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शिया मज़हब

पर होने वाले एतेराज़ात के जवाबात

(अहले सुन्नत की ककताबों की रौिनी में )

लेखक: िेख़ नज्मुद्दीन तबसी

अनव
ु ादक: सय्यद अबरार अली जाफ़री (मंचरी)

नाशिर: अबू ताशलब (अ.स) इंटरनॅिनल इस्लाशमक इंस्स्टट्यट



जुमला हुक़ूक़ ब हक़्क़े नाशिर महफ़ूज़ हैं

किताब िा नाम: शिया मज़हब पर होने वाले

एतेराज़ात िे जवाबात अहले सुन्नत िी किताबों िी

रौिनी में.

लेखि: िेख़ नज्मद्द


ु ीन तबसी

अनव
ु ादि: सय्यद अबरार अली जाफ़री (मंचरी)

पेज: 67

तादाद: 1000

एडीिन (संस्िरण): पहला / िाबान 1436 (2015)

संिोधन: सय्यद अली अमीर ररज़वी

िम्पोज़ज़ंग: सय्यद इरिाद अली जाफ़री (मंचरी)

नाशिर: अबू ताशलब (अ.स) इंटरनॅिनल इस्लाशमि

इंज़स्टट्यूट बम्बई, हहन्दस्


ु तान

2
3
फ़ेहररस्त (सूची)

मुक़द्दमा-ए-मुअज़ललफ़ .......................................... 9

सवाल नंबर 1: सबसे पहले किस िख़्स ने पैग़म्बर


हज़रत मुहम्मद (स) िी क़ब्रे मुबारि िी ज़ज़यारत से
रोिा? ............................................................. 10

सवाल नंबर 2: क्या पैग़म्बर (स) िी क़ब्रे मुबारि िो


मस िरना या उस िी ख़ाि िो तबर्रूि िे तौर पर
उठाना जाएज़ है ? और क्या सहाबा में से किसी ने
ऐसा अमल अंजाम हदया? ................................. 11

सवाल नंबर 3: क्या मज़हब-ए-अरबाअ (चार मज़हब)


िे उलमा तबर्रूि, शमम्बरे मुबारि, क़ब्रे मुबारि, या
दीगर औशलया-ए-ख़ुदा िी क़ब्रों िो मस िरने िो
जाएज़ समझते हैं? ........................................... 13

सवाल नंबर 4: अहले सुन्नत िे अपने बड़े बुज़ुग़ों िी


क़ब्र से तबर्रूि हाशसल िरने िा एि नमूना बयान
िरें ? ............................................................... 16

4
सवाल नंबर 5: क्या ग़ैरे ख़द
ु ा से हाजत तलब िरना
जाएज़ है ? ....................................................... 17

सवाल नंबर 6: क़ब्र िी ज़ज़यारत जायज़ होने िी िौन


सी दलील मौजद
ू है ? ........................................ 23

सवाल नंबर 7: क्या यह हदीस ((ला तिद्द


ु ा अल रे हाल
इलला इला सलासतत मसाज़जद)) क़ब्रों पर जाने से
मना नहीं िर रही? .......................................... 26

सवाल नंबर 8: क्या इस हदीस ((अललाह िी लानत


हो उन औरतों पर जो क़ब्रों िी ज़ज़यारत िरती है ))
िे बा वजूद औरतें क़ब्रों पर जा सिती हैं? ......... 29

सवाल नंबर 9: क्या अज़म्बया अलैहहमस्


ु सलाम और
औशलया-ए-किराम िी क़ब्रों िे पास खड़े होिर नमाज़
पढ़ना या दआ
ु िरना जाएज़ है ? ........................ 32

सवाल नंबर 10: क्या यह हदीस ((ख़ुदा लानत िरे


यहूहदयों पर कि उन्होंने अपने बड़ों िी क़ब्रों िो
मज़स्जद बना शलया)) इसी तरह यह हदीस
((परवरहदगार! मेरी क़ब्र िो बुत क़रार ना दे ना)) क़ब्रे

5
पैग़म्बर (स) और दस
ू रे क़ब्रों िे पास नमाज़ पढ़ने या
दआ
ु मांगने से मना नहीं िर रही? .................... 34

सवाल नंबर 11: क्या इस्लामी िरीयत में क़ब्रों पर


गम्
ु बद और ज़रीह वग़ैरा बनाने से मना किया गया
है ? ................................................................. 38

सवाल नंबर 12: क्या यह हदीस ((पैग़म्बर (स) ने


क़ब्रों िो पक्िी बना िर उस पर इमारत बनाने से
मना किया है )) रौज़ों िो बनाने से मना नहीं िर रहीं
है ? ................................................................. 43

सवाल नंबर 13: क्या क़ब्रों पर चचराग़ वग़ैरा िा रौिन


िरना िरई तौर पर मना है ? ............................ 44

सवाल नंबर 14: क्या ज़ज़न्दा या मुदाू औशलया अललाह


िे शलये मन्नत मानना जाएज़ है ? ..................... 46

सवाल नंबर 15: अज़ादारी और जश्ने मीलादन्ु नबी (स)


वग़ैरा िे बारे में इस्लाम िा क्या नज़ररया है ? .... 49

सवाल नंबर 16: क्या अहले सन्


ु नत िे उलमा भी
मुतआ िो जाएज़ समझते हैं? ........................... 52

6
सवाल नंबर 17: किसशलए शिया हज़रात हाथ बांधिर
नमाज़ नहीं पढ़ते? ........................................... 55

सवाल नंबर 18: नमाज़े तरावीह क्या है और किसशलए


अहले सुन्नत इस िी अदा िरने पर इस क़दर पाबंद
हैं? ................................................................. 58

सवाल नंबर 19: क्या बबदअत िो अच्छी और बरु ी दो


कक़स्मों में तक़सीम किया जा सिता है और अच्छी
बबदअत से मुराद क्या है ? ................................. 61

सवाल नंबर 20: वह ररवायात ज़जन में यह बयान हुआ


है कि हज़रत अली (अ.स) नमाज़े तरावीह पढ़ा िरते
या उस िे शलए इमाम मुक़रू र िरते, इन्हें नमाज़े
तरावीह िे बबदअत होने वाली ररवायात िे साथ िैसे
जमा किया जा सिता है ? ................................. 62

सवाल नंबर 21: क्या यह जुमला ((अस्सलातो


ख़ैर्रज़म्मनन नौम)) िुर्र ही से अज़ान में मौजूद था या
बाद में इज़ाफ़ा किया गया?............................... 64

7
सवाल नंबर 22: क्या यह जम
ु ला ((हय्या अला ख़ैररल
अमल)) अज़ान िा हहस्सा है और इसे सहाबा व
ताबबईन में से किसी ने पढ़ा है ? ........................ 66

8
मक़
ु द्दमा-ए-मअ
ु स्ललफ़
मौजद
ू ा किताब उन बाज़ सवालों िे जवाबात िा
मजमुआ है ज़जन्हें क्लास िे दौरान बयान किया गया
और किर ख़ल
ु ासे िो मद्दे नज़र रखते हुए अहले सुन्नत
िे मोतबर मनाबे (भरोसेमन्द किताबों) िे हवाले जात
(ररफ़रें स) िे साथ बहुत ही अच्छे अन्दाज़ में मुरत्तब
(सेटींग) िरिे अवाम िे सामने पेि किया जा रहा
है .1 उम्मीदवार हैं कि पढ़ने वालें हज़रात इस िे
मत
ु ाशलआ िरने िे बाद दस
ू रों ति भी पहुुँचाएंगे और
अगर िहीं पर िोई िि व इबहाम हदखाई दें तो
मुअज़ललफ़ (लेखि) से राबबता फ़रमाएंगे. इन्िाअललाह
आईन्दा मुफ़स्सल जवाबात बयान किये जायेंगे.

नज्मुद्दीन तबसी

22 रबीअ सानी, 1422 हहजरी

1 इन सवालात िे मुफ़स्सल जवाबात हाशसल िरने िे शलये मअ


ु ज़ललफ़
मुहतरम िी किताब (वहाबी अफ़िार िी रद्द) िा मुताशलआ फ़रमाए. यह
किताब अबू ताशलब (अ.स) इस्लाशमि इंटरनॅिनल इंज़स्टट्यट
ू बंबई से हहन्दी
ज़बान में छप चि
ु ी है. (मुतज़जूम)

9
सवाल नंबर 1: सबसे पहले ककस िख़्स ने पैग़म्बर
हज़रत मह
ु म्मद (स) की क़ब्रे मब
ु ारक की स्ज़यारत से
रोका?
जवाब: अहले सुन्नत िे मोतबर आशलमे दीन
हाकिमे नीिापूरी (वफ़ात 405 हह.) दाऊद बबन सालेह
से नक़्ल िरते हैं कि एि हदन मरवान बबन हिम ने
एि िख़्स िो दे खा जो अपने र्रख़्सार िो पैग़म्बर
(स) िी क़ब्रे मुबारि पर रखे राज़ व तनयाज़ िर रहा
था मरवान ने उसे गरदन से पिड़ा और िहा: क्या
तझ
ु े मालूम है कि क्या िर रहा है ? उस िे िहने िा
मक़सद यह था कि यह पत्थर और ख़ाि है इस िी
ज़ज़यारत से क्या चाहता है ? ज़ाएर ररसालत-ए-माअब
(स) िा प्यारा सहाबी अबू अय्यूब अन्सारी (र.अ) था.
उन्होंने जवाब में फ़रमाया: हाुँ मैं बहुत अच्छी तरह
जानता हूुँ कि क्या िरने आया हूुँ! मैं किसी पत्थर िे
पास नहीं आया बज़लि अपने नबी (स) िे पास आयां
हूुँ मैंने रसूले ख़ुदा (स) से सुना है : “दीन पर उस वक़्त
ति चगरया मत िरो जब ति उस िी सरपरस्ती

10
अहल लोग िर रहे हैं, मगर उस वक़्त चगरया िरो
जब ना अहल लोग उस िे सरपरस्त बनिर बैठ जायें.

