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सोचना
सोचना
ऐसे नवयव
ु क अपनी अज्ञानता के कारण कभी कभी आत्महत्या
कर लेते हैं। क्योंकक वे समझते हैं कक उनका जीवन अब व्यथथ हो
गया है वे अपनी पूणथ अवस्था पर नहीीं आ सकते। मगर यह
उनकी भल
ू है ऐसे रोगगयो को हम बबना दवाई ददये खरु ाक आदद
के बारे में उगचत सलाह दे कर उनको ठीक कर दे ते हैं। गचककत्सा
सम्बन्धी ननिःशुल्क परामशथ के ललए लमले या या फोन कर
परामशथ लें।
भूमिका
प्रकृनत ने परु
ु ष एवीं स्री को एक दस
ू रे का परू क एवीं सहयोगी
बनाया है तथा वे एक दस
ू रे के बबना अधरू े हैं। जब दोनों लमलकर
एक होते हैं तथा दोनों ही अपने जीवन का वास्तववक आनन्द
उठाते हैं तभी उनका जीवन सफल कहलाता है । स्री परु
ु ष के
जीवन को िफल बनाने के सलए िैक्ि का बहुत योगदान है ।
यदद पनत पत्नी का वैवादहक जीवन परू ी तरह से सन्तष्ु ट रहता
है तो वे दोनों मानलसक व शारीररक रूप से पूरी तरह स्वस्थ एवीं
ननराश रह सकते हैं। अन्यथा उनके बीच रोग, रोग कष्ट, कलह
की दीवार खडी हो जाती है जो धीरे धीरे पनत पत्नी के मधरु एवीं
पववर ररश्तों की नीींव दहला दे ती है तथा अन्त में कई तरह के
भयानक पररणाम सामने आते हैं। इन सभी बातों का कारण कई
बार सैक्स अींगों के प्रनत अज्ञानता होती है क्योंकक यह तो
आपको मालूम ही है कक जब भी बच्चों को सैक्स के प्रनत कुछ
जानने की जजज्ञासा होती है अगधकाींश माीं बाप इस ववषय को
झठ
ू मठ
ू बातों से बच्चों को टाल दे ते हैं लेककन बच्चों के मन में
इस ववषय को जानने के ललए उत्सुकता ही बनी रहती है तथा वे
अपने से बडे बच्चों एवीं गली मौहल्ले के बुरी सींगत वाले लमरों
आदद से सैक्स का बेतक
ु ा ज्ञान प्राप्त करके अपना कोमल मन
मजस्तष्क गन्दा करके अपने जीवन को बबाथद कर लेते हैं। ध्यान
रहे , सैक्स के प्रनत बच्चों को सही ज्ञान दे ने से इतना नक
ु सान
नहीीं होता है जजतना कक इस ववषय को नछपाने से होता है
इसललए माीं बाप को चादहए कक वे बच्चों के व्यस्क होने पर उन्हें
इस बात के बारे में अच्छी तरह से समझाएीं ताकक वे गलत रास्ते
पर भटक कर अपने जीवन के साथ खखलवाड न कर सकें जजससे
उनका जीवन हमेशा के ललए िख
ु मय बन सके।
बचपन की भल
ू – जवानी का खन
ू
ईश्वर ने परू
ु ष को शजक्तशाली इींसान बनाकर इस सींसार में
इसललए भेजा है कक वह नारी सौन्दयथ के सलमश्रण से नई पौध
लगाकर कुदरत का सौंपा काम पूरा कर सके ददन भर में इींसान
को जो कष्ट और परे शाननयाीं लमलती हैं वह उन सबको रात की
ववश्राम बेला में रनत सुख के साथ भूलकर हर नई सुबह कफर से
ताजा और चस्
ु त होकर अपना कायथ प्रारम्भ कर सके। उगचत
परामशथ एवीं सलाह ललए बबना शादी परे शानी का कारण बन
सकती है । हमारे पास रोज बहुत से पसथनल लैटर आते हैं जजनमें
बहुत से परु
ु ष अपनी कमजोरी एवीं वववाहहत जीवन की परे शानी
के कारण आत्महत्या करने का जजक्र करते है । लेककन जो
आत्महत्या नहीीं करते वे घर से भाग जाते हैं और उनकी
