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अग्निशमन एवं संरक्षा

विषय-सूची पृष्ठ संख्या

01-अग्नि देव 02
02-अग्निकीउत्पत्ति 03
03-अग्नि सेवाओं का इतिहास 04
04- भारतमेंअग्निसेवाओंकीभूमिका 06
05-रसायन विज्ञान 09
06-प्राथमिक आग बुझाने के उपकरण 16
07-रासायनिक अग्निशमन उपकरण 20
08-होज 37
09-होज फिटिंग्स 43
10-स्माल गेयर्स 58
11-रस्से रस्सियाँ 74
12-सीढ़ियाँ 80
13-इस्के प लैडर 85
14-टर्न टेबुल लैडर 89
15-पम्प और प्राइमर 92
16-झाग व झाग बनाने वाले उपकरण 114
17-श्वसन सयन्त्र 120
18-रिससिटेशन अपरेटस 126
19-स्पेशल अप्लाइंसेज 136
20-स्टैण्डर्ड टैस्ट 141
21-अग्नि शमन हेतु जल समस्या 146
22-फायर हाइड्रेन्ट 153
23-वाटर रिलेइंग 159
24-भवन निर्माण 163
25-फिक्सड इन्सटालेशन 166
26-स्प्रिंकलर्स ड्रि न्चर्स एण्ड वाटर स्प्रे प्रोजेक्टर्स 174
27-वाचरूम और उसकी कार्य प्रणाली 180
28-प्रेक्टिकल फायरमैनशिप 183
29-सालवेज 191
30-ग्रामीण क्षेत्रों की आग 194
31-स्पेशल सर्विस काल 196
32-अनुशासन 204
33-प्राथमिक चिकित्सा 215
34-स्पेशल फायर रिस्क 206
35-विविध उपकरणों के रेखाचित्र 225

अग्नि देव

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अग्निशमन एवं संरक्षा

सृष्टि आरंभ हुई तो भगवान विष्णु की नाभि से सबसे पहले ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्हें संसार की रचना और उनके विस्तार का दायित्व सौंप दिया गया | तब उन्होंने
अत्री, अंगिरा, पुलस्त्य, मरीची, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद नाम के दस पुत्रो की कामना की | ये सब ब्रह्मा के मन से उत्त्पन्न हुए, इसलिए ब्रह्मा के
मानस पुत्र कहलाए | इन्हें संयुक्त रूप से प्रजापति भी कहते है | इनमे अंगिरा के पुत्र वृहस्पति ने चांद्रमासी नाम की कन्या से विवाह किया | उनके पहले पुत्र का नाम
शंयु था | उसने धर्म की पुत्री सत्या से विवाह किया जिससे ‘अग्नि’ नामक पुत्र ने जन्म लिया | ये वही अग्निदेव है जिनके विषय में आपको आने वाले दिनों में बहुत सी
रोचक कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी | उससे पहले अग्नि के विषय में कु छ महत्वपूर्ण बाते जान लीजिए | पुराणों में आठ दिशाओ में आठ रक्षक देवता है जिन्हें अष्ट
दिक्पाल कहते है |
इनमे दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा के रक्षक अग्निदेव है | इसलिए कई जगह अग्नि देव की प्रतिमा मंदिर के दक्षिण -पूर्वी कोण में स्थापित होती है | संसार की रचना करने
वाले पंच महाभूत तत्वों आकाश, जल, पृथ्वी और वायु के साथ पांचवां तत्व अग्नि है | अग्नि को पूजा, विवाह जैसे अधिकांश धार्मिक अनुष्ठानो का साक्षी माना जाता है
| देवताओ में इंद्र के बाद अगला स्थान अग्निदेव का है|
ऋग्वेद की कु ल 1028 ऋचाओं में से लगभग 200 ऋचाए अग्निदेव को समर्पित है| उपनिषदों पुराणों समेत लगभग सभी धर्म-ग्रंथो में अग्नि का विस्तार से उल्लेख
मिलता है| हिंदू संस्कृ ति में जन्म से मृत्यु तक कोई कम अग्नि के बिना पूर्ण नही होता | ऋग्वेद में अग्नि के दो स्वरूप है: जातवेद और क्रव्याद| अग्नि का जातवेद रूप,
हवन- कु ण्ड में दी गई है आहुति को देवताओ तक पहुचता है |इसलिए यह मनुष्य और देवताओ के बिच एक महतवपूर्ण कड़ी है | अग्नि का क्रव्याद रूप, अंतिम
संस्कार के समय शव को जलाकर भस्म करता है | एस तरह हिंदू धर्म में अग्नि का स्थान इतना महत्वपूर्ण है की उसे देवता का दर्जा दिया गया है |

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अग्निशमन एवं संरक्षा

अग्नि की उत्पत्ति
आदिम मनुष्य ने पत्थरों के टकराने से उत्पन्न चिनगारियाँ को देखा होगा। अधिकांश विद्वानों का मत है कि मनुष्य ने सर्वप्रथम कड़े पत्थरों की एक -दूसरे पर मारकर
अग्नि उत्पन्न की होगी।
घर्षण (रगड़ने की) विधि से अग्नि बाद में निकली होगी। पत्थरों के हथियार बन चुकने के बाद उन्हें सुडौल, चमकीला और तीव्र करने के लिए रगड़ा गया होगा। रगड़ने
पर जो चिनगारियां उत्पन्न हुई होंगी उसी से मनुष्य ने अग्नि उत्पन्न करने की घर्षण विधि निकाली होगी।
घर्षण तथा टक्कर इन दोनों विधियों से अग्नि उत्पन्न करने का ढंग आजकल भी देखने में आता है। अब भी अवश्यकता पड़ने पर इस्पात और चकमक पत्थर के प्रयोग से
अग्नि उत्पन्न की जाती है। एक विशेष प्रकार की सूखी घास या रुई को चकमक के साथ सटाकर पकड़ लेते हैं और इस्पात के टुकड़े से चकमक पर तीव्र प्रहार करते हैं।
टक्कर से उत्पन्न चिनगारी घास या रुई को पकड़ लेती है और उसी को फूँ क-फूँ ककर और फिर पतली लकड़ी तथा सूखी पत्तियों के मध्य रखकर अग्नि का विस्तार कर
लिया जाता है।
घर्षणविधि से अग्नि उत्पन्न करने की सबसे सरल और प्रचलित विधि लकड़ी के पटरे परलकड़ी की छड़ रगड़ने की है।
एक-दूसरी विधि में लकड़ी के तख्ते में एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह वेग से नचाया जाता है। प्राचीन  भारत में भी इस
विधि का प्रचलन था। इस यंत्र को अरणी कहते थे। छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहा जाता था। इस विधि से अग्नि उत्पन्न करना भारत के
अतिरिक्त लंका, सुमात्रा, आस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका में भी प्रचलित था। उत्तरी अमरीका के इंडियन तथा मध्य अमरीका के निवासी भी यह विधि काम में
लाते थे। एक वार चार्ल्स डारविन ने टाहिटी (दक्षिणी प्रशांत महासागर का एक द्वीप जहाँ स्थानीय आदिवासी ही बसते हैं) में देखा कि वहाँ के निवासी इस प्रकार कु छ
ही सेकं ड में अग्नि उत्पन्न कर लेते हैं, यद्यपि स्वयं उसे इस काम में सफलता बहुत समय तक परिश्रम करने पर मिली।
फारस के प्रसिद्ध ग्रंथ शाहनामा के अनुसार हुसेन ने एक भयंकर सर्पाकार राक्षसी से युद्ध किया और उसे मारने के लिए उन्होंने एक बड़ा पत्थर फें का। वह पत्थर उस
राक्षस को न लगकर एक चट्टान से टकराकर चूर हो गया और इस प्रकार सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न हुई।
उत्तरी अमरीका की एक दंतकथा के अनुसार एक विशाल भैंसे के दौड़ने पर उसके खुरों से जो टक्कर पत्थरों पर लगी उससे चिनगारियाँ निकलीं। इन चिनगारियों से
भयंकर दावानल भड़क उठा और इसी से मनुष्य ने सर्वप्रथम अग्नि ली।
अग्नि का मनुष्य की सांस्कृ तिक तथा वैज्ञानिक उन्नति में बहुत बड़ा भाग रहा है। लैटिन में अग्नि को प्यूरस अर्थात्‌ पवित्र कहा जाता है। संस्कृ त में अग्नि का एक पर्याय
पावक भी है जिसका शब्दार्थ है 'पवित्र करनेवाला'। अग्नि को पवित्र मानकर उसकी उपासना का प्रचलन कई जातियों में हुआ और अब भी है।
सतत अग्नि
अग्नि उत्पन्न करने में पहले साधारणत इतनी कठिनाई पड़ती थी कि आदिकालीन मनुष्य एक बार उत्पन्न की हुई अग्नि को निरंतर प्रज्ज्वलित रखने की चेष्टा करता था।
यूनान और फारस के लोग अपने प्रत्येक नगर और गार्वे में एक निरंतर प्रज्वलित अग्नि रखते थे। रोम के एक पवित्र मंदिर में अग्नि निरंतर प्रज्वलित रखी जाती थी। यदि
कभी किसी कारणवश मंदिर की अग्नि बुझ जाती थी तो बड़ा अपशकु न माना जाता था। तब पुजारी लोग प्राचीन विधि के अनुसार पुन अग्नि प्रज्वलित करते थे। सन्‌
1830 के बाद से दियासलाई का आविष्कार हो जाने के कारण अग्नि प्रज्वलित रखने की प्रथा में शिथिलता आ गई। दियासलाइयों का उपयोग भी घर्षण विधि का
ही उदाहरण है; अंतर इतना ही है कि उसमें फास्फोरस, शोरा आदि के शीघ्र जलने वाले मिश्रण का उपयोग होता है।
प्राचीन मनुष्य जंगली जानवरों को भगाने, या उनसे सुरक्षित रहने के लिए अग्नि का उपयोग बराबर करता रहा होगा। वह जाड़े में अपने को अग्नि से गरम भी रखता था।
वस्तुत जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी, लोग अग्नि के ही सहारे अधिकाधिक ठंडे देशों में जा बसे। अग्नि, गरम कपड़ा और मकानों के कारण मनुष्य ऐसे ठंडे देशों में रह सकता
है जहाँ शीत ऋतु में उसेक सरदी से कष्ट नहीं होता और जलवायु अधिक स्वास्थ्यप्रद रहती है।

अग्नि परिचय
अग्नि रासायनिक दृष्टि से अग्नि जीवजनित पदार्थों के कार्बन तथा अन्य तत्वों का आक्सीजन से इस प्रकार का संयोग है कि गरमी और प्रकाश उत्पन्न हों। अग्नि की बड़ी
उपयोगिता है जाड़े में हाथ-पैर सेंकने से लेकर परमाणु बम द्वारा नगर का नगर भस्म कर देना, सब अग्नि का ही काम है। इसी से हमारा भोजन पकता है, इसी के द्वारा
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खनिज पदार्थों से धातुएँ निकाली जाती हैं और इसी से शक्ति उत्पादक इंजन चलते हैं। भूमि में दबे अवशेषों से पता चलता है कि प्राय पृथ्वी पर मनुष्य के प्रादुर्भाव काल
से ही उसे अग्नि का ज्ञान था। आज भी पृथ्वी पर बहुत सी जंगली जातियाँ हैं जिनकी सभ्यता एकदम प्रारंभिक है , परंतु ऐसी कोई जाति नहीं है जिसे अग्नि का ज्ञान न
हो।

अग्निशमन (firefighting) 
आग पर नियंत्रण पाकर उसे बुझाने के कार्य को कहते हैं। अधिकतर समाजों में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, अनियंत्रित आग जीवन और माल के लिए एक बड़ा संकट बन
सकती है और अग्निशमक (firefighters) इस ख़तरे से बचाव करते हैं। विभिन्न परिस्थितियों में आग पर काबू पाकर उसे बंद करने के लिए बहुत सी तकनीकें
सीखनी पड़ती हैं और उन कठिन परिस्थितियों में जाकर उन्हें झेलने के लिए शारीरिक-क्षमता भी ज़रूरी है। अग्निशमन के लिए विशेष सामान और यंत्रों का प्रयोग भी
होता है। इनमें पानी, आग-निरोधक रसायन, भिन्न प्रकार के अग्नि-कवच, अग्निशमकों की आग-निरोधक पोशाकें , जल गिराने वाले विमान, अग्निशमकों के विशेष वाहन,
वग़ैराह शामिल हैं। अलग-अलग तरह की आगों के लिए अग्निशमक भिन्न चीज़ें प्रयोग करते हैं, मसलन बिजली से लगी आग के लिए पानी का प्रयोग नहीं किया जाता।
पहली रोमन फायर ब्रिगेड मार्क स लिसिनियस क्रै सस द्वारा बनाई गई थी । उन्होंने इस तथ्य का फायदा उठाया कि रोम में कोई अग्निशमन विभाग नहीं था , अपनी खुद
की ब्रिगेड बनाकर - 500 लोग मजबूत - जो अलार्म पर जलती हुई इमारतों में पहुंचे। घटनास्थल पर पहुंचने पर, हालांकि, अग्निशामकों ने कु छ नहीं किया, जबकि
क्रै सस ने संकटग्रस्त संपत्ति के मालिक से जलती हुई इमारत को एक दयनीय कीमत पर खरीदने की पेशकश की। अगर मालिक संपत्ति बेचने के लिए सहमत हो जाता
है, तो उसके आदमी आग बुझा देते हैं, अगर मालिक ने मना कर दिया, तो वे बस संरचना को जमीन पर जलने देंगे।  रोमन सम्राट नीरो ने मूल विचार क्रै सस से लिया
और फिर उस पर विजिल्स का निर्माण किया60 ईस्वी में आग की लपटों से पहले इमारतों को फाड़ने के लिए बके ट ब्रिगेड और पंपों के साथ -साथ डंडे, हुक और यहां
तक कि बैलिस्टा का उपयोग करके आग से निपटने के लिए। आग पर नज़र रखने के लिए विजिल्स ने रोम की सड़कों पर गश्त की और पुलिस बल के  रूप में सेवा
की । बाद की ब्रिगेड में सैकड़ों लोग शामिल थे, जो सभी कार्रवाई के लिए तैयार थे। जब आग लगती थी, तो पुरुष निकटतम जल स्रोत तक लाइन में लग जाते थे और
आग के लिए हाथ में बाल्टियाँ देते थे।
 यूरोप में, अग्निशमन 17 वीं सदी तक काफी अल्पविकसित था। .
लंदन को सामना करना पड़ा महान आग 798, 982, 989, 1212 में और 1666 में सब से ऊपर  लंदन की भीषण आग । 1666 की ग्रेट फायर पुडिंग
लेन पर एक बेकर की दुकान में शुरू हुई , जिसने शहर के  लगभग दो वर्ग मील (5 किमी 2 ) को खा लिया , जिससे हजारों लोग बेघर हो गए। इस आग से पहले,
लंदन में कोई संगठित अग्नि सुरक्षा प्रणाली नहीं थी। बाद में, बीमा कं पनियों ने अपने ग्राहकों की संपत्ति की सुरक्षा के लिए निजी फायर ब्रिगेड का गठन किया। बीमा
ब्रिगेड के वल उन इमारतों में आग से लड़ेंगी जिनका बीमा कं पनी ने किया था। इन इमारतों की पहचान अग्नि बीमा चिह्नों द्वारा की गई थी । अग्निशामक में महत्वपूर्ण
सफलता 17 वीं शताब्दी में पहली दमकल गाड़ियों के साथ आई। मैनुअल पंप , 1518 में ऑग्सबर्ग और 1657 में नूर्नबर्ग में), के वल बल पंप थे और होसेस की
कमी के कारण बहुत कम सीमा थी। जर्मन आविष्कारक हंस हौशच ने पहला सक्शन और फोर्स पंप बनाकर और पंप में कु छ लचीली होसेस जोड़कर मैनुअल पंप
में सुधार किया । 1672 में, डच कलाकार और आविष्कारक जान वैन डेर हेडन की कार्यशाला ने आग की नली विकसित की । लचीले चमड़े से निर्मित और हर 50
फीट (15 मीटर) पीतल की फिटिंग के  साथ युग्मित । लंबाई मुख्य भूमि यूरोप में आज तक मानक बनी हुई है जबकि यूके में मानक लंबाई 23 मीटर या 25 मीटर
है। दमकल इंजन को आगे डच आविष्कारक, व्यापारी और निर्माता, जॉन लोफ्टिंग द्वारा विकसित किया गया था(1659-1742) जिन्होंने एम्स्टर्डम में जान वैन
डेर हेडन के साथ काम किया था। लॉफ्टिंग 1688 में या लगभग 1688 में लंदन चले गए, एक अंग्रेजी नागरिक बन गए और 1690 में "सकिं ग वर्म इंजन" का
पेटेंट (पेटेंट संख्या 263/1690) किया। 17 मार्च के लंदन गजट में उनके उपकरण की अग्निशामक क्षमता का एक शानदार विवरण था। 1691, पेटेंट जारी होने
के बाद। ब्रिटिश संग्रहालय में लंदन में काम कर रहे लॉफ्टिंग के दमकल इंजन को दिखाया गया है, इंजन को पुरुषों की एक टीम द्वारा पंप किया जा रहा है। माना जाता
है कि उनके दमकल इंजनों में से एक के बाद के संस्करण को एक सेवानिवृत्त अग्निशामक द्वारा प्यार से बहाल किया गया है,
बर्क शायर में ब्रे के  रिचर्ड न्यूशम (लॉफ्टिंग से सिर्फ 8 मील) ने 1721 में एक बेहतर इंजन का उत्पादन और पेटेंट कराया और जल्द ही इंग्लैंड में दमकल बाजार पर
हावी हो गया। आग के लिए एक गाड़ी के रूप में खींचा गया , इन मैनुअल पंपों को 4 से 12 पुरुषों की टीमों द्वारा संचालित किया गया था और 120 फीट (36
मीटर) तक 160 गैलन प्रति मिनट (12 एल / एस) तक पहुंचा सकता था। 1743 में खुद न्यूजहैम की मृत्यु हो गई लेकिन उनकी कं पनी ने 1770 के दशक में
अन्य प्रबंधकों और नामों के तहत दमकल इंजन बनाना जारी रखा। इंग्लैंड में फायर इंजन डिजाइन में अगला प्रमुख विकास हेडली , सिम्पकिन एंड लॉट कं पनी द्वारा
किया गया था। 1792 में हाथ से पंप किए गए इंजन की एक बड़ी और बेहतर शैली के साथ जिसे घोड़ों द्वारा आग में खींचा जा सकता था।

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संयुक्त राज्य अमेरिका

विक्टर पियर्सन , पॉल पॉन्सी । स्वयंसेवी फायरमैन की परेड, 4 मार्च 1872 , हेनरी क्ले  की प्रतिमा के चारों ओर न्यू ऑरलियन्स फायर ब्रिगेड की सभा का
प्रतिनिधित्व करते हुए ।फायर फाइटर ने  धुआं में सांस लेने के लिए उपकरण पहनने 1870 (से वारसा सीए)
1631 में, बोस्टन के गवर्नर जॉन विन्थ्रोप ने लकड़ी की चिमनियों और फू स की छतों को अवैध घोषित कर दिया।  1648 में, न्यू एम्स्टर्डम के  गवर्नर पीटर
स्टुवेसेंट ने चार लोगों को फायर वार्डन के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त किया। उन्हें सभी चिमनियों का निरीक्षण करने और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर
जुर्माना लगाने का अधिकार था। शहर के बर्गर ने बाद में आठ प्रमुख नागरिकों को "रैटल वॉच" में नियुक्त किया - इन लोगों ने स्वेच्छा से बड़े लकड़ी के खड़खड़ों को
लेकर रात में सड़कों पर गश्त करने के लिए स्वेच्छा से काम किया।  अगर आग दिखाई देती है, तो पुरुषों ने खड़खड़ाहट की, फिर प्रतिक्रिया देने वाले नागरिकों को
बके ट ब्रिगेड बनाने का निर्देश दिया। 27 जनवरी, 1678 को पहली दमकल कं पनी अपने कप्तान (फोरमैन) थॉमस एटकिं स के साथ सेवा में आई।. 1736
में, बेंजामिन फ्रैं कलिन ने फिलाडेल्फिया में यूनियन फायर कं पनी की स्थापना की। 
अमेरिकी गृहयुद्ध के समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकार द्वारा संचालित अग्निशमन विभाग नहीं थे । इस समय से पहले, निजी फायर ब्रिगेड आग का जवाब देने
वाले पहले व्यक्ति होने के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते थे क्योंकि बीमा कं पनियों ने इमारतों को बचाने के लिए ब्रिगेड को भुगतान किया था।  हामीदारों
ने कु छ शहरों में अपने स्वयं के  बचाव दल को भी नियुक्त किया । पहली ज्ञात महिला अग्निशामक, मौली विलियम्स ने 1818 के बर्फ़ीले तूफ़ान के दौरान पुरुषों के
साथ ड्रैग्रोप्स पर अपना स्थान लिया और गहरी बर्फ के माध्यम से पंपर को आग में खींच लिया।
1 अप्रैल 1853 को, सिनसिनाटी, ओहियो ने 100% पूर्णकालिक कर्मचारियों से बना पहला पेशेवर अग्निशमन विभाग दिखाया। .

भारत में अग्नि सेवाओं का इतिहास


आजादी से पहले, अग्निशमन का कार्य प्रमुख रूप से इंपीरियल पुलिस सर्विस (1861 के भारत अधिनियम द्वारा स्थापित) द्वारा किया जाता था। इस प्रकार,
अग्निशमन सेवाओं का विकास पुलिस सेवा के साथ सह-अस्तित्व में रहा। हमने प्रमुख अग्निशमन सेवाओं का सूत्रीकरण/स्थापना वर्ष नीचे सारणीबद्ध किया है;
क्रमांक। वर्ष शहर अग्निशमन सेवा

1 1803 बॉम्बे बॉम्बे फायर ब्रिगेड को आधिकारिक तौर पर गठित किया गया था पुलिस के अधीन रखा गया था।

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क्रमांक। वर्ष शहर अग्निशमन सेवा

2 1822 कलकत्ता कलकत्ता में अग्निशमन सेवा कलकत्ता पुलिस के अधीन आयोजित की गई थी।

3 1893 श्रीनगर फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज, जम्मू-कश्मीर की स्थापना वर्ष 1893 की गई थी।

4 1896 दिल्ली दिल्ली में 1867 में एक फायर ब्रिगेड था, फायर स्टेशन का संगठित रूप 1896 में शुरू की गई थी।

5 1908 मद्रास मद्रास सिटी फायर ब्रिगेड की स्थापना मद्रास नगर निगम द्वारा की गई थी।

6 1942 बैंगलोर कर्नाटक में फायर पहली बार 1942 में पुलिस के नियंत्रण में बैंगलोर में शुरू की गई थी

पृष्ठभूमि
भारत में अग्निशमन सेवाएं अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं हैं। हाल के वर्षों में, अग्नि सुरक्षा कवर की आवश्यकताएं कई गुना बढ़ गई हैं जबकि अग्निशमन सेवा के विकास
ने बहुत अधिक प्रगति नहीं की है। खतरनाक सामग्री के व्यापक उपयोग के साथ तेज गति से औद्योगिक संयंत्रों की स्थापना और बड़े और ऊं चे भवनों के निर्माण ने आग
बुझाने की समस्याओं को कई गुना बढ़ा दिया है। आग के खतरे अब के वल बड़े शहरों और विनिर्माण कें द्रों तक ही सीमित नहीं हैं। खतरनाक वस्तुओं की भारी मात्रा में
प्रतिदिन परिवहन के विभिन्न साधनों द्वारा पूरे देश में ले जाया जाता है, जिससे जटिल अग्नि बचाव समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यदि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन और
संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को प्राप्त करना है, तो अग्निशमन सेवा संगठन की पूरी तरह से मरम्मत की आवश्यकता है।प्रौद्योगिकी की प्रगति और
आर्थिक विकास के साथ तालमेल रखने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे और उपकरणों के साथ अग्निशमन सेवाओं को ठीक से व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।

भारत में अग्नि सेवाओं की भूमिका:


भारत में अग्निशमन सेवा की भूमिका मोटे तौर पर आग बुझाने और आग लगने की स्थिति में जान-माल की रक्षा करना है। पिछले कु छ वर्षों में अग्निशमन सेवा की
भूमिका नाटकीय रूप से बदल गई है। कु छ परिवर्तन बाहरी शक्तियों से प्रभावित थे, जबकि अन्य के लिए प्रेरणा स्वयं संगठन थी। इन सभी परिवर्तनों ने पेशे के जोखिम
को बढ़ा दिया है। अग्निशमन सेवा अब खतरनाक सामग्री घटनाओं, उन्नत आपातकालीन चिकित्सा स्थितियों, उच्च कोण बचाव और सीमित स्थान बचाव घटनाओं,
खाई और ढहने के संचालन, पानी के नीचे बचाव और बहुत कु छ का जवाब देती है। ऐसा कहा गया है कि "जब विशेषज्ञ घबराते हैं, तो वे दमकल विभाग को बुलाते
हैं।" किसी भी आपदा के तत्काल बाद में, जीवन और संपत्ति को बचाने के लिए समन्वित खोज और बचाव प्रयास महत्वपूर्ण हैं। पिछले अनुभव से पता चला है कि
आपदाओं की स्थिति में,चाहे वह बड़े पैमाने का हो या तुलनात्मक रूप से छोटा, सशस्त्र बलों को अक्सर नागरिक अधिकारियों की सहायता के लिए बुलाया जाता है।
हालांकि, खोज और बचाव के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती और तैनाती प्रतिक्रिया समय में देरी करती है जो आपदा पीड़ितों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। यह
आवश्यक है कि आपदा के तुरंत बाद खोज और बचाव अभियान चलाने के लिए जिलों और राज्यों की अपनी व्यवस्था हो। त्वरित प्रतिक्रिया के लिए राज्य और जिलों
की खोज और बचाव क्षमताओं को बढ़ाने से लोगों की जान बच जाएगी। यह अग्निशमन सेवाओं को बहु -जोखिम प्रतिक्रिया इकाइयों के रूप में विकसित करके न्यूनतम
अतिरिक्त लागत के साथ प्राप्त किया जा सकता है।खोज और बचाव के लिए सशस्त्र बलों की लामबंदी और तैनाती प्रतिक्रिया समय में देरी करती है जो आपदा पीड़ितों
के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि आपदा के तुरंत बाद खोज और बचाव अभियान चलाने के लिए जिलों और राज्यों की अपनी व्यवस्था हो। त्वरित
प्रतिक्रिया के लिए राज्य और जिलों की खोज और बचाव क्षमताओं को बढ़ाने से लोगों की जान बच जाएगी। यह अग्निशमन सेवाओं को बहु -जोखिम प्रतिक्रिया इकाइयों
के रूप में विकसित करके न्यूनतम अतिरिक्त लागत के साथ प्राप्त किया जा सकता है।खोज और बचाव के लिए सशस्त्र बलों की लामबंदी और तैनाती प्रतिक्रिया समय में
देरी करती है जो आपदा पीड़ितों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि आपदा के तुरंत बाद खोज और बचाव अभियान चलाने के लिए जिलों और
राज्यों की अपनी व्यवस्था हो। त्वरित प्रतिक्रिया के लिए राज्य और जिलों की खोज और बचाव क्षमताओं को बढ़ाने से लोगों की जान बच जाएगी। यह अग्निशमन
सेवाओं को बहु-जोखिम प्रतिक्रिया इकाइयों के रूप में विकसित करके न्यूनतम अतिरिक्त लागत के साथ प्राप्त किया जा सकता है।त्वरित प्रतिक्रिया के लिए राज्य और
जिलों की खोज और बचाव क्षमताओं को बढ़ाने से लोगों की जान बच जाएगी। यह अग्निशमन सेवाओं को बहु -जोखिम प्रतिक्रिया इकाइयों के रूप में विकसित करके
न्यूनतम अतिरिक्त लागत के साथ प्राप्त किया जा सकता है।त्वरित प्रतिक्रिया के लिए राज्य और जिलों की खोज और बचाव क्षमताओं को बढ़ाने से लोगों की जान बच
जाएगी। यह अग्निशमन सेवाओं को बहु-जोखिम प्रतिक्रिया इकाइयों के रूप में विकसित करके न्यूनतम अतिरिक्त लागत के साथ प्राप्त किया जा सकता है।
'देश में आग और आपातकालीन सेवाओं को सुदृढ़ करने' की योजना (2009-13): सरकार ने 22.10.2009 को 'अग्नि और आपातकालीन सेवाओं के
सुदृढ़ीकरण' के लिए कु ल परिव्यय के लिए एक योजना को मंजूरी दी थी। 200 करोड़, जिसमें मुख्य रूप से रुपये के उपकरणों की खरीद के लिए पूंजीगत व्यय
शामिल था। 178.12 करोड़ और प्रशिक्षण, विज्ञापन, निगरानी और मूल्यांकन की राशि रु। 21.88 करोड़। रु. 2009-2013 के दौरान राज्यों को
176.56 करोड़ रुपये जारी किए गए। जारी की गई राज्यवार निधियों का विवरण परिशिष्ट-III में दिया गया है।
'देश में आग और आपातकालीन सेवाओं के आधुनिकीकरण' के लिए योजना (2014-2016): इसके अलावा, भारत सरकार ने आग और आपातकालीन सेवाओं
के आधुनिकीकरण पर कु ल रु. 29 पर 75 करोड़ वें  अक्टू बर, 2014 रु। 2014-15 के दौरान राज्यों को 30 करोड़ रुपये जारी किए गए। योजना के बाद से

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1 से प्रभावी राज्य योजना फं ड में शामिल किया गया है सेंट  अप्रैल 2015 और इसलिए कोई बजट प्रावधान राज्यों को 2015-16 के दौरान किया गया
है। हालांकि, रु. 2015-16 के दौरान विधायिका वाले दो कें द्र शासित प्रदेशों को 04 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। राज्यवार विवरण परिशिष्ट-IV में दिया गया है।

क्यों मनता है अग्निशमन सेवा दिवस...

(भारत में 14 अप्रैल को मनाया जाता है फायर फाइटर डे)


इतिहास में इस दिन साल 1944 को मालवाहक जहाज फोर्टस्टीके न में अचानक आग लग गई थी। इस भीषण आग पर काबू पाने की कोशिश में 66 अग्निशमन
कार्यकर्ता आग की भेंट चढ़ वीर गति को प्राप्त हुए। उनके बलिदान के सम्मान में प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को देश में फायर फाइटर सर्विस डे मनाया जाता है।
. तेज उठती लपटें और उनके बीच किसी के उजड़ते आशियाने को बचाने की मंशा फायरकर्मियों में देखने को मिलती है। वे हर दिन आग से खेलने का काम करते हैं।
इस खतरनाक काम को अंजाम देते हुए उन्हें अपनी जान की भी फिक्र नहीं होती। फिक्र होती है तो उन्हें सिर्फ उस जलते मंजर या फिर उसमें धधकती जिंदगी को
बचाने की। आग लगने वाली जगहों पर फायरमैन सिर्फ एक फोन कॉल पर दौड़ पड़ते हैं।  
दूसरों के हिस्से की तपन को झेलते हुए जनता की रक्षा व सुरक्षा के लिए कृ त संकल्पित इस जांबाज फायरमैन दल के लिए अग्निशमन दिवस महज कौशल प्रदर्शन का
मंच नहीं है, वरन ये स्मृति दिवस है उन 66 अग्निशमन कर्मचारियों की शहादत का, जिन्होंने जनसेवा करते हुए सहर्ष मृत्यु का वरण किया।
वह 14 अप्रैल 1944 का एक धधकता शुक्रवार था, जब विक्टोरिया डाक बंबई में सेना की विस्फोट सामग्री से भरा पानी का जहाज लपटों के आगोश में समा गया।
आग पर काबू पाने के लिए बंबई फायर सर्विस के एक सैकड़ा अधिकारी व कर्मचारी घटनास्थल पर भेजे गए। >अटू ट साहस और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए इन
जांबाज अग्निशमन कर्मचारियों ने धधकती ज्वाला पर काबू करने का भरसक प्रयत्न किया। आग पर नियंत्रण तो पा लिया गया , लेकिन इस कोशिश में 66 फायरमैन को
अपनी जान की आहूति देनी पड़ी।
उन्हीं 66 शहीद अग्निशमन कर्मचारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए अग्निशमन सेवा दिवस मनाया जाता है।
इस दिवस के विभिन्न आयोजन पूरे सप्ताह भर चलते हैं। सप्ताह के दौरान फायर ब्रिगेड द्वारा विभिन्न कारखानों, शैक्षणिक संस्थाओं, ऑइल डिपो आदि जगहों पर अग्नि
से बचाव संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है।
अग्निशमन सप्ताह के अंतर्गत नागरिकों को अग्नि से बचाव तथा सावधानी बरतने के संबंध जागृत करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। इसका उद्देश्य
अग्निकांडों से होने वाली क्षति के प्रति नागरिकों को जागरूक करना होता है। 

रसायन विज्ञान
(कै मिस्ट्री)

प्रश्न- पदार्थ किसे कहते हैं


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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- कोई भी वस्तु जिसमें भार हो और स्थान भी घेरे, पदार्थ कहलातीहै। सभी वास्तविक वस्तुओं का नाम पदार्थ है।

प्रश्न- पदार्थ किन-किन अवस्थाओं में पाये जाते हैं


उत्तर- पदार्थ तीन अवस्थाओं में पाये जाते हैं
1-ठोस 2-द्रव और 3- गैस।

प्रश्न- ठोस पदार्थ से क्या समझते हो


उत्तर- ठोस पदार्थ सुदृढ़ होते हैं, बहते नहीं। इनकी आकृ ति व आयतननिश्चित होता है। आकार अपने आप नहीं बदलता।

प्रश्न- द्रव पदार्थ से क्या समझते हो


उत्तर- द्रव पदार्थ बहता है या उँड़ेला जा सकता है। इनका आयतन निश्चित होता है परन्तु इसकी अपनी कोई आकृ ति नहीं होती। जिस बर्तन मेंरखा जाता है उसी
का आकार ग्रहण कर लेता है। फै ले हुए किसी तल पर गिरादेने से बहने लगता है।

प्रश्न- गैस पदार्थ से क्या समझते हो


उत्तर- गैस पदार्थ का आयतन व आकृ ति निश्चित नहीं होती। जिस बर्तनमें रखा जाता है उसे पूरा भरकर बर्तन के आकार व आकृ ति का हो जाता है।

प्रश्न- अणु से क्या समझते हो


उत्तर- पदार्थ का वह छोटे से छोटा भाग जो पदार्थ के सब गुण रखता होऔर स्वतन्त्र रूप से रह सकता हो एवं रासायनिक क्रिया में भाग ले सकता हो , अणु
कहलाता है।

प्रश्न- परमाणु से क्या समझते हो


उत्तर- जिन सूक्ष्म कणों के रासायनिक संयोग से कोई अणु बनता हो उसेपरमाणु कहते हैं। जैसे -हाइड्रोजन के दो परमाणु और आक्सीजन के एक परमाणुके
रासायनिक संयोग से पानी का एक अणु बनता है।

प्रश्न- सरल पदार्थ किसे कहते हैं


उत्तर- ऐसे पदार्थ जिनके अणु एक ही पदार्थ के परमाणुओं से बनते हैं,सरल पदार्थ कहलाते हैं। जैसे-गन्धक, तांबा, आक्सीजन, हाइड्रोजन आदि।

प्रश्न- यौगिक पदार्थ से क्या समझते हो ?


उत्तर- ऐसे पदार्थ जिनके अणु विभिन्न प्रकार के परमाणुओं द्वारा बने होतेहैं, यौगिक पदार्थ कहलाते है । जैसे-पानी, कार्बन डाइआक्साइड आदि ।

प्रश्न- रासायनिक तत्व (एलीमेन्ट) से क्या समझते हो ?


उत्तर- वास्तव में सरल पदार्थ को ही रासायनिक तत्व भी कहते हैं। इसमेंके वल एक ही प्रकार के परमाणु होते हैं। प्रत्येक रासायनिक तत्व का उसके रासायनिक
नाम के अतिरिक्त एक रासायनिक चिन्ह भी होता है जो उसके परमाणु को बताने के काम आता है।

प्रश्न- रासायनिक सूत्र से क्या समझते हो


उत्तर- रासायनिक सूत्र द्वारा हमें ज्ञात होता है कि किसी पदार्थ में कौनसापदार्थ कितनी मात्रा में उपलब्ध है अथवा इसके एकअणुमें परमाणुओं कीसंख्या कितनी
है।

प्रश्न- अणु भार (एटामिक वेट) से क्या समझते हो


उत्तर- कार्बन इकाइयों में व्यक्त किसी पदार्थ के एक अणु भार को पदार्थका अणुभार कहते हैं।अणु में उपस्थित रासायनिक तत्वों के परमाणुओं के भार को जोड़ने
परपदार्थ का अणु भार ज्ञात होता है।

प्रश्न- घनत्व (डैन्सिटी) से क्या समझते हो


उत्तर- किसी वस्तु के इकाई आयतन की मात्रा उस वस्तु का घनत्वकहलाता है। घनत्व को पौंड प्रति घनफु ट या ग्राम प्रति घन से० मी० भार में नापा जाता है।
जैसे- पानी का घनत्व 62.4 पौंड प्रति घनफु ट अथवा एक ग्रामप्रति घन से० मी० होता है।

प्रश्न- आपेक्षिक घनत्व (स्पेसिफिक डेन्सिटी) से क्या समझते हो

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- किसी ठोस या तरल पदार्थ के घनत्व एवं पानी के घनत्व के अनुपात को उस पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व कहते हैं। चूँकि यह एक अनुपातहैअतः इसकी
कोई इकाई नहीं होती।
किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व, उसके भार को, समान आयतन के पानीके भार से भाग देने पर ज्ञात होता है।

पदार्थ का घनत् व पदार्थ का भार


पदार्थ का आ० घ० = =
पानी का घनत् व समानआयतनके पानीकाभार

प्रश्न- वाष्प घनत्व (वैपर डेन्सिटी) से क्या समझते हो


उत्तर- एक समान तापमान व दबाव पर किसी गैस या भाप के भार औरउतने ही आयतन के हाइड्रोजन के भार के अनुपात को वाष्प घनत्व (वैपर डेन्सिटी)कहते
हैं। कभी-कभी हाइड्रोजन के स्थान पर हवा से तुलना की जाती है।

प्रश्न- अग्नि शमन में घनत्व (डेन्सिटी) या (स्पेसिफिक ग्रेविटी)का क्या महत्व है
उत्तर- किसी जलती हुई तरल वस्तु का घनत्व या आपेक्षिक घनत्व कु छहद तक यह निश्चित करने में निर्णायक सिद्ध होता है कि उस आग पर पानीका प्रयोग
किया जायेगा या अन्य माध्यम प्रयोग में लाया जायेगा। इसी प्रकार किसी गैस या वाष्प का घनत्व इस बात का निर्णय करेगा कि वह गैस या भाप, भवन के ऊपरी भाग
में मिलेगी या नीचे के भाग में मिलेगी।

प्रश्न- ताप (हीट) से क्या समझते हो


उत्तर- एक प्रकार की ऊर्जा का नाम ताप(हीट) है। इसे ऊष्मा भी कहते हैं।

प्रश्न- थर्मामीटर किसे कहते हैं ?


उत्तर- जिस यन्त्र से ताप नापा जाता है उसे तापमापी या थर्मामीटर कहते हैं।

प्रश्न- तापमान (टेम्प्रेचर) किसे कहते हैं


उत्तर- तापमान उस संख्या को कहते हैं जो किसी मनमाने ढंग से निश्चितकिये गये मान के अनुसार किसी पिण्ड में ताप का स्तर बताती है।

प्रश्न- सामान्यतः कितने प्रकार के थर्मामीटर प्रयोग किए जाते हैं


उत्तर- सामान्यतः दो प्रकार के स्के ल तापमान नापने के लिए प्रयोग मेंलाये जाते हैं। सेन्टीग्रेड (सैल्सियस) तथा फारेनहाइट।(0 ० डिग्री सेन्टीग्रेड तथा 32 ०
डिग्री फारेनहाइट पर पानी जमने तथा1000 ० डिग्री सेन्टीग्रेड और 212 ० डिग्री फारेनाहइट पर पानी खौलने के निशानहोते हैं।)

प्रश्न- कै लोरी से क्या समझते हो


उत्तर- किसी पिण्ड में निहित ताप को दशमलव प्रणाली में बताने कोकै लोरी कहते हैं। यानी ताप का वह परिमाण जो एक ग्राम पानी का तापमानएक डिग्री सेन्टीग्रेड
बढ़ा दे, कै लोरी कहलाताहैं ।

प्रश्न- ब्रिटिश थर्मल यूनिट किसे कहते हैं ?


उत्तर- किसी पिण्ड में निहित ताप को ब्रिटेन की नाप प्रणाली में बतानेको ब्रिटिश थर्मल यूनिट कहते हैं।
(ताप का वह परिमाण जो 1 पौण्ड पानी का तापमान 1 डिग्री फारेनहाइटबढ़ा दे, ब्रिटिश थर्मल यूनिट कहलाता है।)

प्रश्न- आपेक्षिक ताप (स्पेसिफिक हीट) किसे कहते हैं?


उत्तर- किसी वस्तु के ताप के परिमाण और उतने ही पानी के ताप के परिमाण के अनुपात को आपेक्षिक ताप कहते हैं।

प्रश्न- ताप का स्थानान्तरण कितने प्रकार से होता है


उत्तर- ताप का स्थानान्तरण तीन प्रकार से होता है -
1. संचालन 2. संवहन 3. विकिरण

प्रश्न- संचालन से ताप के स्थानान्तरण का वर्णन कीजिए


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उत्तर- ठोस पदार्थों में निहित अणु, ताप पाकर अपने निकट वाले कमताप के अणुओं को ऊष्मा दे देते हैं। अपने स्थान नहीं बदलते या छोड़ते।इस प्रकार ऊष्मा
अणुओं द्वारा ही अधिक ताप के सिरे से स्थानान्तरित होकरकम ताप वाले सिरे की ओर बढ़ती रहती है। इस विधि को संचालन कहते हैं।

प्रश्न- संवहन से क्या समझते हो


उत्तर- द्रव तथा गैसीय पदार्थों के अणु स्वयं ऊष्मा लेकर एक स्थान सेदूसरे स्थान तक पहुँचते हैं, इस विधि को संवहन कहते हैं।

प्रश्न - विकिरण द्वारा ताप का स्थानान्तरण कै से होता है


उत्तर- जिस विधि में ऊष्मा बिना किसी माध्यम की सहायता के स्थानान्तरितहोती है उसे विकिरण कहते हैं। सूर्य से पृथ्वी तक ऊष्मा विकिरण से ही पहुँचतीहै।
विकिरण द्वारा ऊष्मा सीधी रेखा में चलती है तथा बीच में अवरोध (पर्दा)लगा देने से विकिरण को रोका जा सकता है। विकिरण द्वारा ऊष्मा शीघ्रस्थानान्तरित होती है।
प्रश्न- कम्बश्चन से क्या समझते हो
उत्तर- कम्बश्चन (दहन ) एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जिसमें ताप औरप्रकाश भी निकलता है।

प्रश्न- आग क्या है
उत्तर- आग वास्तव में एक प्रकार की तीव्र रासायनिक प्रतिक्रिया है जोकु छ पदार्थों के आपस में मिलने से विशेषतः जलने योग्य ठोस , तरल या गैसपदार्थों और
ऑक्सीजन के मिलने से उत्पन्न होती है और साथ ही साथ तापऔर प्रकाश भी प्रकट करती है।
प्रश्न- आग के लिए मुख्य आवश्यकताएँ क्या हैं
उत्तर- आग जल उठने के लिए तीन चीजों का होना आवश्यक है-
(1)ईंधन-जलने योग्य पदार्थ।
(2)ताप-ईंधन को जलने की स्थिति (गैस रूप) में लाने के लिएउचित तापक्रम ।
(3)आक्सीजन-ईंधन को निरन्तर जलता रखने के लिए उसके दहन में सहायक गैस ।
प्रश्न- आग जलने और फै लने की कार्यवाही बयान करो।
उत्तर- तरल अथवा ठोस पदार्थ (ईंधन) सीधे नहीं जलते, बल्कि अत्यधिकताप के कारण इनसे गैस, त्पन्न होने लगती है यही गैस आक्सीजन से मिलकरज्वाला
बन कर भड़क उठती है। एक बार आग लगने से तापमान बढ़ता जाता हैऔर ईंधन में अधिक गैस पैदा करता रहता है। यह गैस आक्सीजन से मिलकरउग्र रूप धारण
कर लेती है और आग निरन्तर बढ़ती और फै लती जाती है।
प्रश्न- फ्लै श प्वाइंट (ज्वलनांक) से क्या समझते हो
उत्तर- फ्लै श प्वाइंट या ज्वलनांक वह कम से कम तापक्रम है जिस परकोई वस्तु पर्याप्त जलने वाली वाष्प (वैपर) छोड़े, जो एक छोटी सी लौ से क्षणभर के लिए
कौंध जाय ।

प्रश्न- फायर प्वाइंट से क्या समझते हो


उत्तर- फायर प्वाइंट या प्रज्ज्वलन तापमान वह कम से कम तापमान हैजिस पर किसी जलती हुई वाष्प (वैपर्स) से इतनी गर्मी पैदा हो कि उस गर्मीसे दहन चालू
रखने के लिए पर्याप्त वाष्प पैदा होती रहे।
ईंधन का अग्नि बिंदु वह न्यूनतम तापमान होता है जिस पर मानक आयाम की खुली लौ द्वारा प्रज्वलन के बाद कम से कम पांच सेकं ड तक उस ईंधन का वाष्प जलता
रहेगा। फ्लै श बिंदु पर, एक कम तापमान, एक पदार्थ संक्षेप में प्रज्वलित करेगा, लेकिन आग को बनाए रखने के लिए वाष्प का उत्पादन नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न- आग बुझाने के तीन मुख्य सिद्धान्त क्या हैं?


उत्तर- 1. ईंधन को हटाकर आग बुझाना (स्टारवेशन मैथड)
2. ठण्डक पहुँचाकर आग बुझाना (कू लिंग मैथड)
3. आक्सीजन बन्द करके आग बुझाना (स्मदरिंग मैथड)

प्रश्न- स्टारवेशन मैथड से क्या समझते हो ?


उत्तर- अंग्रेजी में स्टारवेशन' के अर्थ होते हैं "भुखमरी" भूखों मरना।आग के लिए आवश्यक ईंधन, ताप, और आक्सीजन में ईंधन, आग की खुराकहै। यदि उसे
अलग कर दिया जायेगा तो आग एक प्रकार से भूखों ही मरजायेगी अथवा बुझ जायेगी।
स्टारवेशन तीन प्रकार से किया जाता है
1-जलने योग्य वस्तुओं को आग के आस-पास सेहटाकर।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
2-आग को ही जलने योग्य वस्तुओं के पास से हटाकर।
3-जलने वाली वस्तुओं को अलग-अलग करके छोटे-छोटे भागों में बाँटकर। ये छोटे-छोटे भाग या तो स्वयं बुझ जायेंगे या शीघ्र और सुगमता से बुझायेजा सकें गे।
स्टार्वेशन की प्रक्रिया को हम आग को भूखों मारना भी कहते हैं।इस प्रक्रिया के अंतर्गत इंधन को हटाया जाता है।

प्रश्न- स्मदरिंग मैथड से क्या समझते हो


उत्तर- अंग्रेजी में “स्मदरिंग” के अर्थ होते हैं “दम घुटना”।
आग के लिए तीन मूल आवश्यकताओं, ईंधन, ताप और आक्सीजन मेंआक्सीजन प्राणवायु का कार्य करती है। यदि उसे अलग कर दिया जाय या बन्दकर दिया जाय
तो आग एक प्रकार से घुट कर मर जायेगी। आग को आक्सीजनवायुमण्डल से ही मिलती है। अतएव हम किसी प्रकार आग के स्थान तक शुद्धवायु न पहुँचने दें तो आग
के आस-पास के सीमित वायु मण्डल में आक्सीजनघटती जायेगी और अन्त में ऐसा समय आयेगा कि आक्सीजन की मात्रा बिल्कु लनहीं रहेगी और आग बुझ जायेगी।
इसके लिये-
1.आग को किसी वस्तु, कम्बल, बालू, मिट्टी, कीचड़ द्वारा ढक कर चारों ओर से हवा रोक दें।
2.यदि कमरे में आग है तो खिड़की, दरवाजे आदि बन्द कर दें।
3.जलती तरल वस्तु पर फोम (झाग) की परत जमा देने से हवा नहीं पहुँच पाती। फलस्वरूप वैपर्स भी नहीं बनने पाते।
4.आग पर ड्राइपाउडर फें क कर हवा को रोक दें।
5.किसी अक्रिय गैस को आग के चारों ओर सेहवा/आक्सीजन को दूर किया जा सकता है।
स्मोदरींग और ब्लैंके टीगं)- इस प्रक्रिया के अंतर्गत हम आग को  ढकने का काम करते हैं।आग बुझाने की इस प्रक्रिया के अंतर्गत हम ऑक्सीजन कट करके आग को
बुझाते हैं।

यह प्रक्रिया दो प्रकार से होती


इस प्रक्रिया के अंतर्गत जलने वाले पदार्थ से ऑक्सीजन को कट कर दिया जाता है या ऑक्सीजन के वेग को इतना कम कर दिया जाता है। कि आग पूरी तरह से बुझ
जाए। जैसे- जलती हुई आग पर रेत डाल देने से आग पूरी तरह से बुझ जाती है।इस प्रक्रिया के अंतर्गत ऑक्सीजन के वेग को इतना बढ़ा दिया जाता है कि आग बुझ
जाए। जैसे जलती हुई मोमबत्ती को तेज हवा लगने पर मोमबत्ती बुझ जाती है। उसी प्रकार से बड़े -बड़े तेल के कु ओं की आग बुझाने के लिए उसमें विस्फोट किया जाता
है। जिससे ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ा करके आग बुझाया जाता है।

प्रश्न- कू लिंग मैथड से क्या समझते हो ?


उत्तर- आग की तीन मूल आवश्यकताओं, ईंधन, ताप औरयदि ताप को किसी प्रकार कम या न्यूनतम कर दिया जाय तो आगइस सिद्धान्त में आग से गर्मी हटाने
की दर को तेज करना है जिससे जलती हुईवस्तु का तापमान कम हो जाय। फलस्वरूप गर्मी के पैदा होने की दर, आग से पेशहोने वाली गर्मी की दर से बढ़ जाती है
और आग बुझ जाती है। आग पर पानी कीधार या फु आर के रूप में फें कना, इसी सादे बुनियादी सिद्धान्त पर आधारित है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
आग पर पड़ते ही पानी आग की गर्मी को सोखकर स्वयं गर्म हो जाता है औरजलने वाली वस्तु का तापक्रम कम हो जाता है। अधिक तापक्रम पर पानी भाप मेंपरिवर्तित
होकर आग के आस-पास की हवा को बाहर धके ल कर आग तकआक्सीजन पहुँचने में बाधक होता है और आग शीघ्र बुझ जाती है।कू लिंग - इस प्रक्रिया के अंतर्गत 
आग को ठंडा करके बुझाया जाता है । इस विधि के द्वारा हम आग को तापमान कम करके बुझाते हैं।

जैसा कि उपरोक्त चित्र में प्रदर्शित है कि हीट(ताप)को  हटा करके हम इस विधि द्वारा आग को बुझाते हैं जैसे एक जलती हुई आग पर पानी डालने पर आग का
तापमान कम हो जाता है और आग बुझ जाती है।

प्रश्न- बीटिंग मैथड से क्या समझते हो


उत्तर- इसका अर्थ आग को पीट-पाट कर बुझाना है। छोटी-मोटीआग, घास, पताई, जंगल की झाड़ी झंकाड़ की आग को पीट -पाट कर बुझाया जा सकताहै।
यद्यपि इस उपाय में भी आग बुझाने के तीन मूल सिद्धान्त ही निहित हैं।

प्रश्न- “ट्रैन्गिलआफ फायर”से आप क्या समझते हैं


उत्तर- ट्रैन्गिल के अर्थ है "त्रिभुज"। इस प्रकार “ट्रैन्गिल आफ फायर”का शाब्दिक अर्थ हुआ आग का त्रिभुज त्रिभुज में तीन भुजायें होती हैं। आगके लिए तीन मूल
आवश्यकताओं को तीन भुजाओं के रूप में मानकर आग कात्रिभुज कहा जाता है। यदि आग की तीन आवश्यकताओं में से एक भी कम होगीतो त्रिभुज नहीं कहलायेगा।
उसी प्रकार यदि आग की तीन आवश्यकताओं में सेएक भी कम होगी तो आग नहीं बन सकती और ट्रैन्गिल आफ फायर भी नहींकहला सकता। अग्नि शमन में इस
ट्रैन्गिल को तोड़ने के लिए किसी एक या दोआवश्यकताओं या भुजाओं को हटा देते हैं

प्रश्न- आग का वर्गीकरण (क्लासीफिके शन आफ फायर) सेक्या समझते हो ?


उत्तर- अग्नि शमन में सुविधा के लिए आग को विभिन्न श्रेणियों में बाँटागया है। इसे आग का वर्गीकरण कहते हैं। आग को पाँच श्रेणियों में रखा गया
1-'A' श्रेणी की आग (क्लास 'A' फायर)- साधारण जलने वालेपदार्थों जैसे- लकड़ी, कोयला, कागज, कपड़ा, कचरा आदि की आग इन पर पानीडालकर या
ठण्डक पहुँचाकर आग बुझाई जा सकती है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
2-'B'श्रेणी की आग (क्लास 'B'फायर)- ज्वलनशील तरल पदार्थोंकी आग जैसे-पेट्रोल, तेल, वार्निश, तारकोल इत्यादि। इन पर पानी नहीं डालाजाता, बल्कि आग
को ढक कर अथवा आक्सीजन बन्द करके बुझाया जाता है।

3-'C'श्रेणी की आग (क्लास 'C'फायर)- गैस जैसे पदार्थों कीआग जो कि प्रेशर युक्त हो और सिलेण्डर में हो। इन पर कोई इनर्ट गैसें अथवापाउडर डालकर विशेष
तकनीक से बुझाया जाता है।

4-'D'श्रेणी की आग (क्लास 'D'फायर)- धातुओं जैसे मैगनीशियमअल्मुनियम, जिंक आदि की आग इन पर भी पानी नहीं डाला जाता है बल्किविशेष पाउडर डालकर
विशेष तकनीक से बुझाया जाता है।

5-'E'श्रेणी की आग (क्लास 'E'फायर)- बिजली के उपकरण एंवयन्त्रों की आग। इन पर भी पानी नहीं डाला जाता, बल्कि विशेष पदार्थों जो बिजलीके करन्ट से
प्रभावित नहीं होते, से बुझाया जाता है।

प्रश्न- आग पकड़ने की क्षमतानुसार वस्तुओं को कितने वर्गों मेंबाँटा गया है


उत्तर- तीन वर्गों में बाँटा गया है
1. वे जो धीरे-धीरे सुलग कर आग पकड़ती हैं जैसेलकड़ी, कोयला, दरी, कालीन इत्यादि।
2. वे जो थोड़ा जल्दी आग पकड़ती हैं जैसे- कागज, हलके , फु लके , कपड़े, झूलते हुए परदे इत्यादि ।
3. वे जो शीघ्रता से आग पकड़ती हैं और तीव्रता से जलती हैं।जैसे- पेट्रोल, स्प्रिंट, सैल्यूलाइट इत्यादि ।

प्रश्न- आग कै से बढ़ती और फै लती है


उत्तर- आग का बढ़कर फै लना उसके आस-पास की वस्तुओं के आग पकड़ने कीक्षमता पर निर्भर करता है कु छ वस्तुयें जल्द आग पकड़ती हैं और कु छ धीरे-
धीरेसुलगती हैं। भवन के अन्दर इस प्रकार की सभी सामग्री पाई जाती हैं।

प्रश्न- आग एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर किस प्रकारफै लती है ?


उत्तर- 1. स्टील गर्डर या लोहे की चादर द्वारा दूसरी ओर के सिरे के पास स्थित सामग्री में आग फै ल जाती है-संचालन (कण्डक्शनविधि द्वारा)
2. आग से निकलने वाले गर्म धुयें और हवा के कहीं ऊपरजाकर इकट्ठा होने से ज्वलनशील वस्तुओं के सम्पर्क में आजाने से फै लती है -संवहन (कन्वैक्शन) विधि
द्वारा।
3. आग की ताप से पड़ौस में स्थित मकान में आग फै ल जातीहै-विकिरण (रेडियेशन) विधि द्वारा।
4. भवन के विभिन्न भागों को जलाती हुई आग, उछलकर याउड़कर आस-पास के मकानों पर भी धावा बोल सकती हैअथवा आग लगा सकती है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्राथमिक आगबुझाने के उपकरण


(फर्स्ट एड फायर फाइटिंग अप्लाइंसेज)

प्रश्न- फर्स्ट एड फायर फाइटिंग अप्लाइंसेज से क्या समझते हो


उत्तर- प्रत्येक बड़ी आग सर्व प्रथम छोटे रूप में ही आरम्भ होती है। यदि आग उसके इस प्रारम्भिक रूप में ही बुझा दी जाय तो वह भयंकर रूप नहीं ले सकती।
अतएव ऐसे हल्के फु ल्के यन्त्र जो सरलता से उपलब्ध हों और सुगमता से प्रयोग किये जा सकते हों, फर्स्ट एड फायर फाइटिंग अप्लाइंसेज कहलाते हैं।

प्रश्न- कौन-कौन से यन्त्र फर्स्ट एड फायर फाइटिंग अप्लाइंसेजकहलाते हैं।


उत्तर- 1- फायर बके ट 2- फायर बीटर
3- एजबेस्टस ब्लैन्के ट 4- स्ट्रप पम्प
5- होज रील 6- कै मिकल एक्सटिंग्यूशर

प्रश्न- फायर बके ट किसे कहते हैं


उत्तर- उन बाल्टियों को कहते हैं जो विशेषतः आग बुझाने के काम में लाई जाती हैं। यह दो गैलन अथवा 9 लीटर पानी की क्षमता वाली होती हैं। इन्हें लाल रंग से
रंग दिया जाता है। इनपर काले या सफे द रंग से "आग" या फायर लिखा होता है। ये दो प्रकार की होती है।
1- साधारण चपटे पेंदे घाली (या फ्लै ट बाटम वाली)
2- गोल पेंदे वाली (या राउण्ड बाटम वाली) ।
जब इनमें पानी भरा होता है तो यह वाटर बके ट कहलाती हैं। कभी-कभीइनमें बालू या मिट्टी मिली रेत, भरकर भी रखा जाता है तब इसे सेण्डबके टकहते हैं।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न- फायर बीटर से क्या समझते हो


उत्तर- यह छोटी-मोटी आग, जंगल की झाड़ियों घास के मैदान या पके खेतों की आग को पीट पाट कर (बीटिंग मैथड से) बुझाने के लिए प्रयोग कियाजाने वाला
उपकरण है ।
3 या 4 फीट लम्बे लचकदार डण्डे के सिरे पर 9" x 18" के फ्रे म में लोहेकी नर्म जाली का या किरमिच, बोरी या टाट का टुकड़ा बाँध कर फायर बीटर
बनाये जाते हैं।

प्रश्न- फायर बीटर को प्रयोग करते समय क्या सावधानीबरतनी चाहिए


उत्तर- फायर बीटर का प्रयोग करते समय यह ध्यान रहे कि आग की चिनगारियाँ कम से कम उड़ें। अतः बीटर को कन्धे से ऊँ चा न उठने दिया जाय और इस
प्रकार प्रयोग किया जाय कि चिनगारी आग की ओर ही गिरे, बाहर की ओर नहीं।

प्रश्न- एजबेस्टस ब्लैन्के ट किसे कहते हैं


उत्तर- एजबेस्टस वास्तव में एक खनिज पदार्थ हैं जो अपनी तापअवरोधक क्षमता के लिए प्रसिद्ध है, यानी इसमें आग आसानी से नहीं लग पाती।इसे रस्सी की
तरह बटा जा सकता है। इसी पदार्थ का ‘4x4’ या 6’x6’फीटसाइज का कम्बल जैसा बना लिया जाता है। जिसके द्वारा छोटी-मोटी आग कोढाँक कर अथवा
(स्मदरिंग मैथड) से बुझाया जा सकता है।

प्रश्न- एजबेस्टस ब्लैन्के ट कै से प्रयोग किया जाता है ?


उत्तर- ब्लैन्के ट को एक ओर पकड़ कर अपने हाथों और स्वयं को ढांकते हुए आग के निकट से निकट पहुंचिये और ब्लैन्के ट को आग पर इस प्रकार डालिए कि
आग तक किसी ओर से हवा न पहुंचने पाये। यदि आग किसी व्यक्ति के कपड़ों में है तो उसे ब्लेन्के ट से लपेट कर जमीन पर लिटा दीजिए।

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प्रश्न- स्ट्रप पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- पानी द्वारा आग बुझाने का यन्त्र है। वास्तव में दो शब्दों से मिलकरइसका नाम बना है। एक स्ट्रप , दूसरा पम्प स्ट्रप के अर्थ हैं रकाव या पैर रखनेका
पायदान। इसे रकाबदार पम्प भी कह सकते हैं। पम्प के साथ 8 मीटर लम्बीआधा इन्च भीतरी गोलाई वाली रबर और के न्वास से बनी ट्यूडिंग या प्लास्टिकका पाइप
होता है जिसके अन्तिम सिरे पर एक विशेष नाजुल लगी रहती है जोआवश्यकतानुसार पानी को धार या फु आर के रूप में फें क सकती है। पम्प के अन्य भाग - वेरल,
प्लंजर ट्यूब, फु टवाल्व, स्ट्रेनर, गिलैन्डनट और हैण्डिल हैं।जब स्ट्रप पम्प का प्रयोग करना होता है पम्प के फु टवाल्व वाले भाग को पानीसे भरी बाल्टी में रखते हैं तथा
रकाव (स्ट्रप) को बाहर जमीन पर रखते हैं औरउस पर पैर रखकर हैण्डिल को जल्दी -जल्दी ऊपर खींचते व नीचे दबाते हैं। कु छही क्षणों में पानी की तेज धार नाजुल
से निकलने लगती है। उसी धार से आगबुझाते हैं।

प्रश्न- स्ट्रप पम्प की आवश्यक देख-रेख क्या है


उत्तर- 1. प्रयोग के पश्चात् बैरल एंव डिस्चार्ज पाइप से पानी कोपूर्णरूप से निकाल कर रखना चाहिए।
2. पम्प के बाहरी भाग को भली-भाँति पोंछ देना चाहिए। स्ट्रेनरपर यदि कचरा दिखाई पड़े तो उसे भी साफ कर दें।
3. डिस्चार्ज पाइप को भली भाँति गोलाई में लपेट कर फीते सेबाँध कर रखिये। पाइप में ऐंठन या मोड़ न पड़े।
4.पम्प को सूखे या ठण्डे स्थान पर टांगना चाहिए।
5. महीने में कम से कम एक बार अवश्य चला कर देखते रहना
चाहिए, ताकि इसके पुर्जे गतिशील बने रहें।
6. प्लंजर ट्यूब पर हल्का आयल लगाकर पोंछ देना चाहिए।
7. पिस्टन-वाल्व, फु टवाल्व में भी आयल के न से तेल देना चाहिए।
8. गिलैण्ड पैकिं ग भी चैक करते रहना चाहिए और घिस जाने परदूसरी बदल देना चाहिए ।

प्रश्न- होज रील किसे कहते हैं


उत्तर- यह भवन की जलापूर्ति व्यवस्था से आग बुझाने का उपकरण है।इससे एक ही व्यक्ति आग बुझा सकता है। वास्तव में होज रील एक घूमने वालेपोले ढांचे के
ऊपर एक आउटलेट बना होता है जिसमें 12.20 एम. एम. या एकइंच डायमीटर की 20 मीटर से 40 मीटर लम्बी रबर ट्यूविंग जोड़कर रील (चर्खी)पर ही लपेट
दी जाती है। ट्यूविंग के दूसरे सिरे पर एक बन्द किया जा सकनेवाला नाजुल भी लगा रहता है। होज रील का कनेक्शन भवन की वाटर सप्लाईसे कर दिया जाता है तथा
एक बाल्व से खोला और बन्द किया जा सकता है।आवश्यकता पड़ने पर इसी वाल्व को खोलकर नाजुल से आग बुझा लेते हैं।

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प्रश्न- होज रील से काम लेने का ढंग बयान करें।


उत्तर- 1. वाल्व खोलिये।
2. ब्रान्च पकड़कर आवश्यकतानुसार रील को खोलिये और आग
की ओर दौड़िये।
3. आग के स्थान पर पहुँचते ही शट-आफ नाजुल खोलकर आग
पर आक्रमण कीजिए।
4.आग बुझ जाने के पश्चात वाल्व बन्द करके ट्यूविंग को पुनःरील पर लपेट दीजिए।

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रासायनिक अग्नि शमन उपकरण


(कै मिकल फायर एक्सटिंग्यूशर्स)

प्रश्न- अग्निशमन यंत्र किसे कहते हैं  (Fire Extinguisher)


एक आग से बचाव का एक युक्ति है जिसकी सहायता से छोटे अकार की आग को बुझाया जा सकता है या उसे नियंत्रण में रखा जा सकता है। यह
प्राय: आपातकालीन स्थितियों में उपयोग किया जाता है। किन्तु यह ऐसी आग के बुझाने या नियंत्रण के लिये प्रयुक्त नहीं होता जो बहुत विकराल रूप ले चूकी हो।
प्राय: अग्निशमन यंत्र में एक बेलनाकार दाब-पात्र (pressure vessel) होता है जिसमें एक ऐसा पदार्थ भरा रहता है जिसे छोड़ने पर आग बुझाने में सहायक
होता है। वह एक उपयोगी साधन है,

प्रश्न- कै मिकल फायर एक्सटिंग्यूशर किसे कहते हैं


उत्तर- आग बुझाने के ऐसे यन्त्र जिनमें कै मिकल्स या रासायनिक पदार्थोंका प्रयोग किया जाता है, कै मिकल फायर एक्सटिंग्यूशर्स कहलाते हैं। इनमें –
1.कु छ रासायनिक पदार्थ, आग बुझाने वाले पदार्थ को यन्त्र से बाहर निकालने में प्रयोग किये जाते हैं।
2.कु छ रासायनिक पदार्थ आग पर गिरकर स्वयं आग बुझाते हैं।
3.कु छ रासायनिक पदार्थ आग की ऊपरी सतह या आग को चारों ओर से ढाक कर उस तक आक्सीजन पहुंचने में बाधक बनकर आग बुझाने में सहायक होते हैं।

प्रश्न- पोर्टेबुल फायर एक्सटिंग्यूशर से क्या समझते हो


उत्तर- पोर्टेबुल के अर्थ होते हैं एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुगमता सेउठाकर ले जाये जा सकने वाला। अतः ऐसे फायर एक्सटिंग्यूशर जो वजन में हल्के फु लके
हों और सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक उठाकर ले जाये जासकते हों और आग लगने पर हर बच्चा, बूढ़ा, स्त्री-पुरुष सरलता से प्रयोग करसकता हो। उन्हें
पोर्टेबुल फायर एक्सटिंग्यूशर कहते हैं।

प्रश्न- उपयोगिता एवं अध्ययन के दृष्टिकोण से एक्सटिंग्यूशरकितने भागों में बाँटेगये हैं
उत्तर- फायर एक्सटिंग्यूशर्स को चार भागों में बांटा गया है-
1. वे एक्सटिंग्यूशर, जो पानी या पानी में मिलाया हुआ कोईमसाला फें कते हैं। उन्हें 'A' (श्रेणी 'A') क्लास की आग परप्रयोग किया जाता है।
2. वे एक्सटिंग्यूशर जो फोम, यानी झाग फे कते हैं और 'B'(श्रेणी ‘बी’) क्लास की आग के लिए उपयुक्त होते हैं।
3. वे एक्सटिंग्यूशर, जो गैस फै कते हैं या कोई ऐसा तरल फें कते हैं जो आग पर पड़ते ही गैस में तब्दील हो जाते हैं। ये 'C' और 'E' (श्रेणी 'सी' और 'ई') क्लास की
आग के लिए उपयुक्त होते हैं।
4. वे एक्सटिंग्यूशर, जो कै मिकल पाउडर फें कते हैं उन्हें A. B. C. D और 'E' श्रेणी अथवा हर क्लास की आगों पर प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर किसे कहते हैं?


उत्तर-  सोडा एसिड एक्सटिंग्यूसर (Soda Acid Extinguisher)- कार्बोनेशियस फायर ( जैसे - लकड़ी , कपड़ा व अन्य ठोस ज्वलनशील पदार्थों
से लगी आग ) को बुझाने के लिए इस प्रकार का एक्सटिंग्यूसर प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा विधुत द्वारा लगी आग को नहीं बुझना चाहिए, क्योंकि इसके द्वारा
निकले कै मिकल विधुत के अच्छे सुचालक होते हैं।
पानी द्वारा आग बुझाने अथवा 'A' क्लास की आग बुझाने के लिए यह उपयुक्त यन्त्र है। इसमें दो रसायन , सोडा और एसिड (तेजाब) का प्रयोग किया जाता है। एक या
दो गैलन (9 लिटर्स ) क्षमता वाले गोल बेलनाकार या तिकोने गोल आकार की टंकी जैसे देखने में आते हैं। टंकी में दो गैलन (नौ लिटर्स) पानी के साथ खाने वाला
सोडा घुला रहता है तथा टंकी के अन्दर ही एक जाली में गन्धक के तेजाब की ट्यूब रखी रहती है। जब इस को चलाना होता है तो तेजाब की ट्यूब को तोड़कर , तेजाब
को सोडे के घोल में मिलने देते हैं। दोनो मसालों के मिलने से रासायनिक प्रतिक्रिया होती है जिसमें तीव्रता से कार्बन डाइ आक्साइड गैस बनती है। जो कन्टेनर से बाहर
निकलने का प्रयास करती है। परन्तु विशेष बनावट के कारण नहीं निकल पाती। बल्कि पानी की सतह को ही दवाती है और पानी दबाव पाकर नाजुल द्वारा धार के रूप
में यन्त्र से बाहर निकलने लगता है तथा 1 ½ से 2 मिनट तक 6 से 8 मीटर तक की धार फें कता रहता है। इसी धार से आप बुझाई जाती है।

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प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर के मसालों के नाम बताओ ?


उत्तर- 1. सोडियम बाइकार्बोनेट (खाने वाला सोडा)
2. सल्फ्यूरिक एसिड (गन्धक का तेजाब)

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में कार्बन डाइ आक्साइड गैस, क्या आग बुझाने का भी कार्य करती है
उत्तर- नहीं। इस एक्सटिंग्यूशर में कार्बन डाइ आक्साइड गैस के वल पानीको बाहर निकालने का कार्य करती है और पानी ही आग बुझाने का कार्य करता है। कार्बन
डाइआक्साइड आग पर कोई प्रभाव नहीं डालती। क्योंकि इसकी मात्रा बहुत कम होती है। दूसरे आग से बहुत दूर रहती है।

प्रश्न- बनावट के अनुसार सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर कितनेप्रकार के होते है।


उत्तर- बनावट के अनुसार सामान्यतः ये दो प्रकार के देखने में आते हैं।
1. कोनिकल टाइप (अ) कोनिकल विद प्लंजर एट बेस, (ब) कोनिकल विद प्लंजर एट टाप।
2. सिलेंड्रि कल टाइप

प्रश्न- प्रयोग विधि के अनुसार सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- प्रयोग विधि के अनुसार सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर दो प्रकार के होते हैं -
1. वे एक्सटिंग्यूशर जो चलाते समय सीधे रखे जाते हैं। इन्हें अपराइट टाइप कहते हैं।
2. वे एक्सटिंग्यूशर जो चलाते समय उलट कर चलाये जाते हैं इन्हें टर्न ओवर टाइप कहते हैं।
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प्रश्न- यह कै से ज्ञात होता है किएक्सटिंग्यूशर अपराइट टाइप है या टर्न-ओवर टाइप


उत्तर- प्रत्येक एक्सटिंग्यूशर की बाडी पर अंकित रहता है कि एक्सटिंग्यूशर कै से चलाया जाये और चलाते समय किस स्थिति में रखा जाय गदि प्रयोग विधि पढ़ी
नहीं जा सकी हो तो एक्सटिंग्यूशर को सामान्य रूप में किसी एक स्थिति में रखकर प्रयोग किया जाय। यदि एक्सटिंग्यूशर से पानी की तेज धार निकलती हे तब तो ठीक
है। परन्तु यदि पानी के स्थान पर गैस के निकलने की आवाज आये तो समझिये कि यन्त्र गलत चल रहा है या चलाया जा रहा है। उसे तुरन्त पलट कर चलाना चाहिए।

प्रश्न- आग लगने पर सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर को प्रयोगकरने की विधि बतायें


उत्तर- 1. आग लगने पर एक्सटिंग्यूशर का हेण्डिल व बाटम पकड़ कर उसे उसके ब्रेकिट से उतारिये।
2. यन्त्र को लेकर आग की ओर दौड़िये। यन्त्र को हिलाते जाइये। और घटनास्थल पर पहुँचकर सेफ्टी कै प को हटाइये। सेफ्टी कै प को हटाइये।
3. एक्सटिंग्यूशर के कै प की नाब को धीरे से जमीन या दीवाल पर मारिये। या जोर से हाथ मारिये।
4. राड के अन्दर धंसते ही नाजुल से पानी की तेज धार निकलने लगेगी। उसे आग के मूल स्थान पर मारिये और आग बुझाइये।

प्रश्न- चलते हुए एक्सटिंग्यूशर को किस प्रकार रोका जासकता है


उत्तर- एक्सटिंग्यूशर को उलटा कर दो और उसकी गैस निकाल दो यानी अपराइट को टर्नओवर कर दो या टर्न ओवर टाइप को अपराइट कर देने से
एक्सटिंग्यूशर गैस से खाली हो जायेगा। पानी की धार भी रुक जायगी।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर को दोबारा भरने की विधिबताइये


उत्तर- 1. कै प को सावधानी पूर्वक खोलिये चेहरे को दूर रखिये।
2. के ज को बाहर निकालकर, कै प, के ज कन्टेनर को भली भाँति धुलवाइये।
3. एक बाल्टी में ताजे पानी में रिफिल के सोडे को अच्छी तरह घोलिये।
4. घोल को कन्टेनर में उसके लेविल तक भरिये।
5. के ज में तेजाव की ट्यूव को सावधानी से रखिये। ट्यूब का नोकदार भाग भीतर की ओर स्प्रिंग पर रहेगा। के ज को कन्टेनर में रखिये।
6. कै प की चूड़ियों व कन्टेनर की चूड़ियों पर हल्का ग्रीस लगाइये। प्लंजर चैक कीजिये अधिक ढीला या टाइट न हो।
7. कै प को कन्टेनर पर कस दीजिए।
8. कन्टेनर को ऊपर से पानी से धोकर कपड़े से पोंछ दीजिए।
9. कन्टेनर पर भरने की तिथि पेन्ट से या चिट चिपकाकर अंकित कीजिए।
10. यथा - स्थान टॉगिये या रखिये तथा रिकार्ड रजिस्टर में भी प्रविष्टि अंकित कराइये।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर की साप्ताहिक देख-रेख का वर्णन करो।


उत्तर- 1. कन्टेनर की धूल मिट्टी झाड़कर वैक्स पालिश करनी चाहिए।
2. कै प पर ब्रासो अथवा सिल्वो पालिश करनी चाहिए।
3. नाजुल और कै प के सैफ्टी वैन्ट होल, तार या पिन से साफ करें।
4. प्लंजर राड चैक करें वह साफ और पूरा खुला हुआ हो।
5. रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्ट अंकित करें।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर की तिमाही देख-रेख का वर्णन करो।


उत्तर- 1. कै प को खोलिये। कै प वाशर देखिये, नर्म है कि नहीं, वैन्ट होल साफ करो।
2. प्लंजर राड देखो। सही कार्य करता है। ढीला या अधिक टाइट तो नहीं है।
3. के ज को बाहर निकाल कर एसिड ट्यूब देखिये टू टी या चटकीतो नहीं।
4. के ज का वाशर व अन्दर की स्प्रिंग ठीक है कि नहीं।
5. नाजुल चैक कीजिए। बन्द हो तो साफ कीजिए।
6. सोडियम के घोल को एक लकड़ी से चला दीजिए।
7. के ज में एसिड ट्यूब सावधानी से रखकर के ज को पुनःकन्टेनर में रखिये।
8. कै प की चूड़ियों पर हलका ग्रीस लगाकर प्लंजर राड को ऊपरखींच कर कन्टेनर पर कसिये। सेफ्टी कै प लगाइये।
9. कन्टेनर को धो-पोंछ कर यथास्थान टांगिये।
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10. रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्टि अंकित कर दीजिये।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर की वार्षिक देख-रेखवर्णन कीजिए


उत्तर- 1. एक्सटिंग्यूशर को चलाकर देखिये। इसकी धार लगभग 60 सेकण्ड तक 8 मीटर से कम न रहे।
2. उपरोक्त टैस्ट के पश्चात् एक्सटिंग्यूशर को भली-भाँतिधुलवाइये।
3. देखिये कि यन्त्र के अन्दर की ओर जंग तो नहीं लग रही है।
4. यदि जंग लगी दिखाई दे तो उसका प्रेशर टैस्ट अति आवश्यक है।
5. टैस्ट के पश्चात् एक्सटिंग्यूशर को दुबारा भर दिया जाय।
6. रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्टि अंकित कर दी जाय।

प्रश्न- एक्सटिंग्यूशर का प्रेशर टैस्ट कै से किया जाता है


उत्तर- एक्सटिंग्यूशर के नाजुल पर ब्लैक कै प लगाकर कन्टेनर को पानीसे पूरे गले तक भर दिया जाता है। कै प को एडाप्टर की सहायता से हाइड्रोलिकप्रेशर
टेस्टिंग मशीन से जोड़ दिया जाता है। तब मशीन पर 17.5 कि० ग्रा० प्रतिसे० मी० प्रेशर, ढाई मिनट तक रखा जायेगा। यदि इस अवधि में कोईलीके ज प्रकट नहीं
होता है तो समझिये कि एक्सटिंग्यूशर ठीक है।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर के गुणों का वर्णन करो


उत्तर- 1. हल्का-फु ल्का होने के कारण प्रत्येक स्त्री, पुरूष, बच्चा, बूढ़ा इसका प्रयोग कर सकता है। के वल एक व्यक्ति चलाता है।
2. इसके चलाने में विशेष श्रम नहीं करना पड़ता प्लंजर नॉव के धंसते ही तुरन्त काम करता है।
3. छोटी-मोटी आगों को बुझाने की पूर्ण क्षमता रखता है।
4. यदि इसकी सही देख-रेख होती रहे तो विश्वसनीय भी है।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में क्या-क्या दोष हैं


उत्तर- 1. एक बार चलाने के पश्चात् पूरा खाली करना पड़ता है तथा दुबारा भरना पड़ता है।
2. बिजली की आग पर प्रयोग नहीं किया जा सकता।
3. तेल की व धातु की आग पर भी प्रयोग नहीं किया जा सकता।
4. कभी-कभी कपड़े पर गिरने से उसे खराब कर देता है।

प्रश्न - सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर को बिजली की आग पर क्यों नहीं प्रयोग करते हैं?
उत्तर- क्योंकि इसमें पानी भरा होता है और पानी बिजली का सुचालक होता है। इसकी धार द्वारा आपरेटर को करन्ट का झटका लग सकता है।

प्रश्न- दो गैलन वाले सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में मसालों कापरिमाण क्या है
3
उत्तर- स्टैन्डर्ड चार्ज में 1.833 स्पेसिफिक ग्रेविटी वाला गन्धक का तेजाब 2 लिक्विड ऑस (77.3 घन से.मी.)
4
और 1 पौंड 2 औंस (510 ग्राम) सोडियम बाई कार्बोनेट होता है।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में गैस प्रेशर कितना बनता है


उत्तर- यदि यन्त्र के निर्माता का ही रिफिल प्रयोग किया जाये तो 100 पौंड प्रति वर्ग इंच प्रेशर बनाता है।

प्रश्न- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर की रासायनिक प्रतिक्रिया क्याहोती है


उत्तर- प्रतिक्रिया इस समीकरण के अनुसार होती है-
सोडियम बाईकार्बोनेट + सल्फू रिक एसिड = सोडियम सल्फे ट + पानी +कार्बन डाई आक्साइड।

प्रश्न- स्निफटर वाल्व से क्या समझते हो


उत्तर- अपराइट टाइप सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर में एक विशेष व्यवस्था हेतुवाल्व है। इससे एक्सटिंग्यूशर के अन्दर की हवा तथा बाहर के वायुमण्डल की हवा का
सम्पर्क बना रहता है औरगर्मियोंमें यन्त्र के अन्दर प्रेशर नहीं बनने पाता।

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प्रश्न- स्निफ्टर वाल्व का लगाना क्यों आवश्यक है
उत्तर- यदि वाल्व न लगाया जाय जो गर्मी पाकर एक्सटिंग्यूशर के अन्दरप्रेशर बनकर कु छ घोल डिस्चार्ज पाइप से नाजुल के बाहर आ जाता है। यहाँ पानीहवा में
उड़ जाता है। सोडियम बाई कार्बोनेट शेष रहकर नाजुल पर जम जाता है।अधिक जमाव के कारण नाजुल बन्द भी हो सकता है। जो प्रयोग करते समयकठिनाई उत्पन्न
कर सकता है। कभी-कभी एक्सटिंग्यूशर के फटने की भी सम्भावनाहो जाती है। इसलिए स्निफ्टर वाल्व का लगाया जाना अति आवश्यक है।

प्रश्न- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर किसे कहते हैं


उत्तर- यह एक्सटिंग्यूशर भी पानी फें कता है और कू लिंग मैथड से आगबुझाता है। 'A' श्रेणी की आगों के लिए उपयोगी होता है। सोडा एसिड और इसटाइप में यह
अन्तर है कि इसमें तेजाब का प्रयोग नहीं किया जाता। बल्कि इसके पानी को निकालने के लिये एक गैस कार्टरिज अथवा गैस का छोटा सा सिलैण्डरलगा रहता है जिसमें
गैस भरी रहती है। जब इस यन्त्र को प्रयोग में लाना होताहै तो इस गैस कार्टरिज को पंक्चर कर देते हैं। गैस , कार्टरिज से निकल कर यन्त्रसे भी बाहर निकलने का
प्रयास करती है। परन्तु कोई मार्ग न पाकर पानी कीसतह को ही दबाती है और पानी नाजुल द्वारा तेज धार के रूप में बाहर निकलनेलगता है और इसी धार से आग बुझा
ली जाती है।

प्रश्न- वाटर टाईप एक्सटिंग्यूशर को कै से प्रयोग किया जाताहै


उत्तर- 1.आग लगने पर एक्सटिंग्यूशर को ब्रेके ट से उतारिये तथा आग की ओर दौड़िये।
2.स्प्रिंगदार प्लंजर में फँ सी सेफ्टी क्लिप को निकालिये।
3.नॉव को हाथ, जमीन या दीवार पर मारकर चोट पहुँचाइये।
4.नाव पर चोट पड़ते ही नाजुल से पानी की तेज धार निकलने लगेगी। उसी से आग बुझाइये।
प्रश्न- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर के मसालों का नाम बताइये
उत्तर- 1-सोडियम वाईकार्बोनेट एक पैके ट।
2-गैस कारिज (जिसमें सी.ओ.टू या हवा भरी होती है।)

प्रश्न- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर के भरने की विधि का वर्णन करो


उत्तर- 1. कै प को घुमाकर खोलिये।
2. कन्टेनर को भली भाँति धुलवाइये। नाजुल साफ रखिये।
3. ताजा पानी में सोडा घोलकर कन्टेनर के लेबिल तक भरिये।
4.कै प के स्प्रिंगदार प्लंजर को चैक कीजिए। ठीक काम करताहै और वाशर यथास्थान है कि नहीं। चूड़ियों पर हल्का ग्रीस लगाइये। वैन्ट होल साफ कर दीजिए। सैफ्टी
क्लिप लगादीजिए।
5. कै प में कार्टरिज को फिट कीजिए। चूड़ियाँ उल्टीहोती हैं, ऐन्टीक्लाक वाइज घूमती है तब कसती हैं।
6. कन्टेनर की चूड़ियों पर ग्रीस लगाकर कै प को भली-भाँतिकसिए ।
7. कन्टेनर को पानी से धोइये। कपड़े से पोंछ दीजिए।
8. कन्टेनर पर भरने की तिथि अंकित कीजिए। रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्टि अंकित कीजिए। यथास्थान टंगवाइये।

प्रश्न- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर की देख-रेख कै से की जाती है


उत्तर- साप्ताहिक देखरेख -धूल मिट्टी झाड़कर वैक्स पालिश करें।नाजुल को साफ करें। कै प के वैन्ट भी साफ रखें।

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तिमाही देखरेख
1.कैं प खोलकर गैस कारिज निकालिए। देखिए कि इसकी सीलिंगडिस्क सही स्थिति में है या नहीं।
2.गैस कार्टरिज को तौलकर देखिए। उस पर अंकित भार से 10 प्रतिशत भी कम हो तो इसे बदल दीजिए।
3.कै प में कार्टरिज पंक्चर करने वाली प्रणाली सही है या नहीं।
4.लैबिल चैक कीजिए यदि कम हो तो पानी भरकर पूरा करें।
5.कै प को कार्टरिज सहित कन्टेनर पर वापस लगाइये।
6.कन्टेनर को धोकर पोंछ दीजिए।
1
वार्षिक टैस्ट- प्रति वर्ष एक्सटिंग्यूशर को चलाकर देखिये प्रति दो वर्षबाद हाइड्रोलिक प्रेशर टैस्ट कराइये। 17.5 किलोग्राम प्रतिवर्ग सेन्टीमीटर के प्रेशर से2 मिनट
2
तक टैस्ट करना चाहिए।
प्रश्न- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर के गुणदोष बताइये,
उत्तर- वाटर टाइप एक्सटिंग्यूशर के गुणदोष निम्नवत् हैं -
गुण-
1.हल्का फु ल्का है।के वल एक आदमी चला सकता है।
2.चलाते समय कोई श्रम (पम्पिंग आदि) नहीं करना पड़ता।
3. के वल पानी प्रयोग होता है। वस्तु खराब नहीं हो सकती।
4.अन्य एक्सटिंग्यूशरों के मुकाबले जल्द भर सकते हैं।
दोष-
1. एक बार चलाने पर पूरा खाली करना पड़ता है।
2. बिजली की आग पर प्रयोग नहीं कर सकते।
3. तेल व धातुओं की आग पर भी प्रयोग नहीं कर सकते है।

प्रश्न- कार्टरिज में कौनसी गैस प्रयोग की जाती है?