तअज्जुब िी बात तो यह है कि इस हदीस िो


अहले सुन्नत िे इमाम हािीमे नीिापूरी और इलमे
ररजाल िे माहहर इमाम ज़हबी ने सहीह क़रार हदया
है ! ज़जस से वाज़ेह व साफ़ तौर पर यह मालूम होता
है कि इसी कफ़क्र िे मौजूद बनू उमय्या बबल ख़ुसूस
मरवान बबन हिम है ज़जसे ररसालत-ए-माअब (स) ने
मल
ु ि बदर (ज़जला वतन) किया था.
1

सवाल नंबर 2: क्या पैग़म्बर (स) की क़ब्रे मुबारक


को मस करना या उस की ख़ाक को तबर्रूक के तौर
पर उठाना जाएज़ है ? और क्या सहाबा में से ककसी
ने ऐसा अमल अंजाम ददया?
जवाब: 1) जी हाुँ! रसूले ख़द
ु ा (स) िी एिलौती
बेटी हज़रत फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) ने अपने वाशलद

1 मुसतदरिे हाकिम, ज़जलद 4, पेज 560

11
हज़रत मुहम्मद (स) िी क़ब्रे मब
ु ारि िी शमट्टी उठािर
अपनी आुँखों पर लगाई और चन्द अिआर पढ़े .1

2) सहाबी-ए-रसूल (स) अबू अय्यूब अन्सारी (र.अ)


ने अपना र्रख़्सार क़ब्रे पैग़म्बर (स) पर रखा.2

3) मुअज़ज़ज़न-ए-रसूल (स) हज़रत बबलाल हबिी ने


अपने आप िो क़ब्रे पैग़म्बर (स) पर चगराया और
अपना बदन उस पर मलना िुर्र किया.3

4) अब्दल
ु ला बबन उमर पैग़म्बर (स) िी क़ब्रे
मब
ु ारि पर हाथ रखा िरते थे.
4

5) इब्ने मन
ु िर ताबेई अपना र्रख़्सार पैग़म्बर (स)
िी क़ब्रे मब
ु ारि पर रखा िरते और िहते: मझ
ु े जब
िोई मुज़श्िल पेि आती या किसी िो भूल जाता या

1 इरिादस्ु सारी, ज़जलद 3, पेज 352


2 मुसतदरिे हाकिम, ज़जलद 4, पेज 560 / वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 4,
पेज 1404
3 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 1, पेज 358 / उसदल
ु ग़ाबा, ज़जलद 1,
पेज 208
4 िरहे अल शिफ़ा, ज़जलद 2, पेज 199

12
ज़बान में लुिनत पैदा होती तो क़ब्रे पैग़म्बर (स) से
शिफ़ा और मदद तलब िरता.1

सवाल नंबर 3: क्या मज़हब-ए-अरबाअ (चार


मज़हब) के उलमा तबर्रूक, शमम्बरे मुबारक, क़ब्रे
मुबारक, या दीगर औशलया-ए-ख़ुदा की क़ब्रों को मस
करने को जाएज़ समझते हैं?
जवाब: जी हाुँ! अहले सुन्नत िे इमाम अहमद बबन
हं बल, रमली िाफ़ई, मुहहबुद्दीन तबरी, अबुल सैफ़
यमानी मक्िा-ए-मुिरू मा िा मार्रफ़ आलीमे दीन,
ज़रक़ानी माशलिी, अज़ामी िाफ़ई, और दीगर उलमा
ने इस शसलशसले में फ़रमाया:

1) अब्दल
ु ला बबन अहमद बबन हं बल िहते हैं: मैंने
अपने वाशलद से सवाल किया कि शमम्बर-ए-रसूल (स)
िो तबर्रूि िे तौर पर मस िरना और उस िो चूमना
या क़ब्रे मब
ु ारि िो तबर्रूि िे तौर पर मस िरना
और सवाब िी तनय्यत से उसे चूमना क्या हुक्म

1 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 3, पेज 213

13
रखता है तो उन्होंने फ़रमाया: इस में िोई ऐब नहीं
है .1

2) रमली िाफ़ई िहते हैं: पैग़म्बर (स) िी क़ब्रे


मुबारि या किसी आशलम व वली उललाह िी क़ब्र से
तबर्रूि हाशसल िरना जाएज़ है और उस िो चूमना
या उस पर हाथ मलना िोई इश्िाल नहीं रखता.2

3) मुहहबुद्दीन तबरी िाफ़ई शलखते हैं: क़ब्र पर हाथ


रखना और उसे चूमना जाएज़ है और यह उलमा व
साशलहीन िी सीरत रही है .3

4) तारीख़ में यह बात साबबत है कि लोग पैग़म्बर


(स) और हज़रत हम्ज़ा (र.अ) िी क़ब्रे मब
ु ारि बज़लि
पूरे मदीना-ए-मुनव्वरा िी ख़ाि िो तबर्रूि िे तौर
पर उठािर ले जाया िरते. इस तरह ररवायात में भी

1 अल जामेअ फ़ील इलल व मअरफ़ततल ररजाल, ज़जलद 2, पेज 32 /


वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 4, पेज 1414
2 िुनज़ल
ु मताशलब, पेज 129
3 असनल मताशलब, ज़जलद 1, पेज 331

14
बयान हुआ है कि मदीना िी ख़ाि हर तरह िी ददू
और जुज़ाम वग़ैरा िे शलये शिफ़ा है .

ज़रििी िा िहना है : हरमैन िररफ़ैन (मक्िा और


मदीना) िी ख़ाि िो उठाने िे बारे में इन्हीं से हज़रत
हम्ज़ा िी तुरबत िी ख़ाि िो उठाने िे जाएज़ होने
िो इसततस्ना किया गया है इसशलए कि सरददू िी
बीमारी िे शलये इस ख़ाि िो उठािर ले जाने िे
जाएज़ होने पर सब िा इत्तेफ़ाक़ है .1

अबू सलमा पैग़म्बरे अिरम (स) से नक़्ल िरते हैं


कि आप (स) ने फ़रमाया: मदीना िी शमट्टी जुज़ाम िे
शलये शिफ़ा है .

इब्ने असीर जज़री ने पैग़म्बर (स) से नक़्ल किया


है : मुझे उस ज़ात िी क़सम! ज़जस िे हाथ में मेरी
जान है मदीना िी गदू व ग़ब
ु ार में हर बीमारी व मज़ू
िी शिफ़ा पायी जाती है .

1 वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 1, पेज 69

15
समहूदी शलखते हैं: सहाबा और दस
ू रे लोगों िी सीरत
यह थी कि क़ब्रे पैग़म्बर (स) िी ख़ाि िो उठािर ले
जाया िरते.1

सवाल नंबर 4: अहले सुन्नत के अपने बड़े बुज़ुग़ों


की क़ब्र से तबर्रूक हाशसल करने का एक नमूना बयान
करें ?
जवाब: हम इस िे दो नमूने बयान िर रहे हैं:

1) सहाबा-ए-रसूल (स) और हज़रत सअद बबन


मआज़ िी क़ब्र और उस िी ख़ाि से तबर्रूि िे बारे
में मिहूर उलमा-ए-अहले सन्
ु नत इब्ने सअद और
ज़हबी शलखते हैं: एि िख़्स ने सअद बबन मआज़
(र.अ) िी क़ब्र से थोड़ी सी ख़ाि उठाई और उस िी
तरफ़ दे खा तो वह अचानि मुश्ि में तबदील हो गई.2

2) अब्दल
ु ला हद्दानी िी क़ब्र से तबर्रूि िे बारे में
अबू नईम इस्फ़हानी और इब्ने हज्र अस्क़लानी िहते

1 वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 1, पेज 544


2 तबक़ातल
ु िुबरा, ज़जलद 3, पेज 10 / शसयर्र आलाशमन्नब
ु ला, ज़जलद 1,
पेज 289

16
हैं: हद्दानी 183 हहजरी, 8 ज़ज़लहहज्जा यौम-ए-तरववया
िो क़त्ल हुए लोग उन िी क़ब्र िी ख़ाि िो मुश्ि
समझिर उठािर ले जाते और उसे अपने शलबास में
रखा िरते.1

सवाल नंबर 5: क्या ग़ैरे ख़द


ु ा से हाजत तलब करना
जाएज़ है ?
जवाब: अगर िोई िख़्स िहे कि या रसूल अललाह!
(स) मेरी हाजत पूरी फ़रमाए और उस िा मक़सद
ररसालत माब (स) िो वासता क़रार दे ना होता है कि
उस िी दआ
ु क़ुबल
ू हो तो उस में िोई इश्िाल नज़र
नहीं आता, हमारे पास बहुत सी क़ुरआनी आयात मौजूद
हैं ज़जन में ख़ुदावन्दे िरीम फ़ेल िे साहदर होने िो
बज़ाहहर अपने बन्दो िी तरफ़ तनसबत दे रहा है .

1 हहलयतुल औलीया, ज़जलद 2, पेज 258 / तहज़ीबल


ु तहज़ीब, ज़जलद 5,
पेज 310 / इसी तरह बख़
ु ारी और इब्ने तैमीया िी क़ब्र िे बारे में भी इसी
तरह िे अक़वाल नक़्ल हुए हैं. मज़ीद मालूमात िे शलए: तबक़ातश्ु िाफ़ईया,
ज़जलद 2, पेज 233 / शसयर्र आलाशमन्नब ु ला, ज़जलद 12, पेज 468 /
अल बबदाया वल तनहाया, ज़जलद 14, पेज 136 दे खे.

17
1) और न दो बेअक़्लों िो अपने माल जो अललाह
ने तुम्हारे शलये सहारा (गुज़रान िा ज़रीया) बनाया है
उन्हें उस से खखलाते और पहनाते रहो, और िहो उन
से मअर्रफ़ बात.1

2) और उन्होंने बदला न हदया मगर कि अललाह


और उस िे रसूल (स) ने उन्हें अपने फ़ज़ल से ग़नी
िर हदया...2

3) ...अब हमें दे गा अललाह अपने फ़ज़ल से और


उस िा रसल
ू (स), बेिि हम अललाह िी तरफ़ रग़बत
रखते हैं.3

अगरचे बे तनयाज़ी शसफ़ते ख़द


ु ा है लेकिन इन
आयतों में ख़ुदावन्दे िरीम ने पैग़म्बर (स) और
मोशमनीन िो ररज़क़ िे दे ने और बे तनयाज़ी में िरीक़
क़रार हदया है , इस िे अलावा सहाबा िो जब भी

1 सूरए तनसा, आयत नंबर 5


2 सरू ए तौबा, आयत नंबर 74
3 सूरए तौबा, आयत नंबर 59

18
मज़ु श्िल पेि आती तो वह क़ब्रे पैग़म्बर (स) से
मुतवज़स्सल होते.

अस्क़लानी िहते हैं: हज़रत उमर िी खख़लाफ़त िे


ज़माने में लोग क़हत साली (ख़श्ु ि साली) िा शििार
हुए तो एि िख़्स ने पैग़म्बर (स) िी क़ब्र पर जािर
िहा: या रसूल अललाह! (स) अपनी उम्मत िो सीराब
फ़रमाए, वह हलाि हो रही है .1 इसी तरह अहले सुन्नत
िी बुज़ुग़ू िज़ख़्सयात इब्ने हबान, इब्ने ख़ुज़म
ै ा, और
िेख़ल
ु हनाबला अबू अली खख़लाल मज़ु श्िल िे वक़्त
अहलेबैत (अ.स) िी क़ब्रों से मत
ु वज़स्सल हुआ िरते
थे.