पजत्नयाीं लाज शमथ छोडकर पराए पुरुषों का सहारा लेने पर
मजबूर हो जाती हैं। यह सब इसललए होता है कक समय पर उन्हें
सही मागथ दशथन नहीीं लमलता । स्कूलों में उन्हें यह बात तो बताई
जाती है कक गन्दे नाखन
ू ों को मुींह से नहीीं काटना चादहए क्योंकक
गन्दे नाखन
ू ों के जररए गन्दी पेट में जाकर बीमाररयाीं पैदा करती
है लेककन यह कोई नहीीं समझता कक गन्दे ववचारों से मनष्ु य का
शारीररक व मानसिक रूप से ककतना बडा नुकसान होता है
जजसके ककतने भयींकर पररणाम ननकलते हैं। फलस्वरूप नतीजा
यह होता है कक जजस अींग से मनुष्य को सबसे अगधक सुख
लमलना ननजश्चत है उसी अींग को कच्ची अवस्था में तककए या
हाथ की रगड से ववकृत कर ददया जाता है उसको इन्हीीं साधनों
द्वारा कष्ट करके अपने जीवन को मझधार में छोड ददया जाता
है ।
जीवन रत्न-वीयय
जवानी जीने का सबसे सुहावना समय है । कई नौजवान तो सीधे
ही बचपन से बढ
ु ापे की तरफ चले जाते हैं, उन्हें पता ही नहीीं
होता कक जवानों की कीमत व जवानी का सच्चा आनन्द क्या
है? अगधकतर नवयव
ु क गलत सींगत के कारण अपने शरीर से
स्वयीं ही खखलवाड करते हैं तथा सही रास्ते से भटककर वे यौन
िम्बन्धी अनेकों रोगो से नघरकर अपनी सुनहरी जजन्दगी को
तबाह कर दे ते हैं। आजकल लगभग 75 प्रनतशत नौजवान ककसी
न ककसी रूप से यौन रोगों से पीडि़त हैं तथा अपने जीवन के
वास्तववक आनन्द से अींजान हैं। आज के नवयुवक क्षखणक
आनन्द के ललए अपने ही हाथों अपनी जजन्दगी खराब करने पर
तुले हुए हैं। वे इधर-उधर के गन्दे वातावरण अश्लील कफल्में व
सैक्सी उपन्यास व पबरकाएीं दे खकर व पढकर अपने जीवन का
अनमोल रत्न वीयथद्ध बबाथद कर दे ते हैं। वे इधर उधर केक गन्दे
वातावरण अश्लील कफल्में व सैक्सी उपन्यास व पबरकाऐीं
दे खकर व पढकर अपने जीवन का अनमोल रत्न वीयथद्ध बबाथद
कर दे ते हैं। तथा कई प्रकार के घखृ णत रोगों से नघरकर अपनी
जजन्दगी बबाथद कर लेते हैं। यही शरीर की जान है जजसे व्यजक्त
ननकालने में आनन्द प्राप्त करता है । इसी वीयय को अपनी शरीर
में सींग्रह ककया जाये तो आप स्वयीं ही सोगचए ककतना आनन्द
प्राप्त होगा। वीयथ नष्ट होने के बाद भटके हुए नवयव
ु क सही
ददशा के आस मकें चकाचैंध वाले ववज्ञापनों व प्रचार वाली
फामेलसयों एव जक्लननकों के चक्कर में पडकर अपना धन समय
व स्वास््य गवाींकर अपने जीवन से ननराश हो जाते हैं। वीयथ
ककस प्रकार से नष्ट होता है और उससे शरीर को क्या क्या हानन
उठानी पडती है उसका वववरण आगे ददया जा रहा है उन ननराश
रोगगयों को हम सच्चे हृदय से अपना परामशथ दें गे तथा सही
ददशा का ज्ञान कराएींगे।
हस्तमैथन
ु
हाथ से अपने वीयथ को नष्ट करने को हस्थमैथन
ु कहते हैं, कुछ
नवयुवक व ककशोर गलत सींगत में बैठकर, उत्तेजक कफल्मे
दे खकर या अश्लील पुस्तकें पढकर अपने मन को काबू में नहीीं
रख पाते तथा ककसी एकान्त में जाकर सबसे आसान तरीका
अपने ही हाथों से अपना वीयथ ननकालने को अपनाते हैं उन्हें यह
