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Parivartan Senior Hindi 2022
Parivartan Senior Hindi 2022
विश्वसनीयता
न्याय सं गत
न्याय
सत्यनिष्ठा
ईमानदारी
Ministry of Environment,
UNEP Faith for Earth
Forest and Climate change
1
प्रस्तावना
व्यक्ति के अखं ड िवकास के साथ-साथ उसके सामािजक जीवन के िलये भी नैितक िशक्षा अनिवार््य है। यह छात््रोों को उनके भविष्य
को आकार देने मेें एक सकारात्मक दिशा प्रदान करती है, जो उन्हहें अधिक जिम्मेदार बनाने और अपने जीवन के उद्देश्य को समझने मेें
सहायता करती है।
किसी व्यक्ति की शिक्षा के वल ज्ञान और कौशल से पूर््ण नहीं होती। ज्ञान और कौशल के साथ यदि नैतिक सिध््ददाांत न हो तो वास्तव मेें यह
घातक साबित हो सकता हैैं।
दर्ु योधन और अर््जजुन, दोनों ही कौशल मेें निपुण थे, दनि ु या के सर््वश्रेष्ठ योध््ददाओं मेें से एक होने के बावजूद, उनके नैतिक सिध््ददाांत पूर््णतया
भिन्न थे। एक स्वार््थ, ईर्ष्या, लोभ और वासना द्वारा मार््गदर्शित था, जबकि वहीं दू सरा दैवीय सद्गुणों द्वारा मार््गदर्शित था।
इस्कॉन मेें, हमने हमेशा भौतिक आकांक्षाओ ं से ऊपर दिव्य मूल््योों और पूर््ण विकसित व्यक्तित्व के बारे मेें बात करने का प्रयत्न किया है।
हमने पिछले कु छ वर्षषों से स्कू लों मेें भगवद् गीता के प्राचीन ज्ञान के आधार पर नैतिक शिक्षा पर सफलतापूर््वक कार््यक्रम सं चालित किए
हैैं। इस वर््ष हम लोग नैतिक शिक्षा कार््यक्रम द्वारा छात््रोों को पर््ययावरण परिवर््तन के प्रति सं वेदनशील बनाने पर ध्यान दे रहे हैैं और यह
कार््यक्रम यूनाइटेड नेशन एनवायरमेेंट प्रोग्राम (यू.एन.ई.पी), यूनाइटेड रिलिजन्स इनिशिएटिव (यू.आर.आई) और फे थ फॉर अर््थ
द्वारा समर्थित है।
कोई पूछ सकता है - “पर््ययावरण ही क््योों?” पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए पर््ययावरण अति महत्वपूर््ण है। लेकिन ग्लोबल वार्ममिंग, अत्यधिक
प्रदू षण, औद्योगीकरण आदि के कारण पर््ययावरण मेें प्रबल परिवर््तन हो रहा है। प्राकृ तिक पर््ययावरण प्रकृ ति का एक उपहार है और हमेें
भविष्य मेें जीवन लाभ के लिए इसे सं रक्षित रखने की आवश्यकता है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि यह विनयशील प्रयास छात््रोों को जीवन मेें उत्कृ ष्ट मान्यताओं को विकसित करने मेें और जलवायु परिवर््तन से लड़ने
मेें सकारात्मक योगदान देने मेें सहयोग करेगा।
धन्यवाद
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विषय सूची
परोपकार 07
विश्वसनीयता 23
न्याय सं गत 40
न्याय 57
सत्यनिष्ठा 74
ईमानदारी 93
3
नैतिक शिक्षा क््योों ज़रूरी है ?
मूल््योों का इंसान के जीवन मेें अहम् योगदान होता है क््योोंकि इन््हीीं के आधार पर अच्छे बुरे या सही -गलत
की परख की जाती है। जब हम अपने जीवन मेें अच्छे मूल््योों को अपनाते है तो :
हम भगवान को समझ पाते हैैं और उनके प्रति हमारे दिल मेें श्रद्धा / प्रेम उत्पन्न होता हैैं
4
कमज़़ोर चरित्र का उदाहरण:
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1996 से 2015 की अवधि मेें जलवायु परिवर््तन से सर््ववाधिक प्रभावित देशो ं की सूची मेें भारत चौथे स्थान पर है।
इसलिए कम उम्र से ही बच््चोों को जलवायु परिवर््तन के प्रति जागरूक करके हम उन्हहें प्रकृ ति के प्रति अधिक सहनशील और
सक्रिय बना सकते हैैं ।
एक विकसित व स्थायी समाज के विकास के लिए मनुष्य के व्यवहार और जीवन शैली मेें परिवर््तन लाना आवश्यक है।
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परोपकार
महात्मा गाँधी कहते हैैं- “जहाँ प्रेम है वहां जीवन है|” लोगो ं को प्यार करने जैसे श्रेष्ठ कार््य करने से सं तुष्टि और यश स्वयं आ
जायेगा|
परोपकार वह कार््य है जिसमेें मनुष्य अपने आप को जोखिम मेें डालकर भी किसी और का भला करता है| परोपकार अन्य
लोगो ं के लिए एक प्रकार की निस्वार््थ चितं ा है| आप यह कार््य के वल अपनी इच्छा से करते हैैं, इसलिए नही ं की आप
कर््तव्य, निष्ठा, या धार्मिक कारणो ं से अपने आप को बं धा महसूस कर रहे है| यह एक प्रकार का दूसरो ं की भलाई के लिए
निस्वार््थ कार््य है| सबूतो ं से ज्ञात होता है कि मनुष्य मेें यह कार््य करने की प्रगाढ़ प्रवृत्तियां होती हैैं|
कु छ मामलो ं मेें परोपकारी कार््य की वजह से व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को भी खतरे मेें डाल देता है | ऐसे कार््य निस्वार््थ भाव से,
बिना किसी पुरस्कार की उम्मीद के किए जाते हैैं| उदाहरण के लिए, अपना दोपहर का भोजन दे देना परोपकारी है क््योोंकि
यह किसी ऐसे व्यक्ति की मदद करता है जो भूखा है, लेकिन खुद भूखे रहने की कीमत पर। अध्यनन से पता चलता है
परोपकारी मनुष्य को मन की शांति मिलती है| दूसरे का भला करने से अपने मन की दिशा और व्यवहार मेें अच्छा परिवर््तन
आ जाता है और निदं ा करने की प्रवृति कम हो जाती है| यह व्यक्तिगत मूल्य को अधिक समझने मेें भी मदद करता है, जो
खुशी और सशक्तिकरण की भावनाओ ं को बढ़़ावा देने के लिए महत्वपूर््ण है ।
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सोचने योग्य बात
इस ग्रह के नागरिक होने के नाते अन्तरिक्ष मेें यात्रा करने की आवश्यकता नही ं है| यह जानना आवश्यक
हैैं कि हम ब्रह्माण्ड और धरती के एक हिस्सा हैैं| सबसे मूलभूत बात यह पह्चानना है कि हम यह ग्रह अन्य
प्राणियो ं के साथ इस्तेमाल करते हैैं औरे हमारा कर्तत्तव्य है कि हम अपने सार््वजनिक घर की देखभाल करेें|
1. गाँव मेें एक चोर है जो शहर के अमीरों का धन लूट कर गरीबों मेें बाँट देता है| क्या यह परोपकार का कार््य है|
क््योों? या क््योों नहीं|
2. क्या आपको लगता है कि दूसरों के लिए काम करने से हमेें ख़़ुशी मिलती है| ऐसी किसी घटना पर विचार करिए
जब आपने किसी की सहायता की हो या किसी ने आपकी सहायता की हो? आपको कै सा लगा? क्या आप
सोचते है कि परोपकार के वल धन से सहायता करने पर होता है?
परोपकार क््योों आवश्यक है? समाज को विकसित और सफल बनाने के लिए हमारे जीवन मेें परोपकार होना अत्यं त
आवश्यक है | इसके अभाव से हमारा समाज सफल नही ं हो सकता और यह समाज को स्वार्थी और आपदा की ओर धके ल
देगा|
क्या आपको लगता है कि दूसरो ं के लिए काम करने से हमेें ख़़ुशी मिलती है|
ऐसी किसी घटना पर विचार करिए जब आपने किसी की सहायता की हो या
किसी ने आपकी सहायता की हो? आपको कै सा लगा? क्या आप सोचते है
कि परोपकार के वल धन से सहायता करने पर होता है?
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2. किसी को हार्दिक बधाई दीजिये|
स्वयं सेवा से के वल औरो ं का उपकार ही नही ं होता बल्कि अपने उद्देश्य और मूल्य की भावना मेें बढ़़ोतरी भी होती है| नेशनल
यूथ एजेेंसी रिपोर््ट के अनुसार 11 से 25 वर््ष के लोगो ं ने बताया कि स्वयं सेवा से उनके आत्म विश्वास और आत्म सम्मान मेें
वृद्धि हुई|
अतः इस प्रकार, स्वेच्छा से काम करने वालो ं ने ज़रूरतमं दो ं के प्रति अपनी ज़़िम्मेदारी का प्रदर््शन करके अपनेपन की एक
उच्च भावना को प्राप्त किया|
एक स्वयं सेवक को अपना समय एक ऐसे उद्देश्य के लिए समर्पित करना चाहिए जो उसके लिए विशेष अर््थ रखता हो।
उदाहरण के लिए, यदि आप पालतू जानवरो ं से प्यार करते हैैं, तो पशु आश्रय मेें स्वयं सेवा करना। या किसी ऐसे सं गठन मेें
योगदान करना जिसने किसी प्रियजन की ज़रूरत के समय मदद की हो।
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परोपकार के कार््य सर्वोच्च भगवान को प्रसन्न करते हैैं
परोपकारी व्यक्ति इस बात का तिरस्कार नही ं करते हैैं कि वे कितने उदार हैैं या चाहते हैैं कि वे स्वयं को और अधिक पूरा करेें
- इसके बजाय, वे अपनी निस्वार््थता को गले लगाते हैैं और वे प्यार करते हैैं कि यह उन्हहें कै सा महसूस कराता है। ये लोग
दूसरो ं का भला करना पसं द करते हैैं। अपनी दरियादिली से ये आसपास के कई लोगो ं का दिल जीत लेते हैैं। भगवद गीता मेें
उल्लेख किया गया है कि जो लोग दयालु होते हैैं और जो हमेशा कल्याणकारी गतिविधियो ं मेें लगे रहते हैैं, वे न के वल अन्य
प्राणियो ं का दिल जीतते हैैं, बल्कि सर्वोच्च भगवान, भगवान श्रीकृष्ण का भी दिल जीतते हैैं।
भगवद गीता के 12वेें अध्याय के श्लोक 13 और 14 मेें भगवान श्रीकृष्ण अर््जजुन से कहते हैैं -
जो ईर्ष्यालु नही ं है, लेकिन सभी जीवो ं के लिए एक दयालु मित्र है, जो खुद को मालिक नही ं समझता और झठू े अहंकार से
मुक्त है, जो सुख और सं कट दोनो ं मेें समान है, जो सहनशील है, हमेशा सं तुष्ट है, आत्मसं यमी है, और दृढ़ सं कल्प के साथ
भक्ति सेवा मेें लगा हुआ, उसका मन और बुद्धि मुझ पर टिकी हुई है - ऐसा मेरा भक्त मुझे बहुत प्रिय है।
(भ.गी 12.13-14)
कभी-कभी परोपकारी कार्ययों मेें लगे लोग निराश और निरुत्साहित हो जाते हैैं जब उन्हहें अन्य व्यक्तियो ं से उचित
पारस्परिकता नही ं मिलती है। भगवद गीता का यह श्लोक हमेें सुनिश्चित करता है कि हमारी दयालुता और उदारता के कार््य
कभी भी व्यर््थ नही ं जाते हैैं। भले ही हमारे आस-पास के लोग हमारे काम के लिए हमारी उचित सराहना नही ं करते हैैं,
निश्चित रूप से हमारे कार्ययों ने सर्वोच्च भगवान, श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया है। आइए इसे राजा रंतीदेव के जीवन से समझते हैैं।
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राजा रंती देव की कहानी
राजा रंतिदेव बहुत उदार राजा थे। एक बार उन््होोंने अड़तालीस दिनो ं तक उपवास किया। उनतालीसवेें दिन कीसुबह, उन्हहें
अच्छी तरह से तैयार भोजन की एक बड़़ी मात्रा मिली। लेकिन जैसे ही वह अपना भोजन करने वाले थे, एक विद्वान ब्राह्मण
पुजारी अतिथि के रूप मेें पहुुंचे। वह देख सकताथा कि सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण प्रत्येक जीवित प्राणी के हृदय मेें निवास
करते हैैं। परिणामस्वरूप, उन््होोंने विश्वास और सम्मान के साथ अपने अतिथि का स्वागतकिया और उसे भोजन का एक
हिस्सा दिया। ब्राह्मण ने अपनी सं तुष्टि तक खाया और चला गया।
अब राजा रंतिदेव ने फिर से अपना लं बा उपवास तोड़ने की तैयारी की, लेकिन जैसे ही वह अपना पहला दंश लेने ही वाले थे,
एक निम्न वर््ग का मजदूर महल मेें प्रवेश कर गया। राजा रंतिदेव भी कृ ष्ण को इस शूद्र के हृदय मेें वास करते देख सकते थे,
इसलिए उन््होोंने उन्हहें भी भोजन का हिस्सा दिया ।
शूद्र के चले जाने के बाद, कुत््तोों के झं डु से घिरा एक दाढ़़ी वाला और बदरंग आदमी राजा रंतिदेव के सामने आया।
“हे राजा,” उसने कहा, “मेरे कुत््तोों का झं डु और मैैं बहुत भूखे हैैं। कृ पया हमेें खाने के लिए कु छ देें।” राजा रंतिदेव
ने बड़़े आदर के साथ अपने भोजन मेें से जो कु छ बचा था वह कुत््तोों और उनके स्वामी को दे दिया। अब के वल पीने
का पानी बचा था, और के वल एक व्यक्ति के लिए पर््ययाप्त था। जब राजा इसे पीने ही वाला था, तो एक चांडाल (कुत्ता खाने
वाला, पुरुषो ं मेें सबसे निम्न) उसके सामने प्रकट हुआ और कहा, “हे राजा, हालाँकि मैैं नीच हूूँ , कृ पया मुझे पीने का पानी
दो।” इन दयनीय शब््दोों से प्रभावित होकर, नेकदिल राजा रंतिदेव ने कहा, इस बेचारे चांडाल के जीवन को बनाए रखने के
लिए जल अर्पित करने से, मैैं हारने वाला नही ं होऊंगा - इस दान के कार््य से मैैं अपने आप को सभी भूख, प्यास, थकान,
और भ्रम से मुक्त कर दूंगा।
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भूख और प्यास के कहर ने राजा रंतिदेव को मृत्यु के कगार पर ला खड़़ा किया था, और फिर भी उन््होोंने खुशी-खुशी पानी की
अपनी आखिरी बूं द भी बेचारे चांडाल को दे दी। तभी भगवान ब्रह्मा, भगवान शिव और अन्य महान देवता राजा के सामने
प्रकट हुए और उन््होोंने खुलासा किया कि वे ही थे जिन््होोंने खुद को ब्राह्मण, शूद्र, चांडाल और कुत््तोों के साथ आदमी के रूप मेें
प्रस्तुत किया था। उन््होोंने ऐसा के वल दयालु राजा की परीक्षा लेने के लिए किया था। उन््होोंने उदार राजा को बहुत आशीर््ववाद
दिया। वह एक महान राजा था, आतिथ्य और खाद्य पदार्थथों के वितरण के लिए उदार था। यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण ने
भी उनके दान और आतिथ्य की प्रशं सा की।
तो राजा रंतिदेव की कहानी से हमने देखा कि किस तरह से सच्चे और निस्वार््थ भाव से दूसरो ं की मदद करके , हम कितने
महान व्यक्तियो ं से आशीर््ववाद प्राप्त करते हैैं और उन्हहें खुश करते हैैं।
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भिन्न प्रकार के परोपकार
स्वयं की भावना के विस्तार के आधार पर परोपकार भिन्न प्रकार के हो सकते हैैं| यह देखा गया है कि किसी व्यक्ति की
परोपकारी गतिविधियो ं की सीमा लोगो,ं समुदायो,ं राष््ट््रोों को अपने स्वयं के साथ पहचानने की उसकी भावना के समान होती
ु या को अपने परिवार के रूप मेें महसूस करता है, वह कही ं अधिक बड़़े पैमाने पर कल्याणकारी
है| एक व्यक्ति जो पूरी दनि
कार््य कर सकता है उस व्यक्ति की तुलना मेें जो अपने परिवार के रूप मेें सिर्फ़ उन लोगो ं के साथ पहचान करता है जिनके
साथ उसका पारिवारिक सं बं ध है। इस आधार पर परोपकारिता इन वर्गगों मेें बांटी जाती है----- जेनेटिक, पारस्परिक, समूह
चयनित और शुद्ध
1.जेनेटिक परोपकारिता-
इसमेें के वल पास के परिवारो ं के सदस्य की भलाई की जाती है| जैसे माता पिता अपने बच््चोों के हित के लिए अपना योगदान
देते हैैं|
मनगटे चुन््गनेजंग मैरी कोम का जन्म 24 नवम्बर 1982 को हुआ था| वे भारतीय शौकिया मुक्केबाज, राजनीतिज्ञ, और
अवलं बी राज्यसभा के पार्लियामेेंट की मेम्बर थी|ं उनके
पति करुुँग जानते थे कि मैरी के लिए विश्व की सबसे उत्तम
खिलाडी बनने का सपना कितना आवश्यक था| इसलिए
उन््होोंने अपने जुड़वा बच््चोों (जो 2007 मेें हुए थे), की
देखभाल के लिए अपना पेशा छोड़ दिया| जब मैरी ट््ररेनिगं
के लिए गयी,ं उनके पति ने तीनो ं बच््चोों की देखभाल बड़़ी
अच्छी तरह से की और मैरी को हर घरेलु परेशानी से दूर
रखा| करुुँग ने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि मैरी के
काम मेें उनका माता बनना कभी बाधक नही ं बने| उन्हहें
कामनवेल्थ गेम्स 2018 मेें स्वर््ण पदक, अर््जनजु अवार््ड, पदम् भूषण, पदमश्री, और राजीव गाँधी खेल रत्न अवार््ड मिला| इस
सबके पीछे सबसे बड़़ा हाथ उनके पति कु रुुंग का था जिन््होोंने उनका सदैव सहयोग दिया|
2. पारस्परिक परोपकारिता:
यह आपसी लेनदेन के रिश्ते पर आधारित है| यहाँ किसी की सहायता इस आधार पर की जाती है कि कभी वह भी सहायता
के लिए आयगा| जैसे किसी को आवश्यक होने पर खाना खिलाया जाय और उम्मीद रखी जाय कि वह भी भाविष्य मेें
काम आएगा| इस परोपकारिता को सफल होने के लिए व्यक्ति को बार बार अपनी क्रिया दोहरानी चाहिये, व्यक्ति को
दसु रे व्यक्ति की सही पहचान होनी चाहिए और व्यक्ति को दसु रे का व्यवहार याद रखना चाहिए| इन बाधाओ ं के कारन
पारस्परिक परोपकारिता जेनेटिक से कम प्रचलित है| यह वास्तविक परोपकार नही ं है क््योोंकि इसमेें वापसी मदद का स्वार्थी
लक्ष्य हैैं| जबकि सच्चे परोपकार को दूसरो ं के लाभ के लिए बलिदान के रूप मेें जाना जाता है|
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3. समूह चयनित परोपकारिता:
यहाँ किसी एक समूह की सहायता की जाती है| जैसे अपने प्रयासो ं को उन लोगो ं की मदद करने मेें लगाना, जो लोग अपने
ही सामाजिक समूह के हिस्सा हो|ं
अब्राहम लिक ं न के जीवन का सबसे ज्यादा चर््चचा करने वाला पहलू सं युक्त राज्य अमेरिका मेें होने वाली गुलामी पर उनकी
विचारधारणा है| लिक ं न ने सार््वजानिक और निजी समूह मेें गुलामी का नैतिक विरोध किया है| “ मैैं स्वाभाविक रूप से
गुलामी के विरोध हूूँ | यदि गुलामी गलत नही ं है तो कु छ भी गलत नही ं है|” हालांकि, काले अफ्रीकियो ं और अफ्रीकी
अमेरिकियो ं की गुलामी को समाप्त करना देश के सं वैधानिक ढांचे मेें और देश के कई भागो ं की अर््थव्यवस्था मेें इतनी
मजबूती से अंतर्निहित था| यह समस्या जटिल और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर््ण थी। इन सब चुनौती का सामने करते हुए
भी उन््होोंने इसका अंत किया| यहाँ तक कि काले अफ्रीकियो ं और अफ्रीकी अमेरिकियो ं को वोट देने की सुविधा भी दिलाई|
4.शुद्ध परोपकारिता:
इसे नैतिक परोपकारिता भी कहते हैैं| इस तरीके मेें खतरा लेकर भी दूसरे की सहायता की जाती है| यह आतं रिक मनोबल
और इच्छा से प्रेरित होता है|
i) मदर टेरेसा:
1979 मेें गरीबी और उससे होने वाले सं कट को दूर करने के सं घर््ष मेें किए गए कार््य के
लिए मदर टेरेसा को नोबेल पीस प्राइज का अवार््ड मिला था| 1962 मेें भारत सरकार ने
मदर टेरेसा को उनके भारत के लोगो ं के लिए कार््य के लिए सम्मानित किया था| उसके
अगले वर््ष उन्हहें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था|
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उसके पिता खतरा होने पर भी शिक्षा के अधिकार के लिए बोलते रहे| यहाँ तक कि तालिबान ने उन्हहें स्कू ल बन्द नही ं करने पर
मारने की धमकी भी दी| किन्तु मलाला और उसके पिता अड़़े रहे|
2011 मेें मलाला को पाकिस्तान नेशनल यूथ प्राइज से सम्मानित किया गया|| वह प्रसिद्ध होती गयी| तालिबान ने उसे मारने का
निर्य्ण किया, भले ही वह अभी भी एक बच्ची थी। 9 अक्टू बर 2012 को, मलाला और उसकी सहेलियाँ स्कू ल बस मेें स्कूल से
घर जा रही थी।ं एक बं दूकधारी ने बस रोक कर मलाला के लिए पूछा और उसके माथे पर गोली चला दी| उसकी दो सहेलियो ं भी
घायल हो गयी|ं मलाला बहुत घायल हुई किन्तु बच गयी| वह पाकिस्तान के अस्पताल मेें रही, फिर वहां से उसे यूनाइटेड किंगडम के
अस्पताल मेें भेज दिया गया | वह वहां दो महीने तक रही|
पूरा विश्व हैरान था कि तालिबान ने एक 15 वर््ष की लड़की पर हमला किया, के वल इसलिए कि उसने शिक्षा के लिए आवाज
उठायी| बहुत लोगो ं ने मलाला को बहादरु लड़की मानकर उसका समर््थन करा| और वह बच््चोों की शिक्षा के अधिकार की प्रतीक बन
गयी|
अस्पताल से निकलने के बाद वह ब्रिटेन के स्कू ल मेें जाने लगी| अब वह बच्चो के शिक्षा के अधिकार के लिए और भी अधिक दृढ़
हो गयी| वह अब प्रसिद्ध हो गई थी ं और अपने 16वेें जन्मदिन पर उन््होोंने सं युक्त राष्टट्र युवा सभा मेें भाषण दिया था।
दिसम्बर 2014 मेें बच््चोों के शिक्षा के अधिकार पर किये गए काम के लिए उसे नोबेल पीस प्राइज मिला| उसने पुरूस्कार मेें मिले
पैसो ं से पाकिस्तान मेें लड़कियो ं का स्कू ल बनवाया| उसने आगे भी सब बच््चोों के शिक्षा अधिकार के लिए अभियान जारी रखा|
मलाला ने अपनी 18वी ं वर््षगांठ लेबनोन के शरणार्थी शिविर मेें सीरियन लड़कियो ं के लिए स्कू ल खोलकर मनाई| इसके बाद
मलाला ने ब्रिटेन के ऑक्सफोर््ड विश्वविद्यालय मेें दर््शनशास्त्र, राजनीति और अर््थशास्त्र मेें डिग्री के लिए अध्ययन किया।
भगवद्गीता 18.68-69
अनुवाद
जो व्यक्ति दूसरो ं को यह गीता का परम रहस्य बताता है वह शुद्ध भक्ति को प्राप्त करेगा और अन्त मेें वह मेरे पास वापस
आएगा | इस सं सार मेें उसकी अपेक्षा कोई अन्य सेवक न तो मुझे अधिक प्रिय है और न कभी होगा|
इस तरह वास्तविक लाभकारी कल्याण कार््य है “सबके दिल मेें भगवान के प्रति सोये हुए प्रेम को जगाना”।
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विचारने योग्य बात
असली बीमारी स्वार््थ है और उसका इलाज निस्वार््थ सेवा है|
- राधानाथ स्वामी
वन कई प्रकार से परोपकार करते हैैं| वे हमेें बहुत कु छ देते हैैं: भोजन, पानी, दवा, लकड़़ी, और यहां तक कि प्राकृ तिक चक्र
जैसे कि जलवायु और पोषक तत्व| वैज्ञानिको ं ने ऐसे उपहारो ं को ‘पारिस्थितिकी तं त्र सेवाएं ’ (ecosystem services)
करार दिया है। प्रौद्योगिकी और उद्योग के उदय ने शायद हमेें प्रकृ ति से स्थायी तौर पर दूर कर दिया है लेकिन इससे
ु या पर हमारी निर््भरता को नही ं बदला जा सकता है| माँ प्रकृ ति बहुत दयालु है और बदले मेें कु छ भी नही ं
प्राकृ तिक दनि
मांगती है। हालाँकि, हम उसे कु छ वापस नही ं दे रहे हैैं, बल्कि वनो ं की कटाई और अन्य पर््ययावरणीय गड़बड़़ी से, हम उसमेें
असं तुलन ला रहे हैैं।नीचे दिए प्रकरण के अध्यनन से हमेें पता चलेगा कि कै से पानी बचाने से लोगो ं का जीवन बदल गया
और वे अपनी आजीविका को पुनर्जिवित कर सके |
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चेक डैम इसी तरह की एक और सं रचना है जिसका इस्तेमाल राजेेंद्र ने किया | छोटी नदियो ं पर चेक डैम बनाए जाते हैैं
जिससे पानी के तालाब बन जाते हैैं ।| इससे पूरा पानी नही ं रुकता बल्कि बाद मेें ऊपर से निकलकर नीचे को बह जाता
है| जोहाद, चेक डैम, या तालाब से पानी धरती सोख लेती है और भूमि मेें पानी की आपूर्ति हो जाती है|
1985 से राजेेंद्र और उसके ग्रुप ने भारत के ग्यारह जिलो ं मेें करीब 850 गाँवो ं मेें बारिश का पानी इकठ्ठा करने के
लिए 4500 जोहाद बनाए थे | इससे इन गांवो ं मेें लोगो ं को उनकी आजीविका मिलती है, और अब वे हर समय भरपूर
मात्रा मेें भूजल की आपूर्ति रख सकते हैैं।|
राजेेंद्र को 2015 मेें स्टॉकहोम वाटर प्राइज मिला| इसके आलावा उन्हहें रमोन मग्सयसैय लीडरशिप पुरुस्कार से भी
सम्मानित किया गया| उनके काम और उपलब्धियां हमेें कठिन से कठिन कार््य करने की प्रेरणा देती है।
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मं थन
क्या आप प्रकृ ति और प्राकृ तिक सं साधनों की सुरक्षा के लिए अन्य उपाय सोच सकते हो? अपने दोस्त और रिश्तेदारों से
पूछो की वे प्रकृ ति की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाते हैैं|
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4. श्रील प्रभुपाद एक महान अध्यात्मिक दूत और परोपकारी थे क््योोंकि
1) उनके पास के वल सात डॉलर थे और वह भी उन््होोंने दूसरो ं को दे दिए
2) उन्हहें दो बार दिल के दौरे पड़़े, फिर भी उन््होोंने,अपनी जान खतरे मेें डालकर कृ ष्ण के सं देशो ं का प्रचार किया
3) उन््होोंने विश्व मेें घूमकर अनेक चेले बनाये
4) उन््होोंने 69 वर््ष की उम्र मेें अपनी यात्रा आरंभ करी
8. वह कौनसे दो अभिनव तरीके राजेेंद्र सिहं ने राजस्थान मेें पानी की व्यवस्था के लिए अपनाये थे
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9. रामायण मेें जटायु नाम का एक गिद्ध था| वह उस समय बूढा होने के कारण कमजोर था | रावन जब सीता माता का
अपहरण कर रहा तथा, उसने रावन को सीता को ले जाने से रोका | उसने देखा कि सीता माता सं कट मेें हैैं और सहायता के
लिए पुकार रही ं हैैं| वह तुरंत उनकी सहायता के लिए पहुुँ च गया|
जटायु अपनी पूरी ताकत से रावन से लड़़ा और उसका माता सीता को ले जाने मेें बाधक बन गया| पहले तो रावन डर गया|
किन्तु दूसरे ही पल मेें अपनी शक्ति बटोर कर उसने जटायु के चिथड़़े चिथड़़े कर दिए | लहू के ढेर मेें जटायु ने धीरे धीरे और
उसके प्राण निकलने लगे|
जब जटायु अपने प्राण त्याग रहा था उसी समय राम और लक्ष्मण वहां आ गए| राम और लक्ष्मण उसको रावन के कारण
मरते हुए देख कर बहुत दख ु ी हुए|
जटायु ने कौनसा परोपरकार किया?
1) शुद्ध
2) जेनेटिक
3) ग्रुप चयनित
4) पारस्परिक
10. पारस्परिक परोपकारिता के लिए किन शर्ततों का पूरा होना अनिवार््य है ? (एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैैं
1) व्यक्ति को एक से अधिक बार मिलने की सं भावना होनी चाहिय
2) दूसरे व्यक्ति की सही पहचान होनी चाहिए
3) व्यक्ति को दूसरे का व्यवहार याद रखना चाहिए
4) व्यक्तियो ं का कु छ पारिवारिक सम्बन्ध होना चाहिए
11. परोपकारिता से जुड़़े सभी सही व्यवहार चुनेें| (एक से अधिक विकल्प सही हो सकते हैैं )
1) आत्म सं वर््धन
2) आत्म श्रेष्ठता
3) पर््ययावरण समर््थक
4) आपने जो किया आप वह करेेंगे, चाहेें आपको इसकी कीमत ही क््योों ना चुकानी पड़़े
12 .निम्नलिखित कथनो ं मेें से वो सभी कथन चुनेें जहां परोपकारिता प्रदर्शित होती है
1) क्रिस एक महत्वपूर््ण नौकरी के लिए इं टरव्यू दे रहा है। उसे अपने दोस्त पैट से सं देश मिलता है कि वह बीमार है और उसे
मदद की ज़रूरत है। क्रिस तुरंत अपने दोस्त की देखभाल करने जाता है और इं टरव्यू छोड़ देता है
2) टॉम एक पालतू जानवर-प्रेमी है। वह अपने पड़़ोस मेें एक गरीब छोड़़ा हुआ पिल्ला देखता है। वह तुरंत पिल्ले को
उसकी देखभाल के लिए घर ले आता है।
माइक और जैक भाई हैैं। उनके माता-पिता गरीब हैैं इसलिए के वल एक बच्चे को स्कू ल भेजने का खर््च उठा सकते हैैं।
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3) माइक ने फै सला किया कि वह चाहता है कि उसके भाई जैक को स्कू ल जाने और शिक्षित होने का मौका मिले
हेले, मारिया की मां हैैं। जब मारिया का जन्म हुआ तो हेले ने एक शिक्षक के रूप मेें अपनी नौकरी छोड़ने का फै सला किया,
क््योोंकि वह उसकी देखभाल करने मेें सक्षम होना पसं द करती थी।
13. जिम कॉर्बेट एक शिकारी, रास्ता खोजने वाले और लेखक थे। उन्हहें ब्रिटिश भारत मेें आदमखोर बाघो ं और तेेंदओ ु ं का
शिकार करने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। उनका जन्म उत्तर भारत के नैनीताल शहर मेें हुआ था। नैनीताल के
हरे-भरे जं गलो ं और जं गल से घिरे कॉर्बेट को अपने गांव के आसपास प्रकृ ति और वन्य जीवन से लगाव हो गया। उन््होोंने
जं गली जानवरो ं के बारे मेें बहुत कु छ सीखा, जिसमेें उनकी आवाज़ और चहचहाने से उनकी पहचान करना शामिल था।
उन््होोंने जं गली जानवरो ं और पक्षियो ं को उनकी पगडंडियो ं से ढू ंढना सीखा और अंततः एक शानदार खोजी-शिकारी बन
गए।
1907 मेें, चं पावत पहली आदमखोर बाघिन थी जिसे उन््होोंने मारा था। बं गाल की बाघिन ने करीब 436 लोगो ं की जान
ली थी। जब बाघिन ने एक गांव की लड़की को मार डाला, तो कॉर्बेट ने खून के निशान का पीछा किया और बाघिन को ढू ंढ
निकाला। बाघिन को ढू ंढने की प्रक्रिया मेें वह खुद लगभग मारा गया था। अगले दिन कॉर्बेट ग्रामीणो ं की मदद से बाघ का
शिकार करने मेें सफल रहे।
जं गलो ं मेें बहुत समय बिताने के बाद, कॉर्बेट अंततः प्राकृ तिक सं तुलन के सं रक्षण के एक बड़़े समर््थक बन गए। उन््होोंने कई
व्याख्यान दिए और शैक्षणिक सं स्थानो ं और समाजो ं को वन्यजीवो ं और प्रकृ ति के लिए इसके महत्व के बारे मेें जानकारी
प्रदान की। उन््होोंने 1936 मेें एशिया का पहला राष्ट्रीय उद्यान, हैली नेशनल पार््क बनाने मेें मदद की। बाद मेें उनके सम्मान
मेें इसका नाम बदलकर जिम कॉर्बेट नेशनल पार््क कर दिया गया।
जिम कॉर्बेट ने नैतिक मूल्य कै से प्रदर्शित किए?
