
तक राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का अ�धवेशन ग�ठत करने के �लए गणप�ू तर्
दस सदस्य या सदन के सदस्य� क� कुल संख्या का दसवां भाग, इसम� से जो भी अ�धक
हो, होगी ।
(4) य�द राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् के अ�धवेशन म� �कसी समय
गणप�ू तर् नह�ं है तो अध्य� या सभाप�त अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त का
यह कतर्व्य होगा �क वह सदन को स्थ�गत कर दे या अ�धवेशन को तब तक के �लए
�नलं�बत कर दे जब तक गणप�ू तर् नह�ं हो जाती है ।]
सदस्य� क� �नरहर्ताएं
190. स्थान� का �रक्त होना–(1) कोई व्यिक्त राज्य के �वधान-मंडल के दोन�
सदन� का सदस्य नह�ं होगा और जो व्यिक्त दोन� सदन� का सदस्य चन ु �लया जाता है
उसके एक या दस ू रे सदन के स्थान को �रक्त करने के �लए उस राज्य का �वधान-मंडल
�व�ध द्वारा उपबंध करे गा ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 31 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) । इस
संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया
गया ।
भारत का सं�वधान 85
(भाग 6—राज्य)
मंडल� म� ऐसे व्यिक्त का स्थान �रक्त हो जाएगा य�द उसने एक राज्य को छोड़कर
अन्य राज्य� के �वधान-मंडल� म� अपने स्थान को पहले ह� नह�ं त्याग �दया है ।
(3) य�द राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य–
(क) 2[अनच्
ु छे द 191 के खंड (2)] म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो
जाता है, या
[(ख) यथािस्थ�त, अध्य� या सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र
3
1. दे �खए �व�ध मंत्रालय क� अ�धसूचना सं0 एफ0 46/50-सी, �दनांक 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र,
असाधारण, प0ृ 678 म� प्रका�शत समसाम�यक सदस्यता प्र�तषेध �नयम, 1950 ।
2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द 191 के खंड (1)” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 86
(भाग 6—राज्य)
1
[(क) य�द वह भारत सरकार के या पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट �कसी
राज्य क� सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर िजसको धारण करने वाले का
�नर�हर्त न होना राज्य के �वधान-मंडल ने �व�ध द्वारा घो�षत �कया है, कोई लाभ
का पद धारण करता है ;]
(ख) य�द वह �वकृत�च� है और स�म न्यायालय क� ऐसी घोषणा
�वद्यमान है ;
(ग) य�द वह अनन् ु मो�चत �दवा�लया है ;
(घ) य�द वह भारत का नाग�रक नह�ं है या उसने �कसी �वदे शी राज्य क�
नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है या वह �कसी �वदे शी राज्य के प्र�त
�नष्ठा या अनष ु िक्त को अ�भस्वीकार �कए हुए है ;
(ङ) य�द वह संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन
इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है ।
2
[स्पष्ट�करण–इस खंड के प्रयोजन� के �लए,] कोई व्यिक्त केवल इस कारण
भारत सरकार के या पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य क� सरकार के अधीन
लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का या ऐसे राज्य का
मंत्री है ।
3
[(2) कोई व्यिक्त �कसी राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् का सदस्य
होने के �लए �नर�हर्त होगा य�द वह दसवीं अनस ु ूची के अधीन इस प्रकार �नर�हर्त हो
जाता है ।]
4
[192. सदस्य� क� �नरहर्ताओं से संब�ं धत प्रश्न� पर �व�नश्चय–(1) य�द यह प्रश्न
उठता है �क �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य अनच् ु छे द 191
के खंड (1) म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न राज्यपाल
को �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा ।
(2) ऐसे �कसी प्रश्न पर �व�नश्चय करने से पहले राज्यपाल �नवार्चन आयोग क�
राय लेगा और ऐसी राय के अनस ु ार कायर् करे गा ।]
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 32 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) इस प्रकार
पढ़े जाने के �लए प्र�तस्था�पत �कया गया : "(क) य�द वह भारत सरकार के या पहल� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट �कसी
राज्य सरकार के अधीन कोई ऐसा लाभ का पद धारण करता है, िजसे संसद् ने �व�ध द्वारा उसके धारक को
�नर�हर्त घो�षत �कया है ।"। इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45
द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजन�
के �लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 33 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ्
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 25 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 192
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 87
(भाग 6—राज्य)
193. अनच्
ु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या अ�हर्त
न होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त–य�द �कसी
राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् म� कोई व्यिक्त अनच् ु छे द 188 क� अपे�ाओं
का अनप ु ालन करने से पहले, या यह जानते हुए �क म� उसक� सदस्यता के �लए अ�हर्त
नह�ं हूं या �नर�हर्त कर �दया गया हूं या संसद् या राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई
गई �कसी �व�ध के उपबंध� द्वारा ऐसा करने से प्र�त�षद्ध कर �दया गया हूं, सदस्य के
रूप म� बैठता है या मत दे ता है तो वह प्रत्येक �दन के �लए जब वह इस प्रकार बैठता है
या मत दे ता है, पांच सौ रुपए क� शािस्त का भागी होगा जो राज्य को दे य ऋण के रूप
म� वसलू क� जाएगी ।
राज्य� के �वधान-मंडल� और उनके सदस्य� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां
194. �वधान-मंडल� के सदन� क� तथा उनके सदस्य� और स�म�तय� क�
शिक्तयां, �वशेषा�धकार, आ�द–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के और �वधान-मंडल क�
प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� और स्थायी आदे श� के अधीन रहते हुए, प्रत्येक
राज्य के �वधान-मंडल म� वाक् -स्वातं�य होगा ।
(2) राज्य के �वधान-मंडल म� या उसक� �कसी स�म�त म� �वधान-मंडल के �कसी
सदस्य द्वारा कह� गई �कसी बात या �दए गए �कसी मत के संबध ं म� उसके �वरुद्ध
�कसी न्यायालय म� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी और �कसी व्यिक्त के �वरुद्ध ऐसे
�वधान-मंडल के �कसी सदन के प्रा�धकार द्वारा या उसके अधीन �कसी प्र�तवेदन पत्र,
ं म� इस प्रकार क� कोई कायर्वाह� नह�ं क�
मत� या कायर्वा�हय� के प्रकाशन के संबध
जाएगी ।
[(3) अन्य बात� म� राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� और ऐसे �वधान-
1
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) �नम्न�ल�खत रूप म� पढ़े
जाने के �लए प्र�तस्था�पत �कया गया :--
"(3) अन्य बात� म� �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� और ऐसे �वधान-मंडल के �कसी सदन
के सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां वे ह�गी, जो सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 34 के प्रारं भ पर थी और जो लोक सभा द्वारा ऐसे सदन और उसके सदस्य� और
स�म�तय� के �लए व्यक्त क� जाएं, जहां ऐसा सदन �वधान सभा है और राज्य सभा द्वारा ऐसे सदन और उसके
सदस्य� और स�म�तय� के �लए व्यक्त क� जाएं, जहां ऐसा सदन �वधान प�रषद् है ।"। इस संशोधन का सं�वधान
(चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (19-6-1979 से) लोप कर �दया गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 88
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
(ग) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत पा�रत �कया जाता
है िजनसे �वधान सभा सहमत नह�ं होती है,
तो �वधान सभा �वधेयक को, अपनी प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� के अधीन
रहते हुए, उसी या �कसी पश्चातवत� सत्र म� ऐसे संशोधन� स�हत या उसके �बना, य�द
कोई ह�, जो �वधान प�रषद् ने �कए ह�, सझु ाए ह� या िजनसे �वधान प�रषद् सहमत है,
पन
ु ःपा�रत कर सकेगी और तब इस प्रकार पा�रत �वधेयक को �वधान प�रषद् को पारे �षत
कर सकेगी ।
(2) य�द �वधान सभा द्वारा �वधेयक इस प्रकार दब
ु ारा पा�रत कर �दए जाने और
�वधान प�रषद् को पारे �षत �कए जाने के पश्चात ्–
(क) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक अस्वीकार कर �दया जाता है, या
(ख) �वधान प�रषद् के सम� �वधेयक रखे जाने क� तार�ख से, उसके
द्वारा �वधेयक पा�रत �कए �बना, एक मास से अ�धक बीत गया है, या
(ग) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत पा�रत �कया जाता
है िजनसे �वधान सभा सहमत नह�ं होती है,
तो �वधेयक राज्य के �वधान-मंडल के सदन� द्वारा ऐसे संशोधन� स�हत, य�द कोई ह�,
जो �वधान प�रषद् ने �कए ह� या सझ
ु ाए ह� और िजनसे �वधान सभा सहमत है, उस रूप
म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह �वधान सभा द्वारा दब ु ारा पा�रत �कया
गया था ।
(3) इस अनच्
ु छे द क� कोई बात धन �वधेयक को लागू नह�ं होगी ।
198. धन �वधेयक� के संबध ं म� �वशेष प्र�क्रया–(1) धन �वधेयक �वधान प�रषद्
म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ।
(2) धन �वधेयक �वधान प�रषद् वाले राज्य क� �वधान सभा द्वारा पा�रत �कए
जाने के पश्चात ् �वधान प�रषद् को उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत �कया जाएगा और
�वधान प�रषद् �वधेयक क� प्रािप्त क� तार�ख से चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधेयक
को अपनी �सफा�रश� स�हत �वधान सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर �वधान सभा,
�वधान प�रषद् क� सभी या �कन्ह�ं �सफा�रश� को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी ।
(3) य�द �वधान सभा, �वधान प�रषद् क� �कसी �सफा�रश को स्वीकार कर लेती
है तो धन �वधेयक �वधान प�रषद् द्वारा �सफा�रश �कए गए और �वधान सभा द्वारा
स्वीकार �कए गए संशोधन� स�हत दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा ।
(4) य�द �वधान सभा, �वधान प�रषद् क� �कसी भी �सफा�रश को स्वीकार नह�ं
करती है तो धन �वधेयक �वधान प�रषद् द्वारा �सफा�रश �कए गए �कसी संशोधन के
�बना, दोन� सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह �वधान
सभा द्वारा पा�रत �कया गया था ।
भारत का सं�वधान 90
(भाग 6—राज्य)
(5) य�द �वधान सभा द्वारा पा�रत और �वधान प�रषद् को उसक� �सफा�रश� के
�लए पारे �षत धन �वधेयक उक्त चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधान सभा को नह�ं
लौटाया जाता है तो उक्त अव�ध क� समािप्त पर वह दोन� सदन� द्वारा उस रूप म�
पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह �वधान सभा द्वारा पा�रत �कया गया था ।
199. “धन �वधेयक” क� प�रभाषा–(1) इस अध्याय के प्रयोजन� के �लए, कोई
�वधेयक धन �वधेयक समझा जाएगा य�द उसम� केवल �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं
�वषय� से संब�ं धत उपबंध ह�, अथार्त ् :–
(क) �कसी कर का अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या
�व�नयमन ;
(ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभू�त दे ने का
�व�नयमन अथवा राज्य द्वारा अपने ऊपर ल� गई या ल� जाने वाल� �कन्ह�ं
�व�ीय बाध्यताओं से संब�ं धत �व�ध का संशोधन ;
(ङ) �कसी व्यय को राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय घो�षत करना
या ऐसे �कसी व्यय क� रकम को बढ़ाना ;
(च) राज्य क� सं�चत �न�ध या राज्य के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त
करना अथवा ऐसे धन क� अ�भर�ा या उसका �नगर्मन ; या
(3) य�द यह प्रश्न उठता है �क �वधान प�रषद् वाले �कसी राज्य के �वधान-मंडल
म� परु ःस्था�पत कोई �वधेयक धन �वधेयक है या नह�ं तो उस पर उस राज्य क� �वधान
सभा के अध्य� का �व�नश्चय अं�तम होगा ।
भारत का सं�वधान 91
(भाग 6—राज्य)
200. �वधे यक� पर अनुम �त–जब कोई �वधे यक राज्य क� �वधान सभा द्वारा
या �वधान प�रषद् वाले राज्य म� �वधान-मंडल के दोन� सदन� द्वारा पा�रत कर �दया
गया है तब वह राज्यपाल के सम� प्रस्तुत �कया जाएगा और राज्यपाल घो�षत करे गा
�क वह �वधे यक पर अनुम �त दे ता है या अनुम �त रोक लेता है अथवा वह �वधे यक को
राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखता है :
परं तु राज्यपाल अनुम �त के �लए अपने सम� �वधे यक प्रस्तुत �कए जाने के
पश्चात ् यथाशीघ्र उस �वधे यक को, य�द वह धन �वधे यक नह�ं है तो, सदन या सदन�
को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा �क सदन या दोन� सदन �वधे यक पर या उसके
�कन्ह�ं �व�न�दर् ष्ट उपबंध� पर पुन�वर्चार कर� और �व�शष्टतया �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� के
पुरःस्थापन क� वांछनीयता पर �वचार कर� िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क�
है और जब �वधे यक इस प्रकार लौटा �दया जाता है तब सदन या दोन� सदन �वधे यक
पर तदनुसार पुन�वर्चार कर� गे और य�द �वधे यक सदन या सदन� द्वारा संशोधन
स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर �दया जाता है और राज्यपाल के सम�
अनुम �त के �लए प्रस्तुत �कया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुम �त नह�ं रोकेगा :
परं तु यह और �क िजस �वधेयक से, उसके �व�ध बन जाने पर, राज्यपाल क� राय
म� उच्च न्यायालय क� शिक्तय� का ऐसा अल्पीकरण होगा �क वह स्थान, िजसक� प�ू तर्
के �लए वह न्यायालय इस सं�वधान द्वारा प�रकिल्पत है, संकटापन्न हो जाएगा, उस
�वधेयक पर राज्यपाल अनम ु �त नह�ं दे गा, �कं तु उसे राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त
रखेगा ।
201. �वचार के �लए आर��त �वधेयक–जब कोई �वधेयक राज्यपाल द्वारा
राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रख �लया जाता है तब राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क
वह �वधेयक पर अनम ु �त दे ता है या अनम
ु �त रोक लेता है :
परं तु जहां �वधेयक धन �वधेयक नह�ं है वहां राष्ट्रप�त राज्यपाल को यह �नदे श दे
सकेगा �क वह �वधेयक को, यथािस्थ�त, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� को
ऐसे संदेश के साथ, जो अनच् ु छे द 200 के पहले परं तुक म� व�णर्त है, लौटा दे और जब
कोई �वधेयक इस प्रकार लौटा �दया जाता है तब ऐसा संदेश �मलने क� तार�ख से छह
मास क� अव�ध के भीतर सदन या सदन� द्वारा उस पर तदनस ु ार पन
ु �वर्चार �कया
जाएगा और य�द वह सदन या सदन� द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से
पा�रत कर �दया जाता है तो उसे राष्ट्रप�त के सम� उसके �वचार के �लए �फर से
प्रस्तुत �कया जाएगा ।
भारत का सं�वधान 92
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
(3) अनच्
ु छे द 205 और अनच् ु छे द 206 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य क�
सं�चत �न�ध म� से इस अनच्ु छे द के उपबंध� के अनसु ार पा�रत �व�ध द्वारा �कए गए
�व�नयोग के अधीन ह� कोई धन �नकाला जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(भाग 6—राज्य)
(2) ऐसे �कसी �ववरण और व्यय या मांग के संबध ं म� तथा राज्य क� सं�चत
�न�ध म� से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संब�ं धत अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का
�व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� भी,
अनच् ु छे द 202, अनच्
ु छे द 203 और अनच्
ु छे द 204 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे
वा�षर्क �व�ीय �ववरण और उसम� व�णर्त व्यय के संबध ं म� या �कसी अनद ु ान क� �कसी
मांग के संबध ं म� और राज्य क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या अनद ु ान क� प�ू तर् के
�लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म�
प्रभावी ह� ।
(क) �कसी �व�ीय वषर् के भाग के �लए प्राक्क�लत व्यय के संबध ं म� कोई
अनद ु ान, उस अनद ु ान के �लए मतदान करने के �लए अनच् ु छे द 203 म� �व�हत
प्र�क्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध ं म� अनच्
ु छे द 204 के उपबंध� के
अनस ु ार �व�ध के पा�रत होने तक, अ�ग्रम दे ने क� ;
(ख) जब �कसी सेवा क� मह�ा या उसके अ�निश्चत रूप के कारण मांग ऐसे
ब्यौरे के साथ व�णर्त नह�ं क� जा सकती है जो वा�षर्क �व�ीय �ववरण म�
सामान्यतया �दया जाता है तब राज्य के संप�� स्रोत� पर अप्रत्या�शत मांग क� प�ू तर्
के �लए अनद ु ान करने क� ;
(ग) �कसी �व�ीय वषर् क� चालू सेवा का जो अनद
ु ान भाग नह�ं है ऐसा
कोई अपवादानद
ु ान करने क�,
शिक्त होगी और िजन प्रयोजन� के �लए उक्त अनद ु ान �कए गए ह� उनके �लए राज्य क�
सं�चत �न�ध म� से धन �नकालना �व�ध द्वारा प्रा�धकृत करने क� राज्य के �वधान-मंडल
को शिक्त होगी ।
(2) खंड (1) के अधीन �कए जाने वाले �कसी अनद ु ान और उस खंड के अधीन
बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� अनच्
ु छे द 203 और अनच्ु छे द 204 के उपबंध
वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� व�णर्त �कसी व्यय के बारे म� कोई
अनद ु ान करने के संबधं म� और राज्य क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए
धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी
ह� ।
भारत का सं�वधान 95
(भाग 6—राज्य)
∗ सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 35 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) "(िजसके
अन्तगर्त सदन क� बैठक का गठन करने के �लए गणपू�तर् सिम्म�लत है)" शब्द और कोष्ठक से अंतःस्था�पत । इस
संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया
गया ।
भारत का सं�वधान 96
(भाग 6—राज्य)
के संबध
ं म� यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम� आने वाले “पंद्रह वषर्” शब्द� के
स्थान पर “पच्चीस वषर्” शब्द रख �दए गए ह� :]
3
[परं तु यह और �क 4[ 5[अरुणाचल प्रदे श, गोवा और �मजोरम राज्य� के �वधान-
मंडल�]] के संबध ं म� यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम� आने वाले “पंद्रह वषर्”
शब्द� के स्थान पर “चाल�स वषर्” शब्द रख �दए गए ह� ।]
1. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 46 द्वारा (25-1-1971 से ) अंतःस्था�पत ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “�हमाचल प्रदे श
राज्य के �वधान-मंडल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
4. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) “�मजोरम राज्य के
�वधान-मंडल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से)
“अरुणाचल प्रदे श और �मजोरम” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 97
(भाग 6—राज्य)
(भाग 6—राज्य)
(क) राज्य क� �वधान सभा के सम� और �वधान प�रषद् वाले राज्य म�
दोन� सदन� के सम� रखा जाएगा तथा �वधान-मंडल के पन ु : समवेत होने से
छह सप्ताह क� समािप्त पर या य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले �वधान
सभा उसके अननम ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ती है और य�द �वधान प�रषद् है
तो वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथािस्थ�त, संकल्प के पा�रत होने पर या
�वधान प�रषद् द्वारा संकल्प से सहमत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा ; और
(ख) राज्यपाल द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा ।
स्पष्ट�करण–जहां �वधान प�रषद् वाले राज्य के �वधान-मंडल के सदन, �भन्न-
�भन्न तार�ख� को पन ु : समवेत होने के �लए, आहूत �कए जाते ह� वहां इस खंड के
प्रयोजन� के �लए छह सप्ताह क� अव�ध क� गणना उन तार�ख� म� से पश्चात्वत� तार�ख
से क� जाएगी ।
(3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध
करता है जो राज्य के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम म� , िजसे राज्यपाल ने अनम ु �त दे
द� है, अ�ध�नय�मत �कए जाने पर �व�धमान्य नह�ं होता तो और वहां तक वह अध्यादे श
शून्य होगा :
परं तु राज्य के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम के, जो समवत� सच ू ी म� प्रग�णत
�कसी �वषय के बारे म� संसद् के �कसी अ�ध�नयम या �कसी �वद्यमान �व�ध के �वरुद्ध
है, प्रभाव से संब�ं धत इस सं�वधान के उपबंध� के प्रयोजन� के �लए यह है �क कोई
अध्यादे श, जो राष्ट्रप�त के अनद ु े श� के अनसु रण म� इस अनच्ु छे द के अधीन प्रख्या�पत
�कया जाता है, राज्य के �वधान-मंडल का ऐसा अ�ध�नयम समझा जाएगा जो राष्ट्रप�त
के �वचार के �लए आर��त रखा गया था और िजसे उसने अनम ु �त दे द� है ।
1
(4)* * * *
अध्याय 5–राज्य� के उच्च न्यायालय
214. राज्य� के �लए उच्च न्यायालय– 2*** प्रत्येक राज्य के �लए एक उच्च
न्यायालय होगा ।
51
3
(2)* * * *
3
(3)* * * *
215. उच्च न्यायालय� का अ�भलेख न्यायालय होना–प्रत्येक उच्च न्यायालय
अ�भलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त स�हत
ऐसे न्यायालय क� सभी शिक्तयां ह�गी ।
1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (4) अंतःस्था�पत
�कया गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 27 द्वारा (20-6-1979 से) लोप
�कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) कोष्ठक और अंक
“(1)” का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) और
खंड (3) का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 99
(भाग 6—राज्य)
दशा म� अनच् ु छे द 224 म� उपबं�धत रूप म� पद धारण करे गा और �कसी अन्य दशा म�
तब तक पद धारण करे गा जब तक वह 4[बासठ वषर्] क� आयु प्राप्त नह�ं कर लेता है :]]
परं त–ु
(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख
द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) �कसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के
�लए अनच् ु छे द 124 के खंड (4) म� उपबं�धत र��त से उसके पद से राष्ट्रप�त
द्वारा हटाया जा सकेगा ;
(ग) �कसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रप�त द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का
न्यायाधीश �नयक्
ु त �कए जाने पर या राष्ट्रप�त द्वारा उसे भारत के राज्य�ेत्र म�
�कसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंत�रत �कए जाने पर �रक्त हो जाएगा ।
(2) कोई व्यिक्त, �कसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� �नयिु क्त के
�लए तभी अ�हर्त होगा जब वह भारत का नाग�रक है और–
(क) भारत के राज्य�ेत्र म� कम से कम दस वषर् तक न्या�यक पद धारण
कर चक
ु ा है ; या
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 11 द्वारा (1-11-1956 से) परन्तुक का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 6 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य न्यायमू�तर्
से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न �कसी न्यायाधीश क� �नयुिक्त क� दशा म� उस उच्च
न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् से परामशर् करने के पश्चात ्, राष्ट्रप�त” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन
सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म�
उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 12 द्वारा (1-11-1956 से) “तब तक पद धारण करे गा जब
तक �क वह साठ वषर् क� आयु प्राप्त न कर ले” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 4(क) द्वारा (5-10-1963 से) “साठ वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 100
(भाग 6—राज्य)
(ख) �कसी *** उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अ�धक न्यायालय� का
1
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य म� के” शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) शब्द “या” और उपखंड (ग)
अंतःस्था�पत �कए गए और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 28 द्वारा (20-6-1979
से) उनका लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को खंड (कक) के
रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया ।
5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) “न्या�यक पद धारण �कया
हो” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 4(ख) द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 101
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “�कसी राज्य म� ”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 13 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
3. 1 नवम्बर, 1956 ।
4. सं�वधान (चौवनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 102
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 7 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य न्यायमू�तर्
से परामशर् करने के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर्
एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-
10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 14 द्वारा (1-11-1956 से) “भारत के राज्य�ेत्र म� के”
शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । सं�वधान (सातवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 14 द्वारा (1-11-1956 से) मूल खंड (2) का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 15 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 224 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तो राष्ट्रप�त सम्यक् रूप
से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम
भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 103
(भाग 6—राज्य)
अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कतर्व्य� का पालन करने म�
असमथर् है या मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� अस्थायी रूप से कायर् करने के �लए �नयक् ु त
�कया जाता है 1[तो राष्ट्रप�त, राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग के परामशर् से, सम्यक्
रूप से] अ�हर्त �कसी व्यिक्त को तब तक के �लए उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म�
कायर् करने के �लए �नयक् ु त कर सकेगा जब तक स्थायी न्यायाधीश अपने कतर्व्य� को
�फर से नह�ं संभाल लेता है ।
(3) उच्च न्यायालय के अपर या कायर्कार� न्यायाधीश के रूप म� �नयक् ु त कोई
व्यिक्त 2[बासठ वषर्] क� आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात ् पद धारण नह�ं करे गा ।
3
[224क. उच्च न्यायालय� क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� �नयिु क्त–इस
अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, 4[राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग �कसी राज्य
के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् द्वारा उसे �कए गए �कसी �नद� श पर, राष्ट्रप�त
क� पव ू र् सहम�त से,] �कसी व्यिक्त से, जो उस उच्च न्यायालय या �कसी अन्य उच्च
न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है, उस राज्य के उच्च न्यायालय के
न्यायाधीश के रूप म� बैठने और कायर् करने का अनरु ोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा
व्यिक्त, िजससे इस प्रकार अनरु ोध �कया जाता है, इस प्रकार बैठने और कायर् करने के
दौरान ऐसे भ�� का हकदार होगा जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अवधा�रत करे और उसको
उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश क� सभी अ�धका�रता, शिक्तयां और �वशेषा�धकार
ह�गे, �कं तु उसे अन्यथा उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नह�ं समझा जाएगा :
परं तु जब तक यथापव ू �क्त व्यिक्त उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म�
बैठने और कायर् करने क� सहम�त नह�ं दे दे ता है तब तक इस अनच् ु छे द क� कोई बात
उससे ऐसा करने क� अपे�ा करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।]
225. �वद्यमान उच्च न्यायालय� क� अ�धका�रता–इस सं�वधान के उपबंध� के
अधीन रहते हुए और इस सं�वधान द्वारा समु�चत �वधान-मंडल को प्रद� शिक्तय� के
आधार पर उस �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, �कसी �वद्यमान उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता और उसम� प्रशा�सत �व�ध तथा
उस न्यायालय म� न्याय प्रशासन के संबध ं म� उसके न्यायाधीश� क� अपनी-अपनी
शिक्तयां, िजनके अंतगर्त न्यायालय के �नयम बनाने क� शिक्त तथा उस न्यायालय और
उसके सदस्य� क� बैठक� का चाहे वे अकेले बैठ� या खंड न्यायालय� म� बैठ� �व�नयमन
करने क� शिक्त है, वह� ह�गी जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले थीं :
1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तब राष्ट्रप�त सम्यक् रूप
से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम
भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा
अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
2. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 6 द्वारा (5-10-1963 से) “साठ वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 7 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 9 द्वारा (13-4-2015 से) “�कसी राज्य के उच्च
न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर्, �कसी भी समय, राष्ट्रप�त क� पूवर् सहम�त से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह
संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी.
117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है ।
भारत का सं�वधान 104
(भाग 6—राज्य)
1
[परं तु राजस्व संबध
ं ी अथवा उसका संग्रहण करने म� आ�दष्ट या �कए गए �कसी
कायर् संबधं ी �वषय क� बाबत उच्च न्यायालय� म� से �कसी क� आरं �भक अ�धका�रता का
प्रयोग, इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले, िजस �कसी �नब�धन के अधीन था वह
�नब�धन ऐसी अ�धका�रता के प्रयोग को ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् लागू नह�ं होगा ।]
2
[226. कुछ �रट �नकालने क� उच्च न्यायालय क� शिक्त – (1) अनच् ु छे द 32 म�
�कसी बात के होते हुए भी 3*** प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्य�ेत्र� म� सवर्त्र,
िजनके संबध ं म� वह अपनी अ�धका�रता का प्रयोग करता है, 3[भाग 3 द्वारा प्रद�
अ�धकार� म� से �कसी को प्रव�तर्त कराने के �लए और �कसी अन्य प्रयोजन के �लए] उन
राज्य�ेत्र� के भीतर �कसी व्यिक्त या प्रा�धकार� को या समु�चत मामल� म� �कसी सरकार
को ऐसे �नदे श, आदे श या �रट िजनके अंतगर्त 4[बंद� प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध,
78
[(3) जहां कोई प�कार, िजसके �वरुद्ध खंड (1) के अधीन �कसी या�चका पर
5
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 37 द्वारा (1-2-1977 से) लोप �कया गया और
तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 29 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से) अनुच्छे द 226 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) “�कं तु अनुच्छे द 131क और
अनुच्छे द 226क के उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द�, अंक� और अ�र� का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) “िजनके अंतगर्त बंद�
प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार-पच्
ृ छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी ह� अथवा उनम� से �कसी को”
से आरं भ होकर “न्याय क� सारवान ् �नष्फलता हुई है, �कसी ��त के प्र�ततोष के �लए” के साथ समाप्त होने वाले
भाग के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5)
और खंड (6) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 105
(भाग 6—राज्य)
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4) के
रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 39 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 31 द्वारा (20-6-1979
से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 106
(भाग 6—राज्य)
परं तु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई �नयम, �व�हत �कए गए
कोई प्ररूप या िस्थर क� गई कोई सारणी तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के उपबंध से
असंगत नह�ं होगी और इनके �लए राज्यपाल के पव ू र् अनम
ु ोदन क� अपे�ा होगी ।
(4) इस अनच् ु छे द क� कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बल� से संब�ं धत
�कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन ग�ठत �कसी न्यायालय या अ�धकरण पर अधी�ण
क� शिक्तयां दे ने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।
83 (5)*
1
* * *
228. कुछ मामल� का उच्च न्यायालय को अंतरण–य�द उच्च न्यायालय का यह
समाधान हो जाता है �क उसके अधीनस्थ �कसी न्यायालय म� लं�बत �कसी मामले म�
इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत है िजसका
अवधारण मामले के �नपटारे के �लए आवश्यक है 2[तो वह 3***उस मामले को अपने पास
मंगा लेगा और–]
(क) मामले को स्वयं �नपटा सकेगा, या
(ख) उक्त �व�ध के प्रश्न का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को
ऐसे प्रश्न पर �नणर्य क� प्र�त�ल�प स�हत उस न्यायालय को, िजससे मामला इस
प्रकार मंगा �लया गया है, लौटा सकेगा और उक्त न्यायालय उसके प्राप्त होने पर
उस मामले को ऐसे �नणर्य के अनरू ु प �नपटाने के �लए आगे कायर्वाह� करे गा ।
4
[228क. राज्य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के �नपटारे के
बारे म� �वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 10
द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया ।
229. उच्च न्यायालय� के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय–(1) �कसी उच्च
न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� �नयिु क्तयां उस न्यायालय का मख्
ु य न्यायम�ू तर्
करे गा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� करे गा िजसे वह �न�दष्ट
करे :
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंतःस्था�पत �कया
गया और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप
�कया गया ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 41 द्वारा (1-2-1977 से) “तो वह उस मामले को
अपने पास मंगा लेगा तथा--” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द 131क के उपबंध�
के अधीन रहते हुए” शब्द�, अंक� और अ�र का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 107
(भाग 6—राज्य)
परं तु उस राज्य का राज्यपाल 1*** �नयम द्वारा यह अपे�ा कर सकेगा �क ऐसी
�कन्ह�ं दशाओं म� जो �नयम म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �कसी ऐसे व्यिक्त को, जो पहले से
ह� न्यायालय से संलग्न नह�ं है, न्यायालय से संब�ं धत �कसी पद पर राज्य लोक सेवा
आयोग से परामशर् करके ह� �नयक् ु त �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(2) राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
उच्च न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� सेवा क� शत� ऐसी ह�गी जो उस
न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अ�धकार�
द्वारा, िजसे मुख्य न्यायमू�तर् ने इस प्रयोजन के �लए �नयम बनाने के �लए प्रा�धकृत
�कया है, बनाए गए �नयम� द्वारा �व�हत क� जाएं :
परं तु इस खंड के अधीन बनाए गए �नयम� के �लए, जहां तक वे वेतन�, भ��,
छुट्ट� या प� शन� से संब�ं धत ह�, उस राज्य के राज्यपाल के 1*** अनम
ु ोदन क� अपे�ा
होगी ।
(3) उच्च न्यायालय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अंतगर्त उस न्यायालय के
अ�धका�रय� और सेवक� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और प� शन ह�,
राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे और उस न्यायालय द्वारा ल� गई फ�स� और
अन्य धनरा�शयां उस �न�ध का भाग ह�गी ।
[230. उच्च न्यायालय� क� अ�धका�रता का संघ राज्य�ेत्र� पर �वस्तार–(1) संसद्,
2
�व�ध द्वारा, �कसी संघ राज्य�ेत्र पर �कसी उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता का �वस्तार
कर सकेगी या �कसी संघ राज्य�ेत्र से �कसी उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता का
अपवजर्न कर सकेगी ।
(2) जहां �कसी राज्य का उच्च न्यायालय �कसी संघ राज्य�ेत्र के संबध
ं म�
अ�धका�रता का प्रयोग करता है, वहां–
(क) इस सं�वधान क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह
उस राज्य के �वधान-मंडल को उस अ�धका�रता म� वद् ृ �ध, उसका �नब�धन या
उत्सादन करने के �लए सशक्त करती है ; और
(ख) उस राज्य�ेत्र म� अधीनस्थ न्यायालय� के �लए �कन्ह�ं �नयम�, प्ररूप�
या सार�णय� के संबधं म� , अनच्
ु छे द 227 म� राज्यपाल के प्र�त �नद� श का, यह
अथर् लगाया जाएगा �क वह राष्ट्रप�त के प्र�त �नद� श है ।
231. दो या अ�धक राज्य� के �लए एक ह� उच्च न्यायालय क� स्थापना–(1) इस
अध्याय के पव
ू व
र् त� उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद्, �व�ध द्वारा, दो या
अ�धक राज्य� के �लए अथवा दो या अ�धक राज्य� और �कसी संघ राज्य�ेत्र के �लए
एक ह� उच्च न्यायालय स्था�पत कर सकेगी ।
(2) �कसी ऐसे उच्च न्यायालय के संबध
ं म� ,–
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “िजसम� उच्च
न्यायालय का मुख्य स्थान है,” शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 16 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 230, 231 और 232
के स्थान पर अनुच्छे द 230 और 231 प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 108
(भाग 6—राज्य)
1
(क) * * * *
(ग) अनच्
ु छे द 219 और अनच्
ु छे द 229 म� राज्य के प्र�त �नद� श� का यह
अथर् लगाया जाएगा �क वे उस राज्य के प्र�त �नद� श ह�, िजसम� उस उच्च
न्यायालय का मख्
ु य स्थान है :
1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 10 द्वारा (13-4-2015 से) खंड (क) का लोप �कया
गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ (ए.आई.आर.
