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तोहिद शिर्क बिदअत एक परिचय
तोहिद शिर्क बिदअत एक परिचय
तोहिद शिर्क बिदअत एक परिचय
शिर्क
र्ुफ़्र और
शिदअ़त
एर् पररचय
सवाल नo 1- इस्लाम के क्या मानी है?
जवाब- इस्लाम के मानी ‘अमन और शाांतत’ के है, दूसरा मानी यह है तक ‘अपने आपको अल्लाह के सपु दु द कर देना.’
सवाल नo 6- तौहीद फ़िज़ ज़ात से मतु ातल्लक़ तशतकदया (यानी तशकद वाले) अक़ीदे और आमाल क्या हैं?
जवाब- तौहीद फ़िज़ ज़ात से मतु ातल्लक़ तशतकदया अक़ीदे और आमाल ये हैं (जो तक हराम हैं)-
तकसी मख़्लूक़ को अल्लाह के नूर से नूर समझना, यानी यह समझना तक फ़लाां मख़्लूक़ अल्लाह के नूर से बनी है.
यह अक़ीदा रखना तक अल्लाह की ज़ात हर चीज़ में मौजूद है या उसकी ज़ात हर जगह मौजूद है. (इसे वहदतल ु वज ु ूद कहते हैं). जैसे आम तौर पर कहा
जाता है तक ‘Allah is everywhere’ या ‘कण कण में भगवान ’
यह अक़ीदा रखना तक बन्दा अल्लाह की ज़ात में तमल जाता है. (इसे वहदतशु शहु ूद कहते हैं)
यह अक़ीदा रखना तक अल्लाह बन्दे की ज़ात में तमल जाता है. (इसे हुलूल कहते हैं)
सवाल नo 12- लेतकन बहुत से लोग या तो रसूलल्ु लाह ﷺके बारे में नहीं जानते हैं या अगर जानते हैं तो ग़लत जानते हैं तो क्या ये बात उन लोगों पर भी
लागू होगी?
जवाब- जो लोग अल्लाह के रसूल महु म्मद ﷺके बारे में नहीं जानते हैं तो उन लोगों तक यह पैग़ाम पहुचाना उम्मते मतु स्लमा की तज़म्मेदारी है . यह
हम सबकी तज़म्मेदारी है, और अगर उन तक हक़ बात सही अांदाज़ में पहुचूँ ाने के बाद भी वो इांकार करें तो वो भी कातफ़र कहलाएांगे.
1) फ़िकद -ए-अक्बर - यानी बड़ा तशकद. तकसी भी जानदार या मदु ाद मख़्लूक़ को अल्लाह की ज़ात, तसफ़ात या इबादत में शरीक करना तशकद-ए-अक्बर कहलाता है
और इस गनु ाह को करने वाला शख़्स हमेशा जहन्नम में रहेगा अगर वह इस गनु ाह से तौबा न कर ले.
2) फ़िकद -ए-अस्ग़र- यानी छोटा तशकद. तशकद-ए- अक्बर के अलावा कई अमल हैं तजनको अहादीस में तशकद कहा गया है, जैसे तदखावे के तलए कोई अमल करना
(नमाज़,रोज़ा वग़ैरह).
3) फ़िकद -ए-ख़िी- यानी छुपा हुआ तशकद. यह तशकद-ए-अक्बर भी हो सकता है और तशकद-ए-अस्ग़र भी. जब कोई ईमान वाला तदखावे के तलए अमल करे तो तशकद-
ए-अस्ग़र और अगर कोई मनु ातफ़क़ करे तो तशकद-ए-अक्बर होगा.
[मनु ातफ़क़- जो शख़्स ऊपर से तो इस्लाम ज़ातहर करे लेतकन तदल से ईमान न लाये ]
सवाल नo 16- फ़िकद के नुक़्सान और अहकाम के बारे में कुछ तफ़सील से बताएां.
जवाब- फ़िकद के नुक़्सान और अहकाम -
तशकद सारे नेक आमाल बबाद द कर देता है. (क़ुरआन 39: 64,65)
मशु ररक पर जन्नत हराम है और वह हमेशा जहन्नम में रहेगा. (क़ुरआन 5:72)
तकसी नबी या वली से क़रीबी ताल्लक़ ु भी मशु ररक को जहन्नम के अज़ाब से नहीं बचा पाएगा.
