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International Journal of Trend in Scientific Research and Development (IJTSRD)

Volume 6 Issue 6, September-October 2022 Available Online: www.ijtsrd.com e-ISSN: 2456 – 6470

वररुचि एवं माधव के िन्द्रवाक्य


चिनेश मोहन जोशी1, चिरीशभट्ट. चि2
1
मानविकी एिं समाज विज्ञान विभाग, भारतीय प्रौद्योवगकी संस्थान, मुम्बई
2
वसद्धान्तज्यौवतषशास्रे विद्यािाररविशोिच्छात्‍तरः रावरियसंस्कृतविश्वविद्यालयः , वतरुपवतः

How to cite this paper: Dinesh Mohan Joshi | Copyright © 2022 by author (s) and
Girishbhatta. B "Vararuchi and Madhava's International Journal of Trend in Scientific
Chandravakya" Published in International Journal Research and Development Journal. This is
of Trend in Scientific Research and Development an Open Access article
(ijtsrd), ISSN: 2456-6470, Volume-6 | Issue-6, distributed under the
October 2022, pp.1781-1792, URL: IJTSRD52171
terms of the Creative
www.ijtsrd.com/papers/ijtsrd52171.pdf Commons Attribution License (CC BY 4.0)
(http://creativecommons.org/licenses/by/4.0)

सिद्धान्त ज्योतिष के तितिध ग्रन्ोों में ग्रहिाधन करने के तनयमोों का अनुभि तकया तक आयभभटीय ग्रन् के आधार पर जो ग्रहिाधन
प्रतिपादन तकया गया है । प्रायः िभी आचायों ने ग्रहिाधन के अथिा ग्रहण काि की जो गणना की जा रही है िह प्रत्यक्ष िे कु छ
सिये एक जैिी पद्धति का अनुिरण तकया है । चन्द्रिाधन के अिग है इिी बाि को ध्यान में रखिे हुये के रि के प्रसिद्ध गसणिज्ञ
िन्दभभ में के रि के प्रसिद्ध गसणिज्ञ िररुसच ने एक अनूठी तिसध का हररदत्त (650-700 A. D) ने आयभभटीय के ग्रहभगणोों में
अतिष्कार तकया सजिको ''चन्द्रिाक्य'' के नाम िे जाना जािा है । शकाब्द िों स्कार का उपयोग करिे हुये “ग्रहचारतनबन्धन” नामक
के .िी. शमाभ जी के अनुिार िररुसच का जन्म 400 A. D के ग्रन् की रचना की । इिी नई पद्धति को हररदत्त ने “परतहि” नाम
आिपाि हुआ था । िररुसच ने 248 चन्द्रिाक्योों का तनमाभण तकया की िों ज्ञा दी । िाक्यकरण, िेण्िारोह, स्फु टचन्द्रातप्त इत्यातद ग्रन्ोों
। तकिी एक नक्षत्र िे प्रारम्भ करके पुनः चन्द्र का उिी नक्षत्र िक की रचना का आधार ''परतहि'' पद्धति ही है ।
पहुोंच जाना एक भगण कहिािा है । चन्द्रमा को इि प्रकार का हररदत्त ने अपने ग्रन् “ग्रहचारतनबन्धन” में मन्द और शीघ्रफि की
एक भगण पूरा करने के सिये िगभग 27.5 तदन का िमय िग िूक्ष्मिा के सिये िाक्योों का प्रयोग तकया था । 13िीों शिाब्दी के
जािा है । एिे 9 भगण पूरे करने के सिये िररुसच ने 248 तदनोों एक अन्य गसणिज्ञ पुिुमन िोमयाजी ने स्फु टग्रहिाधन के सिये
को सिया क्यूों तक चन्द्र के 9 भगण पूरे होने पर 248 तदन िग जािे ''िाक्यकरण'' नाम के ग्रन् की रचना की । कु प्पन्नाशास्त्री एिों के .
हैं । 248 एक पूणाभङ्क है अिः इिको स्वीकार तकया गया । इिी िी शमाभ जी ने इि ग्रन् का रचनाकाि .1282-1316 A. D माना
प्रकार हम 110 भगण भी िे िकिे हैं । एिी स्थिति में 2992 है ।
चन्द्रिाक्योों की रचना करनी पडेगी ।
िररुसच के िाक्योों के आधार पर चन्द्रस्पष्ट
“िाक्य तिसध” अन्य िैद्धास्थन्तक तिसधयोों िे पूणभ रूप िे सभन्न है ।
जैिा तक हम प्रारम्भ में भी चचाभ कर चुके हैं तक िररुसच ने 248
सिद्धान्तग्रन्ोों में ििभप्रथम ित्कािीन अहगभण िाधन करके मध्यग्रह
चन्द्रिाक्योों की रचना की थी और उन िाक्योों को कटपयातद पद्धति
प्राप्त तकया जािा है। ित्पश्चाि् मन्दातद िों स्कारोों िे स्फु टग्रह का
िे अङ्कोों में पररितिभि तकया जािा है । उदाहरण स्वरूप हम िररुसच
िाधन तकया जािा है परन्तु चन्द्रिाक्य के िन्दभभ में एिा नहीों है ।
के प्रथम िाक्य ''गीनभः श्रेयः '' को िेिे हैं । कटपयातद पद्धति िे
िास्ति में अगर देखा जाये िो िाक्य का अथभ शब्द िमूह है परन्तु
इि िाक्य का मान 1203 प्राप्त होिा है सजििे 0r12o03′ यह
के रिीय ज्योतिष परम्परा में िाक्य का अथभ एक एिे पद िे हो
मान प्राप्त होिा है, यही प्रथम चन्द्रिाक्य का मान है । िाक्योों को
सजििे िङ्ख्यायोों का बोध हो जािा है । िररुसच एिों माधि ने
प्रयोग करने की तिसध कु छ इि प्रकार िे है– िूयोदय के िमय
स्फु टचन्द्र िाधन के सिये एिे िाथभक िों स्कृ ि िाक्योों की रचना
अगर चन्द्रमा का मान उिके मन्दोच्च के मान के िमान है िो उि
इिनी कु शििा िे की है तक अगर िाक्य को कटपयातद िङ्ख्या
चन्द्रमान में क्रमशः िाक्योों के मान को जोड दे ने िे िूयोदयकािीन
पद्धति िे तनरीक्षण तकया जाये िो यह िाक्य अङ्कोों में पररितिभि हो
स्फु टचन्द्र का मान प्राप्त होिा है । मान िीसजये x उि तदन का
जािे हैं जो तक चन्द्र के तनसश्चि अन्तराि में स्पष्ट मान हैं ।
चन्द्रस्फु ट है सजि तदन चन्द्र और इिके मन्दोच्च का मान िमान है
के रि में गसणि एिों खगोि शास्त्र का तिकाि आयभभट के सिद्धान्तोों और हमें उि तदन िे आगे के 5िें तदन का चन्द्रस्पष्ट अपेसक्षि है,
के आधार पर हुआ था परन्तु ित्कािीन के रि के तिद्वानोों ने यह

