1. रचनात्मक लेखन

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अप्रत्याशित विषय (रचनात्मक लेखन)

अप्रत्यामित विषयों पर लेखन कम समय में अपने विचारों को संकमलत कर उन्द्हें सुंदर और सुघड़ ढं ग से
अमभव्यक्त करने की चन
ु ौती है ।

लेखन का आिय यहााँ यााँबत्रक हस्तकौिल से नहीं है । उसका आिय भाषा के सहारे फकसी चीज पर विचार
करने और इस विचार को व्याकरणणक िुद्िता के साथ सुसंगहठत रुप में अमभव्यक्त करने से है ।

ऐसे लेखन के मलए आपको प्जस तरह के विषय हदए जा सकते हैं, उनकी संख्या असीममत है । आपके सामने
की दीिार, उस दीिार पर टं गी घड़ी, उस दीिार में िाहर की ओर खल
ु ता झरोखा- कुि भी उसका विषय हो
सकता है । ऐसे विषय भी हो सकते हैं, प्जनमें इनके मुकािले खल
ु ापन थोड़ा कम हो और फोकस अर्िक
स्पष्ट हो। जैसे टी.िी. िारािाहहकों में स्त्री, िहुत जरूरी है मिक्षा, इत्याहद।

अि सिाल है फक ऐसा लेख प्रस्तुत करने की चन


ु ौती सामने हो तो क्या करना चाहहए?

1. हदए गए विषय के साहचयय से जो भी साथयक और सुसंगत विचार हमारे मन में आते हैं, उन्द्हें हम
यहााँ व्यक्त कर सकते हैं।
2. िुरूआत आकषयक हो। हााँ, ये खयाल रहे फक िह िुरूआत आकषयक होने के साथ-साथ ननिायह योग्य
भी हो।
3. सुसंिद्िता फकसी भी तरह के लेखन का एक िुननयादी ननयम है ।
4. वििरण-वििेचन के सुसंिद्ि होने के साथ-साथ उसका सुसंगत होना भी अच्िे लेखन की एक खामसयत
है । आपकी कही गई िातें न मसफय आपस में जुड़ी हुई हों, िप्ल्क उनमें तालमेल भी हों।
5. इस तरह के लेखन में 'मैं' की आिाजाही िेरोकटोक चल सकती है । यहााँ विषय की प्रकृनत में ही
ननहहत होता है फक लेख में व्यक्त विचारों में आत्मननष्ठा और लेखक के व्यप्क्तत्ि की िाप होगी।
आइए, अि आपके सामने कुि नमूने पेि करें -

1. परीक्षा के दिन
हम सबके विद्यार्थी-जीिन में परीक्षाओं का सामना करना बबल्कुल आम बात है । इसके बािजद
ू भी परीक्षा
के कठिन ठदन का सामना करना मेरे ललए बहुत डरािना रहता है । मैं बहुत घबराए रहता हूूँ। मैंने जो कुछ
भी पढ़ा या याद ककया उस हर चीज को बार-बार दोहराना चाहता हूूँ। मैं प्रश्न-पत्र के बारे में सोचते रहता
हूूँ। मेरा विश्िास है कक यठद मैं पहले ठदन अच्छा करूँगा तो परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सकता हूूँ। इसललए
परीक्षा का कठिन ठदन भयानक लगता है । कुछ छात्र परीक्षाओं के कठिन ठदन के पहले की रात सो नहीं
पाते। बोडड-परीक्षा का मेरा परीक्षा का कठिन ठदन भी ऐसा ही र्था।

परीक्षा के ठदन मैं अपनी समस्त शक्तत अध्ययन की ओर केक्रित कर एकाग्रचचत होकर सम्भावित प्रश्नों
को कंिस्र्थ करने के ललए लगा दे ता हूूँ। ये ठदन मेरे ललए परीक्षा दे िो को प्रसरन करने के ललए अनष्ु िान
करने के ठदन जैसा है , गह
ृ कायों से मुक्तत, खेल-तमाशों से छुट्टी और लमत्रों- साचर्थयों से दरू रहने के ठदन
हैं।

परीक्षा परीक्षार्थी के ललए भूत है । भूत क्जस पर सिार हो जाता है उसकी रातों की नींद हराम हो जाती है ,
ठदन की भूख गायब हो जाती है और घर में सगे-सम्बक्रियों का आना बुरा लगता है । दरू दशडन के मनोरं जक
कायडक्रम, मनपसरद एपीसोड, चचत्रहार आठद समय नष्ट करने के माध्यम लगते हैं।

