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Haar Jeet (Dinkar Bedekar)
Haar Jeet (Dinkar Bedekar)
दिनकर बेडेकर
एक बडा कमरा। िाएं कोने में बाहर जाने का िरवाजा। उसके पास ही एक बडी खिडकी।
कमरे का रिरिाव सािा ले दकन आकर्षक। एक कोने में एक छोटी मेज। उस पर दकताबें,
फाइलें इत्यादि। वहीं पर टे लीफोन। खिडकी बंि है । पिाष िींचा हुआ है । स्टे ज पर, केवल
एक पेडेस्टल लैं प की रौशनी। एक स्त्री सोफे में बैठी दििाई िे ती है । वैिेही। सौम्य रं ग की
सूती सलवार... कमीज पहने। उम्र करीब पैंतालीस। नाक-नक्श अच्छे । आधुदनक तरीके से
रिे बालों में कुछ सफेि लटें । उसकी आं िें मुंिी हुई - स्वयं में मग्न। पास ही रिा उसका
दडरंक। मंि स्वर में आलाप सुनाई िे रहा है । कुछ क्षणों के बाि लै च िोल कर एक पुरुर्
अंिर आता है । यह है मंिार। उम्र लगभग चालीस वर्ष। उं चा, आकर्षक व्यखित्व। एक हाथ
में चंि अिबार और फाइलें - िू सरे हाथ में दसगरे ट। अंिर आते ही बडी बत्ती जलाता है और
रं गमंच प्रकाशमान हो जाता है ।)
वैिेही : तुम?
मंिार : अच्छा... ररसीवर ही दनकाल कर रिा है ...नो वंडर फोन नहीं लग रहा था। (ररसीवर
वापस दपन पर रिता है । वैिेही के पास जाता है । उसे एक फोल्डर िे ता है ।) यह रहा
बेसलाइन डे टा। और ये कुछ अिबार ... सभी ने फ्रंट पेज न्यूज िी है । फोटो के साथ।
नेशनल डे लीज ने भी। (वैिेही पेपर और फोल्डर दबना िे िे एक तरफ रि िे ती है । मंिार
वैिेही के ग्लास से एक घूंट ले ता है ।)
वैिेही : मंिार - प्लीज ... तु म्हें चादहए तो तु म िू सरा दडरंक बना लो ...
मंिार : ओके... ओके...
वैिेही : मैं जो कह रही हं वही करो - ऐंड पुट ि ब्लडी ररसीवर डाउन ...
मंिार : हलो... जी नमस्कार... मैं मंिार... नहीं... वैिेही दकसी काम से बाहर गई है । जी... सो
नाइस ऑफ यू - थैंक्स - अजी मैंने क्या दकया - सब उसी का कततष त्व है - हां , मैं थोडी-सी
मिि कर िे ता हं बस - जी, मैं बता िू ं गा उसे ... थैंक्स अगेन - गुड नाइट - (फोन रिता है ।)
दमसेज माने ने तु म्हें बधाई िे ने के दलए फोन दकया था। और मुझे भी। इतने बडे इं टरनेशनल
इवेंट में इं दडया को ररप्रेजेंट करने का मौका जो तु म्हें दमला है ... कह रही थी... शी वाज सो sss
प्राउड...
मंिार : इतने में ही? जरा अिबारों पर नजर तो डालो... एक से एक दवशे र्ण इस्तेमाल दकए
हैं । और साथ में वह दटदपकल इं टलेक्चुअल टाइप फोटो - अब जब लौट आओगी तब
इं टरव्यूज की बौछार होगी। तु म चाहे दजतने चेहरे बना लो - यह सब तुम्हें अंिर कहीं, बहुत
सुिि लग रहा है , यह मेरे सामने मान ले ने में तो कोई हजष नहीं...
वैिेही : तुम पेपर वाले आजकल जरा-जरा-सी बात भी इतनी बढा-चढा कर कहते हो दक वह
झूठ लगने लगती है ।
मंिार : हम?