नहीीं पता कक वे ऐसा काम करके अपनी जजन्दगी में जहर घोल
रहे हैं जजसका पररणाम यह होता है कक इन्री ननबयल हो जाती है
पतलापन, टे ढापन, छोटापन व नीली निें उभरनी शरू
ु हो जाती
हैं और अन्त में व्यजक्त नपुींसकता की ओर बढ जाता है । शरीर
में अत्यगधक कमजोरी आ जाती है ।
स्वप्नदोष
सोते समय ददन या रात कोई भी समय हो अपने मन में बुरे व
गन्दे ववचारों के कारण सोते समय स्वप्न में ककसी सन्
ु दरी स्री
को दे खकर या अपनी कुसींगनत का ख्याल आते ही अपने आप
वीयथ ननकल जाता है इसी को स्वप्नदोष कहते हैं। यदद स्वप्नदोष
महीने में दो-तीन बार हो तो कोई बात नहीीं ककन्तु हर रोज़ या
सप्ताह में दो तीन बार हो जाये तो यह रोग भी कम भयींकर नहीीं
है । यूीं तो स्वप्नदोष प्रायिः सोते हुए इन्री में तनाव आने के बाद
ही होता है ककन्तु यह रोग बढ जाने पर इन्री में बबना तनाव भी
हो जाता है जो कक गींभीर जस्थनत है । इस प्रकार वीयथ का नाश
होना शरीर को खोखला बना दे ता है जजसका असर ददमाग पर
पडता है । याद्दाश्त कमजोर हो जाती है वीयथ पतला हो जाता है ।
अन्त में नपुंि
ु कता की नौबत आ जाती है लेककन हमारे पास ऐसे
नुस्खे हैं जजनके सेवन से उपरोक्त सभी ववकार नष्ट होकर शरीर
को शजक्त सम्पन्न बनाते हैं।
शीघ्रपतन
सम्भोग के समय तुरींत वीयथ का ननकल जाना शीघ्रपतन
कहलाता है । अत्यगधक स्री-प्रिुंग, हस्तमैथन
ु , स्वप्नदोष, प्रमेह
इत्यादद कारणों से ही यह रोग होता है । सहवास में लगभग 10-
20 लमनट का समय लगता है लेककन 3-4 लमनट से पहले ही
बबना स्री को सन्तष्ु ट ककए अगर स्खलन हो जाए तो इसे
शीघ्रपतन का रोग समझना चादहए। जब यह रोग अगधकता पर
होता है तो स्री से सींभोग करने से पहले ही सम्भोग का ख्याल
करने पर या कपडे की रगड से ही गचपगचपी लार के रूप में
वीयथपात हो जाता है । यदद थोडी सी उत्तेजना आती भी है तो इन्री
प्रवेश करते ही स्खलन हो जाता है । उस समय पुरूष को ककतनी
शलमथन्दगी उठानी पडती है तथा स्री से आींख लमलाने का भी
साहस नहीीं रहता। स्री शमथ व सींकोच के कारण अपने पनत की
इस कमजोरी को ककसी के सामने नहीीं कहती लेककन अन्दर ही
अन्दर ऐसे कमजोर पनत से घण
ृ ा करने लगती है जजस कारण
उसका वववादहत जीवन दख
ु मय बन जाता है । मदथ की कमजोरी
और शीघ्रपतन की बीमारी से औरत भी बीमार हो सकती है। ऐसे
रोग का समय रहते उगचत इलाज अवश्य करना लेना चादहए
ताकक रहा सहा जोश एवीं स्वास््य भी समाप्त न हो जाए। हमारे
पास ऐसी लशकायतें दरू करने के ललए ऐसे शजक्तशाली नुस्खों
वाला इलाज है जजसके सेवन से जीवन का वास्तववक आनन्द
लमलता है । सम्भोग का समय बढ जाता है शरीर हस्टपष्ु ट तथा
शजक्त सम्पन्न हो जाता है। स्री को पूणथ रूप से सन्तुजष्ट होकर
सम्भोग की चमथसीमा प्राप्त होती है। वववादहत जीवन का
वास्तववक आनन्द प्राप्त होकर उनका जीवन िख
ु मय बन जाता
है ।
नपुुंिकता
युवा अवस्था में स्री सम्भोग या सींतान पैदा करने की अयोग्यता
