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फायर फाईटर book-new year-22
फायर फाईटर book-new year-22
01-अग्नि देव 02
02-अग्निकीउत्पत्ति 03
03-अग्नि सेवाओं का इतिहास 04
04- भारतमेंअग्निसेवाओंकीभूमिका 06
05-रसायन विज्ञान 09
06-प्राथमिक आग बुझाने के उपकरण 16
07-रासायनिक अग्निशमन उपकरण 20
08-होज 37
09-होज फिटिंग्स 43
10-स्माल गेयर्स 58
11-रस्से रस्सियाँ 74
12-सीढ़ियाँ 80
13-इस्के प लैडर 85
14-टर्न टेबुल लैडर 89
15-पम्प और प्राइमर 92
16-झाग व झाग बनाने वाले उपकरण 114
17-श्वसन सयन्त्र 120
18-रिससिटेशन अपरेटस 126
19-स्पेशल अप्लाइंसेज 136
20-स्टैण्डर्ड टैस्ट 141
21-अग्नि शमन हेतु जल समस्या 146
22-फायर हाइड्रेन्ट 153
23-वाटर रिलेइंग 159
24-भवन निर्माण 163
25-फिक्सड इन्सटालेशन 166
26-स्प्रिंकलर्स ड्रि न्चर्स एण्ड वाटर स्प्रे प्रोजेक्टर्स 174
27-वाचरूम और उसकी कार्य प्रणाली 180
28-प्रेक्टिकल फायरमैनशिप 183
29-सालवेज 191
30-ग्रामीण क्षेत्रों की आग 194
31-स्पेशल सर्विस काल 196
32-अनुशासन 204
33-प्राथमिक चिकित्सा 215
34-स्पेशल फायर रिस्क 206
35-विविध उपकरणों के रेखाचित्र 225
अग्नि देव
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अग्निशमन एवं संरक्षा
सृष्टि आरंभ हुई तो भगवान विष्णु की नाभि से सबसे पहले ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्हें संसार की रचना और उनके विस्तार का दायित्व सौंप दिया गया | तब उन्होंने
अत्री, अंगिरा, पुलस्त्य, मरीची, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद नाम के दस पुत्रो की कामना की | ये सब ब्रह्मा के मन से उत्त्पन्न हुए, इसलिए ब्रह्मा के
मानस पुत्र कहलाए | इन्हें संयुक्त रूप से प्रजापति भी कहते है | इनमे अंगिरा के पुत्र वृहस्पति ने चांद्रमासी नाम की कन्या से विवाह किया | उनके पहले पुत्र का नाम
शंयु था | उसने धर्म की पुत्री सत्या से विवाह किया जिससे ‘अग्नि’ नामक पुत्र ने जन्म लिया | ये वही अग्निदेव है जिनके विषय में आपको आने वाले दिनों में बहुत सी
रोचक कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी | उससे पहले अग्नि के विषय में कु छ महत्वपूर्ण बाते जान लीजिए | पुराणों में आठ दिशाओ में आठ रक्षक देवता है जिन्हें अष्ट
दिक्पाल कहते है |
इनमे दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा के रक्षक अग्निदेव है | इसलिए कई जगह अग्नि देव की प्रतिमा मंदिर के दक्षिण -पूर्वी कोण में स्थापित होती है | संसार की रचना करने
वाले पंच महाभूत तत्वों आकाश, जल, पृथ्वी और वायु के साथ पांचवां तत्व अग्नि है | अग्नि को पूजा, विवाह जैसे अधिकांश धार्मिक अनुष्ठानो का साक्षी माना जाता है
| देवताओ में इंद्र के बाद अगला स्थान अग्निदेव का है|
ऋग्वेद की कु ल 1028 ऋचाओं में से लगभग 200 ऋचाए अग्निदेव को समर्पित है| उपनिषदों पुराणों समेत लगभग सभी धर्म-ग्रंथो में अग्नि का विस्तार से उल्लेख
मिलता है| हिंदू संस्कृ ति में जन्म से मृत्यु तक कोई कम अग्नि के बिना पूर्ण नही होता | ऋग्वेद में अग्नि के दो स्वरूप है: जातवेद और क्रव्याद| अग्नि का जातवेद रूप,
हवन- कु ण्ड में दी गई है आहुति को देवताओ तक पहुचता है |इसलिए यह मनुष्य और देवताओ के बिच एक महतवपूर्ण कड़ी है | अग्नि का क्रव्याद रूप, अंतिम
संस्कार के समय शव को जलाकर भस्म करता है | एस तरह हिंदू धर्म में अग्नि का स्थान इतना महत्वपूर्ण है की उसे देवता का दर्जा दिया गया है |
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अग्निशमन एवं संरक्षा
अग्नि की उत्पत्ति
आदिम मनुष्य ने पत्थरों के टकराने से उत्पन्न चिनगारियाँ को देखा होगा। अधिकांश विद्वानों का मत है कि मनुष्य ने सर्वप्रथम कड़े पत्थरों की एक -दूसरे पर मारकर
अग्नि उत्पन्न की होगी।
घर्षण (रगड़ने की) विधि से अग्नि बाद में निकली होगी। पत्थरों के हथियार बन चुकने के बाद उन्हें सुडौल, चमकीला और तीव्र करने के लिए रगड़ा गया होगा। रगड़ने
पर जो चिनगारियां उत्पन्न हुई होंगी उसी से मनुष्य ने अग्नि उत्पन्न करने की घर्षण विधि निकाली होगी।
घर्षण तथा टक्कर इन दोनों विधियों से अग्नि उत्पन्न करने का ढंग आजकल भी देखने में आता है। अब भी अवश्यकता पड़ने पर इस्पात और चकमक पत्थर के प्रयोग से
अग्नि उत्पन्न की जाती है। एक विशेष प्रकार की सूखी घास या रुई को चकमक के साथ सटाकर पकड़ लेते हैं और इस्पात के टुकड़े से चकमक पर तीव्र प्रहार करते हैं।
टक्कर से उत्पन्न चिनगारी घास या रुई को पकड़ लेती है और उसी को फूँ क-फूँ ककर और फिर पतली लकड़ी तथा सूखी पत्तियों के मध्य रखकर अग्नि का विस्तार कर
लिया जाता है।
घर्षणविधि से अग्नि उत्पन्न करने की सबसे सरल और प्रचलित विधि लकड़ी के पटरे परलकड़ी की छड़ रगड़ने की है।
एक-दूसरी विधि में लकड़ी के तख्ते में एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह वेग से नचाया जाता है। प्राचीन भारत में भी इस
विधि का प्रचलन था। इस यंत्र को अरणी कहते थे। छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहा जाता था। इस विधि से अग्नि उत्पन्न करना भारत के
अतिरिक्त लंका, सुमात्रा, आस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका में भी प्रचलित था। उत्तरी अमरीका के इंडियन तथा मध्य अमरीका के निवासी भी यह विधि काम में
लाते थे। एक वार चार्ल्स डारविन ने टाहिटी (दक्षिणी प्रशांत महासागर का एक द्वीप जहाँ स्थानीय आदिवासी ही बसते हैं) में देखा कि वहाँ के निवासी इस प्रकार कु छ
ही सेकं ड में अग्नि उत्पन्न कर लेते हैं, यद्यपि स्वयं उसे इस काम में सफलता बहुत समय तक परिश्रम करने पर मिली।
फारस के प्रसिद्ध ग्रंथ शाहनामा के अनुसार हुसेन ने एक भयंकर सर्पाकार राक्षसी से युद्ध किया और उसे मारने के लिए उन्होंने एक बड़ा पत्थर फें का। वह पत्थर उस
राक्षस को न लगकर एक चट्टान से टकराकर चूर हो गया और इस प्रकार सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न हुई।
उत्तरी अमरीका की एक दंतकथा के अनुसार एक विशाल भैंसे के दौड़ने पर उसके खुरों से जो टक्कर पत्थरों पर लगी उससे चिनगारियाँ निकलीं। इन चिनगारियों से
भयंकर दावानल भड़क उठा और इसी से मनुष्य ने सर्वप्रथम अग्नि ली।
अग्नि का मनुष्य की सांस्कृ तिक तथा वैज्ञानिक उन्नति में बहुत बड़ा भाग रहा है। लैटिन में अग्नि को प्यूरस अर्थात् पवित्र कहा जाता है। संस्कृ त में अग्नि का एक पर्याय
पावक भी है जिसका शब्दार्थ है 'पवित्र करनेवाला'। अग्नि को पवित्र मानकर उसकी उपासना का प्रचलन कई जातियों में हुआ और अब भी है।
सतत अग्नि
अग्नि उत्पन्न करने में पहले साधारणत इतनी कठिनाई पड़ती थी कि आदिकालीन मनुष्य एक बार उत्पन्न की हुई अग्नि को निरंतर प्रज्ज्वलित रखने की चेष्टा करता था।
यूनान और फारस के लोग अपने प्रत्येक नगर और गार्वे में एक निरंतर प्रज्वलित अग्नि रखते थे। रोम के एक पवित्र मंदिर में अग्नि निरंतर प्रज्वलित रखी जाती थी। यदि
कभी किसी कारणवश मंदिर की अग्नि बुझ जाती थी तो बड़ा अपशकु न माना जाता था। तब पुजारी लोग प्राचीन विधि के अनुसार पुन अग्नि प्रज्वलित करते थे। सन्
1830 के बाद से दियासलाई का आविष्कार हो जाने के कारण अग्नि प्रज्वलित रखने की प्रथा में शिथिलता आ गई। दियासलाइयों का उपयोग भी घर्षण विधि का
ही उदाहरण है; अंतर इतना ही है कि उसमें फास्फोरस, शोरा आदि के शीघ्र जलने वाले मिश्रण का उपयोग होता है।
प्राचीन मनुष्य जंगली जानवरों को भगाने, या उनसे सुरक्षित रहने के लिए अग्नि का उपयोग बराबर करता रहा होगा। वह जाड़े में अपने को अग्नि से गरम भी रखता था।
वस्तुत जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी, लोग अग्नि के ही सहारे अधिकाधिक ठंडे देशों में जा बसे। अग्नि, गरम कपड़ा और मकानों के कारण मनुष्य ऐसे ठंडे देशों में रह सकता
है जहाँ शीत ऋतु में उसेक सरदी से कष्ट नहीं होता और जलवायु अधिक स्वास्थ्यप्रद रहती है।
अग्नि परिचय
अग्नि रासायनिक दृष्टि से अग्नि जीवजनित पदार्थों के कार्बन तथा अन्य तत्वों का आक्सीजन से इस प्रकार का संयोग है कि गरमी और प्रकाश उत्पन्न हों। अग्नि की बड़ी
उपयोगिता है जाड़े में हाथ-पैर सेंकने से लेकर परमाणु बम द्वारा नगर का नगर भस्म कर देना, सब अग्नि का ही काम है। इसी से हमारा भोजन पकता है, इसी के द्वारा
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खनिज पदार्थों से धातुएँ निकाली जाती हैं और इसी से शक्ति उत्पादक इंजन चलते हैं। भूमि में दबे अवशेषों से पता चलता है कि प्राय पृथ्वी पर मनुष्य के प्रादुर्भाव काल
से ही उसे अग्नि का ज्ञान था। आज भी पृथ्वी पर बहुत सी जंगली जातियाँ हैं जिनकी सभ्यता एकदम प्रारंभिक है , परंतु ऐसी कोई जाति नहीं है जिसे अग्नि का ज्ञान न
हो।
अग्निशमन (firefighting)
आग पर नियंत्रण पाकर उसे बुझाने के कार्य को कहते हैं। अधिकतर समाजों में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, अनियंत्रित आग जीवन और माल के लिए एक बड़ा संकट बन
सकती है और अग्निशमक (firefighters) इस ख़तरे से बचाव करते हैं। विभिन्न परिस्थितियों में आग पर काबू पाकर उसे बंद करने के लिए बहुत सी तकनीकें
सीखनी पड़ती हैं और उन कठिन परिस्थितियों में जाकर उन्हें झेलने के लिए शारीरिक-क्षमता भी ज़रूरी है। अग्निशमन के लिए विशेष सामान और यंत्रों का प्रयोग भी
होता है। इनमें पानी, आग-निरोधक रसायन, भिन्न प्रकार के अग्नि-कवच, अग्निशमकों की आग-निरोधक पोशाकें , जल गिराने वाले विमान, अग्निशमकों के विशेष वाहन,
वग़ैराह शामिल हैं। अलग-अलग तरह की आगों के लिए अग्निशमक भिन्न चीज़ें प्रयोग करते हैं, मसलन बिजली से लगी आग के लिए पानी का प्रयोग नहीं किया जाता।
पहली रोमन फायर ब्रिगेड मार्क स लिसिनियस क्रै सस द्वारा बनाई गई थी । उन्होंने इस तथ्य का फायदा उठाया कि रोम में कोई अग्निशमन विभाग नहीं था , अपनी खुद
की ब्रिगेड बनाकर - 500 लोग मजबूत - जो अलार्म पर जलती हुई इमारतों में पहुंचे। घटनास्थल पर पहुंचने पर, हालांकि, अग्निशामकों ने कु छ नहीं किया, जबकि
क्रै सस ने संकटग्रस्त संपत्ति के मालिक से जलती हुई इमारत को एक दयनीय कीमत पर खरीदने की पेशकश की। अगर मालिक संपत्ति बेचने के लिए सहमत हो जाता
है, तो उसके आदमी आग बुझा देते हैं, अगर मालिक ने मना कर दिया, तो वे बस संरचना को जमीन पर जलने देंगे। रोमन सम्राट नीरो ने मूल विचार क्रै सस से लिया
और फिर उस पर विजिल्स का निर्माण किया60 ईस्वी में आग की लपटों से पहले इमारतों को फाड़ने के लिए बके ट ब्रिगेड और पंपों के साथ -साथ डंडे, हुक और यहां
तक कि बैलिस्टा का उपयोग करके आग से निपटने के लिए। आग पर नज़र रखने के लिए विजिल्स ने रोम की सड़कों पर गश्त की और पुलिस बल के रूप में सेवा
की । बाद की ब्रिगेड में सैकड़ों लोग शामिल थे, जो सभी कार्रवाई के लिए तैयार थे। जब आग लगती थी, तो पुरुष निकटतम जल स्रोत तक लाइन में लग जाते थे और
आग के लिए हाथ में बाल्टियाँ देते थे।
यूरोप में, अग्निशमन 17 वीं सदी तक काफी अल्पविकसित था। .
लंदन को सामना करना पड़ा महान आग 798, 982, 989, 1212 में और 1666 में सब से ऊपर लंदन की भीषण आग । 1666 की ग्रेट फायर पुडिंग
लेन पर एक बेकर की दुकान में शुरू हुई , जिसने शहर के लगभग दो वर्ग मील (5 किमी 2 ) को खा लिया , जिससे हजारों लोग बेघर हो गए। इस आग से पहले,
लंदन में कोई संगठित अग्नि सुरक्षा प्रणाली नहीं थी। बाद में, बीमा कं पनियों ने अपने ग्राहकों की संपत्ति की सुरक्षा के लिए निजी फायर ब्रिगेड का गठन किया। बीमा
ब्रिगेड के वल उन इमारतों में आग से लड़ेंगी जिनका बीमा कं पनी ने किया था। इन इमारतों की पहचान अग्नि बीमा चिह्नों द्वारा की गई थी । अग्निशामक में महत्वपूर्ण
सफलता 17 वीं शताब्दी में पहली दमकल गाड़ियों के साथ आई। मैनुअल पंप , 1518 में ऑग्सबर्ग और 1657 में नूर्नबर्ग में), के वल बल पंप थे और होसेस की
कमी के कारण बहुत कम सीमा थी। जर्मन आविष्कारक हंस हौशच ने पहला सक्शन और फोर्स पंप बनाकर और पंप में कु छ लचीली होसेस जोड़कर मैनुअल पंप
में सुधार किया । 1672 में, डच कलाकार और आविष्कारक जान वैन डेर हेडन की कार्यशाला ने आग की नली विकसित की । लचीले चमड़े से निर्मित और हर 50
फीट (15 मीटर) पीतल की फिटिंग के साथ युग्मित । लंबाई मुख्य भूमि यूरोप में आज तक मानक बनी हुई है जबकि यूके में मानक लंबाई 23 मीटर या 25 मीटर
है। दमकल इंजन को आगे डच आविष्कारक, व्यापारी और निर्माता, जॉन लोफ्टिंग द्वारा विकसित किया गया था(1659-1742) जिन्होंने एम्स्टर्डम में जान वैन
डेर हेडन के साथ काम किया था। लॉफ्टिंग 1688 में या लगभग 1688 में लंदन चले गए, एक अंग्रेजी नागरिक बन गए और 1690 में "सकिं ग वर्म इंजन" का
पेटेंट (पेटेंट संख्या 263/1690) किया। 17 मार्च के लंदन गजट में उनके उपकरण की अग्निशामक क्षमता का एक शानदार विवरण था। 1691, पेटेंट जारी होने
के बाद। ब्रिटिश संग्रहालय में लंदन में काम कर रहे लॉफ्टिंग के दमकल इंजन को दिखाया गया है, इंजन को पुरुषों की एक टीम द्वारा पंप किया जा रहा है। माना जाता
है कि उनके दमकल इंजनों में से एक के बाद के संस्करण को एक सेवानिवृत्त अग्निशामक द्वारा प्यार से बहाल किया गया है,
बर्क शायर में ब्रे के रिचर्ड न्यूशम (लॉफ्टिंग से सिर्फ 8 मील) ने 1721 में एक बेहतर इंजन का उत्पादन और पेटेंट कराया और जल्द ही इंग्लैंड में दमकल बाजार पर
हावी हो गया। आग के लिए एक गाड़ी के रूप में खींचा गया , इन मैनुअल पंपों को 4 से 12 पुरुषों की टीमों द्वारा संचालित किया गया था और 120 फीट (36
मीटर) तक 160 गैलन प्रति मिनट (12 एल / एस) तक पहुंचा सकता था। 1743 में खुद न्यूजहैम की मृत्यु हो गई लेकिन उनकी कं पनी ने 1770 के दशक में
अन्य प्रबंधकों और नामों के तहत दमकल इंजन बनाना जारी रखा। इंग्लैंड में फायर इंजन डिजाइन में अगला प्रमुख विकास हेडली , सिम्पकिन एंड लॉट कं पनी द्वारा
किया गया था। 1792 में हाथ से पंप किए गए इंजन की एक बड़ी और बेहतर शैली के साथ जिसे घोड़ों द्वारा आग में खींचा जा सकता था।
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विक्टर पियर्सन , पॉल पॉन्सी । स्वयंसेवी फायरमैन की परेड, 4 मार्च 1872 , हेनरी क्ले की प्रतिमा के चारों ओर न्यू ऑरलियन्स फायर ब्रिगेड की सभा का
प्रतिनिधित्व करते हुए ।फायर फाइटर ने धुआं में सांस लेने के लिए उपकरण पहनने 1870 (से वारसा सीए)
1631 में, बोस्टन के गवर्नर जॉन विन्थ्रोप ने लकड़ी की चिमनियों और फू स की छतों को अवैध घोषित कर दिया। 1648 में, न्यू एम्स्टर्डम के गवर्नर पीटर
स्टुवेसेंट ने चार लोगों को फायर वार्डन के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त किया। उन्हें सभी चिमनियों का निरीक्षण करने और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर
जुर्माना लगाने का अधिकार था। शहर के बर्गर ने बाद में आठ प्रमुख नागरिकों को "रैटल वॉच" में नियुक्त किया - इन लोगों ने स्वेच्छा से बड़े लकड़ी के खड़खड़ों को
लेकर रात में सड़कों पर गश्त करने के लिए स्वेच्छा से काम किया। अगर आग दिखाई देती है, तो पुरुषों ने खड़खड़ाहट की, फिर प्रतिक्रिया देने वाले नागरिकों को
बके ट ब्रिगेड बनाने का निर्देश दिया। 27 जनवरी, 1678 को पहली दमकल कं पनी अपने कप्तान (फोरमैन) थॉमस एटकिं स के साथ सेवा में आई।. 1736
में, बेंजामिन फ्रैं कलिन ने फिलाडेल्फिया में यूनियन फायर कं पनी की स्थापना की।
अमेरिकी गृहयुद्ध के समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकार द्वारा संचालित अग्निशमन विभाग नहीं थे । इस समय से पहले, निजी फायर ब्रिगेड आग का जवाब देने
वाले पहले व्यक्ति होने के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते थे क्योंकि बीमा कं पनियों ने इमारतों को बचाने के लिए ब्रिगेड को भुगतान किया था। हामीदारों
ने कु छ शहरों में अपने स्वयं के बचाव दल को भी नियुक्त किया । पहली ज्ञात महिला अग्निशामक, मौली विलियम्स ने 1818 के बर्फ़ीले तूफ़ान के दौरान पुरुषों के
साथ ड्रैग्रोप्स पर अपना स्थान लिया और गहरी बर्फ के माध्यम से पंपर को आग में खींच लिया।
1 अप्रैल 1853 को, सिनसिनाटी, ओहियो ने 100% पूर्णकालिक कर्मचारियों से बना पहला पेशेवर अग्निशमन विभाग दिखाया। .
