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Prelims ⇒ 1 & 2 Paper
GS Paper-I ⇒ 250 Marks
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GS Paper-II ⇒ 250 Marks
GS Paper-III ⇒ 250 Marks
GS Paper-IV ⇒ 250 Marks
Essay ⇒ 250 Marks
Interview ⇒ 175
स वल सेवा परीक्षा, 2022
प्री लम्स और मुख्य परीक्षा पर आधा रत फाउं डेशन कायर्यक्रम
on PLUS Course with MKLIVE

पूरे 1750 अंकों की


तैयारी (Unitwise)
Dear Aspirants,

मैराथन क्लास में कुछ वलंब होने के लए खेद है । Content TEAM


MKLIVE द्वारा नरं तर मैराथन क्लास को तैयार करने में पूरा समय दया
जा रहा है । कल से नरं तर प्र त दन दो-दो मैराथन क्लासेज रहें गी।

ध यवाद

TEAM MKLIVE
इ तहास

प्रागै तहा सक काल आद्य ऐ तहा सक ऐ तहा सक


(पाषाण काल) ( संधु घाटी सभ्यता) (1857 की क्रां त)
मध्यकालीन भारत का इ तहास

712 ई. से लेकर 1757 ई. तक

पूवर्य मध्यकालीन इ तहास उत्तर मध्यकालीन इ तहास


(712 ई. से लेकर 1192 ई. तक) (1192 ई. से लेकर 1757 ई. तक)
1206 से 1526 ई. तक

दल्ली सल्तनत काल

पाँच वंश
गुलाम वंश / मामलुक वंश / इल्बरी वंश (1206
– 1290)

खलजी वंश (1290- 1320)

तुगलक वंश (1320 – 1414) पाँच वंश

सैयद वंश (1414 – 1451)

लोदी वंश (1451 – 1526)


वंश संस्थापक

गुलाम वंश कुतुबुद्दीन ऐबक

खलजी वंश जलालुद्दीन खलजी

तुगलक वंश ग्यासुद्दीन तुगलक

सैयद वंश खज्रखाँ

लोदी वंश बहलोल लोदी


गुलाम वंश (1206–1290)
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 से 1210)

इल्तुत मश (1210 से 1236)

रिजया सुल्ताना (1236 से 1240)

मुइजुद्दीन बहरामशाह (1240 से 1242)

अलाउद्दीन मसूद शाह (1242 से 1246)

नसीरूद्दीन महमूद (1246 से 1265)

गयासुद्दीन बलबन (1266 से 1286)

शमशुद्दीन क्यूम़शर्य (1287 से 1290)


खलजी वंश (1290- 1320)
खलजी वंश (1290- 1320)

जलालुद्दीन फ़रोज़ खलजी (1290 से 1296)

अलाउद्दीन खलजी (1296 से 1316)

शहाबुद्दीन खलजी (1316)

कुतुबद्दीन मुबारक खलजी (1316 से 1320)

ना सरुद्दीन खुसरो शाह (1320)


तुगलक वंश (1320-1414)
❖ ग्यासुद्दीन तुगलक (1320 ई. से 1325 ई. तक)
❖ मुहम्मद बन तुगलक (1325 ई. से 1351 ई. तक)
❖ फरोज शाह तुगलक (1351 ई. से 1388 ई. तक)
❖ मोहम्मद खान (1388 ई.)
❖ ग्यासुद्दीन तुलगक शाह (1388 ई.)
❖ अबू बकर (1389 ई. से 1390 ई. तक)
❖ नसीरूद्दीन मोहम्मद (1390 ई. से 1394 ई. तक)
❖ हू मायूं (1394 ई. से 1395 ई. तक)
❖ नसीरूद्दीन महमूद (1395 ई. 1412 ई. से तक)
गुलाम वंश / मामलुक वंश / इल्बरी वंश (1206-1290)

खलजी वंश (1290-1320)

तुगलक वंश (1320-1414) पाँच वंश

सैयद वंश (1414-1451)

लोदी वंश (1451-1526)


पृ ठभू म
❖ पछली 3 कक्षाओं में हमने पढ़ा क 712 ई. में मुहम्मद बन का सम के नेतत्ृ व
में भारत में पहली अरब वजय होती है ।

❖ 712 ई. में मुहम्मद का सम के नेतत्ृ व में भारत में पहली अरब वजय होती है ।

❖ इसके बाद महमूद गजनवी द्वारा भारत में लूटपाट के उद्दे श्य से कई बार
आक्रमण कया जाता है ।
❖ इसके बाद भारत पर मुहम्मद गौरी द्वारा लूटपाट के साथ ही साम्राज्य वस्तार
के उद्दे श्य से भारत पर आक्रमण कया जाता है ।

❖ इस क्रम में 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वी राज चौहान की मृत्यु के
साथ ही भारत में दल्ली सल्तनत के साम्राज्य का मागर्य प्रशस्त हो जाता है ।

❖ मुहम्मद गौरी स्वयं भारत पर शासन नहीं करते हु ए अपने न ठावान गुलाम
कुतुबद्दीन ऐबक को भारत की सत्ता सौंपकर वा पस लौट जाता है ।
❖ कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा दल्ली सल्तनत में गुलाम वंश की स्थापना होती है
तथा यह क्रम 1290 ई. तक चलता है ।

❖ 1290 ई. में गुलाम वंश के अं तम शासक क्यूमशर्य की मृत्यु के साथ ही गुलाम


वंश का समापन हो जाता है तथा दल्ली सल्तनत में एक नए वंश ‘ खलजी’
अथवा ‘खलजी’ वंश का उदय होता है ।
❖ खलजी वंश की स्थापना जलालुद्दीन फरोज खलजी द्वारा 1290 ई. में होती
है जब क इसका अं तम शासक ना सरूद्दीन खुसरो शाह था।

❖ खलजी वंश के अंतगर्यत पहली बार साम्राज्य वस्तार के उद्दे श्य से द क्षण
भारत के संबंध सफल वजय अ भयान आयोिजत कए जाते हैं, कं तु उ हें
दल्ली सल्तन के क्षेत्रा धकार के अंतगर्यत सिम्म लत नहीं कया जाता।
❖ अंततः 1320 ई. में ही गाजी म लक के साथ हु ए युद्ध में ना सरुद्दीन खुसरो
शाह परािजत होकर मारा गया तथा गाजी म लक गयासुद्दीन तुगलक के नाम
से दल्ली की गद्दी पर बैठता है ।

❖ इस प्रकार दल्ली सल्तनत काल के इ तहास में खलजी वंश समाप्त हो गया
तथा नए तुगलक वंश का उदय होता है ।
❖ तुगलक शासक के प्रारं भक लगभग 70 वषर्वों में सै य के साथ ही प्रशास नक
िस्थ त मजबूत रहती है , क्यों क इस दौरान ग्यासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बन
तुगलक तथा फरोज शाह तुगलक जैसे अपेक्षाकृ त अ धक योग्य सुल्तानों ने
शासन कया।