उत्तर- कार्टरिज में सी०ओ०टू ० या नाइट्रोजन या ड्राईएयर प्रयोग कीजाती है।

प्रश्न- फोम टाइप एक्सटिंग्यूशर का संक्षिप्त में वर्णन करो।


उत्तर- "बी" क्लास की आग बुझाने वाला यन्त्र है। आग पर झाग या फै ना फें ककर बुझाता है। इस प्रकार के एक्सटिंग्यूश्र में दो मसाले पानी में घोलकरदो अलग -
अलग कन्टेनरों में रखे जाते हैं। जब इस एक्सटिंग्यूशर को प्रयोग करनाहोता है तो दोनों मसालों को एक दूसरे में मिलाया जाता है। मसालों के मिलने से रासायनिक
प्रतिक्रिया होती है जिसमें तीव्रता से कार्बन डाई आक्साइड गैस औरएक तरह की गाढ़ी गाद जैसी बनती है। कार्बन डाई आक्साइड यन्त्र से बाहरनिकलने का प्रयास
करती है; परन्तु यन्त्र की बनावट के कारण आसानी से बाहरनहीं निकल पाती बल्कि यन्त्र के अन्दर गाद को मथकर झाग या फै ना के रूपमें नाजुल से बाहर धके ल
देती है। इसकी धार 1 से डेढ़ मिनट तक 6 से 8 मीटरदूर तक जाती है। यही झाग, आग की सतह पर फें का जाता है। झाग हल्काहोने के कारण तरल के ऊपर ही
तैरते रहकर एक मोटी चादर सी बना लेते है।तथा आग तक आक्सीजन नहीं पहुँचने देते है। और आग घुटकर स्मदरिंगमैथड से बुझ जाती है।
फोम एक्सटिंग्यूसर (Foam Extinguisher)-  तैलीय पदार्थों तथा मोम  में लगी आग को बुझाने के लिए उसकी सतह के ऊपर फोम फै ला दिया जाता है।
इससे उसे जलने के लिए आवश्यक आक्सीजन मिलनी बन्द हो जाती है तथा आग बुझ जाती है । इसमें दो कन्टेनर होते है-अन्दर के भाग में अलुमिनियम का घोल
तथा बाहर के भाग में सोडा बाइकार्बोनेट का गइल भरा होता है। उल्टा करने पर दोनों क्रिया करके फोम पैदा करते है।

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प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशन के मसालों के नाम बताओ


उत्तर- 1.सोडियम बाई कार्बोनेट व स्टेबलाइजर (आउटर कन्टेनर के लिए) इसे फोम साल्ट भी कहते है।
2.अल्युमुनियमसल्फे ट (इनर कन्टेनर के लिए) इसे एसिड साल्ट भी कहते है।

प्रश्न- स्टेबलाइजर किसे कहते है ।


उत्तर- स्टेबलाइजर के अर्थ स्टेबिल या स्थिर रखने वाला। इस पदार्थ के डालने से झाग गाढ़ा और अधित देर तक स्थिर रहता है। यानि झाग , वायु मण्डल के
दबाव को कु छ देर तक सहन कर सकता है । यदि स्टेबलाइजर न डाला तो झाग बहुत जल्द फू टकर बैठ जाएगा और स्वयं जलने लगेगा और आग बुझ नहीं सके गी।
अतः इस सोडियम बाईकार्बोनेट के साथ मिलाकर प्रयोग किया जात है। इसके लिए टर्की रेट आयल, रीठा, मुलेठी इत्यादि प्रयोग करते हैं। किस प्रतिशत में यह
व्यापारिक भेद का विषय है।

प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर को भरने की विधि का वर्णन करो


उत्तर- 1. एक्सटिंग्यूशर के के प को खोलकर इनर कन्टेनर निकालिये।
2. इनर कन्टेनर, आउटर कन्टेनर और के प को भली-भांति पुलवाइये.
3. कै प का रबर वाशर, सीलिंग डिवाइस चैक कीजिए। स्प्रिंग में तेल डालिए। चूड़ियों पर हल्का ग्रीस लगाइये। वैन्ट होल साफ कीजिए।
4. दो अलग-अलग बाल्टियों में दोनों मसाले घोलिये। रिफिल के पैके ट पर अकित निर्देशों का पालन करें। सामान्यतः इनर कन्टेनर के लिए एक लीटर गर्म पानी ओर
आउटर के लिए गुनगुने पानी में घोल तैयार किया जाता है।
5. सर्वप्रथम आउटर कन्टेनर के घोल को भरिये। लेवल तक पूरा करिये।
6. इनर कन्टेनर के घोल को कन्टेनर में भरिये। यदि प्लंजर टाइप यन्त्र है तो इसमें मायका डिस्क भी लगेगा। कन्टेनर को बाहर से भली -भाँति धोइये व आउटर कन्टेनर
में रखिये।
7. कै प को आउटर कन्टेनर पर सावधानी पूर्वक फिट करके वेनट सील लगाइये।
8. कन्टेनर को बाहर से धोकर साफ कपड़े से पौष्ठिये।
9. यथास्थान टांगिये।
प्रश्न- एक्सटिंग्यूशर की प्रयोग विधि बयान कीजिए
उत्तर- 1. आग लगने पर एक्सटिंग्यूशर को हैन्डिल व वाटम पकड़ कर उतारिये।
2. आग की ओर दौड़िये यन्त्र को हिलाते रहिये। आग के निकटपहुँचकर ।
3. यन्त्र की सील खोलिए प्लंजर टाइप में प्लंजर नॉब को हाथ मारकर या जमीन या दीवार पर मारकर अन्दर धके लिये ।
4. यन्त्र को उलट दीजिए । उलटते ही तुरन्त झाग की धार निकलेगी, इसी झाग से आग बुझाना आरम्भ कीजिये।
5. तेल पर सीधी धार फे कने के बजाय सतह पर पड़ी धारमारिये।

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6.या दीवार आदि पर धार मारकर झाग को तेल की सतह पर
बिछने दीजिए और पूरी सतह को इससे ढाकिये।

प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर की साप्ताहिक देख-रेख बताए।


उत्तर- 1. कन्टेनर की धूल झाड़ पोंछकर वैक्स पालिश, व्रासो सिल्क पालिश कीजिए।
2. नाजुल को तार से साफ कीजिए।
3. के प के वैन्ट भी साफ कीजिए।
4. प्लंजर राड साफ व खुला रखिये।

प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर की तिमाही देख-रेख का वर्णन कीजिए।


उत्तर- 1. कै प को अनलॉक करके खोलिए। के प वाशर को चेक करें। नर्म है।
वैन्ट साफ कीजिए।
2. इनर कन्टेनर निकालिए।
3. दो अलग-अलग लकड़ियों से दोनों कन्टेनर के घोल चलादीजिए।
4. इनर कन्टेनर को वापस आउटर कन्टेनर में रखिए।
5. कै प की सीलिंग डिवाइस को खुली स्थिति में रखकर कन्टेनरपर कसिए। तत्पश्चात् लॉक या बैनट सील लगा दीजिए।
6. कन्टेनर को बाहर से धोइए सूखे कपड़े से पोछ दीजिए।
7. रिकार्ड रजिस्टर में देख-रेख की प्रविष्टी अंकित कीजिये।
8. यथास्थान टांगिये।

प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर का वार्षिक टेस्ट कै से किया जाता है।


उत्तर- 1.एक्सटिंग्यूशर को विधिवत चलाकर देखिए।
2.एक्सटिंग्यूशर की धार 30 सेकण्ड तक 8 मीटर से कम न हो।
3.डिस्चार्ज के पश्चात एक्सटिंग्यूशर को खोलकर भली-भांतिधुलवाइये और चैक कीजिए
कि उसके अन्दर जंग के चिन्ह तो नहीं।
4.यदि जंग लगी दिखाई दे तो प्रेशर टेस्ट कराइये।
5.नियमानुसार दोबारा भरकर टागिये।
6.रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्टि अंकित कीजिए।

प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर का प्रेशर टेस्ट कै से किया जाता है


उत्तर- 1.एक्सटिंग्यूशर के आउटर कन्टेनर में गर्दन तक पानी भरिये।
2.कै प के स्थान पर एडाप्टर लगाकर हाइड्रोलिक प्रेशर टेस्टिंगमशीन से जोड़िये।
3.टेस्टिंग मशीन पर 17.5 किलाग्राम प्रतिवर्ग से.मी. प्रेशरबनाकर ढाई मिनट तक रखिए।
4.यदि इस अवधि में कहीं कोई लीके ज दृष्टिगोचर हो तो समझियेकि एक्सटिंग्यूशर विश्वसनीय नहीं है कण्डम कराइये।
5.यदि कोई लीके ज न प्रकट हो तो एक्सटिंग्यूशर सही है।
प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर के गुणों का वर्णन करो ?
उत्तर- 1. हल्का-फु ल्का होने के कारण एक व्यक्ति सुगमता से चला सकता है।
2."बी" क्लास की आग के लिए उपयुक्त है।
3. इसके चलाने में कोई श्रम (पम्पिंग आदि) नहीं करना पड़ता।
4. छोटी-मोटी तेल की आग बुझाने में सक्षम है। तेल पर तैर करउस तक आक्सीजन नहीं पहुंचने देता है और शीघ्र बुझा देता है।

प्रश्न- फोम एक्सटिंग्यूशर के दोष बताइये ?


उत्तर- 1. एक बार चलाने के पश्चात पूरा खाली करना पड़ता है तथादोबारा भरकर लगाना पड़ता है।
2. बिजली या धातु की आग पर प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
3. जिस तरल पदार्थ पर प्रयोग किया जाता है उसे खराब करदेता है वह प्रयोग के योग्य नहीं रह जाता।
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4. कु छ तरल पदार्थों पर प्रभावकारी भी नहीं रहता है। तरलउसके भागों को ध्वस्त कर देता है। जैसे स्प्रिट, शराब आदि।

प्रश्न- गैस या गैस बनाने वाले तरल एक्सटिंग्यूशरों में कौन-2 से रसायनिक पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं।
उत्तर- 1. कार्बन डाईआक्साइड गैस
2. कार्बन टेट्राक्लोराइड (सी० टी० सी०) (तरल)
3. मैथिल ब्रोमाइड (तरल)
4. क्लोरो ब्रोमो मीयेन (तरल)
5. ब्रोमोक्लोरो डाई फ्लोरो मीथेन (तरल)

प्रश्न- सी० टी० सी० से क्या समझते हो ?


उत्तर- सी० टी० सी० का पूरा नाम कार्बन टेट्रा क्लोराइड है। पानी की तरहद्रव है परन्तु पानी से डेढ़ गुना भारी होता है। यह तरल पदार्थ आग पर पड़तेही तुरन्त
भाप बन जाता है। भाप हवा से 5] गुनी भारी होती है। आग के आस-पास से आक्सीजन को हटाकर स्वयं आग को ढक लेती है और आगआक्सीजन बन्द हो जाने के
कारण घुटकर या स्मदरिंग मैथड से बुझ जाती है।तरल, बिजली का कु चालक होता है। बिजली पर प्रयोग किया जा सकता है। कोईकरन्ट या झटका नहीं लगता।
सी.टी.सी. एक्सटिंग्यूसर(C.T.C. Extinguisher)--  इस प्रकार की फायर एक्सटिंग्यूसर में कार्बन ट्रेटाक्लोराइड तथा ब्रोमोक्लोराइड डाई फ्लोरो मीथेन  भरा
होता है । इसे विधुत की आग बुझाने में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है , क्योंकि इसके रसायन विधुतीय कु चालक होते हैं। इसमें मुँह पर एक हैण्डिल लगा होता है ,
जिसे दबाने पर गैस व तरल तेजी से बाहर निकलता है तथा आग बुझा देता हैं। ध्यान रहे , ये गैसे हानिकारक होती है।

प्रश्न- सी० टी० सी० एक्सटिंग्यूशर कितने प्रकार के देखने मेंआते हैं?
उत्तर- 1. पम्प टाइप।
2. कम्प्रेस्ड गैस काटरिज टाइप।
3. स्टोर्ड प्रेशर टाइप।

प्रश्न- सी० टी० सी० का प्रयोग भारत सरकार ने निषेध करदिया है। क्यों?
उत्तर- सी० टी० सी० से बनने वाली गैस बहुत खतरनाक होती हैं।क्लोरोफार्म की भांति मनुष्य को बेहोश कर देती है। अधिक देर तक इसमें सांसलेने पर आदमी
भर भी सकता है। यह एक जहरीली "फॉस्जीन" गैस भी बनातीहै। पहले विश्व युद्ध में इस गैस के बम प्रयोग किये गये थे।

प्रश्न- कहते हैं सी०टी०सी० एक्सटिंग्यूशर को पानी से नहींधोनाचाहिए,क्यों


उत्तर- सी० टी० सी० का तरल पदार्थ पानी के सम्पर्क में आकर नमक कातेजाव बन जाता है जो कन्टेनर को गला देता है। साथ ही साथ "फॉस्जीन" गैसउत्पन्न
करता है। जो बहुत खतरनाक गैस है।

प्रश्न- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर का वर्णन करो।


उत्तर- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर 'A', 'B', 'C,'D' क्लास की आगबुझाने के लिए उपयुक्त है। सी. ओ. टू . का पूरा नाम कार्बन डाई आक्साइड है।जो
रगरहित, गन्धरहित गैस है। इसकी उपस्थिति में आग जलती नहीं रहसकती। गैस होने के कारण बिजली का झटका भी नहीं लगता। हवा से डेढ़ गुनाभारी होती है।
इसकी गैस को लोहे के मजबूत सिलेण्डर में 744 पौन्ड प्रति वर्गइन्च (5.3 किग्रा प्र० व० से० मीटर) प्रेशर से भर दिया जाता है। सिलैण्डर कोसीलिंग डिस्क या
कन्ट्रोल वाल्व से बन्द रखा जाता है। आग पर फै कने के लिएएक डिस्चार्ज होर्न भी लगा होता है।जब इस यन्त्र को प्रयोग में लाना होता है तब सीलिंग डिस्क को
तोड़ाजाता है। कन्ट्रोल वाल्व को खोला जाता है। ऐसा करते ही डिस्चार्ज होर्न से बड़ीतेजी से गैस बाहर निकलती है। यह बहुत ठण्डी होती है। अतः सर्वप्रथम तोकू लिंग
का प्रभाव डालती है। दूसरे तीव्रता से निकलने के कारण आग के स्थान के आस -पास की हवा व आक्सीजन को धक्का देकर अलग कर देती है और स्वय आग को ढंक
लेती है। आग घुटकर स्मदरिंग मेथड से भी बुझ जाती है। तत्पश्चात गैस, वायु मण्डल में मिल जाती है एवं अपना कोई निशान नहीं छोड़ती।

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प्रश्न- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर की प्रयोग विधि का वर्णन करो


उत्तर- 1.आग लगने पर रखे हुए या टंगे हुए यन्त्र को उतारिये और आग की ओर दौड़िये। निकट पहुचकर।
2.सेफ्टी क्लिप या सेफ्टी पिन निकालिये।
3.हार्न को आग की ओर रखते हुए वाल्व खोलिये, या ट्रिगर दबाइये ऐसा करने से -
4.हार्न से बड़ी तेजी से गैस निकलेगी, आवाज भी होती है।
5. हार्न को आग के निकट से निकट रखते हुए आग बुझाइये। इसकी क्षमता 8’ से 15’ तक है और 10 से 30 सेकण्ड में ही समाप्त हो जाती है।

प्रश्न- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर में डिस्चार्ज होर्न क्यों लगाया जाता है ? अन्य एक्सटिंग्यूशरों की भाँति साधारण नाजुल क्यों नहीं लगाते
उत्तर- सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर में डिस्चार्ज हार्न लगाने के कई कारण हैं। अपनी विशेष बनावट के कारण होर्न-
1. काबर्न डाई आक्साइड की गति घटाकर हवा को कार्बन डाई आक्साइड में मिलने नहीं देता।
2. सिलैण्डर में तगड़े प्रेशर से भरी गैस धीरे-धीरे फै ल कर गैस रूप में ही निकलती है। यदि हार्न न होगा तो गैस एकदम फै लकर ठण्डी होकर नाजुल पर जमने लगेगी।
उसे बन्द कर देगी।
3. हार्न के बगैर कार्बन डाइ आक्साइड का जेट और हवा ब्लो टार्च की तरह काम करते हैं। जिससे आग भड़क सकती है।

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प्रश्न- सी०ओ०टू ० एक्सटिंग्यूशर का सिलैन्डर कितने प्रेशर सेटेस्ट किया होता है


उत्तर- इसका सिलेण्डर 3360 पोन्ड प्रति वर्ग इन्च या लगभग 235 किलोग्राम प्रतिवर्ग सेन्टीमीटर प्रेशर से टेस्ट किया हुआ होता है।

प्रश्न- सी०ओ०टू ० एक्सटिंग्यूशर में क्या-क्या गुण होते हैं


उत्तर- 1.यह अत्यन्त तेजी से काम करता है। तुरन्त प्रभाव डालता है।
2.बिजली की आग पर बेखटके प्रयोग किया जा सकता है।कु चालक होने व गैस होने के कारण करंट लगने का खतरानहीं, बिजली के उपकरण खराब भी नहीं होते।
3.ज्वलनशील पदार्थों की आरम्भिक आग पर प्रयोग की जासकती है।
4.गैस होने के कारण ऐसी जगहों में भी प्रवेश कर जाती हैआसानी से नहीं पहुंचा जा सकता है।
5.स्वच्छता-गैस होने के कारण आग बुझाकर शीघ्रताजाती है और कोई गन्दगी नहीं छोड़ती।

प्रश्न- डिस्चार्ज टयूब से क्या समझते हो


उत्तर- सिलेण्डर के अन्दर वाल्व हेड से सिलैण्डर के पैदे तक एक ट्यूवलगी होती है। गैस के प्रेशर से सी० ओ० टू० तरल रूप में इसी ट्यूब द्वारा डिस्चार्जहार्न
तक आती है। इसी ट्यूब को डिस्चार्ज टयूब कहते हैं।

प्रश्न- कार्बन डाईआक्साइड एक्सटिंग्यूशर के दोष बताइए


उत्तर- 1.एक्सटिंग्यूशर वजन में भारी होता है चार पौण्ड (1.8 कि०)
गैसवाला एक्सटिंग्यूशर 27 पौण्ड (12.5 कि०) का होता है।
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2.देखकर पता नहीं चलता है कि एक्सटिंग्यूशर खाली है या भरा।तौलकर ही पता किया जा सकता है।
3.इसे दोबारा भरने के लिए कम्पनी में ही भेजना पड़ता है।

प्रश्न- सी०ओ०टू ० एक्सटिंग्यूशर की देख-रेख कै से की जाती है


उत्तर- साप्ताहिक देख-रेख :- सोडा एसिड एक्सटिंग्यूशर की भांतिझाड़-पोछ आदि की जानी चाहिए।

मासिक देख-रेख- प्रतिमाह तौलकर देखना। प्रत्येक एक्सटिंग्यूशर कीबाडी पर उसका गैस सहित व गैस रहित भार अकित रहता है। यदि अंकित भारसे 10 प्रतिशत
भी भार कम हो तो उसे दोबारा भरने के लिए कम्पनी भेजना चाहिए। अन्यथा वह लीक होकर खाली हो जायेगा। विश्वसनीय नहीं रहेगा। रिकार्ड रजिस्टर पर भी प्रविष्टि
अंकित करा देना चाहिए।
प्रेशर टेस्ट- यदि एक्सडिग्यूशर पर जंग आदि के चिन्ह दिखलाई पड़े तोदोबारा भरने के लिए कम्पनी भेजते समय कम्पनी से प्रेशर टेस्ट भी कराना चाहिए ,यन्त्र को
210 कि० ग्रा प्रति वर्ग सेन्टीमीटर से टेस्ट कराकर प्रमाण पत्र लिया जाए।

प्रश्न- इन्हीविटरी फै क्टर से क्या समझते हो


उत्तर- प्रज्ज्वलन के लिए जरूरी आक्सीजन की मात्रा कम करके दम घोंटनेके लिए, यह जरूरी नहीं कि के वल गैस ही हो बल्कि हर इस तरह के आग बुझानेके
माध्यम की, हवा के अनुपात में एक निश्चित मात्रा होती है जो हवा में होनेसे आग बुझ जाती है। इसी अनुपात को इन्हीविटरी फै क्टर कहते हैं। जैसेसी०टी०सी० का
15 है अर्थात आग के चारों तरफ की हवा में 15 प्रतिशतसी०टी०सी० हो तो आग बुझ जाती है।

प्रश्न- मैथिल ब्रोमाइड एक्सटिंग्यूशर का संक्षिप्त में वर्णनकरो


उत्तर- मैथिल ब्रोमाइड एक रंगहीन तरल है, जो कि 4.4 डिग्री सेन्टीग्रेडपर उबलने लगता है। इसका बेपर हवा से 3.27 गुना भारी होता है यहजहरीली गैस
होती है। यदि अधिक मात्रा में सूंघ ली जाय तो मनुष्य की मृत्युभी हो सकती है। इसका इन्हीबिटरी फै क्टर लगभग 3.5 प्रतिशत है। यहएक्सटिंग्यूशर प्रायः एक बोतल
की तरह, धातु के बने होते हैं। जिसके अन्दरमैथिल ब्रोमाइड तरल रूप में भरकर 50 पौंड प्रति वर्ग इन्च 3.5 कि० प्र०से० प्रेशरदेकर सील कर दिया जाता है।
एक्सटिंग्यूशर को चलाते समय इसकी सीलिंग डिस्क को तोड़ कर धार द्वारा आग बुझायी जाती है।

प्रश्न- मैथिल ब्रोमाइडके क्या - क्या दोष है


उत्तर- 1. इसकी गैस बहुत जहरीली होती है।
2. इसे भरने के लिए कम्पनी भेजना पड़ता है।
3. दूसरे एक्सडिग्यूशर की तुलना में अधिक मूल्यवान है।
4. इसका भर अधिक होता है।

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प्रश्न- क्लोरोब्रोमो मीथेन एक्सटिंग्यूशर के बारे में संक्षिप्त विवरण दो


उत्तर- सी०बी०एम०एक रंगहीन, शीघ्र उड़ने वाला तरल पदार्थ है।पानी से दुगना भारी होताहै ।इससे निकली हुई गैस हवा से 4.5 गुना भारी होतीहै। इसका
इन्हीबिटरीफै क्टर 10 है,अर्थात्य हवा वायुमण्डल में यदि 10 प्रतिशत भी होगी तो आग बुझ जायगी प्रयोग के समय धार की बजाय फु आर प्रभावी होती है।
सी०टी०सी०,मैथिलब्रोमाइड की तुलना में कम जहरीली होती है। परन्तु फिर भी बन्द स्थान में प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न- क्या -क्लोरो ब्रोमो मीथेन धातु, रबर और प्लास्टिक पर कु छ प्रभाव छोड़ता है
उत्तर- सी०टी०सी०की भाँति क्लोरोब्रोमोमीथेन भी रबर, धातु और प्लास्टिक को खराब कर देती है। बल्कि सी०टी०सी०की तुलना में यह अधिक जल्दी धातु में
जंग लगा देती है।

प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर का संक्षिप्त वर्णन करो


उत्तर- आग पर सूखा पाउडर फें क कर उसे बुझा देता है।"A" "B""C" "D" और "E" क्लास की आग के लिये उपयुक्तहै। पाउडर को एक
गोलाकार(सिलैन्ड्रि कल) कन्टेनर में भर दिया जाताहै तथा कन्टेनरमें ही एक गैसकारिज फिट करके रखाजाताहै। आगबुझाने के लिये उपयोग के समय गैस कार्टरिज को
पंक्चर कर दिया जाताहै। कार्टरिज से निकली गैस पाउडर को नाजुल द्वारा कन्टेनर के बाहर फें कने लगती है। इसी पाउडर को आग पर डालकरआग बुझा देते हैं। मैटल
फायर पर यह जमकर चकत्ता सा बनकर आग को ढकलेता है और आग बुझ जाती है,पाउडर एक्सटिंग्यूसर (Powder Extinguisher)- इनको ड्राई
कै मिकल एक्सटिंग्यूसर   भी कहते हैं।  इसमे कार्बन डाई-आक्साइड या नाइट्रोजन  गैस के साथ  सोडियम बाई कार्बोनेट पाउडर  को आग पर फें क जााता
है। इसका प्रयोग     विधुतीय आग को बुझाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर में पाउडर किस पदार्थ काहोता है


उत्तर- यद्यपि वह व्यापारिक भेद है। परन्तु मुख्यतः सोडियम बाई कार्बोनेटका ही प्रयोग होता है जो विशेष तौर पर बनाया जाता है। बहुत हल्का होता है।कु छ अन्य
रसायन मिलाकर इसे सदैव सूखा ही रखते हैं। इस पर नमी का असरनहीं होने देते। इसीलिए इसे ड्राई कै मिकल पाउडर कहा जाता है।

प्रश्न- ड्राई कै मिकल पाउडर की अन्य क्या विशेषतायें हैं


उत्तर- यह पाउडर नान टाक्सिक है। नान कन्डक्टर आफ इलैक्ट्रिसिटी, नानकरोसिव और 40 डिग्री फारेनहाइट (4.4 से) तक फ्रास्ट प्रूफ है।

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प्रश्न- ड्राइ कै मिकल एक्सटिंग्यूशर को कै से प्रयोग किया जाता है


उत्तर- 1.आग लगने पर ब्रेके ट से उतारिये और आग की ओर दौड़िये।
2.प्लजर में फँ सी क्लिप को निकालिए।
3.प्लंजर नाव पर कसकर हाथ मारिये या जमीन या दीवार परमारिये।
4.राड के अन्दर धँसते ही नाजुल से पाउडर निकलने लगेगा। उसेआग की सतह पर डालिए और आग बुझाइये।
5.यदि नाजुल में स्कवीज ग्रिप व्यवस्था है तो उसे भी दवाइयेताकि पाउडर निकलने लगे।

प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर को कै से भरा जाता है


उत्तर- 1. कै प को खोलिये। प्लंजर डिवाइस चैक कीजिए। रवर वाशरदेखिये। कै प पर बनी चूड़ियों पर हल्का ग्रीस लगा दीजिए।
2.कन्टेनर को साफ कीजिए। अन्दर के भाग को भली भाँति सुखालेना चाहिए।
3.कन्टेनर में ड्राई पाउडर भरिये।
4.इनर कन्टेनर को आउटर कन्टेनर में रखिये।
5. कै प में सेफ्टीक्लिप लगाइये तथा गैस सिलैन्डर फिट कीजिएइसकी चूडियाँ उल्टी (एन्टी क्लाकवाइज) हुआ करती हैं।
6.कै प को सिलैण्डर सहित कन्टेनर पर सावधानीपूर्वक कसदीजिये।
7. एक्सटिंग्यूशर भरने की तिथि अंकित कीजिये।
8.यन्त्र को झाड़ पोंछकर यथास्थान टांग दीजिये।
9. रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्टि अंकित कराइये।

प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर की तिमाही देख-रेख बताओ


उत्तर- 1. कै प खोलिये। गैस कार्टरिज निकाल कर सीलिंग डिस्क चैक कीजिये।
2.कार्टरिज को तौलकर देखिये। यदि अंकित भार से 10 प्रतिशत भार भी कम हो तो कार्टरिज बदलिये।
3.कै प वाशर देखिये। नर्म होना चाहिये। पंक्चर करने वाले पुर्जे सही कार्य कर रहे हैं?उसका स्प्रिंग ठीक है ?
4.इनर कन्टेनर निकालकर पोर्ट होल साफ कीजिये।
5.पाउडर को बाहर निकालकर चैक कीजिए। रोड़ी या दाना जैसातो नहीं पड़ गया। पाउडर जम तो नहीं गया।
6.नाजुल चैक कीजिए। यदि स्कवीज टाइप है तो उसमें तेल मतडालिए। रबड़ पाइप पर फ्रें च चाक मलिये।
7. पाउडर को कन्टेनर में भरिये। इनर कन्टेनर डालिये।
8.कै प में गैस कार्टरिज फिट करो। सैफ्टी क्लिप लगाओ।तत्पश्चात् कन्टेनर पर कस दो।
9. कन्टेनर को झाड़ पोंछ कर यथास्थान टांग दो।
10. रिकार्ड रजिस्टर में प्रविष्ट अंकित कराओ।

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प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर की वार्षिक देख-रेख बताओ
उत्तर- 1.प्रतिवर्ष कु ल एक्सटिग्यूशरों में से 1/5 को चलाकर देखनाचाहिए। यदि खराब चलें तो शेष 4/5 को भी चलाकर देखो।2 किलो वाला 10 से 15
सैकिण्ड तक, 3 से 4.5 मीटर धारफें के 3 किलो वाला 10 से 15 सैकिण्ड तक, 3.5 से 5.5 मीटर तक धार फें के ।
2.टेस्ट के पश्चात् कन्टेनर को भली भाँति सुखाना चाहिए तबदोबारा भरना चाहिये।
3.रिकार्ड रजिस्टर पर प्रविष्टि अकित कर दी जाय।

प्रश्न- ड्राई पाउडर एक्सटिंग्यूशर का प्रेशर टैस्ट कै से कियाजायेगा


उत्तर- 1. प्रति 5 वर्ष बाद एक्सटिग्यूशर को हाइड्रोलिक प्रेशर टेस्टिंगमशीन से टेस्ट करना चाहिये। 31.5 किलोग्राम प्रतिवर्गसेन्टीमीटर प्रेशर ढाई मिनट तक
सहन करना चाहिये।
2. टेस्ट के पश्चात कन्टेनर को भली भांति सुखाना चाहिए तबदोबारा भरना चाहिये।
3. रिकार्ड रजिस्टर पर प्रविष्टि अंकित कर देना चाहिए।

प्रश्न- कै मिकल इंजिन से क्या समझते हो


उत्तर- बड़े आकार के कै मिकल एक्सटिंग्यूशर को कै मिकल इंजिन कहाजाता है। ये दस से तीस गैलन व कभी -कभी 50 गैलन (45 से 135 और
225 लिटर्स ) क्षमता वाले भी होते हैं। सोडाएसिड और फोम टाइप एक्सटिंग्यूशर मेंदो बड़े-बड़े पहिये लगे रहते हैं जिनके द्वारा इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान
तकसुगमता से ले जाया जा सके । तीस फु ट लम्बी डिस्चार्ज पाइप भी लगी होती है।चलाने पर वही प्रतिक्रिया है जो छोटे एक्सटिंग्यूशरों में होती है।

प्रश्न- ए०एफ०एफ०एफ० एक्सटिंग्यूशर से क्या समझते हो


उत्तर- एक प्रकार का फोम टाइप एक्सटिग्यूशर ही है। इसमें ए०एफ०एफ०एफ०का प्रयोग किया जाता है। इस द्रव का पूरा नाम एक्युअस फिल्म फार्मिंगफोम है।
अमेरिका में इसे 'लाइट वाटर'के नाम से भी जाना जाताहै। इसद्रव को पानी में घोलकर एक्सटिंग्यूशर के कन्टेनर में रखा जाता है। इसएक्सटिग्यूशर में भी वाटर टाइप
एक्सटिंग्यूशर की भाँति घोल को बाहर फै कने के लिए गैस कार्टरिज लगा रहता है तथा झाग बनाने के लिए विशेष प्रकार का फोममेकिं ग नाजुल लगाया जाता है।
जब इस यन्त्र को प्रयोग करना होता है तब गैस कार्टरिज को पंक्चर करदेते हैं। गैस , यन्त्र से बाहर निकलने का प्रयास करती है परन्तु कोई मार्ग न पाकरकी सतह को
ही दबाती है और घोल, इस दवाव से नाजुल द्वारा झाग बनाता हुआ बाहरने लगता है। इसी झाग को आग की सतह पर डाला जाता है। झाग, हलका होने के कारण
तरल पदार्थ के ऊपर ही तैरता रहता है साथ ही साथ अपने नीचे तरल की सतह पर पतली फिल्म जैसी बनाता है तथा आग पर आक्सीजन नहीं पहुंचने देता और आग
घुटकर स्मदरिंग मैथड से बुझ जाती है।

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प्रश्न- ए०एफ०एफ०एफ० एक्सटिंग्यूशर को भरने की विधि बताओ


उत्तर- 1. एक्सटिग्यूशर के कै प को खोलकर कन्टेनर को भली भाँतिधुलवाइये। नाजुल साफ कर दीजिये।
2. पांच-छ: लिटर ताजा पानी कन्टेनर में भरिये।
3. रिफिल के साथ प्राप्त ए०एफ०एफ०एफ० तरल को उपरोक्तपानी में घोलिये। यदि लेविल तक न भरे तो पानी डालकर पूराकीजिए।
4. कै प की स्प्रिंगदार प्लंजर को चैक कीजिये। ठीक काम करता है, वाशर यथास्थान है कि नहीं। चूड़ियों पर हलका ग्रीस लगा दीजिये। वेन्ट होल साफ कर दीजिये।
सैफ्टी क्लिप लगा दीजिये।
5.के प में कार्टरिज को फिट कीजिए।
6.कन्टेनर पर कै प को कस दीजिये।
7. कन्टेनर को पानी से धोइये कपड़े से पोंछ दीजिये तथा यथा स्थान टांगिये।

प्रश्न- ए०एफ०एफ०एफ० एक्सटिंग्यूशर को कै से प्रयोग किया जाता है।


उत्तर- 1.आग लगने पर एक्सटिंग्यूशर को ब्रेकिट से उतारिये तथा आगकी और दौड़िये।
2.सेफ्टी क्लिप को निकालिये।
3.प्लंजर नॉव को हाथ से चोट पहुँचाइये नॉव पर चोट पड़ते हीनाजुल से झाग निकलेगा उसी को आग पर बिछने दीजिये।आग बुझ जायेगी।

प्रश्न- बी०सी०एफ० एक्सटिग्यूशर से क्या समझते हो?


उत्तर- बी०सी०एफ० का पूरा नाम ब्रोमो क्लोरो डाइफ्लोरो मीथेन है।इसे हैलॉन 1211 के नाम से भी जाना जाता है।
बी० सी० एफ० एक रंगीन द्रव है जो सामान्य तापमान पर वायु मण्डल में छोड़े जाने पर तेजी से गैस में परिवर्तित हो जाता है। इसकी गैस रसायनिक प्रतिक्रिया द्वारा
आग की लपटों को शीघ्रातिशीघ्र बुझाने में अन्य गैसों की अपेक्षा अधिक सक्षम है। गैस विषाक्त भी नहीं होती। एक किलोग्राम से लेकर 50 किग्रा तक के एक्सटिंग्यूशर
ददेखनमें आते है। बिजली के मोटर, रेडियो, टेलीविजन, इलैक्ट्रॉनिक्स उपकरण, मोटर इंजिन एवं वायुयान की आग के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं।

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होज (HOSEs)

प्रश्न- होज पाइप किसे कहते हैं


उत्तर- नदी, तालाब अथवा फायर हाइड्रेन्ट से, आग के स्थान तक आग बुझाने के लिए पानी पहुंचाने के लिये जिन किरमिच के पाइपों का प्रयोग किया जाता है
उन्हें होज पाइप कहते है।

आग की होजपाइप एक बहुत ही उच्च दबाव वाली नली होती है जिसका उपयोग पानी को आग में ले जाने के लिए किया जाता है। इसमें अग्निरोधी सामग्री भी हो सकती
है। फायर होसेस को या तो फायर इंजन या फायर हाइड्रेंट से जोड़ा जा सकता है, और दबाव 800 और 2000 kPa के बीच होता है। उपयोग के बाद होज़ को
सुखाना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि होज़ में बचा हुआ पानी खराब हो सकता है। नतीजतन, आग के घरों में होसेस को सुखाने के लिए डिज़ाइन की गई बड़ी संरचनाएं
होती हैं।बड़ी क्षमता वाले फायर होज़ कम तापमान पर अधिक पानी ले जाते हैं। यदि नली छोटे व्यास की है, तो उसे उच्च दबाव की आवश्यकता होगी। आग की नली
की प्रभावशीलता निर्धारित करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक नली का व्यास है। फायर होसेस निम्नलिखित विन्यास में निर्मित होते हैं:
 सिंगल जैके ट
 डबल जैके ट
 रबर सिंगल जैके ट
 कठोर रबर गैर ढहने वाले टायर
प्रत्येक प्रकार की आग नली को एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए डिज़ाइन किया गया है

प्रश्न- होज पाइप कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- होज पाइप दो प्रकार के होते हैं-
1.पानी के साधन से पम्पिंग मशीन तक जिस पाइप को प्रयोगकिया जाता है उसे सक्शन होज पाइप कहते हैं
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2.पम्पिंग करने वाली मशीन से आग के स्थान तक जिन पाइपों द्वारापानी पहुंचाया जाता है उन्हे डिलीवरी होज पाइप कहते हैं। सामान्यतः सक्शन होज पाइप को
के वल सक्शन" और डिलीवरीहोज पाइप को "होज पाइप" कहकर पुकारते हैं।

प्रश्न- सक्शन पाइप की बनावट का वर्णन करो


उत्तर- रबर और कै नवास की मदद से गोल पाइप बनाया जाता है। पाइप कीदीवारों को मजबूत बनाये रखने के लिए उसके अन्दर स्टील का कुं ण्डलीकार तार
इसप्रकार डाला जाता है कि पाइप में पानी के लिये मार्ग कम न हो तथा अन्दर की सतहचिकनी भी बनी रहे। इस प्रकार बना हुआ पाइप अन्दरूनी और बाहरी दोनों
प्रकार के दबाव सह सकता है। इसे हाइड्रेन्ट के दबाव युक्त पानी के साथ प्रयोग कर सकते हैंतथा तालाब नदी से कार्य करते समय इसके अन्दर वैक्यूम बनाने पर यह
वायु मण्डलके दबाव को बिना चिपके सहन कर सकता है। सामान्यतः ये 8 से 10 फु ट (2.3 से 3 मी०) लम्बे तथा 3", 4" और 5.5 इंच (75 मि.मी. 100
मि.मी. या 140 मि.मी.)व्यास के हुआ करते हैं। इनके दोनों सिरों पर गन मैटल या अल्मुनियम की स्कू टाइपकपलिंग बंधी होती है , जिनकी सहायता से इन्हें एक
दूसरे से जोड़ा जा सकता है अथवा पम्प में फिट किया जा सकता है।
लचीले सक्शन नली, यूएस में हार्ड सक्शन नली के साथ भ्रमित नहीं होना , एक विशिष्ट प्रकार की फायर नली है जिसका उपयोग मसौदा तैयार करने के संचालन में
किया जाता है, जब एक फायर इंजन पोर्टेबल पानी की टंकी, पूल, या अन्य स्थिर जल स्रोत से पानी खींचने के लिए एक वैक्यूम का उपयोग करता है । 

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प्रश्न- सक्शन की देख-रेख किस प्रकार की जाती है
उत्तर- 1.सक्शन को तालाब टैंक आदि पर प्रयोग करते समय रस्सी का भीप्रयोग चाहिए।
2.सक्शन पर खड़े मत होइये प्रयोग के समय उसके सहारे उउतरनचढ़ना भी नहीं चाहिये।
3.सही नाप का व सही ढंग से सक्शन रिंच का प्रयोग करें।
4.प्रयोग के बाद सक्शन को साफ पानी से धोना चाहिये।
5.सक्शन को कड़ी धूप में पड़ा नहीं रहने देना चाहिये।
6.सक्शन कपलिंग को जमीन पर पटकना या घसीटना नहीचाहिये।
7.सक्शन के अन्दरूनी भाग, कपलिंग की चूड़ियों और कपलिंग वाशरकी जांच करनी चाहिये कि क्षतिग्रस्त तो नहीं हो गये। कपलिंग के नट की चूड़ियों पर हल्का ग्रीस
चुपड़ देना चाहिये।
8.सक्शन के वाशर चैक करते रहना चाहिये। कट-फट या खो तोनहीं गये हैं, आवश्यक हो तो बदल डालिये।

प्रश्न- डिलीवरी होज कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- डिलीवरी होज दो प्रकार के होते हैं
1.साधारण कै नवास होज ।
2.रवर लाइन्ड होज ।

प्रश्न- कै नवास होज कौन-कौन से पदार्थों से बनाये जाते हैं?


उत्तर- होज बनाने में फ्लै क्स, हेम्प, रैमी, काटन, जूट और कृ तिम रेशों, टेरीनऔर प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतः होज पाइप फ्लै क्स द्वारा
बनायेजाते हैं। रबर लाइंड होज, काटन, नायलान व टेरलीन द्वारा बनाये जाते हैं।

प्रश्न- होज की बनावट के बारे में संक्षेप में बताओ


उत्तर- कै नवास होज की बनावट में धागों के दो सेट होते हैं जो एक दूसरे के समकोण बनाते हैं। लम्बाई की दिशा में जाने वाले धागे ताना (वार्प) और गोलाई
मेंजाने वाले बाना भरनी (वैफ्ट) कहलाते हैं। सामान्यतः भरनी में एक साथ मरोड़े हुए 10 से 24 धागे या प्लाई होते हैं। ताने में 3 से 9 तक धागे होते हैं। ताने के
धागों सेहोज टीकाऊपन आ जाता है और भरनी में लगे धागे पानी के दबाव से होज कोफटने से बचाते हैं।

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प्रश्न- होज की बुनाई कितने प्रकार की होती है


उत्तर- दो प्रकार की होती है- (1) प्लेन (2) टू विल

प्रश्न- रबर लाइन्ड होज से क्या समझते हो


उत्तर- इस प्रकार की होज काटन की बनी होती है और इसमें रबर का अस्तरलगा होता है। सर्वप्रथम होज को सादे होज की तरह बुना जाता है। इसके अन्दरकच्चे
रबर का ट्यूव डाल दिया जाता है। इस ट्यूव में दबाव युक्त भाप दी जाती है।इससे रबर का अस्तर होज के अन्दर चिपक कर पूरी तरह पक जाती है। (बल्कानाइज हो
जाता है) इस प्रकार रबर लाइन्ड होज तैयार होती है।

प्रश्न- आर० आर० एल० होज का क्या अर्थ है


उत्तर- यह एक अच्छे प्रकार की रवर लाइण्ड होज है। इसमें रवर के अस्तर को सुदृढ़ बनाने के लिए रवराइज्ड फै ब्रिक, यानी रवर के साथ महीन और मजबूत
कपड़े का भी प्रयोग किया जाता है। यानी रिइनफोडं रवर लाइनिंग प्रयोग की जाती है। Reinforced Rubber Lined होज का ही संक्षिप्त नाम R.R.L होज
है और इसी संक्षिप्त नाम से जानी जाती है। यह साधारण रवर लाइन्ड होज की तुलना में अधिक मजबूत होती हैं।

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प्रश्न- अच्छे होज की क्या विशेषतायें हैं
उत्तर- कम से कम भार हो, लचकदार हो, टिकाऊ हो कम से कम फ्रिक्शनलास हो,कम से कम रिसाव हो, सड़न प्रतिरोधक से उपचारित हो।

प्रश्न- होज खराब होने के मुख्य मुख्य क्या कारण हैं


उत्तर- 1-रगड़ या घिसटन (एब्रेजन) 2-आकस्मिक झटका या धक्का (शाक)
3-फफूँ द (मिलड्यू) 4-रासायनिक पदार्थों से सम्पर्क (कै मिकल कन्टेक्ट) 5-रवर एसिड(रबर एसिड)

प्रश्न- “एब्रेजन” से क्या समझते हो? इससे बचाव के उपायबताइए


उत्तर- "एब्रेजन" का अर्थ होता है होज का घिसटन या रगड़ से खराब होना।रगड़ और घिसटन से बचाने के लिए-
1.होज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए होज को पसीटिये नहीं बल्कि विधिवत उठाकर ले जाइये।
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2.होज को विधिवत फै लाइये। खुरदरी भूमि पर घसीटिये नहीं।
3.ब्रांच के पास काफी होज छोड़ रखिये, ताकि बिना पूरी लाइन घसीटे ब्रांच को आगे बढ़ाया जा सके ।
4.पम्प के पास, दीवार के कोनों मुड़ेर इत्यादि पर रगड़ से बचाने के लिए टाट या बोरी का टुकड़ा प्रयोग कीजिए।
5.गीले होज को भी फै लाते समय विधिवत् फै लाइये। घसीटिये नहीं।
6.लॉकर में रखे होजों को चैक कीजिए। लॉकर के नट-बोल्ट से या दीवार से रगड़ते तो नहीं।

प्रश्न- होज को शाक या झटके से बचाने के लिए क्या सावधानीबरतोगे


उत्तर- 1. होज को सूखा या गीला खाली या भरा पटकिये नहीं।
2. पानी खुलवाने से पहले होज की ऐंठन, गहरे मोड़, आदि निकाल दें।
3. पम्प आपरेटर डिलीवरी वाल्व धीरे-धीरे खोलें, प्रेशर भी धीरे-धीरे बढाये।
4. ऊं चे भवनों पर ले जाते समय रस्सी का प्रयोग करें ताकि रस्सीपर भार रहे।
5. चार्ज होज को ऊं चाई से नीचे न पटखें।
6.सड़क पर फै ले होज पर से मोटर, लारी, ट्रक, बैलगाड़ी आदि ननिकलने दें। होज रैम्प का प्रयोग करें।
7. लपेटे होज की तह ठीक करने के लिए पैरो से खुदिये नहीं।

प्रश्न- होज को मिल्ड्यू या फफूं द से बचाने के उपाय बताये


उत्तर- 1. होज को प्रयोग के पश्चात् साफ करके पूर्ण रूप से सुखाकर ही रखना चाहिए।
2. गीली या नम होज गाड़ी या स्टोर में मत रखिये
3. गाड़ियों में रखे अथवा स्टोर में रक्खे होज को समय-समय पर हवालगाते रहे।
4. स्टोर रूम शुखे और हवादार हो।

प्रश्न- रबर एसिड से क्या समझते हो


उत्तर- के वल रबर के अस्तर लगे होज रबर एसिड द्वारा खराब होते हैं। वरबनाने में सल्फर (गन्धक) का प्रयोग किया जाता है। जब कभी प्रयोग के बाद वरलाइन्ड
होज के अन्दर कही थोड़ा बहुत पानी रह जाता है और होज को पानी सहितकु छ समय तक रखा रहने दिया जाता है तो इस पानी के सूक्ष्माणु रबर में से गन्धकनिकालने
लगते है, पानी में यह गन्धक मिलकर कमजोर किस्म का गन्धक का तेजाबबनाने लगता है। इसी को रबर एसिड कहते है। पानी धीरे-धीरे सूखने लगता हैसब तेजाब की
मात्रा बढ़ने लगती है। होज से जब यह तेजावी पानी बाहर निकलता हैऔर होज के जैकट या निकटवर्ती अन्य होज के सम्पर्क में आता है तो होज इसतेजाबी पानी के
प्रभाव से उस स्थान पर कमजोर पड़ जाता है। इस प्रकार के दूषितहोज पर पीले या भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
रबर एसिड से बचाव के लिए होज को प्रयोग के पश्चात् पूर्णरूप से खालीकरके व सुखाकर रखना अनिवार्य है।

प्रश्न- कै मिकल कन्टैक्ट से होज खराब होने से बचाने के उपायबताइये


उत्तर- 1. होज को ग्रीस, तेजाब के सम्पर्क में आने से बचाइये।
2. तेल संयन्त्रों तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों में आग बुझाते समय जहाँतक सम्भव हो तेल जैसे पदार्थों से बचाइये।
3.चिकनाई से सने होज को गुनगुने पानी में साबुन और सोडाघोलकर अच्छी तरह रगड़कर साफ कीजिए। तत्पश्चात्ठण्डेपानी में खंगालिये।
4.चिपचिपाती रबर, ग्रीस इत्यादि को लकड़ी के बुरादे से तथा नर्म ब्रश से साफ कीजिए।
5. तेजाब या क्षार से दूषित होज को साफ पानी में खंगालकर धुलवाइए।
प्रश्न- होज रील ट्यूविंग से क्या समझते हो
उत्तर- होज रील में लगने वाला होज, "होज रील ट्यूविंग" कहलाताहै। यह 3/4 इंच डाइमीटर का न रिसने वाला होज होता है। सामान्यतः इसमें एकअन्दर का
ट्यूब या अस्तर होता है। अस्तर को मजबूत बनाने के लिए उस पर रबरचढ़े कपड़े की कई पर्ते घुमावदार लपेटी जाती है। उसके ऊपर घर्षण प्रतिरोधक रबर का एक
खोल चढ़ा दिया जाता है तथा इन सबको एक साथ पका दिया जाता है।यही होज पाइप एक रील पर लपेट दिया जाता है और यही होज रील ट्यूबिग कहलाता है।

प्रश्न- साफ्ट सक्शन किसे कहते हैं


उत्तर- हाइड्रेट से कार्य करते समय जब कभी डिलीवरी होज़ को एडाप्टरों की सहायता से सक्शन की भांति प्रयोग किया जाता है तब उसे साफ्ट सक्शन कहा
जाताहै। साफ्ट सक्शन की लम्बाई 20-30 फीट या 6 से 10 मी० है जो पुरानी होज सेकाटकर बना ली जाती है। इसके निम्न लाभ है-
1.सस्ती होती है। 2.फै लाने में आसानी होती है।
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3.मशीन पर रखना आसान होता है। 4.पम्प आपरेटर का नियन्त्रण
सुविधापूर्वक होता है।

प्रश्न- होज का स्टेन्डर्ड टेस्ट कब और कै से किया जाता है


उत्तर- प्रत्येक आग पर प्रयोग होने के पश्चात् या साल में एक बार हो का स्टेण्ड टैस्ट करना चाहिए।
1.टैस्ट करते समय ब्रांच पर 1/2 (12 मि.मी.) साइज का नाजुलप्रयोग करना चाहिए।
2.कै नवास होज को 100 से 120 पौन्ड प्रतिवर्ग इंच (7 से 8.1 कि.प्र० व० से०मी०) प्रेशर से टेस्ट किया जाता है।
3. रबर लाइड होज की 130 से 150 पौन्ड प्रतिवर्ग इच (9.1 से 10.5 कि० प्र० व से० मी०) से टेस्ट किया जाता है।
4. होज रील ट्यूबिग को 120 पौन्ड प्रतिवर्ग इंच (8.4 कि० प्र० व o से० मी०) प्रेशर से टेस्ट किया जाता है।
5. प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए ताकि होज तनाव सहन कर सके ।
6. होज के कपलिंग में वाशर और लग इत्यादि भी देखना चाहिए। लगों में आयल के न से तेल डाल देना चाहिए।
प्रश्न- रबर लाइन्ड और कै नवास होज में क्या अन्तर है
उत्तर- कै नवास होज रवर लाइन्ड होज
1.फ्लै क्स की बनी होती है। 1.काटन व नइलॉन से बनी होती है। अन्दर की ओर रवर का अस्तर लगा होता है
2.हल्की होती है। 2.भारी होती है।
3.पानी रिसता है। 3.पानी नहीं रिसता।
4.अन्दर से खुरदरी होती है। 4.अन्दर से चिकनी होती है।
5.रबर लाइन्ड की अपेक्षा 5.कै नवास होज की अपेक्षा अधिक मूल्य की होती है
मूल्य में सस्ती होती है।
प्रश्न- होज में वर्नटाइजिंग के क्या अर्थ होते हैं
उत्तर- होज को "मिल्ड्यू" या फफूं द से बचाने के लिए "फ्लै क्स" के रेशे को "जिंक क्लोराइड" से उपचारित करते हैं। इससे मिल्ड्यू की सम्भावना कम हो जाती
है तथा नर्मी और लचीलापन भी आ जाता है। इसी उपचार को वर्नटाइजिंग कहते हैं।
प्रश्न- होज में "स्नेकिं ग" के क्या अर्थ होते हैं
उत्तर- जब होज में से पानी दबाव के साथ जाता है। उसके धागों में तनाव पड़ता है और होज सांप की तहर टेढा मेढ़ा हो जाता है। इसकी लम्बाई भी कु छ बढ़
जाती है। इसी को "स्नैकिं ग" कहते हैं।

होज फिटिंग्स

प्रश्न- होज फिटिंग्स से क्या समझते हो


उत्तर- होज पाइप को प्रयोग करते समय कु छ अन्य सहयन्त्रों की भीआवश्यकता होती है। जैसे- कपलिंग, ब्रांच, एडाप्टर, ब्रीचिंग इत्यादि इन यन्त्रोंको ही होज
फिटिंग्स कहते हैं।
Fire Hose Couplings

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प्रश्न- कपलिंग किसे कहते हैं


उत्तर- दो होज पाइपों को एक दूसरे में जोड़ने अथवा होज में किसी अन्यउपकरण को जोड़ने के लिए जिस उपकरण को प्रयोग करते हैं उसे कपलिंग कहतेहै। पूरी
कपलिंग दो भागों में होती है -एक मेल कपलिंग व दूसरी फीमेलकपलिंग कहलाती है।
nstantaneous Fire Couplings

प्रश्न- मेल कपलिंग किसे कहते हैं


उत्तर- कपलिंग का वह भाग जो दूसरी कपलिंग के अन्दर फिट होता है,मेल कपलिंग कहलाता है।

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Instantaneous Couplings Availability

प्रश्न- फीमेल कपलिंग किसे कहते हैं


उत्तर- कपलिंग का वह भाग जो दूसरी कपलिंग को अपने अन्दर फिटकरता है या दूसरी कपलिंग के ऊपर फिट हो जाता है फीमेल कपलिंगकहलाता है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
Female Fire Coupling x Hose Tail

  

प्रश्न- कपलिंग जोड़ कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर - 1. स्क्रू टाइप या चूड़ीदार कपलिंग
2. इन्सटानटैनियस या तत्काल जुड़ने वाली या खटके दार कपलिंग।

प्रश्न- स्क्रू टाइप कपलिंग के क्या अर्थ है ? यह कहाँ कहाँ प्रयोग होती है
उत्तर- चूड़ीदार कपलिंग को स्कू टाइप कपलिंग कहते हैं। इस प्रकार की कपलिंग के दोनों भागों में चूड़ियों बनी होती है। मेल कपलिंग में ऊपर की ओर तथा फीमेल
कं पलिग में अन्दर की ओर चूड़ी बनी होती है। इन्हीं चूड़ियों द्वारा दोनों भागों को एक दूसरे से जोड़ा जाता है। सक्शन होज में स्क्रू टाइप कपलिंग होती है

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प्रश्न- इन्सटानटेनियस कपलिंग के क्या अर्थ होते हैं ? कहाँ प्रयोग होती है
उत्तर- तत्काल जुड़ने ताली कपलिंग इन्सटानटेनियस कपलिग कहलातीहै। इस प्रकार की कपलिंग में चूड़ियों न होकर विशेष बनावट होती है। मेलकपलिग सपाट
व ढलवा बनकर सिरे पर गोलाई लिए होता है तथा फीमेलकपलिंग सपाट होती है, परन्तु इसके अन्दर एक या दो स्प्रिंगदार दाँत लगे होतेहै जो मेल कपलिग की सिरे
की गोलाई (लिप) को पकड़ लेते है और वापस नहींहोने देते, बल्कि एक घूँटी की मदद से इसे छु ड़ाया जाता है। खूंटी को लग कहतेहै। यह कपलिंग तत्काल जुड़ जाती
है। डिलीवरी होज में इन्सटानटेनियस कपलिंगही प्रयोग की जाती है।

प्रश्न- सक्शन रिंच किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- सक्शन होज की कपलिंग को कसने के लिए व खोलने के लिए जिसउपकरण को प्रयोग किया जाता है उसे सक्शन रिंच कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(1) कन्वेंशनल तथा (2) यूनिवर्सल ।

प्रश्न- कन्वेंशनल और यूनिवर्सल सक्शन रिंच में क्या अन्तर होता है


उत्तर- कन्वेंशनल रिंच पुराने टाइप का रिच है। लोहे की मोटी छड़ के एक ओर गोल छेद बना होता है, जिसे कपलिंग के लग में फं साकर कपलिंग को कसते और
खोलते हैं। हर साइज के कपलिंग के लिए अलग-अलग साइज का सक्शन रिच होता है। यूनिवर्सल सक्शन रिच आधुनिक एवं विकसित सक्शन रिंच है। इसमें विशेषता
यह है कि हर साइज के कपलिंग के साथ प्रयोग किया जा सकता है।
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प्रश्न- ब्राँच पाइप किसे कहते हैं


उत्तर- ब्राँच (जैसा कि सामान्यतः पुकारा जाता है) धातु का बना वहविशेष उपकरण है जो होज पाइप के अन्तिम सिरे पर कपलिंग से जोड़ दिया जाताहै। इससे
पानी की गति (वेलोसिटी) तेज हो जाती है और आग पर प्रभावकारीपार या फु आर फें की जा सकती है।ब्रांच में एक ओर इन्सटानटेनियस मेल कपलिंग बनी होती है
तथा दूसरीओर गोलाई छोटी होते-होते 1.75”इन्च (45 मि०मी०) पर चूड़ीदार मेल सिराहोता है। इन्हीं चूड़ियों पर नाजुल फिट कर दिया जाता है। नाजुल की
गोलाई भीभीतर धीरे-धीरे कम होकर अन्त में उतनी रह जाती है जितने से उस नाजुल कोया नाजूल की धार को जाना जाता है।

प्रश्न- ब्रांच कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- ब्रावों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा जाता है-
1. वे ब्रांच, जो धार के रूप में पानी फें कते हैं। इन्हें ब्रांच पकड़नेवाला नियन्त्रित नहीं कर सकता। “आर्डिनरीब्रांच" कहलातेहैं।
2. वे ब्राव, जिनमें नियन्त्रण के साधन होते हैं। ब्राचमैन धार कोफु हार के रूप में या फु आर को विभिन्न रूप में या बन्द भी करसकता है।
3.वे.जो होज रील के साथ प्रयोग किये जाते हैं।

प्रश्न- लन्दन पेटर्न हैण्ड कन्ट्रोल ब्रांच किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष ब्रांच है। ब्रांच मैन इसे स्वतन्त्र रूप से नियन्त्रित करके धार , फु आर या दोनों बना सकता है। फु आर को कु छ हद तक किसी भी इच्छितकोण पर
लाया जा सकता है। धार को बन्द भी किया जा सकता है।

प्रश्न- डिफ्युजर ब्रांच किसे कहते हैं


उत्तर- एक हस्त नियन्त्रित है। इससे कम या ज्यादा उग्रता वाली फु हार बना सकते है। धुएं को हटाने के लिए कमरे के वातावारण को ठण्डा करने के लिए अत्यन्त
उपयोगी है।

प्रश्न- फाग ब्रांच किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार का प्राँच है। इसकी कु आर बहुत महीन कोहरेके रूप में होती है। जिससे तेल की आग भी बुझा सकते है इस ब्रांच में भी हैण्डकन्ट्रोल होता
है। आवश्यकतानुसार पानी को धार के रूप में या महीन कोहरे के रूप में बदला जा सकता है।इस प्रकार के बीच में एक पाइप जैसा लगाकर उसके सिरे से फु आर
(फाग)फै का जा सकता है। इस पाइप को फाग एप्लीके टर कहते हैं।

प्रश्न- रिवाल्विंग ब्राँच किसे कहते हैं

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उत्तर- एक विशेष प्रकार का ब्रांच है इसके घूमने वाले हैड पर अलग-अलगकोण बनाते हुए जैट बने होते हैं। हैड छरों वाली बेरिंग पर पानी के दबाव सेघूमता है और
चारों ओर ऊपर नीचे पानी फें कता है। तहखानों की आग, जहाजके शिप होल्ड की आग के लिए यह उपयोगी है।

प्रश्न- गूजनेक ब्राँच किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार का ब्राँच है जो पोर्टेबुल डैम या टैंक भरने के लिएबनाया गया है। अंग्रेजी के "U" के आकार में होता है जो टैंक में हुक की भाँतिलटकाया
जा सकता है।

प्रश्न- डक फु ट ब्राँच किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार का ब्राँच होता है। इसका नाजुल चपटा होता है।जिससे चपटी या चौड़ी धार निकलती है। इस धार से आग के पास स्थित अन्यवस्तुओं ,
जैसे बड़ी-बड़ी टंकियों को ठण्डा किया जाता है।

प्रश्न- रेडियल ब्राँच किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष आकार प्रकार का ब्राँच है जो बड़ी-बड़ी आगों पर अधिक परिमाण में पानी फें कने के काम आता है। इस बीच के (370 मि.मी.) 2 (50
मि.मी.) व्यास के नाजुल होते हैं। इन्हें मैन सामान्यतः नियन्त्रित नहीं कर सकता है अतः इसके साथ अन्य साज सामान भी रहता है। जो इसे भूमि पर स्थिर रखता है
और एक हत्थे द्वारा इसे ऊँ चा नीचा दाहिने बायें किया जा सकता है।

प्रश्न- मानीटर किसे कहते हैं


उत्तर- “मानीटर” भी एक प्रकार का ब्रांच है। इन्हें उस परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है , जब धार के रूप में अधिक पानी फें कने की आवश्यकता हो इसमें भी
2" या 2.5" इन्च (50 से 63 मि० मी०) साइज के नाजुल होते हैं। असीमित परिमाण में पानी मिलने पर मानीटर से 100 पौण्ड प्रति वर्ग इंच (7 कि० प्र० प०
से०) प्रेशर से 3.5”इन्च (87 मिमी0) नाजुल से 3000 गैलन (13500 लीटर्स) प्रति मिनट तक पानी फें का जा सकता है।

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प्रश्न- मानीटर कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- मानीटर दो प्रकार के होते हैं
1. फिक्सड 2. पोर्टेबुल

प्रश्न- ब्राँच होल्डर किसे कहते हैं


उत्तर- ब्रांच के भार और उसकी प्रतिक्रिया (जैट रिएक्शन) को सम्भालने के लिए ब्रांच पकड़ने वाले की सहायता के लिए विशेष उपकरण बनाये गये है जो ब्राँच
होल्डर कहलाते हैं। कु छ ब्रांच होल्डर इस प्रकार के भी होते हैं जिन्हें किसी स्थान पर लगाकर अके ला भी छोड़ा जा सकता है

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प्रश्न- नाजुल किसे कहते हैं


उत्तर- यह धातु का बना उपकरण है। ब्रांच के अन्तिम सिरेपर लगाया जाता है। इसके अन्दर की सतह चिकनी और गोलाई धीरे -धीरे कम होकर उतनी रह जाती है
जितनी मोटी धार फें कनी हो, इसका ब्रांच में फिट होने वाला भाग चूड़ीदार होता है। कसने खोलने में सुविधा के लिए 6 पहलू बने होते हैं ताकि स्पेनर प्रयोग किया जा
सके । वैसे हाथ से भी कसा खोला जा सकता है।

प्रश्न- नाजुल किस-किस आकार के होते हैं


उत्तर- स्टैन्डर्ड नाजुल 3/16", (4.45 मि०मी०), 1/4" (6 मि०मी०) 5/16", 3/8",1/2",(12.5 मि० मी0), 5/8" ( 16 मि० मी०),
3/4" (19 मि०मी0), 7/8” (22 मि०मी0),1" (25 मि०मी०), 11/8" (28.12 मि० मी०),11/4" (31 मि० मी०) साइज तक के देखने में
आते हैं।

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प्रश्न- “बर्कि न्ग नाजुल” किसे कहते हैं


उत्तर- उसे कहते हैं जो आग पर सबसे पहले काम में लाई जाने वाली ब्रांच पर लगा रहता है। सामान्यतः यह 3/4" (19 मि०मी०) का होता है। लेकिन
स्थानीय परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है और कम या अधिक भी हो सकता है।
प्रश्न- "बेसमेन्ट स्प्रे" किसे कहते हैं
उत्तर- यह भी एक विशेष प्रकार का नाजुल होता है जो ब्राँच पर फिट कर दिया जाता है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि इसकी फु आर चारों ओर गिरती है।
बेसमेन्ट स्प्रे तहखानों की आग और जहाज के शिप होल्ड की आग पर प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न- "एलवो फार नाजुल" से क्या समझते हो


उत्तर- धातु का बना होता है जिसे ब्रांच और नाजुल के बीच में लगाया जाता है ताकि पानी की धार ब्रांच से समकोण बनाती हुई फें की जा सके । सीढ़ी पर से ब्राँच
प्रयोग करने में उपयोगी होता है। तहखानों व शिप होल्ड की आग पर भी उपयुक्त होता है।
प्रश्न- ब्रीचिंग कितने प्रकार की होती है
उत्तर- दो प्रकार की होती है
1- डिवाइडिंग ब्रीचिंग 2 क्ले क्टिंग ब्रीचिंग

प्रश्न- डिवाइडिंग ब्रीचिंग किसे कहते हैं, कहाँ काम आती है


उत्तर- इसका कार्य एक लाइन को दो लाइनों में बाँटना है। इस उपकरण ओर ढाई इंच (63 मि० मी०) डाइमीटर की इन्सटानटैनियस मेल कपलिग एक तथा
दूसरी ओर ढाई इंच (63 मि० मी०) डाइमीटर की दो इन्सटानटेनियस फीमेल कपलिंग होती है।
किसी बड़ी आग को बुझाने के लिए, यदि ब्राँच पर अधिक प्रेशर मिल रहा है तो इस यन्त्र द्वारा एक लाइन से दो लाइन कर ली जाती है ताकि दो ओर सेआग बुझायी जा
सके ।

प्रश्न- कन्ट्रोल डिवाइडिंग ब्रीचिंग किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रकार की डिवाइडिंग ब्रीचिंग में एक वाल्व के माध्यम से एकया दो आउट लेट से पानी को नियन्त्रित करने की सुविधा होती है। फलस्वरूपहोज की
लाइन को बन्द किये बिना कोई भी लाइन बन्द करके कार्य करती होजको बढ़ाया या घटाया जा सकता है।

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प्रश्न- कलैक्टिंग ब्रीचिंग किसे कहते हैं? क्या काम आती है


उत्तर- इस उपकरण का काम दो होज लाइनों से आते हुए पानी को जमाकरके एक होज में से निकालना है। अतः इसमें दो इनलेट (प्रवेश द्वार) और
एकआउटलेट (निकास द्वार) होता है। दोनों इनलेटों पर ढाई इंच (63 मि० मी०)डाइमीटर की इन्सटानटेनियस मेल कपलिंग और आउट लेट पर ढाई इंच (63
मि०मी०) डाइमीटर की इन्सटानटेनियस फीमेल कपलिंग लगी होती है।

प्रश्न- एडाप्टर किसे कहते हैं


उत्तर- दो विभिन्न आकार प्रकार के या एक ही आकार प्रकार के कपलिंगोंको जोड़ने या अन्य किसी उपकरण को जोड़ने के लिए जिस यन्त्र को प्रयोग किया जाता
है उसे एडाप्टर कहते हैं।
ये भी धातु के बने होते हैं। इनके दोनों सिरों पर कपलिंग बनी होती हैं। औसतन 4" (100 मि0 मी0) से 6" (150 मि० मी०) लम्बे होते हैं और एक ही टुकड़े में
ढले होते हैं।

प्रश्न- डिलीवरी एडाप्टर किसे कहते हैं? कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- डिलीवरी होज की कपलिंगों के साथ ये प्रयोग होते हैं जैसे
1.एक ही तरह की कपलिंगों के दो फीमेल, या दो मेल, कपलिंगोको जोड़ने वाले मेल टु मेल या फीमेल टु फीमेल एडाप्टर।
2.भिन्न प्रकार की कपलिंगों को जोड़ने वाले एडाप्टर जैसे- राउण्ड थ्रेड से इन्सटानटेनियस, वी थ्रेड से इन्सटानटेनियस कपलिंग जोड़ने के लिए एडाप्टर।

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प्रश्न- सक्शन एडाप्टर किसे कहते हैं


उत्तर- डिलीवरी होज को हार्ड सक्शन या पम्प इनलेट पर जोड़ने के लिएइस एप्टर का प्रयोग किया जाता है। इसमें एक ओर ढाई इंच (63 मि०मी० )मीटर की
मेल इनसटानटेनियमस कपलिंग होती है तथा दूसरी ओर 3', 4"या 5" (75-100-125 मि.मी.) डाइमीटर की स्क्रू टाइप फीमेल कपलिंग होती है।

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प्रश्न- क्लै क्टिंग हेड एडाप्टर किसे कहते हैं।
उत्तर- इस एडाप्टर में एक ओर ढाई इंच इमीटर की फीमेल इन्सटानटेनियसकं पलिंग होती है तथा दूसरी ओर 3", (75 मि० मी०) 4, (100 मि०मी० ),
या(125 मि० मी०) डाइमीटर की स्क्रू टाइप मेल कपलिंग होती है।

प्रश्न- क्ले क्टिंग हेड किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष उपकरण है जो गन मैटल या अल्युमिनियम अलॉय का बना होता है इसमें एक ओर 3. (75 मि०मी०), 4 (100 मि0 मी०) या
5"(125 मि० मी०) डाइमीटर की स्क्रू टाइप फीमेल कपलिंग होती है जिसके द्वारा इसे पम्प के इनलेट पर या सक्शन पर फिट किया जा सकता है। दूसरी ओर दो
या दो सेअधिक ढाई इंच व्यास की इन्सटानटेनियस मेल कपलिंग होती है। इन कपलिगों में नान रिटर्न वाल्व की ऐसी व्यवस्था रहती है कि इनके द्वारा पानी के वल हेड
में जा सकता है वापस नहीं आ सकता।
जब एक ही पम्प पर कई हाइड्रेन्टों से पानी लेना होता है तब इस उपकरण को पम्प इन्लैट पर फिट कर देते हैं। यदि किसी हाइड्रेन्ट में कम प्रेशर भी है तो नान रिटनिंग
वाल्व व्यवस्था से पानी वापस नहीं आ सकता।
पम्प के प्राइमिंग सिस्टम के फे ल हो जाने पर कलैक्टिंग हेड लगाकर चार्ज करके प्राइमिंग किया जा सकता है।
तेज बहती हुई नदी नाले में सक्शन को डू बा रखने के लिए मैटल स्ट्रैनर प्रयोग किया जा सकता है। यहाँ पम्प इनलेट पर कोनिकल स्ट्रैनर का प्रयोग करना होगा।

प्रश्न- मैटल स्ट्रेनर किसे कहते हैं


उत्तर- नदी या तालाब से कार्य करते समय सक्शन के उस सिरे पर बांध दिया जाता है जो पानी में डाला जाता है। ताकि पम्प में पानी छनकर जाये और कोई
ठोस वस्तु न जाने पाये।
यह गन मेटल या ताँबे का बना होता है। छोटे -छोटे इतने छेद बने होते हैं कि सक्शन होज की अधिकतम क्षमता में कमी न आये। साथ ही लकड़ी पत्थर और ठोस
वस्तुएँ सक्शन में घुसने न पायें। इसमें एक स्क्रू टाइप फीमेल कपलिंग होती है जिससे सक्शन पर कसा जा सकता है।
प्रश्न- बास्के ट स्ट्रेनर किसे कहते हैं

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उत्तर- यह मैटल स्ट्रेनर के साथ ही प्रयोग किया जाता है। रेत कीचड़ आदि में मेटल स्ट्रेनर को धँसने से बचाता है। पत्थर, चट्टान आदि की चोट से भी बचाता है।
बेत की टोकरीनुमा बना होता है। एक ओर खुला रहता है जिसमें से मैटल स्ट्रेनर इसके अन्दर कर दिया जाता है। कै नवास की एक घंघरिया (स्कर्ट) इस सिरे पर सिली
होती है। उसी की डोरी से इसे सक्शन पर कस दिया जाता है।

प्रश्न- फु ट वाल्व किसे कहते हैं


उत्तर- सक्शन पर मैटल स्ट्रैनर के स्थान पर कभी -कभी फु ट वाल्व प्रयोग किया जाता है इसमें नान रिटर्निंग वाल्व की व्यवस्था होती है जो पानी को सक्शन में
आने तो देता है परन्तु वापस नहीं जाने देता।
पम्प के प्राइमिंग सिस्टम में यदि कोई त्रुटि हो जाय तो इस उपकरण द्वारा सक्शन को चार्ज करके पम्पिंग की जा सकती है।

प्रश्न- स्टैण्ड पाइप किसे कहते हैं ? कहाँ प्रयोग होता है


उत्तर- ग्राउण्ड हाइड्रेन्ट के आउटलेट को जमीन से ऊपर तक बढ़ाने के लिए स्टैण्ड पाइप की आवश्यकता पड़ती है।
तांबे के मोटे पाइप पर एक ओर ढलाई किया हुआ आधार होता है जिसमें स्क्रू टाइप फीमेल कपलिंग बनी होती है उसी के द्वारा इसे हाइड्रेट के आउटलेट पर फिट
किया जाता है। पाइप के दूसरी ओर स्टैन्ड पाइप हैड बना होता है जिसमें एक या दो 25" (63 मि० मी) डाइमीटर की इन्सटानटेनियस फीमेल कपलिंग लगी होती
है। इसमें डिलीवरी होज या सक्शन एडाप्टर के साथ सक्शन, फिट किया जा सकता है। हैड को किसी भी ओर घुमाया भी जा सकता है।

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प्रश्न- ब्लैक कै प किसे कहते हैं


उत्तर- किसी इनलेट या आउटलेट को बन्द करके रखने के लिए ब्लैक कै प प्रयोग करते हैं। एक जंजीर द्वारा उपकरण के साथ ही बंधा रहता है।

Female Fire Coupling x Blank Cap

     

प्रश्न- होज रैम्प किसे कहते हैं

उत्तर- होज पाइप के ऊपर से भारी गाड़ियाँ, मोटरकार आदि निकालने के लिए इस उपकरण की आवश्यकता पड़ती है। होज रैम्प लकड़ी अथवा धातु के बने होते
हैं। इनकी बनावट ऐसी होती है कि इससे होज के दोनों ओर ढलवाँ रास्ता बन जाय और उसमें इतनी गुंजाइश रहे कि गाड़ी के पहिये पानी से भरी होज लाइन को न
छु यें। इसके ऊपर से गाडियाँ सुरक्षित रूप से आ जा सकती हैं।

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स्माल गेयर्स

प्रश्न- स्माल गेयर्स किसे कहते हैं


उत्तर- फायर सर्विस में कु छछोट- यन्त्र उपकरण ऐसे भी हैं जिनको फायर फाइटिंग के समय शीघ्रता एवं सुविधा पूर्वक कार्य करने के लिए प्रयोग किया जाताहै ।
इन्हें स्माल गेयर्स कहतेहैं।

प्रश्न- अध्यय हेतु स्माल गेयर्स को कितने ग्रुपों में रख कर याद करते हैं
उत्तर- स्माल गेयर्स को सात ग्रुपों में बाँटा गया है।
1-ब्रेकिं ग इन टूल्स (तोड़-फोड़ करने के लिए यन्त्र)
2-कटिंग इन टू ल्स (काटने वाले यन्त्र)
3- रेस्क्यूगेयर्स (जीवन रक्षा में काम आने वाले यन्त्र)
4-लाइट्स (प्रकाश व्यवस्था के लिए यन्त्र)
5-टर्निग ओव रटू ल्स (उलट-पुलट करने वाले यन्त्र)
6- ट्रांसपोर्ट टू ल्स (मोटरगाड़ीके साथरखनेवालेयन्त्र)
7-मिस्लेनियस एण्ड स्पेशलइक्यूपमेन्ट (विविधएवंविशेषयन्त्र)

प्रश्न- ब्रेकिं ग इन टू ल्स से क्या समझते हो? इनमें कौन-कौन सेयन्त्र आतेहैं ?
उत्तर- वे उपकरण जिनको दरवाजे खोलने, तोड़ने, खिड़कियों खोलने लोहे की छड़ें, जंजीर, ताले इत्यादि तोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है ब्रेकिं ग इन
टू ल्सकहलातेहैं।जैसे-हैमर (हथोड़ा), चीजल (छैनी), शीयर,कैं ची,लार्जएक्स(बड़ीकु ल्हाड़ी), क्रोबार (सब्बल), बोल्टकटर, डोरब्रेकर,
परसुण्डरपैडलाकरिमूवरइत्यादि।

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प्रश्न- कटिंग अवे टू ल्स से क्या समझते हो? इनमें कौन-कौनसेयन्त्रआतेहैं।


उत्तर- वे यन्त्र जिनको किसी वस्तु को काटने के लिए प्रयोग किया जाताहै।कटिंगअवेटूल्सकहलातेहैं।
जैसे-सॉ (आरी), चीजेल वुड (रुखानी), फाइल्स (रेती), हे नाइव्ज (घासकाटनेवालीदराती), ड्रि ल्स (बर्मे), ऑगर (बर्मा), ब्रेसएण्डबिट
(लकड़ीकाबर्मावगज) इत्यादि।

प्रश्न- रेस्क्यू गेयर्स से क्या समझते हो? इसमें कौन-कौन सेयन्त्रआतेहैं


उत्तर- ऐसे उपकरण जिनका प्रयोग जीवन रक्षा करते समय किया जाताहै रेस्क्यू गेयर्स कहलाते हैं। जैसे-
जम्पिंग शीट, ब्रेक ब्लाक, रबर ग्लब्ज, एजबेस्टस ब्लैंकिट, एजबेस्टस सुट,क्विकरिलीजनाइफ, सिलिंग, फायरमैनएक्स, रबरचप्पल, स्वरमैटसऔरइनसुलेटेड
प्लायर्स इत्यादि ।

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प्रश्न- टर्निंग ओवर टूल्स से क्या समझते हो , कौन-कौनसे यन्त्र इसमें आते हैं
उत्तर- आग बुझाते समय मलवे कचरे को उलट-पलट कर दबी हुई आग को खोज कर बुझाने या पानी को काट कर उस तक पहुँचाने के लिए प्रयोग किये
जाते हैं। वेटर्निंग ओवर टू ल्स कहलाते हैं।जैसे-पिक एक्स, शावेल, मटक (कु दाल), स्पेड (फावड़ा) सीलिंग हुक, शाड लीवर स्टील शाडवुडन लोवर, स्टैकड्रैग,
ड्रैगहुक और पिच फोर्क इत्यादि।

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प्रश्न- ट्रांसपोर्ट टूल्स से क्या समझते हो? इसमें कौन-कौन सेटू ल्स होते हैं
उत्तर- मोटरगाड़ी की मरम्मत में प्रयोग आने वाले टू ल्स को ट्रांसपोर्ट टू ल्स कहते हैं। जैसे- जैक मय हेन्डिल, स्क्रू रिंच स्कु ड्राइवर, स्पेनर्स आपलकै न ग्रीसगन,
टायर लीवर, व्हील ब्रेस, प्लायर्स और मैगनेट रिच सैट इत्यादि।

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प्रश्न- मिसलेनियस एण्ड स्पेशल इक्यूपमेण्ट से क्या समझते हो


उत्तर- विशेष छोटे-छोटे यन्त्र जो अन्य किसी ग्रुप में नहीं आते उन्हें(विविध) मिसलेनियस ग्रुप में रखागया है।जैसे-कै नवास बके ट, फायर बेट, ट्रोली बस शार्ट
सर्कि टिंग गेयर्स, एस्बेस्टसस्क्रीन, चिमनी रॉड, फर्स्ट-एड-बाक्स और स्ट्रेचर इत्यादि।

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प्रश्न- स्माल गेयर्स की देख-रेख किस प्रकार की जाती है


उत्तर- स्माल गेयर्स को भली-भाँति साफ रखना चाहिए और समय-समयपर चेक करते रहना चाहिए। धार वाले औजारों की धार को बचाकर रखनाचाहिए। इनकी
धारें हमेशा तेज रहनी चाहिए। धातु के भागों को हल्का ग्रीसलगाकर रखा जाय तो जंग लगने से बच सकते हैं। लकड़ी के हैण्डिल वालेऔजारों के हैण्डिल साफ और
चिकने रहने चाहिए। उनपर वार्निश की कोटिंगकरते रहना चाहिए।

प्रश्न- शीयर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार की कै ची जैसी होती है। कै ची के जबड़े पक्के स्टील के बने होते हैं और लम्बे हत्थों के द्वारा खुलते बन्द होते हैं। लीवर और फलक्रम के
सिद्धान्त का प्रयोग करते हुए शक्ति पूर्वक लोहे की छड़ें जंजीरें, तार, ताले,कु ण्डे आदि को सुगमता पूर्वक काट देते हैं।

शीयर चित्र

प्रश्न- बोल्ट कटर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार का यन्त्र है। इसमें जम्बुर की भाँति स्टील के जबड़े होते हैं। इसके हत्थे एक चूड़ीदार नाव द्वारा खुलते बन्द होते हैं।जबड़ों में वोल्ट आदि
को फं सा कर नाब को घुमाने से बोल्ट सुगमता पूर्वक कट जाता है।

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प्रश्न- डोर ब्रेकर किसे कहते हैं


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उत्तर- बन्द दरवाजों को तोड़कर खोलने वाले यन्त्रों को कहते हैं। ये विभिन्न प्रकार के होते हैं। एक डोरब्रेकर बड़ी छेनी के आकार का होता है इसके साथ बड़ासा
हैमर भी दिया जाता है। एक अन्य डोरब्रेकर जो दिलेदार दरवाजों के दिले सरलता पूर्वक तोड़ता है। इस यंत्र में एक स्टील का क्रोबार जैसा होता है। इसके एक सिरे पर
एक अन्य रॉड जुड़ी रहती है जो घटाई बढ़ाई जासकती है। इसी रॉड के सिरे पर एक विशेष आकार-प्रकार की प्लेट लगी होती है जिसे दरवाजे के दिलेपर रखकर व
कोबार की टो को जमीन में रखकर हैण्डिल को ऊपर की ओर उठाते हैं। प्लेट शक्ति द्वारा दिले को सरलता से तोड़ देती है।

प्रश्न- परसुण्डर किसे कहते हैं


उत्तर- स्टील की बनी दस्तेदार सुम्बी जैसी है। सामान्यतः उन तालों को तोड़ने के काम आताहै, जो पैडलाक रिमूवर से नहीं टूटते। सुम्बी को ताले के कु न्डे में
डालकर हथौड़े की चोट मारकर ताला तोड़ डालतेहैं।

प्रश्न-ऑगर किसे कहते हैं


उत्तर- बढ़ई के गिरमिड (हाथ वाले वर्मा) को ऑगर कहते हैं।

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प्रश्न- ब्रेस एण्ड बिट किसे कहतेहैं?