1) सरकार द्वारा बुलाए जाने पर बाघ का शिकार करने के लिए आ कर
2) ग्रामीणो ं की रक्षा के लिए आदमखोर बाघ का शिकार करने के लिए अपनी जान जोखिम मेें डालकर
3) जानवरो ं के लिए एक राष्ट्रीय उद्यान बनाकर
4) वन्यजीव सं रक्षण पर व्याख्यान देकर और जानकारी प्रदान करके
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15. तुम्हारा एक दोस्त कठिन समय से गुजर रहा है। तुमने अभी-अभी परोपकारिता के बारे मेें सीखा है और इसका
अभ्यास करना चाहते हो। अपने मित्र के लिए आप सबसे अच्छी बात क्या कर सकते हैैं?
1) उनकी प्रशं सा करेें
2) उन्हहें एक अच्छा उपहार देें
3) उन्हहें एक फिल्म दिखाने के लिए बाहर ले जाओ
4) उनकी समस्याओ ं को सुनो और उन्हहें जागरूक करो कि हमारे दख
ु का मूल कारण हमारे परमपिता भगवान कृ ष्ण जी से
अलग होना है
16. जो रोज़ काम करने के लिए ट््ररेन से जाता है। अपने स्टेशन पर उतरने के बाद उन्हहें स्टेशन की कॉफी शॉप से रोज एक
कॉफी और छोटा के क लेता है। इस स्थिति मेें जो कै से परोपकारी रूप से कार््य कर सकता है?
1) वह स्वादिष्ट कॉफी बनाने के लिए बरिस्ता का शुक्रिया अदा कर सकते हैैं
2) वह कॉफी की दक ु ान पर बता सकते हैैं कि वह उनकी दक ु ान पर स्वयं सेवक के रूप मेें कार््य कर सकता है अगर उन्हहें
इसकी जरूरत है।
3) वह किसी साथी यात्री के लिए कॉफी खरीद सकता है।
4) इस स्थिति मेें परोपकारी रूप से कार््य करना सं भव नही ं है
17. मुगल भारत के महान सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसकी याद मेें ताजमहल का
निर््ममाण करवाया था। ताजमहल को दनि ु या के सात अजूबो ं मेें शामिल किया गया है और इसके निर््ममाण के दौरान 22000
श्रमिको ं को रोजगार मिला था। शाहजहाँ ने किसके लिए परोपकारिता का प्रदर््शन किया?
क) अपनी पत्नी के लिए ताजमहल बनाकर
ख) 22000 श्रमिको ं को रोजगार प्रदान करके
ग) भारत के लिए देश को दनि ु या के सात अजूबो ं मेें से एक देकर
घ) उन््होोंने परोपकार नही ं दिखाया
18. समस्त मानव समाज के लिए कौनसी सर्वोत्तम कल्याण सेवा है? (भा. ग 5.25)
1) जरूरतमं द मेें खाना बाँटना
2) अपने मन और वचनो से जरूरतमं द की सेवा करना
3) अपने मन और वचनो से जरूरतमं द की सेवा करना
4) समस्त मानव समाज मेें सेवा की भावना जागृत करना
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19. मन और शरीर से की गयी सेवा शुद्ध कल्याण गतिविधि क््योों नही ं मानी जाती? (भ ग 5.25)
1) यह सम्पूर््ण नही ं है
2) इससे अस्थायी राहत होती है
3) इसे प्राप्त करना कठिन है
4) इनमे से कोई नही ं
20. भ ग 10.27 मेें कृ ष्ण कहते है - “नराणां च नराधिपम् मैैं मानव जाति मेें राजा हूूँ ” राजा सर्वोत्तम स्वामी का प्रतिनिधि
क््योों हैैं?
1) नेक राजा जो सदैव नागरिक के कल्याण के बारे मेें सोचता है
2) नेक राजा जो सदैव नागरिक की मूलभूत जरूरतेें प्रदान करता है
3) नेक राजा अपने राज्य को चोरो ं और लूटेरो ं से बचाता है
4) इनमे से कोई नही
21. भगवत गीता 11.55 के आधार पर कृ ष्ण भावना का प्रचार परोपकारिता के किस श्रेणी के अंतर््गत आता है?
1) जेनेटिक
2) पारस्परिक
3) ग्रुप चयनित
4) शुद्ध
22. भागवत गीता 11.55 मेें परोपकारी मनुष्य के कौनसे तीन उदहारण उल्लेख किये गए हैैं?
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23. भ ग 18.68-69 के आधार पर कृ ष्ण भावनाभावित चेतना का सन्देश देने का समाज के कल्याण पर क्या असर होता
है?
1) व्यक्ति को अच्छाई का तरीका प्राप्त होगा
2) व्यक्ति को इश्वर की प्राप्ति होगी
3) व्यक्ति को शुद्ध धार्मिक सेवा का लाभ होगा
4) वह भौतिक रूप से सं पन्न बन जाएगा
5) वह इश्वर का प्यारा बन जाएगा
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24. लोगो ं मेें धर््म को फ़़ै लाने और उनमेें से अधर््म को दूर करने के लिए अर््जनजु को एक बड़़ा परोपकारी कार््य करना पड़़ा था ।
भगवद्गीता 2.7 के आधार पर कल्याण सेवा करने मेें कौनसी बाधाएं आ सकती हैैं?
1) कृ पणता
2) कमजोर ह्रदय
3) सकु चित दृष्टि
4) ऊपर वाले सब
25. स्वार्थी होना और के वल अपने और अपने परिवार के बारे मेें सोचने को --------- की बीमारी से तुलना की गयी है|
(भ ग 2.7)
1) ह्रदय
2) पित्त
3) मस्तिष्क
4) त्वचा
26. ब्राह्मण वह बुद्धिमान व्यक्ति है जो इस शरीर का उपयोग _____________ को हल करने के लिए करता है|
कृ पण, या कं जूस व्यक्ति, जीवन की भौतिक अवधारणा मेें परिवार, समाज, देश आदि के प्रति______________ होने
मेें अपना समय बर््बबाद करते हैैं।|(भगवद्गीता 2.7)
1) शारीरिक आवश्यकताएं , बहुत अधिक स्नेही
2) जीवन की सभी समस्याएं, दयालु
3) जीवन की सभी समस्याएं, बहुत अधिक स्नेही
4) शारीरिक आवश्यकताएं , दयालु
27. मानव कल्याण के लिए दिया गया त्याग कभी नही ं छोड़ना चाहिए| त्याग, दान, और तपस्या का क्या परिणाम है?
भगवद्गीता 18.5
1) वे महान आत्मा को भी शुद्ध कर देते हैैं|
2) वे जनता मेें विश्वास और मान्यता का नेतत्व
ृ करते हैैं|
3) दान देने से कर मेें छू ट मिलती है|
4) वे आत्म सम्मान. एटीएम मूल्य और मन की खुशी को बढ़़ाते हैैं|
28. कै से कल्याणकारी गतिविधियो ं को सत्तोगुण की अवस्था मेें कहा जाता है? भ ग (17.20)
1) जब कार््य कर्तत्तव्य से, बिना किसी उम्मीद के , सही स्थान पर, सही समय पर, और सही व्यक्ति के लिए करते है|
2) जब कार््य किसी उम्मीद के करा जाता है|
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3) जब कार््य गरीबो ं के लिए किया जाता है|
4) जब कार््य पीड़़ित लोगो ं के स्वास्थ्य के लिए करा जाता है|
29. हम जानते हैैं कि “जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा|” इसलिए यदि हम दूसरो ं से अच्छा व्यवहार चाहते हैैं तो हमेें भी
उनके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए| भगवत गीता मेें 14.18 के अनुसार सत्तोगुण, रजोगुण और तमोगुण मेें व्यक्ति
की क्या गति होती है?
1) ऊंचा ग्रह स्वर््ग मेें; ; सांसारिक दनि
ु या मेें; नीचे नरक की दनिु या मेें;
2) अध्यात्मिक सं सार मेें; ऊंचा ग्रह स्वर््ग मेें; सांसारिक दनि
ु या मेें;
3) अध्यात्मिक सं सार मेें; सांसारिक दनि ु या मेें; नीचे नरक की दनिु या मेें
4) मृत्यु के बाद सब अंत हो जाता है, इसलिए इससे कोई अंतर नही ं होता है कि हम अपने जीवन मेें क्या करते हैैं|
30. दयालु और परोपकारी होना निश्चित रूप से दैवी गुण हैैं| चाहे कोई व्यक्ति दसु रो पर दयालु की क््यूूँ ना हो, फिर भी
उसकी आलोचना करने वाले कु छ व्यक्ति जरूर होते हैैं और ऐसे व्यक्तियो ं को आसुरी गुण वाला कहा जाता है| आसुरी
गुण वालो ं के कु छ लक्षण बताईये| (भ ग 16. 9-10 और 16.17)
1) वे व्यक्ति दनिु या को नष्ट करने के लिए बिना लाभ के भयानक कामो ं मेें जुटेें रहते हैैं| वे लोग वासना, झूठी शान, धन
और प्रतिष्ठा के मोह मेें पड़़े रहते हैैं| वे कई बार त्याग के वल अपना नाम कमाने के लिए ही करते हैैं|
2) वे व्यक्ति धन और झूठी प्रतिष्ठा के लिए बहक जाते हैैं| वे कई बार बलिदान घमं ड मेें नाम कमाने के लिए करते हैैं|
3) वे व्यक्ति अभिमानी, कठोर, और अज्ञानी होते हैैं किन्तु बलिदान के लिए कु छ स्वच्छता बनाये रखते हैैं|
4) वे भ्रमो ं के जाल मेें फं से रहते हैैं और मौज मस्ती मेें रहते हुए पुण्य के काम करते रहते हैैं
31. हम अपने आस पास के प्रिय लोगो ं के साथ वफादार और परोपकारी होते हैैं किन्तु यदि हम सबसे उदार और दयालु
बनना चाहते है तो हमेें उनसे सम्बन्ध बनाना होगा| सभी से सम्बन्ध बनाने के लिए क्या केें द्र बिदं ु होना चाहिए? (भ ग.15.7)
1) राष्टट्रवाद की भावना
2) किसी एक जाति, पं थ और वर््ण के लिए अपनेपन की भावना
3) यह कि हम सब एक ही भगवान से सम्बं धित हैैं
4) सं विधान मेें लिखी समानता और भाईचारा हमेें साथ लाने मेें काफी है|
32. मं दिरो ं को दान देने वाले व्यक्ति को पवित्र माना जाएगा। हालांकि एक अन्य व्यक्ति एक नशेड़़ी व्यक्ति को अधिक
शराब खरीदने के लिए दान देता है। क्या दान के इस दूसरे उदाहरण को घिनौना काम माना जा सकता है? यदि हां, तो
क््योों ? (भगवद्गीता 17.28)
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1) नही,ं यह कोई घृणित काम नही ं होगा क््योोंकि वह व्यक्ति दूसरो ं की मदद कर रहा है।
2) हाँ, यह एक घृणित कार््य होगा क््योोंकि वह बिना किसी मार््गदर््शन और दिव्य उद्देश्य के यह दान कर रहा है।
3) दान एक ऐसा महान कार््य है जिसे किसी भी रूप मेें किया जा सकता है
4) इनमे से कोई भी नही।ं
33. परोपकारी व्यक्ति कभी भी दूसरो ं के कल्याण के लिए दान देने के लिए ज्यादा नही ं सोचेगा। भगवद्गीता ने किस प्रकार
के दान की सलाह दी है? ( भगवद्गीता 16.1-3)
1) जुनून की विधि से दान
2) भलाई की विधि से दान
3) अज्ञानता मेें दान
4) ऊपर के सभी।
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विश्वसनीयता
अच्छे चरित्र की परीक्षा के रूप मेें विश्वसनीयता से बढ़कर अधिक सार््वभौमिक रूप से स्वीकार््य
कोई भी अन्य गुण नही ं है। -हेनरी इमरसन
जो छोटी-छोटी बातो ं मेें सत्य के प्रति लापरवाह है, महत्त्वपूर््ण मामलो ं मेें उस पर विश्वास नही ं
किया जा सकता है।
-अल्बर््ट आइंस्टीन
मं थन
ऐसे कई स्थान हैैं जहां कोई विश्वास की तलाश करता है, जैसे, अखबार पढ़ना, चुनाव के दौरान मतदान करने वाला
उम्मीदवार। क्या आप कु छ और लोगो ं या लेखो ं पर चर््चचा कर सकते हैैं जहाँ आप इस मूल्य की तलाश करते हैैं?
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कथा-प्रसं ग
द्वापर युग के अंतिम चरण के दौरान, मथुरा नगर मेें एक विवाह
समारोह था। यह नगर यमुना नदी के किनारे बसा था। वसुदेव का
विवाह देवकी से हुआ, और उनका रथ देवकी का चचेरा भाई कं स
चला रहा था।
अचानक, आकाश से एक तेज आवाज आई, “क्रू र कं स, देवकी की
आठवी ं सं तान एक दिन तुम्हारा वध करेगी।”
इस आकाशवाणी को सुनकर कं स घबरा गया। उसने देवकी के बाल
पकड़कर उसे रथ से खीचं लिया और कहा, “मैैं तुम्हहें मार डालूँगा।
जब तुम्हारी कोई सन्तान ही नही ं उत्पन्न होगी तो कोई मुझे मार नही ं
सके गा।” लेकिन, उसके पति वासुदेव ने कं स से विनती की, “कृ पया
अपनी बहन को मत मारो। मैैं आपको वचन देता हूूं कि हम अपने
सभी बच््चोों को पैदा होते ही आपको सौपं देेंगे। लेकिन कृ पया मेरी
पत्नी को मत मारो।”
चूँकि वसुदेव ने कं स से वादा किया था, इसलिए हर बार जब देवकी को बच्चा पैदा होता था, तो वसुदेव बच्चे को कं स को
सौपं देते थे। इस प्रकार वह अपना वचन पूरा करके कं स जैसे असुर व्यक्ति का भी विश्वास जीतने मेें सफल हो गया।
मं थन
अत:, इस कहानी से आपको किस सिद्धान्त का पता चला? हम इससे क्या सीख ले सकते हैैं?
एक भरोसेमंद व्यक्ति अच्छे या बुरे सभी का विश्वास हासिल कर सकता है। सच अपने बल पर खड़़ा होता है। इसे झठू ी राय या
विश्वास की आवश्यकता नही ं है। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति जिसके साथ हम काम करते हैैं, हमसे अक्सर झठू बोलता है।
उसका दावा है कि वह ऐसे काम कर लेगा जो वह नही ं कर सकता या वह ऐसे काम नही ं कर पायेगा जो वह कर सकता है। अगर
हमेें बार-बार उनके द्वारा गुमराह किया जाता है, तो अंततः हम उन्हहें अविश्वसनीय मानेेंगे और उसके स्थान पर दूसरे की तलाश
करेेंग।े
हम अपने आप को अपने लिए और अधिक विश्वसनीय कै से बना सकते हैैं? ईमानदारी से खुद के साथ ईमानदार होने का प्रयास
करके । क्या होगा यदि हम आदत के कारण स्वयं से झठू बोलते हैैं? हम नियमित आत्मनिरीक्षण के लिए समय निकाल सकते
हैैं, जिसमेें हम अपनी आत्म-चर््चचा का मूल््याांकन करते हैैं। जब हम इस प्रकार स्वयं को स्वीकार करते हैैं, तो हम अपनी बुद्धि को
मजबूत और तेज करते हैैं, जिससे स्वयं को सुधारने की नीवं तैयार होती है।
विश्वास सफल रिश््तोों, सं वाद और कार््यवाही की नीवं रहा है।
सकता है। अगर हमेें बार-बार उनके द्वारा गुमराह किया जाता है, तो अंततः हम उन्हहें अविश्वसनीय मानेेंगे और उसके स्थान पर
दूसरे की तलाश करेेंग।े
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हम अपने आप को अपने लिए और अधिक विश्वसनीय कै से बना सकते हैैं? ईमानदारी से खुद के साथ ईमानदार होने का प्रयास
करके । क्या होगा यदि हम आदत के कारण स्वयं से झठू बोलते हैैं? हम नियमित आत्मनिरीक्षण के लिए समय निकाल सकते
हैैं, जिसमेें हम अपनी आत्म-चर््चचा का मूल््याांकन करते हैैं। जब हम इस प्रकार स्वयं को स्वीकार करते हैैं, तो हम अपनी बुद्धि को
मजबूत और तेज करते हैैं, जिससे स्वयं को सुधारने की नीवं तैयार होती है।
उचित कार््य करने का साहस रखना। कोई चीज हासिल करने के लिए धोखा देना
अपने परिवार, दोस््तोों और समुदाय के साथ खड़़े अपनी परेशानी के लिए सभी को दोष देना
रहेें।
सत्य बोलना, भले ही इससे स्वयं के लिए अपने कार्ययों के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करने से
कठिनाई उत्पन्न हो जाये इन्कार
जो वस्तुएँ किसी अन्य की हो ं उन्हहें वापस लौटाना हेरफे र करने का प्रयास करना
एक अच्छी प्रतिष्ठा स्थापित करना अक्सर सलाह मांगना लेकिन कभी उसका
उपयोग नही ं करना
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विचार हेतु आहार : अपना विश्वास अर्जित करेें
विश्वास तभी अर्जित किया जा सकता है जब शब््दोों और कार्ययों के बीच एकरूपता हो - हम वही करते हैैं जो
हम बोलते हैैं और हम वही बोलते हैैं जो हम करते हैैं। हो सकता है कि शुरुआत मेें आप लोगो ं को अपने
स्वभाव और चपलता से आकर्षित करने मेें सक्षम हो, लेकिन यह आकर््षण शीघ्र ही फीका पड़ जाएगा यदि
इसे सत्यनिष्ठा द्वारा बनाए नही ं रखा गया।
दनि
ु या आमतौर पर हमेें हमारी सं पत्ति से परिभाषित करती है - हम क्या पहनते हैैं, हम क्या चलाते हैैं, हमारे पास क्या है,
उदाहरण के लिए। इस व्यापक सामाजिक दर््पण से प्रभावित होकर, हम भी अक्सर इसी तरह खुद को परिभाषित करते हैैं।
लेकिन ऐसी आत्म-परिभाषा चं चल और च्युत है। चं चल क््योोंकि यह नाटकीय रूप से या दर््दनाक रूप से बदल सकता है
क््योोंकि हमारे भौतिक भाग्य बदलते हैैं। और च्युत है क््योोंकि यह हमारे चरित्र, हमारे दिल, हम कौन हैैं इसका सार प्रकट
नही ं करता है।
फिर भी कु छ लोग सामाजिक आईने मेें खुद का एक चापलूसी प्रतिबिबं देखने के लिए इतने बेताब हैैं कि वे अपनी सं पत्ति
बढ़़ाने के लिए तरसते और गुलामी करते हैैं - और यहां तक कि अपनी नैतिकता और अखं डता पर असभ्य सवारी करते हैैं।
ऐसी आत्म-परिभाषा वाले लोगो ं पर कभी भरोसा नही ं किया जा सकता है। भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 44 मेें
कहा गया है -
ओह, यह कितना अजीब होता है कि हम बहुत बड़़े पाप कर््म करने की तैयारी कर रहे हैैं। शाही सुख का आनं द लेने
की इच्छा से प्रेरित होकर, हम अपने ही रिश्तेदारो ं को मारने पर आमादा हैैं।
पांडव हमेशा अपने भाइयो ं कौरवो ं के प्रति कोमल और दयालु थे। वे सदैव उनके शुभचितं क रहे हैैं। उन््होोंने कई मौको ं पर
दर्ु योधन और उसके भाइयो ं पर भरोसा किया लेकिन हमेशा उनके साथ विश्वासघात किया गया। क््योों? ऐसा इसलिए है
क््योोंकि कौरव हमेशा अपनी स्वार्थी इच्छाओ ं के दास थे। उदाहरण के लिए, एक बार दर्ु योधन ने पांडवो ं के लिए एक स्वादिष्ट
दावत की व्यवस्था की लेकिन उसने भीम के भोजन मेें जानबूझकर जहर मिलाया। एक अन्य अवसर पर उसने उनके आनं द
के लिए वार््णणावता मेें उनके लिए एक विशाल महल बनवाया। लेकिन पांडवो ं के वहां रहने के लिए चले जाने
33
के बाद उसमेें आग लगा दी गई। हालाँकि पांडवो ं को जुए मेें धोखा दिया गया था और फिर उन्हहें 13 साल के लिए वनवास
भेज दिया गया था, लेकिन उन्हहें उनका राज्य वापस नही ं किया गया था जैसा कि उनसे वादा किया गया था। इसके विपरीत
दर्ु योधन 5 गांव भी देने को तैयार नही ं था।
तो हम आसानी से समझ सकते हैैं कि जिसका मन और
इं द्रियो ं पर नियं त्रण नही ं है, और जो हमेशा स्वार््थ के रथ परसवार रहता
है, उस पर कभी भरोसा नही ं किया जा सकता। वही ं दूसरी ओर ऐसा
व्यक्ति अपनी स्वार्थी इच्छाओ ं की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक पाप
कर सकता है।
“द 7 हैबिट्स ऑफ हाईली इफे क्टिव फै मिलीज” के लेखक डॉ. स्टीफन आर. कोवी भावनात्मक बैैंक खाते को दूसरे के साथ सं बंध
के रूप मेें परिभाषित करते हैैं। वह एक भावनात्मक बैैंक खाते की अवधारणा को एक रूपक के साथ समझाते हैैं: “एक रिश्ते मेें
विश्वास पैदा करने वाली चीजेें सक्रिय रूप से करने से, व्यक्ति के खाते मेें ‘जमा’ हो जाती हैैं। इसके विपरीत, प्रतिक्रियात्मक रूप से
विश्वास को कम करने वाली चीजेें, व्यक्ति के खाते से ‘निकल’ जाती हैैं। भावनात्मक बैैंक खाते मेें वर््तमान ‘शेष’ यह निर््धधारित करेगा
कि दो लोग कितनी अच्छी तरह सं वाद कर सकते हैैं और समस्याओ ं को एक साथ हल कर सकते हैैं।” यदि आप दूसरो ं के साथ
सं वाद करने के लिए सं घर््ष कर रहे हैैं, तो आपको स्वयं से पूछना पड़ सकता है, “क्या मुझे और जमा करने की ज़रूरत है?”
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कु छ सामान्य निकासियाँ
जब हमेें पता चलता है कि हम ये निकासियाँ कर रहे हैैं, तो हमेें तुरंत क्षमा माँगनी चाहिए और इन निकासियो ं को रोकना चाहिए।
हमेें निकासी को जमा राशि मेें परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
हम एक दूसरे के खातो ं मेें जमा करना सीख सकते हैैं। जैस-े जैसे जमा राशि बढ़ती है, अतीत मेें किसी के सामने जो चुनौतियाँ थी,ं वे
अब विश्वास बनाने के अवसर बन जाएँ गी। सं वाद मेें सुधार तब होगा जब दूसरो ं को लगेगा कि उनके परामर््श को महत्व दिया गया
है।
विश्वास उन लोगो ं के प्रति एक ऐसा दृष्टिकोण है जिनकी हम आशा करते हैैं कि वे भरोसेमंद होगं ।े
विश्वसनीयता एक सं पत्ति है न कि दृष्टिकोण। इसलिए विश्वास और विश्वसनीयता अलग हैैं, हालांकि, आदर््श रूप से, जिन पर हम
भरोसा करते हैैं वे भरोसेमंद होगं ,े और जो भरोसेमंद हैैं उन पर भरोसा किया जाएगा।
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आपको खुद को भरोसेमंद साबित करने की जरूरत है
भगवान श्री राम के सेवक हनुमान के लिए बहुत कठिन परिस्थिति थी।
सीता के अपहरण के बाद अशोक वाटिका मेें हनुमान पहली बार माता
सीता से मिल रहे थे। हनुमान जानते थे कि माता सीता के वल उनके
चेहरे को देखकर उन पर विश्वास नही ं करेेंगी इसलिए उन्हहें अपनी
प्रामाणिकता स्थापित करनी पड़़ी। उन््होोंने सबसे पहले भगवान श्री राम
के बारे मेें बात करना शुरू किया - जो माता सीता को बहुत प्रिय हैैं।
हनमु ान ने भगवान श्री राम की स्तुति की और माता सीता की स्वीकृति
प्राप्त करने के लिए लक्ष्मण का विवरण दिया। सीता देवी उनकी बात
सनु ने लगी - लेकिन उन्हहें अभी भी शं का थी।
तो हनमु ान ने बताया कि उनका अपहरण कै से हुआ था - जो रावण
को छोड़कर अन्य राक्षसो ं के लिए अज्ञात था। और अंत मेें, हनुमान ने
भगवान श्री राम द्वारा उन्हहें दी गई अंगठू ी सीता माता को दी।
विश्वास स्थापित करने के लिए, दूसरे पक्ष के दिल से जुड़़े किसी विषय पर चर््चचा करेें। थोड़़ी प्रतीक्षा कीजिए। क्या वह
आपसे बातेें साझा करने या सुनने के लिए कु छ खुल रहा है या वह अभी भी शान्त और चुप है?
जब दूसरा पक्ष इसमेें रुचि लेने लगे और (थोड़़ा-बहुत) विचार करने लगे तो सूचनाएँ साझा करनी और बात आगे
बढ़़ानी प्रारम्भ करेें।
अन्त मेें जब आप दूसरे पक्ष का विश्वास पूरी तरह से जीत लेें तो अपनी सर्वोत्तम भावना प्रकट करेें। एकदम से
प्रत्येक प्रकार का प्रस्ताव रख देने से ऐसा प्रतीत होगा कि वह एक हस्तक्षेप या हताशा या झठू जैसा कु छ बुरा है।
विश्वसनीयता स्थापित होने की प्रतीक्षा करेें।
विश्वास किसी भी रिश्ते का आधार होता है। इसके बिना, आप आगे नही ं बढ़ सकते विश्वास अर्जित करने के लिए,
ईमानदार होना और जानकारी को सही ढंग से प्रस्तुत करना बहुत महत्वपूर््ण होता है। विश्वसनीयता सिर््फ एक दिन मेें
नही ं बन सकती है, इसे बनने मेें कई वर््ष लग सकते हैैं लेकिन इसे खोने मेें सिर््फ एक पल लगता है।
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एक भरोसेमंद व्यक्ति के गुण
7. आत्म स्वामित्व
अन्तर्निर््भर बनाम सह-निर््भर : ऐसा व्यक्ति जो मित्रता पर निर््भर नही ं है। वे इस रिश्ते से मिलने वाले ध्यान और मान्यता पर
भरोसा नही ं करते हैैं। उनकी यथार््थवादी अपेक्षाएँ हैैं और वे जानते हैैं कि उन्हहें क्या देना पड़़ेगा।
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8. वफादारी की स्वस्थ भावना
जो वफादार होता है वह आपकी सहायता पाने के लिए आपको आग की लपटो ं मेें नही ं झोक
ं े गा। उन्हहें सीमाओ ं की स्पष्ट
समझ है। उनके दिल से आपका हित चाहते हैैं और वे आपको कोमल भाव से सच बताने मेें सक्षम होते हैैं।
10. जब वे आपके आसपास होते हैैं तो उनकी शारीरिक उपस्थिति सहज होती है
जब वे आपके आस-पास हो ं तो उनकी भौतिक उपस्थिति का आकलन करेें और ध्यान देें कि जब आप उनके आस-पास
होते हैैं तो आप कै सा महसूस करते हैैं। ऊर््जजा झठू नही ं बोलती है, और यह आपकी भौतिक उपस्थिति मेें दिखाई देगी। अगर
दोनो ं लोग एक-दूसरे के आस-पास आराम की स्थिति मेें रहने मेें सक्षम हैैं तो ऐसा लगता है कि उस रिश्ते मेें विश्वास की नीवं
है।
शास्त्रीय ज्ञान -
“किन्तु जो अज्ञानी तथा श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्तत्ररों मेें सन्देह करता है उसे दैवीय चेतना नही ं प्राप्त हो सकती है; उनका
विनाश होता है। सन्देह करने वाले व्यक्ति को न तो इस लोक और न परलोक मेें सुख प्राप्त होता है।”
जब हम अनुभवहीन होते हैैं, तो हम भोलेपन से विश्वास कर सकते हैैं कि हर व्यक्ति पूरी तरह से भरोसेमंद है। हमारे
भोलपन का लाभ उठाते हुए स्वार्थी लोग देर-सबेर हम पर ही सवार होगं े।
जिन लोगो ं पर हमने भरोसा किया था, उनके द्वारा निराशा या धोखा दिए जाने पर, हम हर व्यक्ति के प्रति निदं क बनकर
दूसरी चरम स्थिति पर पहुुँ च सकते हैैं। हम स्वभावत: सभी को और यहां तक कि जो दयालु और स्नेही हैैं उन्हहें भी स्वार्थी
उद्देश््योों के लिए जिम्मेदार ठहराना शुरू कर देते हैैं। इस तरह की निदं ा से हम अके ले और अलग-थलग हो जाते हैैं। भोलेपन
और निदं क के इन दो चरम के बीच विश्वास करना साहस है, जिसमेें हम स्वीकार करते हैैं कि हर किसी के अंदर दो प्रकर के
स्वभाव होते हैैं, जैसे कि स्वयं हमारे भीतर है।
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फिर भी हम यह स्वीकार करते हैैं कि हमेें प्यार करने और प्यार पाने की एक सहज आवश्यकता है, एक ऐसी आवश्यकता
जिसे हमेशा के लिए नकारा नही ं जा सकता। इसलिए, हम अपने दिमाग की जांच के साथ अपने दिल की लालसा को पूरक
करना सीखते हैैं; हम अपनी बुद्धि और अनुभव का उपयोग करके कु छ लोगो ं के लिए अपना दिल धीरे-धीरे खोलते हैैं।
जबकि सनकी लोग सभी भरोसे को भोलेपन से खारिज कर देते हैैं, हम विश्वास को साहसिक कार््य के रूप मेें देखते हैैं: कम से
कम कु छ लोगो ं को सं देह का लाभ देने की इच्छा, जैसा कि हम खुद को देते हैैं और दूसरो ं से पाने की अपेक्षा करते हैैं।
इस तरह के साहस की आवश्यकता न के वल अन्य मनुष््योों के साथ हमारे सं बं धो ं मेें बल्कि ईश्वर के साथ हमारे सं बं धो ं मेें भी
होती है।
कथा प्रसं ग
पर््ययाप्त सामूहिक कार््रवाई के बिना जलवायु परिवर््तन के विरुद्ध सं घर््ष सफल नही ं होगा। हालाँकि, इसके लिए एक आवश्यक
पूर््व शर््त लोगो ं के बीच विश्वास का अस्तित्व है। यूरोपीय सामाजिक सर्वेक्षण के परिणाम (22 देशो ं से एकत्र किए गए
आंकड़़ोों के आधार पर) बताते हैैं कि जबकि जलवायु परिवर््तन की धारणाएँ और जलवायु चितं ा का विश्वास के साथ कोई
सं बं ध नही ं होगा, तो न तो व्यक्तिगत और न राष्ट्रीय स्तर पर, जलवायु परिवर््तन के सं बं ध मेें और विभिन्न नीतिगत उपायो ं के
समर््थन पर व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की भावना पर विश्वास का कोई स्पष्ट प्रभाव पड़़ेगा।
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आस्ट्रिया (एटी), बेल्जियम (बीई), चेक रिपब्लिक (सीजेड), एस्टोनिया (ईएस), फिनलैण्ड (एफआई), फ््राांस (एफआर),
जर््मनी (डीई), हंगरी (एचयू), आइसलैण्ड (आईई), आयरलैण्ड (ईई), इजराइल (आईएस), इटली (आईटी),
लिथुआनिया (एलटी), नीदरलैण््ड््स (एनएल), नॉर्वे (एनओ), पुतर््गगाल (पीटी), रूसी सं घ (आरयू), स्लोवेनिया (एसआई),
स्वीडेन (एसई), स्विट्जरलैण्ड (एसआई), यूनाइटेड किंगडम (यूके)
यह आंकड़़ा जलवायु परिवर््तन के खिलाफ लड़़ाई मेें विश्वास के सकारात्मक प्रभाव को स्पष्ट रूप से सिद्ध करता है। यहां
क्षैतिज अक्ष पर, पिछले आरेखो ं की तरह, प्रति देश उच्च स्तर के विश्वास वाले लोगो ं का अनुपात देखा जा सकता है, जबकि
ऊर्ध्वाधर अक्ष पर, जलवायु परिवर््तन को कम करने के लिए नीतिगत उपायो ं के समर््थन को मापने वाला समग्र सं के तक
दिखाया गया है। प्रस्तावित अपेक्षा को मजबूत करने वाले सं बं ध को बहुत स्पष्ट रूप से दर््शशाया गया है, जिसके अनुसार
समाज मेें विश्वास का स्तर जितना अधिक होगा, समुदाय उतना ही अधिक सक्षम होगा कि वह सं युक्त समस्याओ ं पर काबू
पा सके । अविश्वासी मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशो ं तथा दक्षिणी यूरोप मेें नीतिगत उपायो ं के लिए समर््थन का स्तर कम है,
जबकि पश्चिमी और उत्तरी यूरोपीय देशो ं मेें यह अधिक मजबूत है जहां विश्वास का स्तर अधिक है।
स्थिरता की दिशा मेें कोई भी उपाय पहले स्वयं , हितधारको ं और खरीदारो ं के प्रति पूरी तरह से पारदर्शी और ईमानदार
होकर प्राप्त किया जा सकता है। नैतिक और सतत विकास के लिए सं क्रमण को सुविधाजनक बनाने के लिए विश्वास और
प्रक्रियाओ ं के निर््ममाण के लिए पारदर्शिता मेें वृद्धि महत्वपूर््ण होगी। यह ध्यान रखना महत्वपूर््ण है कि किसी भी उत्पाद या
ब््राांड के लिए भी उपभोक्ताओ ं के किसी ऐसे ब््राांड के प्रति वफादार होने की अधिक सं भावना है जो पूरी तरह से पारदर्शी हो
और जिस पर भरोसा किया जा सके । पारदर्शिता विश्वास का निर््ममाण करती है और विश्वास किसी भी रिश्ते, यहाँ तक कि
व्यवसायो ं की नीवं है।
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वृत्त अध्ययन
फिजी वाटर
फ़़िजी वाटर - बोतलबं द पानी के लिए एक लक्जरी ब््राांड, ने fijigreen.com लॉन्च किया,
जिसने ब््राांड की खरीद प्रक्रिया और स्थिरता की दिशा मेें उठाए जाने वाले कदमो ं का विवरण
दिया। जलवायु परिवर््तन की दिशा मेें उठाए गए कदमो ं के सकारात्मक पर््ययावरणीय प्रभाव
दिखाने के लिए ब््राांड ने अपने ब््राांड लेबल और टैग भी बदल दिए। इसने अपनी चेतना पर
जोर देने के लिए अपनी बोतलो ं पर हरे पानी की बूं दो ं से मुहर लगाई। यह चिन्ह स्वतं त्र तृतीय
पक््षोों द्वारा उपयोग की जाने वाली अनुमोदन की पर््ययावरणीय मुहरो ं से लगभग मेल खाता था।
अनेक कोशिशो ं और कड़़े विपणन प्रयासो ं के बावजूद यह अभियान फ्लॉप हो गया।
जबकि यह फ़़िजी वाटर का एक महान और उचित समय पर विपणन अभियान था, हालांकि,
उन््होोंने वास्तव मेें स्थिरता की दिशा मेें अपनी किसी पहल के बारे मेें झठू बोला था और हरे
पानी की बूं दो ं के सं के त का उपयोग करके उपभोक्ताओ ं को गुमराह भी किया था। फिजी
वाटर एक बोतल के उत्पादन और परिवहन मेें बड़़े पैमाने पर डीजल का उपयोग किया गया
और उच्च कार््बन उत्सर््जन उत्पन्न हुआ। बोतलो ं को पॉलीथीन टेरेफ््थथेलेट मेें पैक किया गया था जिनकी रीसाइक््लिगिं दर कम
है। कं पनी की वेबसाइट पर उनके सारे दावे झठू े साबित हुए।
नतीजतन, फिजी वाटर पर एक कानूनी फर््म द्वारा भ्रामक दावे करने और उपभोक्ताओ ं से झठू बोलने के लिए मुकदमा दायर
किया गया था। इससे उनके ब््राांड को अपूरणीय क्षति हुई और व्यापार को नुकसान हुआ।
यहाँ तक कि सबसे प्रतिष्ठित व्यवसाय अगर वे झठू बोलते हैैं या ग्राहको ं का विश्वास नही ं जीत सकते हैैं, तो जलवायु परिवर््तन
की दिशा मेें कोई भी पहल विफल ही होगी।
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आईए उत्तर देें
1. भरोसेमंदता के ३ अवयवो ं का उल्लेख करेें।
1) वफ़़ादारी, वादे निभाना ,झूठा
2) सत्यनिष्ठा ,वफ़़ादारी ,वादे निभाना
3) वादे निभाना, इनकार , विश्वासघात
4) इनमेें से कोई नही ं
2. पुस्तक मेें दी गई कं स और वासुदेव की कथा के अनुसार, कं स का अपनी बहन के प्रति प्रेम क््योों
गायब हो गया?
