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शिया मज़हब
शिया मज़हब
अनव
ु ादक: सय्यद अबरार अली जाफ़री (मंचरी)
रौिनी में.
अनव
ु ादि: सय्यद अबरार अली जाफ़री (मंचरी)
पेज: 67
तादाद: 1000
2
3
फ़ेहररस्त (सूची)
मुक़द्दमा-ए-मुअज़ललफ़ .......................................... 9
4
सवाल नंबर 5: क्या ग़ैरे ख़द
ु ा से हाजत तलब िरना
जाएज़ है ? ....................................................... 17
5
पैग़म्बर (स) और दस
ू रे क़ब्रों िे पास नमाज़ पढ़ने या
दआ
ु मांगने से मना नहीं िर रही? .................... 34
6
सवाल नंबर 17: किसशलए शिया हज़रात हाथ बांधिर
नमाज़ नहीं पढ़ते? ........................................... 55
7
सवाल नंबर 22: क्या यह जम
ु ला ((हय्या अला ख़ैररल
अमल)) अज़ान िा हहस्सा है और इसे सहाबा व
ताबबईन में से किसी ने पढ़ा है ? ........................ 66
8
मक़
ु द्दमा-ए-मअ
ु स्ललफ़
मौजद
ू ा किताब उन बाज़ सवालों िे जवाबात िा
मजमुआ है ज़जन्हें क्लास िे दौरान बयान किया गया
और किर ख़ल
ु ासे िो मद्दे नज़र रखते हुए अहले सुन्नत
िे मोतबर मनाबे (भरोसेमन्द किताबों) िे हवाले जात
(ररफ़रें स) िे साथ बहुत ही अच्छे अन्दाज़ में मुरत्तब
(सेटींग) िरिे अवाम िे सामने पेि किया जा रहा
है .1 उम्मीदवार हैं कि पढ़ने वालें हज़रात इस िे
मत
ु ाशलआ िरने िे बाद दस
ू रों ति भी पहुुँचाएंगे और
अगर िहीं पर िोई िि व इबहाम हदखाई दें तो
मुअज़ललफ़ (लेखि) से राबबता फ़रमाएंगे. इन्िाअललाह
आईन्दा मुफ़स्सल जवाबात बयान किये जायेंगे.
नज्मुद्दीन तबसी
9
सवाल नंबर 1: सबसे पहले ककस िख़्स ने पैग़म्बर
हज़रत मह
ु म्मद (स) की क़ब्रे मब
ु ारक की स्ज़यारत से
रोका?
जवाब: अहले सुन्नत िे मोतबर आशलमे दीन
हाकिमे नीिापूरी (वफ़ात 405 हह.) दाऊद बबन सालेह
से नक़्ल िरते हैं कि एि हदन मरवान बबन हिम ने
एि िख़्स िो दे खा जो अपने र्रख़्सार िो पैग़म्बर
(स) िी क़ब्रे मुबारि पर रखे राज़ व तनयाज़ िर रहा
था मरवान ने उसे गरदन से पिड़ा और िहा: क्या
तझ
ु े मालूम है कि क्या िर रहा है ? उस िे िहने िा
मक़सद यह था कि यह पत्थर और ख़ाि है इस िी
ज़ज़यारत से क्या चाहता है ? ज़ाएर ररसालत-ए-माअब
(स) िा प्यारा सहाबी अबू अय्यूब अन्सारी (र.अ) था.
उन्होंने जवाब में फ़रमाया: हाुँ मैं बहुत अच्छी तरह
जानता हूुँ कि क्या िरने आया हूुँ! मैं किसी पत्थर िे
पास नहीं आया बज़लि अपने नबी (स) िे पास आयां
हूुँ मैंने रसूले ख़ुदा (स) से सुना है : “दीन पर उस वक़्त
ति चगरया मत िरो जब ति उस िी सरपरस्ती
10
अहल लोग िर रहे हैं, मगर उस वक़्त चगरया िरो
जब ना अहल लोग उस िे सरपरस्त बनिर बैठ जायें.
