Professional Documents
Culture Documents
दक्षिण एशि या मे भारत की उभरती भूमिका
दक्षिण एशि या मे भारत की उभरती भूमिका
दक्षिण एशिया क्षेत्र में रहने वाली जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा निर्वाह कृषि पर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता
है । जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने दक्षिण एशिया क्षेत्र के चार दे शों अर्थात ् भट
ू ान,
बांग्लादे श, मालदीव और नेपाल को कम विकसित दे शों (एलडीसी) के रूप में वर्गीकृत किया है । शेष
तीन दे शों, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका को विकासशील दे शों के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।
किसी भी दे श (क्षेत्र के) ने अभी तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल नहीं किया। जहां दनि
ु या
का एक तिहाई गरीब रह रहा है ।
दक्षिण एशिया के सात दे शों का अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है । इस क्षेत्र के भीतर,
भारत जनसंख्या और क्षेत्र में सबसे बड़ा राष्ट्र है । इसकी जनसंख्या ने वर्ष 2000 मे एक अरब लोगों
के निशान को पार कर लिया था। और दनि
ु या में , जनसंख्या के आकार में चीन के बगल में है ।
मालदीव इस क्षेत्र में सबसे छोटा दे श है , जनसंख्या और क्षेत्र दोनों दृष्टि में । भूटान और नेपाल भूमि-
बंद दे श हैं जबकि मालदीव और श्रीलंका द्वीपयी दे श हैं। बांग्लादे श, भारत और पाकिस्तान इस क्षेत्र में
एकमात्र ऐसे दे श हैं जहां भूमि और पानी पर्याप्त रूप से उपलब्ध है । मालदीव हिंद महासागर में एक
छोटा सा द्वीप है जिसमें केवल 300 sq.km भमि
ू हैं। भट
ू ान, हालांकि, क्षेत्र के मामले में अपेक्षाकृत
बड़ा है (यानी, 47,000 sq.km) परं तु अधिकांश श्रेणियां बर्फ से ढकी होने के कारण सामान्य मनुष्य
के रहने योग्य नहीं हैं। नेपाल भी हिमालय पर्वत में स्थित है और इसका क्षेत्र बाहरी रूप से बड़ा प्रतीत
होता है लेकिन यहा ज्यादातर पहड़िया होने के करण उपयोगी भूमि कम ही है । पिछले तीन-पांच दशकों
में , इस क्षेत्र के दे शों ने कम औद्योगीकरण और सामहि
ू क गरीबी से जड़
ु ी कुछ समस्याओं को दरू करने
के लिए योजनाबद्ध प्रयास किए हैं। नतीजतन, उनकी आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
अर्थव्यवस्थाओं में राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रों के हिस्से में भी बदलाव आया है । पिछले दो दशकों
में इस क्षेत्र की आर्थिक संरचनाओं में परिवर्तन तेजी से हुआ है , यानी 2000 से 2020 तक। कृषि की
हिस्सेदारी तेजी से घटी है (पाकिस्तान को छोड़कर) और सेवाओं की हिस्सेदारी सभी अर्थव्यवस्थाओं
(भट
ू ान को छोड़कर) में बढ़ी है जबकि औद्योगिक क्षेत्र मे भारत दक्षिण भारत मे और विश्व मे तेजी
से अपना योगदान बढ़ा रहा है । यद्यपि सकल घरे लू उत्पाद में कृषि का योगदान घटा है , फिर भी कृषि
दक्षिण एशिया में आधे से अधिक नियोजित लोगों को रोजगार प्रदान करती है । दस
ू री ओर सेवा क्षेत्र
जीडीपी में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में उभरा है । दक्षिण एशिया में विनिर्माण और उद्योग
क्षेत्र में गति की कमी ने रोजगार सज
ृ न में गिरावट की है अंततः गरीबी के बढ़ते दबाव को और बढ़ा
दिया है ।