A) इब्ने हबान (वफ़ात 350 हह.) किताब “अस्सक़ात”


में शलखते हैं:

मैं िई बार अली इब्ने मूसा अल रज़ा (अ.स) िी


क़ब्र िी ज़ज़यारत िे शलये मुिरू फ़ हुआ और ज़जतनी
मुद्दत तूस (मिहद, ईरान) में रहा, जब िभी मुझे

1 फ़तहुल बारी, ज़जलद 2, पेज 557

19
िोई मज़ु श्िल पेि आती तो मैं उनिी क़ब्र पर जािर
ख़ुदावन्दे िरीम से हाजत तलब िरता तो अलहम्द ु
शलललाह मेरी वह हाजत पूरी हो जाती और मैंने इसे
िई बार तजर्रबा किया है .1

B) इब्ने ख़ुज़ैमा: यह बुख़ारी और मुज़स्लम िे उस्ताद


और िेख़ुल इस्लाम िे लक़ब से मिहूर व मअर्रफ़ हैं
इन िे एि िाचगूद मुहम्मद बबन मोअमल िहते हैं:
मैं अपने उस्ताद इब्ने ख़ज़
ु ैमा और दीगर उस्तादों िे
साथ अली इब्ने मस
ू ा अल रज़ा (अ.स) िी ज़ज़यारत
िे शलये तस
ू (मिहद) गया मेरे उस्ताद इब्ने ख़ज़
ु ैमा
ने क़ब्र िे बराबर र्रि िर इस क़दर तवाज़ोअ िा
इज़हार किया कि सब तअज्जुब िरने लगे.2

1 किताब अस्सक़ात, ज़जलद 8, पेज 456


2 तहज़ीबल
ु तहज़ीब, ज़जलद 7, पेज 339

20
C) िेख़ अल हनाबला अबू अली खख़लाल िहते हैं:
मुझे जब भी िोई मुज़श्िल पेि आती है तो मैं अली
इब्ने मस
ू ा अल रज़ा (अ.स) िी क़ब्र िी ज़ज़यारत
िरता हूुँ और उन से मुतवज़स्सल होता हूुँ तो ख़द
ु ावन्दे
िरीम मेरी मुज़श्िल हल िर दे ता है .1

D) मुहम्मद बबन इद्रीस िाफ़ई क़ब्रे इमाम अबू


हनीफ़ा और अहमद बबन हं बल, क़ब्रे िाफ़ई पर
मुतवज़स्सल हुआ िरते थे.2

E) मुसलमान हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी (र.अ) िी


क़ब्र पर मुतवज़स्सल हो िर बाराने रहमत िी दआ

किया िरते.3

1 तारीख़े बगदाद, ज़जलद 1, पेज 120


2 मनाक़ब अबू हनीफ़ा, ज़जलद 2, पेज 199
3 मुसतदरिे हाकिम, ज़जलद 3, पेज 518

21
F) इब्ने ख़लिान और ज़हबी िहते हैं: लोग तलबे
बारान (बारीि) िे शलये इब्ने फ़ौरि इस्फ़हानी (वफ़ात
406 हह.) िी क़ब्र से मुतवज़स्सल हुआ िरते.1

अहम तरीन नुक़्ता यह है कि अहले सुन्नत िे


उलमा ने सराहतन (साफ़ तौर से) लोगों िो तवस्सुल
और इस्तेग़ासा िी तिवीक़ (हहम्मत) हदलाई है .

क़स्तलानी िहते हैं: ज़ाएर िे शलये सज़ावार यह है


कि वह क़ब्रे पैग़म्बर (स) िे किनारे खड़ा होिर बेताबी
से इस्तेग़ासा व तवस्सुल िरे और िफ़ाअत तलब िरे
ख़द
ु ावन्दे िरीम उस िे हक़ में िफ़ाअते पैग़म्बर (स)
िो क़ुबल
ू िरे गा.
2

1 वकफ़यात अल आयान, ज़जलद 4, पेज 272 / शसयर्र आलाशमन्नुबला,


ज़जलद 17, पेज 215 / इसी तरह बुख़ारी से मुतअज़ललक़ भी नक़्ल हुआ है .
इस िे शलये: तबक़ातुश्िाफ़ईया, ज़जलद 12, पेज 469 और ज़जलद 2,
पेज 234 पर र्रजअ
ू िरें .
2 अल मवाहहबुहद्दतनया, ज़जलद 3, पेज 417

22
सवाल नंबर 6: क़ब्र की स्ज़यारत जायज़ होने की
कौन सी दलील मौजद
ू है ?
जवाब: इस सवाल िे जवाब में क़ुरआन व सुन्नत
और सीरते सहाबा में से हर एि से दलील बयान िी
जा सिती है :

पहली दलील: क़ुरआन

ख़ुदावन्दे िरीम फ़रमाता है : “और िाि जब उन


लोगों ने अपने नफ़्स पर ज़ुलम किया था तो आप िे
पास आते और ख़द
ु भी अपने गुनाहों िे शलये
इस्तेग़फ़ार िरते और रसल
ू (स) भी उन िे हक़ में
इस्तेग़फ़ार िरते तो यह ख़द
ु ा िो बड़ा ही तौबा क़ुबल

िरने वाला और मेहरबान पाते.1

यह आयत पैग़म्बर (स) िी ज़ज़न्दगी में और


ज़ज़न्दगी िे बाद भी मुसलमानों िो आप (स) िी क़ब्रे
मुबारि िी ज़ज़यारत िी तरग़ीब (तवज्जो) हदला रही
है .

1 सूरए तनसा, आयत नंबर 64

23
जैसा कि मिहूर अहले सन्
ु नत िे आशलम जनाब
सबिी ने शलखा है : उलमा ने इस आयत से उमूम
(ज़ज़न्दगी और मौत िे बाद) िा इस्तेफ़ादा किया है
चुँूकि अहादीस मुबारि में पैग़म्बर (स) से नक़्ल हुआ
है कि आप (स) ने फ़रमाया:

मेरी ज़ज़न्दगी और मौत दोनों तुम्हारे शलये बेहतर


हैं तुम्हारे आमाल मेरे सामने पेि किये जाते हैं...1

दस
ू री दलील: सुन्नते पैग़म्बर (स)

बहुतसी अहादीस मब
ु ारि में आप (स) िी क़ब्रे
मब
ु ारि िी ज़ज़यारत िरने िा हुक्म हदया गया है
ज़जन में से एि यह है :

“ज़जस ने मेरी क़ब्र िी ज़ज़यारत िी उस िे शलये


मेरी िफ़ाअत वाजीब हो गयी.2

1 तरह अल तसरीब, पेज 297


2 अल सुननुल िुबरा, ज़जलद 5, पेज 245

24
तीसरी दलील: सीरते सहाबा

अहले सन्
ु नत िे मिहूर उलमा अब्दल
ु रज़ज़ाक़,
बैहक़ी और इब्ने अब्दल
ु बरू ने ररवायत नक़्ल िी है
कि हज़रत फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) हर जुमा िी रात
िो अपने चचा हज़रत हम्ज़ा (र.अ) िी क़ब्र पर जातीं
वहाुँ पर नमाज़ अदा िरतीं और चगरया किया िरतीं.

हाकिमे नीिापूरी िहते है : इस ररवायत िे शसलशसले


में तमाम रावी शसक़ा (सच्चे) हैं.1

1 मुसन्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़, ज़जलद 3, पेज 572 / अल सुननल
ु िुबरा,
ज़जलद 4, पेज 131 / तमहीद िरहे मवत्ता, ज़जलद 3, पेज 234 /
िफ़ाअस्सक़ाम, पेज 144 और वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 4, पेज 1340 पर
नक़्ल हुआ है कि हज़रत उमर और अब्दल ु ला बबन उमर सफ़र से वापसी पर
पैग़म्बर (स) िी ज़ज़यारत िरने जाते.

25
सवाल नंबर 7: क्या यह हदीस ((ला तिद्द
ु ा अल
रे हाल इलला इला सलासतत मसास्जद)) क़ब्रों पर जाने
से मना नहीं कर रही?
जवाब: नहीं! यह हदीस इस मतलब पर दलालत
नहीं िर रही और इस िी दलील नीचे बयान िी जा
रही है :

A) क़स्तलानी ने तािीद िी है कि यहाुँ पर “मुस


तस ना शमन” लफ़्ज़ (मज़स्जद) है शलहाज़ा इस िा क़ब्र
िी ज़ज़यारत िी तनय्यत से सफ़र िरने िा हराम होने
से दरू िा भी तअललुक़ नहीं है .1

B) इस हदीस पर अमल िरना मज़ु म्िन ही नहीं है


इसशलए कि अगर इस िे मत्न िो सही मान भी
शलया जाये तो भी यह पैग़म्बर (स) िे वाज़ेह व साफ़
अमल िी मुख़ाशलफ़ है . चुँूकि रसूले ख़ुदा (स) हर हफ़्ते
(ितनवार) िे हदन मज़स्जदे क़ुबा तिरीफ़ ले जाया
िरते, जबकि हदीस यह बयान िर रही कि तीन

1 इरिादस्ु सारी फ़ी िरहे अल सहीह बुख़ारी, ज़जलद 2, पेज 332

26
मसाज़जदों िे अलावा किसी और मज़स्जद िी तरफ़
सफ़र िरना हराम है .

C) सहाबी-ए-पैग़म्बर (स) हज़रत बबलाल (र.अ) िा


िाम (शसररया) से क़ब्रे पैग़म्बर (स) िी ज़ज़यारत िी
तनय्यत से मदीना सफ़र िरने िा वाक़ेआ मिहूर है .

D) शिया और सुन्नी उलमा ने पैग़म्बर (स) िी क़ब्रे


मुबारि िी ज़ज़यारत िी तनय्यत से सफ़र िरने िो
जाएज़ क़रार हदया है और इब्ने तैमीया िे इस नज़ररये
िो सख़्ती से रद्द िर हदया कि क़ब्रे मब
ु ारि िी
तनय्यत से सफ़र िरना हराम है .