को नपुंि
ु कता कहते हैं। इस दशा में सींभोग की कामना होते हुए
भी पुरूष की इन्री में उत्तेजना नहीीं होती इन्री बेजान माींग के
लोथडे की तरह गगरी रहती है । उसका आकार भी कम ज्यादा,
पतला या टे ढा हो सकता है । नसें उभरी प्रतीत होती हैं। कामेच्छा
होते हुए भी इन्री में तनाव नहीीं आता यदद पुरूष के अपने
भरसक प्रयत्न से थोडी बहुत उत्तेजना इन्री में आती भी है तो
सम्भोग के समय शीघ्र ही स्खललत हो जाता है । ऐसे परू
ु ष को न
तो स्री ही प्यार करती है और न ही सींतान पैदा होती है । हमारे
सफल नुस्खों वाले इलाज से नपुुंिकता के सभी ववकार ठीक हो
जाते हैं तथा रोगी को कफर से परु
ु षत्व व सम्भोग क्षमता प्राप्त
होकर एक नई शजक्त, स्फूनतथ, उत्साह व स्वास््य प्राप्त हो जाता
है ।
इुंहरय-आकार के भेद
अब स्री और पुरूष के गुह्या स्थानो के आकार प्रकार पर ववचार
करें गे। परू
ु ष का ललींग लींबाई से और स्री की योनन गहराई से
नापी जाती है ।
पतले, टे ढे, छोटे व आगे से मोटे व पीछे से पतले ललींग उक्त परू ी
प्रकक्रया में ककसी न ककसी दोष से पीडि़त होते हैं। इस प्रकार के
ललींग वाले लोगों में केवेरनोसम और स्पाजन्जयोसम की
कोलशकाऐीं परू ी तरह से सग
ु दठत नहीीं होती जजनसे इनमें अगधक
रक्त ग्रहण करने की क्षमता व इन कोलशकाओीं में अगधक समय
तक रक्त रोके रखने की क्षमता नहीीं होती।
शुक्रहीनता
कई परु
ु षों को यौन सम्बन्धी कोई रोग नहीीं होता तथा सहवास
के समय उनके लशशन में उत्तेजना व तनाव भी सामान्य व्यजक्त
जैसा ही होता है । सम्भोग शजक्त भी पूणथ होती है ककन्तु उनके
वीयथ में सींतान उत्पन्न करने वाले शक्र
ु ाणु या तो बबल्कुल ही
नहीीं होते या बहुत कमजोर एवीं मींदगनत से चलने वाले होते हैं
जजससे पुरुष सींतान उत्पन्न करने योग्य नहीीं माना जाता
सकता। कई बार इस रोग के साथ व्यजक्त की वपछली गलनतयों
के कारण या अत्यगधक वीयथ नाश के कारण और भी कई रोग
लगे हुए होते हैं तो ऐसे रोगों के ललए यन
ू ानी एवीं शजक्तशाली
नुस्खों द्वारा तैयार इलाज सबसे बेहतर माना जाता है । हमारे
ऐसे ही सफल इलाज में असींख्य रोगी भाई जो ननराश होकर
सींतान पैदा करने की चाहत ही मन में से ननकाल चक
ु े थे अब व
ननराशा को आशा में बलकर सींतान पैदा करने योग्य बन चक
ु े हैं।
िज
ु ाक :
यह रोग भयानक एवीं छूत का रोग है यह रोग गन्दी जस्रयों व
वेश्याओीं के साथ सम्भोग करने से होता है । इसकी ननशानी यह
है कक िम्भोग के कुछ ददन बाद रोगी के पेशाब में जलन होनी
शुरू हो जाती है । पेशाब लाल और गमथ आता है पेशाब करते
इतनी जलन होती है कक रोगी सचमच
ु कराहने लगता है । कुछ
ददनों के बाद गुप्त इींरी में से पीप ननकलनी शुरू हो जाती है और
कभी कभी पेशाब के साथ खन
ू भी आना शुरू हो जाता है । ज्यों
ज्यों यह रोग परु ाना होता है ददथ जलन एवीं चभ
ु न घटती जाती
है । केवल पीप बहता रहता है । यह पीप इतना जहरीला होता है
कक यदद बेध्यानी में ककसी रोगी की आींख पर लग जाए तो