2016 एस.सी. 117) वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर
�दया गया है । संशोधन के पूवर् खंड (क) �नम्नानुसार था :--
“(क) अनुच्छे द 217 म� उस राज्य के राज्यपाल के प्र�त �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह उन सभी
राज्य� के राज्यपाल� के प्र�त �नद� श है िजनके संबंध म� वह उच्च न्यायालय अ�धका�रता का प्रयोग करता है ;”
भारत का सं�वधान 109
(भाग 6—राज्य)
1
[233क. कुछ िजला न्यायाधीश� क� �नयिु क्तय� का और उनके द्वारा �कए गए
�नणर्य� आ�द का �व�धमान्यकरण–�कसी न्यायालय का कोई �नणर्य, �डक्र� या आदे श होते
हुए भी, –
(क) (i) उस व्यिक्त क� जो राज्य क� न्या�यक सेवा म� पहले से ह� है या
उस व्यिक्त क�, जो कम से कम सात वषर् तक अ�धवक्ता या प्ल�डर रहा है, उस
राज्य म� िजला न्यायाधीश के रूप म� �नयिु क्त क� बाबत, और
(ii) ऐसे व्यिक्त क� िजला न्यायाधीश के रूप म� पदस्थापना, प्रोन्न�त या
अंतरण क� बाबत,
जो सं�वधान (बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 के प्रारं भ से पहले �कसी समय
अनच् ु छे द 233 या अनच् ु छे द 235 के उपबंध� के अनस ु ार न करके अन्यथा �कया
गया है, केवल इस तथ्य के कारण �क ऐसी �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या
अंतरण उक्त उपबंध� के अनस ु ार नह�ं �कया गया था, यह नह�ं समझा जाएगा �क
वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था ;
(ख) �कसी राज्य म� िजला न्यायाधीश के रूप म� अनच् ु छे द 233 या
अनच् ु छे द 235 के उपबंध� के अनस ु ार न करके अन्यथा �नयक् ु त, पदस्था�पत,
प्रोन्नत या अंत�रत �कसी व्यिक्त द्वारा या उसके सम� सं�वधान (बीसवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 के प्रारं भ से पहले प्रयक् ु त अ�धका�रता क�, पा�रत
�कए गए या �दए गए �नणर्य, �डक्र�, दं डादे श या आदे श क� और �कए गए अन्य
कायर् या कायर्वाह� क� बाबत, केवल इस तथ्य के कारण �क ऐसी �नयिु क्त,
पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण उक्त उपबंध� के अनस ु ार नह�ं �कया गया था,
यह नह�ं समझा जाएगा �क वह अवैध या अ�व�धमान्य है या कभी भी अवैध या
अ�व�धमान्य रहा था ।]
234. न्या�यक सेवा म� िजला न्यायाधीश� से �भन्न व्यिक्तय� क� भत�–िजला
न्यायाधीश� से �भन्न व्यिक्तय� क� �कसी राज्य क� न्या�यक सेवा म� �नयिु क्त उस राज्य
के राज्यपाल द्वारा, राज्य लोक सेवा आयोग से और ऐसे राज्य के संबध ं म� अ�धका�रता
का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामशर् करने के पश्चात ्, और राज्यपाल द्वारा
इस �न�म� बनाए गए �नयम� के अनस ु ार क� जाएगी ।
235. अधीनस्थ न्यायालय� पर �नयंत्रण–िजला न्यायालय� और उनके अधीनस्थ
न्यायालय� का �नयंत्रण, िजसके अंतगर्त राज्य क� न्या�यक सेवा के व्यिक्तय� और िजला
न्यायाधीश के पद से अवर �कसी पद को धारण करने वाले व्यिक्तय� क� पदस्थापना,
प्रोन्न�त और उनको छुट्ट� दे ना है, उच्च न्यायालय म� �न�हत होगा, �कं तु इस अनच् ु छे द
क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसे �कसी व्यिक्त से उसके
अपील के अ�धकार को छ�नती है जो उसक� सेवा क� शत� का �व�नयमन करने वाल�
�व�ध के अधीन उसे है या उच्च न्यायालय को इस बात के �लए प्रा�धकृत करती है �क
वह उससे ऐसी �व�ध के अधीन �व�हत उसक� सेवा क� शत� के अनस ु ार व्यवहार न करके
अन्यथा व्यवहार करे ।
1. सं�वधान (बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 2 द्वारा (22-12-1966 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 110
(भाग 6—राज्य)
236. �नवर्चन–इस अध्याय म� , –
(क) “िजला न्यायाधीश” पद के अंतगर्त नगर �स�वल न्यायालय का
न्यायाधीश, अपर िजला न्यायाधीश, संयक् ु त िजला न्यायाधीश, सहायक िजला
न्यायाधीश, लघव ु ाद न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रे�सड�सी मिजस्ट्रे ट,
अपर मुख्य प्रे�सड�सी मिजस्ट्रे ट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और
सहायक सेशन न्यायाधीश ह� ;
(ख) “न्या�यक सेवा” पद से ऐसी सेवा अ�भप्रेत है जो अनन्यतः ऐसे
व्यिक्तय� से �मलकर बनी है, िजनके द्वारा िजला न्यायाधीश के पद का और
िजला न्यायाधीश के पद से अवर अन्य �स�वल न्या�यक पद� का भरा जाना
आश�यत है ।
237. कुछ वगर् या वग� के मिजस्ट्रे ट� पर इस अध्याय के उपबंध� का लागू होना–
राज्यपाल, लोक अ�धसूचना द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क इस अध्याय के पव ू ग
र् ामी उपबंध
और उनके अधीन बनाए गए �नयम ऐसी तार�ख से, जो वह इस �न�म� �नयत करे , ऐसे
अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, जो ऐसी अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट �कए
जाएं, राज्य म� �कसी वगर् या वग� के मिजस्ट्रे ट� के संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे
राज्य क� न्या�यक सेवा म� �नयक्
ु त व्यिक्तय� के संबध ं म� लागू होते ह� ।
∗
भाग 7
[पहल� अनस
ु ूची के भाग ख के राज्य ।]
∗ सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप
�कया गया ।
111
भाग 8
1
[संघ राज्य�ेत्र]
2
[239. संघ राज्य�ेत्र� का प्रशासन–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा यथा
अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक संघ राज्य�ेत्र का प्रशासन राष्ट्रप�त द्वारा �कया
जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे पदा�भधान स�हत, जो वह �व�न�दर्ष्ट करे , �नयक् ु त
�कए गए प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कायर् करे गा िजतनी वह ठ�क समझता
है ।
(2) भाग 6 म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त �कसी राज्य के राज्यपाल को
�कसी �नकटवत� संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक �नयक् ु त कर सकेगा और जहां कोई राज्यपाल
इस प्रकार �नयक्
ु त �कया जाता है वहां वह ऐसे प्रशासक के रूप म� अपने कृत्य� का
प्रयोग अपनी मं�त्र-प�रषद् से स्वतंत्र रूप से करे गा ।
[239क. कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए स्थानीय �वधान-मंडल� या मं�त्र-प�रषद� का
3
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग ग म�
के राज्य” शीषर्क के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 239 और अनुच्छे द
240 के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 4 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत ।
4. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “गोवा,
दमण और द�व और पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र� म� से �कसी के �लए” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
∗ अनुच्छे द 239क जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 13 द्वारा (31-10-2019 से)
जम्मू-कश्मीर संघ राज्य�ेत्र को लागू �कया गया है ।
112
113
भारत का सं�वधान
(भाग 8—संघ राज्य�ेत्र)
1
ं म� �वशेष उपबंध–(1) सं�वधान (उनह�रवां संशोधन)
[239कक. �दल्ल� के संबध
अ�ध�नयम, 1991 के प्रारं भ से �दल्ल� संघ राज्य�ेत्र को �दल्ल� राष्ट्र�य राजधानी
राज्य�ेत्र (िजसे इस भाग म� इसके पश्चात ् राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र कहा गया है) कहा
जाएगा और अनच्
ु छे द 239 के अधीन �नयक्
ु त उसके प्रशासक का पदा�भधान उप-
राज्यपाल होगा ।
(ग) अनच्
ु छे द 324 से अनच्
ु छे द 327 और अनच्
ु छे द 329 के उपबंध राष्ट्र�य
राजधानी राज्य�ेत्र, राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र क� �वधान सभा और उसके सदस्य� के
संबध
ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे, �कसी राज्य, �कसी राज्य क� �वधान सभा और उसके
सदस्य� के संबध
ं म� लागू होते ह� तथा अनच्
ु छे द 326 और अनच्
ु छे द 329 म� “समु�चत
�वधान-मंडल” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह संसद् के प्र�त �नद� श
है ।
(ख) उपखंड (क) क� �कसी बात से संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए
�कसी भी �वषय के संबध
ं म� इस सं�वधान के अधीन �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त
का अल्पीकरण नह�ं होगा ।
1. सं�वधान (उनहतरवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1991 क� धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतःस्था�पत ।
114
भारत का सं�वधान
(भाग 8—संघ राज्य�ेत्र)
(ग) य�द �वधान सभा द्वारा �कसी �वषय के संबध ं म� बनाई गई �व�ध का कोई
उपबंध संसद् द्वारा उस �वषय के संबध ं म� बनाई गई �व�ध के, चाहे वह �वधान सभा
द्वारा बनाई गई �व�ध से पहले या उसके बाद म� पा�रत क� गई हो, या �कसी पव ू त
र् र
�व�ध के, जो �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध से �भन्न है, �कसी उपबंध के �वरुद्ध
है तो, दोन� दशाओं म� , यथािस्थ�त, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध, या ऐसी पव
ू त
र् र �व�ध
अ�भभावी होगी और �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध उस �वरोध क� मात्रा तक शून्य
होगी :
परं तु य�द �वधान सभा द्वारा बनाई गई �कसी ऐसी �व�ध को राष्ट्रप�त के �वचार
के �लए आर��त रखा गया है और उस पर उसक� अनम ु �त �मल गई है तो ऐसी �व�ध
राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र म� अ�भभावी होगी :
परं तु यह और �क इस उपखंड क� कोई बात संसद् को उसी �वषय के संबधं म� कोई
�व�ध, िजसके अंतगर्त ऐसी �व�ध है जो �वधान सभा द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध का
प�रवधर्न, संशोधन, प�रवतर्न या �नरसन करती है, �कसी भी समय अ�ध�नय�मत करने से
�नवा�रत नह�ं करे गी ।
(4) िजन बात� म� �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन उप-राज्यपाल से यह
अपे��त है �क वह अपने �ववेकानस ु ार कायर् करे उन बात� को छोड़कर, उप-राज्यपाल क�,
उन �वषय� के संबध ं म� , िजनक� बाबत �वधान सभा को �व�ध बनाने क� शिक्त है, अपने
कृत्य� का प्रयोग करने म� सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी जो
�वधान सभा क� कुल सदस्य संख्या के दस प्र�तशत से अन�धक सदस्य� से �मलकर
बनेगी, िजसका प्रधान, मख्ु यमंत्री होगा :
परं तु उप-राज्यपाल और उसके मं�त्रय� के बीच �कसी �वषय पर मतभेद क� दशा
म� , उप-राज्यपाल उसे राष्ट्रप�त को �व�नश्चय के �लए �नद� �शत करे गा और राष्ट्रप�त
द्वारा उस पर �कए गए �व�नश्चय के अनस ु ार कायर् करे गा तथा ऐसा �व�नश्चय होने तक
उप-राज्यपाल �कसी ऐसे मामले म� , जहां वह �वषय, उसक� राय म� , इतना आवश्यक है
िजसके कारण तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक है वहां, उस �वषय म� ऐसी
कारर्वाई करने या ऐसा �नदे श दे ने के �लए, जो वह आवश्यक समझे, स�म होगा ।
(5) मख्
ु यमंत्री क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त करे गा और अन्य मं�त्रय� क� �नयिु क्त
राष्ट्रप�त, मख्
ु यमं त्री क� सलाह पर करे गा तथा मंत्री, राष्ट्रप�त के प्रसादपयर्न्त अपने पद
धारण कर� गे ।
(6) मं�त्र-प�रषद् �वधान सभा के प्र�त सामू�हक रूप से उ�रदायी होगी ।
115
भारत का सं�वधान
(भाग 8—संघ राज्य�ेत्र)
[(7)(क)] संसद्, पव
1
ू ग
र् ामी खंड� को प्रभावी करने के �लए, या उनम� अंत�वर्ष्ट
उपबंध� क� अनप ु �ू तर् के �लए और उनके आनष ु �ं गक या पा�रणा�मक सभी �वषय� के �लए,
�व�ध द्वारा, उपबंध कर सकेगी ।
2
[(ख) उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �व�ध को, अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस
सं�वधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नह�ं समझा जाएगा �क उसम� कोई ऐसा
उपबंध अंत�वर्ष्ट है जो इस सं�वधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव
रखता है ।]
(8) अनच्ु छे द 239ख के उपबंध, जहां तक हो सके, राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र,
उप-राज्यपाल और �वधान सभा के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे 3[पड ु ु चेर�] संघ
राज्य�ेत्र, प्रशासक और उसके �वधान-मंडल के संबध ं म� लागू होते ह� ; और उस
अनच्ु छे द म� “अनच्ु छे द 239क के खंड (1)” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा
�क वह, यथािस्थ�त, इस अनच् ु छे द या अनच्
ु छे द 239कख के प्र�त �नद� श है ।
239कख. सां�वधा�नक तंत्र के �वफल हो जाने क� दशा म� उपबंध–य�द राष्ट्रप�त
का, उप-राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है �क,–
(क) ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजसम� राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र का
प्रशासन अनच्
ु छे द 239कक या उस अनच् ु छे द के अनसु रण म� बनाई गई �कसी
�व�ध के उपबंध� के अनसु ार नह�ं चलाया जा सकता है ; या
(ख) राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र के उ�चत प्रशासन के �लए ऐसा करना
आवश्यक या समीचीन है,
तो राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, अनच्ु छे द 239कक के �कसी उपबंध के अथवा उस अनच् ु छे द
के अनस ु रण म� बनाई गई �कसी �व�ध के सभी या �कन्ह�ं उपबंध� के प्रवतर्न को, ऐसी
अव�ध के �लए और ऐसी शत� के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं,
�नलं�बत कर सकेगा, तथा ऐसे आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध कर सकेगा जो
अनच्ु छे द 239 और अनच् ु छे द 239कक के उपबंध� के अनस ु ार राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र
के प्रशासन के �लए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत ह� ।]
1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) “(7)” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतःस्था�पत ।
3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
116
भारत का सं�वधान
(भाग 8—संघ राज्य�ेत्र)
1
[239ख. �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क�
प्रशासक क� शिक्त–(1) उस समय को छोड़कर जब 2[ 3[पुडुचेर�] संघ राज्य�ेत्र] का
�वधान-मंडल सत्र म� है , य�द �कसी समय उसके प्रशासक का यह समाधान हो जाता है
�क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण तुरन्त कारर् वाई करना उसके �लए
आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत कर सकेगा जो उसे उन
प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� :
परं तु प्रशासक, कोई ऐसा अध्यादे श राष्ट्रप�त से इस �न�म� अनद
ु े श अ�भप्राप्त
करने के पश्चात ् ह� प्रख्या�पत करे गा, अन्यथा नह�ं :
परं तु यह और �क जब कभी उक्त �वधान-मंडल का �वघटन कर �दया जाता है या
अनच्ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध के अधीन क� गई �कसी कारर्वाई के कारण
उसका कायर्करण �नलं�बत रहता है तब प्रशासक ऐसे �वघटन या �नलंबन क� अव�ध के
दौरान कोई अध्यादे श प्रख्या�पत नह�ं करे गा ।
(2) राष्ट्रप�त के अनद ु े श� के अनस
ु रण म� इस अनच्
ु छे द के अधीन प्रख्या�पत
अध्यादे श संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल का ऐसा अ�ध�नयम समझा जाएगा जो अनच् ु छे द
239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध म� , उस �न�म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� का अनप ु ालन
करने के पश्चात ् सम्यक् रूप से अ�ध�नय�मत �कया गया है, �कं तु प्रत्येक ऐसा
अध्यादे श—
(क) संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा और �वधान-
मंडल के पन ु ः समवेत होने से छह सप्ताह क� समािप्त पर या य�द उस अव�ध
क� समािप्त से पहले �वधान-मंडल उसके अननम ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ता
है तो संकल्प के पा�रत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा ; और
(ख) राष्ट्रप�त से इस �न�म� अनद
ु े श अ�भप्राप्त करने के पश्चात ् प्रशासक
द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा ।
(3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता
है जो संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम म� , िजसे अनच् ु छे द 239क के खंड
(1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध म� इस �न�म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� का अनप ु ालन करने के पश्चात ्
बनाया गया है, अ�ध�नय�मत �कए जाने पर �व�धमान्य नह�ं होता तो और वहां तक वह
अध्यादे श शून्य होगा ।]
4
(4)* * * *
1. सं�वधान (सताईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतःस्था�पत ।
2. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अनुच्छे द
239क के खंड (1) म� �न�दर् ष्ट संघ राज्य�ेत्र�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (भूतल�ी रूप से) अंतःस्था�पत और सं�वधान
(चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 32 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया ।
117
भारत का सं�वधान
(भाग 8—संघ राज्य�ेत्र)
1. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 4 द्वारा
(1-11-1973 से) प्र�विष्ट (ख) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 4(i) द्वारा (26-1-2020 से) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क�
धारा 3 द्वारा (26-1-2020 से) प्र�विष्ट ग अंतःस्था�पत क� गई थी ।
3. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 4(iii) द्वारा लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्था�पत ।
5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
6. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�विष्ट
(च) का लोप �कया गया ।
7. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) अरुणाचल प्रदे श
संबंधी प्र�विष्ट (छ) का लोप �कया गया ।
8. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत ।
9. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “गोवा, दमण और द�व या
पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
118
भारत का सं�वधान
(भाग 8—संघ राज्य�ेत्र)
1
[परं तु यह और �क जब कभी 2[पड ु ु चेर�]] संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के रूप
म� कायर् करने वाले �नकाय का �वघटन कर �दया जाता है या उस �नकाय का ऐसे
�वधान-मंडल के रूप म� कायर्करण, अनच् ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध के
अधीन क� गई कारर्वाई के कारण �नलं�बत रहता है तब राष्ट्रप�त ऐसे �वघटन या
�नलंबन क� अव�ध के दौरान उस संघ राज्य�ेत्र क� शां�त, प्रग�त और सश ु ासन के �लए
�व�नयम बना सकेगा ।]
(2) इस प्रकार बनाया गया कोई �व�नयम संसद् द्वारा बनाए गए �कसी
अ�ध�नयम या 3[�कसी अन्य �व�ध] का, जो उस संघ राज्य�ेत्र को तत्समय लागू है,
�नरसन या संशोधन कर सकेगा और राष्ट्रप�त द्वारा प्रख्या�पत �कए जाने पर उसका
वह� बल और प्रभाव होगा जो संसद् के �कसी ऐसे अ�ध�नयम का है जो उस राज्य�ेत्र
को लागू होता है ।]
241. संघ राज्य�ेत्र� के �लए उच्च न्यायालय–(1) संसद् �व�ध द्वारा, �कसी
4
[संघ राज्य�ेत्र] के �लए उच्च न्यायालय ग�ठत कर सकेगी या 5[ऐसे राज्य�ेत्र] म� �कसी
न्यायालय को इस सं�वधान के सभी या �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए उच्च न्यायालय घो�षत
कर सकेगी ।
(2) भाग 6 के अध्याय 5 के उपबंध, ऐसे उपांतरण� या अपवाद� के अधीन रहते
हुए, जो संसद् �व�ध द्वारा उपबं�धत करे , खंड (1) म� �न�दर्ष्ट प्रत्येक उच्च न्यायालय के
संबधं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे अनच्ु छे द 214 म� �न�दर्ष्ट �कसी उच्च न्यायालय के
संबध ं म� लागू होते ह� ।
6
[(3) इस सं�वधान के उपबंध� के और इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन
समु�चत �वधान-मंडल को प्रद� शिक्तय� के आधार पर बनाई गई उस �वधान-मंडल क�
�कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो सं�वधान (सातवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म�
अ�धका�रता का प्रयोग करता था, ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् उस राज्य�ेत्र के संबध ं म� उस
अ�धका�रता का प्रयोग करता रहे गा ।
(4) इस अनच् ु छे द क� �कसी बात से �कसी राज्य के उच्च न्यायालय क�
अ�धका�रता का �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके भाग पर �वस्तार करने या उससे अपवजर्न
करने क� संसद् क� शिक्त का अल्पीकरण नह�ं होगा ।]
242. [कोड़गू ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और
अनस ु च
ू ी द्वारा लोप �कया गया ।
1. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत ।
2. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “�कसी �वद्यमान �व�ध”
शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग ग म� �व�न�दर् ष्ट राज्य” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसा राज्य”
शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (3) और
खंड (4) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
1
[भाग 9
पंचायत
243. प�रभाषाएं–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,–
(क) “िजला” से �कसी राज्य का िजला अ�भप्रेत है ;
(ख) “ग्राम सभा” से ग्राम स्तर पर पंचायत के �ेत्र के भीतर समा�वष्ट
�कसी ग्राम से संब�ं धत �नवार्चक नामावल� म� रिजस्ट्र�कृत व्यिक्तय� से �मलकर
बना �नकाय अ�भप्रेत है ;
(ग) “मध्यवत� स्तर” से ग्राम और िजला स्तर� के बीच का ऐसा स्तर
अ�भप्रेत है िजसे �कसी राज्य का राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजन� के �लए, लोक
अ�धसच ू ना द्वारा, मध्यवत� स्तर के रूप म� �व�न�दर्ष्ट करे ;
(घ) “पंचायत” से ग्रामीण �ेत्र� के �लए अनच्
ु छे द 243ख के अधीन ग�ठत
स्वाय� शासन क� कोई संस्था (चाहे वह �कसी भी नाम से �ात हो) अ�भप्रेत है ;
(ङ) “पंचायत �ेत्र” से पंचायत का प्रादे �शक �ेत्र अ�भप्रेत है ;
(च) “जनसंख्या” से ऐसी अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म� अ�भ�निश्चत क�
गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस
ु ग
ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� ;
(छ) “ग्राम” से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजन� के �लए, लोक
अ�धसूचना द्वारा, ग्राम के रूप म� �व�न�दर्ष्ट ग्राम अ�भप्रेत है और इसके अंतगर्त
इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट ग्राम� का समह
ू भी है ।
243क. ग्राम सभा–ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शिक्तय� का प्रयोग और ऐसे
कृत्य� का पालन कर सकेगी, जो �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा,
उपबं�धत �कए जाएं ।
243ख. पंचायत� का गठन–(1) प्रत्येक राज्य म� ग्राम, मध्यवत� और िजला स्तर
पर इस भाग के उपबंध� के अनस
ु ार पंचायत� का गठन �कया जाएगा ।
(2) खंड (1) म� �कसी बात के होते हुए भी, मध्यवत� स्तर पर पंचायत का उस
राज्य म� गठन नह�ं �कया जा सकेगा िजसक� जनसंख्या बीस लाख से अन�धक है ।
243ग. पंचायत� क� संरचना–(1) इस भाग के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी
राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, पंचायत� क� संरचना क� बाबत उपबंध कर सकेगा :
1. सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (24-4-1993 से) अंतःस्था�पत । सं�वधान
(सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) मूल भाग 9 का लोप
�कया गया था ।
119
भारत का सं�वधान 120
(भाग 9—पंचायत)
परं तु �कसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादे �शक �ेत्र क� जनसंख्या का ऐसी पंचायत
म� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म�
यथासाध्य एक ह� हो ।
(2) �कसी पंचायत के सभी स्थान, पंचायत �ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से
प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े हुए व्यिक्तय� से भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के �लए,
प्रत्येक पंचायत �ेत्र को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत �कया जाएगा
�क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान� क� संख्या से अनप ु ात
समस्त पंचायत �ेत्र म� यथासाध्य एक ह� हो ।
(3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा,–
(क) ग्राम स्तर पर पंचायत� के अध्य�� का मध्यवत� स्तर पर पंचायत�
म� या ऐसे राज्य क� दशा म� , जहां मध्यवत� स्तर पर पंचायत� नह�ं ह�, िजला
स्तर पर पंचायत� म� ;
(ख) मध्यवत� स्तर पर पंचायत� के अध्य�� का िजला स्तर पर पंचायत�
म� ;
(ग) लोक सभा के ऐसे सदस्य� का और राज्य क� �वधान सभा के ऐसे
सदस्य� का, जो उन �नवार्चन-�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करते ह� िजनम� ग्राम स्तर से
�भन्न स्तर पर कोई पंचायत �ेत्र पण ू त
र् ः या भागतः समा�वष्ट है, ऐसी पंचायत
म� ;
(घ) राज्य सभा के सदस्य� का और राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य�
का, जहां वे,–
(i) मध्यवत� स्तर पर �कसी पंचायत �ेत्र के भीतर �नवार्चक� के
रूप म� रिजस्ट्र�कृत है, मध्यवत� स्तर पर पंचायत म� ;
(ii) िजला स्तर पर �कसी पंचायत �ेत्र के भीतर �नवार्चक� के रूप
म� रिजस्ट्र�कृत ह�, िजला स्तर पर पंचायत म� ,
प्र�त�न�धत्व करने के �लए उपबंध कर सकेगा ।
(4) �कसी पंचायत के अध्य� और �कसी पंचायत के ऐसे अन्य सदस्य� को, चाहे
वे पंचायत �ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन
ु े गए ह� या नह�ं,
पंचायत� के अ�धवेशन� म� मत दे ने का अ�धकार होगा ।
(5)(क) ग्राम स्तर पर �कसी पंचायत के अध्य� का �नवार्चन ऐसी र��त से, जो
राज्य के �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, उपबं�धत क� जाए, �कया जाएगा ; और
(ख) मध्यवत� स्तर या िजला स्तर पर �कसी पंचायत के अध्य� का �नवार्चन,
उसके �नवार्�चत सदस्य� द्वारा अपने म� से �कया जाएगा ।
भारत का सं�वधान 121
(भाग 9—पंचायत)
243घ. स्थान� का आर�ण – (1) प्रत्येक पंचायत म� –
(क) अनस
ु ू�चत जा�तय� ; और
(ख) अनसु ू�चत जनजा�तय�,
के �लए स्थान आर��त रह� गे और इस प्रकार आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात,
उस पंचायत म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल संख्या से
यथाशक्य वह� होगा जो उस पंचायत �ेत्र म� अनसु ू�चत जा�तय� क� अथवा उस पंचायत
�ेत्र म� अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस �ेत्र क� कुल जनसंख्या से
है और ऐसे स्थान �कसी पंचायत म� �भन्न-�भन्न �नवार्चन �ेत्र� को चक्रानक्र
ु म से
आबं�टत �कए जा सक�गे ।
(2) खंड (1) के अधीन आर��त स्थान� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई
स्थान, यथािस्थ�त, अनस ु ू�चत जा�तय� या अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए
आर��त रह� गे ।
(3) प्रत्येक पंचायत म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल
संख्या के कम से कम एक-�तहाई स्थान (िजनके अंतगर्त अनस ु ू�चत जा�तय� और
अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या भी है) िस्त्रय� के
�लए आर��त रह� गे और ऐसे स्थान �कसी पंचायत म� �भन्न-�भन्न �नवार्चन-�ेत्र� को
चक्रानक्र
ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे ।
(4) ग्राम या �कसी अन्य स्तर पर पंचायत� म� अध्य�� के पद अनस ु ू�चत
जा�तय�, अनस ु ू�चत जनजा�तय� और िस्त्रय� के �लए ऐसी र��त से आर��त रह� गे, जो
राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उपबं�धत करे :
परं तु �कसी राज्य म� प्रत्येक स्तर पर पंचायत� म� अनसु ू�चत जा�तय� और
अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त अध्य�� के पद� क� संख्या का अनप ु ात, प्रत्येक
स्तर पर उन पंचायत� म� ऐसे पद� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा, जो उस राज्य
म� अनस ु �ू चत जा�तय� क� अथवा उस राज्य म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का
अनपु ात उस राज्य क� कुल जनसंख्या से है :
परं तु यह और �क प्रत्येक स्तर पर पंचायत� म� अध्य�� के पद� क� कुल संख्या
के कम से कम एक-�तहाई पद िस्त्रय� के �लए आर��त रह� गे :
परं तु यह भी �क इस खंड के अधीन आर��त पद� क� संख्या प्रत्येक स्तर पर
ु म से आबं�टत क� जाएगी ।
�भन्न-�भन्न पंचायत� को चक्रानक्र
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थान� का आर�ण और खंड (4) के अधीन
अध्य�� के पद� का आर�ण (जो िस्त्रय� के �लए आर�ण से �भन्न है) अनच्
ु छे द 334 म�
�व�न�दर्ष्ट अव�ध क� समािप्त पर प्रभावी नह�ं रहे गा ।
(6) इस भाग क� कोई बात �कसी राज्य के �वधान-मंडल को �पछड़े हुए नाग�रक�
के �कसी वगर् के प� म� �कसी स्तर पर �कसी पंचायत म� स्थान� के या पंचायत� म�
अध्य�� के पद� के आर�ण के �लए कोई उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।
भारत का सं�वधान 122
(भाग 9—पंचायत)
(भाग 9—पंचायत)
(भाग 9—पंचायत)
(भाग 9—पंचायत)
(3) जब राज्य �नवार्चन आयोग ऐसा अनरु ोध करे तब �कसी राज्य का राज्यपाल,
राज्य �नवार्चन आयोग को उतने कमर्चा�रवद ंृ उपलब्ध कराएगा िजतने खंड (1) द्वारा
राज्य �नवार्चन आयोग को उसे स�पे गए कृत्य� के �नवर्हन के �लए आवश्यक ह� ।
(4) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल,
ं म�
�व�ध द्वारा, पंचायत� के �नवार्चन� से संब�ं धत या संसक्त सभी �वषय� के संबध
उपबंध कर सकेगा ।
243ठ. संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना–इस भाग के उपबंध संघ राज्य�ेत्र� को लागू
ह�गे और �कसी संघ राज्य�ेत्र को उनके लागू होने म� इस प्रकार प्रभावी ह�गे मानो �कसी
राज्य के राज्यपाल के प्र�त �नद� श, अनच्ु छे द 239 के अधीन �नयक्
ु त संघ राज्य�ेत्र के
प्रशासक के प्र�त �नद� श ह� और �कसी राज्य के �वधान-मंडल या �वधान सभा के प्र�त
�नद� श, �कसी ऐसे संघ राज्य�ेत्र के संबध
ं म� , िजसम� �वधान सभा है, उस �वधान सभा के
प्र�त �नद� श ह� :
परं तु राष्ट्रप�त, लोक अ�धसच
ू ना द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस भाग के
उपबंध �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के
अधीन रहते हुए, लागू ह�गे, जो वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे ।
243ड. इस भाग का क�तपय �ेत्र� को लागू न होना–(1) इस भाग क� कोई बात
अनच्
ु छे द 244 के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अनस
ु ू�चत �ेत्र� और उसके खंड (2) म� �न�दर्ष्ट
जनजा�त �ेत्र� को लागू नह�ं होगी ।
(2) इस भाग क� कोई बात �नम्न�ल�खत को लागू नह�ं होगी, अथार्त ् : –
(क) नागाल�ड, मेघालय और �मजोरम राज्य ;
(ख) म�णपरु राज्य म� ऐसे पवर्तीय �ेत्र िजनके �लए तत्समय प्रव�
ृ �कसी
�व�ध के अधीन िजला प�रषद� �वद्यमान ह� ।
(3) इस भाग क� –
(क) कोई बात िजला स्तर पर पंचायत� के संबध ं म� पिश्चमी बंगाल राज्य
के दािजर्�लंग िजले के ऐसे पवर्तीय �ेत्र� को लागू नह�ं होगी िजनके �लए तत्समय
प्रव�
ृ �कसी �व�ध के अधीन दािजर्�लंग गोरखा पवर्तीय प�रषद् �वद्यमान है ;
(ख) �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसी �व�ध के
अधीन ग�ठत दािजर्�लंग गोरखा पवर्तीय प�रषद् के कृत्य� और शिक्तय� पर प्रभाव
डालती है ।
भारत का सं�वधान 126
(भाग 9—पंचायत)
1
[(3क) अनसु �ू चत जा�तय� के �लए स्थान� के आर�ण से संब�ं धत अनच्
ु छे द
243घ क� कोई बात अरुणाचल प्रदे श राज्य को लागू नह�ं होगी ।]
(4) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, –
(क) खंड (2) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी राज्य का �वधान-मंडल,
�व�ध द्वारा, इस भाग का �वस्तार, खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �ेत्र� के �सवाय, य�द
कोई ह�, उस राज्य पर उस दशा म� कर सकेगा जब उस राज्य क� �वधान सभा
इस आशय का एक संकल्प उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा
तथा उस सदन के उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के कम से कम दो-�तहाई
बहुमत द्वारा पा�रत कर दे ती है ;
(ख) संसद्, �व�ध द्वारा, इस भाग के उपबंध� का �वस्तार, खंड (1) म�
�न�दर्ष्ट अनसु �ू चत �ेत्र� और जनजा�त �ेत्र� पर, ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के
अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं और ऐसी
�कसी �व�ध को अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन
नह�ं समझा जाएगा ।
243ढ. �वद्यमान �व�धय� और पंचायत� का बना रहना – इस भाग म� �कसी बात
के होते हुए भी, सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 के प्रारं भ के ठ�क पवू र्
�कसी राज्य म� प्रव�ृ पंचायत� से संब�ं धत �कसी �व�ध का कोई उपबंध, जो इस भाग के
उपबंध� से असंगत है, जब तक स�म �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार�
द्वारा उसे संशो�धत या �नर�सत नह�ं कर �दया जाता है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक
वषर् समाप्त नह�ं हो जाता है, इनम� से जो भी पहले हो, तब तक प्रव�
ृ बना रहे गा :
परं तु ऐसे प्रारं भ के ठ�क पव
ू र् �वद्यमान सभी पंचायत� , य�द उस राज्य क� �वधान
सभा द्वारा या ऐसे राज्य क� दशा म� , िजसम� �वधान प�रषद् है, उस राज्य के �वधान-
मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पा�रत इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ह� �वघ�टत नह�ं
कर द� जाती ह� तो, अपनी अव�ध क� समािप्त तक बनी रह� गी ।
ं ी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न – इस
243ण. �नवार्चन संबध
सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनच् ु छे द 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के �लए तात्प�यर्त
�कसी ऐसी �व�ध क� �व�धमान्यता, जो �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन या ऐसे
�नवार्चन-�ेत्र� को स्थान� के आबंटन से संब�ं धत है, �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत
नह�ं क� जाएगी ;
(ख) �कसी पंचायत के �लए कोई �नवार्चन, ऐसी �नवार्चन अज� पर ह�
प्रश्नगत �कया जाएगा जो ऐसे प्रा�धकार� को और ऐसी र��त से प्रस्तुत क� गई है,
िजसका �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या
उसके अधीन उपबंध �कया जाए, अन्यथा नह�ं ।]
1. सं�वधान (�तरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (8-9-2000 से) अंतःस्था�पत ।
1
[भाग 9क
नगरपा�लकाएं
243त. प�रभाषाएं – इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न
हो, –
(क) “स�म�त” से अनच्
ु छे द 243ध के अधीन ग�ठत स�म�त अ�भप्रेत है ;
(ख) “िजला” से �कसी राज्य का िजला अ�भप्रेत है ;
(ग) “महानगर �ेत्र” से दस लाख या उससे अ�धक जनसंख्या वाला ऐसा
�ेत्र अ�भप्रेत है िजसम� एक या अ�धक िजले समा�वष्ट ह� और जो दो या अ�धक
नगरपा�लकाओं या पंचायत� या अन्य संलग्न �ेत्र� से �मलकर बनता है तथा
िजसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजन� के �लए, लोक अ�धसूचना द्वारा, महानगर
�ेत्र के रूप म� �व�न�दर्ष्ट करे ;
(घ) “नगरपा�लका �ेत्र” से राज्यपाल द्वारा अ�धस�ू चत �कसी
नगरपा�लका का प्रादे �शक �ेत्र अ�भप्रेत है ;
(ङ) “नगरपा�लका” से अनच्
ु छे द 243थ के अधीन ग�ठत स्वाय� शासन
क� कोई संस्था अ�भप्रेत है ;
(च) “पंचायत” से अनच्
ु छे द 243ख के अधीन ग�ठत कोई पंचायत अ�भप्रेत
है ;
(छ) “जनसंख्या” से ऐसी अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म� अ�भ�निश्चत क�
गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस
ु ग
ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� ।
243थ. नगरपा�लकाओं का गठन – (1) प्रत्येक राज्य म� , इस भाग के उपबंध� के
अनस
ु ार,–
(क) �कसी संक्रमणशील �ेत्र के �लए, अथार्त ्, ग्रामीण �ेत्र से नगर�य �ेत्र
म� संक्रमणगत �ेत्र के �लए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह �कसी भी नाम से
�ात हो) ;
(ख) �कसी लघत
ु र नगर�य �ेत्र के �लए नगरपा�लका प�रषद् का ; और
(ग) �कसी वह
ृ �र नगर�य �ेत्र के �लए नगर �नगम का,
गठन �कया जाएगा :
1. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्था�पत ।
127
भारत का सं�वधान 128
(भाग 9क—पंचायत)
परं तु इस खंड के अधीन कोई नगरपा�लका ऐसे नगर�य �ेत्र या उसके �कसी भाग
म� ग�ठत नह�ं क� जा सकेगी िजसे राज्यपाल, �ेत्र के आकार और उस �ेत्र म� �कसी
औद्यो�गक स्थापन द्वारा द� जा रह� या �दए जाने के �लए प्रस्ता�वत नगरपा�लक
सेवाओं और ऐसी अन्य बात� को, जो वह ठ�क समझे, ध्यान म� रखते हुए, लोक
अ�धसूचना द्वारा, औद्यो�गक नगर� के रूप म� �व�न�दर्ष्ट करे ।
(2) इस अनच् ु छे द म� , “संक्रमणशील �ेत्र”, “लघत
ु र नगर�य �ेत्र” या “वह
ृ �र
नगर�य �ेत्र” से ऐसा �ेत्र अ�भप्रेत है िजसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजन� के �लए,
उस �ेत्र क� जनसंख्या, उसम� जनसंख्या क� सघनता, स्थानीय प्रशासन के �लए उत्पन्न
राजस्व, कृ�ष से �भन्न �क्रयाकलाप� म� �नयोजन क� प्र�तशतता, आ�थर्क महत्व या ऐसी
अन्य बात� को, जो वह ठ�क समझे, ध्यान म� रखते हुए, लोक अ�धसूचना द्वारा,
�व�न�दर्ष्ट करे ।
243द. नगरपा�लकाओं क� संरचना – (1) खंड (2) म� जैसा उपबं�धत है उसके
�सवाय, �कसी नगरपा�लका के सभी स्थान, नगरपा�लका �ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र�
से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन
ु े हुए व्यिक्तय� द्वारा भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के
�लए, प्रत्येक नगरपा�लका �ेत्र को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभािजत �कया जाएगा जो
वाडर् के नाम से �ात ह�गे ।
(2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, –
(क) नगरपा�लका म� , –
(i) नगरपा�लका प्रशासन का �वशेष �ान या अनभ
ु व रखने वाले
व्यिक्तय� का ;
(ii) लोक सभा के ऐसे सदस्य� का और राज्य क� �वधान सभा के
ऐसे सदस्य� का, जो उन �नवार्चन-�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करते ह� िजनम�
कोई नगरपा�लका �ेत्र पण
ू त
र् ः या भागतः समा�वष्ट ह� ;
(iii) राज्य सभा के ऐसे सदस्य� का और राज्य क� �वधान प�रषद् के
ऐसे सदस्य� का, जो नगरपा�लका �ेत्र के भीतर �नवार्चक� के रूप म�
रिजस्ट्र�कृत ह� ;
(iv) अनच्
ु छे द 243ध के खंड (5) के अधीन ग�ठत स�म�तय� के
अध्य�� का,
प्र�त�न�धत्व करने के �लए उपबंध कर सकेगा :
परं तु पैरा (i) म� �न�दर्ष्ट व्यिक्तय� को नगरपा�लका के अ�धवेशन� म� मत
दे ने का अ�धकार नह�ं होगा ;
(ख) �कसी नगरपा�लका के अध्य� के �नवार्चन क� र��त का उपबंध कर
सकेगा ।
भारत का सं�वधान 129
(भाग 9क—पंचायत)
243ध. वाडर् स�म�तय�, आ�द का गठन और संरचना – (1) ऐसी नगरपा�लका के,
िजसक� जनसंख्या तीन लाख या उससे अ�धक है, प्रादे �शक �ेत्र के भीतर वाडर् स�म�तय�
का गठन �कया जाएगा, जो एक या अ�धक वाड� से �मलकर बनेगी ।
(2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, –
(क) वाडर् स�म�त क� संरचना और उसके प्रादे �शक �ेत्र क� बाबत ;
(ख) उस र��त क� बाबत िजससे �कसी वाडर् स�म�त म� स्थान भरे जाएंगे,
उपबंध कर सकेगा ।
(3) वाडर् स�म�त के प्रादे �शक �ेत्र के भीतर �कसी वाडर् का प्र�त�न�धत्व करने वाला
�कसी नगरपा�लका का सदस्य उस स�म�त का सदस्य होगा ।
(4) जहां कोई वाडर् स�म�त, –
(क) एक वाडर् से �मलकर बनती है वहां नगरपा�लका म� उस वाडर् का
प्र�त�न�धत्व करने वाला सदस्य ; या
(ख) दो या अ�धक वाड� से �मलकर बनती है वहां नगरपा�लका म� ऐसे वाड�
का प्र�त�न�धत्व करने वाले सदस्य� म� से एक सदस्य, जो उस वाडर् स�म�त के
सदस्य� द्वारा �नवार्�चत �कया जाएगा,
उस स�म�त का अध्य� होगा ।
(5) इस अनच्
ु छे द क� �कसी बात से यह नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी राज्य
के �वधान-मंडल को वाडर् स�म�तय� के अ�त�रक्त स�म�तय� का गठन करने के �लए कोई
उपबंध करने से �नवा�रत करती है ।
243न. स्थान� का आर�ण – (1) प्रत्येक नगरपा�लका म� अनस ु ू�चत जा�तय� और
अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान आर��त रह� गे और इस प्रकार आर��त स्थान� क�
संख्या का अनप ु ात, उस नगरपा�लका म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क�
कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा जो उस नगरपा�लका �ेत्र म� अनस ु �ू चत जा�तय� क�
अथवा उस नगरपा�लका �ेत्र म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस
�ेत्र क� कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान �कसी नगरपा�लका के �भन्न-�भन्न
�नवार्चन-�ेत्र� को चक्रानक्र
ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे ।
(2) खंड (1) के अधीन आर��त स्थान� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई
स्थान, यथािस्थ�त, अनस ु ू�चत जा�तय� या अनस
ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए
आर��त रह� गे ।
भारत का सं�वधान 130
(भाग 9क—पंचायत)
(3) प्रत्येक नगरपा�लका म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल
संख्या के कम से कम एक-�तहाई स्थान (िजनके अंतगर्त अनस ु ू�चत जा�तय� और
अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या भी है) िस्त्रय� के
�लए आर��त रह� गे और ऐसे स्थान �कसी नगरपा�लका के �भन्न-�भन्न �नवार्चन-�ेत्र� को
चक्रानक्र
ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे ।
(4) नगरपा�लकाओं म� अध्य�� के पद अनस ु �ू चत जा�तय�, अनस
ु �ू चत जनजा�तय�
और िस्त्रय� के �लए ऐसी र��त से आर��त रह� गे, जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा,
उपबं�धत करे ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थान� का आर�ण और खंड (4) के अधीन
अध्य�� के पद� का आर�ण (जो िस्त्रय� के �लए आर�ण से �भन्न है) अनच्
ु छे द 334 म�
�व�न�दर्ष्ट अव�ध क� समािप्त पर प्रभावी नह�ं रहे गा ।
(6) इस भाग क� कोई बात �कसी राज्य के �वधान-मंडल को �पछड़े हुए नाग�रक�
के �कसी वगर् के प� म� �कसी नगरपा�लका म� स्थान� के या नगरपा�लकाओं म� अध्य��
के पद के आर�ण के �लए कोई उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।
243प. नगरपा�लकाओं क� अव�ध, आ�द – (1) प्रत्येक नगरपा�लका, य�द
तत्समय प्रव�
ृ �कसी �व�ध के अधीन पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने
प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अ�धक नह�ं :
परं तु �कसी नगरपा�लका का �वघटन करने के पव
ू र् उसे सुनवाई का उ�चत अवसर
�दया जाएगा ।
(2) तत्समय प्रव�
ृ �कसी �व�ध के �कसी संशोधन से �कसी स्तर पर ऐसी
नगरपा�लका का, जो ऐसे संशोधन के ठ�क पव ू र् कायर् कर रह� है, तब तक �वघटन नह�ं
होगा जब तक खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट उसक� अव�ध समाप्त नह�ं हो जाती ।
(3) �कसी नगरपा�लका का गठन करने के �लए �नवार्चन, –
(क) खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट उसक� अव�ध क� समािप्त के पव
ू र् ;
(ख) उसके �वघटन क� तार�ख से छह मास क� अव�ध क� समािप्त के
पव
ू ,र्
परू ा �कया जाएगा :
परं तु जहां वह शेष अव�ध, िजसके �लए कोई �वघ�टत नगरपा�लका बनी रहती,
छह मास से कम है वहां ऐसी अव�ध के �लए उस नगरपा�लका का गठन करने के �लए
इस खंड के अधीन कोई �नवार्चन कराना आवश्यक नह�ं होगा ।
(4) �कसी नगरपा�लका क� अव�ध क� समािप्त के पवू र् उस नगरपा�लका के
�वघटन पर ग�ठत क� गई कोई नगरपा�लका, उस अव�ध के केवल शेष भाग के �लए
बनी रहे गी िजसके �लए �वघ�टत नगरपा�लका खंड (1) के अधीन बनी रहती, य�द वह
इस प्रकार �वघ�टत नह�ं क� जाती ।
भारत का सं�वधान 131
(भाग 9क—पंचायत)
(भाग 9क—पंचायत)
(भाग 9क—पंचायत)
(भाग 9क—पंचायत)
(3) प्रत्येक िजला योजना स�म�त, �वकास योजना प्रारूप तैयार करने म� ,–
(4) प्रत्येक िजला योजना स�म�त का अध्य�, वह �वकास योजना, िजसक� ऐसी
स�म�त द्वारा �सफा�रश क� जाती है, राज्य सरकार को भेजेगा ।
243यङ. महानगर योजना के �लए स�म�त – (1) प्रत्येक महानगर �ेत्र म� , संपण
ू र्
महानगर �ेत्र के �लए �वकास योजना प्रारूप तैयार करने के �लए, एक महानगर योजना
स�म�त का गठन �कया जाएगा ।
(भाग 9क—पंचायत)
(3) प्रत्येक महानगर योजना स�म�त, �वकास योजना प्रारूप तैयार करने म� , –
(भाग 9क—पंचायत)
(क) अनच्
ु छे द 243यक के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के �लए
तात्प�यर्त �कसी ऐसी �व�ध क� �व�धमान्यता, जो �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन या
ऐसे �नवार्चन-�ेत्र� को स्थान� के आबंटन से संब�ं धत है, �कसी न्यायालय म�
प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी ;
1. सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 4 द्वारा (15-2-2012 से) अंतःस्था�पत ।
137
भारत का सं�वधान 138
(भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां)
परं तु सहकार� सोसाइट� के �नदे शक� क� अ�धकतम संख्या इक्क�स से अ�धक नह�ं
होगी :
परं तु बोडर्, बोडर् क� आकिस्मक �रिक्त को नाम�नद� शन द्वारा उसी वगर् के सदस्य� म�
से, िजसके संबंध म� आकिस्मक �रिक्त हुई है , भर सकेगा, य�द बोडर् क� पदाव�ध उसक� मल
ू
पदाव�ध के आधे से कम है ।
(3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसी सोसाइट� के बोडर् के सदस्य� के
रूप म� ब�ककार�, प्रबंधन, �व� के �ेत्र म� अनभ
ु व रखने वाले या सहकार� सोसाइट� के उद्दे श्य�
और उसके द्वारा �कए जाने वाले �क्रयाकलाप से संब�ं धत �कसी अन्य �ेत्र म� �वशेष�ता रखने
वाले बोडर् के सदस्य होने वाले व्यिक्तय� को सहयोिजत करने के �लए, उपबंध कर सकेगा :
परं तु ऐसे सहयोिजत सदस्य खंड (1) के पहले परं तुक म� �व�न�दर् ष्ट इक्क�स �नदे शक�
के अ�त�रक्त दो से अ�धक नह�ं ह�गे :
243यट. बोडर् के सदस्य� का �नवार्चन -- (1) �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई
गई �कसी �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी, बोडर् का �नवार्चन, बोडर् क� अव�ध के अवसान
से पव
ू र् संचा�लत �कया जाएगा, िजससे यह स�ु निश्चत �कया जा सके �क नव�नवार्�चत बोडर् के
सदस्य, पदावरोह� बोडर् के सदस्य� क� पदाव�ध के अवसान होते ह� पद ग्रहण कर ल� ।
(2) �कसी सहकार� सोसाइट� के सभी �नवार्चन� के �लए �नवार्चक नामाव�लयां तैयार
करने का और उन सभी �नवार्चन� के संचालन का अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण, ऐसे
प्रा�धकार� या �नकाय म� , जो राज्य �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, उपबं�धत �कया जाए,
�न�हत होगा :
परं तु �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसे �नवार्चन� के संचालन के �लए
प्र�क्रया और मागर्दशर्क �सद्धान्त� का उपबंध कर सकेगा ।
243यठ. बोडर् का अ�धक्रमण और �नलंबन तथा अन्त�रम प्रबंध -- (1) तत्समय प्रव�
ृ
�कसी �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई बोडर्, छह मास से अ�धक क� अव�ध के �लए
अ�तिष्ठत नह�ं �कया जाएगा या �नलंबनाधीन नह�ं रखा जाएगा :
परं तु बोडर् को--
(i) उसके लगातार व्य�तक्रम क� दशा म� ; या
(ii) अपने कतर्व्य� के अनप
ु ालन म� उपे�ा करने क� दशा म� ; या
(iii) बोडर् द्वारा सहकार� सोसाइट� या उसके सदस्य� के �हत� के प्र�तकूल कोई
कायर् करने क� दशा म� ; या
(iv) बोडर् के गठन या उसके कृत्य� म� कोई ग�तरोध उत्पन्न होने क� दशा म� ;
या
(v) राज्य �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, अनच्
ु छे द 243यट के खंड (2) के
अधीन यथा उपबं�धत प्रा�धकार� या �नकाय के राज्य अ�ध�नयम के उपबंध� के अनस
ु ार
�नवार्चन कराने म� असफल रहने क� दशा म� ,
अ�तिष्ठत �कया जा सकेगा या �नलंबनाधीन रखा जा सकेगा :
परं तु यह और �क जहां कोई सरकार� शेयर धारण या सरकार द्वारा कोई उधार या
�व�ीय सहायता या प्रत्याभ�ू त नह�ं है वहां ऐसी �कसी सहकार� सोसाइट� के बोडर् को अ�तिष्ठत
नह�ं �कया जाएगा या �नलंबनाधीन नह�ं रखा जाएगा :
परं तु यह भी �क ब�ककार� कारबार करने वाल� �कसी सहकार� सोसाइट� क� दशा म�
ब�ककार� �व�नयमन अ�ध�नयम, 1949 के उपबंध भी लागू ह�गे :
भारत का सं�वधान 140
(भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां)
(3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, प्रशासक क� सेवा क� शत� के �लए
उपबंध कर सकेगा ।
(2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसे संपर��क� और संपर��ा करने
वाल� ऐसी फम� क�, जो सहकार� सोसाइ�टय� के लेखाओं क� संपर��ा करने के �लए पात्र ह�गी,
न्यन
ू तम अहर् ताएं और अनुभव अ�धक�थत करे गा ।
(3) प्रत्येक सहकार� सोसाइट�, सहकार� सोसाइट� के साधारण �नकाय द्वारा �नयुक्त,
खंड (2) म� �न�दर् ष्ट �कसी संपर��क या संपर��ा करने वाल� फम� द्वारा संपर��ा करवाएगी :