1) क़स्तलानी िहते हैं: इब्ने तैमीया से नक़्ल किये


जाने वाले क़ौल में से बदतरीन क़ौल उस िा पैग़म्बर
(स) िी ज़ज़यारत से मना िरना है .1

2) इमाम ग़ज़ाली िहते है : जो िख़्स पैग़म्बर (स)


िी हयाते मुबारि में उन से मुतबररू ि होता था वह
आप (स) िी रे हलत िे बाद आप (स) िी क़ब्र िी

1 इरिादस्ु सारी, ज़जलद 2, पेज 329

27
ज़ज़यारत से मत
ु बररू ि हो सिता है और क़ब्रे मब
ु ारि
िी ज़ज़यारत िी तनय्यत से सफ़र िरना जाएज़ है .1

E) शिया व सुन्नी मोतबर किताबों में ऐसी हदीसे


बयान हुई हैं जो क़ब्रों पर जाने िी तािीद िर रही हैं
जैसा कि यह ररवायत:

पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: ((नहीतुिुम अन


ज़ज़यारततल क़ुबूर अला फ़ज़ूर्रहा))

“मैंने तुम्हें क़ब्रों पर जाने से रोिा था लेकिन अब


तम
ु उन िी ज़ज़यारत किया िरो”.
2

सब अहले सुन्नत िे उलमा ने इस हदीसे मब


ु ारि
में लफ़्ज़ (फ़ज़ूर्रहा) से इस्तेहबाब (मस्
ु तहब) िा माना
समझा है जबकि इब्ने हज़म ने इस से मुराद वजूब
(वाजीब) शलया है .3

1 एहया अल उलूम, ज़जलद 1, पेज 258


2 सहीह मज़ु स्लम, ज़जलद 3, पेज 65
3 अल ताज अल जामेअ शलल उसल ू , ज़जलद 1, पेज 381

28
सवाल नंबर 8: क्या इस हदीस ((अललाह की लानत
हो उन औरतों पर जो क़ब्रों की स्ज़यारत करती है ))
के बा वजूद औरतें क़ब्रों पर जा सकती हैं?
जवाब: इस सवाल िा जवाब इस तरह हदया जा
सिता है :

A) बहुतसी हदीसो में आया है कि हज़रत आयेिा


और हज़रत फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) क़ब्रों पर जाया
िरती थी जैसा कि “अल सुननुल िुबरा” किताब में
ज़ज़क्र हुआ:

हज़रत फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) हर जम


ु ा िी रात िो
अपने चचा हज़रत हम्ज़ा (र.अ) िी क़ब्र पर जातीं
वहाुँ पर नमाज़ अदा िरतीं और चगरया किया िरतीं.1

इब्ने अबी मलीिा िहते हैं: मैंने हज़रत आयेिा िो


दे खा कि वह अपने भाई अब्दल
ु रहमान बबन अबू
बिर िी क़ब्र िी ज़ज़यारत िर रही हैं... वह हबिा

1 अल सन
ु नल
ु िुबरा, ज़जलद 4, पेज 132 / मस
ु न्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़,
ज़जलद 3, पेज 572

29
(मक्िा िे क़रीब एि जगह िा नाम है ) में मरे और
मक्िा में दफ़न किये गये.1

B) यह हदीस बुरैदा िी हदीस से नक़्ल िी हुई हदीस


से नस्ख़ है या इस से मुतआररज़ (मुख़ाशलफ़) है जैसा
कि ज़हबी और हाकिमे नीिापूरी ने इस िो साफ़ तौर
से बयान किया है और हदीसे बुरैदा यह है : हज़रत
पैग़म्बर (स) ने क़ब्रों पर जाने से मना फ़रमाया और
किर उन िी ज़ज़यारत िा हुक्म हदया.2

C) अहले सुन्नत उलमा ने इस तरह फ़तवा हदया


है कि औरतों िा क़ब्रों िी ज़ज़यारत िे शलये जाना
मस्
ु तहब है .

इब्ने आबबदीन िहते हैं: क्या औरतों िा क़ब्रे


पैग़म्बर (स) िी ज़ज़यारत िरना मुस्तहब है ? हमारे
मज़हब िे मुताबबक़ सहीह क़ौल वही है ज़जसे जनाब

1 मस
ु न्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़, ज़जलद 3, पेज 570 / मअ
ु ज्जमल
ु बुलदान,
ज़जलद 2, पेज 214
2 अल सन
ु नल
ु िुबरा, ज़जलद 3, पेज 570 / मस
ु तदरिे हाकिम, ज़जलद 1,
पेज 374

30
िरख़ी और दीगर ने बयान किया है कि क़ब्रों िी
ज़ज़यारत में मदू और औरतों सब िो इजाज़त दी गई
है .1....

D) यह हदीस ज़जस में क़ब्रों िी ज़ज़यारत से मना


किया गया तीन वासतों से नक़्ल हुई है जो तीनों िे
तीनों ज़ईफ़ (ना क़ाबबले क़ुबूल) हैं. पहले शसलशसले
सनद में इब्ने ख़ुसैम है ज़जस िी पेि िी गई हदीसों
से दलीले नहीं दी जाती.2

दस
ू रे शसलशसले सनद में बाज़ान है इसी तरह इस
िी हदीस िी भी पवाू नहीं िी जाती.3

तीसरे शसलशसले सनद में उमर बबन अबी सलमा है


जो ज़ईफ़ है .4

1 रद्दुल मुख़्तार, ज़जलद 2, पेज 263 / अल मवाहहब अल लदज़ु न्नया,


ज़जलद 3, पेज 405
2 मीज़ानुल एअतेदाल, ज़जलद 2, पेज 459
3 तहज़ीबल ु िमाल, ज़जलद 4, पेज 6
4 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 6, पेज 33

31
सवाल नंबर 9: क्या अस्म्बया अलैदहमस्
ु सलाम और
औशलया-ए-ककराम की क़ब्रों के पास खड़े होकर नमाज़
पढ़ना या दआ
ु करना जाएज़ है ?
जवाब: 1) सूरए तनसा िी आयत 64 िररफ़:
((...और यह लोग जब उन्हों ने अपनी जानों पर ज़ुलम
किया था अगर वह आप (स) िे पास आते, किर
अललाह से बज़ख़्िि चाहते और उन िे शलये रसूल
अललाह (स) से मग़कफ़रत चाहते तो वह ज़र्रर पाते,
अललाह तो तौबा क़ुबल
ू िरने वाला मेहरबान है .)) में
क़ब्र पैग़म्बर (स) िे पास खड़ा होिर दआ
ु मांगने िा
र्रजहान पाया जा रहा है चुँूकि आयत में लफ़्ज़
(जाऊिा) आप (स) िी ज़ज़न्दगी और उस िे बाद
दोनों सूरतों िो िाशमल है .

2) हज़रत फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) िा हज़रत हम्ज़ा


(र.अ) िी क़ब्र िे पास जािर नमाज़ पढ़ना ख़द
ु इस
िे जाएज़ होने िी दलील है और हाकिमे नीिापूरी िे

32
बक़ौल इस हदीस िे तमाम तर रावी शसक़ा (सच्चे)
हैं.1

3) मुसलमानों िी सीरत यह रही है कि वह अज़म्बया


अलैहहमस्
ु सलाम और औशलया िी क़ब्रों पर जािर दआ

भी किया िरते और उन िे पास खड़े होिर नमाज़
भी अदा किया िरते:

A) इब्ने ख़लिान िहते हैं: सय्यदा नफ़ीसा बबन्ते


हसन बबन ज़ैद बबन इमामे हसन बबन हज़रत अली
(अ.स) िो शमस्र िी राजधानी क़ाहहरा िे एि मह
ु लले
(दरबस्
ु सेबाअ) में दफ़्न किया गया और उन िी क़ब्र
दआ
ु ओं िी क़ुबल
ू होने िे शलहाज़ से मिहूर और
तजर्रबा िुदा है .2

B) इसी तरह अहले सुन्नत िे इमाम िाफ़ई हमेिा


इमाम अबू हनीफ़ा िी क़ब्र पर जािर दो रिअत
नमाज़ अदा किया िरते.3

1 मुसतदरिे हाकिम, ज़जलद 1, पेज 377


2 वफ़ीयातलु आयान, ज़जलद 5, पेज 424
3 तारीख़े बग़दाद, ज़जलद 1, पेज 123

33
C) ज़ोहरी ने भी मिहूर आशलम िरख़ी िी क़ब्र िे
किनारे दआ
ु िरने िे बारे में िुछ मताशलब ज़ज़क्र किये
हैं.1

D) इसी तरह जज़री ने भी इमाम िाफ़ई िी क़ब्र


से मुतअज़ललक़ िुछ मताशलब ज़ज़क्र किये हैं.2

सवाल नंबर 10: क्या यह हदीस ((ख़ुदा लानत करे


यहूददयों पर कक उन्होंने अपने बड़ों की क़ब्रों को
मस्स्जद बना शलया)) इसी तरह यह हदीस
((परवरददगार! मेरी क़ब्र को बुत क़रार ना दे ना))3 क़ब्रे
पैग़म्बर (स) और दस
ू रे क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने या
दआ
ु मांगने से मना नहीं कर रही?
जवाब: इस सवाल िा जवाब भी चन्द नुिात में
अज़ू किया जा सिता है :

A) इस हदीस िे रावी ज़ईफ़ (झूठे और ना िाबबले


एतेमाद) और मजहूल हैं शमसाल िे तौर पर (अब्दल

1 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 9, पेज 343


2 अल जवाहहर्रल मज़ु ज़या, ज़जलद 1, पेज 461
3 मुसनदल
ु अहमद, ज़जलद 2, पेज 246 / अल मवत्ता, ज़जलद 1,पेज 172

34
वाररस) यह रावी अहले सन्
ु नत िे उलमा िे यहाुँ रद्द
किया हुआ है चुँकू ि यह किरक़-ए-क़दररया िा पैरोिार
था. इसी तरह (अबू सालेह) िे बारे में भी िि पाया
जाता है कि वह ज़ईफ़ (झूठा) था या शसक़ा (सच्चा)
और अब्दल
ु ला बबन उस्मान मुनकिरे अहादीस िो नक़्ल
किया िरता और किर (इब्ने बहमान) मजहूलुल हाल
(क़ुबूल नही) है इस बबना पर इस हदीस से इस्तेदलाल
नहीं किया जा सिता.

B) यह हदीस किसी सूरत में क़ब्र िे पास नमाज़


पढ़ने से नहीं रोि रही इस शलये कि इस िा मौज़ू
हबिा िा िुन्नीया है कि जब मि
ु ररिीने यहूद िा
िोई नेि िख़्स मरता तो वह उस क़ब्र पर मज़स्जद
बनाते और उस पर उस िी तस्वीर रखिर उसे सजदा
किया िरते, शलहाज़ा क़ब्र िे पास खड़े होिर कक़बला
िी तरफ़ र्रख िरते हुए ख़ुदावन्दे िरीम िी इबादत
िरने और किसी िख़्स िो ख़ुदा िा िरीि क़रार दे िर
उस िी इबादत िरने में फ़क़ू है , किर इस हदीस से
इस मौज़ू पर इस्तेदलाल नहीं किया जा सिता.

