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Block 2 MVA 026
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Block 2 MVA 026
दशन और य कला कू ल
एमवीए
स दयशा को समझना और
कला श ा
खंड मैथा
भारतीय स दयशा
यू नट
रस पर भरत
यु नट
रस के स ांत
इकाई
भारतीय स दयशा ी
इकाई
अ भनवगु त का रस का दशन
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पा चया डजाइन स म त
. ो. अनूपा पांडे रा ीय सं हालय . ो. एस.एन. वकास ल लत कला महा व ालय
सं ान रा ीय सं हालय जनपथ नई जेएनएएफए व व ालय हैदराबाद तेलंगाना
द ली . डॉ. ल मण साद दशन और य कला व ालय इ नू नई द ली
. ो. बी.एस. चौहान कला महा व ालय
तलक माग नई द ली . डॉ. मो. ता हर स क कू ल ऑफ
. ो. करण सरना य कला वभाग बन ली व व ालय बन ली दशन और य कला इ नू नई
राज ान द ली
. ो. मदन सह राठौर य कला वभाग एमएल सुख ा ड़या व व ालय अ य एवं संयोजक
उदयपुर राज ान
ो. सुनील कु मार कू ल ऑफ परफॉ मग एंड वजुअ ल आट् स इ नू नई
द ली
डॉ. वी. जॉन पीटर सट जोसेफ फलॉसॉ फकल कॉलेज कोटा गरी त मलनाडु । वभाग।
उ पादन
आईएसबीएन
सवा धकार सुर त। इस काय के कसी भी भाग को म मयो ाफ या कसी अ य प म कसी भी प म पुन तुत नह कया जा सकता है
मतलब इं दरा गांधी रा ीय मु व व ालय से ल खत म अनुम त के बना।
खंड मैथा
लॉक प रचय
इकाई ना शा म भरत मु न ारा तपा दत रस क अवधारणा और स ांत का प रचय दे ती है। इसका उ े य छा को भरत क रस क
अवधारणा क बु नयाद समझ हा सल करना है रस स ांत क अ य पर र संबं धत मुख अवधारणा के अथ और मह व को समझना और
भरत के रस के स ांत के आशय और मह व को जान। चूँ क रंगमंच के व भ त व और रस स ांत क मूल अवधारणाएँ पर र जुड़ी ई ह
इस लए एक को सरे को समझे बना समझना आसान नह है।
इकाई छा को भारतीय स दयशा के व भ व ालय ारा तपा दत स दय स ांत क नया म ले जाती है। भरत ारा ा पत रस के
कू ल ने एक भावशाली परंपरा के प म वक सत होने क दशा म पहला कदम उठाया। ना क सीमा से परे रस का भाव च कला
वा तुक ला और का जैसे अ य कला प म फै ल गया। इकाई म रस के स ांत का एक सहावलोकन है भ लोलता ी संकु का और भ
नायक।
इकाई अ भनवगु त के रस को व तृत करती है और स दयशा के ापक े म इसके मह व के संदभ म इससे जुड़ी कु छ अवधारणा क
जांच करती है। इसके अलावा इस अ याय म सहरदया क भू मका और रस का अनुभव करने के अं तम ल य के लए उनके माग का वणन करने
का ताव है। ऐसा करने से छा स दयशा म अ भनवगु त के योगदान को समझ सकगे।
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यू नट रस पर भरत
अंतव तु
. उ े य
. प रचय
. उ े य
इस इकाई का मु य उ े य आपको भरत मु न ारा ना शा इसके बाद NS म तपा दत रस क अवधारणा और स ांत से प र चत कराना
है। जो है
सबसे पहले सबसे ापक और सौभा य से काफ हद तक मौजूदा म से एक के प म जाना जाता है
ना नाटक संगीत और नृ य पर ंथ । यह मु य प से एक क पेशकश करने के उ े य से है
इन कला प के च क सक के लए ना तु त के स ांत और स ांत का दशन ना भरत क मुख च थी ले कन चूं क रस क
अवधारणा काफ श शाली थी इस लए यह भारतीय कला और स दय परंपरा क सबसे मूलभूत अवधारणा म से एक क त तक प ंच
गई। . यह इकाई यह समझाने का यास करेगी क रास ना के लए इतना मह वपूण य है और यह अपने लए कै से कमा सकता है बाद म
आ मा क त
थएटर का।
चूं क रस स ांत क व भ बु नयाद अवधारणाएँ इतनी पर र जुड़ी ई ह क एक को सरे को समझे बना समझना आसान नह है। यह इकाई
आपको कु छ ऐसी मुख अवधारणा से प र चत कराएगी जससे आप क ापक समझ वक सत कर सकगे
भरत का रस स ांत ।
इस इकाई के अंत तक हम व ास है क आप इस यो य ह गे
भरत क रस क अवधारणा क बु नयाद समझ हा सल करने के लए
रस स ांत क मुख अवधारणा के अथ और मह व को समझने के लए ।
त व और रस क ा तक या को जानने के लए ।
भरत के रस के स ांत क मंशा और मह व जानने के लए ।
. प रचय
एक साथ ले जाएँ।
वां वां
. म उपल है या शता द ई.
नाम एक कबीले के वंशज के लए खड़ा हो सकता है या यह एक प रवार का नाम हो सकता है जो सीधे तौर पर मंच कला के अ यास और चार से जुड़ा होता
है।
अ भनवभारती अ भनवगु त क एनएस पर सबसे स सबसे व तृत और सबसे स मा नत ट पणी म तगु त भ ोदभाटा भ लोलता ीसंकु का भ तौता
और भ नायक जैसे व ान के कु छ नाम का उ लेख करती है ज ह ने एनएस पर ट प णय का यास कया भा य से कोई भी सीमा नह है आप
न न ल खत इकाइय म इनम से कु छ ट पणीकार के बारे म और अ धक पढ़गे। एनएस के मौजूदा सं करण कई पूव और प मी व ान के महान पुन ा त
यास के मा यम से हमारे पास आए ह। एनएस कु छ सं करण म भी अ याय तक व ता रत एक ापक ंथ है। नाटक क उ प से लेक र रंगमंच
के नमाण तक।
तांडव ना पूव रंग रस भाव अ भनय मंच पर चलना वृ वृ नाटक क कृ त लोकधम और ना धम । कथानक सं ध स
संगीत पृ वी पर नाटक के अवतरण के लए एनएस के पास यह सब है। हालाँ क अपनी वतमान चता के लए हम रस और भव पर अ याय
का उ लेख कर सकते ह।
. . श द रस
. रस सू
रस याय म एक सव कृ सू है जसे भरत क रस क अवधारणा का लू ट कहा जा सकता है। इसम कहा गया है वभवनुभाव
ा भचा रस ययोगद रस नःप ह VI और इसका शा दक अथ है वभाव नधारक शत के मलन से अनुभव। प रणाम और वहा रक भाव
सहायक भावनाएं रस स दय आनंद का एहसास होता है
रस स ांत कु छ ब त ही मह वपूण मुख अवधारणा के आसपास बनाया गया है। ये सभी अवधारणाएं रंगमंच के मह वपूण त व का तनधव
करती ह जो प र कृ त दशक के लए रस को साकार करने के उ े य से ना का नमाण करने के लए अपने वयं के मह वपूण इनपुट का योगदान
करती ह । इन अवधारणा क गहन समझ से हम रस स ांत को बेहतर ढं ग से समझने म मदद मलेगी। आगे हम रस स ांत क ऐसी ही कु छ
मुख अवधारणा का अ ययन करगे ।
. भाव भाव को इस लए कहा जाता है य क वे बन जाते ह या अ त व म आते ह भवंती और वां छत अथ को करने म मदद करते ह। वे
ना को इसके रस का एहसास करने म स म बनाते ह ता क यह सु न त हो सके क इसका का ा मक अथ कया गया है। भरत भव
क एक प रभाषा दे ते ह जो श द शारी रक हावभाव और चेहरे के प रवतन के मा यम से क व ारा इ त अथ को करता है
वह एक भाव है। एनएस VII । मोटे तौर पर भाव म वभव अनुभव वहा रक भाव और सा वक भाव जैसे सभी त व का उ लेख
कया गया है ले कन भाव भरत के अ याय VII म बड़े पैमाने पर र भाव वहा रक भाव और सा वक भाव क चचा क गई है जो कु ल
मलाकर ह। ापक अथ म भाव का अथ है रस क ा त और उ े लन का मूल कारण । भरत ने वा त वक जीवन क भावना भाव
और नाटक ना भाव म दशाए गए भावना के बीच अंतर कया ना जीवन क नकल होने के कारण वा त वक भाव म ना भाव
के प म भी उनके समक हो सकते ह ।
. वभव और अनुभव वभाव जीवन के पैटन से बने होते ह और भावना के कारण या उ ेज ना के प म काय करते ह। इसके ुप गत अथ
क ा या करते ए भरत कहते ह वभाव श द ... कण न मत और हेतु का पयाय है । श द भाव और भाव का न पण वभयते
नधा रत होने के कारण इसे वभाव NS VII कहा जाता है । ये ऐसे त व ह जो एक वां छत भावना उ प करते ह और भावना के
प रणामी तनधवक कृ त को नधा रत करते ह। जैसे हाथापाई घसीटना अपमान करना झगड़ा या बहस और इसी तरह के कारक हम
म ोध ोध क भावना पैदा करने के लए वहार के प म काय करगे । ये उ ेज नाएं बाहरी हो सकती ह बाहरी नया म मौजूद हो सकती
ह या मन म मौजूद आंत रक हो सकती ह। व भ ा यभाव के लए अलग अलग वभाग का पता लगाने क ता लका दे ख ।
अनुभव ऐसे भाव ह जो कु छ उ ेज ना वभाव के भाव के बाद पा पर दखाते ह । इनम शारी रक ग त व धयां मनोवृ यां और चेहरे
के भाव शा मल ह जनके ारा कलाकार ारा भावना को कया जाता है और महसूस कया जाता है। आ य क भावना को कट
करने के लए ापक प से जागृत आँख उभरी ई भ ह नरंतर टकटक आ द अ भनेता ारा उपयोग कए जाने वाले कु छ अनुभव ह ।
अनुभव वभाव के प रणाम ह और दशक को मुख भावना नाटक के वषय के बारे म जाग क करते ह। वे वे वहार पैटन हो सकते ह
जो दशक म समान भावना के उ व का त न ध व करते ह। अनुभाव वा तव म माना जाता है
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कलाकार के वा त वक कौशल और कला का गठन। भरत चार कार के अ भनय ऐ तहा सक न पण अं गका शारी रक वा शका मौ खक
और सा वक अनै क अ भनय और अहाय बैक टे ज इनपुट्स क बात करते ह कलाकार पहले तीन कार के अ भनय से सीधे जुड़े होते
ह।
. रभाव ायी भावनाएं मानव जीवन म कु छ न त भावना मक पैटन होते ह जो सावभौ मक प से मौजूद होते ह और हमारे जीवन के
अ भ अंग होते ह वे आठ ायी भावना का एक समूह होते ह जो कृ त म सू म होते ह और उनके त न ध व के लए अ य त व पर
नभर होते ह। ुप शा ीय प से र रहने और जारी रखने के लए खड़ा है और भव का अथ है अ त व। मानव वभाव के ये ज मजात
ायी आ मसात और वभाव के ल ण न य ह और स य होने पर वे एक अ भ ंज क और व श भावना मक पैटन म वक सत होते ह
जो कु छ छोट णक अव ा शारी रक आंदोलन और अनै क या के मा यम से कट होते ह।
सावभौम प से उप त होने के कारण कलाकार अपनी कला के अ य त व को उनके मा यम से एक कृ त करके अपनी कला को संरचना मक
एकता दे ने के लए उ ह व तु न स ांत के प म उपयोग करते ह। भरत ने कोई वशेष कारण नह बताया क रभाव र य ह। एक
राजा का ा त दे ते ए और जस वषय क वह ा या करता है वह यह हो सकता है क येक यी अपनी त के कारण राजा हो और
शेष छोटे भाव उसके वषय ह । सरे श द म र भाव सू म होने के कारण वे वयं को नह कर सकते वे इन वहा रक भाव के
मा यम से ही कट होते ह। यह जानना ब त दलच है क र भाव क तरह भरत ने ा भचारी भाव क सी मत सं या को ही
सूचीब कया है । कभी कभी ा भचारी भाव कई र भाव क सेवा करते ह । ता लका दे ख । राजा रभाव अपने सी मत भचारी
वषय को अ य राजा रभाव के साथ साझा करते ह । आज जब हम नाटक कहा नय और यहां तक क फ म को वग कृ त करते ह तो
हम उन मुख भावना का उ लेख करते ह जो वे च त करते ह। उदाहरण के लए हम एक खद नाटक एक हा य कहानी एक रोमां टक
