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Dhyaan Book by J Krishnamurthy
Dhyaan Book by J Krishnamurthy
अनुवादक
हरीश, श
Dhyaan
Hindi translation of ‘Meditations’ Author : J. Krishnamurti
Translated by Harish, Shakti
For the original English Text
© Krishnamurti Foundation Trust Ltd., Brockwood Park,
Bramdean, Hampshire SO24 0LQ, England
For the Hindi Transslaiton
© Krishnamurti Foundation India
Vasant Vihar, 124-126, Greenways Road, Chennai-600 028
जे. कृ णमू त
संकलन : ईव लन लाउ
ा कथन
मनु य ने अपने संघष से पलायन करने के लए अनेक कार के यान का आ व कार कर लया
है। इन सब का आधार है अभी सा, संक प एवं उपल ध क उ कंठा, और इनम न हत है ं
तथा कह प ंचने के लए संघष। जान-बूझकर और सोच-समझकर कया जाने वाला यह यास
हमेशा सं कारब मन क सीमा म ही होता है, और इसम कोई वातं य नह है। यान करने
क सारी चे ा और सारा आयोजन यान का नषेध है।
यान का अथ है वचार का अंत हो जाना। और तभी एक भ आयाम कट होता है जो
समय से परे है।
यान व तुतः जीवन से कुछ अलग नह है। यह जीवन का ही सार है, त दन के जीने का ही
नचोड़ है। र कह बजती उन घं टय को यानपूवक सुनना, अपनी प नी के साथ राह चलते
उस कसान क उ मु हंसी को सुनना, साइ कल पर भागी जा रही उस छोट -सी लड़क के
घंट बजाने को यानपूवक सुनना— यान जीवन का यह सम त प है, इसका एक खंड मा
नह । ऐसा यान आपको जीवन क सम ता के त उ मुख कर दे ता है।
‘जो है’ उसे दे खना और उसके पार चले जाना ही यान है।
श द के बना दे खना अथात न वचार अवलोकन अ यंत वल ण घटना म से एक है।
य क तब अवलोकन अ य धक ती और सघन होता है—अवलोकन क इस या म न
केवल म त क ब क सारी इं यां भाग लेती ह। यह अवलोकन बु ारा कया गया आं शक
और खं डत अवलोकन नह है, न ही यह कोई भावना का मामला है। इसे सम अवलोकन
कहा जा सकता है, और यह यान का अंग है। यान म बोधकता से र हत बोध असीम क
ऊंचाई और गहराई के साथ होने वाला संवाद है। यह बोध कसी व तु को ‘ ा के बना दे खने’
क या से सवथा भ है, य क यान के बोध म न कोई वषय होता है और इस लए न कोई
अनुभव। ले कन यान तब भी घ टत हो सकता है जब आंख खुली ह और आप तमाम तरह के
य से घरे ह । हालां क तब ये य और व तुए ं कोई मह व नह रखत । आप उ ह दे खते ह,
ले कन यह दे खना पहचानने क या नह है। इसका अथ है क वहां कुछ अनुभव नह कया
जाता।
ऐसे यान का या अथ है? कोई अथ नह है; कोई उपयो गता नह है। कतु उस यान म परम
हष और आ ाद का पंदन है, जसक तुलना सुख से, मनो वलास से नह क जा सकती। यह
आ ाद म त क को, दय को एवं आंख को नद षता क गुणव ा दान करता है। जीवन को
जब तक सम तः एक नयी घटना क तरह नह दे ख लया जाता, तब तक यह बंधी-बंधायी
दनचया, ऊब और एकरसता का एक नरथक सल सला बना रहता है। अतः यान का मह व
महानतम है। यह असीम और अनंत क ओर ार खोल दे ता है।
यान समय के आयाम के भीतर कतई नह है। समय उ ां त को ज म नह दे सकता। समय
केवल ऐसा बदलाव ला सकता है जसम पुनः फेर-बदल क आव यकता पड़ती है—सभी
सुधार का यही हाल होता है। समयज य यान केवल बंधन न मत कर सकता है, मु नह ।
और मु के बना चयन और ं सदै व बना रहता है।
हम समाज क संरचना को बदलना होगा। इसम ा त अ याय, वकृत नै तकता, यु , मनु य
और मनु य के बीच पैदा कये गये वभाजन, नेह और ेम का सवथा अभाव— यही सब व
के वनाश का कारण है। अगर यान केवल आपका गत मामला है, एक ऐसी चीज़ है जो
आपके गत सुख और मौज का साधन है तो यह यान नह है। यान का अथ है, दय और
मन का आमूल प रवतन। यह तभी संभव है जब आंत रक मौन का वह असाधारण एहसास हो
—और यही एहसास धा मक मन को ज म दे ता है। ऐसा मन उसे जानता है जो परम पुनीत है।
हम साथ-साथ यह अ वेषण कर रहे ह क या आप और म इसी ण पूरी तरह बदल सकते ह
तथा एक सवथा व भ आयाम म वेश कर सकते ह—और इसम यान क भू मका है। यान
एक ऐसी थ त है जो अ य धक ा, संवेदनशीलता, ेम और स दय के साम य क मांग
करती है—यह कसी गु ारा आ व कृत कसी णाली का अनुसरण मा नह है।
यान करने का अथ है, समय के त अबोध हो जाना।
यान संसार से पलायन नह है। यह वयं को सम त से अलग करने या अपने आपको चार
ओर से बंद करने क या नह है, ब क यह संसार और इसके तौर-तरीक क समझ है।
संसार हम भोजन, व , आवास तथा सुख एवं इससे जुड़े अनंत ख के सवाय और दे ही या
सकता है!
