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"हेलो, क्या मेरी बात बुधिया से हो रही है....... ?

" फोन ररसीव करते ही धकसी औरत की वजनदार आवाज बुधिया


के कानोों मे पडी|

ज...जी...आप कौन बोलत हौ? बुधिया लरज़ती आवाज मे बोली|

"मै इों दु चौिरी बोल रही हों इस शहर की जानी मानी वकील"

'आपका केस लडकर आपको न्याय धदलाना चाहती हों "उिर से धफर वही आवाज सुनाई दी|

'प..पर आपकी फीस' बुधिया धचोंधतत स्वर मे पूछने लगी

दे खिए, "आप जैसे परे शान लोगोों को न्याय धदलाने के धलए ही मैने ये पेशा चुना है, मै शाम को आपसे धमलती हों"
कहकर उिर से फोन काट धदया गया|

'अन्धा क्या चाहे दो आों िे' बुधिया बेसब्री से शाम का इों तजार करने लगी आज पोंद्रह धदन हो गये थे उसे अस्पताल
और थाने का चक्कर लगाते हुए, इन पोंद्रह धदनोों में उसकी हालत पोंद्रह वर्षों से बीमार व्यखि जैसी हो गयी थी, वह
धदनोों-धदन धबल्कुल कमजोर पडती जा रही थी, लोगोों के बहुत कहने पर भोजन का दो-तीन धनवाला बमुखिल मुोंह
मे डाल लेती थी, जब-तब आों िोों से अश्रुिारा प्रस्फुधटत होती रहती थी|"

शाम का इों तजार करते करते पोंद्रह धदन पहले का एक-एक मोंजर उसकी आँ िोों के सामने धफर से घूमने लगा|

बुधिया का मन बहुत घबरा रहा था घडी मे 3:30 बज रहे थे, और उसका बेटा राजू अभी तक स्कूल से नही लौटा था|
गाँव के प्राइमरी मे पढाने के बाद जैसे-तैसे कुछ पैसोों का इों तजाम करके उसने अपने पढाई मे होधशयार बेटे का
दाखिला गाँव के बाहर वाले स्कूल मे करवा धदया था| उसका पधत रमेश मेहनत-मजदू री करके दो जून की रोटी पानी
का जुगाड कर लेता था| यूों तो पढने मे उसकी बेटी भी काफी होधशयार थी, पर लोगोों के मना करने पर उसने बेटी
को आगे पढाना मुनाधसब नही समझा| सोच रही थी इस साल कुछ पैसे जोडकर बेटे को एक साइधकल िरीद दे गी
ताधक राजू को आने जाने मे जयादा तकलीफ न हो|

जैसे-तैसे आिे घोंटे और बीते तो बुधिया ने रमाशोंकर के िेत की तरफ कदम बढा धदए, जोंहा उसका पधत रमेश
मजदू री करने गया था वो रमाशोंकर के िेत से पहले पडने वाले गाँव के प्रिान जी के िेत की मेढ पर पोंहुची थी,धक
धकसी के कराहने की आवाज सुनकर उसके कदम धििक गए, बुधिया को आवाज जानी-पहचानी लगी वो अनजाने
भय से आवाज की तरफ बढ गयी, सामने का दृश्य दे िकर उसके पैरोों तले ज़मीन खिसक गयी, सामने उसका
14वर्षीय बेटा राजू िून से लथपथ मूधछि त अवस्था मे धनवस्त्र ज़मीन पर पडा था शरीर मे जगह-जगह नोचने िसोटने
के धनशान थे|
बुधिया को कुछ सूझ नही रहा था उसका कलेजा मुोंह को आ रहा था वो पागलोों जैसी दौडकर साडी के पल्लू से राजू
के शरीर से बहता रि साफ करने लगी वो बेतहाशा रोते हुए राजू से पूछती जा रही रही थी बोल बेटवा ते री ई हालत
धकसने करी"|

