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An Ban (Hindi)
An Ban (Hindi)
राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट-िद ली-110006
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भिू मका
–चतरु सेन
ानधाम
शाहदरा, िद ली
तािलका
1. पहला-प
2. दूसरा-प
3. तीसरा-प
4. चौथा-प
5. पाँचवाँ-प
6. छठा-प
7. सातवाँ-प
8. आठवाँ-प
9. नवाँ-प
10. दसवाँ-प
11. यारहवाँ-प
12. बारहवाँ-प
पहला-प
‘‘बड़ी िविच बात है। मेरी प नी ितिदन ातःकाल य ही नया अखबार आता है झपटकर उठा
लेती है। मझ ु से पिहले अखबार पढ़ने का उसका िन य िनयम हो गया है, पर त ु उसका पढ़ना
तीन-चार िमनट म ही समा हो जाता है। वह वा तव म िववाह-िव ापन पढ़ती है। केवल िववाह-
िव ापन और िफर प को एक ओर फक कर गहरे सोच म कोच पर पाँव िसकोड़कर बैठ जाती
है। इस समय बातचीत, छेड़-छाड़ वह िब कुल बदा त नह कर सकती, खीझ जाती है या उठकर
चली जाती है। अभी हमारा िववाह हए कुल सात मास हए ह। िववाह के दो मास बाद ही उसक यह
आदत हो गई थी, और तभी से हमारे दा प य जीवन के सब स ु भात ठ डे, नीरस और खे हो
गए ह। वह कभी मेरे साथ चाय नह पीती। नौकर चाय रखकर चला जाता है, म यार और नम
के साथ कहता हँ–‘िवमल, आओ चाय िपयो। अपने हाथ से एक याला बनाकर मझ ु दो’ तो वह
चपु चाप या तो छत पर सरसर चलते पंख े को अिनमेष ि से देखती रहती है या िखड़क के
बाहर श ू य आकाश को सन ू ी ि से। जैस े मेरी बात उसके कान तक पहँची ही न हो। दुबारा
कहने का मझ ु े साहस नह होता, कहने पर वह ितनक कर, उठकर चल देती है। अपने कमरे म
जा, भीतर से ार ब द कर घ ट पड़ी रोती रहती है। उस िदन मझ ु े चाय फक देनी पड़ती है तथा
भख ू े ही द तर जाना पड़ता है।
इधर कुछ िदन से म यह सब सह गया हँ। अब म इसक अिधक परवाह नह करता। बीच म
दो-चार बार ऐसा भी हआ िक मझ ु े ग ु सा आ गया, मने बकझक भी क । चाय का सेट टेबल ु पर से
नीचे ढकेल िदया। पर ऐसी दशा म वह सदा सन ू ी और उदास ि से मेरी ओर देखती रही, एक
श द भी बोली नह । म भख ू ा- यासा उठकर बाहर चल िदया, िदन भर भटकता रहा, तो भी उसने
मझ ु से कुछ नह पछ ू ा। मेरे ऊपर सदय नह हई।
य वह घर के कामकाज म बड़ी चतरु है, िनराल य है, स ु िच स प न है। िपता उसके
सेशन जज ह, भाई एडवोकेट जनरल ह, माता ज े एु ट ह, उसने भी बी.ए. आनस पास िकया है।
संगीत और िच कला म उसक ऊँची गित है, उसका क ठ वर अित कोमल और क ण है।
यवहार उसका सौ य है। मझ ु से वह लड़ती नह । कभी ग ु सा भी नह करती। घर के कामकाज म
असावधान भी नह , पर त ु ितिदन ातःकाल उसका महुँ िबगड़ा रहता है। यिद उसे छेड़ा न जाय
तो म जब तक चाय पीता रहता हँ; वह उसी भाँित गम ु सम
ु बैठी रहती है, िफर एक दीघ िनः ास
लेकर उठकर रसोई म चली जाती है। रसोई वह वयं बनाती है। रसोई बनाने, व से िखलाने,
मेरे नान-व और आव यकता के सब सामान यथा थान यथासमय रखने म वह कभी चक ू ती
नह । पास-पड़ोस क ि य से, आने-जाने वाल से–वह अ छे िश ाचार से बातचीत करती है।
हँसती-बोलती है, चहु ल करती है, पर त ु मेरे सामने कभी नह हँसती। मझ ु े देखते ही जैस े उसके
तन-मन पर दल-बादल छा जाते ह। एक भय, एक आशंका, एक िति या के से भाव मझ ु े देखते
ही उसके चेहरे पर छा जाते ह। बहत ज़ करता हँ, मन को रोकता हँ, पर त ु कभी-कभी ग ु सा
चढ़ आता है, बकझक कर लेता हँ। कभी-कभी तो तबीयत होती है िक इस औरत को गोली मार दूँ
या सोती हई का गला घ ट दूँ। बात ल जाजनक ज़ र है, पर म आपके सामने वीकार करता हँ
िक एक-दो बार म उस पर हाथ भी चला बैठा हँ। आप मझ ु े पश,ु नर-पश ु भी कह सकते ह। पर त ु
साहब, आिखर ध ैय क भी एक सीमा होती है। इस औरत को याह कर मने अपनी िज़ दगी बबाद
कर ली। बहत बार मन हआ िक ज़हर खा ल ूँ और इस औरत को िवधवा कर जाऊँ।
पर एक बात बड़ी िविच है, वह मेरे ोध का बहधा िवरोध न कर, भयभीत ही हो जाती है।
िनिवरोध िपट लेती है। गाली खा लेती है, और जब म पश ु क भाँित उसके साथ िनदय यवहार
करता हँ–तो वह ऐसी सन ू ी आँख से मेरी ओर देखती रहती है िक देखकर मझ ु े ल जा और
लािन हो आती है और म घर से बाहर भाग जाता हँ।
सद -गम -बरसात हम दोन एक ही पलंग पर सोते ह। श ु ही से कुछ ऐसी आदत पड़ गई
ह। म नह चाहता िक आप जब मेरे िचिक सक ह तो आपसे बात िछपाऊँ, इसी से सब खोलकर
कहता हँ। वह सदैव प ेट म घटु ने डालकर गठरी बनकर सोती है या पीठ फे रकर। आिलंगन उसे
जैस े क कर तीत होता है। आिलंगन से उसका दम घटु ता हो ऐसी चे ा करती है। िकसी भाँित
वह चु बन तो सह लेती है, पर त ु िनहायत ठ डे। चु बन से जैस े उसे कभी कोई िसहरन नह
उ प न होती, कभी वह ितचु बन नह करती। उन चु बन म मझ ु े कुछ भी आन द नह आता,
जैस े कागज़ पर होठ रख िदए ह , पर त ु अ य कामो ज े क चे ाएँ जैस े उसे सवथा अस हो
जाती है। तन छूने से वह एकदम चमक उठती है। गहरी न द म भी उछल पड़ती है, जैस े कोई
यि ज़बद त गदु गदु ी के समय उछलता है। िदन म कभी म उसका तन छू पाता हँ तो वह
बेतहाशा िखलिखलाकर हँस पड़ती तथा अंग िसकोड़कर भाग खड़ी होती है। िन य ही वह हँसी
आन द या ेम क नह –अस गदु गदु ी क हँसी होती है! म समझ जाता हँ–िफर भी कभी-कभी
म ोध म पागल हो जाता हँ।