परं तु ऐसे संपर��क� या संपर��ा करने वाल� फम� को राज्य सरकार द्वारा या राज्य
सरकार द्वारा इस �न�म� प्रा�धकृत �कसी प्रा�धकार� द्वारा अनुमो�दत पैनल म� से �नयुक्त
�कया जाएगा ।
(4) प्रत्येक सहकार� सोसाइट� के लेखाओं क� संपर��ा उस �व�ीय वषर् क�, िजससे ऐसे
लेखे संबं�धत ह� , समािप्त के छह मास के भीतर क� जाएगी ।
(5) राज्य अ�ध�नयम द्वारा यथा प�रभा�षत �कसी सव�च्च सहकार� सोसाइट� के
लेखाओं क� संपर��ा �रपोटर् राज्य �वधान-मंडल के सम� ऐसी र��त से रखी जाएगी जो राज्य
�वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा उपबं�धत क� जाए ।
243यण. सूचना प्राप्त करने का सदस्य का अ�धकार -- (1) �कसी राज्य का �वधान-
मंडल, �व�ध द्वारा, सहकार� सोसाइट� के प्रत्येक सदस्य क� सहकार� सोसाइट� क� ऐसी ब�हय�,
सूचना और लेखाओं तक, जो ऐसे सदस्य के साथ उसके कारबार के �नय�मत संव्यवहार म� रखे
गए ह�, पहुंच के �लए उपबंध कर सकेगा ।
(2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, सहकार� सोसाइट� के प्रबंधन म�
सदस्य� क� भागीदार� सु�निश्चत करने के �लए, सदस्य� द्वारा बैठक� म� उपिस्थ�त क� ऐसी
न्यन
ू तम अपे�ा का उपबंध करते हुए और सेवाओं के ऐसे न्यूनतम स्तर का उपयोग करते हुए,
जो ऐसी �व�ध म� उपबंध �कया जाए, उपबंध कर सकेगा ।
(3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, अपने सदस्य� के �लए सहकार� �श�ा
और प्र�श�ण का उपबंध कर सकेगा ।
243यत. �ववर�णयां -- प्रत्येक सहकार� सोसाइट�, प्रत्येक �व�ीय वषर् क� समािप्त के
छह मास के भीतर राज्य सरकार द्वारा अ�भ�हत प्रा�धकार� को ऐसी �ववर�णयां फाइल करे गी,
िजनम� �नम्न�ल�खत बात� सिम्म�लत ह�गी, अथार्त ् :--
(क) उसके �क्रयाकलाप क� वा�षर्क �रपोटर् ;
(ख) उसके लेखाओं का संपर���त �ववरण ;
(ग) अ�धशेष के व्ययन क� योजना, जो सहकार� सोसाइट� के साधारण �नकाय
द्वारा यथा अनमु ो�दत हो ;
(घ) सहकार� सोसाइट� क� उप�व�धय� के संशोधन�, य�द कोई ह�, क� सूची ;
(ङ) उसके साधारण �नकाय क� बैठक आयोिजत करने क� तार�ख और
�नवार्चन� का, जब �नयत ह�, संचालन करने के संबंध म� घोषणा ; और
(च) राज्य अ�ध�नयम के �कन्ह�ं उपबंध� के अनस
ु रण म� रिजस्ट्रार द्वारा
अपे��त कोई अन्य जानकार� ।
243यथ. अपराध और शािस्तयां -- (1) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा,
सहकार� सोसाइ�टय� से संबं�धत अपराध� और ऐसे अपराध� के �लए शािस्तय� से संबं�धत
उपबंध कर सकेगा ।
(2) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध म�
�नम्न�ल�खत कायर् करना या उसका लोप करना अपराध के रूप म� सिम्म�लत होगा, अथार्त ् :--
(क) कोई सहकार� सोसाइट� या उसका कोई अ�धकार� या सदस्य जानबूझकर
�मथ्या �ववरणी बनाता है या �मथ्या जानकार� दे ता है अथवा कोई व्यिक्त जानबूझकर
ऐसी जानकार� नह�ं दे ता है , जो इस �न�म� राज्य अ�ध�नयम के उपबंध� के अधीन
प्रा�धकृत व्यिक्त द्वारा उससे अपे��त क� गई हो ;
भारत का सं�वधान 142
(भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम राज्य” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” शब्द� के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और �त्रपुरा”
शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और �त्रपुरा
राज्य� और �मजोरम संघ राज्य�ेत्र” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 2 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत ।
7. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
143
भारत का सं�वधान 144
(भाग 10-अनस
ु ू�चत और जनजा�त �ेत्र)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� ” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 2 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
145
भारत का सं�वधान 146
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 3 द्वारा (16-9-2016 से) “संसद्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 4 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 147
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 5 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 148
(2) संसद् द्वारा इस प्रकार पा�रत �कसी अ�ध�नयम का संशोधन या �नरसन इसी
र��त से पा�रत या अंगीकृत संसद् के अ�ध�नयम द्वारा �कया जा सकेगा, �कं तु उसका
उस राज्य के संबधं म� संशोधन या �नरसन िजसको वह लागू होता है, उस राज्य के
�वधान-मंडल के अ�ध�नयम द्वारा नह�ं �कया जाएगा ।
253. अंतरराष्ट्र�य करार� को प्रभावी करने के �लए �वधान – इस अध्याय के
पवू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् को �कसी अन्य दे श या दे श� के
साथ क� गई �कसी सं�ध, करार या अ�भसमय अथवा �कसी अंतरराष्ट्र�य सम्मेलन, संगम
या अन्य �नकाय म� �कए गए �कसी �व�नश्चय के कायार्न्वयन के �लए भारत के संपण ू र्
राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए कोई �व�ध बनाने क� शिक्त है ।
254. संसद् द्वारा बनाई गई �व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई
गई �व�धय� म� असंग�त – (1) य�द �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध
का कोई उपबंध संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के, िजसे अ�ध�नय�मत करने के �लए
संसद् स�म है, �कसी उपबंध के या समवत� सूची म� प्रग�णत �कसी �वषय के संबध ं म�
�वद्यमान �व�ध के �कसी उपबंध के �वरुद्ध है तो खंड (2) के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, यथािस्थ�त, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध, चाहे वह ऐसे राज्य के �वधान-मंडल
द्वारा बनाई गई �व�ध से पहले या उसके बाद म� पा�रत क� गई हो, या �वद्यमान �व�ध,
अ�भभावी होगी और उस राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध उस �वरोध क�
मात्रा तक शन्
ू य होगी ।
(2) जहां 1*** राज्य के �वधान-मंडल द्वारा समवत� सूची म� प्रग�णत �कसी �वषय
के संबध
ं म� बनाई गई �व�ध म� कोई ऐसा उपबंध अंत�वर्ष्ट है जो संसद् द्वारा पहले बनाई
गई �व�ध के या उस �वषय के संबध ं म� �कसी �वद्यमान �व�ध के उपबंध� के �वरुद्ध है
तो य�द ऐसे राज्य के �वधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध को राष्ट्रप�त के
�वचार के �लए आर��त रखा गया है और उस पर उसक� अनम ु �त �मल गई है तो वह
�व�ध उस राज्य म� अ�भभावी होगी :
परं तु इस खंड क� कोई बात संसद् को उसी �वषय के संबधं म� कोई �व�ध, िजसके
अंतगर्त ऐसी �व�ध है, जो राज्य के �वधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध का
प�रवधर्न, संशोधन, प�रवतर्न या �नरसन करती है, �कसी भी समय अ�ध�नय�मत करने
से �नवा�रत नह�ं करे गी ।
255. �सफा�रश� और पव
ू र् मंजरू � के बारे म� अपे�ाओं को केवल प्र�क्रया के �वषय
मानना – य�द संसद् के या 1*** �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी अ�ध�नयम
को –
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 149
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 18 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 151
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 264 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
152
भारत का सं�वधान 153
4
268क. [संघ द्वारा उद्गह
ृ �त �कए जाने वाला और संघ तथा राज्य� द्वारा
ृ �त और �व�नयोिजत �कया जाने वाला सेवा-कर ।]–सं�वधान (एक सौ एकवां
संगह
संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 7 द्वारा (16-9-2016 से) लोप �कया गया ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 6 द्वारा (16-9-2016 से) "तथा औषधीय और
प्रसाधन �न�मर्�तय� पर ऐसे उत्पाद-शुल्क, " शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग ग म� �व�न�दर् ष्ट राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (प्रव�
ृ नह�ं हुआ है) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 154
परे षण] कब अंतररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है, �व�ध द्वारा �सद्धांत
बना सकेगी ।]
5
[269क. अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र
ु म म� माल और सेवा कर
का उद्ग्रहण और संग्रहण--(1) अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र
ु म म� प्रदाय
पर माल और सेवा कर भारत सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगहृ �त �कया जाएगा तथा
ऐसा कर उस र��त म� , जो संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, माल और सेवा कर प�रषद् क�
�सफा�रश� पर उपबं�धत क� जाए, संघ और राज्य� के बीच प्रभािजत �कया जाएगा ।
1. सं�वधान (अस्सीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 8 द्वारा (16-9-2016 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (11-9-1956 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (�छयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 क� धारा 2 द्वारा (2-2-1983 से) “माल का क्रय या �वक्रय”
शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 9 द्वारा (16-9-2016 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 155
2
[अनच्
ु छे द 268, अनच् ु छे द 269 और अनच्ु छे द 269क] म� �न�दर्ष्ट शुल्क� और कर� के
�सवाय, संघ सच ू ी म� �न�दर्ष्ट सभी कर और शल् ु क ; अनच्
ु छे द 271 म� �न�दर्ष्ट कर� और
शुल्क� पर अ�धभार और संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के अधीन �व�न�दर्ष्ट
प्रयोजन� के �लए उद्गह ृ �त कोई उपकर भारत सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कए
जाएंगे तथा खंड (2) म� उपबं�धत र��त से संघ और राज्य� के बीच �वत�रत �कए
जाएंगे ।
[(1क) अनच्
3
ु छे द 246क के खंड (1) के अधीन संघ द्वारा संगह
ृ �त कर भी, संघ
और राज्य� के बीच खंड (2) म� उपबं�धत र��त म� �वत�रत �कया जाएगा ।
(1ख) अनच् ु छे द 246क के खंड (2) और अनच्
ु छे द 269क के अधीन संघ द्वारा
उद्गह
ृ �त और संगह ृ �त ऐसा कर, िजसका उपयोग अनच्
ु छे द 246क के खंड (1) के अधीन
संघ द्वारा उद्गह
ृ �त कर का संदाय करने के �लए �कया गया है, और अनच् ु छे द 269क के
खंड (1) के अधीन संघ को प्रभािजत रकम भी, संघ और राज्य� के बीच खंड (2) म�
उपबं�धत र��त म� �वत�रत क� जाएगी ।]
1. सं�वधान (अस्सीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 द्वारा (1-4-1996 से) अनुच्चेद 270 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003, धारा 3 द्वारा “अनुच्छे द 268 और अनुच्छे द 269” (अ�धसू�चत
नह�ं हुई है) के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क�
धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) अनुच्छे द 268, 268क और 269 के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 156
(2) �कसी �व�ीय वषर् म� �कसी ऐसे कर या शुल्क के शुद्ध आगम� का ऐसा
प्र�तशत, जो �व�हत �कया जाए, भारत क� सं�चत �न�ध का भाग नह�ं होगा, �कन्तु उन
राज्य� को स�प �दया जाएगा िजनके भीतर वह कर या शुल्क उस वषर् म� उद्ग्रहणीय है
और ऐसी र��त से और ऐसे समय से, जो खंड (3) म� उपबं�धत र��त से �व�हत �कया
जाए, उन राज्य� के बीच �वत�रत �कया जाएगा ।
(3) इस अनच्
ु छे द म� , “�व�हत” से अ�भप्रेत है –
(i) जब तक �व� आयोग का गठन नह�ं �कया जाता है तब तक राष्ट्रप�त
द्वारा आदे श द्वारा �व�हत ; और
(ii) �व� आयोग का गठन �कए जाने के पश्चात ् �व� आयोग क�
�सफा�रश� पर �वचार करने के पश्चात ् राष्ट्रप�त द्वारा आदे श द्वारा �व�हत ।]
271. कुछ शुल्क� और कर� पर संघ के प्रयोजन� के �लए अ�धभार – अनच् ु छे द
269 और अनच् ु छे द 270 म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद्, [अनच्
1
ु छे द 246क के
अधीन माल और सेवा कर के �सवाय,] उन अनच् ु छे द� म� �न�दर्ष्ट शुल्क� या कर� म� से
�कसी म� �कसी भी समय संघ के प्रयोजन� के �लए अ�धभार द्वारा वद् ृ �ध कर सकेगी
और �कसी ऐसे अ�धभार के संपण ू र् आगम भारत क� सं�चत �न�ध के भाग ह�गे ।
272. [कर जो संघ द्वारा उद्गह
ृ �त और संगह
ृ �त �कए जाते ह� तथा जो संघ और
राज्य� के बीच �वत�रत �कए जा सक�गे ।] –सं�वधान (अस्सीवां संशोधन) अ�ध�नयम,
2000 क� धारा 4 द्वारा (9-6-2000 से) लोप �कया गया ।
273. जट ू पर और जट ू उत्पाद� पर �नयार्त शुल्क के स्थान पर अनद ु ान – (1)
जट
ू पर और जट ू उत्पाद� पर �नयार्त शल्
ु क के प्रत्येक वषर् के शद्
ु ध आगम का कोई भाग
असम, �बहार, 2[ओ�ड़शा] और पिश्चमी बंगाल राज्य� को स�प �दए जाने के स्थान पर
उन राज्य� के राजस्व म� सहायता अनद ु ान के रूप म� प्रत्येक वषर् भारत क� सं�चत �न�ध
पर ऐसी रा�शयां भा�रत क� जाएंगी जो �व�हत क� जाएं ।
(2) जट
ू पर और जट ू उत्पाद� पर जब तक भारत सरकार कोई �नयार्त शुल्क
ृ �त करती रहती है तब तक या इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् क� समािप्त
उद्गह
तक, इन दोन� म� से जो भी पहले हो, इस प्रकार �व�हत रा�शयां भारत क� सं�चत �न�ध
पर भा�रत बनी रह� गी ।
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 11 (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
2. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 (2011 का 15) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 157
(3) इस अनच्
ु छे द म� , “�व�हत” पद का वह� अथर् है जो अनच्
ु छे द 270 म� है ।
274. ऐसे कराधान पर िजसम� राज्य �हतबद्ध है, प्रभाव डालने वाले �वधेयक� के
ू र् �सफा�रश क� अपे�ा – (1) कोई �वधेयक या संशोधन, जो ऐसा
�लए राष्ट्रप�त क� पव
कर या शुल्क, िजसम� राज्य �हतबद्ध है, अ�धरो�पत करता है या उसम� प�रवतर्न करता
है अथवा जो भारतीय आय-कर से संब�ं धत अ�ध�नय�म�तय� के प्रयोजन� के �लए
प�रभा�षत “कृ�ष-आय” पद के अथर् म� प�रवतर्न करता है अथवा जो उन �सद्धांत� को
प्रभा�वत करता है िजनसे इस अध्याय के पव ू ग
र् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध के अधीन
राज्य� को धनरा�शयां �वतरणीय ह� या हो सक�गी अथवा जो संघ के प्रयोजन� के �लए
कोई ऐसा अ�धभार अ�धरो�पत करता है जो इस अध्याय के पव ू ग
र् ामी उपबंध� म� व�णर्त
है, संसद् के �कसी सदन म� राष्ट्रप�त क� �सफा�रश पर ह� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत
�कया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।
(2) इस अनच् ु छे द म� , “ऐसा कर या शुल्क, िजसम� राज्य �हतबद्ध ह�” पद से
ऐसा कोई कर या शुल्क अ�भप्रेत है –
(क) िजसके शद्
ु ध आगम पण
ू त
र् ः या भागतः �कसी राज्य को स�प �दए
जाते ह�, या
(ख) िजसके शुद्ध आगम के प्र�त �नद� श से भारत क� सं�चत �न�ध म� से
�कसी राज्य को रा�शयां तत्समय संदेय ह� ।
275. कुछ राज्य� को संघ से अनद ु ान – (1) ऐसी रा�शयां, िजनका संसद् �व�ध
द्वारा उपबंध करे , उन राज्य� के राजस्व� म� सहायता अनदु ान के रूप म� प्रत्येक वषर् भारत
क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गी िजन राज्य� के �वषय म� संसद् यह अवधा�रत करे �क
उन्ह� सहायता क� आवश्यकता है और �भन्न-�भन्न राज्य� के �लए �भन्न-�भन्न रा�शयां
�नयत क� जा सक�गी :
परं तु �कसी राज्य के राजस्व� म� सहायता अनद ु ान के रूप म� भारत क� सं�चत
�न�ध म� से ऐसी पज ूं ी और आवत� रा�शयां संद� क� जाएंगी जो उस राज्य को उन
�वकास स्क�म� के खच� को परू ा करने म� समथर् बनाने के �लए आवश्यक ह� िजन्ह� उस
राज्य म� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध करने या उस राज्य म�
अनस ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष �ेत्र� के प्रशासन स्तर तक उन्नत
करने के प्रयोजन के �लए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनम ु ोदन से हाथ म� �लया
जाए :
परं तु यह और �क असम राज्य के राजस्व म� सहायता अनद ु ान के रूप म� भारत
क� सं�चत �न�ध म� से ऐसी पज
ूं ी और आवत� रा�शयां संद� क� जाएंगी –
भारत का सं�वधान 158
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 3 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 159
1. सं�वधान (साठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 2 द्वारा (20-12-1988 से) “दो सौ पचास रुपए” शब्द� के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (साठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 2 द्वारा (20-12-1988 से) परन्तुक का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 160
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 12 द्वारा (12-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 161
राज्य म� पंचायत� के संसाधन� क� अनप ु �ू तर् के �लए �कसी राज्य क� सं�चत �न�ध
के संवधर्न के �लए आवश्यक अध्यपु ाय� के बारे म� ;]
[(ग) राज्य के �व� आयोग द्वारा क� गई �सफा�रश� के आधार पर राज्य
2
1. सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग) को उपखंड (घ) के
रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया ।
भारत का सं�वधान 163
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 164
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(i)(अ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के क्रय या
�वक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या �वक्रय" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(i)(आ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के आयात
या उसके" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (1) के स्पष्ट�करण का लोप
�कया गया ।
4. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (2) और खंड (3) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(ii) द्वारा (16-9-2016 से) "माल का क्रय या
�वक्रय" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(iii) द्वारा (16-9-2016 से) खंड (3) का लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 165
(क) भारत सरकार द्वारा उपभोग �कया जाता है या भारत सरकार द्वारा
उपभोग �कए जाने के �लए उस सरकार को �वक्रय �कया जाता है, या
(ख) �कसी रे ल के �नमार्ण, बनाए रखने या चलाने म� भारत सरकार या
�कसी रे ल कंपनी द्वारा, जो उस रे ल को चलाती है, उपभोग �कया जाता है अथवा
�कसी रे ल के �नमार्ण, बनाए रखने या चलाने म� उपभोग के �लए उस सरकार या
�कसी ऐसी रे ल कंपनी को �वक्रय �कया जाता है,
कोई कर अ�धरो�पत नह�ं करे गी या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत नह�ं करे गी और �वद्यतु
के �वक्रय पर कोई कर अ�धरो�पत करने या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत करने वाल� कोई
ऐसी �व�ध यह सु�निश्चत करे गी �क भारत सरकार द्वारा उपभोग �कए जाने के �लए उस
सरकार को, या �कसी रे ल के �नमार्ण, बनाए रखने या चलाने म� उपभोग के �लए
यथापव ू �क्त �कसी रे ल कंपनी को �वक्रय क� गई �वद्यत
ु क� क�मत, उस क�मत से जो
�वद्यत
ु का प्रचरु मात्रा म� उपभोग करने वाले अन्य उपभोक्ताओं से ल� जाती है, उतनी
कम होगी िजतनी कर क� रकम है ।
288. जल या �वद्यत ु के संबध ं म� राज्य� द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म�
छूट – (1) वहां तक के �सवाय जहां तक राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अन्यथा उपबंध करे , इस
सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी राज्य क� कोई प्रव�ृ �व�ध �कसी जल या �वद्यत ु
के संबध
ं म� , जो �कसी अंतररािज्यक नद� या नद�-दन ू के �व�नयमन या �वकास के �लए
�कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा स्था�पत
�कसी प्रा�धकार� द्वारा सं�चत, उत्पा�दत, उपभुक्त, �वत�रत या �वक्र�त क� जाती है, कोई
कर अ�धरो�पत नह�ं करे गी या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत नह�ं करे गी ।
स्पष्ट�करण – इस खंड म� , “�कसी राज्य क� कोई प्रव�
ृ �व�ध” पद के अंतगर्त
�कसी राज्य क� ऐसी �व�ध होगी जो इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले पा�रत या बनाई
गई है और जो पहले ह� �नर�सत नह�ं कर द� गई है, चाहे वह या उसके कोई भाग उस
समय �बल्कुल या �व�शष्ट �ेत्र� म� प्रवतर्न म� न ह� ।
(2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, खंड (1) म� व�णर्त कोई कर
अ�धरो�पत कर सकेगा या ऐसे कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत कर सकेगा, �कन्तु ऐसी
�कसी �व�ध का तब तक कोई प्रभाव नह�ं होगा जब तक उसे राष्ट्रप�त के �वचार के �लए
आर��त रखे जाने के पश्चात ् उसक� अनम ु �त न �मल गई हो और य�द ऐसी कोई �व�ध
ऐसे कर� क� दर� और अन्य प्रसंग�तय� को �कसी प्रा�धकार� द्वारा, उस �व�ध के अधीन
बनाए जाने वाले �नयम� या आदे श� द्वारा, �नयत �कए जाने का उपबंध करती है तो वह
�व�ध ऐसे �कसी �नयम या आदे श के बनाने के �लए राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त अ�भप्राप्त
�कए जाने का उपबंध करे गी ।
289. राज्य� क� संप�� और आय को संघ के कराधान से छूट – (1) �कसी राज्य
क� संप�� और आय को संघ के कर� से छूट होगी ।
भारत का सं�वधान 166
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 19 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
2. मद्रास राज्य (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 167
1. सं�वधान (चाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 20 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 170
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ना राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
भाग 13
भारत के राज्य�ेत्र के भीतर व्यापार, वा�णज्य और समागम
301. व्यापार, वा�णज्य और समागम क� स्वतंत्रता – इस भाग के अन्य उपबंध�
के अधीन रहते हुए, भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र व्यापार, वा�णज्य और समागम अबाध
होगा ।
302. व्यापार, वा�णज्य और समागम पर �नब�धन अ�धरो�पत करने क� संसद् क�
शिक्त – संसद् �व�ध द्वारा, एक राज्य और दस
ू रे राज्य के बीच या भारत के राज्य�ेत्र
के �कसी भाग के भीतर व्यापार, वा�णज्य या समागम क� स्वतंत्रता पर ऐसे �नब�धन
अ�धरो�पत कर सकेगी जो लोक �हत म� अपे��त ह� ।
303. व्यापार और वा�णज्य के संबध ं म� संघ और राज्य� क� �वधायी शिक्तय� पर
�नब�धन – (1) अनच् ु छे द 302 म� �कसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनसु ूची क� सू�चय�
म� से �कसी म� व्यापार और वा�णज्य संबध ं ी �कसी प्र�विष्ट के आधार पर, संसद् को या
राज्य के �वधान-मंडल को, कोई ऐसी �व�ध बनाने क� शिक्त नह�ं होगी जो एक राज्य
को दसू रे राज्य से अ�धमान दे ती है या �दया जाना प्रा�धकृत करती है अथवा एक राज्य
और दस ू रे राज्य के बीच कोई �वभेद करती है या �कया जाना प्रा�धकृत करती है ।
(2) खंड (1) क� कोई बात संसद् को कोई ऐसी �व�ध बनाने से नह�ं रोकेगी जो
कोई ऐसा अ�धमान दे ती है या �दया जाना प्रा�धकृत करती है अथवा कोई ऐसा �वभेद
करती है या �कया जाना प्रा�धकृत करती है, य�द ऐसी �व�ध द्वारा यह घो�षत �कया
जाता है �क भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग म� माल क� कमी से उत्पन्न �कसी िस्थ�त
से �नपटने के प्रयोजन के �लए ऐसा करना आवश्यक है ।
304. राज्य� के बीच व्यापार, वा�णज्य और समागम पर �नब�धन – अनच् ु छे द
301 या अनच् ु छे द 303 म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी राज्य का �वधान-मंडल,
�व�ध द्वारा,–
(क) अन्य राज्य� 1[या संघ राज्य�ेत्र�] से आयात �कए गए माल पर कोई
ऐसा कर अ�धरो�पत कर सकेगा जो उस राज्य म� �व�न�मर्त या उत्पा�दत वैसे ह�
माल पर लगता है, �कन्तु इस प्रकार �क उससे इस तरह आयात �कए गए माल
और ऐसे �व�न�मर्त या उत्पा�दत माल के बीच कोई �वभेद न हो ; या
(ख) उस राज्य के साथ या उसके भीतर व्यापार, वा�णज्य और समागम क�
स्वतंत्रता पर ऐसे यिु क्तयक्
ु त �नब�धन अ�धरो�पत कर सकेगा जो लोक �हत म�
अपे��त ह� :
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
171
भारत का सं�वधान 172
परं तु खंड (ख) के प्रयोजन� के �लए कोई �वधेयक या संशोधन राष्ट्रप�त क� पवू र्
मंजरू � के �बना �कसी राज्य के �वधान-मंडल म� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत नह�ं �कया
जाएगा ।
1
[305. �वद्यमान �व�धय� और राज्य के एका�धकार का उपबंध करने वाल�
�व�धय� क� व्याव�ृ � – वहां तक के �सवाय जहां तक राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अन्यथा
�नदे श दे अनच्ु छे द 301 और अनच् ु छे द 303 क� कोई बात �कसी �वद्यमान �व�ध के
उपबंध� पर कोई प्रभाव नह�ं डालेगी और अनच् ु छे द 301 क� कोई बात सं�वधान (चौथा
संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 के प्रारं भ से पहले बनाई गई �कसी �व�ध के प्रवतर्न पर वहां
तक कोई प्रभाव नह�ं डालेगी जहां तक वह �व�ध �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है, जो
अनच्
ु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म� �न�दर्ष्ट है या वह �व�ध ऐसे �कसी �वषय
के संबधं म� , जो अनच् ु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म� �न�दर्ष्ट है, �व�ध बनाने से
संसद् या �कसी राज्य के �वधान-मंडल को नह�ं रोकेगी ।]
306. [पहल� अनस ु ूची के भाग ख के कुछ राज्य� क� व्यापार और वा�णज्य पर
�नब�धन� के अ�धरोपण क� शिक्त ।] – सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क�
धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा लोप �कया गया ।
307. अनच् ु छे द 301 से अनच् ु छे द 304 के प्रयोजन� को कायार्िन्वत करने के �लए
प्रा�धकार� क� �नयिु क्त – संसद् �व�ध द्वारा, ऐसे प्रा�धकार� क� �नयिु क्त कर सकेगी जो
वह अनच् ु छे द 301, अनच् ु छे द 302, अनच् ु छे द 303 और अनच्ु छे द 304 के प्रयोजन� को
कायार्िन्वत करने के �लए समु�चत समझे और इस प्रकार �नयक् ु त प्रा�धकार� को ऐसी
शिक्तयां प्रदान कर सकेगी और ऐसे कतर्व्य स�प सकेगी जो वह आवश्यक समझे ।
1. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 4 द्वारा (27-4-1955 से) अनुच्छे द 305 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भाग 14
संघ और राज्य� के अधीन सेवाएं
अध्याय 1 – सेवाएं
308. �नवर्चन – इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,
“राज्य” पद 1[के अंतगर्त जम्म-ू कश्मीर राज्य नह�ं है ।]
309. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� भत� और सेवा क� शत� –
इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, समु�चत �वधान-मंडल के अ�ध�नयम संघ
या �कसी राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत लोक सेवाओं और पद� के �लए भत� का और
�नयक्ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सक�गे :
परं तु जब तक इस अनच् ु छे द के अधीन समु�चत �वधान-मंडल के अ�ध�नयम द्वारा
या उसके अधीन इस �न�म� उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, यथािस्थ�त, संघ के
कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं और पद� क� दशा म� राष्ट्रप�त या ऐसा व्यिक्त िजसे वह
�न�दष्ट करे और राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं और पद� क� दशा म� राज्य का
राज्यपाल 2*** या ऐसा व्यिक्त िजसे वह �न�दष्ट करे , ऐसी सेवाओं और पद� के �लए
भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन करने वाले �नयम बनाने
के �लए स�म होगा और इस प्रकार बनाए गए �नयम �कसी ऐसे अ�ध�नयम के उपबंध� के
अधीन रहते हुए प्रभावी ह�गे ।
310. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� पदाव�ध – (1) इस
सं�वधान द्वारा अ�भव्यक्त रूप से यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक व्यिक्त जो र�ा
सेवा का या संघ क� �स�वल सेवा का या अ�खल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा र�ा
से संब�ं धत कोई पद या संघ के अधीन कोई �स�वल पद धारण करता है, राष्ट्रप�त के
प्रसादपय�त पद धारण करता है और प्रत्येक व्यिक्त जो �कसी राज्य क� �स�वल सेवा का
सदस्य है या राज्य के अधीन कोई �स�वल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल 3
के प्रसादपय�त पद धारण करता है ।
2
(2) इस बात के होते हुए भी �क संघ या �कसी राज्य के अधीन �स�वल पद धारण
करने वाला व्यिक्त, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्य के राज्यपाल 2*** के प्रसादपय�त पद
धारण करता है, कोई सं�वदा िजसके अधीन कोई व्यिक्त जो र�ा सेवा का या अ�खल
भारतीय सेवा का या संघ या राज्य क� �स�वल सेवा का सदस्य नह�ं है, ऐसे �कसी पद को
धारण करने के �लए इस सं�वधान के अधीन �नयक् ु त �कया जाता है, उस दशा म� , िजसम� ,
यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्यपाल 4*** �वशेष अहर्ताओं वाले �कसी व्यिक्त क� सेवाएं
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “प्रथम अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट राज्य अ�भप्रेत है” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, उस
राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख” के स्थान पर उपरोक्त रूप म� रखा गया ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
173
भारत का सं�वधान 174
1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधऩ) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 10 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (2) और खंड (3) के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधऩ) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� का लोप �कया
गया ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 175
312. अ�खल भारतीय सेवाएं – (1) 1[भाग 6 के अध्याय 6 या भाग 11] म� �कसी
बात के होते हुए भी, य�द राज्य सभा ने उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� म� से कम
से कम दो-�तहाई सदस्य� द्वारा सम�थर्त संकल्प द्वारा यह घो�षत �कया है �क राष्ट्र�य
�हत म� ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो संसद्, �व�ध द्वारा, संघ और राज्य� के
�लए सिम्म�लत एक या अ�धक अ�खल भारतीय सेवाओं के 2[(िजनके अंतगर्त अ�खल
भारतीय न्या�यक सेवा है)] सज ृ न के �लए उपबंध कर सकेगी और इस अध्याय के अन्य
उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी ऐसी सेवा के �लए भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क�
सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सकेगी ।
[(3) खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अ�खल भारतीय न्या�यक सेवा के अंतगर्त अनच्
2
ु छे द
236 म� प�रभा�षत िजला न्यायाधीश के पद से अवर कोई पद नह�ं होगा ।
(4) पव
ू �क्त अ�खल भारतीय न्या�यक सेवा के सज ृ न के �लए उपबंध करने वाल�
�व�ध म� भाग 6 के अध्याय 6 के संशोधन के �लए ऐसे उपबंध अंत�वर्ष्ट हो सक�गे जो
उस �व�ध के उपबंध� को कायार्िन्वत करने के �लए आवश्यक ह� और ऐसी कोई �व�ध
अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी ।]
3
[312क. कुछ सेवाओं के अ�धका�रय� क� सेवा क� शत� म� प�रवतर्न करने या
उन्ह� प्र�तसंहृत करने क� संसद् क� शिक्त – (1) संसद्, �व�ध द्वारा –
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) “भाग 11” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 176
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 178
परं तु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्य� म� से यथाशक्य �नकटतम आधे ऐसे
व्यिक्त ह�गे जो अपनी-अपनी �नयिु क्त क� तार�ख पर भारत सरकार या �कसी राज्य क�
सरकार के अधीन कम से कम दस वषर् तक पद धारण कर चक ु े ह� और उक्त दस वषर्
क� अव�ध क� संगणना करने म� इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� ऐसी अव�ध भी
सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान �कसी व्यिक्त ने भारत म� क्राउन के अधीन या
�कसी दे शी राज्य क� सरकार के अधीन पद धारण �कया है ।
[(1क) य�द आयोग के अध्य� का पद �रक्त हो जाता है या य�द कोई ऐसा
1
अध्य� अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कतर्व्य� का पालन करने
म� असमथर् है तो, यथािस्थ�त, जब तक �रक्त पद पर खंड (1) के अधीन �नयक् ु त कोई
व्यिक्त उस पद का कतर्व्य भार ग्रहण नह�ं कर लेता है या जब तक अध्य� अपने
कतर्व्य� को �फर से नह�ं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्य� म� से ऐसा
एक सदस्य, िजसे संघ आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त और राज्य
आयोग क� दशा म� उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उन
कतर्व्य� का पालन करे गा ।]
(2) लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण क� तार�ख से छह वषर् क�
अव�ध तक या संघ आयोग क� दशा म� प�सठ वषर् क� आयु प्राप्त कर लेने तक और
राज्य आयोग या संयक्
ु त आयोग क� दशा म� [बासठ वषर्] क� आयु प्राप्त कर लेने तक
2
1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधऩ) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 11 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (इकताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से) “साठ वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 179
317. लोक सेवा आयोग के �कसी सदस्य का हटाया जाना और �नलं�बत �कया
जाना – (1) खंड (3) के उपबंध� के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अध्य� या
�कसी अन्य सदस्य को केवल कदाचार के आधार पर �कए गए राष्ट्रप�त के ऐसे आदे श
से उसके पद से हटाया जाएगा जो उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रप�त द्वारा �नद� श �कए
जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनच्ु छे द 145 के अधीन इस �न�म� �व�हत प्र�क्रया के
अनसु ार क� गई जांच पर, यह प्र�तवेदन �कए जाने के पश्चात ् �कया गया है �क,
यथािस्थ�त, अध्य� या ऐसे �कसी सदस्य को ऐसे �कसी आधार पर हटा �दया जाए ।
(2) आयोग के अध्य� या �कसी अन्य सदस्य को, िजसके संबधं म� खंड (1) के
अधीन उच्चतम न्यायालय को �नद� श �कया गया है, 1*** संघ आयोग या संयक् ु त
आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त और राज्य आयोग क� दशा म� राज्यपाल उसके पद से तब
तक के �लए �नलं�बत कर सकेगा जब तक राष्ट्रप�त ऐसे �नद� श पर उच्चतम न्यायालय
का प्र�तवेदन �मलने पर अपना आदे श पा�रत नह�ं कर दे ता है ।
(3) खंड (1) म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द लोक सेवा आयोग का,
यथािस्थ�त, अध्य� या कोई अन्य सदस्य –
(क) �दवा�लया न्याय�नण�त �कया जाता है, या
(ख) अपनी पदाव�ध म� अपने पद के कतर्व्य� के बाहर �कसी सवेतन
�नयोजन म� लगता है, या
(ग) राष्ट्रप�त क� राय म� मान�सक या शार��रक शै�थल्य के कारण अपने
पद पर बने रहने के �लए अयोग्य है,
तो राष्ट्रप�त, अध्य� या ऐसे अन्य सदस्य को आदे श द्वारा पद से हटा सकेगा ।
(4) य�द लोक सेवा आयोग का अध्य� या कोई अन्य सदस्य, �नग�मत कंपनी
के सदस्य के रूप म� और कंपनी के अन्य सदस्य� के साथ सिम्म�लत रूप से अन्यथा,
उस सं�वदा या करार से, जो भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या �न�म� क�
गई या �कया गया है, �कसी प्रकार से संपक्
ृ त या �हतबद्ध है या हो जाता है या उसके
लाभ या उससे उद्भत ू �कसी फायदे या उपलिब्ध म� भाग लेता है तो वह खंड (1) के
प्रयोजन� के �लए कदाचार का दोषी समझा जाएगा ।
318. आयोग के सदस्य� और कमर्चा�रवदंृ क� सेवा क� शत� के बारे म� �व�नयम
बनाने क� शिक्त – संघ आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त और राज्य
आयोग क� दशा म� उस राज्य का राज्यपाल 1*** �व�नयम� द्वारा –
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 180
उसे �नद� �शत करे , परामशर् दे ने का लोक सेवा आयोग का कतर्व्य होगा :
परं तु अ�खल भारतीय सेवाओं के संबध ं म� तथा संघ के कायर्कलाप से संब�ं धत
अन्य सेवाओं और पद� के संबध ं म� भी राष्ट्रप�त तथा राज्य के कायर्कलाप से संब�धत
अन्य सेवाओं और पद� के संबध ं म� राज्यपाल 2 उन �वषय� को �व�न�दर्ष्ट करने वाले
16
�व�नयम बना सकेगा िजनम� साधारणतया या �कसी �व�शष्ट वगर् के मामले म� या �कन्ह�ं
�व�शष्ट प�रिस्थ�तय� म� लोक सेवा आयोग से परामशर् �कया जाना आवश्यक नह�ं होगा ।
(4) खंड (3) क� �कसी बात से यह अपे�ा नह�ं होगी �क लोक सेवा आयोग से
उस र��त के संबध ं म� , िजससे अनच् ु छे द 16 के खंड (4) म� �न�दर् ष्ट कोई उपबंध �कया
जाना है या उस र��त के संबध ं म� , िजससे अनच् ु छे द 335 के उपबंध� को प्रभावी �कया
जाना है, परामशर् �कया जाए ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त,
राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्द� के स्थान पर उपरोक्त रूप से रखा गया ।
भारत का सं�वधान 182
(5) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा खंड (3) के परं तुक के
17
अधीन बनाए गए सभी �व�नयम, बनाए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र, यथािस्थ�त, संसद् के
प्रत्येक सदन या राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के सम� कम से कम
चौदह �दन के �लए रखे जाएंगे और �नरसन या संशोधन द्वारा �कए गए ऐसे उपांतरण�
के अधीन ह�गे जो संसद् के दोन� सदन या उस राज्य के �वधान-मंडल का सदन या
दोन� सदन उस सत्र म� कर� िजसम� वे इस प्रकार रखे गए ह� ।
321. लोक सेवा आयोग� के कृत्य� का �वस्तार करने क� शिक्त – यथािस्थ�त,
संसद् द्वारा या �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अ�ध�नयम संघ
लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ क� या राज्य क� सेवाओं के
संबध
ं म� और �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �व�ध द्वारा ग�ठत अन्य �नग�मत �नकाय
या �कसी लोक संस्था क� सेवाओं के संबध ं म� भी अ�त�रक्त कृत्य� के प्रयोग के �लए
उपबंध कर सकेगा ।
322. लोक सेवा आयोग� के व्यय – संघ या राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय,
िजनके अंतगर्त आयोग के सदस्य� या कमर्चा�रवंदृ को या उनके संबध ं म� संदेय कोई
वेतन, भ�े और प� शन ह�, यथािस्थ�त, भारत क� सं�चत �न�ध या राज्य क� सं�चत �न�ध
पर भा�रत ह�गे ।
323. लोक सेवा आयोग� के प्र�तवेदन – (1) संघ आयोग का यह कतर्व्य होगा
�क वह राष्ट्रप�त को आयोग द्वारा �कए गए कायर् के बारे म� प्र�तवषर् प्र�तवेदन दे और
राष्ट्रप�त ऐसा प्र�तवेदन प्राप्त होने पर उन मामल� के संबध
ं म� , य�द कोई ह�, िजनम�
आयोग क� सलाह स्वीकार नह�ं क� गई थी, ऐसी अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने
वाले �ापन स�हत उस प्र�तवेदन क� प्र�त संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा ।
(2) राज्य आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह राज्य के राज्यपाल 1*** को
आयोग द्वारा �कए गए कायर् के बारे म� प्र�तवषर् प्र�तवेदन दे और संयक्ु त आयोग का यह
कतर्व्य होगा �क ऐसे राज्य� म� से प्रत्येक के, िजनक� आवश्यकताओं क� प�ू तर् संयक् ु त
आयोग द्वारा क� जाती है, राज्यपाल 1*** को उस राज्य के संबध ं म� आयोग द्वारा
�कए गए कायर् के बारे म� प्र�तवषर् प्र�तवेदन दे और दोन� म� से प्रत्येक दशा म� ऐसा
प्र�तवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल 2*** उन मामल� के संबध ं म� , य�द कोई ह�, िजनम�
आयोग क� सलाह स्वीकार नह�ं क� गई थी, ऐसी अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने
वाले �ापन स�हत उस प्र�तवेदन क� प्र�त राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त,
राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्द� के स्थान पर उपरोक्त रूप से रखा गया ।
1
[भाग 14क
अ�धकरण
323क. प्रशास�नक अ�धकरण – (1) संसद्, �व�ध द्वारा, संघ या �कसी राज्य के
अथवा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर या भारत सरकार के �नयंत्रण के अधीन �कसी
स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अथवा सरकार के स्वा�मत्व या �नयंत्रण के अधीन �कसी
�नगम के कायर्कलाप से संब�ं धत लोक सेवाओं और पद� के �लए भत� तथा �नयक् ु त
व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� के संबध ं म� �ववाद� और प�रवाद� के प्रशास�नक अ�धकरण�
द्वारा न्याय�नणर्यन या �वचारण के �लए उपबंध कर सकेगी ।
(2) खंड (1) के अधीन बनाई गई �व�ध –
(क) संघ के �लए एक प्रशास�नक अ�धकरण और प्रत्येक राज्य के �लए
अथवा दो या अ�धक राज्य� के �लए एक पथ
ृ क् प्रशास�नक अ�धकरण क� स्थापना
के �लए उपबंध कर सकेगी ;
(ख) उक्त अ�धकरण� म� से प्रत्येक अ�धकरण द्वारा प्रयोग क� जाने
वाल� अ�धका�रता, शिक्तयां (िजनके अंतगर्त अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त
है) और प्रा�धकार �व�न�दर्ष्ट कर सकेगी ;
(ग) उक्त अ�धकरण� द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया के �लए
(िजसके अंतगर्त प�रसीमा के बारे म� और सा�य के �नयम� के बारे म� उपबंध ह�)
उपबंध कर सकेगी ;
(घ) अनच्ु छे द 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता के
�सवाय सभी न्यायालय� क� अ�धका�रता का खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �ववाद� या
प�रवाद� के संबध म� अपवजर्न कर सकेगी ;
(ङ) प्रत्येक ऐसे प्रशास�नक अ�धकरण को उन मामल� के अंतरण के �लए
उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अ�धकरण क� स्थापना से ठ�क पहले �कसी न्यायालय
या अन्य प्रा�धकार� के सम� लं�बत ह� और जो, य�द ऐसे वाद हेतुक िजन पर
ऐसे वाद या कायर्वा�हयां आधा�रत ह�, अ�धकरण क� स्थापना के पश्चात ् उत्पन्न
होते तो, ऐसे अ�धकरण क� अ�धका�रता के भीतर होते ;
(च) राष्ट्रप�त द्वारा अनच्
ु छे द 371घ के खंड (3) के अधीन �कए गए
आदे श का �नरसन या संशोधन कर सकेगी ;
(छ) ऐसे अनप ु रू क, आनष
ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त
फ�स के बारे म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगी जो संसद् ऐसे अ�धकरण� के
प्रभावी कायर्करण के �लए और उनके द्वारा मामल� के शीघ्र �नपटारे के �लए और
उनके आदे श� के प्रवतर्न के �लए आवश्यक समझे ।
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 46 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
183
भारत का सं�वधान 184
(भाग 14क—अ�धकरण)
1. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (झ) को उपखंड (ञ)
के रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(छ)” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 185
(भाग 14क—अ�धकरण)
1
[(ञ)] उपखंड (क) से उपखंड 2[(झ)] म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी का
आनष
ु �
ं गक कोई �वषय ।
(3) खंड (1) के अधीन बनाई गई �व�ध –
(क) अ�धकरण� के उत्क्रम क� स्थापना के �लए उपबंध कर सकेगी ;
(ख) उक्त अ�धकरण� म� से प्रत्येक अ�धकरण द्वारा प्रयोग क� जाने वाल�
अ�धका�रता, शिक्तयां (िजनके अंतगर्त अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त है)
और प्रा�धकार �व�न�दर्ष्ट कर सकेगी ;
(ग) उक्त अ�धकरण� द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया के �लए
(िजसके अंतगर्त प�रसीमा के बारे म� और सा�य के �नयम� के बारे म� उपबंध ह�)
उपबंध कर सकेगी ;
(घ) अनच्
ु छे द 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता के
�सवाय सभी न्यायालय� क� अ�धका�रता का उन सभी या �कन्ह�ं �वषय� के संबध
ं
म� अपवजर्न कर सकेगी जो उक्त अ�धकरण� क� अ�धका�रता के अंतगर्त आते
ह� ;
(ङ) प्रत्येक ऐसे अ�धकरण को उन मामल� के अंतरण के �लए उपबंध कर
सकेगी जो ऐसे अ�धकरण क� स्थापना से ठ�क पहले �कसी न्यायालय या अन्य
प्रा�धकार� के सम� लं�बत ह� और जो, य�द ऐसे वाद हेतुक िजन पर ऐसे वाद या
कायर्वा�हयां आधा�रत ह�, अ�धकरण क� स्थापना के पश्चात ् उत्पन्न होते तो ऐसे
अ�धकरण क� अ�धका�रता के भीतर होते ;
(च) ऐसे अनप
ु रू क, आनषु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त
फ�स के बारे म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगी जो सम�ु चत �वधान-मंडल ऐसे
अ�धकरण� के प्रभावी कायर्करण के �लए और उनके द्वारा मामल� के शीघ्र
�नपटारे के �लए और उनके आदे श� के प्रवतर्न के �लए आवश्यक समझे ।
(4) इस अनच्ु छे द के उपबंध इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध म� या तत्समय
प्रव�
ृ �कसी अन्य �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह�गे ।
स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द म� , �कसी �वषय के संबध ं म� , “समु�चत �वधान-मंडल”
से, यथािस्थ�त, संसद् या �कसी राज्य का �वधान-मंडल अ�भप्रेत है, जो भाग 11 के
उपबंध� के अनस ु ार ऐसे �वषय के संबध ं म� �व�ध बनाने के �लए स�म है ।]
1. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (ज) और उपखंड (झ)
को उपखंड (झ) और और उपखंड (ञ) के रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया ।
2. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(ज)” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भाग 15
�नवार्चन
324. �नवार्चन� के अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण का �नवार्चन आयोग म�
�न�हत होना--(1) इस सं�वधान के अधीन संसद् और प्रत्येक राज्य के �वधान-मंडल के
�लए कराए जाने वाले सभी �नवार्चन� के �लए तथा राष्ट्रप�त और उपराष्ट्रप�त के पद� के
�लए �नवार्चन� के �लए �नवार्चक-नामावल� तैयार कराने का और उन सभी �नवार्चन� के
संचालन का अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण, 1*** एक आयोग म� �न�हत होगा (िजसे
इस सं�वधान म� �नवार्चन आयोग कहा गया है) ।
(2) �नवार्चन आयोग मुख्य �नवार्चन आयक्
ु त और उतने अन्य �नवार्चन आयक् ु त�
से, य�द कोई ह�, िजतने राष्ट्रप�त समय-समय पर �नयत करे , �मलकर बनेगा तथा
मुख्य �नवार्चन आयक् ु त और अन्य �नवार्चन आयक्ु त� क� �नयिु क्त, संसद् द्वारा इस
�न�म� बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राष्ट्रप�त द्वारा क� जाएगी ।
(3) जब कोई अन्य �नवार्चन आयक् ु त इस प्रकार �नयक्
ु त �कया जाता है तब
मुख्य �नवार्चन आयक्
ु त �नवार्चन आयोग के अध्य� के रूप म� कायर् करे गा ।
(4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा के प्रत्येक साधारण
�नवार्चन से पहले तथा �वधान प�रषद् वाले प्रत्येक राज्य क� �वधान प�रषद् के �लए
प्रथम साधारण �नवार्चन से पहले और उसके पश्चात ् प्रत्येक द्�ववा�षर्क �नवार्चन से
पहले, राष्ट्रप�त �नवार्चन आयोग से परामशर् करने के पश्चात ्, खंड (1) द्वारा �नवार्चन
आयोग को स�पे गए कृत्य� के पालन म� आयोग क� सहायता के �लए उतने प्रादे �शक
आयक् ु त� क� भी �नयिु क्त कर सकेगा िजतने वह आवश्यक समझे ।
(5) संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नवार्चन
आयक्
ु त� और प्रादे �शक आयक्
ु त� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध ऐसी ह�गी जो राष्ट्रप�त
�नयम द्वारा अवधा�रत करे :
परन्तु मुख्य �नवार्चन आयक्
ु त को उसके पद से उसी र��त से और उन्ह�ं आधार�
पर ह� हटाया जाएगा, िजस र��त से और िजन आधार� पर उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश को हटाया जाता है अन्यथा नह�ं और मुख्य �नवार्चन आयक् ु त क� सेवा क�
शत� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा :
1. सं�वधान (उन्नीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 2 द्वारा (11-12-1966 से) “िजसके अंतगर्त संसद् के
और राज्य के �वधान-मंडल� के �नवार्चन� से उद्भूत या संसक्त संदेह� और �ववाद के �नणर्य के �लए �नवार्चन
न्याया�धकरण क� �नयुिक्त भी है” शब्द� का लोप �कया गया ।
186
भारत का सं�वधान 187
(भाग 15—�नवार्चन)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (इकसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 2 द्वारा (28-3-1989 से) “इक्क�स वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 188
(भाग 15—�नवार्चन)
1. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (10-8-1975 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परन्तु अनुच्छे द 329क के
उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द�, अंक� और अ�र का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्था�पत ।
भाग 16
कुछ वग� के संबंध म� �वशेष उपबंध
330. लोक सभा म� अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए
