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दयालु शब्द नहीं, जीवन का आधार है| ये वो शक्ति की डोर है जो हमें समाज में अच्छे

कार्य को उजागर करने के लिए प्रेरित करती है | ये वो डोर है जो आस्मा में उड़ती
चिड़िया से ले कर जमी के अं दर छुपी एक चींटी तक को बां ध सकती है | किसी सीमा रे खा
से बधित न होकर, ये नायाब तोहफा मानव परिस्तिथि का मूलभूत हिस्सा है जो धर्म ,
लिं ग, जीव, राजनीति और अपनों से परे है |

दयालु शब्द का जिक् र जब भी होता है, एक चे हरा मे री आँ खों को अपना बना ले ता है |


आप सोच रहे होंगे कोई अपना होगा, शायद ये माँ कहे गा या जरूर कोई खास होगा
,नहीं! वो कोई ऐसा नहीं है वो तो केवल कुछ छड़ को दिखा था, न जाने क्यों दिल में
समां गया|

इक शाम मै काम के नशे में चूर, दफ्तर के पीछे वाले गे ट के पास लगी गु मटी से अपनी
गरम चाय की प्याली और बिस्कुट का छोटा पै केट ले कर शां ति खोजते हुए दरू जाकर बै ठ
गया| मैं ने एक छोटे से लड़के को मु झे घूरते हुए दे खा, पता नहीं क्यों मैं ने उससे इशारे में
मे रे पास आने को कहा ,वो बिना किसी हिचकिचाहट के दौड़ा चला आया| मैं ने पूछा नाम,
तो वो कुछ भी नहीं बोला| मे रा अधीर मन नहीं माना, मैं सवाल करता रहा और वो
बिस्कुट दे खता रहा| हारकर मैं ने पूछा, खाये गा! बड़ी ही मासूमियत से उसने सर को हिला
दिया|

मैं ने बिस्कुट जै से ही आगे किया, मानो फुर्ती का आगमन हो गया| पै केट मे रे हाथ से
उसकी जे ब में और वो ते ज़ी से उलटी दिशा पे भागने लगा| मे रा अशांत दिमाग न जाने
क्यों मु झे दिन भर की थकान के बाद भी उसका पीछा करवाने लगा, मैं दफ्तर भूलकर बस
उसमे खो गया|

पहले मु झे लगा शायद ये बोल नहीं पाता होगा तभी मे री बातो का जवाब नहीं दिए,
परन्तु एक आलिशान बं गले के पीछे पतली गली में जाते हुए वो भोला, भोला पुकारने
लगा| इक पल को मु झे क् रोध आया कि मैं ने इतना पूछा ले किन इसने मु ख से एक शब्द भी
नहीं निकला और अब अपने दोस्त को बु ला रहा है |

पर जब भोला आया और मैं ने उस लड़के को जो कहते सु ना तो मानो मे रे पै रो के नीचे


जमीं ही नहीं रही| उस लगभग ७-८ वर्षीय ‘राजा ’ ने भोला के बालो में हाथ फेरते हुए
कहा, " भोला तू बहुत भूखा है न, तूने भी २ दिन से कुछ नहीं खाया दे ख मैं क्या लाया
हँ ?
ू , तू खा ले मैं ने तो ढे र सारा पानी पी लिया है और अपना आज का काम चल
जाये गा|", और इतना कहकर बिस्कुट का पै केट खोलके जमी पे बिखरा दिया ,उसके प्यारे
भोला ने मानो अमृ तपान कर लिया| एक भूखा लड़का और इतना दयालु! मतलब खु द २
दिवस से कुछ खाया नहीं और बिना किसी चिं ता या दर्द के अपना आखिरी सहारा एक
जानवर को खिला दिया| अब इसे राजा न कहे तो शब्दावली का अपमान होगा|

वो पल मानो ईश्वर के दर्शन सामान था, क्योकि परमात्मा ही तो ऐसे हमारा ख्याल रखता
है | माँ अपने अं श के लिए भूखी रह सकती है , बाप परिवार का पे ट भरने में खु द खाना
भूल सकता है ! पर ये कौन सी डोर है जो इस नन्ही सी जान को दै विक बना रही है ! ये
है दयालुता कि कड़ी, जो कोई दिखावा नहीं है |

जो दयालु होते है वो सदै व दुसरो के दुःख में उनके सहायक होते है और उनको खु श करने
कि कोशिश करते है | "एक इं सान कि महानता इं सान बनने में नहीं, बल्कि इं सान के प्रति
दयालु बनने में होती है ", हमारे परमपिता महात्मा गाँ धी द्वारा बोला गया एक कथन जो
जीवन का सत्य दर्शाता है |

परन्तु उस दिन मैं ने एक  नवीन सत्य सीखा, एक इं सान को सिर्फ इं सान के प्रति नहीं बल्कि
हर जीवित - अजीवित वस्तु के प्रति भी दयालु होना चाहिए| शायद एक बार मनु ष्य
अपना रास्ता खु द बिना किसी कि उदारता के पा भी ले ले किन ये मरती मछली, ये विलु प्त
होती प्रजातियां और ये मरती पृ थ्वी माता को हमसे दयालु ता, उदारता कि सख्त जरुरत
है |
उस बालक कि सु न्दर लीला दे खकर, मैं ने जीवन में सदै व दयालु और उदार रहने का वचन
लिया है , आशा करता हँ ू ये किस्सा आपको भी सबके प्रति दयालु बनने को प्रेरित करे |

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