परीक्षा के इन कठिन ठदनों में परीक्षा-ज्िर (बुखार) चढ़ा होता है , क्जसका तापमान परीक्षा-भिन में प्रिेश
करने तक ननररतर चढ़ता रहता है और प्रश्न-पत्र हल करके परीक्षा-भिन से बाहर आने पर ही सामारय होता
है । कफर अगले विषय की तैयारी का स्मरण होता है । ज्िरग्रस्त परीक्षार्थी ननररतर विश्राम न कर पाने की
पीडा से छटपटाता है । परीक्षाज्िर से ग्रस्त परीक्षार्थी क्रोिी बन जाता है , चचरता उसके स्िास््य को चौपट
कर दे ती है ।

2. िीया और तूफान

लमट्टी का बना हुआ एक नरहा सा ठदया जब जलता है । तो राबत्र के अंिकार से लडता हुआ उसे दरू
भगा दे ता है । अपने आसपास हल्का सा उजाला फैला दे ता है । क्जस अंिकार में हार्थ को हार्थ नहीं सूझता
उसे भी दीया अपने मंद प्रकाश से अकेला रास्ता ठदखा दे ता है । हिा का झोंका जब ठदए से लोगों को शोभा
दे ता है । तब ऐसा लगता है कक इसके बुझते ही अंिकार कफर आ जाएगा और कफर हमें उजाला कैसे लमलेगा?
दीया चाहे छोटा सा हो या बडा पर िह अकेला अंिकार के संस्कार का सामना कर सकता है । तो हम इंसान
जीिन की राह में आने िाली कठिनाइयों का भी उसी तरह से मक
ु ाबला तयों नहीं कर सकते। यठद िह तफ
ू ान
का सामना करके अपने ठटमठटमाती लौ से प्रकाश फैला सकता है । तो हम भी हर कठिनाइयों में कमडि
बनकर संकटों से ननकल सकते हैं।

महाराणा प्रताप ने सब कुछ खोकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की िानी र्थी। हमारे पूिड प्रिानमंत्री लाल बहादरु
शास्त्री ने भी ठदये की तरह सामारय जीि की किोरता का सामना ककया र्था और विश्ि के सबसे बडे गणतंत्र
भारत का प्रिानमंत्री पद प्राप्त कर ललया र्था। हमारे राष्रपनत कलाम ने अपने जीिन ठटमठटमाते दीये के
समान आरं भ ककया र्था पर आज िही दीया हमारे दे श की लमसाइलें प्रदान करने िाला प्रचंड अक्नन बम है ।
उरहोंने दे श को जो शक्तत प्रदान की है िह सत्यत
ु ु है । समि
ु में एक छोटी सी नौका तफ
ू ानी लहरों से
टकराती हुई अपना रास्ता बना लेती है और अपनी मंक्जल पा लेती है । एक छोटा सा प्रिासी पक्षी साइबेररया
से उडकर हजारों लाखों लमल दरू पहुंच सकता है । तो हम इंसान भी कठिन से कठिन मंप्जल प्राप्त कर सकते
हैं।
अकेले अलभमरयु ने चक्रव्यूह में कौरिों जैसे महारचर्थयों का डटकर सामना ककया र्था। कभी-कभी तूफान अपने
प्रचंड िेग से दीए की लौ को बझ
ु ा दे ता है पर जब तक दीया जगमगाता है तब तक तो अपना प्रकाश फैलाता
है और अपने अक्स्तत्ि को प्रकट करता है । मरना तो सभी को 1 ठदन है । मैं तो जीिन में आने िाली तमाम
कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करता हूूँ, और मानता हूूँ कक श्रेष्ि मनुष्य िही होता है जो समाज में तूफानों
की परिाह ना करें और अपनी रोशनी से संसार को प्रज्ज्िललत करता रहे।