1 1803 बॉम्बे बॉम्बे फायर ब्रिगेड को आधिकारिक तौर पर गठित किया गया था पुलिस के अधीन रखा गया था।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
2 1822 कलकत्ता कलकत्ता में अग्निशमन सेवा कलकत्ता पुलिस के अधीन आयोजित की गई थी।
3 1893 श्रीनगर फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज, जम्मू-कश्मीर की स्थापना वर्ष 1893 की गई थी।
4 1896 दिल्ली दिल्ली में 1867 में एक फायर ब्रिगेड था, फायर स्टेशन का संगठित रूप 1896 में शुरू की गई थी।
5 1908 मद्रास मद्रास सिटी फायर ब्रिगेड की स्थापना मद्रास नगर निगम द्वारा की गई थी।
6 1942 बैंगलोर कर्नाटक में फायर पहली बार 1942 में पुलिस के नियंत्रण में बैंगलोर में शुरू की गई थी
पृष्ठभूमि
भारत में अग्निशमन सेवाएं अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं हैं। हाल के वर्षों में, अग्नि सुरक्षा कवर की आवश्यकताएं कई गुना बढ़ गई हैं जबकि अग्निशमन सेवा के विकास
ने बहुत अधिक प्रगति नहीं की है। खतरनाक सामग्री के व्यापक उपयोग के साथ तेज गति से औद्योगिक संयंत्रों की स्थापना और बड़े और ऊं चे भवनों के निर्माण ने आग
बुझाने की समस्याओं को कई गुना बढ़ा दिया है। आग के खतरे अब के वल बड़े शहरों और विनिर्माण कें द्रों तक ही सीमित नहीं हैं। खतरनाक वस्तुओं की भारी मात्रा में
प्रतिदिन परिवहन के विभिन्न साधनों द्वारा पूरे देश में ले जाया जाता है, जिससे जटिल अग्नि बचाव समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यदि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन और
संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को प्राप्त करना है, तो अग्निशमन सेवा संगठन की पूरी तरह से मरम्मत की आवश्यकता है।प्रौद्योगिकी की प्रगति और
आर्थिक विकास के साथ तालमेल रखने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे और उपकरणों के साथ अग्निशमन सेवाओं को ठीक से व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
1 से प्रभावी राज्य योजना फं ड में शामिल किया गया है सेंट अप्रैल 2015 और इसलिए कोई बजट प्रावधान राज्यों को 2015-16 के दौरान किया गया
है। हालांकि, रु. 2015-16 के दौरान विधायिका वाले दो कें द्र शासित प्रदेशों को 04 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। राज्यवार विवरण परिशिष्ट-IV में दिया गया है।
रसायन विज्ञान
(कै मिस्ट्री)
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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- किसी ठोस या तरल पदार्थ के घनत्व एवं पानी के घनत्व के अनुपात को उस पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व कहते हैं। चूँकि यह एक अनुपातहैअतः इसकी
कोई इकाई नहीं होती।
किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व, उसके भार को, समान आयतन के पानीके भार से भाग देने पर ज्ञात होता है।
प्रश्न- अग्नि शमन में घनत्व (डेन्सिटी) या (स्पेसिफिक ग्रेविटी)का क्या महत्व है
उत्तर- किसी जलती हुई तरल वस्तु का घनत्व या आपेक्षिक घनत्व कु छहद तक यह निश्चित करने में निर्णायक सिद्ध होता है कि उस आग पर पानीका प्रयोग
किया जायेगा या अन्य माध्यम प्रयोग में लाया जायेगा। इसी प्रकार किसी गैस या वाष्प का घनत्व इस बात का निर्णय करेगा कि वह गैस या भाप, भवन के ऊपरी भाग
में मिलेगी या नीचे के भाग में मिलेगी।
प्रश्न- आग क्या है
उत्तर- आग वास्तव में एक प्रकार की तीव्र रासायनिक प्रतिक्रिया है जोकु छ पदार्थों के आपस में मिलने से विशेषतः जलने योग्य ठोस , तरल या गैसपदार्थों और
ऑक्सीजन के मिलने से उत्पन्न होती है और साथ ही साथ तापऔर प्रकाश भी प्रकट करती है।
प्रश्न- आग के लिए मुख्य आवश्यकताएँ क्या हैं
उत्तर- आग जल उठने के लिए तीन चीजों का होना आवश्यक है-
(1)ईंधन-जलने योग्य पदार्थ।
(2)ताप-ईंधन को जलने की स्थिति (गैस रूप) में लाने के लिएउचित तापक्रम ।
(3)आक्सीजन-ईंधन को निरन्तर जलता रखने के लिए उसके दहन में सहायक गैस ।
प्रश्न- आग जलने और फै लने की कार्यवाही बयान करो।
उत्तर- तरल अथवा ठोस पदार्थ (ईंधन) सीधे नहीं जलते, बल्कि अत्यधिकताप के कारण इनसे गैस, त्पन्न होने लगती है यही गैस आक्सीजन से मिलकरज्वाला
बन कर भड़क उठती है। एक बार आग लगने से तापमान बढ़ता जाता हैऔर ईंधन में अधिक गैस पैदा करता रहता है। यह गैस आक्सीजन से मिलकरउग्र रूप धारण
कर लेती है और आग निरन्तर बढ़ती और फै लती जाती है।
प्रश्न- फ्लै श प्वाइंट (ज्वलनांक) से क्या समझते हो
उत्तर- फ्लै श प्वाइंट या ज्वलनांक वह कम से कम तापक्रम है जिस परकोई वस्तु पर्याप्त जलने वाली वाष्प (वैपर) छोड़े, जो एक छोटी सी लौ से क्षणभर के लिए
कौंध जाय ।
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2-आग को ही जलने योग्य वस्तुओं के पास से हटाकर।
3-जलने वाली वस्तुओं को अलग-अलग करके छोटे-छोटे भागों में बाँटकर। ये छोटे-छोटे भाग या तो स्वयं बुझ जायेंगे या शीघ्र और सुगमता से बुझायेजा सकें गे।
स्टार्वेशन की प्रक्रिया को हम आग को भूखों मारना भी कहते हैं।इस प्रक्रिया के अंतर्गत इंधन को हटाया जाता है।
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आग पर पड़ते ही पानी आग की गर्मी को सोखकर स्वयं गर्म हो जाता है औरजलने वाली वस्तु का तापक्रम कम हो जाता है। अधिक तापक्रम पर पानी भाप मेंपरिवर्तित
होकर आग के आस-पास की हवा को बाहर धके ल कर आग तकआक्सीजन पहुँचने में बाधक होता है और आग शीघ्र बुझ जाती है।कू लिंग - इस प्रक्रिया के अंतर्गत
आग को ठंडा करके बुझाया जाता है । इस विधि के द्वारा हम आग को तापमान कम करके बुझाते हैं।
जैसा कि उपरोक्त चित्र में प्रदर्शित है कि हीट(ताप)को हटा करके हम इस विधि द्वारा आग को बुझाते हैं जैसे एक जलती हुई आग पर पानी डालने पर आग का
तापमान कम हो जाता है और आग बुझ जाती है।
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2-'B'श्रेणी की आग (क्लास 'B'फायर)- ज्वलनशील तरल पदार्थोंकी आग जैसे-पेट्रोल, तेल, वार्निश, तारकोल इत्यादि। इन पर पानी नहीं डालाजाता, बल्कि आग
को ढक कर अथवा आक्सीजन बन्द करके बुझाया जाता है।
3-'C'श्रेणी की आग (क्लास 'C'फायर)- गैस जैसे पदार्थों कीआग जो कि प्रेशर युक्त हो और सिलेण्डर में हो। इन पर कोई इनर्ट गैसें अथवापाउडर डालकर विशेष
तकनीक से बुझाया जाता है।
4-'D'श्रेणी की आग (क्लास 'D'फायर)- धातुओं जैसे मैगनीशियमअल्मुनियम, जिंक आदि की आग इन पर भी पानी नहीं डाला जाता है बल्किविशेष पाउडर डालकर
विशेष तकनीक से बुझाया जाता है।
5-'E'श्रेणी की आग (क्लास 'E'फायर)- बिजली के उपकरण एंवयन्त्रों की आग। इन पर भी पानी नहीं डाला जाता, बल्कि विशेष पदार्थों जो बिजलीके करन्ट से
प्रभावित नहीं होते, से बुझाया जाता है।
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प्रश्न- उपयोगिता एवं अध्ययन के दृष्टिकोण से एक्सटिंग्यूशरकितने भागों में बाँटेगये हैं
उत्तर- फायर एक्सटिंग्यूशर्स को चार भागों में बांटा गया है-
1. वे एक्सटिंग्यूशर, जो पानी या पानी में मिलाया हुआ कोईमसाला फें कते हैं। उन्हें 'A' (श्रेणी 'A') क्लास की आग परप्रयोग किया जाता है।
2. वे एक्सटिंग्यूशर जो फोम, यानी झाग फे कते हैं और 'B'(श्रेणी ‘बी’) क्लास की आग के लिए उपयुक्त होते हैं।
3. वे एक्सटिंग्यूशर, जो गैस फै कते हैं या कोई ऐसा तरल फें कते हैं जो आग पर पड़ते ही गैस में तब्दील हो जाते हैं। ये 'C' और 'E' (श्रेणी 'सी' और 'ई') क्लास की
आग के लिए उपयुक्त होते हैं।
4. वे एक्सटिंग्यूशर, जो कै मिकल पाउडर फें कते हैं उन्हें A. B. C. D और 'E' श्रेणी अथवा हर क्लास की आगों पर प्रयोग किया जा सकता है।
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प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में कार्बन डाइ आक्साइड गैस, क्या आग बुझाने का भी कार्य करती है
उत्तर- नहीं। इस एक्सटिंग्यूशर में कार्बन डाइ आक्साइड गैस के वल पानीको बाहर निकालने का कार्य करती है और पानी ही आग बुझाने का कार्य करता है। कार्बन
डाइआक्साइड आग पर कोई प्रभाव नहीं डालती। क्योंकि इसकी मात्रा बहुत कम होती है। दूसरे आग से बहुत दूर रहती है।
प्रश्न- प्रयोग विधि के अनुसार सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- प्रयोग विधि के अनुसार सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर दो प्रकार के होते हैं -
1. वे एक्सटिंग्यूशर जो चलाते समय सीधे रखे जाते हैं। इन्हें अपराइट टाइप कहते हैं।
2. वे एक्सटिंग्यूशर जो चलाते समय उलट कर चलाये जाते हैं इन्हें टर्न ओवर टाइप कहते हैं।
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प्रश्न - सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर को बिजली की आग पर क्यों नहीं प्रयोग करते हैं?
उत्तर- क्योंकि इसमें पानी भरा होता है और पानी बिजली का सुचालक होता है। इसकी धार द्वारा आपरेटर को करन्ट का झटका लग सकता है।
प्रश्न- दो गैलन वाले सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में मसालों कापरिमाण क्या है
3
उत्तर- स्टैन्डर्ड चार्ज में 1.833 स्पेसिफिक ग्रेविटी वाला गन्धक का तेजाब 2 लिक्विड ऑस (77.3 घन से.मी.)
4
और 1 पौंड 2 औंस (510 ग्राम) सोडियम बाई कार्बोनेट होता है।
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प्रश्न- स्निफ्टर वाल्व का लगाना क्यों आवश्यक है
उत्तर- यदि वाल्व न लगाया जाय जो गर्मी पाकर एक्सटिंग्यूशर के अन्दरप्रेशर बनकर कु छ घोल डिस्चार्ज पाइप से नाजुल के बाहर आ जाता है। यहाँ पानीहवा में
उड़ जाता है। सोडियम बाई कार्बोनेट शेष रहकर नाजुल पर जम जाता है।अधिक जमाव के कारण नाजुल बन्द भी हो सकता है। जो प्रयोग करते समयकठिनाई उत्पन्न
कर सकता है। कभी-कभी एक्सटिंग्यूशर के फटने की भी सम्भावनाहो जाती है। इसलिए स्निफ्टर वाल्व का लगाया जाना अति आवश्यक है।
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तिमाही देखरेख
1.कैं प खोलकर गैस कारिज निकालिए। देखिए कि इसकी सीलिंगडिस्क सही स्थिति में है या नहीं।
2.गैस कार्टरिज को तौलकर देखिए। उस पर अंकित भार से 10 प्रतिशत भी कम हो तो इसे बदल दीजिए।
3.कै प में कार्टरिज पंक्चर करने वाली प्रणाली सही है या नहीं।
4.लैबिल चैक कीजिए यदि कम हो तो पानी भरकर पूरा करें।
5.कै प को कार्टरिज सहित कन्टेनर पर वापस लगाइये।
6.कन्टेनर को धोकर पोंछ दीजिए।
1
वार्षिक टैस्ट- प्रति वर्ष एक्सटिंग्यूशर को चलाकर देखिये प्रति दो वर्षबाद हाइड्रोलिक प्रेशर टैस्ट कराइये। 17.5 किलोग्राम प्रतिवर्ग सेन्टीमीटर के प्रेशर से2 मिनट
2
तक टैस्ट करना चाहिए।
प्रश्न- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर के गुणदोष बताइये,
उत्तर- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर के गुणदोष निम्नवत् हैं -
गुण-
1.हल्का फु ल्का है।के वल एक आदमी चला सकता है।
2.चलाते समय कोई श्रम (पम्पिंग आदि) नहीं करना पड़ता।
3. के वल पानी प्रयोग होता है। वस्तु खराब नहीं हो सकती।
4.अन्य एक्सटिंग्यूशरों के मुकाबले जल्द भर सकते हैं।
दोष-
1. एक बार चलाने पर पूरा खाली करना पड़ता है।
2. बिजली की आग पर प्रयोग नहीं कर सकते।
3. तेल व धातुओं की आग पर भी प्रयोग नहीं कर सकते है।
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6.या दीवार आदि पर धार मारकर झाग को तेल की सतह पर
बिछने दीजिए और पूरी सतह को इससे ढाकिये।
प्रश्न- गैस या गैस बनाने वाले तरल एक्सटिंग्यूशरों में कौन-2 से रसायनिक पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं।
उत्तर- 1. कार्बन डाईआक्साइड गैस
2. कार्बन टेट्राक्लोराइड (सी० टी० सी०) (तरल)
3. मैथिल ब्रोमाइड (तरल)
4. क्लोरो ब्रोमो मीयेन (तरल)
5. ब्रोमोक्लोरो डाई फ्लोरो मीथेन (तरल)
प्रश्न- सी० टी० सी० एक्सटिंग्यूशर कितने प्रकार के देखने मेंआते हैं?
उत्तर- 1. पम्प टाइप।
2. कम्प्रेस्ड गैस काटरिज टाइप।
3. स्टोर्ड प्रेशर टाइप।
प्रश्न- सी० टी० सी० का प्रयोग भारत सरकार ने निषेध करदिया है। क्यों?