तीसरे स्थान पर है और पाकिस्तान की तुलना में उत्पादन 3 गुना से अधिक है । चावल के उत्पादन मे
भारत विश्व मे दस
ू रे स्थान पर है और बांग्लादे श की तुलना में उत्पादन 3 गुना से अधिक है । दक्षिण
एशिया के अन्य दे श कृषि की दृष्टि से गरीब हैं। मक्का, जौ, बाजरा आदि जैसे अन्य अनाजों के
जट
ू के उत्पादन में बांग्लादे श सबसे आगे रहता था लेकिन वर्तमान में भारत बांग्लादे श से बहुत आगे
है । भारत का जट
ू उत्पादन बांग्लादे श की तल
ु ना में दो गन
ु ा है । वास्तव में भारत का कच्चा जट
ू
उत्पादन सबसे अधिक है और यह विश्व उत्पादन का लगभग 50% उत्पादित करता है । जट
ू उत्पादन में
बांग्लादे श दस
ू रे और चीन तीसरे स्थान पर है । जहां तक प्राकृतिक रबड़ का संबंध है , दक्षिण एशिया मे
भारत और श्रीलंका उल्लेखनीय हैं। भारत में रबड़ का उत्पादन श्रीलंका की तल
ु ना में लगभग 8 गन
ु ा
से अधिक है । तेल बीज फसलों में , भारत दनि
ु या में मंग
ू फली व मंग
ू फली के तेल का दस
ू रा सबसे बड़ा
उत्पादक है , जो दनि
ु या के उत्पादन का लगभग 25% है । सोयाबीन के उत्पादन में भी भारत दक्षिण
एशिया में सबसे आगे है । पेय पदार्थों, चाय और कॉफी के उत्पादन में भारत फिर से अन्य दे शों को
बहुत पीछे छोड़ दे ता है । भारत चाय का दस
ू रा सबसे बड़ा उत्पादक दे श है । भारत दक्षिण एशिया में
तम्बाकू का एक प्रमख
ु उत्पादक है , जबकि अन्य दे श इसके पास भी नहीं है । भारत एशिया में गन्ने
का अग्रणी (शीर्ष) उत्पादक है जबकि पाकिस्तान एशिया मे दस
ू रे स्थान पर है ।
पास इनमें से सबसे ज्यादा संसाधन हैं जबकि अन्य दे शों के पास बहुत कम ऊर्जा संसाधन हैं। वास्तव
में अन्य सभी दे श पूरी तरह से आयात पर निर्भर हैं। भारत कोयले के मामले में आत्मनिर्भर है लेकिन
अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उसे लगभग एक तिहाई पेट्रोलियम का आयात करना पड़ता है ।
विकसित होना है और कुछ महत्व की स्थिति ढूंढनी है । भारत के प्रमुख उद्योग लोहा और इस्पात,
कपड़ा, मशीन उपकरण, चीनी, सीमें ट, उर्वरक, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, कार्गो और
नौसेना के जहाज, तेल शोधन, कृषि मशीनें , पेट्रोकेमिकल्स, रसायन, रे लवे इंजन, रे ल कोच आदि हैं।
21 वीं सदी को एशिया का युग माना जाता है और एशिया मे भारत की उभरती भमि
ू का को आज पूरा
विश्व मान रहा है , भारत को अपनी वर्तमान स्थिति को प्राप्त करने मे काफी समय लगा है । ये कई
महत्त्वपूर्ण निर्णय के परिणाम है । जिनमे गुटनिर्पछ राजनीति एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जाता है ।
भारत ने अंग्रेजों से आजादी प्राप्त करते समय ये सिख लिया था कि किसी भी विदे शी ताकत पर
अंधविस्वास करना सही कदम नहीं होता अत: भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय विश्व मे दो ही
ताकत थी इनको पहली दनि
ु या(अमेरिका) तथा दस
ू री दनि
ु या(USSR) कहा गया। इन दोनों दनि
ु या के
मध्य 1945-1991 तक चले शीत युद्ध के कारण कई दे श बर्बाद हो गए क्यूंकि एक के साथ मित्रता
दस
ु रे के साथ शत्रत
ु ा के समान थी। और ईराक और सीरिया इसी का उदारण बने। USSR के साथ
दोस्ती और मित्रता ने अमेरिका को ईराक और सीरिया का शत्रु बना दिया। इस शीत युद्ध ने कई दे शों
को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया था।
पहली दनि
ु या और दस
ू री दनि