स्थान� का आर�ण–(1) लोक सभा म� –
(क) अनस ु ू�चत जा�तय� के �लए,
1
[(ख) असम के स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� को छोड़कर
अन्य अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए, और]
(ग) असम के स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए,
स्थान आर��त रह� गे ।
(2) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] म� अनस ु ू�चत जा�तय�
या अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, लोक सभा म�
उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह�
होगा जो, यथािस्थ�त, उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� अनस ु ू�चत जा�तय� क� अथवा
उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� या उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के भाग क�
अनस ु ू�चत जनजा�तय� क�, िजनके संबध ं म� स्थान इस प्रकार आर��त ह�, जनसंख्या का
अनप ु ात उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� कुल जनसंख्या से है ।
3
[(3) खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, लोक सभा म� असम के स्वशासी
िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस
राज्य को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप ु ात से कम नह�ं होगा जो उक्त
स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य क� कुल
जनसंख्या से है ।]
4
[स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द म� और अनच् ु छे द 332 म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी
अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना म� अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसग ं त
आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� :
परन्तु इस स्पष्ट�करण म� अं�तम पव ू व
र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सस ु ंगत
आंकड़े प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 5[2026] के पश्चात ् क� गई पहल�
जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह
6
[2001] क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।]
1. सं�वधान (इक्यावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
5. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 6 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
189
भारत का सं�वधान 190
1. सं�वधान (इक्यावनव� संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) कुछ शब्द� के स्थान
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (स�ावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 191
1. सं�वधान (बह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्द� का लोप
�कया गया ।
4. सं�वधान (नब्बेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (28-9-2003 से) अंतःस्था�पत ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
6. सं�वधान (तेईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा (23-1-1970 से) “उस �वधान सभा म� उस
समुदाय के िजतने सदस्य वह समु�चत समझे नाम�नद� �शत कर सकेगा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 192
1. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) से प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) “स�र वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत । सं�वधान (पचानव� वां संशोधन) अ�ध�नयम, 2009 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2010 से) “साठ वषर्” के
स्थान “स�र वषर्” प्र�तस्था�पत । सं�वधान (उनासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2004 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2000
से) “पचास वषर्” के स्थान पर “साठ वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बासठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क�
धारा 2 द्वारा (20-12-1989 से) “चाल�स वषर्” के स्थान पर “पाचस वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत । सं�वधान (प�ताल�सवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 क� धारा 2 द्वारा (25-1-1980) “तीस वषर्” मूल शब्द� के स्थान पर “चाल�स वषर्”
शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे ।
3. सं�वधान (बयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (6-9-2000 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 193
एक आयोग होगा जो राष्ट्र�य अनस ु ू�चत जा�त आयोग के नाम से �ात होगा ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पाश्वर् शीषर् के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) खंड (1) और (2) के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 194
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, आयोग एक अध्य�, एक उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और
इस प्रकार �नयक्
ु त �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और
पदाव�ध ऐसी ह�गी जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा, अवधा�रत करे ।]
(3) राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मद्र
ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�,
उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नयक् ु त करे गा ।
(4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� शिक्त होगी ।
(5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,–
(क) अनस
ु ू�चत जा�तय� 1*** के �लए इस सं�वधान या तत्समय प्रव�
ृ
�कसी अन्य �व�ध या सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत र�ोपाय� से
संब�ं धत सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे तथा ऐसे
र�ोपाय� के कायर्करण का मूल्यांकन करे ;
(ख) अनसु ू�चत जा�तय� 1*** को उनके अ�धकार� और र�ोपाय� से वं�चत
करने क� बाबत �व�न�दर्ष्ट �शकायत� क� जांच करे ;
(ग) अनस
ु ू�चत जा�तय� 1*** के सामािजक-आ�थर्क �वकास क� योजना
प्र�क्रया म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन
उनके �वकास क� प्रग�त का मूल्यांकन करे ;
(घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर्, और ऐसे अन्य समय�
पर, जो आयोग ठ�क समझे, राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे ;
(ङ) ऐसे प्र�तवेदन� म� उन उपाय� के बारे म� जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण
ू र्
कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हएं, तथा
अनसु �ू चत जा�तय� *** के
1
संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के
�लए अन्य उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ;
(च) अनस
ु �ू चत जा�तय� *** के संर�ण, कल्याण, �वकास तथा उन्नयन
1
के संबध
ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे जो राष्ट्रप�त, संसद् द्वारा बनाई
गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे ।
(6) राष्ट्रप�त ऐसे सभी प्र�तवेदन� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा
और उसके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत
कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को
स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा ।
1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 195
(7) जहां कोई ऐसा प्र�तवेदन, या उसका कोई भाग �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत
है िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध ं है तो ऐसे प्र�तवेदन क� एक प्र�त उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके
साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई
तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट
करने वाला �ापन भी होगा ।
(8) आयोग को खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी �वषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय,
�व�शष्टतया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबधं म� , वे सभी शिक्तयां ह�गी जो वाद का
�वचारण करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :–
(क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्यिक्त को समन करना और
हािजर कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ;
(ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ;
(ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ;
(घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त
क� अपे�ा करना ;
(ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ;
(च) कोई अन्य �वषय जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा, अवधा�रत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनसु ू�चत जा�तय� *** को प्रभा�वत करने
1
1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को खंड (10) के रूप
म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 2 द्वारा (15-8-2018 से) "ऐसे अन्य �पछड़े वग� के
प्र�त �नद� श, िजनको राष्ट्रप�त अनुच्छे द 340 के खंड (1) के अधीन �नयुक्त आयोग के प्र�तवेदन क� प्रािप्त पर
आदे श द्वारा �व�न�दर् ष्ट करे , और आंग्ल-भारतीय समुदाय प्र�त �नद� श भी है" शब्द�, अंक� और कोष्ठक� के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 196
[338क. राष्ट्र�य अनसु ू�चत जनजा�त आयोग–(1) अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए
1
1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (19-2-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 197
(6) राष्ट्रप�त ऐसी सभी �रपोट� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा
और उनके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत
कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को
स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा ।
(7) जहां कोई ऐसी �रपोटर् या उसका कोई भाग, �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है
िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध ं है तो ऐसी �रपोटर् क� एक प्र�त उस राज्य के
राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके
साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई
तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट
करने वाला �ापन भी होगा ।
(8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी �वषय का अन्वेषण
करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय,
�व�शष्टतया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबधं म� , वे सभी शिक्तयां ह�गी, जो वाद का
�वचारण करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :–
(क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्यिक्त को समन करना और
हािजर कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ;
(ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ;
(ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ;
(घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त
क� अध्यपे�ा करना ;
(ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ;
(च) कोई अन्य �वषय, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनस
ु ू�चत जनजा�तय� को प्रभा�वत करने
वाले सभी महत्वपण
ू र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी ।]
[338ख. �पछड़े वग� के �लए राष्ट्र�य आयोग–(1) सामािजक और शै��क दृिष्ट
1
से �पछड़े वग� के �लए एक आयोग होगा जो राष्ट्र�य �पछड़ा वगर् आयोग के नाम से �ात
होगा ।
(2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते
हुए, आयोग एक अध्य�, उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस
प्रकार �नयक्
ु त �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और
पदाव�ध ऐसी ह�गी, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे ।
(3) राष्ट्रप�त, अपने हस्ता�र और मद्रु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�,
उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नयक् ु त करे गा ।
1. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 3 द्वारा (15-8-2018 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 198
1. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 2 द्वारा (तार�ख 15-9-2021 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क और भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “�कसी ऐसे
राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 200
संबध
ं म� और जहां वह *** राज्य है वहां उसके राज्यपाल 4*** से परामशर् करने के
3
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 10 द्वारा (18-6-1951 से) “राज्य के राज्यपाल या
राजप्रमुख से परामशर् करने के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
5. सं�वधान (अऩुसू�चत जा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 19), सं�वधान (अनुसू�चत जा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र) आदे श,
1951 (सं.आ. 32), सं�वधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1956 (सं.आ. 52), सं�वधान (दादरा और
नागर हवेल�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 64). सं�वधान (पां�डचेर�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श,
1964 (सं.आ. 68), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1968 (सं.आ. 81) और
सं�वधान (�सिक्कम) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 110) दे �खए ।
भारत का सं�वधान 201
342. अनसु ू�चत जनजा�तयां–(1) राष्ट्रप�त, [�कसी राज्य [या संघ राज्य�ेत्र]
1 2
38
के संबध ं म� और जहां वह 3*** राज्य है वहां उसके राज्यपाल 3*** से परामशर् करने के
पश्चात ्] लोक अ�धसूचना 4 द्वारा, उन जनजा�तय� या जनजा�त समद
40
ु ाय� अथवा
जनजा�तय� या जनजा�त समुदाय� के भाग� या उनम� के यथ ू � को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा,
िजन्ह� इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए, 2[यथािस्थ�त,] उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र]
के संबधं म� अनसु �ू चत जनजा�तयां समझा जाएगा ।
(2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी जनजा�त या जनजा�त समुदाय को अथवा �कसी
जनजा�त या जनजा�त समद ु ाय के भाग या उसम� के यथू को खंड (1) के अधीन �नकाल� गई
अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम�
से अपविजर्त कर सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उक्त खंड के अधीन
�नकाल� गई अ�धसूचना म� �कसी पश्चातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।
[342क. सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर्–(1) राष्ट्रप�त, �कसी राज्य
5
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 11 द्वारा (18-6-1951 से) “राज्य के राज्यपाल या
राजप्रमुख से परामशर् करने के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया
गया ।
4. सं�वधान (अऩुस�ू चत जनजा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 22), सं�वधान (अनुसू�चत जनजा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र)
आदे श, 1951 (सं.आ. 33), सं�वधान (अंडमान और �नकोबार द्वीप) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1959
(सं.आ. 58), सं�वधान (दादरा और नागर हवेल�) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 65), सं�वधान
(अनुसू�चत जनजा�तयां) (उ�र प्रदे श) आदे श, 1967 (सं.आ. 78), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत
जनजा�तयां आदे श, 1968 (सं.आ. 82), सं�वधान (नागाल�ड) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1970 (सं.आ. 88)
और सं�वधान (�सिक्कम) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 111) दे �खए ।
5. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 4 द्वारा (15-8-2018 से) प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 3 द्वारा (15-9-2021 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 202
(3) खंड (1) और खंड (2) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, प्रत्येक राज्य
या संघ राज्य�ेत्र, �व�ध द्वारा, अपने स्वयं के प्रयोजन� के �लए, सामािजक और शै��क
दृिष्ट से �पछड़े वग� क� एक सूची तैयार कर सकेगा और रख सकेगा, िजसम� प्र�विष्टयां
क�द्र�य सूची से �भन्न हो सक�गी ।]
1. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 3 द्वारा (तार�ख 15-9-2021) अंतःस्था�पत ।
भाग 17
राजभाषा
अध्याय 1 – संघ क� भाषा
343. संघ क� राजभाषा – (1) संघ क� राजभाषा �हन्द� और �ल�प दे वनागर�
होगी ।
संघ के शासक�य प्रयोजन� के �लए प्रयोग होने वाले अंक� का रूप भारतीय अंक�
का अंतरराष्ट्र�य रूप होगा ।
(2) खंड (1) म� �कसी बात के होते हुए भी, इस सं�वधान के प्रारं भ से पन्द्रह वषर्
क� अव�ध तक संघ के उन सभी शासक�य प्रयोजन� के �लए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग
�कया जाता रहे गा िजनके �लए उसका ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले प्रयोग �कया जा रहा
था :
परन्तु राष्ट्रप�त उक्त अव�ध के दौरान, आदे श 1 द्वारा, संघ के शासक�य प्रयोजन�
0
1. सं.आ. 41 दे �खए ।
203
भारत का सं�वधान 204
(भाग 17—राजभाषा)
(भाग 17—राजभाषा)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 206
(भाग 17—राजभाषा)
परन्तु इस खंड क� कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा �दए गए �कसी �नणर्य,
�डक्र� या आदे श को लागू नह�ं होगी ।
(3) खंड (1) के उपखंड (ख) म� �कसी बात के होते हुए भी, जहां �कसी राज्य के
�वधान-मंडल ने, उस �वधान-मंडल म� परु ःस्था�पत �वधेयक� म� या उसके द्वारा पा�रत
अ�ध�नयम� म� अथवा उस राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा प्रख्या�पत अध्यादे श� म� अथवा
उस उपखंड के पैरा (iii) म� �न�दर्ष्ट �कसी आदे श, �नयम, �व�नयम या उप�व�ध म� प्रयोग
के �लए अंग्रेजी भाषा से �भन्न कोई भाषा �व�हत क� है वहां उस राज्य के राजपत्र म� उस
राज्य के राज्यपाल 1*** के प्रा�धकार से प्रका�शत अंग्रेजी भाषा म� उसका अनवु ाद इस
अनच्ु छे द के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा म� प्रा�धकृत पाठ समझा जाएगा ।
349. भाषा से संब�ं धत कुछ �व�धयां अ�ध�नय�मत करने के �लए �वशेष प्र�क्रया –
इस सं�वधान के प्रारं भ से पन्द्रह वषर् क� अव�ध के दौरान, अनच्
ु छे द 348 के खंड (1) म�
उिल्ल�खत �कसी प्रयोजन के �लए प्रयोग क� जाने वाल� भाषा के �लए उपबंध करने वाला
कोई �वधेयक या संशोधन संसद् के �कसी सदन म� राष्ट्रप�त क� पव ू र् मंजरू � के �बना
परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा और राष्ट्रप�त �कसी ऐसे �वधेयक को
परु ःस्था�पत या �कसी ऐसे संशोधन को प्रस्ता�वत �कए जाने क� मंजरू � अनच् ु छे द 344 के
खंड (1) के अधीन ग�ठत आयोग क� �सफा�रश� पर और उस अऩच् ु छे द के खंड (4) के
अधीन ग�ठत स�म�त के प्र�तवेदन पर �वचार करने के पश्चात ् ह� दे गा, अन्यथा नह�ं ।
अध्याय 4 – �वशेष �नदे श
350. व्यथा के �नवारण के �लए अभ्यावेदन म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा –
प्रत्येक व्यिक्त �कसी व्यथा के �नवारण के �लए संघ या राज्य के �कसी अ�धकार� या
प्रा�धकार� को, यथािस्थ�त, संघ म� या राज्य म� प्रयोग होने वाल� �कसी भाषा म� अभ्यावेदन
दे ने का हकदार होगा ।
[350क. प्राथ�मक स्तर पर मातभ ृ ाषा म� �श�ा क� सु�वधाएं – प्रत्येक राज्य और
2
राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्रा�धकार� भाषाई अल्पसंख्यक वग� के बालक� को �श�ा
के प्राथ�मक स्तर पर मातभ ृ ाषा म� �श�ा क� पयार्प्त सु�वधाओं क� व्यवस्था करने का
प्रयास करे गा और राष्ट्रप�त �कसी राज्य को ऐसे �नदे श दे सकेगा जो वह ऐसी स�ु वधाओं
का उपबंध स�ु निश्चत कराने के �लए आवश्यक या उ�चत समझता है ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 207
(भाग 17—राजभाषा)
(3) राष्ट्रप�त, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा म� प�रवतर्न करने
वाल� उद्घोषणा तब तक नह�ं करे गा जब तक संघ के मं�त्रमंडल का (अथार्त ् उस प�रषद्
का जो अनच् ु छे द 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मं�त्रमंडल स्तर के अन्य मं�त्रय� से
�मलकर बनती है) यह �व�नश्चय �क ऐसी उद्घोषणा क� जाए, उसे �ल�खत रूप म�
संसू�चत नह�ं �कया जाता है ।
(4) इस अनच्
ु छे द के अधीन क� गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के
सम� रखी जाएगी और जहां वह पव ू व
र् त� उद्घोषणा को वापस लेने वाल� उद्घोषणा नह�ं
है वहां वह एक मास क� समािप्त पर, य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले संसद् के
दोन� सदन� के संकल्प� द्वारा उसका अनम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है तो, प्रवतर्न म�
नह�ं रहे गी :
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आंत�रक अशािन्त” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और
खंड (3) के स्थान पर खंड (2) से खंड (8) तक प्र�तस्था�पत �कए गए ।
208
भारत का सं�वधान 209
1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (4) और खंड (5)
अन्तःस्ता�पत और तत्पश्चात ् खंड (4) और खंड (5), खंड (9) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत और सं�वधान (चवाल�सवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आतं�रक अशािन्त” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 211
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 212
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, या
राजप्रमुख” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 213
अधीन क� गई उद्घोषणा क� दशा म�, इस खंड के पहले परन्तुक म� “तीन वषर्” के प्र�त
�नद� श का इस प्रकार अथर् लगाया जाएगा मानो वह 4[“पांच वषर्”] के प्र�त �नद� श हो ।]
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" के स्थान पर
प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से)
"खंड (3) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्प� म� से दूसरे के पा�रत हो जाने क� तार�ख से एक
वषर्" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" के स्थान पर "एक
वषर्" प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् द्वारा सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 38 क्रमशः (20-
6-1979 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (च�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (सड़सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (4-10-1990 से) प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ्
सं�वधान (अड़सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1991 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1991 से) संशो�धत होकर उपरोक्त रूप
म� आया ।
भारत का सं�वधान 214
1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 6 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत और
तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 धारा 38 (20-6-1979 से) खंड (5) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (�तरसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप �कया गया िजसे सं�वधान
(च�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्था�पत �कया गया था ।
भारत का सं�वधान 215
भाग म� प्रवतर्न म� है वहां, य�द और जहां तक भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग
क� सुर�ा, भारत के राज्य�ेत्र के उस भाग म� या उसके संबध ं म� , िजसम� आपात क�
उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, होने वाले �क्रयाकलाप के कारण संकट म� है तो और वहां तक,
ऐसे राज्य या संघ राज्य�ेत्र म� या उसके संबध ं म� , िजसम� या िजसके �कसी भाग म�
आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� नह�ं है, इस अनच् ु छे द के अधीन ऐसी कोई �व�ध बनाई
जा सकेगी या ऐसी कोई कायर्पा�लका कारर्वाई क� जा सकेगी ।]
6
[(2) खंड (1) क� कोई बात,–
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 358 को खंड (1)
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात क� उद्घोषणा
प्रवतर्न म� है” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया ।
5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जहां आपात क�
उद्घोषणा” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 216
(क) �कसी ऐसी �व�ध को लागू नह�ं होगी िजसम� इस आशय का उल्लेख
अंत�वर्ष्ट नह�ं है �क ऐसी �व�ध उसके बनाए जाने के समय प्रव�
ृ आपात क�
उद्घोषणा के संबध ं म� है ; या
(ख) �कसी ऐसी कायर्पा�लका कारर्वाई को लागू नह�ं होगी जो ऐसा उल्लेख
अंत�वर्ष्ट करने वाल� �व�ध के अधीन न करके अन्यथा क� गई है ।
359. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� के प्रवतर्न का �नलबंन –
(1) जहां आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है वहां राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा यह घोषणा कर
सकेगा �क 1[(अनच् ु छे द 20 और अनच् ु छे द 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रद� ऐसे
अ�धकार�] को प्रव�तर्त कराने के �लए, जो उस आदे श म� उिल्ल�खत �कए जाएं, �कसी
न्यायालय को समावेदन करने का अ�धकार और इस प्रकार उिल्ल�खत अ�धकार� को
प्रव�तर्त कराने के �लए �कसी न्यायालय म� लं�बत सभी कायर्वा�हयां उस अव�ध के �लए
िजसके दौरान उद्घोषणा प्रव� ृ रहती है या उससे लघत ु र ऐसी अव�ध के �लए जो आदे श
म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, �नलं�बत रह� गी ।
2
[(1क) जब 2[(अनच्ु छे द 20 और अनच्ु छे द 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रद�
�कन्ह�ं अ�धकार�] को उिल्ल�खत करने वाला खंड (1) के अधीन �कया गया आदे श
प्रवतर्न म� है तब उस भाग म� उन अ�धकार� को प्रदान करने वाल� कोई बात उस भाग म�
यथाप�रभा�षत राज्य क� कोई ऐसी �व�ध बनाने क� या कोई ऐसी कायर्पा�लका कारर्वाई
करने क� शिक्त को, िजसे वह राज्य उस भाग म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� के अभाव म� बनाने
या करने के �लए स�म होता, �नब��धत नह�ं करे गी, �कन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई
�व�ध पव ू �क्त आदे श के प्रवतर्न म� न रहने पर अ�मता क� मात्रा तक उन बात� के
�सवाय तुरन्त प्रभावह�न हो जाएगी, िजन्ह� �व�ध के इस प्रकार प्रभावह�न होने के पहले
�कया गया है या करने का लोप �कया गया है :]
3
[परन्तु जहां आपात क� उद्घोषणा भारत के राज्य�ेत्र के केवल �कसी भाग म�
प्रवतर्न म� है वहां, य�द और जहां तक भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क�
सुर�ा, भारत के राज्य�ेत्र के उस भाग म� या उसके संबध ं म� , िजसम� आपात क�
उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, होने वाले �क्रयाकलाप के कारण संकट म� है तो और वहां तक,
ऐसे राज्य या संघ राज्य�ेत्र म� या उसके संबध ं म� , िजसम� या िजसके �कसी भाग म�
आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� नह�ं है, इस अनच् ु छे द के अधीन ऐसी कोई �व�ध बनाई
जा सकेगी या ऐसी कोई कायर्पा�लका कारर्वाई क� जा सकेगी ।]
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) “भाग 3 द्वारा प्रद�
अ�धकार�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 7 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 217
संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) लोप �कया गया ।
360. �व�ीय आपात के बारे म� उपबंध – (1) य�द राष्ट्रप�त का यह समाधान हो
जाता है �क ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजससे भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी
भाग का �व�ीय स्था�यत्व या प्रत्यय संकट म� है तो वह उद्घोषणा द्वारा इस आशय क�
घोषणा कर सकेगा ।
4
[(2) खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा–
(क) �कसी पश्चातवत� उद्घोषणा द्वारा वापस ल� जा सकेगी या प�रव�तर्त
क� जा सकेगी ;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखी जाएगी ;
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा़ गया ।
3. सं�वधान (उनसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 3 द्वारा (30-3-1988 से) अंतःस्था�पत । यह, उस
अ�ध�नयम के प्रारं भ से, अथार्त ् 1988 के माचर् के तीसव� �दन से दो वषर् क� अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् प्रव�
ृ
नह�ं रहे गी ।
4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 218
1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 8 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत और उसका
सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया ।
भाग 19
प्रक�णर्
361. राष्ट्रप�त और राज्यपाल� और राजप्रमुख� का संर�ण – (1) राष्ट्रप�त अथवा
राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद क� शिक्तय� के प्रयोग और कतर्व्य� के
पालन के �लए या उन शिक्तय� का प्रयोग और कतर्व्य� का पालन करते हुए अपने द्वारा
�कए गए या �कए जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी कायर् के �लए �कसी न्यायालय को
उ�रदायी नह�ं होगा :
परन्तु अनच्ु छे द 61 के अधीन आरोप के अन्वेषण के �लए संसद् के �कसी सदन
द्वारा �नयक्
ु त या अ�भ�हत �कसी न्यायालय, अ�धकरण या �नकाय द्वारा राष्ट्रप�त के
आचरण का पन ु �वर्लोकन �कया जा सकेगा :
परन्तु यह और �क इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क
वह भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के �वरुद्ध समु�चत कायर्वा�हयां चलाने के
�कसी व्यिक्त के अ�धकार को �नब��धत करती है ।
(2) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** के �वरुद्ध उसक� पदाव�ध के
0
दौरान �कसी न्यायालय म� �कसी भी प्रकार क� दां�डक कायर्वाह� संिस्थत नह�ं क� जाएगी
या चालू नह�ं रखी जाएगी ।
(3) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** क� पदाव�ध के दौरान उसक�
�गरफ्तार� या कारावास के �लए �कसी न्यायालय से कोई आदे �शका �नकाल� नह�ं
जाएगी ।
(4) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** के रूप म� अपना पद ग्रहण
करने से पहले या उसके पश्चात ्, उसके द्वारा अपनी वैयिक्तक है�सयत म� �कए गए या
�कए जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी कायर् के संबध ं म� कोई �स�वल कायर्वा�हयां, िजनम�
राष्ट्रप�त या ऐसे राज्य के राज्यपाल 1*** के �वरुद्ध अनत ु ोष का दावा �कया जाता है,
उसक� पदाव�ध के दौरान �कसी न्यायालय म� तब तक संिस्थत नह�ं क� जाएगी जब तक
कायर्वा�हय� क� प्रकृ�त, उनके �लए वाद हे तुक, ऐसी कायर्वा�हय� को संिस्थत करने वाले
प�कार का नाम, वणर्न, �नवास-स्थान और उस अनत ु ोष का िजसका वह दावा करता है,
कथन करने वाल� �ल�खत सूचना, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्यपाल 1*** को प�रद�
�कए जाने या उसके कायार्लय म� छोड़े जाने के पश्चात ् दो मास का समय समाप्त नह�ं
हो गया है ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
219
भारत का सं�वधान 220
(भाग 19—प्रक�णर्)
संर�ण–(1) कोई व्यिक्त संसद् के �कसी सदन या, यथािस्थ�त, �कसी राज्य क� �वधान
सभा या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� �कन्ह� कायर्वा�हय� के सारतः
सह� �ववरण के �कसी समाचारपत्र म� प्रकाशन के संबध ं म� �कसी न्यायालय म� �कसी भी
प्रकार क� �स�वल या दां�डक कायर्वाह� का तब तक भागी नह�ं होगा जब तक यह सा�बत
नह�ं कर �दया जाता है �क प्रकाशन �वद्वेषपव
ू क
र् �कया गया है :
परन्तु इस खंड क� कोई बात संसद् के �कसी सदन या, यथािस्थ�त, �कसी राज्य
क� �वधान सभा या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� गुप्त बैठक क�
कायर्वा�हय� के �ववरण के प्रकाशन को लागू नह�ं होगी ।
(2) खंड (1) �कसी प्रसारण केन्द्र के माध्यम से उपलब्ध �कसी कायर्क्रम या सेवा
के भागरूप बेतार तारयां�त्रक� के माध्यम से प्रसा�रत �रपोट� या सामग्री के संबध
ं म� उसी
प्रकार लागू होगा िजस प्रकार वह �कसी समाचारपत्र म� प्रका�शत �रपोट� या सामग्री के
संबधं म� लागू होता है ।
स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द म� , “समाचारपत्र” के अंतगर्त समाचार एज�सी क�
ऐसी �रपोटर् है िजसम� �कसी समाचारपत्र म� प्रकाशन के �लए सामग्री अंत�वर्ष्ट है ।]
[361ख. लाभप्रद राजनी�तक पद पर �नयिु क्त के �लए �नरहर्ता – �कसी
2
राजनी�तक दल का �कसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनस ु ूची के पैरा 2 के अधीन
सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त है, अपनी �नरहर्ता क� तार�ख से प्रारं भ होने वाल�
और उस तार�ख तक िजसको ऐसे सदस्य के रूप म� उसक� पदाव�ध समाप्त होगी या
उस तार�ख तक िजसको वह �कसी सदन के �लए कोई �नवार्चन लड़ता है, और �नवार्�चत
घो�षत �कया जाता है, इनम� से जो भी पव ू त
र् र हो, क� अव�ध के दौरान, कोई लाभप्रद
राजनी�तक पद धारण करने के �लए भी �नर�हर्त होगा ।
स्पष्ट�करण – इस अनच्
ु छे द के प्रयोजन� के �लए, –
(क) “सदन” पद का वह� अथर् है जो उसका दसवीं अनस
ु च
ू ी के पैरा 1 के
खंड (क) म� है ;
(ख) “लाभप्रद राजनी�तक पद” अ�भव्यिक्त से अ�भप्रेत है, –
(i) भारत सरकार या �कसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहां
ऐसे पद के �लए वेतन या पा�रश्र�मक का संदाय, यथािस्थ�त, भारत
सरकार या राज्य सरकार के लोक राजस्व से �कया जाता है ; या
1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 42 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 4 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 221
(भाग 19—प्रक�णर्)
1. सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (28-12-1971 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 222
(भाग 19—प्रक�णर्)
(भाग 19—प्रक�णर्)
ु छे द” से इस सं�वधान का अनच्
(3) “अनच् ु छे द अ�भप्रेत है ;
(4) “उधार लेना” के अंतगर्त वा�षर्�कयां दे कर धन लेना है और “उधार” का
तद्नस
ु ार अथर् लगाया जाएगा ;
1
[(4क)* * *
*]
(5) “खंड” से उस अनच्
ु छे द का खंड अ�भप्रेत है िजसम� वह पद आता है ;
(6) “�नगम कर” से कोई आय पर कर अ�भप्रेत है, जहां तक वह कर
कंप�नय� द्वारा संदेय है और ऐसा कर है िजसके संबध
ं म� �नम्न�ल�खत शत� परू �
होती ह�, अथार्त ् :–
(क) वह कृ�ष-आय के संबध
ं म� प्रभायर् नह�ं है ;
(ख) कंप�नय� द्वारा संद� कर के संबध ं म� कंप�नय� द्वारा
व्यिष्टय� को संदेय लाभांश� म� से �कसी कटौती का �कया जाना उस कर
को लागू अ�ध�नय�म�तय� द्वारा प्रा�धकृत नह�ं है ;
(ग) ऐसे लाभांश प्राप्त करने वाले व्यिष्टय� क� कुल आय क�
भारतीय आय-कर के प्रयोजन� के �लए गणना करने म� अथवा ऐसे
व्यिष्टय� द्वारा संदेय या उनको प्र�तदे य भारतीय आय-कर क� गणना
करने म� , इस प्रकार संद� कर को �हसाब म� लेने के �लए कोई उपबंध
�वद्यमान नह�ं है ;
(7) शंका क� दशा म� , “तत्स्थानी प्रांत”, “तत्स्थानी दे शी राज्य” या
“तत्स्थानी राज्य” से ऐसा प्रांत, दे शी राज्य या राज्य अ�भप्रेत है िजसे राष्ट्रप�त
प्रश्नगत �कसी �व�शष्ट प्रयोजन के �लए, यथािस्थ�त, तत्स्थानी प्रांत, तत्स्थानी
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (4क) अन्तःस्था�पत
�कया गया और उसका सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से)
लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 224
(भाग 19—प्रक�णर्)
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 14(i) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 225
(भाग 19—प्रक�णर्)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (21) का
लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (28-12-1971 से) प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 226
(भाग 19—प्रक�णर्)
1 सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (26क) अंतःस्था�पत
�कया गया था और उसका सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से)
लोप �कया गया था ।
2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 14(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 4 द्वारा (15-9-2021) प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (�छयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 क� धारा 4 द्वारा (2-2-1983 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 227
(भाग 19—प्रक�णर्)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (30) के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट भाग
क और भाग ख” (1-11-1956 से) का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (�वदे शी राज्य� के बारे म� घोषणा) आदे श, 1950, (सं. आ. 2) दे �खए ।
भारत का सं�वधान 228
(भाग 19—प्रक�णर्)
[(4) *
1
* * *]
1. सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदे श, 2019 (स.आ. 272) इस सं�वधान आदे श के पाठ के �लए प�र�शष्ट 2
दे ख� ।
भाग 20
सं�वधान का संशोधन
368. 1[सं�वधान का संशोधन करने क� संसद् क� शिक्त और उसके �लए
प्र�क्रया] – 2[(1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी सं�वधायी
शिक्त का प्रयोग करते हुए इस सं�वधान के �कसी उपबंध का प�रवधर्न, प�रवतर्न या
�नरसन के रूप म� संशोधन इस अनच् ु छे द म� अ�धक�थत प्र�क्रया के अनस ु ार कर
सकेगी ।]
3
[(2)] इस सं�वधान के संशोधन का आरं भ संसद् के �कसी सदन म� इस प्रयोजन
के �लए �वधेयक परु ःस्था�पत करके ह� �कया जा सकेगा और जब वह �वधेयक प्रत्येक
सदन म� उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपिस्थत
और मत दे ने वाले सदस्य� के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर �दया
जाता है तब 4[वह राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तत
ु �कया जाएगा, जो �वधेयक को अपनी
अनमु �त दे गा और तब] सं�वधान उस �वधेयक के �नबंधन� के अनस ु ार संशो�धत हो
जाएगा :
(ङ) इस अनच्
ु छे द के उपबंध� म� ,
1. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) "सं�वधान म� संशोधन करने
क� प्र�क्रया" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अनुच्छे द 368 को उसके खंड
(2) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 15 द्वारा (16-9-2016 से) "अनुच्छे द 162 या
अनुच्छे द 241" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
228
भारत का सं�वधान 229
कोई प�रवतर्न करने के �लए है तो ऐसे संशोधन के �लए उपबंध करने वाला �वधेयक
राष्ट्रप�त के सम� अनमु �त के �लए प्रस्तत
ु �कए जाने से पहले उस संशोधन के �लए
1
*** कम से कम आधे राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा पा�रत इस आशय के संकल्प�
द्वारा उन �वधान-मंडल� का अनस ु मथर्न भी अपे��त होगा ।
2
[(3) अनच्
ु छे द 13 क� कोई बात इस अनच्
ु छे द के अधीन �कए गए �कसी
संशोधन को लागू नह�ं होगी ।]
[(4) इस सं�वधान का (िजसके अंतगर्त भाग 3 के उपबंध ह�) इस अनच्
3
ु छे द के
अधीन सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 55 के प्रारं भ से पहले
या उसके पश्चात ् �कया गया या �कया गया तात्प�यर्त कोई संशोधन �कसी न्यायालय म�
�कसी भी आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा ।
(5) शंकाओं को दरू करने के �लए यह घो�षत �कया जाता है �क इस अनच् ु छे द के
अधीन इस सं�वधान के उपबंध� का प�रवधर्न, प�रवतर्न या �नरसन के रूप म� संशोधन
करने के �लए संसद् क� सं�वधायी शिक्त पर �कसी प्रकार का �नबर्न्धन नह�ं होगा ।]
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क और भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 55 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । उच्चतम
न्यायालय ने �मनवार् �मल्स �ल�मटे ड और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य ए.आई.आर. 1980 एस.सी. 1789
के मामले म� इस धारा को अ�व�धमान्य घो�षत �कया है ।
भाग 21
1
[अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध]
369. राज्य सच
ू ी के कुछ �वषय� के संबध
ं म� �व�ध बनाने क� संसद् क� इस
ू ी के �वषय ह� – इस सं�वधान म� �कसी बात
प्रकार अस्थायी शिक्त मानो वे समवत� सच
के होते हुए भी, संसद् को इस सं�वधान के प्रारं भ से पांच वषर् क� अव�ध के दौरान
�नम्न�ल�खत �वषय� के बारे म� �व�ध बनाने क� इस प्रकार शिक्त होगी मानो वे �वषय
समवत� सूची म� प्रग�णत ह�, अथार्त ् :–
(क) सूती और ऊनी वस्त्र�, कच्ची कपास (िजसके अंतगर्त ओट� हुई रुई
और �बना ओट� रुई या कपास है), �बनौले, कागज (िजसके अंतगर्त अखबार�
कागज है), खाद्य पदाथर् (िजसके अंतगर्त खाद्य �तलहन और तेल ह�), पशओ
ु ं के
चारे (िजसके अंतगर्त खल� और अन्य सारकृत चारे ह�), कोयले (िजसके अंतगर्त
कोक और कोयले के व्यत्ु पाद ह�), लोहे , इस्पात और अभ्रक का �कसी राज्य के
भीतर व्यापार और वा�णज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ;
1. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) “अस्थायी तथा अंतःकाल�न
उपबंध” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
230
भारत का सं�वधान 231
∗∗1
ं म� अस्थायी उपबंध – (1) इस सं�वधान म�
370. जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध
�कसी बात के होते हुए भी, –
(क) अनच्
ु छे द 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध
ं म� लागू नह�ं
ह�गे ;
∗∗ राष्ट्रप�त, संसद् क� �सफा�रश पर भारत के सं�वधान के अनुच्छे द 370 के खंड (1) के साथ प�ठत अनुच्छे द 370
के खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए यह घोषणा करते ह� �क 6 अगस्त, 2019 से उक्त अनुच्छे द
370 के सभी खंड, �सवाय �नम्न�ल�खत के, जो नीचे �दए गए ह� के अनुसार है, प्रचालन म� नह�ं रह� गे, अथार्त ् :–
“370. इस सं�वधान के समय-समय पर यथा संशो�धत, सभी उपबंध �बना �कन्ह�ं उपातंरण� या अपवाद�
के अनुच्छे द 152 या अनुच्छे द 308 या इस सं�वधान के �कसी अन्य अनुच्छे द या जम्मू-कश्मीर के सं�वधान म�
�कसी अन्य उपाबंध या �कसी �व�ध, दस्तावेज, �नणर्य, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसूचना
या भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाल� �कसी रू�ढ़ या प्रथा या �कसी अन्य �लखत, संघी या करार जो
अनुच्छे द 363 के अधीन यथा प�रकिल्पत या अन्यथा है, म� तत्प्र�तकूल �कसी बात के अन्त�वर्ष्ट होते हुए भी,
जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू ह�गे ।”।
(प�र�शष्ट 3 दे ख�) ।
1. भारत का सं�वधान क� खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए राष्ट्रप�त ने जम्मू-कश्मीर राज्य क�
सं�वधान सभा क� �सफा�रश पर यह घोषणा क�, �क 17 नवंबर, 1952 से उक्त अनुच्छे द 370 इस उपांतरण के
साथ प्रवतर्नीय होगा �क उसके खंड (1) म� स्पष्ट�करण के स्थान पर �नम्न�ल�खत स्पष्ट�करण रख �दया गया है,
अथार्त ् :–
“स्पष्ट�करण – इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के �लए राज्य क� सरकार से वह व्यिक्त अ�भप्रेत है िजसे राज्य
क� �वधान सभा क� �सफा�रश पर राष्ट्रप�त ने राज्य क� तत्समय पदारूढ़ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर् करने
वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे �रयासत के रूप म� मान्यता प्रदान क� हो ।”।
(सं.आ. 44, �दनांक 15 नवंबर, 1952) ।
* अब “राज्यपाल”
भारत का सं�वधान 232
∗ प�र�शष्ट 2 म� दे �खए ।
1. सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदे श, 2019 इस सं�वधान आदे श म� “खंड (2) म� उिल्ल�खत राज्य क� सं�वधान
सभा” अ�भव्यिक्त को “राज्य क� �वधान सभा” पढ़ा जाएगा ।” प�र�शष्ट 2 म� दे �खए ।
भारत का सं�वधान 233
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 22 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 371 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) “आंध्र प्रदे श,” शब्द� का लोप
�कया गया ।
3. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) खंड (1) का लोप �कया गया ।
4. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
5. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “शेष महाराष्ट्र” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 234
1. सं�वधान (क�ठनाइय� का �नराकरण) आदे श, सं0 10 के पैरा 2 म� (1-12-1963 से) यह उपबंध है �क भारत के
सं�वधान का अनुच्छे द 371क इस प्रकार प्रभावी होगा मानो उसके खंड (2) के उपखंड (ङ) के पैरा (i) म�
�नम्न�ल�खत परं तुक जोड़ �दया गया हो, अथार्त ् :--
“परं तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री क� सलाह पर, �कसी व्यिक्त को त्युएनसांग कायर् मंत्री के रूप म� ऐसे समय तक
के �लए �नयुक्त कर सकेगा, जब तक �क नागाल�ड क� �वधान सभा म� त्युएनसांग िजले के �लए, आबं�टत स्थान�
को भरने के �लए �व�ध के अनुसार व्यिक्तय� को चुन नह�ं �लया जाता है ।”
भारत का सं�वधान 236
(ii) त्यए
ु नसांग कायर् मंत्री त्यए
ु नसांग िजले से संब�ं धत सभी �वषय� क�
बाबत कायर् करे गा और उनके संबध ं म� राज्यपाल के पास उसक� सीधी पहुंच होगी
�कं तु वह उनके संबध ं म� मुख्यमंत्री को जानकार� दे ता रहे गा ;
(च) इस खंड के पव ू ग
र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी,
त्यए
ु नसांग िजले से संब�ं धत सभी �वषय� पर अं�तम �व�नश्चय राज्यपाल अपने
�ववेक से करे गा ;
(छ) अनच्
ु छे द 54 और अनच् ु छे द 55 म� तथा अनच्
ु छे द 80 के खंड (4) म�
राज्य क� �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� के या ऐसे प्रत्येक सदस्य के प्र�त
�नद� श� के अंतगर्त इस अनच् ु छे द के अधीन स्था�पत प्रादे �शक प�रषद् द्वारा
�नवार्�चत नागाल�ड �वधान सभा के सदस्य� या सदस्य के प्र�त �नद� श ह�गे ;
(ज) अनच्
ु छे द 170 म� –
(i) खंड (1) नागाल�ड �वधान सभा के संबध
ं म� इस प्रकार प्रभावी
होगा मानो “साठ” शब्द के स्थान पर “�छयाल�स” शब्द रख �दया गया
हो ;
(ii) उक्त खंड म� , उस राज्य म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य�
�नवार्चन के प्र�त �नद� श के अंतगर्त इस अनच् ु छे द के अधीन स्था�पत
प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य� द्वारा �नवार्चन होगा ;
(iii) खंड (2) और खंड (3) म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के प्र�त
�नद� श से को�हमा और मोकोकचग ुं िजल� म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के
प्र�त �नद� श अ�भप्रेत ह�गे ।
(3) य�द इस अनच् ु छे द के पव
ू ग
र् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध को प्रभावी करने
म� कोई क�ठनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, कोई ऐसी बात (िजसके
अंतगर्त �कसी अन्य अनच्ु छे द का कोई अनक ु ू लन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस
क�ठनाई को दरू करने के प्रयोजन के �लए उसे आवश्यक प्रतीत होती है :
परं तु ऐसा कोई आदे श नागाल�ड राज्य के �नमार्ण क� तार�ख से तीन वषर् क�
समािप्त के पश्चात ् नह�ं �कया जाएगा ।
स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द म� , को�हमा, मोकोकचग
ुं और त्यए
ु नसांग िजल� का
वह� अथर् है जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 म� है ।]
[371ख. असम राज्य के संबध
1
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात
के होते हुए भी, राष्ट्रप�त, असम राज्य के संबध
ं म� �कए गए आदे श द्वारा, उस राज्य
क� �वधान सभा क� एक स�म�त के गठन और कृत्य� के �लए, जो स�म�त छठ� अनस ु ूची
1. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 237
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंतःस्था�पत ।
4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
5. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 238
1. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य के �लए” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 239
(क) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श
म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, �नयिु क्त, आबंटन या प्रोन्न�त ;
(ख) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श
म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, �नयक्ु त, आबं�टत या प्रोन्नत व्यिक्तय� क� ज्येष्ठता ;
(ग) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य
के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी
स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर �नयक्
ु त,
आबं�टत या प्रोन्नत व्यिक्तय� क� सेवा क� ऐसी अन्य शत� जो आदे श म�
�व�न�दर्ष्ट क� जाएं ।
(4) खंड (3) के अधीन �कया गया आदे श–
(क) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर �कसी �वषय
से संब�ं धत व्यथाओं के �नवारण के �लए ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के �लए, जो
राष्ट्रप�त आदे श म� �व�न�दर्ष्ट करे और उस पर ऐसे आदे श करने के �लए जो वह
प्रशास�नक अ�धकरण ठ�क समझता है, प्रा�धकृत कर सकेगा ;
(ख) प्रशास�नक अ�धकरण क� शिक्तय� और प्रा�धकार� और प्र�क्रया के
संबध
ं म� ऐसे उपबंध (िजनके अंतगर्त प्रशास�नक अ�धकरण क� अपने अवमान के
ं म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रप�त
�लए दं ड दे ने क� शिक्त के संबध
आवश्यक समझे ;
(ग) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर आने वाले
�वषय� से संब�ं धत और उस आदे श के प्रारं भ से ठ�क पहले (उच्चतम न्यायालय
से �भन्न) �कसी न्यायालय अथवा �कसी अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के सम�
लं�बत कायर्वा�हय� के ऐसे वग� के, जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, अंतरण के
�लए उपबंध कर सकेगा ;
(घ) ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त
फ�स के बारे म� और प�रसीमा, सा�य के बारे म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध
को �कन्ह�ं अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू करने के �लए उपबंध
ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रप�त आवश्यक समझे ।
भारत का सं�वधान 240
आदे श, राज्य सरकार द्वारा उसक� पुिष्ट �कए जाने पर या आदे श �कए जाने क� तार�ख
से तीन मास क� समािप्त पर, इनम� से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा :
परं तु राज्य सरकार, �वशेष आदे श द्वारा, जो �ल�खत रूप म� �कया जाएगा और
िजसम� उसके कारण �व�न�दर्ष्ट �कए जाएंगे, प्रशास�नक अ�धकरण के �कसी आदे श को
उसके प्रभावी होने के पहले उपांत�रत या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले म� प्रशास�नक
अ�धकरण का आदे श, यथािस्थ�त, ऐसे उपांत�रत रूप म� ह� प्रभावी होगा या वह
�नष्प्रभाव हो जाएगा ।
(6) राज्य सरकार द्वारा खंड (5) के परं तक
ु के अधीन �कया गया प्रत्येक �वशेष
आदे श, �कए जाने के पश्चात ्, यथाशक्य, शीघ्र, राज्य �वधान-मंडल के दोन� सदन� के
सम� रखा जाएगा ।
(7) राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशास�नक अ�धकरण पर अधी�ण क� शिक्त
नह�ं होगी और (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) कोई न्यायालय अथवा कोई अ�धकरण,
प्रशास�नक अ�धकरण क� या उसके संबध ं म� अ�धका�रता, शिक्त या प्रा�धकार के अधीन
�कसी �वषय क� बाबत �कसी अ�धका�रता, शिक्त या प्रा�धकार का प्रयोग नह�ं करे गा ।
(8) य�द राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क प्रशास�नक अ�धकरण का
�नरं तर बने रहना आवश्यक नह�ं है तो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा प्रशास�नक अ�धकरण का
उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठ�क पहले अ�धकरण के सम� लं�बत मामल�
के अंतरण और �नपटारे के �लए ऐसे आदे श म� ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठ�क
समझे ।
(9) �कसी न्यायालय, अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के �कसी �नणर्य, �डक्र� या
आदे श के होते हुए भी,–
(क) �कसी व्यिक्त क� कोई �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क�
बाबत जो–
(i) 1 नवंबर, 1956 से पहले यथा�वद्यमान हैदराबाद राज्य क�
सरकार के या उसके भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के अधीन उस
तार�ख से पहले �कसी पद पर �कया गया था, या
(ii) सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 के प्रारं भ से
पहले आंध्र प्रदे श राज्य क� सरकार के अधीन या उस राज्य के भीतर
�कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन �कसी पद पर �कया गया
था, और
(ख) उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी व्यिक्त द्वारा या उसके सम� क� गई
�कसी कारर्वाई या बात क� बाबत,
∗ उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमू�तर् और अन्य बनाम आंध्र प्रदे श राज्य और एक अन्य (1987) 1 एस.एस.सी.,
362, अनुच्छे द 371घ के खंड (5) और उसके परं तुक को असंवैधा�नक और शून्य घो�षत �कया ।
भारत का सं�वधान 241
1. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 242
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से
“छह वषर्” के स्थान पर) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “चार वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से)
क्रमशः “पांच वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 243
परं तु ऐसा कोई आदे श �नयत �दन से दो वषर् क� समािप्त के पश्चात ् नह�ं
�कया जाएगा ;
(त) �सिक्कम राज्य या उसम� समा�वष्ट राज्य�ेत्र� म� या उनके संबध ं म� ,
�नयत �दन को प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख से िजसको सं�वधान (छ�ीसवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 राष्ट्रप�त क� अनम ु �त प्राप्त करता है, ठ�क पहले
समाप्त होने वाल� अव�ध के दौरान क� गई सभी बात� और कारर्वाइयां, जहां तक
वे सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 द्वारा यथासंशो�धत इस
सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प ह�, सभी प्रयोजन� के �लए इस प्रकार यथासंशो�धत
इस सं�वधान के अधीन �व�धमान्यतः क� गई समझी जाएंगी ।]
1
[371छ. �मजोरम राज्य के संबधं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी,–
(क) �नम्न�ल�खत के संबध
ं म� संसद् का कोई अ�ध�नयम �मजोरम राज्य
को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक �मजोरम राज्य क� �वधान सभा संकल्प
द्वारा ऐसा �व�नश्चय नह�ं करती है, अथार्त ् :–
(i) �मजो लोग� क� धा�मर्क या सामािजक प्रथाएं ;
(ii) �मजो रू�ढ़जन्य �व�ध और प्र�क्रया ;
(iii) �स�वल और दां�डक न्याय प्रशासन, जहां �व�नश्चय �मजो
रू�ढ़जन्य �व�ध के अनसु ार होने ह� ;
(iv) भ�ू म का स्वा�मत्व और अंतरण :
परं तु इस खंड क� कोई बात, सं�वधान (�तरपनवां संशोधन) अ�ध�नयम,
1986 के प्रारं भ से ठ�क पहले �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� प्रव�
ृ �कसी क�द्र�य
अ�ध�नयम को लागू नह�ं होगी ;
(ख) �मजोरम राज्य क� �वधान सभा कम से कम चाल�स सदस्य� से �मलकर
बनेगी ।]
2
ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म�
[371ज. अरुणाचल प्रदे श राज्य के संबध
�कसी बात के होते हुए भी,–
(क) अरुणाचल प्रदे श के राज्यपाल का अरुणाचल प्रदे श राज्य म� �व�ध
और व्यवस्था के संबधं म� �वशेष उ�रदा�यत्व रहे गा और राज्यपाल, उस संबध ं म�
अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� क� जाने वाल� कारर्वाई के बारे म� अपने
व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग मं�त्र-प�रषद् से परामशर् करने के पश्चात ् करे गा :
1. सं�वधान (�तरपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (पचपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 245
1. सं�वधान (छप्पनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2
सं�वधान (अठानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2012 क� धारा 2 द्वारा (1-10-2013 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 246
∗ दे �खए, अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 115, तार�ख 5 जून 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग
3, प0
ृ 51; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 870, तार�ख 4 नवंबर, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2,
अनुभाग 3, प0
ृ 903; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 508, तार�ख 4 अप्रैल, 1951, भारत का राजपत्र, असाधारण,
भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 287; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 1140ख, तार�ख 2 जुलाई, 1952, भारत का राजपत्र,
असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 616/I, और त्रावणकोर-कोचीन भू�म अजर्न �व�ध अनुकूलन आदे श, 1952,
तार�ख 20 नवंबर, 1952, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0
ृ 923 द्वारा यथासंशो�धत �व�ध
अनुकूलन आदे श, 1950, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, प0
ृ 449 ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 12 द्वारा (18-6-1951 से) “दो वषर्” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 247
(सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत म� या उसके �कसी
भाग म� प्रव� ृ �कसी �व�ध के उपबंध� को उस अ�ध�नयम द्वारा यथासंशो�धत इस
सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के प्रयोजन� के �लए, राष्ट्रप�त, 1 नवंबर, 1957 से
पहले �कए गए आदे श∗ द्वारा, ऐसी �व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे
अनक ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और यह उपबंध कर
सकेगा �क वह �व�ध ऐसी तार�ख से जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, इस प्रकार �कए
गए अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन
या उपांतरण को �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा ।
(2) खंड (1) क� कोई बात, �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार�
को, राष्ट्रप�त द्वारा उक्त खंड के अधीन अनक ु ू �लत या उपांत�रत �कसी �व�ध का
�नरसन या संशोधन करने से रोकने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।]
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 23 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 13 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 250
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 24 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 251
1. सं�वधान (अठावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (अठावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 3 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्था�पत ।
252
अनस
ु ूची
1[पहल�
(अनुच्छे द 1 और अनुच्छे द 4)
1. राज्य
नाम राज्य�ेत्र
1. आंध्र प्रदे श 2
[वे राज्य�ेत्र जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� , राज्य पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1)
म� , आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम
अनुसच
ू ी म� और आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम,
1968 क� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं
ह� जो आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क�
द्�वतीय अनुसच ू ी म� [तथा आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क�
3
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से)पहल� अनुसूची के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से)
पूवव
र् त� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत ।
4. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) जोड़ा गया ।
5. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) जोड़ा गया ।
6. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया । उक्त अ�ध�नयम
के पाठ के �लए प�र�शष्ट 1 द� खे ।
253
भारत का सं�वधान 254
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
3. �बहार 1
[वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो �बहार प्रांत
म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� और वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न)
अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (क) म� �व�न�दर् ष्ट
ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और पिश्चमी बंगाल
(राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म�
�व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो प्रथम व�णर्त
अ�ध�नयम क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह� 2[और
वे राज्य�ेत्र जो �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]]
3
[4. गुजरात वे राज्य�ेत्र जो मंब
ु ई पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� �न�दर् ष्ट ह� ।]
1. �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 24) क� धारा 4 द्वारा (10-6-1970 से)
पूवव
र् त� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) जोड़ा गया ।
3. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 4 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा
(1-10-1959 से) अंतःस्था�पत ।
5. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) अन्तःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 255
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
1
[7. त�मलनाडु] वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो मद्रास प्रांत
म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� और वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 म�
2
[तथा आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क�
द्�वतीय अनुसूची म� ] �व�न�दर् ष्ट ह�,] �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त
नह�ं ह� जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा (1)
और धारा 4 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और 3[वे राज्य�ेत्र भी
इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5
क� उपधारा (1) के खंड (ख), धारा 6 और धारा 7 क� उपधारा (1) के
खंड (घ) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम
अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
4
[8. महाराष्ट्र वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो
मंब
ु ई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �न�दर् ष्ट
ह� ।]
5 6
[ [9.] कनार्टक] वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगठर् न अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 7 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, 7[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�
जो आंध्र प्रदे श और मैसरू (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 क�
अनुसच
ू ी म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
1. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “7. मद्रास” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56 ) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से)
अंतःस्था�पत ।
3. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से) कुछ
शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
5. मैसूर राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “9. मैसूर” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को
प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
7. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से)
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 256
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
1
[10.] 2[ओ�डशा] वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारम्भ से ठ�क पहले या तो उड़ीसा प्रांत
म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे
ह� ।
1
[11.] पंजाब वे राज्य�ेत्र जो राज्य पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 11 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� 3[और वे राज्य�ेत्र जो अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन)
अ�ध�नयम, 1960 क� प्रथम अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट ह�,] 4[�कं तु
वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो सं�वधान (नवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1960 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट ह� ] 5[और वे
राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966
क� धारा 3 क� उपधारा (1), धारा 4 और धारा 5 क� उपधारा (1) म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]
1
[12.] राजस्थान वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 10 म�
�व�न�दर् ष्ट ह�,
[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो राजस्थान
6
1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को
प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 6 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 64) क� धारा 4 द्वारा (17-1-1961 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 द्वारा (17-1-1961 से) जोड़ा गया ।
5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
6. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा
(1-10-1959 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 257
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
1
[13.] उ�र प्रदे श 2
[वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो संयुक्त
प्रांत नाम से �ात प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो
वे उस प्रांत के भाग रहे ह�, वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श
(सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड
(ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श
(सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड
(ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार
और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क�
उपधारा (1) के खंड (क) 3
[तथा उ�र प्रदे श पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम, 2000
क� धारा 3] म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह�
जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा
4 क� उपधारा (1) के खंड (क) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
1
[14.] पिश्चमी वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो पिश्चमी
बंगाल बंगाल प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत
के भाग रहे ह� और चंद्रनगर (�वलयन) अ�ध�नयम, 1954 क� धारा 2 के
खंड (ग) म� यथा प�रभा�षत चंद्रनगर का राज्य�ेत्र और वे राज्य�ेत्र भी
जो �बहार और पिश्चमी बंगाल (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क�
धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� 4
[और वे राज्य�ेत्र भी, जो
पहल� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट ह� �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त
नह�ं ह�, जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के
खंड (ग) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध
सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के
भाग 3 म� �न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र� और दस
ू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट
राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क�
दस
ू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट ह� ।]
1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को
प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
“13. उ�र प्रदे श” के सामने क� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
4. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया । उक्त अ�ध�नयम
के पाठ के �लए प�र�शष्ट 1 द� खे ।
भारत का सं�वधान 258
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
1 2
[ [** * * *]]
[ [15.] नागाल�ड
3 4
वे राज्य�ेत्र जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 क� उपधारा
(1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
[ [16.] ह�रयाणा
3 5 6
[वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पनु गर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3 क�
उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र
प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम,1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के
खंड (क) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो उस
अ�ध�नयम क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]]
3 7
[ [17.] �हमाचल वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार प्रशा�सत
प्रदे श थे मानो वे �हमाचल प्रदे श और �बलासपुर के नाम से �ात मुख्य आयुक्त
वाले प्रांत रहे ह� और वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1966
क� धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
[ [18. म�णपुर
3 8
वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार
प्रशा�सत था मानो वह म�णपुर के नाम से �ात मुख्य आयुक्त वाला प्रांत
रहा हो ।]
1. ** जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर से
संब�धत प्र�विष्ट 15 को हटा �दया गया ।
2. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को
प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 16 से
प्र�विष्ट 29 को प्र�विष्ट 15 से प्र�विष्ट 28 के रूप म� पुनःसंखयां�कत �कया गया ।
4. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत और
तत्पश्चात ् ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा
(15-9-1983 से) उसम� क� प्र�विष्ट को संशो�धत �कया गया ।
6. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से)
“17. ह�रयाणा” के सामने क� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत ।
8. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 259
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
1
[19.] �त्रपुरा वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार
प्रशा�सत था मानो वह �त्रपुरा के नाम से �ात मुख्य आयुक्त वाला प्रांत
रहा हो 2[और वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960
क� धारा 3 के खंड (घ) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी जहां तक
उनका संबंध सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल�
अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट
ह� ।]
1
[20. मेघालय वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� 2[और वे राज्य�ेत्र, जो पहल� अनुसच ू ी के भाग 1 म� �न�दर् ष्ट
ह� �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (एक सौवां
संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनस
ु च
ू ी के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट
ह� ।]
[ [21. �सिक्कम
1 3
वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 के प्रारं भ
से ठ�क पहले �सिक्कम म� समा�वष्ट थे ।]
[ [22. �मजोरम
1 4
वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 6 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]
[ [23. अरुणाचल
1 5
वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 7 म�
प्रदे श �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
[ [24 गोवा
1 6
वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क�
धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]
1. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 16 से
प्र�विष्ट 29 को प्र�विष्ट 15 से प्र�विष्ट 28 के रूप म� पुनःसंखयां�कत �कया गया ।
2. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया । उक्त अ�ध�नयम
के पाठ के �लए प�र�शष्ट 1 द� खे ।
3. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
5. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से)
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 260
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम राज्य�ेत्र
1 2
[ [25.] छ�ीसगढ़ मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट
राज्य�ेत्र ।]
[ [26. 4[उ�राखंड]
1 3
वे राज्य�ेत्र जो उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]
[ [27. झारखंड
1 5
वे राज्य�ेत्र जो �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]
[ [28. तेलंगाना
1 6
वे राज्य�ेत्र जो आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]
2. संघ राज्य�ेत्र
नाम �वस्तार
1. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 16 से
प्र�विष्ट 29 को प्र�विष्ट 15 से प्र�विष्ट 28 के रूप म� पुनःसंखयां�कत �कया गया ।
2. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
3. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
4. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 4 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” शब्द के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
6. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत ।
7. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) “�हमाचल प्रदे श” से
संबं�धत प्र�विष्ट 2 का लोप �कया गया और प्र�विष्ट 3 से प्र�विष्ट 10 तक को प्र�विष्ट 2 से प्र�विष्ट 9 के रूप म�
पुनःसंख्यां�कत �कया गया तथा तत्पश्चात ् पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9
द्वारा (21-1-1972 से) म�णपुर और �त्रपुरा आ�द से संबं�धत प्र�विष्ट 2 और प्र�विष्ट 3 का लोप �कया गया और
प्र�विष्ट 2 से प्र�विष्ट 7 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
8. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) प्र�विष्ट 4 से 9 तक
को क्रमशः प्र�विष्ट 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
भारत का सं�वधान 261
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम �वस्तार
1
[3.] 2
[ल�द्वीप] वह राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 म�
�व�न�दर् ष्ट है ।
3 1
[ [4.] दादरा और नागर वह राज्य�ेत्र जो 11 अगस्त, 1961 से ठ�क पहले स्वतंत्र दादरा
ह� ।]
4 1
[ [*] * * *]
5 1
[ [6.] 6[पुडुचेर�] वे राज्य�ेत्र जो 16 अगस्त, 1962 से ठ�क पहले भारत म�
बिस्तय� म� समा�वष्ट थे ।]
7 1
[ [7.] चंडीगढ़ वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 4 म�
�व�न�दर् ष्ट ह� ।]
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) क्रमशः प्र�विष्ट 4 से
9 तक को प्र�विष्ट 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 5 द्वारा
(1-11-1973 से) “लक्काद�व, �म�नकोय, अमीनद�वी द्वीप” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क�
धारा 5 द्वारा (19-12-2919 से) प्र�विष्ट 4 और प्र�विष्ट 5 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा (11-8-1961 से) दादरा और नागर हवेल� से संबं�धत प्र�विष्ट 4
अन्तःस्था�पत क� गई थी ।
4. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से) प्र�विष्ट 5
के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत ।
6. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 5 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 262
(पहल� अनस
ु ूची)
नाम �वस्तार
1
[* * * *]
1
[* * * *]
[ [8.] जम्मू-कश्मीर
2 1
वे राज्य�ेत्र, जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा
4 म� �व�न�दर् ष्ट है ।
3 म� �व�न�दर् ष्ट है ।]
1. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (15-4-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�विष्ट 8 का
लोप �कया गया और अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�विष्ट 9 को प्र�विष्ट 8 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया और
अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�विष्ट 8 का अरुणाचल प्रदे श अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 द्वारा
(20-2-1987 से) लोप �कया गया ।
2. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) अन्तःस्था�पत ।
दस
ू र� अनुसूची
[अनच्
ु छे द 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221]
भाग क
राष्ट्रप�त और *** राज्य� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध
1
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र का लोप �कया गया ।
*
�व� अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 13) क� धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “पांच लाख रुपए” है ।
**
�व� अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 13) क� धारा 161 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “तीन लाख पचास हजार
रुपए” है ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसे �व�न�दर् ष्ट”
शब्द� का लोप �कया गया ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसे राज्य�” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) भाग ख का
लोप �कया गया ।
263
भारत का सं�वधान 264
(दस
ू र� अनस
ु च
ू ी)
भाग ग
1. सं�वधान (सातवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क म� के �कसी राज्य का” शब्द� और अ�र का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “�कसी ऐसे
राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य का” शब्द� और अ�र का लोप �कया गया ।
4. सं�वधान (सातवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “कोई ऐसा
राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 265
(दस
ू र� अनस
ु च
ू ी)
भाग घ
उच्चतम न्यायालय और 1*** उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� के बारे म� उपबंध
9. 2[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को वास्त�वक सेवा म� �बताए समय
के �लए प्र�त मास �नम्न�ल�खत दर से वेतन का संदाय �कया जाएगा, अथार्त ् : –
मुख्य न्यायमू�तर् 3
[10,000 रुपए] ∗
कोई अन्य न्यायाधीश 4
[9,000 रुपए:] **
परं तु य�द उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी �नयिु क्त के समय
भारत सरकार क� या उसक� पव ू व
र् त� सरकार� म� से �कसी क� अथवा राज्य क� सरकार
क� या उसक� पव ू व
र् त� सरकार� म� से �कसी क� पव ू र् सेवा के संबध ं म� (�नःशक्तता या
��त प�शन से �भन्न) कोई प�शन प्राप्त कर रहा है तो उच्चतम न्यायालय म� सेवा के
�लए उसके वेतन म� से 5[�नम्न�ल�खत को घटा �दया जाएगा, अथार्त ् : –
(क) उस प� शन क� रकम ; और
(ख) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ू र् सेवा के संबध
ं म� अपने
को दे य प� शन के एक भाग के बदले उसका संरा�शत मूल्य प्राप्त �कया है तो
प� शन के उस भाग क� रकम ; और
(ग) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ू र् सेवा के संबध
ं म� �नव�ृ �-
उपदान प्राप्त �कया है तो उस उपदान के समतुल्य प� शन ।]
(2) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश, �बना �कराया �दए, शासक�य
�नवास के उपयोग का हकदार होगा ।
(3) इस पैरा के उपपैरा (2) क� कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस सं�वधान
के प्रारं भ से ठ�क पहले–
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(क) द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क
म� के राज्य� म� ” शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(ख) द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “5,000 रुपए” के स्थान पर
“10,000 रूपए” प्र�तस्था�पत ।
∗
उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का
10) क� धारा 6 के अनुसार (1-1-2016 से) अब यह “दो लाख अस्सी हजार रुपए” है ।
4. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
** उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का
10) क� धारा 6 के अनुसार (1-1-2016 से) अब यह “दो लाख पचास हजार रुपए” है ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) “उस प� शन क� रा�श घटा द�
जाएगी” के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 266
(दस
ू र� अनस
ु च
ू ी)
(क) फेडरल न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� पद धारण कर रहा
था और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 374 के खंड (1) के अधीन उच्चतम
न्यायालय का मख् ु य न्यायमू�तर् बन गया है, या
(ख) फेडरल न्यायालय के �कसी अन्य न्यायाधीश के रूप म� पद धारण
कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतम न्यायालय का
(मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न) न्यायाधीश बन गया है,
उस अव�ध म� , िजसम� वह ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के रूप म� पद
धारण करता है, लागू नह�ं होगी और ऐसा प्रत्येक न्यायाधीश, जो इस प्रकार उच्चतम
न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथािस्थ�त, ऐसे मुख्य
न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य
न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथािस्थ�त, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य
न्यायाधीश के रूप म� वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए इस पैरा के उपपैरा (1) म�
�व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त �वशेष वेतन के रूप म� ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार
होगा जो इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे
प्रारं भ से ठ�क पहले प्राप्त कर रहा था ।
(4) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश भारत के राज्य�ेत्र के भीतर अपने
कतर्व्य पालन म� क� गई यात्रा म� उपगत व्यय क� प्र�तप�ू तर् के �लए ऐसे यिु क्तयक् ु त भ�े
प्राप्त करे गा और यात्रा संबध ं ी उसे ऐसी यिु क्तयक्
ु त सु�वधाएं द� जाएंगी जो राष्ट्रप�त
समय-समय पर �व�हत करे ।
(5) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� क� अनप ु िस्थ�त छुट्ट� के (िजसके अंतगर्त
छुट्ट� भ�े ह�) और प� शन के संबध ं म� अ�धकार उन उपबंध� से शा�सत ह�गे जो इस
सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� को लागू थे ।
10. 1[(1) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� को वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के
�लए प्र�त मास �नम्न�ल�खत दर से वेतन का संदाय �कया जाएगा, अथार्त ् : –
मुख्य न्यायमू�तर् 2
[9,000 रुपए] ∗
कोई अन्य न्यायाधीश 3
[8,000 रुपए :] ∗∗
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(ग)(i) द्वारा (1-11-1956 से) उपपैरा (1) के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
∗ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वे तन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का
10) क� धारा 4 के अनुसार (1-1-2016 भूतल�ी प्रभाव से) अब यह “दो लाख पचास हजार रुपए” है ।
3. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “3,500 रुपए” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
∗∗
उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का
10) क� धारा 2 के अनुसार (1-1-2016 भूतल�ी प्रभाव से) अब यह “दो लाख पच्चीस हजार रुपए” है ।
भारत का सं�वधान 267
(दस
ू र� अनस
ु च
ू ी)
परं तु य�द �कसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी �नयिु क्त के समय
भारत सरकार क� या उसक� पव ू व
र् त� सरकार� म� से �कसी क� अथवा राज्य क� सरकार
क� या उसक� पव ू व
र् त� सरकार� म� से �कसी क� पव ू र् सेवा के संबध
ं म� (�नःशक्तता या
��त प� शन से �भन्न) कोई प�शन प्राप्त कर रहा है तो उच्च न्यायालय म� सेवा के �लए
उसके वेतन म� से �नम्न�ल�खत को घटा �दया जाएगा, अथार्त ् : –
(क) उस प� शन क� रकम ; और
(ख) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव
ू र् सेवा के संबध
ं म� अपने
को दे य प� शन के एक भाग के बदले म� उसका संरा�शत मूल्य प्राप्त �कया है तो
प� शन के उस भाग क� रकम ; और
(ग) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ू र् सेवा के संबध
ं म� �नव�ृ �-
उपदान प्राप्त �कया है तो उस उपदान के समतल्ु य प� शन ।]
(2) ऐसा प्रत्येक व्यिक्त, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले–
(क) �कसी प्रांत के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� पद
धारण कर रहा था और ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 376 के खंड (1) के अधीन
तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् बन गया है, या
(ख) �कसी प्रांत के उच्च न्यायालय के �कसी अन्य न्यायाधीश के रूप म�
पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी
राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न) न्यायाधीश बन गया है,
य�द वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट दर से उच्चतर दर
पर वेतन प्राप्त कर रहा था तो, यथािस्थ�त, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के
रूप म� वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट
वेतन के अ�त�रक्त �वशेष वेतन के रूप म� ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो
इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारं भ से
ठ�क पहले प्राप्त कर रहा था ।
1
[(3) ऐसा कोई व्यिक्त, जो सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ
से ठ�क पहले, पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य के उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त अ�ध�नयम
द्वारा यथासंशो�धत उक्त अनस ु च
ू ी म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य के उच्च न्यायालय का मख्
ु य
न्यायमू�तर् बन गया है, य�द वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले अपने वेतन के अ�त�रक्त भ�े के
रूप म� कोई रकम प्राप्त कर रहा था तो, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� वास्त�वक सेवा म�
�बताए समय के �लए इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त भ�े के रूप
म� वह� रकम प्राप्त करने का हकदार होगा ।]
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(ग)(ii) द्वारा (1-11-1956 से) उपपैरा (3) और उपपैरा
(4) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 268
(दस
ू र� अनस
ु च
ू ी)
11. इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,–
(क) “मुख्य न्यायमू�तर्” पद के अंतगर्त कायर्कार� मुख्य न्यायमू�तर् है और
“न्यायाधीश” पद के अंतगर्त तद्र्थ न्यायाधीश है ;
(ख) “वास्त�वक सेवा” के अंतगर्त–
(i) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रूप म� कतर्व्य पालन म� या
ऐसे अन्य कृत्य� के पालन म� , िजनका राष्ट्रप�त के अनरु ोध पर उसने
�नवर्हन करने का भार अपने ऊपर �लया है, �बताया गया समय है ;
(ii) उस समय को छोड़कर िजसम� न्यायाधीश छुट्ट� लेकर
अनप
ु िस्थत है, द�घार्वकाश है ; और
(iii) उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय को या एक उच्च
न्यायालय से दस ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण पर जाने पर पदग्रहण-काल
है ।
भाग ङ
भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के बारे म� उपबंध
12. (1) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को ∗चार हजार रुपए प्र�तमास क� दर
से वेतन का संदाय �कया जाएगा ।
(2) ऐसा कोई व्यिक्त, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के
महालेखापर��क के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 377
के अधीन भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क बन गया है, इस पैरा के उपपैरा (1) म�
�व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त �वशेष वेतन के रूप म� ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार
होगा जो इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे
प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के महालेखापर��क के रूप म� प्राप्त कर रहा था ।
(3) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क क� अनप ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन तथा
अन्य सेवा-शत� के संबध ं म� अ�धकार उन उपबंध� से, यथािस्थ�त, शा�सत ह�गे या
शा�सत होते रह� गे जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के महालेखापर��क को
लागू थे और उन उपबंध� म� गवनर्र जनरल के प्र�त सभी �नद� श� का यह अथर् लगाया
जाएगा �क वे राष्ट्रप�त के प्र�त �नद� श ह� ।
∗
�नयंत्रक-महालेखापर��क (कतर्व्य, शिक्तयां तथा सेवा क� शत�) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 56) क� धारा 3
द्वारा भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� के बराबर वेतन का संदाय �कया
जाएगा । उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018
(2018 का 10) क� धारा 6 द्वारा (1-1-2016 भूतल�ी प्रभाव से) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� का वेतन
“दो लाख पचास हजार रुपए” प्र�त मास तक बढ़ा �दया गया है ।
तीसर� अनस
ु च
ू ी
[अनच्
ु छे द 75(4), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 188 और 219]
*
के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखूंगा, 1[म� भारत क� प्रभुता और अखंडता
अ�ुण्ण रखूंगा,] म� संघ के मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र् और शुद्ध
अंतःकरण से �नवर्हन करूंगा तथा म� भय या प�पात, अनरु ाग या द्वेष के �बना, सभी
प्रकार के लोग� के प्र�त सं�वधान और �व�ध के अनस
ु ार न्याय करूंगा ।”
2
संघ के मंत्री के �लए गोपनीयता क� शपथ का प्ररूप :–
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक, �क जो �वषय संघ के मंत्री के रूप
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे �कसी व्यिक्त या
व्यिक्तय� को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� के सम्यक्
�नवर्हन के �लए ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से संसू�चत या
प्रकट नह�ं करूंगा ।”
2
[3
क
संसद् के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए
जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप : –
*
अनुच्छे द 84(क) और अनुच्छे द 173(क) भी दे �खए ।
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) प्ररूप 3 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
269
भारत का सं�वधान 270
(तीसर� अनस
ु च
ू ी)
“म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) म� स्थान भरने के �लए अभ्यथ� के रूप म�
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
नाम�नद� �शत हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखंग
ू ा, और म� भारत क� प्रभत
ु ा और
अखंडता अ�ुण्ण रखग
ूं ा ।”
ख
संसद् के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–
“म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत)
हुआ हूं ईश्वर क� शपथ लेता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग
ूं ा, म� भारत क� प्रभत
ु ा और अखंडता
अ�ुण्ण रखूंगा तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव
ू क
र्
�नवर्हन करूंगा ।”]
4
�क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग
ूं ा,
1
[म� भारत क� प्रभत
ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखग
ूं ा,] तथा म� सम्यक् प्रकार से और
श्रद्धापव
ू क
र् तथा अपनी परू � योग्यता, �ान और �ववेक से अपने पद के कतर्व्य� का भय
या प�पात, अनरु ाग या द्वेष के �बना पालन करूंगा तथा म� सं�वधान और �व�धय� क�
मयार्दा बनाए रखूंगा ।”
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 271
(तीसर� अनस
ु च
ू ी)
5
�कसी राज्य के मंत्री के �लए पद क� शपथ का प्ररूप :–
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक, �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ंू ा, 1[म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता
अ�ुण्ण रखंग ू ा,] म� ----------------------राज्य क े मं त्री के रूप म� अपने कतर्व्य� का
श्रद्धापव
ू क
र् और श द्
ु ध अंत ःकरण से �नवर्ह न करू
ं गा तथा म� भय या प�पात, अनरु ाग या
द्वेष के �बना, सभी प्रकार के लोग� के प्र�त सं�वधान और �व�ध के अनस ु ार न्याय
करूंगा ।”
6
�कसी राज्य के मंत्री के �लए गोपनीयता क� शपथ का प्ररूप :–
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
“म�, अमुक, �क जो �वषय -----------------------
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
राज्य के मंत्री के रूप म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे
�कसी व्यिक्त या व्यिक्तय� को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य�
के सम्यक् �नवर्हन के �लए ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से
संसू�चत या प्रकट नह�ं करूंगा ।”
2
[7
क
�कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने
वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–
“म�, अमुक, ---------------- जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) म� स्थान भरने के
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
�लए अभ्यथ� के रूप म� नाम�नद� �शत हुआ हूं, �क म�
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
�व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखूंगा, और म�
भारत क� प्रभतु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखग ूं ा ।”
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) प्ररूप 7 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 272
(तीसर� अनस
ु च
ू ी)
ख
�कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने
वाले प्र�त�ान का प्ररूप :–
“म�, अमुक, जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत)
8
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का
प्ररूप :–
“म�, अमक
ु , जो ------------ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश)
ईश्वर क� शपथ लेता हूं
�नयुक्त हुआ हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत
सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं
1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत ।
1
[चौथी अनुसूची
[अनच्
ु छे द 4(1) और अनच्
ु छे द 80(2)]
राज्य सभा म� स्थान� का आबंटन
�नम्न�ल�खत सारणी के पहले स्तंभ म� �व�न�दर्ष्ट प्रत्येक राज्य या संघ राज्य�ेत्र
को उतने स्थान आबं�टत �कए जाएंगे िजतने उसके दस ू रे स्तंभ म� , यथािस्थ�त, उस
राज्य या उस संघ राज्य�ेत्र के सामने �व�न�दर्ष्ट ह� :
सारणी
2
1. आंध्र प्रदे श ...................................................................................... [11]
3
[2. तेलंगाना........................................................................................ 7]
4
[3.] असम ......................................................................................... 7
5
4
[4.] �बहार ......................................................................................... [16]
6 4
[ [5.] झारखंड .................................................................................... 6]
[ [ [6.]] गोवा ....................................................................................