उत्तर- सी० टी० सी० से बनने वाली गैस बहुत खतरनाक होती हैं।क्लोरोफार्म की भांति मनुष्य को बेहोश कर देती है। अधिक देर तक इसमें सांसलेने पर आदमी
भर भी सकता है। यह एक जहरीली "फॉस्जीन" गैस भी बनातीहै। पहले विश्व युद्ध में इस गैस के बम प्रयोग किये गये थे।
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प्रश्न- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर में डिस्चार्ज होर्न क्यों लगाया जाता है ? अन्य एक्सटिंग्यूशरों की भाँति साधारण नाजुल क्यों नहीं लगाते
उत्तर- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर में डिस्चार्ज हार्न लगाने के कई कारण हैं। अपनी विशेष बनावट के कारण होर्न-
1. काबर्न डाई आक्साइड की गति घटाकर हवा को कार्बन डाई आक्साइड में मिलने नहीं देता।
2. सिलैण्डर में तगड़े प्रेशर से भरी गैस धीरे-धीरे फै ल कर गैस रूप में ही निकलती है। यदि हार्न न होगा तो गैस एकदम फै लकर ठण्डी होकर नाजुल पर जमने लगेगी।
उसे बन्द कर देगी।
3. हार्न के बगैर कार्बन डाइ आक्साइड का जेट और हवा ब्लो टार्च की तरह काम करते हैं। जिससे आग भड़क सकती है।
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मासिक देख-रेख- प्रतिमाह तौलकर देखना। प्रत्येक एक्सटिंग्यूशर कीबाडी पर उसका गैस सहित व गैस रहित भार अकित रहता है। यदि अंकित भारसे 10 प्रतिशत
भी भार कम हो तो उसे दोबारा भरने के लिए कम्पनी भेजना चाहिए। अन्यथा वह लीक होकर खाली हो जायेगा। विश्वसनीय नहीं रहेगा। रिकार्ड रजिस्टर पर भी प्रविष्टि
अंकित करा देना चाहिए।
प्रेशर टेस्ट- यदि एक्सडिग्यूशर पर जंग आदि के चिन्ह दिखलाई पड़े तोदोबारा भरने के लिए कम्पनी भेजते समय कम्पनी से प्रेशर टेस्ट भी कराना चाहिए ,यन्त्र को
210 कि० ग्रा प्रति वर्ग सेन्टीमीटर से टेस्ट कराकर प्रमाण पत्र लिया जाए।
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प्रश्न- क्या -क्लोरो ब्रोमो मीथेन धातु, रबर और प्लास्टिक पर कु छ प्रभाव छोड़ता है
उत्तर- सी०टी०सी०की भाँति क्लोरोब्रोमोमीथेन भी रबर, धातु और प्लास्टिक को खराब कर देती है। बल्कि सी०टी०सी०की तुलना में यह अधिक जल्दी धातु में
जंग लगा देती है।
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प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर की वार्षिक देख-रेख बताओ
उत्तर- 1.प्रतिवर्ष कु ल एक्सटिग्यूशरों में से 1/5 को चलाकर देखनाचाहिए। यदि खराब चलें तो शेष 4/5 को भी चलाकर देखो।2 किलो वाला 10 से 15
सैकिण्ड तक, 3 से 4.5 मीटर धारफें के 3 किलो वाला 10 से 15 सैकिण्ड तक, 3.5 से 5.5 मीटर तक धार फें के ।
2.टेस्ट के पश्चात् कन्टेनर को भली भाँति सुखाना चाहिए तबदोबारा भरना चाहिये।
3.रिकार्ड रजिस्टर पर प्रविष्टि अकित कर दी जाय।
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होज (HOSEs)
आग की होजपाइप एक बहुत ही उच्च दबाव वाली नली होती है जिसका उपयोग पानी को आग में ले जाने के लिए किया जाता है। इसमें अग्निरोधी सामग्री भी हो सकती
है। फायर होसेस को या तो फायर इंजन या फायर हाइड्रेंट से जोड़ा जा सकता है, और दबाव 800 और 2000 kPa के बीच होता है। उपयोग के बाद होज़ को
सुखाना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि होज़ में बचा हुआ पानी खराब हो सकता है। नतीजतन, आग के घरों में होसेस को सुखाने के लिए डिज़ाइन की गई बड़ी संरचनाएं
होती हैं।बड़ी क्षमता वाले फायर होज़ कम तापमान पर अधिक पानी ले जाते हैं। यदि नली छोटे व्यास की है, तो उसे उच्च दबाव की आवश्यकता होगी। आग की नली
की प्रभावशीलता निर्धारित करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक नली का व्यास है। फायर होसेस निम्नलिखित विन्यास में निर्मित होते हैं:
सिंगल जैके ट
डबल जैके ट
रबर सिंगल जैके ट
कठोर रबर गैर ढहने वाले टायर
प्रत्येक प्रकार की आग नली को एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए डिज़ाइन किया गया है
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प्रश्न- सक्शन की देख-रेख किस प्रकार की जाती है
उत्तर- 1.सक्शन को तालाब टैंक आदि पर प्रयोग करते समय रस्सी का भीप्रयोग चाहिए।
2.सक्शन पर खड़े मत होइये प्रयोग के समय उसके सहारे उउतरनचढ़ना भी नहीं चाहिये।
3.सही नाप का व सही ढंग से सक्शन रिंच का प्रयोग करें।
4.प्रयोग के बाद सक्शन को साफ पानी से धोना चाहिये।
5.सक्शन को कड़ी धूप में पड़ा नहीं रहने देना चाहिये।
6.सक्शन कपलिंग को जमीन पर पटकना या घसीटना नहीचाहिये।
7.सक्शन के अन्दरूनी भाग, कपलिंग की चूड़ियों और कपलिंग वाशरकी जांच करनी चाहिये कि क्षतिग्रस्त तो नहीं हो गये। कपलिंग के नट की चूड़ियों पर हल्का ग्रीस
चुपड़ देना चाहिये।
8.सक्शन के वाशर चैक करते रहना चाहिये। कट-फट या खो तोनहीं गये हैं, आवश्यक हो तो बदल डालिये।
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.
प्रश्न- अच्छे होज की क्या विशेषतायें हैं
उत्तर- कम से कम भार हो, लचकदार हो, टिकाऊ हो कम से कम फ्रिक्शनलास हो,कम से कम रिसाव हो, सड़न प्रतिरोधक से उपचारित हो।
होज फिटिंग्स
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Female Fire Coupling x Hose Tail
प्रश्न- स्क्रू टाइप कपलिंग के क्या अर्थ है ? यह कहाँ कहाँ प्रयोग होती है
उत्तर- चूड़ीदार कपलिंग को स्कू टाइप कपलिंग कहते हैं। इस प्रकार की कपलिंग के दोनों भागों में चूड़ियों बनी होती है। मेल कपलिंग में ऊपर की ओर तथा फीमेल
कं पलिग में अन्दर की ओर चूड़ी बनी होती है। इन्हीं चूड़ियों द्वारा दोनों भागों को एक दूसरे से जोड़ा जाता है। सक्शन होज में स्क्रू टाइप कपलिंग होती है
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प्रश्न- इन्सटानटेनियस कपलिंग के क्या अर्थ होते हैं ? कहाँ प्रयोग होती है
उत्तर- तत्काल जुड़ने ताली कपलिंग इन्सटानटेनियस कपलिग कहलातीहै। इस प्रकार की कपलिंग में चूड़ियों न होकर विशेष बनावट होती है। मेलकपलिग सपाट
व ढलवा बनकर सिरे पर गोलाई लिए होता है तथा फीमेलकपलिंग सपाट होती है, परन्तु इसके अन्दर एक या दो स्प्रिंगदार दाँत लगे होतेहै जो मेल कपलिग की सिरे
की गोलाई (लिप) को पकड़ लेते है और वापस नहींहोने देते, बल्कि एक घूँटी की मदद से इसे छु ड़ाया जाता है। खूंटी को लग कहतेहै। यह कपलिंग तत्काल जुड़ जाती
है। डिलीवरी होज में इन्सटानटेनियस कपलिंगही प्रयोग की जाती है।
प्रश्न- सक्शन रिंच किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- सक्शन होज की कपलिंग को कसने के लिए व खोलने के लिए जिसउपकरण को प्रयोग किया जाता है उसे सक्शन रिंच कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(1) कन्वेंशनल तथा (2) यूनिवर्सल ।
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उत्तर- एक विशेष प्रकार का ब्रांच है इसके घूमने वाले हैड पर अलग-अलगकोण बनाते हुए जैट बने होते हैं। हैड छरों वाली बेरिंग पर पानी के दबाव सेघूमता है और
चारों ओर ऊपर नीचे पानी फें कता है। तहखानों की आग, जहाजके शिप होल्ड की आग के लिए यह उपयोगी है।
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प्रश्न- डिलीवरी एडाप्टर किसे कहते हैं? कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- डिलीवरी होज की कपलिंगों के साथ ये प्रयोग होते हैं जैसे
1.एक ही तरह की कपलिंगों के दो फीमेल, या दो मेल, कपलिंगोको जोड़ने वाले मेल टु मेल या फीमेल टु फीमेल एडाप्टर।
2.भिन्न प्रकार की कपलिंगों को जोड़ने वाले एडाप्टर जैसे- राउण्ड थ्रेड से इन्सटानटेनियस, वी थ्रेड से इन्सटानटेनियस कपलिंग जोड़ने के लिए एडाप्टर।
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प्रश्न- क्लै क्टिंग हेड एडाप्टर किसे कहते हैं।
उत्तर- इस एडाप्टर में एक ओर ढाई इंच इमीटर की फीमेल इन्सटानटेनियसकं पलिंग होती है तथा दूसरी ओर 3", (75 मि० मी०) 4, (100 मि०मी० ),
या(125 मि० मी०) डाइमीटर की स्क्रू टाइप मेल कपलिंग होती है।
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उत्तर- यह मैटल स्ट्रेनर के साथ ही प्रयोग किया जाता है। रेत कीचड़ आदि में मेटल स्ट्रेनर को धँसने से बचाता है। पत्थर, चट्टान आदि की चोट से भी बचाता है।
बेत की टोकरीनुमा बना होता है। एक ओर खुला रहता है जिसमें से मैटल स्ट्रेनर इसके अन्दर कर दिया जाता है। कै नवास की एक घंघरिया (स्कर्ट) इस सिरे पर सिली
होती है। उसी की डोरी से इसे सक्शन पर कस दिया जाता है।
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उत्तर- होज पाइप के ऊपर से भारी गाड़ियाँ, मोटरकार आदि निकालने के लिए इस उपकरण की आवश्यकता पड़ती है। होज रैम्प लकड़ी अथवा धातु के बने होते
हैं। इनकी बनावट ऐसी होती है कि इससे होज के दोनों ओर ढलवाँ रास्ता बन जाय और उसमें इतनी गुंजाइश रहे कि गाड़ी के पहिये पानी से भरी होज लाइन को न
छु यें। इसके ऊपर से गाडियाँ सुरक्षित रूप से आ जा सकती हैं।
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स्माल गेयर्स
प्रश्न- अध्यय हेतु स्माल गेयर्स को कितने ग्रुपों में रख कर याद करते हैं
उत्तर- स्माल गेयर्स को सात ग्रुपों में बाँटा गया है।
1-ब्रेकिं ग इन टूल्स (तोड़-फोड़ करने के लिए यन्त्र)
2-कटिंग इन टू ल्स (काटने वाले यन्त्र)
3- रेस्क्यूगेयर्स (जीवन रक्षा में काम आने वाले यन्त्र)
4-लाइट्स (प्रकाश व्यवस्था के लिए यन्त्र)
5-टर्निग ओव रटू ल्स (उलट-पुलट करने वाले यन्त्र)
6- ट्रांसपोर्ट टू ल्स (मोटरगाड़ीके साथरखनेवालेयन्त्र)
7-मिस्लेनियस एण्ड स्पेशलइक्यूपमेन्ट (विविधएवंविशेषयन्त्र)
प्रश्न- ब्रेकिं ग इन टू ल्स से क्या समझते हो? इनमें कौन-कौन सेयन्त्र आतेहैं ?
उत्तर- वे उपकरण जिनको दरवाजे खोलने, तोड़ने, खिड़कियों खोलने लोहे की छड़ें, जंजीर, ताले इत्यादि तोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है ब्रेकिं ग इन
टू ल्सकहलातेहैं।जैसे-हैमर (हथोड़ा), चीजल (छैनी), शीयर,कैं ची,लार्जएक्स(बड़ीकु ल्हाड़ी), क्रोबार (सब्बल), बोल्टकटर, डोरब्रेकर,
परसुण्डरपैडलाकरिमूवरइत्यादि।
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प्रश्न- टर्निंग ओवर टूल्स से क्या समझते हो , कौन-कौनसे यन्त्र इसमें आते हैं
उत्तर- आग बुझाते समय मलवे कचरे को उलट-पलट कर दबी हुई आग को खोज कर बुझाने या पानी को काट कर उस तक पहुँचाने के लिए प्रयोग किये
जाते हैं। वेटर्निंग ओवर टू ल्स कहलाते हैं।जैसे-पिक एक्स, शावेल, मटक (कु दाल), स्पेड (फावड़ा) सीलिंग हुक, शाड लीवर स्टील शाडवुडन लोवर, स्टैकड्रैग,
ड्रैगहुक और पिच फोर्क इत्यादि।
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प्रश्न- ट्रांसपोर्ट टूल्स से क्या समझते हो? इसमें कौन-कौन सेटू ल्स होते हैं
उत्तर- मोटरगाड़ी की मरम्मत में प्रयोग आने वाले टू ल्स को ट्रांसपोर्ट टू ल्स कहते हैं। जैसे- जैक मय हेन्डिल, स्क्रू रिंच स्कु ड्राइवर, स्पेनर्स आपलकै न ग्रीसगन,
टायर लीवर, व्हील ब्रेस, प्लायर्स और मैगनेट रिच सैट इत्यादि।
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शीयर चित्र
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प्रश्न- सिलिंग किसे कहते हैं
उत्तर- मजबूत निवाड़ से बनाई गई लम्बी बेल्ट हैं। जो एक्स्ट्रा लॉग लाइन या लोअरिंग लाइन के साथ बचाव कार्य में प्रयोग की जाती है। इस से बेहोश व्यक्तिको
ऊपर से नीचे उतारा जाता है।
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रस्से- रस्सियाँ
(रोप एण्ड लाइन्स)
प्रश्न- फायबर रोप बनाने में कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग में लाये जाते हैं?
उत्तर- फायवर रोप, हेम्प (पटुआ), मनीला (अच्छे किस्म का सन) सीसल(रामबास), क्वायर (नारियलजटा), काटन (सूत), नायलान पालिस्टर इत्यादि से
बनाये जाते हैं।
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प्रश्न- रोप और लाइन में क्या अन्तर है ?
उत्तर- 1/2" ( 12.5 मि० मी०) सरकमफ्रें स से मोटी किसी भी रस्सी को रोप कह सकते हैं। इसकी लम्बाई मोटाई निश्चित नहीं होती जबकि किसी विशेष
कार्य के लिए निश्चित लम्बाई मोटाई की रस्सी को लाइन कहते हैं। यही रोप एवं लाइन में अन्तर है।
प्रश्न- फायर सर्विस में प्रयोग किये जाने वाली विभिन्न लाइनों का वर्णन करो
उत्तर- 1.एक्स्ट्रा लॉग लाइन- यह 150 फीट से 230 फीट ( 45 से 69 मीटर) लम्बी 2" (50 मि०मी०) मोटी बढ़िया किस्म के इटालियन हैम्प की
बनी होती है। यह टर्न टेबुल लैडर के साथ बचाव कार्य करने के लिये दी जाती हैं।
2.लोअरिंगलाइन-यह 100 फीटसे 130 फीट (30 से 39 मी0) लम्बी 2" (50 मि0 मी0) मोटी बढ़िया किस्म के इटालियन हैम्प की बनी होती है।
रैस्क्यू कार्य में प्रयोग की जाती है।
3.लॉग लाइन- यह रस्सी 100 फीट (30 मी०) लम्बी 2 (50 मि०मी०) मोटी मनीला अथवा सेकण्ड क्वालिटी के इटालियन हैम्प की बनी होती है। यद्यपि यह
रेस्क्यू कार्य के लिये नहीं है परन्तु आवश्यकता पड़ने पर काम दे सकती है। यह सिर्फ कोई वस्तु खीचनें जैसे होज लेंग्य बाँध कर ऊपर खीचनें , रास्ते रोकने आदि के
काम आती है।
4.शार्टलाइन-40 फीट (12 मी0) या 50 फीट (15 मी0) लम्बी 2. (50 मि0 मी0) मोटी मनीला या सेकण्ड क्वालिटी हैम्प से तैयार की जाती है।
अनेक छोटे-मोटे कार्यों में प्रयोग की जाती है।
5.स्के पलाइन- 15 फीटसे 20 फीट (4.5 से 6 मी0) लम्बी 2 (50 मि0 मी०) मोटी आम तौर से लॉग लाइन या लोअरिंग लाइन से काटकर
बना ली जाती है। धुर्वे में घुसते समय फायरमैन इसको वापसी के रास्ते की पहचान के लिये प्रयोग में लाते हैं। इस्के प लैडरके ऊपरी सिरे पर इसे बांधकर रखा जाता है ।
6.बबिनलाइन-130 फीट(39 मी0) लम्बीडोरीजो 2 पौण्ड (9 कि०) सूती प्लेटेड कार्ड से बनाई जाती है। एक हल्की पतली लाइन है। यह एक चमड़े के वाबिन
(गिट्टक) पर लपेटी रहती है और एक विशेष प्रकार के पाउच (बटुए) में रखी जाती है। यह पाउच एक वेल्ट के साथ रहता है। हलके उपकरणोंको ऊपर खीचने या
उतारने के काम आती है। गार्ड लाइन की भाँति भी प्रयोग की जाती है।
7. बेल्टलाइनयापाके टलाइन- 9 फीटसे 12 फीट (3.6 मी0) लम्बी 1” (25 मि०मी०) मोटी सूती डोरी होती है। फायरमैन के यूनीफार्म के साथ दी जाती है। जो
बेल्ट में या ट्युनिक की पाके ट में रखे रहते हैं। अनेक छोटे-मोटे कामों में जैसे ब्रांच-बांधना, उपकरणों को खींचना, उतारना इत्यादि में काम आती है।
8.क्वायरयाग्रासलाइन-नारियल के जटे से बनी होती है। हल्की होने के कारण पानी प रतैरती है। नदी, तालाब में रेस्क्यू में काम आती है।
प्रश्न- मैके निकल डिटेरियोरेशन में रस्से किस प्रकार खराब होते हैं?
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उत्तर- घिसटन या कटने-फटने के कारण अथवा जो रस्से पर दिखायी दे सके , जैसे खुरदरे स्थान पर रस्से को घसीटने से, दीवार या मुन्डेर के नुकीले कोनों पर
घिसटने से, रोप के धागों का घिसटना या टू टना, गहरा मोड़ या ऐंठन, रस्से के उलझ जाने पर उसकीभॉज पर ताकत पड़ना, स्ट्रेण्ड का चटख जाना या टू ट जाना,
जिससे रोप कमजोर पड़ सकती है।
प्रश्न- फिशरमैन बैण्ड कहाँ प्रयोग की जाती है? विशेषतायें क्या हैं
उत्तर- यह भी किसी गोल वस्तु पर बाँधने के काम आती है। इसकी विशेषता यह है कि गाँठ घूमती-फिरती रहती है। खिंचाव पड़ने पर टाइट नहीं होती है।
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सीढ़ियाँ
(फायरसर्विसलैडर्स)
प्रश्न- फायर सर्विस में कितने प्रकार की लैडर्स प्रयोग की जा रही हैं
उत्तर- फायर सर्विस में सामान्यतः 4 प्रकार की लैडर्स प्रयोग में है।
1.फर्स्टफ्लोरलैडर 15 फीट 6 (4.65 मी०)
2.एक्सटेन्शनलैडर 13', (3.9 मी0) 20 (6 मी0) 24, (7.5 मी0)30’, (9 मी0) 35', (10.5 मी0) और 40' 12 मी०
3.हुकलैडर 13 फीट 4", (4 मी0)
4.स्के लिंग लैडर 6 फीट 6 (1.95 मी0)इसके अतिरिक्त बड़े-बड़े शहरों में अधिक ऊँ चे भवनों पर कार्य करने हेतु अन्य स्पेशल लैडर्स भी प्रयोग की जाती हैं। जैसे-
5.50 फीट इस्के प लैडर या व्हील्डस्के प
6.टर्नटेबुल लैडर।
7.स्नारके ल या हाइड्रोलिक प्लेट फार्म ।
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उत्तर- फर्स्ट फ्लोर लैडर 15 फीट 6" (4.65 मी0) लम्बी एक साधारण सीढ़ी है,जो साधारण छतों या पहली मंजिल (फर्स्टफ्लोर) पर चढ़ने के काम आती है।
यह लैडर 50%फीट (15 मी0) स्के प लैडर के साथ भी दी जाती है। लकड़ी के लैडर का भार लगभग 45 पौण्ड (20.4 कि०) होता है ।
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5.पाल्स 6. पुली
7.स्ट्रिंग्स 8. स्टापर
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इस्के प लैडर
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प्रश्न- गाई वायर किसे कहते हैं
उत्तर- मुख्य सीढ़ी के हैड से दोनों ओर लीवर आर्म्स तक दो वायर बंधे रहते हैं जो सीढ़ी को बढ़ाते समय मुख्य सीढ़ी को सम्भालने में सहायक होते हैं। इन्हें गाई
वायर कहते हैं।
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11.रात के समय लीवर आर्म्स के आस-पास लैम्प आदि की व्यवस्था होनी चाहिये । ताकि आने-जाने वाली गाड़ियों से टक्कर न लगे।
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प्रश्न- टर्न टेबुल लैडर में जैक कहाँ लगे होते हैं? और क्यों
उत्तर- गाड़ी की चेसिस में पिछले पहियों के आगे व पीछे चार जैक लगे होते हैं। जिन्हें लैडर प्रयोग करते समय लगा दिया जाता है। ताकि लैडर को ठोस आधार
मिले और पहियों या रोड स्प्रिंगों पर भार भी न पड़े।
प्रश्न- लैडर को आपरेट करने वाले पावरटेक ऑफ यदि कार्यन करे तो क्या करेंगे ?