1) उसे देवकी से कभी प्रेम नही ं था
2) वह बस अपने व्यंग्य का एक प्रदर््शन कर रहा था
3) उसका एक सं दिग्ध चरित्र था
4) वह एक क्रू र व्यक्ति था
4. निम्नलिखित मेें से किस व्यक्ति पर बिल्कु ल भी भरोसा नही ं किया जा सकता है?
1) एक व्यक्ति जो धनी है
2) एक व्यक्ति जो हमेशा सच बोलता है
3) एक व्यक्ति जो स्वार्थी इच्छा से नियं त्रित होता है और उसका अपनी इं द्रियो ं पर कोई नियं त्रण नही ं होता है
4) एक व्यक्ति जिसके बहुत सारे अनुयायी हैैं
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6. हनुमान ने सीता देवी का विश्वास कै से जीता, जब वह उनसे पहली बार अशोक वाटिका मेें मिले थे ?
(सही विकल््पोों पर टिक करेें)
1) वह ईमानदार थे और उन््होोंने सही तरीके से जानकारी दी
2) उन््होोंने तुरंत भगवान राम के बारे मेें बात करना शुरू कर दिया
3) उन््होोंने झट से अंगूठी निकाली और सीता देवी को दे दी
4) वे सीता देवी की दिलचस्पी होने पर ही जानकारी के साथ आगे बढ़़े
7. एक व्यक्ति को अपना भावनात्मक बैैंक खाते को कै से बनाए रखना चाहिए? (एक से अधिक उत्तर सही हो सकते हैैं)
1) गुणवत्ता समय व्यतीत करना
2) दयालु और धैर््यवान बनेें
3) वादे पूरे नही ं करना
4) पीठ पीछे आलोचना करना
5) अपनी गलतियो ं के लिए क्षमा याचना करना !
9. विश्वसनीयता पर््ययावरण को प्रभावित करती है क््योोंकि: सही विकल््पोों पर निशान लगाएं (एक से अधिक उत्तर सही हो
सकते हैैं)
1) एक समाज जितना अधिक भरोसेमंद होता है, वह सं युक्त समस्याओ ं से निपटने मेें उतना ही अधिक सक्षम होता है
2) जलवायु परिवर््तन के धारणा का विश्वास और पर््ययावरण से कोई लेना-देना नही ं है
3) पारदर्शिता स्थिरता की ओर ले जाती है
4) जलवायु परिवर््तन स्वाभाविक है जबकि विश्वास चरित्र से सं बं धित है।
10. हरित विश्वास का मूल््याांकन करने के लिए निम्नलिखित मेें से कौन सा एक सही उपाय नही ं है?
1) उत्पाद की पर््ययावरणीय छवि आम तौर पर विश्वसनीय होती है
2) उत्पाद की पर््ययावरणीय कार््यक्षमता भरोसेमंद है
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3) उत्पाद की विपणन रणनीतियाँ
4) उत्पाद का पर््ययावरणीय प्रदर््शन आपकी अपेक्षाओ ं को पूरा करता है।
11. समाज मेें चार प्रकार के सं बं ध होते हैैं - स्वतं त्र, सह-निर््भर, अन्योन्याश्रित और आश्रित। समाज की समग्र प्रगति के
लिए कौन सा सबसे अच्छा है?
1) स्वतं त्र क््योोंकि अपने स्वयं के विचारो,ं विकल््पोों और कार्ययों मेें विश्वास रखने से आपको किसी अन्य की तरह आत्मविश्वास
को बढ़़ावा मिलता है।
2) सह-निर््भर क््योोंकि वे प्रवर््तक के लिए कठोर बलिदान करते हैैं
3) अन्योन्याश्रित क््योोंकि यह स्वयं की भावना को बनाए रखने, आवश्यकता के समय एक दूसरे की ओर बढ़ने आदि के
लिए जगह देता है।
4) आश्रित क््योोंकि यह हमारे दिमाग को शांत करता है, और हमेें दर््द से भी बचा सकता है
12. निम्नलिखित मेें से किस सं बं ध मेें एक भावनात्मक बैैंक खाते मेें वर््तमान शेष नियमित अंतराल पर बड़़ी मात्रा मेें बढ़ता या
घटता है।
1) स्वतं त्र
2) सह-आश्रित
3) अंतर-निर््भर
4) पूरी तरह से आश्रित
13. मान लीजिए आपने हाल ही मेें अपने पिता के लिए एक स्मार््टफोन खरीदा है। विज्ञापन मेें एक छोटा सा धोखा था जो
आपको कु छ दिनो ं बाद पता चला जब आपके पिता ने अपने नए स्मार््टफोन का उपयोग करते समय आपसे इस मुद्दे पर चर््चचा
की। विज्ञापन मेें दावा किया गया कि फोन मेें लं बा बैटरी बैकअप था जो कि ऐसा नही ं था। आपके अनुसार स्मार््टफ़़ोन ब््राांड
द्वारा प्रदर्शित व्यवहार क्या है?
1) ऐसी परिस्थितियो ं मेें छोटी-छोटी बातेें मायने नही ं रखती।ं
2) कं पनी सच्चाई को बढ़़ा-चढ़़ाकर पेश करती है
3) कं पनी का लक्ष्य ग्राहको ं को खुश करना है
4) कं पनी जैसी है वैसी चीजो ं को पेश कर रही है
14. एक बॉस ने अपनी टीम के एक नए सदस्य की बातो ं पर विश्वास रखते उसको एक नया कार््य सौपं ा कि कार््य समय पर
पूरा हो जाएगा। समय सीमा की तिथि पर, वह सदस्य बिना किसी पूर््व जानकारी के कार््ययालय मेें नही ं आया lइस टीम के
सदस्य द्वारा प्रदर्शित उसके किस चरित्र को दर््शशाता हैैं?
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1) किसी भी चीज़ पर जीतने के लिए धोखा देना
2) दूसरो ं को अपनी परेशानियो ं के लिए दोष देना
3) वादे न निभाने पर बहाने बनाना
4) ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करना जो उनके शब््दोों का समर््थन नही ं करता
15. एक पिता अपने बेटो ं को अपने पारिवारिक व्यवसाय को इस भरोसे के साथ सिखाता है कि वे इसका विस्तार करेेंगे और
उसे अच्छी ऊंचाइयो ं तक ले जाएं गे, लेकिन उनके 4 बेटो ं मेें से के वल 1 बेटा ही उनकी इच्छा पूरी करता है और शेष 3 बेटे
अपने पिता की इच्छा के लिए ज्यादा परेशान नही ं होते हैैं।
पिता के अनुसार शेष 3 पुत््रोों का प्रतिबिबं क्या है?
1) वे विश्वास करने के लिए सक्षम थे लेकिन भरोसेमंद नही ं हैैं
2) वे न तो विश्वास के काबिल थे और न ही भरोसेमंद हैैं |
3) वे दोनो ं विश्वास करने मेें सक्षम हैैं और भरोसेमंद भी हैैं
4) तय नही ं किया जा सकता
16. निम्नलिखित मेें से कौन सा कथन पर््ययावरणीय स्थिरता मेें एक महत्वपूर््ण कारक के रूप मेें विश्वास का समर््थन
नही ं करता है?
1) जलवायु परिवर््तन की मान्यताएं और जलवायु सं बं धी चितं ाएं विश्वास के साथ कोई सं बं ध नही ं दर््शशाती हैैं।
2) जलवायु परिवर््तन के सं बं ध मेें व्यक्तिगत जिम्मेदारी की भावना और विभिन्न नीतिगत उपायो ं के समर््थन पर विश्वास का
स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।
3) किसी समाज मेें विश्वास का स्तर जितना ऊँ चा होता है, समुदाय सं युक्त समस्याओ ं पर काबू पाने मेें उतना ही अधिक
सक्षम होता है।
4) ऊपर के सभी
17. निम्नलिखित स्थितियो ं को पढ़ें और नीचे दी गई स्थितियो ं मेें दर््शशाए गए उपयुक्त गुणवत्ता का चयन करेें। इं टर स्कू ल
प्रतियोगिता मेें,
स्थिति १ : प्रतियोगिता का आयोजन करने वाला विद्यालय अन्य विद्यालयो ं के प्रत्येक प्रतिभागी का परिणाम बोर््ड पर दिखाता
है।
स्थिति २ : स्कू ल यह भी मानता है कि प्रथम पुरस्कार पाने वाला छात्र उनके स्कू ल का है।
1) स्थिति १ - सत्यनिष्ठा , स्थिति २ - पारदर्शिता
2) स्थिति १ - पारदर्शिता , स्थिति २ - ईमानदारी
3) स्थिति १ , स्थिति २ - पारदर्शिता
4) स्थिति १ , स्थिति २ - ईमानदारी
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18. निम्नलिखित के स स्टडी को पढ़ें और उसके बाद आने वाले प्रश््नोों के उत्तर देें।वायु प्रदूषण करने वाली डीजल
कार जो “;साफ”; होने का दावा करती है|याद है जब हम सोचते थे कि डीजल कारेें पर््ययावरण के लिए बेहतर होती हैैं? यही
मार्केटिंग की ताकत है। जब ब््राांड अपने उत्पादो ं को ग्रीनवॉश करते हैैं, तो चीजेें नाटकीय रूप से उलटी हो
जाती हैैं। पर््ययावरण सं रक्षण एजेेंसी (ईपीए) ने पाया कि अमेरिका मेें बेची जा रही कई वीडब्ल्यू कारो ं मेें डीजल
इं जनो ं मेें “ डेफ़़े अट डिवाइस” (Defeat device)- या सॉफ्टवेयर था - जो पता लगा सकता था कि उनका
परीक्षण कब किया जा रहा था, परिणामो ं को बेहतर बनाने के लिए तदनुसार प्रदर््शन बदल सकता था।
वोक्सवैगन ने स्वीकार किया कि उसने अपनी 11 मिलियन डीजल कारो ं को सॉफ्टवेयर से लैस किया है, जिसका
इस्तेमाल उत्सर््जन परीक्षणो ं मेें धोखा देने के लिए किया जा सकता है, जबकि सभी वाहनो ं को “स्वच्छ डीजल” के
रूप मेें विपणन करते हैैं। जब घोटाला सामने आया, तो कार निर््ममाता को अदालतो ं के माध्यम से पकड़ लिया गया
और इको-माइं डेड उपभोक्ताओ ं को $ 11 बिलियन से अधिक वापस करने का आदेश दिया गया
1) ऊपर दिए गए के स स्टडी को पढ़ने के बाद हम कौन सी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैैं?
1) यदि आप किसी हरे उत्पाद को आगे बढ़़ाने जा रहे हैैं, तो सुनिश्चित करेें कि यह आपकी ब््राांड छवि और उद्देश्य के अनुरूप
है।
2) इसके लिए उत्पाद को हरा बनाने की कोशिश न करेें; सार््थक परिवर््तन करेें या बिल्कु ल न करेें
3) यदि आप हरित दावे करने जा रहे हैैं, तो सुनिश्चित करेें कि आप उनका बैकअप ले सकते हैैं।
4) अपनी पैकेजिगं के लिए सही निपटान विधियो ं पर स्पष्ट रहेें। यदि यह आसानी से खाद या पुनर््चक्रण योग्य नही ं है, तो
विचार करेें कि आप इसकी जिम्मेदारी लेने मेें कै से मदद कर सकते हैैं, शायद एक सं ग्रह योजना के माध्यम से।
2) ऊपर दिए गए के स स्टडी को पढ़ने वाले इको-माइं डेड उपभोक्ताओ ं को किन गुणो ं से वोक्सवैगन कं पनियो ं को जुर््ममाना
के रूप मेें इतना नुकसान उठाना पड़ता है?
1) बेईमानी और हरित धुलाई
2) अस्पष्टता, पाखं ड और हरित धुलाई
3) बेईमानी, हरा-भरा करना और छोटे धोखे का अभ्यास करना
4) इनमे से कोई भी नही ं
19. कभी-कभी एक क्षत्रिय को हिसं क होना चाहिए और अपने दश्म ु नो ं को मारना चाहिए। कू टनीति के लिए उसे
झठू भी बोलना चाहिए। तो, उसे चाहिए:
1) उसे अपना व्यावसायिक कर््तव्य छोड़ देना चाहिए
2) ब्राह्मण का कर््तव्य निभाना चाहिए
3) एक व्यवसाय शुरू करेें
4) से सभी परिस्थितियो ं मेें सर्वोच्च भगवान को सं तुष्ट करने के लिए काम करना चाहिए।
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20. बाइबल कहती है, “धन्य हैैं वे जो ईश्वर मेें भरोसा रखते हैैं और प्रभु को उम्मीद और दृढ़-विश्वास
बनाया है” दनि ु या भर मेें विभिन्न धर्ममों मेें भगवान का अलग-अलग तरीको ं से वर््णन किया गया है।
भगवद्गीता कै से विभिन्न विचारो ं मेें सामं जस्य स्थापित करने मेें मदद करता है? ( भगवद्गीता 2.2 )
1) भगवद्गीता कहती हैैं “ वासुदेवा कु टुम्बकम” यानी पूरा विश्व एक बड़़ा परिवार है।
2) सूर््य की सतह, सूर््य ग्रह और सूर््य का प्रकाश एक ही सूर््य के अलग-अलग दृश्य हैैं वैसा ही ईश्वर के साथ है।
3) भगवान मनुष्य की छवि मेें बनाया गया है। मनुष्य अलग है उसी तरह भगवान भी।
4) ईश्वर हमारी कल्पना के अनुसार है न कि कोई साकार व्यक्ति।
21. “एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने दृढ़ सं कल्प और निर््णय लेने के सामर्थथ्य से जाना जाता है” कै से भगवद्गीता हमेें भगवान के
नाम पर ठगो ं की पहचान करने मेें मदद करता है? (भगवद्गीता 2.2 )
1) भगवद्गीता कहती हैैं, एक ऐसे गुरु का उपागम करेें जो आपको सं मार््ग की ओर प्रेरित करेें।
2) भगवद् गीता भगवान की सभी अलौकिक शक्तियो ं को एक बताती है।
3) भगवद्गीता हमेें ईश्वर के अस्तित्व पर बहस करने का ज्ञान देती है और हमेें आवश्यकता के अनुसार अपने वैयक्तिक
ईश्वर को चुनने की स्वतं त्रता देती है।
4) सर््वशक्ति, प्रसिद्धि, सौदं र््य, तीव्रता, ज्ञान और परित्याग को मिलाकर ईश्वर को एक रूप मेें परिभाषित किया जाता है।
22. धर््मग्रंथ सं बं धी ं व्यादेश महत्वपूर््ण हैैं। हमारे जीवन मेें कौन से प्रमुख दोष हमेें नियम और कानून बनाने से अयोग्य
ठहराते हैैं? (भगवद्गीता 16.24)
1) ज्ञान की कमी, बुद्धि का सीमित होना
2) भ्रम मेें रहना, गलतियाँ करना
3) इं द्रियबोध का अपूर््ण ज्ञान, धोखा देने की प्रवृत्ति
4) ख और ग दोनो।ं
23. थियोडोर रूजवल्ट ने कहा कि सफलता मेें सबसे महत्वपूर््ण घटक यह जानना है कि लोगो ं के साथ कै से जुड़ना है। इसे
स्पष्ट करने के लिए भगवद्गीता मेें भाषण के किन गुणो ं का उल्लेख किया गया है?(भगवद्गीता 17.15)
1) सत्यवादी, लाभप्रद
2) मनभावन, आकर््षक
3) सुसंगत, आशावादी
4) विचारोत्तेजक, ज्ञानवर््धक
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24. चौथी शताब्दी ईसा पूर््व मेें, एरिस्टोटल ने मस्तिष्क को एक द्वितीयक अंग माना जो हृदय के लिए शीतलक पदार््थ के रूप
मेें कार््य करता था। कहा जाता हैैं किसी भी चीज को आंख मूं दकर स्वीकार नही ं करना चाहिए। ऐसा क्या है जो सं देह और
भ्रम से मुक्ति देता है? भगवद्गीता 10.4-5
1) सावधानीपूर््वक अवलोकन और परीक्षण
2) जीवन भर का अनुभव
3) शास्त्रीय समझ और दृढ़ अभ्यास
4) बौद्धिक अटकलेें
25. ईपीएम के सं स्थापक रैैंडी अल्कोर््न ने एक बार ठीक ही कहा था, “जितना अधिक आप देते हैैं, उतना ही आपके पास
वापस आता है, क््योोंकि ईश्वर ब्रह््माांड मेें सबसे बड़़ा दाता है”। भगवान ने अजामिल: को अपनी उदारता कै से दिखाई ?
(भगवद्गीता 2.40)
1) अजामिल ने कु छ प्रतिशत ईश्वर चेतना मेें अपना कर््तव्य निभाया और अंत मेें उन््होोंने जो परिणाम प्राप्त किया वह सौ
प्रतिशत था
2) अजामिल ने कु छ प्रतिशत ईश्वर चेतना मेें अपना कर््तव्य निभाया और अंत मेें उन््होोंने जो परिणाम प्राप्त किया वह उनके
द्वारा किए गए परिणाम का दोगुना था।
3) अजामिल ने कु छ प्रतिशत ईश्वर चेतना मेें अपना कर््तव्य निभाया और अंत मेें उसने जो परिणाम भोगा वह उसके बराबर
था।
4) अजामिल ने कु छ प्रतिशत ईश्वर चेतना मेें अपना कर््तव्य निभाया और अंत मेें उन््होोंने जो परिणाम भोगा वह उनके द्वारा
किए गए परिणाम से कम था।
26. “जब तक आप तथ्य को नही ं जानते तब तक अज्ञानता ही आनं द है” तमोगुण के अन्तर््गत किस प्रकार के कार््य को
सुविचारित जाता है? (भगवद्गीता 18.28 )
1) कार््य जो मन्द है, जिसे रात या अंधरे े के दौरान किया जाता है
2) बिना सोचे समझे किया गया कार््य
3) बिना उद्देश्य के किया गया कार््य
4) वह कार््य जो धर््मग्रं थो ं के आदेशो ं की परवाह किए बिना किया जाता है
27. भगवान कृ ष्ण अर््जनजु को गैर-जिम्मेदार होने और अपना कर््म न करने के दो परिणामो ं के बारे मेें बताते हैैं। कृ पया उन्हहें
निम्नलिखित विकल््पोों मेें से चुनेें। (भ.गी. 2.2)
1) कष्टपूर््ण जीवन
2) सम्बन््धोों मेें अविश्वास
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3) बदनामी
4) मोक्ष की प्राप्ति न होना
28. भगवद गीता 18.28 से, किसी व्यक्ति के अज्ञान रूप मेें कम से कम तीन गुणो ं का उल्लेख करेें जो निश्चित रूप से
उसकी विश्वसनीयता को कम कर देेंगे?
1) ...............................
2) ...............................
3) ...............................
29. जैसा कि एक आम कहावत है “कर््म शब््दोों की अपेक्षा अधिक व्यक्त होता है”। जो के वल बोलता है लेकिन अपने
जीवन मेें उसका पालन नही ं करता है, वह कभी-कभी निर्दोष जनता को धोखा देता है। कृ ष्ण ऐसे लोगो ं को पुकारते हैैं
(भ.गी. 3.6-3.7, भ.गी. 3.21)
1) प्रेरक वक्ता
2) प्रभावित करने वाला
3) ढ़़ोोंगी
4) जीवन सुधारक
30. सफाई करने वाला ........................... सफाईकर््तता ...................... साधक की अपेक्षा उत्तम होता है जो के वल
आजीविका के लिए साधना करता है। (भगवद गीता 3.6-3.7)
1) ईमानदार, मायावी
2) गम्भीर, विश्वसनीय
3) गम्भीर, मायावी
4) निपुण, मिथ्या
31. भगवद् गीता 18.47 के अनुसार, कु छ मामलो ं मेें झठू बोलना अनिवार््य है जैसे एक व्यापारी कहता है, ;ओह, मेरे प्रिय
ग्राहक, तुम्हारे लिए मैैं कोई लाभ नही ं कमा रहा हूूं,” लेकिन यह सभी जानते हैैं कि लाभ के बिना व्यापारी कार््य नही ं कर
सकता है। ऐसी बातेें इं सान को अविश्वसनीय नही ं बनाती ं क््योोंकि
.......................
1) क््योोंकि वे व्यावसायिक दोषो ं से पैदा हुए हैैं।
2) वे जीवन की आवश्यकताओ ं को अर्जित करने के लिए होते हैैं
3) थोड़़े-बहुत झूठ से व्यक्ति अविश्वसनीय नही ं होता है
4) उपर््ययुक्त सभी
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32. हर एक पर आंख मूं दकर भरोसा नही ं किया जा सकता क््योोंकि शास्तत्ररों के अनुसार सभी मनुष््योों मेें चार दोष होते हैैं।
कृ पया भगवद् गीता 16.24 के सं दर््भ मेें चार दोषो ं का उल्लेख करेें।
1) ...............................
2) ...............................
3) ...............................
4) ...............................
33. भगवद गीता इस बात को बताती है कि लोग अलाभकारी कार्ययों मेें क््योों सं लग्न होते हैैं। भगवान कृ ष्ण कहते हैैं कि,
“जो लोग ................... मेें खो जाते हैैं और जिनके पास .................... नही ं होता है, वे विश्व का विनाश करने के लिए
अलाभकारी, भयं कर कार््य करने मेें सं लग्न रहते हैैं।” (भगवद्
गीता 16.9)
1) भ्रम, बुद्धि
2) स्वयं , बुद्धि
3) स्वयं , चरित्र
4) भ्रम, चरित्र
34. भगवद गीता 3.6 के अनुसार सबसे बड़़े धोखेबाज कौन हैैं?
1) जो लोग दर््शन पर बोलते हैैं और उनके अनुयायियो ं को मूर््ख बनाते हैैं
2) वह जो शास्तत्ररों का ज्ञान रखता है और उसे दिखाने का प्रयास करता है।
3) जो दिखाता है कि वह एक योगी है लेकिन इन्द्रियतृप्ति के उद्देश््योों की खोज कर रहा है।
4) ऊपर के सभी
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न्यायसं गत
न्यायसं गत होना, निष्पक्ष और उचित होने का गुण है; जो सभी की अवश्यकताओ को यथा आवश्यक पूर्ति करता है|
हालांकि समानता और न्यायसं गतता शब्द एक जैसे लग सकते हैैं, किन्तु एक की तुलना मेें दूसरे के कार््ययान्वयन से, इसमेें
सम्बं धित लोगो ं के लिए परिणाम, नाटकीय रूप से भिन्न-भिन्न हो सकते हैैं। समानता का अर््थ है कि प्रत्येक व्यक्ति या लोगो ं
के समूह को समान मानना एवं सभी को समान सं साधन या अवसर दिया जाना, जबकि न्यायसं गतता अथवा यथोचितता के
अन्तर््गत, प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग परिस्थितियो ं को ध्यान रखते हुए, व्यक्ति के अनुसार, यथा आवश्यक सं साधन
और अवसर प्रदान किये जाते है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति समान आनं द दायक प्रतिफल तक पहुुँ च सके | मरियम-वेबस्टर
न्यायसं गत को “सभी सं बं धितो ं के साथ निष्पक्ष और यथोचित रूप से व्यवहार करना” के रूप मेें, और समानता को “प्रत्येक
के लिए समान माप, मात्रा, राशि, या सं ख्या” के रूप मेें परिभाषित करते है।
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न्यायसं गत तथा समानता के मध्य अन्तर
लिगं गर््भवती और दूध पिलाने वाली (स्तनपान गर््भवती और दूध पिलाने वाली (स्तनपान
कराने वाली) महिलाओ ं और किशोरियो ं कराने वाली) महिलाओ ं और किशोर
को उनकी आहार आवश्यकता के आधार लड़कियो ं सहित परिवार के सभी सदस््योों
पर अधिक पौष्टिक और अतिरिक्त मात्रा मेें को उनकी व्यक्तिगतपोषण सं बं धी
भोजन देना। आवश्यकता को ध्यान मेें न रखते हुए,
समान मात्रा मेें भोजन देना
शिक्षा कमजोर छात्र के लिए अतिरिक्त कक्षाओ ं कक्षा/विद्यालय मेें सभी छात््रोों पर शिक्षक
की व्यवस्था करना और शैक्षिक रूप से द्वारा समान ध्यान और समान प्रयास करना
उस पर विशेष ध्यान देना ताकि उसकी या सभी छात््रोों के लिए अतिरिक्त कक्षाओ ं
मौजूदा शैक्षिक उपलब्धि के अंतर को की व्यवस्था करना, चाहे उनके परीक्षा ग्रेड,
कम किया जा सके और उसकी शिक्षा अंक और कक्षा/स्कू ल प्रदर््शन कु छ भी हो।ं
तथा कक्षा/स्कू ल प्रदर््शन मेें सुधार किया
जा सके । यह अंततः व्यक्तिगत छात्र को
उसकी पूरी क्षमता तक पहुुंचने मेें मदद
करेगा |
सं साधन फ़़ु टबॉल खिलाड़़ियो ं को एक-एक जोड़़ी समय, सभी खिलाड़़ियो ं को उनके पैरो ं
जूते बांटते समय, सभी खिलाड़़ियो ं को के आकार की परवाह किए बिना समान
उनके पैरो ं के आकार के अनुसार जूते की आकार के जूते देना।
सही जोड़़ी देना।
कार््यस्थल कर््मचारियो ं को उनके कार््य प्रदर््शन, सभी कर््मचारियो ं को उनके कार््य के प्रदर््शन
विशेषज्ञता और विशेषता के अनुसार वेतन, मेें अंतर के बावजूद समान वेतन, लाभ
लाभ और पुरस्कार मेें अंतर करना। और पुरस्कार देना।
सं क्षेप मेें, समानता का अर््थ है सं साधनो ं को समान मात्रा मेें विभाजित करना और न्यायसं गत दृष्टि सं साधनो ं को आनुपातिक
रूप से विभाजित करने पर अधिक ध्यान केें द्रित करती है ताकि इसमेें शामिल लोगो ं को उचित प्रतिफल प्राप्त हो सके ।
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न्याय, किस प्रकार सेें समानता तथा यथोचितता से भिन्न है?