वैिेही : क्यों? तु म भी तो उन्ीं में से हो ना? तु म्हारा भी कॉलम छपता है । दफलहाल दकतने,
चार पेपसष में छपता है दक पां च? कम से कम फोटो तो अलग छापने को कहो उनसे!
(दफर फोन बजता है । िोनों एक-िू सरे की तरफ िे िते हैं । मंिार फोन उठाने के दलए आगे
बढने ही वाला है दक वैिेही फोन काट िे ती है ।)
मंिार : अरे !
(थोडी िे र स्तब्धता। मंिार वैिेही की ओर िे िता रहता है । उसकी अस्वस्थता महसूस करता
है । इतने में टे प ितम हो जाती है ।)
मंिार : शकुंतला?
वैिेही : आज मीदटं ग थी न?
मंिार : हां ... हां ... वह मीदटं ग? ठीक ही हुई। बहुत कुछ होना तो था नहीं।
वैिेही : मतलब?
वैिेही : डोंट एक्ट स्माटष । मैं भले ही अपने कामों में व्यस्त रहं , ये मत समझो दक सेंटर की
तरफ मेरा ध्यान नहीं है ।
वैिेही : ना होऊं? उस लडकी का जीवन उि् वस्त हो गया और तु म लोग नपुंसकों की तरह
िे िते रह गए? ऊपर से तु म उस बात का समथषन कर रहे हो यहां ? मेरे सामने?
वैिेही : डोंट टच मी... पंद्रह साल पहले जब ये सेंटर शु रू दकया तब अकेली थी मैं। साथ थे
दसफष माधव, श्रीदनवास और रं जू । हाथ में पैसा नहीं। वी दलटरली स्लौग्ड इन ि स्वेल्टररं ग
हीट। लोगों की कुखित नजरें , पोदलदटदशयंस का, पुदलस का िबाव, गुंडों-मवादलयों की
िहशत सब सह दलया ले दकन ऐसे कॉंप्रोमाइजेज नहीं दकए कभी। आज शकुंतला के माता-
दपता ने मेरे सामने हाथ जोडे तो जै से गरम लोहा छू गया मुझे...
वैिेही : वाट डू यू मीन? दकतने दवश्वास के साथ सेंटर की दजम्मेिारी तु म पर सौपी थी मैंने...
मंिार : तु म्हारे दजतनी भले ही ना हो, ले दकन इस काम की थोडी-बहुत जानकारी मुझे भी है ।
और केस के मेररट के अनुसार मैं उदचत दनणषय लेता हं , ऐसा मुझे लगता है ।
वैिेही : जानकारी? क्या जानकारी है तु म्हें? ऐसे केसेस लडने के दलए गट् स चादहए। यहां
दनणष य ले ना यानी एदवडें स की जां च कर जजमेंट िे ना नहीं होता। एक स्त्री की दजं िगी का
सवाल होता है । िो...चार लोगों से दमल दलए, कुछ जानकारी हादसल कर ली, और ले ि दलि
डाला, इतना आसान नहीं होता यह। वरना सोशल वकषसष कम हैं इस शहर में? दकसी भी
झुग्गी...झोंपडी में जा कर िे िो.. औरतों को दलिना... पढना दसिाती हुई और कंडोम्स
बां टती दफरती लडदकयां दमल जाएं गी। साल-िो साल िौडधूप करती हैं और दफर दडग्री ले
कर चली जाती हैं ।
मंिार : सभी को तु म्हारी तरह िुि के इिष दगिष इल्यूजंस िडे करना नही आता...
वैिेही : इल्यूजंस? मैंने िुि एक अनकनवेंशलन दजं िगी जी है । और उसके दलए भरपूर
कीमत भी चुकाई है मैंने। (दवराम) हम साथ रहने लगे थे तब भी दकतना बवाल उठा था...
वैिेही : मतलब मैंने जो कुछ सहा, जो स्टर गल दकया उसका तु म्हारी नजर में कोई महत्व
नहीं?