उत्तर- आपात कालीन स्थिति के लिये लैडर को हाथों द्वारा भी आपरेटकरने की व्यवस्था रहती है।
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पम्प और प्राइमर
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1.फोर्सपम्प 2.लिफ्ट पम्प 3. बके टएण्डप्लंजरपम्प 4. रोटरी पम्प 5. सैन्ट्रीफ्यूगलपम्प।
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2. वाटर रिंग टाइप रोटरी प्राइमर- इसमें एक खोखला इम्पेलर विशेष अण्डाकार हाउसिंग में घूमता है। इसी हाउसिंग में विशेष प्रबन्ध (स्टेशनरी बॉस) रहता है। जिसमे
दो सक्शन व दो डिलीवरी पोर्ट (छेद) होते हैं। ये मुख्य पम्प से सम्बन्धित रहते है। इसप्रणाली में थोड़ा सा पानी पहले से ही भर कर रखते हैं।
जब इम्पेलर घूमता है। पानी को सैन्ट्रीफ्युगल फोर्स द्वारा अण्डाकार हाउसिंग में फें कता है। हाउसिंग में पानी का रिंग बन जाता है। अपनी विशेष बनावट के कारण यह
पानी का रिंग सक्शन पोर्ट (छेद) से हवा खींचता है। और डिलीवरी वाले छेद से बाहर फें कता है।
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आजकल इसी प्रकार के रोटरी प्राइमर प्रयोग में लाये जा रहे हैं। ये भी फ्रिक्शन व बील प्रणाली द्वारा मेन पम्प शाफ्ट, या इंजन द्वारा ही चलते हैं।
दोष :-
1.इंजन में पानी पहुँचने की सम्भावना रहती है।
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2.के वल फ्रन्ट माउन्टेड पम्पों के लिये ही उपयुक्त होता है।
उत्तर- इस प्रकार के प्राइमर में पम्प के सिंग की बनावट विशेष प्रकार की होती है। इसमें नीचे की ओर थोड़ा पानी , हमेशा शेष बना रहता है। प्राइमर के सिंग नीचे दो
भागो. प्राइमरी घोट और सेके न्डरी थ्रोट में बँटकर ऊपर एक हो जाता है। जो सेपरेटर चैम्बर कहलाता है और इसी में आउटलेट भी होता है।
पम्प चलाये जाने पर इम्पेलर द्वारा पानी में हलचल पैदा होती है। फलस्वरूप पम्प लिंग में रुकी हवा पानी के साथ मिलकर प्राइमरी घोट द्वारा ऊपर चढ़ जाती है।
तथासैप्रेटर चैम्बर में पानी गिरता है और हवा आउटलेट से बाहर हो जाती है। पानी सैके ण्डरी थ्रोट से होकर वापस इम्पेलर के इनलेट पर पहुँच जाता है एवं पुनः हवा
को लेता हुआ प्राइमरी थ्रोट द्वारा ऊपर चला जाता है। लगातार यही क्रिया होने से सक्शन और पम्प के सिंग की हवा बाहर निकल जाती है और पानी इम्पेलर तक
पहुँचने लगता है अथवा पम्प पानी पकड़ लेता है।
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उत्तर- पम्प को चलाने वाले इण्टरनल कं वश्चन इंजन में घर्षण से उत्पन्न गर्मी को साथ ही साथ ठण्डा करके सामान्य ताप पर रखने की व्यवस्था को इंजन कू लिंग
सिस्टम कहते हैं। यह कार्य हवा द्वारा (एअर कू लिंग सिस्टम) और पानी द्वारा (वाटर कू लिग सिस्टम) किया जाता है।
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उत्तर- इस प्रणाली में पम्प से एक विशेष पाइप द्वारा पानी लेकर इंजन के रेडियेटर अथवा हेडर टैंक में डायरेक्ट (सीधे) डाल दिया जाता है। यह पानी टैंक के
पानी कोठण्डा करता है तथा इंजन को भी ठण्डा करता है। तत्पश्चात् रेडियेटर या हेडर टैंक के ओवर फ्लो पाइप से बाहर गिर जाता है।
उत्तर- इस प्रणाली में पम्प के पानी को रेडियेटर अथवा हेडर टैंक में(सीधे) नहीं डालते बल्कि हेडर टैंक में पम्प के ठण्डे पानी को एक विशेष कु ण्डली कार पाइप
में से होकर निकालते हुए बाहर गिरा देते हैं। यह ठण्डा कु ण्डलीकार पाइप ही हैडर टैंक के पानी को ठण्डा रखता है ।
दोष:-
1. गन्दे पानी से पम्पिंग करते समय इंजन के वाटर जैकिटों में गदले पानी के भरजा ने की आशंका रहती है ।
2.यदि सिस्टम में वाटर फिल्टर भी लगाहै तो उसके चोक हो जाने का तुरन्त पता नहीं लगता बल्कि पानी के खोलने पर ही पता चलता है ।
3. खोलते पानी में पुनःठण्डा पानी मिलने पर इंजन को हानि पहुँच सकती है ।
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1.इजनकोठण्डकरनेकीक्षमताकमहोतीहै।
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प्रश्न- वैक्यूम गेज किसे कहते हैं
उत्तर- वह यन्त्र है जो अपनी सुई द्वारा प्रदर्शित करता है कि पम्प में इस समयकितना स्थान वैक्युम में (हवा से शून्य) है।
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प्रश्न- अपनी पम्पिंग क्षमता के अनुसार ट्रेलर पम्प कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- ट्रैलर पम्प 3 प्रकार के पाये जाते हैं।
1. स्माल ट्रेलरपम्प-वे जो 120 गैलन (540 लिटर्स) से 180 गैलन (810 लिटर्स) प्रति मिनट पानी फें कते हैं । इन्हें एस० टी०पी० (स्माल
ट्रेलरपम्प) कहते हैं।
2. मीडियम ट्रेलर पम्प – वे जो 250 गैलन (1150 लिटर्स) से-350 गैलन (1575 लिटर्स) प्रति मिनट पानी फें कते हैं। इन्हें
एम०टी०पी०कहते हैं ।
3. लार्ज ट्रेलर पम्प-वे जो 350 गैलन (1575 लिटर्स) से 500 गैलन (2250 लिटर्स) प्रति मिनट पानी फें कते हैं। इन्हें एल०टी०पी०कहतेहैं।
प्रश्न- नदी तालाब और स्टेटिक टैंक से पम्पिंग करते समयकौन-कौन सी बातें यादरखनी चाहिये?
उत्तर- 1.पम्प को पानी के निकट से निकट ले जाइये।
2.सख्त और चौरस स्थान देखकर पम्प को लगाइये।
3.ट्रेलर पम्प के प्राप लगाकर मशीन को समतल कीजिये तथा रोड स्प्रिंगों से भार हटाइये । यदि पोर्टेबुल पम्प है तो पैकिं ग लगाकर मशीन को समतल कीजिये ताकि
इंजन के लुब्रीके शन में बाधा न पड़े।
4.कोनिकल स्ट्रेनर निकाल लीजिये के वल मैटलस्ट्रेनर और वास्के टस्ट्रेनर का प्रयोग कीजिये ।
5.आवश्यक सक्शन पाइपों को जोड़ कर पम्प इनलेट कसिए ।
6.रस्सी बाँध कर सक्शन का भार-रस्सी पर रखिये और सक्शन को रगड़ने से बचाइये ।
7.सक्शन को अधिक मोड़ व ऐठन से बचाइये। स्टेटिंक टैंक से कार्य करते समय ध्यान रखिये कि
सक्शन पाइप पम्प के इनलेट से ऊपर होकर (एयरपाके ट) न –बनाने-पाये अन्य था ,पम्पिंग में अवरोध होगा ।
8.सक्शन स्ट्रेनर को पानी में भली भाँति डु बोइये, स्ट्रेनर पानी की सतह से कम से कम 18 इंच नीचे रखना चाहिये।
9.इंजन स्टार्ट कीजिये और विधिवत् प्राइमिंग करके पम्पिंग आरम्भ कीजिये।
10.गिलैण्ड पैकिं ग, ओवर फ्लोपाइप और कू लिंग सिस्टम के बेस्ट पाइप इत्यादि से पानी का गिरना देखिये। पम्प के गेजों पर भी निगाह रखिये व इनके किसी
परिवर्तन पर समुचित कार्यवाही कीजिये।
11.पानी खोल ने का संके त मिलने पर धीरे -धीरे डिलीवरी वाल्व खोलिये। होज में पानी जाने दीजिये और देखते रहिये कि होज में कहीं गहरा मोड़ या ऐंठन तो नहीं है।
कपलिंग का जोड़ खुल तो नहींगया। ब्रॉच पर पानी पहुँचते ही ग्राटल को धीरे-धीरे बढ़ाकर आवश्यक प्रेशर पर रखिये।
12.सर्तक रहिये, वेस्ट पाइप, ओवर फ्लो पाइप से पानी का गिरना देखते रहिये।
13.पम्प के गेजों पर निगाह रखिये तथा उनमें किसी परिवर्तन पर समुचित कार्यवाही कीजिये।
प्रश्न- फायर हाइड्रेन्ट से पम्पिंग करते समय कौन-कौन सी बातें याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1.पम्प को ऐसे स्थान पर खड़ा कीजिये जहाँ यातायात में असुविधा न हो।
2.यदि ट्रेलर पम्प है ,तो प्राप खोल कर समतल खड़ा कीजिये।
3.हाइड्रेन्ट पिट कवर खोलकर स्टैण्ड पाइप को विधिवत्लगाइये तथा हाइड्रेन्ट को थोड़ा खोलकर उस में भरा गदला पानी निकाल दीजिये तथा साफ पानी आते ही
बन्द कर दीजिये।
4.शाफ्ट सक्शन अथवा हार्ड सक्शन द्वारा पम्प व हाइड्रेन्ट को जोड़िये। यदि कई हाइड्रेन्टों से कार्य करना होतो पम्प इन लेटपर कलैक्टिंग हैड बाँधिये। कोनिकल
स्ट्रेनर लगा रहने दीजिये ।
5.पम्प का एक डिलीवरीबाल्व खोलकर रखिये ताकि हाइड्रेन्ट खोलते समय पम्प की हवा बाहर निकल जाये।
6.पानी खोलने का संके त मिलने पर धीरे-धीरे हाइड्रेन्ट खोलिये तथा डिलीवरी बाल्व पर पानी आते ही पहले वाल्व को बन्द कर दीजिये और होज में पानी जाने
दीजिये और देखते रहिये कि होज में कहीं गहरा मोड़ या ऐंठन तो नहीं है। कपलिंग का जोड़ खुल तो नहीं गया। ब्राँच पर पानी पहुँचते ही थाटल को धीरे -धीरे बढ़ाकर
आवश्यक प्रेशर पर लगाइये।
7.सर्तक रहिये, गिलैण्ड, वैस्ट पाइप, ओवर फ्लो पाइप से पानी का गिरना देखते रहिये।
8.पम्प के गेंजों पर निगाह रखिये तथा उनमें किसी परिर्वतन पर समुचित कार्यवाही कीजिये। कम्पाउण्ड गेज की सुई जीरो पर रहना चाहिये। यदि सुई प्रेशर दिखाये तो
इंजन की स्पीड बढ़ाइये। यदि सुई वैक्युम दिखाये तो स्पीड घटाइये।
प्रश्न- रिसिप्रोके टिंगप्राइमर प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानी रखना आवश्यक है
उत्तर- रिसिपरोके टिंग प्राइमर प्रयोग करते समय इंजन को अधिक स्पीड से नहीं चलाना चाहिये। अधिक स्पीड से चलाने में हवा निकलने में अड़चन होगी तथा
इस सिस्टम में पानी आते ही इंजन पर भार पड़ने लगता है, जिससे टू ट-फू ट का खतरा रहता है। अतः धीमी व नियंत्रित स्पीड का रखना आवश्यक है यहाँ यह तथ्य
भी याद रखना चाहिये कि सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प का इम्पेलर एक विशेष स्पीड पर चलाने पर ही पानी पकड़ता है। अधिक धीमी स्पीड पर नहीं। अतः प्राइमिंग करते समय
प्रश्न- एक्जास्ट इजैक्टर प्राइमिंग सिस्टम को प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक है
उत्तर- इस सिस्टम में इंजन की स्पीड अधिक से अधिक रखी जाती है। अथवा धाटल को पूरा खुला रखते हुये प्राइमिंग करना चाहिये और देखते रहिये कि इंजन
की एक्जास्ट गैस अपने सामान्य मार्ग से न होकर इजेक्टर जेट से होकर जा रही है कि नहीं। जैसे ही इस स्थान से गैस की जगह पानी या स्टीम निकलने लगे और
प्रेशर गैज रीडिंग देने लगे, प्राइमिंग लीवर को वापस करने के साथ-साथ वाटल को भी आधा कर देना चाहिये ताकि प्रेशर अधिक न बनने पाये।
कभी-कभी प्राइमिंग करते समय गैसों में रूकावट के कारण इंजन की स्पीड खुद ब खुद कम होने लगती है। ऐसी परिस्थिति में प्राइमिंग लीवर को वापस कर देने से
इंजन सामान्य स्थिति में आ जाता है।
प्राइमिंग में 45 सेकिण्ड से अधिक समय नहीं लगना चाहिये। यदि इसअवधि में पानी नहीं पकड़ता है तो उसका कारण खोजिये पम्प को अधिक समयतक सूखा मत
चलाइये।
प्रश्न- रोटरी प्राइमिंग सिस्टम को प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं
उत्तर- इस सिस्टम में भी इंजन को अधिक स्पीड से नहीं चलाना चाहिये। अधिक स्पीड से चलाने से इसके स्लाइडिंग वेन्स आउटर कै सिंग से रगड़कर खराब हो
सकते हैं। इस प्रकार के सिस्टम में कम्पनी वाले ग्राटल की प्राइमिंग की स्थिति निर्धारित कर देते हैं। अतः घाटल को उसी स्थिति में रखकर प्राइमिंग करना चाहिये।
वाटर रिंग टाइप प्राइमिंग सिस्टम में सर्वप्रथम पानी भरना आवश्यक है।
प्रश्न- मैनीफोल्ड इन्डक्शन प्राइमिंग सिस्टम को प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिये
उत्तर- इस प्रकार के सिस्टम में भी इंजन की स्पीड एक हजार आर० पी० एम 0 से अधिक नहीं होनी चाहिये प्रेशर गेज पर प्रेशर आते ही तुरन्त प्राइमिंग लीवर
को वापस करके थाटल द्वारा प्रेशर नियन्त्रित करना चाहिये। प्राइमिंग में 45 सेकण्ड से अधिक समय नहीं लगना चाहिये।
प्रश्न- नदी तालाब या स्टेटिक टैंक (ओपेन वाटर) से पम्प के पानी न उठाने के क्या-क्या कारण होते हैं
उत्तर- 1.सक्शन स्ट्रेनर पानी में डू बा न हो।
2. सक्शन कपलिंग ढीले हों।
3. सक्शन के वाशर त्रुटि पूर्ण हों ।सूखे, कटे-फटे-हों या गिर गये हों।
4. सक्शन पाइप ही लीक हो फट गया हो।
5. डिलीवरी वाल्व बन्द नहो, या बन्द न होता हो।
6. प्राइमिंग वाल्व बन्द हो, खोला न गया हो, खुलता न हो।
7. कू लिंग वाल्व खुला हो ।
8. कम्पाउण्ड गेज, प्रेशर गेज के काग बन्द हों, गेज कनेक्शन ही ढीले हों। लीक हों या फट गये हों।
9. गिलैण्ड पैकिं ग खराब हो, ढीला हो, सूखा हो।
10. के सिंग का ड्रेन काग खुला हो या ढीला हो ।
11. पम्प का फिलर प्लग ढीला हो उस का वाशर टू ट या खोजाये।
12. यदि पम्प मरम्मत के पश्चात आया है,तो पम्प के सिंग ही लीकहो।
13. प्राइमिंग सिस्टम में ही कोई खराबी हो। क्लै पर वाल्व सही स्थिति में न हो, फिक्शन ड्राइव खराब हो, क्लच एन्गेज न होता हो।
14.यदि वाटर टैण्डर टाइप (वी) है तो उसके सर्विस टैंक का वाल्व खुला हो यालीक हो, होज रील वाल्व खुला हो या लीक हो ।
15.पम्प में कोई यान्त्रिक खराबी आ गई हो।
प्रश्न- ओपेन वाटर से पानी न उठाने के क्या-क्या कारण हैं।जबकि वैक्यूम गेजकी सुई वैक्यूम दिखाती है
उत्तर- 1. मैटल स्ट्रेनर, बास्के ट स्ट्रेनर या कोनिकल स्ट्रेनर कचरे से बन्दहो गये हों।
2.सक्शन त्रुटि पूर्ण हो बाहर से न दिखाई पड़ता हो परन्तु प्राइमिंग के समय अन्दर से बन्द होजाता हो। उसके भीतर की कोई कै नवास या रबर की परत खुल कर बन्द
कर देती हो।
प्रश्न- हाइड्रेन्ट से कार्य करते समय पम्प के पानी न उठाने के क्या-क्या कारणहैं?
उत्तर- 1.कोनिकल स्ट्रेनर कचरे से बन्द हो।
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2.हाइड्रैन्ट में प्रेशर बहुत कम हो, जो पानी को साफ्ट सक्शन से ही पास न होने देता हो।
3.साफ्ट सक्शन में गहरा मोड़ या ऐठन हो।
4.साफ्ट सक्शन या हार्ड सक्शन लीक हो या फट गया हो।
5.हाइड्रेन्ट की सप्लाई बन्द हो ।
6. मेन लाइन लीक हो या बन्द हो।
प्रश्न- पम्पिंग करते समय वैक्यूम गेज की सुई बढ़ने के क्याकारण हो सकते हैं
उत्तर- 1. स्टेटिक टैंक के पानी का लेविल कम होता जा रहा हो।
2. बास्के ट स्ट्रेनर या मैटल स्ट्रेनर कचरे से ढक गये हों।
3. सक्शन पाइप में अन्दर से कोई खरावी उत्पन्न हो गई हो और बन्द हो जाता हो।
प्रश्न- पम्पिंग करते समय वैक्युम गेज की सुई घटने के क्याकारण हो सकते हैं
उत्तर- 1. सक्शन स्ट्रेनर पानी के बाहर आ गया हो।
2. सक्शन कपलिंग ढीले होगये हों।
3. सक्शन फट गया हो या लीक होने लगा हो।
4. गिलैण्डपैकिं ग घिसकर ढीली हो गईहो या खत्म होगई हो।
5. गेज कनेक्शन ढीले हो गये हों।
6. पम्प के सिंग में कोई लीके ज हो गया हो।
उपरोक्त किसी भी खराबी पर पम्प पानी उठाना छोड़ देगा। अतः पुनः प्राइम करने से पहले उपरोक्त बातों को चैक कर लेना चाहिये।
प्रश्न- पम्पिंग करते समय प्रेशर गेज की सुई के चलते-चलते बढ़ने के कारणबताइये?