❖ कं तु 1388 ई. में फरोज शाह तुगलक की मृत्यु होने के बाद तुगलक वंश योग्य
उत्तरा धका रयों के अभाव में कमजोर हो जाता है और अंततः 1413 ई. में पंजाब
के सूबेदार खज्र खां द्वारा सैयद वंश की स्थापना की जाती है ।
गुलाम वंश / मामलुक वंश / इल्बरी वंश (1206-1290)

खलजी वंश (1290-1320)

तुगलक वंश (1320-1414) पाँच वंश

सैयद वंश (1414-1451)

लोदी वंश (1451-1526)


सैयद वंश (1414-1451ई.)
❖ सैयद वंश की स्थापना तैमूर लंग के सेनाप त खज्र खां द्वारा की गई थी।

❖ वस्तुतः सैयद एक प रवार आधा रत वंश था जो स्वयं को इस्लाम धमर्य के


संस्थापक मुहम्मद पैगंबर का वंशज मानता था एवं उच्च को ट का मानता था।

❖ सैयद वंश सल्तनत काल में शासन करने वाला एकमात्र शया वंश था, जब क
शेष वंश सु नी शाखा से संबं धत थे।
तैमूर लंग
❖ तैमूर लंग 14वीं शताब्दी का एक शासक था िजसका साम्राज्य लगभग पिश्चम
ए शया, मध्य ए शया से लेकर भारत तक फैला हु आ था।

❖ तैमूर लंग द्वारा तैमूरी राजवंश की स्थापना भी गई और एक पैर से लंगड़ा होने


के कारण इसे तैमूर लंग कहा जाता था।

❖ तैमूर इस्लाम धमर्य का अनुयायी था और सकंदर तथा चंगेज खां की तरह


वैिश्वक वजय की महत्वाकांक्षा से प्रे रत था।
❖ अपने वैिश्वक वजय के इस अ भयान में तैमूर लंग ने पिश्चम ए शया से लेकर
भारत की सीमा तक अपने साम्राज्य का वस्तार कर लया था।

❖ इसके बाद तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण की योजना बनाई, कं तु इसके प्रमुख
अ धका रयों ने तैमूर की इस नी त का समथर्यन नहीं कया।

❖ इसके बाद तैमूर लंग ने कूटनी त का प रचय दे ते हु ए भारत पर अपने आक्रमण


का प्रमुख उद्दे श्य इस्लाम धमर्य के प्रसार को बताया।
❖ इससे तैमूर के प्रमुख सेनाप त एवं अ धकारी सहमत हो गए और 1398-99 ई. में
भारत पर आक्रमण कया।

❖ यह आक्रमण मुख्यतः मुल्तान के क्षेत्र तक कें द्रत था।

❖ इस आक्रमण के दौरान ने व्यापक स्तर पर लूटपाट की और नदर्वोष लोगों की


हत्या की।

❖ इसके बाद तैमूर लंग आगे बढ़ते हु ए दल्ली की सीमा के पास तक पहुं च गया।
❖ इस दौरान पानीपत के क्षेत्र में तैमूर लंग की सेना और तत्कालीन तुगलक
सुल्तान महमूद के बीच युद्ध हु आ, िजसमें तैमूर लंग की जीत हु ई।

❖ सुल्तान महमूद अपनी जान बचाकर गुजरात की ओर भाग गया।

❖ इसके बाद तैमूर लंग ने दल्ली में प्रवेश कर व्यापक मात्रा में लूटपाट और नदर्वोष
लोगों की हत्या की।

❖ साथ ही अनेक िस्त्रयों एवं शिल्पयों आ द को भी गुलाम बनाकर अपने साथ


समरकंद ले गया और समरकंद में अनेक इमारतें बनवाई।
❖ अपने आक्रमण के दौरान तैमूर लंग ने कई मं दरों को न ट कया और गैर-
इस्लाम अनुया ययों की हत्या की।

❖ तैमूर लंग के बारे में प्रच लत है क यह लोगों की हत्या करवाकर उनके कटे सरों
की दीवार बनवा दे ता था।

❖ तैमूर लंग इतना नदर्य यी था क इसने तलवार के दम पर लगभग समस्त मध्य


ए शया में इस्लाम का प्रसार कया।
❖ अपने भारत आक्रमण के दौरान तैमूर लंग ने मुल्तान, दल्ली, मेरठ, ह रद्वार,
कांगड़ा, और जम्मू-कश्मीर पर भी आक्रमण कया।

❖ लगभग अपने एक वषर्य के इस आक्रमणकारी काल के दौरान तैमूर लंग ने भारी


मात्रा में धन, िस्त्रयों, गुलामों, शिल्पयों इत्या द की लूट की तथा मं दरों को न ट
कया।
खज्र खां
❖ भारत से वा पस लौटते समय तैमूर लंग ने खज्र खां को मुल्तान, लाहौर एवं
दीवालपुर का प्रशासक नयुक्त कर दया।

❖ खज्र खां द्वारा तैमूर लंग एवं उसके पुत्र शाहरूख के प्र त न ध के रूप में इन
क्षेत्रों का प्रशासन कया गया और नय मत तौर पर कर भी भेजा गया।
❖ तुगलक वंश के अं तम सुल्तानों के शासनकाल के दौरान खज्र खां पंजाब प्रांत
का सूबेदार था और माना जाता है क तैमूर लंग को भारत पर आक्रमण करने के
लए आमंत्रण और सहायता प्रदान करने में प्रमुख भू मका नभाई थी।

❖ चूं क तैमूर लंग और खज्र खां दोनों ही इस्लाम धमर्य की शया शाखा से संबं धत
थे, जब क तुगलक वंश सु नी शाखा से संबं धत था।

❖ अतः तैमूर लंग और खज्र में वैचा रक एवं महत्वाकांक्षा के स्तर पर एकरूपता
थी।
❖ इसके अलावा तुगलक वंश इस समय अपनी शिक्तयों के पतन के दौर में था और
उत्तर भारत के कई प्रांतों में दल्ली का केंद्रीय प्रशास नक नयंत्रण कमजोर हो
चुका था।

❖ इस राजनी तक प रिस्थ त ने भी तैमूर लंग को भारत पर आक्रमण के लए


अनुकूल अवसर प्रदान कया।
1399 से 1414 ई. तक की प रिस्थ तयां
❖ 1399 ई. में तैमूर लंग अपने दे श समरकंद वा पस लौट जाता है और मुल्तान
जैसे क्षेत्रों का प्रशासक खज्र खां को नयुक्त कर दे ता है ।

❖ इसके बावजूद 1414 ई. तक दल्ली का शासन तुगलक वंश के नाम पर होता


रहता है ।

❖ जब क तत्कालीन तुगलक सुल्तान महमूद तैमूर लंग के आक्रमण के समय


अपनी जान बचाकर गुजरात की ओर भाग जाता है ।
❖ तैमूर लंग द्वारा महमूद तुगलक का पीछा नहीं कया जाता है , क्यों क तैमूर का
प्रमुख उद्दे श्य भारत में लूटपाट करना था।

❖ महमूद तुगलक अपनी प्राकृ तक मृत्यु के समय (1414 ई.) तक गुजरात में ही
रहता है ।

❖ इस समय तक दल्ली में शासन का संचालन दौलत खां नामक एक अफगान


द्वारा महमूद तुगलक के नाम से कया जाता है ।

❖ दौलत खां महमूद तुगलक का वश्वास पात्र था और सेना में उच्च पद पर आसीन
था।
अब यहां दो प्रश्न उल्लेखनीय है -

1. दौलत खां स्वयं दल्ली का सुल्तान क्यों नहीं बना ?