पर त ु सबसे बड़ी किठनाई तो यह है िक म उसे आज तक स भोग के िलए राजी न कर
सका। अपनी जान सब ठ डे-गम उपाय कर िलए, यार िकया, लालच िदए, भय िदखाया, मारा-
पीटा, पर त ु वह मेरी उस कामो िे जत अव था को देखकर ऐसी भयभीत और परे शान हो जाती है
िक या कहँ। गोया जैस े म तलवार से उसे क ल ही करना चाह रहा हँ। मने अनेक लेडी डा टर
को िदखाया, उनका कहना है िक उसके काम के म कोई दोष नह है। डा टर लोग
िन यपवू क कहते ह िक वह पण ू व थ है। उसे कोई रोग नह है। म जहाँ तक समझ सकता हँ,
वह न पागल है, न ख ती है। उसक िदमागी और शारी रक हालत बहत अ छी है, मािसक धम
उसे ठीक समय पर, िनयिमत रीित पर होता है। अंग- यंग उसके पण ू िवकिसत और व थ ह।
मने सब ओर से िनराश होकर आपका आ य िलया है। कृपया मेरे िनराश, सख ू े जीवन को
ाणदान दीिजए। मेरे ठूँठ के समान नीरस दा प य को हरा-भरा क िजए, म आपक शरण हँ।
आप भी यिद मझ ु े िनराश कर दगे तो म िन य आ मघात कर लग ूँ ा। इस जीवन से म ऊब गया हँ।
आप भली भाँित जानते ह िक म एक सिु शि त, िन ावान आदमी हँ। िति त ोफसर हँ।
च र का म ू य समझता हँ। पर ी गमन या और कोई दुराचार क क पना भी म नह कर
सकता हँ। म केवल अपनी प नी से स त ु रहना चाहता हँ। व थ ेम और काम के जो
स ब ध नैसिगक प से प नी-पित म होने चािहए वही म चाहता हँ।
म कु प नह , िनधन नह , अस य गँवार नह , शराबी-ल पट नह , रोगी, अंग-भंग या
नपसुं क नह । अभी मेरी आय ु िसफ अ ाइस वष क है, जब िक वह केवल इ क स वष क है।
म चाहता हँ उसका कोमल ि न ध सख ु द आिलंगन, गमागम चु बन का अथक िनम ण,
यार का लबालब रस और स भोग का अत ृ आन द। इसके बाद एक चाँद के टुकड़े के समान
िशश ु का अवतरण, जो मेरे घर आने पर दोन छोटे-छोटे हाथ पसारकर मेरी गोद म आकर मेरे
दय को शीतल करे ।
आप जानते ही ह िक मेरी ये आकां ाएँ नैसिगक ही ह। मेरे जैसा नवयवु क गहृ थ जो
इतनी बात चाहता है–उसक ये चाहनाएँ िनमल ू नह ह। अनिधकृत भी नह ह।
वह असाधारण स ु दरी, भावक ु , कोमल और सिु शि त रमणी है, पर एक ही श द म कहँ–
जीिवत ी है, पर मतृ प नी। जैस े िकसी िपशाच ने उसक अ तरा मा म िव होकर उसके
प नी व का दमन कर डाला हो।
अब जैसा आप कहे, म आपका शरणागत हँ।’’
प पढ़कर मने उस पर कुछ देर िवचार िकया, िफर मने इस मिहला को एक छोटा-सा प
िलखा–‘स भव है बात िजतनी खराब आप समझती ह, वैसी नह है। म आपक अव य सहायता
क ँ गा, बशत िक मेरे कुछ का आप िबना संकोच सही उ र देने क कृपा कर।’ प के
साथ मने कुछ भी िकये। मेरे प और का उ र जो उस मिहला ने िदया उसका सारांश
यह है–
‘‘मेरा िववाह हए यारह वष हो गए। िववाह के समय मेरी आयु इ क स वष और उनक
अ ाईस वष क थी। उस समय म एम.ए. फाइनल कर चुक थी और वह एक बक म मैनेजर थे।
उनका प और गुण ऐसा था िजस पर कोई भी ी अपने भा य को सराह सकती है। संतान
अ ब ा कोई मुझे नह हई, पर तु उनके पु ष व म कोई कमी न थी। ार भ म हम लोग दो-दो
तीन-तीन बार सहवास करते थे। हर बार नया उ साह और आन द आता था। मने कभी जीवन म
क पना भी न क थी िक कोई मद ी को इतना सुख दे सकता है। िववाह से थम तक मने
सहवास का अनुभव नह िकया था, और म य िप सहवास को चाव क नज़र से देखती थी, पर
डरती भी थी। िववाह के बाद सहवास के ारि भक िदन म तो मुझे कुछ अ छा न लगा। मुझे उन
िदन उ ह देखना–उनका चु बन-आिलंगन-हा य–यहाँ तक िक चलना-िफरना भी आन द से
पागल कर देता था। पीछे जब स पण ू स भोग के आन द का मुझे अनुभव हआ, तो कुछ िदन तक
तो म पागल-सी हो गई। खाते-पीते, सोते-जागते मुझे इसी बात का यान रहता था। स भोग म
मुझे कभी कोई क नह हआ। उनक िलंगेि य खबू उ ेिजत अव था म प थर से भी अिधक
कड़ी हो जाती थी! शारी रक बल उनम बहत था। बहधा वे मुझे अपने हाथ म अधर उठा लेते थे।’’
‘‘बाद के िदन म यह बात तो नह रही पर तु स ाह म दो-तीन बार तो हम स भोग अव य
करते थे। मुझे बहत कम इसके िलए आवाहन करना पड़ता था–वे ही मुझे िनम ण देते और
बड़ी-बड़ी ल लो-च पो करते थे। उन बात से मुझे बड़ा सुख िमलता था। एक बार बक के िहसाब
से कुछ गलती का झंझट उठ खड़ा हआ, उससे वे बड़े परे शान हो गए। वह हमारे वैवािहक जीवन
का सबसे पहला अवसर था–िक हम रात-िदन साथ-साथ रहते हए प ह-बीस िदन तक स भोग
न कर पाये। उनका मड ू ही कुछ ऐसा हो गया था िक म इस ओर उ ह संकेत करने क िह मत ही
न कर सक ।’’
‘‘इसके बाद ही वे लड़ाई पर चले गये और अब जब से लौट कर आए ह, इन नौ महीन म
उ ह ने िसफ दो बार स भोग करने क चे ा क , पर न जाने या सोच कर अलग हट गये।
कामो ेजना का उनम उदय ही न हआ। मेरी ओर से उनका ख ही बदल गया। हम लोग एक ही
साथ एक ही िब तर पर कुछ िदन पवू तक सोते थे–जैसा िक पहले सोया करते थे। पर सोते ही वे
करवट बदल कर मेरी ओर से पीठ पर लेते और शी ही खराटे भरने लगते थे। म कहाँ तक
बदा त करती! अत: मने उनसे कह िदया िक तु हारे इस तरह सोने से मुझे तकलीफ होती है।
तुम दूसरे िब तर पर सोओ। उ ह ने सहष मेरा ताव मान िलया। तब से हम पथ ृ क-पथृ क शै या
पर सोते ह, पर अब तो मुझे यह स नह है। म उनक सरू त से घण ृ ा करती हँ। मने उनसे य िप
मँुह खोल कर कभी कुछ नह कहा, पर तु म चाहती हँ िक वे मेरे कमरे म भी न सोय। मेरे सामने
आएँ भी नह । यह आदमी नह है–िम ी का ढे ला है...’’