11
हज़रत मुहम्मद (स) िी क़ब्रे मब
ु ारि िी शमट्टी उठािर
अपनी आुँखों पर लगाई और चन्द अिआर पढ़े .1
4) अब्दल
ु ला बबन उमर पैग़म्बर (स) िी क़ब्रे
मब
ु ारि पर हाथ रखा िरते थे.
4
5) इब्ने मन
ु िर ताबेई अपना र्रख़्सार पैग़म्बर (स)
िी क़ब्रे मब
ु ारि पर रखा िरते और िहते: मझ
ु े जब
िोई मुज़श्िल पेि आती या किसी िो भूल जाता या
12
ज़बान में लुिनत पैदा होती तो क़ब्रे पैग़म्बर (स) से
शिफ़ा और मदद तलब िरता.1
1) अब्दल
ु ला बबन अहमद बबन हं बल िहते हैं: मैंने
अपने वाशलद से सवाल किया कि शमम्बर-ए-रसूल (स)
िो तबर्रूि िे तौर पर मस िरना और उस िो चूमना
या क़ब्रे मब
ु ारि िो तबर्रूि िे तौर पर मस िरना
और सवाब िी तनय्यत से उसे चूमना क्या हुक्म
13
रखता है तो उन्होंने फ़रमाया: इस में िोई ऐब नहीं
है .1
14
बयान हुआ है कि मदीना िी ख़ाि हर तरह िी ददू
और जुज़ाम वग़ैरा िे शलये शिफ़ा है .
15
समहूदी शलखते हैं: सहाबा और दस
ू रे लोगों िी सीरत
यह थी कि क़ब्रे पैग़म्बर (स) िी ख़ाि िो उठािर ले
जाया िरते.1
2) अब्दल
ु ला हद्दानी िी क़ब्र से तबर्रूि िे बारे में
अबू नईम इस्फ़हानी और इब्ने हज्र अस्क़लानी िहते
16
हैं: हद्दानी 183 हहजरी, 8 ज़ज़लहहज्जा यौम-ए-तरववया
िो क़त्ल हुए लोग उन िी क़ब्र िी ख़ाि िो मुश्ि
समझिर उठािर ले जाते और उसे अपने शलबास में
रखा िरते.1
17
1) और न दो बेअक़्लों िो अपने माल जो अललाह
ने तुम्हारे शलये सहारा (गुज़रान िा ज़रीया) बनाया है
उन्हें उस से खखलाते और पहनाते रहो, और िहो उन
से मअर्रफ़ बात.1
18
मज़ु श्िल पेि आती तो वह क़ब्रे पैग़म्बर (स) से
मुतवज़स्सल होते.
19
िोई मज़ु श्िल पेि आती तो मैं उनिी क़ब्र पर जािर
ख़ुदावन्दे िरीम से हाजत तलब िरता तो अलहम्द ु
शलललाह मेरी वह हाजत पूरी हो जाती और मैंने इसे
िई बार तजर्रबा किया है .1
20
C) िेख़ अल हनाबला अबू अली खख़लाल िहते हैं:
मुझे जब भी िोई मुज़श्िल पेि आती है तो मैं अली
इब्ने मस
ू ा अल रज़ा (अ.स) िी क़ब्र िी ज़ज़यारत
िरता हूुँ और उन से मुतवज़स्सल होता हूुँ तो ख़द
ु ावन्दे
िरीम मेरी मुज़श्िल हल िर दे ता है .1
21
F) इब्ने ख़लिान और ज़हबी िहते हैं: लोग तलबे
बारान (बारीि) िे शलये इब्ने फ़ौरि इस्फ़हानी (वफ़ात
406 हह.) िी क़ब्र से मुतवज़स्सल हुआ िरते.1
22
सवाल नंबर 6: क़ब्र की स्ज़यारत जायज़ होने की
कौन सी दलील मौजद
ू है ?