35
अहले सुन्नत िे अज़ीम मफ़
ु ज़स्सरे क़ुरआन क़ुरतब
ु ी
शलखते हैं: उन्होंने अपने बड़ों िी तस्वीरें बना रखी थी
ताकि उन से उन्स (मुहब्बत) हाशसल िर सिें और
उन िी याद ताज़ा रहे . वह उन िी क़ब्रों िे पास ख़ुदा
िी इबादत किया िरते लेकिन उन िे बाद आने वालों
ने उन िे मक़सद िो भूला डाला और िैतान ने उन
िे हदल में वसवसा इजाद किया कि उन िे अजदाद
(पुरखें) उन तस्वीरों िी इबादत और उन िी ताज़ीम
किया िरते थे शलहाज़ा पैग़म्बर (स) ने उन्हें इस से
मना किया.1

इस बबना पर इस हदीस में औशलया अललाह िी


क़ब्र िे पास नमाज़ ना पढ़ने पर िोई दलालत नहीं
पायी जाती.

बैज़ावी िहते हैं: क्योंकि यहूद व नसारा अपने


अज़म्बया िी क़ब्रों पर सजदा िरते, उसे अपना कक़बला
क़रार दे ते और उन से वही र्रया (हालत) इज़ख़्तयार

1 इरिादस्ु सारी, ज़जलद 3, पेज 498

36
िरते जो बत
ु ों से किया जाता शलहाज़ा पैग़म्बर (स)
ने उन पर लानत फ़रमाई.1

इस इबारत में भी पैग़म्बर (स) या अइम्म-ए-


ताहे रीन अलैहहमुस्स्लाम िी क़ब्रों िी ज़ज़यारत ना
िरने या उन िे पास नमाज़ ना पढ़ने पर किसी
कक़स्म िी िोई दलील नहीं पायी जाती.

C) बहुत से उलमा-ए-अहले सुन्नत ने मक़बरों में


नमाज़ अदा िरने िो जाएज़ क़रार हदया है ज़जन में
इमाम माशलि बबन अनस भी हैं:

1) माशलि बबन अनस िहते हैं: मक़बरों में नमाज़


पढ़ने में िोई मज़ु श्िल नहीं है और िहा कि मुझ ति
यह ख़बर पहुुँची है कि बाज़ सहाबा-ए-किराम क़ब्रस्तान
में नमाज़ अदा किया िरते थे.2

2) अब्दल
ु ग़नी नाबलुसी िहते हैं: अगर क़ब्रों िी
जगह मज़स्जद में तबहदल हो जाये या वह क़ब्र रास्ते

1 इरिादस्ु सारी, ज़जलद 3, पेज 479


2 अल मुदव्वनतुल िुबरा, ज़जलद 1, पेज 479

37
में वाक़ेअ हो या औशलया अललाह व उलमा-ए-
मुहज़क़्क़क़ीन में से किसी िी क़ब्र हो तो उस वली
उललाह िी र्रह िो ज़जन्दा रखने िे शलये लोग उस से
तबर्रूि हाशसल िरें और उस क़ब्र िे पास ख़द
ु ा से
दआ
ु िरें ताकि उन िी दआ
ु क़ुबूल हो तो उस में िोई
माना नहीं बज़लि जाएज़ भी है .1

सवाल नंबर 11: क्या इस्लामी िरीयत में क़ब्रों पर


गुम्बद और ज़रीह वग़ैरा बनाने से मना ककया गया
है ?
जवाब: िरीयते मुक़द्दस-ए-इस्लाम में इस कक़स्म
िा िोई हुक्म हदखाई नहीं दे ता और इस िी चन्द
एि दलीलें ज़ज़क्र िी जा रहीं हैं:

A) क़ब्रों पर गुम्बद बनाने िो हराम क़रार दे ने


वाली दलील शसफ़ू और शसफ़ू एि ररवायत है ज़जसे
अबुल हय्याज ने नक़्ल किया है .2 और यह ररवायत
सनद िी एतेबार से सहीह नहीं है . इसशलए कि वकिअ

1 अल हदीक़तल ु नदीया, ज़जलद 2, पेज 630


2 सहीह मुज़स्लम, ज़जलद 3, पेज 61

38
और हबीब बबन अबी साबबत इस ररवायत िी सनद
में मौजूद हैं ज़जन दोनों िी अहले सुन्नत िे यहाुँ िोई
अहशमयत नहीं है .

B) इस हदीस िी दलालत में भी इश्िाल पाया


जाता है चुँूकि ((व ला क़ब्रन इलला सव्वैतहु)) िा माना
क़ब्रों िो ख़राब िरना नहीं है बज़लि उन्हें मुसत्तह
(बराबर) िरना है ताकि वह उुँ ट िी िोहान (पीठ) िे
मातनन्द ना हों.

क़स्तलानी िहते हैं: सुन्नत तो यह है कि क़ब्रों िो


मस
ु त्तह (बराबर) बनाया जाये और उसे शिओं िा
िआर (तनिानी) होने िी वजह से तिू िरना जाएज़
नहीं है . इसी तरह क़ब्रों िो मुसत्तह (बराबर) बनाने
और ररवायत इब्ने हय्याज में िोई मुनाफ़ात (मुज़श्िल)
नहीं पायी जाती. इसशलए इस ररवायत से मुराद क़ब्रों
िो ज़मीन िे बराबर िरना नहीं है बज़लि उन्हें उुँ ट
िी िोहान (पीठ) िी तरहा बुलन्द बनाना मुराद है

39
और यह मतलब हमने ररवायत िो जमा िरने िे बाद
हाशसल किया है .1

C) मुसलमानों िी सीरत यही रही है कि क़ब्रों पर


गुम्बद और मक़बरे बनाया िरते:

1) पैग़म्बर (स) िी क़ब्रे मुबारि पर हुजरे िा


बनाया जाना.

2) मदीना-ए-मुनव्वरा िे जन्नतुल बक़ीअ में हज़रत


फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) और अइम्म-ए-अहलेबैत (अ.स)
िी क़ब्रों पर मक़बरों िा पाया जाना ज़जन्हें 8 िव्वाल
1345 हहजरी में वहाबबयों ने ख़राब व शमसमार िर
हदया.

3) पैग़म्बर (स) िे साहब ज़ादे ह इब्राहीम िी क़ब्र


जो कि मुहम्मद बबन ज़ैद बबन अली िे घर में थी
और बाद में वहाबबयों ने ख़राब व शमसमार िर दी.

1 इरिादस्ु सारी, ज़जलद 2, पेज 468

40
4) दस
ू री सदी हहजरी में हज़रत हम्ज़ा (अ.स) िी
क़ब्र पर मज़स्जद िा बनाया जाना ज़जसे वहाबबयों ने
वीरान िर हदया.

5) उमर बबन अब्दल


ु अज़ीज़ िे ज़माने में हज़रत
सअद बबन मआज़ िी क़ब्र पर गुम्बद िा बनाया
जाना जो कि इब्ने अफ़लाह िे घर में थी.1

6) 275 हहजरी में बसरा में बाहुली िी क़ब्र पर


गुम्बद िा बनाया जाना.2

7) दस
ू री सदी हहजरी में इराक़ िे नजफ़ िहर में
हज़रत अली (अ.स) िी क़ब्र पर इमारत िा बनाया
जाना.3

8) जनाबे सलमान फ़ारसी (र.अ) िी क़ब्र पर


इमारत िा बनाया जाना.4

1 वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 2, पेज 545


2 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 13, पेज 285
3 मौसअू तल
ु अतबात, ज़जलद 6, पेज 97
4 तारीख़े बग़दाद, ज़जलद 1, पेज 163

41
9) 316 हहजरी में अबू अवाना िी क़ब्र पर इमारत
िी तामीर किया जाना.1

ख़ल
ु ासा यह कि तमाम मुसलमानों िी यह सीरत
रही है कि वह बुज़ुगाूने दीन िी क़ब्रों पर रौज़े और
मक़बरे बनाया िरते और यह सीरत आज भी बाक़ी
है . ज़जस िी दलील िरबला व नजफ़ और मिहद में
अइम्म-ए-अहलबैत (अ.स) िे रौज़ों िा पाया जाना
और बग़दाद में जनाबे अबू हनीफ़ा और जनाबे अब्दल

क़ाहदर जीलानी िे रौज़े, उज़बेकिस्तान िे िहर
समरिन्द में जनाबे बुख़ारी िा रौज़ा या इसी तरह
तमाम इस्लामी मुलिों में औशलया-ए-इलाही िी क़ब्रों
पर रौज़ों िा मौजूद होना हमारे दावे िी दलील है .
लेकिन वहाबबयों ने हहजाज़ (सऊदी अरब) में इसे हराम
क़रार हदया और तमाम औशलया व सहाबा-ए-किराम
िी क़ब्रों पर मौजूद रौज़ों िो चगरािर सीरते मुज़स्लमीन
िी मुख़ाशलफ़त िी.

1 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 14, पेज 419

42
सवाल नंबर 12: क्या यह हदीस ((पैग़म्बर (स) ने
क़ब्रों को पक्की बना कर उस पर इमारत बनाने से
मना ककया है ))1 रौज़ों को बनाने से मना नहीं कर रहीं
है ?
जवाब: पहली बात तो यह है कि यह हदीस सीरते
मुसलमानों िी मुख़ाशलफ़ है जैसा कि बयान किया जा
चुिा.