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इि स्थिति में हम x के मान में 5िें तदन के चन्द्रिाक्य के मान को में जोडने पर स्पष्टचन्द्र प्राप्त होिा है । इिी िरह िे हम िभी तदनोों
जोड देगें । एिा करने पर अमुक तदन का िूयोदयकािीन स्पष्ट का िूयोदयकािीन स्फु टचन्द्र इिी तिसध िे प्राप्त कर िकिे हैं ।
चन्द्र होगा । िाररणी 2 में देखने पर हमने यह पाया तक 5िाों मन्दोच्च एिों चन्द्रमान की िमानिा को हम नीचे तदये गये सचत्र िे
चन्द्रिाक्य ''धन्येयों नारी'' है एिों इिका मान 2r1o19′ है, इिको x िमझ िकिे है ।

इि सचत्र में बिन्त िम्पाि को Г कहा गया है यहाों िे हम ग्रहिाधन के सिये गणना करिे हैं । यहाों M चन्द्र है एिों U मन्दोच्च है । ГOU
एिों ГOM कोण θ हैं जोतक क्रमशः मन्दोच्च एिों चन्द्र का मान हैं जोतक िमान है । एिी आकाशीय स्थिति होने पर ही चन्द्रिाक्योों को
उपयोग में िाया जा िकिा है । चन्द्र एिों मन्दोच्च की मध्यगति पर स्फु ट चन्द्र तनभभर करिा है । ''िाक्यकरण' एिों ''स्फु टचन्द्रातप्त'’ में जो
चन्द्र एिों मन्दोच्च मध्यगति का मान तदया गया है िही मान िूि रूप िे ''करणपद्धति'’ में ''शकाब्द िों स्कार'’ के रूप में तदया गया है ।
''शकाब्द िों स्कार'’ इत्यातद इि शोध िेख के तिषय नहीों हैं अिः इनकी तिस्तृि चचाभ इि शोध िेख में नहीों की जायेगी । शोधिेखन का
मुख्य उद्दे श्य शोध छात्रोों एिों पाठकोों को चन्द्रिाक्य पद्धति िे अिगि कराना है िातक िह भी इि तदशा में शोध कर िकें ।

माधि के िाक्योों के आधार पर चन्द्रस्पष्ट


िङ्गमग्राम के माधि (1340-1425 A. D) ने िररुसच का अनुिरण करिे हुए पुनः अपने ग्रन् ''िेण्िारोह'' एिों ''स्फु टचन्द्रातप्त'' में 248
चन्द्रिाक्योों की रचना की जो तक िररुसच के चन्द्रिाक्योों िे असधक िूक्ष्म फि देने िािे हैं । िररुसच के चन्द्रिाक्य किा िक ही ग्रहस्पष्ट मान
देिे हैं परन्तु माधि के चन्द्रिाक्य तिकिा िक जो तक गसणिागि स्फुटचन्द्र के मान के िुल्य पाये जािे हैं ।

''िेण्िारोह'' एिों ''स्फु टचन्द्रातप्त'' में चन्द्रिाक्योों के िाधन के प्रकार बिाये गये हैं परन्तु िाक्य िाधन की युतियोों की चचाभ नहीों की गई है ।
पुिुमन िोमयाजी ने अपने ग्रन् ''करणपद्धति'' में युतियोों ितहि िाक्यिाधन की प्रतक्रया का प्रतिपादन तकया है ।

कटपयातद पद्धति
चन्द्रिाक्योों के अथभ को िमझने के सिये कटपयातद पद्धति का ज्ञान अपेसक्षि है इिी कारण िे कटपयातद पद्धति को िाररणी 1 में दशाभया गया
है । कटपयातद पद्धति के अनुिार व्यञ्जनोों को 1 िे 0 िक अङ्कोों िे द्योतिि तकया गया है । इि पद्धति के अन्तगभि स्वर को शून्य माना जािा
है परन्तु िों युि स्वर का ग्रहण नहीों तकया जािा । 33 व्यञ्जनोों को ही अङ्कोों के माध्यम िे बिाया जािा है । िाररणी 1 के आधार पर शब्दोों
का गसणिीय मान तनकािा जा िकिा है ।

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अङ्क 1 2 3 4 5 6 7 8 9 0
क ख घ घ ङ च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण ि थ द ध न
व्यञ्जन
प फ ब भ म - - - - -
य र ि ि श ष ि ह ळ -
Table 1: कटपयातद पद्धति का तििरण

िररुसच के अनुिार चन्द्रिाक्यशोधन प्रतक्रया


चन्द्रिाक्योों में कािक्रम िे कोई तिकार न आ जाये इि बाि को ध्यान में रखकर आचायों ने िाक्यशोधन प्रतक्रया का प्रतिपादन तकया ।
िररुसच के चन्द्रिाक्योों के तनरीक्षण िम्बन्धी उद्धृि श्लोक “िाक्यकरण” िे सिया गया है जो इि प्रकार है ।

भिेि् िुखस्य राशीनाों अधं िाक्यों िु मध्यमम् ।


आतदिाक्यमुपान्त्यों च भििीति `भिेि् िुखम्' ॥
यत्राप्यक्षरिन्देहः ित्र िों िाप्य `देिरम्' ।
त्यजेि् िद्गििाक्यातन, सशष्टों शोध्यों `भिेि् िुखाि्' ॥

रासशयोों के अधभ भाग में ''भिेि् िुखम्'' (248िाों िाक्य) जोड देने िे मध्यम िाक्य (124िाों) प्राप्त होिा है । आतदिाक्य में उपास्थन्तम िाक्य
जोड देने िे “भिेि् िुखम्” िाक्य (248िाों िाक्य) प्राप्त होिा है । [अिः ] जब भी िाक्य िम्बन्धी अक्षर में िन्देह हो िो ''देिरम्'' (248)
को सिख िें एिों उिमें िे िाक्य [िन्देह िम्बन्धी िाक्य] को घटा दें । जो शेष िाक्य िङ्ख्या [घटाने पर ] आयेगी उिको [उि िाक्य
िम्बन्धी मान को] “भिेि् िुखम्” (248िें िाक्य) िे घटा दें । [िन्देह िािा िाक्य इि प्रतक्रया िे शुद्ध हो जायेगा]

इि तिसध को हम उदाहरण के माध्यम िे िमझने का प्रयाि करेंगे । श्लोक की प्रथम पति के आधार पर तनम्नसिसखि िमीकरण बनिा है-

इिी िमीकरण को निीन पद्धति िे इि प्रकार सिखा जा िकिा है –

इि िमीकरण में 0r27o44′ ''भिेि् िुखम्'' है जो तक अस्थन्तम िाक्य है । एिों 6r13o52′ 124िें चन्द्रिाक्य का मान है सजिको श्लोक में
“मध्यमम्” कहा गया है ।

श्लोक की तद्विीय पति में “आतदिाक्यम्” िे असभप्राय प्रथम िाक्य िे है एिों “उपान्त्यम्” िे असभप्राय अन्त िािे िे पूिभ िाक्य िे है ।
प्रथम और उपान्त्य िाक्य के मानोों का योग 248िें िाक्य के मान के िुल्य हो जािा है जो तक कटपयातद में ''भिेि् िुखम्'' है ।

िररुसच का प्रथम चन्द्रिाक्य ''गीनभः श्रेयः '' है सजिका मान 12o03′ है एिों 247िें िाक्य का मान ''किेः शक्यम्'' 15o41′ है । इन दोनोों के
योग िे 248िाों िाक्य ''भिेि् िुखम्'' प्राप्त होिा है सजिका मान 27o44′ है । इि िूत्र को तनम्नसिसखि प्रकार िे बिाया जा िकिा है ।
िाi + िा२४८-i = िा२४८