ु या अपने-अपने पक्षों मे ज्यादा से ज्यादा दे शों को करने के प्रयास कर
रही थी पहली दनि
ु या अमेरिका और दस
ू री दनि
ु या USSR जो जल्द ही टूट कर रूस का निर्माण करने
वाला था। भारत के समक्ष दोनों दे शों के रास्ते खल
ु े हुए थे और दोनों दे श भारत को अपनी तरफ
करना चाहता थे जहा रूस के साथ भारत के पुराने संबंध थे तथा रूस के समाजवाद से भारत के कई
राजनेता प्रभावीत भी थे और रूस के समाजवाद को भारत मे लोकतंत्र के साथ जोड़ना चाहते थे। वही
अमेरिका एशिया मे अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए भारत की मदद चाहता था। अमेरिका केवल
एशिया मे प्रभाव के लिए भारत के साथ मित्रता का हाथ नहीं मिला रहा था बल्कि वो USSR के और
भारत के पुराने संबंधों को दे खते हुए भारत को USSR की ओर अधिक झुकाओ से रोकने के लिए
भारत और पाकिस्तान दोनों से संबंधों को मजबूत करना चाहता था। तात्कालिक भारत के पास इतने
अधिक विकल्प और रास्ते थे कि वो एक नव जनित शिशु के समान था। किसी एक महाशक्ति के
कारण उसरी महाशक्ति को अपना शत्रु समझना सही नहीं था और ये ही कारण था की भारत ने किसी
गट
ु को न अपनाने का फेसला किया तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था
की भारत को अपना भविष स्वयं अपने हाथों से लिखना है और इसमे वो किसी प्रकार का गलत
निर्णय नहीं लेना चाहते थे जिससे आने वाले समय मे भारत को अन्तराष्ट्रीय संबंध निभाने और बनाने
मे कठिनाई हो।
ये सिद्धांत भारत को पुन: किसी विदे शी शक्ति के अधीन होने से भी बचाता हुआ नजर आता है तथा
भारत की अन्तराष्ट्रीय राजनीति मे स्वतंत्र नीति को भी कायम रखने मे सहायक सिद्ध होता है । भारत
की स्वतंत्रता के पश्चात का समय भारत और एशिया के इतिहास का सबसे कठिन समय रहा जिसमे
एशिया महाद्वीप मे कई यद्ध
ु हुए और दे शों की स्थिति कई वर्षों पीछे चली गई। इसमे पाकिस्तान,
भारत, चीन, नेपाल, श्री लंका, ताइवान, आदि प्रमुख है । इन युद्धों के परिणाम स्वरूप कई दे शों की
भूगोलिक-राजनीति को अमेरिका और USSR मे से इसी एक की सहायता मांगने के लिए विवश होना
पड़ा और एशिया मे भी तीसरी दनि
ु या के दे शों ने पहली व दस
ू री मे से किसी एक दनि
ु या को अपना
समर्थन दे ना शुरू कर दिया। इसका उदाहरण भारत द्वरा USSR से द्विपक्षीय समझौता कर भारत
की राजनीति को USSR के पक्ष मे कर दिया। ये तात्कालिक समय की जरूरत थी कि भारत किसी
एक महाशक्ति के संरक्षण मे रहे क्यूंकि भारत के पड़ोसी दे शों ने भारत पर आक्रमण कर दिया था
और भारत की सेना एक साथ पाकिस्तान और चीन के साथ यद्ध
ु नहीं लड़ सकती थी और जब
पाकिस्तान द्वरा अमेरिका युद्ध मे अमेरिका को लाने का प्रयास किया गया और अमेरिका ने भी अपना
युद्धपोत भारतीय समुद्र की और भेज दिया तब भारत की सहायता के लिए USSR ने अपनी परमाणु
संपन पांडुबियों को और युद्धपोत को भारतीय समुद्र मे भेज कर भारत की रक्षा की थी। ये एशिया मे
यद्ध
ु के कारण हुए राजनीतिक पक्ष विपक्ष के कारण भारत और अमेरिका के कई साल संबंध अच्छे नहीं
रहे । इसका उदाहरण
अमेरिका द्वरा एशिया मे सैन्य अड्डा स्थापित करने के कई प्रयास माने जाते है जैसे श्री लंका मे
हुमबंटोंटा बंदरगाह की मांग दक्षिणी श्रीलंका में अमेरिका की रुचि, सत्तर के दशक में भी, संभवतः
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार था जब भारत को विशाल हिंद महासागर की ओर से दे श की