उत्तर- बढ़ई के उस बर्मे को कहते हैं जो डोरी के सहारे घुमाया जाताहै।

प्रश्न- ब्रेक ब्लाक किसे कहते हैं


उत्तर- धातु का एक विशेष यन्त्र है। चौकोर बक्सुआ जैसा होता है। ऊपर एक छल्ला जैसा जुड़ा रहताहै। इस छल्ले द्वारा ही इसे स्के प लैडर या अन्य किसी स्थान पर
बाँध कर लटकाया जाताहै। तत्पश्चा त्बक्सुये मेंरस्सी पिरोकर ऊँ चाई से नीचे की ओर धीरे धीरे खिसकते हुए आया जा सकता है।

प्रश्न- क्विक रिलीज नाइफ किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार का टेढ़ा चाकू है इसके फल की धार बहुत तेज होतीहै। जबकि इस का बाहरी किनारा और सिरा मोटा औरचिकना होताहै
(हंसियेकीभाँति) हवाईजहाज की सीटों पर वेल्ट से बंधे व्यक्तियों के बेल्ट को सुगमता पूर्वक काटदेताहै। विशेष डिजाइन के कारण चाकू से घायल होने का डर भी नहीं
रहता ।क्रे शटैण्डर का इक्युपमेन्ट है।

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प्रश्न- सिलिंग किसे कहते हैं
उत्तर- मजबूत निवाड़ से बनाई गई लम्बी बेल्ट हैं। जो एक्स्ट्रा लॉग लाइन या लोअरिंग लाइन के साथ बचाव कार्य में प्रयोग की जाती है। इस से बेहोश व्यक्तिको
ऊपर से नीचे उतारा जाता है।

प्रश्न- टिली लैम्भ किसे कहते हैं


उत्तर- मिट्टी के तेल के बैंपर (गैस) से जलने वाली विशेष लाइट है। सामान्यतःइसमें 14" (150 मि.मी.) का रिफ्लै क्टर लगा होता है। तेल की टंकी में ढाई
लीटर मिट्टी का तेल भर दिया जाता है। पेट्रोमैक्स की भाँति इसमें भी गैस मैन्टिल प्रयोग किया जाता है। जो 5000 कै न्डिल पावर की रोशनी 48 घण्टे तक लगातार
दे सकता है। यह लाइट, धातु के बने स्टैण्ड पर फिट रहतीहै जिसे किसी भी कोण पर एडजस्ट कियाजासकताहै।

प्रश्न- सीलिंग हुक किसे कहते हैं


उत्तर- 7 फिट (2.9 मी०) या 8 फिट (2.1 मी0) लम्बे डेढ़ इंच मोटे लकड़ी के पोल के एक सिरे पर धातुका एक विशेष हुक लगारहता है जिसमें4” (100
मि0 मी0) का सीधा नुकीला भाग होता है और उसी से समकोण बनाता हुआ 4" (100 मि०मी०) कास्पर लगा होता है । जो ऊपर से मोधरा और नीचे की ओर
धार दार होता है। छतकी फाल्स सीलिंग में छेद करने के लिए, स्पर द्वारा सीलिंग को खींच कर गिराने के लिए, जलती हुई वस्तुओं को खींचकर अलग करने के लिए,
वस्तु को उलटने-पलटने के लिए तथा "फायरमैन्स स्विच" आफ करने के लिए प्रयोग किया जाताहै।

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प्रश्न- स्टील शाड बुडेन लीवर किसे कहते हैं


उत्तर--,लकड़ी का विशेष आकार प्रकार का लीवर होताहै जिसकी टीपर लोहे का आवरण चढ़ा होता है। सामान्यतःहेन्डिल की ओर वाला सिरा 2"डाइ मीटर का
होता है। आधे से अधिक दूरजाकर 3" X 3" (75 X 75 मि०मी०) चौकोर होजाता है। उसी के सिरे को विशेष आकार का बना करउस पर लोहे की प्लेट चढ़ी
रहती है जिसका सिरा ऊपर की ओर कु छ मुड़ा हुआ चपटा छैनी की तरह हो जाता है। यह लीवर भारी दरवाजों को खोलने, भारी वस्तुओं को उठाने, उलटने, पलटने
के काम आताहै।

प्रश्न- स्टैंक ड्रेग किसे कहते हैं


उत्तर- लगभग 4.5 मी० लम्बे लकड़ी के पतले पोल में एक लोहे का विशेष हुक लगा होता है जिसमें दो समकोण बनाते हुए हुक लगे होते हैं । खलिहान के ढेरों
को और छप्पर आदि को खींचने के काम आता है।

प्रश्न- ड्रेग हुक किसे कहते हैं


उत्तर- 4 या 5 फीट (122 या 1.52 मी०) लम्बे लकड़ी के पोल पर लोहे का विशेष हूक लगा होता है जिसमें 3 से 5 हुक समकोण बनाते हुए लगे होते हैं।
देहात में इसे पंचगड़ा भी कहते हैं। खलिहानों का ढेर खींचने के काम आताहै।

प्रश्न- पिचफोर्क किसे कहते हैं


उत्तर- 4’ या 5’ (1.22-1.52 मी0) के पतले पोल में लोहे के 2 या 3 कु छ टेढ़े से कांटे लगे होते हैं। यह भी खलिहानो पर ही मिलता है। गट्ठों कोउ ठाने,
पताई पलट ने के लिए उपयोग होता है।

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प्रश्न- ट्राली बस शार्ट सर्कि टिंग गेयर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष यन्त्र है जिसके द्वारा ट्राम कार या इलेक्ट्रिक कार को चलाने वाले ओवर हेड बिजली के तारों कोशार्ट (डेड)करके करण्ट आफ किया जाताहै,
ताकि उनके बीच रहकर सीढी लगाई जा सके और फायर फाइटिंग का कार्य किया जास के । इसमें ताँबे की प्लेट से बने विशेष खाँचे होते हैं जो 2 फीट(61 सेमी) लोहे
की छड़ के सिरों पर फिट कर दिये जातेहैं लोहे की छड़ इनसुलेटेड के समें बन्द रहती है। तथा एक 12 फीट (3.5 मी०के पोल पर फिट रहतीहै। इसी पोल के सहारे
ऊपरीखांचों को तारों में फँ साकर शार्ट सर्कि ट करने से इलैक्ट्रिक सब स्टेशन का फ्यू जउड़ जाता है और तारोंका करण्ट आफ होजाता है।इस प्रकार के गेयर,
कार्यस्थल के दोनों ओर लगाने से कार्यस्थल करण्ट फ्री होजाताहै।

प्रश्न- चिमनी रॉड किसे कहते हैं ?


उत्तर- आतिशदान और चिमनी के अन्दर लगी आग को बुझाने के लिए उपयोगी उपकरण है। चिमनी राड कई लचकदार मलक्का बेतों से बनी होती है। बेंत के
प्रत्येक सिरे पर ब्रास कपलिंग बनी होती है जिन से एक दूसरे राड को जोड़ कर लम्बा कर लिया जाता है। राड के ऊपरी सिरे पर विशेष प्रकार का नाजुल हेड होता है
जो च।रों ओर फु आर के रूप में पानी फें कता है। इस हेड मेंस्ट्रप पम्प या होजरील पाइप को जोड़ने की व्यवस्था होती है। नाजुल हैड ऊपर से चिकना और गोल होने के
कारण चिमनी के अन्दर सुविधा पूर्वक जा सकता है।

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प्रश्न- स्ट्रेचर किसे कहते हैं ?


उत्तर- घायलों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी कु ल लम्बाई 7 फीट 9" होती है और चौड़ाई 22"या
23"होती है। जमीन से 6 ऊपर रखने के लिए नीचे रनर लगे होते हैं। स्ट्रेचर की किरसिंच 6 फीट लम्बी होती है। इसमें एक ओर जेब जैसी बनी होती है उसे पिलो
सैक कहते हैं। किरमिच से बाहर साढ़े दस इंच के हेण्डिल निकले होते हैं। स्ट्रेचर को तहकर के बाँधकर रखने के लिए दो स्ट्रेप्स भी लगे होते हैं।

प्रश्न- स्ट्रेचर कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- सामान्यतः स्ट्रेचर तीन प्रकार के होते हैं-
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1-आर्डिनरी कै न वास स्ट्रेचर। 2-टेलिस्कोपिक स्ट्रेचर। 3-स्टील स्ट्रेचर।

प्रश्न- टेलिस्कोपिक स्टेचर किसे कहते हैं


उत्तर- इस स्ट्रेचर में हैण्डिल इस प्रकार के होते हैं कि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें कै नवास के नीचे खिसका कर स्ट्रेचर की लम्बाई को 7 फीट 9" से घटाकर-
6 फिटकर लिया जाता है। शेष आकार कै न वास स्ट्रेचर के अनुसार होता है।

प्रश्न- सोलोपिक किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष उपकरण है जो फर्श, छत या दीवार तोड़ने के काम आता है। एक पाइप में एक मोटी राड पड़ी होती है। राड में है रिअल लगा होता है। पाइप के
दूसरी ओर स्क्रू टाइप कै प लगा होता है जिस के बीच में छेद होता है। इस के साथ एक बड़ी छैनी व एक सुम्मी दी जाती है। कै प खोलकर जैसी आवश्यकता होती है,
पाइप में छैनी या सुम्भी फिट कर ली जाती है।
प्रयोग करते समय हैण्डिल को थोड़ा बाहर खींच कर पुनःचोट करने से छैनी या सुम्मी पर चोट पड़ती है और दीवार या फर्श टूटने लगता है कम से कम स्थान में, राता
अंधेरे में छैनी हथौड़े का काम करता है बल्कि उससे अच्छा ही काम करता है।

प्रश्न- औटोमैटिक स्के प किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष उपकरण है जो किसी व्यक्ति को ऊँ चे भवन से नीचे की ओर धीरे -धीरे व सुरक्षित रूप से उतारने में प्रयोग किया जाता है। इसमें एक स्टील
के बिल होता है जिस के दोनों सिरों पर सैफ्टी बेल्ट होता है या निवाड़ की सिलिंग होती है जो आवश्यकतानुसार ढीली या कसी जा सकती है। के बिल एक छोटे से यन्त्र
में से उसके ड्र म को घुमाता हुआ निकलता है। उसमें फिक्शन ब्रेक प्रणाली होती है जो ड्र म पर के बिल की गति को नियंत्रण में रखती है अथवा उसे एक सुनिश्चित गति
से सामान्यतःड्र म पर के बिल 2 फिटसे 4 फिट (60 से 0 मी०से 100 से०मी०) प्रति सेकिण्ड की गति से व्यक्ति को स्वयं उतार ने में सहायक होती है। इसी यन्त्र
की ओटोमैटिक स्के प कहतेहैं।

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रस्से- रस्सियाँ
(रोप एण्ड लाइन्स)

प्रश्न- रोप किसे कहते हैं


उत्तर- कम से कम 6 धागों (धान) से बनी 3 या 4 लो (स्टैण्ड) को टकरा कर बनाये गये रस्से को रोप कहते हैं। 1.5 इंच (12.5 मि० मी०) गोलाई या
परिधि (सरकम फ्रे स) से कम मोटाई वाली रस्सी को रोप नहीं कहते हैं।

प्रश्न- रोप कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- रोप दो प्रकार के होते हैं- 1.फायवर रोप 2.वापररोप।

प्रश्न- फायबर रोप के क्या अर्थ है


उत्तर- रेशेदार रस्से को फायबर रोप कहते हैं। फायवर रोप भी दो प्रकार के होते है एक वेजिटेबिल फायबर पानी वानस्पतिक तन्तुओं जैसे सन या सूत के बारीक
धागो से बटकर बनाये जाते हैं। दूसरे सैन्थेटिक फायबर पानी कृ त्रिम रेशो जैसे न पालिस्टर या टेरेलीन के धागों को बटकर बनाये जाते हैं।

प्रश्न- रोप का साइज कै से बताया जाता है


उत्तर- फायवर रोप का माइज हमेशा उसकी परिधि रकम बा जाता है जबकि वापर रोप का साइज उसके व्यास (इमीटर) में बताया जाता है।

प्रश्न- फायबर रोप बनाने में कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग में लाये जाते हैं?
उत्तर- फायवर रोप, हेम्प (पटुआ), मनीला (अच्छे किस्म का सन) सीसल(रामबास), क्वायर (नारियलजटा), काटन (सूत), नायलान पालिस्टर इत्यादि से
बनाये जाते हैं।

प्रश्न- लाइन किसे कहते हैं?


उत्तर- किसी विशेष कार्य के लिए विशेष आकार अथवा मोटाई लम्बाई वाली रस्सीको फायर सर्विस में लाइन कहते हैं।

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प्रश्न- रोप और लाइन में क्या अन्तर है ?
उत्तर- 1/2" ( 12.5 मि० मी०) सरकमफ्रें स से मोटी किसी भी रस्सी को रोप कह सकते हैं। इसकी लम्बाई मोटाई निश्चित नहीं होती जबकि किसी विशेष
कार्य के लिए निश्चित लम्बाई मोटाई की रस्सी को लाइन कहते हैं। यही रोप एवं लाइन में अन्तर है।

प्रश्न- फायर सर्विस में प्रयोग किये जाने वाली विभिन्न लाइनों का वर्णन करो
उत्तर- 1.एक्स्ट्रा लॉग लाइन- यह 150 फीट से 230 फीट ( 45 से 69 मीटर) लम्बी 2" (50 मि०मी०) मोटी बढ़िया किस्म के इटालियन हैम्प की
बनी होती है। यह टर्न टेबुल लैडर के साथ बचाव कार्य करने के लिये दी जाती हैं।
2.लोअरिंगलाइन-यह 100 फीटसे 130 फीट (30 से 39 मी0) लम्बी 2" (50 मि0 मी0) मोटी बढ़िया किस्म के इटालियन हैम्प की बनी होती है।
रैस्क्यू कार्य में प्रयोग की जाती है।
3.लॉग लाइन- यह रस्सी 100 फीट (30 मी०) लम्बी 2 (50 मि०मी०) मोटी मनीला अथवा सेकण्ड क्वालिटी के इटालियन हैम्प की बनी होती है। यद्यपि यह
रेस्क्यू कार्य के लिये नहीं है परन्तु आवश्यकता पड़ने पर काम दे सकती है। यह सिर्फ कोई वस्तु खीचनें जैसे होज लेंग्य बाँध कर ऊपर खीचनें , रास्ते रोकने आदि के
काम आती है।
4.शार्टलाइन-40 फीट (12 मी0) या 50 फीट (15 मी0) लम्बी 2. (50 मि0 मी0) मोटी मनीला या सेकण्ड क्वालिटी हैम्प से तैयार की जाती है।
अनेक छोटे-मोटे कार्यों में प्रयोग की जाती है।
5.स्के पलाइन- 15 फीटसे 20 फीट (4.5 से 6 मी0) लम्बी 2 (50 मि0 मी०) मोटी आम तौर से लॉग लाइन या लोअरिंग लाइन से काटकर
बना ली जाती है। धुर्वे में घुसते समय फायरमैन इसको वापसी के रास्ते की पहचान के लिये प्रयोग में लाते हैं। इस्के प लैडरके ऊपरी सिरे पर इसे बांधकर रखा जाता है ।
6.बबिनलाइन-130 फीट(39 मी0) लम्बीडोरीजो 2 पौण्ड (9 कि०) सूती प्लेटेड कार्ड से बनाई जाती है। एक हल्की पतली लाइन है। यह एक चमड़े के वाबिन
(गिट्टक) पर लपेटी रहती है और एक विशेष प्रकार के पाउच (बटुए) में रखी जाती है। यह पाउच एक वेल्ट के साथ रहता है। हलके उपकरणोंको ऊपर खीचने या
उतारने के काम आती है। गार्ड लाइन की भाँति भी प्रयोग की जाती है।
7. बेल्टलाइनयापाके टलाइन- 9 फीटसे 12 फीट (3.6 मी0) लम्बी 1” (25 मि०मी०) मोटी सूती डोरी होती है। फायरमैन के यूनीफार्म के साथ दी जाती है। जो
बेल्ट में या ट्युनिक की पाके ट में रखे रहते हैं। अनेक छोटे-मोटे कामों में जैसे ब्रांच-बांधना, उपकरणों को खींचना, उतारना इत्यादि में काम आती है।
8.क्वायरयाग्रासलाइन-नारियल के जटे से बनी होती है। हल्की होने के कारण पानी प रतैरती है। नदी, तालाब में रेस्क्यू में काम आती है।

प्रश्न- रोप खराब होने के कौन-कौन मुख्य कारण हैं


उत्तर- रोप खराब होने के दो मुख्य कारण है
1. मेके निकल डिटेरियोरेशन (यान्त्रिकहास)
2. कै मिकल डिटेरियोरेशन (रासायनिक हास)

प्रश्न- मैके निकल डिटेरियोरेशन में रस्से किस प्रकार खराब होते हैं?

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उत्तर- घिसटन या कटने-फटने के कारण अथवा जो रस्से पर दिखायी दे सके , जैसे खुरदरे स्थान पर रस्से को घसीटने से, दीवार या मुन्डेर के नुकीले कोनों पर
घिसटने से, रोप के धागों का घिसटना या टू टना, गहरा मोड़ या ऐंठन, रस्से के उलझ जाने पर उसकीभॉज पर ताकत पड़ना, स्ट्रेण्ड का चटख जाना या टू ट जाना,
जिससे रोप कमजोर पड़ सकती है।

प्रश्न- के मिकल डिटेरियोरेशन से रस्से किस प्रकार खराब होते हैं?


उत्तर- रस्से का तेजाव, अथवा अलकली के सम्पर्क में आना, मौसम की खराबी का असर पड़ना, बहुत देर तक पानी में डू बा रहना, अथवा भीगा रहना, फफूँ द
का लगना, अधिक समय तक धूप या ताप में पड़ा रहना, इत्यादि कारण इस प्रकार का हास पहुंचाते हैं।

प्रश्न- रोप और लाइनों के प्रयोग के समय क्या-क्या सावधानियाँबरतनीचाहिये ?


उत्तर- 1.रस्सियों को जमीन पर घसीटियेनहीं। एक स्थान से दूसरे स्थान तकले जाने के लिये, भली भांति लपेट कर, क्वाइल या लच्छा बनाकर ले जाइये।
2.खिड़की, दरवाजे, मुण्डेर या दीवार के कोनों पर घिसटने से बचाने के लिये टाट आदि का प्रयोग कीजिये।
3.रस्से में कोई गाँठ लगाकर पड़ामत रखिये। इससे रस्सा कमजोर होजाताहै।
4.छोटे आकार की घिरी (पुली) में मोटे आकार का रस्सा प्रयोग मत कीजिये।
5.रस्सों को तेजाब, क्षार आदि रासायनिक पदार्थों से बचाकर रखिये।
6.जहाँ तक सम्भव हो रस्से को छाया में ही सुखाइये।
7.रस्सा तब तक प्रयोग के लियेउपयुक्त नहीं, जब तक वह सूखकर नरम न हो जाये।
8.रस्से को तेल और ग्रीस से बचाईये
(अ) चिकनाई, रेशों में भली-भाँति हवा नहीं लगने देती।
(ब). चिकनाई पर धूल व कचरा जम जाता है जोकि रेशोंको हानि पहुचाता है। प्रयोग के समय भी कठिनाई होती है।
9.स्टील वायर रोप को प्रयोग के पश्चात् भली भाँति पोछकर उचितप्रकार का तेल लगाकर रखिये। लच्छा अधिक छोटा न बनाइये।
प्रश्न- रोप और लाइनों के भण्डारण में क्या क्या सावधानियाँरखनी चाहिये
उत्तर- 1.जहाँ तक सम्भव हो रस्सों को सूखे, ठण्डे और हवादार स्टोर में रखे।
2.रस्सों के लच्छो (क्वाइन्स) को लकड़ी के खम्भों पर, लड़की पर, टॉगिये। वे बाहरी दीवार न छु ये और न टीन की चादरों आदि के सम्पर्क में आयें। इनसे सीलन
मिलने का डर है।
3.जंग लगे लोहे के पाइपों से भी इन्हें बचाइये।
4.लच्छों को ऐसे स्थान पर भी मत टॉगिये जहाँ तेज गर्मी और प्रकाश हो।
5.रस्सों को चूहों से बचाइये।
6. रस्सों को समय-समय परउलट-पुलटकर देखते रहना चाहिये। ऊपरी कटन, धागों का घिसना, टूटना आदि।

प्रश्न- फायर सर्विस लाइनों को कब और कै से टैस्ट कियाजाता है


उत्तर- प्रतिमाह, आग या रेस्क्यू पर प्रयोग में आने के पश्चात् , लोअरिंग लाइनया अन्य रेस्क्यू लाइनों को ड्रि ल में प्रयोग करने से पहले टैस्ट किया जाता है।रस्सी
का एक सिरा किसी पेड़, खम्भे आदि मजबूत स्थान पर बाँध दिया जाता है। तत्पश्चात् 6 व्यक्तियों को बराबर फासले पर रस्से को पकड़कर एक साथ खींचना चाहिये
(झटका न लगे)। लगभग 10 सेकण्ड तक खिचाव बना रहे। तत्पश्चात् छोड़ देना चाहिये। इसी प्रकार दूसरा सिरा बदलकर पुनः दोहराना चाहिये।
गार्ड लाइन भी इसी प्रकार टैस्ट की जाती है। परन्तु उसे के वल दो व्यक्ति हीखींचकर देखते हैं।
उपरोक्त टैस्ट के पश्चात् रस्सी पर हास के चिह्न, बारीकी से देखे जाने चाहिये।

प्रश्न- अच्छी गाँठ की विशेषतायें बताइये


उत्तर- 1. आसानीसे बाँधी जासके ।
2. आसानीसे खोली जासके ।
3. जिस कार्य के लिये बाँधी जाय उसे सही बाँधकर रखे, बीचमें खुलन जाये।
4. गाँठखोलने, बाँधने में रस्सी भी खराब नहो।

प्रश्न- क्लोव हिच कहाँ प्रयोग की जाती है


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उत्तर- किसी गोल वस्तु पर रस्सी को बाँधकर काम लेना हो तब इस गाँठ को लगाते हैं। इसको खूँटागाँठ भी कहते हैं।

प्रश्न- राउण्ड टर्न एण्ड टू हाफ हिचेज कहाँ प्रयोग की जाती है


उत्तर- रस्सी को खींचकर किसी गोल वस्तु पर बाँधना हो तो इसे लगाते हैं। इसमें और क्लोच हिच में यह अन्तर है कि जब रस्सी को खींचकर बाँधना हो तब यह
गाँठलगाई जाती है, जबकि क्लोव हिच में रस्सी को पहले बाँध लिया जाता है तब खींचते हैं।

प्रश्न- फिशरमैन बैण्ड कहाँ प्रयोग की जाती है? विशेषतायें क्या हैं
उत्तर- यह भी किसी गोल वस्तु पर बाँधने के काम आती है। इसकी विशेषता यह है कि गाँठ घूमती-फिरती रहती है। खिंचाव पड़ने पर टाइट नहीं होती है।

प्रश्न- रोलिंग हिच कहाँ प्रयोग की जाती है ?


उत्तर- किसी गोल वस्तु पर रस्सी को बाँधने के काम आती है। विशेषताकि इसे एक ओर (साइड में) खींचने पर सरकती नहीं हैं।

प्रश्न- ड्रा हिच कहाँ प्रयोग की जाती है?


उत्तर- किसी गोल वस्तु पर दोहरी रस्सी से बाँधते हैं। इसकी विशेषता यह है कि एक सिरे को पकड़कर वस्तु को खींच सकते हैं। परन्तु दूसरे सिरे को खींचते ही
बिना उस वस्तु के पास जाये गाँठ खुल जाती है और रस्सी खिंचकर आ जाती है।

प्रश्न- दो रस्सियों को जोड़ने के लिये कौन-कौन सी गाँठे प्रयोग करते हैं?


उत्तर- रीफ नॉट, सिंगल शीट बैण्ड, डबल शीट बैण्ड ।

प्रश्न- रीफ नाट कहाँ प्रयोग की जाती है?


उत्तर- दो बराबर मोटाई की रस्सियों को जोड़ने के लिये प्रयोग करते हैं। वैण्डेन में भी इसी को प्रयोग करते हैं।

प्रश्न- सिंगल शीट बैण्ड कहाँ प्रयोग करते हैं


उत्तर- दो अलग-अलग मोटाई की रस्सियों को जोड़ने के लिए प्रयोगकरते हैं।

प्रश्न- डबल शीट बैण्ड कहाँ प्रयोग की जाती है


उत्तर- इसे भी दो अलग-अलग मोटाई की रस्सियों को जोड़ने के लिये प्रयोग करते हैं। यह सिंगल शीट बैण्ड से अधिक मजबूत जोड़ गाँठ होती हैं। रस्सियों की
मोटाई, में यदि अधिक अन्तर हो तब यही गाँठ उपयोगी होती है।

प्रश्न- बोलाइन किसलिये बाँधते है


उत्तर- रस्सी के सिरे पर ऐसा गोल घेरा बनाने के लिये, जो खींचने पर कसता नहीं बल्कि अपनी जगह पर अटल रहता है। किसी बेहोश व्यक्ति को सीधे या स्ट्रेचर
पर ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर खींचने के लिये इसे प्रयोग करते हैं।

प्रश्न- बोलाइन आन द बाइट किस लिए बाँधी जाती है


उत्तर- इस गाँठ में दो बराबर के अटल घेरे बनाये जाते हैं। जो खिंचाव पड़ने परकसते नहीं बल्कि अपनी जगह अटल रहते हैं। किसी बेहोश व्यक्ति को सीधे या
स्ट्रेचर पर ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर खींचने के लिए प्रयोग करते हैं।

प्रश्न- चेयर नॉट किसे कहते है


उत्तर- इसमें भी दो घेरे बनाये जाते हैं जो खिंचकर कसते नहीं। किसी बेहोश व्यक्ति को इसमें फाँसकर ऊपर से नीचे उतारने या नीचे से ऊपर खींचने के लिये
उपयोगी होती है। ऊपर वाले घेरे को दूसरे से तनिक छोटा रखने से मरीज को ऐसा लगता है जैसे कु र्सी पर बैठा दिया गया हो।

प्रश्न- शीप शैंक किसे कहते है ?कहाँ प्रयोग होती है


उत्तर- यदि रस्सी काम करने में फालतू मालूम पड़े तो इस गाँठ द्वारा उसे छोटाकिया जा सकता है। यदि कोई रस्सी कार्य करने में कहीं से टू टी या चटकी दिखे तो
इस गाँठ द्वारा उसे काम लायक किया जा सकता है। टू टने का खतरा नहीं रहता है।

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प्रश्न- कै ट्स पाँ कहाँ प्रयोग किया जाता है


उत्तर- यदि रस्सी के सिरे को किसी हुक में फँ साने के लिये प्रयोग किया जाता है तब इस गाँठ को प्रयोग करते हैं। इससे लपेटी हुई होज लेंग्थ के रोल को भी नीचे
सेऊपर या ऊपर से नीचे सुगमता से खींचा उतारा जास कता है।

प्रश्न- ब्लड नॉट किसे कहते हैं


उत्तर- पाके ट लाइन को लपेटकर रखने का विशेष ढंग है। यह देखने में भी सुन्दर लगती है तथा आवश्यकता पड़ने पर काम में लाने के लिए तुरन्त खुल जाती है।

प्रश्न- व्हिपिंग किसे कहते हैं


उत्तर- रस्सी के सिरे को किसी डोरे से कसकर इस पद्धति से बांध देते है ताकि उसके बल भीन खुलें तथा उसे किसी पुली (घिर्री) या किसी छेद में पिरोने में भी
असुविधा न हो। इसी पद्धति को व्हिपिंग कहते हैं।

प्रश्न- स्पलाइ सिंग किसे कहते हैं


उत्तर- टू टी रस्सी को जोड़ने, रस्सी के सिरे पर एक घेरा जैसा बनाने या सिरे को बिना गाँठ लगाये पकड़ने की मुठिया बनाने के लिये स्पलाइसिंग की जाती है ,
इसमें रस्सी के स्टैण्ड (भॉज) को खोल कर स्ट्रैण्ड के साथ लपेटते हैं। इसे हिन्दी में गाँस लगाना भी कहतेहैं।

प्रश्न- माउसिंग किसे कहते हैं


उत्तर- पुली के हुक को एक पतली डोरी से बाँधकर बन्द करने को कहते हैं ।
ताकि झटका आदि लगने पर हुक में फँ सी रस्सी बाहर न निकलजाये।

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सीढ़ियाँ
(फायरसर्विसलैडर्स)

प्रश्न- फायर सर्विस में कितने प्रकार की लैडर्स प्रयोग की जा रही हैं
उत्तर- फायर सर्विस में सामान्यतः 4 प्रकार की लैडर्स प्रयोग में है।
1.फर्स्टफ्लोरलैडर 15 फीट 6 (4.65 मी०)
2.एक्सटेन्शनलैडर 13', (3.9 मी0) 20 (6 मी0) 24, (7.5 मी0)30’, (9 मी0) 35', (10.5 मी0) और 40' 12 मी०
3.हुकलैडर 13 फीट 4", (4 मी0)
4.स्के लिंग लैडर 6 फीट 6 (1.95 मी0)इसके अतिरिक्त बड़े-बड़े शहरों में अधिक ऊँ चे भवनों पर कार्य करने हेतु अन्य स्पेशल लैडर्स भी प्रयोग की जाती हैं। जैसे-
5.50 फीट इस्के प लैडर या व्हील्डस्के प
6.टर्नटेबुल लैडर।
7.स्नारके ल या हाइड्रोलिक प्लेट फार्म ।

प्रश्न- फर्स्ट फ्लोर लैडर किसे कहते हैं

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उत्तर- फर्स्ट फ्लोर लैडर 15 फीट 6" (4.65 मी0) लम्बी एक साधारण सीढ़ी है,जो साधारण छतों या पहली मंजिल (फर्स्टफ्लोर) पर चढ़ने के काम आती है।
यह लैडर 50%फीट (15 मी0) स्के प लैडर के साथ भी दी जाती है। लकड़ी के लैडर का भार लगभग 45 पौण्ड (20.4 कि०) होता है ।

प्रश्न- एक्सटेन्शन लैडर किसे कहते है


उत्तर- बढ़ाई जा सकने वाली सीढ़ी को एक्सटेन्शन लैडर कहते हैं। ये दो भागों मेंहोती है दोनों भाग एक दूसरे के अन्दर फँ सा कर रखे जाते हैं। आवश्यकता पड़ने
पर हाथ से या एक रस्सी की सहायता से एक निश्चित लम्बाई तक इन्हें बढ़ाया जासकताहै । सामान्यत : ये 13 (3.9 मी0) 20. (6 मी0) 24, (7.5 मी0)
30 (9 मी035, 05 मी0) और 45 फीट (13.5 मी0) की लम्बाई तक की देखने में आती हैं।

प्रश्न- हुक लैडर किसे कहते हैं


उत्तर- ऊँ चे बहुखण्डी भवनों पर चढ़ने के लिये यह एक विशेष लैडर है। इसकी लम्बाई 13 फीट 4 इंच (4 मी0) औरचौड़ाई 9 (22.5 से.मी.) होती है।
लैडर का भारलगभग 24 से 28 पौण्ड (13 कि०) होता है। लैडरमेंऊपरकीओर 2 फीट 2 इंच (65 से०मी०) लम्बा हायटेन्सिलस्टील का दांते दार हुक लगा
होता है जिसे खिड़की के चौखट आदि पर लगा कर या फँ साकर लैडर पर चढकर ऊपर जासकते हैं । तत्पश्चात लैडर उठाकर और ऊपर वाली खिड़की पर लगादेते हैं।
इसी प्रकार कई मंजिलों तक चढ़ते चले जाते हैं। ऊँ चे से ऊँ चे भवनों में जहाँ दूसरी सीढ़ियों काम में न लाई जा सकती हो हुकलैडर द्वारा जीवन रक्षा के लिये अथवा
भवन में फँ से प्राणियों को खोज निकालने के लिये किसी भी मंजिल तक जाया जासकता है। लैडर में कु छ अन्य सुविधायें भी होती है। जैसे लैडर में हुक बेल्ट फं साने के
लिये, सैफ्टीरिंग, हुक को बन्द रखने के लिये श्राउड व लैंडर को दीवार से उठाकर रखने के लिये टोपी से कई जगह लगे होते हैं ।

प्रश्न- स्के लिंग लैडर किसे कहते हैं


उत्तर- 6 फीट 3”इंच (1.95 मी०) लम्बी एक छोटी सी लैडर है। इसके स्ट्रिंगों में हैड और हील दोनों और स्टील के या गनमैटल के ब्रेकिट लगे होते हैं जिन में
दूसरे लैडर को। फँ साकर बढ़ाया जा सकता है अथवा ब्रिजिंग इत्यादि का काम लिया जासकता है। इस का भार लगभग 21 पौण्ड (95 कि०) होता है ।

प्रश्न- 35 फीट (10.5 मी०) एक्स्टेन्शन लैडर को संक्षेप में वर्णनकरो


उत्तर- लकड़ी या अल्मुनियम एलॉय की बनी होती है, यह दो भागों में होती है जो एक दूसरे में फँ साकर रखे जाते हैं। एक मुख्य भाग (मैनसैक्शन) दूसरा बढ़ा या
जाने वाला भाग (एक्सटेंडिंगसेक्शन) कहलाता है। प्रत्येक भाग लगभग 21 फीट (6.3 मी0) लम्बा होता है। सीढ़ी अधिकतम 35 फीट (10.5 मी०) बढ़ाई जा
सकती है। लकड़ी की बनी सीढ़ी के मुख्य भाग कीचौ० 18" (45 से०मी.) वबढ़ाये जाने वाले भाग की चो० 15" (22.5 से0 मी0) होती है। इसी भाग के अन्दर
की ओर की चो० 12”(30 से०मी०) होती है। दो डण्डों (राउण्डस) के बीच में 27 से0 मी0 का अन्तर होता है। सीढ़ी का कु ल भार 130 पौण्ड (59 कि0 ग्रा0)
होता है ।
एल्यूनियम की सीढ़ी का मुख्य भाग (41.9 से0 मी0) चौडा होता है। बढ़ाया जाने वाला भाग (33 से०मी०) चौ०होता है। अन्दर की ओर (27 से0 मी0) चौ०होती
3
है। दो डण्डों के बीच 10" (25 से0 मी0) का अन्तर होता है। कु ल भार 43 कि०ग्रा०होता है। सीढ़ी को बढ़ाने के लिये 1 ”(45 मि०मी०) परिधि की मनीलारोप
4
प्रयोग की जाती है। इसका एक सिरा बढाये जाने वाले भाग में पहले व दूसरे राउण्ड के बीच लगे विशेष खटके (पाल्स) में बँधा रहता है तथा दूसरा सिरा दोनों भागों के
बीच में होता हुआ मुख्य भाग के में ऊपरी राउण्ड में लगी घिरी (पुली) में निकाल कर सीढ़ी के नीचे से पुनःउसीखटके के लीवर में बांध दिया जाता है। जब सीढ़ी को
बढ़ाना होता है, इस रस्सी को दूसरीओर से खींचकर पाल्स को मुख्यभाग के किसी राउण्ड पर फँ सा दिया जाता है। इस प्रकार रस्सी पर कोई भार नहीं रहता। इसी
रस्सी को तनिक ऊपर खींचकर पाल्स को हटा लेतेहैं तथा बढ़ाई गई सीढ़ी को वापस अपने स्थान पर लेआते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था लन्डनपैटर्न की सीढ़ियों में
होती है। अमेरिकन पैटर्न पर बनी सीढ़ियों में सीढ़ी बढ़ाने पर पाल्सखुद व खुद फँ स जाताहै। रस्सी के झटके की आवश्यकता नहीं रहती। परन्तु सीढी को वापस नीचा
करते समय रस्सी खींचकर पाल्स अलग रखना पड़ता है। सीढ़ी में ऐसी भी व्यवस्था रहती है कि निश्चित लम्बाई से अधिक न खिचने पाये। सीढी के पैरों (हील) में
मोटे लोहे की हील प्लेट लगी रहती है। एल्मुनियम लैडर में रबरबूट लगे रहते हैं।
लकड़ी की सीढ़ी में स्ट्रिग्स को मजबूत करने के लिये, प्लेन सीढी में लोहे का एकतार (स्ट्रेंग्थनिंगवायर) हील से हेड तक खाँचे में फिट कर दिया जाता है अथवा ट्रसिंग
द्वारा स्ट्रिंग को मजबूत करते हैं। ऐसी सीढी को ट्रस्डलैडर कहते हैं। लैडर प्रयोग करते समय टसिंग या स्ट्रेंग्थनिंग वायर हमेशा नीचे यानी दीवार की ओर रहना चाहिये ।

प्रश्न- एक्सटेन्शन लैडर के मुख्य मुख्य भागों के नाम बताओ


उत्तर-
1.हील 3.रोप
2.हैड 4. राउण्ड

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5.पाल्स 6. पुली
7.स्ट्रिंग्स 8. स्टापर

प्रश्न- 13 फीट (3.9 मी०) एक्सटेन्शन लैडर की विशेषतायें बताइये


उत्तर- इस के दो पार्ट होते हैं। ये हाथ से ही बढ़ाई जास कती है। अधिक से अधिक 13 (3.9 मी०) फीट बढ़जाती है। लैडर का भार लगभग 30 पौण्ड होता है
प्रश्न- 30 फीट (9 मी0) एक्सटेन्शन लैडर की विशेषताये बताइये
उत्तर- इसके भी दो पार्ट होते हैं। प्रत्येक पार्ट की लम्बाई 15.9 इंच ( 5 मी0) होती है। एक रस्सी द्वारा बढ़ाई जाती है। अधिक से अधिक 28 फीट 4 इंच
तक बढ़ सकती है; अधिक नहीं । लकड़ी के स्टैण्डर्ड लैडर का भार 112 पौण्ड होता है ।

प्रश्न- लैडर की देखरेख किस प्रकार की जाती है


उत्तर- 1.सीढ़ी को सही हालत में रखने के लिये निरन्तर ड्रि ल इत्यादि में प्रयोग करते रहना चाहिये। रखे-रखे-सीढ़ी खराब होस कतीहै ।
2. समय-समय पर इसकी बारीकी से जाँच करते रहना चाहिये । ता कि प्रयोग के समय कोई असुविधा नहीं हो।
3.सीढ़ियों पर मौसम का प्रभाव जल्द पड़ता है। खुलेमें नहीं पड़े रहने देना चाहिये। लकड़ी की सीढ़ी चटख सकती है। डण्डों की चूलें ढीली हो जाती हैं । रस्सी कमजोर
पड़जाती है ।
4. खुरच इत्यादि पर अच्छी वार्निश लगानी चाहिये। लैडर को पैन्ट नहीं करना चाहिये।
5. नट-बोल्ट स्क्रू इत्यादि चैक करते रहना चाहिये ।
6.स्टोर में रखी सीढ़ियों को भी समय –समय पर देखते रहना चाहिये। ये एक स्थान पर एक ही तरह बहुत दिन तक न रखी -रहे। मुख्यतःलकड़ी की सीढियों को घुन,
दीमक आदि से बचाइये ।
7. सीढ़ियों की मरम्मत विशेषज्ञों द्वारा ही कराना चाहिये।

प्रश्न- हुक लैडर बैल्ट का संक्षिप्त वर्णन करो


उत्तर- हुक लैडर बैल्ड, हुक लैडर प्रयोग करते समय ही प्रयोग किया जाता है।यह बढ़िया किस्म की ऊनी निवाड़ से बनाया जाता है। इसमें चमड़े का अस्तर लगा
होता है यह लगभग 42 इंच लम्बा और साढ़े चार इंच चौड़ा होता है। बैल्ट दो तस्मों से बाँधा जाता है। जो बायें से दाहिने कसे जाते है ताकि इनके सिरे स्टील के हुक
की जीभ में फँ स न जायें। बैल्ट में एक स्प्रिंगदार स्टील का हुक लगा होता है जो आवश्यकतानुसार बायें या दाहिनी और किया जा सकता है। पहनने वाला इस हुक को
लैडर में बने सैफ्टी रिंग में फँ सा लेता है। बैल्ट में एक तसमा कु ल्हाड़ी के पाउच को लटकाने के लिये तथा एक अन्य तस्मा बाबिन लाइन या पाउच लाइन को बाँधने के
लिये भी लगाया जाता है।

प्रश्न- हुक लैडर में टो पीस का क्या अर्थ है


उत्तर- हुक लैडर के स्टिंग पर दूसरे राउण्ड के सामने लोहे की ठोकरें जुड़ी रहती हैं जो सीढ़ी को दीवार के साथ चिपकने नहीं देती और लैडर पर चढ़ते और
उतरते समय राउण्ड पर पैर रखने में सुविधा होती है। इन्हीं ठोकरों को टो पीस कहते हैं।

प्रश्न- श्राउड किसे कहते हैं


उत्तर- हुक की म्यान को कहते हैं। लैडर के ऊपरी तीन राउण्डों में बनाया जाताहै। इसमें हुक लैडर के हुक को मोड़कर रखा जाता है।

प्रश्न- हुक लैडर का हुक सफे द रंग से क्यों रंगा जाता है


उत्तर- अंधेरे में सुविधा के लिये हुक को सफे द रंग से रंग दिया जाता है।.

प्रश्न- एक्सटेन्शन लैडर का हील दीवार से कितनी दूर रखना चाहिये


उत्तर- हील को दीवार की ऊँ चाई के एक चौथाई से कम व आधे से अधिक दूरनहीं रखना चाहिये।

प्रश्न- लैडर का हैड मुण्डेर से कितना ऊपर रखना चाहिये


उत्तर- हैड को मुण्डेर से ढाई फीट से चार फीट तक ऊपर रखना चाहिये अधिक नहीं।

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इस्के प लैडर

प्रश्न- इस्के प लैडर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष सीढ़ी है जो 50 फीट (15 मी0) तक जा सकती है।3 भागों में होती है और स्टील रोप द्वारा घटाई बढाई जाती है। सीढी दो बड़े पहियों पर
रखी होती है। इन्हीं पहियों के द्वारा एकस्थान से दूसरे स्थान तक सुगमता से ले जायाजा सकता है। इसे "व्हील्डइस्के प" भी कहते हैं। घटना स्थल पर इस सीढ़ी को
एक विशेष गाड़ी पर लाधकर ले जाया जाता है। इस गाड़ी को "इस्के पकै रियर” कहतेहैं।

प्रश्न- इस्के प लैडर के मुख्य-मुख्य-भागों के नाम बताओ


उत्तर- सामान्य लैडर की भाँति राउण्ड, स्ट्ग्सि, पाल्स, पुली और रोप(वायररोप) के अतिरिक्त मैन लैडर, मिडिल एक्सटेन्शन, अपर-एक्सटेन्शन,
स्लाइडिंगकॅ रेंज, कै रेजव्हील, वुडनचोक, कै रिजगैयर, विचहैण्डिल, बैंकफ्लाई या लीवर आर्म्स एक्सटेण्डिग गेयर, हीलबोर्ड, लीवरकील, लीवरस्टेड्रापबोल्ट, गाईवायर,
हैड-आयरनएण्डरोलर्स, गाइडब्रेकिट, वायरके बिल, पुलीड्र म, प्लम्बिंगगेयर, पाजिटिवपॉलऔरस्टीलजॉइत्यादि।

प्रश्न- स्लाइडिंग कै रिज किसे कहते है?यह क्या काम करता है


उत्तर-सीढ़ी के तीनोंभाग एक विशेष आधार पर रखेरहते हैं। इसपर मुख्यसीढी आगे पीछे खिसक सकती है तथा सीढ़ी का बैंड ऊपर नीचे होसकता हैं इस आधार को
स्लाइडिंग कै रिज कहते हैं।

प्रश्न- कै रिज गेयर किसे कहते हैं? यह क्या काम करता है


उत्तर- कै रिज पर मेन लैडर को आगे पीछे खिसकाने या सीढ़ी के हेड को ऊपर नीचे करने के लिये कै रिज गेयर लगाया जाता है। कै रिज गेयर इस पर एक के बिल
(वायर रोप) लपेटा रहता है। जिसका सिरा धिरियों में होता हुआ मेन लैडर की हील में लगे हुक में फँ सा रहता है। जब कै रिज गेयर के हैण्डिल को घुमाते है तो कै रिज
ड्र म पर कै बिल लिपटने लगता है और लैडर की हील, लीवर व्हीलों के सहारे खिसकती हुई कै रेज कीलों के निकट आने लगती है। साथ ही साथ लेंडर का हेड ऊपर
को उठने लगता है और 75o कोण तक उठ जाता है। सीढ़ी के हेड को नीचा करने के लिये हैण्डिल को उल्टा घुमाते हैं। लैडर अपने भार के कारण लीवर कील द्वारा
पीछे की ओर खिसकने लगती है और निर्धारित स्थान पर आकर रुक जाती है। लैडर का हेड भी नीचे होता जाता है।

प्रश्न- एक्स्टेंन्डिंग गेयर किसे कहते हैं? ये कै से कार्य करता है?


उत्तर- सीढी को बढ़ाने घटाने के लिये एक्सटेंन्डिंग गेयर प्रयोग किया जाता है। एक के बिल, एक्सटैण्डिंग गेयर ड्र म पर लपेटा रहता है। इसका दूसरा सिरा हील
बोर्ड पर लगी घिरों से होकर, मैन लैडर के नीचे से होता हुआ, मैन लैडर के ऊपरी राउण्ड में बंधी पुली (घिर्री) से निकलकर, मिडिल एक्सटेन्शन के सबसे निचले
राउण्ड में लगे हुक पर बँधा रहता है। इसका दूसरा सिरा मिडिल एक्सटेन्शन के ऊपरी राउण्ड पर लगी घिर्री पर से होता हुआ अपर एक्सटेन्शन के सबसे निचले
राउण्ड में लगे हुक पर बँधा रहता है।
जब एक्सटैन्डिंग गेयर के विंच हैण्डिल को घुमाया जाता है। पहला के बिल एक्सटेन्डिंग गेयर ड्र म पर लिपटता जाता है तार का दूसरा सिरा मध्य लैडर को ऊपर खींचने
लगता है। मध्य लैडर के ऊपर बढ़ने से दूसरे के विल पर तनाव पड़ता है। फलस्वरूप अपर एक्सटेन्शन भी साथ-साथ ऊपर बढ़ने लगता है। इस प्रकार मध्य और
ऊपरी पार्ट बढ़कर सीढ़ी को आगे बढ़ाने लगते हैं। लैडर के पाल्स द्वारा सीढ़ी को वाँछित ऊँ चाई पर रोका दिया जाता है।
सीढ़ी को नीचे करने के लिये एक्सटेन्डिंग गेयर को उल्टा घुमाते हैं। सीढ़ीअपने भार द्वारा नीचे घटती जाती है।

प्रश्न- बैक फ्लाई या लीवर आर्म्स किसे कहते है


उत्तर- मुख्य सीढ़ी की हील पर समकोण बनाते हुये दो अतिरिक्त इण्डे लगाये जाते हैं। इनसे लैडर को सम्भालने में बहुत सहायता मिलती है। इन्हें बैंक फ्लाई या
लीवर आर्म्स कहते हैं। प्रत्येक डण्डा सीढ़ी की प्रत्येक स्टिंग से कब्जों द्वारा जुड़ा रहता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर इन्हें मोड़ कर मेन लैडर से मिलाकर रखा जा
सके ।

प्रश्न- लीवर स्टे किसे कहते है


उत्तर- काम के समय लीवर आर्म्स को सीढ़ी से समकोण स्थिति में रखने के लिये दो छड़ें लगी रहती हैं। इन्हीं को लीवर स्टे कहते हैं।

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प्रश्न- गाई वायर किसे कहते हैं
उत्तर- मुख्य सीढ़ी के हैड से दोनों ओर लीवर आर्म्स तक दो वायर बंधे रहते हैं जो सीढ़ी को बढ़ाते समय मुख्य सीढ़ी को सम्भालने में सहायक होते हैं। इन्हें गाई
वायर कहते हैं।

प्रश्न- स्के प लैडर में सुरक्षा के लिये क्या-क्या व्यवस्थायें हैं


उत्तर- सुरक्षा के लिये कई व्यवस्थायें की गई हैं जैसे फ्रिक्शन ब्रेक पाजिटिव पाल और लैडर पाल्स इत्यादि।

प्रश्न- पाजिटिव पाल किसे कहते हैं ? किस प्रकार कार्यकरता है


उत्तर- कै रेज गेयर व एक्सटैण्डिंग गेयर को घुमाने वाले हैण्डिल को घुमानें में अधिक शक्ति न लगे तथा हैण्डिल उल्टा घूमकर चोट न पहुँचाये , इसलिये इन गेयरों
की घूमने वाली शाफ्ट पर विशेष दॉतेदार गरारी लगाई जाती है तथा उसके दाँतों में गुटका फँ सा रहता है जो शॉफ्ट को के वल एक ही ओर घूमने देता है। उल्टा नहीं
घूमने देता। उल्टा घुमाने के लिये इस गुटके को दाँतों से हटाया जाता है। इसी गुटके को पॉजिटिव पॉल कहते हैं।

प्रश्न- फ्रिक्शन ब्रेक किसे कहते है


उत्तर- सुरक्षा की एक दूसरी व्यवस्था फ्रिक्शन ब्रेक है जो कै रिज गेयर और एक्सटेण्डिंग गेयर्स के हैण्डिल को उल्टा घुमाने में सहायक होता है। एक विशेष ड्र म पर
ब्रेक सिस्टम लगा होता है जो गेयर शाफ्ट को एक ओर तो फ्री घूमने देता है परन्तु दूसरी और उल्टा घुमाने पर ब्रेक लगाकर रोक देता है। और हैण्डिल द्वारा घुमाये जाने
पर ही धीरे-धीरे घूमने देता है। इस प्रकार पॉजिटिव पाल को हटा देने से हैण्डिल पर जब लैडर का भार पड़ने लगता है। उसे फ्रिक्शन ब्रेक सहन कर लेता है, और
फायरमैन को कार्य करने में सुविधा प्रदान करता है।

प्रश्न- लैडर पाल्स किसे कहते हैं


उत्तर- लैडर को वांछित ऊँ चाई पर रोकने के लिये लैडर पाल्स लगे होते हैं। इनके लगते ही लैडर का भार एक्सटेण्डिंग के बिल पर नहीं रहता। आधुनिक सीढ़ियों में
स्वयं चालित लैडर पाल्स होते हैं। जो प्रत्येक बढ़ने वाली सीढ़ी की हील के पास लगे होते हैं। पाल्स लगाने के लिये सीढ़ी को थोड़ा ऊपर खींचा जाता है।
प्रश्न- प्लम्बिंग गेयर किसे कहते हैं
उत्तर- जब सीढ़ी को किसी ऊँ चे नीचे या ढलवां स्थान पर लगाया जाता है तब सीढ़ी का हैड भी तिरछा हो जाता है। तिरछी सीढ़ी पर चढ़ना खतरनाक होता है।
इस समस्या को हल करने के लिये लैडर में विशेष यन्त्र व्यवस्था की गई है जिसके द्वारा लैडर को बिना हटाये उसी स्थान पर समायोजित कर सीधा कर लिया जाता है।
इसी यन्त्र व्यवस्था को प्लम्बिंग गेयर कहते हैं। इसके द्वारा लैडर के हैड को सात डिग्री इधर या उधर किया जा सकता है।

प्रश्न- इस्के प माउन्टिंग्स से क्या समझते हो


उत्तर- इस्के प लैडर को किसी विशेष गाड़ी (स्के प कै रियर) पर लाध कर ले जाने के लिये विशेष यन्त्र व्यवस्था की जाती है। जैसे माउन्टिंग जॉ , और स्विगिंग जो
लैडर को इस्के प कै रियर के पीछे बने विशेष ब्रेकिट (ट्रेनियनबार) पर सरलता से टॉगने में सहायक होते हैं। लैडर का हैड ड्राइवर के विन की छतपर रखकर हैड
सिक्योरिंग गेयर द्वारा भली-भाँति बाँध दिया जाता है। इस सारी यन्त्र व्यवस्था को स्के प माउन्टिंग्स कहते हैं।

प्रश्न- इस्के प लैडर प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँबरतनी चाहिये


उत्तर- 1.लैडर को एप्लाइन्स से सावधानी पूर्वक उतारना चाहिये। एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिये , हैड को नीचा करके कै रिज व्हीलों पर ढलका
कर ले जाना चाहिये।
2.लैडर को मोड़ते या घुमाते समय लीवर व्हील को जमीन से उठालेना चाहिये।
3.जिस खिड़की पर लैडर लगाना हो, उसकी सीध में पहिये का धुरा आते ही लैडर को रोकिये। तत्पश्चात् घुमाइये।
4.लैडर को ऊपर बढ़ाते समय ध्यान रखिये कि लैडर का हैडमुण्डेर से कम से कम तीन राउण्ड ऊपर रहे।
5.लैडर का पाल लगाते समय देखिये कि प्रत्येक लैडर के राउण्ड एक सीध में आ जानेपर ही पाल फँ सें।
6.कै रिज व्हील में चोक लगाते समय एक हाथ से लैडर स्थिर रखिये तथा दूसरे से चोक लगाइये।
7. यदि लैडर में ड्राप वोल्ट लगे हैं तो उन्हें भी प्रयोग कीजिये ।
8.दीवार में लैडर लगाने के पश्चात्देखिये कि दोनों कै रिज व्हील व लीवर व्हील भूमि पर ही टिके हों। यदि उसमें से कोई भूमि से ऊपरटंगार हजाता है तो समझिये कि
लैडर सही-नहीं लगा है । उसपर चढ़ना भी खतरनाक होगा ।
9. लैडर को वापस उतारते समय सर्वप्रथम लैडर के हैड को भवन से अलग कीजिये तथा उस के बाद ही लैडर को नीचा कीजिये ।
10.यदि एक्सटेण्डिंग के बिल ढीला या लटकता हुआ दिखाई दे तो समझिये कि लैडर का ऊपरी भाग कहीं फँ स गया है। जो किसी भी समय खिसक कर लैडर व क्र्यू
के सदस्यों को खतरा पैदा कर सकता है।

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11.रात के समय लीवर आर्म्स के आस-पास लैम्प आदि की व्यवस्था होनी चाहिये । ताकि आने-जाने वाली गाड़ियों से टक्कर न लगे।

प्रश्न- फायरमैन लिफ्ट से रेस्क्यू करते समय क्या सावधानी रखेंगे


उत्तर- फायरमैन लिफ्ट द्वारा रेस्क्य के समय लैंडर के दाहिनी ओर से ही नीचे उतरना चाहिये। सुविधा के लिये दाहिनी ओर का गाई वायर भी निकाला जा सकता
है। दाहिनी ओर से उतरकर बायें से पीछे धूमिये ताकि कॅ ज्युल्टी का सिर कै रेज व्हील से न टकराये।

प्रश्न- इस्के प लैडर की देख-रेख किस प्रकार होनी चाहिये ?


उत्तर- लैडर की समय-समय पर वारीकी से जाँच करना चाहिये। मुख्यतः उसके एक्सटेण्डिंग और कै रिज के बिलों की दशा देखते रहिये । प्रत्येक भाग की भली
भाँति सफाई आवश्यक है। हरकत करने वाले पुर्जों में ग्रीसिंग , आयलिंग, करते रहिये। नट वोल्ट चैक कीजिये ढीले हो तो कसिये। लेडर को ड्रि ल आदि में प्रयोग करते
रहना चाहिये।

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टर्न टैबुल लैडर

प्रश्न- टर्न टैबुल लैडर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष सीढ़ी, जिसे सौ फीट तक बढ़ाया जा सकता है। एक गाड़ी पर के वल एक ही सीढ़ी फिट रहती है। यह मैके निकल अथवा हाइड्रॉलिक प्रणाली पर
चलती है। गाड़ी को एक स्थान पर खड़ा करके लैडर को चारों ओर घुमाकर किसी भी ओर लगाया जा सकता है। इसे किसी भवन पर बिना टिकाये भी प्रयोग किया जा
सकता है। सामान्यतः लैडर के हैड पर मानीटर भी फिट रहता है और हैड की ऊँ चाई से भी पानी फें का जा सकता है।

प्रश्न- टर्न टैबुल लैडर के मुख्य मुख्य भागों के नाम बताइये


उत्तर- लैडर चार भागों में होती है। मैन लैडर, फर्स्ट एक्सटेन्शन, सेकिण्ड एक्सटेन्शन, और टॉप एक्सटेन्शन, जैक्स, टर्न टैबुल, फलक्रम फ्रे म, टूनियन,
मॉनीटर, प्लम्बिंग गेयर, सेफ्टी डिवाइसेंज और एक्सिल लॉकिं ग डिवाइसेज इत्यादि।

प्रश्न- टर्न टेबुल किसे कहते है


उत्तर- गाड़ी की चेसिस पर रियर एक्सिल के ऊपर, एक विशेष आधार, बोल्टों द्वारा कसा रहता है। इसी आधार पर एक अन्य आधार रहता है। जो चारों ओर घूम
सकता है। इसी को टर्न टैबुल कहते हैं। इसी टर्न टैबुल के ऊपर फलक्रम फ्रे म फिट रहता है।

प्रश्न- फलक्रम फ्रे म किसे कहते हैं


उत्तर- गाड़ी के पीछे की ओर ठीक रियर एक्सिल के ऊपर बने टर्न टैबुल पर स्टील का मजबूत आधार है। जिस पर सीढी रखी रहती है। यह सीढ़ीका भार सहन
करता है। साथ ही साथ इसके अन्दर लैडर प्रयोग करने वाले पत्र इत्यादि भी रहते हैं।

प्रश्न- स्विगिंग फ्रे म किसे कहते हैं


उत्तर- फलक्रम फ्रे म के सबसे ऊपरी भाग पर बैरिंग अथवा टू नियन पर एक अन्य फ्रे म बंधा होता है। इसी को स्विगिंग अथवा इलैवेटिंग फ्रे म कहते हैं।

प्रश्न- टर्न टेबुल लैडर के मुख्य मुख्य सेफ्टी डिवाइसेज बताइये


उत्तर- 1. लिमिटस्टाप, 2. इण्टरमीडियटस्टाप । 3. इम्पैक्टस्टाप

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प्रश्न- लिमिट स्टाप से क्या समझते हो


उत्तर- इन यन्त्रों द्वारा लैडर की चाल को धीमा अथवा चाल को सीमा लाँधने से रोक जा सकता है , जब लैडर को ऊँ चा (इलेवेशन) नीचा (डिप्रेशन) पा बढ़ाया
जा रहा हो (एक्सटेंशन) ।

प्रश्न- इन्टरमीडियट स्टॉप से क्या समझते हो


उत्तर- लैडर के एक्सटेन्शन और डिप्रेशन को सीमित करने के लिये, होता है। ताकि लेडर में स्थिरता बनी रहे जबकि लैडर को चेसिस के विपरीत प्रयोग किया जा
रहा हो। यह के वल एक व्यक्ति के भार की सीमानुसार कार्य करता है, इसे सेफ्टी स्टॉप भी कहते हैं।

प्रश्न- इम्पैक्ट स्टॉप किसे कहते हैं


उत्तर- लैडर के प्रयोग करते समय बीच में किसी अवरोध के आ जाने पर उससे टकराने से बचाने के लिये जो व्यवस्था की गई है उसे इम्पैक्टस्टाप कहते हैं।

प्रश्न- टर्न टेबुल लैडर में जैक कहाँ लगे होते हैं? और क्यों
उत्तर- गाड़ी की चेसिस में पिछले पहियों के आगे व पीछे चार जैक लगे होते हैं। जिन्हें लैडर प्रयोग करते समय लगा दिया जाता है। ताकि लैडर को ठोस आधार
मिले और पहियों या रोड स्प्रिंगों पर भार भी न पड़े।

प्रश्न- एक्सिल लॉकिं ग डिवाइस का क्या अर्थ है


उत्तर- इस व्यवस्था में स्टील के दो हुक अथवा क्ले म्प्स लगे होते हैं। जिन्हें एक विशेष लीवर द्वारा पिछले एक्सिल में फँ सा दिया जाता है। ताकि बढ़ाई हुई लैडर के
किसी ओर झुकने और स्प्रिंगों पर उठने से कोई कठिनाई न हो।

प्रश्न- लैडर को आपरेट करने वाले पावरटेक ऑफ यदि कार्यन करे तो क्या करेंगे ?
उत्तर- आपात कालीन स्थिति के लिये लैडर को हाथों द्वारा भी आपरेटकरने की व्यवस्था रहती है।

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पम्प और प्राइमर

प्रश्न- पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- पम्प उस मशीन को कहते हैं जो किसी बाहरी शक्ति से चलाई जाती है और अपनी विशेष बनावट द्वारा तरल पदार्थ को तेजी से बहने की शक्ति प्रदान करती
है। यह बाहरी शक्ति, मुनष्य के हाथों द्वारा अथवा पैट्रोल, डीजल इन्जन या बिजली के मोटर की हो सकती है।
पम्प एक यांत्रिक युक्ति है जो गैसों व द्रवों को धके लकर विस्थापित करने के काम आती है। दूसरे शब्दों में, पम्प तरल को कम दाब के स्थान से अधिक दाब के स्थान पर
धके लने का काम करता है।

प्रश्न- पम्प कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- सैद्धान्तिक रूप से पम्प पाँच प्रकार के होते हैं

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1.फोर्सपम्प 2.लिफ्ट पम्प 3. बके टएण्डप्लंजरपम्प 4. रोटरी पम्प 5. सैन्ट्रीफ्यूगलपम्प।

प्रश्न- फोर्स पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- यह सबसे पहले ईजाद हुआ। पिचकारी की भाँति काम करता है, गोलाकार स्थान (बैरल) में ठोस पिस्टन के खींचने पर हवा को खींचता तथा दबाने पर
हवा को बाहर फें क देता है। सारी हवा निकल जाने पर वायु मण्डल के दबाव द्वारा पानी बैरल में आ जाता है। दबाव पड़ने पर बाहर निकलने लगता है। हवा और पानी
प्रवेश करने के मार्ग को इनलेट और बाहर निकलने के मार्ग को आउटलेट कहते हैं। दोनों भागों पर नान रिटर्निंग वाल्व लगे होते हैं। यानी इनलेट में आया हुआ पानी
वापस बाहर नहीं जाता। उसी प्रकार आउटलेट से निकला हुआ पानी फिर वापस अन्दर नहीं जा सकता।

प्रश्न- लिफ्ट पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- यह पम्प भी फोर्स पम्प की भाँति होता है। परन्तु इसका पिस्टन ठोस न होकर बीच में पोला होता है तथा उसमें नॉन रिटर्निग वाल्व लगा होता है। जब
पिस्टन को बाहर खींचते हैं इनलेट का वाल्व खुल जाता है। और पिस्टन का वाल्व बन्द रहता है। फलस्वरूप पिस्टन , ठोस पिस्टन के रूप में कार्य करते हुये हवा को
खींचता है। पिस्टन को वापिस दबाने पर पिस्टन का वाल्व खुल जाता है। फलस्वरूप पम्प में आई हुई हवा बाहर न जाकर पिस्टन के बीच से बाहर निकलकर दूसरी
ओर चली जाती है तथा इसी ओर स्थित आउटलेट से बाहर निकल जाती है। इसी प्रकार की कई हरकतों द्वारा पम्प से सारी हवा निकल जाने के पश्चात् वायुमण्डल के
दबाव से पम्प में पानी आने लगता है। और दबाब पाकर बाहर निकलने लगता है। नगरों में पानी के हैण्ड पम्प इसी प्रणाली पर कार्य करते हैं।

प्रश्न- बके ट एण्ड प्लंजर पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- फोर्स पम्प और लिफ्ट पम्प को मिलाकर बके ट एण्ड प्लंजर पम्प बनता है। इसका पिस्टन भी बीच में खोखला होता है और नॉन रिटर्निग वाल्व से बन्द रहता
है। इनलेट में भी नॉन रिटर्निंग वाल्व लगा रहता है। यह पम्प खींचने और दबाने पर पानी पम्प करता है। इसमें और लिफ्ट पम्प में के वल यह अन्तर होता है कि इसका
पिस्टन मोटे पाइप या प्लंजर से बंधा होता है, जबकि लिफ्ट पम्प का पिस्टन एक पतली छड पर बंधा रहता है। और जब ऊपर नीचे होता है तो मोटा पाइप स्वयं जगह
घेरकर पानी में दबाव पैदा करता है और आउटलेट से तेजी से पानी बाहर निकालने में सहायक होता है। स्ट्रप पम्प में बके ट एण्ड प्लंजर टाइप पम्प ही कार्य करता है।

प्रश्न- रोटरी पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- इस टाइप के पम्प में एक कोष्ठ (चैम्बर) के अन्दर धातु के बने दो विशेष आकार प्रकार के चक्के गोलाई में घूमते हैं। तरल पदार्थ को चैम्बर में एक ओर बने
इनलेट से खींचकर, दूसरी और बने आउटलेट से धके लकर बाहर कर देते हैं।पैट्रोल इंजन में आयल सरक्यूलेटिंग के लिये इसी प्रकार के पम्प प्रयोग किये जाते हैं।

प्रश्न- सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रकार के पम्प में किसी पिस्टन प्लंजर या राड की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह सैन्ट्रीफ्यूगल फोर्स सिद्वान्त पर कार्य करता है (सिद्धान्त यह है
कि -“प्रत्येक चक्कर काटती हुई वस्तु की, अपने चक्र के के न्द्र से दूर भागने की
प्रवृत्ति-होती-है।")
इस पम्प में एक विशेष आकार प्रकार का गोल चक्का एक धुरी पर तीव्रता से घूमता है। यह चक्का अन्दर से खोखला होता है। के न्द्र पर एक ओर थोड़ा खुला रहता है
तथा अपनी परिधि पर भी खुलार हता है। इसेइम्पेलरकहतेहैं।
इम्पेलर अपने के न्द्र में मिले पानी को घूमने की गति द्वारा परिधि के खुले भाग में से तीव्रगति से चारों और फें कता है। इम्पेलर को एक विशेष प्रकार के कोष्ठ (चैम्बर) में
बन्द रखते हैं। जो इम्पेलर द्वारा फें के हुये पानी को घेरकर के वल एक ओर से बाहर निकलने देता है। चैम्बर को "इम्पेलर हाउजिंग" या वाल्यूट कहते है। अपनी विशेष
बनावट के कारण इम्पेलर हाउजिंग में इम्पेलर द्वारा तीव्र गति से फें का गया पानी दवाव युक्त होकर आउटलेट से बाहर निकलता है।
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आजकल प्रत्येक पम्प मशीन में सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प ही प्रयोग किये जाते हैं। यह बनावट में सरल, कार्य क्षमता में उत्तम होते हैं। यह पम्प हर प्रकार के इन्जिन के साथ
फिट किया जा सकता है।
सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प में हवा को खींचने की क्षमता नहीं होती इसके इम्पेलर तक किसी प्रकार पानी पहुँचाना पड़ता है। इम्पेलर इस पानी को तेजी से बहने की शक्ति प्रदान
कर देता हैं।

प्रश्न- सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प के इनलेट तक पानी पहुँचाने के क्यासाधन हैं


उत्तर- पम्प इनलेट तक पानी पहुचाने के दो साधन हैं-
1.पम्प को पानी के लेबिल से नीचे लगाकर, ताकि पानी अपने आप बह कर इन लेट में पहुँच जाये। इसे फीडिंग –बाई-प्रेविटेशनकहतेहैं।
2.जब पानी का लेबिल पम्प इनलेट से नीचे हो, तब वायुमण्डल के दबाव से लाभ उठाते हुये पानी को इनलेट तक पहुँचाया जाताहै। इसे फीडिंग बाई एटमास्फरिक
प्रेशरकहतेहैं। इस प्रणाली में पानी की सतह से पम्प इनलेट तक के स्थान , यानी सक्शन पाइप की हवा को बाहर निकालकर हवा से शुन्य कर दिया जाता है। पानी की
सतह पर हवा कादवाव पड़ता है। फलस्वरूप यह हवा से शून्य स्थान की ओर बढ़ता है। अथवा इस दबाव के कारण पानी सक्शन से होता हुआ इम्पेलर के इनलेट तक
चला जाता है। इम्पेलर इस पानी को ते बहने की शक्ति प्रदान करता है।

प्रश्न- प्राइमिंग से क्या समझते हो


उत्तर- वह कार्य प्रणाली जिसके द्वारा सक्शन पाइप और पम्प कें सिंग के अन्दरकी हवा खींचकर बाहर करदी जाती है और उसमें वैक्यूम (हवा से शून्य स्थान) बन
जाता। है। फलस्वरूप वायुमण्डल के दबाव से पानी सक्शन से होता हुआ , पम्प के सिंग एवं इम्पेलर के हवा से शून्य स्थान को , भरता हुआ चला जाता है। इसी पानी को
सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प का इम्पेलर, तेजी से बहने की शक्ति प्रदान करता है।

प्रश्न- सप्लीमेन्टरी प्राइमर किसे कहते है


उत्तर- सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प में हवा को खींचने की क्षमता नहीं होती है। अतः इनके इनलेट तक पानी पहुचाने के लिये अथवा सक्शन और पम्प कसिंग की हवा
खींचने के लिये अलग से प्राइमिंग प्रणाली की व्यवस्था करनी होती है इसी को सप्लीमेन्टरी प्राइमर कहते हैं।
फोर्स पम्प, लिफ्ट पम्प, बके ट एण्ड प्लंजर पम्प और रोटरी पम्प हवा खींचने का कार्य स्वयं कर लेते हैं। अतएव इन्हें सैल्फ प्राइमिंग पम्प भी कहते हैं।

प्रश्न- रिसिप्रोके टिंग पम्प से क्या समझते हो


उत्तर- वे पम्प जिनमें पानी आगे पीछे या ऊपर नीचे, धक्का देकर सीधी चाल मे आता जाता है। रिसिप्रोके टिंग पम्प कहलाते हैं। जैसे फोर्स पम्प, लिफ्ट पम्प और
वके टएण्ड प्लंजर टाइप।

प्रश्न- रिसिप्रोके टिंग पम्प के गुण और दोष बताइये


उत्तर - गुण :
1. इन में प्राइमिंग की आवश्यकता नहीं पड़ती ।
2. उच्चस्तर की कार्य क्षमता वाले होते हैं।
दोष :
1.पानी का बहाव झटका युक्त होता है।
2.पानी का बहना बन्द करने के लिये इन्जन भी बन्द करना पड़ता है ।
3.पम्प का आकार बहुत बड़ा होता है ।
4.अधिक वाल्व व्यवस्था होने से कठिनाई होती है।
5. आधुनिक तीव्र गति से चलने वाले इन्जन के साथ प्रयोग करने में कठिनाई होती है।

प्रश्न- रोटरी पम्प के गुण व दोष बताइये?


उत्तर- गुण :
1. प्राइमिंग की आवश्यकता नहीं
2 बहाव सुगम होता है ।
दोष :
1. पानी का बहाव रोकने के लिये इन्जन भी बन्द करना पड़ता है ।
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2. कार्यक्षमता निम्नस्तर की होती है ।
3.पानी में मिला कं कड-पत्थर मशीन को खराब कर देता है ।

प्रश्न- सैन्ट्रीफ्यूगलपम्पके गुणऔरदोषबताइये


उत्तर- गुण :
1.बनावट में छोटा होता है। कम स्थान घेरता है ।
2.पानी का बहाव निरन्तर व धक्का रहित होता है ।
3.पानी का बहना रोकने के लिये इन्जन बन्द नहीं करना पड़ता ।
4.किसी भी इन्टरनल कम्बश्चन इन्जन या बिजली की मोटर के साथ सीधे जोड़ा जा सकता है।
5.इसका रख रखाव भी सरल है। चलाने में भी खराब होने की सम्भावना कम रहती है।
6.अन्य पम्प की अपेक्षा सरल और सुगम होता है।
दोष :
1.प्राइमिंग सिस्टम की अलग से व्यवस्था करनी होती है।
2.रिसिपरोके टिंग पम्प की अपेक्षा कार्य क्षमता कम है ।

प्रश्न:- प्राइमिंग सिस्टम कितने प्रकार के होते हैं

उत्तर- सैद्धान्तिक रूप से प्राइमिंग सिस्टम 5 प्रकार के होते हैं -

1. रिसिपरोके टिंग प्राइमिंग सिस्टम।

2. रोटरी टाइप प्राइमिंग सिस्टम।

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3. एक्झास्ट इजैक्टर प्राइमिंग सिस्टम।

4. मैनीफोल्ड इन्डक्शन प्राइमिंग सिस्टम

5. वाटर सील प्राइमिंग सिस्टम।

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प्रश्न:- रिसिप्रोके टिंग प्राइमिंग सिस्टम किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रकार के प्राइमर में एक या दो पिस्टनों वाले फोर्स पम्प लगे होते हैं। में फोर्स पम्प के इनलेट, पाइपों द्वारा मुख्य पम्प कें सिग से जुड़े रहते हैं। ये पम्प,
फ्रिक्शन क्लच अथवा फ्रिक्शन ड्राइव व्हील प्रणाली द्वारा मुख्य पम्प की ड्राइविंग शाफ्ट द्वारा ही चलते हैं। आवश्यकता पड़ने पर एक लीवर द्वारा प्राइमर को चालू कर
दिया जाता है और सक्शन व पम्प कैं सिंग की हवा खींच ली जाती है। पम्प इनलेट तक पानी पहुंचने अथवा मेन पम्प द्वारा पानी पकड़ लेने के तुरन्त बाद उसी लीवर
द्वारा प्रणाली को ड्राइविंग शाफ्ट से अलग करके बन्द कर दिया जाता है।
रिसिप्रोके टिंग प्राइमिंग सिस्टम की हवा खींचने की क्षमता अन्य प्रणालियों से उत्तमहोती है।

प्रश्न:- रिसिप्रोके टिंग प्राइमिंग सिस्टम के गुण व दोष बताइये?