आधुतनक तिसध िे इिी िमीकरण को तनम्नसिसखि प्रकार िे सिखा जा िकिा है -


Vi + V248−i = V248

मान िीसजये i का मान 5 है िब यह िमीकरण तनम्नसिसखि प्रकार िे बनेगा -


V5 + V248−5 = V248

i का मान 1 िे िेकर 248 िक होगा ।


श्लोक की अतग्रम पतियोों में िाक्य िन्देह के िमाधान हेिु युति बिाई गयी है जो इि प्रकार है– ििभप्रथम ''दे िरम्'' (248) को िातपि
करें । इिमें िे उि िाक्य को घटा िें सजिमें िन्देह है । जो भी शेष बचे उिके मान को ''भिेि् िुखम्'' (248िें िाक्य के मान) िे घटा

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िें, िस्थि िन्देहात्मक िाक्य का मान होगा । अगर एिा करने पर कोष्ठक पतठि मान ही उपिि होिा है िो िाक्य शुद्ध है अन्यथा अशुद्ध ।
इि प्रतक्रया को उदाहरण के माध्यम िे िमझा जा िकिा है ।

मान िीसजये 5िाों चन्द्रिाक्य िन्देहात्मक है अिः इिके मान की पुतष्ट करनी है । एिा होने पर श्लोकानुिार
िा२४८ - िा५ = िा२४३

िूत्र बनेगा एिों इिको निीन पद्धति िे इि प्रकार सिखा जा िकिा है–
V248 − V5 = V243

इि िाक्य शेष (V243) के मान को 248िें िाक्य के मान में िे घटाने पर


िा२४८ - िा२४३ = िा५

सजिको आधुतनक ढों ग िे तनम्नसिसखि प्रकार िे सिखा जा िकिा है–


V248 − V243 = V5

जो शेष तमिेगा िही िन्देहात्मक िाक्य का मान होगा । अगर कोष्ठक में सिखे हुये के िमान ही िाक्य का मान प्राप्त हो रहा है िो िाक्य
िही है अन्यथा गिि ।

िररुसच एिों माधि के चन्द्रिाक्य कोष्ठक में


नीचे प्रदत्त कोष्ठक में िररुसच द्वारा रसचि चन्द्रिाक्योों को उद्धृि तकया गया है एिों क्रमशः प्रत्येक चन्द्रिाक्य के िामने माधि जी के चन्द्रिाक्योों
को प्रस्तुि तकया गया है। िास्ति में माधि के चन्द्रिाक्य िररुसच के चन्द्रिाक्योों का पररष्कृ ि रूप ही हैं । इन चन्द्रिाक्योों की िङ्ख्या 248 है
। 248 चन्द्रिाक्योों िे असभप्राय क्रमशः 248 तदनोों के स्फु टचन्द्र िे है । नीचे तदये गये कोष्ठक में िररुसच एिों माधि के चन्द्रिाक्य एिों उनके
मान प्रस्तुि तकये गये हैं ।

िाक्य िों ख्या िररुसच के चन्द्रिाक्य माधि के चन्द्रिाक्य


कटपयातद पद्धति राश्यों शातद में कटपयातद पद्धति राश्यों शातद में
1. गीनभः श्रेयः 12o 03′ शीिों राज्ञः सश्रये 12o 02′ 35′′
2. धेनि श्री 24o 09′ सधतगदों नश्वरम् 24o 08′ 39′′
3. रुद्रस्तु नम्यः 1r 06o 22′ िोिः पुरुषो नायाभम् 1r 06o 21′ 33′′
4. भिो तह याज्यः 1r 08o 44′ िपस्वी िैतदकः स्याि् 1r 18o 44′ 16′′
5. धन्येयों नारी 2r 01o 19′ िेव्याळका तकन्नरैः 2r 01o 19′ 17′′
6. धनिान् पुत्रः 2r 14o 09′ दीप्रो तदने भास्करः 2r 14o 08′ 28′′
7. गुह्या िुरा राज्ञा1 2r 27o 13′ धमभरम्यों िुराष्टर म् 2r 27o 12′ 59′′
8. बािेन कु िम् 3r 10o 33′ स्तनौ िीिानुकूिौ 3r 10o 33′ 06′′
9. धनुसभभः खिैः 3r 24o 09′ पुत्रादौ न तिरागः 3r 24o 08/ 21′′
10 दश िूनिः 4r 07o 58′ शौररः िमथभ एि 4r 07o 57′ 25′′
11 होमस्य स्रुिः 4r 21o 58′ दुष्टैदेशोपद्रिः 4r 21o 58′ 18′′
12 दीनास्ते नृणाम् 5r 06o 08′ व्यग्रो जनः क्षुन्नाशे 5r 06o 08′ 021′′
13 मुखों नारीणाम् 5r 20o 25′ योगीश्वरो तनराशः 5r 20o 24′ 31′′
14 भिभग्नास्ते 6r 04o 44′ सशखण्डी भिनेषु 6r 4o 43′ 25′′
15 श्रीतनभधीयिे 6r 19o 02′ नागो यानासधपतिः 6r 19o 01′ 30′′
16 शों तकि नाथः 7r 03o 15′ पररणयेऽङ्गनेच्छा 7r 03o 15′ 21′′

1

गृह्या यह शब्द ग्राह्या नही है, ग्राह्या का भाव स्वीकृ त अर्थ में होता है, इस वाक्य में ग्राह्या का अर्थ उपेक्षा के भाव में लिया गया है । अष्टाधयायी के अनसार
“पदास्वैलरबाह्यापक्ष्येष ु च [3.1.119].