आकाश अ यंत नीला है, वह नी लमा जो वषा के बाद कट होती है। और यह वषा कई महीन
के सूख े के बाद आयी है। वषा के बाद आकाश धुलकर साफ हो गया है और पहा ड़यां
आनंद वभोर हो रही ह, तथा धरती चुप है। पेड़ के प े-प े पर सूय क करण चमक रही ह और
धरती का एहसास आप अ यंत नकटता से कर रहे ह। तो आप अपने दय और मन के उन गु त
थान और कोन म जाकर यान कर जहां इसके पूव आप कभी नह गये ह।
यान कसी सा य का साधन नह है। वहां न कोई मं ज़ल है, न कह प ं ना है। वह एक
च
ऐसी ग त व ध है जो समय के आयाम म शु होकर समय के पार चली जाती है। यान क हर
व ध और प त वचार को समय के साथ बांध दे ती है, परंत ु हर वचार, हर भाव के त
न प सजगता के साथ उसक या और उसके पीछे कायरत ेरणा को समझना और
साथ ही हर वचार और भाव को वतं तापूवक फलने-फूलने और वक सत होने दे ना यान का
आरंभ है। जब वचार और भाव पूण प से वक सत होकर तरो हत, मृत हो जाते ह, तब यान
समय के पार क एक ग त व ध है। इस ग त व ध म एक परम आ ाद है; इस पूण शू यता म
ेम है, और वहां ेम है वहां व वंस और सृजन है।
यान मन के भीतर क वह यो त है जो या के माग को आलो कत करती है। और इस
यो त के बना म
े का कोई अ त व नह है।
यान का अथ ाथना कतई नह है। ाथना-याचना आ म-दयनीयता क उपज है। जब आप
कसी क और मुसीबत म होते ह, जब आप पर कोई संकट आता है, तभी आप ाथना करते
ह, ले कन जब आपके चार ओर स ता और सुख-चैन होता है, तो वहां कोई याचना नह
होती। यह आ म-दयनीयता जो मनु य के भीतर इतनी गहराई म बैठ ई है, यही हर तरह के
अलगाव का कारण है। और वह जो अलग है या अपने को अलग समझता है, वह हमेशा कसी
ऐसी चीज़ के साथ अपने तादा य क तलाश म रहता है जो उससे अलग न हो, और इस यास
म वह अ धका धक वभाजन और ख ही पैदा करता है। इस दशा और उप व से घबराकर
वह कसी परमे र क पुकार और गुहार करने लगता है या अपने प त क या मन के बनाये
कसी दे वी-दे वता क । इस पुकार का कोई उ र मल भी सकता है, ले कन वह उ र अलगाव
करने वाली आ म-दयनीयता क ही त व न होगी।
यान इस सबसे अ यंत र क बात है। इस े म वचार का वेश नह हो पाता। यहां कोई
अलगाव नह है और इसी लए तादा य भी नह है। यान म सब कुछ कट होता है, वहां राव-
छपाव का कोई थान नह है। वहां हर चीज़ सा ात है, साफ और प है—और तभी ेम का
स दय कट होता है।
आज ातः शू यता ही यान क गुणव ा थी—शू यता यानी समय और अंतराल का सम
खालीपन। यह एक त य है, धारणा या पर पर वरोधी अनुमान का वरोधाभास नह । इस
अद् भुत शू यता से सा ा कार तभी होता है जब सारी सम या क जड़ समा त हो जाती है।
और यह जड़ है वचार— वचार जो वभा जत करता है, चीज़ को पकड़े रहता है। यान म मन
व तुतः अतीतशू य हो जाता है, य प यह वचार के प म अतीत का उपयोग कर सकता है।
यह दन-भर चलता है और रात क न ा बीते ए कल क शू यता है, और इस लए मन उसका
पश कर लेता है जो समयातीत है।
यान केवल शरीर और वचार का नयं ण नह है, न ही यह ाणायाम क कोई प त है।
शरीर को तो व थ, तनावर हत और शांत- थर होना ही चा हए। अनुभू त क संवेदनशीलता
को ती ण बनाना एवं उसे कायम रखना आव यक है और फर यह भी आव यक है क मन
अपने सारे शोर-गुल, उप व तथा खोजने-ढूं ढ़ने के अपने सभी यास स हत मट जाये। परंतु
शु आत शरीर से नह करनी होती, ब क आव यक यह है क मन को उसके सारे मत ,
पूवा ह और वाथ समेत दे खा और समझा जाये। जब मन व थ, जीवंत एवं ऊजा और ाण
से भरा होता है, तो अनुभू त ती और अ य धक संवेदनशील हो जाती है—तब शरीर अपनी
सहज ा से ठ क उसी तरह काय करेगा जैस े इसे करना चा हए—बशत क शरीर ने कसी
आदत और च वशेष का शकार होकर अपनी सहज ा को न न कर लया हो।
वचार भाव को ख म कर डालता है—भाव यानी ेम। वचार केवल सुख दान कर सकता है,
और सुख क खोज म ेम क उपे ा हो जाती है। खाने और पीने का जो सुख है उसका सात य
वचार बनाए रखता है, इस लए वचार ारा संपो षत इस सुख का मा दमन और नयं ण
नरथक है—यह केवल तमाम तरह के ं और दबाव पैदा करेगा।
यान उस नद के समान था, अंतर केवल इतना क इसका न कोई आरंभ था और न अंत; यह
आरंभ आ और फर इसका अंत ही इसका आरंभ था। इसके पीछे कोई कारण नह था और
इसका वाह ही इसका नवीनीकरण था। अपने सतत वाह के कारण यह कभी ठहरता नह था,
जमा नह होता था—इस लए यह कभी पुराना नह हो पाता था। यह न य नूतन था। यह कभी
भी मंद और म लन नह आ, य क इसक जड़ समय के आयाम म थत नह थ । यान
करना अ छा है, इसको आरो पत करते ए नह , यास करते ए नह , ब क एक पतली-सी
धारा से आरंभ कर अंतराल और समय के पार चले जाना, जहां वचार और भाव नह प ंच
सकते, जहां अनुभव है ही नह ।
यान का अथ है ऊजा का सम प से नबध और नमु हो जाना।
वचार अपने चार ओर जो आकाश, जो अंतराल न मत करता है उसम े का अ त व
म
नह होता। यह अंतराल मनु य को मनु य से अलग करता है और इसी म न हत है कुछ ‘होने
और बनने’ क सम त आकां ा, जीवन का संघष, ख और भय। यान इस अंतराल का अंत है
—‘म’ का अंत। तब संबंध का अथ ब कुल भ हो जाता है, य क तब जो अवकाश और
व तार ज म लेता है उसम ‘ सरे’ का अ त व नह होता, य क उसम ‘आपका’ भी अ त व
नह होता।
वचार ेम का सीधे-सीधे नकार है, और वचार उस अवकाश म वेश नह कर सकता जहां ‘म’
नह होता। उस अवकाश म आशीष और साद है जसे मनु य खोजता रहता है और ा त नह
कर पाता। वह इसे वचार क सीमा के भीतर ही खोजता है, और वचार इस आशीष के
आ ाद को न कर दे ता है।
आ था ब कुल अनाव यक है, और आदश भी। ये दोन उस ऊजा का य कर डालते ह
जो त य का यानी ‘जो है’ उसका अनावरण और उद् घाटन करते रहने के लए आव यक है।
आदश के समान आ था भी त य से पलायन है और पलायन म ख का अंत नह है। त य का
ण- त ण बोध ही ख का अंत है। इस बोध क संभावना के लए न कोई व ध है और न
प त—त य के त न प सजगता से ही इस बोध या समझ का ज म होगा। कसी व ध