उत्तर- गुण :
1. कार्य करने में सरल होता है।
2. हवा खींचने में सक्षम होता है।
3. उच्च स्तर की कार्य क्षमता होती है।
4.इंजन की सामान्य धीमी गति पर ही कार्य करता है।
दोष :
1.मशीन भारी व अधिक स्थान घेरती है।
2. हरकत करने वाले पुर्जे अधिक होने के कारण घिसघिसाव भी अधिकहो सकता है।

प्रश्न:- रोटरी टाइप प्राइमिंग सिस्टम का वर्णन करो ?


उत्तर- ये दो प्रकार के होते हैं
1. सिलाइडिंग वेन टाइप रोटरी प्राइमर
2. वाटर रिंग टाइप रोटरी प्राइमर
1. सिलाइडिंग वेन टाइप रोटरी प्राइमर इसमें एक विशेष आकार के कै सिंग में एक बेलनाकार रोटर घूमता है। रोटर में खांचे बने होते हैं। इन खाँचों में फिसलने वाली
पट्टियाँ पड़ी होती हैं। जो रोटर घूमने पर बाहर की ओर खिसक कर के सिंग से छू ती हुई घूमती है तथा अपने साथ हवा को भी खींचती है। के सिंग का हवा खींचने वाला
इनलेट मुख्य पम्प की के सिंग से पाइप द्वारा जोड़ दिया जाता है। प्राइमर का रोटर फ्रिक्शन ड्राइव व्हील प्रणाली द्वारा मुख्य पम्प की ड्राइविंग शाफ्ट से ही घूमता है।
आवश्यकता पड़ने पर एक लीवर द्वारा प्राइमर को चलाया जाता है। कभी -कभी इजिन की स्पीड द्वारा अपने आप ही चालू हो जाता है और सक्शन व पम्प कै सिंग की
हवा अपने आप खीचने लगता है तथा पम्प इम्पेलर तक पानी पहुंचते ही अथवा पम्प द्वारा पानी पकड़ते ही आप ही आप अलग हो जाता है अथवा उसी लीवर द्वारा
अलग कर दिया जाता है।

2. वाटर रिंग टाइप रोटरी प्राइमर- इसमें एक खोखला इम्पेलर विशेष अण्डाकार हाउसिंग में घूमता है। इसी हाउसिंग में विशेष प्रबन्ध (स्टेशनरी बॉस) रहता है। जिसमे
दो सक्शन व दो डिलीवरी पोर्ट (छेद) होते हैं। ये मुख्य पम्प से सम्बन्धित रहते है। इसप्रणाली में थोड़ा सा पानी पहले से ही भर कर रखते हैं।
जब इम्पेलर घूमता है। पानी को सैन्ट्रीफ्युगल फोर्स द्वारा अण्डाकार हाउसिंग में फें कता है। हाउसिंग में पानी का रिंग बन जाता है। अपनी विशेष बनावट के कारण यह
पानी का रिंग सक्शन पोर्ट (छेद) से हवा खींचता है। और डिलीवरी वाले छेद से बाहर फें कता है।
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आजकल इसी प्रकार के रोटरी प्राइमर प्रयोग में लाये जा रहे हैं। ये भी फ्रिक्शन व बील प्रणाली द्वारा मेन पम्प शाफ्ट, या इंजन द्वारा ही चलते हैं।

प्रश्न- रोटरी टाइप प्राइमिंग सिस्टम के गुण और दोष बताइये ?


उत्तर- गुण :
1 बनावट में छोटा और कम जगह घेरता है ।
2. इन्जन की सामान्य स्पीड पर कार्य करता है ।
3. सरल और सुगम होता है । तुरन्त पानी उठाता है।
दोष :
1.हरकत करने वाले पुर्जों में मामूली घिसावट आने पर ही हवा खींचने की क्षमता कम हो जाती है।
2. सिलाइडिंग वेन्स चिपके रहकर कार्य क्षमताको कम कर देते हैं।
3 तनिक सी धूल, प्रणाली में रहजाने से खराब हो जाता है ।

प्रश्न- एक्जास्ट इजैक्टर प्राइमिंग सिस्टम का वर्णन करो


उत्तर- इस प्रकार के प्राइमिंग सिस्टम में इंजन की जली हुई (एक्जास्ट) गैसों को उसके सामान्य मार्ग से हटा कर एक विशेष चैम्बर में स्थित बहुत पतले नाजुल
(इजैक्टर जैट) से निकालते हैं। गैस की तीव्र गति के फलस्वरूप नाजुल के आस पास की हवा भी इस गैसके साथ खिची चली जाती है। इस चैम्बर को एक पाइप द्वारा
पम्प के सिंग से जोड़े रखते हैं।
आवश्यकता पड़ने पर एक लीवर द्वारा प्राइमर को चालू किया जाता है। यह लीवर गैस के सामान्य मार्ग को बन्द करके गैस को इजैक्टर जैट से बाहर जाने देता है। साथ
ही साथ पंप कें सिंग से जुड़े पाइप का मार्ग इर्जेक्टर जैट के चारों और बने चैम्बर के लिये खोल कर रखा जाता है। इस प्रकार सक्शन व पंप के सिंग की हवा खींच ली
जाती है। हवा खिचने के बाद वायुमण्डल के दबाव द्वारा पम्प इनलेट तक पानी पहुँचने अथवा पंप के पानी पकड़ लेने के तुरन्त बाद इसी लीवर द्वारा गैस के सामान्य
मार्ग को पुनः खोल दिया जाता है और प्राइमिंग प्रणाली को बन्द कर दिया जाता है।

प्रश्न- एक्जास्ट इजैक्टर प्राइमिंग सिस्टम के गुण व दोष बताइये?


उत्तर - गुण :
1. काम करने में सरल एवं प्रभावशाली होता है ।
2. टूट-फू ट का खतरा भी नहीं होता है ।
दोष :
1. रिसप्रोके टिंग प्राइमर की तुलना में कार्य क्षमता निम्नस्तर की है ।
2.इंजन को पूर्ण गति (फु लग्राल) परचलाना होता है ।
3.पम्प आप्रेटर को काफी सूझ-बुझ वाला होना चाहिये ।
4.अधिक गति से चलाने के कारण गिलैण्ड पैकिं ग प्रभावित होती है ।उसके खराब होने की सम्भावना रहती है।

प्रश्न- मैनीफोल्ड इन्डक्शन प्राइमिंग सिस्टम का वर्णन करो


उत्तर- इस प्रकार के सिस्टम में इंजन के इण्डक्शन सिस्टम को काम में लाया में जाता है। एक विशेष व्यवस्था द्वारा इण्डक्शन सिस्टम को पाइप द्वारा पम्प कॅ सिंग
से जोड़ दिया जाता है। ताकि इंजन का पिस्टन बाहर से हवा लेने के बजाय पम्प कें सिंग की हवा को खींचे। ऐसी भी व्यवस्था रहती है कि इंजन में पानी भी न जाने पाये।
आवश्यकता पड़ने पर एक लीवर द्वारा इस प्राइमर को चालू कर दिया जाता है। सक्शन व पम्प कलिंग में भरी हवा को खींच लिया जाता है। पम्प इनलेट तक पानी
पहुँचने अथवा पम्प के पानी पकड़ लेने के पश्चात् इसी लीवर द्वारा प्राइमर को अलग करके बन्द कर दिया जाता है।

प्रश्न- मैनीफोल्ड इण्डक्शन प्राइमर के गुण व दोष बताइये?


उत्तर- गुण :-
1.बनावट में सरल व सुगम होता है ।
2.इंजन की सामान्य स्पीडप—ही कार्य करता है।

दोष :-
1.इंजन में पानी पहुँचने की सम्भावना रहती है।
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2.के वल फ्रन्ट माउन्टेड पम्पों के लिये ही उपयुक्त होता है।

प्रश्न- वाटर सील्ड प्राइमर का वर्णन करो

उत्तर- इस प्रकार के प्राइमर में पम्प के सिंग की बनावट विशेष प्रकार की होती है। इसमें नीचे की ओर थोड़ा पानी , हमेशा शेष बना रहता है। प्राइमर के सिंग नीचे दो
भागो. प्राइमरी घोट और सेके न्डरी थ्रोट में बँटकर ऊपर एक हो जाता है। जो सेपरेटर चैम्बर कहलाता है और इसी में आउटलेट भी होता है।
पम्प चलाये जाने पर इम्पेलर द्वारा पानी में हलचल पैदा होती है। फलस्वरूप पम्प लिंग में रुकी हवा पानी के साथ मिलकर प्राइमरी घोट द्वारा ऊपर चढ़ जाती है।
तथासैप्रेटर चैम्बर में पानी गिरता है और हवा आउटलेट से बाहर हो जाती है। पानी सैके ण्डरी थ्रोट से होकर वापस इम्पेलर के इनलेट पर पहुँच जाता है एवं पुनः हवा
को लेता हुआ प्राइमरी थ्रोट द्वारा ऊपर चला जाता है। लगातार यही क्रिया होने से सक्शन और पम्प के सिंग की हवा बाहर निकल जाती है और पानी इम्पेलर तक
पहुँचने लगता है अथवा पम्प पानी पकड़ लेता है।

प्रश्न- वाटर - सील-प्राइमिंग सिस्टम के गुण व दोष बताइये


उत्तर- गुण :
1. पोर्टेबुल पम्पों के लिये उपयुक्त है ।
2.बाहर कोई अतिरिक्त बनावट न होने के कारण इन प्राइमर युक्त पम्पोंको सैल्फ प्राइमिंग पम्प भी कहते हैं।
दोष :
1. इसकी कार्यप्रणाली अन्य प्राइमरों से धीमी है ।
2.गहराई से पानी उठाने में कठिनाई होती है।

प्रश्न- गिलैण्ड पैकिं ग से क्या समझते हो


उत्तर- एक विशेष प्रकार की पैकिं ग है जो पम्प को चलाने वाली शाफ्ट पर जहाँसे वह पम्प के सिंग के अन्दर आती है, उस स्थान पर लपेट दी जाती है ताकि वहाँ
से हवा या पानी लीक न हो और वह स्थान सही रूप में सील किया जा सके गिलैण्ड पैकिं ग को पानी से ठण्डा रखा जाता है तथा ग्रीस से चिकना रखा जाता है। ताकि
पैकिं ग, शाफ्ट के घर्षण से अधिक गर्म भी न हो पाये।

प्रश्न- गिलैण्ड पैकिं ग कितने प्रकार की होती है


उत्तर- गिलैण्ड पैकिं ग सामान्यतः "ग्रेफाइटेडकाटन", "टेलो इम्प्रेगनेटेड काटन”या“एजबेस्टसफ्लै क्स” की बनी होती है। आधुनिक पम्पों में अब सैन्थेटिक
मैटीरियल को प्रयोग किया जाता है। इसे मैके निकल सील्स भी कहते हैं।

प्रश्न- गिलैण्ड पैकिं ग कै से एडजस्ट की जाती है


उत्तर- गिलैण्ड का एडजस्टमेंट पम्पिंग करते समय करना चाहिये। यानी जब पम्प शाफ्ट घूम रही हो और पानी पंप किया जा रहा हो, तब गिलैण्ड कै पको धीरे-धीरे
इतना कसना चाहिये कि उसमें से बूंद बूंद पानी टपकता रहे तीस बूंद प्रति मिनट) इसे इतना न कसा जाये कि पानी ही न गिरे और न इतना ढीला रखा जाये कि उससे
पानी धार के रूप में गिरे।

प्रश्न- मैके निकल सील्स से क्या समझते हो


उत्तर- आधुनिक पम्पों में सैन्थेटिक मटीरियल की गिलैण्ड पैकिं ग प्रयोग की जाती है। इन्हें मैके निकल सील्स कहते हैं। इसमें लुब्रिके टिंग और एडजस्टमेंट की भी
आवश्यकता नहीं पड़ती। पम्पिंग के समय इसमें से पानी भी नहीं टपकता यह दो भागों में होती है और स्प्रिन्ग के द्वारा एक दूसरे से चिपकी रहती है। इसका एक भाग पप
कै लिंग में फिक्स रहता है। तथा दूसरा भाग पंप के शाफ्ट पर फिट रहता है। इसका पूरा नाम ‘स्प्रिंगलोडेड सैल्फ एडजस्टिंग कार्बन फे स्ड गिलैण्ड’ है।

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प्रश्न- कू लिंग सिस्टम से क्या समझते हो

उत्तर- पम्प को चलाने वाले इण्टरनल कं वश्चन इंजन में घर्षण से उत्पन्न गर्मी को साथ ही साथ ठण्डा करके सामान्य ताप पर रखने की व्यवस्था को इंजन कू लिंग
सिस्टम कहते हैं। यह कार्य हवा द्वारा (एअर कू लिंग सिस्टम) और पानी द्वारा (वाटर कू लिग सिस्टम) किया जाता है।

प्रश्न- पम्प में किस प्रकार के कू लिंग सिस्टम की व्यवस्था होती है


उत्तर- मोटर गाड़ी में चलते-चलते रास्ते की हवा का रेडियेटर व फै न की मदद से पूर्ण प्रयोग करते हैं। परन्तु पम्प , क्योंकि एक ही स्थान पर खड़े खड़े चलाया
जाता है अतएव इसमें हवा का पूर्ण प्रयोग नहीं हो पाता। परन्तु पानी अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के कारण उससे लाभ उठाया जाता है। अतः इन्जिन के वाटर कू लिंग
सिस्टम में कु छ और विकास करके उसकी कार्य क्षमता बढ़ा ली जाती है। यह व्यवस्था दो प्रकार की होती है।
1. डायरेक्ट कू लिंगसिस्टम 2.इन डायरेक्ट कू लिंगसिस्टम

प्रश्न- डायरेक्ट कू लिंग सिस्टम किसे कहते हैं?

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उत्तर- इस प्रणाली में पम्प से एक विशेष पाइप द्वारा पानी लेकर इंजन के रेडियेटर अथवा हेडर टैंक में डायरेक्ट (सीधे) डाल दिया जाता है। यह पानी टैंक के
पानी कोठण्डा करता है तथा इंजन को भी ठण्डा करता है। तत्पश्चात् रेडियेटर या हेडर टैंक के ओवर फ्लो पाइप से बाहर गिर जाता है।

प्रश्न- इनडायरेक्ट कू लिंग सिस्टम किसे कहते हैं?

उत्तर- इस प्रणाली में पम्प के पानी को रेडियेटर अथवा हेडर टैंक में(सीधे) नहीं डालते बल्कि हेडर टैंक में पम्प के ठण्डे पानी को एक विशेष कु ण्डली कार पाइप
में से होकर निकालते हुए बाहर गिरा देते हैं। यह ठण्डा कु ण्डलीकार पाइप ही हैडर टैंक के पानी को ठण्डा रखता है ।

प्रश्न- डायरेक्ट कू लिंग सिस्टम के गुण व दोष बताइये


उत्तर- गुण:-
1. इंजन को ठण्डा करने की क्षमता अधिक होती है।

दोष:-
1. गन्दे पानी से पम्पिंग करते समय इंजन के वाटर जैकिटों में गदले पानी के भरजा ने की आशंका रहती है ।
2.यदि सिस्टम में वाटर फिल्टर भी लगाहै तो उसके चोक हो जाने का तुरन्त पता नहीं लगता बल्कि पानी के खोलने पर ही पता चलता है ।
3. खोलते पानी में पुनःठण्डा पानी मिलने पर इंजन को हानि पहुँच सकती है ।

प्रश्न- इनडायरेक्ट कू लिंग सिस्टम के गुण व दोष बताइये


उत्तर- गुण:
1. एन्टीफ्रीज कै मिकल प्रयोग किया जा सकता है।
2. हैडर टैंक का स्वच्छ पानी ही इंजन के वाटर जैकिटों में आता है ।
3.सामान्य तापक्रम पर रहता है।
दोष :

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1.इजनकोठण्डकरनेकीक्षमताकमहोतीहै।

प्रश्न- वाटर फिल्टर किसे कहते है


उत्तर- पम्प से आने वाले पानी को कू लिंग सिस्टम में छानकर देने वाले यन्त्र को वाटर फिल्टर कहते हैं। यह कू लिंग पाइप के पंप से निकलते ही लगाया जाता है
वाटर फिल्टर के बाद ही पानी हैडर टैंक या रेडियेटर में जाता है।

प्रश्न- डु अल फिल्टर किसे कहते हैं


उत्तर- इंजन कू लिंग व्यवस्था में जब दो फिल्टर बराबर-बराबर लगाये जाते हैं। तो उसे डु अल फिल्टर कहते हैं। इसमें दोनों या एक से बारी -बारी से काम लिया जा
सकता है। डु अल फिल्टर लगाये जाने से यह सुविधा रहती है कि पम्पिंग करते हुए भी एक फिल्टर को साफ किया जा सकता है तथा दूसरा कार्यरत रह सकता है।
तत्पश्चात् दूसरे को साफ किया जा सकता है।

प्रश्न- हीट एक्सचेंजर किसे कहते हैं


उत्तर- बिल्टइन पम्प में इंजन के रेडियेटर के अतिरिक्त एक अन्य छोटा टैंक लगाया जाता है जो रेडियेटर और इंजन से होज पाइपों द्वारा जुड़ा रहता है। इस टैंक
में पम्प के आउटलैट की ओर से एक ताँबे का पाइप लेकर टैंक के अन्दर कु ण्डलीकार बनाते हुये टैंक के बाहर निकाल दिया जाता है। इसी टैंक (ढोलकी) को हीट
एक्सचेंजर कहते हैं।

प्रश्न- हीट एक्चेन्जर कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- यह दो प्रकार के होते हैं-
1. ओपेन सर्कि ट हीट एक्सचेंजर।
2. क्लोज्ड सर्कि ट हीट एक्सचेंजर ।

प्रश्न- ओपेन सर्कि ट हीट एक्सचेंजर किसे कहते हैं


उत्तर- पम्प के इनडायरेक्ट कू लिंग सिस्टम की भाँति कार्य करता है। पम्प से आया हुआ पानी कु ण्डलीकार पाइप से होता हुआ वेस्ट पाइप द्वारा बाहर गिर जाता
है। इसी को ओपेन सर्कि ट हीट एक्सचेन्जर कहते हैं।

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प्रश्न- क्लोज्ड सर्कि ट हीट एक्सचेन्जर किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रणाली में पम्प से आया हुआ पानी कु ण्डलीकार पाइप में होता हुआटैंक से बाहर गिराया जाता बल्कि इसे पम्प इनलेट में पाइप द्वारा प्रवेश दिया जाता
है। इसी क्लोज्ड सर्कि ट हीट एक्सचेन्जर कहतेहै।

प्रश्न- कपुल्ड कू लिंग सिस्टम किसे कहतेहै


उत्तर- कू लिंग सिस्टम की व्यवस्था कहते जिसमें प्राइमिंग लीवर दवाते ही पम्प प्राइमिंग वाल्व खुल जाता है कू लिंग सिस्टम बन्द जाता है प्राइमिंग लीवर वापस
करते प्राइमिंग वाल्व बन्द हो जाता है कू लिंग सिस्टम चालू हो जाता है।
सामान्यत: पम्प प्राइमिंग वाल्व और कू लिंग वाल्व अलग-अलग होते हैं। प्राइमिंग करते समय क्रमशः खोले और बन्द कर दिये जाते हैं प्राइमिंग समाप्त होते प्राइमिंग
वाल्व को बन्द दिया जाता है कू लिंग वाल्व खोल दिया जाता है।
कु छ कम्पनियों कपुल्ड कू लिंग सिस्टम द्वारा उपरोक्त कार्य सरलता ला दी इसमें के वल प्राइमिंग लीवर दबाते उपरोक्त दोनों कार्य आप ही हो जाते यानी प्राइमिंग लीवर
वापस करते प्राइमिंग वाल्व बन्द जाता और कू लिंग सिस्टम खुल जाता इस प्रकार अलग-अलग वाल्व खोलने और बन्द करने की झंझट नहीं रहती।

प्रश्न- प्राइमिंग वाल्व किसे कहते हैं


उत्तर- इस विशेष वाल्व पम्प इनलेट प्राइमिंग सिस्टम तक जाने वाले पाइप बीच लगाया जाता प्राइमिंग करते समय इसे खोल दिया जाता है तथा पम्प पानी
पकड़ते इसको बन्द कर दिया जाता ताकि प्राइमिंग सिस्टम पानी पहुँचने पाये। इसी प्रकार हाईड्रेन्ट कार्य करते समय इस वाल्व को बन्द रखा जाता ताकिप्राइमिंग
सिस्टम पानी पहुँचने पाये।

प्रश्न- पम्प कितने प्रकार के गेज होते हैं


उत्तर- पम्प में प्रकार रोज प्रयोग किये जाते
1. प्रेशर गेज 2. वैक्युम गेज

प्रश्न- प्रेशर गेज किसे कहते हैं


उत्तर- वह यन्त्र जो अपनी सुई द्वारा प्रदर्शित करता है कि पम्प कितने दबावपानी पम्प कर रहा है।

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प्रश्न- वैक्यूम गेज किसे कहते हैं
उत्तर- वह यन्त्र है जो अपनी सुई द्वारा प्रदर्शित करता है कि पम्प में इस समयकितना स्थान वैक्युम में (हवा से शून्य) है।

प्रश्न- कम्पाउण्ड गेज किसे कहते हैं


उत्तर- जब प्रेशर गेज और वैक्यूम गेज एक ही गेज में होते हैं तब उसे कम्पाउण्ड गेज कहते हैं। यह अपनी सुई द्वारा यह प्रदर्शित करता है कि पम्प में कितने प्रेशर
से पानी आ रहा है अथवा कितने स्थान में वैक्यूम है। कम्पाउण्ड गेज को पम्प के सक्शन इनलेट की ओर लगाया जाता है।
यह अपनी सुई द्वारा पम्प के सक्शन इनलेट की ओर होने वाली घटनाओं से पम्प आप्रेटर को सचेत करता है।

प्रश्न- ऑयल गेज किसे कहते हैं


उत्तर- वास्तव में यह भी प्रेशर गेज ही है। यह इंजन के लुब्रीके टिंग आयल की स्थिति से परिचित कराता है। इसकी सुई यह प्रदर्शित करती है कि इंजन के ऑयल
सम्प में लगा हुआ ऑयल पम्प कितने पाउण्ड प्रतिवर्ग इन्च प्रेशर से आयल को पम्प करके इंजनके पुर्जों को लुब्रीके ट कर रहा है

प्रश्न- बिल्टइन पम्प किसे कहते है


उत्तर- जब पम्प को मोटर गाड़ी के इंजन से ही चलाया जाता है तब उसे बिल्टइन पम्प कहते हैं और ये पावर टेक ऑफ द्वारा चलाये जाते हैं।
प्रश्न :- बिल्टइन पम्प कितने रूपों में पाये जाते हैं
उत्तर - विल्टइन पम्प अपने बांधे जाने की स्थिति (माउन्टिडग पोजीशन)के अनुसार चार रूपों में मिलते हैं
1. रियरमाउन्टेड-इस पम्प को गाड़ी के पीछे फिट किया जाता है ।
2.सैन्टर या मिडशिप माउन्टेड- इसमें पम्प को के मध्य में फिट किया जाता है।
3.रियरमाउन्टेड विद साइडकन्ट्रोल इस में पम्प तो गाड़ी के पीछे फिट होता है पर इसके समस्त कन्ट्रोल गाड़ी के एक तरफ या दोनों तरफ होते हैं ।
4.फ्रं टमाउण्टेड-इसमें पम्प गाड़ी के आगे फिट किया जाता है ।

प्रश्न- पावर टेक ऑफ से क्या समझते हो


उत्तर- पावर टेक ऑफ उस यन्त्र प्रणाली को कहते हैं जिसके द्वारा मोटर गाड़ीकी शक्ति को आवश्यकता पड़ने पर उसके सामान्य मार्ग अथवा कार्य से हटाकर
किसी दूसरे कार्य के लिये प्रयोग में ला सकते हैं। जैसे- पम्प चलाने, क्रे न चलाने टर्नटेबुल लैडर चलाने में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न- पोर्टेबुल पम्प किसको कहते हैं


उत्तर- वे छोटे-छोटे पम्प जो किसी स्वतन्त्र इंजन से सम्बन्धित होकर चलाये जाते हैं। तथा सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक उठाकर ले जाये जा सकते
हैं। पोर्टेबुल पम्प कहलाते हैं।

प्रश्न- ट्रेलर पम्प से क्या समझते हो


उत्तर- वे पम्प जो किसी स्वतन्त्र इंजन से सम्बन्धित होकर चलाये जाते हों (वे) पोर्टेबुल पम्प भी हो सकते हैं) और किसी दो पहिये वाले ठेले (ट्रेलर) पर रखे हों।
इन्हें एक गाड़ी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक खींचकर ले जाया जा सकता है। इन्हें ट्रेलर पम्प कहा जाता है।

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प्रश्न- अपनी पम्पिंग क्षमता के अनुसार ट्रेलर पम्प कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- ट्रैलर पम्प 3 प्रकार के पाये जाते हैं।
1. स्माल ट्रेलरपम्प-वे जो 120 गैलन (540 लिटर्स) से 180 गैलन (810 लिटर्स) प्रति मिनट पानी फें कते हैं । इन्हें एस० टी०पी० (स्माल
ट्रेलरपम्प) कहते हैं।
2. मीडियम ट्रेलर पम्प – वे जो 250 गैलन (1150 लिटर्स) से-350 गैलन (1575 लिटर्स) प्रति मिनट पानी फें कते हैं। इन्हें
एम०टी०पी०कहते हैं ।
3. लार्ज ट्रेलर पम्प-वे जो 350 गैलन (1575 लिटर्स) से 500 गैलन (2250 लिटर्स) प्रति मिनट पानी फें कते हैं। इन्हें एल०टी०पी०कहतेहैं।

प्रश्न - मोटर फायर इन्जन किसे कहते हैं


उत्तर- फायर सर्विस की विशेष गाड़ी जिसमें 400 गैलन प्रति मि० या 1800 लिटर प्रति मि० पानी फें कने वाला बिल्टइन पम्प लगा होता है। तथा 365
लिटर क्षमता वाला होजरील टैंक व होजरील की भी व्यवस्था होती है। कर्मचारियों के बैठने के लिये के विन , तथा होज पाइप एवं अन्य आवश्यक उपकरण रखने के लिये
बक्से (लाकर्स) होते हैं। ऊपर 30 (9 मी०) या 35 फीट (10.5 मी०) की एक्सटेन्शन लेडर, सर्च लाइट, फ्लड लाइट, वार्निंग लाइट, अलामं बैल तथा सायरन
की भी व्यवस्था होती है। किसी फायर सर्विस के नोटर फायर इन्जन में होजरील टैंक के बजाय 400 गैलन या 1800 लीटर क्षमता वाला सर्विस टैंक लगवा दिया
जाता है। जो इसके बिल्टइन पम्प से ही जुड़ा रहता है। और उसी से कार्य करता है। पम्प से, नदी, तालाब द्वारा भी कार्य करने की व्यवस्था होती है।

प्रश्न- वाटर टैण्डर "ए" से क्या समझते हो


उत्तर- फायर सर्विस की विशेष गाड़ी जिसमें 2700 लिटर क्षमता वाला वाटर टैंक हो तथा एक या दो पोर्टेबुल पम्प या ट्रेलर पम्प हो जो वाटर टैंक से कार्य कर
सकता हो तथा आवश्यकता पड़ने पर नदी, तालाब पर भी खोलकर ले जाया जा सकता हो जहाँ भारी गाड़ी न पहुँच सकती हो। कर्मचारियों बैठने के लिये के विन, होज
तथा अन्य उपकरण रखने के लिये बक्से, अलार्मवेल विभिन्न प्रकार की लाइटें और लैडर रखने की भी व्यवस्था हो।

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प्रश्न- वाटर टैण्डर टाइप "बी" किसे कहते हैं


उत्तर- फायर सर्विस की वह विशेष गाड़ी जिसमें 1800 लिटरक्षमतावाला वाटर टैंक हो तथा 1800 लिटर प्रति मि० पानी फें कने वाला बिल्ट इन पम्प फिट
हो। 60 मीटर होजरील हो। कर्मचारियों के बैठने के लिये के विन , होज तथा अन्य उपकरण रखने के लिये बक्से, सर्चलाइट, स्पाट लाइट, वार्निंग लाइट, अलार्मवेल या
सायरन फिट हो। 30’ (7 मीटर) या 35 फीट (10.5 मी०) की एक्सटेन्शन लैडर रखने की भी व्यवस्था हो।

प्रश्न- वाटर टैण्डर टाइप "एक्स" किसे कहते हैं


उत्तर- इस गाड़ी में 6000 लिटर क्षमता का वाटर टैंक 3200 लिटर प्रति मिनट क्षमता वाला बिल्टइन टाइप पम्प होता है। कर्मचारियों के बैठने का स्थान
तथा आवश्यक उपकरण रखने के लिये लाकर्स (बक्से) आदि की व्यवस्था होती है।
वास्तव में यह मशीन हवाई अड्डे में कै श टेण्डर के साथ प्रयोग करने मेंउपयोग होती है।

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प्रश्न- स्माल फायर इन्जन किसे कहते हैं


उत्तर- एक छोटी मशीन है जो फायर फायटिंग इक्युपमेंट और क्र्यू को लेकर तुरन्त घटना स्थल पर पहुंचती है। इसमें 1350 लिटर प्रति मिनट क्षमता वाले
बिल्टइन पम्प और होज रील टैंक की व्यवस्था होती है। उपकरण रखने के लिये लाकर्स , लाइट्स, अलार्म बैल, व लैडर रखने की व्यवस्था होती है। एक जैनरेटिंग सेट,
एक सबमर्सेबुल पम्प और एक मोर्टेबुल पम्प का भी प्रबन्ध होसकता है। इससे मशीन बहुत उपयोगी हो जाती है।

प्रश्न- लाइट फायर इंजन किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष छोटी मशीन है जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिये उपयोगी होती है। इसमें 1350 लिटर प्रति मिनट क्षमता वाला बिल्टइन पम्प होता है। इसमें होजरील
व्यवस्था नहीं होती। उपकरणों को रखने के लिये लाकर्स, लाइट्स, अलार्म बैल आदि की भी व्यवस्था रहती है।

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प्रश्न- आधुनिक फायर अप्लाईन्सेज किन-किन रूपों में मिलते हैं


उत्तर- 1.पोर्टेबुल पम्प सेट (275 लिटर प्रति मि० क्षमता)
2.ट्रेलर पम्प (500 लिटरप्र०मि०क्षमता)
3.ट्रेलर पम्प (1800 लिटर प्र० मि० दामना)
4.मोटर फायर इंजन (1800 लिटरप्र०मि०क्षमता)
5.मोटर फायर इंजन (3200 लिटर प्र० मि० क्षमता)
6.वाटरटैण्डर टाइप "ए"7.वाटर टेण्डर टाइप "बी"
8.वाटर टैण्डर टाइप 'एक्स'
9.स्माल फायर इंजन (1350 लिटरप्र०मि०क्षमता)
10.लाइट फायर इंजन (1350 लिटरप्र०मि०क्षमता)

प्रश्न- पम्प की दैनिक देख-रेख किस प्रकार करेंगे ?


उत्तर- आवश्यकता पड़ने पर पम्प से सही-सही कार्य लिया जा सके इसके लिये प्रतिदिन-
1.पेट्रोल चैक करें, कम हो तो पूरा करें।
2.इंजन आयल चैक करें तथा लेबिल पूरा करें।
3.हैडर टैंक और रेडियेटर में पानी का लेबिल पूरा रखे।
4.पहियों की हवा चैक करें, कम होतो पूरी करें।
5.यदि बैटरी प्रयोग की जाती हो तो उसके डिस्टिल वाटर को लेविल तक पूरा रखें
6.सक्शन के वाशर चेक करें, खराब वाशर बदल डालें। चमड़े के सूखे वाशर पर तेल चुपड़े।
7.डिलीवरी आउट लेट के वाशर चैक करें, खराब वाशर बदल डालें ।
8.आउटलेट का लग ठीक कार्य करता है कि नहीं।
9. ट्रेलर के प्राप सही कार्य कर रहे है कि नहीं । उस के माउण्ट नटों पर तेल चुपड़े ।
10. ट्रेलर के ड्रॉबार्स ठीक कार्य करते है कि नहीं ।
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11. हेण्ड ब्रेक ठीक कार्य करता है कि नहीं ।
12. ट्रेलर का ओटोमेटिक ब्रेक ठीक कार्य कर रहा है कि नहीं ।
13. प्राइमिंग वाल्व, कू लिंग वाल्व ठीक कार्य करते है कि नहीं ।
14. थाटल लीवर ठीक कार्य कर रहा है कि नहीं ।
15.इंजन को स्टार्ट कीजिये । आयल गेज, टेम्प्रेचर मीटर एम्पीयर मीटर चैक करें और सुनिश्चित करें कि सब कु छ ठीक है मशीन में कोई खराबी नहीं ।

प्रश्न- नदी तालाब और स्टेटिक टैंक से पम्पिंग करते समयकौन-कौन सी बातें यादरखनी चाहिये?
उत्तर- 1.पम्प को पानी के निकट से निकट ले जाइये।
2.सख्त और चौरस स्थान देखकर पम्प को लगाइये।
3.ट्रेलर पम्प के प्राप लगाकर मशीन को समतल कीजिये तथा रोड स्प्रिंगों से भार हटाइये । यदि पोर्टेबुल पम्प है तो पैकिं ग लगाकर मशीन को समतल कीजिये ताकि
इंजन के लुब्रीके शन में बाधा न पड़े।
4.कोनिकल स्ट्रेनर निकाल लीजिये के वल मैटलस्ट्रेनर और वास्के टस्ट्रेनर का प्रयोग कीजिये ।
5.आवश्यक सक्शन पाइपों को जोड़ कर पम्प इनलेट कसिए ।
6.रस्सी बाँध कर सक्शन का भार-रस्सी पर रखिये और सक्शन को रगड़ने से बचाइये ।
7.सक्शन को अधिक मोड़ व ऐठन से बचाइये। स्टेटिंक टैंक से कार्य करते समय ध्यान रखिये कि
सक्शन पाइप पम्प के इनलेट से ऊपर होकर (एयरपाके ट) न –बनाने-पाये अन्य था ,पम्पिंग में अवरोध होगा ।
8.सक्शन स्ट्रेनर को पानी में भली भाँति डु बोइये, स्ट्रेनर पानी की सतह से कम से कम 18 इंच नीचे रखना चाहिये।
9.इंजन स्टार्ट कीजिये और विधिवत् प्राइमिंग करके पम्पिंग आरम्भ कीजिये।
10.गिलैण्ड पैकिं ग, ओवर फ्लोपाइप और कू लिंग सिस्टम के बेस्ट पाइप इत्यादि से पानी का गिरना देखिये। पम्प के गेजों पर भी निगाह रखिये व इनके किसी
परिवर्तन पर समुचित कार्यवाही कीजिये।
11.पानी खोल ने का संके त मिलने पर धीरे -धीरे डिलीवरी वाल्व खोलिये। होज में पानी जाने दीजिये और देखते रहिये कि होज में कहीं गहरा मोड़ या ऐंठन तो नहीं है।
कपलिंग का जोड़ खुल तो नहींगया। ब्रॉच पर पानी पहुँचते ही ग्राटल को धीरे-धीरे बढ़ाकर आवश्यक प्रेशर पर रखिये।
12.सर्तक रहिये, वेस्ट पाइप, ओवर फ्लो पाइप से पानी का गिरना देखते रहिये।
13.पम्प के गेजों पर निगाह रखिये तथा उनमें किसी परिवर्तन पर समुचित कार्यवाही कीजिये।

प्रश्न- फायर हाइड्रेन्ट से पम्पिंग करते समय कौन-कौन सी बातें याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1.पम्प को ऐसे स्थान पर खड़ा कीजिये जहाँ यातायात में असुविधा न हो।
2.यदि ट्रेलर पम्प है ,तो प्राप खोल कर समतल खड़ा कीजिये।
3.हाइड्रेन्ट पिट कवर खोलकर स्टैण्ड पाइप को विधिवत्लगाइये तथा हाइड्रेन्ट को थोड़ा खोलकर उस में भरा गदला पानी निकाल दीजिये तथा साफ पानी आते ही
बन्द कर दीजिये।
4.शाफ्ट सक्शन अथवा हार्ड सक्शन द्वारा पम्प व हाइड्रेन्ट को जोड़िये। यदि कई हाइड्रेन्टों से कार्य करना होतो पम्प इन लेटपर कलैक्टिंग हैड बाँधिये। कोनिकल
स्ट्रेनर लगा रहने दीजिये ।
5.पम्प का एक डिलीवरीबाल्व खोलकर रखिये ताकि हाइड्रेन्ट खोलते समय पम्प की हवा बाहर निकल जाये।
6.पानी खोलने का संके त मिलने पर धीरे-धीरे हाइड्रेन्ट खोलिये तथा डिलीवरी बाल्व पर पानी आते ही पहले वाल्व को बन्द कर दीजिये और होज में पानी जाने
दीजिये और देखते रहिये कि होज में कहीं गहरा मोड़ या ऐंठन तो नहीं है। कपलिंग का जोड़ खुल तो नहीं गया। ब्राँच पर पानी पहुँचते ही थाटल को धीरे -धीरे बढ़ाकर
आवश्यक प्रेशर पर लगाइये।
7.सर्तक रहिये, गिलैण्ड, वैस्ट पाइप, ओवर फ्लो पाइप से पानी का गिरना देखते रहिये।
8.पम्प के गेंजों पर निगाह रखिये तथा उनमें किसी परिर्वतन पर समुचित कार्यवाही कीजिये। कम्पाउण्ड गेज की सुई जीरो पर रहना चाहिये। यदि सुई प्रेशर दिखाये तो
इंजन की स्पीड बढ़ाइये। यदि सुई वैक्युम दिखाये तो स्पीड घटाइये।

प्रश्न- रिसिप्रोके टिंगप्राइमर प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानी रखना आवश्यक है
उत्तर- रिसिपरोके टिंग प्राइमर प्रयोग करते समय इंजन को अधिक स्पीड से नहीं चलाना चाहिये। अधिक स्पीड से चलाने में हवा निकलने में अड़चन होगी तथा
इस सिस्टम में पानी आते ही इंजन पर भार पड़ने लगता है, जिससे टू ट-फू ट का खतरा रहता है। अतः धीमी व नियंत्रित स्पीड का रखना आवश्यक है यहाँ यह तथ्य
भी याद रखना चाहिये कि सैन्ट्रीफ्यूगल पम्प का इम्पेलर एक विशेष स्पीड पर चलाने पर ही पानी पकड़ता है। अधिक धीमी स्पीड पर नहीं। अतः प्राइमिंग करते समय

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इंजिन की स्पीड बहुत धीमी नहीं होनी चाहिये और न बहुत अधिक। इंजिन की गति 1000 आर० पी० एम० से किसी भी दशा में अधिक नहीं होनी चाहिये। प्राइमिंग
में 45 सैकिन्ड से अधिक समय नहीं लगना चाहिये। यदि इस अवधि में पम्प पानी नहीं पकड़ता तो उसका कारण खोजिये। पम्प को अधिक समय तक सूखा मत
चलाइये।

प्रश्न- एक्जास्ट इजैक्टर प्राइमिंग सिस्टम को प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक है
उत्तर- इस सिस्टम में इंजन की स्पीड अधिक से अधिक रखी जाती है। अथवा धाटल को पूरा खुला रखते हुये प्राइमिंग करना चाहिये और देखते रहिये कि इंजन
की एक्जास्ट गैस अपने सामान्य मार्ग से न होकर इजेक्टर जेट से होकर जा रही है कि नहीं। जैसे ही इस स्थान से गैस की जगह पानी या स्टीम निकलने लगे और
प्रेशर गैज रीडिंग देने लगे, प्राइमिंग लीवर को वापस करने के साथ-साथ वाटल को भी आधा कर देना चाहिये ताकि प्रेशर अधिक न बनने पाये।
कभी-कभी प्राइमिंग करते समय गैसों में रूकावट के कारण इंजन की स्पीड खुद ब खुद कम होने लगती है। ऐसी परिस्थिति में प्राइमिंग लीवर को वापस कर देने से
इंजन सामान्य स्थिति में आ जाता है।
प्राइमिंग में 45 सेकिण्ड से अधिक समय नहीं लगना चाहिये। यदि इसअवधि में पानी नहीं पकड़ता है तो उसका कारण खोजिये पम्प को अधिक समयतक सूखा मत
चलाइये।

प्रश्न- रोटरी प्राइमिंग सिस्टम को प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं
उत्तर- इस सिस्टम में भी इंजन को अधिक स्पीड से नहीं चलाना चाहिये। अधिक स्पीड से चलाने से इसके स्लाइडिंग वेन्स आउटर कै सिंग से रगड़कर खराब हो
सकते हैं। इस प्रकार के सिस्टम में कम्पनी वाले ग्राटल की प्राइमिंग की स्थिति निर्धारित कर देते हैं। अतः घाटल को उसी स्थिति में रखकर प्राइमिंग करना चाहिये।
वाटर रिंग टाइप प्राइमिंग सिस्टम में सर्वप्रथम पानी भरना आवश्यक है।

प्रश्न- मैनीफोल्ड इन्डक्शन प्राइमिंग सिस्टम को प्रयोग करते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिये
उत्तर- इस प्रकार के सिस्टम में भी इंजन की स्पीड एक हजार आर० पी० एम 0 से अधिक नहीं होनी चाहिये प्रेशर गेज पर प्रेशर आते ही तुरन्त प्राइमिंग लीवर
को वापस करके थाटल द्वारा प्रेशर नियन्त्रित करना चाहिये। प्राइमिंग में 45 सेकण्ड से अधिक समय नहीं लगना चाहिये।
प्रश्न- नदी तालाब या स्टेटिक टैंक (ओपेन वाटर) से पम्प के पानी न उठाने के क्या-क्या कारण होते हैं
उत्तर- 1.सक्शन स्ट्रेनर पानी में डू बा न हो।
2. सक्शन कपलिंग ढीले हों।
3. सक्शन के वाशर त्रुटि पूर्ण हों ।सूखे, कटे-फटे-हों या गिर गये हों।
4. सक्शन पाइप ही लीक हो फट गया हो।
5. डिलीवरी वाल्व बन्द नहो, या बन्द न होता हो।
6. प्राइमिंग वाल्व बन्द हो, खोला न गया हो, खुलता न हो।
7. कू लिंग वाल्व खुला हो ।
8. कम्पाउण्ड गेज, प्रेशर गेज के काग बन्द हों, गेज कनेक्शन ही ढीले हों। लीक हों या फट गये हों।
9. गिलैण्ड पैकिं ग खराब हो, ढीला हो, सूखा हो।
10. के सिंग का ड्रेन काग खुला हो या ढीला हो ।
11. पम्प का फिलर प्लग ढीला हो उस का वाशर टू ट या खोजाये।
12. यदि पम्प मरम्मत के पश्चात आया है,तो पम्प के सिंग ही लीकहो।
13. प्राइमिंग सिस्टम में ही कोई खराबी हो। क्लै पर वाल्व सही स्थिति में न हो, फिक्शन ड्राइव खराब हो, क्लच एन्गेज न होता हो।
14.यदि वाटर टैण्डर टाइप (वी) है तो उसके सर्विस टैंक का वाल्व खुला हो यालीक हो, होज रील वाल्व खुला हो या लीक हो ।
15.पम्प में कोई यान्त्रिक खराबी आ गई हो।

प्रश्न- ओपेन वाटर से पानी न उठाने के क्या-क्या कारण हैं।जबकि वैक्यूम गेजकी सुई वैक्यूम दिखाती है
उत्तर- 1. मैटल स्ट्रेनर, बास्के ट स्ट्रेनर या कोनिकल स्ट्रेनर कचरे से बन्दहो गये हों।
2.सक्शन त्रुटि पूर्ण हो बाहर से न दिखाई पड़ता हो परन्तु प्राइमिंग के समय अन्दर से बन्द होजाता हो। उसके भीतर की कोई कै नवास या रबर की परत खुल कर बन्द
कर देती हो।

प्रश्न- हाइड्रेन्ट से कार्य करते समय पम्प के पानी न उठाने के क्या-क्या कारणहैं?
उत्तर- 1.कोनिकल स्ट्रेनर कचरे से बन्द हो।
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2.हाइड्रैन्ट में प्रेशर बहुत कम हो, जो पानी को साफ्ट सक्शन से ही पास न होने देता हो।
3.साफ्ट सक्शन में गहरा मोड़ या ऐठन हो।
4.साफ्ट सक्शन या हार्ड सक्शन लीक हो या फट गया हो।
5.हाइड्रेन्ट की सप्लाई बन्द हो ।
6. मेन लाइन लीक हो या बन्द हो।

प्रश्न- पम्पिंग करते समय वैक्यूम गेज की सुई बढ़ने के क्याकारण हो सकते हैं
उत्तर- 1. स्टेटिक टैंक के पानी का लेविल कम होता जा रहा हो।
2. बास्के ट स्ट्रेनर या मैटल स्ट्रेनर कचरे से ढक गये हों।
3. सक्शन पाइप में अन्दर से कोई खरावी उत्पन्न हो गई हो और बन्द हो जाता हो।

प्रश्न- पम्पिंग करते समय वैक्युम गेज की सुई घटने के क्याकारण हो सकते हैं
उत्तर- 1. सक्शन स्ट्रेनर पानी के बाहर आ गया हो।
2. सक्शन कपलिंग ढीले होगये हों।
3. सक्शन फट गया हो या लीक होने लगा हो।
4. गिलैण्डपैकिं ग घिसकर ढीली हो गईहो या खत्म होगई हो।
5. गेज कनेक्शन ढीले हो गये हों।
6. पम्प के सिंग में कोई लीके ज हो गया हो।
उपरोक्त किसी भी खराबी पर पम्प पानी उठाना छोड़ देगा। अतः पुनः प्राइम करने से पहले उपरोक्त बातों को चैक कर लेना चाहिये।

प्रश्न- पम्पिंग करते समय प्रेशर गेज की सुई के चलते-चलते बढ़ने के कारणबताइये?
उत्तर- 1.डिलीवरी होज पाइप में कहीं गहरा मोड़ या ऐठन पड़ गई हो।
2.होज़ लाइन पर कोई भारी वाहन, मोटर, ट्रक, बस इत्यादि खड़ी हो।
3.होज लाइन पर भवन की दीवार या छत गिर गई हो या होजमलबे में दब गई हो।
4.यदि हेण्ड कन्ट्रोल ब्रॉच प्रयोग किया जा रहा हो तो वही बन्द कर दिया गया हो। स्प्रे प्रयोग किया जार हा हो।
5.यदि हेण्ड कन्ट्रोल डिवाइडिंग ब्रीचिग प्रयोग की जा रही हो तो हो सकता है कि वही बन्द स्थिति में रह गई हो।
6.नाजूल में कोई वस्तु पत्थर गिट्टी आदि फँ स गई हो। ऐसी परिस्थिति में डिलीवरी आउटलेट बन्द करके व होज खोल करप्रेशर कम कर दिया जाये। अन्यथा घायल
होने का डर रहता है।

प्रश्न- पम्पिंग करते समय प्रेशर गेज की सुई का चलते-चलतेघट जाने का कारण बताइये
उत्तर- 1.होज बर्स्ट हो गई हो।
2.कपलिंग खुल गई हो।
3.स्ट्रैनर पानी से बाहर आगया हो। वाटर लेबिल नीचे चला गया हो।
4.यदि मोटर फायर इंजन के सर्विस टैंक से पम्पिंग की जारहीहो तब टैंक के पानी के खत्म होते ही सुई घटने लगेगी।
5.हैण्ड कन्ट्रोल ब्रांच को स्प्रे से जैट में परिवर्तन किया गया हो।
6.हैण्ड कन्ट्रोल डिवाइडिंग व्रीचिंग बन्द स्थिति से खोली गई हो।

प्रश्न- ब्रांच से जेट फटकर आवाज के साथ निकलता हैकारण बताओ?


उत्तर- संक्शन स्ट्रैनर पूरी तरह पानी में डू बा न होगा तथा हवा लेताहोगा। सक्शन स्ट्रेनर पानी की सतह से कम से कम 18 इंच नीचे डु वा होता चाहिये।

प्रश्न- पम्प थोड़ी देर चलने के बाद पानी छोड़ है,देताकारण बताओ?
उत्तर- 1.सक्शन के कपलिंग ढीले हैं। वाशर खराब है।
2.गिलैण्ड पैकिं ग ढीला है या चलते-चलते बिस गया है।

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3. सक्शन लिफ्ट (पानीकालेविल) आवश्यकता से अधिक है।

प्रश्न- पम्प का वाटर टैम्परेचर बढ़ने का कारण बताओ?


उत्तर- 1. कू लिंग वाल्व बन्द रह गया हो।
2. वाटर फिल्टर कचरे से बन्द हो गया हो।
3. कलिंग पाइप कचरे से बन्द होगया हो।
4. हैडरटैंक, रेडियेटर में पानी कम हो।
5. रेडियेटर गन्दा हो।
6. इंजन आयल कम या खराब हो।

झाग व झागबनाने वाले उपकरण


(फोन एण्ड फोम अपरेटस)

प्रश्न- फोम से क्या समझते हो यह कै से आग बुझाता है


उत्तर- फोम पानी के झागों और उसके बुलबुलों को कहते हैं। इन बुलबुलों में हवा भरी रहती है। इन बुलबुलों को अधिक समय तक स्थिर रखने के लिये कु छ
विशेष पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। यह झाग तरल पदार्थ में घुलने भी नहीं पाते और हल्के होने के कारण तरल पदार्थ की सतह पर तैरते रहते हैं। तरल पदार्थों की
आग पर जब इस फोम को डाला जाता है तो यह तरल पदार्थ की सतह पर (मोटी चादर या कम्बल की भाँति) मोटी परत के रूप में बिछ जाता है और आग तक
आक्सीजन नहीं पहुँचने देता। आग आक्सीजनके बिना घुटकर बुझ जाती है।

प्रश्न- फोम कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- आग बुझाने के लिये दो प्रकार का फोम प्रयोग किया जाता है
1. कै मिकलफोम
2. मैके निकलफोम

प्रश्न- कै मिकल फोम किसे कहते हैं

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उत्तर- कै मिकल या रासायनिक पदार्थों द्वारा जो फोम बनाया जाता है, उसे कै मिकल फोम कहते हैं। कु छ रसायन ऐसे है जोकि आपस में मिलाये जाने पर फोम
उत्पन्न करते हैं। जैसे सोडियम बाइकार्बोनेट को पानी में घोलकर और अल्मुनियम सल्फे ट को पानी में घोलकर आपस में मिलाया जाय तो रासायनिक प्रतिक्रया होगी
और फोम बन जायेगा। इस प्रकार के फोम में सी०ओ०टू ० गैस होती है। फोम टाइप एक्सटिंग्यूशर में कै मिकल फोम ही प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न- मैके निकल फोम किसे कहते हैं


उत्तर- मैके निकल फोम यन्त्रों की सहायता से तैयार किया जाता है। एक विशेष यौगिक जिसे कम्पाउण्ड कहते हैं यन्त्रों की सहायता से पानी और हवा के साथ
खदबदाया या मथा जाता है। फलस्वरूप मोटे झाग बन जाते है, जो रासायनिक फोम से कम नहीं होते, के वल इनके बुलबुलों में हवा भरी होती है। जबकि कै मिकल फोम
के बुलबुलों में सी०ओ० टू ० गैस भरी होती है, आग को यह भी स्मदरिंग मैथड से बुझाता है।

प्रश्न- कै मिकल फोम कै से बनाया जाता है


उत्तर- अधिक मात्रा में कै मिकल फोम बनाने के दो तरीके हैं।
1. आवश्यकतानुसार दो रासायनिक पदार्थों के घोल को आपस में मिलाकर।
2. दो रासायनिक पदार्थोंको पाउडर के रूप में होजकी लाइन में प्रवेश कराकर पानी में घुलते ही ये झाग बनाते हैं।

प्रश्न- दो घोलों से बनने वाला फोम कै से बनता है


उत्तर- प्रत्येक मसाले को पानी में घोलकर अलग-अलग टंकियों में रखा जाता है। अपनी अपनी टकियों से दोनों घोल एक ही होज लाइन में पम्प किये जाते हैं। एक
विशेष प्रकार के पम्प जिसके दो सिलेण्डर अलग-अलग घोलों को पम्प करते हैं काम में लाया जाता है। होज में एक साथ बहने के कारण उत्पन्न हलचल से वे आपस में
अच्छी तरह घुल मिलकर फोम बनाते है। सामान्यतः डेढ़ इंच (37 मि०मी०) व्यास वाली ब्रॉच, आग पर फोम फें कने के काम में लाई जाती है।

प्रश्न- पाउडर से बनने वाला फोम कै से बनाया जाता है


उत्तर- घोल की अपेक्षा पाउडर के रूप में रसायनों को रखने में सुविधा होती है। ये जगह भी कम घेरते हैं। इन्हें एक साथ मिलाकर ,सील बन्दा डिब्बों में तैयार रखा
जाता है। रासायनिक प्रतिक्रिया उसी समय होती है पाउडर गीले होते हैं या घोल के रूप में होते हैं। रासायनिक पाउडर को होज लाइन में प्रविष्ट कराने के लिये एक
विशेष मशीन जिसको फोम जैनरेटर कहते हैं। जैनरेटर को होज लाइन के बीच में लगाने की व्यवस्था रहती है। जैनरेटर के ऊपर एक बड़ा कीप (हॉपर) जैसा लगा रहता
है जिसमें पाउडर भर दिया जाता है पानी चालू करते ही झाग उत्पन्न होने लगता है। पाउडर को हॉपर में डालते रहते हैं झाग बरावर बनता रहता है। इसके साथ डेढ़
इन्च से दो इन्च डायमीटर का ब्राँच प्रयोग होता है। जैनरेटर को ब्राँच से 100 फिट (30 मी0) पीछे लगाया जाता है।
जैनरेटर के इनलेट पर 100 पौण्ड प्र.व. इंच (7 कि० प्र०व० से०मी०) प्रेशर से (245 लि०) प्र० मि० पानी देने पर 3375 लि० प्र० मि० फोम बनता है तथा
45 से 47.5 कि० प्रति मिनट पाउडर खर्च होता है।

प्रश्न:- मैके निकल फोम बनाने के लिये किन-किन उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है
उत्तर- 1.पानी को आवश्यक प्रेशर प्रदान करने के लिये एक पम्प ।
2.पानी को पम्प से ब्राँच तक ले जाने के लिये होज पाइप ।
3.पानी की धारा में फोम कम्पाउण्ड प्रेरित करने का कोई माध्यम। नेपसैकटैंक, इनलाइन इण्डक्टर ।
4.पानी और फोम कम्पाउण्ड के मिश्रण में हवा मिश्रित करने तथा आग पर फें कने का माध्यम ब्राँच पाइप ।

प्रश्न:- फोम मेकिं ग ब्राँच पाइप किसे कहते हैं


उत्तर- विशेष प्रकार से बनाया गया ब्राँच पाइप है। अपनी विशेष बनाव द्वारा पानी, फोम कम्पाउण्ड और हवा को मथकर झाग के रूप में बाहर फें कता है। फोम
बनाने की क्षमतानुसार ये विभिन्न आकार के होते हैं। जैसे नं० - 2, 10, 20, 30, नं0 5 एक्स आदि।

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प्रश्न:- नम्बर 2 फोम मेकिं ग ब्राँच पाइप की कार्य प्रणाली वर्णन करो
उत्तर- सम्पूर्ण ब्रॉच के तीन मुख्य भाग होते हैं-
1. वाटर हैड
2. मिक्सिंग चैम्बर और
3. डिस्चार्ज ट्यूब
वाटरहैड में मेल इन्सटनटेनिस कपलिंग होती है। जिससे होज पर फिट किया जा सकता है। इसी में एक अन्य कनैक्शन होता है जिसके द्वारा इसमें फोम कम्पाउण्ड
दिया जाता है। फोम कम्पाउण्ड सप्लाई करने के लिये इस ब्राँच के साथ एक अलग से टंकी दी जाती है इसे नैपसैक टैंक कहते हैं। वाटर हैड में होज से आया हुआ पानी
3 नाजुलों में बँटकर एक कोन बनाता हुआ एक स्थान पर आकर टकराता है। इन तीनों नाजुलों के बीच में एक चौथा नाजुल भी होता है। जिसमें से फोम कम्पाउण्ड
आकर तीनों नाजुलों से टकराता है। टकराने से पानी महीन फु आर के रूप में बदलकर ब्राँच के मिक्सिंग चैम्बर से डिस्चार्ज ट्यूब की ओर बढ़ता है। फलस्वरूप पिस्टन
की भाँति चुसाव (सक्शन) पैदा होता है। जिससे हैड के चारों ओर बने रास्ते (एयरइनटेक) से हवा खिंचकर मिक्सिंग चैम्बर में आ जाती है और पानी व फोम
कम्पाउण्ड में घुसकर झाग बनाने लगती है। यही झाग ब्राँच से बाहर निकलने लगता है जिससे तरल पदार्थ की आग बुझाई जाती है।
फोम कम्पाउण्ड पर नियन्त्रण रखकर फोम को गाढ़ा या पतला किया जा सकता है। पतला फोम अभ्यास के लिये , गाढ़ा फोम अलकोहल की आग पर प्रयोग किया
जाता है।

प्रश्न:- नम्बर-2 फोम मेकिं ग ब्राँच की फोम बनाने की क्षमता बताओ


उत्तर- नम्बर-2 फोम मेकिं ग ब्राँच को 7 कि० प्र० व० सै० मी० प्रेशरसे प्रति मिनट 225 लि० पानी मिलने पर ये 2025 लि० प्र० मि० फोम बनाता है और
5.6 लि0 से 7.9 लि० प्र० मि० फोम कम्पाउण्ड खर्च करता है।

प्रश्न:- नैप सैक टैंक किसे कहते हैं? इसकी क्षमता कितनहोती है
उत्तर- एक छोटा टैंक है इसमें 18 लिए फोम कम्पाउण्ड आता है। इसे फायरमैन की पीठ पर लाध दिया जाता है और नम्बर 2 फोम मेकिं ग ब्रांच के साथ प्रयोग
किया जाता है। टैंक में कम्पाउण्ड भरने के लिये एक बड़ा ढक्कनदार छेद होता है, ढक्कन में हवा के आवागमन के लिये दो छेद होते है। टैंक में चलनी भी लगी होती है
ताकि कम्पाउण्ड छन कर जाये। नैपसैक टैंक के आउटलेट पर टोंटी फिट रहती है। इसी आउटलेट से रबर कनैक्शन द्वारा ब्रॉच को फोम कम्पाउण्ड सप्लाई किया जाता
है।

प्रश्न:- फायर सर्विस में प्रयोग होने वाले विभिन्न फोम मेकिं ग ब्रॉचों की क्षमता बताये

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उत्तर- न० 2 फोम मेकिं ग ब्राँच को 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 225 लि० प्रति मिनट पानी दिया जाये तो ये 2025 लि० प्रति मिनट फोम बनायेगा
और सवा से पौने दो गैलन (5.6 से 7.9 लि०) प्रति मिनट फोम कम्पाउण्ड खर्चकरेगा।नं०-10 फोम मेकिं ग ब्राँच को 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 450
लि० प्रति मिनट पानी दिया जाय तो ये 3600 लि0 प्रति मिनट फोम बनायेगा और 1305 लि० प्रति० मिनट फोम कम्पाउण्ड खर्च करेगा।
नं०-20 फोम मेकिं ग ब्रांच को 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 500 लि० प्रति मिनट पानी दिया जाये तो ये 7200 लि० प्रति0 मिनट फोम बनायेगा और 27
लि० प्रति मिनट फोम कम्पाउण्ड खर्च करेगा।
नं०-30 फोम मेकिं ग ब्राँच को 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 1350 लि० पानी दिया जाये तो ये 10800 लि० प्रति मिनट फोम बनायेगा और 40.5 लि०
प्रति मिनट फोम कम्पाउण्ड खर्च करेगा।
आधुनिक ब्रांच -
नं० एफ० बी० 5 एक्स-7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 225 लि० प्रति मिनट पानी देने पर 2250 लि० प्र० मि० फोम बनाता है और 9 लि० प्रति मिनट
फोम कम्पाउण्ड खर्च करता है।
नं० एफ० वी० 10-7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 450 लिए प्रतिमिनट पानी देने पर 3600 लि० प्र० मिनट फोम बनाता है और 22 लि० फोम कम्पाउण्ड
खर्च करता है।
नं० 300 (जेनरेटर नाजुल) 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 121.5 लि० प्रति मिनट पानी देने पर 945 लि० प्रति मिनट फोम बनाता है। इसके साथ नैप
सैक टैंक भी दिया जाता है।
नं० 700- इसमें पिकअप ट्यूव होता है। 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 297 लि० प्रति मिनट पानी देने पर 2700 लि० प्रति मिनट फोम बनाता है।
नं० 1500 7 कि० प्र० व० से० मी० प्रेशर से 585 लि० प्रति मिनट पानी देने पर 4500 लि० प्रति मिनट फोम बनाता है।

प्रश्न:- इन लाइन इण्डक्टर किसे कहते हैं? यह कै से कार्य करता है


उत्तर- नं०-10 फोम मेकिं ग ब्राँच को फोम कम्पाउण्ड सप्लाई करने के लिये इन लाइन इण्डक्टर का प्रयोग किया जाता है। स्टील का बना एक बक्स जैसा होताहै।
जिसमें 15 (67.5 लि०) गैलन फोम कम्पाउण्ड आ जाता है। इसके ऊपर या नीचे विशेष व्यवस्था (इण्डक्टर) रहती है। इसमें एक ओर ढाई इन्च आकार की
इन्स्टनटेनियस मेल कपलिंग तथा दूसरी और फीमेल कपलिंग रहती है। इसी यन्त्र में फोम कम्पाउण्ड पिकअप ट्यूब लगा रहता है। पिकअप ट्यूव में भी नान रिटर्निंग
व्यवस्था रहती है जो फोम कम्पाउण्ड को आने का मार्ग देता है। इनलाइन इण्डक्टर को पम्प की डिलीवरी लाइन में फिट कर दिया जाता है। ब्राँच से लगभग 100
फीट (30 मी०) पीछे लगाते हैं। इण्डक्टर में प्रेशर युक्त पानी एक पतले जैट से निकलकर दूसरे भाग के फै लते हुये शंक्वाकार रास्ते से आगे बढ़ता है। पतले जैट से
निकलते समय पानी की गति इतनी तेज हो जाती है कि इण्डक्टर के थ्रोट में वायु मण्डल के दबाव से कम दबाव हो जाता है इसी जगह पिकअप ट्यूब फिट रहता है।
अतएव कम्पाउण्ड वायुमण्डल के दबाव से पिकअपट्यूब में होकर पानी की धारा मेंप्रवेश कर आगे बढ़ जाता है और होज में होता हुआ ब्राँच तक पहुँच जाता है।
आधुनिक इनलाइन इण्डक्टर में वैन्चुरी, फोम कम्पाउण्ड की टंकी के कब्जेदार ढक्कन में लगी रहती है, फोम कम्पाउण्ड पिकअप ट्यूव चूलदार होता है उसको सीधा व
खड़ी अवस्था में कर दिया जाता है।

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प्रश्न:- मल्टीपुल जैट इण्डक्टर किसे कहते हैं


उत्तर- नं० 20 व 30 फोम मॅकिं ग ब्रॉच के साथ प्रयोग किया जाता है। इसके काम करने का सिद्धान्त भी इन लाइन इण्डक्टर की तरह ही है परन्तु इसे
डिलीवरी लाइन में नहीं लगाया जाता बल्कि फोम कम्पाउण्ड के इण्डक्शन के लिये पम्प की डिलीवरी की तरफ से कु छ प्रेशर युक्त पानी लेकर इण्डक्टर में से निकाला
जाता है। (जहाँ उसमे फोम कम्पाउण्ड मिल जाता है) और उसे वापस पम्प के सक्शन इनलेट की ओर मिला दिया जाता है इस तरह इण्डक्टर, पम्प के करीब रखा
जाता है।
मल्टीपुल जैट इण्डक्टर के हैड में 4 छोटे इण्डक्टर होते हैं। प्रत्येक इण्डक्टर की अपनी नियन्त्रण टोंटी (कन्ट्रोल काग) होती है। प्रत्येक में 7-8 गैलन प्रति मिनट
(30-35 लि० प्र० मि०) पानी लगता है। चारों में लगभग 30 गैलन (135 लि०) प्र० मि० पानी लगता है। इण्डक्टर में एक टंकी होती जिसकी क्षमता 20 या
60 गैलन (90 से 270 लि0) होती है। 400 गैलन (1800 लि०) प्रतिमि०क्षमता वाले पम्प से मिलकर यह 4 नं० 10 ब्रॉच या 2 नं० 20 ब्राँच 1 नं०
30 ब्रांच और 1 नं० 10 ब्रॉच एक साथचला सकता है।

प्रश्न:- वैरियेबुल जैट इण्डक्टर किसे कहते हैं


उत्तर- यह मल्टीपुल जैट इण्डक्टर का ही आधुनिक विकसित रूप है। यह पम्प के आस -पास मल्टीपुल जैट इण्डक्टर के एडाप्टरों से मिलते जुलते एडाप्टरों द्वारा
जोड़ा जाता है। इसके काम करने का सिद्धान्त भी मल्टीपुल जैट इण्डक्टर की तरह है। लेकिन चार अलग -अलग इण्डक्टरों के स्थान पर इसमें इण्डक्टर की एक इकाई
होती है जिसमे थ्रोट व नाजुल की जगह बदल कर इण्डक्शन की दर बदली जाती है। इसमें टंकी के स्थान पर पिकअप ट्यूब होता है।
इण्डक्टर की अधिकतक क्षमता 17 गैलन (76.5 लि०) प्रति मिनट फोम कम्पाउण्ड व 500 गैलन (2250 लि0) प्रति मि० तक पानी काम में लाने वाली ब्राँचों
के लिये काफी होता है।

प्रश्न:- फोम कम्पाउण्ड किसे कहते हैं


उत्तर- फोम कम्पाउण्ड एक विशेष यौगिक है। अधिकतर प्रोटीन अपघटन करके बनाया जाता है। इसे प्रोटीन कम्पाउण्ड भी कहते हैं। क तरह की प्रोटीनयुक्त
वस्तुओं के रसायनिक उपचार से तैयार किया है। जब इसे पानी से पतला कर लिया जाता है तब आग बुझाने के लिये कि बनाता है। इसकी बनावट व मिश्रण में
व्यापारिक भेद है। निर्माताओं के पेटेन्ट के अनुसार ये बदलते रहते हैं।

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प्रश्न:- स्लज से क्या समझते हो
उत्तर- फोम कम्पाउण्ड यदि खुला रह जाता है तो हवा में उपस्थित आक्सीजन से मिलकर उस पर एक पपड़ी पड़ जाती है जो धीरे -धीरे के नीचे बैठती जाती है।
कु छ समय बाद ये रवेदार कीचड़ का रूप ले लेती है। इसी को स्लज (गाढ़ी कीचढ़) कहते हैं।

प्रश्न:- फोम कम्पाउण्ड के भण्डारण में क्या-क्या सावधानिया बरतनी चाहिये


उत्तर- 1. भण्डारण अधिक गर्म कमरे में न हो और न अधिक ठण्डे क में हो।
2.समय-समय पर देखते रहें कि ड्र म रिसते तो नहीं।
3. रिसते हुये ड्र मों का कम्पाउण्ड, ट्रेनिंग के लिये प्रयोग कर चाहिये।
4. यदि एक ड्र म दूसरे ड्र म में बदलना आवश्यक होतो फनल का प्रयोग किया जाये जिसका पाइप ड्र म के तले जाता हो ।
5. पलटते समय झाग नहीं बनने पाये।
6. ड्र म को ऊपर गले तक भरा जाय कै प को कस दिया जाय ।

प्रश्न:- क्या कै मिकल फोम और मैके निकल फोम एक ही पर प्रयोग किये जा सकते हैं
उत्तर- जहाँ तक सम्भव हो उन्हें अलग-अलग ही रखना चाहिये। दोनों के मिलने से झाग टूट जाते हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के फोम कम्पाउण्ड से बने फोम
भी एक दूसरे से मिलकर प्रतिक्रिया करते है।

प्रश्न:- फोम प्रयोग करते समय क्या-क्या बातें याद रखना चाहिये,
उत्तर- 1. पम्प के सक्शन तथा डिलीवरी होज को बिछाते समय उसकी कपलिगों में कं कड़, पत्थर या कचरा न जाने पाये।
2. प्रोटीन कम्पाउण्ड के प्रयोग के समय बिना प्रोटीन वाला कम्पाउण्ड नं प्रयोग किया जाये।
3. इनलाइन इण्डक्टर को जहाँ तक सम्भव हो ब्राँच से 100 फिट (30 मी0) पीछेपरन्तु 200 फिट (60 मी0) से अधिक पीछे न रखें।
4. इण्डक्टरों को प्रयोग करते समय उनमें छलनी लगानी चाहिये।
5. फोम बनाते समय पहले 5 मिनट तक फोम ब्रांच कै सा काम कररहा है, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
6. होसके तोअतिरिक्तब्रॉचऔरइण्डक्टरभीतैयाररखनाचाहिये, जोआवश्यकतापड़नेपरबदलेजासकें ।
7. काम करते समय अधिकाधिक प्रेशर की आवश्यकता पड़ती है । अतःपम्पपर 140 या 150 पौण्ड प्रति वर्ग इंच (9.8 या 15. 5 कि०प्र०से०मी०) प्रेशर
रखना चाहिये।
8. इन लाइन इण्डक्टर की अपेक्षा मल्टी पुल इण्डक्टर उपयोगी होते हैं । इन पर पम्प आपरेटर का नियन्त्रण रहता है।
9.फोम कम्पाउण्ड के भरे और खाली ड्र मों को ऐसे रखा जाये जहाँ यातायात में अवरोध न उत्पन्न हों।

प्रश्न:- फोम उपकरणों की देख-रेख किस प्रकार की जाती है


उत्तर- 1. फोम कम्पाउण्ड के टिन व ड्र मों को समय-समय पर देखते रहना चाहिये कि कोई रिसता तो नहीं।
2.रिसते ड्र म को ड्रि ल या ट्रेनिंग में प्रयोग करना चाहिये ।
3.इण्डक्टरों को विशेष रूप से साफ रखना चाहिये। उनकी टोटियों में मोर्चा न लगने पाये ।सफाई करके अन्दर से रंगदेना चाहिये।
4.इण्डक्टर के जैट आहिस्ता –आहिस्ता फोम कम्पाउण्ड की परतों से बन्द हो सकते हैं। अत एव प्रयोग करने के पश्चात सभी उपकरणेंको स्वच्छ पानी से धोकर
साफ करना चाहिये ।
5. कनैक्शन ट्यूब को भी भली-भाँति धोकर रखिये।
6.इसी प्रकार नैपसैकटैंक को भी प्रयोग के बाद भली -भाँति धोकर व सुखाकर रखना चाहिये। इसके ढक्कन के छेदों को साफ करके रखना चाहिये।

प्रश्न:- मैके निकल फोम जैनरेटर किसे कहते हैं


उत्तर- वास्तव में यह सैल्फ इण्ड्यूसिंग फोम मेकिं ग ब्राँच पाइप का ही विकसित रूप है। यह अपने अन्दर आने वाले पानी की मात्रा को सही अनुपात में, फोम
कम्पाउण्ड व हवा मिलाकर फोम बनाने के लिये तथा उस फोम को होज द्वारा आवश्यक स्थान पर फें कने के लिये बनाये जाते है। इसके संचालन के लिये कम से कम
150 पौण्ड प्रतिवर्ग इंच (10.5 कि० प्र० व० से० मी०) प्रेशर चाहिये इसलिये इसको होज की लाइन में पम्प के पास ही लगाया जाता है। नं० 5 एक्स माडल अग्नि
शमन सेवा में अधिक प्रचलित हैं। यह अल्मुनियम एलाय का बना होता है। इसके इनलेट और आउटलेट पर स्टैन्डर्ड डिलीवरी होज के जोड़ने के लिये स्टैन्डर्ड मेल और
फीमेल इन्सटनटेनियस कपलिंग लगी होती हैं। फोम कम्पाउण्ड इसके पिकअप ट्यूब द्वारा ड्र म या टिन से खींचा जाता है। हवा , वाटर हैड के प्रवेश द्वारों से अन्दर
खिंचती है।
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(श्वसन संयन्त्र)
ब्रीदिंग अपरेट्स

प्रश्न:- ब्रीदिंग अपरेट्स किसे कहते हैं


उत्तर- ब्रीदिंग अपरेट्स एक विशेष यन्त्र है जिसे पहनकर प्रत्येक प्रकार के एवं जहरीली गैस युक्त ऐसे वातावरण में जा सकते हैं जहाँ पर कि इसके बिना सांस लेना
या जीवित रहना ही कठिन हो। साथ-साथ निश्चित समय तक उस वातावरण में कु छ श्रमयुक्त कार्य भी कर सकते हैं।

प्रश्न:- ब्रीदिंग अपरेट्स कहाँ प्रयोग किया जाता है


उत्तर- आग बुझाते समय या रेस्क्यू करते समय कभी-कभी फायरमैन को ऐसे वातावरण में भी कार्य करना पड़ता है जहाँ सांस लेना भी कठिन होता है अर्थात्
जिस वातावरण में हम जीते या सॉस लेते रहते हैं वहाँ पर शुद्ध हवा न मिले बल्कि उसमें धुयें या कोई जहरीली गैस की अधिकता हो और आक्सीजन की कमी हो। ऐसी
परिस्थिति का सामना करने के लिये ब्रीदिंग अपरेट्स का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न:- वायु मण्डल में कौन-कौन सी गैसें कितनी मात्रा में हैं
उत्तर- वायुमण्डल में नाइट्रोजन - 79.04%
आक्सीजन - 20.93%
कार्बन डाई आक्साइड - 0.03%

प्रश्न:- साँस लेते समय व छोड़ते समय कौन-कौन सी गैसे कितनीमात्रा में आती जाती है
उत्तर- साँस लेते समय-
नाइट्रोजन 79.04%
नाइट्रोजन 20.93%
सी०ओ०टू ० 0.03%
साँस छोड़ते समय-
नाइट्रोजन 7 9.04%
आक्सीजन 16.96%
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सी०ओ०टू ० 04.00%

प्रश्न:- सामान्यतः मनुष्य कितने लीटर प्रति मिनट हवा वआक्सीजन खर्च करता है
उत्तर- विस्तर में लेटे-लेटे 7.7 लिए हवा व 0.237 लि० आक्सीजन लेता है। खड़े खड़े 10.4 लि० हवा व 0.328 लिए आक्सीजन लेता है। चलते हुये-
(2) मील प्रति घण्टा की चाल से) 18.6 लि० हवा व 0.738 लि० आक्सीजन लेता है। (5) मील प्रतिघण्टा की चाल से) 60.9 लि० हवा व 2.543 लि०
आक्सीजन लेता है। ऊपर जीना चढ़ते या दौड़ते समय 100 लिटर हवा व 3.00 लिटर आक्सीजनलेता है।

प्रश्न:- सैद्धान्तिक रूप से ब्रीदिंग अपरेटस कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- दो प्रकार के -
1. एटमास्फे रिक टाइप ब्रीदिंग अपरेटस।
2. सेल्फ कन्टेण्ड ब्रीदिंग अपरेटस।

प्रश्न:- एटमास्फे रिक टाइप ब्रीदिंग अपरेटस से क्या समझते हो


उत्तर- इस प्रकार के श्वसन यन्त्र में फायरमैन के मुख पर से एक लम्बा पाइप निकाल कर बाहर शुद्ध हवा में या वायुमण्डल में रख दिया जाता है। पहिनने वाला
इसी पाइप के माध्यम से शुद्ध वायुमण्डल से साँस लेता रहता है और दूषित वायुमण्डल में काम करता रहता है। कभी -कभी सुविधा हेतु इस पाइप में बाहर एक छोटी सी
धोकनी भी लगी रहती है जिसे एक दूसरा व्यक्ति चलाकर हवा पहुंचाता रहता है।

प्रश्न:- सैल्फ कन्टेण्ड ब्रीदिंग अपरेटस से क्या समझते हो


उत्तर- इस प्रकार के अपरेटस में शुद्ध हवा, आक्सीजन को एक टकी या देने में पहिनने वाला अपने साथ ले जाता है। दूषित वातावरण में वह इसी टंकी या थैली
से सांस लेता रहता है। उसे दूषित वातावरण से कोई मतलब नहीं रहता। इस प्रकार के यन्त्रों को सैल्फ कन्टेन्ड ब्रीटिंग अपरेटस कहते है। ये दो प्रकार के होते है-
1. ओपेन सर्कि ट ब्रीदिंग अपरेटस
2. क्लोज्ड सर्कि ट ब्रीदिंग अपरेटस।

प्रश्न:- ओपेन सर्कि ट ब्रीदिंग अपरेटस का क्या अर्थ है ?


उत्तर- इस प्रकार के अपरेटस में टकी या थैली से साँस लेते हैं परन्तुमुँह से निकली गदी सांस को थैली से बाहर वायुमण्डल में छोड़ा जाता है।

प्रश्न:- क्लोज्ड सर्कि ट अपरेटस किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रकार के अपरेटस में टंकी या थैली से सांस लेकर सांस को उसी में वापस छोड़ते हैं। बेनी में इस प्रकार की व्यवस्था होती है कि छोड़ी हुई मन का
शुद्धीकरण करके तथा घटी आक्सीजन को पूर्ण करके पुनः साँस लेनेयोग्य बना दिया जाता है। इसीलिए इसे क्लोज्ड सर्कि ट ब्रीदिंग अपरेटसकरते है।

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प्रश्न:- कम्प्रेस्ड एयर ब्रीदिंग अपरेटस को संक्षिप्त में बताओ


उत्तर- इस यन्त्र का पूरा नाम ओपेन सर्कि ट सेल्फ कन्टेण्ड कम्प्रेस्ड एयर गि अपरेट्स है। इस अपरेटस में शुद्ध हवा को एक मजबूत सिलेण्डर में दवाव युक्त भरते
हैं। प्रयोग के समय हवा का दबाव घटाकर पहिनने वाले की आवश्यकतानुसार हवा को आप ही आप पहुंचाने की व्यवस्था रहती है। फायर मैन के चेहरे पर एक विशेष
मुखौटा पहना दिया जाता है। इससे एक पाइप श्वसन प्रणाली में जोड़ दिया जाता है। इसी पाइप द्वारा सांस ली जाती है। मुखौटे में यह भी व्यवस्था रहती है कि मुँह से
निकली हुई गन्दी सांस बाहर निकल जाती है। सम्पूर्ण अपरेटस चमड़े या नायलान से बने साज सज्जा द्वारा फायरमैन की पीठ पर ला दिया जाता है। वह सुगमता से चल
फिर सकता है।

प्रश्न- क्लोज्ड एअर ब्रीदिंग अपरेटस के सिलैण्डर में कितनी हवा होती है
उत्तर- एक प्रचलित सिलैण्डर में 1200 लीटर हवा 132 एटमास्फियर अथवा 1980 पौण्ड प्रति वर्ग इन्च (140.6 कि० प्र० व० से0 मी०) प्रेशर से
भरी होती है। यह हवा 20 से 30 मिनट तक के लिये काफी होती है।

प्रश्न:- आक्सीजन ब्रीदिंग अपरेटस को संक्षिप्त में वर्णन करो ?