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17 श्रेष्ठा िा कथा 7r 17o 22′ कतिकण्ठिा कथा 7r 17o 21′ 41′′
18 िौख्यस्यानन्दः 08r 01o 17′ शीििम्पद्यानन्दः 8r 01o 17′ 35′′
19 ध्यानों मान्यों तह 8r 15o 01′ श्रीतिभना न मुकुन्दाि् 8r 15o 00′ 42′′
20 धीरो तह राजा 8r 28o 29′ तनराधारोऽतहराजः 8r 28o 29′ 20′′
21 श्रुत्वास्य युद्धम् 9r 11o 42′ कु बेरो तिकटधीः 9r 11o 42′ 31′′
22 अभिच्छर ाद्धम् 9r 24o 40′ स्तेनानाों श्वा तिरोद्धा 9r 24o 40′ 06′′
23 गोरिो ननु स्याि् 10r 07o 23′ दीघभरररोंिुनाभ नाके 10r 07o 22′ 48′′
24 द्रुमा धन्या नये 10r 19o 52′ िानरो मधुपानाढ्यः 10r 19o 52′ 04′′
25 इष्टों राज्ञः कु याभि् 11r 02o 10′ घनतनकरो तनयभयौ2 11r 02o 10′ 04′′
26 धन्या तिद्येयों स्याि् 11r 14o 19′ रोगे धैयभतिपयभयः 11r 14o 19′ 32′′
27 त्वों रक्षा राज्यस्य 11r 26o 24′ िूिो तगररसश्चत्रकू टः 11r 26o 23′ 37′′
28 क्षेत्रजः 8o 26′ स्तम्भमात्रो तह 8o 25′ 46′′
29 नीिे नेत्रे 20o 30′ धीरधीसस्त्रनेत्रः 20o 29′ 29′′
30 जिों प्राज्ञाय 1r 02o 38′ प्रपदौ गुरोनभम्यौ 1r 02o 38′ 12′′
31 शशी िन्द्यः स्याि् 1r 14o 55′ छन्नो माणिकः तकम् 1r 14o 55′ 07′′
32 गोरितप्रयः 1r 27o 23′ गानगोष्ठी िुखाय 1r 27o 23′ 03′′
33 िनातन यत्र 2r 10o 04′ काकु ध्वतननभकाराि् 2r 10o 04′ 11′′
34 अन्नों गोत्रश्री: 2r 23o 00′ िनुनभ नगरे श्रीः 2r 23o 00′ 06′′
35 रुष्टास्ते नागाः 3r 06o 12′ शैिाः पुस्थििनगाः 3r 06o 11′ 35′′
36 सधगन्धः तकि 3r 19o 39′ िोिो जिसधः तकि 3r 19o 38′ 33′′
37 पुरोगा अभीः 4r 03o 21′ धनी नरोऽङ्गनािान् 4r 03o 20′ 09′′
38 मान्यः ि कति: 4r 17o 15′ ििभतिद् व्यािः कतिः 4r 17o 14′ 47′′
39 अररष्टनाशम् 5 r01o 20′ स्तेनेन द्रव्यनाशः 5r 01o 20′ 06′′
40 बािो मे के श: 5r 15o 33′ िूयो बिमाकाशे 5r 15o 33′ 17′′
41 कु शधाररण: 5r 29o 51′ मनुष्यो मधुरात्मा 5r 29o 51′ 05′′
42 इतष्टतिभद्यिे 6r14o 10′ गानों नेष्टों तिपत्तौ 6r 14o 10′ 03′′
43 ि राजा प्रीि: 6r 28o 27′ पिभचन्द्रोऽतहग्रस्तः 6r 28o 26′ 41′′
44 िुगुप्रायोऽिौ 7r 12o 37′ भोगेच्छािों तप्रयेऽथे 7r 12o 37′ 34′′
45 सधगस्तु ह्रािः 7r 26o 39′ मागधो गीिरिः 7r26o 39′ 35′′
46 अङ्गातन यदा 8r 10o 30′ िीनो नागो तनकु ञ्जे 8r 10o 30′ 03′′
47 िेनािान् राजा 8r 24o 07′ गामुक्षा न तिरेजे 8r 24o 06′ 53′′
48 धीराः िन्नद्धा 9r 07o 29′ रिौ हरेः ितन्नसधः 9r 07o 28′ 42′′
49 शािीनों प्रधानम् 9r 20o 35′ िणाभन् िागनुरुन्धे 9r 20o 34′ 54′′
50 क्षीरों गोनो नयेि् 10r 03o 26′ भािे स्मरोऽङ्गनानाों स्याि् 10r 03o 25′ 44′′
51 रत्नचयो नृपः 10r 16o 02′ गायत्री नास्थस्तकै तनभन्द्या 10r 16o 02′ 13′′
52 िाः प्रजाः प्राज्ञाः स्युः 10r 28o 26′ धनों चोरो हरेतन्नत्यम् 10r 28o 26′ 09′′
53 अश्वानाों को योग्यः 11r 10o 40′ धमं सधगनपायस्य 11r 10o 39′ 59′′
54 िद्वैरों तप्रयायाः 11r 22o 46′ धीगतिभभद्ररूपेयम् 11r 22o 46′ 39′′
55 धिस्त्वम् 04o 49′ क्षीरािौ तिभुः 4o 49′′ 26′′

2
वेण्वारोह एवं स्फुटचन्द्राप्ति में “धनननकरो ननर्यर्ौ” दिर्ा गर्ा है प्िसका मान 11r 02o 10′ 09′′ है ।

@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD52171 | Volume – 6 | Issue – 6 | September-October 2022 Page 1785
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56 ग्रामस्तस्य 16o 52′ यमोऽयमस्थन्तके 16o 51′ 51′′
57 जन्मजरा 28o 28′ गौरी िाणोदाभराः 28o 57′ 33′′
58 इष्टका कायाभ 1r 11o 10′ गरळों नोपयुञ्ज्याि् 1r 11o 09′ 23′′
59 कु िगुरुः स्याि् 1r 23o 31′ गोमानिों गरीयान् 1r 23o 30′ 53′′
60 मुतनस्तु उग्रः 2r 06o 05′ िुग्रीिोऽनन्ततनष्ठः 2r 06o 04′ 27′′
61 प्रमोदकरः 2r 18o 52′ प्राज्ञो रामो दैत्याररः 2r 18o 52′ 02′′
62 शशाङ्कानुगः 3r01o 55′ अशुभाशया नागाः 3r 01o 54′ 50′′
63 िक्ष्यातम कािम् 3r 15o 14′ चपिः कामपािः 3r 15o 13′ 16′′
64 िम्भेदः खिैः 3r 28o 47′ िाग्मी िु िादरागी 3r 28o 46′ 54′′
65 शीितप्रयस्त्वम् 4r 12o 35′ गङ्गा भागीरथ्यभूि् 4r 12o 34′ 33′′
66 िेिािरिः 4r 26o 34′ िपस्वीगतिरूध्वभम् 4r 26o 34′ 16′′
67 तिसभन्नों कमभ 5r 10o 44′ जरद्गिोऽनुद्यम् 5r 10o 43′ 28′′
68 धमभिान् रामः 5r 24o 59′ िूनुधाभमाभरणम् 5r 24o 59′ 07′′
69 तदग्वयाळो नास्थस्त 6r 09o 18′ गुणोऽिूया धतनषु 6r 09o 17′ 53′′
70 िे बािा भ्रान्ताः 6r 23o 36′ तिकृ िा गौडरीतिः 6r 23o 36′ 14′′
71 कामािन्नः िः 7r 07o 51′ िघुनभ मैथुनेच्छा 7r 07o 50′ 43′′
72 होमों पुत्राथभम् 7r 21o 58′ आनन्दमयो रिः 7r21o 58′ 00′′
73 मसणमाभनदः 8r 05o 55′ कल्पः सशशुमभनुजः 8r 05o 55′ 11′′
74 नातिद्धः पादे 8r 19o 40′ दृढधीिभिपदः 8r 19o 39′ 48′′
75 उत्पिों तनसधः 9r 03o 10′ िीना आपोऽम्बुतनधौ 9r 03o 10′ 03′′
76 शूद्रस्तु योद्धा 9r 16o 25′ क्षामिाररस्तोयसधः 9r 16o 24′ 56′′
77 तिरुद्धों स्त्रीधनम् 9r 29o 24′ भाग्यतिरोधः क्रोधाि् 9r 29o 24′ 14′′
78 हीनप्रायो नटः 10r 12o 08′ धरा हीनाश्रया तनत्यम् 10r 12o 08′ 29′′
79 सधगश्वः सखन्नोऽयम् 10r24o 39′ जनोऽन्धो गत्वरो नश्येि् 10r 24o 39′ 08′′
80 तदशिु नः पथ्यम् 11r 06o 58′ मुकुन्दान्मोक्ष उपेयः 11r 06o 58′ 15′′
81 जनोऽन्धः पापकः 11r 19o 08′ आगोहीनोऽसधकः पटु ः 11r 19o 08′ 30′′
82 गृह्या स्याि् 1o 13′ ज्ञानी गाग्याभय 1o 13′ 00′′
83 मान्यों िोके 13o 15′ कृ पणः कौस्थण्डन्यः 13o 15′ 11′′
84 धन्यः शरैः 25o 19′ िोिा दीपसशखा 25o 18′ 33′′
85 िुखी ि तनत्यम् 1r 07o 27/ स्वगभस्तु प्राथभनीयः 1r 07o 26′ 34′′
86 िाभो धान्यस्य 1r 19o 43′ िौभ्रात्रों िासधकों स्याि् 1r 19o 42′ 27′′
87 अङ्कुरों नीरे 2r 02o 10′ िीनोऽळीनो तत्रनेत्रः 2r 02o 09′ 03′′
88 धािद्वैद्योऽत्र 2r 14o 49′ सधगाहितिकारः 2r 14o 48′ 39′′
89 गत्वा िुराष्टर म् 2r 27o 43′ सशसशरा िािरश्रीः 2r 27o 42′ 55′′
90 गमनकािम् 3r 10o 53′ असभरामा नकु िी 3r 10o 52′ 40′′
91 दयािान् रोगी 3r 24o 18′ धमोऽथभः पूिभरङ्गः 3r 24o 17′ 59′′
92 होमिानों िनम् 4r 07o 58′ भानुजो तमथुनेऽभूि् 4r 07o 58′ 04′′
93 श्रीमान् पुत्रो िा 4r 21o 52′ रौद्रो यमस्यारम्भः 4r 21o 51′ 22′′
94 िन्मम नाम 5r 05o 56′ सधगाशामशनेऽस्थस्मन् 5r 05o 55′ 39′′
95 दानानाों क्रमः 5r 20o 08′ जनादभनो नरेशः 5r 20o 08′ 08′′
96 क्षेत्रिानस्तु 6r 04o 26′ मृगाः िूरा िनान्ते 6r 04o 25′ 35′′

