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Teesri Kasam
Teesri Kasam
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SCHOOL
TERM – 1&2
CLASS
SUBECT: HINDI L2
TOPIC: NOTES
प्रश्न 1.‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से परु स्कारों से सम्माननत फकया गया है ?
उत्तर-
1.राष्ट्रपनत स्वर्ण पदक से सम्माननत।
2.बंगाल फ़िल्म जनणललस्ट एसोलसएशन द्वारा सवणश्रेष्ट्ठ फ़िल्म को परु स्कार।
3.मास्को फ़िल्म फेस्स्टवल में भी यह पुरस्कृत हुई।
प्रश्न 6.राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के ननमाणर् के समय फकस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर-राजकपरू ने ‘मेरा नाम जोकर’ के ननमाणर् के समय कल्पना भी नहीं की थी फक फ़िल्म के पहले भाग के
ननमाणर् में ही छह साल का समय लग जाएगा।
तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यल ू ाइड पर ललखी कववता’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर-
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यलू ाइड पर ललखी कववता अथाणत ् कैमरे की रील में उतार कर चचत्र पर प्रस्तत
ु करना
इसललए कहा गया है , क्योंफक यह वह फ़िल्म है , स्जसने हहंदी साहहत्य की एक अत्यंत मालमणक कृनत को सैल्यूलाइड पर
साथणकता से उतारा; इसललए यह फ़िल्म नहीं, बस्ल्क सैल्यूलाइड पर ललखी कववता थी।
प्रश्न 2.‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं लमल रहे थे?
उत्तर: इस फफल्म में फकसी भी प्रकार के अनावश्यक मसाले जो फफल्म के पैसे वसल
ू करने के ललए आवश्यक होते हैं,
नहीं डाले गए थे। फ़िल्म ववतरक उसके साहहस्त्यक महत्त्व और गौरव को नहीं समझ सकते थे इसललए उन्होंने उसे
खरीदने से इनकार कर हदया।
प्रश्न 5.
‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द हदए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट्ट
कीस्जए।
उत्तर-
‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द हदए हैं -का आशय है फक राजकपूर के पास अपनी
भावनाओं को व्यक्त कर पाने के ललए शब्दों का अभाव था, स्जसकी पनू तण बडी कुशलता तथा
सौंदयणमयी ढं ग से कवव हृदय शैलेंद्र जी ने की है । राजकपूर जो कहना चाहते थे, उसे शैलेंद्र ने
शब्दों के माध्यम से प्रकट फकया। राजकपूर अपनी भावनाओं को आँखों के द्वारा व्यक्त करने
में कुशल थे। उन भावों को गीतों में ढालने का काम .शैलेंद्र ने फकया।
प्रश्न 6.
लेखक ने राजकपूर को एलशया का सबसे बडा शोमैन कहा है । शोमैन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
शोमैन का अथण है -प्रलसद्ध प्रनतननचध-आकषणक व्यस्क्तत्व। ऐसा व्यस्क्त जो अपने कला-गर् ु , व्यस्क्तत्व तथा आकषणर्
के कारर् सब जगह प्रलसद्ध हो। राजकपूर अपने समय के एक महान फ़िल्मकार थे। एलशया में उनके ननदे शन में
अनेक फ़िल्में प्रदलशणत हुई थीं। उन्हें एलशया का सबसे बडा शोमैन इसललए कहा गया है क्योंफक उनकी फ़िल्में शोमैन
से संबंचधत सभी मानदं डों पर खरी उतरती थीं। वे एक सवाणचधक लोकवप्रय अलभनेता थे और उनका अलभनय जीवंत
था तथा दशणकों के हृदय पर छा जाता था। दशणक उनके अलभनय कौशल से प्रभाववत होकर उनकी फ़िल्म को दे खना
और सराहना पसंद करते थे। राजकपरू की धम ू भारत के बाहर दे शों में भी थी। रूस में तो नेहरू के बाद लोग
राजकपूर को ही सवाणचधक जानते थे।
प्रश्न 7.
फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों हदशाओं से कहें गी अपनी कहाननयाँ’ पर संगीतकार जयफकशन ने आपवत्त क्यों
की?
उत्तर-
संगीतकार जयफकशन ने गीत ‘रातें दसों हदशाओं से कहें गी अपनी कहाननयाँ’ पर आपवत्त इसललए की, क्योंफक उनका
ख्याल था फक दशणक चार हदशाएँ तो समझते हैं और समझ सकते हैं, लेफकन दस हदशाओं का गहन ज्ञान दशणकों को
नहीं होगा।
(ि) ननम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में ) लिखिए-
प्रश्न 1.
राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
उत्तर-
राजकपूर एक पररपक्व फ़िल्म-ननमाणता थे तथा शैलेंद्र के लमत्र थे। अतः उन्होंने एक सच्चा लमत्र होने के नाते शैलेंद्र
को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी फकया था, लेफकन शैलेंद्र ने फफर भी ‘तीसरी कसम’ फफल्म बनाई,
क्योंफक उनके मन में इस फफल्म को बनाने की तीव्र इच्छा थी। वे तो एक भावुक कवव थे, इसललए अपनी
भावनाओं की अलभव्यस्क्त इस फ़िल्म में करना चाहते थे। उन्हें धन ललप्सा की नहीं, बस्ल्क आत्म-संतुस्ष्ट्ट की
लालसा थी इसललए उन्होंने यह फफल्म बनाई।
प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ में राजकपरू का महहमामय व्यस्क्तत्व फकस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है ? स्पष्ट्ट कीस्जए।
उत्तर-
राजकपरू एक महान कलाकार थे। फ़िल्म के पात्र के अनरू ु प अपने-आप को ढाल लेना वे भली-भाँनत जानते थे। जब
“तीसरी कसम” फ़िल्म बनी थी उस समय राजकपूर एलशया के सबसे बडे शोमैन के रूप में स्थावपत हो चुके थे।
तीसरी कसम में राजकपूर का अलभनय चरम सीमा पर था। उन्हें एक सरल हृदय ग्रामीर् गाडीवान के रूप में
प्रस्तत
ु फकया गया। उन्होंने अपने-आपको उस ग्रामीर् गाडीवान हीरामन के साथ एकाकार कर ललया। इस फ़िल्म में
एक शद् ु ध दे हाती जैसा अलभनय स्जस प्रकार से राजकपूर ने फकया है , वह अद्ववतीय है । एक गाडीवान की सरलता,
नौटं की की बाई में अपनापन खोजना, हीराबाई की बाली पर रीझना, उसकी भोली सरू त पर न्योछावर होना और
हीराबाई की तननक-सी उपेक्षा पर अपने अस्स्तत्व से जझ ू ना जैसी हीरामन की भावनाओं को राजकपूर ने बडे सुंदर
ढं ग से प्रस्तुत फकया है । फ़िल्म में राजकपूर कहीं भी अलभनय करते नहीं हदखते अवपतु ऐसा लगता है जैसे वे ही
हीरामन हों। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपरू का परू ा व्यस्क्तत्व ही जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया है ।
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प्रश्न 3.
लेखक ने ऐसा क्यों ललखा है फक ‘तीसरी कसम’ ने साहहत्य-रचना के साथ शत-प्रनतशत न्याय फकया है ?
उत्तर-
यह वास्तववकता है फक ‘तीसरी कसम’ ने साहहत्य-रचना के साथ शत-प्रनतशत न्याय फकया है । यह फर्ीश्वरनाथ
रे र्ु की रचना ‘मारे गए गुलफाम’ पर बनी है । इस फफल्म में मूल कहानी के स्वरूप को बदला नहीं गया। कहानी
के रे श-े रे शे को बडी ही बारीकी से फफल्म में उतारा गया था। साहहत्य की मलू आत्मा को परू ी तरह से सरु क्षक्षत
रखा गया था।
प्रश्न 4.
शैलेंद्र के गीतों की क्या ववशेषता है ? अपने शब्दों में ललखखए।
उत्तर-
शैलेंद्र एक कवव और सफल गीतकार थे। उनके ललखे गीतों में अनेक ववशेषताएँ हदखाई दे ती हैं। उनके गीत सरल,
सहज भाषा में होने के बावजद ू बहुत बडे अथण को अपने में समाहहत रखते थे। वे एक आदशणवादी भावुक कवव थे
और उनका यही स्वभाव उनके गीतों में भी झलकता था। अपने गीतों में उन्होंने झठ ू े हदखावों को कोई स्थान
नहीं हदया। उनके गीतों में भावों की प्रधानता थी और वे आम जनजीवन से जड ु े हुए थे। उनके गीतों में करुर्ा
के साथ-साथ संघषण की भावना भी हदखाई दे ती है । उनके गीत मनुष्ट्य को जीवन में दख ु ों से घबराकर रुकने के
स्थान पर ननरं तर आगे बढ़ने का संदेश दे ते हैं। उनके गीतों में शांत नदी-सा प्रवाह और समद्र ु -सी गहराई होती
थी। उनके गीत का एक-एक शब्द भावनाओं की अलभव्यस्क्त करने में पूर्त ण ः सक्षम है ।
प्रश्न 5.