7 8 4 1]
9 8 4
[ [ [7.]] गुजरात 11]
.................................................................................
[ [ [8.] ह�रयाणा ...............................................................................
10 8 4 5]
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) चौथी अनुसच
ू ी के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) “18” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) अन्तःस्था�पत ।
4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क�
प्र�विष्टय� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�विष्टय� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) “22” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
6. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
7. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत ।
8. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�विष्ट 4 से 29 को क्रमशः
प्र�विष्ट 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
9. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट "4" के स्थान पर
“प्र�विष्ट 6” पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत ।
273
भारत का सं�वधान 274
(चौथी अनस
ु च
ू ी)
1. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�विष्ट 4 से 29 को क्रमशः
प्र�विष्ट 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क�
प्र�विष्टय� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�विष्टय� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) “16” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
5. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “8. मद्रास” (“11”
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
6. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 8 द्वारा (1-4-1960 से) “17” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
7. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत ।
8. मैसरू राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “10. मैसरू ” (“13”
के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
9. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 (2011 का 15) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत।
10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) “11” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
11. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
12. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत ।
13. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 5 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
14. ** जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर
से संबं�धत प्र�विष्ट 21 को हटा �दया गया है ।
.
15 जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 22 से
प्र�विष्ट 31 को क्रमशः प्र�विष्ट 21 से प्र�विष्ट 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया है ।
16. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 6 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 275
(चौथी अनस
ु च
ू ी)
1[ 2[ 3[ 4[22.]] �हमाचल प्रदे श..... .................................................. 3]
3 2 4
[ [ [23.]] म�णपरु .................................................................. 1
3 2 4
[ [ [24.]] �त्रपरु ा ............................................................... 1
3 2 4
[ [ [25.]] मेघालय .............................................................. 1
5 3 2 4
[ [ [ [26.]] �सिक्कम ............................................................ 1]
6 3 2 4
[ [ [ [27.]] �मजोरम ............................................................. 1]
7 3 2 4
[ [ [ [28.]] अरुणाचल प्रदे श ................................................. 1]
3 2 4
[ [ [29.]] �दल्ल� ............................................................ 3
3 2 4
[ [ [30.] 8[पडचेर�
ु ु .......................................................... 1
9[3[2[4[31. जम्म-कश्मीर 4
ू
योग :– 10
[233]]
.
1 �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 5 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत ।
2. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�विष्ट 4 से 29 को क्रमशः
प्र�विष्ट 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क�
प्र�विष्टय� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�विष्टय� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 22 से
प्र�विष्ट 31 को क्रमशः प्र�विष्ट 21 से प्र�विष्ट 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया है ।
5. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत ।
6. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
7. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
8. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
9. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) अन्तःस्था�पत ।
10. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) “232” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
पांचवीं अनुसूची
[अनच्
ु छे द 244 (1)]
अनस
ु ू�चत �ेत्र� और अनस
ु �ू चत जनजा�तय� के प्रशासन और �नयंत्रण के बारे म� उपबंध
भाग क
साधारण
1. �नवर्चन – इस अनस ु ूची म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,
“राज्य” पद के अंतगर्त 1*** 2[असम, 3[ 4[मेघालय, �त्रपरु ा और �मजोरम]] राज्य] नह�ं
ह� ।
2. अनस ु ू�चत �ेत्र� म� �कसी राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त – इस अनस
ु ूची के
उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार उसके
अनस
ु ू�चत �ेत्र� पर है ।
3. अनस ु �ू चत �ेत्र� के प्रशासन के संबध
ं म� राष्ट्रप�त को राज्यपाल 5*** द्वारा
प्र�तवेदन – ऐसे प्रत्येक राज्य का राज्यपाल 5***, िजसम� अनस ु ू�चत �ेत्र ह�, प्र�तवषर् या
जब भी राष्ट्रप�त इस प्रकार अपे�ा करे , उस राज्य के अनस ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन के
संबध ं म� राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे गा और संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार राज्य
को उक्त �ेत्र� के प्रशासन के बारे म� �नदे श दे ने तक होगा ।
भाग ख
अनस
ु ू�चत �ेत्र� और अनस
ु �ू चत जनजा�तय� का प्रशासन और �नयंत्रण
4. जनजा�त सलाहकार प�रषद् – (1) ऐसे प्रत्येक राज्य म� , िजसम� अनस ु ू�चत
�ेत्र ह� और य�द राष्ट्रप�त ऐसा �नदे श दे तो, �कसी ऐसे राज्य म� भी, िजसम� अनस ु ू�चत
जनजा�तयां ह� �कं तु अनस ु ू�चत �ेत्र नह�ं है, एक जनजा�त सलाहकार प�रषद् स्था�पत क�
जाएगी जो बीस से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी िजनम� से यथाशक्य �नकटतम
तीन-चौथाई उस राज्य क� �वधान सभा म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के प्र�त�न�ध ह�गे :
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट राज्य अ�भप्रेत ह� परन्तु” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम राज्य” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 3 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और �त्रपुरा” के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
276
भारत का सं�वधान 277
(पांचवीं अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त,
राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख”
शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 278
(पांचवीं अनस
ु च
ू ी)
(ग) ऐसे व्यिक्तय� द्वारा जो ऐसे �ेत्र क� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के
सदस्य� को धन उधार दे ते ह�, साहूकार के रूप म� कारबार करने का �व�नयमन
कर सक�गे ।
(3) ऐसे �कसी �व�नयम को बनाने म� जो इस पैरा के उपपैरा (2) म� �न�दर्ष्ट है,
राज्यपाल 1*** संसद् के या उस राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम का या �कसी
�वद्यमान �व�ध का, जो प्रश्नगत �ेत्र म� तत्समय लागू है, �नरसन या संशोधन कर
सकेगा ।
(4) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी �व�नयम राष्ट्रप�त के सम� तुरन्त
प्रस्तत
ु �कए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक उनका
कोई प्रभाव नह�ं होगा ।
(5) इस पैरा के अधीन कोई �व�नयम तब तक नह�ं बनाया जाएगा जब तक
�व�नयम बनाने वाले राज्यपाल 2*** ने जनजा�त सलाहकार प�रषद् वाले राज्य क� दशा
म� ऐसी प�रषद् से परामशर् नह�ं कर �लया है ।
भाग ग
अनस ु ू�चत �ेत्र
6. अनस ु ू�चत �ेत्र – (1) इस सं�वधान म� , “अनस ु ू�चत �ेत्र” पद से ऐसे �ेत्र
अ�भप्रेत ह� िजन्ह� राष्ट्रप�त आदे श ∗ द्वारा अनस ु �ू चत �ेत्र घो�षत करे ।
(2) राष्ट्रप�त, �कसी भी समय आदे श ∗∗ द्वारा –
(क) �नदे श दे सकेगा �क कोई संपण ू र् अनसु ू�चत �ेत्र या उसका कोई
�व�न�दर्ष्ट भाग अनस ु ू�चत �ेत्र या ऐसे �ेत्र का भाग नह�ं रहे गा,
3
[(कक) �कसी राज्य के �कसी अनस ु �ू चत �ेत्र के �ेत्र को उस राज्य के
राज्यपाल से परामशर् करने के पश्चात ् बढ़ा सकेगा,]
(ख) �कसी अनस ु ू�चत �ेत्र म� , केवल सीमाओं का प�रशोधन करके ह�,
प�रवतर्न कर सकेगा,
∗ अनुसू�चत �ेत्र (भाग क राज्य) आदे श, 1950 (सं.आ. 9), अनुसू�चत �ेत्र (भाग ख राज्य) आदे श, 1950 (सं.आ.
26), अनुसू�चत �ेत्र (�हमाचल प्रदे श) आदे श, 1975 (सं.आ. 102) और अनुसू�चत �ेत्र (�बहार, गुजरात, मध्य
प्रदे श और उड़ीसा राज्य) आदे श, 1977 (सं.आ. 109) दे �खए ।
∗∗ मद्रास अनुसू�चत �ेत्र (समािप्त) आदे श, 1950 (सं.आ. 30) और आंध्र अनुसू�चत �ेत्र (समािप्त) आदे श, 1955
(सं.आ. 50) दे �खए ।
3. सं�वधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का 101) क� धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 279
(पांचवीं अनस
ु च
ू ी)
भाग घ
अनस
ु च
ू ी का संशोधन
7. अनस ु ूची का संशोधन – (1) संसद्, समय-समय पर �व�ध द्वारा, इस अनस ु ूची
के उपबंध� म� से �कसी का, प�रवधर्न, प�रवतर्न या �नरसन के रूप म� , संशोधन कर
सकेगी और जब अनस ु ूची का इस प्रकार संशोधन �कया जाता है तब इस सं�वधान म� इस
अनसु ूची के प्र�त �कसी �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह इस प्रकार संशो�धत
ऐसी अनस ु ूची के प्र�त �नद� श है ।
(2) ऐसी कोई �व�ध, जो इस पैरा के उपपैरा (1) म� उिल्ल�खत है, इस सं�वधान
के अनच्
ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी ।
1. सं�वधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का 101) क� धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से)
अंतःस्था�पत ।
छठ� अनुसूची
[अनच्
ु छे द 244(2) और अनच्
ु छे द 275(1)]
1
[असम, मेघालय, �त्रपुरा और �मजोरम राज्य�] के जनजा�त �ेत्र� के प्रशासन
के बारे म� उपबंध
1. स्वशासी िजले और स्वशासी प्रदे श – (1) इस पैरा के उपबंध� के अधीन रहते
2
हुए, इस अनस ु ूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [ [भाग 1, भाग 2 और भाग 2क]
3 4
1. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के
�लए पैरा 1 म� उप-पैरा (2) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
“परन्तु इस उप-पैरा क� कोई बात, बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले को (7-9-2003 से) लागू नह�ं होगी ।”।
3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972
से) "भाग क" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) "भाग 1 और भाग 2" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतःस्था�पत ।
280
भारत का सं�वधान 281
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
परं तु राज्यपाल इस उप-पैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के
अधीन कोई आदे श इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 14 के उप-पैरा (1) के अधीन �नयक्
ु त आयोग
के प्र�तवेदन पर �वचार करने के पश्चात ् ह� करे गा, अन्यथा नह�ं :
1
[परं तु यह और �क राज्यपाल द्वारा इस उप-पैरा के अधीन �कए गए आदे श म�
ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त पैरा 20 का और उक्त सारणी
ऐसे आनष
के �कसी भाग क� �कसी मद का कोई संशोधन है) अंत�वर्ष्ट हो सक�गे जो राज्यपाल को
उस आदे श के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक प्रतीत ह� ।]
2- 3- 4
2. िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� का गठन – 5[(1) प्रत्येक स्वशासी
िजले के �लए एक िजला प�रषद् होगी जो तीस से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी
िजनम� से चार से अन�धक व्यिक्त राज्यपाल द्वारा नाम�नद� �शत �कए जाएंगे और शेष
वयस्क मता�धकार के आधार पर �नवार्�चत �कए जाएंगे ।
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के
�लए पैरा 2 म� उप-पैरा (1) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
“परं तु यह �क बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् �छयाल�स से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी िजनम� से
चाल�स सदस्य� को वयस्क मता�धकार के आधार पर �नवार्�चत �कया जाएगा, िजनम� से तीस अनुसू�चत
जनजा�तय� के �लए, पांच गैर जनजातीय समुदाय� के �लए, पांच सभी समुदाय� के �लए आर��त ह�गे तथा शेष
छह राज्यपाल द्वारा नाम�नद� �शत �कए जाएंगे िजनके अ�धकार और �वशेषा�धकार, िजनके अंतगर्त मत दे ने के
अ�धकार भी ह�, वह� ह�गे जो अन्य सदस्य� के ह�, बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के उन समुदाय� म� से, िजनका
प्र�त�न�धत्व नह�ं है, कम से कम दो म�हलाएं ह�गी :” ।
3. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के
�लए पैरा 2 म� उप-पैरा (3) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
“परं तु उ�र� कछार पहाड़ी िजले के �लए ग�ठत िजला प�रषद्, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् कहलाएगी
और काब� आंगलांग िजले के �लए ग�ठत िजला प�रषद्, काब� आंगलांग स्वशासी प�रषद् कहलाएगी ।”;
.
4 सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के
�लए पैरा 2 के उप-पैरा (3) म� परन्तुक के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया,
अथार्त ् :--
“परं तु यह और �क बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के �लए ग�ठत िजला प�रषद् बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद्
कहलाएगी ।” ।
5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) उप-पैरा (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 282
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(2) इस अनस ु ूची के पैरा 1 के उप-पैरा (2) के अधीन स्वशासी प्रदे श के रूप म�
ग�ठत प्रत्येक �ेत्र के �लए पथ ृ क् प्रादे �शक प�रषद् होगी ।
(3) प्रत्येक िजला प�रषद् और प्रत्येक प्रादे �शक प�रषद् क्रमशः “(िजले का नाम)
क� िजला प�रषद्” और “(प्रदे श का नाम) क� प्रादे �शक प�रषद्” नामक �नग�मत �नकाय
होगी, उसका शाश्वत उ�रा�धकार होगा और उसक� सामान्य मुद्रा होगी और उक्त नाम
से वह वाद लाएगी और उस पर वाद लाया जाएगा ।
(4) इस अनस ु च
ू ी के उपबंध� के अधीन रहते हुए, स्वशासी िजले का प्रशासन ऐसे
िजले क� िजला प�रषद् म� वहां तक �न�हत होगा जहां तक वह इस अनस ू च
ू ी के अधीन
ऐसे िजले के भीतर �कसी प्रादे �शक प�रषद् म� �न�हत नह�ं ह� और स्वशासी प्रदे श का
प्रशासन ऐसे प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् म� �न�हत होगा ।
(5) प्रादे �शक प�रषद् वाले स्वशासी िजले म� प्रादे �शक प�रषद् के प्रा�धकार� के
अधीन �ेत्र� के संबध ं म� िजला प�रषद् को, इस अनस ु ूची द्वारा ऐसे �ेत्र� के संबध
ं म�
प्रद� शिक्तय� के अ�त�रक्त केवल ऐसी शिक्तयां ह�गी जो उसे प्रादे �शक प�रषद् द्वारा
प्रत्यायोिजत क� जाएं ।
(6) राज्यपाल, संब�ं धत स्वशासी िजल� या प्रदे श� के भीतर �वद्यमान जनजा�त
प�रषद� या अन्य प्र�त�न�ध जनजा�त संगठन� से परामशर् करके, िजला प�रषद� और
प्रादे �शक प�रषद� के प्रथम गठन के �लए �नयम बनाएगा और ऐसे �नयम� म�
�नम्न�ल�खत के �लए उपबंध �कए जाएंगे, अथार्त ् : –
(क) िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� क� संरचना तथा उनम� स्थान�
का आबंटन ;
(ख) उन प�रषद� के �लए �नवार्चन� के प्रयोजन के �लए प्रादे �शक
�नवार्चन-�ेत्र� का प�रसीमन ;
(ग) ऐसे �नवार्चन� म� मतदान के �लए अहर्ताएं और उनके �लए �नवार्चक
नामाव�लय� क� तैयार� ;
(घ) ऐसे �नवार्चन� म� ऐसी प�रषद� के सदस्य �नवार्�चत होने के �लए
अहर्ताएं ;
(ङ) 1[प्रादे �शक प�रषद�] के सदस्य� क� पदाव�ध ;
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) "ऐसी प�रषद�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 283
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 284
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
परं तु जब तक िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस उप-पैरा के अधीन �नयम
नह�ं बनाए जाते ह� तब तक राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (6) के अधीन बनाए गए
�नयम, प्रत्येक ऐसी प�रषद् के �लए �नवार्चन�, उसके अ�धका�रय� और कमर्चा�रय� तथा उसक�
प्र�क्रया और उसके कायर् संचालन के संबध
ं म� प्रभावी ह�गे ।
1* * * *
13
2- 3-4
14 3. �व�ध बनाने क� िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� क� शिक्त – (1) स्वशासी प्रदे श
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970
से) द्�वतीय परन्तुक का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 3
आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (3) �नम्न�ल�खत रूप से
प्र�तस्था�पत हो सके, अथार्त ् :--
“(3) पैरा 3क के उप-पैरा (2) या पैरा 3ख के उप-पैरा (2) म� जैसा अन्यथा उपबं�धत है , उसके �सवाय इस
पैरा या पैरा 3क के उप-पैरा (1) या पैरा 3ख के उप-पैरा (1) के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां राज्यपाल के
सम� तुरन्त प्रस्तुत क� जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुम�त नह�ं दे दे ता है तब तक प्रभावी नह�ं ह�गी ।”।
“3क. उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् और काब� आंगलांग स्वशासी प�रषद् क� �व�ध बनाने क� अ�त�रक्त
शिक्तयां--(1) पैरा 3 के उपबंध� पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् और काब�
आंगलांग स्वशासी प�रषद् को, संबं�धत िजल� के भीतर �नम्न�ल�खत क� बाबत �व�धयां बनाने क� शिक्त होगी,
अथार्त ् :--
(क) सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 7 और प्र�विष्ट 52 के उपबंध� के अधीन रहते हुए,
उद्योग ;
(ख) संचार, अथार्त ्, सड़क�, पुल, फेर� और अन्य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची क� सूची 1 म�
�व�न�दर् ष्ट नह�ं ह�, नगरपा�लक ट्राम, रज्जुमागर्, अंतद� शीय जलमाग� के संबंध म� सातवीं अनुसच
ू ी क� सूची 1
और सूची 3 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अंतद� शीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नो�दत यान� से
�भन्न यान ;
(ग) पशुधन का प�रर�ण, संर�ण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोग� का �नवारण, पशु �च�कत्सा
प्र�श�ण और व्यवसाय ; कांजी हाउस ;
(ङ) कृ�ष िजसके अंतगर्त कृ�ष �श�ा और अनुसंधान, नाशक जीव� से संर�ण और पादप रोग� का
�नवारण है ;
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(पाद-�टप्पण जार�),--
(छ) सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 56 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, जल, अथार्त ्, जल
प्रदाय, �संचाई और नहर� , जल �नकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शिक्त ;
(ज) सामािजक सुर�ा और सामािजक बीमा ; �नयोजन और बेकार� ;
(झ) ग्राम�, धान के खेत�, बाजार�, शहर� आ�द के संर�ण के �लए बाढ़ �नयंत्रण स्क�म� (जो तकनीक�
प्रकृ�त क� न ह�) ;
(ञ) नाट्यशाला औंर नाट्य प्रदशर्न ; सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 60 के उपबंध� के
अधीन रहते हुए, �सनेमा, खेल-कूद, मनोरं जन और आमोद ;
(ट) लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय ;
(ठ) लघु �संचा� ;
(ड) खाद्य पदाथर्, पशुओं के चारे , कच्ची कपास और कच्चे जूट का व्यापार और वा�णज्य तथा उनका
उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ;
(ढ) राज्य द्वारा �नयं�त्रत या �व�पो�षत पुस्तकालय, संग्रहालय और वैसी ह� अन्य संस्थाएं संसद्
द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन राष्ट्र�य महत्व के घो�षत �कए गए प्राचीन और ऐ�तहा�सक
संस्मारक� और अ�भलेख� से �भन्न प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक और अ�भलेख ; और
(ण) भू�म का अन्य संक्रामण ।
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् और काब� आगंलांग स्वशासी
प�रषद् द्वारा बनाई गई सभी �व�धयां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसूची क� सूची 3 म� �व�न�दर् ष्ट �वषय� से
है, राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तुत क� जाएंगी, जो उन्ह� राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखे गा ।
(3) जब कोई �व�ध राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रख ल� जाती है तब राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क वह
उक्त �व�ध पर अनुम�त दे ता है या अनुम�त रोक लेता है :
परं तु राष्ट्रप�त राज्यपाल को यह �नदे श दे सकेगा �क वह �व�ध को, यथािस्थ�त, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी
प�रषद् या काब� आगंलांग स्वशासी प�रषद् को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे �क उक्त प�रषद्
�व�ध या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर् ष्ट उपबंध� पर पुन�वर्चार करे और �व�शष्टतया, �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� पर पुरःस्थापन
क� वांछनीयता पर �वचार करे िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �व�ध इस प्रकार लौटा द�
जाती है तब ऐसा संदेश �मलने क� तार�ख से छह मास क� अव�ध के भीतर प�रषद् ऐसी �व�ध पर तदनुसार �वचार
करे गी और य�द �व�ध उक्त प�रषद् द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर द� जाती है तो उसे
राष्ट्रप�त के सम� उसके �वचार के �लए �फर से प्रस्तुत �कया जाएगा ।
4. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा असम राज्य को लागू होने
के �लए पैरा 3क के पश्चात ् क्रमशः �नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया गया, अथार्त ् :--
3ख. बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् क� �व�धयां बनाने क� अ�त�रक्त शिक्तयां -- (1) पैरा 3 के उपबंध� पर
प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् को, अपने �ेत्र� म� , �नम्न�ल�खत के संबंध म� �व�धयां बनाने
क� शिक्त होगी, अथार्त ् :--
(i) कृ�ष, िजसके अंतगर्त कृ�ष �श�ा और अनुसंधान, नाशक जीव� से संर�ण और पादप रोग� का
�नवारण है ; (ii) पशुपालन और पशु �च�कत्सा अथार्त ् पशुधन का प�रर�ण, संर�ण और सुधार तथा जीव
जंतुओं के रोग� का �नवारण, पशु �च�कत्सा प्र�श�ण और व्यवसाय, कांजी हाऊस ; (iii) सहका�रता ; (iv)
सांस्कृ�तक कायर्; (v) �श�ा अथार्त ् प्राइमर� �श�ा, उच्चतर माध्य�मक �श�ा िजसम� व�ृ �क प्र�श�ण, प्रौढ़
�श�ा, महा�वद्यालय �श�ा (साधारण) भी है ; (vi) मत्स्य उद्योग ; (vii) ग्राम, धान के खेत�, बाजार� और
भारत का सं�वधान 286
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
शहर� के संर�ण के �लए बाढ़ �नयंत्रण (जो तकनीक� प्रकृ�त का न हो) ; (viii) खाद्य और �स�वल आपू�तर् ;
(ix) वन (आर��त वन� को छोड़कर) ; (x) हथकरघा और वस्त्र ; (xi) स्वास्थ्य और प�रवार कल्याण ; (xii)
सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 84 के उपबंध� के अधीन रहते हुए मादक �लकर, अफ�म और
व्युत्पन्न ; (xiii) �संचाई ; (xiv) श्रम और रोजगार ; (xv) भू�म और राजस्व ; (xvi) पुस्तकालय सेवाएं
(राज्य सरकार द्वारा �व�पो�षत और �नयं�त्रत) ; (xvii) लाटर� (सातवीं अनुसच
ू ी क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 40
के उपबंध� के अधीन रहते हुए), नाट्यशाला, नाट्य प्रदशर्न और �सनेमा (सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क�
प्र�विष्ट 60 के उपबंध� के अधीन रहते हुए) ; (xviii) बाजार और मेले; (xix) नगर �नगम, सुधार न्यास,
िजला बोडर् और अन्य स्थानीय प्रा�धकार� ; (xx) राज्य द्वारा �नयं�त्रत या �व�पो�षत संग्रहालय और पुरातत्व
�व�ान संस्थान, संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके राष्ट्र�य महत्व के घो�षत �कए गए
प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक� और अ�भलेख� से �भन्न, प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक और अ�भलेख
; (xxi) पंचायत और ग्रामीण �वकास ; (xxii) योजना और �वकास ; (xxiii) मुद्रण और लेखन सामग्री ;
(xxiv) लोक स्वास्थ्य इंजी�नयर� ; (xxv) लोक �नमार्ण �वभाग; (xxvi) प्रचार और लोक संपकर्; (xxvii) जन्म
और मत्ृ यु का रिजस्ट्र�करण ; (xxviii) सहायता और पुनवार्स ; (xxix) रे शम उत्पादन ; (xxx) सातवीं
अऩुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 7 और प्र�विष्ट 52 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, लघु, कुट�र और ग्रामीण
उद्योग ; (xxxi) समाज कल्याण ; (xxxii) मद
ृ ा संर�ण ; (xxxiii) खेलकूद और युवा कल्याण ; (xxxiv)
सांिख्यक� ; (xxxv) पयर्टन ; (xxxvi) प�रवहन (सड़क�, पुल, फेर� और अन्य संचार साधन, जो सातवीं
अनुसूची क� सूची 1 म� �व�न�दर् ष्ट नह�ं ह�, नगरपा�लका ट्राम, रज्जुमागर्, अन्तद� शीय जलमाग� के संबंध म�
सातवीं अनुसूची क� सूची 1 और सूची 3 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अन्तद� शीय जलमागर् और उन पर
यातायात, यंत्र नो�दत यान� से �भन्न यान) ; (xxxvii) राज्य सरकार द्वारा �नयं�त्रत और �व�पो�षत
जनजा�त अनुसंधान संस्थान ; (xxxviii) शहर� �वकास-नगर और ग्रामीण योजना) ; (xxxix) सातवीं अनुसूची
क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 50 के उपबंध� के अधीन रहते हुए बाट और माप ; और (xl) मैदानी जनजा�तय�
और �पछड़े वग� का कल्याण :
परं तु ऐसी �व�धय� क� कोई बात, --
(क) इस अ�ध�नयम के प्रारं भ क� तार�ख पर �कसी नाग�रक के उसक� भू�म के संबंध म� �वद्यमान
अ�धकार� और �वशेषा�धकार� को समाप्त या उपांत�रत नह�ं करे गी ; और
(ख) �कसी नाग�रक को �वरासत, आबंटन, व्यवस्थापन के रूप म� या अंतरण क� �कसी अन्य र��त से
भू�म अिजर्त करने से अनु�ात नह�ं करे गी य�द ऐसा नाग�रक बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के भीतर भू�म के
ऐसे अजर्न के �लए अन्यथा पात्र है ।
(2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसच ू ी
क� सूची 3 म� �व�न�दर् ष्ट �वषय� से है, राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तुत क� जाएंगी जो उन्ह� राष्ट्रप�त के �वचार
के �लए आर��त रखेगा ।
(3) जब कोई �व�ध राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रख ल� जाती है, तब राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क
वह उक्त �व�ध पर अनुम�त दे ता है या अनुम�त रोक लेता है :
परं तु राष्ट्रप�त राज्यपाल को यह संदेश दे सकेगा �क वह �व�ध को, बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् को ऐसे संदेश
के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे �क उक्त प�रषद् �व�ध या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर् ष्ट उपबंध� पर पुन�वर्चार
करे और �व�शष्टतया, �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� को पुरःस्था�पत करने क� वांछनीयता पर �वचार करे िजनक� उसने
अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �व�ध इस प्रकार लौटा द� जाती है तब उक्त प�रषद्, ऐसे संदेश क� प्रािप्त
क� तार�ख से छह मास क� अव�ध के भीतर ऐसी �व�ध पर तदनुसार �वचार करे गी और य�द �व�ध उक्त प�रषद्
द्वारा, संशोधन स�हत या उसके �बना, �फर से पा�रत कर द� जाती है तो उसे राष्ट्रप�त के सम� उसके �वचार के
�लए �फर से प्रस्तुत �कया जाएगा ।”।
भारत का सं�वधान 287
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) खंड झ के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 288
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(3) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तत
ु
क� जाएंगी और जब तक वह उन पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक प्रभावी नह�ं
ह�गी ।
1
4. स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� म� न्याय प्रशासन – (1) स्वशासी प्रदे श
क� प्रादे �शक प�रषद् ऐसे प्रदे श के भीतर के �ेत्र� के संबध ं म� और स्वशासी िजले क�
िजला प�रषद् ऐसे �ेत्र� से �भन्न जो उस िजले के भीतर क� प्रादे �शक प�रषद� के, य�द
कोई ह�, प्रा�धकार के अधीन ह�, उस िजले के भीतर के अन्य �ेत्र� के संबध ं म� , ऐसे वाद�
और मामल� के �वचारण के �लए जो ऐसे प�कार� के बीच ह� िजनम� से सभी प�कार
ऐसे �ेत्र� के भीतर क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के ह� तथा जो उन वाद� और मामल� से
�भन्न ह� िजनको इस अनस ु ूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते ह�, उस
राज्य के �कसी न्यायालय का अपवजर्न करके ग्राम प�रषद� या न्यायालय� का गठन कर
सकेगी और उपय ु क्त व्यिक्तय� को ऐसी ग्राम प�रषद् के सदस्य या ऐसे न्यायालय� के
पीठासीन अ�धकार� �नयक् ु त कर सकेगी और ऐसे अ�धकार� भी �नयक् ु त कर सकेगी जो
इस अनस ु ूची के पैरा 3 के अधीन बनाई गई �व�धय� के प्रशासन के �लए आवश्यक ह� ।
(2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, स्वशासी प्रदे श क� प्रादे �शक
प�रषद् या उस प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस �न�म� ग�ठत कोई न्यायालय या य�द �कसी
स्वशासी िजले के भीतर के �कसी �ेत्र के �लए कोई प्रादे �शक प�रषद् नह�ं है तो, ऐसे
िजले क� िजला प�रषद् या उस िजला प�रषद् द्वारा इस �न�म� ग�ठत कोई न्यायालय
ऐसे सभी वाद� और मामल� के संबध ं म� जो, यथािस्थ�त, ऐसे प्रदे श या �ेत्र के भीतर
इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन ग�ठत �कसी ग्राम प�रषद् या न्यायालय द्वारा
�वचारणीय ह� तथा जो उन वाद� और मामल� से �भन्न ह� िजनको इस अनस ु ूची के पैरा 5
के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते ह� अपील न्यायालय क� शिक्तय� का प्रयोग करे गा
तथा उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय से �भन्न �कसी अन्य न्यायालय को ऐसे
वाद� या मामल� म� अ�धका�रता नह�ं होगी ।
(3) उच्च न्यायालय 2*** को, उन वाद� और मामल� म� िजनको इस पैरा के उप-
पैरा (2) के उपबंध लागू होते ह�, ऐसी अ�धका�रता होगी और वह उसका प्रयोग करे गा जो
राज्यपाल समय-समय पर आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे ।
1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 4
आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (5) के पश्चात ्
�नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया जा सके, अथार्त ् :--
“(6) इस पैरा क� कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परं तुक के अधीन ग�ठत बोडोल�ड
प्रादे �शक प�रषद् को लागू नह�ं होगी ।”।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम के" शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 289
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) अंतःस्था�पत ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 290
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1
[(4) राष्ट्रप�त द्वारा �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श के संबध
ं म� पैरा 4
के उप-पैरा (5) के अधीन �नयत तार�ख को और से, उस िजले या प्रदे श को लागू होने म�
इस पैरा क� �कसी बात के बारे म� यह नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी िजला प�रषद्
या प्रादे �शक प�रषद् को या िजला प�रषद् द्वारा ग�ठत न्यायालय� को इस पैरा के उप-
पैरा (1) म� �न�दर् ष्ट शिक्तय� म� से कोई शिक्त प्रदान करने के �लए राज्यपाल को
प्रा�धकृत करती है ।]
2
[6. प्राथ�मक �वद्यालय, आ�द स्था�पत करने क� िजला प�रषद् क� शिक्त – (1)
स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् िजले म� प्राथ�मक �वद्यालय�, औषधालय�, बाजार�,
3
[कांजी हाउस�,] फेर�, मीन�ेत्र�, सड़क�, सड़क प�रवहन और जलमाग� क� स्थापना,
�नमार्ण और प्रबंध कर सकेगी तथा राज्यपाल के पव ू र् अनम
ु ोदन से, उनके �व�नयमन और
�नयंत्रण के �लए �व�नयम बना सकेगी और, �व�शष्टतया, वह भाषा और वह र��त �व�हत
कर सकेगी, िजससे िजले के प्राथ�मक �वद्यालय� म� प्राथ�मक �श�ा द� जाएगी ।
7. िजला और प्रादे �शक �न�धयां – (1) प्रत्येक स्वशासी िजले के �लए एक िजला
�न�ध और प्रत्येक स्वशासी प्रदे श के �लए एक प्रादे �शक �न�ध ग�ठत क� जाएगी िजसम�
क्रमशः उस िजले क� िजला प�रषद् द्वारा और उस प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस
सं�वधान के उपबंध� के अनस ु ार, यथािस्थ�त, उस िजले या प्रदे श के प्रशासन के अनक्र
ु म
म� प्राप्त सभी धनरा�शयां जमा क� जाएंगी ।
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) अंतःस्था�पत ।
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) पैरा 6 के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. �नरसन और संशोधन अ�ध�नयम, 1974 (1974 का 56) क� धारा 4 द्वारा (20-12-1974 से) "कांजी हाउस" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "यथािस्थ�त, आसाम या मेघालय" शब्द� का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 292
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
[(2) राज्यपाल, यथािस्थ�त, िजला �न�ध या प्रादे �शक �न�ध के प्रबंध के �लए
1
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) उप-पैरा (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 293
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 16(i) द्वारा (16-9-2016 से) "और" शब्द का लोप
�कया गया ।
2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 16(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 16(iii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत ।
4. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) अंतःस्था�पत ।
5. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 9
�त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (2) के
पश्चात ् �नम्न�ल�खत उप-पैरा अंतःस्था�पत �कया जा सके, अथार्त ् :--
“(3) राज्यपाल, आदे श द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस पैरा के अधीन िजला प�रषद् को �दया जाने वाला
स्वा�मस्व का अंश उस प�रषद् को, यथािस्थ�त, उप-पैरा (1) के अधीन �कसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन
�कसी अवधारण क� तार�ख से एक वषर् क� अव�ध के भीतर �कया जाएगा ।”।
6. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम सरकार" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 294
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1
10. जनजा�तय� से �भन्न व्यिक्तय� क� साहूकार� और व्यापार के �नयंत्रण के
�लए �व�नयम बनाने क� िजला प�रषद् क� शिक्त – (1) स्वशासी िजले क� िजला प�रषद्
(2) �व�शष्टतया और पव
ू ग
र् ामी शिक्त क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, ऐसे
�व�नयम–
�न�म� �नयक्
ु त अ�धका�रय� द्वारा ऐसे लेखाओं के �नर��ण का उपबंध कर
सक�गे ;
के अधीन ह� �कसी वस्तु का थोक या फुटकर कारबार करे गा, अन्यथा नह�ं :
1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 10
�त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया :--
(क) शीषर्क म� से “जनजा�तय� से �भन्न व्यिक्तय� क�” शब्द� का लोप �कया जाएगा ;
(ख) उप-पैरा (1) म� से “जनजा�तय� से �भन्न” शब्द� का लोप �कया जाएगा ;
(ग) उप-पैरा (2) म� , खंड (घ) के स्थान पर, �नम्न�ल�खत खंड रखा जाएगा, अथार्त ् :--
“(घ) �व�हत कर सक�गे �क कोई व्यिक्त, जो िजले म� �नवासी है िजला प�रषद् द्वारा इस �न�म� द�
गई अनु�िप्त के अधीन कोई थोक या फुटकर व्यापार करे गा अन्यथा नह�ं ।”।
भारत का सं�वधान 295
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
∗ सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 10
आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजसम� उप-पैरा (3) के पश्चात ्
�नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया गया :--
"(4) इस पैरा क� कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परन्तुक के अधीन ग�ठत बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद्
को लागू नह�ं होगी ।"।
∗∗ सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) पैरा
12 आसाम राज्य को लागू करने के �लए �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
'पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म� , “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म� ऐसे �वषय� के रूप म�
�व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द�, अंक� और अ�र के स्थान पर, “इस अनुसच
ू ी के पैरा 3 या पैरा 3क या पैरा 3ख
म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द, अंक और अ�र रखे जाएंगे ;'।
∗∗∗ सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा
12 आसाम राज्य को लागू करने के �लए �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
'पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म� , “ इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म� ऐसे �वषय� के रूप म�
�व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द�, अंक� और अ�र के स्थान पर, “इस अनुसूची के पैरा 3क या पैरा 3ख म� ऐसे
�वषय� के रूप म� �व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द, अंक और अ�र रखे जाएंगे ;'।
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) शीषर्क के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 296
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(क) 1
[असम राज्य के �वधान-मंडल] का कोई अ�ध�नयम, जो ऐसे �वषय�
म� से �कसी �वषय के संबध
ं म� है िजनको इस अनस
ु च
ू ी के पैरा 3 म� ऐसे �वषय�
के रूप म� �व�न�दर्ष्ट �कया गया है, िजनके संबध
ं म� िजला प�रषद् या प्रादे �शक
प�रषद् �व�धयां बना सकेगी और [असम राज्य के �वधान-मंडल] का कोई
1
(2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन �दया गया कोई �नदे श इस प्रकार �दया
जा सकेगा �क उसका भत
ू ल�ी प्रभाव हो ।
3
[12क. मेघालय राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� को संसद् के और
मेघालय राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम� का लागू होना – इस सं�वधान म� �कसी
बात के होते हुए भी –
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "राज्य का �वधान-मंडल" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) अंतःस्था�पत ।
3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 12क के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 297
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. पैरा 12कक सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत
�कया गया और तत्पश्चात ् सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा
(16-12-1988 से) पैरा 12कक और 12ख के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 298
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम" शब्द का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा पैरा 14 आसाम राज्य म�
लागू होने के �लए �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
'पैरा 14 के उप-पैरा (2) म� , “राज्यपाल क� उससे संबं�धत �सफा�रश� के साथ” शब्द� का लोप �कया जाएगा ।'।
भारत का सं�वधान 300
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(2) संब�ं धत मंत्री, प्रत्येक ऐसे आयोग के प्र�तवेदन को, राज्यपाल क� उससे
संब�ं धत �सफा�रश� के साथ, उस पर 1[राज्य क� सरकार] द्वारा क� जाने के �लए
प्रस्ता�वत कारर्वाई के संबध ं म� स्पष्ट�कारक �ापन स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के
सम� रखेगा ।
(3) राज्यपाल राज्य क� सरकार के कायर् का अपने मं�त्रय� म� आबंटन करते
समय अपने मं�त्रय� म� से एक मंत्री को राज्य के स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� के
कल्याण का �वशेषतया भारसाधक बना सकेगा ।
2
15. िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� के काय� और संकल्प� का �नप्रभाव या
�नलं�बत �कया जाना – (1) य�द राज्यपाल का �कसी समय यह समाधान हो जाता है �क
िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् के �कसी कायर् या संकल्प से भारत क� सुर�ा का
संकटापन्न होना संभाव्य है 3[या लोक व्यवस्था पर प्र�तकूल प्रभाव पड़ना संभाव्य है] तो
वह ऐसे कायर् या संकल्प को �नप्रभाव या �नलं�बत कर सकेगा और ऐसी कारर्वाई (िजसके
अंतगर्त प�रषद् का �नलंबन और प�रषद् म� �न�हत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या
�कन्ह�ं शिक्तय� को अपने हाथ म� ले लेना है) कर सकेगा जो वह ऐसे कायर् को �कए जाने
या उसके चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संकल्प को प्रभावी �कए जाने का �नवारण करने
के �लए आवश्यक समझे ।
(2) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन �कया गया आदे श, उसके
�लए जो कारण ह� उनके स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� यथासंभवशीघ्र रखा
जाएगा और य�द वह आदे श, राज्य के �वधान-मंडल द्वारा प्र�तसंहृत नह�ं कर �दया जाता
है तो वह उस तार�ख से, िजसको वह इस प्रकार �कया गया था, बारह मास क� अव�ध
तक प्रव�
ृ बना रहे गा :
परन्तु य�द और िजतनी बार, ऐसे आदे श को प्रव� ृ बनाए रखने का अनम ु ोदन
करने वाला संकल्प राज्य के �वधान-मंडल द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तो और उतनी
बार वह आदे श, य�द राज्यपाल द्वारा रद्द नह�ं कर �दया जाता है तो, उस तार�ख से,
िजसको वह इस पैरा के अधीन अन्यथा प्रवतर्न म� नह�ं रहता, बारह मास क� और अव�ध
तक प्रव�
ृ बना रहे गा ।
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम सरकार" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 15
�त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया है :--
'(क) आरं �भक भाग म� , “राज्य के �वधान-मंडल द्वारा” शब्द� के स्थान पर, “राज्यपाल द्वारा” शब्द रखे
जाएंगे ;
(ख) परन्तुक का लोप �कया जाएगा ।'।
3. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से)
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 301
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1
16. िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् का �वघटन – [(1) राज्यपाल, इस
2
अनस
ु ूची के पैरा 14 के अधीन �नयक्
ु त आयोग क� �सफा�रश पर, लोक अ�धसूचना
द्वारा, �कसी िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् का �वघटन कर सकेगा, और–
1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 16
�त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया है :--
'(क) उप-पैरा (1) के खंड (ख) म� आने वाले “राज्य के �वधान-मंडल के पूवर् अनुमोदन से” शब्द� और दूसरे
परन्तुक का लोप �कया जाएगा ;
(ख) उप-पैरा (3) के स्थान पर �नम्न�ल�खत उप-पैरा रखा जाएगा, अथार्त ् :--
“(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) या उप-पैरा (2) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श, उसके �लए जो कारण
है उनके स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा ।”।'.