मंिार : महत्व है । ले दकन उसका अपने काम के साथ कोई संबंध नहीं। और काम के मामले
में भी मुझे नहीं लगता हम कोई स्पेशल हैं । जब से मैं िे ि रहा हं - हर आं िोलन का, हर प्रश्न
का, हमने सीढी की तरह ही इस्तेमाल दकया है । हां , हमारी औरों से दभन्नता दसफष इतनी है दक
हमारे प्रत्येक संघर्ष में से कुछ शहीि दनदमषत हुए... माटे असष! एक नशे में उन्ोंने अपनी
जवानी िां व पर लगा िी - हमारी िादतर - ले दकन आगे चल कर उनका क्या हुआ, यह
जानना न हमने जरूरी समझा, न उन्ें हमारे पास लौट आने की दहम्मत हुई। (दवराम)
तु म्हारी हर बात को पत्थर की लकीर मानने वाला माधव... तु म्हारा असली रूप जानने के
बाि तु मसे द्वे र् करने लगा और ल्यूनैदटक हो गया। पंद्रह साल पहले श्रीदनवास बैनसष लगाता
था और हैं डदबल्स बां टता था... आज भी वह दसफष उतना ही कर सकता है ... और रं जू ...
(मंिार हं सता है । वैिेही तपाक से उठती है । अपने दलए दडरंक बनाती है । बडा-सा घूंट ले ती
है । मंिार उसकी ओर िे िते हुए शां दत से दसगरे ट जलाता है । (दवराम)
वैिेही : तुम जीत गए हो, ऐसा लगता है तु म्हें? तरस आ रहा है मुझ पर? इतना याि रिो
मंिार... िु बारा नए दसरे से सब कुछ िडा करने की दहम्मत है मुझ में अब भी... ओर यह
दसफष धमकी नहीं है ... कुछ ही महीने पहले जब नौबत आई थी तब यह कर दििाया है मैंने...
भूलो मत...
मंिार : अनशन पर बैठी थी तब तु म्हें दमलने आने वालों की इं पोटे ड कारों की कतार भी याि
है । उनमें से लाल बत्ती वाली दकतनी गादडयां हैं , यही दगनता बैठता था श्रीदनवास... ले दकन वह
सारा तमाशा िडा कर के तु मने क्या हादसल दकया, यह तु म िुि भी कभी समझ पाई हो?
वैिेही : ठीक है । आज तक मैंने जो कुछ भी दकया वह सारा गलत होगा। ले दकन दजन कामों
में तु म शादमल थे उनका क्या? वे सारी आयदडआज तु म्हारी ही होती थीं। और यह बात
उदचत लोगों तक दनदित रूप से पहुं चे, इतनी केअर तो तु म सटली लेते ही आए हो...
मंिार : सटली क्यों? यह एकिम मेथोदडकली करता हं मैं। ले दकन बाि में तु म्हारी तरह
असमाधानी होने का दििावा नहीं करता।
वैिेही : दििावा?
मंिार : और क्या? वरना आज अचानक शकुंतला को ले कर तुम इतनी अपसेट क्यों हो?
वैिेही : मैंने अपने दिल की बात कही तो वह दििावा लगता है तु म्हें? मैं क्या कर सकती हं ,
इसका पूरा अंिाजा नहीं है तु म्हें...
मंिार : अच्छा?
वैिेही : मैं अंडर प्रोटे स्ट, यह मौका नकारने वाली हं - मैं कान्फरे न्स में नहीं जाऊंगी।
मंिार : नहीं। िस सालों से साथ रहते हैं हम। तुम्हारा इं पखल्सव बताष व मेरे दलए नया नहीं है ।
जब अंिर िाखिल हुआ तभी मेरे ध्यान में आ गया था। डॉ. मेहता की अपाइं टमेंट ले ता ह
कल के दलए... आठ-िस दिनों में सब ठीक हो जाएगा। (दवराम) और दडरंक मत ले ना,
दडप्रेशन बढे गा।
मंिार : लो... न्यूज रूम में रावत होगा... कह िो उसे... अभी फ्रंट पेज बना नहीं होगा... लो
न...
