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आचाय चतुरसेन शा ी का ज म 26 अग त 1891 म उ र देश के बुलंदशहर के पास चंदोख

नामक गांव म हआ था। िसकंदराबाद म कूल क पढ़ाई ख म करने के बाद उ ह ने सं कृत


कालेज, जयपुर म दािखला िलया और वह उ ह ने 1915 म आयुवद म ‘आयुवदाचाय’ और
सं कृत म‘ शा ी‘क उपािध ा क । आयुवदाचाय क एक अ य उपािध उ ह ने आयुवद
िव ापीठ से भी ा क । िफर 1917 म लाहौर म डी.ए.वी. कॉलेज म आयुवद के व र ोफेसर
बने। उसके बाद वे िद ली म बस गए और आयुवद िचिक सा क अपनी िड पसरी खोली। 1918
म उनक पहली पु तक दय क परख कािशत हई और उसके बाद पु तक िलखने का
िसलिसला बराबर चलता रहा। अपने जीवन म उ ह ने अनेक ऐितहािसक और सामािजक
उप यास, कहािनय क रचना करने के साथ आयुवद पर आधा रत वा य और यौन संबंधी
कई पु तक िलख । 2 फरवरी, 1960 म 68 वष क उ म बहिवध ितभा के धनी लेखक का
देहांत हो गया, लेिकन उनक रचनाएं आज भी पाठक म बहत लोकि य ह।
अनबन

आचाय चतरु सेन


ISBN : 978-93-5064-220-7
थम राजपाल सं करण : 2014 © आचाय चतुरसेन
ANNBANN (Health & Fitness) by Acharya Chatursen

राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट-िद ली-110006
फोन: 011-23869812, 23865483, फै स: 011-23867791
website: www.rajpalpublishing.com
e-mail : sales@rajpalpublishing.com
भिू मका

यह एक अ य त मह वपण ू मु े क बात है िक दा प य जीवन के दो ब धन ह। एक पित-प नी


का, दूसरा ी और पु ष का। दोन स ब ध का पथ ृ क् अि त व है, पथ
ृ क् सीमाएँ ह, पथ
ृ क्
िव ान ह, पथ ृ क् आकां ाएँ और माँग ह। आज के स य युग का िदन-िदन ग भीर होता हआ
दा प य जीवन क अशाि त है। िववाह होने के तुर त बाद ही पित-प नी म ‘अनबन’ रहने
लगती है और कभी-कभी वह घातक प रणाम लाती है तथा आजीवन ल बी िखंच जाती है।
समाजशाि य ने इस पर िवचार िकया है और बहत थ िलखे ह। पर, पित-प नी और
ी-पु ष ये दोन पथ
ृ क् त व ह, इन बात पर ाय: िवचार नह िकया गया है।
यह सच है िक िववाह हो जाने के बाद ी-पु ष के बीच पित-प नी का स ब ध हो जाता
है और यह स ब ध सामािजक है। िववाह होते ही मनु य समाज का एक अिनवाय अंग बन जाता
है। उसे घर-बार, सामान और गहृ थी क अनेक व तुओ ं को जुटाना पड़ता है। पित-प नी िमल-
जुलकर गहृ थी क गाड़ी चलाते ह।
मनु य अमीर भी है और गरीब भी। गरीब पित के साथ रहकर प नी अपने को उसी
प रि थित के अनुकूल बना लेती है और उतने ही म अपनी गहृ थी घसीट ले जाती है, िजतना
पित कमाता है। मने इस स ब ध म पि नय के असीम धैय और सिह णुता को देखा है। वे आप
ठं ठा-बासी, खा-सख ू ा खाती,उपवास करती,क भोगती और पित व ब च को अ छा
िखलाती-िपलाती तथा सेवा करती ह। बहत कम ि याँ घर-गहृ थी के अभाव के कारण पित से
लड़ती और अस तु रहती ह। सदैव ही इस मामले म उनका धैय और सहनशीलता शंसनीय
रहती है।
पर तु ी-पु ष का स ब ध सामािजक नह –भौितक है। िभ न िलंगी होने के कारण
दोन को दोन क भख ू है, दोन -दोन के िलए परू क ह। दोन को दोन क भख ू त ृ करनी होती
है। इसम एक यिद दूसरे क भख ू को त ृ करने म असफल या असमथ रहता है–तो ी चाहे
िजतनी असीम धैय वाली होगी, पित को मा नह कर सकती और एक अस अनबन का इससे
ज म होता है। साथ ही घातक रोग क उ पि भी। इन कारण से पु ष क अपे ा ी ही अिधक
रोग का िशकार होती है, य िक वह ल जा और शील के बोझ से दबी हई अपनी भख ू क पीड़ा
को जहाँ तक स भव होता है–सहती है। जब नह सही जाती तो रोग-शोक- ोभ, और दा ण
दुखदाई ‘अनबन’ और कलह म प रणत हो जाती है।
इस पु तक म कुछ प और उनका समाधान है। िन संदेह मुझे भाषा खोलकर िलखनी
पड़ी है। मोटी ि से ऐसी भाषा को कुछ लोग अ ील कह सकते ह, पर तु वही–िज ह इस
िवषय के दुखदाई अनुभव नह ह। भु भोिगय के िलए मेरी यह पु तक बहत राहत पहँचावेगी।
य िक इस पु तक म िजन संकेत पर चचा क गई है–उनसे करोड़ मनु य के सुख-दु:ख का
स ब ध है।
आज के युग का स य त ण ल पट नह रहा है। वह अपनी प नी म थायी ेम क चाहना
करता है। वा तव म ेम एक शा त और जीवन से भी अिधक थायी है। मने खबू बारीक से
देखा है िक पर पर ेम रखने क उ सुकता रखने वाले पित-पि नय के अ त:करण म एक
िछपी हई याकुल भावना होती है और वे कभी-कभी यह अनुभव करते ह–िक कोई ऐसी बात है;
जो अ त म हमारे ेम और आकषण को न कर डालेगी। म जानता हँ िक कृित का ू र और
अटल िनयम अव य अपना काम करे गा, और यिद ऐसे कोई कारण ह तो पित-प नी का ेम
ज़ र घट जाएगा; िफर वे चाहे जैसे धनी-मानी-स प न और व थ ही य न ह ।
पित-प नी के कलह और लड़ाई-झगड़े क बात को लेकर सािह यकार कथा-कहािनयाँ
िलखते ह, पर वे कामशा ी नह ह, इससे वे मु े क बात नह जानते। वे इस झगड़े क तह म
केवल सामािजक कारण ही देखते और उ ह का िच ख चते ह, जो वा तव म मल ू त: अस य है।
साधारणतया बहत लोग क ऐसी धारणा है िक पित-प नी म ेम और आकषण सदा एक-
सा नह बना रह सकता। एक िदन उसका न होना अिनवाय ही है। पर तु ऐसा समझना और
कहना ‘िववाह’ क मयादा को न करना है।
वा तव म यह स य नह है। मेरा यह कहना है िक यिद काम त व को ठीक-ठीक शरीर म
पणू ायु तक मयािदत रखा जाय तो जीवन एक सफल और सुखी प रणाम म समा होगा।
‘स भोग’ वह मह वपण ू एवं कृत ि या है, जो ी व और पु ष व क पार प रक भख ू
को त ृ करती है। सच पछ ू ा जाय तो यही एक धान काय है; िजसके िलए ी-पु ष का जोड़ा
िमलाया जाता है। म यहाँ िह दू िववाह प ित पर िवचार नह क ँ गा, िजसका उ े य पित क
स पि का उ रािधकारी पु उ प न करना है। यह िववाह नह –एक घोर कुरीित है, िजसने ी
के स पण ू अिधकार और ा य का अपहरण कर िलया है। पर तु म तो केवल ‘स भोग’ ही को
मह व देता हँ। और इस पु तक म उसी क मिहमा का वै ािनक बखान है।
आम तौर पर लोग क यह धारणा है–िक स भोग के बाद पु ष कुछ कमजोर हो जाता है,
और कुछ समय के िलए वह ी से मँुह फेर लेता है, उसे ी से घणृ ा हो जाती है तथा उसक यह
िवरि उस समय तक कायम रहती है; जब तक िक दुबारा कामो ेजना क आग उसम न धधक
उठे ।
दूसरे श द म यिद इस िवचार को वै ािनक प िदया जाय तो ऐसा कहना पड़े गा िक ी-
पु ष के स भोग के बाद पु ष क उ सुकता और जीवनी शि घट जाती है तथा उसक कुछ न
कुछ शि इस काम म खच हो जाती है। िजसक पिू त उसे बाहर से करनी पड़ती है। इसका
अिभ ाय यह हआ, िक स भोग ि या से मनु य क शि बढ़ती नह – युत अ थायी प से
घटती है। भले ही उसने यह स भोग च ड कामवासना से े रत होकर या शरीर क वाभािवक
भख ू से तड़पकर ही य न िकया हो।
पर तु म सब लोग क इस बात को अ वीकार करता हँ। मेरा ि थर प से कहना यह है–
िक बड़ी उ तक भी यिद ी-पु ष म वाभािवक स भोग शि कायम रहे तो वे दोन चाहे
िजस भी िवषम सामािजक अव था म, अख ड प से अ य सुख और अनुराग के गहरे रस का
ऐसा परमान द– य - य उनक उ बढ़ती जाएगी, ा करते जाएँ गे–िजसक समता संसार के
िकसी सुख और आन द से नह क जा सकती।
जो लोग ि य को घर के काम-काज करने वाली दासी या ब चे पैदा करने वाली मशीन
समझते ह, वे मेरी इस महामू यवान् बात को नह समझगे। पर म यह िफर कहना चाहता हँ िक
स भोग-िविध को जो ठीक-ठीक जानता है, उसे वह उदासी और िवरि –िजसका आभास लाख -
करोड़ रित-रह य के स चे ान से रिहत पु ष अनुभव करते ह–कदािप अनुभव न करे गा। और
मेरे इस कथन क स यता उसे मािणत हो जाएगी,िक िवरित और उदासी स चे स भोग का
प रणाम नह । स चे स भोग का प रणाम आन द और फूित है।
उपयु ामक धारणा ने पित-प नी के स ब ध का बहत कुछ आन द छीन िलया है और
ि य का मह व बहत कम हो गया है। वे केवल पु ष क सामािजक साझीदार बन गई ह, और
उनका जीवन आन द से प रपण ू नह है, गहृ थी और बाल-ब च का बोझा ढोने वाली गदही के
समान हो गया है। म सारे संसार के पशु-प ी, क ट-पतंग क नर-मादाओं को जब आन द से
ेम-िवलास करते और ि य को आँसुओ ं से गीली आँख िससकते हए घर के काम-ध ध म
िपसते देखता हँ, तो म मनु य के दुभा य पर, उसक मखू ता पर, हाय करके रह जाता हँ। य िक
उसने अपनी जोड़ी का आन दमय जीवन अपने ही िलए भार प बना िलया है।
म आप से िफर कहता हँ िक ि थर गहृ थ जीवन, अ य और थायी ेम, गहरी आ त रक
एकता तथा आन द का पार प रक समान आदान- दान, इससे बढ़ कर संसार म दूसरी कोई
यामत नह है। सात बादशाहत भी इसके सामने हे च ह।
हमारे जीवन क सफलता शरीर-मन और आ मा, इन तीन व तुओ ं क तिृ पर िनभर है।
इनके योजन और आव यकताओं क राह पेचीदी अव य है, पर तु अ य त यवि थत है।
इस छोटी-सी पु तक म मने आपस म उलझी हई उन तीन चीज़ क गुि थयाँ सुलझाने क
चे ा क है। अब यह आप का काम है िक आप इससे िजतना चाह लाभ उठाएँ ।
ी और पु ष क जननेि य म सा य हए िबना ी और पु ष के ेम का चरम उ कष
उस च ड हष माद को उ प न नह कर सकता,िजसम ेम को अख ड करने क साम य है।
जहाँ ी-पु ष म शारी रक सा य नह है; वहाँ सदैव किठनाइय के बढ़ जाने का भय ही भय है।
कामशाि य ने इन बात पर िवचार िकया है। ी-पु ष को उिचत है िक ऐसी अव था होने पर
उस िवषय म यान द तथा यथोिचत रीितय से इस वैष य को दूर कर, और स भोग-ि या को
सुखकर और फलदायक बनाएँ ।
म यहाँ एक अ य त ग भीर त य क ओर आप का यान आकिषत करता हँ। वह यह–िक
यह युग िजसम हम जीिवत ह–संसार के इितहास म पहला युग है, जब िक मानव-समाज
सामिू हक प से ऐसे मानिसक धरातल पर पहँचा है िजसने वह प रि थित उ प न कर दी है–
िजसम ी-पु ष के स ब ध म ेम-प रणय क चरम धानता हो गई है। यिद आप
साम तकालीन बात पर िवचार कर, जहाँ क याय बलात् हरण क जाती थ तथा जहाँ ायः
श ु-क या को ेयसी का पद उसके माता-िपता, प रजन को मार कर िदया जाता था। यिद हम
िवचार कर तो देख सकते ह िक आज िजन कारण से पित-प नी म ेम थािपत होता है, वे उन
कारण से िब कुल िभ न ह, जो ाचीन काल म चिलत थे। इस युग म ी-पु ष के बीच जब
तक गहरी एकता और ेम के भाव–िजनम स मान भी सि मिलत है, नह हो जाते–तब तक ी-
पु ष का वह स ब ध सुखकर नह हो सकता।
शारी रक, मानिसक और आि मक, तीन ही मल ू ाधार पर ी-पु ष का संयोग स ब ध
होना चािहए। ‘स भोग’ म तो पशु और मनु य समान ही ह। उसम जब ी-पु ष दोन का गाढ़
ेम गहरी एकता उ प न कर देता है, तब स भोग गौण और ेम मु य भिू मका बन जाता है तथा
जीवन म अिनवचनीय आन द और तिृ दान करता है। पर तु यह ेम साधारण नह । शारी रक,
मानिसक और आ याि मक स पण ू चेतनाओं से ओत- ोत होना चािहए।
इसके िलए हम पुरानी पर परा के िवचार बदलने पड़गे। ि याँ हमारी आि त, कमज़ोर और
असहाय ह, वे हमारी स पि ह, हम उनके वामी ह, कता-धता ह, पू य परमे र ह, पितदेव ह,
ये सारे पुराने िवचार न केवल हम ही याग देने चािहए, अिपतु हम ि य के मि त क म से भी
दूर कर देने चािहए। तभी दोन म पर पर स मानपवू क गहरी एकता–जो गाढ़ और स चे ेम
क पराका ा है–उ प न होगी।
यह बात आपको माननी होगी िक िववाह-स ब ध दूसरे सब स ब ध से िनराला है। लोग
समझते ह िक िववाह करके हम गहृ थी बसाते ह। इसका आदश साधारणतया लोग इन अथ म
लगाते ह, िक द पित आन दपवू क िमलकर अपनी घर-गहृ थी क यव था चलाएँ । कहानी-
नाटक-उप यासकार भी ाय: यही अपना येय रखते ह। एक सफल और सुखी-सु यवि थत
गहृ थ को वे आदश मानते ह। पर मेरा कहना यह है, िक पित-प नी के स ब ध म घर का कुछ
भी स ब ध नह है। िववाह का मल ू ाधार ‘ दय’ है, ‘घर’ नह ।
सं ेप म, वैवािहक जीवन म थायी सुख और उ म वा य पित-प नी के सम स भोग
पर िनभर है। िवषम अव थाओं म युि और य न से ‘समरत’ बनाया जाना ही चािहए। जहाँ
स भोग क ि या ठीक-ठीक है, वहाँ द पित के बीच दूसरे मामल म चाहे जैसा भी मतभेद हो,
चाहे दुिनया भर क हर बात पर उनके िवचार एक दूसरे से न िमलते ह , िफर भी वहाँ खीझ,
िचड़िचड़ापन और ोध के दशन नह ह गे। न उनम एक दूसरे से अलग होने के िवचार ही
उ प न ह गे। वे एक दूसरे के मतभेद का मजाक उड़ाने का आन द ा करगे।
पर तु यिद उनम पर पर स भोग ि या ठीक-ठीक नह चलती है या स भोग के आधारभत ू
िनयम को वे नह जानते ह, तो िफर उनके वभाव, आदत, िवचार, चाहे िजतने िमलते ह , संसार
क सारी बात म वे एक मत ह , तो भी उससे कुछ लाभ न होगा। उनके मन एक दूसरे से फट
जाएँ गे और एक दूसरे से दूर रहने क ती लालसा उ ह चैन न लेने देगी।

–चतरु सेन

ानधाम
शाहदरा, िद ली
तािलका

1. पहला-प
2. दूसरा-प
3. तीसरा-प
4. चौथा-प
5. पाँचवाँ-प
6. छठा-प
7. सातवाँ-प
8. आठवाँ-प
9. नवाँ-प
10. दसवाँ-प
11. यारहवाँ-प
12. बारहवाँ-प
पहला-प