माई ई प प्रिान ज जी के लडका और उके दु ई साथी हमरे साथ गोंदा काम धकए औउर हमरा गदि ना दबाईके धहयाों से
भाग गए कहते कहते राजू बेहोश हो गया|

बुधिया ने राजू के िीक होने के धलए हरसोंभव मनौती माोंग ली,थोडेे़ गहने थे और राजू की साइधकल के धलए जो पैसा
इकट्ठा धकया था उसे बेचकर राजू के इलाज मे लगा धदया, पर धनयधत को कुछ और ही मोंजूर था, चार धदनोों तक
धजोंदगी मौत से जूझने के बाद राजू धजोंदगी की जोंग हार गया|

बुधिया रमेश का मानो सब कुछ धछन गया|

उनकी आों िोों के आगे हर समय राजू का चेहरा घूमता रहता| राजू को याद करके धदन-रात आों सू बहाते थे|

"थानेदार साहब बहुत बेरहमी से हमरे बेटे का बलात्कार हुआ है हमरे पास कुछ नाही बचा हमरी ररपोरट धलि लेव
साहब दोनो पधत-पत्नी थाने मे हाथ जोडे िडे थे|

क्या! बेटे का बलात्कार ...इों स्पेक्टर उन्हें ऊपर से नीचे दे िते हुए फीकी होंसी होंसा, अगल-बगल िडे धसपाही भी
मुस्कराने लगे|

ऐसा करो तुम कल आ जाना ररपोटि धलिवाने आज मेरे मुरगे ने अोंडे धदए मुझे आमलेट बनाके िाना है कहकर
इों स्पेक्टर ने िहाके लगाए|

"हम सच बोलत हैं साहेब" दोनो धफर से धगडगडाए

"चलो जाओ योंहा से मेरा और अपना वि बबािद मत करो" इों स्पेक्टर ने डाोंटकर उन्हे भगा धदया|

दो-तीन धदन यही धसलधसला चलता रहा, थाने से दोनोों को भगा धदया जाता|

पाोंचवे धदन दोनो धफर थाने गए तो पता चला इों स्पेक्टर को पहले ही केस की पूरी जानकारी हो चुकी थी| "दे ि
बुधिया,तेरा बेटा तो अब लौटकर आएगा नही उनमे से दो लोग मोंत्री जी के ररश्तेदार हैं वो तुम्हें बीस लाि रुपये दे
रहे हैं मेरी मान तो समझौता कर ले तेरी आगे की धजोंदगी आराम से गुजर जाएगी| इस गाँव में जोंगली पशु अक्सर आ
जाते हैं हम तेरे बेटे पर जोंगली पशु का हमला धदिाकर मामला रफादफा करवा दें गे और डाक्टर से मनचाही ररपोटि
भी बनवा दें गे इों स्पेक्टर ने समझाया|"

"नही....हुज़ूर रहम कररए" दोनो धबलिते रहे पर इों स्पेक्टर ने धफर से डाोंट कर भगा धदया|

तभी इों दु जी के आने से बुधिया की तोंद्रा टू टी|

बुधिया इों दु जी के घुटने पकडकर रोते हए कहने लगी "हमरे बेटवा का कोई कसूर नाही था वकील साधहबा|आस
पडोस के लोग कहत रहे हमसे धक धबधटया का ज्यादा घर से बाहर न भेजना बुधिया जमाना िराब है कोई ऊोंच नीच
होई जाई, तो हम अपनी धबधटया का मन मारकर उकी पढाई बोंद करवाय धदए साहैब मगर हमरे लडके के साथ ई
सब काहे हुई गवा हम कोंहा जाए साहैब हमरी कोई सुनवाई नही हो री लोग कहत है लडके का बलात्कार कैसे होई
सकत है| सब होंसत हैं हम पर "