अपराध और उसकी सजा के कानूनी ढांचे के अंतर््गत, जो न्याय किया जाता है, वह समानता और यथोचितता मेें आने वाले
अवरोधो ं को दूर करता है।
ऊपर के कार््टटून मेें हम सेब के पेड़ का उपयोग करते हुए, एक प्रदर््शन देखते हैैं (शेल सिल्वरस्टीन के ‘द गिविगं ट््ररी’ के सं दर््भ
मेें, जो निर्विवाद नही ं है)।
पहला चित्र (ऊपर बांयी ओर) असमानता दिखाता है। पेड़ से गिरने वाले सेब तक, एक व्यक्ति की पहुुँ च है और दूसरे
व्यक्ति की नही।ं
दूसरा चित्र (ऊपर दायी ं ओर) समानता को प्रदर्शित करता है। हालांकि दोनो ं लोगो ं को समान ऊँ चाई की सीढ़़ियां दी जाती हैैं
किन्तु पेड़ बांयी ओर झक ु ा है, जिससे एक व्यक्ति के लिए सेब सुलभ हो जाता है, लेकिन दूसरे के लिए नही।ं
तीसरा चित्र यथोचितता को प्रदर्शित करता है। पेड़ के दायी ं ओर के व्यक्ति को सेब तक पहुुँ चने के लिए एक लम्बी सीढ़़ी दी
जाती है जबकि बांयी ओर वाले व्यक्ति को एक छोटी सीढ़़ी दी जाती है ताकि दोनो ं व्यक्ति सेब प्राप्त कर सके ।
अंतिम चित्र मेें न्याय प्रदर्शित है। इसमेें हम देखते हैैं कि पेड़ को सीधा किया गया है, जिससे दाहिनी ओर के व्यक्ति का
अवरोध दूर होता है। उसे अब सेब तक पहुुँ चने के लिए लम्बी सीढ़़ी की जरूरत नही ं है।
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विविधता, न्याय सं गत और समावेश
विविधता मेें वे सभी तरीके शामिल हैैं जो लोग अलग हैैं, जिसमेें विभिन्न विशेषताएं शामिल हैैं जो एक समूह या व्यक्ति को
दूसरे से अलग बनाती हैैं। विविधता मेें शामिल हैैं - नस्ल और जातीयता, सामाजिक आर्थिक स्थिति, लिगं पहचान, भाषा,
वैवाहिक स्थिति आदि।
हम इस जीवित दनिु या के सभी पहलुओ ं मेें विविधता देख सकते हैैं, चाहे वह ब्रह््माांडीय सं रचनाएं , सं गठनात्मक सं रचनाएं ,
सामाजिक सं रचनाएं आदि हो।ं जबकि विविधता उन सभी तरीको ं को सं दर्भित करती है जिनसे लोग भिन्न होते हैैं, न्याय
सं गत सभी के उचित पहुुंच के लिए हो, अवसर और उन्नति उन सभी अलग-अलग लोगो ं के लिए और साथ ही साथ उन
बाधाओ ं को पहचानने और हटाने का प्रयास करते हुए जो कु छ समूहो ं को पूरी तरह से भाग लेने से रोकती है
समावेश एक ऐसी सं स्कृति का निर््ममाण करता है जहां प्रत्येक व्यक्ति या प्रत्येक समूह को सक्रिय रूप से योगदान देने और
भाग लेने के लिए आमं त्रित करके हर कोई अपनापन महसूस करता है। यह समावेशी और स्वागत करने वाला वातावरण
मतभेदो ं का समर््थन करता है और उन्हहें गले लगाता है और शब््दोों और कार्ययों मेें सभी को सम्मान प्रदान करता है
विविधता, न्याय सं गत और समावेश मायने रखता है क््योोंकि वे एक निष्पक्ष समाज बनाने मेें मदद करते हैैं जो सभी लोगो ं को
समान अवसर प्राप्त करने की अनुमति देता है। व्यक्तियो ं और मजबूत सं गठनो ं के बीच मजबूत बं धन बनाने मेें मदद करने
के लिए विविधता, न्याय सं गत और समावेश, लोगो,ं दृष्टिकोणो ं और विचारो ं को एक साथ लाता है।
यह कै से हासिल किया जा सकता है? भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भगवद गीता के अध्याय 4 श्लोक 13 मेें कहते हैैं -
भौतिक प्रकृ ति के तीन गुणो ं और उनसे जुड़़े कार्ययों के अनुसार, मानव समाज के चार विभाजन मेरे द्वारा बनाए गए हैैं। और
यद्यपि मैैं इस प्रणाली का निर््ममाता हूूं, आपको पता होना चाहिए कि मैैं अभी भी अकर््तता हूूं, अपरिवर््तनीय हूूं।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैैं कि यह विविधता उन््हीीं से आ रही है और उन््होोंने प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृ ति और कौशल के
आधार पर सामाजिक सं रचना को चार वर्गगों मेें विभाजित किया है और यह प्रत्येक क्रम समाज के रख-रखाव के लिए बहुत
महत्वपूर््ण है। ये क्रम ब्राह्मण या बुद्धिजीवी वर््ग हैैं जो समाज के मस्तिष्क हैैं और अन्य तीन वर्गगों को दिशा देकर मदद करते
हैैं। दूसरा क्षत्रिय वर््ग या योद्धा वर््ग है जो अन्य वर्गगों को सुरक्षा प्रदान करता है। तीसरा वैश्य या व्यापारी वर््ग है जो समाज
के वित्तीय और व्यावसायिक पहलुओ ं मेें शामिल है। और चौथा शूद्र या श्रमिक वर््ग है जो विभिन्न कार्ययों को करने के लिए
श्रम प्रदान करके अन्य 3 वर्गगों की मदद करता है। तो हम देख सकते हैैं कि इन 4 वर्गगों मेें से प्रत्येक का एक विशिष्ट कार््य
कै से होता है और वे एक दूसरे के पूरक कै से होते हैैं। इसी तरह हम किसी भी सं गठनात्मक सं रचना मेें भूमिकाओ ं और
जिम्मेदारियो ं की विविधता देख सकते हैैं।
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अब, एक बार जब हम विविधता के महत्व को समझ लेते हैैं, और हम समाज के रख-रखाव मेें प्रत्येक व्यक्ति या वर््ग की
भूमिका की सराहना करते हैैं, तभी हम समानता और समावेश की ओर बढ़ सकते हैैं। भगवान श्रीकृष्ण ने समझाया कि
समाज के सभी चार वर््ग महत्वपूर््ण हैैं; ऐसा नही ं है कि मजदूर वर््ग बेकार है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग गायब होने पर
भी शरीर सुचारू रूप से कार््य नही ं कर सकता है, उसी
प्रकार उपरोक्त मेें से किसी एक वर््ग के बिना, समाज सुचारू रूप से कार््य नही ं कर सकता है। इस प्रकार भगवान स्वयं समाज
के प्रत्येक वर््ग के महत्व और एक दूसरे की सराहना करने की आवश्यकता पर जोर
देते हैैं। एक बार दूसरो ं के लिए सराहना होने पर ही कोई उनकी जरूरतो ं और चितं ाओ ं को दूर कर सकता है और समाज मेें
समान और समावेशी वातावरण ला सकता है।
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कथा प्रसं ग
माइकल और एं जेला अभी हाल ही मेें पचपन साल के हुए हैैं। वे दो ऐसे लोगो ं को जानते हैैं जिनकी पिछले कु छ वर्षषों मेें मृत्यु
हो चुकी है—एक की कैैं सर से, दूसरे की कार दर््घु टना मेें। एक बार उन्हहें ऐसा लगा कि उन्हहें अपने बच््चोों के लिए एक योजना
बनानी चाहिए। उनके पास बैैंक मेें कु छ पैसे हैैं। मान लीजिए कि वे दोनो ं
एक विमान दर््घु टना मेें मारे गए तो बच््चोों का क्या होगा?
उनके चार बच्चे हैैं, जिनकी उम्र उनकी किशोरावस्था से लेकर बीस वर््ष
से अधिक तक की है। सबसे बड़़ी क्लो गणित की ज्ञाता है और गूगल मेें
कोडिगं का काम करती है; वह जल्द ही अपनी स्वयं की कं पनी शुरू करने
की उम्मीद करती है। विल, जिसके पास सामाजिक कार््य की डिग्री है,
नशे की लत छु ड़़ाने के लिए मनोचिकित्सा केें द्र मेें काम करते हुए अपने
शिक्षा ऋण का भुगतान कर रहा है। जुड़वाँ बच्चे, जेम्स और एलेक्सिस,
दोनो ं कॉलेज मेें हैैं। जेम्स, हमेशा उम्मीद से कम उपलब्धि प्राप्त करने वाला व्यक्ति है, वह आश्वस्त है कि वह एक यू ट्यूबर
बन सकता है। (कैैं पस मेें शरारतो ं के लिए उसे पहले ही दो बार निलं बित किया जा चुका है।) एलेक्सिस, जो कवि बनने की
उम्मीद करता है, उसकी जन्मजात स्थिति ऐसी है कि जिससे वह मध्यम आयु प्राप्त करने तक अंधा हो सकता है।
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इसलिए, न्यायसं गतता की अवधारणा को लागू करना बेहतर है क््योोंकि यह प्रत्येक दावेदार के लिए आवश्यक सं साधनो ं की
सही मात्रा होने से सभी को फलने-फू लने की अनुमति देता है। न्यायसं गतता एक अधिक गतिशील अवधारणा है।
मं थन
क्या आप माता-पिता के धन/सं पत्ति के न्यायसं गत विभाजन के समर््थन के लिए, विभिन्न सशक्त तर्ककों के विषय मेें सोच
सकते हैैं?
कहानी
हालांकि गिलहरी वानरो ं की तुलना मेें बहुत कम काम कर रही थी, लेकिन चूँकि यह गिलहरी की अधिकतम क्षमता थी,
इसलिए इससे भगवान राम बहुत प्रसन्न हुए।
और जैसा कि भगवान राम ने बताया, इसका अपना महत्व था जो वानरो ं द्वारा प्राप्त नही ं किया जा सकता
था, यह दर््शशाता है कि किसी कार््य को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यक्तिगत योगदान की
आवश्यकता होती है।
भगवान राम ने गिलहरी और वानरो ं के साथ समानता के सिद््धाांतो ं के आधार पर व्यवहार नही ं किया, बल्कि उन््होोंने
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न्यायसं गतता के सिद््धाांतो ं के आधार पर व्यवहार किया। समानता विभिन्न जातियो,ं लिगं ो,ं सामाजिक वर्गगों और अन्य लोगो ं के
बीच स्वाभाविक अन्तरो ं पर ध्यान दिए बिना सभी के साथ समान व्यवहार करती है। यहाँ भगवान राम, गिलहरी और वानरो ं
के बीच के अन्तर पर उचित विचार करने के बाद उनके साथ यथोचित व्यवहार करते हैैं।
श्री राम के लिए कोई भी कार््य और सेवा, चाहे वह कितनी ही छोटी क््योों न हो, महत्वहीन नही ं है। प्रत्येक कार््य को भगवान
की सेवा के रूप मेें देखा जाना चाहिए और इससे उनका आशीर््ववाद हमेशा हमारे साथ रहेगा।
हमेें यह कभी नही ं भूलना चाहिए कि प्रेम और समर््पण ही भगवान राम के लिए महत्त्वपूर््ण है, न कि बड़़ी सेवाएँ और
दिखावे, जो अकसर हम, अपनी प्रतिष्ठा के लिए करते हैैं।
कृ ष्ण सिर््फ इतना कहते हैैं कि हम जो कु छ भी बड़़ा या छोटा करते हैैं, उसेें हम ईश्वर को अर््पण करेें। भगवदगीता 9.27 मेें
कृ ष्ण कहते हैैं:
अर््थथात् तुम जो कु छ भी करते हो, तुम जो कु छ भी खाते हो, तुम जो कु छ भी देते हो या दान करते हो और जो कु छ भी तप
करते हो, हे कुन्ती पुत्र ! यह सब मुझे अर्पित करतेें हुए करो।
इस प्रकार जब हम अपने सभी प्रयासो ं को भगवान को अर्पित करते हैैं तो हम उन्हहें अत्यधिक प्रसन्न करते हैैं और इस प्रकार
हमेें भी असीमित प्रसन्नता और सं तुष्टि का अनुभव होता है।
मान लीजिए कोई समानता का तीव्र पक्षधर है और अपने जीवन साथी की तलाश मेें है| तो क्या वह सिर््फ मानवता के
विशाल जनसमूह को देखेेंगे और किसी को उठा लेेंगे, क््योोंकि आखिरकार, सभी समान हैैं? हरगिज नही;ं वे सोच-समझकर
किसी सं गत व्यक्ति की तलाश करेेंगे।
क्या वे गलती कर रहे हैैं? नही,ं क््योोंकि लोग भिन्न-भिन्न होते हैैं; उनके अपने निजी व्यक्तित्व - उनके गुण, क्षमताएँ और
रुचियाँ होते हैैं, जो उन्हहें वह बनाती हैैं जो वे हैैं। और हर कोई, प्रत्येक के साथ जीवन भर नही ं चल सकता है।
इसलिए हालाँकि हम सहज रूप से मानते हैैं कि हर कोई समान है, तो भी हम सभी को एक सं भावित जीवन-साथी के रूप
मेें समान रूप से न तो मानते है और न ही मान सकते हैैं। भगवद-गीता हमारे वर््तमान व्यक्तित्व के दोहरे घटको ं की ओर
इशारा करती है| यह घोषणा करती है कि हम आत्मा हैैं जो कि परमात्मा का अंश हैैं और हमारे पास एक भौतिक आवरण
है जो हमारे शरीर और मस्तिष्क से बना है। हमारा वर््तमान व्यक्तित्व हमारे आध्यात्मिक और भौतिक पक््षोों का एक जटिल
जाल है। हम सभी अपने विशेष मार््ग से आगे बढ़ते हैैं ताकि हम वह बन सकेें जो हम बनने वाले हैैं। और यही बात दूसरो ं पर
भी लागू होती है।
हमेें अपने सम्बन््धोों के माध्यम से एक दूसरे को आगे बढ़ने मेें सहायता करनी चाहिए और जीवन यात्रा के दौरान अपनी
सहभागी सन्तुष्टि को प्राप्त करना चाहिए। हम एक जीवन साथी के रूप मेें किसी ऐसे व्यक्ति को पसन्द करते हैैं जिसका
व्यक्तित्व किसी न किसी रूप मेें हमारे साथ मेल खाता है-हमारी कोई भिन्नता एक दूसरे को आकर्षित कर सकती है और एक
दसु रे का पूरक बन सकती है अथवा हमारी कोई समानता ऐसी हो सकती है जो एक दूसरे मेें अच्छाई को आकर्षित और
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दसु रे का पूरक बन सकती है अथवा हमारी कोई समानता ऐसी हो सकती है जो एक दूसरे मेें अच्छाई को आकर्षित और
मजबूत करती है या हम कु छ ऐसी अन्य विशिष्टता के आकांक्षी हो सकते हैैं जो हमेें एक दूसरे के साथ अच्छी तरह से बं धने
मेें मदद करती हो।
इसलिए, जब हम सभी की अंतर्निहित समानता की सराहना करते हैैं, तब भी हम विभिन्न लोगो ं के व्यक्तित्व की विविधता
को भी ध्यान रखते हैैं और उन रिश््तोों को चुनते हैैं जो हमारे और दूसरो ं के व्यक्तित्व का पोषण करते हैैं।
ज्ञानी महापुरुष, एक विद्याविनय युक्त ब्राह्मण मेें, चांडाल मेें तथा गाय, हाथी एवं कु त्ते मेें भी समरूप परमात्मा को देखने
वाले होते हैैं। -भगवद-् गीता (5.18)
विद्वान व्यक्ति, प्रजाति या जाति मेें कोई भेद नही ं करता। ब्राह्मण और बहिर््जजातीय व्यक्ति सामाजिक दृष्टिकोण से भिन्न हो
सकते हैैं; अथवा कुत्ता, गाय, हाथी प्रजातियो ं के दृष्टिकोण से भिन्न हो सकते हैैं, लेकिन शरीर के ये अंतर, एक विद्वान व्यक्ति
के दृष्टिकोण से अर््थहीन हैैं। ऐसा इसलिए है क््योोंकि, परमात्मा के रूप मेें, परम भगवान सभी के हृदय मेें उपस्थित है और
सभी जीवो से सम्बन्धित है। परमात्मा की ऐसी समझ ही वास्तविक ज्ञान है। विद्वान व्यक्ति इसी ज्ञान की दृष्टि से सभी जीवो
को देखता है|
जहाँ तक विभिन्न जातियो ं या विभिन्न सजीव प्रजातियो ं के शरीरो ं का सं बं ध है, तो हमेें अलग-अलग जीवो के साथ उनके
शारीरिक अंतर के आधार पर, उनसेें अलग-अलग व्यवहार करना होगा। लेकिन आध्यात्मिक रूप से, हर प्राणी एक
आत्मा है| वह, सर्वोच्च भगवान का एक अंश है और एक ही परमात्मा सभी जीवो के हृदय मेें निवास करता है, चाहे कोई
बहिर््जजातीय हो या ब्राह्मण हो। इसलिए दोनो ं का समान रूप से सम्मान किया जाना चाहिए।
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एक-वाक्य मेें सारांश:
समानता का सम्मान करते हुए, व्यक्तिगत व्यक्तित्व को नकारना नही ं चाहिए - समानता का अर््थ प्रत्येक के व्यक्तित्व को
व्यक्त करने मेें सहायता करना है न कि व्यक्तित्व का दमन करने के लिए।
इस पर विचार करेें :
रिश्ता चुनते समय लोग सबके साथ समान व्यवहार क््योों नही ं करते?
हमारे रिश्ते किस प्रकार रचनात्मक रूप से कार््य कर सकते हैैं?
हम समानता के प्रति अपने सम्मान को व्यक्तिगतता के प्रति सम्मान के साथ किस प्रकार सन्तुलित कर सकते हैैं?
एक स्थायी जगत वह है जिसमेें मानवीय आवश्यकताओ ं को समान रूप से और भावी पीढ़़ियो ं की आवश्यकताओ ं को पूरा
करने की क्षमता का बलिदान किए बिना पूर््ण किया जाता है। मानव कल्याण को चार प्राथमिक तत््वोों द्वारा वर्णित किया गया
है- मूलभूत मानवीय आवश्यकताएँ , आर्थिक आवश्यकताएँ , पर््ययावरणीय आवश्यकताएँ और व्यक्तिपरक कल्याण। किसी
जनसं ख्या या राष्टट्र के लिए मानव कल्याण मेें परिवर््तन किस प्रकार टिकाऊ होते हैैं? मानव कल्याण मेें परिवर््तन को दो प्रमुख
अंतःक्रियात्मक अवधारणाएँ , देश और काल मेें एक स्थायी अवस्था की ओर आगे बढ़़ा सकती हैैं-
(क) सामाजिक न्यायसं गतता, तथा
(ख) अन्तरपीढ़़ीगत न्यायसं गतता
सामाजिक न्यायसं गतता- सामाजिक न्यायसं गतता की अवधारणा समष्टि (स्थान) मेें कल्याण का प्रसार करती है, जिससे
समाज के सभी सदस््योों के प्रति उचित व्यवहार सुनिश्चित होता है और एक कल्याणकारी निर्य्ण की स्थानिक स्थिरता को बढ़़ावा
दिया जाता है। सामाजिक न्यायसं गतता का अर््थ है आजीविका, शिक्षा और सं साधनो ं तक उचित पहुुँच; समदु ाय के राजनीतिक
और सांस्कृतिक जीवन मेें पूर््ण भागीदारी; और मौलिक आवश्यकताओ ं की पूर्ति के लिए स्वनिष्ठा।
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और सांस्कृतिक सं साधनो ं को विरासत मेें प्राप्त करने और उन सं साधनो ं के उपयोग और लाभो ं तक, समान पहुुँच प्राप्त करने का
अधिकार है। साथ ही, वर््तमान पीढ़़ी भविष्य की पीढ़़ियो ं के लिए, इस ग्रह की सं रक्षक भी है| वह इस विरासत को सं रक्षित करने
के लिए बाध्य है ताकि आने वाली पीढ़़ियो ं को भी उन््हीीं अधिकारो ं का आनं द मिल सके । वर््तमान मेें, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप
से पर््ययावरण को क्षति पहुुँ चाने वाली मानव क्रियाएँ , भावी पीढ़़ी के मनुष््योों और अन्य प्राणियो ं को प्रभावित करेेंगी। इस प्रकार,
अंतर-पीढ़़ीगत न्यायसं गतता भविष्य मेें सामाजिक न्याय के दायरे का विस्तार करती है।
सामाजिक और अंतर-पीढ़़ीगत न्यायसं गतता का, मानव कल्याण पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच, अधिक स्थिर निर्य्ण ले पाने
को ध्यान मेें रखकर की जाती है|
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लेकिन हम देखते हैैं कि पर््ययावरणीय असमानताएँ सभी समाजो ं मेें पहले से मौजूद हैैं। दूसरो ं की तुलना मेें गरीब लोग
पर््ययावरणीय समस्याओ ं का बोझ अधिक झेलते हैैं।
1. मौलिक अधिकारो;ं जैसे जीवन का अधिकार, आजीविका का अधिकार, आश्रय का अधिकार, आंदोलन और सं घ की
स्वतं त्रता का अधिकार आदि का उल्लं घन।
2. अब्राहम मास्लो द्वारा प्रदर्शित बुनियादी मानवीय आवश्यकताओ,ं जैसे सरु क्षा, अन्य शारीरिक ज़रूरतो,ं आत्म-सम्मान, और
वास्तविकता की ज़रूरतो ं आदि तक पहुुँ च का उल्लं घन।
ग्रामीण और शहरी दोनो ं क्षेत््रोों मेें मुआवजे और पर््ययाप्त पुनर््ववास के बिना ही बेदखल कर देना;
खेल के भं डार और जं गलो ं जैसे सं चालन के पारंपरिक क्षेत््रोों मेें प्रवेश तथा निकास रूपी गतिशीलता पर प्रतिबं ध;
पारंपरिक या लोकप्रिय पर््ययावरण प्रबं धन गतिविधियो ं और आजीविका रणनीतियो ं जैसे कि रेेंज बर्ननिंग, चराई पैटर््न,
खेती, शिकार, मछली पकड़ना, इकट्ठा करना और सड़क व्यापार पर प्रतिबं ध।
सांस्कृतिक रूप से विदेशी प्रथाओ,ं उदाहरणार््थ असाधारण परिवार नियोजन रणनीतियाँ जैसे अनैच्छिक नसबं दी को
लागू करना;
सेवाओ ं के प्रावधान, जो कि गरीबो ं को प्रभावित करते हैैं, जैसे कि सार््वजनिक स्वास्थ्य या प्रभावी अपराध नियं त्रण,
मेें जानबूझकर और व्यवस्थित उपेक्षा|
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के स स्टडी 1: नर््मदा बचाओ आन्दोलन
चिपको आंदोलन सबसे सफल आंदोलन मेें से एक, जो अमृता देवी के बलिदान से प्रेरित था और यह 1973 मेें शुरू हुआ
था। यह उत्तर प्रदेश के जं गल से आजीविका कमाने वाले किसानो ं और कु लीन वर््ग के बीच का सं घर््ष था। कु लीन वर््ग के
लोगो ं ने व्यावसायिक गतिविधियाँ करने के लिए सड़क निर््ममाण के उद्देश्य से जं गल काटना शुरू कर दिया, जिससे पर््ययावरण
का क्षय और मिट्टी का कटाव होता है। यह उन किसानो ं के साथ अन्याय था, जो इस जं गल पर निर््भर थे। जं गल की रक्षा
के लिए ये किसान अधिकारियो ं के खिलाफ खड़़े हो गए और पेड़ और कटाई करने वालो ं के बीच खड़़े होकर, पेड़़ोों को गले
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लगाकर पेड़़ोों की रक्षा की। इस प्रकार, अधिकारियो ं को जं गल काटने के अपने अनुबंध को रद्द करने के लिए मजबूर होना
पड़़ा और चिपको आंदोलन सफल हो गया। यह पहला आंदोलन था जो बिना किसी हिसं ा और राजनीतिक अशांति के सफल
हुआ। भारतीय प्राकृ तिक सं साधनो ं की सुरक्षा, पुनरुद्धार एवं पारिस्तिथिक सदपु योग के लिए, 1987 मेें इस आन्दोलन को
“राइट लाइवलीहुड अवार््ड” मिला|
A दर््शशाता है .............................
B दर््शशाता है .............................
C दर््शशाता है .............................
D दर््शशाता है .............................
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सैैंडीगेट गांव मेें, मर््टल समुद्र तट पर एक सरकारी सब्सिडी
वाले आवासीय समुदाय के निवासियो ं को उनके हाल पर
छोड़ दिया गया था, जबकि उनके पड़़ोसी जो अधिक समृद्ध
थे अपनी खिड़कियो ं पर चढ़ गए और भाग गए। सैैंडीगेट के
निवासियो ं को उचित सुरक्षा के बिना ही तूफान का सामना
करना पड़़ा और विनाशकारी, जानलेवा बाढ़ का सामना करना
4. भगवान राम और गिल्हेरी की कहानी जो पुस्तक मेें दी गयी है, हम क्या सीखते हैैं कि
1) हर किसी मेें पहुुंचने की जन्मजात इच्छा होती है
2) हम अपनी क्षमता के अनुसार पहुुँ चते हैैं
3) ईश्वर प्रेम और हृदय को देखता है
4) ऊपर के सभी
6. बाला ने घर पर बायोडिग्रेडेबल ऊर््जजा के छोटे स्रोतो ं का उत्पादन करने के लिए वानस्पतिक खाद का पुनर््चक्रण शुरू
कर दिया है। उनके दोस्त उन पर हंसते हैैं क््योोंकि उनके छोटे से योगदान का समग्र कार््बन उत्सर््जन पर कोई महत्वपूर््ण
प्रभाव नही ं पड़़ेगा क््योोंकि बड़़े निगमो ं को भारी कटौती का सं कल्प लेने की जरूरत है। क्या इसमेें बदलाव के लिए बाला का
योगदान महत्त्वहीन है?
1) हां, यह महत्त्वहीन है क््योोंकि सभी को बदलाव लाने के प्रयासो ं को समान रूप से वितरित करने की आवश्यकता है|
2) नही,ं यह भी महत्वपूर््ण है क््योोंकि बाला का योगदान उचित है। यानि वह सं साधनो ं और अपने प्रभाव के आधार पर
अपना काम कर रहा है
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7. नर््मदा बचाओ आन्दोलन द्वारा पर््ययावरणीय न्यायसं गतता के किस पक्ष को प्रोत्साहित किया गया था?
1) प्राय: प्रयुकी रणनीततयां और कायणनीततयााँ समावेिी होती हैैं;
2) ग्रामीण और शहरी दोनो ं क्षत्रे ो ं मेें मुआवजे और पयााि पुनवाास के दबना बदे खल कर देना;
3) खेल के मैदान और जं गल जैसे सं चालित पारंपरिक क्षेत््रोों मेें प्रवेश और निकास पर प्रतिबं ध;
4) पारंपरिक या लोकप्रिय पर््ययावरण प्रबं धन गतिविधियो ं और आजीविका रणनीतियो ं जैसे कि रेेंज बर्ननिंग, चराई पैटर््न,
खेती, शिकार, मछली पकड़ना, इकट्ठा करना और सड़क व्यापार पर प्रतिबं ध।
8. जो परमात्मा को .................... रूप से प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक प्राणी मेें उपस्थित देखता है, अपनी स्वयं की
................. के द्वारा हानि नही ं करता है। (भगवद् गीता 13:29)
1) समान, मस्तिष्क
2) असमान, बुद्धि
3) समान, मन
4) समान, बुद्धि
10. कृ ष्णभावना भावित व्यक्ति समद्रष्टा तथा वास्तविक ज्ञानी होता है क््योोंकि उसे पूर््ण ज्ञान है कि ................ (भगवद-्
गीता 5:18)
1) आत्मा तथा परमात्मा, गुणात्मक रूप से समान हैैं
2) आत्मा तथा परमात्मा, परिमाणात्मक या मात्रात्मक रूप से समान हैैं
3) आत्मा तथा परमात्मा, पूर््णत: भिन्न हैैं
4) आत्मा तथा परमात्मा, सभी पक््षोों मेें पूर््णत: समान हैैं।
12. भगवद गीता 4:13 के अनुसार किसी व्यक्ति विशेष का कार््य के प्रति रुझान किसके द्वारा निर््धधारित होता है -
1) वह परिवार जिसमेें वह जन्म लेता है
2) राष्ट्रीयता तथा आसपास का परिवेश
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3) भौतिक प्रकृ ति के गुण जिसे वह अर्जित करता है
4) उपर््ययुक्त सभी
वर््ण गुण
14. भगवान कृ ष्ण, अपने ईर्ष्यारहित और निष्पक्ष स्वभाव के कारण विभिन्न प्रकार के लोगो ं के साथ व्यवहार करने मेें
न्यायसं गतता के सिद््धाांत का पालन करते हैैं। भगवान की तुलना किससे की जाती है - (भ.गी. 9:29)
1) बादल
2) इच्छा वृक्ष
3) हीरा
4) उपर््ययुक्त सभी।
15. दनि
ु या मेें सबसे अच्छा लोकोपकारक किसे माना जाता है? (भगवद्गीता 6.32)
1) जो के वल अपने व्यक्तिगत कल्याण मेें रुचि रखता है।
2) जो सबसे अधिक दान करता है।
3) जो ईश्वर भावनाभावित होने के महत्व को प्रसारित करता है।
4) इनमे से कोई भी नही।ं
16. हम जानते हैैं कि न्याय और समानता सबसे महत्वपूर््ण मूल्य हैैं जो हर किसी के पास होने चाहिए। लेकिन साथ ही,
हमारे सामाजिक जीवन को चार भागो ं मेें बांटा गया है, यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। भगवान ने जीवन के इन
श्रेणीयो ं को क््योों बनाया? (भगवद्गीता 16.1-3)
1) समाज को शांति की स्थिति मेें रखने के लिए।
2) समाज को समृद्धि की स्थिति मेें रखने के लिए
3) समाज को सुरक्षित रखने के लिए
4) क और ख दोनो।ं
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17. वास्तविक अहिसं ा का क्या अर््थ है? ( भगवद्गीता 16.1-3)
1) इं सानो ं को नुकसान नही ं पहुुंचाना
2) जानवरो ं को नुकसान नही ं पहुुंचाना
3) पौधो ं को नुकसान नही ं पहुुंचाना
4) किसी भी जीवित वस्तु को नुकसान नही ं पहुुंचाना
18. फिनलैैंड को दनि ु या के सबसे खुशहाल देश का दर््जजा दिया गया है। जबकि सं युक्त राज्य अमेरिका दनि ु या के सबसे
अमीर देशो ं मेें से एक होने के बावजूद खुशी के मामले मेें 19वेें स्थान पर है। समाज मेें दख
ु का सर््वश्रेष्ठ कारण क्या है? (
भगवद्गीता 6.32 )
1) टू टे हुए रिश्ते
2) नैतिकता की कमी
3) भ्रष्टाचार, आपदाएं , सुविधाओ ं की कमी
4) ईश्वर को भूलना
19. जीसस क्राइस्ट ने उनके उत्पीड़को ं को उनके विरुद्ध हिसं ा के बावजूद क्षमा कर दिया। आप एक आत्म- साधित व्यक्ति
की पहचान कै से कर सकते हैैं? (भगवद्गीता 6.32)
1) वह जीसस क्राइस्ट की तरह पानी पर चल सकता है
2) वह के वल अपने व्यक्तिगत उत्थान मेें रूचि रखते है
3) वह किसी से ईर्ष्या नही ं करता और सभी उसके मित्र है
4) वह सत्य के बारे मेें वाग्मिता से बोल सकता
20. एक प्रसिद्ध कहावत है: "यदि हम समानता बनाने का कोई तरीका नही ं निकालते हैैं, तो हम एक उत्पादक
और स्वस्थ समाज के रूप मेें जीवित नही ं रहने वाले हैैं।" भगवद्गीता के अनुसार हम समानता कै से बना सकते हैैं?
(भगवद्गीता 13.29)
1) गरीबो ं को खाना खिलाकर।
2) बिना किसी जाती, रूप इत्यादि का भेदभाव करते हुए दूसरो ं की मदद करना
3) प्रत्येक जीव मेें ईश्वर की उपस्थिति देखकर।
4) ऊपर के सभी।
21. ब्राह्मणो,ं कुत््तोों, गायो ं और बहिष्कृ त को __________ दृष्टिकोण से अलग तरह से व्यवहार किया जा सकता है
लेकिन ये अंतर ___________ दृष्टिकोण से अर््थहीन हैैं। (भ ग 5.18)
1) सामाजिक, आर्थिक
2) सामाजिक, पारलौकिक
3) पारलौकिक, सामाजिक
4) आर्थिक, पारलौकिक
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22. एक अमीर व्यक्ति ऐसे स्थान पर रहना पसं द करता है जो पर््ययावरण की दृष्टि से कम अवक्रमित है। इसे क्या कहा जाता
है?
1) सामाजिक असमानता
2) अंतरजनपदीय असमानता
3) राजनीतिक असमानता
4) पर््ययावरणीय असमानता
24. चिपको आंदोलन को राइट आजीविका पुरस्कार से सम्मानित क््योों किया गया?
1) अभिजात वर््ग लोगो ं ने व्यावसायिक उपयोग के लिए जं गलो ं को काटना शुरू कर दिया।
2) किसानो ं ने पेड़़ोों को गले लगाया और उन्हहें काटने से रोका।
3) किसानो ं ने अधिकारियो ं को जं गल के विनाश से सं बं धित सभी अनुबंधो ं को रद्द करने के लिए मजबूर किया।
4) ऊपर के सभी
27. कोविड महामारी मेें यह देखा गया है कि अमेरिका मेें अफ्रीकी अमेरिकी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैैं। उनका मृत्यु दर
एशियाई लोगो ं के मृत्यु दर से लगभग 2.7 गुना अधिक है, जिनकी वास्तविक दर सबसे कम है। इससे वाकिफ कराने के
लिए समानता और न्याय के किन सिद््धाांतो ं को लागू किया जा सकता है?