3. रे लगाड़ी की पहली यात्रा

क़्िरदगी में रे ल यात्रा करना हर ककसी को रोमांच से भर दे ता है । हम हमेशा कामना करते है कक हमारी
यात्रा सुखमयी हो। भारत की लगभग नब्बे फीसदी लोग रे ल से सफर करते है । मेरी प्रर्थम रे ल यात्रा मेरे
ललए यादगार है । मैं इसे कभी नहीं भूल सकती हूूँ। िह यात्रा मेरे ललए स्मरणीय अनुभि है । मैं मह़ि 10
साल की र्थी जब मैंने अपनी प्रर्थम रे ल यात्रा की र्थी। मैं रे लिे स्टे शन जाने के ललए बडी उत्सुक र्थी तयोंकक
उसके पहले मैंने सामने से रे न कभी नही दे खी र्थी। मैं अपने चाचा चाची के सार्थ रे लिे स्टे शन पहुंची र्थी।
बहुत सारे कुली रे लिे प्लेटफामड पर आिा़ि लगा रहे र्थे। चाचा ने एक कुली को बल
ु ाकर रै न में सामान रखने
के ललए कहा र्था। रै न रे लिे प्लेटफामड पर खडी र्थी। मैं गुिाहाटी से हािडा जा रही र्थी। रै न की बोगी में
घुसकर चाचा- चाची ने सामान अंदर रखा और मैं खखडकी के पास िाले बर्थड पर जाकर बैि गयी।

रै न के खखडकी के बाहर मैंने खब


ू सरू त दृश्य दे खा जैसे पहाड, पेड-पौिे, हरे -भरे लहलहाते खेत भी दे खे ।
मेरा मन खश
ु ी से झूम उिा और चाची ने मुझे कहा कक मुझे अपना हार्थ रै न के खखडकी से बाहर नहीं
ननकालना है । पास ही के बर्थड में मेरी उम्र की एक लडकी खेल रही र्थी। मैं उसके पास चली गयी और हम
दोनों की अच्छी दोस्ती हो गयी और हम अपने गुडडयों के सार्थ खेलने लगे र्थे। कफर चाची ने लंच के ललए
आिा़ि लगायी। बीच बीच में रै न की छुक-छुक आिा़ि मेरे मन को भा जाती र्थी।

उसके बाद कुछ खखलौने बेचने िाले लोग रै न पर चढ़े र्थे। मैंने अपने चाचा से क़्िद्द कक मुझे नयी गुडडया
ठदला दे । चाचा को मेरे क्जद्द के समक्ष वििश होना पडा और उरहोंने खखलौने ठदलिाये। खखडकी से बाहर का
दृश्य बेहद खब
ू सरू त र्था। मैं बहुत उत्सक
ु ता से चारो और दे ख रही र्थी। तयों कक यह रे ल यात्रा मेरे ललए प्रर्थम
र्थी और इसकी सारी मीिी यादें मेरे ठदल के बेहद करीब है । मेरे ललए यह सफर रोमांच से भरा हुआ र्था।
खखडकी से बाहर की हररयाली बेहद आकषडक र्थी और दे खने िालों का मन मोह लेती र्थी। मेरे बर्थड के पास
जो लडकी र्थी उसका नाम रौशनी र्था। हम दोनों अंताक्षरी खेल रहे र्थे और उसके बाद हमने लूडो भी खेला
र्था। शाम होने को आयी र्थी रै न की खखडककयों से िं डी -िं डी हिा आ रही र्थी और उसका आनंद हर कोई ले
रहा र्था।

कफर गरमा गमड कचोरी और समोसे िाला रै न में आ गया र्था। हमने म़िे से गरमा गमड कचोरी खाये और
चाचा ने चाय भी मंगिाई र्थी। कफर चाची ने मझ
ु े कहाननयों के ककताब पढ़ने के ललए ठदए र्था और मैंने पररयों
और जादईु िाली कहाननयां पढ़ी र्थी। मेरा मन उत्साह से भर चक
ु ा र्था। चाचा अखबार पढ़ने में ज़्यादा व्यस्त
र्थे। कफर रात होने को आयी और चाचा ने रै न पर ही रात के खाने का आडडर दे ठदया र्था। हमने रोटी, सब़्िी
और लमिाई खायी र्थी। उसके बाद चाची ने बर्थड पर चादर बबछाई और तककया लगा ठदया और मझ
ु े सोने के
ललए कहा। मैं रौशनी के सार्थ म़िे कर रही र्थी।