जवाब: इस सवाल िे जवाब में क़ुरआन व सुन्नत
और सीरते सहाबा में से हर एि से दलील बयान िी
जा सिती है :
23
जैसा कि मिहूर अहले सन्
ु नत िे आशलम जनाब
सबिी ने शलखा है : उलमा ने इस आयत से उमूम
(ज़ज़न्दगी और मौत िे बाद) िा इस्तेफ़ादा किया है
चुँूकि अहादीस मुबारि में पैग़म्बर (स) से नक़्ल हुआ
है कि आप (स) ने फ़रमाया:
दस
ू री दलील: सुन्नते पैग़म्बर (स)
बहुतसी अहादीस मब
ु ारि में आप (स) िी क़ब्रे
मब
ु ारि िी ज़ज़यारत िरने िा हुक्म हदया गया है
ज़जन में से एि यह है :
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तीसरी दलील: सीरते सहाबा
अहले सन्
ु नत िे मिहूर उलमा अब्दल
ु रज़ज़ाक़,
बैहक़ी और इब्ने अब्दल
ु बरू ने ररवायत नक़्ल िी है
कि हज़रत फ़ाततमा ज़हरा (स.अ) हर जुमा िी रात
िो अपने चचा हज़रत हम्ज़ा (र.अ) िी क़ब्र पर जातीं
वहाुँ पर नमाज़ अदा िरतीं और चगरया किया िरतीं.
1 मुसन्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़, ज़जलद 3, पेज 572 / अल सुननल
ु िुबरा,
ज़जलद 4, पेज 131 / तमहीद िरहे मवत्ता, ज़जलद 3, पेज 234 /
िफ़ाअस्सक़ाम, पेज 144 और वफ़ा अल वफ़ा, ज़जलद 4, पेज 1340 पर
नक़्ल हुआ है कि हज़रत उमर और अब्दल ु ला बबन उमर सफ़र से वापसी पर
पैग़म्बर (स) िी ज़ज़यारत िरने जाते.
25
सवाल नंबर 7: क्या यह हदीस ((ला तिद्द
ु ा अल
रे हाल इलला इला सलासतत मसास्जद)) क़ब्रों पर जाने
से मना नहीं कर रही?
जवाब: नहीं! यह हदीस इस मतलब पर दलालत
नहीं िर रही और इस िी दलील नीचे बयान िी जा
रही है :
26
मसाज़जदों िे अलावा किसी और मज़स्जद िी तरफ़
सफ़र िरना हराम है .
27
ज़ज़यारत से मत
ु बररू ि हो सिता है और क़ब्रे मब
ु ारि
िी ज़ज़यारत िी तनय्यत से सफ़र िरना जाएज़ है .1
28
सवाल नंबर 8: क्या इस हदीस ((अललाह की लानत
हो उन औरतों पर जो क़ब्रों की स्ज़यारत करती है ))
के बा वजूद औरतें क़ब्रों पर जा सकती हैं?
जवाब: इस सवाल िा जवाब इस तरह हदया जा
सिता है :
1 अल सन
ु नल
ु िुबरा, ज़जलद 4, पेज 132 / मस
ु न्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़,
ज़जलद 3, पेज 572
29
(मक्िा िे क़रीब एि जगह िा नाम है ) में मरे और
मक्िा में दफ़न किये गये.1
1 मस
ु न्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़, ज़जलद 3, पेज 570 / मअ
ु ज्जमल
ु बुलदान,
ज़जलद 2, पेज 214
2 अल सन
ु नल
ु िुबरा, ज़जलद 3, पेज 570 / मस
ु तदरिे हाकिम, ज़जलद 1,
पेज 374
30
िरख़ी और दीगर ने बयान किया है कि क़ब्रों िी
ज़ज़यारत में मदू और औरतों सब िो इजाज़त दी गई
है .1....
दस
ू रे शसलशसले सनद में बाज़ान है इसी तरह इस
िी हदीस िी भी पवाू नहीं िी जाती.3
31
सवाल नंबर 9: क्या अस्म्बया अलैदहमस्
ु सलाम और
औशलया-ए-ककराम की क़ब्रों के पास खड़े होकर नमाज़
पढ़ना या दआ
ु करना जाएज़ है ?