1) सामाजिक समानता
2) अंतर पीढ़़ीगत समानता
3) पर््ययावरण समानता
4) उपर््ययुक्त सभी
28. कोका कोला पर पानी की कमी पैदा करने का आरोप इस स्थान पे था - अन्य क्षेत््रोों के अलावा - के रल, दक्षिणी भारत
मेें प्लाचिमाडा समुदाय। इसके अलावा कोका कोला पर एक ही समुदाय मेें कोका कोला के कारखानो ं के आसपास के खेतो ं
और नदियो ं मेें अपशिष्ट जल का विसर््जन कर जल प्रदूषण का आरोप भी लगाया गया था। भूजल और मिट्टी इस हद तक
प्रदूषित थी कि भारतीय जन स्वास्थ्य अधिकारियो ं ने कु ओ ं और हैैंडपं पो ं के आसपास सं के त पोस्ट करने की जरूरत पाई गई,
जिसमेें समुदाय को सलाह दी गई कि पानी मानव उपभोग के लिए
अस्वास्थ्यकर है।सन 2000 मेें कं पनी ने प्लाचिमाडा मेें अपने उत्पादन कार्ययों को शुरू किया। स्थानीय लोगो ं ने दावा किया
कि ऑपरेशन शुरू होते ही उन्हहें पानी की किल्लत का सामना होना शुरू हो गया था। राज्य सरकार ने सन 2003 मेें कोका
कोला के खिलाफ कार््यवाही शुरू की, और उसके तुरंत बाद के रल उच्च न्यायालय ने कोकाकोला को भूजल को अधिक
निकालने से प्रतिबं धित कर दिया। 2004 तक कं पनी ने अपने उत्पादन सं चालन को निलं बित कर दिया था, जबकि उसने
सं चालित करने के लिए अपने लाइसेेंस को नवीनीकृ त करने का
प्रयास किया था। कोका कोला ने दलील दी कि घटती वर््षषा इस क्षेत्र मेें अकाल का मुख्य कारण है। लं बी न्यायिक प्रक्रिया
और चल रहे प्रदर््शनो ं के बाद कं पनी अपना कामकाज फिर से शुरू करने के लिए लाइसेेंस नवीनीकरण करवाने मेें सफल
रही। 2006 मेें कोका कोला के सं चालन की सफल पुनः स्थापना उस समय उलट गई जब के रल सरकार ने के रल मेें कोका-
कोला उत्पादो ं के निर््ममाण और बिक्री पर इस आधार पर प्रतिबं ध लगा दिया कि वह कीटनाशको ं की उच्च सामग्री के कारण
असुरक्षित है। हालांकि, यह प्रतिबं ध लं बे समय तक नही ं चला और बाद मेें उसी साल भारत के उच्च न्यायालय ने के रल की
अदालत के फै सले को पलट दिया। हाल ही मेें, मार््च 2010 मेें,
राज्य सरकार के एक पैनल ने के रल मेें पानी और मिट्टी को हुए नुकसान के कारण कोका-कोला की भारतीय सहायक कं पनी
को कु ल 3,48,48,15,000 रुपय जुर््ममाने की सिफारिश की थी।
कोका कोला पर 3,48,48,15,000 रुपय का जुर््ममाना लगाया गया क््योोंकि वे कौन से मूल््योों को प्रदर्शित करने मेें
विफल रहे?
1) लिगं समानता
2) पर््ययावरण समानता
3) सामाजिक समानता
4) अंतर-पीढ़़ीगत समानता
72
न्याय
न्याय के सिद््धाांत
न्याय का सर्वोत्तम मूलभूत सिद््धाांत, दो हज़़ार वर्षो से भी पूर््व सर््वप्रथम एरिस्टोटल द्वारा परिभाषित किया गया सिद््धाांत है-
वह, यह है कि “समान के साथ समान रूप से और असमान के साथ असमान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए” जो तब से
सभी के द्वारा स्वीकार किया जाता हैैं।
इसके समकालीन रूप मेें, इस सिद््धाांत को कभी-कभी इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता हैैं: “प्रत्येक के साथ समान
व्यवहार किया जाना चाहिए जब तक कि वे जिन परिस्थितियो ं मेें शामिल हैैं, वह भिन्न न हो।” उदाहरण के लिए, यदि
जैक और जिल दोनो ं समान कार््य करते हैैं और उनमेें तथा उनके कार्ययों मेें कोई भिन्नता नही ं हैैं, तब उन्हहें समान वेतन प्राप्त
होना चाहिए| और यदि जैक को जिल से अधिक वेतन मिलता हैैं, मात्र इसलिए की वह एक आदमी हैैं या वह गोरा हैैं तब
भेदभावी तौर पर यह एक अन्याय होगा क््योोंकि सामान्य कार््य परिस्थितियो ं के अनुसार जाति और लिगं के आधार पर भेद
करना उचित नही ं हैैं।
73
भगवद् गीता द्वारा न्याय का प्रचार
लगभग पांच हज़़ार वर््ष पूर््व, कु रुक्षेत्र की रणभूमि पर आज तक का सबसे बड़़ा युध््द
हुआ। बाहरी रूप से देखा गया है कि भगवान कृ ष्ण ने अर््जजुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया
लेकिन भीतरी कारण न्याय का प्रोत्साहन करना है। मानवजाति के विषय मेें विधि पुस्तक,
मनु-सं हिता मेें इसका समर््थन किया जाता है कि एक हत्यारे को मौत की सजा दी जानी
चाहिए ताकि इस जन्म मेें उसके द्वारा किये गए घोर पाप का कष्ट उसे अपने अगले जन्म
मेें ना भोगना पड़़े। अतः राजा के द्वारा दी गयी फांसी की सजा, हत्यारे के लिए हितकर
है। उसी प्रकार, जब कृ ष्ण युद्ध का आदेश देते है तब यह निष्कर््ष निकालना चाहिए की
हिसं ा सर्वोच्च न्याय के लिए अनिवार््य है और अर््जनजु को निर्देश का पालन करना चाहिए,
यह अच्छी तरह से जानते हुए कि कृ ष्ण के लिए लड़ने के कार््य मेें की गई हिसं ा, बिल्कु ल भी हिसं ा नही ं है। हम देखते हैैं कि
भगवान न्याय के सबसे बड़़े प्रेरक हैैं।
तो हम देखते है कि परमेश्वर भी न्याय के सबसे बड़़े प्रेरक है ठीक वैसे ही, जैसे की उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपनी बेेंच
पर बैठा है और उसके आदेश से बहुत कु छ हो रहा है -- किसी को फांसी की सजा दी जा रही है, किसी को जेल मेें डाला जा
रहा है, किसी को बहुत बड़़ी धनराशि का पुरस्कार दिया जाता है, लेकिन वह निष्पक्ष है। न्यायधीश का उस लाभ और हानि
से कोई लेना देना नही ं है। वह सिर््फ न्याय का प्रचार करने के लिए ऐसा कर रहे हैैं। इसी प्रकार भगवान हमेशा निष्पक्ष रहते
है, हालाँकि गतिविधि के हर क्षेत्र मेें उनका ही योगदान है। वे सिर््फ न्याय का प्रचार करने हेतु पुरस्कार और दंड का निर््णय
करते है।
मस्तिष्क विक्षोभ
क्या आप ऐसी न्याय की घटना के बारे मेें सोच सकते है जिसमे आपको न्याय की आवश्यकता महसूस हुई हो। अपने मित्र
के साथ चर््चचा करेें और उन तरीको को ढू ंढे जिससे न्याय दिया जा सके |
74
निष्पक्षता क्या है?
सभी लोगो ं के साथ ईमानदारी और सम्मान पूर््वक बर््तताव करेें ।
सभी को कामयाब होने के लिए समान अवसर प्रदान करेें।
75
कथा प्रसं ग
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सिकं दर ने बड़़ी अभिरूचि से सुना। उन््होोंने शाह से कहा, “आपने समझदारी और सही तरीके से फै सला किया है,” लेकिन मेरे
देश मेें हमने अलग तरीका अपनाया होता।
“तुम होते तो क्या करते?”
“अच्छा, हम दोनो ं को बन्दीगृह मेें डाल देत,े और खजाना राजा
को दे दिया जाता।” सिकं दर ने घोषित किया।
“और क्या आप इसे न्याय कहते हैैं?” शाह ने पूछा।
“हम इसे नीति कहते हैैं,” सिकं दर ने कहा।
“तो फिर मैैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूूँ ,” शाह ने कहा। “क्या
आपके देश मेें सूरज चमकता है?”
“ज़रूर।”सिकं दर ने कहा| “क्या वहां बारिश होती है?” शाह ने पूछा।
सिकं दर ने लापरवाही से उत्तर दिया - “ओह, हाँ!” आगे शाह ने कहा- “क्या यह सं भव है! क्या आपके खेतो ं मेें कोई निर्दोष
अहिसं क जानवर हैैं?”
सिकं दर बोला- “बहुत सारे।” “तो,” शाह ने कहा, “इन गरीब जानवरो ं की खातिर सूरज चमकता है और बारिश गिरती है;
क््योोंकि मनुष्य जो अन्यायी है, इस तरह की दआ ु ओ ं के लायक नही ं है।”
दोनो ं देशवासी लालची नही ं थे और ईमानदार थे। राजा ने उनकी भूमि से प्राप्त धन को बांटकर न्याय किया और
उन्हहें सं तुष्ट किया। अपनी प्रजा के प्रति निष्पक्ष होकर राजा ने सही निर््णय लिया।
यहाँ शाह सही निर््णय लेने मेें सक्षम था लेकिन सिकं दर नही ं था। क््योों? इसका उत्तर भगवान कृ ष्ण भगवद् गीता मेें देते हैैं।
वे उल्लेख करते है कि न्याय के गुण का अभ्यास के वल वही कर सकते हैैं जिसकी बुद्धि सतोगुण मेें है क््योोंकि ऐसी बुद्धि से ही
व्यक्ति यह समझ पाता है कि क्या सही है और क्या गलत।
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भगवदगीता के अठारहवेें अध्याय के तीसवेें श्लोक मेें भगवान कृ ष्ण कहते है-
हे पृथा के पुत्र, सतोगुण मेें ज्ञान के द्वारा यह जाना जाता है कि क्या करना चाहिए और क्या नही ं करना चाहिए, किससे डरना
है और किससे नही ं डरना है, क्या बं धनकारी है और क्या स्वतं त्र है।
वे सत्य को असत्य मानते हैैं और असत्य को सत्य मान लेते हैैं। सभी
गतिविधियो ं मेें वे के वल गलत रास्ते अपनाते हैैं; इसलिए उनकी बुद्धि तमो गुण
मेें चली जाती है।
यहां तक कि गुरु नानक भी जपजी साहिब मेें कहते हैैं: “सभी मनुष््योों को अपने
समान मानेें, और उन्हहें अपना एकमात्र पं थ बना लेें।” (जपजी 28), और गुरु
गोबिदं सिहं ने इस सिद््धाांत को बढ़़ावा दिया: “मानस की जात सबे एकै पैहचं बो -
सभी मनुष्य-जाति को मानवता की एक ही जाति के रूप मेें पहचानिए”।
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न्याय के सद्गुण
यूनानियो ं के लिए न्याय, चार गुणो ं मेें से एक था, अन्य तीन ज्ञान, साहस और सं यम थे। हालांकि, एरिस्टोटल दो प्रकार के
न्याय की व्याख्या करते हैैं- पूर््ण न्याय और विशेष न्याय। पूर््ण न्याय नैतिक गुणो ं के समान है। वह अपनी पुस्तक “एथिक्स”
मेें इसकी व्याख्या करते है कि यह उन लोगो ं के बीच मौजूद है जो साधारण जीवन को आत्मनिर््भरता की दृष्टि से जोड़ते हैैं
और स्वतं त्रता और समानता का आनं द लेते हैैं। लेकिन, उसके लिए, यह तब तक सं भव नही ं है जब तक लोग कानून का
पालन नही ं करते।
विशेष न्याय सम्मान या धन अथवा किन््हीीं अन्य वस्तुओ ं के वितरण से जुड़़ा है, जो सदस््योों के मध्य विभाजित होते हैैं।
स्पष्ट शब््दोों मेें कहेें, यदि हमारे बच्चे हमेें, अपने जीवन मेें सामाजिक न्याय के प्रति चिन्ता दर््शशाते नही ं देखते, तो वे भी इसकी
परवाह नही ं करेेंगे - और यह मान लेना अनुचित होगा कि वे करेेंगे। दूसरी ओर, यदि वे हमेें नियमित रूप से सामाजिक
न्याय, करुणा और सेवा करने के लिए आदर््श मानते हैैं, तो वे इसके महत्व को महसूस करेेंगे। इसलिए एक बेरोजगार दोस्त
के परिवार के लिए भोजन बनाने का प्रस्ताव रखेें, अनाथो ं के लिए उत्कृ ष्ट क्रिसमस उपहार खरीदेें , बच््चोों का शोषण करने
वाले सं घ के खिलाफ खड़़े हो,ं और उनके लिए बोले जो बोल नही ं सकते। आपका पुत्र व पुत्री ध्यान देेंगे...और वे हमेशा
ध्यान देते हैैं। यदि हम न्यायप्रिय बच््चोों की परवरिश करना चाहते हैैं, तो हमेें उन्हहें अपने समुदाय और दनि ु या भर मेें उन मुद््दोों
से अवगत कराना होगा जो न्याय की अनिवार््यता को दर््शशाता हैैं।
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पर््ययावरण सम्बन्धी न्याय
प्रत्येक मानवीय अधिकार प्रस्ताव के केें द्र मेें एक दृढ़ विश्वास है कि हमेें अन्यायपूर््ण रूप से कै द नही ं किया जाना चाहिए या
यातना और अन्य अतिचारो ं का सामना नही ं करना चाहिए। ऐसा कोई कारण नही ं है कि यह धारणा जानवरो ं पर भी लागू
न हो। कोविड-19, स्वाइन फ्लू , एच5एन1 और एच7एन7 बर््ड फ्लू (तीस मिलियन से अधिक पक्षियो ं की हत्या), निप्पा
वायरस (एक मिलियन जानवरो ं की हत्या) और SARS, ये सभी, पूर््णतया अनुचित अन्यायपूर््ण तरीके से गहन पशु कृ षि
और पशु परिवहन के कारण हैैं। मनुष्य की अनैतिक रूप से बड़़ी मात्रा मेें मांस और मछी का सेवन करने की अतृप्त इच्छा,
पशुजन्य रोगो ं का कारण है। और जब तक खपत कम नही ं होती तब तक कोविड-19 जैसे वायरस आते रहेेंगे। यह अन्याय
का बहुत बड़़ा मुद्दा है उदाहरणार््थ कु छ लोगो ं के अत्यधिक उपभोग करने से, पूरी दनि ु या मेें लाखो ं निर्दोष लोग मारे जाते हैैं।
कोविड-19 इन अन्यायो ं को बढ़़ा रहा है। इस महामारी के प्रभावो ं और नुकसानो ं का बोझ असं गत रूप से स्वदेशी समुदायो,ं
गरीब, शरणार्थी, वे लोग जो स्वास्थ्य प्रतिबं धो ं के अंतर्निहित है, बुजुर््ग, विकलांग सभी पर डाला जा रहा है।
स्पष्ट रूप से, ये प्रतिघात, मानवीय न्याय के मुद्दे हैैं। उदाहरण के लिए,
वर््षषावनो ं मेें वृक््षोों को काँटने से स्थानीय मानव समुदायो ं को शारीरिक और
सांस्कृतिक रूप से विस्थापित करके उन्हहें नुकसान पहुुँ चता है। यह वन्य जीवो ं
को जड़ से नष्ट कर बीमारी फै ला सकता है। इसके अलावा, बी.ए.एम.ई.
(ब्लैक, एशियन और माइनॉरिटी एथिनिक) समुदाय असं गत रूप से
पर््ययावरणीय बीमारियो ं (इसे अक्सर पर््ययावरणीय नस्लवाद भी कहा जाता है)
से पीड़़ित हैैं, जिनमेें कृ षि के परिणामस्वरूप होने वाली बीमारियां भी शामिल
हैैं। पर््ययावरण के विषय मेें, पी.पी.ई. (जैसे मास्क के रूप मेें) के भारी प्रयोग
से और जनता के बीच वायरस के सं क्रमण के डर से सिगं ल-यूज़ प्लास्टिक
(जो के वल एक बार प्रयोग किया जाता है) का उपयोग बढ़ गया है, इस
प्रकार प्लास्टिक कचरे मेें वृद्धि हुई है।
विश्व भर मेें पशुजन्य रोग, प्रदूषण, जलवायु परिवर््तन, वनो ं की कटाई और जैव विविधता के नुकसान का प्रमुख सं चालक
पशु कृ षि उद्योग है। यह उद्योग वर््षषावनो ं के विनाश, भूमि को वृक्षहीन करने के साथ जल सं साधनो ं की कमी, तथा भोजन को
भूखे मनुष््योों से छीन कर, मृत्यु के लिए नियत जानवरो ं को खिलाने के लिए जिम्मेदार है।
(उदाहरण के लिए, सोया की 70 प्रतिशत से अधिक उपज
पशुओ ं को खिलायी जाती है और एक चौथाई से अधिक
मछलियो ं को पालतू मछलियो ं को खिलाया जाता है)। अतः हम
सभी के लिए यह महत्वपूर््ण है कि मांस और पशु वसा के सेवन
को कम करेें और पौधे आधारित आहार का समर््थन करेें और
जानवरो ं को मारना बं द करेें!
हमेें दूसरे मनुष््योों की भलाई की अहमियत क््योों करनी चाहिए?
हमेें जीवन को ही महत्व क््योों देना चाहिए? हमेें पर््ययावरण को
महत्व क््योों देना चाहिए? इन सवालो ं के कई जवाब हैैं।
80
तथ्य यह है कि कई उत्तर हैैं इसका मतलब यह नही ं है कि कोई उत्तर नही ं है।
जाति, रंग, मूल देश, सं स्कृति, शिक्षा अथवा विकास के अनुसार आय की परवाह किए बिना सभी लोगो ं की सहभागिता और
निष्पक्ष रूप से व्यवहार करना ही पर््ययावरणीय न्याय है। और पर््ययावरणीय नियमो,ं अधिनियमो ं और नीतियो ं को लागू करना
पर््ययावरणीय न्याय है|
निष्पक्ष व्यवहार का अर््थ है कि नस्लीय, जातीय, व सामाजिक-आर्थिक समूहो ं को या किसी भी समूह के लोगो ं को
औद्योगिक, नगरपालिका और व्यवसायिक सं चालन अथवा सं घ, राज्य, स्थानीय निवास और जनजातीय पर््ययावरण कार््यक्रमो ं
और नीतियो ं के कार््ययान्वयन के परिणाम स्वरूप नकारात्मक पर््ययावरणीय परिणामो ं को असं गत रूप से नही ं सहना पड़़े।
अतः पर््ययावरणीय न्याय का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पर््ययावरण और स्वास्थ्य-सं बं धी खतरो ं से प्रत्येक
व्यक्ति को समान सुरक्षा लाभ प्राप्त हो।
उसके साथ-साथ, पर््ययावरणीय न्याय, यह भी सुनिश्चित करता है कि स्वस्थ जीवन, काम करने और सीखने की परिस्थितियो ं
पृथ्वी माता पवित्र है, और पृथ्वी पर सब कु छ पारिस्थितिक रूप से जुड़़ा हुआ है और अन्योन्य आश्रित है, और
प्रत्येक प्रजाति को पर््ययावरणीय विनाश से मुक्ति का अधिकार है।
सभी सार््वजनिक पॉलिसीस को, बिना कोई पक्षपात अथवा भेदभाव किए, सभी लोगो ं के लिए आपसी आदर और
न्याय के आधार पर बनाये जाने की आवश्यकता है।
भूमि और नवीनीकरण सं साधनो ं को नैतिक रूप से, जिम्मेदारी के साथ उपयोग करने के पक्ष मेें समर््थन करता है|
विशृृं खल/अव्यवस्थित परमाणु परीक्षण, विषैले तत्व और जहरीले अवशेष के उत्पादन और निष्कासन और परमाणु
सामग्री के परीक्षण से सार््वभौमिक सुरक्षा की मांग करता है जो हवा, पानी, भूमि और भोजन को साफ करने के लिए
खास़ खतरा है।
प्रत्येक व्यक्ति के आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पर््ययावरणीय क्षेत्र के प्राथमिक अधिकार की पुष्टि करता है।
जहरीले अवशेष और रेडियोधर्मी पदार्थथों के उत्पादन को रोकने की मांग करता है और यह भूतकालीन और वर््तमान
के उत्पादको ं को उत्पादन स्थल पर घातक अवशेष के विषहरण और उनके इन्तेजाम के लिए लोगो ं के प्रति जवाबदेह
बनाता है।
जरूरतो ं के आकलन सहित, योजना, कार््ययान्वयन और प्रवर््तन के रूप मेें उनके पर््ययावरण के सं बं ध मेें किए जाने वाले
प्रत्येक निर््णय पर समान भागीदार के रूप मेें भागीदारी के अधिकार के लिए निवेदन करता है।
बेरोजगारी और जीवननिर््ववाह के असुरक्षित स्रोत के बीच चयन किए बिना, प्रत्येक कार््यकर््तता को स्वस्थ और सुरक्षित
कार््यस्थल वातावरण के अधिकार की पुष्टि करता है। यह इसकी भी पुष्टि करता है कि घर से काम करने वालो ं को भी
पर््ययावरणीय खतरो ं से मुक्त होने का अधिकार है।
81
जो पर््ययावरणीय अन्याय के शिकार होते हैैं उन लोगो ं के अधिकारो ं की रक्षा करता है और उन्हहें हुए नुकसान की पूर््ण
क्षतिपूर्ति और अच्छे स्वास्थ्य की देखभाल करता है।
“यूनाइटेड नेशन कन्ववेंशन ऑन जेनोसाइड” और “यूनिवर््सल डिक्लेरेशन ऑन हुमन राइट्स” सरकार द्वारा
पर््ययावरणीय अन्याय के किसी भी कृ त्य को अंतरराष्ट्रीय कानून मेें उल्लं घन मानते है।
आत्म-दृढ़ता और सं प्रभुता की पुष्टि करने वाले समझौतो,ं अनुबंधो,ं सं धियो ं और प्रतिज्ञापत््रोों के माध्यम से क्षेत्रीय
मूल निवासियो ं और सरकार के बीच एक राष्ट्रीय और कानूनी सं बं ध को मान्यता देता है।
शहरी और ग्रामीण पर््ययावरणीय नीतियो ं को स्पष्ट होने और शहरी और ग्रामीण क्षेत््रोों को प्रकृ ति माता के साथ सं तुलन
बनाए रखने के लिए पुननिर््ममाण, समुदायो ं की सांस्कृतिक अखं डता का सम्मान और पहचान करने की आवश्यकता हैैं
और सभी उपलब्ध सं साधनो ं तक समान रूप से पहुुंच प्रदान करने की पुष्टि करता हैैं।
सूचित सहमति के सिद््धाांतो ं को लागू करने और अश्वेत लोगो ं पर चिकित्सा और प्रजनन प्रक्रियाओ ं और उत्पादो ं और
टीको ं के प्रयोग के परीक्षण पर रोक लगाने का निवेदन करता है।
ऐसे सं चालन जो विनाशकारी है और बहुराष्ट्रीय सं स्थाओ ं द्वारा किये गए है, उनके खिलाफ तर््क देता है।
सेना द्वारा भूमि, लोगो ं और उनकी विभिन्न सं स्कृतियो ं और जीवन की अन्य रीतिओ ं के शोषण और भूमि के दमन को
अस्वीकार करता है।
वर््तमान और भविष्य की पीढ़़ियो ं के सशक्तिकरण के लिए सवाल करता है| जो सामाजिक और पर््ययावरणीय मुद््दोों को
सं बोधित करता है| इस सं बोधन का आधार, विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणो ं के लिए वर््तमान अनुभव और प्रशं सा होता
है|
यह आवश्यक है कि हम व्यक्तिगत रूप से और उपभोक्ताओ ं के रूप मेें अपनी पसं द रखेें कि हम पृथ्वी के सं साधनो ं
का जितना हो सके उतना कम उपभोग करेेंगे और जितना हो सके उतना कम कचरा पैदा करेेंगे। हमेें वर््तमान और
भविष्य की पीढ़़ियो ं के लिए एक स्वस्थ दनि
ु या सुनिश्चित करने के लिए अपनी जीवन शैली को फिर से झाकने का
निर््णय लेना होगा।
पर््ययावरणीय के स स्टडी
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ईपीए के अनुसार, स्क््रैं टन मैन्युफैक्चरिंग खतरनाक कचरे का “बड़़ी मात्रा मेें उत्पादन करती हैैं, लेकिन इतना कचरा सं भालने
की सुविधा की आवश्यकताओ ं को पूरा करने मेें विफल रही है। कं पनी आपात स्थिति का जवाब देने के लिए सुरक्षा योजना
तैयार करने मेें विफल रही; खतरनाक कचरे को छोड़ने या छोड़ने की चेतावनी की स्थिति मेें सभी स्थानीय आपातकालीन
उत्तरदाताओ ं के साथ व्यवस्था करने मेें विफल; और सभी स्टाफ प्रशिक्षण आवश्यकताओ ं को पूरा करने मेें विफल रही।
क््योोंकि कं पनी इन आवश्यकताओ ं को पूरा करने मेें विफल रही, यह एक खतरनाक अपशिष्ट उपचार, भं डारण और निपटान
सुविधा के रूप मेें काम कर रही थी।
निरीक्षण के निष्कर्षषों के जवाब मेें, स्क््रैं टन मैन्युफैक्चरिंग अपनी सुविधा को अनुपालन के लिए वापस करने के लिए
आवश्यक कदम उठाने के लिए सहमत हुई।
स्क््रैं टन मैन्युफैक्चरिंग द्वारा उत्पादित कचरे के प्रकार के सं पर््क मेें आने या अवशोषित होने पर चोट या मृत्यु हो सकती है।
सं घीय कानून के अनुसार जो सुविधायेें खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न करती हैैं, कचरे की पहचान करे और सुरक्षित उत्पादन,
हैैंडलिगं , परिवहन और निपटान प्रथाओ ं को लागू करे।
कं पनी द्वारा जहरीले कचरे का यह निपटान निश्चित रूप से पर््ययावरण के प्रति अन्याय का कार््य है।
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लैैंडफिल कई समस्याओं से ग्रस्त है जैसे-
खुले मेें क्षेपण के कई नुकसान हैैं जैसे कि यह दर्ु गंध फै लाता है, कीटाणुओ ं और कीड़़ोों को बढ़ने के लिए जगह प्रदान करता
है, भूजल, नदियो,ं झीलो ं को दूषित करता है, पौधो ं और वन्यजीवो ं के आवासो ं को नुकसान पहुुंचाता है और आसपास के
क्षेत््रोों और समुदायो ं के जीवन की गुणवत्ता को कम करता है। इसलिए यह एक पर््ययावरणीय अन्याय है|
जब लोग पर््ययावरणीय न्याय का पालन करते हैैं तो लोग प्राकृ तिक सं साधनो ं का सं रक्षण करते हैैं। यह देखते हुए कि जब पानी
जैसे उपलब्ध सं साधनो ं को निष्पक्ष रूप से वितरित करने की बात आती है, तब समुदाय, न्याय पर बहस करते हैैं, इससे यह
सुनिश्चित होता है कि सं साधनो ं का निष्पक्षता से उपयोग किया जा सके । उदाहरण के लिए, प्राकृ तिक सं साधनो ं का अनुचित
वितरण और अनुचित उपयोग खतरनाक हो सकता है, खासकर उन क्षेत््रोों मेें जहां वे दर््ल ु भ हैैं। पर््ययावरण न्याय इसलिए
निष्पक्ष वितरण पर जोर देता है और अपव्यय का विरोध करता है।
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जब पर््ययावरण न्याय के सिद््धाांतो ं का पालन किया जाता है, तब प्राकृ तिक
सं साधनो ं से जुड़़े अन्याय को भुला दिया जाता है और प्राकृ तिक सं साधनो ं के
उपयोग पर युद्ध और सं घर््ष जैसी चीजो ं को भी भुला दिया जाता है।
3. पर््ययावरण न्याय के माध्यम से ही स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) को कु शलता पूर््वक समझा जा सकता है।
वोल्फगैैंग सैक्से और टिलमैन सैैंटारियस ने अपनी पुस्तक फे यर फ्यूचर मेें उल्लेख किया है, कि हर किसी को अपनी जरूरतो ं
और अधिकारो ं के अनुसार उत्तरदायी होना चाहिए। जब हम पर््ययावरणीय न्याय के लाभो ं जैसे प्राकृ तिक सं साधनो ं का
सदपु योग और हानियो ं जैसे, प्रदूषण की तुलना करते हैैं, तब हम स्थिरता को प्राप्त करने के लिए जिम्मेदारी सीखते है और
स्थिरता प्राप्त करने के समाधान किए जाते है। निश्चित रूप से स्थिरता भविष्य मेें हो सकती है, लेकिन पर््ययावरणीय न्याय के
पहल के माध्यम से वर््तमान मेें हम जो कार््रवाई करते हैैं, वह हमेें एक कदम और आगे ले जाती है।
क््योोंकि एक व्यक्ति के पास दूसरो ं की तुलना मेें अधिक सं साधन होना गलत नही ं है, वितरण न्याय समान रूप से
सं साधनो ं को विभाजित करने के बारे मेें नही ं है। सं साधनो ं का के वल वितरण, इस बात के इर््द-गिर््द घूमता है कि इसमेें
शामिल लोग एक दूसरे के साथ कै से जुड़़े हैैं। न्याय के वल तभी
लागू नही ं होता जब किसी के पास दूसरे से अधिक सं साधन होते
हैैं, बल्कि तब भी लागू होता है, अगर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के
पर््ययावरण के सं साधन लेता है। यह तब भी लागू होता है जब किसी
के पास जरूरत से ज्यादा सं साधन होते हैैं जबकि दूसरा किसी
सं साधन की कमी के कारण पीड़़ित होता है, जो कि अन्याय है। इस
प्रकार पर््ययावरण न्याय, वितरण के नियम पर बल दे ता है।
न्याय दो श्रेणियो ं मेें आता है; प्रक्रियात्मक न्याय जो इसके इर््द-गिर््द घूमता है कि कै से नीतियो ं का निर््धधारण किया जाता
है और परिणामवादी न्याय वह है जो उन नीतियो ं के निर््णयो ं और कार््ययान्वित होने से आता है। प्रक्रियात्मक न्याय के
लिए, नीतियो ं के निर््धधारण के समय, लोगो ं के अधिकारो ं का सम्मान करना होगा। चूंकि पर््ययावरणीय न्याय, लाभो और
जिम्मेदारियो ं का पुनर्वितरण करता है, इसलिए पर््ययावरणीय न्याय, पर््ययावरण सम्बं धित नीतियो ं का समर््थन करता है।
पर््ययावरणीय न्याय के सिद््धाांत, सं साधनो ं के उचित वितरण तथा प्रदूषण से सम्बं धित कानूनो ं के माध्यम से पर््ययावरणीय
कानूनो ं को समर््थन और मजबूती प्रदान करता हैैं।
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आईए उत्तर देें
1. नेक और नियम बद्ध होने का गुण है
1) निष्पक्षता
2) न्यायता
3) अपक्षपात
4) अखं डता
2. निम्नलिखित मेें से कौन सा एरिस्टोटल के न्याय के सिद््धाांत का सबसे उपयुक्त उदाहरण है?
1) सभी छात््रोों को समान अंक प्राप्त होने चाहिए अगर उन््होोंने समय सीमा से पहले असाइनमेेंट प्रस्तुत कर दिया है
2) यदि किसी छात्र ने असाइनमेेंट कर लिया है जो अति उत्तम है लेकिन समय सीमा खत्म होने के बाद प्रस्तुत किया है, तो
उसे देर से सबमिट करने के लिए दंडित नही ं किया जाना चाहिए
3) यदि कोई छात्र समय सीमा से पहले असाइनमेेंट प्रस्तुत करता है, तो उसे दूसरो ं की तुलना मेें अधिक अंक दिए जाने
चाहिए
4) यदि कोई छात्र बीमार पड़ गया, तो उसे समय सीमा बढ़़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए
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3) कीचड़ बांधो ं से उपोत्पादो ं के अतिप्रवाह के कारण जमीन को दलदल मेें बदलना
4) प्रकृ ति मेें खतरनाक जहरीले कचरे का निपटान
7. गाजीपुर भरावक्षेत्र घटना से, सुधार के लिए उठाए गए विभिन्न कदम क्या हैैं (एक से अधिक विकल्प सही हैैं)
1) बेहतर सं चालन और प्रबं धन
2) लोगो ं द्वारा भूमि को बेकार स्थल मेें बदलने के लिए खाली करना
3) वैकल्पिक अवशेष प्रबं धन विकल्प तलाशे जा रहे हैैं
4) डब्ल्यू.टी.ई कारखानेें विकसित किए जाये
5) इसके भविष्य के नतीजो ं को देखने के लिए कु ढ़़े का ढेर बनाना शुरू करना
6) आगामी लैैंडफिल को ढूँ ढना
9. सिकं दर, शाह के देश के दो आदमी को न्याय देने के बारे मेें क््योों नही ं सोच सकता था? ( यह प्रश्न “यह खजाना मेरा
नही”ं कहानी मेें से लिया गया है)
क) वह एक महान विजेता था और वैसा ही सोचता था।
ख) नियमो ं के अनुसार, धरती मेें दबी हुई कोई भी वस्तु राज्य की है।
ग) वह हैरान था क््योोंकि दोनो ं बहुत ईमानदार थे।
घ) न्याय का अभ्यास वे कर सकते हैैं जिनकी बुद्धि अच्छाई मेें है।
10. गलत करने वाले को सरकार या राजा के द्वारा दी गई सजा वास्तव मेें उसके लिए___ है। (भ.गी. २.२१)
क) हानिकारक
ख) प्रेरणाहीन
ग) लाभकारी
घ) प्रोत्साहक
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11. कृ ष्ण चाहते थे कि अर््जजुन न्याय के मार््ग पर चले लेकिन अर््जजुन इस सलाह को स्वीकार नही ं कर सके । अर््जनजु ऐसा क््योों
नही ं कर पाए? (भ.गी. 2.3)
क) कोमल-हृदयता
ख) हृदय की कमजोरी
ग) कठोर-हृदयता
घ) ऊपर दिए गए सभी
12. न्याय के लिए न लड़ने के लिए अर््जजुन द्वारा क्या तर््क दिए गए थे? (भ.गी. १.२८ - बीजी १.४३)
क) करूणा
ख) परिवार के सदस््योों की अनुपस्थिति मेें आनं द भोगने मेें असमर््थ
ग) पारिवारिक परंपराएं बढ़ेंगी
घ) पाप की प्रतिक्रियाओ ं से डरना
13. न्यायप्रिय व्यक्ति जीवन मेें सही निर््णय लेने मेें सक्षम होता है जिसके लिए कु शाग्र बुद्धि की आवश्यकता होती है। बुद्धि
का सबसे महत्वपूर््ण कार््य क्या है? (बीजी १८.३०)
क) स्मरण शक्ति
ख) अच्छे -बुरे मेें भेद की शक्ति
ग) रचनात्मक शक्ति
घ) रटने की शक्ति
14. भगवद् गीता के सोलहवेें अध्याय के पहले व दूसरे शलोक, से उन दैवी गुणो ं का चयन कीजिए जो न्याय को बढ़़ावा देने
के लिए आवश्यक हैैं?