अबू हुरैरह ؓ ररवायत करते हैं तक नबी ﷺने फ़रमाया ‚इब्राहीम (अ० स०) तक़यामत के तदन अपने बाप आज़र को इस हाल में देखेंगे तक उसके मांहु
3
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पर कातलख और गदो ग़बु ार जमा होगी तो इब्राहीम (अ० स०) कहेंगे तक ‘मैंने दतु नया में तम्ु हें कहा नहीं था तक मेरी नाफ़रमानी न करो ’.....‛ (बि
ु ारी हo
3350)
तशकद के मामले में तकसी की इताअ़त नहीं होगी. (क़ुरआन 8:29)
मशु ररक से तनकाह हराम है. (क़ुरआन 2: 21)
मशु ररक के तलए दआ ु -ए-मतफ़फ़रत करना मना है. (क़ुरआन 9:113)
ऐसी जगह जायज़ इबादत करना भी मना है जहाां पहले तशकद तकया जाता था या अभी भी तकया जाता है.
सातबत तबन तज़हाक ؓ से ररवायत है तक एक शख़्स ने नज़र मानी तक वह ‘बुवाना’ नाम की एक जगह पर एक ऊांट तज़बह करेगा. तिर वह नबी ﷺके
पास आया और कहा तक ‘मैंने बवु ाना में ऊांट तज़बह करने की मन्नत मानी है (तो मैं अपनी नज़र पूरी करूां या न करूां)?’ आप ﷺने पूछा तक ‚ वहाां
ज़माने जातहतलयत में कोई बतु था तजसकी पूजा की जाती रही हो?‛. सहाबा ؓ ने कहा ‘नहीं’ तिर आप ﷺने कहा तक ‚ वहाां मशु ररकीन का कोई मेला
लगता है?‛ सहाबा ؓ ने कहा ‘नहीं’ तब रसूलल्ु लाह ﷺने कहा तक ‚तिर अपनी नज़र पूरी कर लो और याद रखो तक अल्लाह की नाफ़रमानी वाली
नज़र पूरी करना जायज़ नहीं है और न ही वह नज़र जो इांसान के बस में न हो.‛ (अबू दाऊद हo 3313)
सवाल नo 17- उन आमाल के बारे में बताएां जो शरीअत में तो तशकद हैं लेतकन लोग उन्हें तशकद नहीं समझते.
जवाब- वो चीज़े जो तशकद हैं लेतकन लोगों के बीच उन्हें तशकद नहीं समझा जाता (यानी जो आमाल हराम हैं) -
ग़ैरुल्लाह (यानी अल्लाह के अलावा तकसी और) की क़सम खाना
अब्दल्ु लाह इब्न उमर ؓ ने तकसी को काबा की क़सम खाते हुए सनु ा तो उन्होंने उससे कहा तक ‘ बेशक मैंने रसूलल्ु लाह ﷺको फ़रमाते हुए सनु ा तक ‚
तजसने ग़ैरुल्लाह की क़सम खाई उसने तशकद तकया.‛ (अबू दाऊद हo 3251, ततरतमज़ी हo 1535)
नोट: इस हदीस से मालूम हुआ तक अल्लाह के घर काबा की क़सम खाना भी तशकद है. तलहाज़ा जो लोग अपने माूँ-बाप, औलाद की क़सम खाते हैं उन्हें
होतशयार हो जाना चातहए.
ग़ैरुल्लाह के तलए जानवर तज़बह करना. (क़ुरआन 6:162-163)
रसूलल्ु लाह ﷺने फ़रमाया तक ‚अल्लाह ने लानत फ़रमाई है उस शख्स़. पर जो ग़ैरुल्लाह के नाम पर जानवर फ़ज़बह करे.‛ (मतु स्लम हo
5124,5125)
ग़ैरुल्लाह से मन्नत माांगना. (क़ुरआन 76:7)
ग़ैरुल्लाह से मदद माांगना. (क़ुरआन 10:106, 10:107, 46:5-6)
गांडे, तावीज़ पहनना.
रसूलल्ु लाह ﷺने फ़रमाया ‚ तजसने तावीज़ पहनी उसने फ़िकद तकया.‛ (मस्ु नद अहमद हo 17422)
एक मौक़े पर नबी ﷺने बददआ ु की तक ‚तजसने तावीज़ लटकाई, अल्लाह उसका कोई काम पूरा न करे.‛ (मस्ु नद अहमद हo 17404)
नमाज़ छोड़ना.