जवाब: 1) सूरए तनसा िी आयत 64 िररफ़:
((...और यह लोग जब उन्हों ने अपनी जानों पर ज़ुलम
किया था अगर वह आप (स) िे पास आते, किर
अललाह से बज़ख़्िि चाहते और उन िे शलये रसूल
अललाह (स) से मग़कफ़रत चाहते तो वह ज़र्रर पाते,
अललाह तो तौबा क़ुबल
ू िरने वाला मेहरबान है .)) में
क़ब्र पैग़म्बर (स) िे पास खड़ा होिर दआ
ु मांगने िा
र्रजहान पाया जा रहा है चुँूकि आयत में लफ़्ज़
(जाऊिा) आप (स) िी ज़ज़न्दगी और उस िे बाद
दोनों सूरतों िो िाशमल है .
32
बक़ौल इस हदीस िे तमाम तर रावी शसक़ा (सच्चे)
हैं.1
33
C) ज़ोहरी ने भी मिहूर आशलम िरख़ी िी क़ब्र िे
किनारे दआ
ु िरने िे बारे में िुछ मताशलब ज़ज़क्र किये
हैं.1
34
वाररस) यह रावी अहले सन्
ु नत िे उलमा िे यहाुँ रद्द
किया हुआ है चुँकू ि यह किरक़-ए-क़दररया िा पैरोिार
था. इसी तरह (अबू सालेह) िे बारे में भी िि पाया
जाता है कि वह ज़ईफ़ (झूठा) था या शसक़ा (सच्चा)
और अब्दल
ु ला बबन उस्मान मुनकिरे अहादीस िो नक़्ल
किया िरता और किर (इब्ने बहमान) मजहूलुल हाल
(क़ुबूल नही) है इस बबना पर इस हदीस से इस्तेदलाल
नहीं किया जा सिता.
35
अहले सुन्नत िे अज़ीम मफ़
ु ज़स्सरे क़ुरआन क़ुरतब
ु ी
शलखते हैं: उन्होंने अपने बड़ों िी तस्वीरें बना रखी थी
ताकि उन से उन्स (मुहब्बत) हाशसल िर सिें और
उन िी याद ताज़ा रहे . वह उन िी क़ब्रों िे पास ख़ुदा
िी इबादत किया िरते लेकिन उन िे बाद आने वालों
ने उन िे मक़सद िो भूला डाला और िैतान ने उन
िे हदल में वसवसा इजाद किया कि उन िे अजदाद
(पुरखें) उन तस्वीरों िी इबादत और उन िी ताज़ीम
किया िरते थे शलहाज़ा पैग़म्बर (स) ने उन्हें इस से
मना किया.1
36
िरते जो बत
ु ों से किया जाता शलहाज़ा पैग़म्बर (स)
ने उन पर लानत फ़रमाई.1
2) अब्दल
ु ग़नी नाबलुसी िहते हैं: अगर क़ब्रों िी
जगह मज़स्जद में तबहदल हो जाये या वह क़ब्र रास्ते
37
में वाक़ेअ हो या औशलया अललाह व उलमा-ए-
मुहज़क़्क़क़ीन में से किसी िी क़ब्र हो तो उस वली
उललाह िी र्रह िो ज़जन्दा रखने िे शलये लोग उस से
तबर्रूि हाशसल िरें और उस क़ब्र िे पास ख़द
ु ा से
दआ
ु िरें ताकि उन िी दआ
ु क़ुबूल हो तो उस में िोई
माना नहीं बज़लि जाएज़ भी है .1
38
और हबीब बबन अबी साबबत इस ररवायत िी सनद
में मौजूद हैं ज़जन दोनों िी अहले सुन्नत िे यहाुँ िोई
अहशमयत नहीं है .