उत्तर- इस यन्त्र का पूरा नाम क्लोज्ड सर्कि ट सैल्फ कन्टेण्ट आक्सीजन ब्रीदिंग अपरेटस है। इस अपरेटस में मुँह द्वारा छोड़ी हुई सांस को साफ करके दोबारा सांस
लेने योग्य बना दिया जाता है। पहिनने वाला एक रबर बैग में सांस छोड़ता है तथा वैग में से ही सांस लेता है। इस बैग में दो खाने होते हैं। दोनों खानों को मिलाने वाले
बीच के स्थान में कार्बन डाइआक्साइड को सोखने वाला मसाला पड़ा रहता है छोड़ी जाने वाली सांस एक खाने में जाती है। तत्पश्चात दूसरे खाने में जाती है।

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फलस्वरूप दूसरे खाने में के वल नाइट्रोजन और आक्सीजन ही रह जाती है। सी०ओ०टू बीच में ही सोख ली जाती है। इस दूसरे खाने में 4% आक्सीजन मिलाकर
छोड़ी हुई सांस को पुनः सांस लेने योग्य बना दिया जाता है तथा एक पाइप द्वारा पुनः मुँह में जाती है और यही क्रम बराबर जारी रहता है। पहनने वाला मजे में सांस
लेता व छोड़ता रहता है। उसे बाहर के दूषित वातावरण से कोई मतलब नहीं रहता यह अपरेटस भी पीठ पर लाध दिया जाता है।

प्रश्न:- आक्सीजन ब्रीदिंग अपरेट्स के मुख्य मुख्य भागों के नाम के बताओ


उत्तर- ब्रीदिंग बैग, आक्सीजन सिलैण्डर, माउथ पीस, फे स मास्क, इनहेलेशन ट्यूब, एक्झेलेशन ट्यूब, कू लर, रिलीफवाल्च प्रोटोसार्ब, वाल्व ग्रुप, रिड्यूसिंग
वाल्व प्रेशरगेज वाल्व, वाइपास वाल्व, प्रेशर गेज, मेन बाल्व, कै नवास बैग, हार्नेस इत्यादि।

प्रश्न- एक घण्टे वाले ब्रीदिंग अपरेटस में कितनी आक्सीजन होती है


उत्तर- 6 घन फीट आक्सीजन (लगभग 170 लीटर) 120 एटमासफियर या 1800 पौण्ड प्रति वर्ग इंच (126 कि० प्र० ब० से० मी०) प्रेशर से भरी
होतीहै। कु छ सिलैण्डरों में 6.6 घनफिट (187 लीटर आक्सीजन भरी होती है। और यह अधिक से अधिक 75 मिनट तक चलती है।

प्रश्न:- रिड्यूसिंग वाल्व क्या काम करता है


उत्तर- गैस सिलैण्डर में भरी हाईप्रेशर गैस का प्रेशर घटाकर उसे सांस लेने योग्य स्थिति में लाता है और के वल ढाई लीटर प्रति मिनट के हिसाब से बैग में देता है।

प्रश्न:- बाइपास वाल्व क्या काम करता है


उत्तर- रिड्यूसिंग वाल्व से जब कम गैस मिलती है तब इस वाल्च को थोड़ा सा 'खोलकर सिलैण्डर से सीधे आक्सीजन प्राप्त की जाती है। यह वाल्व हमेशा बन्द
रखा जाता है। आवश्यकता पड़ने पर ही इसे थोड़ा सा खोलकर पुनः बन्द कर दिया जाता है।

प्रश्न:- रिलीफ वाल्व क्या काम करता है? कहाँ लगा रहता है
उत्तर- ब्रीदिंग बैग के बाहरी खाने में लगा रहता है। इसे दवा कर बैग की हवा बाहर निकाली जा सकती है। जब ब्रीदिंग अपरेटस के ब्रीदिंग बैग में सांस की हवा
अधिक हो जाने के कारण पहनने वाला कु छ असुविधा अनुभव करता है। तो इस वाल्व को खोलकर फालतू हवा बाहर निकाल देता है।

प्रश्न:- कू लर का क्या काम है ?


उत्तर- मुख से निकली सॉस गरम होती है। इसे दोबारा मुँह में लेने में. कठिनाई होती है। कू लर इसे ठण्डा करके दोबारा सांस लेने योग्य कर देता है। यह ब्रीदिंग बैग
और इनहेलेशन ट्यूब के मध्य में लगाया जाता है। इसमें एक विशेष रसायन (कै ल्शियम क्लोराइड) प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न:- प्रौटोसार्ब किसे कहते हैं


उत्तर- प्रोटो टाइप ब्रीदिंग अपरेट्स में सी०ओ०टू ० को सोखने के लिये प्रोटोसार्बप्रयोग किया जाता है। इसे सी०ओ०टू ० एब्जारवेन्ट भी कहते हैं।

प्रश्न:- आक्सीजन ब्रीदिंग अपरेटस को पहिनकर या प्रयोग करतेसमय क्या-क्या बातें याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1. मेन वाल्व खोलकर सैफ्टी बोल्ट लगाना न भूलिये।
2.समय-समय पर प्रेशर गेज देखते रहना चाहिये कि आक्सीजनकी मात्रा कितनी शेष है।
3. कार्य करते समय यदि ब्रीदिंग अपरेट्स अधिक फू ला हुआ लगे तो रिलीफ वाल्व दबाकर सामान्यस्थिति में लाइये।
4. समय समय पर बैग को हिलाकर सी०ओ०टू ०एब्जावेंन्ट को हिलाते रहिये।
5. यदि अधिक परिश्रम से कार्य करना पड़े तो आक्सीजन की सप्लाई अधिक प्राप्त करने के लिये बाइपास वाल्व को थोड़ा खोलिये और पुनः बन्द कर दीजिये।

प्रश्न:- आक्सीजन ब्रीदिंग अपरेटस के प्रयोग के बाद की देख-रेख कै से करोगे


उत्तर- 1.प्रयोग के पश्चात् ब्रीदिंग बैग को खाली करके गुनगुने पानी से धोनाचाहिये।
2. उस से पानी निकाल कर पूर्ण रूप से सुखाई ये।
3. सांस लेने व छोड़ने के ट्यूब, फे समास्क आदि को कीटाणु नाशक दवाके साथ धोइये। पानी को निकालकर पूरी तरह सुखाइये।
4.सैट के अन्य सामान की भी सफाई कीजिये।
5. पुर्जो को चिकनाने के लिये ग्रीस, तेल मत लगाइ ये।
6. वाल्व कसते समय अधिक जोर मत लगाइ ये। इन्हें किसी अन्य वस्तु से टकराने से बचाइये।
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प्रश्न:- कम्प्रेस्ड एयर ब्रीदिंग अपरेट्स के मुख्य मुख्य भागों के नाम बताओ?
उत्तर- फे स मास्क, डिमाण्ड रेगुलेटर, सिलैण्डर, बैंक प्लेट, प्रेशर गेज, हार्नेस,इनहेलेशन ट्यूब।

प्रश्न:- डिमाण्ड रेगुलेटर के काम करने का ढंग बताओ


उत्तर- रेगुलेटर के काम करने का ढंग ऐसा है कि संयन्त्र पहिनने वाले को जितनी भी हवा की जरूरत होती है मिल जाती है हल्का काम करते समय उससे थोड़ी
सी हवा निकलती है। कठिन काम करते समय और लम्बी सांस लेते समय अधिक हवा मिल जाती है। उससे थोड़ी सी हवा निकलती है। कठिन काम करते समय और
लम्बी सांस लेते समय अधिक हवा मिल जाती है। इसमें बाइपास की भी जरूरत नहीं होती है ।

प्रश्न:- कम्प्रेस्ड एयर ब्रीदिंग अपरेट्स की क्या-क्या देख-रेखआवश्यक है


उत्तर- 1. प्रयोग के बाद नियमानुसार अपरेटस को साफ करना चाहिये।
2.मुखौटा और श्वसन नली धोना चाहिये, कीटाणु नाशक दवा से उपचारित करना चाहिये। पूर्ण रूप से सुखा कर ही रखना चाहिये।
3. आँख के शीशे या वायजर, धुन्ध से बचने के लिये उपचारित करना चाहिये।
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4. यदि सिलैण्ड का प्रेशर भरे जाने वाले प्रेशर से 5/6 से कम होतो उसे पूरे भरे सिलैण्डर से बदलना चाहिये ।
5. टैस्ट के समय खराब वाशर खराब पुर्जे बदल देना चाहिये ।
6.नट कसते समय अधिक जोर नहीं देना चाहिये।
7. अपरेट्स के किसी पुर्जे में तेल ग्रीस मत लगाइ ये।

प्रश्न :- लाइन सिगनल किस तरह दिये जाते हैं,


उत्तर- लाइन सिग्नल पहिनने वाला दे तो सहायक दे तो
एक झटका मैं सकु शल हूँ। क्या तुम सकु शल हो।
दो झटके लाइन और ढीली छोड़ो। मैं लाइन ढीली छोड़ रहा हूँ।
दो झटके रुककर नीचे उतारना आगे बढ़ाना बन्द करो। मैं नीचे उतारना आगे
दो झटके बढ़ाना बन्द कर रहा हूँ। बढ़ाना बन्द कर रहा हूँ।
तीन झटके ढीली लाइन खींच लो या मैं ढीली लाइन खींच रहा
मुझे बाहर खींच लो हूँ या तुम्हें बाहर खींच रहा हूँ।
बार-बार खतरा है मुझे बचाओ खतरा है। बाहर आओ
तेज झटके मैं तुम्हे बाहर खींच रहा हूँ।

रिससिटेशन अपरेटस

प्रश्न:- रिससिटेशन से क्या समझतेहो


उत्तर- रिससिटेशन मे रिससिटेशन उस कार्यवाही को कहते है जिसके द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति जिसक क्रिया बन्द हो गयी हो या उसमें रूकावट आ गई हो और दम
घुटने या आ के कारण भरने जा रहा हो, बचाया जा सकता है अथवा उसे पुनर्जीवन प्राप्त होता है।

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प्रश्न:- रिससिटेशन की कब आवश्यकता पड़ती है


उत्तर- इस कार्यवाही की उस समय आवश्यकता पड़ती है जो आक्साइड जैसी जहरीली गैस के घूंसे में सांस लेने , पानी में डू बने बिजली का झटका लगते गले या
सास की नली में कु छ फँ स जाने या अन्य किसी कारणवश सास के आने-जाने में रूकावट आ गयी हो।

प्रश्न:- श्वसन क्या है? शरीर में श्वसन क्रिया क्यों और किस प्रकार होती है
उत्तर- श्वसन एक प्राकृ तिक क्रिया है जो अगर कोई शारीरिक कारण वाचा न तो मनुष्य के जन्म लेने से मृत्यु तक 15 से 30 वार प्रति मिनट की दर से आप ही
आप होती रहती है। शरीर यह क्रिया इसलिये करता है क्योंकि उसे आवसीज की आवश्यकता होती है जो वायुमण्डल से मिलती है। अतः वायुमण्डल की हवा फोफडे मे
ली जाती है आक्सीजन सोखी जाती है और कार्बन डाई आक्साइड बनकर बाहर आ जाती है। इस प्रकार सास लेना और मांस छोड़ना श्वसन क्रिया के ही रूप है मुंह
छाती, फे फड़े और डायफ्राम यहकार्य करते है।
छाती के अन्दर के पोले भाग के बढ़ने या फै लने एवं डायफ्राम के नीचे जाने के कारण हवा, मुंह द्वारा शरीर में घुसती है और फे फड़े में जाती है। छाती के सिकड़ने एवं
डायफ्राम के ऊपर उठने से फे फड़ों व सीने में भरी सारी हवा शरीर से बाहर निकल जाती है। यही क्रिया निरन्तर जारी रहती है। इस क्रिया को एक विशेष प्रन्थि
नियन्त्रित रखती है। जो श्वसन के न्द्र या रेस्पीरेटरी सेन्टर कहलाती है। यह ग्रन्थि मस्तिष्क में ही कहीं स्थित होती है।

प्रश्न:- रेस्पीरेटरी सेन्टर से क्या समझते हो? यह क्या कार्य करता है


उत्तर- रेस्पीरेटरी सेन्टर एक विशेष प्रकार की ग्रन्थि (गिलैण्ड) है जो मस्तिष्क में हीं कहीं रहती है और श्वसन किया को नियन्त्रित रखती है। रेस्पीरेटरी सेन्टर
खून में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा से सतर्क रहता है। यदि सी०ओ०टू ० की मात्रा अधिक हो जायेगी तो श्वास के न्द्र उत्तेजित होकर सांस की गति तेज कर देगा
ताकि सी०ओ०टू ० जल्द से जल्द शरीर से बाहर निकाल दी जाये।

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प्रश्न:- कृ त्रिम श्वसन (बनावटी सांस) से क्या समझते हो


उत्तर- श्वसन क्रिया या सांस का लेना एक प्राकृ तिक क्रिया है जो मनुष्य के पैदा होने से मृत्यु तक 15 से 30 बार प्रति मिनट की दर से आप ही आप चलती
रहती है। इस क्रिया द्वारा शरीर को आक्सीजन मिलती रहती है। यदि किसी कारणवश इस क्रिया में कोई अवरोध हो जाय या बन्द हो जाये तो मनुष्य का जीवित रहना
सम्भव नहीं होता। अतएव सांस बन्द होने पर उसके बन्द होने के कारण को ज्ञात करके व दूर करके शीघ्रातिशीघ्र सांस का क्रम जारी करना अनिवार्य होता है। जैसे
शरीर व हाथों की विशेष क्रिया द्वारा शुद्ध हवा बेहोश मनुष्य के शरीर के अन्दर पहुँचाना , ताकि शरीर में आक्सीजन के पहुँचने से मरणासन्न, रेस्पीरेटरी सेन्टर पुनः
क्रियाशील हो जाय और प्राकृ तिक रूप से सास का दौरा जारी हो जाय। इसी कार्यवाही को कृ तिम श्वसन क्रिया या बनावटी सांस देना कहते हैं।

प्रश्न:- रिससिटेशन किस प्रकार किया जाता है


उत्तर- स्टेशन प्रकार से किया जाता है
1. मैनुअल टेकनीक अर्थात् हाथों द्वारा शरीर को हरकत देकर बनावटीसास देना ताकि प्राकृ तिक श्वसन क्रिया चालू हो जाय
2.अपरेटम द्वारा अर्थात विशेष यन्त्रों द्वारा आक्सीजन या आक्सीजनऔर सी. ओ. टू . का मिश्रण, या अथवा और सी. ओ. टू का मिश्रण, रेस्पीरेटरी सेन्टर तक
पहुँचाकर श्वसन क्रिया को पुनः चालू किया जाय।
प्रश्न:- बनावटी सांस देने के विभिन्न उपायों के नाम बताओ?
उत्तर- 1. शेफर्स मैयड 2. सिलवेस्टर्स मैथड 3. एमरसन मैथड
4. होलगर नीयलसन मैवड 5 .ईव राकिं ग मैथड और 6. माउथ टू माउथ मैथड

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प्रश्न- बनावटी सांस देने से पहले क्या-क्या कार्यवाही करनीचाहिये


उत्तर- बनावटी सांस देने से पहले रोगी का मुँह नाक साफ कीजिए। वायु मार्ग को खुला रखिये ताकि श्वसन क्रिया सरलता से हो। गर्दन , सीने तथा कमर के कपड़ों
को ढीला कर दीजिए कम्बल आदि लपेट कर रोगी को गर्म रखिये।

प्रश्न- बनावटी सांस कब तक दी जाती रहेगी


उत्तर- जब तक रोगी की प्राकृ तिक श्वसन क्रिया जारी न हो जाय, याडाक्टर आकर उसे मृत घोषित न कर दे। तबतक बनावटी सांस निरन्तर दी जातीरहेगी।

प्रश्न- शेफर्स मैथड से किस प्रकार बनावटी सांस दी जाती है


उत्तर- रोगी को औंधा (पीठ ऊपर की ओर) लिटाइये। हाथ ऊपर सिर की ओर फै ला दीजिए। सिर या चेहरे को एक ओर घुमा दीजिए। पैरों को भी सीध फै ला
दीजिए। रोगी के एक ओर उसकी कमर के पास घुटने टेक कर ऐसे बैठिये कि आपका चेहरा रोगी के सिर की ओर रहे अपने दोनों हाथों के अंगूठे मिलाकर रोगी की रीढ़
की हड्डी पर इस प्रकार रखिये कि अंगूठे सिर की ओर व अंगुलिया नीचे पेट की ओर रहे और तर्जनी अंगुली अन्तिम पसली को छू ती रहे
अपने घुटनों पर खड़े होकर हाथों को सीधा करते हुए हथेलियों पर अपने शरीर का भार डालिये (और एक, दो, तीन गिनिये) इसके बाद भार हटाकर वापसअपनी
पिंडलियों पर बेठिये हाथ मत हटाइये के वल शरीर का भार हटाइये (चार, पाँच, छ: गिनिये)। इसके बाद फिर घुटनों पर खड़े होकर हाथों को सीधा करते हुये हथेलियों
पर भार डालिये और गिनिये। तथा फिर वापस पिंडलियों पर बैठ जाइये और गिनिये। इस प्रकार एक मिनट में 10 से 12 बार यह क्रिया करते रहिये जब तक कि रोगी
को होश न आ जाय या डाक्टरी सहायता न मिल जाय।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न- सिलवेस्टर्स मैथड से किस प्रकार बनावटी सांस दी जातीहै


उत्तर- रोगी को चित यानी सीधा (पीठ के सहारे, चेहरा ऊपर की ओर) लिटाइये। कं धों के नीचे ६ गद्दी, तकिया रखकर ऊँ चा कीजिये। सिर को थोड़ा पीछे की
ओर खींचकर गर्दन को सीधा कर दीजिये। रोगी के सिर की ओर घुटनों के बल बैठ जाइये आपका चेहरा रोगी के सिर की ओर रहे। रोगी के हाथों को कलाई पर पकड़िये
तथा उन्हें अपनी ओर खींचिये (एक, दो, तीन गिनिये) तत्पश्चात रोगी के हाथों को उसकी छाती पर रखकर अपने शरीर का भार अपनी हथेलियों पर डालिए (व चार,
पाँच, छः गिनिये) तत्पश्चात हथेलियों से अपना भार हटाकर अपने पैरों की पिंडलियों पर बैठ जाइये तथा रोगी के हाथ बाहर की ओर फै लाते हुए पुनः अपनी ओर
खींचिए (और फिर एक, दो, तीन गिनिये) तत्पश्चात् रोगी के हाथों को पुनः रोगी की छाती पर रखकर अपने शरीर का भार अपनी हथेलियों पर दीजिए। इस प्रकार 1
मिनट में 10 से 12 बार यह किया दोहराते रहिये जब तक कि स्वाभाविक श्वसन क्रिया आरम्भ न हो जाय या डाक्टरी मदद न मिल जाय।

प्रश्न- एमरसन मैथड से किस प्रकार बनावटी साँस दी जाती है


उत्तर- रोगी को औंधा (पीठ को ऊपर करते हुए) लिटाइये। हाथ ऊपरसिर की ओर फै लाइए। चेहरे को एक ओर घुमा दीजिए। रोगी के सिर की ओर मुँह करके रोगी
के बाँये बाजू, कमर के पास अपना बाँया घुटना रखिए एवं रोगी के दाहिनी ओर अपना दाहिना पैर रखिए। अपने शरीर का भार अपने घुटने व पैर पर ही रखिए। रोगी
आपके दोनों पैरों के बीच में रहेगा। अपने दोनों हाथों से रोगी का पेट कू ल्हे के पास पकड़कर जमीन से थोड़ा सा ऊँ चा उठाइये (75.या 10 से भी) और झटके से
छोड़ दीजिए। यही क्रिया बार-बार दोहराते रहिए। एक मिनट में 15 या 20 बार जन स्वाभाविक श्वसन आरम्भ हो जाये या डाक्टरी महायता मिल जाए तभी बनावटी
साम देना रोकना चाहिए।

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प्रश्न- होल्गर नीयलसन मैथड से किस प्रकार बनावटी सांस दीजाती है


उत्तर- 1. रोगी को औधा (पेट के बल) लिटाकर उसके दोनों हाथों को फै लाकर कोहनियों से मोड़ते हुए उसके चेहरे के नीचे रखिए। उसके हाथों पर रोगी के माथे
को टिका दीजिए जिससे उसके मुँह और नाक पर कोई रुकावट न रहे।
2.रोगी के सिर की ओर(रोगी के ओर मुँह कर के ऐसे बैठिये कि आपका एक टारोगी के सिर के पास और दूसरा पैर उसकी कोहनी के बगल में हो । समय -समय पर
घुटना बदला जास कता है ।
3. रोगी के शोल्डर ब्लेडों पर अपने हाथों को इस प्रकार रखिए कि अंगूठे बीच में मिल जाय तथा अंगुलियों रोगी के पैरों की ओर फै ली हो ।
4.अपने हाथों को सीधा करते हुए आगे झुकिए और अपने शरीर का भार हाथों अथवा मरीज की पीठ पर डालिए (एक, दो, तीन
5. धीरे से दबाव ढीला कीजिए और अपने हाथों को सरकाकर रोगी की कोहनियों से तनिक ऊपर ले आइये (साथ-साथ 'चार' गिनिये) ।
6.रोगी के बाजुओं को पकड़कर उठाते हुए आप पीछे की ओर तनते हुये अपने पैरों पर बैठ जाइये। ध्यान रहे कि रोगी का सीना भूमि से न उठने पाये (साथ-साथ
पाँच-छः-सात-गिनिये)।
7. रोगी के बाजू वापस करते हुए (आठ-गिनते-गिनते) अपने हाथों को सरकाकर फिर पीठ पर ले आइये।
8. क्रमांक चार की भाँति आगे झुककर अपने शरीर का भार पर डालिये व (फिर एक दो-तीन गिनिये) ।
9.जब रोगी की सांस फिर से चलने लगे तब भी रोगी के बाजू उठाना और गिराना जारी रखिये प्रति मिनट 12 वार
करना चाहिए।
10. यदि सीने पर चोट है ,तब के वल बाजू उठाना और गिराना चाहिए।

नोट :स्त्री और पुरुष की आयु के अनुसार दबाव डालना चाहिए । रोगी जितना छोटा हो उतना ही दबाव कम हो ।

प्रश्न- ईव राकिं ग मैथड से बनावटी सांस किस प्रकार दी जातीहै

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- रोगी का शरीर, यदि बारी बारी से उसका सिर और पैर ऊपर नीचे करते हुए झुलाया जाय, तो वही असर होता है जो हाथों की हरकत से होता है। जब सिर
नीचे की ओर होता है तब पेट के अन्दर के अवयवों से डाइफ्राम नीचे झुकती है और फे फड़े दब जाते हैं फलस्वरूप गन्दी सांस बाहर निकल जाती है। जब पैर नीचे की
ओर किये जाते हैं तो पेट के अन्दर के अवयव डायफ्राम को पीछे खींच लेते हैं। जिससे शरीर सांस खींचंता है।
इस क्रिया के लिये विशेष प्रकार के स्ट्रेचर आते हैं जो राकिं ग स्ट्रेचर कहलाते हैं। बच्चों को हाथों पर ही लिटाकर बारी-बारी से उसका सिर नीचे ऊपर किया जाता है।

प्रश्न- माउथ-दु-माउथ मैथड से किस प्रकार बनावटी सांस दीजाती है


उत्तर- रोगी के मुँह से मुँह लगाकर फूं क भरना। रोगी को सीधा (पीठ के . बल) चित्त लिटाइये कन्धों के नीचे कोई गद्दी, तकिया रखकर उन्हें थोड़ा ऊँ चा कीजिए।
रोगी के सिर को पीछे से थोड़ा खींचकर गर्दन को सीधा कर लीजिए।
रोगी के बाँयी ओर कन्धों के पास बैठकर रोगी का मुँह खोलकर वाये हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली द्वारा गाल को दवाकर मुँह खुली स्थिति से रखिये। दाहिने हाथ से
रोगी की नाक बन्द कीजिए। अपने मुँह को रोगी के मुँह पर रखकर फूँ किये और हट जाइये। रोगी का सीना फू लता दिखना चाहिए। यदि पेट फू लता दिखे तो समझिये का
सांस की नली बन्द है। गद्दी व गर्दन ठीक कीजिए और पुनः फूँ किये। सीना फू ल जाने पर अपने बाँये हाथ को जबड़े से हटाकर रोगी के सीने पर रख दीजिए ताकि गन्दी
गैस धीरे-धीरे बाहर निकल जाये। फूं क मारने की क्रिया फिर दोहराइये। कु छ देर बाद ही आप देखेंगे कि रोगी की श्वसन क्रिया चालू हो गयी है।

प्रश्न- रिससिटेशन अपरेटस कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- 1- हैण्ड कन्ट्रोल टाइप रिससिटेशन अपरेटस।
2- लंग कन्ट्रोल टाइप रिससिटेशन अपरेटस।
3- फु ल्ली ओटोमैटिक रिससिटेशन अपरेटस।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
4- हैण्ड अपरेटेड एयर बैलोज टाइप रिससिटेशन अपरेटस।
5- राकिं ग रिससिटेशन अपरेटस।

प्रश्न- हैण्ड कन्ट्रोल टाइप रिससिटेशन अपरेटस कै सा होता है ?


उत्तर- इस प्रकार के अपरेटस में एक उपयुक्त मुखौटे द्वारा मरीज को आक्सीजन दी जाती है। दी जाने वाली आक्सीजन की दर आपरेटर नियंत्रित करता है। इसमें
स्टील सिलैण्डर, रिड्यूसिंग वाल्व, प्रेशर गेज, फिलैक्सिबिल बैग, इनहेलेशन ट्यूब, फे स मास्क होते हैं। सिलैण्डर में 11 घन फीट (312 लि.) गैस या गैस का
मिक्चर 120 एटमासफीयर (126 कि. प्र. व. से. मी.) से भरी जाती

प्रश्न- लंग कन्ट्रोल टाइप रिससिटेशन के क्या अर्थ हैं


उत्तर- इस प्रकार को आपरेटस कम्प्रेस्ड एयर ब्रीदिंग अपरेटस की भाँति कार्य करता है। सिलैण्डर से उतनी ही गैस निकलती है जितनी मरीज को आवश्यकता
होती है। इसके मुख्य मुख्य भाग, स्टील सिलैण्डर, ब्रीदिंग बैग,इनहेलेशन ट्यूब, फे स मास्क, बाइपास वाल्व और प्रेशर गेज हैं। सिलैंडर में 15 घन फिट (425 लि.)
गैस 120 एटमासफियर (126 कि. प्र. व. से. मी.) से भरी होतीहै।

प्रश्न- फु ल्ली ओटोमैटिक रिससिटेशन अपरेटस से क्या अर्थ है


उत्तर- इस प्रकार का अपरेटस रोगी के फे फड़ों के फू लने और पिचकने की क्रिया स्वतः नियन्त्रित करता है। इसे सामान्य हैण्ड कन्ट्रोल टाइप अपरेटस की
सहायता के बगैर सफलतापूर्वक काम में लाया जा सकता है। इसके मुख्य भाग स्टील सिलैण्डर , रिड्यूसिंग रेगुलेटर, स्वतः बन्द होने वाली आउटलेट, फे स मास्क,
एप्लीके टर, दो एयर वे ट्यूब होते हैं। सिलेण्डर में 11.5 घन फीट (326 ली.) गैस या गैस का मिश्रण 120 एटमासफियर (126 कि. प्र. व. से. मी.) या
1800 पौण्ड प्रति वर्ग इंच प्रेशर से भरी होती है।

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प्रश्न- एयर बैजोज टाइप रिससिटेशन अपरेटस से क्या समझते हो ,


उत्तर- इस प्रकार के अपरेटस में एक हाथ से चलाने वाली एकहरी क्रिया वाली धौंकनी होती है जो फे स मास्क से लचकदार ट्यूब द्वारा जुड़ी रहती है। गोकनी कु छ
इस प्रकार लगायी जाती है कि जब उसे दबाया जाय तो मरीज की ठोढी स्वतः ऊपर हो जाती है और फे फड़ों तक हवा जाने का रास्ता साफ हो जाता है। सामान्यतः
रोगी को वायु मण्डलीय हवा दी जाती है। परन्तु कु छ अपरेटस में आक्सीजन जोड़ने की भी व्यवस्था रहती है।

प्रश्न- राकिं ग रिससिटेशन अपरेटस किसे कहते हैं


उत्तर- राकिं ग मैथड द्वारा सांस देने के लिए एक विशेष प्रकार का अपरेटस है इसे राकिं ग स्ट्रेचर भी कहते हैं। मैटल का स्ट्रेचर एक तिकोने स्टैण्ड पर फिट रहता
है। मरीज को इस स्ट्रेचर पर औंधा लिटाकर बैल्टों से बाँध दिया जाता है एक बार सिर की ओर वाला भाग नीचे की ओर किया जाता है। कु छ क्षण बाद ऊपर कर दिया
जाता है और पैरों वाला भाग नीचे करते हैं। यानी बच्चों के

प्रश्न- राकिं ग स्ट्रेचर किसे कहते हैं


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उत्तर- एक विशेष प्रकार का स्ट्रेचर होता है इस पर रोगी को लिटाकर ईव राकिं ग मैथड से बनावटी सांस दी जाती है। मैटल पाइपों का बना होता है। कै नवास का
बैड होता है। मैटल का ही एक तिकोना स्टैण्ड होता है स्टैण्ड का शीर्ष स्ट्रेचर के मध्य से जुड़ा रहता है और बच्चों के "सी-सा" की भाँति ऊपर नीचे झुलाया जा सकता
है। स्ट्रेचर में पैरों की ओर सरकने वाला पेड लगा होता है जिसे मरीज के अनुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है। स्ट्रेचर में बेल्ट लगे होते हैं जिनसे मरीज को बाँध दिया
जाता है और ऊपर नीचे करने पर रोगी खिसकने नहीं पाता। ऊपर नीचे रखकर ठहरने का सही टाइम रखने के लिए स्ट्रेचर में एक मरकरी टाइमिंग डिवाइस भी लगी
होती है। प्रति मि. 15 बार झुलाया जाता है। स्ट्रेचर को तह करके रखा जा सकता है (यानी फोल्डिंग टाइप होता है)

प्रश्न- बैलून टाइप रिससिटेशन अपरेटस किसे कहते हैं,


उत्तर- एक अति आधुनिक अपरेटस है। रबर का बना बल्ब या बैलून जैसा होता है तथा एक माउथपीस होता है जिसे रोगी के मुँह पर लगाया जाता है। उसमें इस
बैलून को जोड़ देते हैं। सांस बाहर निकालने के लिए व्यवस्था रहती है। आवश्यकता पड़ने पर आक्सीजन सप्लाई करने की व्यवस्था भी होती है।

प्रश्न- रिससिटेशन अपरेटस की देख-रेख किस प्रकार होनी चाहिए,

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उत्तर- 1. समय-समय पर सिलैण्डर के प्रेशर गेजों को चैक करके गैस की मात्रा मालूम करते रहना चाहिए ।
2.फे स मास्क पर फिट, बाल्वों को भी चैक करते रहना चाहिए कि ठीक कार्य कर रहे हैं,या-नहीं ।
3.प्रयोग के पश्चात फे स मास्क व इनहेलेशन ट्यूव को भली-भाँति साफ रखना चाहिए । डिटाल का भी प्रयोग करें।
4. ब्रीदिंग बैग को सम्भाल कर रखें । यह मुड़ने टू टने न पाये। इसमें फें फड़े से नियन्त्रित यन्त्र होते हैं।
5.बैलोज टाइप अपरेटस के बैलोज को भी सम्भाल कर रखिये ।
6.अपरेटस को साफ और सूखे स्थान पर रखिये । अधिक गर्मी पाकर फे स मास्क की रबर खराब होने लगती है ।

स्पेशल अप्लाइंसेज

प्रश्न- स्पेशल अप्लाइंसेज से क्या तात्पर्य है


उत्तर- फायर सर्विस की कु छ मशीनें और उपकरण ऐसे भी हैं, जिनकी प्रत्येक आग पर आवश्यकता नहीं बल्कि विशेष परिस्थितियों में आग बुझाने या जीवन रक्षा
के समय किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने के लिए इनकी सहायता लेनी पड़ती है। तब इन्हें फायर स्टेशन से बुलाया या भेजा जाता है। इन्हें स्पेशल अप्लाइंसेज कहते
हैं।

प्रश्न- उपयोगितानुसार स्पेशल अप्लाइंसेज कितने ग्रुपों में रखे जाते हैं
उत्तर- 1. वे सब अप्लाइसेज जिनको पानी की व्यवस्था हेतु बुलाया जाता है।
2. वे अप्लाइंसेज जो अग्नि स्थल पर फोम की पूर्ति करते हैं।
3.वे अप्लाइसेज जो विशेष परिस्थितियों में विशेष कार्य करने के लिए बुलाये जाते हैं।
4. वे अप्लाइंसेज जो अग्नि स्थल पर सुचनाओं के आदान-प्रदानके लिए बुलाए जाते हैं।
5.वे अप्लाइंसेज जो अग्निस्थल पर पेट्रोल की सम्पूर्ति अथवा मरम्मत कार्य के लिए बुलाये जाते हैं ।
6.वे अप्लाइंसेज जो कर्मचारियों की भोजन व्यवस्था हेतु बुलाये जाते हैं ।

प्रश्न- हौजलेइंगलारीसेक्यासमझतेहो
उत्तर- एक विशेष गाड़ी जिसमें होज रखे जाते हैं तथा इसी गाड़ी के द्वारा फै लाये जाते हैं। इससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है। एमरजेंसी टाइप हौज लेइंग
लारी में (200 मी.) होज रखे जाते हैं। 50 मी. के चार खण्ड बनेहोते जिसमें 30 मी. लम्बी 15 होज रखी होती हैं। किसी-किसी गाड़ी में फ्लै क्ड होज रखने की
व्यवस्था होती है।

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प्रश्न- मोबाइल डैम लारी से क्या समझते हो ,


उत्तर- परिस्थिति विशेष में दूर से पानी लाने के लिए मुख्यतः जब रिले पम्पिंग असम्भव हो, एक विशेष गाड़ी पर 500/1000 गैलन (2250/4500
ली०) क्षमता वाले स्टील के कोलैप्सेबुल टैंक फिट रहते हैं, जब इसके साथ एक ट्रेलर पम्प भी हो तो इसे मोबाइल डैम यूनिट कहते हैं।

प्रश्न- फोम टैण्डर किसे कहते हैं


उत्तर- किसी बड़ी तेल की आग पर जहाँ बहुत अधिक परिमाण में फोम की आवश्यकता पड़े तब इस विशेष गाड़ी को बुलाया जाता है। इसमें फोम मेकिं ग ब्राँच नं.
2 मय नैपसैक टैंक या एफ० बी० 5 ए एक्स और फोम मेकिं ग ब्राँच नं० 10 मय इनलाइन इण्डक्टर, 110 गैलन (495 ली०) फोम कम्पाउण्ड एसबेस्टस फे स
पीस या एपरिन, एसबेस्टस ग्लब्ज, कु छ होज हाइड्रेन्ट गेयर्स। आधुनिक टैण्डर में एक वाटर टैंक व बिल्ट इन पम्प भी होता है।

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प्रश्न- एयरक्राफ्ट क्रे श टैण्डर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष गाड़ी जो हवाई जहाज की आग बुझाने के लिए उपयोगी होती है। 400 गैलन (1800 ली०) वाटर टैंक, बिल्ट इन पम्प के अतिरिक्त इसमें
फोम कम्पाउण्ड, फोम मेकिं ग ब्राँच, सी० ओ० टू ० एक्सटिंग्यूशर्स बैटरी, व 60 फिट (18 मी०) सी० ओ० टू० होजरील भी होती है। इसके अतिरिक्त कु इक रिलीज
नाइफ, सरक्यूलर सा, साल्वेज ग्रेब हुक, एसबेस्टस सूट, ग्लब्ज, फे स पीस, आदि अनेकों उपकरण होते हैं।

प्रश्न- इमरजैन्सी टैण्डर किसे कहते हैं


उत्तर- बहुत से उपकरण ऐसे हैं जो प्रत्येक आग पर काम नहीं आते बल्कि परिस्थति विशेष में उनकी आवश्यकता पड़ती है। जगह और वजन के कारण इन्हें
प्रत्येक टर्नआउट मशीन पर रखना सम्भव नहीं। इसलिए इन्हें एक विशेष गाड़ी पर रखा जाता है जो इमरजेन्सी टेंडर कहलाती है। इसके मुख्य मुख्य उपकरण है -सर्च
लाइट और फ्लड लाइट, जेनरेटर, स्मोक एक्जास्टर, औक्सी-एसिटिलीन कटिंग सैट, ब्रीदिंग अपरेटस, रिससिटेशन अपरेटस, अमोनिया मास्क एवं सूट, हाइड्रोलिक
जैक, इलेक्ट्रिक ड्रि ल मशीन, इलेक्ट्रिक सरकु लर सा, कटिंग गेयर्स, लिफटिंग गेयर्स, पुलिंग एण्ड लिफटिंग मशीन, ट्राइपाड, चेन सिलिंग, सीवर ट्राली, स्पेशल होज
फिटिंग मानीटर, सेलर पाइप, राके ट पिस्टल, रैलिंग एक्सपैण्डर इत्यादि।

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प्रश्न- साल्वेज टैण्डर किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष गाड़ी जिसमें साल्वेज वर्क में काम आने वाले उपकरण रखे जाते हैं। जैसे-साल्वेज शीट्स, होपर, डालीज, साल्वेजहुक, सॉडस्ट, और स्ट्रेनर
इत्यादि विविध उपकरण होते हैं।

प्रश्न- कन्ट्रोल वैन किसे कहते हैं।


उत्तर- एक विशेष गाड़ी जो बड़ी-बड़ी आगों पर टैम्प्रेरी अथवा अधि कारियों व कर्मचारियों के विचार-विमर्श हेतु टेम्प्रेरी आफिस का कार्य करती है।

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प्रश्न- ब्रेक डाउन लारी किसे कहते हैं


उत्तर- एक विशेष प्रकार की गाड़ी होती है, इसमें एक छोटी-सी क्रे न लगी होती हैं। जो भारी वस्तुओं और दुर्घटना में टू टी-फू टी गाड़ियों को उठाने के काम आती
है। इसमें स्पेयरव्हील, कटिंग सैट, 20 टन का जैक कई छोटे-छोटे जैक, हार्स सिलिंग, शीयर, बोल्ट कटर, लीवर और पुली ब्लाक आदि उपकरणहोते हैं।

प्रश्न- कैं टीन वैन और किचिन वैन किसे कहते हैं


उत्तर- विशेष गाड़ियाँ जिसमें 50 से 200 व्यक्तियों के लिए चाय पानी प्रबन्ध रहता है कै न्टीन वैन कहलाती तथा जिनमें गर्म खाने का प्रबन्ध रहताहै मोबाइल
किचिन वैन कहलाता हैं।

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स्टैण्डर्ड टैस्ट

प्रश्न- स्टैण्डर्ड टैस्ट से क्या समझते हो


उत्तर- फायर सर्विस की मशीन और उपकरणों को हर समय उच्च स्तर पर रखना अनिवार्य है। प्रत्येक मशीन का एक विशेष स्तर निर्धारित कर दिया गया है।
समय-समय पर इसका स्तर परीक्षण होता रहना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसकी पूर्ण कार्यक्षमता प्राप्त करते हुए बेखटके प्रयोग किया जा सके । इस निर्धारित
परीक्षण को ही स्टैंडर्ड टैस्ट या मानक परीक्षण कहते हैं।
प्रश्न- डिलीवरी होज का स्टैण्डर्ड टैस्ट कब और कै से कियाजाता है
उत्तर- प्रत्येक डिलीवरी होज एवं होजरील ट्यूविंग को
(अ) प्रत्येक आग पर प्रयोग के पश्चात अथवा
(ब) साल में एक बार अवश्य टैस्ट करना चाहिए ।
डिलीवरी होज टेस्ट करते समय (13 मि० मी०) साइज का नाजुल प्रयोग किया जायेगा।
1. कै नवास होज को 100 से 120 पौण्ड प्रति वर्ग इन्च (7 से 8:4 कि० प्र०व० से० मी०) प्रेशर से टैस्ट करेंगे।
2. रवर लाइण्ड होज को 130 से 150 पौण्ड प्रति वर्ग इंच (9.1 से 10.5 कि० प्र० व० से० मी०) प्रेशर से टेस्ट किया जायेगा।
3. होज रील ट्यूविंग को 120 पौंड प्रति वर्ग इंच (8.4 कि०प्र०व o से० मी०) प्रेशर से टेस्ट किया जायेगा। प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए ताकि होज को दवाव
सहन करने के लिए समय मिल सके । यदि होज लीक हो तो (कापिंग पेंसिल) से निशान लगाकर मरम्मत के लिए भेजना चाहिए। होज कपलिंग के वाशर चैक करना
चाहिए, लगों में तेल देना चाहिए।

प्रश्न- पम्प का स्टैण्डर्ड टैस्ट कै से किया जाता है


उत्तर- पम्प का स्टैण्डर्ड टैस्ट तीन प्रकार से किया जाता है
1. मन्थली आउट पुट टैस्ट |
2. मन्थली वैक्युम टेस्ट।
3. सिक्स मन्थली डीप लिफ्ट टैस्ट ।

प्रश्न- पम्प का मन्थली आउटपुट टैस्ट कै से किया जाता है


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उत्तर- 1.यह टैस्ट महीने में एक बार किया जाता है।
2.पम्प को स्टेटिक टैंक या तालाब पर लगाया जायेगा जिसकी पानीकी सतह पम्प इनलेट से 10 फीट (3 मी०) से अधिक नीची न हो । आवश्यक सक्शन पाइपों
को मैटेल स्ट्रेनर, बास्के ट स्ट्रेनर सहित
3.पम्प इनलेट पर फिट किया जायेगा। कौनिकल स्ट्रेनर निकाललिया जायेगा।
4.पम्प के डिलीवरी आउट लेट से एक होज व ब्रांच लगाया जायेगा। अलग-अलग पम्पों के लिए हौजों की संख्या और ब्रांच का साइज अलग-अलग निर्धारित है ।
अ- पोर्टेबुल पम्प के लिए एक होज व 1/2 " इन्च (12.5 मिमी) साइज का ब्रांच होगा।
ब- स्माल ट्रेलर पम्प के लिए एक होज व 3/4" इन्च ( 19 मि.मी)साइज का ब्रांच होगा।
स- मीडियम ट्रेलर पम्प के लिए दो होज प्रत्येक आउटलेट में एक-एक व प्रत्येक पर 3/4" इन्च (19 मि. मी.) साइज का ब्रांचलगेगा।
द- लार्ज ट्रेलर पम्प के दोनों डिलीवरी आउटलेट पर एक एक होज व प्रत्येक पर एक इन्च साइज का ब्रांच लगेगा।
5.पम्प स्टार्ट किया जायेगा। प्राइमिंग किया जायेगा। पम्प को 45 सैके ण्ड में पानी उठालेना चाहिए।
6. पम्प को 80 पौण्ड प्रति वर्ग इन्च (5.6 कि. प्र. व. से. मी) प्रेशरसे लगातार 15 मिनट तक चलाया जायेगा। चैक किया जायेगा कि पम्प के गेज, कू लिंग
सिस्टम, गिलैण्ड
7.इत्यादि ठीक-ठीक कार्य कर रहे हैं कि नहीं।
8.कोई त्रुटि मिलती है तो ठीक करें अन्यथा उसकी रिपोर्ट कर ठीक करायें।
9.यदि इस अवधि में पम्प सही चलता है, और कोई त्रुटि नहीं प्रकट होती तो समझिये कि पम्प सही है।

प्रश्न- पम्प का मन्थली वैक्युम टैस्ट कै से किया जाता है ,


उत्तर- 1. यह टैस्ट भी महीने में एक बार करना चाहिए। बल्कि---
2. मन्थली आउट पुट टैस्ट के तुरन्त बाद करना चाहिए ।
3.पम्प के इनलेट पर ब्लैक कै प लगाया जायेगा।
4. डिलीवरी आउटलेट के ब्लैक कैं प निकाल दिये जायेंगे।
5. प्राइमिंग वाल्व, कम्पाउण्ड गेज वाल्व खोल कर रखिये।
6.पम्प को स्टार्ट करके प्राइमिंग कीजिए।
7.वैक्युम गेज की सुई देखिये, उसे 45 सैकण्ड के अन्दर शून्य से 24 इन्च पर पहुँचकर स्थिर हो जाना चाहिए।
8. यदि उस की सुई स्थिर रहती है,तब पम्प सही है।
9. यदि उसकी सुई एक मिनट से पहले 10 इन्च घट जाती है,तब समझिये कि पम्प में कहीं लीके ज है। अतःचैक कीजिए-
अ. गिलैण्ड पैकिं ग ढीला तो नहीं है।
ब. गेज कनैक्शन ढीला तो नहीं है।
स. सक्शन ब्लैक कै प ढीला तो नहीं है। वाशर ठीक है। पुनःकसिये।
द. डिलीवरी आउटलेट वाल्व ढीला तो नहीं है, कसिये वाल्व त्रुटिपूर्ण तो नहीं।
उपरोक्त त्रुटियों को दूर कर पुनः वैक्यूम को टैस्ट कीजिए। यदि फिर भी .लीके ज मालूम हो तो हाइड्रेन्ट पर लगाकर देखा जाय।

प्रश्न- पम्प का सिक्स मन्थली डीप लिफ्ट टेस्ट कै से किया जाता हैं,
उत्तर-1. यह टेस्ट प्रत्येक 6 माह के बाद किया जाता है।
2.पम्प को गहरे पानी वाले टैंक पर लगाया जाता है,जिसके पानी की सतह पम्प इनलेट से 5 से 6 मीटर नीची हो।
3.मन्थली ऑउट पुट टेस्ट की भाँति सक्शन पाइप और होज पाइप मय ब्रांच लगाये जायेंगे ।
4. पम्प को स्टार्ट करके प्राइमिंग किया जायेगा। पम्प को पानी उठाने में दो सैकिण्ड प्रति फु ट से अधिक नहीं लगना चाहिए।
5.पम्प को 80 पौण्ड प्रतिवर्ग इन्च (5.6 कि. प्र. व. से. मी.) प्रेशरसे 15 मिनट तक चलाया जायेगा।
6 पम्प गेजेज, कू लिंगसिस्टम, गिलैण्ड इत्यादि चैक किये जायेंगे कि ठीक कार्य कर रहे हैं कि नहीं।
7. कोई त्रुटि प्रकट होती है,तो ठीक करें या रिपोर्ट करें ।
8. यदि इस अवधि में पम्प सही चलता है,और कोई खराबी नहीं प्रकट होती, तो समझिये कि पम्प उच्चस्तर का है ।

प्रश्न- पम्प के सक्शन पाइप कै से टैस्ट किये जाते हैं

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उत्तर- सर्वप्रथम सक्शन की कपलिंग देखिये। उनके वाशर ठीक हैं कि नहीं।सुखे व कटे-फटे तो नहीं। वाशर व चूड़ियों पर हल्का ग्रीस लगा दीजिए।
1. सक्शन को पम्प इनलेट पर बाँधिये। उसके दूसरे सिरे पर ब्लैक कै प कस दीजिए ।
2.पम्प के डिलीवरी आउटलेट के बलैक कै प निकाल दीजिए।
3. इंजन स्टार्ट कीजिए, प्राइमिंग कीजिए तथा वैक्युम गेज को देखिए।
4. यदि वैक्युम गेज की सुई 24 इन्च पर स्थिर हो जाती है,तब तो सक्शन ठीक है,यदि सुई 1 मिनटमें 10 इन्च से अधिक घटती है,तो लीके ज है।
5.सक्शन कपलिंग, कपलिंग के वाशर चैक कीजिए। सक्शन का लीके ज,वाटर प्रेशर द्वारा हाइट्रेन्ट से भी ज्ञात किया जा सकता है।

प्रश्न- पम्प या सक्शन को वाटर प्रेशर से कै से टैस्ट करते हैं


उत्तर- 1. पम्प को ऐसे हाइड्रेन्ट पर लगायेंगे जिसका स्टैटिक प्रेशर 150 पौण्डप्रति वर्ग इन्च (10.5 कि. प्र. व. से. मी.) से अधिक न हो।
2. सक्शन को पम्प इनलेट पर कस कर बाँधिये।
3. सक्शन के दूसरे सिरे पर सक्शन एडाप्टर लगाइये।
4.हाइड्रेन्ट पर स्टैण्ड पाइप लगाइये तथा उसे तनिक खोलकर गन्दा ब जंग लगा पानी निकाल दीजिए। तत्पश्चात बन्द कर के उसमें सक्शन जोड़ दीजिए |
5. पम्प का एक डिलीवरी आउट लेट खोलकर रखिये ताकि सक्शन व पम्प की हवा निकल जाय ।
6.हाइड्रेन्ट को धीरे-धीरे खोलिये । जब डिलीवरी आउटलेट से पानी निकलने लगे तब उसके वाल्व धीरे-धीरे बन्द कर दीजिए। रखो हिये।
7. यदि हाइड्रेन्ट का प्रेशर अधिक हो तो आउटलेट को खुला रखिए ।
8. संक्शन व पम्प में लीके ज देखिये और उन्हें ठीक करने का प्रयास कीजिए या रिपोर्ट कीजिए ।

प्रश्न- होजरील पम्प का स्टैण्डर्ड टैस्ट कै से किया जाता है


उत्तर- होजरील उपकरणों को प्रति सप्ताह चैक करना चाहिए।
1. होजरील को खोलिए व ट्यूविंग को फै लाइये।
2. होजरील पम्प को स्टार्ट कीजिए और प्रेशर बनाइये ।
3. होजरील नाजुल चैक कीजिये वट्यूविंग के कनेक्शनचैक कीजिये। लीके ज तो नहीं।
4. होजरील का गिलैण्ड लीके ज तो नहीं,आवश्यक हो तो एडजस्ट कीजिये ।

प्रश्न- स्ट्रप पम्प का स्टैण्डर्ड टेस्ट कै से किया जाता है?


उत्तर- स्ट्रप पम्प प्रतिमाह टेस्ट करना चाहिए। पम्प को पानी से भरी बाल्टी में रखकर चलाकर देखिये कि समस्त वाल्व ठीक कार्य कर रहे हैं कि नहीं। गिलैण्ड
लीक तो नहीं। डिस्चार्ज पाइप का कनेक्शन लीक तो नहीं तत्पश्चात् पम्प को पूर्णरूप से खाली करके स्ट्रेनर आदि साफ कीजिए। प्लंजर रॉड में आयल लगाकर पोछ
दीजिये। पिस्टन वाल्व फु ट वाल्व में भी ऑयल डालिये यदि कोई त्रुटि मिले तो ठीक कीजिए या रिपोर्ट कीजिए।

प्रश्न- फर्स्ट फ्लोर लैडर का स्टैण्डर्ड टैस्ट कब और कै से किया जाता है


उत्तर- लैडर को प्रतिमाह अथवा आग या रेस्क्यू पर प्रयोग करने के पश्चात् टैस्ट किया जाता है। लैंडर को सामान्य रूप में प्रयोग करने की भाँति दीवार पर
टिकाकर उसके हैड को बाँध देना चाहिए। तत्पश्चात् एक व्यक्ति कू द कू द कर प्रत्येक राउण्ड को टैस्ट करेगा। इसके बाद सीढ़ी को उलट कर बचे राउण्ड को परखना
चाहिए।

प्रश्न- 30 फीट (9 मी0) और 35 फीट (10.5 मी०) एक्सटेन्शन लेंडर का स्टैण्डर्ड टैस्ट कब और कै से किया जाता है
उत्तर- लैडर को प्रतिमाह अथवा आग पर प्रयोग करने के पश्चात् टेस्ट किया जाता है।
1. स्ट्रिंग टैस्ट लैडर-को पूरा बढ़ा कर किसी भवन पर इस प्रकार लगाइये,कि उसका हैड दीवार पर टिके । 30 फीट (9 मी.) की लैडर की हील 8 फीट (2.4
मी०) दूर रहे। अब जहाँ मुख्य लैडर तथा एक्सटेंशन पार्ट एक दूसरे पर चढ़े रहतेहैं , उसके मध्य में दोनों स्ट्रिंग पर बराबर के राउण्ड के पास एक रस्सी इस प्रकार कर
लटका दी जाती है,कि इस रस्सीपर 3 व्यक्तियों का भार, जहाँ तक हो सके दोनों स्ट्रिग्स पर बराबर डाला जासके और हटाया जासके भार हटते ही सीढ़ी को अपनी
सामान्य स्थिति में आजाना चाहिए । रस्सी को किसी भी परिस्थति में राउण्ड पर नहीं बाधा जाये।
2. राउण्ड टैस्ट-एक व्यक्ति को सीढ़ीपर चढ़कर प्रत्येक राउण्ड को कू द-कू द कर टैस्ट करना चाहिए ।
3.एक्स-टैण्डिग रोप टैस्ट-इस के लिए रस्सी पर दो व्यक्ति लटककर टैस्ट करते हैं। तत्पश्चात सीढ़ी को घटा कर सामान्य स्थिति में रखते हुए दीवार पर टिकाते हैं
और रस्सी के शेष भाग को पुनःदो व्यक्ति लटक कर टैस्ट करते हैं। साथ ही साथ दूसरे दो व्यक्ति सीढ़ी के एक्सटेन्शन पार्ट को अपने स्थान पर रोके रखने के लिए उस
पर अपना भार डालते हैं ।
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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न- स्के लिंग लैडर का स्टैण्डर्ड टैस्ट कै से किया जाता है


उत्तर- इन सीढ़ियों की जाँच करते समय इनके राउण्ड और ब्रेकिटों को बारीकी से देखिये कि वे ढीले तो नहीं है एक दूसरे से जोड़े जाने पर , सीढ़ियों की स्थिरता
की ओर, विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक सीढ़ी के राउण्ड कू द-कू द पर परखना चाहिए।

प्रश्न- हुक लैडर का स्टैण्डर्ड टैस्ट किस प्रकार करना चाहिए


उत्तर- लैडर को प्रतिमाह अथवा आग पर प्रयोग करने के पश्चात और ड्रि ल के पहले टेस्ट करना चाहिए। बल्कि ड्रि ल में प्रयोग आने वाली सीढ़ियों को निरन्तर
टैस्ट करते रहना चाहिए।
सीढ़ी को दीवार पर खड़ी स्थिति में लगाना चाहिए। हुक, श्राउड में ही रहे।
सीढ़ी का प्रत्येक राउण्ड कू द कू द कर टेस्ट किया जायेगा। इसके बाद हुक खोलकर किसी खिड़की की चौखट पर फँ साते हैं। इसके पहले हुक के , बिल के नीचे लकड़ी
का टुकड़ा रख लेते हैं ताकि वह खराब न होने पाये। सीढ़ी जहाँ तक सम्भव हो सके बाहर ही रहे या दीवार से दूर रहे। इस स्थिति में सीढ़ी को दो व्यक्तियों का भार
सहन कर सकना चाहिए। भार धीरे-धीरे डाला जायेगा। सीढ़ी पर लगी सेफ्टी रिंग को खूब चमकाकर रखना चाहिए तथा उसकी बारीकी से जाँच करते रहना चाहिए। हुक
को भी परखते रहना चाहिए कि वह ढीला या क्षतिग्रस्त तो नहीं हुक बन्द करने पर श्राउड में ठीक बैठता है कि नहीं। स्प्रिंगदार पिन ठीक कार्य करती है। टो पीसेज व
हील प्लेट भी चेक करते हैं कि ठीक है कि नहीं

प्रश्न- हुक लैडर वैल्ट का स्टैंडर्ड टैस्ट कब और कै से करते हैं


उत्तर- हुक लैडर बेल्ट को भी हुक लैडर के साथ हो टैस्ट करना चाहिए।वैल्ट के वकिल्स लगाकर कियाी रिंगं बोल्ट का हुक फै लाकर उस पर दो व्यक्तियों को
लटककर टैस्ट करना चाहिए उसके बाद बैल्ट की बारीकी से जाँच करनी चाहिए कि वह घिसकर खराब तो नहीं हो रहा है। हुक ठीक काम करता है उसकी जीभ ढीली
तो नहीं है।

प्रश्न- स्के प लैडर का स्टैंडर्ड टैस्ट कब और कै से करते है


उत्तर- लैडर का प्रतिमाह एवं आग पर प्रयोग करने के पश्चात , टेस्ट किया जाता है। सीढ़ी को पूरा बढ़ाकर उसके हैड को किसी दीवार पर टिकाना चाहिए बीच
वाली सीढ़ी के बीचों बीच प्रत्येक स्ट्रिंग पर दो बराबर के डंडों के पास एक एक रस्सी बांधकर नीचे लटकानी चाहिए। प्रत्येक रस्सी पर दो दो व्यक्ति यानी कु ल चार
व्यक्ति लटककर भार डालेंगे। परीक्षण अधिकारी को सीढ़ी से लगभग 50 फीट (15 मी0) दूर खड़े होकर देखना चाहिए। यदि कोई त्रुटि समझ में आये तो किसी
एक्सपर्ट को दिखाना चाहिए। इसके पश्चात सीढ़ी का प्रत्येक राउण्ड कू द -कू द कर टैस्ट किया जायेगा। यदि सम्भव हो तो लैडर का हैड कहीं बाँध रखना चाहिए। सीढ़ी
अधिक सेअधिक खड़ी स्थिति में हो। दो व्यक्ति लीवर आर्म पकड़कर लैडर को स्थिर रखेंगें। इसके पश्चात बारीकी से देखिये कि लैडर के के बुल ठीक हैं। पुली में ठीक से
चलते हैं। एक्स्टैन्डिंग गेयर, कै रिज गेयर के पौजिटिव पाल्स और फ्रिक्शन बैक ठीकसे कार्य कर रहे हैं कि नहीं। पाल्स ठीक लगते व अलग होते हैं कि नहीं। के वल हुक ,
स्टील क्लिप आदि यथा स्थान हैं। धातु के पुर्जों में जगं तो नहीं लग रही है। तत्पश्चात सीढ़ी के हैड को किसी स्टैण्ड पर रखकर प्रत्येक पुर्जे की बारीकी से जाँच होनी
चाहिए। सफाई व आयल ग्रीसिंग कीजिए।

प्रश्न- रोप एण्ड लाइन्स का स्टैंडर्ड टैस्ट कै से करते हैं


उत्तर- फायर सर्विस की रस्सियों को प्रतिमाह अथवा आग या रेस्क्यू पर प्रयोग होने के बाद और लोअरिंग ड्रि ल सेपहले टेस्ट किया जाता है। सर्वप्रथम रस्सी की
बारीकी से जाँच करनी चाहिए। उसके धागे कट या घिस तो नहीं गये हैं ओअरिंग लाइन लाग लाइन आदि को किसी हृढ और स्थिर स्थान पर बाँधकर 6 व्यक्तियों द्वारा
पूरी ताकत से खीचकर टैस्ट किया जाता है। तत्पश्चात् दूसरी ओर वाला भाग भी परखते हैं। खीचने में झटका नहीं देना चाहिए।

प्रश्न- ब्रीडिंग अपरेटस का स्टैंडर्ड टैस्ट कब और कै से करते हैं


उत्तर- प्रत्येक अपरेटस प्रतिमाह अथवा आग या रैस्क्यू पर प्रयोग के पश्चात, निर्माताओं के निर्देशानुसार टैस्ट करना चाहिए जिसमें लीके ज टेस्ट और फ्लो टैस्ट
इत्यादि आते हैं।

1- स्तेमाल के बाद अपरेटस को भली-भाँति साफ करना चाहिए ।


2-फे स मास्क और श्वसन नली को भली भाँति धोकर कीटाणु नाशक दवा से उपचारित करना चाहिए। दुबारा पुर्जे जोड़ने से पहले अपरेटस को अच्छी तरह सुखालेना
चाहिए ।
3- आँख के शीशों या वाइजर को धुन्ध से बचाने के लिए उपचारित करना चाहिए।
4- यदि सिलैण्डर का गैस दबाव उसके भरे जाने वाले दबाव से 5/6 कम हो तो उसे पूरे भरे हुए सिलैण्डर से बदल दीजिए।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
5- टैस्ट के समय मिले खराब पुर्जे व वाशर आदि बदल देना चाहिए ।
6- नट-बोल्ट कसते समय बहुत अधिक जोर नहीं लगाइये। इससे चूड़ियाँ मर सकती हैं ।
7- अपरेटस के किसी पुर्जे के सम्पर्क में तेल या ग्रीस मत आने दीजिए ।

प्रश्न- रिससिटेशन अपरेटस का स्टैंडर्ड टेस्ट कब और कै से कियाजाता है ,


उत्तर- प्रत्येक अपरेटस प्रतिमाह अथवा आग या रेस्क्यू पर स्तेमाल के बाद, उनके निर्माताओं के निर्देशानुसार टैस्ट करना चाहिए। सामान्यतः-
1. सिलैण्डर का गैस प्रेशर चैक कीजिए। 126 कि. ग्रा. प्र. व. से. मी.होना चाहिए। चैक करने के पश्चात् वाल्व को पूरी तरह बन्द करदीजिए ताकि गैस लीक न हो।
2.फे समास्क (मुखोटे) पर लगे वाल्व, यदि रबर के हैं ,तो चैक कीजिए कि वे ठीक –ठीक कार्य कर रहे हैं,कि-नहीं।
3.दुर्घटना स्थल अथवा ड्रि ल में प्रयोग के पश्चात् अपरेटस के फे स मास्क और इनहेलेशन ट्यूब को साबुन पानी से धुलवाइ ये तथा कीटाणु नाशक दवासे उपचारित
कीजिए ।
4.ग्रीस तेल को अपरेटस के सम्पर्क में मत आने दीजिए ।

प्रश्न- ब्राँच और नाजुल का स्टैन्डर्ड टैस्ट कै से किया जाताहैं


उत्तर- नाजुल की बारीकी से जाँच कीजिए कि उसकी भीतरी दीवार साफ और चिकनी है। उसमें खरोंच या दरार तो नहीं। गोलाई में तनिक भी त्रुटि होने पर र
ठीक नहीं बनती। समस्त नाजुल प्रति 6 माह पश्चात प्रेशर द्वारा टैस्ट करने चाहिए। डिफ्यूजर ब्रांच, हैण्ड कन्ट्रोल ब्राँच इत्यादि भी प्रति 6 माह के पश्चात प्रेशर द्वारा
टैस्ट करना चाहिए। त्रुटिपूर्ण ब्राँव व नाजुल को मरम्मत हेतु भेजना चाहिए।

प्रश्न- रबर ग्लब्ज का स्टैन्डर्ड टैस्ट कै से किया जाता है


उत्तर- रबर ग्लब्ज प्रति 3 माह पश्चात अथवा आग या रेस्क्यू पर प्रयोग के पश्चात टेस्ट करना चाहिए व इन्हें बाहर भीतर से जाँच करना चाहिए कहीं कट फट
तो नहीं गये हैं। उनमें खरोंच तो नहीं पड़ी है। जाँचते समय ग्लब्ज की उंगलियों को अधिक खींचना चौड़ना या ऐठना नहीं चाहिए। उन पर अधिक तनाव नहीं पहना
चाहिए।

प्रश्न- विभिन्न प्रकार की लाइटों का स्टैन्डर्ड टैस्ट कै से करते है


उत्तर- 1- ड्राई बैटरी टाइप इलेक्ट्रिक हेण्ड लैप प्रति सप्ताह अथवा फायरऔर रैस्क्यू में प्रयोग के पश्चात टैस्ट करना चहिए। लैम्प को जलाकर देखिए, सेलों या
कन्टेनर में जग तो नहीं लग रहा है।
2- ऐकोमोलेटर टाइप हैण्डलैम्प या बाक्स लैम्प, ब्रीदिंग अपरेट लैम्प को प्रतिदिन टैस्ट करके देखिये कि प्रयोग के योग्य है कि नहीं। बैटरी ऐकोमोलेटर को प्रति सप्ताह
निकालकर जाँचिए। डिस्टिल वाटर कम हो तो पूरा कीजिए। सभी टरमीनल कनैक्शन एवं धातु के अन्य पुर्जों को साफ कर दीजिए। टरमीनलों पर वैसलीन लगाइये।
बैटरी डाउन हो तो चार्ज पर लगाइये।
3- कारबाइड लैम्प प्रति माह टैस्ट करना चाहिए। कन्टेनर भली भाँति साफ व सूखे रखिये। बर्नर भी साफ रखिये।
4- लालटेनों व अन्य लैम्पों की भी निरन्तर देख-रेख आवश्यक है।इनके कल्ले, चिमनी साफ रखिए, बत्ती सही-सही कटी होनी चाहिए तेल भरा होना चाहिए। ताकि
आवश्यकता पड़ने पर सही कार्य कर सकें ।

अग्नि शमन हेतु जल समस्या


(वाटरप्राब्लम्स)

प्रश्न- हायड्रॉलिक्स से क्या तात्पर्य है


उत्तर- फायर वैस में हायड्रॉलिक्स विज्ञान को कहते हैं जिसमें स्थिर या बहते हुए पानी के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न- फायरमैन का हायड्रॉलिक्स से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर- आग बुझाने में अधिकतर पानी का ही प्रयोग किया जाता है। इस पानी को अग्नि स्थल पर उपलब्ध करने एवं प्रयोग करने के लिए फायरमैन को अनेक
समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे किस आग पर कितने पानी की आवश्यकता पड़ेगी। कहाँ से प्राप्त किया जा सकता है। किसी टैंक या तालाब में कितना पानी
है। उसमें कितनी देर तक पम्पिंग किया जा सकता है इत्यादि समस्याओं को हल करने के लिए एवं अपनी मशीनों व उपकरणों को पूर्ण क्षमता से प्रयोग करने के लिए
फायरमैन को हायड्रॉलिक्स के ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- पानी में कौन-कौन सी विशेषतायें होती है
उत्तर- वास्तव में पानी दो गैसों से मिलकर बना है। इसमें दो भाग हायड्रोजन गैस हैं और एक भाग आक्सीजन गैस है।
इसका रासायनिक सूत्र H2O है। इस प्रकार के -
1. पानी का कोई रंग नहीं होता।
2. पानी का कोई स्वाद नहीं होता।
3. पानी में कोई गन्ध नहीं होती।
4. एक लिटर का भार एक किलोग्राम होता है ।
5. एक घन मीटर पानी का भार 1000 किलो ग्राम होता है।
1 1
6. एक घन फु ट पानी का भार 62 पौंड,होता है। एक घनफु ट में 67 गेलन पानी होता है। एक गेलन पानी का भार 10 पौंड होता है ।
2 4
7. पानी 0 ०डिगरी सैन्टीग्रेट पर जम जाता है और 100 ० डिगरी सेन्टीग्रेंट पर खोलने लगता है। अथवा 32 ०डिगरी फारेनहाइट पर जम जाता व 212 डिगरी
फारेन हाइट पर खौलने लगता है।
8. तरल होने के कारण पानी जैसे बर्तन में रखा जाये उसी का रूप ले लेता है,परन्तु इसकी ऊपरी सतह सदैव समतल रहती है।

प्रश्न- किसी चोकोर या आयताकार टैन्क में पानी का परिमाण कै सेज्ञात करेंगे ,
उत्तर- अ-यदि परिमाण गैलन में चाहते हो तो-
1
लम्बाई (फीट में) X चौड़ाई (फीट में) X गहराई (फीट में) X 6 = गैलन पानी ।
4
ब- यदि परिमाण लिटर्स में चाहते हैं तो-
लम्बाई (मीटर में) X चौड़ाई (मीटर में) X गहराई (मीटर में) X 1000 लिटर्स पानी।

प्रश्न- किसी गोल टैंक में पानी का परिमाण ज्ञात करने का क्यानियम है
22
उत्तर- (अ) यदि परिमाण गैलन में चाहते हो तो-टैंक का डायमीटर(व्यास)और रेडियस (अर्द्धव्यास) ज्ञात कीजिए। तत्पश्चात अर्द्धव्यास (फीट में) X
7
1
अर्द्धव्यास (फीट में) X गहराई (फीट में) 6 गैलन पानी।
4
(ब) यदि परिमाण लिटर्स में चाहा जाये तो -
22
X अर्द्धव्यास (मीटरमें) X अर्द्धव्यास (मीटरमें) X गहराई (मीटरमें) X 1000 लिटर्स पानी।
7
(स) एक अन्य नियमानुसार इसे πR2H या π/4 D2H या 0.7854 X D2X1000=लिटर पानी।

प्रश्न- एक आयताकार टैंक 5 मीटर लम्बा, 2 मीटर चौड़ा है। उसमें 2 मीटर गहरा पानी भरा है। तो टैंक में कु ल कितने लीटर्स पानी होगा,
उत्तर- नियम-लम्बाई x चौड़ाई x गहराई ( मीटर में) x 1000 लिटर्स पानी।
5 x 2 x 2 x 1000 लिटर्स पानी अथवा 5x2x2 x 1000 = 20,000 लिटर्सपानी।

प्रश्न- एक गोलाकर टैंक मे 7 मीटर पानी भरा है। टैंक डायमीटर .4 मीटर है। तो उस टैंक में कु ल कितने लिटर्स पानी होगा
उत्तर- डायमीटर के आधे को रेडियस या अर्द्धव्यास कहते हैं।
22
नियम- (I) x अर्द्धव्यास (मी०) x अर्द्धव्यास (मी०) x गहराई (मी०) x 1000 = लिटर्स पानी
7
22
x2x2x7× 1000 = लिटर्सपानी।
7
22
x 2 x 2 × 7×1000 = 88000 लिटर्सपानी।
7
नियम- (II) 0.7854 x डायमीटर x डायमीटर x गहराई (मी०) x 1000 = लिटर्स पानी।
= 0.7854x4×4x7x1000
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अग्निशमन एवं संरक्षा
= 0.7854 x 112000
= 879648 लिटर्स।

प्रश्न- पानी के दाब (प्रेशर) सम्बन्धी क्या सिद्धान्त हैं


उत्तर- 1. पानी की सतह पर पड़ने वाला दाब सतह के लम्बवत होता है ।
2.स्थिर पानी का दाब, प्रत्येक बिन्दु पर प्रत्येक दशा में समानरूप में होता है ।
3.किसी टंकी में भरे पानी पर यदि बाहर की ओर से दवाब डाला जायेतो,वह प्रत्येक दिशा में समान रूप में पड़ता है ।
4.किसी खुले टैंक के पैदे पर पड़ने वाला दाव टैंक में पानी की गहराई के अनुसार होता है। पानी के स्तम्भकी लम्बाई जितनी अधिक होती है , तल पर उतना ही
अधिक दाब होता है ।
5. किसी खुले टैंक के पैदे पर पड़ने वाला दाब तरल के घनत्व के अनुसार होता है।
6.किसी टैंक के पैदे पर पड़ने वाला दाब, टैंक के आकार से स्वतन्त्र रहता है ।

प्रश्न- हायड्रॉलिक्स में प्रेशर (दाब) से क्या तात्पर्य है


उत्तर- किसी टैंक के तले पर पड़ने वाले भार को प्रेशर या दाब कहते हैं। मैट्रिक प्रणाली में एक वर्ग मीटर पर पानी का भार "न्यूटन" में बताया जाता है। दूसरे
शब्दों में पानी का प्रेशर 9810 न्यूटन प्रति वर्ग मीटर होता है। और N/M2 लिखा जाता है।

प्रश्न- हायड्रोलिक्स में हैड से क्या तात्पर्य है


उत्तर- प्रेशर को मापने वाले स्थान से पानी की ऊपरी सतह तक की ऊँ चाई की। हैंड कहते हैं और ये मीटर में बताया जाता है।

प्रश्न- हायड्रोलिक्स में प्रेशर और हैड का क्या सम्बन्ध है


उत्तर- प्रेशर (P) = .09810 x H न्यूटन प्रति मीटर।
प् रे शर
हैड (H) = मीटर
.09810

प्रश्न- पारे के सेंटीमीटर से क्या तात्पर्य है


उत्तर- यह वह दाब है जो किसी तल पर स्थित पारे के एक सैन्टीमीटर ऊँ चे स्तम्भ पर आरोपित होता है। असका उपयोग द्रवों तथा गैसों के दाब को प्रदर्शित
करने में किया जाता है।
1 सेमी०पारा = 1.33 X 10 न्यूटन / मी 0 2 लगभग
सामान्यतः दाब को सेमी० पारा में न लिखकर के वल सेमी 0 में ही व्यक्त करते हैं। परन्तु उनका अर्थ होता है सेमी० पारा वायुदाब को जब 76 सेमी0 या 760 मि०
मी० कहा जाता है तो इसका अर्थ होता है धुमण्डल का दाव सतह पर 76 सेमी0 ऊँ चे पारे के स्तम्भ के बराबर होता है।

प्रश्न- मैट्रिक प्रणाली में वायुमण्डल के दाब को कै से प्रदर्शित करते हैं


उत्तर- वायुमण्डल दाब= 1.1325 N/M2
ऋतु विज्ञान में वायुमण्डल के दाव को बहुधा बार अथवा मिली बारप्रदर्शित किया जाता है।
वायुमण्डल दाव पारे के स्तम्भ में 76 सेमी में व्यक्त होता है जो 1.013 वार अथवा 1.013 मिली बार के बराबर होता है।1 बार (BAR)= 105 न्यूटन
/M2

प्रश्न- एक प्रेशर गेज 6 बार प्रदर्शित कर रहा है, तो मेट्रिक प्रणालीमें कितना हैड होगा
उत्तर- हैंड (H) =10.19 P (प्रेशर)
=10.19 x 6
= 61.14 मीटरहैडहुआ
उपरोक्त सूत्रानुसार 60 मी० के लगभग हेड होगा।

प्रश्न- प्रेशर जानने के लिए क्या नियम हैं


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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- हैड x.0981xP
अथवा
P= .0981X बार्स

प्रश्न- हैड जानने के लिए क्या नियम है


उत्तर- प्रेशर x 10.19
अथवा
PX 10.19 = H
अथवा सुविधा के लिए
H = Px 10 मीटर्स लगभग

प्रश्न- एक बहुखण्डी भवन में स्प्रिंकलर सिस्टम हेतु बने टेक के पानी का लेबुल उसके प्रेशर गेज से 40 मीटर ऊँ चाई पर है। बताओ प्रेशर गेज कितने बार प्रेशर
दिखायेगा,
उत्तर- P = 0.0981H सुविधा जनक सूत्र से
= 00981X40 P=4/10 बार
= 3.9240 बार H= 40/10
= 4 बार -लगभग

प्रश्न- फ्रिक्शन लास किसे कहते हैं


उत्तर- पानी जब किसी पाइप में बहता है तब वह उस पाइप की भीतरी सतह से रगड़ कर बहता है। इस रगड़ या फ्रिक्शन के कारण उसके बहने की शक्ति पर भी
प्रभाव पड़ता है। अर्थात घर्षण के कारण प्रेशर (दाब) में कमी हो जाती है। हायड्रालिक में इसी कमी को फ्रिक्शन लॉस कहते हैं।

प्रश्न- फ्रिक्शन लास के मूल सिद्धान्त क्या हैं


उत्तर- फ्रिक्शन लास के 5 मूल नियम है।
1. फ्रिक्शन लास होज पाइप की लम्बाई के समानुपात होता है।
2.फ्रिक्शनलास, पाइप के डायमीटर के क्षेत्रफल का उल्टा होता है। अर्थात बड़े डायमीटर की होज में कम और छोटे डायमीटर की होज में अधिक होता है ।
3.होज पाइप में पानी के वेग (वैलोसिटी) बढ़ने पर उसके वर्गानुसार फ्रिक्शन लास भी बढ़ता है ।
4. फ्रिक्शन लास होज पाइप की बनावट पर निर्भर करता है,अर्थात रबर लाइण्ड होज में कम और कै न वेस होज में अधिक होता है ।
5.व्यवहारिक रूप में फ्रिक्शन लास, प्रेशर से स्वतन्त्र रहता है।

प्रश्न- होज पाइप में फ्रिक्शन लास ज्ञात करने का क्या नियम है
9000 fI L2
उत्तर- नियम-P f =
d5
संके त विवरण

P f=फ्रिक्शनलास (बार्समें)
f =फ्रिक्शन फै क्टर (रबरलाइंड- 0.005 अनलाइंड- 0.05
L = होज की लम्बाई (मीटर में)
L= लिटर्स प्र o मि० डिस्चार्ज
d =होज की डायमीटर (मि०मी०में)

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- 90 मि० मीटर डायमीटर की होज द्वारा 500 मीटर दूर से पानी लाया जा रहा है। यदि 764 लिटर्स प्रति मिनट पानी आ रहा है तो फ्रिक्शन फै क्टर
0.01 अनुसार फ्रिक्शन के कारणकिं तना प्रेशर घटेगा
9000 fI L2
उत्तर- नियम – P f =
d2
9000 x 0.05 x 500 x 764 x 764
= = 4.45 बार्स
90 x 90 x 90 x 90 x 90

प्रश्न- अग्निशमन हेतु ब्रांच पर कितना प्रेशर होना चाहिए।


उत्तर- सामान्यतः ब्रांच पर 4 बार्स प्रैशर प्रभावकारी होता है।

प्रश्न- नाजुल द्वारा पानी फै के जाने की मात्रा ज्ञात करने नियम है,
उत्तर- नियम- L= d2√ P संके त विवरण
L –लिटर्स/प्रतिमिनट/डिस्चार्ज
d - नाजुल डायमीटर (मि० मी० में)
P – प्रेशर नाजुल पर प्राप्त (बार्समें)
√ - वर्गमूल

प्रश्न- एक आग पर 20 मि०मी० नाजुल द्वारा 4 बार्स प्रेशर से पानी डाला जा रहा है। बताओं कितने लिटर्स प्रति मिनट पानी व्यय हो रहा है
2
उत्तर- नियम – L = d2x√ P
3
संके त विवरण
2
L = d2x√ P L- लिटर्स/प्रतिमिनट
3
2
= d2x√ 4 d – नाजुल साइज (मि०मी०में)
3
2
= x20x20x4 P– प्रेशर (नाजुल पर प्राप्त वार्स में)
3
3200
= √ - वर्गभूल
3
=1066 लिटर्स/प्र०मि०

प्रश्न- किसी होज या पाइप में पानी की मात्रा ज्ञात करने का क्यानियम है
8 x डायमीटर ( मि ० मी ०)2
उत्तर- नियम - = लिटर्स प्रति मीटर
1000

प्रश्न- 70 मि० मी० डायमीटर की 25 मीटर की होज में कितनापानी आयेगा


उत्तर- सूत्र - 8 x डायमीटर (मि० मी०)2x लम्बाई (मीटर में)
8 X 70 X 70 X 25
=
1000
= 2 x 7 x 7=98 लिटर्स लगभग

प्रश्न- “वाटरहैमर”सेक्यातात्पर्यहै,
उत्तर- जब पानी किसी पाइप में गति शील होता है तब उसकी सहति (मास भार व वेग) सभी कार्य करते हैं।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
गतिशील वस्तु को एक दम रोकने पर उसका प्रेशर बहुत तेजी से बढ़ता है। यही सिद्धान्त पाइप में तीव्र गति से बहते पानी को एक दम रोकने पर लागू होता है। बहते हुए
पानी की गतिज ऊर्जा (काइनेटिक एनर्जी) तुरन्त प्रेशर में परिवर्तित हो जाती है। जिसे पम्प व होज पाइप को सहना पड़ता है यह अचानक झटका इतना तीव्र होता है
कि कभी-कभी पम्प या पाइप लाइन भी क्षतिग्रस्त हो जाती है। इसी झटके या प्रेशर को "वाटर हेमर" कहते हैं।
प्रश्न- जैट रिएक्शन किसे कहते हैं
उत्तर- जब नाजुल से पानी निकलता है तब नाजुल प्रेशर के अनुसार विपरीत प्रतिक्रिया होती है। यानी जितने प्रेशर से पानी नाजूल से आगे की दिशा में जाता है
उतने ही बल से फायरमैन को पीछे की ओर धक्का लगता है अतः ब्रांच पकड़ने वाले को भी इस प्रतिक्रिया के विपरीत दल लगाना पड़ता है इसी प्रतिक्रिया को "जैट
रिएक्शन" कहते है।

प्रश्न- जैट रिएक्शन ज्ञात करने का क्या नियम है


2X9Xa
उत्तर- (1) R =
10
संके तों का विवरण
R = रिएक्शन न्यूटन में
P= प्रेशर नाजुल पर (वार में)
a = नाजुल डायमीटर स्क्वायर
2
1.57 X P X d
(मि०मी0 में)(2) R = d= डायमीटर (मि०मी०में)
10
P= प्रेशर नाजुल पर (बारमें).

प्रश्न- 25 मि० मी० नाजुल और 12.5 मि० मी० साइज के नाजुलपर जेट रिएक्शन का प्रभाव कितना कितना पड़ेगा जबकि दोनों नाजुलोपर 7 बार प्रेशर
दिया जा रहा है
2
1.57 X 7 X d
उत्तर- सूत्र: R =
10
(i) 25 मि०मीटर नाजुल पर

1.57 X 7 X 252
R=
10
687 न्यूटन्स के लग-भग

(ii) 12.5 मि०मीटर नाजुल पर


1.57 X 7 X 12.5 2 1.57 X 7 X 252
R= =
10 10 X 4
= 172 न्यूटन्स के लग-भग
उपरोक्त उदाहरणों से ज्ञात हुआ कि 12.5 मि० मी० नाजुल के स्थान पर यदि 25 मि०मी० यानी दुगने साइज का नाजुल प्रयोग किया जाये तो चौगुना जैट रिएक्शन
हो जाता है।

प्रश्न- अश्व शक्ति (हार्स पावर) से क्या समझते हो


उत्तर- अश्व शक्ति या हार्स पावर वास्तव में शक्ति का मात्रक है। फु ट पाउण्डलसैकिण्ड (एफ० पी० एस०) पद्धति में एक फु ट पाउण्डल प्रति सैकिण्ड को शक्ति का
मात्रककहते हैं। वहीं मीटर किलोग्राम सैकिण्ड (एम० के ० एस०) पद्धति में बल का मात्रक"न्यूटन" तथा विस्थापन का मात्रक मीटर है ।
अतः कार्य का मात्रक =1 न्यूटन x 1 मीटर =1 न्यूटन मीटर है,
एम०के ०एस०पद्धति में कार्य के मात्रक न्यूटन मीटर को जूल (JOULE)कहते हैं। व्यावहारिक रूप में इसी को अश्व शक्ति (हार्स पावर) कहते है। जो 746
वाट के लगभग होता है।
दूसरे शब्दों में एक पौड भार को 550 फीट एक सैकिण्ड में उठा लेना अथवा एकपौंड भार को 33000 फीट एक मिनट में उठा लेना एक हार्स पावर के बराबर होता
है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
ब ल ( पौं ड) X दू री( फ ु ट)
अश्व शक्ति=
समय ( मि नट) X 33000
एम० के एस० पद्धति में अश्व शक्ति (हार्स पावर) जूल/प्रति सैकिण्ड अथवा बाट है। अश्व शक्ति (एच० पी०) = 746 वाट लगभग

प्रश्न- वाटर हार्स पावर किसे कहते हैं


उत्तर- पानी की निश्चित मात्रा को निश्चित हैड या प्रेशर से पम्प करने के लिएआवश्यक अश्व शक्ति को वाटर हासे पावर कहते हैं।

प्रश्न- वाटर हार्स पावर कै से ज्ञात किया जाता है?


