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॥प्रार्थना॥
॥प्रार्थना॥
नमः लश्ाय
समय:
रात्रर सोने से पू्थ
िाभ:
*यह उत्तम तनद्रा प्रदान करिा है *, *िना् मक्ति करने में सहायक है , बढ़िी उम्र को रोकने ्ािा ए्ुं
प्राण शक्ति को बढ़ािा है *।
*सूजन और कैंसर िर्ा बैतटीररया आदद को कम करिा है *।
*सामग्री:*
दो कप पानी, एक िम्मि हल्दी पाउडर, पाुंि पत्ते ििसी, दो टकडे अदरक, एक टकडा दाििीनी,
िीन दाने कािीलमिथ, िार टकडे िौंग, एक कप गाय का िाजा दध
ू , एक िम्मि शद्ध शहद
*व्चध*:
*दो कप पानी धीमी आुंि पर रखें , उसमें एक िम्मि हल्दी, पाुंि पत्ते ििसी, दो टकडे अदरक और एक
दाििीनी का टकडा डािें *।
*िीन टकडे कािी लमिथ के दाने पीसकर उसे भी डािें , िार टकडे साबि िौंग के डािें *
*जब पानी आधा रह जाए िब िक इस काढ़े को धीमी आुंि पर उबािें*।
*पानी आधा रह जाने पर एक कप दध
ू लमिाकर और र्ोडी दे र इसे उबिने दें ।*
*अब काढ़े को छान िें और उसमें एक िम्मि शहद लमिाकर सोने से पहिे वपयें*।
~ *ईशान लश्ानन्द*
व्पस्सना र्धयान की िीन व्चधयाुं: ओशो
व्पस्सना का अर्थ है : अपनी श््ास का तनरीक्षण करना, श््ास को दे खना। यह योग या प्राणायाम नहीुं
है । श््ास को ियबद्ध नहीुं बनाना है ; उसे धीमी या िेज नहीुं करना है । व्पस्सना िम्हारी श््ास को
जरा भी नहीुं बदििी। इसका श््ास के सार् कोई सुंबुंध नहीुं है । श््ास को एक उपाय की भाुंति उपयोग
करना है िाकक िम द्रष्टा हो सको। तयोंकक श््ास िम्हारे भीिर सिि घटने ्ािी घटना है ।
व्पस्सना र्धयान को िीन प्रकार से ककया जो सकिा है —िम्हें कौन सी व्चध सबसे ठीक बैठिी है , इसका
िम िना् कर सकिे हो।
पहिी व्चध—
अपने कृत्यों, अपने शरीर, अपने मन, अपने ह्रदय के प्रति सजगिा। ििो, िो होश के सार् ििो, हार्
दहिाओ िो होश से दहिाओ,यह जानिे हए कक िम हार् दहिा रहे हो। िम उसे त्रबना होश के युंर की
भाुंति भी दहिा सकेि हो। िम सबह सैर पर तनकििे हो; िम अपने पैरों के प्रति सजग हए त्रबना भी
िि सकिे हो।
अपने शरीर की गतिव्चधयों के प्रति सजग रहो। खािे समय,उन गतिव्चधयों के प्रति सजग रहो जो
खाने के लिए जरूर होिी है । नहािे समय जो शीिििा िम्हें लमि रही है । जो पानी िम पर चगर रहा
है । और जो अपू्थ आनुंद उससे लमि रहा है उस सब के प्रति सजग रहो—बस सजग हो रहो। यह
जागरूकिा की दशा में नहीुं होना िादहए।
दस
ू री व्चध—
दस
ू री व्चध है श््ास की; अपनी श््ास के प्रति सजग होना। जैसे ही श््ास भीिर जािी है िम्हारा पेट
ऊपर उठने िगिा है , और जब श््ास बहार जािी है िो पेट किर से नीिे बैठने िगिा है । िो दस
ू री
व्चध है पेट के प्रति—उसके उठने और चगरने के प्रति सजग हो जाना। पेट के उठने और चगरने का बोध
हो……ओर पेट जी्न स्रोि के सबसे तनकट है । तयोंकक बच्िा पेट में माुं की नालभ से जूडा होिा है ।
नालभ के पीछे उसके जी्न को स्रोि है । िो जब िम्हारा पेट उठिा है , िो यह ्ास्ि् में जी्न ऊजाथ
हे , जी्न की धारा है जो हर श््ास के सार् ऊपर उठ रही है । और नीिे चगर रही है । यह व्चध कदठन
पहिी व्चध में िम्हें अपने शरीर के प्रति सजग होना है , अपने मन के प्रति सजग होना है । अपने