39
और यह मतलब हमने ररवायत िो जमा िरने िे बाद
हाशसल किया है .1
40
4) दस
ू री सदी हहजरी में हज़रत हम्ज़ा (अ.स) िी
क़ब्र पर मज़स्जद िा बनाया जाना ज़जसे वहाबबयों ने
वीरान िर हदया.
7) दस
ू री सदी हहजरी में इराक़ िे नजफ़ िहर में
हज़रत अली (अ.स) िी क़ब्र पर इमारत िा बनाया
जाना.3
41
9) 316 हहजरी में अबू अवाना िी क़ब्र पर इमारत
िी तामीर किया जाना.1
ख़ल
ु ासा यह कि तमाम मुसलमानों िी यह सीरत
रही है कि वह बुज़ुगाूने दीन िी क़ब्रों पर रौज़े और
मक़बरे बनाया िरते और यह सीरत आज भी बाक़ी
है . ज़जस िी दलील िरबला व नजफ़ और मिहद में
अइम्म-ए-अहलबैत (अ.स) िे रौज़ों िा पाया जाना
और बग़दाद में जनाबे अबू हनीफ़ा और जनाबे अब्दल
ु
क़ाहदर जीलानी िे रौज़े, उज़बेकिस्तान िे िहर
समरिन्द में जनाबे बुख़ारी िा रौज़ा या इसी तरह
तमाम इस्लामी मुलिों में औशलया-ए-इलाही िी क़ब्रों
पर रौज़ों िा मौजूद होना हमारे दावे िी दलील है .
लेकिन वहाबबयों ने हहजाज़ (सऊदी अरब) में इसे हराम
क़रार हदया और तमाम औशलया व सहाबा-ए-किराम
िी क़ब्रों पर मौजूद रौज़ों िो चगरािर सीरते मुज़स्लमीन
िी मुख़ाशलफ़त िी.
42
सवाल नंबर 12: क्या यह हदीस ((पैग़म्बर (स) ने
क़ब्रों को पक्की बना कर उस पर इमारत बनाने से
मना ककया है ))1 रौज़ों को बनाने से मना नहीं कर रहीं
है ?
जवाब: पहली बात तो यह है कि यह हदीस सीरते
मुसलमानों िी मुख़ाशलफ़ है जैसा कि बयान किया जा
चुिा.
दस
ू रा यह कि इस हदीस िी सनद में भी मुज़श्िल
पायी जाती है क्योंकि इस िी सनद में अबू ज़ब
ु ैर
मह
ु म्मद बबन मज़ु स्लम आमदी है ज़जसे उलमा-ए-अहले
सन्
ु नत अहमद बबन हं बल, इब्ने ऐयीने, िोअबा और
अबू हाततम ने ज़ईफ़ (झूठा) क़रार हदया है .2
43
िहना है .1 और इस ररवायत िी सनद में रबीया नामी
िख़्स मौजूद है ज़जस िी अज़दी, इब्ने अबी िैबा और
साजी ने ताईद (प्रमाखणत) नहीं िी है .2
44
1) अहले सुन्नत िे उलमा से नक़्ल हुई अहादीस
िे मुताबबक़ एि रात पैग़म्बर (स) ने क़ब्रस्तान जाना
चाहा तो चचराग़ रौिन िरने िा हुक्म हदया.1
C) इमाम मस
ू ा िाज़ज़म (अ.स) िी क़ब्र मब
ु ारि पर
पांचवीं सदी में क़न्दील िा मौजूद होना.4
45
िरने वालों पर लानत फ़रमाई है .)) इस िी सनद में
मुज़श्िल पायी जाती है इसशलए कि इस िा रावी अबू
सालेह है ज़जसे अहले सुन्नत िे उलमा ने ज़ईफ़ (झूठा)
और ना क़ाबबले क़ुबूल क़रार हदया है और इस हदीस
िी िरह बयान िरने वालों ने शलखा है कि यहाुँ पर
“नही” से मुराद “नही इरिादी” है ना कि “नही मौलवी”.