वैिेही : हलो...
(वैिेही आगे कुछ नहीं बोल पाती । मंिार कुछ क्षण उसे िे िता है , दफर उसके हाथ से
ररसीवर छीन ले ता है । वापस रि िे ता है । वैिेही से िू र हो जाता है । शां दत से दसगरे ट
सुलगाता है । वैिेही को िुि पर बेकाबू क्रोध आता है । वह काफी प्रयास से िुि को सम्हाल
रही है । )
मंिार : दकस बात की इतनी तकलीफ हो रही है तु म्हें? एक अच्छा मौका हाथ आया है , चार
जगह चार अच्छी बातें छपी हैं , हमेशा इग्नोर करने वाले लोग भी तारीफ कर रहे हैं ... इस बात
की? एक बात हमेशा ध्यान में रिो - तु म्हें अब दजस सकषल में रहना है , वहां एक-िू सरे के
दबस्तर में जाते वि भी दिमाग में दहसाब होते हैं । ऐसे ही दबहे व करोगी तो मुखिल में फंस
जाओगी।
मंिार : सॉरी...
वैिेही : वापस ले जाओ इसे... मुझे जरूरत नहीं इसकी... बेसलाइन डे टा... माय फुट! जीते-
जागते इन्सानों का सुि-िु ि आं कडों में दगनते हो तु म लोग... मैं कहीं कुछ कह गई. इसदलए
शायि सचमुच अपने आप को मेरा सलाहकार समझने लगे हो तु म!! दथं क टैं क! दसफष
दफदजकल प्रॉखिदमटी से कुछ सादबत नहीं होता, मंिार... तु म्हारी असदलयत अच्छी तरह
जानती हं मैं। तु मने दकसी और को मेरे इतने करीब आने नहीं दिया, इतनी ही तु म्हारी
होदशयारी और मेरी गलदतयों से तु म फायिा उठाते रहे इतना ही तु म्हारा कततष त्व।
वैिेही : मेरी दचंता मत करो तु म... (प्रयास से िुि को संभालती है । दवराम) आज याि आया
तो ताज्जुब होता है । िस साल पहले एक मीदटं ग में िे िा था तु म्हें... स्फदटक की तरह साफ
नजर थी तु म्हारी। बोल रहे थे तो एक-एक शब्द सीधे मन की तह तक उतर रहा था। कोई
पत्ता आं धी से खिंचता चला जाए उस तरह खिंचती चली गई थी मैं तु म्हारी ओर। इसके पहले
दक कुछ समझ पाती, हम एक-िू सरे के करीब पहुं च चुके थे ।
मंिार : िू र रहा होता तो कम से कम वह दचत्र मन में संजोकर तो रि पाता ... (दवराम) पास
आने पर तु म्हारे इतने रूप िे िे दक कुछ समय के दलए उनके जाल में उलझ गया था। धीरे -
धीरे मेरा रास्ता मुझे दमलता गया और मैं दनदिंत मन से तु म्हारे इस िेल में शादमल होता गया।
मंिार : दप्रसाइजली। पॉवर गेम। अपने पास पॉवर है इतना एक बार लोगों को जता दिया दक
बस... दफर आगे चल कर उस पॉवर का प्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल करने की जरूरत ही नहीं
पडती। संघर्ष का दसफष आभास भर दनमाष ण करने से ही यश अपने आप दमलता चला जाता
है । और यह तु म से बेहतर कोई कर पाया है ? सेदमनार, कॉंफरें सेस की ग्लॉसी िु दनया की
आहट सुनी और तु म फील्ड से िू र हो गई। उस एक टे म्प्टेशन ने आज तुम्हारी यह हालत बना
रिी है । अब फील्ड से पहले जै सा नाता नहीं रहा और ग्लैमर की िु दनया में तु म्हें घुटन होती
है । यू आर टर ै प्ड। अब लौटने का रास्ता नहीं रहा। तु म दकतनी ही कोदशशें कर लो, तु म्हारे
अपने लोग ही तु म्हें ऐसा नहीं करने िें गे। तुम अब एक मैस्कौट बन गई हो। अब तु म्हारे
सहारे लोग कॉन्टै क्ट्स बढाएँ गे। दफर और फंड् स... और अवाड्ष स... और ग्लैमर…
वैिेही : ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं होने नहीं िू ं गी। वॉच माय वड्ष स...
