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परं तु इस भार िे िख
ु िो नारी ही झेलती है ,
स्वणव-मख
ु िी आभा महीनो में शमट जाती है ,
सन्सनृ त िे ती प्रेम िा िल
ु भ
व परु स्िार , िरू हो जाता नारी से घरबार ,
मि में झम
ू रही िनु नया िो, वे शमट्टी में शमला सिते हैं
जय नारी, जय िग
ु े, जय िजक्त-स्वरुप ,तम्
ु हारी िोभा में यह गान ,
:प्रणय