क वता या एक डरावनी फ म क बात करते ह। हम यह वीकार करना चा हए क आधु नक कला प इन आठ ायीभाव से आगे नकल गए
ह
अभी व।
. ा भचारी भाव ज ह सं कारीभाव भी कहा जाता है इन सी मत सं या म र भाव के अलावा भारत णक सहायक अ ायी
णभंगुर भावना क बात करता है जो न के वल र भाव के साथ होते ह ब क उनका त न ध व सु ढ़ और पुन त व नत करते ह। ये
भावनाएं मामूली अ ायी और णभंगुर ह वे उभरती ह और फ क पड़ जाती ह और इस या म मुख भावना को च त करती ह।
उदाहरण के लए सोका को न न ल खत कु छ वहा रक भाव के मा यम से कया जा सकता है उदासीनता चता म रोना और रंग
बदलना यहाँ सा वक भाव वहा रक भाव के प म काय कर रहे ह अ धक समान उदाहरण के लए ता लका I दे ख । न त प से
सावधानीपूवक अवलोकन और व ेषण के आधार पर एक गणना समूह तैयार करके भरत ने र भाव क अ भ के लए एक ब त ही
शानदार योजना तैयार क है। भरत का मानना है क ना जीवन का दपण है इन अ तरह से तैयार क गई सफा रश के मा यम से व भ
ा भचारी भाव के संयोजन क एक वशेष त को जगाने के लए भरत अ भनेता को ठ क ठ क बताता है क यह कै से कया जा सकता
है। ले कन वह अ भनेता को यह भी चेतावनी दे ते ह क वह इन ा भकारी भाव के संयोजन का पूरी तरह से व तृत और बंद सेट तैयार नह
कर रहे ह ब क वे इन कला प के अ या सय को कु छ अ रचना मक वतं ता दान करते ह।
यह यान रखना काफ दलच है क भरत कभी कभी कु छ र भाव को भी ा भचारी भाव के प म दोहरी भू मका नभाने क अनुम त
दे ते ह। भय एक र भाव है ले कन सोक क अ भ म यह एक वहा रक भाव के प म काय करता है । अ धक समान उदाहरण के
लए ता लका दे ख । ा भचारी भव क भू मका और मुख भावना क अभ म उनक नधा रत व ा क तुलना ववेचना मक भाषा
म एक श द क भू मका से क जा सकती है। श द क तरह एक भचारी भव को दए गए अथ को भी एक अलग संदभ के अनुसार बदला जा
सकता है। कु छ भचारी भाव ह जो तीन या चार र भाव के लए कट होते ह।
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भचारी भव
. वृष शम . कै पलता अ रता . हष आन द . अवेगा आंदोलन .जात मूख . गरवा अहंक ार . वशद नराशा
. औ सु य अधीरता . न ा नद . अप मार मग . सु त सपने दे ख ना . वबोध जागृ त . अमर ोध . अव ह
अपमान . उ ता ू रता . सा वक भाव कु छ भाव जो अनै क त याएं और अ भ याँ ह ज ह हम अपनी गहरी भावना को
एक ज टल. और
पागलपन गहनमृ भावना
माराना यु मक
. तप को
से संसा े षत
वककरने
भाव केकहालए नयोहै।जत
जाता जबकरते ह ।य कु .छमाटास आ
क मनु भयासन . वतक
. ाध बीमारी
वचार अचेतन प। रवतन
उ मादासे
गुज रता है जो हाम नल ड चाज ारा संचा लत होता है जस पर उनका अ धक सचेत नयं ण नह होता है जैसे क शरमाना आँसू पसीना
भयावहता।
क बात करता डा वन
है नेसाएक
वकबारभाव
चुटक .लीतथी क गुदगुद होने
लकवा . वेपर हंस सकते .हरोमं
द पसीना ले कन
क ा इस तरह से कोई
भयभीत शरमा
. वरभं ग नह सकता
आवाज म प। रवतन
भारत आठ
. वेसा
पथुवक
कांभाव
पना
. वैव य रंग बदलना .
अ ु रोते ए . लय बेहोशी
क व कता और दशक सभी इन सा वक भाव को साझा करते ह। ये भाव वशेष प से कलाकार को उनक परक बारी कय को बनाए रखते
ए व तु न ता ा त करने म मदद करते ह। भरत प से कहते ह वभाव सा वक मन क एका ता से स होता है। इसक कृ त
जसम शा मल है प ाघात पसीना भयावहता आँसू रंग क हा न और इस तरह क अनुप त को अनुप त दमाग वाले ारा नकल
नह कया जा सकता है । एनएस VII इन भाव के मा यम से कलाकार भावना क ता का लकता जीवंतता ता और परकता को
करना सु न त करते ह। भरत अ भनेता को गत और सांसा रक जुड़ाव और तता से मन को साफ करने के लए अनु ान के
एक सेट से गुज रने का नदश दे ते ह ता क ऐसी भावना का च ण जीवन के लए यथासंभव स य हो। हमारे र भाव क तरह वे भी हमारे
भावना मक प रसर के अ भ और सहज ह।
अपनी ग त क जाँच कर I
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b वभव रस भव सा वक रस
न न ल खत म अंतर कर
a र भाव से रस
b ा भकारी भव से र भाव
c अनुभव से वभव
. भारत का रस स ांत
भरत ने घोषणा क क ना जीवन का अनुक ण नकल है और एनएस म भरत के पूरे उ म का उ े य च क सक को उनके अ ध नयमन और कई
अ य नाटक य त व के मा यम से एक उ पादन करके जीवन को पुन उ प या पुन उ प करने का नदश दे ना है। इन सबका उ े य रस नामक
स दय क से आनंददायक अनूठा अनुभव बनाना है । रस नामक यह अनूठा आनंददायक अनुभव या है आओ दे ख ते ह।
भरत ने ये पूछकर अपना रास याय खोला रस या होता है रास वशेष या बोलते ह और थोड़ी दे र के बाद जब वह रस से
अपने मतलब को समझाने के लए ंज न के श द से एक उपमा पेश करते ह तो वे बताते ह रस को ऐसा इस लए कहा जाता है य क यह
एक ऐसी चीज है जसका आनंद लया जा सकता है। जैसे व भ मसाल मसाल जड़ी बू टय और अ य खा पदाथ को म त और
पकाया जाता है जो एक वा द वाद के लए तैयार होता है उसी तरह कलाकार वभव अनुभव और भचारी भाव के मलन से रस का
उ पादन करते ह । इस एक कृ त रचना मक आ मसात और आकषक उ म के बाद जो सामने आता है वह दशक के लए एक स दयपूण
त है जसे रस के प म जाना जाता है। भरत ने रस के बारे म अ धक व तार से नह बताया एक अ े रसोइये क तरह वह एक अ े
ंज न के लए एक अ ा नु खा दे ने से यादा च तत थे। रसोइया अ े वाद और अ े वाद क बात नह करते ह वे इसके बारे म सु न त
ह। उनके रस के भरत भी थे । वभव अनुभव ा भचा रय के एक नधा रत संघ को र करने क अनुम त दे ने क उनक व ध इतनी अ
तरह से काम करती है क रस को प र कृ त दशक को मं मु ध करने के लए उभरना पड़ता है। कोई भी आसानी से समझ सकता है क उसका
रस मन क एक अव ा है कसी भी सांसा रक अव ा क तरह कु छ भी नह ती अवशोषण क त जो भावना मक प से चाज होती
है और एक अ नवाय प से आनंददायक वाद का अनुभव होता है।
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भरत ने कभी भी रस के औपचा रक स ांत को लखने या काम करने का यास नह कया । यह शायद बाद के वचारक ह खासकर उनके ट काकार जो उनक कु छ
अवधारणा क ै तता से ब त ही मनोरंज क प से े रत थे क उ ह ने एक ावहा रक ंथ म रस के स ांत क तलाश शु कर द । पहले बताए गए रस सू म
आपने दे ख ा होगा क कै से भरत रस के नमाण क बात करते ह । तीन मह वपूण अवयव का मलन शु और शा मल दशक के ायी भाव को बना कसी कावट
के जगाता है। जा त ायीभाव रस म पांत रत हो जाता है एक ऐसा अनुभव जो शु आनंद क उ कृ ता है। सै ां तक हत के लए इस स ांत क दो सम याएं
ब त चकर ह। i रस कै से कट होता है रस न त । ii वभव अनुभव और वहा रक भाव के ना संयोग के तीन मह वपूण त व के मलन से रस कै से
नकलता है । जैसा क पहले कहा गया था बाद के अ धकांश ट काकार ने इन के उ र पर अपनी ट प णय का आधार बनाया
होने वाला है ले कन जब वह एक राजा के साथ री क तुलना करता है तो वह अपना इरादा कर दे ता है। जा हर है क सभी भाव म से सभी भाव को
च त नह कया जा सकता है कलाकार को कह न कह यान क त करना पड़ता है। उनके अवलोकन मानव मनो व ान पर आधा रत थे आधु नक मनो व ान के
पास आज इन मु पर बोलने के लए ब त कु छ है उ ह के वल उन भावना का चयन करने के लए े रत कया जो नया म अ धक मुख अ धक भावशाली
अ धक यमान और अ धक जी वत ह। इस लए उ ह ने के वल आठ र भाव को माना। चूं क ये ायी भाव मानव मानस के लए अ ह इस लए उ ह कु छ छोट
और णक भावना के मा यम से बाहरी अ भ य क आव यकता होती है। वह ऐसी णक भावना क एक पूरी सूची दे ता है और वां छत र को च त
करने के लए उनके नधा रत संयोजन पर भी काम करता है । ले कन यह च ण भी रस ा त करने के वां छत ल य को ा त नह कर सकता है इस लए वह सा वक
भाव क सेवा म लाता है। ये भावनाएँ भावना मक च ण को जीवंतता और स ाई दान करती ह। इन भावना मक त व के अलावा वेशभूषा मंच सहायक
उपकरण संगीत नृ य जैसे कई ना उपकरण होने चा हए ज ह उ ह ने ना तपादन म एक कृ त कया। रस क अनुभू त तभी होती है जब इन सभी त व को
नधा रत तोप के अनुसार ा पत कया जाता है जो श द के तरीके के अवलोकन पर आधा रत होते ह।
य प इसे पारंप रक कहा जाता है यह ोक ब त जीवंत तरीके से भरत के रस के वचार को समेटता आ तीत होता है। एक अथ जो दय को छू ता है रस पैदा
करता है सारा शरीर रस क तरह महसूस करता है जैसे आग एक सूख ी छड़ी को भ म कर दे ती है NS VIII । रस वह है जो ना का तीक है रस वह है जसके
लए कलाकार यास करते ह और रस चेतना क एक अव ा है जसम दशक ने न के वल कलाकार के आयात को समझा है ब क आनंदमय अव ा म इसके
अनुभवा मक पहलु को भी महसूस कया है।
रास क तरह
भरत ने आठ रस का उ लेख कया है अ त चार मुख रस के प म और चार सहायक रस ह जो उनके संबं धत मुख रस से आते ह। शृंगार से हस रौ से क णा
वीर से अ त और भभ सा से भयक । नीचे दए गए मुख रस का एक सं त प रचया मक ववरण है जसे आप सहायक रस के लए शेष क एक झलक के लए
ता लका म दे ख सकते ह ।
. ृंगार रस ृंगार को एनएस म सबसे मह वपूण रस के प म कहा गया है । चूँ क ेम जीवन क सबसे मुख भावना है थएटर म इसका त न ध व जा हर है
ब त यान आक षत करता है। र त के ा यभाव के आधार पर यह सुंदर प रवेश म सुंदर ान पर रमणीय संगीत के लए ा पत है। यह व युवा के पु ष और
म हला ारा भौह उठाकर पा नज़र
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वभवसी अनुभव
. पोशाक क वकृ त सजावट व च वहार वकृ त भाषण वकृ त बढ़े ए ह ठ नाक और गाल चौड़ी टा रन
हावभाव नासमझी लालच गल तयाँ आ द। और सकु ड़ी ई आँख पसीना या लाल चेहरा
प आ द धारण करना।
. अ भशाप दद वप य से अलगाव
आँसू रोना चेहरे का रंग खोना झुक ना अंग
लोग धन क हा न मृ यु न पादन आह अनुप त दमागीपन आ द।
कारावास नवासन घटना और भा य
आ द।
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. ोध नभ कता अपमान झूठ उकसावे कठोर वचन ू रता चोट आँख का लाल होना भ ह क बुनाई
तशोध आ द। दांत पीसना होठ को काटना फू लना o
गाल हथे लय को रगड़ना आ द।
. अवांछनीय कु प और बुराई आ द सुनना या दे ख ना या महसूस करना। शरीर को वापस लेना मतली झुक ाव आंदोलन
चेहरा चुभना चुपके से चलना नाक पकड़ना आ द।
.
