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Hindi 10
Hindi 10
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सामग्री
कक्षा 10
ह द
िं ी‘अ’(002)
केंद्रीय ववद्यालय सिंगठन एर्ाषकुलम सिंभाग
शैक्षक्षक वर्ष 2022-23
4
18 सांगतकार श्रीउच्न्द्नक्कृष्णन केन्द्रीय विद्यालय बिश्शरू
20 साना साना हाथ जोड़ड़ श्रीमती बीना फ्ाांससस केन्द्रीय विद्यालय नां2 कोच्चि
24 स्िित्त
ृ ,ईमेल लेखन श्री हररदासन के वि ओट्टापालम
31 प्रततदशा प्रश्नपि सी बी एस ई
32 सांकलन एिां सांपादन ठहन्द्दी विभाग के वि पय्यन्द्नूर
5
क्रम सांख्या प्रकरण पष्ृ ठ सांख्या
2) • गद्य खांड
63-185
• पद्य खांड
• कृततका भाग 2
3) रिनात्मक लेखन
• अनुचछे द लेखन
• पिलेखन
• स्िित्त
ृ और ईमेल लेखन 186-223
• सन्द्दे श लेखन विज्ञापन
लेखन
4) • आदशा प्रश्नपि1
• आदशा प्रश्नपि2
• आदशा प्रश्नपि3 224-293
• आदशा प्रश्नपि4
• सी बी एस ई का
प्रततदशा प्रश्नपि
6
7
8
9
अपहठि गद्यािंश,
पद्यािंश एविं व्याकरर्
10
अपहठि गद्यािंश को सरलिा पूवक
ष ल करने की ववधि को साविानी पूवक
ष पढें ।
अपहठि गद्यािंश
परीक्षा में एक गद्याांश दे कर उससे िस्तुतनष्ठ प्रकार के कुल 5 अांकों के सलए प्रश्न पूछे जाते
है। विद्याधथायों को गद्याांश के आधार पर उत्तर दे ना होता है।
(1)
11
गया है । िीन भी अपने पररश्रम के बल पर आगे बढा है । जमानी ने भी युद्ध की विभीवषका
झेली पर पररश्रम के बल पर ही सांभल गया। पररश्रम का महत्ि िे जानते हैं जो स्ियां अपने
बल पर आगे बढे हैं । सांसार के इततहास में अनेक िमकते ससतारे केिल पररश्रम के ही प्रमाण
हैं । हमारे पूिा राष्रपतत श्री अब्दल
ु कलाम पररश्रम और मनोबल से ही दे श के सिोचि पद पर
आसीन हुए उनका कहना था- “भाग्य के भरोसे बैठने िाले को उतना ही समलता है च्जतना
मेहनत करने िाले छोड़ दे ते हैं”। हमारे बड़े-बड़े धन कुबेर व्यापारी टाटा, बबरला, अांबानी यह सब
पररश्रम के ही उदाहरण है तनरां तर पररश्रम और दृढ सांकल्ट्प हमारे लक्ष्य को हमारे करीब लाता
है । गरीब पररश्रम करके अमीर हो जाता है और अमीर सशधथल बनकर असफल हो जाता है।
भारतीय कृषक के पररश्रम का ही फल है कक दे श में हररत क्राांतत हुई। अमेररका के सड़े गेहूँ से
पेट भरने िाला भारत आज मजबूरी नहीां, बच्ल्ट्क मजबूती से खड़ा है तो इसके पीछे इसके पीछे
कठोर पररश्रम और धैया ही है । हमारे कारखाने ठदन रात उत्पादन कर रहे हैं, विकासशील दे शों
में वपछड़े माने जाने िाले हम भारतिासी आज विकससत दे शों से प्रततस्पधाा कर रहे हैं । अगर
हम कहीां वपछड़े हैं तो उसका कारण पररश्रम का अभाि ही होगा। पररश्रम के बबना जीिन में
कुछ नहीां समलता | ककसी ने सही कहा है - सकल पदाथा है जग माहीां, कमाहीन नर पाित नाहीां|
यठद विद्याथी जीिन से ही पररश्रम की आदत पड़ जाएगी तो हम जीिन में कभी असफल नहीां
हो सकते । विद्याथी जीिन तो पररश्रम की पहली पाठशाला है तो न ससफा हमारी सशक्षा बच्ल्ट्क
हमारा भविष्य भी सुरक्षक्षत और मजबूत हो जाता है ।
(I)उपयक्
ुा त गद्याांश का उधित शीषाक होगा –
(क) भाग्य बलिान होता है (ख) आलसी जीिन
(ग) पररश्रम का महत्ि ( घ) इनमेंसे कोई नहीां
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(ग) ससफा पैसा (घ) राजनीतत
(V) आज हमारा दे श बड़े-बड़े दे शों के सामने ककस रूप में खड़ा है ?
(क) यािक के रूप में (ख) प्रततस्पधी के रूप में
(ग) शिु के रूप में (घ) इनमें से कोई नहीां
(2)
तनदा की ऐसी ही मठहमा है। दो-िार तनांदको को एक जगह बैठकर तनांदा में तनमग्न दे खखए
और तल
ु ना कीच्जए, दो िार ईश्िर भक्तों से जो रामधन
ु गा रहे हैं। तनांदको की-सी एकाग्रता,
परस्पर आत्मीयता, तनमग्नता भक्तों में दरु लभ है। इससलए सांतों ने तनांदको को आांगन कुटी
छिाय पास रखने की सलाह दी है कुछ समशनरी' तनांदक मैने दे खे हैं। उनका ककसी से बैर नहीां,
धूप नहीां । िे ककसी का बुरा नहीां सोिते पर िीबीस घांटे िे तनांदा-कमा में िात पविि भाि से
लगे रहते हैं कक ये प्रसांग आने पर अपने बाप की पगड़ी भी उसी आनांद से उछालते हैं , च्जस
आनांद से अन्द्य लोग दश्ु मन की। तनांदा इनके सलए टॉतनक होती है । इयाां-ट्िेष से प्रेररत तनांदा
भी होती है। िह ईया - िेष से िौबीसों घांटे जलता है और तनदा का जल तछड़ककर कुछ शाांतत
अनभ
ु ि करता है। ऐसा तनदक बड़ा दयनीय होता है । अपनी अक्षमता से पीड़ड़त िह बेिारा दस
ू रे
की सक्षमता के िाँद को दे खकर सारी रात श्िान जैसा भोकता है । ईष्य्या दि
ू ेष से प्रेररत तनांदा
करने िाले को कोई दां ड दे ने की जरूरत नहीां है। िह तनांदक बेिारा स्ियां दां ड़डत होता है। जाप
िैन से सोझा और िह जलन के कारण सो नहीां पाता। उसे और क्या दां ड िाठहए तनरां तर अचछे
काम करते जाने से उसका दां ड भी सख्त होता जाता है ; जैस-े एक कवि ने एक अचछी कविता
सलखी, ईष्यांग्रस्त तनदक की कष्ट होगा अब अगर एक और अचछी कविता सलख दी, तो " उसका
कष्ट दग
ु ुना हो जाएगा।
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(क) तनांदक (ख) पड़ोसी
(ग) अपने ररश्तेदार (घ) समशनरी तनांदक
(3)
"साठहत्य का आधार जीिन है। इसी आधार पर साठहत्य की दीिार खड़ी होती है। उसकी
अटाररयाां, मीनार और गब
ुां द बनते हैं। लेककन बुतनयाद समट्टी के नीिे दिी पड़ी है । जीिन
परमात्मा की सच्ृ ष्ट है, इससलए सब
ु ोध है , सग
ु म है और मयाादाओां से पररसमत है । जीिन परमात्मा
को अपने कामों का जिाबदे ह है या नहीां हमें मालूम नहीां, लेककन साठहत्य मनुष्य के सामने
जिाबदे ह है। इसके सलए कानन
ू है च्जनसे िह इधर-उधर नहीां जा सकता। मनष्ु य जीिनपयंत
आनांद की खोज में लगा रहता है। ककसी को यह रत्न रव्य में समलता है , ककसी को भरे -पूरे
पररिार में , ककसी को लांबे-िीड़े भिन में , ककसी को ऐश्िया में। लेककन साठहत्य का आनांद इस
आनांद से ऊँिा है । उसका आधार सुांदर और सत्य है । िास्ति में सचिा आनांद सुांदर और सत्य
से समलता है , उसी आनांद को दशााना िही आनांद उत्पन्द्न करना साठहत्य का उद्दे श्य है।"
(ग) साठहत्य की
(घ) रत्न रव्य भरे पूरे पररिार लांबे िौड़े भिन एिां ऐश्िया को पाने की
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3- मानि के सलए जीिन एक लांबी मत्ृ यु कब बन जाता है ।
(क) बीमारी में (ख) सुख में
(ग) हषा में (घ) इचछाओां के बढने से
4- पररसमतत का अथा है
(ग) विस्तत
ृ ( घ) फांसा हुआ
5- 'लांबे िौड़े भिन में ' िाक्य में लांबे िौड़े व्याकरण की दृच्ष्ट से क्या है
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(4)
तनदा की ऐसी ही मठहमा है। दो-िार तनांदको को एक जगह बैठकर तनांदा में तनमग्न दे खखए और
तुलना कीच्जए, दो िार ईश्िर भक्तों से जो रामधुन गा रहे हैं। तनांदको की-सी एकाग्रता, परस्पर
आत्मीयता, तनमग्नता भक्तों में दल
ु भ
ा है । इससलए सांतों ने तनांदको को आांगन कुटी छिाय पास
रखने की सलाह दी है कुछ समशनरी' तनांदक मैने दे खे हैं। उनका ककसी से बैर नहीां, धप
ू नहीां ।
िे ककसी का बुरा नहीां सोिते पर िीबीस घांटे िे तनांदा-कमा में िात पविि भाि से लगे रहते हैं
कक ये प्रसांग आने पर अपने बाप की पगड़ी भी उसी आनांद से उछालते हैं, च्जस आनांद से अन्द्य
लोग दश्ु मन की। तनांदा इनके सलए टॉतनक होती है । इयाां-ट्िेष से प्रेररत तनांदा भी होती है। िह
ईया - िेष से िौबीसों घांटे जलता है और तनदा का जल तछड़ककर कुछ शाांतत अनुभि करता
है। ऐसा तनदक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ड़त िह बेिारा दस
ू रे की सक्षमता
के िाँद को दे खकर सारी रात श्िान जैसा भोकता है। ईष्य्या दि
ू ेष से प्रेररत तनांदा करने िाले
को कोई दां ड दे ने की जरूरत नहीां है। िह तनांदक बेिारा स्ियां दां ड़डत होता है। जाप िैन से सोझा
और िह जलन के कारण सो नहीां पाता। उसे और क्या दां ड िाठहए तनरां तर अचछे काम करते
जाने से उसका दां ड भी सख्त होता जाता है ; जैस-े एक कवि ने एक अचछी कविता सलखी,
ईष्यांग्रस्त तनदक की कष्ट होगा अब अगर एक और अचछी कविता सलख दी, तो " उसका कष्ट
दग
ु न
ु ा हो जाएगा।
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5- कवि की अचछी कविता पर ईष्याा ग्रस्त तनांदक कैसा अनुभि करता है
(क) कष्ट का (ख) सुख का
(ग) खुशी का (घ) प्रसन्द्नता का
(5)
"सचिा उत्साह िही होता है जो मनष्ु य को काया करने के सलए प्रेरणा दे ता है । मनष्ु य ककसी
भी कारणिश जब ककसी के कष्ट को दरू करने का सांकल्ट्प करता है , तब च्जस सुख को िह
अनभ
ु ि करता है, िह सख
ु विशेष रूप से प्रेरणा दे नेिाला होता है । च्जस भी काया को करने के
सलए मनुष्य में कष्ट, दःु ख या हातन को सहन करने की ताकत आती है , उन सबसे उत्पन्द्न
आनांद ही उत्साह कहलाता है उदाहरण के सलए दान दे नेिाला व्यच्क्त तनश्िय ही अपने भीतर
एक विशेष साहस रखता है और िह है धन-त्याग का साहस । यही त्याग यठद मनुष्य प्रसन्द्नता
के साथ करता है तो उसे उत्साह से ककया गया दान कहा जाएगा उत्साह आनांद और साहस
का समला-जल
ु ा रूप है। उत्साह में ककसी-न-ककसी िस्तु पर ध्यान अिश्य केंठरत होता है । िह
िाहे कमा पर, िाहे कमा के फल पर और िाहे व्यच्क्त या िस्तु पर हो। इन्द्हीां के आधार पर
कमा करने में आनांद समलता है। कमा-भािना से उत्पन्द्न आनांद का अनभ
ु ि केिल सचिे िीर ही
कर सकते हैं क्योंकक उनमें साहस की अधधकता होती हैं। सामान्द्य व्यच्क्त काया पूरा हो जाने
पर च्जस आनांद का अनुभि करता है , सचिा िीर काया प्रारां भ होने पर ही उसका अनुभि कर
लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शिु है। जो व्यच्क्त आलस्य से भरा होगा, उसमें काम
करने के प्रतत उत्साह कभी उत्पन्द्न नहीां हो सकता । उत्साही व्यच्क्त असफल होने पर भी
काया करता रहता है। उत्साही व्यच्क्त सदा दृढतनश्ियी होता है। "
(क) जो फल पाने के सलए उत्साह ठदखाते हैं। (ख) जो कमा भाि से उत्साह ठदखाते हैं।
(ग) जो आनांद विनोद के सलए उत्साह ठदखाते हैं। (घ) जो तनष्काम भाि से उत्साह ठदखाते
हैं।
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3- उत्साह के मागा में सबसे बड़ी रुकािट है
(क) दख
ु (ख) तनराशा
(ग) िैराग्य (घ) आलस्य
4- 'सचिा उत्साह िही होता है जो मनुष्य को काया करने केसलए प्रेरणा दे ता है ।' उपिाक्य का
प्रकार है।
(क) प्रधान उपिाक्य (ख) विशेषण उपिाक्य
(ग) कक्रया विशेषण उपिाक्य (घ) सांज्ञा उपिाक्य
(6)
विद्याथी जीिन ही िह समय है च्जसमें बचिों के िररि, व्यिहार, आिरण को जैसा िाहे , िैसा
रूप ठदया जा सकता है। यह अिस्था भािी िक्ष
ृ की उस कोमल शाखा की भाँतत है , च्जसे च्जधर
िाहो मोड़ा जा सकता है। पण
ू त
ा ः विकससत िक्ष
ृ की शाखाओां को मोड़ना सांभि नहीां। उन्द्हें मोड़ने
का प्रयास करने पर िे टूट तो सकती हैं पर मुड़ नहीां सकतीां। छािािस्था उस श्िेत िादर की
तरह होती है , च्जसमें जैसा प्रभाि डालना हो, डाला जा सकता है। सफेद िादर पर एक रां ग जो
िढ गया, सो िढ गया, कफर से िह पूिाािस्था को प्रातत नहीां हो सकती। इसीसलए प्रािीन काल
से ही विद्याथी जीिन के महत्त्ि को स्िीकार ककया गया है । इसी अिस्था से सुसांस्कार और
सद्ितृ तयाँ पोवषत की जा सकती हैं। इसीसलए प्रािीन समय में बालक को घर से दरू गरु
ु कुल
में रहकर कठोर अनुशासन का पालन करना होता था।
1- व्यिहार को सध
ु ारने का सिोत्तम समय होता है
(ग) िद्
ृ धािस्था (घ) छािािस्था
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(ग) इनमें से कोई नहीां (घ) अचछे सांस्कार विकससत करने के सलए
5- प्रस्तत
ु गद्याांश के सलए उपयुक्त शीषाक है
(क) िररि और व्यिहार (ख) कठोर अनुशासन
(ग) विद्याथी जीिन (घ) छाि एक िक्ष
ृ
(7)
भारतीय मनीषी हमेशा ही इचछा और अतनचछा के बारे में सोिता रहा है । आज जो कुछ हम
हैं उसे एक लालसा में ससमटाया जा सकता है । यानी जो कुछ भी हम है िह सब अपनी इचछा
के कारण से हैं। यठद हम दख
ु ी हैं, यठद हम दास्ता में हैं, यठद हम अज्ञानी हैं, यठद हम अांधकार
में डूबे हैं, यठद जीिन एक लांबी मत्ृ यु है तो केिल इचछा के कारण से ही है । क्यों है यह दख
ु ?
क्योंकक हमारी इचछा पूरी नहीां हुई। इससलए यठद आपको कोई इचछा नहीां है तो आप तनराश
कैसे होंगे? यठद कहीां आप तनराश होना िाहते हैं तो और अधधक इचछा करें , यठद आप और दख
ु ी
होना िाहते हैं तो अधधक अपेक्षा करें , अधधक लालसा करें और अधधक आकाांक्षा करें , इससे आप
और अधधक दख
ु ी हो ही जाएांगे। यठद आप सुखी होना िाहते हैं तो कोई इचछा न करें । यही
आांतररक जगत में काम करने का गखणत है । इचछा ही दख
ु को उत्पन्द्न करती है ।
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(ग) लालसा बढाती है। (घ) काया क्षमता बढाती है।
(8)
च्जस विद्याथी ने समय की कीमत जान ली िह सफलता को अिश्य प्रातत करता है। प्रत्येक
विद्याथी को अपनी ठदनियाा की समय-सारणी अथिा तासलका बनाकर उसका पूरी दृढता से
पालन करना िाठहए। च्जस विद्याथी ने समय का सही उपयोग करना सीख सलया उसके सलए
कोई भी काम करना असांभि नहीां है । कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कोई काम पूरा न होने पर
समय की दह
ु ाई दे ते हैं। िास्ति में सचिाई इसके विपरीत होती है । अपनी अकमाण्यता और
आलस को िे समय की कमी के बहाने तछपाते हैं। कुछ लोगों को अकमाण्य रह कर तनठल्ट्ले
समय बबताना अचछा लगता है । ऐसे लोग केिल बातूनी होते हैं। दतु नया के सफलतम व्यच्क्तयों
ने सदै ि कायाव्यस्तता में जीिन बबताया है । उनकी सफलता का रहस्य समय का सदप
ु योग रहा
है। दतु नया में अथिा प्रकृतत में हर िस्तु का समय तनच्श्ित है । समय बीत जाने के बाद काया
फलप्रद नहीां होता।
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2- कुछ लोग समय की कमी के बहाने क्या छुपाते हैं
(क) अपनी अकमाण्यता और आलस्य (ख) अपना तनठल्ट्लापन
(ग) अपनी विसभन्द्न कसमयाां (घ) अपना बातूनीपन
5- अकमाण्यता शब्द में मूल शब्द एिां उपसगा अलग करके सलखखए
(क) अकमाण्य+ता (ख) अ+कमाण्यता
(ग) अकमाण्यता (घ) अकमा +णूयता
(9)
मनष्ु य एक सामाच्जक प्राणी है । समाज में उसके समि भी होते हैं, शिु भी, पररधित भी, अपररधित
भी । जहाँ तक शिुओ,ां पररधितों और अपररधितों का प्रश्न है , उन्द्हें पहिानना बहुत कठठन नहीां
होता, ककां तु समिों को पहिानना कठठन होता है । मुख्यतः सचिे समिों को पहिानना बहुत कठठन
होता है यह प्रायः दे खा गया है कक एक और तो बहुत से लोग अपने-अपने स्िाथािश सम्पन्द्न,
सुखी और बड़े आदसमयों के समि बन जाते हैं या ज्यादा सही यह होगा कक यह ठदखाना िाहते
हैं कक िे समि हैं। इसके विपरीत जहाँ तक गरीब, तनधान और दःु खी लोगों का प्रश्न है समि
बनाना तो दरू रहा, लोग उनकी छाया से भी दरू भागते हैं। इसीसलए कोई व्यच्क्त हमारा
िास्तविक समि है या नहीां, इस बात का पता हमें तब तक नहीां लग सकता जब तक हम कोई
विपवत्त में न हों। विपवत्त में नकली समि तो साथ छोड़ दे ते हैं और जो समि साथ नहीां छोड़ते,
िास्तविक समि िे ही होते हैं। इसीसलए यह ठीक ही कहा जाता है कक विपवत्त समिों की कसौटी
है।
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2- सांपन्द्न लोगों से लोग कैसा व्यिहार करते हैं
(क) उनसे लोग ईष्याा करते हैं (ख) लोग उनके समि बन जाते हैं
(ग) लोग उनसे उदासीन रहते हैं। (घ) उनकी छाया भी नहीां छूते
(10)
जो आिरण भ्रष्ट हैं उसे भ्रष्टािार कहते हैं अथाात भ्रष्टािार िह व्यिहार हैं जो घखृ णत और
पततत हैं । भारत आज इस प्रकार के भयानक नैततक सांकट से गुज़र रहा हैं । नैततकता के
ह्रास का ही दस
ू रा नाम भ्रष्टािार हैं । आज़ादी के बाद हमारे राष्र ने काफी प्रगतत की हैं ।
परां तु च्जतनी पूांजी ि प्रयास इस उद्दे श्य से ककया गया उतनी अनुपात में राष्र विकससत नहीां
हुआ ! क्यों? भ्रष्टािार ही इसका मल
ू कारण हैं । ितामान समय में भ्रष्टािार ने जीिन के
प्रत्येक क्षेि में अपनी जड़ें जमा ली हैं । धासमाक ,आध्याच्त्मक ,राजनीततक ,सामाच्जक आधथाक
,सरकारी तथा गैर सरकारी सभी स्थानों पर भ्रष्टािार का बोलबाला हैं ।कहीां भी िले जाइए
बबना ररश्ित और पहुँि के आप का कोई सामान्द्य काम भी नहीां हो सकता । च्जस ओर भी
दृच्ष्ट जाती हैं भ्रष्टािार फलता फूलता ठदखाई दे ता हैं ।
जब दे श के सिोचि पदों पर बैठे मांिी भ्रष्टािार द्िारा अकूत सांपवत्त अच्जात करते हैं तो बेिारा
क्लका क्यों पीछे रहे । भ्रष्टािार रूपी िक्ष
ृ का रूप ही अनोखा हैं । इसकी जड़ें ऊपर की ओर
और शाखाएँ नीिे की ओर बढती हैं इसकी विषाक्त शाखाओां पर बैठकर ही मानि मानि का
रक्त िूस रहा हैं ।
अब तो भ्रष्टािार से सरकारें बनाई बिाई और धगराई जाती हैं । भारत में भ्रष्टािार व्यिस्था
का अतनिाया अांग बन िुका हैं । लेककन नामुमककन कुछ भी नहीां हैं । अगर इरादा बुलांद हो
तो समाज को , दे श को ,ककसी भी बरु ाई से बिाया जा सकता हैं ।
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1)समाज और दे श को ककसी भी बुराई से बिाया जा सकता हैं बेशते कक -
(क)सबको नष्ट भ्रष्ट करो ख) अगर इरादा बुलांद हो
ग) सबके साथ समान व्यिहार हो घ) सठहष्णुता से रहो
2)भ्रष्टािार का दस
ू रा नाम हैं –
क)अनैततकता का बोलबाला ख) अध्याच्त्मक रुझान
ग) धासमाक मैिी घ) परस्पर सद्भाि
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अपहठि पद्यािंश
सजान के पथ पर बढता िल ।
तनज सांस्कृतत पर अवपात हो जा, जीिन सारा कर अरे होम ।
हर कमा बना दे तू ससमधा च्जससे सरु सभत हो उठे व्योम ।
उस सुरसभ को भर साांसो में ओ पधथक! उसी पर बढता िल ।।
2.सुरसभ का आशय है -
(क) गाय (ख) पवििता
(ग).गांगा (घ)सुगांध
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(ग) द्िेषपूणा आांखें (घ)आक्रामक
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(ग)महािर (घ)लहू
5.जीवित सपनों के सलए मागा मुदाा को दे ना ही होगा में ककस भाि की ओर सांकेत है?
(क) पुरानी रूठढयों को नए युग के सलए हटना पड़ेगा
(ख)जीवित व्यच्क्तयों के सलए मुदे हटाने पड़ेंगे
(ग)मुदाा कायरों को हटना पड़ेगा (घ). नए लोगों के आने की व्यिस्था ।
26
3.नदी का साम्राज्य कैसा है?
(क).दरू तक फैला हुआ (ख)पिातों पर फैला हुआ
(ग)सभी नठदयों को समलानेिाला (घ)सागर के भीतर
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2.अनल का पयाायिािी है -
(क)अच्ग्न (ख) पथ्
ृ िी
(ग)अतनल (घ) जल
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1.रे शमी कलम से भाग्य सलखनेिाले हैं_
उत्तर कांु जी
अपठठत पद्याांश-1
1.ग 2.घ 3. क 4.घ 5.क
अपठठत पद्याांश-2
1.ख 2.क 3. ख 4.ग 5.क
अपठठत पद्याांश-3
1.घ 2.ख 3. क 4.ग 5.क
अपठठत पद्याांश-4
1.ख 2.क 3. घ 4.घ 5.घ
अपठठत पद्याांश-5
1.क 2.ख 3. ग 4.क 5.घ
29
रचना के आिार पर वाक्य भेद
उदाहरण
वाक्य के अिंग –
िाक्य के दो मुख्य अांग है - कताा और कक्रया। कताा और कक्रया के विस्तार को उद्दे श्य और
विधेय कहा जाता है।
उद्दे श्य – िाक्य में च्जसके बारे में कुछ बताया जाता है , उसे उद्दे श्य कहते है।
वविेय – उद्दे श्य के विषय में जो कुछ कहा जाए, उसे विधेय कहते है।
उदाहरण – विद्याथी फुटबॉल खेल रहे है ।
महात्मा गाांधी हमारे वप्रय नेता है।
इन िाक्यों में ‘उद्दे श्य’ विद्याथी, महात्मा गाांधी और ‘विधेय' फुटबॉल खेल रहे है , हमारे वप्रय
नेता है।
रिना की दृच्ष्ट से िाक्य भेद –
रचना के आिार पर वाक्य के िीन भेद ोिे ैं-
1. सरल िाक्य
2. सांयक्
ु त िाक्य
3. समश्र िाक्य
1.सरल वाक्य – च्जस िाक्य में केिल एक उद्दे श्य (कताा) और एक विधेय हो, उसे सरल या
साधारण िाक्य कहते हैं। इन िाक्यों में मुख्य कक्रया एक ही होती है ।
30
2.सिंयुक्ि वाक्य – च्जस िाक्य में दो या से अधधक सरल या समधश्रत िाक्य ककसी योजक
द्िारा जुड़े हो उसे सांयुक्त िाक्य कहते हैं।
• सांयुक्त िाक्य में प्रयुक्त होने िाले योजक है - और, या, अथिा, ककां तु, परां तु, इससलए,
अन्द्यथा, नही तो।
उदाहरण –
3.ममश्र वाक्य – च्जस िाक्य की रिना एक से अधधक सरल िाक्यों से हुई हो, च्जनमें एक
प्रधान िाक्य एिां अन्द्य आधश्रत उपिाक्य होते है , उसे समश्र िाक्य कहते है।
प्रधान िाक्य – इसकी कक्रया मुख्य होती है।
आधश्रत उपिाक्य का आरां भ कक, जो, च्जसे, यठद, क्योंकक आठद से होता है।
उदाहरण –
राम ने कहा कक आज मुझे घर जाना है ।
जो मेहनत करता है , उसे अिश्य सफलता समलती है।
जब मुकेश मेरे पास आया, तब लगभग तीन बजे थे।
उपवाक्य के भेद –
समश्र िाक्य में प्रयुक्त होने िाले गौण उपिाक्य तीन प्रकार के होते है –
1.सांज्ञा उपिाक्य
2.विशेषण उपिाक्य
3.कक्रयाविशेषण उपिाक्य
1.सांज्ञा उपिाक्य – जो उपिाक्य प्रधान िाक्य की ककसी सांज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हुआ हो,
उसे सांज्ञा उपिाक्य कहते है।
31
•सामान्द्य रूप से सांज्ञा उपिाक्य ‘कक’ से आरम्भ होते हैं।
उदाहरण –
•विशेषण उपिाक्य का प्रारां भ सिानाम ‘जो’ या इसके ककसी रूप (च्जसने, च्जसे, च्जससे, च्जनको,
च्जनके सलए) से होता है।
उदाहरण –
उदाहरण –
32
2.मैने एक आदमी को दे खा जो बहुत बीमार था।(सरल िाक्य में बदसलए)
3.िन
ु ाि में कौन जीता – यह सि
ू ना सबको दी गई। (प्रधान उपिाक्य सलखखए)
क) िुनाि में कौन जीता ख) सबको दी गई
ग) कौन जीता – यह सूिना घ) यह सूिना सबको दी गई
4.मुझे विश्िास है कक रीना अिश्य उत्तीणा होगी – रे खाांककत उपिाक्य का नाम सलखखए।
क) सांज्ञा उपिाक्य ख) विशेषण उपिाक्य
ग) कक्रयाविशेषण उपिाक्य घ) प्रधान उपिाक्य
7. िह अपने घर गया। िह अपने काम में लग गया। - ठदए गए दो सरल िाक्य को सांयक्
ु त
िाक्य में बदसलए।
क) िह अपने घर जाकर अपने काम में लग गया।
ख) िह अपने घर गया और अपने काम में लग गया।
ग) जैसे ही िह घर गया िह अपने काम में लग गया।
घ) िह घर पहुांिते ही अपने काम में लग गया।
33
8. तनम्नसलखखत में से सरल िाक्य िुतनए-
क) गली में शोर हुआ और सब लोग बाहर आ गए।
ख) िह, जो दो ठदन गाांि में रहा, सबका वप्रय हो गया।
ग) िहाां च्स्थत एक छोटे -से गाांि के िारों ओर जांगल था।
घ) िह काली भैंस, जो खेत में िर रही थी, राघि की थी।
9. भारत शाांततवप्रय दे श है। इसमें अनेक सांप्रदायों के लोग तनिास करते है – समश्र िाक्य
बनाइए।
क) शाांततवप्रय भारत में अनेक सांप्रदायों के लोग तनिास करते है।
ख) भारत ऐसा शाांततवप्रय दे श है च्जसने अनेक सांप्रदायों के लोग तनिास करते है।
ग) भारत शाांततवप्रय दे श है और इसमें अनेक सांप्रदायों के लोग तनिास करते है।
घ) भारत में अनेक सांप्रदायों के लोग तनिास करते है।
12. ज्यों ही िह घर पहुांिा, उस पर उसके वपता बरस पड़े। (सरल िाक्य में बदसलए)
क) िह घर पहुांिा और उसके वपता बरस पड़े।
ख) िह घर पहुांिा तो उसके वपता बरस पड़े।
ग) उसके घर पहुांिते ही वपताजी उस पर बरस पड़े।
घ) िह जैसे ही घर पहुांिा, िैसे ही उस पर उसके वपता बरस पड़े।
34
14. जो पुस्तक आप पढ रहे थे िह मेरे भाई की है - रे खाांककत उपिाक्य का नाम सलखखए।
क) कक्रयाविशेषण उपिाक्य ख) प्रधान उपिाक्य
ग) सांज्ञा उपिाक्य घ) विशेषण उपिाक्य
15. आप उससे समलना िाहते है इससलए द्िार पर प्रतीक्षा करे – समश्र िाक्य में बदसलए।
क) यठद आप उससे समलना िाहते हैं तो द्िार पर प्रतीक्षा करे ।
ख) आप उससे समलने के सलए द्िार पर प्रतीक्षा करे ।
ग) आपको उससे समलना है तो द्िार पर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
घ) आप उससे समल लेना परां तु द्िार पर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
18. प्रधान न्द्यायाधीश ने कहा कक फैसला दस ठदन बाद सुनाया जाएगा– (रे खाांककत उपिाक्य
का नाम सलखखए।)
क) सांज्ञा उपिाक्य ख) प्रधान उपिाक्य
ग) कक्रयाविशेषण उपिाक्य घ) विशेषण उपिाक्य
35
क) सरल िाक्य ख) सांयुक्त िाक्य
ग) प्रधान िाक्य घ) समश्र िाक्य
**************************************************
36
कायष पत्रक
1. च्जस िाक्य में मुख्य और गौण दो उपिाक्य होते है , उसे क्या कहते है?
क) सरल िाक्य ख) साधारण िाक्य
ग) सांयुक्त िाक्य घ) समश्र िाक्य
उत्तर ___________________________
2. िाक्य में दो या से अधधक सरल या समधश्रत िाक्य ककसी योजक द्िारा जुड़े हो, उसे क्या
कहते है ?