उत्तर- एम० के ० एस० पद्धति में लिटर्स प्रति मिनट पानी और प्राप्त प्रेशर (वार्स में) ज्ञात हो तो लिटर्स प्रति सैकिण्ड (लिटर्स/60 ) और हैड (पम्प प्रेशर वार्स
x 10.19) को आपस में गुणा करेगें। तत्पश्चात इसे उठाने में जो शक्ति/बल चाहिए (9.81 न्यूटन प्रति .लिटर/60) से पुनः गुणा करेंगे। उत्तर वाट्स में आयेगा।
लिटर्स
वाटर हार्स पावर =9. 81 x x 10.19 प्रेशर
60
लिटर्स
= 100 x x प्रेशर
60

प्रश्न- यदि कोई पम्प 6 बार्स प्रेशर से 2400 लिटर्स प्रति मिनट पानी पम्प कर रहा है, तो उसका वाटर हार्स पावर बताओ।
10 x 2400 x 6
उत्तर-वाटर हार्स पावर =
60
= 24000/ वाट्स
= 24 /किलो वाट

प्रश्न- स्वीमिंग पूल करने का क्या नियम है? जैसे ढलवा तल के टैंक में पानी की मात्रा ज्ञात करने का क्या नियम है
उत्तर- ढलवाँ तल के टैंक की दोनों ओर की गहराई यानी उथली ओर की और गहरी ओर की गहराई को मीटर में ज्ञात करें। तत्पश्चात दोनों को जोड़कर आधा
करें और उसी को गहराई मानकर पानी की मात्रा ज्ञात करें।

गहराई −1+ गहराई −2


नियम- ल० x चौ० x x1000 लि० पानी
2

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अग्निशमन एवं संरक्षा

फायर हाइड्रेन्ट

पाइप से मुख्य आपूर्ति करने से पहले, आग बुझाने के  लिए पानी को बाल्टी और कड़ाही में रखना पड़ता था जिसे ' बाल्टी-ब्रिगेड ' द्वारा उपयोग के लिए तैयार किया
जाता था या घोड़े द्वारा खींचे गए फायर-पंप के साथ लाया जाता था। 16 वीं शताब्दी से, जैसे ही लकड़ी के  मुख्य जल प्रणालियों को स्थापित किया गया
था, अग्निशामक पाइपों को खोदते थे और बाल्टी या पंपों के लिए "गीले कु एं" को भरने के लिए पानी के लिए एक छेद ड्रि ल करते थे। इसे बाद में भरना और प्लग करना
पड़ा, इसलिए हाइड्रेंट, 'फायरप्लग' के लिए सामान्य अमेरिकी शब्द। यह इंगित करने के लिए एक मार्क र छोड़ा जाएगा कि अग्निशामकों को तैयार-ड्रि ल किए गए छेद
खोजने में सक्षम बनाने के लिए पहले से ही एक 'प्लग' कहाँ ड्रि ल किया गया था। बाद में लकड़ी के सिस्टम में पूर्व-ड्रि ल किए गए छेद और प्लग थे।
 जब कास्ट-आयरन पाइपों ने लकड़ी की जगह ली, तो अग्निशामकों के लिए स्थायी भूमिगत पहुंच बिंदु शामिल किए गए। कु छ देश इन बिंदुओं तक पहुंच कवर प्रदान
करते हैं, जबकि अन्य जमीन के ऊपर निश्चित हाइड्रेंट संलग्न करते हैं - पहला कच्चा लोहा 1801 में फिलाडेल्फिया वाटर वर्क्स के तत्कालीन मुख्य अभियंता  द्वारा
पेटेंट कराया गया था । तब से आविष्कार ने छेड़छाड़, फ्रीजिंग, कनेक्शन, विश्वसनीयता आदि जैसी समस्याओं को लक्षित किया है।

अग्नि हाइड्रेंट के शीर्ष इंगित करते हैं कि प्रत्येक दबाव कितना डालेगा; रंग आग के दृश्य में पानी की आपूर्ति के लिए उपयोग किए जाने वाले हाइड्रेंट का अधिक सटीक
विकल्प बनाने में मदद करता है। 
हाइड्रेंट भी रंग-कोडित होते हैं।

 नीला: 1500 GPM या अधिक; बहुत अच्छा प्रवाह


 हरा: 1000-1499 जीपीएम; आवासीय क्षेत्रों के लिए अच्छा
 नारंगी: 500-999 जीपीएम; मामूली रूप से पर्याप्त
 लाल: 500 जीपीएम से नीचे; अपर्याप्त
 सफे द: सार्वजनिक प्रणाली हाइड्रेंट
 पीला: निजी सिस्टम हाइड्रेंट; सार्वजनिक जल मुख्य . से जुड़ा हुआ है
 लाल: विशेष ऑपरेशन हाइड्रेंट; विशेष प्रक्रियाओं को छोड़कर उपयोग नहीं किया गया
 बैंगनी: गैर-पीने योग्य आपूर्ति; बहिःस्राव, तालाब या झील की आपूर्ति

प्रश्न- फायर हाइड्रेन्ट किसे कहते है


उत्तर- नगर की वाटर सप्लाई लाइन से आग लगने पर पानी प्राप्त करने के लिए वाटर मैन पोड़ी-थोड़ी दूर पर जो यन्त्र लगे होते हैं और एक वाल्व खोलकर इससे
पानी प्राप्त कर लिया जाता है तथा कार्य समाप्त हो जाने पर उसी वाल्व द्वारा बन्द भी कर दिया जाता है। फायर हाइड्रेन्ट कहलाते हैं।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न- फायर हाइड्रेन्ट कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- चार प्रकार के होते हैं।
1. बाल वाल्व टाइप हाइड्रेन्ट 2. प्लग टाइप हाइड्रेन्ट
3. स्क्रू डाउन टाइप हाइड्रेन्ट 4.सुलूस वाल्व टाइप हाइड्रेन्ट

प्रश्न- बाल वाल्व टाइप हाइड्रेन्ट कै सा होता है


उत्तर- वास्तव में यह बहुत पुराने किस्म का हाइड्रेन्ट है। अब बहुत कम देखने में आता है। हाइड्रेन्ट के आउटलेट में लकड़ी का बाल यानी गोला रहता है और पानी
के प्रेशर से आउटलेट को बन्द रखता है। एक विशेष प्रकार के स्टैन्ड पाइप द्वारा इसकी बाल को दबाकर पानी प्राप्त कर लिया जाता है।

प्रश्न- बाल वाल्व टाइप हाइड्रेन्ट में क्या दोष हैं

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- 1. लकड़ी की बाल जल्द खराब हो जाती है और पानी रिसने लगता है।
2. मेन में किसी कारण प्रेशर कम हो जाने पर भी हाइड्रेन्ट से पानीरिसने लगताहै।
3. आउटलेट में पानी निकलने में अड़चन करता है ।

प्रश्न- प्लग टाइप हाइड्रेन्ट किस प्रकार का होता है


उत्तर- इस प्रकार के हाइड्रेन्ट के स्पैन्डिल में ही सालिड वाल्व लगा होता है। जो स्पैन्डिल के घुमाने पर खुल जाया करता है व बन्द हो जाया करता है। यद्यपि
इसमें पानी का प्रेशर अच्छा मिलता है परन्तु स्पैन्डिल के घिस जाने पर लीक होने लगता है।

प्रश्न- स्क्रू डाउन टाइप फायर हाइड्रेन्ट कै सा होता है?


उत्तर- इस प्रकार के हाइड्रेन्ट मेन के ऊपर फ्लैं ज द्वारा फिट किये जाते है।एक मशरूम टाइप वाल्व, हाइड्रेन्ट के धरातल पर फिट रहता है। जो स्पैन्डिल में बनी
चूड़ियों द्वारा बन्द कर दिया जाता है। हाइड्रेन्ट खोलने के लिए स्पैन्डिल को ढीला करते है। पानी के प्रेशर से मशरूम वाल्व अपनी जगह छोड़ देता है। और पानी मेन से
निकल कर हाइड्रेन्ट बाड़ी में आता है। तत्पश्चात् हाइड्रेन्ट के आउटलेट से बाहर निकलने लगता है।

प्रश्न- सुलूस वाल्व टाइप हाइड्रेन्ट किसे कहते है।


उत्तर- यह हाइड्रेन्ट मेन के ऊपर फिट न होकर बगल में एक अलग निकाले गये पाइप में फिट होता है। एक गेट वाल्व द्वारा इसे खोला व बन्द किया जाता है। यह
गेट वल्व स्पैन्डिल को घुमाने से ऊपर-नीचे होता है अथवा खुलता बन्द होता है।

प्रश्न- कौन हाइड्रेन्ट सबसे अच्छा होता है। और क्यों


उत्तर- कार्य क्षमतानुसार सुलुस टाइप हाइड्रेन्ट सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि गेट वाल्व के हट जाने पर पानी के मार्ग में कोई अवरोध नहीं रहता और अधिक
से अधिक परिमाण में पानी प्राप्त होता है। परन्तु यह कु छ मँहगा पड़ता है। अतः आजकल म्यूनिस्पिल वोर्ड स्क्रू डाउन टाइप हाइड्रेन्ड ही अधिक लगाते हैं।

प्रश्न- मेन पर फिटिंग के अनुसार हाइड्रेन्ड कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- दो प्रकार के , 1. ग्राउण्ड हाइड्रेन्ट 2. पिलर या पोस्ट हाइड्रेन्ट।

प्रश्न- ग्राउण्ड हाइड्रेन्ट से क्या समझते हो?

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- इस प्रकार के हाइड्रेन्ट जमीन के नीचे ही होते हैं। अथवा वाटरमेनपर फिटिंग के पश्चात उसे एक पक्के गड्ढे (पिट) में घेर दिया जाता है और एक लोहे के
बक्स अथवा ढक्कन से ढक दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर इसी हाइड्रेन्ट कवर को खोलकर हाइड्रेन्ट के आउटलेट पर स्टैण्ड पाइप फिट करके आउटलेट को
जमीन के ऊपर कर लेते हैं और उसी से सक्शन या साफ्ट सक्शन जोड़कर कार्य करते है। “हाइड्रेन्ट की” के द्वारा स्पैन्डिल को घुमाकर हाइड्रेट) को खोला व बन्द
किया जाता है।

प्रश्न- पिलर हाइड्रेन्ट से क्या समझते हो


उत्तर- पिलर या पोस्ट हाइड्रेन्ट जमीन के ऊपर एक छोटे पिलर या खम्भे के रूप में होता है। इसी पिलर में आउटलेट बना होता है जिसमें सक्शन या शाफ्ट
सक्शन सीधे जोड़ा जाता है, स्टैण्ड पाइप की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसी पिलर के ऊपर बीचोंबीच या अलग से हाइड्रेन्ट को खोलने बन्द करने की व्यवस्था की
जाती है।

प्रश्न- ग्राउन्ड हाइड्रेन्ट के आवश्यक भागों के नाम बताओ


उत्तर- 1- हाइड्रेन्ट पिट 2- हाइड्रेन्ट पिट कवर 3-स्पैन्डिल 4- हाइड्रेन्ट कै प या फाल्स स्पैन्डिल 5- गिलैण्ड 6- आउटलिट फलैज 7- आउटलेट ब्लैंक
कैं पऔर 8- हाइड्रेन्ट बेस ।

प्रश्न- हाइड्रेन्ट पिट कवर किस-किस साइज के होते है


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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- 1- सुलुस वाल्ब हाइड्रेन्ट के लिए (20.7x44.5 से.मी.)
2- स्क्रू डाउन टाइप हाइड्रेन्ट के लिए ( 22.29 x 38 से.मी.)

प्रश्न- कौन-कौन से उपकरण हाइड्रेन्ट गैयर्स कहलाते हैं।


उत्तर- 1.हाइड्रेन्ट कवर की, या हाइड्रेन्ट कवर लिफ्टर
2.हाइड्रेन्ट की हाइड्रेन्ट की व वार कभी-कभी एक में ही होते है।
3.हाइड्रेन्ट कीबार 4.हाइड्रेन्ट पिट क्लीनर
5.हाइड्रेन्टइ न्डीके टर

प्रश्न- अच्छे हाइड्रेन्ट की क्या विशेषतायें हैं,


उत्तर- 1-मि० मी० डायमीटर का मेल स्कू टाइप आउटलेट।
2-एक बाल्य जो एन्टी क्लाक वाइंग खुलता है ।
3-2025 लिए प्रति/मिनट पानी 1.75 किलोग्राम प्र.व.सेमी०रनिंग प्रेशर पर देता है ।

प्रश्न- हाइड्रेन्ट से कार्य लेने की विधि का वर्णन करो ,


उत्तर- 1- हाइड्रेन्ट कवर खोलकर व ब्लैक के प हटाकर आउटलेट में स्टैण्ड पाइप फिट कीजिए।
2-हाइड्रेन्ट की लगाकर हाइड्रेन्ट को धीरे-धीरे खोलिए। और जग लगा गन्दा पानी निकलने दीजिए। तत्पश्चात हाइड्रेन्ट बन्दकर के सक्शन या सॉफ्ट सक्शन लगाइये ।
3- हाइड्रेन्ट को धीरे-धीरे खोलिये ।
4-काम समाप्त होने पर हाइड्रेन्ट को धीरे-धीरे ही बन्द कीजिए ताकि मेन पर कोई प्रभाव (वाटर हेमरिंग) न पड़े।
5- जब यह विश्वास हो जाय कि हाइड्रेन्ट पूर्ण रूप से बन्द हो गया है, तभी स्टेण्ड पाइप निकालिये ।
6-जहाँ तक सम्भव हो हाइड्रेन्ट पिट को खाली कीजिए। कवर को भली-भाँति बन्द कीजिए।

प्रश्न- हाइड्रेन्ट निरीक्षण की क्यों आवश्यकता है और कब-कब करनी चाहिए ।


उत्तर- आग के समय हाइड्रेन्ट से पानी प्राप्त करने में कोई कठिनाई हो आसानी से खुल जाय , स्टैण्ड पाइप व 'हाइड्रेन्ट की सुगमता से लग जाय व पानी भी प्राप्त
हो सके । इसके लिए हाइड्रेन्ट का परीक्षण आवश्यक है। साल में कम से कम 2 बार या अधिक स्टाफ उपलब्ध हो तो 4 बार हाइड्रेन्ट का निरीक्षण करना चाहिए।

प्रश्न- हाइड्रेन्ट इन्सपैक्शन करते समय किस प्रकार कार्य करना चाहिए
उत्तर- 1- पिट कवर खोलिये आउटलेट का ब्लैक कै प हटाकर स्टैण्डपाइप फिट करके देखिये कि ठीक से फिट हो जाता है कि नहीं यातायात के कारण हाइड्रेन्ट
बाक्स सरक तो नहीं गया।
2-फाल्स स्पैन्डिल या हाइड्रेन्ट कैं प चैक कीजिए। ठीक लगा है।
कि नहीं यह ढीला न हो, स्लिप होने का डर है।
3-हाइड्रेन्ट पर स्टैण्ड पाइप को लगाकर थोड़ा खोलकर गंदा पानी व जंग लगा पानी निकाल दीजिए। तत्पश्चात् बन्द कर दीजिए।
4-स्टैण्ड पाइप में ब्लैक कै प लगाकर हाइड्रेन्ट को धीरे-धीरे खोलिये और देखिये कि हाइड्रेन्ट कहीं से लीक तो नहीं होता है । तत्पश्चात धीरे-धीरे बन्द कर दीजिये।
5- पूर्णरूप से बन्द हो जाने पर स्टैण्ड पाइप निकाल लीजिये ।
6-हाइड्रेन्ट को धोइये, पिट को साफ कीजिए ,नट-वोल्ट चैक कीजिये। गिलैण्ड लीक तो नहीं होता है।
7- हाइड्रेन्ट पिट व हाइड्रेन्ट बक्स चैक कीजिए। यातायात के कारण हिलते तो नहीं, अपनी जगह से सरक तो नहीं गयें।
8- हाइड्रेट आउट लेट पर ब्लैक कै प लगाकर पिट कवर बन्द कीजिए।
9- हाइड्रेट के ऊपर दूकान, खो- ख। चाया ठेला आदि न खड़ा होने दीजिए।
10- हाइड्रेन्ट इण्डीके टर या हाइड्रेन्ट बताने वाले चिन्ह लगे हैं,या नहीं ।
11- हाइड्रेन्ट इन्सपैक्शन रजिस्टर में तिथि सहित प्रविष्टि अंकित कीजिए । यदि कोई खराबी मिले तो उसकी रिपोर्ट कीजिये।

प्रश्न- फ्रास्ट वाल्व से क्या समझते हो

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- ठण्डे देशों के हाइड्रेन्ट में फास्ट वाल्व लगाया जाता है ताकि हाइड्रेन्ट की बाड़ी में पानी न भरा रहे और जम जाने की सम्भावना न रहे। बाड़ी में नीचे की
ओर एक छेद होता है। उसमें एक वाल्व को लगा देते हैं। हाथ से खोलकर पानी खाली कर दिया जाता है या यह स्वचालित होकर अपने आप ही पानी को निकाल देता
है।

वाटर रिलेइंग
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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न- वाटर रिलेइंग या रिले पम्पिंग किसे कहते हैं


उत्तर- फायर ग्राउण्ड पर काफी दूर से पानी पहुँचाने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर एक के बाद दूसरा पम्प लगाकर जो पम्पिंग की जाती है उसे वाटर रिलेइंग या
रिले पम्पिंग कहते हैं।

प्रश्न- रिले पम्पिंग कितने प्रकार की होती है


उत्तर- दो प्रकार की होती हैं।
1-ओपिन रिले 2-क्लोज्ड रिले

प्रश्न- ओपिन रिले से क्या तात्पर्य है ?


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अग्निशमन एवं संरक्षा

उत्तर- इस प्रकार की रिले पम्पिंग में पानी के साधन पर लगे प्रथम पम्पसे आने वाले पानी को किसी पोर्टेबुल टैंक या गड्ढे में इकट्ठा कर लिया जाता है तथा उसमें
दूसरा पम्प लगाकर आगे भेजा जाता है यहाँ भी गड्ढे या टैंक में एकत्र करने के पश्चात तीसरा पम्प लगाकर आगे भेजा जाता है।

प्रश्न- क्लोज्ड रिले किसे कहते हैं?


उत्तर- इस प्रकार की रिले पम्पिग में पानी के साधन पर लगे प्रथम पम्प से आने वाले पाइप को सीधे -सीधे दूसरे पम्प के इनलेट में फिट करके पानी को आगे
बढ़ाया जाता है। इसमें किसी पोर्टेबिल टैंक या किसी गड्ढे की आवश्यकता नहीं पड़ती।

प्रश्न- ओपिन रिले और क्लोज्ड रिले में कौन अच्छा है।


उत्तर- यद्यपि दोनों में कु छ अच्छाई और कु छ बुराई है। परन्तु ओपिन रिलेक्लोज्ड रिले की अपेक्षा अच्छा माना जाता है। जैसे पोर्टेबुल टैंक या गड्डे में पानी रिजर्व
रहने के कारण बेस पम्प या डिलीवरी पम्प के फे ल हो जाने पर भी कु छ देर तक कार्य जारी रह सकता है। डिलीवरी पम्प फे ल हो जाने पर पानी व्यर्थ न जाकर टैंक में
एकत्रित रहेगा। आवश्यकता पड़ने पर अन्तिम टैंक में पानी एकत्रित रहने पर कोई अन्य पम्प भी लगया जा सकता है। इसमें दोष यह है कि प्रत्येक पम्प में प्राइमिंग करना
आवश्यक है। दूसरे ओपिन डिलीवरी के कारण प्रेशर भी घटता है।

प्रश्न- बेस पम्प किसे कहते हैं डिलीवरी पम्प तथा इण्टरमीडियट पम्प से क्या तात्पर्य हैं
उत्तर- रिले पम्पिग में पानी के साधन पर लगे प्रथम पम्प को बेस पम्प या लिफ्टिंग पम्प कहते है। फायर ग्राउण्ड के पास लगे अन्तिम पम्प को डिलीवरी पम्प तथा
मध्य में लगे पम्पों को इण्टरमीडियट पम्प कहते हैं।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न- अधिक दूरी तक पानी ले जाने में मुख्य समस्या क्याहोती है


उत्तर- होज में फ्रिक्शन लास मुख्य समस्या है।

प्रश्न- होज पाइप में पानी के वेग (वैलोसिटी) के बढ़ने पर उसके वर्गानुसार फ्रिक्शन लास भी बढ़ता है। इस समस्या को कै से हल करते हैं
उत्तर- एक की बजाय दो डिलीवरी लाइनों का प्रयोग करके वेग (वेलोसिटी) घटाई जा सकती है और फ्रिक्शन लास कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त
कै नवैस की बजाय रबर लाइण्ड होज तथा छोटे डायमीटर की बजाय बड़े डायमीटर की होज प्रयोग करने से भी फ्रिक्शन लास कम किया जा सकता है।

प्रश्न- रिलेपम्पिंग में एक लाइन की बजाय दो लाइन प्रयोग करने से क्या प्रभाव पड़ताहै।
1 1 1
उत्तर- एक लाइन की बजाय दो लाइनों के प्रयोग से वेग यानी वैलोसिटी आधी हो जायेगी और फ्रिक्शन लास x यानी = यानी चौथाई रह जायेगा।
2 2 4
फलस्वरूप पम्पों के बीच की दूरी भी चौगुनी हो सकती है।

प्रश्न- रिले पम्पिग में दो पम्पों के मध्य की दूरी का स्टैंडर्ड टेबुल क्या है
उत्तर- एक 350 से 500 गैलन (1800 लिटर प्रति मिनट पानी फें कनेवाले पम्प के लिए समतल स्थानमें स्टैण्डर्ड टेवुल इस प्रकार है-
होज का डायमीटर होज पाइप की मध्य की दुरी
टुइन (डबल) 70 मि. मी. के नवास होज 150 मी.
टुइन (डबल) 70 मि. मी. रबर लाइन्ड 210 मी.
सिंगिल 90 मि मी. कै नवास 105 मी.
टुइन 90 मि. मी. कै नवास 420 मी.
सिंगिल 90 मि. मी. रवर लाइण्ड 210 मी.
टुइन 90 मि. मी. रवर लाइण्ड 840 मी.
पम्प प्रेशर 5 बार्स होगा।

प्रश्न- रिले पम्पिंग करते समय कौन-कौन सी बातें ध्यान मेंरखनी चाहिए
उत्तर- 1. रिले पम्पिंग के लिए यदि विभिन्न क्षमता वाले पम्प उपलब्ध हैं तो सबसे बड़ा पम्प जल पूर्ति के साधन पर लगाया जायगा।इसे बेस पम्प कहते हैं।
2. शेष पम्पों को उनकी क्षमतानुसार लगाया जायगा। यानी बेस पम्प के पश्चात् उससे कम क्षमता वाला तथा उसके बाद उससे कम क्षमता वाला पम्प लगेगा।
3. यदि एक ही क्षमता वाले पम्प उपलब्ध हों तो कोई कठिनाईनहीं होती।
4. उपकरणों का चुनाव भी अति आवश्यक है। जैसे बड़े डायनीटर की होज प्रयोग करें। कै नवेस की बजाय रवरलाइण्ड होज हो। एक की बजाय दोहरी लाइन प्रयोग हों।
5. सर्वप्रथम बेस पम्प को लगाइये। संक्शन में मैटल ट्रेनर, रस्सी आदि बाँधकर पानी में डालिये।
6. पम्प के डिलीवरी आउटलेट से होज फै लाकर आगे ले जाइये। होज को सड़क के एक किनारे फै लाइये। आवश्यकता हो तोहोज रेम्प का भी प्रयोग करें।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
7. इण्टरमीडियट पम्प को निश्चित स्थान पर लगाकर उसके इनलेट पर यदि क्लोज्ड रिले करना हो तो कलैक्टिंग जोड़िये तथा बेस पम्प से आने वाली होज को इससे
जोड़िये। यदि ओपिन रिले करना है तो पिछली लाइन को गडढे पा टैंक में छोड़िये तथा पम्प से सक्शन बांधकर गड्ढे में डालिये और डिलीवरी आउटलेट से होज आगे
की ओर फै लाइये।
8. सारी लाइन फै ल जाने के पश्चात् इंजन स्टार्ट करके बेस पम्प को प्राइमिंग कर पानी खोलने के संके त की प्रतीक्षा कीजिए।
9. पानी खोलने का संके त मिलते ही धीरे-धीरे बाल्य खोलकर होज को चार्ज होने दीजिए। होज की ऐंठन, गहरा मोड़ निकाल दीजिए।
10. इण्टर मीडिएट पम्प ऑपरेटर, क्लोज्ड रिले में अपने पम्प की एक डिलीवरी खोले रहे ताकि, होज और पम्प की हवा निकलती रहे। पानी पहुँचते ही आगे की ओर
पानी खोला जाय ।
11. सारी लाइन चार्ज हो जाने पर ही बेस पंप का प्रेशर एडजस्ट करें ।
12. इण्टरमीडिएट पंप के आपरेटर को ध्यान रखना है, कि जितने प्रेशर से पिछले पंप से पानी प्राप्त हो रहा है उतने प्रेशर से ही उसे आगे भेजना है , कम्पाउण्ड गेज
की सुई पर निरन्तर ध्यान रखना है। उसकी सुई जीरो पर ही रहे ।

प्रश्न- रिले पम्पिंग में यदि कम्पाउण्ड गेज की सुई बेक्युम दिखाये तो क्या अर्थ है
उत्तर- इसका अर्थ है कि पिछली लाइन से पानी और पम्प अधिक गति से चलाया जा रहा है। ऑप सुई को जीरो पर लाने का प्रयास करना चाहिए और कारण का
पता लगाना चाहिए।

प्रश्न- रिले पम्पिंग में कम्पाउण्ड गेज की सुई प्रेशर दिखाये तो क्या अर्थ है
उत्तर- इसका अर्थ है पिछली लाइन से पानी अधिक मिल रहा है और पम्प धीमा चल रहा है। उसे पम्प की स्पीड बढ़ाकर सुई को जीरो पर लाने का प्रयास करना
चाहिए।

प्रश्न- रिले पम्पिंग में प्रेशर गेज की सुई का जीरो पर आने का क्या कारण है
उत्तर- इसका अर्थ है कि आगे जाने वाली लाइन का जोड़ खुल गया है।या होज बर्स्ट हो गई है। इन्जन की स्पीड कम करके वाल्च बन्द करके पता लगानाचाहिए।

प्रश्न- प्रेशर गेज की सुई यदि अधिक प्रेशर बताने लगे तो इसका क्या कारण हो सकता है
उत्तर- होज पर भारी गाड़ी, ट्रक आदि खड़ी हो गई हो। होज में गहरा मोड़ पड़ गया होगा, पम्प स्पीड कम करके पता लगाना चाहिए।

भवन निर्माण
(बिल्डिंग कन्सट्रक्शन)

प्रश्न- फायरमैन को भवन निर्माण सम्बन्धी प्रारम्भिक ज्ञान क्यों आवश्यक है


उत्तर- इस ज्ञान से उसे अपने कर्त्तव्य पालन में विशेष सहायता मिलती है। जैसे किसी भवन में अग्नि दुर्घटना होने पर कौन -कौन सी कठिनाइयाँ होंगी। किस ओर
आग के फै लने की सम्भावना है। किस प्रकार आग को फै लने से रोका जासकता है। किन -किन परिस्थितियों में भवन के ध्वस्त होने की सम्भावना है। कौन -कौन से
स्थान सुरक्षित हैं ताकि वह अपनी और अपने साथियों की सुरक्षा के साथ अपना कार्य सम्पन्न कर सके ।

प्रश्न- अग्निकाण्ड में भवनों को किस प्रकार की हानियाँ होती हैं


उत्तर- अग्निकाण्ड में भवनों में दो प्रकार की हानियाँ होती है।
1. अग्निकांड से उत्पन्न ताप द्वारा हानि जैसे-अधिक ताप के कारण भवन का रूप परिवर्तित होना, टेढ़ा-मेढ़ा-होजाना, ढांचा बिगड़ जाना, विशेष कर लोहे के गर्डर
आदि का झुक जाना, पत्थर के खम्भों आदि का चटक जाना इत्यादि ।
2.भवन में उत्पन्न ताप को तुरन्त ठण्डक पहुँचाने से हानि। जैसे-चटखना सिकु ड़ना और धँसकना इत्यादि ।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- भवन निर्माण में कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं
उत्तर- हमारे देश में सामान्यत: मिट्टी, फुं स, लकड़ी, पत्थर, ईंट, चूना, सीमेन्ट, बालू, कं करीट, टीन की चादरें, शीशा, पेन्ट इत्यादि प्रयोग होता है।

प्रश्न- भवन निर्माण में लगी लकड़ी पर आग का क्या प्रभावपड़ता है


उत्तर- लकड़ी यद्यपि जलने वाला पदार्थ है परन्तु मोटी लकड़ी में ताप सहन करने की अधिक क्षमता होती है आग भी देर से पकड़ती है व धीरे धीरे जलती है।
वास्तव में लकड़ी पर आग का प्रभाव लकड़ी की मोटाई और उसकी निर्माण चातुरी (वर्क मैन शिप) पर निर्भर करता है जैसे, लकड़ी के किवाड़ यदि अच्छे कारीगर द्वारा
बनाये गये होंगे तो वे अधिक देर तक ताप को रोक सकते है। परन्तु यदि किवाड़ ढीले ढाले और बीच में झिरी छोड़े होंगे , तव आग लगने व उसके फै लाने में सहायक
होंगे।

प्रश्न- भवन निर्माण में लगे पत्थर कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- पत्थर तीन प्रकार के होते हैं
1.ग्रेनाइड पत्थर काफी सख्त और टिकाऊ होता है। दरवाजे की सजावट आदि में प्रयोग किया जाताहै। आग के ताप से फै ल कर चटखने लगता है ।
2.सैन्डस्टोन-आग की ताप में यह भी फै लता है, बाद में सिकु ड़ जाता है,परन्तु मजबूती में कमी आजाती है। लगभग तीस प्रतिशत शक्ति नष्ट होजाती है। पानी पड़ते ही
चटखता है ।
3.लाइमस्टोन-इस में चूने की मात्रा अधिक होती है। इस पत्थर पर मौसम का भी असर पड़ता है। आग की ताप से यह भी बढ़ता है और लगभग पचास प्रतिशत शक्ति
खो देता है। तत्पश्चात चुना और कार्बन डाईआक्साइड बनाने लगता है ।

प्रश्न- कं करीट से क्या तात्पर्य है। कितने प्रकार की होती है। आग से इस पर क्या प्रभाव पड़ता है
उत्तर- सीमेन्ट, बालु और पत्थर या ईट की गिट्टी को पानी में मिलाकर बनाई जाती है। सब मिलकर सूखने के पश्चात ठोस पदार्थ बन जाता है। सीमेन्ट सबको
जकड़े रखने की शक्ति देता है।
कं करीट दो प्रकार की होती है। प्लेन कं करीट, और रिइनफोर्ड कं करीट। आग के समय यद्यपि काफी ताप सहन कर लेता है परन्तु अधिक ताप पर सीमेन्ट अपनी जकड़ने
की शक्ति खो देता है और बिखरने लगता है पानी पड़नेनपर फू लकर गिरने लगता है।
प्रश्न- रिइन्फोर्ड कं करीट किसे कहते हैं
उत्तर- जब कं करीट में लोहे के सरिया या लोहे की जानी भी लगा दी जाती है, तब इसे रिइनफोर्ड कं करीट कहते हैं। इसमें जकड़ कर रखने की अधिक शक्ति होती
है। छत के स्लेव, दरवाजों के लिन्टल, कालम बीम आदि इसी कं करीट के बनाये जाते हैं।

प्रश्न- भवन में लोहा कितने प्रकार का प्रयोग होता है ? इस पर आग का क्या प्रभाव पड़ता है
उत्तर- लोहा दो प्रकार का होता है।
1.कास्ट-आयरन-खम्बे, जीना, जाली आदि बनती है। आग से गर्म कास्ट आयरन पर पानी पड़ते ही चटखने लगताहै।
2.राट-आयरन-गर्डर, बीम, फ्रे म आदि बनते हैं। ताप में फै लता व शक्ति खोकर झुक जाता है। कं करीट इत्यादि में ढका रखने पर अधिक देर तक ताप सहन कर
सकता है ।
लोहा गर्मी पाकर बढ़ता एवं ठण्डक पाकर सिकु ड़ता है।

प्रश्न- भवन में दीवार का मुख्य कार्य क्या है


उत्तर-
1. बाहरी मौसम से बचाव करना, अथवा परदे का कार्य करना।
2. छत का भार सहन करना।
3. भवन को अलग-अलग कमरों में भाजित करना।

प्रश्न- दीवार कितने प्रकार की होती हैं


उत्तर- दो प्रकार की होती है।
लोड बियरिंग वाल-वे जो अपने भार के अतिरिक्त भवन की छत का भार भी सहन करती हैं।
पार्टीशन वाल वे जो किसी प्रकार का भार सहन नहीं करती बल्कि भवन को कई कमरों में विभाजित करती हैं। इन्हें नानलोड बियरिंग वाल भी कहते हैं ।

प्रश्न- दीवार गिरने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं


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उत्तर- 1. दीवार के ऊपर का फर्श या छत जलकर गिर जाना और ऊँ ची-ऊँ ची दीवारों का बेसहारा हो जाना।
2. दीवार में बने खिड़की दरवाजों की डाट, आर्च सरदल ,लिन्टल, आदि दीवार को थामने वाले सहारों का टू टकर गिर जाना ।
3. लोहे के गर्डरों का आग की ताप से बढ़कर दीवार को बाहर ढके लना ।
4. फर्श के जोड़ों का खुल जाना ।
5. फर्श का एक ओर गिरकर दूसरी ओर की दीवार में लीवर की भाँति कार्य करते हुए उसे उभार कर गिरा देना।
6. आग की ताप के कारण उस ओर की सतह का फै ल जाना और दूसरी ओर की सतह का सामान्य और छोटा रहने के कारण बाहर की ओर ढके ल देना।

प्रश्न- दरवाजों और खिड़कियों पर आग का क्या प्रभाव पड़ता है


उत्तर- दरवाजों और खिड़कियों में प्रयुक्त सामग्री एवं उनकी मोटाई पर निर्भर करता हैं। जैसे लकड़ी के दरवाजे और उसकी चौखट यदि मोटे होंगें तो अधिक समय
तक आग को बढ़ने से रोके रखेगे। यदि पतले होगे तो शीघ्र जल जायेंगे। यदि दरवाजे लोहे के बने होंगे तो वे स्वयं तो शीघ्र नहीं जलेंगे परन्तु कन्डक्शन एवं रेडियेशन
द्वारा आग को दूसरी और फै लाने में सहायक होंगे।

प्रश्न- कालम किसे कहते हैं


उत्तर- कालम खम्भे को कहते हैं। एक तरह से लोड बियरिंग बाल का ही। कार्य करता है परन्तु दीवार की अपेक्षा स्थान कम घेरता है। अतः जहाँ खुली जगह की
आवश्यकता पड़ती है, दीवार के स्थान पर खम्भे का ही प्रयोग किया जाता है।
कालम या खम्भे, कास्ट आयरन, स्टील, पत्थर और रिइनफोड करीट से बनाये जाते हैं।
प्रश्न- बीम किसे कहते हैं
उत्तर- यह भी कालम की भाँति छत के भार को संभालती है और दो दीवारों या कालम के बीच के खाली स्थान में पड़ी स्थिति में लगायी जाती है। इस प्रकार ये
अपने ऊपर के वजन को दीवार या कालम के ऊपर जिस पर कि वह रखी हुई है बराबर बराबर बांटे रहती है। बीम, लकड़ी, रिइनफोर्ड कं करीट, और राट
आयरन गर्डर से बनाईजाती है।

प्रश्न- स्टेयरके सेज किसे कहते हैं। आग से कै से प्रभावितहोते हैं


उत्तर- भवन की छत पर या ऊपरी मन्जिल पर आने जाने के लिए बनाये। गये जीनों को स्टेयरके सेज कहते हैं ।
1. लकड़ी के जीने आग से शीघ्र जल जाते हैं। के वल दीवार के पास कु छ शेष रह जाते हैं ।
2. लोहे के जीने आग से गर्म होकर प्रयोग के योग्य नहीं रहते ।
3. कं करीट के जीने अच्छे रहते हैं ।

प्रश्न- भवन में आग लगने पर भवन की छतें कै से प्रभावित होती हैं


उत्तर- यदि छत लकड़ी की बनी होती है तो शीघ्र ही नष्ट हो जायेगी लोहे के गर्डर भी ताप से नर्म पड़कर झुक सकते हैं। अथवा पानी की धार पड़ते ही झुक जाते
हैं। रिइनफोर्ड कं करीट की छतें अच्छी और ताप सहन करने योग्य होती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बनी, बाँस, फँ स तथा खपरैल की छतें आग लगने पर शीघ्र नष्ट हो जाती हैं।

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फिक्स्ड इन्स्टालेशन

प्रश्न- फिक्स्ड इन्स्टालेशन किसे कहते हैं

उत्तर- बड़े-बड़े कारखानों, कार्यालयों, सिनेमा भवनों आदि में अग्नि से सुरक्षा के लिए उपयुक्त उपकरणों की निजी व्यवस्था रहती है। इससे छोटी -मोटी आग
प्रारम्भिक रूप में ही बुझा ली जाती है। अथवा फायर ब्रिगेड के पहुँचने से पहले आग पर आक्रमण कर उसे नियंत्रण में रखा जाता है तथा इससे फायर ब्रिगेड को कार्य
करने में भी सहायता मिलती है। यह व्यवस्था दो रूप में होती है।
1.हैण्ड एपलाइन्सेज द्वारा ऐसे उपकरण जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक उठाकर ले जाये जासकें । जैसे फायर वके ट, स्ट्रपम्प, और एक्सटिंग्यूशर्स इत्यादि।
2.फिक्स्ड इन्स्टालेशन द्वारा ऐसे उपकरण जो एक निश्चित स्थान पर लगा दिये जाते हैं। अग्निकांड होने पर इन से वहीं से काम लिया जाता है। जैसे फायर हाइड्रेन्ट
,राइजिंगमेंन्स, फोम, कार्बन-डाई-आक्साइड-इन्स्टालेशन इत्यादि।

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प्रश्न- फिक्स्ड इन्स्टालेशन कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- दो प्रकार के होते हैं
1. ऐसे इन्स्टालेशन जिन में पानी का प्रयोग किया जाता है ।
2. ऐसे इन्स्टालेशन जिन में पानी प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि,अन्य उपाय प्रयोग किये जाते हैं ।

प्रश्न- एक्स्टरनल हाइड्रेन्ट किसे कहते हैं


उत्तर- जब किसी भवन, फै क्ट्री या कार्यालय से नगर के हाइड्रेन्ट काफी दूरपड़ते हों, तब ऐसे संस्थानों के अहाते में ही प्राइवेट हाइड्रेन्ट लगवाये जाते हैं। इनको
बिल्डिंग की सर्विस लाइन से अथवा सिटी मेन्स से अलग पाइप लाइन लेकर उस पर फिट किया जाता है। या किसी रिंग मेंन पर अथवा प्राइवेट ओवर हेड टैंक से रिंग
मेंन निकालकर स्थान-स्थान पर हाइड्रेन्ट लगा दिये जाते हैं। इन्हें एक्सटरनल हाइड्रेन्ट कहते हैं। यह हाइड्रेन्ट भी नगर के फायर हाइड्रेन्ट की भाँति ग्राउन्ड या पिलर
हाइड्रेन्ट हो सकते हैं इनके पास ही बक्स में होज पाइप और ब्राँच भी रख दिया जाता है।

प्रश्न- इन्टरनल हाइड्रेन्ट किसे कहते हैं ?

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उत्तर- इण्टरनल हाइड्रेन्ट भी प्राइवेट हाइड्रेन्ट है। खुले स्थान की बजाय यह भवन की निचली मंजिल में ही फिट रहते हैं। सामान्यतः एक छोटे व्हील वाल्व से
खुलते व बन्द होते हैं। इसे लैडिंगवाल्व भी कहा जाता है। इसके पास भी एक होज व ब्राँच किसी बक्स या स्विगिंग क्रे डिल में रखा रहता है।

प्रश्न- रिंग मेंन किसे कहते हैं


उत्तर- ऐसी वाटर मेंन जिसके दोनों सिरे किसी अन्य वाटर मेंन सामान्यतः सिटी मेंन से जुड़े हों। वैसे रिंग मेंन किसी ओवर हेड टैंक या किसी बूस्टर पम्प से भी
हो सकती है।
हाइड्रेंट रिंग या हाइड्रेंट मार्क र अग्निशामकों को हाइड्रेंट की कार्यक्षमता और स्वामित्व के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

• फायर हाइड्रेंट रिंग्स को हाइड्रेंट के बड़े वॉल्व से चिपकाया जा सकता है। एक बार वाल्व कै प को बदलने के बाद, अगली बार जब तक वाल्व कै प को हटा नहीं दिया
जाता है, तब तक हाइड्रेंट रिंग को नहीं हटाया जा सकता है।
• अनधिकृ त उपयोग को रोकने के लिए और रखरखाव या मरम्मत की जरूरतों को संप्रेषित करने के लिए हमारे मुद्रित रिंगों को ऑर्डर करें, या एक खाली रिंग का
उपयोग करें और अपना संदेश जोड़ें।
• छल्ले अत्यधिक टिकाऊ प्लास्टिक से निर्मित होते हैं (दोनों परावर्तक और गैर-परावर्तक फिल्मों के साथ उपलब्ध) जो उच्च तापमान का सामना करते हैं। पिच अंधेरा
होने पर भी चिंतनशील छल्ले आसानी से देखे जा सकते हैं।
• वलय वाल्व के व्यास के अनुरूप विभिन्न आंतरिक व्यास में आते हैं।
• अधिक जानकारी के लिए, हमारे

प्रश्न- राइजिंग मेंन किसे कहते हैं


उत्तर- राइजिंग मेंन उस खड़े पाइप को कहते हैं जो कई मंजिलों वालीऊँ ची बिल्डिंग में आग बुझाने अथवा आग बुझाने में सुविधा के लिए किसी उचित स्थान पर
जैसे-जीने आदि के पास भवन की निचली मंजिल से प्रत्येक मंजिल में होता हुआ ऊपरी मंजिल तक सीधा चला जाता है। इसमें प्रत्येक मंजिल में एक-एक आउटलेट
बना होता है। आग लगने पर इसी आउटलेट के वाल्व को खोलकर पानी ले लेते हैं। कहीं -कहीं इस आउटलेट के पास ही किसी बक्स या क्रै डिल में एक होज और ब्राँच
पाइप भी रखा रहता है ताकि समय पर काम आ सके ।

प्रश्न- राइजिंग मॅन कितने प्रकार के होते है


उत्तर- राइजिंग मेंन दो प्रकार के होते हैं
1. वेटराइजर 2. ड्राईराईजर

प्रश्न- वेट राइजर किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रकार के राइजिंग मेंन में हमेशा पानी भरा रहता है। इसका कनेक्शन नगर की वाटर सप्लाई से रहता है। अतः आउटलेट बाल्व खोलते ही पानी मिल
जाता है।
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प्रश्न- ड्राइराइजर किसे कहते हैं


उत्तर- ड्राइराइजर का पाइप सूखा रहता है। यानी यह वेट राइजर की भाँति हर समय पानी से भरा नहीं रहता इसका कनैक्शन सिटी मेंस से भी नहीं रहता बल्कि
आवश्यकता पड़ने पर फायर सर्विस के पम्प द्वारा ही इसमें पानी चढ़ाया जाता है। इस राइजर को चार्ज करने अथवा प्रयोग करने के लिए भवन की निचली मंजिल में
बाहर की ओर एक इनलेट बना होता है इसी इनलेट से फायर सर्विस का होज जोड़ देते हैं। यह इनलेट एक शीशा लगे बक्स में रहता है। बक्स पर या शीशे पर
ड्राइराइजिंग मेंन लिखा रहता है। ड्राइराइजर के ऊपरी सिरे पर एक एयर वाल्व लगा रहता है जिससे राइजर को चार्ज करते समय अन्दर की हवा बाहर निकलती जाती
है। तथा खाली करते समय पाइप शीघ्र खाली हो जाता है राइजर को खाली करने के लिए पाइप में इनलेट के नीचे एक ड्रेन काग भी लगा रहता है।

प्रश्न- ड्राइराइजर इन्स्टालेशन से क्या-क्या लाभ होते हैं


उत्तर- 1. समय की बचत होती है जो एक होज फै लाने में लग सकताहै।
2. ऊपरी मंजिल की आग पर शीघ्राति शीघ्र पानी पहुंचाया जा सकता है।
3. फ्रिक्शन लास कम होता है।
4. फालतू बहे हुए पानी का नुकसान कम होजाता है,जोकि होज़ लाइन में लीक होने,रिसने या वर्स्ट होने से हो सकता।

प्रश्न- ड्राइराइजर में एयर वाल्व क्या करता है ?


उत्तर- ड्राइराइजर के ऊपरी सिरे पर एयर वाल्य लगा होता है राइजरप्रयोग करते समय जैसे जैसे पाइप में पानी चढ़ता जाता है इसके अन्दर की हवा बाहर
निकलती जाती है। यदि एयर वाल्व न हो तो पाइप के अन्दर की हवा पाइप को पूर्ण रूप से चार्ज होने में अड़चने डालेगी। एयर वाल्व उस समय भी कार्य करता है जब
पाइप को खाली किया जाता है। वायु मण्डल के दबाव से पाइप शीघ्र खाली हो जाता है। यदि एयर वाल्व न हो तो बैक्युम बन जाने के कारण पानी पाइप में ही रुका रह
सकता है।

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प्रश्न- डाउन कॉमर से क्या समझते हो


उत्तर- वेट राइजर के पाइप को जब शहर की वाटर मेन की बजाय उसी भवन की छत पर बने किसी वाटर टैंक से जोड़ दिया जाता है और उसी टैंक से पानी
मिलता है तब से डाउन कॉमर कहकर पुकारते हैं।

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प्रश्न- होज रील इन्स्टालेशन से क्या समझते हो
उत्तर- वेट राइजर डाउन कॉमर या इण्टरनल हायड्रेन्ट के पास होज और ब्रांच रखने की बजाय कहीं -कहीं होज रील फिट की जाती है। रील, एक घूमने वाले
खोखले ढाँचे पर बनी होती है। इसके ऊपर एक आउटलेट बना होता है। जिसमें 3/4 इंच या 1 इंच डायमीटर की तीस से साठ मीटर लम्बी रबर ट्यूबिंग जोड़कर रील
या चर्खी पर लपेट दी जाती है। इस के दूसरे सिरे पर बन्द की जा सकने वाली "शट ऑफ" टाइप नाजुल लगी रहती है। घूमने वाले पाइप में स्टफिं ग बाक्स लैण्ड के
द्वारा घूमते-घूमते भी पानी आता रहता है। इस प्रकार होज रील व्यवस्था में होज की अपेक्षा काफी सुविधायें मिलती हैं।

प्रश्न- होजरील व्यवस्था में क्या-क्या सुविधायें होती हैं


उत्तर-1. आग पर तुरन्त आक्रमण किया जा सकता है। जबकि होज को पूरा फै लाने के बाद ही वाल्व खोला जा सकता है।
2. होज रील को थोड़ा खोलने पर भी पानी प्राप्त हो सकता है।क्योंकि इसकी बनावट ही इस प्रकार की होती है कि रील घूमती भी रहे और पानी भी निरन्तर चलता
रहे।
3. जब कभी हाइड्रेन्ट के पास ही आग लगी होतो होज को पूरा फै लाने में समय लगेगा व असुविधा होगी। परन्तु होजरील थोड़ा खोलने के पश्चात ही पानी दे सकती है

4. इससे एक व्यक्ति ही आग बुझा सकता है ।
5.होज की मेंटीनेंस भी अपेक्षाकृ त सरल है। होजरील को धोकर तुरन्त लपेटा जा सकता है ,जब कि होज भीग जाने पर सुखाकर ही लपेट कर रखा जाता है ।

प्रश्न- होजरील से किस प्रकार काम लिया जाता है


उत्तर- 1. वाल्व को खोलिये।
2. ब्रांच को पकड़ कर आवश्यकतानुसार रील को खोलिये ।
3.आग तक दौड़िये। आग के निकट पहुँचते ही नाजुल खोलिए और आग पर आक्रमण कीजिए।
4.आग बुझाने के पश्चात वाल्व बन्द करके टयडिंग को साफकरके रील पर लपेट दीजिए।

प्रश्न- फिक्स्ड फोम इन्स्टालेशन से क्या तात्पर्य है


उत्तर- फिक्स्ड फोम इन्स्टालेशन में ऐसी व्यवस्था रहती है कि आग लगने पर अधिक से अधिक फोम कै मिकल या मैके निकल उपलब्ध हो सके । कहीं -कहीं टैंकों
में फोम मेकिं ग ब्रांच पहले से ही लगे रहते हैं और दुर्घटना होने पर अपने आप ही फोम बनाकर तेल की सतह पर बिछा देते हैं। कहीं कहीं फोम हाइड्रेन्ट या फोम
आउटलेट फिट रहते हैं। जहाँ से पाइप लगाकर फोम उपलब्ध किया जाता है। इस व्यवस्था में फोम बनाने का सारा प्रबन्ध पहले से ही किया जाता है,

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प्रश्न- फिक्स्ड फोम इन्स्टालेशन किन स्थानों पर मिल सकता


उत्तर- 1. बड़ी बड़ी ऑयल और पेट्रोल की टंकियों में। (ऑयल स्टोरेज टेक)
2. बड़े-बड़ेकारखानोंके अन्दरउनखुलेटैंकोंमेंजिनमेंशीघ्रआगपकड़ने वाले द्रवों का प्रयोग होता है।
3. जहाज के मशीन रूम में ।
4.ऐसे स्टोरों में जहाँ शीघ्र आग पकड़ने वाले द्रवों को रखा जाता है ।
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5. बिजली की वे मशीनें जिनमें वृहद परिमाण में तेल प्रयोग किया जाता है। जैसे ट्रांसफारमर, स्विचगेयर इत्यादि।
6. बॉयलर, जिनमें तेल प्रयोग किया जाता है ।
7. इनै मिलिंग भट्टियाँ ।
8. ईथर स्टोरेज इत्यादि।

प्रश्न- कार्बनडाईआक्साइड फिक्स्ड इन्स्टालेशन से क्या तात्पर्य है


उत्तर- इस प्रकार की व्यवस्था में कार्बनडाईआक्साइड गैसों द्वारा आग बुझाने का प्रबन्ध रहता है। यह गैस बड़े -बड़े सिलेण्डरों में प्रेशर युक्त भरी रहती है। समस्त
सिलैण्डर एक पाइप से जुड़े रहते हैं। इसी पाइप के अन्तिम सिरे पर नाजुल के स्थान पर डिस्चार्ज हार्न लगा रहता है। यह हार्न जगह -जगह लगा दिये जाते हैं। आग
लगने पर इन्हीं हानों से गैस निकलकर आग को तुरन्त बुझा देती है। कहीं -कहीं ऐसी भी व्यवस्था रहती है कि आग लगते ही यह प्रणाली स्वयं चालू होकर आग बुझाने
लगती है साथ ही अलार्म बजाकर संस्था के कर्मचारियों को चेतावनी देती है।

प्रश्न- कार्बनडाई आक्साइड इन्स्टालेशन कहाँ-कहाँ मिल सकते है


उत्तर- 1. शीघ्र आग पकड़ने वाले द्रव्यों की छोटी-छोटा टंकियों पर।
2. बिजली के संयन्त्र जैसे जैनरेटर, ट्रांसफारमर, स्विच गेयर इत्यादि ।
3. जहाज के मशीन रूम, वॉयलर रूम, शिप होल्ड इत्यादि।
4. स्प्रेशाप, स्प्रेबूथ, इनैमिलिंग की भट्टियाँ। ड्रायर्स और लूज टेक्स्टाइल स्टोर्स।
5. एयर क्राफ टइंजन।
6. सिनेमा प्रोजेक्टर रूम ।
7. ऐसे कै मिकल वक्स जहाँ पानी नहीं प्रयोग कर सकते।
8. तिजोरी मूल्यवान कपड़ों के वार्डरोब लाइब्रेरी इत्यादि।

प्रश्न- सी. ओ. टू . फिक्स्ड इन्स्टालेशन युक्त संस्थानों में आग लगने पर क्या कार्रवाई की जाती है
उत्तर- ऐसे संस्थानों में ब्रीदिंग अपरेटस पहनकर घटनास्थल की तलाशी ली जायेगी कि कमरे में कोई व्यक्ति बेहोश तो नहीं पड़ा है। आग किस दशा में है। जब तक
यह न प्रमाणित हो जाय कि आग पूर्णरूप से बुझ चुकी है खिड़की दरवाजे पूर्ण रूप से न खोले जाँय और गैस कम न होने दी जाय। आग बुझ चुकने के पूर्ण विश्वास पर
ही वैन्टीलेशन कराया जाय।

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प्रश्न- मैथिल ब्रोमाइड फिक्स्ड इन्स्टालेशन से क्या समझते हो
उत्तर- इस प्रणाली में मैथिल ब्रोमाइड से आग बुझाने की व्यवस्था होती है। यद्यपि मैथिल ब्रोमाइड तरल रूप में होता है परन्तु शीघ्र ही गैस में परिवर्तित हो जाता
है। तरल को सिलैण्डरों में रखा जाता है।
यह व्यवस्था भी उन्हीं स्थानों पर होती है जहाँ -सी. ओ. टू . इन्स्टालेशन उपयुक्त होते हैं।

प्रश्न- स्टीम फिक्स्ड इन्स्टालेशन से क्या समझते हो


उत्तर- कहीं-कहीं स्टीम द्वारा भी आग को स्मदरिंग मैथड से बुझाया जाता है। बॉयलर से पाइपों द्वारा स्टीम पहुँचाई जाती है। यह इन्स्टालेशन-
1. जहाज के शिपहोल्ड।
2. शीघ्र आग पकड़ने वाले द्रव्य के स्टोरेज टैंकों में ।
3. रिफाइनरीज में।
4. फर्टलाइजर के कारखानों में ।
5. ऑयल स्टोरेज में ।
6. ड्राईक्लीनर्स आदि में मिलते हैं ।

स्प्रिंक्लर्स ड्रेचर्स
और
वाटर स्प्रेप्रोजैक्टर्स

प्रश्न- स्प्रिंक्लर सिस्टम से क्या समझते हो


उत्तर- यह पानी द्वारा आग बुझाने की स्वचालित व्यवस्था है। जिस भवन में ये व्यवस्था होती है उसके अन्दर छत में पानी के पाइपों का जाल फै ला रहता है। इन
पाइपों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आउटलेट बने होते हैं। आउटलेट एक विशेष यन्त्र द्वारा (जिन्हें स्प्रिंकलर हैड कहते हैं) सील्ड रहते हैं। जब कभी भवन के अन्दर आग
लगती है आग की ताप के कारण इन आउटलेट की सील टू ट जाती है और उनसे फु हार के रूप में पानी गिरकर आग बुझाना आरम्भ कर देता है। साथ ही साथ अलार्म
भी बजने लगता है। जिससे भवन के समस्त कर्मचारियों को अग्नि दुर्घटना की सूचना भी मिल जाती है।

प्रश्न- स्प्रिंक्लर सिस्टम का मुख्य उद्देश्य क्या है


उत्तर- 1. अग्नि दुर्घटना से सतर्क रहना, आग देखते रहना, जैसे ही आगलगे।
2.अग्नि दुर्घटना की सूचना अलार्म बजाकर तुरन्त देना।
3.आग बुझाना आरम्भ कर देना ।
4.आग को बढ़ने नहीं देना अथवा बढ़ने से रोके रखना।
इस प्रकार यह प्रणाली एक सतर्क चौकीदार की भाँति कार्य करती है।

प्रश्न- स्प्रिंक्लर सिस्टम कितने प्रकार के होते हैं


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उत्तर- सामान्यतः तीन प्रकार के देखने में आते हैं।
1-वेट पाइप सिस्टम-इस सिस्टम में पाइप हमेशा पानी से भरे रहते है और आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त चलने लगते हैं।
2-ड्राइ पाइप सिस्टम- ठण्डे देशों में जहाँ पाइपों में पानी जम जाने की सम्भावना रहती है ,वहाँ इस प्रकार की व्यवस्था की जाती है,। इसमें पाइप सूखा रहता है।
पाइप में पानी की बजाय हवा भरी रहती है। आग लगने पर हवा तुरन्त निकल जाती है और पानी आकर आग बुझाता है।
3-आल्टरनेट वेट एण्ड ड्राईपाइप सिस्टम- इस व्यवस्था में गर्मियों में वेट पाइप सिस्टम कार्य करता है और जाड़ों में उसी को बदलकरड्राईपाइप सिस्टम कर लिया
जाता है।

प्रश्न- स्प्रिंकलर हैड किसे कहते हैं


उत्तर- स्प्रिंक्लर सिस्टम में पाइपों के आउटलेटों को सील करने के लिए जिन यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है , उन्हें स्प्रिंक्लरहेड कहते हैं। ये चूड़ी द्वारा आउटलेट पर
फिट कर दिये जाते हैं। इसमें नीचे की ओर एक विशेष प्लेट लगी रहती हैं जिसे डिफ्ले क्टर कहते हैं। आउटलेट से निकला हुआ पानी इस प्लेट पर गिरकर फु हार के रूप में
बदलकर चारों ओर गिरता है। आउटलेट को सील करने के लिए जो व्यवस्था होती है उसी के अनुसार स्प्रिंक्लर हेड कहलाते है।

प्रश्न- स्प्रिंक्लर हैड कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- दो प्रकार के होते हैं।
1. फ्यूजेबिल सोल्डर टाइप 2.कार्टजॉइड बल्ब टाइप

प्रश्न- फ्यूजेविल सोल्डर टाइप से क्या तात्पर्य है

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उत्तर- इस प्रकार के स्प्रिंक्लर हैड में आउटलेट सील करने के लिए धातु के बने टुकड़े एक विशेष धातु से सोल्डर किये जाते हैं जो आग से उत्पन्न ताप पर
पिघलकर खुल जाते हैं। फलस्वरूप आउटलेट का बन्द मुँह भी खुल जाता है।

प्रश्न- कार्टजाइड बल्ब टाइप स्प्रिंक्लर हैड कै सा होता है


उत्तर- इस प्रकार के स्प्रिंक्लर हैड का आउटलेट एक विशेष प्रकार के ब जो कि शीशे की भाँति पारदर्शी होता है जिसे कार्टजाइड बल्व कहते हैं से बन्द रहता है।
इस बल्व में एक विशेष तरल भरा रहता है। आग से उत्पन्न ताप से यह तरल फै लता है और फै लकर कार्टजाइड बल्थ को तोड़ देता है। बल्ब टू टकर गिर जाने से
आउटलेट का बन्द मुँह खुल जाता हैऔर पानी गिरने लगता है।

प्रश्न- बल्ब टाइप स्प्रिंक्लर हैड में विभिन्न रंगों का तरल भरा रहता है इसका क्या उद्देश्य है
उत्तर- वल्व में भरे तरल को देखकर यह पता चलता है कि कितने टेम्परेचर परअमुक रंग का बल्ब टू ट जाया करता है। जैसे-
काला (135°फा०)
लाल (155°फा०)
पीला (175°फा०)
हरा(200° फा०)
नीला (286° फा०)
औरजामुनी (360° फा०)

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प्रश्न- स्प्रिंक्लर सिस्टम में पानी की पूर्ति कहाँ से होती है


उत्तर- 1. शहर की वाटर सप्लाई मेन से।
2.भवन की छत पर इलैवेटेड टैंक बन वाकर।
3.भवन के नीचे प्रेशर टैंक लग वाकर ।
4.निकट वर्ती झील, तालाब या नदी से पम्प लगवाकर।
5.प्राइवेट रिजर्वायर |
उपरोक्त साधनों में से एक या दो साधन एक साथ हो सकते हैं।

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प्रश्न- स्प्रिंक्लर सिस्टम के इलैवेटेड टैंक की क्षमता क्या होती है


उत्तर- सामान्यतः इलेवेटेड टैंक की क्षमता 22500 लि. होती है। जबकि उसकी तली सबसे ऊपरी स्प्रिंक्लर हैड से 7 मी. ऊँ ची हो। यदि उसकी तली हैड से
4.5 मी. ही ऊँ ची हो तब टैक की क्षमता 34050 लिटर होनी चाहिए।

प्रश्न- प्राइवेट रिजर्वायर टैंक की क्षमता कितनी होती है


उत्तर- सामान्यतः प्राइवेट रिजर्वायर टैंक की क्षमता 908000 लि. होती है। परन्तु कु छ परिस्थितियों में कम क्षमता के टैंक भी मिलते हैं।

प्रश्न- प्रेशर टैंक से क्या समझते हो


उत्तर- प्रेशर टैंक भवन के नीचे ही होता है। यह सिलैंडिकल स्टील टैंक है जो कु छ पानी और कु छ प्रेशर युक्त हवा से भरा होता है। हवा और पानी का अनुपात टैंक
के आकार पर निर्भर होता है। टैंक में कम से कम 15131 ली पानी अवश्य भरा होना चाहिए। इसमें इतना प्रेशर भी होना चाहिए जो इसके अन्तिम लीटर पानी को भी
सबसे ऊपरीस्प्रिंक्लर हेड पर 15 पोण्ड प्रति वर्ग इन्च (एक बार) प्रेशर दे सके ।

प्रश्न- वेट पाइप मिस्टम के मुख्य मुख्य कन्ट्रोल वाल्व के नामबताओ


उत्तर- 1. प्रत्येक वाटर सप्लाई लाइन के अलग-अलग स्टाप वाल्व।
2. प्रत्येक वाटर सप्लाई के अलग-अलग नान रिटर्न वाल्च।
3 .मेन स्टाप वाल्व।
4. अलार्म वाल्व ।
5. ड्रेन वाल्व 50 मि.मी. ।
6.टेस्ट वाल्व (12.5 मि. मीटर)

प्रश्न- स्प्रिंक्लरयुक्त भवन में आग लगने पर कै से कार्य किया जाताहै


उत्तर- घटना स्थल पर पहुँचते ही क्र्यू के एक सदस्य को के बिन की ओर भेजा जाता
1.मेन स्टाप वाल्व को देखे कि वह कहीं बन्द तो नहीं है। यदि बन्द हो तो खोल दिया जाय। यदि खुला हो तो उसे तब तक बन्द न किया जाय जबतक कि आग
कन्ट्रोल में न आ जाय और जबतक कि दुर्घटनाधिकारी बन्द करने का आदेश न दे।
2. अलार्म वाल्व बन्द करके अलार्म बजना बन्द कर दिया जाय।
3.यदि सिस्टम में प्रेशर बढ़ाने के लिए फायर सर्विस इनलेट की व्यवस्था होतो होज फै लाकर व पम्प लगा करतैयार रखें।
4.पता लगाया जाय कि किस स्थान का स्प्रिंक्लर हैड चला है। वहाँ की शेष आग को बुझाना शुरू करें ।
5. यदि और पानी की आवश्यकता हो तो सिस्टम में काम आने वाले पानी को न छेड़िये जब तक कि यह परिमाण में अधिक न हो।
6. जैसे ही आग बुझ जाय स्टाप वाल्व बन्द कराइए ताकि फालतू पानी बहकर अन्य सामग्री को नुकसान न पहुँचा सके ।

प्रश्न- ड्रिंचर्स किसे कहते हैं


उत्तर- ड्रिंचर्स भवन के बाहरलगाये जाते हैं और पड़ोस के भवन में लगी आग से अपने भवन को सुरक्षा प्रदान करते हैं। या तो ये स्वयंचालित होते हैं या किसी
व्यक्ति द्वारा चालू करने पर चलने लगते हैं। भवन के बाहर पाइप लगवाकर छत, दरवाजों और खिड़कियों पर आउटलेट छोड़कर उनमें ड्रिंचर्स हैड फिट कर दिए जाते हैं।
ये हैड सील्ड (स्वयं चालू होने के लिए) या खुले रहते हैं इन्हें हाथ से मेन वाल्व खोलकर चालू किया जाता है। इनके हैडों से पानी निकलकर भवन के आगे पानी के
फु हार की चादर जैसी बनाता है तथा पड़ोस की आग से बचाव किए रहता है।

प्रश्न- वाटर स्प्रे प्रोजैक्टर सिस्टम कहाँ प्रयोग होता है


उत्तर- इलैक्ट्रिक पावर हाउस, जैनरेटिंग स्टेशन जहाँ बड़ी-बड़ी मशीनों को ठण्डा करने के लिए अधिक परिमाण में तेल प्रयोग में लाया जाता है। जैसे स्विचगेयर ,
ट्रांसफार्मर आदि की सुरक्षा के लिए। जहाज के मशीन रूम, वायलर रूम, टर्बो जैनरेटर के लिये।

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प्रश्न- ड्रिंचर्स हैड कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- तीन विशेष नमूने के देखने में आते हैं।
1. रूफ ड्रिंचर्स- छत के ऊपर लगे पाइप पर लगाए जाते हैं जो पानी काफब्वारा जैसा फें कते हैं।
2. वाल और करटेन ड्रिंचर्स-इस प्रकार के हैड एक ही ओर एक चपटी व चौड़ीधार फें क कर पानी की चादर जैसी बना देता है और दीवार को ढाँक लेता है ।
3. विन्डो ड्रिंचर्स इस प्रकार के हैड खिड़कियों की सुरक्षा के लिए होते हैं औरखिड़की के ऊपर लगे पाइपों में लगाये जाते हैं।

प्रश्न- वाटर स्प्रे प्रोजैक्टर से क्या समझते हो


उत्तर- पानी के फै ले हुए पाइपों में आउटलेट पर विशेष प्रकार के हैड जिन्हें वाटर स्प्रे प्रोजेक्टर हैड कहते हैं लगे रहते हैं। इनसे बहुत बारीक परन्तु बहुत तेज
फु हार के रूप में पानी गिरता है जो कि तेल में भी विधता हुआ चला जाता है और उसमें हलचल अथवा खदबदाहट पैदा कर देता है और उसे ठण्डा कर देता है।
प्रोजैक्टर हैड मशीन के चारों ओर फिट किये जाते हैं। शेष प्रणाली स्प्रिंक्लर सिस्टम की भाँति होती है।

वाचरूम
और
उसकी कार्य प्रणाली
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प्रश्न- वाचरूम किसे कहते हैं


उत्तर- वाचरूम फायर स्टेशन का वह विशेष कमरा है जो सूचनाओं के आदान प्रदान करने के यन्त्रों से सुसज्जित रहता है। यहाँ आग तथा अन्य दुर्घटनाओं की
सूचनाऐं प्राप्त की जाती हैं एवं उन पर आवश्यक कार्यवाही करने के लिए फायर सर्विस के कर्मचारियों को आदेश दिये जाते हैं।

प्रश्न- कन्ट्रोल रूम किसे कहते हैं ? वाचरूम और कन्ट्रोल रूम में क्या अन्तर है
उत्तर- बड़े-बड़े नगरों में उनके विस्तार के अनुसार कई वाचरूम होते हैं। ये समस्त वाचरूम एक बड़े वाचरूम के नियन्त्रण में रहते हैं। इसी को कन्ट्रोल रूम कहते
हैं। दोनों में के वल यह अन्तर है कि वाचरूम दुर्घटना की सूचना प्राप्त करता है तथा उसपर उचित कार्यवाही के लिए कर्मचारियों को भेजता है। जबकि कन्ट्रोल रूम
दुर्घटना की सूचना प्राप्त करके उस पर आवश्यक कार्यवाही हेतु दुर्घटना स्थल के निकटवर्ती वाचरूम को आदेश देता है। साथही साथ प्रशासकीय सूचनाओं का भी
आदान-प्रदान करता है। इस प्रकार कन्ट्रोल रूम में दोनों प्रकार की सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।

प्रश्न- वाचरूम की विशेषताएँ क्या हैं


उत्तर- 1. सूचना प्राप्त करने का साधन सुगम और सरल हो। एक या अधिक टेलीफोन हो। बाचरूम को ऐसे स्थानपर बनाया जाता है जहाँ सूचना देने वाला व्यक्ति
सरलता से पहुंच सके । उसे फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ भी दिखाई पड़े।
2.वाचरूम डियूटी वाले को घटना स्थल पर गाड़ियाँ भेजने में और उन्हें आवश्यक निर्देश देने में भी सुविधा हो। इस लिए एपलाइन्स रूम और वाचरूम पास-पास होतो
उत्तम है ।
3.वाचरूम डियूटीवाला भी कार्य कु शल हो। वास्तव में किसी फायर स्टेशन की कार्य क्षमता उसके वाचरूम डियूटी वाले की कार्य पद्धती और कार्य कु शलता पर ही
निर्भर होती है। यदि डियूटी वाला सुस्त और लापरवाह होगा तो टर्नआउट भी देर से होगा। फलस्वरूप फायर स्टेशन की कार्यक्षमता पर भी गम्भीर असर पड़ेगा ।

प्रश्न- एक आधुनिक वाचरूम में क्या-क्या उपकरण होते हैं


उत्तर- टेलीफोन (कम से कम एक या अधिक), वायरलेस सेट कन्ट्रोल डैस्क, यदि नगर में स्ट्रीट अलार्म सिस्टम है तो स्ट्रीट फायर अलार्म पैनल, चेतावनी के
लिए अलार्म बैल, सायरन अथवा इलेक्ट्रिक बैल घड़ी, शहर का नक्शा (टोपोग्राफी मैप), डियूटी वितरण बोर्ड (टैली बोर्ड) दुर्घटना सम्बन्धी बोर्ड, चार्ट, सूचना प्राप्त
करने के लिए निर्धारित फार्म्स, आकरेंस बुक (जनरल डायरी), व्हीकिल लाग बुक तथा अन्य लेखन सामग्री टेबुल कु र्सी आदि फर्नीचर, साइकिल, टेलीफोन, हाइड्रेट,
स्टेटिक टैंक और रिस्क सम्बन्धी चार्ट अथवा तालिकायें।

प्रश्न- वाचरूम आपरेटर में क्या-क्या विशेषताएँ होनी चाहिए ?


उत्तर- 1.कु शाग्रबुद्धिवाला- शीघ्रातिशीघ्र बात को समझने वालाहो।
2.द्रुतलेखक- तेज लिखने वाला हो।
3.निर्णायकबुद्धिवाला-दुर्घटना पर कार्यवाही हेतु तुरन्त निर्णय ले सके ।
4.शान्तएवंगम्भीर-परिस्थिति विशेष में घबराये नहीं।
5.नगरज्ञाता-नगर की टोपोग्राफी से परिचित हो।
6.समयनिष्ठ-समय का मूल्य समझता हो।
7.मृदुभाषी-सभ्यता और नम्रतापूर्वक बात करने वाला।

प्रश्न- टेलीफोन द्वारा सूचना मिलने पर क्या कार्यवाही करेंगे ?


उत्तर- 1. सावधानी पूर्वक टेलीफोन का योगा उठाइये और अपना परिचय दीजिये। माइक को मुँह से दो इन्च दूर रखिये।
2. दुर्घटना की सूचना प्राप्त करने का पैड पेंसिल लेकर - तेज लिखने को तैयार रहिये।
3.यदि सूचना देने वाला घबराहट में होतो उसे नम्रता पूर्वक शान्त रहने को कहकर सही-सही सूचना प्राप्त करने का प्रयास कीजिए ।
4. यदि सम्भव हो तो सूचना नोट करने के पश्चात दोहरा दीजिये तो अच्छा रहे।

प्रश्न- टेलीफोन से प्राप्त सूचना लिखते समय क्या-क्याबात ध्यान में रखेंगे
उत्तर- सूचना लिखते समय बोलते भी जाइये। के वल हाँ हाँ करना ठीक नहीं। जैसे वह बोलता है कि कोतवाली के सामने दुकान में आग लगी है तो आप भी लिखते
जाइये और बोलते जाइये कि कोतवाली के सामने “दुकान में आग लगी है”। इस प्रकार लिखने से गलती की सम्भावना नहीं रहती और सूचना सही-सही और सहज में
लिखी जाती है।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- दुर्घटना सम्बन्धी सूचना नोट करते समय क्या-क्या बातें ज्ञात करेंगे
उत्तर- 1. घटना स्थल का पता, वहाँ पहुँचने का रास्ता।
2. दुर्घटना की किस्म, यानी आग, मकान, दुकान या फै क्ट्री में
3. टेलीफोन नम्बर है।
4. कोई अन्य आवश्यक निर्देश जैसे-अमुक सड़क पर मिले-या- मिलेगा आदि।
5. सूचना नोट करने के पश्चात समय नोट करें ।

प्रश्न- सूचना नोट कर लेने के पश्चात वाचरूम डियूटी का क्या कर्तव्य है


उत्तर- 1. सूचना नोट कर लेने के पश्चात तुरन्त अलार्म बजायेगा।
2. टर्नआउट पर जाने वाले अधिकारी को संदेश पत्र देगा।
3. संदेश मौखिक भी बताये। और जोर-जोर से बतायेगा। ताकिड्राइवर और अन्य कर्मचारी भी सुन लें।
4. कोई अन्य निर्देश हो तो उसे भी बतायेगा।
5. यदि टर्नआउट पर दो मशीनें जा रही हों तो दूसरी मशीन के अधिकारी / ड्राइवर को साफ-साफ पता बताये गा।
6. मशीनों की रवानगी के पश्चात अन्य सम्बन्धित पदाधिकारियों को भी सूचित करेगा। जैसे-
7. वाटर वर्क्स को सूचना।
8. निकटवर्ती पुलिस स्टेशन को सूचना।
9. मुख्य-अग्निशमन-अधिकारी/कन्ट्रोल रूम को सूचना।
10. यदि आग इलैक्ट्रिसिटी या गैस में है ,तो पावर हाउस और गैस कन्ट्रोल रूम को भी सूचना दे।
11. उपरोक्त समस्त कार्य वाही को आकरेंसबुक या जनरल डायरी में क्रमानुसार अंकित करे।
12. टैली-बोर्ड, डियूटी-बोर्ड-में भी आवश्यक परिवर्तन करे।

प्रश्न- वाचरूम या कन्ट्रोल रूम में प्रशासनिक कार्यवाही से क्या तात्पर्य है


उत्तर- 1. अग्नि कांड एवं जीवन रक्षा सम्बन्धी कार्यों का लेखा रखना।
2. गाड़ियों का मेंटीनेन्स, खरावी, मरम्मत एवं आने जाने का लेखा रखना।
3. कर्मचारियों की हाजिरी- गैर-हाजिरी, बीमारी, अवकाश पर जाने का लेखा रखना।
4. किसी परिस्थिति विशेष से कर्मचारियों को सतर्क रखना।
5. उपकरणों, मशीनोंका स्टेण्डर्डटैस्ट इत्यादि का लेखा रखना।
6. प्रत्येक घटना का आकरेंसबुक –या-जनरलडायरी,में उल्लेख आवश्यक है। आलेख शुद्ध एवं सही होना चाहिये।

प्रश्न- वाचरूम की कार्य कु शलता को बढ़ाने के लिये क्या-क्या बातें आवश्यक हैं
उत्तर- 1. वाचरूम डियूटी वांछित गुण सम्पन्न हो।
2. डियूटीवाला समय पर निर्धारित यूनीफार्म में आये और डियूटी बदलने वाले के - आ- जाने पर ही वाचरूम छोड़कर जाये।
3.वाचरूम को खाली न छोड़ा जाये।
4. वाचरूम में वांछित रिकार्ड के अतिरिक्त अखबार, पत्र-पत्रिकायें,कहानियों की पुस्तकें न रखी जायें।
5. डियूटी के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति वहाँ एकत्र होकर उसे गप्पास्टक रूम न बनाएँ।
6. वाचरूम और उसके उपकरणों को सदैव स्वच्छ एवं कार्यशील स्थिति में रखें।

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प्रैक्टिकल फायरमैन शिप

प्रश्न- एक अच्छे फायरमैन में कौन-कौन से गुण और विशेषताएँआवश्यक है


उत्तर- 1.फायरमैन को स्वस्थ, निरोग और फु र्तीला होना चाहिए।
2.फायरमैन को कु शाग्र बुद्धि होना चाहिए ।
4.साधन सम्पन्न होना चाहिए ।
5.अपने कार्य में दक्ष, निपुण एवं कार्यकु शल होना चाहिए ।
6.फायरमैन को स्वभाव से मृदुभाषी, नम्र और दयालु होना चाहिए।
7.अनुशासन का दृढ़ होना चाहिए।

प्रश्न- फायरमैन का मुख्य कर्त्तव्य क्या है ,


उत्तर- अग्नि शमन सेवा का मुख्य कर्तव्य वाक्य है "त्राणाय सेवा महे" अतः फायरमैन का मुख्य कर्त्तव्य, अग्नि दुर्घटना के समय जीवन और सम्पत्ति दोनों की रक्षा
करना है तथा अन्य दुर्घटनाओं में भी प्राणी मात्र की सेवा करना है।
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प्रश्न- टोपोग्राफी से क्या समझते है,


उत्तर- टोपोग्राफी का शाब्दिक अर्थ है "किसी स्थान का नक्शे में विवरण युक्त वर्णन"। फायरमैन को अपने स्टेशन के क्षेत्र से भली भाँति परिचित होना चाहिए।
जैसे-
1.नगर के मोहल्ले, उनमें बसने वाली आबादी, उन तक पहुँचने के सुविधा जनक मार्ग।
2. नगर के बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थान, कार्यालय, स्कू ल, बोडिंग हाउस, होटल, धर्मशालायें, अस्पताल, सिनेमा हाल तथा अन्य सार्वजनिक स्थान जहाँ अधिक
संख्या में लोगों के रहने की सम्भावना हो।
3. फै क्ट्रीज, मिल्स, वर्क शाप मालगोदाम, पैट्रोल एवं विस्फोटक पदार्थों के स्टोर्स जहाँ अग्नि दुर्घटना हो सकती है। उन तक पहुँचने के छोटे व सुविधाजनक मार्ग।
4. रेलवे लेबिल क्रासिंग, भीड़ भाड़ पूर्ण मार्ग, इत्यादि जो दुर्घटनाके समय बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। और घटना स्थल तक पहुँचने में विलम्ब कर सकते हैं।
5.नगर के फायर हाइड्रेन्ट, स्टेटिक टैंक, तालाब, नहर,नदी, और झील आदि पानी के साधन।
उपरोक्त टोपोग्राफी से भली-भाँति परिचित होने पर ही फायरमैन अपने अग्निशमन कार्य को कु शलतापूर्वक सम्पन्न कर सके गा।

प्रश्न- टर्न आउट से आप क्या समझते हैं


उत्तर- दुर्घटना की सूचना मिलते ही उस पर आवश्यक कार्यवाई करने के लिए फायर सर्विस की मशीनें और कर्मचारीगण शीघ्रातिशीघ्र प्रस्थान करते हैं। इस
प्रस्थान को ही फायर सर्विस में टर्न आउट कहते हैं।
जो मशीनें और कर्मचारी सर्वप्रथम भेजे जाते हैं उसे फर्स्ट टर्न आउट तथा जो मशीने बाद में भेजी जातीं हैं उन्हें क्रमानुसार सैके ण्ड व थर्ड टर्न आउट कहते हैं।

प्रश्न- टर्न आउट में कितना समय लगना चाहिए


उत्तर- टर्नआउट शीघ्रातिशीघ्र होना चाहिए। यद्यपि यह फायर स्टेशन भवन की स्थिति पर निर्भर करता है। 20 से 30 सैके ण्ड का टर्न आउट समय उत्तम माना
जाता है।

प्रश्न- टर्न आउट के समय क्या-क्या बातें आवश्यक हैं


उत्तर- टर्न आउट के समय किसी प्रकार का शोर नहीं होना चाहिए। अलार्म सुनते ही समस्त कर्मचारीगण एप्लाइन्स रूम में आयेंगे,और अपनी अपनीनिर्धारित
गाड़ियों पर बैठकर शीघ्रातिशीघ्र यूनीफार्म पहनना आरम्भ कर देंगे। वाचरूम डियूटी वाला सूचना पत्री को दुर्घटना पर जाने वाले अधिकारी को देगा,और दुर्घटना स्थल
का पता साफ-साफ ऊँ ची आवाज में भी बतायेगा। ड्राइवरों को चलने से पहले घटनास्थल का पता जान लेना चाहिए। तथा तुरन्त घटना स्थल की ओर रवाना होना
चाहिए। कर्मचारीगण रास्ते में अपनी वर्दी पहनते जायेंगे। ताकि घटनास्थल पर पहुँचते-पहुँचते सभी व्यक्ति बावर्दी दुरस्त हो जाएँ।

प्रश्न- आग पर जाते समय अलार्म बजाने की क्या उपयोगिता है


उत्तर- 1. रास्ता साफ होता जायेगा। फायर इन्जिन के घण्टे की आवाज सुनकर रास्ता चलने वाले एक ओर हट जायेंगे।
2. दुर्घटना में फँ से व्यक्तियों को घण्टे की आवाज से सान्त्वनामिलेगी। उनमें अपने बचा लिए जाने की आशा उत्पन्न होगी।

प्रश्न- आग पर जाते समय मार्ग में कोई एक्सीडेन्ट हो जाये तोक्या करना चाहिये
उत्तर- यदि एक्सीडेन्ट मामूली है और गाड़ी जाने योग्य हो, तो एक फायरमैन को फर्स्टएड बक्स के साथ दुर्घटना स्थल पर उतार दिया जायेगा और गाड़ी घटना
स्थल की ओर चली जायेगी। उस फायरमैन का यह कर्त्तव्य होगा कि यदि एक्सीडेन्ट में कोई व्यक्ति आहत हो गया हो तो उसे फर्स्टएड देकर निकटवर्ती अस्पताल में
पहुँचाने की व्यवस्था करे तथा दुर्घटना की सूचना फायर स्टेशन एवं सम्बन्धित पुलिस स्टेशन को दे। दुर्घटना स्थल पर घटना के समय गाड़ी तथा आहत जिस स्थल
पर हो फायरमैन एक्स इत्यादि से उस स्थल पर चिन्ह अकित कर दिया जाय।
यदि एक्सीडेन्ट गम्भीर हो, जिसमें गाड़ी घटनास्थल पर ले जाना सम्भव न हो तब फायर स्टेशन पर सूचना भेजकर दूसरा टर्न आउट कराने की व्यवस्थाकरनी चाहिए।

प्रश्न- आग पर जाते समय यदि मार्ग में पंक्चर हो जाये तो क्या करोगे ?
उत्तर- ऐसी स्थिति में यदि घटना स्थल पास ही हो तो आवश्यक उपकरण लेकर पैदल ही पहुँचना चाहिए। यदि घटना स्थल दूर हो तो फायर स्टेशन परफायर
फाइटर्स प्रश्नोत्तरी भेजकर दूसरी मशीन मँगाने की व्यवस्था करनी चाहिए। तथा शीघ्रातिशीघ्र सूचना पंक्चर पहिया बदलने की कार्यवाही आरम्भ कर देनी चाहिए।

प्रश्न- आग पर जाते समय यदि कहीं ट्रैफिक जाम हो तो क्याकरोगे ?