द य के दशन मनोकामना क पू त बड़ी सभाएं टोटके आंख खोलना और चौड़ा करना श द o
और जा सुंदर मं दर या उ ान म वेश आ द। शंसा व मया दबोधक खुशी कांप
हकलाना रोमां चत शरीर आँसू आ द।
रस उनके वभाव को दशाने वाली ता लका अनुभव र भाव पीठासीन दे वता और रंग।
.
मृ यु भय पसीना भी भयावहता कला
भय डाक भयंक ा
आवाज का बदलना कांपना या रंग बदलना
डर भयानक
सभी सा वक
रस उनके वभाव को दशाने वाली ता लका अनुभव र भाव पीठासीन दे वता और रंग।
. आइए सं ेप कर
भरत क एनएस टे ज ा ट पर सबसे पुराना जी वत ावहा रक ंथ रस को एक उ पादन कलाकार और दशक का वां छत उ े य होने के लए ा पत करता है। रस और
उसके मुख त व क अवधारणा को पेश करने के बाद इकाई ने भरत के रस स ांत क परेख ा तैयार क है जो मु य प से नया के तरीक के अवलोकन और मानवीय
भावना के मनो व ान के अनु योग पर आधा रत है। यह आगे इस या को च त करता है क कै से वभव अनुभव वहा रक भाव एक साथ मलकर रस का नमाण
करते ह जो भारतीय कला और स दय क क य अवधारणा म से एक बन गया।
. मुख श द
अनुभव प रणाम ससर भावना क त या बाहरी अ भ जानबूझ कर अनै क जसके मा यम से भावना का त न ध व कया जाता है।
भव भावना अव ा भावना होने के तरीके एक ापक श द जसम वभाव अनुभव र भाव वहा रक भाव और सा वक भाव शा मल ह ।
सा वक भाव मनो शारी रक त या उ साही मोड थएटर म यथाथवाद भाव पैदा करने के लए अ य धक शा मल और यान क त करने वाले अ भनेता
जैसे पसीना रोना आ द ारा च त कु छ अनै क प रणाम।
र भाव ायी मनोदशा मुख भावना मौ लक मान सक अव ाएं एनएस ऐसी आठ मुख भावना क बात करता है जो सभी मनु य म सावभौ मक प से
मौजूद ह।
वभाव नधारक संके तक उ ेज ना वे कारण मानव और साम ी जो दशक म वां छत भावना के उ व को नधा रत करते ह।
ना शा । बॉ बे ।
यू नट रस के स ांत
अंतव तु
. उ े य . तावना
. भ ा लोलता और
. उ े य
इस इकाई को लखने का मु य उ े य आपको यह बताना है क कै से भरत ारा ा पत रस के कू ल ने एक भावशाली परंपरा के प म वक सत होने क दशा म अपना
पहला कदम उठाया। ना क सीमा से परे रस का भाव च कला वा तुक ला और का जैसे अ य कला प म फै ल गया। दाश नक त बब के प व च म इसका
वेश अ धक यान दे ने यो य था। का क मीर क समृ परंपरा के पोषण के आधार से त त तीन व ान ने येक एक अलग दशन का पालन करते ए एक सामा य
ल य अ ययन रस का अनुसरण कया।
भ ा लोलता ने इस दशा म अ णी भू मका नभाई उसके बाद ी संकु का और भ नायक थे। यह इकाई रस स ांत क उनक ा या को रेख ां कत करने और इसक
उ त म उनके योगदान को उजागर करने का यास करती है। हम यक न है क इस इकाई को पढ़ने के बाद आप इस यो य हो जाएंगे . रस के स ांत का एक सहावलोकन
कर भ ा लोलता ी संकु का भ नायक
बी
सी
. प रचय
भारतीय का क आधारभूत अवधारणा का दजा ा त करने के लए रस का उदय एक ऐ तहा सक त य है ले कन यह कै से आ यह दलच अ ययन का े है। एक
स दय स ांत के प म रस ने च कला और वा तुक ला क नया म एक आसान वेश ा त कया ले कन सं कृ त का के साथ इसक शु आत अपने ारं भक चरण म
मलनसार नह थी। यात सं कृ त का व ान और आलमकारा कू ल भामाहा और दं डन के अ धव ा ने रस पर यान दया और अपनी ा या म भी लापरवाही
से इसका उ लेख कया ले कन रस काफ समय तक सं कृ त क वता के लए एक अजनबी बना रहा। हो सकता है क ग तरोध को तोड़ने का स मान करने के लए और
कु छ लापता लक भी दान करने के लए व न क समान प से श शाली अवधारणा क आव यकता हो। अंत म अ भनवगु त ने ही वा तव म रस को का जगत म
स मानजनक वेश पाने का माग श त कया । हालाँ क यह सब होने से ब त पहले भ ा लोलता ी संकु का और भ नायक रस को दाश नक त बब क प व नया
म वेश दलाने के लए व भ कार क पहल कर रहे थे। ीसम ने कु छ मह वपूण मु को उठाने का यास कया ज ह भरत ने अभी अभी छु आ था कु छ मह वपूण
कुं जी शत को फर से प रभा षत कया और रस स ांत के अपने सं करण पेश कए।
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लोलता ने कहा क रस एक भाव है जब क वभाव इसका य कारण है। उ ह ने कहा क नाटक खला ड़य और व भ ना उपकरण के
संयु भाव के प रणाम व प रस एक ती और बढ़े ए रभाव से यादा कु छ नह है। उ ह ने आगे कहा क रस मु य प से पा म त
है। उनका रस वा तव म वा त वक जीवन रभाव है जो वभव अनुभव और वहा रक भव ारा ती पो षत और ऊं चा कया जाता है । लोलता
क रस सू क ा या म रस न त रस का बोध रस उ प रस का उ पादन या अप सट रस के लए प र णत होने वाले रभाव क
गहनता बन जाता है । अ भनेता ारा पा क नकल जो इसे अपने श णक या और नाटक के नमाण के दौरान नयो जत अ य ना
उपकरण के मा यम से ा त करते ह दशक के लए रस का ोत बन जाते ह। लोलता ने रस के उ पादन के बारे म अ धक जानने क अपनी खोज
म या और उसके चरण को भी बताया वभाव जागरण अनुभव समथन और वहा रक भवस रभाव को मजबूत करते ह और इसे रस क
त ा त करने म स म बनाते ह जो तब सुख द हो जाता है। रस का ठकाना और यान का के पा ह अनुक रण करने वाले अ भनेता सरे
ान पर आते ह। दशक थएटर क भ ता और अ भनेता के दशन कौशल से मं मु ध हो जाते ह और वे जो आनंद ले रहे ह वह उनक अपनी
ायी भावनाएं नह ह ब क पा क और परो प से अ भनेता क अप कट रभाव ती ायी भावनाएं ह। यह संचार अ भनेता और
उनके अ भनय कौशल के मा यम से होता है। लोलता शायद द डन ारा का ादश म और अ नपुराण के लेख क ारा रखे गए वचार को त व नत
कर रहे थे ।
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इससे पहले क हम रस क उनक ा या का आलोचना मक व ेषण कर जो मु य प से उनके पूवव तय ी संकु का भ नायक भ तौता
और अ बनावगु त ारा उठाए गए आलोचना के ब पर आधा रत है हम उनके कु छ मह वपूण दाव और उपल य पर काश डालते ह।
रसो का ठकाना
आलोचना मक अवलोकन ी
संकु का लोलता के पूववत ने उनके यास क अ धक सराहना नह क और उनके अ धकांश स ांत लोलता के रस स ांत क आलोचना पर
आधा रत थे। अ भनगु त ने न न ल खत आठ चरण म ी संकु का के लोलता के स ांत के व वंस को कया
एक रभाव का ान वभव के बना संभव नह है य क वभाव वह लग है जसके मा यम से रभाव को पहचाना जाता है।
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छ उसी आधार पर ी संकु का सोका बनने और कौरना रस क वैधता पर सवाल उठाते ह य क लोलता के स ांत के वपरीत सोका वा तव म कम
हो जाता है य क यह आगे बढ़ता है जब क अगर इसे कौरना रस का दजा हा सल करना है तो इसे तेज करना होगा।
आलोचना के इन ब के बावजूद ी संकु का ारा उठाए गए हम यह वीकार करना चा हए क लोलता को रस सा ा कार म अपनी मह वपूण भू मका
पर बल दे ते ए र पर काश डालने के ेय का अ धकार है। बेशक वह यह महसूस नह कर सका क स दय संचार अभी तक एक अ य कार का
बौ क वचन नह है रस भी अपनी ती अव ा म वा त वक जीवन क ायी भावना नह है। लोलता के रस स ांत के अपने गुण ह। वह पहले वचारक
थे ज ह ने रस स ांत म कु छ मुख श द क अ ता पर बाद के वचारक का यान आक षत कया। उ ह ने दशक ारा रास के ान और रस के
अनुभव के मु को उठाया । हो सकता है क वह अपने ारा उठाए गए मुख मु के संतोषजनक उ र दे ने म सफल न रहे ह ले कन उनके पूवव तय ने
उनके ारा बनाए गए अवसर को ज त कर लया।
लोलता के एक युवा समकालीन क मीर के व शता द ई वी नैया यका सरे रस स ांतवाद थे ज ह ने रस वाद ववाद को अगले तर तक नद शत
कया। लगभग ठ क लोलता क तरह उनका कोई भी काम मौजूद नह है और उनके वचार के बारे म हम जो कु छ भी समझते ह वह अ भनवगु त ममता
और हेमचं के लेख न से लया गया है। ी संकु का ने अपने वयं के तक को आगे बढ़ाने के लए लोलता के रस स ांत को सचमुच व त कर दया। ऐसा
करते ए उ ह ने अपने स म ोसेसर ारा उठाए गए कु छ सवाल के जवाब दे ने क को शश क और बहस को अगले तर तक ले गए। लोलता के क य
वचार को पूरी तरह से खा रज करते ए क रस एक भाव के प म पा और कलाकार से संबं धत वभाव के कारण के वल एक ती यी है ी संकु का
ने रस स ांत का एक बेहतर सं करण पेश कया ता क रस को वापस लाया जा सके । दशक ारा पसंद कए जाने के लए एक अनूठा अनुभव बनने के लए
रासा को भुनाया अ भनेता के दशन कौशल के मह व को बहाल कया और अंत म ए ेट क त को और अ धक स य होने के लए उठाया ता क
रस का अनुमान लगाने म स म हो सके । र भाव तुत कर और इसका आनंद भी ल। उ ह ने रस के संबंध म भाव क धानता को वापस लाया । उ ह ने
अनुभू त के कसी अ य वीकृ त प के वपरीत रस ा त को अनुमान क एक अनूठ या के पम ा पत करने का यास कया। आप पहले ही दे ख
चुके ह
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लोलता के वचार क ी संकु का क आलोचना कतनी नदनीय थी अब आइए जान क उ ह ने रस स ांत क कौन सी नई ा या तुत क और यह
वयं कतना मा य था।
ी संकु का ने इस बात क कड़ी आलोचना क क रस ायीभाव के उ पादन या गहनता का वषय नह है । इसके बजाय रस का अनुमान लगाया जाता
है। ायीभाव वा तव म अ भनेता म नह होते ह ले कन यह अनुमान लगाया जाता है क श त अ भनेता होने के कारण अस य के साथ वभाव
अनुभव और वहा रक भाव के म ण के मा यम से उनका सही तपादन होगा रभाव क नकल बनाता है । रस का बोध तब होता है जब ोता
र के अ त व का अनुमान लगाते ह । यह यान रखना दलच है क इस कार क अनुभू त अ तीय है कसी अ य वीकृ त कार के अनुभू त के
वपरीत। अपनी बात को और आगे बढ़ाने के लए वह च तुरग याय क एक उपमा तुत करते ह जो उस सा य के लए है जसके मा यम से कोई यह
जान सकता है क च म घोड़े को वा तव म घोड़ा कहा जाता है।
उनके रभाव का व तार और वभाव आ द और रस के संबंध मह वपूण ह। उ ह ने एक और मह वपूण मु ा यह भी उठाया क ायीभाव क दशा क
अनुभू त संभव नह है इसे के वल इसके वभाव आ द के मा यम से ही समझा जा सकता है। अपने ोसेसर के वपरीत वह लगातार दशक क बात करते
ह और रस क बात करते ह और दशक का वाद लेते ह। इसके अलावा उ ह उ मीद है क उनके दशक अनुमान लगाने के लए अपने राशन संक ाय को
नयो जत करने के लए लगातार तैयार रहगे।
. रभाव और वभव के संबंध को कया ी संकु का ने प से जोर दया क के वल वभाव के मा यम से ही दशक अ भनेता म एक र
का अनुमान लगाते ह जो वा त वकता नह है।
. रभाव के अनुक रण से रस होता है रभाव वा त वक जीवन क ायी भावनाएँ ह जो अ भनेता ारा अनुक रण क जाती ह। अ भनेता