मने प पढ़कर मिहला को बुला भेजा। मुलाकात होने पर मने कुछ और पछू े –‘‘ या
आपके पित क कुछ आदत भी यु से लौटने पर बदल गई ह?’’
‘‘कैसी आदत?’’
‘‘पहले वे ात:काल उठकर या िकया करते थे।’’
‘‘ओह, जब तक शेव-गु ल ख म न हो जाए, जोर-जोर से गाते, शोर करके घर-भर को
िसर पर उठा लेते थे।’’
‘‘और अब?’’
‘‘अब तो वे पु तक के क ड़े हो गए ह। बहत ज द उनक न द टूट जाती है। तब पड़े -पड़े
िकताब पढ़ते रहते ह। चाय का व हो जाता है और म कहती हँ, उठकर हाथ-मँुह धोकर चाय पी
लो, तो पु तक से आँख उठाये िबना ही कह देते ह–यह दे जाओ चाय। कभी-कभी तो सुनकर
जवाब ही नह देते, म खीझकर चाय रखकर चली आती हँ।’’
“ या आपने उ ह िकसी लड़क क तरफ़ आकिषत होते देखा है?”
‘‘देखा नह है, पर अ ल से खुदा पहचाना जाता है। आिखर इस तरह शीतल परसाद होने
का कारण या है। या नस म लह नह है, पानी भरा है?’’
‘‘आपको अपनी प रिचत िकसी ी पर शक है?’’
‘जी नह , मगर मने अपनी शम को रखकर अभी इस बात क खोज जाँच नह क । िजस
िदन पता लग जाएगा, उस िदन वह नह या म नह ।’’
मने समझा-बुझाकर, ठ डा करके मिहला को िबदा िकया और कहा–‘‘िकसी तरह उ ह
मेरे पास भेज दीिजए।’’
दूसरे ही िदन वह मेरे पास आए। खबू ल बे-चौड़े , त दु त आदमी ह। आँख और चेहरे से
भलमनसाहत टपकती है, पर तु खबू गौर से देखने पर गहरी उदासी क छाया और उस पर
घमू ती हई िच ता क रे खाएँ प उनके चेहरे पर दीख पड़ती थ । मने तपाक से उनसे हाथ
िमलाया और बैठाते हए कहा–‘‘मुझे मेजर पा डे के दशन का सौभा य ा हो रहा है न?’’
‘‘आपका यह दास ही पा डे है, मेजर पा डे ।’’
‘‘ओह, म तो कई िदन से आपसे िमलने क सोच रहा था, ीमती पा डे ने कुछ िद कत
का संकेत िकया था, सोच रहा था िक आप से िमल कर कुछ बात पछ ू ू ँ , िफर देखँ ू िक या सेवा
कर सकता हँ।’’
‘‘अजी, कुछ बात भी हो, उ ह वहम हो गया है, म बीमार हँ। भला मुझे या बीमारी हो
सकती है?’’
‘‘ कट म तो आप त दु त ही नजर आते ह। किहए यु - े म तो आपको बड़े -बड़े
अनुभव हए ह गे।’’
‘‘आप अनुभव क कहते ह? जनाब, म कोई बीस बार मर चुका हँ, मगर िफर िज दा हँ।’’
उ ह ने एक फ क हँसी हँसी।
मने बातचीत म गहरी िदलच पी कट क । िफर तो उ ह ने अपने भयानक और
रोमांचकारी व ृ ा त एक के बाद एक सुनाने शु िकए। िकस कार िसंगापुर का पतन हआ और
वे सेना के साथ भाग कर बमा आए। िफर रं गन ू का पतन होने पर इ फाल क लड़ाई म वे ब दी
हए। वहाँ से भाग कर िवकट बन और खंख ू ार पशुओ ं के बीच रात-िदन चलते हए ाण का बोझा
ढोया। िकस कार वे तीन िदन मुद क टोली म िछपे रहे । जापािनय ने िकस कार उ ह नर-
माँस खाने को िववश िकया। कैसे वे ठीक उस समय जब उ ह गोली मारी जा रही थी ऊँचे पुल से
नदी म कूद पड़े और िवपि के समु को पार कर म ृ यु के ऊपर चरण रखते, िगरते-पड़ते, िकस
कार भारत आए।
उनक भयानक रोमांचकारी कहानी सुनने ही से मेरा खन ू सद हो गया, पर तु मेजर पा डे
भावहीन ढं ग से कहते चले गए। रोग का मल ू कारण म समझ गया। पर तु इस स ब ध म उनसे
कुछ भी कहना बेकार समझ मने उ ह िवदा िकया और ीमती पा डे को बुला भेजा। उनके आने
पर मने कहा–
‘‘आपके पित यिभचारी ह या िकसी अ य ी पर आस ह आपक यह शंका िनमल ू है।’’
‘‘तब तो एक ही बात हो सकती है, जो उससे भी भयंकर है।’’
‘‘ या?’’