2. खज्र खां महमूद तुगलक की मृत्यु के बाद ही दल्ली का सुल्तान क्यों बना
जब क य द वह चाहता है तो 1399 ई. में ही दल्ली का सुल्तान बन सकता था।
दौलत खां स्वयं दल्ली का सुल्तान क्यों नहीं बना ?

❖ वस्तुतः दौलत खां तत्कालीन प रिस्थ तयों से भलीभां त प र चत था।

❖ एक तो इस समय तैमूर लंग के पुनः आक्रमण का भय बना हु आ था।

❖ दूसरा, य द वह दल्ली का सुल्तान बन जाता तो न केवल तैमूर लंग से प्रत्यक्ष


उसकी शत्रुता हो जाती बिल्क उत्तर भारत के अ य प्रांतों द्वारा भी वद्रोह की
संभावना बढ़ जाती थी।
❖ इसके अलावा दौलत खां महमूद तुगलक का वश्वासपात्र भी था।

❖ साथ ही तैमूर लंग की लूटपाट के कारण भय की प रिस्थ तयां वद्यमान थी


और आ थर्यक िस्थ त भी अत्यंत क्षीण हो चुकी थी।

❖ दल्ली का वास्त वक सुल्तान स्वयं भागकर गुजरात में शरण लए हु ए था।

❖ एक अ य कारण यह भी था क समस्त राजनी तक, प्रशास नक, आ थर्यक और


सै य शिक्तयां वास्त वक रूप से दौलत खां के हाथों में ही थी, अतः सुल्तान
बनने का कोई वशेष औ चत्य भी नहीं था।
❖ इन सभी कारणों के आधार पर दौलत खां ने स्वयं सुल्तान बनने के बजाय
तुगलक सुल्तान के नाम पर शासन व्यवस्था को संचा लत कया।
खज्र खां दल्ली का सुल्तान क्यों नहीं बना ?

❖ यद्य प खज्र खां ने तैमूर लंग की सहायता की थी कं तु वह तैमूर लंग की क्रूरता


से भलीभां त प र चत था, क्यों क तैमूर द्वारा मुस्लमानों के प्र त भी उतनी ही
नदर्य यता प्रकट की जाती थी, िजतनी क गैर-मुस्लमानों के प्र त।
❖ यही कारण था क खज्र खां द्वारा मुल्तान का प्रशासन वस्तुतः तैमूर लंग और
उसके पुत्र शाहरूख खां के प्र त न ध के रूप में कया गया और नय मत तौर पर
कर की अदायगी की जाती रही।

❖ तैमूर लंग के प्र त न ठा प्रद शर्यत करने के उद्दे श्य से खज्र खां ने तैमूर एवं
उसके पुत्र के नाम का खुतबा भी पढ़वाया।

❖ खज्र खां को भी तैमूर लंग द्वारा पुनः भारत पर आक्रमण कए जाने की


आशंका भी था और सुल्तान बनने पर सीधी शत्रुता तैमूर लंग से हो जाती।
❖ इसके अलावा खज्र खां को तैमूर लंग ने एक बड़े भौगो लक भाग का प्रशासक
नयुक्त कर दया था और दल्ली के सुल्तान के आक्रमण का खज्र खां को कोई
भय नहीं था।

❖ एक कारण यह भी था क खज्र खां में राजनी तक महत्वाकांक्षा की कोई लालसा


नहीं थी, वशेषकर सुल्तान बनने के प्र त उसकी कोई वशेष रू च नहीं थी।

❖ यही कारण था क जब 1414 ई. में खज्र खां दल्ली सल्तनत का शासक बनता
है तो वह सुल्तान की उपा ध भी धारण नहीं करता है ।
❖ अंततः 1399 ई. में जब महमूद तुगलक की मृत्यु हो जाती है तो खज्र खां स्वयं
दल्ली के सुल्तान के पद पर आसीन हो जाता है , क्यों क इस समय तक तैमूर
लंग की भी मृत्यु हो चुकी थी।
तैमूर लंग एक शिक्तशाली, क्रूर और
वैिश्वक वजय की भावना से प्रे रत था,
कं तु उसकी मृत्यु एक साधारण जुकाम
के कारण हो जाती है ।

माना जाता है क अपने जीवन काल में


तैमूर लंग ने 1 करोड़ से अ धक लोगों
की हत्या की थी।
गुलाम वंश / मामलुक वंश / इल्बरी वंश (1206-1290)

खलजी वंश (1290-1320)

तुगलक वंश (1320-1414) पाँच वंश

सैयद वंश (1414-1451)

लोदी वंश (1451-1526)


खज्र खां (1414-1421)
❖ सैयद वंश का संस्थापक

❖ रै यत-ए-आला की उपा ध (संभवतः तैमूर लंग द्वारा प्रदत)

❖ तुगलक वंश की व्यवस्था के आधार पर ही प्रशासन का संचालन

❖ 1421 ई. में प्राकृ तक कारणों से मृत्यु

❖ खज्र खां की मृत्यु पर सभी ने काले वस्त्र पहनकर दुःख प्रकट कया।
मुबारक शाह (1421-1434)
❖ खज्र खां का पुत्र

❖ सैयद वंश का पहला शासक िजसने सुल्तान की उपा ध धारण की

❖ अपने नाम से ख़ुतबा पढ़वाया और वदे शी स्वा मत्व का अंत कया

❖ शाह की उपा ध भी धारण की

❖ यमुना नदी के कनारे मुबारकबाद नगर की स्थापना की

❖ हंद ू के प्र त उदार नी त का अनुसरण करने वाला सुल्तान


❖ प्र सद्ध इ तहासकार या हया- बन-अहमद सर हंदी को इसके दरबार में संरक्षण
प्राप्त था।

❖ सर हंदी की प्र सद्ध पुस्तक तारीख-ए-मुबारकशाही (फारसी भाषा) के अनुसार


मुबारक शाह का काल अशां त एवं वद्रोहों का काल था और पूरा शासनकाल
वद्रोहों को दबाने में ही व्यतीत हो गया।

❖ सैयद वंश का सबसे योग्यतम शासक


मुहम्मद शाह (1434 - 1445)
❖ मुबारक शाह का दत्तक पुत्र

❖ मूल नाम : मुहम्मद बन फरीद खां

❖ वजीर सरवर-उल-मुल्क की सहायता में शासन कया

❖ इसके शासनकाल में दल्ली पर मालवा के शासक महमूद खलजी ने आक्रमण


कया, िजसे रोकने के लए मुहम्मद शाह ने अपने अ धकारी बहलोल लोदी से
सहायता मांगी।

❖ बहलोल लोदी को खान-ए-जहां की उपा ध दी।


❖ मुहम्मद शाह बहलोल लोदी को अपना पुत्र मानता था।

❖ मुहम्मद शाह के शासन काल के दौरान ही बहलोल लोदी का उदय एवं वास्त वक
रूप से सैयद वंश का पतन प्रारं भ हो जाता है ।