‘‘बड़ी िविच बात है। मेरी प नी ितिदन ातःकाल य ही नया अखबार आता है झपटकर उठा
लेती है। मझ ु से पिहले अखबार पढ़ने का उसका िन य िनयम हो गया है, पर त ु उसका पढ़ना
तीन-चार िमनट म ही समा हो जाता है। वह वा तव म िववाह-िव ापन पढ़ती है। केवल िववाह-
िव ापन और िफर प को एक ओर फक कर गहरे सोच म कोच पर पाँव िसकोड़कर बैठ जाती
है। इस समय बातचीत, छेड़-छाड़ वह िब कुल बदा त नह कर सकती, खीझ जाती है या उठकर
चली जाती है। अभी हमारा िववाह हए कुल सात मास हए ह। िववाह के दो मास बाद ही उसक यह
आदत हो गई थी, और तभी से हमारे दा प य जीवन के सब स ु भात ठ डे, नीरस और खे हो
गए ह। वह कभी मेरे साथ चाय नह पीती। नौकर चाय रखकर चला जाता है, म यार और नम
के साथ कहता हँ–‘िवमल, आओ चाय िपयो। अपने हाथ से एक याला बनाकर मझ ु दो’ तो वह
चपु चाप या तो छत पर सरसर चलते पंख े को अिनमेष ि से देखती रहती है या िखड़क के
बाहर श ू य आकाश को सन ू ी ि से। जैस े मेरी बात उसके कान तक पहँची ही न हो। दुबारा
कहने का मझ ु े साहस नह होता, कहने पर वह ितनक कर, उठकर चल देती है। अपने कमरे म
जा, भीतर से ार ब द कर घ ट पड़ी रोती रहती है। उस िदन मझ ु े चाय फक देनी पड़ती है तथा
भख ू े ही द तर जाना पड़ता है।
इधर कुछ िदन से म यह सब सह गया हँ। अब म इसक अिधक परवाह नह करता। बीच म
दो-चार बार ऐसा भी हआ िक मझ ु े ग ु सा आ गया, मने बकझक भी क । चाय का सेट टेबल ु पर से
नीचे ढकेल िदया। पर ऐसी दशा म वह सदा सन ू ी और उदास ि से मेरी ओर देखती रही, एक
श द भी बोली नह । म भख ू ा- यासा उठकर बाहर चल िदया, िदन भर भटकता रहा, तो भी उसने
मझ ु से कुछ नह पछ ू ा। मेरे ऊपर सदय नह हई।
य वह घर के कामकाज म बड़ी चतरु है, िनराल य है, स ु िच स प न है। िपता उसके
सेशन जज ह, भाई एडवोकेट जनरल ह, माता ज े एु ट ह, उसने भी बी.ए. आनस पास िकया है।
संगीत और िच कला म उसक ऊँची गित है, उसका क ठ वर अित कोमल और क ण है।
यवहार उसका सौ य है। मझ ु से वह लड़ती नह । कभी ग ु सा भी नह करती। घर के कामकाज म
असावधान भी नह , पर त ु ितिदन ातःकाल उसका महुँ िबगड़ा रहता है। यिद उसे छेड़ा न जाय
तो म जब तक चाय पीता रहता हँ; वह उसी भाँित गम ु सम
ु बैठी रहती है, िफर एक दीघ िनः ास
लेकर उठकर रसोई म चली जाती है। रसोई वह वयं बनाती है। रसोई बनाने, व से िखलाने,
मेरे नान-व और आव यकता के सब सामान यथा थान यथासमय रखने म वह कभी चक ू ती
नह । पास-पड़ोस क ि य से, आने-जाने वाल से–वह अ छे िश ाचार से बातचीत करती है।
हँसती-बोलती है, चहु ल करती है, पर त ु मेरे सामने कभी नह हँसती। मझ ु े देखते ही जैस े उसके
तन-मन पर दल-बादल छा जाते ह। एक भय, एक आशंका, एक िति या के से भाव मझ ु े देखते
ही उसके चेहरे पर छा जाते ह। बहत ज़ करता हँ, मन को रोकता हँ, पर त ु कभी-कभी ग ु सा
चढ़ आता है, बकझक कर लेता हँ। कभी-कभी तो तबीयत होती है िक इस औरत को गोली मार दूँ
या सोती हई का गला घ ट दूँ। बात ल जाजनक ज़ र है, पर म आपके सामने वीकार करता हँ
िक एक-दो बार म उस पर हाथ भी चला बैठा हँ। आप मझ ु े पश,ु नर-पश ु भी कह सकते ह। पर त ु
साहब, आिखर ध ैय क भी एक सीमा होती है। इस औरत को याह कर मने अपनी िज़ दगी बबाद
कर ली। बहत बार मन हआ िक ज़हर खा ल ूँ और इस औरत को िवधवा कर जाऊँ।
पर एक बात बड़ी िविच है, वह मेरे ोध का बहधा िवरोध न कर, भयभीत ही हो जाती है।
िनिवरोध िपट लेती है। गाली खा लेती है, और जब म पश ु क भाँित उसके साथ िनदय यवहार
करता हँ–तो वह ऐसी सन ू ी आँख से मेरी ओर देखती रहती है िक देखकर मझ ु े ल जा और
लािन हो आती है और म घर से बाहर भाग जाता हँ।
सद -गम -बरसात हम दोन एक ही पलंग पर सोते ह। श ु ही से कुछ ऐसी आदत पड़ गई
ह। म नह चाहता िक आप जब मेरे िचिक सक ह तो आपसे बात िछपाऊँ, इसी से सब खोलकर
कहता हँ। वह सदैव प ेट म घटु ने डालकर गठरी बनकर सोती है या पीठ फे रकर। आिलंगन उसे
जैस े क कर तीत होता है। आिलंगन से उसका दम घटु ता हो ऐसी चे ा करती है। िकसी भाँित
वह चु बन तो सह लेती है, पर त ु िनहायत ठ डे। चु बन से जैस े उसे कभी कोई िसहरन नह
उ प न होती, कभी वह ितचु बन नह करती। उन चु बन म मझ ु े कुछ भी आन द नह आता,
जैस े कागज़ पर होठ रख िदए ह , पर त ु अ य कामो ज े क चे ाएँ जैस े उसे सवथा अस हो
जाती है। तन छूने से वह एकदम चमक उठती है। गहरी न द म भी उछल पड़ती है, जैस े कोई
यि ज़बद त गदु गदु ी के समय उछलता है। िदन म कभी म उसका तन छू पाता हँ तो वह
बेतहाशा िखलिखलाकर हँस पड़ती तथा अंग िसकोड़कर भाग खड़ी होती है। िन य ही वह हँसी
आन द या ेम क नह –अस गदु गदु ी क हँसी होती है! म समझ जाता हँ–िफर भी कभी-कभी
म ोध म पागल हो जाता हँ।
पर त ु सबसे बड़ी किठनाई तो यह है िक म उसे आज तक स भोग के िलए राजी न कर
सका। अपनी जान सब ठ डे-गम उपाय कर िलए, यार िकया, लालच िदए, भय िदखाया, मारा-
पीटा, पर त ु वह मेरी उस कामो िे जत अव था को देखकर ऐसी भयभीत और परे शान हो जाती है
िक या कहँ। गोया जैस े म तलवार से उसे क ल ही करना चाह रहा हँ। मने अनेक लेडी डा टर
को िदखाया, उनका कहना है िक उसके काम के म कोई दोष नह है। डा टर लोग
िन यपवू क कहते ह िक वह पण ू व थ है। उसे कोई रोग नह है। म जहाँ तक समझ सकता हँ,
वह न पागल है, न ख ती है। उसक िदमागी और शारी रक हालत बहत अ छी है, मािसक धम
उसे ठीक समय पर, िनयिमत रीित पर होता है। अंग- यंग उसके पण ू िवकिसत और व थ ह।
मने सब ओर से िनराश होकर आपका आ य िलया है। कृपया मेरे िनराश, सख ू े जीवन को
ाणदान दीिजए। मेरे ठूँठ के समान नीरस दा प य को हरा-भरा क िजए, म आपक शरण हँ।
आप भी यिद मझ ु े िनराश कर दगे तो म िन य आ मघात कर लग ूँ ा। इस जीवन से म ऊब गया हँ।
आप भली भाँित जानते ह िक म एक सिु शि त, िन ावान आदमी हँ। िति त ोफसर हँ।
च र का म ू य समझता हँ। पर ी गमन या और कोई दुराचार क क पना भी म नह कर
सकता हँ। म केवल अपनी प नी से स त ु रहना चाहता हँ। व थ ेम और काम के जो
स ब ध नैसिगक प से प नी-पित म होने चािहए वही म चाहता हँ।
म कु प नह , िनधन नह , अस य गँवार नह , शराबी-ल पट नह , रोगी, अंग-भंग या
नपसुं क नह । अभी मेरी आय ु िसफ अ ाइस वष क है, जब िक वह केवल इ क स वष क है।
म चाहता हँ उसका कोमल ि न ध सख ु द आिलंगन, गमागम चु बन का अथक िनम ण,
यार का लबालब रस और स भोग का अत ृ आन द। इसके बाद एक चाँद के टुकड़े के समान
िशश ु का अवतरण, जो मेरे घर आने पर दोन छोटे-छोटे हाथ पसारकर मेरी गोद म आकर मेरे
दय को शीतल करे ।
आप जानते ही ह िक मेरी ये आकां ाएँ नैसिगक ही ह। मेरे जैसा नवयवु क गहृ थ जो
इतनी बात चाहता है–उसक ये चाहनाएँ िनमल ू नह ह। अनिधकृत भी नह ह।
वह असाधारण स ु दरी, भावक ु , कोमल और सिु शि त रमणी है, पर एक ही श द म कहँ–
जीिवत ी है, पर मतृ प नी। जैस े िकसी िपशाच ने उसक अ तरा मा म िव होकर उसके
प नी व का दमन कर डाला हो।
अब जैसा आप कहे, म आपका शरणागत हँ।’’

