Krishna Krut Ram Naam Amrutam Stotram

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श्रीपद्मपुराण वर्णित रामनामामृत स्त्रोत

श्रीकृष्ण अर्ुिन संवाद~


अर्जुन उवाच~

भुक्तिमुक्तिप्रदातृणां सविकामफलप्रदं ।
सविर्सक्तिकरानन्त नमस्तुभ्यं र्नादि न ॥

अर्ु:~ सभी भोग और मजक्ति के फल दाता, सभी कमों


का फल दे ने वाले, सभी कार्ु को ससद्ध करने वाले
र्नादु न मैं आपको नमन करता हूं ।

यं कृत्वा श्री र्गन्नाथ मानवा याक्तन्त सद्गर्तम् ।


ममोपरर कृपां कृत्वा तत्त्वं ब्रर्िमुखालयम्।।

अर्ु:~हे श्रीर्गन्नार्! मनजष्य ऐसा क्या करें सक उसे अूंत


में सद्गसत हो? वह तत्व क्या है ? मेरे पर कृपा करके
अपने ब्रह्ममजख से बताइए।
श्रीकृष्ण उवाच~

यर्द पृच्छर्स कौन्तेय सत्यं सत्यं वदाम्यिम् ।


लोकानान्तु र्िताताथािय इि लोके परत्र च ॥

अर्ु:~ हे कजूंती पजत्र! र्सद तजम मजझसे पूछते हो तो मैं


सत्य सत्य बताता हूं , इस लोक और परलोक में सहत
करने वाला क्या है ।

रामनाम सदा पुण्यं र्नत्यं पठर्त यो नरः ।


अपुत्रो लभते पुत्रं सविकामफलप्रदम् ॥

अर्ु:~श्रीराम का नाम सदा पजण्य करने वाला नाम है ,


र्ो मनजष्य इसका सनत्य पाठ करता है उसे पजत्र लाभ
समलता है और सभी कामनाएूं पूर्ु होती है ।
मङ्गलार्न गृिे तस्य सविसौख्यार्न भारत।
अिोरात्रं च येनोिं राम इत्यक्षरद्वयम्।।

अर्ु:~हे भारत! उसके घर में सभी प्रकार के सजख और


मूंगल सवरासर्त हो र्ाते हैं , सर्सने सदन-रात श्रीराम नाम
के दो अक्षरोूं का उच्चारर् कर सलर्ा।

गङ्गा सरस्वती रे वा यमुना र्सन्धु पुष्करे ।


केदारे तूदकं पीतं राम इत्यक्षरद्वयम् ॥

अर्ु~सर्सने श्रीरामनाम के इन दो अक्षरोूं का उच्चारर्


कर सलर्ा उसने श्रीगूंगा, सरस्वती, रे वा, र्मजना, ससूंधज,
पजष्कर, केदारनार् आसद सभी तीर्ों का स्नान, र्लपान
कर सलर्ा।
अर्तथेः पोषणं चैव सवि तीथािवगािनम् ।
सविपुण्यं समाप्नोर्त रामनाम प्रसादतः ।।

अर्ु:~उसने असतसर्र्ोूं का पोषर् कर सलर्ा, सभी तीर्ों


में स्नान आसद कर सलर्ा, उसने सभी पजण्य कमु कर
सलए सर्सने श्रीराम नाम का उच्चारर् कर सलर्ा।

सूयिपवि कुरुक्षेत्रे कार्तिक्ां स्वार्म दर्िने।


कृपापात्रेण वै लब्धं येनोिमक्षरद्वयम्।।

अर्ु:~उसने सूर्ु ग्रहर् के समर् कजरुक्षेत्र में स्नान कर


सलर्ा और कासतुक पूसर्ुमा में कासतुक र्ी का दर्ुन
करके कृपा प्राप्त कर ली सर्सने श्रीराम नाम का
उच्चारर् कर सलर्ा।

न गंङ्गा न गया कार्ी नमिदा चैव पुष्करम् ।


सदृर्ं रामनाम्नस्तु न भवक्तन्त कदाचन।।
अर्ु:~ ना तो गूंगा, गर्ा, कार्ी, प्रर्ाग, पजष्कर,
नमुदासदक इन सब में कोई भी श्रीराम नाम की मसहमा
के समक्ष नहीूं हो सकते।

येन दत्तं हुतं तप्तं सदा र्वष्णुः समर्चितः।


र्र्ह्वाग्रे वतिते यस्य राम इत्यक्षरद्वयम्।।

अर्ु:~उसने भाूं सत-भाूं सत के हवन, दान, तप और सवष्णज


भगवान की आराधना कर ली, सर्सकी सर्ह्वा के
अग्रभाग पर श्रीराम नाम के दो अक्षर सवरासर्त हो गए।