❖ क्यों क अ धकांश प्रांतों ने स्वयं को दल्ली की संप्रभुता से लगभग स्वतंत्र कर


लया था।
अलाउद्दीन आलमशाह (1445 - 1476)
❖ मुहम्मद शाह का पुत्र

❖ आलमशाह की उपा ध ग्रहण की

❖ वलासी प्रवृ त्त का व्यिक्त

❖ अपने प्रमुख वजीर हमीद खां से ग तरोध होने के कारण हमीद खां ने बहलोल
लोदी को दल्ली पर आक्रमण के लए आमं त्रत कया।
❖ बहलोल लोदी ने दल्ली पर आक्रमण कया, कं तु सुल्तान ने भागकर बदायूं
(उत्तरप्रदे श) में शरण ले ली और बहलोल लोदी 1451 ई. में दल्ली का सुल्तान
बन गया।

❖ इस प्रकार से सैयद वंश का अंत और लोदी वंश का प्रारं भ हो गया।

❖ इसके बाद बहलोल लोदी ने हमीद खां की भी हत्या करवा दी ता क वह कसी


प्रकार से षड़यंत्र नहीं कर सके।
❖ अलाउद्दीन आलम शाह की 1476 ई. प्राकृ तक कारणों से मृत्यु हो जाती है ।

❖ चूं क आलम शाह अयोग्य एवं वलासी प्रवृ त्त का था, अतत ् बहलोल लोदी को
इससे कोई खतरा नहीं था।

❖ इसी कारण बहलोल लोदी ने आलम शाह को समाप्त करने के लए कोई ठोस
प्रयास नहीं कया।

❖ इसके अलावा बहलोल लोदी का प्रमुख उद्दे श्य दल्ली का सुल्तान बनना था
और इस कायर्य में उसे सफलता प्राप्त हो चुकी थी।
❖ 1451 ई. में जब बहलोल लोदी दल्ली के संहासन पर बैठा तो इसने बदायूं में बैठे
अलाउद्दीन आलमशाह को पत्र लखा क

आपके महान पता ने मेरा पालन-पोषण कया। मैं खुतबा से आपका नाम हटाए बना
आप के प्र त न ध के रूप में कायर्य कर रहा हूं ।
❖ इस पत्र के उत्तर में आलमशाह ने लखा क

मेरे पता आपको अपना पुत्र कहकर पुकारते थे, इस लए आप मेरे बड़े भाई हैं। मैं
बदायूं में ही संतु ट हूं और अपना साम्राज्य आपको दे रहा हूं ।

❖ इसके बाद बहलोल लोदी ने गाजी की उपा ध धारण कर पुनः अपना


राज्या भषेक करवाया।
❖ तारीख-ए-दाऊदी के लेखक अब्दुल्लाह के अनुसार बहलोल लोदी कभी सहासन
पर नही बैठता था।
गुलाम वंश / मामलुक वंश / इल्बरी वंश (1206-1290)

खलजी वंश (1290-1320)

तुगलक वंश (1320-1414) पाँच वंश

सैयद वंश (1414-1451)

लोदी वंश (1451-1526)


कौन थे लोदी ?
❖ मूलतः लोदी अफगा नस्तान के सुलेमान पवर्यतीय क्षेत्र के नवासी थे और भारत
में मूलतः व्यापा रक उद्दे श्यों से आए थे।

❖ हालां क यह भारत कब आए, इसके संबंध में प्रमा णक जानकारी का अभाव है ,


कं तु संभवतः यह दल्ली सल्तनत काल में ही भारत में आए थे।

❖ बाद में तुगलक वंश के शासनकाल, वशेषकर सैयद वंश में यह प्रशास नक पदों
पर नयुक्त हु ए, िजनमें बहलोल लोदी और दौलत खां का नाम उल्लेखनीय है ।
❖ मूलतः लोदी म श्रित तुकर्य थे और अफगा नस्तान के गल्जाई (शाहू खेल) कबीले
से संबं धत थे।

❖ प्रारं भ में लोदी अपनी आजी वका मुख्यतः पशुपालन से चलाते थे। कं तु अपनी
लड़ाकू प्रवृ त्त के कारण समीपवतर्ती क्षेत्रों में लूटपाट भी करते रहते थे।

❖ गुलाम वंश के शासनकाल में कई लोदी अफगान साधारण सै नकों के पद पर भी


नयुक्त हु ए थे।
❖ कालांतर में जब सैयद वंश के अं तम शासकों की शिक्तयां क्षीण हु ई थी तो
बहलोल लोदी ने अपनी मजबूत िस्थ त एवं तत्कालीन अ निश्चत राजनी तक
प रिस्थ तयों का लाभ उठाकर लोदी वंश की स्थापना की।
बहलोल लोदी (1451 - 1489)
❖ बहलोल लोदी मूलतः अफगा नस्तान के व्यापा रक प रवार में ज मा था।

❖ कं तु कालांतर में अपनी योग्यता एवं वशेषकर तैमूर लंग के संरक्षण में इसने
उच्च प्रशासक की िस्थ त प्राप्त कर ली।

❖ तैमूर लंग ने बहलोल लोदी को पंजाब प्रांत का प्रशासक नयुक्त कया था।

❖ अंततः बहलोल लोदी ने तत्कालीन राजनी तक प रिस्थ तयों का लाभ उठाकर


दल्ली लोदी वंश की स्थापना करते हु ए सुल्तान का पद धारण कया।
❖ उल्लेखनीय है क दल्ली सल्तनत काल में लोदी पहला अफगान वंश था,
िजसने शासन कया।

❖ 1451 ई. में बहलोल लोदी गाजी की उपा ध को धारण करते हु ए दल्ली का


सुल्तान बना।

❖ बहलोल लोदी योग्य, युद्ध प्रय एवं धा मर्यक रूप से स ह णु प्रवृ त्त का शासक था

❖ बहलोल लोदी ने अपने अ धकांश अ भयान वद्रोहों का दमन करने के लए कए,
कं तु इन अ भयानों का उद्दे श्य साम्राज्य वस्तार नहीं था।

❖ इनमें जौनपुर, दोआब, मेवात, मालवा, ग्वा लयर इत्या द के वरूद्ध कए गए


सफल अ भयान उल्लेखनीय है ।

❖ बहलोल लोदी ने दल्ली सल्तनत के सभी शासकों में सवार्य धक समय (38 वषर्य)
तक शासन कया।
❖ बहलोल लोदी का राजत्व सद्धांत नरं कुशता के सद्धांत पर आधा रत न
होकर अफगान सरदारों की समानता पर आधा रत था।

❖ अफगान सरदारों के प्र त अ धक उदार नी त अपनाने का प्रमुख कारण


अफगा नस्तान के अपने कबीले के प्र त न ठा और शासन संचालन के लए
उनके सहयोग की आवश्यकता थे।