जैसा कि शसन्धी, अज़ीज़ी, अली नाशसफ़ और िेख़
हनफ़ी ने इस मतलब िी तरफ़ इिारा किया है .1
1 िरहे अल जामेअ अल सग़
ु रा, ज़जलद 3, पेज 198 / सन
ु नु तनसाई,
ज़जलद 4, पेज 95 / अल ताज, ज़जलद 1, पेज 381
46
A) अहले सन्
ु नत िे यहाुँ ऐसी हदीसें नक़्ल हुई हैं
जो इस अमल िो जाएज़ क़रार दे ती है :
47
जहाुँ िुफ़्फ़ार ईद मनाते हैं तो ऐसी मन्नत जाएज़
नहीं है अलबत्ता अहले सुन्नत िे नज़दीि उन
ररवायात पर अमल िरना ज़र्ररी है जो उन्होंने मन्नत
िे ज़र्ररी होने पर नक़्ल िी हैं.
48
सदक़ा उस िे शलये फ़ायदे मन्द साबबत होगा? इस पर
पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया: हाुँ. किर अज़ू किया: िौनसा
सदक़ा ज़ज़यादा फ़ायदे मन्द होगा? पैग़म्बर (स) ने
फ़रमाया: पानी. किर सअद ने एि िुआुँ खोदा और
उसे अपनी माुँ िी तरफ़ से सदक़ा िर हदया.1
49
A) ऐसे मौररद में अस्ल इन िा जाएज़ होना है
मगर यह कि उन िे हराम होने पर िोई दलील पायी
जाती हो.
D) अहले सन्
ु नत अवाम व ख़वास में मरने वालों
िा ग़म मनाना राएज रहा है और अब भी इसी तरह
राएज है कि जब िोई िख़्स मरता है तो उस िा
सोग मनाया जाता है जैसा कि इमाम ज़हबी ने मिहूर
आशलमे अहले सुन्नत जुवैनी िी वफ़ात िे बारे में
शलखा है :
50
बाज़ार बन्द िर हदये गये और उन िे मरशसये पढ़े
जाने लगे. उन िे 400 िाचगूद थे ज़जन्होंने एि साल
ति अज़ादारी िी और सर से अम्मामे उतार हदये,
वह पूरे िहर में नौहा और चचख़ों पुिार िरते हुए उन
िा सोग मनाते रहे .1
51
(ितनवार) िा हदन आया तो उन िे बारे में तक़रीर
िी गई और अज़ादारी मनाई गई. इस मजशलस में
बहुत ज़ज़यादा लोगों ने शिरित िी और मरशसया
ख़्वानी भी िी गई.1
A) बख़
ु ारी िे उस्ताद इब्ने जरु ै ज उमवी ज़जन िे
शसक़ा (सच्चे) होने पर अहले सुन्नत िा इजमा है और
तमाम सहाह-ए-शसत्ता (अहले सुन्नत िी 6 बड़ी सहीह
किताबों) में इन से ररवायात नक़्ल िी गई हैं इन्होंने
60, 70 या 90 औरतों से मुतआ किया.
52
िी सच्चाई पर इजमा हैं जबकि उन्होंने 70 औरतों
से अक़्दे मुवक़्क़त (मुतआ) किया और वह इसे जाएज़
समझते थे और वह मक्िा में अपने ज़माने िे मिहूर
फ़क़ीह (मुफ़्ती) थे.1
1 मीज़ानल
ु एतेदाल, ज़जलद 2, पेज 659 / तहज़ीबल
ु तहज़ीब, ज़जलद 6,
पेज 360
53
D) तारीख़ िी मिहूर किताब “तारीख़े तबरी” में
बयान हुआ है कि इस िाम िी रोि हज़रत उमर िी
तरफ़ से थी और इमरान बबन सवादा ने इस हुक्म िी
वजह से लोगों िे बीच पाये जाने वाले एतेराज़ और
नाराज़गी िी ख़बर उमर िो दी.1
F) इस मत
ु आ िे हराम होने िे बारे में अहले
सन्
ु नत िे पास एि ही हदीस है ज़जसे वह सबरा नामी
िख़्स से नक़्ल िरते हैं जबकि इस ने मुतआ िे हराम
होने िी हदीस िे अलावा ना तो िोई हदीस नक़्ल िी
है और ना वह िोई मिहूर मअर्रफ़ रावी है इसशलए
कि किसी भी ररजाली किताब में इस िा िोई ज़ज़क्र
नहीं हुआ.