माघस्नानं कृतं येन गयायां र्पण्डपातनम् ।


सविकृत्यं कृतं तेन येनोिं रामनामकम्।।

अर्ु:~ उसने प्रर्ागर्ी में माघ का स्नान कर सलर्ा,


गर्ार्ी में सपूंडदान कर सलर्ा उसने अपने सभी कार्ों
को पूर्ु कर सलर्ा सर्सने श्रीराम नाम का उच्चारर् कर
सलर्ा।

प्रायर्ित्तं कृतं तेन मिापातकनार्नम् ।


तपस्तप्तं च येनोिं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

अर्ु~उसने अपने सभी महापापोूं का नार् करके प्रार्सित


कर सलर्ा और तपस्या पूर्ु कर ली सर्सने श्रीराम नाम
के दो अक्षर का उच्चारर् कर सलर्ा।

चत्वारः पर्ठता वेदास्सवे यज्ञाि यार्र्ताः ।


र्त्रलोकी मोर्चता तेन राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

अर्ु~उसने चारोूं वेदोूं का साूं गोपाूं ग पाठ कर सलर्ा सभी


र्ज्ञ आसद कमु कर सलए उसने तीनोूं लोगोूं को तार
सदर्ा सर्सने श्रीराम नाम के दो अक्षर का पाठ कर
सलर्ा।
भूतले सवि तीथािर्न आसमुद्रसरांर्स च।
सेर्वतार्न च येनोिं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

अर्ु~उसने भूतल पर सभी तीर्ु, समजद्र, सरोवर आसद


का सेवन कर सलर्ा सर्सने श्रीराम नाम के दो अक्षरोूं
का र्ाप कर सलर्ा।

अर्जुन उवाच~

यदा म्लेच्छमयी पृथ्वी भर्वष्यर्त कलौयुगे ।


र्कं कररष्यर्त लोकोऽयं पर्ततो रौरवालये ।।

अर्ु~भसवष्य में कलर्जग आने पर पूरी पृथ्वी मलेच्छ मर्ी


हो र्ाएगी इसका स्वरूप रौ-रौ नकु की भाूं सत हो
र्ाएगा तब र्ीव कौन सा साधन करके परम पद
पाएगा?

श्रीकृष्ण उवाच~

न सन्दे िस्त्वया काय्र्यो न विव्यं पुनः पुनः ।


पापी भवर्त धमाित्मा रामनाम प्रभावतः ।।

अर्ु~र्ह सूंदेह करने र्ोग्य नहीूं है , र्ैसे सूंदेह व्यर्ु है


वैसे बार-बार विव्य दे ना भी व्यर्ु है । कैसा भी पापी
हो श्रीराम नाम के प्रभाव से वह धमाु त्मा हो र्ाता है

न म्लेच्छस्पर्िनात्तस्य पापं भवर्त दे र्िनः ।


तस्मात्प्रमुच्यते र्न्तुयिस्मरे द्रामद्वचत्तरम् ।।
अर्ु~उसे मलेच्छ के स्पर्ु का भी पाप नही ूं होता,
मलेच्छ सूंबूंसधत पाप भी छूट र्ाते हैं र्ो श्रीराम नाम के
दो अक्षरोूं का र्ाप करते हैं ।

रामस्तत्वमधीयानः श्रिाभक्तिसमक्तितः।
कुलायुतं समुद्धृत्य रामलोके मिीयते ।।

अर्ु~र्ो श्रीराम से सूंबूंध रखने वाले स्त्रोत का पाठ


करते हैं तर्ा सर्नकी भक्ति, सवश्वास और श्रद्धा श्रीराम
में सजदृढ़ है । वह लोग अपने दस हजार पीसढ़र्ोूं का
उद्धार करके श्रीराम के लोक में पूसर्त होते है ।

रामनामामृतं स्तोत्रं सायं प्रातः पठे न्नरः ।


गोघ्नः स्त्रीबालघाती च सवि पापैः प्रमुच्यते ।।
अर्ु~र्ो सजबह र्ाम इस रामनामामृत स्त्रोत का पाठ
करते हैं वे गौ हत्या, स्त्री और बच्चोूं को हासन पहूं चाने
वाले पाप से भी बच कर मजि हो र्ाते हैं ।

(इर्त श्रीपद्मपुराणे रामनामामृत स्त्रोते श्रीकृष्ण अर्ुिन


संवादे संपूणिम्)

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