‘‘यही िक वह नपंुसक हो गए।’’
‘‘यह कहा जा सकता है। पर मेरा याल है िक वे ठीक हो जाएँ गे। बशत िक आप अपना
गु सा जो उन पर है, याग द। उ ह रोगी समझ और म जैसा कहँ उसी भाँित कर।’’
ीमती पा डे ने वीकार िकया।
तब मने बताया–‘‘मनु य का यह शरीर एक अ य त पेचीदा मशीन है। उसम िभ न-िभ न
काम करने वाले अनेक सू म और थल ू कल-पुज लगे ह। वे सब जब तक ठीक-ठीक काय
अपनी सीमा म करते ह तब तक शरीर ठीक-ठीक काम करता है पर तु िकसी रोग के कारण या
िकसी दूसरे कारण से यिद कोई अंग ठीक काम नह करता है–तो शरीर का वा य-व ृ न
हो जाता है। वाभािवक काम-वासना और स भोग करने क शि ठीक उसी पु ष म प रपण ू
होती है–जो सवथा व थ हो, अथात् िजसके शरीर के येक कल-पुज ठीक-ठीक काम करते
ह । साधारणतया तो िकसी भी पुज क गड़बड़ी से स भोग शि म गड़बड़ हो जाती है, पर तु
िकसी-िकसी पुज क खराबी का स भोग क शि न कर डालने म थायी या अ थायी परू ा
भाव होता है।’’
इस पर स देह और उतावली से ीमती पा डे बोल उठ –‘‘पर तु मेरे पित तो िब कुल
त दु त ह। उनके शरीर के िकसी अंग म कोई रोग नह है, यह म कह सकती हँ। िन य ही वे
या तो िकसी सौत को रखे हए ह या नपुसंक हो गए ह।’’
मने कहा–‘‘िकसी हद तक िपछली बात ठीक है।’’
यह सुनकर ीमती पा डे का चेहरा भय से सफेद हो गया। वह पथराई आँख से मेरी ओर
देखने लगी। मने कहा–‘‘घबराने या िनराश होने क कोई बात नह है। जैसा म कह चुका हँ िक
आप मेरे कहे अनुसार काम करगी तो सब ठीक हो जाएगा। आप यान से मेरी बात सुिनए। हआ
या है, आप शायद नह जानती य िक आपने कभी इस बात पर यान नह िदया। वा तव म
आपके पित के ान-त तुओ ं को कई हािनयाँ पहँची ह, िजनका उनक स भोग शि पर सीधा
असर हआ है। मने उनक यु -या ा क भयंकर कहानी सुनी है। सुनी आपने भी होगी, पर तु
मने उससे कुछ और ही अथ िनकाला है, िजस पर शायद आपने िवचार नह िकया। वा तव म दो
हािनयाँ उ प न हई ह। यु क िवभीिषका और भाग-दौड़ तथा ब दी होने और ाण-द ड तक का
सामना करने से उ ह बहत भारी मानिसक क झेलना पड़ा है। वे एक भी कृित के
शाि ति य पु ष ह। यो ा कृित के साहिसक आदमी नह ह। उ ह तो अ वाभािवक प से न
केवल िसपाही बनना पड़ा–अिपतु भारी जोिखम भी उठानी पड़ी। इसी से उनके ान-त तुओ ं म
ऐसी हािनयाँ उ प न हो गई ं, िज ह ने उ ह नपुंसक बना िदया, पर तु इसम सहायक हई है
उनक रीढ़ क हड्डी क वह चोट, जो उ ह उस समय लगी–जब वे गोली से मार डाले जाने वाले
थे और बहत ऊँचे से पानी म कूद पड़े थे। य िप वे कूदे जल म थे–पर उनक रीढ़ क हड्डी ज़रब
खा गई है और वह एक कार से नपुंसक हो गए ह, पर तु जहाँ तक मेरा िवचार है, यह कोई ऐसी
बीमारी नह है जो ठीक न हो सके या सांघाितक हो। कुछ बात तो उपचार और आपके यवहार से
तथा कुछ थोड़ा औषध सेवन करने से दूर हो जाएँ गी। सबसे थम म आपको कुछ आदेश दँूगा।’’
‘‘आपको जानना चािहए िक आपके पित के ान-त तुओ ं पर इतना भारी दबाव पड़ा है िक
िजसका भाव स ची चोट के बराबर हआ है, जबिक स ची चोट भी इस मामले म सहायक हई है।
खै रयत इतनी ही है िक उनम िसवा इस बात के िक वह स भोग के यो य नह रहे और कोई
खराबी नह हई है।’’
‘‘ थम तो आपको यह िवचार सवथा याग देना चािहए िक वह यिभचारी ह या आपसे ेम
नह करते। असल बात यही है िक वह स भोग करने म असमथ ह। उ ह आराम अव य हो जाएगा
और वह परू ी शि नह तो खोई हई शि को बारह आना िफर से ा कर लगे। आपका सबसे
पहला कत य तो यह है िक उनके ित ज़रा भी खीझ या नाराज़ी का भाव न कट कर और गहरे
ेम का यवहार रख। आप तीन बात का यान रख। थम–अपने को संयम म रख और पित से
परू ी सहानुभिू त रख। दूसरे –उनम अपनी चे ाओं से िनर तर कामो ीपन करती रह। तीसरे –
उनके सामने खबू आनि दत और उ लासपण ू ढं ग से रह।’’
‘‘म आपको एक बात के िलए और सावधान क ँ गा, स भव है िक पीछे होने वाली
मानिसक िति याएँ इस मामले म पेचीदा किठनाइयाँ आपके सामने लाव, िज ह सुलझाना
आपक चतुराई और बुि म ा पर ही िनभर है। ऐसी अव था म रोग-मु होने पर भी पु ष मन म
डरता रहता है िक कह म ठीक-ठीक स भोग न कर सकँ ू –िवफल हो जाऊँ। य ही आपके पित म
िलगो थान के ल ण कट ह –और वह स भोग म व ृ ह –तब यिद उ ह यह आशंका होने लगे
िक कह म िफर नपुंसक न हो जाऊँ–तो ऐसे समय क ऐसी िच ता एक करारी चोट का भाव
उ प न करती है और उसका प रणाम यह हो सकता है िक उ ह आराम होने म बहत-सा असा
लग जाए। इसिलए म आपको सावधान करता हँ िक जब तक आप यह देख िक िलंग क उ ेजना
परू ी नह है या हािन का अवसर बाक है, उनक साम य म कुछ कमी है, तब तक आप केवल
उ ीपन ही तक अपनी काम चे ाएँ सीिमत रख–स भोग न कर। युत आप अपनी चे ाओं से
और बातचीत से उनम यह आ मिव ास उ प न कर–िक उ ह दुबारा अपनी स भोग शि म
िव ास हो जाय और उनक मनोविृ य को अपने आन द और उ लासपण ू यवहार से ऐसी