54
सवाल नंबर 17: ककसशलए शिया हज़रात हाथ
बांधकर नमाज़ नहीं पढ़ते?
जवाब: A) चुँूकि शिया इसे हराम समझते हैं और
अहले सुन्नत में भी किसी ने इस िे वाजीब होने िा
फ़तवा नहीं हदया. बज़लि इसे एि मुस्तहब अमल
क़रार हदया है और बाज़ अहले सुन्नत िे इमामों ने
तो वाजीब नमाज़ों में हाथ बांधने िो मिर्रह क़रार
हदया है . जैसा कि इमाम माशलि नमाज़ में हाथ बांधने
िो मिर्रह समझते हैं इसी तरह तमाम सहाबा-ए-
किराम हाथ खोलिर नमाज़ अदा िरते थे यहाुँ ति
कि हज़रत उमर ने हाथ बांधने िी बबदअत िा आग़ाज़
किया.
अब्दल
ु ला बबन ज़ुबैर, हसन बसरी, लैस बबन सअद
और इब्राहीम नख़ई वग़ैरा हाथ खोलिर ही नमाज़
अदा िरते थे.1
55
B) चुँकू ि पैग़म्बर (स) ने नमाज़ में हाथ नहीं बांधे
जैसा कि क़ुरतुबी िहते हैं: नमाज़ में एि हाथ िा
दस
ू रे हाथ पर रखने िे बारे में उलमा में इज़ख़्तलाफ़
वाक़ेअ हुआ है , इमाम माशलि ने इसे वाजीब नमाज़
में मिर्रह और नवाकफ़ल में जाएज़ क़रार हदया है .
और इस इज़ख़्तलाफ़ िी वजह वह सहीह हदीसें हैं ज़जन
में पैग़म्बर (स) िी नमाज़ िी िैकफ़यत बयान हुई है
लेकिन उन में आप (स) िे नमाज़ में हाथ बांधने िा
ज़ज़क्र नहीं है और दस
ू री जातनब यह भी है कि लोगों
िो नमाज़ में हाथ बांधने िा हुक्म हदया गया है .1
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मझ
ु े इस बात िा सहीह इलम नहीं है मगर यह कि
िायद पैग़म्बर (स) ने इस िा हुक्म हदया हो.1
नुक़्ता: ख़द
ु रावी िे शलये भी रौिन नहीं है कि हाथ
बांधने िा हुक्म दे ने वाला िौन था हज़रत उमर या
रसूले ख़ुदा (स) या िोई और? जैसा कि ऐनी ने बख़
ु ारी
िी िरह में शलखा है कि यह हदीस मुरसल है .2 इसी
तरह जनाबे शसयूती िा भी यही नज़ररया है .3
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हदीस िो मरु सल क़रार दे ते हैं जैसा कि इब्ने हज्र ने
इब्ने मुईन से नक़्ल किया है .1
1 तहज़ीबल
ु तहज़ीब, ज़जलद 7, पेज 247 / तहज़ीबुल िमाल, ज़जलद 13,
पेज 193
2 जवाहहर्रल िलाम, ज़जलद 11, पेज 19 / शमस्बाहुल बज़क़्क़या, पेज 402
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(सन्
ु नत) नमाज़ िो बा जमाअत अदा िरना जाएज़
है या नहीं? या यह कि पैग़म्बर (स) या सहाबा में से
किसी ने इसे जमाअत िे साथ अदा किया या इसे
पैग़म्बर (स) िे बाद इजाद किया गया? सहीह बुख़ारी
िी ररवायत िे मुताबबक़ हज़रत उमर ने लोगों िो
इस नमाज़ िी जमाअत अदा िरने िा हुक्म हदया
और इसे बबदअत से ताबीर किया.