क) सरल िाक्य ख) समश्र िाक्य
ग) सांयुक्त िाक्य घ) साधारण िाक्य
उत्तर ____________________________
उत्तर ____________________________
उत्तर ____________________________
37
5. प्रश्न हल हो गए और छािों ने काम बांद कर ठदया – समश्र िाक्य में बदसलए।
क) प्रश्न के हल होने पर छािों ने काम बांद कर ठदया।
ख) जब प्रश्न हल हो गए तब छािों ने काम बांद कर ठदया।
ग) प्रश्न का हल समलते ही छािों ने काम बांद कर ठदया।
घ) प्रश्न हल हो गए एिां छािों ने काम बांद कर ठदया।
उत्तर ____________________________
6. महात्मा गाांधी जी ने कहा कक सदा सत्य बोलो। (रे खाांककत उपिाक्य का भेद सलखखए)
क) सांज्ञा उपिाक्य ख) विशेषण उपिाक्य
ग) कक्रया विशेषण उपिाक्य घ) प्रधान उपिाक्य
उत्तर ____________________________
उत्तर ____________________________
8. सफेद कमीज िाले छाि को यह कलम दे दो। (समश्र िाक्य में बदसलए)
क) च्जस छाि ने सफेद कमीज़ पहनी है , उसे यह कलम दे दो।
ख) यह कलम सफेद कमीज़ िाले छाि को दे दो।
ग) सफेद कमीज़ िाले छाि को कलम दे दो।
घ) एक छाि ने सफेद कमीज़ पहनी है और उसे कलम दे दो।
उत्तर ____________________________
38
9. कैलाश जानता है कक उसका भाई बेईमान है। (रे खाांककत उपिाक्य का नाम सलखखए)
क) विशेषण उपिाक्य ख) सांज्ञा उपिाक्य
ग) कक्रया विशेषण उपिाक्य घ) प्रधान उपिाक्य
उत्तर ____________________________
10. जीिन में कोई क्षेि ऐसा नहीां, जहाां विज्ञान ने िरण न धरे हो। (िाक्य भेद सलखखए)
क) समश्र िाक्य ख) सरल िाक्य
ग) सांयुक्त िाक्य घ) साधारण िाक्य
उत्तर ____________________________
**************************************************
39
वाच्य
1) कति
ा ृ ाचय 2) कमािाचय 3) भाि िाचय
1)कति
ा ृ ाचय- जहाँ कक्रया का मुख्य विषय कताा हो िहाँ कति
ा ृ ाचय होता है।कक्रया सकमाक
और अकमाक दोनों हो सकती है ।
3) भाििाचय -जहाँ कक्रया का मुख्य विषय भाि हो तो िहाँ भाििाचय होता है । कक्रया अकमाक
होगी|
➢ किव
ष त ाच्य से कमषवाच्य बनाने के ननयम-
i)पहले कति
ाृ ाचय की मुख्य कक्रया को सामान्द्य भूतकाल में पररिततात कीच्जए।
• जैस-े पढ -से पढा |
• खेल से खेला
• जा से गया आठद
ii) उस कक्रया के साथ “जाना” कक्रया का काल, पुरुष, ििन, सलांग के अनुसार जो रूप हो, उसे
जोडकर साधारण कक्रया को सांयुक्त कक्रया में बदसलए।
कताा के साथ “से” या “के द्िारा” जोड़डए ।
उदाहरण- मैंने पि सलखा (कति
ाृ ाचय) - मुझसे पि सलखा गया (कमािाचय)
40
किव
षत ाच्य से भाव वाच्य बनाने के ननयम-
i)कताा के साथ “से” अथिा “के द्िारा “लगाएँ
उदाहरण- बचिा है तो बचिे से
बचिे है तो बचिों से।
ii) मुख्य कक्रया को सामान्द्य भूतकाल में बदलना होगा। कक्रया एकििन पुच्ल्ट्लांग में ही रहे गी।
iii) अन्द्य परु
ु षिािक काल जो कति
ाृ ाचय की कक्रया का है होगा ।
उदाहरण- i)पढें गे- पढा जाएगा । ii)सोते हैं- -सोया जाता है ।
iv) वििशता, असमथाता, तनषेधाथा, अनुमतत, आज्ञा प्रातत करने के सलए भाििाचय प्रयोग होता है
।
उदाहरण- i) आज मुझसे खडा भी नहीां हुआ जाता ।
ii) अब थोड़ा विश्राम ककया जाए।
41
क) राधा सोएगी | ख) उससे काम नहीां ककया जाता |
ग) मुझसे बैठा जाता है । घ) इनमें से कोई नहीां ।
5) कति
ा ृ ाचय छाँठटए-
क) वपताजी से गाडी िलायी गयी । ख) मामाजी ने समठाई बनायी
ग) मामाजी से समठाई बनिायी जाएगी। घ) माता जी से िला नहीां जाता ।
42
क) सशकारी सशकार कर रहे थे । ख) सशकाररयों ने सशकार ककया
ग) सशकारी सशकार करें गे घ) सशकारी सशकार करते हैं
14) ककस िाचय में कक्रया पच्ु ल्ट्लांग एकििन में रहती है ?
क) कति
ाृ ाचय ख) कमािाचय
ग) भाििाचय घ) इनमें से कोई नहीां
15) कति
ा ृ ाचय िाले िाक्य छाँठटए-
क) मुझसे कहानी सलखिाई गयी।
ख) महात्मा गाँधी ने विश्ि को शाच्न्द्त और अठहांसा का सांदेश ठदया ।
ग) हमसे इतने सुख सहे नहीां जाते।
घ) मीरा द्िारा कल पि सलखा गया ।
43
19) पक्षीआकाश में उड़तेहैं। िाचय का पररिततात रूप है -
क)पक्षक्षयों से आकाश में उडे जाते हैं।
ख)पक्षी से आकाश में उड़ा जाता है।
ग)पक्षी सेआकाश में उड़ा गया।
घ) पक्षक्षयों से आकाश में उड़ा जाता है।
44
25) तनम्नाांककत में से कौन सा िाक्य कमा िाचय का नहीां है
क)माला से पान खाया गया। ख) विहान पि सलखा जाएगा ।
ग)िारु से काम करिाया जा रहा है। घ) िाँदनी से गमा पानी में नहाया जाता है ।
उत्तर
1) क) राकेश से समठाई बनाई जा रही थी ।
2) ख) कति
ाृ ाचय
3) ग) सूसन से कविता सलखी गयी ।
4) ग) मुझसे बैठा जाता है ।
5) ख) मामाजी ने समठाई बनायी
6) क) सीता से खाना पकाया जाएगा
7) क) बचिे से तैरा जाएगा
8) क) आओ, घूमने िला जाए |
9) ख) राकेश से बाजा बजाया गया
10) ग) लड़ककयों से गाया गया |
11) ख) ठहरणों से घास िरी जा रही थी |
12) क) सशकारी सशकार कर रहे थे ।
13) ख) कति
ाृ ाचय
14) ग) भाि िाचय
15) ख) महात्मा गाँधी ने विश्ि को शाच्न्द्तः और अठहांसा का सांदेश ठदया ।
16) घ) मीरा से सोया गया ।
17) ख) बाढ पीड़ड़तों की सहायता की।
18) क)कमा िाचय
19) घ) पक्षक्षयों से आकाश में उड़ा जाता है।
20) घ) राजा प्रजा की रक्षा करे गा।
21) ग) भाि िाचय
22) ख) कमा िाचय
23) ग) भाि िाचय में
24) घ) िारु से काम करिाया जा रहा है।
25) घ) िाँदनी से गमा पानी में नहाया जाता है ।
45
कायष पत्रक
उत्तर- -----------
2) कति
ा ृ ाचय का उदाहरण ----
क) प्रधानािाया जी से पुरस्कार बाँटे गए । ख) माताजी से बैठा नहीां जाता ।
ग) हम सबने खाना खाया । घ) वपताजी से रहा न गया ।
उत्तर------------------
उत्तर---------------
उत्तर-------------------
46
उत्तर---------------
उत्तर----------
उत्तर--------------
उत्तर------------------
उत्तर----------------
उत्तर---------------
47
पद पररचय
शब्द एविं पद
पद -पररचय के आवश्यक प लू
48
किया –कक्रया का भेद, अकमाक, सकमाक, सलांग, ििन,पुरुष,काल, िाचय, कताा और कमा का सांकेत|
उदाहरण : मैं रोज धीरे - धीरे िलता हूँ |
िलता हूँ – अकमाक कक्रया, पुच्ल्ट्लांग , एक ििन , ितामान काल, कता ृ िाचय
किया ववशेर्र् -भेद – रीतत िािक ,काल िािक,स्थान िािक,पररमाण िािक,च्जस कक्रया की
विशेषता बताई जा रही है उसका तनदे श |
उदाहरण : मैं रोज धीरे - धीरे िलता हूँ |
रीतत िािक कक्रया विशेषण, िलता हूँ कक्रया का विशेषण
समुचिय बोधक – भेद ,ककन पदों या िाक्यों को समला रहा है , तनदे श
उदाहरण : गाांधीजी ने कहा कक सदा सत्य बोलो |
कक – व्याधध करण समुचिय बोधक
सांबांध बोधक – भेद च्जससे सांबांध दशाा रहा है उसका तनदे श
उदाहरण : विद्यालय के पीछे बाग है |
के पीछे - सांबांध बोधक अव्यय
विस्मयाठद बोधक – ककस भाि ( विस्मय, हषा, शोक , घण
ृ ा ,भय, क्रोध आठद ) को प्रकट कर
रहा है |
उदाहरण – िाह ! भारत मैि जीत गए | विस्मयाठद बोधक , हषा सूिक
ननम्नमलखिि वाक्यों में रे िािंककि पदों का पररचय हदए गए ववकल्पों में से स ी ववकल्प
चुनकर मलखिए |
49
3 मैं धीरे - धीरे गाता हूँ | इस िाक्य में रे खाांककत पद है –
(क) कक्रया विशेषण, रीतत िािक, मैं विशेष्य |
(ख) कक्रया विशेषण, रीतत िािक, गाता हूँ विशेष्य |
(ग) कक्रया विशेषण, पररमाण िािक, गाता हूँ विशेष्य |
(घ) कक्रया विशेषण, पररमाण िािक, मैं विशेष्य |
50
(ग) व्यच्क्तिािक सांज्ञा, पुच्ल्ट्लांग, एकििन, कमा कारक
(घ) जाततिािक सांज्ञा, पुच्ल्ट्लांग, एकििन, करण कारक
51
14 िह बहुत जोर से हँसता है |
(क) अव्यय, कक्रया विशेषण, रीतत िािक, ‘हँसता है’ कक्रया की विशेषता
(ख) अव्यय, कक्रया विशेषण, स्थान िािक, ‘हँसता है ’ कक्रया की विशेषता
(ग) अव्यय, कक्रया विशेषण, काल िािक, ‘हँसता है ’ कक्रया की विशेषता
(घ) अव्यय, कक्रया विशेषण, पररमाण िािक, ‘हँसता है ’ कक्रया की विशेषता
15 यह पस्
ु तक राम की है |
(क) विशेषण, सांख्यािािक, ‘पुच्ल्ट्लांग, बहुििन, ‘पुस्तक’ विशेष्य
(ख) विशेषण,सािाकासलक , ‘स्िीसलांग , एकििन, ‘पुस्तक ’ विशेष्य
(ग) विशेषण, सांख्यािािक, ‘पुच्ल्ट्लांग, एकििन, ‘पुस्तक’ विशेष्य
(घ) विशेषण, सांख्यािािक, ‘पुच्ल्ट्लांग, बहुििन, ‘पुस्तक’ विशेष्य
16 मजदरू ों ने हड़ताल कर दी |
(क) सांज्ञा भाििािक स्िीसलांग, बहुििन, कताा कारक
(ख) सांज्ञा व्यच्क्तिािक पच्ु ल्ट्लांग, बहुििन, कताा कारक
(ग) सांज्ञा व्यच्क्तिािक पुच्ल्ट्लांग, बहुििन, कताा कारक
(घ) सांज्ञा जाततिािक पुच्ल्ट्लांग, बहुििन, कताा कारक
19 आज तुमने थोड़ा सा ही दध
ू क्यों वपया?
(क) तनच्श्ित पररमाण िािक विशेषण, एकििन, पुच्ल्ट्लांग दध
ू विशेष्य
52
(ख)अतनच्श्ित पररमाण िािक विशेषण, एकििन, पुच्ल्ट्लांग दध
ू विशेष्य
(ग) अतनच्श्ित सांख्या िािक विशेषण, एकििन, पुच्ल्ट्लांग दध
ू विशेष्य
(घ) अतनच्श्ित पररमाण िािक विशेषण, एकििन, स्िीसलांग दध
ू विशेष्य
उत्तर 1) क 2) ग 3) ख 4) क 5) ग 6) ख 7) ग 8) क 9) घ 10) ख
11) क 12) ख 13) ख 14) क 15) ख 16) घ17) ग 18) क 19) ख 20) क
**************************************************
53
कायषपत्रक
1 अमीर पि सलखता है |
उत्तर -----------------------------
उत्तर -----------------------------
उत्तर -----------------------------
54
उत्तर -----------------------------
उत्तर -----------------------------
6 िह क्या पढ रहा है ?
क)–अन्द्यपरु
ु ष सिानाम,पुच्ल्ट्लांग ,एकििन, कताा कारक
ख)उत्तम परु
ु ष ,पुच्ल्ट्लांग ,एकििन, कताा कारक
ग)मध्यमपुरुष स्िीसलांग एकििन, कताा कारक
घ) सािानासमक विशेषण पुच्ल्ट्लांग ,एकििन, कताा कारक
उत्तर -----------------------------
उत्तर -----------------------------
उत्तर -----------------------------
55
क)भाि िािक सांज्ञा ,पुच्ल्ट्लांग ,एकििन अधधकरण करक
–ख) व्यच्क्तिािक सांज्ञा, स्िीसलांग, एक ििन ,अधधकरण कारक
ग) जातत िािक सांज्ञा, स्िीसलांग, एक ििन ,अधधकरण कारक
घ)विशेषण ,पच्ु ल्ट्लांग बहुििन करता करक
उत्तर -----------------------------
उत्तर -----------------------------
**************************************************
56
अलिंकार
अलांकार का अथा – अलांकृत करना, सजाना । अतः िह िस्तु जो सुांदर बनाए या सुांदर बनाने
का साधन हों । यह सुांदर िणों से बनते हैं और यह काव्य की शोभा और सौंदया बढाते हैं ।
काव्य का तनमााण शब्द और अथा द्िारा होता है । अतः दोनों शब्द और अथा के सौंदया की
िद्
ृ धध होनी िाठहए । इस दृच्ष्ट से अलांकार के दो भेद होते हैं :-
(I)शब्दालांकार: जहाँ काव्य में शब्दों के विसशष्ट प्रयोग से कविता में सौंदया और िमत्कार
उत्पन्द्न होता हैं, िहाँ शब्दालांकार होता है । ठहन्द्दी के प्रमुख शब्दालांकार है – अनुप्रास, यमक,
और श्लेष ।
श्लेर् अलिंकार
श्लेष का अथा है ‘धिपका हुआ’ या ‘समला हुआ’ । जब काव्य में ककसी शब्द का प्रयोग
एक ही बार ककया जाता है लेककन उससे अथा कई तनकलते हैं तो तब िहाँ श्लेष अलांकार
होता है ।
जैसे
57
(III)‘मगन को दे खख पट दे त बार-बार है ।’
यहाँ श्लेष अलांकार है , क्योंकक ‘पट’ शब्द के दो अथा है –
पट - (1) िस्ि
(2) दरिाज़ा
पांच्क्त का पहला अथा है – माँगनेिालों (सभखाररयों) को दे खकर बार-बार ‘पट’ दरिाज़ा बांद कर
लेती है तथा दस
ू रा अथा है – सभखमांगों को दे खकर उन्द्हें बार-बार ‘िस्ि’ दान में दे ती है ।
पांच्क्त का अथा है कक कवि, व्यसभिारी तथा िोर तीनों ही ‘सुबरन’ अथाात ् सुिणा को ढूँढते
कफरते हैं ।
यहाँ ‘सुबरन’ शब्द में श्लेष अलांकार है और इसके तीन अथा इस प्रकार हैं –
(i)कवि के सांदभा में – सुबरन – सुांदर िणा या अक्षर
(ii) व्यसभिारी के सांदभा में – सुबरन – रां गिाली सुन्द्दररयाँ
(iii)िोर के सांदभा में – सुबरन – सि
ु णा या सोना
(2) अर्ाषलिंकार
उत्प्प्रेक्षा अलिंकार
यहाँ उपमेय में उपमान की सांभािना की जाती है । उत्प्रेक्षा अलांकार के िािक शब्द है –
मानो, जानो, जनु मनु । जैसे –
यहाँ श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर पीताम्बर ऐसा लग रहा है मानो नीलम पिात पर प्रभात
काल की धूप शोभा पा रही हो ।
अनिशयोस्क्ि अलिंकार
58
जब ककसी की अत्यांत प्रशांसा करते हुए बढा-िढाकर बात की जाए तो अततशयोच्क्त अलांकार
होता है ।
जैसे : हनुमान की पँछ
ू में , लगन न पाई आग ।
लांका सगरी जरर गई, गए तनशािर भाग ।
इस काव्याांश में हनुमान की पँछ
ू में आग लगाने के पहले ही सारी लांका का जलना
और राक्षसों का भाग जाने का बढा-िढाकर िणान ककया गया है अतः अततशयोच्क्त अलांकार
है ।
मानवीकरर् अलिंकार
जब प्राकृततक िस्तुओां जैसे पेड़, पौधे, बादल आठद में मानिीय भािनाओां का िणान हो यानी
तनजीि िीज़ों में सजीि होना दशााया जाए तब िहाँ मानिीकरण अलांकार होता है । जैसे
(i) फूल हँसे कसलयाँ मुसकाई
ठदए गए उदाहरण में फूल हँस रहे हैं एिां कसलयाँ मुस्करा रही है । हम जानते हैं कक
हँसने और मस्
ु कराने की कक्रयाएँ केिल मनष्ु य ही कर सकते हैं, प्राकृततक िीज़ें नहीां । यह
सि में सांभि नहीां है और हम यह भी जानते हैं कक सजीि भािनाओां का िणान िीज़ों में
ककया जाता है तब मानिीकरण अलांकार होता है ।
(ii) मेध आए बड़े बन-ठन के सांिर के ।
(iii) उषा सुनहरे तीर बरसाती, जल लक्ष्मी-सी उठदत हुई ।
**************************************************
59
कायापिक
उत्तर ---------------------
उत्तर ---------------------
60
उत्तर ---------------------
उत्तर ---------------------
उत्तर ---------------------
उत्तर ---------------------
61
ख) श्लेष
ग) उत्प्रक्षा
घ) अततशयोच्क्त
उत्तर ---------------------
उत्तर ---------------------
उत्तर ---------------------
62
गद्य खांड
63
पाठ:नेिाजी का चश्मा- थवयिं प्रकाश
पाठ का सारािंश
हालदार साहब हर पांरहिें ठदन कांपनी के काम से उस कस्बे से गुजरते थे। कस्बे में कुछ
पक्के मकान, एक छोटा सा बाजार, बालक बासलकाओां के दो विद्यालय, एक सीमेंट का कारखाना,
दो खुली छत िाले ससनेमाघर तथा एक नगरपासलका थी। इसी कस्बे के मुख्य बाजार में मुख्य
िौराहे पर नेताजी सभ
ु ाष िांर बोस की एक सांगमरमर की मतू ता लगी हुई थी।मतू ता पर िश्मा
नहीां था। हालदार साहब को पान िाले से यह जानकारी समली कक कैतटन िश्मे िाले को नेताजी
की बबना िश्मे िाली मूतता अचछी लगी नहीां लगती थी। इससलए िह मूतता पर िश्मा लगा ठदया
करता था। एक ठदन जब हालदार साहब उसी उसी कस्बे से तनकले तो उन्द्होंने दे खा कक बाजार
बांद था और मूतता के िेहरे पर कोई िश्मा भी नहीां था कैतटन मर गया था। अगली बार जब
हालदार साहब उधर से तनकले, तो उन्द्होंने दे खा कक मूतता पर ककसी बचिे ने सरकांडे का बना
हुआ िश्मा लगा ठदया था। हालदार साहब भािुक हो उठे ।
64
क)मूतता के ससर से सीने तक के भाग को ख)मूतता के सरिाले भाग को
ग)मूतता के बाांहों को घ)उपयक्
ुा त कोई नहीां
2. हालदार साहब को पान िाले द्िारा एक दे शभक्त का इस तरह मजाक उड़ाया जाना अचछा
नहीां लगा। मुड़कर दे खा तो अिाक रह गए। एक बेहद बूढा, माररयल सा, लांगड़ा आदमी ससर पर
गाांधी टोपी और आांखों पर काला िश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी सी सांतक
ू िी और दस
ू रे
हाथ में एक बाांस पर टाांगे बहुत से िश्मे सलए अभी-अभी एक गली से तनकला था और अब
एक बांद दक
ु ान के सहारे अपना बाांस ठटका रहा था। तो इस बेिारे की दक
ु ान भी नहीां! फेरी
लगता है! हालदार साहब िक्कर में पड़ गए। पूछना िाहते थे, इसे कैतटन क्यों कहते हैं? क्या
यही इसका िास्तविक नाम है ?लेककन पान िाले ने साफ बता ठदया था कक अब िह इस बारे
में और बात करने को तैयार नहीां। ड्राइिर भी बेिैन हो रहा था। काम भी था। हालदार साहब
जीप में बैठ कर िले गए।
65
क)आमी िाली ख)कक्रकेट िाली
ग)गाांधीजी िाली घ)इनमें से कोई नहीां
2) i ख) ii घ) iii ख) iv ग) v घ)
66
उत्तर: मूतता के नीिे ' मूतताकार मास्टर मोतीलाल' सलखा था|
i)सेनानी न होते हुए भी िश्मे िाले को लोग कैतटन क्यों कहते थे?
उत्तर:िश्मे िाले को लोग कैतटन कहते थे क्योंकक िश्मे िाला सभ
ु ाष िांर बोस का सम्मान
करता था। िह सुभाष िांर बोस की मूतता पर रोज़ िश्मा लगा ठदया करता था। उसकी इस
दे शभच्क्त की भािना को दे खकर लोग व्यांग्य से उसे कैतटन कहते थे।
" बार- बार सोिते, क्या होगा उस कौम का जो अपने दे श की खाततर घर- गह
ृ स्ती- जिानी-
च्जांदगी सब कुछ होम दे ने िालों पर भी हां सती हैं और अपने सलए बबकने के मौके ढूांढती हैं।"
उत्तर: दे श के सलए अपने घर, पररिार, जिानी यहाां तक कक अपने प्राण भी दे ने िालों पर कुछ
लोग हांसते हैं, उनका मजाक उड़ाते हैं। लोगों में दे शभच्क्त की ऐसी घटती भािना जरूर तनांदनीय
है। ऐसे लोग एक हद तक स्िाथी होते हैं कक उनके सलए अपनी स्िाथा ही सिोपरर होता है। िे
अपने स्िाथा की ससद्धध के सलए दे शरोह करने तक को तैयार रहते हैं।
67
iv) पान िाले का एक रे खाधिि प्रस्तुत कीच्जए।
उत्तर:पनिाला एक काला मोटा और खुशसमजाज व्यच्क्त था। उसकी तोंद तनकली हुई थी। िह
हमेशा पान िबाता रहता था। इस कारण से उसके दाांत लाल काले हो रहे थे।िह जब हांसता
था तो उसकी तोंद धथरकती थी। िह मजाककया इांसान था।
v)" िह लांगड़ा क्या जाएगा फौज में। पागल!" कैतटन के प्रतत पान िाले की ठटतपणी पर अपनी
प्रततकक्रया सलखखए।
उत्तर: कैतटन के प्रतत पान िाले की यह ठटतपणी व्यांग्यात्मक और अनैततक है। ककसी अपांग
और दे शभक्त का इस तरह मजाक उड़ाया जाना अनुधित है । हमें ऐसे व्यच्क्तयों को काया
करने हे तु प्रोत्साठहत करना िाठहए तथा उनके प्रतत सहानुभूतत रखना िाठहए।
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68
कायषपत्रक
उत्तर -----------------------
उत्तर-----------------------
69
उत्तर-----------------------
उत्तर-----------------------
उत्तर-----------------------
उत्तर------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ii)िश्मे िाले को नेताजी की बगैर िश्मे िाली मूतता बुरी क्यों लगती है ?
उत्तर--------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
iii) मास्टर जी कौन थे? उन्द्होंने मूतता को ककतने समय में बनिाने का विश्िास ठदलाया?
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उत्तर------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
उत्तर------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
उत्तर------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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बालगोबबन भगत (रामिक्ष
ृ बेनीपुरी)
पाठ का सारािंश -
बालगोबबन भगत मझोले कद के गोरे - धिट्टे आदमी थे। उनकी उम्र साठ िषा से उपर थी।
खेत से जो भी उपज होती ससर पर लादकर कबीरपांथी मठ ले जाते और प्रसाद स्िरूप जो भी
समलता उसी से गुजर - बसर करते।
िे हर िषा गांगा स्नान को जाते। गांगा तीस कोस दरू पड़्ती थी कफर भी िे पैदल ही जाते थे।
एक ठदन सांध्या में गाना गाया परन्द्तु भोर में ककसी ने गीत नहीां सुना , जाकर दे खा तो पता
िला बालगोबबन भगत नहीां रहे ।
बेटे के कक्रया - कमा में तूल नहीां ककया; पतोहू से ही आग ठदलाई उसकी। ककन्द्तु ज्योंही श्राद्ध
की अिधध पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर ठदया, यह आदे श दे ते हुए कक
इसकी दस
ू री शादी कर दे ना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती - मैं जाऊांगी तो बुढापे में कौन आपके
सलए भोजन बनाएगा , बीमार पड़े तो कौन एक िुल्ट्लू पानी भी दे गा ? मैं पैर पड़ती हूां ,् मझ
ु े
अपने िरणों से अलग नहीां कीच्जए। लेककन भगत का तनणाय अटल था। तू जा, नहीां तो मैं
ही इस घर को छोड़कर िल दां ग
ू ा - यह थी उनकी आखरी दलील और इस दलील के आगे
बेिारी की क्या िलती ?
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(ग) भगत जी का तनणाय
(घ) दस
ू री शादी
बालगोबबन भगत की सांगीत - साधना का िरम उत्कषा उस ठदन दे खा गया, च्जस ठदन उनका
बेटा मरा। इकलौता बेटा था िह ! कुछ सुस्त और बोदा - सा था, ककन्द्तु इसी कारण बालगोबबन
भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में एसे आदसमयों पर ही ज्यादा नजर रखनी िाठहए
या तयार करना िाठहए, क्योंकक ये तनगरानी और मह
ु ब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध
73
से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील समली थी। घर की पूरी प्रबांधधका
बनकर भगत को बहुत कुछ दतु नयादारी से तनित्त
ृ कर ठदया था उसने। उनका बेटा बीमार है ,
इसकी खबर रखने की लोगों को कहाां फुरसत ! ककन्द्तु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान
खीांिकर ही रहती है।
१ बालगोबबन भगत के अनुसार कैसे लोग तनगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं ?
(क) अचछे लोग (ख) शारीररक रुप से अक्षम
(ग) च्जन्द्हें मौत आनी हो (घ) च्जसकी शादी हो
बालगोबबन भगत खेती - बाड़ी करते थे। उनके पास एक साफ - सुथरा मकान भी था च्जसमें
िह अपने बेटे और बहु के साथ रहते थे। लेककन िो आिार, वििार, व्यिहार ि स्िभाि से साधु
थे। िो सांत कबीर को अपना आदशा मानते थे। कबीर के उपदे शों को उन्द्होंने पूरी तरह से
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अपने जीिन में उतार सलया था। िो कबीर को "साहब" कहते थे और उन्द्हीां के गीतों को गाया
करते थे। िो कभी झूठ नहीां बोलते थे। सबसे खरा व्यिहार रखते थे। दो टूक बात कहने
में सांकोि नहीां करते थे लेककन ककसी से खामखाह झगड़ा मोल भी नहीां लेते थे। ककसी िीज
को कभी नहीां छूते थे और ना ही बबना पूछे व्यिहार में लाते।
बालगोबबन भगत लगभग साठ िषा के एक मांझोले कद (मध्यम कद) के गोरे धिट्टे आदमी
थे। उनके सारे बाल सफेद हो िुके थे। िे बहुत कम कपड़े पहनते थे। कमर में ससफा एक
लांगोटी और ससर में कबीरपांधथयों के जैसी कनफटी टोपी। बस जाड़ों में एक काली कमली ऊपर
75
से ओढे रहते। मस्तक पर हमेशा िमकता हुआ रामानांदी िांदन , औरतों के टीके की तरह ,
शुरु होता। गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला बाांधे रहते।
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३ (क) पुि की मत्ृ यु के ठदन
४ (ख) बालगोबबन भगत की बहु
५(ग) बहुत सुस्त और बोदा
3.लेखक रामिक्ष
ृ बेनीपुरी जी बालगोबबन भगत की ककस विशेषता पर अत्यधधक मुग्ध थे ?
(क) पहनािे पर (ख) व्यिहार पर
(ग) मधुर गान पर (घ) कया कुशलता पर
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5.भगत पुि की मत्ृ यु पर पतोहू को क्या करने के सलए कह रहे थे ?
(क) रोना बांद करने को (ख) रोने के बदले उत्सि मनाने को
(ग) अच्न्द्तम कमा की तैयारी करने को (घ) धीरज धरने को
78
12 बालगोबबन भगत कबीर के आदशों पर क्यों िलते थे ?
(क) कबीर उनके समि थे (ख) कबीर के जीिन से प्रभावित थे
(ग) कबीर भगिान का रुप थे (घ) कबीर के गीत गाया करते थे
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15) उत्तर - (घ) कबीर जी के पद
1."उनका बेटा बीमार है , इसकी खबर रखने की लोगों को कहाां फुरसत ?" पांच्क्त में आधुतनक
यग
ु के मानि की ककस मानससकता पर व्यांग्य ककया गया है ?
उत्तर - इस पांच्क्त द्िारा लेखक ने मानि की उस स्िथी प्रिवृ त्त की मानससकता पर व्यांग्य ककया
है च्जसमे उसे अपने ससिाय दस
ू रा कोई नजर ही नहीां आता। ितामान समय में व्यच्क्त अपने
कक्रयाकलपों में ही इतना व्यस्त हो गया है कक दस
ू रे के बारे में सोिने का उसके पास िक्त
भी नहीां है। इस प्रकार की प्रिवृ त्त मनुष्य की सांिेदनहीनता की पररिायक है ।
उत्तर - ग्राम्य जीिन अधधकाांशतः कृवष आधाररत जीिन है । सूखे पड़े खेतों को दे ख शाांत पड़े
कृषकों को िषाा की प्रतीक्षा रहती है । िषाा न होने तक कृषक उदासीन रहते हैं। आषाढ मास
में जैसे ही आकाश बादल से तघर जाते हैं , िैसे ही उदासीन मन प्रफुच्ल्ट्लत हो उठते हैं। इसी
महीने में ककसान धान की रोपनी करते हैं और बरसात धान की फसल के सलए बहुत जरुरी है
।जैसे ही ररमखझम बाररश होती है , सूखी धरती की तयास बुझती है , िैसे ही सांपूणा ग्राम्य
जीिान उल्ट्लास से भर जाता है । आषाढ की फुहार के साथ ही सारा गाांि खेत में ठदखाई दे ने
लगता है।
4'बालगोबबन भगत की मौत उन्द्हीां के अनुरूप हुई' कथन को सोदाहरण स्तष्ट कीच्जए।
उत्तर - प्रायः मनुष्य के मन में अपने जीिन के अांत तक एक धिांता बनी रहती है कक बुढापे
में उसके ठदन कैसे कटें गे परन्द्तु भगत के मन में इस प्रकार के वििार कभी नहीां आए। बुढापे
में भी उनके नेम-ित
ृ , सांध्या - स्नान िलते रहे । खेती का काम करना , दोनों िक्त तनयम
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से गीत ध्यान करना उन्द्होंने कभी नही छोड़ा। बुखार आने पर भी गांगा स्नान के सलए गए।
यहाां तक कक अपने अांत समय में भी उन्द्होंने सांध्या समय कबीर के पद गाए और अपने पांजर
को छोड़कर िले गए। इस प्रकार मत्ृ यु का भय भी उन्द्हें अपने कमों से वििसलत नहीां कर
पाया। अतः यह कहना उधित है कक उनकी मत्ृ यु उनके ही अनुरूप हुई।
6. हर िषा गांगा स्नान जाते समय भगत के मन में क्या वििार होते थे ?
उत्तर - हर िषा गांगा स्नान जाते समय भगत के मन में तनम्नसलखखत वििार होते थे -
(१) सभन्द्न वििारधारा को अपने अांदर धारण करना।
(२) तीस कोस तक पैदल िलना।
(३) सभक्षा नहीां माांगना।
(४) पाांि ठदन तक केिल पानी ही पीकर रहना।
(५) सांत- समागम को ही प्रमुखता दे ना।
उत्तर - गमी की उमस भगत जी के स्िरों को तनढाल नहीां कर पाती थी , बच्ल्ट्क उनके सांगीत
से िातािरण शीतल हो जाता था। अपने घर के आांगन में आसन जमा बैठते। गाांि के कुछ
सांगीत प्रेमी भी उनका साथ दे ते। खांजड़ी और करतालों की सांख्या बढ जाती। एक पद गोविांद
जी कहते , पीछे उनकी मांड़ली उसे दस
ू री बार बोलती जाती। एक तनच्श्ित ताल , एिां तनच्श्ित
गतत से धीरे - धीरे स्िर ऊांिा होने लगता। उस ताल - स्िर िढाि के साथ श्रोताओां के मन
भी ऊपर उठने लगते। धीरे - धीरे मन तन पर हािी हो जाता अथाात लोगों के मन के साथ -
साथ उनका शरीर भी झूमने लगता। एक क्षण ऐसा भी आता जब भगत जी नाि रहे होते
81
तथा सभी उपच्स्थत लोगों का मन भी झूम रहे होते । सारा आांगन नत्ृ य और सांगीत से भरपूर
हो जाता तथा गमी की उमस भी शीतल प्रतीत होने लगती।
8.लड़के के दे हाांत के बाद बालगोबबन भगत ने पतोहू को ककस बात के सलए बाध्य ककया ?
उनका यह व्यिहार उनके ककस प्रकार के वििार का प्रमाण है ?
उत्तर - लड़के के दे हाांत के बाद जैसे ही श्राद्ध की अिधध समातत हुई िैसे ही बालगोबबन भगत
ने पतोहू के भाई को बल
ु ा भेजा और उसे यह आदे श ठदया गया कक िह पतोहू का पन
ु विािाह
करिा दे । उन्द्होंने अपनी इसी इचछा के साथ पतोहू को उसके भाई के साथ मायके भेज ठदया।
यह व्यिहार उनकी रुठढिादी प्रगततशील वििारधारा का पररिायक होने के साथ - साथ विधिा
वििाह के समथाक होने पर भी बल दे ता है।
9.बालगोबबन भगत मौत को दःु ख का कारण नहीां मानते थे। स्पष्ट कीच्जए।
उत्तर - बालगोबबन भगत अपने इक्लौते बेटे के दे हाांत के बाद अपनी पतोहू को रोने के बदले
उत्सि मनाने की बात कहते हैं। उनका वििार था कक उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास
िली गई है। विरठहणी अपने प्रेमी से जा समली है। अब इससे बढकर और अधधक आनांद की
बात क्या हो सकती है ? उनका मानना था कक मत्ृ यु दःु ख का कारण नहीां है बच्ल्ट्क मत्ृ यु आत्मा
परमात्मा का अांश है। िह सदा परमात्मा से समलने के सलए तड़पती है। जब व्यच्क्त मरता
है तो आत्मा परमात्मा से समल जाती है उसकी तड़पन समातत हो जाती है। इससलए भगत
जी अपनी पतोहू से शोक न मनाकर उत्सि मनाने की बात कहते हैं।
10.मोह और प्रेम में अांतर होता है। बालगोबबन भगत के जीिन की ककस घटना के आधार
पर इस कथन को सत्य ससद्ध करें गे ?