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97 शम्भुजभयति 6r 18o 45′ चण्डो िै भोजपतिः 6r 18o 44′ 36′′
98 रत्नाङ्गनाथाभ 7r 03o 02′ धीगम्योऽनङ्ग आिीि्3 7r 03o 01′ 39′′
99 िक्ष्योऽिौ पाथभः 7r 17o 13′ धैयाभियः िन्यािी 7r 17o 13′ 19′′
100 िापत्यतनन्दा 8r 01o 17′ चन्द्राि् िापापनोदः 8r 01o 16′ 26′′
101 जनो मान्यो तह 8r 15o 08′ िेव्यो जनैमुभकुन्दः 8r 15o 08′ 17′′
102 ि िादी राजा 8r 28o 47′ असभषिोऽहरहः 8r 28o 46′ 40′′
103 आकारो युद्धम् 9r 12o 10′ कायोऽनायैरुपसधः 9r 12o 10′ 11′′
104 दास्यातम श्राद्धम् 9r 25o 18′ मानदेयों मुरळी 9r 25o 18′ 05′′
105 कायभहातननाभयाभ 10r 08o 11′ ज्विनो यजने नम्यः 10r 08o 10′ 34′′
106 दम्भान्नरा नष्टाः 10r 20o 48′ क्रीडा दृढा नरनायोः 10r 20o 48′ 32′′
107 तिकिानाों कायाभः 11r 03o 14′ तिश्वों गोपाि एकाकी 11r 03o 13′ 44′′
108 हरणों पाद्यस्य 11r 15o 28′ फिाहारो मुख्यकल्पः 11r 15o 28′ 32′′
109 िुिा िम्प्रत्यया 11r 27o 36′ धन्वी शूिी िुरैः पूज्यः 11r 27o 35′ 49′′
110 सधगन्धः 9o 39′ गोमदो गळी 9o 38′ 53′′
111 कतिः पुत्रः 21o 41′ धनुज्याभ तिपाठा 21o 41′ 09′′
112 ित्त्वाङ्गनेयम् 1r 03o 46′ आढ्यः षड्भागैनृभपः 1r 03o 46′ 10′′
113 जीणो मे कायः 1r 15o 58′ धन्यः िाणुमुपेयाि् 1r 15o 57′ 19′′
114 दया हरस्य 1r 28o 18′ सधगिौख्यों तहरण्याि् 1r 28o 17′ 39′′
115 अशनपरः 2r 10o 50′ देिो धािन्नैकत्र 2r 10o 49′ 48′′
116 िािुिेखोऽत्र 2r 23o 36′ िन्वी शीिगररष्ठा 2r 23o 35′ 46′′
117 िङ्गिो नागः 3r 06o 37′ िक्ष्मीस्तुङ्गस्तनाङ्गी 3r 06o 36′ 53′′
118 तिशुद्धो योगी 3r 19o 54′ चिा िक्ष्मीधभन्यगा 3r 19o 53′ 36′′
119 िाराङ्गों नभः 4r 03o 26′ सधगशीघ्रगा नािः 4r 03o 25′ 39′′
120 तप्रयाथं कतिः 4r 17o 12′ पूणभः पयिा कु म्भः 4r 17o 11′ 51′′
121 पापोऽयों तनसश 5r 01o 11′ कतठनोऽयों कीनाशः 5r 01o 10′ 21′′
122 धन्यो मान्योऽम्शे 5r 15o 19′ सधगहोंयुमकस्माि् 5r 15o 18′ 39′′
123 भोगाधं रामा 5r 29o 34′ षड्भागबन्धुरीशः 5r 29o 33′ 46′′
124 रामा गीयिे 6r 13o 52′ कठोरो मृगपतिः 6r 13o 52′ 21′′
125 अत्याहारस्तु 6r 28o 10′ क्षीणो न व्याहरति 6r 28o 10′ 56′′
126 शारीरकोऽिौ 7r 12o 25′ धमभशास्त्रों श्रेयिे 7r 12o 25′ 59′′
127 िोिचक्रिः 7r 26o 33′ िोकोऽसभिाषी रिे 7r 26o 34′ 13′′
128 प्रागतनिदम् 8r 10o 32′ िागरो गोनभ पदम् 8r 10o 32′ 37′′
129 तदव्यिान् राजा 8r 24o 18′ रतिजुष्टों िाररजे 8r 24o 18′ 42′′
130 अोंशासथभनोधधः 9r 07o 50′ िाम्बोऽतनशों िन्नद्धः 9r 07o 50′ 37′′
131 िेनायाः क्रोधः 9r 21o 07′ प्रत्यािन्नः पुरोधाः 9r 21o 07′ 12′′
132 दानों भानोनभष्टम् 10r 04o 08′ इतष्टदाभनों तिना नेष्टा 10r 04o 08′ 10′′
133 भूतमस्तस्य तनत्यम् 10r 16o 54′ नानासभमिों कनकम् 10r 16o 54′ 00′′
134 चक्राधं प्राज्ञाय 10r 29o 26′ श्रीनिः श्रीधरो तनत्यम् 10r 29o 26′ 02′′
135 िा भायाभः पापोऽयम् 11r 11o 46′ िुकृतिः स्वयों पाककृ ि् 11r 11o 46′ 17′′

3
“आसीत”् स्फुटचन्द्रालि से लिया गया है जबलक वेण्वारोह में “इव” लदया गया है जो लक उलचत प्रतीत नहीं होता ।

