Professional Documents
Culture Documents
भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतदुर्दशा नाटक1
भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतदुर्दशा नाटक1
me/UPSC_PDF
8/2/2018 भारतदु ह र ं :: :: :: भारतदु दशा :: नाटक
नाटक
भारतदु दशा
भारतदु ह र ं
अनु म अ ाय 2 पीछे
हसन
भारतदु दशा
ना रासक वा ला पक , संवत 1933
।। मंगलाचरण ।।
पिहला अंक
थान - बीथी
(एक योगी गाता है )
(लावनी)
रोअ सब िमिलकै आव भारत भाई।
हा हा! भारतदु दशा न दे खी जाई ।। धुरव
् ।।
सबके पिहले जेिह ई र धन बल दीनो।
सबके पिहले जेिह स िवधाता कीनो ।।
सबके पिहले जो प रं ग रस भीनो।
सबके पिहले िव ाफल िजन गिह लीनो ।।
अब सबके पीछे सोई परत लखाई।
हा हा! भारतदु दशा न दे खी जाई ।।
जहँ भए शा ह रचंद न ष ययाती।
जहँ राम युिधि र बासुदेव सयाती ।।
जहँ भीम करन अजुन की छटा िदखाती।
तहँ रही मूढ़ता कलह अिव ा राती ।।
अब जहँ दे ख दु ःखिहं दु ःख िदखाई।
हा हा! भारतदु दशा न दे खी जाई ।।
ल र बैिदक जैन डु बाई पु क सारी।
क र कलह बुलाई जवनसैन पुिन भारी ।।
ितन नासी बुिध बल िव ा धन ब बारी।
छाई अब आलस कुमित कलह अंिधयारी ।।
भए अंध पंगु सेब दीन हीन िबलखाई।
हा हा! भारतदु दशा न दे खी जाई ।।
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 1/14
Google it:- https://upscpdf.com
https://t.me/UPSC_PDF Download From > https://upscpdf.com https://t.me/UPSC_PDF
8/2/2018
ह ह ु ई भारतदु ह र ं :: :: :: भारतदु दशा :: नाटक
दू सरा अंक
तीसरा अंक
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 2/14
Google it:- https://upscpdf.com
https://t.me/UPSC_PDF Download From > https://upscpdf.com https://t.me/UPSC_PDF
8/2/2018 भारतदु ह र ं :: :: :: भारतदु दशा :: नाटक
थान-मैदान
(फौज के डे रे िदखाई पड़ते ह! भारतदु दव ’ आता है )
भारतदु . : कहाँ गया भारत मूख! िजसको अब भी परमे र और राजराजे री का भरोसा है ? दे खो तो अभी
इसकी ा ा दु दशा होती है ।
(नाचता और गाता आ)
अरे !
उपजा ई र कोप से औ आया भारत बीच।
छार खार सब िहं द क ँ म, तो उ म निहं नीच।
मुझे तुम सहज न जानो जी, मुझे इक रा स मानो जी।
कौड़ी कौड़ी को क ँ म सबको मुहताज।
भूखे ान िनकालूँ इनका, तो म स ा राज। मुझे...
काल भी लाऊँ महँ गी लाऊँ, और बुलाऊँ रोग।
पानी उलटाकर बरसाऊँ, छाऊँ जग म सोग। मुझे...
फूट बैर औ कलह बुलाऊँ, ाऊँ सु ी जोर।
घर घर म आलस फैलाऊँ, छाऊँ दु ख घनघोर। मुझे...
काफर काला नीच पुका ँ , तोडूँ पैर औ हाथ।
दू ँ इनको संतोष खुशामद, कायरता भी साथ। मुझे...