और प त के अनुसार यान करना, आप ‘जो ह’ उस त य क उपे ा है। कसी ई र को पाने
के लए या कसी अलौ कक दशन, उ ेजना और मनोरंजन क ा त के लए यान करने से
कह अ धक मह वपूण है वयं को समझना, वयं से संबं धत त य को तथा उनके सतत
बदलाव को समझना।
उस घड़ी यान ही मु था, और यह शां त और स दय के एक अ ात जगत म वेश करने के
समान था। यह तमा, तीक, श द या मृ त क तरंग से शू य जगत था। ेम हर पल क मृ यु
था और हर मृ यु ेम का पुनज वन थी। यह ेम आस नह था। इसक जड़ कह नह थ ।
यह ेम अकारण व लत आ और इसक वाला म सावधानीपूवक तैयार क गयी चेतना क
चारद वारी और सीमाएं जलकर भ म हो गय । यह वचार और भाव से परे का स दय था—वह
स दय नह जो श द म, संगमरमर म या कसी कैनवस पर अ भ होता है। यान हष था,
आ ाद था और इसी के साथ थी आशीष क एक वषा।
ेम का फुटन ही यान है।
यान म होने का अथ यह पता लगाना है क ान का अंत हो सकता है या नह और इस लए
ात से मु हो सकती है या नह ।
रात और दन-भर वषा होती रही, और गंदला पानी ना लय और नाल से होता आ समु म
बह चला, इसे मटमैले-भूर े रंग म रंगता आ। समु क रेत पर टहलते ए आप वशाल लहर
को दे ख सकते थे। ये लहर तेज़ी से कनारे के पास आकर भ पूण ढं ग से बल खाते ए टू ट रही
थ । आप हवा के वपरीत टहल रहे थे और तभी अचानक आपको लगा क आकाश और
आपके बीच कुछ भी नह है, और यह खुलापन ही अनंत व तार था। इतनी पूणता से खुला और
अर त होना—पहा ड़य के त, समु के त, मनु य के त—यही यान का सार है।
यान व तुतः अ यंत सरल है। ज टल इसे हम बना दे त े ह। हम इसके आसपास वचार और
धारणा का जाल बुन लेत े ह—यह या है और यह या नह है। ले कन यान इनम से कुछ भी
नह है। चूं क यह अ यंत सरल है, यह हमारी समझ म नह आता य क हमारा मन अ य धक
ज टल, समय के थपेड़ से जजर और समय के घेरे म बंद है। और यही मन दय क ग त व ध
नधा रत करता है, इस लए तब क ठनाई शु हो जाती है। ले कन यान का आगमन तो सहज
प से होता है, अ यंत सुगमता के साथ, जब आप बाहर रेत पर टहल रहे होते ह या खड़क से
बाहर दे ख रहे होते ह या पछली ग मय क धूप से झुलस गयी उन अद् भुत पहा ड़य का
अवलोकन कर रहे होते ह। हम ऐसे पी ड़त और थत मनु य य ह, आंख म आंसू और
ह ठ पर झूठ मु कान लए ए? अगर आप उन पहा ड़य म, जंगल म अकेले घूमने जाय या
र तक फैले ए ेत बालू के कनारे- कनारे अकेले टहलते चले जाय, तो उस एकांत म आपको
मालूम होगा क यान या है।
एकांत के परम आनंद का आगमन तभी होता है जब आप अकेले होने से भयभीत नह होते—
जब आप संसार म रहते ए भी संसार के नह होते, जब कसी चीज़ के त आपक आस
नह होती। तब, आज सुबह उषा का आगमन जस तरह आ था उसी तरह एकांत का यह
आनंद चुपचाप चला आता है और उसी न लता म एक सुनहरा पथ न मत कर दे ता है जो
आरंभ म भी था, अब भी है, और सदै व रहेगा।
यान अ ात म अ ात क ग तशीलता है। वहां आप नह ह, केवल वह ग तशीलता है। इस
ग तशीलता के लए आप अ यंत छोटे पड़ जाते ह या अ यंत बड़े। इस ग तशीलता के न पीछे
कुछ है न आगे। यह वह ऊजा है जसे वचार पी पदाथ छू नह सकता। वचार तो वकृ त है,
य क यह बीते ए कल क उपज है; यह स दय -स दय के जाल म फंसा आ है और इस लए
यह मत है, अ प है। आप जो चाहे कर ल, ले कन ात कभी अ ात तक नह प ंच सकता।
ात के त मृत होना ही यान है।
एक नतांत मौन और न ल मन का यान वह आशीष और साद है जसे मनु य सदा
खोजता रहता है। इस न लता म मौन क हर गुणव ा मौजूद है।
जहाँ एक बार आपने सद् गण
ु क न व रख द , जसका अथ है पर पर संबंध म एक व था,
तो ेम और मृ यु क ऐसी गुणव ा कट होती है जो जीवन क सम ता है। और तब मन
असाधारण प से शांत हो जाता है, वाभा वक प से मौन हो जाता है, न क यह दमन,
अनुशासन और नयं ण ारा मौन कया जाता है। और वह मौन असीम प से समृ होता है।
उसके आगे कोई भी श द, कोई भी वणन कसी काम का नह है। तब मन परम और पूण क
खोजबीन नह करता, वह अब सभी आव यकता से मु है— य क उस मौन म वह ा त
है ‘जो है’। और यह संपूण प से यान का साद और आशीष है।
वषा के बाद पहा ड़यां भ और मनोरम हो गयी थ । ग मय क तेज धूप के कारण उनका
भूरा रंग अभी भी शेष था, ले कन अब शी ही उन पर ह रयाली छा जायेगी। इस भीषण वषा के
बाद उन पहा ड़य का स दय अवणनीय था। आकाश अब भी बादल से घरा आ था और हवा
म सूमैक, सेज और युके ल टस के पेड़ से आती ई गंध तैर रही थी। उनके बीच होना बड़ा
भ -सा लग रहा था, और एक अद् भुत थरता ने आपको चार ओर से घेर लया था।
सु र नीचे लहराते ए समु के वपरीत वे पहा ड़यां ब कुल थर थ । अपने चार ओर नज़र
घुमाकर दे खते ए आप महसूस करते क नीचे उस छोटे -से घर म आप अपना सब कुछ छोड़
आये ह—अपने कपड़े-ल े, अपने वचार और जीवन के नराले ढं ग। यहां आप बना कसी
वचार के और बना कसी बोझ के बलकुल हलके होकर चल रहे थे, पूण शू यता और स दय
के बोध के साथ। छोट -छोट वे हरी-भरी झा ड़यां शी ही और भी हरी हो जायगी और कुछ ही
ह त के भीतर उनम ती तर गंध भर आयेगी। कुछ री पर बटे र बोल रहे थे और उनम से कुछ
उड़ गये। मन इस बात से अनजान था क यह यान क अव था म है जसम ेम फु टत हो
रहा है। कुछ भी हो, यान क ज़मीन पर ही यह फूल खल सकता है। यह सचमुच एकदम
अद् भुत था, और आ यजनक प से यह सारी रात आपका पीछा करता रहा और सूरज
नकलने के ब त पहले जब आपक न द खुली, तो यह तब भी आपके दय म अपने अद् भुत
और अ व सनीय आनंद के साथ उप थत था, बना कसी कारण के। यह वहां अकारण था
और उसक उप थ त मादक थी। और यह पूरे दन वह रहेगा, बना आपके बुलाये ए, बना
आपके आमं त कये ए।
वहाँ उस सुवा सत और सुगं धत बरामदे म—जब क उषा का आगमन अभी ब त र है और
पेड़ अभी खामोश, मौन ह—जो सार-त व है, वह है स दय। ले कन यह सार-त व अनुभवग य
नह है। अनुभव करने क या तो बंद हो जानी चा हए य क अनुभव ात को ही सबल
बनाता है। और ात कदा प सार-त व नह है।