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136 तदशोऽम्बराण्यस्य 11r 23o 58′ काष्ठिमा गात्रयतष्टः 11r 23o 57′ 21′′
137 ग्लौनाभस्थस्त 6o 03′ अरररनाप्तः 6o 02′ 20′′
138 मीनजेयम् 18o 05′ चण्डभानुजभयी 18o 04′ 36′′
139 दानातन तनत्यम् 1r 00o 08′ व्यिस्थच्छन्नोऽनुनयः 1r 00o 07′ 41′′
140 िपः श्रेयः स्याि् 1r 12o 16′ कीनाशो व्याघ्रकल्पः 7r 12o 15′ 01′′
141 अम्बुसभररष्टैः 1r 24o 30′ िाङ्माधुरी िरेण्या 1r 24o 29′ 54′′
142 क्षमास्तु नरैः 2r 06o 56′ श्रीकृ ष्णो मोक्षतनष्ठः 2r 06o 55′ 12′′
143 िोिधीः पुत्रः 2r 19o 33′ हृष्टो िीिासधकारी 2r 19o 33′ 18′′
144 िे रौद्रा नागाः 3r 02o 26′ स्वामी शरीरेऽतनिः 3r 02o 25′ 54′′
145 तििोमकु िम् 3r 15o 34′ िाणुगभङ्गाशयािुः 3r 15o 33′ 57′′
146 ि मन्दो रागी 3r 28o 57′ िैिाथध मन्दरोगी 3r 28o 57′ 36′′
147 िैितप्रयस्त्वम् 4r 12o 36′ िानाच्चिा ररपिः 4r 2o 36′ 07′′
148 िाम्प्रिों रतिः 4r 26o 17′ तिनोदरुसचः प्रभुः 4r 26o 28′ 04′′
149 कु िानाों कमभ 5r 10o 31′ िाध्यो योगो तनयमाि् 5r 10o 31′ 17′′
150 श्रुत्वा स्वरासण 5r 24o 42′ पत्नी गभाभभरणा 5r 24o 43′ 01′′
151 धमो दानों िु 6r 08o 59′ स्तेनो न तनधभनैषी 6r 09o 00′ 06′′
152 दूष्यों गोत्रों िे 6r 23o 18′ िेनासधकाङ्गरक्षा 6r 23o 19′ 07′′
153 िुिासथभनोऽथध 7r 07o 36′ श्रीगधिाििा नािीि् 7r 07o 36′ 32′′
154 सजत्वास्य रथः 7r 21o 48′ धमाभज्जीिेि् परािुः 7r 21o48′ 59′′
155 श्रमणो तनन्दा 8r 05o 52′ धनी गुणी मनुजः 8r 05o 53′ 09′′
156 षतिधान्याहुः 8r 19o 46′ पररषत्स्वसधके हा 8r 19o 46′ 21′′
157 ित्र गोतनभसधः 9r03o 26′ तदव्यः क्षीराम्बुतनसधः 9r 03o 26′ 18′′
158 के शास्ते काळाः 9r 16o 51′ धीरः कणभस्तु योद्धा 9r 16o 51′ 29′′
159 यानातन नो नयेि् 10r 00o 01′ िनयो ज्ञातननाों नम्यः 10r 00o 01′ 06′′
160 सशसशरे पानीयम् 10r 12o 55′ गोकणभतमत्रों तपनाकी 10r 12o 55′ 13′′
161 भोगमात्रों तनत्यम् 10r 25o 34′ प्रभिो गुणरत्नाढ्याः 10r 25o 34′ 42′′
162 यूनाों दानों पथ्यम् 11r 08o 01′ प्रकृ त्याऽऽनन्द उत्पाद्यः 11r 08o 01 12′′
163 ित्येन श्रेयः स्याि् 11r 20o 17′ अनिूया तनरपाया 11r 20o 17′ 00′′
164 मुखे श्रीः 2o 25′ सजष्णुिभररष्ठः 2o 24′ 58′′
165 धारािृतष्टः 14o 29′ तदश्यातदन्द्रो भाग्यम् 14o 28′ 18′′
166 पसििों राज्ञः 0r 26o 31′ नगो नगोऽचरि् 26o 30′ 30′′
167 िैिजा नायभः 1r 08o36′ गानशीिो जनोऽयम् 1r 08o 35′ 03′′
168 िासभनभराः स्युः 1r 20o 46′ पुराणो भानुरीड्यः 1r 20o 45′ 21′′
169 मीनिग्नेऽत्र 2r 03o 05′ बािोऽभून्नीिनेत्रः 2r 03o 04′ 33′′
170 िािुमध्ये श्रीः 2r 15o 36′ जटी शूिी शङ्करः 2r 15o 35′ 18′′
171 नोग्रा दारा राज्ञः 2r 28o 20′ प्रिृद्धोऽयों जाठरः 2r 28o 19′ 42′′
172 धन्यः स्याि् कािः 3r 11o 19′ ितन्नधौ स्याि् कपािी 3r 11o 19′ 07′′
173 िगे त्वों खिैः 3r 24o 34′ दीनेष्वीडा तिफिा 3r 24o 34′ 08′′
174 श्वानो दीनो िा 4r 08o 04′ खाण्डिघ्नो जनो िै4 4r 08o 04′ 32′′

4
वेण्वारोह एवं स्फुटचन्द्रालि में “बािेऽवज्ञो जनो वै” उद्धृत है एवं इसका मान 4r 08o 04′ 13′′ है ।