को त पण क कला म श त कया जाता है और अपने कृ म तपादन के मा यम से वे र भाव क नकल करते ह। दशक अंत म
अ भनेता ारा बनाई गई नकल के मा यम से रस का आनंद लेते ह।
. अनुमान क अनुभू त अ तीय है ी संकु का ने च ा तुरग याय क एक सा यता का उपयोग यह सा बत करने के लए कया है क अनुमान से
ा त अनुभू त अ तीय है और पूरी तरह से वपरीत है और अनुभू त के सामा य प से ात प के वपरीत है।
. दशक का दजा बढ़ाता है भ तांता और अ य बाद के आलोचक को उनके स ांत के बारे म गंभीर आप थी। रस को र का एक अनुक रणीय
प मानना उनके लए पूरी तरह से अ वीकाय था। ी शंकु क जस अथ क नकल करना चाहते थे वह ब त सी मत था। यहां तक क
रभाव के अनुमान का उनका मूल वचार भी मा य नह था।
भ ा नायक ने बताया क यह न कष संभव नह था य क च र दशक के सामने मौजूद नह था। उनके ारा उठाए गए मु और उनके
ारा उठाए गए ए ेट क त ने बाद के वचारक को रस पर गहराई से और आगे क खोज करने म मदद क ।
व शता द ई वी के अंत म रास बहस अपनी प रण त पर भ नायक के वेश के साथ प ंच गई एक त त क मीरी व ान। वह एक नपुण
अलंक ा रका और सां य दशन के बल अनुयायी थे। उनका काम दय दपण जसम उ ह ने आनंद वधन के वनी के स ांत को व त करने के
लए जाना जाता है आज उपल नह है ले कन अ भनवभारती और का काश म इसका काफ उ लेख और उ रण मला है ।
रास क चल रही बहस म उनके ोसेसर भ लोलता और ी संकु का ने भरत के स ांत म कु छ मह वपूण मु को उठाया था अंत न हत अ ता
क ओर इशारा करते ए और कु छ मौ लक भी पूछे थे। भ नायक ने वचन के पा म को बदल दया। अपने तक और स ांत के बल पर
रस ने नई उदा ऊं चाइय को छु आ और दावा कया क यह रह यवाद अनुभव के साथ अन य आनंद से संप है।
उनका सबसे बड़ा योगदान सधार नकरण के स ांत के प म आया यादातर कला म भावना के सावभौमीकरण सामा यीकरण पार रकरण
के प म अनुवा दत जसने क वय कलाकार और स दयशा य को बना कसी गत वचार के कलाकृ त के सावभौ मक भावना मक
प रसर को बनाने कट करने और आनंद लेने म स म बनाया। . रास और व न के बाद सधार नकरण एक अ य मूलभूत अवधारणा थी जसे बाद
म वचारक को नज़रअंदाज करना मु कल लगा। उस समय तक रस वाद ववाद म दो भ ा याएं दे ख ी गई थ ज ह ने कु छ च तो पैदा क
ले कन कई भी उ प कए। पहले रास स ांत के अ धव ा लोलता ने कहा क एक नाटक य त वभव रस का नमाण करने के लए कु शल
कारण करका हेतु के प म काय करती है जो मु य प से च र म उभरी और सरी उन अ भनेता म जो उन ऐ तहा सक पा को नभा रहे
थे। कोई कह सकता है क लोलता का ना खेला जा रहा था। रस भी साकार हो रहा था ले कन यह दशक के लए नह था।
अगला रास स ांतकार ने अपने ोसेसर क कड़ी आलोचना करके शु आत क ले कन एक स ांत पेश कया जसने भ नायक स हत कई लोग
को आ त नह कया। ी संकु का ने कहा क वभव अनुभव और वहा रक भाव रभाव को पुन उ प करने के लए मलते ह। श त
अ भनेता इन अवा त वक र भाव को अपने कौशल और नाटक य उपकरण के साथ पुन पेश करते ह ता क दशक को पुन पा दत र भाव
से रस का अनुमान लगाया जा सके ।
इसम स व गुण । आगे व तार से वे करते ह क यह अव ा न तो अनुभव क तरह है और न ही मरण के समान है ब क यह एक ऐसी अव ा है जहाँ पूरी
तरह से डू बा आ और पूरी तरह से व ता रत महसूस करता है। इसका आनंदमय अनुभव इतना सू म है क यह वणन से परे है और इस नया से परे है।
रस आनंदमय चेतना क अव ा है
सधार नकरण का स ांत जो यह सु न त करता है क एक क व ने भावना को रचना मक प से अलग कर दया है उ ह उनके दद सुख के संबंध से र कर दया है
और उ ह एक और सभी के वाद के लए पया त सावभौ मक बना दया है। भ नायक के वचार को वीकार करने म अ भनवगु त को काफ सम याएं ह इस त य के
बावजूद क उ ह ने अपने कु छ वचार का समथन कया और यहां तक क उ ह अपने स दय स ांत म अपनाया। एक क र व न अ धव ा अ भनवगु त होने के नाते भ
नायक के भाव ापारा के ब त आलोचक थे । यह सामा य ान था क भ नायक ने व न को व त करने के लए ही अपना दय दपण बनाया था । अ भनवगु त के वल
इस आधार पर भावना को वीकार करना चाहता था क इसका अथ वंयजन है और उ ह ने घो षत कया क जब एक समान अवधारणा पहले से मौजूद थी तो एक नई
अवधारणा क बात करने क या आव यकता थी।
जो लोग कहते ह क भ नायक के साथ रस क बहस अपने चरम पर प ंच गई वे ब कु ल सही लगते ह। वा तव म यह भ नायक और उनके तीन काय स ांत थे ज ह ने
उनके ोसेसर ारा उठाए गए कसी भी का उ र दया और रास को सही प र े य म रखा। भरत ने रस के अनुभवा मक पहलू के बारे म यादा बात नह क है। भ
नायक ने इसे अपने सव े दशन के साथ पूरा कया।
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दशक के लए रस के संचार और रस और . के
बीच अंतर के मु को उठाया
पा के नक़ल रभाव।
ी संकु का अनु म त वड़ा याय रस का उ त दाश नक त बब
या रभाव रस बन जाते ह
व शता द के म य म अगले तर तक।
।
त तवाद
. सधार नकरण
भरत ारा अपने रस स ांत को आगे बढ़ाने के से अ धक वष के बाद भ नायक ने सधार नकरण के अपने स ांत को तुत कया । पहले
दो रस स ांतकार के बीच एक लापता स ांत के अभाव म क ठन संघष करते दे ख ा गया। यह एक स ांत था जसे भरत ने भी अपने मूल रस
स ांत म आसानी से शा मल कर लया होगा। यह एक ऐसा स ांत है जसे अ भनवगु त जैसा तकू ल आलोचक भी नज़रअंदाज नह कर सकता
था। हालां क यह यान रखना दलच है क यह स ांत तीन ापरा या क वता के काय या या म से सरे से नकलने वाला एक कार
का कोरोलरी है जसे कोई क वता के अनु प कर सकता है। इसम कोई संदेह नह है क भ नायक को रस परंपरा क उ त म इस तरह के शानदार
योगदान के लए लंबे समय तक याद कया जाएगा।
हमारे आज के जीवन म हम अपनी भावना को उनके संबं धत गत वचार के साथ उनके सुख दद और अ य चता के साथ जीते ह। हमारे
जीवन म एक खद त हम खी करती है और हम दद भी दे ती है। इसी तरह एक सुख द त इसके वपरीत करती है। अब अपने जीवन से एक
उदाहरण याद करने क को शश कर जब आपने कोई नाटक या फ म दे ख ी और एक खद य का सामना कया। या उस खद त ने भी
आपको अपने वा त वक जीवन मुठभेड़ क तरह दद दया आपका उ र न त प से नह होगा ले कन य इस का उ र सधार नकरण
के स ांत म है। भ नायक ारा तुत मूल रस स ांत के मा यम से जाने के दौरान हमने क वता क भाषा के लए व णत तीन काय या ापर के
बारे म सीखा। सरा काय भावका या भवन ापरा सधार नकरण के स ांत के लए आधार दान करता है । यह वह श है जो रंगमंच म
वभाव को अपने सांसा रक क गत अहंक ारी वचार से खुद को अलग करने म स म बनाती है। सधार नकरण को ा त करने के लए
पक भाषण के आंक ड़े डोसा क अनुप त क वता म उपयु गुण और शैलीब आंदोलन वेशभूषा संगीत हावभाव नृ य और अ य
अ यासकता। या को इस तरह से समझा जा सकता है एक सहानुभू त वाला दशक वभाव क भावना क ती ता का अनुभव करता है वह
अंततः खुद को भूल जाता है और खुद को वभाव क त से पहचानता है । ऐसा करके वह भावना को जी रहा है ले कन कसी भी जुड़े नेह से
वह बा धत नह हो रहा है। ऐसी भावना जो अपने संघ से र हो जाती है वह एक कार बन जाती है जो एक शा त और सावभौ मक अपील वाली
भावना बन जाती है। ले कन ये सधार नकृ त ना भाव सावभौ मक ना भाव अपनी अपील नह छोड़ते ह वे गैर गत अ अपने
आव यक जीवन और जीवंतता से र हत नह होते ह। ये भावनाएँ अपनी सं तता बनाए रखती ह ले कन वे अपने गत और अहंक ारी सुख
और दद दे ने वाले संघ से मु हो गई ह।
यह यान रखना दलच है क सधार नकरण सरे काय से क वता म उभरता है जो प से इं गत करता है क ए ेट ने अथ को पूरी तरह से
समझ लया है और ए ेट के लए सांके तक अथ अब भावना के भाव से खुद को बचाने के लए तैयार है जो उनके स दय अनुभव को बा धत
कर सकता है। इस सरे चरण म स ांत ए ेट को हमारे मानस क बाधा को तोड़ने म मदद करता है जो स दयशा य को नाटक य त को
फर से जीने और आनंद लेने क अनुम त नह दे ते ह। इस स ांत के बल पर कलाकार वभाव क कृ त को ऊं चा करता है इसे सावभौ मक प
से उपल कराता है और ना भाव को एक और सभी के लए साझा करने यो य सामा य अनुभव म बदल दे ता है।
तुलना मक स दयशा के छा प मी नया म भी कए गए कु छ ऐसे ही यास से प र चत ह गे। थॉमस ए वनास रपोजफु ल चतन कांट क
नराशाजनक संतु और एडवड बुलो क साइ ककल ड टस कु छ करीबी समानताएं हो सकती ह।
उनके एनएस म इस स ांत के समान कु छ भी है ले कन उनका पूरा उ म इस बात को यान म रखता है क ना भाव हमारे दन त दन के भाव क
नकल ह ले कन स मेलन को वक सत करने तीका मक उपकरण वक सत करने नाटक य सामान का उपयोग करने शैलीगत वेशभूषा का उपयोग करने
संगीत का उपयोग करने के उनके सभी यास। नृ य पूव रंग क र म इस बात के संके त ह क वह चाहते थे क ना तय को उनक ता का लकता और
जीवन को खोए बना व तुपरक त बना दया जाए।
अपनी ग त क जाँच कर I
रस स ांत क एक नई ा या तुत करते ए अ भनय के मह व पर कसने जोर दया उसका नाम ल खए और उसके रस स ांत को यहां दए गए
ान म रेख ां कत क जए।
कसके रस स ांत को भु वाद के नाम से जाना जाता है उसका नाम बताइए और नीचे दए गए ान म उसका क य वचार बताइए।
उस क मीरी व ान का नाम बताइए जसे रस स ांत क दाश नक चचा शु करने वाले पहले होने का गौरव ा त है । यहां दए गए ान म
उनके कोण को रेख ां कत क जए।
. आइए सं ेप कर
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इस इकाई ने आपको तीन ारं भक रस स ांतकार से प र चत कराया ज ह ने दाश नकता का माग श त कया
रस स ांत के त बब । ृंख ला म सबसे पहले भ ा लोलता ने वयं भरत के वपरीत प से कहा था
क यह रभाव है जो वभव अनुभव और भचारीभाव ारा पया त प से ती है
जो रस बन जाता है। बाद के ट काकार ी संकु का ने लोलता के तक को खा रज कर दया और
घो षत कया क रस क ा त गहनता नह ब क ता कक अनुमान क एक या है। आ खरकार
भ नायक ने कहा क रस र भाव है जसे अ भदा और भावक व के मा यम से अनुभव कया जाता है और
पार रक भावना का अनुभव करके एक अ त र सांसा रक आनं दत अनुभव के प म आनं दत। अंततः
हमने आपको भ नायक ारा पेश कए गए सधार नकरण के स ांत से प र चत कराया जो क खड़ा है
भावना के सामा यीकरण और कलाकार और दशक को गत और से मु करने के लए
भावना के अहंक ारी संघ जो स दय आनंद के वाद म बाधा डाल सकते ह।
. मुख श द
रस न रस क ा त कट पूण ता या कै से क जाती है
ना के व भ त व मलकर रस क अ भ करते ह ।
रस
अंतव तु
. उ े य . तावना