उत्तर- 1.डिलीवरी होज पाइप में कहीं गहरा मोड़ या ऐठन पड़ गई हो।
2.होज़ लाइन पर कोई भारी वाहन, मोटर, ट्रक, बस इत्यादि खड़ी हो।
3.होज लाइन पर भवन की दीवार या छत गिर गई हो या होजमलबे में दब गई हो।
4.यदि हेण्ड कन्ट्रोल ब्रॉच प्रयोग किया जा रहा हो तो वही बन्द कर दिया गया हो। स्प्रे प्रयोग किया जार हा हो।
5.यदि हेण्ड कन्ट्रोल डिवाइडिंग ब्रीचिग प्रयोग की जा रही हो तो हो सकता है कि वही बन्द स्थिति में रह गई हो।
6.नाजूल में कोई वस्तु पत्थर गिट्टी आदि फँ स गई हो। ऐसी परिस्थिति में डिलीवरी आउटलेट बन्द करके व होज खोल करप्रेशर कम कर दिया जाये। अन्यथा घायल
होने का डर रहता है।
प्रश्न- पम्पिंग करते समय प्रेशर गेज की सुई का चलते-चलतेघट जाने का कारण बताइये
उत्तर- 1.होज बर्स्ट हो गई हो।
2.कपलिंग खुल गई हो।
3.स्ट्रैनर पानी से बाहर आगया हो। वाटर लेबिल नीचे चला गया हो।
4.यदि मोटर फायर इंजन के सर्विस टैंक से पम्पिंग की जारहीहो तब टैंक के पानी के खत्म होते ही सुई घटने लगेगी।
5.हैण्ड कन्ट्रोल ब्रांच को स्प्रे से जैट में परिवर्तन किया गया हो।
6.हैण्ड कन्ट्रोल डिवाइडिंग व्रीचिंग बन्द स्थिति से खोली गई हो।
प्रश्न- पम्प थोड़ी देर चलने के बाद पानी छोड़ है,देताकारण बताओ?
उत्तर- 1.सक्शन के कपलिंग ढीले हैं। वाशर खराब है।
2.गिलैण्ड पैकिं ग ढीला है या चलते-चलते बिस गया है।
प्रश्न:- मैके निकल फोम बनाने के लिये किन-किन उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है
उत्तर- 1.पानी को आवश्यक प्रेशर प्रदान करने के लिये एक पम्प ।
2.पानी को पम्प से ब्राँच तक ले जाने के लिये होज पाइप ।
3.पानी की धारा में फोम कम्पाउण्ड प्रेरित करने का कोई माध्यम। नेपसैकटैंक, इनलाइन इण्डक्टर ।
4.पानी और फोम कम्पाउण्ड के मिश्रण में हवा मिश्रित करने तथा आग पर फें कने का माध्यम ब्राँच पाइप ।
प्रश्न:- नम्बर 2 फोम मेकिं ग ब्राँच पाइप की कार्य प्रणाली वर्णन करो
उत्तर- सम्पूर्ण ब्रॉच के तीन मुख्य भाग होते हैं-
1. वाटर हैड
2. मिक्सिंग चैम्बर और
3. डिस्चार्ज ट्यूब
वाटरहैड में मेल इन्सटनटेनिस कपलिंग होती है। जिससे होज पर फिट किया जा सकता है। इसी में एक अन्य कनैक्शन होता है जिसके द्वारा इसमें फोम कम्पाउण्ड
दिया जाता है। फोम कम्पाउण्ड सप्लाई करने के लिये इस ब्राँच के साथ एक अलग से टंकी दी जाती है इसे नैपसैक टैंक कहते हैं। वाटर हैड में होज से आया हुआ पानी
3 नाजुलों में बँटकर एक कोन बनाता हुआ एक स्थान पर आकर टकराता है। इन तीनों नाजुलों के बीच में एक चौथा नाजुल भी होता है। जिसमें से फोम कम्पाउण्ड
आकर तीनों नाजुलों से टकराता है। टकराने से पानी महीन फु आर के रूप में बदलकर ब्राँच के मिक्सिंग चैम्बर से डिस्चार्ज ट्यूब की ओर बढ़ता है। फलस्वरूप पिस्टन
की भाँति चुसाव (सक्शन) पैदा होता है। जिससे हैड के चारों ओर बने रास्ते (एयरइनटेक) से हवा खिंचकर मिक्सिंग चैम्बर में आ जाती है और पानी व फोम
कम्पाउण्ड में घुसकर झाग बनाने लगती है। यही झाग ब्राँच से बाहर निकलने लगता है जिससे तरल पदार्थ की आग बुझाई जाती है।
फोम कम्पाउण्ड पर नियन्त्रण रखकर फोम को गाढ़ा या पतला किया जा सकता है। पतला फोम अभ्यास के लिये , गाढ़ा फोम अलकोहल की आग पर प्रयोग किया
जाता है।
प्रश्न:- नैप सैक टैंक किसे कहते हैं? इसकी क्षमता कितनहोती है
उत्तर- एक छोटा टैंक है इसमें 18 लिए फोम कम्पाउण्ड आता है। इसे फायरमैन की पीठ पर लाध दिया जाता है और नम्बर 2 फोम मेकिं ग ब्रांच के साथ प्रयोग
किया जाता है। टैंक में कम्पाउण्ड भरने के लिये एक बड़ा ढक्कनदार छेद होता है, ढक्कन में हवा के आवागमन के लिये दो छेद होते है। टैंक में चलनी भी लगी होती है
ताकि कम्पाउण्ड छन कर जाये। नैपसैक टैंक के आउटलेट पर टोंटी फिट रहती है। इसी आउटलेट से रबर कनैक्शन द्वारा ब्रॉच को फोम कम्पाउण्ड सप्लाई किया जाता
है।
प्रश्न:- फायर सर्विस में प्रयोग होने वाले विभिन्न फोम मेकिं ग ब्रॉचों की क्षमता बताये
प्रश्न:- क्या कै मिकल फोम और मैके निकल फोम एक ही पर प्रयोग किये जा सकते हैं
उत्तर- जहाँ तक सम्भव हो उन्हें अलग-अलग ही रखना चाहिये। दोनों के मिलने से झाग टूट जाते हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के फोम कम्पाउण्ड से बने फोम
भी एक दूसरे से मिलकर प्रतिक्रिया करते है।
प्रश्न:- फोम प्रयोग करते समय क्या-क्या बातें याद रखना चाहिये,
उत्तर- 1. पम्प के सक्शन तथा डिलीवरी होज को बिछाते समय उसकी कपलिगों में कं कड़, पत्थर या कचरा न जाने पाये।
2. प्रोटीन कम्पाउण्ड के प्रयोग के समय बिना प्रोटीन वाला कम्पाउण्ड नं प्रयोग किया जाये।
3. इनलाइन इण्डक्टर को जहाँ तक सम्भव हो ब्राँच से 100 फिट (30 मी0) पीछेपरन्तु 200 फिट (60 मी0) से अधिक पीछे न रखें।
4. इण्डक्टरों को प्रयोग करते समय उनमें छलनी लगानी चाहिये।
5. फोम बनाते समय पहले 5 मिनट तक फोम ब्रांच कै सा काम कररहा है, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
6. होसके तोअतिरिक्तब्रॉचऔरइण्डक्टरभीतैयाररखनाचाहिये, जोआवश्यकतापड़नेपरबदलेजासकें ।
7. काम करते समय अधिकाधिक प्रेशर की आवश्यकता पड़ती है । अतःपम्पपर 140 या 150 पौण्ड प्रति वर्ग इंच (9.8 या 15. 5 कि०प्र०से०मी०) प्रेशर
रखना चाहिये।
8. इन लाइन इण्डक्टर की अपेक्षा मल्टी पुल इण्डक्टर उपयोगी होते हैं । इन पर पम्प आपरेटर का नियन्त्रण रहता है।
9.फोम कम्पाउण्ड के भरे और खाली ड्र मों को ऐसे रखा जाये जहाँ यातायात में अवरोध न उत्पन्न हों।
(श्वसन संयन्त्र)
ब्रीदिंग अपरेट्स
प्रश्न:- वायु मण्डल में कौन-कौन सी गैसें कितनी मात्रा में हैं
उत्तर- वायुमण्डल में नाइट्रोजन - 79.04%
आक्सीजन - 20.93%
कार्बन डाई आक्साइड - 0.03%
प्रश्न:- साँस लेते समय व छोड़ते समय कौन-कौन सी गैसे कितनीमात्रा में आती जाती है
उत्तर- साँस लेते समय-
नाइट्रोजन 79.04%
नाइट्रोजन 20.93%
सी०ओ०टू ० 0.03%
साँस छोड़ते समय-
नाइट्रोजन 7 9.04%
आक्सीजन 16.96%
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सी०ओ०टू ० 04.00%
प्रश्न:- सामान्यतः मनुष्य कितने लीटर प्रति मिनट हवा वआक्सीजन खर्च करता है
उत्तर- विस्तर में लेटे-लेटे 7.7 लिए हवा व 0.237 लि० आक्सीजन लेता है। खड़े खड़े 10.4 लि० हवा व 0.328 लिए आक्सीजन लेता है। चलते हुये-
(2) मील प्रति घण्टा की चाल से) 18.6 लि० हवा व 0.738 लि० आक्सीजन लेता है। (5) मील प्रतिघण्टा की चाल से) 60.9 लि० हवा व 2.543 लि०
आक्सीजन लेता है। ऊपर जीना चढ़ते या दौड़ते समय 100 लिटर हवा व 3.00 लिटर आक्सीजनलेता है।
प्रश्न- क्लोज्ड एअर ब्रीदिंग अपरेटस के सिलैण्डर में कितनी हवा होती है
उत्तर- एक प्रचलित सिलैण्डर में 1200 लीटर हवा 132 एटमास्फियर अथवा 1980 पौण्ड प्रति वर्ग इन्च (140.6 कि० प्र० व० से0 मी०) प्रेशर से
भरी होती है। यह हवा 20 से 30 मिनट तक के लिये काफी होती है।
प्रश्न:- रिलीफ वाल्व क्या काम करता है? कहाँ लगा रहता है
उत्तर- ब्रीदिंग बैग के बाहरी खाने में लगा रहता है। इसे दवा कर बैग की हवा बाहर निकाली जा सकती है। जब ब्रीदिंग अपरेटस के ब्रीदिंग बैग में सांस की हवा
अधिक हो जाने के कारण पहनने वाला कु छ असुविधा अनुभव करता है। तो इस वाल्व को खोलकर फालतू हवा बाहर निकाल देता है।
प्रश्न:- आक्सीजन ब्रीदिंग अपरेटस को पहिनकर या प्रयोग करतेसमय क्या-क्या बातें याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1. मेन वाल्व खोलकर सैफ्टी बोल्ट लगाना न भूलिये।
2.समय-समय पर प्रेशर गेज देखते रहना चाहिये कि आक्सीजनकी मात्रा कितनी शेष है।
3. कार्य करते समय यदि ब्रीदिंग अपरेट्स अधिक फू ला हुआ लगे तो रिलीफ वाल्व दबाकर सामान्यस्थिति में लाइये।
4. समय समय पर बैग को हिलाकर सी०ओ०टू ०एब्जावेंन्ट को हिलाते रहिये।
5. यदि अधिक परिश्रम से कार्य करना पड़े तो आक्सीजन की सप्लाई अधिक प्राप्त करने के लिये बाइपास वाल्व को थोड़ा खोलिये और पुनः बन्द कर दीजिये।
प्रश्न:- कम्प्रेस्ड एयर ब्रीदिंग अपरेट्स के मुख्य मुख्य भागों के नाम बताओ?
उत्तर- फे स मास्क, डिमाण्ड रेगुलेटर, सिलैण्डर, बैंक प्लेट, प्रेशर गेज, हार्नेस,इनहेलेशन ट्यूब।
रिससिटेशन अपरेटस
प्रश्न:- श्वसन क्या है? शरीर में श्वसन क्रिया क्यों और किस प्रकार होती है
उत्तर- श्वसन एक प्राकृ तिक क्रिया है जो अगर कोई शारीरिक कारण वाचा न तो मनुष्य के जन्म लेने से मृत्यु तक 15 से 30 वार प्रति मिनट की दर से आप ही
आप होती रहती है। शरीर यह क्रिया इसलिये करता है क्योंकि उसे आवसीज की आवश्यकता होती है जो वायुमण्डल से मिलती है। अतः वायुमण्डल की हवा फोफडे मे
ली जाती है आक्सीजन सोखी जाती है और कार्बन डाई आक्साइड बनकर बाहर आ जाती है। इस प्रकार सास लेना और मांस छोड़ना श्वसन क्रिया के ही रूप है मुंह
छाती, फे फड़े और डायफ्राम यहकार्य करते है।
छाती के अन्दर के पोले भाग के बढ़ने या फै लने एवं डायफ्राम के नीचे जाने के कारण हवा, मुंह द्वारा शरीर में घुसती है और फे फड़े में जाती है। छाती के सिकड़ने एवं
डायफ्राम के ऊपर उठने से फे फड़ों व सीने में भरी सारी हवा शरीर से बाहर निकल जाती है। यही क्रिया निरन्तर जारी रहती है। इस क्रिया को एक विशेष प्रन्थि
नियन्त्रित रखती है। जो श्वसन के न्द्र या रेस्पीरेटरी सेन्टर कहलाती है। यह ग्रन्थि मस्तिष्क में ही कहीं स्थित होती है।
नोट :स्त्री और पुरुष की आयु के अनुसार दबाव डालना चाहिए । रोगी जितना छोटा हो उतना ही दबाव कम हो ।
स्पेशल अप्लाइंसेज
प्रश्न- उपयोगितानुसार स्पेशल अप्लाइंसेज कितने ग्रुपों में रखे जाते हैं
उत्तर- 1. वे सब अप्लाइसेज जिनको पानी की व्यवस्था हेतु बुलाया जाता है।
2. वे अप्लाइंसेज जो अग्नि स्थल पर फोम की पूर्ति करते हैं।
3.वे अप्लाइसेज जो विशेष परिस्थितियों में विशेष कार्य करने के लिए बुलाये जाते हैं।
4. वे अप्लाइंसेज जो अग्नि स्थल पर सुचनाओं के आदान-प्रदानके लिए बुलाए जाते हैं।
5.वे अप्लाइंसेज जो अग्निस्थल पर पेट्रोल की सम्पूर्ति अथवा मरम्मत कार्य के लिए बुलाये जाते हैं ।
6.वे अप्लाइंसेज जो कर्मचारियों की भोजन व्यवस्था हेतु बुलाये जाते हैं ।
प्रश्न- हौजलेइंगलारीसेक्यासमझतेहो
उत्तर- एक विशेष गाड़ी जिसमें होज रखे जाते हैं तथा इसी गाड़ी के द्वारा फै लाये जाते हैं। इससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है। एमरजेंसी टाइप हौज लेइंग
लारी में (200 मी.) होज रखे जाते हैं। 50 मी. के चार खण्ड बनेहोते जिसमें 30 मी. लम्बी 15 होज रखी होती हैं। किसी-किसी गाड़ी में फ्लै क्ड होज रखने की
व्यवस्था होती है।
स्टैण्डर्ड टैस्ट
प्रश्न- पम्प का सिक्स मन्थली डीप लिफ्ट टेस्ट कै से किया जाता हैं,
उत्तर-1. यह टेस्ट प्रत्येक 6 माह के बाद किया जाता है।
2.पम्प को गहरे पानी वाले टैंक पर लगाया जाता है,जिसके पानी की सतह पम्प इनलेट से 5 से 6 मीटर नीची हो।
3.मन्थली ऑउट पुट टेस्ट की भाँति सक्शन पाइप और होज पाइप मय ब्रांच लगाये जायेंगे ।
4. पम्प को स्टार्ट करके प्राइमिंग किया जायेगा। पम्प को पानी उठाने में दो सैकिण्ड प्रति फु ट से अधिक नहीं लगना चाहिए।
5.पम्प को 80 पौण्ड प्रतिवर्ग इन्च (5.6 कि. प्र. व. से. मी.) प्रेशरसे 15 मिनट तक चलाया जायेगा।
6 पम्प गेजेज, कू लिंगसिस्टम, गिलैण्ड इत्यादि चैक किये जायेंगे कि ठीक कार्य कर रहे हैं कि नहीं।
7. कोई त्रुटि प्रकट होती है,तो ठीक करें या रिपोर्ट करें ।
