विक्रम बत्रा - विकिपीडिया

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कै प्टन

विक्रम बत्रा

परमवीर चक्र

उपनाम लव और शेर शाह

जन्म ०९ सितम्बर १९७४

पालमपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत

देहांत 7 जुलाई 1999 (उम्र 24)

कारगिल, जम्मू और कश्मीर, भारत

निष्ठा भारत

सेवा/शाखा भारतीय थलसेना

सेवा वर्ष 1997–1999

उपाधि
कै प्टन

सेवा संख्यांक IC-57556

दस्ता 13 जम्मू और कश्मीर रायफल्स

युद्ध/झड़पें कारगिल युद्ध (ऑपेरशन विजय)

सम्मान परम वीर चक्र

प्रारंभिक जीवन
पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का
जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव और कु श रखा। लव
यानी विक्रम और कु श यानी विशाल। पहले डीएवी स्कू ल, फिर सेंट्रल स्कू ल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना
छावनी में स्कू ल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कू ल के समय
से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कू ल में विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के
खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृ तिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था। जमा दो तक की पढ़ाई करने
के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान
वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कै डेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। उन्होंने सेना में जाने का पूरा
मन बना लिया और सीडीएस (संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा) की भी तैयारी शुरू कर दी। हालांकि विक्रम को इस दौरान
हांगकांग में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी जिसे इनके द्वारा ठुकरा दिया गया।

सैन्य जीवन

विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने
भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को
जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999
में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प
व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कै प्टन बना दिया गया।

5140 चोटी पर जीत

इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी
कै प्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। कै प्टन बत्रा अपनी कं पनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बडे़
और बिना शत्रु को भनक लगे हुए उसकी मारक दूरी के भीतर तक पहुंच गए। कै प्टेन बत्रा ने अपने दस्ते को पुर्नगठित किया
और उन्हें दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण के लिए प्रेरित किया। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें
बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने के गुतथ्मगुत्था लड़ाई मे उनमें से चार को मार डाला। बेहद
दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस
चोटी को अपने कब्ज़े में ले लिया।कै प्टन विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल
मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ
ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी
टीम का फोटो मीडिया में आ गयी।

4875 वाली संकरी चोटी पर जीत

इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कै प्टन विक्रम और
उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफ़ाए का कार्य सौंपा
गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी।
कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कै प्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर आक्रमण करने
का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु
सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर ज़ख्म लग जाने के बावजूद वे रेंगते हुए
शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़े के जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो गया। सबसे आगे रहकर उन्होंने अपने साथी
जवानों को एकत्र करके आक्रमण के लिए प्रेरित किया और दुश्मन की भारी गोलीबारी के सम्मुख एक लगभग असंभव
सैन्य कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों के साथ, जिनमे लेफ्टिनेंट अनुज नैयर
भी शामिल थे, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। किंतु ज़ख्मों के कारण यह अफ़सर वीरगति को प्राप्त हुए।

उनके इस असाधारण नेतृत्व से प्रेरित उनके साथी जवान प्रतिशोध लेने के लिए शत्रु पर टूट पड़े और शत्रु का सफ़ाया करते
हुए प्वॉइंट 4875 पर कब्ज़ा कर लिया।

कै प्टन बत्रा के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाई.के . जोशी ने विक्रम
को शेर शाह उपनाम से नवाजा था।

या तो बर्फीली चोटी पर तिरंगा लहराकर आऊं गा नहीं तो उसी तिरंगे में लिपटकर आऊं गा पर आऊं गा जरुर - परमवीर चक्र
विजेता कै प्टन विक्रम बत्रा ( 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स )

सम्मान

इस प्रकार कै प्टन विक्रम बत्रा ने शत्रु के सम्मुख अत्यन्त उतकृ ष्ट व्यक्तिगत वीरता तथा उच्चतम कोटि के नेतृत्व का प्रदर्शन
करते हुए भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं के अनुरूप अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।

इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कै प्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत
परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो 7 जुलाई 1999 से प्रभावी हुआ।

लोकप्रिय संस्कृ ति में

2003 की हिंदी फिल्म एलओसी: कारगिल में, पूरे कारगिल संघर्ष पर आधारित अभिषेक बच्चन ने कै प्टन बत्रा की भूमिका
निभाई।[2]

2021 की फिल्म शेरशाह में, सिद्धार्थ मल्होत्रा ने विष्णुवर्धन द्वारा निर्देशित और धर्मा प्रोडक्शंस और पेन इंडिया लिमिटेड
द्वारा निर्मित एक बायोपिक में बत्रा की भूमिका निभाई।[3][4]

सन्दर्भ
"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=विक्रम_बत्रा&oldid=5576333" से प्राप्त


अंतिम बार 4 महीने पहले 2405:201:600A:B121:ED83:BC10:3659:24D6 द्वारा संपादित किया गया

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