उत्तर- ट्रैफिक जाम की स्थिति में गाड़ी को दूसरे मार्ग से ले जाने का प्रयास करना चाहिए। यदि गाड़ी का लौटाया जाना भी कठिनाई पूर्ण हो तो फायर स्टेशन को
सूचना देकर दूसरी मशीन किसी दूसरे मार्ग से घटना स्थल पर भेजने को कहाजाय।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न- दुर्घटना स्थल पर पहुँचते ही क्या कार्यवाही होनी चाहिए ?
उत्तर- घटना स्थल पर पहुँचते ही मशीनों को सड़क के एक ओर खड़ा कीजिए ताकि यातायात में असुविधा न हो।
दुर्घटना अधिकारी और लीडिंग फायरमैन अथवा एक फायरमैन एपलाइन्स से उतर कर आग के स्थान का सर्वेक्षण करने जायेंगे। शेष कर्मचारी आग बुझाने के लिए
उपयुक्त सामान निकालेंगे,निकटवर्ती पानी का साधन जैसे हाइड्रेन्ट स्टेटिक टैंक या तालाब इत्यादि का पता लगायेंगे।

प्रश्न- सर्वेक्षण से क्या समझते हो, यह क्यों आवश्यक है


उत्तर- सर्वे या सर्वेक्षण उस सिलसिले वार कार्यवाही को कहते हैं जिसके द्वारा दुर्घटना का यथार्थ सही स्थिति शीघ्रातिशीघ्र निर्धारित की जा सके एवं कार्य को
सफलतापूर्वक सम्पन्न करने की योजना बनाई जा सके । जैसे घटना किस प्रकार घटित हुई। कितने व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त हुए। उन्हें किस तरह बचाया जा सकता है। कौन -
कौन सी समस्याऐं हैं या आयेंगी, इत्यादि। इस प्रकार के अध्ययन को ही सर्वेक्षण करना कहते हैं। सूझ-बूझ एवं चतुराई से किया गया सर्वेक्षण ही सफलता की कु न्जी है।

प्रश्न- अग्नि दर्घटना पर सर्वेक्षण में क्या-क्या बात ज्ञात करनीआवश्यक है


उत्तर- सर्वप्रथम पता लगाइये कि-
1. आग का मूल स्थान कहाँ है। उसमें क्या जल रहा है अथवा आग ए. बी. सी. डी या ई. में से किस क्लास की है।
2. आग की दशा, आग साधारण है या गम्भीर रूप ले चुकी है। एक ही स्थान पर जल रही है या बढ़ती जा रही है।
3. कोई प्राणी दुर्घटना ग्रस्त तो नहीं है। जीवन रक्षा को प्राथमिकता देनी होगी।

4. आग बुझाने के लिये उपयुक्त सामान एपलाइन्स पर हैं। अथवा किसी और सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। जैसे -फोम कम्पाउण्ड बड़ी सीढ़ियाँ, अतिरिक्त होज
पाइप और पम्प इत्यादि।
5. उपरोक्त बातों के ज्ञात हो जाने के पश्चात ही कोई निर्णय लेकर आग पर आक्रमण के लिए सुरक्षित व उपयुक्त स्थानचुनना चाहिये।

प्रश्न- अग्नि दुर्घटना ग्रस्त भवन में प्रवेश करते समय कौन-कौन सी बातें याद रखनी चाहिए
उत्तर- जहाँ तक सम्भव हो मकान के मुख्य द्वार से ही प्रवेश करना चाहिए। इस प्रकार मकान के कमरे ,बरामदे,जीने बालकनी और छत पर सुगमता से पहुँचा जा
सकता है। यदि मुख्य द्वार से घुसना असम्भव हो, तो मकान में अन्य ओर से घुसने का प्रयास करना चाहिए। पहले नीचे ,तत्पश्चात ऊपर के खिड़की दरवाजों से प्रयास
करना चाहिए। दरवाजा खोलने से पहले आग बुझाने के साधन ,उपकरण तैयार रखिये। खाली हाथ दरवाजा मत खोलिये। ऐसी जगह खड़े होकर कार्य कीजिये जहाँ
छत,दीवार अथवा उसका मलवा,गिरने का खतरा न हो या खतरा होने पर तुरन्त बाहर निकल कर आ सकें ।

प्रश्न- अग्नि दुर्घटना ग्रस्त कमरे का दरवाजा खोलते समय क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए
उत्तर- 1. सावधान रहिये, दरवाजा एकदम मत खोल दीजिए अन्यथा शुद्ध हवा अथवा आक्सीजन पहुँचकर सुलगती आग को भड़का सकती है।
2.यदि किवाड़ आपकी ओर खुलता होतो अपना एक पैर किवाड़ के निचले भाग पर रख कर तथा थोड़ा झुक कर किवाड़ की आड़ में होते हुये, थोड़ा खोल कर अन्दर
झाँक कर देखिये कि आपके किवाड़ खोलने पर आग भड़कती तो नहीं है। क्या जल रहा है और किस दशा में है।
3.यदि किवाड़ बाहर की ओर खुलता है तब दोनों किवाड़ों के बीच में पैर रखकर किवाड़ों को एक दम खुलने से रोकिये और झाँक कर देखिये, पूर्ण रूपेण विश्वास हो
जाने पर ही कि आग बढ़ने या भड़कने की आशंका नहीं है ,तभी दरवाजा खोलिये। दरवाजा खोलने से पहले आग बुझाने के साधन अवश्य तैयार रखिये। खाली हाथ
दरवाजा मत खोलिये।

प्रश्न:- यदि खिड़की का शीशा तोड़ना पड़े तो क्या सावधानीरखोगे ?


उत्तर- जब खिड़की का शीशा तोड़ना पड़े तो शीशे को हमेशा ऊपर की ओर से , कोहनी ऊपर करके फायरमैन्स ऐक्स से तोड़िये ताकि शीशे के टुकड़े हाथ अथवा
पहुॅचे पर न गिरें। खिड़की की चौखट पर से भी शीशे के टुकड़ें साफ कर दिये जायें ताकि निकलते समय पैर न फिसले ।

प्रश्न:-आग बुझाने के कौन-कौन से माध्यम होते हैं,


उत्तर- (अ) पानी-
1. पोर्टेबुल एक्सर्टिग्यू 2. हैण्ड पम्प या स्ट्रप पम्प । 3. होजरील, 4. होज लाइन और पम्प इत्यादि। ।
(ब)फोम
(स) तुरन्त भाप में परिवर्तित होने वाले द्रव्य
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अग्निशमन एवं संरक्षा
(द) कार्बन डाई आक्साइड गैस
(य) इनर्ट गैस
(र) बालू
(ल) ड्राई कै मिकल पाउडर
(व) स्टीम
छोटी-मोटी आगों के लिये :-
(श) ब्लैन्के टिंग (ढॉक कर)
(स) बीटिंग आउट (पीट-पाट कर)
(ह)रिमूवल (हटाकर या छितरा कर)

प्रश्न:- आग के वर्गीकरण से क्या समझते हो? आग कोकितने वर्गों में बाँटा गया है
उत्तर- अग्निशमन में सफलता एवं सुविधा के लिये आग का वर्गीकरण किया गया है। इसे पाँच वर्गों में बांटा गया है।
1. ‘ए’ क्लास फायर (जनरल फायर)
2. 'बी' क्लास फायर (आयल फायर)
3. 'सी' क्लास फायर (गैसफायर)
4. 'डी' क्लास फायर (मैटलफायर)
5. 'ई' क्लास फायर (इलैक्ट्रिकफायर)

प्रश्न:- आग को कितने बर्गों में बांटा गया है? किस वर्ग की आग किस सिद्धान्त से बुझाना उपयुक्त होती है?
उत्तर- 1.क्लास 'ए' फायर- साधारण जलने वाले पदार्थ, जैसे लकड़ी, लकड़ी के फर्नीचर, कपड़ा, कागज इत्यादि घरेलू वस्तुयें। इन पर पानी द्वारा उन्डक
पहुँचाकर आग बुझाई जाती है।
2.क्लास 'बी' फायर –ज्वलन शील द्रवों की आग, जैसे पैट्रोल, तेल, स्प्रिट, वार्निश इत्यादि। इन आगों को फोम या झागों से पानी की महीन फु हार से ,
सी०ओ०टू ०गैस, ड्राई-कै मिकल पाउडर और बालू मिट्टी से बुझाया जाता है ।
3.क्लास 'सी' फायर-गैसकीआग, गैस, प्रेशर के साथ सिलेण्डरों में भरी होती है। जैसे-मीथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन और कु किं ग गैस इत्यादि। सिलैण्डरों को ठण्डा करने के
लिये पानी की फु हार उपयोगी होती है। थोड़ी बहुत फै ली हुई गैस को ढाँकने के लिये फोम , कोई इनर्ट गैस और ड्राई-पाउडर भी प्रयोग किया जाता है। सिलैण्डर से गैस
का निकलना बन्द करना आवश्यक होता है।
4. क्लास 'डी' फायर धातुओं की आग, जैसे-मैग्निशियम, एल्यूमिनियम, सोडियम और जिंक इत्यादि। इन आगों पर पानी भी नहीं ,डाला जाता। बल्कि विशेष तकनीक
और विशेष पाउडर द्वारा बुझाई जाती हैं ।
5.क्लास 'ई' फायर-बिजली के उपकरणों एवं संयन्त्रों की आग। इन पर भी पानी नहीं डाला जाता। बल्कि ऐसे आग बुझानें के पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं ,जो बिजली के
करन्ट से प्रभावित नहीं होते।

प्रश्न:- पानी द्वारा आग बुझाते समय कौन-कौन सी बाते याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1. ब्रॉच की धार को आग के मूल स्थान पर ही फे कियें। लपटोंऔर धुएँ पर मत फे किये।
2. आवश्यकता से अधिक पानी मत फें किये, जो बह कर शेष बचे सामान को भी खराब करे ।
3. आस पास की वस्तुओं का भी ध्यान रखिये कि अधिक गर्म होकर वे भी आग न पकड़ लें, अथवा आग फै लाने में सहायक हों। अतः समय-समय पर इन पर फु हार
डालकर ठण्डक पहुँचाते रहिये ।
4. यदि किसी छत पर आग बुझा रहे हैं ,तो छत पर पानी को रूकने मत दीजिये, अन्यथा छत गिरनेका खतरा हो सकता है।
5. कु छ वस्तुयें पानी को सोखती हैं,तथा फू ल कर बढ़ती हैं,और बजनदार हो जाती है। जैसे जूट, रुई, चाय, अनाज इत्यादि। जूट की गाँठ 40% वरुई 30% वजन
बढ़ा लेती है। यदि ये गॉठे दीवार से मिलकर रखी गई हैं तब फू लकर दीवार को धक्का देकर गिरा सकती हैं।
6. स्टील के गर्डर आग से गर्म होकर बढ़ते हैं तथा दीवार को बाहर की ओर धक्का देते हैं, पानी पड़ने पर सिकु ड़कर अपनी जगह आ जाते हैं। और दीवार बाहर की ओर
ही छोड़ जाते हैं जो खतरनाक होती है। गिर सकती है।
7. बिजली के तारों पर भी ब्रॉच की धार मत डालिये ।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न:- वैन्टीलेशन से क्या समझते हो
उत्तर- आग लगे हुये मकान में से गर्मी, धुआँ और गैस को किसी प्रकार बाहर निकालने वहाँ के वातावरण को सामान्य स्थिति में लाने के लिये जो कार्यवाही की
जाती है उसे वैन्टीलेशन कहते हैं।

प्रश्न:- वैन्टीलेशन करने के मुख्य उद्देश्य क्या हैं,


उत्तर- 1. आग को फै लने से रोकने के लिये आग से उत्पन्न गर्म हवा व धुआँ ऊपर उठता है तथा मकान की छत के पास जमा होता रहता है तत्पश्चात् आस-
पास फै लता है। यदि उसे वहाँ से निकलने का रास्ता नहीं मिलता तो वह वहाँ के वातावरण को भी गर्म कर देता है तथा उस वातावरण की वस्तुओं को भी आग लगा
सकता है।
2.धुएँ से होने वाली हानि को रोकने के लिये कमरे में रूका हुआ धुआँ , कमरे में रखी वस्तुओं को खराब कर देता है। वे उपयोग के योग्य नहीं रहती। मुख्यतःखाने पीने
की सामग्री, मिठाई, फल इत्यादि। पेन्टिंग्स, फर्नीचर्स इत्यादि खराब हो जाते हैं। कु छ चीजें जलने पर जहरीला धुआँ व गैस उत्पन्न करती हैं। जो जीवन को हानि
पहुँचाती है,और लोग घुटकर मर सकते हैं ।
3.फायरमैन को सुविधा पूर्वक कार्य करने के लिये कु छ पदार्थों का धुआँ बहुत खतरनाक होता है ,उसमें रहकर कार्य करना असम्भव प्रतीत होता है। फायरमैन को भारी
असुविधा होती है। वैन्टीलेशन द्वारा धुआँ और गर्मी निकल जाने से वातावरण सामान्य हो जाता है और आग बुझाना भी सुगम हो जाता है ।

प्रश्न:- वैन्टीलेशन करने से पहले क्या-क्या सावधानियाँरखनी चाहिये


उत्तर- 1.दुर्घटनाग्रस्त मकान के अन्दर रहने वालों को बाहर निकलवाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देना चाहिये। हो सकता है कि वैन्टीलेशन का प्रभाव उल्टा पड़े
और मकान में रहने वाले खतरेमें पड़ जायें।
2. दुर्घटना ग्रस्त मकान के आस-पास या उससे मिला हुआ कोई गोदाम, दुकान ऐसी तो नहीं जिसमें रखी वस्तुओं को आग लगने का खतरा हो ।
3. वैन्टीलेशन करने से कहीं आग के और भड़क जाने की तो सम्भावना नहीं है।
4. चार्ज ब्रॉचों को तैयार रखना चाहिये ताकि खतरा होने पर समुचित कार्यवाही की जास के ।
5.आग को बढ़ने से रोकने के लिये पूरा –पूरा प्रबन्ध करके ही वैन्टीलेशन करना चाहिये। तनिक सी अदूरदर्शिता एवं असावधानी से आग नियन्त्रण से बाहर हो सकती
है। अतःयदि कहीं तनिक भी सन्देह हो, तो वैन्टीलेशन नहीं करना चाहिये।

प्रश्न:- वैन्टीलेशन कै से करना चाहिये


उत्तर- 1. दुर्घटनाग्रस्त मकान के सबसे ऊपरी भाग जहाँ गर्म हवा अथवा धुआँ रूकने की सम्भावना हो के रोशन दान खिड़कियाँ इत्यादि खुलवाई जायें।
2. आग के स्थल से नीचे की खिड़कियाँ न खोली जायें।
3. ऊपरी रोशनदानों के शीशे खोल दिये जायें।
4. छत को तोड़ते या खपरैल को खोलते समय हवा का रूखदेखकर बैठना चाहिये। हवा आपकी पीठ की ओर से सामने की हो। यदि सम्भव हो तो लेटकर कार्य
कीजिये। सुविधा रहेगी।
5. यदि कमरे में गैल या जहरीले धुयें की आशंका हो तो वैन्टीलेशन करते समय ब्रीदिंग अपरेटस का प्रयोग आवश्यक है।

प्रश्न:- होज फै लाते समय कौन-कौन सी बाते याद रखनीचाहिये


उत्तर- 1. जहाँ तक सम्भव हो होज को सड़क के एक ओर सीधी लाइनमें फै लाइये।
2.यदि होज को सड़क के दूसरी ओर ले जाना है तब होज रैम्प का प्रयोग कीजिये , अथवा पुलिस की सहायता से यातायात को बन्द कराइये , या दूसरे मार्ग पर मोड़
दीजिये। होज के ऊपर से यातायात मत होने दीजिये।
3. मकान के बाहर कु छ फालतू होज छोड़ कर रखिये, ताकि आवश्यकता पड़ने पर मकान के अन्दर ले जाई जासके ।
4. यदि होज को मकान की दूसरी या अन्य मंजिल पर ले जानाहो तो उसे छोटे से छोटे मार्ग द्वारा पहुचाईये। जीने की बजाय सड़क से निकटवर्ती छज्जे से , या खिड़की
से होज को रस्सी बाँधकर ऊपर खींच लीजिये। पूरी लाइन फै ल जाने पर ही पानी खुलवाइये। पम्प आपरेटर धीरे-धीरे प्रेशर बढ़ायें।

प्रश्न:- मकान गिरने के क्या-क्या लक्षण होते हैं


उत्तर- 1. प्लास्टर, चूना, ईंट, मलवा आदि का गिरना इत्यादि ।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
2. दीवारों का चटक-चटक कर उसमें दरारें पड़ जाना इत्यादि ।
3.दीवार का एक ओर झुक जाना या बाहर की ओर पेटा छोड़ देना इत्यादि ।
4.छत अथवा छत के फर्श का दीवार छोड़ देना। मुख्यतः जहाँ स्टील गार्डर प्रयोग में हों।
5. खिड़की दरवाजो के ऊपर बनी डाटका चटखना, जगह छोड़ देना इत्यादि इत्यादि ।
6.कास्ट आयरन के खम्बों का चटख जाना, झुक जाना अथवा स्थान छोड़ देना इत्यादि ।

प्रश्न:- तेल की आग पर क्या कार्यवाही करनी चाहिये


उत्तर- तेल, पेन्ट, वार्निश, तारकोल, पैट्रोल, स्प्रिट आदि की आग पर पानी मत डालिये। फोम मेकिं ग ब्रॉच द्वारा फोम फै कना चाहिये। पैट्रोल, एल्कोहल, स्प्रिंट के
वैपर्स दूर तक फै ल जाते हैं जो तनिक सी चिंगारी पाकर आग पकड़ लेते हैं। यहाँ फाग ब्रॉच भी उपयोगी हो सकता है।

प्रश्न:- मैग्निशियम की आग पर क्या कार्रवाई करनी चाहिये।


उत्तर- 1. आग पर पानी मत डालिये।
2. ड्राई पाउडर, सुखी बालू, मिट्टी, टाक पाउडर ग्रेफाइड एवं एजबेस्ट्स पाउडर, खराद से निकले कास्ट आयरन का चूर्ण प्रयोग किया जा सकता है।
3. शेष बची धातु को आग के पास से सूखे में हटाइये।

प्रश्न:- तेजाब की आग पर क्या कार्रवाई करनी चाहिये ,


उत्तर- 1. तेजाब पर क्षार (अलकली) डालकर उसे न्यूट्रलाइज्ड कर देना, यानी उसका तेजाबी असर खत्म कर देना चाहिये।
2. होज से ब्रॉच निकालकर खुली होज से अधिक से अधिक पानी डालकर बहा दिया जाय। तेजाब मिले पानी से अन्य वस्तुएँ होज इत्यादि बचाई जायें।
3. तेजाब पर राख भी डाली जा सकती है।
4. यदि तेजाब किसी कमरे में है,तो उसका वैन्टीलेशन कराया जाय।

प्रश्न:- गैस की आग पर क्या कार्रवाई करनी चाहिये


उत्तर- गैस कन्टेनर या गैस सिलैण्डर पर पानी की फु हार डालकर उसकोठण्डा कीजिये। यद्यपि गैस की आग पानी से बुझाई जा सकती है परन्तु उसका सिलैण्डर
से निकलना बन्द करना अति आवश्यक है। अतः वाल्व बन्द कीजिये।

प्रश्न:- आग बुझ जाने पर सामान लपेटते समय क्या-क्या बातें याद रखनी चाहिये
उत्तर- 1. होज पाइप को नियमानुसार लपेटकर बचे हुये सूखे पाइपों सेअलग रखिये।
2. बर्स्ट होज को उल्टा लपेटकर रखिये ताकि उसे मरम्मत के लिये भेजा जा सके ।
3. अन्य उपकरणों को यथा स्थान रखिये। याद रखिये कोई उपकरण घटना स्थल पर पड़ा न रह जाये।
4.होजरील टैंक, अथवा मेन वाटर टैंक को जहाँ तक सम्भव हो घटना स्थल पर ही पानी से भर लेने का प्रयास कीजिये ताकि,अगली सूचना के लिये तैयार मिले।
5. प्रयोग किये गये हाइड्रेन्ट को भली भाँति बन्द कर दीजिये।
6. यदि किसी स्टेटिक टैंक से पानी लिया गया हो तो उसे भी भरवाने की व्यवस्था कीजिये।
7. आग से बचाये गये किसी मूल्य वान सामान जैसे,जेवरात,हथियार, दस्तावेजी कागजात इत्यादि को एक तालिका बनाकर मौहल्ले के सज्जन व्यक्तियों अथवा पुलिस
की उपस्थिति में उसके असल हकदार को सौंप दिया जाय।
8.यदि कोई ताला खोला या तोड़ा गया हो और घर या सामान का मालिक उपस्थित न होतो उसका चार्ज भी पुलिस को दिया जाये।

प्रश्न:- घटना स्थल पर यदि कोई लाश मिले तो क्या कियाजायेगा


उत्तर- आग में यदि कोई लाश मिलती है तो पुलिस को सूचित किया जायेगा। पुलिस के आने तक घटना स्थल नहीं छोड़ा जायेगा। घटना स्थल परअन्य किसी को
मत जाने दीजिये। घटना स्थल की किसी वस्तु को भी हटाने म दीजिये। लाश मिलने पर आग बुझाते समय सतर्क तापूर्वक कार्य कीजिये। ताकि घटनास्थल की कम से
कम उलट-पुलट हो और मृत्यु का कारण ज्ञात करने में असुविधा न हो।

प्रश्न:- फायर स्टेशन पर वापस लौटकर क्या करना चाहिये ?

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उत्तर- 1. पम्प, मशीनों को अच्छी तरह से धुलवाइये। यदि पम्प तालाब , नहर आदि पर प्रयोग किये गये हों अथवा फोम कम्पाउण्ड के साथ प्रयोग किये गये हों ,
हाइड्रेन्ट से कु छ देर पम्पिंग करके मशीनों व उपकरणों को भली-भाँति साफ कराइये।
2. समस्त मशीनों में तेल पानी इत्यादि भर कर तैयार रखिये।
3.प्रयोग किये गये होज पाइप धुलवाइये, टैस्ट कीजिये, तत्पश्चात त्सुखाने के लिये टॉगिये। उनके स्थान पर सूखे होज टर्नआउट मशीन पर रखिये।
4. होजफिटिंग, स्माल गेयर एवं अन्य उपकरण भी चैक कीजिये। उनकी त्रुटियों को दूर कीजिये अथवा बदलकर सही उपकरण रखिये। त्रुटिपूर्ण उपकरण मरम्मत हेतु
भेजिये।

प्रश्न:- आग में फँ से व्यक्ति को बचाने की कार्यवाही कै से की जायेगी ?


उत्तर- 1. सर्वप्रथम ज्ञात कीजिये कि दुर्घटनाग्रस्त प्राणी कहाँ या किसखण्ड में हैं। अथवा अन्तिम बार कहाँ देखे गये थे।
2. यदि वे खिड़की दरवाजों बालकनी या छत पर दिखाई दें तो सर्वप्रथम उन्हें ढाड़स व विश्वास दिलाइये कि वे घबराएँ नहीं। उन्हें निकालने का प्रयास किया जा रहा
है।
3. जहाँ तक सम्भव हो उसी स्थान पर लैडर लगाइये जहाँ वे अन्तिम बार देखे गये थे।
4. होज लाइन बिछा कर पानी चालू कराइये एवं उस ओर बढने वाली आग को शान्त कीजिये अथवा फै लने से रोकिये।
5. बचाव कार्य के लिये जाने वाले फायर मैनों की ब्रॉच की फु हारों द्वारा आग की लपटों से रक्षा कीजिये।
6.खिड़की दरवाजों से यदि धुँआ निकल रहा है,तो ब्राँच की फु हार द्वारा उसे भी साफ करने का प्रयास कीजिये।
7. सम्भव हो तो पानी चालू करने के पश्चात्वैन्टीलेशन कराइये। ताकि बचाव कार्य में सुविधा हो।
8. अँधेरे में कार्य करना पड़े तो प्रकाश का भी प्रबन्ध कराइये।
9. ऐसे व्यक्तियों के पास पहुँच कर उन्हें सान्त्वना दीजिये।
10.यदि सीढ़ी के सहारे उतारना पड़े तो एक फायरमैन सीढ़ी पर उतरकर रास्ता दिखाये और फँ से व्यक्तियों को अपने पीछे आने को कहे। तत्पश्चात्दूसरा फायरमैन
उनके पीछे-पीछे उतरे और उन्हें साहस बँधाता रहे।
11. बेहोश व्यक्ति को फायरमैन लिफ्ट द्वारा उतारिये।
12. भारी व्यक्ति को लोअरिंग लाइन में चेयर नाट द्वारा उतारा जाये।
13. बच्चों को गोद में लेकर उतारा जाये।

प्रश्न:- धुँए से भरे कमरे में कै से काम किया जाता है,


उत्तर- धुयें से भरे कमरे में घुटने और हथेली के बल चलिये। अपने मुँह को कमरे के फर्श के निकट रखिये। हाथ के उल्टी ओर से आगे की ओर टटोलिये। और
आने वाले अवरोध को हटाते जाइये।

प्रश्न:- धुएँ से भरे कमरे की तलाशी कै से लेंगे


उत्तर- कमरे में घुसने के पश्चात् एक ओर की दीवार के सहारे सहारेचारों ओर (घुटने व हथेली के बल चलकर तथा हाथ के उल्टी ओर से आगे की ओर टटोलते
हुये) चक्कर लगाया जाये। तत्पश्चात् बीच में कर्णवत (डाइगनली) देखकर निश्चित कर लिया जाय कि कमरे का कोई भाग देखे बिना नहीं रहा। जहाँ तक सम्भव हो दो
व्यक्ति एक साथ जाकर तलाशी लें। दो व्यक्तियों के जाने पर एक दूसरे को विश्वास एवं साहस मिलेगा तथा तलाशी कार्य में शीघ्रता होगी।
आग में फँ से व्यक्ति (मुख्यतः बच्चे) बिस्तरों में लिपटकर, पलंग के ऊपर पलंग के नीचे, मेज के ऊपर, अल्मारी में, खिड़की पर छु प जाते हैं। अतः तलाशकरते समय
इन स्थानों को भली भाँति देखा जाना चाहिये।
तलाशी में यदि कोई बेहोश व्यक्ति मिल जाये तो उसे चित लिटाकर उस के दोनों हाथ कलाइयों पर रूमाल आदि से बाँधिये। तत्पश्चात् उसके ऊपर झुककर उसके बँधे
हाथों में से अपना सिर डालकर एक हाथ से व्यक्ति को उठाते हये घुटने व हथेलियों के बल चलते हुये उसे साथ-साथ घसीटकर बाहर निकाला जाना चाहिये।

प्रश्न:- बेहोश व्यक्ति को जीने से उतारनेकी तरकीबबताइये


उत्तर- मरीज को चित लिटाइये। उसका सिर जीने की ओर रहे, स्वयं जीने की दो सीढ़ी नीचे आकर मरीज की ओर मुँह करके अपने हाथों को मरीज की बगलों में
नीचे से डालकर उसे इस प्रकार उठाइये कि उसका सिर आपके बाजू पर टिक जाये। तत्पश्चात् धीरे -धीरे जीने से इसी स्थिति में उतरते हुये मरीज को भी नीचे की
ओर घसीटते हुये उतारिये।

प्रश्न:- रस्सी के सहारे बेहाश व्यक्ति को कै से उतारा जाता हैं

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उत्तर- लोअरिंग लाइन द्वारा यदि लोअरिंग लाइन उपलब्ध नहीं हैं तो लांग लाइन में ही मध्य में चैयरनाट लगाकर उसके एक सिरे को लोअरिंग तथा दूसरे को गाई
लाइन की भाँति प्रयोग कीजिये।
मरीज को चैयरनाट में फॉसिए और नीचे उतारिये। गाई लाइन को नीचे डालिये। रस्सी को हाथ में फिसलने मत दीजिये। बल्कि धीरे-धीरे एक हाथ से दूसरे हाथ द्वारा
बढ़ाइये। हो सके तो किसी स्थिर वस्तु में लपेटकर निकालिये। खिड़की या मुण्डेर की नुकीली धारों में रस्सी को घिसटने से बचाने के लिये उन पर बोरी या टाट डाल
दीजिये। नीचे वाला व्यक्ति गाई लाइन से मरीज को दीवार से घिसटने से बचाइये।

सालवेज

सालवेज
'फायर ब्रिगेड के रूप में हमारा प्राथमिक कार्य आग पीड़ितों और उनके पालतू जानवरों को बचाना है, आग से लड़ना और आग को फै लने से रोकना है। लेकिन आग के दौरान
प्राथमिक उपचार आग के बाद प्राथमिक उपचार के बिना नहीं हो सकता।

प्रश्न:- सालवेज से क्या समझते हो


उत्तर- अग्नि दुर्घटना के समय आग से सीधे जलने के अतिरिक्त अन्य कारणों जैसे गर्मी, धुआ, पानी और मलवा आदि गिरने से होने वाले नुकसान को रोकने या
कम करने को फायर सर्विस में सालवेज कहते हैं।
कभी-कभी बचाव समन्वयक सुनते हैं कि अग्निशामक सोचते हैं कि हम आते हैं और सब कु छ साफ करते हैं। हम आते हैं और अग्नि पीड़ित की बीमा कं पनी की ओर से
कार्रवाई करते हैं। हम देखते हैं कि नुकसान न बढ़े और इसके लिए सफाई एजेंसी को बुलाएं। लेकिन हम वह नहीं हैं जो सफाई करते हैं; बीमा कं पनी इसका ख्याल
रखती है।
हम स्थिति को स्थिर करते हैं। जिसमें शामिल है, उदाहरण के लिए, बहुत गंभीर प्रदूषण के कारण एक इमारत पर चढ़ाई की जा रही है। जब क्षति कम गंभीर होती है, तो
हम देखते हैं कि आग की गंध दूर हो जाती है, कि जगह हवादार हो जाती है या पानी निकल जाता है। हम मूल्यवान वस्तुओं को बाद में साफ करने के उद्देश्य से
भंडारण में रखते हैं। कु छ मामलों में घटना स्थल पर सीमित संख्या में कमरों की सफाई की जाती है, उदाहरण के लिए के वल रसोई और शयनकक्ष, ताकि आग पीड़ित
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अपने घर में रह सकें ।
किसी फर्म या दुकान में आग लगने का परिणाम अक्सर कु छ समय के लिए बंद करना पड़ता है, जिसका अर्थ है कि उत्पादन या बिक्री ठप हो गई है। इसमें जितना
अधिक समय लगेगा, दिवालिया होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। फिर साल्वेज यह देखता है कि बीमा कं पनी को जल्द से जल्द बुलाया जाएगा और व्यवसाय
के इस रुकावट को सीमित करने के लिए उपाय किए जाते हैं। एक उदाहरण के रूप में, आप क्लोराइड की मात्रा को मापने, निरार्द्रीकरण करने और पानी निकालने के
बारे में सोच सकते हैं।

प्रश्न:- सालवेज का अग्नि शमन में क्या उद्देश्य है


उत्तर- फायर सर्विस का काम जहाँ आग बुझाना है वहाँ यह भी ध्यानरखना आवश्यक है कि दुर्घटना में कम से कम हानि हो और अधिक से अधिकसम्पत्ति को
बचाया जा सके । इसी उद्देश्य से सालवेज वर्क किया जाता है।
साल्वेज कोऑर्डिनेटर के मौके पर पहुंचने के बाद साल्वेज फाउंडेशन काम करना शुरू कर देता है। ऐसा अक्सर तब होगा जब आपने (लगभग) बुझाने का कार्य पूरा कर लिया
हो या जब आग नियंत्रण में हो। सहायता प्रदान करते समय, बचाव समन्वयक, यदि आवश्यक हो, अग्निशमन अधिकारी के साथ नियमित संपर्क बनाए रखेगा। साथ में वे चर्चा
करते हैं और निर्धारित करते हैं कि किन गतिविधियों को प्राथमिकता दी जाएगी और महत्वपूर्ण मामलों पर एक दूसरे को तैनात रखते हैं। 

प्रश्न:- सालवेज में कौन-कौन से उपकरण उपयोगी होते हैं


उत्तर- सालवेज शीट्स, डॉलीज, ड्रेन राड, होपर्स, कै नवास बके ट, स्कू प, साडस्ट, चीजेलकोल्ड, हैमर, क्रोबार, शावेल, हैण्ड सॉ, लार्ज एक्स, ऑगर एजबेस्टस
ग्लब्ज रबर ग्लब्ज, प्रकार की कीलें। लैम्प, सौ की रस्सी, झाडू , स्ट्रेनर सैट, विभिन्न प्रकार की कीले।

प्रश्न:- साल्वेज शीट किस-किस आकार की होती हैं


उत्तर- 10' x 10’’ (3 x 3 मी०), 10' x 12’ (‘3 x 3.6 मी०), 12’x 12’ (3.6 x 3.6 मी) और 15' x 12' (4.5x3.6 मी.) की
होती हैं।कभी-कभी 18 x 12 (5.49 x 3.66 मी॰) की होती है।

प्रश्न:- डालीज किसे कहते हैं


उत्तर- डिलीवरी होज के छोटे-छोटे टुकड़ों 3 या 6 फीट (9.14 मि०या 18.3 मि०मी०) लम्बी टाट की थेलियों में रेत या लकड़ी का बुरादा भरकर छोटे-
छोटे तकिये जैसे बना लिये जाते हैं। इनको ही डॉलीज कहते हैं।

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प्रश्न:- होपर्स से क्या समझते हो,
उत्तर- कै नवास के बने हुये बड़े-बड़े कीप (फनल) जैसे होते हैं। इनमें नीचे की ओर फीमेल कपलिंग फिट होती है। जिसमें होज फिट करके पानी बाहरनिकाला जा
सकता है।

प्रश्न:- सालवेज के दृष्टिकोण से अग्निशमन के समय कौन-कौन सी सावधानी बरतनी चाहिये .

उत्तर- 1. आग पर इस प्रकार आक्रमण किया जाये कि कम से कम नुकसान हो , कम से कम तोड़ फोड़ की जाय, ब्रॉच को सम्भाल कर प्रयोग किया जाय और
आवश्यकता से अधिक पानी न बहाया जाये।
2. फालतू पानी को जल्द से जल्द निकाल दिया जाये ताकि वहरूककर या बहकर भवन की अन्य वस्तुओं को खराब न करने पाये।
3.आग से उत्पन्न धुआँ और गर्मी को भवन से शीघ्र बाहर निकालने का प्रबन्ध किया जाये ता कि वह रूक कर भवन अथवा उसमें रखे सामान को खराब न करने पाये।
4. बचे-खुचे सामान को ढाँक कर, पानी, गर्मी और धुआँ तथा मलवे से बचाया जाये। कीमती सामान, आवश्यक कागजात, इत्यादि को प्राथमिकता दी जाये।

प्रश्न:- आग बुझाते समय सालवेज वर्क कै से किया जायेगा


उत्तर- कार्य शुरू करने से पहले यहाँ भी सर्वेक्षण आवश्यक है कि किस प्रकार की आग है तथा क्या -क्या सामग्री क्षतिग्रस्त है। किन-किन सालवेज गेयर्स की
आवश्यकता पड़ेगी। इत्यादि-इत्यादि । तत्पश्चात्,
1. वस्तुओं को ढॉकना (कवरिंगअप) – सर्व प्रथम आस-पास की वस्तुओं को बचाने के लिये जो वस्तुयें हटाई जा सकती हैं , उन्हें सावधानी पूर्वक हटाइये। बड़ी-
बडी वस्तुएँ फर्नीचर आदि एक स्थान पर एकट्ठा करके सालवेज शीट से भली -भाँति ढाँक दीजिये। कई मंजिलो वाले भवन की आग पर दुर्घटनाग्रस्त मंजिल से ठीक
नीचे की मंजिल के सामान को भी भली भाँति ढाँकिये। मूल्यवान वस्तुओं का विशेष ध्यान रखिये।
2.फालतू रूके पानी का निकालना-ढाकने के पश्चात्फालतू वहे हुये पानी को जल्द से जल्द भवन से निकालने की व्यवस्था कीजिये। यदि नाली पर नाले, मोरियाँ
वगैरा बन्द होगई हों,तो उन्हें खुलवाइये, जीने, लिफ्टशाफ्ट, इत्यादिका ध्यान रखिये।
3.फालतू पानी का बहना रोकना- फालतू स्प्रिंक्लर हैड या फटे हुये पाइप वगैरा से पानी बह रहा हो तो मेन वाल्व बन्द करा दीजिये।
4. धुयें से होने वाली हानि को कम करना- धुयें के कारण भी खाने पीने की वस्तुएँ,रेशमी व सिल्की कपड़े इत्यादि प्रयोग के योग्य नहीं रहते। धुआँ बाहर करने के लिये
विधिवत् वेन्टीलेशन कराइये।

प्रश्न:- आग बुझ जाने के पश्चात् सालवेज वर्क कै से कियाजाता है


उत्तर- 1. सुनिश्चित कीजिये कि आग पूर्णरूप से बुझाई जा चुकी है। उसके फिर से भड़क उठने की सम्भावना नहीं हैं।
2. बिखरी वस्तुओं को इक्ट्ठा कीजिये।
3.मूल्य वान वस्तुओं जेवर, जवाहरात, शस्त्र और मूल्यवान दस्तावेज आदि मिलें तो उनकी फहरिस्त बना कर मोहल्ले के सज्जन पुरूषों के सामने उसके मालिक को
सौंप दीजिये।
4.सालवेज शीट हटाना जैसे ही पानी का गिराना बन्द हो जाय – सालवेज शीट को सावधानी पूर्वक हटा लीजिये । वस्तुओं को हवा लगने दीजिये। ताकि उनमें सीलन
नर हे।
5. बुरादा बिछाना – जैसे ही फर्श पर का पानी निकल जाय, जहाँतक सम्भव हो कचरे को हटाकर एक तरफ कर दीजिये। तथा बचे खुचे पानी को बुरादा बिछाकर
सोखने दीजिये। तत्पश्चात् बुरादा भी उठा लीजिये।
6.सुखा ना भीगी वस्तुओं को सुखाइये। मुख्यतःमशीनरीज जो कि धुयें व पानी से शीघ्र खराब हो सकती है। सालवेज शीट हटाकर उन्हें अच्छी तरह पोंछ दीजिये व
सूखने दीजिये । यदि मशीन मालिक की राय हो तो इस पर तेल का हल्का हाथ लगवाया जा सकता है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
7.यदि अग्निस्थल पर कोई लाश मिले अथवा अन्य प्रकार की सन्देहात्मक आग पर ऐसी वस्तुओं को जिन से कि छान-बीन में कु छ सहायता मिल सकती हो, मत
छेड़िये और न इधर-उधर हटाइये।
8. जहाँ तक सम्भव हो सके घटनास्थल को इस स्थिति में छोड़िये जिससे फायर सर्विस की उच्चकोटि की कार्यक्षमता प्रकट हो।

ग्रामीण क्षेत्रों की आग

प्रश्न:- नगर और ग्रामीण क्षेत्रों की आग में क्या अन्तर होता हैं


उत्तर- 1. ग्रामों के मकान शीघ्र आग पकड़ने वाले पदार्थों जैसे -बॉस, बल्ली, पत्ती इत्यादि से बने होते हैं। इनमें बड़ी जल्दी आग लगती है।
2. हवा की तेजी और चारों और खुला स्थान होने के कारण आग शीघ्र ही फै ल जाती है।
3. आग बुझाने के साधनों की कमी। मुख्यतःगर्मियों में गाँव के तालाब, पोखर सूख जाया करते हैं। अथवा तालाब, पोखर इत्यादि का गाँव से दूर होना।
4. फायर ब्रिगेड को समय पर सूचना न देना। सूचना साधनों की कमी या जब आग नियन्त्रण से बाहर हो जाती है तब सूचना देना।
5. गाँव तक फायर ब्रिगेड की मशीनों के पहुचनें के रास्ते न होना ।

प्रश्न:- गाँव में आग लगने के मुख्य कारण क्या हैं?


उत्तर- 1. रसोईघर अथवा खाना पकाने का स्थान समुचित न होना। फँ स के छप्पर के नीचे होना। चूल्हे से उठी चिंगारी का फू स के छप्पर पर गिरकर आग लगा
देना।
2. चुल्हें की आग को पूर्ण रूप से न बुझाना। तनिक सी हवा से चिंगारी उठकर आग लगा देना।
3. चुल्हे से निकली गर्म राख को कू ड़े के ढेर पर डाल देना।
4. जाड़ों में हाथ तापने वाले अलाव को भली-भाँति बुझा कर या दबाकर न छोड़ना।
5. दिया, चिराग, कु प्पी आदि को जलता हुआ छोड़कर सो जाना।
6. हुक्का पीने के बाद चिलम को बिना बुझाये छोड़ ना।
7. खलिहान को सड़क या रेलवे लाइन के किनारे लगाना।
8. खलिहान का विजली के तारों अथवा टान्सफार्मर के पोलों के नीचे लगाना।
9. रसोई घर के निकट खलिहान बनाना। कर्बी, कण्डों आदि को छत पर रखना।
10. दीवाली और बारातों में आतिशबाजी का खुलकर प्रयोग करना।
11. खेत के पास ही सूखी झाड़ी, घास, पताई आदि का जलाना।
12. नए अनाज के गट्ठों की बड़े-बड़े ढेर में लगाना। इस में स्वयं आग लग जाना।
13. आपसी दुश्मनी के कारण भी आग लगादी जाती है।
14. खलिहान के पास ही मोटे शीशे बोतल आदि के टुकड़े आदि पड़े रहना।
15. थ्रेसर में तेल आदिका न डालना उस मे नम और हरे फलों का प्रयोग करना।

प्रश्न:- ग्रामीण क्षेत्रों की आग के लिये कौन-कौन से उपकरण उपयोगी होते हैं?


उत्तर- 1. फायर बैट 2. ड्रेग हुक (पाँचहा) 3. पिच फोर्क (कांता)
4.हेनाइफ (हँसुआ) 5. फायर हुक (लग्गी) 6. स्लेशर (बांका)
7.स्पेड(फावडा) 8. शावेल (बेलचा) 9. मटक (कु दाल)

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10.स्ट्रप पम्प 11. बके ट्स (बाल्टियॉ) 12. नैप सैक टैंक विद पम्प 13. पानी खींच ने के लिये रस्सियाँ।

प्रश्न:- गाँव में आग की सूचना मिलने पर कौन-कौन सी अतिरिक्त सूचनायें ज्ञात करना आवश्यक है?
उत्तर- 1. गाँव में पानी के क्या साधन है- तालाब, नहर, जोहड इत्यादि ।
2. पानी के साधन आग से या गाँव से कितने दूर हैं।
3. इन पर फायर इंजन अथवा पम्प पहुँच सकते हैं या नहीं।
4. घटना स्थल तक फायर सर्विस की मशीनें पहुँच सकती है, किन हीं, रास्ता कै सा है। कच्चा या पक्का।

प्रश्न:- ग्रामीण क्षेत्र की आग बुझाते समय कौन-कौन सेउपाय उपयोगी होते हैं
उत्तर- 1. घरों की आगशहर की भाँति ही बुझाई जाती है। आक्रमण ऐसेस्थल से किया जाय जिससे शेष बचे गाँव को सुरक्षित रखा जा सके । हवा के रूख के मध्य
से आक्रमण करना उपयुक्त होता है।
2. घास, झाड़ियाँ अथवा पके खेत को बीटिंग मैथड से बुझाना चाहिये। खेत की मैढ़ या सड़क का किनारा आदि से बीटिंग प्रारम्भ किया जाय।
3.खेतों में आग फै लने से बचाने के लिये बीच में ट्रैक्टर आदि से खुद वाकर आग का बढ़ना रोका जा सकता है। यदि ट्रैक्टर न हो तो बैलगाड़ियाँ आदि दौड़ा कर भी
यह कार्य किया जास कता है।
4. बेलचा ,कु दाल,आदि से भी नाली खोद कर आग का बढ़ना रोका जा सकता है।

प्रश्न:- काउन्टर फायर से क्या समझते हो


उत्तर- जंगल की आग बुझाने के लिये एक विशेष तरीका है। इसमें आग का बढ़ना रोकने के लिये एक अन्य आग लगाकर कार्यवाही करते हैं इसे 'काउन्टर फायर'
कहते हैं। अर्थात आग द्वारा ही आग बुझाना। परन्तु इसमें बडी सूझबूझ तथा अनुभव की आवश्यकता है। हवा की गति आग की गति , आग का बढ़ना इत्यादि। अनेक
बातों पर विचार करके ही दूसरी आग लगाई जाती है। इसे प्रशिक्षित अधिकारियों द्वारा ही प्रयोग किया जाता है। हर व्यक्ति का नहीं है, अन्यथा आग नियन्त्रण से बाहर
भी हो सकती है।

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स्पेशल सर्विस काल

प्रश्न:- स्पेशल सर्विस काल से क्या समझते हो - उदाहरण सहित समझाओ ,


उत्तर- अग्नि दुर्घटना के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से किसी प्राणी के जीवन के खतरे में होने पर उसे बचाने के लिये जब फायर सर्विस की सेवाओं की
आवश्यकता पड़ती है और उसे बुलाया जाता है। ऐसी पुकार को स्पेशल सर्विस काल कहते हैं। जैसे-
01- मकान के गिरने पर उसमें दबे हुये प्राणियों को निकालने के लिये।
02- कु एं में गिरे प्राणी को निकालने के लिये।
03- नदी, तालाब में डू बे व्यक्ति को निकालने के लिये।
04- सीवर (गन्दा-नाला) में गिरे या फँ से व्यक्ति को निकालने के लिये।
05- लिफ्ट में फँ से व्यक्ति या व्यक्तियों को निकालने के लिये।
06 - किसी रोड एक्सीडेन्ट में ग्रस्त व्यक्तियों को निकालने के लिये।
07 - अन्य प्रकार के खतरों में फँ से व्यक्तियों को निकालने के लिये।

प्रश्न:- ध्वस्त भवन से बचाव कार्य में सर्वे का क्या महत्व है ।


उत्तर- दुर्घटना स्थल पर पहुँचते ही दुर्घटना का बारीकी से अध्ययन करना चाहिये, कि वह किस प्रकार घटित हुई,कितने व्यक्ति दुर्घटना ग्रस्त हुए,उन्हें किस तरह
शीघ्रातिशीघ्र बचाया जा सकता है। कौन-कौन सी समस्यायें है या आयेंगी इत्यादि। इस प्रकार के अध्ययन को ही सर्वेक्षण कहते हैं। दूसरे शब्दों में-
सर्वे या सर्वेक्षण उस सिलसिले वार कार्यवाही को कहते है जिसके द्वारा दुर्घटनाका यथार्थ (सही स्थिति) शीघ्रातिशीघ्र निर्धारित किया जा सके । एवं बचाव कार्य को
सफलता पूर्वक सम्पन्न करने की योजना बनाई जा सके । सूझबूझ एवं चतुराई से किया सर्वेक्षण ही सफलता की कुं जी है।

प्रश्न:- सर्वेक्षण किस प्रकार किया जाता है ।


उत्तर- सर्वेक्षण की कार्य विधि दो भागों में विभक्त हैं
1. सूचना एकत्रित करना।
2. स्वयं देखना, मनन एवं विचार करना । अर्थात् -
सर्वप्रथम दुघर्टना सम्बन्धी सूचना एकत्रित कीजिये। जैसे दुर्घटना का क्षेत्र, दुर्घटनाग्रस्त प्राणियों का विवरण, संख्या, अन्तिम बार कहाँ देखे गये। यदि कोई सदस्य
बचगया है,तो उससे भी पूँछ ताछ कीजिये। भवन के आस-पास कोई खतरा, पैट्रोलस्टोर, या अन्य विस्फोटक स्थान इत्यादि हों तो ज्ञात करें।
उपरोक्त सूचनायें प्राप्त करने के पश्चात् स्वयं देखना व मनन करना भी परम आवश्यक है। अर्थात् जो सूचनायें प्राप्त हुई हैं वे कहाँ तक सही है। घबराहट या अटकल से
तो नहीं बताई गयीं। क्षतिग्रस्त भवन में कमरे,दालान,तहखाना,आँगन इत्यादि पहचानना भवन के ध्वस्त होने का रूप वे 'ए' शेप 'वी' शेप "लीन टु " अथवा 'टोटल
कौलेप्स' हुये हैं। भवन का कोई भाग खतरनाक ढंग से अधर में लटका हो,जो तनिक से हिलने डु लने से ही गिर पड़े। कोई आवश्यक सेवायें नल, बिजली, गैस क्षतिग्रस्त
तो नहीं। नल का पानी मलवे में तो नहीं जा रहा। गैस की गन्ध या कोई अन्य खतरा।
उपरोक्त बाते शान्तचित्त होकर बड़ी सूझबूझ और अनुभव जाती है। तत्पश्चात् बचाव कार्य आरम्भ किया जाता है।

प्रश्न:- रैस्कू य बाई स्टेजेज से क्या तात्पर्य है ।


उत्तर- इसका अर्थ है बचाव कार्य को एक सुनियोजित ढंग से करना,ताकि कोई मामूली सा स्थान भी अनदेखे न रह जाये और किसी व्यक्ति के ध्वस्त भवन में
फँ से रहने की सम्भावना नहीं रहे।
समस्त बचाव कार्य को के वल पाँच श्रेणियों में क्रमानुसार किया जाता है-
1.मलवे के ऊपर पड़े हताहतों को हटाना,उनसे सूचनायें प्राप्तकरना।
2.साधारण रूप में क्षति हुये भवनों अथवा साधारण रूप में दवे हुये हताहतों को हटाना।
3.ध्वस्त भवन में ऐसे स्थान की खोज करना, जहाँ हता-हतों के जीवित रहने की सम्भावना है।

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4.चुने हुये स्थानों से मलवा हटाकर हताहतों की खोज।
5.मलवे को हटाकर हता-हतों को खोजना।

प्रश्न:- शोरिंग से क्या समझते हो ।


उत्तर- भवन में किसी कमजोर झुके हुये, अथवा गिरने जा रहे भाग को लकड़ी की सोटों, धन्नियों अथवा धुम्मी को लगाकर मजबूत करने अथवा गिरने से रोकने के
लिये जो अड़वार लगाई जाती है उसे अंग्रेजी में शोरिंग कहते हैं। शोरिंग तीन प्रकार की होती है
1. रैकिं ग शोर (तिरछी अड़वार)
2. फ्लाइंग शोर (पडी अड़वार)
3. डैड शोर (खड़ी अड़वार)

प्रश्न:- ध्वस्त भवन में प्रवेश से पहले क्या-क्या सावधानियाँरखनी चाहिये ।


उत्तर- 1.देखिये कि भवन की वनावट किस प्रकार की थी व किस भाँति ध्वस्त हुआ है।
2.भवन का कोई भाग, दीवार, छत इत्यादि खतरनाक स्थिति में हो तो उन्हें टैम्परेरी शोरिंग (अड़वार) द्वारा रोकिये।
3.पानी, बिजली, गैस इत्यादि आवश्यक सेवायें क्षतिग्रस्त हुई हों तो उन्हें बन्द करना आवश्यक है।
4.स्टील हैलमेट पहन कर ही कार्य कीजिये।

प्रश्न:- ध्वस्त भवन में प्रवेश के समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिये ।
उत्तर- 1.स्टील हेलमेट पहनकर ही ध्वस्त मकान में जाइये।
2.जहाँ तक सम्भव हो जोड़ी-जोड़ी जाइये।
3.दरवाजों या अन्य वस्तुओं को मत छेड़िये। सम्भव हो तो खुली खिड़कियों से जाइये।टू टे शीशों से सावधान रहिये।
4.दीवार के सहारे-सहारे चलिये अँधेरे या संकरे स्थान में जाना हो, तो कमर में पाकिट लाइन बाँधकर जाइये।
5.सूने स्थानों में बिना साथियों को बताये मत जाइये।
6.आवाज़ दीजिये और शान्ति पूर्वक सुनिये,कि कहीं से कोई आवाज, कराहट, रोने-सिसकने या कराहने की आवाज आती है।
7.गैस या अन्य विशेष गन्ध महसूस हो तो उससे सतर्क रहें ।
8.क्षतिग्रस्त दीवारों, बिजली के तारों व अन्य वस्तुओं से सावधान रहिये।

प्रश्न:- ध्वस्त भवन में कार्य करते समय क्या-क्या सावधानियाँबरतेगें ।


उत्तर- 1. हमेशा स्टील हैलमेट पहने रहिये--
2. दीवार के सहारे सहारे चलिये।
3. टूटे जीने पर जाना हो तो दीवार के सहारे सहारे जाइये।
4. जहाँ तक सम्भव हो मलवे से दूर रहिये। मलवे पर मत चढिये।
5. मलबे से निकली किसी लकड़ी, बॉस बल्ली आदि को बिना सोचे समझे मत छेड़िये।
6. बिजली के तारों को नंगे हाथों मत छु इये।
7. गैस आदि की गन्ध मालूम होने पर माचिस मत जलाइये। धूम्रपान भी मत कीजिये ।
8. शान्त होकर किसी आने वाली आवाज जैसे-सिसकना, कराहना-आदि को ध्यान पूर्वक सुनिये।
9.मलवा हटाते समय तेज धार वाले उपकरण (गैती, फावड़ा) प्रयोग में विशेष सावधानी बरतिये। जहाँ हताहत के होने की के सम्भावना हो वहाँ हाथों द्वारा हो मलबा
हटाइये।
10. यदि मलवे के अन्दर फँ से व्यक्ति सचेत हो तो बचाव कार्य करते समय उनको साहस ढाँडस बँधाये रखिये। हो सके तो गर्म चाय पिलाइये। स्ट्रैचर तैयार रखिये तथा
तुरन्त अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था कीजिये।
11.वचाव कार्य करते समय किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं करनी चाहिये। मरीजों की चोट –फें ट की बाबत या उस के खतरे की बाबत बात मत कीजिये। हो सकता है,
कि आप मरीज को मुर्दा या अचेत समझते हों, जब कि वह सचेत अवस्था में हो और आप की कहीं बातें सुन रहा हो। उसे सदमा पहुँचा सकता है। जो कि उसे स्वस्थ
हो ने में आड़े आस-कता है।
12. मरीज को निकालने के पश्चात् आवश्यक फर्स्ट एड दीजिये और अस्पताल पहुचाइये।

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प्रश्न:- कु एं में गिरे प्राणी को निकालने से पहले सर्वेक्षण में क्या बात देखोगे
उत्तर- 1. कौन गिरा है? आदमी, औरत, बच्चा या कोई जानवर।
2. वह जीवित है, अचेत अथवा मृत है। दिखाई देर हा है,या डू ब गया है।
3. किसी ने गिरते हुये देखा व किस समय देखा गया है।
4. कु आँ प्रयोग में आता है,अथवा वर्षों से बेकार पड़ा है। उपरोक्त सूचना यें प्राप्त करने के पश्चात्स्वयं देखियें और मनन कीजिये।
5. कु ऐं की दशा, पक्का है, कच्चा है ,अथवा सूखा है,जर्जर अवस्था में है।
6. कु ऐं की घिर्री आदि है। वह प्रयोग के योग्य है,किन हीं यानी गिरे हुए प्राणी को निकालने में सहायक होसकती है,या नहीं। यदि घिरीं नहीं है, तो ट्राई पॉड बनाकर
कार्य करना होगा।
7.यदि गिरा हुआ प्राणी बेहोश है तो कु ऐं में गैस आदि तो नहीं हैं। कु ऐं में पानी न होने अथवा बहुत दिनों से प्रयोग में न लाये जाने के कारण खतरनाक गैसें बन जाया
करती हैं।
8. बचाव कार्य के लिये किन-किन उपकरणों की आवश्यकता पड़ेगी। वे आपके पास या मँगाने पड़ेंगे।

प्रश्न:- कु ऐं में गैस होने की सम्भावना कै से ज्ञात करेंगे


उत्तर- 1. सेफ्टी लैम्प डालकर गैस की उपस्थिति ज्ञात की जा सकती है।
2. कलई दार लोटा, सफे द चमकदार सिक्के यदि कु ऐ में बाँध कर डाले जायें तो गैसों के कारण ये काले पड़ जा या करते हैं।
3.एक पिंजरे में चूहा या चिड़िया बन्द करके कु ऐं में नीचे उतारकर देखने से भी पता चल सकता है। ये जानवर बेहोश या मर सकते हैं।
4. पेड की हरी ठहनी डालने पर भी वे मुरझाई हुई या झुलसी हुई निकलती हैं।
5.जलती हुई लालटेन डालने पर सी०ओ०टू० गैस होने के कारण बुझ जाया करती है परन्तु अन्य ज्वलन शील गैस होने पर यह खतरनाक भी हो सकती है।

प्रश्न:- यदि कु ऐं में गैस होने की सम्भावना हो तो क्या-क्याकरना चाहिये


उत्तर- 1. ब्रीदिंग अपरेट्स का प्रयोग किया जाये।
2. यदि अपरेट्स उपलब्ध नहीं है तो ब्लोअर और एक्जास्टर में कु ऐ में शुद्ध हवा भरी जाये या गैस खींचली जाये। ऐसी स्थिति में कु ऐं के आस -पास से भीड हटा दें ।
यदि ब्लोअर और एक्जास्टर न हो तो –
3. खुला हुआ छाता रस्सी में बाँधकर कु ऐ में नीचे से ऊपर की ओर खींचे। यदि यह भी सम्भव न हो तो बोरी , टाट या पेड़ की टहनियाँ ही रस्सी में बाँधकर नीचे से
ऊपर खींचे।
4. यदि कु ऐं में पानी भरा है,तो पानी को बाल्टियों द्वारा ऊपर खींचा जाये।
5.यदि कु आँ सूखा है तो वाटर टैंक रसे होज फै लाकर व उसमें डिफ्यूजर ब्रॉच बाँध कर पानी की फु हार नीचे से ऊपर खींचे। अधिकतर गैसें पानी में घुलनशील हुआ
करती हैं। वे इस तरकी गैसें घुलकर नष्ट हो जातीहैं।
6. यदि वाटर टैंकर नहीं है,तो बाल्टियों द्वारा ही पानी की फु हार डाल सकते हैं।

प्रश्न:- कु एँ में गिरे प्राणी को निकालने की सामान्य विधि बताइये


उत्तर- 1. सर्वेक्षण के पश्चात् और कु ऐं का वातावरण सुरक्षित सुनिश्चित करने के पश्चात् आहत को निकालने का प्रयास कीजिये।
2. एक यादो फायरमैन चेयर नाट में बैठ कर कु ऐ में उतरें।
3. स्टील हैलमेट पहनकर जायें । ताकि ऊपर से गिरने वाली मिट्टी कं कड़ से बचस कें । एक हैलमेट घायल के लिये भी लेते जायें।
4 एक अन्य लोअरिंग लाइन मरीज को बाँधने के लिय कु ऐ में लटकायें।
5.नीचे जाकर मरीज को इसी लोअरिंग लाइन के छल्लों में, या चेयरनाट लगाकर उसमें बैठा दें।
6. कु ऐं के ऊपर बाले व्यक्ति मरीज को सावधानी पूर्वक ऊपर खींचे।
7. यदि कु ऐ में घिरीं नहीं हैं,अथवा प्रयोग के लिये सुरक्षित नहीं प्रतीत होती, तो तीन-बल्लियों का ट्राईपॉड बनाकर उस के शीर्ष पर पुली का प्रयोग करके रस्सी खींचें।
8. आहत को बाहर निकालते ही चादर कम्बल से ढककर गर्म रखें।
9. आवश्यक फर्स्ट एडदें, अस्पताल पहुँचायें।

प्रश्न:- कु ऐं में गिरे पशुओं को निकालने की सामान्य विधि-बताइये

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उत्तर- पशुओं को निकालने के लिये भी वही सावधानी बरतनी होगी। जोमनुष्य को निकालने में बरती जाती है। सर्वप्रथम सर्वेक्षण कीजिये
1.एक या दो फायरमैन चेयरनाट पर बैठकर कु ऐं में उतरें। पशु अपने मालिक की आवाज व शक्ल सूरत को पहचानते हैं। हो सके तो उसे भी चेयरनाट के सहारे कु ऐं में
उतारें। अन्य मजबूत रस्सों से जानवर को भी चेयरनाट या बोलाइन आन-द-वाइट बाँधकर ऊपर खींचना चाहिये।
2. जानवर की आँखों पर पट्टी बाँध दें तो अच्छा है।
3. ट्राई पॉड बनाकर उसकी पुली में रस्सा निकाल कर सतर्क ता पूर्वक ऊपर खींचे।
4. खींचने के लिये मोटर या अन्य मशीन का प्रयोग न करें।
5. ऊपर निकल आने पर जानवर को कु ऐं से दूर ले जाकर छोड़ें।

प्रश्न:- नदी तालाब में डू बे व्यक्ति को निकालने की सामान्य विधि बताइये


उत्तर- घटनास्थल पर पहुचकर सर्वेक्षण कीजिये कि किस स्थान पर व्यक्ति डू बा है ,किसने डू बते हुए देखा। कितना समय हो गया है तथा वहाँ कितना गहरा पानी
है। पानी सिघाड़े की बेल व खरपतबार तो नहीं। यदि नहीं है तो उसका बहाव किस ओर है। पानी का बहाव तेज है या धीमा। पानी में झाड़ी बेलें या कीचड़ है ,इत्यादि को
देखिये।
1. तैरने वाले फायरमैन कमर में रस्सी बाँध कर गोता लगाकर देखें।
2. दक्ष तैराक या गोताखोर की सेवायें ली जास कती हैं। डू बे व्यक्ति के मिल जाने पर उसे बाहर निका लिये।
3. नाक-मुँह साफ कर के पेट का पानी निका लिये।
4. बनावटी साँस देना तुरन्त आरम्भ कर दीजिये।
5. स्ट्रेचर पर कम्बल में लपेट कर तुरन्त अस्पताल ले जाइये।

प्रश्न:- डू बते हुये व्यक्ति को बचाते समय क्या-क्या सावधानियाँबरतेगे


उत्तर- 1. उसके पास एक दम न चले जाइये। कहीं ऐसा न हो कि वहआपको अपने साथ डु बा ले।
2. उसे दूर से कोई रस्सी, धोती, साफा वगैरा पकड़ाइये।
3. यदि वह आप को पकड़ने की कोशिश करे तो उससे बचने की कोशिश कीजिये।
4.हो सके तो उसके पीछे की ओर जाकर धक्के दे-दें-कर किनारे की ओर लाने का प्रयास कीजिये।
5. होसके तो उसे मुक्का मार कर इसे अचेत करते हुये उसकी टॉग पकड़कर किनारे पर लाइये।
6. बाहर निकाल कर पेट का पानी निका लिये । मुँह नाक-साफ कर दीजिये।
7. बनावटी सांस तुरन्त देना आरम्भ कर दीजिये।
8. स्ट्रेचर पर कम्बल में लपेटकर तुरन्त अस्पताल ले जाइये।

प्रश्न:- लिफ्ट किसे कहते हैं


उत्तर- कई मन्जिल ऊर्चे भवनों में नीचे से ऊपर जाने आने के लिये जीनों के अतिरिक्त एक विशेष मशीन लगी रहती है। जो बिजली द्वारा चलती है। इसमें बैठकर
कई व्यक्ति एक साथ आ-जा सकते हैं। बटन दबाते ही कु छ ही क्षणों में इच्छित मन्जिल पर पहुंचा देती है। इस मशीन को लिफ्ट कहते हैं।

प्रश्न- लिफ्ट की कार्य प्रणाली को संक्षिप्त में वर्णन करो


उत्तर- बहुखण्डी भवनों में किसी उचित स्थान पर उसके निचले खण्ड से ऊपर के खण्ड तक एक सीधा चौकोर स्थान बनाया जाता है जिसे लिफ्ट शॉफ्ट कहते
हैं। इस शाफ्ट में भवन की हर मन्जिल में दरवाजा बना होता है। शाफ्ट के सबसे ऊपर या सबसे नीचे लिफ्ट को चलाने वाली मशीन फिट होती है। एकबड़ा -सा वक्स
जिसमें चार या 6 व्यक्ति आसानी से खड़े हो सकते हैं एक मोटे रस्से द्वारा शाफ्ट में नीचे से ऊपर तथा ऊपर से नीचे आता जाता रहता है। इसमें आने जाने के लिए भी
दरवाजा बना होता है। इसको लिफ्ट कार कहते हैं। रस्सा जिसे सस्पेंशन रोप कहते हैं के दूसरे सिरे पर भारी वजन बँधा रहता है जिसे काउन्टर वेट कहते हैं। यह रस्सा
लिफ्ट को चलाने वाली मशीन में लगी पुली पर चलता है। लिफ्ट कार में ही कन्ट्रोल स्विच लगे रहते हैं जिनके प्रयोग करने पर मशीन चलले लगती है एवं इच्छित
मन्जिल के दरवाजे पर जाकर रुक जाती है।
लिफ्ट को चलाने के लिए एक इलेक्ट्रिक मोटर , उससे सम्बन्धित गरारियाँ और ब्रेक प्रणाली होती है। मोटर द्वारा लिफ्ट चलाने वाली मशीनरी घूमती हैं। उसी के द्वारा
सस्पेंशन रोप भी चलती है। पूरी मशीनरी का ऐसा बन्दोवस्त होता है कि लिफ्ट कार व काउन्टर वेट धीरे धीरे चलें। यहीं ब्रेक प्रणाली भी होती है जो आवश्यकता पड़ने
पर कार रोक देती है।

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फायर सर्विस
एलेवेटर के स्थान के आधार पर, फायर सर्विस कोड राज्य से राज्य और देश से देश -अलग-अलग होगा। अग्नि सेवा को आमतौर पर दो मोड में विभाजित किया जाता
है: चरण एक और चरण दो। ये अलग -अलग मोड हैं जो लिफ्ट में जा सकते हैं।चरण एक मोड भवन में एक संबंधित स्मोक या हीट सेंसर द्वारा सक्रिय होता है। एक बार
जब कोई अलार्म सक्रिय हो जाता है, तो स्वचालित रूप से चरण एक में चला जाएगा। लिफ्ट समय की एक राशि की प्रतीक्षा करेगी , फिर सभी को यह बताने के लिए
कि क्या लिफ्ट फर्श छोड़ रही है, न्यूडिंग मोड में जाएं। एक बार लिफ्ट ने फर्श छोड़ दिया है, जहां पर अलार्म बंद हो गया था, इस पर निर्भर करते हुए, लिफ्ट फायर-
रिकॉल फ्लै ट पर होगा। हालाँकि, अगर अलार्म को फायर-रिकॉल फ़्लोर पर सक्रिय किया गया था, तो एलेवेटर के पास याद करने के लिए एक वैकल्पिक स्टोर होगा।
जब एलेवेटर को वापस बुलाया जाता है, तो यह रिकॉल फ़्लोर पर पहुंच जाता है और इसके दरवाज़े खुलने के साथ रुक जाता है। लिफ्ट अब किसी भी दिशा में कॉल
या स्थानांतरित करने का जवाब नहीं होगा। फायर-रिकॉल फ़्लोर पर स्थित एक फायर-सर्विस की स्विच है। फायर-सर्विस कुं जी स्विच में फायर सर्विस को बंद करने ,
फायर सर्विस को चालू करने या फायर सर्विस को बायपास करने की क्षमता है। सामान्य सेवा में लिफ्ट को वापस करने का एकमात्र तरीका अलार्म को रीसेट करने के
बाद इसे बायपास पर स्विच करना है।
फायरमैन के मोड में कोन एकोडिस्क
चरण-दो मोड को के वल कें द्रीकृ त नियंत्रण कक्ष पर लिफ्ट के अंदर स्थित एक कुं जी स्विच द्वारा सक्रिय किया जा सकता है। यह मोड अग्निशामकों के लिए बनाया गया
था ताकि वे एक जलती हुई इमारत से लोगों को बचा सकें । सीओपी पर स्थित चरण-दो कुं जी स्विच में तीन स्थितियां हैं: बंद, बारी और पकड़। चरण दो को चालू
करके , फायर फाइटर कार को हस्तांतरित करने में सक्षम बनाता है। हालांकि , स्वतंत्र-सेवा मोड की तरह, कार तब तक कार कॉल का जवाब नहीं देगी जब तक कि
फायर फाइटर मैन्युअल रूप से धक्का नहीं देता और दरवाजा बंद बटन नहीं रखता। एक बार जब लिफ्ट वांछित मंजिल पर पहुंच जाती है तो वह अपने दरवाजे नहीं
खोलेगी जब तक कि फायर फाइटर दरवाजा खुला बटन नहीं रखता। यह उस स्थिति में है जब फर्श जल रहा है और फायर फाइटर गर्मी महसूस कर सकता है और
दरवाजा नहीं खोलना जानता है। फायर फाइटर को दरवाजा खुला बटन तब तक पकड़ना चाहिए जब तक कि दरवाजा पूरी तरह से खुल न जाए। यदि किसी कारण से
फायर फाइटर लिफ्ट को छोड़ना चाहता है, तो वे कुं जी स्विच पर होल्ड पोजीशन का उपयोग करेंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लिफ्ट उस मंजिल पर बनी हुई है।
यदि फायर फाइटर वापस बुलाने के लिए वापस जाना चाहता है, तो वे बस चाबी बंद कर देते हैं और दरवाजे बंद कर देते हैं।

प्रश्न- लिफ्ट दुर्घटना पर यदि कोई कर्मचारी लिफ्ट शाफ्ट में फँ सा है, तो उसे बचाने की कार्यवाही कै से की जायेगी
उत्तर- 1. घटना स्थल पर पहुँचते ही सर्वेक्षण कीजिए। ज्ञात कीजिए कि दुर्घटना किस खण्ड में हुई है। कोई लिफ्ट एक्सपर्ट है कि नहीं उसे तुरन्त बुलाया जाय।
2. ज्ञात कीजिए कि मोटर रूम ऊपर है कि नीचे।
3.मोटर रूम के मेन स्विच को बन्द करके उस का फ्यूज कै रियर निकाल कर अपने पास रखली जिये तथा काम समाप्त हो जाने पर ही लौटाइये।
4. फँ से हुए व्यक्ति को लिफ्ट कार के रस्सों आदि से सहारा दीजिए। इधर-उधर करने से पहले रस्सा का सहारा दिजिए ।
5. यदि सस्पेंशन रोप ढीला है,तो लांग लाइन द्वारा लिफ्टकार बाँधकर रखें ताकि वह और अधिक न सरकने पाये।
6.मशीन को हाथ से धीरे-धीरे उल्टी ओर घुमाइये। मोटर रूम में इस कार्य को करने के लिए एक विशेष हैण्डिल उपलब्ध रहता है ,जिसे मोटर से बाहर निकले चौपहले
भाग पर फँ सा कर घुमाया जाता है। साथ-साथ ब्रेक मैके निज्म को भी ढीला करनेका प्रयास करना चाहिए।
7. यदि सम्भव हो तो क्रोवार या शाडलीवर की सहायता से भी लिफ्ट कार को हिलाकर देखिये, लिफ्ट कार के थोड़ा सा वापस होते ही आहत व्यक्ति फ्री हो जायेगा।
8. आहत व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर निकाल कर फर्स्ट एड दीजिए और अस्पताल भेजिये।

प्रश्न- लिफ्ट कार में फँ से व्यक्तियों को निकालने के लिएक्या कार्यवाही करेंगे


उत्तर- 1. मोटर रूम में स्थित ड्र म या शीव को हैण्डिल द्वारा हाथ से ही घुमाकर लिफ्ट कार को निकटवर्ती मंजिल पर लगाइये। यदि लिफ्ट कार की क्षमतानुसार
या उससे अधिक व्यक्ति फँ से हैं, तो निचली मंजिल पर और कम व्यक्ति होने पर ऊपरी मंजिल पर जाना सरल होता है।
2.यदि किसी कारण वश लिफ्ट कार को ऊपर नीचे लाना सम्भव न हो तो कार के ऊपर की ओर की मंजिल का दरवाजा खोल कर शार्ट लैडर को लिफ्टकारकी छत
पर उतार दिया जाय, तथा एक फायर मैन जाकर लिफ्टकार की छत पर बने ट्रैप डोर को खोल दे तत्पश्चात इसी द्वार -द्वारा फँ से व्यक्तियों को कार से बाहर निकाला
जाय और लैडर द्वारा ऊपर ले जाया जाय।
जब कोई व्यक्ति लिफ्ट में फं स जाता है, तो सबसे महत्वपूर्ण बात बचाव प्रक्रिया नहीं है, बल्कि बचाव की तलाश करने के लिए सबसे कम संभव समय में बाहरी दुनिया
के संपर्क में रहना है। एक बार लिफ्ट में फं स गया, कृ पया निम्नलिखित करें:
सबसे पहले,यात्रियों के फं सने के बाद, लिफ्ट के अंदर आपातकालीन कॉल बटन दबाकर सबसे अच्छा तरीका है। बटन ड्यूटी रूम या निगरानी कें द्र से जुड़ा
होगा। अगर कॉल उत्तरदायी है, तो आपको बचाव के लिए इंतजार करना है।
दूसरा,अगर आपका अलार्म ड्यूटी पर कर्मचारियों का ध्यान नहीं देता है, या कॉल बटन काम नहीं करता है, तो आप मदद के लिए अलार्म फोन को कॉल करने के लिए
अपने मोबाइल फोन का बेहतर इस्तेमाल करेंगे। वर्तमान में, कई लिफ्ट मोबाइल फोन लॉन्चर से लैस हैं, जो आमतौर पर लिफ्ट को कॉल कर सकते हैं।

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तीसरा। यदि बिजली की विफलता है, या लिफ्ट में कोई संके त नहीं है, तो आप इस स्थिति के सामने शांत रहेंगे, क्योंकि लिफ्ट एक सुरक्षित लटकन से लैस
है। विरोधी गिरने वाले डिवाइस को लिफ्ट स्लॉट के किनारों पर मजबूती से दबाया जाएगा, ताकि लिफ्ट गिर न सके । यहां तक कि यदि बिजली की विफलता भी है, तो
सुरक्षा उपकरण विफल नहीं होगा। इस समय, आपको शांत रहना चाहिए, अपनी ताकत रखें और मदद की प्रतीक्षा करें। संकीर्ण और मगगी लिफ्ट में, कई यात्रियों को
चिंता है कि इससे घुटनों का कारण बन जाएगा। कृ पया आश्वस्त रहें कि नए लिफ्ट राष्ट्रीय मानक में सख्त नियम हैं। के वल वेंटिलेशन का प्रभाव बाजार पर लगाया जा
सकता है। इसके अलावा, लिफ्ट में कई सक्रिय भाग होते हैं, उदाहरण के लिए, कु छ कनेक्शन पदों, जैसे कि सेडान दीवार और सेडान छत जोड़ों में अंतर होता है,
आम तौर पर लोगों की सांस लेने की ज़रूरतों के लिए पर्याप्त होता है।
चौथा। थोड़ी सी स्थिरता के बाद, आपको क्या करना है लिफ्ट कार के तल पर कालीन को रोल करना और सबसे अच्छा वेंटिलेशन प्राप्त करने के लिए नीचे हवा हवा
का पर्दाफाश करना है। फिर पैदल चलने वालों का ध्यान आकर्षित करने के लिए जोर से चिल्लाओ।
पांचवां, यदि आप सूखते हैं और अभी भी कोई भी आपको बचाने के लिए नहीं आता है , तो आपको मदद के लिए एक भौतिक बल बचाने की जरूरत है। इस बिंदु पर,
आप लिफ्ट के दरवाजे को अंतःस्थापित कर सकते हैं या कठोर तलवों के साथ लिफ्ट दरवाजे पर दस्तक दे सकते हैं , बचाव कार्यकर्ताओं के आगमन की प्रतीक्षा कर
रहे हैं। यदि आप बाहर शोर सुनते हैं, तो आप इसे फिर से कर सकते हैं। जब बचावकर्ता अभी तक नहीं पहुंचे हैं, तो उन्हें शांत होना चाहिए और धैर्यपूर्वक इंतजार
करना चाहिए।
कु छ लोग जो जल्दबाजी में हैं वे खुद को लिफ्ट खोलने की कोशिश करेंगे। यह स्वयं सहायता का एक तरीका है कि अग्निशामक दृढ़ता से विरोध करते हैं। क्योंकि
विफलता की स्थिति में लिफ्ट, दरवाजा सर्कि ट, कभी-कभी विफलता, लिफ्ट असामान्य शुरुआत हो सकती है। बल से दरवाजा खींचना खतरनाक है। व्यक्तिगत चोट
का कारण बनना आसान है। इसके अलावा, क्योंकि लिफ्ट सेवा से बाहर होने पर फर्श के स्थान को नहीं जानता है, लिफ्ट दरवाजे को अंधा खोलता है, लिफ्ट शाफ्ट
में गिरने का खतरा होगा।
इसके अलावा, आग और भूकं प के दौरान एक लिफ्ट लेने के लिए उपयुक्त नहीं है।

प्रश्न- सीवर किसे कहते हैं


उत्तर- बड़े-बड़े शहरों में शहर के फालतू गन्दे पानी को बहाकर शहर से बाहर निकालने के लिए जमीन के अन्दर बड़े-बड़े पक्के नाले बनाये जाते हैं। इन्हीं को सीवर
कहते हैं। ये 4 फिट से 12 फिट डायमीटर के नाले जमीन में 10 फिट से 200 फिट गहराई में होते हैं। थोड़ी-थोड़ी दूर पर इनमें उतरने के लिए स्थान बने होते हैं
जो मेन होल कहलाते हैं। मेन होल लोहे के ढक्कनों से ढके होते है।
एक सैनिटरी सीवर एक भूमिगत पाइप या सुरंग प्रणाली है जो घरों और व्यावसायिक भवनों से सीवेज उपचार संयंत्र या निपटान के लिए सीवेज के परिवहन के लिए है।
सेनेटरी सीवर एक प्रकार का ग्रेविटी सीवर है और एक समग्र प्रणाली का हिस्सा है जिसे "सीवेज सिस्टम" या सीवरेज कहा जाता है।