8. यदि इस अवधि में पम्प सही चलता है,और कोई खराबी नहीं प्रकट होती, तो समझिये कि पम्प उच्चस्तर का है ।
प्रश्न- 30 फीट (9 मी0) और 35 फीट (10.5 मी०) एक्सटेन्शन लेंडर का स्टैण्डर्ड टैस्ट कब और कै से किया जाता है
उत्तर- लैडर को प्रतिमाह अथवा आग पर प्रयोग करने के पश्चात् टेस्ट किया जाता है।
1. स्ट्रिंग टैस्ट लैडर-को पूरा बढ़ा कर किसी भवन पर इस प्रकार लगाइये,कि उसका हैड दीवार पर टिके । 30 फीट (9 मी.) की लैडर की हील 8 फीट (2.4
मी०) दूर रहे। अब जहाँ मुख्य लैडर तथा एक्सटेंशन पार्ट एक दूसरे पर चढ़े रहतेहैं , उसके मध्य में दोनों स्ट्रिंग पर बराबर के राउण्ड के पास एक रस्सी इस प्रकार कर
लटका दी जाती है,कि इस रस्सीपर 3 व्यक्तियों का भार, जहाँ तक हो सके दोनों स्ट्रिग्स पर बराबर डाला जासके और हटाया जासके भार हटते ही सीढ़ी को अपनी
सामान्य स्थिति में आजाना चाहिए । रस्सी को किसी भी परिस्थति में राउण्ड पर नहीं बाधा जाये।
2. राउण्ड टैस्ट-एक व्यक्ति को सीढ़ीपर चढ़कर प्रत्येक राउण्ड को कू द-कू द कर टैस्ट करना चाहिए ।
3.एक्स-टैण्डिग रोप टैस्ट-इस के लिए रस्सी पर दो व्यक्ति लटककर टैस्ट करते हैं। तत्पश्चात सीढ़ी को घटा कर सामान्य स्थिति में रखते हुए दीवार पर टिकाते हैं
और रस्सी के शेष भाग को पुनःदो व्यक्ति लटक कर टैस्ट करते हैं। साथ ही साथ दूसरे दो व्यक्ति सीढ़ी के एक्सटेन्शन पार्ट को अपने स्थान पर रोके रखने के लिए उस
पर अपना भार डालते हैं ।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- किसी चोकोर या आयताकार टैन्क में पानी का परिमाण कै सेज्ञात करेंगे ,
उत्तर- अ-यदि परिमाण गैलन में चाहते हो तो-
1
लम्बाई (फीट में) X चौड़ाई (फीट में) X गहराई (फीट में) X 6 = गैलन पानी ।
4
ब- यदि परिमाण लिटर्स में चाहते हैं तो-
लम्बाई (मीटर में) X चौड़ाई (मीटर में) X गहराई (मीटर में) X 1000 लिटर्स पानी।
प्रश्न- किसी गोल टैंक में पानी का परिमाण ज्ञात करने का क्यानियम है
22
उत्तर- (अ) यदि परिमाण गैलन में चाहते हो तो-टैंक का डायमीटर(व्यास)और रेडियस (अर्द्धव्यास) ज्ञात कीजिए। तत्पश्चात अर्द्धव्यास (फीट में) X
7
1
अर्द्धव्यास (फीट में) X गहराई (फीट में) 6 गैलन पानी।
4
(ब) यदि परिमाण लिटर्स में चाहा जाये तो -
22
X अर्द्धव्यास (मीटरमें) X अर्द्धव्यास (मीटरमें) X गहराई (मीटरमें) X 1000 लिटर्स पानी।
7
(स) एक अन्य नियमानुसार इसे πR2H या π/4 D2H या 0.7854 X D2X1000=लिटर पानी।
प्रश्न- एक आयताकार टैंक 5 मीटर लम्बा, 2 मीटर चौड़ा है। उसमें 2 मीटर गहरा पानी भरा है। तो टैंक में कु ल कितने लीटर्स पानी होगा,
उत्तर- नियम-लम्बाई x चौड़ाई x गहराई ( मीटर में) x 1000 लिटर्स पानी।
5 x 2 x 2 x 1000 लिटर्स पानी अथवा 5x2x2 x 1000 = 20,000 लिटर्सपानी।
प्रश्न- एक गोलाकर टैंक मे 7 मीटर पानी भरा है। टैंक डायमीटर .4 मीटर है। तो उस टैंक में कु ल कितने लिटर्स पानी होगा
उत्तर- डायमीटर के आधे को रेडियस या अर्द्धव्यास कहते हैं।
22
नियम- (I) x अर्द्धव्यास (मी०) x अर्द्धव्यास (मी०) x गहराई (मी०) x 1000 = लिटर्स पानी
7
22
x2x2x7× 1000 = लिटर्सपानी।
7
22
x 2 x 2 × 7×1000 = 88000 लिटर्सपानी।
7
नियम- (II) 0.7854 x डायमीटर x डायमीटर x गहराई (मी०) x 1000 = लिटर्स पानी।
= 0.7854x4×4x7x1000
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अग्निशमन एवं संरक्षा
= 0.7854 x 112000
= 879648 लिटर्स।
प्रश्न- एक प्रेशर गेज 6 बार प्रदर्शित कर रहा है, तो मेट्रिक प्रणालीमें कितना हैड होगा
उत्तर- हैंड (H) =10.19 P (प्रेशर)
=10.19 x 6
= 61.14 मीटरहैडहुआ
उपरोक्त सूत्रानुसार 60 मी० के लगभग हेड होगा।
प्रश्न- एक बहुखण्डी भवन में स्प्रिंकलर सिस्टम हेतु बने टेक के पानी का लेबुल उसके प्रेशर गेज से 40 मीटर ऊँ चाई पर है। बताओ प्रेशर गेज कितने बार प्रेशर
दिखायेगा,
उत्तर- P = 0.0981H सुविधा जनक सूत्र से
= 00981X40 P=4/10 बार
= 3.9240 बार H= 40/10
= 4 बार -लगभग
प्रश्न- होज पाइप में फ्रिक्शन लास ज्ञात करने का क्या नियम है
9000 fI L2
उत्तर- नियम-P f =
d5
संके त विवरण
P f=फ्रिक्शनलास (बार्समें)
f =फ्रिक्शन फै क्टर (रबरलाइंड- 0.005 अनलाइंड- 0.05
L = होज की लम्बाई (मीटर में)
L= लिटर्स प्र o मि० डिस्चार्ज
d =होज की डायमीटर (मि०मी०में)
प्रश्न- नाजुल द्वारा पानी फै के जाने की मात्रा ज्ञात करने नियम है,
उत्तर- नियम- L= d2√ P संके त विवरण
L –लिटर्स/प्रतिमिनट/डिस्चार्ज
d - नाजुल डायमीटर (मि० मी० में)
P – प्रेशर नाजुल पर प्राप्त (बार्समें)
√ - वर्गमूल
प्रश्न- एक आग पर 20 मि०मी० नाजुल द्वारा 4 बार्स प्रेशर से पानी डाला जा रहा है। बताओं कितने लिटर्स प्रति मिनट पानी व्यय हो रहा है
2
उत्तर- नियम – L = d2x√ P
3
संके त विवरण
2
L = d2x√ P L- लिटर्स/प्रतिमिनट
3
2
= d2x√ 4 d – नाजुल साइज (मि०मी०में)
3
2
= x20x20x4 P– प्रेशर (नाजुल पर प्राप्त वार्स में)
3
3200
= √ - वर्गभूल
3
=1066 लिटर्स/प्र०मि०
प्रश्न- किसी होज या पाइप में पानी की मात्रा ज्ञात करने का क्यानियम है
8 x डायमीटर ( मि ० मी ०)2
उत्तर- नियम - = लिटर्स प्रति मीटर
1000
प्रश्न- “वाटरहैमर”सेक्यातात्पर्यहै,
उत्तर- जब पानी किसी पाइप में गति शील होता है तब उसकी सहति (मास भार व वेग) सभी कार्य करते हैं।
प्रश्न- 25 मि० मी० नाजुल और 12.5 मि० मी० साइज के नाजुलपर जेट रिएक्शन का प्रभाव कितना कितना पड़ेगा जबकि दोनों नाजुलोपर 7 बार प्रेशर
दिया जा रहा है
2
1.57 X 7 X d
उत्तर- सूत्र: R =
10
(i) 25 मि०मीटर नाजुल पर
1.57 X 7 X 252
R=
10
687 न्यूटन्स के लग-भग
प्रश्न- यदि कोई पम्प 6 बार्स प्रेशर से 2400 लिटर्स प्रति मिनट पानी पम्प कर रहा है, तो उसका वाटर हार्स पावर बताओ।
10 x 2400 x 6
उत्तर-वाटर हार्स पावर =
60
= 24000/ वाट्स
= 24 /किलो वाट
प्रश्न- स्वीमिंग पूल करने का क्या नियम है? जैसे ढलवा तल के टैंक में पानी की मात्रा ज्ञात करने का क्या नियम है
उत्तर- ढलवाँ तल के टैंक की दोनों ओर की गहराई यानी उथली ओर की और गहरी ओर की गहराई को मीटर में ज्ञात करें। तत्पश्चात दोनों को जोड़कर आधा
करें और उसी को गहराई मानकर पानी की मात्रा ज्ञात करें।
फायर हाइड्रेन्ट
पाइप से मुख्य आपूर्ति करने से पहले, आग बुझाने के लिए पानी को बाल्टी और कड़ाही में रखना पड़ता था जिसे ' बाल्टी-ब्रिगेड ' द्वारा उपयोग के लिए तैयार किया
जाता था या घोड़े द्वारा खींचे गए फायर-पंप के साथ लाया जाता था। 16 वीं शताब्दी से, जैसे ही लकड़ी के मुख्य जल प्रणालियों को स्थापित किया गया
था, अग्निशामक पाइपों को खोदते थे और बाल्टी या पंपों के लिए "गीले कु एं" को भरने के लिए पानी के लिए एक छेद ड्रि ल करते थे। इसे बाद में भरना और प्लग करना
पड़ा, इसलिए हाइड्रेंट, 'फायरप्लग' के लिए सामान्य अमेरिकी शब्द। यह इंगित करने के लिए एक मार्क र छोड़ा जाएगा कि अग्निशामकों को तैयार-ड्रि ल किए गए छेद
खोजने में सक्षम बनाने के लिए पहले से ही एक 'प्लग' कहाँ ड्रि ल किया गया था। बाद में लकड़ी के सिस्टम में पूर्व-ड्रि ल किए गए छेद और प्लग थे।
जब कास्ट-आयरन पाइपों ने लकड़ी की जगह ली, तो अग्निशामकों के लिए स्थायी भूमिगत पहुंच बिंदु शामिल किए गए। कु छ देश इन बिंदुओं तक पहुंच कवर प्रदान
करते हैं, जबकि अन्य जमीन के ऊपर निश्चित हाइड्रेंट संलग्न करते हैं - पहला कच्चा लोहा 1801 में फिलाडेल्फिया वाटर वर्क्स के तत्कालीन मुख्य अभियंता द्वारा
पेटेंट कराया गया था । तब से आविष्कार ने छेड़छाड़, फ्रीजिंग, कनेक्शन, विश्वसनीयता आदि जैसी समस्याओं को लक्षित किया है।
अग्नि हाइड्रेंट के शीर्ष इंगित करते हैं कि प्रत्येक दबाव कितना डालेगा; रंग आग के दृश्य में पानी की आपूर्ति के लिए उपयोग किए जाने वाले हाइड्रेंट का अधिक सटीक
विकल्प बनाने में मदद करता है।
हाइड्रेंट भी रंग-कोडित होते हैं।
प्रश्न- हाइड्रेन्ट इन्सपैक्शन करते समय किस प्रकार कार्य करना चाहिए
उत्तर- 1- पिट कवर खोलिये आउटलेट का ब्लैक कै प हटाकर स्टैण्डपाइप फिट करके देखिये कि ठीक से फिट हो जाता है कि नहीं यातायात के कारण हाइड्रेन्ट
बाक्स सरक तो नहीं गया।
2-फाल्स स्पैन्डिल या हाइड्रेन्ट कैं प चैक कीजिए। ठीक लगा है।
कि नहीं यह ढीला न हो, स्लिप होने का डर है।
3-हाइड्रेन्ट पर स्टैण्ड पाइप को लगाकर थोड़ा खोलकर गंदा पानी व जंग लगा पानी निकाल दीजिए। तत्पश्चात् बन्द कर दीजिए।
4-स्टैण्ड पाइप में ब्लैक कै प लगाकर हाइड्रेन्ट को धीरे-धीरे खोलिये और देखिये कि हाइड्रेन्ट कहीं से लीक तो नहीं होता है । तत्पश्चात धीरे-धीरे बन्द कर दीजिये।
5- पूर्णरूप से बन्द हो जाने पर स्टैण्ड पाइप निकाल लीजिये ।
6-हाइड्रेन्ट को धोइये, पिट को साफ कीजिए ,नट-वोल्ट चैक कीजिये। गिलैण्ड लीक तो नहीं होता है।
7- हाइड्रेन्ट पिट व हाइड्रेन्ट बक्स चैक कीजिए। यातायात के कारण हिलते तो नहीं, अपनी जगह से सरक तो नहीं गयें।
8- हाइड्रेट आउट लेट पर ब्लैक कै प लगाकर पिट कवर बन्द कीजिए।
9- हाइड्रेट के ऊपर दूकान, खो- ख। चाया ठेला आदि न खड़ा होने दीजिए।
10- हाइड्रेन्ट इण्डीके टर या हाइड्रेन्ट बताने वाले चिन्ह लगे हैं,या नहीं ।
11- हाइड्रेन्ट इन्सपैक्शन रजिस्टर में तिथि सहित प्रविष्टि अंकित कीजिए । यदि कोई खराबी मिले तो उसकी रिपोर्ट कीजिये।
वाटर रिलेइंग
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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- इस प्रकार की रिले पम्पिंग में पानी के साधन पर लगे प्रथम पम्पसे आने वाले पानी को किसी पोर्टेबुल टैंक या गड्ढे में इकट्ठा कर लिया जाता है तथा उसमें
दूसरा पम्प लगाकर आगे भेजा जाता है यहाँ भी गड्ढे या टैंक में एकत्र करने के पश्चात तीसरा पम्प लगाकर आगे भेजा जाता है।
प्रश्न- बेस पम्प किसे कहते हैं डिलीवरी पम्प तथा इण्टरमीडियट पम्प से क्या तात्पर्य हैं
उत्तर- रिले पम्पिग में पानी के साधन पर लगे प्रथम पम्प को बेस पम्प या लिफ्टिंग पम्प कहते है। फायर ग्राउण्ड के पास लगे अन्तिम पम्प को डिलीवरी पम्प तथा
मध्य में लगे पम्पों को इण्टरमीडियट पम्प कहते हैं।
प्रश्न- होज पाइप में पानी के वेग (वैलोसिटी) के बढ़ने पर उसके वर्गानुसार फ्रिक्शन लास भी बढ़ता है। इस समस्या को कै से हल करते हैं
उत्तर- एक की बजाय दो डिलीवरी लाइनों का प्रयोग करके वेग (वेलोसिटी) घटाई जा सकती है और फ्रिक्शन लास कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त
कै नवैस की बजाय रबर लाइण्ड होज तथा छोटे डायमीटर की बजाय बड़े डायमीटर की होज प्रयोग करने से भी फ्रिक्शन लास कम किया जा सकता है।
प्रश्न- रिलेपम्पिंग में एक लाइन की बजाय दो लाइन प्रयोग करने से क्या प्रभाव पड़ताहै।
1 1 1
उत्तर- एक लाइन की बजाय दो लाइनों के प्रयोग से वेग यानी वैलोसिटी आधी हो जायेगी और फ्रिक्शन लास x यानी = यानी चौथाई रह जायेगा।
2 2 4
फलस्वरूप पम्पों के बीच की दूरी भी चौगुनी हो सकती है।
प्रश्न- रिले पम्पिग में दो पम्पों के मध्य की दूरी का स्टैंडर्ड टेबुल क्या है
उत्तर- एक 350 से 500 गैलन (1800 लिटर प्रति मिनट पानी फें कनेवाले पम्प के लिए समतल स्थानमें स्टैण्डर्ड टेवुल इस प्रकार है-
होज का डायमीटर होज पाइप की मध्य की दुरी
टुइन (डबल) 70 मि. मी. के नवास होज 150 मी.
टुइन (डबल) 70 मि. मी. रबर लाइन्ड 210 मी.
सिंगिल 90 मि मी. कै नवास 105 मी.
टुइन 90 मि. मी. कै नवास 420 मी.
सिंगिल 90 मि. मी. रवर लाइण्ड 210 मी.
टुइन 90 मि. मी. रवर लाइण्ड 840 मी.