भा्ों, भा् दशाओुं के प्रति सजग होना है । िो इसमें िीन िरण हे । दस
ू री व्चध में एक ही िरण है ।
बस पेट ऊपर और नीिे जा रहा है । और पररणाम एक ही है । जैसे-जैसे िम पेट के प्रति सजग होिे
जािे हो, मन शाुंि हो जािा है , ह्रदय शाुंि हो जािा है । भा् दशाएुं लमट जािी है ।
िीसरी व्चध—
जब श््ास भीिर प्र्ेश करने िगे, जब श््ास िम्हारे नासापटों से भीिर जाने िगे िभी उसके पति
सजग हो जाना है ।
उस दस
ू री अति पर उसे अनभ् करो—पेट से दस
ू री अति पर—नासापट पर श््ास का स्पशथ अनभ् करो।
भीिर जािी हई श््ास िम्हारे नासापटों को एक प्रकार की शीिििा दे िी है । किर श््ास बाहर जािी
है …..श््ास भीिर आई, श््ास बहार गई।
ये िीन ढुं ग हे । कोई भी एक काम दे गा। और यदद िम दो व्चधयाुं एक सार् करना िाहों िो दो
व्चधयाुं एक सार् कर सकिे हो। किर प्रयास ओर सधन हो जाएगा। यदद िम िीनों व्चधयों को एक
सार् करना िाहो, िो िीनों व्चधयों को एक सार् कर सकिे हो। किर सुंभा्नाएुं िीव्र िर होंगी। िेककन
सरि व्चध—
व्पस्सना र्धयान की सरििम व्चध है । बद्ध व्पस्सना के द््ारा ही बद्धत्् को उपिब्ध हए र्े। और
व्पस्सना के द््ारा क्जिने िोग उपिब्ध हए हे उिने और ककसी व्चध से नहीुं हए। व्पस्सना व्चधयों
की व्चध है । और बहि सी व्चधयाुं है िेककन उनसे बहि कम िोगों को मदद लमिी है । व्पस्सना से
हजारों िोगों की सहायिा हई है ।
श््ास-उच्छ्ास त्रबिकि सरि हों, उनमें लसिथ एक ित्् जोडना है : होश, होश के प्रव्ष्ट होिे ही सारे
*तया ऐसा हो सकिा है कक 6 लम. में ककसी साधन से करोडों व्कार दरू हो सकिे हैं।*
उत्तर है *हााँ हो सकिे हैं*
्ैज्ञातनक शोध करके पिा ििा है कक......
लसिथ 6 लमनट *ऊाँ* का उच्िारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जािे हैं जो द्ा से भी इिनी जल्दी
ठीक नहीुं होिे.........
छः लमनट ऊाँ का उच्िारण करने से मक्स्िष्क मै व्षेश ्ाइब्रेशन (कम्पन) होिा है .... और
औतसीजन का प्र्ाह पयाथप्ि होने िगिा है।
कई मक्स्िष्क रोग दरू होिे हैं.. स्रे स और टे न्शन दरू होिी है ,,,, मैमोरी पा्र बढिी है ..।
िगािार सबह शाम 6 लमनट ॐ के िीन माह िक उच्िारण से रति सुंिार सुंिलिि होिा है और
रति में औतसीजन िेबि बढिा है ।
रति िाप , हृदय रोग, कोिस्रोि जैसे रोग ठीक हो जािे हैं....।
व्शेष ऊजाथ का सुंिार होिा है ......... मार 2 सप्िाह दोनों समय ॐ के उच्िारण से
घबराहट, बेिन
ै ी, भय, एुंग्जाइटी जैसे रोग दरू होिे हैं।
पेट में भी व्शेष ्ाइब्रेशन और दबा् होिा है ....। एक माह िक ददन में िीन बार 6 लमनट िक
ॐ के उच्िारण से
पािन िन्र , िी्र, आाँिों को शक्ति प्राप्ि होिी है , और डाइजेशन सही होिा है , सैकडौं उदर रोग
दरू होिे हैं..।
उच्ि स्िर का प्राणायाम होिा है , और िेिडों में व्शेष कुंपन होिा है ..।
िेिडे मजबि
ू होिे हैं, स््सनिुंर की शक्ति बढिी है , 6 माह में अस्र्मा, राजयक्ष्मा (T.B.) जैसे रोगों
में िाभ होिा है ।
आय बढिी है ।
ये सारे ररसिथ (शोध) व्श्् स्िर के ्ैज्ञातनक स््ीकार कर िके हैं।
*जरूरि है छः लमनट रोज करने की....।*