❖ बहलोल लोदी अपने अफगानी सरदारों को मकसदे आलो कहकर पुकारता था


❖ बहलोल लोदी ने हंदओ
ु ं के प्र त उदारता की नी त अपनाई।

❖ बहलोल लोदी के सरदारों में राय प्रताप संह, राय करन संह, राय नर संह, राय
त्रलोक चंद्र व राय दादू जैसे कई प्रमुख हंद ू सरदार भी थे।

❖ बहलोल लोदी ने ‘बहलोली’ नामक चाँदी का सक्का प्रच लत कया जो मुगल


शासक अकबर के समय तक व नमय का माध्यम रहा।

❖ अंततः जून, 1489 ई. में राजस्थान से लौटते समय लू लगने के कारण बहलोल
लोदी की मृत्यु हो जाती है ।
❖ अपनी मृत्यु से पूवर्य ही बहलोल लोदी ने अपने राज्य का वभाजन अपने पुत्र और
अफगान सरदारों में कर दया था।

❖ वस्तुतः साम्राज्य का यह वभाजन संप्रभु के रूप में न होकर एक प्रकार से


राज्यपालों अथवा प्रशासकों के रूप में कया गया था।

❖ इस प्रकार कहा जा सकता है क बहलोल लोदी ने अ धक वकेंद्रीकृ त रूप में


प्रशास नक व्यवस्था के संचालनक की व्यवस्था का प्रारं भ कया।

❖ हालां क यह व्यवस्था सफल नहीं रही।


सकंदर लोदी (1489 - 1517)
❖ सकंदर लोदी बहलोल लोदी का पुत्र था और अपने जीवनकाल में ही बहलोल
लोदी ने सकंदर लोदी का दल्ली का अगला सुल्तान घो षत कर दया था।

❖ सकंदर लोदी का मूल नाम नजाम खां था और 1489 ई. में सकंदर लोदी के
नाम से दल्ली का सुल्तान बना।
प्रशास नक पक्ष

❖ संकदर लोदी का शासनकाल भी मुख्यतः सै य अ भयानों में व्यतीत हु आ, कं तु


बहलोल लोदी के वपरीत इसके सै य अ भयानों का उद्दे श्य साम्राज्य वस्तार
था।

❖ वस्तुतः तुगलक वंश के अं तम शासकों के बाद से भारत में दल्ली सल्तनत


काल में सबसे अ धक साम्राज्य का वस्तार संकदर लोदी के काल में हु आ।
❖ हालां क यह साम्राज्य वस्तार अलाउद्दीन खलजी के साम्राज्य वस्तार से कम
था।

❖ इसके अलावा सकंदर लोदी ने आगरा नामक नगर की स्थापना की तथा दल्ली
के बजाय आगरा को अपनी राजधानी बनाया।
आ थर्यक पक्ष

❖ सकंदर लोदी ने न केवल साम्राज्य वस्तार की नी त को अपनाया बिल्क


आ थर्यक प्रशासन के संचालन पर भी वशेष ध्यान दया।

❖ सकंदर लोदी ने भू म की नाप के लए गज-ए- सकंदरी को प्रारं भ कया जो क


मुगलकाल तक प्रच लत रही।

❖ इस समय भू म की नाप के आधार पर भू-राजस्व की दर तय होती थी।


धा मर्यक पक्ष

❖ धा मर्यक दृि टकोण के आधार पर सकंदर लोदी ने अस ह णु नी त का अनुसरण


कया और मुख्यतः उलेमा वगर्य को संतु ट करते हु ए हंदओ
ु ं के वरूद्ध अनुदार
नी त अपनाई।

❖ उदाहरण के लए सकंदर लोदी ने हंदओ


ु ं के धा मर्यक संस्कारों एवं पवर्वों पर
प्र तबंध लगा दया, कई मं दरों एवं मू तर्ययों को भी न ट कया।
❖ नागरकोट ( हमाचल प्रदे श) के ज्वालामुखी मं दर की मू तर्य तोड़कर उसके टु कड़ों
को मांस को तौलने के लए कसाईयों को दे दया।

❖ हंद ू धमर्य को सत्य बताने के कारण सकंदर लोदी ने बोधन नामक एक हंद ू को
मृत्युदंड दे दया।

❖ हालां क सकंदर लोदी ने मुसलमानों में प्रच लत कुछ प्रथाओं पर भी सुधारों के


दृि टकोण से प्र तबंध लगा दया िजसमें मुहरर्य म में तिजए नकालना तथा
मुिस्लम िस्त्रयों का पीरों की मंजारों पर जाने पर प्र तबंध प्रमुख थे।
सांस्कृ तक पक्ष

❖ सकंदर लोदी स्वयं फारसी भाषा का अच्छा वद्वान था और गुलरूखी के


उपनाम से फारसी क वताएं लखता था।

❖ सकंदर लोदी के काल में कई संस्कृ त ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद हु आ।

❖ इनमें औष धशास्त्र नामक संस्कृ त ग्रंथ प्रमुख है , िजसका मया भुंआ ने तब्बत-
ए- सकंदरी एवं फरहं ग-ए- सकंदरी के नाम से फारसी अनुवाद कया।
❖ सकंदर लोदी के काल में ही संगीत पर आधा रत पहले फारसी ग्रंथ ‘लज्जत-ए-
सकंदरशाही’ नामक ग्रंथ की भी रचना हु ई।

❖ इसके अलावा सकंदर लोदी ने अपने पता बहलोल लोदी का दल्ली में एक
मकबरा भी बनवाया।

❖ दल्ली में मया भुंआ के नदर्दे शन में मोठ की मिस्जद का भी सकंदर लोदी ने
नमार्यण करवाया।

❖ अंततः 1517 ई. में गले की बीमारी के कारण सकंदर लोदी की मृत्यु हो गई।
इब्रा हम लोदी (1517 - 1526)
❖ सकंदर लोदी की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इब्रा हम लोदी दल्ली का सुल्तान
बनता है जो क लोदी वंश के साथ ही दल्ली सल्तनत काल का भी अं तम शासक
होता है ।

❖ जब इब्रा हम लोदी दल्ली का सुल्तान बनता है तो अफगान सरदार, जो क


दल्ली सल्तनत के अंतगर्यत व भ न प्रांतों का प्रशासन संचा लत कर रहे थे,
स्वयं को स्वतंत्र घो षत करने लगते थे।
❖ अथार्यत ् इब्रा हम लोदी के समय सुल्तान का अपनी प्रशास नक इकाईयों पर
नयंत्रण कमजोर हो जाता है ।

❖ उदाहरण के लए बहार का अफगान सरदार द रया खां लोहानी स्वयं को संप्रभु


घो षत कर दे ता है तथा लोहानी मुहम्मद शाह के नाम से बहार का स्वतंत्र
शासक बन जाता है ।