. भारतीय स दयशा य
क चताएँ . भरत का योगदान . अ य स दयशा य
अ भनवगु त का योगदान व न क अवधारणा . सं ेप
म . आगे के अ ययन और संदभ
. उ े य
वशेष प से क वता और नाटक से स दय से संबं धत कई सं कृ त काय को तकनीक प से अलंक ार शा कहा जाता है और स दयशा क आलोचना करने का काम
करने वाले स दयशा य को अलंक ा रक कहा जाता है। सां य और वेदांत णाली स दयशा के मु पर अपने वयं के आ या मक कोण से सीधे और प से
चचा करते ह जब क अ य णा लयां अ य प से और परो प से स दयशा के वषय को संद भत करती ह।
. प रचय
प म म हम स दयशा म दो कार क सम या पर चचा करते ह। सबसे पहले स दय जैसे पदाथ के उ े य प से ा त कया गया है। यह एक आव यक पूवधारणा
बन जाती है क व तु म स दय क पहचान हम वषय के अनुभव को समझने म स म बनाती है।
लेटो और अर तू जैसे ाचीन यूनानी वचारक स दय के व तु न प के इस कोण क सद यता लेते ह। सरा कोण यह है क कोई सुंदर व तु ारा वषय म
उ प होने वाले आनंद क अनूठ भावना को नकार सकता है। ोस से शु होने वाले वचारक स दयशा क वषय व तु को वशेष प से एक परक घटना मानते
ह। सौ दयपरक अनुभव के लए शु आनंद का आनंद लेना वशेष प से एक मनोवै ा नक कारक है। सरी ओर भारतीय स दयशा ी स दयशा के अ ययन म शा मल
उ े य और परक कारक के बीच भेदभाव नह करते ह।
उनके अनुसार सौ दयशा क वषय व तु न तो वशु प से व तु न होती है और न ही वशु प से परक। दोन के बीच एक तरह का अ वभा य र ता कायम
है। भारतीय स दयशा ी स दय क अवधारणा से स दय अनुभव के व तु न प के वचार को वक सत करते ह। श द के बाद से स दय म उ े य पहलू का संदभ है।
य क बना व तु के कोई भी मह वपूण गुण हम आक षत नह कर सकता। सांदय रामनीयता क वा आ द भाव व तु म स दय के आकषक पहलु को दशाते ह।
हालां क भारतीय स दयशा य ने स दय क व तु का आनंद लेते ए हमारे दमाग पर व तु के भाव को नजरअंदाज नह कया। गुण व ा म के बाद से
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भाव रस और व न के आ व कार के मा यम से भारतीय स दयशा य ने स दयशा के े म ब त योगदान दया है। वशेष प से संता रस और
भ रस अथात शां त वैरा य और शु ेम या ई र के त समपण का अनुभव भारत म धम से ब त अ धक जुड़ा आ है। भारतीय स दयशा के
अ त भरत ने अपने ना शा म आठ र भाव ायी या ायी भावना और उनके अनु प रस दशक ारा अनुभव क जाने वाली भावना
क ा या क है। भारतीय स दयशा य का यह ढ़ व ास था क कला व तु और कला अनुभव दोन ही मु क ओर इशारा करते ह। कला मक
सृज न का चतन एक कार के आ य भयानक अनुभव का कारण बनता है और मन को शां त क त म बनाता है अथात योग अनुभव जैसे यान आ द
के बराबर। स दयशा ारा अनुभव क जाने वाली इस तरह क भावना मक कार क कला नै तक सुधार म प रणत होगी और बदले म मो के लए।
बाद के अलंक ा रक कला समी क ने संता रस और भ रस को शा मल करने क आव यकता महसूस क य क वे मो क खोज म मह वपूण
भू मका नभाते ह । पूव मो क कृ त का वणन करता है जब क बाद वाला इसे ा त करने के साधन। आंत रक शां त जो मन क अशां त को र करती
है मो क इ ा के लए एक आव यक पूवापे ा है।
भरत क सूची म संता रस को शा मल करने के वरोध के बावजूद क इस रस को कला म इसके वषय के प म च त नह कया जा सकता है हालां क
यह एक बु नयाद भावना हो सकती है कला के भारतीय आलोचक ने संता रस को एक अलग रस के प म वीकार कया है। अलंक ा रक यह सु न त
करते ह क इस रस को कला म दशाया जा सकता है ले कन अलग अलग नाम से। उदाहरण के लए आनंदवधन इस नौव ान को तृ णकयसुख कहते
ह जसका अथ है इ ा के वनाश के बाद आनंद क ुप ।
अ भनवगु त ने इसे समा कहा है जसके कई अथ ह जैसे शां त आ या मक ख क समा त आ या मक शां त अनुप त या जुनून का संयम
आ द। वह इसे अ य नाम से भी बुलाता है जैसे आ मा ान ान और त व ान वा त वकता का ान । अ य अलंक ा रक भी इस भावना को कई नाम से
पुक ारते ह जैसे स यग् ान त काल ान सव च वृ रसाना मन के सभी संशोधन को शांत करना और न वसे च वृ वह मान सक प
जसम कु छ भी नह है वशेष प से इसक व तु के लए । हालाँ क ये सभी अ भ याँ सभी लौ कक घटना के वापस लेने के बाद सभी भावना
क एक वल ण अथ क ओर इशारा करती ह। जब कला का एक काम जैसे नाटक या क वता इस र भाव क वशेषता वाली त को दशाता है तो
उ पा दत रस को संत कहा जाता है अथात जो शां त या शां त से संबं धत है। इसके अलावा कला के वे काम जो दशक के दल म शां त क ओर ले जाते
ह वशेष प से सा ह य के मा यम से कु छ श ा द मू य होते ह इसके अलावा रस क त कला जैसे पुराण इ तहास आ द के अ य काय जैसे
आनंददायक अनुभव का उ पादन होता है।
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पगो वामी एक अलंक ा रका आ तक वेदांत से भा वत होकर भगवती ना त को अपना र भाव कहा। मधुसूदन सर वती अपने भगवद भ
रसायन म अ ै त दाश नक भगवदकर च वृ के नाम पर भ को एक रस के प म मानते ह। इसका अथ है ई र का प धारण करने वाले मन
का संशोधन।
अ घोष के बु च र म बु के जीवन को च त कया गया है और इसे च कला और मू तकला के मा यम से भी जाना जाता है जससे संत रस
आ या मक शां त क ओर ले जाता है। जैन धम म भी हम ऐसे कलाकार मलते ह जो संत के जीवन क कहा नय और उनके उपदे श को भी च त
करते ह। जब कला का वषय ई र क त होता है तो यह भ रस क ओर ले जाता है जससे धम अ धक आकषक और आनंदमय हो जाता है। इसी
कार अनेक भ मय वाणी जब वा यं के साथ बजाई जाती ह तो वे भ और सौ दया मक अनुभव दोन को उ ा टत करने वाले दय को
अ य धक आकषक बनाती ह।
कला के भारतीय दशन के इ तहास म स दयशा य क भू मका को तीन मुख अव धय के प म वग कृ त कया जा सकता है
क नमाण क अव ध यह अव ध पहली शता द ईसा पूव से नौव शता द सीई के म य तक है के वल इसी अव ध के दौरान भरत ने भाव और रस
क अवधारणा को तैयार कया और आनंदवधन ने व न क मह वपूण वशेषता क ापना क । b चकबंद क अव ध यह अव ध
नौव शता द के म य से यारहव शता द के म य तक है। इस अव ध म स दयशा य के पास वरो धय से व न क अवधारणा का बचाव
करने के लए त समय था ।
. भारत का योगदान
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अब हम भारतीय स दयशा क परंपरा के अ णी लेख क भरत ारा तैयार कए गए भाव और रस क अवधारणा का अपने ना शा म
अ ययन करने का यास करगे जसने भव और रस के प म जानी जाने वाली दो मह वपूण अवधारणा को तपा दत कया है । पूव कला
के एक काम क साम ी को संद भत करता है जो अ नवाय प से भावना मक है। उ रा शंसाकता के दमाग म उ पा दत उ तम आनंदमय
अनुभव को इं गत करता है। के वल बाद म कु छ अलंक ा रक ने भाव को रस म बदलने क व ध का आ व कार कया और इसे व न नाम दया
। ना शा म जो बाद के कलाकार के लए एक अ तीय मागदशक बन गया है भरत ने नाटक को व भ कार के रस का नमाण माना
है य क इसम नृ य संगीत संवाद हावभाव आ द जैसी अ य कलाएँ शा मल ह। अ भनवगु त भरत के काम के वशेष ट पणीकार के
घटक क एक उ कृ ा या द है
रस
बा प से मूल भावना जो कला के काम का मुख वषय बनाती है उसे रभाव के प म जाना जाता है जसे रस उपदान करण पैदा करने का
भौ तक कारण माना जाता है । भरत ारा व णत तीन व तु न कारक ह ज ह वभाव अनुभव और वहा रक भाव कहा जाता है और ये दशक के र
भाव को रस म बदलने के लए ज मेदार ह । इन तीन भाव को एक साथ रस का कु शल कारण न म करण माना जाता है ।
एक भाव भाव का संके त जो बाहर से दखाया जाता है उसे अनुभव के प म जाना जाता है जसका अथ है कसी भावना का कट करण या भाव। यह
वे ा से या वचा लत प से कए गए भौ तक शु क को संद भत करता है। पूव को गैर सा वकानुभाव के प म जाना जाता है जो क आंख क ग त
आ द जैसी इ ा पर उ प कया जा सकता है। वै क अनुभव को सा वकानुभाव के प म जाना जाता है जो कांप या पसीने क तरह अनायास उठते
ह। भरत ने अपनी सूची आठ क सं या के प म द है मूढ़ता पसीना आ लगन आवाज प रवतन कांपना रंग बदलना आंसू बहाना और बेहोशी। इस
संदभ म कला रभाव म ायी और ायी भावना के साथ साथ उनके संबं धत रस को जानना अ नवाय है जनका उ लेख भरत ने सं या म आठ
के प म भी कया है
रभावसी रस
वैवा हक ेम र त ृंगारा ह या
मथ हसा
ख सोका क णा
ोध ोधा रौ
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रस के घटक क एक तीसरी क म है सं कारीभाव या ा भचारीभाव जसका अथ है पालन न करना या णक मान सक वभाव जैसे चता उ ेज ना
हतो साह आ द जो त के आधार पर कट और गायब हो जाते ह। दशक से यह भी अपे ा क जाती है क उसने एक या एक चरण म र भाव का
अनुभव कया हो ता क जब नाटक म य दखाया जाए तो भावना को आसानी से समझा और आनंद लया जा सके । उ े जत होने पर दशक क
न य मूल भावना कट हो जाती है। रस के गठन के लए एक अ य मह वपूण परक कारक क पनाशील अंत या उपजाऊ क पना है जसे
तभा के प म जाना जाता है। प र त के अनुसार भाव क उप त को शी ता से हण करना होता है ता क आनंदमय आन द तुर त कट हो सके ।
भारतीय स दयशा ी अपने आ या मक झुक ाव के आधार पर रस क सं या के संबंध म एक कार का ववाद वक सत करते ह। उदाहरण के लए सां य
ब लवाद म व ास करते ह और इस वचार णाली के त न ा रखने वाले स दयशा य का मानना है क रस कई ह य क येक इतना अनूठा है और
दशक म रभाव के अनुसार एक अलग तरह क भावना पैदा करता है। इस कार हमारे पास सुख द और ददनाक रस ह और भरत भी आठ कार के रस
दे ते ह। ले कन वेदांती वशेष प से जो त वमीमांसा क अ ै तवाद वृ क सद यता लेते ह इस बात पर जोर दे ते ह क भरत ारा द गई रस क सूची
रभाव क सूची के अनु प है। य द स श द क प रभाषा वह है जो आनंदमय रमणीय भोग दे ता है तो के वल एक ही रस होना चा हए। भरत ने व ा
को समझने के लए आठ कार के रस का उ लेख कया है। वह वयं एकवचन म रस को कहते ह। के वल सामा य जीवन म ही हम व भ कार क
भावना का गत अनुभव होता है जब क कला अनुभव म वशेष प से भावना मक वषय म चाहे जो भी भावना द शत हो पयवे क का मु य
दा य व के वल खुशी दखाना है और कसी भी मामले म गत प से त या नह करना चा हए। रभाव को । य क वे रस के प म प रव तत
होते ए अवैय क हो जाते ह।
. अ य स दयशा ी
d पगो वामी और जग ाथ वेदां तक कू ल से भा वत थे। कला क संरचना और काय के गहन अ ययन के बाद ये अलंक ा रकाएं जीवन के लए
इसके अथ क गहरी सम या म वेश करने का इरादा रखती ह। इस लए वे एक कू ल या सरे भारतीय दशन क ओर आक षत ए थे ज ह