__________________________________________________
__________________________________________________
____________________
15. जो लोग बहुत स्वार्थी होते हैैं, वे के वल अपने बारे मेें सोचते हैैं और इन्द्रियो ं का भोग ही उनके लिए जीवन का एकमात्र
लक्ष्य है। भगवद् गीता के सोलहवेें अध्याय के ग्यारहवेें व बाहरवेें श्लोक के अनुसार, इनकी ऐसी विचारधारा क््योों है?
क) उन्हहें लगता है कि वे कु छ भी करने के लिए स्वतं त्र हैैं
ख) वे बहुत महत्वाकांक्षी हैैं
ग) वे नही ं जानते कि उनके दिल मेें एक गवाह (साक्षी) बैठा है।
घ) उपरोक्त मेें से कोई नही ं
16. भगवद् गीता के सोलहवेें अध्याय के इक्कीसवेें श्लोक के अनुसार नर््क के तीन द्वार हैैं। वे कौनसे हैैं?
______________________________________________________
______
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17. वह समझ, जो भ्रम और अंधकार के आवेग मेें, अधर््म को धर््म और धर््म को अधर््म समझती है, और हमेशा गलत दिशा
मेें प्रयास कराती है। ऐसी बुद्धिमत्ता......मेें है। (बी.जी 18.32)
क) सतोगुण
ख) रजोगुण
ग) तमोगुण
घ) इनमेें से कोई नही ं
18. कै से कह सकते हैैं कि भगवान को सभी के लिए समान रूप से दयालु माना जाता है? (भगवद्गीता 5.18)
1) क््योोंकि वह हर प्राणी को अपना मित्र मानते है।
2) क््योोंकि वह सबकी मनोकामना पूर््ण करते हैैं
3) क््योोंकि वह परमात्मा है।
4) क और ख दोनो।ं
19. परमेश्वर का मार््ग उत्तम है। प्रभु के वचन मेें कोई दोष नही”ं हम इसी जीवन मेें निर्दोष कै से बन सकते हैैं?
(भगवद्गीता 5.19)
1) दूसरो ं का भला करने से।
2) अपनो ं से प्यार करके
3) आकर््षण या घृणा के बिना होने से।
4) हमारे दोषो ं को स्वीकार करके ।
20. अर््जजुन ने क्षत्रिय का पुत्र होते हुए भी कु रुक्षेत्र के युद्ध के मैदान मेें लड़ने से इनकार कर दिया। क्या वह वास्तव मेें उस
समाज के साथ न्याय कर रहा था जिससे वह सं बं धित है? (भगवद्गीता 2.3)
1) हाँ, क््योोंकि यह सबसे सम्मानित भीष्म और उनके रिश्तेदारो ं के लिए उनके उदार रवैये को
प्रदर्शित करेेंगे ।
2) नही,ं क््योोंकि ऐसा करने से वह एक कु ख्यात कृ त्य कर रहे होगं े ।)
3) नही,ं क््योोंकि वह अपने पिता के अयोग्य पुत्र के रूप मेें माना जाएगा
4) ख और ग दोनो।ं
21. कभी-कभी हमारा मोह हमारे न्याय करने की राह मेें बाधक बन जाता है। यहां सबसे बड़़ा उदाहरण अर््जजुन है।
वह और उसके भाई कौरवो ं के हाथो ं पीड़़ित हुए, और फिर भी अर््जजुन, अभिभूत होकर, न्याय के लिए लड़ने से
इनकार कर रहे थे । भगवद्गीता के अनुसार आसक्ति से मोहग्रस्त व्यक्ति के लिए कौन से 2 लक्षण बताए गए हैैं?
(भगवद्गीता 1.30)
1) अनुचित होना, और मनोवैज्ञानिक समस्याएं होना
2) हमेशा क्रोध और भय की स्थिति मेें रहना
3) मानसिक सं तुलन का नुकसान, और भयभीत
4) मानसिक सं तुलन का नुकसान और हमेशा क्रोध की स्थिति मेें रहना
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22. हम जानते हैैं कि न्याय और समानता सबसे महत्वपूर््ण मूल्य हैैं जो हर किसी के पास होने चाहिए। लेकिन साथ ही,
हमारे सामाजिक जीवन को चार भागो ं मेें बांटा गया है, यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। भगवान ने जीवन के इन
श्रेणीयो ं को क््योों बनाया? (भगवद्गीता 16.1-3)
1) समाज को शांति की स्थिति मेें रखने के लिए।
2) समाज को समृद्धि की स्थिति मेें रखने के लिए
3) समाज को सुरक्षित रखने के लिए
4) क और ख दोनो।ं
23. आपका एक चचेरा भाई वास्तव मेें परेशान है क््योोंकि उसके दोस्त ने उसके साथ गलत किया है और उसे उन सभी
गलत कामो ं के लिए दोषी ठहराया है जो वास्तव मेें उसने नही ं किए हैैं। अब आपका चचेरा भाई किसी पर भरोसा नही ं कर
सकता और खुद को ठगा हुआ महसूस कर सकता है.. एक नैतिक व्यक्ति के रूप मेें आप उसे मनाने के लिए क्या कह सकते
हैैं? ( भगवद्गीता 16.1-3)
1) भगवान न्याय करेगा क््योोंकि वह सब कु छ देख रहा है।
2) हमेें दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि भगवान उस आत्मा की देखभाल करेेंगे जो उनके सामने आत्मसमर््पण
करती है।)
3) भगवान हमेशा जानता है कि कोई क्या करना चाहता है, इसलिए हमेें उस पर भरोसा करना चाहिए
4) ऊपर के सभी।
24. एक व्यक्ति जिसमेें अच्छे गुण नही ं है, गलत सं तुष्टि के लिए काले बाजार मेें सौदा कर सकता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी
पापी तरीके से कार््य करने मेें सं कोच क््योों नही ं करता है? (भगवद्गीता 16.16)
1) लालच - वह पैसे प्राप्त करने की अपनी इच्छा की कोई सीमा नही ं जानता है।
2) जुनून - वह काली बाजारी के लिए जुनूनी है
3) निडरता - उसे पैसे खोने का कोई डर नही ं है
4) ऊपर के सभी।
25. आपके एक दोस्त की इच्छा होती है कि उसके पास बहुत सारा धन हो और अगले जीवन मेें किसी उच्च परिवार
मेें जन्म ले। आप अपने दोस्त को उसकी इच्छाओ ं को पूरा करने के लिए क्या सुझाव दे सकते हैैं? (भगवद्गीता 16.16)
1) अगले जन्म मेें एक उच्च परिवार मेें जन्म लेने के लिए उसे वर््तमान जीवन मेें अच्छा काम करना चाहिए
2) अगले जन्म मेें उच्च कु ल मेें जन्म लेने के लिए उसे वर््तमान जीवन मेें कु छ ध्यान अवश्य करना चाहिए
3) अगले जन्म मेें एक उच्च परिवार मेें जन्म लेने के लिए उसे वर््तमान जीवन मेें योग करना चाहिए
4) उसे अपने अगले जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई प्रयास नही ं करना चाहिए।
26. अर््जजुन कभी भी किसी के साथ अन्याय नही ं कर सकता था, भले ही इससे उसे और उसके परिवार को फायदा
हो। फिर भी भगवान कृ ष्ण ने उन्हहें लड़ने के लिए कहा, जिससे कई लोगो ं के साथ अन्याय हो सकता था। फिर युद्ध मेें अर््जनजु
के शामिल होने को आसुरी क््योों नही ं माना गया? (भगवद्गीता 16.5)
1) क््योोंकि वह लड़़ाई के फायदे और नुकसान पर विचार कर रहा था
2) वह क्रोध, झूठी प्रतिष्ठा या कठोरता के प्रभाव मेें कार््य नही ं कर रहा था।
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3) क्षत्रिय के लिए शत्रु पर बाण चलाना आसुरी नही ं है।
4) ऊपर के सभी।
27. जैसा कि एक प्रसिद्ध कहावत है: जब ईश्वर द्वारा न्याय किया जाता है, तो यह धर्मियो ं के लिए खुशी और बुरे
काम करने वालो ं के लिए आतं क लाता है। भगवान अपने भक््तोों को नुकसान पहुुंचाने वालो ं को माफ क््योों नही ं कर सकते?
(भगवद्गीता 1.32-35)
1) क््योोंकि न्याय करना ईश्वर का कर््तव्य है।
2) क््योोंकि भगवान आंशिक है
3) क््योोंकि भक्त के साथ की गई किसी भी शरारत या न्याय को भगवान बर््ददाश्त नही ं कर सकते।
4) ख और ग दोनो।ं
28. न्याय प्रशासन के लिए, तथाकथित हिसं ा _________ है? (भगवद्गीता २.२१)
1) अनुमति है
2) अनुमति नही ं
3) हानिकारक
4) विनाशकारी नही ं
29. एक दक ु ानदार के पास स्टॉक मेें अंतिम 2 स्कू ल बैग बचे हैैं। एक ग्राहक जो स्कू ल बैग खरीदता है, उसे ब््राांड
की शर्ततों के अनुसार स्टेशनरी किट मुफ्त की गारंटी दी जाती है। लेकिन दक ु ानदार ने एक स्टेशनरी किट खो दी और
स्टॉक मेें सिर््फ एक बचा है। दो ग्राहक A और B क्रमशः 2 स्कू ल बैग खरीदने के लिए एक के बाद एक दक ु ान मेें प्रवेश
करते हैैं। सबसे उपयुक्त विकल््पोों का चयन करके निम्नलिखित प्रश््नोों के उत्तर देें। सबसे अच्छा तरीका क्या होगा कि
ु ानदार अपनी गलती को सुधार सके और दोनो ं ग्राहको ं के साथ ठीक से व्यवहार कर सके ?
दक
1) दोनो ं ग्राहको ं को मुफ्त वस्तु के बारे मेें उल्लेख नही ं करना, और उन दोनो ं को मुफ्त वस्तु से इनकार करना
2) ग्राहक बी को एक निश्चित राशि की छू ट की पेशकश करना क््योोंकि वह के वल उसे मुफ्त वस्तु देने मेें असमर््थ है
3) ग्राहक B को स्टॉक से एक और वस्तु मुफ्त मेें देना, जिसका मूल्य मूल स्टेशनरी किट के बराबर है
4) ग्राहक B को स्टॉक से एक और वस्तु मुफ्त मेें देना, जो कि मूल स्टेशनरी किट के समान है, जबकि ग्राहक A को मूल
मुफ्त वस्तु या प्रतिस्थापित एक को चुनने का विकल्प भी देता है।
30. अपराधी को दण्ड देकर न्याय दिलाने का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
1) अपने कृ त्य का बदला लेने के लिए
2) अपराधी को उस अनुपातिक दर््द का एहसास कराएं जो उसने दूसरो ं को दिया था
3) उसके रवैये मेें सुधार ताकि वह फिर से अपराध न करे
4) पीड़़ित को अपराध के अंत मेें होने के लिए सांत्वना देने के लिए
31. “न्याय के गुण का अभ्यास वही कर सकते हैैं जिनकी बुद्धि अच्छाई मेें हो क््योोंकि ऐसी बुद्धि से ही व्यक्ति ही
यह समझ पाता है कि क्या सही है और क्या गलत।” इस कथन के सं बं ध मेें प्रश्न का उत्तर देें। अच्छाई मेें बुद्धि का
विकास कै से किया जा सकता है? सबसे उपयुक्त विकल्प को चिह्नित करेें
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1) जल्दी सोना, जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बनाता है
2) कक्षाओ ं मेें चौकस रहने और समय पर गृहकार््य करने से
3) तर््क और तर््क पर आधारित अधिक प्रश््नोों को हल करके
4) नियमित रूप से ज्ञान साहित्य पढ़ने से
34. हम उन लोगो ं की देखभाल कै से कर सकते हैैं, जो पर््ययावरणीय अन्याय का शिकार हो जाते हैैं?
1) पूर््ण मुआवजा और स्वास्थ्य देखभाल
2) सरकार और क्षेत्रीय मूल निवासियो ं के बीच समझौते और सं धियां होनी चाहिए।
3) हम मूल निवासियो ं से कह सकते हैैं कि वे अपने व्यक्तिगत कौशल का उपयोग करेें और आसपास के गांवो ं से मदद लेें
4) सरकारी सं साधन सीमित होने के कारण सभी को उचित रूप से और जीवन के लिए पूर््ण मुआवजा नही ं दिया जा
सकता है
35. एरिस्टोटल के अनुसार न्याय के विभिन्न प्रकारो ं को मोटे तौर पर, कौन-सा समझाया गया है? (एक से अधिक ठीक हो
सकते है)
1) पूर््ण
2) विशेष
3) दंड देनेवाला
4) मज़बूत कर देनेवाला
36. निम्नलिखित मेें से कौन सा परिदृश्य मानको ं की निष्पक्षता के लिए सं दिग्ध है ? (एक से अधिक ठीक हो सकते है)
1) अमेरिकी सरकार विदेशी नागरिको ं की तुलना मेें इं जीनियरिगं कॉलेजो ं मेें प्रवेश के लिए घरेलू छात््रोों को प्राथमिकता दे
रही है
2) सिनेमा हॉल/स्टेडियम अग्रिम पं क्ति की सीटो ं के लिए उच्च टिकट कीमतो ं की पेशकश करते हैैं
3) राजनीतिक प्रभाव वाले लोगो ं के लिए बिस्तर/कमरो ं की व्यवस्था करने वाले अस्पताल
4) युद्ध बं दियो ं के साथ सज़़ा के नाम पर बदसलूकी
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सत्यनिष्ठा
सत्यनिष्ठ व्यक्ति सुरक्षित होकर चलता है, लेकिन टेढ़़े-मेढ़़े रास््तोों पर चलने वाले
फिसल कर गिर जाते हैैं - बाइबल की लोकोक्ति
सत्यनिष्ठा का तात्पर््य है दृढ़ता से सही काम करते रहना, चाहे वह कठिन हो।
सत्यनिष्ठा मेें ऐसे नैतिक आचरण का पालन करना है जिसमेें वचन बद्धता और
विश्वसनीयता भी होती है| एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति हमेशा आदर का पात्र होता
है। व्यक्ति की सत्यनिष्ठा का हमेशा सम्मान किया जाता है और उसमे अपनी
मान्यताओ ं से समझौता न करने का आंतरिक साहस होता है। इस गुण को
आत्मसात करना बहुत सरल है, बस हमेें सही की ओर रहना चाहिए।
सत्यनिष्ठ होना, अपने आप मेें सबसे श्रेष्ठ, ईमानदार और नैतिक रूप से
सं योजित होना है। यह किसी के अपने चुने हुए व्यक्तिगत मूल््योों द्वारा
निर्देशित, एक मजबूत चरित्र के निर््ममाण के मार््ग मेें एक पड़़ाव है| और यह
एक ऐसे व्यक्ति मेें प्रकट होता है जो अपने उद्देश्य मेें दृढ़ता से केें द्रित होता है
और जीवन मेें अपने मूल स्वयं के द्वारा निर्देशित करता है। हम अपनी मूल
सत्यनिष्ठा से समझौता तब करते हैैं, जब हम दूसरो ं को हमारे लिए खराब
निर््णय लेने देते हैैं या जब हम अपने विश्वास के साथ, विश्वासघात करते हैैं,
अपने व्यक्तिगत मूल््योों को धोखा देते हैैं या जिसे हम जानते हैैं की यह स्वयं के लिए सच है, उसे झठु ला देते है। जब हम
अपनी सत्यनिष्ठा से समझौता करते हैैं, तो हम बुरी शक्तियो ं के चपेट मेें आने के लिए सहमत हो जाते है, जो कई बार हमारी
स्थिति को और भी अधिक अंधकार और अव्यवस्था मेें ले जाती है|
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1. सामं जस्य को बढ़़ावा देना
युवाओ ं मेें आक्रोश, भ्रष्टाचार, लालच और अन्याय के कारण खोए अवसरो ं से उत्पन्न होता है। नैतिक होकर, आप यह
सुनिश्चित करते हैैं कि सभी के साथ उचित व्यवहार हो, जिससे एकता का विकास हो और आपके समुदाय मेें सामं जस्य हो।
4. रोजगार का सृजन
रोजगार के बाजार मेें अधिकांश युवावर््ग असुविधा मेें पड़़ जाता है जब नियुक्तिकर््तता
अनैतिक व्यवहार करते हैैं। नीतिपरक नियुक्तिकर््तता युवा को समान अवसर प्रदान करते
हैैं, उन्हहें नौकरी हासिल करने के लिए सक्षम बनाते हैैं और उनके समुदाय निर््ममाण मेें
योगदान देते है।
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8. विविधता को प्रोत्साहित करना
विविधता जीवन का नमूना है और नवीन विचारो ं और प्रगति का स्रोत है। नीतिपरक
होने के कारण, एक अलग जनजाति, धर््म या लिगं वाले अन्य लोगो ं को गले लगाकर हम
समुदाय मेें विविधता की भूमिका को पहचानने मेें सक्षम होते हैैं। यह विभिन्न मूल््योों और
दृष्टिकोणो ं को स्वीकार कर समाज मेें समानता पैदा करता है।
9. विरासत का सृजन
नीतिपरक होने से समुदाय की अधिक सकारात्मक छवि बनाने मेें मदद मिल सकती है। यह घरेलू और विदेशी निवेश दोनो ं
ला सकता है, जो आपके समुदाय मेें जीवन को बदलने मेें सहायक हो सकता है। इसके विपरीत, अनैतिक लेन-देन एक
समुदाय के नए निवेश की आकृ ष्ट सं भावनाओ ं को नुकसान पहुुंचाती है।
मस्तिष्क विक्षोभ
क्या आप किसी सत्यनिष्ठ व्यक्ति को जानते हैैं? क्या सोच कर, आप यह कह रहे हो कि वह सत्यनिष्ठ है? आप इस व्यक्ति के बारे मेें कै सा
महसूस करते हैैं? क्या आप उसके जैसा बनना चाहेेंगे.? क््योों?
जो व्यक्ति जीवन मेें बाहरी परिस्थितियो ं जैसे लाभ, हानि, सुख, सं कट आदि से आसानी से प्रभावित हो जाता है, वह अपने
स्वयं के सिद््धाांतो ं को छोड़ने और अखं डता को खोने की चपेट मेें होता है । सत्यनिष्ठा विहीन व्यक्ति को शामिल जोखिमो ं और
लागतो ं पर विचार किए बिना तत्काल आनं द की इच्छाओ ं से अंधा कर दिया जाता है। जब हम गलती से ऐसी इच्छाओ ं को
अपनी इच्छा के रूप मेें पहचान लेते हैैं, तो हम आत्म-विनाशकारी कार््य करते हैैं। ऐसी क्रियाएं जब बार-बार दोहराई जाए तो
आदत बन जाती है जो स्पष्ट रूप से सोचने और स्वतं त्र रूप से चुनने की हमारी क्षमता को चुरा लेती हैैं।
भगवान श्रीकृष्ण अर््जनजु को भगवद गीता के अपने कालातीत ज्ञान मेें अखं डता के मूल्य के सार के बारे मेें
निर्देश देते हैैं, जिसका अर््थ है जीवन मेें सभी प्रलोभनो ं के बावजूद अपने कर््तव्य का पालन करना। वे दूसरे
अध्याय के 38वेें श्लोक मेें कहते हैैं
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सुख-दःु ख, हानि-लाभ, विजय-पराजय पर विचार किए बिना क्या आप युद्ध के लिए लड़ते हैैं- और ऐसा करने से आप कभी
पाप नही ं करेेंगे। भगवद गीता इस सिद््धाांत को चित्रित करती है कि सत्यनिष्ठ व्यक्ति होने के लिए, बाहरी परिस्थितियो ं से
अप्रभावित रहना पड़ता है।
बाइबिल मेें भी यह उल्लेख किया गया है कि - “एक गरीब आदमी जो अपनी ईमानदारी से चलता है, उस
अमीर आदमी से बेहतर है जो अपने तरीको ं से टेढ़़ा हो।”
जब लाल बहादरु शास्त्री भारत के प्रधान मं त्री के रूप मेें कार््यरत थे, वे एक
कपड़़ोों के कारखानेें मेें गये। उन््होोंने कारखानेें के मालिक से कु छ साड़़ियाँ
दिखाने के लिए अनुरोध किया। मालिक ने उनके लिए कु छ बेहतरीन साड़़ियाँ
दिखायी। शास्त्री जी ने जब कीमत पूछी, तो उन्हहें वह साड़़ी बहुत महंगी
लगी। उन््होोंने सस्ती साड़़ियां मांगी। मालिक ने उन्हहें सस्ती साड़़ियाँ दिखायी।ं
लेकिन, शास्त्री जी को फिर भी महंगी लगी। मालिक हैरान था और उसने
कहा कि उन्हहें कीमत के बारे मेें चितं ा करने की ज़रूरत नही ं है क््योोंकि वे
भारत के प्रधान मं त्री थे और उन्हहें यह साड़़ी उपहार के रूप मेें देना उसके लिए
सौभाग्य की बात होगी।
इस पर शास्त्री जी ने उत्तर दिया कि वे इतना महंगा उपहार स्वीकार नही ं कर
सकते और वे के वल एक साड़़ी लेेंगे जो वह खरीद सकतेें है।
96
मस्तिष्क विक्षोभ
तो, आप इस कहानी से कौन से सिद््धाांत अपना सकते हैैं? सत्यनिष्ठा इतनी महत्वपूर््ण क््योों है? क्या आपको लगता है कि आपको अपनी
सत्यनिष्ठा के बदले मेें कु छ मिलता है?
5. शीघ्रता के दष्प
ु रिणाम के बारे मेें जागरूक होना:
आम तौर पर लोगो मेें धैर््य नही ं है आजकल, वे त्वरित परिणाम, त्वरित धन, त्वरित मूल््याांकन आदि चाहते हैैं और इसके
कारण वे सत्यनिष्ठा के गुण का त्याग करते हैैं। आइए इसे मिस्टर मित्तल और मिस्टर ओबेरॉय के बीच हुई बातचीत से
समझते हैैं:
मित्तल: गीता की अंतर्दृष्टि एक नेता को समूह-निर््ममाण जैसी व्यावहारिक चितं ाओ ं मेें कै से मदद करती है?
ओबेरॉय: कई मायनो ं मेें। आइए एक पर विचार करेें - विश्वास। वह गोदं जो नेताओ ं और अधीनस््थोों को एक एकजुट और
प्रभावी टीम के रूप मेें बांधता है, वह है विश्वास। और विश्वास निरंतर सत्यनिष्ठा से ही अर्जित किया जा सकता है। सत्यनिष्ठा
के कई पहलू हैैं, लेकिन अनिवार््य रूप से यह शब््दोों और कार्ययों के बीच एकरूपता को सं दर्भित करता है - हम वही करते हैैं
जो हम बोलते हैैं और हम वही बोलते हैैं जो हम करते हैैं। हो सकता है कि नेता शुरुआत मेें लोगो ं को अपने स्वभाव और
99
तेजतर््ररार से आकर्षित करने मेें सक्षम हो,ं लेकिन अगर मूल अखं डता द्वारा बनाए नही ं रखा गया तो यह निवेदन जल्द ही
फीका पड़ जाएगा ।
मित्तल : ठीक है, लेकिन अध्यात्म कै से सामने आता है?
ओबेरॉय: जो चीज लोगो ं को सत्यनिष्ठा का त्याग कराती है, वह है समयोचितता, त्वरित लाभ के लिए सिद््धाांतो ं का त्याग करने
का हमेशा मौजूद प्रलोभन। और यह प्रलोभन नेताओ ं के लिए और भी अधिक हो जाता है, जो छोटी या बड़़ी धोखेबाज़़ी
करते है बिना जवाब देहि ठे हराये लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान हमेें यह समझने मेें मदद करता है कि चाहे हम कोई भी हो,ं हम
हमेशा अपने कार्ययों के लिए जवाबदेह होते हैैं। यह कर््म का केें द्रीय सिद््धाांत है।
हमारे सं कल््पोों की हमारी स्मृति अक्सर एक अस्थायी लेकिन पूर््ण अंधकार से ग्रस्त हो जाती है, इस प्रकार हम ऐसे कार््य
करते हैैं जिनका हमेें बाद मेें पछतावा होता है। नैतिक और आध्यात्मिक सत्यनिष्ठ व्यक्ति कभी भी स्वयं को प्रलोभनो ं के
चं गुल मेें नही ं आने देता।
100
कहानी का समय
उर््वशी आकाशीय जगत की अप्सराओ ं मेें से एक थी।ं वह बारहमासी युवा और असीम रूप से आकर््षक है लेकिन हमेशा
मायावी है। उर््वशी का शाब्दिक अर््थ है “उरस” (दिल) + “वाशी” (नियं त्रण) - जो दिल को नियं त्रित करता है। अर््जनजु
दिव्य अस्त्र प्राप्त करने के लिए स्वर््ग गए।
स्वर््ग मेें उर््वशी प्रेम करने की इच्छा से अर््जजुन के पास पहुुंची। लेकिन आश्चर््यजनक रूप से उसे दूर कर दिया गया। ऐसा पहले
कभी नही ं हुआ था। इससे उसके झठू े अभिमान और अहंकार को ठे स पहुुंची। गुस्से मेें उर््वशी ने जानना चाहा कि एक इं सान
ने उनके जैसी अप्सरा को क््योों ठु करा दिया।
युवक ने अपना परिचय दिया और उसे बताया कि वह अर््जजुन, पांडवो मेें से एक , और पुरुरवा का वं शज था। वह इं द्र की भी
प्रिय है (ऐसा माना जाता है कि इं द्र अर््जनजु के पिता हैैं)। इसने उसे मातृस्वरूप बना दिया, इस प्रकार नैतिकता ने अर््जजुन को
उससे प्रेम करने की अनुमति नही ं दी।
उर््वशी ने उन्हहें समझाया कि अप्सराएं मानवीय रिश््तोों से बं धी नही ं हैैं और उन पर मानवीय नैतिकता लागू नही ं होती है।
इसलिए, उसने फिर से अर््जजुन को अपने साथ प्रेम करने के लिए आमं त्रित किया। अर््जजुन ने मना कर दिया और इसने उर््वशी
को शर्ममिंदा कर दिया। उसने अपना आपा खो दिया और अर््जजुन को शाप दिया।
यद्यपि स्वर््ग मेें कोई प्रतिबं ध नही ं है और उर््वशी अप्सरा हैैं, लेकिन अर््जजुन अपने सत्यनिष्ठा के सिद््धाांतो ं पर टिके रहते हैैं और
आसानी से सुं दरता और कामुक इच्छाओ ं जैसे सांसारिक प्रलोभनो ं के खिलाफ जीत जाते हैैं।
इसी प्रकार, जो सत्यनिष्ठा के सिद््धाांतो ं पर अडिग रहता है, वह प्रलोभनो ं के विरुद्ध युद्ध को आसानी से जीत सकता है। इं द्रियां
इधर-उधर भटक रही हैैं, वे खोज रही हैैं कि उन्हहें आनं ददायक वस्तु कहां मिल सकती है। तो इं द्रियां भटकेें गी, हम अपनी
इं द्रियो ं को बं द नही ं कर सकते लेकिन अगर हम अपने मन को किसी एक इं द्रिय विषय पर केें द्रित करते हैैं, तो मन बुद्धि को
खीचं लेता है और फिर गिर जाता है।
जैसे तेज हवा नाव को पानी पर बहा ले जाती है, वैसे ही घूमने वाली इं द्रियो ं मेें से एक भी जिस पर मन केें द्रित होता है, वह
मनुष्य की बुद्धि को दूर ले जा सकती है। भ.गी. 2.67
101
क्या तुम्हहें पता है?
सत्यनिष्ठा स्वयं को सच बताती है। और ईमानदारी दूसरे लोगो ं को
सच बताती है।
सत्यनिष्ठा का स्व-आकलन
उन व्यवहार लक्षणो ं की पहचान करेें जिन्हहें सं बोधित करने की और बदलने की आवश्यकता है।
अंतर्निहित कारणो ं का निर््धधारण करेें कि आपने अधिक व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा के साथ व्यवहार क््योों नही ं किया।
उन बाधाओ ं और अन्य लोगो ं का निरीक्षण करेें जो कि आपके व्यक्तिगत मूल््योों, नैतिक सं हिता का उल्लं घन करने
के लिए, बहानो ं के रूप मेें प्रयोग मेें लाये गए।
अपने सांग का पुनर््ममूल््याांकन करेें। आप उन पाँच लोगो ं का कु ल योग हो जिनके साथ आप सबसे अधिक समय
बिताते हैैं। क्या आपके सहयोगी ऐसे लोग हैैं जो आपकी नैतिक नीति को सांझा करते हैैं? क्या वे आपको हर दिन
बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैैं? क्या वे खुद को सुधारना चाहते हैैं? यदि आपने इनमेें से
किसी भी प्रश्न का उत्तर नही ं दिया है, तो आपके लिए यह विचार करना महत्वपूर््ण है कि आप किसके साथ सं ग करते
हैैं।
102
विचार के व्यंजन:
सत्यनिष्ठा के साथ जीने का अर््थ है कु छ सिद््धाांतो ं के अनुसार जीने के लिए प्रतिबद्ध होना और उसके बाद
ईमानदारी से उनका अनुसरण करना। सत्यनिष्ठा, एकीकरण द्वारा उत्तम रूप से प्रेरित होती है। उदाहरण के
लिए, जब एक परिवार कु शल पूर््वक एकीकृ त होता है, यानि जब परिवार के सदस््योों के एक-दूसरे के साथ
अच्छे सं बं ध होते हैैं, तो वे अपने प्रियजनो ं को खुश करने और उन चीजो ं से बचने के लिए प्रेरित महसूस करते
हैैं जो उनके प्रियजनो ं को चोट पहुुँ चाते हैैं। इसके विपरीत, यदि कोई परिवार खं डित होता है, तो उस परिवार
के सदस्य उन चीजो ं को करने मेें ज्यादा सं कोच नही ं करेेंगे जो परिवार के अन्य सदस््योों को चोट पहुुंचा सकती
हैैं यदि वे चीजेें उन्हहें खुशी का वादा करती हैैं।
आध्यात्मिक ज्ञान—
भगवदगीता के कालातीत ज्ञान से भगवान कृ ष्ण अर््जजुन को सत्यनिष्ठा के मूल्य का निर्देश देते हैैं| इसका अर््थ है कि जीवन के
सभी प्रलोभन के बाद भी अपना कार््य करते रहो| दूसरे अध्याय के 38वेें श्लोक मेें वे कहते हैैं---
अगर तमु लड़़ाई, लड़ने के लिए, बिना किसी ख़श ़ु ी या पीड़़ा, लाभ या हानि,
जीत या हार के विचार से करते हो, तो तमु किसी पाप के भागी नही ं होते|”
भगवदगीता मेें इस सिद््धाांत का चित्रण होता है कि सत्यनिष्ठ व्यक्ति बनने के लिए
बाहर की परिस्थिति का व्यक्ति पर प्रभाव नही ं पड़ना चाहिए|
बाईबल मेें भी कहा गया कि---सत्यनिष्ठा से चलने वाला गरीब उलटे सीधे कार््य
करने वाले धनाढ्य व्यक्ति से बेहतर है|
103
आध्यात्मिक सत्य निष्ठा
इस प्रतिबं धित सं सार की सब जीव प्राणी मेरे शाश्वत अंश है| प्रतिबं धित जीवन के कारण वे अपनी इन्द्रियो ं से सं घर््ष कर रहे
हैैं, जिसमेें उनका मन सम्मिलित है| भ ग 15.7
इस श्लोक मेें बताया जाता है कि जब हम परम भगवान कृ ष्ण से अपने शाश्वत आध्यात्मिक सम्बन्ध को भूल जाते है,
अवहेलना करते हैैं या अस्वीकार करते है तब हम अपनी इन्द्रियो ं के प्रभाव मेें पड़ जाते हैैं| जब भी हम आनं द की खोज मेें,
ईश्वर द्वारा दी हुई नैतिकता को त्याग देते है, तो ये छः इन्द्रियाँ हमेें नाना प्रकार के लुभावने प्रलोभनो ं की ओर घसीटं ती है,
हमेें सं घर््ष और पीड़़ा के रूप मेें दण्डित करती है और परिणाम स्वरूप दःु ख भोगने पड़ते है|
इसके विपरीत जब हम भक्ति योग को अपनाकर, कृ ष्ण के साथ प्रेममयी सम्बन्ध मेें बं ध जाते हैैं, तब उनकी कृ पा से हमेें
उच्चतर विवेक एवं आनं द की प्राप्ति होती है| उच्चतर विवेक से हमेें, अल्पकालिक सुखो के पार देखने की शक्ति मिलती है
और उच्चतर आनं द हमेें योग्य बनाता है कि हम भक्ति के परम सुख का आस्वादन करते रहे|
इस प्रकार, हम महसूस करते हैैं कि नैतिक और आध्यात्मिक सत्यनिष्ठा के साथ जीवन बिताने से, हमेें सर्वोच्च ख़़ुशी और
आनं द प्राप्त करने मेें सहायता मिलती है|
104
कर््म का सिद््धाांत कै से सत्यनिष्ठा की ओर ले जाता है
मित्तल: गीता की सूक्ष्म दृष्टि टीम-निर््ममाण जैसे व्यावहारिक कार्ययों मेें एक नेता की किस प्रकार से मदद करती है?