प ल बा ज़ र था पर िदलच प था। परू े प को पढ़ चुकने पर मेरी ि घम ू -िफर कर उसके


थम ारि भक भाग पर जा क –‘‘मेरी प नी ितिदन ात:काल य ही नया दैिनक प आता
है झटपट उठा लेती ह...वह वा तव म िववाह िव ापन पढ़ती ह...िफर प को एक ओर फक कर
गहरे सोच म...इस समय बात-चीत, छे ड़-छाड़ वह िब कुल बरदा त नह कर सकती।’’ दो तीन
बार मने इन पंि य पर ि डाली। िफर मुझे हँसी आ गई। प को मने अपनी गु फाइल म
‘िफर िवचार करने के िलए’ रख िलया।
दो स ाह तक म कुछ िनणय न कर पाया। बीच म मने दो-चार बार प को सामने रखा।
उपरो पंि य पर िवचार िकया,पर अि तम प म कुछ भी कत य ि थर नह कर पाया। इस
बीच उ ोफेसर के दो मरण प और आ पहँचे। ोफेसर को म यि गत प से भी जानता हँ,
वह एक भ और सुशील नवयुवक ह। सािह य म डा टरे ट िकया है, वे मेरे एक िम के पु ह।
इन सब कारण से मेरा उन पर यार भी है। दूसरा रमाइ डर आते ही मने उ ह एक पंि िलख
भेजी–‘कृपया इस रिववार को तीसरे पहर सप नीक मेरे साथ चाय पीने आइए।’
ठीक समय पर दोन आए। चाय का मने जरा ठाठ-दार आयोजन िकया था। लड़क ने
आकर मेरे पैर छुए और मेरे पास ही आकर बैठ गई। चाय क चुि कय के साथ गप-शप भी चलने
लगी और कुछ िमनट म ही म उसे खबू अ छी तरह स ची हँसी हँसाने और िदल खोलकर गप-
शप कराने म सफल हो गया। हम केवल तीन ही आदमी थे। अिधक बात मने उसी से क , ोफेसर
से नह । वह मुझसे उसी ढं ग से बात करने लगी जैसे अपने ‘बाबजू ी’ से करती हो। अब शा त
होकर मने अपना काम शु िकया।
एकाएक बात का संग बदलकर मने कहा–‘‘कैसी मुि कल है, पुराने जमाने म नाई-
ा ण याह शादी के जोड़-तोड़ बैठाते थे, पर अब तो अखबार म िववाह िव ापन देखकर–‘‘चट
रोटी पट दाल’’ क मसल च रताथ हो जाती है। अजी साहब, वह-वह रं गीन िव ापन िनकलते ह
िक पढ़कर हँसी आती है, अ छे -अ छे समझदार इन िव ापन के फेर म फँस जाते ह।’’ मेरी
बातचीत बीच म ही काटकर वह उ सािहत होकर बोली–‘‘बाबज ू ी ने भी तो मेरा िववाह अखबार म
देखकर ही िकया था।’’
मने हँसकर कहा–‘सच?’
‘‘जी हाँ,’’ उसने कनिखय से पित को घरू ते हए कहा।
‘‘लेिकन तुम तो भई, घाटे म नह रह , पित तो तु ह लाख पये का िमला। पर इन हज़रत
को म बचपन से जानता हँ। अजी, इन घुटन पर इ ह िखलाया है, यह तु हारी हकूमत म ठीक-
ठीक रहते तो ह न? ज़रा ठीक रखना, सनक ह। ज़रा भी कोई बात तु हारी मज के िखलाफ
कर तो मुझे कहना। म ोफेसर साहब के कान ख च सकता हँ।’’
वह जैसे बहत कुछ कहने को बेचन ै हो उठी! िक तु एक बार मेरी ओर देखकर उसने नीची
नज़र कर ली, कुछ न कह सक । मने िमठाई क लेट उसके सामने पेश क और एक पीस लेने
का अनुरोध िकया। बहत संकोच से उसने पीस उठाया और मने तुर त बात का संग बदल िदया।
इधर-उधर क बात क । िकस िवषय म उसक िच है, कौन सी पु तक उसे पस द है। ‘अमुक
पु तक पढ़ना–म दँूगा।’ ‘यह शाल या तु ह ने बुना है, बड़ा सु दर है।’ इन सब बात के साथ
ोफेसर क िजतनी मुझे आव यकता थी, उतनी तारीफ़ भी क ।
ेम के साथ मने उ ह िवदा दी। चलती बार लड़क ही को ल य करके कहा–‘‘आया करो
कभी-कभी। ोफेसर को फ़ुसत न हो तो तु ह चली आया करो।’’
‘‘आऊँगी’’ उसने ि न ध ि से मुझे देखा, पैर छुए और चली गई, वह बहत स न थी।
ोफेसर ने मुझे प िलखा–‘‘जब से वह आई है आप ही क बात करती है! िफर कब
चलोगे, यह कई बार कह चुक है। आपसे वह बहत खुश है। जब आपक बात चलती है उसके ने
का खा भाव खो जाता है।’’ मने फोन पर ोफेसर को कहा–‘‘एक बार मुझे िमलो।’’ ोफेसर से
मने खबू खोद-खोदकर िजरह क और िकये–
‘‘देिखए आप युवक ह, सुिशि त ह, हमारे लड़के के समान ह। पर तु इस समय आप सब
बात का िवचार याग दीिजए और यह समिझए िक आप एक िचिक सक से एक ऐसे ग भीर
मामले पर परामश कर रहे ह िजस पर आपके जीवन का सारा ही सुख-दु:ख िनभर है।’’
‘‘िन:स देह ऐसा ही है।’’
‘‘तो म जो क ँ उसका िबना संकोच प और सही उ र दीिजए।’’
‘‘आप क िजए।’’
‘‘अ छा तो पहले आप यह बताइए िक िववाह से थम आपको कभी िकसी ी से स भोग
करने का अवसर िमला है?’’
‘‘जी नह !’’
‘‘स भोग स ब धी िवषय म आप उ सुकता रखते रहे ह, बहधा इसी कार के िवचार से
आप एका त राि म उ ेिजत हो जाते रहे ह?’’
‘‘जी हाँ, बहत। म अपने को काबू म नह रख सकता।’’
‘‘तो आपने बहधा ह त-ि या से वीयपात िकया?’’
‘‘बहधा नह , कभी-कभी।’’
‘‘और अिधकांश म?’’
‘‘बहत परे शान रहा, रात-भर न द नह आती रही, एिड़याँ रगड़ता रहा। उठकर पढ़ना चाहा,
पर मन न लगा। जब कभी ऐसी दशा दो-चार िदन तक लगातार रहती थी, तब मेरी दशा पागल
जैसी हो जाती थी। म ोधी और िचड़िचड़ा हो जाता था। एक और बात है पर कहते ल जा आती
है।
‘‘कह डािलए।’’
‘‘म येक व तु म उस समय काम-वासना ही के दशन करता था। कोई लड़क , ी चाहे
िजस भी आयु क सु प-कु प दीखती–म उसी के स ब ध म काम-वासना स ब धी बात सोचने
लगता।पशु-पि य क काम- ड़ाओं को म बड़े यान से देखता रहता। ऐसी ही सै स स ब धी
पु तक पढ़ने तथा ि य के नंगे िच देखने म मुझे बड़ी िच रहती। ाय: ह त तक मुझे
खाने-पीने तथा िकसी दूसरे काम म िच नह रहती थी।’’
‘‘यह उ ेग आप ही शा त हो जाता था?’’
‘‘बहधा ऐसा ही होता था। पर कभी-कभी मुझे हाथ से वीयपात करने को बेबस हो जाना
पड़ता था। म िववेक का बहत सहारा लेता, पर बेकार था। वीयपात होने पर मेरा मन ि थर और
शा त हो जाता था। िफर उन िवचार और वीयपात के काम से घण ृ ा हो जाती थी, जो ाय: महीन
बनी रहती थी।’’
‘‘ठीक है, या आप ि य से िमलने-जुलने म झपू ह, उनसे बातचीत करके उ ह खुश
नह कर सकते?’’
‘‘यह बात जो कालेज म िस है, केवल आप से ही मने मन का ाव कह िदया है।’’
‘‘िववाह के बाद आपका प नी से एका त सा ा कार कब हआ?’’
‘‘घर आने के तीसरे िदन।’’
‘‘उससे थम आपने उससे कभी बात क ?’’
‘‘जी नह ।’’
‘‘अ छा, तो थम भट आपक सुहागशैया पर हई?’’
‘‘जी।’’
‘‘उस भट के अवसर पर आपने जो यवहार उससे िकया, वह सब िव तार से सुना जाइए।’’
‘‘बड़ी ल जा क बात है, म वीकार करता हँ, म एकदम पशु हो गया था। िववाह से दो-
तीन िदन थम ही से म बहत उ ेिजत और अधीर हो गया था। जब वह घर आई तो मने थम िदन
ही रात म उसके पास जाने क चे ा क , पर सफलता नह िमली। तीन िदन तक म छटपटाता
िफरा। म उसे छूने को, चु बन लेने को पागल हो गया, पर मेरी इ छा परू ी नह हई। तीसरे िदन
य ही एका त म वह मेरे शयनक म आई म बाघ क तरह उस पर टूट पड़ा और अनिगनत
चु बन ले डाले। इसके बाद म काम-वासना से पशु बन गया। मने उसे नंगा कर डाला और
स भोग करने क चे ा क । म िब कुल िववेक-चेतना हीन हो गया था। उ ाम-वासना के मारे
मुझे ऐसा तीत हआ िक मेरे शरीर का सम त खन ू मेरे मि त क म जमा हो गया है, पर तु
वा तव म यह बला कार था। कामे छा क बात तो दूर रही, उसक आँख मुझे और मेरी चे ा को
देख भय से फट गई ं। उसने यथास भव िवरोध िकया और मेरी उसक अ छी-खासी कु ती हो गई।
मेरा सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया और वह ज़ार-ज़ार आँसू बहाने लगी।’’
‘‘तो या आपका वह थम स भोग सफल हआ?’’
‘‘जी नह , चरम उ ेजना, और संघष के कारण बाहर ही वीयपात हो गया। इि य वेश
करने म मुझे सफलता नह िमली।’’
‘‘इसके बाद?’’
‘‘इसके बाद मेरा सारा जोश-ख़रोश रफ़ा हो गया। मुझे भारी खीझ उ प न हई। वह शैया पर
पड़ी िससक कर रोती रही और म थककर मुद क भाँित एक ओर पड़ गया। शी ही मुझे न द आ
गई।’’
‘‘िफर?’’
‘‘दूसरे िदन मुझे अपनी इस उतावली और पशुता पर बड़ी घण ृ ा हई और म बहत लि जत
हआ। इ छा थी िक म एका त म िमलकर उससे मा माँग।ू पर िफर दो-तीन िदन तक वह मेरे
पास आई ही नह । भाभी और माता ने बहत-बहत समझाया, पर यह संग आते ही वह ज़ार-ज़ार
रोती हई ऐसा भय और वेदना कट करती िक उ ह िववश हो उसक बात माननी पड़ी।
‘‘िफर आपक उससे दूसरी मुलाकात कब हई?’’
‘‘चार महीने बाद! चौथे िदन उसके भाई आकर उसे िवदा करा ले गए। चार मास बाद म जब
उसे लाया तो रे ल म मेरी दूसरी मुलाकात हई। तब मने उससे पहली बार बातचीत क ।’’
‘‘बातचीत या हई?’’
‘‘मने उसके ित बहत ेम गट िकया। िजतने श द मुझे याद थे सब कहे । िबहारी के दोहे
सुनाए। पर सब बेकार। ढे र सारी प -पि काएँ द । उन पर वह उदासी से ि डालती रही।
बातचीत का जवाब वह बहत ठ डा-जैसे पराये आदमी से बोलते ह–देती रही। यह प था िक
उसके मन म मेरे ित ेम है ही नह । ल लो-च पो करते-करते जब म थक गया तो म भी मान
कर बैठा।’’
‘‘घर आने पर भी वही झंझट रहा। रात को मेरे शयनागार म आने के िलए वह बड़ी
किठनाई से राजी हई। पर तु मेरा पश भी जैसे उसे काटता था। शेष सारी बात तो म आपको प
म िलख चुका हँ।’’
मने सब बात सुनकर हँसते हए कहा–
‘‘ठीक है, आप एक स जन पु ष ह, पर दुजन पित ह। आप और वह भी पण ू व थ ह, सारे
झगड़े क जड़ ‘सुहागरात’ के िदन आपके ारा क गई ‘भल ू ’ है। आपको ात होना चािहए िक
भारतवष म िववाह से थम कुमारी क या को स भोग के स ब ध म कुछ भी ान या अनुभव
नह होता। िपता के घर म ऐसी बात उससे िछपाई जाती ह तथा इन िवषय पर उसका कुछ
अ ययन भी नह होता। िफर भी सयानी और पढ़ी-िलखी लड़िकयाँ इतना जानती अव य ह िक
िववाह के बाद स भोग ि या होती है। उस ि या म या सुख-दु:ख होता है इस स ब ध म वे
अपनी क पनाएँ दौड़ाया करती ह। ल जा और साहस का अभाव भी उनक दुिवधा बढ़ा देता है।
इसके अित र और एक वै ािनक एवं ाकृत बात है–वह यह िक पु ष सदैव शा त रहता है,
ी को देखकर उसे कामो ेजना होती है। पर ी म–चाहे वह ि छ न और आव ृ ही हो पर
कामवासना सदा जा त रहती है, पर पु ष को देखते ही वह ठ डी हो जाती है। इसिलए
कामशा के िवधान के अनुसार स भोग से थम ी क कामवासना को जा त करना
अ य त आव यक है, िबना ऐसा िकए स भोग म पण ू ता नह आ सकती।’’
‘‘पर तु सुहागरात के थम सहवास का सबसे नाजुक और मह वपण ू जो काय है–वह है–
कौमाय भंग। इसके स ब ध म तो यह बात जान लेनी चािहए िक कुमारी का थम सहवास कुछ
आन द द नह होता। दूसरी बात यह है िक–कौमाय भंग के अवसर पर सहवास स ब धी दो
बाधाएँ पु ष के सामने आती ह। एक मानिसक और दूसरी शारी रक। ये बाधाएँ अिधकांश म
ाकृत होती है, और मनु येतर ाणी म भी पाई जाती ह। ाय: देखा जाता है िक अनुभवी मादा भी
नर से दूर भागने का अिभनय करती ह। पर यह िसफ नर को उ ेिजत करने के िलए अिभनय
मा ही होता है।’’
‘‘पर तु ‘कौमाय भंग’ इन सबसे पथ ृ क है। उसम भय और ल जा क मा ा वाभािवक
होती है, पर तु वा तव म यह भय और ल जा दोन ही बाधाय कुछ अिन कारी नह है।
आव यकता केवल यही है िक इस अवसर पर पु ष कुछ सावधान रहे तथा चतुराई बरते।
कुमा रय को थम तो सहवास का कोई पवू अनुभव नह होता, दूसरे योिन मुख पर जो पदा
होता है वह यिद फटा नह होता तो इस समय फटता है और उससे उ ह थोड़ा क होता है। य िप
यह आव यक नह िक यह पदा उस समय तक हो ही या उसी समय फटे। कभी-कभी तो वह
साधारण कारण से सहवास के थम ही फट जाता है और कभी-कभी सहवास से भी नह फटता
तथा आपरे शन क आव यकता पड़ती है। अ तु यह तो एक साधारण बात है, पर जो मानिसक
बाधा है–भय और ल जा क जो दीवार है–वह दूर करने के िलए पित को अपनी खुशिमजाजी,
वा चातुय, ेम- दशन, और कोमल चे ाओं से ही कुमारी के मन म ेम-वासना, िनभयता और
कामो सुकता उ प न करनी चािहए। पित को खबू सावधान और संयत रह कर अपने येक
यवहार और येक चे ा से क या को अपने अनुकूल बनाने क चे ा करनी चािहए। उ ड
और अि य आचरण हर हालत म हािनकारक है।’’
‘‘िनयम तो यह है िक सुहागरात क थम तीन राि य म संभोग िकया ही न जाय। इन
तीन िदन म तो क या क सब मानिसक बाधाओं को दूर करना चािहए। यिद ऐसा न िकया
जाएगा तो वही प रणाम होगा जो आपको भोगना पड़ रहा है। इस समय जो घण ृ ा और िवरि ी
के मन म उ प न हो जाएगी वह ज म भर दूर न होगी।’’
‘‘इसिलए बुि मान पित को चािहए िक पहले मानिसक बाधा को अ य त यो यता से दूर
करे । शारी रक बाधा का िवचार इसके बाद उठता है।’’
मेरी िववेचना को सुनकर युवक ोफेसर िवचार म पड़ गये।उ ह ने अनुताप क मु ा म
कहा–‘‘आपने ठीक कहा–म एक दुजन पित हँ, पर तु अब तो ाण देकर भी अपनी पि न को
अनुकूल बनाना चाहता हँ। अब आप मुझे राह िदखलाइए। म क मती से क मती औषध खरीदने
को तथा चाहे िजतनी भी भारी रकम खचने को तैयार हँ।’’
मने कहा–‘‘दवा-दा क तो यहाँ बात ही नह है। न िकसी भारी खच का सवाल है, पर
आप बुि मानी और धैय से मेरी सलाह मानगे तो आपक इ छा पण ू हो जायेगी।’’
‘‘म आपक येक आ ा का पालन क ँ गा!’’
‘‘अ छी बात है। आप कुछ िदन क कालेज से छु ी लीिजए और िकसी तरह युि से पि न
को तीथाटन या िकसी रमणीय थान क या ा के िलए राजी क िजए। उसी क िच और पस द
के अनु प या ा क िजए। या ा म एक थान पर मत िकये–घम ू ते रिहये। साथ म एक ही
िब तर रिखए, साथ ही एक पा म भोजन क िजए, नान आिद भी साथ ही करने क चे ा
क िजए, पर सव उसक िच को धानता दीिजए। काम-स ब धी छे ड़-छाड़ िब कुल मत
क िजए।स कार ेम और िमठास का यवहार क िजए। यह मत भिू लए िक क याएँ फूल के समान
कोमल होती ह। उनसे अित कोमल यवहार करना चािहए। िजस काम से और चे ा से उसे उसके
मन म ेमोदय हो वही काम क िजए। बीच-बीच म जब–िजतना आिलंगन उसे ि य हो–उतना ही
क िजए, अिधक नह । आिलंगन नािभ से ऊपर के अंग का क िजए, नीचे के अंग का नह और
यह काय अ धकार म क िजए काश म नह । जब वह आिलंगन को सह ले–तब उसे मँुह से मँुह
म पान दीिजए। पान देते समय नम चु बन लीिजए। िजसम दाँत न गड़–न श द हो। चु बन के
समय कुछ क िजए और जवाब के िलए बार बार हठ क िजए। जब वह आपके से —
चे ाओं से — नीचा िसर करके हँसने लगे तो, पान-इ -सुपारी या पीने का जल माँिगए। जब वह
आकर दे तो अवसर पाकर तन छू दीिजए। रोकने पर हँसकर माफ माँिगए–‘िफर ऐसी गलती
कभी न होगी,’ पर य ही माफ क मु कान उसके होठ पर देिखए, उसका हाथ ख चकर पास
बैठा लीिजए। गोद म बैठाकर सारे पेट पर हाथ फे रए। ेम स ब धी थोड़ी अ ील वाता क िजए।
धीरे -धीरे सम त शरीर पर हाथ फे रए और चु बन यो य थल का चु बन क िजए। जब इसम उसे
आपि न हो तब जंघाओं पर, जंघामल ू पर और गु ेि य पर हाथ फे रए। रोकने पर ठहर जाइए।
किहये–इसम या हािन है। हँसकर टाल दीिजए। जब गु अंग का पश वह सह ले तो जाँघ को
नंगा करके योिन-िलंग का कोमल मदन करते हए काम-स ब धी बात क िजए। पवू काल म
मनोरथ सुनाइए भिव य के स ब ध म उ साह और आशाजनक बात किहए। पु ज म क चचा
क िजए। सु दर ब चे क त वीर या िखलौने खरीद कर उसके व सीने को किहये, ब चे के
िखलौने को उसके पास सुलाकर हा य क िजए। पर सावधान रिहए–स भोग मत क िजए।’’
‘‘कब तक?’’
‘‘जब तक िक वह दूर हटने के य न को ब द न कर दे, गाढ़ आिलंगन क उ क ठा
कट न करे , अपने शरीर को ढीला करके फूल के ढे र के समान आपके ऊपर न उँ डेल दे।’’
‘‘इसके बाद?’’
‘‘यह केवल मानिसक बाधा दूर हई। अब शारी रक बाधा का भी िवचार करना है।’’
‘‘वह या है?’’
‘‘ थम तो पद क बाधा है। इस बाधा को दूर करने के िलए पद क बनावट को समझना
बहत ज़ री है। इस पद म जो छे द होता है वह ऊपर क तरफ यानी पेट क तरफ होता है। इससे
िलंगेि य क चोट ही के ज़ोर से वह फट जाता है और िलंगेि य का रा ता साफ हो जाता है।
ऐसी हालत म ी को सा वना देकर आगे को ध का मारने को कहना चािहए। उसे बताना
चािहए िक इसम डरने क कोई बात नह है। ऐसा करने से क कम होगा-र भी कम
िनकलेगा, पर र यिद ज द ब द न हो तो ी को चुपचाप पैर फै लाकर लेट जाने को किहए।
र को प छना नह चािहए। यह घाव आप ही अ छा हो जाता है, पर यिद उस िदन पदा न फटे–तो
एकाध िदन के िलए सहवास को थिगत कर देना चािहए, पर िफर भी न फटे तो अॉपरे शन
कराना पड़े गा।’’
‘‘यिद वह बाधा सामने आई?’’
‘‘तो देखा जाएगा। मेरा याल है, यह बाधा नह आयेगी। मानिसक बाधा ही आप क राह
म है।’’
‘‘और भी आप कुछ िहदायत दगे?’’
‘‘केवल यही िक समय अनुकूल देखकर सावधानी से स भोग शु िकया जाए। जहाँ तक
स भव हो उसे दु:खी न िकया जाए। ार भ म ी क कामपिू त का िवचार नह करना चािहए,
उसका घाव अ छा हो जाय, यही बात मु य है। इसके िलए िजतना कम घषण हो, उतना ही अ छा
है। ार भ म उसक ल जा का परू ा यान रखा जाय, उसे िब कुल नंगा करने क िज़द न क
जाए। एक बात यह िक ार भ म उससे पण ू उ ीपन नह होगा–इससे योिन म आ ता क कमी
रहे गी, इसके िलए ना रयल या चमेली का तेल या वेसलीन काम म लाया जा सकता है, पर तु
सबसे उ म व तु ‘मुखरस’ है। सं ेप म यह मत भिू लए िक आप का थान थम सहवास के
समय एक िश क का थान है, इसिलए आप को परू े धैय और चतुरता से काम लेना होगा तथा
अपने को काबू म रखना होगा। आप को ी के दय पर अित कोमल भाव अंिकत करने चािहए
और अपनी येक चे ा ऐसी करनी चािहए िक िजसक मिृ त मा से ही ी आन दाितरे क से
िवभोर हो जाये।’’
ोफेसर और भी आव यक समाधान करके चले गए। मुझे उ ह ने या ा पर जाते हए एक
काड भेजकर सच ू ना दे दी थी। इसके डे ढ़ महीने बाद एक िदन दोन पित-प नी मेरे घर आये।
बहत सु दर स या काल था। म लॉन म बैठा एक पु तक पढ़ रहा था। इस बार उस लड़क ने मेरे
पैर नह छुए, दोन ने हँसते-हँसते नम ते क । मने ण भर ही म देख िलया–अब वह बदल चुक
थी, अब वह क या नह थी, ी हो चुक थी। उसक आँख हँस रही थ और होठ पर आन द क
लाली छा रही थी। ोफेसर उमंग म म त थे। दोन , दोन को िछपी नजर से पी रहे थे। मने समझ
िलया–ये एक हो चुके, पर पर िमल चुके, जैसे दो बतन का जल एक म िमलकर एक हो जाता
है।
मने दोन के िलए चाय मँगाई। उनके सुखी जीवन को देखकर म आनि दत था। ोफेसर
कुछ कहने को छटपटा रहे थे। उ ह ने अवसर पाकर कहा–‘‘आप से एक बात कहनी है, इधर
आइये ज़रा।’’
‘‘मने देख िलया।’’ यह सुनते ही ल जा क लाली ी के मुख पर दौड़ गई। मने हँसते-
हँसते कहा, ‘‘कुछ ज़ रत नह है कहने-सुनने क , समझ गया, समझ गया। बधाई! ई र शी
आपक गोद भरे ।’’
दूसरा-प

‘‘मेरा आ म-स मान मझ ु े आ मघात करने को े रत करता है, और अिभमान उससे सब स ब ध-


िव छेद करने को। म अभािगनी िह दू नारी हँ और जानती हँ िक िह दू नारी का पित से िव छेद
होना आसान काम नह है। कानन ू क बड़ी-बड़ी बाधाएँ ह, पर त ु सबसे बड़ी बाधा तो मेरा िववेक
है, िजसने मझ ु े हर तरह लाचार कर रखा है। म एक सिु शि ता व िति त घराने क मिहला हँ
और एक कूल म हैडिम स े हँ। मने एम.ए. तक िश ा पाई है, और इंगलै ड जाकर टी.डी. क
िड ी भी लाई हँ। मझ ु े वेतन उनसे कुछ ही कम िमलता है, िफर भी म उनक कमाई क मोहताज
नह हँ। जब से लड़ाई से लौटकर आए ह, उनके रं ग-ढंग बदले हए ह। हरदम बे खी-उदासी और
बेपरवाही। जब देिखए उड़े-उड़े। आिखर महुँ फाड़कर कहना पड़ रहा है िक म कुछ बदसरू त नह ।
बिु ढ़या भी नह हो गई, िफर इस बे खी का या कारण? म उड़ती िचिड़या को भाँप लेती हँ। म
दावे के साथ कहती हँ िक उनका पतन हो चक ु ा। वे अपना धम खो बैठे। उनका िदल कह और
जगह लगा है। यह सब मझ ु से िछपा है, पर अ त म पाप का घड़ा फूटेगा। नई नौ िदन परु ानी सौ
िदन। वे भी िदन थे, जब वे मझ ु े देखते नह अघाते थे। म ही उनक दुिनया थी। मझ ु े गव था िक
मेरा-सा पित िकसका हो सकता है। आज मेरा यह गव ढह गया, मेरा सोने का संसार िम ी हो
गया। मेरे जीवन म धल ू पड़ गई।’’
‘‘पहले वह ऐसे न थे। लड़ाई पर या गए, श ैतान ने उनके िदल म वास कर िलया। उनक
सारी आदत ही बदल गई। मने पाँच साल उनक ती ा म कै से िबताए, यह कै से कहँ? एक-एक
पल उ ह के यान म रोती रहती थी। मझ ु े या मालम ू था िक वह हरामजािदय के साथ गल ु छर
उड़ाते ह। सन ु ती थी िक लड़ाई म िसपाही लोग अपना च र नह कायम रख सकते। सो यह अब
मने य देख िलया। कभी म उ ह ाण से बढ़कर यार करती थी। आज मझ ु े उनक सरू त से
नफरत है। श ैतान मेरे कान म कहता है िक त ू बेइमान पित का खन ू करके फाँसी पर चढ़ जा।
बरु ा या है, जब मरना ही है तो दु मन को मार कर य न म ँ ?’’
‘‘सन
ु ा है–आप एक िविच िचिक सक ह। ऐसे लोग का भी इलाज कर सकते ह। या आप
मेरी कुछ मदद कर सकते ह? उस आदमी के मन का श ैतान िनकाल सकते ह? म आप क परू ी
फ स अदा करने को तैयार हँ।’’

प पढ़कर मने उस पर कुछ देर िवचार िकया, िफर मने इस मिहला को एक छोटा-सा प
िलखा–‘स भव है बात िजतनी खराब आप समझती ह, वैसी नह है। म आपक अव य सहायता
क ँ गा, बशत िक मेरे कुछ का आप िबना संकोच सही उ र देने क कृपा कर।’ प के
साथ मने कुछ भी िकये। मेरे प और का उ र जो उस मिहला ने िदया उसका सारांश
यह है–
‘‘मेरा िववाह हए यारह वष हो गए। िववाह के समय मेरी आयु इ क स वष और उनक
अ ाईस वष क थी। उस समय म एम.ए. फाइनल कर चुक थी और वह एक बक म मैनेजर थे।
उनका प और गुण ऐसा था िजस पर कोई भी ी अपने भा य को सराह सकती है। संतान
अ ब ा कोई मुझे नह हई, पर तु उनके पु ष व म कोई कमी न थी। ार भ म हम लोग दो-दो
तीन-तीन बार सहवास करते थे। हर बार नया उ साह और आन द आता था। मने कभी जीवन म
क पना भी न क थी िक कोई मद ी को इतना सुख दे सकता है। िववाह से थम तक मने
सहवास का अनुभव नह िकया था, और म य िप सहवास को चाव क नज़र से देखती थी, पर
डरती भी थी। िववाह के बाद सहवास के ारि भक िदन म तो मुझे कुछ अ छा न लगा। मुझे उन
िदन उ ह देखना–उनका चु बन-आिलंगन-हा य–यहाँ तक िक चलना-िफरना भी आन द से
पागल कर देता था। पीछे जब स पण ू स भोग के आन द का मुझे अनुभव हआ, तो कुछ िदन तक
तो म पागल-सी हो गई। खाते-पीते, सोते-जागते मुझे इसी बात का यान रहता था। स भोग म
मुझे कभी कोई क नह हआ। उनक िलंगेि य खबू उ ेिजत अव था म प थर से भी अिधक
कड़ी हो जाती थी! शारी रक बल उनम बहत था। बहधा वे मुझे अपने हाथ म अधर उठा लेते थे।’’
‘‘बाद के िदन म यह बात तो नह रही पर तु स ाह म दो-तीन बार तो हम स भोग अव य
करते थे। मुझे बहत कम इसके िलए आवाहन करना पड़ता था–वे ही मुझे िनम ण देते और
बड़ी-बड़ी ल लो-च पो करते थे। उन बात से मुझे बड़ा सुख िमलता था। एक बार बक के िहसाब
से कुछ गलती का झंझट उठ खड़ा हआ, उससे वे बड़े परे शान हो गए। वह हमारे वैवािहक जीवन
का सबसे पहला अवसर था–िक हम रात-िदन साथ-साथ रहते हए प ह-बीस िदन तक स भोग
न कर पाये। उनका मड ू ही कुछ ऐसा हो गया था िक म इस ओर उ ह संकेत करने क िह मत ही
न कर सक ।’’
‘‘इसके बाद ही वे लड़ाई पर चले गये और अब जब से लौट कर आए ह, इन नौ महीन म
उ ह ने िसफ दो बार स भोग करने क चे ा क , पर न जाने या सोच कर अलग हट गये।
कामो ेजना का उनम उदय ही न हआ। मेरी ओर से उनका ख ही बदल गया। हम लोग एक ही
साथ एक ही िब तर पर कुछ िदन पवू तक सोते थे–जैसा िक पहले सोया करते थे। पर सोते ही वे
करवट बदल कर मेरी ओर से पीठ पर लेते और शी ही खराटे भरने लगते थे। म कहाँ तक
बदा त करती! अत: मने उनसे कह िदया िक तु हारे इस तरह सोने से मुझे तकलीफ होती है।
तुम दूसरे िब तर पर सोओ। उ ह ने सहष मेरा ताव मान िलया। तब से हम पथ ृ क-पथृ क शै या
पर सोते ह, पर अब तो मुझे यह स नह है। म उनक सरू त से घण ृ ा करती हँ। मने उनसे य िप
मँुह खोल कर कभी कुछ नह कहा, पर तु म चाहती हँ िक वे मेरे कमरे म भी न सोय। मेरे सामने
आएँ भी नह । यह आदमी नह है–िम ी का ढे ला है...’’
मने प पढ़कर मिहला को बुला भेजा। मुलाकात होने पर मने कुछ और पछू े –‘‘ या
आपके पित क कुछ आदत भी यु से लौटने पर बदल गई ह?’’
‘‘कैसी आदत?’’
‘‘पहले वे ात:काल उठकर या िकया करते थे।’’
‘‘ओह, जब तक शेव-गु ल ख म न हो जाए, जोर-जोर से गाते, शोर करके घर-भर को
िसर पर उठा लेते थे।’’
‘‘और अब?’’
‘‘अब तो वे पु तक के क ड़े हो गए ह। बहत ज द उनक न द टूट जाती है। तब पड़े -पड़े
िकताब पढ़ते रहते ह। चाय का व हो जाता है और म कहती हँ, उठकर हाथ-मँुह धोकर चाय पी
लो, तो पु तक से आँख उठाये िबना ही कह देते ह–यह दे जाओ चाय। कभी-कभी तो सुनकर
जवाब ही नह देते, म खीझकर चाय रखकर चली आती हँ।’’
“ या आपने उ ह िकसी लड़क क तरफ़ आकिषत होते देखा है?”
‘‘देखा नह है, पर अ ल से खुदा पहचाना जाता है। आिखर इस तरह शीतल परसाद होने
का कारण या है। या नस म लह नह है, पानी भरा है?’’
‘‘आपको अपनी प रिचत िकसी ी पर शक है?’’
‘जी नह , मगर मने अपनी शम को रखकर अभी इस बात क खोज जाँच नह क । िजस
िदन पता लग जाएगा, उस िदन वह नह या म नह ।’’
मने समझा-बुझाकर, ठ डा करके मिहला को िबदा िकया और कहा–‘‘िकसी तरह उ ह
मेरे पास भेज दीिजए।’’
दूसरे ही िदन वह मेरे पास आए। खबू ल बे-चौड़े , त दु त आदमी ह। आँख और चेहरे से
भलमनसाहत टपकती है, पर तु खबू गौर से देखने पर गहरी उदासी क छाया और उस पर
घमू ती हई िच ता क रे खाएँ प उनके चेहरे पर दीख पड़ती थ । मने तपाक से उनसे हाथ
िमलाया और बैठाते हए कहा–‘‘मुझे मेजर पा डे के दशन का सौभा य ा हो रहा है न?’’
‘‘आपका यह दास ही पा डे है, मेजर पा डे ।’’
‘‘ओह, म तो कई िदन से आपसे िमलने क सोच रहा था, ीमती पा डे ने कुछ िद कत
का संकेत िकया था, सोच रहा था िक आप से िमल कर कुछ बात पछ ू ू ँ , िफर देखँ ू िक या सेवा
कर सकता हँ।’’
‘‘अजी, कुछ बात भी हो, उ ह वहम हो गया है, म बीमार हँ। भला मुझे या बीमारी हो
सकती है?’’
‘‘ कट म तो आप त दु त ही नजर आते ह। किहए यु - े म तो आपको बड़े -बड़े
अनुभव हए ह गे।’’
‘‘आप अनुभव क कहते ह? जनाब, म कोई बीस बार मर चुका हँ, मगर िफर िज दा हँ।’’
उ ह ने एक फ क हँसी हँसी।
मने बातचीत म गहरी िदलच पी कट क । िफर तो उ ह ने अपने भयानक और
रोमांचकारी व ृ ा त एक के बाद एक सुनाने शु िकए। िकस कार िसंगापुर का पतन हआ और
वे सेना के साथ भाग कर बमा आए। िफर रं गन ू का पतन होने पर इ फाल क लड़ाई म वे ब दी
हए। वहाँ से भाग कर िवकट बन और खंख ू ार पशुओ ं के बीच रात-िदन चलते हए ाण का बोझा
ढोया। िकस कार वे तीन िदन मुद क टोली म िछपे रहे । जापािनय ने िकस कार उ ह नर-
माँस खाने को िववश िकया। कैसे वे ठीक उस समय जब उ ह गोली मारी जा रही थी ऊँचे पुल से
नदी म कूद पड़े और िवपि के समु को पार कर म ृ यु के ऊपर चरण रखते, िगरते-पड़ते, िकस
कार भारत आए।
उनक भयानक रोमांचकारी कहानी सुनने ही से मेरा खन ू सद हो गया, पर तु मेजर पा डे
भावहीन ढं ग से कहते चले गए। रोग का मल ू कारण म समझ गया। पर तु इस स ब ध म उनसे
कुछ भी कहना बेकार समझ मने उ ह िवदा िकया और ीमती पा डे को बुला भेजा। उनके आने
पर मने कहा–
‘‘आपके पित यिभचारी ह या िकसी अ य ी पर आस ह आपक यह शंका िनमल ू है।’’
‘‘तब तो एक ही बात हो सकती है, जो उससे भी भयंकर है।’’
‘‘ या?’’
‘‘यही िक वह नपंुसक हो गए।’’
‘‘यह कहा जा सकता है। पर मेरा याल है िक वे ठीक हो जाएँ गे। बशत िक आप अपना
गु सा जो उन पर है, याग द। उ ह रोगी समझ और म जैसा कहँ उसी भाँित कर।’’
ीमती पा डे ने वीकार िकया।
तब मने बताया–‘‘मनु य का यह शरीर एक अ य त पेचीदा मशीन है। उसम िभ न-िभ न
काम करने वाले अनेक सू म और थल ू कल-पुज लगे ह। वे सब जब तक ठीक-ठीक काय
अपनी सीमा म करते ह तब तक शरीर ठीक-ठीक काम करता है पर तु िकसी रोग के कारण या
िकसी दूसरे कारण से यिद कोई अंग ठीक काम नह करता है–तो शरीर का वा य-व ृ न
हो जाता है। वाभािवक काम-वासना और स भोग करने क शि ठीक उसी पु ष म प रपण ू
होती है–जो सवथा व थ हो, अथात् िजसके शरीर के येक कल-पुज ठीक-ठीक काम करते
ह । साधारणतया तो िकसी भी पुज क गड़बड़ी से स भोग शि म गड़बड़ हो जाती है, पर तु
िकसी-िकसी पुज क खराबी का स भोग क शि न कर डालने म थायी या अ थायी परू ा
भाव होता है।’’
इस पर स देह और उतावली से ीमती पा डे बोल उठ –‘‘पर तु मेरे पित तो िब कुल
त दु त ह। उनके शरीर के िकसी अंग म कोई रोग नह है, यह म कह सकती हँ। िन य ही वे
या तो िकसी सौत को रखे हए ह या नपुसंक हो गए ह।’’
मने कहा–‘‘िकसी हद तक िपछली बात ठीक है।’’
यह सुनकर ीमती पा डे का चेहरा भय से सफेद हो गया। वह पथराई आँख से मेरी ओर
देखने लगी। मने कहा–‘‘घबराने या िनराश होने क कोई बात नह है। जैसा म कह चुका हँ िक
आप मेरे कहे अनुसार काम करगी तो सब ठीक हो जाएगा। आप यान से मेरी बात सुिनए। हआ
या है, आप शायद नह जानती य िक आपने कभी इस बात पर यान नह िदया। वा तव म
आपके पित के ान-त तुओ ं को कई हािनयाँ पहँची ह, िजनका उनक स भोग शि पर सीधा
असर हआ है। मने उनक यु -या ा क भयंकर कहानी सुनी है। सुनी आपने भी होगी, पर तु
मने उससे कुछ और ही अथ िनकाला है, िजस पर शायद आपने िवचार नह िकया। वा तव म दो
हािनयाँ उ प न हई ह। यु क िवभीिषका और भाग-दौड़ तथा ब दी होने और ाण-द ड तक का
सामना करने से उ ह बहत भारी मानिसक क झेलना पड़ा है। वे एक भी कृित के
शाि ति य पु ष ह। यो ा कृित के साहिसक आदमी नह ह। उ ह तो अ वाभािवक प से न
केवल िसपाही बनना पड़ा–अिपतु भारी जोिखम भी उठानी पड़ी। इसी से उनके ान-त तुओ ं म
ऐसी हािनयाँ उ प न हो गई ं, िज ह ने उ ह नपुंसक बना िदया, पर तु इसम सहायक हई है
उनक रीढ़ क हड्डी क वह चोट, जो उ ह उस समय लगी–जब वे गोली से मार डाले जाने वाले
थे और बहत ऊँचे से पानी म कूद पड़े थे। य िप वे कूदे जल म थे–पर उनक रीढ़ क हड्डी ज़रब
खा गई है और वह एक कार से नपुंसक हो गए ह, पर तु जहाँ तक मेरा िवचार है, यह कोई ऐसी
बीमारी नह है जो ठीक न हो सके या सांघाितक हो। कुछ बात तो उपचार और आपके यवहार से
तथा कुछ थोड़ा औषध सेवन करने से दूर हो जाएँ गी। सबसे थम म आपको कुछ आदेश दँूगा।’’
‘‘आपको जानना चािहए िक आपके पित के ान-त तुओ ं पर इतना भारी दबाव पड़ा है िक
िजसका भाव स ची चोट के बराबर हआ है, जबिक स ची चोट भी इस मामले म सहायक हई है।
खै रयत इतनी ही है िक उनम िसवा इस बात के िक वह स भोग के यो य नह रहे और कोई
खराबी नह हई है।’’
‘‘ थम तो आपको यह िवचार सवथा याग देना चािहए िक वह यिभचारी ह या आपसे ेम
नह करते। असल बात यही है िक वह स भोग करने म असमथ ह। उ ह आराम अव य हो जाएगा
और वह परू ी शि नह तो खोई हई शि को बारह आना िफर से ा कर लगे। आपका सबसे
पहला कत य तो यह है िक उनके ित ज़रा भी खीझ या नाराज़ी का भाव न कट कर और गहरे
ेम का यवहार रख। आप तीन बात का यान रख। थम–अपने को संयम म रख और पित से
परू ी सहानुभिू त रख। दूसरे –उनम अपनी चे ाओं से िनर तर कामो ीपन करती रह। तीसरे –
उनके सामने खबू आनि दत और उ लासपण ू ढं ग से रह।’’
‘‘म आपको एक बात के िलए और सावधान क ँ गा, स भव है िक पीछे होने वाली
मानिसक िति याएँ इस मामले म पेचीदा किठनाइयाँ आपके सामने लाव, िज ह सुलझाना
आपक चतुराई और बुि म ा पर ही िनभर है। ऐसी अव था म रोग-मु होने पर भी पु ष मन म
डरता रहता है िक कह म ठीक-ठीक स भोग न कर सकँ ू –िवफल हो जाऊँ। य ही आपके पित म
िलगो थान के ल ण कट ह –और वह स भोग म व ृ ह –तब यिद उ ह यह आशंका होने लगे
िक कह म िफर नपुंसक न हो जाऊँ–तो ऐसे समय क ऐसी िच ता एक करारी चोट का भाव
उ प न करती है और उसका प रणाम यह हो सकता है िक उ ह आराम होने म बहत-सा असा
लग जाए। इसिलए म आपको सावधान करता हँ िक जब तक आप यह देख िक िलंग क उ ेजना
परू ी नह है या हािन का अवसर बाक है, उनक साम य म कुछ कमी है, तब तक आप केवल
उ ीपन ही तक अपनी काम चे ाएँ सीिमत रख–स भोग न कर। युत आप अपनी चे ाओं से
और बातचीत से उनम यह आ मिव ास उ प न कर–िक उ ह दुबारा अपनी स भोग शि म
िव ास हो जाय और उनक मनोविृ य को अपने आन द और उ लासपण ू यवहार से ऐसी
प रि थित म ले आइए िक उनक मानिसक िच ता के बाधक भाव उनके च ड ेम को
िवकिसत होने से रोक न द। सं ेप म आपको यह जान लेना चािहए िक उनक ि थित ऐसी है–
जैसी उस ब चे क जो माता पर आि त है। वा तव म आपके पित आप पर आि त ह। आप उ ह
उतना ही असहाय समझ कर उनक सहायता सु षू ा कर िजतनी माता अपने ब चे क करती
है।’’
मेरी बात सुनकर ीमती पा डे को अनायास ही हँसी आ गई और उनके चेहरे क थाई
उदासीनता एकाएक दूर हो गई। वह हँसती हई बोल –‘‘यह तो खबू एक ब चा आपने पालने-
पोसने को मेरी गोद म डाला।’’
मने भी हँसकर कहा–‘‘बस, बस। इस ण आपका जैसा मन बदल गया है, उदासीनता
और िवरि दूर होकर उ लास और आन द आपके चेहरे पर आ गया है, इसे ही थायी बनाए
रिखए। अभी बीस िमनट पहले आप जब मेरे पास आई थ , तब आप एक खस ू ट मनहस बुिढ़या थ
— पर तु अब एक आकषक और मोहक मिहला ह।मुझे आपके इस प रवतन से खुशी है। पर तु
म यह कह रहा था िक आपको बड़ा ही किठन काय करना है, याग भी असाधारण करना है। म
मानता हँ–आपक शारी रक आकां ाएँ दुद य हो सकती ह, पर म आपको सचेत िकए देता हँ िक
चाहे जैसी भी च ड कामे छा आपके मन म य न उदय हो, आपको अपने को काबू म रखना
होगा। आप उसका कोई भी संकेत, आभास बाहर कट न होने दगी और यह न भल ू गी िक इससे
आपके पित को आराम होने म बाधा होगी, िजसम सबसे अिधक आप ही क हािन है।’’
‘‘आप िनर तर चु बन और आिलंगन के ारा अपने पित म कामो ीपन करती रह और
जब देख िक अब स चा कामो ीपन पण ू प से हो गया है और स भोग म बाधा होने का भय नह
है–तो स भोग करने द। ऐसी अव था म भी यिद कदािचत् उ ह पण ू सफलता न िमले तो आप
नम से– यार से–आशाजनक और उ साहवधक रीित से हँसकर पित को बार बार यही िव ास
िदलाएँ –िक अगली बार सब ठीक हो जाएगा। आप उ ह उदास, िचि तत या िवफल न होने द और
यह न भल ू िक स भोग म भय और िन साह के भाव का पु ष पर जैसा बुरा भाव पड़ता है–
उतना िकसी दूसरी बात का नह ।’’
‘‘म सब बात याद रखंगू ी और ऐसा ही क ँ गी। म यह भी नह भलू सकँ ू गी िक आपने मुझे
जीवन दान िदया।’’
य ही यह मिहला पित से िमलने को अधीर हो रही थी। मने कहा–‘‘अभी मेरी बात परू ी
नह हई है, अभी मने आपको उनक मानिसक बाधा दूर करने के उपाय बताए ह। उनक रीढ़ क
हड्डी म चोट लगी है। रीढ़ क हड्डी का काम-शि पर गहरा भाव होता है। इसके िलए खाने
के िलए एक दवाई और मािलश के िलए ‘महाशतावरी का तेल’ मने तजवीज़ िकया। उनका
उपयोग भी समझा िदया।’’
ीमती पा डे ने वीकार िकया और नीची नज़र करके कुछ सोच म पड़ गई। साफ़ कट
होता था िक वह कुछ कहना चाहती ह, पर कह नह पाती ह। संकोच और ल जा से उनका चेहरा
नवीन वधू क भाँित लाल हो गया। म हँस पड़ा। मने कहा–‘‘म जान गया िक आप या कहना
चाहती ह, िक तु कहने का साहस नह करत , जब इतनी बात हई ह तो अब संकोच या? िफर
िचिक सक से संकोच होगा तो किठनाइयाँ दूर कैसे ह गी। आप शायद यह सोच रही ह िक जब
आपके पित दुबारा स भोग शि ा करने के किठन काय म लगे ह गे–तब आप उ ह िनर तर
उ ेिजत करने क चे ा करने पर वयं कैसे संयत और िनराबेिशत रह सकती ह।’’
‘‘िन स देह म यही सोच रही हँ। कह म असंयत हो गई तो मेरा सवनाश हो जाएगा।’’
‘‘िन स देह। स भोग शि क दुबारा ाि का सारे शरीर पर असर पड़ता है। ‘स भोग’
वह अनु ान है, जो जीवन को सजीव और उपजाऊ बनाता है। इसिलए इस महामू यवान् पदाथ
को ा करने के िलए आपको भारी तप तो करना ही पड़े गा। इस स ब ध म मुझे आप से कुछ
और भी कहना है। स भोग ारा ी के शरीर को पु ष क ो टेट ि थय म उ प न होने वाले
िविश तरल रासायिनक कण क अ य त मह वपण ू और आव यक मा ा िमलती है। िजसक ,
उसके वा य के िलए ही नह – ी व को कायम रखने के िलए भी भारी आव यकता है, पर तु
आप अभी इन रासायिनक कण के लाभ से वष से वंिचत ह। अभी वंिचत ही रहगी। िवशेष कर
जब आप पित म कामो ीपन चे ा कर और पित पास भी हो–पर तु स भोग न हो तो एक अत ृ
स भोग क भख ू आपको बहत याकुल कर सकती है। केवल इतना ही नह , उन पु ष ि थय
के ारा जो रासायिनक कण ी को िमलने चािहए उनके न िमलने से ी क शारी रक दशा
का स तुलन ठीक नह रहता तथा और भी कई िद कत पैदा होती ह। इसके िलए म आपको एक
औषध दँूगा। स भोग क भख ू ती होने पर ही आप इस औषध का योग कर। इससे न केवल
आप क वह ुधा शा त हो जाएगी, अिपतु स भोग से ा होने वाले रासायिनक रण य भी
आप के शरीर को िमल जाएँ गे। यह औषध वा तव म ऐसी ही अव था म उपयोग के िलए ो टेट
और आिकक तथा कैलिशयम के िम ण से तैयार क गई है।’’
परू े छ: मास तक इस द पती ने मेरी िचिक सा क और अ त म इस मिहला के वे पित
पहली अव था म आ गए। पहले क भाँित ेम-आन द से रहने लगे। पित-प नी दोन ही समय-
समय पर मुझसे परामश और सहायता लेते रहे । म वीकार करता हँ िक मने ीमती पा डे को
असाधारण प से धैयवाली और बुि मती ी पाया। उनक परू ी सहायता यिद मुझे न िमलती तो
मेरे िलए ऐसे किठन रोगी को व थ करना सवथा अस भव था।
तीसरा-प