अन्धा होने की आशींका रहती है । इस रोग के कीटाणु धीरे धीरे
रक्त मे प्रवेश करके अन्य अींगों पर भी असर ि़ालते है । यदद रोग
के जरा भी लक्षण ददखाई दें तो आप तरु ीं त गचककत्सा कराएीं।
हमारे इलाज से इस रोग के अनेकों रोगी ठीक होकर तन्दरू
ु स्त
जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
गमी (आतशक)
यह रोग भी सुजाक की तरह अत्यन्त भयानक रोगों में से एक है ।
यह भी बाजारू औरतों के सींसगथ से होता है। इस रोग में िम्भोग
के कुछ ददन बाद इन्री पर एक मसरू के दाने की तरह फुन्सी
होती है जो जल्दी ही फैलकर जख्म बन जाता है । आतशक दो
प्रकार का होता है । एक का प्रभाव इन्री पर होता है तथा दस
ू रे का
प्रभाव रक्त पर होता है । शरीर के ककसी भी भाग पर फूट
ननकलता है । इसका पहला भाग मामूली होता है । यदद इसके
इलाज में दे री या लापरवाही की जाए तो यह रोग व्यजक्त की कई
पीदढयों तक पीछा नहीीं छोडता। पहली श्रेणी का घाव इन्री पर
होता है लेककन दस
ू री श्रेणी में आतशक का जहर रक्त में फैलने
के कारण शरीर पर काले काले दाग तथा खज
ु ली व ताींबे के रीं ग
की छोटी छोटी फुजन्सयाीं उत्पन्न हो जाती है । जब यह रोग बढ
जाता है तो इसका प्रभाव हड्डि़यों में चला जाता है । कोदढयों की
तरह बडे बडे घाव हो जाते हैं। नाक की हड्ि़ी गल जाती है । यदद
इस रोग के कीटाणु ददमाग पर असर करें तो अींधा भी हो सकता
है तथा अन्त में मत्ृ यु तक सींभव है । इसललए इस रोग के जरा भी
प्रकट होते ही तुरन्त इसका इलाज करा लेना चादहए क्योंकक
ययह छूत का रोग है ककसी और से लगकर ककसी ओर को लगता
रहता है । हमारे सफल इलाज से ऐसे रोगों से ननराश रोगी स्वस्थ
होकर अपना ननरोगी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
स्री रोग
माललक ने स्री और पुरुष को एक दस
ू रे के ललए बनाया है लेककन
दोनों की शरीर सींरचना अलग अलग होती है। जो लोग केवल
स्री सींरचना में केवल स्री को ही होते हैं उन्हें स्री रोग कहते हैं।
ये रोग भी काफी कष्टकारी होते हैं। कमर, शरीर में ददथ होता है ,
शरीर थका थका सा रहता है , कामकाज में मन नहीीं लगता तथा
स्री अपनी आयु से पहले ही स्वास््य व सौन्दयथ खो बैठती है।
अपनी उम्र से बडी ददखाई दे ने लगती है मैथन
ु शजक्त भी कम हो
जाती है तथा अपने पनत को पूरी तरह से सहयोग नहीीं दे पाती,
जजस कारण पनत पत्नी दोनों का वववादहत जीवन दख
ु मय हो
जाता है । इसका असर आने वाली सन्तान या बच्चों पर भी
पडता है। पाररवाररक ढाींचा चरमरा जाता है । स्री रोग कई प्रकार
के होते हैं। लेककन कुछ रोग जस्रयों में अगधकतर खानपान,
रहन, सहन, जलवायु या वातावरण के कारण होते हैं।
जो लभन्न लभन्न प्रकार के होते हैं-
कष्टपण
ू य मासिक धमयः
यींू तो यह लशकायत ककसी भी स्री को हो सकती है लेककन
ववशेषकर कम उम्र की युवनतयों में अक्सर पाई जाती है उन्हें
मासिक धमय आने पर इतना कष्ट व ददथ होता है जो कहा नहीीं