फ़िल्म ननमाणता के रूप में शैलेंद्र की ववशेषताओं पर प्रकाश डाललए।
उत्तर-
फ़िल्म ननमाणता के रूप में शैलेंद्र की अनेक ववशेषताएँ हैं, लेफकन उनमें से प्रमख ु ववशेषताएँ ननम्नललखखत हैं-
1.फ़िल्म ननमाणता के रूप में शैलेंद्र ने जीवन के आदशणवाद एवं भावनाओं को इतने अच्छे तरीके से फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के
माध्यम से सफलतापव ू क
ण अलभव्यक्त फकया, स्जसके कारर् इसे सवणश्रेष्ट्ठ फ़िल्म घोवषत फकया गया और बडे-बडे परु स्कारों
द्वारा सम्माननत फकया गया।
2.राजकपूर की सवोत्कृष्ट्ट भूलमका को शब्द दे कर अत्यंत प्रभावशाली ढं ग से दशणकों के सामने प्रस्तुत फकया है ।
3.जीवन की मालमणकता को अत्यंत साथणकता से एवं अपने कवव हृदय की पर् ू त
ण ा को बडी ही तन्मयता के साथ पदे पर उतारा
है ।
प्रश्न 6. शैलेंद्र के ननजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है -कैसे? स्पष्ट्ट कीस्जए।
उत्तर-
शैलेंद्र एक आदशणवादी संवेदनशील और भावुक कवव थे। शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फफल्म का ननमाणर् फकया, स्जसका
नाम ‘तीसरी कसम’ था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापर् ू ण फफल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके
ननजी जीवन की ववशेषता थी और यही ववशेषता उनकी फफल्म में भी हदखाई दे ती है । ‘तीसरी कसम’ का नायक हीरामन
अत्यंत सरल हृदयी और भोला-भाला नवयव ु क है , जो केवल हदल की जब ु ान समझता है , हदमाग की नहीं। उसके ललए
मोहब्बत के लसवा फकसी चीज़ का कोई अथण नहीं। ऐसा ही व्यस्क्तत्व शैलेंद्र का था, हीरामन को धन की चकाचौंध से दरू
रहनेवाले एक दे हाती के रूप में प्रस्तुत फकया गया है । शैलेंद्र स्वयं भी यश और धनललप्सा से कोसों दरू थे। इसके साथ-साथ
फ़िल्म ‘तीसँरी कसम’ में दख ु को भी सहज स्स्थनत में जीवन सापेक्ष प्रस्तत ु फकया गया है । शैलेंद्र अपने जीवन में भी दख
ु को
सहज रूप से जी लेते थे। वे दख ु से घबराकर उससे दरू नहीं भागते थे। इस प्रकार स्पष्ट्ट है फक शैलेंद्र के ननजी जीवन की
छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है ।
प्रश्न 7.
लेखक के इस कथन से फक ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवव-हृदय ही बना सकता था,
आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट्ट कीस्जए।
उत्तर-
लेखक के इस कथन से फक ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई कवव हृदय ही बना सकता था-से हम
पूरी तरह से सहमत हैं, क्योंफक कवव कोमल भावनाओं से ओतप्रोत होता है । उसमें करुर्ा एवं
सादगी और उसके ववचारों में शांत नदी का प्रवाह तथा समद्र ु की गहराई का होना जैसे गर्
ु
कूट-कूट कर भरे होते हैं। ऐसे ही ववचारों से भरी हुई ‘तीसरी कसम’ एक ऐसी फ़िल्म है ,
स्जसमें न केवल दशणकों की रुचचयों को ध्यान रखा गया है , बस्ल्क उनकी गलत रुचचयों को
पररष्ट्कृत (सुधारने) करने की भी कोलशश की गई है ।
ग) ननम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीक्िए- important –many a times asked these questions in cbse qp
प्रश्न 1.