दस
ू रा यह कि इस हदीस िी सनद में भी मुज़श्िल
पायी जाती है क्योंकि इस िी सनद में अबू ज़ब
ु ैर
मह
ु म्मद बबन मज़ु स्लम आमदी है ज़जसे उलमा-ए-अहले
सन्
ु नत अहमद बबन हं बल, इब्ने ऐयीने, िोअबा और
अबू हाततम ने ज़ईफ़ (झूठा) क़रार हदया है .2

इसी तरह इस ररवायत िी सनद में हफ़्स बबन


ग़यास है ज़जस िे बारे में अहले सुन्नत िे उलमा िी
राय मनफ़ी (ववरोधी) है कि यह याक़ूब बबन िैबा िा

1 सहीह मज़ु स्लम, ज़जलद 3, पेज 63


2 तहज़ीबल
ु िमाल, ज़जलद 26, पेज 407

43
िहना है .1 और इस ररवायत िी सनद में रबीया नामी
िख़्स मौजूद है ज़जस िी अज़दी, इब्ने अबी िैबा और
साजी ने ताईद (प्रमाखणत) नहीं िी है .2

नतीजा यह कि इस तरह िी तमाम तर ररवायात


िी सनद में अहले सुन्नत िे नजदीि मुज़श्िल पायी
जाती है शलहाज़ा उन ररवायात से इस्तेदलाल िरना
सहीह नहीं है .3

सवाल नंबर 13: क्या क़ब्रों पर चचराग़ वग़ैरा का


रौिन करना िरई तौर पर मना है ?
जवाब: िररयत मुक़द्दस में इस से मना नहीं किया
गया हैं ज़जस िी दलीलें ज़ज़क्र िर रहे हैं:

1 तहज़ीबुल तहज़ीब, ज़जलद 2, पेज 360 / तारीख़े बग़दाद, ज़जलद 8,


पेज 199 / शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 9, पेज 31
2 तहज़ीबुल तहज़ीब, ज़जलद 9, पेज 143 / मीज़ानुल एतेदाल, ज़जलद 3,
पेज 545 / तहज़ीबल
ु िमाल, ज़जलद 18, पेज 83
3 अल वहाबबया दआवा व र्रददू , पेज 182 पर दे खे.

44
1) अहले सुन्नत िे उलमा से नक़्ल हुई अहादीस
िे मुताबबक़ एि रात पैग़म्बर (स) ने क़ब्रस्तान जाना
चाहा तो चचराग़ रौिन िरने िा हुक्म हदया.1

2) मुसलमानों िी सीरत यह रही है कि सहाबा-ए-


किराम और औशलया-ए-इलाही िी क़ब्रों पर चचराग़
रौिन किया िरते.

A) चौथीं सदी हहजरी में हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी


िी क़ब्र पर चचराग़ मौजूद था.2

B) चौथीं सदी हहजरी में ज़ब


ु ैर बबन अवाम िी क़ब्र
पर क़न्दील िा पाया जाना.3

C) इमाम मस
ू ा िाज़ज़म (अ.स) िी क़ब्र मब
ु ारि पर
पांचवीं सदी में क़न्दील िा मौजूद होना.4

3) यह हदीस ((ख़ुदावन्दे िरीम ने क़ब्रों पर


मसाज़जद तामीर िरने वालों और उन पर चचराग़ रौिन

1 अल जामेअ अल सहीह, ज़जलद 3, पेज 372


2 तारीख़े बग़दाद, ज़जलद 1, पेज 154
3 अल मन्ु तज़म, ज़जलद 14, पेज 383
4 वकफ़यातल ु आयान, ज़जलद 5, पेज 310

45
िरने वालों पर लानत फ़रमाई है .)) इस िी सनद में
मुज़श्िल पायी जाती है इसशलए कि इस िा रावी अबू
सालेह है ज़जसे अहले सुन्नत िे उलमा ने ज़ईफ़ (झूठा)
और ना क़ाबबले क़ुबूल क़रार हदया है और इस हदीस
िी िरह बयान िरने वालों ने शलखा है कि यहाुँ पर
“नही” से मुराद “नही इरिादी” है ना कि “नही मौलवी”.
जैसा कि शसन्धी, अज़ीज़ी, अली नाशसफ़ और िेख़
हनफ़ी ने इस मतलब िी तरफ़ इिारा किया है .1

सवाल नंबर 14: क्या स्ज़न्दा या मुदाू औशलया


अललाह के शलये मन्नत मानना जाएज़ है ?
जवाब: अगर मन्नत ख़ुदा िे शलये मानी जाये और
उस िा सवाब किसी नबी, इमाम या वली अललाह िी
र्रह िो इसाल किया जाये जैसा कि शिया व सुन्नी
मुसलमानों में राएज है तो ऐसा अमल चन्द वजूहात
िी बबना पर जाएज़ है :

1 िरहे अल जामेअ अल सग़
ु रा, ज़जलद 3, पेज 198 / सन
ु नु तनसाई,
ज़जलद 4, पेज 95 / अल ताज, ज़जलद 1, पेज 381

46
A) अहले सन्
ु नत िे यहाुँ ऐसी हदीसें नक़्ल हुई हैं
जो इस अमल िो जाएज़ क़रार दे ती है :

साबबत बबन ज़हाि से ररवायत है कि एि िख़्स


पैग़म्बर (स) िी खख़दमत में हाज़ज़र हुआ और सवाल
किया: मैंने मन्नत मानी है कि बवाने िे मक़ाम पर
एि दम्
ु बा (बिरा) ज़ज़बह िर्रं, क्या मेरी यह मन्नत
सहीह है ? पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: क्या ज़माना-ए-
जाहहशलयत में इस मक़ाम पर किसी बुत िी पूजा िी
जाती थी? लोगों ने अज़ू किया नहीं. तब पैग़म्बर (स)
ने फ़रमाया: अपनी मन्नत िो परू ा िरो. इसशलए कि
दो जगह पर मन्नत पर अमल िरना जाएज़ नहीं है :
1) ख़द
ु ा िी मअशसयत (गुनाह) िरिे. 2) ऐसी चीज़
िी नज़र िरना जो उस िी अपनी शमलकियत (माल)
ना हो.1

अगर नज़र या मन्नत ज़माना-ए-जाहहशलयत िी


मातनन्द बुतों िे शलये ना हो तो इसे पूरा िरना वाज़जब
है इसी तरह अगर ऐसे मिाम पर मन्नत मानी जाये

1 सुननुल अबू दाऊद, ज़जलद 3, पेज 238

47
जहाुँ िुफ़्फ़ार ईद मनाते हैं तो ऐसी मन्नत जाएज़
नहीं है अलबत्ता अहले सुन्नत िे नज़दीि उन
ररवायात पर अमल िरना ज़र्ररी है जो उन्होंने मन्नत
िे ज़र्ररी होने पर नक़्ल िी हैं.

B) अज़ामी िाफ़ई इसी मन्नत िी ताईद में िहते


हैं: अगर िोई िख़्स मुसलमानों िे यहाुँ मानी जाने
वाली मन्नतों िी तहक़ीक़ िरे तो वह इस नतीजे पर
पहुुँचेगा कि इन मन्नतों और क़ुबाूतनओं िा मक़सद
अपने मद
ु ों िे शलये सदक़ा दे ना और उन ति इस िा
सवाब पहुुँचाना होता है और अहले सन्
ु नत िा इस पर
इजमा है कि ज़जन्दों िा मद
ु ों िो सवाब इसाल िरना
उन ति पहुुँचता है और उन िे शलये फ़ायदे मन्द
साबबत होता है . इस बारे में ररवायात बहुत ज़ज़यादा हैं
और किर अज़ामी ने एि हदीस िी तरफ़ इिारा किया
है :

सअद ने पैग़म्बर (स) से सवाल किया: मेरी माुँ मर


चुिी हैं लेिीन मुझे यक़ीन है कि वह ज़जन्दा होती तो
ज़र्रर सदक़ा दे तीं अब अगर मैं सदक़ा दं ू तो क्या यह

48
सदक़ा उस िे शलये फ़ायदे मन्द साबबत होगा? इस पर
पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: हाुँ. किर अज़ू किया: िौनसा
सदक़ा ज़ज़यादा फ़ायदे मन्द होगा? पैग़म्बर (स) ने
फ़रमाया: पानी. किर सअद ने एि िुआुँ खोदा और
उसे अपनी माुँ िी तरफ़ से सदक़ा िर हदया.1

C) मुसलमानों िे यहाुँ ऐसी क़ब्रे भी थी और अब


भी हैं जहाुँ मन्नते मानी जाती हैं जैसा मराकिि
(मोरोक्िो) में हज़रत बस्ती िी क़ब्र, बग़दाद में क़ब्र
अल नुज़रू , अहमद बदावी िी क़ब्र.2

सवाल नंबर 15: अज़ादारी और जश्ने मीलादन्ु नबी


(स) वग़ैरा के बारे में इस्लाम का क्या नज़ररया है ?
जवाब: यक़ीनन जाएज़ है और इस िी दलील यह
है :

1 फ़ुरक़ानुल क़ुरआन, पेज 133


2 नैलल
ु इबतेहाज, ज़जलद 2, पेज 62 / अल मवाहहबुहद्दतनया, ज़जलद 5,
पेज 346 / तारीख़े बग़दाद, ज़जलद 1, पेज 123

49
A) ऐसे मौररद में अस्ल इन िा जाएज़ होना है
मगर यह कि उन िे हराम होने पर िोई दलील पायी
जाती हो.

B) क़ुरआन िी वाज़ेह नस्स (स्रोत) िआएरे इलाही


(अललाह िी तनिानी) िी ताज़ीम िा हुक्म दे रही है .

C) आज ति सीरते मुज़स्लमीन यह रही कि ईदे


मीलादन्ु नबी (स) और उस जैसे दस
ू रे जश्न मनाते हैं
जैसा कि क़स्तलानी और हदयारे बिरी ने इस िी
तरफ़ इिारा किया है .1

D) अहले सन्
ु नत अवाम व ख़वास में मरने वालों
िा ग़म मनाना राएज रहा है और अब भी इसी तरह
राएज है कि जब िोई िख़्स मरता है तो उस िा
सोग मनाया जाता है जैसा कि इमाम ज़हबी ने मिहूर
आशलमे अहले सुन्नत जुवैनी िी वफ़ात िे बारे में
शलखा है :

1 तारीख़े ख़मीस, ज़जलद 1, पेज 323 / अल मवाहहबहु द्दतनया, ज़जलद 1,


पेज 27

50
बाज़ार बन्द िर हदये गये और उन िे मरशसये पढ़े
जाने लगे. उन िे 400 िाचगूद थे ज़जन्होंने एि साल
ति अज़ादारी िी और सर से अम्मामे उतार हदये,
वह पूरे िहर में नौहा और चचख़ों पुिार िरते हुए उन
िा सोग मनाते रहे .1

इसी तरह अब्दल


ु मोशमन (वफ़ात 346 हहजरी) िी
तिीअ-ए-जनाज़े िे बारे में शलखा है :

फ़ौज में बजाये जाने वाले तबलों िी मातनन्द


आवाज़ हर तरफ़ छाई हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे
किसी फ़ौज ने हमला िर हदया हो.2

और इब्ने जौज़ी (वफ़ात 597 हहजरी) िी मौत िे


बारे में शलखते है :

लोगों ने रमज़ान िा पूरा महीना उन िी क़ब्र पर


क़न्दील और चचराग़ जलािर गुज़ार हदया िई एि
बार क़ुरआन ख़त्म किये गये.... और जब हफ़्ते िा

1 शसयर्र आलाशमन्नबु ला, ज़जलद 8, पेज 468


2 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 15, पेज 481

51
(ितनवार) िा हदन आया तो उन िे बारे में तक़रीर
िी गई और अज़ादारी मनाई गई. इस मजशलस में
बहुत ज़ज़यादा लोगों ने शिरित िी और मरशसया
ख़्वानी भी िी गई.1

सवाल नंबर 16: क्या अहले सुन्नत के उलमा भी


मुतआ को जाएज़ समझते हैं?
जवाब: हाुँ! अहले सुन्नत िे उलमा में से भी िई
एि ने इसे जाएज़ ही नहीं बज़लि इस पर अमल भी
किया है :

A) बख़
ु ारी िे उस्ताद इब्ने जरु ै ज उमवी ज़जन िे
शसक़ा (सच्चे) होने पर अहले सुन्नत िा इजमा है और
तमाम सहाह-ए-शसत्ता (अहले सुन्नत िी 6 बड़ी सहीह
किताबों) में इन से ररवायात नक़्ल िी गई हैं इन्होंने
60, 70 या 90 औरतों से मुतआ किया.