रसूलल्ु लाह ﷺने फ़रमाया तक ‚ नमाज़ छोड़ना तशकद है.‛ (मस ु न्नफ़ अब्दरु रज़्ज़ाक़ हo 5009)
रसूलल्ु लाह ﷺने फ़रमाया तक ‚ आदमी और कुफ़्र और तशकद के बीच फ़क़द नमाज़ छोड़ने का है. ‛ (मतु स्लम हo 247)
अल्लाह के अलावा तकसी और को सज्दा करना.
क़ै स ؓ बयान करते हैं तक मैं नबी ﷺकी तिदमत में हातज़र हुआ और बताया तक मैं ‘हीरह’ (एक जगह ) गया तो मैंने देखा तक वहाां के लोग अपने
सरदार को सज्दा करते हैं, तो ऐ रसूलल्ु लाह ! ﷺआप इस बात के ज़्यादा हक़दार हैं तक हम आपको सज्दा करें. आप ﷺने फ़रमाया ‘‘ बताओ अगर
ु रते तो क्या सज्दा करते?’’ मैंने कहा ‘नहीं’ तो तिर आप ﷺने फ़रमाया ‚ तो ऐसा न करो, अगर मैं तकसी को सज्दा करने को
तमु मेरी क़ब्र पर से गज़
कहता तो औरतों को हुक्म देता तक अपने शौहरों को सज्दा करें.‛ (अबू दाऊद हo 2140)
नोट: इस हदीस से यह बात भी पता चली तक तकसी की क़ब्र को भी सज्दा करना जायज़ नहीं है .
तकसी शगनु की वजह से कोई काम करने से रुक जाना. (मतु स्लम हo 525)
फ़ुज़ाला ؓ बयान करते हैं तक रसूलल्ु लाह ﷺने फ़रमाया ‚ जो शख़्स बदशगनु ी की वजह से कोई काम करने से रुक गया तो उसने तशकद तकया.‛
(तसलतसला अहादीस अस सहीहा ह० 1065)
ु ररकों के तलए होंगी जो अल्लाह को नहीं मानते थे, जबतक हम लोग तो अल्लाह और उसके रसूल ﷺपर
सवाल नo 18- लेतकन ये सारी बातें तो मक्का के मश
ईमान रखते हैं ?
जवाब- नहीं, यह बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है. पहली बात तो यह तक ये सारी बातें हर उस शख़्स के तलए हैं जो ऐसे आमाल करे और दूसरी बात यह तक
उस वक़्त के मक्का के मशु ररकीन और आजकल के कलमा पढ़ने वाले मस ु लमानों में बहुत सी बातें एक जैसी हैं. जैसे...
तमाम इांसानों का पैदा करने वाला तसफ़द अल्लाह है. (क़ुरआन 43:87)
सारी दतु नया का रातज़क़ (ररज़्क़ देने वाला) और मातलक तसफ़द अल्लाह है और तज़न्दगी और मौत तसफ़द अल्लाह के हाथ में है. (क़ुरआन 10:31) 4
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ज़मीन, आसमान और हर एक चीज़ का मातलक और रब अल्लाह है. (क़ुरआन 23:84-87)
अज़ाब टालने वाला अल्लाह ही है. (क़ुरआन 44:12)
सवाल नo 19- ठीक है, लेतकन हम लोग नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात वगैरह अरकान अदा करते हैं जबतक वो लोग इन सब चीजों से दूर थे.
जवाब- यह भी बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है. क़ुरआन और अहादीस से हमें पता चलता है तक मशु ररकीन ये सारे आमाल करते थे. जैसे...
बैतल्ु लाह (यानी िाना-ए-काबा) इन लोगों ने तामीर तकया था. (तबक़ात इब्न साद 1/145)
नमाज़ भी पढ़ते थे (दौरे जातहतलयत में अबू ज़र ؓ इशा की नमाज़ पढ़ते थे – मतु स्लम तकताब फ़ज़ाइल असहाब, बाब फ़ज़ाइल अबू ज़र)
हज, उमरा और तवाफ़-ए-काबा भी करते थे
आशूरा (10 महु रद म) का रोज़ा भी रखते थे (बिु ारी हo 1893)
ज़कात भी देते थे (क़ुरआन 6:136)
इन सारी बातों से पता चलता है तक एक मस
ु लमान जो अल्लाह पर कातमल ईमान रखता हो और नमाज़ पढ़ता हो, रोज़ा रखता हो लेतकन साथ ही साथ ही उन
चीजों (तशतकदया कामों) पर भी अमल करता हो या ऐसे अक़ीदे रखता हो तजसको क़ुरआन और सहीह अहादीस में तशकद कहा गया है तो वह भी मशु ररकों में शातमल
हो जाएगा.