यान का अथ और-और अनुभू तयां कदा प नह है। अथात् यान अनुभव का सात य नह है।
अनुभव जो हर छोट -बड़ी चुनौती के उ र से न मत होता है, यान केवल उसका अंत नह है,
ब क यह सार-त व क ओर ार का खुलना है, यह उस वालामुखी के मुंह का खुलना है
जसक वाला जला डालती है, इतनी पूणता से क राख और भ म भी नह बचती, कोई भी
अवशेष नह बचता। अवशेष तो हम वयं ह। हम बीते ए हज़ार कल के ‘हां म हां मलानेवाले’
ह। हम अनंत मृ तय तथा पसंद-नापसंद और नराशा क एक सतत शृंखला ह। सम व और
व, ये दोन हमारे अ त व का सांचा-ढांचा ह, और अ त व वचार है तथा वचार
अ त व, और इसी म न हत है कभी न मटने वाला ख।
मन का समयर हत हो जाना ही स य का मौन है, और इसे दे खना ही करना है। अतः दे खने और
करने के बीच कोई वभाजन नह होता। दे खने और करने के बीच के अंतराल म ही संघष,
अशां त और ख ज म लेता है। वह जो समयर हत है, वह अनंत है, शा त है।
उषा का आगमन मंथर ग त से हो रहा था। आसमान म तारे अब भी जगमगा रहे थे और वृ
अभी तक अपने म खोये ए थे। कह से कोई प ी नह बोल रहा था, यहां तक क छोटे -छोटे
उ लू भी नह जो रात-भर इस पेड़ से उस पेड़ पर हड़कंप मचाये फरते थे। समु क गजना के
सवाय चार ओर अद् भुत नीरवता छायी ई थी। गीली ज़मीन, गलते ए प तथा ब त सारे
फूल क महक चार ओर फैल रही थी; हवा अ य धक शांत और थर थी और गंध हर जगह
मौजूद थी। धरती भात क ती ा कर रही थी और आने वाले दन क भी; याशा, धैय और
अद् भुत नीरवता चार ओर ा त थी। यान भी उसी नीरवता के साथ चलता रहा और वह
नीरवता ेम थी। यह कसी व तु या कसी का ेम नह था, न ही यह ेम कोई तमा
और तीक या श द और च था। यह नपट ेम था, बना भावुकता के, बना भाव वाह के।
यह कुछ ऐसा था जो न न, ती और वयं म पूण था; इसका न कोई मूल था और न कोई दशा
थी। र कह से आता आ उस प ी का कलरव वह ेम था। वह कलरव- व न ही दशा और
री थी। वह वहां समय और श द से परे था। यह ेम कोई भाव नह था जो मुरझा जाता है और
जो ू र होता है। कसी तीक, कसी श द का तो वक प ढूं ढ़ा जा सकता है, ले कन इस ेम
का नह । न न और अनावृत होने के कारण यह सवथा अर त था और इस लए यह अ य और
अ वनाशी था। इसके पास उस अ य व और अ ेयता क लभ श थी और वह समु के पार
से और पेड़ से होकर आ रहा था। यान उस समु क गजना था जो तट पर व ाघात कर रहा
था। परम शू यता म ही ेम का अ त व हो सकता है। सु र तज पर उषा क ला लमा कट
होने वाली थी और अंधेर े म खड़े वृ क का लमा और भी सघन हो गयी थी। यान म
पुनरावृ यानी आदत का सात य नह होता; वहां हर ात चीज़ क मृ यु है और अ ात का
फुटन है। तारे अ त हो चले थे और सूय के उ दत होते ही बादल भी जग पड़े।
यान है—चेतना को उसक अंतव तु से, ात से, ‘म’ से र करना।
यान सुर ा का व वंस है। और यान म वराट स दय छपा है, उन व तु का स दय नह
जो मनु य या कृ त ारा न मत ह ब क मौन का स दय। यह मौन वह शू यता है जससे
सम त चीज़ नकलती ह, और पुनः उसम समा जाती ह, और उसी म समा हत ह उनके ाण
और अ त व। वह अ ेय है, बु और भावना क वहां तक प ंच नह है। वहां तक प ंचने के
लए कोई माग नह है, इस लए प ंचने क हर व ध और उपाय एक लोभी म त क ारा कया
गया आ व कार मा है। इस धूत और मतलबी ‘ व’ ारा खोजे गये साधन और उपाय को
पूणतः मटा दे ना आव यक है; आगे क ओर या पीछे क ओर जाने का, अथात समय क पूरी
या का अंत होना ज़ री है, बना कल क ती ा कए। यान व वंस है; यह उनके लए
एक खतरा है जो एक सतही जीवन बताना चाहते ह, जो क पना और पौरा णकता म जीना
चाहते ह।
यान ारा लायी गयी मृ यु नूतन का अमर व है।
अगर आप इसका सा ा कार कर सक तो आप पायगे क यह कुछ ऐसा है, जो अ यंत
अद् भुत है। म इसके व तार म जा सकता ं, ले कन कसी व तु का वणन वयं वह व णत व तु
तो नह है! यह सब आप ही को सीखना है, वयं का अवलोकन करते ए—कोई पु तक, कोई
गु आपको इस संबंध म कुछ नह सखा सकता। कसी पर नभर न रह, आ या मक सं था
क शरण म न जाय। को यह सब अपने भीतर सीखना है। और वहां मन को ऐसी बात
का पता लगेगा जो अद् भुत ह। कतु उसके लए आव यक है क कोई भी वखंडन और
वभाजन न हो, अतः वहां परम अ डगता, चपलता और ग तशीलता हो। ऐसे मन के लए समय
का अ त व ही नह होता और इस लए जीने का अथ ही कुछ और होता है।
यान के बारे म कोई भी स ा- ामा य तो यान का नषेध ही है। यान म सम त ान का,
धारणा तथा उदाहरण का कोई थान नह होता। यानकता, अनुभवकता, वचारक का
संपूण समापन ही यान का सार है। यह मु यान का दै नक कृ य है। अवलोकनकता अतीत
ही है; उसका आधार समय है, उसके वचार, छ वयां और साये समय से बंध े होते ह। ान समय
है और ात से मु ही यान का फुटन है, स य तक प ंचने के लए, अथवा यान के स दय
को छू ने के लए कोई णाली नह होती और इसी लए कोई दशा- नदश भी नह होते। कसी
अ य का, उसके उदाहरण का, उसके श द का अनुसरण करना तो स य का ब ह कार है।
वचार के कसी ा प म, सुख के कसी स मोहन म वयं को आवृत कर लेना यान नह है।
यान का कोई आरंभ नह है, तथा इस लए इसका कोई अंत भी नह है।
यह वैसा मौन नह है जसका अवलोकनकता अनुभव करता है। य द वह इसे अनुभव करता है
और पहचान लेता है, तो यह मौन नह रह जाता। यान थ मन का मौन पहचान क सीमा म
नह होता, य क इस मौन क कोई सीमा है ही नह । यह केवल मौन है; इसम वभाजन का
अंतराल समा त हो जाता है।
य द म यान करता ं और जो म पहले से ही सीख चुका ं, जान चुका ,ं उसे ही जारी रखता
ं, तो म अतीत म अपनी सं कारब ता के े म ही रह रहा होता ं। उसम कोई वतं ता नह
है। म जस कैदखाने म रह रहा ं उसे सजा-संवार सकता ं, उस कैदखाने म काफ कुछ कर
सकता ं, ले कन तब भी सीमा बनी रहती है, अवरोध बना रहता है। तो मन को यह पता लगाना
होगा क या म त क क को शकाएं, जो लाख -लाख वष म वक सत ई ह, पूणतः मौन हो
सकती ह, और एक ऐसे आयाम को पश कर सकती ह, जसे वे नह जानत । जसका अथ है,
या मन पूरी तरह न ल हो सकता है?