ज़हबी इमामे अहले सुन्नत िहते हैं: इब्ने जुरैज


अहले सुन्नत िे यहाुँ भरोसेमन्द िख़्स होने और उन

1 शसयर्र आलाशमन्नुबला, ज़जलद 18, पेज 379

52
िी सच्चाई पर इजमा हैं जबकि उन्होंने 70 औरतों
से अक़्दे मुवक़्क़त (मुतआ) किया और वह इसे जाएज़
समझते थे और वह मक्िा में अपने ज़माने िे मिहूर
फ़क़ीह (मुफ़्ती) थे.1

B) सहाबा-ए-किराम में से हज़रत अली (अ.स),


अब्दल
ु ला बबन अब्बास, जाबबर बबन अब्दल
ु ला अन्सारी,
इमरान बबन हसीन और अबू सईद ख़ुदरी (र.अ) इस
अमल िो जाएज़ क़रार दे ते थे.

C) ख़ुद हज़रत उमर बबन ख़त्ताब िा िहना है :


पैग़म्बर (स) िे ज़माने में दो चीज़ें जाएज़ थी लेकिन
मैं इन्हें हराम क़रार दे रहां हूुँ और इन िाम िे िरने
वालों िो मै सज़ा भी दुँ ग
ू ा.

जैसा कि क़ूिजी ने किताब ‘िरह तजरीद’ िे पेज


नंबर 484 पर इस जुमले िो नक़्ल िरते हुए इस िी
अजीब तहलील (ख़ुलासा) बयान किया है !

1 मीज़ानल
ु एतेदाल, ज़जलद 2, पेज 659 / तहज़ीबल
ु तहज़ीब, ज़जलद 6,
पेज 360

53
D) तारीख़ िी मिहूर किताब “तारीख़े तबरी” में
बयान हुआ है कि इस िाम िी रोि हज़रत उमर िी
तरफ़ से थी और इमरान बबन सवादा ने इस हुक्म िी
वजह से लोगों िे बीच पाये जाने वाले एतेराज़ और
नाराज़गी िी ख़बर उमर िो दी.1

E) ख़ुद हज़रत उमर ने भी िहीं पर यह नहीं िहा


कि पैग़म्बर (स) ने इस से मना किया है बज़लि इन्होंने
तो बड़े वाज़ेह और साफ़ अन्दाज़े में िह हदया कि: मैं
इसे हराम क़रार दे रहा हूुँ.

F) इस मत
ु आ िे हराम होने िे बारे में अहले
सन्
ु नत िे पास एि ही हदीस है ज़जसे वह सबरा नामी
िख़्स से नक़्ल िरते हैं जबकि इस ने मुतआ िे हराम
होने िी हदीस िे अलावा ना तो िोई हदीस नक़्ल िी
है और ना वह िोई मिहूर मअर्रफ़ रावी है इसशलए
कि किसी भी ररजाली किताब में इस िा िोई ज़ज़क्र
नहीं हुआ.

1 तारीख़े तबरी, ज़जलद 2, पेज 579

54
सवाल नंबर 17: ककसशलए शिया हज़रात हाथ
बांधकर नमाज़ नहीं पढ़ते?
जवाब: A) चुँूकि शिया इसे हराम समझते हैं और
अहले सुन्नत में भी किसी ने इस िे वाजीब होने िा
फ़तवा नहीं हदया. बज़लि इसे एि मुस्तहब अमल
क़रार हदया है और बाज़ अहले सुन्नत िे इमामों ने
तो वाजीब नमाज़ों में हाथ बांधने िो मिर्रह क़रार
हदया है . जैसा कि इमाम माशलि नमाज़ में हाथ बांधने
िो मिर्रह समझते हैं इसी तरह तमाम सहाबा-ए-
किराम हाथ खोलिर नमाज़ अदा िरते थे यहाुँ ति
कि हज़रत उमर ने हाथ बांधने िी बबदअत िा आग़ाज़
किया.

अब्दल
ु ला बबन ज़ुबैर, हसन बसरी, लैस बबन सअद
और इब्राहीम नख़ई वग़ैरा हाथ खोलिर ही नमाज़
अदा िरते थे.1

1 इस मसले िी तहक़ीक़ िे शलये मज़ीद किताब (नमाज़ में हाथ खोलें या


बांधें?) िा मुताशलआ फ़रमाए.(मत
ु ज़जूम)

55
B) चुँकू ि पैग़म्बर (स) ने नमाज़ में हाथ नहीं बांधे
जैसा कि क़ुरतुबी िहते हैं: नमाज़ में एि हाथ िा
दस
ू रे हाथ पर रखने िे बारे में उलमा में इज़ख़्तलाफ़
वाक़ेअ हुआ है , इमाम माशलि ने इसे वाजीब नमाज़
में मिर्रह और नवाकफ़ल में जाएज़ क़रार हदया है .
और इस इज़ख़्तलाफ़ िी वजह वह सहीह हदीसें हैं ज़जन
में पैग़म्बर (स) िी नमाज़ िी िैकफ़यत बयान हुई है
लेकिन उन में आप (स) िे नमाज़ में हाथ बांधने िा
ज़ज़क्र नहीं है और दस
ू री जातनब यह भी है कि लोगों
िो नमाज़ में हाथ बांधने िा हुक्म हदया गया है .1

C) अहले सुन्नत िे पास नमाज़ में हाथ बांधने पर


सबसे अहम दलील सहीह बुख़ारी और सहीह मुज़स्लम
िी ररवायत है :

1) सहीह बुख़ारी में है : अबू हाज़ज़म ने सहल बबन


सअद से नक़्ल किया है कि लोगों िो नमाज़ में हाथ
बांधने िा हुक्म हदया गया था और किर िहते हैं:

1 बबदायतुल मुजतहहद, ज़जलद 1, पेज 136

56
मझ
ु े इस बात िा सहीह इलम नहीं है मगर यह कि
िायद पैग़म्बर (स) ने इस िा हुक्म हदया हो.1

नुक़्ता: ख़द
ु रावी िे शलये भी रौिन नहीं है कि हाथ
बांधने िा हुक्म दे ने वाला िौन था हज़रत उमर या
रसूले ख़ुदा (स) या िोई और? जैसा कि ऐनी ने बख़
ु ारी
िी िरह में शलखा है कि यह हदीस मुरसल है .2 इसी
तरह जनाबे शसयूती िा भी यही नज़ररया है .3

2) सहीह मुज़स्लम में ररवायत हैं: ((अलक़मा अपने


बाप वाएल से हदीस नक़्ल िरता है : जब रसूले ख़द
ु ा
(स) नमाज़ िे शलये खड़े हुए तो उन्होंने अपना दाया
हाथ अपने बाए हाथ पर रखा))4

यह ररवायत भी मुरसल है इसशलए कि अहले सुन्नत


िे उलमा अलक़मा िी उस िे बाप से नक़्ल िी हुई

1 सहीह बुख़ारी, ज़जलद 1, पेज 135


2 उम्दतुल क़ारी फ़ी िरहे सहीह अल बख़
ु ारी, ज़जलद 5, पेज 287
3 अल तौशिह अलल जामेअल सहीह, ज़जलद 1, पेज 463 / नैलुल अवतार,
ज़जलद 2, पेज 187
4 सहीह मुज़स्लम, ज़जलद 1, पेज 150

57
हदीस िो मरु सल क़रार दे ते हैं जैसा कि इब्ने हज्र ने
इब्ने मुईन से नक़्ल किया है .1

D) अहलेबैत-ए-पैग़म्बर (स) ने नमाज़ में हाथ


बांधने से मना फ़रमाया है और बाज़ औक़ात तो
फ़रमाया अपने हाथ मत बांधो, और िभी इस अमल
िो मजूस (पारसी) िे अमल से ताबीर किया. बाज़
िा िहना है कि नमाज़ में हाथ बांधने िी बुतनयाद
हज़रत उमर िे दौर में रखी गई.2

सवाल नंबर 18: नमाज़े तरावीह क्या है और


ककसशलए अहले सन्
ु नत इस की अदा करने पर इस
क़दर पाबंद हैं?
जवाब: रमज़ान मुबारि में हर रात 20 या 30
रित नवाकफ़ल िी बजा लाने में शिया सुन्नी में िोई
इज़ख़्तलाफ़ नहीं पाया जाता. इज़ख़्तलाफ़ उन नवाकफ़ल
िी जमाअत िे साथ बजा लाने में है कि क्या नाकफ़ला

1 तहज़ीबल
ु तहज़ीब, ज़जलद 7, पेज 247 / तहज़ीबुल िमाल, ज़जलद 13,
पेज 193
2 जवाहहर्रल िलाम, ज़जलद 11, पेज 19 / शमस्बाहुल बज़क़्क़या, पेज 402

58
(सन्
ु नत) नमाज़ िो बा जमाअत अदा िरना जाएज़
है या नहीं? या यह कि पैग़म्बर (स) या सहाबा में से
किसी ने इसे जमाअत िे साथ अदा किया या इसे
पैग़म्बर (स) िे बाद इजाद किया गया? सहीह बुख़ारी
िी ररवायत िे मुताबबक़ हज़रत उमर ने लोगों िो
इस नमाज़ िी जमाअत अदा िरने िा हुक्म हदया
और इसे बबदअत से ताबीर किया.