ओबेरॉय: लोग, सत्यनिष्ठा का त्याग, लाभ के लिए करते है| इस तुरंत मिलने वाले लाभ के लिए सिद््धाांतो ं का त्याग करने के
लिए प्रलोभन हमेशा मौजूद रहता है और नेताओ ं के लिए यह प्रलोभन और भी अधिक हो जाता है जब वे बिना जवाबदारी
के धोख़़ाधडी करते है या बुजुर््ग एवं बच््चोों को काम से हटा देते है| किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान इन सबको समझने मेें सहायक
होता है| चाहे हम कोई भी हो, हम अपने कार््य के सदैव उत्तरदायी हैैं|
105
के स 1: भोपाल गैस की दख
ु द घटना
भोपाल गैस की दख ु द घटना एक गैस के रिसाव की घटना थी| यह घटना मध्यप्रदेश, भारत के भोपाल शहर मेें स्थित यूनियन
कार््बबाइड इं डिया लिमिटेड, पेस्टिसाइड प््लाांट मेें 2-3 दिसम्बर 1984 की रात को हुई थी| यह विश्व की सबसे भयं कर औद्योगिक
आपदा थी| इसका मुख्य कारण था, सत्यनिष्ठा की कमी| क््योोंकि टैैंक मेें कई अधिक टन गैस भर दी गयी थी|
नियम के अनुसार एक टैैंक मेें 30 टन तरल गैस से अधिक नही ं भरी जानी चाहिए| कितु टैैंक मेें 42 टन गैस भर दी गयी थी|
इस असफलता ने कं पनी को अपना गैस उत्पादन बं द करना पड़़ा और प््लाांट के कु छ भाग को रखरखाव के लिए बं द रखा
गया| खराब टैैंक को 1 दिसम्बर को चलाने की पुनः चेष्टा करी गयी, किन्तु वह असफल रही| क््योोंकि उस समय तक प््लाांट
की मिथाईल आइसोसाइनेट की सुरक्षा प्रणालियाँ ख़राब हो चुकी थी|ं रिपोर््ट के अनुसार 2 दिसम्बर तक ख़राब टैैंक मेें पानी
घुस गया था जिसके परिणाम से रासायनिक प्रक्रिया आरंभ हो गयी थी| रात तक दबाव पांच गुना बढ़ गया| आधी रात तक
कर््मचारियो ं पर इस गैस का असर पड़ने लगा| इसको ठीक करने का कदम उठाने से पहले ही गैस के प्रभाव ने एक भयानक
मोड़ ले लिया| एक घं टे के अंदर-अंदर टैैंक से 30 टन गैस हवा मेें उड़ गयी और बाहर के वातावरण मेें फ़़ै ल गयी|| करीब
500,000 लोग गैस की चपेट मेें आ गए| शीघ्र ही इस विषैले पदार््थ का प्रभाव आस पास के शहरो ं और गाँवो ं मेें फ़़ै ल गया|
2008 मेें मध्य प्रदेश सरकार ने गैस से मारे जाने वाले 3,787 लोगो के परिवारो ं को और 574,366 घायल व्यक्तियो ं को
मुआवजा दिया|
106
के स 3: उत्तराखं ड मेें वनों की कटाई से बाढ़
उत्तराखं ड मेें 38,000 वर््ग किलोमीटर वन क्षेत्र है, जो उस जिले के भौगोलिक क्षेत्र का 70% है| यहाँ प्रचुर वनस्पति और
जीव हैैं, 112 प्रकार के पेड़, 73 प्रकार की झाड़़ियाँ, और 94 प्रकार की जड़़ी बूं टी पायी ं जाती हैैं| कु छ दशको ं से यहाँ पर
खनिज, बिजली वितरण लाइन, सड़क निर््ममाण, पानी की पाइप लाइन और सिचं ाई के बहाने हजारो ं पेड़़ोों को काट दिया गया
है| करीब 21,207 हेक्टेयर वन को इन गतिविधियो ं के लिए नष्ट कर दिया गया है|
के स 5: नदियों की सुरक्षा
भारत की नदियाँ मेें भारी बदलाव आ रहा है| जनसँ ख्या के दबाव और आर्थिक
विकास के कारण हमारी सदैव बहने वाली नदियाँ मौसमी बनती जा रही हैैं| कई
छोटी नदियाँ तो गायब ही हो गयी ं हैैं| बाढ़ और सूखा दोनो ं ही बढ़ते जा रहे हैैं
क््योोंकि नदियो ं मेें बारिश से बाढ़ आ जाती है और उसके बाद वे सूखकर गायब
हो जाती हैैं| किसानो ं को इससे खेतो ं मेें पानी देने मेें बहुत असवु िधा होने लगी
क््योोंकि उन्हहें नदियो ं पर निर््भर नही ं होकर अब बारिश का इं तज़़ार करना पड़ता
है| नदियाँ के वल कम नही ं हो रही ं किन्तु विदूषित भी होती जा रही हैैं, जिससे
कई रोग उत्पन्न हो रहे हैैं| नदी के किनारे लगभग 1कि मी की चौडाई मेें वृक्ष लगाने से राष्टट्र और समाज को पर््ययावरण, सामाजिक
और आर्थिक लाभ मिल सकता है|
107
अब आपको पता चला की सामाजिक और वातावरणअखं डता का कितना मूल्य है |
आईये अब देखते हैैं कि सामाजिक और वातावरण अखं डता के लिए हम क्या कर सकते हैैं|
निरंतर जनसँ ख्या के बढ़ने और आर्थिक गतिविधियो ं से हमारे वातावरण पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है| हमारा वातावरण बिगड़ता
जा रहा है और यह हमेें वायु जल और धरती के प्रदूषण, जानवरो ं की विलुप्ति, पारिस्थितिक तं त्र का नष्ट होना और आवास
के विनाश मेें देखा जा सकते है| अब हमारा उत्तरदायित्व है कि हम इसको बदलने के लिए उचित कदम उठायेें| हमेें पर््ययावरण
सं रक्षण और आने वाली पीढ़़ियो ं के लिए जिम्मेदारी से जीना सिखाना होगा| हमारे छोटे छोटे कार््य सकरात्मक प्रभाव डाल सकते
हैैं| हमेें इन्हहें आज ही सीखकर और लागू करके आरंभ कर देना चाहिए| यह हमारा घर है और हमेें इसे साफ़ और सरु क्षित
रखना चाहिए|
108
आईए उत्तर देें
1. “बहुमूल्य साड़़ी” नामक कहानी मेें लाल बहादरु शास्त्री ने महंगी साड़़ी क््योों नही ं रखी जबकि दक
ु ानदार उन्हहें मुफ्त मेें दे
रहा था?
क) उन्हहें लोभ नही ं था|
ख) वो रखना चाहते थे किन्तु उन्हहें मांगना ठीक नही ं लगा
ग) वे अपनी पत्नी को महँ गी साड़़ी नही ं देना चाहते थे|
घ) उनमेें उच्च कोटि की सत्यनिष्ठा थी|
3. हम अपनी सुगठित प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए मुख्य रूप से क्या कर सकते हैैं?
1) हमारा पहला प्रभाव अच्छा होना चाहिए क््योोंकि पहला प्रभाव हमारे बारे मेें बहुत कु छ बताता है
2) हमेें अपने वादो ं को पूरा करना चाहिए
3) हमेें और अधिक सं बं ध बनाने मेें सक्षम होना चाहिए।
4) क और ख दोनो ं
4. हमारे समाज मेें लगातार बना रहने वाला मिथक क्या है?
1) पैसा खुशी ला सकता है
2) पैसा सफलता ला सकता है
3) धन और सत्यनिष्ठा साथ-साथ चल सकते हैैं
4) उपरोक्त सभी
109
6. सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा बनाने मेें वर्षषों लग जाते हैैं, हम इसे कै से बनाकर रख सकते हैैं ? (एक से अधिक उत्तर सही हो
सकते हैैं।)
1) अपनी गलतियो ं को स्वीकार करके
2) अगर परिस्थितियां अनुमति न देें तो जरूरी नही ं कि अपने वादो ं को निभाएं
3) अपने व्यवहार की जिम्मेदारी लेें
4) समय के पाबं द रहेें
5) आपका समय दूसरो ं की तुलना मेें अधिक महत्वपूर््ण है
11. जर््मनी जैसे उन्नत देश और वोक्सवैगन के निर््ममाता सामाजिक अखं डता और पर््ययावरण के अर््थ को समझने मेें विफल रहे
- इसका परिणाम यह हुआ।
क) उन््होोंने अपनी प्रतिष्ठा खो दी
ख) खरीदार उन पर भरोसा नही ं करेेंगे
110
ग) छटे-छोटे व्यय मेें किफायत करते हैैं और बडी रकम उडाते हैैं !
घ) वे प्रदूषण फै लाते हैैं
ड) ऊपर वाले सब
13. सत्यनिष्ट रहने के लिए सन्तुष्टता एक महत्वपूर््ण गुण है | यदि कोई ईश्वर से मिली चिज़़ोों से अपने जीवन मेें सं तुष्ट नही ं
है तो वह अपनी इच्छाओ ं की पूर्ती के लिए गलत कदम उठा सकता है | इसलिए अपनी इन्द्रियो ं के वेग को सेहन करना
आवश्यक है|
कृ प्या कॉलम B मेें लिखेें कि कौन से वेग की चर््चचा कॉलम A मेें दी गई हैI (भगवत गीता 5.23)
Column A Column B
111
14. सहिष्णुता का गुण क््योों अत्यंत महत्वपूर््ण है (भ. गी. 13.8-12)?
क) मनुष्य स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से जलते हैैं अर््थथात उन्हहें यह सीखने का प्रयत्न करना चाहिए कि ऐसे लोगो ं को कै से
सं भाला जाए ?
ख) भौतिक सं सार इस तरह से गठित है कि हर कदम पर बाधाएं उत्पन्न होती हैैं
ग) जैसे समय बीतता जाएगा वैसे ही कोविड-19 जैसी परिस्थितियां और भी बढ़ती रहेेंगी
घ) सद्गुणो ं का विकास सर््वथा लाभकारी है
15. हमेें दखु या सुख की परिस्थितियो ं मेें परेशान नही ं होना चाहिए, उन्हहें सहन करना चाहिए ऐसा क््योों? नीचे दिए गए सही
उत्तरो ं को चुनिए (भ. गी. 2.14-15)
क) यह हमारी इन्द्रिय अनुभूतियो ं से उत्पन्न होती हैैं
ख) ताकि हम हर परिस्थितियो ं मेें अपने निर््धरधा ित कर््तव््योों तथा धार्मिक सिद््धाांतो ं का पालन कर सकेें और ज्ञान के उच्च पद
को प्राप्त कर सकेें
घ) ज्ञान तथा भक्ति से मनुष्य अपने आप को माया के भ्रम से मुक्त करा सकता है
16. भगवद गीता तीन नरक के द्वार के बारे मेें बताती है| और निश्चित रूप से यदि कोई इनमे से एक भी द्वार खोल ले तो वह
अपने जीवन मेें सत्यनिष्ठ नही ं रह सकता | यह तीन नरक के द्वार क्या हैैं? (BG 16.21)
क) काम, क्रोध, इच्छा
ख) काम, गर््व, लोभ
ग) काम, क्रोध, लोभ
घ) ऊपर के सारे
17. चाणक्य पं डित सज्जन पुरुष के तीन गुणों का उल्लेख करते हैैं जिन्हे नीचे बताया गया है | कृ पया बताएं की
इनमे से किस गुण से किस शत्रु (काम, क्रोध, लोभ) पर विजय प्राप्त की जा सकती है –
112
18. नियं त्रित मन स्वेच्छा से ______________ का अनुसरण करता है I (BG 6.7)
क) बुज़़ुर्गगों का
ख) भगवान का
ग) जीवन और उसके लक्ष्य का
घ) ऊपर दिए गए सारे
19. क््योों मन हमारे जीवन मेें महत्वपूर््ण भूमिका निभाता है? (3.40)
क) क््योोंकि मन हमारे चितं न क्रिया का स्थान है
ख) मन हमारी स्मृतियो ं की प्रणाली है
ग) यह सारे भौतिक कार्ययों का केें द्र है
घ) ऊपर दिए गए सारे
20. मन को किस वस्तु के लिए प्रशिक्षित करना अनिवार््य है? (BG 6.5)
क) जीवन मेें सफलता प्राप्त करने के लिए तथा मानवता की उन्नति के लिए ।
ख) अपने मनोबल को शक्तिशाली बनाने के लिए जिससे हम जीवन की परेशानियो ं को सुलझा सकेें ।
ग) मन को प्रशिक्षण की आवश्यकता नही ं जीवन ही उसका वास्तविक शिक्षक है।
घ) मन को प्रशिक्षित करना अत्यं त आवश्यक है ताकि वह भौतिक प्रकृ ति के प्रति आकर्षित न हो
22. अर््जजुन क््योों कहते हैैं कि मन को नियं त्रित करना सबसे कठिन है? (6.4)
क) मन बड़़ा जटिल है और यह कै से काम करता है यह समझना कठिन है
ख) मन बहुत ही अशांत, बेचैन, ज़़िद्दी, और शक्तिशाली है
ग) मन सागर की तरह असीम है
घ) इनमेें से कोई नही
24. ईमानदारी से जीवन मेें सत्यनिष्ठा बनी रहती है, क््योोंकि आंतरिक और बाहरी स्वयं दर््पण की छवियाँ हैैं। बाहरी
साफ-सफाई के लिए हम रोजाना नहाते हैैं और अच्छे कपड़़े पहनते हैैं। भगवद्गीता के अनुसार हम अपनी आंतरिक
स्वच्छता के लिए क्या कर सकते हैैं? (भगवद्गीता 13.8-12)
113
1) भगवान के नाम जपेें
2) ध्यान करो।
3) हमेशा सकारात्मक सोचेें
4) ऊपर के सभी।
25. सत्यनिष्ठा का जीवन जीने के लिए आत्म-नियं त्रण और दृढ़ सं कल्प सबसे महत्वपूर््ण कारक हैैं। भगवद्गीता मेें वर्णित
सबसे महत्वपूर््ण और अनियं त्रित भावना कौन सी है? ( भगवद्गीता 13.8-12)
1) आँखे
2) जीभ
3) नाक
4) कान
26. एक व्यक्ति जो कु छ व्यक्तिगत लाभ के लिए दान दे रहा है और सोच रहा है "मैैं कु छ दान दूंगा, और इस
प्रकार मैैं आनं दित रहूूंगा। क्या भागवतगीता के अनुसार इस विचार प्रक्रिया को धर्मी माना जा सकता है? क््योों या क््योों
नही?ं (भगवद्गीता 16.13-15)
1) हां, जैसा कि वह दान दे रहा है और उसे पहले अपने फायदे के बारे मेें सोचना चाहिए।
2) हां, क््योोंकि उसके निजी लाभो ं के बारे मेें सोचने मेें भी कोई बुराई नही ं है
3) नही,ं क््योोंकि यह एक राक्षसी व्यक्ति की सोच है और यह अज्ञानी व्यक्ति का उदाहरण है
4) नही,ं क््योोंकि यह उसके लिए बदनामी लाएगा
27. जैसा कि सही कहा गया है ईर्ष्या और द्वेष असाध्य रोग हैैं। एक ईर्ष्यालु व्यक्ति न के वल अपने साथी प्राणियो ं को ईर्ष्या
करता है, बल्कि परमेश्वर से भी ईर्ष्या करता है। किसी भी व्यक्ति मेें इतनी ईर्ष्या क्या पैदा कर सकता है?
(भगवद्गीता 16.18)
1) तथाकथित प्रतिष्ठा
2) धन का सं चय
3) शक्ति का सं चय
4) ऊपर के सभी।
28. नियमो ं का पालन करना चाहिए, हालांकि कभी-कभी कोई के वल वासना या लालच के कारण नियमो ं का उल्लं घन कर
सकता है। काम और लोभ जैसे गुणो ं के कारण व्यक्ति मनमौजी हरकत कर सकता है। भगवद्गीता के अनुसार सनकी कार््य
का क्या अर््थ है? (भगवद्गीता 16.23)
1) वह जानता है कि यह किया जाना चाहिए, लेकिन फिर भी वह ऐसा नही ं करता है।
2) वह जानता है कि यह नही ं किया जाना चाहिए, इसलिए वह ऐसा नही ं करता है।
3) वह जानता है कि यह नही ं किया जाना चाहिए, लेकिन फिर भी वह ऐसा करता है।
4) इनमे से कोई भी नही।ं
114
29. कभी-कभी आपको परीक्षा के लिए पढ़ने का मन नही ं करता है। आपको फिर भी क््योों अध्ययन करना चाहिए?
(भगवद्गीता २.२)
1) हम इस दनि ु या की तीव्र प्रतियोगिता मेें पीछे रह जाएं गे।
2) अगर हम पढ़़ाई नही ं करेेंगे तो हमेें बुरी आदतेें लग जाएं गी।
3) हमारे माता-पिता और शिक्षक हमसे नाराज हो सकते हैैं।
4) कर््तव्य से विचलन के वल बदनामी की ओर ले जाता है और आध्यात्मिक जीवन मेें हमारी प्रगति को रोकता है
31. पवित्रता शक्ति है। बाहरी पवित्रता से तात्पर््य शरीर और परिवेश की स्वच्छता से है। आंतरिक शुद्धता हमारे विचारो ं
और कार्ययों की शुद्धता को दर््शशाती है। आंतरिक अशुद्धियाँ हमेें अपने निर््धधारित कर््तव््योों को करने से विचलित कर सकती हैैं।
हम अपनी आंतरिक शुद्धता को कै से सुधार सकते हैैं। (भगवद्गीता 16.7)
1) नियमित रूप से नहाना
2) अच्छे दोस्त रखना
3) भगवान के पवित्र नामो ं का जप कर
4) अपना समय अध्ययन मेें व्यस्त रख कर
32. मानव गतिविधि और पर््ययावरणीय अखं डता के बीच का अंतर एक निरंतर विवाद का क्षेत्र है। विशेष रूप से पिछले
कु छ शतको ं मेें, अपने अस्तित्व के लिए अन्य पौधो ं और जानवरो ं के जीवन की कीमत पर मनुष््योों ने प्राकृ तिक पर््ययावरण
का शोषण किया है। हमने पर््ययावरण के स्वास्थ्य की परवाह किए बिना जं गलो ं को खेतो ं और आर्दद्रभूमियो ं को आवास
परियोजनाओ ं मेें बदल दिया है। पर््ययावरण पर मानव प्रभाव को सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार
पर््ययावरणीय अखं डता को प्रदर्शित करते हुए क्या उपाय कर सकती है?
1) सरकार स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर अधिक सख्त और साध्य पर््ययावरण कानून, विनियम और नीतियां बना सकती है। ये
कानून पर््ययावरणीय क्षति के लिए जिम्मेदार कं पनियो ं और व्यक्तियो ं को आपराधिक और नागरिक सं हिता के तहत जवाबदेह
ठहराएं गे।
2) सरकार सभी निर््ममाण कार्ययों पर पूरी तरह से प्रतिबं ध लगा सकती है ताकि इससे प्रकृ ति को कोई नुकसान न हो।
3) किसी भी निर््ममाण कार््य को मं जूरी देने से पहले, सरकारी नियामक कं पनियो ं को पर््ययावरणीय प्रभाव आकलन करने और
पर््ययावरण और पारिस्थितिकी तं त्र पर पूर््ण परियोजना के प्रभाव को सीमित करने के लिए शमन उपायो ं की पहचान करने की
आवश्यकता हो सकती है।
4) सरकार पर््ययावरण अखं डता के महत्व को फै लाने के लिए उपाय कर सकती है।
33. आपके सामने कबूल किया कि उसने अपने लिए कु छ खरीदने के लिए उसके पैसे को चुराये थे। वह आपसे विनती कर
रही है कि शिक्षक सहित किसी के सामने इसका खुलासा न करेें। एक से अधिक उत्तर सही हो सकते हैैं | मारिया मेें निश्चित
115
रूप से ईमानदारी, अखं डता और वफादारी जैसे कु छ नैतिक मूल््योों का अभाव है। इसके बावजूद, क्या आपको अब भी
उसकी सं गति मेें रहना चाहिए?
1) हाँ, क््योोंकि मित्रता किसी भी नैतिक मूल्य से अधिक महत्वपूर््ण है।
2) हाँ, क््योोंकि वह भविष्य मेें एक बेहतर इं सान बन सकती है।
3) नही,ं क््योोंकि हमेें ऐसे लोगो ं से बचना चाहिए जिनमेें सत्यनिष्ठा की कमी है।
4) नही,ं क््योोंकि हर कोई अनिवार््य रूप से हमारे दोस््तोों के चरित्र से हमारे चरित्र का न्याय करेगा।
34. मानव जनसं ख्या और आर्थिक गतिविधियो ं मेें निरंतर वृद्धि ने पर््ययावरण को भारी रूप से प्रभावित किया है। हम इसके
विनाशकारी प्रभावो ं को जाने बिना अपने स्वयं के पारिस्थितिक तं त्र को नष्ट कर रहे हैैं। पर््ययावरण अखं डता पर निम्नलिखित
प्रश््नोों के उत्तर देें।एक से अधिक सही हो सकते हैैं| आपको क्या लगता है कि इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए क्या
किया जा सकता है?
1) घर पर प्लास्टिक की वस्तुओ ं को प्राकृ तिक सामग्री से बनी वस्तुओ ं मेें बदल देें।
2) यदि आप किसी कॉफी शॉप मेें अपना कॉफी कप भूल जाते हैैं, तो चीनी मिट्टी के मग मेें कॉफी न पिएं , इसके बजाय एक
बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से बने कप मेें ही कॉफी पिएं
3) जब भी सं भव हो प्लास्टिक को मना करेें
4) एक ईमानदार व्यक्ति के रूप मेें, जब भी आप प्रकृ ति मेें प्लास्टिक देखते हैैं, तो इसे इकट्ठा करेें और यदि सं भव हो तो
इसे रीसायकल करेें।
36. सत्यनिष्ठा अपने आप को सच बोलना होता है और ईमानदारी दूसरो ं को सच बोलना| “ ईमानदारी आंतरिक
आवाज है, जिसे क्रिया मेें अनुवादित करने पर ईमानदारी का नाम दिया जाता है। सत्यनिष्ठा और ईमानदारी पर
आधारित निम्नलिखित प्रश््नोों के उत्तर दीजिए। एक कार््ययालय मेें एक कर््मचारी ग्राहक से रिश्वत लेना चाहता है, लेकिन अपनी
नौकरी खोने और कं पनी और उसके मालिक के लिए बदनामी के डर से ऐसा नही ं किया ।
यह उदाहरण है कर््मचारी की -
1) ईमानदारी का क््यूूंकि उसने स्वीकार किया कि उसे प्रश्न का उत्तर नही ं पता
2) सत्यनिष्ठा का क््यूूंकि उसने चोरी नही ं की
3) न सत्यनिष्ठा और न ईमानदारी का
4) सत्यनिष्ठा और ईमानदारी दोनो ं
116
ईमानदारी
ईमानदारी क्या है
स्पष्ट अर््थ मेें, ईमानदारी को सं सार, तथ््योों और व्यक्तियो ं के बारे मेें सत्य के प्रति, सम्मान के रूप मेें समझा जा सकता है।
ईमानदारी शब््दोों और कर्ममों मेें दिखाई देती है। ईमानदार व्यक्ति वही बोलता है जो सच है, और वही करता है जो सही है।
जैसे कि हम जानते हैैं कि हमारे शब्द और हमारे कार््य हमारे विचारो ं से ही उत्पन्न होते हैैं, इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर््ण है कि
हम अपने विचारो ं मेें ईमानदार रहे। । तब कोई के वल वही बोलेगा जो वास्तविकता है, और उचित कार््य मेें सं लग्न होगा।
प्रिय बच््चोों, हम शब््दोों या वाणी से नही ं बल्कि कार्यो के द्वारा और सत्य से प्रेम करेें।
-बाइबल, जॉन 3.18
ईमानदार होने से आपको निम्नलिखित को हासिल करने मेें सहायता मिलती है :
निर््भयता-
ईमानदार होने से व्यक्ति निर््भय हो सकता है क््योोंकि गलत कार््य करने वाला ही भयभीत होता है। एक ईमानदार व्यक्ति के
पास छिपाने के लिए कु छ नही ं होता है और इसलिए वह सभी परिस्थितियो ं का साहसपूर््वक सामना कर सकता है।
मन की शान्ति-
मन, वचन और कर््म की जटिलता के कारण बेईमानी के मार््ग पर चलना कठिन है। किन्तु, ईमानदारी जीवन को सरल बनाती
है। जो व्यक्ति ईमानदार होता है, उसके पास मन की शांति होती है जिससे उसका अपना और दूसरो ं का जीवन सुविधाजनक
हो जाता है।
ईमानदारी का विपरीत है, धोखा (या झठू बोलना)। झठू बोलना भी उतना ही बुरा है, जितना दूसरो ं को धोखा देना या स्वयं
को धोखा देना । जब आप झठू बोलते हैैं, तो आप जो कह रहे हैैं उस पर विश्वास करने के लिए खुद को भ्रमित करते हैैं।
आप एक काल्पनिक खाई खोदना शुरू करते हैैं, भले ही एक छोटी चम्मच से खोदे किन्तु वह खाई समय के साथ और गहरी
होती जायेगी। आप खुद को भ्रमित करते हैैं, दूसरो ं को भ्रमित करते हैैं, विश्वसनीयता खो देते हैैं तथा खुद को हानि पहुुंचा लेते
हैैं। कभी-कभी झठू बोलकर किसी कठिनाई से दूर हो जाना, सरल होता है, लेकिन सच बोलने से ही मन को स्थायी शांति
मिल सकती है। झठू बोलने और बेईमानी करने का परिणाम मन की अशांति होती है। सच बोलने का साहस और हिम्मत
होनी चाहिए और हर कार््य को ईमानदारी से करना चाहिए। इससे जीवन सरल और सुगम हो जाता है।
117
मन की शान्ति-
क्या आप कु छ ऐसी घटनाओं के बारे मेें सोच सकते हैैं जहाँ आपको ईमानदार होने मेें कठिनाई हुई हो, और चूँ कि आप सच्चे और
ईमानदार होने के सिद््धाांतों पर टिके रहे हों तो लोगों ने आपका सम्मान किया हो?
कथा प्रसं ग
बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव मेें एक लकड़हारा रहता था। वह अपने काम मेें गम्भीर
और बहुत ईमानदार था। वह हर दिन पास के जं गल मेें लकड़़ी काटने के लिए निकल जाता
था। वह लकड़़ियो ं को वापस गाँव मेें लाता था और पैसे कमाने के लिए उन्हहें एक व्यापारी
को बेच देता था। वह के वल उतना ही कमा पाता था जिससे उसकी आजीविका चल सके ,
किन्तु वह अपने सादे जीवन से सं तुष्ट था।
एक दिन नदी के पास एक पेड़ काटते समय उसकी कु ल्हाड़़ी उसके हाथ से छू ट कर नदी
मेें जा गिरी। नदी इतनी गहरी थी कि वह उसे निकालने की सोच भी नही ं सकता था।
उसके पास के वल एक ही कु ल्हाड़़ी थी जो अब नदी मेें गिर गयी थी। वह यह सोचकर बहुत
चिति ं त हो गया कि अब वह अपनी जीविका कै से चला पाएगा। वह बहुत दख ु ी हुआ और उसने देवी माँ से प्रार््थना की। उसने
ईमानदारी से प्रार््थना की तो देवी माँ उसके सामने प्रकट हुईं और पूछा, “क्या समस्या है, मेरे पुत्र?” लकड़हारे ने समस्या
बताई और देवी माँ से अपनी कु ल्हाड़़ी वापस लाने का अनुरोध किया।
देवी ने अपना हाथ नदी मेें डाला और चांदी की एक कु ल्हाड़़ी निकाली और पूछा, “क्या यही तुम्हारी कु ल्हाड़़ी है?” लकड़हारे
ने कु ल्हाड़़ी की ओर देखा और कहा, “नही”ं । देवी माँ ने अपना हाथ दबु ारा गहरे पानी मेें डाला और सोने की एक कु ल्हाड़़ी
दिखाकर पूछा, “क्या यह तुम्हारी कु ल्हाड़़ी है?” लकड़हारे ने कु ल्हाड़़ी की ओर देखा और कहा, “नही”ं । देवी माँ ने कहा,
“एक बार फिर से देखो पुत्र, यह बहुत ही मूल्यवान सोने की कु ल्हाड़़ी है, क्या तुम्हहें पूरा विश्वास है कि यह तुम्हारी नही ं है?”