यह बाि सदै ् र्धयान रखें कक बीज मुंरों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीुं बक्ल्क उसके
व्शद्ध उच्िारण को एक तनक्श्िि िय और िाि से करने में है ।
बीज मुंर में स्ाथचधक महत्् उसके त्रबन्द में है और यह ज्ञान के्ि ्ैददक व्याकरण के सघन ज्ञान
द््ारा ही सुंभ् है ।
आप स््युं दे खें कक एक त्रबन्द के िीन अिग-2 उच्िारण हैं।
गुंगा शब्द ‘ङ’ प्रधान है ।
गन्दा शब्द ‘न’ प्रधान है ।
गुंभीर शब्द ‘म’ प्रधान है ।
अर्ाथि इनमें क्रमशः ङ, न और म, का उच्िारण हो रहा है ।
कौमदी लसद्धाुंि के अनसार ्ैददक व्याकरण को िीन सर
ू ों द््ारा स्पष्ट ककया गया है -
1 - मोनस््ारः
2 - यरोननालसकेननालसको
िर्ा
3- अनस््ारस्य यतय पर स्णे। बीज मुंर के शद्ध उच्िारण में सस््र पाठ भेद के उदात्त िर्ा अनदात्त
अन्िर को स्पष्ट ककए त्रबना शद्ध जाप असम्भ् है और इस अशद्चध के कारण ही मुंर का सप्रभा्
नहीुं लमि पािा। इसलिए स्थप्रर्म ककसी बौद्चधक व्यक्ति से अपनेअनकूि मुंर को समय-परख कर
उसका व्शद्ध उच्िारण अ्श्य जान िें । अपने अनरूप िना गया बीज मुंर जप अपनी सव्धा और
समयानसार िििे-किरिे उठिे-बैठिे अर्ाथि ककसी भी अ्स्र्ा में ककया जा सकिा है । इसका उद्दे श्य
के्ि शद्ध उच्िारण एक तनक्श्िि िाि और िय से नाड़डयों में स्पदन करके स्िोट उत्पन्न करना है ।
काुं - पेट सम्बन्धी कोई भी व्कार और व्शेष रूप से आुंिों की सूजन में िाभकारी।
शुं - ्ाणी दोष, स््प्न दोष, मदहिाओुं में गभाथशय सम्बन्धी व्कार औेर हतनथया आदद रोगों में
उपयोगी।
ढुं - मानलसक शाुंति दे ने में सहायक। अप्राकृतिक व्पदाओुं जैसे मारण, स्िम्भन आदद प्रयोगों
से उत्पन्न हए व्कारों में उपयोगी।
पुं - िेिडों के रोग जैसे टी.बी., अस्र्मा, श््ास रोग आदद के लिए गणकारी।
बुं - शूगर, ्मन, कि, व्कार, जोडों के ददथ आदद में सहायक।
रुं - उदर व्कार, शरीर में वपत्त जतनि रोग, ज््र आदद में उपयोगी।
िुं- मदहिाओुं के अतनयलमि मालसक धमथ, उनके अनेक गप्ि रोग िर्ा व्शेष रूप से आिस्य
को दरू करने में उपयोगी।
धुं - िना् से मक्ति के लिए मानलसक सुंरास दरू करने में उपयोगी ।
ऐुं- ्ाि नाशक, रति िाप, रति में कोिेस्राॅि, मूछाथ आदद असार्धय रोगों में सहायक।
शुं - आुंिों के व्कार िर्ा पेट सुंबुंधी अनेक रोगों में सहायक ।
हुं - यह बीज एक प्रबि एन्टीबॉयदटक लसद्ध होिा है । गाि ब्िैडर, अपि, लिकोररया आदद
रोगों में उपयोगी।
अुं - पर्री, बच्िों के कमजोर मसाने, पेट की जिन, मानलसक शाक्न्ि आदद में सहायक
इस बीज का सिि जप करने से शरीर में शक्ति का सुंिार उत्पन्न होिा है ।
-- गप्ि-सप्िशिी --
ॐ
लश् उ्ाि
श्रण
ृ दे व् प्र्क्ष्यालम कक्जजकास्िोरमत्तमम।्
येन मन्रप्रभा्ेण िण्डीजापः शभो भ्ेि॥1॥
्
न क्िुं नागथिास्िोरुं कीिकुं न रहस्यकम।्
न सूतिुं नावप र्धयानुं ि न न्यासो न ि ्ािथनम॥2॥
्
कक्जजकापाठमारेण दगाथपाठििुं िभेि।्
अति गह्यिरुं दे व् दे ्ानामवप दिथभम॥3॥
्
गोपनीयुं प्रयत्नेन स््योतनरर् पा्थति।
मारणुं मोहनुं ्श्युं स्िम्भनोच्िाटनाददकम।्
पाठमारेण सुंलसद्धये
् ि ् कक्जजकास्िोरमत्तमम ् ॥4॥
अर् मुंर
॥ इति मुंरः॥
गप्ि-सप्िशिी
स्ि्न