❖ इसी दौरान राजस्थान (मेवाड़) के राणा सांगा द्वारा भी अपने साम्राज्य वस्तार
के क्रम में दल्ली की ओर अ भयान प्रारं भ कर दया जाता है ।
❖ इस प्रकार इब्रा हम लोदी के काल में आंत रक व्यवस्था का पतन प्रारं भ हो जाता
है ।

❖ इब्रा हम लोदी की सबसे बड़ी राजनी तक भूल यह थी क इसने सुल्तान बनने के


बाद पुराने सभी अफगान सरदारों को प्रशास नक पदों से अपदस्थ कर नए कं तु
अनुभवहीन एवं अ वश्वासपात्र अफगान सरदारों को नयुक्त कर दया।

❖ इससे पुराने सरदार असंतु ट हो गए िजनमें पंजाब के शासक दौलत खां एवं
इब्रा हम लोदी के चाचा आलम खां प्रमुख थे।
❖ इससे दल्ली दरबार में भी सुल्तान के वरूद्ध षड़यंत्र प्रारं भ हो जाता है ।

❖ अंततः इ हीं असंतु ट सरदारों द्वारा बाबर को भारत पर नयंत्रण करने के लए


आमं त्रत कया जाता है और पानीपत के प्रथम युद्ध में 1526 ई. इब्रा हम लोदी
की मृत्यु हो जाती है ।

❖ फलस्वरूप दल्ली सल्तन के साथ ही लोदी वंश का पतन हो जाता है और भारत


में एक नए वंश मुगल की स्थापना होती है ।
❖ दीवान-ए- वजारत (राजस्व वभाग) : दीवान-ए- वजारत का अध्यक्ष
वजीर अथवा प्रधानमंत्री होता था।

❖ वजीर-ए-तौफीद : सी मत अ धकार प्राप्त, सुल्तान के आदे श के बना ही


महत्वपूणर्य वषयों पर नणर्यय लेने में सक्षम

❖ वजीर-ए-तनफीद : सी मत अ धकार, यह राजकीय नयमों को लागू


कराता था तथा कमर्यचा रयों व सवर्यसाधारण पर नयंत्रण रखता था।
❖ मुश रफ-ए-मुमा लक : महालेखाकार, आय-व्यय का लेखा-जोखा रखता
था। नािजर नामक अ धकारी इसका सहायक होता था।

❖ मुस्तौफी-ए-मुमा लक : महालेखा परीक्षक, मुश रफ-ए-मुमा लक द्वारा


तैयार कये गये लेखा जोखा की जांच करता था

❖ खजीन : कोषाध्यक्ष
❖ दीवान-ए-अजर्य : स्थापना बलबन ने की, अहमद अय्याज वभाग का पहला
अध्यक्ष, वभाग के अध्यक्ष को आ रज-ए-मुमा लक कहा जाता था।

❖ वभाग का प्रमुख कायर्य सै नकों की भतर्ती करना, सै नकों तथा घोड़ों का


हु लया रखना एवं सै य नरीक्षण करना था।

❖ दीवान-ए-इंशा/दबीर-ए-खास : प्रमुख कायर्य शाही घोषणाओं, राजकीय


अ भलेख एवं पत्रों का लेख तैयार करना
❖ दीवान-ए- रसातल : धमर्य अथवा कूटनी तक मामलों से संबं धत वभाग;
'सद्र' नामक अ धकारी इस वभाग का अध्यक्ष होता था।

❖ दीवान-ए-बरीद : गुप्तचर वभाग, इसका अध्यक्ष बरीद-ए-मुमा लक


कहलाता था।
दीवान-ए-कजा ( याय वभाग)

❖ काजी-ए-मुमा लक अथवा काजी-उल-कुजात वभाग का अध्यक्ष होता था।

❖ काजी-ए-मुमा लक याय वभाग के अ धका रयों की नयुिक्त एवं


यायपा लका के संचालन कायर्य भी करता था।

❖ सुल्तान के बाद ये याय का सवर्वोच्च अ धकारी होता था।


❖ सद्र-उस-सुदरू : यह धमर्य एवं दान वभाग का प्रमुख होता था। धा मर्यक
मामलों पर यह सुल्तान का प्रमुख सलाहकार भी होता था।

❖ अमीर-ए-हािजब : इस पदा धकारी को बारबक भी कहा जाता था। यह दरबार


की शान-शौकत एवं रस्मों की दे ख-रे ख करता था। यह सुल्तान से मलने
वालों की जाँच पड़ताल करता था।

❖ दवान-ए- रयासत : इस वभाग की स्थापना अलाउद्दीन खलजी ने


बाजार नय त्रण व्यवस्था को कायार्यि वत करने के लए की थी।
❖ दीवान-ए-अमीर कोही : इस वभाग की स्थापना मुहम्मद बन तुगलक ने
कृ ष वकास एवं मालगुजारी व्यवस्था की जाँच हे तु की थी। इसका अध्यक्ष
अमीर-ए-दीवान कोही कहलाता था।

❖ वकील-ए-दर : यह पद शाही महल एवं सुल्तान की व्यिक्तगत सेवाओं की


दे खभाल करता था।
❖ दीवान-ए-ब दगान : यह दास वभाग था। इसकी स्थापना फरोज तुगलक
ने की थी। इस वभाग के अ तगर्यत अजर्य-ए-ब दगान, मजमुआदार व दीवान
आ द अ धकारी होते थे।

❖ दीवान-ए-खैरात : इस वभाग की स्थापना फरोज तुगलक ने की थी। इस


वभाग का कायर्य नधर्यन एवं असहाय लोगों की पु त्रयों के ववाह हे तु वत्तीय
सहायता प्रदान करना था।
दीवान-ए-इमारत : (लोक नमार्यण वभाग)

❖ स्थापना फरोज तुगलक ने की थी।

❖ इस वभाग को 'इमारतखाना' भी कहा जाता था।

❖ इस वभाग का प्रमुख अ धकारी "मीर-ए-इमारत" होता था।

❖ इस वभाग द्वारा अनेक सरायों, नहरों, बांधों, मिस्जदों, भवनों, मकबरों व


मदरसों का नमार्यण कया गया।
❖ दीवान-ए-मुस्तखराज : इस वभाग की स्थापना अलाउद्दीन खलजी ने की
थी। इसका कायर्य अ त रक्त मात्रा में वसूले गये कर का हसाब रखना था।

❖ सरजानदार : यह सुल्तान के अंग रक्षकों का प्रमुख होता था।

❖ अमीर-ए-मज लस : यह सभाओं, दावतों व उत्सवों का प्रब ध करता था।

❖ अमीर-ए-आखूर : अश्वशाला का अध्यक्ष


❖ शाहना-ए-पील : हिस्तशाला का अध्यक्ष

❖ अमीर-ए- शकार : सुल्तान के लए शकार खेलने का प्रब ध करता था।

❖ दीवान-इिस्तहाक : पें शन वभाग

❖ मज लस-ए-खलवत : यह सुल्तान के मत्रों और वश्वासपात्र अ धका रयों


की प रषद थी, िजसमें समस्त महत्वपूणर्य वषयों पर परामशर्य कया जाता था

सल्तनत काल की याय व्यवस्था

❖ याय प्राय: काजी-उल-कुजात अथवा प्रमुख यायाधीश करता था, िजसे


कानून की व्याख्या करने में मुफ्ती सहायता दया करते थे। कानून कुरान के
आदे शों पर आधा रत था।