मरी बुलाऊँ दे स उजाडूँ महँ गा करके अ ।
सबके ऊपर िटकस लगाऊ, धन है भुझको ध ।
मुझे तुम सहज न जानो जी, मुझे इक रा स मानो जी।
(नाचता है )
अब भारत कहाँ जाता है , ले िलया है । एक त ा बाकी है , अबकी हाथ म वह भी साफ है । भला हमारे िबना
और ऐसा कौन कर सकता है िक अँगरे जी अमलदारी म भी िहं दू न सुधर! िलया भी तो अँगरे जों से औगुन! हा
हाहा! कुछ पढ़े िलखे िमलकर दे श सुधारा चाहते ह? हहा हहा! एक चने से भाड़ फोडं ◌़गे। ऐसे लोगों को
दमन करने को म िजले के हािकमों को न दू ँ गा िक इनको िडसलाय ी म पकड़ो और ऐसे लोगों को हर
तरह से खा रज करके िजतना जो बड़ा मेरा िम हो उसको उतना बड़ा मेडल और खताब दो। ह! हमारी
पािलसी के िव उ ोग करते ह मूख! यह ों? म अपनी फौज ही भेज के न सब चैपट करता ँ । (नेप
की ओर दे खकर) अरे कोई है ? स ानाश फौजदार को तो भेजो।
(नेप म से ‘जो आ ा’ का श सुनाई पड़ता है )
दे खो म ा करता ँ । िकधर िकधर भागगे।
(स ानाश फौजदार आते ह)
(नाचता आ)
स ा. फौ : हमारा नाम है स ानास।
धरके हम लाखों ही भेस।
ब त हमने फैलाए धम।
होके जयचंद हमने इक बार।
हलाकू चंगेजो तैमूर।
दु रानी अहमद नािदरसाह।
ह हमम तीनों कल बल छल।
िपलावगे हम खूब शराब।
भारतदु . : अंहा स ानाशजी आए। आओे, दे खो अभी फौज को दो िक सब लोग िमल के चारों ओर से
िहं दु ान को घेर ल। जो पहले से घेरे ह उनके िसवा औरों को भी आ ा दो िक बढ़ चल।
स ा. फौ. : महाराज ‘इं जीत सन जो कछु भाखा, सो सब जनु पिहलिहं क र राखा।’ िजनको आ ा हो चुकी
है वे तो अपना काम कर ही चुके और िजसको जो हो, कर िदया जाय।
भारतदु . : भला भारत का श नामक फौजदार अभी जीता है िक मर गया? उसकी पलटन कैसी है ?
स ा. फौ. : महाराज! उसका बल तो आपकी अितवृि और अनावृि नामक फौजों ने िबलकुल तोड़ िदया।
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 4/14
Google it:- https://upscpdf.com
https://t.me/UPSC_PDF Download From > https://upscpdf.com https://t.me/UPSC_PDF
8/2/2018
ह भारतदु ह रृ ं :: :: :: भारतदु दृशा :: नाटक ु ड़
लाही, कीड़े , िट ी और पाला इ ािद िसपािहयों ने खूब ही सहायता की। बीच म नील ने भी नील बनकर
अ ा लंकादहन िकया।
भारतदु . : वाह! वाह! बड़े आनंद की बात सुनाई। तो अ ा तुम जाओ। कुछ परवाह नहीं, अब ले िलया है ।
बाकी साकी अभी सपराए डालता ँ । अब भारत कहाँ जाता है । तुम होिशयार रहना और रोग, महघ, कर,
म , आलस और अंधकार को जरा म से मेरे पास भेज दो।
स ा. फौ. : जो आ ा।
जाता है ,
भारतदु . : अब उसको कहीं शरण न िमलेगी। धन, बल और िव ा तीनों गई। अब िकसके बल कूदे गा?
(जविनका िगरती है )
पटो ोलन
चौथा अंक
(अंधकार का वेश)
(आँ धी आने की भाँ ित श सुनाई पड़ता है )
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 7/14
Google it:- https://upscpdf.com
https://t.me/UPSC_PDF Download From > https://upscpdf.com https://t.me/UPSC_PDF
8/2/2018
( ु ई ड़ ह) भारतदु ह र ं :: :: :: भारतदु दशा :: नाटक
अंधकार : (गाता आ िलत नृ करता है )
(राग काफी)
जै जै किलयुग राज की, जै महामोह महराज की।
अटल छ िसर िफरत थाप जग मानत जाके काज की ।।
कलह अिव ा मोह मूढ़ता सवै नास के साज की ।।
हमारा सृि संहार कारक भगवान् तमोगुण जी से ज है । चोर, उलूक और लंपटों के हम एकमा ा जीवन ह।
पवतों की गुहा, शोिकतों के ने ा, मूख के म और खलों के िच म हमारा िनवास है । दय के और
, चारों ने ा हमारे ताप से बेकाम हो जाते ह। हमारे दो प ह, एक आ ा क और एक
आिधभौितक, जो लोक म अ ान और अँधेरे के नाम से िस ह। सुनते ह िक भारतवष म भेजने को मुझे मेरे
परम पू िम दु दव महाराज ने आज बुलाया है । चल दे ख ा कहते ह (आगे बढ़कर) महाराज की जय हो,
किहए ा अनुमित है ?