2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) पैरा 16 को उसके उप-पैरा (1) के रूप म� पुनस�ख्यां�कत �कया गया ।
भारत का सं�वधान 302
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1
[(2) य�द राज्यपाल का �कसी समय यह समाधान हो जाता है �क ऐसी िस्थ�त
उत्पन्न हो गई है िजसम� स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श का प्रशासन इस अनस ु ूची के
उपबंध� के अनस ु ार नह�ं चलाया जा सकता है तो वह, यथािस्थ�त, िजला प�रषद् या
प्रादे �शक प�रषद् म� �न�हत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई कृत्य या शिक्तयां,
लोक अ�धसूचना द्वारा, छह मास से अन�धक अव�ध के �लए अपने हाथ म� ले सकेगा और
यह घोषणा कर सकेगा �क ऐसे कृत्य या शिक्तयां उक्त अव�ध के दौरान ऐसे व्यिक्त या
प्रा�धकार� द्वारा प्रयोक्तव्य ह�गी िजसे वह इस �न�म� �व�न�दर्ष्ट करे :
परन्तु राज्यपाल आरं �भक आदे श का प्रवतर्न, अ�त�रक्त आदे श या आदे श� द्वारा,
एक बार म� छह मास से अन�धक अव�ध के �लए बढ़ा सकेगा ।
(3) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श, उसके �लए जो
कारण ह� उनके स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा और वह आदे श उस
तार�ख से िजसको राज्य �वधान-मंडल उस आदे श के �कए जाने के पश्चात ् प्रथम बार
बैठता है, तीस �दन क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा य�द उस अव�ध क� समािप्त
से पहले राज्य �वधान-मंडल द्वारा उसका अनम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है ।]
2
17. स्वशासी िजल� म� �नवार्चन-�ेत्र� के बनाने म� ऐसे िजल� से �ेत्र� का अपवजर्न
– राज्यपाल, 3[असम या मेघालय 4[या �त्रपरु ा 5[या �मजोरम]] क� �वधान सभा] के
�नवार्चन� के प्रयोजन� के �लए, आदे श द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा �क, 6[यथािस्थ�त,
असम या मेघालय 4[या �त्रपरु ा 5[या �मजोरम]] राज्य म� ] �कसी स्वशासी िजले के भीतर
का कोई �ेत्र ऐसे �कसी िजले के �लए �वधान सभा म� आर��त स्थान या स्थान� को
भरने के �लए �कसी �नवार्चन-�ेत्र का भाग नह�ं होगा, �कन्तु �वधान सभा म� इस प्रकार
आर��त न �कए गए ऐसे स्थान या स्थान� को भरने के �लए आदे श म� �व�न�दर्ष्ट
�नवार्चन-�ेत्र का भाग होगा ।
7
[18.* * *
1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा
(2-4-1970 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा पैरा 17 आसाम राज्य को
लागू करने म� �नम्न�ल�खत परन्तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :--
“परन्तु इस पैरा क� कोई बात बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजला को लागू नह�ं होगी ।”।
3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम क� �वधान सभा" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत ।
5. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत ।
6. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) "आसाम क� �वधान सभा" के स्थान पर अंतःस्था�पत ।
7. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 18 का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 303
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
*] 1
19. संक्रमणकाल�न उपबंध – (1) राज्यपाल, इस सं�वधान के प्रारं भ के
पश्चात ् यथासंभव शीघ्र, इस अनस
ु च
ू ी के अधीन राज्य म� प्रत्येक स्वशासी िजले के �लए
िजला प�रषद् के गठन के �लए कारर्वाई करे गा और जब तक �कसी स्वशासी िजले के
�लए िजला प�रषद् इस प्रकार ग�ठत नह�ं क� जाती है तब तक ऐसे िजले का प्रशासन
राज्यपाल म� �न�हत होगा और ऐसे िजले के भीतर के �ेत्र� के प्रशासन को इस अनस
ु ूची
के पव
ू ग
र् ामी उपबंध� के स्थान पर �नम्न�ल�खत उपबंध लागू ह�गे, अथार्त ् : –
(2) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (क) के अधीन �दया गया
कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भत
ू ल�ी प्रभाव हो ।
1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 19
आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (3) के पश्चात ्
�नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया गया, अथार्त ् :--
'(4) इस अ�ध�नयम के प्रारं भ के पश्चात ्, यथाशीघ्र आसाम म� बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के �लए एक
अंत�रम कायर्पालक प�रषद्, राज्यपाल द्वारा बोडो आन्दोलन के नेताओं म� से, िजनके अंतगर्त समझौते के �ापन
के हस्ता�रकतार् भी ह�, बनाई जाएगी और उसम� उस �ेत्र के गैर जनजातीय समुदाय� को भी पयार्प्त प्र�त�न�धत्व
�दया जाएगा :
परं तु अन्त�रम प�रषद् छह मास क� अव�ध के �लए होगी िजसके दौरान प�रषद् का �नवार्चन कराने का
प्रयास �कया जाएगा ।
स्पष्ट�करण--इस उप-पैरा के प्रयोजन� के �लए, “समझौते का �ापन” पद से भारत सरकार, आसाम सरकार
और बोडो �लबरे शन टाइगसर् के बीच 10 फरवर�, 2003 को हस्ता��रत �ापन अ�भप्रेत है ।'।
भारत का सं�वधान 304
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी �व�नयम
राष्ट्रप�त के सम� तरु न्त प्रस्तत
ु �कए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनम
ु �त नह�ं दे
दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नह�ं होगा ।
1
[20. जनजा�त �ेत्र – (1) नीचे द� गई सारणी के भाग 1, भाग 2, 2[भाग 2क]
और भाग 3 म� �व�न�दर्ष्ट �ेत्र क्रमशः असम राज्य, मेघालय राज्य, 2[�त्रपरु ा राज्य] और
�मजोरम 3[राज्य] के जनजा�त �ेत्र ह�गे ।
परन्तु इस अनस
ु ूची के पैरा 3 के उप-पैरा (1) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा 4,
पैरा 5, पैरा 6, पैरा 8 के उप-पैरा (2), उप-पैरा (3) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ)
और उप-पैरा (4) तथा पैरा 10 के उप-पैरा (2) के खंड (घ) के प्रयोजन� के �लए,
�शलांग नगरपा�लका म� समा�वष्ट �ेत्र के �कसी भाग के बारे म� यह नह�ं समझा जाएगा
�क वह 5[खासी पहाड़ी िजले] के भीतर है ।
2
[(3) नीचे द� गई सारणी के भाग 2क म� “�त्रपरु ा जनजा�त �ेत्र िजला” के प्र�त
�नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह �त्रपरु ा जनजा�त �ेत्र स्वशासी िजला प�रषद्
अ�ध�नयम, 1979 क� पहल� अनस
ु च
ू ी म� �व�न�दर्ष्ट जनजा�त �ेत्र� म� समा�वष्ट राज्य�ेत्र
के प्र�त �नद� श है ।]
1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा
(21-1-1972 से) पैरा 20 और 20क के स्थान पर प्र�तस्था�पत । पैरा 20क को तत्पश्चात ् भारत संघ राज्य�ेत्र
(संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 83) क� धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) प्र�तस्था�पत �कया गया था ।
2. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत ।
3. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) "संघ राज्य�ेत्र" के स्थान
पर प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) प्र�तस्था�पत ।
5. मेघालय सरकार क� अ�धसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तार�ख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तार�ख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 305
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
सारणी
भाग 1
1. उ�र� कछार पहाड़ी िजला ।
2. 1[काब� आंगलांग िजला ।]
2
[3. बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजला ।]
भाग 2
3
[1. खासी पहाड़ी िजला ।
2. जयं�तया पहाड़ी िजला ।]
3. गारो पहाड़ी िजला ।
4
[भाग 2क
�त्रपरु ा जनजा�त �ेत्र िजला ।]
भाग 3
5
* * *
6
[1. चकमा िजला ।
7
[2. मारा िजला ।
3. लई िजला ।]]
8
[20क. �मजो िजला प�रषद् का �वघटन – (1) इस अनस ु च
ू ी म� �कसी बात के
होते हुए भी, �व�हत तार�ख से ठ�क पहले �वद्यमान �मजो िजले क� िजला प�रषद् (िजसे
इसम� इसके पश्चात ् �मजो िजला प�रषद् कहा गया है) �वघ�टत हो जाएगी और �वद्यमान
नह�ं रह जाएगी ।
1. आसाम सरकार द्वारा तार�ख 14-10-1976 क� अ�धसूचना सं. ट�.ए.डी./आर.115/74/47 द्वारा "�मक�र पहाड़ी
िजला" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से)
अंतःस्था�पत ।
3. मेघालय सरकार क� अ�धसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तार�ख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क.
तार�ख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्र�तस्था�पत ।
4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत ।
5. संघ राज्य�ेत्र शासन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 83) क� धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) "�मजो
िजला" शब्द� का लोप �कया गया ।
6. �मजोरम का राजपत्र 1972. तार�ख 5 मई, 1972, िजल्द 1, भाग 2, प.ृ 17 म� प्रका�शत �मजोरम िजला प�रषद्
(प्रक�णर् उपबंध) आदे श, 1972 द्वारा (29-4-1972 से) अंतःस्था�पत ।
7. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) क्रम
सं0 2 और 3 तथा उनसे संब�ं धत प्र�विष्टय� के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
8. संघ राज्य�ेत्र शासन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 83) क� धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) पैरा 20क
के स्थान पर पैरा 20क, 20ख और 20ग प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 306
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(2) �मजोरम संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक, एक या अ�धक आदे श� द्वारा,
�नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं �वषय� के �लए उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् :–
(क) �मजो िजला प�रषद् क� आिस्तय�, अ�धकार� और दा�यत्व� का
(िजनके अतंगत र् उसके द्वारा क� गई �कसी सं�वदा के अधीन अ�धकार और
दा�यत्व ह�) पण
ू त र् ः या भागतः संघ को या �कसी अन्य प्रा�धकार� को अंतरण ;
(ख) �कन्ह�ं ऐसी �व�धक कायर्वा�हय� म� , िजनम� �मजो िजला प�रषद् एक
प�कार है, �मजो िजला प�रषद् के स्थान पर संघ का या �कसी अन्य प्रा�धकार�
का प�कार के रूप म� रखा जाना अथवा संघ का या �कसी अन्य प्रा�धकार� का
प�कार के रूप म� जोड़ा जाना ;
(ग) �मजो िजला प�रषद् के �कन्ह�ं कमर्चा�रय� का संघ को या �कसी
अन्य प्रा�धकार� को अथवा उसके द्वारा अंतरण या पन ु �नर्योजन, ऐसे अंतरण या
ु �नर्योजन के पश्चात ् उन कमर्चा�रय� को लागू होने वाले सेवा के �नबंधन और
पन
शत� ;
(घ) �मजो िजला प�रषद् द्वारा बनाई गई और उसके �वघटन से ठ�क पहले
प्रव�
ृ �कन्ह�ं �व�धय� का, ऐसे अनकु ू लन� और उपांतरण� के, चाहे वे �नरसन के
रूप म� ह� या संशोधन के रूप म� , अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस �न�म�
�कए जाएं, तब तक प्रव� ृ बना रहना जब तक �कसी स�म �वधान-मंडल द्वारा या
अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा ऐसी �व�धय� म� प�रवतर्न, �नरसन या संशोधन नह�ं
कर �दया जाता है ;
(ङ) ऐसे आनष
ु �ं गक, पा�रणा�मक और अनप
ु ूरक �वषय जो प्रशासक आवश्यक
समझे ।
स्पष्ट�करण – इस पैरा म� और इस अनस
ु ूची के पैरा 20ख म� , “�व�हत तार�ख” पद
से वह तार�ख अ�भप्रेत है िजसको �मजोरम संघ राज्य�ेत्र क� �वधान सभा का, संघ
राज्य�ेत्र शासन अ�ध�नयम, 1963 के उपबंध� के अधीन और उनके अनस ु ार, सम्यक् रूप
से गठन होता है ।
20ख. �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� स्वशासी प्रदे श� का स्वशासी िजले होना और
उसके पा�रणा�मक संक्रमणकाल�न उपबंध – (1) इस अनस ु ूची म� �कसी बात के होते हुए
भी,–
(क) �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� �व�हत तार�ख से ठ�क पहले �वद्यमान
प्रत्येक स्वशासी प्रदे श उस तार�ख को और से उस संघ राज्य�ेत्र का स्वशासी
िजला (िजसे इसम� इसके पश्चात ्, तत्स्थानी नया िजला कहा गया है) हो जाएगा
और उसका प्रशासक, एक या अ�धक आदे श� द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क इस
अनस ु ूची के पैरा 20 म� (िजसके अंतगर्त उस पैरा से संलग्न सारणी का भाग 3
है) ऐसे पा�रणा�मक संशोधन �कए जाएंगे जो इस खंड के उपबंध� को प्रभावी
करने के �लए आवश्यक ह� और तब उक्त पैरा और उक्त भाग 3 के बारे म� यह
समझा जाएगा �क उनका तद्नस ु ार संशोधन कर �दया गया है ;
भारत का सं�वधान 307
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
(2) �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् का प्रत्येक �नवार्�चत या नाम�नद� �शत सदस्य
तत्स्थानी नई िजला प�रषद् के �लए, यथािस्थ�त, �नवार्�चत या नाम�नद� �शत समझा
जाएगा और तब तक पद धारण करे गा जब तक इस अनस ु च
ू ी के अधीन तत्स्थानी नए
िजले के �लए िजला प�रषद् का सम्यक् रूप से गठन नह�ं होता है ।
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) आसाम म�
लागू होने के �लए पैरा 20खक अंतःस्था�पत �कया गया ।
2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) �त्रपुरा
और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� , पैरा 20खख अंतःस्था�पत �कया गया ।
भारत का सं�वधान 309
(छठ� अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
310
भारत का सं�वधान 311
(सातवीं अनस
ु ूची)
15. यद्
ु ध और शां�त ।
16. वैदे�शक अ�धका�रता ।
17. नाग�रकता, दे शीयकरण और अन्यदे शीय ।
18. प्रत्यपर्ण ।
19. भारत म� प्रवेश और उसम� से उत्प्रवास और �नष्कासन, पासपोटर् और वीजा ।
20. भारत से बाहर के स्थान� क� तीथर्यात्राएं ।
21. खलु े समद्रु या आकाश म� क� गई दस्यत ु ा और अपराध; स्थल या खल
ु े समद्र
ु
या आकाश म� राष्ट्र� क� �व�ध के �वरुद्ध �कए गए अपराध ।
22. रे ल ।
23. ऐसे राजमागर् िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन
राष्ट्र�य राजमागर् घो�षत �कया गया है ।
24. यंत्र नो�दत जलयान� के संबध
ं म� ऐसे अंतद� शीय जलमाग� पर पोत प�रवहन
और नौ प�रवहन जो संसद् द्वारा �व�ध द्वारा राष्ट्र�य जलमागर् घो�षत �कए गए ह�; ऐसे
जलमाग� पर मागर् का �नयम ।
25.समद्र
ु � पोत प�रवहन और नौ प�रवहन, िजसके अतंगत र् ज्वार�य जल म� पोत-
प�रवहन और नौ प�रवहन है ; वा�णिज्यक समुद्र� बेड़े के �लए �श�ा और प्र�श�ण क�
व्यवस्था तथा राज्य� और अन्य अ�भकरण� द्वारा द� जाने वाल� ऐसी �श�ा और प्र�श�ण
का �व�नयमन ।
26. प्रकाशस्तंभ, िजनके अंतगर्त प्रकाशपोत, बीकन तथा पोत प�रवहन और
वायय
ु ान� क� सरु �ा के �लए अन्य व्यवस्था है ।
27. ऐसे प�न िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध या �वद्यमान �व�ध द्वारा या
उसके अधीन महाप�न घो�षत �कया जाता है, िजसके अंतगर्त उनका प�रसीमन और
उनम� प�न प्रा�धका�रय� का गठन और उनक� शिक्तयां ह� ।
28. प�न कंरतीन, िजसके अंतगर्त उससे संबद्ध अस्पताल ह� ; ना�वक और
समुद्र�य अस्पताल ।
29. वायम
ु ागर्, वायय
ु ान और �वमान चालन; �वमान�ेत्र� क� व्यवस्था ; �वमान
यातायात और �वमान�ेत्र� का �व�नयमन और संगठन; वैमा�नक �श�ा और प्र�श�ण के
�लए व्यवस्था तथा राज्य� और अन्य अ�भकरण� द्वारा द� जाने वाल� ऐसी �श�ा और
प्र�श�ण का �व�नयमन ।
30. रे ल, समुद्र या वायु मागर् द्वारा अथवा यंत्र नो�दत जलयान� म� राष्ट्र�य
जलमाग� द्वारा या�त्रय� और माल का वहन ।
भारत का सं�वधान 312
(सातवीं अनस
ु ूची)
के संबध
ं म� , वहां तक के �सवाय जहां तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध करे , उस
राज्य के �वधान के अधीन रहते हुए ।
2
[33* * * * *]
34. दे शी राज्य� के शासक� क� संपदा के �लए प्र�तपाल्य अ�धकरण ।
35. संघ का लोक ऋण ।
36. कर� सी, �सक्का �नमार्ण और वैध �न�वदा, �वदे शी मुद्रा ।
37. �वदे शी ऋण ।
38. भारतीय �रजवर् ब�क ।
39. डाकघर बचत ब�क ।
40. भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार द्वारा संचा�लत लाटर� ।
41. �वदे श� के साथ व्यापार और वा�णज्य ; सीमाशुल्क सीमांत� के आर-पार
आयात और �नयार्त ; सीमाशुल्क सीमांत� का प�र�नश्चय ।
42. अंतररािज्यक व्यापार और वा�णज्य ।
43. व्यापार �नगम� का, िजनके अंतगर्त ब�ककार�, बीमा और �व�ीय �नगम ह�
�कं तु सहकार� सोसाइट� नह�ं ह�, �नगमन, �व�नयमन और प�रसमापन ।
44. �वश्व�वद्यालय� को छोड़कर ऐसे �नगम� का, चाहे वे व्यापार �नगम ह� या
नह�ं, िजनके उद्दे श्य एक राज्य तक सी�मत नह�ं ह�, �नगमन, �व�नयमन और
प�रसमापन ।
45. ब�ककार� ।
46. �व�नमय-पत्र, चेक, बचत पत्र और वैसी ह� अन्य �लखत� ।
47. बीमा ।
48. स्टाक एक्सच� ज और वायदा बाजार ।
49. पेट�ट, आ�वष्कार और �डजाइन; प्र�त�लप्य�धकार; व्यापार �चह्न और पण्य
वस्तु �चह्न ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) "पहल� अनूसूची
के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट" शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 33 का लोप �कया
गया ।
भारत का सं�वधान 313
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 4 द्वारा (1-7-1974 से) "�दल्ल� �वश्व�वद्यालय और" के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 314
(सातवीं अनस
ु ूची)
अवशेष ।
68. भारतीय सव��ण, भारतीय भू-वै�ा�नक, वनस्प�त �व�ान, प्राणी �व�ान और
मानव शास्त्र सव��ण ; मौसम �व�ान संगठन ।
69. जनगणना ।
70. संघ लोक सेवाएं ; अ�खल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग ।
71. संघ क� प� शन� , अथार्त ् भारत सरकार द्वारा या भारत क� सं�चत �न�ध म�
से संदेय प�शन� ।
72. संसद् के �लए, राज्य� के �वधान-मंडल� के �लए तथा राष्ट्रप�त और
उपराष्ट्रप�त के पद� के �लए �नवार्चन; �नवार्चन आयोग ।
73. संसद् सदस्य� के, राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा लोक
सभा के अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े ।
74. संसद् के प्रत्येक सदन क� और प्रत्येक सदन के सदस्य� और स�म�तय� क�
शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां; संसद् क� स�म�तय� या संसद् द्वारा �नयक्
ु त
आयोग� के सम� सा�य दे ने या दस्तावेज पेश करने के �लए व्यिक्तय� को हािजर
कराना ।
75. राष्ट्रप�त और राज्यपाल� क� उपलिब्धयां, भ�े, �वशेषा�धकार और
अनपु िस्थ�त छुट्ट� के संबध
ं म� अ�धकार ; संघ के मं�त्रय� के वेतन और भ�े ; �नयंत्रक-
महालेखापर��क के वेतन, भ�े और अनप ु िस्थ�त छुट्ट� के संबधं म� अ�धकार और सेवा
क� अन्य शत� ।
1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संसद् द्वारा �व�ध द्वारा
घो�षत" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 315
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 12 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 79 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(क)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 84 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 316
(सातवीं अनस
ु ूची)
86. व्यिष्टय� और कंप�नय� क� आिस्तय� के, िजनके अंतगर्त कृ�ष भ�ू म नह�ं
है, पज
ूं ी मल्
ू य पर कर ; कंप�नय� क� पज ूं ी पर कर ।
87. कृ�ष भू�म से �भन्न संप�� के संबध ं म� संपदा शुल्क ।
88. कृ�ष भू�म से �भन्न संप�� के उ�रा�धकार के संबध ं म� शुल्क ।
89. रे ल, समुद्र या वायम
ु ागर् द्वारा ले जाए जाने वाले माल या या�त्रय� पर सीमा
कर ; रे ल भाड़� और माल भाड़� पर कर ।
90. स्टाक एक्सच� ज� और वायदा बाजार� के संव्यवहार� पर स्टांप-शुल्क से �भन्न
कर ।
91. �व�नमय-पत्र�, चेक�, वचनपत्र�, वहनपत्र�, प्रत्ययपत्र�, बीमा पा�ल�सय�, शेयर�
के अंतरण, �डब� चर�, परो��य� और प्रािप्तय� के संबध
ं म� स्टांप-शल् ु क क� दर ।
1
[92. * * * * *]
2
[92क. समाचारपत्र� से �भन्न माल के क्रय या �वक्रय पर उस दशा म� कर
िजसम� ऐसा क्रय या �वक्रय अंतररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है ।]
3
[92ख. माल के परे षण पर (चाहे परे षण उसके करने वाले व्यिक्त को या �कसी
अन्य व्यिक्त को �कया गया है), उस दशा म� कर िजसम� ऐसा परे षण अंतररािज्यक
व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है ।]
4
[92ग. * * * * *]
93. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय से संब�ं धत �व�धय� के �वरुद्ध
अपराध ।
94. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के प्रयोजन� के �लए जांच, सव��ण
और आंकड़े ।
95. उच्चतम न्यायालय से �भन्न सभी न्यायालय� क� इस सूची के �वषय� म� से
�कसी �वषय के संबध
ं म� अ�धका�रता और शिक्तयां ; नाव�धकरण �वषयक अ�धका�रता ।
96. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� फ�स, �कन्तु इसके
अंतगर्त �कसी न्यायालय म� ल� जाने वाल� फ�स नह�ं है ।
97. कोई अन्य �वषय जो सच ू ी 2 या सच
ू ी 3 म� प्रग�णत नह�ं है और िजसके
अंतगर्त कोई ऐसा कर है जो उन सू�चय� म� से �कसी सूची म� उिल्ल�खत नह�ं है ।
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 92 का
लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) अंतःस्था�पत ।
3. सं�वधान (�छयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 क� धारा 5 द्वारा (2-2-1983 से) अंतःस्था�पत ।
4. प्र�विष्ट 92ग सं�वधान (अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 4 द्वारा (जो प्रव�
ृ नह�ं हुई) अंतःस्था�पत
क� गई थी और उसका सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(क)(ii) द्वारा
(16-9-2016 से) लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 317
(सातवीं अनस
ु ूची)
सच
ू ी 2 – राज्य सच
ू ी
1. लोक व्यवस्था (�कं तु इसके अंतगर्त �स�वल शिक्त क� सहायता के �लए
1
[नौसेना, सेना या वायु सेना या संघ के �कसी अन्य सशस्त्र बल का या संघ के �नयंत्रण
के अधीन �कसी अन्य बल का या उसक� �कसी टुकड़ी या य�ू नट का प्रयोग] नह�ं है) ।
[2. सूची 1 क� प्र�विष्ट 2क के उपबंध� के अधीन रहते हुए प�ु लस (िजसके
2
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 2 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� का लोप �कया
गया ।
4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 11 का लोप �कया
गया ।
5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संसद् द्वारा �व�ध द्वारा
घो�षत" प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 318
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 19 और प्र�विष्ट 20
का लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 28 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 52 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 319
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 29 का लोप �कया
गया ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 36 का लोप �कया
गया ।
भारत का सं�वधान 320
(सातवीं अनस
ु ूची)
45. भू-राजस्व िजसके अंतगर्त राजस्व का �नधार्रण और संग्रहण, भ-ू अ�भलेख रखना,
राजस्व के प्रयोजन� के �लए और अ�धकार� के अ�भलेख� के �लए सव��ण और राजस्व का
अन्य संक्रामण है ।
46. कृ�ष आय पर कर ।
47. कृ�ष भ�ू म के उ�रा�धकार के संबध
ं म� शुल्क ।
48. कृ�ष भू�म के संबध
ं म� संपदा-शुल्क ।
49. भू�म और भवन� पर कर ।
50. संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, ख�नज �वकास के संबध
ं म� अ�धरो�पत �नबर्न्धन�
के अधीन रहते हुए, ख�नज संबध ं ी अ�धकार� पर कर ।
51. राज्य म� �व�न�मर्त या उत्पा�दत �नम्न�ल�खत माल पर उत्पाद-शुल्क और
भारत म� अन्यत्र �व�न�मर्त या उत्पा�दत वैसे ह� माल पर उसी दर या �नम्नतर दर से
प्र�तशुल्क–
(क) मानवीय उपभोग के �लए ऐल्कोहाल� �लकर ;
(ख) अफ�म, इं�डयन ह� प और अन्य स्वापक ओष�धयां तथा स्वापक
पदाथर्,
�कन्तु िजसके अंतगर्त ऐसी ओष�धयां और प्रसाधन �न�मर्�तयां नह�ं ह� िजनम� ऐल्कोहाल
या इस प्र�विष्ट के उपपैरा (ख) का कोई पदाथर् अंत�वर्ष्ट है ।
1
[52. * * * * *]
53. �वद्यत
ु के उपभोग या �वक्रय पर कर ।
2
[54. अप�रष्कृत पैट्रो�लयम, उच्च ग�त डीजल, मोटर िस्प�रट (सामान्य रूप से
पेट्रोल के रूप म� �ात), प्राकृ�तक गैस, �वमानन टबार्इन �धन और मानवीय उपभोग के
�लए एल्कोहाल� �लकर के �वक्रय पर कर �कं तु इसके अंतगर्त ऐसे माल का
अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म म� �वक्रय या अन्तरराष्ट्र�य व्यापार या
वा�णज्य के दौरान �वक्रय नह�ं आता है ।]
3
[55. * * * * *]
56. सड़क� या अन्तद� शीय जलमाग� द्वारा ले जाए जाने वाले माल और या�त्रय�
पर कर ।
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 52 का
लोप �कया गया ।
2. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) प्र�तस्था�पत तथा पुनः सं�वधान
(एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) लोप �कया
गया ।
भारत का सं�वधान 321
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(iv) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 62 के
स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 322
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 323
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत ।
2. सं�वधान (तीसरा संशोधन) अ�ध�नयम, 1954 क� धारा 2 द्वारा (22-2-1955 से) प्र�विष्ट 33 के स्थान पर
प्र�तस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 324
(सातवीं अनस
ु ूची)
1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध
द्वारा या उसके अधीन घो�षत" के स्थान पर प्र�तस्था�पत ।
3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत ।
आठवीं अनुसूची
[अनच्
ु छे द 344(1) और अनच्
ु छे द 351]
भाषाएं
1. अस�मया ।
2. बंगला ।
1
[3. बोडो ।
4. डोगर� ।]
2
[5.] गज
ु राती ।
3
[6.] �हन्द� ।
3
[7.] कन्नड ।
3
[8.] कश्मीर� ।
4 3
[ [9.] क�कणी ।]
1
[10. मै�थल� ।]
5
[11.] मलयालम ।
[ [12.] म�णपरु � ।]
4 6
6
[13.] मराठ� ।
[ [14.] नेपाल� ।]
4 6
6
[15.] 7[ओ�डया]
6
[16.] पंजाबी ।
6
[17.] संस्कृत ।
1. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अन्तःस्था�पत ।
2. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 3 को प्र�विष्ट 5 के रूप
म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
3. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 4 से 7 को प्र�विष्ट 6
से प्र�विष्ट 9 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4. सं�वधान (इकह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (31-8-1992 से) अन्तःस्था�पत ।
5. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 8 को प्र�विष्ट 11 के
रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
6. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 9 से प्र�विष्ट 14 को
प्र�विष्ट 12 से प्र�विष्ट 17 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
7. सं�वधान (�छयानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 2 द्वारा (23-9-2011 से) “उ�ड़या” के स्थान पर
प्र�तस्था�पत।
325
भारत का सं�वधान 326
(आठवीं अनस
ु च
ू ी)
1
[18. संथाल� ।]
2 3
[ [19.] �संधी ।]
4
[20.] त�मल ।
4
[21.] तेलग
ु ू ।
4
[22.] उदर् ू ।
1. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अन्तःस्था�पत ।
2. सं�वधान (इक्क�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1967 क� धारा 2 द्वारा (10-4-1967 से) जोड़ा गया ।
3. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 15 को प्र�विष्ट 19 के
रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
4. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 16 से प्र�विष्ट 18 को
प्र�विष्ट 20 से प्र�विष्ट 22 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया ।
1
[नवीं अनुसूची
(अनच्
ु छे द 31ख)
1. �बहार भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1950 (1950 का �बहार अ�ध�नयम 30) ।
2. मंब
ु ई अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म अ�ध�नयम, 1948 (1948 का मुंबई अ�ध�नयम
67)।
3. मुंबई मा�लक� भूध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 (1949 का मुंबई अ�ध�नयम
61)।
4. मुंबई तालुकदार� भूध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 (1949 का मुंबई
अ�ध�नयम 62)।
5. पंच महल मेहवासी भूध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 (1949 का मुंबई
अ�ध�नयम 63)।
6. मुंबई खेती उत्सादन अ�ध�नयम, 1950 (1950 का मुंबई अ�ध�नयम 6)।
7. मंबु ई परगना और कुलकण� वतन उत्सादन अ�ध�नयम, 1950 (1950 का
मुंबई अ�ध�नयम 60)।
8. मध्य प्रदे श सांप��क अ�धकार (संपदा, महल, अन्य संक्रांत भ�ू म) उत्सादन
अ�ध�नयम, 1950 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 1 सन ् 1951)।
9. मद्रास संपदा (उत्सादन और रै य्यतवाड़ी म� संप�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1948
(1948 का मद्रास अ�ध�नयम 26)।
10. मद्रास संपदा (उत्सादन और रै य्यतवाड़ी म� संप�रवतर्न) संशोधन अ�ध�नयम,
1950 (1950 का मद्रास अ�ध�नयम 1)।
11. 1950 ई0 का उ�र प्रदे श जमींदार� �वनाश और भ�ू म-व्यवस्था अ�ध�नयम
(उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 1, 1951)।
12. हैदराबाद (जागीर उत्सादन) �व�नयम, 1358फ (1358 फसल� का सं0 69)।
13. हैदराबाद जागीर (प�रवतर्न) �व�नयम, 1359फ (1359 फसल� का सं0 25)।
2
[14. �बहार �वस्था�पत व्यिक्त पन ु वार्स (भ�ू म अजर्न) अ�ध�नयम, 1950 (1950
का �बहार अ�ध�नयम 38) ।
15. संयक् ु त प्रांत के शरणा�थर्य� को बसाने के �लए भू�म प्राप्त करने का ऐक्ट,
1948 ई0 (संयक् ु त प्रांतीय ऐक्ट संख्या 26, 1948) ।
16. �वस्था�पत व्यिक्त पन ु वार्स (भू�म अजर्न) अ�ध�नयम, 1948 (1948 का
अ�ध�नयम 60) ।
17. बीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1950 (1950 का अ�ध�नयम 47) क� धारा 42
द्वारा य़था अंतःस्था�पत बीमा अ�ध�नयम, 1938 (1938 का अ�ध�नयम 4) क� धारा
52क से धारा 52छ ।
18. रे ल कंपनी (आपात उपबंध) अ�ध�नयम, 1951 (1951 का अ�ध�नयम 51) ।
1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 14 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया ।
2. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 5 द्वारा (27-4-1955 से) जोड़ा गया ।
327
भारत का सं�वधान 328
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (सत्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 क� धारा 3 द्वारा (20-6-1964 से) जोड़ा गया ।
भारत का सं�वधान 329
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
33. गुजरात शेष अन्य संक्रामण उत्सादन अ�ध�नयम, 1963 (1963 का गुजरात
अ�ध�नयम 33), वहां तक के �सवाय जहां तक यह अ�ध�नयम इसक� धारा 2 के खंड
(3) के उपखंड (घ) म� �न�दर्ष्ट अन्य संक्रामण के संबध ं म� है ।
34. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का
महाराष्ट्र अ�ध�नयम 27) ।
35. हैदाराबाद अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म (पन ु ःअ�ध�नयमन, �व�धमान्यकरण और
अ�त�रक्त संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 45) ।
36. हैदराबाद अ�भध�ृ त और कृ�ष भ�ू म अ�ध�नयम, 1950 (1950 का हैदराबाद
अ�ध�नयम 21) ।
37. जन्मीकरम संदाय (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1960 (1961 का केरल अ�ध�नयम
3) ।
38. केरल भू�म-कर अ�ध�नयम, 1961 (1961 का केरल अ�ध�नयम 13) ।
39. केरल भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1963 (1964 का केरल अ�ध�नयम 1) ।
40. मध्य प्रदे श भू-राजस्व सं�हता, 1959 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम, क्रमांक 20 सन ्
1959) ।
41. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा अ�ध�नयम, 1960 (मध्य प्रदे श
अ�ध�नयम क्रमांक 20 सन ् 1960)।
42. मद्रास खे�तहर अ�भधार� संर�ण अ�ध�नयम, 1955 (1955 का मद्रास
अ�ध�नयम 25) ।
43. मद्रास खे�तहर अ�भधार� (उ�चत लगान संदाय) अ�ध�नयम, 1956 (1956
का मद्रास अ�ध�नयम 24) ।
44. मद्रास कुडीइरूपु अ�धभोगी (बेदखल� से संर�ण) अ�ध�नयम, 1961 (1961
का मद्रास अ�ध�नयम 38) ।
45. मद्रास लोक न्यास (कृ�ष भू�म प्रशासन �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1961
(1961 का मद्रास अ�ध�नयम 57)।
46. मद्रास भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) अ�ध�नयम, 1961
(1961 का मद्रास अ�ध�नयम 58)।
47. मैसरू अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1952 (1952 का मैसरू अ�ध�नयम 13) ।
48. कोड़गू अ�भधार� अ�ध�नयम, 1957 (1957 का मैसरू अ�ध�नयम 14) ।
49. मैसरू ग्राम-पद उत्सादन अ�ध�नयम, 1961 (1961 का मैसरू अ�ध�नयम
14) ।
50. हैदराबाद अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म (�व�धमान्यकरण) अ�ध�नयम, 1961
(1961 का मैसूर अ�ध�नयम 36)।
51. मैसूर भू�म सध ु ार अ�ध�नयम, 1961 (1962 का मैसूर अ�ध�नयम 10) ।
भारत का सं�वधान 330
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
52. उड़ीसा भ�ू म सुधार अ�ध�नयम, 1960 (1960 का उड़ीसा अ�ध�नयम 16) ।
53. उड़ीसा �वल�न राज्य�ेत्र (ग्राम-पद उत्सादन) अ�ध�नयम, 1963 (1963 का
उड़ीसा अ�ध�नयम 10) ।
54. पंजाब भू-ध�ृ त सुर�ा अ�ध�नयम, 1953 (1953 का पंजाब अ�ध�नयम
10) ।
55. राजस्थान अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1955 (1955 का राजस्थान अ�ध�नयम
3) ।
56. राजस्थान जमींदार� और �बस्वेदार� उत्सादन अ�ध�नयम, 1959 (1959 का
राजस्थान अ�ध�नयम 8) ।
57. कुमायंू तथा उ�राखंड जमींदार� �वनाश तथा भ�ू म-व्यवस्था अ�ध�नयम,
1960 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 17, 1960) ।
58. उ�र प्रदे श अ�धकतम जोत-सीमा आरोपण अ�ध�नयम, 1960 (उ�र प्रदे श
अ�ध�नयम संख्या 1, 1961)।
59. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न अ�ध�नयम, 1953 (1954 का पिश्चमी बंगाल
अ�ध�नयम 1) ।
60. पिश्चमी बंगाल भ�ू म सुधार अ�ध�नयम, 1955 (1956 का पिश्चमी बंगाल
अ�ध�नयम 10) ।
61. �दल्ल� भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1954 (1954 का �दल्ल� अ�ध�नयम 8) ।
62. �दल्ल� भ�ू म जोत (अ�धकतम सीमा) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 24) ।
63. म�णपरु भू-राजस्व और भू�म सध ु ार अ�ध�नयम, 1960 (1960 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 33) ।
64. �त्रपरु ा भ-ू राजस्व और भ�ू म सध ु ार अ�ध�नयम, 1960 (1960 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 43) ।
1
[65. केरल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का केरल अ�ध�नयम
35) ।
66. केरल भ�ू म सध ु ार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का केरल अ�ध�नयम
25) ।]
2
[67. आंध्र प्रदे श भू�म सुधार (अ�धकतम कृ�ष जोत सीमा) अ�ध�नयम, 1973
(1973 का आंध्र प्रदे श अ�ध�नयम 1) ।
68. �बहार भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भ�ू म अजर्न)
(संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1973 का �बहार अ�ध�नयम 1) ।
1. सं�वधान (उनतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (9-6-1972 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (च�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (7-9-1974 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 331
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
69. �बहार भ�ू म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भ�ू म अजर्न)
(संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का �बहार अ�ध�नयम 9) ।
70. �बहार भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का �बहार
अ�ध�नयम सं0 5) ।
71. गुजरात अ�धकतम कृ�ष भू�म सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1974
का गुजरात अ�ध�नयम 2) ।
72. ह�रयाणा भ�ू म जोत क� अ�धकतम सीमा अ�ध�नयम, 1972 (1972 का
ह�रयाणा अ�ध�नयम 26) ।
73. �हमाचल प्रदे श अ�धकतम भू�म जोत सीमा अ�ध�नयम, 1972 (1973 का
�हमाचल प्रदे श अ�ध�नयम 19) ।
74. केरल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केरल
अ�ध�नयम 17) ।
75. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (मध्य
प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 12 सन ् 1974) ।
76. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (द्�वतीय संशोधन) अ�ध�नयम, 1972
(मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 13 सन ् 1974) ।
77. मैसूर भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1974 का कनार्टक
अ�ध�नयम 1) ।
78. पंजाब भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1972 (1973 का पंजाब अ�ध�नयम 10) ।
79. राजस्थान कृ�ष जोत� पर अ�धकतम सीमा अ�धरोपण अ�ध�नयम, 1973
(1973 का राजस्थान अ�ध�नयम 11)।
80. गड ु लरू जन्मम ् संपदा (उत्सादन और रै य्यतवाड़ी म� संप�रवतर्न) अ�ध�नयम,
1969 (1969 का त�मलनाड़ु अ�ध�नयम 24)।
81. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 12) ।
82. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 (1964 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 22) ।
83. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 33) ।
84. मंब
ु ई अ�भध�ृ त और कृ�ष भ�ू म (गज ु रात संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1973
का गुजरात अ�ध�नयम 5) ।
85. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का उड़ीसा
अ�ध�नयम 9) ।
86. �त्रपरु ा भ-ू राजस्व और भ�ू म सध ु ार (दस
ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1974
(1974 का �त्रपरु ा अ�ध�नयम 7) ।]
भारत का सं�वधान 332
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
1- 2
5 6 [87. * * * * *]
88. उद्योग (�वकास और �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1951 (1951 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 65) ।
89. स्थावर संप�� अ�धग्रहण और अजर्न अ�ध�नयम, 1952 (1952 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 30) ।
90. खान और ख�नज (�व�नयमन और �वकास) अ�ध�नयम, 1957 (1957 का
केन्द्र�य अ�ध�नयम 67) ।
∗
91. एका�धकार तथा अवरोधक व्यापा�रक व्यवहार अ�ध�नयम, 1969 (1969 का
केन्द्र�य अ�ध�नयम 54) ।
2
[92. * * * *]
93. कोककार� कोयला खान (आपात उपबंध) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का
केन्द्र�य अ�ध�नयम 64) ।
94. कोककार� कोयला खान (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 36) ।
95. साधारण बीमा कारबार (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का
केन्द्र�य अ�ध�नयम 57) ।
96. इं�डयन कॉपर कारपोरे शन (उपक्रम का अजर्न) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का
केन्द्र�य अ�ध�नयम 58) ।
97. रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंध ग्रहण) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 72) ।
98. कोयला खान (प्रबंध ग्रहण) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 15) ।
99. कोयला खान (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 26) ।
∗∗
100. �वदे शी मुद्रा �व�नयमन अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य
अ�ध�नयम 46) ।
101. एलकाक एशडाउन कंपनी �ल�मटे ड (उपक्रम� का अजर्न) अ�ध�नयम, 1973
(1973 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 56) ।
1. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्था�पत ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्र�विष्ट 87 और प्र�विष्ट
92 का लोप �कया गया ।
∗ प्र�तस्पधार् अ�ध�नयम, 2002 (2003 का 12) क� धारा 66 द्वारा (1-9-2009 से) �नर�सत ।
∗∗ �वदे शी मुद्रा प्रबंध अ�ध�नयम, 1999 (1999 का 42) क� धारा 49 द्वारा (1-6-2000 से) �नर�सत ।
भारत का सं�वधान 333
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (चाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 3 द्वारा (27-5-1976 से) प्र�विष्ट 125 से प्र�विष्ट 188
तक अंतःस्था�पत ।
* अब मोटर यान अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 59) के सुसंगत उपबंध दे �खए ।
2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्र�विष्ट 130 का लोप
�कया गया ।
भारत का सं�वधान 335
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
168. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम,
1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 10) ।
169. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन
अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 20) ।
170. त�मलनाडु भ�ू म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) तीसरा संशोधन
अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 37) ।
171. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) चौथा संशोधन
अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 39) ।
172. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) छठा संशोधन
अ�ध�नयम, 1972 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 7) ।
173. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) पांचवां संशोधन
अ�ध�नयम, 1972 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 10) ।
174. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम,
1974 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 15) ।
175. त�मलनाडु भ�ू म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) तीसरा संशोधन
अ�ध�नयम, 1974 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 30) ।
176. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन
अ�ध�नयम, 1974 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 32) ।
177. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम,
1975 (1975 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 11) ।
178. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन
अ�ध�नयम, 1975 (1975 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 21) ।
179. उ�र प्रदे श भू�म-�व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम
संख्या 21,1971) तथा उ�र प्रदे श भू�म-�व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (उ�र प्रदे श
अ�ध�नयम संख्या 34,1974) द्वारा 1950 ई0 का उ�र प्रदे श जमींदार� �वनाश और
भू�म-व्यवस्था अ�ध�नयम (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 1,1951) म� �कए गए
संशोधन ।
180. उ�र प्रदे श अ�धकतम जोत-सीमा आरोपण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (उ�र
प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 20,1976) ।
181. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 28) ।
182. पिश्चमी बंगाल अन्य संक्रात भ�ू म का प्रत्यावतर्न अ�ध�नयम, 1973 (1973
का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23) ।
भारत का सं�वधान 338
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (स�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (26-8-1984 से) प्र�विष्ट 189 से प्र�विष्ट
202 तक अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 339
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
198. उ�र प्रदे श जमींदार� �वनाश �व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 (1978 का
उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 15) ।
199. पिश्चमी बंगाल अन्य संक्रात भू�म का प्रत्यावतर्न (संशोधन) अ�ध�नयम,
1978 (1978 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 24) ।
200. पिश्चमी बंगाल अन्य संक्रात भ�ू म का प्रत्यावतर्न (संशोधन) अ�ध�नयम,
1980 (1980 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 56) ।
201. गोवा, दमण और द�व कृ�ष अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1964 (1964 का गोवा,
दमण और द�व अ�ध�नयम 7) ।
202. गोवा, दमण और द�व कृ�ष अ�भध�ृ त (पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976
(1976 का गोवा, दमण और द�व अ�ध�नयम 17) ।]
1
[203. आंध्र प्रदे श अनस
ु ू�चत �ेत्र भ�ू म अंतरण �व�नयम, 1959 (1959 का आंध्र
प्रदे श �व�नयम 1) ।
204. आंध्र प्रदे श अनसु ू�चत �ेत्र �व�ध (�वस्तारण और संशोधन) �व�नयम, 1963
(1963 का आंध्र प्रदे श �व�नयम 2)।
205. आंध्र प्रदे श अनसु �ू चत �ेत्र भ�ू म अंतरण (संशोधन) �व�नयम, 1970 (1970
का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) ।
206. आंध्र प्रदे श अनसु �ू चत �ेत्र भ�ू म अंतरण (संशोधन) �व�नयम, 1971 (1971
का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) ।
207. आंध्र प्रदे श अनसु �ू चत �ेत्र भ�ू म अंतरण (संशोधन) �व�नयम, 1978 (1978
का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) ।
208. �बहार काश्तकार� अ�ध�नयम, 1885 (1885 का �बहार अ�ध�नयम 8) ।
209. छोटा नागपरु काश्तकार� अ�ध�नयम, 1908 (1908 का बंगाल अ�ध�नयम 6)
(अध्याय 8--धारा 46, धारा 47, धारा 48, धारा 48क और धारा 49; अध्याय 10 -- धारा
71, धारा 71क और धारा 71ख और अध्याय 18--धारा 240, धारा 241, धारा 242) ।
210. संथाल परगना काश्तकार� (परू क प्रावधान) अ�ध�नयम, 1949 (1949 का
�बहार अ�ध�नयम 14) धारा 53 को छोड़कर ।
211. �बहार अनस
ु �ू चत �ेत्र �व�नयम, 1969 (1969 का �बहार �व�नयम 1)
212. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न)
(संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का �बहार अ�ध�नयम 55) ।
1. सं�वधान (�छयासठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (7-6-1990 से) प्र�विष्ट 203 से 257 तक
अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 340
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
230. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989
का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 8)।
231. महाराष्ट्र भू-राजस्व सं�हता, 1966 (1966 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 41)
धारा 36, धारा 36क और धारा 36ख ।
232. महाराष्ट्र भ-ू राजस्व सं�हता और महाराष्ट्र अनस
ु �ू चत जनजा�त भ�ू म प्रत्यावतर्न
(दस
ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1977 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 30) ।
233. महाराष्ट्र क�तपय भ�ू म म� खान� और ख�नज� के �वद्यमान सांप��क
अ�धकार� का उत्सादन अ�ध�नयम, 1985 (1985 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 16) ।
234. उड़ीसा अनस
ु ू�चत �ेत्र (अनस
ु ू�चत जनजा�तय� द्वारा) स्थावर संप�� अंतरण
�व�नयम, 1956 (1956 का उड़ीसा �व�नयम 2) ।
235. उड़ीसा भू�म सुधार (दस
ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 (1976 का उड़ीसा
अ�ध�नयम 29) ।
236. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अ�ध�नयम
30) ।
237. उड़ीसा भू�म सुधार (दस
ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का उड़ीसा
अ�ध�नयम 44) ।
238. राजस्थान उप�नवेशन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का राजस्थान
अ�ध�नयम 12) ।
239. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का राजस्थान
अ�ध�नयम 13) ।
240. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 (1987 का राजस्थान
अ�ध�नयम 21) ।
241. त�मलनाडु भ�ू म सधु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन
अ�ध�नयम, 1979 (1980 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 8) ।
242. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम,
1980 (1980 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 21) ।
243. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम,
1981 (1981 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 59) ।
244. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस
ू रा संशोधन
अ�ध�नयम, 1983 (1984 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 2) ।
245. उ�र प्रदे श भू�म �व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का उ�र प्रदे श
अ�ध�नयम 20) ।
भारत का सं�वधान 342
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
246. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1965 (1965 का पिश्चमी
बंगाल अ�ध�नयम 18) ।
247. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 (1966 का पिश्चमी
बंगाल अ�ध�नयम 11) ।
248. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (दस
ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23)।
249. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 (1977 का पिश्चमी
बंगाल अ�ध�नयम 36) ।
250. पिश्चमी बंगाल भू�म जोत राजस्व अ�ध�नयम, 1979 (1979 का पिश्चमी
बंगाल अ�ध�नयम 44)।
251. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1980 का पिश्चमी
बंगाल अ�ध�नयम 41) ।
252. पिश्चमी बंगाल भू�म जोत राजस्व (संशोधन) अ�ध�नयम, 1981 (1981 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 33)।
253. कलक�ा ठे का अ�भध�ृ त (अजर्न और �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1981 (1981
का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 37) ।
254. पिश्चमी बंगाल भू�म जोत राजस्व (संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का
पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23)।
255. कलक�ा ठे का अ�भध�ृ त (अजर्न और �व�नयमन) (संशोधन) अ�ध�नयम,
1984 (1984 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 41) ।
256. माहे भ�ू म सुधार अ�ध�नयम, 1968 (1968 का पां�डचेर� अ�ध�नयम 1) ।
257. माहे भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1981 का पां�डचेर�
अ�ध�नयम 1) ।]
1
[257क. त�मलनाडु �पछड़ा वगर्, अनस
ु ू�चत जा�त और अनस
ु ू�चत जनजा�त (राज्य
के अधीन �श�ा संस्थाओं म� स्थान� और सेवाओं म� �नयिु क्तय� या पद� का आर�ण)
अ�ध�नयम, 1993 (1994 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 45)।]
1. सं�वधान (�छह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1994 क� धारा 2 द्वारा (31-8-1994 से) अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 343
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
1
[258. �बहार �वशेषा�धकार प्राप्त व्यिक्त वासभू�म अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1947
(1948 का �बहार अ�ध�नयम 4) ।
259. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण अ�ध�नयम, 1956 (1956 का �बहार
अ�ध�नयम 22) ।
260. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण अ�ध�नयम, 1970 (1970 का �बहार
अ�ध�नयम 7) ।
261. �बहार �वशेषा�धकार प्राप्त व्यिक्त वासभ�ू म अ�भध�ृ त (संशोधन)
अ�ध�नयम, 1970 (1970 का �बहार अ�ध�नयम 9)।
262. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1975
का �बहार अ�ध�नयम 27) ।
263. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1981 (1982
का �बहार अ�ध�नयम 35) ।
264. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न)
(संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 (1987 का �बहार अ�ध�नयम 21) ।
265. �बहार �वशेषा�धकार प्राप्त व्यिक्त वासभ�ू म अ�भध�ृ त (संशोधन)
अ�ध�नयम, 1989 (1989 का �बहार अ�ध�नयम 11) ।
266. �बहार भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1990 का �बहार
अ�ध�नयम 11) ।
267. कनार्टक अनस ु ू�चत जा�त और अनस ु ू�चत जनजा�त (क�तपय भ�ू म अंतरण
प्र�तषेध) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का कनार्टक अ�ध�नयम 3) ।
268. केरल भ�ू म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का केरल
अ�ध�नयम 16) ।
269. केरल भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1990 का केरल
अ�ध�नयम 2) ।
270. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1990 का उड़ीसा
अ�ध�नयम 9) ।
271. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का राजस्थान
अ�ध�नयम 16) ।
272. राजस्थान उप�नवेशन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 (1987 का राजस्थान
अ�ध�नयम 2) ।
273. राजस्थान उप�नवेशन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का राजस्थान
अ�ध�नयम 12) ।
1. सं�वधान (अठहतरवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 क� धारा 2 द्वारा (30-8-1995 से) प्र�विष्ट 258 से प्र�विष्ट 284
तक अंतःस्था�पत ।
भारत का सं�वधान 344
(नवीं अनस
ु च
ू ी)
1. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया ।
2. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) कुछ शब्द� का लोप �कया
गया ।
3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा "पैरा 3, 4, और 5" के स्थान प्र�तस्था�पत ।
345
भारत का सं�वधान 346
(दसवीं अनस
ु ूची
1. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) पैरा 3 का लोप �कया गया ।
भारत का सं�वधान 347
(दसवीं अनस
ु ूची
∗
पैरा 7 को �कहोतो होलोहन बनाम जे�चल्हु और अन्य ए.आई.आर. 1993 एस.सी. 412 म� बहुमत क� राय के अनुसार
अनुच्छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अनुसमथर्न के अभाव म� अ�व�धमान्य घो�षत �कया गया ।
1
[ग्यारहवीं अनस
ु ूची
(अनच्
ु छे द 243छ)
1. कृ�ष, िजसके अंतगर्त कृ�ष-�वस्तार है ।
2. भ�ू म �वकास, भू�म सुधार का कायार्न्वयन, चकबंद� और भू�म संर�ण ।
3. लघु �संचाई, जल प्रबंध और जल�वभाजक �ेत्र का �वकास ।
4. पशप ु ालन, डेर� उद्योग और कुक्कुट-पालन ।
5. मत्स्य उद्योग ।
6. सामािजक वा�नक� और फामर् वा�नक� ।
7. लघु वन उपज ।
8. लघु उद्योग, िजनके अंतगर्त खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी ह� ।
9. खाद�, ग्रामोद्योग और कुट�र उद्योग ।
10. ग्रामीण आवासन ।
11. पेय जल ।
12. �धन और चारा ।
13. सड़क�, प�ु लया, पल ु , फेर�, जलमागर् और अन्य संचार साधन ।
14. ग्रामीण �वद्यत ु ीकरण, िजसके अंतगर्त �वद्यत ु का �वतरण है ।
15. अपारं प�रक ऊजार् स्रोत ।
16. गर�बी उन्मल ू न कायर्क्रम ।
17. �श�ा, िजसके अंतगर्त प्राथ�मक और माध्य�मक �वद्यालय भी है ।
18. तकनीक� प्र�श�ण और व्यावसा�यक �श�ा ।
19. प्रौढ़ और अनौपचा�रक �श�ा ।
20. पस्ु तकालय ।
21. सांस्कृ�तक �क्रयाकलाप ।
22. बाजार और मेले ।
23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, िजनके अंतगर्त अस्पताल, प्राथ�मक स्वास्थ्य केन्द्र
और औषधालय भी है ।
24. प�रवार कल्याण ।
25. म�हला और बाल �वकास ।
26. समाज कल्याण, िजसके अंतगर्त �वकलांग� और मान�सक रूप से मंद
व्यिक्तय� का कल्याण भी है ।
27. दब ु ल
र् वग� का और �व�शष्टतया, अनस ु ू�चत जा�तय� और अनसु ू�चत
जनजा�तय� का कल्याण ।
28. सावर्ज�नक �वतरण प्रणाल� ।
29. सामुदा�यक आिस्तय� का अनरु �ण ।]
1. सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 4 द्वारा (24-4-1993 से) जोड़ा गया ।
349
1
[बारहवीं अनुसूची
(अनच्
ु छे द 243ब)
1. नगर�य योजना िजसके अंतगर्त नगर योजना भी है ।
2. भ�ू म उपयोग का �व�नयमन और भवन� का �नमार्ण ।
3. आ�थर्क और सामािजक �वकास योजना ।
4. सङक� और पल
ु ।
5. घरे लू, औद्यो�गक और वा�णिज्यक प्रयोजन� के �लए जल प्रदाय ।
6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध ।
7. अिग्नशमन सेवाएं ।
8. नगर�य वा�नक�, पयार्वरण का संर�ण और पा�रस्थ�तक� आयाम� क�
अ�भवद्
ृ �ध ।
9. समाज के दब ु ल
र् वग� के, िजनके अंतगर्त �वकलांग और मान�सक रूप से मंद
व्यिक्त भी ह�, �हत� क� र�ा ।
10. गंद�-बस्ती सध
ु ार और प्रोन्नयन ।
11. नगर�य �नधर्नता उन्मूलन ।
12. नगर�य सख ु -स�ु वधाओं और स�ु वधाओं, जैसे पाकर्, उद्यान, खेल के मैदान�
क� व्यवस्था ।
13. सांस्कृ�तक, शै��णक और स�दयर्परक आयाम� क� अ�भवद्
ृ �ध ।
14. शव गाड़ना और क�ब्रस्तान; शवदाह और श्मशान और �वद्यत
ु शवदाह गह
ृ ।
15. कांजी हाउस ; पशुओं के प्र�त क्रूरता का �नवारण ।
16. जन्म-मरण सांिख्यक�, िजसके अंतगर्त जन्म और मत्ृ यु रिजस्ट्र�करण भी
है ।
17. सावर्ज�नक सख
ु -सु�वधाएं, िजनके अंतगर्त सड़क� पर प्रकाश, पा�क�ग स्थल,
बस स्टाप और जन सु�वधाएं भी ह� ।
18. वधशालाओं और चमर्शोधनशालाओं का �व�नयमन ।]
1. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) जोड़ा गया ।
350
प�र�शष्ट 1
सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015
[28 मई, 2015]
भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच �कए गए करार और उसके
प्रोटोकाल के अनसु रण म� राज्य�ेत्र� का भारत द्वारा अजर्न �कए जाने
और क�तपय राज्य�ेत्र� का बांग्लादे श को अंतरण �कए जाने
को प्रभावी करने के �लए भारत के सं�वधान
का और संशोधन करने के �लए
अ�ध�नयम
भारत गणराज्य के �छयासठव� वषर् म� संसद् द्वारा �नम्न�ल�खत रूप म� यह
अ�ध�नय�मत हो :--
1. सं��प्त नाम--इस अ�ध�नयम का सं��प्त नाम सं�वधान (एक सौवां संशोधन)
अ�ध�नयम, 2015 है ।
2. प�रभाषाएं--इस अ�ध�नयम म� ,--
(क) “अिजर्त राज्य�ेत्र” से भारत-बांग्लादे श करार और उसके प्रोटोकाल म�
समा�वष्ट तथा पहल� अनस ु ूची म� �न�दर्ष्ट उतने राज्य�ेत्र अ�भप्रेत ह�, िजनका
खंड (ग) म� �न�दर्ष्ट करार और उसके प्रोटोकाल के अनस ु रण म� भारत द्वारा
बांग्लादे श से अजर्न �कए जाने के प्रयोजन के �लए अभ्यंकन �कया गया है ;
(ख) ∗“�नयत �दन” से ऐसी तार�ख अ�भप्रेत है, जो क�द्र�य सरकार, राजपत्र
म� , अ�धसूचना द्वारा, भारत-बांग्लादे श करार तथा उसके प्रोटोकाल के अनस ु रण म�
पहल� अनस ु ूची और दसू र� अनस ु ूची म� यथा�न�दर्ष्ट कुछ राज्य�ेत्र� का, िजनका
इस प्रकार अजर्न और अंतरण कराए जाने और उस प्रयोजन के �लए अभ्यंकन
कराए जाने के पश्चात ् बांग्लादे श से राज्य�ेत्र� के अजर्न और बांग्लादे श को
राज्य�ेत्र� के अंतरण के �लए तार�ख �नयत करे ;
(ग) “भारत-बांग्लादे श करार” से भारत और बांग्लादे श के बीच भू�म सीमा
के अभ्यंकन और संबद्ध �वषय� के संबध ं म� भारत गणराज्य क� सरकार और
बांग्लादे श जनवाद� गणराज्य क� सरकार के बीच तार�ख 16 मई, 1974 को हुआ
करार, तार�ख 26 �दसम्बर, 1974, तार�ख 30 �दसम्बर, 1974, तार�ख 7
अक्तूबर, 1982 और तार�ख 26 माचर्, 1992 का पत्र �व�नमय तथा भारत
सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच हुए तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के उक्त
करार का प्रोटोकाल अ�भप्रेत है, िजसके सुसग ं त उद्धरण तीसर� अनस ु ूची म� �दए
गए ह� ;
351
भारत का सं�वधान 352
(प�र�शष्ट 1)
(प�र�शष्ट 1)
पहल� अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(क), धारा 2(ख) और धारा 3 दे �खए]
भाग 1
भाग 2
भाग 3
ु छे द 1(12) और अनच्
तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 तथा तार�ख
6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच्
ु छे द 2(II), 3(I)(क)(iii)(iv)(v)(vi) के संबध
ं म�
अिजर्त राज्य�ेत्र ।
दस
ू र� अनस
ु च
ू ी
[धारा 2(ख), धारा 2(घ) और धारा 3 दे �खए]
भाग 1
भाग 2
भाग 3
(प�र�शष्ट 1)
तीसर� अनुसूची
[धारा 2(ग) दे �खए]
I. भारत गणराज्य क� सरकार और बांग्लादे श जनवाद� गणराज्य क� सरकार के बीच
भारत और बांग्लादे श के बीच भू�म सीमा के अभ्यंकन तथा संब�ं धत �वषय� के संबध
ं म�
तार�ख 16 मई, 1974 को हुए करार से उद्धरण
अनच्
ु छे द 1(12) : �वदे शी अंतः�ेत्र (एन्क्लेव)
बांग्लादे श िस्थत भारतीय एन्क्लेव� और भारत िस्थत बांग्लादे श एन्क्लेव�
का, पैरा 14 म� उिल्ल�खत एन्क्लेव� को छोड़कर, बांग्लादे श म� जाने वाले
अ�त�रक्त �ेत्र के �लए प्र�तकर का दावा �कए �बना शीघ्र�तशीघ्र आदान-प्रदान
�कया जाना चा�हए ।
अनच्
ु छे द 2 :
भारत और बांग्लादे श क� सरकार� इस बात के �लए सहमत ह� �क पहले से
अभ्यं�कत �ेत्र� म� प्र�तकूल कब्जे वाले राज्य�ेत्र, िजनके संबध ं म� सीमा पट्ट�
मान�चत्र पहले से तैयार ह�, पण ू ार्�धका�रय� द्वारा सीमा पट्ट� मान�चत्र� पर
हस्ता�र �कए जाने के छह मास के भीतर आदान-प्रदान �कए जाएंगे । वे सुसंगत
मान�चत्र� पर यथासंभवशीघ्र और �कसी भी दशा म� 31 �दसम्बर, 1974 के
अपश्चात ् हस्ता�र कर सकते ह� । ऐसे अन्य �ेत्र� के, िजनक� बाबत अभ्यंकन
पहले ह� �कया जा चक ु ा है, मान�चत्र� के मुद्रण हे तु शीघ्र उपाय �कए जाएं । इन्ह�
31 मई, 1975 तक मु�द्रत करा �लया जाना चा�हए और तत्पश्चात ् उन पर
पण ू ार्�धका�रय� द्वारा हस्ता�र करवा �लए जाने चा�हएं िजससे �क इन �ेत्र� म�
प्र�तकूलतः धा�रत कब्ज� का आदान-प्रदान 31 �दसम्बर, 1975 तक �कया जा
सके । िजन सेक्टर� का अभी भी अभ्यंकन �कया जाना है, उनम� राज्य�ेत्रीय
अ�धका�रता का अन्तरण संब�ं धत सीमा पट्ट� मान�चत्र� पर पण ू ार्�धका�रय� द्वारा
हस्ता�र �कए जाने के छह मास के भीतर हो सकता है ।
II. भारत गणराज्य क� सरकार और बांग्लादे श जनवाद� गणराज्य क� सरकार के
बीच भारत और बांग्लादे श के बीच भू�म सीमा के अभ्यंकन तथा संब�ं धत �वषय�
के संबध
ं म� तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 को हुए करार के प्रोटोकाल से उद्धरण
अनच्
ु छे द 2 :
(II) 1974 के करार के अनच्
ु छे द 1, खंड 12 को कायार्िन्वत �नम्नानस
ु ार
�कया जाएगा :
भारत का सं�वधान 355
(प�र�शष्ट 1)
एन्क्लेव
संयक् ु त रूप से सत्या�पत और डी.जी.एल.आर.एंड एस., बांग्लादे श तथा
डी.एल.आर.एंड एस., पिश्चमी बंगाल (भारत) के स्तर पर अप्रैल, 1997 म�
हस्ता�र �कए गए भू-कर एन्क्लेव मान�चत्र� के अनस ु ार बांग्लादे श म� के 111
भारतीय एन्क्लेव और भारत म� के 51 बांग्लादे श एन्क्लेव का बांग्लादे श म� जाने
वाले अ�त�रक्त �ेत्र� के �लए प्र�तकर का दावा �कए �बना आदान-प्रदान �कया
जाएगा ।
अनच्ु छे द 3 :
(I) 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 को �नम्नानस ु ार कायार्िन्वत �कया
जाएगा :
भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच यह करार हुआ है �क
प्र�तकूल कब्जे म� धा�रत राज्य�ेत्र� के �लए, जैसा �क संयक् ु त सव��ण के
माध्यम से अवधा�रत �कया गया था और अपने-अपने प्र�तकूल कब्जा भू-
�ेत्र सूचक मान�चत्र (एपीएल मान�चत्र) म� , िजसे �दसम्बर, 2010 और
अगस्त, 2011 के बीच दोन� दे श� के भू-अ�भलेख और सव��ण �वभाग�
द्वारा अं�तम रूप �दया गया है, पण ू त
र् या �च�त्रत �कया गया था, िजनका
पण ू त
र् या वणर्न नीचे खंड (क) से खंड (घ) म� �कया गया है, एक �नयत
सीमा के रूप म� सीमा रे खा खींची जाएगी ।
सुसंगत सीमा पट्ट� से मान�चत्र� को मु�द्रत �कया जाएगा और उन
पर पण ू ार्�धका�रय� द्वारा हस्ता�र �कए जाएंगे और राज्य�ेत्रीय
अ�धका�रता का अन्तरण एन्क्लेव� के आदान-प्रदान के साथ-साथ पण ू र्
�कया जाएगा । ऊपर व�णर्त सूचक मान�चत्र� म� यथा �च�त्रत सीमा का
अभ्यंकन �नम्नानस ु ार होगा :
(क) पिश्चमी बंगाल सेक्टर
(i) बौसमार�-मधग ु र� (कुिश्तया-ना�डया) �ेत्र
�वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 154/5-एस से 157/1-
एस से होते हुए मथबंगा नद� के परु ाने बहाव मागर् के मध्य
तक, जैसा �क 1962 के चकबंद� मान�चत्र म� �च�त्रत है
एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू , 2011 म�
संयक्ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई
थी ।
(ii) अंधारकोटा (कुिश्तया-ना�डया) �ेत्र
�वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 152/5-एस से सीमा
स्तंभ सं0 153/1-एस से होते हुए �वद्यमान मथबंगा नद�
के �कनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू ,
2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और
सहम�त हुई थी ।
भारत का सं�वधान 356
(प�र�शष्ट 1)
(प�र�शष्ट 1)
(प�र�शष्ट 1)
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
क. स्वतंत्र �छट� वाले एन्क्लेव
1. गराट� 75 पोचागर हल्द�बाड़ी 58.23
2. गराट� 76 पोचागर हल्द�बाड़ी 0.79
3. गराट� 77 पोचागर हल्द�बाड़ी 18
4. गराट� 78 पोचागर हल्द�बाड़ी 958.66
5. गराट� 79 पोचागर हल्द�बाड़ी 1.74
6. गराट� 80 पोचागर हल्द�बाड़ी 73.75
7. �बंगीमार� भाग-I 73 पोचागर हल्द�बाड़ी 6.07
भारत का सं�वधान 360
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
8. नजीरगंज 41 बोडा हल्द�बाड़ी 58.32
9. नजीरगंज 42 बोडा हल्द�बाड़ी 434.29
10. नजीरगंज 44 बोडा हल्द�बाड़ी 53.47
11. नजीरगंज 45 बोडा हल्द�बाड़ी 1.07
12. नजीरगंज 46 बोडा हल्द�बाड़ी 17.95
13. नजीरगंज 47 बोडा हल्द�बाड़ी 3.89
14. नजीरगंज 48 बोडा हल्द�बाड़ी 73.27
15. नजीरगंज 49 बोडा हल्द�बाड़ी 49.05
16. नजीरगंज 50 बोडा हल्द�बाड़ी 5.05
17. नजीरगंज 51 बोडा हल्द�बाड़ी 0.77
18. नजीरगंज 52 बोडा हल्द�बाड़ी 1.04
19. नजीरगंज 53 बोडा हल्द�बाड़ी 1.02
20. नजीरगंज 54 बोडा हल्द�बाड़ी 3.87
21. नजीरगंज 55 बोडा हल्द�बाड़ी 12.18
22. नजीरगंज 56 बोडा हल्द�बाड़ी 54.04
23. नजीरगंज 57 बोडा हल्द�बाड़ी 8.27
24. नजीरगंज 58 बोडा हल्द�बाड़ी 14.22
25. नजीरगंज 60 बोडा हल्द�बाड़ी 0.52
26. पट
ु �मार� 59 बोडा हल्द�बाड़ी 122.8
27. दै खाता छट 38 बोडा हल्द�बाड़ी 499.21
28. सल्बर� 37 बोडा हल्द�बाड़ी 1188.93
29. काजल �दघी 36 बोडा हल्द�बाड़ी 771.44
30. नटकटोका 32 बोडा हल्द�बाड़ी 162.26
31. नटकटोका 33 बोडा हल्द�बाड़ी 0.26
32. बेउलाडांगा छट 35 बोडा हल्द�बाड़ी 0.83
33. बलापारा इगराबार 3 दे बीगंज हल्द�बाड़ी 1752.44
34. बला खन�कखर�जा 30 �डमला हल्द�बाड़ी 7.71
�सतलदहा
भारत का सं�वधान 361
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
35. बला खन�कखर�जा 29 �डमला हल्द�बाड़ी 36.83
�सतलदहा
36. बराखनगीर 28 �डमला हल्द�बाड़ी 30.53
37. नगरजीकोबर� 31 �डमला हल्द�बाड़ी 33.41
38. कुचल�बार� 26 पटग्राम मेकल�गंज 5.78
39. कुचल�बार� 27 पटग्राम मेकल�गंज 2.04
40 बरा कुचल�बार� थाना पटग्राम मेकल�गंज 4.35
मेकल�गंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
41. जमालोहा- 6 पटग्राम मेकल�गंज 5.24
बेलापख
ु ार�
42. उपनचौक� 115/2 पटग्राम मेकल�गंज 0.32
कुचल�बार�
43. उपनचौक� 7 पटग्राम मेकल�गंज 44.04
कुचल�बार�
44. भोथनर� 11 पटग्राम मेकल�गंज 36.83
45. बालापख
ु ार� 5 पटग्राम मेकल�गंज 55.91
46. बाराखानगीर 4 पटग्राम मेकल�गंज 50.51
47. बाराखानगीर 9 पटग्राम मेकल�गंज 87.42
48. छठ बोगडोकरा 10 पटग्राम मेकल�गंज 41.7
49. रतनपरु 11 पटग्राम मेकल�गंज 58.91
50. बोगडोकरा 12 पटग्राम मेकल�गंज 25.49
51. पल
ु कर डाबर� थाना पटग्राम मेकल�गंज 0.88
मेकल�गंज
के जे0एल0
107 का
अपखंड
भारत का सं�वधान 362
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
52. खरखर�या 15 पटग्राम मेकल�गंज 60.74
53. खरखर�या 13 पटग्राम मेकल�गंज 51.62
54. लोटामार� 14 पटग्राम मेकल�गंज 110.92
55. भूतबार� 16 पटग्राम मेकल�गंज 205.46
56. कोमट चांग्रबधा 16ए पटग्राम मेकल�गंज 42.8
57. कोमट चांग्रबधा 17ए पटग्राम मेकल�गंज 16.01
58. पनीसाला 17 पटग्राम मेकल�गंज 137.66
59. द्वा�रकामार� 18 पटग्राम मेकल�गंज 36.5
खासबाश
60. पनीसाला 153/पी पटग्राम मेकल�गंज 0.27
61. पनीसाला 153/ओ पटग्राम मेकल�गंज 18.01
62. पनीसाला 19 पटग्राम मेकल�गंज 64.63
63. पनीसाला 21 पटग्राम मेकल�गंज 51.4
64. लोटामार� 20 पटग्राम मेकल�गंज 283.53
65. लोटामार� 22 पटग्राम मेकल�गंज 98.85
66. द्वा�रकामार� 23 पटग्राम मेकल�गंज 39.52
67. द्वा�रकामार� 25 पटग्राम मेकल�गंज 45.73
68. छट भोथाट 24 पटग्राम मेकल�गंज 56.11
69. बाकाटा 131 पटग्राम हथभंगा 22.35
70. बाकाटा 132 पटग्राम हथभंगा 11.96
71. बाकाटा 130 पटग्राम हथभंगा 20.48
72. भोग्रामगुर� 133 पटग्राम हथभंगा 1.44
73. चेनाकाटा 134 पटग्राम मेकल�गंज 7.81
74. बांसकाटा 119 पटग्राम मथबंगा 413.81
75. बांसकाटा 120 पटग्राम मथबंगा 30.75
76. बांसकाटा 121 पटग्राम मथबंगा 12.15
77. बांसकाटा 113 पटग्राम मथबंगा 57.86
78. बांसकाटा 112 पटग्राम मथबंगा 315.04
79. बांसकाटा 114 पटग्राम मथबंगा 0.77
भारत का सं�वधान 363
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
80. बांसकाटा 115 पटग्राम मथबंगा 29.2
81. बांसकाटा 122 पटग्राम मथबंगा 33.22
82. बांसकाटा 127 पटग्राम मथबंगा 12.72
83. बांसकाटा 128 पटग्राम मथबंगा 2.33
84. बांसकाटा 117 पटग्राम मथबंगा 2.55
85. बांसकाटा 118 पटग्राम मथबंगा 30.98
86. बांसकाटा 125 पटग्राम मथबंगा 0.64
87. बांसकाटा 126 पटग्राम मथबंगा 1.39
88. बांसकाटा 129 पटग्राम मथबंगा 1.37
89. बांसकाटा 116 पटग्राम मथबंगा 16.96
90. बांसकाटा 123 पटग्राम मथबंगा 24.37
91. बांसकाटा 124 पटग्राम मथबंगा 0.28
92. गोटामार� �छट 135 हा�तबंधा �सतलकुची 126.59
93. गोटामार� �छट 136 हा�तबंधा �सतलकुची 20.02
94. बनापचाई 151 लालमो�नरहाट �दनहाटा 217.29
95. बनापचाई 152 लालमो�नरहाट �दनहाटा 81.71
भीतरकुथी
96. द�सआर छारा 150 फुलबार� �दनहाटा 1643.44
97. दकुरहाट- 156 कुर�ग्राम �दनहाटा 14.27
द�क�नरकुथी
98. कलामती 141 भुंगामार� �दनहाटा 21.21
99. भाहोबगंज 153 भुंगामार� �दनहाटा 31.58
100. बाओ�तकुरसा 142 भुंगामार� �दनहाटा 45.63
101. बरा कोआचल्
ु का 143 भुंगामार� �दनहाटा 39.99
102. गावचल्
ु का II 147 भुंगामार� �दनहाटा 0.9
103. गावचल्
ु का I 146 भुंगामार� �दनहाटा 8.92
104. �दघालतर� II 145 भुंगामार� �दनहाटा 8.81
105. �दघालतर� I 144 भुंगामार� �दनहाटा 12.31
106. छोटूगरलझोरा II 149 भुंगामार� �दनहाटा 17.85
भारत का सं�वधान 364
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
107. छोटू गरलझोरा I 148 भुरुंगामार� �दनहाटा 35.74
108. जे0एल0सं0 38 157 पटग्राम मथभंगा 3.5
के द��णी छोर
और जे0एल0सं0
39 के द��णी
छोर पर �बना
नाम और
जे0एल0सं0 का
1 �छट ∗
(स्थानीय रूप से
अशोकाबाड़ी ** के
2
रूप म� �ात)
ख. अपखंड �छट वाले एन्क्लेव
109 (i) बेवलाडांगा 34 हल्द�बाड़ी बोडा 862.46
(ii) बेवलाडांगा अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
110. (i) कोतभाजनी 2 हल्द�बाड़ी दे बीगंज 2012.27
(ii) कोतभाजनी अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
(iii) कोतभाजनी अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
(iv) कोतभाजनी अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
111. (i) दहाला खागराबार� हल्द�बाड़ी दे बीगंज 2650.35
(ii) दहाला अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
(iii) दहाला अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
(iv) दहाला अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
∗
29 �सतम्बर, 2002 से 2 अक्तूबर, 2002 तक कोलकाता म� आयोिजत एक सौ पचासव� (चौवनव� ) भारत-बांग्लादे श
सीमा सम्मेलन द्वारा संशो�धत ।
**
18 �सतम्बर, 2003 से 20 �सतम्बर, 2003 तक कूच �बहार (भारत) म� आयोिजत एक सौ बावनव� (छप्पनव� )
भारत-बांग्लादे श सीमा सम्मेलन द्वारा संशो�धत ।
भारत का सं�वधान 365
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
(v) दहाला अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
(vi) दहाला अपखंड हल्द�बाड़ी दे बीगंज
17160.63
�टप्पण : �ेत्र सीमन काल 1996-97 के दौरान संयक् ु त भ�ू म सत्यापन द्वारा उपयक्
ुर् त
क्रम सं0 108 के एन्क्लेव के नाम क� अशोकाबाड़ी एन्क्लेव के रूप म� पहचान क� गई ।
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
5. �छट पनबार� मेकल�गंज पटग्राम 18 108.59
6. धाबलसाती �मग�परु मेकल�गंज पटग्राम 15 173.88
7. बामनदल मेकल�गंज पटग्राम 11 2.24
8. �छट धाबलसाती मेकल�गंज पटग्राम 14 66.58
9. धाबलसाती मेकल�गंज पटग्राम 13 60.45
10. श्रीरामपरु मेकल�गंज पटग्राम 8 1.05
11. जोते �नज्जमा मेकल�गंज पटग्राम 3 87.54
12. जगतबेर सं0 3 क� मथबंगा पटग्राम 37 69.84
�छट भू�म
13. जगतबेर सं0 1 क� मथबंगा पटग्राम 35 30.66
�छट भू�म
14. जगतबेर सं0 2 क� मथबंगा पटग्राम 36 27.09
�छट भ�ू म
15. �छट कोकोआबार� मथबंगा पटग्राम 47 29.49
16. �छट भंदारदाहा मथबंगा पटग्राम 67 39.96
17. धाबलगुड़ी मथबंगा पटग्राम 52 12.5
18. �छट धाबलगुड़ी मथबंगा पटग्राम 53 22.31
19. धाबलगुड़ी सं0 3 क� मथबंगा पटग्राम 70 1.33
�छट भू�म
20. धाबलगुड़ी सं0 4 क� मथबंगा पटग्राम 71 4.55
�छट भ�ू म
21. धाबलगुड़ी सं0 5 क� मथबंगा पटग्राम 72 4.12
�छट भू�म
22. धाबलगुड़ी सं0 1 क� मथबंगा पटग्राम 68 26.83
�छट भू�म
23. धाबलगड़ु ी सं0 2 क� मथबंगा पटग्राम 69 13.95
�छट भू�म
24. म�हशमार� �सतलकुची पटग्राम 54 122.77
25. बरु ा सराडुबी �सतलकुची हा�तंबधा 13 34.96
भारत का सं�वधान 367
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
26. फलनापरु �सतलकुची पटग्राम 64 506.56
27. अमझोल �सतलकुची हा�तंबधा 57 1.25
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
(प�र�शष्ट 1)
1 2 3 4 5 6
48. (i) पिश्चम �दनहाटा भुंगामार� 4 29.49
मसालडांगा
(ii) पिश्चम �दनहाटा भुंगामार� 4
मसालडांगा (अपखंड)
49. (i) परू बा �छट �दनहाटा भुंगामार� 10 35.01
मसालडांगा
(ii) परू बा �छट �दनहाटा भुंगामार� 10
मसालडांगा (अपखंड)
50. (i) परू बा मसालडांगा �दनहाटा भंग
ु ामार� 11 153.89
(ii) परू बा मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 11
(अपखंड)
51. (i) उ�र धालडांगा तूफानगंज भुंगामार� 14 24.98
(ii) उ�र धालडांगा तफू ानगंज भंगु ामार� 14
(अपखंड)
(iii) उ�र धालडांगा तूफानगंज भुंगामार� 14
(अपखंड)
कुल �ेत्र 7,110.02
1. �व�ध और न्याय मंत्रालय (�वधायी �वभाग) क� अ�धसूचना सं0 सा0का0�न0 551 (अ), तार�ख 5 अगस्त, 2019
भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3 उपखंड (i) म� प्रका�शत ।
370
प�र�शष्ट 3
1
0 सं�वधान के अनुच्छे द 370(3) के अधीन घोषणा
सं.आ. 273
1. �व�ध और न्याय मंत्रालय (�वधायी �वभाग) क� अ�धसूचना सं0 सा0का0�न0 562(अ), तार�ख 6 अगस्त, 2019
भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3 उपखंड (i) म� प्रका�शत ।
371