❖ यद्य प अलाउद्दीन तथा मुहम्मद- बन तुगलक-जैसे शासक याय करने में


नी त का वचार करते थे।
❖ दं ड- वधान अत्य त कठोर था तथा अपरा धयों को अंग-भंग तथा मृत्यु के
दं ड दे ना आम बात थी।

❖ अपराध स्वीकार कराने के लए बल तथा यातना का प्रयोग कया जाता था।

❖ याय-प्रणाली अ धक व्यविस्थत नहीं थी। बना उ चत जाँच कराये


मुकद्दमे चला दये जाते थे तथा अ धकतर अवसरों पर मुकद्दमों की
सुनवाई सं क्षप्त रूप में हो जाती थी।
आ मल

❖ आ मल उत्तर भारत में सल्तनत काल के दौरान राजस्व एकत्र करने के अ धकारी
थे।

❖ अकबर ने भी समय-समय पर कसानों को ऋण दे ने और उच्च गुणवत्ता वाले


बीज प्रोत्सा हत करने के लए आ मलों को नदर्दे शत कया था।
इक्ता प्रणाली

❖ भारत में दल्ली सल्तनत काल के दौरान इक्ता प्रणाली की शुरुआत हु ई।

❖ दल्ली सल्तनत में नरं तर नये-नये राज्यों का उदय हो रहा था, िजसके कारण
दल्ली सल्तनत का वस्तार हो रहा था।

❖ धीरे -धीरे दल्ली सल्तनत इतना बङा हो गया क इस पर अकेले शासन करना
संभव नहीं था।
❖ इक्तेदार अपनी इक्ता में सुल्तान के नाम से शासन करता था, उसका पद
वंशानुगत नहीं था।

❖ इक्तेदार का पद हस्तांतरणीय होता था।

❖ इक्तेदार को सक्के चलाने का अ धकार भी नहीं था।

❖ इक्तेदार के कायर्य : लगान वसूल करना, सै नक व्यवस्था करना, शां त स्थापना


करना
❖ इक्ता का वभाजन शक में होता था।

❖ सम्भवत: 1279 ई. में बलबन के समय पहली बार शक का नमार्यण हु आ।

❖ इस पर शकदार नामक अ धकारी नयुक्त कये जाते थे।

❖ शक का वभाजन परगनों में होता था और इस पर आ मल नामक अ धकारी


नयुक्त कए जाते थे।
मीर बख्शी

❖ मीर बख्शी सै नक वभाग का प्रमुख होता था।

❖ इस पद की शुरूआत मुगल काल में हु ई थी।

❖ इसका कायर्य सै नकों की भतर्ती करना, हु लया एवं दाग, शस्त्र, रसद आ द की
दे खभाल करना, पदो न त एवं वेतन दे ना था।
इ तहासकार बरनी ने दल्ली के सुल्तानों के अधीन भारत के शासन को वास्त वक
रूप से इस्लामी नहीं माना, क्यों क-

(a) अ धकतर जनसंख्या इस्लाम का अनुसरण नहीं करती थी।

(b) इस्ला मक धा मर्यक तत्वों की उपेक्षा की जाती थी।

(c) सुल्तान ने मुिस्लम कानून के साथ-साथ स्वयं के भी नयम बना दए थे।

(d) गैर-मुसलमानों को धा मर्यक स्वतंत्रता दे दी गई थी।


इ तहासकार बरनी ने दल्ली के सुल्तानों के अधीन भारत के शासन को वास्त वक
रूप से इस्लामी नहीं माना, क्यों क-

(a) अ धकतर जनसंख्या इस्लाम का अनुसरण नहीं करती थी।

(b) इस्ला मक धा मर्यक तत्वों की उपेक्षा की जाती थी।

(c) सुल्तान ने मुिस्लम कानून के साथ-साथ स्वयं के भी नयम बना दए थे।

(d) गैर-मुसलमानों को धा मर्यक स्वतंत्रता दे दी गई थी।


❖ सैद्धां तक रूप से सल्तनतकाल एक इस्लामी राज्य था, क तु व्यवहा रक रूप
में यहाँ श रयत के कानून का पालन नहीं होता था।

❖ इस लए बरनी ने दल्ली सल्तनत को इस्लामी राज्य न मानकर व्यवहा रक


और लौ कक (जहाँदारी) माना है ।
बरनी

❖ िजयाउद्दीन बरनी मुहम्मद तुगलक एवं फरोज तुगलक का समकालीन था।

❖ बरनी ने ‘तारीख-ए- फरोजशाही’ तथा ‘फतवा-ए-जहांदारी’ की रचना की थी।

❖ बरनी ने सल्तनतकाल को वास्तव में इस्ला मक शासन नहीं माना, क्यों क


सुल्तान ने मुिस्लम कानून के साथ स्वयं के नयम-कानूनों को भी लागू करवा
दया था।
Q. मध्यकालीन भारतीय राजाओं के संदभर्य में नम्न ल खत में से कौन-सा कथन
सही है ?

(a) अलाउद्दीन खलजी ने पहले एक अलग आ रज वभाग स्था पत कया।

(b) बलबन ने अपनी सेना के घोड़ों को दागने की पद्ध त शुरू की।

(c) मोहम्मद बन तुगलक के बाद दल्ली की गद्दी पर उसके चाचा बैठे।

(d) फरोज तुगलक ने गुलामों का एक अलग वभाग स्था पत कया।


Q. मध्यकालीन भारतीय राजाओं के संदभर्य में नम्न ल खत में से कौन-सा कथन
सही है ?

(a) अलाउद्दीन खलजी ने पहले एक अलग आ रज वभाग स्था पत कया।

(b) बलबन ने अपनी सेना के घोड़ों को दागने की पद्ध त शुरू की।

(c) मोहम्मद बन तुगलक के बाद दल्ली की गद्दी पर उसके चाचा बैठे।

(d) फरोज तुगलक ने गुलामों का एक अलग वभाग स्था पत कया।


❖ फरोजशाह तुगलक ने गुलामों के लए एक अलग वभाग ‘दीवान-ए-बंदगान’
की स्थापना की।

❖ मोहम्मद बन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका चाचा नहीं बिल्क उसका चचेरा
भाई फरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठा।

❖ अलाउद्दीन खलजी ने घोड़ों को दागने, सै नकों की चेहरे की पहचान का रकाडर्य


रखने के साथ ही सै नकों को नकद वेतन दे ने की पद्ध त की शुरूआत की थी।
दल्ली की राजगद्दी पर अफगान शासकों के शासन का नम्न ल खत में से कौन-सा
एक सही कालनुक्रम है ?