पम्प प्रेशर 5 बार्स होगा।
प्रश्न- रिले पम्पिंग करते समय कौन-कौन सी बातें ध्यान मेंरखनी चाहिए
उत्तर- 1. रिले पम्पिंग के लिए यदि विभिन्न क्षमता वाले पम्प उपलब्ध हैं तो सबसे बड़ा पम्प जल पूर्ति के साधन पर लगाया जायगा।इसे बेस पम्प कहते हैं।
2. शेष पम्पों को उनकी क्षमतानुसार लगाया जायगा। यानी बेस पम्प के पश्चात् उससे कम क्षमता वाला तथा उसके बाद उससे कम क्षमता वाला पम्प लगेगा।
3. यदि एक ही क्षमता वाले पम्प उपलब्ध हों तो कोई कठिनाईनहीं होती।
4. उपकरणों का चुनाव भी अति आवश्यक है। जैसे बड़े डायनीटर की होज प्रयोग करें। कै नवेस की बजाय रवरलाइण्ड होज हो। एक की बजाय दोहरी लाइन प्रयोग हों।
5. सर्वप्रथम बेस पम्प को लगाइये। संक्शन में मैटल ट्रेनर, रस्सी आदि बाँधकर पानी में डालिये।
6. पम्प के डिलीवरी आउटलेट से होज फै लाकर आगे ले जाइये। होज को सड़क के एक किनारे फै लाइये। आवश्यकता हो तोहोज रेम्प का भी प्रयोग करें।
प्रश्न- रिले पम्पिंग में यदि कम्पाउण्ड गेज की सुई बेक्युम दिखाये तो क्या अर्थ है
उत्तर- इसका अर्थ है कि पिछली लाइन से पानी और पम्प अधिक गति से चलाया जा रहा है। ऑप सुई को जीरो पर लाने का प्रयास करना चाहिए और कारण का
पता लगाना चाहिए।
प्रश्न- रिले पम्पिंग में कम्पाउण्ड गेज की सुई प्रेशर दिखाये तो क्या अर्थ है
उत्तर- इसका अर्थ है पिछली लाइन से पानी अधिक मिल रहा है और पम्प धीमा चल रहा है। उसे पम्प की स्पीड बढ़ाकर सुई को जीरो पर लाने का प्रयास करना
चाहिए।
प्रश्न- रिले पम्पिंग में प्रेशर गेज की सुई का जीरो पर आने का क्या कारण है
उत्तर- इसका अर्थ है कि आगे जाने वाली लाइन का जोड़ खुल गया है।या होज बर्स्ट हो गई है। इन्जन की स्पीड कम करके वाल्च बन्द करके पता लगानाचाहिए।
प्रश्न- प्रेशर गेज की सुई यदि अधिक प्रेशर बताने लगे तो इसका क्या कारण हो सकता है
उत्तर- होज पर भारी गाड़ी, ट्रक आदि खड़ी हो गई हो। होज में गहरा मोड़ पड़ गया होगा, पम्प स्पीड कम करके पता लगाना चाहिए।
भवन निर्माण
(बिल्डिंग कन्सट्रक्शन)
प्रश्न- भवन निर्माण में लगे पत्थर कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- पत्थर तीन प्रकार के होते हैं
1.ग्रेनाइड पत्थर काफी सख्त और टिकाऊ होता है। दरवाजे की सजावट आदि में प्रयोग किया जाताहै। आग के ताप से फै ल कर चटखने लगता है ।
2.सैन्डस्टोन-आग की ताप में यह भी फै लता है, बाद में सिकु ड़ जाता है,परन्तु मजबूती में कमी आजाती है। लगभग तीस प्रतिशत शक्ति नष्ट होजाती है। पानी पड़ते ही
चटखता है ।
3.लाइमस्टोन-इस में चूने की मात्रा अधिक होती है। इस पत्थर पर मौसम का भी असर पड़ता है। आग की ताप से यह भी बढ़ता है और लगभग पचास प्रतिशत शक्ति
खो देता है। तत्पश्चात चुना और कार्बन डाईआक्साइड बनाने लगता है ।
प्रश्न- कं करीट से क्या तात्पर्य है। कितने प्रकार की होती है। आग से इस पर क्या प्रभाव पड़ता है
उत्तर- सीमेन्ट, बालु और पत्थर या ईट की गिट्टी को पानी में मिलाकर बनाई जाती है। सब मिलकर सूखने के पश्चात ठोस पदार्थ बन जाता है। सीमेन्ट सबको
जकड़े रखने की शक्ति देता है।
कं करीट दो प्रकार की होती है। प्लेन कं करीट, और रिइनफोर्ड कं करीट। आग के समय यद्यपि काफी ताप सहन कर लेता है परन्तु अधिक ताप पर सीमेन्ट अपनी जकड़ने
की शक्ति खो देता है और बिखरने लगता है पानी पड़नेनपर फू लकर गिरने लगता है।
प्रश्न- रिइन्फोर्ड कं करीट किसे कहते हैं
उत्तर- जब कं करीट में लोहे के सरिया या लोहे की जानी भी लगा दी जाती है, तब इसे रिइनफोर्ड कं करीट कहते हैं। इसमें जकड़ कर रखने की अधिक शक्ति होती
है। छत के स्लेव, दरवाजों के लिन्टल, कालम बीम आदि इसी कं करीट के बनाये जाते हैं।
प्रश्न- भवन में लोहा कितने प्रकार का प्रयोग होता है ? इस पर आग का क्या प्रभाव पड़ता है
उत्तर- लोहा दो प्रकार का होता है।
1.कास्ट-आयरन-खम्बे, जीना, जाली आदि बनती है। आग से गर्म कास्ट आयरन पर पानी पड़ते ही चटखने लगताहै।
2.राट-आयरन-गर्डर, बीम, फ्रे म आदि बनते हैं। ताप में फै लता व शक्ति खोकर झुक जाता है। कं करीट इत्यादि में ढका रखने पर अधिक देर तक ताप सहन कर
सकता है ।
लोहा गर्मी पाकर बढ़ता एवं ठण्डक पाकर सिकु ड़ता है।
फिक्स्ड इन्स्टालेशन
उत्तर- बड़े-बड़े कारखानों, कार्यालयों, सिनेमा भवनों आदि में अग्नि से सुरक्षा के लिए उपयुक्त उपकरणों की निजी व्यवस्था रहती है। इससे छोटी -मोटी आग
प्रारम्भिक रूप में ही बुझा ली जाती है। अथवा फायर ब्रिगेड के पहुँचने से पहले आग पर आक्रमण कर उसे नियंत्रण में रखा जाता है तथा इससे फायर ब्रिगेड को कार्य
करने में भी सहायता मिलती है। यह व्यवस्था दो रूप में होती है।
1.हैण्ड एपलाइन्सेज द्वारा ऐसे उपकरण जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक उठाकर ले जाये जासकें । जैसे फायर वके ट, स्ट्रपम्प, और एक्सटिंग्यूशर्स इत्यादि।
2.फिक्स्ड इन्स्टालेशन द्वारा ऐसे उपकरण जो एक निश्चित स्थान पर लगा दिये जाते हैं। अग्निकांड होने पर इन से वहीं से काम लिया जाता है। जैसे फायर हाइड्रेन्ट
,राइजिंगमेंन्स, फोम, कार्बन-डाई-आक्साइड-इन्स्टालेशन इत्यादि।
• फायर हाइड्रेंट रिंग्स को हाइड्रेंट के बड़े वॉल्व से चिपकाया जा सकता है। एक बार वाल्व कै प को बदलने के बाद, अगली बार जब तक वाल्व कै प को हटा नहीं दिया
जाता है, तब तक हाइड्रेंट रिंग को नहीं हटाया जा सकता है।
• अनधिकृ त उपयोग को रोकने के लिए और रखरखाव या मरम्मत की जरूरतों को संप्रेषित करने के लिए हमारे मुद्रित रिंगों को ऑर्डर करें, या एक खाली रिंग का
उपयोग करें और अपना संदेश जोड़ें।
• छल्ले अत्यधिक टिकाऊ प्लास्टिक से निर्मित होते हैं (दोनों परावर्तक और गैर-परावर्तक फिल्मों के साथ उपलब्ध) जो उच्च तापमान का सामना करते हैं। पिच अंधेरा
होने पर भी चिंतनशील छल्ले आसानी से देखे जा सकते हैं।
• वलय वाल्व के व्यास के अनुरूप विभिन्न आंतरिक व्यास में आते हैं।
• अधिक जानकारी के लिए, हमारे
प्रश्न- सी. ओ. टू . फिक्स्ड इन्स्टालेशन युक्त संस्थानों में आग लगने पर क्या कार्रवाई की जाती है
उत्तर- ऐसे संस्थानों में ब्रीदिंग अपरेटस पहनकर घटनास्थल की तलाशी ली जायेगी कि कमरे में कोई व्यक्ति बेहोश तो नहीं पड़ा है। आग किस दशा में है। जब तक
यह न प्रमाणित हो जाय कि आग पूर्णरूप से बुझ चुकी है खिड़की दरवाजे पूर्ण रूप से न खोले जाँय और गैस कम न होने दी जाय। आग बुझ चुकने के पूर्ण विश्वास पर
ही वैन्टीलेशन कराया जाय।
स्प्रिंक्लर्स ड्रेचर्स
और
वाटर स्प्रेप्रोजैक्टर्स
प्रश्न- बल्ब टाइप स्प्रिंक्लर हैड में विभिन्न रंगों का तरल भरा रहता है इसका क्या उद्देश्य है
उत्तर- वल्व में भरे तरल को देखकर यह पता चलता है कि कितने टेम्परेचर परअमुक रंग का बल्ब टू ट जाया करता है। जैसे-
काला (135°फा०)
लाल (155°फा०)
पीला (175°फा०)
हरा(200° फा०)
नीला (286° फा०)
औरजामुनी (360° फा०)
वाचरूम
और
उसकी कार्य प्रणाली
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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- कन्ट्रोल रूम किसे कहते हैं ? वाचरूम और कन्ट्रोल रूम में क्या अन्तर है
उत्तर- बड़े-बड़े नगरों में उनके विस्तार के अनुसार कई वाचरूम होते हैं। ये समस्त वाचरूम एक बड़े वाचरूम के नियन्त्रण में रहते हैं। इसी को कन्ट्रोल रूम कहते
हैं। दोनों में के वल यह अन्तर है कि वाचरूम दुर्घटना की सूचना प्राप्त करता है तथा उसपर उचित कार्यवाही के लिए कर्मचारियों को भेजता है। जबकि कन्ट्रोल रूम
दुर्घटना की सूचना प्राप्त करके उस पर आवश्यक कार्यवाही हेतु दुर्घटना स्थल के निकटवर्ती वाचरूम को आदेश देता है। साथही साथ प्रशासकीय सूचनाओं का भी
आदान-प्रदान करता है। इस प्रकार कन्ट्रोल रूम में दोनों प्रकार की सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।
प्रश्न- टेलीफोन से प्राप्त सूचना लिखते समय क्या-क्याबात ध्यान में रखेंगे
उत्तर- सूचना लिखते समय बोलते भी जाइये। के वल हाँ हाँ करना ठीक नहीं। जैसे वह बोलता है कि कोतवाली के सामने दुकान में आग लगी है तो आप भी लिखते
जाइये और बोलते जाइये कि कोतवाली के सामने “दुकान में आग लगी है”। इस प्रकार लिखने से गलती की सम्भावना नहीं रहती और सूचना सही-सही और सहज में
लिखी जाती है।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- दुर्घटना सम्बन्धी सूचना नोट करते समय क्या-क्या बातें ज्ञात करेंगे
उत्तर- 1. घटना स्थल का पता, वहाँ पहुँचने का रास्ता।
2. दुर्घटना की किस्म, यानी आग, मकान, दुकान या फै क्ट्री में
3. टेलीफोन नम्बर है।
4. कोई अन्य आवश्यक निर्देश जैसे-अमुक सड़क पर मिले-या- मिलेगा आदि।
5. सूचना नोट करने के पश्चात समय नोट करें ।
प्रश्न- वाचरूम की कार्य कु शलता को बढ़ाने के लिये क्या-क्या बातें आवश्यक हैं
उत्तर- 1. वाचरूम डियूटी वांछित गुण सम्पन्न हो।
2. डियूटीवाला समय पर निर्धारित यूनीफार्म में आये और डियूटी बदलने वाले के - आ- जाने पर ही वाचरूम छोड़कर जाये।
3.वाचरूम को खाली न छोड़ा जाये।
4. वाचरूम में वांछित रिकार्ड के अतिरिक्त अखबार, पत्र-पत्रिकायें,कहानियों की पुस्तकें न रखी जायें।
5. डियूटी के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति वहाँ एकत्र होकर उसे गप्पास्टक रूम न बनाएँ।
6. वाचरूम और उसके उपकरणों को सदैव स्वच्छ एवं कार्यशील स्थिति में रखें।
प्रश्न- आग पर जाते समय मार्ग में कोई एक्सीडेन्ट हो जाये तोक्या करना चाहिये
उत्तर- यदि एक्सीडेन्ट मामूली है और गाड़ी जाने योग्य हो, तो एक फायरमैन को फर्स्टएड बक्स के साथ दुर्घटना स्थल पर उतार दिया जायेगा और गाड़ी घटना
स्थल की ओर चली जायेगी। उस फायरमैन का यह कर्त्तव्य होगा कि यदि एक्सीडेन्ट में कोई व्यक्ति आहत हो गया हो तो उसे फर्स्टएड देकर निकटवर्ती अस्पताल में
पहुँचाने की व्यवस्था करे तथा दुर्घटना की सूचना फायर स्टेशन एवं सम्बन्धित पुलिस स्टेशन को दे। दुर्घटना स्थल पर घटना के समय गाड़ी तथा आहत जिस स्थल
पर हो फायरमैन एक्स इत्यादि से उस स्थल पर चिन्ह अकित कर दिया जाय।
यदि एक्सीडेन्ट गम्भीर हो, जिसमें गाड़ी घटनास्थल पर ले जाना सम्भव न हो तब फायर स्टेशन पर सूचना भेजकर दूसरा टर्न आउट कराने की व्यवस्थाकरनी चाहिए।
प्रश्न- आग पर जाते समय यदि मार्ग में पंक्चर हो जाये तो क्या करोगे ?
उत्तर- ऐसी स्थिति में यदि घटना स्थल पास ही हो तो आवश्यक उपकरण लेकर पैदल ही पहुँचना चाहिए। यदि घटना स्थल दूर हो तो फायर स्टेशन परफायर
फाइटर्स प्रश्नोत्तरी भेजकर दूसरी मशीन मँगाने की व्यवस्था करनी चाहिए। तथा शीघ्रातिशीघ्र सूचना पंक्चर पहिया बदलने की कार्यवाही आरम्भ कर देनी चाहिए।
4. आग बुझाने के लिये उपयुक्त सामान एपलाइन्स पर हैं। अथवा किसी और सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। जैसे -फोम कम्पाउण्ड बड़ी सीढ़ियाँ, अतिरिक्त होज
पाइप और पम्प इत्यादि।
5. उपरोक्त बातों के ज्ञात हो जाने के पश्चात ही कोई निर्णय लेकर आग पर आक्रमण के लिए सुरक्षित व उपयुक्त स्थानचुनना चाहिये।
प्रश्न- अग्नि दुर्घटना ग्रस्त भवन में प्रवेश करते समय कौन-कौन सी बातें याद रखनी चाहिए
उत्तर- जहाँ तक सम्भव हो मकान के मुख्य द्वार से ही प्रवेश करना चाहिए। इस प्रकार मकान के कमरे ,बरामदे,जीने बालकनी और छत पर सुगमता से पहुँचा जा
सकता है। यदि मुख्य द्वार से घुसना असम्भव हो, तो मकान में अन्य ओर से घुसने का प्रयास करना चाहिए। पहले नीचे ,तत्पश्चात ऊपर के खिड़की दरवाजों से प्रयास
करना चाहिए। दरवाजा खोलने से पहले आग बुझाने के साधन ,उपकरण तैयार रखिये। खाली हाथ दरवाजा मत खोलिये। ऐसी जगह खड़े होकर कार्य कीजिये जहाँ
छत,दीवार अथवा उसका मलवा,गिरने का खतरा न हो या खतरा होने पर तुरन्त बाहर निकल कर आ सकें ।
प्रश्न- अग्नि दुर्घटना ग्रस्त कमरे का दरवाजा खोलते समय क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए
उत्तर- 1. सावधान रहिये, दरवाजा एकदम मत खोल दीजिए अन्यथा शुद्ध हवा अथवा आक्सीजन पहुँचकर सुलगती आग को भड़का सकती है।
2.यदि किवाड़ आपकी ओर खुलता होतो अपना एक पैर किवाड़ के निचले भाग पर रख कर तथा थोड़ा झुक कर किवाड़ की आड़ में होते हुये, थोड़ा खोल कर अन्दर
झाँक कर देखिये कि आपके किवाड़ खोलने पर आग भड़कती तो नहीं है। क्या जल रहा है और किस दशा में है।
3.यदि किवाड़ बाहर की ओर खुलता है तब दोनों किवाड़ों के बीच में पैर रखकर किवाड़ों को एक दम खुलने से रोकिये और झाँक कर देखिये, पूर्ण रूपेण विश्वास हो
जाने पर ही कि आग बढ़ने या भड़कने की आशंका नहीं है ,तभी दरवाजा खोलिये। दरवाजा खोलने से पहले आग बुझाने के साधन अवश्य तैयार रखिये। खाली हाथ
दरवाजा मत खोलिये।
प्रश्न:- आग के वर्गीकरण से क्या समझते हो? आग कोकितने वर्गों में बाँटा गया है
उत्तर- अग्निशमन में सफलता एवं सुविधा के लिये आग का वर्गीकरण किया गया है। इसे पाँच वर्गों में बांटा गया है।
1. ‘ए’ क्लास फायर (जनरल फायर)
2. 'बी' क्लास फायर (आयल फायर)
3. 'सी' क्लास फायर (गैसफायर)
4. 'डी' क्लास फायर (मैटलफायर)
5. 'ई' क्लास फायर (इलैक्ट्रिकफायर)
प्रश्न:- आग को कितने बर्गों में बांटा गया है? किस वर्ग की आग किस सिद्धान्त से बुझाना उपयुक्त होती है?
उत्तर- 1.क्लास 'ए' फायर- साधारण जलने वाले पदार्थ, जैसे लकड़ी, लकड़ी के फर्नीचर, कपड़ा, कागज इत्यादि घरेलू वस्तुयें। इन पर पानी द्वारा उन्डक
पहुँचाकर आग बुझाई जाती है।
2.क्लास 'बी' फायर –ज्वलन शील द्रवों की आग, जैसे पैट्रोल, तेल, स्प्रिट, वार्निश इत्यादि। इन आगों को फोम या झागों से पानी की महीन फु हार से ,
सी०ओ०टू ०गैस, ड्राई-कै मिकल पाउडर और बालू मिट्टी से बुझाया जाता है ।
3.क्लास 'सी' फायर-गैसकीआग, गैस, प्रेशर के साथ सिलेण्डरों में भरी होती है। जैसे-मीथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन और कु किं ग गैस इत्यादि। सिलैण्डरों को ठण्डा करने के
लिये पानी की फु हार उपयोगी होती है। थोड़ी बहुत फै ली हुई गैस को ढाँकने के लिये फोम , कोई इनर्ट गैस और ड्राई-पाउडर भी प्रयोग किया जाता है। सिलैण्डर से गैस
का निकलना बन्द करना आवश्यक होता है।
4. क्लास 'डी' फायर धातुओं की आग, जैसे-मैग्निशियम, एल्यूमिनियम, सोडियम और जिंक इत्यादि। इन आगों पर पानी भी नहीं ,डाला जाता। बल्कि विशेष तकनीक
और विशेष पाउडर द्वारा बुझाई जाती हैं ।
5.क्लास 'ई' फायर-बिजली के उपकरणों एवं संयन्त्रों की आग। इन पर भी पानी नहीं डाला जाता। बल्कि ऐसे आग बुझानें के पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं ,जो बिजली के
करन्ट से प्रभावित नहीं होते।
प्रश्न:- पानी द्वारा आग बुझाते समय कौन-कौन सी बाते याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1. ब्रॉच की धार को आग के मूल स्थान पर ही फे कियें। लपटोंऔर धुएँ पर मत फे किये।
2. आवश्यकता से अधिक पानी मत फें किये, जो बह कर शेष बचे सामान को भी खराब करे ।
3. आस पास की वस्तुओं का भी ध्यान रखिये कि अधिक गर्म होकर वे भी आग न पकड़ लें, अथवा आग फै लाने में सहायक हों। अतः समय-समय पर इन पर फु हार
डालकर ठण्डक पहुँचाते रहिये ।
4. यदि किसी छत पर आग बुझा रहे हैं ,तो छत पर पानी को रूकने मत दीजिये, अन्यथा छत गिरनेका खतरा हो सकता है।
5. कु छ वस्तुयें पानी को सोखती हैं,तथा फू ल कर बढ़ती हैं,और बजनदार हो जाती है। जैसे जूट, रुई, चाय, अनाज इत्यादि। जूट की गाँठ 40% वरुई 30% वजन
बढ़ा लेती है। यदि ये गॉठे दीवार से मिलकर रखी गई हैं तब फू लकर दीवार को धक्का देकर गिरा सकती हैं।
6. स्टील के गर्डर आग से गर्म होकर बढ़ते हैं तथा दीवार को बाहर की ओर धक्का देते हैं, पानी पड़ने पर सिकु ड़कर अपनी जगह आ जाते हैं। और दीवार बाहर की ओर
ही छोड़ जाते हैं जो खतरनाक होती है। गिर सकती है।
7. बिजली के तारों पर भी ब्रॉच की धार मत डालिये ।
प्रश्न:- आग बुझ जाने पर सामान लपेटते समय क्या-क्या बातें याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1. होज पाइप को नियमानुसार लपेटकर बचे हुये सूखे पाइपों सेअलग रखिये।
2. बर्स्ट होज को उल्टा लपेटकर रखिये ताकि उसे मरम्मत के लिये भेजा जा सके ।
3. अन्य उपकरणों को यथा स्थान रखिये। याद रखिये कोई उपकरण घटना स्थल पर पड़ा न रह जाये।
4.होजरील टैंक, अथवा मेन वाटर टैंक को जहाँ तक सम्भव हो घटना स्थल पर ही पानी से भर लेने का प्रयास कीजिये ताकि,अगली सूचना के लिये तैयार मिले।
5. प्रयोग किये गये हाइड्रेन्ट को भली भाँति बन्द कर दीजिये।
6. यदि किसी स्टेटिक टैंक से पानी लिया गया हो तो उसे भी भरवाने की व्यवस्था कीजिये।
7. आग से बचाये गये किसी मूल्य वान सामान जैसे,जेवरात,हथियार, दस्तावेजी कागजात इत्यादि को एक तालिका बनाकर मौहल्ले के सज्जन व्यक्तियों अथवा पुलिस
की उपस्थिति में उसके असल हकदार को सौंप दिया जाय।
8.यदि कोई ताला खोला या तोड़ा गया हो और घर या सामान का मालिक उपस्थित न होतो उसका चार्ज भी पुलिस को दिया जाये।
सालवेज
सालवेज
'फायर ब्रिगेड के रूप में हमारा प्राथमिक कार्य आग पीड़ितों और उनके पालतू जानवरों को बचाना है, आग से लड़ना और आग को फै लने से रोकना है। लेकिन आग के दौरान
प्राथमिक उपचार आग के बाद प्राथमिक उपचार के बिना नहीं हो सकता।
उत्तर- 1. आग पर इस प्रकार आक्रमण किया जाये कि कम से कम नुकसान हो , कम से कम तोड़ फोड़ की जाय, ब्रॉच को सम्भाल कर प्रयोग किया जाय और
आवश्यकता से अधिक पानी न बहाया जाये।
2. फालतू पानी को जल्द से जल्द निकाल दिया जाये ताकि वहरूककर या बहकर भवन की अन्य वस्तुओं को खराब न करने पाये।
3.आग से उत्पन्न धुआँ और गर्मी को भवन से शीघ्र बाहर निकालने का प्रबन्ध किया जाये ता कि वह रूक कर भवन अथवा उसमें रखे सामान को खराब न करने पाये।
4. बचे-खुचे सामान को ढाँक कर, पानी, गर्मी और धुआँ तथा मलवे से बचाया जाये। कीमती सामान, आवश्यक कागजात, इत्यादि को प्राथमिकता दी जाये।
ग्रामीण क्षेत्रों की आग
प्रश्न:- गाँव में आग की सूचना मिलने पर कौन-कौन सी अतिरिक्त सूचनायें ज्ञात करना आवश्यक है?