हज़रत उमर ने िहा: मेरी राय यह है कि अगर उन


लोगों िो एि िख़्स िी इमामत पर खड़ा किया जाये
तो यह बेहतर होगा. इस िे बाद इरादा किया और
लोगों िो उबैइ बबन िअब िी इमामत पर जमा
किया.1

रावी िहता है : दस
ू री िब जब बाहर तनिले और
दे खा कि लोग जमाअत िे साथ (सुन्नत) नवाकफ़ल
पढ़ रहे हैं तो िहा: यह कितनी अच्छी बबदअत है !

1 सहीह बुख़ारी, ज़जलद 1, पेज 342

59
क़स्तलानी िहते हैं: हज़रत उमर ने नमाज़े तरावीह
िो बबदअत इसशलए िहा कि वह पैग़म्बर (स) िे
ज़माने में नहीं थी और ना ही हज़रत अबू बिर िे
ज़माने में पढ़ी जाती थी.1

ऐनी िा िहना है : हज़रत उमर ने नमाज़े तरावीह


िो बबदअत से इसशलए ताबीर किया कि वह पैग़म्बर
(स) िे ज़माने में नहीं थी और ना ही हज़रत अबू
बिर िे ज़माने में पढ़ी जाती थी.2

क़लक़िन्दी िा िहना है : सब से पहले िख़्स हज़रत


उमर ही थे ज़जन्होंने पहली सदी हहजरी में नमाज़े
नाकफ़ला िी बा जमाअत अदा िरने िा हुक्म हदया.3

यह है नमाज़े तरावीह िी हक़ीक़त ज़जसे अहले


सुन्नत िी मोतबर किताबों से बयान किया गया है .
रहा सवाल इस िे अदा िरने पर इस क़दर पाबन्द
होने िा तो इस िा जवाब अहले सुन्नत िे उलमा ही

1 इरिादस्ु सारी फ़ी िरहे अल सहीह अल बख़


ु ारी, ज़जलद 4, पेज 656
2 उम्दतलु क़ारी फ़ी िरहे अल सहीह अल बख़
ु ारी, ज़जलद 11, पेज 126
3 माशसर्रल इनाफ़ा फ़ी मआलशमल खख़लाफ़ा, ज़जलद 2, पेज 337

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दे सिते हैं कि ऐसा अमल ज़जसे ख़ुद हज़रत उमर
बबदअत िह रहे हैं उस पर इस क़दर सख़्ती से पाबन्द
होने िी वजह क्या है !!!

सवाल नंबर 19: क्या बबदअत को अच्छी और बुरी


दो कक़स्मों में तक़सीम ककया जा सकता है और अच्छी
बबदअत से मुराद क्या है ?
जवाब: अहादीस मुबारि में बयान हुआ है : हर तरह
िी बबदअत गुमराही है और हर गुमराही िा रास्ता
जहन्नम है . इस बबना पर बबदअत िो अच्छी और
बरु ी दो कक़स्मों में तक़सीम िरना हदीसे पैग़म्बर (स)
िी वाज़ेह तौर पर मुख़ाशलफ़त िरना है . यही वजह है
कि बहुत से बड़े अहले सुन्नत िे उलमा ने बबदअत
िी इस तक़सीम िी मुख़ाशलफ़त िी है ज़जन में िातबी,
इब्ने रजब हं बली और ग़ामदी मुहज़क़्क़क़ मुआशसर हैं.
वह अपनी किताब “हक़ीक़तुल बबदअत व अहिाम” में
शलखते है :

अच्छी बबदअत वाला नज़ररया उन िरई दलाएल से


तनाक़ुज़ (टिराव) रखता है ज़जन में उमूमी तौर पर

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बबदअत िी मज़ज़मत (तनन्दा) िी गई है . इसशलए कि
बबदअत िी मज़ज़मत बयान िरने वाली हदीसें आम
और मुतलक़ में और िसरत िी वजह से उन में
इस्तेसना भी मुज़म्िन नहीं है . और ना ही उन ररवायात
में िोई ऐसी ररवायात बयान हुई है जो यह बयान िर
रही हो कि बबदअत िी एि कक़स्म अच्छी है ज़जसे
ख़ुदावन्दे िरीम पसन्द िरता है .1... इस क़ायदे िुलली
िे बबना पर इस से किसी एि फ़दू िो “मुस तस्ना”
(ख़ास) क़रार दे ना मज़ु म्िन नहीं है .

सवाल नंबर 20: वह ररवायात स्जन में यह बयान


हुआ है कक हज़रत अली (अ.स) नमाज़े तरावीह पढ़ा
करते या उस के शलए इमाम मुक़रू र करते, इन्हें नमाज़े
तरावीह के बबदअत होने वाली ररवायात के साथ कैसे
जमा ककया जा सकता है ?
जवाब: शिया नुक़्ते नज़र से ऐसे अमल िी हज़रत
अली (अ.स) िी तरफ़ तनसबत दे ना झूठ है इसी तरह
अहले सुन्नत उलमा िे नज़दीि भी यह साबबत नहीं

1 हक़ीक़तुल बबदअत व अहिामुहा, ज़जलद 1, पेज 138

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है कि हज़रत अली (अ.स) ने नमाज़े तरावीह बा
जमाअत अदा िी हो. जैसा कि बैहक़ी ने इस शसलशसले
में चार पाुँच ररवायत ज़ज़क्र िी हैं और एि एि िरिे
सबिो ज़ईफ़ (झूठ) साबबत किया है . शलहाज़ा तहक़ीक़
िे बाद यह बात साबबत हो चुिी है कि उन तमाम
ररवायात में एि भी ‘सहीहुल सनद’ ररवायात मौजूद
नहीं है . इस से यह भी साबबत नहीं है कि ख़ुद हज़रत
उमर ने नमाजे तरावीह पढ़ी हो! और अब्दल
ु ला बबन
उमर तो सख़्ती से इस िे पढ़ने से मना िरते थे.

इसी तरह हज़रत अली (अ.स) ने अपने दौरे हुिूमत


में इस से मना फ़रमाया. एि हदन जब हज़रत अली
(अ.स) िूफ़ा में थे तो िुछ लोग उन िी खख़दमत में
हाज़ज़र हुए और नमाज़े तरावीह िे शलये इमाम-ए-
जमाअत िी दरख़्वास्त िी तो अमीर्रल मोशमनीन
अलैहहस्सलाम ने उन्हें मनफ़ी जवाब हदया और नमाज़े
तरावीह अदा िरने िे शलये जमा होने से उन्हें मना

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फ़रमाया. जब रात हुई तो एि दस
ू रे से िहने लगे:
रमज़ान पर चगरया िरें . वाय रमज़ान हाय रमज़ान...1

सवाल नंबर 21: क्या यह जुमला ((अस्सलातो


ख़ैर्रस्म्मनन नौम)) िुर्र ही से अज़ान में मौजूद था या
बाद में इज़ाफ़ा ककया गया?
जवाब: जब हुक्मे अज़ान आया तो यह जुमला
अज़ान में मौजूद नहीं था और बाद में इज़ाफ़ा किया
गया:

A) अज़ान िे बारे में सहीह ररवायत ज़जसे अहले


सन्
ु नत नक़्ल िरते हैं वह ररवायत मह
ु म्मद बबन
इसहाक़ से है इस में यह जम
ु ला मौजद
ू नहीं है .

B) सईद बबन मुसय्यब ने साफ़ साफ़ िहा है : मैंने


यह जुमला सुबह िी अज़ान में दाखख़ल किया है .2

1 सराएर, ज़जलद 3, पेज 639


2 नैलुल अवतार, ज़जलद 2, पेज 37

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C) इमाम माशलि ने अपनी किताब में साफ़ तौर
पर शलख हदया है कि यह जुमला उमर बबन ख़त्ताब
िे हुक्म पर सुबह िी अज़ान में दाखख़ल किया गया.

माशलि बबन अनस से नक़्ल हुआ है : एि रात


मुअज़ज़ज़न (अज़ान दे ने वाला) हज़रत उमर िे पास
आया ताकि उन्हें सुबह िी नमाज़ िी ख़बर दें , तो
उस ने दे खा कि हज़रत उमर सो रहें हैं शलहाज़ा आवाज़
दी (अस्सलातो ख़ैर्रज़म्मनन नौम) नमाज़ तनन्द से
बेहतर हैं. इस पर उमर ने यह हुक्म हदया कि इस
जम
ु ले िो सब
ु ह िी अज़ान में दाखख़ल किया जाये.
1

D) इमाम िाफ़ई ने इस िे मिर्रह होने और एि


क़ौल िी बबना पर बबदअत क़रार हदया है .

िौिानी िहते हैं: अगर यह जुमला अज़ान में


दाखख़ल होता तो हज़रत अली (अ.स), अब्दल
ु ला बबन
उमर और ताउस इस िा इन्िार ना िरते.2

1 अल मवत्ता इमाम माशलि, ज़जलद 1, पेज 72


2 नैलुल अवतार, ज़जलद 2, पेज 38

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E) इब्ने जरु ै ज िा िहना है : उमर बबन हफ़्स वह
पहला िख़्स है ज़जस ने खख़लाफ़ते उमर में पहली बार
इस जुमले िो सुबह िी अज़ान में दाखख़ल किया.1

F) इब्ने हज़म िहते हैं: हम यह जुमला सुबह िी


अज़ान में नहीं िहते इसशलए कि यह पैग़म्बर (स) से
नक़्ल नहीं हुआ.2

सवाल नंबर 22: क्या यह जुमला ((हय्या अला


ख़ैररल अमल)) अज़ान का दहस्सा है और इसे सहाबा
व ताबबईन में से ककसी ने पढ़ा है ?
जवाब: सहीह ररवायत िे मत
ु ाबबक़ अब्दल
ु ला बबन
उमर और अबू इमामा बबन सहल बबन हनीफ़ (इस
जुमले िे अज़ान से हज़फ़ (हटा) हदये जाने िे बाद
भी) पढ़ा िरते थे.3

1 मुसन्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़, ज़जलद 1, पेज 474
2 अल महलली, ज़जलद 3, पेज 160
3 अल महलली, ज़जलद 3, पेज 160

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बैहक़ी ने इमाम ज़ैनल
ु आबबदीन अलैहहस्सलाम से
ररवायत नक़्ल िी है कि वह अज़ान में यह जुमला
पढ़ा िरते और फ़रमाते: पहली अज़ान यही है .1

इसी तरह ज़ैद बबन अरक़म, हसन बबन यह्या बबन


जोअद और एि क़ौल िे मुताबबक़ इमाम िाफ़ई भी
यह जुमला अज़ान में पढ़ा िरते थे.2

वस्सलाम

नज्मुद्दीन तबसी.

1 अल सन ु नल
ु िुबरा, ज़जलद 1, पेज 624
2 नैलुल अवतार, ज़जलद 2, पेज 39

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