सवाल नo 22- कुछ लोग तबदअ़त को ‘अच्छी तबदअ़त’ और ‘बरु ी तबदअ़त’ में बाांटते हैं, क्या यह ठीक है?
जवाब- रसूलल्ु लाह ﷺऔर सहाबा ؓ ने कभी भी अच्छी और बरु ी तबदअ़त को अलग अलग नहीं तकया. क्या गमु राही भी अच्छी और बरु ी हो सकती
है? नबी-ए-करीम ﷺअक्सर ित्ु बे में फ़रमाते थे तक ‘‘हर’ तबदअ़त गमु राही है‛ लेतकन उन्होने कभी भी अच्छी तबदअ़त और बरु ी तबदअ़त में कोई भी फ़क़द नहीं
तकया, बतल्क अब्दल्ु लाह इब्न उमर ؓ फ़रमाते थे तक ‘ हर तबदअ़त गमु राही है भले ही लोग उसे तकतना भी अच्छा क्यों न समझे.’ (इमाम बैहक़ी की अल
मदिल ह० 191)
इस बारे में इमाम मातलक (रहo) फ़रमाते हैं " तजस शख़्स ने इस्लाम में नेकी समझ कर कोई नई चीज़ ईजाद की तो उसने गमु ान तकया तक महु म्मद ﷺने
तबलीग़-ए-ररसालत में फ़ख़यानत से काम तलया (नऊज़तु बल्लाह). जो चीज़ रसूलल्ु लाह ﷺके ज़माने में दीन नहीं थी वह आज भी दीन नहीं बन सकती.‛ (इमाम
शाततबी की अल इअततसाम- तजल्द 1 पेज 49)
सवाल नo 24- उन आमाल के बारे में बताइये जो तबदअ़त तो हैं लेतकन लोग उन्हें तबदअत नहीं समझते.
जवाब- वो काम जो तबदअ़त हैं लेतकन लोगों के बीच उन्हें तबदअ़त नहीं समझा जाता - 5
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नज़र, तनयाज़ करना या उसमें तहस्सा लेना
मीलाद करना या उसमें तहस्सा लेना
मइयत के तलए तीजा, चालीसवाां, बरसी वग़ैरह का एहततमाम करना
महु रद म में शहादत नामा पढ़ना, तखचड़ा, शबद त वग़ैरह बनवाना और लोगों में बाांटना
रजब के कूांडे और 15 शाबान में हलवे बनवाना और लोगों में बाांटना
उसद , क़ुल वग़ैरह करना, करवाना या उसमें तहस्सा लेना
नोट: ये सारे काम क़ुरआन, रसूलल्ु लाह ﷺऔर सहाबा ؓ तो क्या तकसी इमाम (रह०) से भी नहीं सातबत हैं.
सवाल नo 25- हमें दीन में गमु राही से बचने के तलए क्या करना चातहए?
जवाब- रसूलल्ु लाह ﷺने फ़रमाया ‚ मैं तम्ु हारे बीच 2 चीजें छोड़ कर जा रहा हूूँ उनको मज़बूती से पकड़े रहो कभी गमु राह नहीं होगे, अल्लाह की
तकताब और उसके रसूल ﷺकी सन्ु नत.‛ (मवु त्ता इमाम मातलक ह० 1628)
इस हदीस से पता चला तक हम क़ुरआन और सन्ु नते रसूल ( ﷺजो तक हमें सहीह हदीस से तमलेगी) पर अमल करके ही गमु राही से बच सकते हैं.
सवाल नo 26- आजकल हर तफ़क़ाद यह दावा करता है तक वह क़ुरआन और हदीस पर अमल करता है, तो क्या उनका दावा सही है?