लकड़हारे ने कहा, “नही,ं यह मेरी नही ं है। सोने की कु ल्हाड़़ी से पेड़ नही ं कट सकते हैैं। यह मेरे लिए उपयोगी नही ं है।”
देवी माँ मुस्कुराई और अंत मेें अपना हाथ एक बार फिर पानी मेें डाला और लोहे की एक कु ल्हाड़़ी निकालकर पूछा, “क्या
यह तुम्हारी कु ल्हाड़़ी है?” इस पर लकड़हारे ने कहा, “हाँ! यही मेरी है! धन्यवाद!” देवी माँ उसकी ईमानदारी से बहुत
प्रभावित हुईं, इसलिए उन््होोंने उसकी ईमानदारी के लिए उसे लोहे की कु ल्हाड़़ी के साथ-साथ अन्य दोनो ं कु ल्हाड़़ियां भी दे
दी।ं
यह एक साधारण कहानी है लेकिन इसमेें एक गम्भीर सं देश है। हममेें से लगभग सभी ने अपने जीवन मेें लकड़हारे जैसी
स्थितियो ं का सामना किया है।
हमारे जीवन मेें भी ऐसी परीक्षा की घड़़ी और प्रलोभन आयेें होगं े, जब हमेें आसान लाभ प्राप्त करने के कारण जीवन मूल््योों
118
की कीमत चुकानी पड़़ी हो और बेईमानी को अपनाना पड़़ा हो।
किन्तु, यदि हम इस कहानी की तरह अपनी ईमानदारी की नीति पर कायम रहते हैैं, तो हम न के वल अपने मन की शांति
बनाए रख सकते हैैं, बल्कि लं बे समय तक विजेता बने रहते हैैं।
शास्तत्ररों से ज्ञान
सभी पुराणो ं मेें सबसे ऊपर, श्रीमद्भागवतम, उन चार स्तंभो ं को चित्रित करता है जिन पर धर््म या धार्मिकता स्थित है।
धार्मिकता या धर््म चार स्तंभो ं पर खड़़ा है, अर््थथात् तपस्या, स्वच्छता, करुणा और सच्चाई (श्री.भ. 1.17.24)। तो हम
देखते हैैं कि सत्यता या ईमानदारी धार्मिकता के स्तंभो ं मेें से एक है, और सच्चा होने के लिए, अन्य तीन गुणो ं का भी होना
आवश्यक है।
कहा जाता है कि सच कड़वा होता है और इसलिए सच्चाई दर््दनिया होती है । किसी व्यक्ति की अल्पकालिक सं तुष्टि से
आकर्षित होना आसान है, उस आनं द को प्राप्त करने के लिए उनके गलत कामो ं का समर््थन करना और एक ऐसे रिश्ते का
ढोगं करना आसान है जो उनके काम के लिए प्रेरणा के रूप मेें अल्पकालिक सं तुष्टि का आदान-प्रदान करता है। यह सच
बताना बहुत कठिन है जो किसी व्यक्ति को
उनकी वास्तविक दीर््घकालिक खुशी के बारे मेें बताता है, जो तब अनुमानित परिणामो ं के साथ एक व्यवस्थित और सं गठित
अभ्यास की ओर ले जाता है, जबकि एक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व की समस्याओ ं को दूसरो ं के साथ सं बं ध बनाने के
प्राथमिक उद्देश्य के रूप मेें ठीक करने के लिए चुनौती देता है।
दरअसल, जब कोई सच बोलना शुरू करता है, तो उसे आलोचनाओ ं का भी सामना करना पड़ता है। सच बोलना जारी रखने
के लिए, व्यक्ति मेें अपेक्षित दयालुता होनी चाहिए, जो बदले मेें धर््म के पिछले दो चरणो ं पर निर््भर करती है। अधिकांश
लोग सच बोलने से डरते हैैं - क््योोंकि यह जीवन को असहज बनाता है - और आत्म-सं रक्षण मेें शरण लेता है। इस तरह
का आत्म-सं रक्षण कभी-कभी दूसरो ं की भावनाओ ं को ‘;अपमानजनक’ या ‘आहत’ करने के नाम पर नही ं किया जाता है,
लेकिन यह मुख्य रूप से स्वयं को खुश रखने से प्रेरित होता है। सत्य बोलने से बचकर व्यक्ति धर््म की दया और तपस्या के पैर
तोड़ देता है। वह लोकप्रियता के अलावा दूसरो ं के साथ अच्छे सं बं ध बनाए रख सकता है, उसका समर््थन पारस्परिक रूप से
प्राप्त कर सकता है। लेकिन वह सुखदता, खुशी और शांति के बदले अपेक्षित कर््तव्य निभाने मेें विफल रहा है
सत्यता के लिए वैराग्य की आवश्यकता होती है। जो लोग धोखे पर भरोसा करते हैैं वे सफल, समृद्ध और
दूसरो ं के प्रिय लग सकते हैैं, और इन चीजो ं के लिए हमारी इच्छा अक्सर हमेें सच बोलने से रोकती है। सत्य
की प्राप्ति भी वैराग्य पर निर््भर करती है क््योोंकि तब आप चीजो ं को वैसे ही देख सकते हैैं जैसे वे हैैं न कि
जैसा आप चाहते हैैं कि वे हो।ं इसलिए सत्यता और वैराग्य हमेशा एक दूसरे से जुड़़े होते हैैं।
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समाज पर बेईमानी का प्रभाव
2007 से 2009 के वित्तीय सं कट मेें, बं धक प्रतिभूतिकरण (सं पत्ति गिरवी रखने के ) उद्योग मेें व्यापक धोखाधड़़ी हुई थी।
प्रतिभूति जारी करने वाले, कभी भी, बं धक-समर्थित प्रतिभूतियो ं को सुरक्षित करके बं धक सं पत्ति का वैधानिक स्वामित्व
नही ं प्राप्त कर सकते हैैं। इसका इतना व्यापक प्रभाव पड़़ा कि बैैंको ं के कर््मचारियो ं ने खामियो ं को छिपाने के लिए दस्तावेजो ं
का फर्जीवाड़़ा किया। इस अवैध कार््य को रोबो-साइनिगं कहा जाता है। यह दनि ु या के उन पांच सबसे खराब वित्तीय सं कटो ं
मेें से एक था जिसका विश्व को सामना करना पड़़ा और वैश्विक अर््थव्यवस्था को 2 ट््ररिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान
हुआ।
इस वृत्त अध्ययन (के स स्टडी) से कोई भी सरलता से स्वीकार कर सकता है कि कै से एक छोटी सी बेईमानी विश्व पर इतना
व्यापक प्रभाव डाल सकती है।
बेईमानी को बनाए रखने का प्रयास करना पड़ता है। कु छ ऐसा होने का दिखावा करना जो आप नही ं हैैं, सबसे
अनुभवी लोगो ं तक को भी विवरण पर निरंतर ध्यान देना पड़ता है। ईमानदार लोग निश्चिन्त रहने मेें सक्षम
होते हैैं क््योोंकि वे सिर््फ वही होते हैैं जो वे हैैं, और स्वाभाविक रूप से, अपने बारे मेें बेहतर महसूस करते हैैं
और कम अभिभूत होते हैैं।
ईमानदारी के लाभ
120
ईमानदारी से पता चलता है कि आप
स्वयं के साथ और दूसरो ं के साथ ईमानदार होना दर््शशाता है कि आपको वास्तव मेें अपनी एवं औरो की कितनी
परवाह हैैं। यह स्वयं के लिए स्वाभिमान और दूसरो ं के लिए सम्मान को भी प्रदर्शित करता है।
121
सत्यकाम की कथा
“शांति, आत्मसं यम, तपस्या, पवित्रता, सहनशीलता, ईमानदारी, ज्ञान, बुद्धि और धार्मिकता - ये ऐसे स्वाभाविक गुण हैैं
जिनके द्वारा ब्राह्मण कार््य करते हैैं।”
122
ईमानदार होने का अर््थ है जिम्मेदार होना और आंतरिक परेशानी के लिए बाहरी
वातावरण को दोष न देना। कई बार हम स्वयं के प्रति सच्चे नही ं होते है जिसे बेईमान
व्यवहार भी कहा जा सकता है। हमेें जो कु छ भी उत्तेजित करता है वह किसी बाहरी
व्यक्ति द्वारा प्रेरित हो सकता है, लेकिन यदि हमारे भीतर कोई कमजोरी नही ं है तो
इससे हमेें ज्यादा परेशानी नही ं होगी, जैसे
यदि बं दूक गोलियो ं से भरी न हो तो बं दूक के ट््ररिगर को दबाने से नुकसान नही ं होगा।
भगवद-गीता मेें कहा गया है कि जो बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित हैैं
अर््थथात ब्राह्मण हैैं, वे अपने मन और इं द्रियो ं दोनो ं को सं यमित करना सीखते हैैं (18.42)। मन को सं यमित करने और शांत
रहने का अर््थ है कि वे उत्तेजनात्मक उद्दीपनो ं पर ध्यान नही ं देते हैैं; भले ही ऐसे उद्दीपन उनकी विचारधारा मेें आते हो ं किन्तु
वे उन पर व्यर््थ ध्यान नही ं देते हैैं, जिसके फलस्वरूप अनावश्यक उत्तेजना और घटना रोकी जा सकती है।
जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार््थ भाषण है तथा जो वेद-शास्तत्ररों का निरन्तर पठन का
अभ्यास है - वही वाणी-सम्बन्धी तप कहा जाता है॥ (भ.ग. 17.15)
पर््ययावरणीय ईमानदारी
हालांकि, जब कोई सं गठन स्थायी व्यावसायिक प्रथाओ ं के मापदंडो ं पर खरा नही ं उतरता है तो वह व्यवहार मेें ग्रीन मार्केटिगं के नाम
पर ग्रीनवाशिगं करता है। ग्रीनवाशिगं की क्रिया वास्तव मेें वह है जिसमेें कोई व्यवसाय दावा करता है कि वे पर््ययावरण की दृष्टि से
टिकाऊ हैैं, लेकिन वास्तव मेें, वे या तो पूर्त्ण : न्यूनतम या इससे भी बदतर मापदंडो ं को पूरा करते हैैं, वे अपनी उत्पादन की प्रक्रिया
मेें पर््ययावरण के अन्य पहलुओ ं को प्रदूषित करते हैैं, जिससे वे अपने हरित लाभ को नकार देते हैैं।
125
ग्रीनवॉशिगं के कु छ प्रसिद्ध उदाहरणो ं मेें 2018 मेें स्टारबक्स का एक नलीविहीन
(स्ट्रॉलसे ) कप और ढक्कन बनाने का प्रयास शामिल है, जिसमेें वास्तव मेें उनके
मूल कप की तुलना मेें प्लास्टिक अधिक था। यूनिलीवर या यहां तक कि नाइके
जैसी कं पनियां, जो पूरे उत्पादन के दौरान पर््ययावरणीय प्रभाव को कम करने के
लिए स्पष्ट रूप से प्रयास करती हैैं, अब भी उस इस्तेमाल करके फे कने की सं स्कृति
(डिस्पोजेबल कल््चर) को कायम रखने के लिए दोषी हैैं, जिसके हम आदी हो गए
हैैं। ये कं पनियां इतनी बड़़ी हैैं कि ये शायद ही बं द हो,ं इसलिए पर््ययावरण के अनुकूल
होने के दिखावे का, इनका कोई भी प्रयास उनकी मार्केटिगं और सार््वजनिक धारणा
के अनुकूल रहता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि विश्व स्तर पर के वल 10 से 25
प्रतिशत पुनर््नवीनीकरण सामग्री का ही पुनर््नवीनीकरण किया जाता है।
तो हाँ, यूनिलीवर ऐसी पैकेजिगं का उत्पादन कर सकता है जो पुनर््नवीनीकरण
योग्य हो, या नाइके अपने जूते और कपड़़ोों का उत्पादन स्थायी स्रोत के कपास से
कर सकता है, लेकिन अल्प जीवनकाल वाले इन उत्पादो ं को अन्तत: कचरे के ढेर
मेें ही पहुुँ चना होगा।
इसे ध्यान मेें रखते हुए, कं पनियां एक ईमानदार और टिकाऊ पर््ययावरण रणनीति प्रदर्शित करने के लिए क्या कर सकती हैैं?
शून्य अपशिष्ट पैदा करने का लक्ष्य सभी कं पनियो ं के लिए एक सुलभ लक्ष्य है और इसका उपयोग व्यय को कम करने के साथ-
साथ हरित साख को बढ़़ावा देने के लिए किया जा सकता है। इसी प्रकार, उत्पादो ं का निर््ममाण करने वाली कं पनियां अपने द्रव-
अपशिष्ट मेें कमी करने, उत्पादन मेें रसायनो ं के उपयोग या सामग्री की कटौती करने का लक्ष्य रख सकती हैैं। लेकिन पर््ययावरण
रणनीति की असली परीक्षा इस तथ्य मेें होती है कि यह रणनीति आपके विपणन या जनसम्पर््क प्रतिष्ठा के लिए नही,ं बल्कि किसी
व्यवसाय के , धरती पर पड़ने वाले प्रभाव को वास्तविक रूप से कम करने के निमित्त बनाई गई हो।
बायोडिग्रेडेबल (जैव अपक्षयी) पैकेजिगं का उपयोग करना और इसके निर््ममाण मेें न्यूनतम सं साधनो ं का उपयोग करना, कुछ ऐसा
है जिससे किसी भी व्यवसाय को, ऐसा दावा करने पर गर््व होगा। इसके अतिरिक्त, ऐसे उत्पादो ं का उपयोग करना जो पूरी तरह से
जैविक स्रोतो ं से लिए गए हो,ं पौधे-आधारित सामग्रियो ं से बने हो ं या जो समय की कसौटी पर खरे उतरेें और वास्तव मेें जीवन भर
(या अधिक) टिकाऊ रहेें| ये सभी तरीके आपके ग्राहको ं का विश्वास जीतने और वास्तव मेें पर््ययावरण के अनुकूल होने के व्यापार
हैैं।
भले ही वे बड़़े व्यवसाय अतीत के अनावश्यक तरीको ं मेें उलझे हुए हो सकते हैैं, फिर भी वे अन्य विधियो ं से उपभोक्ताओ ं का
विश्वास जीत सकते हैैं, भले ही उनका उत्पादन आधुनिक युग मेें हमारे द्वारा अपेक्षित हरित मानको ं को पूरा न कर रहा हो। वनो ं
की कटाई, प्रदूषणकारी रसायनो ं के उपयोग को कम करना, प्रवाल भित्तियो ं और वर््षषावन जैसे स्थानो ं के लिए आवास सं रक्षण का
समर््थन, सौर ऊर््जजा समुदायो ं जैसे पर््ययावरण के अनुकूल उपक्रमो ं का वित्तपोषण या यहां तक कि ऐसी अग्रणी तकनीक का उपयोग
करना जिससे उत्पादन का हमारे विश्व पर कम प्रभाव पड़़े।
126
ऐप्पल, अमेज़़ॅ न और नाइके जैसी कं पनियां, अरबो ं लोगो ं के लिए, सरलता से अपने विशाल सं साधनो ं को लगाकर, इस विश्व को
वास्तव मेें एक बेहतर जगह बनाने और अपनी हरित प्रतिष्ठा को उचित रूप मेें निर्मित करने की ओर बढ़ सकती है।
127
आईए उत्तर देें
1. ईमानदारी के साथ ............ जुडे है।
क) धन और घमण्ड
ख) मन की शान्ति और निर््भयता
ग) न्याय की मानसिकता
घ) आरामदेह जीवन
3. रोबो-साइनिगं का सम्बन्ध है
क) वह रोबोट जो कार््य पर हस्ताक्षर करता है
ु वपूर््ण आक्रमणो ं से कम्प्यूटर की रक्षा करना
ख) दर््भभा
ग) किसी व्यक्ति को अपनी ओर से उपस्थिति दर््ज कराने के लिए कहना
घ) बं धक-समर्थित प्रतिभूतियो ं को सुरक्षित करके बं धक सं पत्ति का वैधानिक स्वामित्व जताना
4. ईमानदारी मजबूत पैर पकड़ का आधार है। किसी को ईमानदारी से कै से फायदा होता है?
(एक से अधिक उत्तर सही हो सकते हैैं)
1) यह स्वाभिमान देता है
2) सुरक्षा की भावना पैदा करता है
3) साहस पैदा करता है
4) आपको एक खोल मेें डाल देता है क््योोंकि आप जानते हैैं कि पैसा आप पर विश्वास नही ं करेगा
5) कोई विश्वसनीयता नही ं है
5. सत्यकाम और जाबाला की कहानी मेें ऋषि गौतम ने सत्यकाम को अपना शिष्य स्वीकार किया हालाँकि सत्यकाम मेें
अपनी असली पहचान भी बताई। इसका सं भावित कारण क्या है?
क) ऋषि गौतम एक नया शिष्य चाहते थे
ख) सत्यकाम ज्ञान का अत्यधिक अडिग था
ग) सत्यकाम सत्यनिष्ठ और ईमानदार था और उसने अपनी पहचान नही ं छिपाई
घ) ऋषि गौतम उसका गोत्र पहचान गये थे
6. रोहन के माता-पिता ने उसे हमेशा शाकाहारी होने का महत्व बताया है। हालांकि, 18 साल का होने के बाद रोहन मांस
खाना शुरू कर देता है। उसका कहना है कि चूंकि उसके सभी दोस्त मांस खाते हैैं, इसलिए उसके पास मांस खाने के अलावा
128
कोई विकल्प नही ं है। रोहन इस स्थिति मेें बेईमानी कर रहा है। बताएं कि पिछला कथन सही है या गलत।
क) गलत है। क््योोंकि वह अब एक वयस्क है और अपने जीवन के चुनाव खुद कर सकता है।
ख) सही है। क््योोंकि वह मांस खाकर सही काम नही ं कर रहा है
ग) गलत है। क््योोंकि वह इस तथ्य को नही ं छिपा रहा है कि वह मांस खाता है और अपनी पसं द के बारे मेें ईमानदार है
घ) सही है। क््योोंकि वह अपनी पसं द के लिए बाहरी वातावरण को दोष दे रहा है।
7. ब्राह्मण और कसाई की कहानी मेें, ब्राह्मण कसाई के इरादे से अनभिज्ञ था लेकिन फिर भी उसे अपने पाप की प्रतिक्रिया
का सामना करना पड़़ा। इसका निहितार््थ क्या है
क) ब्राह्मण के पिछले बुरे कर््म थे जिसके लिए उसे सजा मिली
ख) ब्राह्मण अनजाने मेें पाप का हिस्सा बन गया और कर््म का नियम निष्पक्ष है जो किसी को नही ं छोड़ता है।
ग) सजा की मात्रा समाज मेें व्यक्ति की स्थिति पर निर््भर करती है
घ) ब्राह्मण भ्रष्ट होते हैैं
9. हरित विपणन (ग्रीन मार्केटिंग)................. उत्पादो ं के उपयोग की ओर सं के त करता है, जबकि ग्रीनवाशिगं पर््ययावरण
को ................. की ओर सं के त करता है।
क) वनस्पति, स्वच्छ रखने
ख) पर््ययावरण-सहयोगी, प्रदूषित करने
ग) अत्यधिक, बचाने
घ) मरम्मत करने, पुनर््नवीनीकृ त करने
12. कहावत है - “सच कड़वा होता है।” भले ही यह श्रेष्ठ हो किन्तु इसे, इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि यह
............... (भ.गी. 17.15)
1) कानूनी कार््रवाई की ओर न जाए
2) अन्य के मन को उत्तेजित न करे
3) दूसरो ं को आप पर हंसने का मौका दे
4) आपकी गलत छवि बनाए
13. भ.गी. 17.15 के अनुसार, कृ पया वाणी के कु छ अन्य गुणो ं का उल्लेख करेें जो दूसरो ं का विश्वास हासिल करने मेें
मदद कर सकते हैैं।
______________________________________________
15. आपका सबसे अच्छा दोस्त मनोज हाल ही मेें आपकी सोसाइटी मेें आया है। आप इससे बहुत खुश हैैं। आपके एक
परिचित से, जो पहले आपके दोस्त का पड़़ोसी था, आपको पता चला कि मनोज चोर है और वह पिछली जिस सोसाइटी मेें
रह रहा था वहाँ कई छोटी-छोटी डकै तियो ं मेें शामिल रहा है। भ.गी. 10.4 के अनुसार अब आपको क्या करना चाहिए।
______________________________________________________
____________________________________________________
16. उत्तेजक स्थिति आने पर कं स जैसे राक्षस अपना व्यवहार बदल लेते हैैं। आसुरी मानसिकता वाले व्यक्ति के चरित्र मेें
कौन से अन्य गुण अधिक प्रमुख होते हैैं? (भ.गी. 16.7)
क) अस्वच्छता
ख) कपट
ग) उचित चीजो ं के लिए भेदभाव
घ) उपर््ययुक्त सभी
130
17. व्यक्ति को सच्चाई से कौन-सी चीज विमुख करती है? (भ.गी. 16.1-3)
क) लापरवाह व्यवहार
ख) व्यक्तिगत स्वार््थ
ग) गम्भीरता की कमी
घ) उपर््ययुक्त सभी
18. हम ऐसे लोगो ं के कु छ उदाहरण देखते हैैं, जो राक्षसी प्रवर्ति के हैैं, जैसे कं स, भगवान के बारे मेें चौबीस घं टे सोचते हैैं
क््योोंकि वे भगवान से ईर्ष्या करते हैैं। तो क्या हम वास्तव मेें उन्हहें राक्षस मान सकते हैैं? (भगवद्गीता 11.55)
1) नही,ं जैसा कि वे भगवान के बारे मेें सोचते हैैं।
2) हाँ, जैसा कि वे आसुरी प्रवर्ति के लोगो ं के साथ जुड़ते हैैं ।
3) हाँ, क््योोंकि वे ईश्वर के बारे मेें अनुकूल तरीके से नही ं सोचते हैैं।
4) इनमे से कोई भी नही।ं
19. भगवद्गीता मेें शिक्षको ं की ईमानदारी के लिए क्या कहा गया है? ( भगवद्गीता 17.15)
1) एक शिक्षक अपने छात््रोों को अनुदेश देने के लिए सच बोल सकता है
2) एक शिक्षक को उन लोगो ं से बात नही ं करनी चाहिए जो उनके शिष्य नही ं है और वह उनके दिमाग को उत्तेजित कर
सकते है
3) एक शिक्षक अपने छात््रोों से सच बोलने से बच सकता है अगर वह सच उन्हहें आहात पहुुँ चाता है
4) क और ख दोनो।ं
20. हम अपने जीवन मेें कई असफलताएं देखते हैैं और हमेें इनसे डरना नही ं चाहिए। असफलताओ ं के बावजूद प्रगति
करने के लिए हम मेें कौन से गुण होने चाहिए? (भगवद्गीता 16.1-3)
1) धैर््य
2) दृढ़ निश्चय
3) आत्मनियं त्रण
4) क और ख दोनो।ं
21. बड़़े-बुजुर्गगों और ऋषि-मुनियो ं के अनुभवो ं का पालन करना और पहले की गई गलतियो ं को न दोहराना बहुत जरूरी है।
महान सं तो ं के अनुभव का पालन नही ं करने वालो ं की सामाजिक स्थिति के बारे मेें क्या कहा जाता है? (भगवद्गीता 16.7)
1) उनकी सामाजिक स्थिति अप्रभावित रहेगी।
2) उनकी सामाजिक स्थिति दयनीय हो जाती है
3) यह वरिष््ठोों के चरित्र पर निर््भर करता है कि हम सकरात्मक या नकरात्मक तरीके से प्रभावित होगं े
4) इनमे से कोई भी नही।ं
22. अर््जजुन द्वारा उनकी मृत्यु होगी यह जानते हुए भी भीष्म ने अर््जजुन को बताया कि उन्हहें कै से मारा जा सकता है।
भगवद्गीता (13.8-13.12) के अनुसार भीष्म ने किस गुण को दर््शशाया?
131
1) सहिष्णुता
2) सादगी
3) दयालु स्वभाव
4) स्थिरता
24. जैसा कि एक प्रसिद्ध लेखक ने ठीक ही कहा था”बुरी आदतो ं को छोड़ने से रोकना आसान है”।
भगवद्गीता मेें वर्णित बुरी या अनैतिक आदतेें क्या हैैं? (भगवद्गीता 16.10)
1) जुआ
2) मांस खाना
3) शराब से आकर्षित होना
4) ऊपर के सभी।
25. लीजिए आपके स्कू ल मेें आपका दोस्त आपके पास आता है और उस गलती के लिए आपको गाली देने लगता है जो
आपने की भी नही ं है। आप इस स्थिति से कै से निपटते हैैं? ( भगवद्गीता.17.15)
1) उसे इस तथ्य के बारे मेें समझाने की कोशिश करके
2) अपने गुस्से पर फिलहाल के लिए धैर््य रख कर
3) मनभावन तरीके से सच बोल कर
4) चुप रह कर और सुनेें
26. ज्ञान मेें निवेश सबसे अच्छा ब्याज देता है। भगवद्गीता के अनुसार, वास्तविक ज्ञान क्या है जो सभी को विकसित करने
की आवश्यकता है। (भगवद्गीता 10.4-5 )
1) स्वयं और ब्रह््माांड का ज्ञान
2) निजी व्यक्तित्व का ज्ञान
3) भावार््थ और कथ्य के बीच का अंतर जानना
4) ज्ञान जो इं द्रियो ं की धारणा से परे है
27. युधिष्ठिर महाराज ने कौन सा गुण दिखाया जब उन्हहें अपने से निम्न कोई नही ं मिला (भगवद्गीता 16.1-3)?
1) दोष-खोज
2) क्षमा
3) सहिष्णुता
4) अहिसं ा
132
28. परिस्थिति: अमित एक बहुत ही अनुभवी और सक्षम कार््यकारी है। अमित को उनके नियोक्ता सुमित ने एक बड़़ी
जिम्मेदारी दी थी। सुमित ने अमित पर भरोसा जताया था और पूरी जिम्मेदारी अमित पर छोड़ दी थी। हालांकि, अमित द्वारा
उत्पादित परिणाम औसत से नीचे थे। सुमित के लिए अमित का ईमानदारी से सामना करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
1) मैैंने तुम पर विश्वास किया है, तुमने मुझे बहुत निराश किया है। मुझे बेहतर परिणाम की उम्मीद थी।
2) यह बहुत अच्छा काम है अमित। हालाँकि, मैैंने कु छ बदलाव करने के लिए का सुझाव दिये है। क्या तुम दिए गए सुझाव
मेें सुधार कर सकते हो और फिर मुझसे सं पर््क कर सकते हैैं
3) अमित, मेरा मानना है कि तुम मेें बेहतर करने की क्षमता है। क्या तुम दिए गए सुझाव मेें सुधार कर सकते हो और फिर
मुझसे सं पर््क कर सकते हैैं
4) ये परिणाम औसत से नीचे हैैं। मैैं आपसे इसमेें सुधार करने का अनुरोध करता हूूँ और फिर मुझसे सं पर््क करेें।
29. गरीब कसाई की कहानी से, ब्राह्मण को दंडित क््योों किया गया?
1) उसकी बेईमानी के लिए
2) कसाई जैसे पापी की मदद करने के लिए
3) नासमझ ईमानदारी के लिए
4) एक ब्राह्मण के रूप मेें अपने कर््तव्य मेें विफल रहने के लिए
30. शास्तत्ररों के अनुसार क्या हमेें झठू बोलने की अनुमति है? हम किन परिस्थितियो ं मेें ऐसा कर सकते हैैं?
(श्रीमद भागवतम 8.19.43 ) (एक से अधिक उत्तर सही हो सकते हैैं)
1) जब कोई दश्म ु न किसी व्यक्ति पर हावी हो जाता है|
2) लड़की की शादी तय करने के बारे मेें गलत जानकारी दी गई है
3) आपका जीवन खतरे मेें है और अपने आप को बचाने का कोई दूसरा रास्ता नही ं है
4) उपर््यक्त सभी
31. ब्राह्मण और कसाई की कहानी से हमेें पता चलता है कि एक सच को बताने से आपको परेशानी भी हो सकती है।(एक
से अधिक उत्तर सही हो सकते हैैं)
1) आपकी सच्चाई किसी की जान लेने की ओर नही ं ले जानी चाहिए
2) ईमानदारी हमेशा सबसे अच्छी नीति नही ं होती है
3) चुप रहना और अज्ञानी समझा जाना बेहतर है
4) परिणामो ं से अवगत नही ं
32. कई कं पनियो ं को जनता को गुमराह करने, धोखा देने और तथ््योों को छिपाने के लिए भारी मुआवजा देना पड़़ा। उन्हहें
बुक करना कै से सं भव था? (एक से अधिक उत्तर सही हो सकते हैैं)
1) जागरूकता
2) लगातार जुर््ममाना
3) जागरूक नागरिक
4) समर्पित और प्रतिबद्ध लोग
133
33. ग्रीन मार्केटिंग और ग्रीन वाशिगं मेें क्या अंतर है, इसे ‘ग.म’ या ‘ग.व’ लिखकर पहचानेें
कौन व्यावहारिक, ईमानदार और पारदर्शी है?
1) ग्रीन मार्के टिगं (ग. म )
2) ग्रीन वाशिगं (ग. व)
34. जबला एक निम्न वर््ग की महिला और एक वेश्या थी लेकिन उसमेें अपने बेटे को यह बताने का साहस और ईमानदारी
थी कि वह कौन है
1) उसे इस बात का डर नही ं था कि उसका बेटा उसके बारे मेें क्या सोचेगा
2) उन्हहें इस बात का डर नही ं था कि ऋषि उनके बेटे को अपना शिष्य मानने से इं कार कर देेंगे
3) सत्यकाम आज्ञाकारी पुत्र होने के कारण अपनी माता की आज्ञा का पालन करता था
4) ईमानदारी कभी भी अमीरो ं और सं पन्न लोगो ं का अधिकार क्षेत्र नही ं रहा है
5) उपरोक्त सभी
35. छोटी बेईमानी बड़़ी धोखाधड़़ी और अंततः वित्तीय सं कट की ओर ले जाती है क््योोंकि. (आप एक से अधिक विकल्प
पर निशान लगा सकते हैैं
1) एक झूठ झूठ की श््रृृंखला की ओर ले जाता है
2) बढ़़ाये गए कदमो को वापस लेना मुश्किल है
3) कु छ लोग इसे धोखाधड़़ी करने की आदत बना लेते हैैं
4) उन्हहें अपने द्वारा की गई धोखाधड़़ी के लिए कमीशन मिलता है
5) ऊपर के सभी
134
उत्तर
परोपकार विश्वसनीयता
1. घ 1. ख
2. ख 2. ग
3. घ 3. क
4. ख 4. ग
5. क 5. घ
6. घ 6. क,घ
7. क 7. क,ख,ड़
8. जोहाद और चेक डैम 8. ग,घ
9. क 9. क
10. क,ख,ग 10. ग
11. ख,ग 11. ग
12. ग,घ 12. ख
13. 1 -> ख,ग 2-> ग,घ 13. ख
14. घ 14. घ
15. घ 15. क
16. घ
16. क
17. ख
17. घ
18. 1-> ग, 2-> ख
18. घ
19. घ
19. ख 20. ख
20. क 21. घ
21. घ 22. घ
22. जीसस क्राइस्ट , प्रह्लाद महाराज , ठाकु र 23. क
हरिदास 24. ग
23. ख,ग,ड़ 25. क
24. क 26. घ
25. घ 27. ग,ड़
26. ग 28. धोखा देने वाला, दूसरो ं का अपमान करने मेें
27. क माहिर, टालमटोल करने वाला
28. क 29. ग
29. क 30. ग
30. क 31. क
31. ग 32. अपूर््ण इन्द्रियाँ, छल करने की प्रवृत्ति, गलतियाँ
32. ख करने की प्रवृत्ति और भ्रम मेें रहने की प्रवृत्ति
33. ख
33. ख
135
न्यायसं गत न्याय
1. ख
2. घ
1. असमानता, न्याय सं गत, समानता, न्याय
3. ख
2. समान रूप से, सराहना , न्यायसं गत , 4. क
भेदभाव, अनुचित 5. घ
3. ख 6. घ
4. घ 7. क,ग,घ,च
5. ग 8. ख
6. ख 9. घ
7. क 10. ग
8. ग 11. ख
9. क 12. क,ख,ग,घ
10. क 13. ख
11. ग 14. अभयता, सब जीवो ं के लिए दया की भावना,
12. ग लोभ से मुक्ति, धैर््य
13. ब्राह्मण – सतो गुण 15. ग
क्षत्रिय – रजो गुण 16. काम,क्रोध,लोभ
वैश्य – रजो गुण और तमो गुण 17. ग
शुद्र – तमो गुण 18. क
19. ग
14. घ
20. घ
15. ग
21. ग
16. घ
22. घ
17. घ 23. घ
18. घ 24. क
19. ग 25. क
20. ग 26. घ
21. ख 27. ग
22. घ 28. क
23. क 29. घ
24. ग 30. ग
25. ख 31. घ
26. ख 32. घ
27. क 33. क
28. 1-> क,2-> ख 34. क
35. क,ख
36. ग,घ
136
सत्यनिष्ठा ईमानदारी
1. घ 1. ख
2. ड़ 2. ख
3. ख 3. घ
4. क 4. क,ख,ग
5. ग 5. ग
6. क,ग,घ 6. घ
7. ख
7. ख
8. ग
8. ड़
9. ख
9. ख
10. ख
10. ग 11. ग
11. ड़ 12. ख
12. घ 13. सत्यवादी, आनं ददायी, लाभकारी, दूसरो ं
13. उपस्त वेग, जिह्वा वेग, क्रोध वेग, वाक वेग, को उत्तेजित नही ं करने वाली
उदर वेग, मन वेग 14. क
14. ख 15. यदि सत्य न बोला जाये तो चोरियाँ बदती
15. क,ख,ग जाएँ गी | इसलिए आवश्यक है कि सबके लाभ
16. ग के लिए सच बोला जाये भले ही वह मित्र के लिए
17. काम,क्रोध,लोभ कष्टदायक हो |
18. ख 16. घ
19. ग 17. ख
20. घ 18. ग
21. क 19. घ
22. ख 20. घ
23. आत्मा > बुद्धि > मन > इन्द्रियाँ > पदार््थ 21. ख
22. ख
24. क
23. ग
25. ख
24. घ
26. ग
25. ग
27. घ 26. ग
28. क 27. क
29. घ 28. ग
30. घ 29. ग
31. ग 30. क,ग
32. क,ग 31. ख,ग
33. ग,घ 32. क,ख,ग,घ
34. क,ग 33. क
35. घ 34. ड़
36. घ 35. ड़
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वैल्यू एजुकेशन ओलं पियाड 2021 जलवायु परिवर््तन पर केें द्रित है। पर््ययावरण के प्रति जागरूक रहना समय की मांग है,
क््योोंकि जलवायु परिवर््तन इस पीढ़़ी के लिए निर््णणायक चुनौती होगी। सांख्यिकीय रूप से कहेें तो, पिछले 7 (सात) वर्षषों
मेें सबसे गर््म वैश्विक औसत तापमान रहा है और इस प्रवृत्ति के जारी रहने की भविष्यवाणी की गई है। भारत मेें हवा का
तापमान विशेष रूप से 1901 और 2018 के बीच लगभग 0.7 (डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है। यदि स्थिति ऐसी ही रहती
है, तो हमारी जलवायु और पारिस्थितिकी(Eco system) कभी भी ठीक नही ं हो पायेगी। अगली पीढ़़ी वही काटेगी जो
हम बोएं गे, इसलिए यह महत्वपूर््ण है कि हम इस समय सही निर््णय लेें। यह कार््यक्रम (वैल्यू एजुकेशन ओलं पियाड 2021)
छात््रोों के बीच मूल््योों को विकसित करने के लिए है, जो उन्हहें जलवायु परिवर््तन को समझने मेें मदद करेगा,साथ ही जलवायु
ठीक करने के लिए मार््गदर््शन करेगा।
सं युक्त राष्टट्र के एक अध्ययन के अनुसार, किसी व्यक्ति को पर््ययावरण के प्रति सं वेदनशील बनाने मेें 6 मूल्य महत्वपूर््ण
भूमिका निभाते हैैं और हमने इन मूल््योों को अपने VEO कार््यक्रम मेें शामिल किया है।
1. परोपकार
2. विश्वसनीयता
3. न्यायसं गत व्यवहार
4. न्याय के प्रति निष्ठा
5. सत्यनिष्ठा
6. ईमानदारी
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