दशन के प म भी जाना जाता है ता क उनके स दयवाद कोण को मा णत कया जा सके ।
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इसी तरह कला के व प और मह व को समझने के बाद कई दाश नक ने अलंक ा रक के प म कला के े म वेश कया। न न ल खत ऐसे वचारक
ह जो स दय अपील के मा यम से वा त वकता क कृ त क सराहना करना चाहते थे
भरत और आनंदवधन ने रस के स ांत के मानदं ड को तैयार करने म काफ हद तक योगदान दया है । क आदश करण कला के काम का आनंद लेने के
लए सबसे मह वपूण मानदं ड है जो रस के घटक अथात वभाव अनुभव और सं कारीभाव के मा यम से सा रत र भाव पर आधा रत है ।
बी कला के काम क साम ी और भावना के बीच अंतर करने के लए यह सफा रश क जानी चा हए क कला के काम का संचार अ य तरीके
से कया जाना चा हए जैसा क आनंदवधन ने सुझ ाव दया था।
. अ भनवगु त का योगदान
यह स ांत भ लोलता के नाम से जाने जाने वाले एक ए े ट शयन ारा तपा दत कया गया था। उनके वचार को ायी भावना क पीढ़ कहा
जाता है य क यह मूल च र से नकलती है। अपने का काश म ममता एक अलंक ा रका बताती है क भ लोलता ने भौ तक अ भ और
णभंगुर भावना के सहयोग से कृ त और मानव त व से संबं धत मूल च र म ायी भावना क पीढ़ से रस के अपने स ांत को वक सत
कया है। दशक को सरी बार मूल च र म भाव को पहचानने के लए बनाया जाता है।
हालाँ क इस स ांत म कु छ दोष ह। अ य स दयशा य का कहना है क य द रस क ओर ले जाने वाली भावना मूल च र से ा त क जाती है तो
आनंद वशेष और गत कृ त का होगा। ले कन रस अनुभव क ओर ले जाने वाला स दय भोग कृ त म सावभौ मक और अवैय क होना
चा हए। इसके अलावा भ लो ा के पीढ़ के स ांत म दशक के रभाव का कोई संदभ नह है । दशक मूल च र के मा यम से द शत भावना
का पूरे दल से आनंद नह ले सकता है।
मनु य या कृ त जैसे भाव के पम तुत अ भनेता के मा यम से दशक भावना क उप त का अनुमान लगाता है। अ भनेता ारा नभाई गई
भू मका रस क ओर ले जाने का कारण है । दशक इस तरह क भावना क उप त का अनुमान वयं अ भनेता म नह ब क उसके ारा तुत भाव
से लगाते ह। चूं क ी संकु का और म हमा भ को भारतीय दशन के याय कू ल म श त कया गया था बाद वाले ने अपने ववेक म एक
समान स ांत को व तृत तरीके से तैयार करने म पूव से भा वत कया था । अनुमना क सभी आव यकताएं रस अनुभव क या म पूरी होती ह ।
ले कन अनुमान का संबंध भाषा से संबं धत बु और तक से है और कला के अनुभव पर लागू नह होना है। भावना के सामा यीकरण का कोई
समावेश नह है ब क के वल अ भनेता ारा तुत भावना है। हालाँ क संचार का तरीका अ य है। हालां क यह
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अलंक ा रका ने अ भनेता ारा तुत भावना पर संके त दया है उ ह ने दशक क भावना मक त को ापक प से नह समझाया।
यह स ांत भ नायक ारा या पत कया गया है जसके अनुसार वा त वक नाटक या क वता म रभाव के सामा य च र के मा यम से रस का
आनंद दशक को आ म व मृत कृ त के साथ शु आनंद के प म मलता है। य द भावना गत कृ त क है तो एक समान नह हो सकता है
ले कन भावना के त उदासीन आनंद है। इस लए वह इस स ांत का ताव करता है जसम प से प रक पना क गई है क रस या स दय
भोग तभी संभव है जब दशक या पाठक अपने दमाग को बना कसी ावहा रक च के शांत और शांत रखता है। अ नवाय प से संयम के मूड क
आव यकता होती है और त को आदश बनाया जाना चा हए ता क आदश भावना को अ भनेता के मा यम से दखाया जा सके । जहां तक
संचार क व ध का संबंध है भ नायक ने एक अनूठ अवधारणा क खोज क है जसे भव कटवा कहा जाता है भाषा म एक वशेष श जो पाठक
या दशक को तुत भावना क खोज करने म स म बनाती है जससे सामा यीकरण के भाव के मा यम से आनंददायक अनुभव होता है
साधारणीकरण भाषा क यह वशेष श ान और समय से परे है और प र तय के साथ साथ भौ तक अ भ य को उजागर करके
भावना क आदश त उ प करती है।
हालाँ क भावक व नामक अवधारणा का प रचय मनमाना लगता है। चूँ क कसी भी अलंक ा रक ने इसे न तो पहचाना और न ही इस पर फर से वचार
कया। सरी ओर वीकार कए जाने पर भी यह अवधारणा के वल भाषा और सा ह य से संबं धत कला पर ही लागू होगी। इसके अलावा यह अवधारणा
के वल सामा यीकृ त त पर लागू होती है सामा यीकृ त भावना पर नह । फर से स दयशा य ने नाटक म दखाए गए एक के समान दशक म एक
र भाव के अ त व को मा यता नह द है । चूँ क वे भारतीय दशन म ै त के सां य स ांत के त तब थे इस लए वे रस क कृ त क उ चत
ा या नह कर सके । चूँ क पु ष म बु मुख है इस लए सुख और ख उ प करने के लए कृ त के साथ जुड़ना । ले कन बु क स व कृ त
स दय भोग के उ पादन म एक भू मका नभाती है जसे भोगकृ वा के प म जाना जाता है जसका अथ है आनंद पैदा करने क श । इस
कोण के खंडन के प म अ भनवगु त वेदां तक कोण से एक वैक पक स ांत दे ते ह क संभा वत प से न हत शु आनंद म वयं कट
होता है
रस
रस नकलता है। क मीर शैववाद या भ के तपादक के प म अ भन वगु त रस के स ांत क सभी आव यकता को पूरा करने म स म
थे । संचार क व ध व न या सुझ ाव है। इस लए इस स ांत को एक मानक के प म मा यता द गई है।
. व न क अवधारणा
भारतीय स दयशा य ने व न क अवधारणा क खोज क थी जो वशेष प से सा ह यक वषय म भावना के छपे अथ का सुझ ाव दे ती है।
आनंदवधन ने माना था क भाव या भावना सा ह यक कृ तय वशेषकर क वता का आदश वषय है। एक क वता क भावना मक साम ी के
संचार के तरीके क ा या करने के लए बाद के अलंक ा रक ने व न क अवधारणा क खोज क है । चूं क व न म भाषा शा मल है इस लए
श द का अथ मह वपूण हो जाता है।
सुझ ाया गया अथ दए गए कथन से एक नई ुप है। ऐसे म गंगा नद के कनारे क कु टया नद क तरह शीतल और प व है। यहाँ शीतल और
प व श द उस कथन से लए गए ह जो य या परो प से नह कहा गया है। क वता म हम ं याथ के कई उदाहरण दे ख ते ह जहाँ क वता का
वषय भावना है। एक कार का का च मय का च का है। यहाँ व ध भावना क य तु त है वशेष प से व तु घटना जसम
के वल भाषण क आकृ त शा मल है। एक अ य कार क क वता है जो अलंकृ त ववरण वक सत करती है जसम अलंक ार या भाषण क आकृ त
होती है। इस कार को गुण ीभूत ं य का के प म जाना जाता है जो च ा का और व न का के बीच आता है । चूं क इस कार क
क वता को व न कार क क वता से पहचाना नह जा सकता य क कम मा ा म वचारो ेज क त व उपल ह। यहाँ के वल अलंकृ त वणन का
योग कया गया है। क वता क उ म क म व न कार है जसम मुख व ध वानी या ं याथ के प म अ धक सुझ ाव शा मल ह। त
और भावना मक साम ी का वणन करने के लए क वता को सुझ ाव क व ध का सहारा लेना पड़ता है।
क वता म त य और च एक न हत तरीके से सुझ ाए जाने पर स ता का कारण बनते ह। यह भारतीय स दयशा य ारा दशक के मन म रस
पैदा करने के लए का प त का सबसे अ ा प माना जाता है ।
भाषा के भारतीय दशन म ाकरण वद ने ोटा स ांत के संबंध म भाषा म व न क अवधारणा को पेश कया है जो श द और उनके अथ को
जोड़ता है। व न का म अलंक ा रक ारा व न क व ध को तीन तरह से लागू कया जाता है क जो सुझ ाव दे ता है ंज क बी जो सुझ ाया
जाता है ां य और ग सुझ ाव क या
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उ ह ने माना क व न क अवधारणा सभी कार क कला नमाण और के वल सा ह यक कला पर लागू होती है।
भारतीय स दयशा य ने उप नष दक वचार के अनु प कला को उ तम वा त वकता अथात ा ण के साथ समानता द । इस कार हमारे पास
है रस वाद श द वाद नाद वाद वा तु वाद।
रस ा वड़ा अपने चरम अनुभव म रस के प म कला शंसा के आनंद से संबं धत है । ानुभव या के दोष के वनाश के बाद का अनुभव
शु आनंद क ओर ले जाता है। उसी तरह रस का अनुभव आ म व मृत आनंद क ओर ले जाता है।
सबदा वड़ा सव वा त वकता के साथ व न या सबदा क पहचान है। ाकरण वद् सबदा को नया क सबसे ऊं ची घटना मानते ह जससे श द
वा य अथ आ द नकलते ह ता क लोग एक सरे के साथ संवाद कर सक। सा ह यक कला म श द वा य और अथ का और परो प से
उपयोग कया जाता है और इस लए स दयशा ी कला के अनुभव को सबदा वाद के साथ मानते ह।
नाद ा वड़ा सबदा वड़ा क एक शाखा है । चूं क संगीत सबदा का एक ह सा है जब हम संगीत सुनते ह तो हम एक कार का रस अनुभव
वक सत करते ह जससे एक कार का आ म व मृत आनंदमय आनंद होता है जो अनुभव के समान होता है जो सत् चत और आनंद म समा त
होता है ।
आनंद पहलू अनुभव क आनंदमय त है। वर संगीत और वा संगीत क तुलना नाद वाद से क जाती है।
वा तु वड़ा नया क उन साम य को संद भत करता है जनका उपयोग नमाण के लए कया जाता है ता क मनु य सुर ा और आराम से सुर त
प से रह सके । चूँ क पदाथ मानव को दया जाता है
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सव ाणी ारा इसे वा तु कहा जाता है और से जुड़ा होता है। नमाण दो कार का होता है एक द उ मुख जैसे मं दर आ द और सरा घरेलू उ मुख जैसे घर
पुल आ द।
. आइए सं ेप कर
अंतव तु
. उ े य तावना रस
के प म सुई जेने रस
. .उ े य
इस इकाई का मु य उ े य अ भनवगु त के रस का प रचय दे ना और स दयशा के ापक े म इसके मह व के संदभ म इससे जुड़ी कु छ अवधारणा क जांच करना है। सं कृ त
सा ह यक आलोचना के वकास और वकास म हम दो व श चरण को अलग करते ह पहला आनंदवधन से पहले का पर ारं भक लेख क ारा दशाया गया है और सरा
अ भनवगु त जैसे बाद के स दयशा य ारा तुत कया गया है ज ह ने भारतीय स दयशा के संशोधन म उ कृ योगदान दया है। इसके अलावा इस अ याय म सहरदया क
भू मका और रस का अनुभव करने के अं तम ल य के लए उनके माग का वणन करने का ताव है। ऐसा करने से हम स दयशा म अ भनवगु त के योगदान क कु छ व श वशेषता
को समझने क उ मीद करते ह।
. प रचय
श द rasa‟ का शा दक अथ है वाद या आनंद म और क वता के सार को न पत करने के लए नयो जत कया जाता है अजीबोगरीब स दय अनुभव जो कला हम दे ता है। यह
स ांत क रस कला का सार है पहली शता द ई वी से भरत के साथ शु होता है। भरत ने ना शा पर अपने स ंथ ना शा म दावा कया है कोई भी रचना रस के बना
आगे नह बढ़ सकती है । ना शा VI म रसा याय नामक अ याय म भरत बताते ह ना ही रस त
् े का सद अथः वतते जसका अथ है हर ग त व ध मंच पर रस के नमाण या
पीढ़ के उ े य से है । वह अपना रस सू भी नधा रत करता है वभवनुभाव ा भचारी स योगद रस न तः अथात वभाव नधारक अनुभव प रणाम और भचा रहव