कफर रात बहुत हो गयी र्थी और चाची का कहना मानकर मैं सोने के ललए चली गयी। सुबह पांच बजे मेरी
नींद खल
ु ी तो दे खा चाचा चाय की चक्ु स्कयां ले रहे र्थे। सफर लम्बा र्था लेककन ऐसा प्रतीत हो रहा र्था फक
पल भर में समाप्त हो गया।

रै न अपनी रफ़्तार से भाग रही र्थी। सफर में भख


ू बडी लग जाती है । कफर गरमा गमड नाश्ता ककया और इस
बार र्थोडी मैंने कॉफी भी पी। यहीं मेरी रे ल की पहली यात्रा समाप्त हो गई।

4. नौका-विहार

नौका विहार करना एक अच्छा शौक, एक स्िस्र्थ खेल, एक प्रकार का श्रेष्ि व्यायाम तो है ही सार्थ ही,
मनोरं जन का भी एक अच्छा सािन है । सुबह-शाम या ठदन में तो लोग नौकायन या नौका-विहार ककया ही
करते हैं, पर चांदनी रातों में ऐसा करने का सय
ु ोग कभी कभार ही प्राप्त हो पाता है ।

गत िषड शरद पूखणडमा की चांदनी में नौका विहार का कायडक्रम बनाकर हम कुछ लमत्र (वपकननक) मनाने के
मड
ू में सब
ु ह-सिेरे ही खान-पान एिं मनोरं जन का कुछ सामान लेकर नगर से कोई तीन ककलोमीटर दरू बहने
िाली नदी तट पर पहुूँच गए।

िषाड बीत जाने के कारण नदी तो यौिन पर र्थी ही, शरद ऋतु का आगमन हो जाने के कारण प्राकृनतक
िातािरण भी बडा सर
ु दर, सख
ु द, सजीि और ननखार पर र्था। लगता र्था कक िषाड ऋतु के जल ने प्रकृनत का
कण-कण, पत्ता-पत्ता िो-पोंछ कर चारों ओर सजा सिार ठदया है । मरद-मरद पिन के झोंके चारों ओर सुगरिी
को बबखेर िायुमण्डल और िातािरण को सभी तरह से ननमडल और पािन बना रहे र्थे।

उस सबका आनरद भोगते हुए आते ही घाट पर जाकर हमने नाविकों से लमलकर रात में नौका विहार के
ललए दो नौकायें तय कर लीं और कफर खाने-पीने, खेलने, नाचने गाने, गप्पे और चुटकलेबाजी में पता ही
नहीं चल पाया कक सारा ठदन कब बीत गया शाम का साया फैलते ही हम लोग चाय के सार्थ कुछ नाश्ता
कर, बाकी खाने-पीने का सामान हार्थ में लेकर नदी तट पर पहुूँच गए। िहाूँ तय की गई दोनों नौकाओं के
नाविक पहले से ही हमारी प्रतीक्षा कर रहे र्थे। सो हम लोगों के सिार होते ही उरहोंने चप्पू सम्हाल कलकल
बहती ननमडल जलिारा पर हं लसनी-सी तैरने िाली नौकायें छोड दीं।

तब तक शरद पूखणडमा का चांद आकाश पर पूरे ननखार पर आकर अपनी उजली ककरणों से अमत
ृ िषाड करने
लगा र्था। हमने सन
ु रखा र्था कक शरद पखू णडमा की रात चाूँद की ककरणें अमत
ृ बरसाया करती हैं, सो उनकी
तरफ दे खना एक प्रकार की मस्ती और पागलपन का संचार करने िाला हुआ करता है ।
इसे गप्प समझने िाले हम लोग आज सचमुच उस सबका िास्तविक अनुभि कर रहे र्थे। चप्पू चलने से
कलकल करती नदी की शारत िारा पर हं लसनी-सी नाि िीरे -िीरे बढ़ती जा रही र्थी। ककनारे क्रमश: हमसे
दरू नछटकते जा रहे र्थे । दरू हटते ककनारों और उन पर उगे िक्ष
ृ ों की झाडों की परछाइयां िारा में बडा ही
सम्मोहक सा दृश्य चचत्र प्रस्तुत करने लगी र्थीं।

कभी-कभी ठटटीहरी या ककसी अरय पक्षी के एकाएक चहक उिने, ककसी अनजाने पक्षी के पंख फडफडा कर
हमारे ऊपर से फुरड करके ननकल जाने पर िातािरण जैसे कुछ सनसनी सी उत्परन कर कफर एकाएक
रहस्यमय हो जाता। है रानी और विमुनि आंखों से सब दे खते सुनते हम लोगों को लगता कक जैसे अदृश्यश्िड
परी लोक में आ पहुूँचे हों।