‘‘मेरी आय ु तेईस साल क है, और म लॉ का िव ाथ हँ। हो टल म रहता हँ। ई र क दया से पण ू


त दु त हँ। हाक और फुटबाल म म गहरी िच रखता हँ। बचपन ही से मेरा शरीर व थ और
सग ु िठत रहा है। अपनी क ा म म सदा थम आता रहा हँ, पर त ु इधर तीन साल से म किठनाई
म फँ स गया हँ। यह किठनाई िदन-िदन बढ़ती ही जाती है और किठनाई और कुछ नह –ती
काम-वासना है। अभी मझ ु े यह साल और लॉ अटे ड करना है। िड ी लेन े पर ही मेरा िववाह होगा।
मेरी भावी प नी भी कालेज म पढ़ रही है, पर त ु उससे मेरी अभी तक केवल देखा-देखी ही हई है
और कोई बातचीत नह हई है। मेरे ग ु वामीजी महाराज ह, उनसे मने चय का माहा य
सन ु ा है। म चय के मह व को समझता हँ और चाहता हँ िक िववाह होने तक पण ू चय से
रहँ, पर त ु अब तो वह िदन-िदन दूभर होता जा रहा है। कामे छा िदन-िदन ती होती जा रही है।
वाभािवक प से इसे िनवारण करने का कोई उपाय नह है। म बड़े ही य न और लगन से
अपना यान दूसरे िवषय म लगाता हँ, पर त ु म देखता हँ िक मेरा यान चाहे िजस तरफ बटा
हो, चाहे िजतना भी म य त होऊँ, काम-वासना दुद य वेग से सामने आ खड़ी होती है। बहधा
मझ ु े ऐसा तीत होता है िक मेरी नस म लह नह , िपघला हआ सीसा बह रहा है। उस समय
उ ज े ना के वेग से मेरा शरीर फटने लगता है। बीच-बीच म कुछ शाि त होती है, िक त ु पीछे िफर
वैसी ही उ ज े ना हो उठती है। और अब तो यह कामे छा, जो थम अित आन द द तीत होती
थी, दुखद और भार प हो उठी है। कै से इस क कर ि थित से म ु हो सकता हँ, नह कह
सकता। शारी रक आव यकताएँ अिनवाय ह। यह तो वह संघष है िजसम मेरी जैसी ि थित के
व थ त ण को बार बार पड़ना पड़ता है–और मिु क कोई राह ही नह िमलती है। खासकर
रात के समय म जब आराम का समय होता है। हम उस समय िकसी काम म शि नह खच
करते और हमारी सारी शि उस एका त राि म कामो ज े ना से य ु करने म जटु जाती है। हम
चपु चाप यह य ु करना पड़ता है। और सदैव ही गहरी किठनाइय का सामना करना पड़ता है।
आप ही किहए–काम और आग जब हमारे भीतर ही जल रही है तब कै से हम उससे बच सकते ह।
ह ति या महज लड़कपन है, उसम हमारे ेम क भावना का कुछ िवकास नह होता। वे या-
गमन वा य और ित ा के िलए भारी खतरे क व त ु है। ऐसी हालत म इस दुजय काम-श ु
को वश म करने का या उपाय है? म तो इतना ही जानता हँ–इस िनदय-श ु का इलाज ी है,
जो हमसे दूर है। बहत दूर। केवल उसक मिृ त हमारे िनकट है जो ार भ म ि य थी, पर अब
केवल दुखदायी बन गई है। म नह जानता मेरी जैसी हालत म पड़े अ य नवयवु क का या हाल
होता होगा और वे कै से इस िवकट सं ाम म िवजय पाते ह गे। हाँ, कभी-कभी कृित मेरी
सहायता कर देती है, व न म वीयपात हो जाता है। इसम थोड़ा आन द भी िमलता है और शाि त
भी ा होती है, पर यह मेरी आकां ा के देखते यथे नह है। िफर यह तो वयं एक रोग है।
ऐसा मने सन ु ा है। पर इससे या? म तो पण ू जा त अव था म, पण ू कामवेग के आन द को त ृ
होकर ा करना चाहता हँ। जो िबना ी के, आदश-साथी के ा नह हो सकता है। म चाहता
हँ िक मझु े एक स चा साथी िमल जाय और म अपना सब कुछ उसे स प दूँ। म इसे अपना सबसे
बड़ा सौभा य और आन द क बात समझता हँ। अब आप किहये िक म या क ँ ? या
वे यागमन का खतरा उठाऊँ? व न दोष म जब वीयपात होता ही है तो य न वे यागमन
करके स भोग परू ा कर िलया जाए? व नदोष तो हर हालत म हािनकारक ही है। बहरहाल अभी
म और एक वष अपनी प नी से स भोग नह कर सकता और अब िबना स भोग के एक ण भी
रहना मझु े दूभर हो रहा है। मझ
ु े भय है िक मेरी यही दशा रही तो म परी ा म फे ल हो जाऊँगा और
पागल हो जाऊँगा। अब आप मझ ु े सीधी राह बताइए।’’

ऐसे तो युवक के बहत प मेरे पास िन य ित आते ही रहते ह। मने इस िववेक और च र वान
युवक को ल बा प िलखा, िजसका सार यह है–
‘‘काम-वासना व थ शरीर म होना वाभािवक ही है। युवाव था म ती काम-वासना
होना िकसी भी हालत म हािनकारक नह — लाभदायक ही है। व नदोष वैसी भयंकर बात नह
है–जैसा लोग समझते ह। जब आप प र म करते ह तो पसीना आने से बहत-सी ग दगी शरीर से
िनकल कर सारे व को ग दा कर देती है। उस समय शरीर को शु करना पड़ता है, सद हो,
नान न िकया जा सके तो भी सख ू े अँगोछे से शरीर को प छना पड़ता है। कपड़े भी बदलने पड़ते
ह। इसी कार सोते हए यिद परू ी उ ेजना होकर व नदोष हो जाता है तो िन स देह जैसा
आपका याल है– कृित आपक सहायता करती है और कृित क यह सहायता आपको तब
तक िमलती रहे गी जब तक िक आपको ी-सहवास का अवसर न िमल जाएगा। इस कार के
वीयपात के साथ तरल ए यम ू न आिद िमले रहते ह। उनका शरीर से बाहर िनकल जाना
लाभदायक है। याद रिखए िक येक व तु िजसम जीवन है–हम मैला करती है। यिद हम िकसी
फल को चाटगे तो भी हम हाथ को साफ करने क आव यकता होगी। इसिलए काम स ब धी
मामल म व न म वीयपात होने पर अशुि का या हािन का यादा िवचार न करना चािहए। हाँ,
उठने पर शरीर को शु कर लेना चािहए। इससे बचने के िलए वे याविृ करना अपने जीवन को
और पिव ता को खतरे म डालना तथा सवथा हािनकारक है। अब रही कामो ेजना क बात।
कामो ेजना का काम-वासना म बहत मह व है। यह उसी समय होती है जब िक उिचत मा ा म
काम-के म र का जमाव होता है या दूसरे थानीय नायु म डल म उ ेजना हो जाती है। ये
दोन कारण पर पर सहायक ह। पेशाब और वीय म भी एक पार प रक संबंध है। जब उनम एक
खास समता उ प न होती है, तभी र का जमाव काम-के म होता है। आप देखते ही ह िक
उ ेजना के समय मू यागने से उ ेजना शा त होती है। केवल बड़े लोग को ही नह – ब च
क भी िलंगेि य मू यागने के समय उ ेिजत हो जाती है।’’
‘‘काम स ब धी उ ेजना शरीर म एक आग जलाती है और इस आग से क ड़े -मकोड़े भी
उ म हो जाते ह। वा तव म कामो ेजना से र क उ ेजना का गहरा स ब ध है। िजतना ही
हमारा र उ ेिजत होगा उतना ही हमारा वा य उ म होगा और र क उ ेजना का तो उ म
कार दुद य कामो ेजना ही है।’’
‘‘पर तु मुझे प रीित पर आपको यह सिू चत कर देना है िक आप उस अव था को पहँच
गए ह िक जब बलात् संयम रखना आपके िलए हािनकारक हो सकता है। एक िचिक सक नीित
व धम का िनदेशक नह है, रोगी क वा य-कामना ही उसका ुव येय है, इसिलए म तो
आपको एक ही सलाह दे सकता हँ–िक आप के िलए उिचत है िक कृत स भोग िकसी भी ी से
कर। स भोग आपके मानिसक और शारी रक धरातल को ठीक-ठीक रखने म बहत सहायक
होगा। स भोग क आपको उतनी ही आव यकता है िजतनी भख ू े को भोजन क । इसिलए म
िकसी भी सामािजक या धािमक कारण से आपके िलए स भोग क अनुमित को वापस लेने को
तैयार नह ।
वासना कम करने क कुछ औषध ह, पर तु उनसे आपक केवल काम वासना ही कम न
होगी युत शरीर क सम त अ य ि याय भी म द पड़ जाएँ गी, जो वा तव म वा य और
शरीर के िलए एक जोिखम क बात होगी। आ य नह –यिद आप ऐसी कोई शामक औषध ल, या
ज़बद ती कामो ेजना को रोक–तो आपके शरीर और मन क फूित सदा के िलए न हो जाय।
इसिलए म ऐसी औषध सेवन करने क सलाह देने क अपे ा आपको यही परामश देना यादा
िहतकर समझता हँ िक आप िकसी भी ी से स भोग कर, पर तु यिद ऐसा स भव हो–तो िववाह
हो जाने पर, नव-प नी से स भोग करने से थम मुझ से कुछ िहदायत अव य ले ल।
चौथा-प

‘‘उनक अव था साठ को पार कर गई है। हमारे िववाह को ब ीस वष हए। मेरी अव था इस समय


पचास के लगभग है। मझ ु े कुल यारह ब चे हए–िजन म सात जीिवत ह। सबसे बड़े लड़के क
आय ु तीस बरस क है। मेरी सबसे छोटी स तान लड़क है, उसक आय ु अब उ नीस वष क है।’’
‘‘मेरे पित एक अ य त उ च-पद थ प ु ष ह। एक कार से उ ह नेता भी माना जाता है। वे
बड़े वा मी और िव ान ह। उ ह ने दजन प ु तक िलखी ह। उनका वा य बहत अ छा है। सदा
ही वह खश ु िमजाज़ रहे, और कभी उ ह ने मेरी िदल-िशकनी नह क । हम लोग का जीवन-
आदश द पती क भाँित गज़ ु रा। सख
ु -दुःख, िवपि -स पि सभी म हम समान भागीदार रहे। वे
बड़े शा त, िश , स य और मदृ ुभाषी ह। भाँग शराब, नशा, तमाख ू कभी उ ह ने काम म नह
िलया।’’
‘‘पर त ु इधर दो-तीन वष से उनम िविच प रवतन आ गया है। बड़ी ही ल जा और घण ृ ा
क बात है, पर त ु आप से कहे िबना छुटकारा नह । इन िदन वे एकाएक बरु ी तरह कामक ु हो उठे
ह। उनक यह कामक ु ता–िन रता और िनल जता क सीमा के पार पहँच चक ु है। इस उ म
मझ ु े यह क और ल जा सहन करनी पड़ेगी यह मने कभी सपने म भी नह सोचा था। भरी
जवानी म जो न िकया, वह वे अब कर रहे ह। अपनी बढ़ ु ौती वार कर रहे ह। या कहँ?’’
‘‘उनक काम-वासना दुद य हो उठी है। पहले कभी ऐसा नह था। जब वे कामा ध हो जाते
ह तो ऐसा तीत होता है िक वह मन ु य नह , पश ु ह। वह ितिदन स भोग चाहते ह। िदन-रात
का भी िवचार नह करते, घर म जवान लड़क व लड़के ह, बहएँ ह, पर त ु एक िनल ज कामक ु
को इससे या? अब मेरी अव था स भोग के भार को सहने यो य तो िब कुल ही नह है। य िप
म रोिगणी नह हँ, पर त ु कमज़ोर हँ। वह चीते क भाँित आ मण करते ह। मेरी तकलीफ का,
रोने-धोने का, आज-िम ू नत का उ ह ज़रा भी िलहाज़ नह –सबसे भयानक बात तो यह है िक वे
कामा ध हो जाते ह तो सारी कोमल विृ याँ उनक लोप हो जाती ह। उनका चेहरा भयानक,
चे ाएँ बीभ स और ू र हो जाती ह। िवरोध करने पर वे जान से मार डालने तक को तैयार हो
जाते ह। स भोग क िनविृ पर वे िनमम-पश ु क भाँित मझ ु े एक कूड़ा-ककट क तरह पड़ा
छटपटाता छोड़ भाग खड़े होते ह, जैस े मझ ु से उनका कभी कोई वा ता ही नह था।’’
‘‘पर त ु मेरे दुख क कहानी का यह अ त नह है। य िप उनके साथ इस आकि मक
स भोग म मझ ु े ाणा त क होता है, पर त ु वह म िकसी तरह सह लेती हँ। पर बात और भी
ल जा-जनक है। अब आप से या कहँ, ये लड़क के पास आने वाली उसक सहेिलय पर भी
कु ि रखते ह। म स देह और म क बात नह कहती, मने िछपकर उ ह इन लड़िकय को
घरू ते देखा है। उनक िनल जता यहाँ तक बढ़ गई है िक वे उनके स ब ध म अ ील संकेत
करते ह। िजससे मझ ु े रोना पड़ता है। लड़ाई-झगड़े, कलह, मार-पीट सब हो चक ु े । होते ही रहते ह,
पर त ु बेकार। अब मने एक बात सन ु ी है। वे वे याओ ं के महु ल म भी च कर लगाने लगे ह। मने
अपने बड़े लड़के से–जो ोफे सर है, जाँच करा कर पता लगाया है। उसने अपने िपता को वे या के
कोठे पर चढ़ते देखा है।’’
‘‘म मरना चाहती थी य िक इस ल जा और दुःख का भार तो म अब उठा नह सकती।
कौन जाने यह नर-पश ु िनल ज िकसी िदन अपनी ही प ु ी पर काम-आ मण कर बैठे। म तो अब
उनसे बरु ी से बरु ी बात भी स भव समझती हँ। इसी से मने मरने क कामना बहत बार क , पर त ु
मेरा बड़ा प ु बहत समझदार है। उसी ने मझ ु े बताया िक बाबज ू ी को यह कोई बीमारी भी हो सकती
है। उसी ने मझु े आपको सब बात खोलकर प िलखने क सलाह दी। इसी से म आपको यह क
दे रही हँ।’’
‘‘ या ही अ छा हो िक म अभािगन िवधवा हो जाऊँ। उनका वगवास हो जाय। और मेरा
क ही नह –मेरी इ जत और ित ा का खतरा टल जाय। या वा तव म यह कोई बीमारी है?
या उ माद है? या िकसी िपशाच ने उनके शरीर म वेश िकया है। आप कह तो म उ ह ज़हर देकर
मार डालने तक को तैयार हँ। िफर प रणाम जो हो सो हो। अब उनका यह यवहार मझ ु े इतना
अस हो गया है।’’