जवाब- पहली बात तो यह तक हमें अमल सहीह (यानी मोतबर) हदीस पर करना है, ज़ईफ़ (यानी ग़ैर मोतबर) हदीस पर नहीं क्योंतक नबी ﷺने
फ़रमाया है तक ‚ तकसी शख़्स के झूठा होने के तलए इतना ही काफ़ी है तक वह वह जो भी बात सनु े उसे यहूां ी बयान कर दे.‛ (मतु स्लम ह० 7). मज़ीद फ़रमाया तक ‚
आतिरी ज़माने में झूठे दज्जाल लोग होंगे जो तम्ु हारे पास ऐसी अहादीस लायेंगे जो न तमु ने और न तम्ु हारे बाप-दादा ने सनु ी होगी. तो तमु ऐसे लोगों से बचना,
कहीं वो तमु को गुमराह न कर दें और फ़ित्ने में न डाल दें.‛ (मतु स्लम ह०16) और दूसरी बात यह तक हमें क़ुरआन और सहीह हदीस को अपनी समझ से नहीं
समझना है बतल्क तजस तरह सहाबा तकराम ؓ ने समझा उस तरह समझना है.
सवाल नo 27- लेतकन क़ुरआन और हदीस को समझने के तलए सहाबा तकराम ؓ की समझ ही क्यों?
जवाब- क्योंतक उन्होंने रसूलल्ु लाह ﷺसे सीधे दीन सीखा. वो रसूलल्ु लाह ﷺसे महु ब्बत हम लोगों से ज़्यादा करते थे और उनका ईमान भी हमसे
कहीं ज़्यादा मज़बूत था.
सवाल नo 29- क्या दीन में हर तकसी की बात क़ातबल ए कुबूल हैं ?
जवाब- जी नहीं, इसतलए तक अल्लाह तआ़ला ने कुऺरआन में फ़रमाया हैं तक
‚अगर तुम दुलनया में अक्सर लोगों की इताअ़त करोगे तो गुमराह हो जाओगे.‛ ( क़ुरआन 6:116)
सवाल नo 30- तसफ़द अल्लाह और उसके रसूल ﷺको मानने के क्या िायदे हैं ?
जवाब- इस बारे में अल्लाह तआ़ला ने कुऺरआन में फ़रमाया हैं तक
“जो लोग अल्लाह और उसके रसूल ﷺकी इताअ़त करते हैं वो (लक़यामत के लदन) उन लोगों के साथ होंगे लजन पर अल्लाह ने इनआ़म लकया, यानी नलबयों के
साथ, लसद्दीक़ीन के साथ, शहीदों के साथ और नेक लोगों के साथ.‛ (क़ुरआन 4:69)
सवाल नo 32- क्या इस्लाम में तफ़क़ाद वाररयत की कोई जगह है?
जवाब- तबलकुल नहीं, क़ुरआन में तफ़क़ाद वाररयत छोड़ कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ने को कहा गया है (क़ुरआन 3:103). बतल्क
अल्लाह ने दीन को टुकडों में बाूँटने वालों को मशु ररकों जैसा कहा है, ‚ और मुशररकीन में से न हो जाओ लजन्होंने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर लदए और िुद
मुततललफ़ लफ़क़ों में बूंट गए और हर लगरोह उसमें मगन है जो उनके पास है.‛ (क़ुरआन 30:31,32) 6
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सवाल नo 33- लेतकन इस बारे में तो एक हदीस है तक ‚मेरी उम्मत में इतख़्तलाफ़ अल्लाह की रहमत है ‛ तो उस बारे में क्या कहेंगे?
जवाब- पहली बात तो यह तक यह एक झूठी और गढ़ी हुई हदीस है तजसको रसूलल्ु लाह की तरह मांसूब करना बहुत बड़ा गनु ाह है. इसके अलावा यह
क़ुरआन और हदीस की बतु नयादी तालीम के तिलाफ़ है. अल्लाह और उसके रसूल ﷺने कई मौकों पर इतख़्तलाफ़ से बचने को कहा है. क्योंतक इतख़्तलाफ़
तजतना ज़्यादा होगा उम्मत का एक जटु हो पाना उतना ही मतु श्कल होगा, और इतख़्तलाफ़ से बचने के तलए अल्लाह ने कहा तक ‚ तुम में लकसी भी बात को लेकर
इलततलाफ़ हो जाये तो तुम अल्लाह और उसके रसूल ﷺकी तरफ़ लौट आओ.‛ (क़ुरआन 4:59). तो अगर इतख़्तलाफ़ अल्लाह की रहमत होता तो ऐसी
हालत में अल्लाह और उसके रसूल ﷺकी तरि लौटने को क्यों कहा जाता? बतल्क यही कहा जाता तक और ज़्यादा इतख़्तलाफ़ करो क्योंतक यह अल्लाह की
रहमत है.
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