सुरक्षा के बारे में चिंतित महसूस करने के लिए मजबूर किया गया था, जिसे वह उस समय सीमित
नौसेना और वायु-शक्ति के साथ सरु क्षित करने की उम्मीद नहीं कर सकता था। और अमेरिका द्वरा
नेपाल मे निवेश भी एशिया मे सैन्य अड्डा स्थापित करने का प्रयास था जिसमे नेपाल ने मंजूरी दे दी
परं तु चीन ने अमेरिका को दरू रखने के लिए नेपाल मे विद्रोही करवा दिया और राजतन्त्र को खत्म
करने का प्रयास किया।
इसी प्रकार समय समय पर भारत को युद्ध का सामना करना पड़ा है जिसके कारण
भारत के विकास मे रुकावट आयी है और भारत अन्तराष्ट्रीय स्तर पर राजनीति मे प्रतिभाग नहीं कर
सका। इसका सबसे बढ़ा उदारण भारत को संयक्
ु त राष्ट्र संघ मे स्थायी सदस्यता प्राप्त न होना है । इन
युद्धों को रोकने के लिए ये जरूरी था की भारत किसी महाशक्ति के साथ सुरक्षा समझौता करे और
भारत ने USSR को चन
ु ा और सरु क्षा समझौता कर लिया जिससे भारत को बाहरी आक्रमणों से काफी
राहत मिली।
दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग का विचार सर्वप्रथम नवंबर 1980 में सामने आया। सात संस्थापक
दे शों- बांग्लादे श, भूटान, भारत, मालदीव नेपाल, पाकिस्तान एवं श्रीलंका के विदे श सचिवों के परामर्श के बाद
इनकी प्रथम मुलाकात अप्रैल 1981 में कोलंबिया में हुई। 8 दिसंबर,1985 को ढाका में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय
सहयोग संगठन (SAARC) का उदय भी भारत और दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय दे शों की सुरक्षा व साहियोग
को ध्यान मे रख कर ही किया गया था। हालांकि ये किसी प्रकार का सैन्य संगठन नहीं है । इसका
मख्
ु य उद्देश दक्षिण एशिया मे क्षेत्रीय दे शों के मध्य अन्तराष्ट्रीय संबंधों को मजबत
ू करना और
साहियोग की भावना को बढ़ावा दे ना था। इस संगठन का मुख्यालय एवं सचिवालय नेपाल के काठमांडू में
स्थित है । वर्तमान मे इसके 8 सदस्य हैं बांग्लादे श, भट
ू ान, भारत, मालदीव नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका
एवं अफ़गानिस्तान(2005)। तथा 9 पर्यवेक्षक सदस्य दे श हैं 1990 के दशक मे यूरोपीय संघ (EU),
उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापर समझौते (NAFTA), और उनके नेतत्ृ व के बाद अन्य क्षेत्रों जैसे बहुत
महत्वपूर्ण ब्लाकों के उदय के साथ क्षेत्रवाद विश्व अर्थव्यवस्था मे एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रवर्ति बन
गया, हालांकि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग (सार्क ), आर्थिक सहयोग संगठन(ECO) और बंगला की
खड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिंसटे क) का गठन दक्षिण एशिया मे किया गया
था, लेकिन यह क्षेत्र विकास मे धीमा रहा है । क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण की क्षमता और पिछले दो
दशकों मे अपने विकास का समर्थन करने के लिए उन्नत अर्थव्यवस्था मे अपने उत्पादों की बढ़ती
मांग पर काफी हद तक निर्भर रहा है ।
सार्क तत्कालिक समय
की एक जरूरत थी जो आज विश्व की 21 प्रतिशत से ज्यादा आबादी और 6 प्रतिशत से ज्यादा
आर्थव्यवस्था को दर्शाती है । इसमे भारत एक महत्वपर्ण
ू स्थान रखता है क्यंकि
ू सार्क का निर्माण
NATO की तर्ज पर भारत व चीन के एकाधिकार को रोकने और अंकुश लगाने के लिए किया जाना