प रि थित म ले आइए िक उनक मानिसक िच ता के बाधक भाव उनके च ड ेम को
िवकिसत होने से रोक न द। सं ेप म आपको यह जान लेना चािहए िक उनक ि थित ऐसी है–
जैसी उस ब चे क जो माता पर आि त है। वा तव म आपके पित आप पर आि त ह। आप उ ह
उतना ही असहाय समझ कर उनक सहायता सु षू ा कर िजतनी माता अपने ब चे क करती
है।’’
मेरी बात सुनकर ीमती पा डे को अनायास ही हँसी आ गई और उनके चेहरे क थाई
उदासीनता एकाएक दूर हो गई। वह हँसती हई बोल –‘‘यह तो खबू एक ब चा आपने पालने-
पोसने को मेरी गोद म डाला।’’
मने भी हँसकर कहा–‘‘बस, बस। इस ण आपका जैसा मन बदल गया है, उदासीनता
और िवरि दूर होकर उ लास और आन द आपके चेहरे पर आ गया है, इसे ही थायी बनाए
रिखए। अभी बीस िमनट पहले आप जब मेरे पास आई थ , तब आप एक खस ू ट मनहस बुिढ़या थ
— पर तु अब एक आकषक और मोहक मिहला ह।मुझे आपके इस प रवतन से खुशी है। पर तु
म यह कह रहा था िक आपको बड़ा ही किठन काय करना है, याग भी असाधारण करना है। म
मानता हँ–आपक शारी रक आकां ाएँ दुद य हो सकती ह, पर म आपको सचेत िकए देता हँ िक
चाहे जैसी भी च ड कामे छा आपके मन म य न उदय हो, आपको अपने को काबू म रखना
होगा। आप उसका कोई भी संकेत, आभास बाहर कट न होने दगी और यह न भल ू गी िक इससे
आपके पित को आराम होने म बाधा होगी, िजसम सबसे अिधक आप ही क हािन है।’’
‘‘आप िनर तर चु बन और आिलंगन के ारा अपने पित म कामो ीपन करती रह और
जब देख िक अब स चा कामो ीपन पण ू प से हो गया है और स भोग म बाधा होने का भय नह
है–तो स भोग करने द। ऐसी अव था म भी यिद कदािचत् उ ह पण ू सफलता न िमले तो आप
नम से– यार से–आशाजनक और उ साहवधक रीित से हँसकर पित को बार बार यही िव ास
िदलाएँ –िक अगली बार सब ठीक हो जाएगा। आप उ ह उदास, िचि तत या िवफल न होने द और
यह न भल ू िक स भोग म भय और िन साह के भाव का पु ष पर जैसा बुरा भाव पड़ता है–
उतना िकसी दूसरी बात का नह ।’’
‘‘म सब बात याद रखंगू ी और ऐसा ही क ँ गी। म यह भी नह भलू सकँ ू गी िक आपने मुझे
जीवन दान िदया।’’
य ही यह मिहला पित से िमलने को अधीर हो रही थी। मने कहा–‘‘अभी मेरी बात परू ी
नह हई है, अभी मने आपको उनक मानिसक बाधा दूर करने के उपाय बताए ह। उनक रीढ़ क
हड्डी म चोट लगी है। रीढ़ क हड्डी का काम-शि पर गहरा भाव होता है। इसके िलए खाने
के िलए एक दवाई और मािलश के िलए ‘महाशतावरी का तेल’ मने तजवीज़ िकया। उनका
उपयोग भी समझा िदया।’’
ीमती पा डे ने वीकार िकया और नीची नज़र करके कुछ सोच म पड़ गई। साफ़ कट
होता था िक वह कुछ कहना चाहती ह, पर कह नह पाती ह। संकोच और ल जा से उनका चेहरा
नवीन वधू क भाँित लाल हो गया। म हँस पड़ा। मने कहा–‘‘म जान गया िक आप या कहना
चाहती ह, िक तु कहने का साहस नह करत , जब इतनी बात हई ह तो अब संकोच या? िफर
िचिक सक से संकोच होगा तो किठनाइयाँ दूर कैसे ह गी। आप शायद यह सोच रही ह िक जब
आपके पित दुबारा स भोग शि ा करने के किठन काय म लगे ह गे–तब आप उ ह िनर तर
उ ेिजत करने क चे ा करने पर वयं कैसे संयत और िनराबेिशत रह सकती ह।’’
‘‘िन स देह म यही सोच रही हँ। कह म असंयत हो गई तो मेरा सवनाश हो जाएगा।’’
‘‘िन स देह। स भोग शि क दुबारा ाि का सारे शरीर पर असर पड़ता है। ‘स भोग’
वह अनु ान है, जो जीवन को सजीव और उपजाऊ बनाता है। इसिलए इस महामू यवान् पदाथ
को ा करने के िलए आपको भारी तप तो करना ही पड़े गा। इस स ब ध म मुझे आप से कुछ
और भी कहना है। स भोग ारा ी के शरीर को पु ष क ो टेट ि थय म उ प न होने वाले
िविश तरल रासायिनक कण क अ य त मह वपण ू और आव यक मा ा िमलती है। िजसक ,
उसके वा य के िलए ही नह – ी व को कायम रखने के िलए भी भारी आव यकता है, पर तु
आप अभी इन रासायिनक कण के लाभ से वष से वंिचत ह। अभी वंिचत ही रहगी। िवशेष कर
जब आप पित म कामो ीपन चे ा कर और पित पास भी हो–पर तु स भोग न हो तो एक अत ृ
स भोग क भख ू आपको बहत याकुल कर सकती है। केवल इतना ही नह , उन पु ष ि थय
के ारा जो रासायिनक कण ी को िमलने चािहए उनके न िमलने से ी क शारी रक दशा
का स तुलन ठीक नह रहता तथा और भी कई िद कत पैदा होती ह। इसके िलए म आपको एक
औषध दँूगा। स भोग क भख ू ती होने पर ही आप इस औषध का योग कर। इससे न केवल
आप क वह ुधा शा त हो जाएगी, अिपतु स भोग से ा होने वाले रासायिनक रण य भी
आप के शरीर को िमल जाएँ गे। यह औषध वा तव म ऐसी ही अव था म उपयोग के िलए ो टेट
और आिकक तथा कैलिशयम के िम ण से तैयार क गई है।’’
परू े छ: मास तक इस द पती ने मेरी िचिक सा क और अ त म इस मिहला के वे पित
पहली अव था म आ गए। पहले क भाँित ेम-आन द से रहने लगे। पित-प नी दोन ही समय-
समय पर मुझसे परामश और सहायता लेते रहे । म वीकार करता हँ िक मने ीमती पा डे को
असाधारण प से धैयवाली और बुि मती ी पाया। उनक परू ी सहायता यिद मुझे न िमलती तो