चाूँद नशीला होकर कुछ और ऊपर उि आया र्था। हमारी नौका अब नदी की िारा के मध्य तक पहुूँच चक
ु ी
र्थी। नाविक ने लनगी से र्थाह नापने का असफल प्रयास करते हुए बताया कक िहां िारा जल अर्थाह है , अमाप
है । हमने उस पारदशी जल के भीतर तक दे खने का प्रयास ककया कक जो नाि के प्रिाह के कारण ठहल रहा
र्था। उसके सार्थ ही हमें परछाई के रप में िारा में समाया बैिा चांद और असंख्य तारों का संसार भी ठहलता-
डुलता नजर आया। ऐसा अनुभि हुआ कक जैसे िारा का भीतरी भाग उजली रे शम पर जडे तारों और चाूँद
का ही बुना या बना हुआ है । तभी कहीं दरू से पपीहे का स्िर सुनाई ठदया और इसके सार्थ ही नाविकों ने
विरह की कोई सक्म्मललत तान छे ड दी।

नाविकों ने अब चप्पू चलाना बरद कर ठदया र्था। लगातार खम्


ु मार में िद्
ृ चि पाती उस चांदनी रात में हमारी
नौकाएं अब मन की मौजों की तरह स्िेच्छा से बही चली जा रही र्थीं। पता नहीं कहाूँ या ककिर? चारों ओर
का िातािरण और भी नशीला हो गया र्था। हम जो नौकाओं में बजाने-गाने के ललए अपने िाद्य लाए र्थे,
उनकी तरफ दे खने-छूने तक की फुसडत हमें अनभ
ु ि नहीं हुई।

चांदनी रात और उसमें जलिारा पर विहार करती नौका के कारण क्जस एक मादक प्राकृनतक गीत-संगीत की
सक्ृ ष्ट हो रही र्थी कक उसके सामने और कुछ याद रख या कर पाना कतई संभि ही नहीं र्था। बस, एक-दस
ू रे
की तरफ दे खते हुए हम लोग केिल बहते-अनकही कहते रहे। इस तरह रसपान करते हुए नदी से बाहर आकर
अपने अपने घर चल ठदये।

5. यदि मैं जिला कलेक्टर होता तो

सबसे पहले मैं बताना चाहूूँगा कक 'कलेतटर' क्जले में राज्य सरकार का सिोच्च अचिकार संपरन प्रनतननचि
या प्रर्थम लोक-सेिक होता है । जो मख्
ु य क्जला विकास अचिकारी के रप में सारे प्रमुख सरकारी विभागों-
पंचायत एिं ग्रामीण विकास, चचककत्सा एिं स्िास््य, आयि
ु ेद, अल्पसंख्यक कल्याण, कृवष, भ-ू संरक्षण, लशक्षा,
मठहला अचिकारता, ऊजाड, उद्योग, श्रम कल्याण, खनन, खेलकूद, पशप
ु ालन, सहकाररता, पररिहन एिं
यातायात, समाज कल्याण, लसंचाई, सािडजननक ननमाडण विभाग, स्र्थानीय प्रशासन आठद के सारे कायडक्रमों
और नीनतयों का प्रभािी कक्रयारियन करिाने के ललए अपने क्जले के ललए अकेले उत्तरदायी होता है ।
मैं सिडप्रर्थम क्जला में कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ज़्यादा ध्यान केंठित करता। जैसे-