जा सकता। एक दो ददन पहले से ही बैचन
े ी होने लगती है तथा
मसकक के ददन पेट व टाींगों में ददथ के कारण शरीर बेजान हो
जाता है । तथा मालसक अननयलमत हो जाता है ।
अधधक स्रावः
इस दशा में मालसक धमथ ननयलमत होता है लेककन रक्त स्राव
मारा से काफी अगधक होता है । साधारणतिः मालसक स्राव 4-5
ददन में ही बन्द हो जाना चादहए ककन्तु इस ववकार में 6 से 8
ददन तक या कभी कभी इससे भी अगधक होता है । ऐसी हालत में
स्री के स्वास््य पर बहुत बरु ा असर पडता है । कमजोरी,
चक्कर, अींधेरा, हाथ, पैर, शरीर में ददथ आदद की लशकायत हो
जाती है । उगचत इलाज द्वारा ऐसी हालत ठीक हो जाती है ।
कामयाबी का राज
हाशमी दवाखाना ववश्व में अपनी तरह का एक मार
अत्याधनु नक दवाखाना है जजसमें स्री पुरुषो की शारीररक व
मदाथना कमजोररयों का अपने तजुबे के आधार पर हबथल इलाज
ककया जाता है । रोगी की जस्थनत, प्रकृनत, उम्र और मौसम को
ध्यान में रखकर परू ी हमददी व गींभीरता के साथ रोगी के ललए
जडी-बूहटयों, रस, रव्य एवीं भस्मों से युक्त नुस्खों से तैयार
इलाज चन
ु ा जाता है ताकक रोगी को अपनी समस्याओीं व
कमजोररयों से हमेशा के ललए जल्दी ही छुटकारा लमल जाए।
इसी कारण से रोगी बहुत दरू -दरू से हमारे दवाखाने में स्वयीं
इलाज प्राप्त करने के ललए आते हैं। हम रोगी को असली व शीघ्र
गुणकारी औषगधयों से बना हुआ हबथल इलाज दे ते हैं और उसमें
सौ फीसदी असली जडी-बूदटयों, भस्मों का इस्तेमाल करते हैं।
हमारे पास अनगगनत रोगी भाईयों पर आजमाए हुए गप्ु त
प्राचीन नुस्खे है जो रोगी को ननरोग व तन्दरूस्त बनाकर
जजन्दगी भर सख
ु ी बनाए रखते हैं।
आह, उह, आउच, कमरददथ , पीठ ददथ , गदथ न ददथ से परे शान पत्नी
आज नहीीं, अभी नहीीं करती हैं, लेककन यदद वह बबना ककसी भय
के पनत के साथ सींभोग कक्रया में शालमल हो जाए तो उसके ददथ
को उडन छू होने में दे र नहीीं लगती । लसर ददथ , माइग्रेन, ददमाग
की नसों में लसकुडन, उन्माद, दहस्टीररया आदद का िैक्ि एक
िफल इलाज है । अननरा की बीमारी में बबस्तर पर करवट
बदलने या बालकनी में रातभर टहलने के बजाए बेि़ पर बगल
में लेटी या लेटे साथी से सैक्स की पहल करें , कफर दे खें कक खराथटें
आने में ज्यादा दे र नहीीं लगती। ननयलमत रूप से सींभोग कक्रया
में पनत को सहयोग दे ने वाली स्री माहवारी के समस्त ववकारों
से दरू रहती है । राबर के अजन्तम पहर में ककया गया सैक्स
ददनभर के ललए तरोताजा कर दे ता है। सैक्स को लसफथ यौन
सम्बन्ध तक ही सीलमत न रखें। इसमें अपनी ददनचयाथ की
छोटी-छोटी बाींते, हीं सी-मजाक, स्पशथ, आललींगन, चब
ुीं न आदद को
शालमल करें । सींभोग कक्रया तभी पण
ू थ मानी जाएगी। सैक्स के
बारे में यह बात ध्यान रखें कक अपनी पत्नी के साथ या अपने
पनत के साथ ककया गया सैक्स स्वास््य एवीं सौंदयथ को बनाए
रखता है । इस प्रसींग में यह बात ववशेष ध्यान दे ने योग्य है कक
जहाीं वववादहत जीवन में पत्नी के साथ सींभोग कक्रया अनेक तरह