उत्तर - मोह और प्रेम में अांतर होता है । मोह में व्यच्क्त स्िाथी हो जाता है जबकक प्रेम में
व्यच्क्त के सलए अपने प्रेमी का ठहत - धिांतन ही सिोपरर होता है। इसे भगत के जीिन के
आधार पर इस प्रकार समझा जा सकता है -
(१) भगत अपने बेटे से प्रेम करते थे मोह नहीां इससलए उसकी मत्ृ यु पर िे मोही व्यच्क्त के
समान विलाप नहीां करते क्योंकक उनका पुि इस साांसाररक बांधन से मुक्त हो गया। उनके
अनुसार यह प्रसन्द्न्द्ता का अिसर है ।
82
(२) अपने पुि के श्राद्ध की अिधध पूरी होने पर भगत पुििधू के भाई को बुलाकर उसके
पुनविािाह का आदे श दे ते हैं । यठद िे मोही होते तो बुढापे में अपनी दे खभाल के सलए िे अपनी
पुििधू को उसके भाई के साथ नहीां भेजते और न ही उसे पुनविािाह का आदे श दे ते। यहाां
अपने वप्रया का ठहत - धिांतन उनके सलए सिोपरर था और यही उनके प्रेम की अांतहीन सीमा
थी।
12. भगत अपनी सब िीज साहब की मानते थे , उदाहरण सठहत स्पष्ट कीच्जए।
उत्तर - बालगोबबन भगत अपनी सब िीज साहब की मानते थे , इसका उदाहरण यह है कक
उनके खेत में जो कुछ भी पैदा होता था , उसे ससर पर लादकर 'साहब' के दरबार में ले जाते
थे। उस दरबार अथाात मठ में उसे भें ट स्िरूप रख सलया जाता और उन्द्हें जो कुछ प्रसाद
स्िरूप ठदया जाता , उसी में गुजारा करते थे।
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83
कायापिक
उत्तर ----------------
उत्तर ----------------
उत्तर ----------------
84
(ग) धगटार
(घ) खांजड़ी
उत्तर ----------------
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-------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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3बालगोबबन भगत की उन तीन विशेषाताओां का िणान कीच्जए च्जनके कारण उन्द्हें 'भगत'
कहा जाने लगा ?
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85
लिनवी अिंदाज़ (यशपाल)
पाठ का सारािंश –
‘लखनिी अांदाज़’ यशपाल का व्यांग्यात्मक रिना है। इसके द्िारा लेखक उस सामांती िगा पर
कटाक्ष करते हैं जो िास्तविकता से बेखबर एक बनािटी जीिन शैली का आदी है। यहाँ निाब
साहब, ठदखािा करने िाले उस सामांती िगा का प्रतीक है , जो खीरा सूँघकर पेट भरने का बहाना
करते हैं। यह रिना नए कहातनकारों को यह िेतािनी भी दे ती है कक बबना कथ्य, पाि, घटना
आठद के एक अचछी कहानी नहीां सलखी जा सकती।
I. ठाली बैठे, कल्ट्पना करते रहने की पुरानी आदत है । निाब साहब की असुविधा और सांकोि के
कारण का अनम
ु ान करने लगे। सांभि है , निाब साहब ने बबल्ट्कुल अकेले यािा कर सकने के
अनुमान में ककफायत के वििार से सेकांड क्लास का ठटकट खरीद सलया हो और अब गिारा न
हो कक शहर का कोई सफेदपोश उन्द्हें मँझले दजे में सफर करता दे खे। …. अकेले सफर का
िक्त काटने के सलये ही खीरे खरीदे होंगे और अब ककसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएँ?
हम कनखखयों से निाब साहब की ओर दे ख रहे थे। निाब साहब कुछ दे र गाड़ी की खखड़की से
बाहर दे खकर च्स्थतत पर गौर करते रहे ।
‘ओह’, निाब साहब ने सहसा हमें सांबोधधत ककया, ‘आदाब-अज़ा, जनाब, खीरे का शौक फरमाएँगे?
1.कौन निाब साहब की असुविधा और सांकोि के कारण का अनुमान करने लगे?
क) यशपाल ख) स्ियांप्रकाश
ग) नागाजन
ुा घ) रामिक्ष
ृ बेनीपरु ी
3. निाब क्यों नहीां िाहते थे कक कोई उन्द्हें मँझले दजे में सफर करता दे खें?
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क) िे अकेले सफर करना िाहते थे ख) उनकी निाबीपन पर आांि आ सकती
थी
ग) िे खीरे का शौक फरमानेिाले थे घ) ख और ग दोनों
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4. निाब ने फाँकों को खखड़की के बाहर क्यों फेंका ?
i) िे उसे खाने नहीां िाहते थे
ii) एक सफेदपोश के सामने खाना नहीां िाहते थे
iii) िह खानदानी रईसों का तरीका नहीां था
iv) अपने ठदखािे की प्रिवृ त्त से बाज़ न आ पाए
क) i, ii, iii, iv
ख) ii, iii, iv
ग) iii, iv
घ) iii, iv
उत्तर सांकेत : I
1.ख) स्ियांप्रकाश
2.ग) सस्ता होने के वििार से
3.घ) ख और ग दोनों
4.क) विनम्रता से
5.घ) तीनों कारणों से
1. लेखक को निाब साहब के ककन हाि-भािों से महसूस हुआ कक िे उनसे बातिीत करने के
सलए ततनक भी उत्सुक नहीां हैं?
88
उत्तर- जब लेखक सेकांड क्लास के ड़डब्बे में िढा तो दे खा उसमें एक निाब साहब पहले से
बैठे थे। लेखक को दे खकर निाब साहब की आँखों में एकाांत धिांतन में विघ्न का असांतोष
ठदखाई ठदया । उन्द्होंने लेखक से बातिीत नहीां की और िे खखड़की से बाहर की च्स्थतत पर गौर
करते रहे । इन सब हाि-भािों को दे खकर लेखक ने जान सलया कक निाब साहब उनसे बातिीत
करने के इचछुक नहीां हैं।
प्रश्न 2. निाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-समिा बरु का, अांततः सँधकर ही
खखड़की से बाहर फेंक ठदया। उन्द्होंने ऐसा क्यों ककया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे
स्िभाि को इांधगत करता है ?
उत्तर-निाब साहब ने यत्न पूिक
ा खीरा काटकर नमक-समिा तछड़का और सँधकर खखड़की से
बाहर फेंक ठदया। उनका ऐसा करना उनकी निाबी नखरे को ठदखाता है। िे लोगों के काया
व्यिहार से हटकर अलग काया करके अपनी निाबी और अमीरी को ठदखाने की कोसशश करते
हैं।
प्रश्न 3. बबना वििार, घटना और पािों के भी क्या कहानी सलखी जा सकती है। यशपाल के इस
वििार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर- लेखक का मानना है कक बबना वििार, घटना और पािों के भी क्या कहानी सलखी जा
सकती है अथाात वििार, घटना और पाि के बबना कहानी नहीां सलखी जा सकती है। मैं लेखक
के इन वििारों से पूणत
ा या सहमत हूँ। िास्ति में कहानी ककसी घटना विशेष पर आधाररत होता
है । इसका कारण क्या था?, यह कब हुआ, पररणाम क्या रहा तथा इस घटना का ककन पर
प्रभाि पड़ा आठद का िणान ही कनमनी है। अतः ककसी कहानी के सलए वििार, घटना और पाि
बहुत ही आिश्यक हैं।
89
उत्तर- लेखक ने भीड़ से बिने केसलए तथा एकाांत में नयी कहानी सोि सकने और खखड़की से
प्राकृततक दृश्य दे खने के सलए सेकांड क्लास का ठटकट सलया।
2.लेखक ने क्या सोिकर सेकांड क्लास के ड़डब्बे में िढा और उनका अनुमान गलत कैसे तनकला
?
उत्तर- लेखक ने ड़डब्बे को खाली समझकर िढा, लेककन उनके अनम
ु ान के खखलाफ एक बथा पर
निाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बैठे थे ।
उत्तर- सज्जन बथा पर पालथी मारे बैठे थे,उनके सामने दो ताज़े-धिकने खीरे तौसलए पर रखे थे
।
6.बेकाम बैठते समय लेखक की क्या आदत थी और इस िास्ते उन्द्होंने क्या ककया?
उत्तर- बेकाम बैठते समय कल्ट्पना करते रहने की उनकी परु ानी आदत थी। इस िास्ते िे निाब
साहब की असुविधा और सांकोि के कारण का अनुमान करने लगे।
7.निाब साहब की असवु िधा और सांकोि के सांबांध में लेखक ने क्या-क्या अनम
ु ान लगाए?
उत्तर- निाब साहब की असुविधा और सांकोि के सांबांध में लेखक ने ये अनुमान लगाए कक
उन्द्होंने अकेले यािा करने के वििार से सेकांड क्लास का अपेक्षाकृत सस्ता ठटकट ले सलया
होगा। यही नहीां अकेले सफर का िक्त काटने के सलए खीरे खरीदे , लेककन ककसी दस
ू रे सफेदपोश
के सामने उसे खाने में निाब को शरम अनुभि होने लगा ।
90
उत्तर- निाब साहब पहले तो लेखक से सांगतत के सलए उत्साह नहीां ठदखा रहे थे। कफर अिानक
लेखक से पूछ बैठे कक क्या आप खीरा खाना पसांद करें गे ? निाब साहब का यह भाि पररितान
लेखक को अचछा नहीां लगा।
10.खीरे को खाने योग्य बनाने के सलए निाब साहब ने क्या-क्या ककया और उन्द्हें ककस तरह
सजाकर रखा? पठठत पाठ के आधार पर सलखखए।
उत्तर- निाब साहब ने खीरे को खाने योग्य बनाने के सलए पहले उसे अचछी तरह धोया कफर
तौसलए से पोछा। अब उन्द्होंने िाकू तनकालकर खीरों के ससरे काटे और गोदकर झाग तनकाला।
कफर उन्द्होंने खीरों को छीला और फाँकों में काटकर करीने से सजाया।
11. लेखक के वििार से कौन खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं और िे ककस तरह ग्राहक
को पेश करते हैं?
उत्तर- लेखक के अनुसार लखनऊ स्टे शन पर खीरा बेिने िाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका
जानते हैं। ग्राहक के सलए िे जीरा-समला नमक और पीसी हुई लाल समिा की पुड़ड़या के साथ
ये पेश करते हैं ।
12. खीरे को सजाते समय लेखक ने यह कैसे पहिाना कक निाब का मुख रसास्िादन की
कल्ट्पना में तलावित हो रहा है?
उत्तर- लेखक ने निाब की प्रत्येक भाि-भांधगमा और जबड़ों के स्फुरण से समझ सलया कक निाब
का मख
ु रसास्िादन की कल्ट्पना में तलावित हो रहा है ।
13. निाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक-समिा तछड़का च्जसे दे खकर लेखक ललिाया पर
उन्द्होंने खीरे खाने का प्रस्ताि दस
ू री बार भी अस्िीकृत क्यों कर ठदया?
उत्तर- निाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक-समिा तछड़ककर लेखक से खाने के सलए आग्रह
ककया तो लेखक ने मना कर ठदया। यद्यवप लेखक खीरे खाना िाहता था कफर भी एक बार
मना कर िुकने के कारण अपने आत्मसम्मान को बनाए रखने के सलए उन्द्होंने खीरे खाने के
प्रस्ताि को अस्िीकृत कर ठदया।
14. बबना खीरा खाए निाब साहब को डकार लेते दे खकर लेकर क्या सोिने पर वििश हो गया?
91
उत्तर-लेखक ने दे खा कक निाब साहब ने खीरों की फाँकों का रसास्िादन ककया उन्द्हें मुँह के
करीब ले जाकर सूांघा और बाहर फेंक ठदया। इसके बाद निाब साहब को डकार लेता दे खकर
लेखक यह सोिने पर वििश हो गया कक क्या इस तरह सँघने माि से पेट भर सकता है ?
उत्तर- लेखक ने दे खा कक निाब साहब खीरे की नमक-समिा लगी फाँकों को सँघकर खखड़की के
बाहर फेंकते गए। बाद में उन्द्होंने डकार करके सांतच्ु ष्ट दशााने का प्रयास ककया। निाब के अनस
ु ार
खीरा पेट पर बोझ डालता है। यह दे खकर लेखक के ज्ञान-िक्षु खुल गए कक इसी तरह सचिी
बातों से बेखबर नयी कहानी के लेखक भी बबना घटनाक्रम, पाि और वििारों के कहानी का
प्रयास करते हैं ।
उत्तर- ‘लखनिी अांदाज’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक यह सांदेश दे ना िाहता है कक हमें
ठदखािेपन से दरू रहना िाठहए। हमें काल्ट्पतनकता को छोड़कर िास्तविकता को अपनाना िाठहए
। एक अचछे मनुष्य की पहिान उसका अचछा व्यिहार ही है ।
17. ‘लखनिी अांदाज़’ पाठ में लेखक को निाबी साहब में खानदानी तहज़ीब, नफासत और
नज़ाकत के क्या सबूत ठदखाई ठदए । पाठ के आधार पर सलखखए ।
उत्तर: निाबी खानदान के लोग अपने खानदानी तहज़ीब(सशष्टता) के सलए प्रससद्ध है। िे बड़ी
विनतापूिक
ा दस
ू रों से पेश आते हैं, जैसे कक पाठ में निाब का लेखक से पूछना कक" ' आदाब
अज़ा', जनाब' खीरे का शौक फरमाएांगे।" निाब का खीरे की तैयारी ि स्िचछता का प्रयत्न तो
उनकी नफाजत(स्िचछता) का प्रतीक है। खीरे को सांघ
ू कर बाहर फेंकना उनकी निाबी
नज़ाकत(कोमलता) को ठदखाता है । इस प्रकार पूरा पाठ निाबों की बनािटी जीिन-शैली और
नखरे का उत्तम सबत
ू है ।
बहुविकल्ट्पी प्रश्न:-
92
क)भीड़ से बिने ख)नयी कहानी के सांबांध में सोिने
ग)खखड़की से प्रकृततक दृश्य दे खने घ)ऊपर ठदये सभी कारणों से
93
ग)खीरा बेिने िाले की घ)ठटकट बाबू की
11. निाब साहा का सहसा क्या करना लेखक को अचछा नहीां लगा?
क) साथ बैठना ख) खीरा खाना
ग) भाि-पररितान घ) खखड़की से बाहर दे खना
17. ककसने ककससे कहा कक "िल्ट्लाह, शौक कीच्जए, लखनऊ का िालम खीरा है।"
क) निाब ने ठटकट बाबू से ख) ठटकट बाबू ने निाब से
94
ग) निाब ने लेखक से घ) लेखक ने निाब से
उत्तर-सूिी
95
कायषपत्रक (लिनवी अिंदाज़)
3.निाब साहब के सांतुच्ष्ट के असभनय द्िारा लेखक ककन पर कटाक्ष करते हैं?
क)मामूली लोगों पर
ख)लेखक पर
ग)नए कहानीकारों पर
घ)नए तनबांधकारों पर
96
सांक्षेप में उत्तर सलखखए :-
5. ‘लखनिी अांदाज़’ पाठ में निाब साहब के कक्रयाकलाप से हमें च्जस जीिन-शैली का पररिय
होता है क्या आज की बदलती पररच्स्थततयों में उसका तनिााह सांभि है ? तकासठहत उत्तर
दीच्जए।
उत्तर:...........................................................................................................................
..................................................................................................................................
.................................................................................................................
6. ‘लखनिी अांदाज़’ पाठ में निाब साहब ने अकेले सफर काटने के सलए खीरा खरीदा था।
आप अकेले सफर का िक्त कैसे काटते हैं?
उत्तर:...........................................................................................................................
..................................................................................................................................
.....................................................................................................................
7. लखनिी अांदाज़’ पाठ में निाब साहब के माध्यम से निाबी परां परा पर व्यांग्य है। स्पष्ट
कीच्जए ।
उत्तर............................................................................................................................
..................................................................................................................................
......................................................................................................................-----------
**************************************************
97
एक क ानी य भी - मन्नू भिंडारी
साराांश
एक कहानी यह भी' मन्द्नू भांडारी द्िारा आत्मपरक शैली में सलखी हुई आत्मकथ्य है।
इस पाठ में यह बात बड़े ही प्रभािशाली ढां ग से दशााई गई है कक बासलकाओां
को ककस तरह की पाबांठदयों का सामना करना पड़ता है। अपने वपता से लेखखका के
िैिाररक मतभेद का भी धििण हुआ है । प्रस्तुत आत्मकथा में लेखखका मन्द्नू भांडारी
ने ससलससलेिार आत्मकथा न सलखकर उन व्यच्क्तयों और घटनाओां का िणान ककया है
च्जन्द्होंने उसके लेखकीय व्यच्क्तत्ि के तनमााण में महत्िपूणा भूसमका तनभाई है । उन्द्होंने ककशोर
जीिन से जुड़ी घटनाओां के साथ-साथ अपने वपताजी, कॉलेज की प्राध्यावपका शीला अग्रिाल के
बारे में भी सलखा है।जो उनके लेखकीय जीिन से जुड़े है । लेखखका ने बड़े रोिक ढां ग से एक
साधारण लड़की के असाधारण बनने की पहली पड़ािों का िणान ककया है । सन ् 46- 47 की
आज़ादी की आँधी ने मन्द्नू जी को अछूता नहीां छोडा। छोटा शहर की युिा होती लड़की ने
आज़ादी की लड़ाईयों में च्जस तरह भागीदारी की, इससे उसका उत्साह, ओज ्, सांघटन क्षमता और
विरोध करने की तरीका दे खते ही बनता है। इन सब घटनाओां के साथ हो रहे अपने वपताजी
के अांतविारोधों को भी लेखखका ने बखूबी उजागर ककया है ।
ii धन सलतसा 2. यश सलतसा
3. क्रोध 4. अहांकार
98
1. आन्द्दोलन में भाग लेने पर 2. वपताजी से बहस करने पर
3. भाई-बहन की छिछाया हटने पर 4. माँ से दरू हो जाने पर
16. लेखखका का अपने घर में ककस सम्मातनत व्यच्क्त ने बड़ी गमाजोशी से स्िागत ककया ?
1. अांबबका लाल जी 2. अांबा लाल जी
3. श्री कृष्ण लाल जी 4. अांबा दे ि जी
प्रश्नोत्तर
1.लेखखका के व्यच्क्तत्ि पर ककन ककन व्यच्क्तयों का ककस रूप में प्रभाि पड़ा?
लेखखका के व्यच्क्तत्ि पर उनके वपता और उनकी कॉलेज की ठहांदी अध्यावपका शीला अग्रिाल
का प्रभाि सबसे अधधक पडा।गोरे रां ग के प्रतत वपता का आकषाण तथा साँिले रां ग िाली लेखखका
की उपेक्षा उसमे हीन भािना उत्पन्द्न कर शक्की बनाया। वपता के व्यिहार ने लेखखका के मन
में आक्रोश, विरोह और जागरूकता भरा। शीला अग्रिाल ने उनमें पुस्तकों के ियन और साठहत्य
में रुधि उत्पन्द्न की। तत्कालीन राजनीतत में भागीदारी केसलए प्रेररत कर उन्द्होंने लेखखका को
एक नया रास्ता ठदखाया।
2.इस आत्मकथ्य में लेखखका के वपता ने रसोई को भठटयारखाना कहकर क्यों सम्बोधधत
ककया है?
भठटयारखाना’ का अथा है - ऐसा घर या स्थान जहाँ भट्ठी जलती है अथिा िैसा घर जहाँ लोगों
द्िारा लोक-लज्जा का त्याग कर अपशब्दों का इस्तेमाल ककया जाता हो। यहाँ लेखखका के वपता
रसोईघर को ‘भठटयार खाना ’ कहते हैं। उनके अनुसार रसोईघर की भट्ठी में मठहलाओां की
समस्त प्रततभा जलकर भस्म हो जाती है , क्योंकक उन्द्हें िहाँ से कभी फुसात ही नहीां समलती कक
िे अपनी कला और प्रततभा का प्रदशान कर सकें। उन्द्हें अपनी इचछाओां का गला घोंटना पड़ताहै।
3.िह कौनसी घटना थी च्जसके बारे में सुनने पर लेखखका को न अपनी आँखों पर विश्िास हो
पाया और न अपने कानों पर?
99
लेखखका और उसके साधथयों की नारे बाज़ी और हड़ताल के कारण कॉलेज़ प्रशासन को कॉलेज़
िलाने में कठठनाई हो रही थी। फलत; लेखखका के वपता के पास कॉलेज़ के वप्रांससपल का पि
आया, च्जसमें लेखखका के कक्रया - कलापों की सशकायत की गई थी। िे आग-बबूला होकर कॉलेज़
गए। परन्द्तु ; अपनी बेटी के कारनामें जानकर और उसके प्रभाि को दे खकर उन्द्हें मन ही मन
गिा हुआ। लेखखका वपता के डर से अपने पड़ोसी के यहाँ बैठ गई थी। माँ ने जब जाकर बताया
कक उसके वपताजी क्रोधधत नहीां हैं, तो िह घर आई। वपता की बातें सन
ु कर और उनकी खश
ु ी
दे खकर लेखखका को न तो अपनी आँखों पर विश्िास हुआ और न अपने कानों पर।
लेखखका ने जब से होश सांभाला तब से प्राय: ककसी न ककसी बात को लेकर अपने वपता के
साथ उसका टकराि होता ही रहता था। लेखखका के रां ग को लेकर वपता ने उसके मन में हीनता
भर दी थी। िे लेखखका में विरोह और जागरण का भाि भरना तो िाहते थे , परन्द्तु ; उसे घर
की िारदीिारी तक ही सीसमत रखना िाहते थे। लेखखका को रां ग का भेदभाि पसांद न था, साथ
ही वपता का शक्की स्िभाि भी उसे खलता था। िह भी स्ितांिता - सांग्राम में सकक्रय भागीदार
होना िाहती थी। प्राय: इन्द्हीां मुद्दों पर दोनों में िैिाररक टकराहट होती रहती थी।
सन ् 1946-47 ई. में समूिे दे श में ‘भारत छोड़ो आांदोलन’ पूरे उफान पर था। हर तरफ हड़तालें
, प्रभात - फेररयाँ, ज़ुलूस और नारे बाज़ी हो रही थी। घर में वपता और उनके साधथयों के साथ
होनेिाली गोच्ष्ठयों और गततविधधयों ने लेखखका को भी जागरूक कर ठदया था। प्राध्यावपका
शीला अग्रिाल ने लेखखका को स्ितांिता - आांदोलन में सकक्रय रूप से जोड़ ठदया। जब दे श में
तनयम - कानून और मयाादाएँ टूटने लगीां, तब वपता की नाराज़गी के बाद भी िे पूरे उत्साह के
साथ आांदोलन में कूद पड़ीां। उनका उत्साह , सांगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा दे खते
ही बनता था। िे िौराहों पर बेखझझक भाषण, नारे बाज़ी और हड़तालें करने लगीां। इस प्रकार हम
कह सकते हैं कक स्ितांिता आांदोलन में उनकी भी सकक्रय भसू मका थी।
6.लेखखका ने बिपन में अपने भाइयों के साथ धगल्ट्ली डांडा तथा पतांग उडाने जैसे खेल भी खेले
ककन्द्तु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर के िार दीिारी तक सीसमत था। क्या आज भी
लड़ककयों के सलए च्स्थततयाां ऐसी ही है या बदल गई है ? अपने पररिेश के आधार पर
सलखखए।
100
बिपन में लेखखका ने धगल्ट्ली-डांडा और पतांग उड़ाने जैसे खेल तो खेले, लेककन उनका दायरा घर
की िारदीिारी तक ही सीसमत था। इस दृच्ष्ट से आज च्स्थततयाँ एकदम बदल-सी गई हैं। आज
लड़ककयाँ घर की िौखट लाँघ कर खेल के मैदानों में पहुँि गईं हैं। उन पर लगी पाबांठदयाँ
क्रमश: कमतर होती जा रही हैं। यही कारण है कक लड़ककयाँ केिल खेल में ही नहीां , अवपतु
अन्द्य लड़कों की तरह समाज सेिा , नौकरी , व्यापार आठद क्षेिों में भी अपना ििास्ि स्थावपत
करते जा रही हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कक आज लड़ककयाँ घर की िारदीिारी में बन्द्द
नहीां हैं।
7.मनष्ु य के जीिन में आस पड़ोस का बहुत महत्त्ि होता है। बड़े शहरों में रहनेिाले लोग प्राय:
पड़ोस कल्ट्िर से िांधित रह जाते है । अपने अनुभि के आधार पर सलखखए।
मनुष्य के जीिन में ‘पड़ोस-कल्ट्िर’ का बड़ा महत्ि है। पड़ोसी प्राय: एक-दस
ू रे की सहायता करने
के सलए तैयार रहते हैं। गाँिों में ‘पड़ोस-कल्ट्िर’ के आज भी दशान होते हैं। परन्द्तु; दभ
ु ााग्यिश
शहरों में ‘पड़ोस-कल्ट्िर’ प्राय: है ही नहीां। महानगरों के लोग इससे सिाथा िांधित रह जाते हैं।
आज नगरों में नर - नारी दोनों कामकाजी हैं। िे अपने काम और घर के अलािा कुछ दस
ू रा
सोि ही नहीां पाते। िे स्ि - केच्न्द्रत हो गए हैं। बचिे भी अपने भविष्य की धिन्द्ता में खोए
रहते हैं। आज लोग पड़ोसी से इतने कटे हैं कक उन्द्हें अपने पड़ोसी का नाम भी नहीां मालम
ू
होता , कफर भला सुख - दख
ु बाँटने की तो बात ही दस
ू री ह
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101
कायष पत्रक
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
102
1. पड़ोस सांस्कृतत 2. पानी
3. बबजली 4. पररिार
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
उत्तर -------------------------------
103
नौबतखाने में इबादत लेखक- यतीांर समश्र
पाठ पररिय
यह पाठ प्रससद्ध शहनाई िादक बबच्स्मल्ट्ला खाँ पर रोिक शैली में सलखा गया
व्यच्क्त धिि है । प्रस्तत
ु पाठ में बबच्स्मल्ट्ला खाँ के पररिय के साथ उनकी रुधियों, उनके
अांतमान की बुनािट, सांगीत की साधना और लगन को मासमाक भाषा में व्यक्त ककया गया है
। लेखक को शास्िीय सांगीत की गहरी जानकारी है च्जसका प्रभाि पाठ में दृच्ष्टगोिर होता है
। लेखक का मानना है कक जब तक राम कथा है , इस विदे शी भारतीय साधु को याद ककया
जाएगा तथा उन्द्हें ठहन्द्दी भाषा और बोसलयों के अगाध प्रेम का उदाहरण माना जाएगा ।
II. तनम्नसलखखत गद्याांश पढकर नीिे ठदए गए प्रश्नों के उत्तर िुनकर सलखखए ।
( क) शहनाई के इसी मांगलध्ितन के नायक बबच्स्मल्ट्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सरु
माँग रहे हैं । सचिे सुर की नेमत । अस्सी बरस की पाँिों िक्त िाली नमाज़ इसी सुर को
पाने की प्राथाना में खिा हो जाती है । लाखों सज़दे , इसी एक सचिे सरु की इबादत में खद
ु ा
के आगे झुकते हैं । िे नमाज़ के बाद सज़ते में धगडधगडाते हैं – मेरे मासलक एक सुर बख्श
दे । सुर में िह तासीर पैदा कर की आँखों में सचिे मोती की तरह अनगढ आँसू तनकल
आएँ । उनको यकीन है , कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर
का फल तनकालकर उनकी ओर उछालेगा , कफर कहे गा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले
और कर ले अपनी मुराद पूरी ।
104
3.बबच्स्मल्ट्ला खाँ को क्या विश्िास है ?
1.खुदा उनकी प्राथाना सुन सकता है 2. खुदा उनकी मुराद ज़रूर पूरी करे गा
3.खुदा उन्द्हें यश अिश्य दे गा 4.खुदा उनकी प्राथाना अनसुनी कर सकता है
(ख) इस ठदन खाँ साहब खडे होकर शहनाई बजाते हैं ि दालमांडी में फातमान के करीब आठ
ककलोमीटर की दरू ी तक पैदल रोते हुए नौहा बजाते जाते हैं । इस ठदन कोई राग नहीां बजता
।राग- राधगतनयों की अदायगी का तनषेध है इस ठदन । उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके
पररिार के लोगों की शहदत में नम रहती हैं । आज़दारी होती है । हज़ारों आँखें नम । हज़ार
बरस की परां परा पुनजीवित । मुहरा म सांपन्द्न होता है । एक बडे कलाकार का सहज मानिीय
रूप ऐसे अिसर पर आसानी से ठदख जाता है ।
2. बबच्स्मल्ट्ला खाँ उस विशेष ठदन पर आठ ककलोमीटर तक रोते हुए नौहा क्यों बजाते हैं?
क. इमाम हुसैन और उनके पररिार िालों के प्रतत श्रद्धाांजसल दे ने केसलए
ख. इमाम हुसैन और उनके पररिार िालों की याद में
ग. इमाम हुसैन का ऐसा आदे श था
घ. दस
ू रों को ऐसा करते दे खकर
3. “रोते हुए नौहा बजाने” से बबच्स्मल्ट्ला खाँ की ककस विशेषता का पता िलता है?
क. िे रोते हुए भी शहनाई बजा सकते थे
ख. िे नौहा भी बजा सकते थे
ग. सप्र
ु ससद्ध कलाकार होकर भी िे परां पराओां का आदर करते थे
घ. िे बहुत पररश्रमी थे ।
105
4. इनमें कौन सा कथन बबच्स्मल्ट्ला खाँ के व्यच्क्तत्ि की विशेषता की पुच्ष्ट नहीां करता है ?
क. िे श्रेष्ठ कलाकार थे
ख. िे उचिकोठट के कलाकार होने के साथ अचछे इांसान भी थे ।
ग. िे सांिेदनहीन व्यच्क्त थे
घ. िे धासमाक तथा परां पराओां का पालन करनेिाले थे ।
5. प्रस्तत
ु पाठ के लेखक का नाम है –
क. स्ियां प्रकाश ख. रामिक्ष
ृ बीनी पुरी
ग. यतीर समश्र घ. यश्पाल
(ग) अक्सर कहते हैं – क्या करें समयाँ, ई काशी छोडकर कहाँ जाएँ, गांगा मइया यहाँ, बालाजी का
मांठदर यहाँ, बाबा विश्िनाथ यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है , हमारे
नाना तो िहीां बालाजी मांठदर में बडे प्रततच्ष्ठत शहनाईिाज़ रह िक
ु े हैं । अब हम क्या करें ,
मरते दम तक न यह शहनाई छूटे गी न काशी । च्जस ज़मीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब
पाई, िो कहाँ और समलेगी? शहनाई और काशी से बढकर कोई जन्द्नत नहीां इस धरती पर हमारे
सलए ।
1.“ई काशी छोडकर कहाँ जाएँ” - िाक्य में बबच्स्मल्ट्ला खाँ के मन का कौन सा भाि प्रकट होता
है?
क. काशी के प्रतत गहरे लगाि का
ख. लालि का
ग. के प्रतत सांकीणा मानससकता का
घ. इनमें से कोई नहीां
106
ग. उनकी कई पीठढयाँ यहाँ पैदा हुई थीां ।
घ.उनकी कई पीठढयों ने यहाँ शहनाई बजाई है ।
4. बबच्स्मल्ट्ला खाँ ने शहनाई िादन में ककस जगह से प्रिीणता प्रातत की?
क. डुमराँि ख. काशी
ग. प्रयाग घ. हररद्िार
1. शहनाई की दतु नया में डुमराँि को क्यों याद ककया जाता है?
उ. शहनाई की दतु नया में डुमराँि को याद ककया जाता है क्योंकक बबहार के डुमराँि गाँि के एक
सांगीत प्रेमी पररिार में बबच्स्मल्ट्ला खाँ का जन्द्म हुआ । शहनाई और डुमराँि एक-दस
ू रे केसलए
उपयोगी हैं । शहनाई बजाने केसलए रीड का प्रयोग होता है। यह रीड एक प्रकार की घास से
बनाई जाती है । यह घास डुमराँि की महत्ता है , च्जसके कारण शहनाई जैसा िाद्य बजता है ।
उस्ताद बबच्स्मल्ट्ला खाँ का जन्द्म भी यहीां हुआ था । इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ भी
डुमराँि तनिासी थे ।
2. काशी में हो रहे कौन सा पररितान बबच्स्मल्ट्ला खाँ को व्यधथत करते थे?
उ.सन 2000 में पक्का महाल ( काशी विश्िनाथ से लगा हुआ अधधकतम इलाका ) से मलाई
बरफ बेिने िाले जा िुके थे । खाँ साहब को इनकी कमी खलती थी । िे सशद् द से यह
महसूस करते थे कक दे शी घी में भी शुद्धता नहीां रही । गायकों के मन में सांगततयों केसलए
कोई आदर नहीां रहा । कोई भी घांटों अभ्यास नहीां करता । साांप्रदातयक सद् भािना कम होती
जा रही है । एक सचिे सुर साधक और सामाच्जक मान्द्यताओां को मानने िाले खाँ साहब
को काशी में हो रहे यह पररितान व्यधथत करते थे ।
3.बबच्स्मल्ट्ला खाँ के व्यच्क्तत्ि की कौन-कौन सी विशेषताओां ने आपको प्रभावित ककया ?
उ. बबच्स्मल्ट्ला खाँ के व्यच्क्तत्ि में अनेक ऐसी विशेषताएँ थी , उनमें से कुछ हैं – सांगीत
साधना के प्रतत पूणा तनष्ठा, सादा जीिन उचि वििार, ठहन्द्द ु – मुच्स्लम एकता के समथाक ,
भारतीय सांस्कृतत के प्रतत गहरा लगाि , प्रदशान की भािना का न होना , शहनाई को उचि
स्थान ठदलाना तथा तमाम तारीफ केसलए ईश्िर की कृपा मानना ।
107
4. जीिन के आरां सभक ठदनों में सांगीत के प्रतत खाँ साहब की आसच्क्त क्यों और कैसे हुई?
उ. खाँ साहब जब छोटे थे तब िे ररयाज़ केसलए बालाजी मांठदर जाते थे । रास्ते में रसूलन
और बतूलन दोनों बहनों का घर था, िे बहुत अचछा गाती थी । इन्द्हीां बहनों के गायन से
उन्द्हें सांगीत के प्रतत लगाि उत्पन्द्न हुआ ।
5. बबच्स्मल्ट्ला खाँ जी के बिपन का नाम क्या था? इनके मामा तथा बडे भाई का पररिय अपने
शब्दों में सलखखए ?
