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कल्प - संविदा

संविदा अधिनियम की धारा 68 से 72 में उन संबध ं ों के बारे में उल्लेख किया गया है जो संविदा द्वारा सजि ृ त
संबध ं ों के सदृश्य होते हैं परं तु वह किसी संविदा द्वारा सजि ृ त नहीं होते हैं। वास्तव में यह संबध ं प्राकृतिक न्याय एवं
साम्या के आधार पर विधि द्वारा आरोपित किए जाते हैं। ऐसे संबध ं के लिए पक्षकारों की सहमति आवश्यक नहीं
होती है । अंग्रेजी विधि में ऐसे संबध ं को संविदा कल्प नाम दिया गया है सर्वप्रथम संविदा कल्प की व्याख्या मोसेस
बनाम मैक्फर्रनाल में लार्ड मैंसफील्ड ने इस आधार पर की थी कि कानन ू पर्ण
ू धनी होना रोकता है जिसका तात्पर्य
है कि एक व्यक्ति को किसी दस ू रे की कीमत पर धनवान होने की अनम ु ति नहीं दी जाएगी ।
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 68 से 72 में उन संबध ं ों के बारे में उल्लेख किया गया है जो संविदा
द्वारा सजि ृ त संबध ं ों के सदृश्य होते हैं। जिन्हें संविदा कल्प भी कहा जाता है वास्तव में इन धाराओं में कोई वैध
संविदा नहीं होती किंतु न्याय प्रदान करने के लिए न्यायालय यह मान लेता है कि संविदा हुई है और उसके पक्षकार
या उसकी संपत्ति को दाई ठहराया जाता है । इन धाराओं की पथ ृ क पथ ृ क व्याख्या इस प्रकार किया जा सकता है -
धारा 68- धारा 68 को यदि ध्यान से दे खा जाए तो उसमें दो नियम दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं -
नियम 1- यदि कोई व्यक्ति संविदा करने में असमर्थ व्यक्ति को जीवन में उसकी योग्य आवश्यक वस्तु प्रदान
करता है तो ऐसा व्यक्ति उस असमर्थ व्यक्ति की संपत्ति से प्रतिपर्ति ू पाने का हकदार है ।
जैसे- ए, पागल बी, को जीवन में उसकी स्थिति के योग्य आवश्यक वस्तु प्रदान करता है ए, बी की संपत्ति से
प्रतिपर्तिू पाने का हकदार है !
नियम 2- इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को भी जीवन में उसकी स्थिति के योग्य आवश्यक वस्तु
प्रदान करता है जिसका भरण पोषण एकरने के लिए उपरोक्त असमर्थ व्यक्ति बाद हो तो वह व्यक्ति उपरोक्त
असमर्थ व्यक्ति की संपत्ति से प्रतिपर्ति ू पाने का हकदार है जैसे ए पागल भी की पत्नी एवं बच्चों को जीवन में
उनकी स्थिति के योग आवश्यक वस्तए ु ं प्रदान करता है एबी की संपत्ति से इसकी प्रतिपर्ति ू पाने का हकदार है ! नोट-
जीवन में उसकी स्थिति के योग्य के अंतर्गत वही चीजें आती हैं जिस जीवन तर में रह रहा है और उसे उस चीज की
यक्ति
ु यक्
ु त रूप से आवश्यकता है ।
धारा 68 साम्या एवं प्राकृतिक न्याय पर आधारित है जहां तक आवश्यकताओं का प्रश्न है उसकी कोई सच ू ी नहीं
बनाई जा सकती है हां इतना जरूर कहा जाता है कि आवश्यकताओं में विलासिता एवं ऐश्वर्य पर्ण ू सामग्री शामिल
नहीं है जयराम बनाम महादे व फिर भी विभिन्न न्यायिक निर्णयों से यह सिद्ध हो चक ु ा है कि निम्नलिखित चीजें
आवश्यकताओं में आती हैं -
१. अवयस्क की की शिक्षा के लिए आवश्यक व्यय।
२. अवश्य के विवाह के लिए आवश्यक एवं यक्ति ु यक्
ु त खर्च ।
३. अवयस्क की बहन की शादी में हुआ खर्च ।
४. अवयस्क की पत्नी या पति या माता-पिता के दाह संस्कार में किया गया खर्च ।
५. अवयस्क व्यक्ति को श्राद्ध के लिए किया गया खर्च। ६. अक्षम व्यक्ति के आध्यात्मिक लाभ के लिए किया
गया यक्ति ु यक्
ु त खर्च।
७. अक्षम व्यक्ति की संपत्ति की सरु क्षा के लिए किया गया खर्च।
धारा 69 कहती है कि यदि किसी भग ु तान के लिए विधि द्वारा बाध्य व्यक्ति भग ु तान नहीं करता है तो उस
भग ु तान में जो हितबद्ध व्यक्ति है उस भ ग
ु तान को कर सकता है और उस व्यक्ति से क्षतिपर्ति
ू प्राप्त करने का उसे
अधिकार भी है जो भग ु तान के लिए विधि बाध्य है ।

नोट- धारा 69 भी लोक नीति पर आधारित है धारा 69 का सहारा संदाय करने वाले व्यक्ति को तभी मिल सकता है
जब उसने ऐसा संदाय सद्भावपर्व ू क किया हो।
सेकेंडरी आफ स्टे ट बनाम फर्नांडिस के मामले में न्यायालय ने यह निर्धारित किया की धारा 69 का लाभ उस
व्यक्ति को तभी दिया जा सकता है जब उसने किसी तीसरे व्यक्ति को भग ु तान किया हो।
धारा 70 अनग्र
ु हिक कार्य का फायदा उठाने वाले व्यक्ति की बाध्यता-
नियम 1- जब एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए विधि पर्व ू क कोई कार्य करता है और उसका आशय इसे
निशल् ु क करने का नहीं है अर्थात सशल् ु क करने का है और दस ू रा व्यक्ति उस कार्य का लाभ उठाता है तो लाभ उठाने
वाला व्यक्ति उस कार्य के लिए प्रति कर दे गा।
उदाहरण- ख, की संपत्ति को क, आग से बचाता है यदि परिस्थितियां दर्शित करती हो कि क, का आशय अनग्र ु हित
कार्य करने का था तो वह खासे प्रति कर पाने का हकदार नहीं है ।
नियम 2- जब एक व्यक्ति किसी दस ू रे व्यक्ति को कोई वस्तु प्रदान करता है और उसका आशय इसे निशल् ु क
प्रदान करने का नहीं है और दस ू रा व्यक्ति उस वस्तु का लाभ उठाता है तो लाभ उठाने वाला व्यक्ति उस वस्तु को
वापस दे ने के लिए बाध्य है ।
उदाहरण- एक व्यापारी क, कुछ माल ख, के गह ृ पर भल ू से छोड़ जाता है उस माल को अपने माल के रूप में बरतता
है उसके लिए को, को संदाय करने के लिए वह बाध्य है ।
चंद्र बनाम मध्यप्रदे श राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि यदि सरकार के साथ कोई व्यक्ति
संविदा करता है और सरकार उस संविदा का लाभ उठाती है तो भले ही वह संविदा शन् ू य ही क्यों ना हो फिर भी धारा
70 के अधीन सरकार को उस पक्षकार को क्षतिपर्ति ू दे नी पड़ेगी।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम बी.के. मंडल के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित किया की धारा 70 का
उद्दे श्य है कि कोई व्यक्ति गलत ढं ग से धनवान ना हो जाए।
धारा 71 - माल पड़ा पाने वाले व्यक्ति का दायित्व-:
धारा 71 में कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी अन्य का माल पड़ा हुआ पाता है और उसे अपनी अभिरक्षा में ले लेता
है तो उसका उस माल के प्रति वैसा ही उत्तरदायित्व है जैसा कि उपनिहिती का उपनिहित माल के लिए होता है ।
संविदा अधिनियम 1872 की धारा 151 में उपनिहिती के दायित्व के बारे में बताया गया है जिसमें कहा गया है कि
उपनिहिती, उपनिहित माल के संदर्भ में उतनी ही सतर्क ता बरतने के लिए बाध्य है जितना कि एक सामान्य प्रज्ञा
वान व्यक्ति समान परिस्थितियों में उसी मात्रा, गण ु वत्ता तथा मल् ू य की अपनी वस्तु के संबध ं में सतर्क ता बरतता
है ।
धारा 72 उस व्यक्ति का दायित्व जिसको भल ू से या प्रपीडन के अधीन धन का संदाय या चीज का परिदान किया
जाता है -
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 72 में 4 नियम दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-
नियम 1- यदि कोई व्यक्ति किसी दस ू रे व्यक्ति को भल ू से धन दे दे ता है तो वह उस से उस धन को वापस ले
सकता है ।
उदाहरण- ए और बी संयक् ु त रूप से सी के ₹100 के कर्जदार हैं ए, सी को अकेले ₹100 ही दे आता है और इस बात
को न जानते हुए बी भी सी को ₹100 दे आता है यहां पर सी, बी को ₹100 दे ने के लिए बाध्य है क्योंकि बी द्वारा
सी को यह धन भल ू से दिया गया है ।
नियम 2- यदि कोई व्यक्ति किसी दस ू रे व्यक्ति को भल ू से कोई चीज दे दे ता है तो वह उससे उस चीज को वापस ले
सकता है ।
उदाहरण- ए, बी को भल ू से अपनी कीमती घड़ी दे दे ता है तो वह भी, से अपनी घड़ी को वापस ले सकता है ।
नियम 3- कि कोई व्यक्ति किसी दस ू रे व्यक्ति को प्रपीडन के कारण धन दे दे ता है तो वह उससे उसे वापस ले
सकता है ।
उदाहरण- ए, रे लवे कंपनी को उसके प्रपीडन के कारण अधिक पैसा दे कर अपना सामान छुड़ाता है और तत्पश्चात
ए, ने जितना पैसा अधिक दिया है उतना वह रे लवे कंपनी से वापस ले सकता है ।
नियम 4- यदि कोई व्यक्ति किसी दस ू रे व्यक्ति को प्रपीडन के कारण कोई वस्तु दे दे ता है तो वह उससे वापस ले
सकता है ।
उदाहरण- ए, अपनी गाड़ी प्रपीडन के कारण बी, को दे दे ता है तो वह भी, से उसे वापस ले सकता है ।

नोट- धारा 72 साम्या पर आधारित है ।


● यहां प्रपीडन का वही अर्थ है जो भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 15 में दिया गया है ।
● शिव प्रसाद बनाम शिरीष चंद्र के मामले में प्रिवी काउं सिल ने यह निर्धारित किया की धारा 72 में जो भलू
शब्द का इस्तेमाल किया गया है उसमें तथ्य की भल ू एवं विधि की भल ू दोनों शामिल है ।
जम्मू कश्मीर बैंक बनाम बनाम अतरुलनिशा के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि
यदि कोई व्यक्ति बैंक में जाकर किसी दसू रे व्यक्ति के खाते में भलू से पैसा जमा करा दे ता है तो वह उसे

धारा 72 के अंतर्गत वापस नहीं ले सकता है क्योंकि बैंकिग संव्यवहार धारा 72 का अपवाद है ।

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