प पढ़कर मेरे िदल को चोट लगी। िजस ी ने एक पित के साथ अड़तीस वष सुख-दु:ख म
एक साथ रहकर िबताये ह। यारह स तान सव िकए ह, िजनम कभी आदश- ेम और दा प य
जीवन था–वह ी अब, इस बुढ़ापे म–जब उसे अ य त शा त रहना था, इतनी संत हो रही है
िक िवधवा होने क कामना करती है। पित को ज़हर देकर मार डालने तक का जोिखम उठाने
को तैयार है।
म नह जानता िक सवसाधारण को इस स ब ध म कुछ ान है या नह । पर तु वा तव म
यह एक घातक रोग है जो इस अव था म बहधा पु ष को हो जाता है। पुरानी भाषा म पु ष के
इस रोग को ‘बुढ़भस’ का नाम िदया गया है।
प म िजस भयानक प रि थित का उ लेख िकया गया है। वह िन स देह एक असाधारण
और बहत बड़ी प रि थित क दशा का ोतक है पर तु लगभग ऐसी ही अ वाभािवक
कामवासना बड़ी आयु म बहत लोग क भड़क उठती है। िजसका कारण बढ़ी हई ो टेट ि थ
हे । यह ि थ पु ष क िलंगेि य के मल ू म होती है और मनु य बार-बार स भोग करने क
बल लालसा म पागल-सा हो जाता है। इस ि थ के बढ़ने से बहत से सुखी और शा त घर म
अशाि त और झंझट उठ खड़े होते ह तथा पित-प नी के स ब ध टूट से जाते ह।
आगे चलकर इस ि थ क विृ पु ष के िलए बड़ा क कर रोग हो जाता है और अ त म
बहत ही भयंकर मािणत होता है। साधारणतया यह विृ धीरे -धीरे होती है। तब आरि भक दशा म
काम-वासना क च ड उ ेजना से पु ष थोड़ा आन द अनुभव करता है, पर तु मनु य जब
पचास-साठ क आयु को पार कर चुका हो और अचानक वह उस ि थित म आ जाय–िजसका
संकेत इस प म है, तो वह एक ग भीर रोग का प धारण कर चुका है, यह मानना पड़े गा।
मने सारी बात खोलकर इस मिहला को िलख द और ताक द कर दी िक िकसी बहत ही
सुयो य थानीय सजन से उन ि थय का िजतना शी स भव हो आपरे शन करा डािलए तथा
आप अपने पित के साथ उ ह रोगी समझ कर सहानुभिू त और दया व ेम का यवहार क िजए।
उनका रहन-सहन, भोजन, आिद क यव था सादा और वा यवधक रिखए। उ ह अिधक
शारी रक और िदमागी प र म न करने दीिजए। आपरे शन के बाद, अ छा हो िक आप उ ह एक-
दो महीने के िलए िकसी वा यवधक थान म ले जाय, जहाँ उनके शरीर और मन को पण ू
िव ाम िमले।
दो महीने बाद का मीर से इस मिहला का एक प कुछ क मती सौगात के साथ मुझे
िमला। उसम उ ह ने मेरे ित कृत ता कट क और िलखा िक ‘आपने मेरा खोया पित लौटा
िदया। मेरे सौभा य को नया कर िदया। हमारे दोन के जीवन को बचा िलया। हम नई दुिनया म
आ गए, जहाँ ेम, शाि त और सहानुभिू त को छोड़ और कुछ नह है। हम दोना पित-प नी आपके
तदास ह।’
पाँचवाँ-प

‘‘मेरी अव था तीस वष क है। अठारह वष क आय ु थी तभी मझ ु े बाप ू क सेवा म साबरमती


आ म म रहना हआ। बाप ू के आशीवाद से चय क मिहमा का मझ ु े ान हआ और तभी मने
चय त धारण करने का त िकया, पर दुभा य से मेरा िववाह इससे थम ही हो गया था।
मेरी प नी व थ, स ु दरी और हँसमख ु थी। वह एक चंचल वभाव क लड़क थी। हँसी-िद लगी
और काम-वासना स ब धी बात म उसे बड़ा चाव था। उसे मेरा साबरमती आ म म रहना और
चय- त धारण करना िब कुल पस द न था। म उसे समझा-बझ ु ाकर साबरमती ले गया। बाप ू
उससे बहत स न रहते थे पर वह मझ ु े स भोग के िलए बहत तंग करती। चय क बात चलते
ही नाक-भ िसकोड़ कर उसका मज़ाक उड़ाती और कभी-कभी बरु ी तरह उ िे जत होकर रोना-
धोना करती। धीरे -धीरे उसका िवरोध बढ़ता गया। और उसके िवरोध ने रोग का प धारण कर
िलया। मने उसे घर पर िपताजी के पास भेज िदया। घर जाने के थोड़े िदन बाद ही उसके शरीर और
मन क सारी ि थित बदल गई। वह बहधा उदास और स ु त बैठी रहती। िसर दद क बहधा
िशकायत करती। िमज़ाज उसका िचड़िचड़ा रहने लगा। अब उसक हालत बहत अिधक नाज़क ु हो
गई है, वह बात-बात म रो पड़ती है, ज़रा-सी बात भी सहन नह करती। िमज़ाज उसका ऐसा
िचड़िचड़ा हो गया है िक ग ु सा आने पर वह बेहोश हो जाती है। ऋतक ु ाल म खासतौर पर उसक
हालत खराब हो जाती है। बहधा वह एकाएक बेहोश हो जाती है। उसक नाड़ी क और िदल क
धड़कन बहत बढ़ जाती है और ज़रा-सा भी खटका वह बदा त नह कर सकती। डा टर लोग
कहते ह िक उसे िह टी रया रोग हो गया है, पर त ु कोई दवा उसे लाभ नह पहँचा रही। िदन-िदन
उसक हालत खराब होती जा रही है।’’
‘‘म अब भी प ू य बाप ू के आदश पर रहना चाहता हँ। चय को म बहत मा यता देता हँ।
पित-प नी भी िबना स भोग िकए भाई-बिहन क भाँित ेमपवू क रह सकते ह। बाप ू इसके
वल त उदाहरण थे, पर त ु इधर मेरा वा य भी ठीक नह रहता और मेरी साधना का मझ ु े कुछ
भी लाभ ा नह हो रहा। स ाह म एक बार व नदोष हो जाता है। य िप खान-पान और िवचार
को बहत साि वक रखता हँ। म देर तक प र म नह कर सकता। मझ ु े तीन-तीन दैिनक प का
स पादन करना पड़ता है। आप तो जानते ही ह यह िकतना प र म का काम है, पर दस-पाँच
िमनट काम करने पर ही मेरा िच उदास हो जाता है, मन थका-सा और स ु त रहता है। िकसी
काम म उ साह नह रहता। क़ ज भी रहता है और शायद इसी से िसर-दद भी कायम हो गया है।
एक िम के कहने से ‘इनोज़ ू ट सा ट’ मने सेवन िकया था, श ु म कुछ ठीक रहा पर अब
उससे मझ ु े कुछ लाभ नह हो रहा। भोजन भी मझ ु े ठीक-ठीक नह पचता। प नी मेरे पास रहना
पस द ही नह करती, इससे खाने-पीने क यव था ठीक नह रहती है। इधर कुछ िदन से प ेट
म दद रहता है, पीठ म चमक उठती है, िदल क धड़कन बढ़ गई है पतले द त आने लगते ह,
हाथ-पाँव म जलन रहती है। न द भरपरू नह आती। बरु े -बरु े व न देखता रहता हँ। दो-एक बार
प नी को साथ लाकर रखा, पर त ु एक तो उसके मेरे िवचार ही नह िमलते, दूसरे वह मझ ु से
घणृ ा करती है, बात-बात पर कलह करती है, लड़ती है और मज के िखलाफ ज़रा-सी कोई बात
होने पर बेहोश हो जाती है, बाल िववाह का कुप रणाम भोग रहा हँ। या आप मझ ु े कुछ उ म
सलाह दे सकते ह? म आपका आज म ऋणी रहँगा। आप जानते ह िक सािहि यक धनी नह होते।
सो म अपनी तथा प नी क िचिक सा म अिधक पया नह खच कर सकता, कृपया इस बात
का यान रिखए।’’

इस कार के तो मेरे पास बहत प आते ह। िजनम ाय: ऐसा ही रोना-गाना होता है। वा तव म
इस कार के लोग से मुझे कुछ िचढ़-सी हो गई है जो आदश के नाम पर कृित के िव चलते
ह और रोग को तथा दु:ख को अकारण िनम ण देते ह। मने उ ह प िलखा–
‘‘आपक चय क सनक ने आपके जीवन के आन द को छीन िलया है। अत: आपको
उिचत है िक मुझ से सहायता माँगने के थान पर आप अपनी ही सहायता कर। आपको यह
जानना चािहए िक जब तक शरीर पण ू विृ को नह ा होता, तभी तक चय से लाभ होता
है, पर इसके बाद चय सवसाधारण के पालन क व तु नह । महा माओं क बात जुदा है।
भखू - यास और न द ही क भाँित काम-वासना भी व थ शरीर का वाभािवक धम है। स ची
काम-वासना वा तव म त दु ती क िनशानी है। पुराने जमाने के लोग का कहना था िक वीय
यिद शरीर से बाहर न िनकलने िदया जाय तो वह र म िमलकर शरीर के तेज को बढ़ाता है पर
स ची वै ािनक बात तो यह है िक यह बात सोलह आना झठ ू है। वा तव म वीय यिद शरीर म रह
जायगा तो वह मलमू के साथ िमलकर शरीर से बाहर हो जायेगा और उससे मनु य को कोई
लाभ नह पहँचेगा। िजनक काम-वासना म द हो उ ह चय से लाभ पहँच सकता है, पर तु
उ साही, व थ पु ष के िलए तो वह वैसा ही घातक है जैसा आप के िलए। मने भी बहत से
चा रय क बात सुनी ह पर तु वे या तो अधनपुंसक ह या महापु ष या वयं स भोगी।’’
‘‘ि य म काम-वासना के अित र स तान क भी लालसा होती है। सामािजक ब धन
के कारण म ी क काम-वासना पर तो वैसे ही बहत दबाव पड़ता रहता है। िफर जब उसे पित
भी आप जैसा ‘होपलैस’ ा हो तो उसका जीवन उसी भाँित बबाद हो सकता है जैसा आपक
प नी का। इतना ही नह इसके और भी अिधक घातक प रणाम हो सकते ह। आप साि वक जीवन
क बात करते ह, मुझसे भी लोग कहते ह िक नाटक, िसनेमा देखने से तथा उप यास आिद
पढ़ने से युवक-युवितय म काम-वासना भड़क जाती है, इस पर मेरा आप जैसे लीडर से सा ह
अनुरोध है िक सरकार पर ज़ोर डाल कर एक ऐसा कानन ू बनवा लीिजए िक सब युवक-युवितय
को अ धा और बहरा बना िदया जाय। िबना ऐसा िकये उ ह संसार क छूत से बचा रखना स भव
नह है। अब तो आप ही जैसे आदशवािदय क सरकार है, आपको इस काम म िद कत नह
होगी। अलब ा इसम मुझे िफर भी स देह है िक उ ह अ धे, बहरे करके भी काम के भाव से
वंिचत िकया जा सकता है या नह ।’’
‘‘हाँ, कुछ प रि थितयाँ ऐसी ह, जब िक साल भर या छ: महीने के िलए चय रखना
लाभदायक हो सकता है, पर इसके िनणय का अिधकार िचिक सक को है, महा माओं को नह ।’’
‘‘आपने न केवल फूल-सी कोमल और खुशिमज़ाज प नी को िह टी रया जैसे भयानक
रोग का िशकार बना िदया है, अिपतु वयं भी बीजकोष के रोगी बने ह। मेरा ख़याल है आपके
बीजकोष सख ू गये ह और ो टेट ि थयाँ फूल गई ह। अब आप न केवल इसी आयु म व ृ होने
वाले ह अिपतु घातक और रोगपुंज के िशकार भी। सं ेप म–आपने दो-दो जीवन अपनी सनक म
न िकए ह। आप मुझसे सहायता माँगते ह। पर म आप पर इस कदर ु हँ िक मेरा बस चले तो
म आपको गोली से उड़ा दँू।’’
मेरा प पढ़कर स जन मेरे पास आये और कहा–‘‘मुझे आप शटू कर दीिजए या मुझे मेरा
सुखी जीवन दीिजए।’’ साथ ही उ ह ने मेरी िहदायत के अनुसार रहने का वचन िदया।
इस द पती को वाभािवक जीवन म लाने म दो वष का ल बा समय लगा। खासकर बेचारी
ी तो िब कुल ही बबाद हो चुक थी जब िक अभी उसक आयु केवल चौबीस वष क ही थी।
अि तम बार जब वह गोद म फूल से सुकुमार कुमार को लेकर मेरे पास आई तो आन द और
उ साह से फूटी पड़ती थी और वे चारी जी ख र क पोशाक म च पल चटखाते प नी के
अनुगत दास या अदली बने साथ थे। मने िवनोद से पछ ू ा–‘‘किहये ठीक-ठीक नौकरी बजाते ह?
तन वाह तो समय पर वसल ू हो जाती है?’’ तो हँसकर बोले–तन वाह तो घाटे म है। इस तदबीर
से तो इनाम इकराम इतना िमलता है िक या कहँ।’’
छठा-प

‘‘इस समय मेरी आय ु 28 वष क है। 14 साल क उ म मझ ु े ह तमैथन


ु क आदत पड़ गई थी।
तीन साल तक बहतायत से जारी रही। 17 साल क उ म छूट गई, पर त ु कभी-कभी स ु ती,
उदासी और िमतली रहने लगी। कह मन न लगता था। पढ़ना छूट गया। 24 साल क उ तक
व नदोष होता रहा। कभी ह ते म एक बार और कभी तीन बार तक हो जाता था। 24 साल क
उ म िववाह हआ, पर त ु म स भोग करने के यो य नह रह गया था। प नी अब मायके ह, मेरे
यहाँ आने से इ कार करती है और उसे मझ ु से घणृ ा है। म अपनी करनी पर पछता रहा हँ और
चाहता हँ िकसी तरह खोया हआ जीवन मझ ु े िफर िमल जाय। मेरी प नी बड़ी स ु दर और सशु ील
है। मने अपनी अ ानता से अपने को उसके यो य नह रखा। या आप मझ ु े कुछ आशा िदला
सकते ह? या आप मझ ु े इस ल जाजनक ि थित से उबार सकते ह?’’

इसम कोई शक नह िक ह तमैथुन क लत बहत पुरानी है और इसने सह युवक क उठती


हई जवानी को तबाह कर डाला है। यह भी सच है िक इस क बात बहत िवकृत करके और
बढ़ाकर कही जाती ह। िफर भी इस बात से इ कार नह िकया जा सकता िक बहत से दु:खी
जोड़ के दु:ख का कारण यही ग दी लत है। हक कत यह है िक िववाह हो जाने तक भी बहत से
पु ष को यह पता नह लगता िक स चे स भोग म होता या है? और वह िकस कार अपने
हाथ से अपने को अयो य बनाता रहा है तथा इस ग दी आदत से अपने सारे जीवन क एकता
को खतरे म डालता रहा है।
सब लोग को यह जानना चािहए िक स भोग केवल शारी रक ि या ही नह है। मनु य के
दय को उ सािहत करने वाले मानिसक िवचार और भावनाएँ स भोग क शारी रक मशीन म
गित उ प न करती ह। पु ष क िलंगेि य म चार ओर थानीय प से सचेतन ान त तुओ ं
के के और सहायक रचनाओं पर उ चतर मि त क ारा अनुभत ू भावनाओं और क पनाओं
का सीधा भाव पड़ता है। य िप पणू आयु के व थ पु ष का िलंग ि थय के ाव और वीय-
क ट के एक हो जाने से भी खड़ा हो जाता है पर यह केवल शारी रक घटना ही है। इसका मन
से कोई सीधा स ब ध नह । इसके अित र ह तमैथुन करके रगड़ से अधपके शारी रक साधन
से भी िलंग खड़ा िकया जा सकता है। पर तु इन सब रीितय म िलंग को खड़ा होने और ान
त तुओ ं के उ ेजन से कामा दोलन पर भारी भार आ पड़ता है। यह जानने यो य बात है िक इस
कामा दोलन का गुण, अथ और शारी रक मू य त कालीन अव थाओं पर िनभर है, पर तु यह
एक बात तो िनि त है ही िक जो नायु कामो ेजना उ प न करने वाले ह वे कमजोर पड़ जाते
ह। यिद स ची कामो ेजना के अवसर पर स चा ी-स भोग िकया जाय तो उसक िति या म
िजन वाभािवक और ि य अनुभिू तय का अनुभव होता है उसके बाद वाभािवक गहरी न द और
वे सब स भोग स ब धी तिृ याँ–िजनसे येक क त ा शा त और व थ हो जाती है–क
उपलि ध होती है। यह बात अब िनिववाद प से मान ली गई है िक स चे स भोग म ी पु ष से
और पु ष ी से जो सू म पदाथ चस ू ते ह इसका दोन के वा यवधन पर भारी भाव पड़ता
है, पर तु ह तमैथुन म कामा दोलन के उ ेजन को त ृ करने के िलए केवल िलंगेि य से
स बि धत त तुओ ं को इस ढं ग से उ ेिजत िकया जाता है िक वीयपात हो जाता है। यह उ ेजन
और वीयपात भी सवथा अ वाभािवक, क चा, खा और उस आन द और उ ेजना तथा प रणाम
से रिहत होता है जो स भोग म िनिहत है। स भोग और ह तमैथुन म मल ू अ तर यह है िक
स भोग म िलंग का अित सचेतन अ भाग केवल ी क योिन क अ य त कोमल, गीली और
सू म दीवार से ही रगड़ खाता है। इसिलए यह उ ेजन बड़ा ही कोमल और सुखद होता है। इससे
वीयपात क अव था धीरे -धीरे आती है। इस सारे काल म िलंग का अचेतन भाग वाभािवक नमी
और योिन क कोमल खाल से संल न रहता है, पर तु ह तमैथुन से न तो िति या उतनी
आन द द होती है, न उतनी चैत य होती है। उलटे इससे िलंग के अ भाग म खा रगड़ा लगने
क आदत हो जाने से वह पु ष स भोग के आन द को ा करने यो य नह रह जाता और
पु ष अिधक कड़े और क चे रण का अ य त हो जाता है। इसके अित र ह तमैथुन म
कामवेग को परू ा करने म ती उ ेजना क आव यकता होती है। पु ष क मनोधारा का ेम से
स ब ध टूट जाता है और ी योिन क सू म रगड़ उसके िलंग का सचेतन अ भाग हण नह
करता। इसिलए वह वाभािवक ी-स भोग के यो य नह रहता है और वह ह तमैथुन उसके
िववाह क सफलता क राह म एक भयंकर बाधा बन जाती है। इससे न केवल, म जा-त तु-जाल
पर भारी दबाव पड़ता है, अिपतु वा य पर भी भाव पड़ता है और सबसे बड़ा दुभा य तो उस
पु ष का यह है िक पित-प नी क गहरी एकता का मौिलक आधार न हो जाता है और
दा प य ेम जल-भुन कर खाक हो जाता है।
कूल के बहत से लड़क के जीवन से म प रिचत हआ हँ, िज ह ने ह तमैथुन क लत म
पड़ कर अपने को न कर िलया है। उनक िलंगेि य टेढ़ी और िसकुड़ कर छोटी हो गई। आप
जानते ह िक िववाह क सफलता तो िलंगेि य पर ही है और ह तमैथुन करके लोग िववाह क
थायी सफलता को खो बैठे ह।
सब बात मने उ युवक को बताई ं और यह भी कह िदया िक वा तव म ऐसे रोिगय क
िचिक सा बहत किठन और अिनि त है–िफर भी भयभीत होने से अिधक हािन हो सकती है।
मने उसे कुछ ि थय के सत और दवाइयाँ सेवन करने क स मित दी और परू े दो वष
तक िचिक सा और यव था म रहने पर वह प नी म गभ धारण करने यो य हआ।
सातवाँ-प