…. वह तो एक आदशणवादी भावुक कवव था, स्जसे अपार संपवत्त और यश तक की इतनी कामना नहीं थी स्जतनी
आत्म संतुस्ष्ट्ट के सुख की अलभलाषा थी।
उत्तर-
इसका आशय है फक शैलेंद्र एक आदशणवादी भावुक हृदय कवव थे। उन्हें अपार संपवत्त तथा लोकवप्रयता की कामना
इतनी नहीं थी, स्जतनी आत्म तस्ु ष्ट्ट, आत्म संतोष, मानलसक शांनत, मानलसक सांत्वना आहद की थी, क्योंफक ये
सद् ववृ त्तयाँ धन से नहीं खरीदी जा सकतीं, न ही इन्हें कोई भें ट कर सकता है । इन गुर्ों की अनुभूनत तो अंदर
से ईश्वर की कृपा से ही होती है । इन्हीं अलौफकक अनुभूनतयों से पररपूर्ण थे-शैलेंद्र, तभी तो वे आत्म तुस्ष्ट्ट चाहते
थे।
प्रश्न 2.
उनका यह दृढ़ मंतव्य था फक दशणकों की रुचच की आड में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहहए।
कलाकार का यह कतणव्य भी है फक वह उपभोक्ता की रुचचयों का पररष्ट्कार करने का प्रयत्न करे ।
उत्तर-
एक आदशणवादी उच्चकोहट के गीतकार व कवव हृदय शैलेंद्र ने रुचचयों की आड में कभी भी दशणकों पर घहटया
गीत थोपने का प्रयास नहीं फकया। फफल्में आज के दौर में मनोरं जन का एक सशक्त माध्यम हैं। समाज में हर
वगण के लोग फफल्म दे खते हैं और उनसे प्रभाववत भी होते हैं। आजकल स्जस प्रकार की फ़िल्मों का ननमाणर् होता
है । उनमें से अचधकतर इस स्तर की नहीं होती फक पूरा पररवार एक साथ बैठकर दे ख सके। फ़िल्म ननमाणताओं
की भाँनत वे दशणकों की पसंद का बहाना बनाकर ननम्नस्तरीय कला अथवा साहहत्य का ननमाणर् नहीं करना चाहते
थे। उनका मानना था फक कलाकार का दानयत्व है फक वह दशणकों की रुचच का पररष्ट्कार करें । उनका लक्ष्य दशणकों
को नए मल् ू य व ववचार प्रदान करना था।
प्रश्न 3.
व्यथा आदमी को परास्जत नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश दे ती है ।
उत्तर-
इसका अथण है फक व्यथा, पीडा, दख
ु आहद व्यस्क्त को कमज़ोर या हतोत्साहहत अवश्य कर दे ते हैं, लेफकन उसे परास्जत नहीं
करते बस्ल्क उसे मजबूत बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरर्ा दे ते हैं। हर व्यथा आदमी को जीवन की एक नई सीख दे ती है ।
व्यथा की कोख से ही तो सखु का जन्म होता है इसललए व्यथा के बाद, दख ु के बाद आने वाला सुख अचधक सखु कारी
होता है ।
प्रश्न 4.
दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना फकसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है ।
उत्तर-
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म गहरी संवेदनात्मक तथा भावनात्मक थी। उसे अच्छी रुचचयों वाले संस्कारी मन और कलात्मक लोग
ही समझ-सराह सकते थे। कवव शैलेंद्र की फ़िल्म ननमाणर् के पीछे धन और यश प्राप्त करने की अलभलाषा नहीं थी। वे इस
फ़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के कलाकार को संतुष्ट्ट करना चाहते थे। इस फ़िल्म को बनाने के पीछे शैलेंद्र की जो
भावना थी उसे केवल धन अस्जणत करने की इच्छा करने वाले व्यस्क्त नहीं समझ सकते थे। इस फफल्म की गहरी संवेदना
उनकी समझ और सोच से ऊपर की बात है ।
प्रश्न 5.
उनके गीत भाव-प्रवर् थे- दरूु ह नहीं।
उत्तर-
इसका अथण है फक शैलेंद्र के द्वारा ललखे गीत भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उनमें गहराई थी, उनके गीत जन सामान्य के
ललए ललखे गए गीत थे तथा गीतों की भाषा सहज, सरल थी, स्क्लष्ट्ट नहीं थी, तभी तो आज भी इनके द्वारा ललखे गए
गीत गुनगुनाए जाते हैं। ऐसा लगता है , मानों हृदय को छूकर उसके अवसाद को दरू करते हैं।