भारतदु . : आओ िम ! तु ारे िबना तो सब सूना था। य िप मने अपने ब त से लोग भारत िवजय को भेजे ह
पर तु ारे िबना सब िनबल ह। मुझको तु ारा बड़ा भरोसा है , अब तुमको भी वहाँ जाना होगा।
अंध. : आपके काम के वा े भारत ा व ु है , किहए म िवलायत जाऊँ।
भारतदु . : नहीं, िवलायत जाने का अभी समय नहीं, अभी वहाँ ोता, ापर है ।
अंध. : नहीं, मने एक बात कही। भला जब तक वहाँ दु ा िव ा का ाब है , म वहाँ जाही के ा क ँ गा?
गैस और मैगनीिशया से मेरी ित ा भंग न हो जायेगी।
भारतदु . : हाँ , तो तुम िहं दु ान म जाओ और िजसम हमारा िहत हो सो करो। बस ‘ब त बुझाई तुमिहं का
कहऊँ, परम चतुर म जानत अहऊँ।’
अंध : ब त अ ा, म चला। बस जाते ही दे खए ा करता ँ । (नेप म बैतािलक गान और गीत की
समा म म से पूण अंधकार और पटा ेप)
िनहचै भारत को अब नास।
जब महराज िवमुख उनसों तुम िनज मित करी कास ।।
अब क ँ सरन ित निहं िमिलहै ै है सब बल चूर।
बुिध िव ा धन धान सबै अब ितनको िमिलह धूर ।।
अब निहं राम धम अजुन निहं शा िसंह अ ास।
क रहै कौन परा म इनम को दै हे अब आस ।।
सेवाजी रनजीत िसंह अब निहं बाकी जौन।
क रह वधू नाम भारत को अब तो नृप मौन ।।
वही उदै पुर जैपुर रीवाँ प ा आिदक राज।
परबस भए न सोच सकिहं कुछ क र िनज बल बेकाज ।।
अँगरे ज को राज पाइकै रहे कूढ़ के कूढ़।
ारथपर िविभ -मित-भूले िहं दू सब ै मूढ़ ।।
जग के दे स बढ़त बिद बिद के सब बाजी जेिह काल।
ता समय रात इनकी है ऐसे ये बेहाल ।।
छोटे िचत अित भी बु मन चंचल िबगत उछाह।
उदर-भरन-रत, ईसिबमुख सब भए जा नरनाह ।।
इनसों कुछ आस निहं ये तो सब िविध बुिध-बल हीन।
िबना एकता-बु -कला के भए सबिह िबिध दीन ।।
बोझ लािद कै पैर छािन कै िनज सुख कर हार।
ये रासभ से कुछ निहं किहह मान छमा अगार ।।
िहत अनिहत पशु प ी जाना’ पै ये जानिहं नािहं ।
भूले रहत आपुने रँ ग म फँसे मूढ़ता मािहं ।।
जे न सुनिहं िहत, भलो करिहं निहं ितनसों आसा कौन।
पाँचवाँ अंक
थान-िकताबखाना
(सात स ों की एक छोटी सी कमेटी; सभापित च रदार टोपी पहने,
च ा लगाए, छड़ी िलए; छह स ों म एक बंगाली, एक महारा ,
एक अखबार हाथ म िलए एिडटर, एक किव और दो दे शी महाशय)
सभापित : (खड़े होकर) स गण! आज की कमेटी का मु उदे यह है िक भारतदु दव की, सुनाु है िक
हम लोगों पर चढ़ाई है । इस हे तु आप लोगों को उिचत है िक िमलकर ऐसा उपाय सोिचए िक िजससे हम लोग
इस भावी आपि से बच। जहाँ तक हो सके अपने दे श की र ा करना ही हम लोगों का मु धम है । आशा
है िक आप सब लोग अपनी अपनी अनुमित गट करगे। (बैठ गए, करतल िन)
बंगाली : (खड़े होकर) सभापित साहब जो बात बोला सो ब त ठीक है । इसका पेशतर िक भारतदु दव हम