उत्तर- 1. गाँव में पानी के क्या साधन है- तालाब, नहर, जोहड इत्यादि ।
2. पानी के साधन आग से या गाँव से कितने दूर हैं।
3. इन पर फायर इंजन अथवा पम्प पहुँच सकते हैं या नहीं।
4. घटना स्थल तक फायर सर्विस की मशीनें पहुँच सकती है, किन हीं, रास्ता कै सा है। कच्चा या पक्का।
प्रश्न:- ग्रामीण क्षेत्र की आग बुझाते समय कौन-कौन सेउपाय उपयोगी होते हैं
उत्तर- 1. घरों की आगशहर की भाँति ही बुझाई जाती है। आक्रमण ऐसेस्थल से किया जाय जिससे शेष बचे गाँव को सुरक्षित रखा जा सके । हवा के रूख के मध्य
से आक्रमण करना उपयुक्त होता है।
2. घास, झाड़ियाँ अथवा पके खेत को बीटिंग मैथड से बुझाना चाहिये। खेत की मैढ़ या सड़क का किनारा आदि से बीटिंग प्रारम्भ किया जाय।
3.खेतों में आग फै लने से बचाने के लिये बीच में ट्रैक्टर आदि से खुद वाकर आग का बढ़ना रोका जा सकता है। यदि ट्रैक्टर न हो तो बैलगाड़ियाँ आदि दौड़ा कर भी
यह कार्य किया जास कता है।
4. बेलचा ,कु दाल,आदि से भी नाली खोद कर आग का बढ़ना रोका जा सकता है।
प्रश्न:- ध्वस्त भवन में प्रवेश के समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिये ।
उत्तर- 1.स्टील हेलमेट पहनकर ही ध्वस्त मकान में जाइये।
2.जहाँ तक सम्भव हो जोड़ी-जोड़ी जाइये।
3.दरवाजों या अन्य वस्तुओं को मत छेड़िये। सम्भव हो तो खुली खिड़कियों से जाइये।टू टे शीशों से सावधान रहिये।
4.दीवार के सहारे-सहारे चलिये अँधेरे या संकरे स्थान में जाना हो, तो कमर में पाकिट लाइन बाँधकर जाइये।
5.सूने स्थानों में बिना साथियों को बताये मत जाइये।
6.आवाज़ दीजिये और शान्ति पूर्वक सुनिये,कि कहीं से कोई आवाज, कराहट, रोने-सिसकने या कराहने की आवाज आती है।
7.गैस या अन्य विशेष गन्ध महसूस हो तो उससे सतर्क रहें ।
8.क्षतिग्रस्त दीवारों, बिजली के तारों व अन्य वस्तुओं से सावधान रहिये।
प्रश्न:- कु एं में गिरे प्राणी को निकालने से पहले सर्वेक्षण में क्या बात देखोगे
उत्तर- 1. कौन गिरा है? आदमी, औरत, बच्चा या कोई जानवर।
2. वह जीवित है, अचेत अथवा मृत है। दिखाई देर हा है,या डू ब गया है।
3. किसी ने गिरते हुये देखा व किस समय देखा गया है।
4. कु आँ प्रयोग में आता है,अथवा वर्षों से बेकार पड़ा है। उपरोक्त सूचना यें प्राप्त करने के पश्चात्स्वयं देखियें और मनन कीजिये।
5. कु ऐं की दशा, पक्का है, कच्चा है ,अथवा सूखा है,जर्जर अवस्था में है।
6. कु ऐं की घिर्री आदि है। वह प्रयोग के योग्य है,किन हीं यानी गिरे हुए प्राणी को निकालने में सहायक होसकती है,या नहीं। यदि घिरीं नहीं है, तो ट्राई पॉड बनाकर
कार्य करना होगा।
7.यदि गिरा हुआ प्राणी बेहोश है तो कु ऐं में गैस आदि तो नहीं हैं। कु ऐं में पानी न होने अथवा बहुत दिनों से प्रयोग में न लाये जाने के कारण खतरनाक गैसें बन जाया
करती हैं।
8. बचाव कार्य के लिये किन-किन उपकरणों की आवश्यकता पड़ेगी। वे आपके पास या मँगाने पड़ेंगे।
प्रश्न- लिफ्ट दुर्घटना पर यदि कोई कर्मचारी लिफ्ट शाफ्ट में फँ सा है, तो उसे बचाने की कार्यवाही कै से की जायेगी
उत्तर- 1. घटना स्थल पर पहुँचते ही सर्वेक्षण कीजिए। ज्ञात कीजिए कि दुर्घटना किस खण्ड में हुई है। कोई लिफ्ट एक्सपर्ट है कि नहीं उसे तुरन्त बुलाया जाय।
2. ज्ञात कीजिए कि मोटर रूम ऊपर है कि नीचे।
3.मोटर रूम के मेन स्विच को बन्द करके उस का फ्यूज कै रियर निकाल कर अपने पास रखली जिये तथा काम समाप्त हो जाने पर ही लौटाइये।
4. फँ से हुए व्यक्ति को लिफ्ट कार के रस्सों आदि से सहारा दीजिए। इधर-उधर करने से पहले रस्सा का सहारा दिजिए ।
5. यदि सस्पेंशन रोप ढीला है,तो लांग लाइन द्वारा लिफ्टकार बाँधकर रखें ताकि वह और अधिक न सरकने पाये।
6.मशीन को हाथ से धीरे-धीरे उल्टी ओर घुमाइये। मोटर रूम में इस कार्य को करने के लिए एक विशेष हैण्डिल उपलब्ध रहता है ,जिसे मोटर से बाहर निकले चौपहले
भाग पर फँ सा कर घुमाया जाता है। साथ-साथ ब्रेक मैके निज्म को भी ढीला करनेका प्रयास करना चाहिए।
7. यदि सम्भव हो तो क्रोवार या शाडलीवर की सहायता से भी लिफ्ट कार को हिलाकर देखिये, लिफ्ट कार के थोड़ा सा वापस होते ही आहत व्यक्ति फ्री हो जायेगा।
8. आहत व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर निकाल कर फर्स्ट एड दीजिए और अस्पताल भेजिये।
अनुशासन
(डिसीपिलिन)
प्रश्न- प्राथमिक चिकित्सा किट में क्या क्या सामग्री होनी चाहिए
चोट लगना, खून निकलना, हड्डी का टू टना या जल जाने का सामग्री फर्स्ट ऐड किट में होना बहुत आवश्यक है। इसमें बहुत सारे बैंडेज और ड्रेसिंग सामान
का होना जरूरी होता है। जैसे –
चिपकाने वाली पट्टियां Adhesive bandages जैसे बैंड ऐड, स्टिकलिंग प्लास्टर (band-aids, sticking plasters)
मोलस्किन Moleskin – छाले के उपचार और रोकथाम के लिए।
ड्रेसिंग की सामग्री Dressings – जीवाणु रहित, घाव पर सीधे लगाने के लिए।
अजिवाणु/कीटाणुरहित आँख के लिए पैड Sterile eye pads।
अजिवाणु गौज पैड Sterile gauze pads।
ना चिपकने वाला टेफ़लोन लेयर वाला पैड।
पेट्रोलेटम गौज पैड – छाती के घाव पर लगाने के लिए तथा वायुरोध ड्रेसिंग के लिए और ना चिपकने वाले ड्रेसिंग के लिए।
बैंडेज Bandages (ड्रेसिंग के लिए, स्टेराइल किये बिना)
रोलर बैंडेज Gauze roller bandages – घाव को जल्द से जल्द सोकने में मददगार।
इलास्टिक बैंडेज Elastic bandages – मांसपेशियों में खिचाव और प्रेशर पड़ने पर ड्रेसिंग में उपयोगी।
जलरोधक बैंडेज Waterproof bandaging
त्रिकोणीय पट्टियाँ या बैंडेज Triangular bandages – टू निके ट(रक्त रोधी) जल्द से जल्द रक्त बहाव को रोकने के लिए।
बटरफ्लाई क्लोसुरे स्ट्रिप्स Butterfly closure strips – बिना साफ़ किये हुए घाव के लिए।
सेलाइन Saline- घाव को धोने के लिए या आँखों से गन्दगी निकलने के लिए।
साबुन Soap – घाव को साफ़ करने के लिए।
जले हुए घाव के लिए ड्रेसिंग Burn dressing – ठन्डे जेल पैक।
कैं ची Scissor
किसी भी घायल या बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुँचाने से पहले उसकी जान बचाने के लिए हम जो कु छ भी कर सकते हैं उसे प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।
उस आपातकाल में पड़े हुए व्यक्ति की जान बचाने के लिए हम आस -पास के किसी भी प्रकार के वास्तु का उपयोग कर सकते हैं जिससे जल्द से जल्द उसको
आराम मिल सके अस्पताल ले जाते समय।
इमरजेंसी के समय क्या करना चाहिए उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह जानना है कि क्या नहीं करना चाहिए? क्योंकि,गलत चिकित्सा से उस व्यक्ति विशेष की जान
जाने का खतरा बढ़ सकता है।
प्राथमिक चिकित्सा निम्नलिखित इमरजेंसी अवस्ता में दी जा सकती है – दम घुटना(पानी में डू बने के कारण, फांसी लगने के कारण या साँस नल्ली में किसी
बाहरी चीज का अटक जाना), ह्रदय गति रूकना-हार्ट अटैक, खून बहना, शारीर में जहर का असर होना, जल जाना, हीट स्ट्रोक(अत्यधिक गर्मी के कारण
शारीर में पानी की कमी), बेहोश या कोमा, मोच, हड्डी टू टना और किसी जानवर के काटने पर।
प्रश्न- फर्स्ट एडर किसे कहते हैं? उसके कर्त्तव्य और उत्तरदायित्वक्या हैं
उत्तर- फर्स्टएड देने वाले को फर्स्टएडर कहते हैं। उसका मुख्य कर्त्तव्य यह होता है कि वह पीडित को डाक्टरी सहायता उपलब्ध होने तक ऐसी स्थिति में रखे
जिससे उसको कम से कम कष्ट हो। उसकी दशा और अधिक न बिगड़ने पाये। बल्कि उसे पुनः स्वस्थ होने में सहायता मिले तथा उसके जीवन की रक्षा हो सके ।
फर्स्ट एडर का उत्तरदायित्व चिकित्सा सहायता उपलब्ध होते ही समाप्त हो जाता है। यद्यपि उसे डाक्टर को पूरा वृतान्त बताने के लिए निकट ही चाहिए। ताकि यदि
अन्य कोई आवश्यकता हो तो वह सहायक हो सके ।
1.रोग निर्णय-के लिए सर्व प्रथम ज्ञात की जिए कि आहत को किस प्रकार की चोटलगी है। इसे सुनिश्चित करने के लिए रोगों के चरित्र वर्णन , लक्षण और चिन्हों पर
विचार करना चाहिए।
(अ) चरित्र वर्णन- यदि आहत सचेत हो तो उससे पूछ ताछ की जासकती है कि दुर्घटना कै से घटी यदि अचेत है तो अन्य दर्शकों से पूछ कर या घटना स्थल को देख
कर पता लगाया जास कता है।
(ब) लक्षण-वह है जो पीड़ित व्यक्ति अनुभव करता है। जैसे-दर्द होना,ठन्डक अनुभव करना आदि।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
(स)चिन्ह-पीड़ित व्यक्ति की प्राकृ तिक अथवा सामान्य स्थिति में परिवर्तन दिखाई देना। जैसे-पीलापन, सुर्खी, सूजन, कु रूपता इत्यादि ऐसे चिन्ह जो दिखलाई पड़ें।
2.उपचार- सर्वप्रथम दुर्घटना का कारण यदि दिखाई दे तो उसेदूर कीजिए। पुनः स्वस्थ होने के लिए उपचार आरम्भ कर दीजिये। आगे रोगी की दशा बिगड़ने से
बचाइये। रक्त स्त्राव को रोकिए, श्वांस क्रिया को पुनः चालू कीजिए। हड्डी टू टने पर उसका हिलना डु लना रोकिए ।
3. निर्वतन- शीघ्रातिशीघ्र डाक्टरी सहायता उपलब्ध कराइये। डाक्टर को बुलाइये अथवा मरीज को डाक्टर के पास ले जाइये।
प्रश्न- किसी आहत को फर्स्ट एड देते समय कौन-कौन सी बातें याद रखनी-चाहिए,
उत्तर- 1. पहले परम आवश्यक कार्य शीघ्रता एवं शान्तिपूर्वक बिना किसीकोलाहल अथवा भय के करना चाहिए।
2. यदि श्वांस क्रिया रुक गयी है तो रुकने का कारण ज्ञात करें व दूर करके श्वांस क्रिया पुनः चालू करने का प्रयास कीजिए। बनावटी सांस देना आरम्भ कीजिए।
3. प्रत्येक प्रकार के रक्त स्त्राव को रोकिए।
4.सदमें से रोगी को बचाइये। रोगी को कम से कम हिलाइए -डु लाइए। मरीज की चोट के विषय में मरीज या मरीज के परिवार वालों के सामने कोई टिप्पणी न करें।
5. बहुत अधिक करने का प्रयत्नन मत कीजिए। उतना ही कीजिए जितना रोगी को बचाने या दशा को बिगड़ने से बचा सके ।
6. रोगी को तसल्ली दीजिए। भीड़ को आस-पास से हटाइए।
7. यदि आवश्यक न होतो रोगी के कपड़े मत उतारिए।
8. यदि जीवन के लक्षण दिखाई न दें तब भी यह नसमझिए कि मरीज मर चुका है। यह निर्णय तो डाक्टर ही करेगा
9. हड्डी टू टने पर आसान तरीकों से अंग को निश्चल कीजिए।
10. जितना जल्दी हो सके डाक्टर को बुलायें अथवा मरीज को डाक्टर के पास ले जायें।
प्रश्न- खोपड़ी में हिलने डु लने वाली कितनी हड्डियाँ होती हैं,
उत्तर- के वल निचले जबड़े को छोड़कर सिर और चेहरे की अन्य सब हड्डियाँ ऐसी दृढ़ता से जकड़ी होती हैं कि उनका परस्पर हिलना डु लना असम्भव है।
प्रश्न:- टॉग में कितनी हड्डियाँ होती है और पैर में कितनी हैं
उत्तर- टॉग में दो होती हैं। एक पिडली की हड्डी या टीबिया , और दूसरी फै वुला कहलाती है। पिडली की हड्डी घुटने से पैर के टखने तक फै ली होती है। पैर के
अगले भाग में सात अनियमिताकार हड्डियाँ हैं। सबसे लम्बी ऐडी की हड्डी हैं। पैर के सामने पाँच लम्बी हड्डियाँ (मैटाटारसस) पैर की अंगुलियों को सहारा देती हैं।
अंगुलियों में तीन-तीन और अंगूठों में दो दो हड्डियाँ होती हैं।
प्रश्न:- ज्वाइंट या जोड़ किसे कहते हैं, कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- जोड़ दो या दो से अधिक हड्डियों के संगम को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
1. अचल जोड़-ये स्थाई होते हैं। इन में गति नहीं होती। मस्तिष्क के कोष्टों में होते हैं।
2. सचल जोड़- ये गतिशील जोड़ है। जो एक प्रकार के चिकने रस से संचालित होते रहते हैं। जैसे कू ल्हे, कोहनी, घुटने के जोड़ जोड़ एक प्रकार के तन्तुओं से जुड़े
रहते हैं। जोकि लिगामेंट कहलाते हैं। ये जोड़ों को बाँधे तो रखते हैं पर उनकी गतिशीलता में किसी प्रकार की बाधा नहीं डालते।
सचल जोड़ दो प्रकार के होते हैं
1.बाल एण्ड साके ट ज्वाइंट (कटोरीदार)
2. हिन्ज ज्वाइंट (चूलदार या कब्जेदार) होते हैं।
प्रश्न:- फर्स्ट एड में प्रयोग होने वाली मुख्य मुख्य ड्रेसिंग कौन-कौन सी हैं
उत्तर- 1. ड्राई ड्रेसिंग (सूखी) 2. मोइस्ट ड्रेसिंग (गीली)
सांप के काटने पर इलाज के लिए सही एंटी-टोक्सिन या सांप के सीरम को चुनने के लिए सांप की पहचान करना बहुत आवश्यक है।
प्रश्न:-. सांप काटने पर लक्षण
सांप के काटने का निशान’
दर्द या सुन्न हो जाना दर्द के जगह पर
लाल पड़ जाना
काटे हुए स्थान पर गर्म लगना और सुजन आना
सांप के काटे हुए निशान के पास के ग्रंथियों में सुजन
आँखों में धुंधलापन
सांस और बात करने में मुश्किल होना
लार बहार निकलना
बेहोश या कोमा में चले जाना
सांप के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा के स्टेप्स
पेशेंट को आराम दें
शांत और अशस्वाना दें
सांप के काटे हुए स्थान को साबुन से ज्यादा पानी में अच्छे से धोयें
सांप के काटे हुए स्थान को हमेशा दिल से नीचें रखें
काटे हुए स्थान और उसके आस-पास बर्फ पैक लगायें ताकि इससे ज़हर(venom) का फै लना कम हो जाये
पेशेंट को सूने ना दें और हर पल नज़र रखे
होश ना आने पर ABC रूल अपनाएं
जितना जल्दी हो सके मरीज़ को अस्पताल पहुंचाएं
प्रश्न:- हड्डी टूटने के भेद यानी हड्डी कितने प्रकार से टू टती है?
उत्तर- 1. सादी टू ट 2. विशेष टू ट
3. पेचीदीयाउल्झी टू ट 4.बहुखण्डी टू ट
5. पच्चड़ी टू ट 6. कच्ची टू ट |
प्रश्न:- नाक में कोई वस्तु गिर जाये तो क्या उपचार करेंगे
उत्तर- 1. रोगी को मुँह से सांस लेने को कहिये।
2. रोगी को डाक्टर के पास ले जाइये।
प्रश्न:- कै डमियम किसे कहते हैं? कै डमियम की आग पर क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं
उत्तर- कै डमियम भी वास्तव में सॉफ्ट व्हाइट मैटल है जो स्टील के पुर्जो पर जंग से बचाने के लिये प्रयोग किया जाता है। आग में जलने पर जहरीला डस्ट ,
फ्यूम्स (धुआँ) निकालता है। सांस द्वारा शरीर में जाने पर बहुत दर्द व वैचेनी उत्पन्न करता है , अतः ब्रीदिंग अपरेटस का प्रयोग अति आवश्यक है। खरिया पाउडर ,
एजबेस्टस पाउडर एवं सूखी बालू प्रयोग करना चाहिये। पानी नहीं डाला जायेगा।