उ. बबच्स्मल्ट्ला खाँ जी के बिपन का नाम अमीरुद् दीन था । बबच्स्मल्ट्ला जी यानी अमीरुद्दीन
छह साल की उम्र से और इनके बडे भाई शम्सुद् दीन नौ साल की उम्र से अपने मामा के
यहाँ रहते थे । अमीरुद् दीन को राग के बारे में बबलकुल भी जानकारी नहीां थी । इनके
मामा अकसर भीमपलासी और मुलतानी राग के बारे में कहते थे । दोनों मामा साठदक हुसैन
और अलीबख्श दे श के जाने – माने शहनाई िादक थे । िे दे श के विसभन्द्न ररयासतों के
दरबार में बजाने जाते रहते थे ।
7. सवु षर – िाद्यों से क्या असभप्राय है? शहनाई को सवु षर िाद् यों में “ शाह” की उपाधी क्यों
दी गई होगी ?
उ. सुवषर िाद्य अथाात िाद्य , च्जनमें नाडी ( नरकट या रीड ) होती है और च्जन्द्हें फँू ककर
बजाया जाता है । शहनाई को शाहे नय अथाात सुवषर िाद् यों में शाह की उपाधध दी गई है ।
मुरली, िांशी, श्रांग
ृ ी आठद में यह सबसे अधधक प्रिसलत, प्रससद्ध ि मोहक िाद् य रहा है । अिधी
के पारां पररक लोकगीतों एिां िैती में शहनाई का उल्ट्लेख बार- बार समलता है । दक्षक्षण भारत
के मांगल िाद्य नागस्िरम की तरह शहनाई प्रभाती की मांगल ध्ितन का सांपूरक है ।
8. बबच्स्मल्ट्ला खाँ कला के अनन्द्य उपासक थे, तका सठहत उत्तर दीच्जए?
108
उ. बबच्स्मल्ट्ला खाँ शहनाई बजाने की कला में तनपुण थे । िे कला को साधना मानते थे ।
िे गांगा – घाट पर बैठकर घांटों ररयाज़ करते रहते थे । िे सदा खुदा से सुर बख्शने की माँग
करते रहते थे । उन्द्होंने अपनी कला को कभी कमाई का साधन नहीां बनाया । सिाश्रेष्ठ
कलाकार होने पर भी उन्द्होंने स्ियां को अधूरा माना । शहनाई िादन पर उनकी तारीफ की
जाती थी, तो िे उसे अलहमदसु लल्ट्लाह कहकर खुदा को समवपात कर दे ते थे । बिपन में
नाना की मीठी शहनाई की खोज से शुरु हुआ सुरों का सफर आजीिन सचिा सरु खोजने में
ही तनकला । इससे ससद्ध होता है कक िे कला के अनन्द्य उपासक थे ।
उत्तर
II. (क)1. मांगलध्ितन के नायक
2. सुर
3.खुदा उनकी मुराद ज़रूर पूरी करे गा
4.विनम्र
5.च्जजीविषा
109
कायापिक
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110
5.बबच्स्मल्ट्ला खाँ के व्यच्क्तत्ि की कौन कौन सी विशेषताओां ने आपको प्रभावित ककया? आप
इन में से ककन विशेषताओां को अपनाना िाहें गे? कारण सठहत ककन्द्हीां दो का उल्ट्लेख कीच्जए|
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सांस्कृतत
साराांश
सांस्कृतत तनबांध हमें सभ्यता और सांस्कृतत से जड़
ु े अनेक जठटल प्रश्नों से टकराने की प्रेरणा
दे ता है | इस तनबांध में भदां त आनांद कौसल्ट्यायन जी ने अनेक उदाहरण दे कर यह बताने का
प्रयास ककया है कक सभ्यता और सांस्कृतत ककसे कहते है ,दोनों एक ही िस्तु है अथिा अलग
अलग | िे सभ्यता को सांकृतत का पररणाम मानते हुए कहते है कक मानि सांस्कृतत अविभाज्य
िस्तु है |उन्द्हे सांस्कृतत का बाांटिारा करने िाले लोगों पर आश्िया होता है और दख
ु भी |उनकी
दृच्ष्ट में जो मनष्ु य के सलए कल्ट्याणकारी नहीां है , िह न सभ्यता है और न सांस्कृतत | लेखक
दो उदाहरण दे ता है पहला उदाहरण है आग का आविष्कार और दस
ू रा सुई-धागे का| लेखक के
अनुसार इन दोनों को खोजने की शच्क्त या प्रिवृ त्त को सांस्कृतत कहते है और आग तथा सुई-
धागे को सभ्यता कहते है ,दस
ू रे शब्दों में प्रिवृ त्त और प्रेरणा को सांस्कृतत कहते है | आविष्कृत
िस्तु को सभ्यता कहते है |
1.उपयक्
ुा त गदयाांश ककस पाठ से अितररत है?
क)एक कहानी यह भी ख)सांस्कृतत
ग)नौबतखाने में इबादत घ)स्िी-शीक्षा के विरोधी कुरतों का खांडन
2.सांस्कृतत क्या है
क)मनोिवृ त्त ख)आविष्कार
ग)योग्यता घ)ज्ञान
112
ग)सामथ्या और क्षमता में है घ)आविष्कार करने और उसका उपयोग करने में
है |
113
4.अनायास का तात्पया है -
क) बबना प्रयास के ब)सुविधा से
ग)आराम से घ) मेहनत से
5.सभ्य कौन है –
क)जो रहन-सहन के तैर तरीके जनता है ख)च्जसका पहनािा अचछा हो
ग)जो नए आविष्कार कताा हो घ)जो आविष्कारों का ज्ञाता हो
III॰ननम्नमलखिि से ककन् ीिं िीन प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में मलखिए
1.लेखक की दृच्ष्ट में 'सभ्यता' और 'सांस्कृतत' की सही समझ अब तक क्यों नहीां बन पाई है ?
उत्तर .- लेखक की दृच्ष्ट में दो शब्द सभ्यता और सांस्कृतत की सही समझ अभी भी नहीां हो
पाई है ; क्योंकक इनका उपयोग बहुत अधधक होता है और िो भी ककसी एक अथा में नहीां होता
है। इनके साथ अनेक विशेषण लग जाते हैं; जैसे - भौततक-सभ्यता और आध्याच्त्मक-सभ्यता
इन विशेषणों के कारण शब्दों का अथा बदलता रहता है। इससे यह समझ में नहीां आता कक
114
यह एक ही िीज है अथिा दो| यठद दो है तो दोनों में क्या अांतर है ? इसी कारण लेखक इस
विषय पर अपनी कोई स्थायी सोि नहीां बना पा रहे हैं।
2॰आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है ? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के
मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर - आग का आविष्कार अपने-आप में एक बहुत बड़ा अविष्कार हुआ होगा। क्योंकक उस
समय मनष्ु य में बद्
ु धध शच्क्त का अधधक विकास नहीां हुआ था। समय की दृच्ष्ट से यह बहुत
बड़ी खोज थी।सम्भित: आग की खोज का मुख्य कारण रोशनी की ज़रुरत तथा पेट की ज्िाला
रही होगी। अांधेरे में जब मनुष्य कुछ नहीां दे ख पा रहा था तब उसे रोशनी की ज़रुरत महसूस
हुई होगी, कचिा माँस का स्िाद अचछा न लगने के कारण उसे पका कर खाने की इचछा से
आग का आविष्कार हुआ होगा।
4॰न्द्यूटन को सांस्कृत मानि कहने के पीछे कौन से तका ठदए गए हैं? न्द्यूटन द्िारा प्रततपाठदत
ससद्धाांतों एिां ज्ञान की कई दस
ू री बारीककयों को जानने िाले लोग भी न्द्यूटन की तरह सांस्कृत
नहीां कहला सकते, क्यों?
उत्तर- न्द्यूटन को सांस्कृत मानि कहने के पीछे यह तका ठदया गया है कक न्द्यट
ू न ने गुरुत्िाकषाण
के ससद्धाांत सांबांधी नए तथ्य का दशान ककया और इस ससद्धाांत की खोज ककया। नई िीज़ की
खोज करने के कारण न्द्यूटन सांस्कृत मानि था। कुछ लोग जो न्द्यूटन के पीढी के हैं िे न्द्यूटन
के ससद्धाांत को जानने के अलािा अन्द्य बहुत-सी उन बातों का ज्ञान रखते हैं च्जनसे न्द्यूटन
सिाथा अनसभज्ञ था, परां तु उन्द्हें सांस्कृत मानि इससलए नहीां कहा जा सकता है क्योंकक उन्द्होंने
न्द्यूटन की भाँतत ककसी नए तथ्य का आविष्कार नहीां ककया। ऐसे लोगों को सांस्कृत मानि नहीां
बच्ल्ट्क सभ्य मानि कहा जा सकता है।
115
उत्तर-सुई-धागे का आविष्कार च्जन दो महत्त्िपूणा आिश्यकताओां की पूतता के सलए ककया गया िे
हैं अपने शरीर को शीत और उष्ण मौसम से सुरक्षक्षत रखने के सलए कपड़े ससलने हे तु।
मनुष्य द्िारा सुांदर ठदखने की िाह में अपने शरीर को सजाने के सलए क्योंकक इससे पूिा िह
छाल एिां पेड़ के पत्तों से यह काया ककया करता था।
116
आत्मविनाश करता है तब यह असांस्कृतत बन जाती है । ऐसी सांस्कृतत में जब कल्ट्याण की
भािना नहीां होती है तब िह असांस्कृतत का रूप ले लेती है ।
उत्तर
I॰ 1) ख 2) ग 3) घ 4) घ 5) घ
2) 1) ग 2) ग 3) क 4) क 5) क
II॰ 1) ख 2) ग 3) ख 4) ख
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117
.कायापिक
नाम कक्षा प्रातताांक
तनम्नसलखखत से ककन्द्हीां तीन प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में सलखखए (2x3=6)
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2.क्या ितामान समाज को सांस्कृत कहा जा सकता है ? तका सठहत उत्तर दीच्जये?
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118
4.सांकृतत की पररभाषा बताइए
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पद्य ििंड
120
सूरदास-पद
121
ख) कृष्ण के पास रहने का मौका नहीां समल गया |
ग) कृष्ण के प्रतत उनके मन में प्रेम हो गया |
घ) कृष्ण के सौंदया में िह डूब गया |
5 गोवपयों के अनस
ु ार योग सांदेश ककसको दे ना िाठहए?
122
क) च्जनका मन च्स्थर है ख) च्जनका मन िक्र के समान है
ग) च्जनका मन उदास है घ) इन में से कोई नहीां
123
7. गोवपयों के अनुसार राजा का धमा क्या होना िाठहए?
गोवपयों के अनुसार राजा का धमा है प्रजा की रक्षा करना | प्रजा को न सताना|
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124
कायापिक
उत्तर ----------------------
उत्तर ----------------------
उत्तर ----------------------
उत्तर ----------------------
125
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2.राजनीतत पढने के बाद गोवपयों को श्रीकृष्ण में क्या-क्या पररितान ठदखाई ठदए?
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126
राम- लक्ष्मर्- परशुराम सिंवाद- िुलसीदास
यह प्रसांग उस समय का हैं जब राजा जनक ने अपनी पुिी माता सीता के वििाह के
सलए स्ियांिर का आयोजन ककया था। च्जसमें दे श विदे श के सभी राजाओां को आमांबित ककया
गया। स्ियांिर की शता के अनुसार जो भगिान सशि का धनुष तोड़ेगा, माता सीता उसी को
अपने पतत के रूप में िरण करें गी।शता के अनुसार भगिन राम ने सशि का धनुष भांग कर
ठदया |
माता सीता ने भगिान राम को अपना पतत स्िीकार कर उन्द्हें िरमाला पहनाई। लेककन
जब भगिान राम ने भगिान सशि का धनष
ु तोडा तो , उसके टूटने की आिाज तीनों लोकों में
सुनाई दी | परशुराम जो भगिान सशि के अनन्द्य भक्त थे। जब उन्द्होंने धनुष टूटने की आिाज
सूनी तो िो बहुत क्रोधधत हुए। और तुरांत राजा जनक के दरबार में पहुँि गए।सशि-धनुष को
खांड़डत दे खकर मुतन परशुरामजी अत्यांत क्रोधधत हो जाते है | यह प्रसांग क्रोधधत परशुराम और
भगिान राम और उनके भाई लक्ष्मण के बीि हुए सांिाद का है । प्रभु राम के विनय करने और
विश्िासमि केसमझाने पर तथा राम की शच्क्त की परीक्षा लेकर अांततःमुतनपरशुराम जी का
क्रोध शाांत हो जाता है |
बहुविकल्ट्पीय प्रश्नोत्तर
127
(क) भगिान सशि
(ख) भगिान विष्णु
(ग) आिाया रोण
(घ) भगिान श्रीकृष्ण
5. सीता स्ियांिर के अिसर पर मुतन परशुरामजी के क्रोध का मूल कारण क्या था?
(क) लक्ष्मणजी द्िारा व्यांग्य बाण िलाना
(ख) सशिधनुष का टूटना
(ग) राजा जनक द्िारा सशि धनुष को सभा में लाना
(घ) श्रीरामिन्द्रजी द्िारा सशि धनुष का अपमान करना
7. ‘हे नाथ! सशिधनुष को तोड़ने िाला तुम्हारा ही कोई दास होगा।” यह शब्द ककसने? ककससे?
कहा है?
(क) राजा जनक ने मतु न परशरु ामजी से
(ख) श्रीराम िन्द्रजी ने मुतन परशुरामजी से
128
(ग) लक्ष्मणजी ने श्रीराम िन्द्रजी से
(घ) हनुमान ने राजा जनक से।
10. “भग
ृ कुलकेत”ु शब्द ककसके सलए प्रयोग ककया गया है ?
(क) मुतन परशुराम के सलए
(ख) महवषा विश्िासमि के सलए
(ग) लक्ष्मणजी के सलए
(घ) महवषा िससष्ठ के सलए
129
13. “गभान्द्ह के अभाक दलन” — पांच्क्त में ‘अभाक’ शब्द का क्या अथा है ?
(क) घोडा
(ख) शिु
(ग) बचिे
(घ) गधा
14. दे िता, ब्रानमण, भक्त और गाय पर ककस कुल में िीरता नहीां ठदखाई जाती थी?
(क) रघक
ु ु ल में
(ग) भग
ृ कुल में
उत्तर माला
प्रश्न सांख्या उत्तर
1ख, 2क, 3क ,4ग, 5ख, 6घ, 7ख, 8ग, 9ख, 10क, 11ग, 12घ, 13 ग, 14 क,15ग
130
3. “राम लक्ष्मण परशुराम सांिाद”- में मुतन परशुरामजी ने सशि धनुष तोड़नेिाले को अपना
शिु बताता है और उसकी तुलना ककससे की है ?
“राम लक्ष्मण परशुराम सांिाद”-में मुतन परशुरामजी ने सशि धनुष तोड़नेिाले को अपना शिु
बताता है और उसकी तल
ु ना सहस्रबाहु की है |
5. लक्ष्मण के अनुसार िीर पुरुष युद्ध-भूसम में शिु को सामने पाकर क्या नहीां करते है ?
लक्ष्मण के अनुसार िीर पुरुष युद्ध-भूसम में शिु को सामने पाकर अपनी िीरता की प्रशांसा
स्ियां नहीां करते है िे रणभूसम में अपनी िीरता ठदखलाते है |
131
कुम्हड़े का फूल जो आकार में बहुत छोटा और कोमल होता है | तजानी को दे खते ही िह
मुरझा जाता है | लक्ष्मणजी यह कहना िाहते है कक िे भी कुठार और धनुष-बाण दे खकर
डरनेिाले सामान्द्य बालक नहीां है | िे सूयि
ा ांशी है और िीर है |
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132
कायापिक
133
5) राम- लक्ष्मण- परशुराम सांिाद- में ककस छन्द्द का प्रयोग हुआ है ?
(क) सिैया (ख) दोहा और िौपाई
(ग) सोरठा (घ) रोला
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३)राम लक्ष्मण परशुराम सांिाद के आधार पर तुलसी की भाषा शैली पर वििार कीच्जए |
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134
आत्प्मकथ्य कवव : जयशिंकर प्रसाद
सारािंश
आत्मकथ्य जयशांकर प्रसाद जी द्िारा छायािादी शैली में सलखी गई कविता है। च्जसमें कवि
ने जीिन के यथाथा एिां अभाि पक्ष की मासमाक असभव्यच्क्त की है। प्रसाद जी के समिों और
प्रशांसकों ने उनसे आत्मकथा सलखने का अनुरोध ककया था। परन्द्तु िे उनसे सहमत नहीां थे।
इसी असहमतत के तका से पैदा हुई यह कविता है च्जसमें कवि कहता है कक यह जीिन नश्िर
है। हर जीिन एक ठदन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर धगर जाता है। इस सांसार में असांख्य लोगों ने
अपने-अपने जीिन के इततहास सलखे हैं। कवि को लगता है कक यठद उसने सि कहना शुरु कर
ठदया तो उसके समि जन ही स्ियां को अपराधी और दोषी मानने लगें गे। कवि सदा सरलता का
जीिन च्जया है। उन्द्हें लगता है कक यठद िे आत्मकथा सलखेगा तो लोग उनकी सरलता का
मज़ाक उड़ाएँगे। िे अपनी भूलों और समिों से खाए धोखों के बारे में दस
ू रों के सामने प्रकट नहीां
करना िाहते थे| उसने जीिन में प्रेम के जो उजले क्षण च्जए है उसके बारे में कैसे कुछ सलखें।
िह अपनी वप्रया को कभी पा नहीां सका। उसका प्रेम समलते समलते रह गया। आज िे उन मधरु
स्मतृ तयों के सहारे ही अपने जीिन को बबता रहा है । समि लोग आत्मकथा सलखिाकर उसकी
कटु स्मतृ तयों को क्यों उधेड़ना िाहते हैं? अपनी कथा सन
ु ाने से तो यही अचछा हैं कक िह औरों
के जीिन की कथाएँ मौन होकर सुनता रहे । उसकी भोली आत्मकथा सुनकर कोई क्या करे गा।
िह नहीां िाहता है कक आत्मकथा सलखकर िह अपनी भूली हुई पीड़ाओां को कफर से जगाएँ।
विशेष:
135
काव्यािंश पर आिाररि ब ु ववकल्पी प्रश्नोत्तर
(क) मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर धगर रहीां पवत्तयाँ दे खो ककतनी आज घनी ।
इस गांभीर अनांत- नीसलमा में असांख्य जीिन- इततहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यांग्य - मसलन उपहास
तब भी कहते हो - कह डालँ ू दब
ु ल
ा ता अपनी बीती ।
तुम सुनकर सुख पाओगे दे खोगे यह गागर रीती ।
ककां तु कहीां ऐसा न हो कक तम
ु ही खाली करने िाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने िाले।
4 कवि ने मुरझाकर धगरने िाली पवत्तयों के माध्यम से क्या सांकेत ककया हैं?
i जीिन क्षणभांगरु है ii पेड़ से पवत्तयाँ धगर जाती है
iii जीिन आशापूणा है iv जीिन अमर है
136
(ख) यह विडांबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
प्रश्नोत्तर
137
1. जयशांकर प्रसाद जी ने अपनी कविता का शीषाक 'आत्मकथा' न सलखक ‘आत्मकथ्य' क्यों
रखा है?
उत्तर- आत्मकथा में जीिन के आरां भ से लेकर सलखने के समय तक का िणान होता है।
आत्मकथ्य का अथा है -स्ियां के बारे में कहने योग्य | प्रस्तुतकविता में कवि ने सांपूणा जीिन
ित्त
ृ ाांत न बताकर, अपने जीिन के बारे मे बहुत सांक्षेप में उन्द्हीां पक्षों को स्पष्ट ककया है , च्जन्द्हें
िह कहने योग्य समझता है।
उत्तर- समिों के विश्िासघात का च्जक्र करना पड़ेगा, प्रेसमका के साथ बबताए मधुर पलों को
सािाजतनक करने की कठठनाई तथा स्िभािगत सरलता के कारण धोखा खाने का िणान करने
की समस्या| |
3. 'उज्ज्िल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर िाँदनी रातों की' – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना
िाहता है ?
उत्तर- कवि यह कहना िाहता है कक तनजी प्रेम के मधरु क्षण सबके सामने प्रकट करने
योग्य नहीां होते। प्रसाद जी का िह प्रेम असफल भी था जीिन के कुछ अनुभिों को गोपनीय
रखना ही उधित होता | अतः िे इस बारे में कुछ कहने में से बिना िाहते थे।
उत्तर - `पाथेय’ का अथा होता है सांबल या सहारा | कवि जीिन रूपी सफर में अत्यधधक
थका हुआ अनुभि करता है | िे अपने प्रेम की मधुर यादो के सहारे अपनी च्ज़ांदगी बबता रहे
हैं |
138
उत्तर :-
(क) (1) i नश्िर , (2) iii असफल जीिन, (3) iii मन को,
(4) i जीिन क्षणभांगुर है (5) ii अनुप्रास
(ख) (1) i सरल स्िभाि को, (2) ii. अपनी पत्नी के साथ,
(3) i उषा काल की लासलमा से, (4) i स्ियां को,
(5) ii अपने जीिन की मीठी यादों को
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139
कायषपत्रक
1.नीिे ठदए गए काव्याांशों को पढकर पूछे गये प्रश्नों के सलए उधित विकल्ट्प िुतनए-
उत्तर .................................................
उत्तर .................................................
उत्तर .................................................
140
4. कवि के जीिन के सारे दःु ख-ददा और अभाि अब कैसे हैं? (1)
i मौन ii अधधक
iii कम iv इनमें से कोई नही
उत्तर .................................................
उत्तर .................................................
उत्तर -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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उत्तर--------------------------------------------------------------------------------------------------------
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(ग) `गांभीर अनांत - नीसलमा’ के माध्यम से कवि क्या कहना िाहता है ? (2)
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141
उत्प्सा - सूयक
ष ािंि त्रत्रपाठी ननराला
बादलों को सांबोधधत करके सलखी गई उत्साह कविता एक आनिान गीत है | बादल तनराला
जी का वप्रय विषय है | इस कविता में बादल उत्साह के प्रतीक के रूप में व्यक्त हुआ है |
कवि बादलों का आनिान करते हैं कक िे सारे आकाश में छा जाएँ और काले काले घांघ
ु राले
बालों की भाँतत सजकर ह्रदय में विद्धुत छवि को धारण कर लें | िे ककसी क्राांततकारी कवि
की भाँतत जन-जीिन में उत्साह का सांिार कर दें तथा ताप और पीड़ा से व्यधथत सांसार पर
शीतल जल की िषाा कर दें |
मुख्य त्रबिंद ु : -
क]बादल गरजो-
घेर घेर घोर गगन, धराधर ओ !
142
लसलत लसलत काले घुँघराले,
बाल कल्ट्पना के-से पाले,
विद्धुत छवि उर में, कवि, निजीिन िाले !
िज्र तछपा, नूतन कविता
कफर भर दो –
प्रश्नोत्तर
143
कवि ने बादल को कवि के रूप में सांबोधधत ककया है | िे िाहते हैं कक च्जस प्रकार कवि
अपनी कविता द्िारा लोगों के ह्रदय में जोश, पौरुष एिां क्राांतत का भाि जगा दे ता है , उसी
प्रकार बादल अपनी घोर गजाना से लोगों में जोश, पौरुष, एिां क्राांतत का भाि जगा दे ता है |
बादलों के न बरसने से लोगों में बेिैनी एिां व्याकुलता बढ गई थी | भीषण गमी के कारण
सारी धरती जलती-सी प्रतीत हो रही थी | पथ्
ृ िी पर िारों ओर नीरसता तथा उदासीनता
व्यातत है |
कवि बादलों से जोर से िषाा करने का अनरु ोध करते हैं | भयांकर गमी के कारण मनष्ु य
तथा धरती के अन्द्य प्राणी व्याकुल हो रहे हैं | बादलों के जोर से बरसने से धरती की
गमी कम होगी | लोगों को तपन और बेिैनी से राहत समलेगी |
144
[3] बादल अनांत [ईश्िर] की कृतत है |
बादल क्राांतत का प्रतीक है | समाज में क्राांतत रूपी बादल के आगमन से भीषण गमी रूपी
कठठनाइयाँ समातत होगी और सब कहीां उमांग एिां सुखकारी िातािरण छा जाएगा अथांत
क्राांतत के बाद नए समाज का सज
ृ न होगा|
5.िषाा के बबना लोगों की अिस्था कैसी हो गई? उनके सलए कवि बादलों से क्या अपेक्ष
करता है ?
िषाा के बबना सारे लोग गमी से व्याकुल हो गए हैं | इस व्याकुलता के कारण उनका मन
कहीां एक जगह ठटक नहीां पा रहा है | अज्ञात ठदशा से आए अांतहीन बादलों से कवि यह
अपेक्षा करता है कक िे बरस जाएँ | च्जससे गमी से जल रही धरती शीतल हो जाए और
व्याकुल लोगों को राहत समल सके |
6.नई िेतना की काव्य रिना करने िाले कवियों से ककस तरह की कविता करने का आनिान
ककया गया है ?
नई िेतना की काव्य रिना करने िाले कवियों से यह आनिान ककया गया है कक घनघोर
बादलों को दे खकर उनमे काले घांघ
ु राले सन्द्
ु दर बालों की कल्ट्पना कर आनांठदत होते हुए भी
उनमे तछपी हुई बबजली की छवि को अपने ह्रदय में धारण करें | उस विद्युत छवि का ध्यान
करते हुए िे भी िैसा ही वितलि का स्िर भरते हुए क्राांतत िेतना से युक्त नई कविता
सलखें |
‘उत्साह’ कविता से तनराला का पौरुष प्रकट होता है | तनराला बहुत जोशीले और गिीले कवि
थे | िे करुणािान थे | िे बादलों की तरह घुमड़-घुमड़कर जन- जन के कष्टों पर छा
जाना िाहते थे|
‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादलों के द्िारा जनसामान्द्य को सांदेश ठदया है कक बादलों की
गरज सुनकर िे सामाच्जक पररितान के सलए उत्साठहत हों तथा नए समाज के सज
ृ न के
सलए वितलि मिाने को तत्पर रहें
145
अभ्यास हे तु बहुविकल्ट्पी प्रश्न
1.पथ्
ृ िी पर लोगों में बेिैनी का क्या कारण है ?
[क] कष्ट रूपी गमी से [ख] दःु ख रूपी गमी से
[ग] उपरोक्त दोनों [घ] रोग से
146
[ग] प्राकृततक सुांदरता [घ] करुणा एिां दया का भाि
उत्तर :1.[ग], 2.[घ], 3.[घ], 4.[घ], 5.[ख], 6.[क], 7.[क], 8.[क], 9.[क], 10.[ग]
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147
अट न ीिं र ी ै
कवविा का सार
मख्
ु य त्रबिंद ु
•फागुन मास में प्रकृतत सुहािनी हो उठी है , िारों ओर मादक हिाएँ िल रही हैं | पेड़ की
डासलयाँ पत्तों और फूलों से लद गए हैं | फूलों की गांध िारों ठदशाओां में व्यातत है , इस प्रकार
फागुन की शोभा समा नहीां पा रही है |
•भाषा – सरल, सरस, मनोरम, खडी बोली एिां मुहािरे दार [आँख हटाना, अट न पाना] है |
•काव्य गुण – माधुया
•अलांकार – अनप्र
ु ास, पन
ु रुच्क्तप्रकाश, मानिीकरण
•शैली - िणानात्मक
•रस - शाांत
•छां द - मुक्तक छां द
कवि की आँखें फागुन माह की शोभा से नहीां हट रही है क्योंकक फागुन मास की शोभा
अत्यांत मनोरम, सुहािनी लगने लगती है | िारों तरफ मादक हिाएां िलने लगती हैं | पक्षी
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आकाश में पांख फडफडाकर उड़ते हैं| इन सह
ु ािने दृश्यों के कारण फागुन माह की
शोभा से आँखें हट नहीां रही हैं |
फागुन महीने का खुलकर साँस लेना अपनी शोभा को खुलकर प्रकट करने के
पररिायक है | इसका एक अथा है सुगांधधत हिाओां का िलना |
3] िसांत ॠतु में ककस प्रकार के फूल खखलते हैं और िे कैसे प्रतीत होते हैं?
िसांत ॠतु में विविध रां ग के धीमी-धीमी सुगांधीदार फूल खखलते हैं | िे खखले फूल ऐसे प्रतीत
होते हैं मानो प्रकृतत के ह्रदय पर फूलों की माला शोभायमान हो रही हो |
1.‘फागुन की साँस’ से कवि का क्या तात्पया है ? सांसार पर उसका क्या प्रभाि पड रहा है ?
फागुन की साँस से कवि का तात्पया तेज और मादक फागुनी हिा के िलने से है | कवि के
अनुसार फागुन की मतिाली हिा इतनी तेज िल रही है जैसे फागुन लांबी-लांबी साँस भर रहा
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हो | उस हिा का प्रभाि अत्यधधक गहरा है , अथाात धरती के कोने –कोने में फागुन की मादक
हिा का असर है |
‘अट नहीां रही है’ कविता में फागुन की मस्ती और शोभा का िणान हुआ है | फागुन में कहीां
सुगांधधत हिाएां है, कहीां फूलों की शोभा है , कहीां पक्षक्षयों की उन्द्मुक्त उड़ाने है | कहीां िक्ष
ृ ों पर
रां ग-बबरां गे फूल, पत्ते उग आए हैं सब जगह मानो शोभा ही शोभा बबखरी हुई है |
फागन
ु माह में प्रकृतत के साथ-साथ मानि में भी एक प्रकार की मादकता और मस्ती छा
जाती है | फागुन में िसांत का आगमन होता है | मौसम अत्यधधक सुहािना होता है | प्रकृतत
सौन्द्दया से भर जाती है | पेड़-पौधों में नए कोपलें फूटने लगती हैं | िे हरे -लाल पत्तों से लद
जाते हैं | िारों ओर रां ग-बबरां गे सुगांधधत फूल खखले होते हैं | फागुन में शीतल, मांद, सुगांधधत
बयार िलती है च्जससे सांपूणा िातािरण में मस्ती और मादकता व्यातत हो जाती है |अन्द्य
ॠतओ
ु ां में कभी ठठठुरन होती है , कभी गमी से सांपण
ू ा प्राणी जगत व्याकुल होते हैं और िषा
ॠतु में हर ओर कीिड़-ही-कीिड़ होती है |
4. ‘अट नहीां रही है’ कविता में कवि की आँख कहाँ से नहीां हट रही है ?
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[क] बादल [ख] क्राांततकारी पुरुष
[ग] प्राकृततक सुांदरता [घ] सूया
5. ‘अट नहीां रही है’ कविता में कवि ने ककस मास की मादकता का िणान ककया है?
[क] सािन [ख] आषाढ
[ग] कातताक [घ] फागुन
6. फागन
ु मास कौन-सी ॠतु में होती है ?
[क] िसांत [ख] िषाा
[ग] हे मांत [घ] सशसशर
[ग] आकाश में पक्षक्षयों का उड़ना [घ] िारों ओर हरे -भरे पेड़ –पौधे
9.पक्षी आकाश में पांख फडफडाते हुए उड़ने के सलए क्यों आतुर हो उठते हैं?
[क] िातािरण की मादकता के कारण [ख] बाररश होने के कारण
[ग] आँधी आने के कारण [घ] भोजन की खोज के कारण
उत्तर :1.[ख],2.[क] ,3.[घ] , 4.[ग], 5.[घ], 6.[क], 7.[घ], 8.[क] 9.[क], 10.[ग]
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कायष पत्रक
1] ‘उत्साह’ नामक कविता में कवि ने बादल को ककस रूप में प्रस्तुत ककया है ?
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2] ‘अट नहीां रही है ’ नामक कविता के आधार पर फागुन महीने की मादकता का धििण
कीच्जए |
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2] बादलों के ह्रदय में ककसकी शोभा तछपी हुई है ?
[क] प्रकृतत की [ख] फागुन की
[ग] बबजली की [घ] िषाा की
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य दिं िुररि मुथकान- नागाजुन
ष
कविता का सार
नागाजुन
ा द्िारा रधित इस कविता में छोटे बालक की मनमोहक मुस्कान दे खकर कवि के
मन में जो जो भाि उमड़ते हैं ,उन्द्हें कविता में अनेक बबांबों के माध्यम से प्रकट ककया है।
कवि बालक को मुसकुराते दे ख कहता है -हे बालक!तेरी िोटी-िोटी दाांतों िाली मुसकान तनराश
से तनराश व्यच्क्त को भी सजीि कर दे ता है । तम्
ु हारे धल
ू -धस
ू ररत शरीर को दे खकर लगता है
जैसे ककसी झोपड़ी में कमाल के फूल खखल उठे हों। तुम्हारा स्पशा पाकर पत्थर हृदय भी
रवित हो गया। छोटे बालक ने कवि को नहीां पहिाना। जब उसकी माँ ने उसे कवि से
पररिय करिाया तो बालक कवि को दे खकर मुस्कुराने लगा।
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इस अततधथ से वप्रय तुम्हारा क्या रहा सम्पका
अँगुसलयाँ माँ की कराती रही हैं मधुपका
दे खते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कक आँखें िार
तब तुम्हारी दां तुररत मुसकान
मझ
ु े लगती बड़ी ही छविमान !
5.बचिे कक मस्
ु कान मुदे में जान डाल दे ती है , इसका क्या अथा है ?
(क) बीमार व्यच्क्त को ठीक कर दे ती है । (ख) मुदे को जीवित कर दे ता है।
(ग) हताश व्यच्क्त में आशा का सांिार करती है। (घ) इनमे से कोई नहीां
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क) तुलसीदास ख) नागाजुन
ा
ग) तनराला घ) सूरदास
उत्तर
1(घ) गरीब में आनांद
2 (ग)सशशु
3(ग)कठोर व्यच्क्त का मन
4) (क) नन्द्हें सशशु की
5)(ग) हताश व्यच्क्त में आशा का सांिार करती है।
6) (ख) कमल
7) ख) नागाजुन
ा
8) (ख) कमल
9(घ) दां तुररत मुस्कान को
10) (ग) लगातार दे खना
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प्रश्नोत्तर
1.‘यह दां तुररत मुसकान” को स्पष्ट करते हुए बताइए कक िह मरे हुए व्यच्क्त में भी जान
कैसे डाल दे ती है ?
उ) यह मुसकान इतनी मनोहर होती है कक मारे हुए व्यच्क्त में जान डाल दे ती है अथाात
जीिन से तनराश, हताश तथा उदासीन व्यच्क्त के मन को खुशी से भर दे ती है ।
3. बचिा ककसी कों घूरकर क्यों दे खता है ? कवि बचिे की और से आँख फेर लेने को क्यों
कहता है ?
उ) बचिा जब पहली बार ककसी को दे खता है , उसे पहिान न पाने के कारण घरू ता है ।
कवि बचिे की और से आांखे फेर लेने के सलए कहता है क्योंकक बचिा घूरता घूरता थक
जाएगा।
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कायष पत्रक
उत्तर -------------------------
उत्तर -------------------------
उत्तर -------------------------
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4. ‘पाषाण वपघलने से क्या तात्पया है ?
(क) कठोर हृदय में दया उत्पन्द्न होना (ख) पत्थर का गलना
(ग) पत्थर बनना (घ) पत्थर से पानी बनना
उत्तर -------------------------
1 यठद बचिे कक माँ उसका पररिय कवि से नहीां कराती तो क्या होता?
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3) 5. यठद बचिे की माँ उसका पररिय कवि से नहीां कराती तो क्या होता?
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फसल- नागाजन
ुष
कवविा का सार
कवि ने अनेक तत्िों का उल्ट्लेख ककया है ,च्जसके सहयोग से फसल का तनमााण होता है।
ककसान की भसू मका और पररश्रम के साथ-साथ समट्टी,जल,सय
ू ा ,हिा आठद सभी के योगदान
को बताया है। प्रकृतत और मनुष्य के परस्पर सहयोग से फसल बनता है ।
5. कवि के अनस
ु ार फसलें ककनका बदला हुआ रूप है ?
क) बीजों का ख) खतनज लिणों का
ग) पौधों का घ) सूया की ककरणों का
उत्तर
1) फसलों की 2) फसल 3) फसलों को 4) ककसानों की 5)सूया की ककरणों का
प्रश्नोत्तर
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1.फसल लहलहाने में ककसका हाथ होता है ?
कवि का कहना है कक जो फसले हम खाते हैं उनके सलए ककसी एक व्यच्क्त ,एक नदी या एक
खेत का श्रेय नहीां ठदया जा सकता। सब नठदयों का जल,सब समट्ठटयों के गुण ,करोड़ों ककसानों
के श्रम और खुली हिा धूप से फसलें आती हैं। इससलए इन सभी का सहज प्राकृततक अधधकार
होना िाठहए।
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कायषपत्रक
फसल क्या है ?
और तो कुछ नहीां है िह
नठदयों के पानी का पानी का जाद ू है िह
हाथों की स्पशा की मठहमा है
भूरी-काली-सांदली समट्टी का गुण-धमा है
रूपाांतर है सूरज की ककरणों का
ससमटा हुआ सांकोि है हिा की धधरकान का ।
उत्तर --------------------------
4) फसल कविता में कौन सी समट्ठटयों के गुण धमा का उल्ट्लेख ककया हैं ?
क) भूरी ख) काली
ग) सांदली घ) उपयक्
ुा त सभी
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II. तनम्नसलखखत प्रश्नों के उत्तर सलखखए- (2+2=4)
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सांगतकार- मांगलेश डबराल
कविता का सार:
सांगतकार ठहन्द्दी के सुप्रससद्ध कवि श्री मांगलेश डबराल की एक प्रससद्ध रिना है । इस कविता
में उन व्यच्क्तयों के योगदान को रे खाांककत ककया गया है ओ पदे के पीछे रहकर अपनी भूसमका
को बखूबी अांजाम दे ते है।
सांगतकार कविता गायन के मख्
ु य गायक का साथ दे नेिाले सांगतकार के महत्ि और उसकी
अतनिायाता की ओर सांकेत करती हैं। जब मुख्य गायक अपनी भारी - भरकम आिाज में गाता
है तो उसका सांगतकार अपनी कमजोर काांपती हुई आिाज से उसका साथ दे ता है । कई बार
ऐसा होता है कक मुख्य गायक का गला बैठ जाता है या उसका उत्साह फीका पड़ने लगता है
तब तनराशा के इन क्षणों में सांगतकार उसके स्िर को सांभालता है । जब कभी मुख्य गायक
ककसी अांतरे को गाते -गाते जठटल तालों में उलझ जाता है या अपनी सरगम को लाांघकर ऊांिे
अनहद स्िर में भटक जाता है , तब सांगतकार ही स्थाई पांच्क्त को पकड़े रहता है। जब कभी
मुख्य गायक तार सततक गाते - गाते स्िर को बहुत ऊँिा उठा दे ता है और उसकी आिाज भी
काँपने लगती है तब िह उसकी आिाज में अपनी आिाज को समलाकर उसे बल प्रदान करता
है और उसके खोए विश्िास को िापस लौटा ले आता है तथा कफर उसे गाने की प्रेरणा दे ता है।
िह हमेशा कोसशश करता है कक कहीां उसकी आिाज मुख्य गायक की आिाज से अधधक
प्रभािशाली न हो जाए। उसकी इस कोसशश को उसकी असफलता नहीां, मनुष्यता समझा जाना
िाठहए यह उसका त्याग है ।
1. मख्
ु य गायक के िट्टान जैसे भारी स्िर का साथ दे ती
िह आिाज़ सुांदर कमज़ोर काँपती हुई थी
िह मख्
ु य गायक का छोटा भाई है
या उसका सशष्य
या पैदल िलकर सीखने आने िाला दरू का कोई ररश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
िह अपनी गँज
ू समलाता आया है प्रािीन काल से
क. उपयक्
ुा त पांच्क्तयो के रितयता है -
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i) नागाजन
ुा ii) ऋतु राज
iii) मांगलेश डबराल IV) धगररजा कुमार माथुर
क. सांगतकार के माध्यम से कवि ककस प्रकार के व्यच्क्तयों की ओर सांकेत करना िाह रहा है ?
सांगतकार के माध्यम से कवि ककसी भी काया अथिा कला में लगे सहायक कमािाररयों और
कलाकारों की ओर सांकेत कर रहा है । िे सहायक कलाकार स्ियां को महत्त्ि न दे कर मुख्य
कलाकार और मख्
ु य व्यच्क्त के महत्त्ि को बढाने में अपनी शच्क्त लगा दे ते है।
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सांगतकार अपने स्िर को ऊँिा न उठाने का प्रयास इससलए करता है ताकक मुख्य गायक की
श्रेष्ठता बनी रहे । सांगतकार भी सांगीत में अत्यांत प्रिीण होता है , परां तु गायक की गररमा को
ध्यान में रखकर मानिीयता दशााते हुए अपने स्िर को धीमा रखता है ।
घ. तारसततक में गाते समा गायक का गला बैठने लगता है , उस समय उसकी ककस प्रकार की
मनःच्स्थतत हो जाती है ?
तारसततक में गाते समय जब गायक का गला बैठने लगता है , उस समय उसकी प्रेरणा उसका
साथ छोड़ने लगती है , उसका उत्साह समातत होने लगता है। उस समय ऐसा लगता है जैसे
उसकी आिाज़ से राख़ की तरह से कोई िीज़ धगर रही हो। अथाात गायक की आिाज़ बुझने
लगती है और िह तनराश हो जाता है।
ङ. सफलता के िरम सशखर पर पहुँिने के दौरान यठद व्यच्क्त लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी
ककस तरह सांभालते हैं?
जब कोई व्यच्क्त सफलता के िरम सशखर पर पहुँिकर अिानक लड़खड़ा जाता है तो उसके
सहयोगी ही उसे बल, उत्साह, शबाशी और साथ दे कर सांभालते हैं। िे अपनी शच्क्त उसके सलए
लगा दे ते हैं। िे उसकी कमी को पूरा करने का भरसक प्रयास करते हें ।
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काया पिक
क) तारसततक से तात्पया है -
i) सात स्िरों का समूह ii) सात तारों का समूह
iii) सात कवियों का समूह iv) उपरोक्त कोई नहीां
ग) मख्
ु य गायक की बझ
ु ती आिाज़ को कौन ढाढस बँधाता है ?
i) दशाक ii) कवि
iii) गुरु IV) सांगतकार
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iii) तुरांत दस
ू रे गायक को बुलाता है IV) उपरोक्त कोई नहीां
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सफलता के िरम सशखर पर पहुँिने के दौरान यठद व्यच्क्त लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी ककस
तरह सांभालते हैं?
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अनप
ु रू क पाठ्यपथ
ु िक
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मािा का आँचल - मशवपूजन स ाय
पाठ का सार
‘माता का आँिल' नामक इस पाठ में 'भोलानाथ' नामक बालक की बालसुलभ कक्रयाओां और
ग्रामीण पररिेश का इस प्रकार िणान ककया गया है कक पढते समय बालक की सभी कक्रयाएँ-
खेलना-कूदना, रोना-धोना, भयभीत होना तथा समि
ू ा ग्रामीण पररदृश्य हमारी आँखों के सामने
साकार हो उठता है। पाठ में बचिों के उस बाल मनोविज्ञान का भी िणान है , जब िे विपदा में
भागकर माता की शरण में स्ियां को सुरक्षक्षत समझते हैं।
पाठ्यपुथिक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कक बचिे का अपने वपता से अधधक
जड़
ु ाि था, कफर भी विपदा के समय िह वपता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी
समझ से इसकी क्या िजह हो सकती है ?
उत्तर- यह बात सि है कक बचिे को अपने वपता से अधधक जड़
ु ाि था। उसके वपता उसका
लालन पालन करने के साथ-साथ उसके साथ दोस्तों जैसा व्यिहार भी करते थे। परां तु विपदा
के समय उसे लाड़-तयार की ज़रूरत थी। उसे अत्यधधक ममता और माँ की गोद की ज़रूरत
थी। माँ के आँिल में िह ज्यादा सुरक्षक्षत महसूस करता। उसे ममतामयी माँ के आँिल में
च्जतना प्रेम और शाांतत की शीतल छाया समल सकती ,उतना वपता से नहीां। बानय तौर पर माँ
से अधधक नाता न रहने पर भी िह हृदय से माँ से जड़
ु ा था। यही कारण है कक विपदा में बचिे
को माँ या नानी की याद आती है ,वपता या नाना की नहीां। माँ का ममत्ि घाि पर दे ने िाले
मरहम का काम करता है।
प्रश्न 2. आपके वििार से भोलानाथ अपने साधथयों को दे खकर सससकना क्यों भूल जाता है ?
उत्तर- बचिों की यह स्िाभाविक विशेषता होती है कक िे अत्यांत भोले-भाले, तनश्छल तथा सरल
होते हैं। अपनी मनपसांद की िीजें समलते ही, अपने साधथयों का साथ पाते ही अपने दख
ु -सुख
तथा रोना-धोना भूल जाते हैं। घर में लाख मना करने पर भी भोलानाथ की माँ ससर में
कड़िा तेल लगाकर ही छोड़ती है । माथे पर काजल की बबांदी लगाकर फूलदार लट्टू बाँधकर
कुताा-टोपी पहना दे ती है। इस प्रकार माँ के हठ से तांग आकर भोलानाथ सससकने लगता है।
घर से बाहर आने पर जब बालकों का झांड
ु समल जाता है तब िह साधथयों की हुल्ट्लडबाजी,
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शरारतें और मस्ती दे खकर सब कुछ भूल जाता है । हमारे वििार से भोलानाथ खेलने का
अिसर पाकर सससकना भूल जाता है ।
प्रश्न 3. आपने दे खा होगा कक भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय ककसी न
ककसी प्रकार की तुकबांदी करते हैं। आपको यठद अपने खेलों आठद से जुड़ी तुकबांदी याद हो तो
सलखखए।
उत्तर- छाि अपने बिपन से जड़
ु ी ककसी तक
ु बांदी के बारे में स्ियां सलखें।
प्रश्न 4. भोलानाथ और उसके साधथयों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने
की सामग्री से ककस प्रकार सभन्द्न है ?
उत्तर- भोलानाथ और उसके साधथयों के खेल और खेलने की सामग्री हमारे खेल और खेलने की
सामग्री से पूरी तरह सभन्द्न है । भोलानाथ च्जस ग्रामीण पष्ृ ठभूसम का और च्जस काल का बालक
है, उस समय गाँिों में आज जैसे खेल खखलौने उपलब्ध न थे। आज जमाना बदल िुका है ।
आज माता-वपता अपने बचिों का बहुत ध्यान रखते हैं िे उसे गली मोहल्ट्ले में बेकफक्र खेलने
घम
ू ने की अनम
ु तत नहीां दे ते। जब से तनठारी जैसे काांड होने लगे हैं, तब से बचिे भी डरे -डरे
रहने लगे हैं। न तो हुल्ट्लडबाज़ी, शरारतें और तुकबांठदयाँ रही हैं न ही नांग-धड़ांग घूमते रहने की
आज़ादी । अब तो बचिे तलाच्स्टक और इलेक्रोतनक्स के महँगे खखलौनों से खेलते हैं। बरसात
में बचिे बाहर रह जाएां तो माँ बाप की जान तनकल जाती है । आज न कुऍ रहे , न रहट, न खेती
का शौक। इससलए आज का युग पहले की तुलना में आधुतनक, बनािटी, रसहीन हो गया है।
प्रश्न 5. पाठ में आए ऐसे प्रसांगों का िणान कीच्जए जो आपके ठदल को छू गए हों ?
उत्तर- 'माता का आँिल' नामक इस पाठ में अनेक ऐसे प्रसांग हैं, जो अनायास ही हमारे मन को
छू जाते हैं। ये प्रसांग तनम्नसलखखत हैं
•भोलानाथ वपता जी की छाती पर िढकर उनकी मूँछें उखाड़ने लगता था। उनके िुम्मा माँगने
पर जब अपनी मछ
ू ें भोलानाथ के वपता जी उसके गाल पर गड़ा दे ते तब भोलानाथ कफर से
उनकी मूँछें उखाड़ने लगता।
•भोलानाथ के प्रत्येक खेल में वपता जी का शासमल होना ठदल को छू जाता है ।
•भोजन तैयार करके बैठे बचिों के बीि जब खाने के सलए वपता जी भी पांच्क्त में बैठते तो
बचिे हँसते हुए भाग जाते थे।
•भोलानाथ का सौंप से भयभीत होकर भागना तथा वपता जी की शरण में न जाकर माँ के
आँिल में तछपने जैसे प्रसांगमन को अनायास छू जाते हैं।
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प्रश्न 6. इस उपन्द्यास के अांश में तीस के दशक की ग्राम्य सांस्कृतत का धििण है । आज की
उत्तर- माता का अँिल' उपन्द्यास में िखणात तीस के दशक की सांस्कृतत और आज की ग्रामीण
सांस्कृतत को दे खकर लगता है कक समय के साथ दोनों समय की सांस्कृततयों में अत्यधधक
बदलाि आ गया है । बचिों की दतु नया तो परू ी तरह से बदल गई है । अब जगह-जगह नसारी
और प्री-प्राइमरी स्कूल खुल जाने से बचिों को जबरदस्ती िहाँ भेजने का ररिाज िल पड़ा है ।
दोपहर बाद बचिों को ट्यूशन भेजने में प्रततष्ठा की झलक ठदखने लगी है । बबजली पहुँि जाने
से बचिे अब टीिी पर काटूान दे खकर समय बबताने लगे हैं। ऐसे में समलजल
ु खेलने का समय
बिता ही नहीां है । खेती के काम अब मशीनों से होने लगे हैं। ससांिाई का काम ट्यूबेल से ककया
जाने लगा है। लोगों में राजनीततक उन्द्माद बढने से सहभाधगता, सद्भाि और पारस्पररक प्रेम
कम होने लगा है।
7. यहाँ माता-वपता का बचिे के प्रतत जो िात्सल्ट्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में सलखखए।
उत्तर- वपताजी का अपने साथ सशशु को भी नहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेना, माथे पर भभूत
लगाना कफर कागज में राम-राम सलख कर आटे की गोसलयाँ बनाना, उसके बाद लेखक को कन्द्धे
पर बैठा कर गांगाजी तक ले जाना और िापस आते समय पेड़ पर बैठा कर झूला झुलाना, यह
सब ककतना सुांदर दृश्य उत्पन्द्न करता है । लेखक का अपने वपता जी के साथ कुश्ती लड़ना,
वपताजी का बचिे के गालों में िुम्मा लेना, बचिे के द्िारा मूँछे पकड़ने पर वपताजी का बनािटी
रोना रोने का नाटक करना और सशशु का उस पर हँस पड़ा अत्यांत जीिांत लगता है । माँ के
द्िारा गोरस-भात तोता-मैना आठद के नाम पर खखलाना उबटना, सशशु का यह सब शांग
ृ ार
करना और सशशु का सससक-सससक कर रोना बचिों की टोली को खेलते दे खकर सससकना बांद
कर तरह-तरह के खेल खेलना और मस
ू न ततिारी को धिढाना आठद। ये सभी अद्भत
ु दृश्य पाठ
में उभारे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशि अिस्था की याद ठदलाते हैं।
9. माता का आँिल शीषाक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्द्य शीषाक सुझाइए।
शीषाक की साथाकता उन बातों पर तनभार करती है कक शीषाक सांक्षक्षतत होना िाठहए. तथा विषय
िस्तु से उसे पूरी तरह सांबांधधत होना िाठहए। इस आधार पर माता का आँिल पूणत
ा ः साथाक
है क्यों कक पाठ के अांत में हम दे खते है कक साँप के डर से लेखक जो हर िक्त वपता के
साथ रहता था और माँ से ससफा दध
ू पीने तक का नाता था, भागकर माँ के आँिल में ही शरण
लेता है। और खद
ु को सरु क्षक्षत महसस
ू करता है ।
इस पाठ को अन्द्य शीषाक हो सकता है माँ की ममता, बिपन के ठदन आठद भी हो सकता है।
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10. बचिे माता-वपता के प्रतत अपने प्रेम को कैसे असभव्यक्त करते हैं?
बचिे का बिपन सामान्द्यतया उसके माता-वपता के साथ बीतता है। बचिा अपने माता के
व्यिहार से प्रभावित होता है। माता-वपता उसकी हर आिश्यकता का ध्यान रखते हैं। बचिे भी
अपने माता से प्रेम करते हैं और िे अनेक तरीकों से माता-वपता के प्रतत अपने प्रेम की
असभव्यच्क्त करते हैं; जैसे
•माँ-बाप के न िाहने पर भी िे उनकी गोद में बैठ जाते हैं।
•माँ-बाप से सलपटकर, उन्द्हें िूमकर
•अपने नन्द्हें हाथों से माँ-बाप को खाना खखलाकर।
•माता-वपता की बात मानकर अपना तयार प्रदसशात करते हैं।
11. इस पाठ में बचिों की जो दतु नया रिी गई है िह आपके बिपन की दतु नया से ककस तरह
सभन्द्न है?
इस पाठ में बचिों की जो दतु नया रिी गई, िह 1930 के आसपास की है , तब बचिे घर के
सामान से और साधारण सी िीजों से खेलने का काम िला लेते थे। िे प्रकृतत की गोद में रह
कर खुश थे। उनके खेल तथा खेल की समाग्री भी साधारण ही होती थी। गुल्ट्ली-डांडा नाटक
करना, घरौंदे बनाना, बारात का जल
ु स
ू तनकालना, समठाई की दक
ु ान सजाना आठद ही उनके मख्
ु य
खेल होते थे। खेल की सामग्री के नाम पर समट्टी, पत्थर, सूखे पत्ते, बालू, धूल आठद ही होते थे।
आज हमारी दतु नया पूरी तरह से सभन्द्न है । ककां तु हमारा बिपन इक्कीसिीां शताब्दी का बिपन
हैं जहाँ दतु नया काफी विकससत हो िुकी है । इक्कीसिीां शताब्दी में तो आधुतनकता की छाप गाँि
में भी आ गई है। कफर शहरी जीिन में तो यह अपनी पराकाष्ठा पर है। हमें ढे र सारी िीजें
िाठहए। खेल सामग्री में भी बदलाि आ गया है। खाने-पीने की िीजों में भी काफी बदलाि
आया है । हमारी दतु नया टी.िी., कोल्ट्डड़ड्रांग, पीजा, िॉकलेट के इदा -धगदा घूमती है।
अनिररक्ि प्रश्न:
प्रश्न 1. धिड़ड़या उड़ाते-उड़ाते भोलानाथ और उसके साधथयों ने िूहे के बबल में पानी डालना शुरू
ककया। इस घटना का क्या पररणाम तनकला ?
उत्तर- खेल से धिड़ड़यों को उड़ाने के बाद भोलानाथ और उसके साथी को िूहों के बबल में पानी
डालने का ध्यान आया। सभी ने एक टीले पर जाकर िूहों के बबल में पानी उलीिनी शुरू ककया।
पानी नीिे से ऊपर फेंकना था। यह काया करते हुए सभी थक गए थे। तभी उनकी आशा के
विपरीत िूहे के स्थान पर सौंप तनकल आया, साँप से भयभीत होकर सभी रोते धिल्ट्लाते बेतहाशा
173
भागने लगे। कोई औधा धगरा, कोई सीधा ककसी का ससर फूटा, ककसी का दाँत टूटा सभी भागते
हो जा रहे थे। भोलानाथ को दे ह लहू-लुहान हो गई। पैरों के तलिे में अनेक काँटे िुभ गए थे।
प्रश्न 2 . माता का अांिल' पाठ में िखणात समय में गाँिों की च्स्थतत और ितामान समय में गाँिों
की च्स्थतत में आए पररितान को स्पष्ट कीच्जए।
उत्तर- पहले गाँिों की च्स्थतत बहुत अचछी न थी िहाँ बबजली, पानी, पररिहन जैसी सुविधाएँ नाम
माि की थी। लोगों की आजीविका का साधन कृवष थी। आज गाँिों में टे लीविज़न के प्रिार-
प्रसार से लोगों में एकाकी प्रिवृ त्त बढी है । बचिे परां परागत खेलों से विमुख होकर िीड़डयोगेम,
टे लीविजन आठद के साथ अपना समय बबताना िाहते हैं। इस बढती आधुतनकता ने ग्रामीण
सांस्कृतत को पतन की ओर उन्द्मुख कर ठदया है ।
प्रश्न:3 आजकल बचिे घरों में अकेले खेलते हैं, पर भोलानाथ और उसके साथी समल-जुलकर
खेलते थे। इनमें से आप भािी जीिन के सलए ककसे उपयुक्त मानते हैं और क्यों ?
यह सत्य है कक आजकल के बचिे कांतयूटर पर गेम, िीड़डयो गेम, टे लीविशन पर काटूान दे खते
हुए अकेले समय बबताते हैं परां तु भोलानाथ का समय साधथयों के साथ खेलते हुए बीतता था।
खेत में धिड़ड़याँ उड़ाना हो या िूहे के बबल में पानी डालना या खेती करना, बारात तनकालना
आठद खेल ऐसे थे च्जनमें बचिों का एक साथ खेलना आिश्यक था। मैं समल जल
ु कर खेलने
को भािों जीिन के सलए उपयुक्त मानता हूँ, क्योंकक
•इससे सामूठहकता की भािन बनती है ।
•इस प्रकार के खेलों से सहयोग की भािना विकससत होती है।
•समल-जुलकर खेलने से सभी बचिे अपना-अपना योगदान दे ते हैं, च्जससे सकक्रय सहभाधगता की
भािना का उदय होता है।
•समल-जु लकर खेलने से बचिों में हार-जीत को समान रूप से अपनाने की प्रेरणा समलती है
च्जनका भािी जीिन में बड़ी उपयोधगता होती है।
प्रश्न:4 भोलानाथ के वपता भोलानाथ को पूजा-पाठ में शासमल करते, उसे गांगा तट पर ले डाल
पर झुलाते। उनका ऐसा करना ककन-ककन मूल्ट्यों को उभारने में सहायक है ?
भोलानाथ के वपता उसको अपने साथ पूजा पर बैठाते। पूजा के बाद आटे की गोसलयाँ सलए हुए
गांगातट जाते। मछसलयों को आटे की गोसलयाँ खखलाते, िहाँ से लौटते हुए उसे पेड़ की झुकी
डाल पर झल
ु ाते। उनके इस काया व्यिहार से भोलानाथ में कई मानिीय मल्ट्
ू यों का उदय एिां
विकास होगा।
ये मानिीय मल्ट्
ू य हैं
174
•भोलानाथ द्िारा अपने वपता के साथ पूजा-पाठ में शासमल होने से उसमें धासमाक भािना का
उदय होगा।
•प्रकृतत से लगाि उत्पन्द्न होने के सलए प्रकृतत का साच्न्द्नध्य आिश्यक है । भोलानाथ को अपने
वपता के साथ प्रकृतत के तनकट आने का अिसर समलता है । ऐसे में उसमें प्रकृतत से लगाि की
भािना उत्पन्द्न होगी।
•मछसलयों को तनकट से दे खने एिां उन्द्हें आटे को गोसलयाँ खखलाने से भोलानाथ में जीि-जन्द्तओ
ु ां
के प्रतत लगाि एिां दया भाि उत्पन्द्न होगा।
• नठदयों के तनकट जाने से भोलानाथ के मन में नठदयों को प्रदष
ू ण मक्
ु त रखने की भािना
का उदय एिां विकास होगा।
•िक्ष
ृ ों से तनकटता होने तथा उनकी शाखाओां पर झूला झूलने से भोलानाथ में पेड़ों के सांरक्षण
को भािना विकससत होगी।
प्रश्न 4. ितामान समय में सांतान द्िारा माँ-बाप के प्रतत उपेक्षा का भाि दशााया जाने लगा है
च्जससे िद्
ृ धों की समस्याएँ बढी हैं तथा समाज में िद्
ृ धाश्रमों की जरूरत बढ गई है। 'माता
का अँिल' पाठ उन मूल्ट्यों को उभारने में ककतना सहायक है च्जससे इस समस्या पर तनयांिण
करने में मदद समलती हो।
उत्तर- ितामान समय में भौततकिाद का प्रभाि है। अधधकाधधक धन कमाने एिां सुख पाने की
िाहत ने मनुष्य को मशीन बनाकर रख ठदया है । ऐसे में सांतान के पास बैठने उसके साथ
खेलने और घूमने-कफरने का माता-वपता के पास समय नहीां है। इस कारण एक ओर माता-वपता
बूढे होने पर उपेक्षा का सशकार होते हैं तो दस
ू री ओर िद्
ृ धाश्रमों की सांख्या बढ रही है । मता
का अँिल पाठ में भोलानाथ का अधधकाांश समय अपने वपता के साथ बीतता था। िह अपने
वपता के साथ पूज में शासमल होता था तो वपता जी भी मनोविनोद के सलए उसके साथ खेलों
में शासमल होते थे। इससे भोलानाथ में अपने माता-वपता से अत्यधधक लगाि, सहानभ
ु तू त, समल-
जुलकर साथ रहने की भािना, माता-वपता के प्रतत दृच्ष्टकोण में व्यापकता, माता-वपता के प्रतत
उत्तरदातयत्ि, सामाच्जक सरोकारों में प्रगाढता, आएगी च्जससे िद्
ृ धों की उपेक्षा एिां िद्
ृ धाश्रम की
बढती आिश्यकता पर रोक लगाने में सहायता समलेगी।
**************************************************
175
साना साना ार् जोड़ि- मिु कािंकररया
प्रश्न - उत्तर
उ) मेहनतकश का अथा है कड़ी मेहनत करने िाले। लेखखका व्यक्त करना िाहती हैं कक गांतोक
के लोगों को अत्यांत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकक यह पिातीय स्थल है। पिातीय क्षेि
होने के कारण यहाां की पररच्स्थततयाां भी अत्यांत कठठन है। उन्द्हें पहाड़ों को काटकर रास्ता
बनाना पड़ता है । पत्थरों पर बैठकर औरतें कुदाल ि हथौड़े से पत्थर तोड़ती हैं ।लेखखका ने दे खा
कक कुछ औरतें पीठ पर बांधी टोकरी में उनके बचिे भी बांधे रखे हैं। यहाां के लोग अत्यांत कठठन
पररच्स्थततयों में जीिन जीते हैं। िे िुनौततयों से डरते नहीां और ऐसी कठठनाइयों के बीि में भी
मस्त रहते हैं। इससलए गांतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर कहा गया है।
*2*. च्जतेन नागे ने लेखखका को ससच्क्कम की प्रकृतत, िहाां के भौगोसलक च्स्थतत एिां जन जीिन
के बारे में क्या महत्िपूणा जानकाररयाां दी, सलखखए।
उ) च्जतेन नागे उस जीप का गाइड कम ड्राइिर था, च्जसके द्िारा लेखखका ससच्क्कम की यािा
कर रही थी। च्जतेन एक समझदार और मानिीय सांिेदना से युक्त व्यच्क्त था। उसने लेखखका
को प्राकृततक पररदृश्य, भौगोसलक च्स्थतत और जनजीिन के विषय में अनेक महत्िपण
ू ा
जानकाररयाां दी।
*प्राकृततक पररदृश्य-* ससच्क्कम बहुत ही खूबसूरत पहाड़ी इलाका है , जहाां जगह-जगह पर धूपी
के खूबसूरत नुकीले पेड़ हैं। रास्ते िीरान, सांकरे , जलेबी की तरह घुमािदार हैं। थोड़ी थोड़ी दरू ी
पर झरने बह रहे होते हैं।
176
*भौगोसलक च्स्थतत* - गांतोक के 149 ककमी की दरू ी पर ठहमालय की गहनतम घठटयाां और
फूलों से लदी िाठदयाां थूमथाांग में दे खने को समलती हैं। ससच्क्कम प्रदे श िीन की सीमा से सटा
है। पहले यह स्ितांि रजिाड़ा था, अब यह भारत का एक अांग है।
*जनजीिन* -ससच्क्कम के लोग अधधकतर बौद्ध धमा को मानते हैं ।यहाां के लोग बड़े मेहनती
हैं, इससलए गांगटोक को मेहनतकश बादशाहो का नगर कहा जाता है। यहाां की च्स्ियाां भी कठोर
पररश्रम करती हैं। िे िाय की पवत्तयाां िन
ु ने बाग में जाती हैं। कई बार बचिों को पीट पर बांधी
'डोको' में अपने साथ रखती हैं। यहाां के लोग रां गीन कपड़े पसांद करते हैं, और उनके परां परागत
पररधान 'बोकु' है। बचिे पढने के सलए तीन-िार ककलोमीटर पहाड़ी िढकर स्कूल जाते हैं ।शाम
को िे अपनी माताओां के साथ काम करते हैं। उनका जीिन बहुत श्रम साध्य हैं।
*3*. च्जतेन नागे की गाइड की भूसमका के बारे में वििार करते हुए सलखखए कक एक कुशल
गाइड में क्या गुण होते हैं?
- एक कुशल गाइड को अपने क्षेि की प्राकृततक एिां भौगोसलक च्स्थतत विसभन्द्न स्थानों के महत्ि
तथा उनसे जुड़ी रोिक जानकाररयों का ज्ञान होना िाठहए। इससे पयाटकों का मनोरां जन होता
है और उनकी उस स्थान के प्रतत रुधि बढ जाती हैं।
-च्जतेन नेपाली हैं, लेककन उसे ससच्क्कम के जनजीिन, सांस्कृतत, तथा धासमाक मान्द्यताओां का पूरा
ज्ञान है ।िहाां की कठोर जीिन पररच्स्थततयों से भी िह भली-भाांतत पररधित हैं। यह एक कुशल
गाइड के आिश्यक गुण हैं।
-च्जतेन का सबसे अचछा गुण है - मानिीय सांिेदनाओां की समझ तथा पररष्कृत सांिाद शैली।
ससच्क्कम की सांद
ु रता का गण
ु गान ही नहीां करता, िहाां के लोगों के दख
ु -ददा के बारे में भी
लेखखका से बातिीत करता है । उसकी भाषा बड़ी पररष्कृत और सांिाद का ढां ग अपनत्ि से पूणा
है।
इस प्रकार एक गाइड में आत्मविश्िास, पयाटन का पूणा ज्ञान, याबियों को रास्ते में दशानीय
स्थलों की पूणा जानकारी दे ने िाला और अपनेपन से आकवषात करने िाला होना िाठहए।
177
*4* ) कभी श्िेत तो कभी रां गीन पताकाओां का फहराना ककन अलग-अलग अिसरों की ओर
सांकेत करता है ?
उ) यहाां पहाड़ी रास्तों पर कतार में लगी श्िेत पताकाएां ठदखाई दे ती हैं । ये सफेद पताकाएां
शाांतत और अठहांसा की प्रतीक है। इस पर मांि सलखे होते हैं। ऐसी मान्द्यता है कक श्िेत पताका
यह ककसी बुद्धधस्ट की मत्ृ यु पर फहराई जाती हैं। उसकी आत्मा की शाांतत के सलए शहर से
बाहर ककसी पविि स्थान पर 108 श्िेत पताकाएां फहरा दी जाती हैं, च्जन्द्हें उतारा नहीां जाता।
िे धीरे -धीरे स्ियां नष्ट हो जाती हैं। ककसी शुभ काया आरां भ करने पर रां गीन पताकाएां फहराई
जाती हैं।
*5*)" ककतना कम लेकर यह समाज को ककतना अधधक िापस लौटा दे ती हैं" - इस कथन के
आधार पर स्पष्ट करें कक आम जनता की दे श की आधथाक प्रगतत में क्या भूसमका है ?
उ) लेखखका ने दे खा कक आठदिासी औरतें पहाड़ों के बीि सड़कें िौड़ी करने हे तु अत्यांत द:ु साध्य
काया पत्थर तोड़ रही हैं । ज़रा सी िूक होने पर उनकी जान भी जा सकती है । लेखखका ने
ऐसा दृश्य दे खकर यह वििार प्रकट ककया कक आठदिासी औरतें ककतना कम लेकर ककतना
अधधक िापस लौटा दे ती हैं। इतना जोखखम भरा काम और उनका पाररश्रसमक इतना कम । यह
बात आम जनता पर भी लागू होती हैं ।हमारे ककसान, जो खेतों में काम कर अन्द्न पैदा करते
हैं, मज़दरू जो सड़क के पुल इत्याठद बनाने का कठठन काया करते हैं, उसके बदले उन्द्हें उनकी
मज़दरू ी भी पूरी नहीां दी जाती। यठद पहाड़ों में यह लोग अपना काया करना बांद कर दें तो
पयाटन विभाग ठतप हो जाएगा। इस प्रकार हमारे दे श की आम जनता अपने जीिन की
वििशताओां के कारण इतना कम लेकर बहुत कुछ िापस दे दे ते हैं।
उ) ससच्क्कम में एक जगह का नाम है 'किी -लाांग स्टॉक'। कहा जाता है कक यहाां गाइड कफल्ट्म
की शूठटांग हुई थी। िहीां एक घूमते हुए िक्र को दे खकर लेखखका ने उसके बारे में पूछा तो पता
िला कक यह धमािक्र है । इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं ।च्जतेन की यह बात सुनकर
लेखखका को ध्यान आया कक पूरे भारत की आत्मा एक ही है। इस च्स्थतत को दे खकर लेखखका
को लगता है कक धासमाक- आस्थाओां, पाप पुण्य और अांधविश्िासों के बारे में सारे भारत में एक
जैसी मान्द्यताएां हैं।
178
*7*) अपने शहर को स्िचछ और सुांदर बनाने में आप ककस प्रकार योगदान दे सकते हैं? साना
साना हाथ जोड़ड़... पाठ के आधार पर उत्तर दीच्जए।
उ)अपने शहर को स्िचछ और सुांदर बनाना न केिल हमारा कताव्य है बच्ल्ट्क हमारे स्िास्थ्य के
सलए भी लाभदायक है। हम इस काया में तनम्न प्रकार से अपना योगदान दे सकते हैं-
२. हमें सड़कों, गसलयों तथा अन्द्य सािाजतनक स्थलों पर कूड़ा किरा नहीां डालना िाठहए ।सभी
को कूड़ा डालने के सलए कूड़ेदान के प्रयोग पर बल दे ना िाठहए।
४. हमें अपने दै तनक जीिन में पयाािरण के अनुकूल इको फ्ेंडली सामग्री के प्रयोग को बढािा
दे ना िाठहए और तलाच्स्टक का पूणा रूप से बठहष्कार करना िाठहए।
उ) दे श की सीमा पर तैनात सैतनक ठदन-रात अपनी जान जोखखम में डालकर हमारी रक्षा करते
हैं ।हमें उनके प्रतत कृतज्ञ होना िाठहए। हमारा कताव्य है कक हम सैतनकों से जब भी समले
,उन्द्हें सदा सम्मान दें ।हमें सैतनकों के पररिारों तथा उनके बचिों की मदद करनी िाठहए। हमें
कोई ऐसा काया नहीां करना िाठहए च्जससे यह सांकेत जाए कक हम दे श के सैतनकों का अपमान
कर रहे हैं। हमें अपने दे श की जिानों पर गिा करना िाठहए तथा उनका उत्साहिधान करना
िाठहए ।सांघषा के ठदनों में हमें उनका हर प्रकार से सहयोग करना िाठहए, च्जससे िे अपने
कताव्य को भलीभाांतत तनभा पाए। दरअसल दे श की सेिा में समवपात जिानों के प्रतत अपने
कताव्य पूणा करके हम एक प्रकार से दे श सेिा का काया ही करते हैं।
*9*) आज की पीढी द्िारा प्रकृतत के साथ ककस तरह का खखलिाड़ ककया जा रहा है ? इसे रोकने
में आपकी क्या भूसमका होनी िाठहए?
उ)आज की पीढी द्िारा प्रकृतत के साथ तनम्न रूपों में खखलिाड़ ककया जा रहा है -
179
* िक्ष
ृ ों को अांधाधुन रूप में काटा जा रहा है ।इससे पहाड़ नांगे हो रहे हैं ।इसका पयाािरण पर
विपरीत प्रभाि पड़ रहा है ।पयाािरण प्रदष
ू ण का खतरा तनरां तर बढता िला जा रहा है ।
* नठदयों के जल को प्रदवू षत करने में भी आज की पीढी आगे हैं। नठदयों में कल-कारखानों की
गांदगी डाली जाती है। नगरों शहरों का कूड़ा तथा गांदगी को बहा ठदया जाता है ।
* पयाटन क्षेिों में आिागमन के बढने से सुख सुविधाओां की पूतता के सलए प्राकृततक सौंदया को
नष्ट ककया जाने लगा है ।इससे प्रदष
ू ण फैलने के साथ-साथ क्षेि विशेष में अपसांस्कृतत को भी
बढािा समलता है।
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180
कायापिक
1) 'जल -सांरक्षण' से आप क्या समझते हैं? हमें जल सांरक्षण को गांभीरता से लेना िाठहए, क्यों
और ककस प्रकार ?'जीिन मूल्ट्यों' की दृच्ष्ट से जल-सांरक्षण पर ििाा कीच्जए । ( 4)
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उ)आज की पीढी द्िारा प्रकृतत के साथ तनम्न रूपों में खखलिाड़ ककया जा रहा है -(4)
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181
मैं क्यों सलखता हूँ ?
(सच्चिदानांद हीरानांद िात्स्यायन ' अज्ञेय ')
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ " मैं क्यों सलखता हूँ ? " अज्ञेय जी के द्िारा सलखखत है। इस पाठ में लेखक ने
अपने सलखने के कारणों के साथ-साथ एक लेखक के प्रेरणा-स्िोतों पर भी प्रकाश डाला है ।
लेखक ने स्पष्ट ककया है कक सलखने के सलए प्रेरणा कैसे उत्पन्द्न होती है ? लेखक उस पक्ष को
अधधक स्पष्टता और ईमानदारी से सलख पाता है च्जससे िह स्ियां प्रत्यक्ष रूप से दे ख सकता
है । लेखक विज्ञान के छाि थे। लेखक ने जापान के शहर ठहरोसशमा में हुए रे ड़डयोधमी विस्फोट
के प्रभाि के बारे में केिल सन
ु ा था, जब िह जापान गए िहाँ एक पत्थर पर आदमी की शक्ल
में काली छाया को दे खा तो उस रे ड़डयोधमी के विस्फोट की भयािह रूप उनकी आँखों के सामने
प्रत्यक्ष रूप में प्रतीत होने लगा और उस याद को लेखक ने भारत आकर रे ल में बैठे -बैठे उसे
कविता के रूप में उतारा ।लेखक-'मैं क्यों सलखता हूँ ' का उत्तर दे ते हुए कहते हैं कक मैं इससलए
सलखता हूँ क्योंकक मैं स्ियां को जानना िाहता हूँ । बबना सलखे मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीां जान
सकता हूँ ।
प्रश्न - उत्तर
प्रश्न 1- लेखक के अनस
ु ार प्रत्यक्ष अनभ
ु ि की अपेक्षा अनभ
ु तू त उनके लेखन में अधधक मदद
करती है ,क्यों ?
उत्तर- लेखक के अनस
ु ार प्रत्यक्ष अनभ
ु ि की अपेक्षा अनभ
ु तू त उनके लेखन में अधधक मदद
करती है क्योंकक उनका मानना था कक अनुभूतत अनुभि से गहरी िीज़ है । अनुभि केिल
घठटत होता है , लेककन अनुभूतत सांिेदना और कल्ट्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात कर
लेती है जो िास्ति में प्रततकार के साथ घठटत नहीां हुआ हैं ।
182
(क) लेखक को कौन-सी बातें सलखने के सलए प्रेररत करती हैं?
उत्तर- लेखक यह जानना िाहता है कक िह क्यों सलखता है और इस प्रश्न को जानने की
इचछा ही उसे सलखने के सलए प्रेररत करती है । लेखक सलख कर अपनी आन्द्तररक वििशता
को जानने का प्रयास करता है ।तनम्नसलखखत दो िीजें उसके सलखने का मुख्य कारण है -
* उसके मन की च्स्थतत तथा वििशता * बाहरी दबाि
183
प्रश्न- 7 ठहरोसशमा पर सलखी कविता लेखक के अांतः ि बानय दोनों दबाि का पररणाम है आप
कैसे कह सकते हैं?
उत्तर- ठहरोसशमा के पीड़ड़तों को दे खकर लेखक को पहले ही अनुभि हो िुका था परन्द्तु जले
पत्थर पर ककसी व्यच्क्त की उजली छाया को दे खकर उसको ठहरोसशमा में विस्फोट से प्रभावित
लोगों के ददा की अनुभूतत कराई, लेखक को सलखने के सलए प्रेररत ककया । यह लेखक का
आांतररक दबाि था ।िांूकक लेखक विज्ञान के छाि थे तो ठहरोसशमा की िासदी को अचछे ढां ग से
बता सकते थे। इससलए कुछ अलग सलखने की िाह बानय दबाि हो सकता है ।
प्रश्न 8 -पाठ के आधार पर बताइए कक लेखक को सलखने की प्रेरणा कहाँ से प्रातत होती है ?
उत्तर - 'मैं क्यों सलखता हूँ 'पाठ में अज्ञेय जी अपनी आांतररक वििशता को प्रकट करने के सलए
सलखते हैं । िे तटस्थ होकर यह दे खना िाहते है कक उनका मन क्या सोिता है । िे सलखकर
मन की बेिैनी और उसकी छटपटाहट से मुच्क्त पाने के सलए सलखते हैं । िे स्ियां को जानने
और समझने ि पहिानने के सलए सलखते हैं । िे यह भी मानते हैं कक कई बार कुछ लेखक
आधथाक कारणों से भी सलखते हैं या कुछ सांपादक के दबाि ,प्रससद्धध की कामना के सलए भी
सलखते हैं ।
प्रश्न 9 - एक सांिेदनशील यि
ु ा नागररक की है ससयत से विज्ञान का दरु
ु पयोग रोकने में आपकी
क्या भूसमका हैं ?
उत्तर- विज्ञान के दरू
ु पयोग को रोकने में तनम्नसलखखत तरीकों से योगदान दे सकते हैं-
* लोगों को इांटरनेट, उस पर होने िाली धोखाधड़ी के बारे में जागरूक करना ।
* विज्ञानों द्िारा बनाए गए हधथयारों का प्रयोग केिल जीिों की भलाई के सलए करना ।
* हमारे महत्िपण
ू ा प्राकृततक सांसाधनों का सीसमत प्रयोग करके तथा प्रदष
ू ण रोक कर।
*लोगों को बेठटयों का महत्ि समझाकर, उन्द्हें सलांग जाँि और भ्रूण हत्या न करने का सांदेश
दे कर ।
**************************************************
184
कायापिक
नाम -------------------- कक्षा -------------------- प्रातताांक ---------------------
1) " मैं क्यों सलखता हूँ "प्रश्न का लेखक ने क्या उत्तर ठदया है ? पाठ के आधार परबताइए(4)
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प्रश्न 3- ' मैं क्यों सलखता हूँ ' पाठ का प्रततपाद्य अपने शब्दों म
उत्तर
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185
रचनात्प्मक
लेिन
186
अनुच्छे द-लेिन की पररभार्ा
ककसी एक भाि या वििार को व्यक्त करने के सलए सलखे गये सम्बद्ध और लघु िाक्य-समूह
को अनुचछे द-लेखन कहते हैं।
दस
ू रे शब्दों में – ककसी घटना, दृश्य अथिा विषय को सांक्षक्षतत (कम शब्दों में ) ककन्द्तु सारगसभात
(अथापूणा) ढां ग से च्जस लेखन-शैली में प्रस्तुत ककया जाता है , उसे अनुचछे द-लेखन कहते हैं।
‘अनच
ु छे द’ शब्द अांग्रेजी भाषा के ‘Paragraph’ शब्द का ठहांदी पयााय है । अनच
ु छे द ‘तनबांध’ का
सांक्षक्षतत रूप होता है। इसमें ककसी विषय के ककसी एक पक्ष पर 100 से 150 शब्दों में अपने
वििार व्यक्त ककए जाते हैं।
अनुचछे द सलखते समय तनम्नसलखखत बातों को ध्यान में रखना िाठहए –
(1) अनुचछे द सलखने से पहले रूपरे खा, सांकेत-बबांद ु आठद बनानी िाठहए। (कुछ प्रश्न-पिों में पहले
से ही रूपरे खा, सांकेत-बबांद ु आठद ठदए जाते हैं।)
(2) अनुचछे द में विषय के ककसी एक ही पक्ष का िणान करें । (ऐसा इससलए करना आिश्यक हो
जाता है क्योंकक अनच
ु छे द में शब्द सीसमत होते हैं और हमें अनच
ु छे द सांक्षेप में सलखना होता
है।)
(3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभािशाली होनी िाठहए। ताकक समीक्षक या पढने िाला आपके
अनुचछे द से प्रभावित हो सके।
(4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएँ। क्योंकक एक ही बात को बार-बार दोहराने से आप
अपने अनुचछे द को ठदए गए सीसमत शब्दों में पूरा नहीां कर पाएँगे और अपने सन्द्दे श को लोगों
तक नहीां पहुँिा पाएँगे।
(5) अनािश्यक विस्तार से बिें , लेककन विषय से न हटें । आपको भले ही सांक्षप
े में अपने अनुचछे द
को पूरा करना है, परन्द्तु आपको ये भी ध्यान रखना है कक आप अपने विषय से न भटक जाएँ।
(6) शब्द-सीमा को ध्यान में रखकर ही अनच
ु छे द सलखें। ऐसा करने से आप अपने अनच
ु छे द में
ज्यादा-से-ज्यादा महत्िपूणा बात सलखने की ओर ध्यान दे
(7) परू े अनच
ु छे द में एकरूपता होनी िाठहए। ऐसा नहीां होना िाठहए कक कही कोई बात विषय
से अलग लगे और पढने िाले का ध्यान विषय से भटक जाए।
(8) विषय से सांबांधधत सूच्क्त अथिा कविता की पांच्क्तयों का प्रयोग भी कर सकते हैं। इससे
आपका अनुचछे द बहुत अधधक प्रभािशाली और रोिक लगेगा।
(9) अनुचछे द के अांत में तनष्कषा समझ में आ जाना िाठहए यानी विषय समझ में आ जाना
िाठहए।
अनुचछे द की प्रमुख विशेषताएँ –
(1) अनच
ु छे द ककसी एक भाि या वििार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता
है। इसमें अन्द्य वििार नहीां रहते।
187
(2) अनुचछे द के िाक्य-समूह में उद्दे श्य की एकता रहती है। अप्रासांधगक बातों को हटा ठदया
जाता है । केिल बहुत अधधक महत्िपूणा बातों को ही अनुचछे द में रखा जाता है ।
(3) अनुचछे द के सभी िाक्य एक-दस
ू रे से गठठत और सम्बद्ध होते है । िाक्य छोटे तथा एक
दस
ू रे से जुड़े होते हैं।
(4) अनुचछे द एक स्ितन्द्ि और पूणा रिना है , च्जसका कोई भी िाक्य अनािश्यक नहीां होता।
(5) उचि कोठट के अनच
ु छे द-लेखन में वििारों को इस क्रम में रखा जाता है कक उनका आरम्भ,
मध्य और अन्द्त आसानी से व्यक्त हो जाए और ककसी को भी समझने में कोई परे शानी न
हो।
(6) अनुचछे द सामान्द्यतः छोटा होता है , ककन्द्तु इसकी लघुता या विस्तार विषयिस्तु पर तनभार
करता है। लेखन के सांकेत बबांद ु के आधार पर विषय का क्रम तैयार करना िाठहए।
(7) अनुचछे द की भाषा सरल और स्पष्ट होनी िाठहए।
अनुचछे द लेखन एक कला है । ककसी भी विषय पर स्ितांि रूप से सलखने की कला विकससत
करने का अथा होता है ‘भाषा पर सम्पण
ू ा अधधकार, शब्दािली आठद का सहज, साथाक प्रयोग।‘
अत: अनुचछे द गद्य लेखन की िह विधा है , च्जसके अांतगात ककसी तनधााररत विषय पर सांक्षेप
में सांक्षेप में बातें कही जाती है। बोडा परीक्षा में 100-150 शब्दों में अनच
ु छे द सलखने के सलए
आता है। इसकी अांक योजना इस प्रकार है --
भूसमका (आरम्भ एिां समापन) 1 अांक
विषय िस्तु 2 अांक
भाषा 2 अांक
कुल अांक 5 अांक
188
है। भौततक शरीर िाले व्यच्क्त को हजारों की भीड़ से आसानी से पहिाना जा सकता है।
व्यायाम करने से शरीर का अांग स्िस्थ रहता है । शरीर स्िस्थ और तांदरु
ु स्त बनता है। आलस्य
भाग जाता है। ठदन भर ऊजाा और उत्साह बना रहता है। .
व्यायाम का प्रभाि मन पर भी पड़ता है। शरीर के दब
ु ल
ा और रोगी होने से मन भी सशधथल हो
जाता है। एक स्िस्थ शरीर में स्िस्थ मन और आत्मा रहती है। व्यायाम करने के बाद ठदमाग
तेज हो जाता है। उनके हाथ में जो भी काम होता है , जोश और उत्साह के साथ िह परू ा होता
है।
स्िस्थ समाज में स्िस्थ लोग होते हैं। व्यच्क्त स्िस्थ और सख
ु ी रहे गा, तो समाज भी स्िस्थ
और सुखी रहे गा तथा मजबूत होगा। िह ककसी भी बीमारी से लड़ने में सक्षम होंगे आज की
कोविड महामारी से बिने केसलए भी स्िस्थ और मज़बूत रहने की आिश्यकता है । िह परु े
जीिन का आनांद ले सकेंगे।
आज ग्रामीण इलाकों से लोग धीरे -धीरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। च्जसके पास मौका
होता है िह शहर में बस जाता है । इस िजह से कई छोटे कस्बे कुछ िषों में शहर बन गए
हैं।
जनसांख्या घनत्ि बढने से महानगरों में तरह-तरह के प्रदष
ू ण बढ रहे हैं। िही जमीन, िही
आसमान, िही नदी, िही पहाड़, लेककन तीन गन
ु ा आबादी यानी तीन गुना उपभोक्ता। इसका
सीधा असर बढते प्रदष
ू ण पर पड़ रहा है ।
शहरों में प्रदष
ू ण कई तरह से बढ रहा है । सबसे भीषण िायु प्रदष
ू ण है । बड़े शहरों में लोग
स्िस्थ हिा में साांस नहीां ले सकते। लोगों को सड़क पर िलते समय िाहनों का काला धुांआ
पीना पड़ रहा है। भीड़ अधधक होने के कारण जगह-जगह कूड़े के ढे र लगे हैं। फैक्री का धआ
ु ां
पयाािरण को जहरीला बनाता है , इससलए मनुष्य भी स्िचछ हिा के सलए तरसता है । बड़े शहरों
में जल प्रदष
ू ण एक बड़ी समस्या बन गया है । फैक्री का पानी प्रदवू षत होने से भूजल भी लाल
और काला हो गया। ध्ितन प्रदष
ू ण की ितामान च्स्थतत यह है कक महानगरों के तनिाससयों के
सलए बहरापन और तनाि आम समस्या हो गई है , और शाांत स्थानों की जगह शोर ने ले ली
है।
इस सांबांध में िैज्ञातनक साधनो की तरह आम लोग भी समान रूप से दोषी हैं। हमें प्रदष
ू ण के
कारणों और इससे बिने के तरीकों को समझना होगा । लोगों को सिेत करें और उपायों को
189
व्यापक रूप से प्रिाररत करें । सरकार और जनता का सांयुक्त सहयोग ही प्रदष
ू ण मुक्त िातािरण
का तनमााण हो सकता है।
बेरोजगारी का तात्पया योग्य नौकररयों की कमी से है । भारत में बेरोजगारों को मुख्य रूप से
तीन श्रेखणयों में बाांटा गया है। एक व्यच्क्त च्जसके पास जीविकोपाजान का कोई साधन नहीां है।
ये पूरी तरह से खाली हैं। दस
ू रा, जो कुछ समय से काम कर रहे हैं, लेककन सीजन या काम का
समय खत्म होने के बाद बेकार हो जाते हैं। ऐसे लोगों को बेरोजगार कहा जाता है। तीसरे पक्ष
ऐसे हैं च्जन्द्हें योग्यता के आधार पर नौकरी नहीां समली।
बेरोजगारी का मुख्य कारण जनसांख्या विस्फोट है । जनसांख्या िद्
ृ धध के कारण दे श में रोजगार
सज
ृ न की सारी योजनाएँ बेकार हो गई हैं। दस
ू रा कारण पढे - सलखे युिको में छोटे काम न
करने की लालसा है। बेरोजगारी का तीसरा प्रमुख कारण भ्रष्ट सशक्षा व्यिस्था है । हमारी सशक्षा
प्रणाली लगातार नए बेरोजगार लोगों को पैदा कर रही है।
हमारी सशक्षा में पेशेिर प्रसशक्षण का अभाि है। सरकार को लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे ना
िाठहए। मशीनीकरण की ड़डग्री को इस हद तक बढाया जाना िाठहए कक इससे रोजगार के
अिसर कम न हों। इससलए गाांधी जी ने मशीन का विरोध ककया, क्योंकक इसने कई सशल्ट्पकारों
के हाथ बेकार कर ठदए।
बेरोजगारी के पररणाम भयानक हैं। बेरोजगार युिा कुछ भी गलत करने को तैयार हैं। िे शाांतत
भांग करने में सबसे आगे हैं। जो लोग सोिते हैं कक शैक्षक्षक िातािरण धूसमल है , िे शैक्षक्षक
िातािरण को भी िोट पहुँिाते हैं।
जब जनसांख्या की रफ़्तार धीमी होगी तभी बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो सकता है।
यि
ु ा शारीररक श्रम करें । सरकार को छोटे उद्योगों को बढािा दे ना िाठहए। औद्योधगक प्रसशक्षण,
सशक्षा में शासमल हों ताकक युिा आत्मतनभार बन पाए ।
190
एक भारतीय ककसान बहुत मेहनती होता है। गमी, सदी और बाररश के बािजूद िह काम में
व्यस्त रहता हैं। ककसान को गरजते बादल या तूफानी हिाएां कोई उसे उसके कमा करने से
नहीां रोक सकती । भारतीय ककसानों का जीिन कठठन और िुनौतीपूणा होता है । ठदन-रात काम
करने पर भी िह जीिन की जरूरतों को पूरा नहीां कर सकता है । उसके पास न तन ढकने के
सलए कपड़ा होता है और न ही पयाातत भोजन ।
गरीबी और असशक्षा भारतीय ककसानों के पतन का मल
ू कारण है । सशक्षा की कमी के कारण,
िह कई बुराइयों से तघरा हुआ है । अांधविश्िास और रीतत-ररिाज उनके जीिन का एक अतनिाया
ठहस्सा बन गए हैं। आज भी िह शोषण का सशकार है । आपकी मेहनत दस
ू रों के सलए सख
ु -
समद्
ृ धध लाती है पर खुद अभािग्रस्त है ।
दे श की प्रगतत ककसानों के जीिन में सुधार से जड़
ु ी है । ककसान इस दे श की आत्मा हैं। इससलए
हमें इसे सुधारने के सलए हर सांभि प्रयास करना िाठहए। ककसानों के महत्ि को जानकर लाल
बहादरु शास्िी ने “जय जिान जय ककसान” का नारा ठदया। यठद जिान दे श की सीमाओां की
रक्षा करता है , तो ककसान उस सीमा के भीतर रहने िाले लोगों को समद्
ृ धध प्रदान करते हैं ।
५। छात्र और अनुशासन
सांकेत बबांद ु –•महत्त्ि•पहला अनश
ु ासन का प्रभाि•व्यच्क्त और समाज पर प्रभाि•जीिन पर
प्रभाि
“अनुशासन” शब्द का अथा है -तनयमों को व्यिस्था के अनुसार जीना। यठद कोई व्यिस्था तय
है, तो उस पर च्जयो। व्यिस्था ठीक न हो तो जीिन में कोई भी तनयम अपने सलए बना लें।
अनुशासन जीिन को उपयुक्त बनाता है । इससे दक्षता में सुधार होता है । समय का पूरा
सदप
ु योग होता है।
पहले अनुशासन का पाठ सबसे पहले पररिार से ही सीखा जाता है। पररिार का सारा काम
व्यिच्स्थत तरीके से होगा तो बचिा भी अनश
ु ासन पर ध्यान दे गा। इससलए लोगों को पहले
अपने घर को अनुशाससत करना िाठहए।
अनुशासन न केिल व्यच्क्तगत जीिन के सलए आिश्यक है , बच्ल्ट्क सामाच्जक जीिन के सलए
भी तनताांत आिश्यक है। व्यच्क्तगत जीिन में अनश
ु ासन का अथा है कक छािों को प्रत्येक काया
को समय पर और क्रम से पूरा करने की आदत विकससत करनी िाठहए। अपने काम के घांटे
तनधााररत करने होंगे। ठदनियाा तनच्श्ित होनी िाठहए।
सामाच्जक जीिन में अनुशासन आिश्यक है । जैसे रे न, बस, स्कूल और कायाालय हमेशा खुले
रहते हैं, िैसे ही कमािाररयों को अपने-अपने स्थानों पर समय पर काम करने के सलए तैयार
191
रहना िाठहए। कोई ठढलाई नहीां होनी िाठहए। इसके साथ ही विद्याथी समय पर सामाच्जक
कायों में भाग लेने के तत्पर हों।
अनुशासन एक महत्िपूणा जीिन मूल्ट्य है , िास्ति में अनुशासन एक प्रकार का स्िभाि है। एक
विज्ञान है । अनुशासन का लक्ष्य जीिन को आरामदायक और सुविधाजनक बनाना है । एक
अनुशाससत व्यच्क्त को सुसशक्षक्षत और सभ्य माना जाता है। एक अनुशाससत विद्याथी अपने
जीिन में सफलता तो प्रातत करता है ही साथ ही साथ समाज में ऊँिा दजाा भी प्रातत करता
है।
2.भारिीय नारी
सांकेत बबांद ु –समपाण का स्िभाि -पच्श्िमी नारी-भारतीय नारी- ित्तामान नारी
3. पयषटन का म त्त्व सांकेत बबांद ु –पयाटन क्या है ? विकास एक उद्योग के रूप में -लाभ और
शौक
7 नर ो न ननराश करो मन को
सांकेत बबांद ु – आत्मविश्िास और सफलता की आशा से सांघषा -विजय- कुछ भी असांभि नहीां
महापुरुषों की सफलता का आधार।
192
सांकेत बबांद ु –मधुर िाणी -सबको वप्रय-मधुर िाणी एक औषधध-मधुरिाणी का प्रभाि- मधुर
िाणी की प्रासांधगकता।
9 बच्चों की मशक्षा में मािा-वपिा की भूममका
सांकेत बबांद ु –सशक्षा और माता-वपता -सशक्षा की महत्ता -उत्तरदातयत्ि-सशक्षाविहीन नर पशु
समान।
सांकेत बबांद ु – ओजोन परत क्या है ? मनष्ु य की प्रगतत और ओजोन परत- ओजोन नष्ट
होने का कारण -ओजोन बिाएँ जीिन बिाएँ।
193
15भ्रष्टाचार का दानव
अर्वा
भ्रष्टाचार से दे श को मुक्ि बनाएँ
सांकेत बबांद ु – भ्रष्टािार क्या है ? दे श के सलए घात- भ्रष्टािार का दष्ु प्रभाि- लोगों की
भूसमका।
19 सािंप्रदानयकिा का फैलिा ज र
अर्वा
मानविा के मलए घािक : सािंप्रदानयकिा का ज र
सांकेत बबांद ु – साांप्रदातयकता-अथा एिां कारण -साांप्रदातयकता का जहर - साांप्रदातयकता की
रोकथाम -हमारी भूसमका।
194
सांकेत बबांद ु - विज्ञान की अद्भुत खोज -बढता प्रयोग- ज्ञान एिां मनोरां जन का भांडार- अधधक
प्रयोग हातनकारक।
23जल ै िो जीवन ै
अर्वा
जल ी जीवन ै
अर्वा
जल सिंरक्षर्-आज की आवश्यकिा
सांकेत बबांद ु -जीिन दायी जल- जल प्रदष
ू ण के कारण- जल सांरक्षण ककतना ज़रूरी जल
सांरक्षण के उपाय।
**************************************************
195
पत्र-लेिन
पि लेखन एक विशेष कला – िास्ति में पि मानि के वििारों के आदान-प्रदान का अत्यांत
सरल और सशक्त माध्यम है । पि हमेशा ककसी को सांबोधधत करते हुए सलखे जाते हैं, अतः यह
लेखन की विसशष्ट विधा एिां कला है। पि-लेखन के तनम्नसलखखत गण
ु आिश्यक हैं |
1. सरलता - पि सरल भाषा में सलखना िाठहए। भाषा सीधी, स्िाभाविक ि स्पष्ट होनी िाठहए।
अतः पि में व्यच्क्त को परू ी आत्मीयता और सरलता दशाानी िाठहए।
2. स्पष्टता - जो भी हमें पि में सलखना है यठद स्पष्ट, सुमधुर होगा तो पि प्रभािशाली होगा।
सरल भाषा-शैली, शब्दों का ियन, िाक्य रिना की सरलता पि को प्रभािशाली बनाने में हमारी
सहायता करती है।
3. सांक्षक्षततता - पि में हमें अनािश्यक विस्तार से बिना िाठहए। अनािश्यक विस्तार पि को
नीरस बना दे ता है । पि च्जतना सांक्षक्षतत ि सुगठठत होगा उतना ही अधधक प्रभािशाली भी
होगा।
4. सशष्टािार - पि प्रेषक और पि पाने िाले के बीि कोई न कोई सांबांध होता है। आयु और
पद में बड़े व्यच्क्त को आदरपूिक
ा , समिों को सौहादा से और छोटों को स्नेहपूिक
ा पि सलखना
िाठहए।
5. आकषाकता ि मौसलकता - पि का आकषाक ि सुांदर होना भी महत्त्िपूणा होता है। मौसलकता
भी पि का एक महत्त्िपूणा गुण है । पि में तघसे-वपटे िाक्यों के प्रयोग से बिना िाठहए। पि-
लेखक को पि में स्ियां के विषय में कम तथा प्राततकताा के विषय में अधधक सलखना िाठहए।
6. उद्दे श्य पूणत
ा ा - कोई भी पि अपने कथन या मांतव्य में स्ितः सांपूणा होना िाठहए। उसे
पढने के बाद ककसी प्रकार की च्जज्ञासा, शांका या स्पष्टीकरण की आिश्यकता शेष नहीां रहनी
िाठहए। पि सलखते समय इस बात का ध्यान रखना िाठहए कक कथ्य अपने आप में पूणा तथा
उद्दे श्य की पतू ता करने िाला हो।
पि के प्रकार : 1. अनौपिाररक पि 2. औपिाररक पि
अनौपिाररक पि
बधाई पि
शुभकामना पि
तनमांिण पि
विशेष अिसरों पर सलखे गये पि
साांत्िना पि
ककसी प्रकार की जानकारी दे ने के सलए
कोई सलाह आठद दे ने के सलए....आठद
196
औपिाररक पि
प्राथाना पि
आिेदन पि
बधाई पि
शुभकामना पि
धन्द्यिाद पि
साांत्िना पि सशकायती पि
सांपादकीय पि
व्यािसातयक पि ......आठद
अनौपचाररक पत्र
1.अपने समि को परीक्षा में प्रथम स्थान प्रातत करने पर उसे बधाई दे ते हुए पि सलखखए -
3/15 लाल नगर
आगरा
नमस्ते
तुम्हारे वपता को फोन ककया तो उन से ज्ञात हुआ कक तुमने बोडा की परीक्षा में अपने सांभाग
में प्रथम स्थान प्रातत ककया है । यह समािार सुनकर मेरा मन खुशी से भर गया। मुझे तो
पहले से ही विश्िास था कक तम
ु परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीणा हो जाओगे, लेककन यह जानकर
कक तुमने परीक्षा में प्रथम श्रेणी के साथ-साथ अपने सांभाग में भी प्रथम स्थान प्रातत ककया है ,
मेरी खश
ु ी की सीमा नहीां रही।
इस परीक्षा के सलए तुम्हारी मेहनत और तनयसमत अनुशासन पूिक
ा पढाई में ही तुम्हें इस
सफलता तक पहूांिाया है।। मुझे पूरी आशा थी कक तुम्हारी मेहनत रां ग लाएगी और मेरा अनुमान
सि साबबत हुआ।। तुम ने प्रथम स्थान प्रातत कर यह ससद्ध कर ठदया कक दृढ सांकल्ट्प और
कठठन पररश्रम से जीिन में कोई भी सफलता प्रातत की जा सकती है।
मैं सदा ही यह कामना करूांगा कक तुम्हें जीिन में हर परीक्षा में प्रथम आने का सौभाग्य प्रातत
हो और तुम इसी प्रकार पररिार और विद्यालय का गौरि बढाते रहो। इतना ही नहीां,। इसी
प्रकार मेहनत करते रहो और अधधक से अधधक अांक प्रातत कर जीिन की सभी परीक्षाओां में
सफलता प्रातत करो।
शेष समलने पर
197
तुम्हारा समि
क ख ग
2.अपने छोटे भाई को सुबह घूमने के लाभ से अिगत कराते हुए पि सलखो
11, सुांदर नगर
सहारनपुर
स्नेहाशीष
हम सभी यहाां पर कुशल पूिक
ा हैं। आशा है तुम सब भी िहाां पर स्िस्थ एिां कुशल होंगे। माां
के पि से पता िला कक तुमने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्रातत ककया है । इस सफलता के
सलए तुम्हें हाठदा क बधाई। माँ ने यह भी सलखा है कक तुम अपनी अगली परीक्षा की तैयारी में
लगे हुए हो और रात को बहुत दे र तक पढते हो। रात को दे र तक जगने की िजह से सब
ु ह
दे र से उठते हो। अपने स्िास्थ्य के प्रतत तुम्हारी लापरिाही साफ ठदखाई दे रही है ।
दे खो सांजीि, तम
ु जानते हो स्िस्थ शरीर में ही स्िस्थ मन का तनिास होता है। यठद शरीर
स्िस्थ नहीां होगा तो मन कैसे स्िस्थ रहे गा? यठद मन अस्िस्थ है तो वििार भी स्िस्थ नहीां
होंगे। शरीर और मन दोनों को स्िस्थ रखने के सलए व्यायाम की आिश्यकता होती है । तुम
यठद व्यायाम नहीां कर सकते तो कम से कम सुबह उठकर घूमने अिश्य जाया करो।
प्रातः काल सूयोदय से पूिा बबस्तर छोड़कर खुली हिा में घूमने से शरीर का सारा आलस्य भाग
जाता है। अांग अांग खुल जाता है और इस समय नदी पाका या बगीिे की सैर मन को आनांद
दे ती है। जल्ट्दी सोने और जल्ट्दी उठने से मनुष्य स्िास्थ्य, धनिान और बद्
ु धधमान बनता है।
शभ
ु म घम
ू ने से मच्स्तष्क तरोताजा हो जाता है और सारा ठदन शरीर में स्फूतता का सांिार होता
रहता है। प्रातः भ्रमण आयु बढाने के सलए ठहतकर है ।। अतः तुम्हें प्रततठदन सुबह घूमने अिश्य
जाना िाठहए।
मुझे विश्िास है कक मेरा यह सुझाि तुम्हें पसांद आएगा और तुम इस पर अमल भी करोगे। मैं
िाहता हूां कक तुम च्जतना अपनी पढाई के सलए सिेत हो उतना ही ध्यान अपने स्िास्थ्य का
भी रखो। मेरी कामना है कक तुम स्िस्थ और दीघाायु हो।
घर पर माां और वपता को मेरा प्रणाम कहना और अपना ध्यान रखना।
तम्
ु हारा भाई
क ख ग
3. विदे श यािा पर जाने िाले समि को उसकी मांगलमय यािा की कामना के सलए पि सलखखए
198
12 नेहरू नगर,
प्रयागराज
सस्नेह नमस्ते
तुम्हारा पि अभी अभी प्रातत हुआ। यह जानकर खुशी हुई कक तुम 15 मािा को अमेररका जा
रहे हो।। विदे श जाने का सपना तम
ु बिपन से ही दे खा करते थे। सपना तम्
ु हारा साकार होने
जा रहा है ।। तुम्हारी इस अमेररका यािा में मेरी अनेकों शुभकामनाएां तुम्हारे साथ हैं। ईश्िर
करे तुम्हारी यािा सफल हो। िह जाकर मुझे पि सलखते रहना और अपने अमेररका में तनिास
के अनुभिों से पररधित कराते रहना।
मेरे समि असमत, इस बात का ध्यान रखना कक तुम भारतीय हो, अपनी सभ्यता और सांस्कृतत
को मत भूलना।। विदे शी प्रभाि तुम्हारे व्यिहार और स्िभाि को प्रभावित ना करें ।। तुम जैसे
हो िैसे के िैसे ही लौट कर भारत िापस आना। मेरी ओर से हाठदा क शुभकामनाएां।
तम्
ु हारा समि
क ख ग
आदरणीय मामा जी
सादर प्रणाम
अपने जन्द्मठदन पर आपके द्िारा भेजी गई घड़ी प्रातत हो गई। मुझे आपका यह उपहार
ककतना सुांदर और उपयोगी लगा इसका िणान करने के सलए मेरे पास शब्द नहीां है। घड़ी का
अभाि मुझे कई िषों से खड़क रहा था पापा भी मेरी घड़ी की माांग को डालते जा रहे थे पर
जाने कैसे आपने मेरे मन की बात जान ली।
कई बार स्कूल आने जाने में दे र हो जाती थी। अब मैं अपने आप को अनुशाससत बनाने का
परू ा प्रयत्न करूांगा। इस घड़ी को उपहार में पाकर मैं ककतना खश
ु हूां, आप उसका अनम
ु ान ही
नहीां लगा सकते। इतने सुांदर और मनिाहे उपहार के सलए बहुत-बहुत धन्द्यिाद।
199
आदरणीय मामी जी को मेरा प्रणाम कठहए। छोटी बहन ररतु की बहुत याद आती है । उसे
मेरा तयार दीच्जए।
आप का भाांजा
क ख ग
वप्रय सुनीता
शुभाशीष
दो ठदन पहले तुम्हारी छािािास की समि का पि प्रातत हुआ। शायद तुम समझ गई होंगी तो
उसने यह पि क्यों सलखा था। आजकल तम
ु गलत लड़ककयों के साथ अपना समय अधधक बता
रही हो तथा तुम्हारा ध्यान पढाई से हटकर दस
ू रे विषयों की ओर जा रहा है । यह जानकर हमें
अत्यधधक दख
ु हुआ।
तुम यह बहुत अचछी तरह जानती हो कक छािािास में भेजने का मूल कारण क्या था? माँ और
वपताजी दोनों ही िाहते हैं कक तुम पढ सलखकर अपना कैररयर बनाओ और इसके सलए तुम्हें
अध्ययन की तरफ ध्यान लगाना होगा। अध्ययन शील व्यच्क्त ही जीिन में कुछ बन सकता
है। अध्ययन केिल ज्ञान बुद्धध नहीां करता बच्ल्ट्क सही रास्ता ठदखाकर कुसांगतत से भी बिाता
है। पढाई का भी अपना एक अलग ही आनांद होता है। पढाई हमे साधारण व्यच्क्तयों की श्रेणी
से ऊपर उठा दे ती है। तनयसमत रूप से पढाई में ध्यान लगाने िाले व्यच्क्त जीिन में बहुत
आगे बढते हैं और उचि स्थान को प्रातत करते हैं।
मैं भी िाहती हूां कक तुम मेरी बातों पर ध्यान दो और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंठरत कर पढाई
करो। तम
ु जीिन में तनच्श्ित ही सफल होगी और अपने माता-वपता को गिा करने का अिसर
दोगी।
तुम्हारी बड़ी बहन
क ख ग
औपिाररक पि
1. अपने प्रधानािाया को छाििवृ त्त के सलए आिेदन पि सलखखए |
200
सेिा में
प्रधानािाया
प्रभात इांटर कॉलेज
आरा
महोदय,
सविनय तनिेदन यह है कक मैं आपके विद्यालय की कक्षा ग्यारहिीां का छाि हूँ । मैं अपनी
कक्षा में प्रततिषा अचछे अांको से उत्तीणा होता रहा हूँ । मैं विद्यालय की कक्रकेट टीम का एक
सदस्य भी हूँ । इसके अततररक्त मैं विद्यालय की ओर से विसभन्द्न िाद-वििाद प्रततयोधगताओां
में भाग लेकर अनेकों पुरस्कार ले िुका हूँ । मेरा प्रयास रहा है कक मैं विद्यालय का गौरि बढा
सकूँ। मैं अपनी कक्षा का मॉतनटर भी हूँ । अपने अनुशासन और अचछे स्िभाि के कारण सभी
अध्यापकों और विद्याधथायों का स्नेह प्रातत करता रहा हूँ ।
महोदय, मेरे वपताजी एक प्राथसमक विद्यालय में ितुथा श्रेणी के कमािारी हैं। मेरी पढाई का भर
उठाने में असमथा सा महसस
ू कर रहे हैं। मेरा एक छोटा भाई और दो छोटी बहनें भी हैं। मेरा
आपसे तनिेदन है कक घर की आधथाक च्स्थतत ठीक न होने के कारण आप को छाििवृ त्त दे ने की
कृपा करें । अपनी पढाई को तनयसमत रखने के सलए छाििवृ त्त की बहुत आिश्यकता है । पढाई
छूट जाने पर मेरा भविष्य अांधकार में हो जाएगा।
मैं उचि सशक्षा प्रातत करके अपने वपता का सहारा बनना िाहता हूँ ताकक अपने छोटे भाई और
बहनों को उचि सशक्षा प्रातत करने में सहयोग कर सकूँ । आप ही मेरे इस प्रयास में मेरी मदद
कर सकते हैं। मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा।
धन्द्यिाद
आपका आज्ञाकारी सशष्य
क ख ग
महोदय,
201
सविनय तनिेदन इस प्रकार है कक मैं आपके विद्यालय की कक्षा दसिीां “स” की छािा हूँ । मैंने
कक्षा 9 में प्रथम स्थान प्रातत ककया था। सभी विषयों में मेरे अांक 90% से अधधक थे। मैं
विद्यालय की और से अांतर विद्यालयी िाद वििाद प्रततयोधगता में अनेकों पुरस्कार भी जीत
िुकी हूँ । वपछले िावषाक उत्सि में मेरे द्िारा ककए गए शास्िीय नत्ृ य के प्रदशान को सभी
सशक्षकों, छािों और असभभािकों द्िारा सराहा गया था।
मेरे वपताजी फायर बब्रगेड विभाग में कायारत थे च्जनका विगत िषा सांद
ु र नगर बाजार में लगी
आग को बुझाते समय झल
ु स जाने के कारण दे हाांत हो गया था। मेरी माता जी एक गह
ृ णी हैं।
मेरे अततररक्त मेरा एक छोटा भाई और एक छोटी बहन भी है जो आपके विद्यालय में ही
कक्षा पाँि और कक्षा तीन मैं अध्ययनरत हैं।
वपता की पेंशन सीसमत होने के कारण घर का घर और हम तीनो भाई बहनों की विद्यालय
की फीस जमा करना कठठन है। अतः आपसे तनिेदन है कक मुझे छाििवृ त्त प्रदान करें ताकक मैं
आगे की पढाई सुिारू रूप से जारी रख सकूँ। मैं उचि सशक्षा प्रातत कर डॉक्टर बनकर अपने
पररिार और विद्यालय का नाम रोशन करना िाहती हूँ ।
आपकी इस कृपा के सलए मैं सदै ि आपकी आभारी रहूांगी।
धन्द्यिाद।
आपकी आज्ञाकाररणी सशष्या
क ख ग
कक्षा – दस “स”, अनुक्रमाांक-3
ठदनाांक – 12 जुलाई, 2021
विषय – पुस्तकालय में ठहांदी पुस्तकें और पबिकाएां उपलब्ध कराने के सांबांध में |
महोदय,
सविनय तनिेदन है कक हमारे विद्यालय के पुस्तकालय में अधधकाांश पुस्तकें कई िषा पुरानी है।
इांटरनेट और कांतयट
ू र आठद निीन विषयों से सांबांधधत पस्
ु तकें बहुत ही कम है। साथ ही प्रततयोगी
202
परीक्षाओां और समसामतयक विषयों से सांबांधधत पबिकाएां हमारे पुस्तकालय में उपलब्ध नहीां है।
विशेषकर ठहांदी में तकनीकी पुस्तकों की कमी है । आज के समय में निीनतम तकनीकी और
समसामतयक विषयों का ज्ञान होना विद्याधथायों के भविष्य के सलए अत्यांत आिश्यक है।
आशा है , आप हमारी इस प्राथाना को स्िीकार कर विद्यालय प्रभारी को निीनतम पुस्तक और
पबिकाओां को मनाने के सलए तनदे श दें गे।
आपकी इस कृपा के सलए हम सदै ि आपके आभारी रहें गे।
धन्द्यिाद।
आपका आज्ञाकारी सशष्य
क ख ग
कक्षा – दस “ग”, अनुक्रमाांक-23
ठदनाांक – 22 जुलाई, 2021
4. अपने क्षेि में िषाा के कारण उत्पन्द्न जलभराि की समस्या के सलए नगर पासलका
अधधकारी को पि सलखखए
सेिा में,
नगर पासलका अधधकारी,
मांगल नगर पासलका
प्रमोद नगर
महोदय,
तनिेदन है कक मैं नेहरू कॉलोनी शामली का तनिासी हूँ । वपछले कई ठदनों से यहाँ के कुछ
सीिर बांद पड़े हैं। गांदा पानी गसलयों और सड़कों पर बह रहा है। तनरां तर बाररश से हालात
और भी खराब हो गए हैं। सड़कों पर जगह-जगह पर गड्ढे बन गए हैं च्जसमें िषाा का पानी
भर गया है। यह पानी और सड़ता जा रहा है।
वपछले ठदनों की िषाा के कारण जगह जगह पर नगर पासलका क्षेि में छोटे छोटे तालाब बन
गए हैं। इन तालाबों में मक्खी मचछर आठद कीटाणु पैदा होकर बीमाररयों के फैलने को बढािा
दे रहे हैं।
मेरा आपसे तनिेदन है कक आप रुके हुए पानी को तनकालने के सलए कोई उधित प्रबांध कराएां।
बांद सीिर लाइनों को खुलिाएां और सड़कों पर बने गड्ढों को भरिाने की व्यिस्था करें च्जससे
मचछर आठद ना फैले। इसके सलए हम आपके सदै ि आभारी रहें गे।
203
धन्द्यिाद
प्राथी
क ख ग
नेहरू कॉलोनी, शामली
16 अगस्त 2021
5.अपने क्षेि में बबजली सांकट से उत्पन्द्न कठठनाइयों का ध्यान दै तनक समािार पि के
सांपादक को सलखे पि के माध्यम से आकवषात कराइए|
सेिा में,
सांपादक महोदय,
दै तनक जागरण,
हल्ट्द्िानी रोड, बरे ली
महोदय,
मैं आपके लोकवप्रय दै तनक समािार पि के माध्यम से अपने नगर में बबजली सांकट से उत्पन्द्न
कठठनाइयों की और अधधकाररयों का ध्यान आकवषात करना िाहता हूँ । मैं बीबीनगर क्षेि में
रहने िाला नागररक हूँ । आज कल होने िाली बबजली सांकट ने यहाँ के तनिाससयों को परे शान
कर रखा है। इससे पहले कभी भी इतनी परे शानी नहीां हुई थी।
इस सांकट का सामना सबसे अधधक आम लोगों को दक
ु ानदारों को और छािों को करना पड़
रहा है। शाम होते ही सब सब जगह अांधेरा हो जाता है। पढने िाले छाि-छािाएँ कुछ भी पढने
में असमथा हो जाते हैं।
पानी की समस्या तो और भी अधधक गांभीर हो गई है। बबजली के अभाि में पानी मोटर से
ऊपर की मांच्जल तक नहीां पहुांि पा रहा है । है रानी िाली बात यह है कक नगर में रहने िाले
उद्योगपततयों और अधधकाररयों के घर के क्षेि में बबजली एक समनट के सलए भी नहीां नहीां
जाती है। उन्द्हें आम आदसमयों की परे शातनयों का अांदाजा कैसे लगेगा?
मैं आपके पि द्िारा इन भ्रष्ट अधधकाररयों की पोल खोलना िाहता हूां। इस काया में आपके
सहयोग के सलए मैं आपका सदा आभारी रहूांगा।
धन्द्यिाद
क ख ग
बीबी नगर
19 निांबर 2021
204
अभ्यास पिक { अनौपिाररक पि }
छािािास की ठदनियाा एिां अपना कुशल-क्षेम बताते हुए अपने वपताजी को पि सलखखए ।
................
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पूज्य------------
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--------------------------------------------------------------------------------------------
--------------------------------------------------------------------------------------------
--------------------------------------------------------------------------------------------
--------------------------------------------------------------------------------------------
--------------------------------------------------------------------------------------------
आपका ................
....................
205
अभ्यास पिक { औपिाररक पि }
अपने क्षेि में िोरी की बढती हुई घटनाओां पर खेद और रोष प्रकट करते हुए स्थानीय
समािार पि के सांपादक को पि सलखखए ।
सेिा में
................
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विषय : ...................................................................................
महोदय,
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भिदीय
-----------
ठदनाांक
206
थववत्त
त लेिन
थववत्त
त लेिन का िात्प्पयष ै -थवयिं अपने बारे में सिंक्षक्षपि रूप से आवश्यक
सूचना प्रदान करना|थववत्त
त व्यस्क्ि की ववशेर्िा का पररचायक ोिा ै |य एक बना बनाया
प्रारूप ोिा ै ,स्जसे ववज्ञापन के प्रत्प्यत्त
ु र में आवेदन पत्र के सार् भेजा जािा ै |इसमें
व्यस्क्िगि वववरर् दे ने के सार्-सार् शैक्षखर्क योग्यिा,अनुभव,प्रमशक्षर्,उपलस्ब्ियाँ,कायेिर
गनिववधियाँ आहद का भी उल्लेि ोना ज़रूरी ै |थववत्त
त का आकार अनि सिंक्षक्षपि अर्वा
ज़रूरि से ज़्यादा लिंबा न ीिं ोना चाह ए|अिंग्रेज़ी में इसे Bio-data या Resume क िे ै |थववत्त
त
सुन्दर और आकर्षक ोना चाह ए|भार्ा सरल-सीिी,सटीक और साफ ोनी चाह ए िाकक एक
नज़र में सारी बािें थपष्ट ो जाएँ|
व्यस्क्िगि सूचनाएँ:
नाम :
वपता का नाम :
माता का नाम :
जन्द्म ततधथ : २५ अगस्त १९८०
ित्तामान पता : बी-३५,गोपाल परू ी,बाली गांज,कोलकत्ता,प.बां. १२३४५६
स्थायी पता : जनक परु ी,माधि परु ,च्जला आज़म गढ,उ.प्र.-१२००७५
मोबाईल नां. : २२२२२२२२२२
ई-मेल : २९कखग@gmail.com
शैक्षखणक योग्यताएँ:
क्रम.सां. परीक्षा का िषा विद्यालय /बोडा परीक्षा के विषय श्रेणी प्रततशत
नाम का नाम अांक
01 दसिीां जिाहर निोदय ठहन्द्दी,अांग्रेज़ी,गखणत,वि प्रथम ९४%
विद्यालय ज्ञान, सामाच्जक
विज्ञान
02 बारहिीां राजकीय इांटर ठहन्द्दी,अांग्रेज़ी,गखणत,भौ प्रथम ९३%
कोलेज ततकी,
रसायन विज्ञान
03 बी.एस.सी. ठदली विश्ि गखणत,भौततकी, प्रथम ८९%
विद्यालय रसायन विज्ञान
207
अन्य सम्बिंधिि योग्यिाएँ:
1.कम्पट
ू र का अचछा ज्ञान एिां अभ्यास
2.ठहन्द्दी एिां अांग्रेज़ी के साथ जमान भाषा का कायासाधक ज्ञान
उपलस्ब्ियाँ:
1.अखखल भारतीय िाद-वििाद प्रततयोधगता [िषा २००१]में प्रथम पुरस्कार,
2.विश्िविद्यालय कक्रकेट टीम का कततान[िषा २००३-२००४]
कायेिर गनिववधियाँ और अमभरुधचयाँ:-
1.आधथाक गततविधधयों से जुड़ी पि-पबिकाओां एिां अखबारों का तनयसमत पठन
2.फुटबाल दे खना एिां कक्रकेट खेलना
प्रनिस्ष्टि व्यस्क्ियों का सन्दभष:
1.श्री रामनाथ,पोफेसर एिां विभागाध्यक्ष,भौततकी विभाग, ठदल्ट्ली विश्िविद्यालय
2.श्री सुशील िमाा,प्रोफेसर एिां मुख्या तनयांता,ठदली विश्िविद्यालय
उद्घोर्र्ा
मैं यह सलखखत घोषणा करता हूँ कक मेरे द्िारा प्रदत्त उपरोक्त सभी सूिनायें मेरे ज्ञान और
विश्िास के आधार पर सत्य और पूणा हैं|
ई-मेल लेखन
आज के आधतु नक समय में ई-मेल लेखन बहुत ज़रूरी हो गया है |जल्ट्दी जानकारी प्रातत
करने के सलए या आिश्यक सूिना एिां करिाई के सलए,अांग्रेज़ी की तरह ठहन्द्दी में भी ईमेल
सलखा जाता है | ई मेल 20 से 30 शब्दों से अधधक ना होना बहत्तर है |
च्जला अस्पताल की अव्यिस्था के बारे में जानकारी दे ते हुए मुख्य धिककत्सा अधधकारी को
एक ई मेल भेच्जए:-
208
महोदय,
धन्द्यिाद!
भिदीय
अ० ब० स०
कायापिक
1.आपने पिकाररता के क्षेि में अपना अध्ययन पूरा कर सलया है और ककसी प्रससद्ध अखबार
में पिकार पद के सलए आिेदन भेजना है |इस केसलए एक स्िित्त
ृ तैयार कीच्जए|
नाम :
वपता का नाम :
माँ का नाम :
जन्द्म ततधथ :
ितामान पता :
स्थायी पता :
मोबाइल नां :
ई-मेल :
शैक्षखणक योग्यताएँ :
क्रम परीक्षा का िषा विद्यालय /बोडा का परीक्षा के
श्रेणी प्रततशत
सांख्या नाम नाम विषय
1.
2.
209
3.
4.
2.वन-म ोत्प्सव के अवसर पर पौिारोपर् की इच्छा प्रकट करिे ु ए एविं पौिों की व्यवथर्ा
करने का अनुरोि करिे ु ए अपने नगर के उद्यान अधिकारी को एक ई-मेल मलखिए:-
प्रेषक (From)
विषय-
महोदय,
...............................................................................................................................
...............................................................................................................................
...............................................................................................................................
210
...............................................................................................................................
...............................................................................................................................
...............................................................................................................................
..............................................................
धन्द्यिाद|
भिदीय
................
**************************************************
211
सिंदेश लेिन
अथा एिां पररभाषा– ककसी व्यच्क्त विशेष या समूह द्िारा अन्द्य व्यच्क्त तक पहूांिाएँ जानेिाले
सुखद,दख
ु द ,आिश्यक तथा सामान्द्य सूिना या समािार सांदेश लेखन कहलाता है ।
सांदेश-लेखन में इस बात का ध्यान अिश्य रखना िाठहए कक सांदेश दे नेिाले का भाि स्पष्ट
तथा सही रूप में प्रकट हो जाए । सांदेश िाहे व्यच्क्तगत रूप में हो या सामूठहक रूप में हो
,उसक सांप्रेषण उधित एिां सटीक होना है अतत आिश्यक है ।
सांदेश के प्रकार -
1 राष्रीय सांदेश- जो सांदेश राष्र को सांबोधधत करके ठदए जाते हैं,"राष्रीय सांदेश"कहलाते है
च्जनका एक तनच्श्ित समय, ठदनाांक तथा आकर होता है ।
2 शुभकामना सांदेश -ककसी पिा/त्योहार, माांगसलक काया,बधाई आठद दे नेिाले सांदेश शुभकामना
सांदेश कहलाते है ।
3 विशेष अिसर पर ठदए जानेिाले सांदेश -कुछ सांदेश ककसी विसशष्ट उपलच्ब्ध या विशेष
अिसर पर भी ठदए जाते है ।
5 शभ
ु प्रभात सांदेश-प्रततठदन सब
ु ह-सब
ु ह अपने सगे-सांबांधधयों, ररश्तेदारों, समिों, को ठदए
जानेिाले सुप्रभात सांदेश इसके अांतगात आते है ।
6 प्रेरणादायक सांदेश-च्जन सांदेशों से जीिन में प्रेरणा प्रातत होती है ,ऐसे सांदेश प्रेरणादायक
सांदेश कहलाते है ;
8 समधश्रत सांदेश -दे शभच्क्त, बीमारी, भूकांप, सूखा, बाररश, तूफान, आठद से सांबांधधत सांदेश
समधश्रत सांदेश कहलाते है ।
ककसी भी प्रकार के सांदेश को सलखते समय तनम्न बतों का ध्यान रखना अतत आिश्यक है –
212
*सांदेश सलखते समय अपनी तरफ से कोई नई बात नहीां जोड्नी िाठहए ।
*सांदेश की विषय-िस्तु में उन्द्हीां बातों को सच्म्मसलत ककया जाना िाठहए जो अतत आिश्यक
हो ।
*सांदेश सलखे जाने का समय एिां ततधथ अिश्य ठदया जाना िाठहए ।
*च्जस व्यच्क्त को सांदेश दे ना है , प्रारां भ में उसका नाम तथा अांत में सांदेश लेखक के हस्ताक्षर
अिश्य होने िाठहए ।
सांदेश की विशेषताएँ-
4 सांदेश कम शब्दों में उधित तथा अधधक बात कहनेिाला होना िाठहए ।
सांदेश का प्रारूप
समय ् :------------------
ततधथ:---------------------
----------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------
प्रेषक का नाम
213
1. आपका समि विदे श मे रहता है , उसे होली की शुभकामनाएँ दे ते हुए एक सांदेश सलखखए-
समि को सांदेश
सांदेश
17/12/2021
पिन
रां ग-बबरां गे रां गों और भाईिारे से भरपरू खसु शयों और उल्ट्लास का त्योहार होली तम्
ु हारे जीिन में उत्साह
और उमांग का सांिार कर दे ।
--(रजत)
सांदेश
18/12/2021
िािाजी
सुप्रभात
(राकेश)
-------------------------
214
3. आपके समि को तीरां दाज़ी प्रततयोधगता में स्िणा-पदक समलने पर शुभकामना सांदेश सलखखए
समि को सांदेश
सांदेश
20/12/2021
सुशाांत
सुमेश से तुम्हारी उपलच्ब्ध के विषय में पता िला ।राष्रीय तीरां दाज़ी प्रततयोधगता में तुम्हें स्िणा पदक
समला । इस कामयाबी में तुमने अपने पररिार,समाज और दे श का नाम रोशन कर ठदया ।मेरी ओर से
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
मनोज
------------------------------------
सांदेश
21/12/2021
आदरणीय अध्यापक जी
आप मेरे जीिन की प्रेरणा है ,गाइड है ,आप ही मेरे प्रकाश-स्तांभ है ।मैं मन की गहराइयों से आपका
आभारी हूँ ।सशक्षक ठदिस की हाठदा क शुभकामनाएँ ।
सशिातन
------------------------------------
215
5. दे शभच्क्त की प्रेरणा दे ते हुए अपने छोटे भाई को सांदेश सलखखए-
सांदेश
अपरनन 2 बजे
27/12/2021
अमन
जो दे श के सलए शहीद हुए उनको मेरा सलाम ।अपने खून से च्जस ज़्मीन को सीांिा,उन बहादरु ों को
सलाम है ।एकता और अखांडता हमारी पहिान है ।मेरा दे श मेरी जान है ,हमें ठहांन्द्दस्
ु तानी होने पर
असभमान है ।
(पिन)
---------------------
सांदेश
14 मई 2020
समिों।
:कोरोना िायरस”से बिाि के सलए सोशल ड़डस्टां ससांग रखें ।मुँह और नाक को ढककर रखें ।मास्क
लगाएँ तथा बार-बार साबुन से हाथ धोते रहें । बबना ज़रूरत के घर से बाहर न तनकले ।घर के अांदर
रहें ,सुरक्षक्षत रहे ।पना ध्यान रखें ।
(आपका अपना)
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216
7. अपनी मॉ के जन्द्मठदन के अिसर पर सांदेश सलखखए
सांदेश
प्रात:6.00 बजे
27/12/2021
तयारी मॉ
लोग मांठदर-मच्स्जद में जन्द्नत तलाश करते हैं।मेरी मॉ के िरण ही मेरी जन्द्नत है ।मेरा आदशा,मेरी
पहिान मेरी मॉ है ।मैं बहुत खुच्श्कस्मत हूँ कक मुझे भगिान जैसी मॉ समली।तुम मेरी सबसे वप्रय समि
हो।तयारी मॉ जन्द्मठदिस की हाठदा क शुभकामनाएँ। ईश्िर तुम्हें सदा स्िस्थ रखें ।
(नेहा)
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217
कायापिक
218
ववज्ञापन लेिन
*च्जस िीज़ का विज्ञापन करना है , उसका नाम एक से अधधक बार आना िाठहए |
*विज्ञावपत िस्तु के सबसे आकषाक गुणों का बार-बार उल्ट्लेख करना िाठहए | च्जस गुण में िह
सबसे अनूठी है , उसका उल्ट्लेख अिश्य होना िाठहए |
*विज्ञापन की भाषा में उत्तेजक प्रेरणा िाला एकाध स्लोगन (नारा) अिश्य होना िाठहए | जैसे –
* आज ही खरीदें !
* अिसर न िूकें!
* स्टॉक सीसमत है |
* सुनहरा अिसर!
* बांपर सेल!
* जल्ट्दी कीच्जए!
* धमाका!
* बित ही बित !
219
* विज्ञापन की शब्द सीमा अधधकतम 50 शब्द होनी िाठहए |
* दै तनक अखबारों में आनेिाले तथा दरू दशान पर आनेिाले विज्ञापन पढते रहना िाठहए |
* विज्ञापन में कभी भी अपने मोबाइल नांबर या ईमेल आईडी का च्ज़क्र न करें | (काल्ट्पतनक
1 ‘रक्षक’ हे लमेट बनाने िाली-कांपनी’ की बबक्री बढाने के सलए विज्ञापन तैयार करना –
2 मॉडना स्कूल ,िांडीगढ की रां ग रिना सभा द्िारा बनाए गए धििों एिां कलाकृततयों की बबक्री एिां
प्रदसशानी का उल्ट्लेख करते हुए एक विज्ञापन तैयार कीच्जए|
220
3 निाांकुर तले स्कूल में प्री प्राइमरी से पाँििी तक के दाखखले शुरू हो गए हैं। इस स्कूल के सलए एक
विज्ञापन तैयार कीच्जए।
‘रुधिकर पररधान शो रुम’ को अपने पररधानों की बबक्री बढानी है । िे सभी पररधानों पर 20% की छूट
दे रहे हैं। इस सांबांध में एक विज्ञापन तैयार कीच्जए।
221
उत्तर प्रदे श पयाटन तनगम पयाटकों की सांख्या बढाना िाहता है । उसके सलए एक आकषाक विज्ञापन
तैयार कीच्जए।
222
अभ्यास-प्रश्न
2आपको अपनी परु ानी मोटर साइककल बेिनी हैं। इसके सलए विज्ञापन तैयार कीच्जए।
4‘प्रकाश’ एल.ई.डी. बल्ट्ब बनाने िाली कांपनी की बबक्री बढाने हे तु विज्ञापन तैयार कीच्जए।
**************************************************
223
प्रनिदशष
प्रश्न पत्र
224
केन्द्रीय ववद्यालय सिंगठन
एरनाकुलम सिंभाग
प्रनिदशष प्रश्न पत्र ववर्य: ह द
िं ी (००२)
अधिकिम अिंक : 80 समय 3 घिंटे
सामान्द्य तनदे श :
(i)इस प्रश्न के तीन अांक के तीन खांड है -खांड क,ख और ग |
(ii)प्रत्येक खांड के प्रश्नों के उत्तर तनदे शानस
ु ार दे ने हैं |
(iii)प्रत्येक खांड में तनदे शानस
ु ार परीक्षाधथायों द्िारा पहले उत्तर ककये गए िांधित प्रश्नों का ही मल्ट्
ू याांकन
ककया जाएगा |
(iv)बहु विकल्ट्पीय प्रत्येक प्रश्न के सलए केिल एक ही सही विकल्ट्प हैं | एक विकल्ट्प से अधधक उत्तर
दे ने पर अांक नहीां ठदए जायेंगे |
खांड -अ
हमारी सभ्यता साठहत्य पर आधाररत है और साठहत्य में ठहत अथाात कल्ट्याण के भाि का
समाविष्ट होना आिश्यक है | मनुष्य सौन्द्दया िेतना को धारण करता हुआ कल्ट्याण के मागा
से विमुख न हो जाए, इस दृच्ष्ट से साठहत्य में ठहत की भािना रखी गई है | साठहत्य में ठहत
धिांतन समच्ष्टगत होता है ,लोक कल्ट्याण की भािना पर आधाररत होता है | उसमें विश्ि
प्रेम एिां लोकरां जन की भािना समाठहत होती है |साठहत्यकार साठहत्य का सज
ृ न अपने स्िाथा
के सलए नहीां, अवपतु समाज के उपयोग के सलए करता है |प्रत्येक समाज का अपना अलग
रहन-सहन, परां परा ,सांस्कृतत ,सांस्कार और इततहास है पर साठहत्य इन सभी बातों को समेट कर
प्रत्येक समाज के घटना को दस
ू रे समाज से आदान प्रदान करता है | इस प्रकार साठहत्य शब्द
और अथा सांयुक्त रिना है च्जसमें कल्ट्याण की भािना तनठहत होती है | साठहत्य में जीिन की
उपयोधगता के विषय में कभी -कभी सांदेह ककया जाता है | कहा जाता है कक जो स्िभाि से
अचछे हैं िह अचछे ही रहें गे ,िाहे कुछ भी पढे | जो स्िभाि से बुरे हैं बुरे ही रहें गे िाहे कुछ
भी पढे ।
225
इसे सत्य मान लेना मानि िररि को बदल दे ना होगा इस कथन में सत्य की मािा बहुत कम
है | हम ककतने भी पततत हो जाए ,पर असुांदर की ओर हमारा आकषाण नहीां हो सकता |मनुष्य
स्िभाि से दे ि तुल्ट्य है | जमाने के छल प्रपांि और पररच्स्थततयों के िशीभूत होकर अपना
दे ित्ि खो बैठता है | साठहत्य इसी दे ित्ि को अपने स्थान पर प्रततच्ष्ठत करने की िेष्टा
करता है | साठहत्य उप दे शों से नहीां , नसीहतो से नहीां ,अवपतु हृदय के कोमल भािों से भािों
को स्पांठदत करके और मन के कोमल तारों को झनझना कर अपना अभीष्ट प्रातत करता है
|
1.उपयक्
ुा त गद्याांश के सलए सिााधधक उपयुक्त शीषाक हो सकता है | 1
क .कल्ट्याण भाि का समािेश ख.साठहत्य के कल्ट्याण भािना
ग.साठहत्य और समाज घ.परोपकार
1x5=5
226
तरुणाई है नाम ससांधु की उठती लहरों के गजान का
िट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने च्जसके जीिन का
विफल प्रयासों से भी दन
ू ा िेग भुजाओां में भर जाता
जोड़ा करता च्जनकी गतत से नि उत्साह तनरां तर नाता
पिात के विशाल सशखरों सा यौिन उसका ही है अक्षय
च्जसके िरणों पर सागर के होते अनधगनत ज्िार सदा लय|
अिल खड़े रहते जो ऊांिा शीश उठाए तूफानों में
सहनशीलता दृढता हसती च्जनके यौिन के प्राणों में
िही पांथ-बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हो तनझार
प्रगतत नाम को साथाक करता यौिन दग
ु म
ा ता पर िलकर
आज दे श की भािी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई
नए जन्द्म की श्िास तुम्हारे अांदर जगह है लहराई |
आज विगत यग
ु के पतझर तम
ु को नि मधम
ु ास खखलाना
नियुग के पष्ृ ठों पर तम
ु को नूतन इततहास सलखाना
उठो राष्र के नि यौिन तम
ु ठदशा- ठदशा का सन
ु आमांिण
जगो दे श के प्राण , जगा दो नए प्रात का नया जागरण
आज विश्ि को यह ठदखला दो ,हमें भी जागी तरुणाई
नई ककरण की नई िेतना में हमने भी ली अांगड़ाई |
1.कविता के अनुसार तरुणाई की विशेषता है - 1
क.साहस ख. जुझारूपन
ग. सांकटों से टकराने ,लड़ने और उन्द्हें जीतने का प्रबल िेग घ. उपयक्
ुा त सभी
2.नियि
ु क उठदत रहता है - 1
क.मुसीबतों की िट्टानों से सभड़ने को ख.विफलताओां से जूझने को
ग.तफ
ू ानों और बाधाओां से लड़ने को घ. उपयक्
ुा त सभी
4.कवि यि
ु ाओां को सशक्षा लेने को कह रहा है - 1
227
क.भूतकाल की कसमयों से ख.ह्रासों से
ग.पराजय के पतझड़ से घ.उपरोक्त सभी से
अथिा
228
क.मानि और दानि ख.परोपकारी लोग
ग.धासमाक व्यच्क्तयों का समूह घ.मांि पढने िाले
4. 'सज
ृ न का आकाश’ का आशय है - 1
क.नए आकाश का बनना ख. धिड़ड़या की तरह नितनमााण
ग.आकाश का कफर से सज
ृ न घ.धिड़ड़या का घोंसला
5.कविता का सांदेश है - 1
क.मानि और दानि दोनों ही इस सांसार में है ख.राहों में आग नहीां बबछानी िाठहए
ग.घर-घर में फूल खखलने िाठहए घ.खुद समट कर भी दस
ू रों का भला करना िाठहए
(व्यािहाररक व्याकरण)
तनदे श : प्रश्न सांख्या III से लेकर VI तक के सभी प्रश्नों में पाांि -पाांि उप-प्रश्न ठदए गए हैं |
उनमें से प्रत्येक से िार प्रश्नों के सही उत्तर िाले विकल्ट्प िुतनए |
III. 1. बादल तघर आए और िषाा होने लगी | (रिना के आधार पर िाक्य भेद है )
क.सरल िाक्य ` ख.समश्र िाक्य
ग .सांयक्
ु त िाक्य घ. साधारण िाक्य
229
III.3.जब बालगोबबन भगत खेतों में रोपाई कर रहे थे तब लोग उन्द्हें कनखखयों से दे ख रहे थे
| 1
यहाां रे खाांककत आधश्रत उपिाक्य के भेद होगा-
क.सांज्ञा उपिाक्य ख. कक्रया विशेषण उप िाक्य
ग. विशेषण उपिाक्य घ. कक्रया उप िाक्य
(ख)जब तम
ु ठदल्ट्ली जाओगे तब लाल ककला दे खना।
IV तनम्नसलखखत पाांि में से ककन्द्ही 4 प्रश्नों के सही उत्तर िाले विकल्ट्प िुतनए |
230
IV. 3. तनम्नसलखखत में से कौन सा भाििािक का सही विकल्ट्प है - 1
क.आओ यहाां बैठे ख.आओ यहाां बैठा जाए
ग .आओ यहाां बैठते हैं घ. िलो अब यहाां बैठे
IV. 5. ककसान खेतों में कीटनाशक दिाइयों का तछड़काि करते हैं –में कौन सा िाचय है ? 1
(क) कमा िाचय (ख) भाि िाचय
(ग) कति
ाृ ाचय (घ) तीनों
तनम्नसलखखत पाांि में से ककन्द्ही 4 प्रश्नों के सही उत्तर िाले विकल्ट्प िुतनए | (रे खाांककत पद
का पररिय दीच्जये) 4x1=4
231
V.4.मैं धीरे -धीरे िलता हूँ । 1
(क) कक्रया-विशेषण, कालिािक, ’िलता हूँ’ कक्रया।
(ख) कक्रया-विशेषण, स्थानिािक, ’िलता हूँ’ कक्रया।
(ग) कक्रया-विशेषण, रीततिािक, ’िलता हूँ’ कक्रया।
(घ) कक्रया-विशेषण, पररमाणिािक, ’िलता हूँ’ कक्रया।
VI.1.‘बीती विभािरी जागरी, अांबर पनघट में डुबो रही तारा– घट उषा नागरी’ इसमें कौन– सा
अलांकार है?
क. मानिीकरण अलांकार ख. उपमा अलांकार
ग. अनप्र
ु ास अलांकार घ. यमक अलांकार
5.कसलयाँ दरिाज़े खोल खोल जब झुरमुट में मुस्काती हैं।’ में कौन सा अलांकार है ।
क). अनप्र
ु ास अलांकार ख). मानिीकरण अलांकार
232
ग.) उपमा अलांकार घ) रूपक अलांकार
VII.तनम्नसलखखत पठठत गदयाांश पर आधाररत प्रश्नों के सही उत्तर िाले विकल्ट्प िुतनए |
5x1=5
2-गह
ृ स्थ होते हुए भी बालगोबबन भगत साधु धेः क्योंकक
क-िे पीले िस्ि पहनते थे ग-साधु की सब पररभाषाओां पर खरे उतरने िाले थे
ख-ससर पर जटा धारण करते थे घ-प्रततठदन मठदर जाते थे ।
क-मांठदर से ग-गरु
ु द्िारे से
233
ख-मच्स्जद से घ-कबीरपांथी मठ से ।
1.धनुष को तोड़ने िाला आपका कोई दास ही होगा – राम िन्द्रजी ने ऐसा क्यों कहा –
क-परशुराम जी से क्षमा माांगने के सलए ख-परशुरामजी को क्रोधधत करने के सलए
ग-परशरु ामजी को शाांत करने के सलए घ-इनमें से कोई नहीां |
234
2-रामिन्द्रजी की बात सुनकर परशुरामजी की क्या प्रततकक्रया हुई
क. िे शाांत हो गए ख उनका क्रोध और अधधक हो गया
ग िे सभा से िले गए घ क और ख दोनों
3- प्रस्तत
ु काव्याांश की भाषा क्या है?
क .ब्रज ख- राजस्थानी समधश्रत ब्रज
ग- मैधथली घ- अिधी
4- भग
ृ कुलकेतु – ककसे कहा गया है –
क-रामिन्द्रजी को ख-परशुरामजी को
ग-लक्ष्मण और राम दोनों को घ-तुलसीदासजी को
खांड ब
िणानात्मक प्रश्न
235
XI.गद्य पाठ के आिार पर ननम्नमलखिि चार प्रश्नों में से ककन् ीिं िीन प्रश्नों के उत्तर
मलखिए-शब्द सीमा-25 से 30 शब्द | 2x3=6
1.निाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-समिा बुरका, अांततः सूँधकर खखड़की से
बाहर फेंक ठदया। उन्द्होंने ऐसा क्यों ककया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्िभाि को इांधगत
करता है ?
2.लेखखका मन्द्नू भांडारी की अपने वपता से िैिाररक टकराहट को अपने शब्दों में सलखखए |
3.काशी में हो रहे कौन कौन से पररितान बबच्स्मल्ट्लाह खाां को व्यधथत करते थे?
4.पानिाले का एक शब्द धिि प्रस्तुत कीच्जए |
XI. काव्य पाठ के आधार पर तनम्नसलखखत िार प्रश्नों में से ककन्द्हीां तीन प्रश्नों के उत्तर
सलखखए-शब्द सीमा-25 से 30 शब्द | 2x3=6
1.फसल कविता में लाखों -करोड़ों हाथों के स्पशा की गररमा ककसे कहा गया हे ई और क्यों?
2.कवि ने बचिे के मुस्कान के सौंदया को ककन ककन बबम्बों के माध्यम से व्यक्त ककया है ?
3.’उत्साह’ कविता में बादल ककन-ककन अथों की और सांकेत करता है ?
4.आत्मकथ्य कविता की काव्य भाषा की विशेषताएां उदाहरण सठहत सलखखए |
XII.ननम्नमलखिि प्रश्नों में से ककन् ीिं दो उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीस्जए |
2x4=8
236
क.आतांकिाद की समस्या :आखखर कब तक[
सांकेत बबन्द्द-ु आतांकिाद का अथा, इसके दष्ु प्रभाि, आतांकिाद को नष्ट करने के उपाय -विश्ि
स्तर पर इसके विरूद्ध हो रहे प्रयास
आपका दाखखला नए विद्यालय में करिाया गया है | यहाँ आपके सलए सब कुछ नया है तथा
आपका मन भी नहीां लग रहा| आपके भाई-बहन दस
ू रे शहर में रहते हैं| पि द्िारा उन्द्हें अपनी
समस्याओां से अिगत कराएँ|
अथिा 5
आपके गाांि धीरपुर में धिककत्सा के सलए दस
ु रे गाांि जाना पड़ता है |लोगों को बहुत असुविधा
होती है | धिककत्सा की व्यिस्था हे तु च्जला धिककत्सा अधधकारी को पाि सलखाकर गाांि में
एक ड़डसपेंसरी खुलाने की प्राथाना करते हुए पि सलखखए |
XVI.प्रदष
ू ण से बिने के सलए जनठहत में जारी लगभग 60 शब्दों का एक विज्ञापन पयाािरण
विभाग की और से तैयार कीच्जए |
अथिा 4
आप अपने पापा के कायाालय के समस्त कमािाररयों के सलए दीपािली का बधाई सन्द्दे श सलखें
|
237
केन्द्रीय विद्यालय एरणाकुलम सांभाग
प्रततदशा प्रश्न पि -2022
कक्षा 10िीां विषय: ठहन्द्दी पण
ू ांक: 80
सामान्य ननदे श:
1. तनम्नसलखखत अपठठत गद्याांश को पढकर पुछे गए प्रश्नों के सलए उधित विकल्ट्प िुतनए-
(5×1=5)
ककसी भी जीि के शरीर के ऊपर मच्स्तष्क है। इस मच्स्तष्क का स्िभाि कैसे तैयार हो जाता
है ? बुद्धध में होनेिाले वििार से। इसका मतलब यह है ककसी भी व्यच्क्त के िांशानुगत स्िभाि
को उसकी बुद्धध, उसका वििेक बदल सक्ता है। इसका मतलब यह है कक हमारा बतााि हमारे
कमा पर हमारा िश है , िाहे दतु नया भर पर न भी हो। हम अपने स्िभाि को बदल सक्ते हैं,
अपनी बद्
ु धध में बारीक बदलाि लाकर। इसके सलए हमें मच्स्तष्क की रूपरे खा पर एक नज़र
दौडानी होगी।
238
1) हम अपने स्िभाि को कैसे बदल सकते हैं:
क) अपने आिरन में बारीक बदलाि लाकर
ख) अपनी बुद्धध में बारीक बदलाि लाकर
ग) ककसी भी व्यच्क्त के िांशानुगत स्िभाि दे खकर
घ)उपयक्
ुा त तीनों
5) हमारी सज
ृ नात्मक शच्क्त के विकास के उपाय सुझाइए।
क) धिांता करना ख) धिांतन –मनन करना
ग) सिेतन मन को सजीि रखना घ) ‘ख’ और ‘ग’ दोनों
239
कविता ने जीना ससखलाया
यािाएँ जब मौन हो गई
कविता ने िलना ससखलाया।
जब भी तम का
जुल्ट्म िढा है, कविता नया सूया गढती है ,
जब गीतों की फसलें लट
ू तीां
शीलहरण होता कसलयों का,
शब्दहीन जब हुई िेतना
तब-तब िैन लुटा गसलयों का
जब कुसी का
कांस गरजता, कविता स्ियां कृष्ण बनती है ।
अपने भी हो गए पराए
यूँ झठ
ू े अनब
ु ांध हो गए
घर में ही िनिास हो रहा
यँू गांग
ू े सांबांध हो गए।
2. कविता सांघषा की प्रेरणा दे ती हैं- यह भाि ककस पांच्क्त में व्यांच्जत हुआ है ?
क) यँू झठ
ू े अनब
ु ांध हो गए ख) घर मे ही िनिास हो रहा
ग) यूँ गूांगे अांबन्द्ध हो गए घ) कविता सदा जांग लड़ती है
240
क) जब व्यच्क्त तनराश हो जाता है ख) जब व्यच्क्त को सिाि अांधकार नज़र आता है।
5. ‘घर में ही िनिास हो रहा, यूँ सांबांध गूांगे हो गए’- पांच्क्त के माध्यम से कवि ने क्या
व्यक्त ककया है ?
क) घर में सबका िनिास हो गया ख) घर में सब गांग
ू े हो गए
ग) परस्पर सांबांधों में दरू रयाँ बढ गई है घ) सब िन में जाकर गूांगे हो गए
अथिा
2)तनम्नसलखखत अपठठत पद्याांश को ध्यान से पढकर पूछे गए प्रश्नों के सलए सही विकल्ट्प
िुतनए -5
241
[ग] यहाँ सबका सम्मान है [घ] उपयक्
ुा त सभी
अथिा
242
ख) कवि ककसके समान जीने को कहता है ?
(क) योधगयों के (ख) भोधगयों के
(ग) विजयी व्यच्क्तयों के (घ) राजाओां के
घ)जो बबना झुके मुसीबतों का सामना करते हैं, िे ककसका उपभोग करते हैं ?
(क) दख
ु ों का (ख) सुखों का
(ग) परतांिता का (घ) स्ितांिता का
खांड ‘ख’
3.1) जो पररश्रम करता है उसे अधधक समय तक तनराश नहीां होना पडता। - रे खाांककत में
कौन-सा उपिाक्य है ?
243
(ग) िे ठदन याद आते हैं जब िे एक पाररिाररक ररश्ते में बांधे थे।
(घ) राधा योग्य है और शसश उदार है।
3.3 ) दोपहर के तीन बजे है और िह घूमने िला गया । समश्र िाक्य में सही पररितान है -
क) दप
ु हर के तीन बजकर िह घूमने िला गया |
ख) दप
ु हर हुआ , तीन बज गया और िह घूमने िला गया |
ग) जब दप
ु हर के तीन बज गया तब िह घम
ू ने िला गया |
घ) दप
ु हर का तीन बज गया और िह घूमने िला गया |
244
4.3) च्जन िाक्यों में कक्रया का मुख्य विषय कताा होता है उन्द्हें ......... कहते हैं :
क) सरल िाक्य ख) कता ृ िाचय
ग) कमािाचय घ) भाििाचय
4.4) भगिान हमारी रक्षा करता है। िाक्य का कमािाचय में सही पररितान है -
क) भगिान द्िारा हमारी रक्षा करााता है।
ख) भगिान द्िारा हमारी रक्षा ककया जाता है।
ग) भगिान द्िारा हमारी रक्षा की जाती है।
घ) भगिान द्िारा हमारी रक्षा की जाएगी। ।
4.5) शीला उपन्द्यास सलखेगी ।
(क) कमािाचय (ख) भाििाचय
(ग) कति
ाृ ाचय घ) तीनों
5.1) जो अपने ििन का पालन नहीां करता िह विश्िास के योग्य नहीां है।
245
ग) एकििन, पुच्ल्ट्लांग, सािानासमक विशेषण
घ) एकििन, पुच्ल्ट्लांग, अन्द्यपुरुषिािक सिानाम
6. तनम्नसलखखत काव्य पांच्क्तयों में से ककन्द्हीां िार में समाठहत अलांकार में का सही विकल्ट्प
िुनकर सलखखए। 4×1=4
क) बबरहा की आँि लगी तन में, तब जाय परी जमुना जल में ।
बबरहानल से जल सूखख गयौ, मछली बह धाय गई तल में।
जब रे त फटी पाताल गई, तब शेष जरौ धरणी में ।
क) श्लेष ख) उपमा
ग) मानिीकरण घ) अततशयोच्क्त
क) उपमा ख) श्लेष
246
ग)मानिीकरण घ)अततशयोक्त
क) अततशयोच्क्त ख) श्लेष
ग) मानिीकरण घ) रूपक
खण्ड ग
7. तनम्नसलखखत गद्याांश को पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर का सही विकल्ट्प िुनकर सलखखए
: 5×1=5
(अ) एक सांस्कृत व्यच्क्त ककसी नई िीज़ की खोज करता है , ककां तु उसकी सांतान को िह िस्तु
अपने अपने पि
ू ज
ा से अनायास ही प्रातत हो जाती है ।च्जस व्यच्क्त की बद्
ु धध ने अथिा वििेक
ने ककसी भी नए तथ्य का दशान ककया िह व्यच्क्त ही िास्तविक सांस्कृत व्यच्क्त है और उसकी
सम्तान च्जसे अपने पूिज
ा से िह िस्तु सहज से प्रातत हो गई है , िह अपने पूिज
ा की भाांतत
सभ्य भले ही बन जाए सांस्कृत नहीां कहला सक्ता ।एक आधुतनक उदाहरण लें। न्द्यूटन ने
गुरुत्िाकषाण ससद्धाांत का आविष्कार ककया था। िह सांस्कृत मानि था। आज के युग में भौततक
विज्ञान का विद्याथी न्द्यूटन के गुरुत्िाकषाण ससद्धाांत से तो पररधित है ही लेककन उसके साथ
उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्रातत है च्जसे शायद न्द्यूटन अपररधित ही रहा। ऐसा होने
पर भी हम आज के भौततक विज्ञान के विद्याथी की न्द्यट
ू न की अपेक्षा अधधक भले ही कह
सकें पर न्द्यूटन च्जतना सांस्कृत नहीां कह सकते ।
247
2. न्द्यूटन कौन था?
क) धिांतक ख) दाशातनक
ग) िैज्ञातनक घ) इनमें से कोई नहीां
क) सनकी आिरण
ख) ठदखािे की प्रव्रुवत्त
ग) लेखक के प्रतत उसकी उदासीनता
घ) क और ख दोनों
248
ii) बबच्स्मल्ट्ला खाां काशी के प्रतत इतने अनुरक्त क्यों थे?
क) िे अपने धमा पर तनष्ठािान नहीां थे।
ख) उनको धमा के प्रतत कोई आस्था नहीां थी
ग) िे हर धमा को मानते थे
घ)िे च्जस प्रकार अपने धमा को मानते थे उसी प्रकार काशी विश्िनाथ को भी मानते थे।
सलखखए : 5×1=5
249
5.कविता में ब्याधध शब्द का प्रयोग ककसके सलए हुआ है ?
क) बीमारी के सलए ख) योग साधना के सलए
ग) श्रीकृष्ण के सलए घ) इनमें से कोई नहीां
10. पहठि काव्य पाठों के आिार पर ककन् ीिं िीन प्रश्नों के उत्तर मलखिए: - 3X2=6
क) कवि प्रसाद जी आत्म कथा सलखने से क्यों बिना िाहते है ?
ख) उत्साह कविता में बादल ककन-ककन अथों की ओर सांकेत करता है ?
ग) कवि की आँख फागुन की सुन्द्दरता से क्यों नहीां हट रही है ?
घ) सांगतकार हमेशा पदे के पीछे रहकर अपनी क्षमता का प्रदशान क्यों करता है ?
250
11.पूरक पाठ्यपुस्तक के आधार पर ककन्द्हीां दो सिालों का जिाब 50-60 शब्दों में सलखखए।
2X4=8
क) दे श की सीमाओां पर फौजी ककस तरह की कठठनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रतत हमारा क्या
उत्तरदातयत्ि होना िाठहए।
ख) माता का अांिल पाठ के आधार पर बताइए कक माता-वपता के िात्सल्ट्य में कौन-कौन
गुणों का विकास होगा?
ग) ‘ठहरोसशमा पर सलखी तनबांध लेखक के अांत: ि िानय दबाब का पररणाम है’ – यह आप
कैसे कह सकते हैं ?
खण्ड घ
क) ’आत्मतनभार भारत’
आशय, उद्दे श्य, भारत की पष्ृ ठभसू म, ककए गए कदम, अब तक की सफलता
ख)आज़ादी का अमत
ृ महोत्सि
आज़ादी –अथा, स्ितांिता सांग्राम के विसभन्द्न आयाम,अमत
ृ महोत्सि से जड
ु े विसभन्द्न कायाक्रम,
दे शिाससयों में दे श भच्क्त का सांिार
13.आपके क्षेि में प्रततठदन मठहलाओां के साथ होने िाली छे ड़छाड़ की घटनाओां पर सरकार
का ध्यान आकृष्ट करने हे तु प्रततच्ष्ठत समािार-पि के सांपादक को एक पि सलखखए। 5
अथिा
अथिा
251
शैक्षक्षक सांस्थाओां में नशीले पदाथों के वितरण सांबांधी सूिना दे ते हुए पुसलस आधीक्षक के नाम
ईमेल सांदेश तैयार कीच्जए।
अथिा
************
252
प्रततदशा प्रश्नपि (2022-23)
ठहन्द्दी पाठ्यक्रम अ (कोड-002)
कक्षा दसिी
सामान्द्य तनदे श:
इस प्रश्नपि में दो खांड हैं खांड अ और खांड ब |
खांड-अ में 49 िस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं च्जनमें से केिल 40 प्रश्नों के ही उत्तर दीच्जए।
खांड-ब में िणानात्मक प्रश्न पूछे जाएांगे। प्रश्नों में उधित आांतररक विकल्ट्प ठदए जाएांगे।
अांतरााष्रीय श्रम सांगठन के अनुसार, बाल श्रम को इस प्रकार पररभावषत ककया गया है - "िह
काम जो बचिों को उनके बिपन, उनकी क्षमता और उनकी गररमा से िांधित करता है , और जो
शारीररक और मानससक विकास के सलए हातनकारक है ।" एक सामाच्जक बुराई के रूप में
सांदसभात, भारत में बाल श्रम एक अतनिाया मद्
ु दा है च्जससे दे श िषों से तनपट रहा है । लोगों
का मानना है कक बाल-श्रम जैसी सामाच्जक कुरीतत को समातत करने का दातयत्ि ससफा सरकार
का है। यठद सरकार िाहे तो कानून का पालन न करने िालों एिां कानून भांग करने िालों को
सजा दे कर बाल-श्रम को समातत कर सकती है , ककां तु िास्ति में ये केिल सरकार की च्जम्मेदारी
नहीां है बच्ल्ट्क इसे सभी सामाच्जक सांगठनों, मासलकों, और असभभािकों द्िारा भी समाधधत करना
िाठहए। हमारे घरों में , ढाबों में , होटलों में , कारखानों में अनेक बाल-श्रसमक समल जाएँगे, जो कड़ाके
की ठां ड और तपती धूप की परिाह ककए बबना काम करते हैं। विकासशील दे शों में गरीबी और
उचि स्तर की बेरोजगारी बाल श्रम का मख्
ु य कारण है । बाल मजदरू ी इांसातनयत के सलये
अपराध है जो समाज के सलये श्राप बनती जा रही है तथा जो दे श की िद्
ृ धध और विकास में
बाधक के रूप में बड़ा मद्
ु दा है । हमें सोिना होगा कक सभ्य समाज में यह असभशाप क्यों
मौजूद है ? च्जस उम्र में बचिों को सही सशक्षा समलनी िाठहए. खेल कूद के माध्यम से अपने
मच्स्तष्क का विकास करना िाठहए उस उम्र में बचिों से काम करिाने से बचिों का शारीररक,
मानससक, बौद्धधक और सामाच्जक विकास रुक जाता है । सशक्षा का अधधकार मूल अधधकार
होता है। सशक्षा से ककसी भी बचिे को िांधित रखना अपराध माना जाता है। आज आिश्यकता
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इस बात की है कक सरकारी स्तर से लेकर व्यच्क्तगत स्तर तक सभी लोग इसके प्रतत सजग
रहें और बाल-श्रम के कारण बचिों का बिपन न तछन जाए, इसके सलए कुछ साथाक पहल करें ।
आम आदमी को भी बाल मजदरू ी के विषय में जागरुक होना िाठहए और अपने समाज में इसे
होने से रोकना िाठहए। बालश्रम को खत्म करना केिल सरकार का ही कताव्य नहीां है हमारा
भी कताव्य है कक हम इस असभयान में सरकार का पूरा साथ दें ।
(i) बाल-श्रम जैसी सामाच्जक कुरीतत को समातत करने के सलए लोगों की सोि कैसी है ?
(क) बाल-श्रम को समातत करना केिल समाजसेिी सांस्थाओां का दातयत्ि हैं
(ख) बाल-श्रम को समातत करना केिल जनता का दातयत्ि है
(ग) बाल-श्रम को समातत करना केिल सरकार का दातयत्ि है।
(घ) बाल-श्रम को समातत करना केिल असभभािकों का दातयत्ि है।
(ii) घरों में , ढाबों में , होटलों में , खानों, कारखानों में अनेक बाल श्रसमकों को काम करता दे खकर
भी हम उदासीन क्यों बने रहते हैं?
(क) हम ससफा अपने बारे में ही सोिते हैं।
(ख) हम जागरूक बनना नहीां िाहते।
(ग) हम उनकी सहायता करना नहीां िाहते ।
(घ) हम सांिेदना शून्द्य हो िुके हैं।
(iii) गद्याांश के आधार पर बताइए कक बाल-श्रम को रोकने के सलए साथाक प्रयास क्यों ककए
जाने िाठहए?
(क) बाल-श्रम के कारण बचिों का बिपन तछन जाता है।
(ख) बाल-श्रम के कारण िे जल्ट्दी बड़े हो जाते हैं।
(ग) बाल-श्रम के कारण बचिों को घर पर ही रहना पड़ता है।
(घ) बाल-श्रम के कारण बचिों को विद्यालय आना नहीां पड़ता ।
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(v) बाल-श्रम जैसे सामाच्जक असभशाप से दे श को क्या नुकसान होता है ?
(क) बाल श्रम एक बचिे को बिपन के सभी लाभों से दरू रखता है ।
(ख) लाखों बचिे उधित सशक्षा से िांधित हो जाते हैं।
(ग) बचिों का शारीररक मानससक और सामाच्जक विकास अिरुद्ध हो जाता है
(घ) बाल-श्रम से दे श का आने िाला कल अांधकार की ओर जाने लगता है।
ब) तनम्नसलखखत दो में से ककसी एक पद्याांश को ध्यानपि
ू क
ा पठढए और उस पर
आधाररत प्रश्नों के उत्तर सही विकल्ट्प िुनकर सलखखए
1x5=5
लक्ष्य तक पहुांिे बबना, पथ में पधथक विश्राम कैसा।
लक्ष्य है अतत दरू दग
ु म
ा , मागा भी हम जानते हैं,
ककां तु पथ के कांटकों को, हम सुमन नहीां मानते हैं,
जब प्रगतत का नाम जीिन, यह अकाल विराम कैसा।
धनुष से जो छूटता है, बाण कब मग में ठहरता,
दे खते ही दे खते िह, लक्ष्य का भी भेद करता,
लक्ष्य प्रेररत बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसा।
बस िही है पधथक जो पथ पर तनरां तर अग्रसर हो,
हो सदा गततशील च्जसका, लक्ष्य प्रततक्षण तनकटतर हो।
हार बैठे जो डगर में पधथक उसका नाम कैसा।
बाल रवि की स्िणा ककरणें, तनसमष में भू पर पहुांिती
कासलमा का नाश करती, ज्योतत जगमग जगत धरती,
ज्योतत के हम पुांज, कफर हमको अमा से भीत कैसा।
आज तो अतत ही तनकट है , दे ख लो यह लक्ष्य अपना,
पग बढाते ही िलो, बस शीघ्र होगा सत्य सपना।
धमा पथ के पधथक को कफर दे ि दक्षक्षण िाम कैसा।
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(iii) ज्योतत के पुांज ककन्द्हें कहा गया है?
(क) जो सदा राह के अांधकार से लड़ते रहे (ख) जो तनरां तर अपने पथ पर अग्रसर रहते हैं
(ग) उपयक्
ुा त दोनों सही हैं (घ) उपयक्
ुा त दोनों गलत है
(v) उपयक्
ुा त पद्याांश में आए हुए ' तनसमष' शब्द का अथा है
(क) अांधकार में (ख) सांध्या समय
(ग) पलक झपकते ही (घ) मध्य राबि में
अथिा
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(ग) युद्ध का अिसर आना | (घ) पेड़ों को काटकर भी ततृ त न होना
व्याकरण
(iii) आनांद िार ठदन गाँि में रहा। िह सबका वप्रय हो गया। इस िाक्य का सांयुक्त िाक्य में
रूपाांतरण होगा
(क) आनांद िार ठदन गाँि में रहा और सबका वप्रय हो गया |
(ख) जब आनांद िार ठदन गाँि में रहा, तब िह सबका वप्रय हो गया
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(ग) आनांद िार ठदन गाँि में रहकर सबका वप्रय हो गया |
(घ) आनांद जब िार ठदन गाँि में रहा तो िह सबका वप्रय हो गया |
II.तनदे शानस
ु ार ककन्द्ही िार प्रश्नों के उत्तर सलखखए 1× 4= 4
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(v) तनम्नसलखखत में से कौन सा भाि िाचय का सही विकल्ट्प है?
(क) आओ, िहाँ बैठे | (ख) आओ िहाँ बैठा जाए ।
(ग) अब िहाँ बैठते हैं। (घ) िलो अब िहाँ बैठे।
III.तनदे शानस
ु ार ककन्द्ही िार प्रश्नों के उत्तर सलखखए 1× 4= 4
(v) शाबाश! तम
ु ने बहुत अचछा काया ककया। रे खाांककत पद का पररिय है
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(क) मध्यम पुरुषिािक सिानाम, एकििन, कताा कारक |
(ख) तनजिािक सिानाम, एकििन, कताा कारक
(ग) मध्यम पुरुषिािक सिानाम, बहुििन, कताा कारक ।
(घ) उत्तम पुरुषिािक सिानाम, एकििन, कमा कारक ।
(iv) 'हनुमान की पूांछ में लगन न पाई आग, लांका ससगरी जल गई गए तनशािर भाग' में
अलांकार है-
(क) अततशयोच्क्त (ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा। (घ) यमक।
(पाठ्य पुस्तक)
गद्य खांड
3. तनम्नसलखखत गद्याांश को पढकर पूछे गए प्रश्नों के सही विकल्ट्प िुनकर सलखखए। 1×5=5
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हनुमान जयांती के अिसर पर यहाां 5 ठदनों तक शास्िीय एिां उप शास्िीय गायन िादन की
उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बबच्स्मल्ट्ला खाां अिश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रतत अत्यधधक
समवपात उस्ताद बबच्स्मल्ट्ला खाां की श्रद्धा काशी विश्िनाथ जी के प्रतत भी अपार है। िे जब
भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्िनाथ ि बालाजी मांठदर की ठदशा की ओर मुांह करके बैठते
हैं, थोड़ी दे र ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का तयाला घुमा ठदया जाता है और भीतर की
आस्था रीड के माध्यम से बजती है। खाां साहब की एक रीड 15 से 20 समनट के अांदर गीली
हो जाती है तब िे दस
ू री रीड का इस्तेमाल कर सलया करते हैं।
(iv) काशी से बाहर के कायाक्रमों में बबच्स्मल्ट्ला खाां ककनके प्रतत अपनी आस्था प्रकट करते हैं?
(क) काशी विश्िनाथ के प्रतत (ख) काशी विश्िनाथ और बालाजी के प्रतत
(ग) अपने गरु
ु के प्रतत (घ) अपने माता वपता के प्रतत
(i) बेटे की मत्ृ यु के पश्िात ् बालगोबबन भगत का आखखरी तनणाय क्या था?
(क) पतोहू को सांन्द्यास ठदलिाना (ख) पतोहू को सशक्षा ठदलिाना
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(ग) पतोहू को घर से तनकालना (घ) पतोहू का पुनविािाह करिाना
पद्य खांड
एक के नहीां,
दो के नहीां,
ढे र सारी नठदयों के पानी का जाद,ू
एक के नहीां,
दो के नहीां,
लाख-लाख कोठट-कोठट हाथों के स्पशा की गररमा,
एक की नहीां, दो कक नहीां,
हजार हजार खेतों की समट्टी का गुणधमा।
(iii) पानी, धूप और िायु के अततररक्त फसल अपने अच्स्तत्ि के सलए ककस पर आधाररत होती
है?
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(क) समट्टी के गुणों पर।
(ख) उसको खरीदने िाले व्यापाररयों पर।
(ग) उसकी दे खभाल करने िाले लोगों पर ।
(घ) उपयक्
ुा त सभी पर।
(ii) आत्मकथ्य कविता में िखणात "थकी सोई है मेरी मौन व्यथा" पांच्क्त का क्या आशय है ?
(क) कवि की व्यथा थक कर सो गई है
(ख) कवि ने अपनी पीड़ा को कभी प्रकट नहीां ककया है
(ग) कवि अभी िप
ु रहना िाहता है
(घ) इनमें से कोई नहीां
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प्रश्न 1. तनम्नसलखखत प्रश्नों में से ककन्द्हीां तीन प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में सलखखए।
2×3=6
(क) मानिता का विनाश करने के साधनों का अविष्कार करने की योग्यता सांस्कृतत है अथिा
असांस्कृतत? उधित कारण बताते हुए उत्तर दीच्जए।
(ख) बबच्स्मल्ट्ला खाां के काशी न छोड़ने के क्या कारण हो सकते हैं?
(ग) लेखखका मनु भांडारी अपने ही घर में हीन भािना का सशकार क्यों हो गई?
(घ)" लखनिी अांदाज" शीषाक की साथाकता तका सठहत ससद्ध कीच्जए
प्रश्न 2. तनम्नसलखखत प्रश्नों में से ककन्द्हीां तीन प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में सलखखए 2×3=6
प्रश्न 3. तनम्नसलखखत प्रश्नों में से ककन्द्ही दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 50- 60 शब्दों में सलखखए
4×2=8
(क) माता का अांिल पाठ के आधार पर बताइए कक एक बचिा ककस प्रकार अपने पाररिाररक
िातािरण से मूल्ट्यों को सीखता है ? आज के समय में मूल्ट्यों का विघटन ककस प्रकार हो रहा
है?
(ख) नठदयाां और झरने हमारे सलए दे िता समान हैं। साना-साना हाथ जोड़ड़ पाठ के आधार पर
उत्तर दीच्जए।
(ग)आज के दौर में विज्ञान का दरु
ु पयोग कैसे हो रहा है ? "मैं क्यों सलखता हूां" पाठ के आधार
पर सलखखए ।
सांकेत बबांद ु :- जांक फूड क्या होता है ? युिा पीढी और जांक फूड, जांक फूड खाने के दष्ु पररणाम।
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(ि) िेल और थवाथथ्य
5. अपनी सहे ली के खराब स्िास्थ्य के बारे में धिांता व्यक्त करते हुए उसकी कुशलक्षेम पूछने
के सलए लगभग 100 शब्दों मैं एक पि सलखखए।(5)
अथिा
आपके क्षेि में बबजली कटौती के कारण बढती हुई परे शातनयों के बारे में बताने के सलए ककसी
अखबार के सांपादक को लगभग 100 शब्दों में पि सलखखए।
7.लैपटॉप बनाने िाली कांपनी के सलए लगभग 60 शब्दों में एक आकषाक विज्ञापन तैयार
कीच्जए।(4)
अथिा
नई कार खरीदने पर भैया- भाभी को लगभग 60 शब्दों में एक शुभकामना सांदेश सलखखए।
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