लोगों का िशर पर आ पड़े कोई उसके प रहार का उपाय सोचना अ ंत आव क है िकंतु एई है जे हम
लोग उसका दमन करने शाकता िक हमारा बो ्जोबल के बाहर का बात है । ों नहीं शाकता? अलब
शकैगा, परं तु जो सब लोग एक म होगा। (करतल िन) दे खो हमारा बंगाल म इसका अनेक उपाय साधन
होते ह। ि िटश इं िडयन ऐसोिशएशन लीग इ ािद अनेक शभा ी होते ह। कोई थोड़ा बी बात होता हम लोग
िमल के बड़ा गोल करते। गवनमट तो केवल गोलमाल शे भय खाता। और कोई तरह नहीं शोनता। ओ ँ आ
आ अखबार वाला सब एक बार ऐसा शोर करता िक गवेनमट को अलब ा शुनने होता। िकंतु हयाँ , हम दे खते
ह कोई कुछ नहीं बोलता। आज शब आप स लोग एक ा ह, कुछ उपाय इसका अव सोचना चािहए।
(उपवेशन)।
प. दे शी : (धीरे से) यहीं, मगर जब तक कमेटी म ह तभी तक। बाहर िनकले िक िफर कुछ नहीं।
दू . दे शी : धीरे से, ों भाई साहब; इस कमेटी म आने से किम र हमारा नाम तो दरबार से खा रज न कर
दगे?
एिडटर : (खडे़ होकर) हम अपने ाणपण से भारत दु दव को हटाने को तैयार ह। हमने पिहले भी इस िवषय
म एक बार अपने प ा म िलखा था परं तु यहां तो कोई सुनता ही नहीं। अब जब िसर पर आफत आई सो आप
लोग उपाय सोचने लगे। भला अब भी कुछ नहीं िबगड़ा है जो कुछ सोचना हो ज सोिचए। (उपवेशन)
किव : (खडे़ होकर) मुह दशाह ने भाँ ड़ों ने दु न को फौज से बचने का एक ब त उ म उपाय कहा था।
उ ोंने बतलाया िक नािदरशाह के मुकाबले म फौज न भेजी जाय। जमना िकनारे कनात खड़ी कर दी जायँ,
कुछ लोग चूड़ी पहने कनात के पीछे खड़े रह। जब फौज इस पार उतरने लग, कनात के बाहर हाथ
िनकालकर उँ गली चमकाकर कह ‘‘मुए इधर न आइयो इधर जनाने ह’’। बस सब दु न हट जायँगे। यही
उपाय भारतदु दव से बचने को ों न िकया जाय।
बंगाली : (खड़े होकर) अलबत, यह भी एक उपाय है िकंतु अस गण आकर जो ी लोगों का िवचार न
करके सहसा कनात को आ मण करे गा तो? (उपवेशन)
एिड. : (खड़े होकर) हमने एक दू सरा उपाय सोचा है , एडूकेशन की एक सेना बनाई जाय। कमेटी की फौज।
अखबारों के श ा और ीचों के गोले मारे जायँ। आप लोग ा कहते ह? (उपवेशन)
दू . दे शी : मगर जो हािकम लोग इससे नाराज हों तो? (उपवेशन)
बंगाली : हािकम लोग काहे को नाराज होगा। हम लोग शदा चाहता िक अँगरे जों का रा उ न हो, हम
लोग केवल अपना बचाव करता। (उपवेशन)
महा. : परं तु इसके पूव यह होना अव है िक गु रीित से यह बात जाननी िक हािकम लोग भारतदु दव की
सै से िमल तो नहीं जायँगे।
दू . दे शी : इस बात पर बहस करना ठीक नहीं। नाहक कहीं लेने के दे ने न पड़, अपना काम दे खए (उपवेशन
और आप ही आप) हाँ , नहीं तो अभी कल ही झाड़बाजी होय।
महा. : तो सावजिनक सभा का थापन करना। कपड़ा बीनने की कल मँगानी। िहदु ानी कपड़ा पिहनना।
यह भी सब उपाय ह।