रावी िहता है : दस
ू री िब जब बाहर तनिले और
दे खा कि लोग जमाअत िे साथ (सुन्नत) नवाकफ़ल
पढ़ रहे हैं तो िहा: यह कितनी अच्छी बबदअत है !
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क़स्तलानी िहते हैं: हज़रत उमर ने नमाज़े तरावीह
िो बबदअत इसशलए िहा कि वह पैग़म्बर (स) िे
ज़माने में नहीं थी और ना ही हज़रत अबू बिर िे
ज़माने में पढ़ी जाती थी.1
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दे सिते हैं कि ऐसा अमल ज़जसे ख़ुद हज़रत उमर
बबदअत िह रहे हैं उस पर इस क़दर सख़्ती से पाबन्द
होने िी वजह क्या है !!!
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बबदअत िी मज़ज़मत (तनन्दा) िी गई है . इसशलए कि
बबदअत िी मज़ज़मत बयान िरने वाली हदीसें आम
और मुतलक़ में और िसरत िी वजह से उन में
इस्तेसना भी मुज़म्िन नहीं है . और ना ही उन ररवायात
में िोई ऐसी ररवायात बयान हुई है जो यह बयान िर
रही हो कि बबदअत िी एि कक़स्म अच्छी है ज़जसे
ख़ुदावन्दे िरीम पसन्द िरता है .1... इस क़ायदे िुलली
िे बबना पर इस से किसी एि फ़दू िो “मुस तस्ना”
(ख़ास) क़रार दे ना मज़ु म्िन नहीं है .
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है कि हज़रत अली (अ.स) ने नमाज़े तरावीह बा
जमाअत अदा िी हो. जैसा कि बैहक़ी ने इस शसलशसले
में चार पाुँच ररवायत ज़ज़क्र िी हैं और एि एि िरिे
सबिो ज़ईफ़ (झूठ) साबबत किया है . शलहाज़ा तहक़ीक़
िे बाद यह बात साबबत हो चुिी है कि उन तमाम
ररवायात में एि भी ‘सहीहुल सनद’ ररवायात मौजूद
नहीं है . इस से यह भी साबबत नहीं है कि ख़ुद हज़रत
उमर ने नमाजे तरावीह पढ़ी हो! और अब्दल
ु ला बबन
उमर तो सख़्ती से इस िे पढ़ने से मना िरते थे.
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फ़रमाया. जब रात हुई तो एि दस
ू रे से िहने लगे:
रमज़ान पर चगरया िरें . वाय रमज़ान हाय रमज़ान...1
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C) इमाम माशलि ने अपनी किताब में साफ़ तौर
पर शलख हदया है कि यह जुमला उमर बबन ख़त्ताब
िे हुक्म पर सुबह िी अज़ान में दाखख़ल किया गया.
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E) इब्ने जरु ै ज िा िहना है : उमर बबन हफ़्स वह
पहला िख़्स है ज़जस ने खख़लाफ़ते उमर में पहली बार
इस जुमले िो सुबह िी अज़ान में दाखख़ल किया.1
1 मुसन्नफ़ अब्दल
ु रज़ज़ाक़, ज़जलद 1, पेज 474
2 अल महलली, ज़जलद 3, पेज 160
3 अल महलली, ज़जलद 3, पेज 160
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बैहक़ी ने इमाम ज़ैनल
ु आबबदीन अलैहहस्सलाम से
ररवायत नक़्ल िी है कि वह अज़ान में यह जुमला
पढ़ा िरते और फ़रमाते: पहली अज़ान यही है .1
वस्सलाम
नज्मुद्दीन तबसी.
1 अल सन ु नल
ु िुबरा, ज़जलद 1, पेज 624
2 नैलुल अवतार, ज़जलद 2, पेज 39
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