@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD52171 | Volume – 6 | Issue – 6 | September-October 2022 Page 1788
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175 धिाः कारिः 4r 21o 49′ िौम्यधीः स्वयों प्रभुः 4r 21o 49′ 17′′
176 क्षोभः शनैः शनैः 5r 05o 46′ बािास्तु िास्थग्मनोऽमी 5r 05o 46′ 33′′
177 गोशुतद्धकामः 5r 19o 53′ शशिक्ष्मासधकाोंशुः 5r 19o 53′ 55′′
178 दीनो िो ज्ञातिः 6r 04o 08′ िुखदों निनीिम् 6r 04o 08′ 27′′
179 ित्र दीयिे 6r 18o 26′ धन्वन्तररजभयति 6r 18o 26′ 49′′
180 शोभा राज्ञः िेना 7r 02o 45′ िागीशो िारनाथः 7r 02o 45′ 34′′
181 आज्ञा िाध्या िा 7r 17o 00′ पयस्यतनच्छा कथम्5 7r 17o 01′ 11′′
182 नटस्यानन्दः 8r 01o 10′ धान्ये न कस्यानन्दः 8r 01o 10′ 19′′
183 धनेशोऽयों जनः 8r 15o 09′ शमधनाः शापदाः 8r 15o 09′ 55′′
184 ि मन्दो ह्रदः 8r 28o 57′ चाराथध महाराजः 8r 28o 57′ 26′′
185 नागरो युद्धः 9r12o 30′ िोमोऽनङ्गाररव्याभधः 9r 12o 30′ 57′′
186 धीिशः क्रोधः 9r 25o 49′ मत्योऽधन्वा शरधीः 9r 25o 49′ 15′′
187 श्रमो दीनो तनत्यम् 10r 08o52′ शशी कु मुतदनीनम्यः 10r 08o 51′ 55′′
188 धूिी स्याद्राज्ञोऽयम् 10r 21o 39′ रुद्रो धीगम्यः प्राज्ञैः स्याि् 10r 21o 39′ 22′′
189 बाह्यिने योग्यम् 11r 04o 13′ ईशतप्रयो तिनायकः 11r 04o 12′ 50′′
190 तिगिपापोऽयम् 11r 16o 34′ तिद्योज्ज्विा िातकभ कस्य 11r 16o 34′ 14′′
191 िािदत्र कायभः 11r 28o 56′ धनाप्ताभूदतद्रकन्या 11r 28o 46′ 09′′
192 ग्रामो नष्टः 10o 52′ दुगेयमतनन्द्या 10o 51′ 38′′
193 शशी रात्रौ 22o 55′ प्राज्ञौ तिष्णुरुद्रौ 22o 54′ 02′′
194 दुः शुभा नष्टाः 1r 04o 58′ पद्माक्षी शोभनास्या 1r 04o 56′ 51′′
195 भानुः िद्यः स्याि् 1r 17o 04′ भगो गोनाथः पूज्यः 1r 17o 03′ 34′′
196 दयाधं श्रेयः 1r 29o 18′ हररः िेव्यो धरया 1r 29o 17′ 28′′
197 प्रभायाः पुत्रः 2r 11o 42′ पौिस्त्यो भयङ्करः 2r 11o 41′ 31′′
198 हयभश्वः श्रेष्ठः 2r 24o 18′ िाने जयो िररष्ठः 2r 24o 18′ 07′′
199 धनुः िेनाङ्गम् 3r 07o 09′ मानधनः िानुगः 3r 07o 0′ 05′′
200 शाक्यज्ञोऽरागी 3r 20o 15′ िरुणः को न रागी 3r 20o 15′ 26′′
201 िसििों निम् 4r 03o 37′ गौरी ििीिा न िा 4r 03o 37′ 23′′
202 िैद्यः ि कतिः 4r 17o 14′ करीभव्योऽिौ युिा 4r 17o 14′ 21′′
203 मेनका नाम 5r 01o 05′ िमस्थस्वनीयों तनशा 5r 01o 04′ 56′′
204 िेना मध्यमा 5r 15o 07′ रत्नािनमुपेमः 5r 15o 07′ 02′′
205 िों युद्धक्रमः 5r 29o 17′ हेम िम्पद्धाररणाम् 5r 29o 17′ 58′′
206 स्वगभिोकोऽस्थस्त 6r 13o 34′ जडो तिडम्बयति 6r 13o 34′ 38′′
207 गुणाथध रतिः 6r 27o 53′ िसििाशा िम्प्रति 6r 27o 53′ 37′′
208 काव्यतप्रयोऽिौ 7r 12o 11′ गुरुकाये प्रयािः 7r 12o 11′ 23′′
209 भद्रिरोऽथध 7r 26o 24′ पाण्डिाः प्राप्तरथाः 7r 26o24′ 31′′
210 धू राज्ञः पादे 8r 10o 29′ सशिधीरनापदे 8r 10o 29′ 45′′
211 गुरुिभरदः 8r 24o 23′ चापी िीरो तद्वरदे 8r 24o 24′ 16′′
212 मानदो तनसधः 9r 08o 05′ शश्वन्मौनी जनोऽन्धः 9r 08o 05′ 45′′
213 रङ्गस्य श्रद्धा 9r 21o 32′ मूिों फिाढ्यश्राद्धः 9r 21o 32′ 35′′

5
वेण्वारोह एवं स्फुटचन्द्राप्ति में “फलज्ञानेच्छा कथम ्” उद्धि
ृ है एवं इसका मान 7 17 00′ है ।
r o

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214 स्वभािो ज्ञानस्य 10r 04o 4′ िमािाभो घनो तनत्यम् 10r 04o 43′ 56′′
215 अििेयों नायाभः 10r 17o 40′ प्रभोसधभगच्छकनकम् 10r 17o 39′ 32′′
216 पुत्रो ज्ञानाढ्योऽयम् 11r 00o 21′ िैश्वानरों नानुयायाि् 11r 00o 20′ 44′′
217 धिः श्रेयः पथ्यम् 11r 12o 49′ रागातदिैराग्यों पथ्यम् 11r 12o 48′ 32′′
218 िेन शरैः पटु ः 11r 25o 06′ श्रीरामनाम रम्याग्र्यम् 11r 25o 05′ 22′′
219 िैद्योऽिौ 7o 14′ प्रज्ञािान् पाथभः 7o 14′ 02′′
220 हयो धन्यः 19o 18′ बीभत्सुयोधोऽयम् 19o 17′ 43′′
221 अतप्रयो नये 1r 01o 2′ ग्रामासधपः कनकी 1r 01o 19′ 52′′
222 शास्त्रबाह्योऽयम् 1r 13o 25′ धस्थिल्ले फु ल्लपुिम् 1r 13o 23′ 59′′
223 भोगमात्रस्य 1r 25o 34′ कािो बिी शरण्यः 1r 25o 33′ 31′′
224 ग्रामाथध नरः 2r 07o 52′ िुङ्गयशिो नराः 2r 07o 51′ 36′′
225 यात्रान्नों श्रेष्ठम् 2r 20o 21′ धमभज्ञाः प्राङ्नरेन्द्राः 2r 20o 20′ 59′′
226 सभन्नाङ्गो नागः 3r 03o 04′ दीघाभङ्गो नीिनागः 3r 03o 03′ 48′′
227 प्रज्ञािो योगी 3r 16o 02′ फिाढ्यो ऋिुकािः 3r 16o 01′ 32′′
228 मुख्यो धीरो िीनः 3r 29o 15′ के शिो योद्धा रङ्गे 3r 29o 14′ 51′′
229 गािः तप्रया िः 4r 12o 43′ िौबिो िरयुिा 4r 12o 43′ 37′′
230 िुरिसिसभः 4r 26o 27′ पद्मेषु रन्ता रतिः 4r 26o 26′ 51′′
231 तत्रराज्ञाङ्कुशाः 5r 10o 22′ भ्रमरश्रीतनभकामम् 5r 10o 22′ 52′′
232 धारासभः श्रमः 5r 24o 29′ िपोधराः स्वैररणः 5r 24o 29′ 16′′
233 तत्रसभहाभतनस्ते 6r 08o 4′ आद्यो गोतिन्द एषः 06r 08o 43′ 10′′
234 अनङ्गासश्रिा 6r 23o 00′ ित्काव्यज्ञोऽम्बरीषः 6 6r 23o 01′ 17′′
235 धन्यः ि नाथः 7r 07o 19′ उद्यानों स्त्रीिनाथम् 7r 07o 20′ 10′′
236 तििस्य रिः 7r 21o 36′ दीपिैिों पात्रिम् 7r 21o 36′ 18′′
237 िि मानदः 8r 05o 46′ िूयोऽस्तु िो मानदः 8r 05o 46′ 17′′
238 षतिधों पदम् 8r 19o 46′ भानुः ििाभसधको तह 8r 19o 47′ 04′′
239 मङ्गिों नीळम् 9r 03o 35′ पीनोत्तुङ्गाङ्गो नळः 9r 03o 36′ 01′′
240 योग्यः िों युद्धे 9r 17o 11′ हीनपापः िुयोद्धा 9r 17o 11′ 08′′
241 योगो ज्ञातननः स्याि् 10r 00o 31′ िूनुः कु िीनोऽनुनेयः 10r 00o 31′ 07′′
242 शैिाियो नम्यः 10r 13o 35′ धरणो बिीयानाढ्यः 7 10r 00o 31′ 07′′
243 मसििों प्राज्ञाय 10r 26o 25′ बािेऽसभरुसचरनल्पा 10r 26o 24′ 33′′
244 अतनधानों कपेः 11r 09o 00′ स्थिरधीमभहीनायकः 11r 08o 59′ 27′′
245 श्रोतत्रयः तप्रयस्य 11r 21o 22′ स्वनाभरी रम्यरूपाढ्या 11r 21o 22′ 04′′
246 मङ्गिम् 3o 35′ भीमो िििः 3o 34′ 54′′
247 किेः शक्यम् 15o 41′ शशी नभोमध्ये 15o 40′ 55′′
248 भिेि् िुखम् 27o 44′ धीरगीभाभिुरा 27o 43′ 29′′
Table 2: िररुसच एिों माधि के चन्द्रिाक्योों की िुिना