णक भावना के मलन या संयोजन से रस उ प होता है या उ प होता है । ना शा पर ाचीन लेख क ने वा त वक जीवन और रचना मक क पना म च त जीवन के बीच
अंतर करने के लए एक पूरी तरह से नई श दावली का आ व कार कया। हालां क वे करण काय और सहकारीकरण के अनु प ह । रस रभाव मुख या ायी भावना से मेल
खाते ह।
व भ तकनीक के मा यम से कलाकार। यह एक सतत भावना मक गुण व ा ारा एकजुट उस स दय त का कु ल योग है। मु य प से भारतीय
स दयशा म रस कू ल का भाव के अनुभवा मक या परक प को मह व दे ता है। उनका वचार है क क वता का सार उसके नधारक से
अलग एक गुण है जसे आमतौर पर मानवीय च र के प म जाना जाता है जैसे क ाकृ तक प र तयाँ याएँ या भावनाएँ। रस का एहसास
तब होता है जब एक सहरदया के मन म एक भावना इस तरह से जागृत होती है क उसक कोई भी सामा य त या मक वृ नह होती है और
यह एक अवैय क और यान के तर पर होती है। इस अजीबोगरीब तरीके से उ प भावना उन व तु क कला म दशन के कारण होती है जो
कृ त म इसे उ े जत करती ह जैसे क ाकृ तक प र तयां ात पा के उनके काय और भावना क शारी रक अ भ । ये
न पण का के मामले म श द के मा यम से और श द के मा यम से और नाटक के मामले म ठोस तु तय के मा यम से व तु के
सामा यीकृ त और इस तरह के आदश पहलू ह जो ववरण के प म सामने आते ह। वे न तो सं ाना मक प से और न ही रचना मक प से
मह वपूण ह य क वे एक उ नया से संबं धत ह। अ यावेदन का के वल भावना मक मह व है और उनके मा यम से कट होने वाली भावना
को सामा य या न य तरीके से पी ड़त नह कया जाता है ब क सुसंगत आ म जाग कता और ान के साथ ब त स य प से आनंद लया
जाता है। भावना को अनुभव करने क इस असाधारण वधा का रह य का ा मक कोण म हमारे वयं के ावहा रक और अहंक ारी प के
वघटन और सावभौ मक चतनशील आ म क प रणामी उप त म न हत है। भावनाएँ अपने सामा यीकृ त प म वयं म अ होती ह य क
वभाव उनके सामा य से जुड़े होते ह वशेष संघ से नह । इस लए जब क वता म सामा यीकृ त व तु और तय को तुत कया जाता है तो
वे सामा यीकृ त भावना को जागृत करते ह ज ह एक अवैय क और चतनशील तरीके से महसूस कया जाता है।
वे वशेष प से कसी या कसी व तु से संबं धत नह ह। रस का एहसास तब होता है जब ऊपर दए गए कारक के कारण वयं अपने
अहंक ारी ावहा रक पहलू को खो दे ता है और एक अवैय क चतनशील रवैया अपना लेता है जसे इसके उ गुण म से एक कहा जाता है। रस
इस कार वयं के अवैय क चतनशील पहलू का एक बोध है जो आमतौर पर जीवन म इसके भूख भाग ारा छपाया जाता है। जस कार
च तनशील आ मा सम त तृ णा य न और बा आव यकता से मु होती है वह आनंदमय होती है। यह आनंद कसी आव यकता या जुनून
क संतु से जीवन म ा त होने वाले आनंद से भ गुण का है। अब यह यान दया जा सकता है क कसी के चतन और आनंदमय आ म क
ा त के प म रस मूल प से एक है। ले कन यह अहसास क वता म कसी भावना के इस व ारा अपने सामा यीकृ त प म एक समझ के साथ
जुड़ा आ है। रस स ांत का मक वकास कई शता दय तक फै ला है और इसम भरत के ना शा जैसे कई ल शा मल ह ले कन आम
तौर पर यह माना जाता है क यह क मीरी शैव दाश नक अ भनवगु त के हाथ था क इसने यारहव शता द ई वी म शा ीय सू ीकरण ा त कया।
स दयशा क सबसे ज टल अवधारणा के वकास म संवेदनशीलता और व ेषण का शोधन और उनक धा मक ा या क वृ अ भनवगु त
क वशेषता है। उ ह वेदांत कू ल के दाश नक के प म भी जाना जाता है।
रस या यह वयं क व हो सकता है या च र जो वयं पा या दशक क भू मका नभाता है आगे रस दशक को पूण आनंद दान करने के लए है या
नै तक श ा दे ने के लए भी है आ द।
. सुई के प म रस
अ भनवगु त के स दयशा का ारं भक ब उनका बार बार कहा गया व ास है क स दय बोध के साथ साथ आनंद जो इसके साथ होता है वह एक आनंद
पैदा करता है जो के वल तब तक रहता है जब तक धारणा बनी रहती है। यह आनंद व उ पादक या सुई जेने रस है। रस क यह व श ता अ भनवगु त का
कहना है एक अचूक हमारी चेतना का डेटाम है। और य क रस अ तीय है कारण अनुमान या कसी अ य नय मत श द का उपयोग करके इसके
उ व को नह कया जा सकता है। ध यलोक लोकाना . . म अ भनवगु त ने इस स ांत का पालन कया क रस के बना कोई क वता नह है ।
उनके अनुसार रस या स दय अनुभव त अनुक रणीय प रवतन और णक भावना से अलगाव म मूल भावना र भाव का अनुभव नह है ब क
उनके साथ मलकर है। अ भनवगु त बताते ह जो उ े जत होता है ... वह बस वाद है अ त व का प ... इस वाद का रस कहलाता है जसके ारा
उनका अथ यह तीत होता है क रस स दय यु एक इकाई क धारणा है और कु छ भी नह दशाता है धारणा के उस वशेष ांड से अलग। भरत ने आठ
कार के रस का उ लेख कया है जैसे कामुक हा य दयनीय उ वीर भयानक घनौना और अ त ेम हँसी ःख ोध यास क हमारी ाकृ तक
मानवीय भावना के प रवतन ह। भय घृण ा और आ य नाटक य कला ारा लाया गया। यह सवाल क या इन आठ के अलावा नौवां संता रस है
म ययुगीन भारतीय स दयशा य के बीच एक बहस का मु ा रहा है। अ भनवगु त हालां क मानते ह क स दय अनुभव के कई तर ह जैसे भावना क पना
भावना रेचन और पारगमन। पारलौ ककता के उ तम तर पर रस अनुभव पूण व ाम और शां त सटा म से एक है चाहे इसम कोई भी भावना शा मल
हो। इस लए पारलौ कक तर पर के वल एक ही कार का रस होता है जो म त आनंद का होता है जहां वषय और व तु का ै त गायब हो जाता है और
आ मा शु आ या मक उ साह को ज म दे ते ए पूण प से वलीन हो जाती है। ऐसा अनुभव इस रोजमरा क जदगी से बाहर होना चा हए।
भवसी पर अ भनवगु त
रस पर सभी चचा क न व भरत ारा तैयार कए गए सू के साथ है। य प रस भरत का अथ के वल ना रस है अ य स दयशा ी इसे सामा य प से
क वता या रचना मक सा ह य पर लागू करते ह। अ भनवगु त का कहना है क एक प र कृ त पाठक को नाटक पढ़ने पर भी ना रस मलता है।
भरत ने भाव को रस के आधार के प म प रभा षत कया है जो चार कार के त न ध व के मा यम से क वता क भावना को अ त व म लाता है
भरत रभाव क ा या नह करते ह और न ही वे रभाव और ा भचा रहव के बीच कोई भेद करते ह। वह बताते ह क आठ र भाव और ततीस
ा भचा रहव ह । अ भनवगु त का कहना है क रभाव कई रंगीन तार होते ह जो व वध रंग के प र म समानता वाले ा भचा रहव से पतले बंधे रहते
ह। जस कार तार का रंग प र पर त ब बत होता है उसी कार रभाव वयं को ा भचा रहव पर त ब बत करते ह । चूं क व भ रंग के प र
अपने आकषक धाग के साथ बीच के धाग को रंगते ह
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रंग इसी तरह ा भचारी अपनी बारी म रभाव को भा वत करते ह और उ ह दशक के लए शंसनीय बनाते ह। अ भनवगु त अपने काल के कसी
भी अ य स दयशा ी क तुलना म रभाव का ववरण दे ता है। हर कोई दद के संपक से बचता है और सुख सुख का अनुभव करने क ओर वृ
होता है। सभी वयं का आनंद लेने क इ ा रखते ह यह र त या स ता के कारण है। सभी लोग अपने बारे म ब त सोचते ह और सर पर हंसते ह।
यह हसा या हंसी के कारण होता है। लालसा क व तु से वं चत होने पर सभी को ःख होता है। यह सूक ा या ख है। वह अपने दल के करीब कसी चीज
के खोने पर गु से म है। यह ोध या ोध है जब उसे अपनी अ मता का एहसास होता है तो वह भय के अधीन हो जाता है। यह भय या भय है। फर
वह कु छ हद तक क ठनाइय को र करने का संक प लेता है। यह उ साह या उ साह है। जब वह तकू ल व तु से मलता है तो उसे तकषण क
भावना होती है। यह जुगु सा या घृण ा है। वह कु छ अवसर पर आ य से भर सकता है। यह अनुभू त व मय या व मय है अंततः वह कु छ यागना चाहता
है।
यह साम या शां त है। इन ायी मान सक अव ा का वणन करने के बाद अ भनवगु त उ ह णभंगुर मान सक अव ा या ा भचा रहव से
अलग करता है। ये णक भाव मन म कोई सं कार या भाव नह छोड़ते ह। इसके वपरीत उ सव जैसी ायी अव ाएँ मन म अपना भाव छोड़ जाती
ह। यहाँ तक क रय म भी अ भनव चार को चुनता है । ये भी एक सरे के अधीन ह। नाटक के कार के अनुसार एक ायी भाव धान होगा और
शेष गौण होगा। ा यभाव और भचा रहव स दय बोध क ओर ले जाने वाले बाहरी कारक का गठन करते ह। वभाव क व या पाठक के मन म कु छ
नह है। यह अनुभव के बाहरी कारक का त न ध व करता है। वभव श द का अथ नाटक य त है। यह कारण नह है ब क के वल एक मा यम है
जसके मा यम से अ भनेता म भावना उ प होती है। वभव पाठक म भावना को वा त वक जीवन म उ प होने वाली भावना से काफ अलग
तरीके से जगाता है। वभव को दो पहलु के प म दशाया गया है एक है आलंबन वह व तु जो भावना क उ ेज ना के लए ज मेदार है या वह जस
पर भावना अपने अ त व के लए नभर करती है।
सरा है उ पन पयावरण संपूण प रवेश जो क ब के भावना मक भाव को बढ़ाता है। सभी भौ तक प रवतन जो एक भावना के उदय के
प रणाम व प होते ह और वा त वक जीवन म भावना के प म दे ख े जाते ह उ ह वा त वक जीवन म उ प होने वाले भावना के भौ तक भाव से
अलग करने के लए एक अनुभव कहा जाता है। एक भावना के उदय के बाद होने वाले शारी रक प रवतन और ग तयाँ दो कार क होती ह वै क
और अनै क। वै क शारी रक प रवतन को के वल अनुभव कहा जाता है ले कन अनै क प रवतन को सा वक भाव कहा जाता है।
रस के अनुभव के बारे म व तार से जाने से पहले उस के बारे म सोचना आव यक है जो इसे अनुभव करता है सहरदय। सहरदया श द का
शा दक अथ है वह जो समान दय का हो ।
अ भनवगु त ने सहरदया को प रभा षत करते ए कहा वे लोग जो वषय व तु के साथ पहचान करने म स म ह उनके दल के दपण के प म नरंतर
पुनरावृ और क वता के अ ययन के मा यम से पॉ लश कया गया है और जो सहानुभू तपूवक अपने दल म त या करते ह वे लोग सहरदय के प
म जाने जाते ह संवेदनशील दशक। एक क व ऐसे पाठक से संवाद करता है जसम कमोबेश एक जैसी ही संवेदनशीलता होती है। वह एक सहदय होना
चा हए जसका मन और दय क व के समान हो क व क भाँ त सहरदय को भी दान दे ना चा हए। अ भनवगु त हम सहरदय ारा स दय भोग क
या का व तृत ववरण दान करता है। एक नाटक या एक क वता या एक स ी स दय व तु पाठक को इं य के तर से क पना के तर तक ले
जाती है। प रणाम व प पाठक का व बदल जाता है और वह उ तर पर प ंच जाता है। मु ा यह है क एक स ी स दय व तु मु य प से
इं य के मा यम से क व क क पना को उ े जत करती है। जैसे जैसे उसक क पना को े रत कया जाता है वह खुद को मौजूद संवेदनशीलता के
साथ उतना च तत नह करता जतना क