‘‘मेरी अव था 27 वष है और म िववािहत हँ। मेरा िववाह हए तीन वष हए। म एक िस यापारी


और िमल-मािलक हँ। मेरी ी बहत स ु दरी और सश ु ीला है और एक साल पवू हम एक प ु भी
हआ है, पर त ु मेरी दशा बड़ी ल जाजनक है। प नी के साथ स भोग म मझ ु े बहत कम आन द
ा होता है। उसका आिलंगन करते ही मेरा वीय ाव होने लगता है और कभी-कभी तो वेश से
थम ही नह तो वेश होते ही एक-दो सैकड म ही मेरा वीयपात हो जाता है। इससे मझ ु े बहत
सदमा पहँचता है और म प नी के सामने बहत लि जत हो जाता हँ। बहत दवाइयाँ मने खाई ं पर
एक बार भी म अपनी स भोग-शि को इतना ल बा न कर सका िक मेरी प नी भी स भोग के
िलए उ िे जत होकर स भोग-सख ु का अनभ ु व कर ले। म बहत य न करता हँ पर आध े िमनट से
अिधक वीय िगरने को नह रोक सकता। इतना भी तब होता है जब िक िबना िहले-डुले चपु चाप
पड़ा रहँ। अिधक उ ज े ना क अव था म तो वेश होते-होते ही खलन हो जाता है। म बहधा
स ाह म एक या दो बार स भोग करता हँ। या इसके िलए कोई शितया दवा है? या कुछ िदन
चय से रहना लाभदायक हो सकता है?’’
ु े ह तमैथन
‘‘िववाह से पहले दुभा य से मझ ु क लत पड़ गई थी, स भवतः उसी ने मझ ु े इस
ल जाजनक ि थित तक पहँचाया है और सच पछ ू ा जाय तो म अब स भोग करने के यो य नह
रह गया हँ।’’
‘‘दुभा य से इधर मेरी प नी का वा य भी बहत खराब हो गया है। उसी से उसका िमजाज
िबगड़ गया है और वह तन ु किमजाज और िचड़िचड़ी हो गई है। डा टर लोग का कहना है िक उसे
‘ यरू थीिनया’ और ‘ लोरोिसस‘ हो गया है। बहत इलाज िकया पर लाभ नह हआ। ई र क
कृपा से धन-स पि क कोई कमी नह है, पर इस दुभा यपण ू रोग के रहते मेरा जीवन नीरस
और सख ु े इसी क सदा िच ता रहती है। संसार के सब भोग मेरे िलए नीरस हो
ू ा हो गया है। मझ
गये ह। आप से कुछ आशा क ँ ?’’

उ च ेणी के बहत से पु ष क यही हालत है, यह म जानता हँ। य िप यह रोगी ह तमैथुन के


दोष को वीकार करता है, पर तु सव हार का कारण ह तमैथुन नह होता। बात यह है िक
िलंग का अ भाग बहत ही सचेतन होता है। उसम लाख ही सू म त तुओ ं का समावेश है। अत:
जो लोग भलीभाँित िन य साफ पानी और साबुन से िलंग क खाल हटाकर िनयिमत प से उस
भाग को नह धोते–उ ह ही यह शी पतन का रोग लग जाता है। ऐसे रोगी न तो वयं ही स भोग
का आन द ले सकते ह और न प नी को ही स तु कर सकते ह।
मने इस रोगी को यह प िलख िदया–
‘‘शी पतन तो स यता का रोग है।’’
‘‘आपक प नी को जो ‘ यरू थीिनया’ और ‘ लोरोिसस’ का रोग हआ है उसका कारण
यह है िक उसक स भोग क भख ू सदा अत ृ रहती है। वह अभी उ ेिजत अव था तक पहँचती है
िक आप रत हो जाते ह। इसक िति या आपक प नी पर हई है और उसके ानत तु दुबल
हो गये ह। स भोग क िवफलता से ये रोग तथा और भी ऐसे ही भयानक रोग होने क स भावना
रहती ही है।’’
‘‘जहाँ तक चय धारण क बात है, म नह समझता िक उससे कुछ लाभ हो सकता है।
इसिलए आपके िलए िन निलिखत तज़वीज पेश करता हँ।’’
1. आप नान के समय िन य िनयिमत प से िलंगेि य क खाल ऊपर चढ़ाकर साबुन
और ठ डे पानी से उस अंग को भली-भाँित धोकर साफ क िजए। िफर िलंगेि य के ठीक के
पर पानी क धार धीरे -धीरे छोिड़ए। यह अिधक अ छा होगा िक आप ात:काल क अपे ा
सायंकाल म नान िकया कर। ी म काल म तो नान दोन ही समय होना चािहए तथा यह
ि या भी दोन समय करनी चािहए।
2. िलंग को भली-भाँित उपरो िविध से धो लेने के बाद ई के एक साफ फाहे से
िन निलिखत लोशन से मु ड को भली भाँित तर क िजए और उसी भीगी अव था म उस पर खाल
चढ़ा दीिजए।
लोशन है–
िल टरीन 1 आउ स
िटंचर आफ बेनजाइन 20 बँदू
िफटकरी िपसी हई 1 आउ स
बो रक एिसड 1/4 आउ स
िफटकरी और बो रक को िमलाकर 8 औंस गम पानी म घोिलए। जब पानी ठ डा हो जाय तो
िल टरीन और बेनजाइन क बँदू े िमला दीिजए। काम म लाने के समय बोतल को िहला लीिजए।
थम स भोग म जब शी पात होकर क चा रण हो जाय तब उसी रात को या दूसरी रात
को दुबारा स भोग क िजए।
3. साथ ही नीचे िलखा नु खा सेवन क िजए–
असग ध, गोख , शतावर, िवदारीक द, बलाबीज; मुलहटी, तालमखाना, क च के बीज,
सेमल का सस ू ला, िबधारा के बीज, जािव ी, जायफल, नागकेसर, दाल-चीनी, सतिगलोय,
जाफरान, येक एक-एक तोला। शु शहद तीन पाव। सब दवा कपड़छन करके शहद म
िमलाइए और एक तोला रोज रात को दूध के साथ सेवन क िजए।
4. इ छाशि भी आप के रोग म सहायता करे गी तथा स भोग म उपयु आसन का
उपयोग लाभकारी होगा। स भोग क समाि म िजतनी देर स भव हो िलंग को योिन के भीतर
रिखए।
5. प नी को स न रिखए।
याद रिखए िक बहत अिधक प र म, िच ता या मानिसक अशाि त आप के िलए
हािनकारक है।
मानिसक िति या का इस पर बुरा भाव पड़े गा। समय-समय पर मुझे सच ू ना देते रिहए।
इस रोगी को वाभािवक अव था म आने म छ: सात मास का समय लगा। हाँ, मुझे िववश
हो उसे खतना कराने का भी आदेश देना पड़ा।
आठवाँ-प

‘‘हमारे िववाह को अठारह वष बीत गए। इस बीच हमारे सात स तान हई ं। ई र कृपा से सब
जीिवत ह, पर त ु आपको यह सन ु कर शायद आ य होगा िक अपने इस अठारह साल के वैवािहक
जीवन म मझ ु े एक बार भी स चे स भोग का सख ु नह िमला। संसार के जैस े सब काम होते ह,
उसी भाँित हमारी गहृ थी चलती रही और जीवन का े भाग-यवु ाव था–हमारी इस कार बीत
गई जैस े सपने क बात हो। कभी भी मने यौवन का आन द अनभ ु व नह िकया, कभी भी जीवन
म आन ददायक म ती नह आई।’’
‘‘मझु से अिधक अभािगनी मेरी प नी रही। इन अठारह वष म एक बार भी उसने स भोग म
िह सा नह िलया। म समझता हँ उसे आज तक यह पता नह है िक स भोग म भी िकसी कार
का आन द होता है, य िप उसने सात ब च को ज म िदया है। यह तो कहने क बात ही नह
िक कभी उसने िकसी प म मझ ु े उ िे जत करने क चे ा क हो। मने जब-जब उसे स भोग के
आन द क विृ के िलए उस आन द या उ ज े ना के आ दोलन म भाग लेन े क चे ाएँ क –
मझु े सफलता नह िमली।’’
‘‘िववाह के ारि भक िदन म वह एक हद दज क शम ली यवु ती बनी रही। काम-स ब धी
छेड़-छाड़ को वह कभी पस द नह करती थी। पीछे थोड़ा उसका िहयाव खल ु ा तो उसने िनि त
प से यह मत कट िकया िक भोग-िवलास एक ग दी बात है। भली ि य को यह काम नह
करना चािहए। य िप वह स भोग से डरती न थी, पर त ु केवल स तान-उ पि के िलए स भोग
कर लेन े क तो अनम ु ित दे देती थी, बाक समय म इस कदर िवरोध, ना-न,ू च -चपड़ करती थी
िक मेरा सारा उ लास ठ डा पड़ जाता था और ऐसी अव था म म कभी जबद ती से भोग करता
था तो वह अनभ ु व करती थी िक उस पर अ याचार हो रहा है और म स भोग क समाि म इतना
िनराश और िन सािहत होता था िक जैस े एक बहत-ही बरु ा काम मने िकया हो।’’
‘‘अ त म जैसा बहत लोग करते ह मझ ु े भी करना पड़ा। पहले वे यागमन म मेरी विृ
चली और इसके बाद मझ ु े एक सय ु ोग िमल गया। मेरे ही आिफस क एक एॅ लो इि डयन लड़क
से मेरी िम ता हो गई और उसके साथ स भोग करने से जो स चा सख ु े िमला उसी ने मझ
ु मझ ु े
अब तक जीिवत रखा। इससे थम तक तो म ऐसा िनराश और उदास रहता था जैस े अ सी वष
का बढ़ ू ा हो गया हँ। सात वष तक उस लड़क के साथ मेरी िम ता रही। प नी से मेरा स ब ध
स तान उ प न करने तक ही रहा। वह भी खश ु , म भी खश ु । इस िम ता क बात अ त तक
िछपी ही रही। अब मेरे दुभा य से मेरी उस िम लड़क क म ृ य ु हो गई। मेरा स चा जीवन-साथी
ही चला गया। मेरा दय शोक और िनराशा से प रपण ू है। म नह जानता िक या क ँ ? यह म
अपना दुभा य ही समझता हँ िक म पण ू व थ हँ और वाभािवक कामवेग अभी तक मेरे शरीर म
है, स भोग का आन द त ृ होकर भोगे िबना म रह नह सकता। वे याओ ं से स ब ध रखकर
वा य और ित ा पर खतरा उठा नह सकता और अब इस बयालीस वष के आदमी पर कोई
लड़क रीझ कर यार करे गी, ऐसी आशा नह है।’’
‘‘अपनी प नी को म िन स देह यार करता हँ। वह बड़ी अ छी औरत है। आदश गिहणी ृ
और माँ है पर ठ डी प नी है। जैस े उसके र म गम है ही नह । म चाहता हँ मेरी प नी का यह
ठ डापन िपघल जाय उसके दय म कामाि न सल ु ग जाय और हम दोन एक दूसरे को स भोग
के आन द का परू ा-परू ा आदान- दान कर सक, िजसका स चा रस म चख चक ु ा हँ और चाहता
हँ िक मेरी प नी भी उसका आ वादन करे ।’’
‘‘आप मेरी हँसी उड़ा सकते ह। इसिलए िक इस उ म यह बात म करता हँ, पर त ु म अपनी
उ पर यान नह दे सकता, म तो अपने मन क बात करता हँ। मझ ु े भख
ू है तो उ क या
बाधा और म अपनी प नी को अपनी संिगनी बनाना चाहता हँ तो इसम हँसने क बात या है।
या आप मेरी सहायता करगे?’’

म तुर त ही असली बात भाँप गया। और मने उसे एक ि लप के साथ प िलखा िक यह ि लप


लेकर िकसी लेडी डा टर से अपनी प नी क परी ा करा कर उसक िलिखत रपोट मेरे पास
भेजो, तो शायद म कुछ मदद कर सकँ ू ।
ठीक समय पर उसका उ र और लेडी डा टर क रपोट दोन आ पहँचे। मने जो सोचा था
वही बात थी। इस ी के ठ डी होने का कारण शारी रक था। उसका ‘भगिलंग’ िबलकुल ही
अिवकिसत था। ी के स पण ू ान-त तु-जाल म नाड़ी-च के के बने हए ह। जब जब ी
क काम-वासना च ड होती है तब ये च उठकर काम करने लगते ह और तब तक इनक
ि याशीलता कायम रहती है जब तक िक स भोग स पण ू नह हो जाता। इन नाड़ी-च के दो
मु य के ह। एक ‘भगिलंग’ जो योिन- ार पर होता है। योिन- ार दो होठ से ढका हआ है।
‘भगिलंग’ इन होठ के बीच और योिन- ार के बाहर होता है। इसक आकृित िब कुल पु ष िलंग
से िमली-जुली होती है। इसका थान ऐसे मौके पर है िक स भोग काल म पु ष िलंग के मल ू
भाग के साथ इसका सीधा मेल होता है और य - य स भोग ि या क हलचल चलती ह इन
दोन का आपस म संघष रहता है–िजससे ी को स भोग म पण ू उ ेजना और आन द क ाि
होती है! साधारणतया ी म यह नाड़ीच बहत स वादी होता है। ी म परू ी म ती उ प न
करने का यह एक धान य है।
पर तु कुछ ि य म इसक विृ अधरू ी रहती है, कुछ म इसका िवकास होता ही नह है।
इन कारण से ी स भोग का आन द नह ले सकती।
मने सब बात सं ेप म इन महाशय को बता द । और यह भी बता िदया िक अब इस अव था
म इस अंग का िवकास होना स भव नह है, पर तु मने उ ह दूसरी राह बताई। पहले कह चुका हँ
िक नाड़ीच के दो मु य के ह। िजनम एक ‘भगिलंग’ है, पर दूसरा के गभाशय क
गदन देश म है। मने उ ह ी-योिन क बारीक पेचीदी बनावट भली-भाँित समझाई और उ ह
कुछ खास कार के आसन से स भोग करने क सलाह दी। िजससे गभाशय क गदन के ारा
उ ेजना उ प न क जा सकती थी।
अथक प र म करने पर उ महाशय को सफलता िमली और अड़तीस वष क आयु म
सात ब च क माता उनक प नी ने थम बार स चा स भोग सुख अनुभव कर आ य कट
िकया।
बहत िदन बाद जब िफर इन महाशय से एक बार मेरी मुलाकात हई तो उ ह ने हँसते-हँसते
अपनी सफलता क कहानी मुझे सुनाई और मने उ ह मुबारकबाद दी।
नवाँ-प

‘‘हमारा िववाह हए तीन वष बीत गए ह, पर त ु अभी तक हम स तान नह हई। सभी डा टर क


राय है िक हम दोन पित-प नी पण ू व थ ह और हम म कोई कमी नह है। अभी कुछ िदन पवू
तक मेरे अ दर च ड कामवासना थी। अब भी वह म द नह है पर म िपता कहलाने को तरस
ु े स तान के न होने के
रहा हँ। स भोग से मेरी प नी सदा स त ु हो जाती है। घर वाले मझ
कारण दूसरी शादी करने क चचा करने लगे ह–वे मेरी प नी को बाँझ बताते ह–इससे वह बहत
दुिखत है। उसका दुःख म देख नह सकता। हम दोन म गहरा यार है और हमारी अब एक ही
मनोकामना है िक हम स तान-लाभ हो। कृपया कुछ स परामश दीिजए।’’

मने उ ह अपने वीय क जाँच करा कर उसक रपोट तुर त भेजने को िलखा। साथ ही उनक
प नी के स ब ध म कुछ िकए। रपोट देखकर ात हआ िक वीय के क टाणु अ य त
कमज़ोर ह। य िप उनक आकृित म कोई दोष नह था।
प नी म थोड़ी बीजकोष स ब धी िवकृित थी, पर यह अितसाधारण केस था जैसा ाय:
हआ ही करता है।
मने उ ह ‘पेरे डीन’ क बीस सुइयाँ लगवाने क सलाह दी और लोह कैलिशयम का एक
िम ण दोन को िदया। सुइय क मा ा भी मने िनयत कर दी और उनक प नी को ‘ओवरी’ का
एक साधारण िनचोड़ सेवन करने को कहा। साथ ही उ ह नीचे िलखी िहदायत भी कर द ।
1. स भोग कम से कम एक स ाह के अ तर पर क िजए।
2. ऋतु- नान के बाद आठव व बारहव िदन के बीच दो-दो िदन के अ तर से केवल तीन
बार स भोग क िजए।
3. इस िनयम का पालन औषध-सेवन समा होने पर होना चािहए। इस काल म यथासंभव
स भोग करना चािहए।
4. साधारण वा य का परू ा यान रिखए भोजन, न द और प र म िनयिमत रिखए।
5. क ज करने वाले तथा ग र भोजन मत क िजए। फल खबू खाइए। खासकर ताजा
न ब,ू नारं गी और अंगरू ।
6. खबू धपू सिकए।
7. इतना म क िजए िजतने म शरीर थक जाय।
तीसरे ही मास इस ी को गभ रह गया और यथासमय व थ बालक का ज म हआ।
दसवाँ-प