"दे िो बुधिया पहले रोना बोंद करो" इों दु जी उसके दोनो हाथ थामकर बोली| आजकल लोगोों की मानधसकता
पाशधवक प्रवृधि की हो गयी है, बखल्क पशु से भी बदतर..िुद को सभ्य समाधजक प्राणी कहने वाले मनुष्य पर जब
कामुकता सवार होती है तो लडकी-लडका ररश्ते नाते सब भूल जाता है योंहा तक धक पशुओों का भी बलात्कार कर
डालता है शायद तुम्हे पता नही है इस दे श मे हर दस बलात्कारोों मे दो बलात्कार लडकोों के होते हैं, इसके धलए पाक्सो
जैसे कानून भी हैं...इसधलए अब मुझे शुरु से पूरी घटना बताओ इों दु जी ने बुधिया को ढाोंढस बोंिाया तो बुधिया ने पहले
हैरत से उन्हे दे िा धफर सोंयत होकर पूरा घटनाक्रम सुना धदया|

हमरी कोंही सुनवाई न होत दे ि हमका गाँव के पूवि प्रिान जी ने सलाह दीए थे धक शहर जाइके धविानसभा के आगे
आत्मदाह की कोधशश करो तुम्हरी सुनवाई जरुर होगी हम गये रहे हजूर, तब से कुछ लोग हमरे घर आने लगे हैं|
लोग कहते हैं उ धवपक्ष के लोग हैं उ लोग हमका पैसा दे ना चाहत हैं पर हमका न्याय चाही साहैब" रोते हए बुधिया ने
अपनी बात समाप्त की| हाों,वो वीधडयो दे िकर ही मुझे तुम्हारे बारे मे पता चला था| िीक है, मै कल सुबह धमलती हों
कहकर इों दु जी चली गई|

रात भर केस स्टडी के बाद सुबह इों दु जी ने दोनो पधत-पत्नी को कुछ समझा कर धफर से थाने भे जा|

थाने पोंहुच कर बुधिया धफर से इों स्पेक्टर के सामने न्याय के धलए धगडधगडाने लगी|

"दे ि बुधिया तू धफर अपना और मेरा वि बबािद करने आ गयी, तुझे पहले ही कह चुका हों समझौता कर ले|पैसा ले
और मौज कर,बाधक कुछ नहीों हो सकता उनमे दो लोग मोंत्री जी की पहचान वाले हैं मुझे अपनी नौकरी नही गोंवानी
है| अब जा योंहा से इों स्पेक्टर डाोंटते हुए बोला|

"पर साहब जब आों ि लगत है तो हमार बेटवा हमरे सपने मे आवत है जब आों ि िुलत है तो, घर मे जगह जगह रिा
उका समान दे िकर हम बेचैन हो जात है साहेब..सोवत जागत हमे कोंही चैन नाही है साहब" बुधिया धफर से
धगडधगडाने लगी|

बुधिया की बात सुनकर इों स्पेक्टर साहब को गुस्सा आ गया उन्होोंने उसकी गदि न पकड ली, धफर..पीछे िकेलकर
गाली दे ते हुए गरजे तो कोंही जाकर अपनी आों ि फोड ले. ..और अब दफा हो जा योंहा से.... दोनो पधत-पत्नी रोते हुए
बाहर आए तो बाहर पहले से िडी इों दु जी ने बडी साविानी से रमेश की जेब से मोबाइल धनकाल धलया धजसमे
वीधडयो ररकाधडिं ग लगाकर उन्होने दोनो को अोंदर भेजा था|