यान का एक प है सम त ं को पूरी तरह से मटा दे ना, भीतर से, और इस लए बाहर से
भी।
यान म न हत है एक ऐसा मन जो इतने आ यजनक प से प है क कसी भी तरह का
आ म-छलावा उसम टक नह पाता। वयं को अनंत प से धोखा दे सकता है, और
आम तौर से यान, तथाक थत यान, आ म-स मोहन का ही एक कार है : अपने- अपने
सं कार के अनु प य बब को दे खना। यह इस कदर सीधी-सी बात है—य द आप ईसाई ह
तो आप अपने ईसामसीह को दे खगे, अगर आप ह ह तो आप अपने कृ ण को या अपने
असं य दे वी-दे वता म से जस कसी का भी दशन कर लगे। पर यान इन चीज़ म से कुछ
भी नह है। यान मन क संपूण न लता है, म त क का संपूण मौन।
यान म पहली बात जो समझ म आती है वह है क तलाश बेमानी है; इस लए क जसे खोजा-
तलाशा जाता है वह आपक चाह ारा पूव नधा रत होता है। अगर आप नाखुश ह, अकेले ह,
हताश ह, तो आप आशा, संग-साथ, कुछ ऐसा जो आपको संभाले रखे, तलाश करगे, और आप
ला ज़मी तौर पर उसे ही पा भी लगे।
या ऐसा यान है जो नधा रत नह है, अ यास का वषय नह है? ऐसा यान है, पर उसके
लए अ य धक अवधान क आव यकता होती है। यह अवधान एक लौ है; यह अवधान ऐसा
कुछ नह है जस तक आप काफ बाद म, कुछ समय गुज़रने पर ही प ंच पाएंग;े यह अवधान
तो अभी है हर चीज़ के त, हर श द, हर संकेत, हर वचार के त; इसका अथ है पूरा
अवधान दे ना, आं शक नह । य द आप इस समय आं शक प से सुन रहे ह तो आप पूरा
अवधान, पूरा यान नह दे रहे ह। जब आप पूणतः अवधानयु होते ह, तो कोई व नह होता,
कोई सीमा नह होती।
एक धा मक जीवन यानपूण जीवन है, जसम व क ग त व धयां अनुप थत ह।
या संपूण मन, जसम म त क भी शा मल है, पूणतः न ल हो सकता है? लोग ने, व तुतः
ब त गंभीर लोग ने यह पूछा है, और वे इसका समाधान नह कर पाए ह। उ ह ने तरक ब
आज़मायी ह। उ ह ने कहा है क मन को श द क आवृ ारा थर कया जा सकता है। या
आपने कभी ‘आवे मा रया’ या उन सं कृत श द , मं को दोहराने क को शश क है ज ह कुछ
लोग भारत से ले आते ह और उन श द को दोहराने से मन के थर होने क बात कही जाती है?
इससे कोई अंतर नह पड़ता क वह श द या है, बस उसे आवृ क लय दे द, ‘कोका कोला’
या कोई भी श द व उसे अ सर दोहराते रह और आप दे खगे क आपका मन शांत हो जाता है;
ले कन यह एक मंद, सु त मन होता है, यह संवेदनशील मन नह होता जो सचेत, सजीव, उ कट
हो। और एक मंद मन चाहे यह कहता रहे, “मुझे एक ज़बरद त भावातीत अनुभव आ है” वह
वयं को धोखा ही दे रहा होता है।
यान के संदभ म सम मह व क बात है उस माग का अनुसरण न करना जो वचार ने उस
ल य तक प ंचने के लए न मत कया है, जसे वचार स य, संबो ध अथवा यथाथ मानता है।
स य तक ले जाने वाला कोई माग नह होता है। कसी भी माग का अनुसरण उस तक ले जाता
है जसे वचार ने पहले से ही तपा दत कया आ है और वह चाहे जतना सुख द या
संतोषदायक हो, स य तो नह है। यह सोचना एक ां त है क यान क कोई णाली, दै नक
जीवन म कुछ तय ण के लए उस णाली का नरंतर अ यास अथवा दन के दौरान उसक
आवृ —यह सब प ता या समझ को ज म दे गा। यान इस सबसे परे है और जैस े वचार ारा
ेम का संवधन नह कया जा सकता, वैस े ही इसके ारा यान का संवधन संभव नह है। जब
तक यान करने हेत ु वचारक मौजूद है, यान केवल उस आ म-अलगाव का ही ह सा है जो
के दै नक जीवन क एक आम ग त व ध है।
यान म कोई यानकता नह होता। य द वह है, तो यह यान नह है।
यान मन क वह थ त है जो सब कुछ पूण अवधान के साथ दे खती है—सम ता म, अंश
म नह । और आपको कोई यह नह सखा सकता क अवधानयु कैसे ह । य द कोई णाली
आपको यह सखाती है क अवधानयु कैसे होते ह, तब आपका यान-अवधान बस उस
णाली पर होता है, और वह तो अवधान नह है।
जब आप कसी वृ को, या अपने पड़ोसी के चेहरे को, या अपनी प नी या प त के चेहरे को
दे खते ह और य द आप उसे मन के उस गुण-धम के साथ दे खते ह जो पूरी तरह खामोश है, तब
आप कुछ ऐसा दे ख पाते ह जो बलकुल नया है। मन का ऐसा मौन कोई उपल ध नह है जसे
कसी अ यास के मा यम से अ जत कया जा सके। य द आप कसी व ध का अ यास करते ह
तो आप अभी भी एक ब त छोटे घेरे म रह रहे होते ह जसे ‘म’ के प म वचार ने ही न मत
कया है, वह ‘म’ जो अ यास कर रहा है, आगे बढ़ रहा है। वह घेरा ं से भरा है, इसक
अपनी उपल धय और असफलता से भरा है और ऐसा मन कभी मौन नह हो सकता, यह
चाहे जो कर ले।
यान है मन को ात से र करना। वह ात अतीत है। यह र करना संचय कर लेने के
बाद नह होता, अ पतु इसका अ भ ाय है सं चत ही न करना। जो हो चुका है, उसे केवल
वतमान म र कया जा सकता है, वचार ारा नह ब क कृ य ारा। अतीत है न कष से
न कष तक क ग त व ध तथा ‘जो है’ का उस न कष ारा मू यांकन। सम त मू यांकन
न कष है, चाहे यह अतीत का हो या वतमान का, और यह न कष ही है जो ात से मन को
नरंतर र नह होने दे ता; इस लए क ात हमेशा ही न कष है, संक प है।
यान ऐसा अवधान, ऐसा होश है जसम कोई अंकन नह होता। आम तौर से म त क लगभग
सब कुछ अं कत करता है, आवाज़ को, इ तेमाल कये जा रहे श द को यह कसी टे प क तरह
अं कत करता रहता है। अब, या म त क के लए संभव है क जो अं कत करना पूरी तरह
ज़ री है, उसे छोड़ कर और कुछ भी अं कत न करे। मुझे कोई अपमान य अं कत करना
चा हए? यह अनाव यक है। मुझे कसी भी तरह का आहत होना य अं कत करना चा हए?