से लाभप्रद है , वहीीं अवैध रूप से वेश्याओीं व बाजारू औरतों के
साथ बनाए गये सैक्स सम्बन्धों से अननरा, हृदय रोग,
मानसिक ववकार, िुं डापन, सिफसलि, िुजाक, गनेररया, एड्ि
जैसी अनेक प्रकार की बीमाररयााँ उत्पन्न हो सकती हैं। यदद
आप सफल व सींतजु ष्टदायक सैक्स करने में असमथथ हैं और
सैक्स से सम्बजन्धत ककसी भी कमजोरी या लशकायत से परे शान
हैं तो बेखझझक लमलें।
शास्रोक्त-यन
ू ानी नुस्खे
सददयों से यन
ू ानी इलाज को हर वगथ की तरफ से यहााँ तक कक
दे श ववदे श में भी मान्यता लमलती आ रही है क्योंकक आज की
आधनु नक ऐलोपैगथक गचककत्सा मनुष्य की जजन तकलीफों का
इलाज नहीीं कर सकती उन्हीीं तकलीफों का इलाज यन
ू ानी
गचककत्सा से सुलभ है । यूनानी इलाज से जदटल से जदटल
शारीररक व्यागधयों का भी सफल इलाज हो सकता है ।
एक अिफल पुरुष का दख
ु , हस्तमैथुन
कई ददन पहले मैं अपने दवाखाने में हमेशा की तरह अपने रोगी
भाइयों को दे ख रहा था तो उनमें एक रोगी काफी ननराश उदास
व सहमा हुआ सा बैठा था। जब उसकी बारी आई तो मैंने उससे
सबसे पहले यही पछ
ू ा कक तम ु इतने घबराये हुए क्यों हो तो उस
युवक रोगी का सब्र बाींध टूट गया तथा उसकी आींखें में आींसू
छलछला आए। मैंने उसे पूरी तसल्ली दी तथा मैंने कहा कक
अपनी परे शानी बताओ तथा गचन्ता की कोई बात नहीीं है तब
उसने बताया कक मैं एक सम्माननत मध्यवगीय पररवार से
सम्बन्ध रखता हूीं तथा अभी थोडे ही ददन हुए अपनी कॉलेज की
पढाई परू ी की है । अतिः अपने ववद्याथी जीवन में गलत सींगत में
पड गया। हस्तमैथन
ु भी ककया। जब कुछ समझ आई तो
हस्तमैथन
ु की इच्छा को दबाया तथा स्वप्नदोष होने लगा कफर
पेशाब में लार सी ननकलने लगी जजससे मुझे बेहद कमजोरी
महसूस होने लगी। उठते-बैठते शरीर ददथ , चक्कर, अींधेरा व साींस
फूलने तथा ददन भर सस्
ु ती छायी रहती है , ककसी काम में मन
नहीीं लगता। चकूीं क अब मैं व्यस्क हो या हूीं मेरे माता वपता मेरी
शादी करने पर जोर दे रहे हैं लेककन न जाने क्यों मैं शादी के
नाम से परे शान हो गया हूीं क्योंकक मैं अपने आपको उपरोक्त
कमजोररयों के कारण वववाह योग्य नहीीं समझता और न ही यह
चाहता हूीं कक मेरी कमजोरी व हालत की वजह से मेरी आने वाली
पत्नी का जीवन भी दख
ु मय हो जाये अतिः मैं आपका नाम व
इलाज की प्रशींसा सन
ु कर आपके पास आया हूीं। मैंने उसकी परू ी
हालत जानकर उसकी परू ी तरह शारीररक जाींच की। अब वह
बबल्कुल ठीक बोल रहा था। वास्तव में ही वह अपनी अज्ञानता
वश अपनी जवानी को दोनों हाथों से लुटाकर अपने पुरुषत्व में
घन
ु लगवा चक
ु ा था। मैंने उसे अपना परामशथ नया तथा परू ी
लगन व मेहनत से असली व नायाब नुस्खों द्वारा उसका इलाज
तैयार करवाया जजसके सेवन से उसकी खोई हुई शारीररक व
मदाथना शजक्त उसे दोबारा लमलनी शरू
ु हो गई। एक महीने के
बाद ही उसकी शादी हो गई तथा पहली रात से अब तक पूरी
तरह सन्तष्ु ट है तथा अपने वववादहत जीवन का भरपरू लफ्
ु त
उठा रहा है ।
समलने का िमय: