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श्रीमद भागवतम 2.4.

15
यत्कीततनं यत्स्मरणं यदीक्षणं
यद्वन्दनं यच्छ्रवणं यदर्त णम् ।
लोकस्य सद्यो ववधुनोवत
कल्मषं
तमै सुभद्रश्रवसे नमो नम:
॥ 2.4.15 ॥
श्रीमद भागवतम 2.4.15
शब्दार्त
यत्-जिसका; कीततनम्-
महर्मागान; यत्-जिसका;
मरणम्-मरण; यत्-
जिसका; ईक्षणम्-दशतन;्
यत्-जिसका; वन्दनम्-
प्रार्तना; यत्-जिसका;
श्रवणम्-श्रवण; यत्-
जिसका; अर्णम्-पूिा;
श्रीमद भागवतम 2.4.15
लोकस्य–लोगों का; सद्यः-
तुरन्त; ववधुनोवत—ववशेष
रूप से स्वच्छ करता र्ै ;
कल्मषम्-पापों के प्रभावों
को; तमै—उसको;
सुभद्र—मंगलमय; श्रवसे -
श्रवण ककया गया; नमः-
नमस्कार; नमः-पुनः पुनः।
श्रीमद भागवतम 2.4.15
अन्वयः- यत् (जिसका
)कीततनं (महर्मागान )
यत्स्मरणं (जिसका मरण )
यदीक्षणं (जिसका दशतन )
यद्वन्दनं (जिसकी प्रार्तना),
यच्छ्रवणं (जिसकी महर्मा
का श्रवण ) यदर्त णम्
(जिसका पूिन ) लोकस्य
(लोगों के ) कल्मषं (पाप
श्रीमद भागवतम 2.4.15
को ) सद्यः(तुरंत ) ववधुनोवत
(ववशेष रूप से स्वच्छ करता
र्ै ), तमै (उन भगवान को
)सुभद्रश्रवसे (िो मगंल मय
यश वाले र्ैं )नमो नमः(पुनः
पुनः नमस्कार र्ै )।
अनुवाद
मैं उन सवतमंगलमय भगवान्
श्रीकृष्ण को सादर नमस्कार
श्रीमद भागवतम 2.4.15
करता हूँ जिनके यशोगान,
मरण, दशतन, वन्दन, श्रवण
तर्ा पूिन से पाप करनेवाले
के सारे पाप-फल तुरन्त धुल
िाते र्ैं ।
श्रीधरी 2.4.15
सभी साधनों की अपेक्षा
भवि की श्रेष्ठता का मरण
करते हुए श्रीशुकदेविी पुन:
श्रीमद भागवतम 2.4.15
नमस्कार यत् कीततनम्०
इत्याहद दो श्लोकों से करते र्ैं
। अर्तण पूिन को कर्ते र्ै ।
श्रीभगवान् की लीलाएूँ
मङ्गलमय र्ैं अतएव वे
सुभद्रश्रवा र्ैं ॥१५॥
सारार्त दजशिनी 2.4.15
यत्कीततनं आहद द्वारा भगवत
प्रावि में प्रवतंंधक समस्त
श्रीमद भागवतम 2.4.15
कल्मष भगवन महर्मा के
कीततन तर्ा भगवत मरण
आहद द्वारा नष्ट र्ो िाते र्ैं यर्
कर्ा गया र्ै , यदीक्षणं अर्ातत
भगवत प्रवतमा अवलोकन
|सुभद्र अर्ातत सुमंगल श्रव
अर्ातत यश जिनका र्ै ऐसे
सुभद्रश्रवसे भगवान् | इसके
श्रीमद भागवतम 2.4.15
द्वारा भगवान् की कीवति के
माधुयत को कर्ा गया र्ै |
क्रम सन्दभत 2.4.15
केवल अवतार काल में र्ी
भगवान कलमशों को नष्ट
नर्ीं करते र्ैं यर् यत्कीततनं
आहद द्वारा कर् रर्े र्ैं | यर्ाूँ
यत शब्द की आवृत्ति
एकवचन में र्ोने से यर्
श्रीमद भागवतम 2.4.15
आशय र्ै की एक ंार र्ी
करने से कल्मष नष्ट र्ो िाते
र्ैं ।
ंाल प्रंोधनी 2.4.15
तं तो उनका दशतन आहद
वनष्फल र्ी र्ोगा तर्ा ऐसा
र्ोने से उनका अवतार व्यर्त
र्ो िाएगा यहद यर् शंका र्ो
तो तत्व ज्ञान के अभाव में भी
श्रीमद भागवतम 2.4.15
साक्षात भगवान् की प्रवतमा
के र्ी दशतन आहद के फल का
मरण करते हुए यर् श्लोक
कर् रर्े र्ैं | जिनका कीततन
आहद लोकस्य अर्ातत कीततन
करने वाले पुरुष का कल्मष
अर्ातत पाप को तत्क्षण नष्ट
कर देता र्ै उनको नमस्कार र्ै
| उसका र्े तु र्ै की
श्रीमद भागवतम 2.4.15
सुभद्रश्रवसे अर्ातत उनका
यश मंगल रूप र्ै | कीततन
श्रवण मरण से भगवान् की
लीला ववजशष्टता सूचचत र्ोती
र्ै |
तात्पयत : यर्ाूँ पर सवोच्च
अत्तधकारी श्री शुकदेव
गोस्वामी द्वारा समस्त पापों
के फलों (कल्मषों) से मुि
श्रीमद भागवतम 2.4.15
र्ोने के जलए भव्य धात्तमिक
कृत्यों का सुझाव रखा हदया
र्ै । कीततन अर्ातत् यशोगान
कई प्रकार से सम्पन्न ककया
िा सकता र्ै -यर्ा मरण
करने, देवदशतन के जलए
मन्दन्दरों में िाने, भगवान् के
समक्ष प्रार्तना करने तर्ा
श्रीमद्भागवत या भगवद्गीता में
श्रीमद भागवतम 2.4.15
वर्णित ववत्तध से भगवान् की
महर्मा का पाठ सुनने से।
मधुर संगीत के सार् भगवान्
के यश का गायन करके तर्ा
श्रीमद्भागवत या भगवद्गीता
िैसे शास्त्रों का पाठ करके
कीततन सम्पन्न ककया िा
सकता र्ै ।
श्रीमद भागवतम 2.4.15
भिों को चाहर्ए कक वे
भगवान् की सदेर्
अनुपस्थिवत से वनराश न र्ों,
भले र्ी वे अपने को उनकी
संगवत में न पा रर्े र्ों।
कीततन, श्रवण, मरण आहद
(या तो सभी या इनमें से कुछ
या केवल एक) की भवि-
ववत्तध र्में उपयुि प्रकार से
श्रीमद भागवतम 2.4.15
भगवान् की हदव्य प्रेमा-भवि
सम्पन्न करके उनके सावन्न्
का वांत्तछत फल प्रदान कर
सकती र्ै । यर्ाूँ तक कक कृष्ण
या राम के नाम के उच्चारण
मात्र से वायुमण्डल
आ्ात्मिक र्ो उठता र्ै । र्में
भलीभाूँवत िान लेना चाहर्ए
कक िर्ाूँ भी ऐसी शुद्ध हदव्य
श्रीमद भागवतम 2.4.15
सेवा की िाती र्ै , वर्ाूँ
भगवान् ववद्यमान रर्ते र्ैं ।
इस प्रकार वनरपराध कीततनम्
सम्पन्न करनेवाले को भगवान्
का सकारािक सावन्न्
प्राि र्ोता र्ै। इसी प्रकार
कुशल मागतदशतन के अन्तगतत
सम्पन्न, मरण तर्ा वन्दन से
भी वांत्तछत फल प्राि र्ो
श्रीमद भागवतम 2.4.15
सकता र्ै । मनुष्य को चाहर्ए
कक भवि के स्वरूपों को
मनमाना नर्ीं गढे । वर् ककसी
मन्दन्दर में िाकर भगवान् के
स्वरूप की पूिा कर सकता र्ै
या ककसी मस्जिद या
त्तगरिाघर में भगवान् की
वनवविशेष भविमयी प्रार्तना
कर सकता र्ै । मनुष्य वन्चयय
श्रीमद भागवतम 2.4.15
र्ी पाप फलों से छूट सकता
र्ै ंशते कक वर् मन्दन्दर,
मस्जिद या त्तगरिाघर में पूिा
करके पापों के फलों से मुि
र्ोने की आशा से
िानंूझकर पाप न करने के
ंारे में सावधान रर्े ।
भविमय सेवा के ंल पर
िानंूझकर पाप करने की
श्रीमद भागवतम 2.4.15
यर् मनोवृत्ति नाम्नो ंलाद्
यस्य हर् पापंुचद्ध: कर्लाती
र्ै और भवि के मागत में यर्
संसे ंडा अपराध र्ै ।
अतएव ऐसे पापों से
सावधान रर्ने के जलए श्रवण
अत्यन्त आवश्यक र्ै । इस
श्रवण ववत्तध पर ववशेष ंल
देने के उद्देश्य से र्ी शुकदेव
श्रीमद भागवतम 2.4.15
गोस्वामी समस्त कल्याण का
आह्वान करते र्ैं ।

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