इस लए वही अं कत कर जो क दै नक जीवन म काय करने के लए आव यक है—एक
तकनी शयन, एक लेखक इ या द के तौर पर— कतु मनोवै ा नक तौर पर कुछ भी अं कत न
कर। यान म मनोवै ा नक प से कुछ भी अं कत नह होता, बस जीवन के ावहा रक त य
—कायालय जाना, फै टरी म काम करना इ या द—के अ त र कोई अंकन नह होता। अ य
कुछ भी अं कत नह होता। इससे पूण मौन का आगमन होता है य क वचार का अंत हो चुका
है— सवाय इसके क यह केवल तभी काम करे जहां यह पूरी तरह से आव यक हो। समय का
अंत हो चुका है, और एक पूरी तरह से भ कार क ग तशीलता है, मौन क ग तशीलता।
या आप सजगता का अ यास कर सकते ह? य द आप सजगता का ‘अ यास’ कर रहे ह, तो
आप अनवधान म ह, असावधान ह। तो इस असावधानता के त सजग हो जाएं, आपको
कसी अ यास क दरकार नह पड़ेगी। आपको बमा, चीन, भारत जैसी जगह पर नह जाना
पड़ेगा, जो रोमानी तो ह, पर त या मक नह । मुझे याद आता है क भारत म एक बार म कुछ
लोग के साथ कार म सफर कर रहा था। म आगे क सीट पर ाइवर के साथ बैठा था। पीछे
तीन बैठे थे जो सजगता के बारे म बात कर रहे थे, मुझसे चचा करना चाह रहे थे क
सजगता या है। कार ब त तेज़ी से जा रही थी। सड़क पर कोई बकरी थी, ाइवर ने ब त
यान नह दया और वह बेचारी कार के नीचे आ गई। पीछे बैठे स जन अब भी सजगता पर
चचा कर रहे थे, पर उनम से कसी को भी पता ही नह चला क हो या गया था। आप हंस रहे
ह, पर हम सब ऐसा ही तो कया करते ह।
यान के पूण अवधान म, पूरे होश म, जानना नह होता, न पहचानने क या होती है, और
न ही जो हो चुका है उसक मृ त होती है। समय और वचार का पूरी तरह अवसान हो चुका
होता है य क उनसे ही तो वह क बनता है जो वयं अपनी को सी मत कर लेता है।
य द कसी को यान के बारे म कुछ भी मालूम नह है, तो उसे पता लगाना होगा क यह या है
—यह व तुतः या है, न क कसी के अनुसार, और तब हो सकता है क यह को न-कुछ
म ले जाये, या हो सकता है क यह उसे सब-कुछ म ले जाये। बना कसी अपे ा के हम यह
अ वेषण करना होगा, यह पूछना होगा।
हम म से अ धकतर के लए, सुंदरता कसी व तु म होती है, कसी इमारत म, बादल म, पेड़
क आकृ त म, कसी खूबसूरत चेहरे म। या सुंदरता ‘वहां बाहर’ है, या यह उस मन क
गुणव ा है जसम कोई व-क त ग त व ध नह हो रही? य क आनंद क तरह, स दय का
बोध, उसक समझ भी यान म अ नवाय है।
यान है मन को सम त वचार से र करना, य क वचार तथा भाव ऊजा का रण करते
ह। वे दोहराव भर होते ह व यां क याकलाप को न मत करते ह जो क अ त व का एक
ज़ री ह सा है पर है वह एक ह सा ही, और वचार व भाव जीवन क वराटता म संभवतः
वेश नह कर सकते। एक नतांत भ , एक बलकुल अलग तरह क प ंच आव यक है,
आदत, साहचय और ात का माग नह , इस सबसे तो मु होना होगा। यान मन को ात से
र करना है। ऐसा वचार ारा या वचार के छ संकेत ारा नह कया जा सकता, न
ाथना के प म इ छा के मा यम से ऐसा हो सकता है और न ही यह श द , छ वय , आशा
व अह म यता के प म वयं को भुला दे ने वाले स मोहन के ज़ रये संभव है। इन सब का तो
सहजता से, बना कसी यास, बना कसी चयन के, सजगता क लौ म अंत कर दे ना होता है।
केवल न ल मन ही यह समझ सकता है क मौन मन म एक ऐसी ग तशीलता होती है जो
बलकुल भ होती है। इसे कभी श द म नह कया जा सकता य क यह अवणनीय
है। जसका वणन हो सकता है वह उतना ही है जो आपको इस ब , इस जगह तक ले आये
जहां आपने न व रख द है और एक न ल मन क आव यकता, उसका सच और उसका स दय
दे ख लया है।
यान वतमान क नद षता है अतएव यह सदै व एकाक होता है। जो मन वचार से अनछु आ,
पूणतः एकाक होता है, संगह
ृ ीत करना बंद कर दे ता है। इस लए मन को र करना हमेशा
वतमान म होता है। जो मन एकाक है, उसके लए भ व य—जो क अतीत का ही पहलू है—
तरो हत हो जाता है। यान तो एक ग तशीलता है, न क कोई न प या उपल ध करने हेतु
कोई ल य।
या आपने दन के दौरान कभी बना कसी तम म के, बना कुछ सुधारे सावधान-सचेत होने
क , बना कसी चयन के सजग होने क , अपने वचार को, अपने योजन को, आप या कह
रहे ह, कैसे आप बैठे ह, श द को, संकेत को योग करने के अपने तरीक को दे खने क —बस
दे खने-मा क को शश क है?