मंिार : तब तो तु म्हें अपने ही लोगों से लडना होगा। मतलब अपने आप से ही। यह लडाई
लडने की ताकत है तुम में? अपने पीछे कई लोग िडे हैं , अपने एक इशारे पर वे अपने दलए
चाहे जो कर जाएं गे... यह अहसास बडा सुिि होता है वैिेही, ले दकन ये पीछे िडे लोग ही
अपने लीडर पर कब्जा करते हैं । उसे घसीटते हुए उनकी मन चाही दिशा में ले जाते हैं ।
वैिेही : औरों की बात रहने िो... तु म बस अपनी बात करो। ऐसा अगर सचमुच होता है तो
तु म कहां पाए जाओगे?
मंिार : मैं? मैं औरों से अलग कैसे रहं गा? और क्यों रहं ? तु म अकेली आयदडअदलस्ट हो,
इतना काफी है न...
(मंिार जवाब में कुछ कहना चाहता है ले दकन वैिेही उसे रोकती है ।)
वैिेही : बस... बहुत हो चुका मंिार... इनफ ऑफ आर्ग्ुषमेंट्स जस्ट फॉर ि सेक ऑफ
आर्ग्ुषमेंट्स! और बोलोगे तो और एक्सपोज हो जाओगे। तु म अपने आप को चाहे दजतना
होदशयार समझ लो, तुम अपना ओछापन नहीं छु पा सकते । एक बात याि रिो मंिार... तु म
मेरी बराबरी कभी नहीं कर पाओगे। कइयों से नाता जोड, उन्ें समझते हुए, सम्हालते हुए,
यहाँ तक आ पहुं ची हं मैं । मैं उन लोगों को, उनकी आशा... आकां क्षाओं को टर ै प नहीं
समझती। उलटे मेंरे हर एक दनणष य से उनके दलए और अदधक क्या हादसल जा सकता है ,
इतना भर सोचती हं मैं। पूरी सच्चाई से मैंने कभी एकाध कठोर दनणष य ले भी दलया तो अपनी
बात उन्ें समझाने के दलए... मुझे इं टेलेक्चुअल जागषन की जरूरत नहीं पडे गी। तु म्हें क्या
लगता है ... तु म्हारे इिष दगिष मंडराती लडदकयां और लडके तु म्हारे द्वारा उछाले हुए बडे -बडे
ले िकों के नाम झे लने में धन्यता महसूस करते हैं ? यही मेरा केडर बेस है ? अरे , ये लोग मेरे
कभी थे ही नहीं। मेरे लोगों को घंटों ऑदफस में बैठकर ब्रेन स्टॉदमिंग के नाम पर केऑस
दक्रएट करने की जरूरत नहीं होती। उनके पास एक इन्े रंट दवज्डम होती है , और वही उन्ें
रास्ता दििाती है ।
मंिार : वैिेही, इं दडदवजुअल ग्रोथ और कले खक्टव डे वलपमेंट को दमक्सअप कर रही हो तु म...
वैिेही : इं दडदवजुअल ग्रोथ? (पास रिी दकताब से एक दलफाफा दनकाल कर मंिार को िे ती
है ।)
वैिेही : तुम नहीं जानते? डोंट ऐक्ट इनोसेंट मंिार... इट लु क्स फनी !
वैिेही : तुमने क्या सोचा था? मुझे पता नहीं चले गा? उन लोगों ने फायनल दडदसजन ले ने से
पहले मुझे ही कंसल्ट दकया था।
वैिेही : यही सब थोडी और दडदग्नटी के साथ नहीं कर सकते थे तुम? िैर, कॉंगरै ट् स - एक
बडी मल्टीनेशनल एजंसी में बतौर एडवाइजर जा रहे हैं आप...