‘‘तीन वष से म दर रोग से पीिड़त हँ और िदन पर िदन कमजोर होती जा रही हँ। तबीयत
िनर तर दबी हई रहती है। न जाने या कारण है, मेरी भीतरी जननेि य को बहत ज द सद
लग जाती है, और बेरंग का िचपिचपा दुगि धत पानी-सा िनकलने लगता है। बहत िदन तक मने
‘डूश’ िलया और अनेक लेडी डा टर का इलाज कराया, पर त ु कोई लाभ नह हआ। उ टे कमर
और िपंडिलय का दद बढ़ गया।’’
ु े एकदम थका डाला है और िकसी भी काम म मझ
‘‘इस बीमारी ने मझ ु े उ साह नह िमलता।
ितस पर मेरे िसर पर एक और िवपि यह है िक मेरे पित व -बेव मझ ु े तंग करते रहते ह। वे
बला कार करने से भी नह चक ू ते। बला कार क बहत बात म सनु ती थी। अब यह अनभ ु व करती
हँ िक वा तव म बला कार िकतना क कर होता है। मेरे ‘ना’ कहने से वे िबगड़ते ह और मार-
पीट करने पर आमादा हो जाते ह।’’
‘‘हाँ, कभी-कभी प ेशाब म जलन और योिन ार म अस खाज होती है, िजससे म बहत
क पाती हँ। उस समय तो मझ ु े उनका जोरो-जु म िबलकुल अस और महाक दायक हो
जाता है। मने मायके जाने क बहत चे ा क , पर वे भेजते नह ह। कृपया मझ ु े सहायता
पहँचाइए।’’

प पढ़कर मेरे कान खड़े हए और मुझे शक हआ िक अव य ही यह उनके पित महाशय का


साद ात होता है। स भव है उ ह कभी सुज़ाक क बीमारी हई हो और उसी क ग दी छूत
उ ह ने प नी म लगा दी हो। यह ऐसी भयंकर बात है और इतनी आसानी से इसक छूत लग
जाती है िक देखकर अफ़सोस होता है।
मने खोद-खोद कर बहत-सी बात पछ ू । और एक बार इस मिहला के पित से भी मुलाकात
क । यह जानकर दु:ख हआ िक उ ह सुज़ाक क बीमारी हई थी और थोड़ी-बहत अब भी है।
यह बात िनिववाद है िक िबना ग दी ि य के संसग से ऐसी ग दी बीमा रयाँ नह लगत ।
िक ह कारण से जब मनु य का उ ेग ठीक-ठीक रीित से शा त नह होता तो मनु य वासना-
तिृ के खतरनाक तरीके काम म लाता है। इससे जो रोग जननेि य म होते ह वे ऐसे भयानक
ह िक िजनक याद ही से आदमी भय से थरा जाता है। इन रोग से न केवल उस आदमी का
जीवन भार हो जाता है और वह संसार के सब सुख से वंिचत हो जाता है युत वह पीिढ़य तक
अपनी स तान को अपनी भल ू पर शोकपण ू प ाताप करने का अवसर दे जाता है।
सुज़ाक ऐसा ही एक ग दा रोग है और यिद उसका साधारण भाव ी पर हो तो उसे दर
हो जाएगा।
य दर ि य क एक आम बीमारी है। व थ ी का योिन-माग एक खाली थैली के
समान होता है, उसके भीतर क ओर गीला रखने के िलए कुछ नमी भी रहती है पर उसका ाव
बाहर नह जाता। पर तु सौ म से पचानवे ि य के योिन-माग से कुछ न कुछ ाव बाहर
िनकलता ही रहता है और वह िभ न-िभ न कार का होता है। कभी तो वह पानी के समान
पतला, कभी लेसदार, रं गीन, दुगि धत और कभी र प म होता है। अिधकतर यह ाव फोड़े
से िगरने वाले मवाद के समान पीले रं ग का होता है। कभी-कभी हरे रं ग का भी दाग कपड़ पर
पड़ता है। यह दुगि धत होता है। इसक उ पि योिन-माग एवं गभाशय से है। जो ाव पानी के
समान होता है, वह कभी-कभी आधा सेर तक होता है तथा कभी-कभी अ डे के सफेद भाग के
समान पारदशक और िचकना दूध के रं ग का ाव होता है। जो ाव दूध के रं ग का होता है उसे
योिन-माग से िनकला हआ और जो साफ जल के समान होता है उसे गभाशय के मुख से िनकला
समझना चािहए। बहधा यह ाव मािसक धम के थम या बाद म कुछ िदन हआ करता है, पर तु
कभी-कभी िनर तर जारी रहता है। जब वह बाहर तक न बह कर योिन-माग के मुख पर आकर
ही सखू जाता है तब एक कार क खुजली उ प न करता है। कभी-कभी इस ाव के साथ र
भी जाता है। इस ाव का मल ू कारण बीज-वाहक नािलकाओं म, गभाशय म, अथवा योिन-माग
म से िकसी एक से होता है। इन सब थान म सुज़ाक रोग के क टाणु पहँच सकते ह। ाव म
यिद सुज़ाक का असर है तो ाव पीले रं ग का होगा। योिन-माग म जो व होता है वह अ प होता
है, इसी से उसम रोग-क टाणु मर जाते ह। यह व उन क टाणुओ ं ारा पैदा होता है जो योिन-माग
म वभावत: होते ह। जब स भोगकाल म योिन म वीयपात होता है तब यह अ ल- य कम हो
जाता है और उस समय रोगाणुओ ं के बढ़ जाने का खतरा रहता है।
मने इस मिहला को सुहाते गम पानी म बैठने क सलाह दी तथा पोटाश परमे नेट 1/1000
अंश के घोल क िपचकारी लेने को कहा।
इसके बाद दो ितशत िसलवर नाइ ेट के पानी म ई तर करके योिन धोने को कहा। और
जब तक ाव न ब द हो िनर तर िदन म दो तीन बार योिन धोने क सलाह दी।
पर तु सबसे थम मने दोन पित-प नी को पाँच लाख यिू नट पै सलीन िदलाया।
इससे यह मिहला व थ हो गई। तब दो मास इसे मने सुपारीपाक सेवन करने क तथा
स भोग से सवथा दूर रहने क सलाह दी।
इस कार कोई साढ़े तीन मास म यह मिहला रोगमु हई तथा पित-प नी म िफर
वाभािवक स ब ध थािपत हो गए।
यारहवाँ-प

‘‘हम पित-प नी पर पर एक दूसरे से परू ी तौर पर स त ु ह और जहाँ तक मेरा िव ास है हम


दोन हर तरह से व थ ह। स भोग काल म हम दोन ही समान भाव से त ृ हो जाते ह और हम
पणू आन द ा होता है, पर त ु स भोग क समाि के तरु त बाद ही हमारी सारी मनोविृ
बदल जाती है। स भोग हमारा स पण ू हो चकु ा होता है, िलंग िसकुड़ जाता है और हम लोग
अलग-अलग पलंग पर तरु त पथक ृ होकर सो जाते ह। मेरी प नी तो तरु त ही महुँ फे र लेती है
और मझ ु े भी िफर वह अ छी नह लगती। शी ही मझ ु े न द आ जाती है और उस िदन सबु ह मेरी
प नी देर तक सोती रहती है। उसके शरीर म आल य भरा रहता है, पर मझ ु े यह िब कुल पस द
नह । उसक येक चे ा मझ ु े िचढ़ाने और िखझाने वाली होती है। मेरी तिबयत िगरी-िगरी-सी हो
जाती है पर उसे इसक कोई परवाह नह होती। मझ ु े आ य इसी बात पर रहता है िक रात या
बात थी और अब या बात है। म बहधा बक-झक कर लेता हँ और कभी-कभी तो नाराज होकर
समय से पहले ही आिफस क ओर िनकल जाता हँ।’’
‘‘िन स देह पहले ऐसा नह होता था। पर अब मझ ु े ऐसा लगता है िक जैस े मेरे भीतर िकसी
चीज़ क कमी आ गई हो। इस िवचार से म स ु त हो जाता हँ। कभी-कभी सोचता हँ िक यह काय
ही खराब है। या वा तव म वह िकसी रोग के ार भ होने का संकेत है? या मझ ु े स भोग ब द
कर देना चािहए या कोई बाजीकरण दवा सेवन करनी चािहए?’’
देखने म यह प साधारण-सा है पर तु वा तव म प असाधारण है। स भोग के थम काम ड़ा,
ेमालाप–कामो ेजना क चे ाएँ जैसे रितवधक और मह वपण ू ह वैसे ही स भोग के तुर त बाद
के ण भी अ य त मह वपण ू ह। यहाँ तक िक भावी जीवन का वा य तथा गाह थ भाव इसी
पर िनभर है।
स भोग के ठीक बाद–वीयपात होते ही शु होने वाला ण बहत अनमोल है। िजसका
बहधा दु पयोग िकया जाता है।
उ ेजना क पीड़ा शा त होते ही वीयपात होने पर पु ष को प नी से तुर त अलग नह हो
जाना चािहए। अिपतु कोहनी और क धे का सहारा लेकर धीरे से एक बगल झुक जाना चािहए
और िफर क धे को तिकए के सहारे छोड़ देना चािहए। बगल के ख उसे इस भाँित िखसक कर
लेटना चािहए िक िलंग योिन से बाहर न िनकलने पाए। प नी के गाल से गाल और व से व
संि रहे । क धे इस कार िटके रह िक दोन खुली साँस ले सक। छाती के नीचे के प े आराम
से ी के प के साथ लगे रह। ी को खबू समझदारी से अपनी रान के प ारा योिन म
िलंग को जकड़े रहना चािहए। दोन इस कार अपनी-अपनी करवट लेटे रह। प रि थित ऐसी हो
जाय िक वीय योिन म ब द हो जाय–िजसके मँुह पर िलंग पड़ा हआ है। इससे अल य लाभ यह
होगा िक दोन दोन पित-प नी पर पर के सम त िवत ार को अपनी-अपनी गु ेि य ारा
चसू लगे िजनसे दोन के वा य को अपार लाभ होगा। चािहए यह िक इसी हालत म िलपटे हए
दोन सो जाय। यह सोना अ य त शा त और पर पर क गहरी एकता के कारण सुखद होगा
तथा दोन क गु ेि य म बहत-सी सू म अदला-बदली और हे रफेर होने का समय िमल जाएगा।
यह कभी न भल ू ना चािहए िक इस समय ी क योिन म अथात् उसके ारा परू ी म ती
अनुभव कर लेने और तिृ ा कर लेने के बाद तथा उसके पित के खिलत हो चुकने के बाद,
पु ष के रण से िगरा हआ न केवल वीय और सहायक ि थय के िविवध ाव ही पड़े होते ह
अिपतु उसक अपनी ि थय से रत िवशेष रस भी होते ह िजनका ार गुण होता है और
िजनम महामू यवान् त व िमि त होते ह।
िलंगेि य के अगले भाग क सचेतन खाल इन ाव म डूबी रहती और आराम से इन
क मती ाव को चस ू ती रहती है।
एक या आधे घ टे बाद दोन क जब भी वह पहली न द टूटे तब आिह ता से पथ ृ क् होकर
पित दूसरी श या पर गहरी न द सोने को चला जाए।
प लेखक को मने यही िहदायत समझाई ं। दो स ाह बाद उसका प मुझे िमला उसने
अ य त उ साह से िलखा था िक अब तो ात:काल िबना ज़ोर-ज़ोर से गाना गाए मँुह से रहा नह
जाता! गुसलख़ाने से मेरे गाने क आवाज़ सुनकर प नी हँसती है। हम जब एक दूसरे से िबदा
होते ह तो आँख ही म एक दूसरे से करते ह–ओह, अब रात होने म िकतनी देर है।
बारहवाँ-प

‘‘मेरी अव था अड़तालीस वष क है। और म पण ू व थ तथा ह ा-क ा आदमी हँ। म सदा से


स त प र म करने का अ यासी रहा हँ। मेरा रहन-सहन, खान-पान मयािदत है। म ऐसा अनभ ु व
करता हँ िक मेरे शरीर म हर पखवाड़े आप ही आप कामो ज े ना का एक बल आवेग होता है
और मझ ु े अ य त बेचन ै कर देता है। इससे मेरी कई रात बेचन
ै हो जाती ह। प नी रोिगणी है और
स भोग सहन नह कर सकती। म िज़द करता हँ तो झगड़ा उठ खड़ा होता है। स भोग म उसे
बहत तकलीफ भी होती है यह मझ ु े प दीखता है पर त ु मेरी यह उ ज े ना दुद य होती है और
िन पाय होकर मझ ु े ह ति या ारा अपने को शा त करना पड़ता है। या इस स ब ध म आप
मझु े कुछ सहायता दान कर सकते ह?’’

इस प म एक अ य त ग भीर और स य, भौितक-वै ािनक ािणशा क मह वपण ू घटना का


संकेत है, िजसके स ब ध म मेरा याल है िक बहत से ी-पु ष अ ानी ह।
वा तिवक बात यह है िक ी-पु ष के व थ शरीर म ठीक समय पर एक कामो ेजना
क लहर आती है। ी के शरीर म यह दौरा अ ाईस िदन का होता है और उसके बाद चौदह िदन
तक रहता है। ाय: ि य को अ ाईस िदन म ही मािसक होता है और ऋतु नान के बाद चौदह
िदन तक उनम काम क लहर िहलोर लेती रहती है। इस लहर के दो उ ेग होते ह और दो िदन
उनक काम क भख ू ती रहती है। जब ि य को मािसक धम होता है तब मदन-दमन गोला
का के ीय नाड़ीच , आ दोिलत होने लगता है और इस कार ि य म ितमास दो बार
कामो ेजना होती है।नारी-शरीर म मदन-तरं ग का यह चढ़ाव-उतार िववाहकािलक दशा के
स ब ध म अ य त मह वपण ू और मौिलक व तु है। इस बात का ान पु ष के िलए बहत मह व
रखता है, पर वे इस बात से ाय: सवथा अनजान ह।
ि य क भाँित पु ष म भी लगभग मािसक अ तर पर इसी कार काम-वासना का
उतार-चढ़ाव होता है जैसा िक इस प से कट है।
गहरी वै ािनक खोज के बाद इस बात का पता चला है िक पु ष के दय क धड़कन म
मािसक दौरा होता है। चँिू क ये अिनयिमत रीित से स भोग करते रहते ह, इसिलए उ ह इसका
ान नह होता। पर तु जब वे ी से दूर रहते ह, तब वे इस मािसक मदनोदय का अपने शरीर म
उसी भाँित अनुभव करते ह, िजसक चचा इस प म है।
एक बात म बीच ही म कहता हँ। समाज ने एक प नी क मयादा अव य कायम कर दी है,
पर तु यवहार म यह सवथा झठ ू ी है, य िक यिभचार केवल वे यागमन तक ही सीिमत नह
है, गु स भोग क और अनैितक स ब ध क समाज म इतनी भरमार है िक िजनके िवषय म
कुछ कहना यथ है।
पर तु कभी ऐसा काल आए िक ी-पु ष के जोड़े िचिक सक और वै ािनक लोग उनके
काम-के क बनावट, मदनोदय क समानता और शारी रक, मानिसक और आि मक समता
के आधार पर िमलाएँ –तो िन संदेह संसार से न केवल यिभचार उठ जाय अिपतु गाह य जीवन
के सब ग भीर दु:ख का अ त हो जाए।
अब तो ाय: ऐसा होता है िक पित-प नी म जो एक के िलए ठीक है, वही दूसरे के िलए या
तो बहत अिधक है या अपया है। य िक ी-पु ष दोन क शारी रक आव यकताएँ िभ न-
िभ न ह। सामािजक दबाव और ेम उन भेद को दबाता रहा है — इसके अित र मनु यदेह म
कुछ ऐसी भी मता है िक अपने को अव था के अनुकूल बना लेती ह। और धीरे -धीरे पित-प नी
के वभाव एक से हो जाते ह, पर तु एक हद तक। जब वभाव म तथा बनावट म अिधक अ तर
होता है, तब बड़ी िवषम प रि थित आती है। दोन क स भोग स ब धी आव यकताओं को ठीक
तौर पर परू ा करने वाला ब ध हो ही नह सकता और ी-पु ष म घोर कलह और अनबन के
बीज उग आते ह।
अनेक ि याँ पु ष के अिधक स भोग से दु:खी रहती ह। अनेक अपने पितय को नपुंसक
समझकर खीझ जाती ह। हमारे स य समाज म जो पु ष क धानता है, उससे वह अपने को
ज़ रत से यादा मद समझने लगा है और वह खुलकर अपनी वासना क पिू त अनेक रीित से
कर लेता है पर तु ी के िलए ब धन ही ब धन है!
यहाँ एक मनोरं जक बात भी कह दँू। पु ष म कामशि क कमी होने पर उसे ‘नामद’
कहा जाता है, पर इसक जोड़ का श द ी के िलए कोष म है ही नह ।
िववाह के बाद य - य समय बीतता तथा आयु बढ़ती है, ी-पु ष का स भोग-साम य
भी कम होता जाता है। बड़ी उ म तो एक पखवाड़े म एक बार स भोग ही काफ हो जाता है।
सब बात पर िवचार कर म यह िनणय करता हँ िक व थ ी-पु ष इस कार स भोग
कर–
तीस वष से कम आयु के जोड़े स ाह म पाँच छ: बार।
तीस से चालीस क आयु वाले चार-पाँच बार।
चालीस से पचपन तक क आयु वाले दो से चार बार।
पचपन से पचह र वष क आयु वाले एक या दो बार।
स भोग क मु त स भोग का एक मह वपण ू अंग है। यथास भव ी-पु ष दोन का
खलन एक साथ होना चािहए। ी क सोई हई कामवासना के जाग उठने और उसक सभी
जिटल िति याओं के आर भ हो जाने के प ात् भी उसक तिृ के िलए दस से बीस िमनट तक
वा तिवक शरीर-संयोग का होना ज़ री है। जो पु ष ि य को इतना समय वाभािवक प म
नह दे सकते ह,उ ह अपनी िति याओं के िन ह क भी ि या सीखनी चािहए।
यिद दोन का ‘समरत’ हो तो एक ही समय म दोन के खलन म दो-तीन िमनट से
अिधक नह लगेगा।
इसके िलए िभ न-िभ न आसन उपयोगी ह। िजनका चुनाव आव यकता और प रि थित के
अनुसार अपने अनुभव से जोड़ को चुन लेना चािहए।

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