मेरे िलए ऐसे किठन रोगी को व थ करना सवथा अस भव था।
तीसरा-प
ऐसे तो युवक के बहत प मेरे पास िन य ित आते ही रहते ह। मने इस िववेक और च र वान
युवक को ल बा प िलखा, िजसका सार यह है–
‘‘काम-वासना व थ शरीर म होना वाभािवक ही है। युवाव था म ती काम-वासना
होना िकसी भी हालत म हािनकारक नह — लाभदायक ही है। व नदोष वैसी भयंकर बात नह
है–जैसा लोग समझते ह। जब आप प र म करते ह तो पसीना आने से बहत-सी ग दगी शरीर से
िनकल कर सारे व को ग दा कर देती है। उस समय शरीर को शु करना पड़ता है, सद हो,
नान न िकया जा सके तो भी सख ू े अँगोछे से शरीर को प छना पड़ता है। कपड़े भी बदलने पड़ते
ह। इसी कार सोते हए यिद परू ी उ ेजना होकर व नदोष हो जाता है तो िन स देह जैसा
आपका याल है– कृित आपक सहायता करती है और कृित क यह सहायता आपको तब
तक िमलती रहे गी जब तक िक आपको ी-सहवास का अवसर न िमल जाएगा। इस कार के
वीयपात के साथ तरल ए यम ू न आिद िमले रहते ह। उनका शरीर से बाहर िनकल जाना
लाभदायक है। याद रिखए िक येक व तु िजसम जीवन है–हम मैला करती है। यिद हम िकसी
फल को चाटगे तो भी हम हाथ को साफ करने क आव यकता होगी। इसिलए काम स ब धी
मामल म व न म वीयपात होने पर अशुि का या हािन का यादा िवचार न करना चािहए। हाँ,
उठने पर शरीर को शु कर लेना चािहए। इससे बचने के िलए वे याविृ करना अपने जीवन को
और पिव ता को खतरे म डालना तथा सवथा हािनकारक है। अब रही कामो ेजना क बात।
कामो ेजना का काम-वासना म बहत मह व है। यह उसी समय होती है जब िक उिचत मा ा म
काम-के म र का जमाव होता है या दूसरे थानीय नायु म डल म उ ेजना हो जाती है। ये
दोन कारण पर पर सहायक ह। पेशाब और वीय म भी एक पार प रक संबंध है। जब उनम एक
खास समता उ प न होती है, तभी र का जमाव काम-के म होता है। आप देखते ही ह िक
उ ेजना के समय मू यागने से उ ेजना शा त होती है। केवल बड़े लोग को ही नह – ब च
क भी िलंगेि य मू यागने के समय उ ेिजत हो जाती है।’’
‘‘काम स ब धी उ ेजना शरीर म एक आग जलाती है और इस आग से क ड़े -मकोड़े भी
उ म हो जाते ह। वा तव म कामो ेजना से र क उ ेजना का गहरा स ब ध है। िजतना ही
हमारा र उ ेिजत होगा उतना ही हमारा वा य उ म होगा और र क उ ेजना का तो उ म
कार दुद य कामो ेजना ही है।’’
‘‘पर तु मुझे प रीित पर आपको यह सिू चत कर देना है िक आप उस अव था को पहँच
गए ह िक जब बलात् संयम रखना आपके िलए हािनकारक हो सकता है। एक िचिक सक नीित
व धम का िनदेशक नह है, रोगी क वा य-कामना ही उसका ुव येय है, इसिलए म तो
आपको एक ही सलाह दे सकता हँ–िक आप के िलए उिचत है िक कृत स भोग िकसी भी ी से
कर। स भोग आपके मानिसक और शारी रक धरातल को ठीक-ठीक रखने म बहत सहायक
होगा। स भोग क आपको उतनी ही आव यकता है िजतनी भख ू े को भोजन क । इसिलए म
िकसी भी सामािजक या धािमक कारण से आपके िलए स भोग क अनुमित को वापस लेने को
तैयार नह ।
वासना कम करने क कुछ औषध ह, पर तु उनसे आपक केवल काम वासना ही कम न
होगी युत शरीर क सम त अ य ि याय भी म द पड़ जाएँ गी, जो वा तव म वा य और
शरीर के िलए एक जोिखम क बात होगी। आ य नह –यिद आप ऐसी कोई शामक औषध ल, या
ज़बद ती कामो ेजना को रोक–तो आपके शरीर और मन क फूित सदा के िलए न हो जाय।
इसिलए म ऐसी औषध सेवन करने क सलाह देने क अपे ा आपको यही परामश देना यादा
िहतकर समझता हँ िक आप िकसी भी ी से स भोग कर, पर तु यिद ऐसा स भव हो–तो िववाह
हो जाने पर, नव-प नी से स भोग करने से थम मुझ से कुछ िहदायत अव य ले ल।
चौथा-प
प पढ़कर मेरे िदल को चोट लगी। िजस ी ने एक पित के साथ अड़तीस वष सुख-दु:ख म
एक साथ रहकर िबताये ह। यारह स तान सव िकए ह, िजनम कभी आदश- ेम और दा प य
जीवन था–वह ी अब, इस बुढ़ापे म–जब उसे अ य त शा त रहना था, इतनी संत हो रही है
िक िवधवा होने क कामना करती है। पित को ज़हर देकर मार डालने तक का जोिखम उठाने
को तैयार है।
म नह जानता िक सवसाधारण को इस स ब ध म कुछ ान है या नह । पर तु वा तव म
यह एक घातक रोग है जो इस अव था म बहधा पु ष को हो जाता है। पुरानी भाषा म पु ष के
इस रोग को ‘बुढ़भस’ का नाम िदया गया है।
प म िजस भयानक प रि थित का उ लेख िकया गया है। वह िन स देह एक असाधारण
और बहत बड़ी प रि थित क दशा का ोतक है पर तु लगभग ऐसी ही अ वाभािवक
कामवासना बड़ी आयु म बहत लोग क भड़क उठती है। िजसका कारण बढ़ी हई ो टेट ि थ
हे । यह ि थ पु ष क िलंगेि य के मल ू म होती है और मनु य बार-बार स भोग करने क
बल लालसा म पागल-सा हो जाता है। इस ि थ के बढ़ने से बहत से सुखी और शा त घर म
अशाि त और झंझट उठ खड़े होते ह तथा पित-प नी के स ब ध टूट से जाते ह।
आगे चलकर इस ि थ क विृ पु ष के िलए बड़ा क कर रोग हो जाता है और अ त म
बहत ही भयंकर मािणत होता है। साधारणतया यह विृ धीरे -धीरे होती है। तब आरि भक दशा म