प्रश्न- सीवर में कौन-कौन सी गैसें बन जाया करती है


उत्तर- सीवर में निरन्तर गन्दा पानी बहने के कारण कभी-कभी जहरीली और खतरनाक गैसें पैदा हो जाया करती है। जैसे मीथेन , सल्फरेटेड, हाइड्रोजन या एच०
टू ० एस, कार्बन मोनो आक्साइड, और कार्बन डाइआक्साइड इत्यादि।
प्रश्न- एच० टू ० एस० गैस के बारे में क्या जानते हो
उत्तर- इसे सल्फरेटेड हाइड्रोजन भी कहते हैं। बहुत जहरीली,ज्वलनशील एवं विस्फोटक गैस है। के साथ मिलकर विस्फोटक मिश्रण बनाती है। जो बहुत
खतरनाक होता है। गैस का कोई रंग नहीं होता,परन्तु सड़े हुए अण्डों की सी तीव्र दुर्गन्ध होती है। गैस युक्त वातावरण में अधिक देर तक रहने में प्राण शक्ति नष्टप्रायः हो
जाती है। मतली, चक्कर आना बेहोशी व मौत भी हो सकती है। चमकीले धातु के बरतन, चमकदार सिक्के गैस के प्रभाव से काले पड़ जाते हैं। यह गैस घुलनशील है।

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प्रश्न- मीथेन गैस के बारे में क्या जानते हो


उत्तर- वनस्पति के सड़ने से उत्पन्न होती है। एक दम घोटने वाली गैस है। इसका कोई रंग नहीं होता , न कोई गन्ध होती है। ज्वलनशील व विस्फोटक गैस होती है।
हवा के साथ मिलकर विस्फोटक मिश्रण बनातीं है, जो तनिक सी चिन्गारी पाकर भयंकर विस्फोट में परिणित हो सकती है। यह गैस पानी में घुलनशील होती है।

प्रश्न- कार्बन मोनोआक्साइड के बारे में क्या जानते हो


उत्तर- बहुत जहरीली व ज्वलनशील गैस है। हवा के साथ मिलकर विस्फोटक मिश्रण बन जाता है। गैस का कोई रंग नहीं होता। कोई विशेष गन्ध नहीं होती। गैस
सीधे खून पर प्रभाव डालती है जिससे यह सर दर्द, चक्कर आना ओर पैरों में कमजोरी, पैदा करती है।

प्रश्न- सीवर में फँ से व्यक्तियों को निकालने की विधि बयान कीजिए


उत्तर- सीवर में रैस्क्यू करते समय ब्रीदिंग अपरेटस का प्रयोगअनिवार्य है। के वल फ्ले म प्रूफ टाइप लाइट ही इस्तेमाल करनी चाहिए क्योंकि सीवर की अधिकतर गैसें
ज्वलनशील होती हैं।
1. दुर्घटनाग्रस्त मेन होल के आगे पीछे के मेन होल खोल दीजिए।
2.यदि स्मोक ऐक्जास्टर उपलब्ध हो तो सीवर की गन्दी गैसें निकाली जासकती हैं। ऐसा करने से पहले आस -पास से भीड़ हटा दीजिए। बीड़ी-सिगरेट पीना बन्द करा
दीजिए।
3.एक व्यक्ति मेन होल के ऊपर, एक मेन होल के नीचे सीढ़ी पर रहे। रैस्क्यू करने के लिए हमेशा दो व्यक्ति जायें। इन से बराबर सम्पर्क रखा जाये।
4.सीवर के भीतर बदन के किसी भाग को मसलना या खुजलाना नहीं चाहिए।
5. आहत के मिलते ही उसे बोलाइन द्वारा निकालना चाहिए। शुद्ध वातावरण में आते ही तुरन्त बनावटी सांस देना आरम्भ कर देना चाहिए तथा आहत को
शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाना चाहिए।
6. रैस्क्यू करने वालों को भी तुरन्त नहाना व कपड़ा बदल लेना चाहिए।
8. कोई खरोंच, चोट आदि लगने पर डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

प्रश्न- सीवर में कार्य करते समय क्या-क्या सावधानी बरतनीचाहिए


उत्तर- 1. सीवर रैस्क्यू में स्पीड अति आवश्यक है।
2. ब्रीदिंग अपरेटस का प्रयोग कीजिए ।
3. फ्ले म प्रूफ टाइप लाइट ही प्रयोग कीजिये ।
4. हमेशा दो आदमी बचाव कार्य करने जायें ।
5. एक व्यक्ति मेन होल के ऊपर तथा एक व्यक्ति मेन होल के नीचे रहे, जो बचाव कार्य करने वालों से बराबर सम्पर्क बनाये रखें।
6. आहत को बाहर निकालने के पश्चात्बनावटी साँस देना तुरन्त आरम्भ कर देना चाहिए । शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाना चाहिए।
7. बचाव कार्य करने वालों को भी तुरन्त नहाना व कपड़ा बदल लेना चाहिए ।
8. कोई खरोंच, चोट आदि लगने पर अविलम्ब डाक्टर की सलाह लेना चाहिए।

अनुशासन
(डिसीपिलिन)

प्रश्न:- अनुशासन से क्या समझते हो,


उत्तर- अनुशासन के सम्बन्ध में विद्वानों अनेक विचार प्रकट किये है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
1. किसी संस्था या समाज के सदस्यों द्वारा कार्य को सुचारू रूप से करने के लिये उस संस्था या समाज के नियमानुकू ल आचरण एवं मर्यादाओं का पालन करना ही
अनुशासन कहलाता है।
2.किसी संस्था या विभाग में जहाँ अधिक संख्या में कर्मचारी गण कार्य करते हों वहां कार्य को सुविधा एवं सुव्यवस्थित रूप में सम्पन्न करने के लिये अनुशासन की
आवश्यकता पड़ती है।
3. अनुशासन कर्मचारियों में एक नेता के नेतृत्व में मिलकर कार्य करने की भावना उत्पन्न करता है ।
4.अनुशासन सर्वसाधारण में सुविधा, सुरक्षा, प्रसन्नता और गर्व प्रदान करता है,तथा उच्च कोटि की कार्य क्षमता उत्पन्न करता है।
प्रश्न:- अनुशासन का उद्देश्य क्या है
उत्तर- अनुशासन का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोगों की मनःस्थिति इस प्रकार की हो जाये कि वे हृदय से , सहज प्रसन्नतापूर्वक, समुचित नियमों का पालन करने
लगें। यह तभी सम्भव हो सकता है जब तक कि सदस्यों को विभाग के नियमों एवं अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान न हो जाय। उन्हें निरन्तर अभ्यास कराया जाता रहे
ताकि परस्थिति विशेष में भी अपने कर्तव्य पालन से विमुख न हों।

प्रश्न:- अनुशासन कै से उत्पन्न किया जाता है


उत्तर- अनुशासन उत्पन्न करने का पहला कदम स्क्वाड ड्रि ल है। इसके द्वारा जवानों में एक व्यक्ति की आवाज पर कार्य करने तथा बिना किसी तर्क के आज्ञतन
करने की भावना उत्पन्न होती है। वरिष्ठ पदाधिकारियों का सम्मानकरने एव विभाग का शिष्टाचार सिखाया जाता है।
इसी प्रकार फायर ड्रि ल में उपकरणों की पहचान, प्रयोग करने की विधि एवं मिलकर कार्य करने की भावना उत्पन्न होती है। कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न- परेड ग्राउण्ड के अनुशासन सम्बन्धी क्या नियम हैं


उत्तर- 1. परेड ग्राउन्ड पर समय से पहले पहुँचने का प्रयास कीजिये।
2. परेड पर निर्धारित यूनीफार्म में ही जाइये।
3. यूनीफार्म साफ –सुथरी-और सही फिटिंग कराकर ही पहिनिये।
4. यूनीफार्म में बटनों की कमीन हो । फटी –पुरानी नहो।
5. यूनीफार्म में पीतल व चमड़े के भाग पालिश द्वारा चमकते रहने चाहिए।
6. हजामत और दाढ़ी इत्यादि बनी होनी चाहिए।
7. अतिरिक्त कपड़ा, रूमाल, मफलर, इत्यादि यूनीफार्म पर मत पहिनिए।
8. परेड अथवा ड्रि ल गम्भीरता पूर्वक कीजिए। परेड पर हँसी मजाक बातचीत मत कीजिए।
9. प्रशिक्षक के आदेशों को सुनिये और उन का पालन कीजिए।
10. प्रशिक्षक अथवा अधिकारी द्वारा कोई प्रश्न पूछे जाने पर सावधान होकर नम्रता पूर्वक उत्तर दीजिए।

प्रश्न- क्लास रूम में अनुशासन सम्बन्धी क्या नियम हैं


उत्तर- 1.क्लास रूम में भी समय से पहले पहुँचने का प्रयास कीजिए।
2. निर्धारित यूनीफार्म पहन कर आइये।
3. क्लास में शान्त बैठिये बात चीत हँसी मजाक या शोर गुल मत कीजिए।
4. जब प्रशिक्षक या अधिकारी क्लास में प्रवेश करेंतो उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये अपने स्थान पर खड़े हो जाइये तथा उनके आदेश देने पर ही बैठिये।
5. क्लास से बाहर जाने के लिये प्रशिक्षक से आज्ञा माँग करके ही जाइये।
6. उसी प्रकार क्लास में प्रवेश के समय यदि प्रशिक्षक उपस्थित होतो उनसे आज्ञा प्राप्त करके ही अन्दर प्रवेश कीजिये।

प्रश्न:- दण्ड (पनिश्मेंट) के उद्देश्य क्या हैं


उत्तर- 1. अनुशासन भंग करने के परिणाम से जवान को परिचित कराना और उसे यह ज्ञात कराना कि नियम विरूद्ध आचरण करने का फल बुरा होता है।
2. दण्ड का दूसरा उद्देश्य यह है कि जवान पुनः अनुशासन भंगन करें।
3.अनुशासनहीन जवान को दण्ड मिलने से दुसरे जवान भी सावधान हो जाते हैं,और नियमानुसार कार्य करने की चेतना जाग्रत होती है
प्रश्न:- दण्ड के विभिन्न रूप बयान करो
उत्तर- समाझना, डाँटना, पनिश्मेंट ड्रि ल, फटीक डियूटी, एक्स्ट्रा डियूटी चरित्र पंजिका में प्रविष्टि, वेतन वृद्धि का स्थगन, स्थाईकरण का रोकना, पदावनति,
सेवा निवृत करना तथा राजकीय सेवा के अयोग्य घोषित कर निष्कासन।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न:- पुरस्कार के क्या उद्देश्य है
उत्तर- जिस प्रकार अनुशासनहीनता दूर करने के लिये दण्ड व्यवस्था है। उसी प्रकार जवानों के प्रोत्साहन, प्रतिस्पर्धा एवं सर्वोन्मुख विकास के लिये पुरस्कारकी
व्यवस्था है-
1.पुरस्कार द्वारा जवान में सम्मान की भावना जागती है। और वह अच्छे काम करने की ओर अग्रसित होता है।
2.पुरस्कृ त जवान अपने उच्चाधिकारियों को प्रसन्नकर ने के लिये अपना और सुधार करता है और अच्छे कार्यों के सम्पादन में लगा रहता है। इससे विभाग का
अनुशासन भी ठीक रहता है।
3. पुरस्कृ त जवान को देखकर अन्य जवानों को भी श्रेष्ठ कार्य की प्रेरणा मिलती है।
4. पुरस्कार द्वारा अन्य व्यक्तियों की तुलना में अपनी श्रेष्ठता अनुभव करने के कारण जवानों में प्रतिस्पर्धा की भावना जागती है।

प्रश्न:- पुरस्कार के क्या-क्या रूप हो सकते हैं


उत्तर- 1. प्रशंसा करना या जवान को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से सम्मानित करना। जैसे प्लाटू न या लीडर, क्लास लीडर या खेल कै प्टनबनाना।
2. चरित्र पंजिका में प्रशंसनीय कार्य की प्रविष्टि अंकित करना।
3. धन द्वारा पुरस्कृ त करना।
4. सम्मान पटपर नाम अंकित करना।
5. पदोन्नति।
6. सम्मानित पदक, अग्निशमन सेवा पदक से पुरस्कृ त करना।

प्राथमिक चिकित्सा (फर्स्टएड)

प्रश्न- फर्स्ट एड या प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते हैं


उत्तर- किसी आकस्मिक रोग अथवा दुर्घटना से पीड़ित व्यक्ति को राहत के लिए डॉक्टर के पहुँचने से पहले उपलब्ध साधनों द्वारा जो कार्यवाही या चिकित्सा की
जाती है उसे प्राथमिक चिकित्सा या फर्स्ट एड कहते हैं।

प्रश्न- प्राथमिक चिकित्सा किट में क्या क्या सामग्री होनी चाहिए

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अग्निशमन एवं संरक्षा

 
 चोट लगना, खून निकलना, हड्डी का टू टना या जल जाने का सामग्री फर्स्ट ऐड किट में होना बहुत आवश्यक है। इसमें बहुत सारे बैंडेज और ड्रेसिंग सामान
का होना जरूरी होता है। जैसे –
 चिपकाने वाली पट्टियां Adhesive bandages  जैसे बैंड ऐड, स्टिकलिंग प्लास्टर (band-aids, sticking plasters)
 मोलस्किन Moleskin – छाले के उपचार और रोकथाम के लिए।
 ड्रेसिंग की सामग्री Dressings – जीवाणु रहित, घाव पर सीधे लगाने के लिए।
 अजिवाणु/कीटाणुरहित आँख के लिए पैड Sterile eye pads।
 अजिवाणु गौज पैड Sterile gauze pads।
 ना चिपकने वाला टेफ़लोन लेयर वाला पैड।
 पेट्रोलेटम गौज पैड – छाती के घाव पर लगाने के लिए तथा वायुरोध ड्रेसिंग के लिए और ना चिपकने वाले ड्रेसिंग के लिए।
 बैंडेज Bandages (ड्रेसिंग के लिए, स्टेराइल किये बिना)
 रोलर बैंडेज Gauze roller bandages – घाव को जल्द से जल्द सोकने में मददगार।
 इलास्टिक बैंडेज Elastic bandages – मांसपेशियों में खिचाव और प्रेशर पड़ने पर ड्रेसिंग में उपयोगी।
 जलरोधक बैंडेज Waterproof bandaging
 त्रिकोणीय पट्टियाँ या बैंडेज Triangular bandages – टू निके ट(रक्त रोधी) जल्द से जल्द रक्त बहाव को रोकने के लिए।
 बटरफ्लाई क्लोसुरे स्ट्रिप्स Butterfly closure strips – बिना साफ़ किये हुए घाव के लिए।
 सेलाइन Saline- घाव को धोने के लिए या आँखों से गन्दगी निकलने के लिए।
 साबुन Soap – घाव को साफ़ करने के लिए।
 जले हुए घाव के लिए ड्रेसिंग Burn dressing – ठन्डे जेल पैक।
 कैं ची Scissor

किसी भी घायल या बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुँचाने से पहले उसकी जान बचाने के लिए हम जो कु छ भी कर सकते हैं उसे प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।
उस आपातकाल में पड़े हुए व्यक्ति की जान बचाने के लिए हम आस -पास के किसी भी प्रकार के वास्तु का उपयोग कर सकते हैं जिससे जल्द से जल्द उसको
आराम मिल सके अस्पताल ले जाते समय।
इमरजेंसी के समय क्या करना चाहिए उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह जानना है कि क्या नहीं करना चाहिए? क्योंकि,गलत चिकित्सा से उस व्यक्ति विशेष की जान
जाने का खतरा बढ़ सकता है।
प्राथमिक चिकित्सा निम्नलिखित इमरजेंसी अवस्ता में दी जा सकती है – दम घुटना(पानी में डू बने के कारण, फांसी लगने के कारण या साँस नल्ली में किसी
बाहरी चीज का अटक जाना), ह्रदय गति रूकना-हार्ट अटैक, खून बहना, शारीर में जहर का असर होना, जल जाना, हीट स्ट्रोक(अत्यधिक गर्मी के कारण
शारीर में पानी की कमी), बेहोश या कोमा, मोच, हड्डी टू टना और किसी जानवर के काटने पर।

 प्राथमिक चिकित्सा के कु छ नियम इस प्रकार हैं –


 जल्द से जल्द दुर्घटना स्थल पर पहुँचें।
 अनावश्यक प्रश्न पूछकर समय बर्बाद न करें।
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अग्निशमन एवं संरक्षा
 चोट का कारण जल्दी से पता करें।
 चोट लगने वाली वस्तु को रोगी से अलग करें। जैसे गिरने वाली मशीनरी, आग, बिजली का तार, जहरीले कीड़े, या कोई अन्य वस्तु।
 पता लगाएँ कि क्या मरीज मर चुका है, जीवित या बेहोश है।
 गोद लिए जाने वाले प्राथमिक उपचार उपायों की प्राथमिकता निर्धारित करें। उस क्रम में कार्डियक फं क्शन को ठीक करना, सांस लेने में मदद करना, चोट
लगने की जगह से खून बहना बंद करें।
 जल्दी से जल्दी चिकित्सा सहायता की व्यवस्था करें।
 रोगी का रिकॉर्ड और घटना का विवरण रखें।
 जहां तक संभव हो मरीज को गर्म और आरामदायक रखें।
 विशिष्ट उपकरणों की प्रतीक्षा करने के बजाय सुधार करें।
 यदि रोगी होश में है, तो उसे आश्वस्त करें।

प्रश्न- फर्स्ट एडर किसे कहते हैं? उसके कर्त्तव्य और उत्तरदायित्वक्या हैं
उत्तर- फर्स्टएड देने वाले को फर्स्टएडर कहते हैं। उसका मुख्य कर्त्तव्य यह होता है कि वह पीडित को डाक्टरी सहायता उपलब्ध होने तक ऐसी स्थिति में रखे
जिससे उसको कम से कम कष्ट हो। उसकी दशा और अधिक न बिगड़ने पाये। बल्कि उसे पुनः स्वस्थ होने में सहायता मिले तथा उसके जीवन की रक्षा हो सके ।
फर्स्ट एडर का उत्तरदायित्व चिकित्सा सहायता उपलब्ध होते ही समाप्त हो जाता है। यद्यपि उसे डाक्टर को पूरा वृतान्त बताने के लिए निकट ही चाहिए। ताकि यदि
अन्य कोई आवश्यकता हो तो वह सहायक हो सके ।

प्रश्न- फायरमैन को प्राथमिक सहायता सम्बन्धी ज्ञान क्यों आवश्यक है


उत्तर- फायरमैन को अक्सर जलते हुए मकान में अथवा अन्य दुर्घटनाओं में फँ से आहत व्यक्तियों को निकालना पड़ता है। कभी -कभी उसे अपने साथियों को भी,
जो आग बुझाते समय या रेस्क्यू करते समय घायल हो सकते हैं, इसप्रकार की सहायता देने की आवश्यकता पड़ सकती है। ताकि उन्हें डाक्टरी सहायता मिलने से पूर्व
आराम दे सके तथा रोग निवृत्ति में सहायक हो। अतः फायरमैन को प्राथमिक सहायता सम्बन्धी ज्ञान होना अति आवश्यक है।

प्रश्न- प्राथमिक सहायता से क्या-क्या लाभ हैं


उत्तर- 1.जीवन रक्षा।
2. कष्ट निवारण एवं पीड़ित को अधिक से अधिक आराम दिया जा सकता है।
3 पीड़ित की दशा और खराब होने से रोकी जा सकती है।
4. चिकित्सक को सुविधा मिलती है।
5. चिकित्सक को सहायता दी जा सकती है।
6.स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न- फर्स्ट एड कै से आरम्भ की जाती है,


उत्तर- किसी भी दुर्घटना पर फर्स्ट एड के तीन मुख्य कार्य हैं -
1. रोग निर्णय (डायगनोसिस)
2. उपचार (ट्रीटमेंट)
3. निर्वतन (डिस्पोजल)

1.रोग निर्णय-के लिए सर्व प्रथम ज्ञात की जिए कि आहत को किस प्रकार की चोटलगी है। इसे सुनिश्चित करने के लिए रोगों के चरित्र वर्णन , लक्षण और चिन्हों पर
विचार करना चाहिए।
(अ) चरित्र वर्णन- यदि आहत सचेत हो तो उससे पूछ ताछ की जासकती है कि दुर्घटना कै से घटी यदि अचेत है तो अन्य दर्शकों से पूछ कर या घटना स्थल को देख
कर पता लगाया जास कता है।
(ब) लक्षण-वह है जो पीड़ित व्यक्ति अनुभव करता है। जैसे-दर्द होना,ठन्डक अनुभव करना आदि।
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(स)चिन्ह-पीड़ित व्यक्ति की प्राकृ तिक अथवा सामान्य स्थिति में परिवर्तन दिखाई देना। जैसे-पीलापन, सुर्खी, सूजन, कु रूपता इत्यादि ऐसे चिन्ह जो दिखलाई पड़ें।
2.उपचार- सर्वप्रथम दुर्घटना का कारण यदि दिखाई दे तो उसेदूर कीजिए। पुनः स्वस्थ होने के लिए उपचार आरम्भ कर दीजिये। आगे रोगी की दशा बिगड़ने से
बचाइये। रक्त स्त्राव को रोकिए, श्वांस क्रिया को पुनः चालू कीजिए। हड्डी टू टने पर उसका हिलना डु लना रोकिए ।
3. निर्वतन- शीघ्रातिशीघ्र डाक्टरी सहायता उपलब्ध कराइये। डाक्टर को बुलाइये अथवा मरीज को डाक्टर के पास ले जाइये।

प्रश्न- किसी आहत को फर्स्ट एड देते समय कौन-कौन सी बातें याद रखनी-चाहिए,
उत्तर- 1. पहले परम आवश्यक कार्य शीघ्रता एवं शान्तिपूर्वक बिना किसीकोलाहल अथवा भय के करना चाहिए।
2. यदि श्वांस क्रिया रुक गयी है तो रुकने का कारण ज्ञात करें व दूर करके श्वांस क्रिया पुनः चालू करने का प्रयास कीजिए। बनावटी सांस देना आरम्भ कीजिए।
3. प्रत्येक प्रकार के रक्त स्त्राव को रोकिए।
4.सदमें से रोगी को बचाइये। रोगी को कम से कम हिलाइए -डु लाइए। मरीज की चोट के विषय में मरीज या मरीज के परिवार वालों के सामने कोई टिप्पणी न करें।
5. बहुत अधिक करने का प्रयत्नन मत कीजिए। उतना ही कीजिए जितना रोगी को बचाने या दशा को बिगड़ने से बचा सके ।
6. रोगी को तसल्ली दीजिए। भीड़ को आस-पास से हटाइए।
7. यदि आवश्यक न होतो रोगी के कपड़े मत उतारिए।
8. यदि जीवन के लक्षण दिखाई न दें तब भी यह नसमझिए कि मरीज मर चुका है। यह निर्णय तो डाक्टर ही करेगा
9. हड्डी टू टने पर आसान तरीकों से अंग को निश्चल कीजिए।
10. जितना जल्दी हो सके डाक्टर को बुलायें अथवा मरीज को डाक्टर के पास ले जायें।

प्रश्न- स्कलटन से क्या समझते हो? इसका मुख्य कार्य क्या है


उत्तर- हड्डियों के ढाँचे को स्कलटन या अस्थि पंजर कहते हैं। अस्थिपंजर के तीन मुख्य कार्य हैं।–
1.यह शरीर की और पुष्टि का आधार है।
2.मांस पेशियों को जोड़ता तथा सम्बन्धित रखता है। गतिशील रखताहै।
3.शरीर के मुख्य और प्रधान अंगों की रक्षा करता है,जैसे मस्तिष्क, हृदय, फे फड़े और पेट के अंग।
4.रक्त के लाल कोषों के निर्माण में सहायता करता है।

प्रश्न- खोपड़ी में हिलने डु लने वाली कितनी हड्डियाँ होती हैं,
उत्तर- के वल निचले जबड़े को छोड़कर सिर और चेहरे की अन्य सब हड्डियाँ ऐसी दृढ़ता से जकड़ी होती हैं कि उनका परस्पर हिलना डु लना असम्भव है।

प्रश्न- रीढ़ की हड्डियों की संख्या कितनी होती है


उत्तर- कु ल 33 हड्डियाँ होती हैं। गरदन में सात, पीठ में बारह, जिनसे छाती का पिंजर या पसलियाँ जुड़ी रहती हैं। कमर में पाँच, चूतड़ की हड्डी पाँच, और पक्ष
की हड्डी में चार जुड़ी रहती हैं।

प्रश्न- पसलियाँ किसे कहते हैं? ये कितनी होती हैं


उत्तर- पसलियाँ उन 12 जोड़ों को कहते हैं जो रीढ़ से निकलकर सामने की ओर मुड़ती हैं। ऊपर के सात जोड़े तो असली पसलियाँ हैं ये सातों जोड़े हड्डियाँ
सामने छाती की मुरमुरी हड्डियों से जुड़ जाती हैं। छाती की हड्डी का आकार खंजर की तरह होता है। नीचे की पसलियों के पाँच जोड़े झूठी पसलियाँ कहलाती हैं। इनमें
से ऊपर के तीन जोड़ मुरमुरी हड्डी द्वारा अपने ऊपर की पसलियों से जुड़े रहते हैं। अन्तिम दो जोड़ों का नाम तैरती पसलियाँ (फ्लोटिंग रिब्स) है। जो सीने की हड्डी के
सामने की तरफ जुड़ी हुई नहीं होती है।

प्रश्न:- कालर बोन किसे कहते हैं


उत्तर- कालर बोन या हंसली की हडडी सामने की ओर गरदन के नीचेदोनों और अंगुल भर मोटी खेत काटने वाले हंसिया के समान होती है। इसका भीतरी सिरा
चेस्ट वोन के ऊपर के हिस्से से, और बाहरी सिरा स्कन्ध फलक, (स्के पूला शोल्डर ब्लेड) से जुड़ा होता है।

प्रश्न:- शोल्डर ब्लेड किसे कहते हैं? कहाँ होता है

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- शोल्डर ब्लैड छाती के पीछे ऊपर से बाहरी भाग में स्थित है। और बांह की हड्डी तथा हॅसली की हड्डी के बीच का जोड़ बनाती है।

प्रश्न:- हाथ में कितनी हड्डियाँ और कहाँ-कहाँ होती है


उत्तर- बांह में एक हड्डी होती है। जो कन्से से कोहनी तक होती है , इसे हयूमरस कहते हैं। अग्रवाहु में दो हड्डियाँ होती है। बाहरी अंगूठे की ओर वाली रेडियस और
छिगुली की ओर वाली को अलना कहते हैं। ये दोनों हड्डियाँ कोहनी से कलाई तक होती है। कलाई में आठ हड्डियाँ होती है। जो चार -चार की दो पंक्तियों में होती है। ये
कारपस कहलाती हैं। हथेली में पाँच हड्डियाँ होती हैं और इन्हीं में अंगुली की हड्डियाँ निकलती हैं। प्रत्येक अंगुली में तीन और अँगूठे में दो हड्डी होती हैं। इन्हें फिं गर बोन्स
या फ्लै जेंज कहते हैं।

प्रश्न:- पलविस किसे कहते हैं


उत्तर- पलविस पेढू या कू ल्हे की हड्डी को कहते हैं। ये कटोरे याचिलमची के आकार की होती है। और रीढ़ की हड्डी के निचले भाग के साथ जुड़ी रहती है।

प्रश्न:- थाई बोन किसे कहते हैं


उत्तर- जाँघ की हड्डी को कहते हैं। इसे फीमर भी कहते हैं। हिप बोनसे चलकर घुटने के जोड़ तक पहुँचती हैं।

प्रश्न:- नी कै प किसे कहते हैं


उत्तर- नी कै प या पटेला एक चपटी तिकोनी हड्डी है। इसका धरातल त्वचा के नीचे घुटने की हड़ी के सामने ऊपर की ओर रहता है।

प्रश्न:- टॉग में कितनी हड्डियाँ होती है और पैर में कितनी हैं
उत्तर- टॉग में दो होती हैं। एक पिडली की हड्डी या टीबिया , और दूसरी फै वुला कहलाती है। पिडली की हड्डी घुटने से पैर के टखने तक फै ली होती है। पैर के
अगले भाग में सात अनियमिताकार हड्डियाँ हैं। सबसे लम्बी ऐडी की हड्डी हैं। पैर के सामने पाँच लम्बी हड्डियाँ (मैटाटारसस) पैर की अंगुलियों को सहारा देती हैं।
अंगुलियों में तीन-तीन और अंगूठों में दो दो हड्डियाँ होती हैं।

प्रश्न:- ज्वाइंट या जोड़ किसे कहते हैं, कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर- जोड़ दो या दो से अधिक हड्डियों के संगम को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
1. अचल जोड़-ये स्थाई होते हैं। इन में गति नहीं होती। मस्तिष्क के कोष्टों में होते हैं।
2. सचल जोड़- ये गतिशील जोड़ है। जो एक प्रकार के चिकने रस से संचालित होते रहते हैं। जैसे कू ल्हे, कोहनी, घुटने के जोड़ जोड़ एक प्रकार के तन्तुओं से जुड़े
रहते हैं। जोकि लिगामेंट कहलाते हैं। ये जोड़ों को बाँधे तो रखते हैं पर उनकी गतिशीलता में किसी प्रकार की बाधा नहीं डालते।
सचल जोड़ दो प्रकार के होते हैं
1.बाल एण्ड साके ट ज्वाइंट (कटोरीदार)
2. हिन्ज ज्वाइंट (चूलदार या कब्जेदार) होते हैं।

प्रश्न:- माँस पेशियाँ क्या हैं? और कितने प्रकार की होती हैं


उत्तर- यह शरीर का लाल माँस होता है। ये दो प्रकार की होती हैं।
1. ऐच्छिक माँस पेशियाँ-इन्हीं से शरीर का प्रत्येक अंग हिलता डु लता है। इन पर मस्तिष्क का अधिकार होता है।
2.अनैच्छिक मांस पेशियाँ- ये इच्छा के वशमें नहीं हैं। परन्तु दिन-रात कार्यरत रहती है। आमाशय, हृदय, श्वास, आंतकी दीवार इत्यादि की मांस पेशियाँ।

प्रश्न:- ड्रेसिंग से क्या समझते हो, इसका उद्देश्य क्या है


उत्तर- ड्रेमिंग मरहम पट्टी को कहते हैं। यह घाव या चुटैले स्थान कोढकने के काम आती है। इसका मुख्य उद्देश्य-
1. घाव को और अधिक चोट से बचाने के लिये।
2. छू त को रोकने और कम करने के लिये।
3. रक्त प्रवाह को रोकने के लिये।
4. दर्द दूर करने के लिये (गीलीपट्टी)

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न:- फर्स्ट एड में प्रयोग होने वाली मुख्य मुख्य ड्रेसिंग कौन-कौन सी हैं
उत्तर- 1. ड्राई ड्रेसिंग (सूखी) 2. मोइस्ट ड्रेसिंग (गीली)

प्रश्न:- स्ट्रालाइज्ड ड्रेसिंग किसे कहते हैं।


उत्तर:- कीटाणु रहित जाली या लिन्ट की पट्टी होती है। इसमें कभी -कभी एक गद्दी लगी रहती है। यह पट्टी एक सुरक्षित गिलाफ के अन्दर रखी रहती है। सब प्रकार
के घाव के लिये यह सर्वोत्तम पट्टी मानी जाती है।

प्रश्न:- ट्रेंग्युलर बैन्डेज या तिकोनी पट्टी किसे कहते हैं


उत्तर- मारकीन या लट्ठे के 38" या 42" के चौकोर टुकड़े को कर्णवत (डाइगनल्ली) काटने से दो तिकोनी पट्टियाँ बनती है। तिकोनी के सबसे बड़े किनारे को
आधार (बेस) और शेष दोनों किनारों की भुजा (साइड्स) कहते हैं। आधार के सामने वाले कोने को शीर्ष एवं दोनों कोनों को सिरे (इन्ड्स) कहते हैं। शीर्ष को आधार
पर मिलानें एवं एक अन्य तह देने से चौड़ी पट्टी (ब्राड बैन्डेज) तथा तीन तह करने से संकरी पट्टी (नैरो बैन्डेज) बनती है।

प्रश्न:- ट्रेंग्युलर बैन्डेज कहाँ-कहाँ उपयुक्त होती है


उत्तर- 1. पट्टियों, गद्दियों और हड्डी की टूट को स्थिर करने के लिये।
2. मोच खाये अंग का हिलना-डु लना रोकने के लिये।
3. सिलिंग (झोली) बनाने के लिये।
4. रक्त स्त्राव रोकने के लिये।
5. सूजन कम करने के लिये।
6. रोगी को उठाने और ले जाने के लिये सहायक के रूप में।

प्रश्न:- सिलिंग कितने प्रकार की होती हैं


उत्तर- चार प्रकार की होती हैं।
1. लार्ज सिलिंग
2. स्माल सिलिंग
3. कफ एण्ड कालर सिलिंग
4. सैन्ट जॉन्स सिलिंग या ट्रेंग्युलर सिलिंग

प्रश्न:- पैड (गद्दी) कितने प्रकार के होते हैं,


उत्तर- 1. स्क्वायर पैड या चौकोर गद्दी ।
2.राउन्ड पैड या गोल गद्दी।
3. रिंग या छल्ले दार गद्दी।

प्रश्न:- बैन्डेज बाँधने में कौन-सी गाँठ प्रयोग की जाती है


उत्तर- रीफनाट प्रयोग की जाती है।

प्रश्न:- रिंग पैड कहाँ प्रयोग किया जाता है


उत्तर- 1. खोपड़ी के घाव में रक्त स्राव को रोकने के लिये।
2. किसी घाव में हड्डी निकली हो उस पर पट्टी बाँधने के लिये।
3. घाव में कोई बाहरी वस्तु शीशा, लकड़ी, लोहा अटका हो उसपर पट्टी बाँधने के लिये।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न:- सिलिंग की कहाँ आवश्यकता पड़ती है
उत्तर- 1. हाथ या बाजू में चोट लगने पर उसे सहारा देने के लिये।
2. गर्दन, सीना या कन्धे के हिलते समय बाजू पर भी खिंचाव पड़ता है उसे कम करने के लिये।
3. हथेली से बहते खून को राउण्ड पैड से बन्द कर हृदय से ऊँ चा रखने के लिये।

प्रश्न:- शॉक (सदमा) से क्या तात्पर्य है, क्यों होता है


उत्तर- शॉक या सदमा, पूर्ण या आंशिक बेहोशी की एक अवस्था है। जोनिम्नाकिं त कारणों से स्नायु संस्थान में सामान्य शक्तिहीनता के कारण पैदा होता है
1. रक्तहानि-रक्तस्राव।
2. छिदा हुआ घाव।
3. गम्भीर रूप में जलना, फलक पड़ना।
4.गम्भीर पीड़ा।
5. पेट के घाव।
6. गम्भीर रूप से कु चल जाना।
7. मानसिक चिन्ता करना।
8. अत्यधिक शीत में खुला रहना।

प्रश्न:- सदमें के चिन्ह तथा लक्षण क्या हैं


उत्तर- 1. चेहरा व होठ फीके ।
2. पसीना ठण्डा, त्वचा चिप-चिपी।
3. नब्जतेज, या क्षीण, जो मालूम भी न हो सके ।
4. पूर्ण या आंशिक बेहोशी।

प्रश्न:- सदमें का क्या उपचार है


उत्तर- 1. रोगी को खूब दिलासा दीजिये तथा आश्वस्त कीजिये।
2. रोगी को चित लिटा दीजिये। सिर मामूली तौर पर नीचा रखिये। सिर में यदि चोट न लगी हो तो उसको एक ओर मोड़ दीजिये। परन्तु यदि सिर , पेट या छाती में चोट
लगी हो तो सिर के नीचेतकिया लगाइये।
3. रक्तस्राव को तत्काल रोकिये।
4. गर्दन, छाती और कमर के कपड़े ढीले कर दीजिये।
5. रोगी को किसी कम्बल चादर से गरमर खिये।
6. दूसरी चोटों (हड्डीटू टना, घाव, जलना) का इलाज कीजिये।
7. पानी, कॉफी चाय आदि मांग ने पर दी जा सकती है।
8. किसी अंग की सिकाई या मालिश मत कीजिये।

प्रश्न:- बिजली के शॉक के चिन्ह तथा लक्षण क्या हैं


उत्तर- तीव्र प्रकम्पन्न, साँस लेने में कठिनाई, बेहोशी, शरीर के कपड़े तथा अवयव जले हुये तथा झुलसे हुये।

प्रश्न:- बिजली के शॉक पर कै से उपचार किया जायेगा


उत्तर- 1. बिजली का प्रवाह बन्द करें।
2. सूखे तख्ते पर खड़े होकर सूखी लकड़ी, रस्सी आदि से आहत व्यक्ति को करंट से हटायें।
3. बनावटी सांस अविलम्ब देना आरम्भ कर दीजिये।
4. मरीज को कम्बल आदि से गर्म रखिये।

प्रश्न:- श्वसन प्रणाली के मुख्य मुख्य अंगों के नाम बताओं

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उत्तर- नाक, गला, श्वाँस मार्ग, वायु नली, कोष्ठ, फे फडें, पसलियाँ और डायफ्राम।

प्रश्न:- श्वसन क्रिया कै से होती है


उत्तर- श्वसन क्रिया को चलाने वाले डायफ्राम और पसलियाँ हैं। इस क्रिया के दो भाग होते हैं
1. श्वसन (इन्सपीरेशन) यानी सांस का अन्दर लेना।
2.उच्छवास(एक्सपीरेशन) यानी सांस का बाहर छोड़ना। छाती के अन्दर के पोले भाग के बढ़ने या फै लने एवं डायफ्राम के नीचे आने पर हवा मुख द्वारा शरीर में घुसती
है,और फें फड़े में चली जाती है। इस क्रिया को श्वांस (इन्सपीरेशन) कहते हैं। छाती के सिकु ड़ने एवं डायफ्राम के ऊपर उठने से फें फड़ों व सीने में भरी सारी हवा शरीर
से बाहर निकल जाती है। इस क्रिया को उच्छवास (एक्सपीरेशन) कहते हैं। यहीं दोनों क्रियायें निरन्तर जारी रहकर श्वसन क्रिया सम्पन्न करती हैं।

प्रश्न:- एस्फै क्शिया किसे कहते हैं


उत्तर- आग के धुयें, जहरीली गैस या अन्य किसी कारणवश जब फे फड़ों में पर्याप्त मात्रा में प्राण वायु आक्सीजन नहीं पहुँच पाती तो दम घुटने की हालत पैदा हो
जाती है। जिससे बेहोशी तथा मौत की-सी दशा आ जाती हैं। इसी कोएस्फे क्शिया कहते हैं।

प्रश्न:- दम घुटने के क्या-क्या कारण होते हैं


उत्तर- 1. श्वाँस मार्ग अवरोध-
1. श्वांस मार्ग में कोई वस्तु फँ स जाना। भोजन का अंश, मूर्छित रोगी की उल्टी का अंश,
2. रक्तकाअंशऔरनकलीदाँतइत्यादि।
ब. वायु नली के दबने से जैसे गले में रस्सी का फन्दा लगाने से।
स. वायु मार्ग में पानी चला जाना, डू बना
घ. वायु मार्ग में विषैली वायु या गैस पहुँच जाना। जैसे:- कोलगैस, सी०ओ०टू ०, कार्बन मोनो आक्साईड गैस आदि।
ड. नाक बन्दर होने से जैसे बच्चे के ऊपर कोई भारी वस्त्र पड़जाना, बेहोश व्यक्ति आधा पड़ा रहे।
च. गले में सूजन, विष द्वारा जलना, शहद की मक्खी आदि काकाटना ।
2. श्वांस क्रिया में अवरोध-
क. सीने के बढ़ने से, भीड़ में दब जाना। ख. कु चला जैसे विष खाने से मॉसपेशी का सिकु ड़ना।
ग. डिप्थीरिया जैसे रोग से सीने की गति बन्द होना।
घ. टिटनस जैसे रोग से जकड़ जाना।
3. श्वांस के न्द्र प्रभावित हो -
क. बिजली का झटका।
ख. विष का प्रभाव।
ग. तेज बुखार अथवा हाई टैम्प्रेचर ।

प्रश्न:- दम घुटने के चिन्ह व लक्षण बताओ


उत्तर- 1. सांस फू लना, बैचेनी, रोगी गला और कपड़ों को पकड़ता है।
2. चेहरा बद रंग हो जाता है। होंठ और नाखून नीले पड़ जाते हैं।
3. आँखें लाल व पुतलियाँ स्थिर पड़ जाती हैं।
4. गर्दन की शिराये फू लने लगती है।

प्रश्न:- दम घुटने का उपचार कै से करेंगे


उत्तर- 1. दम घुटने के कारण को दूर कीजिये या रोगी को ही उस स्थान से दू कीजिये।
2. सांस के रास्ते, जैसे मुँह, नाक, गला आदि साफ कीजिये।
3. गले, छाती और कमर के कपड़े ढीले कर दीजिये।
4. कम्बल आदि उढ़ाकर रोगी को गर्म कीजिये।
5. रोगी के लिये साफ हवा आने दीजिये ।भीड़ हटा इये।
6. यदि श्वसन विल्कु ल धीमा या बन्द हो गया हो तो बनावटी सांस देना प्रारम्भ कीजिये।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
प्रश्न:- बनावटी सांस देने के लिये विभिन्न तरीकों के नामबताइये
उत्तर- 1. शेफर्स मैथड (मरीज को आँधा लिटाकर कमर दबाते हैं)।
2. सिलवेस्टर्स मैथड (चित्त लिटा कर हाथों को छाती पर दबाते हैं)।
3. एमरसन मैथड (औंधा लिटा कर पेट पकड़ कर उठाते छोड़ते हैं)।
4. होलगर नीलसन मैथड (औंधा लिटा कर पीठ दवाते हैं,व-बाजू उठाते हैं)।
5. ईवरा किं ग मैथड (आँधा लिटा कर 'सी-सा' की भाँति झुलाते हैं)।
6. माउथ टू माउथ मैथड (मुँह से मुँह में फें क मारते हैं)।

प्रश्न:- मनुष्य के शरीर में रक्त का क्या कार्य है


उत्तर- 1. आक्सीजन को टिशू तक ले जाता है।
2. टिशू को खुराक पानी, नमक इत्यादि ले जाता है।
3. टिशू के दूषित पदार्थ वापस लेकर आता है।
4. शरीर का ताप बनाये रखता है।
5. कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता रखताहै।
6. खून का बहना रोकता है (खुरन्टबनाकर)।

प्रश्न:- रक्त संचार प्रणाली के मुख्य मुख्य अंगों के नाम बताइये


उत्तर- हृदय, धमनी, कोशिकायें।

प्रश्न:- धमनी किसे कहते हैं? धमनी से रक्त की क्या पहचान है


उत्तर- धमनी या आरटरीज सबसे मजबूत, खून ले जाने वाली नलियाँ हैं। क्योंकि हृदय धडकनें से रक्त का जोरदार धक्का इन्हें सहन करना पड़ता है। रक्त चमकीला
लाल, हृदय की धड़कन के साथ फु हारा या झटके के साथ निकलता है कटी हुई धमनी का जो सिरा हृदय के समीप होता है। वहीं से बहता है।

प्रश्न:- कोशिकायें किसे कहते हैं


उत्तर- रक्त ले जाने वाली छोटी नलियाँ हैं। के शिकाओं से रक्त स्त्राव लाल बूँद-बूँद टपकता है। इन्हें कै पलरीज कहते हैं।

प्रश्न:- शिरायें या वेन्स किसे कहते हैं-रक्त स्राव की क्यापहचान है


उत्तर- हृदय की ओर रक्त वापस ले जाने वाली नलियों को कहते हैं। के शिकाओं के मिलने से बनती है। छोटी-छोटी शिराओं से मिलने पर बड़ी-बड़ी शिरायें बनती
हैं। रक्त स्त्राव गहरा लाल, बँधी हुई धार में बहता है। घाव के सिरे या हृदय से दूर बहता है।

प्रश्न:- रक्त क्या है


उत्तर- रक्त ऐसा तरल पदार्थ है जो सिवाय कार्टीलेज, त्वचा की ऊपरी पर्त, नाखून और वालों को छोड़कर शरीर के हर भाग में पहुँच जाता है। दो भाग होते हैं।
हल्के पीले रंग का तरल, और लाल सफे द रक्त कोषाणु (ब्लड कार्पुजल्स)। सफे द कम और लाल अधिक होते हैं।

प्रश्न:- हैमरेज से क्या तात्पर्य है


उत्तर- रक्त स्त्राव या खून के बहने को ब्लड हैमरेज कहते हैं। यह दो प्रकारका होता है।
1. इन्टरनल हैमरेज या भीतरी रक्तश्रा व बाहर से दिखाई नहीं देता।जब तक कि खाँसी या उल्टी में बाहर न निकले अथवा मल या मूत्र मेंचला न जाये।
2. एक्सटरनल हैमरेज या बाहरी रक्तस्त्रा व बाहर से रक्त बहता दिखाई देता है ।

प्रश्न:- रक्त स्त्राव के चिन्ह व लक्षण क्या हैं


उत्तर- भीतरी या बाह्य-
1. त्वरित बल-हानि साथ में बेहोशी तथा चक्कर आना।
2. चेहरा तथा होंठ फीके , त्वचा ठण्डी तथा चिप चिपी होना।
3. सांस लेने में तकलीफ होना।जल्दी-जल्दी सांस लेना तथा जम्हाई आना।

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अग्निशमन एवं संरक्षा
4.नब्ज तेज एवं कमजोर और इतनी धीमी हो जाती है कि कलाई पर महसूस नहीं होती।
5.रोगी को प्यास लगती है।
6. व्याकु लता वैचेनी 'हवा कीभूख'
7. बेहोशी।
प्रश्न:- रक्त स्राव का उपचार क्या है
उत्तर- 1. रोगी को अनुकू ल स्थिति में रखिये।
2. यदि हड्डी नहीं टूटी तो अंग को तनिक ऊपर उठा दीजिये।
3. दबाव स्थानों (प्रेशरप्वाइन्ट) पर दबाव डाल कर खून बहना बन्द कीजिये।
4. घाव पर मोटी गद्दी रखकर पट्टी बाँधिये।
5. यदि बड़ी धमनी से खून बहरहा है,तो टू निके का प्रयोग कीजिये।
6. मरीज को सदमें से बचाइये। सबसे पहले ब्लीडिंग रोकें  – चोट की जगह पर किसी कपडे, रुई की मदद से ज़ोर से दबा कर रखें जिससे की ब्लीडिंग बंद हो जाये।
घाव को साफ़ करें – चोट या घाव को साबुन या गुनगुने पानी से धोएं। कटे और खुले हुए घाव में हाइड्रोजन पेरोक्साइड ना डालें। चोट पर  एंटीबायोटिक मरहम
लगायें और बैंडेज बांध दें। आगे की चिकित्सा के लिए घायल व्यक्ति को नजदीकी चिकित्सालय या अस्पताल ले जाएँ।

भीतरी रक्त स्त्राव के लिये –


1.रोगी को गर्म रखिये उसे नम्रतापूर्वक तसल्ली दीजिये। सावधानीसे शीघ्रताशीघ्र अस्पताल पहुँचाइये।
2. भीतरी रक्त स्त्राव या पेट के घाव से तनिक भी सन्देह होने पर रोगी को कु छ मत खिलाइये-पिलाइये।
3. पेट के घाव में मरीज को अस्पताल ले जाते समय पीठ के बल चित्त लिटाकर ले जाइये।
4. मरीज को सदमें से बचाइये।
प्रश्न:- करंट (बिजली का झटका) लगने पर प्राथमिक उपचार में कौन-कौन सी बातें आवश्यक है
इलेक्ट्रिक शॉक के लगने पर खतरा कर्रेंट के  वोल्टेज के हिसाब से होता है। इलेक्ट्रिक शॉक इतना खतरनाक हो सकता है कि इसमें अंदरूनी शारीर जल भी सकता है।
यह पूरी तरीके से जानलेवा है।इलेक्ट्रिक शॉक लगने पर इस प्रकार के लक्षण आप देख सकते हैं
 अत्यधिक शारीर का जलना
 उलझन में पड़ना
 साँस लेने में मुश्किल
 हार्ट अटैक
 मांसपेशियों में दर्द
 दौरा पड़ना
 बेहोश हो जाना
इलेक्ट्रिक शॉक लगने पर प्राथमिक चिकित्सा के स्टेप्स
सबसे पहले बिजली के स्त्रोत को बंद करें। अगर ना हो सके तो किसी सूखी लकड़ी , प्लास्टिक या कार्ड बोर्ड से बिजली के स्त्रोत को घायल व्यक्ति से दूर कर दें। अगर
आदमी होश में ना हो तो ABC रूल फॉलो करें।
चोट लगे हुए स्थान पर बैंडेज लगायें और जले हुए स्थानों को साफ़ कपडे से ढक दें। जल्द से जल्द मरीज़ को नज़दीकी अस्पताल पहुंचायें।

प्रश्न:- वूण्डस् या घाव से क्या तात्पर्य है


उत्तर- शरीर की स्नायुओं के टूट जाने से घाव होता है। जिसमें से रक्त वहता है और रोग फै लाने वाले कीटाणु तथा अन्य भारी हानिकारक पदार्थ अन्दर पहुँचते हैं।

प्रश्न:- घाव कितने प्रकार के होते हैं


उत्तर- 1. कटे घाव छु री, उस्तरा, काँच जैसे तेज हथियारों से।
2. छिदे घाव सुई, कील, कॉटा, संगीन जैसे नुकीले हथियारों से।
3.चिथडे घाव जानवरों के पंजो, दाँतो मशीन से।
4.बन्दूक की गोली से छिंदा या चिथड़ा घाब भी होस कता है,साथ में हड्डी भी टू ट सकती है।

प्रश्न:- घाव के उपचार में कौन-कौन सी बातें आवश्यक है

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अग्निशमन एवं संरक्षा
उत्तर- 1. रक्त स्त्राव को रोकिये।
2. मरीज को सदमे से बचाइये।
3. घाव के द्वारा रोग फै लाने वाले कीटाणु शरीर में नजाने पायें।इसके लिये सफाई अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न:- घाव के उपचार के साधारण नियम क्या हैं


उत्तर- 1. रोगी को अनुकू ल आसन में रखिये।
2. घाव को खोलिये, जरूरी कपड़ों को हटाइये।
3. घाव में से बाहरी चीजों को निकालकर साफ कीजिये।
4. घाव के खून निकलते स्थान पर कपड़े की गद्दी रखकर दवाइये। पट्टी से कस दीजिये।
5. खोपड़ी के घाव पर छल्लेदार गद्दी का प्रयोग कीजिये।
6. जब रक्त स्त्राव बन्द हो जाये तो रोगी को गर्म चाय, दूध शक्कर डालकर पिलायें।
7. यदि घाव के ऊपर खुरन्ड बन गया होतो उसे न छेड़िये।
8. रोगी को अस्पताल पहुंचाइये।

प्रश्न:- बर्न या जलने को 3 डिग्री में विवाजित है –


फर्स्ट डिग्री बर्न– इसमें चमड़े का उपरी भाग लाल हो जाता है और दर्द भी बहुत होता है। थोडा सुजन आता है और त्वचा को छू ने से सफ़े द हो जाता है। जला हुआ
त्वचा 1-2 दिन में निकल जाता है। इसमें घाव 3-6 दिन में भर जाता है।
सेकं ड डिग्री बर्न– इसमें त्वचा थोडा मोटे आकार में जल जाता है। इसमें दर्द बहुत होता है और फफोले या छाले निकल जाते हैं। इसमें त्वचा बहुत ज्यादा लाल हो
जाता है और सुजन भी आता है। इसमें घाव 2-3 हफ्ते में भर जाता है।
थर्ड डिग्री बर्न– इसमें त्वचा के तीनो लेयर जल जाता है। इसमें जला हुआ त्वचा सफ़े द हो जाता है ऐसे में दर्द कम होता है या बिलकु ल नहीं होता क्योंकि इसमें न्यूरॉन
डैमेज हो जाता है। इसमें घाव भरने में बहुत समय लग जाता है।

प्रश्न:- फर्स्ट डिग्री बर्न होने पर प्राथमिक चिकित्सा कै से करें


जले हुए जगह को 5 मिनट तक पानी में डू बा कर ठंडा कीजिये। इससे सुजन और जलन कम हो जायेगा।
 अलोवेरा क्रीम या एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट लगायें।
 हलके से बैंडेज बांधे।
 दर्द कम करने वाली दवाइयां खाएं (डॉक्टर से संपर्क करें)।
 सेकं ड डिग्री बर्न होने पर प्राथमिक चिकित्सा कै से करें
 जले हुए जगह को 15 मिनट के लिए पानी में डू बा कर ठंडा कीजिये जिससे जलन कमें और सुजन भी।

 एंटीबायोटिक क्रीम लगायें।


 प्रतिदिन नया ड्रेसिंग करें।
 दर्द कम करने वाली दवाइयां और एंटीबायोटिक खाएं (डॉक्टर से संपर्क करें)।
 थर्ड डिग्री बर्न होने पर प्राथमिक चिकित्सा कै से करें
 थर्ड डिग्री बर्न में जितनी जल्दी हो सके मरीज़ को हॉस्पिटल ले जाएँ।
 उनके शारीर या कपड़ों को ना छु एं, वे घाव में चिपक सकते हैं।
 घाव में पानी ना लगायें।
 किसी भी प्रकार का ऑइंटमेंट ना लगायें।
 प्रश्न:-. सांप काटने पर प्राथमिक चिकित्सा
 बहुत सारे सांप जहरीले नहीं होते उनके काटने पर घाव को साफ करने और दवाई लगाने से ठीक हो जाता है। लेकिन ज़रारिले सांप के काटने पर जल्द-
से-जल्द फर्स्ट ऐड की आवश्यकता होती है।सांप के काटने से त्वचा पर दो लाल बिंदु जैसे निशान आते है। 
 जहरीले सांप के काटने पर लक्षण सांप की प्रजाति के अनुसार होता है। कोबरा या क्रे ट प्रजाति के सांप के काटने पर न्यूरोलॉजिकल /मस्तिक्ष सम्बन्धी
लक्षण दीखते हैं जबकि वाईपर के काटने पर रक्त वाहिकाएं नस्ट हो जाती हैं।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

 सांप के काटने पर इलाज के लिए सही एंटी-टोक्सिन या सांप के सीरम को चुनने के लिए सांप की पहचान करना बहुत आवश्यक है।
 प्रश्न:-. सांप काटने पर लक्षण
 सांप के काटने का निशान’
 दर्द या सुन्न हो जाना दर्द के जगह पर
 लाल पड़ जाना
 काटे हुए स्थान पर गर्म लगना और सुजन आना
 सांप के काटे हुए निशान के पास के ग्रंथियों में सुजन
 आँखों में धुंधलापन
 सांस और बात करने में मुश्किल होना
 लार बहार निकलना
 बेहोश या कोमा में चले जाना
 सांप के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा के स्टेप्स
 पेशेंट को आराम दें
 शांत और अशस्वाना दें
 सांप के काटे हुए स्थान को साबुन से ज्यादा पानी में अच्छे से धोयें
 सांप के काटे हुए स्थान को हमेशा दिल से नीचें रखें
 काटे हुए स्थान और उसके आस-पास बर्फ पैक लगायें ताकि इससे ज़हर(venom) का फै लना कम हो जाये
 पेशेंट को सूने ना दें और हर पल नज़र रखे
 होश ना आने पर ABC रूल अपनाएं
 जितना जल्दी हो सके मरीज़ को अस्पताल पहुंचाएं

प्रश्न:- नाक से रक्त स्त्राव का उपचार बताइये


उत्तर- 1. किसी खुली खिड़की के सामने वायु की ओर मुँह करके रोगी को इस प्रकार बैठाओ कि उसका सिर पीछे की ओर झुका रहे और हाथ सिर के ऊपर की
ओर उठे रहें।
2. गर्दन और छाती के कसे कपड़ों को खोलिए।
3. मुँह द्वारा ही सांस लेने को कहिये।
4. पैरों को गर्म पानी में रखकर नाकपर और कालर के पास की रीढ़ पर ठण्डक पहुँचाइये।
5.घायल को नाक मत छिनक ने दीजिये।

प्रश्न:- कान से खून बहने पर क्या उपचार करेंगे


उत्तर- 1. कान में ठेठी लगाने का प्रयत्न न कीजिये।
2.एक सूखी गद्दी को धीरे से कान पर बाँधिये और उस के सिर पर चुटैले कान की ओर झुका दीजिये।
3. मरीज को तुरन्त अस्पताल पहुँचाइये।

प्रश्न:- फ्रै क्चर किसे कहते हैं


उत्तर- जीवित शरीर में हड्डी का टू टना, ऐंठना फ्रे क्चर कहलाता है।

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अग्निशमन एवं संरक्षा

प्रश्न:- हड्डी टूटने के क्या कारण होते हैं


उत्तर- 1. सीधी चोट इसमें जहाँ चोट लगती है, हड्डी उसी स्थान पर टूट जाती है।
2. गौण चोट हड्डी उस स्थान से कु छ दूरी पर टूटती है।
3. पुट्ठों के तनाव से घुटने या बॉह की हड्डियों उनमें जुड़े पुट्ठों के एका –एक सिकु ड़जाने पर टू ट जाया करती हैं।

प्रश्न:- हड्डी टूटने के भेद यानी हड्डी कितने प्रकार से टू टती है?
उत्तर- 1. सादी टू ट 2. विशेष टू ट
3. पेचीदीयाउल्झी टू ट 4.बहुखण्डी टू ट
5. पच्चड़ी टू ट 6. कच्ची टू ट |

प्रश्न:- फ्रै क्चर या हड्डी टू ट के लक्षण और चिन्ह बताओ


उत्तर- 1. टूटे स्थान पर या उसके आस-पास दर्द होना।
2. टूटे हुये स्थान पर सूजन आजाना।
3. टूटे हुये अंग को हिलाने डु लाने में भारी कठिनाई होती है।
4.अंग बैडौल या कु रूप हो जाता है। छोटा मालूम पड़ता है।
5. टूटे हुये अंग पर अस्वाभाविक कम्पन या थिरकन होना।
6. कभी-कभी किरकिरा हट भी सुनाई पड़ती है। (कच्ची टू ट में नहीं)
7.कभी-कभी मरीज को बेहोशी भी आजाती है।

प्रश्न:- फ्रै क्चर या हड्डी टू ट का उपचार बताइये


उत्तर- उसी स्थान पर हड्डी टू ट का उपचार कीजिये। जहाँ मरीज पड़ा हो, ताकि मरीज को हिलाने डु लाने से कोई कठिनाई न हो। यदि उस स्थान पर और चोट
लगने या मृत्यु का खतरा हो, तो वहाँ से हटाकर सुरक्षित स्थान पर लेकर उपचार)कीजिये।
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1. यदि साथ में घाव भी है,तो रक्तस्त्राव को रोकिये।
2. सावधानी पूर्वक व धीरे-धीरे अंग को स्वाभाविक रूप में लाकर पट्टी से बाँध दीजिये। अंग का हिलना-डु लना रोकिये।
3. बड़ी हड्डियों के टूटने पर स्पिलिन्ट (खपच्चियों पटरियों) का प्रयोग कीजिये। स्पिलिन्ट लम्बी व मजबूत होनी चाहिये। जिससे टू ट के (अगले व पिछले) जोड़ को
बाँधा जा सकते ताकि जोड-हिल नसके ।
4. स्पिलिन्टन मिलने पर छड़ी, छाता या तहाया हुआ अखवार प्रयोग में लाया जा सकता है।
5. मरीज को धैर्य बँधाइथे। कम्बल चादर आदि में लपेट कर गर्म कीजिये।
6. सदमें का उपचार कीजिये।

प्रश्न:- निचले जबड़े टू टने पर क्या उपचार होगा


उत्तर- 1. रोगी को बोलने मत दीजिये। इससे पीड़ा होती है।
2.रोगी को आगे झुकायें और अपनी हथेली से जबड़े को सम्भाले रहिये या ऊपरी जबड़े की ओर धीरे से दवाइये।
3.रोगी की ठु ड्डी के नीचे संकरी पट्टी को बीच में रखकर उसके सिर पर गाँठ लगाइये। तत्पश्चात् उसे फै ला कर माथे और कनपटी पर रख कर गाँठ लगाइये।
4.यदि रोगी को के या-उल्टी होतो पट्टी खोल दीजिये। सिर आगे झुकाइये। हाथ का सहारा नीचे के जबड़े में दीजिये। के हो जाने के बाद पुनःपट्टी बाँध दीजिये।
5. मरीज को बैठाकर थोड़ा आगे झुकाकर अस्पतालप हुँचाइये।
6. यदि स्ट्रेचर पर लिटाना हो तो आँधा लिटा कर लेजाइये।

प्रश्न:- स्पाइन फ्रै क्चर का उपचार कै से करेंगे


उत्तर- 1. यदि रोगी होश में हो तो उसे चुपचाप चित लिटाये रखिये।
2. यदि रोगी होश में नहीं है तो इस बात का ध्यान रखिये कि जीभ पलटने से सांस न रुके । सैमीप्रॉन स्थिति में लिटाइये।
3. रोगी के दोनों टखनों, घुटनों औरजांघों के बीच गदिदयाँ रख दीजिये।
4. टखने और पैरों में फिगर आफ एट पट्टी बांध दीजिये।
5. घुटने और जाँघों पर चौड़ी पट्टियाँ बाधियें।
6. सब जेबें खालीकर दीजिये।
7. रोगी को उठाते समय उसे झुकाना या मोड़ना नहीं चाहिये।
8. स्ट्रेचर या तख्ते पर इस प्रकार गद्दियाँ लगाइये कि रोगी की पीठ और गरदन को सहारा आराम मिल सके ।
9. रोगी को उठाते समय एक व्यक्ति चेहरे व गर्दन को सम्भाले अन्य पिडलियों को पकड़े तथा बीच वाले पीठ , कमर और जाँधों को सहारा देकर उठाकर स्ट्रेचर या
तख्ते पर रखें।
10. रोगी को कम्बल उढाकर गर्म रखिये तथा अविलम्ब अस्पताल पहुंचाइये।

प्रश्न:- कालर बोन फ्रै क्चर का उपचार बताइये?


उत्तर- 1. रोगी को चुटेल तरफ की बाह को सहारा देते हुये (कु हनी पर) मोड़कर उसके सोने पर ऐसे रखें कि उसके हाथ की उंगलियाँ दूसरे कन्धे पर पड़ें।
2. चुटेल बॉहकी वगल में गोल गद्दी व सीने परचौकोर गद्दी लगाइये।
3. ट्रेंग्युलर सिलिंग बाँध कर सहारा दीजिये।
4. बाँह को दो चौड़ी पट्टियों से शरीर के साथ बाँध दीजिये।

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प्रश्न:- जॉध और टॉग की हड्डी का उपचार बताइये


उत्तर- 1. रोगी के पैर और टखने को सावधानी से पकडिये।
2. चुटैल अंग को धीरे-धीरे अच्छे अंग के बराबर लाने के लिये धीरे से खीचिये।
3. टखने व घुटने के बीच में गद्दी लगाकर टखने पर फिगर आफ एट पट्टी बाँध दीजिये।
4. चौड़ी पट्टी से दोनों घुटनों को बाँधिये।
5. एक चौड़ी पट्टी टू टे अंग के ऊपर की ओर तथा एक पट्टी नीचे की ओर बाँधिये। गाँठे अच्छे अंग की ओर हों।

प्रश्न:- डिसलोके शन से क्या तात्पर्य है, इसकी क्या पहचान है


उत्तर- किसी जोड़ की एक या अधिक हड्डियों का अपने स्थान से हट जानाडिसलोके शन कहलाता है।
ये के वल जोड़ में होता है।
पहचान:-1. गम्भीर पीडा। 2. अंग या अवयव का बेकार हो जाना।
3. सूजन 4.जोड़ का कु रूप होना।
5. जोड का अचल होना या सीमित हरकत होना।
6.अंग की अस्वभाविक स्तिथि । 7. हड्डी का सिरे के स्थान से हटाना ।

प्रश्न:- डिसलोके शन का उपचार कै से किया जाता है


उत्तर- 1. हटी हुई हड्डी को ठीक करने का प्रयत्न न कीजिये।
2. अंग को सहारा देकर ऐसी अवस्था में रखिये कि रोगी को अधिकसे अधिक आराम मिले।
3. जोड़ में रक्त संचार नियन्त्रित करने के लिये जोड़ में ठण्डी गददीलगाइये।
4. यदि सन्देह हो तो हड्डी टू ट की भाँति उपचार कीजिये।

प्रश्न:- मोच आना (स्प्रेन्स) से क्या तात्पर्य है? क्या पहचान है


उत्तर- अचानक घुमाव झटका या मोड़ के कारण जोड़ में चोट पहुँचती है। फलस्वरूप इसके चारों ओर के तन्तु खिंच जाते हैं या टू ट जाते है। जोड़ में पीड़ा , जोड़
के प्रयोग में शक्ति हीनता, सूजन और नीलापन आ जाता है।

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प्रश्न:- मोच का उपचार क्या है


उत्तर- 1. जोड़ को अचल दशा में रखिये।
2. खूब दबाकर ठण्डी पट्टी रखिये। मोच लगे स्थान के अगल बगल ठण्डे पानी की गद्दी रखकर पट्टी बाँधिये।
3. मरीज को अस्पताल पहुँचाइये।

प्रश्न:- जलने के लक्षण और चिन्ह बताइये


उत्तर- चमड़ी लाल हो जाती है। छाले पड़ जाते हैं, चमड़ी जलने के बाद मॉसपेशियाँ जल जाती हैं और दर्द और जलन होती है, सदमे की भी सम्भावना रहती है।
अंग सिकु ड़कर छोटे मालूम देते हैं।

प्रश्न:- शरीर के कपड़ों में लगी आग का उपचार कै से करना चाहिये


उत्तर- 1. शरीर के जलते हुये कपड़ों की आग को कम्बल, दरी आदि लपेटकरबुझाइये। 2. मरीज को चलने फिरने व भागने मत दीजिये।
3. जले हुये स्थान से कपड़ा आदि मत हटाइये ।
4. जले हुये स्थान पर कीटाणु रहित कपड़े की गद्दी, अथवा साफ धुले कपड़े की गददी बाँध दीजिये। ताकि रोग के कीटाणु न फै ले।
5. जले भाग पर तेल चिकनाई मत लगाइये।
6. मरीज को गर्म व मीठी चाय पिलाइये।
7. जले हुये भाग को हिलाइये डु लाइए नहीं। इससे आराम मिलेगा।
8. छालों को मत फोड़िये ।
9. कम्बल आदि से मरीज को गर्म रखिये।
10. यदि चेहरा जल गया हो तो एक बड़े कपड़े में नाक व मुँह के स्थानपर छेद करके चेहरे कपड़े फै लाकर बाँध दीजिये।
11. मरीज को तसल्ली दीजिये।
12. मरीज को तुरन्त अस्पताल पहुंचाइये।

प्रश्न:- तेजाब से जले का उपचार बताइये


उत्तर- जले भाग को बहुत से पानी से धोइये। हो सके तो सोडा बाई कार्ब के घोल से धोइए।

प्रश्न:- क्षार (अलकली) से जले का उपचार बताओ


उत्तर- गुनगुने पानी में नींबू का रस या सिरका डालकर धोइये।

प्रश्न:- फासफोरस से जले का उपचार कै से करेंगे ?


उत्तर- जले स्थान पर पानी से भीगी पट्टी बाँधकर तुरन्त अस्पताल भेजिये। पट्टी पर बराबर पानी डालते रहिये, उसे सूखने मत दीजिये।

प्रश्न:- आँख में धूल मिट्टी या धातु के कण गिरने पर क्याउपचार करेंगे

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उत्तर- 1. रोगी को आँख मत मलने दीजिये।
2. प्रकाश की ओर बैठाकर निचले पलक को नीचे की ओर खींचकरदेखिये यदि कोई चीज दिखे तो रूमाल के कौने से पोंछिये।
3. ऊपरी पलक में हो तो उस पलक पर तीली आदि रखकर पलकपलटिये व रूमाल से साफ कीजिये।
4.एक बड़े बरतन में पानी लेकर मरीज को उसमें आँखे खोलने को कहिये।
5. यदि वस्तु गोले में चिपकी हो तो निकालने का प्रयास न करें ब ल्किमरीज को तुरन्त अस्पताल पहुंचाने का प्रयास करें।

प्रश्न:- कान में कोई चीज गिरी हो तो क्या उपचार करोगे


उत्तर- 1. यदि कान में कीड़ा है। कान को प्रकाश की ओर करके टार्च दिखाये। कीड़ा बाहर आ जायेगा या कोई तेल या स्प्रिंट डाल दीजिये। कीडा मर जायेगा व
बहकर बाहर आ जायेगा।
2. यदि कोई अन्य चीज हो तो तुरन्त अस्पताल ले जाइये।

प्रश्न:- नाक में कोई वस्तु गिर जाये तो क्या उपचार करेंगे
उत्तर- 1. रोगी को मुँह से सांस लेने को कहिये।
2. रोगी को डाक्टर के पास ले जाइये।

प्रश्न:- एमरजैन्सी मैथड ऑफ रेस्क्यू से क्या तात्पर्य है


उत्तर- सामान्यतः दुर्घटना स्थल पर आहत व्यक्ति के मिलने पर उसे आवश्यक फर्स्ट एड देकर स्ट्रैचर पर उठाकर ले जाना चाहिये। इसे बचाव के सामान्य उपाय
अथवा 'नार्मल मैथड ऑफ रेस्क्यू' कहते हैं।
कभी-कभी ऐसा नहीं हो पाता दुर्घटना स्थल पर एड देने से यदि आहत और फर्स्ट एडर दोनों के जीवन को कोई खतरा हो। जैसे आग बढ़ती जा रही हो या ध्वस्त भवन
के और गिरने की सम्भावना हो। ऐसी स्थिति में आहत को घटना स्थल से अविलम्ब हटाकर किसी सुरक्षित स्थल तक लाना होता है और वहाँ उसे फर्स्ट एड दिया
जाता है। ऐसे घटना स्थल से सुरक्षित स्थान तक आहत को किसी प्रकार उठाकर लाने को ही बचाव के आपात उपाय अथवा एमरजैन्सी मैथड ऑफ रेस्क्यू कहते हैं।
जैसे फायरमैन लिफ्ट, यू मैन क्रच, पिक ए बैक और हैण्ड सीट द्वारा जैसे टू हेण्डेड सीट ए श्री हेण्डेड सीट , फोर हैण्डेड सीट, फोर एण्ड आफ्ट मैथड, टोईंग और
बोलाइन ग आदि।

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स्पेशल फायर रिस्क

प्रश्न:- प्लास्टिक से क्या समझते हो


उत्तर- इस शब्द का प्रचार सर्व प्रथम अमेरिकी विक्रे ताओं द्वारा किया गया था। अब यह नाम एक प्रकार के कार्बोनिक पदार्थों को दिया जाता है। वास्तव में तरल
सैन्थेटिक तत्वों एवं कु छ प्राकृ तिक तत्वों को ताप एवं दवाव द्वारा बनाया जाता है जिससे विभिन्न प्रकार की वस्तुऐ ढालकर बनाई जाती हैं। इसी को प्लास्टिक कहते हैं।
प्लास्टिक को इनकी ताप सहन करने की क्षमता के आधार पर दो मुख्यवर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
1. थर्मो प्लास्टिक।
2. थर्मोसैटिंग प्लास्टिक ।

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प्रश्न:- थर्मो प्लास्टिक किसे कहते हैं


उत्तर- इस प्रकार के प्लास्टिक ताप पाकर मुलायम हो जाते हैं तथा ठण्डे होकर सख्त हो जाते हैं। दोबारा ताप पाकर फिर मुलायम हो जाते हैं। तथा ठण्डक पाकर
पुनः सख्त हो जाते हैं। यह क्रम बराबर चलता रहता है यानी ताप के प्रभाव से अन्य कोई रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं होती न ही कोई स्थायी परिवर्तन ही होते हैं। जैसे-
पोली वाइबिल क्लोराइड (पी०वी०सी०) जिसका बिजली के तार निर्माण में प्रयोग किया जाता है। इसको पतली चादरें , बरसाती कवर, फिल्म इत्यादि में प्रयोग किया
जाता है। इसी प्रकार पोलीस्टाइडीन भी बहुमूल्य प्लास्टिक है। इसका उपयोग बोतलों की टोपियों तथा संचालक सैलों के आवरणः बनाने में किया जाता है। कै सीन
प्लास्टिक से बटन बनाये जाते हैं।

प्रश्न:- थर्मो सैटिंग प्लास्टिक से क्या तात्पर्य है


उत्तर- इस प्रकार के प्लास्टिक भी गर्म करने पर मुलायम हो जाते हैं, परन्तु अधिक ताप बढाये जाने पर ठोस, कठोर तथा अगलनीय हो जाते हैं। सामान्यतः नर्म
अवस्था में दबाब द्वारा आवश्यक आकार दे दिया जाता है और एक बार कठोर हो जाने के बाद पुनः गर्म नहीं होते। जैसे वैकालाइट , इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन
आदि के के स, गेयर्स, प्लाइवुड को जोड़ने तथा ढलाई हेतु पाउडर बनाने में किया जाता है। यूरिया फार्म एल्डिहाइड अपनी कठोरता, बहुरंगी एवं स्थायी रंग के कारण
सुन्दर एवं सजावट की वस्तुओं को बनाने में अधिक उपयोग होता है।

प्रश्न:- क्या प्लास्टिक से आग का खतरा है


उत्तर- हॉ! प्लास्टिक भी खतरनाक हुआ करता है। यद्यपि कु छ विशेष पद्धति से बने प्लास्टिक कम खतरनाक होते हैं। साधारणतया थर्मो सैटिंग प्लास्टिक
थर्मोप्लास्टिक से कम खतरनाक होते हैं। क्योंकि वे ताप में पुनः गर्म नहीं होते। परन्तु ऐसे प्लास्टिक जो नाइट्रोसैल्यूलोज आधार पर बने होते हैं ज्यादा खतरनाक होते हैं।
जैसे सैल्यूलाइड, इथायल सैल्यूलोज, सैलोफीन इत्यादि ।

प्रश्न:- प्लास्टिक की आग पर कौन-कौन से खतरे हो सकते है


उत्तर- ज्वलनशीलता के अतिरिक्त कु छ विशेष प्रकार के प्लास्टिक कीआग पर विस्फोट का भी खतरा रहता है। कु छ भवनों में थर्मोप्लास्टिक की रूफलाइट ,
पनालीदार चादरों की छत बनाई जाती है जो आग की गर्मी से मुलायम होकर धंसक या गिर सकती है। कु छ प्लास्टिक जलकर खतरनाक गैसें निकालते हैं वहाँ ब्रीदिंग
अपरेटस का प्रयोग करना चाहिये।

प्रश्न:- प्लास्टिक की आग कै से बुझाई जाती हैं?


उत्तर- प्लास्टिक बनाने में विभिन्न प्रकार के पदार्थ एवं रसायन प्रयोग किये जाते हैं अतएव प्लास्टिक फै क्टरी की आग पर फै क्टरी के मैनेजमेंट अथवा जिम्मेदार
अधिकारियों की सलाह लेना आवश्यक है। सामान्यतः वृहद परिमाण में पानी डालकर प्लास्टिक की आग बुझाई जा सकती हैं।
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प्रश्न:- मैग्नीशियम, एल्यूम्यूनियम समय क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं


उत्तर- मैग्निशियम, एल्यूम्यूनियम और जिंक पाउडर की आग पर पानी , फोम या कै मिकल एक्सटिंयूशर्स प्रयोग नहीं कर सकते। पानी के सम्पर्क में आने पर अधिक
ताप उत्पन्न करते हैं। विस्फोटक भी हो सकते हैं। इनकी आग पर एजबेस्टस पाउडर, एजवेस्टस ग्रेफाइड, खरिया मिट्टी या सूखी वालू डालनी चाहिये। जलते हुये मैटल
को शेष बचे मैटल से अलग कराना चाहिये।

प्रश्न:- कै डमियम किसे कहते हैं? कै डमियम की आग पर क्या-क्या सावधानियाँ आवश्यक हैं
उत्तर- कै डमियम भी वास्तव में सॉफ्ट व्हाइट मैटल है जो स्टील के पुर्जो पर जंग से बचाने के लिये प्रयोग किया जाता है। आग में जलने पर जहरीला डस्ट ,
फ्यूम्स (धुआँ) निकालता है। सांस द्वारा शरीर में जाने पर बहुत दर्द व वैचेनी उत्पन्न करता है , अतः ब्रीदिंग अपरेटस का प्रयोग अति आवश्यक है। खरिया पाउडर ,
एजबेस्टस पाउडर एवं सूखी बालू प्रयोग करना चाहिये। पानी नहीं डाला जायेगा।

प्रश्न:- पैराथिओन से क्या समझते हो? इसकी आग पर क्या सावधानी बरतनी


चाहिये ?
उत्तर- 'पैराथिओन' वास्तव में व्यापारिक नाम है उस रसायन या दवाई का जो पिस्सू , भुनगे एवं कीड़े मकोड़ों को मारने के लिये प्रयोग की जाती है। यह भी बहुत
खतरनाक होती है। इसके फ्यूम्स (धुआँ) शरीर में प्रवेश करने या धूल मिट्टी मे मिलकर शरीर की चमड़ी पर पड़ने से भी बहुत प्रभावित करती है।

प्रश्न:- सोडियम क्लोरेट्स से क्या समझते हो?


उत्तर- सोडियम क्लोरेट्स व पौटाशियम क्लोरेट्स आदि क्लोरेट्स विस्फोटक पदार्थ है। ज्वलनशील एवं बहुत खतरनाक आक्सीडाइजिंग एजेन्ट है तनिक -सी रगड़ या
घिसटन से आग लगा सकते हैं। विस्फोट कर सकते है। क्लोरेट सोल्यूशन में भीगी वस्तु सूख जाने पर बहुत ज्वलनशील हो जाती है। तेजाब के सम्पर्क मेंआने पर भी
विस्फोट कर सकते हैं।

प्रश्न:- सोडियम क्लोरेट्स की आग पर क्या सावधानी बरतनी चाहिये


उत्तर- क्लोरेट्स डस्ट से बचने के लिये ब्रीदिंग अपरेट्स पहनना चाहिये। आग पर स्प्रे नाजुल द्वारा वृहद परिमाण में पानी डालना चाहिये। या बिना ब्राँच पाइप लगाये
खुली होज कपलिंग से ही पानी डालना चाहिये। ध्यान रहे कि आग पर से बहा हुआ पानी किसी ज्वलनशील पदार्थ के सम्पर्क में नहीं आना चाहिये। सूख जाने पर यह
पुनः आग भड़का सकता है। क्लोरेट्स कन्टेनर्स को ठण्डा करना चाहिये।

प्रश्न:- कार्बन डाई सल्फाइड की विशेषताएँ बताइये


उत्तर- एक हल्का पीला या रंगहीन बदबूदार द्रव है। पानी से भारी होता है। अत्यन्त ज्वलनशील वैपर्स छोड़ता है जो हवा से भारी होते हैं। वैपर नशीले भी होते हैं।
सर में दर्द और श्रवण शक्ति को भी सुन्न कर देते हैं। फ्ले श प्लाइन्ट और इग्नीशन प्वाइन्ट कम होने के कारण तनिक सी गर्मी बल्कि स्टीम पाइप या इलैक्ट्रिक बल्ब के
सम्पर्क में आने पर भी आग पकड़ लेते हैं।
प्रश्न:- कार्बन डाई सल्फाइड की आग कै से बुझाई जाती है
उत्तर- आग पर पानी डाला जा सकता है। सी०ओ०टू ० गैस प्रयोग की जा सकती है। अधिक वैपर्स होने पर ब्रीदिंग अपरेटस प्रयोग करना चाहिये। वैपर्स से
प्रभावित व्यक्ति को अविलम्व अस्पताल भेजा जाना चाहिये।

प्रश्न:- कै ल्शियम कार्बाइड की विशेषताएँ बताइये


उत्तर- कै ल्शियम कार्बाइड हल्के काले या ग्रे रंग का पत्थर जैसा पदार्थ होता है। पानी बल्कि तनिक सी नमी पाकर एसिटलीन गैस के उत्पन्न होने के कारण आग
के बढ़ने तथा विस्फोटन का खतरा रहता है। इसकी आग सूखी बालू एजबेस्टस पाउडर से ढांक कर बुझाना चाहिये। आग के पास से शेष बचे डिब्बों , इमों को अलग
हटा देना चाहिये। भीगे कार्बाइड को खुले में खींचकर जल जाने
प्रश्न:- सल्फर किसे कहते हैं
उत्तर- सल्फर गन्धक को कहते हैं। हल्के पीले रंग के क्रिस्टल या बजरी बालू के रूप में खदानों से निकलता है। कारखानों में शुद्धीकरण कर छोटे -छोटे डण्डों के
रूप में बना लिया जाता है। आग जलने पर पहले पिघलता है फिर वहने भी लगता है। डस्ट हवा में मिलकर ज्वलनशील हो जाता है जलने से बदबूदार गैस सल्फर डाई
आक्साइड उत्पन्न करता है।

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प्रश्न:- सल्फर की आग पर कै से कार्य करना चाहिये


उत्तर- छोटी-मोटी आग की उसी के पाउडर से ढक कर बुझाया जा सकता है। बड़ी आग को पानी की फु आर से बुझाना चाहिये। गैस बन जाने पर ब्रीदिंग अपरेट्स
का प्रयोग करना चाहिये।

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