दू . दे शी : (धीरे से)-बनात छोड़कर गंजी पिहरगे, ह ह।
एिड. : परं तु अब समय थोड़ा है ज ी उपाय सोचना चािहए।
किव : अ ा तो एक उपाय यह सोचो िक सब िहं दू मा ा अपना फैशन छोड़कर कोट पतलून इ ािद पिहर
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 9/14
Google it:- https://upscpdf.com
https://t.me/UPSC_PDF Download From > https://upscpdf.com https://t.me/UPSC_PDF
8/2/2018
ए ह ह ू ह र ं :: :: :: भारतदु दशा :: नाटक
भारतदु ड़ ू इ ह
िजसम सब दु दव की फौज आवे तो हम लोगों को योरोिपयन जानकर छोड़ द।
प. दे शी : पर रं ग गोरा कहाँ से लावगे?
बंगाली : हमारा दे श म भारत उ ार नामक एक नाटक बना है । उसम अँगरे जों को िनकाल दे ने का जो उपाय
िलखा, सोई हम लोग दु दव का वा े काहे न अवलंबन कर। ओ िलखता पाँ च जन बंगाली िमल के अँगरे जों को
िनकाल दे गा। उसम एक तो िपशान लेकर ेज का नहर पाट दे गा। दू सरा बाँ स काट काट के पवरी नामक
जलयं ा िवशेष बनावेगा। तीसरा उस जलयं ा से अंगरे जों की आँ ख म धूर और पानी डालेगा।
महा. : नहीं नहीं, इस थ की बात से ा होना है । ऐसा उपाय करना िजससे फल िस हो।
प. दे शी : (आप ही आप) हाय! यह कोई नहीं कहता िक सब लोग िमलकर एक िचत हो िव ा की उ ित करो,
कला सीखो िजससे वा िवक कुछ उ ित हो। मशः सब कुछ हो जायेगा।
एिड. : आप लोग नाहक इतना सोच करते ह, हम ऐसे ऐसे आिटिकल िलखगे िक उसके दे खते ही दु दव
भागेगा।
किव : और हम ऐसी ही ऐसी किवता करगे।
प. दे शी : पर उनके पढ़ने का और समझने का अभी सं ार िकसको है ?
(नेप म से)
भागना मत, अभी म आती ँ ।
(सब डरके चैक े से होकर इधर उधर दे खते ह)
दू . दे शी : (ब त डरकर) बाबा रे , जब हम कमेटी म चले थे तब पिहले ही छींक ई थी। अब ा कर। (टे बुल
के नीचे िछपने का उ ोग करता है )
(िडसलायलटी1 का वेश)
सभापित : (आगे से ले आकर बड़े िश ाचार से) आप ों यहाँ तशरीफ लाई ह? कुछ हम लोग सरकार के
िव िकसी कार की स ित करने को नहीं एक ा ए ह। हम लोग अपने दे श की भलाई करने को एक ा
ए ह।
िडसलायलटी: नहीं, नहीं, तुम सब सरकार के िव एक ा ए हो, हम तुमको पकडे़ ं गे।
बंगाली : (आगे बढ़कर ोध से) काहे को पकडे़ गा, कानून कोई व ु नहीं है । सरकार के िव कौन बात
हम लोग बाला? थ का िवभीिषका!
िडस. : हम ा कर, गवनमट की पािलसी यही है । किव वचन सुधा नामक प ा म गवनमट के िव कौन
बात थी? िफर ों उसे पकड़ने को हम भेजे गए? हम लाचार ह।
दू . दे शी : (टे बुल के नीचे से रोकर) हम नहीं, हम नहीं, तमाशा दे खने आए थे।
महा. : हाय हाय! यहाँ के लोग बड़े भी और कापु ष ह। इसम भय की कौन बात है ! कानूनी है ।
सभा. : तो पकड़ने का आपको िकस कानून से अिधकार है ?