या मन चुप हो सकता है? मुझे नह मालूम क जब आप इस सम या को दे खते ह, जब आप
इस उ कृ , सू म मन के होने क , जो पूरी तरह मौन है, आव यकता को, इसके स य को दे खते
ह, तो आप या करने वाले ह? ऐसा कैसे संभव हो? यही यान क सम या है य क मा ऐसा
मन ही धा मक मन है। केवल ऐसा मन ही पूर े जीवन को एक इकाई के प म, एक संयु
घटना के प म दे ख पाता है, खं डत प म नह । अतएव केवल ऐसा मन ही संपूणता से कम
करता है, वखं डत प से नह , य क ऐसे कम का उद् गम पूण न लता से होता है।
या यह आमूल आंत रक ां त त ण हो सकती है? यह त ण हो सकती है जब आप इस
सब के खतरे को दे ख ल। यह ऐसा ही है जैस े कसी उ ुंग च ान के खतरे को, कसी जंगली
जानवर के, कसी सांप के खतरे को दे ख लेना; तब त काल कम होता है। ले कन हम इस सारे
वखंडन के खतरे को दे खते ही नह है जो तब खड़ा होता है जब ‘ व’, ‘म’ मह वपूण बन जाता
है—और ‘म’ तथा ‘म नह ’ का वखंडन सामने आता है। जस ण आपके भीतर वखंडन
होता है, ं होता ही है; और ं ही वकृ त का, ता का मूल है। अतः के लए यह
आव यक है क वह यान के स दय का वतः ही पता लगाये, य क तब मन वतं तथा
सं कारमु होने के कारण उसका बोध कर पाता है जो स य है।
यान व तुतः मन को पूरी तरह से र कर लेना है। तब केवल शरीर के काय होते रहते ह;
केवल शरीर क , अवयव-सं थान क ग त व ध जारी रहती है, उसके अ त र और कुछ नह ;
तब वचार ‘यह म’ और ‘यह म नह ’ से तादा य कये बना, पहचान जोड़े बना काय करता है।
वचार यां क होता है, जैस े क शरीर-संरचना यां क है। ं इस बात से उ प होता है क
वचार अपना तादा य अपने अंश म से एक के साथ कर लेता है, अपनी पहचान उससे जोड़
लेता है, जो ‘म’, व और उस व के व वध वभाजन बन जाते ह। व क कसी भी समय कोई
आव यकता नह है। शरीर के अलावा और कुछ नह है, और एक मु मन तभी संभव है जब
वचार ‘म’ को ज म नह दे रहा होता।
हम अतीत के इस को वा तव म समझ लेना होगा—बीते कल के प म अतीत आज के
मा यम से, जो भी कल आ है उससे आने वाले कल को आकार दे ता रहता है। या मन, जो
समय का, म वकास का प रणाम है, अतीत से मु हो सकता है? जसका अथ है मृत होना।
केवल वही मन जो इस कार मृत होना जानता है, यान का पश कर पाता है। इस सब को
समझे बना, यान करने क को शश करना बचकानी क पना मा है।
यान गंभीरतम चीज़ म से एक है। आप इसे पूरे दन कर सकते ह—कायालय म, घर-
प रवार म या जब आप कसी से कहते ह, “मुझ े तुमसे ेम है”, या जब आप अपने ब च के
बारे म सोचते- वचारते ह। और तब आप पढ़ाने- लखाने के बाद उनका रा ीयकरण कर दे त े ह,
एक सै नक बना दे त े ह क जाओ, मारो-काटो, झंडे क पूजा करो। आप उ ह पढ़ाते- लखाते ह
ता क वे आधु नक जगत के कसी-न- कसी फंदे और मोहजाल म आराम से समा जाय। इस
सबका नरी ण करना, इसम अपनी भू मका को दे खना और एहसास करना—ये सब यान के
ही अंग ह। और जब इस तरह आप यान करते ह, तो इसम आपको एक अपूव स दय का दशन
होता है। तब हर ण आप स यक ढं ग से काय करगे एवं जयगे, और अगर कसी खास ण
आप ऐसा करने से चूक भी जाय तो कुछ फक नह पड़ता, आप पुनः यान के छोर को पकड़
लगे—आप प ा ाप म समय नह गंवायगे। यान जीवन का ही अंग है—जीवन से भ नह ।
नया के सफर के दौरान जब हम गरीबी क भयावह दशा को तथा मनु य के मनु य से
संबंध क कु पता को दे खते ह, तो यह बात सु प हो जाती है क एक पूण ां त का घ टत
होना आव यक है। एक भ कार क सं कृ त का अ त व म आना ज़ री है। पुरानी सं कृ त
करीब-करीब मर चुक है, तो भी हम इससे चपटे ए ह। जो युवा ह, वे इसके खलाफ बगावत
करते तो ह, परंत ु भा य से उ ह मनु य के सारभूत वभाव अथात मन को पांत रत करने का
कोई ढं ग या कोई साधन नह मल पाया है। जब तक एक गहन मान सक ां त नह होती,
केवल प र ध म सुधार से कोई असर नह पड़ने वाला है। यह मान सक ां त—जो मेरी म
एकमा ां त है— यान के ारा ही संभव है।
पूणतया कुछ न होने का अथ है मापन के पार हो जाना।
स दय का अथ है संवेदनशीलता—शरीर जो क संवेदनशील है, जसका ता पय है सही
आहार, जीने का सही तरीका, और आप अगर इतनी र तक आ गए ह तो आपके जीवन म
ऐसा होता ही है। मुझे उ मीद है क आप ऐसा करगे या कर ही रहे ह गे; तब मन ला ज़मी तौर
पर, सहज ही, अनजाने ही चुप हो जाता है। आप मन को खामोश कर नह सकते य क आप
ही तो उप व और शरारत क जड़ ह, आप वयं ही बेचैन, च तत, द मत ह—आप कैसे मन
को शांत कर सकते ह। परंतु जब आप समझ लेत े ह क खामोशी या है, जब आप समझ लेते
ह क व म या है, ख या है और या ख का कभी अंत हो सकता है, और जब आप
समझ लेते ह क सुख, मनो वलास या है, तो इस सारी समझ के चलते एक असाधारण प से
मौन मन का आगमन होता है, आपको इसे खोजना नह पड़ता। शु आत आपको शु से ही
करनी होती है एवम् पहला कदम ही आ खरी कदम होता है, और यही यान है।
अनुभव क अथव ा या है? या इसक कोई साथकता है? या अनुभव उस मन को जगा
सकता है जो सोया आ है, जो कुछ खास न कष तक प ंच चुका है तथा व ास से
सं कारब , उनक गर त म है? या अनुभव उसे जगा सकता है, इस सारे ताने-बाने को व त
कर सकता है? और या ऐसा मन—इतना सं कार त, अपनी ही सम या , हताशा और
ख से इतना बो झल— कसी चुनौती का यु र दे सकता है? या यह ऐसा कर पाता है और
य द ऐसा मन यु र दे ता भी है, तो या वह यु र नाकाफ नह होगा और इस लए
अ धका धक ं क ओर नह ले जाएगा?
ेम यान है। ेम कोई मृ त, वचार ारा सुख के प म कायम कोई छ व नह है, न ही यह
कता ारा न मत-पो षत कोई रोमानी छ व है; यह तो कुछ ऐसा है जो सम त इं य के पार
है, जीवन के सारे आ थक तथा सामा जक दबाव से परे है। इस ेम का त ण बोध, इसी पल
एहसास ही यान है, इस ेम क जड़ बीते कल म नह होत ; इस लए क ेम स य है, और
यान इस स य के स दय का अ वेषण है।
जब मा शरीर-सं थान, मनोदै हक संरचना हो, बना कसी व के, तो बोध कभी वकृत नह
हो सकता, चाहे वह बोध ज य हो या से परे का। केवल ‘जो है’ को दे खना होता है और
वही य बोध ‘जो है’ के पार चला जाता है। मन को र करना वचार क ग त व ध अथवा
बौ क या नह है। बना कसी तरह क वकृ त के ‘जो है’ उसे लगातार दे खना ही सहज
प से मन को सम त वचार से र कर दे ता है, हालां क वही मन जब ज़ री हो तब वचार
का इ तेमाल कर सकता है। वचार यां क है तथा यान यां क नह है।
जब मन और म त क तथा शरीर म संपूण सुसंग त हो, सम वरता हो, तो वे मौन होते ही ह—
ऐसा मौन जसे कोई शामक औष ध ले लेने से या श द क आवृ से न मत न कया गया
हो, वह चाहे सं कृत का कोई श द हो या ‘आवेमा रया’ हो। दोहराने से तो आपका मन मंद,
सु त बन सकता है, और जो मन तं ा म है, वह स य को भला कैसे खोज पाएगा। स य तो कुछ
ऐसा है जो सारा समय नया होता है—श द ‘नया’ भी उपयु नह है, यह तो व तुतः कालातीत,
समय के पार होता है।
अनुवाद म पूरी सावधानी बरतने के बाद भी इसम कुछ ु टयां रह सकती ह; इसे बेहतर बनाने
क गुंजाइश तो हमेशा बनी रहती है। इस संबंध म कसी भी आलोचना या सुझाव का हम
वागत करगे और आगामी सं करण म अपे त प रवतन कये जा सकगे। आपक ब मू य
ट प णय क हम ती ा रहेगी।
अनुवादक
प - वहार का पता :
अनुवाद एवम् काशन को
कृ णमू त टडी सटर, के.एफ.आई.
राजघाट फोट, वाराणसी-221 001
tpcrajghat@gmail.com
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जे. कृ णमू त क अ य पठनीय पु तक
ई र या है?
जे. कृ णमू त क च चत और लोक य पु तक म एक पु तक है। यह पु तक उस पावन
परमा मा के लए हमारी खोज को के म रखती है।
श ा या है?
या आप वयं से यह नह पूछते क आप य पढ़- लख रहे ह? या आप जानते ह क
आपको श ा य द जा रही है और इस तरह क श ा का या अथ है? इस पु तक म जीवन
से संबं धत युवा मन के ऐसे अनेक पूछे-अनपूछे ह और जे. कृ णमू त क रदश इन
को मानो भीतर से आलो कत कर दे ती है, पूरा समाधान कर दे ती है। ये श ा के बारे
म ह, कतु सब एक- सरे से जुड़े ह।
दशन : सं कृ त : धम
यान
महान दाश नक जे. कृ णमू त क वाता तथा लेखन से संक लत सं त उ रण का यह
ला सक सं ह ‘ यान’ के संदभ म उनक श ा का सार तुत करता है—अवधान क , होश
क वह अव था जो वचार से परे है, जो सम त ं , भय व ःख से पूणतः मु लाती है जनसे
मनु य-चेतना क अंतव तु न मत है। इस प रव त सं करण म मूल संकलन क अपे ा
कृ णमू त के और अ धक वचन संगह ृ ीत ह, जनम कुछ अब तक अ का शत साम ी भी
स म लत है।
ई र या है?
जे. कृ णमू त क च चत और लोक य पु तक म एक पु तक है। यह पु तक उस पावन
परमा मा के लए हमारी खोज को के म रखती है।
श ा या है?
या आप वयं से यह नह पूछते क आप य पढ़- लख रहे ह? या आप जानते ह क
आपको श ा य द जा रही है और इस तरह क श ा का या अथ है? इस पु तक म जीवन
से संबं धत युवा मन के ऐसे अनेक पूछे-अनपूछे ह और जे. कृ णमू त क रदश इन
को मानो भीतर से आलो कत कर दे ती है, पूरा समाधान कर दे ती है। ये श ा के बारे
म ह, कतु सब एक- सरे से जुड़े ह।
जे. कृ णमू त क अ य पठनीय पु तक
सोच या है?
सोचने- वचारने से अपनी सम याएं हल हो जाएंगी ऐसा मनु य का व ास रहा है, परंतु
वा त वकता यह है क वचार पहले तो वयं सम याएं पैदा करता है, और फर अपनी ही पैदा
क गई सम या को हल करने म उलझ जाता है। एक बात और, वचार करना एक भौ तक
या है। कृ णमू त प करते ह क वतं ता का, मु का ता पय है के म त क पर
आरो पत इस ‘ नयोजन’ से, इस ‘ ो ाम’ से मु होना। इसके मायने ह अपनी सोच का, वचार
करने क या का वशु अवलोकन; इसके मायने ह न वचार अवलोकन—सोच क
दखलंदाज़ी के बना दे खना। ‘अवलोकन अपने आप म ही एक कम है’, यही वह ा है जो
सम त ां त तथा भय से मु कर दे ती है।
थम और अं तम मु
इस पु तक म जे. कृ णमू त क अंत य का ापक व सारग भत प रचय तथा उनम
सहभा गता का चुनौती-भरा नमं ण ा त होता है। कृ णमू त क श ा के व वध सरोकार
का समावेश इस एक पु तक म उपल ध है जो अं ेज़ी पु तक ‘द फ ट एंड ला ट डम’ का
अनुवाद है। इस पु तक का काशन 1954 म आ था ले कन आज भी यह पु तक कृ णमू त
क सवा धक पढ़ जाने वाली पु तक म से एक है।