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क पना मक प से पकड़ा गया। सौ दय व तु के उ पन पर स दय ारा न मत संसार उसका अपना है । इसम उनक मुलाकात एक नाटक य
व से होती है जो सम प से क ब है। यह आदश साकार है। इस लए वह धीरे धीरे और धीरे धीरे इसके साथ अपनी पहचान बनाता है।
जब वभव अनुभव और भचा रहवा मलते ह तो वे सहरदय म रस उ प करते ह । हम कसी भी को अपनी इ ा से सहदय के पम
यो य नह बना सकते। सहरदया को का म च होनी चा हए और दय संवेदनशील होना चा हए। उ ह का रचना से भी घ न प र चत होना
चा हए। वह वह है जो खुद को का या नाटक य काय के साथ पहचानने और सं ाना मक वाद के आनंद का अनुभव करने क मता रखता है।
सहरदया कारवां या सं ाना मक वाद का अनुभव करता है जो रस अनुभव का उदाहरण है । यह सं ाना मक वाद सामा य अनुभू त से अलग है।
जैसा क पहले ही बताया जा चुक ा है क सहरदया भी एक तभाशाली होना चा हए। के वल एक नपुण पाठक ही कसी नाटक या क वता
क पूरी तरह से सराहना कर सकता है। एक सहदय वह है जसक स दय संवेदनशीलता क व के समान है। अ भनवगु त के अनुसार एक सहदय म
न न ल खत गुण होने चा हए।
जो सामा यीकरण होता है वह च र के व के साथ साथ सहरदय को भी बाहर करता है। यह अनुभव वट व ना त त उ प करने वाली
सभी बाधा को र करता है । सामा यीकृ त वभाव और बाक दशक पाठक म अ रभाव को खेलने के लए कहते ह और इसे सामा य
तरीके से भी समझा जाता है। रस र भाव या ायी मनोदशा से कु छ अलग है । रस जैसा क हमने दे ख ा है सहरदय क संवेदनशीलता और
वभाव अनुभव और ा भचा रहव के मेल से भोग या आनंद क एक या है । यह न तो लो कया है और न ही अनुभवज य सरी ओर यह
अलौ कका या पारलौ कक है। रसना मन क ायी अव ा नह ब क एक या है। रस क ा त वभव अनुभव और ा भचा रहव क
समझ पर नभर करती है । यह के वल तब तक रहता है जब तक इन कारक का सं ान रहता है और जब ये कारक गायब हो जाते ह तो अ त व
समा त हो जाता है। रास अ भनवगु त ने सुझ ाव दया है क सुझ ाए गए और सुझ ावक ंय ंज क भौवु के संबंध के मा यम से वभाव के
साथ ायी मनोदशा के मलन का सुझ ाव दया गया है सरे श द म रस क कृ त सं ेषण क श के मा यम से अ भ के अलावा और
कु छ नह है । जसके प रणाम व प रसना के प म जाना जाने वाला एक असाधारण रा य है ।
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अपनी ग त क जाँच कर I
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सहदया कसे कहते ह उसके मूल गुण या ह
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. रस व न क अवधारणा
अ भनवगु त ने व नवलोक लोकनम म व न क अपनी अवधारणा को कया है। आनंदवधन के अनुसार त से रस व न होना आव यक है ।
अ भनवगु त के लए श द श मूल श द और अथ श मूल अथ दोन धवानी म मह वपूण भू मका नभाते ह । अ भनवगु त वन श दक
ा या दो भ कार से करते ह। पहली व नत इ त व न है जो सुनाई दे ती है या गूंज ती है या ता पय है वह व न है । सरा है व यते इ त व न या
व न वह है जो व न या त व नत या न हत है। यह ुप वनक ा या कु छ ऐसी के प म करती है जो न हत है। यह धवानी उ चत है। म से
बचने के लए दो अथ को अलग रखने के लए व न क यह दोहरी ुप आव यक है । एक एक एजट या सुझ ाव दे ने वाले क श का सुझ ाव दे ता
है सरा वह है जो सुझ ाव दया जाता है। व न के तीन कार वा तु व न अलंक ार व न और रस व न व याते इ त व न के अंतगत आते ह या जो
त व नत होते ह। अ भनवगु त गु ता आनंद ारा दए गए व न के सामा य तीन गुना वग करण को वीकार करते ह । हालाँ क वह इसम कु छ और
ीकरण जोड़ता है। उनके लए तमान या न हत भाव को दो गुना के प म व णत कया गया है जनम से एक लो कका है या एक जसे हम सामा य
जीवन म मलते ह और सरा का ापार गोकारा या एक जो के वल क वता म मलता है। का म लो कका व न गनी है वह जो वा तु या कु छ पदाथ
का सुझ ाव दे ता है उसे वा तु व न कहा जाता है। सरा जो भाषण क एक आकृ त का सुझ ाव दे ता है वह अलंक नारा व न है। दोन ही तय म
यु कका व न है।
का म जो व न संभव है उसे रस व न कहते ह। अ भनवगु त के अनुसार इसे ही ामा णक व न माना जाना चा हए । उनका मानना है क रस व न
ही का क आ मा है।
अपनी ग त क जाँच कर II
रसना को प रभा षत कर
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रस व न के बारे म बताएं
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. अलौक रस
मोटे तौर पर रस क कृ त के संबंध म सं कृ त स दयशा के दो कू ल ह चाहे वह लौ कका हो रोजमरा क जदगी क सांसा रक सामा य
वा त वकता क तरह या अलौ कका रोजमरा क जदगी से अलग अ त र सांसा रक सुपर सामा य । अ भनवगु त ने भरत के ना शा पर अपने
भा य म एक बयान दया है क मंच पर तुत कए जाने पर सभी ान आनंददायक होते ह और सभी रस भी आनंददायक होते ह। इसके अलावा
अ भनवगु त का यह वचार क सभी आठ या नौ रस आनंददायक ह और यह क वा तव म खद तयां भी कला के काम म उनके ारा कए गए
स दय उपचार के मा यम से सुख द गुण व ा ा त करती ह न त प से सहरदया के बड़े ह से को अपील करेगी। संता रस के ान क चचा के दौरान
अ भनवगु त प से एक र और उसके अनु प रस के बीच अंतर करता है । एक है स पहले से मौजूद और स चीज सरी है सा य
भा वत होना लाया जाना । फर है लौ कका और अलौ कका इसके बाद साधना सामा य सामा य और आसन अ तीय असामा य है।
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य प भरत के ंथ म ऐसा कोई अंतर नह मलता है और य प इसम हमारे दै नक जीवन के ाप य और उनके अनु प रस के बीच
क पहचान का कोई मुख उ लेख नह है फर भी भरत के लेख न म कु छ संके त मलते ह जो कसी को यह मानने के लए े रत कर क उनका
मानना था क यह के वल नया का ायी भाव है जसे रस कहा जाता है जब मंच पर नकल या त न ध व कया जाता है और यह क कु छ
रस सुख द होते ह और कु छ खद। अ भनवगु त बार बार कहता है क रस अलौ कका है। यायनाथ सुझ ाई गई भावना दो कार क
लौ कका है नंगे वचार वा तु और च या अलंक ार सुझ ाए जा सकते ह ले कन वे एक ही समय म वाक् और का ापा रका
गोकारा या ंज ना गोकारा या अलौ कका भी ह। के वल या सुझ ाव दया जा सकता है के वल भावना इसके सार म सीधे वणन यो य। यह एक
त य या वचार और छ व क तरह संचारी नह है। अ भनवगु त के अनुसार रस व म कभी नह दे ख ा जाता है व सबदा य भावना के
मा नामकरण सुझ ाए जाने के लए ारा कया जाता है। र सका संवेदनशील दशक के लए थएटर म जाने पर ावहा रक हत का
कोई मह व नह होता है । उसे लगता है क वह कु छ ऐसा सुनेगा और दे ख ेगा जो उसके लोको ारा रोजमरा के अनुभव से परे है जो उसके
यान के यो य है कु छ ऐसा जसका सार शु से अंत तक है सरासर खुशी। वह इस अनुभव को बाक दशक के साथ साझा करगे। उपयु
संगीत गायन और वादन दोन के सौ दयपूण आनंद म त लीन एक पूरी तरह से खुद को भूल जाता है और क व या नाटककार ारा
च त व तु या त से परे कु छ भी नह जानता है। उसका दय बेदाग दपण जैसा हो जाता है। यह दय संवाद सहानुभू तपूण त या
और त मयभाव पहचान क सु वधा दे ता है। वह जो दे ख ता है वह अंत र और समय से तलाकशुदा है। रस के बारे म उनक आशंक ा ान क
सामा य प से मा यता ा त े णय जैसे क स ा ान झूठा ान संदेह संभावना के अंतगत नह आती है। वह जो दे ख ता है उसम इतना
त लीन होता है और आ य क बल भावना से इतना भा वत होता है क वह खुद को मु य च र के साथ पहचान लेता है और पूरी नया
को वैसा ही दे ख ता है जैसा च र ने दे ख ा था।
वे जीवन से ख चे जाते ह ले कन आदश होते ह। हालां क वे आदश करण के मा यम से झूठे या ामक नह बनते ह। एक पाठक या दशक जो
उ ह वा त वक व तु के लए गलती करता है या उ ह अस य या झूठ के प म दे ख ता है वह स ा दशक नह है सहरदय। क वता या नाटक
म च त व तुए ँ एक अ तीय च र हण करती ह जसे दशक न तो वा त वक और न ही अस य के प म व णत कर सकता है। क वता या
नाटक म च त चीज का ता कक कोण लेना या सा ह य के लए स ती से दाश नक कोण अपनाना के वल उपहास को आमं त करेगा।
अ भनवगु तभारती के एक अंश म वे कहते ह रस ेम ःख आ द जैसी ायी भावना से पूरी तरह से अलग है और इसे बनाए नह रखा जा
सकता है जैसा क संकु का ने कया था क रस कसी क ायी भावना क आशंक ा है
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और यह क इसे इस लए कहा जाता है य क यह आनंद क व तु है। अगर ऐसा था तो वा त वक जीवन क ायी भावना को रस य नह कहा जाना चा हए य क
य द अ भनेता म एक गैर मौजूदा अस य ायी भावना स दय आनंद क व तु बनने म स म है तो वा त वक ायी भावना के इतने स म होने का और भी कारण है।
इस लए कसी अ य क ायी भावना क आशंक ा को के वल अनुमान ही कहा जाना चा हए न क रस। इस कार के अनुमान म कस सौ दयपरक आनंद का
समावेश है।
सा ह यक और सौ दयपरक आलोचना पर कृ तय के ये मह वपूण अंश अलौक क व पर पया त काश डालते ह जो अ भनवगु त के लए एक मुख श द है। इन
पर े द के एक सावधान छा के लए यह होगा क अ भनवगु त व भ अथ के साथ अलौक क व श द का योग करता है। एक या दो ान पर इस श द का
योग उस या को अलग करने के लए कया जाता है जससे रस अ य सांसा रक लौ कका या से ा त होता है। यह सुझ ाव क श ारा ा त कया जाता
है जो क वता या रचना मक सा ह य के लए व श है न क आमतौर पर ात या अ भधा संके त क श और लक ना गुण वृ या भ तीयक उपयोग
ारा। कभी कभी वह इस अलौ कका श द का योग सांसा रक चीज को इं गत करने के लए करता है और क व क रचना मकता क ग त व ध के जा ई श से
सांसा रक चीज पूरी तरह से बदल जाती ह।
बोध III
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. हम योग करने द
इस इकाई म हमने अ भनवगु त के रस के स ांत को उनके सौ दयशा ीय स ांत म कु छ अवधारणा को प रभा षत करके रेख ां कत करने
का यास कया है। हमने इस वचार से शु आत क क रस का मू यांक न व उ पादक सुई पीढ़ के प म कया जाना चा हए। हमने कु छ
अवधारणा जैसे सहरदया और उनके रसाना अनुभव दवानी और सरस व न आ द पर भी व तार से वचार कया है। अंत म हम
अलौक क व रस क अवधारणा क एक परी ा के साथ इकाई का समापन करते ह ।
. मुख श द
चौधरी वास जीवन। भारतीय स दयशा म स दयवाद कोण। मै डसन अमे रकन सोसाइट फॉर ए ेट स ।
नोली रै नरो। अ भनवगु त के अनुसार ांस। द ए े टकल ए सपी रयंस। वाराणसी चौखंबा सं कृ त ृंख ला ।