1. शाक्रत और कानून व्यिस्र्था बनाये रखना। कहीं भी ककसी भी तरह की आपवत्तजनक या अनुशासन
हीनता पूणड व्यिहार न होने दे ता। सबसे पहले शराब की सारी दक
ु ानों पर बैन लगा दे ता। जो कक
हमारी युिा पीढ़ी को गतड की ओर ले जा रहे है और शराब पीकर समाज की शांनत को भंग करते
हैं।
2. नागररकों को चचककत्सा सुवििाएं और सेिाएं प्रदान करने के ललए क्जले के सभी क्षेत्रों में दिाखानों
का प्रबरि करना तर्था दिाखानों में लमलने िाली समस्त सुवििाएं- डॉतटर की उपक्स्र्थनत, दिाओं
का उचचत वितरण, चचककत्सालयों की साफ सफाई आठद पर शख्ती से पालन करिाता।
3. लशक्षा विभाग की दे खभाल- विद्यालयों में लशक्षकों की उपक्स्र्थनत, कक्षा लशक्षण का समय समय
पर ननरीक्षण, विद्यालय की साफ सफाई, पौक्ष्टक मध्यारह भोजन ठदया जा रहा या नही, छात्रों
की उपक्स्र्थनत आठद का ननरीक्षण का कायड क्जला लशक्षा अचिकारी को सौपता तर्था उस पर स्ियं
ननगरानी रखता। लशक्षा के मामले में ककसी तरह की कोई ठिलाई न होने दे ता।
4. पानी की भी व्यिस्र्था पर गौर करूँगा फक गांि में पयाडप्त मात्रा में हैंड पम्प है या नहीं, तर्था ककतने
खराब है और ककतने इस्तेमाल में है । खराब हैंडपम्प को तरु ं त ररपेयर करिाता और शहरी क्षेत्र में
पानी की सप्लाई समय अनस
ु ार करिाता और टं की की साफ सफाई का भी ख्याल रखता।
5. सरकारी इमारतों का ननमाडण ि दे खरे ख की क्जम्मेदारी लोकननमाडण विभाग से समय समय पर
सूचना एकबत्रत करता तर्था उनके कायाडरियन का ननरीक्षण करता।
6. पंचायती राज तर्था अरय संस्र्थाओं का प्रबरि ि ननयरत्रण भी करता।
7. क्जलास्तर पर मैं प्रशासन को नेतत्ृ ि प्रदान करता, तयोंकक कलेतटर क्जला प्रशासन की िरु ी हैं।
क्जला स्तरीय प्रशासन में समरिय स्र्थावपत करने के दानयत्ि को पूणड करता हैं। क्जलािीश राज्य,
क्जला प्रशासन तर्था जनता के मध्य कडी का कायड करता हैं।
8. संकटकालीन प्रशासक के रप में क्जलािीश की भूलमका मसीहा के समान हो जाती हैं। इसललये
प्राकृनतक विपदाओं में घायलों के उपचार, ननिास, भोजन आठद की व्यिस्र्था, विस्र्थवपतों के
पन
ु स्र्थाडपन ि उरहें मआ
ु िजा रालश दे ना आठद का भी ख्याल रखग
ंू ा।

इस प्रकार मैं राज्य सरकार की आूँख ि कान तर्था बाहों की भांनत अपने कायड का ननिडहन करता।

अभ्यास हे तु कुछ अन्य ववषय-

1. यठद मैं अध्यापक होता तो

2. कक्षा में मेरी पहली शरारत

3. घोसलों से झांकते चचडडयों के बच्चे


4. मेरी क्जंदगी में कोचचंग का स्र्थान

5. घडी की ठटक-ठटक आिाज

6. बाररश की पहली बंद


7. सुकून के कुछ पल

8. आसमान में ठटमठटमाते तारे

9. आकाश में उडते पररंदे

10. समि
ु की खामोशी

11. मैं और खल
ु ा आसमां

12. सैलून िाला

13. मेरे स्कूल का पहला ठदन

14. खद
ु से मेरी उम्मीदें

15. मेरी दनु नया

16. मैं पापा की एक नरही परी

17. मेरे अिरू े सपने

18. मेरी क्जंदगी के खास पल

औपचाररक पत्र

ध्यान दे ने योग्य िातें -

• पत्र के िीषय पर मलखने िाले का नाम और पता होना चाहहए।


• प्जसे पत्र मलखा जा रहा है उसका नाम, पता आहद िांई तरफ मलखा जाता है । कई िार अर्िकारी
का नाम भी हदया जाता है ।
• 'सेिा में ' का प्रयोग िीरे -िीरे कम हो रहा है ।
• 'विषय' िीषयक के अंतगयत संक्षेप में यह मलखा जाता है फक पत्र फकस प्रयोजन के मलए या फकस
संदभय में मलखा जा रहा है ।
• विषय के िाद िांई तरफ 'महोदय' संिोिन मलखा जाता है ।
• पत्र की भाषा सरल एिं सहज होनी चाहहए। प्क्लष्ट िब्दों के प्रयोग से िचना चाहहए।

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