काम-वासना क च ड उ ेजना से पु ष थोड़ा आन द अनुभव करता है, पर तु मनु य जब
पचास-साठ क आयु को पार कर चुका हो और अचानक वह उस ि थित म आ जाय–िजसका
संकेत इस प म है, तो वह एक ग भीर रोग का प धारण कर चुका है, यह मानना पड़े गा।
मने सारी बात खोलकर इस मिहला को िलख द और ताक द कर दी िक िकसी बहत ही
सुयो य थानीय सजन से उन ि थय का िजतना शी स भव हो आपरे शन करा डािलए तथा
आप अपने पित के साथ उ ह रोगी समझ कर सहानुभिू त और दया व ेम का यवहार क िजए।
उनका रहन-सहन, भोजन, आिद क यव था सादा और वा यवधक रिखए। उ ह अिधक
शारी रक और िदमागी प र म न करने दीिजए। आपरे शन के बाद, अ छा हो िक आप उ ह एक-
दो महीने के िलए िकसी वा यवधक थान म ले जाय, जहाँ उनके शरीर और मन को पण ू
िव ाम िमले।
दो महीने बाद का मीर से इस मिहला का एक प कुछ क मती सौगात के साथ मुझे
िमला। उसम उ ह ने मेरे ित कृत ता कट क और िलखा िक ‘आपने मेरा खोया पित लौटा
िदया। मेरे सौभा य को नया कर िदया। हमारे दोन के जीवन को बचा िलया। हम नई दुिनया म
आ गए, जहाँ ेम, शाि त और सहानुभिू त को छोड़ और कुछ नह है। हम दोना पित-प नी आपके
तदास ह।’
पाँचवाँ-प
इस कार के तो मेरे पास बहत प आते ह। िजनम ाय: ऐसा ही रोना-गाना होता है। वा तव म
इस कार के लोग से मुझे कुछ िचढ़-सी हो गई है जो आदश के नाम पर कृित के िव चलते
ह और रोग को तथा दु:ख को अकारण िनम ण देते ह। मने उ ह प िलखा–
‘‘आपक चय क सनक ने आपके जीवन के आन द को छीन िलया है। अत: आपको
उिचत है िक मुझ से सहायता माँगने के थान पर आप अपनी ही सहायता कर। आपको यह
जानना चािहए िक जब तक शरीर पण ू विृ को नह ा होता, तभी तक चय से लाभ होता
है, पर इसके बाद चय सवसाधारण के पालन क व तु नह । महा माओं क बात जुदा है।
भखू - यास और न द ही क भाँित काम-वासना भी व थ शरीर का वाभािवक धम है। स ची
काम-वासना वा तव म त दु ती क िनशानी है। पुराने जमाने के लोग का कहना था िक वीय
यिद शरीर से बाहर न िनकलने िदया जाय तो वह र म िमलकर शरीर के तेज को बढ़ाता है पर
स ची वै ािनक बात तो यह है िक यह बात सोलह आना झठ ू है। वा तव म वीय यिद शरीर म रह
जायगा तो वह मलमू के साथ िमलकर शरीर से बाहर हो जायेगा और उससे मनु य को कोई
लाभ नह पहँचेगा। िजनक काम-वासना म द हो उ ह चय से लाभ पहँच सकता है, पर तु
उ साही, व थ पु ष के िलए तो वह वैसा ही घातक है जैसा आप के िलए। मने भी बहत से
चा रय क बात सुनी ह पर तु वे या तो अधनपुंसक ह या महापु ष या वयं स भोगी।’’
‘‘ि य म काम-वासना के अित र स तान क भी लालसा होती है। सामािजक ब धन
के कारण म ी क काम-वासना पर तो वैसे ही बहत दबाव पड़ता रहता है। िफर जब उसे पित
भी आप जैसा ‘होपलैस’ ा हो तो उसका जीवन उसी भाँित बबाद हो सकता है जैसा आपक
प नी का। इतना ही नह इसके और भी अिधक घातक प रणाम हो सकते ह। आप साि वक जीवन
क बात करते ह, मुझसे भी लोग कहते ह िक नाटक, िसनेमा देखने से तथा उप यास आिद
पढ़ने से युवक-युवितय म काम-वासना भड़क जाती है, इस पर मेरा आप जैसे लीडर से सा ह
अनुरोध है िक सरकार पर ज़ोर डाल कर एक ऐसा कानन ू बनवा लीिजए िक सब युवक-युवितय
को अ धा और बहरा बना िदया जाय। िबना ऐसा िकये उ ह संसार क छूत से बचा रखना स भव
नह है। अब तो आप ही जैसे आदशवािदय क सरकार है, आपको इस काम म िद कत नह
होगी। अलब ा इसम मुझे िफर भी स देह है िक उ ह अ धे, बहरे करके भी काम के भाव से
वंिचत िकया जा सकता है या नह ।’’
‘‘हाँ, कुछ प रि थितयाँ ऐसी ह, जब िक साल भर या छ: महीने के िलए चय रखना
लाभदायक हो सकता है, पर इसके िनणय का अिधकार िचिक सक को है, महा माओं को नह ।’’
‘‘आपने न केवल फूल-सी कोमल और खुशिमज़ाज प नी को िह टी रया जैसे भयानक
रोग का िशकार बना िदया है, अिपतु वयं भी बीजकोष के रोगी बने ह। मेरा ख़याल है आपके
बीजकोष सख ू गये ह और ो टेट ि थयाँ फूल गई ह। अब आप न केवल इसी आयु म व ृ होने
वाले ह अिपतु घातक और रोगपुंज के िशकार भी। सं ेप म–आपने दो-दो जीवन अपनी सनक म
न िकए ह। आप मुझसे सहायता माँगते ह। पर म आप पर इस कदर ु हँ िक मेरा बस चले तो
म आपको गोली से उड़ा दँू।’’
मेरा प पढ़कर स जन मेरे पास आये और कहा–‘‘मुझे आप शटू कर दीिजए या मुझे मेरा
सुखी जीवन दीिजए।’’ साथ ही उ ह ने मेरी िहदायत के अनुसार रहने का वचन िदया।
इस द पती को वाभािवक जीवन म लाने म दो वष का ल बा समय लगा। खासकर बेचारी
ी तो िब कुल ही बबाद हो चुक थी जब िक अभी उसक आयु केवल चौबीस वष क ही थी।
अि तम बार जब वह गोद म फूल से सुकुमार कुमार को लेकर मेरे पास आई तो आन द और
उ साह से फूटी पड़ती थी और वे चारी जी ख र क पोशाक म च पल चटखाते प नी के
अनुगत दास या अदली बने साथ थे। मने िवनोद से पछ ू ा–‘‘किहये ठीक-ठीक नौकरी बजाते ह?