6
वेण्वारोह एवं स्फुटचन्द्रालि में “षट्काव्यज्ञोऽम्बरीय” उद्धत
ृ है एवं इसका मान 6 23 01′ 16′′ है ।
r o

7
वेण्वारोह एवं स्फुटचन्द्राप्ति में “िरुणो बलीर्ानाढ्र्” उद्धि
ृ है एवं इसका मान 10 13 35′ 26 है ।
r o //

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तनष्कषभ [10] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, with
Laghuvivṛti, ed. by S. K. Pillai, Trivandrum
माधि के चन्द्रिाक्य िररुसच के चन्द्रिाक्योों की िुिना में असधक
1958.428.
िूक्ष्म हैं । िररुसच ने जहाों किा िक ही चन्द्रिाक्योों के मान का
[11] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, with
िाधन तकया है िहीों माधि ने इनका िाधन तिकिा िक कर तदया Yuktidīpikā (for chapters I–IV) and Laghuvivṛti
है । चन्द्रिाक्योों के िम्बन्ध में और भी जैिे शकाब्दिों स्कार, ध्रुि, (for chapters V–VIII) of Śaṅkara Vārīyar ed. by
खण्ड, मण्डि इत्यातद तिषय चन्द्रिाक्योों के िन्दभभ में अपेसक्षि हैं K. V. Sarma, VVRI, Hoshiarpur 1977.

परन्तुतिस्तार भय िे यहाों इन तिषयोों की चचाभ नही की गई है । [12] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, tr. by
V. S. Nara- simhan, Indian Journal History of
चन्द्रिाक्योों की िहायिा िे हम 248 तदनोों के चक्र में स्फु टचन्द्र Science, INSA, New Delhi 1998-99.
प्राप्त कर िेिे हैं । िाक्योों के मान िम्बन्धी िों शय तनिारण हेिु [13] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, tr.
प्रतक्रया का भी इि शोध पत्र में िणभन तकया गया है । भतिष्य में with mathematical notes by K.
चन्द्रिाक्य िम्बन्धी अन्य तिषयोों को िेकर पृथक् शोध पत्र सिखने Ramasubramanian and M. S. Sriram, HBA,
Delhi and Springer, London 2011.
की हमारी योजना है ।
[14] Vākyakaraṇa with the commentary by
िन्दभभ ग्रन् Sundararāja, ed. by T. S. Kuppanna Sastri and
[1] Āryabhaṭīyaṃ of Āryabhaṭa with the K. V. Sarma, KSRI, Madras, 1962.
commentary Bhaṭadīpikā of Parameśvara, ed. [15] Veṇvāroha by Mādhava, ed. with Malayalam
by B. Kern, Leiden 1874 (repr. 1906, 1973). commentary of Acyuta Piṣāraṭi by K. V. Sarma,
[2] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭa, ed. with tr. and notes The Sanskrit College Committee, Tripunithura,
by K. S. Shukla and K. V. Sarma, INSA, New Kerala 1956.
Delhi 1976.
[3] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭācārya with the सन्दर्भ शोधपत्र
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan, Part I, [1] Hari K. Chandra, Vākyakaraṇa: A study,
Gaṇitapāda, ed. by Sāmbaśiva Śāstrī, Indian Journal of History of Science, pp. 127-
Trivandrum Sanskrit Series 101, Trivandrum 149, 36, 2001.
1930.
[2] Hari K. Chandra, Computation of the true
[4] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭācārya with the moon by Mādhava of Saṅgamagrāma, Indian
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan, Part II, Journal of History of Science, pp. 231-253, 38,
Kālakriyāpāda, ed. by Sāmbaśiva Śāstrī, 2003.
Trivandrum Sanskrit Series 110, Trivandrum
1931. [3] Madhavan S., Veṇvāroha from a modern
perspective, Indian Journal of History of
[5] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭācārya with the Science, pp. 699-717, 49,2012.
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan, Part
III, Golapāda, ed. by Śūranāḍ Kuñjan Pillai, [4] Mahesh K., Pai R. Venketeswara and
Trivandrum Sanskrit Series 185, Trivandrum Ramasubramanian K., ’Turning an algebraic
1957. identity into an infinite series’, in History of
Mathematical Science II, eds. B. S. Yadav and
[6] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭa with the commentary S. L. Singh, Cambridge Scientific Publishers,
of Bhāskara I and Someśvara, ed. by K. S. UK 2010, pp. 61-81.
Shukla, INSA, New Delhi 1976.
[5] Mahesh K., Pai R. Venketeswara and
[7] Candracchāyāgaṇita of Nīlakaṇṭha Somayājī, Ramasubramanian K., Mādhava series for π
with auto- commentary, ed. and tr. by K. V. and its fast convergent approximations,
Sarma, VVRI, Hoshiarpur 1976. Astronomy and Mathematics in Ancient India,
[8] Candravākyas of Vararuci, C. Kunhan Raja, ed. J. M. Delire, Peeters Publishers, Leuven
Adyar Library, Madras 1948. 2012, pp. 175-198
[9] Karaṇapaddhati of Putumana Somayājī, tr. with [6] Pai R. Venketeswara, Joshi Dinesh Mohan and
mathematical notes by Venketeswara Pai, K. Ramasubramanian K., The Vākya method of
Ramasubramanian, M.S. Sriramm and M. D. finding the moon’s longitude, Gaṇita Bhāratī,
Srinivas, HBA, Delhi and Springer, London pp. 39-64, 31, No. 1-2, 2009.
2018.

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[7] Pai R. Venketeswara, Mahesh K. and [9] Pai R. Venketeswara, Ramasubramanian K.,
Ramasubramanian K., Kriyākalāpa: A Srinivas M. D. and Sriram M. S., The
Commentary of Tantrasaṅgraha in Candravākyas of Mādhava, Gaṇita Bhāratī,
Keralabhāṣā, Indian Journal of History of Vo. 38, No. 2 (2016) pages 111-139.
Science, pp. T1-T47, 45, No. 2, 2010. [10] Sarma U. K. V., Pai Venketeswara, Joshi
[8] Pai R. Venketeswara, Ramasubramanian K., Dinesh Mohan and Ramasubramanian K.,
and Sriram M. S., Rationale for Vākyas ‘Madhyamn̄ayanaprakāraḥ: A Hitherto
pertaining to the Sun in Karaṇapaddhati, Unknown Manuscript Ascribed to Mādhava’,
Indian Journal of History of Science, pp. 245- Indian Journal of History of Science, pp. T1-
258, 50, No. 2, 2015. T29, 46, No. 1, 2011.

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