मंिार : एक दमनट... एक दमनट वैिेही... कुछ दमसअंडरस्टैं दडं ग हो रही है ... आय कैन
एक्सप्लेन... हम बात करें गे इस बारे में...
वैिेही : कोई जरूरत नहीं। ले दकन इतना याि रिो दक अब हमारे बीच सारे संबंध ित्म हुए।
अब बस एक फामषल पहचान... वह भी तु म्हें कायम रिनी हो तो...
(दवराम)
मंिार : कुछ साल पहले ही सही, हमने एक-िू सरे से प्यार दकया था, वैिेही। आज भले ही
बहस, झगडे , दहं स्र आवेग से एक-िू सरे को जख्मी करना, इसके अलावा कुछ बचा न हो
हमारे पास... दफर भी... और इतना सब सहने के बाि एक गुमनाम दजं िगी ही मेरे दहस्से
आने वाली हो तो एक संबंध की यह बहुत बडी कीमत है । आज तक मैंने वह चुकाई भी।
ले दकन मेरी अपनी भी कुछ आकां क्षाएं हैं , और आज मुझे यूं तोड कर अलग करते हुए तुम
उन्ें समझने की कोदशश भी नहीं कर रही हो।
(बोलते-बोलते चुप हो जाता है । उसकी अस्वस्थता दछपती नहीं। वैिेही उसे िे ि रही है ।)
(दवराम)
वैिेही : वासंती के बारे में क्या सोचा है ? (मंिार चौंक कर िे िता है ।) अभी इसी वि तु म्हें
उसके पास जाना हो तो जा सकते हो। मैं तु म्हें रोकूंगी नहीं।
वैिेही : क्यों? दपछले कुछ दिनों से तु म ऑदफस के बजाय उसके फ्लैट पर ज्यािा वि
गुजारते रहे हो, यह झूठ है ? (मंिार पलट कर कुछ कहना चाहता है , ले दकन वैिेही उसे
मौका ही नहीं िे ती।) तब से तु म्हारी जो बकबक चल रही है न, उसके पीछे ररअदलखस्टक
अप्रोच वगैरह कुछ नहीं, तु म्हारे यहां से दनकल पडने का वि हो गया है ... बस।
मंिार : मैं वासंती में इनवॉल्व होता तो तु म्हारी परदमशन का इं तजार नहीं करता मैं...
वैिेही : तो दफर?
वैिेही : तु म्हें सबकुछ चादहए, मंिार... बस कदमटमेंट नहीं... उपिे श के तौर पर नहीं, तु म्हारे
ही भले के दलए कह रही हं ... याि रिना... ऐसे इं सान के हाथ जीवन भर कुछ नहीं आता..
(दवराम। वैिेही फोन उठाती है । नंबर डायल करती है ।) हलो... रावत... मैं वैिेही... एक
िबर है आपके दलए। सेदमनार का दनमंत्रण मैं अंडर प्रोटे स्ट नकार रही हं । अभी तु रंत मत
छादपए... मुझे दवस्तार से बात करनी है । कल सुबह? चले गा... (मंिार अवाक। वैिेही उस की
तरफ एक कटाक्ष डालती है और उठ कर अंिर चली जाती है । मंिार अकेला रह जाता है ।
कन्फ्यूज्ड। कुछ सोच कर फोन उठाता है , नंबर लगाता है - बहुत कोदशशों के बाि फोन
लगता है ।) हलो... हां , मैं मंिार बोल रहा हं ... वासंती मैडम का िोस्त... बाहर गई हैं ? कहां ?
अच्छा, उनसे कहना घर पहुं चते ही मुझे फोन करें - नंबर उन्ें पता है - तु म दसफष मेसेज िे ने
का काम करो... और हां ... हलो... हलो... ईदडयट !
(फोन पटकता है । बचा हुआ दडरंक एक ही घूँट में ितम करता है । दसगरे ट जलाता है ।
दनरुपाय हो कर वासंती के फोन का इं तजार करने लगता है ।)