धफर वीधडयो इों स्पेक्टर साहब के व्हाट् सएप पर भेज धदया| शाम को जब इों स्पेक्टर साहब ने काम से फाररग होकर
मोबाइल िोला तो बुधिया को िक्का दे ने से लेकर गाली गलौज तक का पूरा वीधडयो उनके मोबाइल पर आ चुका
था| सैकडोों चोरोों को पलक झपकते ही पकडने वाले इों स्पेक्टर साहब के हाथ काोंपने लगे...उन्होोंने काोंपते हाथो से
तुरोंत वीधडयो भेजने वाले को फोन लगा धदया...उिर से इों दु जी अपने पधत को समझा चुकी थी क्या कहना है अगली
आवाज इों दु जी के पधत की थी, "मुझे पता था आपका फोन जरुर आएगा मुझे सुबह ये वीधडयो बुधिया नाम की औरत
ने भेजा है वैसे बहुत धहम्मती औरत है| अब थोडी धहम्मत आप भी आपने ओहदे की धदिाइए..और बुधिया के बेटे के
धलए एफ.आई.आर धलिकर एक अच्छी सी चाजिशीट बनाइए, बेईमान बनकर नौकरी गोंवाने से अच्छा ईमानदार
बनकर गोंवाइए.,आपकी आने वाली पीधढयोों को शमि नही आएगी आप पर... वैसे बुधिया के पास अब िोने के धलए
कुछ नहीों बचा है...अगर वो ये वीधडयो वायरल कर दे गी तो पूरा दे श थूकेगा आप पर....|" "इों स्पेक्टर साहब लाचार
हो चुके थे उन्होोंने तुरोंत धवधभन्न अपरािोों मे गम्भीर िाराएों लगाकर फाईल तैयार कर ली|
लगभग दो महीने बाद फास्ट टर ै क अदालत मे फैसले के धलए सभी इकट्ठा थे|

आरोधपयोों की डी.एन.ए और नाको टे स्ट की ररपोटि ने उनकी सभी दलीलोों को िाररज कर धदया अोंततः तीनो ने अपना
जुमि कबूल धकया धक, उस धदन अत्यधिक शराब पी लेने के कारण उन पर वासना का भूत सवार था...तभी सामने
स्कूल से लौटता राजू धदिा तो उन्होोंने उसे अपनी हवस का धशकार बना डाला और उसके गुप्ताोंगोों को काफी चोट
पोंहुचाई,जगह जगह से उसकी त्वचा को नोच धलया था.....

जज साहब तीनोों को फाोंसी की सजा सुना कर बुधिया की ओर मुिाधतब हुए...."बुधिया आपको अदालत मे कुछ
कहना है?"

बुधिया रोते हुए उि िडी हुई धफर आों सू पोछकर सहजता से बोलने लगी...."स...साहब आप लोगन का बहुत बहुत
िनवाद ई केस का लडै िाधतर बहुत लोग हमरा साथ धदए..कुछ अपने मतलब से तो कुछ धबना मतलब से...औउर
इों दु जी के तो हम लोग करजदार हुई गये...उ ना होती तो कभी हमरे बेटवा का न्याय नाही धमल पावत...पर एक बात
बताव साहेब कब तक अपने दे श मे एसन चलत रहेगा...आज दे श मा जवान लडकन की मनोदशा इिी कैसन धबगड
गयी साहेब धक उन्है लडका-लडकी, ररश्ते-नाते, पशु-पक्षी बूढा-जवान मा भी फरक नजर नाही आवत है, अपनी
वासना धमटाए के धलए कोई भी सामने पड जाये पकड के हवस का धशकार बनाय लेवत हैं....अगर शराब इिा बुरी
चीज है साहेब, तो सरकार उको बन्द काहे नाही करत है...अपने दे श मा कानून व्यवस्था कब सही होएगी
साहेब....कब तक हम जैसन लोग अपने बच्चन की लाश की एक ररपोरट के धलए दर दर की िोकर िात
रहेंगे....अगर बलात्कारी रसूिदार होत है तो काहे पूरा शासन-प्रशासन उका बचाव करने मा जुट जात है
साहेब.....लोग कहत हैं अपने दे श मा लोकतोंत्र है...लोकतोंत्र का असली मतलब का है साहेब....बुधिया अपने िुन मे
िोई बकती जा रही थी.... |

और जज साहब शून्य मे ताके जा रहे थे शायद उनके पास बुधिया के प्रश्ोों का कोई उिर नही था..... |

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