िडस. : इँ गिलश पािलसी नामक ऐ के हािकमे ा नामक दफा से।
महा. : परं तु तुम?
दू . दे शी : (रोकर) हाय हाय! भटवा तुम कहता है अब मरे ।
महा. : पकड़ नही सकतीं, हमको भी दो हाथ दो पैर है । चलो हम लोग तु ारे संग चलते ह, सवाल जवाब
करगे।
बंगाली : हाँ चलो, ओ का बात-पकड़ने नहीं शेकता।
सभा. : ( गत) चेयरमैन होने से पिहले हमीं को उ र दे ना पडे़ गा, इसी से िकसी बात म हम अगुआ नहीं
होते।
िडस : अ ा चलो। (सब चलने की चे ा करते ह)
(जविनका िगरती है )
छठा अंक
थान-गंभीर वन का म भाग
(भारत एक वृ के नीचे अचेत पड़ा है )
(भारतभा का वेश)
भारतभा : (गाता आ-राग चैती गौरी)
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 10/14
Google it:- https://upscpdf.com
https://t.me/UPSC_PDF Download From > https://upscpdf.com https://t.me/UPSC_PDF
8/2/2018 भारतदु ह र ं :: :: :: भारतदु दशा :: नाटक
( )
जागो जागो रे भाई।
सोअत िनिस बैस गँवाई। जागों जागो रे भाई ।।
िनिस की कौन कहै िदन बी ो काल राित चिल आई।
दे ख परत निह िहत अनिहत कछु परे बै र बस जाई ।।
िनज उ ार पंथ निहं सूझत सीस धुनत पिछताई।
अब ँ चेित, पका र राखो िकन जो कुछ बची बड़ाई ।।
िफर पिछताए कुछ निहं ै है रिह जैहौ मुँह बाई।
जागो जागो रे भाई ।।
(भारत को जगाता है और भारत जब नहीं जागता तब अनेक य से िफर जगाता है , अंत म हारकर उदास
होकर)
हाय! भारत को आज ा हो गया है ? ा िनः ंदेह परमे र इससे ऐसा ही ठा है ? हाय ा अब भारत के
िफर वे िदन न आवगे? हाय यह वही भारत है जो िकसी समय सारी पृ ी का िशरोमिण िगना जाता था?
भारत के भुजबल जग रि त।
भारतिव ा लिह जग िस त ।।
भारततेज जगत िब ारा।
भारतभय कंपत संसारा ।।
जाके तिनकिहं भौंह िहलाए।
थर थर कंपत नृप डरपाए ।।
जाके जयकी उ ल गाथा।
गावत सब मिह मंगल साथा ।।
भारतिक रन जगत उँ िजयारा।
भारतजीव िजअत संसारा ।।
भारतवेद कथा इितहासा।
भारत वेद था परकासा ।।
िफिनक िमिसर सीरीय युनाना।
भे पंिडत लिह भारत दाना ।।
र ौ िधर जब आरज सीसा।
िलत अनल समान अवनीसा ।।
साहस बल इन सम कोउ नाहीं।
तबै र ौ मिहमंडल माहीं ।।
कहा करी तकसीर ितहारी।
रे िबिध यािह की बारी ।।
सबै सुखी जग के नर नारी।
रे िवधना भारत िह दु खारी ।।
हाय रोम तू अित बड़भागी।
बबर तोिह ना ों जय लागी ।।
तोड़े कीरितथंभ अनेकन।
ढाहे गढ़ ब क र ण टे कन ।।
मंिदर महलिन तो र िगराए।
सबै िच तुव धू र िमलाए ।।
कछु न बची तुब भूिम िनसानी।
सो ब मेरे मन अित मानी ।।
भारत भाग न जात िनहारे ।
था ो पग ता सीस उधारे ।।
तोरî◌ो दु गन महल ढहायो।
http://www.hindisamay.com/content/40/2/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%… 14/14
Google it:- https://upscpdf.com