(a) सकंदर शाह-इब्रा हम लोदी-बहलोल लोदी

(b) सकंदर शाह-बहलोल लोदी-इब्रा हम लोदी

(c) बहलोल लोदी- सकंदर शाह-इब्रा हम लोदी

(d) बहलोल लोदी-इब्रा हम लोदी- सकंदर शाह


दल्ली की राजगद्दी पर अफगान शासकों के शासन का नम्न ल खत में से कौन-सा
एक सही कालनुक्रम है ?

(a) सकंदर शाह-इब्रा हम लोदी-बहलोल लोदी

(b) सकंदर शाह-बहलोल लोदी-इब्रा हम लोदी

(c) बहलोल लोदी- सकंदर शाह-इब्रा हम लोदी

(d) बहलोल लोदी-इब्रा हम लोदी- सकंदर शाह


कथन (A) : मुहम्मद बन तुगलक ने एक नया स्वणर्य सक्का जारी कया जो इब्नतूता द्वारा
दीनार कहलाया गया।

कारण (R) : मुहम्मद बन तुगलक पिश्चम ए शयाई तथा उत्तरी अफ्रीकी दे शों के साथ व्यापार
अ भवृद् ध के लए स्वणर्य सक्कों की टोकन मुद्रा जारी करना चाहता था।

कूट

(a) A और R दोनों सही हैं R, A का सही स्प टीकरण है ।

(b) A और R दोनों सही हैं कं तु R, A का सही स्प टीकरण नहीं है ।

(c) A सही है परं तु R गलत है ।

(d) A गलत है परं तु R सही है ।


कथन (A) : मुहम्मद बन तुगलक ने एक नया स्वणर्य सक्का जारी कया जो इब्नतूता द्वारा
दीनार कहलाया गया।

कारण (R) : मुहम्मद बन तुगलक पिश्चम ए शयाई तथा उत्तरी अफ्रीकी दे शों के साथ व्यापार
अ भवृद् ध के लए स्वणर्य सक्कों की टोकन मुद्रा जारी करना चाहता था।

कूट

(a) A और R दोनों सही हैं R, A का सही स्प टीकरण है ।

(b) A और R दोनों सही हैं कं तु R, A का सही स्प टीकरण नहीं है ।

(c) A सही है परं तु R गलत है ।

(d) A गलत है परं तु R सही है ।


❖ मुहम्मद बन तुगलक ने अपने काल में सोने का सक्का भी प्रच लत करवाया
था िजसे इब्नतूता नामक अफ्रीकी यात्री ने अपनी लेख में ‘दीनार’ कहा है ।

❖ मुहम्मद बन तुगलक अपनी आ थर्यक िस्थ त मजबूत करने के लए कई दे शों के


साथ व्यापार करना चाहता था, कं तु भारत में उसने जो सोने का सक्का चलाया
था, उसका इस व्यापा रक उद्दे श्य के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था।

❖ हालां क मुहम्मद बन तुगलक वदे शों के साथ व्यापार स्था पत करने के अपने
लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया।
Q. बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लए आमं त्रत करने वालों में से एक,
आलम खान-

(a) इब्रा हम लोदी का संबंधी था तथा वह दल्ली के राज संहासन का दावेदार था।

(b) इब्रा हम लोदी का संबंधी था, उसे दे श से न का सत कर दया था।

(c) दलावर खान का पता था, िजसे इब्रा हम लोदी के हाथों क्रूर व्यवहार मला।

(d) पंजाब प्रांत का एक उच्चा धकारी था, जो अपनी जा त के प्र त इब्रा हम लोदी के
व्यवस्था से अत्य धक असंतु ट था।
Q. बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लए आमं त्रत करने वालों में से एक,
आलम खान-

(a) इब्रा हम लोदी का संबंधी था तथा वह दल्ली के राज संहासन का दावेदार था।

(b) इब्रा हम लोदी का संबंधी था, उसे दे श से न का सत कर दया था।

(c) दलावर खान का पता था, िजसे इब्रा हम लोदी के हाथों क्रूर व्यवहार मला।

(d) पंजाब प्रांत का एक उच्चा धकारी था, जो अपनी जा त के प्र त इब्रा हम लोदी के
व्यवस्था से अत्य धक असंतु ट था।
❖ आलम ख़ाँ सुल्तान बहलोल लोदी (1451-89) का बेटा और दल्ली के अि तम
सुल्तान इब्रा हम लोदी (1517-26) का चाचा था।

❖ आलम ख़ाँ खुद को दल्ली का असली हक़दार समझता था।

❖ जब वह अपने बल पर इब्राहीम लोदी को गद्दी से नहीं हटा सका तो उसने लाहौर


के हा कम दौलत ख़ाँ लोदी से मलकर बाबर को हमला करने के लए नमंत्रण
दया।

❖ इसके फलस्वरूप बाबर ने भारत पर हमला कया।


Q. चंगेज खां के अधीन मंगोलो ने भारत पर आक्रमण कया था-

(a) बलबन के शासनकाल में

(b) फरोज तुगलक के शासनकाल में

(c) इल्तुत मश के शासनकाल में

(d) मुहम्मद बन तुगलक के शासन काल में


Q. चंगेज खां के अधीन मंगोलो ने भारत पर आक्रमण कया था-

(a) बलबन के शासनकाल में

(b) फरोज तुगलक के शासनकाल में

(c) इल्तुत मश के शासनकाल में

(d) मुहम्मद बन तुगलक के शासन काल में


❖ चंगेज खान के नेतत्ृ व में मंगोलों ने भारत पर इल्तुत मश (1211-36) के शासन
काल में आक्रमण कया था।

❖ दरअसल, चंगेज खां ख्वा रज्म शाह का पीछा कर रहा था, िजसको चंगेज खां
नजी कारणों से दं ड दे ना चाहता था।

❖ ख्वा रज्म भारत की तरफ भाग आया था और उसका पीछा करते हु ए चंगेज खां
ने भारत पर आक्रमण कया।

❖ हालां क चंगेज खां भारत के ज्यादा अंदर तक नहीं आया, क्यों क तत्कालीन
शासक इल्तुत मश ने ख्वा रज्म शाह को शरण दे ने से मना कर दया था।
भारत पर मंगोलों के आक्रमण

❖ दल्ली सल्तनत काल के दौरान कई बार मंगोलों ने भारत पर आक्रमण कए।

❖ इन आक्रमणों का मुख्य उद्दे श्य भारत में लूटपाट करना होता था।

❖ पहला मंगोल आक्रमण भारत पर इल्तुत मश के काल में 1221 में चंगेज खां ने
कया था, कं तु यह लूटपाट के उद्दे श्य से नहीं कया गया था।
❖ इसके बाद 1279 एवं 1285 को बलबन के काल में मंगोलो ने भारत पर लूटमार
के उद्दे श्य से दो बड़े सफल आक्रमण।

❖ जलालुद्दीन खलजी पहला भारतीय शासक था, िजसने मंगोलों को परािजत


कया।

❖ अलाउद्दीन खलजी के शासन काल में मंगोलों ने भारत पर सबसे अ धक


आक्रमण कए कं तु कसी भी आक्रमण में मंगोल सफल नहीं हु ए।

❖ इस दृि टकोण से अलाउद्दीन खलजी का शासन काल सबसे अ धक सफल रहा



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