तन वाह तो समय पर वसल ू हो जाती है?’’ तो हँसकर बोले–तन वाह तो घाटे म है। इस तदबीर
से तो इनाम इकराम इतना िमलता है िक या कहँ।’’
छठा-प
‘‘हमारे िववाह को अठारह वष बीत गए। इस बीच हमारे सात स तान हई ं। ई र कृपा से सब
जीिवत ह, पर त ु आपको यह सन ु कर शायद आ य होगा िक अपने इस अठारह साल के वैवािहक
जीवन म मझ ु े एक बार भी स चे स भोग का सख ु नह िमला। संसार के जैस े सब काम होते ह,
उसी भाँित हमारी गहृ थी चलती रही और जीवन का े भाग-यवु ाव था–हमारी इस कार बीत
गई जैस े सपने क बात हो। कभी भी मने यौवन का आन द अनभ ु व नह िकया, कभी भी जीवन
म आन ददायक म ती नह आई।’’
‘‘मझु से अिधक अभािगनी मेरी प नी रही। इन अठारह वष म एक बार भी उसने स भोग म
िह सा नह िलया। म समझता हँ उसे आज तक यह पता नह है िक स भोग म भी िकसी कार
का आन द होता है, य िप उसने सात ब च को ज म िदया है। यह तो कहने क बात ही नह
िक कभी उसने िकसी प म मझ ु े उ िे जत करने क चे ा क हो। मने जब-जब उसे स भोग के
आन द क विृ के िलए उस आन द या उ ज े ना के आ दोलन म भाग लेन े क चे ाएँ क –
मझु े सफलता नह िमली।’’
‘‘िववाह के ारि भक िदन म वह एक हद दज क शम ली यवु ती बनी रही। काम-स ब धी
छेड़-छाड़ को वह कभी पस द नह करती थी। पीछे थोड़ा उसका िहयाव खल ु ा तो उसने िनि त
प से यह मत कट िकया िक भोग-िवलास एक ग दी बात है। भली ि य को यह काम नह
करना चािहए। य िप वह स भोग से डरती न थी, पर त ु केवल स तान-उ पि के िलए स भोग
कर लेन े क तो अनम ु ित दे देती थी, बाक समय म इस कदर िवरोध, ना-न,ू च -चपड़ करती थी
िक मेरा सारा उ लास ठ डा पड़ जाता था और ऐसी अव था म म कभी जबद ती से भोग करता
था तो वह अनभ ु व करती थी िक उस पर अ याचार हो रहा है और म स भोग क समाि म इतना
िनराश और िन सािहत होता था िक जैस े एक बहत-ही बरु ा काम मने िकया हो।’’
‘‘अ त म जैसा बहत लोग करते ह मझ ु े भी करना पड़ा। पहले वे यागमन म मेरी विृ
चली और इसके बाद मझ ु े एक सय ु ोग िमल गया। मेरे ही आिफस क एक एॅ लो इि डयन लड़क
से मेरी िम ता हो गई और उसके साथ स भोग करने से जो स चा सख ु े िमला उसी ने मझ
ु मझ ु े
अब तक जीिवत रखा। इससे थम तक तो म ऐसा िनराश और उदास रहता था जैस े अ सी वष
का बढ़ ू ा हो गया हँ। सात वष तक उस लड़क के साथ मेरी िम ता रही। प नी से मेरा स ब ध
स तान उ प न करने तक ही रहा। वह भी खश ु , म भी खश ु । इस िम ता क बात अ त तक
िछपी ही रही। अब मेरे दुभा य से मेरी उस िम लड़क क म ृ य ु हो गई। मेरा स चा जीवन-साथी
ही चला गया। मेरा दय शोक और िनराशा से प रपण ू है। म नह जानता िक या क ँ ? यह म
अपना दुभा य ही समझता हँ िक म पण ू व थ हँ और वाभािवक कामवेग अभी तक मेरे शरीर म
है, स भोग का आन द त ृ होकर भोगे िबना म रह नह सकता। वे याओ ं से स ब ध रखकर
वा य और ित ा पर खतरा उठा नह सकता और अब इस बयालीस वष के आदमी पर कोई
लड़क रीझ कर यार करे गी, ऐसी आशा नह है।’’
‘‘अपनी प नी को म िन स देह यार करता हँ। वह बड़ी अ छी औरत है। आदश गिहणी ृ
और माँ है पर ठ डी प नी है। जैस े उसके र म गम है ही नह । म चाहता हँ मेरी प नी का यह
ठ डापन िपघल जाय उसके दय म कामाि न सल ु ग जाय और हम दोन एक दूसरे को स भोग
के आन द का परू ा-परू ा आदान- दान कर सक, िजसका स चा रस म चख चक ु ा हँ और चाहता
हँ िक मेरी प नी भी उसका आ वादन करे ।’’
‘‘आप मेरी हँसी उड़ा सकते ह। इसिलए िक इस उ म यह बात म करता हँ, पर त ु म अपनी
उ पर यान नह दे सकता, म तो अपने मन क बात करता हँ। मझ ु े भख
ू है तो उ क या
बाधा और म अपनी प नी को अपनी संिगनी बनाना चाहता हँ तो इसम हँसने क बात या है।
या आप मेरी सहायता करगे?’’
मने उ ह अपने वीय क जाँच करा कर उसक रपोट तुर त भेजने को िलखा। साथ ही उनक
प नी के स ब ध म कुछ िकए। रपोट देखकर ात हआ िक वीय के क टाणु अ य त
कमज़ोर ह। य िप उनक आकृित म कोई दोष नह था।
प नी म थोड़ी बीजकोष स ब धी िवकृित थी, पर यह अितसाधारण केस था जैसा ाय:
हआ ही करता है।
मने उ ह ‘पेरे डीन’ क बीस सुइयाँ लगवाने क सलाह दी और लोह कैलिशयम का एक
िम ण दोन को िदया। सुइय क मा ा भी मने िनयत कर दी और उनक प नी को ‘ओवरी’ का
एक साधारण िनचोड़ सेवन करने को कहा। साथ ही उ ह नीचे िलखी िहदायत भी कर द ।
1. स भोग कम से कम एक स ाह के अ तर पर क िजए।
2. ऋतु- नान के बाद आठव व बारहव िदन के बीच दो-दो िदन के अ तर से केवल तीन
बार स भोग क िजए।
3. इस िनयम का पालन औषध-सेवन समा होने पर होना चािहए। इस काल म यथासंभव
स भोग करना चािहए।
4. साधारण वा य का परू ा यान रिखए भोजन, न द और प र म िनयिमत रिखए।
5. क ज करने वाले तथा ग र भोजन मत क िजए। फल खबू खाइए। खासकर ताजा
न ब,ू नारं गी और अंगरू ।
6. खबू धपू सिकए।
7. इतना म क िजए िजतने म शरीर थक जाय।
तीसरे ही मास इस ी को गभ रह गया और यथासमय व थ बालक का ज म हआ।
दसवाँ-प
‘‘तीन वष से म दर रोग से पीिड़त हँ और िदन पर िदन कमजोर होती जा रही हँ। तबीयत
िनर तर दबी हई रहती है। न जाने या कारण है, मेरी भीतरी जननेि य को बहत ज द सद
लग जाती है, और बेरंग का िचपिचपा दुगि धत पानी-सा िनकलने लगता है। बहत िदन तक मने
‘डूश’ िलया और अनेक लेडी डा टर का इलाज कराया, पर त ु कोई लाभ नह हआ। उ टे कमर
और िपंडिलय का दद बढ़ गया।’’
ु े एकदम थका डाला है और िकसी भी काम म मझ
‘‘इस बीमारी ने मझ ु े उ साह नह िमलता।
ितस पर मेरे िसर पर एक और िवपि यह है िक मेरे पित व -बेव मझ ु े तंग करते रहते ह। वे
बला कार करने से भी नह चक ू ते। बला कार क बहत बात म सनु ती थी। अब यह अनभ ु व करती
हँ िक वा तव म बला कार िकतना क कर होता है। मेरे ‘ना’ कहने से वे िबगड़ते ह और मार-
पीट करने पर आमादा हो जाते ह।’’
‘‘हाँ, कभी-कभी प ेशाब म जलन और योिन ार म अस खाज होती है, िजससे म बहत
क पाती हँ। उस समय तो मझ ु े उनका जोरो-जु म िबलकुल अस और महाक दायक हो
जाता है। मने मायके जाने क बहत चे ा क , पर वे भेजते नह ह। कृपया मझ ु े सहायता
पहँचाइए।’’