Shree Swami Samartha Atharvashirsha

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!! श्री स्वामी समर्थ अथर्वशीर्ष !!

!! श्री गणेशाय नम : !!
या श्री स्वामी समर्थ अथर्वशीर्षाचे ब्रह्मा ऋषी | परमात्मा दे वता | गायत्री हा छं द | मळ ू परुु ष | वडाचे झाड |
दत्तनगर | मळ ू मळ ू हे अग्निनारायण यक् ु त बीज || आदिमाया शक्ती | सर्व तापहर सप्ताक्षरयक् ु त मंत्र हा
कीलक || धर्म अर्थ काम मोक्ष ह्या परु ु षार्थ प्राप्तीसाठी जपाचा विनियोग || ॐ लं ॐ हं | ॐ यं ॐ वं | ॐ रं ॐ
सं | या बिजाक्षरांसह षडंगन्यास || ॐ नमोजी परब्रम्ह | परमात्मा प्राणदाता | ओंकार स्वरुपा | श्री स्वामी
समर्था नमो नमो हे कवच | ऐसा हा मंत्र जाणावा ||
ॐ एह पर सरु लोकी ॐ || ॐ श्री स्वामी समर्था नमो नमो | रक्ष रक्ष मज | रक्ष रक्ष मज | तू करता तू धर्ता | तच ू ी
परिपाता | तच ू ी संहरता | या अनंत विश्वाचा || भय मज मरणाचे | भय चिंतातरू जगण्याचे | भय शीलभ्रष्ट ह्या
जगताचे | सांभाळि दे वा मला || दे वा रक्षी मज क्षणोक्षणी | रक्षी मज दिनोदिनी | रक्षी मज निशिदिनी | शरण
शरण आलो तल ु ा || ॐ एह पर सरु लोकी ॐ || तच ू ी सत्यज्ञान | सष्ृ टीचे विज्ञान | तू मळ ू कारण | अहं ब्रम्हास्मि
चे || तू ब्रम्हा विष्णू रुद्र | अग्नी वायू इंद्र | आपो भम ू ी स र्य
ु चं
द्र | व्योम त ू ू
| त ऋग्वे द यजर्वे
ु द | तू अथवा सामवेद |
परु ाण आणि उपनिषद | सर्वही तच ू तू || दे वा तू वाग्मय | तू चिन्मय | अणरु े णु हिरण्यमय | ब्रम्हमय तच ू ी| ॐ
इहपर सरु लोकी ॐ || सोहं आत्माराम | कोहं मायाभ्रम | दाविशी उत्तम | नामाच्या आदर्शी | ॐ हे एकाक्षरी ब्रम्ह |
ते तझ ु चि
े निजरूप | प्रकाशे अपरं पार | वर्णिता वर्णवेना || दोन अक्षरी दत्त | स्मर्तूगामी नाथ | आर्तांचा आधार
परोपकारी || तीन अक्षरी श्रीपाद | वैराग्य प्रखर | जाळिला विकार | शिवतेजे || नरसिंह अक्षरे चार | आश्रम धर्म |
वेदांचा विचार | विवरीला | स्वामी समर्थ पंचाक्षर | मोक्षाचे द्वार | तोडीला आचार | दांभिकांचा || ॐ दत्त | श्रीपाद
नरसिंह | स्वामी समर्थ | पंधरा अक्षरी मंत्र हा || जपता निरं तरी | आबाल-थोरी | कोणी असो जरी | प्रपंची विकारी
|| तयासी सत्वरी | स्वामी दत्त अंतरी | होईल तमारी | उद्धार कर्ता || साऱ्या रोगव्याधी | बाधा मनोव्याधी | घोर
कष्ट सर्वांआधी | नष्टतील || अक्काबाईचा फेरा | जाईल माघारा | येईल लक्ष्मी घरा | नित्यपाठे || अभक्ष्य
भक्षण | पापाचे कारण | जाईल विरून | अथर्व पाठाने | अपेय पान | दर्गु ु ण महान | जाईल विसरून |अथर्व पाठाने
| अगम्य गमन | नरक दारुण | जाईल जळून | अथर्व पाठाने | ब्रात्य संभाषण | बद् ु धीचे ग्रहण | जाईल सट ु ून |
अथर्व पाठाने | पंचमहापापे | भस्मसात आपोआपे | अथवा प्रतापे होतील पै | सहस्त्रावर्तन | हे सहस्त्र भोजन | वा
शतयज्ञाहून | पण् ु यदायी || आता येणे होवो || आरोग्यवद् ृ धी - ऐश्वर्यवद् ृ धी - शांतीवद् ृ धी - वंशवद् ृ धी - धनवद् ृ धी
- ज्ञानवद् ृ धी - योगवद् ृ धी - कीर्तीवद्
ृ धी - दिगंत पाठकाची | हरी ॐ तत्सत || ऐसा हा मंत्र जाणावा || इति श्री
उपनिषद स्वरूप श्रीस्वामी समर्थ अथर्वशीर्ष स्तोत्र संपर्ण ू ||

!! श्री स्वामी समर्थ ||

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