प्रस्तावित था परं तु भारत ने इसमे भाग ले कर दक्षिण एशिया मे साहियोग को और मजबूत करने का
प्रयास किया ताकि कोई भी दे श भारत से भयभीत न हो और ये न विचारे की भारत उस पर आक्रमण
कर उसको अपने अधिन करने का प्रयास करे गा भारत के सार्क मे सदस्य बनने के और भी कई कारण
थे जेसे:- दक्षिण एशिया में आर्थिक वद्धि
ृ , सांस्कृतिक विकास में तेज़ी लाना, सामहि
ू क आत्मनिर्भरता को
बढ़ावा दे ना एवं मज़बूत करना आदि।
दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है जिसका बढ़ता राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व है । भारत
और पाकिस्तान के बीच कड़वी प्रतिद्वंद्विता, जो 1947 में विभाजन के साथ शुरू हुई थी और समय
समय पर बढ़ती रही है इस क्षेत्र में परमाणु हथियारों और मिसाइलों के प्रसार के पीछे प्रेरणा बनी हुई
था। यह परमाणु हथियारों की क्षमता का पहला प्रदर्शन था। पाकिस्तान ने भी 1970 के दशक में
की घोषणा की। आज, भारत और पाकिस्तान दोनों सक्रिय परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों को बनाए
रखते हैं, और दोनों परमाणु हथियारों के लिए विखंडनीय सामग्री का उत्पादन कर रहे हैं। किसी भी दे श
ने अप्रसार संधि (एनपीटी) या व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं,
हालांकि वे परमाणु परीक्षणों पर स्व-लगाए गए स्थगनों का पालन करते हैं। इस क्षेत्र की सरु क्षा चीन
को खतरे के रूप में दे खती है जो इसे और जटिल बनाती है । परमाणु हथियारों और मिसाइल प्रणालियों
को विकसित करने के लिए पाकिस्तान के प्रयासों का उद्देश्य भारत के सामान सैन्य और भारत के
परमाणु हथियारों का मक
ु ाबला करना रहा है ।
1991 मे USSR का टूट कर रूस का निर्माण शीत युद्ध का अंत अवश्य था परं तु ये भारत के साथ
USSR की सुरक्षा संधि का भी अंत था किन्तु भारत अब एक परमाणु शक्ति संपन दे श बन चुका था
और ये भारत की सुरक्षा के लिया अति आवश्यक था कि वो जल्द से जल्द परमाणु शक्ति को प्राप्त
करे । “भारत ने परमाणु शक्ति को स्वयं की रक्षा के लिए प्राप्त किया था न कि किसी दे श पर
आक्रमण करने के उद्देश्य से” ये बात भारत समय समय पर अन्तराष्ट्रीय मंच पर कह च ुका है । इसके
बावजूद भारत को युरेनीअम खरीदने मे कठिनाई का सामना करना पड़ता है । भारत युरेनीअम का
उपयोग केवल परमाणु हथियार बनाने के लिए नहीं करता है बल्कि इसका मुख्य उपयोग भारत ऊर्जा
के उत्पादन मे करता है और भारत के विकास मे परमाणु ऊर्जा का बहुत महत्वपर्ण
ू स्थान है । वाजपेयी
शासन के दौरान किसी अन्य मुद्दे ने उतना विवाद नहीं उठाया है जितना कि 11 मई, 1998 को
पोखरण में हुए परमाणु विस्फोट के रूप में उठाया था। जबकि कुछ भारतीयों ने खश
ु ी और गर्व के साथ
विस्फोट का स्वागत किया, क्योंकि इसने भारत को परमाणु क्लब का सदस्य बना दिया, कुछ ऐसे
लोग थे जो बेहद महं गे और बेकार के अभ्यास से निराश थे, क्यूंकि ये दे श के अल्प संसाधनों को
प्रभावित करता है । जैसा कि अपेक्षित था, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने व्यापक रूप से दक्षिण एशिया के
तीसरी दनि
ु या के दे शों में हथियारों की दौड़ के प्रसार को दे खते हुए भारत के परमाणु परीक्षण की निंदा
की। और अमेरिका, जापान, जर्मनी ने भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष